दखल क्यों


Election enthusiasm cannot change the reality of Kashmir

राजदीप सरदेसाई  कश्मीर हमेशा चकित करता है और विधानसभा चुनाव भी इसका अपवाद नहीं हैं। अनंतनाग जिले के बिजबेहरा में पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती के चुनाव-अभियान का मुआयना करने जैसे ही हम पहुंचे, ट्रैफिक जाम में फंस गए। हमें तेज आवाजें सुनाई देने लगीं। हमें लगा कि शायद कोई विस्फोट या आतंकी हमला हुआ है, लेकिन हमारे ड्राइवर ने मुस्कराते हुए बताया : ‘चिंता मत कीजिए, ये लोग घरेलू टीम और श्रीनगर के बीच बिजबेहरा प्रीमियर लीग का फाइनल देखने दौड़े जा रहे हैं!’ क्रिकेट के दीवाने प्रशंसकों से भरा एक स्थानीय मैदान शायद ‘नए’ कश्मीर का सबसे शानदार दृश्य है। श्रीनगर के बीचों-बीच स्थित ऐतिहासिक लाल चौक पर उत्साहित दुकानदारों ने हमें बताया कि इलाके में बर्गर किंग और डोमिनोज की फ्रेंचाइजी खुलने वाली है। अतीत में लाल चौक की दुकानें अलगाववादी हुर्रियत के आह्वान पर बंद हो जाया करती थीं। लेकिन पिछले पांच सालों में, दुकानें सूर्यास्त के बाद तक खुली रहती हैं। श्रीनगर में हमारे होटल के मालिक ने हमें बताया कि 2023-24 उनके लिए अब तक का सबसे अच्छा कारोबारी साल रहा है। कोविड के दौरान, उन्होंने अपनी प्रॉपर्टी बेचने का मन बना लिया था, लेकिन अब वे पर्यटकों की भारी आमद से खुश हैं। बेहतर हाईवे कनेक्टिविटी से लेकर अनवरत बिजली आपूर्ति तक, कश्मीर सही रास्ते पर चलता मालूम होता है। लेकिन तसल्ली के इस अहसास को खत्म होने में ज्यादा समय नहीं लगता। श्रीनगर स्थित जामा मस्जिद में जुमे की नमाज खत्म हुई है। पहले यहां पत्थरबाजी आम बात थी, पर अब पुलिस की कड़ी निगरानी के बीच लोग मस्जिद से चुपचाप बाहर निकल रहे हैं। जब तक मैं कैमरा ऑन करके भीड़ से बातें करना शुरू नहीं करता, तब तक सब कुछ ठीक लगता है। लेकिन कुछ ही मिनटों में गुस्साई आवाजें मुझे परेशान करना शुरू कर देती हैं। एक बुजुर्ग व्यक्ति कहते हैं, अगर कश्मीर में सब ठीक है तो मीरवाइज फारूक को क्यों नजरबंद किया गया है? एक और गुस्साई आवाज कहती है, हम चुप हैं, इसका मतलब ये नहीं कि जो हो रहा है उसे कबूल लें। एक अन्य व्यक्ति ने कहा, हम डर में जी रहे हैं। इससे पहले कि हालात बेकाबू हो जाएं, एक पुलिस अधिकारी हमें बाहर ले जाते हैं। वे हमें याद दिलाते हैं कि अलगाववादी समूह हाशिए पर चले गए हैं, पर अलगाववादी मानसिकता कश्मीर में अभी जीवित है। इसी पृष्ठभूमि में कश्मीर में एक दशक बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। बुधवार को पहले चरण की वोटिंग हुई। तीनों चरणों में रिकॉर्ड मतदान हो सकता है। ऐसा लगता है जो लोग पत्थर और गोलियों को ही समाधान मानते थे, उन्हें एहसास हो गया है कि वोट की ताकत अधिक प्रभावी है। राजनीतिक दलों को भी समझ आ गया है कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद बदले हुए परिदृश्य में कठोर रुख के लिए कम गुंजाइश रह गई है। शायद यही वजह है कि उमर अब्दुल्ला ने दो क्षेत्रों से चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जबकि पहले उन्होंने कहा था वे चुनाव से दूर रहेंगे। एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भले ही चुनाव नहीं लड़ रही हों, लेकिन उन्होंने अपनी बेटी इल्तिजा को मैदान में उतारा है। घाटी में भाजपा की मौजूदगी नाममात्र की है, लेकिन कांग्रेस को उम्मीद है कि राहुल गांधी का ‘मोहब्बत की दुकान’ का संदेश मजबूती से गूंजेगा। लेकिन इस बार असली सुर्खियां बटोरने वाले छोटे दल और निर्दलीय हैं। मई में हुए लोकसभा चुनावों में इंजीनियर राशिद ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में बारामूला सीट पर दो लाख से अधिक वोटों से उमर अब्दुल्ला और सज्जाद लोन को हराकर सबको चौंका दिया था।​​ राशिद 2019 से तिहाड़ जेल में है, उस पर आतंकी फंडिंग मामले में यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए हैं। राशिद को तीन सप्ताह की जमानत दी गई है और उसकी अवामी इत्तेहाद पार्टी 34 सीटों पर मैदान में है। उसने प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के साथ एक ‘रणनीतिक’ गठबंधन भी किया है। क्या यह नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन को चुनौती देने का प्रयास है? 1990 के दशक में जब पंडितों को अपने घरों से भागने पर मजबूर होना पड़ा, तब ‘कश्मीरियत’ दफन हो गई थी। ‘इंसानियत’ तब मर गई, जब निर्दोष लोग आतंकियों की बंदूकों और राज्यसत्ता की ज्यादतियों के बीच फंस गए। और ‘जम्हूरियत’ सालों से आईसीयू में है। चुनावी उत्साह हकीकतों को नहीं बदल सकता! पुनश्च : बिजबेहरा में हमने लोगों से पूछा उनका प्रिय क्रिकेटर कौन है। कुछ ने विराट कोहली का नाम लिया, कुछ ने जसप्रीत बुमराह व रोहित शर्मा का, पर ज्यादातर ने कहा- बाबर आजम! कश्मीर में, सीमाएं अकसर एलओसी को लांघ जाती हैं! कश्मीर अब एक केंद्र-शासित प्रदेश बन गया है, जिसकी विधानसभा की शक्तियां नगरपालिका से भी कम हैं। परिसीमन ने घाटी की कीमत पर जम्मू का प्रतिनिधित्व बढ़ाया है। और प्रशासन की बागडोर एक अनिर्वाचित एलजी के हाथों में है।    

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Dakhal News 19 September 2024


Pager-attack has changed the definitions

अभिजीत अय्यर मित्रा हिजबुल्ला पर हुई टारगेटेड-स्ट्राइक मौजूदा दौर का संभवतः सबसे महत्वपूर्ण खुफिया अभियान है। शुरू में लगा कि साइबर-युद्ध की सरहदों को लांघकर गैजेट्स की हैकिंग के जरिए यह हमला किया गया है, क्योंकि फोन, पॉवर बैंक, पेजर आदि को विस्फोटक-सामग्री के रूप में डिजाइन नहीं किया जाता है। लेकिन बाद में स्पष्ट हुआ मामला कुछ और था। 1972 में इजराइल ने अपने पहले फोन-हत्याकांड को अंजाम दिया था। महमूद हमशारी नामक एक शीर्ष पीएलओ कमांडर पेरिस में रहता था। मोसाद एजेंट गुप्त रूप से उसके अपार्टमेंट में घुसने में कामयाब रहे और उसके लैंडलाइन फोन के निचले माइक्रोफोन में विस्फोटक लगा दिया। कुछ घंटों बाद, जब हमशारी आया तो उसे एक कॉल किया गया और एक रिमोट-ट्रिगर से विस्फोट को अंजाम दे दिया गया। तब से मोसाद कई बार इस शैली का इस्तेमाल कर चुका है, पर लगता है इजराइल के दुश्मन गलतियों से सबक नहीं लेते। समस्या यह भी है कि आधुनिक दुनिया में संचार-उपकरणों के बिना आप कैसे रह सकते हैं? इजराइल जैसी हाई-टेक शक्ति का सामना करने के लिए आपको उतना ही तेजतर्रार और तकनीकी रूप से परिष्कृत होना चाहिए। दिक्कत यह है कि आप जितनी परिष्कृत तकनीक का उपयोग करेंगे, इजराइल द्वारा उसे हैक करने की संभावना उतनी अधिक होगी। नई तकनीक की काट है पुरानी तकनीक। मिसाल के तौर पर, आधुनिक अमेरिकी स्टेल्थ फाइटर या बॉम्बर को आधुनिक रडार नहीं लोकेट कर सकता, हालांकि वे 1950 के दशक के पुराने रडार पर बहुत अच्छी तरह से नजर आते हैं- क्योंकि वे परिष्कृत एल्गोरिदम के लिए बहुत पुराने हैं और उन्हें गच्चा नहीं दिया जा सकता। हिजबुल्ला वाले चाहे कोई भी एन्क्रिप्टेड आधुनिक फोन खरीदते, इजराइल उन्हें पकड़ लेता, इसलिए उन्होंने पेजर नामक 1949 की तकनीक से काम चलाने का फैसला किया। ऐसा इसलिए था क्योंकि पेजर कई स्रोतों से सिग्नल प्राप्त कर सकते हैं- कुछ मामलों में 50-60 किमी दूर से भी। इसके अलावा हिजबुल्ला की रणनीति यह थी कि एक बार पेज किए जाने के बाद वे बस अपने आस-पास के किसी नागरिक के मोबाइल का उपयोग करने का अनुरोध करेंगे और इजराइल को सभी सेलफोन कम्युनिकेशन की निगरानी करनी होगी। यह एक बेहतरीन आइडिया था। लेकिन हिजबुल्ला का दुर्भाग्य था कि इजराइल का अनेक इलेक्ट्रॉनिक निर्माता के साथ किसी न किसी तरह का संबंध है, क्योंकि वह आधुनिक दुनिया की इलेक्ट्रॉनिक महाशक्तियों में से एक है। इस वाले मामले में, माना जा रहा है कि इजराइली खुफिया तंत्र ने ताइवान की उस कंपनी के यूरोपीय निर्माता को चिह्नित करने में कामयाबी हासिल की, जिसने हिजबुल्ला के लिए पेजर बनाए थे। ऑर्डर देने के बाद, इजराइली एजेंटों ने हर डिवाइस की बैटरी में शक्तिशाली विस्फोटक लगा दिए। इस बात के कोई विवरण नहीं हैं कि यह कहां पर किया गया था- बैटरी निर्माताओं के प्लांट में? पेजर निर्माण प्लांट में? या ऑर्डर की शिपिंग के दौरान? लेकिन इस ऑपरेशन में आठ महीने से सवा साल के बीच का समय लगा है। इजराइल पहले यह सुनिश्चित करना चाहता था कि ऑर्डर किए गए सभी उपकरण सैन्य कमांडरों को वितरित किए गए हों। दूसरे, वो चाहता था कि हमला एक साथ हो। एक बीप के साथ सभी 5000 उपकरणों में एक साथ विस्फोट कर दिया गया। बीप होने पर सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया यह होती है कि तुरंत जेब से पेजर निकाल लिया जाए। जिन्हें जल्दी नहीं होती, वे पेजर को जेब में ही रहने देते हैं। इन हमलों में विस्फोट से पेजर-धारकों की आंखों, हाथों और जांघों पर गम्भीर चोट पहुंची है। हिजबुल्ला के लगभग 500 शीर्ष लोगों ने आंखें खो दी हैं। ईरानी राजदूत भी चोटिल हुए हैं। 1866 में डायनामाइट के आविष्कार के बाद से कोई भी टारगेटेड-ऑपरेशन इतने सटीक तरीके से हजारों लोगों को निशाना बनाने में सफल नहीं रहा है। ड्रोन से किए प्रहार भी अपने लक्ष्य को मार देते हैं, लेकिन उसमें निर्दोष लोगों को भी बहुत नुकसान होता है। लेकिन इस मामले में हरेक पेजर-धारक एक हिजबुल्ला-कमांडर था। एक सामान्य व्यक्ति भला क्यों 1949 की तकनीक वाले पेजर का इस्तेमाल करेगा, खासकर जब एंड्रॉइड फोन बहुत कम कीमत पर खरीदे जा सकते हैं? विस्फोटक के बेहद छोटे आकार के कारण को-लैटरल डैमेज लगभग शून्य है। हिजबुल्ला एक छोटा संगठन है। कमांड-स्तर पर उसके पास सिर्फ पांच से सात हजार लोग थे। इसका मतलब यह है कि पेजर-हमले ने पूरी हाईकमान को तहस-नहस कर दिया है, जिसे फिर से बनाने में कई साल लग जाएंगे! 1866 में डायनामाइट के आविष्कार के बाद से कोई भी टारगेटेड-ऑपरेशन इतने सटीक तरीके से हजारों लोगों को निशाना बनाने में सफल नहीं रहा है। इस वाले मामले में हरेक पेजर-धारक एक हिजबुल्ला-कमांडर था!

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Dakhal News 19 September 2024


A fiery attempt to seek immortality

नवनीत गुर्जर  राजनीति क्या है? वो हर परिस्थिति में निराश न होने वाली दिलेरी है! नफरत को मणि समझकर अपने मस्तिष्क में संभाले रखने वाली दिलेरी भी है!… और सपनों को ताश के पत्तों की भांति मिलाकर और बांटकर कोई खेल खेलने वाली दिलेरी भी! जिसमें कोई भी हार शाश्वत नहीं होती और कोई भी जीत स्थायी नहीं होती…क्योंकि पत्ते फिर से मिलाए या फेटे जा सकते हैं और जीत की आस फिर से बांधी जा सकती है! ‘आप’ वाले अरविंद केजरीवाल इस वक्त इनमें से किस दिलेरी को जी रहे हैं, ये तो वे ही जानें, लेकिन इतना सच है कि उनकी दुविधा विकट थी। पहाड़ जैसा संकट यही था कि कुछ महीनों के लिए ही सही, अपनी कुर्सी पर किसे बैठाएं? राजनीति के चक्रव्यूह और इसकी निष्ठाओं से तो वे भी भली-भांति परिचित हैं ही! दरअसल, दुविधा यह थी कि कब कोई जीतन राम मांझी बन जाए, कब कोई चंपई सोरेन हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता। खैर, गहन मंथन के बाद आखिर वे अपनी विश्वस्त आतिशी को ‘डमी’ सीएम के रूप में चुनने में कामयाब हो गए। ‘डमी’ इसलिए कि कुर्सी पर चाहे जो बैठे, सिक्का तो केजरीवाल का ही चलता रहेगा, जैसा पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाने पर जेल में बैठी जयललिता का चलता था। पन्नीरसेल्वम मुख्यमंत्री बनकर भी जयललिता की कुर्सी छोड़कर बगल वाली कुर्सी पर बैठा करते थे और छाती से चिपकी जेब में उनका फोटो हमेशा रखते थे। कभी फोन आ जाए तो कुर्सी से उठकर बात किया करते थे। इस तरह की प्रतिबद्धता नक्की करने के बाद ही केजरीवाल ने भी आतिशी को उत्तराधिकारी चुना होगा, यह तय है। अब सवाल यह उठता है कि यह पूरी कवायद आखिर क्यों? जब जेल में रहते हुए कुर्सी नहीं छूटी तो अब उसी प्यारी कुर्सी को बाहर (जमानत पर) आकर लतियाने का मतलब क्या? जवाब आसान है। अगली जनवरी-फरवरी में दिल्ली विधानसभा के चुनाव हैं। केजरीवाल इन चार-पांच महीनों को अग्निपरीक्षा का समय मान रहे हैं। वे इसमें से पवित्रता का वरदान चाह रहे हैं। कह रहे हैं कि अब जनता से पूछेंगे वह उन्हें ईमानदार मानती है या बेईमान? अगर ईमानदार मानती है तो जिताकर ईडी-सीबीआई सबको झूठा साबित कर दे। अगर वे जीत जाते हैं तो चार महीने के लिए कुर्सी छोड़कर जो अमरता वे चाह रहे थे, वह भी मिल जाएगी और चूंकि उनके नारे पर ही जीत मिलेगी, इसलिए पार्टी के भीतर किसी जीतन राम या किसी चंपई के उठ खड़े होने की संभावना भी पूरी तरह क्षीण हो जाएगी। आखिर केजरीवाल की राजनीतिक चेतना उस बालबुद्धि के समान तो नहीं ही है, जिसे हर वस्तु एक अचंभा लगती है या जिसे छोटी से छोटी वस्तु में बड़ी दिलचस्पी पैदा हो जाती है।... और जो पल में बिलख पड़ती है और पल में हर्षित हो जाती है। वे चतुर सुजान हैं और राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी भी। हालांकि चुनावी जीत किसी के ईमानदार होने की गारंटी नहीं हो सकती। इससे पहले भी जेल जाने या भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे होने के बाद भी जयललिता, करुणानिधि और ऐसे कई नेताओं ने प्रचंड जीत पाई है। फिर भी केजरीवाल की इस्तीफा-रणनीति है कमाल की! क्योंकि भले चार महीने के लिए हो या चार दिन के लिए, हिंदुस्तान में कुर्सी छोड़ना, रोटी छोड़ने से भी कठिन काम है। यही वजह है कि केजरीवाल अपने इस त्याग को छाती चीरकर दिखाएंगे। आगामी दिल्ली विधानसभा के चुनाव में भी और मौजूदा हरियाणा चुनाव में भी। भाजपा हालांकि केजरीवाल के इस ‘त्याग’ को नौटंकी बताते नहीं थक रही है, लेकिन सच ये है कि केजरीवाल का प्रचार-अभियान हरियाणा में उसे (भाजपा को) नई ऊर्जा देने वाला है। ‘आप’ को जितने वोट मिलेंगे, भाजपा को उतना फायदा होगा। जहां तक दिल्ली के चुनाव का सवाल है, यहां तो सुषमा स्वराज, मदनलाल खुराना और डॉ. हर्षवर्धन के बाद भाजपा के पास कोई स्थायी, स्थानीय और चुनाव-जिताऊ चेहरा ही नहीं रहा! कुर्सी छोड़ना कठिन है... केजरीवाल की इस्तीफा-रणनीति है कमाल की! क्योंकि भले चार महीने के लिए हो या चार दिन के लिए, हिंदुस्तान में कुर्सी छोड़ना, रोटी छोड़ने से भी कठिन काम है। चुनावों में केजरीवाल अपने इस त्याग को छाती चीरकर दिखाएंगे।    

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Dakhal News 18 September 2024


the custom of changing surname for women

मेघना पंत  मुंबई में पंत जैसे सरनेम के साथ मेरा जीवन आसान नहीं था। शाह, पटेल, देसाई, भंसाली, चोखानी, जिंदल, असरानी जैसे सरनेम वाली दुनिया में पहाड़ी सरनेम से मैं असहज स्थिति में पड़ जाती थी। कई बार उपहास के बाद मैं शादी तक का सोचने लगी थी, ताकि पंत सरनेम बदल सकूं, जो तब मुझे असहज कर देने वाला लगता था! लेकिन जब मेरी शादी हुई तो एक विचित्र चीज हुई। अब मैं अपना सरनेम नहीं बदलना चाहती थी। क्यों? इसके कई कारण थे। पर मूल में ये था कि यह न सिर्फ उस चीज को त्याग देना था, जिसने मुझे अलग बनाया, बल्कि यह अपनी पहचान को भी छोड़ना होता।हमारे देश में यह परंपरा रही है कि शादी के बाद महिलाएं अपना सरनेम बदल देती हैं। हालांकि अब समय बदल गया है। एक बड़ा बदलाव आया है, जहां कई भारतीय महिलाएं शादी से पहले का सरनेम रखे हुए हैं और खुशहाल शादीशुदा जीवन बिता रही हैं। पहला, यह कई व्यावहारिक कारणों से है, जिसकी कई परते हैं। आज महिलाएं हर पेशे में बराबरी से काम कर रही हैं। एक बार जब वे अपना नाम बना लेती हैं तो फिर बाद में नाम (उपनाम) बदलकर अपनी उपलब्धियां यूं ही क्यों ज़ाया होने देंगी? महिलाएं सबकुछ झेल रही हैं, यहां तक कि बच्चा पैदा करने और उसे पालने की चुनौती भी बखूबी निभा रही हैं, ऐसे में उनका पेशेवर स्टेटस उनकी वैवाहिक स्थिति पर निर्भर क्यों होना चाहिए? और फिर कागज-पत्री भी है। डिजिटलीकरण के बावजूद किसी के लिए सरनेम बदलना उतना ही कष्टदायी है। महिलाएं आज सिर्फ कमा ही नहीं रही हैं, वे जानती हैं कि खर्च कैसे करें, निवेश कहां करें और कैसे बचाएं। कल्पना करिए, एक महिला के लिए किस तरह का दुःस्वप्न होगा, जहां उसे निवेश के दस्तावेजों, संपत्ति रिकॉर्ड, पासपोर्ट, लाइसेंस, रजिस्ट्रेशन आदि में सरनेम बदलवाना पड़े। कौन-सी समझदार महिला सिर्फ पति के अहंकार की पूर्ति के लिए ऐसा करेगी, जबकि वह यह ऊर्जा अधिक पैसा कमाने और निवेश में लगा सकती है? यह प्रथा महिलाओं को वस्तु के रूप में मानती है जो केवल उनके पिता, फिर पति की है, जहां उसकी खुद की पहचान नहीं है। आपका नाम आपको परिभाषित करता है। कल्पना करें, आपके व्यक्तित्व, आपकी उपलब्धियों, सपनों, आपकी विरासत, आपकी स्वायत्तता के साथ-साथ इसे भी छोड़ दें। इसमें क्या तुक है? विवाह में एक-दूसरे के साथ प्रतिबद्धताओं का दायरा व्यापक होना चाहिए, जहां व्यक्तिगत पहचान कायम रहने के साथ पेशेवर निरंतरता भी बनी रहे, ना कि इसमें उथल-पुथल मच जाए। शादियां तब बेहतर चलेंगी, जब यह महिलाओं को उनकी आजादी और उनकी अहमियत का अहसास कराए और पुरुषों को महिलाओं की आजादी का सम्मान करने के लिए प्रेरित करे। विवाह महिलाओं के लिए जेल नहीं होना चाहिए, बल्कि बेहतर कल की दिशा में एक कदम होना चाहिए। जब कानून कहता है कि सरनेम बदलना व्यक्तिगत अधिकार है, ऐसे में क्या समाज को यह नहीं समझना चाहिए? एक महिला का शादी से पहले वाला सरनेम रखना उसकी व्यक्तिगत और व्यावसायिक उपलब्धियों के लिए सम्मान का प्रतीक है, और यही उसे एक अच्छी पत्नी बनाता है। अगली बार जब आप किसी विवाह में जाएं तो याद रखें कि अगर कोई पति से उसका सरनेम बदलने के लिए नहीं कह रहा, तो पत्नी से भी ऐसा नहीं कहना चाहिए।

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Dakhal News 18 September 2024


Visible garbage is clean

प्रो. चेतन सिंह सोलंकी  इंदौर ने कचरे की सफाई में पूरे देश में अपना नाम स्थापित किया है और लगातार सात वर्षों तक भारत के स्वच्छतम शहर होने का खिताब जीता है। लेकिन न केवल इंदौर बल्कि पूरी दुनिया के सामने एक और बड़ी चुनौती है : अदृश्य यानी न दिखाई देने वाले कचरे से निपटना। यह दिखने वाले कचरे से अधिक खतरनाक होता है। जब कोई समस्या स्पष्ट दिखती है तो उसका समाधान निकाला जा सकता है, जैसे कचरा अलग करना, एकत्र करना और प्रोसेस करना। लेकिन उस दुश्मन से कैसे निपटें, जिसे न देखा जा सकता है, न सूंघा जा सकता है, न महसूस किया जा सकता है? सभी लोग अपनी ऊर्जा सम्बंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रत्यक्ष रूप से बिजली, पेट्रोल और डीजल आदि का उपयोग करते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से कपड़े, सीमेंट और फर्नीचर जैसे सामान का। दुर्भाग्यवश, अधिकांश ऊर्जा स्रोत कार्बन आधारित हैं और उनके उपयोग से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। आपको पता है ये अदृश्य और गंधहीन सीओ2 वायुमंडल में 300 साल तक रहती है और वैश्विक तापमान बढ़ाने व जलवायु परिवर्तन में योगदान देती है? इस खतरे से निपटना अधिक जरूरी है। इंदौर ने कचरा प्रबंधन, उसकी री-साइकलिंग और स्वच्छता में निरंतर प्रयासों के माध्यम से भारत का सबसे स्वच्छ शहर होने का गौरव प्राप्त किया है। स्वच्छ सर्वेक्षण रैंकिंग में लगातार शीर्ष पर रहने के पीछे कचरा शून्य कॉलोनियों, खाद बनाने की पहल, निवासियों और प्रशासन के सामूहिक प्रयासों का बड़ा योगदान है। इसके लिए इंदौर नगर निगम के प्रयास सराहनीय हैं। लेकिन इन असाधारण उपलब्धियों के बावजूद, इस शहर और दुनिया को एक और बड़ी चुनौती का सामना करना है- वातावरण में उत्सर्जित कार्बन रूपी कचरे की सफाई। दिखाई देने वाले कचरे का प्रबंधन महत्वपूर्ण है फिर भी ग्रीनहाउस गैसों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड का अनियंत्रित उत्सर्जन कहीं अधिक विनाशकारी है। ये महसूस ना होने वाली और निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो दीर्घकालिक रूप से पर्यावरण के लिए खतरा है। भारत के स्वच्छतम शहर के रूप में, इंदौर को अब अगले स्तर पर जाकर एक जलवायु-सचेत शहर की भी भूमिका निभानी चाहिए। मेरा सुझाव है कि ‘इंदौर क्लाइमेट मिशन’ या ‘इंदौर क्लीन क्लाइमेट मिशन’ जैसी किसी पहल की शुरुआत की जाए। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अतिरिक्त समर्पण और सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता है- इन्हीं की वजह से इंदौर कचरा-प्रबंधन में अग्रणी बना। इस पहल के लिए जरूरी है, ऊर्जा की सही समझ और यह समझना कि कैसे ऊर्जा हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गई है। ऊर्जा साक्षरता के महत्त्व के विषय में चर्चा जरूरी है, न केवल विद्यार्थियों के लिए बल्कि कॉर्पोरेट्स और पूरे समाज के लिए भी। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि सीमित संसाधनों वाली दुनिया में बर्बादी, अत्यधिक और बिना सोचे-समझे की गई खपत न केवल वर्तमान, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को भी प्रभावित करेगी। हम सबको न केवल जलवायु परिवर्तन के कारण को समझना चाहिए, बल्कि ऐसे मिशन में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए और जलवायु सुधार के लिए कदम उठाने चाहिए। इंदौर नगर निगम और नगरवासी अपने इनोवेशन को जारी रख सकते हैं, लेकिन साथ ही कार्बन उत्सर्जन को करने, रिन्युएबल ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने और सस्टेनेबल जीवनशैली को बढ़ावा देने की भी जरूरत है। ऊर्जा खपत को कम करके, जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को कम करके और पर्यावरण के लिए उचित कदम उठाकर इंदौर अन्य शहरों के लिए एक पथ-प्रदर्शक बन सकता है। कचरा प्रबंधन और जलवायु-सुधार कार्रवाई दोनों में शहर का नेतृत्व एक स्वच्छ, हरित भविष्य की ओर एक वैश्विक आंदोलन को प्रेरित कर सकता है।

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Dakhal News 17 September 2024


Wrestlers, farmers and soldiers

संजय कुमार  पिछले एक दशक से हरियाणा में सत्ता पर काबिज भाजपा के सामने इस बार कड़ी चुनौती है, क्योंकि मतदाताओं में भाजपा के प्रति नाराजगी है। कांग्रेस को फायदा हो सकता है, हालांकि कई छोटे क्षेत्रीय दल अकेले या गठबंधन में मैदान में हैं। जननायक जनता पार्टी (हाल तक हरियाणा में भाजपा सरकार में सहयोगी) अब चंद्रशेखर आजाद की आजाद पार्टी के साथ गठबंधन में है और बसपा, इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) और आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन में लगभग सभी 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। लेकिन अधिकतर सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के पास हरियाणा विधानसभा चुनाव जीतने का अच्छा मौका इसलिए है, क्योंकि उसे सत्ता विरोधी वोटों का सबसे बड़ा फायदा होगा, बल्कि इसलिए भी क्योंकि कांग्रेस को इस समय हरियाणा के मतदाताओं के बीच अच्छा समर्थन प्राप्त है। 2024 के लोकसभा चुनावों में उसका प्रदर्शन इसका प्रमाण है। क्षेत्रीय दल भले ही महत्वपूर्ण संख्या में सीटें न जीत पाएं, लेकिन अगर भाजपा विरोधी वोट बंटते हैं तो वे कांग्रेस के लिए खेल जरूर बिगाड़ सकते हैं। हरियाणा में भाजपा केवल एंटी-इनकम्बेंसी के कारण ही अपने को मुश्किल स्थिति में नहीं पाती है, उसके लिए यह भी नुकसानदायक हो सकता है कि टिकट न मिलने से पार्टी के नेताओं में बड़े पैमाने पर नाराजगी है और वे दलबदल कर रहे हैं। चुनाव से पहले अभी तक तीन दर्जन से अधिक नेता पार्टी छोड़ चुके हैं, जिनमें से कुछ तो गैर-जाट समुदायों में भाजपा की रीढ़ रहे हैं। इस रणनीति को ही भाजपा ने पिछले एक दशक के दौरान सफलतापूर्वक अपनाया था। यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि पिछले पांच सालों में हरियाणा में भाजपा के जनाधार में गिरावट आई है। लोकसभा चुनावों में भाजपा 46.1% वोटों के साथ 10 में से 5 सीटें जीतने में सफल रही थी, जबकि कांग्रेस 43.7% वोटों के साथ शेष 5 सीटें भाजपा से छीनने में सफल रही। भाजपा के वोट-शेयर में 12% (2019 की तुलना में) की गिरावट आई, जबकि कांग्रेस ने 2019 के अपने वोट-शेयर में 15.3% वोट जोड़े। ये इस बात का संकेत है कि हरियाणा में हवा किस तरफ बह रही है। यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि 2019 के लोकसभा चुनावों के कुछ महीने बाद जब 2019 में ही हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए थे, तो भाजपा ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया था। उसे 36.5% वोट और 40 सीटें मिली थीं। हरियाणा के मतदाताओं ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सभी 10 सीटों पर जीत दिलाई थी, लेकिन राज्य में अपनी सरकार चुनने के लिए अलग तरीके से मतदान करने का फैसला किया। जबकि तब तो पहलवान, किसान और जवान के मुद्दे भी मौजूद नहीं थे। तब जनता में राज्य सरकार और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के प्रदर्शन को लेकर नाराजगी थी। अगर भाजपा लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बावजूद 2019 के विधानसभा चुनाव में अच्छी जीत हासिल नहीं कर सकी, तो अब अपने प्रदर्शन में सुधार कैसे करेगी? 2019 में जब भाजपा हरियाणा में अपनी सरकार का बचाव कर रही थी, तो उसे पांच साल की एंटी-इन्कम्बेंसी का सामना करना पड़ रहा था। अब तो 10 साल पुरानी एंटी-इन्कम्बेंसी है। 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाना एक तरह से भाजपा द्वारा लोगों की नाराजगी को स्वीकार करना था। चुनाव में भाजपा को कुछ हद तक सजा मिली। नतीजों के बाद भी वोटरों का मूड बदला हुआ नहीं दिख रहा है। हरियाणा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भाजपा की निर्भरता की भी परख होने वाली है। लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वेक्षणों से पता चलता है कि नरेंद्र मोदी की अपने व्यक्तिगत करिश्मे के दम पर भाजपा के लिए वोट जुटाने की क्षमता विधानसभा चुनावों की तुलना में लोकसभा चुनावों में कहीं ज्यादा मजबूत होती है। दूसरी तरफ 2019 के मुकाबले अब हरियाणा में राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ रही है। कांग्रेस ने अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है, लेकिन उसका राज्य-नेतृत्व (भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा) अलग-अलग समूहों में विभाजित होने के बावजूद मनोहर लाल खट्टर और नायब सिंह सैनी वाले भाजपा के राज्य नेतृत्व की तुलना में अधिक सशक्त दिखता है। इससे कांग्रेस बेहतर स्थिति में जरूर है, लेकिन कुछ सीटों पर उसके वे नाराज नेता जरूर खलल डाल सकते हैं, जो टिकट नहीं मिलने से क्षुब्ध हैं। कांग्रेस को इस पर नजर रखना होगी और पार्टी में भितरघात सहित छोटे क्षेत्रीय दलों को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति बनानी होगी। पहलवान, किसान और जवान : ये तीन मुद्दे हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीत की कुंजी साबित हो सकते हैं।

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Dakhal News 17 September 2024


In adulthood, patience sacrifice is necessary

पं. विजयशंकर मेहता  सामान्य मनुष्य को उम्र की चार अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है- बचपन, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था। अब इसका भी विस्तार है। वृद्धावस्था के बाद एक जरावस्था भी आती है, जिसमें आदमी बिस्तर पकड़ लेता है। आज हम एक उम्र की बात करेंगे, ये प्रौढ़ावस्था है। समझने के लिए देखें, तो यह उम्र का वह दौर है, जिसमें हमारे माता-पिता जीवित होते हैं और हम माता-पिता बन चुके होते हैं। अब दो पीढ़ियों के बीच में ये प्रौढ़ावस्था की पीढ़ी है। इस समय पारिवारिक जीवन में सबसे ज्यादा चुनौती इसी उम्र के लोगों के सामने है। बीते की स्मृति है और जो भविष्य आ रहा है उसकी चुनौती है। बूढ़े आदमी का पहला बचपन वर्षों पहले चला गया और दूसरा बचपन अभी चल रहा है। इधर प्रौढ़ व्यक्ति के साथ होता यह है कि ‘आती जवानी, चलती जवानी और जाती जवानी’ तीनों एक साथ चल रही हैं। ऐसे स्थिति में स्वयं के भीतर त्याग की वृत्ति को खूब तैयार करें, बड़े-बूढ़ों के साथ समर्पण का भाव रखें और बच्चों के लिए धैर्य और समझ से काम करें तो ये उम्र भी आनंद देगी।

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Dakhal News 16 September 2024


Do you freeze in the fridge convenience or for media

एन. रघुरामन  हाल ही में जब मैंने एक विदेशी पत्रिका में ‘रोमांटिसाइजिंग यॉर रेफ्रिजरेटर’ शीर्षक से एक आर्टिकल पढ़ा तो मुझे एक पुरानी तमिल कहावत याद आ गई कि “कपड़े ऐसे पहनें जो दूसरों को सुहाएं और खाना ऐसा खाएं जो आपके शरीर को सुहाए’। वो इसलिए क्योंकि यह आर्टिकल इस बारे में था कि कैसे लोग आजकल अपने फ्रिज को सजावटी सामान से जमा रहे हैं या सीख रहे हैं कि कैसे रेफ्रिजरेटर के दरवाजे पर मिल्क या जूस के कार्टन जमाएं, साथ ही इसमें ये कहा कि क्यों लोग इन दिनों ऐसे रेफ्रिजरेटर खरीदते हैं, जिनके दोनों तरफ दरवाजे खुलें, ताकि सामान तीन जगहों पर फैलाकर रख सकें- बाएं दरवाजा, दायां दरवाजा और खुद फ्रिज में! और यह “फ्रिजस्केपिंग’ कहलाता है, जो दो शब्दों का मेल है- ‘फ्रिज, कीपिंग।’ तब मुझे अहसास हुआ कि लोग सेहत या स्वाद के लिए नहीं बल्कि इंस्टाग्राम रील्स बनाने के लिए अपनी किचन डिजाइन कर रहे हैं और खाने-पीने का सामान ला रहे हैं, फिर भले ही वह सेहत के लिए ठीक हो या नहीं! वे यह दिखाना चाहते हैं कि वो कौन-सी महंगी खाने-पीने की चीज इस्तेमाल करते हैं, वो भी रोजमर्रा में। कई लोग, जो वीकेंड पर कहीं बाहर जाने, नए कपड़े, छुट्टियों की तस्वीरों आदि नहीं दिखा पाते, उनके लिए सोशल मीडिया पर लोगों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए ये कंज्यूमेबल्स सस्ता विकल्प है। ऐसा नहीं है कि हमारी मांओं ने कभी किचन नहीं जमाया। हॉरलिक्स की वो आधा किलो की कांच की बोतल मेरी मां की पसंदीदा थी। हॉरलिक्स खत्म होने के बाद वह बोतल खाने का दूसरा सामान रखने के काम आती थी। इसके अलावा घर में रीफिल करने वाला ऐसा कोई दूसरा आइटम नहीं होता था। वह नियमित तौर पर वो बोतल जमा करतीं और किचन का सारा सामान उनमें जमाकर रख देतीं। इन बोतलों को हर पंद्रह दिन में मां धोती थीं ताकि ये धुंधली न दिखें। मां यह सब इसलिए नहीं करती थी क्योंकि वह “शेल्फकेपिंग’ करना चाहती थीं या किसी को दिखाने के लिए तस्वीरें लेना चाहती थीं, बल्कि इसे सुविधाजनक बनाने के लिए करती थीं, ताकि बच्चों समेत घर का कोई भी सदस्य किचन में आकर उन पारदर्शी बोतल में रखा सामान देख सके। दिलचस्प बात थी कि हमारे घर अलग-अलग मसाले जैसे मिर्ची-धनिया पाउडर, जीरा, हल्दी आदि रखने के लिए कभी भी छह या नौ खाने वाला मसाले का डिब्बा नहीं रहा। हॉरलिक्स की बोतल शेल्फ में पीछे रखते थे, जबकि सामने किसान जैम की बॉटल्स रखते थे। उन दिनों खाली बोतलें और एक ही रंग के प्लास्टिक के ढक्कन अलग-अलग बेचना अच्छा बिजनेस था। मैं हमेशा से चाहता था कि हमारे बच्चे अपनी अलमारी से वैसी मोहब्बत रखें! वो इसलिए क्योंकि मैंने हमेशा अनुभव किया है कि अगर गलती से मैंने अपनी बेटी की अनुपस्थिति में उसकी अलमारी खोल दी, तो अलमारी मुझ पर चीख पड़ती। अगर इसे भाषा में ढाल पाते, तो इसमें से चंद टी-शर्ट निकालते ही जमीन पर गिरकर कहतीं, ‘अच्छा हो गया, आपने डोर खोला, दम घुट रहा था अंदर।’ जब मैंने बेटी को मारी-कॉन्डो के वीडियो दिखाए, जिनके लाखों फॉलोअर्स हैं, जहां वो अलमारी को बिना अस्त-व्यस्त किए साफ रखना बताती हैं, तो मेरे लिए उसकी अलमारी नहीं छूने का फरमान जारी हो गया। दिलचस्प है कि आज के बच्चे हमें सिखा रहे हैं कि कैसे ‘फ्रिजस्केपिंग’ करें! वे नहीं जानते कि हम उस जमाने के हैं, जहां हमें यकीन दिलाया गया कि अगर घर में सफाई रहती है, तभी लक्ष्मी निवास करती हैं। इसलिए हमने दवाओं का दराज, किताबों की अलमारी, किचन शेल्फ, दराज व सभी सदस्यों द्वारा इस्तेमाल एक अलमारी को गंदा या अस्त-व्यस्त नहीं रखा। यही कारण था कि उन दिनों हमारी अलमारियां अच्छे से सांस लेती थीं। फंडा यह है कि सोशल मीडिया की जगह हमारे घर के दराजों और दरवाजों से बाहर होनी चाहिए, नहीं तो आप अपनी निजता मोबाइल स्क्रॉल करते रहने वालों के हवाले कर देंगे, जो फिर हर पहलू पर आपके जीवन को आदेश देंगे। इसलिए सावधान रहें।  

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Dakhal News 16 September 2024


Only with the help of strangers

एन. रघुरामन  कार्नेगी हीरो फंड वर्ष 1904 से अब तक 9500 से ज्यादा लोगों को पुरस्कृत कर चुका है। यह पुरस्कार पाने वाले हर विजेता ने दूसरों की जान बचाने की कोशिश में असाधारण रूप से अपनी जान जोखिम में डाली। ज्यादातर मामलों में, जिन लोगों की जान बचाई गई, वे पूरी तरह अजनबी थे। मुझे यह पुरस्कार तब याद आया जब मैंने 24 वर्षीय आदिवासी महिला मंतोशी गजेंद्र चौधरी की कहानी सुनी। महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित और आदिवासी बहुल जिले गढ़चिरौली के भामरागड तालुका के अरेवाड़ा गांव में इस रविवार 8 सितंबर को मंतोशी को प्रसव पीड़ा शुरू हुई। लेकिन भारी बारिश के चलते बाढ़ से उनके गांव समेत जिले के अधिकांश हिस्से का संपर्क टूट गया था और परिवहन व संचार मुश्किल हो गया था। राज्य आपदा राहत बल के सहयोग से परिवार वाले और पड़ोसी उसे कमर तक भरे पानी में किसी तरह गांव के अस्पताल लेकर आए, जहां 9 सितंबर सोमवार को उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया। पर दुर्भाग्य से प्रसव के दौरान मंतोशी का ज्यादा खून बह गया, जिसके चलते उन्हें कम से एक थैली रक्त चढ़ाने की तत्काल जरूरत थी, ताकि प्रसव के बाद होश में लाया जा सके और स्वास्थ्य सुधार हो। लेकिन मामला उलझ गया क्योंकि मरीज का रक्त समूह दुर्लभ “बी-निगेटिव’ था और अधिकांश स्वास्थ्य केंद्रों में यह आसानी से उपलब्ध नहीं था। उस युवा मां को बचाने की जीवटता ने स्थानीय डॉक्टर्स को भामरागड और उसके आसपास पूछताछ करने के लिए मजबूर किया और आखिरकार फोन गढ़चिरौली जिला अस्पताल पहुंचा, जहां पता चला कि पूरे जिले में दुर्लभ बी-निगेटिव रक्त की केवल एक थैली उपलब्ध थी। लेकिन स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने 150 किलोमीटर दूर से खून की उस एक थैली को पहुंचाने के भरसक प्रयास किए, जबकि वह ये जानते थे यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य होने जा रहा है क्योंकि वहां तक पहुंचने वाली अधिकांश सड़कें बंद हैं और बारिश अभी भी रुकने का नाम नहीं ले रही। भामरागड तक की अधिकांश सड़कें बंद थीं, लेकिन स्वास्थ्य अधिकारी किसी भी कीमत पर खून को पहुंचाने की कोशिशें कर रहे थे। एक एंबुलेंस से उस बहुमूल्य रक्त को पहुंचाने की कोशिश हुई। लेकिन भाग्य को अभी और परीक्षा लेना बाकी था। अहेरी, जहां मंतोशी जिंदगी और मौत से लड़ रही थीं, वहां से महज 50 किलोमीटर पहले एंबुलेंस फंस गई। उससे आगे की सड़क पूरी तरह बह गई थी और पर्लकोटा नदी तटबंध तोड़ते हुए पुल के ऊपर से बह रही थी। विकराल बाढ़ के चलते नाव से रक्त पहुंचाने का निर्णय भी टाल दिया गया। उस मां से ज्यादा अब उनके रिश्तेदार और स्वास्थ्य अधिकारी इस कार्य से इतना जुड़ गए थे कि किसी चमत्कार की प्रार्थना कर रहे थे। नसीब से बारिश थम गई और 11 सितंबर बुधवार को सुबह मौसम अचानक साफ हो गया, जिसके चलते अधिकारियों ने रक्त पहुंचाने का एक और प्रयास शुरू किया। एक ओर अस्पताल का दृश्य और दूसरी ओर वह जगह, जहां से उस रक्त को पहुंचाने का निर्णय लिया जा रहा था, वो किसी फिल्म के क्लाइमेक्स की तरह लग रहे थे। खुशकिस्मती से उनके पास एक हेलीकॉप्टर था, जो उस समय उड़ान के लिए फिट था और उन्होंने इसे उस मानवीय कार्य में लगाने के लिए तैनात कर दिया। अगले तीस मिनट में उस हेलीकॉप्टर ने खून की वो थैली वहां पैराड्रॉप कर दी दी और वापस अपने बेस कैंप आ गया। अस्पताल में चिकित्सकों ने सुकून से अपने काम को अंजाम दिया। इस तरह उस मां की हालत स्थिर हुई। 2.9 किलो वजन का उनका नवजात भी स्वस्थ है और अपने खुशहाल परिवार के साथ वह बच्चे की देखभाल करने की स्थिति में है।

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Dakhal News 14 September 2024


Who will decide how we rein in AI

नीरज कौशल एआई तीखी प्रतिक्रियाओं को जन्म देती है। इसका प्रयोग करने वाले शीर्ष वैज्ञानिक कहते हैं कि यह मनुष्यों द्वारा निर्मित सबसे रोमांचक तकनीक है। वहीं एआई को लेकर आशान्वित लोगों का कहना है कि यह दुर्लभ बीमारियों के लिए इलाज प्रदान करेगी, संक्रामक रोगों के लिए टीके ईजाद करेगी, ​स्किल्स के अभाव को पूरा करेगी, दूर-दराज के क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लाने का काम करेगी, कल्याणकारी सेवाओं की डिलीवरी को आसान बनाएगी और गरीबी को खत्म कर देगी। ये भविष्यवाणियां किसी सुदूर भविष्य के लिए नहीं, बल्कि यह सब बस कुछ ही दशकों में होने जा रहा है। आप इसे एआई का अमृत काल भी कह सकते हैं! दूसरी तरफ एआई के कटु-आलोचक हैं, जो चेतावनी देते हैं कि यह मनुष्यों का सबसे खतरनाक सृजन है। दार्शनिक-इतिहासकार युवाल नोआ हरारी ने अपनी नई किताब ‘नेक्सस’ में चेतावनी दी है कि एआई में पूरी सभ्यता को नष्ट करने की क्षमता है। उनका कहना है कि एक नया विश्व युद्ध असंभव नहीं लगता। लेकिन वह देशों के बीच नहीं बल्कि एआई- जिसे वे एलीयन इंटेलीजेंस कहते हैं- और मानव जाति के बीच होगा। हरारी कहते हैं एआई इतनी तेजी से विकसित हो रही है कि हमें नहीं पता हम अपने युवाओं को ऐसा क्या सिखाएं, जो 20 साल बाद भी प्रासंगिक हो। यदि एआई के पिछले 2-3 वर्षों के अनुभवों को देखें तो संकेत मिलता है कि भविष्य में दोनों ही बातें सही साबित हो सकती हैं। बहस के दोनों पक्षों में हमारे समय के कुछ सबसे उज्ज्वल, महत्वाकांक्षी और इनोवेटिव दिमाग शामिल हैं। बिल गेट्स कहते हैं, एआई लोगों के काम करने, सीखने, यात्रा करने, हेल्थकेयर प्राप्त करने और एक-दूसरे से संवाद करने के तरीके को बदल देगा। जिस गति से एआई विकसित हो रहा है, उसने वैज्ञानिकों को आश्चर्यचकित कर दिया है। हरारी का कहना है कि यह जैविक विकास की तुलना में दस लाख गुना तेजी से विकसित हो रहा है। यानी जैविक विकास में जिसे दस लाख साल लगे, उसे डिजिटल विकास एक साल में हासिल कर लेगा! डर इस बात का है कि क्या एआई बुद्धिमत्ता में अपने सृजनकर्ता मनुष्यों से भी आगे निकल जाएगी? और अगर ऐसा है, तो क्या यह अपने मालिक को गुलाम भी बना सकती है? मौजूदा साक्ष्यों से तो ऐसा लगता है कि पहले सवाल का जवाब हां है। हाल ही में अमेरिका में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की बैठक में, मॅक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर द साइंस ऑफ लाइट के भौतिक विज्ञानी मारियो क्रेन ने अपने सहकर्मियों के साथ प्रकाशित एक लेख के बारे में बताया कि इस पेपर के मुख्य लेखकों में से किसी ने भी इसमें वर्णित विचारों को नहीं सोचा था। उनके विचार मशीन से आए थे। हम केवल यह विश्लेषण कर रहे हैं कि मशीन ने क्या किया है। इंटरनेट पर ऐसे ही अन्य वैज्ञानिकों के किस्से भरे पड़े हैं, जो ए आई का उपयोग कर रहे हैं। कंप्यूटर वैज्ञानिक जेफ्री हिंटन- जिन्हें एआई का गॉडफादर भी कहा जाता है- कहते हैं, हमें गंभीरता से सोचना चाहिए कि इन चीजों को अपने पर नियंत्रण करने से कैसे रोकें। यह कौन तय करेगा कि एआई पर लगाम कैसे और कब लगाई जाए? एआई यकीनन हमारा भविष्य है, लेकिन हम इसे कैसे नियंत्रित करेंगे? इसके उपयोग के नियम कौन लिखेगा और उन्हें कौन लागू करेगा? क्या पूरी पृथ्वी के लिए एक ही नियम होगा, जिसे कोई सुपर-सरकारी संस्था लागू करेगी? या क्या प्रत्येक देश अपने स्वयं के नियम बनाएगा? एक ऐसे युग में हैं, जिसमें लोग वैकल्पिक तथ्यों पर विश्वास करते हैं और राष्ट्रों और समाजों के बीच परस्पर-भरोसा घट गया है। मानव जाति एआई के संचालन के नियम स्थापित करने में भले सक्षम हो जाए, लेकिन उन नियमों को सीखने और उनसे बचने के लिए क्या करना होगा? आई में बड़े कॉर्पोरेट्स ही सबसे ज्यादा पैसा लगा रहे हैं, जिनकी बुनियादी चिंता खेल में आगे रहना और अपने मुनाफे को बढ़ाते रहना है। उनका लक्ष्य अपने बाजार का आकार बढ़ाना, प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में तेजी से बढ़ना और इनोवेशन के लिए एल्गोरिदम का उपयोग करना है। सरकारें इस बात से चिंतित नहीं हैं कि एआई मानवता को कैसे प्रभावित करेगी, उनकी चिंता इस बात को लेकर है कि दूसरे देशों द्वारा एआई के उपयोग से उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा। सरकारें एआई को अपने दुश्मन या मानवता का उत्थान करने वाले एसेट के रूप में नहीं देखतीं। बहुत संभावना है कि वे दुनिया पर दबदबा स्थापित करने के लिए और अन्य देशों की सुरक्षा-प्रणालियों में सेंध लगाने के लिए एआई का उपयोग करना चाहती हों!  

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Dakhal News 14 September 2024


Political conflict from Ganpati Puja

नवनीत गुर्जर ये विवादों का देश है। फिलहाल देश में गणेश उत्सव चल रहा है और विवाद भी गणपति पूजा को लेकर ही शुरू हो गया है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाराष्ट्रियन पोशाक पहनकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ( सीजेआई) चंद्रचूड़ के घर चले गए थे। वहाँ उन्होंने गणपति पूजा भी की। प्रधानमंत्री ने गणपति की आरती उतारी और गाई सीजेआई ने। विपक्ष ने इस पर हंगामा कर दिया। विपक्ष का कहना है कि राजनीति और न्यायिक व्यवस्था दोनों में एक मर्यादा होती है। एक लक्ष्मण रेखा होती है। इसका पालन होना ही चाहिए। अगर मुख्य न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री को गणपति पूजा का आमंत्रण दिया भी था तो इसकी वीडियोग्राफ़ी करने की क्या ज़रूरत थी? या प्रचार की आवश्यकता क्यों पड़ी? जवाब में भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि कांग्रेस के सत्ताकाल में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इफ़्तार पार्टी दी थी और उसमें तब के मुख्य न्यायाधीश शामिल हुए थे तब कांग्रेस और बाक़ी पार्टियों ने ऐतराज क्यों नहीं किया? सवाल यह है कि इफ़्तार पार्टी हो या गणपति पूजा, कोई भी किसी के कार्यक्रम या उसके आमंत्रण पर कहीं भी जा सकता है। इसमें ऐतराज कैसा? आख़िर किसी सीजेआई या किसी प्रधानमंत्री की निजी और सामाजिक ज़िंदगी है या नहीं? फिर किसी प्रधानमंत्री के किसी सीजेआई के घर पूजा करने जाने से क्या सीजेआई के फ़ैसलों पर असर पड़ सकता है? नहीं। हमारी संवैधानिक संस्थाएँ इतनी भी कमजोर नहीं हैं कि किसी के किसी के घर जाने से प्रभावित हो जाएं! वे कश्मीर वाले फारुख अब्दुल्ला भी प्रधानमंत्री के सीजेआई के घर जाने की निंदा कर रहे हैं, जिन्होंने कश्मीर में अपना राज रहते हुए किसी कानून, किसी संवैधानिक संस्था की परवाह नहीं की। वे उद्धव ठाकरे जिनकी पार्टी सालों तक भाजपा के साथ रही, वे भी कह रहे हैं कि सीजेआई चंद्रचूड़ को हमसे जुड़े हुए न्यायिक मामलों से खुद को अलग कर लेना चाहिए! आख़िर ये कैसी बहस है? ये कैसा दौर है जहां मुख्य न्यायाधीश के फ़ैसलों, उनकी शिद्दत और ईमानदारी पर शक किया जा रहा है! सिर्फ़ इसलिए कि देश के प्रधानमंत्री ने उनके घर जाकर गणपति पूजा में हिस्सा ले लिया? सही है, राजनीति में और न्यायिक तंत्र में एक मर्यादा और एक लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए, लेकिन इसके लिए किसी सीजेआई या किसी प्रधानमंत्री की धार्मिक भावनाओं को हाशिए पर कैसे डाला जा सकता है?  

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Dakhal News 13 September 2024


Women are benefiting from cash schemes

डेरेक ओ ब्रायन भारत की श्रम-शक्ति में महिलाओं की भागीदारी दर सिर्फ 28% है। भारत में हर तीन में से एक युवा शिक्षा, रोजगार या प्रशिक्षण संबंधी किसी गतिविधि में सम्मिलित नहीं है और इसमें भी 95% महिलाएं हैं। प्रबंधकीय पदों पर हर पांच पुरुषों पर एक महिला है। ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2023 में भारत 146 देशों में 127वें स्थान पर है। नीति आयोग के एक सर्वेक्षण के अनुसार 18 से 49 वर्ष की दस में से तीन महिलाओं ने अपने पति की हिंसा सही है। चुनावी घोषणा-पत्रों, संसदीय भाषणों या आंतरिक प्रस्तावों में, हर दल आपको बताएगा कि महिलाओं को ‘आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने की आवश्यकता है।’ कहना आसान है, करना मुश्किल। चुनौती यह है कि जब महिलाएं श्रम-शक्ति के दायरे से बाहर हैं, तो उन्हें आर्थिक आजादी कैसे देंगे? यहीं पर प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) का परिदृश्य में प्रवेश होता है। डीबीटी से मिलने वाली आय का अधिकांश हिस्सा महिला अपने विवेक से खर्च करती है। इन योजनाओं के माध्यम से कम आय वाले परिवारों को लक्षित करना विशेष रूप से फायदेमंद है, क्योंकि ये परिवार आय का बड़ा हिस्सा भोजन व ईंधन जैसी बुनियादी आवश्यकताओं पर खर्च करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे निचले स्तर पर मौजूद 20% परिवार अपनी आय का 53% भोजन पर खर्च करते हैं, जबकि इसी वर्ग के शहरी परिवार 49% खर्च करते हैं। उच्च-खपत के इन पैटर्न को देखते हुए, डीबीटी के माध्यम से दिया गया अधिकांश पैसा वापस अर्थव्यवस्था में चला जाता है। लेकिन अगर डीबीटी की राजनीति की बात करें तो यह इतनी स्पष्ट नहीं है। इस योजना से चुनाव जीतने की गारंटी नहीं मिलती। जनवरी 2020 में शुरू की गई वाईएसआरसीपी की जगन्नाना अम्मावोडी योजना इस साल के लोकसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के लिए जादू नहीं कर पाई। लेकिन तेलंगाना में कहानी अलग थी। केसीआर की बीआरएस को इस बात का अफसोस हो रहा होगा कि उनके पास ऐसी कोई डीबीटी योजना नहीं थी। कांग्रेस की महालक्ष्मी योजना- जो उसके अपने कर्नाटक (गृह लक्ष्मी) मॉडल से प्रेरित थी- को 2023 में तेलंगाना विधानसभा में बड़ी जीत के बाद बहुत जोर-शोर से पेश किया गया था, और उसने 18वीं लोकसभा में भरपूर चुनावी लाभ दिया। महाराष्ट्र में सरकार ने इस साल जून में बजट के दौरान लड़की बहन योजना की घोषणा की। पहली किश्त अगस्त में महिलाओं के बैंक खातों में पहुंच गई। दूसरी किश्त अक्टूबर के मध्य में लाभार्थियों तक पहुंचने की संभावना है। क्या यही कारण है कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के साथ महाराष्ट्र के चुनावों की घोषणा नहीं की गई? क्या लड़की बहन योजना एनडीए सरकार को बचाने के लिए काफी होगी? महाराष्ट्र के अलावा, असम और मध्य प्रदेश जैसे एनडीए-राज्य भी ऐसी ही योजनाएं चलाते हैं। वहीं इस तरह के विपक्षी राज्यों में तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब शामिल हैं। बंगाल में भी लक्ष्मी भंडार योजना है। अमर्त्य सेन के प्रतीची ट्रस्ट ने कहा है कि नकद प्रोत्साहनों ने महिलाओं की आर्थिक निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाया है और परिवार में उनकी स्थिति में सुधार किया है। अध्ययन में कहा गया है कि पांच में से चार महिलाएं अपनी इच्छा से पैसे खर्च करती हैं और दस में से एक पति से बातचीत करने के बाद पैसे खर्च करने का तरीका तय करती है। महिलाओं ने खुद बताया कि परिवार में उनकी स्थिति में सुधार हुआ है। ये सभी योजनाएं पूरी तरह से राज्यों द्वारा प्रायोजित हैं। फिर केंद्र सरकार के अधीन भी 53 मंत्रालय हैं, जो 315 डीबीटी योजनाएं चलाते हैं। इनमें से 13 महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से संबंधित हैं। लेकिन योजनाओं को लागू करने में मंत्रालय का रिकॉर्ड बहुत खराब है और डीबीटी प्रदर्शन रैंकिंग में वह 53 मंत्रालयों में से 31वें स्थान पर है। दिलचस्प बात यह है कि ऐसी कोई केंद्रीय योजना नहीं है, जो सभी महिलाओं को सीधे वित्तीय सहायता हस्तांतरित करती हो या विशेष रूप से कम आय वाली महिलाओं को लक्षित करती हो। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को वित्तीय सहायता देती है। इस साल की शुरुआत में अमित शाह ने कहा था, हम डीबीटी योजना (लक्ष्मी भंडार) को बंद नहीं करेंगे। उलटे सहायता राशि 100 रु. बढ़ा देंगे। आईएमएफ तक ने भारत की डीबीटी योजनाओं को लॉजिस्टिकल चमत्कार करार दिया है। तो क्या हमें राष्ट्रीय स्तर पर इसके लागू होने का इंतजार करना चाहिए! नकद प्रोत्साहनों ने महिलाओं की आर्थिक निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाया है और परिवार में उनकी स्थिति में सुधार किया है। अध्ययन में कहा गया है कि पांच में से चार महिलाएं अपनी इच्छा से पैसे खर्च करती हैं।  

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Dakhal News 13 September 2024


Women are benefiting from cash schemes

डेरेक ओ ब्रायन भारत की श्रम-शक्ति में महिलाओं की भागीदारी दर सिर्फ 28% है। भारत में हर तीन में से एक युवा शिक्षा, रोजगार या प्रशिक्षण संबंधी किसी गतिविधि में सम्मिलित नहीं है और इसमें भी 95% महिलाएं हैं। प्रबंधकीय पदों पर हर पांच पुरुषों पर एक महिला है। ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2023 में भारत 146 देशों में 127वें स्थान पर है। नीति आयोग के एक सर्वेक्षण के अनुसार 18 से 49 वर्ष की दस में से तीन महिलाओं ने अपने पति की हिंसा सही है। चुनावी घोषणा-पत्रों, संसदीय भाषणों या आंतरिक प्रस्तावों में, हर दल आपको बताएगा कि महिलाओं को ‘आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने की आवश्यकता है।’ कहना आसान है, करना मुश्किल। चुनौती यह है कि जब महिलाएं श्रम-शक्ति के दायरे से बाहर हैं, तो उन्हें आर्थिक आजादी कैसे देंगे? यहीं पर प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) का परिदृश्य में प्रवेश होता है। डीबीटी से मिलने वाली आय का अधिकांश हिस्सा महिला अपने विवेक से खर्च करती है। इन योजनाओं के माध्यम से कम आय वाले परिवारों को लक्षित करना विशेष रूप से फायदेमंद है, क्योंकि ये परिवार आय का बड़ा हिस्सा भोजन व ईंधन जैसी बुनियादी आवश्यकताओं पर खर्च करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे निचले स्तर पर मौजूद 20% परिवार अपनी आय का 53% भोजन पर खर्च करते हैं, जबकि इसी वर्ग के शहरी परिवार 49% खर्च करते हैं। उच्च-खपत के इन पैटर्न को देखते हुए, डीबीटी के माध्यम से दिया गया अधिकांश पैसा वापस अर्थव्यवस्था में चला जाता है। लेकिन अगर डीबीटी की राजनीति की बात करें तो यह इतनी स्पष्ट नहीं है। इस योजना से चुनाव जीतने की गारंटी नहीं मिलती। जनवरी 2020 में शुरू की गई वाईएसआरसीपी की जगन्नाना अम्मावोडी योजना इस साल के लोकसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के लिए जादू नहीं कर पाई। लेकिन तेलंगाना में कहानी अलग थी। केसीआर की बीआरएस को इस बात का अफसोस हो रहा होगा कि उनके पास ऐसी कोई डीबीटी योजना नहीं थी। कांग्रेस की महालक्ष्मी योजना- जो उसके अपने कर्नाटक (गृह लक्ष्मी) मॉडल से प्रेरित थी- को 2023 में तेलंगाना विधानसभा में बड़ी जीत के बाद बहुत जोर-शोर से पेश किया गया था, और उसने 18वीं लोकसभा में भरपूर चुनावी लाभ दिया। महाराष्ट्र में सरकार ने इस साल जून में बजट के दौरान लड़की बहन योजना की घोषणा की। पहली किश्त अगस्त में महिलाओं के बैंक खातों में पहुंच गई। दूसरी किश्त अक्टूबर के मध्य में लाभार्थियों तक पहुंचने की संभावना है। क्या यही कारण है कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के साथ महाराष्ट्र के चुनावों की घोषणा नहीं की गई? क्या लड़की बहन योजना एनडीए सरकार को बचाने के लिए काफी होगी? महाराष्ट्र के अलावा, असम और मध्य प्रदेश जैसे एनडीए-राज्य भी ऐसी ही योजनाएं चलाते हैं। वहीं इस तरह के विपक्षी राज्यों में तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब शामिल हैं। बंगाल में भी लक्ष्मी भंडार योजना है। अमर्त्य सेन के प्रतीची ट्रस्ट ने कहा है कि नकद प्रोत्साहनों ने महिलाओं की आर्थिक निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाया है और परिवार में उनकी स्थिति में सुधार किया है। अध्ययन में कहा गया है कि पांच में से चार महिलाएं अपनी इच्छा से पैसे खर्च करती हैं और दस में से एक पति से बातचीत करने के बाद पैसे खर्च करने का तरीका तय करती है। महिलाओं ने खुद बताया कि परिवार में उनकी स्थिति में सुधार हुआ है। ये सभी योजनाएं पूरी तरह से राज्यों द्वारा प्रायोजित हैं। फिर केंद्र सरकार के अधीन भी 53 मंत्रालय हैं, जो 315 डीबीटी योजनाएं चलाते हैं। इनमें से 13 महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से संबंधित हैं। लेकिन योजनाओं को लागू करने में मंत्रालय का रिकॉर्ड बहुत खराब है और डीबीटी प्रदर्शन रैंकिंग में वह 53 मंत्रालयों में से 31वें स्थान पर है। दिलचस्प बात यह है कि ऐसी कोई केंद्रीय योजना नहीं है, जो सभी महिलाओं को सीधे वित्तीय सहायता हस्तांतरित करती हो या विशेष रूप से कम आय वाली महिलाओं को लक्षित करती हो। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को वित्तीय सहायता देती है। इस साल की शुरुआत में अमित शाह ने कहा था, हम डीबीटी योजना (लक्ष्मी भंडार) को बंद नहीं करेंगे। उलटे सहायता राशि 100 रु. बढ़ा देंगे। आईएमएफ तक ने भारत की डीबीटी योजनाओं को लॉजिस्टिकल चमत्कार करार दिया है। तो क्या हमें राष्ट्रीय स्तर पर इसके लागू होने का इंतजार करना चाहिए! नकद प्रोत्साहनों ने महिलाओं की आर्थिक निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाया है और परिवार में उनकी स्थिति में सुधार किया है। अध्ययन में कहा गया है कि पांच में से चार महिलाएं अपनी इच्छा से पैसे खर्च करती हैं।  

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Dakhal News 13 September 2024


Be it elections or any ordinary day

नवनीत गुर्जर जम्मू- कश्मीर और हरियाणा में चुनाव चल रहे हैं। इस वक्त चुनाव प्रचार अपने चरम पर है। सभी राजनीतिक दल एक- दूसरे पर आरोप- प्रत्यारोप लगाने में उलझे हुए हैं। राजनीतिक नैतिकता कहती है कि कोई कितना भी बडा विरोधी हो, उस पर आरोप लगाते वक्त मर्यादा का ख़्याल ज़रूर रखना चाहिए। संयम भी ज़रूरी है। बात किसी एक दल या पार्टी की नहीं है, सभी दल या उनके नेता एक दूसरे पर मर्यादा छोड़कर आरोप लगा रहे हैं। कोई कह रहा है हरियाणा वाले भूपेन्द्र हुड्डा दरअसल, भाजपा की बी पार्टी हैं। वे खुद को बचाने के लिए भाजपा से मिल गए हैं। इस बीच कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे बुधवार को कश्मीर में एक अलग ही स्तर पर चले गए। उन्होंने प्रधानमंत्री पर तो झूठ बोलने के आरोप लगाए ही, यह भी कह दिया कि लोकसभा चुनाव में अगर हमें बीस सीटें और मिल जाती तो ये भाजपा वाले आज जेल में होते! आख़िर इसका क्या मतलब समझा जाए? खरगे साहब कहना क्या चाहते हैं? क्या आप किसी पार्टी या उसके नेताओं से बदला लेने के लिए केंद्र की सत्ता में आना चाहते हैं? फिर बीस सीटें और मिल जातीं, इसका तात्पर्य क्या है? क्यों रह गए पीछे? बीस और सीटें जीतने से आपको या आपकी कांग्रेस को आख़िर किसने रोक रखा था? एक तरफ़ विदेश जाकर राहुल गांधी ने कोहराम मचाया हुआ है और दूसरी तरफ देश के भीतर खरगे साहब से अपने ग़ुस्से पर क़ाबू नहीं पाया जा रहा है। बेशक आप चुनाव जीतिए। सारे राज्यों में सरकार बना लीजिए। अगला लोकसभा चुनाव भी जीत लीजिए, लेकिन आरोप लगाते वक्त मर्यादा का तो ख़्याल रखिए! ताकि कल को जब आप पर या आपकी पार्टी पर कोई आरोप लगाया जाए तो आप कह सकें कि यह राजनीतिक नैतिकता या मर्यादा के खिलाफ है। कुल मिलाकर शब्दों की अपनी मर्यादा होती है और उसे बनाए रखना बहुत ज़रूरी है। सामान्य जीवन में भी। परिवार और समाज में भी। सार्वजनिक जीवन से जुड़े हुए लोगों, राजनेताओें नेताओं के लिए तो ये सबसे ज़्यादा जरूरी है।

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Dakhal News 12 September 2024


Mamta has made mistakes in Kolkata rape

बरखा दत्त  इस सप्ताह ममता बनर्जी ने बताया कि कोलकाता पुलिस प्रमुख ने इस्तीफा देने की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने त्यौहारों का मौसम होने के कारण इसे नहीं स्वीकारा। उन्होंने एक बार फिर राजनीतिक सूझबूझ की कमी को दर्शाया। ममता के व्यक्तित्व में हमेशा से ही एक तरह की उग्रता रही है और इसी ने उन्हें मजबूत जमीनी राजनेता बनाया, लेकिन कोलकाता के आरजी कर हॉस्पिटल में एक युवा डॉक्टर के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या के बाद से ही उन्होंने अपने व्यक्तित्व के इस गुण का हठपूर्वक दुरुपयोग किया है। टीएमसी सरकार की सबसे बड़ी गलती आरजी कर कॉलेज के बदनाम पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष को तुरंत बर्खास्त न करना थी। अब तक इस बात के पर्याप्त साक्ष्य मिल चुके हैं कि घोष कॉलेज में भय का साम्राज्य चला रहा था। मैंने कॉलेज की दो छात्राओं से बात की है, जिन्होंने बताया कि एक समय तो उन्होंने घोष के उत्पीड़न से तंग आकर आत्महत्या तक करने का मन बना लिया था। कॉलेज के एक पूर्व अधिकारी अख्तर अली ने बताया कि एक महिला डॉक्टर ने उन्हें बताया उसका भी यौन उत्पीड़न किया गया था। कॉलेज में मरीजों के मृत शरीरों और बायोमेडिकल कचरे के अंडरग्राउंड कारोबार के बारे में कई सबूत मिले हैं। यह भी स्पष्ट है कि घोष के खिलाफ शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या के बाद क्या-क्या हुआ? हम जानते हैं कि कॉलेज के अधिकारियों ने युवा डॉक्टर के माता-पिता से झूठ बोला और कहा कि उनकि बेटी ने आत्महत्या कर ली है। हम जानते हैं कि घोष के करीबी माने जाने वाले लोग उस सेमिनार हॉल के इर्द-गिर्द घूमते पाए गए, जो कि मौका-ए-वारदात है। हम जानते हैं कि मृत्यु की घोषणा में कम से कम तीन घंटे की देरी की गई और तुरंत ही हत्या व दुष्कर्म की एफआईआर दर्ज नहीं कराई गई। इस सबके बावजूद, घोष की नौकरी नहीं जाती। उसका दूसरे सरकारी मेडिकल कॉलेज में तबादला कर दिया जाता है। जब प्रदर्शनकारी छात्र उसे उसमें प्रवेश नहीं करने देते तो टीएमसी क्या करती है? वह अपने दो नेताओं- एक राज्य मंत्री और एक विधायक को भेजकर छात्रों को मनाने की कोशिश करती है कि वे घोष को स्वीकार लें। अंत में हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करके उसे बर्खास्त करना पड़ता है; लेकिन पहले यह पूछा जाता है कि घोष इतना शक्तिशाली क्यों है कि उसकी मदद के लिए सरकारी वकील नियुक्त किया गया है? अब टीएमसी के नेता कह रहे हैं कि घोष को जिन वित्तीय अनियमितताओं के लिए गिरफ्तार किया गया है (जिनकी शिकायतों को अतीत में नजरअंदाज किया गया था), उनका डॉक्टर की हत्या से कोई संबंध नहीं है। लेकिन एक भी प्रदर्शनकारी डॉक्टर इससे सहमत नहीं है। पिछले महीने मैंने जितने भी डॉक्टरों से बात की, उनमें से हर एक का मानना ​​है कि संजय रॉय- जिसे अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया था- अकेले ऐसा नहीं कर सकता था। बंगाल के सबसे अच्छे कार्डियक सर्जनों में से एक डॉ. कुणाल सरकार का कहना कि बड़े पैमाने पर कवर अप हुआ है। और हर कोई जानता है कि घोष के बिना यह संभव नहीं था। घोष का बचाव करना ममता सरकार की पहली बड़ी गलती थी। दूसरी गलती थी कि पूरे देश, और विशेषकर कोलकाता में हो रहे विरोध-प्रदर्शनों को भाजपा और सीपीएम का राजनीतिक प्रतिशोध करार देना। खुद टीएमसी सांसद जवाहर सरकार ने पार्टी छोड़ने के बाद मुझसे कहा कि बेशक ममता के राजनीतिक विरोधी इसका फायदा उठाने की कोशिश करेंगे, लेकिन विरोध में हो रहे आंदोलन पार्टी की राजनीति से परे हैं। तीसरी बड़ी गलती पुलिस के खिलाफ कोई कार्रवाई न करना थी। स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आरजी कर कॉलेज में आधी रात को हुई तोड़फोड़- जिसमें हजारों उपद्रवियों ने डॉक्टरों के विरोध-स्थल को तहस-नहस कर दिया- पुलिस की विफलता थी। पुलिस प्रमुख को अगले ही दिन छुट्टी पर जाने के लिए कहा जाना चाहिए था। इसके बजाय टीएमसी ने उनकी सुरक्षा पर दोगुना जोर दिया। उसी रात नर्सिंग स्टाफ का अंजाम ‘पीड़िता के जैसा’ करने की धमकी दी गई थी और पुलिस उपद्रवियों को रोकने में असमर्थ या अनिच्छुक थी। डॉक्टरों को काम पर लौटने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश सरकार को राहत नहीं दे सकता। अगर सरकार डॉक्टरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करती है तो डॉ. सरकार के मुताबिक 12,000 इस्तीफे तैयार हैं। एकमात्र तरीका यह है कि मुख्यमंत्री डॉक्टरों की ओर सुलह का हाथ बढ़ाएं। अगर सरकार की प्रतिक्रिया शुरू से ही आक्रामकता के बजाय विनम्रता की होती, तो शायद यह स्थिति ही नहीं पैदा होती। अस्पताल में बड़े पैमाने पर कवर अप हुआ है। और हर कोई जानता है प्रिंसिपल घोष के बिना यह संभव नहीं था। लेकिन ममता सरकार पूरे देश में हो रहे विरोध-प्रदर्शनों को भाजपा और सीपीएम का राजनीतिक प्रतिशोध करार देने लगी।  

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Dakhal News 12 September 2024


Don

रश्मि बंसल  मेरे घर पर एक प्यारी सी बेटी है- माया। वो नटखट है, सयानी भी। बेहद प्यार करती है, डांट भी लगाती है। उसकी बड़ी बहन अपने दोस्तों की दुनिया में मशगूल है मगर माया मुझसे अब भी चिपक कर रहना चाहती है। मैं कहती हूं- ‘माया, बस’! - पर मुस्कराते हुए। आप शायद समझ गए होंगे, माया मेरी डॉगी है। कुत्ता एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो मनुष्य के साथ मिलजुल कर रहता है। युधिष्ठिर के वफादार कुत्ते के बारे में आपने सुना ही होगा। लेकिन महाभारत की शुरुआत में भी एक प्राणी की कहानी है। जब जन्मेजय भाइयों के साथ नागयज्ञ कर रहे थे, एक मासूम पिल्ला वहां आया और उसकी जमकर पिटाई की गई। इस पर उसकी मां ने जन्मेजय को शाप दिया कि एक दिन तुम्हारा कुल बरबाद हो जाएगा। कहने का मतलब ये कि हर प्राणी को जीने का अधिकार है और न्याय का हक भी। आजकल सोशल मीडिया पर दर्दनाक वीडियो आते हैं- कोई डॉग की दुम पर पटाखा लगाकर फोड़ रहा है तो कोई उस पर पत्थर फेंक रहा है। मूक प्राणी की पीड़ा से जिसे किक मिलती है वो कोई अत्यंत गया-गुजरा होगा। वैसे समाज में कई ऐसे लोग हैं जो स्ट्रीट डॉग से नफरत करते हैं। कोई उन्हें खाना खिलाता है, तो उस पर भी आपत्ति होती है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत मूक प्राणियों के भी कुछ अधिकार हैं। उनका शोषण एक अपराध है मगर उससे भी बड़ी क्रूरता है- थोड़े दिन पालकर फिर छोड़ देना। जी हां, आजकल डॉग पालना एक फैशन है। बच्चे को आपने बर्थडे पर गिफ्ट कर दिया, फिर पता चला कि रखना इतना आसान नहीं। रोज उसे घुमाना पड़ता है, खिलाना पड़ता है, वैक्सीन लगवानी पड़ती है। क्यूट-सा पपी एक दिन बड़ा हो जाता है और अब इतना क्यूट नहीं। फिर एक दिन आप उसे गाड़ी में बैठाकर कहीं दूर छोड़ देते हैं। भाई, मजा ले लिया खिलौने का, अब नहीं लुभाता। बेचारा वहां घंटों आपके इंतजार में बैठा रहता है। भूखा, प्यासा, उसकी आंखें आपको ढूंढ रही हैं। जरूर कोई गलती हुई है, वो मुझे लेने आएंगे। राह में चलते हुए प्राणियों के किसी हमदर्द को दया आती है। वो एनजीओ को बताता है। एनजीओ के पास रोज पांच-सात फोन आते हैं इस तरह के। उनके पास जगह नहीं, उनकी जेब तकरीबन खाली, मगर दिल नहीं मानता। उस कुत्ते को आश्रय देते हैं, इस आशा से कि आगे चलकर कोई एडॉप्ट करेगा। ये डॉग ज्यादा ‘ऊंची नस्ल’ वाले होते हैं। जो देखने में सुंदर माने जाते हैं, और जिनसे आपका ‘स्टेटस’ बढ़ता है। जैसे लेब्राडोर, गोल्डन रिट्रीवर, ल्हासा एप्सो इत्यादि। चूंकि इनकी डिमांड है, इन नस्लों का प्रजनन धंधा बन गया है। पैदा होते ही पिल्ले को मां से अलग करके बेच दिया जाता है। खैर लोगों के लिए ये एक ‘ब्रांडेड’ डॉग है, जैसे ब्रांडेड बैग या जूता। स्टेटस दिखाने के और भी तरीके हैं। पेट्स पालना जिम्मेदारी है, पूरे परिवार की सहमति से ऐसा निर्णय लें। और हां, खरीदिए मत- एडॉप्ट कीजिए। आपके शहर में जरूर कोई एनजीओ होगा, जानवरों के हित में काम करने वाला। वहां प्यारे-प्यारे मूक प्राणी आपका इंतजार कर रहे हैं। अब यूं नहीं कि आप किसी भी देसी कुत्ते को सड़क से उठा लो। अगर अकेला हो, मां आसपास नहीं, तो बात अलग है। कुत्ते पालने के साथ समाज को कुछ नियमों का भी पालन करना जरूरी है। एक प्यारा-सा डॉग अपना लीजिए, एक सच्चा साथी पा लीजिए।

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Dakhal News 11 September 2024


The last decade was of politics of religion

चेतन भगत  एक वरिष्ठ नेता ने एक बार मुझसे कहा था, भारत में राजनीति तीन बड़े फैक्टर्स- धर्म, जाति और अमीर-गरीब के इर्द-गिर्द ही चलती है। नीति निर्माण, सुशासन, विकास- ये सब अच्छी बातें हैं, लेकिन इन तीन चीजों से ही सब कुछ तय होता है। इसमें भी, अमीर-गरीब वाला फैक्टर एक सीमा के बाद मायने नहीं रखता, क्योंकि सभी दल दावा करते हैं कि वे गरीबों के पक्ष में हैं। अमीरों का पक्ष लेने में कोई फायदा नहीं है, जो वैसे भी अल्पसंख्यक हैं। इसीलिए सभी दलों में रेवड़ी-वितरण को लेकर होड़ रहती है। लेकिन राजनीति का असल खेल धर्म और जाति के नाम पर होता है। पिछला दशक धर्म के इर्द-गिर्द घूमता रहा। भाजपा स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार हिंदू वोटों को एक साथ लाने में कामयाब रही। यह धर्म से जुड़े मुद्दों की पहचान करके किया गया, जिन पर इससे पहले ध्यान नहीं दिया गया था। हर भारतीय रामायण देखते-सुनते हुए बड़ा हुआ। यह कहानी अयोध्या में घटित होती है। ऐसे में यह सोचना कि अयोध्या में कोई बड़ा राम मंदिर नहीं है, हिंदुओं को हैरान करता था। यह भावनात्मक मुद्दा भाजपा ने अपने हाथ में ले लिया। दशकों लग गए, लेकिन आखिरकार अयोध्या में मंदिर बन गया। इस जैसे मुद्दों ने सत्ता के लिए वोट हासिल करने में भाजपा की मदद की। इस बीच, जाति का मुद्दा अपेक्षाकृत रूप से निष्क्रिय रहा। कुछ विशेषज्ञों ने यह भी तर्क दिया कि शायद जाति अब इतना बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है। जातिगत भेदभाव शायद इस हद तक कम हो गया था कि यह अब मतदाताओं को आकर्षित नहीं करता। जाति आधारित आरक्षण भी सात दशकों से अधिक समय से लागू है। लेकिन ये धारणा गलत थी। हकीकत यह है कि जाति भारतीय राजनीति में एक मजबूत मुद्दा थी, है और रहेगी। वास्तव में, यह अगले दशक में सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर साबित हो सकती है। इसका कारण यह है कि संविधान में ही जाति-आधारित आरक्षण अंतर्निहित है। सरकारी नौकरियों और कॉलेज में दाखिले जैसे कुछ राज्यसत्ता के संसाधन वंचितों के लिए आरक्षित किए गए हैं। हालांकि यह उत्पीड़ित समुदायों की मदद के लिए किया गया था, लेकिन इसका मतलब यह भी है कि जातिगत-विभाजन हमेशा बना रहेगा। धर्म के मामले में अगर कुछ धर्मस्थलों पर विवादों को छोड़ दें तो कोई कानूनी-विभाजन नहीं है। धार्मिक-विभाजन मुख्यतया अलग-अलग मान्यताओं, संस्कृति और मूल्यों का मामला है, लेकिन जाति के मामले में एक अंतर्निहित प्रतिस्पर्धा निर्मित हो गई है। नौकरियां और सीटें सीमित हैं, और उनका एक हिस्सा आरक्षित रखा जाता है। इसके पीछे चाहे जितनी अच्छी मंशा हो, यह व्यवस्था विभाजन की गुंजाइशें पैदा करती है। किसे आरक्षण मिलता है, किसे नहीं? नौकरियों और सीटों का कितना प्रतिशत आरक्षित होना चाहिए? और किन क्षेत्रों में? उच्च स्तर पर वंचित जातियों का प्रतिनिधित्व कितना है? क्या आरक्षण योग्यता और प्रतिभा की कीमत पर लागू हो रहा है? क्या उच्च जाति के बच्चे आरक्षण की कीमत चुका रहे हैं? ये तमाम सवाल न केवल जायज हैं, बल्कि हमारी व्यवस्था में स्थायी भी बन चुके हैं। और चूंकि जाति-व्यवस्था मुख्य रूप से हिंदुओं पर लागू होती है, इसका मतलब यह भी है कि इससे हिंदू समाज में एक स्थायी विभाजन बना रहता है। ऐसे में इस पर राजनीति क्यों कर ना होगी? 2024 के चुनावों से उत्साहित विपक्ष ने समझ लिया है कि अब भारतीय राजनीति में जाति को फिर से बुनियादी मुद्दा बनाने का समय आ गया है। लेकिन क्या यह देश के लिए अच्छा है? धर्म और जाति दोनों ही पहचान की राजनीति पर आधारित हैं और देश को बांटते हैं। इस फेर में इकोनॉमी, शिक्षा, बुनियादी ढांचा जैसे मुद्दे पृष्ठभूमि में चले जाते हैं। यही कारण है कि इतना सब होने के बावजूद हम चीन जैसी महाशक्ति नहीं बन पाते हैं। लेकिन इसका एक सकारात्मक पहलू भी है, इन विभेदों के चलते ही हमारा लोकतंत्र जीवंत बना हुआ है! विपक्ष ने समझ लिया है कि जाति को फिर से बुनियादी मुद्दा बनाने का समय आ गया है। लेकिन क्या यह देश के लिए अच्छा है? ऐसे मुद्दे देश को बांटते हैं। इस फेर में इकोनॉमी, शिक्षा, बुनियादी ढांचा जैसे मुद्दे पृष्ठभूमि में चले जाते हैं।  

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Dakhal News 11 September 2024


your good advice will help some people

एन. रघुरामन बेंगलुरु में इनकम टैक्स इंस्पेक्टर होने के बावजूद, लोग उन्हें कौतूहल से देखते और ताने देने के साथ उपहास करते। पर पानीपत के रहने वाले 4 फीट 4 इंच कद के 23 वर्षीय यह नौजवान हमेशा से ही सम्मान और गरिमा चाहते थे। क्योंकि वह ड्वारफिज्म (बौनेपन) से पीड़ित थे, जिसका मतलब था कि उनके हाथ, पैर, पेट और सिर की सामान्य वृद्धि नहीं हुई थी। इसलिए वो आलोचकों को गलत साबित करना चाहते थे। पैरालिंपिक खेलों के लिए 31 अगस्त को जब नवदीप सिंह पेरिस पहुंचे तो वे चाहते थे कि भारत में लोग उन्हें अलग तरीके से याद रखें- छोटी हाइट के तौर पर नहीं बल्कि एक चैंपियन और पैरा-एथलीट के तौर पर। लेकिन उनकी नियति 7 सितंबर को तय होनी थी। दो बार पैरालिंपिक में गोल्ड जीत जुके, राजस्थान-चुरु के रहने वाले 42 वर्षीय देवेंद्र झाझरिया, जो हाल में देश की पैरालिंपिक कमेटी के अध्यक्ष भी चुने गए, उन्होंने नवदीप को बिल्कुल अलग सलाह दी, जो उनके लिए काफी मददगार रही। देवेंद्र ने नवदीप को कहा कि कई लोगों को लगता है कि जैवलिन मुख्यतौर पर हाथों से फेंका जाता है, जबकि असली ताकत पैरों से मिलती है। उन्होंने उसे सलाह दी कि जमीन से पूरी ताकत पैदा करने के लिए वह दाएँं पैर का पूरी तरह इस्तेमाल करें। इस टेक्नीक से जमीन से फोर्स पैदा करने में मदद मिलती है, जो एकदम सटीकता और पूरी ताकत से भाला फेंकने में काम आती है। उनके पिता दलबीर सिंह, जो खुद राष्ट्रीय स्तर के कुश्ती खिलाड़ी रहे हैं, वह उसे प्रेरित करते रहते हैं और अपने बेटे से अपनी इच्छाएं पूरी करने की चाहत रखते हैं। और अंततः उनके बेटे ने ना सिर्फ भारत के लिए बल्कि अपने पिता के लिए भी गोल्ड जीत लिया। वहीं नगालैंड के होकाटो होतोझे सिमा का संघर्ष भारतीय सेना में करिअर शुरू करने के तुरंत बाद ही शुरू हो गया था। उन्होंने 18 साल की उम्र में भारतीय सेना की 9-असम रेजिमेंट जॉइन की और जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में पोस्टिंग हुई। 14 अक्टूबर 2002 को अपने पहले ही असाइमेंट (चौकीबल में एक काउंटर घुसपैठ ऑपरेशन) में एक बारूदी सुरंग विस्फोट में उन्हें घुटने से नीचे का अपना बायां पैर गंवाना पड़ा। अब 40 साल की उम्र में इन नायब सूबेदार ने शुक्रवार को धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ एक और लड़ाई जीती, उन्होंने पैरालिंपिक खेलों में पुरुषों के शॉट पुट खेल में कांस्य पदक जीता। रविवार रात जब मैं 2024 के पैरालिंपिक का शानदार समापन समारोह देख रहा था, तो मुझे अहसास हुआ कि समय आ गया है कि हम न सिर्फ इन दो खिलाड़ियों की बल्कि भिन्न रूप से सक्षम मेडल जीतने वाले हर एथलीट्स व फिनिशिंग लाइन तक पहुंचकर मेडल से चूकने वाले हर खिलाड़ी की सफलता का जश्न मनाएं। सात भारतीय, मेडल जीतने के करीब थे और चौथे रहे ः राकेश कुमार (व्यक्तिगत कंपाउंड तीरंदाजी), संदीप (जेवलिन थ्रो), शिवराजन सोलइमलाई, नित्य श्री (मिक्स्ड डबल्स एसएच-6 बैडमिंटन), सुकांत कदम (पुरुष एकल एसएल-4 बैडमिंटन), शैलेष कुमार (पुरुष ऊंची कूद), हरविंदर सिंह, पूजा (मिक्स टीम रिकर्व ओपन), सिमरन (वुमंस 100 मीटर)। 84 एथलीट्स वाले दल ने भारत के लिए न सिर्फ 29 मेडल जीते ( सात गोल्ड, नौ सिल्वर, 13 ब्रोन्ज) बल्कि भारत पैरालिंपिक में शामिल देशों में 18वें क्रम पर रहा, साथ ही उन्होंने ये भी साबित कर दिया है कि हमारा पैरा खेलों के इकोसिस्टम ने एक लंबा सफर तय किया है। अब आपको जब भी कोई भिन्न रूप से सक्षम व्यक्ति व्हील चेयर पर या मदद लेता नजर आए, तो उनका अभिवादन करें और ऐसे समाज का हिस्सा बनने के लिए उनके धैर्य और दृढ़ संकल्प की सराहना करें, जो समाज उनको एक साधारण-सा रैंप तक उपलब्ध नहीं करा सकता या ऐसे बाथरूम नहीं बना सका, जहां व्हीलचेयर अंदर जा सके। फंडा यह है कि एक राष्ट्र के तौर पर हम मानवता की सीढ़ी पर ऊपर तभी चढ़ सकते हैं, जहां हम इन भिन्न रूप से सक्षम लोगों को देखकर उनका मखौल न उड़ाएं, बल्कि उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए अच्छे सलाहकार बनकर उभरें।

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Dakhal News 10 September 2024


Why were questions raised on film

शेखर गुप्ता कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ को सेंसर बोर्ड ने सर्टिफिकेट तो दे दिया है, पर यह तय नहीं है कि फिल्म कब रिलीज होगी। सेंसर बोर्ड ने 10 बदलावों की सूची भेजी और 3 विवादित दृश्य हटाने को कहा। मौजूदा दौर में नेहरू-गांधी परिवार की मलामत करने वाली फिल्में जिस रफ्तार से आई हैं, उसे देखते हुए आपने सोचा होगा कि यह भी फटाफट पास हो जाती। कंगना जबकि अब भाजपा की सांसद भी हैं, आप यही उम्मीद करेंगे कि उनकी फिल्म में इंदिरा को उस दौर में प्रस्तुत किया जाएगा, जब वे संविधान का उल्लंघन कर रही थीं। संविधान की इंदिरा द्वारा अवमानना को भाजपा ‘ब्रह्मास्त्र’ के रूप में इस्तेमाल करती रही है। इंदिरा के अधिनायकवादी अवतार को एक कुशल अभिनेत्री परदे पर प्रस्तुत करे, इससे बढ़िया ‘आइडिया’ क्या हो सकता था? फिर चूक कहां हुई? मैंने फिल्म का सिर्फ ट्रेलर देखा है, इसलिए मैं कह नहीं सकता कि फिल्म अच्छी है या खराब। मैं यह भी नहीं कह सकता कि फिल्म में जरनैल सिंह भिंडरांवाले के किरदार में जिस अभिनेता को जेल से बाहर निकलते और बाद में सिखों की भीड़ को संबोधित करते दिखाया गया है, उसे फिल्म में वास्तव में भिंडरावाले ही बताया गया है या नहीं। इस अभिनेता को कांग्रेस के नाम पंजाबी में यह संदेश भी देते दिखाया गया है कि ‘तुम्हारी पार्टी को वोट चाहिए, हमें खालिस्तान चाहिए’। इस दृश्य ने सिखों को नाराज कर दिया है और सम्मानित शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) भी विरोध में उतर आई है। फिल्म इसलिए मुश्किल में नहीं फंसी थी कि यह इंदिरा गांधी को बुरी नेता के रूप में पेश करती है और उनके मुंह से ऐसी बातें कहलवाती है, जो उन्होंने कभी नहीं बोलीं। ट्रेलर में रनौत को ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’ बोलते दिखाया गया है। इंदिरा गांधी ने ऐसा कभी नहीं कहा था। यह जुमला तो 1976 में देवकांत बरुआ ने बोला था। 1980 के दशक के शुरुआती दिनों में मैं कभी-कभी नौगांव में उनके घर जाया करता था। अपनी उस एक ‘गफलत’ को लेकर वे काफी पछतावा जताया करते थे। वैसे कांग्रेस वाले कोई विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन फिल्म में भिंडरांवाले के संदर्भ को जोड़ना जरूरी था क्योंकि कथित जीवनगाथा में इस बात को रेखांकित करना था कि श्रीमती गांधी ने सिख अलगाववाद के मामले में गैर-जिम्मेदाराना रुख अपनाकर अपनी हत्या को बुलावा दिया। समकालीन इतिहास में ऐसे पर्याप्त सबूत उपलब्ध हैं, जो बताते हैं कि शुरुआती चरण में कांग्रेस, खासकर ज्ञानी जैल सिंह ने भिंडरांवाले को इस उम्मीद में संरक्षण दिया कि वह ‘एसजीपीसी’ के चुनाव में शिरोमणि अकाली दल को मुश्किल में डालेगा, लेकिन यह दांव नाकाम रहा और भिंडरांवाला एक ताकत बनकर उभरा। 1983 की गर्मियों में सेना जब ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ करने पहुंची थी, उससे पहले मैं एक रिपोर्टर के नाते भिंडरांवाले से दर्जनों बार मिला था। उसे मैंने कभी खालिस्तान की मांग करते नहीं सुना। भिंडरांवाले के भाषणों के सैकड़ों घंटे के टेप उपलब्ध हैं। उसके संदेश का चाहे जो भी अंश हो, कोई भी इशारा या कोई भी एक्शन हो, उसने कभी खालिस्तान का नाम नहीं लिया। हम सभी रिपोर्टरों ने खालिस्तान पर उससे कभी-न-कभी सवाल जरूर पूछे, उसका हमेशा बना-बनाया जवाब यही होता था : ‘मैंने कभी खालिस्तान की मांग नहीं की, लेकिन ‘बीबी’ (इंदिरा गांधी) या ‘दिल्ली दरबार’ अगर मुझे यह दे दे तो मैं ना नहीं कहूंगा।’ सबक यह है कि आप इंदिरा गांधी के मुंह में तो कोई भी शब्द डाल करके बच सकते हैं, लेकिन भिंडरांवाले की मौत के 40 साल बाद भी आपने उसके साथ ऐसा कुछ किया तो मुश्किल में पड़ जाएंगे। ऐसी तमाम फिल्में या टीवी सीरियल इसलिए मुश्किल में फंसते हैं, क्योंकि वो इस फरेब की ओट लेने की कोशिश करते हैं कि ये सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं। इसलिए, आप तथ्यों में से मनमर्जी चुनाव कर सकते हैं और उन्हें कथा के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं, पर सुविधाजनक तथ्यों व पक्षपातपूर्ण कथा के मेल से विकृत ‘प्रोपगैंडा’ ही तैयार होता है। सोनी-लिव पर दो सीजन तक चले ‘रॉकेट बॉय्ज’ (2022-23) को ही लीजिए। इसने वास्तविक नायकों होमी भाभा और विक्रम साराभाई की जीवनगाथा को चुना, मगर हर एक एपिसोड के साथ उसे गल्प में तब्दील करता गया। दलित वैज्ञानिक मेघनाद साहा को भाभा से ईर्ष्या करने वाले मुसलमान के रूप में पेश किया गया। इसके अलावा, सीआईए और दूसरी बुरी ताकतों के साथ साजिश आदि के पहलू भी शामिल कर दिए गए और इस सबका बचाव रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर किया गया। हकीकत यह है कि हम अपने नेताओं पर बनी फिल्मों या जीवनियों में उन्हें देवता के सिवा और किसी रूप में देखना गवारा नहीं करते। आम्बेडकर, शिवाजी, करुणानिधि, बालासाहेब ठाकरे, झांसी की रानी, कांशीराम आदि किसी के भी जीवन पर एक ईमानदार, सच्ची फिल्म तो नामुमकिन है। यह बात इस पूरे उप-महादेश पर लागू होती है। यही वजह है कि हमारी सबसे महत्वपूर्ण हस्तियों पर प्रामाणिक जीवनियां विदेशियों ने लिखी हैं। ‘गांधी’ फिल्म भी एक विदेशी ने ही बनाई। रिचर्ड एटेनबरो ने 1963 में जब नेहरू से कहा था कि वे गांधी के जीवन पर फिल्म बनाना चाहते हैं, तब उन्हें सलाह दी गई थी कि उन्हें देवता मत बना दीजिएगा बल्कि वे जैसे थे, अपनी कमजोरियों के साथ, वैसा ही उन्हें प्रस्तुत कीजिएगा। आज क्या ऐसी सलाह दी जाएगी? हमारे यहां तो खिलाड़ियों की जीवनी तक छद्म नामों से लिखी जाती है, उनके जीवन पर बनी फिल्मों के सह-निर्माता खुद इसके स्टार ही होते हैं। हमारे सैन्य इतिहास, युद्धों पर बनीं फिल्में भी इसी रोग से ग्रस्त दिखाई देती हैं। अनुकूल तथ्यों का चयन... एक कहानी सुनाने और उसे विश्वसनीय बताने के लिए केवल अपने अनुकूल तथ्यों को चुनना रचनात्मक एवं बौद्धिक बेईमानी है। यह इतिहास को तोड़मरोड़कर पेश करना, किसी को बेवजह बदनाम करना और किसी का महिमामंडन करना है।

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Dakhal News 10 September 2024


Article 370 is the biggest issue

नवनीत गुर्जर जम्मू- कश्मीर में चुनाव प्रचार ने ज़ोर पकड़ लिया है। नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस का चुनाव पूर्व गठबंधन हो चुका है। भाजपा यहाँ अकेले लड़ रही है। कुछ निर्दलीय उसके साथ हैं ऐसा दावा किया जा रहा है। भाजपा का जम्मू रीजन में बहुत अच्छा प्रभाव है। कश्मीर घाटी में भाजपा का असर कम है। ऐसा समझा जाता है कि कश्मीर घाटी में नेशनल कान्फ्रेंस का ज़ोर है। पहले भी था और अब भी। नेशनल कान्फ्रेंस ने कांग्रेस से समझौता इसलिए किया है ताकि जम्मू रीजन की कुछ सीटें कांग्रेस हासिल करने में कामयाब हो गई तो नेकां को सरकार बनाने में मदद मिल सकती है। जहां तक मुद्दों का सवाल है, यहाँ सबसे बड़ा मुद्दा अनुच्छेद 370 ही है। भाजपा चुनाव प्रचार के दौरान 370 हटाने का श्रेय ले रही है। उसका कहना है कि यह अनुच्छेद अब इतिहास हो चुका है। इसकी वापसी कभी नहीं हो सकती। उधर नेशनल कान्फ्रेंस कश्मीर घाटी के लोगों की भावनाओं को भुनाने के लिए कह रही है कि वह अनुच्छेद 370 को फिर से लागू करवाएगी जबकि यह उसके बस की बात नहीं है। यह काम केंद्र सरकार ही कर सकती है। राज्य स्तर पर यह संभव नहीं है। जम्मू रीजन के लोगों को भाजपा के मुद्दे पसंद आ रहे हैं। वैसे भी नेशनल कान्फ्रेंस ने लम्बे समय तक कश्मीर पर राज किया है। इस परिवार की यह तीसरी पीढ़ी चल रही है। इसके पहले कश्मीर में कर्णसिंह के पिता महाराज हरिसिंह का राज था। महाराज हरिसिंह पर कई आरोप लगाकर शेख़ अब्दुल्ला ने यहाँ राज किया था। शेख़ अब्दुल्ला के लम्बे कार्यकाल के बाद उनके बेटे फ़ारुख अब्दुल्ला ने लम्बे समय तक सत्ता का नेतृत्व किया और बाद में उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने भी। उमर अब्दुल्ला इस वक्त अफ़ज़ल विवाद में घिर चुके हैं। उन्होंने कह दिया कि अफ़ज़ल को फाँसी देना गलत था। चूँकि अफ़ज़ल संसद पर हमले का ज़िम्मेदार था, इसलिए भाजपा ने इस मुद्दे पर साफ़ कहा है कि नेशनल कान्फ्रेंस आतंकवादियों से मिली हुई है या उनकी तरफ़दारी कर रही है और कांग्रेस उसकी साथी है। ऐसे में लोगों को तय करना चाहिए कि वे देश प्रेमियों के साथ हैं या देशद्रोहियों के साथ? बहरहाल, अनुच्छेद 370 हटने के बाद यहाँ पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में पचास प्रतिशत से ऊपर मतदान हुआ था जो अच्छा संकेत है। वर्ना इससे पहले तो तीस प्रतिशत मतदान को भी अच्छा समझा जाता रहा।

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Dakhal News 9 September 2024


Debate has once again erupted on death penalty

अनिरुद्ध बोस  किसी जघन्य अपराध के बाद या समाज में अपराधों में वृद्धि होने पर अपराधी के लिए कठोर दंड की मांग भी बढ़ जाती है। ये सच है कि सरकारों को लोगों की भावनाओं के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए। ऐसे में आंदोलनकारी जनमानस को संतुष्ट करने के लिए कठोरतम दंड की परिकल्पना की जाती है। देश के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं के साथ अपराधों में वृद्धि से गंभीर यौन अपराधियों के लिए मृत्युदंड की मांग नए​ सिरे से तूल पकड़ चुकी है। इसी संदर्भ में, मृत्युदंड को बरकरार रखने के सवाल पर फिर से बहस शुरू होगी। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय रुझान तो मृत्युदंड को समाप्त करने की ओर प्रतीत होता है। 2023 तक, 112 देशों ने मृत्युदंड को समाप्त कर दिया था। पिछले साल 1100 से अधिक दोषियों को फांसी दी गई। इनमें चीन के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। चीन के अलावा, पिछले साल सबसे ज्यादा फांसी की सजाएं ईरान, सऊदी अरब, सोमालिया और अमेरिका में दी गई थीं। आधुनिक राष्ट्र-राज्य तीन आधारों पर दंडित करता है। पहला है अपराधी को सुधारना। दूसरा है दंडनीय कृत्य करने की सोच रहे अन्य लोगों को डराना। तीसरा आधार प्रतिशोधात्मक है- आंख के बदले आंख का सिद्धांत। हालांकि अपराधशास्त्री, सामाजिक सिद्धांतकार और धार्मिक प्रमुख भी दंड देने के लिए प्रतिशोध के कारण को खारिज करते हैं, लेकिन जघन्य अपराध के बाद भीड़ की प्रतिक्रिया प्रतिशोधात्मक न्याय के लिए ही होती है। अपराध को नियंत्रित करने और रोकने के लिए सामाजिक उपकरण के रूप में मृत्युदंड का उपयोग हर समाज द्वारा किया जाता रहा है। बेबीलोन की हम्मुराबी संहिता (18वीं शताब्दी ईसा पूर्व) में 25 अपराधों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान था। एथेंस और रोम के कानूनों में भी मृत्युदंड था और इसके निष्पादन के तरीकों में जिंदा जला देना, सूली पर चढ़ाना, डुबोकर मार देना आदि शामिल थे। मनुसंहिता में, उस शिकायतकर्ता के लिए भी मृत्युदंड प्रस्तावित है, जो गंभीर अपराध का आरोप लगाने के बाद अदालत के समक्ष गवाही नहीं देता है। 1801 में इंग्लैंड में एक 13 वर्षीय लड़के एंड्रयू ब्रेनिंग को एक घर में घुसकर चम्मच चुराने के जुर्म में फांसी पर लटका दिया गया था! सेंट्रल कलकत्ता में एक ‘फैंसी’ लेन है, जो ‘फांसी’ शब्द का अपभ्रंश है। फ्रांसीसी क्रांति के बाद 17000 लोगों को गिलोटिन मशीन से मार दिया गया था। लेकिन 19वीं सदी के अंत से 20वीं सदी की शुरुआत तक मृत्युदंड के बारे में सोच में बदलाव आना शुरू हुआ। लियो टॉल्स्टॉय, विक्टर ह्यूगो, महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला जैसे बुद्धिजीवियों ने मौत की सजा का विरोध किया। पोप फ्रांसिस भी इसके विरोधी हैं। यह सोच पूरी तरह से नैतिक-धार्मिक तर्क पर आधारित नहीं। किसी भी मानक अध्ययन में इस निवारक सिद्धांत का कोई औचित्य नहीं पाया गया है। महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शासनकाल के दौरान मृत्युदंड को समाप्त कर दिया था। त्रावणकोर और कोचीन राज्य ने औपचारिक रूप से वर्ष 1944 में इसे समाप्त कर दिया था, केवल कोचीन में इसे कुछ अपराधों के लिए बरकरार रखा गया था।मृत्युदंड के विरुद्ध सबसे ताकतवर तर्क यह है कि इसे उलटा नहीं जा सकता। न्यायिक प्रक्रिया सौ प्रतिशत दोषरहित नहीं है और ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें राज्यसत्ता द्वारा एक निर्दोष को भूलपूर्वक मार दिया गया। 1950 में, टिमोथी इवांस नामक एक व्यक्ति को अपनी पत्नी और नवजात बेटी की हत्या के लिए दोषी ठहराकर मृत्युदंड दे दिया गया। बाद में पता चला कि वास्तव में जॉन क्रिस्टी नामक एक सीरियल किलर इसके लिए दोषी था। 2004 में मरणोपरांत उसे दोषमुक्त करार दिया गया। दूसरा तर्क यह है कि मृत्युदंड का प्रावधान अपने स्वभाव से ही भेदभावपूर्ण है। अधिक संपन्न लोगों की तुलना में गरीब अभियुक्तों को मृत्युदंड दिए जाने की अधिक संभावना है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में ही समान प्रकृति के अपराध के दोषी गोरों की तुलना में अश्वेतों को फांसी की सजा मिलने की अधिक संभावना होती है। भारत में हालांकि इस सजा को औपचारिक रूप से समाप्त नहीं किया गया है, लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में फांसी की सजा की दर में गिरावट आई है। 2023 में सत्र न्यायालय द्वारा मृत्युदंड दिए जाने वाले मामलों की संख्या 120 थी, वहीं 561 कैदियों को मृत्युदंड दिया जाना है (राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली के प्रोजेक्ट 39ए द्वारा किए एक अध्ययन के अनुसार)। अंततः इस विवाद पर अंतिम निर्णय विधायिका को ही लेना है, जिसके आयाम वैश्विक हैं। मृत्युदंड के विरुद्ध सबसे ताकतवर तर्क यह है कि इसे उलटा नहीं जा सकता। न्यायिक प्रक्रिया सौ प्रतिशत दोषरहित नहीं होती है और अतीत में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें राज्यसत्ता द्वारा एक निर्दोष को भूलपूर्वक मार दिया गया था।

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Dakhal News 9 September 2024


Establish Lord Ganesha within yourself today

पं. विजयशंकर मेहता  इस समय हम जिस युग में जी रहे हैं, वह विरोधाभास, विडंबना और विपरीत का समय है। ऐसे में विवेक हमारी पूंजी होना चाहिए। आज जब हम गणेश जी के आह्वान के साथ उनका स्मरण करें तो एक स्थिति से गुजरें और एक आंकड़े को पकड़ें, डिजिटल मीडिया पर 70% लोग इंफ्लुएंसर्स के प्रभाव में हैं। ये लोग प्रभावित करते हैं कि आपको क्या खरीदना चाहिए और कैसे जीना है। आसे में अगर हमारा विवेक नहीं जागा तो आप भटक जाएंगे। सरस्वती बुद्धि की देवी हैं और गणेश जी विवेक के देवता हैं। तो जब भी गणेश जी के दर्शन करें, तो जल्दबाजी बिल्कुल न करें। थोड़ी देर रुकें और प्रभु के पूरे स्वरूप को आंख बंद करके अपनी भीतर उतारें। यदि बहुत देर तक प्रतिमा के सामने खड़े रहने का मौका न मिले तो नेत्र बंद करके उसी छवि को देखें। अव्यक्त परब्रह्म का सबसे प्रथम व्यक्त रूप ओंकार हैं तथा ओंकार का ही मूर्तिमंत रूप श्री गणेश हैं। गणेश स्थापना अपने भीतर भी की जाए। और पूरी तरह से विचार शून्य होकर विवेक जागृत करते हुए गणपति जी का प्रसाद लिया जाए।    

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Dakhal News 7 September 2024


Debate has erupted once again on death penalty

अनिरुद्ध बोस का कॉलम किसी जघन्य अपराध के बाद या समाज में अपराधों में वृद्धि होने पर अपराधी के लिए कठोर दंड की मांग भी बढ़ जाती है। ये सच है कि सरकारों को लोगों की भावनाओं के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए। ऐसे में आंदोलनकारी जनमानस को संतुष्ट करने के लिए कठोरतम दंड की परिकल्पना की जाती है। देश के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं के साथ अपराधों में वृद्धि से गंभीर यौन अपराधियों के लिए मृत्युदंड की मांग नए​ सिरे से तूल पकड़ चुकी है। इसी संदर्भ में, मृत्युदंड को बरकरार रखने के सवाल पर फिर से बहस शुरू होगी। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय रुझान तो मृत्युदंड को समाप्त करने की ओर प्रतीत होता है। 2023 तक, 112 देशों ने मृत्युदंड को समाप्त कर दिया था। पिछले साल 1100 से अधिक दोषियों को फांसी दी गई। इनमें चीन के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। चीन के अलावा, पिछले साल सबसे ज्यादा फांसी की सजाएं ईरान, सऊदी अरब, सोमालिया और अमेरिका में दी गई थीं। आधुनिक राष्ट्र-राज्य तीन आधारों पर दंडित करता है। पहला है अपराधी को सुधारना। दूसरा है दंडनीय कृत्य करने की सोच रहे अन्य लोगों को डराना। तीसरा आधार प्रतिशोधात्मक है- आंख के बदले आंख का सिद्धांत। हालांकि अपराधशास्त्री, सामाजिक सिद्धांतकार और धार्मिक प्रमुख भी दंड देने के लिए प्रतिशोध के कारण को खारिज करते हैं, लेकिन जघन्य अपराध के बाद भीड़ की प्रतिक्रिया प्रतिशोधात्मक न्याय के लिए ही होती है। अपराध को नियंत्रित करने और रोकने के लिए सामाजिक उपकरण के रूप में मृत्युदंड का उपयोग हर समाज द्वारा किया जाता रहा है। बेबीलोन की हम्मुराबी संहिता (18वीं शताब्दी ईसा पूर्व) में 25 अपराधों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान था। एथेंस और रोम के कानूनों में भी मृत्युदंड था और इसके निष्पादन के तरीकों में जिंदा जला देना, सूली पर चढ़ाना, डुबोकर मार देना आदि शामिल थे। मनुसंहिता में, उस शिकायतकर्ता के लिए भी मृत्युदंड प्रस्तावित है, जो गंभीर अपराध का आरोप लगाने के बाद अदालत के समक्ष गवाही नहीं देता है। 1801 में इंग्लैंड में एक 13 वर्षीय लड़के एंड्रयू ब्रेनिंग को एक घर में घुसकर चम्मच चुराने के जुर्म में फांसी पर लटका दिया गया था! सेंट्रल कलकत्ता में एक ‘फैंसी’ लेन है, जो ‘फांसी’ शब्द का अपभ्रंश है। फ्रांसीसी क्रांति के बाद 17000 लोगों को गिलोटिन मशीन से मार दिया गया था। लेकिन 19वीं सदी के अंत से 20वीं सदी की शुरुआत तक मृत्युदंड के बारे में सोच में बदलाव आना शुरू हुआ। लियो टॉल्स्टॉय, विक्टर ह्यूगो, महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला जैसे बुद्धिजीवियों ने मौत की सजा का विरोध किया। पोप फ्रांसिस भी इसके विरोधी हैं। यह सोच पूरी तरह से नैतिक-धार्मिक तर्क पर आधारित नहीं। किसी भी मानक अध्ययन में इस निवारक सिद्धांत का कोई औचित्य नहीं पाया गया है। महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शासनकाल के दौरान मृत्युदंड को समाप्त कर दिया था। त्रावणकोर और कोचीन राज्य ने औपचारिक रूप से वर्ष 1944 में इसे समाप्त कर दिया था, केवल कोचीन में इसे कुछ अपराधों के लिए बरकरार रखा गया था।मृत्युदंड के विरुद्ध सबसे ताकतवर तर्क यह है कि इसे उलटा नहीं जा सकता। न्यायिक प्रक्रिया सौ प्रतिशत दोषरहित नहीं है और ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें राज्यसत्ता द्वारा एक निर्दोष को भूलपूर्वक मार दिया गया। 1950 में, टिमोथी इवांस नामक एक व्यक्ति को अपनी पत्नी और नवजात बेटी की हत्या के लिए दोषी ठहराकर मृत्युदंड दे दिया गया। बाद में पता चला कि वास्तव में जॉन क्रिस्टी नामक एक सीरियल किलर इसके लिए दोषी था। 2004 में मरणोपरांत उसे दोषमुक्त करार दिया गया। दूसरा तर्क यह है कि मृत्युदंड का प्रावधान अपने स्वभाव से ही भेदभावपूर्ण है। अधिक संपन्न लोगों की तुलना में गरीब अभियुक्तों को मृत्युदंड दिए जाने की अधिक संभावना है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में ही समान प्रकृति के अपराध के दोषी गोरों की तुलना में अश्वेतों को फांसी की सजा मिलने की अधिक संभावना होती है। भारत में हालांकि इस सजा को औपचारिक रूप से समाप्त नहीं किया गया है, लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में फांसी की सजा की दर में गिरावट आई है। 2023 में सत्र न्यायालय द्वारा मृत्युदंड दिए जाने वाले मामलों की संख्या 120 थी, वहीं 561 कैदियों को मृत्युदंड दिया जाना है (राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली के प्रोजेक्ट 39ए द्वारा किए एक अध्ययन के अनुसार)। अंततः इस विवाद पर अंतिम निर्णय विधायिका को ही लेना है, जिसके आयाम वैश्विक हैं। मृत्युदंड के विरुद्ध सबसे ताकतवर तर्क यह है कि इसे उलटा नहीं जा सकता। न्यायिक प्रक्रिया सौ प्रतिशत दोषरहित नहीं होती है और अतीत में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें राज्यसत्ता द्वारा एक निर्दोष को भूलपूर्वक मार दिया गया था।

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Dakhal News 7 September 2024


It is very important to take care

  पं. विजयशंकर मेहता  मशीनी युग में मशीन का भी खूब विकास हुआ। पहले ऐसा होता था कि मशीन खराब हो जाती थी, तो कहते थे कि अगर कंपनी की मशीन है, तो स्पेयर पार्ट्स भी उसी के लगेंगे। आइए, अब इसी बात को शरीर से जोड़कर देखते हैं। हमारा शरीर लगभग मशीन है। तो चलिए, इसे कम से कम एक बहुत अच्छी कंपनी की मशीन तो मान लें। और उस कंपनी का नाम है ईश्वर। परमात्मा ने हमारा चयन किया है और हमको मनुष्य बनाया। वरना कुछ और बनने की भी संभावना थी। अब हमें अपने स्पेयर पार्ट्स पर बहुत सावधानी से काम करना होगा। मशीन से लंबे समय तक काम लेना हो, तो उसकी सर्विसिंग करानी पड़ती है। मौसम से उसकी रक्षा करना पड़ती है। बस यह शरीर ऐसा ही है। इसकी सर्विसिंग कराने के दो स्थान हैं। एक तो प्रतिदिन मंदिर जाया जाए और अवसर मिले तो सत्संग किया जाए। और ईश्वर की कंपनी की इस मशीन के सबसे अच्छे स्पेयर पार्ट्स होते हैं- गुरुजन और माता-पिता का आशीर्वाद।  

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Dakhal News 6 September 2024


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आरती जेरथ  जाति-जनगणना की विपक्ष की मांग पर आरएसएस का हालिया बयान इस मुद्दे के तूल पकड़ने के साथ ही इसके प्रति निर्मित असहजता की स्थिति को भी दर्शाता है। हालांकि संघ ने जाति-जनगणना के विचार का समर्थन किया है, लेकिन साथ ही आगाह भी किया है कि इस तरह के सर्वेक्षण का इस्तेमाल राजनीतिक या चुनावी उपकरण के रूप में नहीं किया जाना चाहिए। केरल में संघ परिवार के शीर्ष नेताओं के तीन दिवसीय सम्मेलन के बाद प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने जोर देकर कहा कि जनगणना से प्राप्त डेटा का इस्तेमाल केवल कल्याणकारी उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए। लेकिन यह एक उलझा हुआ तर्क है, क्योंकि संघ भाजपा और उसके सहयोगियों के अलावा किसी अन्य पार्टी या संगठन से ऐसा आग्रह नहीं कर सकता। जाति-जनगणना की मांग 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष के नैरेटिव का हिस्सा थी और चुनावी सफलता का स्वाद चखने के बाद राहुल गांधी ने इसे अपना मुख्य हथियार बना लिया है। यह मुद्दा आने वाले महीनों में राजनीतिक लड़ाई की रूपरेखा तय कर सकता है और भाजपा की राजनीति के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है। चुनाव के बाद के घटनाक्रमों ने भाजपा की चिंता को और बढ़ा दिया है। एनडीए के प्रमुख सहयोगी जदयू ने एक बयान जारी कर बिहार में नीतीश कुमार सरकार द्वारा किए जाति-सर्वेक्षण की तर्ज पर राष्ट्रव्यापी जाति-जनगणना कराने की मांग की है। बिहार में ही एक अन्य महत्वपूर्ण सहयोगी- केंद्रीय मंत्री और लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने भी विपक्ष के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि उनकी पार्टी चाहती है जाति-जनगणना जल्द हो। उनकी यह मांग इंडिया टुडे के मूड ऑफ द नेशन पोल के तुरंत बाद आई थी, जिसमें जाति-जनगणना के लिए लोकप्रिय समर्थन में भारी उछाल प्रदर्शित किया गया था। लोकसभा चुनाव से पहले फरवरी में यह 69% था, जो बढ़कर अगस्त में 74% हो गया। पिछले चार दशकों से जाति और हिंदुत्व के मुद्दों ने ही राजनीतिक प्रतिमानों को तैयार किया है, जिसमें भाजपा, मंडल दलों की पिछड़ी जाति की राजनीति का हिंदू बहुसंख्यकवाद से मुकाबला करती रही है, खासकर उत्तर भारत में। हालांकि ओबीसी के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण पर मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने के वीपी सिंह के फैसले ने जाति की राजनीति को शुरुआती बढ़त दी थी, लेकिन यह लंबे समय तक नहीं टिकी। ओबीसी आरक्षण के लाभ छिटपुट थे और वे बड़े ओबीसी समूह के भीतर चुनिंदा प्रमुख समुदायों के हितों की ही पूर्ति करते थे। मंडल पार्टियां जल्द ही अनेक टुकड़ों में टूट गईं, जिससे हिंदुत्व को उभार के लिए स्पेस मिला। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए जातियों के परे हिंदुओं को सफलतापूर्वक लामबंद करने से हिंदुत्व भारतीय राजनीति की धुरी के रूप में स्थापित हो गया। नरेंद्र मोदी के उदय के रूप में संघ परिवार को मंडल राजनीति का सही जवाब मिला था। वे हिंदू राष्ट्रवादी साख वाले ओबीसी नेता थे, जो इन दोनों प्रतिस्पर्धी ताकतों को एक सूत्र में पिरोते थे। इसी से 2014 और 2019 में एनडीए की बहुमत वाली सरकारें बनीं। लेकिन अब लगता है कि मंडल-कमंडल का पहिया अपना चक्र पूरा करके फिर से यथास्थिति में लौट आया है। बढ़ती आर्थिक चुनौतियां उन जातियों को भी प्रभावित कर रही हैं, जो हिंदुत्व के प्रभाव में मंडल राजनीति से दूर हो गई थीं। नोटबंदी, बेरोजगारी, महंगाई और गहराता कृषि संकट सामाजिक-आर्थिक सीढ़ी के निचले पायदान पर मौजूद लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है, जो मुख्य रूप से दलित, आदिवासी, ओबीसी हैं। यही वह पृष्ठभूमि है, जिसने विपक्ष की जाति-जनगणना की मांग के लिए हाशिए पर स्थित वर्गों का समर्थन पाया है। हालांकि न तो राहुल गांधी और न ही किसी अन्य विपक्षी नेता ने अभी तक स्पष्ट शब्दों में यह बताया है कि जनगणना से इन वर्गों को क्या लाभ होगा। लेकिन लाभार्थी-वितरणों की तुलना में कल्याणकारी लाभों के न्यायपूर्ण बंटवारे के वादे का अपना आकर्षण है। यह देखना अभी बाकी है कि जाति की राजनीति वापसी करती है या नहीं। फिलहाल तो ऐसा लग रहा है कि जाति-जनगणना के लिए विपक्ष के आक्रामक अभियान के कारण हिंदुत्व की राजनीति को अपने कदम पीछे खींचना पड़ रहे हैं। दूसरी तरफ राहुल गांधी और उनके इंडिया गठबंधन के सहयोगियों को भी यह समझना होगा कि वे भाजपा को हल्के में न लें और इस बात से संतुष्ट न हो जाएं कि जाति-जनगणना ही उनके तमाम सवालों का रामबाण उत्तर है। न तो राहुल और न ही किसी अन्य विपक्षी नेता ने यह बताया है कि जाति-जनगणना से पिछड़े वर्गों को क्या लाभ होगा। पर लाभार्थी-रेवड़ियों की तुलना में कल्याणकारी लाभों के न्यायपूर्ण बंटवारे के वादे का अपना आकर्षण है।  

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Dakhal News 6 September 2024


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आरती जेरथ जाति-जनगणना की विपक्ष की मांग पर आरएसएस का हालिया बयान इस मुद्दे के तूल पकड़ने के साथ ही इसके प्रति निर्मित असहजता की स्थिति को भी दर्शाता है। हालांकि संघ ने जाति-जनगणना के विचार का समर्थन किया है, लेकिन साथ ही आगाह भी किया है कि इस तरह के सर्वेक्षण का इस्तेमाल राजनीतिक या चुनावी उपकरण के रूप में नहीं किया जाना चाहिए। केरल में संघ परिवार के शीर्ष नेताओं के तीन दिवसीय सम्मेलन के बाद प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने जोर देकर कहा कि जनगणना से प्राप्त डेटा का इस्तेमाल केवल कल्याणकारी उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए। लेकिन यह एक उलझा हुआ तर्क है, क्योंकि संघ भाजपा और उसके सहयोगियों के अलावा किसी अन्य पार्टी या संगठन से ऐसा आग्रह नहीं कर सकता। जाति-जनगणना की मांग 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष के नैरेटिव का हिस्सा थी और चुनावी सफलता का स्वाद चखने के बाद राहुल गांधी ने इसे अपना मुख्य हथियार बना लिया है। यह मुद्दा आने वाले महीनों में राजनीतिक लड़ाई की रूपरेखा तय कर सकता है और भाजपा की राजनीति के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है। चुनाव के बाद के घटनाक्रमों ने भाजपा की चिंता को और बढ़ा दिया है। एनडीए के प्रमुख सहयोगी जदयू ने एक बयान जारी कर बिहार में नीतीश कुमार सरकार द्वारा किए जाति-सर्वेक्षण की तर्ज पर राष्ट्रव्यापी जाति-जनगणना कराने की मांग की है। बिहार में ही एक अन्य महत्वपूर्ण सहयोगी- केंद्रीय मंत्री और लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने भी विपक्ष के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि उनकी पार्टी चाहती है जाति-जनगणना जल्द हो। उनकी यह मांग इंडिया टुडे के मूड ऑफ द नेशन पोल के तुरंत बाद आई थी, जिसमें जाति-जनगणना के लिए लोकप्रिय समर्थन में भारी उछाल प्रदर्शित किया गया था। लोकसभा चुनाव से पहले फरवरी में यह 69% था, जो बढ़कर अगस्त में 74% हो गया। पिछले चार दशकों से जाति और हिंदुत्व के मुद्दों ने ही राजनीतिक प्रतिमानों को तैयार किया है, जिसमें भाजपा, मंडल दलों की पिछड़ी जाति की राजनीति का हिंदू बहुसंख्यकवाद से मुकाबला करती रही है, खासकर उत्तर भारत में। हालांकि ओबीसी के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण पर मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने के वीपी सिंह के फैसले ने जाति की राजनीति को शुरुआती बढ़त दी थी, लेकिन यह लंबे समय तक नहीं टिकी। ओबीसी आरक्षण के लाभ छिटपुट थे और वे बड़े ओबीसी समूह के भीतर चुनिंदा प्रमुख समुदायों के हितों की ही पूर्ति करते थे। मंडल पार्टियां जल्द ही अनेक टुकड़ों में टूट गईं, जिससे हिंदुत्व को उभार के लिए स्पेस मिला। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए जातियों के परे हिंदुओं को सफलतापूर्वक लामबंद करने से हिंदुत्व भारतीय राजनीति की धुरी के रूप में स्थापित हो गया। नरेंद्र मोदी के उदय के रूप में संघ परिवार को मंडल राजनीति का सही जवाब मिला था। वे हिंदू राष्ट्रवादी साख वाले ओबीसी नेता थे, जो इन दोनों प्रतिस्पर्धी ताकतों को एक सूत्र में पिरोते थे। इसी से 2014 और 2019 में एनडीए की बहुमत वाली सरकारें बनीं। लेकिन अब लगता है कि मंडल-कमंडल का पहिया अपना चक्र पूरा करके फिर से यथास्थिति में लौट आया है। बढ़ती आर्थिक चुनौतियां उन जातियों को भी प्रभावित कर रही हैं, जो हिंदुत्व के प्रभाव में मंडल राजनीति से दूर हो गई थीं। नोटबंदी, बेरोजगारी, महंगाई और गहराता कृषि संकट सामाजिक-आर्थिक सीढ़ी के निचले पायदान पर मौजूद लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है, जो मुख्य रूप से दलित, आदिवासी, ओबीसी हैं। यही वह पृष्ठभूमि है, जिसने विपक्ष की जाति-जनगणना की मांग के लिए हाशिए पर स्थित वर्गों का समर्थन पाया है। हालांकि न तो राहुल गांधी और न ही किसी अन्य विपक्षी नेता ने अभी तक स्पष्ट शब्दों में यह बताया है कि जनगणना से इन वर्गों को क्या लाभ होगा। लेकिन लाभार्थी-वितरणों की तुलना में कल्याणकारी लाभों के न्यायपूर्ण बंटवारे के वादे का अपना आकर्षण है। यह देखना अभी बाकी है कि जाति की राजनीति वापसी करती है या नहीं। फिलहाल तो ऐसा लग रहा है कि जाति-जनगणना के लिए विपक्ष के आक्रामक अभियान के कारण हिंदुत्व की राजनीति को अपने कदम पीछे खींचना पड़ रहे हैं। दूसरी तरफ राहुल गांधी और उनके इंडिया गठबंधन के सहयोगियों को भी यह समझना होगा कि वे भाजपा को हल्के में न लें और इस बात से संतुष्ट न हो जाएं कि जाति-जनगणना ही उनके तमाम सवालों का रामबाण उत्तर है। न तो राहुल और न ही किसी अन्य विपक्षी नेता ने यह बताया है कि जाति-जनगणना से पिछड़े वर्गों को क्या लाभ होगा। पर लाभार्थी-रेवड़ियों की तुलना में कल्याणकारी लाभों के न्यायपूर्ण बंटवारे के वादे का अपना आकर्षण है।  

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Dakhal News 6 September 2024


Why do we need teachers at every stage of life?

एन. रघुरामन मैं हाल ही में एक साधु से मिला, जिन्होंने खरगोश पाला हुआ था। उन्होंने कहा, “यह वही तुम्हारे बचपन में सुनी खरगोश-कछुए की कहानी वाला खरगोश है। बैठो और उसका इंटरव्यू करो।’ और तब खरगोश की ओर से साधु बोलने लगे, ‘हां, मैं वही खरगोश हूं, जो हार गया था। चूंकि किसी पत्रकार ने आकर मुझसे नहीं पूछा, इसलिए मैं खुद ही अपनी कहानी बताता हूं।’ “मैं आलसी नहीं था। मैं तेजी से कूदकर भागा और जब मैंने पीछे मुड़कर देखा, तो कछुआ मुझसे काफी पीछे था। रेस शुरू होने से पहले वो कछुआ बिना रुके सैकड़ों मील तक चलने की अपनी क्षमता की शेखी बघार रहा था, क्योंकि जीवन मैराथन है, कोई फर्राटा दौड़ नहीं। मैं उसे दिखाना चाहता था कि मैं दोनों कैटेगरी में दौड़ सकता हूं। उस पर अच्छी बढ़त बनाने के बाद मैंने हल्की झपकी लेने का तय किया, क्योंकि जीत की चिंता से मैं सारी रात जागा रहा। केले के पेड़ के नीचे, घास से भरी वह गोलाकार चट्टान किसी तकिए जैसी थी। जैसे ही मैंने उस पर अपना सिर रखा, मधुमक्खियां गीत गाने लगीं और सरसराहट भरी आवाज के साथ पत्तियां ऑर्केस्ट्रा बजाने लगीं। उन सबने मिलकर मुझे सुलाने का षड्यंत्र रचा और उन्हें सफल होने में देर नहीं लगी।’ मैं सपने में एक खूबसूरत जलधारा में लकड़ी के सहारे बह रहा था, जो मुझे एक किनारे ले आई, जहां ये साधु ध्यानमग्न थे। उन्होंने आंखें खोली, चिर-परिचित मुस्कान दी और पूछा, ‘तुम कौन हो?’ ‘मैं खरगोश हूं और एक रेस में दौड़ रहा हूंं।’ ‘क्यों?’ ‘जंगल में सारे जीव-जंतुओं को यह साबित करने के लिए कि मैं सबसे तेज हूं।’ “तुम क्यों साबित करना चाहते हो कि तुम सबसे तेज हो?’ “ताकि मुझे मेडल मिले, जिससे मुझे सामाजिक दर्जा, पैसा और खाना मिलेगा...।’ जंगल की ओर इशारा करते हुए उन साधु ने कहा, “खाना तो आसपास पहले से ही बहुत है। उन सभी पेड़ों को देखो जो फलों से लदे हैं, उन सभी पत्तेदार शाखाओं को देखो।’ मैंने कहा, “मुझे भी सम्मान चाहिए। मैं भी अभी तक के सबसे तेज धावक के रूप में याद रखा जाना चाहता हूं।’ “क्या तुम्हें सबसे तेज भागने वाले हिरण या सबसे बड़े हाथी या सबसे शक्तिशाली बाघ का नाम मालूम है, जो तुमसे हजारों सालों पहले रहते थे?’ “नहीं।’ “आज तुम्हें एक कछुए ने चुनौती दी है। कल को कोई घोंघा होगा। क्या तुम जिंदगीभर यह साबित करने के लिए दौड़ते रहोगे कि तुम सबसे तेज हो।’ “हम्म्म.. मैंने इसे बारे में नहीं सोचा। मैं अपनी पूरी जिंदगी दौड़ नहीं लगाना चाहता।’ “फिर क्या करना चाहते हो?’ “मैं घास से आच्छादित इस गोल चट्टान पर सोना चाहता हूं।’ “ये सब तुम अभी ही कर सकते हो। रेस के बारे में भूल जाओ। तुम आज यहां हो पर कल को तुम चले जाओगे।’ मैं अपनी नींद से जागा क्योंकि बत्तखों ने मुझे जगाया। उन्होंने एक सुर में पूछा, “आज तो तुम्हारी कछुए से रेस थी न?’ मैंने बत्तखों से कहा, “ये बेफिजूल है। व्यर्थ का अभ्यास। मैं बस यहीं होना चाहता हूं।’ इसलिए मैं रेस हार गया और वापस अपनी जिंदगी में लौट आया। मैं आज और बाकी बचे दिनों में भी जिंदगी को पूरी तरह जीना चाहता हूं। इसलिए मैंने रेस बंद कर दी। याद करिए, हम सब खरगोश-कछुए की वही कहानी जानते हैं, जो स्कूल के टीचर ने हमें सुनाई थी। ठीक इसी तरह, प्रबंधन सिखाने वाले संस्थानों के शिक्षक बताते हैं कि कैसे एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने के बजाय, बिजनेस के जंगल में दो स्मार्ट एग्जीक्यूटिव (पढ़ें खरगोश और कछुआ) एक-दूसरे का सहयोग करते हैं और दूसरे खरगोश-कछुए (पढ़ें अन्य बिजनेस) के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं और एक नया मैनेजमेंट शब्द गढ़ते हैं- ‘कोऑपरेशन इन कॉम्पिटीशन’ यानी प्रतिस्पर्धा में सहयोग, जहां उस बिजनेस रेस को जीतने के लिए जमीन पर भागते हुए खरगोश कछुए को अपनी पीठ पर ले जाता है और तैरते हुए कछुआ खरगोश को अपनी पीठ पर ले जाता है। फंडा यह है कि इंसान को जीवन की अलग-अलग स्टेज और अपने खुद को मानकों के अनुसार जीवन जीना चाहिए, न कि दुनिया के लोगों के अनुसार।

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Dakhal News 5 September 2024


Why do we need teachers at every stage of life?

एन. रघुरामन मैं हाल ही में एक साधु से मिला, जिन्होंने खरगोश पाला हुआ था। उन्होंने कहा, “यह वही तुम्हारे बचपन में सुनी खरगोश-कछुए की कहानी वाला खरगोश है। बैठो और उसका इंटरव्यू करो।’ और तब खरगोश की ओर से साधु बोलने लगे, ‘हां, मैं वही खरगोश हूं, जो हार गया था। चूंकि किसी पत्रकार ने आकर मुझसे नहीं पूछा, इसलिए मैं खुद ही अपनी कहानी बताता हूं।’ “मैं आलसी नहीं था। मैं तेजी से कूदकर भागा और जब मैंने पीछे मुड़कर देखा, तो कछुआ मुझसे काफी पीछे था। रेस शुरू होने से पहले वो कछुआ बिना रुके सैकड़ों मील तक चलने की अपनी क्षमता की शेखी बघार रहा था, क्योंकि जीवन मैराथन है, कोई फर्राटा दौड़ नहीं। मैं उसे दिखाना चाहता था कि मैं दोनों कैटेगरी में दौड़ सकता हूं। उस पर अच्छी बढ़त बनाने के बाद मैंने हल्की झपकी लेने का तय किया, क्योंकि जीत की चिंता से मैं सारी रात जागा रहा। केले के पेड़ के नीचे, घास से भरी वह गोलाकार चट्टान किसी तकिए जैसी थी। जैसे ही मैंने उस पर अपना सिर रखा, मधुमक्खियां गीत गाने लगीं और सरसराहट भरी आवाज के साथ पत्तियां ऑर्केस्ट्रा बजाने लगीं। उन सबने मिलकर मुझे सुलाने का षड्यंत्र रचा और उन्हें सफल होने में देर नहीं लगी।’ मैं सपने में एक खूबसूरत जलधारा में लकड़ी के सहारे बह रहा था, जो मुझे एक किनारे ले आई, जहां ये साधु ध्यानमग्न थे। उन्होंने आंखें खोली, चिर-परिचित मुस्कान दी और पूछा, ‘तुम कौन हो?’ ‘मैं खरगोश हूं और एक रेस में दौड़ रहा हूंं।’ ‘क्यों?’ ‘जंगल में सारे जीव-जंतुओं को यह साबित करने के लिए कि मैं सबसे तेज हूं।’ “तुम क्यों साबित करना चाहते हो कि तुम सबसे तेज हो?’ “ताकि मुझे मेडल मिले, जिससे मुझे सामाजिक दर्जा, पैसा और खाना मिलेगा...।’ जंगल की ओर इशारा करते हुए उन साधु ने कहा, “खाना तो आसपास पहले से ही बहुत है। उन सभी पेड़ों को देखो जो फलों से लदे हैं, उन सभी पत्तेदार शाखाओं को देखो।’ मैंने कहा, “मुझे भी सम्मान चाहिए। मैं भी अभी तक के सबसे तेज धावक के रूप में याद रखा जाना चाहता हूं।’ “क्या तुम्हें सबसे तेज भागने वाले हिरण या सबसे बड़े हाथी या सबसे शक्तिशाली बाघ का नाम मालूम है, जो तुमसे हजारों सालों पहले रहते थे?’ “नहीं।’ “आज तुम्हें एक कछुए ने चुनौती दी है। कल को कोई घोंघा होगा। क्या तुम जिंदगीभर यह साबित करने के लिए दौड़ते रहोगे कि तुम सबसे तेज हो।’ “हम्म्म.. मैंने इसे बारे में नहीं सोचा। मैं अपनी पूरी जिंदगी दौड़ नहीं लगाना चाहता।’ “फिर क्या करना चाहते हो?’ “मैं घास से आच्छादित इस गोल चट्टान पर सोना चाहता हूं।’ “ये सब तुम अभी ही कर सकते हो। रेस के बारे में भूल जाओ। तुम आज यहां हो पर कल को तुम चले जाओगे।’ मैं अपनी नींद से जागा क्योंकि बत्तखों ने मुझे जगाया। उन्होंने एक सुर में पूछा, “आज तो तुम्हारी कछुए से रेस थी न?’ मैंने बत्तखों से कहा, “ये बेफिजूल है। व्यर्थ का अभ्यास। मैं बस यहीं होना चाहता हूं।’ इसलिए मैं रेस हार गया और वापस अपनी जिंदगी में लौट आया। मैं आज और बाकी बचे दिनों में भी जिंदगी को पूरी तरह जीना चाहता हूं। इसलिए मैंने रेस बंद कर दी। याद करिए, हम सब खरगोश-कछुए की वही कहानी जानते हैं, जो स्कूल के टीचर ने हमें सुनाई थी। ठीक इसी तरह, प्रबंधन सिखाने वाले संस्थानों के शिक्षक बताते हैं कि कैसे एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने के बजाय, बिजनेस के जंगल में दो स्मार्ट एग्जीक्यूटिव (पढ़ें खरगोश और कछुआ) एक-दूसरे का सहयोग करते हैं और दूसरे खरगोश-कछुए (पढ़ें अन्य बिजनेस) के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं और एक नया मैनेजमेंट शब्द गढ़ते हैं- ‘कोऑपरेशन इन कॉम्पिटीशन’ यानी प्रतिस्पर्धा में सहयोग, जहां उस बिजनेस रेस को जीतने के लिए जमीन पर भागते हुए खरगोश कछुए को अपनी पीठ पर ले जाता है और तैरते हुए कछुआ खरगोश को अपनी पीठ पर ले जाता है। फंडा यह है कि इंसान को जीवन की अलग-अलग स्टेज और अपने खुद को मानकों के अनुसार जीवन जीना चाहिए, न कि दुनिया के लोगों के अनुसार।

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Dakhal News 5 September 2024


Why did the bulldozers run and why not

नवनीत गुर्जर  किसी भी आरोपी के घर पर ताबड़तोड़ बुलडोजर चलाने का सरकारों का निर्णय सही है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सरकार चाहे किसी भी दल की हो, एक ट्रेंड के बाद सभी ने बुलडोजर का इस्तेमाल किया है। कुछ कांग्रेस सरकारों ने भी। कुछ भाजपा सरकारों ने भी। राज्य सरकारों का तर्क है कि उन्होंने क़ानून को हाथ में लेकर किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। बल्कि उन्हीं घरों- मकानों को गिराया गया है जो अवैध रूप से बने हुए थे। इन अवैध मकानों को भी नगरपालिका नियमों के तहत गिराया गया है। अब सवाल यह है कि इस तरह के अवैध मकान बनने क्यों दिए गए? किस अफ़सर ने, कितनी घूस खाकर वो मकान बनने दिया था। फिर अचानक ही सरकार को यह कैसे सूझ जाता है कि यह मकान अवैध रूप से बना है? बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने फ़िलहाल कोई निर्णय तो नहीं सुनाया है लेकिन यह ज़रूर कहा है कि कोई आरोपी भले ही दोषी हो तो भी उसका मकान नहीं गिराया जा सकता। संबंधित राजनीतिक दलों और उनकी सरकारों को नोटिस देकर कहा भी है कि वे अपने- अपने तर्क दें, ताकि इस बारे में एक गाइडलाइन जारी की जा सके। वैसे कुछ समूह इसे किसी वर्ग विशेष से जोड़कर भी देख रहे हैं लेकिन ऐसा स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता क्योंकि दूसरे वर्ग के लोगों के घरों पर भी बुलडोजर चलाए गए हैं। बुलडोजर कार्रवाई कितनी सही है और कितनी गलत? क़ानूनी तौर पर इसका कोई आधार भी है या नही, यह तो अब सुप्रीम कोर्ट ही तय करेगा, लेकिन कुछ पार्टियों या समूहों का यह तर्क है कि एक अपराध की दो सजा नहीं दी जा सकती। दो सजा से यहाँ मतलब है एक तो उसके ख़िलाफ़ पुलिस और कोर्ट क़ानून के हिसाब से कार्रवाई करती है और दूसरी मकान गिराकर सरकार सजा देती है। बहुत हद तक यह तर्क सही भी प्रतीत होता है। अगर कोर्ट कहे कि इस आरोपी का मकान अगर अवैध है तो उसे गिरा दिया जाए तब यह कार्रवाई सही कही जा सकती है। सरकारें खुद सजा देने लगेंगी, तो फिर कोर्ट क्या करेगा?  

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Dakhal News 5 September 2024


Women more vocal after

मेघना पंत  साल 2018 में भारत में हुए मीटू आंदोलन के बाद सुनने को मिल जाता है कि भारत में ये आंदोलन विफल रहा। पर बीते कुछ हफ्तों में सामने आए घटनाक्रमों ने एक बार फिर देश को विचलित किया है और सदियों से मौजूद स्त्रियों के प्रति घृणा, यौन उत्पीड़न और टॉक्सिक मर्दानगी पर ध्यान देने के लिए मजबूर किया है। कोलकाता मामले के बाद अब हेमा कमेटी की रिपोर्ट ने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की परतें खोलकर रख दी हैं। पर क्यों ये समय भारत के मीटू आंदोलन के लिए महत्वपूर्ण है। ये संकेत है कि मीटू आंदोलन सफल था। पर कैसे! पहली बात, यह न भूलें कि दुनियाभर में हुआ ‘मीटू’ एक उलझा मामला था। लेकिन इसने एक बात सर्वसम्मति से रख दी कि यौन उत्पीड़न या डराना-धमकाना सामान्य नहीं है, और किसी भी महिला को इसे सहन नहीं करना चाहिए। इसके परिणाम भुगतने होंगे और हम आज जो होता हुआ देख रहे हैं, वह महिलाओं को हुए नए अहसास के कारण है। महिलाएं आज कार्यक्षेत्र पर सुरक्षित और एक समान कामकाजी माहौल के लिए लड़ रही है, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था। सदियों से ऐसा होता आया है कि यौन उत्पीड़न झेलने वाली महिला बस यह सोचकर घुटती रहती थी कि जो हो रहा है, वो सही नहीं है। पहले पीड़िता के माता-पिता ही कहते थे कि ‘जाने दो’। दोस्त भी कहते थे कि ये कोई बड़ी बात नहीं है। आंतरिक शिकायत समिति कंपनी में ही नाम उजागर कर देती, जिससे काम मुश्किल हो जाता। पुलिस भी शर्मिंदा करती। समाज भी कहता, हमें तुम पर यकीं नहीं। अगर वे शिकायत करतीं तो लोग हंसते कि उन पर कोई भरोसा नहीं करेगा, नौकरी चली जाएगी। इसलिए महिलाओं को लगता था कि सबसे अच्छा तरीका खुद में मजबूत बने रहने में है और इसे बर्दाश्त करें क्योंकि सब ऐसे ही होता आया है। पर अब समय के साथ यह बदल गया है। ‘मीटू’ ने इसे बदल दिया है। अब ऐसे मामलों से निपटने में कहीं ज्यादा संवेदनशीलता दिखने लगी है। असल बात ये है कि महिलाएं अब ज्यादा सुरक्षित और विश्वास से भरा महसूस कर रही हैं। यह इससे पता चलता है कि कई महिलाएं अब बिना किसी शर्म के खुलकर ऐसे लोगों का नाम सामने रख रही हैं, जिन्होंने अरसे से उन्हें दबाकर रखा और इस प्रक्रिया में व्यवस्था में सड़न की हद का खुलासा हो रहा है। अब यौन शोषण की एक बिल्कुल सख्त परिभाषा स्पष्ट हुई है, जिससे अपराधियों का बच निकलना मुश्किल हो गया है। हेमा रिपोर्ट बताती है कि शोषण को लेकर हमारा विमर्श किस तरह बदला है। महिलाएं अब सबूत जुटा रही हैं, एकजुट हो रही हैं और कानूनी शक्ति का प्रदर्शन करके दिखा रही हैं कि वे अपराधियों के खिलाफ खड़े होने में कितनी दक्ष हो गई हैं। यौन उत्पीड़न और इसके परिणामों का असर देश में सिर्फ महिलाओं पर ही नहीं हुआ है। जहां महिलाएं पुरुषों के खिलाफ बोलना सीख रही हैं, पुरुष भी पुरुषों के खिलाफ बोलना सीख रहे हैं। दुनिया को ज्यादा न्यायसंगत बनाने के लिए महिला-पुरुष दोनों सच्चे सहयोगी के रूप में जुड़कर आंदोलन में साथ हो गए हैं। देखकर अच्छा लग रहा है कि इतिहास, जिसे हमेशा पुरुषों ने लिखा, उसे अब महिलाएं नए सिरे से लिख रही हैं, वो भी बहादुरी से।  

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Dakhal News 4 September 2024


Congress and Sangh in the mirror

नवनीत गुर्जर  जातीय जनगणना पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक संयमित और संतुलित बयान दिया है। संघ का कहना है कि समाज के कल्याण के लिए सरकार को आंकड़ों की जरूरत होती है और जातीय जनगणना इसका जरिया हो सकती है। लेकिन इसका चुनाव प्रचार में इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। सीधा-सा मतलब है कि संघ की लीडरशिप, कांग्रेस नेता राहुल गांधी की जातीय जनगणना की मांग से तो सहमत है लेकिन राहुल के तरीके से असहमत। पिछले कुछ चुनावों में राहुल गांधी जातीय जनगणना का मुद्दा लगातार उठा रहे हैं। साफ है कि कांग्रेस यह मांग उठाकर जातियों, खासकर अनुसूचित जाति-जनजाति और पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित जातियों को अपनी तरफ करना चाह रही है! उनके वोट एकजाई अपनी तरफ करने की फिराक में है, जो कि पिछले लोकसभा चुनाव में बहुत हद तक देखने को भी मिला। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस तरह की जनगणना हो चुकने के बाद जो जितने संख्याबल में होगा, उसे उतना हक दिया जा सकेगा? मान लीजिए कल को पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या पचास प्रतिशत से भी ज्यादा निकल आती है तो क्या उसे उतना आरक्षण या उतनी मात्रा में हक दिया जाना संभव होगा? फिलहाल तो कुछ राज्यों को छोड़ दिया जाए तो पचास प्रतिशत से ऊपर आरक्षण होते ही सुप्रीम कोर्ट या अन्य अदालतों की मनाही आने लगती है। अगर यह संख्या के हिसाब से सहूलियत देने का ही मंतव्य है तो उसका प्रैक्टिकल रूप से पहले खाका तैयार होना चाहिए। संभव हो तो ही उसका समाज-हित में उपयोग होना चाहिए, वरना जातियों और समूहों को जोड़ने और फिर उन्हें तोड़ने का प्रयोग आजादी के पहले भी खूब किया गया, जिसका हश्र आखिरकार ढाक के तीन पात से ज्यादा कुछ नहीं हुआ। आजादी के पहले जब सांप्रदायिक तौर पर निर्वाचक मंडल और प्रतिनिधित्व तय करने से अंग्रेजों का पेट नहीं भरा तो उन्होंने जातिवाद और ऊंच-नीच की भावना को खूब भड़काया। साम्राज्य की खातिर पहले उन्होंने अलग-अलग, असमान लोगों को ठोक-पीटकर एक किया और बाद में वे उन्हीं टुकड़ों को बांटने में लग गए। उन्होंने ध्येय बनाया कि केवल अंश, केवल टुकड़े ही वास्तविक हैं। समग्र, संपूर्ण तो महज गढ़ी हुई कल्पना भर है। टुकड़ों को उन्होंने आश्रय और सहारा दिया। टुकड़े यानी जातियां, छोटे- छोटे समूह और जो उनके गणित से मिशनरियों के लिए सर्वाधिक सुलभ थे- भोले आदिवासी और अछूत। तर्क यह दिया गया कि वे उन्हें अपने-अपने क्षेत्रों की ताकत के रूप में पहचान देना चाहते हैं! उनका उस रूप में उत्थान करना चाहते हैं। राहुल गांधी की जातीय जनगणना की मांग हो सकता है कुछ अजीब लगे, लेकिन संघ ने जैसा कहा है कि इसका चुनाव-प्रचार के लिए उपयोग नहीं होना चाहिए, एक तरह से सही भी है। हालांकि संघ ऐसा कहकर भाजपा के मंतव्य को ही समर्थन दे रहा है। हो सकता है भाजपा भी जातीय जनगणना के लिए सहमत हो या सहमत होना चाहती हो लेकिन वह अपनी इस सहमति का फायदा कांग्रेस को उठाने देना नहीं चाहती। कुल मिलाकर जातीय जनगणना के लम्बे समय से चले आ रहे विवाद पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक तरह से पानी के छींटे मारे हैं। ये छींटे विवाद को ठंडा करेंगे या गरम तवे पर मारे हुए छींटों की तरह आंच को और भड़काएंगे, यह समय बताएगा। भाजपा सहित विभिन्न दलों की इस पर जो प्रतिक्रिया आने वाली है, इस पर भी बहुत कुछ निर्भर होगा। चुनाव के लिए उपयोग न हो राहुल की जातीय जनगणना की मांग हो सकता है अजीब लगे, पर संघ ने जैसा कहा कि इसका चुनाव-प्रचार के लिए उपयोग नहीं होना चाहिए, एक तरह से सही भी है। हालांकि संघ ऐसा कहकर भाजपा के मंतव्य को समर्थन दे रहा है।

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Dakhal News 4 September 2024


While celebrating festivals

पवन के. वर्मा  त्योहारों का मौसम शुरू हो चुका है। लेकिन त्योहारों को मनाते समय क्या हम उनमें निहित गहन दार्शनिक प्रतीकात्मकता के बारे में सोचते हैं? हाल ही में जन्माष्टमी का पर्व मनाया गया। मुझे याद है बचपन में इस दिन हमारा पूरा समय झांकी तैयार करने में बीतता था, गोकुल के घर व वनों के परिवेश को फिर से रचा जाता था। आधी रात के आसपास कृष्ण का जन्म मनाया जाता था- और आज भी मनाया जाता है। कृष्ण-कथा के बारे में हरिवंश, विष्णु पुराण, भागवत पुराण और कृष्ण भक्ति काव्य में विस्तार से लिखा गया है। कृष्ण भक्ति काव्य की शुरुआत 9वीं शताब्दी में तमिल में अंताल और 12वीं शताब्दी में संस्कृत में जयदेव के गीत गोविंद से हुई। इन दोनों ने 14वीं से 16वीं शताब्दी के बीच कृष्ण भक्ति लेखन की एक लहर को जन्म दिया, जिसमें विद्यापति, बिहारी, चंडीदास, सूरदास, मीराबाई, चैतन्य और वल्लभाचार्य जैसे मूर्धन्य सम्मिलित थे, और इन सभी ने अपनी मातृभाषा में लिखा। कृष्ण, विष्णु के आठवें अवतार थे। वे बहुआयामी थे। कृष्ण पर आधारित मेरी पुस्तक में पांच अध्याय हैं : बालक, प्रेमी, योद्धा, उद्धारक और भगवान। कान्हा माखनचोर हैं और गोपियों के साथ रास करते हैं, किंतु वही कृष्ण कौरवों के विरुद्ध युद्ध में पांडवों के मार्गदर्शक और रणनीतिकार भी हैं। वे यमुना के तट पर बांसुरी बजाने वाले प्रियतम हैं, राधा के अटूट-संगी हैं तो भगवद्गीता में मानव जाति के उद्धारक के रूप में रणभूमि में निस्तेज अर्जुन को दिशा भी दिखाते हैं। हिंदू मानस ने भक्ति के उद्देश्य से विभिन्नताओं के इस समारोह के बजाय दिव्यता के किसी एकरूप चित्रण को क्यों नहीं चुना? इसका उत्तर हिंदू धर्म की उल्लेखनीय जटिलताओं और दिव्यता में निहित अनंतता की झलक प्रदान करने के उसके दुस्साहसिक संकल्प में निहित है। यदि परम-तत्त्व अपरिभाषेय है, तो इसे सरल और पूर्वानुमानित तरीके से चित्रित नहीं किया जा सकता है। इसके अनंत पहलुओं को नहीं पकड़ा जा सकता। लेकिन इसे असंख्य उपायों से रूपांकित करके अनंतता की एक झलक प्रदान की जा सकती है, जिनमें से प्रत्येक रूप पूर्ण का एक अंश हो। मर्यादा पुरुषोत्तम राम उस परम दिव्य की भव्यता का एक पहलू हैं; लीला पुरुषोत्तम कृष्ण उसी सर्वशक्तिमान ब्रह्मांडीय ऊर्जा का एक और आयाम। दोनों ही ईश्वर के निर्बाध वरदान और ब्रह्म की सर्वज्ञता के भिन्न आयामों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस विविधता के भीतर भी जटिलताएं हैं। क्या हमने कभी सोचा है कि कृष्ण एक बार वृंदावन छोड़ने के बाद वहां कभी लौटकर क्यों नहीं आते, जबकि वे समीप ही मथुरा में होते हैं? यह संयोग नहीं हो सकता। ऐसा करते हुए कृष्ण हिंदू विश्वदृष्टि के चार पुरुषार्थों को दोहरा रहे थे : धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इस रूपरेखा के भीतर काम या ऐंद्रिकता की वैधता तो है, किंतु वह उसकी अनन्य प्राथमिकता नहीं है। वह दिव्यता का एक झरोखा भर हो सकता है। भौतिक आनंदमय है, किंतु अभौतिक भी आनंदघन है। जब गोपियां कृष्ण के अभौतिक रूप का ध्यान करती हैं, तो उनका विरह आनंद में बदल जाता है। कुरुक्षेत्र की समरभूमि में सारथी या परामर्शदाता के रूप में, कृष्ण अर्जुन को निष्काम कर्म का सिद्धांत सिखाते हैं। अर्जुन- जो हर साधारण मनुष्य का प्रतिनिधित्व करता है- क्षणभंगुर संसार में जीवन की निरर्थकता की सहसा हुई अनुभूति से त्रस्त है। कृष्ण के गीतोपदेश का उद्देश्य अर्जुन और उसके जैसे मनुष्यों के जीवन को प्रयोजन और संदर्भ देना है, और नश्वरजनों को जीवन में बार-बार आने वाले अस्तित्वगत संकट से उबरने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करना है। किसी खिलते हुए पद्म-पुष्प की तरह, कृष्ण के भी कई भाव और रूप हैं। जन्माष्टमी और उसके जैसे कई अन्य पर्वों को हमें हिंदू धर्म में निहित विचारों की गहराई पर विचार करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।गीतोपदेश का उद्देश्य अर्जुन के जीवन को प्रयोजन और संदर्भ देना है, और जीवन में बार-बार आने वाले अस्तित्वगत संकट से उबरने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करना है। किसी खिलते हुए पद्म-पुष्प की तरह, कृष्ण के भी कई भाव और रूप हैं।  

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Dakhal News 3 September 2024


Now the time has come for smart cities

आशीष कुमार चौहान  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 अगस्त 2024 को भविष्य की ओर कदम बढ़ाया, जब आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने पीएम गतिशक्ति सिद्धांतों पर आधारित, 28,602 करोड़ रुपए की लागत से 10 राज्यों में 12 औद्योगिक स्मार्ट शहरों की स्थापना की घोषणा की। यह भारत का अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचे का कार्यक्रम है, और इसका उद्देश्य पूरे देश में विकास के बड़े इंजन बनाना है। साहसी और परिणाम-केंद्रित नेतृत्व ही विकसित भारत के सपने को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ा सकता है। राष्ट्रीय औद्योगिक कॉरिडोर विकास कार्यक्रम (एनआईसीडीपी) के तहत संचालित की जाने वाली नई परियोजना इस लक्ष्य की ओर देश की यात्रा को गति देगी। सतत विकास के लिए एक और प्रोत्साहन की आवश्यकता है- स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए बड़े पैमाने पर निवेश। सरकार यही करने का इरादा रखती है। उसकी योजना डिजिटल रूप से सम्पन्न, ‘प्लग-एंड-प्ले’ औद्योगिक और मैन्युफैक्चरिंग केंद्रों में बड़े पैमाने पर निवेश की है। आज प्रधानमंत्री मोदी को एक व्यावहारिक नीति-निर्माता के रूप में देखा जाता है। उन्होंने जल्द ही यह महसूस कर लिया कि भारत जैसे विशाल देश को प्रगति की ओर ले जाने के लिए आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इसी का उत्तर था मेगा-इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को शुरू करना- भविष्य के शहरों का निर्माण करना, विशाल समुद्री केंद्र स्थापित करना, देश भर में अत्याधुनिक सड़क और रेल कॉरिडोर बनाना और विश्वस्तरीय डिजिटल बुनियादी ढांचा स्थापित करना। इस अति-महत्वाकांक्षी परियोजना की रोजगार-क्षमता बहुत अधिक है : इससे 10 लाख प्रत्यक्ष और 30 लाख अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होने की उम्मीद है। इसमें 1.52 लाख करोड़ रुपए का निवेश भी होगा, जिसमें निवेशकों को आवंटन के लिए तैयार भूमि, पानी, बिजली, गैस, दूरसंचार, सड़क, रेल, हवाई अड्डे उपलब्ध होंगे। एकीकृत नगर-नियोजन और कर्मचारियों के लिए काम के समीप ही आवास की सुविधा के साथ पर्यावरण की चिंताओं का भी ध्यान रखा जाएगा। चूंकि ये औद्योगिक स्मार्ट शहर आर्थिक चुम्बक के रूप में कार्य करेंगे, इसलिए वे प्रमुख महानगरों पर दबाव को भी कम करेंगे। इससे योजनाबद्ध शहरीकरण होगा। यह नया भारत है। यह ऐसा विचार है जिसका समय आ गया है। महाराष्ट्र हमेशा से भारत की आर्थिक शक्ति रहा है। सतत विकास के दृष्टिकोण से भी यह सबसे अधिक लाभान्वित होगा और बुनियादी ढांचे व परिवहन में नए मानक स्थापित करेगा। इस वर्ष की शुरुआत में, मुंबई ने भारत के सबसे लंबे समुद्री पुल- मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक को हरी झंडी दिखाई। कोस्टल रोड मुंबई एक अन्य मेगा-परियोजना है और वर्तमान में इसे चरणों में विकसित किया जा रहा है। महाराष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने को बदलने के लिए तैयार अन्य परियोजनाएं दिल्ली-मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर, नवी मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल और मुंबई-पुणे हाइपरलूप हैं। महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों में दो बेहद महत्वाकांक्षी परियोजनाएं पहले ही चल रही हैं। एक है रायगढ़ जिले के नौ गांवों में फैला दिघी पोर्ट औद्योगिक क्षेत्र परियोजना। यह दिघी बंदरगाह के विकास के साथ-साथ शुरू की जा रही है और इससे राज्य में उपभोक्ता-उपकरण, धातु, ऊर्जा, पेट्रोकेमिकल और रसायन व्यवसाय जैसे उद्योगों में निवेश बढ़ने की उम्मीद है। दूसरी समुद्री परियोजना मुंबई से 130 किलोमीटर उत्तर में दहानू स्थित वधावन में भारत के सबसे बड़े बंदरगाहों में से एक का विकास है। वधावन मध्य-पूर्व के माध्यम से भारत को यूरोप से जोड़ने वाली समुद्री और रेल संपर्क स्थापित करने की रणनीतिक पहल का हिस्सा है। अफ्रीका के पूर्वी तट और फारस की खाड़ी के देशों से कंटेनर यातायात की पूर्ति के लिए अरब सागर में एक केंद्र के रूप में बंदरगाह को विकसित करने की योजना है। आज पूरी दुनिया में जीवन की गुणवत्ता में सुधार, शहरों को टिकाऊ बनाने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए स्मार्ट शहरों का विकास किया जा रहा है। चीन ने 2012 में स्मार्ट शहरों को प्राथमिकता बनाया और 2020 तक देश भर में 900 से अधिक पायलट-प्रोजेक्ट स्थापित किए। इसने ग्वांगझोउ, शेनझेन और हांग्जो जैसे छोटे शहरों को वैश्विक मानचित्र पर ला दिया, क्योंकि वे शहरी-नियोजन और प्रबंधन के लिए अभिनव दृष्टिकोण प्रदर्शित करते हैं। 2000 के दशक की शुरुआत में स्मार्ट शहरों को अपनाने वाले पहले देश दक्षिण कोरिया में आज दुनिया का सबसे स्मार्ट शहर सोंगडो है, जो सियोल से बहुत दूर नहीं है। पिछले एक दशक में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत का विकास-रथ हमें दिखा रहा है कि जब आप दृढ़ संकल्प को स्पष्ट दृष्टि और निर्णायक कार्रवाई से जोड़ते हैं तो क्या किया जा सकता है।

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Dakhal News 3 September 2024


Competition is good, but life works on cooperation

ज्यां द्रेज हम प्रतिस्पर्धा की दुनिया में रहते हैं। छोटी उम्र से ही बच्चे स्कूल में सबसे अच्छे अंक पाने के लिए प्रतिस्पर्धा करना सीखते हैं। लेकिन कुशाग्र बच्चों को पढ़ाई में वंचित बच्चों की मदद करना नहीं सिखाया जाता। उन्हें कक्षा में दूसरे या तीसरे नंबर पर आने के बजाय टॉपर बनना सिखाया जाता है। वयस्क जीवन में भी यही प्रतिस्पर्धा जारी रहती है। विद्वान दूसरे विद्वानों से, खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ियों से, कलाकार दूसरे कलाकारों से, राजनेता दूसरे राजनेताओं से प्रतिस्पर्धा करते रहते हैं। अर्थव्यवस्था भी आखिर प्रतिस्पर्धा पर ही आधारित है। मजदूर रोजगार के लिए, दुकानदार ग्राहकों के लिए, ठेकेदार ठेके के लिए और मीडिया आपके ध्यान के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। अर्थशास्त्री अक्सर हमें बताते हैं कि यह अच्छी बात है। कि प्रतिस्पर्धा अर्थव्यवस्था को गतिशीलता प्रदान करती है। यह हर किसी को कड़ी मेहनत करने के लिए मजबूर करती है। हालांकि, प्रतिस्पर्धा से समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं। मसलन, अगर खनन कम्पनियां मुनाफे के लिए प्रतिस्पर्धा करेंगी तो क्या वे पर्यावरण का ख्याल रखेंगी? नहीं, वे खुले स्थानों पर कचरा फेंककर पैसे बचाएंगी। अगर डॉक्टर मरीजों के लिए प्रतिस्पर्धा करेंगे, तो क्या वे किसी ऐसे व्यक्ति- जिसे साधारण सर्दी है- से कहेंगे कि उसे बस आराम और अच्छे भोजन की जरूरत है? नहीं, डॉक्टर एंटीबायोटिक या स्टेरॉयड लिखेंगे, ताकि मरीज तुरंत राहत महसूस करे। अत्यधिक प्रतिस्पर्धा के नुकसान हमें चारों तरफ दिखते हैं। प्रतिस्पर्धा के दबाव के कारण लोग जीतने के लिए अनुचित साधनों का उपयोग करने लगते हैं। विद्वान आत्मप्रचार के लिए फर्जी पत्रिकाओं में शोध-पत्र छपवाते हैं। राजनेता वोट जीतने के लिए काले धन का उपयोग करते हैं। खिलाड़ी अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए ड्रग्स तक लेते हैं। संगीतकार अपनी रचनात्मकता को छोड़कर वह धुन बजाते हैं, जो बाजार में सबसे अधिक बिकती है। जबकि अगर सच कहें तो जीवन में कई बेहतरीन चीजें प्रतिस्पर्धा के बजाय सहयोग से आती हैं। पारिवारिक जीवन से लेकर राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन तक, सहयोग ही काम आया है। और सोचिए, अगर माता-पिता और शिक्षक स्कूल को बेहतर बनाने में परस्पर-सहयोग करें तो बच्चों के जीवन में कितना बदलाव आ सकता है। इसी तरह, जब डॉक्टर और नर्स एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं, तब स्वास्थ्य केंद्र और ढंग से काम करने लगता है। आर्थिक और सामाजिक जीवन में प्रतिस्पर्धा और सहयोग दोनों का अपना स्थान है। लेकिन दुर्भाग्य से, प्रतिस्पर्धा की संस्थाएं जहां अच्छी तरह से विकसित हैं, वहीं सहयोग की संस्थाएं नहीं। प्रतिस्पर्धा और सहयोग एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। जब युवा फुटबॉल मैच खेलते हैं, तो क्या वे प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं या सहयोग? दोनों! वे गोल करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, लेकिन खेल के नियमों का पालन करने के लिए सहयोग भी करते हैं। झारखंड में- जहां मैं रहता हूं- आदिवासियों में सहयोग की मजबूत संस्कृति है। वे रोजमर्रा की जिंदगी में आसानी से सहयोग करते हैं। आदिवासी समुदायों में आपसी सहयोग कई अलग-अलग उद्देश्यों के लिए किया जाता है जैसे कि धान की रोपाई, घर बनाना और शादी समारोह का आयोजन करना। सहयोग की यह संस्कृति उनको बहुत मदद करती है। सहयोग की संस्कृति से हमें बहुत कुछ सीखना है। मैं तो यह भी कहूंगा कि अगर हम वैश्विक स्तर पर सहयोग करना नहीं सीखेंगे, तो मानव प्रजाति शायद ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पाएगी। अभी हम सामूहिक आत्मघात की ओर बढ़ रहे हैं क्योंकि हम जलवायु-परिवर्तन और परमाणु युद्ध जैसे खतरों से बचने के लिए सहयोग करने में विफल रहे हैं। सहयोग का मुख्य दुश्मन असमानता है। सहयोग समान लोगों के बीच अच्छा काम करता है। यही कारण है कि आदिवासी समुदायों में सहयोग दिखता है, जहां जाति व्यवस्था नहीं है और अधिकांश लोगों के पास थोड़ी जमीन है। लेकिन धन, जाति या शक्ति के हिसाब से असमान लोगों के बीच सहयोग मुश्किल होता है। प्रतिस्पर्धा शासक-वर्गों और जातियों की विचारधारा है। प्रतिस्पर्धा से उन्हें लाभ होता है, क्योंकि इसमें वही विजयी होते हैं। इसलिए वे प्रतिस्पर्धा की प्रशंसा करते हैं और सहयोग का अवमूल्यन करते हैं। अगर हम सहयोग को बढ़ावा देना चाहते हैं, तो हमें इस विचारधारा का मुकाबला करना होगा और समाज में अधिक समानता भी लानी होगी।

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Dakhal News 2 September 2024


how long will the delay in justice continue

नवनीत गुर्जर पीढ़ियाँ गुज़र जाती हैं लेकिन वो तारीख़ नहीं आती। आरोपी खुले घूमते रहते हैं और पीड़ित लोग डर में जीते रहते हैं, लेकिन वो तारीख़ नहीं आती। सरकारों, वकीलों और न्यायाधीशों ने इस बारे में हो सकता है सोचा होगा, लेकिन इस दिशा में कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए। किए भी गए हो तो न तो वे आम आदमी को दिखाई दिए और न ही न्याय प्रक्रिया में उनकी झलक दिखाई दी। न्याय प्रक्रिया को इतना सरल और सहज बनाना चाहिए कि आम आदमी कोर्ट रूम में जाने से घबराए नहीं। ख़ासकर पीड़ित व्यक्ति की घबराहट तो दूर करनी ही चाहिए। आख़िर तारीख़ पे तारीख़, तारीख़ पे तारीख़ के नकारात्मक कल्चर को न्यायपालिका कब तक ढोती रहेगी? आरोपी तारीख़ें आगे बढ़वाते रहते हैं और वे बढ़ती भी रहती हैं। न्याय आम आदमी की पहुँच से दूर, बहुत दूर होता जाता है। अगर त्वरित न्याय होने लगे तो अपराधों पर बहुत हद तक अंकुश लग सकता है। कोलकाता, बदलापुर जैसी घटनाओं में निश्चित रूप से कमी ज़रूर आएगी। अभी न्याय या फैसलों में बहुत देर होने के कारण अपराधियों में ख़ौफ़ नहीं है। अपराध करने वाले के भीतर ख़ौफ़ पैदा करने का एक ही तरीक़ा है और वो है त्वरित न्याय। इसके सिवाय कोई चारा नहीं है। क्योंकि हम एक सभ्य और सहज राष्ट्र के रूप में जाने जाते हैं इसलिए अपराधियों को दण्ड देने का न्यायिक प्रक्रिया के सिवाय दूसरा कोई रास्ता नहीं हो सकता। हो सकता है कि जघन्य घटनाओं के तुरंत बाद कुछ लोगों को लगता हो कि चौराहे पर खड़ा करके ऐसे अपराधियों को दण्ड देना ही उचित है लेकिन यह नारकीय व्यवस्था साबित हो सकती है। सही मायने में कुछ लोगों में इस तरह की सोच विकसित होने का कारण भी न्याय में देरी ही है। न्याय प्रक्रिया में सुधार की बात ठान ली जाए तो पेंडिंग केस और नए मामलों में देरी की समस्या से निजात पाई जा सकती है। अगर यह करना है तो वकीलों, न्यायाधीशों और सरकारों को मिलकर इसके लिए तुरंत आगे बढ़ना होगा। न्याय में देरी आख़िर कितनी, क्यों और कब तक जारी रहेगी?  

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Dakhal News 2 September 2024


markets are now giving competition to America

रुचिर शर्मा  ये 2000 के दशक की बात है, जब उभरती अर्थव्यवस्थाओं में एक व्यापक इकोनॉमिक-बूम उनके बाजारों में अरबों डॉलर की बाढ़ ला रहा था। तब उस ऐतिहासिक पल को ‘राईज़ ऑफ द रेस्ट’ यानी विकसित अर्थव्यवस्थाओं की सूची से शेष रह गई ‘अन्य’ विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का उदय बताया गया था। आज फिर उभरते बाजारों से वैसी ही प्रेरक कहानी सामने आ रही है, लेकिन कम ही विश्लेषकों का ध्यान इस तरफ गया है। विदेशी निवेशकों को तो भनक तक नहीं लगी है। पिछले दशक में उभरती अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट आई थी, लेकिन अब वे पुनर्निमाण के दौर से गुजर रही हैं और विकसित अर्थव्यवस्थाओं के समक्ष ग्रोथ की बढ़त दर्ज करने में मशगूल हैं। अमेरिका तक को चुनौती दी जा रही है। ऐसा गत 15 वर्षों में नहीं देखा गया था। उभरती अर्थव्यवस्थाओं का अनुपात- जिसमें प्रति व्यक्ति जीडीपी अमेरिका से अधिक तेजी से बढ़ने की संभावना है- पिछले पांच वर्षों में 48 प्रतिशत से अगले पांच वर्षों में 88 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है। यह 2000 के दशक में उभरती दुनिया के पीक के अनुरूप होगा। यह उभरता हुआ उछाल पिछली बार के बूम से कई अहम मामलों में अलग है। 2000 के दशक में उभरती दुनिया को चीन के तेजी से बढ़ते कदमों, कमोडिटी की कीमतों में भारी उछाल और पश्चिमी केंद्रीय बैंकों द्वारा अपनाई गई आसान मुद्रा नीतियों के कारण उछाल मिला था। कई टिप्पणीकारों ने मान लिया था कि चीन के उदय के पीछे ‘अन्य’ अर्थव्यवस्थाएं भी बड़े पैमाने पर उछाल जारी रख सकती हैं, लेकिन वे बुरी तरह से निराश हुए। 2012 में ही मैंने चेतावनी दे दी थी कि अत्यधिक हाइप के चलते इन ‘अन्य’ अर्थव्यवस्थाओं का पतन हो सकता है। और यकीनन, अगला दशक उभरते बाजारों के लिए निराशाजनक था- वहीं वह अमेरिका के लिए शानदार रहा। लेकिन अब कई उभरते हुए देश अमेरिका की तुलना में कहीं ज्यादा मजबूत वित्तीय स्थिति में हैं। एक अति-उत्तेजित महाशक्ति के रूप में, और विकास को गति देने के लिए रिकॉर्ड घाटे पर निर्भर रहने के कारण अमेरिका अब एक अस्थिर रास्ते पर है। उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में बजट और चालू खाता घाटा बहुत कम है, जिससे उन्हें निवेश करने और भविष्य के विकास को आगे बढ़ाने की ज्यादा क्षमता मिलती है। यहां तक कि तुर्किये से लेकर अर्जेंटीना तक- जो देश अतीत में वित्तीय अपव्यय के लिए जाने जाते थे- वे भी पुराने चलन की आर्थिक नीतियों की ओर लौट आए हैं। उभरते देशों का भाग्य अब पूरी तरह से सबसे अमीर देश पर निर्भर नहीं करता। वर्तमान में हो रहा उभार चीन के अलावा अन्य देशों द्वारा संचालित है, जिनकी अपनी कठिनाइयां हैं, घटती आबादी से लेकर भारी कर्ज तक। बीजिंग के राष्ट्रवादी रुख और पश्चिम के साथ उसके बढ़ते तनावपूर्ण संबंधों ने वैश्विक निवेशकों को डरा दिया है। अब वे चीन से बाहर निकल रहे हैं और कहीं और कारखाने स्थापित कर रहे हैं। आने वाले दशक में ग्रीन टेक्नोलॉजी और उसके लिए आवश्यक कच्चे माल- जैसे कि तांबा और लिथियम- के लिए निर्यात विशेष रूप से मजबूत होने की संभावना है, जिनकी आपूर्ति मुख्य रूप से उभरते देशों द्वारा ही की जाती है। एआई बूम पहले से ही एआई-संबंधित चिप्स (कोरिया और ताइवान) और इलेक्ट्रॉनिक्स (मलेशिया और फिलीपींस) के आपूर्तिकर्ताओं से निर्यात को बढ़ावा दे रहा है। कई उभरते बाजारों में निवेश भी बढ़ रहा है, जो कई खूबियों से प्रभावित है- भारत का बड़ा घरेलू बाजार, डेटा सेंटर के लिए मलेशिया का उपजाऊ वातावरण और मेक्सिको की अमेरिका से निकटता। जैसे-जैसे आर्थिक विकास बढ़ता है, कॉर्पोरेट आय भी उसी के अनुरूप होती है। चीन को छोड़ दें तो वर्तमान में उभरते बाजारों में आय 16 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रही है, जबकि अमेरिका में यह 10 प्रतिशत ही है। इस वर्ष की दूसरी तिमाही में- 2009 के बाद पहली बार- उभरते बाजारों (चीन को छोड़कर) में कॉर्पोरेशंस ने अपने अमेरिकी समकक्षों की तुलना में आय के पूर्वानुमानों को व्यापक अंतर से पीछे छोड़ दिया है। भारत और सऊदी अरब के पास तो घरेलू निवेशकों का भी मजबूत और तेजी से बढ़ता आधार है। अमेरिका की छाया में लंबे समय तक रहने के बाद, उभरते बाजार तेजी से आकर्षक विकल्प बनते जा रहे हैं। हालांकि वे तेजी से आय वृद्धि दर्ज कर रहे हैं, लेकिन वे अमेरिका की तुलना में रिकॉर्ड कम मूल्यांकन पर कारोबार कर रहे हैं। 15 वर्षों तक, अमेरिका ने मुख्य रूप से बड़ी टेक कंपनियों द्वारा संचालित बेहतर आय वृद्धि प्रदान की थी, लेकिन यह भी बदल रहा है। अमेरिका की बड़ी टेक फर्मों की आय वृद्धि अब आने वाले वर्ष में आधे से अधिक गिरने की उम्मीद है। ये ठीक बात है कि सभी उभरते हुए देशों को एक पांत में नहीं रखा जा सकता। ऐसे में उन्हें औसतन एक दशक तक अच्छा करना होगा और वैश्विक व्यापार, डॉलर, आर्थिक सुधार, नए राजनीतिक नेतृत्व आदि के अनुकूल ट्रेंड्स से अपने लिए मजबूती प्राप्त करना होगी। याद करें कि अभी हाल ही तक अनेक टिप्पणीकार चेतावनी दे रहे थे कि महामारी के बाद उभरती हुई दुनिया और कमजोर हो जाएगी। उनसे कम ही उम्मीदें की जा रही थीं। उलटे इस बात का डर था कि उभरते बाजार वैश्विक निवेशकों की पसंद नहीं रह जाएंगे। लेकिन उन्होंने शानदार वापसी की है। टिप्पणीकारों को अब इसका संज्ञान लेना चाहिए। बदलते दौर की इकोनॉमी... एआई बूम चिप्स (कोरिया व ताइवान) और इलेक्ट्रॉनिक्स (मलेशिया व फिलीपींस) के आपूर्तिकर्ताओं से निर्यात को बढ़ावा दे रहा है। भारत का बाजार, डेटा सेंटर के लिए मलेशिया का सहयोगी माहौल और मेक्सिको की अमेरिका से निकटता निवेशकों को खींच रही है।

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Dakhal News 28 August 2024


mothers continue to feel ashamed

नवनीत गुर्जर  जब उसके बचपन के दिन थे। चांद में परियां रहती थीं। हवाएं किसी हाकिम की मुट्ठी या कैदखाने में बंद नहीं होती थीं। उसके हिसाब से आया-जाया करती थीं। आजकल उसी बचपन को, वही चांद हड्डी बनकर चुभ रहा है। हवाएं शरीर पर कोड़े मार रही हैं। कोलकाता में, बदलापुर में क्या हुआ? ये तो दो बड़े मामले हैं… और भी देश के कई शहरों, कस्बों में क्या हो रहा है? कुछ लोगों की लालसा ने अपने लफ्जों के हाथों तलवारें क्यों थमा दी हैं? आखिर इसे क्या नाम दिया जाए? पागलपन या हवसीपना? बच्चियों, महिलाओं का नभ, जो सुबह नीला, सुंदर होता है, उसे दोपहर और शाम और रात तक लोग स्याह, काला करने पर क्यों तुले हुए हैं? निश्चित ही समाज में ऐसे लोग कम ही होते हैं, लेकिन सवाल यह है कि वे उतने भी क्यों हैं? जिस कोख को वे तितर-बितर करने पर, तहस-नहस करने पर तुले हुए हैं, आखिर वही उनकी जन्मदात्री भी तो है! वही उनके अस्तित्व की वजह भी तो है! क्यों ऐसे लोगों के नाखून जमाने भर से तेज होते जा रहे हैं? कोई तो बताए कि ये और कितनी रातों तक कितनी रूहों को निगलते रहेंगे? जलाते-फूंकते रहेंगे? आखिर इनकी भूख इतनी शैतानी क्यों है? …और आखिर इस भूख के मिटने का कोई सिरा भी है या नहीं? इन क्रूर और पिशाची घटनाक्रमों के बाद आंखों के नीचे पानी के कुछ कतरे रख लेने भर से अब कुछ नहीं होने वाला! इस स्याह अध्याय का कोई तो समाधान खोजना ही होगा। चाहे वो कड़े कानून के तौर पर हो! चाहे कड़ी और त्वरित या तुरंत सजा के रूप में हो। आखिर इस अनाचार का कोई तो अंत होना ही चाहिए। ऐसी घटनाओं को देख-सुनकर करोड़ों मांएं, बच्चियां और लड़कियां आखिर कब तक खुद को लज्जित महसूस करती रहेंगी? आखिर एक महिला ने पुरुष के लिए क्या नहीं किया! उम्रभर, गलती रही! बहती रही! एक नदी की तरह! उसका यह योगदान बड़ा होता है। किसी आसमान से भी बड़ा। लेकिन इन चंद हैवानों ने उसे क्या दिया? सिवाय दु:ख के? निर्भया के बाद अभया और इन दोनों के बीच के समय में जाने कितनी निर्भया, कितनी ही अभया ने वो सब कुछ झेला, जो ज्यादती की हद के पार था। दबी-दबी सिसकियों को कोई क्यों नहीं सुनता? वे दर्दअंगेज चीखें! वे ख्वाबों के अचानक टूटने, तहस-नहस होने की आवाज इन दानवों को क्यों सुनाई नहीं देती? ऐसी घटनाओं से तो पेड़-पौधे तक बिलख उठते हैं। दरिया तक रो पड़ता है। ये तो आखिर हाड़-मांस के, जीते-जागते पुतले हैं। इन्हें कुछ क्यों महसूस नहीं होता? ये पिशाच क्या हमेशा से पिशाच ही थे? मनुष्य या मनुष्यत्व से उनका कभी कोई नाता रहा ही नहीं? अगर हां, तो ऐसा क्यों है? सरकारें केवल कानून बना सकती हैं। उनका पालन करवा सकती हैं, जो वे फिलहाल पूर्ण रूप से या सही तरीके से नहीं कर पा रही हैं। हर तरफ, हर मौके पर लीपापोती करना और करते रहना, सरकारों का स्वभाव बन गया है। यह ढर्रा बदलना चाहिए। यह रवैया सुधरना चाहिए। जहां तक आम आदमी का सवाल है उसे चेतना होगा। क्योंकि चेतना तो भीतर से ही आएगी। वो किसी सरकार के खीसे में नहीं पाई जाती। इसे जागृत करना होगा। मनुष्यत्व को अपना चैतन्य रूप दिखाना होगा। यह ढर्रा बदलना चाहिए... बच्चियों, महिलाओं का नभ, जो सुबह नीला, सुंदर होता है, उसे दोपहर और शाम और रात तक लोग स्याह, काला करने पर क्यों तुले हुए हैं? समाज में ऐसे लोग कम ही होते हैं, लेकिन सवाल यह है कि वे उतने भी क्यों हैं?  

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Dakhal News 28 August 2024


The message of

कावेरी बामजेई उस समाज का क्या होता है, जहां प्रेम नहीं होता? तब वह सालों पीछे चला जाता है। महिलाओं से आजादी छीन ली जाती है, लड़कियों को किताबों और फोन से वंचित कर दिया जाता है, और पुरुष ही सड़कों पर बेखौफ घूम सकते हैं। यही ‘स्त्री-2’ का अंतर्निहित संदेश है। यह संदेश देने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता था, जब हमारी सड़कें डर से भरी हैं और हमारे कार्यस्थल भी खतरों से अछूते नहीं रह गए हैं। अमर कौशिक द्वारे रचे गए फिल्मी-संसार में चंदेरी एक ऐसा शहर है, जहां महिलाएं आजाद घूमती हैं और पुरुष ‘भीगी बिल्ली’ की तरह घर पर बैठे हैं। ‘हमें वो वापस चाहिए,’ शहर की महिलाएं एक लेडीज टेलर के बारे में कहती हैं, जिससे उन्हें उम्मीद है कि वह शहर को ‘सरकटे’ से छुटकारा दिला सकता है। यह सरकटा प्रगतिशील विचारों वाली किसी भी युवा महिला को अपने साथ ले जाता है, चाहे वह ताइक्वांडो सीख रही हो, पढ़ाई में अव्वल हो, प्यार में हो या सोशल मीडिया पर सक्रिय हो। मुसीबत तब चरम पर पहुंच जाती है, जब ‘सरकटा’ एक नर्तकी को अपने अड्डे पर ले जाता है। लेकिन कस्बे को बचाने के लिए एक गांव की जरूरत होती है, जैसे देश को बचाने के लिए समाज की! इसलिए, हालांकि चंदेरी की महिलाएं लेडीज टेलर विकी से उन्हें बचाने का आग्रह करती हैं, और रहस्यमयी स्त्री उससे प्रेम की अपनी शक्ति को उजागर करने का आग्रह करने के लिए लौट आती है, लेकिन ‘अर्धनारीश्वर’ के रूप में स्त्री और विकी ही ‘सरकटे’ को हराने में सक्षम हैं। यहां ‘अर्धनारीश्वर’ के मिथक का चयन दिलचस्प है। क्योंकि हर पुरुष में स्त्रीत्व का तत्व होता है और इसका विपरीत भी सच है! कहानी का लब्बोलुआब यह है कि व्यवस्था बहाल करने के लिए पुरुषों और महिलाओं दोनों को कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा। अन्यथा महिलाओं को चौके-चूल्हे तक ही सीमित कर दिया जाएगा। एक ऐसे समय में- जब हमारी दुनिया में उथल-पुथल है- ‘स्त्री-2’ हमें उम्मीद देती है कि सच्चाई, सरलता और सच्चा प्यार हमें विनाश से बचा सकते हैं। जब स्त्री विकी से कहती है कि वह उसके साथ नहीं रह सकती क्योंकि वह सिर्फ एक छाया है, तो वह उससे कहता है कि वह उसके लिए ‘एडजस्ट’ करने को तैयार है। ‘स्त्री-2’ की दुनिया में दीवारें तक कहती हैं कि- ‘हे स्त्री रक्षा करना।’ यहां स्त्री शक्ति का प्रतीक है। ‘अर्धनारीश्वर’ के मिले-जुले प्रयासों के बावजूद ‘सरकटे’ को हराने के लिए अंततः स्त्री की मां को न्याय की स्थापना करनी पड़ती है। एक स्थिर दुनिया में, मनुष्य और जानवर समान हैं, और संतुलन के लिए दोनों की समान रूप से जरूरत है। तब पुरुष महिलाओं से प्रेम कर सकते हैं और महिलाएं आजादी का आनंद ले सकती हैं। जैसा कि फिल्म में एक गाना कहता भी है : ‘मेरे महबूब समझिए जरा मौके की नजाकत/के खरीदी नहीं जा सकती हसीनों की इजाजत।’ इससे पूर्व में आई ‘स्त्री’ की तुलना में ‘स्त्री-2’ अधिक विकसित कहानी है, जहां चंदेरी की सुरक्षा के लिए एक महिला की जरूरत है, जहां महिलाएं जो चाहें कर सकती हैं और जहां पुरुषों का जीवन संकट में है। जहां बदलाव का बोझ समान रूप से साझा किया जाता है। बदलाव लाना है तो पुरुषों को महिलाओं के साथ मिलकर काम करना होगा। हॉरर फिल्मों ने हमेशा समाज की चिंताओं को प्रदर्शित किया है, चाहे वह ‘किंग कांग’ द्वारा न्यूयॉर्क को ‘ग्रेट डिप्रेशन’ के रूपक के रूप में रौंदना हो या हाल में अमेरिका में नस्लवाद पर टिप्पणी करने वाली ‘गेट आउट’ हो। और कभी-कभी हमें रास्ता दिखाने के लिए एक हॉरर-कॉमेडी की भी जरूरत होती है। एक ऐसे देश में जहां हर दिन 86 दुष्कर्म होते हैं, जहां महिलाओं के साथ कार्यस्थलों, घरों और यहां तक कि ऑनलाइन भी दुर्व्यवहार किया जाता है, वहां बदलाव लाने के लिए सभी की साझा जरूरत होगी। समाज में मौजूद ‘सरकटे’ को हटाएं! हॉरर फिल्मों ने हमेशा ही अपने समय और समाज की चिंताओं को प्रदर्शित किया है, चाहे वह ‘किंग कांग’ हो या ‘गेट आउट’ हो। और कभी-कभी हमें रास्ता दिखाने के लिए ‘स्त्री-2’ जैसी एक हॉरर-कॉमेडी की भी जरूरत होती है।

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Dakhal News 27 August 2024


devotee of Ram save yourself from lying

पं. विजयशंकर मेहता कहते हैं दुनिया में 75% से अधिक लोग ऐसे हैं, जो दिन भर में दो बार झूठ बोल जाते हैं। अनेक लोग ऐसे हैं जो झूठ बोलना नहीं चाहते पर मुंह से निकल जाता है। दरअसल झूठ को समझना हो, तो पहले सत्य को जानना पड़ेगा। अब सत्य की क्या परिभाषा है? एक का सत्य, दूसरे का असत्य हो सकता है। पिता का सत्य ये है कि बच्चे शाम को समय पर घर आएं। बच्चों का सत्य ये है कि यही तो उम्र है घूमने की। सत्य की सीधी-सी परिभाषा है कि जब हम मन, वचन, कर्म में एक हो जाते हैं, तब सत्य उतरता है, और इसका ठीक उल्टा झूठ है। श्री राम भरत को समझाते हुए, दुष्ट लोगों की व्याख्या कर रहे थे। और उसमें उन्होंने कहा, ‘झूठइ लेना झूठइ देना, झूठइ भोजन झूठ चबेना।’ उनका झूठा ही लेना और झूठा ही देना होता है। वो भोजन भी झूठ का करते हैं, और झूठइ चबेना, यानी झूठ की आड़ में बड़ी-बड़ी डींगें मारते हैं। श्रीराम झूठे लोगों को पसंद नहीं करते हैं। अब हमें तय करना है कि यदि हम श्रीराम के भक्त हैं, तो हमें जिन-जिन बातों से खुद को बचाना है, उसमें से एक झूठ भी है। कुछ झूठ तो हम ऐसे बोलते हैं, शायद कोई मशीन नहीं पकड़ पाए। लेकिन दो लोग तो हमारे झूठ को जानते हैं, एक हम और एक हमारा भगवान।

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Dakhal News 27 August 2024


Two remedies of Lord Krishna

भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, मन का बैचेन होना उसका स्वभाव है। हमारे मन को लगता है कि अगर वह अलग-अलग बातों के बारे में सोचता रहेगा तो हमें आने वाली हर मुश्किल और मुसीबत से बचा लेगा। पर ऐसा होता नहीं है। हम अपने जीवन का काफी अधिक समय सोच-विचार करके परेशान होने में निकाल देते हैं। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मन का यह स्वभाव बदलना मुश्किल जरूर है, असंभव नहीं। अच्छा अब आप एक बात बताइए, क्या आप कौए को कह सकते हैं कि वो कांव-कांव की आवाज ना करे। या फिर क्या आप किसी मेंढक को कह सकते हैं कि वह पानी देखते ही ऊंची छलांग ना मारे? हमारे मन का भी कुछ ऐसा ही है। जीवन में कुछ भी होता है, अच्छा या बुरा, हमारा मन उस पर कांव-कांव-कांव करने लगता है। ‘कांव-कांव’ से मेरा मतलब है चिंता करना, व्याकुल होना। कोई बुरी बात होती भी नहीं है और मन परेशानी की ऊंची-ऊंची लपटें लेने लगता है। कभी-कभी तो मुझे ऐसा लगता है कि हममें से कई लोग सिर्फ परेशान होने के लिए जीते हैं। सारी परेशानी, पीड़ा, दुविधा अक्सर हमारी मन की बनाई हुई कहानियां होती हैं। भगवान श्रीकृष्ण हमें हमारे मन को शांत और स्थिर करने के लिए दो उपाय देते हैं- पहला, ध्यान लगाना या मेडिटेट करना। दूसरा, वैराग्य भाव सीखना। अब ध्यान या मेडिटेशन शब्द सुनते ही आप में से कई लोग कहेंगे कि आप आंख बंद कर सांसें अंदर-बाहर नहीं ले सकते। यहां हम सब गलती कर बैठते हैं। मेडिटेशन या ध्यान का मतलब सिर्फ आंख बंद कर बैठना नहीं होता। मेडिटेशन का मतलब होता है अपना पूरा ध्यान किसी चीज पर लगाना और उसे हटने नहीं देना। अगर आप रोटी बना रहे हैं तो सिर्फ उस बात पर ध्यान दीजिए। अगर आप पिक्चर देख रहे हैं तो अपना पूरा ध्यान पिक्चर पर लगाएं। यह मत सोचिए कि पिक्चर देखकर आप अपना कितना वक्त बर्बाद कर रहे हैं। जब आप जीवन के हर छोटे-बड़े काम को पूरे ध्यान से करते हैं तो आपका जीवन ही एक मेडिटेशन बन जाता है। ऐसे जीवन में शांति, स्थिरता, साहस और सफलता का होना अनिवार्य है। वैराग्य भाव दूसरा उपाय। वैराग्य का अर्थ यह नहीं कि आप सब कुछ छोड़ कर जंगल में जाकर बैठ जाएं। वैराग्य का सच्चा अर्थ है कि आप जो काम कर रहे हैं उसका क्या नतीजा या रिजल्ट निकलेगा उसकी चिंता ना करें। जैसे अगर आपने कोई इंटरव्यू दिया। आप यह कर सकते हैं कि पूरे मन से तैयारी करें और अपना बेस्ट दे कर आ जाएं। वह नौकरी मिलना या ना मिलना आपके हाथ में नहीं है। इस नतीजे के पीछे अलग-अलग चीजें हैं जो आपके बिल्कुल कंट्रोल में नहीं। तो जिस चीज के बारे में आप कुछ कर नहीं सकते, उसके बारे में चिंता भी ना करें। यही वैराग्य का सच्चा मतलब होता है। और यही है भगवान श्री कृष्ण का दूसरा उपाय मन को चिंता की लपटों से बचाने का। याद रखिए, आप पूरे के पूरे इंसान हैं। समझदारी संयम और कुशलता से भरे इंसान। आपका मन जब भी कौए की तरह अलग-अलग बातों पर आपको परेशान करने लगे, तब अपने मन को भी प्यार से समझाइए और शांत कर लीजिए। बस अपने ऊपर विश्वास रखिए कि आप कभी अपना बुरा नहीं होने देंगे

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Dakhal News 26 August 2024


Even small crimes in childhood can haunt

एन. रघुरामन वे दिन याद हैं, जब बच्चे के साथ सफर कर रही मां उसकी उम्र को लेकर झूठ बोल देती थीं, ताकि उसका आधा टिकट भी न लेना पड़े? और जब कंडक्टर बच्चे से उम्र पूछता तो बच्चा गर्व से कहता, “मैं सात साल का हूं, मम्मी झूठ बोल रही हैं!’ और फिर मां को मजबूरन किराया चुकाना पड़ता और झूठ बोलने का वो अपराध भविष्य के किसी संदर्भ के लिए कभी दर्ज नहीं होता। डायरी में दर्ज करने के लिए कंडक्टर न तो मां का नाम पूछता और न ही बच्चे का। पर अब कंप्यूटरीकरण और दुनियाभर में बढ़ती क्लाउड सुविधा के कारण रिकॉर्ड नहीं रखने वाले दिन बीत गए। इन दिनों, बाल अपराध जैसे बिना टिकट बस या ट्रेन में चढ़ जाने और टीसी द्वारा पकड़े जाने या बिना अधिकार किसी की साइकिल लेकर दूर तक चले जाने और फिर साइकिल मालिक के स्कूल अधिकारियों को बताने और यहां तक कि कुछ मामलों में दुकानों से बच्चे जो सामान उठा लेते हैं, ये सब चीजें लोगों के करिअर पर असर डाल रही हैं, और नया नियोक्ता उनको नौकरी पर रखने से पहले उनका दशकों पुराना आपराधिक रिकॉर्ड चेक कर रहे हैं। कल्पना करें, कुछ दिनों पहले हुई पुणे पोर्शे वारदात में 17 साल के लड़के ने दो इंजीनियर्स को मार दिया था और बॉम्बे हाईकोर्ट में मामला पहुंचने के बाद राष्ट्रीय सुर्खियां बना था? या फिर बिहार का ताजा मामला, जहां छह साल का छात्र पिता की लाइसेंसी बंदूक स्कूल लाया और दुर्घटनावश 10 साल के साथी छात्र की कलाई पर गोली मार दी। आपको लगता है कि जब ये बच्चे 30 या 40 साल के होंगे, तो भविष्य के नियोक्ताओं को ये सब मामले पता नहीं चलेंगे? हाल के आंकड़ों के अनुसार, 4406 सर्वाधिक नाबालिग अपराध महाराष्ट्र में दर्ज हुए, फिर मप्र में 3,795 मामले और राजस्थान में 3,063 मामले दर्ज हुए। ऐसे अपराधों की दर दिल्ली में 42% बढ़ी है तो महाराष्ट्र में 12 और मप्र में 13%। मोटर अपराध, किशोर अपराधों से हुई क्षति और छोटे-मोटे प्रकरण भी विकसित देशों में ऐसे लाखों लोगों को डरा रहे हैं, जिनके बचपन का आपराधिक रिकॉर्ड संबंधित नियोक्ता से साझा किया जा रहा है। ये रिकॉर्ड साझा करना इतना सहज हो गया है कि ब्रिटेन जैसे देशों में तो एक अभियान चलाया जा रहा है, जहां लोग बचपन में किए गंभीर अपराधों को छोड़कर बाकी सारे अपराधों को क्लीन करने के लिए कह रहे हैं। याद रहे, भारतीय पुलिस के रिकॉर्ड भी कंप्यूटरीकृत हो रहे हैं, और बढ़ते सफेदपोश अपराधियों से निपटने एआई का बड़े पैमाने पर प्रयोग हो रहा है, जहां पांच दशक पुराने रिकॉर्ड भी चंद सेकंड्स में सामने आ जाएंगे। ब्रिटेन में कई अभियानकर्ताओं का कहना है, “जिनने युवावस्था में मामूली अपराध किए, उन्हें दशकों बाद इन्हें बताने के लिए मजबूर किया जाता है जब रिकॉर्ड की कोई प्रासंगिकता नहीं होती।’ सिर्फ ब्रिटेन में 1,63,345 लोगों के बाल अपराधों की सूचना नियोक्ताओं को मिली, जबकि उनमें से अधिकांश को तब अधिकारियों से सिर्फ चेतावनी मिली थी। इन शर्मनाक स्थितियों के बारे में बात करते हुए, एक संभावित कर्मचारी ने कहा, ‘मैंने जिस भी रोल के लिए आवेदन किया, वहां बात हमेशा या तो कुछ शर्मिंदगी से शुरू होती है या खत्म होती है, जब नियोक्ता इस संवेदनशील मुद्दे पर बात करते हैं। शानदार साक्षात्कार के बावजूद मुझे अंत में बताना होगा कि 14 साल की उम्र में सहपाठी के साथ दुर्व्यवहार करने का मेरा रिकॉर्ड है।’ वहीं यूके पुलिस का कहना है कि वे ‘लोगों की सुरक्षा का ख्याल’ रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आने वाले दिनों में परवरिश आसान नहीं रहने वाली, खासकर आपस में जुड़ी ऐसी दुनिया में जहां बच्चों की हर चीज (कानून इसे किशोर अपराध कह सकता है) रिकॉर्ड में दर्ज हो रही है और कैमरा चौबीसों घंटे उन पर नजर रखे हुए है। फंडा यह है कि बच्चे के जन्म से लेकर उसके 18 साल के होने तक माता-पिता को बहुत सतर्क रहने की जरूरत है, ताकि वे अनजाने में ऐसी गतिविधि में शामिल न हो जाएं, जो कानून की नजर में अपराध हो। उनकी जिंदगी को पुलिस रिकॉर्ड से मुक्त रखना भी हमारी जिम्मेदारी है।  

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Dakhal News 26 August 2024


Do you know the true definition of luck

एन. रघुरामन  भाग्य को अलग-अलग पेशों में अलग-अलग तरीके से परिभाषित कर सकते हैं। जैसे एक पेशेवर क्रिकेटर के लिए, बल्ले का ठीक उसी जगह प्रहार करना, जहां गेंद आती है, भाग्य नहीं माना जाएगा, लेकिन बल्लेबाज जहां प्रहार करता है, ठीक वहीं गेंद का आना भाग्य कहलाएगा। वहीं, आम लोगों के लिए भाग्य की परिभाषा पूरी तरह अलग हो सकती है। और झारखंड के रहने वाले 31 वर्षीय संजय यादव को यह बात सेकंड के दसवें हिस्से में समझ आ गई! आज वह सोशल मीडिया पर सनसनी हैं। आपको ताज्जुब हो रहा होगा कि कोई एक सेकंड से भी कम में यह कैसे सीख सकता है? यहां इसका जवाब है। संजय मुंबई में कैब ड्राइवर हैं और सुदूर उपनगरीय इलाके में चार अन्य दोस्तों के साथ 15x10 वर्ग फुट की चॉल में रहते हैं। संजय हमेशा से चाहते थे कि ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाएं और अपनी पत्नी और दो बच्चों को अपने साथ मुंबई में रखें। पिछले छह साल से वह बमुश्किल ही दो परिवारों की मूलभूत जरूरतें पूरी कर पा रहे हैं- एक झारखंड में तो दूसरा मुंबई में खुद के खर्चे। 16 अगस्त की दोपहर संजय 3-4 राइड पूरी कर चुके थे और एक कप चाय पीने के लिए बैठे ही थे कि उनके रूममेट, जो खुद भी कैब ड्राइवर हैं, उन्होंने एक महिला यात्री को पिकअप करने के लिए कहा, क्योंकि उसी पिकअप समय पर उनके पास भी एक राइड थी। संजय ने राइड ले ली। 57 वर्षीय वह महिला मुंबई में नए बने अटल सेतु जाना चाहती थीं कि ताकि भगवान की कुछ तस्वीरें विसर्जित कर सकें। जब संजय ने कहा कि अटल सेतु पर वाहन रोकने की इजाजत नहीं है, तो महिला ने जोर देकर कहा कि उसे पांच मिनट से ज्यादा नहीं लगेगा। संजय उसे अटल सेतु ले गए और उस दौरान हल्की-फुल्की बातचीत हुए, जिसमें सबकुछ सामान्य लगा। शाम को 7 बजे वे ब्रिज पर पहुंच गए, लेकिन उसे नहीं पता था कि उसे एक झटका लगने वाला है। उस महिला ने गाड़ी ऐसे कोण पर खड़ी करवाई ताकि किसी को दिखाई न दे कि वह क्या कर रही है। संजय टोल प्लाजा की निकासी के समीप रुके और उस महिला को जल्दी करने के लिए कहा। उसे लगा कि महिला के बैग में देवताओं की तस्वीरें व मूर्तियां हैं, जिन्हें वह पुल से नीचे विसर्जित कर देंगी, लेकिन जब वह महिला क्रैश बैरियर के ऊपर चढ़कर तस्वीरें एक के बाद एक नीचे फेंकने लगी, तो वह चौकन्ना हो गए। संजय घबराया क्योंकि नियम तोड़ने के लिए वो पकड़ा जा सकता था, इसलिए वह कार से बाहर निकला ताकि पूछ सके कि वह क्या कर रही हैं। संजय का ध्यान भटकाने के लिए महिला ने तस्वीरों पर छिड़कने के लिए पानी मांगा।चूंकि यात्री तरफ रखी पानी की बोतल खाली थी। जैसे ही वो ड्राइवर तरफ आ रहा था, तभी उसे सायरन चमकाती, तेजी से उसकी ओर आती ट्रैफिक पुलिस की पेट्रोलिंग गाड़ी दिखी। 7.05 और 7.06 के बीच अंतिम सेकंड में उस महिला ने बैरियर के ऊपर से चढ़कर समुंदर की तरफ नीचे पैर लटकाए और लगभग कूदी। और संजय ने महज एक सेकंड से भी कम समय में उस महिला को बालों से पकड़ लिया। इस दौरान उस नुकीले बैरियर से उसका हाथ कट रहा था लेकिन उसने अगले 16 सेकंड तक महिला को बालों के सहारे थामे रखा, जब तक कि ट्रेफिक पुलिस वाले नहीं आ गए और रेलिंग पर चढ़कर महिला को बाईं कलाई से नहीं पकड़ लिया और तब संजय के चोटिल हाथ को थोड़ी राहत मिली और महिला को सुरक्षित बचाया जा सका। पुलिस स्टेशन पर परिवार वाले घंटों तक संजय का धन्यवाद में हाथ थामे रहे और उसे फरिश्ता कहते रहे, वहीं पुलिस वालों ने भी उसे धन्यवाद कहने के बाद अगली बार से ब्रिज पर नहीं रुकने की चेतावनी दी। लेकिन अगले चंद घंटों में संजय को सोशल मीडिया सनसनी बनने से कोई नहीं रोक सका। पिछले एक हफ्ते में कई यात्रियों ने उसे पहचान लिया और उदारमन से उसकी आर्थिक मदद भी की। फंडा यह है कि भाग्य दो चीजों का मीटिंग पॉइंट है- दिमाग की सतर्कता और अवसरों का आना।    

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Dakhal News 25 August 2024


National interest ignored due to lack of coordination

विराग गुप्ता बचपन में हमारे कक्का दो मूढ़ चेलों का किस्सा सुनाते थे, जिन्होंने सेवा के नाम पर गुरु के दोनों पैरों का बंटवारा कर लिया था। लेकिन एक छोटी-सी बात पर झगड़ा होने पर चेले जब गुरु के पैरों को कुल्हाड़ी से काटने लगे तो गुरु महाराज को भागकर जान बचानी पड़ी। कुछ ऐसे ही हालात अपने देश में हैं, जहां केंद्र और विपक्षी राज्यों के बीच बढ़ते विद्वेष की वजह से संवैधानिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न होने के साथ देशहित से जुड़े जरूरी मुद्दों की अनदेखी हो रही है। भारत में बढ़ती अशांति और सड़कों में उफनाते गुस्से की पृष्ठभूमि में 6 बड़े पहलुओं की पड़ताल जरूरी है। 1. पड़ोसी देशों का संकट : श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश के तख्ता-पलट में जनता की नाराजगी के तीन बड़े पहलू भारत में भी दिख रहे हैं। नई आर्थिक व्यवस्था में बढ़ती असमानता। सोशल मीडिया के माध्यम से बेरोजगार युवाओं में उग्रराष्ट्रवाद और धर्मांधता का प्रसार। मोबाइल और वॉट्सएप के दौर में त्वरित अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल सरकारों के खिलाफ सड़कों पर भीड़ का गुस्सा। 2. संविधान की डगमगाती इमारत : कोलकाता व महाराष्ट्र मामले में जजों की तीखी टिप्पणियों से साफ है कि राज्यों में पुलिस, प्रशासन, अस्पतालों का ढांचा चरमरा गया है। अन्याय को दूर करके गवर्नेंस को सुधारने के बजाय नेता दुष्कर्म जैसे संगीन मामलों पर भी सियासत कर रहे हैं। दोषियों को दंडित करने के बजाय चर्चित मामलों में सीबीआई जांच और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और जिला अदालतों का संस्थागत ह्रास होने से संविधान की इमारत डगमगा रही है। 3. ई-कॉमर्स से अर्थव्यवस्था में तबाही : अमेजन और विदेशी ई-कॉमर्स कम्पनियों की गैर-कानूनी गतिविधियों के बारे में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के बयान से साफ है कि एआई की नवक्रांति का नेतृत्व करने के बजाय हमारा देश पिछलग्गू बनकर उपनिवेशवाद की अंधी सुरंग में फंस-सा गया है। गैर-कानूनी लॉबीइंग, टैक्स चोरी और कानून के उल्लंघन के प्रमाणों के बावजूद, ई-कॉमर्स कम्पनियों के खिलाफ सरकार की सुस्ती से करोड़ों का दिवाला निकल रहा है। 4. गूगल का एकाधिकार : अमेरिका में कम्पनियों के एकाधिकार को रोकने के लिए 1890 और फिर 1914 में सख्त कानून बनाए गए थे। जिस गूगल को भारत में महागुरु का दर्जा दिया जाता है, उसकी गैर-कानूनी कारस्तानियों और आपराधिकता का अमेरिका में बड़ा खुलासा हुआ है। गूगल ने अपने सर्च इंजन, वेब-ब्राउजर, गूगल एड और एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम का वर्चस्व बढ़ाने के लिए एपल और सैमसंग जैसी कम्पनियों को खरबों डॉलर का भुगतान किया है। गौरतलब है कि ऐसे भुगतानों का भारत में कोई रिकॉर्ड नहीं होने से ये कंपनियां भारत में खरबों रुपए के जीएसटी और कॉर्पोरेट टैक्स की चोरी कर रही हैं। 5. भारत में देशी उद्योगों व स्टार्टअप का संकट : अमेरिका में अगले राष्ट्रपति पद की दावेदार कमला हैरिस की मां भारतीय मूल की हैं। अधिकांश टेक कंपनियों की कमान भी भारतीयों के हाथ में है। गूगल के खिलाफ फैसला देने वाले जज मेहता भी भारतीय मूल के हैं। इस फैसले के बाद गूगल को अमेरिकी न्याय विभाग और एफटीसी को पूरी जानकारियां देने के साथ भारी जुर्माना देना पड़ सकता है। इसके अलावा एकाधिकार को खत्म करने के लिए गूगल को कई हिस्सों में बांटा जा सकता है। मजे की बात यह है कि गूगल के अलावा मेटा, अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट और एपल जैसी कंपनियां भी भारत जैसे देशों में अनेक अनुचित उपाय अपना रही हैं। इनके एकाधिकार को रोकने में सरकार की विफलता से देशी उद्योगों और स्टार्टअप का विकास अवरुद्ध होने के साथ टैक्स चोरी से सरकारी खजाने को भारी चपत लग रही है। 6. सरकारों पर कब्जे की होड़ : अमेरिका में रजिस्टर्ड ये कम्पनियां अमेरिकी सरकारों से तालमेल रखती हैं। पिछले चुनावों में मेटा और दूसरी कंपनियों ने ट्रम्प के खिलाफ बाइडेन का साथ दिया था। इस बार ट्विटर यानी एक्स के एलॉन मस्क खुलकर ट्रम्प का साथ दे रहे हैं। भारत जैसे देशों में कानून के दायरे से बचने के लिए टेक कंपनियां सोशल मीडिया के माध्यम से विखंडनकारी ताकतों को बढ़ावा देती हैं। वे भारत में टैक्स चोरी, साइबर अपराध, डेटा चोरी के साथ चुनावी प्रक्रिया को भी हाईजैक कर रही हैं। इन अहम मुद्दों पर संसद और सुप्रीम कोर्ट में बहस नहीं होना दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। ठोस कानून और प्रभावी रेगुलेटर से विदेशी टेक कंपनियों पर सख्त नियंत्रण नहीं हुआ तो अर्थव्यवस्था और बैंकिंग प्रणाली दोनों डगमगा सकते हैं। अहम मुद्दों पर संसद और सुप्रीम कोर्ट में बहस नहीं होना दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। ठोस कानून और प्रभावी रेगुलेटर से विदेशी टेक कंपनियों पर सख्त नियंत्रण नहीं हुआ तो अर्थव्यवस्था और बैंकिंग प्रणाली दोनों डगमगा सकते हैं।  

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Dakhal News 25 August 2024


Recent disasters are not only natural

सुनीता नारायण  हाल ही में केरल के वायनाड में भूस्खलन की त्रासद-घटना के कारण 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। उसका सम्बंध जलवायु परिवर्तन से था भी और नहीं भी। उससे पहले केदारनाथ या हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं भी जलवायु परिवर्तन से जुड़ी थीं, और नहीं भी। हम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन से भविष्य में चरम-मौसम की और भी अधिक घटनाएं होंगी। हमने देश भर में कई क्षेत्रों में रिकॉर्ड तोड़ तापमान देखा है। फिर बारिश से मुसीबतों का मौसम आया। अत्यधिक बारिश और जलवायु-परिवर्तन से उसके संबंध का भी एक स्पष्ट विज्ञान है। जैसे-जैसे समुद्र का तापमान बढ़ेगा, दुनिया में ज्यादा बारिश होगी, और वह अतिवृष्टि के रूप में होगी। इसलिए कम बारिश वाले दिनों में भी ज्यादा बारिश देखने को मिलेगी। अनुमान है कि भारत में एक साल के लगभग 8700 घंटों में से कुछ सौ घंटे बारिश होती है। लेकिन जुलाई 2024 में भारतीय मेट्रोलॉजी विभाग (आईएमडी) के अनुसार ‘बहुत भारी बारिश’ के रूप में वर्गीकृत की गई घटनाएं पिछले पांच सालों में दोगुनी से भी ज्यादा हो गई हैं। जुलाई में ऐसी घटनाएं 2020 में 90 थीं, जो 2024 में बढ़कर 193 हो गई हैं। यूपी के बरेली का डेटा लें। 8 जुलाई को इस जिले में 24 घंटे में 460 मिमी बारिश हुई। बरेली में हर साल औसतन 1100 से 1200 मिमी बारिश होती है। तो 24 घंटे में ही इसकी आधी बारिश हो गई। उत्तराखंड के चम्पावत जिले का भी यही हाल था। 8 जुलाई को ही 24 घंटे में 430 मिमी बारिश हुई। अगर आप 25 जुलाई को पुणे जिले को लें तो 24 घंटे में 560 मिलीमीटर बारिश हुई। यह इस जिले में साल भर में होने वाली बारिश की आधी से भी ज्यादा है। हिमालय को ही लीजिए। यह दुनिया की सबसे युवा पर्वतमाला है। यह भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं के लिए एक जोखिम भरा स्थल है और यह अत्यधिक भूकंपीय-क्षेत्र भी है। यह नाजुक है। फिर भी हम हिमालय में कुछ इस अंदाज में निर्माण करते हैं मानो दिल्ली के किसी भीड़भाड़ वाले इलाके में पार्किंग स्थल बना रहे हों। हमारे पास हिमालय की वादी में बसे कस्बों के लिए कोई मास्टर प्लान नहीं है। हम बाढ़ के मैदानों पर निर्माण कर रहे हैं। वास्तव में, हम नदियों के ऊपर भी निर्माण करने लगे हैं। हम पहाड़ों को नष्ट कर रहे हैं। और पेड़ों को तो ऐसे काट रहे हैं, मानो कल इसका अवसर न मिलेगा। ये सच है कि हमें हिमालय-क्षेत्र में विकास करना चाहिए, लेकिन बिना सोचे-समझे विकास-परियोजनाओं का कोई औचित्य नहीं। हिमालय में चलाई जा रही जलविद्युत परियोजनाएं इसकी बानगी हैं। हमें इन परियोजनाओं के खिलाफ नहीं होना चाहिए। आखिर, जलविद्युत एक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत है। यह एक अक्षय और स्वच्छ ऊर्जा स्रोत भी है। सवाल यह है कि हिमालय की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए इन परियोजनाओं पर हमें कैसे काम करना चाहिए? 2013 में, मैं एक उच्चस्तरीय समिति की सदस्य थी, जिसे इन परियोजनाओं की जांच के लिए गठित किया गया था। इंजीनियरों ने बताया कि वे 9000 मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए गंगा पर 70 पनबिजली-परियोजनाएं बनाने का प्रस्ताव रखते हैं। इस योजना के अनुसार शक्तिशाली गंगा नदी का 80 प्रतिशत हिस्सा ‘संशोधित’ किया जाता और नदी में लीन पीरियड में उसमें 10 प्रतिशत से भी कम पानी बचता। तब वह एक नाले से ज्यादा नहीं रह जाती। मैंने पूछा, इसे विकास कैसे कहा जा सकता है? मैंने इसका विकल्प सुझाया कि हमें नदी के प्रवाह के अनुरूप परियोजनाओं को फिर से डिजाइन करना चाहिए, ताकि जिस मौसम में नदी में अधिक पानी हो, तब उससे अधिक बिजली पैदा हो और जब पानी कम हो, तो कम। इसका मतलब यह था कि परियोजनाओं को इस तरह से तैयार किया जाना चाहिए कि नदी में हर समय 30 से 50 प्रतिशत प्रवाह बना रहे। तब आप परियोजनाओं में संशोधन कर रहे होंगे, नदी में नहीं। केरल का वेस्टर्न-घाट- जहां भूस्खलन हुआ- 2013 में के. कस्तूरीरंगन समिति द्वारा अनुशंसित पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र का हिस्सा है। समिति ने सिफारिश की थी कि इन क्षेत्रों में खनन और उत्खनन जैसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। लेकिन केरल सरकार ने इसे नहीं माना और परिणामस्वरूप अत्यधिक बारिश में वहां की कुछ पहाड़ियां ढह गईं और बड़े पैमाने पर जान-मा​ल की हानि हुई। इसलिए ध्यान रहे, देश भर में हम आज जो भी प्राकृतिक आपदाएं देख रहे हैं, वे प्राकृतिक ही नहीं मानव निर्मित भी हैं। हम बाढ़ के मैदानों पर निर्माण कर रहे हैं। नदियों पर भी निर्माण करने लगे हैं। हम पहाड़ों को नष्ट कर रहे हैं। पेड़ों को तो ऐसे काट रहे हैं, मानो कल इसका अवसर न मिलेगा। जबकि हिमालय और वेस्टर्न घाट अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र हैं।

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Dakhal News 24 August 2024


necessary to take yoga in the world of science

पं. विजयशंकर मेहता पहले शरीर की बाहरी गतिविधियों पर विज्ञान का अधिकार हुआ और देखते-देखते भीतर प्रवेश कर गया। इसलिए आत्मा के महत्व को समझा जाए। अगर आप शांति की तलाश में हैं तो ये बात अच्छी तरह समझ लें कि हम शरीर, मन और आत्मा तीन तत्वों से बने हैं। शरीर और मन पर विज्ञान राज करेगा, लेकिन आत्मा स्वतंत्र है। अब विज्ञान की तैयारी बड़ी खतरनाक स्थिति में पहुंच गई है। एक कंपनी है न्यूरालिंक। इसने बंदरों के दिमाग में चिप लगाने का प्रयोग सफलतापूर्वक कर लिया है। यह मनुष्य की खोपड़ी में भी चिप लगा सकती है। विज्ञान की इस गतिविधि का दावा है कि ऐसा करने से मनुष्य को कई बीमारियों से मुक्ति मिल जाएगी। अब विज्ञान की कुछ खोजों पर लिखना ही पड़ेगा कि इसका उपयोग हानिकारक है और लोग करते रहेंगे। इससे बचने का एक ही तरीका है अपनी आत्मा पर जीना सीख लें और आपको आत्मा तक की यात्रा कोई विज्ञान नहीं करा सकता। इसके लिए योग का ही माध्यम अपनाना पड़ेगा।

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Dakhal News 24 August 2024


The issue of quota in SC-ST reservation will gain

प्रताप भानु मेहता यद्यपि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एससी-एसटी के लिए आरक्षण में क्रीमी लेयर की शुरुआत को लेकर अटकलों को दूर करने की कोशिश की है और घोषणा की है कि इस तरह की कोई योजना नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कार्यान्वयन पर सवाल बने हुए हैं, जिसमें राज्यों को अधिक पिछड़े लोगों के लिए अलग कोटा देने के उद्देश्य से उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी गई है। मंगलवार को इसके विरोध में भारत-बंद किया गया। एससी के उप-वर्गीकरण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बहसों को जन्म दिया है। राजनीतिक बहस इसलिए गरमाई, क्योंकि फैसले ने न केवल उप-वर्गीकरण की अनुमति दी, बल्कि कई न्यायाधीशों ने एससी आरक्षण से क्रीमी लेयर को बाहर करने पर राय भी व्यक्त की है। यहां दो मुद्दे दांव पर हैं- एक कानूनी और दूसरा राजनीतिक। फैसले के आलोचक सही कह रहे हैं कि एससी आरक्षण का आधार भेदभाव का ऐतिहासिक अनुभव है। दलितों के भीतर असमानताएं हैं, लेकिन यह बात अप्रासंगिक है। विशेषाधिकार-प्राप्त दलित होना भी किसी को भेदभाव से नहीं बचाता। लेकिन मंडल के तहत आरक्षण के विस्तार ने ऐसी स्थितियां पैदा की हैं, जहां दलितों और ओबीसी की स्थिति लगातार उलझी हुई है। दोनों के साथ वंचना की एक ही कहानी जुड़ी हुई है। लेकिन न केवल उनके इतिहास अलग हैं, बल्कि कभी-कभी वे एक-दूसरे से टकराते भी रहे हैं। जब दोनों एक हो गए तो दलितों के अनुभव की विशिष्टता- जो पिछड़ेपन में नहीं, बल्कि भेदभाव में निहित है- खो गई। अब आरक्षण को मुख्य रूप से पिछड़ेपन के ढांचे में ही समझा जाता है। लेकिन दूसरी ओर, भले ही आप इस बात से सहमत हों कि भेदभाव के मामले में दलित एक हैं, फिर भी क्या एससी के आरक्षण को सिर्फ कुछ जाति समुदायों को ही लाभ पहुंचाने की अनुमति दी जा सकती है? सीजेआई के फैसले में यह माना गया कि ऐसा नहीं हो सकता। यह तथ्य कि दलित एक ही वर्ग हैं, दलितों के भीतर मौजूद वितरण के सवालों को दूर नहीं कर सकता। इस फैसले के राजनीतिक नतीजे दो दावों पर आधारित हैं। पहला, क्या यह आरक्षण को कमजोर करने की चाल है? इस डर को सिर्फ यह कहकर दूर किया जा सकता है कि उप-वर्गीकरण नियमों के तहत जो भी पद खाली रह गए हैं, उन्हें वापस एससी कोटे में ही रखा जा सकता है। दूसरा यह कि यह दलित राजनीति को विभाजित करने की कोशिश है। लेकिन यह प्रतिनिधित्व के उस तर्क का अपरिहार्य परिणाम है, जिसे हम अपनाते आ रहे हैं। विपक्ष ने जो नारा दिया है कि ‘जितनी आबादी, उतनी हिस्सेदारी’, वह उप-विभाजन के तर्क पर ही आधारित है। दलित राजनीतिक चेतना पहले ही दलितों के बीच असमानता और दलित राजनीति करने वाले दलों के कमजोर होने से धीमी हो रही थी। इस दावे में कुछ अजीब बात है कि एक काल्पनिक दलित एकता की राजनीतिक परियोजना को न्याय के सिद्धांत पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।यह उन कई दलित समूहों को सम्मान से वंचित करना भी है, जो उप-विभाजन के लिए आंदोलन कर रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने उचित ही रेखांकित किया है कि आरक्षण योग्यता के विरुद्ध नहीं है। वास्तव में आरक्षण उन समुदायों से योग्यता की पहचान करने का उपकरण है, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रखा गया है। लेकिन इसमें संदेह नहीं कि उप-वर्गीकरण को लागू करना गंभीर प्रशासनिक चुनौती होगी। कल्पना कीजिए कि एक नियुक्ति-रोस्टर बनाने की कोशिश की जाए, जिसमें बारी-बारी से उप-जातियों को ध्यान में रखा जाए! उस प्रशासनिक संस्कृति के बारे में सोचें, जहां हर नए पद के साथ एक उप-जाति जुड़ी होगी! दूसरी तरफ, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा डेटा की मांग जाति जनगणना के लिए अधिक दबाव बनाएगी। लेकिन आरक्षण नीति हमें अनिवार्य पहचान के लिए अभिशप्त भी बनाती है। हम जाति से परे नहीं जा पाते। सामाजिक न्याय व्यापक पैमाने पर होना चाहिए, लेकिन यह हमारी कल्पनाशीलता की कमी है कि हम विकल्प आजमाने के लिए तैयार नहीं हैं। दलित आरक्षण को यथावत रखते हुए अन्य समुदायों के लिए विकल्प आजमाना उचित है। दलितों या ओबीसी के वास्तविक सशक्तीकरण के लिए आय, आवास, शिक्षा, कौशल, स्वास्थ्य सेवा सहित नौकरियों के लिए जातिगत-डेटा की आवश्यकता होती है। असली त्रासदी यह है कि जो लोग सबसे जोर-शोर से सामाजिक न्याय की बात करते हैं, वो शायद ही कभी सशक्तीकरण के वास्तविक निर्धारकों की परवाह करते हैं। सामाजिक न्याय व्यापक पैमाने पर होना चाहिए, लेकिन यह कल्पनाशीलता की कमी है कि हम विकल्प आजमाने के लिए तैयार नहीं हैं। दलित आरक्षण को यथावत रखते हुए अन्य समुदायों के लिए विकल्प आजमाना उचित है।

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Dakhal News 23 August 2024


We are left standing alone amidst the disintegrating

मनोज जोशी आज जब भारत अपने चारों ओर देखता होगा तो अपने आपको इस समूचे क्षेत्र में स्थिरता और आर्थिक विकास का इकलौता द्वीप पाता होगा। हमारे पड़ोस में हुए घटनाक्रमों ने क्षेत्रीय नीति में बड़ा शून्य उत्पन्न कर दिया है। अगर बांग्लादेश के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो आप निश्चिंत हो सकते हैं कि नई दिल्ली इस समूचे घटनाक्रम से हैरान थी और उसने इस नतीजे की कतई उम्मीद नहीं की थी। किसी को दूर-दूर तक भनक नहीं थी कि शेख हसीना को अपना राजपाट छोड़कर भागना पड़ेगा। यह इतना अप्रत्याशित था कि भारत ने हसीना की सरकार गिरने के काफी समय बाद तक कोई बयान जारी नहीं किया। हसीना के नई दिल्ली पहुंचने के एक दिन बाद लोकसभा में बोलते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत ने उन्हें संयम बरतने की सलाह दी थी और आग्रह किया था कि बातचीत के जरिए स्थिति को शांत किया जाए, लेकिन प्रदर्शनकारियों के ढाका में एकत्र होने के बाद हसीना ने भारत आने की अनुमति मांगी। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को बधाई संदेश भी भेजा और उनसे हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आह्वान किया। शेख हसीना 2009 में महिलाओं और युवाओं के उत्साही समर्थन के साथ सत्ता में आई थीं। लेकिन अपनी राजनीतिक पूंजी को बर्बाद करने में उन्हें 15 साल लगे। उनके नेतृत्व में बांग्लादेश ने 11 साल तक वास्तविक प्रति व्यक्ति आय में 5% से अधिक की आर्थिक वृद्धि की थी। बांग्लादेश चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा कपड़ा निर्यातक बन गया था। लेकिन अब लग रहा है कि इसका एक बड़ा हिस्सा जॉबलेस-ग्रोथ का था। 2022 के आंकड़ों के अनुसार, बांग्लादेश के 15 से 24 वर्ष के 30 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं। आर्थिक विकास पर सरकार के फोकस से सामाजिक विकास हुआ था, लेकिन इसके साथ ही देश में लोकतांत्रिक स्वतंत्रता भी धीरे-धीरे कम होती चली गई। जनवरी 2024 के चुनाव सबसे ज्यादा विवादास्पद थे और विपक्ष ने उनका बहिष्कार किया था। सिर्फ दो साल पहले ही, बांग्लादेश जैसी स्थिति के कारण शक्तिशाली राजपक्षे परिवार श्रीलंका से पलायन कर गया था। पड़ोसी म्यांमार में भी हालात स्थिर नहीं हैं और पाकिस्तान जैसे-तैसे अपना अस्तित्व कायम रखे हुए है। बांग्लादेश का घटनाक्रम भारत के लिए बहुत नकारात्मक साबित होगा। इसका एक कारण यह है कि नई दिल्ली ने अवामी लीग सरकार के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने का निर्णय लिया था, जबकि हमारे पश्चिमी मित्रों ने इसके विरुद्ध विनम्र चेतावनियां दी थीं। अमेरिका और ब्रिटेन ने साफ कहा था कि जनवरी में वहां पर हुए चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं थे। बांग्लादेश को अमेरिका द्वारा प्रायोजित लोकतंत्र शिखर सम्मेलन से भी बाहर रखा गया था। चिंता का सबब जमात-ए-इस्लामी भी है। इस संगठन पर लगा प्रतिबंध अब हटने के आसार हैं और यह पाकिस्तान की आईएसआई की मदद से भारत के खिलाफ अपने जहरीले अभियान को अंजाम देने के लिए स्वतंत्र हो जाएगा। वहां के मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) का कहना है कि उसे भारत से कोई समस्या नहीं है। मीडिया से बात करते हुए संगठन के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि भारत बांग्लादेश के लिए महत्वपूर्ण है। वरिष्ठ बीएनपी नेता खांडेकर मुशर्रफ हुसैन ने पीटीआई को बताया कि बांग्लादेश को दोनों देशों के बीच संबंधों में एक नया अध्याय शुरू होने की उम्मीद है। पार्टी के उपाध्यक्ष अब्दुल अवल मिंटू ने कहा कि बांग्लादेश भारत को एक दोस्त के रूप में देखता है। लेकिन अंतरिम सरकार द्वारा विदेश नीति की देखरेख के लिए पूर्व विदेश सचिव तौहीद हुसैन की नियुक्ति नई दिल्ली में खतरे की घंटी बजा सकती है। समस्या यह है कि बांग्लादेश के हिंसक और राजनीतिक उथल-पुथल से भरे इतिहास को देखते हुए अब वहां पर स्थिति को स्थिर करने के लिए असाधारण प्रयास करने होंगे। भारत को ऐसी परिस्थितियों से उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों के लिए तैयार रहना होगा, जिन्हें ढाका की सरकारों के लिए नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है। बांग्लादेश भारत के पांच राज्यों की सीमा से लगा हुआ है और पहले भी वहां अलगाववादियों और आतंकवादियों को समर्थन मिलता रहा है। अगर नई दिल्ली ने शेख हसीना को भरपूर समर्थन दिया था तो इसका कारण यह भी था कि उन्होंने इन तत्वों को रोकने के लिए भारत को भरपूर समर्थन दिया था। भारत और उसके पड़ोसियों के बीच अच्छे संबंध आज भी नेतृत्व करने वाले व्यक्ति पर अधिक निर्भर करते हैं। क्या हम अपने पड़ोसी देशों में बारम्बार होने वाले सत्ता-परिवर्तनों के बावजूद अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं?

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Dakhal News 23 August 2024


Why  we become very happy with little in sports

पवन के. वर्मा  स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस ओलिम्पिक में हमारे एथलीटों के प्रदर्शन के लिए उन्हें बधाई दी। लेकिन मैं अचरज करता हूं कि क्या खेलों में संतुष्टि की हमारी सीमा अस्वीकार्य रूप से कम नहीं है? पेरिस ओलिम्पिक में, भारत ने एक रजत और पांच कांस्य पदक जीते, लेकिन एक भी स्वर्ण नहीं जीता। 140 करोड़ से अधिक की आबादी वाले देश के लिए यह एक निराशाजनक प्रदर्शन है। इसका मतलब है लगभग 25 करोड़ लोगों पर एक पदक! पदक तालिका में हम 84 प्रतिभागी देशों में से 71वें स्थान पर रहे। अमेरिका के पास 30 स्वर्ण सहित 126 पदकों की सबसे अधिक संख्या थी। चीन 96 पदकों के साथ दूसरे स्थान पर था, लेकिन उसके पास भी उतने ही स्वर्ण थे। विकासशील देशों में, ब्राजील ने 20 पदक जीते और केन्या ने 11... 1900 से, यानी जब से आधुनिक ओलिम्पिक शुरू हुए हैं- भारत ने कुल 41 पदक ही जीते हैं। खेलों में हमारे लगातार खराब प्रदर्शन के क्या कारण हैं? सबसे पहली बात तो यह है कि मामूली सुधारों के बावजूद, हमारा खेल बुनियादी ढांचा पूरी तरह से अपर्याप्त है। 2008 तक, चीन में 3000 खेल संस्थान थे; जबकि 2024 में हमारे पास केवल 150 ही हैं। इनमें से भी केवल 26 सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के स्वामित्व में हैं। ओलिम्पिक के स्तर तक खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए बच्चों को कम उम्र में ही उच्चतम गुणवत्ता के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। हमारा पहला राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय 2018 में मणिपुर के इम्फाल में स्थापित किया गया था। राष्ट्रीय खेल विकास संहिता को 2017 में अपनाया गया, लेकिन अब भी सभी खेल महासंघों ने इसका अनुपालन नहीं किया है। प्रशिक्षण की गुणवत्ता भी खराब है और नौकरशाही व लालफीताशाही से ग्रस्त है। यही कारण है कि अभिनव बिंद्रा जैसे साधन-सम्पन्न एथलीट घर पर ही प्रशिक्षण लेना पसंद करते हैं। खेल मंत्रालय को 2020 में पिछले ओलिम्पिक के बाद से 45 करोड़ रुपयों की मामूली वृद्धि मिली है। इसके विपरीत, चीन में 2023 तक देश भर में खेल स्थलों की कुल संख्या 45 लाख से अधिक हो गई थी। ये सच है कि हमारा खेलो इंडिया कार्यक्रम बढ़ा है, लेकिन इसके तहत खेल के बुनियादी ढांचे के लिए धन का आवंटन तर्क से परे है। उदाहरण के लिए, 8 करोड़ से कम आबादी वाले गुजरात को 426.13 करोड़ मिलते हैं, जबकि 13 करोड़ से अधिक लोगों वाले बिहार को मात्र 20.34 करोड़! राजनीति और खेल का गठजोड़ भी एक समस्या है। महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न करने और उन्हें डराने-धमकाने के आरोपी, भाजपा के बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह भारतीय कुश्ती महासंघ को अपनी निजी जागीर समझते थे और जब कुश्ती सुपरस्टार विनेश फोगाट ने उनका विरोध किया तो उनके साथ इतना बुरा व्यवहार किया गया कि इससे उनका मनोबल टूट गया होगा। कई अन्य खेल महासंघों के अध्यक्ष भी राजनेता हैं। एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल लगातार चार बार अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के अध्यक्ष रहे हैं। टेनिस महासंघ के अध्यक्ष भाजपा सांसद अनिल जैन हैं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओपी चौटाला के बेटे अभय सिंह चौटाला लगातार तीन बार मुक्केबाजी महासंघ के अध्यक्ष रहे। असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा बैडमिंटन महासंघ के अध्यक्ष हैं। भाजपा के पूर्व सांसद विजय कुमार मल्होत्रा ने तो चार दशकों तक तीरंदाजी महासंघ के अध्यक्ष रहते हुए सारे रिकॉर्ड ही तोड़ दिए! इन राजनेताओं ने हमारे खेलों के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए क्या किया है? क्रिकेट के प्रति हमारे जुनून ने भी अन्य खेलों की उपेक्षा की है। बीसीसीआई- जिसके महासचिव अमित शाह के बेटे जय शाह हैं- दुनिया भर में सबसे अमीर खेल लीगों में से एक है। 2023 में इसकी कमाई 18,700 करोड़ रुपए थी। इसके विपरीत, हॉकी महासंघ की 2023 में कमाई 86.7 करोड़ रुपए थी। क्रिकेट की छाया में अन्य खेलों का हमारा कौशल अवरुद्ध हो गया है। आश्चर्य नहीं कि पेरिस के 32 खेल आयोजनों में से हम केवल 16 में प्रतिस्पर्धा कर सके। जबकि चीन ने 30 में प्रतिस्पर्धा की थी। खेल-प्रतिभाओं की पहचान और पोषण के लिए हमारा कैचमेंट एरिया भी सीमित और ज्यादातर शहरी है। देश की आबादी में 2 प्रतिशत और कुल क्षेत्रफल में 1.6 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले हरियाणा ने हमारे 36 प्रतिशत पदक जीते हैं। हरियाणा को बधाई, लेकिन क्या हमने अन्य राज्यों में प्रतिभाओं को खोजने के लिए पर्याप्त काम किया है? अफसोसनाक तथ्य यह है कि खेलों में बहुत कम से ही हम बहुत अधिक खुश हो जाते हैं। इस मौके पर मुझे एक शे’र याद आता है : ‘कितने जनम से प्यासे होंगे यारो सोचो तो शबनम का कतरा भी जिनको दरिया लगता है!’

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Dakhal News 17 August 2024


Are we less honest, kind, good today

एन. रघुरामन  पड़ोसी देश में चल रही राजनीतिक उठापठक के बाद जब परेशान लोगों का हुजूम एक जगह जुटा, तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि फटे-पुराने कपड़े पहना एक व्यक्ति पेड़ के नीचे गीली मिट्टी पर छड़ी लेकर शांति से गणित की परेशानियां हल कर रहा होगा! 40 की उम्र के आसपास का ये व्यक्ति पिछले हफ्ते भारत-बांग्लादेश सीमा पर पेट्रापोल बाजार की तनावपूर्ण स्थिति में भी यही कर रहा था। उसके असामान्य शांत व्यवहार ने लोगों को पुलिस को सूचित करने के लिए मजबूर किया। जांच के दौरान उसकी पहचान यूपी में गोरखपुर के गणित शिक्षक अमित कुमार प्रसाद के रूप में हुई, जो एक दशक से अधिक समय से लापता थे। स्थानीय पुलिस ने हैम रेडियो के शौकीनों की मदद से प्रसाद को उसके पिता गामा प्रसाद और अन्य रिश्तेदारों से सोमवार को मिलाया, जो गोरखपुर के बार्गो से उसे पहचानने के लिए आए थे और इस तरह वर्षों की खोज खत्म हुई। लापता होने से पहले प्रसाद अपने गृह नगर के स्कूल में, साथ ही पड़ोस के पांच गांवों के 250 से ज्यादा गरीब बच्चों को मुफ्त गणित पढ़ाते थे। गणित के प्रति उनका लगाव बचपन से ही शुरू हो गया था। परिवार को उम्मीद नहीं थी कि वो वर्षों की खोज के बाद जीवित होंगे। इस वाकिए ने मुझे मुंबई में अप्रैल की एक घटना याद दिला दी, जहां एक ‘स्पेशल चाइल्ड’ लापता हो गया था, पर अपने लॉकेट में क्यूआर कोड की मदद से ठीक छह घंटे में वो परिवार को मिल गया। मालूम चला कि मानसिक रूप से दिव्यांग 12 साल का वो बच्चा खेलते हुए बस में चढ़कर घर से 15 किमी दूर चला गया था। जब उसे यहां-वहां अकेले भटकते देखा तो लोगों ने पुलिस को सूचना दी और बाद में उसके लॉकेट को स्कैन करने पर घरवालों का फोन नंबर मिला। ये लॉकेट जय वकील स्कूल में कुछ स्पेशल छात्रों को ‘projectchetna.in’ के हिस्से के रूप में बांटे गए थे, जहां वो पढ़ता है। ऐसी कई घटनाओं के बीच, हाल की ये दो घटनाएं मानवीय करुणा दिखाती हैं और ये उन लोगों के लिए जवाब है, जिन्हें लगता है कि दुनिया पहले से ज्यादा गर्त में जा रही है। उन्हें लगा कि नैतिकता में गिरावट आ रही है- और यह लोगों को लगातार, लालची और कम दयालु बना रही है। पर सच्चाई ये है कि यह धारणा सही नहीं है। एक व्यापक अध्ययन से मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा, दशकों चला ये अध्ययन 60 देशों में 5,75,000 लोगों पर हुआ, इसमें 1940 के कुछ शोध को भी शामिल किया गया, जहां उनकी हमदर्दी, करुणा, आदर और सहृदयता का आकलन किया गया। इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और प्रायोगिक मनोवैज्ञानिक एडम मास्ट्रोयानी कहते हैं, “लोग सोचते हैं कि दुनिया बुरी हो गई है, लेकिन दुनिया वैसी ही है जैसी पहले थी।’ फिर हमें क्यों लगता है कि समाज पहले की तुलना में गिर गया है? इंसानों का यह यकीन कि आजकल लोग कम भले हैं, इसके पीछे का विज्ञान दरअसल हमारा दिमाग का ध्यान देने का तरीका है। हममें से अधिकांश लोगों के नकारात्मक पूर्वग्रह हैं। अच्छे की तुलना में हम बुरे अनुभवों पर ज्यादा ध्यान देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह एक सर्वाइव करने वाली वृत्ति है जो खतरों का पता लगाती है। जो चीज हमें सतर्क रखती है कि क्या कोई मुझे नुकसान पहुंचाने जा रहा है, इसलिए हममें से हरेक को चारों ओर खतरे दिखते हैं। इसमें स्मृति भी भूमिका निभाती है। अतीत को हम शौक से याद रखते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सकारात्मक अनुभव की भावनात्मक शक्ति नकारात्मक अनुभवों की भावनात्मक शक्ति से अधिक समय तक हमारे साथ रहती है। अध्ययन में कहा गया है कि उम्र बढ़ने से हमारी धारणाएं बदल सकती हैं। एक और अध्ययन कहता है कि जिम्मेदार की भूमिका में रहकर, लोग कदाचार के प्रति अति-उत्तरदायी बनाते हैं, और उसी वजह से हमें एहसास नहीं होता है कि दुनिया नहीं बदली है। फंडा यह है कि आइए इस स्वतंत्रता दिवस पर समाज को नैतिक पतन के तराजू में तौलकर उसे दोष देना बंद करें और फिर से उतने ही भले, करुणावान और ईमानदार बनने की कोशिश करें, जैसे हम कल हुआ करते थे

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Dakhal News 17 August 2024


getting up early in the morning

पं. विजयशंकर मेहता सूर्योदय के साथ उठा जाए। यह बात ऋषि-मुनियों ने बहुत सोच- समझकर कही थी। इस समय नई पीढ़ी नींद के विकारों से परेशान है। हालांकि परेशान सिर्फ युवा ही नहीं हैं, बड़े-बूढ़े भी दिक्कत में आ गए हैं। नींद के साथ सात स्थितियां हैं- पहला जल्दी उठने वाले, दूसरा देर से जागने वाले, तीसरा जल्दी सोने वाले, चौथा देर तक जागने वाले, पांचवां, जो समय पर सोते हैं, पर रात को नींद खुल जाती है। छठवीं स्थिति में रात को नींद आती नहीं और उठने के समय नींद आती है। और सातवें, वो लोग हैं जो पूरी नींद लेते हैं। अध्ययन से तय हो चुका है कि जो लोग सूर्योदय के साथ उठते हैं, उनके स्वास्थ्य पर अनुकूल असर पड़ता है और धर्म इसमें मदद करता है। हमारे यहां इसे सूर्योदय से इसलिए जोड़ा है क्योंकि जब आप सूर्य से प्रकृति की शक्ति लेते हैं तो भीतर समर्पण भाव, कर्तव्य परायणता उतरेगी, इससे स्वभाव में संतोष आएगा। देर रात तक काम करने वाले रचनात्मक हो सकते हैं पर एक दिन शरीर इसकी कीमत वसूलेगा और मानसिक स्वास्थ्य के खतरे बढ़ेंगे।

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Dakhal News 17 August 2024


Are we less honest, kind, good today

एन. रघुरामन का कॉलम पड़ोसी देश में चल रही राजनीतिक उठापठक के बाद जब परेशान लोगों का हुजूम एक जगह जुटा, तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि फटे-पुराने कपड़े पहना एक व्यक्ति पेड़ के नीचे गीली मिट्टी पर छड़ी लेकर शांति से गणित की परेशानियां हल कर रहा होगा! 40 की उम्र के आसपास का ये व्यक्ति पिछले हफ्ते भारत-बांग्लादेश सीमा पर पेट्रापोल बाजार की तनावपूर्ण स्थिति में भी यही कर रहा था। उसके असामान्य शांत व्यवहार ने लोगों को पुलिस को सूचित करने के लिए मजबूर किया। जांच के दौरान उसकी पहचान यूपी में गोरखपुर के गणित शिक्षक अमित कुमार प्रसाद के रूप में हुई, जो एक दशक से अधिक समय से लापता थे। स्थानीय पुलिस ने हैम रेडियो के शौकीनों की मदद से प्रसाद को उसके पिता गामा प्रसाद और अन्य रिश्तेदारों से सोमवार को मिलाया, जो गोरखपुर के बार्गो से उसे पहचानने के लिए आए थे और इस तरह वर्षों की खोज खत्म हुई। लापता होने से पहले प्रसाद अपने गृह नगर के स्कूल में, साथ ही पड़ोस के पांच गांवों के 250 से ज्यादा गरीब बच्चों को मुफ्त गणित पढ़ाते थे। गणित के प्रति उनका लगाव बचपन से ही शुरू हो गया था। परिवार को उम्मीद नहीं थी कि वो वर्षों की खोज के बाद जीवित होंगे। इस वाकिए ने मुझे मुंबई में अप्रैल की एक घटना याद दिला दी, जहां एक ‘स्पेशल चाइल्ड’ लापता हो गया था, पर अपने लॉकेट में क्यूआर कोड की मदद से ठीक छह घंटे में वो परिवार को मिल गया। मालूम चला कि मानसिक रूप से दिव्यांग 12 साल का वो बच्चा खेलते हुए बस में चढ़कर घर से 15 किमी दूर चला गया था। जब उसे यहां-वहां अकेले भटकते देखा तो लोगों ने पुलिस को सूचना दी और बाद में उसके लॉकेट को स्कैन करने पर घरवालों का फोन नंबर मिला। ये लॉकेट जय वकील स्कूल में कुछ स्पेशल छात्रों को ‘projectchetna.in’ के हिस्से के रूप में बांटे गए थे, जहां वो पढ़ता है। ऐसी कई घटनाओं के बीच, हाल की ये दो घटनाएं मानवीय करुणा दिखाती हैं और ये उन लोगों के लिए जवाब है, जिन्हें लगता है कि दुनिया पहले से ज्यादा गर्त में जा रही है। उन्हें लगा कि नैतिकता में गिरावट आ रही है- और यह लोगों को लगातार, लालची और कम दयालु बना रही है। पर सच्चाई ये है कि यह धारणा सही नहीं है। एक व्यापक अध्ययन से मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा, दशकों चला ये अध्ययन 60 देशों में 5,75,000 लोगों पर हुआ, इसमें 1940 के कुछ शोध को भी शामिल किया गया, जहां उनकी हमदर्दी, करुणा, आदर और सहृदयता का आकलन किया गया। इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और प्रायोगिक मनोवैज्ञानिक एडम मास्ट्रोयानी कहते हैं, “लोग सोचते हैं कि दुनिया बुरी हो गई है, लेकिन दुनिया वैसी ही है जैसी पहले थी।’ फिर हमें क्यों लगता है कि समाज पहले की तुलना में गिर गया है? इंसानों का यह यकीन कि आजकल लोग कम भले हैं, इसके पीछे का विज्ञान दरअसल हमारा दिमाग का ध्यान देने का तरीका है। हममें से अधिकांश लोगों के नकारात्मक पूर्वग्रह हैं। अच्छे की तुलना में हम बुरे अनुभवों पर ज्यादा ध्यान देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह एक सर्वाइव करने वाली वृत्ति है जो खतरों का पता लगाती है। जो चीज हमें सतर्क रखती है कि क्या कोई मुझे नुकसान पहुंचाने जा रहा है, इसलिए हममें से हरेक को चारों ओर खतरे दिखते हैं। इसमें स्मृति भी भूमिका निभाती है। अतीत को हम शौक से याद रखते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सकारात्मक अनुभव की भावनात्मक शक्ति नकारात्मक अनुभवों की भावनात्मक शक्ति से अधिक समय तक हमारे साथ रहती है। अध्ययन में कहा गया है कि उम्र बढ़ने से हमारी धारणाएं बदल सकती हैं। एक और अध्ययन कहता है कि जिम्मेदार की भूमिका में रहकर, लोग कदाचार के प्रति अति-उत्तरदायी बनाते हैं, और उसी वजह से हमें एहसास नहीं होता है कि दुनिया नहीं बदली है। फंडा यह है कि आइए इस स्वतंत्रता दिवस पर समाज को नैतिक पतन के तराजू में तौलकर उसे दोष देना बंद करें और फिर से उतने ही भले, करुणावान और ईमानदार बनने की कोशिश करें, जैसे हम कल हुआ करते थे।  

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Dakhal News 15 August 2024


Allowing boredom to take its toll

रश्मि बंसल  अरसा हो गया था हॉल में पिक्चर देखे हुए। कई बार मन करता था, फिर आलस आ जाता, ओटीटी पर आएगी तो घर पर देख लेंगे। एक दिन मॉल में घूमते हुए प्लान बन ही गया। बड़े पर्दे पर देखने का मजा ही कुछ और था। इसी तरह बहुत दिन बाद ट्रेन से सफर किया, अच्छा लगा। एक जमाना था जब हवाई जहाज में बैठना बड़ी बात थी। वैसे प्लेन का एक फायदा जरूर है। दो घंटे मोबाइल बंद हो जाता है। कुछ साल पहले हर किसी का सपना था कि मेरे हाथ में फोन हो। पता नहीं था कि दिन भर मक्खी की तरह रिंगटोन भिनभिनाएगी। तो ऐसा है, टेक्नोलॉजी की वजह से हमारी जिंदगी में काफी बदलाव आते रहते हैं। शुरू में विरोध होता है, क्योंकि हम नया तरीका अपनाने से डरते हैं। लेकिन कुछ समय बाद नई टेक्नोलॉजी के इतने दीवाने हो जाते हैं कि पुराने से मुंह ही मोड़ लेते हैं। पर जैसे दिन के बाद रात आती है, ठीक वैसे ही, मन में बात आती है कि ये जिंदगी जो इतनी तेज हो गई है, देसी से अंग्रेज हो गई, इसमें थोड़ी स्थिरता आए। कुछ देर खाली बैठा जाए। जहां कोई मोबाइल का घंटी न बजे। सिर्फ खामोशी ही रहे। कुछ लोग कहेंगे खाली बैठना ठीक नहीं, इसलिए आज बच्चों को भी खाली समय नहीं दिया जाता। स्कूल से घर आने के आधे घंटे बाद से ट्यूशन शुरू हो जाते हैं। या एक्स्ट्रा क्लास जैसे कराते, डांस इत्यादि। हमें डर लगता है बोरियत से। इसलिए हम किसी ना किसी तरह व्यस्त रहते हैं। मगर मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बोर होना कोई बुरी बात नहीं। खासकर बचपन में। जिस बच्चे को बोर होने की इजाजत हो, वो खुद बोरियत से निकलने का तरीका ढूंढता है। बोरियत के मारे बच्चा अपने मन से मनोरंजन क्रिएट करेगा। जैसे चादरों का टेंट बना सकता है। या चिंदियों से ड्रेस बनाकर डॉल सजा सकता है। इससे उसमें एक तरह की स्वाधीनता और रचनात्मकता पनपने लगती है। ये सिद्धांत बड़ों पर भी लागू होता है। हैरी पॉटर की लेखिका जेके रोलिंग को ही देख लें। 1990 में वो मैनचेस्टर से लंदन का सफर कर रही थीं। खिड़की से बाहर देखते-देखते उनके मन के पर्दे पर एक दुबले-पतले चश्मीश लड़के का चित्र छा गया। और उसके जीवन की काल्पनिक कहानी बुनने लगीं। आज का दौर होता, तो वही रोलिंग मोबाइल पर रील्स देखकर टाइमपास करतीं। वो शून्यता नहीं बनती, जो एक रचनात्मक कार्य के लिए जरूरी है। तो दिमाग का इधर-उधर घूमना कोई बुरी बात नहीं। बशर्ते पूरे दिन नहीं, संयम से करें। मेरा एक दोस्त एक बड़ी कंपनी का सीईओ है। कोविड के दौरान उसने कभी बर्तन घिसे। बर्तन धोते-धोते एहसास हुआ, जैसे हाथ चल रहे हैं अपने आप। बिजनेस में जो समस्या चल रही थी, अचानक उसका समाधान मन में गूंज उठा। आप भी ऐसी फिजिकल एक्टिविटी करें, जैसे पैदल चलना, तैराकी, साइकिल चलाना, तो आपका मन शांत हो जाता है। और कुछ अलग तरह के ख्याल आते हैं। ये आपका अवचेतन (सब-कॉन्शियस) मन है, जो चेतना की सतह के नीचे है। मगर अत्यंत प्रभावशाली। दुनिया के सबसे बड़े लेखक और कलाकार इस शक्ति को जानते हैं। आप भी ये कर सकते हैं। आज़ादी का दिवस है कल। आपका दिल भी गा रहा है- मुझे आजादी दो।

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Dakhal News 14 August 2024


Governments cannot make plans

चेतन भगत  पिछले दशक में भाजपा की बड़ी राजनीतिक उपलब्धियों में से एक हिंदू वोटों को एकजुट करने की उसकी क्षमता रही है। 2014 के बाद ऐसा लगा कि हिंदू आखिरकार एक साथ आ रहे हैं, जबकि यह आजादी के बाद से नहीं हुआ था। इससे निश्चित रूप से भाजपा को वोट-शेयर में बढ़त मिली और चुनाव-दर-चुनाव उनका प्रदर्शन दूसरी पार्टियों के लिए ईर्ष्या का विषय बन गया। यह शाश्वत सत्य है कि अगर भाजपा के लिए बहुसंख्यक हिंदू-वोट अटूट रहे, तो कांग्रेस और उसके सहयोगी सत्ता में आने की उम्मीद नहीं कर सकते। यही कारण है कि 2024 के चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद से ही कांग्रेस और उसके सहयोगी फिर से अपने पुराने फॉर्मूले को अमल में लाने के लिए कमर कस चुके हैं। जातिगत जनगणना के पक्ष और विपक्ष में बौद्धिक तर्क हो सकते हैं, लेकिन इसमें भला किसे संदेह होगा कि यह मूल रूप से राजनीतिक मुद्दा है। देश में जातिगत परिदृश्य को बेहतर ढंग से समझें तो न केवल यह पता लगाना जरूरी है कि किसी खास जाति के कितने लोग हैं, बल्कि उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बारे में मालूम करना भी उतना ही आवश्यक है। उदाहरण के लिए, कितने लोगों के पास कारें हैं? कितनों के पास दोपहिया वाहन हैं? वे किस स्तर की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं? वे कहां और कैसे घरों में रहते हैं? उनकी औसत आयु क्या है? ऐसे सवालों के जवाब बेहद मूल्यवान डेटा को सामने लाएंगे। यह डेटा आरक्षण सहित विभिन्न जाति-आधारित कल्याणकारी उपायों में प्रबंधन में मदद करेगा। भारत अभी भी सीमित संसाधनों वाला एक कम आय वर्ग का देश है। फिर भी, हम जो कुछ भी हमारे पास है, उसी के साथ संसाधनों को वंचित वर्गों में पुनर्वितरित करने और अपनी ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने का प्रयास करते हैं। लेकिन अगर हमारे मौजूदा उपाय पुराने डेटा पर आधारित होंगे, तो बहुत सम्भव है कि हम अपने संसाधनों को बर्बाद कर रहे होंगे, क्योंकि तब हम वांछित समुदायों तक लाभ नहीं पहुंचा पाएंगे। हम ऐसे समय में रह रहे हैं, जहां डेटा का उपयोग हर चीज को अनुकूलित करने के लिए किया जाता है। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने के लिए भी सटीक डेटा होना बहुत जरूरी है। जातिगत जनगणना के कुछ नुकसान भी हैं। सबसे बड़ा नुकसान यह है कि ये तमाम कवायदें अंततः जाति-व्यवस्था को जीवित रखती हैं। एक समाज के रूप में हमारा अंतिम लक्ष्य क्या होना चाहिए? अधिकतम आरक्षण प्राप्त करना? या एक ऐसा समाज बनाना, जहां कोई जातियां नहीं होंगी? इन सवालों के जवाब आसान नहीं। लेकिन यह साफ है कि जब तक जाति-आधारित आरक्षण मौजूद है, तब तक जाति-आधारित सामाजिक-आर्थिक डेटा का होना भी जरूरी है। लेकिन ये सब तो तार्किक बातें हुईं। अंतिम निष्कर्ष में तो यह कवायद राजनीति के लिए ही है। जैसे राम मंदिर और अनुच्छेद 370 के मुद्दों ने हिंदू वोटों को मजबूत करने में मदद की है, उसी तरह जातिगत जनगणना हिंदू वोटों में सेंध लगाने की जुगत है। जब जातिगत जनगणना के आंकड़े आखिरकार जारी किए जाएंगे, तो विभिन्न जातियों और समुदायों के बारे में पुख्ता जानकारियां सामने आएंगी। कुछ उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं (जो कि होना भी चाहिए, खासकर अगर आरक्षण कारगर रहा हो तो)। वहीं कुछ अन्य का प्रदर्शन खराब हो सकता है। डेटा हमेशा नीतिगत फेरबदल की ओर इशारा करेगा, जिसका मतलब है कुछ जातियों को फायदा होगा और कुछ को नुकसान। व्यापक स्तर पर, इसका मतलब यह हो सकता है कि हमारे पास और अधिक आरक्षण होगा, जो उच्च जातियों को परेशान करेगा। या हमें कुछ ऐसी निचली जातियों के बारे में भी पता चल सकता है, जो शायद कुछ उच्च जातियों से बेहतर प्रदर्शन कर रही हों। यह सब चर्चाओं, बहसों, भ्रम को जन्म देगा। लेकिन इसका अंतिम निष्कर्ष हिंदू वोटों का विभाजन ही है और यही कारण है कि भाजपा इससे अचकचा रही है। जाति-जनगणना पर भाजपा एक चक्रव्यूह में फंस गई है, अब यह उस पर है कि इसे कैसे हैंडल करना है। कांग्रेस को भी बताना होगा कि कर्नाटक में जो जातिगत जनगणना हुई है, उसके डेटा पर उसकी सरकार क्या करने जा रही है।

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Dakhal News 14 August 2024


India can show its strength

साधना शंकर  ब्रेक डांस के बारे में सोचें और दिमाग में कई फिल्में आ जाएंगी। एक्रोबेट दिखाते हुए, तालमेल से भरे तेज डांस मूव और पीछे से तेज आवाज...। पेरिस ओलिम्पिक समाप्त हो चुके हैं। लेकिन इस बार एक ही नई खेल विधा का आधिकारिक रूप से पदार्पण हुआ, वो थी ‘ब्रेकिंग।’ नृत्य की ये विधा दुनियाभर में प्रतिस्पर्धी खेल बनकर इतिहास कायम कर रही है। टोक्यो ओलिंपिक में हमने तीन नए खेल देखे थे- बाइक मोटरक्रॉस या बीएमएक्स, 3v3 बास्केटबॉल और स्केटबोर्डिंग। बीते आठ सालों में ओलिंपिक में शामिल हुए चारों नए खेल शहरी हैं और युवा पीढ़ी से ताल्लुक है। ओलिम्पिक कमेटी विविधता लाने के लिए खेलों का विस्तार कर रही है ताकि युवाओं के साथ जुड़ सके और उन्हें आकर्षित कर सकें। ब्रेकिंग विधा 1970 के दशक में न्यूयॉर्क के ब्रोंक्स क्षेत्र में उभरी, जो मुख्य रूप से अफ्रीकी-अमेरिकी इलाका था। यह सामाजिक नृत्य पर आधारित एक सांस्कृतिक गतिविधि थी और सामुदायिक आयोजनों में इसकी शुरुआत हुई थी। इसमें सहजता मुख्य थी, और पृष्ठभूमि में हिप-हॉप ध्वनि, लुभावने जोरदार मूव के साथ हर नर्तक एक-दूसरे से बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करता। ज्यों-ज्यों ये विधा आगे बढ़ी, इसने अलग-अलग समुदायों की विरासत के साथ अगल-अलग स्रोतों से डांस मूव और तालमेल को साथ जोड़ा, इसमें मार्शल आर्ट्स, जिमनास्टिक आदि थे। समूह एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने लगे और 1990 के दशक से ‘बैटल ऑफ द ईयर’ और ‘फ्रीस्टाइल सेशन’ जैसी अंतरराष्ट्रीय ब्रेकिंग स्पर्धा शुरू हो गईं। ‘ब्रेकिंग’ के लिए सिर्फ स्वस्थ शरीर और उपकरण के तौर पर संगीत चाहिए होता है। ओलिम्पिक खेल के तौर पर इसकी मान्यता से दुनियाभर में नए अवसर खुल चुके हैं। किसी पेशेवर उपकरण की जरूरत नहीं होने से यह सभी के लिए सुलभ और पहुंच में होगी और विभिन्न आर्थिक वर्ग के लोग इसकी तरफ आकर्षित होंगे। यह नृत्य खेल, खेलों की आमतौर पर छवि जैसे भागना, कूदना, तैरना या गुलाटियां मारने को भी बदलकर रख देगा। यह खेल के मैदान में संगीत, अलग-अलग तरह की टेक्नीक और नए-नए डांस मूव लेकर आएगा। ब्रेकिंग जहां एथलेटिक भी है, तो इसमें नया गढ़ने की गुंजाइश भी है, जिससे यह खेल देखने में रुचिकर और रोमांचक भी लगता है। पेरिस में ब्रेकिंग स्पर्धा में 16 देशों ने हिस्सा लिया था। इसे तकनीक, संगीतमयता, डांस मूव की रेंज और मौलिकता जैसे मानदंडों पर आंका गया। वहीं तुलनात्मक प्रणाली पर आंका गया, जहां हर खिलाड़ी की तुलना प्रत्येक दौर में उनके प्रतिद्वंद्वी से की गई। जिस ब्रेकर को जज के सबसे ज्यादा अंक मिले और जिसने ज्यादा राउंड जीते, उसे मेडल मिला। इस बार स्वर्ण पदक विजेता जापान की कलाकार एमी रहीं। अब बात भारत की। भारत के पास भी पेशेवर ब्रेकर्स हैं और भारतीय ब्रेकिंग स्पर्धाएं भी हैं। प्रसिद्ध रेड बुल बीसी वन 2024 साइफर इंडिया पिछले महीने ही आयोजित हुई थी। ओलंपिक में ब्रेकिंग की शुरुआत युवाओं के लिए आशा व आकांक्षा का विषय है। आशा करते हैं कि भारतीय बी-बॉयज और बी-गर्ल्स (ब्रेक डांसर्स) 2028 में लॉस एंजेलिस में होने वाले ओलिम्पिक में देश के लिए पदक लाएंगे।

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Dakhal News 13 August 2024


We don

अभय कुमार दुबे टोक्यो ओलिम्पिक में हमारे खिलाड़ियों ने सात (एक स्वर्ण समेत) पदक जीते थे। पेरिस में एक पदक कम हुआ, और स्वर्ण घटकर रजत रह गया। देखा जाए तो यह कोई उल्लेखनीय गिरावट नहीं है। लेकिन इससे यह तो पता चलता ही है कि खेलों की दुनिया में हम आगे नहीं बढ़ रहे हैं और एक दीर्घकालीन जड़ता के शिकार हैं। इसका कारण हमारे खिलाड़ियों में प्रतिभा और लगन की कमी भी नहीं है। प्रतिभा का तो विस्तार हो रहा है। उसमें विविधता आ रही है। नीरज चोपड़ा का एथलेटिक्स के विश्व-मंच पर उदय इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। हरियाणा का खेलों के असाधारण केंद्र के रूप में उभरना यह भी बताता है कि अगर देश में ऐसे दो-तीन केंद्र और बन जाएं तो दुनिया में हमारा सितारा बुलंद होने के लिए आवश्यक आधार तैयार हो जाएगा। 1975 में अजितपाल सिंह के नेतृत्व में भारत ने कुआलालम्पुर में पाकिस्तान को हराकर हॉकी का विश्व कप जीता था। इसके आठ साल बाद लॉर्ड्स के मैदान में कपिल देव के नेतृत्व में भारत ने क्रिकेट का विश्व कप जीता। उसी समय हमारी प्राथमिकताएं स्पष्ट हो गई थीं। क्रिकेट का कप सुविधाओं, शाबासियों, ख्याति, धन-लाभ, भविष्य के अवसरों और सितारा बनने की संभावनाओं से लबालब निकला। हॉकी के कप और उसके विजेताओं का क्या हुआ? विश्व हॉकी संघ पर काबिज यूरोपीय ताकतों ने नियम बदल कर घास पर खेली जाने वाली पारम्परिक हॉकी का खात्मा कर दिया। एस्ट्रो टर्फ और सुपर टर्फ का युग आया। हम घास पर ही प्रैक्टिस करते रहे। मॉन्ट्रियल ओलिम्पिक में हमारी विश्व विजेता टीम हारी। इसके बाद हम हार के लिए अभिशप्त हो गए। आज भी हॉलैंड जैसे छोटे-से देश के पास हमसे कई गुना ज्यादा हॉकी के कृत्रिम मैदान हैं। सरकारी प्रयासों और निजी स्तर पर पूर्व खिलाड़ियों द्वारा की गई संस्थागत कोशिशों से इस दुर्गति में पिछले दिनों कुछ सुधार हुआ है। लेकिन खेलों का संस्थागत ढांचा पहले की ही तरह बुरी हालत में है। इनकी एसोसिएशनें पुराने जमाने की जमींदारियों से अलग नहीं हैं। नेताओं और उनके परिजनों का इन एसोसिएशन पर कब्जा है। इस बार भारतीय महिला हॉकी टीम ओलिम्पिक में क्वालिफाई ही नहीं कर पाई। कारण था एसोसिएशन में सत्ता-परिवर्तन और कोच के साथ हुआ झगड़ा। धनराज पिल्लै की कप्तानी में जो हॉकी टीम विकसित हुई थी, उसे ‘गोल्डन जनरेशन’ का नाम दिया जाता है। लेकिन इसी टीम को फेडरेशन के अध्यक्ष ने टूर्नामेंट में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद निलम्बित कर दिया था। पिछले और इस ओलिम्पिक के बीच मुक्केबाजी संघ ने कोच को चार बार बदला। तीरंदाजी फेडरेशन पर पूरे 44 वर्ष तक एक ही व्यक्ति का कब्जा रह चुका है। कुश्ती फेडरेशन का तो जिक्र होते ही जंतर मंतर पर पदक विजेता पहलवानों का धरना-प्रदर्शन याद आ जाता है। इनमें विनेश फोगाट भी शामिल थीं। अगर भारत में खेलों का संस्थागत आधार दुरुस्त, चाक-चौबंद और सतर्क होता तो क्या होता? अगरहमारी बॉक्सिंग फेडरेशन प्रभावी होती तो निकहत जरीन को सीडेड खिलाड़ी के रूप में उतरने का मौका मिलता। आखिरकार वे अपने वर्ग में डबल वर्ल्ड चैम्पियन हैं। लेकिन अनसीडेड बॉक्सर के रूप में उन्हें दूसरे मैच में ही विश्व की नंबर एक बॉक्सर से लड़कर हारना पड़ा। अगर वे सीडेड होतीं तो इस खिलाड़ी से फाइनल में भिड़ना पड़ता, जहां रजत पदक सुनिश्चित होता। हॉकी टीम ने कांस्य जीता, लेकिन उसका प्रदर्शन इस नतीजे से कहीं अच्छा था। इसका कारण भी संस्थागत माना जाएगा। अतीत में निशानेबाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाले अभिनव बिंद्रा ने अपनी उपलब्धि का श्रेय शूटिंग महासंघ को देने से इंकार कर दिया था। अगर उनके पिता ने निजी संसाधनों का इस्तेमाल करके उनका प्रशिक्षण न करवाया होता तो अभिनव पदक न जीत पाते। नीरज चोपड़ा चोटिल होने के कारण लम्बे अरसे प्रभावी ट्रेनिंग नहीं कर पा रहे थे। क्या भारतीय एथलेटिक फेडरेशन भारत के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी की इस स्थिति के लिए कुछ जिम्मेदारी महसूस करती है? भारत में खेलों का संस्थागत ढांचा पहले की ही तरह बुरी हालत में है। इनकी एसोसिएशनें पुराने जमाने की जमींदारियों से अलग नहीं हैं। विभिन्न दलों के राजनेताओं और उनके परिजनों का इन एसोसिएशनों पर कब्जा है।

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Dakhal News 13 August 2024


We can all relate to Vinesh

बरखा दत्त  विनेश फोगाट की उदास मुस्कान पेरिस ओलिम्पिक में उनकी अपात्रता की खबर से कहीं ज्यादा मर्मस्पर्शी थी। अस्पताल के बिस्तर पर लेटीं विनेश की तस्वीर देखकर मुझे बहुत व्यथा हुई। पिछले कुछ दिनों में विनेश ने जो कुछ भी खोया है, उसके बाद भी वे चेहरे पर बहादुर मुस्कराहट बनाए रखने में कामयाब रहीं। तस्वीर में आप उनके कटे बाल देख सकते थे, जो 50 किलो-वर्ग के फाइनल में प्रतिस्पर्धा करने के लिए उनके और उनकी टीम द्वारा उठाए गए कई हताश उपायों में से एक का साक्षात् प्रमाण थे। उन्होंने रस्सियां कूदीं, ऊष्मा-कक्ष में बैठीं, पानी तक नहीं पिया, कपड़े छोटे कर लिए और खून तक निकाला! लेकिन अंत में उनका वजन मानक से 100 ग्राम अधिक पाया गया और उन्होंने अपना वह रजत पदक भी खो दिया, जिसकी वो सुपात्र थीं और जो उन्हें मिलना तय था  विनेश की यात्रा से हम खुद को जोड़ पाते हैं। उनके द्वारा जिन परीक्षाओं का सामना किया गया, उनके कष्ट, अपेक्षाएं, त्रासदियां- इन सबमें हम- यानी हम भारत की महिलाएं- या तो अपने जीवन का प्रतिबिम्ब देखती हैं या उस साहस का अनुमोदन पाती हैं, जिसकी हमें अपने जीवन में भी कामना रहती है। ऐसे लोग, जिन्होंने कभी कुश्ती का मुकाबला नहीं देखा- मैं भी उनमें से एक हूं- या जो खेलों में वजन मापने के तकनीकी तर्कों से चकित हैं; वे भी विनेश के साथ जो कुछ हुआ, उससे प्रभावित हुए हैं। संसद में विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया है कि विनेश के भाग्य में अचानक आया बदलाव किसी साजिश के चलते है। कहा गया कि पिछले साल भाजपा के कद्दावर नेता बृजभूषण शरण सिंह द्वारा कथित यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के खिलाफ उनके द्वारा जताए मुखर-विरोध को उनके अप्रत्याशित दुर्भाग्य से अलगाया नहीं जा सकता। कानाफूसी में कहा गया कि उन्हें जानबूझकर क्षति पहुंचाई गई। जबकि अधिक जानकार विशेषज्ञों ने तर्क दिया कि विनेश के मामले में जो हुआ, उसके लिए यकीनन जिम्मेदारों को दंडित किया जाना चाहिए, लेकिन इस मामले में किसी राजनीतिक साजिश की ओर संकेत करना तो अकल्पनीय और कपटपूर्ण है। मैं कुश्ती और उसकी विभिन्न भार-श्रेणियों की विशेषज्ञ नहीं। लेकिन इतना जरूर जानती हूं कि विनेश को जैसी सार्वभौमिक प्रशंसा मिली और उनके दुर्भाग्य पर जिस तरह से सामूहिक शोक जताया गया, उसका सरोकार दिल्ली की सड़कों पर लैंगिक भेदभाव से जूझते हुए उनके संघर्ष के साक्षी बनने और उसमें उनके अकेलेपन के साथ सहानुभूति रखने से था। हममें से कोई भी उस तस्वीर को भुला नहीं सकता, जिसमें उन्हें और साक्षी मलिक को पुलिस द्वारा ऐसे घसीटा जा रहा था, मानो वे जरायमपेशा अपराधी हों। हममें से कोई भी यह नहीं भूल सकता कि जिस व्यवस्था ने हमारी इन चैम्पियनों के साथ बल प्रयोग किया, उसने महिलाओं की पीड़ा का उपहास करने वाले बृजभूषण शरण सिंह की जमानत का अदालत में विरोध नहीं किया था। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विनेश उस व्यक्ति का मुकाबला कर रही थीं, जो अपने एक इंटरव्यू में कैमरे के सामने बड़ी बेबाकी से हत्या के बारे में बात कर चुके हैं। उनके खिलाफ डकैती और हत्या के प्रयास के मामले दर्ज हैं। एक समय ऐसा था, जब उन 38 आरोप लगे थे, लेकिन अभी तक एक भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ कल्पना कीजिए, विनेश और उनके साथियों को कितने जीवट की जरूरत पड़ी होगी। मुझे याद है उन विरोध-प्रदर्शनों के दौरान मैंने विनेश से बात की थी। उन्होंने मुझसे कहा था, ‘लाचारी महसूस होती है। अगर हमारे जैसी लड़की सुरक्षित नहीं है, तो किसका भविष्य सुरक्षित है?’ एक अन्य मर्तबा, पुलिस कार्रवाई का सामना करने पर मेरे साथ बातचीत में उन्होंने चुनौती के स्वर में कहा था, ‘अगर आप मेरे घर आओगे, तो आपको बस थोड़ा घी और भारत का झंडा मिलेगा। इस सबसे गुजरने के बाद यह देखना हताश कर गया कि उन्हें ओलिम्पिक के पोडियम पर तिरंगे में स्वयं को लपेटने का अवसर नहीं मिला। उनके रिटायरमेंट की खबर तो और अवसाद में झोंकने वाली थी। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री- सभी ने इस घटनाक्रम पर निराशा व्यक्त की। लेकिन अगर वे विनेश का भारत में स्वागत करना चाहते हैं, तो एक साधारण-सा कदम उनकी पीड़ा को कम कर सकता है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि विनेश को न्याय मिले और उनकी पीड़ाओं के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को बाहर का रास्ता दिखाया जाए। स्वर्ण के समान बहुमूल्य विनेश को हमें यह महसूस कराना होगा कि पदक की लड़ाई वे भले ही हार गई हों, लेकिन नैतिक युद्ध में उनकी जीत हुई है। विनेश के कष्ट, अपेक्षाएं, त्रासदियां- इन सबमें हम- यानी हम भारत की महिलाएं- या तो अपने जीवन का प्रतिबिम्ब देखती हैं या उस साहस का अनुमोदन पाती हैं, जिसकी हमें अपने जीवन में भी कामना रहती है।

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Dakhal News 12 August 2024


Don

नवनीत गुर्जर मोबाइल फ़ोन ने भले ही पूरी दुनिया को हथेली पर ला दिया हो। बहुत कुछ आसान कर दिया हो, लेकिन बहुत कुछ है जो छूट भी रहा है। बल्कि छूट चुका है। ख़तरे बढ़ रहे हैं। असावधानियाँ भी बढ़ रही हैं। इनके कारण हम ठगे जा रहे हैं। हमारे साथ तरह - तरह के फ़्रॉड हो रहे हैं। ख़ासकर उन युवाओं के साथ जिन्होंने हथेली में आए इस मोबाइल फ़ोन को ही अपनी दुनिया, अपना सब कुछ मान लिया है। ऐसा नहीं है कि टेक्नोलॉजी में नित नए एक्सपेरिमेंट्स ठीक नहीं है। उनका स्वागत है, लेकिन इनके साथ जो सावधानियाँ बरतनी चाहिए, उन पर ध्यान नहीं दिया तो जान का जोखिम दिनों दिन बढ़ता ही जाएगा। इन दिनों देश के कई राज्यों में मूसलधार बारिश हो रही है। कहीं- कहीं तो लगता है जैसे बादल ही फट पड़े हों। ख़ासकर राजस्थान जैसे उन इलाक़ों में भी, जहां लोग कभी बरसते पानी के दर्शन तक करने को मोहताज रहते थे। तेज बहती, बल खाती, भँवर बनाती नदियों में मोबाइल फ़ोन लेकर युवा कूद रहे हैं। सेल्फ़ी ले रहे हैं। बह रहे हैं। जान तक गँवा रहे हैं। आखिर दोस्तों, परिचितों या परिजनों को ऐसी सेल्फ़ी भेजने का क्या मतलब जिसमें जान का ख़तरा हो? दरअसल, गलती हमारी है। हम पेरेंट्स की। हम भी उसी मोबाइल फ़ोन में इतने व्यस्त हो चुके हैं कि बच्चों को इसकी सावधानियाँ बताने तक का वक्त हमारे पास नहीं है। कहते है - “समरथ को नहीं दोष गुसाई, रवि, पावक, सरिता की नाई।” सूर्य, आग और नदी को दोष नहीं दिया जा सकता। बिना सावधानी के इनसे खेलना निश्चित तौर पर ख़तरनाक है। दरअसल, हो यह रहा है कि इनके सामने हम खुद को समर्थ समझने लगते हैं। यही हमारी गलती है। इन ग़लतियों को सुधारने की ज़रूरत है। आए दिन खबरें आ रही हैं कि सेल्फ़ी लेते वक्त पाँच युवक नदी में डूब गए। चार बह गए…। इन डरावनी खबरों को सुन- देखकर कोई सचेत नहीं होना चाहता। देश का युव- धन बहता जा रहा है। इसे बचाना होगा। कुछ सावधानियाँ ही तो बरतनी हैं! इतनी - सी बात समझ लीजिए। कम से कम अपनी जान जोखिम में मत डालिए। जान से ज़्यादा क़ीमती और कुछ नही! कुछ भी नहीं!

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Dakhal News 12 August 2024


Bring hard work and humility into your life

      पं. विजयशंकर मेहता तीन ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था यानी छह सिंगापुर, नौ हांगकांग, पंद्रह न्यूजीलैंड या कतर, 30 बहरीन या फिर एक भारत! नाराज प्रकृति ने बीते एक दशक में दुनिया में एक भारत बराबर अर्थव्यवस्था को नेस्तनाबूद कर दिया है। आर्थिक विनाश का यह अब तक का सबसे ताजा हिसाब है, जो कंपनियों की बैलेंस शीट में शामिल हो रहा है। सरकारों के बजट औंधे मुंह पड़े हैं। बैंकों को नए किस्म के डिफॉल्ट का खतरा है। बीमा कंपनियों को समझ नहीं आ रहा कि कैसा बीमा बनाएं। क्योंकि जिन इलाकों में कभी बाढ़ या सूखा नहीं आता था, वहां भी सब कुछ उलट-पुलट गया है। दूसरा विश्व युद्ध अगर नहीं हुआ होता तो नाराज प्रकृति से आर्थिक नुकसानों की गिनती 1930 में अमेरिका के डस्ट बाउल से शुरू होती, जब मिडवेस्ट से उठी हजारों टन धूल पश्चिमी हिस्से में फसल, जीविका और पर्यावरण को निगल गई थी। प्रकृति के इस कोप ने अमेरिका की खेती को हमेशा के लिए बदल दिया। नुकसानों का हिसाब : नाराज प्रकृति से हुए नुकसानों का आर्थिक हिसाब 2003 में यूरोप की भयानक गर्मी से शुरू होता है। 1972 में स्टॉकहोम में पर्यावरण की यूएन की पहली जुटान से लेकर 1985 में ओजोन की पर्त में छेद की तलाश तक बदलती कुदरत के आर्थिक असर समझे जाने लगे थे। 21वीं सदी में इस तरह का पहला संकट था कैटरीना चक्रवात। अगस्त 2005 में मेक्सिको की खाड़ी के तटीय इलाके में आया यह तूफान 125 अरब डॉलर के नुकसान की बलि लेकर गया। बदलती कुदरत बुनियादी ढांचे, बढ़ते शहरों, खेतों और उद्योगों के लिए नई सबसे भयानक चुनौती है। मौसमी आपदाएं हर साल नेपाल जैसी करीब पांच अर्थव्यवस्थाएं खत्म कर रही हैं यानी 100 अरब डॉलर का नुकसान। 2017 से 2021 तक बीमा कंपनियों ने करीब 300 अरब डॉलर के नुकसान का भुगतान किया। 2022 में यह नुकसान करीब तीन गुने हो गए। एसबीआई रिसर्च का आकलन है कि 2022-23 में भारत में बाढ़ से 10 से 15 हजार करोड़ का नुकसान हुआ। इनमें अधिकांश के लिए कोई बीमा नहीं था। खतरे की पैमाइश : बीते एक साल में प्रत्येक महाद्वीप में बाढ़, बादल फटने, जंगल जलने, भूस्खलन जैसी आपदाओं की झड़ी लगी है। वायनाड से लेकर हिमाचल तक भारत के ताजा दृश्य खौफनाक हैं। सरकारें कर्ज लेकर सड़कें, पुल, बिजलीघर, दूरसंचार नेटवर्क बनाती हैं, मगर मौसम की एक करवट से सब तबाह हो जाता है और क्षेत्रों का विकास कई साल पीछे खिसक जाता है। बुनियादी ढांचे पर सात तरफ से हमला है। समुद्र जल स्तर में बढ़ोतरी, बाढ़, समुद्री चक्रवात, स्थलीय तूफान, हीट वेव और जलते जंगल। मैकेंजी और मार्श एंड मैकमिलन कंपनीज ने दो भिन्न अध्ययनों में पाया कि चार सेवाओं पर कहर टूटा है। सबसे पहले है बिजली। कोयले के आयात के कारण कई हिस्सों में बिजलीघर समुद्र तटीय इलाकों में हैं, जल स्तर बढ़ने से यहां बड़ा खतरा है। कोयले पर आधारित संयंत्रों की औसत आयु करीब 60 साल होती है, जबकि पनबिजली परियोजनाओं की 100 साल। बाढ़ से इन दोनों पर भारी जोखिम है। दूसरा है परिवहन। अप्रत्याशित बारिश से अब कई ऐसे इलाके प्रभावित हो रहे हैं, जहां भारी बरसात का इतिहास नहीं रहा है। रेलवे और हाईवे नेटवर्क इस खतरे को संभाल नहीं पा रहा है। तापमान बढ़ने से विमान परिवहन भी बेजार है। इससे यात्री किराए बढ़ेंगे। इसके बाद हैं पेयजल आपूर्ति और दूरसंचार। बढ़ते तापमान से जल स्रोत सूख रहे हैं और बाढ़ के असर से पेयजल ढांचा ध्वस्त हो रहा है। शहरों के पेयजल ढांचे में बाढ़ के बाद आई गंदगी को संभालने की क्षमता नहीं है। 2015-16 में ब्रिटेन की बाढ़ में दूरसंचार नेटवर्क बह गया। जबकि तूफान इरमा और मारिया के असर से कैरेबियाई इलाकों में करीब 90 फीसदी मोबाइल टावर ध्वस्त हो गए। पुराना हो या नया, कहीं भी बुनियादी ढांचा पर्यावरणीय खतरों को ध्यान में रखकर नहीं बना है। मैकेंजी का आकलन है कि 60 से 80 फीसदी बुनियादी ढांचे को मौसमी बदलावों के हिसाब से ढलना और बदलना होगा। 2050 तक इसकी लागत 150 से 450 अरब डॉलर प्रति वर्ष होगी। बीमा कंपनियों को हर्जाने के लिए नए फंड्स की व्यवस्था करनी होगी। 1990 के बाद से प्राकृतिक आपदा प्रभावित देशों में भारत तीसरे नंबर पर है। 2001 से 2022 के बीच भूस्खलन, तूफान, भूकंप, बाढ़ और सूखे के 361 हमले हुए हैं। यानी औसत तीन आपदाएं प्रति माह। 1900 से 2000 के बीच 100 साल में केवल 401 ऐसी आपदाएं आई थीं, यानी चार प्रति वर्ष!

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Dakhal News 9 August 2024


The market has recovered from the crash

नीरज कौशल 5 अगस्त को पूरी दुनिया के शेयर बाजार में गिरावट देखी गई। एक दिन बाद, जिसे ‘क्रैश’ समझा जा रहा था, उसे ‘मार्केट-करेक्शन’ बताया गया। लेकिन विश्लेषक पूछ रहे हैं कि क्या सबसे बुरा समय बीत चुका है या अभी आना बाकी है? इसका ईमानदार जवाब है : हम नहीं जानते। अगर हमें सच में ही पता होता तो हम शेयर बाजार के अपने ज्ञान का लाभ उठाकर अरबों डॉलर कमा रहे होते। लेकिन हकीकत यह है कि एक अस्थिर शेयर बाजार- या यहां तक कि एक शांत शेयर बाजार के बारे में भी कोई सटीक भविष्यवाणी करना या पूर्वानुमान लगाना दुष्कर है। अमेरिकी फेड रिजर्व के सुविख्यात चेयरमैन एलन ग्रीनस्पैन ने मार्च 2000 में डॉट-कॉम बबल के फटने से कई साल पहले 1995 से ही अमेरिकी शेयरों में तर्कहीन उत्साह के प्रति चेताना शुरू कर दिया था। इसलिए- इस लेख में- हम भविष्यवाणी करने से बचेंगे, लेकिन अतीत को समझाने की कोशिश जरूर करेंगे। यह कि सोमवार को जैसे बाजार टूटा, उसके पीछे क्या कारण था? इसकी शुरुआत जापान के बेंचमार्क टॉपिक्स इंडेक्स में सोमवार को 12% की गिरावट के साथ हुई। जिसके बाद अन्य एशियाई देशों और यूरोप के शेयरों में भी गिरावट आई। अमेरिका में कुछ कम नाटकीय लेकिन पर्याप्त गिरावट हुई। एसएंडपी 3% और नैस्डेक 3.43% टूटा। एनएसई निफ्टी में 2.7% की गिरावट आई और एक दिन बाद फिर से उछाल आया, जैसा कि वैश्विक स्तर पर अधिकांश बाजारों के शेयरों में हुआ। टॉपिक्स में गिरावट अमेरिकी फेडरल रिजर्व और बैंक ऑफ जापान की मौद्रिक नीतियों से जुड़ी है। फेड ने पिछले दो वर्षों में अमेरिकी मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों में लगातार वृद्धि की है, जबकि बैंक ऑफ जापान ने हाल ही में अपनी ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं किया था। इसने निवेशकों के लिए डॉलर या यूरो या- जिसे ‘कैरी ट्रेड’ कहा जाता है- में निवेश के लिए सस्ती दरों पर जापान की मुद्रा येन में उधार लेने का अवसर खोल दिया। इससे येन कमजोर हो गया। कमजोर येन ने निर्यात को बढ़ाया और जापानी निर्यातकों को अपनी कमाई डॉलर में रखने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे येन की मांग कम हो गई और येन और कमजोर हो गया। इस प्रवृत्ति को देखते हुए निवेशकों ने येन की टूटन पर दांव बढ़ा दिए, जिसका मतलब यह था कि येन का मूल्य और गिरेगा। उन्हें उम्मीद थी कि बैंक ऑफ जापान कोई कार्रवाई नहीं करेगा और फेड अपनी ब्याज दर में कटौती करेगा। लेकिन इसके बजाय 31 जुलाई को, बैंक ऑफ जापान ने अपनी बेंचमार्क दर 0.1% से बढ़ाकर 0.25% कर दी। येन के मूल्यों में और गिरावट पर दांव लगाने वाले निवेशक घबरा गए और अपने नुकसान को कवर करने के लिए दूसरी दिशा में दौड़ पड़े। नतीजा यह रहा कि येन की कीमत में वृद्धि हुई, जिससे जापानी शेयरों में गिरावट आ गई। लेकिन एक दिन बाद ही शेयरों में उछाल यह दर्शाती है कि निवेशक जापानी कंपनियों को बहुत अधिक संकट में नहीं मानते हैं। इस सप्ताह की गिरावट या सुधार के अलावा, वैश्विक टेक दिग्गजों के शेयरों में भी तेज उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। जुलाई के मध्य से नैस्डेक 100 में 10% से अधिक की गिरावट आई है। इसे भी हाईप्ड-अप टेक स्टॉक्स में करेक्शन के रूप में देखा जाना चाहिए, जो टेक सेक्टर- विशेष रूप से एआई के बारे में बढ़ती उम्मीदों को दर्शाता है। अमेरिका में अस्थिरता सूचकांक- जो व्यापारियों द्वारा खुद को बचाने के लिए भुगतान की जाने वाली राशि को मापता है- इस सप्ताह भी तेजी से बढ़ा। यह दर्शाता है कि डर का माहौल जारी है। कई लोगों को डर है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है, हालांकि इसकी बुनियादी स्थितियों में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो इस तरह के अंदेशे को जन्म दे। ये सच है कि पिछले सप्ताह की जॉब मार्केट रिपोर्ट उम्मीद से कुछ कमजोर थी, लेकिन 4.3% की बेरोजगारी दर इस बात का संकेत है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत बनी हुई है। लेकिन मौजूदा क्रैश और कनेक्शन के बावजूद अमेरिकन स्टॉक अतिमूल्यित बने हुए हैं। यही हालत भारतीय स्टॉक की भी है। इस सप्ताह हमने बाजार में जैसी उथलपुथल देखी, वह अगले सप्ताह भी जारी रह सकती है। जैसा कि बेट्टी डेविस ने 1950 के दशक की अपनी क्लासिक फिल्म ‘ऑल अबाउट ईव’ में कहा था, ‘अपनी कमरपेटियों को कसकर बांध लीजिए, आगे बहुत झटके लगने वाले हैं!’  

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Dakhal News 8 August 2024


What does the coup in Bangladesh mean

अभिजीत अय्यर मित्रा बांग्लादेश में हुए तख्तापलट ने दक्षिण-एशिया क्षेत्र में उथल-पुथल मचा दी है। प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है और उनका भविष्य अनिश्चित है। लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि आखिर वहां पर ऐसा क्यों हुआ और अब भारत के पास क्या विकल्प हैं। बांग्लादेश में इसी साल चुनाव हुए थे, जिनमें विवादास्पद परिस्थितियों में शेख हसीना की अवामी लीग को भारी बहुमत मिला था। हालांकि चुनाव से पहले ही वहां पर विपक्ष का दमन शुरू हो गया था। शेख हसीना को लगता था कि फौज के हाथ मजबूत करके, उसे वह सब देकर जो वह चाहती है, फौजी अधिकारियों के स्पष्ट भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करके वे उन्हें अपने पाले में कर लेंगी और वो उनके प्रति वफादार रहेंगे। आखिर 2009 में जब अर्धसैनिक बांग्लादेश राइफल्स ने तख्तापलट करने की कोशिश की थी, तो फौज ने हसीना का ही साथ दिया था। तो क्या अब फौज ने हसीना को दरकिनार कर दिया है? ऐसा पूरी तरह से सच नहीं है, क्योंकि शेख हसीना ने बांग्लादेशी वायुसेना के विमान से ही देश छोड़ा है। न ही वहां के सैन्य प्रमुख हसीना के आलोचक हैं। सवाल उठता है कि ऐसे हालात क्यों बने और इस बार सेना के हाथ-पैर क्यों फूल गए? कई सालों से यह तर्क दिया जा रहा था कि बांग्लादेश जैसी स्थिति में- जहां विपक्ष कमजोर है- फौज ही विपक्ष की भूमिका निभाएगी। लेकिन समस्या यह है कि अगर सेना ऐसा करती है, तो उसे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा, और बांग्लादेश इसका बिल्कुल भी सामना नहीं कर सकता। कुछ का निष्कर्ष है कि फौज दबाव से कुछ राहत चाहती थी, इसलिए वह अंतरिम नागरिक सरकार बना रही है, जिसके सफल होने की कोई संभावना नहीं है। ऐसे में हसीना की सत्ता में वापसी की गुंजाइश कायम रहेगी। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अमेरिका ने बांग्लादेश के चुनावों में हुई धांधली की तो निंदा की थी, लेकिन पाकिस्तान के चुनावों को सराहा था। इसी की प्रतिक्रिया में अपनी हाल की वॉशिंगटन यात्रा के दौरान शेख हसीना ने अमेरिकी सरकार के अधिकारियों से बातचीत करने से इनकार कर दिया था और इसके बजाय अमेरिका-बांग्लादेश चैंबर ऑफ कॉमर्स के कार्यालयों में बैठकें की थीं। दांव पर बांग्लादेश द्वारा खोजे गए विशालकाय ऑफशोर गैस भंडार हैं। चीन के साथ हसीना की सांठगांठ अमेरिका को रास नहीं आ रही थी। लेकिन वे बीजिंग के प्रति भी बेसब्र बनी हुई थीं। वे अपनी चीन यात्रा को बीच में ही छोड़कर गुस्से में घर लौट आई थीं। ऐसे में किसी को आश्चर्य नहीं हुआ था, जब पिछले महीने 1971 के योद्धाओं और उनके परिवारों के लिए कोटा के मुद्दे पर विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए। ध्यान रहे कि उन विरोध-प्रदर्शनों के बाद बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने अधिकांश कोटा को खत्म कर दिया था। फिर नए विरोध-प्रदर्शन किस बारे में हो रहे थे? इन आरोपों को लेकर कि शेख हसीना तानाशाह और गैर-लोकतांत्रिक हैं। वैसे भी बांग्लादेश में बार-बार किसी न किसी मुद्दे पर विरोध-प्रदर्शन होते रहते हैं, क्योंकि वहां एकमात्र बचा हुआ विपक्ष- जमात-ए-इस्लामी- नहीं जानता कि कब उनकी किस्मत चमक जाएगी। बांग्लादेश के हिंदू ऐतिहासिक रूप से अवामी लीग, शेख हसीना और उनके पिता मुजीबुर्रहमान के समर्थक रहे हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि वे हिंदू समुदाय के बहुत अच्छे दोस्त साबित हुए हों। उदाहरण के लिए शेख मुजीब विभाजन के दंगों में शामिल हुए थे, जिसके कारण 1947 में लाखों हिंदू मारे गए थे। हालांकि 1971 तक वे एक मुस्लिम होने से बढ़कर एक बांग्लादेशी के रूप में सोचते थे, जबकि पाकिस्तान ने स्पष्टतया मुस्लिम कार्ड खेला था। 1971 के बाद से और बांग्लादेश की मुक्ति में भारत की भूमिका के बाद से वहां की सभी अवामी सरकारें हिंदुओं के प्रति स्पष्ट रूप से मैत्रीपूर्ण रही हैं। ऐसे में विपक्ष ने अवामियों को एक ‘हिंदू पार्टी’ के रूप में चित्रित किया और बेरोकटोक तरीके से भारत पर निशाना साधा। वास्तव में, अवामी लीग भारत की सुरक्षा चिंताओं के प्रति संवेदनशील होने के लिए असामान्य हद तक चली गई है। भारत के लिए यह एक बड़ा उलटफेर है। शेख हसीना ने भारत के विरुद्ध बेकार के दुष्प्रचार से इनकार कर दिया था। वे खालिदा जिया की तरह बांग्लादेश की तमाम समस्याओं के लिए भारत को दोष नहीं देने वाली थीं। इसके बजाय उन्होंने अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित किया और इसे प्रभावशाली ढंग से संभाला। बांग्लादेश को एक समय गरीबी के लिए काम करने वाले एनजीओ के लिए स्वर्ग के रूप में जाना जाता था। अब इन एनजीओ की कोई आवश्यकता नहीं रह गई थी और बांग्लादेश ने कुछ आर्थिक-संकेतकों पर भारत को भी पीछे छोड़ दिया था।शेख हसीना न केवल भारत के साथ मित्रता सुनिश्चित कर रही थीं, बल्कि भारत में बांग्लादेशियों के प्रवास की आवश्यकता को समाप्त करके सीमा-सुरक्षा का भी ख्याल रख रही थीं। लेकिन इसका यह मतलब भी था कि भारत उन लगभग 3 करोड़ अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को वापस नहीं भेज सकता था, जो यहां रह रहे हैं। अब जब बांग्लादेश में बनने जा रही नई हुकूमत यकीनन भारत के लिए बहुत मैत्रीपूर्ण नहीं होने जा रही है, ऐसे में भारत इन प्रवासियों को वापस भेजने की शुरुआत कर सकता है। यहां यह याद रखा जाना चाहिए कि श्रीलंका के विपरीत बांग्लादेश की बगावत आर्थिक तंगहाली के चलते नहीं हुई है और पाकिस्तान के विपरीत वहां पर फौज की मुखालफत में लोग नहीं उमड़े हैं। ऐसे में शेख हसीना के पास वहां पर सत्ता में वापसी की गुंजाइश अभी बाकी है। भारत अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों का क्या करेगा... अभी तक भारत बांग्लादेशी प्रवासियों को वापस नहीं भेज सकता था, लेकिन अब जब बांग्लादेश में बनने जा रही नई हुकूमत भारत के लिए बहुत मैत्रीपूर्ण नहीं होने जा रही है, ऐसे में अवैध प्रवासियों को भेजने की शुरुआत की जा सकती है।

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Dakhal News 7 August 2024


India is surrounded by its miserable neighbors

पलकी शर्मा  बांग्लादेश में अफरातफरी है। प्रधानमंत्री शेख हसीना देश छोड़कर भाग गई हैं। सड़कों पर अराजकता है। सैकड़ों लोग मारे गए हैं। बाकी दुनिया चुपचाप यह सब देख रही है, वहीं भारत इसके लिए खुद को तैयार कर रहा है, क्योंकि बांग्लादेश की घटनाओं का उस पर सीधा असर होगा। हसीना का जाना नई दिल्ली के लिए कई मायनों में झटका है। इसका यह मतलब भी है कि भारत ने पड़ोस में अपने इकलौते स्थिर साथी को अब खो दिया है। भारत के चारों ओर के नक्शे को देखें तो आप पाएंगे कि भूगोल ने हमें कितने बदहाल पड़ोसियों से नवाजा है। सबसे पहले तो हमारे पड़ोस में अफगानिस्तान है, जिस पर कट्टरपंथी तालिबान का राज है। भारत-विरोधी समूहों को समर्थन देने का उसका एक इतिहास रहा है। फिर, पाकिस्तान के क्या कहने, जो परमाणु हथियारों से लैस अफगानिस्तान जैसा ही है। यह मुल्क राजनीतिक अस्थिरता का पर्याय है। पाकिस्तान के एक भी वजीरे-आजम ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है। हमेशा वहां की फौज ने उनके कार्यकाल में खलल डाला है। दक्षिण में श्रीलंका और मालदीव हैं। श्रीलंका 2022 में दिवालिया हो गया था। वहां से सामने आई तस्वीरें आज के बांग्लादेश से काफी मिलती-जुलती थीं। वहां भी प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन पर धावा बोल दिया था और शासक को भागना पड़ा था। मालदीव एक समय भारत का सहयोगी हुआ करता था। लेकिन उनके नए राष्ट्रपति के सुर बदले हुए हैं। वे इंडिया-आउट का नारा बुलंद किए हुए हैं। फिर नेपाल की बात करें। उनके प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली हैं। लेकिन मेरा सुझाव है कि आप इसे कुछ-कुछ समय में जांचते रहें, क्योंकि वहां पर प्रधानमंत्री नियमित बदलते रहते हैं। नेपाल में गत 16 वर्षों में 14 सरकारें बदल चुकी हैं। हालात इतने बदहाल हैं कि वहां पर कुछ लोग राजशाही को फिर से बहाल करना चाहते हैं। उत्तर दिशा में ही थोड़ा आगे चीन है, जो विस्तारवादी, अलोकतांत्रिक और अपने आस-पड़ोस के देशों के साथ धौंस-डपट करने वाला देश है। वह भारत के भूखंडों पर अपनी मिल्कियत जताता रहता है। भूटान में घरेलू राजनीति स्थिर है, लेकिन वह चीन के साथ सीमा-समझौते पर हस्ताक्षर करना चाहता है, और यह भारत के लिए चिंता का बायस है। म्यांमार की भी बात कर लें, जहां सेना सत्ता में है। वहां के अधिकांश राजनेता सलाखों के पीछे हैं और वहां गृहयुद्ध चल रहा है। ले-देकर एक बांग्लादेश ही बचा था, जिस पर नई दिल्ली भरोसा कर सकती थी। लेकिन हसीना की विदाई के बाद अब आप ढाका से भी कोई उम्मीदें नहीं लगाइए। इस परिदृश्य पर विहंगम दृष्टि डालने पर आपको क्या मिलता है? एक बेहद अशांत पड़ोस, जो कट्टरपंथियों, सैन्य शासकों, दिवालिया अर्थव्यवस्थाओं और जलवायु-परिवर्तन के कारण डूबते देशों से भरा है। इन सबके बीच में भारत है, जो अंतिम व्यक्ति की तरह तनकर खड़ा है। यह भारत के भविष्य को कैसे प्रभावित करेगा? मोटे तौर पर, तीन तरीकों से। एक, नई दिल्ली को हर समय सतर्क रहना होगा। बांग्लादेश की सीमा को ही देखें। हिंसा की तमाम वारदातें बांग्लादेश के अंदर हो रही हैं, फिर भी भारतीय सीमा-बल सतर्क हैं। पाकिस्तान और चीन के साथ भी ऐसा ही है। भारत शांति कायम रखने के लिए इन देशों पर भरोसा नहीं कर सकता। जिसका मतलब है अधिक बलों की तैनाती, अधिक रक्षा खर्च और सरहद पर अधिक बुनियादी ढांचों का निर्माण। दूसरे, ये हालात चीन जैसे हमारे प्रतिद्वंद्वियों को आगे बढ़ने का मौका देते हैं। पैटर्न पर गौर करें। मालदीव की इंडिया-आउट नीति का किसने फायदा उठाया? चीन ने। श्रीलंका के दिवालियेपन से कौन फायदे में रहा? फिर से चीन। भूटान से सीमा विवाद सुलझाने के बारे में कौन बात कर रहा है? चीन। भारत अफगानिस्तान या म्यांमार जैसी अलोकतांत्रिक सरकारों के साथ काम नहीं करेगा, लेकिन बीजिंग को इससे ऐतराज नहीं है। नतीजा, चीन ने भारत के आस-पड़ोस में बढ़त हासिल कर ली है। हमारे इर्द-गिर्द मची यह उथलपुथल हमारे वैश्विक एजेंडे को भी बाधित करती है। हमने प्रधानमंत्री को इसके बारे में बात करते हुए सुना है। वे भारत को विश्व-बंधु, यानी दुनिया का मित्र बनाना चाहते हैं। लेकिन जैसा कि कहते हैं, अच्छी पहल हमेशा घर से शुरू होती है। जब आपका क्षेत्र ही आग की लपटों से घिरा हो तो आप दुनिया पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते। वैश्विक दृष्टिकोण के लिए आपको क्षेत्रीय स्थिरता की आवश्यकता होती है। हमारे पड़ोस में जो कुछ हो रहा है, वो सम्प्रभु राष्ट्रों की अंदरूनी समस्याएं हैं। क्या भारत फिर भी उनकी मदद कर सकता है? हां, कर सकता है। क्योंकि इस क्षेत्र में भारत का रसूख है। अगर आप चीन को अलग रख दें, तो हर दूसरे पड़ोसी के भारत के साथ ऐतिहासिक संबंध हैं। उनमें से कुछ तो भारत से टूटकर ही बने हैं। साथ ही, नई दिल्ली बदलाव लाने के लिए सबसे बेहतर जगह है। भारत की आबादी 1.4 अरब है। उसके पड़ोसियों की कुल आबादी 50 करोड़ है। अर्थव्यवस्था के साथ भी ऐसा ही है। भारत की जीडीपी तीन ट्रिलियन डॉलर है। बाकी सब मिलाकर लगभग एक ट्रिलियन हैं। ऐसे में भारत के सामने दो विकल्प हैं। या तो आस-पड़ोस की अराजकता को नजरअंदाज करे और अपनी विकास-यात्रा पर फोकस बनाए रखे। या, अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके चीजों को सही दिशा में लेकर जाए। पाकिस्तान के साथ इस तरह की मशक्कत बेकार है। लेकिन दूसरे देशों से फिर भी उम्मीद की जा सकती है। हम इस क्षेत्र में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सकते हैं... हमारे पड़ोस में जो कुछ हो रहा है, वो सम्प्रभु राष्ट्रों की अंदरूनी समस्याएं हैं। क्या भारत उनकी मदद कर सकता है? हां, कर सकता है। क्योंकि इस क्षेत्र में भारत का रसूख है। हर दूसरे पड़ोसी के भारत के साथ ऐतिहासिक संबंध हैं।

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Dakhal News 7 August 2024


Sociology of Constitution on the verge

अभय कुमार दुबे  दलितों और आदिवासियों के वर्गीकरण के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला समाज और राजनीति के संबंधों को भीतर से बाहर तक बदलने की तरफ ले जा सकता है। इसका असर एससी-एसटी तक ही सीमित नहीं रहेगा, ओबीसी पर भी इसका रूपांतरकारी असर पड़ेगा। अगले 10 से 15 साल के भीतर-भीतर देश की 60 से 70 प्रतिशत आबादी की राजनीतिक-सामाजिक पहचान पहले जैसी नहीं रह जाएगी। फैसले को गंभीर राजनीतिक-कानूनी रुकावटों का सामना भी करना पड़ सकता है। संविधान-निर्माताओं ने समाज की नक्शानवीसी करते हुए उसे दो (पिछड़े और अगड़े) हिस्सों में बांटा था। इसके बाद पिछड़े वर्ग की विशाल बहुसंख्यक श्रेणी का विभाजन तीन हिस्सों (एससी, एसटी, ओबीसी) में कर दिया गया। इसी मानचित्र के अनुसार हमारी चुनावी गोलबंदी की संरचना बनी। इसी के मुताबिक आरक्षण के जरिए यह तय होना शुरू हुआ कि राज्य के संसाधनों पर किसका कितना हक होगा। दूसरी तरफ इस संवैधानिक नक्शे में संशोधन की कोशिशें भी चलीं, पर इनमें से किसी को कानूनी दृष्टि से कामयाबी नहीं मिली। अब बिहार में कर्पूरी ठाकुर के जमाने वाले उस मुंगेरी लाल कमीशन की प्रासंगिकता नए सिरे से समझ में आ सकती है, जिसने ओबीसी में नए समतामूलक वर्गीकरण का प्रस्ताव किया था। इसी तरह से मंडल कमीशन की रपट के साथ नत्थी आरएल नाइक (कमीशन के एकमात्र दलित सदस्य) की उस असहमति पर निगाह डालने की जरूरत महसूस होगी, जिसमें ओबीसी को खेतिहर और कारीगर जातियों में बांटकर उसी के मुताबिक आरक्षण का प्रतिशत अलग-अलग तय करने का आग्रह किया गया था। मुंगेरी लाल और नाइक के प्रस्तावों के अलावा संभवत: हो सकता है कि यह फैसला काका कालेलकर कमीशन के सदस्य शिव दयाल सिंह चौरसिया द्वारा व्यक्त उस विस्तृत असहमति पर गौर करने की तरफ भी ले जाए, जिसमें आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के आग्रह की कड़ी आलोचना दर्ज है। यानी अब ईडब्ल्यूएस पर पुनर्विचार की गुंजाइश पैदा हो सकती है। सरकार द्वारा बनाए रोहिणी कमीशन के आंकड़े पहले ही ओबीसी के पुन: वर्गीकरण की जमीन तैयार करने का काम कर रहे हैं। ये नए संदर्भ में और प्रभावी लगेंगे। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की खास बात यह है कि उसने पंजाब समेत कुछ राज्य सरकारों द्वारा शुरू की गई उस प्रक्रिया पर कानूनी मुहर लगा दी है, जो एससी-एसटी श्रेणियों में वर्गीकरण की तरफ ले जाती है। अगर यह फैसला पहले आ गया होता तो बिहार में नीतीश कुमार द्वारा बनाई गई महादलित श्रेणी में पासवान, पासी, धोबी और रविदास जातियां (कुल दलित समाज का 69%) राजनीतिक दबाव डालकर न घुस पातीं। उस सूरत में बिहार का दलित आरक्षण दो हिस्सों में बंट गया होता। ज्यादा बड़ा हिस्सा उन 18 बिरादरियों को मिल रहा होता, जो संख्याबल में कमजोर और सामाजिक-शैक्षिक रूप से बहुत पीछे मानी जाती हैं। अगर यूपी सरकार चाहे तो बसपा के मुख्य जाटव जनाधार के आरक्षण पर दबदबे को घटाकर दूसरी लेकिन संख्याबल में कमजोर दलित जातियों को प्रमुखता दे सकती है। इस रोशनी में अदालती फैसले को लेकर चिराग पासवान और बसपा की बेचैनियों को आसानी से समझा जा सकता है। भाजपा के लिए इस फैसले ने कई तरह की अनिश्चितताएं पैदा कर दी हैं। एक तरफ वह अतिदलित और अतिपिछड़ा वर्ग को नए आश्वासन देकर एक बार फिर अपनी तरफ खींच सकती है, और दूसरी तरफ इसकी प्रतिक्रिया में ओबीसी श्रेणी की शक्तिशाली खेतिहर जातियां उसका साथ छोड़ सकती हैं। अगर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को दलित-आदिवासी और ओबीसी श्रेणियों में इस फैसले के मुताबिक उपश्रेणियां बनानी पड़ीं, तो उन्हें व्यवस्थित जातिगत जनगणना कराने की तरफ जाना ही होगा। एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला देकर जातिगत जनगणना की मांग पर अघोषित मुहर लगा दी है। संघ के सिद्धांतकारों के लिए यह पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है कि इस फैसले की रोशनी में हिंदू राजनीतिक एकता की नई परिभाषा क्या होगी। जातिगत जनगणना के सवाल पर भाजपा फूंक-फूंककर कदम उठा रही है। जहां मजबूरी होती है (जैसे बिहार), वहां वह इसका समर्थन करती है। उसे समाज को तोड़ने वाला भी करार देती है। लेकिन कांग्रेस खुलकर इसके पक्ष में है।

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Dakhal News 7 August 2024


friendship day

दिक्षिता मेहता दोस्ती का पैमाना किसी एक ख़ास दोस्त पर ही नहीं टिका होता, आप अपने हालात, व्यवहार और इच्छाओं के हिसाब से अलग-अलग लोगों में भी दोस्ती की ख़ूबियां तलाश सकते हैं।दोस्त यानी आपकी अपनी कहानी का साझेदार, जो हर मायने में आपको समझता हो, निखारता हो। ऐसे एक दोस्त की खोज किसे नहीं होती। पर अपने मन की हर इच्छा, हर उम्मीद का बोझ किसी एक पर लादने से अच्छा है आप अपनी खोज का तरीक़ा बदलें। किसी एक व्यक्ति नहीं, दोस्ती की ख़ूबियों की खोज में निकलें। थोड़े आप-से, थोड़े इतर मित्र/सखी का चुनाव करते वक़्त अक्सर हम समानताओं की तलाश करते हैं। हां, सोच-समझ और मन का मिलाप ज़रूरी तो है, पर उसके साथ ही सामने वाले में थोड़ी भिन्नता भी हो, ताकि आप एक-दूसरे के जीवन के अधूरे हिस्सों काे पूरा करते हुए, बेहतरी के साथ आगे बढ़ सकें। कहा भी जाता है कि दो विपरीत स्वभाव के लोगों में अच्छी साझेदारी देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए, यदि आप अंतर्मुखी हैं तो एक सामाजिक रूप से सक्रिय बातूनी और बहिर्मुखी व्यक्ति का साथ आपके जीवन के अनछुए पहलुओं को सामने लेकर आएगा। ऐसे ही एक सकारात्मक और एक आलोचनात्मक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति की जोड़ी भी बन सकती है। आपके प्रति सच्चा दोस्त सबसे ज़रूरी होकर भी बड़ी मुश्किलों के बाद मिलने वाला। एक ईमानदार और वफ़ादार दोस्त आपके जीवन की आधी समस्याएं यूं ही सुलझा देता है। इनके लिए आपकी भलाई से बढ़कर और कुछ भी नहीं, आपकी हां में हां मिलाना भी नहीं। ये आपके लिए आपसे लड़ने को भी तैयार हो जाते हैं। और कई मामलों में आपको आपसे भी बेहतर समझते हैं। फ़िक्रमंद और ज़िम्मेदार दोस्ती के नादान रिश्ते में ज़िम्मेदारी की थोड़ी-सी सूझ-बूझ और फ़िक्र आपकी व्यक्तिगत उन्नति में मदद करती है। अगर आपके पास एक ऐसा साथी है, जिसके साथ रहकर आप अपनी सभी चिंताओं से मुक्त रह सकते हैं तो उसे ज़रूर संभालकर रखें। ज़िंदगी से भरपूर काेई मेहनत का काम करना हो या शांति, सुकून के पल जीने हों- कुछ लोग हमेशा, हर बात को अपना सौ प्रतिशत देते हैं। ज़िंदगी को पूरी ज़िंदादिली के साथ जीने वाले ये साथी आपको छोटी-छोटी बातों में ख़ुश रहना सिखाते हैं। इनकी संगति से माहौल भी चहक उठता है। खुले विचारों वाला एक ऐसा दोस्त जिसकी सोच का दायरा आपकी सोच से अलग हो, खुला हो। केवल अच्छे-बुरे के तराज़ू में तोलने के बजाय जो आपको एक नए सिरे से हर बात समझने का मौक़ा दे। ऐसे व्यक्ति का साथ आपकी प्रगति में हमेशा सहायक रहेगा। जिससे ले सकें सलाह आपके क़रीबी दोस्त आपकी ख़ूबियों के साथ-साथ ख़ामियों से भी परिचित होते हैं। अक्सर वे आपके जीवन में निर्णायक या सलाहकार की भूमिका निभाते हैं। ऐसे दोस्त के रूप में एक अच्छा मार्गदर्शक मिलने से बड़ी बात और क्या हाे सकती है। एक हंसमुख दोस्त जिस तरह हर बात को मज़ाक़ में लेना ठीक नहीं, उसी तरह हर बात पर तनाव लेने और गंभीर होने की भी ज़रूरत नहीं होती। ऐसे में काम आते हैं कुछ चुलबुले, हंसमुख दोस्त। यदि आपको भी बात-बात में गंभीर होने की आदत है तो मज़ाकिया दोस्त खोज लीजिए। हर स्थिति में ख़ुश रहने वाले ऐसे लोगों के साथ मुश्किल वक़्त भी हंसते-हंसते कट जाता है। रोमांच से भरा साथी रोमांच के साथ जीने का अलग ही मज़ा है। यदि आप स्वभाव से संकोची क़िस्म के हैं तो आपके पास रोमांच से रूबरू कराने वाला एक साथी होना ही चाहिए। ये केवल एडवेंचर्स ही नहीं, आम जीवन में भी डर और सीमाओं का सामना करने में आपकी मदद करेगा। और आपको आपके कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकालकर मुश्किलों से हंसते-हंसाते पार लगा देगा।

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Dakhal News 5 August 2024


230 million women are circumcised worldwide

नोहा एल्हेन्नावी  संयुक्त राष्ट्र बाल एजेंसी द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, 230 मिलियन से अधिक महिलाओं और लड़कियों का जननांग विच्छेदन किया गया है, जिनमें से अधिकांश अफ्रीका में रहती हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर जारी की गई रिपोर्ट में यूनिसेफ ने अनुमान लगाया है कि पिछले आठ वर्षों में लगभग 30 मिलियन लोग इस प्रक्रिया से गुजर चुके हैं, जिसमें बाह्य जननांग को आंशिक या पूर्ण रूप से हटा दिया जाता है। यूनिसेफ ने कहा कि महिला जननांग विकृति से पीड़ित महिलाओं और लड़कियों का प्रतिशत घट रहा है, लेकिन उसने चेतावनी दी कि इस प्रथा को समाप्त करने के प्रयास बहुत धीमे हैं, जिससे तेजी से बढ़ती आबादी के साथ तालमेल नहीं बिठाया जा सकता। रिपोर्ट में कहा गया है, "महिला जननांग विकृति की प्रथा में कमी आ रही है, लेकिन यह कमी पर्याप्त तेजी से नहीं हो रही है। यह प्रथा, जिसे गलत तरीके से महिलाओं की कामुकता को नियंत्रित करने के लिए माना जाता है, गंभीर रक्तस्राव और यहां तक ​​कि मृत्यु का कारण बन सकती है। लड़कियों को बचपन से लेकर किशोरावस्था तक की उम्र में इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। लंबे समय तक, यह मूत्र पथ के संक्रमण, मासिक धर्म की समस्याओं, दर्द, यौन संतुष्टि में कमी और प्रसव संबंधी जटिलताओं के साथ-साथ अवसाद, कम आत्मसम्मान और अभिघातजन्य तनाव विकार का कारण बन सकता है यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल ने कहा, "हम यह चिंताजनक प्रवृत्ति भी देख रहे हैं कि अधिकाधिक लड़कियां कम उम्र में ही इस प्रथा का शिकार हो रही हैं, कई तो अपने पांचवें जन्मदिन से पहले ही। इससे हस्तक्षेप की गुंजाइश और कम हो जाती है।रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेले अफ्रीका में ही करीब 144 मिलियन महिलाओं और लड़कियों का खतना किया गया है, इसके बाद एशिया और मध्य पूर्व में क्रमशः 80 मिलियन और 6 मिलियन हैं। सोमालिया उन देशों की सूची में सबसे ऊपर है जहाँ यह प्रथा, जिसे महिला खतना के रूप में भी जाना जाता है, प्रचलित है, जहाँ 15 से 49 वर्ष की आयु की 99% महिला आबादी का खतना किया गया है। बुर्किना फासो ने सबसे महत्वपूर्ण प्रगति की, जहां तीन दशकों में 15 से 49 वर्ष की आयु के बीच खतना कराने वाली महिलाओं का अनुपात 80% से घटकर 30% हो गया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि प्रत्येक 10 में से 4 लोग उच्च जनसंख्या वृद्धि दर वाले संघर्षग्रस्त देशों में रहते हैं, तथा राजनीतिक अस्थिरता के कारण इस प्रथा को रोकने और पीड़ितों को सहायता प्रदान करने के प्रयास बाधित होते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, "संघर्ष प्रभावित देशों में महिला जननांग विच्छेदन से गुजरने वाली लड़कियों और महिलाओं की सबसे बड़ी संख्या इथियोपिया, नाइजीरिया और सूडान में है।" यद्यपि रिपोर्ट में कुछ देशों में हुई प्रगति की सराहना की गई है, तथापि इसमें चेतावनी दी गई है कि 2030 तक वैश्विक स्तर पर इस प्रथा को समाप्त करने के संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य को पूरा करने के लिए विश्व में अपेक्षित प्रगति नहीं हो पा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है, "कुछ देशों में, 2030 तक लक्ष्य तक पहुंचने के लिए इतिहास में देखी गई सर्वोत्तम प्रगति से 10 गुना अधिक प्रगति की आवश्यकता होगी।" महिला जननांग विकृति के खिलाफ लड़ने वाली ब्रिटेन स्थित चैरिटी संस्था फाइव फाउंडेशन के सीईओ निमको अली ने कहा कि यूनिसेफ के अनुमान "चौंकाने वाले" और "विनाशकारी" हैं तथा इस प्रथा को समाप्त करने के लिए और अधिक धनराशि की तत्काल आवश्यकता है। सोमालिया में जन्मी कार्यकर्ता, लेखिका और महिला जननांग विकृति से बचे व्यक्ति ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "हमें इस दशक के अंतिम छह वर्षों का उपयोग लड़कियों के मानवाधिकारों के इस घृणित दुरुपयोग से निपटने और अगली पीढ़ी को एफजीएम की भयावहता से बचाने के लिए करना चाहिए।"

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Dakhal News 1 August 2024


Education leads to moral high ideals

अरुण कुमार दीक्षित शिक्षा हमें प्रकाशवान बनाती है। हमारे अंतस में प्रज्ञा लाती है। हम संस्कारवान शिक्षा से सामाजिक बनते हैं। प्रज्ञावान व्यक्ति सुंदर समाज का निर्माण करते हैं। शिक्षा सदाचारी व शीलवान बनाती है। शिक्षा हमें सत्य और सन्मार्ग पर ले जाती है। शिक्षा के ज्ञान से हम अनेक समाज और राष्ट्रों के विषय में अध्ययन कर पाते हैं । संस्कृतियों, सभ्यताओं को जानने-समझने का माध्यम शिक्षा ही है। हमारे अंतस में तरह-तरह की शक्तियों के प्रकट होने में शिक्षा ही हमारी सहायक होती है। शिक्षा हमें नैतिक और उच्च आदर्शों की ओर ले जाती है। भारत में शिक्षा के पूर्व विद्या शब्द है। विद्या को ज्ञान कहते हैं । ज्ञान को प्रकाश रूप में हम सब जानते हैं । पश्चिमी देश प्रकाश को लाइट कहते हैं। हम भारत में किसी ज्ञानवान व्यक्ति को विद्वान, प्रज्ञावान, विद्यावान कहते हैं। अब तक जो व्यक्त किया जा रहा है, जो व्यक्त हो चुका है, वह किसी अन्य के भीतर घटित हुआ है ,उसकी प्रतीति और अनुभव उसके हैं। दूसरा नहीं जान सकता है जो किसी ने जाना- समझा। जिसके अंतस में ऋषित्व घटित हुआ, वही उसका अधिकारी है । दृष्टा है। उसके अनुभव और जानकारी उसी की है। पढ़ने वाले ,विद्या ग्रहण करने वाले उपासक-आराधक की नहीं है। उसका बताया हुआ हम उसे दोहरा सकते हैं। समाज, व्यक्ति, राष्ट्र के लिए उसका उपयोग कर सकते हैं, पर जो किसी द्रष्टा ने जाना, वह उसके द्वारा उसके सूत्रों से ही प्रकट होता है। हम सब लगातार प्रयास करते हैं, कि विद्यावान बनें। समाज के लिए उपयोगी बनें, मगर दूसरे के अनुभव हमें प्राय: कठिनाई में डालते हैं । वह उधार के होते हैं। व्यक्ति किसी विशेष शिक्षा के अध्ययन के लिए जाता है, उसे स्मृति में लेकर लगातार प्रयास करता है। वह सफल या असफल होता है । वह किसी बड़ी-छोटी नौकरी में जाता है, मगर वह शिक्षित होकर भी सबके काम नहीं आता है। वह व्यक्तिगत ही रह जाता है। समाज राष्ट्र के निमित्त की बात नहीं करता, जबकि विद्यावान होने का मतलब सर्वजन हिताय होना चाहिए। प्राचीन यूनानी दार्शनिक प्लेटो को व्यापक रूप से पश्चिमी शिक्षा का जनक माना जाता है। अंग्रेजी में शिक्षा को एजुकेशन कहा जाता है। एजुकेशन शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के एजुकेटम शब्द से मानी जाती है, जिसका अर्थ बताया गया है कि आंतरिक को बाहर लाना। आखिर सनातन धर्म में कैसे खोजें कि भारत में प्रज्ञावान , मेधावान बनाने का आरंभ कब हुआ। भारत हमेशा से है। आदि-अनादि है। यहां विद्या का नाम धर्म भी है। अध्यापन भी है। जो विद्या धर्म के मार्ग पर नहीं ले जाती है, वह विद्या नहीं है। कुमार्ग है। शिक्षा का अर्थ है सीखना और जानना। जाने हुए को अन्य को बताना। अब विद्या और शिक्षा को एक समझना और भी लगता है कि द्वंद्व भरा है। हम देख रहे हैं कि लगातार व्यापार या नौकरी के लिए कई दशक से कौशल शब्द का प्रयोग किया जा रहा है। सरकारें कौशल मिशन पर जोर दे रही हैं। विद्यावान व्यक्ति को भारत में बगैर नौकरी चाकरी ही बड़ा माना जाता है। अनेक विद्यावान ऋतम्भरा वाले महापुरुषों की जन्म तिथि नहीं है। सर्टिफिकेट नहीं है। तो भी वे स्मरणीय हैं। उपासना के सुयोग्य हैं। भारत में सुबह हनुमान चालीसा पाठ अनेक परिवारों में किया जाता है । हनुमान चालीसा में हनुमान को विद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर वर्णित है। अब हनुमान जी अपने निजी काम से नहीं है। राम काज में हैं। लोक मंगल में हैं। इसका सीधा अर्थ है कि विद्या हम सबको भव्य और दिव्य बनाती रही है। वह राष्ट्रोन्मुखी है। विद्या दूसरे के जैसा नहीं। प्रत्येक को अपने जैसा निर्मित करती है। महाभारत युद्ध में जब अर्जुन विचलित होकर कहते हैं कि हम युद्ध नहीं करेंगे। हे, केशव आप हमें प्रकाशित करें । यहां पर प्रकाशित अर्थात हमें मार्ग बताएं । ज्ञान और सद्बुुद्धि से भर दें। विद्यावान बनाने की कार्रवाई करें। तब श्री कृष्ण विराट रूप का दर्शन अर्जुन को कराते हैं। सरस्वती विद्या और बुद्धि की देवी हैं। वे हंस पर विराजमान हैं। उन्हें भारतीय वाग्देवी, महाश्वेता, वीणापाणि ज्ञानदा नामों से जाना और आराधन किया जाता है । कवि साहित्यकार, पत्रकार, लेखक सरस्वती की उपासना वंदना अपने गद्य-पद्य की रचना के पूर्व करते हैं। वैदिक साहित्य में विद्या के दो रूप बताए गए हैं। पहली है अपरा विद्या जिसे निम्न श्रेणी में रखा गया है। दूसरी है पराविद्या इसी को आत्म विद्या या ब्रह्म विद्या भी कहा जाता है । दयानंद सरस्वती के अनुसार जिस पदार्थ के यथार्थ रूप का ज्ञान हो, उसे विद्या कहते हैं। शिक्षा की समस्या पुस्तक में पृष्ठ 57 में, महात्मा गांधी एक विद्यार्थी के प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि आज हम गुलाम हैं, जिन्होंने हमको पराधीन कर रखा है, उनके फायदे की दृष्टि से हमारी पढ़ाई का कार्यक्रम रखा गया है। हमारे शासकों ने आजकल की शिक्षा के सिलसिले में अनेक प्रलोभन पैदा कर रखे हैं। इसमें संदेह नहीं कि आज के सरकारी शिक्षण में भी कुछ अच्छाई है तो भी सब मिलकर हम चाहें या न चाहें ,उसका उपयोग अनिष्टकारी हो जाता है। धन और पद के लोभ में गुलामी प्यारी लगने लगती है। सा विद्या या विमुक्तये। विद्या वही है जो मुक्त करें । मुक्ति से मतलब इस जीवन में सब तरह की गुलामी से छुटकारा पाना । गांधी ने यह हरिजन सेवक में 1946 में लिखा है। गांधी भी विद्या को मुक्ति का मार्ग बता रहे हैं । आज की शिक्षा हमें मुक्त नहीं करती। वह नौकरी, धन, शासन करने की ओर ले जाती है। राधाकृष्णन ने शिक्षा का केंद्र विद्यार्थी को माना है। विद्यार्थी में नैतिक, बौद्धिक आध्यात्मिक, सामाजिक आर्थिक व्यावसायिक मूल्यों का संरक्षण करने का प्रयास करना चाहिए । वह कहते हैं प्रेम एवं मानवता का समन्वय होना चाहिए। उनका मानना था कि सही शिक्षा से समाज की अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि दुनिया के इतिहास को देखेंगे तो पाएंगे कि सभ्यता का निर्माण महान ऋषियों- वैज्ञानिकों के हाथों हुआ है । जो स्वयं विचार करने की सामर्थ्य रखते हैं।ज्ञान हमें शक्ति देता है। प्रेम पूर्णता देता है। वे कहते हैं शिक्षा में न केवल बुद्धि का प्रशिक्षण शामिल होना चाहिए बल्कि हृदय का परिष्कार और आत्मानुशासन भी होना चाहिए। वर्तमान में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र की एनडीए सरकार ने 29 जुलाई 2020 को नई शिक्षा नीति बनाई थी। भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्कूलों से लेकर कॉलेज तक भारतीय शिक्षा प्रणाली में आधुनिक सुधार लाने के उद्देश्यों के आलोक में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की स्वीकृति दी थी। साथ ही सरकार ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम भी बदलकर शिक्षा मंत्रालय करने की मंजूरी दी थी। सरकार का कहना था कि पूर्व की शिक्षा नीति में कई खामियां थीं। नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में पढ़ाई पर जोर दिया जा रहा है। नई शिक्षा नीति यह मानती है कि बच्चे मूल भाषा को तेजी से समझते हैं। पूर्व में एक समान प्रणाली नहीं थी । उसे अब समाप्त किया गया है। सरकार का दावा है कि नई व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता है और देश में शिक्षा प्रणाली की एक ही एजेंसी काम करेगी। इसरो के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में विशेषज्ञों के एक समूह ने भारतीय शिक्षा प्रणाली की कठिनाइयों को देखते हुए यह प्रस्ताव किया था। बाद में मंत्रालय ने मंजूरी दी थी। नई शिक्षा नीति में छात्रों के समग्र विकास के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने के साथ उन्हें 21वी सदी के कौशल से लैस किया जाना है। आलोचनात्मक सोच पर जोर देना है। सरकार ने इस बात की चिंता की है कि पिछले कुछ वर्षों में बहुत कम छात्रों ने उच्च शिक्षा का विकल्प चुना। सरकार की नई शिक्षा नीति से शिक्षाविद् और प्रबुद्ध जन आशान्वित हैं कि इससे पूरी शिक्षा प्रणाली के दूरदर्शी परिणाम होंगे।

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Dakhal News 30 July 2024


The growing gap between rich and poor

डॉ. सत्यवान सौरभ भारत में असमानता, संपन्नता और निर्धनता के बीच के द्वंद्व से परे है, क्योंकि जाति आधारित असमानताएं देश के सामाजिक-आर्थिक ढांचे की परिभाषित विशेषताओं में से एक हैं। वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब के एक हालिया वर्किंग पेपर ने अमीर और गरीब के बीच की खाई को चौड़ा किया है। जाति आधारित असमानताएं देश के सामाजिक आर्थिक ढांचे की परिभाषित विशेषताओं में से हैं। आर्थिक असमानता का आकलन करने के लिए गिनी गुणांक और प्रतिशत अनुपात महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में काम करते हैं। यह लोरेंज कर्व से लिया गया है। इसका उपयोग किसी देश में आर्थिक विकास के संकेतक के रूप में किया जा सकता है। गिनी गुणांक किसी आबादी में आय समानता की डिग्री को मापता है। गिनी गुणांक 0 (पूर्ण समानता) से 1 (पूर्ण असमानता) तक भिन्न हो सकता है। शून्य का गिनी गुणांक का मतलब है कि सभी की आय समान है, जबकि 1 का गुणांक एक व्यक्ति को सभी आय प्राप्त करने का प्रतिनिधित्व करता है। समग्र रूप से और अनुसूचित जनजाति (एसटी), अनुसूचित जाति (एससी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और सामान्य श्रेणी जैसे सामाजिक समूहों के भीतर उपभोग असमानता में परिवर्तन। 2022-23 में, जबकि एसटी की आबादी 9 प्रतिशत थी, उनकी खपत हिस्सेदारी केवल 7 प्रतिशत थी। अनुसूचित जाति की आबादी 20 प्रतिशत थी और उनकी खपत में हिस्सेदारी 16 प्रतिशत थी। ओबीसी (आबादी का 43 प्रतिशत) की खपत में हिस्सेदारी 41 प्रतिशत थी। आबादी का 28 प्रतिशत हिस्सा होने के बावजूद, सामान्य वर्ग ने 36 प्रतिशत की उल्लेखनीय रूप से उच्च खपत हिस्सेदारी हासिल की। ये निष्कर्ष विभिन्न सामाजिक समूहों में खपत के वितरण में लगातार असमानताओं को रेखांकित करते हैं। एससी और एसटी लगातार सामान्य और ओबीसी श्रेणियों के लोगों से पीछे हैं। समग्र गिनी गुणांक 2017-18 में 0.359 से घटकर 2022-23 में 0.309 हो गया, जो इस अवधि के दौरान कुल आय असमानता में 050 की कमी दर्शाता है। एसटी श्रेणी में गिनी गुणांक 322 से घटकर 0.268 हो गया, जो 0.054 अंकों की गिरावट है। यह इस समुदाय के भीतर खपत के समान वितरण में सुधार का संकेत देता है। एससी श्रेणी में 312 से घटकर 0.273 हो गया। ओबीसी श्रेणी में गिनी गुणांक में 336 से 0.288 तक की गिरावट देखी गई, जो 0.048 अंकों की कमी है। सामान्य श्रेणी में सबसे अधिक कमी देखी गई, जो 379 से 0.306 तक थी, जो 0.073 अंकों की गिरावट के बराबर थी। यह कमी सामाजिक गतिशीलता और प्रभावी नीति हस्तक्षेपों सहित विभिन्न सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों का संकेत हो सकती है। यह भारत के सामाजिक समूहों के बीच अंतर्निहित आर्थिक असमानताओं को प्रकट करता है। एसटी और एससी समुदाय सबसे स्पष्ट विसंगतियों को सहन करते हैं। एसटी, एससी और ओबीसी समूहों के लिए, 2017-18 से 2022-23 तक उपभोग के स्तर में कमी आई है, जो निचले 20 प्रतिशत दशमलव के लिए मामूली है। सामान्य श्रेणी के लिए, उपभोग के स्तर में कमी अधिक स्पष्ट है जो सामान्य आबादी के सबसे गरीब तबके के बीच उपभोग में सापेक्ष गिरावट को दर्शाती है। शीर्ष 20 प्रतिशत दशमलव में सभी सामाजिक समूहों के लिए उपभोग में थोड़ी वृद्धि हुई है। सामान्य श्रेणी में विश्लेषण के तहत दो अवधि के बीच 10 प्रतिशत अंकों की महत्वपूर्ण वृद्धि का अनुभव होता है। सामान्य वर्ग के सबसे धनी वर्ग में यह असमान वृद्धि उच्च जातियों के बीच धन के संभावित संकेन्द्रण को दर्शाती है। सामान्य वर्ग और अन्य सामाजिक समूहों के बीच असमानता महत्वपूर्ण बनी हुई है, जो उपभोग पैटर्न में लगातार विसंगतियों को रेखांकित करती है। भारत ने बहुआयामी गरीबी से लाखों लोगों को बाहर निकालने में उल्लेखनीय प्रगति की है, फिर भी विभिन्न जाति समूहों के बीच असमानता बनी हुई है। संविधान द्वारा जाति भेदभाव को समाप्त करने और सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रमों की शुरूआत के बावजूद, जाति की छाया आर्थिक वास्तविकताओं को आकार देना जारी रखती है। केंद्र ने इन असमानताओं को कम करने के लिए आरक्षण, ग्रामीण विकास पहल और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण सहित कई नीतियां बनाई हैं। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों के बीच उपभोग पैटर्न में असमानताएं आय, संसाधनों तक पहुंच या क्रय शक्ति में संभावित असमानताओं को दर्शाती हैं। प्रयासों को निचले तबके के लोगों, विशेष रूप से एसटी और एससी समुदायों के बीच आय सृजन और उपभोग क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। समाज में सामाजिक सद्भाव और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए यह आवश्यक है। अधिक आर्थिक समानता की दिशा में निरंतर प्रगति सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न समूहों द्वारा सामना की जाने वाली विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों को संबोधित करने वाले रुझानों और लक्षित हस्तक्षेपों की निरंतर निगरानी आवश्यक है। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों के बीच उपभोग पैटर्न में असमानताएं आय, संसाधनों तक पहुंच या क्रय शक्ति में संभावित असमानताओं को दर्शाती हैं। निम्न आय वर्ग, खास तौर पर अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति समुदायों के बीच आय सृजन और उपभोग क्षमता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। यह समाज में सामाजिक सद्भाव और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए भी आवश्यक है। अधिक आर्थिक समानता की दिशा में सतत प्रगति सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न समूहों के सामने आने वाली विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए प्रवृत्तियों की निरंतर निगरानी और लक्षित हस्तक्षेप आवश्यक है। (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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Dakhal News 30 July 2024


Attempt to divide the country

राजदीप सरदेसाई पिछले कई सालों से मैं ‘इलेक्शन ऑन माय प्लेट’ नामक एक टीवी शो कर रहा हूं, जो दर्शकों को चुनाव-अभियान के बारे में बताता है और खाने-पीने की चीजें उनका अतिरिक्त आकर्षण होती हैं। दरअसल, इस शो का ‘स्टार’ खाना ही है, क्योंकि दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है, जो भारत की खाद्य-विविधता की बराबरी कर सके। ऐसे में यूपी और उत्तराखंड पुलिस द्वारा कांवड़ यात्रा के दौरान भोजन की ‘पुलिसिंग’ का सहारा लेना भारतीय होने के मूल अर्थ पर ही प्रहार करना था।आखिर भारत के अलावा और कहां ऐसा हो सकता है कि मदुरै के प्रतिष्ठित मीनाक्षीपुरम् मंदिर के पास अम्माज़ किचन नामक एक अद्भुत रेस्तरां आपको मिले, जो बेहतरीन चेट्टीनाड मांसाहारी भोजन परोसता हो? पुराने जयपुर में एक मुस्लिम परिवार द्वारा पीढ़ियों से चलाया जा रहा तीन मंजिला रेस्तरां आपको और कहां मिलेगा, जो स्वादिष्ट मुगलई भोजन परोसता हो और जो एक ‘शुद्ध’ शाकाहारी भोजनालय के ठीक बगल में स्थित हो? पुणे-सोलापुर राजमार्ग पर आपको जय तुलजा भवानी नामक एक ढाबा और कहां मिलेगा, जहां स्वादिष्ट मटन पकता हो? और भारत के अलावा आपको विजयवाड़ा के केंद्र में एक ऐसी फूड स्ट्रीट और कहां मिलेगी, जहां आधा दर्जन प्रकार की आंध्र बिरयानी इडली-डोसे के साथ ही बेची जाती हो? शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व हमेशा से इस देश की भोजन-कला का सूत्र रहा है। यहां किसी रेस्तरां का मूल्यांकन उसके मालिक के नाम नहीं बल्कि खाने की गुणवत्ता से होता है। ऐसे में यूपी सरकार द्वारा पुलिस को यह ‘निर्देश’ देना कि वह सुनिश्चित करे कि हर स्ट्रीट वेंडर या सड़क किनारे के रेस्तरां पर मालिक के नाम की तख्ती लगी हो, जानबूझकर समाज में विभाजन के बीज बोना था। सरकार का यह दावा अनुचित था कि यह आदेश केवल यह सुनिश्चित करने के लिए था कि यात्रा मार्ग पर कानून-व्यवस्था की कोई गड़बड़ी न हो। पिछले कुछ वर्षों में यात्रियों की खान-पान की आदतों को लेकर कांवड़ यात्रा में कोई विवाद होने का शायद ही कोई सबूत मिला हो। उलटे, सरकार की भेदभावपूर्ण फूड-राजनीति परेशानी का सबब बन सकती थी। नेम-प्लेट लगाने का आदेश वास्तव में सामाजिक अलगाव को दर्शाने वाला था, जो यात्रा मार्ग पर आने वाले लोगों को मुस्लिम स्वामित्व वाले प्रतिष्ठानों के साथ किसी भी तरह के संपर्क से बचने के लिए प्रोत्साहित करता था। भला ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को अपने यहां आकर्षित करने की इच्छा रखने वाला कौन-सा स्टॉल मालिक ऐसा होगा, जो कांवड़ यात्रियों को ऐसा खाना परोसेगा, जो उनकी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ हो? यहां पर इस्लामी नियमों के अनुरूप बनाए गए ‘हलाल’ प्रमाणित उत्पादों का हवाला देना भी गलत है। क्योंकि कोई भी किसी को भोजनालय के बोर्ड पर ‘शुद्ध’ शाकाहारी लिखने से नहीं रोकता है। लेकिन किसी विशेष आहार के अनुरूप भोजन को प्रचारित करना धर्म के आधार पर दुकान-मालिक को अलग-थलग करने की कोशिशों से बहुत अलग है। मानो इतना ही काफी नहीं था तो मुस्लिम स्वामित्व वाली दुकानों को ‘अशुद्ध’ और ‘अस्वच्छ’ बताने वाला सोशल मीडिया अभियान भी चल पड़ा। यह एक सांप्रदायिक झूठ है। देश में स्वादिष्ट स्ट्रीट फूड की खोज करते हुए स्वच्छता अक्सर ही चिंता का विषय रहती है, लेकिन यह कभी समुदाय-विशिष्ट नहीं होती। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि खानपान की चीजों के गुणवत्ता-मानकों को बनाए रखा जाए; यह नहीं कि किसी खाने की जगह की स्वच्छता को उसके मालिक की धार्मिक पहचान से आंका जाए। कोरोना की पहली लहर के दौरान भी तबलीगी जमात के हवाले से यह दुष्प्रचार फैलाया गया था कि मुसलमान कोरोना फैलाते हैं। इसके परिणामस्वरूप कई मुस्लिम सब्जी-विक्रेताओं को बहिष्कार का सामना करना पड़ा था। मालूम होता है कांवड़ यात्रा की ‘पवित्रता’ की बात करके योगी सरकार ने कोर-वोटरों के बीच अपनी हिंदुत्ववादी साख को फिर से मजबूत करना चाहा था। लेकिन बहुसंख्यक पहचान की राजनीति अब चुनावी सफलता का गारंटीकृत नुस्खा नहीं रह गई है। 2024 के चुनावों में, भाजपा को यूपी में दलित-मुस्लिम-यादव-ओबीसी वोटों के एकीकरण का सामना करना पड़ा था, क्योंकि पार्टी जमीन पर समावेशी-एजेंडे को आगे बढ़ाने में विफल रही थी। जातिगत विभाजक-रेखाएं भी फिर से उभर रही हैं। अगर आज मुस्लिम दुकानदारों की आजीविका दांव पर है, तो कौन कह सकता है कि कल दलित या निम्न ओबीसी समुदाय निशाने पर नहीं होंगे? देश में स्ट्रीट फूड की खोज करते हुए स्वच्छता अक्सर ही चिंता का विषय रहती है, लेकिन यह कभी समुदाय-विशिष्ट नहीं होती। खाने की दुकान की स्वच्छता को उसके मालिक की धार्मिक पहचान से नहीं आंक सकते।

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Dakhal News 27 July 2024


Guru-shishya tradition different

देवदत्त पट्टनायक हम गुरु-शिष्य परंपरा को जानेंगे और समझेंगे कि विश्व की अन्य शिक्षण प्रणालियों से हमारी यह परंपरा कैसे अलग है। बौद्ध धर्म के उभरने के पश्चात प्रवचन व्यापक होने लगे। इनमें ऋषि बहुधा उद्यान में पेड़ के नीचे बैठकर हज़ारों छात्रों को अपना ज्ञान बांटते थे। उससे पहले, उपनिषदों के अनुसार ऋषि और राजा, पति-पत्नी तथा देवता और मनुष्य आपस में वार्तालाप करते थे। और उससे भी पहले ‘ब्राह्मण’ और ‘आरण्यक’ वैदिक ग्रंथों के अनुसार लोग क्रमशः अनुष्ठान करने में व्यस्त रहते थे या वन में एकांत में समय बिताते थे। यह करते हुए वे इन अनुष्ठानों में किए गए उच्चार और अर्पण पर चिंतन करते थे।इस बीच, रामायण और महाभारत के अनुसार छात्र गुरुकुलों में शिक्षा प्राप्त करने लगे। गुरुकुल की आधुनिक समझ यह है कि गुरु पेड़ के नीचे बैठकर अपने चारों ओर बैठे छात्रों को प्रवचन देते थे, मानो आज के क्लासरूम जैसे। और यही कारण है जो हम गुरु-शिष्य परंपरा को समझने में भूल कर देते हैं।आधुनिक शिक्षा प्रणाली और प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा में मुख्य अंतर ज्ञान के उद्देश्य को लेकर है। हालांकि सभी को जानकारी एक जैसी मिलती है, लेकिन हर कोई उसे अलग तरह से समझकर ज्ञान भी अलग प्राप्त करता है। समझने के लिए आवश्यक है कि हम दूसरों से मिली जानकारी का विश्लेषण कर उसे पहले से प्राप्त ज्ञान के संदर्भ में समझें। सीखना और ज्ञान प्राप्त करना अत्यधिक जटिल प्रक्रियाएं हैं। प्राचीन भारतीय इसके बारे में अवगत थे।यूरोपीय शिक्षण प्रणालियों की जड़ें तर्क-वितर्क की धारणाओं में थीं। ये धारणाएं यूनान और रोम से आईं। प्राचीन काल के दार्शनिक आपस में तर्क करते थे। फिर या तो एक दार्शनिक की जीत से या सर्वसम्मति से सच स्थापित होता था। यह सच छात्र कक्षाओं में बहुधा रटकर सीखते थे। हालाँकि वे सच को चुनौती दे सकते थे, लेकिन अंतत: उन्हें उसे स्वीकारना ही पड़ता था। आधुनिक शिक्षण प्रणाली भी कुछ इसी तरह की है। छात्रों की परीक्षा लेकर उनकी समझ और उनका विकास परखा जाता है।यूरोपीय शिक्षण का मॉडन मिशनरी स्कूलों तथा उपनिवेशवाद के कारण और पूर्वी-एशियाई शिक्षण का मॉडल ब्रूस ली और जैकी चैन की तथा अन्य चीनी फ़िल्मों के कारण प्रसिद्ध हुआ। इसलिए हम गुरु-शिष्य परंपरा का शिक्षण के यूरोपीय मॉडलों के साथ आंकने का और उसे कुछ हद तक पूर्वी-एशियाई शिक्षण प्रणालियों से भी जोड़ने का प्रयास करते हैं। और यही कारण है कि हम उसे अच्छे से समझ नहीं पाते हैं।भारतभर में मैकेनिक की दुकानों और ढाबों के मालिक युवकों को अपनी निगरानी के नीचे काम पर लगाते हैं। इस उस्ताद-चेला मॉडल को समझकर हम गुरु-शिष्य परंपरा को अच्छे से समझ सकते हैं। उस्ताद सिखाने का कोई सीधा प्रयास नहीं करता है। अपना काम करते-करते वह बातें करता है, टिप्पणी देता है और चेला उसे देख-सुनकर सीखता है।यहां चेले में सीखने की भूख होनी आवश्यक है। जब वह पर्याप्त रूप से सीख लेता है, तो वह बहुधा स्वयं का उद्यम शुरू करता है। उस्ताद-चेले का यह मॉडल अनौपचारिक और असंगठित रूप से चलता है। उसके उद्देश्य भी बहुधा अस्पष्ट होते हैं: क्या चेले को रोज़गार दिया जा रहा है? क्या वह कुछ सीख रहा है? या उसका शोषण हो रहा है? संभवतः कुछ लोगों को इस बात से विस्मय हो सकता है कि उन्नत गुरु-शिष्य परंपरा को सड़क के उस्ताद-चेला नातों से जोड़ा जा रहा है। लेकिन हमें ध्यान में रखना आवश्यक है कि अतीत कई गुरुओं का व्यवहार दमनकारी कहा जा सकता है। कहानियों में कुछ उदाहरण भी हैं। जैसे, ऋषि धौम्य के तीन छात्र थे। पहले छात्र आरुणि ने अपने गुरु के खेत की टूटी मेड़ से बहते पानी को रोकने के लिए अपने शरीर की ही ओट लगा दी थी। दूसरा शिष्य उपमन्यु था। वह अपने गुरु की गायें चराता था, लेकिन उसे उन गायों का दूध पीना मना था। इसलिए उसे विषैले पत्ते खाने पड़े और कुछ समय के लिए उसकी दृष्टि भी चली गई। गुरु ने अपने तीसरे शिष्य वेद से उसके बुढ़ापे तक अपनी सेवा करवाई।  

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Dakhal News 27 July 2024


25 years of Kargil victory

लेखक: अनुराग आनंद तारीख- 17 मई 1999। जगह- रावलपिंडी में ISI के ओझिरी कैंप का एक सीक्रेट मीटिंग रूम। बैठक में पाकिस्तान के उस वक्त के PM नवाज शरीफ, सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ समेत डिफेंस के टॉप ऑफिसर्स और विदेश मंत्री मौजूद थे।जनरल तौकीर जिया ने PM के सामने प्रेजेंटेशन देना शुरू किया। नक्शे में कुछ पॉइंट दिखाए गए और बताया कि पाकिस्तानी सेना ने भारत की इन चौकियों पर कब्जा कर लिया है। अब निशाने पर भारत का नेशनल हाईवे-1 है। ये प्रेजेंटेशन ऑपरेशन कोह-ए-पैमा का था, जिसे पाकिस्तानी सेना ने कारगिल घुसपैठ और कश्मीर को हथियाने के लिए बनाया था।जनरल मुशर्रफ ने PM को बताया कि ये ऑपरेशन 5 फेज का है। पहले फेज को पूरा कर लिया गया है और सेना कामयाबी के बेहद करीब है। अब वापसी संभव नहीं है। PM नवाज कुछ पूछते, इससे पहले ही चीफ ऑफ स्टाफ जनरल अजीज ने कहा- 'सर, अब कुछ मत सोचिए। बस आप इसकी इजाजत दीजिए। पाकिस्तान के इतिहास में आपका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। आप 'कश्मीर के मुक्तिदाता' कहलाएंगे।'विदेश मंत्री सरताज अजीज ने आगाह करते हुए कहा कि यह भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी से किए वादे के खिलाफ होगा। नवाज बोले- हम कब तक कागजी कार्रवाई के जरिए कश्मीर को आजाद कराने की कोशिश करेंगे। अब मौका मिला है तो क्यों ना इसका फायदा उठाया जाए।इसके बाद PM नवाज ने ऑपरेशन कोह-ए-पैमा को हरी झंडी दे दी। पाकिस्तानी पत्रकार नसीम जेहरा अपनी किताब 'फ्राम कारगिल टु द कू' में इस पूरी घटना का जिक्र किया है। कारगिल विजय के 25 साल पूरे होने पर जानेंगे जंग का पाकिस्तानी साइड। पाक सेना के गैंग ऑफ फोर ने कैसे बनाया था कारगिल घुसपैठ का प्लान और ऑपरेशन विजय ने उसे कैसे नाकाम किया…1987 में लिखी गई स्क्रिप्ट: जब सियाचिन की चोटी पर चढ़ बैठी भारतीय सेना 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हूण के नेतृत्व में कुमाऊं रेजिमेंट की एक पूरी बटालियन सियाचिन की चोटी पर चढ़ बैठी। इसे ऑपरेशन मेघदूत नाम दिया गया। पाकिस्तान में इस वक्त जनरल जियाउल हक की तानाशाही थी। सियाचिन पर भारतीय सेना की जीत से झल्लाए जनरल जियाउल हक ने पाकिस्तानी सेना को सियाचिन पर हमले के आदेश दिए।1986 में पाकिस्तानी सेना के स्पेशल सर्विस ग्रुप ने सियाचिन के पश्चिम में एक चोटी पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तानी सेना ने कायद-ए-आजम मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर इस पोस्ट का नाम रखा कायद। अगले ही साल भारतीय सेना ने कैप्टन बाना सिंह के नेतृत्व में इस पोस्ट पर कब्जा कर लिया और इसका नाम दिया बाना पोस्ट। सियाचिन और बाना टॉप पर हुई जंग के बाद भारत और पाकिस्तान में सियासी समझौते होते रहे, लेकिन पाकिस्तान के ब्रिगेडियर परवेज मुशर्रफ इस हार को पचा नहीं पाए।1987 में जियाउल हक ने परवेज को स्पेशल सर्विस ग्रुप का कमांडर बनाकर सियाचिन भेजा। वहां से लौटकर परवेज मुशर्रफ ने कारगिल और सियाचिन पर कब्जे के लिए जियाउल हक को एक डिटेल प्लान दिया। हालांकि, जियाउल हक तब इसके लिए तैयार नहीं हुए। 1998 में सेना प्रमुख बने जनरल मुशर्रफ: ISI ने कारगिल पर कब्जे के प्लान को स्ट्रैटिजिकली फेल बताया 1998 में पाकिस्तान के PM नवाज शरीफ ने दो सीनियर आर्मी जनरल को पीछे छोड़ जनरल परवेज मुशर्रफ को आर्मी चीफ बनाने का फैसला किया। मुशर्रफ सियाचिन में मिली हार को भूले नहीं थे। मौका मिलते ही उन्होंने दोबारा सियाचिन पर कब्जे के पुराने प्लान पर काम करना शुरू कर दिया। नसीम जेहरा अपनी किताब ‘फ्रॉम कारगिल टु द कू: इवेंट्स दैट शूक पाकिस्तान’ के पेज 45 पर लिखती हैं कि मुशर्रफ के सेना प्रमुख बनने से पहले ही पाकिस्तानी सेना ने कारगिल पर कब्जे के इस प्लान को प्लानिंग डायरेक्टरेट के पास भेजा था। इसके बाद ये प्लान रिव्यू के लिए डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन और फिर ISI के पास भेजा गया। ISI ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि टैक्टिकली ये अच्छा प्लान है। इसके जरिए हम कारगिल पर कब्जा तो कर लेंगे, लेकिन स्ट्रैटिजिकली ये नाकाम प्लान है, क्योंकि इस कब्जे को लंबे समय तक बरकरार रखना मुमकिन नहीं होगा। ISI की यह रिपोर्ट उन्हीं के एक बड़े अधिकारी जनरल अजीज खान को पसंद नहीं आई। दरअसल, 1998 की शुरुआत में जनरल अजीज ने भारतीय सीमा में घुसकर 28 चोटियों पर कब्जा किया था। इसलिए उन्हें लगता था कि ठंड के मौसम में इस प्लान को आसानी से अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है। 1998 में अमेरिका में मिले भारत-पाकिस्तान के PM: पाकिस्तानी सेना कर रही थी घुसपैठ की तैयारी 11 सितंबर 1998 को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक हो रही थी। भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के PM नवाज शरीफ भी इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए यहां पहुंचे थे। यह पहला मौका था, जब भारत और पाकिस्तान के दो बड़े नेता एक टेबल पर खाना खा रहे थे। इस वक्त बातचीत में नवाज शरीफ ने बताया कि जब 1982 में भारत में एशियन गेम्स हुए थे, तो वे लाहौर से दिल्ली कार से गए थे। कार भी उन्होंने खुद चलाई थी। पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने अपनी किताब "इंडिया एट रिस्क' में लिखा है कि जब अटल जी और शरीफ के बीच बातचीत हो रही थी तो वह वहीं मौजूद थे। उस समय विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान मामलों के अधिकारी विवेक काटजू मेरे कान में फुसफुसाए कि अमृतसर से लाहौर बस यात्रा शुरू करने वाली बात करने का यह सबसे बेहतर समय है। इसके बाद ये सुझाव नवाज और अटल के सामने रखा गया। दोनों नेताओं ने इस सुझाव को खूब पसंद किया पाकिस्तान की पत्रकार नसीम जेहरा के मुताबिक अमेरिका में नवाज और अटल की मुलाकात के एक महीने बाद अक्टूबर में पाकिस्तानी सेना ने भारत पर हमले की तैयारी शुरू कर दी। अक्टूबर 1998 में ही जुबानी तौर पर परवेज मुशर्रफ ने कारगिल में घुसपैठ करने के लिए ऑपरेशन कोह-ए-पैमा को मंजूरी भी दे दी। भारतीय सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल जेएस सोढी के मुताबिक कारगिल पर चढ़ाई के लिए ऑपरेशन कोह-ए-पैमा का नाम पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय ने दिया था। यह एक फारसी शब्द है, जिसका मतलब पहाड़ों की चोटी तक पहुंचने वाला है। जिस बैठक में ये नाम तय किया गया था, उसमें पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ, चीफ ऑफ जनरल स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल अजीज खान, ऑफिसर कमांडिंग (GOC) 10 कोर जनरल महमूद और कमांडर FCNA ब्रिगेडियर जावेद हसन शामिल थे। इस ऑपरेशन को लीड जनरल अजीज खान कर रहे थे, जबकि फ्रंट पर जनरल जावेद हसन मोर्चा संभाल रहे थे। 17 हजार फीट की ऊंचाई पर -20 डिग्री सेल्सियस तापमान में ऑपरेशन कोह-ए-पैमा को अंजाम देने की जिम्मेदारी नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री रेजिमेंट यानी NLI को दी गई। जनरल जावेद हसन को NLI का प्रमुख बनाया गया। NLI पाकिस्तानी सेना, नहीं बल्कि पैरामिलिट्री फोर्स थी। इस रेजिमेंट में ज्यादातर जवानों की बहाली गिलगित और बाल्टिस्तान क्षेत्र से हुई थी। इन जवानों को बर्फ में जंग करने की ट्रेनिंग दी गई थी। साथ ही इन्हें पैदल चलकर हमला करने, पहाड़ों की लड़ाई करने के लिए ट्रेंड किया गया था। नवंबर 1998 में पाकिस्तान के स्कार्दू और गिलगित में तैनात फ्रंटियर डिवीजन के जवानों की छुट्टियां भी रद्द कर दी गईं। 1999 में जंग से 3 महीने पहले: नवाज ने फोन कर अटल को पाकिस्तान बुलाया जनवरी 1999 में भारत की तरफ से तय हो गया था कि वाजपेयी अमृतसर से बस को हरी झंडी दिखाएंगे। जनवरी में ही एक दिन नवाज ने वाजपेयी को फोन किया और पूछा- सुना है आप ग्रीन सिग्नल देने अमृतसर आ रहे हैं। वाजपेयी के हां कहते ही तपाक से नवाज बोले- करीब आकर भी मेरे दरवाजे आए बिना आप कैसे लौट सकते हो।इसके बाद 20 फरवरी 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी बस से लाहौर पहुंचे। लाहौर में पाकिस्तान के PM नवाज शरीफ ने अटल बिहारी वाजपेयी को गले लगाया। उनके स्वागत समारोह में 21 तोपों की सलामी दी गई। लाहौर के गवर्नर हाउस में अटल बिहारी वाजपेयी और शरीफ ने 'लाहौर घोषणा' पर हस्ताक्षर किए। इस दौरान अपने भावुक भाषण में वाजपेयी ने कहा था कि पांच दशकों की शत्रुता को समाप्त करना और शांति कायम करना दोनों देशों की नियति है दोस्ती का हाथ बढ़ाकर पीठ में खंजर घोंपा: पाकिस्तानी सेना ने किया भारतीय चौकियों पर कब्जा जोजिला से लेह तक भारत और पाकिस्तान के बीच करीब 300 किलोमीटर सीमा लगती है। 1999 तक यहां इंडियन आर्मी की सिर्फ एक ब्रिगेड तैनात होती थी। 2500 सैनिकों के लिए 300 किलोमीटर लंबी सीमा की सुरक्षा करना बेहद मुश्किल काम था। 14 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर अक्टूबर से मई तक दोनों देशों की सेनाएं चोटियां खाली कर देती थीं। पाकिस्तान ने इसी समय का फायदा उठाया। मई में दोबारा भारतीय सेना पहाड़ों पर तैनात होती, इससे पहले ही जनवरी 1999 में मुश्कोह, द्रास, कारगिल और तुर्तुक सेक्टर में पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ कर दी। पाकिस्तानी सेना LoC सीमा से 10 किलोमीटर तक अंदर भारतीय सीमा में घुस गई। अपनी किताब ‘लाइन ऑफ फायर’ में परवेश मुशर्रफ ने लिखा था कि 1998 की सर्दियों में कारगिल में बॉर्डर के इस पार पाकिस्तानी आर्मी ने करीब 100 पोस्ट बनाकर इन सभी पर 20 से 25 जवानों की तैनाती की थी। LoC के पार करीब 100 वर्ग किलोमीटर तक भारतीय सीमा में हजारों मुजाहिदीन घुस गए थे। जंग के बाद पाकिस्तानी सेना के जनरल अजीज ने कहा था कि भारतीय सीमा में सिर्फ मुजाहिदीन नहीं, बल्कि हमारी फौज भी घुसी हुई थी। LoC के बॉर्डर पर तैनात दोनों देशों के सैनिकों के लिए ये नियम है कि वो बॉर्डर पार करने से पहले अपनी सरकार से इजाजत लेंगे। हालांकि, पाकिस्तानी सेना ने नवाज सरकार से इसकी इजाजत नहीं ली थी। जनवरी 1999 तक बॉर्डर के इस पार की जाने वाली किसी कार्रवाई की जानकारी सरकार को देने की जरूरत नहीं थी। जब इसकी जरूरत हुई तो मई 1999 में सरकार को जानकारी दी गई थी।कोह-ए-पैमा ऑपरेशन को शुरू करने से पहले पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI ने कारगिल वाले इलाके में भारतीय सेना की अस्थायी मूवमेंट होने की जानकारी दी। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने ब्रिगेडियर मसूद असलम को एक टुकड़ी के साथ कारगिल में ये जानने के लिए भेजा कि भारतीय सीमा में क्या चल रहा है।उन्होंने देखा कि भारतीय चौकियों पर बर्फ जमी है। वो थोड़ा और आगे गए, लेकिन किसी भारतीय जवान से मुठभेड़ नहीं हुई। इसकी जानकारी मिलते ही परवेज मुशर्रफ ने 16 जनवरी 1999 को पाकिस्तानी सेना मुख्यालय को ऑपरेशन के लिए हरी झंडी दे दी। मई 1999 में रूसी हेलिकॉप्टर की मदद से पहाड़ों पर बम-गोले जमा करने लगे पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी जनरल जेएस सोढ़ी के मुताबिक पाकिस्तान कारगिल की चोटियों पर अपनी सेना तैनात करके श्रीनगर और लेह को जोड़ने वाले नेशनल हाईवे 1 पर कब्जा करना चाहता था। अगर ऐसा करने में पाकिस्तानी सेना कामयाब हो जाती तो सियाचिन और लद्दाख की सप्लाई पूरी तरह से बंद हो जाती। हालांकि, इसके लिए पाकिस्तानी सेना के जवानों को मोर्चे पर भेजा जाने लगा था। सबसे मुश्किल काम पहाड़ की चोटियों तक असलहे और गोला-बारूद को भेजना था। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के पब्लिक रिलेशन विभाग ISPR के डिप्टी डायरेक्टर रहे कर्नल अशफाक हुसैन ने अपनी किताब 'विटनेस टु ब्लंडर' में लिखा कि रूस से मंगवाए गए MI17 हेलिकॉप्टर के जरिए साजो-सामान पहाड़ों पर पहुंचाए गए थे। इसके जरिए सैनिकों के खाने का सामान और छोटे हथियार तो 17 हजार फीट की ऊंचाई तक पहुंचाए जा सकते थे, लेकिन भारी तोप नहीं। पाकिस्तानी सेना के इंजीनियर ने तोपों के पुर्जे खोलकर उसे 8 हिस्सों में बांटकर पहाड़ों पर पहुंचाया।   पाकिस्तानी सेना पहाड़ों पर लंबी दूरी तक भारतीय सैनिकों की तैनाती नहीं देखकर आगे बढ़ती चली गई। ऑपरेशन की शुरुआत में 10 से 12 पोस्ट बनाने का फैसला पाकिस्तानी सेना ने किया था, जो अब बढ़कर 130 के करीब हो गई थी। यहां से असली समस्या शुरू हुई। प्लानिंग से आगे बढ़ने की वजह से सप्लाई लाइन कमजोर पड़ गई। NLI की यूनिट 5 LoC से 26 किलोमीटर अंदर भारतीय सीमा में तैनात थी। जिसे कई दिनों तक भूखे पेट लड़ाई लड़नी पड़ी। NLI यूनिट 8 के लेफ्टिनेंट मोहम्मद माजूल्ला खान ने अपनी डायरी में लिखा था- 'मौसम खराब है। बर्फबारी हो रही है। 'मैं दिल से' और 'कुछ कुछ होता है' के गाने सुन रहा हूं। कई दिनों बाद पिछली रात पार्टी राशन लेकर आई। हमें सिगरेट, सूखे मेवे, मिल्क पाउडर मिले। अब सब ठीक है।' इससे समझ सकते हैं कि पाकिस्तानी सेना की हालत कितनी खराब हो गई थी। भारत की तरफ क्या चल रहा थाः चरवाहे या किसी और तरह से भारतीय सेना को पता चला नसीम जेहरा अपनी किताब फ्राम कारगिल टु द कूप में लिखती हैं कि जनवरी 1999 में पहली बार भारतीय सेना के कर्नल पुष्पिंदर ओबराय ने एक पत्र लिखकर अपनी 3 इन्फेंट्री के कमांडर बुधवर को कहा था कि टाइगर हिल एरिया में 6 किलोमीटर तक पाकिस्तानी घुसपैठ की संभावना है। इस क्षेत्र में हमारी तैयारी कमजोर है। हालांकि, ओबराय की ये बात मानने से कमांडर ने इनकार कर दिया। 3 मई 1999 को ताशी नामग्याल नाम के चरवाहे और उसके कुछ साथियों ने सबसे पहले पहाड़ी कपड़े पहने कुछ लोगों को बंकर बनाते देखा था। इसकी जानकारी मिलते ही 15 मई 1999 को लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और पांच सैनिक काकसर सेक्टर की बजरंग पोस्ट में पेट्रोलिंग करने पहुंचे। पहले से तैयार बैठी पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया और उनके साथियों पर जोरदार हमला बोल दिया। घायल कालिया को पाकिस्तानी सेना ने बंदी बना लिया। इस घटना के बाद भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना की इतनी बड़ी घुसपैठ और तैयारियों का अंदाजा लगा। 10 मई को पाकिस्तानी सेना से अपनी जमीन खाली कराने के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय की शुरुआत की। 20 मई 1999 को नेशनल हाईवे-1 के सबसे करीब तोलोलिंग चोटी पर कब्जे के लिए भारतीय सेना ने 18 ग्रेनेडियर्स यूनिट को इस चोटी पर कब्जे का टास्क दिया। सेना को वहां सिर्फ 4 से 5 मिलिटेंट होने की जानकारी थी, लेकिन आगे बढ़ते ही दोनों तरफ से भीषण गोलीबारी शुरू हो गई। करीब 23 दिनों तक चली इस लड़ाई के बाद 13 जून 1999 को भारतीय सेना तोलोलिंग पर कब्जा करने में कामयाब रही। इस लड़ाई में 18 ग्रेनेडियर यूनिट के 25 सैनिक शहीद हो गए। टाइगर हिल पर कब्जा: बोफोर्स और मिराज 2000 से सबसे ऊंची चोटी पर मिली फतह तोलोलिंग चोटी के बाद भारतीय सेना के लिए 17 हजार फीट की ऊंचाई पर टाइगर हिल और सेना चौकी पॉइंट 5287 और पॉइंट 4812 को वापस लेना जरूरी था। जून के पहले हफ्ते में भारतीय सेना ने कारगिल हिल पर कब्जा किए बैठे पाकिस्तानी सेना पर जबरदस्त पलटवार किया। इस हमले ने पाकिस्तानी सेना को पूरी तरह से हैरान कर दिया।30,000 से ज्यादा भारतीय सैनिकों की दो टुकड़ियों को पहाड़ियों पर कब्जा करने के लिए भेजा गया। भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने पहाड़ी चोटियों पर लेजर-गाइडेड बम गिराने शुरू कर दिए। इससे 'मुजाहिदीन' द्वारा बनाए गए पत्थर के बंकर टूट गए और पैदल सेना की टुकड़ियां खड़ी चट्टानों पर चढ़ गईं और खूनी हाथापाई में शामिल हो गईं। 3 जुलाई 1999 को इस चोटी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी 18 ग्रेनेडियर्स को मिली। उनकी मदद के लिए 8 सिख रेजिमेंट को साथ भेजा गया। दोनों ओर से हो रही गोलीबारी के बीच इंडियन आर्मी जैसे ही ऊपर चढ़ने की कोशिश करती थी तो दुश्मन आसानी से निशाना लगा लेते थे।22 ग्रेनेडियर्स के मेजर अजीत और उनकी यूनिट को दोनों चोटियों के बीच फुटहोल्ड बनाने का टास्क मिला। राशन, गोला-बारूद की कमी के बावजूद भारतीय सैनिक पहाड़ों पर लगातार चार दिनों तक लड़ते रहे। एक वक्त ऐसा भी आया, जब भारतीय सैनिकों के लिए पहाड़ों से हो रही गोलीबारी का सामना करना मुश्किल हो गया। इस वक्त भारत ने फ्रांस से खरीदे मिराज 2000 एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल करने का फैसला किया। इस एयरक्राफ्ट के एक बम की कीमत 2 करोड़ रुपए थी, जिसे भारत टाइगर हिल पर खर्च नहीं करना चाहता था। इस एयरक्राफ्ट के साथ ही फ्रांस ने 60 लेजर गाइडेड पॉड्स भारत को दिए थे। इन गोलों को भारत पड़ोसी देश के अहम ठिकानों पर इस्तेमाल करना चाहता था।भारत ने इजराइल से 1997 में इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल टार्गेटिंग पॉड्स खरीदने की डील की थी। जंग शुरू होते ही इजराइल इसकी सप्लाई करने लगा। इन पॉड्स में इस्तेमाल होने वाला Paveway-2 LGB बम अमेरिका से आना था। अमेरिका और UK दोनों ने भारत को इस अहम मौके पर ये बम देने से इनकार कर दिया। इस मुसीबत की घड़ी में भारतीय सेना ने 1000 पाउंड के देसी बम बनाकर इस्तेमाल करने का फैसला किया। 24 जून की सुबह मिराज-2000 फाइटर जेट जुगाड़ बम के साथ टाइगर हिल की तरफ बढ़े। अटैक करते ही जुगाड़ बम बिल्कुल सटीक निशाने पर और पाकिस्तानी बेस पर जा गिरा। इस मिशन को अंजाम तक पहुंचाने में एयर मार्शल रघुनाथ नांबियार और एयर चीफ मार्शल ए वाई टिपनिस का सबसे बड़ा योगदान था।पाकिस्तानी सेना ने अपने जवानों के शव लेने से इनकार कियाकरीब 2 महीने तक चली जंग के बाद 8 जुलाई 1999 को स्थिति सामान्य हुई। भारतीय सैनिकों के टाइगर हिल पर कब्जा करने के बाद उस पर तिरंगा लहराने लगा। जंग खत्म होने के बाद सेना के बंकरों और खाइयों में 200 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों के शव मिले। इनकी जेब और बैग में मौजूद दस्तावेजों से उनकी शिनाख्त हुई। पाकिस्तानी जवानों के पास से उनकी पे बुक, मेस की पर्ची, मूवमेंट ऑर्डर और सिग्नल कोड मिले। इतना ही नहीं, पाकिस्तानी सेना के 5 नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री के माज उल्लाह खान सुंबल की डायरी से कुछ अहम सुराग हाथ लगे थे। 31 जनवरी 1999 को पाकिस्तानी सेना के इस अधिकारी को अपने प्लाटून के साथ कारगिल में तैनाती का ऑर्डर मिला था। डायरी में सेना के MI-17 हेलिकॉप्टर का भी जिक्र किया गया था। माज उल्लाह खान ने लिखा था कि भारतीय गोलीबारी में उनके बाएं हाथ की हड्डी टूट गई थी। जंग के बाद भारतीय सेना ने दावा किया कि पाकिस्तान ने अपने सैनिकों के शव लेने से इनकार कर दिया। पाकिस्तान ने सिर्फ 5 शवों को स्वीकारा, जिसमें 12 नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री के कैप्टन कर्नल शेर खान भी थे। शेर खान के शव की जेब में भारतीय सेना ने एक पर्चा लिख कर रख दिया था, जिसमें लिखा था कि ये बहुत बहादुरी से लड़े। उन्हें मरणोपरांत पाकिस्तान का सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार निशान-ए-हैदर दिया गया। इसके अलावा पाकिस्तान ने अपने जवानों के शवों को सड़ी-गली अवस्था में होने की वजह से स्वीकार करने से इनकार कर दिया। भारत को लेकर गलत कैलकुलेशन का नतीजा थी कारगिल जंग पूर्व सेना अधिकारी जेएस सोढी कारगिल जंग को भारत को लेकर किए गए पाकिस्तान के गलत कैलकुलेशन का नतीजा बताते हैं। सोढी के मुताबिक पाकिस्तानी सेना के जनरल जब सरकार को इस ऑपरेशन की जानकारी दे रहे थे तो उन्होंने भारत पर जीत हासिल करने की 4 वजहें बताई थीं... 1. ऊंची चोटियों पर कब्जा: पाकिस्तानी सेना भारतीय सीमा के अंदर उन सभी ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लेगी जो रणनीतिक तौर पर अहम हैं। लेह-श्रीनगर हाईवे इन चौकियों की रेंज में होगा। भारतीय सेना के किसी एक्शन पर मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। उनके लिए दोबारा इन चोटियों को वापस ले पाना मुश्किल होगा। 2. पहाड़ों की लड़ाई से बचना: पाकिस्तानी सेना के जनरलों को लग रहा था कि भारतीय सेना में जमीन से इतनी ऊंचाई पर हमला करने की इच्छाशक्ति नहीं है। हालांकि, हुआ इसके ठीक उलट। 3. अंतरराष्ट्रीय दबाव नहीं होगा: पाकिस्तानी सेना ने PM नवाज को समझाया कि अभी जंग शुरू होने पर कोई अंतरराष्ट्रीय संगठन या दूसरे देश जंग खत्म कराने को लेकर दबाव नहीं बना पाएंगे। 4. सरकार से पाकिस्तानी सेना अतिरिक्त बजट नहीं मांगेगी: सेना प्रमुख ने कहा कि देश के आर्थिक संकट को देखते हुए पाकिस्तानी सेना सरकार से कोई अतिरिक्त पैसा नहीं मांगेगी। हालांकि, पाकिस्तानी सेना के ये चारों ही अनुमान गलत साबित हुए। भारतीय सेना ने जब पलटवार किया तो पाकिस्तान के लिए उसे रोक पाना मुश्किल हो गया।

Dakhal News

Dakhal News 26 July 2024


Analysis: Union Budget

दुर्भाग्यवश चुनिंदा राज्यों की तरह मध्यप्रदेश के लिए कोई विशेष बजट प्रावधान नहीं किए गये हैं न ही अमरावती की तरह राजधानी भोपाल पर कोई फ़ोकस हैं। सरकार को चाहिए कि पीछे रह गये राज्यों और पिछड़ गयी राजधानियों का पारदर्शी ऑडिट करे और उनके विकास के लिए अनुपातिक बजट प्रावधान हों।  संपूर्ण राजनीतिक समर्थन देने वाले गुजरात जैसे राज्यों को सदैव प्राथमिकता मिलती रही है वहीं मध्यप्रदेश के साथ सदा पक्षपात होता रहा है। राज्य के नागरिक के रूप में यह निराशाजनक है। केंद्रीय बजट 2024 में जीडीपी वृद्धि 6.5-7% अनुमानित है, पूंजीगत व्यय ₹11.11 लाख करोड़ रखा गया है, और कर सुधारों के साथ सामाजिक कल्याण और शहरी विकास पर जोर दिया गया है। महिलाओं, युवाओं, और रियल एस्टेट के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। हालाँकि चुनावों के बाद के इस बजट में महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक असमानता से राहत मिलती नहीं दिखती।  इस बजट का आलोचनात्मक विश्लेषण करने पर कुछ महत्वपूर्ण तथ्यात्मक मत सामने आते हैं :  1.  वित्तीय अनुशासन और घाटा :    - वित्तीय घाटे का लक्ष्य 5.1% जीडीपी रखा गया है, जो अभी भी ऊँचा है और इसे कम करने के लिए पर्याप्त ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। जबकि सरकार ने FY26 तक इसे 4.5% से नीचे लाने का लक्ष्य रखा है, कई विशेषज्ञ इसे पर्याप्त नहीं मानते।    - बढ़ते सार्वजनिक कर्ज और उच्च बाजार उधारी पर भी चिंता व्यक्त की गई है, जो कि ₹14.13 लाख करोड़ पर अपरिवर्तित रखा गया है। 2.  कर सुधारों की अपर्याप्तता :    - प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं गया है, जिससे करदाताओं को कोई राहत नहीं मिली है। कर संरचना में स्थिरता को सकारात्मक माना जा सकता है, लेकिन यह भी दर्शाता है कि करदाताओं की वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं किया गया है  - अल्पकालिक पूंजीगत लाभ पर 20% और दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ पर 12.5% कर निर्धारित करना निवेशकों के लिए हानिकारक हो सकता है, खासकर छोटे निवेशकों के लिए । 3.  महिलाओं और युवाओं के लिए योजनाओं का प्रभाव :    - 'लखपति दीदी' योजना और मुद्रा ऋण सीमा बढ़ाने के बावजूद, इन योजनाओं की कार्यान्वयन की क्षमता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इससे पहले भी कई योजनाएँ ठीक से लागू नहीं हो सकी हैं। 4.  बुनियादी ढांचे और शहरी विकास में चुनौतियाँ :    - बुनियादी ढांचे के लिए ₹11.1 लाख करोड़ का आवंटन किया गया है, लेकिन इस क्षेत्र में पिछली योजनाओं की धीमी प्रगति को देखते हुए,  इसपर शंका जताई जा रही है।    - शहरी विकास के लिए की गई घोषणाओं में स्पष्टता की कमी है। विशेषकर, PM आवास योजना-शहरी 2.0 के तहत 1 करोड़ घरों के लक्ष्य को पूरा करने के लिए ठोस योजनाओं का अभाव है। 5.  सामाजिक कल्याण योजनाओं की प्रभावशीलता :    - पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना का विस्तार और आयुष्मान भारत योजना का विस्तार सकारात्मक कदम हैं, लेकिन इन योजनाओं की के वास्तविक लाभार्थिता पर भी कई सवाल हैं।  निष्कर्ष : बजट 2024 में सरकार ने आर्थिक विकास, बुनियादी ढांचे और सामाजिक कल्याण पर जोर दिया है, लेकिन कई क्षेत्रों में ठोस और प्रभावी कदमों की कमी है। वित्तीय घाटे को कम करने और कर सुधारों में अधिक पारदर्शिता और प्रभावशीलता की आवश्यकता है। योजनाओं के कार्यान्वयन और  पारदर्शिता पर ध्यान देना आवश्यक है ताकि घोषित लक्ष्य वास्तव में प्राप्त किए जा सकें। मनोज मीक लेखक शहरी विकास, डेटा साइंस और एआई के जानकार हैं

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Dakhal News 24 July 2024


Namo Budget Vision of India of 2047

लेखक-सत्येंद्र जैन  भाजपा की मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला आम बजट वर्ष 2024- 25 संसद के पटल पर प्रस्तुत किया गया है।यह बजट विकसित भारत के ऊषा काल का बजट है।वर्ष 2047 तक भारत विकसित राष्ट्र हो जाएगा। वर्तमान में भारत विश्व में पांचवी आर्थिक शक्ति संपन्न देश है। भारत आगामी दो-तीन वर्ष में विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन के कुशल वित्तीय सुप्रबंधन का सुफल है कि यह सर्व समावेशी बजट है ।भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर,निवेश को बढ़ाने के साथ-साथ सभी के लिए लोक मंगलकारी बजट है।मोदी सरकार ने देश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया है। 48.21 लाख करोड़ रुपये से अधिक का बजट प्रस्तुत किया है।जो पिछले दस सालों में लगभग चौगुना हो गया है। बजट में यह चमत्कारिक वृद्धि भाजपा की मोदी सरकार के उत्तरोत्तर विकास को दर्शाती है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भागीरथी परिश्रम,अर्थशास्त्रीय सुधारों के कारण दस वर्ष में ही भारत की जीडीपी ,सकल घरेलू उत्पाद भी लगभग तीन गुना बढ़ा है।अंतरिम बजट प्रस्तुति के समय भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुयोग्य वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने चुनावी वर्ष होने के उपरांत भी पूंजीगत व्यय को पिछले वर्ष से बढ़कर 11.1111 लाख करोड़ रुपए से अधिक किया है।अधो सरंचना विकास में सरकार पिछले वर्ष की तुलना में 11.11 प्रतिशत अधिक राशि व्यय करने जा रही है। यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.4 प्रतिशत है।यह मोदी सरकार का साहस है जो चुनावी वर्ष होते हुए इंफ्रास्ट्रक्चर पर पहले अंतरिम बजट और अभी आम बजट में सर्वाधिक धनराशि व्यय कर रही है।यही कारण है कि देश की जनता ने मोदी सरकार को विजय श्री का आशीर्वाद दिया। एनडीए की सरकार तीसरी बार बनी है। अधिक पूंजीगत व्यय से ही भारत का वास्तविक, शाश्वत विकास संभव है।रोजगार के असंख्य अवसर उपलब्ध होते हैं।यह बजट गरीबों,युवाओं, किसानों, महिलाओं और मध्यम वर्ग के कल्याण के लिए समर्पित है।सर्व समावेशी बजट प्रस्तुत करने हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का अभिनंदन है।यह आम बजट निश्चित ही विकसित भारत की संकल्पना को सिद्ध करेगा। इस बजट में राजस्व सहित कुल प्राप्तियों का अनुमान 32.07 लाख करोड़ रुपए है।सकल कर प्राप्तियां 25.83 लाख करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा जीडीपी के सापेक्ष 4.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है। सरकार का लक्ष्य अगले वित्तीय वर्ष में 4.5 प्रतिशत रखना है।अर्थव्यवस्था की आशा से अधिक विकास दर 8.2 प्रतिशत प्राप्त होने से संभव हुआ है। मुद्रा स्फीति 4.56 प्रतिशत रही है।अगले वित्त वर्ष में 4 प्रतिशत से कम लाने का लक्ष्य है।खाद्य और ईंधन को छोड़कर कोर मुद्रा स्फीति 3.1 प्रतिशत रही है।इस बजट में रोजगार कौशल एमएसएमई और मध्यम वर्ग पर विशेष ध्यान सरकार ने दिया है। विकसित भारत की 9 बजट प्राथमिकताएं हैं,स्तम्भ हैं, जो इस प्रकार हैं-  1 कृषि में उत्पादकता और अनुकूलता  2 रोजगार और कौशल प्रशिक्षण  3 समावेशी मानव संसाधन विकास और सामाजिक न्याय 4 विनिर्माण और सेवाएं  5 शहरी विकास  6 ऊर्जा सुरक्षा 7 अवसरंचना 8 नवाचार अनुसंधान और विकास 9 अगली पीढ़ी के सुधार प्राथमिकता 1- कृषि में उत्पादकता और अनुकूलता  कृषि क्षेत्र एवं कृषक कल्याण के लिए मोदी सरकार प्रतिबद्ध है। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान अनंत ऊर्जा के साथ अखंड प्रचंड पुरुषार्थ कर रहे हैं ।कृषि और कृषि से संबंधित क्षेत्रों लिए 1.52 लाख करोड रुपए का आवंटन किया गया है। किसानों को खेती-बाड़ी के लिए 32 कृषि और बागवानी फसलों की नई 109 उच्च पैदावार वाली जलवायु के अनुकूल किस्मों को जारी किया जाएगा। प्राकृतिक कृषि से जोड़ने के लिए किसानों को प्रमाण पत्र और ब्रांडिंग व्यवस्था की जाएगी। अगले 2 वर्षों में पूरे देश में एक करोड़ से किसानों को प्राकृतिक कृषि से जोड़ा जाएगा। उनको प्रमाण पत्र दिया जाएगा।प्राकृतिक खेती के लिए 10000 आवश्यकता आधारित जैव आदान संसाधन केंद्र स्थापित भी किए जाएंगे।3 साल में किसानों और उनकी जमीन को शामिल करने हेतु कृषि में डिजिटल सार्वजनिक अधोसंरचना,डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को लागू किया जाएगा। प्राथमिकता 2- रोजगार और कौशल प्रशिक्षण  रोजगार और कौशल पर मोदी की गारन्टी है। पांच योजनाओं के द्वारा 4.1 करोड़ युवाओं के लिए 5 साल में रोजगार कौशल और अन्य अवसरों के लिए पहल की गई है।2 लाख करोड रुपए से अधिक राशि सरकार व्यय करेगी। पहली योजना में ईपीएफओ में पंजीकृत पहली बार रोजगार पाने वाले कर्मचारियों को ₹15000 तक के एक महीने का वेतन जिसे तीन किस्तों में युवाओं को दिया जाएगा।दूसरी योजना के अनुसार कर्मचारियों और नियोक्ता दोनों को सीधे विनिर्दिष्ट स्केल पर प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराना है ।नौकरी के पहले 4 साल में दोनों के ईपीएफओ के योगदान पर निर्भर है।तीसरी योजना के अनुसार सरकार नियोक्ता को उसके ईपीएफओ योगदान के लिए 2 साल तक हर अतिरिक्त कर्मचारी पर 3000 रुपए प्रतिमाह भुगतान करेगी।चौथी योजना अनुसार कौशल के लिए नई केंद्र प्रायोजित योजना अगले 5 साल की अवधि में 20 लाख युवाओं को कौशल बढ़ाया जाएगा।1000 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों का उन्नयन किया जाएगा।पांचवी योजना अनुसार 5 साल में एक करोड़ युवाओं को 500 शीर्ष कंपनियों मे इंटर्नशिप दी जाएगी।7.5 लाख रुपए तक के ऋण सुविधा उपलब्ध कराने हेतु मॉडल कौशल ऋण योजना और सरकार की योजना के तहत किसी भी योजना के लाभ के लिए पात्र नहीं होने वाले युवाओं को घरेलू संस्थानों में उच्चतर शिक्षा के लिए 10 लाख रुपए तक के ऋण हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रावधान बजट में किया गया है। कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए,  औद्योगिक सहयोग से महिला छात्रावास की स्थापना करना,  महिला केंद्रित कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना और महिला स्वयं सहायता समूह उद्यम उत्पादों को बाजार तक  बढ़ाने के लिए भाजपा सरकार ने बजट प्रावधान किया है। प्राथमिकता 3- समावेशी मानव संसाधन विकास और सामाजिक न्याय  पूर्वोदय अमृतसर कोलकाता औद्योगिक गलियारे के साथ गया में औद्योगिक केंद्र का विकास।बिहार के लिए 21400 करोड रुपए की लागत से विद्युत परियोजनाएं आरंभ की जाएगी 2400 मेगावाट का पिरपैंती में नया विद्युत संयंत्र भी सम्मिलित है। आंध्र प्रदेश के लिए मौजूदा वित्त वर्ष में 15000 करोड रुपए की विशेष वित्तीय सहायता मोदी सरकार दे रही है।विशाखापट्टनम-चेन्नई और हैदराबाद-बेंगलुरु औद्योगिक गलियारे में औद्योगिक केंद्र स्थापित किए जाएंगे।महिलाओं और कन्याओं को लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं के लिए 3 लाख करोड रुपए से अधिक का आवंटन किया गया है।प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान द्वारा जनजाति बहुल गांवों और आकांक्षी जिलों में जनजाति परिवारों का सामाजिक आर्थिक विकास हेतु 63000 गांव में लागू किया जाएगा।5 करोड़ जनजाति जनसंख्या लाभान्वित होगी ।उत्तर पूर्वी क्षेत्र में इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक की 100 शाखाएं प्रारम्भ करने हेतु बजट में प्रावधान किया गया है। प्राथमिकता 4- विनिर्माण और सेवा क्षेत्र को बढ़ाना  गिरवी या तृतीय पक्ष गारंटी के बिना मशीनरी और उपकरण की खरीद के लिए एमएसएमई को आवधिक लोन की सुविधा देने के लिए ऋण गारंटी की योजना का प्रावधान किया गया है। संकट की अवधि के दौरान एमएसएमई को ऋण सहायता बैंक द्वारा जारी रखने के लिए नई व्यवस्था का प्रावधान किया गया है। तरुण श्रेणी के मुद्रा लोन की सीमा को 10 से बढ़ाकर के 20 लाख रुपए कर दिया गया है।ट्रेड्स में अनिवार्य रूप से शामिल होने के लिए कारोबार की सीमा को 500 करोड रुपए से ढाई सौ करोड़ का प्रावधान है। लोन, ई-कॉमर्स ,शिक्षा, स्वास्थ्य, विधि ,न्याय ,लॉजिस्टिक्स, एमएसएमई  सेवा प्रदाय और शहरी शासन के क्षेत्र में डिजिटल सार्वजनिक अधोसंरचना डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर अनुप्रयोगों का प्रावधान सरकार ने किया है। प्राथमिकता 5- शहरी विकास 30 लाख से अधिक जनसंख्या वाले 14 बड़े शहरों में कार्यान्वयन और वित्त पोषण रणनीति के साथ आवागमन उन्मुख विकास योजनाएं तैयार की जाएंगी। प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी 2.0 के अंतर्गत 2.2 लाख करोड रुपए की केंद्रीय सहायता सहित 10 लाख करोड रुपए के निवेश से अगले 5 वर्ष में एक करोड़ शहरी गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों की आवास आवश्यकताओं का समाधान किया जाएगा।अगले 5 वर्ष में प्रत्येक वर्ष चुनिंदा शहरों में 100 साप्ताहिक हॉट या बाजार स्ट्रीट फूड हब के विकास में सहायता के लिए नई योजना का प्रावधान किया है। प्राथमिकता 6- ऊर्जा सुरक्षा रोजगार विकास और पर्यावरण की आवश्यकताओं के बीच संतुलन कायम करने के लिए समुचित ऊर्जा परिवर्तन की दिशा में एक नीतिगत दस्तावेज तैयार करना। पंप स्टोरेज पॉलिसी विद्युत भंडारण के लिए पंप स्टोरेज परियोजना को बढ़ावा देने की नीति प्रस्तावित है ।परमाणु ऊर्जा के लिए और भारत स्मॉल रिएक्टर की स्थापना हेतु नई प्रौद्योगिकियों के लिए सरकार निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी करेगी। उन्नत अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल प्रौद्योगिकी के प्रयोग से 800 मेगावाट का वाणिज्यिक संयंत्र स्थापित करने के लिए एनटीपीसी और भेल के बीच एक संयुक्त उद्यम प्रस्तावित है। प्राथमिकता 7- अधोसंरचना विकास अधोसंरचना विकास हेतु निवेश के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। पूंजीगत व्यय के लिए 1111111 करोड़ रुपए का प्रावधान मोदी की गारन्टी है। राज्यों को आधारभूत संरचना को बढ़ाने के लिए डेढ़ लाख करोड रुपए की ब्याज रहित लंबी अवधि के लोन का प्रावधान मोदी की गारंटी है।25000 गांव के लिए बारहमासी सड़क बनाने के लिए पीएमजीएसवाय का चौथा चरण आरंभ किया जाएगा। बिहार में कोसी मची अंतर राज्य लिंक और अन्य योजनाओं के लिए 11500 करोड रुपए की वित्तीय सहायता का प्रावधान है। सरकार असम हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड सिक्किम को सहायता प्रदान करेगी।बिहार के गया मे विष्णुपद मंदिर गलियारा,  महाबोधि मंदिर गलियारा और राजगीर में जैन पथ सर्किट,अन्य मंदिरों का व्यापक विकास करेगी। प्राथमिकता 8- नवाचार,अनुसंधान और विकास मूलभूत अनुसंधान और प्रोटोटाइप विकास के लिए अनुसंधान नेशनल रिसर्च फंड का प्रावधान किया है।वाणिज्य के स्तर पर निजी क्षेत्र द्वारा संचालित अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए एक लाख करोड रुपए के वित्तीय पूल की व्यवस्था का प्रावधान भी सरकार द्वारा किया गया है। 10 वर्षों में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को पांच गुना बढ़ाने पर जोर देते हुए 1000 करोड रुपए की उद्यम पूंजी का प्रावधान किया है।   प्राथमिकता 9- अगली पीढ़ी के सुधार ग्रामीण भूमि संबंधी कार्यों हेतु सभी भूखंडों के लिए भूखंड पहचान संख्या अथवा भू आधार,मानचित्रो का डिजिटल करण, वर्तमान स्वामित्व के अनुसार मानचित्र प्रभावों का सर्वेक्षण, भू रजिस्ट्री और कृषक रजिस्ट्री से जोड़ने का प्रावधान है।शहरी क्षेत्र में भूमि अभिलेख को जीआईएस मैपिंग से अंकिकृत किया जाएगा।श्रमिकों के वन स्टॉप समाधान के लिए इ-श्रम पोर्टल को अन्य पोर्टल से जोड़ना, तेजी से बदलते श्रमिक बाजार कौशल संबंधी जरूरत उपलब्ध रोजगार की भूमिकाओं के लिए डेटाबेस तैयार करना, रोजगार इच्छुक लोगों को संभावित नियोक्ताओं और कौशल प्रदाताओं के साथ जोड़ने की प्रणाली को विकसित करने का प्रावधान। जीएसटी की सफलता से उत्साहित होकर शेष क्षेत्रों तक विस्तार हेतु सरलीकृत एवं तर्कसंगत कर संरचना का प्रावधान किया गया है।कैंसर दवाइयां को सीमा शुल्क से हटाने का प्रावधान किया है। विनिर्माण हेतु मेडिकल एक्स-रे मशीनों में उपयोग में आने वाले फ्लैट पैनल डिटेक्टर पर सीमा शुल्क में कम किया है।मोबाइल फोन, मोबाइल प्रिंटेड सर्किट बोर्ड असेंबली और मोबाइल चार्जर पर सीमा शुल्क को घटकर 15% का प्रावधान किया गया है। सोने और चांदी पर सीमा शुल्क को घटाकर 6 प्रतिशत ,प्लैटिनम पर भी 6.4 प्रतिशत किया गया है। अन्य धातुओं जैसे लोहा,निकल,ब्लिस्टर तांबे पर सीमा शुल्क हटाया है। इलेक्ट्रॉनिक रेजिस्टरों के निर्माण हेतु ऑक्सीजन मुक्त तांबे पर कुछ शर्तों पर मूलभूत सीमा शुल्क हटा दिया गया है। रसायनों में अमोनियम नाइट्रेट पर सीमा शुल्क को 7.5 प्रतिशत से बढ़कर 10 प्रतिशत किया गया है। पीवीसी फ्लेक्स, प्लास्टिक बैनरों पर मूलभूत सीमा शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत किया है।विनिर्दिष्ट दूरसंचार उपकरणों के प्रिंटेड सर्किट बोर्ड असेंबली पर बीसीडी को 10 से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने का प्रावधान है।वारंटी वाली वस्तुओं की मरम्मत के लिए फिर से आयात करने की समय सीमा को 3 वर्ष से बढ़ाकर 5 वर्ष करने का प्रावधान किया है। 25 महत्वपूर्ण खनिजों को सीमा शुल्क से पूरी तरह छूट दी गई है।दो खनिजों पर बीसीडी को कम करने का प्रावधान है।सोलर सेल और सोलर पैनलों के विनिर्माण में प्रयोग में आने वाली पूंजीगत वस्तुएं सीमा शुल्क के दायरे से बाहर करने का प्रावधान है। प्रत्यक्ष करों को सरल बनाने करदाता सेवाओं में सुधार करने और मुकदमेबाजी को कम करने के प्रयास जारी रहेंगे।सरकार की विकास और कल्याणकारी योजनाओं के वित्त पोषण के लिए राजस्व वृद्धि पर जोर दिया गया है। कॉरपोरेट टैक्स सरलीकृत व्यवस्था के द्वारा वित्त वर्ष 2023-24 में दो तिहाई से अधिक करदाताओं ने व्यवस्था का लाभ उठाया।स्टार्टअप इकोसिस्टम को प्रोत्साहित करने के लिए सभी वर्गों के निवेशकों के लिए एंजल टैक्स को समाप्त करने का प्रस्ताव है । क्रूज पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए विदेशी शिपिंग कंपनियों के लिए कर व्यवस्था को सरल करने का प्रावधान किया है।अपरिष्कृत हीरा बेचने वाली विदेशी खनन कंपनियों के लिए सेफ  हारबरों का प्रावधान किया है। विदेशी कंपनियों पर कॉरपोरेट टैक्स की दर को 40 से घटाकर 35 प्रतिशत का प्रस्ताव है।एनपीएस में नियोजन करताओं द्वारा किए जा रहे योगदान को कर्मचारियों के वेतन के 10 से बढ़ाकर 14 प्रतिशत करने का प्रावधान है।20 लाख रुपए तक की चल परिसंपत्तियों की सूचना न देने को गैर दाण्डिक बनाने का प्रस्ताव है।दो प्रतिशत की इक्विलाइजेशन लेवी को वापस करने का प्रावधान है ।वेतन भोगी कर्मचारियों के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन को 50000 से बढ़कर 75000 रुपये करने का प्रावधान है। पेंशन भोगियों के लिए पारिवारिक पेंशन पर कटौती को 15000 से बढ़ाकर 25000 रूपए करने का प्रावधान है।आयकर की दरों को संशोधित करने का प्रावधान है ।300000 तक शून्य आयकर ,3 से 7 लाख रुपए पर 5 प्रतिशत, 7 से 10 लाख रुपए पर 10 प्रतिशत, 10 से 12 लाख रुपए पर 15 प्रतिशत, 12 से 15 लाख रुपए पर 20 प्रतिशत, 15 लाख रुपए से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत आयकर प्रस्तावित है।नई कर व्यवस्था में वेतन भोगी कर्मचारी को आयकर में 17500 रूपए तक की बचत होगी। इस बजट में भारत के विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई देता है।भारत का यह आम बजट वर्ष 2047 में विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने और विकसित भारत के निर्माण में सोपान सिद्ध होगा।विकसित भारत की संकल्पना है।  

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Dakhal News 24 July 2024


This is how the way to loot

शीतल पी सिंह- LTCG से मध्यम वर्ग की लूट। दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर की गणना में सूचकांक को हटाने से हर कोई कैसे प्रभावित होगा? वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संपत्तियों पर दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर को 12.5% तक घटा दिया, लेकिन चतुराई से मुद्रास्फीति के लिए समायोजन के लिए बिक्री के समय संपत्ति की कीमत को समायोजित करने वाले सूचकांक को हटा दिया। इसका हम पर क्या प्रभाव पड़ेगा? आइए इसे सरल गणित के साथ समझें। मान लें कि आपने जनवरी 2009 में ₹50 लाख में एक अपार्टमेंट खरीदा था। पंद्रह साल बाद, आपने इसे आज ₹1.5 करोड़ में बेच दिया। सूचकांक के साथ, 15 साल पहले आपके द्वारा भुगतान किए गए ₹50 लाख को आज ₹1.32 करोड़ माना जाता है। इसलिए, शुद्ध लाभ या पूंजीगत लाभ केवल ₹17.5 लाख है, और आप 20% की दर से केवल ₹3.5 लाख का पूंजीगत लाभ कर देंगे। लेकिन सूचकांक के बिना, आपका पूंजीगत लाभ अब ₹1 करोड़ है, और 12.5% पर, आप ₹12.5 लाख का कर देंगे। मूल रूप से, सरकार पुराने तरीके की तुलना में ₹9 लाख अधिक लेती है। 15 साल के लिए एक संपत्ति खरीदने और रखने के बाद आपका शुद्ध लाभ केवल ₹5,01,825 है। आपने सिर्फ ऋण ब्याज में इस प्रापर्टी के लिए बहुत अधिक भुगतान किया होगा? आप इस फैसले को चतुराई कहेंगे या कुटिलता?पिछले मामले में, आप कम से कम पूंजीगत लाभ का भुगतान करने के लिए लाभ कमाते थे। अब, एक ऐसे परिदृश्य पर विचार करें जहां आपने जनवरी 2018 में ₹80 लाख में एक अपार्टमेंट खरीदा था और इसे आज ₹95 लाख में बेच दिया था क्योंकि आपके सामने एक व्यक्तिगत आपातकालीन स्थिति आ गई थी। कई बार चीजें कठिन हो जाती हैं। यदि सूचकांक लागू होता, तो आप वास्तव में ₹11.76 लाख का नुकसान कर रहे थे और ‘शून्य’ एलटीसीजी कर का भुगतान करते लेकिन नए तरीके से, एन सीतारमण आपके घाव में नमक डालेंगी। वह आपसे ₹1.87 लाख का एलटीसीजी भी लेंगी। आपका शुद्ध नुकसान ₹13.63 लाख हो जाता है। फिर से, आपने अकेले ऋण ब्याज में बहुत अधिक खर्च किया होगा। सूचकांक को हटाने से एलटीसीजी का पूरा उद्देश्य समाप्त हो जाता है। यह हर किसी को प्रभावित करता है और लोगों को अपने लेन-देन को कम मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करेगा, जिससे काले धन का उपयोग बढ़ेगा। यह अचल संपत्ति निवेश को कम आकर्षक बनाता है और हमारे भवन निर्माण क्षेत्र को और भी बड़े संकट में धकेल सकता है उन लोगों के लिए जो कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स (सीआईआई) से परिचित नहीं हैं, यह दर्शाता है कि 2001-02 में ₹100 का मूल्य अब ₹363 है।    

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Dakhal News 24 July 2024


Budget has become pudding

संजय कुमार सिंह आज बजट की खबर के शीर्षक से बजट के बारे में जो पता चलता है वह मेरे सात अखबारों के शीर्षक से यह विवरण बनाता है – नई हकीकतों का बही खाता, युवाओं पर करम मिडिल क्लास पर मरहम, चुनाव परिणाम वाला बजट (लेकिन) रेस चल रहा है वित्त मंत्री ने चुनावी स्थिति के लिए तैयारी की, रोजगार का बोझ फर्मों पर थोप दिया, गठजोड़ का (यह) अर्थमिश्रण कई प्लेट में थोड़ा-थोड़ा है। बजट के बारे में मैंने लिखा था, “जब बजट का मतलब हलवा हो गया है”। इसमें मैंने लिखा था, बजट और हलवा का संबध पुराना है पर वह बजट बनाने और पेश करने के बीच एक साधारण सा मामला होता था। नरेन्द्र मोदी राज में बजट की खबर और उस पर चर्चा हलवा खाते-खिलाते और उसकी फोटो के साथ होने लगी है। इसे एक प्रतीक के रूप में देखिये बजट और उसका हाल समझ में आ जायेगा। रेल बजट के बिना और बजट में रेलवे की चर्चा के बिना बजट ऐसा ही है। द हिन्दू ने आज इसे इसी रूप में प्रस्तुत किया है, शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होता – पत्तल ज्यादा हैं, थोड़ा-थोड़ा डाला है। जनसत्ता में एक बार ऐसा ही शीर्षक हमारे संपादक प्रभाष जोशी ने लगाया था, हर हाथ में एक बताशा। हेडलाइन मैनेजमेंट के दौर में आज के कुछ और शीर्षक हैं – 1) छोटे को बड़ी सहायता मिली (फाइनेंशियल एक्सप्रेस) 2) आर्थिक तौर पर फिट और रोजगार की तलाश में (दि इकनोमिक टाइम्स) 3) सीतारमन ने सभी बजटों का बाप पेश किया (यहां बाप यानी बीएपी या बिहार एंड आंध्र प्रदेश है) 4) ग्रोथ ऐट वर्क यानी काम पर विकास (मिन्ट) 5. केंद्रीय बजट : संपन्नता के लिए रोजगार, कौशल युक्त बनाने का रास्ता (द स्टेटसमैन) 6. रोजगार के लिए जोड़, कर राहत और गठजोड़ धर्म (द ट्रिब्यून) 7. राजनीतिक पर विवेकपूर्ण (बिजनेस स्टैंडर्ड) 8. बजट का फोकस नई नौकरियों, कौशल युक्त बनाने; मध्यम वर्ग, एमएसएमई के लिए टैक्स राहत (दि एशियन एज) 9. गुड जॉब (नवभारत टाइम्स) 9. बेरोजगारों, मध्य वर्ग पर मेहरबानी (हिन्दुस्तान) और 10. बजट में आंध्र, बिहार, रोजगार (जनसत्ता)।  आज बजट का दिन है औऱ आज के अखबारों में बजट ही होना था। अमूमन बजट वाले दिन अखबारों में कोई और खबर होती नहीं है। कल मैं सोच रहा था कि आज छुट्टी मनाई जा सकती है। बाद में नीट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला महत्वपूर्ण लगा और मैंने तय किया कि उसकी प्रस्तुति पर लिखूंगा- लिखना चाहिये। बजट अब हलवा समारोह ही है। इसमें कुछ खास होता नहीं है। हेडलाइन मैनेजमेंट के दौर में इसे अच्छा ही कहा जाना है। बजट से मुझे कोई उम्मीद नहीं थी लेकिन अखबारों से लगता है कि कुर्सी बचाऊ बजट तो है ही। हेडलाइन मैनेजमेंट भी है ही। जहां तक नीट का मामला है, निजी तौर पर मैं नीट के फैसले से निराश हूं। निश्चित रूप से यह कानूनी मामला है और हजारों छात्रों के भविष्य तथा सहूलियत का भी ख्याल रखा जाना चाहिये। फैसला सब कुछ देखकर कानूनी आधार पर हुआ होगा। कानून मेरा विषय नहीं है इसलिए मैं उसपर टिप्पणी नहीं कर सकता लेकिन मोटे तौर पर वही हुआ दिख रहा है जो सरकार चाहती थी। अरविन्द केजरीवाल या हेमंत सोरेन के मामले में भी यही होता रहा है। इसलिए मुझे कुछ अलग की उम्मीद भी नहीं थी। मोटे तौर पर सरकार जो चाहती है वही होता है। आप कह सकते हैं कि वह कानूनन सही होता भले पीएमएलए के कारण हो। दूसरी तरफ, इसका संदेश यही है कि कोई अपना काम अच्छी तरह करे, सबूत न छोड़े (जांच एजेंसियां नालायकी करें या अपराधी अनुभवी हो) तो उसे सजा नहीं हो सकती है क्योंकि कानून को सबूत चाहिये। भ्रष्टाचार और रिश्वत खोरी की भूमिका यहां हो सकती है पर वह मुद्दा नहीं है। जब बिना मुख्यमंत्री काम चल सकता है तो मुद्दा क्या होगा यह भी मुद्दा है। लेकिन अभी नहीं। अरविन्द केजरीवाल अनुभवी चोर हैं, प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं। उनके बारे में सबूत नहीं है। पर उन्हें जमानत नहीं मिल रही है क्योंकि कानून (पीएमएलए) ऐसा ही है। पीएमएलए ऐसा क्यों और कैसे है, यह अभी यहां बताने की जरूरत नहीं है। मोटे तौर पर इसीलिए कि सरकार ऐसा चाहती है। सरकार ने चाहा तो संबंधित जज को ईनाम दिया। सरकार चाहती है इसलिए उसकी समीक्षा पर सुनवाई नहीं हो पाई, नहीं हो रही है। देश में सरकार और कानून की स्थिति यह है कि एक पूर्व तड़ी पार गृहमंत्री बन सकता है वह खुद से पहले वाले गृहमंत्री को जेल भेज सकता है, स्पष्ट दिखा कि हिसाब बराबर हो गया उसके बाद से मामले का कोई अता-पता नहीं है। यह सबके सामने है किसी को गलत या बुरा नहीं लग रहा है। ईवीएम और चुनाव आयोग की अपनी कहानी है। उसके बावजूद जनादेश मोदी सरकार के खिलाफ आया लेकिन नीतिश-नायडू के समर्थन से सरकार बन गई और सिर्फ सरकार बनती तो राजनीति होती उसे पूरी मजबूती दी गई और स्पीकर का चुनाव नहीं हो पाया सरकार जिसे चाहती थी उसे स्पीकर बना लिया। रमेश चंद्र विधूड़ी के मामले में कार्रवाई नहीं करने, मुहआ मोइत्रा की सदस्यता खत्म कर दिये जाने और उनके मामले में निर्णय करने वाले कई लोगों के हार जाने के बावजूद। उपाध्यक्ष नहीं बनाना है, अभी तक नहीं बना है। ऐसे में बजट कुर्सी बचाऊ ही होना था। है। किसी ने लिखा है, किसी ने नहीं पर सरकार का समर्थन तो है ही संभव है इसलिए हो कि प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि उनका गला घोंटा गया है। इस कार्यशैली का समर्थन सिर्फ लाभार्थी करते तो बात समझ में आती है पर बहुमत कर रहा है या बहुमत लाभार्थी है तो वह मिल-बांट कर खाना है। यह रिश्वत खोरी है लेकिन शिकायत राहुल गांधी की खटाखट योजना से थी। कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में शिकायत की थी। फैसला उनके पक्ष में नहीं हुआ पर ऐसा सोचने वाले लोग तो हैं। और इसलिए मिल-बांट कर खाने की यह व्यवस्था चल रही है, खटाखट। दूसरा कोई दल करे तो रिश्वतखोरी बताने की कोशिश होती है, मुकदमे होते हैं, मुफ्त की रेवड़ी होती है। प्रचार ऐसा है कि मुफ्त राशन पाने वाला उसे नमक समझता है वोट के रूप में उसकी कीमत अदा करता है। लेकिन वह कहानी भी अलग है। ऐसे में नीट की खबर आज हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड है, द हिन्दू में सिंगल कॉलम में है, इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है, अंदर होने की सूचना है, द टेलीग्राफ में सिंगल कॉलम में है जो अंदर जारी है। हिन्दी अखबारों में नवोदय टाइम्स में दो कॉलम में है और शीर्षक में ही बताया गया है कि चार लाख परीक्षार्थियों के चार अंक कम होंगे। इससे पहले कृपांक कम किये जा चुके हैं। कुल 720 अंक पाने वालों की संख्या कम हो चुकी है। लेकिन एनटीए से कोई शिकायत नहीं थी। उसकी अक्षमता और जांच या कार्रवाई से बचने की कोशिशें मुद्दा नहीं बनी। यह स्थिति तब है जब बजट को युवाओं पर करम मिडिल क्लास पर मरहम (नवोदय टाइम्स) कहा गया है। बजट की खास बात आज का द टेलीग्राफ का कोट भी है। पी चिदंबरम ने कहा है, मुझे यह जानकर खुशी है कि माननीय वित्त मंत्री ने कांग्रेस का घोषणा पत्र एलएस 2024 चुनाव नतीजों के बाद पढ़ा है। उनकी यह टिप्पणी बजट की तीन घोषणाओं के संबंध में है जो कांग्रेस के घोषणा पत्र से ली गई लगती हैं।    अब बजट से संबंधित अन्य शीर्षक और खबर के बारे में। साथ ही पहले पन्ने की दूसरी खबर के बारे में बशर्ते कुछ हो। इंडियन एक्सप्रेस में एक खबर है, 28 सांसदों के लिए शुक्रिया : बिहार, आंध्र प्रदेश पर लुटाना। दूसरी खबर का शीर्षक है, स्टार्ट अप के लिए बड़ी राहत, सरकार ने एंजल टैक्स खत्म किया। द टेलीग्राफ की एक खबर का शीर्षक है, कोई अहम कर छूट नहीं, पुरानी व्यवस्था से निराशा। दूसरी खबर है, दो बड़े सहयोगियो पर सुविधाओं की बरसात। टाइम्स ऑफ इंडिया ने बजट की खबर को बैनर बनाया है। ऊपर फ्लैग शीर्षक की शुरुआत लाल स्याही से छपा सवाल है – नतीजों से संचालित? इसके बाद कहा गया है, भाजपा ने प्रमुख राज्यों के चुनाव से पहले अकले बहुमत खोने के बाद के पहले बजट में मोदी सरकार ने प्रमुख राजनीतिक क्षेत्रों – खासकर युवाओं और महिलाओं – के साथ-साथ गठजोड़ साझेदारों की चिन्ताओं को दूर करने की कोशिश की है। मुख्य खबर का इंट्रो है – फॉर्मूला वन : अब काम कराने पर फोकस। एक शीर्षक है, टैक्सेज (कर) कुछ खुशी लाने के लिए पटरी बदली गई जो दूसरों को महंगी पड़ेगी। एक बड़ा सा शीर्षक है, सहयोगियों को फायदा : आंध्र प्रदेश और बिहार के लिए थैली खुली। द हिन्दू ने दो अलग खबरें छापी हैं। एक का शीर्षक है, आंध्र प्रदेश को राजधानी अमरावती के लिए 15,000 करोड़ रुपये मिलेंगे। बिहार को 58,900 करोड़ मिले हैं तो नीतिश ने बजट की तारीफ की। हिन्दुस्तान टाइम्स में मिन्ट की खबर का शीर्षक है, करों में बदलाव से वित्तीय बाजार पर प्रभाव। दूसरी खबर का शीर्षक है, युवा भारत को काम पर लगाने के लिए पांच बड़ी योजनाएं। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर का शीर्षक है, चार करोड़ को नौकरी देने, कौशल युक्त बनाने के लिए वित्त मंत्री ने दो लाख करोड़ रुपये रखे। 1500 प्वाइंट गिरने के बाद सेनसेक्स फिर से उछला। नवोदय टाइम्स की एक खबर का शीर्षक है, 17500 रुपये का लाभ वेतनभोगियों को। पत्रकार राजेश रपरिया की एक टिप्पणी है जिसका शीर्षक है, ‘जनादेश का संदेश’ का पूरा सम्मान। उमर उजाला की पहले पन्ने की खबरे हैं, मध्य वर्ग की ली सुध, 7.75 लाख तक आय पर शून्य कर। दूसरी खबर का शीर्षक है, निर्मला@7 : युवाओं के रोजगार के लिए पांच योजनाएं। पुल बहने के लिए हाल में खबरों में रहे बिहार को नरेन्द्र मोदी ने 26,000 करोड़ रुपए तीन नये एक्सप्रेसवे के लिए दिये हैं। विकास का पूर्वोदय के तहत अखबार ने बताया है कि बिहार का गया औद्योगिक केंद्र बनेगा। नरेन्द्र मोदी ने इसे समृद्धि की राह पर ले जाने वाला बजट कहा है तो यह मानना पड़ेगा कि बहुमत नहीं मिला तो उन्हें समृद्धि का ध्यान आया। इससे पहले नोटबंदी और जीएसटी के समय कहते थे कि उन्होंने हिम्मत की और यह प्रचारित करते थे कि इससे काला धन कम होगा, भ्रष्टाचार कम होगा तो उम्मीद थी कि जनता का समर्थन मिलेगा। पर वह नहीं मिला तो जो किया वह कुर्सी बचाने वाला बजट ही है। राहुल गांधी ने यही कहा है और अमर उजाला ने छापा है तो मुझे जीएसटी के सख्त प्रावधान याद आते हैं जो गुजरात विधानसभा चुनाव के समय ठीक किये गये।

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Dakhal News 24 July 2024


Don

नवनीत गुर्जर जहां सभी धर्म के लोग मिलजुल कर रहते हैं। जिसे हम गंगा- जामुनी तहज़ीब की धरती कहते और मानते हैं, वहाँ ये दुकान के आगे नाम लिखने, एक तरह से नाम लिखकर अपना धर्म बताने की ये कौन सी परम्परा चल पड़ी है? हैरत की बात यह है कि इस देश में ऐसे काम भी सरकारों के नाम पर किए जा रहे हैं। चाहे यह काम कोई प्रशासन या प्रशासनिक अफ़सर करे, कोई पुलिस अफ़सर करे या सरकार का कोई नुमाइंदा ही क्यों न करे, लेकिन सरकारें क्यों चुप बैठी रहती हैं? इन सरकारों में तो जनता के चुने हुए नुमाइंदे बैठे रहते हैं जिन्हें हर धर्म, हर जाति का व्यक्ति वोट देता है और ख़ुशी- ख़ुशी अपना प्रतिनिधि चुनता है। तभी तो वह जनप्रतिनिधि कहा जाता है। वह किसी जाति या धर्म का प्रतिनिधि नहीं होता। आख़िर क्यों सरकारें संविधान की अनदेखी करके देश के लिए अनचाहे फ़ैसले होने देती हैं? क्यों सरकारों के फ़ैसलों को दुरुस्त करने के लिए हमेशा कोर्ट, हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ता है। क्यों इस तरह के फ़ैसले लेने या होने देने से पहले सरकारों को कोर्ट का, क़ानून का या संविधान का डर नहीं लगता? ख़ैर देर आए, दुरुस्त आए और सरकार या किसी अफ़सर के आदेश को आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट ने ठीक कर दिया और एकदम सही फ़ैसला सुनाया। सही मायने में न्याय किया। जिस आदेश में कांवड़ियों की यात्रा के मद्देनज़र उस रास्ते में आने वाले हर दुकानदार को अपना नाम लिखने पर बाध्य किया जा रहा था, उस आदेश को रोकते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नाम ज़ाहिर करने की कोई ज़रूरत नहीं है। केवल यह ज़ाहिर करने की ज़रूरत है कि उस दुकान या होटल में जो भोजन या खाद्य सामग्री है, वह शाकाहारी है या मांसाहारी। आखिर न्याय हो गया। गंगा- जामुनी तहज़ीब बच गई। राज्य सरकारों को धर्म आधारित विवादों को इतना नहीं बढ़ाना चाहिए कि प्रशासन या पुलिस के आला अफ़सर प्रमोशन पाने, सरकार के हितैषी कहलाने या सरकार की नज़र में आने के लिए इस तरह के ऊल- जलूल आदेश देते फिरें जिससे देश में नए विवाद पैदा हों और गाँव, क़स्बों तथा शहरों की शांति भंग होने का ख़तरा पैदा हो जाए।

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Dakhal News 23 July 2024


tantrayana in buddhism

सत्येंद्र पी एस- कई साथियों ने जानने की कोशिश की और कहा कि आप बुद्धिज्म के वज्रयान या तंत्रयान के बारे में बताएं। तंत्रयान के बारे में बताने के लिए मैं बहुत छोटा आदमी हूँ। उस फील्ड में मेरी कोई प्रैक्टिस नहीं है। इधर उधर से पाया ज्ञान ही दे सकता हूँ। शायद यह फायदेमंद भी हो, क्योंकि बुद्धिज्म के जानकार गुरु उसे इतनी गहराई से बताते हैं कि दिमाग मे घुसना तो दूर की बात है, वह कई फुट दूर से ही गुजर जाता है।बुद्धिज्म का तंत्रयान शुद्ध श्रमण परंपरा है। बुद्धिज्म के तंत्रयान या वज्रयान की कई पद्धतियां हैं। बुद्ध ने दुःखों से मुक्ति के 84000 उपाय बताए हैं। लेकिन सभी के पीछे एक ही परिणाम है। विजडम, माइण्डफुलनेस और एनलाइटनमेंट। तरीके अलग अलग हो सकते हैं, लक्ष्य एक है। बुद्धिज्म के महामाया तंत्र की गुणवती टीका में लिखा गया है… तन्त्रम त्रिविधम। हेतुतन्त्रम, फलतन्त्रम, उपायतन्त्रम च। यानी तंत्र 3 प्रकार के होते हैं। हेतुतन्त्र, फल तंत्र, उपाय तंत्र। चित्त यानी बोधिचित्त निरन्तर बना रहता है। इसका कभी नाश या क्षय नहीं होता है। शून्यता यानी emptiness और प्रभास्वर यानी Luminosity को मिलाकर बोधिचित्त बनता है। सरल शब्दो मे कहें तो प्रकाशमान मस्तिष्क की प्रकृति को पहचानना हेतु तंत्र है। यानी अपका प्रकाशमान मस्तिष्क कैसे काम करता है, वह किस तरह व्यवहार कर रहा है, उसको पहचान लीजिए।जब आप इसको पहचान लेते हैं तो उससे काम लेने की बारी आती है। इस प्रकाशमान मस्तिष्क को इस्तेमाल कैसे किया जाए, इसी को फल तंत्र कहते हैं। जब आप फलतन्त्र पर पहुँचते हैं तो इम्पावरमेंट आ जाता है। समथा और विपश्यना यानी उत्पत्ति क्रम और निष्पन्न क्रम की प्रैक्टिस करने से एनलाइटनमेन्ट आ जाती है। मतलब जब आप ल्यूमिनस माइंड या प्रकाशमान मस्तिष्क को पहचान लेते हैं, पहचान करने के साथ उसका इस्तेमाल कर लेते हैं तो अगला क्रम प्रकाशमान मस्तिष्क पर मेडिटेट करने का नम्बर आता है।जब आप ल्यूमिनस माइंड से मेडिटेट करते हैं तो लगातार प्रैक्टिस से एनलाइटनमेन्ट हासिल हो जाता है। इसमें अनात्मबोध और शून्यताबोध किया जाता है। यही बज्रयान की प्रैक्टिस है। इसमें न तो कोई आत्मा है, न कोई ईश्वर है। बड़ा सीधा सा मसला है। लेकिन अपने प्रकाशमान मस्तिष्क की चाल पकड़ पाना है बहुत कठिन काम। आपका मस्तिष्क कैसे बेहतर फैसला करे, किस परिस्थिति में कौन सा निर्णय फिट होगा, यह जानना कठिन खेल है। हिंदू तंत्रयान ईश्वरवादी है। इसमें आत्मबोध किया जाता है। इसमें पशुआचार, वीराचार और दिव्याचार किया जाता है। हिन्दू तंत्रयान के मुताबिक “तननात त्रायते इति तन्त्रम।” यानी जीवात्मा को तानकर यानी उसको व्यापक करके ईश्वर में मिला दिया जाता है। पशुआचार में किसी देवता की शरण में जाया जाता है, काली, तारा, शिव…जिस की प्रैक्टिस करें। इसमें खुद को समर्पित कर दिया जाता है ईश्वर के लिए। इसमें कहा जाता है, दासोहम, यानी मैं आपका दास हूँ। वीराचार में खुद को ईश्वर में शामिल कर दिया जाता है। उसमें प्रैक्टिशनर काली, त्रिपुरसुंदरी, तारा में खुद को डिजॉल्व कर लेता है।उसके बाद दिव्याचार में प्रैक्टिसनर अपने को गायब कर देता है कि मैं कुछ नहीं हूँ। मैं बचा ही नहीं। मैं ईश्वर में समाहित हो गया। प्रैक्टिशनर कहता है शिवोहम, यानी मैं आपमें डिजॉल्व हो गया, मैं ही शिव हूँ। हिंदू तंत्र से मिलती जुलती प्रैक्टिस इस्लाम और ईसाई धर्म में भी है। मंसूर ने पहले खुद को अल्ला का सेवक कहा और उसके बाद अनलहक का नारा दिया कि मैं अल्ला में समाहित हो गया। कुल मिलाकर बुद्धिज्म का तंत्रयान बिल्कुल ही अलग चीज है। उम्मीद है कि स्थिति थोड़ी साफ हुई होगी कि बुद्धिज्म में तंत्रयान क्या है। आगे कुछ और सरल समझ पाया तो और सहज लिखूँगा। आप बताएं कि मामला कुछ समझ में आया क्या?

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Dakhal News 22 July 2024


Only this journalist, all else is useless

एस. पण्डित उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की मीडिया जगत में एक नई क्रांति देखने को मिल रही है जहाँ डबल इंजन रूपी पत्रकारिता के दो संगठनो द्वारा मुस्लिम बेरोजगारों को पत्रकारिता क्षेत्र के ग्लैमर में नया रूप देकर ढाला जा रहा है, अंडे वाले, चाय वाले, मोटर मैकेनिक, ज़रदोज़ी चिकनकारी, कबाड़ी, जिम ट्रेनर, फोटोजीवी, रील मेकर,बर्तन बेचने वालों को एक ऐसा स्टार्टअप दिया गया है जिसमें ना सिर्फ ग्लैमर है बल्कि उनके दो पहिया वाहन पर शक्तिशाली और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का प्रेस जैसा निशान लग जाता है। जिस वर्दीधारी पुलिसकर्मी को देखकर अपना मुंह छुपाते थे अब उसी के साथ पुराने लखनऊ की गलियों से सेल्फी लेकर समाज में अपना मान सम्मान और रुतबा झाड़ते फिरते हैं, ऐसे ही डबल इंजन के संगठन द्वारा विकसित किया गया नमूना सुप्पा कब्रिस्तान पर अनाधिकृत रूप से कब्जा करके बनाई गई साइकिल, मोटरसाइकिल मरम्मत की दुकान से निकला, कल तक जिसका काम था गाड़ियों की मरम्मत करके अपना रोजगार चलाना और अपनी मिस्त्रिगिरी के चलते उसको अवैध रूप से दारुलशफा में कब्जा जमाए बुजुर्ग पत्रकार का साथ मिलते ही पत्रकार का मिल गया तमगा।डबल इंजन के संगठनो की आड़ में चल रही दुकान को मिस्त्री की गाड़ी का सहारा मिलते ही दुकान के पहिये लग गए और मिस्त्री का प्रमोशन पत्रकार के रूप में हो गया। संगठनो की दुकान में कार का सारथी बनते ही मिस्त्री ने रफ्तार पकड़ ली और गूगल टाइप से मिले ज्ञान ने मिस्त्री को स्वंयभू वरिष्ठ पत्रकार बना दिया और उम्र के आखिरी पड़ाव के नौजवानी को मात करते नेताजी ने जिन फर्ज़ी प्रपत्रों पर अपनी वरिष्ठ पत्रकार की मान्यता सूचना विभाग से कराई थी उसी पैतरेबाजी से अपने ही परिवार के अखबार से नियमविरुद्ध जिला मान्यता प्राप्त पत्रकार का प्रमाण पत्र भी मिस्त्री को उपलब्ध करा दिया। सूत्रों की मानें तो इस मान्यता के लिए मिस्त्री को अवैध रूप से कब्जाई सुप्पा कब्रिस्तान की दुकान का सौदा करके 50000 की मिली धनराशि का नजराना भेंट स्वरूप डबल इंजन के संगठन को ईंधन के रूप में चढ़ाया गया और यह पहला मौका नहीं था जब डबल इंजन के संगठन के परिवार द्वारा संचालित समाचार पत्र से किसी को जिले की मान्यता दिला कर माल पकड़ा गया हो, इससे पूर्व भी एक महिला पत्रकार को अपने जाल में फंसा कर जिले की मान्यता देकर शोषण की कहानी सूचना विभाग से लेकर लखनऊ शहर के हर पत्रकार की जुबान पर है। डबल इंजन के संगठन के काम करने का तरीका भी ग्लैमर से भरा हुआ है, नामचीन समाजसेवी और प्रतिष्ठित होटल स्वामी के विरुद्ध आरटीआई एक्टिविस्ट से आरटीआई लगवाकर उनको डराने का काम किया जाता है और फिर अपने दोनों एक्टिविस्ट को रॉयल पकवान खिलवाकर समझौता करा दिया जाता है और प्रतिष्ठित होटल मालिक पर अपना प्रभुत्व जमाते हुए दुकान बढ़ाने के काम में लाया जाता है और फ्री का मॉल उड़ाते हुए अपनी तस्वीरों को सोशल मीडिया पर लहरा दिया जाता है। शासन-सत्ता मेरे हाथ की कठपुतली, मेरी मान्यता के लिए मेरे अपने नियम डबल इंजन के संगठन द्वारा दुकान बढ़ाने के लिए पुराने लखनऊ के कुछ ऐसे मुस्लिम नौजवानों को पकड़ा है जो किसी अन्य काम धंधे में लिप्त हैं और उनको पत्रकारिता का ग्लैमर दिखाकर जिले की मान्यता का लालच देकर सरकारी दारुलशफा का भौकाल दिखाया जाता है और जन्मदिन मरण दिन जैसे कार्यक्रमों में सेल्फी और रील बनाना सिखाया जाता है। फोटोजीवी डबल इंजन संगठन के कर्ताधर्ता मुस्लिम नौजवानों को चलने, हाथ हिलाने और रील रेल बनाने की ट्रेनिंग देकर सम्मान समारोह में ले जाकर सम्मानित करवाने के नाम पर शुल्क वसूलते है।

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Dakhal News 22 July 2024


Yogi removes the defects of mind

हिमालय के पावनतम शिखरों में से एक केदारनाथ की तराई में ही ऋषि अग्निहोत्र का आश्रम था। वर्षों की अखंड समाधि के बाद ऋषिवर अभी-अभी शिवरात्रि की पुण्य वेला में हिमालय से उतरकर अपने आश्रम को लौटे थे। उनके धवल, उन्नत व सौष्ठव शरीर की कांति देखते ही बनती थी। ऐसा लगता था मानो भूतभावन भगवान भोलेनाथ स्वयं ऋषि रूप में अपने भक्तों पर, शिष्यों पर अपना अनुग्रह बरसाने आए हों। उनके रोम-रोम से एक अजस्त्र ज्योतिधारा बहे जा रही थी और उस धारा में बहे जा रहे थे वे सौभाग्यशाली ऋषि कुमार, शिष्य गण जो लंबी प्रतीक्षा के बाद अपने आराध्य के दर्शन कर रहे थे एवं उनका सान्निध्य पा रहे थे। उनके पद्मनाभ से पद्म की अलौकिक सुगंध पूरे आश्रम परिसर में फैल रही थी। उनके नेत्रों से मानो तप की अग्नि ज्योति बनकर बह रही थी और सभी ऋषि कुमारों को आनंदित, आह्लादित व पुलकित किए जा रही थी। योग शास्त्रों में वर्णित योगसिद्ध, स्थितप्रज्ञ के सारे लक्षण, भाव दशा, देह दशा आज उनमें अभिव्यक्त हो रहे थे। आज सचमुच श्वेताश्वतर उपनिषद् 2/12 के मंत्र ऋषिवर के व्यक्तित्व में दृश्यमान तथा दृष्टिगोचर हो रहे थे। न तस्य रोगो नजरा न मृत्युः । प्राप्तस्य योगाग्निमयं शरीरम् ॥ अर्थात— योगाभ्यास करने वाले योगी के शरीर में न तो रोग होता है, न बुढ़ापा आता है। वह योगरूपी अग्निमय शरीर को प्राप्त करता है। आज उनके अग्निमय शरीर की आभा से शिष्य ही नहीं, बल्कि सारा आश्रम परिसर आह्लादित हो रहा था। उस आभामंडल में मनुष्य की कौन कहे, हिंसक पशु-पक्षी भी अपना वैर-भाव त्यागे जा रहे थे, भूले जा रहे थे और वास्तव में महर्षि पतंजलि के योगसूत्र 2/35 का यह मंत्र चरितार्थ हो रहा था— अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः ॥ अर्थात— जब योगी का अहिंसा भाव पूर्णतया दृढ़स्थिर हो जाता है, तब उसके निकटवर्ती हिंसक जीव भी वैर-भाव से रहित हो जाते हैं। आज सचमुच गीता—2/54 में अर्जुन द्वारा भगवान श्रीकृष्ण से पूछे गए इस प्रश्न के उत्तर के जीवंत प्रतीक बनकर ऋषिवर प्रस्तुत थे— स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव। स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ॥ अर्थात— हे केशव! समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थिरबुद्धि पुरुष का क्या लक्षण है? वह स्थिर बुद्धि पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है? आज हर शिष्य एवं ऋषिकुमार के समक्ष इन सभी प्रश्नों के उत्तर के रूप में ऋषिवर दृश्यमान हो रहे थे। जब व्यक्ति आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट हो जाता है, सभी कामनाओं का त्याग कर देता है, सर्वज्ञ स्नेहरहित हुआ शुभ या अशुभ वस्तु को पाकर भी न प्रसन्न होता है और न द्वेष करता है, तब मान लेना चाहिए कि उसकी बुद्धि स्थिर है। समाधि में परमात्मा का दर्शन होते ही उसकी आसक्ति समाप्त हो जाती है। यह ब्रह्म को प्राप्त हुए पुरुष की स्थिति है। इसको प्राप्त होकर वह योगी कभी मोहित नहीं होता और सदैव इसी ब्राह्मीभाव में स्थिर होकर ब्रह्मानंद की अनुभूति करता है। आज ऋषिवर की शांत, प्रशांत भावभंगिमा, चेहरे पर बुद्धपुरुषों-सा अपूर्व तेज देखकर हर कोई ब्रह्मपुरुष, बुद्धपुरुष के सान्निध्य की अनुभूति कर रहा था। आज वे अणिमा, लघिमा, महिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, वशित्व, ईशित्व आदि अष्टसिद्धियों के स्वामी बने बैठे थे, पर उनमें अहंकार का लेश मात्र भी न था; क्योंकि वे इन सिद्धियों के मोह से परे हो चुके थे, वे तो देह में रहते हुए भी विदेह हो चुके थे। ऋषिवर मौन थे। उनके अधरों पर स्वर्गीय मुस्कान अठखेलियाँ कर रही थी। आज वे मानो मौन रहकर ही अपने शिष्यों पर शक्तिपात कर रहे थे, स्नेह-संचार कर रहे थे। अपार आनंद में डूबे ऋषिकुमारों के मुख से भी आज कोई शब्द नहीं निकल रहे थे। वे चाहकर भी कुछ बोल नहीं पा रहे थे; क्योंकि उस प्रशांत आभामंडल की चिर शांति, प्रशांति ही इतनी प्रगाढ़ थी कि व्यक्त-अव्यक्त सब एक हो चले थे। इस प्रेमवर्षा में शिष्यों, समस्त ऋषिकुमारों के चित्त शुद्ध हुए जा रहे थे। वे गुरुवर के इस मौन रहस्य को खूब समझ रहे थे; क्योंकि वह प्रशांति अब उनके भीतर भी उतरकर उन्हें अपने आगोश में लिए जा रही थी। नेत्रों से आँसुओं की अविरल धारा बहे जा रही थी और उन आँसुओं में बहे जा रहे थे- उनके जन्म-जन्मांतरों के सभी चित्तविकार, संस्कार। चित्त निर्मल होते ही शिष्यों की आनंदानुभूति, ब्रह्मानुभूति गहरी और अधिक गहरी होती जा रही थी। गुरुवर के नेत्रों से निकल रही ब्रह्मज्योति अब शिष्यों के नाभिकमल में प्रवेश कर रही थी। उसके प्रवेश करने की अनुभूति, सिहरन, गुदगुदी एक अपूर्व थिरकन, पुलकन उनके स्थूलशरीर में हो रही थी। उनका नाभिकमल खिल चुका था। स्थूलशरीर के जागरण के साथ ही वह प्रकाशधारा, अग्निधारा, ब्रह्मधारा हृदय चक्र में प्रवेश पा रही थी। सूक्ष्मशरीर के समस्त क्लेशों, विकारों से उन्हें मुक्ति मिल रही थी। ब्रह्मकमल खिलते ही अब वह ब्रह्मधारा बरसने लगी और सहस्त्रदलकमल खिल उठे। कारणशरीर ब्रह्मज्योति से जगमगा उठा। चित्त की सदा-सर्वदा के लिए श्रद्धा में स्थिति हो गई, बोधत्व की प्राप्ति हो गई।          

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Dakhal News 22 July 2024


Reservation controversy in new era

डॉ. प्रभात ओझा यह सिर्फ संयोग हो सकता है कि हम बांग्लादेश में आरक्षण व्यवस्था के हिंसक विरोध के बीच भारत के दो बड़े राज्यों में इससे सम्बंधित हालिया हलचल की बात करें। हम कर्नाटक और महाराष्ट्र में इससे सम्बंधित हलचल के पहले बांग्लादेश के मुद्दे को समझें। वहां अभी कोटा पद्धति के तहत सरकारी नौकरियों में 56 प्रतिशत आरक्षण है। इनमें से अकेले 30 प्रतिशत 1971 के स्वाधीनता आंदोलन में शामिल सेनानियों के वशंजों के लिए है। ज्ञातव्य है कि एक लंबे आंदोलन और खूनी संघर्ष के बाद पाकिस्तान से अलग बांग्लादेश का उदय हुआ था। बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन में भारतीय सेनाओं की उल्लेखनीय मदद इतिहास की गौरव गाथा की तरह है। बहरहाल, वहां स्वतंत्रता सेनानियों के उत्तराधिकारियों के लिए आरक्षित 30 फीसदी सीटों के अलावा 10 प्रतिशत पिछले जिलों के निवासियों, इतना ही महिलाओं, 05 प्रतिशत अल्पसंख्यकों और 01 प्रतिशत विकलांग उम्मीदवारों के लिए है। इन दिनों 30 फीसद स्थान आजादी के लिए संघर्ष में शामिल लोगों के वंशजों के आरक्षण के खिलाफ इस देश में उबाल है। कई लोगों की जान जा चुकी है और सैकड़ों लोग घायल हैं। ये हालात भारत में वी.पी. सिंह सरकार के दौरान मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने के बाद हिंसक आंदोलनों की याद दिलाते हैं। फिलहाल तो दो बड़े राज्यों में शुरू आरक्षण सम्बंधी छोटी सी हलचल की चर्चा करते हैं। पिछले दिनों कर्नाटक और महाराष्ट्र में दो गतिविधि आरक्षण के मुद्दे पर सोचने की जरूरत बताती है। नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण देने की इजाजत संविधानसम्मत नहीं है। फिर भी कई राज्य सरकारों ने ऐसा किया है। अभी कर्नाटक में एक बिल आया, जिसके मुताबिक राज्य की प्राइवेट कंपनियों के लिए 50 से 100 फीसदी तक स्थानीय लोगों को ही नौकरियों में रखने की व्यवस्था है। बिल के कानून बनने से पहले ही प्राइवेट कंपनियों ने इस पर चिंता जताई। उनका तर्क था कि ऐसा करने से सेवाओं में सुयोग्य लोगों की कमी हो जाएगी। इसके लागू होने पर कुछ कंपनियों ने राज्य के बाहर जाने के भी संकेत दे डाले। कर्नाटक अन्य उद्योगों के साथ आईटी सेक्टर का ‘हब स्टेट’ माना जाता है। यहां देश से बाहर से भी लोग नौकरियों में हैं। कंपनियों के दबाव के बाद राज्य सरकार ने फिलहाल इस बिल को रोक लिया है। हालांकि अपने फैसले पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा है कि उनकी सरकार कन्नड़ हितों के मुद्दे पर ही बनी है। उप मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार भी इसी तरह के बयान देते हैं।     कर्नाटक के पहले भी कुछ सरकारों ने इस तरह के स्थानीय आरक्षण की पहल की है। इनमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा और मध्य प्रदेश शामिल हैं। इस तरह की कोशिश विवादों के बीच या तो रोक दी गईं अथवा न्यायालयों में विचाराधीन हैं। असल में हमारा संविधान जन्म अथवा निवास स्थान के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। कर्नाटक सरकार का नया बिल राज्य में पैदा हुए कन्नड़ लोगों अथवा निवास कर रहे कन्नड़भाषियों को आरक्षण देने वाला है। कर्नाटक के अलावा महाराष्ट्र में आरक्षण की नई सुगबुगाहट हुई है। अभी फरवरी में राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों में एक विधेयक पारित हुआ है। इस विधेयक के तहत ‘विशेष मराठा समुदाय’ के लिए नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण दिया गया है। महाराष्ट्र का मराठा समुदाय एक लड़ाका वर्ग रहा है और शासकों की श्रेणी में भी रहा। इस समुदाय के लोग आज कृषि से लेकर उद्योग-धंधों में भी हैं। शायद इसी को ध्यान में रखते हुए आरक्षण में क्रीमी लेयर का सिद्धांत रखा गया है। यानी इस समुदाय के जो लोग एक निश्चित आय से अधिक अर्जित करते हैं अथवा उनकी संपत्ति है, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। यह विधेयक रिटायर्ड जस्टिस सुनील बी. शुक्रे के नेतृत्व वाले महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की एक रिपोर्ट के आधार पर बना। इसके पहले 2014 और 2018 में भी मराठा समुदाय को आरक्षण देने की कोशिश हुई किंतु यह कानूनी आधार पर खारिज हो गया। इस आरक्षण पर नया विवाद इसलिए है कि आरक्षित मराठे अपने को कुनबी जाति में शामिल करने की मांग करते रहे हैं। इन्हें कुनबी जाति के प्रमाण पत्र जारी करने के प्रयास का अन्य पिछड़ा वर्ग विरोध कर रहा है। लोकसभा चुनाव के पहले भी यह मुद्दा छाया रहा और राज्य में भाजपा सहित विपक्षी गठबंधन को इसका नुकासान उठाना पड़ा है। अब विधानसभा चुनाव नजदीक है और मराठा आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पाटिल को दोनों खेमे अपने साथ रखने की कोशिश में हैं। विरोध ओबीसी कोटे के अंदर मराठाओं को आरक्षण देने की कोशिश पर है।  सामाजिक-आर्थिक रूप से सक्षम समुदायों की आरक्षण की मांग नई नहीं है। मराठों के पहले हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय भी ऐसी मांग करता रहा है। वर्ष 2016 में तो उसके आंदोलन से हरियाणा में जनजीवन लगभग 10 दिनों तक ठप ही पड़ गया था।  इस पूरे परिदृश्य में मुख्य बिंदु यह है कि नौकरी की उम्मीद पाले लोगों की जरूरतों के मुताबिक पब्लिक सेक्टर की सीमाएं और अधिक बढ़ती जा रही हैं। दूसरी ओर प्राइवेट सेक्टर अपने उत्पादन लक्ष्यों और लागत को ध्यान में रखते हुए किसी भी तरह के बाहरी दबाव को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं। इन दबावों में सरकारों के आरक्षण सम्बंधी नियम भी हैं। उन्हें लगता है कि अपने काम में दक्ष लोग ही उनके लिए आरक्षित वर्ग में हैं, चाहें वे किसी भी जातीय समुदाय से हों। दुख है कि नौकरियों के साथ शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण भी विवाद में आ गया है। वहां इस तरह की मांग उठने लगी है कि जरूरतमंदों को आर्थिक संबल देकर शिक्षित बनाया जाए। आरक्षण का किसी भी तरह का नया विवाद एक आशंका को जन्म देता है। इस तरह की आशंकाओं को समूल खत्म करना प्रमुख विचारणीय मुद्दा होना चाहिए। स्वरोजगार और उसके लिए सरकारी सहायता को बहुत अधिक बढ़ाया जाना आवश्यक है। (लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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Dakhal News 20 July 2024


There is a lot in the name

विक्रम उपाध्याय  उत्तर प्रदेश में दुकानदारों के लिए मालिक का नाम लिखने को अनिवार्य क्या बना दिया गया, सेकुलर जमातों के बदन में आग लग गई। तरह-तरह के अनर्गल प्रलाप किए जाने लगे हैं। कोई यह कह रहा है कि यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हिन्दू-मुसलमान में विभेद पैदा करने की कोशिश है तो कोई यह कह रहा है कि योगी हिटलर के नाजीवाद की तरह हिन्दूवाद फैला रहे हैं। गोया यह कि पहली बार कोई देश में मुसलमानों को पहचान बताने के लिए कह रहा है। राशन कार्ड से लेकर आधार कार्ड तक। स्कूल से लेकर नौकरी तक हर जगह देश के नागरिक को अपना नाम और धर्म के बारे में लिखना अनिवार्य है। यह कानूनी बाध्यता भी है और सभी धर्मों में प्रचलन भी। जिस उत्तर प्रदेश की बात हो रही है उसी प्रदेश में मुसलमानों की बस्तियां और उनके संस्थानों के नाम भी मुस्लिम हैं। केवल प्रदेश के मुसलमान ही नहीं, पूरे भारत के मुसलमान अपनी पहचान को आगे रख कर तब हमेशा चलते हैं, जब उनको लाभ लेना होता है, जब उनको वोट देना होता है, जब उनको सरकार या समाज के खिलाफ आंदोलन या प्रदर्शन करना होता है। और छोड़िए, देश के किसी भी कोने में चले जाइए। सुबह हो शाम, मुहल्ले में हो बाजार में, अधिकतर मुसलमान अपनी पहचान जताने के लिए सिर पर गोल टोपी धारण किए हुए दिखते हैं।  हां, कुछ सालों में कुछ मुसलमानों ने तब अपनी पहचान छुपाई, जब उनको कोई अपराध करना होता है। जब स्कूल-काॅलेज गोइंग लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फांसना होता है। कुछ मुसलमान तब अपना नाम बताने से गुरेज करते हैं जब उनको हिन्दू के मोहल्ले में जाकर सब्जियां, फल या कपड़े बेचने होते हैं। कुछ मुसलमान तब भी अपनी पहचान छिपाते हैं, जब उनको किसी हिन्दू लड़की से दूसरी या तीसरी शादी करनी होती है। ये कुछ उदाहरण नहीं हैं। बल्कि पिछले दिनों कई बार टेलीविजन स्क्रीन पर दिखाया जा चुका है कि किस तरह कोई मुसलिम रसोइया हिन्दू की शादियों या त्योहारों में खाना बनाने के बाद उसमें थूकते हैं। जावेद हबीब जैसे पढ़े-लिखे मशहूर लोग किसी के बाल संवारते वक्त उसके सिर में थूक की लेप लगाते हैं। ऐसा उत्तर प्रदेश में भी हुआ और देश के अन्य हिस्सों में। अब जो सेकुलर जमाती यह कह रहे हैं कि मुस्लिम दुकानदारों के नाम उजागर कर के उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़ा पाप कर दिया है, क्या वे लोग इससे इनकार कर सकते हैं कि दुनिया का कोई भी मुसलमान अपने मजहब या अपने पैगंबर के अलावा किसी और को दिल से नहीं मानता। उसके लिए पवित्रता या श्रद्धा सिर्फ उसके मजहब तक ही सीमित है किसी भी और धर्म या मजहब के लिए सेवा या श्रद्धा भाव ऊपरी मन या स्थानीय दबाव के अलावा कुछ नहीं होता।  क्या कोई बड़ा सेकुलर वि़द्वान यह बता सकता है कि कब किसी मुसलमान ने मंदिर में आकर तिलक लगाया है, या कब किसी मुस्लिम ने किसी मंदिर में श्रद्धा के दीपक जलाए हैं। यह संभव ही नहीं है, क्योंकि इस्लाम उन्हें इस बात की इजाजत ही नहीं देता कि वह ऐसा कर सके। यदि इस सच्चाई के बाद कोई सरकार यह इंतजाम करती है कि कांवड़ तीर्थयात्रियों की भक्ति में विघ्न ना पड़े, उनके व्रत का खंडन न हो या फिर उनके प्रति कोई शैतानी न कर सके तो इसमें गलत क्या है। जिस मनोयोग से शिवभक्त उपासक कांवड़ लेकर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर शिव मंदिर में जल चढ़ाने जाते हैं, सोचिए (सोचना ही होगा),  यदि उन्हें यह पता चलता है कि उनकी भक्ति दूषित हो गई है, उन्हें उन्हीं बर्तनों में किसी ने खाना खिला दिया है, जिन बर्तनों में वे हमेशा मांस पकाते या परोसते रहे हैं, तो उन पर क्या बीतेगी। यदि यही बात उन्हें कांवड़ के समय पता चलती है तो फिर माहौल क्या होगा। कांवड़ के दौरान दंगे-फसाद इसी उत्तर प्रदेश ने खूब देखे हैं, जिसे मुसलमान यूपी कहकर पुकारते हैं।  हाय-तौबा मचा रहे सेकुलर जमातियों से यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि यदि दुकानदार अपनी दुकानों पर अपना नाम लिखते हैं तो यह उनके व्यवसाय पर हमला कैसे हो गया? उनके साथ यह भेदभाव कैसे हो गया? जिन लोगों को उनके यहां खाना हो या जिनके यहां से फल या सब्जी लेना हो उनको कौन रोकेगा। स्थानीय मुस्लिम होटल या हिन्दू होटल के बारे में लोगों को आमतौर पर पहले ही पता होता है। ज्यादातर होटलों के अपने बंधे-बंधाए ग्राहक भी होते हैं। अरे, सेकुलरवादियो बताओ भी, फिर नाम लिखने से उनका धंधा कैसे चौपट हो जाएगा? यह सावधानी तो सिर्फ उनके लिए बरती जाएगी, जो स्थानीय नहीं है। वर्ष में एक या दो बार ये कांवड़ तीर्थयात्री उस क्षेत्र से होकर गुजरते हैं। हरिद्वार से कांवड़ लेकर आने वाले श्रद्धालु केवल यूपी के नहीं होते, हरियाणा और राजस्थान के भी होते हैं। जो ज्यादातर सात्विक भोजन करने वाले होते हैं। उनको यूपी में पतित करने वालों से बचाने में किसी छिपे एजेंडे का काम कैसे हो सकता है।  भारत में मुसलमानों की संख्या किसी भी मुस्लिम देश की जनसंख्या से ज्यादा है। इंडोनेशिया को छोड़ दें तो भारत में सबसे अधिक मुसलमान रहते हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या को किसी हिन्दू त्यौहार से खतरा हो जाए यह संभव नहीं है। यह भी संभव नहीं है कि किसी के कहने से देश के हिन्दू मुसलमानों के साथ कारोबार करने से इनकार कर दे। उनके साथ व्यापारिक लेनदेन बंद कर दें। उत्तर प्रदेश का हर शहर मुसलमान व्यापारियों से पटा पड़ा है। अधिकतर कारीगर मुस्लिम हैं। ये खूब फल-फूल भी रहे हैं। किसी हिन्दू के यहां ना इनका आना जाना रुक सकता है और ना इनसे कोई सामान लेने से इनकार कर सकता है। फिर यह तर्क क्यों दिया जा रहा है कि मुसलमानों के रोजगार को टारगेट करने के लिए दुकानदारों के नाम लिखवाए जा रहे है। ऐसा हरगिज नहीं है। इसे इस तरह समझिए। जैसे मुसलमान साल के एक महीने पूरी तरह रोजा रखते हैं। उसमें किसी तरह की कोई कोताही या कोई चूक नहीं होने देना चाहते। वह इस पाक महीने में इस्लामिक नियमों का तसल्ली से पालन करते हैं। वे किसी और की दखल बर्दाश्त नहीं करते, उसी तरह हिन्दुओं के लिए भी सावन का एक ही महीना आता है जब वह सड़कों पर होते हैं। नये रूट से अपने मंदिरों की ओर जल भरकर लौटते हैं। उनको यह अधिकार है कि वह यह जानें कि वह जो भोजन कर रहे हैं, उनकी आस्था के अनुरूप है, जिनसे वह प्रसाद या पूजा की सामग्री खरीद रहे हैं, वह उन्हें उनकी धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है और उसका आदर करता है। यह भाव कोई हिन्दू दीपावली या होली में उतना आग्रह से नहीं रखता। उसे मालूम हो या ना हो कि दीपावली का दिया बेचने वाला उसके धर्म का है कि नहीं, वह खरीदता ही है। मगर शिव साधना या गायत्री पूजन में यह लापरवाही नहीं करना चाहता। सेकुलर जमातों को यह समझ में आना चाहिए। (लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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Dakhal News 20 July 2024


There is a lot in the name

विक्रम उपाध्याय  उत्तर प्रदेश में दुकानदारों के लिए मालिक का नाम लिखने को अनिवार्य क्या बना दिया गया, सेकुलर जमातों के बदन में आग लग गई। तरह-तरह के अनर्गल प्रलाप किए जाने लगे हैं। कोई यह कह रहा है कि यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हिन्दू-मुसलमान में विभेद पैदा करने की कोशिश है तो कोई यह कह रहा है कि योगी हिटलर के नाजीवाद की तरह हिन्दूवाद फैला रहे हैं। गोया यह कि पहली बार कोई देश में मुसलमानों को पहचान बताने के लिए कह रहा है। राशन कार्ड से लेकर आधार कार्ड तक। स्कूल से लेकर नौकरी तक हर जगह देश के नागरिक को अपना नाम और धर्म के बारे में लिखना अनिवार्य है। यह कानूनी बाध्यता भी है और सभी धर्मों में प्रचलन भी। जिस उत्तर प्रदेश की बात हो रही है उसी प्रदेश में मुसलमानों की बस्तियां और उनके संस्थानों के नाम भी मुस्लिम हैं। केवल प्रदेश के मुसलमान ही नहीं, पूरे भारत के मुसलमान अपनी पहचान को आगे रख कर तब हमेशा चलते हैं, जब उनको लाभ लेना होता है, जब उनको वोट देना होता है, जब उनको सरकार या समाज के खिलाफ आंदोलन या प्रदर्शन करना होता है। और छोड़िए, देश के किसी भी कोने में चले जाइए। सुबह हो शाम, मुहल्ले में हो बाजार में, अधिकतर मुसलमान अपनी पहचान जताने के लिए सिर पर गोल टोपी धारण किए हुए दिखते हैं।  हां, कुछ सालों में कुछ मुसलमानों ने तब अपनी पहचान छुपाई, जब उनको कोई अपराध करना होता है। जब स्कूल-काॅलेज गोइंग लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फांसना होता है। कुछ मुसलमान तब अपना नाम बताने से गुरेज करते हैं जब उनको हिन्दू के मोहल्ले में जाकर सब्जियां, फल या कपड़े बेचने होते हैं। कुछ मुसलमान तब भी अपनी पहचान छिपाते हैं, जब उनको किसी हिन्दू लड़की से दूसरी या तीसरी शादी करनी होती है। ये कुछ उदाहरण नहीं हैं। बल्कि पिछले दिनों कई बार टेलीविजन स्क्रीन पर दिखाया जा चुका है कि किस तरह कोई मुसलिम रसोइया हिन्दू की शादियों या त्योहारों में खाना बनाने के बाद उसमें थूकते हैं। जावेद हबीब जैसे पढ़े-लिखे मशहूर लोग किसी के बाल संवारते वक्त उसके सिर में थूक की लेप लगाते हैं। ऐसा उत्तर प्रदेश में भी हुआ और देश के अन्य हिस्सों में। अब जो सेकुलर जमाती यह कह रहे हैं कि मुस्लिम दुकानदारों के नाम उजागर कर के उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़ा पाप कर दिया है, क्या वे लोग इससे इनकार कर सकते हैं कि दुनिया का कोई भी मुसलमान अपने मजहब या अपने पैगंबर के अलावा किसी और को दिल से नहीं मानता। उसके लिए पवित्रता या श्रद्धा सिर्फ उसके मजहब तक ही सीमित है किसी भी और धर्म या मजहब के लिए सेवा या श्रद्धा भाव ऊपरी मन या स्थानीय दबाव के अलावा कुछ नहीं होता।  क्या कोई बड़ा सेकुलर वि़द्वान यह बता सकता है कि कब किसी मुसलमान ने मंदिर में आकर तिलक लगाया है, या कब किसी मुस्लिम ने किसी मंदिर में श्रद्धा के दीपक जलाए हैं। यह संभव ही नहीं है, क्योंकि इस्लाम उन्हें इस बात की इजाजत ही नहीं देता कि वह ऐसा कर सके। यदि इस सच्चाई के बाद कोई सरकार यह इंतजाम करती है कि कांवड़ तीर्थयात्रियों की भक्ति में विघ्न ना पड़े, उनके व्रत का खंडन न हो या फिर उनके प्रति कोई शैतानी न कर सके तो इसमें गलत क्या है। जिस मनोयोग से शिवभक्त उपासक कांवड़ लेकर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर शिव मंदिर में जल चढ़ाने जाते हैं, सोचिए (सोचना ही होगा),  यदि उन्हें यह पता चलता है कि उनकी भक्ति दूषित हो गई है, उन्हें उन्हीं बर्तनों में किसी ने खाना खिला दिया है, जिन बर्तनों में वे हमेशा मांस पकाते या परोसते रहे हैं, तो उन पर क्या बीतेगी। यदि यही बात उन्हें कांवड़ के समय पता चलती है तो फिर माहौल क्या होगा। कांवड़ के दौरान दंगे-फसाद इसी उत्तर प्रदेश ने खूब देखे हैं, जिसे मुसलमान यूपी कहकर पुकारते हैं।  हाय-तौबा मचा रहे सेकुलर जमातियों से यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि यदि दुकानदार अपनी दुकानों पर अपना नाम लिखते हैं तो यह उनके व्यवसाय पर हमला कैसे हो गया? उनके साथ यह भेदभाव कैसे हो गया? जिन लोगों को उनके यहां खाना हो या जिनके यहां से फल या सब्जी लेना हो उनको कौन रोकेगा। स्थानीय मुस्लिम होटल या हिन्दू होटल के बारे में लोगों को आमतौर पर पहले ही पता होता है। ज्यादातर होटलों के अपने बंधे-बंधाए ग्राहक भी होते हैं। अरे, सेकुलरवादियो बताओ भी, फिर नाम लिखने से उनका धंधा कैसे चौपट हो जाएगा? यह सावधानी तो सिर्फ उनके लिए बरती जाएगी, जो स्थानीय नहीं है। वर्ष में एक या दो बार ये कांवड़ तीर्थयात्री उस क्षेत्र से होकर गुजरते हैं। हरिद्वार से कांवड़ लेकर आने वाले श्रद्धालु केवल यूपी के नहीं होते, हरियाणा और राजस्थान के भी होते हैं। जो ज्यादातर सात्विक भोजन करने वाले होते हैं। उनको यूपी में पतित करने वालों से बचाने में किसी छिपे एजेंडे का काम कैसे हो सकता है।  भारत में मुसलमानों की संख्या किसी भी मुस्लिम देश की जनसंख्या से ज्यादा है। इंडोनेशिया को छोड़ दें तो भारत में सबसे अधिक मुसलमान रहते हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या को किसी हिन्दू त्यौहार से खतरा हो जाए यह संभव नहीं है। यह भी संभव नहीं है कि किसी के कहने से देश के हिन्दू मुसलमानों के साथ कारोबार करने से इनकार कर दे। उनके साथ व्यापारिक लेनदेन बंद कर दें। उत्तर प्रदेश का हर शहर मुसलमान व्यापारियों से पटा पड़ा है। अधिकतर कारीगर मुस्लिम हैं। ये खूब फल-फूल भी रहे हैं। किसी हिन्दू के यहां ना इनका आना जाना रुक सकता है और ना इनसे कोई सामान लेने से इनकार कर सकता है। फिर यह तर्क क्यों दिया जा रहा है कि मुसलमानों के रोजगार को टारगेट करने के लिए दुकानदारों के नाम लिखवाए जा रहे है।   ऐसा हरगिज नहीं है। इसे इस तरह समझिए। जैसे मुसलमान साल के एक महीने पूरी तरह रोजा रखते हैं। उसमें किसी तरह की कोई कोताही या कोई चूक नहीं होने देना चाहते। वह इस पाक महीने में इस्लामिक नियमों का तसल्ली से पालन करते हैं। वे किसी और की दखल बर्दाश्त नहीं करते, उसी तरह हिन्दुओं के लिए भी सावन का एक ही महीना आता है जब वह सड़कों पर होते हैं। नये रूट से अपने मंदिरों की ओर जल भरकर लौटते हैं। उनको यह अधिकार है कि वह यह जानें कि वह जो भोजन कर रहे हैं, उनकी आस्था के अनुरूप है, जिनसे वह प्रसाद या पूजा की सामग्री खरीद रहे हैं, वह उन्हें उनकी धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है और उसका आदर करता है। यह भाव कोई हिन्दू दीपावली या होली में उतना आग्रह से नहीं रखता। उसे मालूम हो या ना हो कि दीपावली का दिया बेचने वाला उसके धर्म का है कि नहीं, वह खरीदता ही है। मगर शिव साधना या गायत्री पूजन में यह लापरवाही नहीं करना चाहता। सेकुलर जमातों को यह समझ में आना चाहिए। (लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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Dakhal News 20 July 2024


पुलिसकर्मियों के बच्चों के लिए समर कैंप

इनडोर और आउटडोर खेल का होगा आयोजन ग्वालियर पुलिस की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार केन्द्रीय जेल बहोड़ापुर के समीप पुलिस लाइन में समर कैंप लगाया गया 30 दिन तक चलने वाले इस समर कैंप का उद्घाटन पुलिस महानिरीक्षक ग्वालियर जोन अरविंद सक्सेना, डीआईजी ग्वालियर रेंज कृष्णावेणी देशावतु और ग्वालियर पुलिस अधीक्षक धर्मवीर सिंह ने बच्चों की उपस्थिति में किया पुलिसकर्मियों के बच्चों के लिए आयोजित समर कैम्प 30 दिन तक चलेगा इसमें विभिन्न इनडोर और आउटडोर खेल का आयोजन किया जाएगा समर कैंप को आयोजित करने का उद्देश्य बच्चों को नई चीजें सिखाना, उनमें स्वतंत्रता की भावना विकसित करना और बच्चों में सामाजिक कौशल और आत्मविश्वास का विकास करना है

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Dakhal News 20 May 2024


सीबीआई इंस्पेक्टर 10 लाख की रिश्वत लेते गिरफ्तार

मप्र नर्सिंग घोटाला मामले में बड़ी कार्रवाई मध्यप्रदेश में नर्सिंग घोटाले के मामले में दिल्ली सीबीआई की टीम लगातार कार्रवाई कर रही है प्रदेश के 70 नर्सिंग कॉलेज उनकी रडार पर है सीबीआई को भ्रष्टाचार के कई इनपुट मिले है इसी कड़ी में दिल्ली सीबीआई की एक टीम ने भोपाल में सीबीआई के एक इंस्पेक्टर राहुल राज के प्रोफेसर कॉलोनी स्थित घर पर छापा मारा और उन्हें रिश्वत लेते पकड़ा सीबीआई निरीक्षक को रिश्वत देने वाले भोपाल के मलय कॉलेज ऑफ नर्सिंग के चेयरमैन अनिल भास्करन और एक मीडिएटर सचिन जैन को भी गिरफ्तार किया है राहुल राज सही सुइटबिलिटी रिपोर्ट देने के नाम पर रिश्वत ले रहे थे गिरफ्तारी के बाद चारों आरोपियों को भोपाल में सीबीआई कोर्ट में पेश किया गया जहां कोर्ट ने सभी आरोपियों को 29 मई तक पीआर पर भेज दिया है...वहीं इस मामले में एनएसयूआई ने बड़ा दावा किया है एनएसयूआई का कहना है कि उनकी शिकायत के बाद सीबीआई के इंस्पेक्टर राहुल राज की रिश्वत लेते गिरफ्तारी हुई है एनएसयूआई नेता रवि परमार का कहना है कि वे जल्द ही अन्य भ्रष्टाचारी निरीक्षकों और नर्सिंग फर्जीवाड़े में शामिल कॉलेज संचालकों और दलालों की जानकारी सीबीआई को देंगे

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Dakhal News 20 May 2024


खेल के साथ स्वच्छता की दिलाई गई शपथ

तियरा में ग्रीष्म कालीन समर कैंप का आयोजन तियरा पंचायत में ग्रीष्मकालीन समर स्पोर्टस कैंप में सिंगरौली विधायक रामनिवास शाह विशेष रूप से मौजूद रहे सिंगरौली सिंघम स्पोर्ट्स के अध्यक्ष संजय शाह सहित का इस आयोहन में विशेष योगदान रहा इस समर कैंपमें बच्चों को तमाम खेल गतिविधियों को लेकर शिक्षा , स्वास्थ्य सहित, स्वच्छता को लेकर प्रशिक्षण दिया गया विधायक राम निवास शाह ने  कैंप के लिए  एक करोड़ 60 लाख रुपए दिए जहां युवा खेलकूद कल्याण विभाग के माध्यम से  कई सामग्रिया उपलब्ध कराई गई विधायक रामनिवास शाह कैम्प में बच्चों  के साथ योग व प्राणायाम किया इसके  साथ ही उन्होंने बच्चों से कहा कि आपको किसी भी प्रकार की कमी नही आने देंगे। हम खेलकूद से लेकर पढ़ाई लिखाई तक सभी व्यवस्थाऐ करेंगे उन्होंने बच्चों को स्वच्छता की शपथ दिलाई और कहा खेल भी स्वच्छता के साथ होना चाहिए 

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Dakhal News 20 May 2024


छुही की खदान में डूबा बालक

एसडीईआरएफ की टीम ने रेस्क्यू किया खदान में भरा पानी एक मासूम की मौत का सबब बन गया मामला अमरपाटन के रामनगर थाना अंतर्गत ग्राम खोमरहा का है यहां एक दस साल का बालक छुही की खदान में भरे पानी में नहाने गया था नहाने के दौरान वह डूब गया वापस घर नहीं लौटा तो परिजनों ने उसकी तलाश शुरू की उसके कपड़े छुही खदान के पास पड़े मिले जिसके बाद पुलिस को सूचना दी गई सूचना के बाद एस डी ई आर एफ की टीम भी मौके पर पहुंची घंटों चली तलाश के बाद बालक का शव बाहर निकाला जा सका पुलिस ने शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज कर तफ्तीश शुरू कर दी है

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Dakhal News 19 May 2024


हल्द्वानी शहर में गहराया पेयजल संकट

आधे शहर की आबादी पेयजल टैंकरों के सहारा हल्दवानी में प्रचंड गर्मी और पानी कि कमी के चलते लोगों का जीना दूभर हो गया है आए दिन जल संस्थान में लोग पहुंच रहे हैं और पानी की समस्या को लेकर प्रदर्शन कर रह है ऐसे हालात में अब जल संस्थान के अधिकारी भी अब बगले झांकने लगे हैं बारिश न होने और गर्मी के बीच गौला नदी का जल स्तर काफी नीचे गिर गया है आलम यह है कि अब शहर की आधी आबादी को पेयजल टैंकरों का सहारा लेना पड़ रहा है इधर नैनीताल जिलाधिकारी वंदना का कहना है कि पूरे जिले में 32 टैंकर दौड़ रहे हैं लोगों से अपील की जा रही है कि पानी की बरबादी न करें उन्होंने कहा कि नलकूप की मोटरें भी स्पेयर के तौर पर रखी गई हैं ताकि पानी की आपूर्ति बाधित न हो पाए वही जल जीवन मिशन के तहत चल रहे कार्य भी जल्द पूर्ण कर लिए जाएंगे ताकि पानी कि किल्लत का संपूर्ण समाधान हो सके

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Dakhal News 18 May 2024


बीआईसीसीआई पिछड़ा वर्ग के युवाओं को देगा रोजगार

एक साल में पांच लाख युवाओं को रोजगार देने का लक्ष्य बीआईसीसीआई संस्था ने आज राजधानी भोपाल में पिछड़ा वर्ग के सभी व्यवसायियों का एक सेमिनार आयोजित किया जिसमें सभी प्रबुद्धजनों ने प्रदेश में किस तरीके से युवाओं को रोजगार दिया जाए इस पर अपने विचार रखें इस दौरान प्रदेश में 2025 तक 5 फैक्ट्री लगाने की बात की गई जिसके माध्यम से प्रदेश के 5 लाख युवाओं को रोजगार दिया जाएगा

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Dakhal News 18 May 2024


खाद्य विभाग ने की ताबड़तोड़ छापेमारी

आधा दर्जन दुकानों के काटे चालान लालकुंआ खाद्य विभाग के अधिकारी संजय कुमार सिंह और क्षेत्रीय खाद्य अधिकारी कैलाश चन्द्र के नेतृत्व में खाद्य विभाग की टीम ने नगर की आधा दर्जन दुकानों में ताबड़तोड़ छापेमारी की इस दौरान कई दुकानों में एक्सपायरी डेट के सामान के साथ भारी गंदगी पाई गयी जिन्हें सख्त हिदायत दी गई कि भविष्य में वह अपने प्रतिष्ठानों में साफ सफाई रखेंगे खाद्य विभाग की छापेमारी अभियान के दौरान नगर के दुकानदारों में हड़कंप मचा रहा

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Dakhal News 17 May 2024


दोस्त निकला कातिल, चेकआउट के दाैरान पकड़ाया

भोपाल की युवती दोस्त के साथ गई थी मनाली राजधानी भोपाल के शाहपुरा इलाके में रहने वाले वाली शीतल कौशल घर से बिना बताए अपने हरियाणा के दोस्त विनोद ठाकुर के साथ मनाली घूमने गई थी यहां दोनों ने होटल केडी विला का कमरा नंबर-302 बुक किया था बीती शाम के समय जब युवक विनोद अकेला ही होटल से जाने लगा तो उसने वॉल्वो बस स्टैंड जाने के लिए टैक्सी मंगवा ली ऐसे में वह एक भारी भरकम बैग को गाड़ी में डाल रहा था इस दौरान होटल के स्टाफ को भी शक हुआ और तुरंत मनाली पुलिस को सूचना दी इस बीच युवक मौके से फरार हो गया...पुलिस की टीम तुरंत मौके में पहुंची और टैक्सी में रखे गए बैग को जब बोला गया तो उसमें युवती का शव पाया गया पुलिस की टीम ने तुरंत नाकाबंदी शुरू कर आरोपी युवक को गिरफ्तार कर लिया भोपाल जोन वन डीसीपी प्रियंका शुक्ला का कहना है कि इस मामले में मनाली पुलिस कार्रवाई कर रही है

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Dakhal News 17 May 2024


मप्र में 19 मई तक चलेंगी गर्म हवाएं

प्रदेश के 10 जिलों में बूंदाबांदी के आसार मौसम विभाग ने बताया कि पिछले कुछ दिन से वेस्टर्न डिस्टरबेंस, दो साइक्लोनिक सर्कुलेशन और ट्रफ लाइन की वजह से बारिश, ओले और आंधी वाला मौसम बना हुआ है अभी भी इनकी एक्टिविटी है हालांकि, गुरुवार से असर कम होने लगेगा सिस्टम कमजोर होने से भिंड-दतिया में हीट वेव चलेगी कुछ जगहों पर बादल भी बने रहेंगे मौसम विभाग के अनुसार 17 मई को उत्तर भारत में एक और वेस्टर्न डिस्टरबेंस एक्टिव हो रहा है इसका असर 20 मई से प्रदेश के कुछ हिस्सों में देखने को मिल सकता है

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Dakhal News 16 May 2024


सर्वोदय हॉस्पिटल में परामर्श की सुविधा

सिस्टमैटिक ऑटो इम्यून के लिए मिलेगा परामर्श अब सर्वोदय हॉस्पिटल में  सिस्टमैटिक ऑटो इम्यून के लिए निशुल्क परामर्श मिलेगा डॉक्टर गौरव सेठ ने जानकारी देते हुए बताया कि सिस्टमैटिक ऑटो इम्यून बीमारियों के एक समूह जहां किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली इम्यून सिस्टम शरीर के जोड़ों पर हमला करती है उनका इलाज रूमेटोलॉजिस्ट द्वारा किया जाता है आमतौर पर यह शरीर के उन क्षेत्र में सूजन पैदा करता है जहां इसकी आवश्यकता नहीं होती है दर्द सूजन और शरीर के अन्य अंग खराब करने जैसी समस्याएं होती हैं यह रोग शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकते हैं उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि यह बीमारी किसी भी उम्र में और किसी को भी हो सकती है इसका इलाज समय पर नहीं किया जाए तो गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं

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Dakhal News 16 May 2024


स्कूल संचालक मिनीराज मोदी गिरफ्तार

आठ वर्षीय मासूम से ज्ञान गंगा होस्टल में दुष्कर्म मिसरोद पुलिस ने ज्ञान गंगा स्कूल के संचालक मिनीराज मोदी को आठ वर्षीय मासूम से छात्रावास में दुष्कर्म के मामले में सोमवार देर रात गिरफ्तार किया इससे पहले पुलिस मामले को जांच के नाम पर 13 दिन तक लटकाए रही  ऐसा लग रहा था मोदी को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किये गए ऐसा पहली बार देखने को मिला, जब मासूम बच्ची के मामले में पुलिस ने तीन बार मेडिक्ल कराया और शहर की जानी मानी चार स्त्री रोग विशेषज्ञों की सलाह ली गई इसके पीछे पुलिस की नीयत क्या थी, यह तो नहीं पता, लेकिन बाल कल्याण समिति के सामने मासूम के बयान में भी घटनाक्रम के दोहराने के बाद पुलिस को आखिरकार आरोपी स्कूल संचालक मिनिराज मोदी को गिरफ्तार करने के लिए मजबूर होना पड़ा

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Dakhal News 14 May 2024


रात में निकल पड़ती हैं एसपी निवेदिता गुप्ता

रेत और कोयला तस्करों पर कसा शिकंजा रेत और कोयला तस्करी रोकने के लिए पुलिस अधीक्षक निवेदिता गुप्ता स्वंय रात्रि में आकस्मिक भ्रमण पर निकल पड़ती हैं अवैध रुप से वाहनो का परिवहन ,ओवरलोड कोल परिवहन, रेत परिवहन व अन्य वाहनो में दस्तावेज पूर्ण व सही नही होने से वाहनो पर कार्यवाही करवाती हैं बीती रात  कुल 50 वाहनो पर कार्यवाही की गई महिला एसपी के इस एक्शन से अवैध काम करने वालों में हड़कंप है 

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Dakhal News 14 May 2024


बिजली गिरने से स्ट्रांग रूम के CCTV कैमरा हुए बन्द

नकुलनाथ ने की EVM की सुरक्षा बढ़ाने की मांग मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर पहले चरण में मतदान संपन्न हो चुके हैं मतदान के बाद पीजी कॉलेज के स्टांग रूम में सभी ईवीएम मशीन को रखा गया है लेकिन सोमवार दोपहर को अचानक यहां मौसम बिगड गया बारिश और आकाशीय बिजली गिरने के चलते स्ट्रांग रूम के सीसीटीवी बंद हो गए हैं स्ट्रॉन्ग रूम की 3 विधान सभा की एलईडी स्क्रीन अचानक बंद हो गई छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र के पांढुरना,जुन्नारदेव और छिंदवाड़ा विधान सभा की स्क्रीन करीब आधा घंटे बंद रही पार्टी प्रतिनिधियों द्वारा सूचना दिए जाने पर उपजिला निर्वाचन अधिकारी के.सी. बोपचे पहुंचे करीब 45 मिनट की मशक्कत के बाद सीसीटीवी दोबारा चालू हो पाए लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने कांग्रेस प्रत्याशी नकुलनाथ की धड़कन बढ़ा दी नकुलनाथ ने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर पोस्ट कर स्ट्रांग रूम की सुरक्षा बढ़ाने की मांग की है

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Dakhal News 13 May 2024


उरधन कोयला खदान का मामला

कंपनी मैनेजर को लेबरों से नहीं मिलने दे रहा प्रबंधन बीते गुरुवार को उरधन कोयला खदान में प्रबंधक और स्टार एक्स कंपनी के सुपरवाइजर और मैनेजर के साथ विवाद का मामला सामने आया था इस मामले में प्रबंधक और ठेकेदार के लोगों द्वारा शिवपुरी थाने में रिपोर्ट भी लिखाई गई अब इस मामले में स्टार एक्स कंपनी के प्रबंधक इंद्रपाल सिंह और अंकुर शर्मा ने खदान प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाए है इनका कहना है कि उन्हें खदान के अंदर लेबरों तक नहीं पहुंचने दिया जा रहा ना ही मजदूरों तक आवश्यक वस्तुएं पहुंचाने दी जा रही हैं

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Dakhal News 12 May 2024


चाकघाट थाना टीआई उषा सिंह सोमवंशी का ऑडियो वायरल

फरियादी से फोन पर की अभद्रता ""तेरी नेताओ की ऐसी की तैसी तू सुन ले अच्छे से और रिकॉर्ड भी कर ले "मुझे घंटा कोई फर्क पड़ता राजनीतिक दबाव का फालतू की बकवास न कर तेरे बाप ने तुझे एक जूता मारा था" मेरे सामने आएगा तो मैं दो जूते मारूंगी तुझे"यह शब्द है रीवा जिले के चाकघाट थाना की टीआई उषा सिंह सोमवंशी के टीआई उषा हमेशा अपने अभद्र आचरण के कारण चर्चा में रहती है इन दिनों उनका एक कथित ऑडियो सोशल मीडिया में जमकर वायरल हो रहा हा है जिसमें वो फरियादी के साथ फोन पर अमर्यादित बातचीत करते हुए सुनाई दे रहीं है

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Dakhal News 12 May 2024


सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आप ने की खुशी जाहिर

 केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम जमानत दिल्‍ली के कथित शराब घोटाला से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं के लिए अक्षय तृतीया का दिन काफी शुभ रहा सुप्रीम कोर्ट ने सीएम केजरीवाल को चुनाव प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत दे दी है केजरीवाल को जमानत मिलने पर मप्र आम आदमी पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष रानी अग्रवाल ने खुशी जताते हुए कहा कि यह सत्य की जीत है रानी अग्रवाल ने इसे लोकतंत्र और संविधान की जीत भी बताया उन्होंने कहा कि हमारे नेता अरविंद केजरीवाल को चुनाव प्रचार के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतरिम जमानत मिली है उससे तानाशाह मोदी सरकार की हार हुई है हम लोगों का हौसला बढ़ गया है अब इस सरकार के खिलाफ मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा4 जून को जैसे ही मतगणना होगी उस मतगणना में इंडिया गठबंधन की बड़ी जीत होगी

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Dakhal News 11 May 2024


इंडी गठबंधन के नेता बौद्धिक दिवालिया: शिवराज

डरपोक लोग इंडी गठबंधन में है कांग्रेस नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर के बयान पर सियासत गरमा गई है मणिशंकर अय्यर का कहना है कि कि भारत को पाकिस्तान को इज्जत देनी चाहिए हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उसके पास भी परमाणु बम है कोई सिरफिरा आया तो हम पर इसका इस्तेमाल कर सकता है मणिशंकर अय्यर के बयान पर पूर्व सीएम शिवराज ने निशाना साधा है उन्होंने कहा कि इंडी गठबंधन के नेता बौद्धिक दिवालिया हो गए है शिवराज ने कहा कि यह यूपीए की ढीली ढाली सरकार नहीं है आज भारत के प्रधानमंत्री 56 इंच के सीने वाले है हम किसी को छेड़ेंगे नहीं और कोई छेड़ेगा तो छोड़ेंगे नहीं यह डरपोक लोग इंडी गठबंधन में है

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Dakhal News 10 May 2024


बाल साहित्य शोध केंद्र द्वारा सम्मान समाराेह का आयोजन

देशभर से आए बाल शोध लेखकों का सम्मान हुआ सम्मान भोपाल में बाल साहित्य शोध केंद्र ने 15 वा वार्षिक सम्मान समारोह आयोजित किया जहाँ देशभर से आए बाल  साहित्यकारों  का सम्मान किया गया समारोह में बच्चों के लिए साहित्य सृजन करने वाले साहित्यकारों ने कहा  अच्छा साहित्य अच्छे भविष्य का निर्माण करता है पटना से ायों साहित्यकार कल्पना सिंह ने कहा कि इस तरीके के सम्मान होते रहना चाहिए ताकि हम लेखकों का उत्साह बना रहे और हम बच्चों के लिए और कुछ अच्छा लिख सकें वही दिल्ली से आई विमल रस्तोगी ने कहा कि मैंने कई कविताएं लिखी है और बच्चों के लिए कई पुस्तक लिखी है इस तरीके के सम्मान होते रहना चाहिए जिससे साहित्यकारों  को प्रोत्साहन मिलता रहे बाल साहित्य शोध केंद्र के संचालक महेश सक्सेना ने बताया  कि हम पिछले 15 वर्षों से यह कार्यक्रम करते आ रहे हैं कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य यह है कि लेखक और बच्चों को प्रोत्साहन मिले

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Dakhal News 10 May 2024


भोपाल में जिला पंचायत सदस्य ने बच्चे से डलवाया वोट

वीडियो वायरल होने के बाद मचा हड़कंप भोपाल में भाजपा जिला पंचायत सदस्य विनय मेहर ने नाबालिग बेटे से अपना वोट डलवाया उन्होंने मोबाइल से इसका वीडियो बनाया और उसे वायरल भी कर दिया मामला तूल पकड़ने के बाद उन्होंने इसे डिलीट कर दिया वहीं अब इस मामले में कांग्रेस हमलावर हो गई है कांग्रेस प्रदेश मीडिया प्रभारी मुकेश नायक का कहना है कि मामले में चुनाव आयोग मूठ बन बैठा हुआ है अगर कोई दिव्यांग या बीमार है तो उसकी तरफ से वोट करने वाला व्यक्ति की आयु 18 साल का होनी चाहिए18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को वोट डालने का अधिकार नहीं है जो वीडियो वायरल हो रहा है इस पर तत्काल निर्वाचन आयोग संज्ञान ले.... और उचित कार्रवाई करें कार्यवाही करें

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Dakhal News 9 May 2024


खजुराहो के सचिन पर आया पेरू की युवती का दिल

 पेरू की युवती बनेगी खजुराहो की बहू छतरपुर जिले में प्यार का अनोखा मामला सामने आया है यहां विदेशी दुल्हन को देशी दुल्हा भा गया यह लव स्टोरी खजुराहो के युवक सचिन और पेरू की युवती ब्रियट एन सेलमा की है दोनों की पहले फेसबुक पर दोस्ती हुई  इसके बाद वीडिया कॉल का दौर शुरू हुआ और फिर दोनों में प्यार हो गया अब अपने प्यार को अंजाम देने के लिए पेरू की युवती खजुराहो पहुंच गई है लड़के को अपना जीवनसाथी बनाने के लिए लड़की ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत छतरपुर कलेक्ट्रेट में आवेदन दिया है इनकी लव स्टोरी अब चर्चा का विषय बनी हुई है

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Dakhal News 9 May 2024


भाजपा नेता की सीवियर कार्डियक अरेस्ट से निधन

मुख्यमंत्री डॉ यादव ने दुख जताया भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता गोविंद मालू के निधन पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव गहरा दुख जताते परिजनाें के प्रति संवेदना व्यक्त की है मुख्यमंत्री डॉ यादव ने कहा कि मालू भाजपा की विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध, समर्पित कार्यकर्ता थे उन्होंने पार्टी की विभिन्न जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया उनका असमय निधन समाज व भाजपा परिवार के लिए बड़ी क्षति है

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Dakhal News 9 May 2024


पानी की समस्या को लेकर एसडीएम को दिया ज्ञापन

वार्ड 15 के रहवासी पानी की समस्या से परेशान अमरपाटन नगर परिषद वार्ड 15 के रहवासियों का कहना है कि वह लंबे समय से पानी की समस्या से जूझ रहे हैं लेकिन विभाग कोई दिलचस्पी नहीं ले रहा है वार्ड पार्षद ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा वाॅल बंद करके वार्ड में पानी आने से रोका जा रहा है पार्षद और रहवासियों ने सीएमओ को ज्ञापन सौंपते हुए जल्द समस्या दूर करने की मांग रखी जिस पर नगर परिषद सीएमओ ने जल्द ही समस्याओं को दूर करने का आश्वासन दिया

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Dakhal News 9 May 2024


दो मतदाताओं के खिलाफ दर्ज हुई FIR

 गोपनीयता भंग करना भाजपा नेता को पड़ा भारी ग्वालियर में पूर्व पार्षद पति रिंकू परमार मतदान करने डीआरपी लाइन स्थित शासकीय प्राथमिक विद्यालय पहुंचे थे वह अपने साथ मोबाइल अंदर ले गए मोबाइल अंदर ले जाने के बाद ईवीएम पर मतदान करते हुए वीडियो बना लिया वीडियो इंटरनेट मीडिया पर अपलोड कर दिया इसी तरह पोहरी के रहने वाले होकम वर्मा ने ईवीएम पर वोट डालते हुए वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया दोनों ही पोस्ट खूब वायरल  हुई नेताओं से लेकर आम लोगों तक ने इस तरह गोपनीयता भंग करने पर आपत्ति की जिसके बाद प्रशासन और पुलिस अधिकारियों ने मामले को संज्ञान में लेकर दोनों के खिलाफ मामला दर्ज किया

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Dakhal News 9 May 2024


मप्र में 3 बजे तक 54.09 % मतदान

भोपाल लोकसभा में दोपहर 3 बजे तक 50.16 % मतदान भोपाल लोकसभा सीट के लिए तीसरे चरण में वोटिंग चल रही है प्रदेश के मतदाता लोकतंत्र के इस महापर्व में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें रहे हैं मप्र की 9 सीटों पर दोपहर तीन बजे तक कुल 54.09 प्रतिशत मतदान हो चुका हैं सबसे अधिक राजगढ़ में 63.69 प्रतिशत तो वहीं सबसे कम भिंड लोकसभा सीट में 44.18 प्रतिशत वोटिंग हुई है वहीं बात राजधानी भोपाल की करें तो यहां दोपहर 3 बजे तक 50.16 प्रतिशत मतदान हो चुका है सबसे ज्यादा 61.38% मतदान सीहोर विधानसभा में हुआ भोपाल मध्य विधानसभा सीट पर सबसे कम 43.00 प्रतिशत मतदान हुआ है

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Dakhal News 7 May 2024


साईबर पुलिस की बडी कामयाबी

दस लाख के 51 मोबाइल मिले साईबर पुलिस को उस वक्त बडी कामयाबी हांसिल हुई जब उसने चोरी गये दस लाख के 51मोबाइल फोन बरामद चोरों से बरामद किये इन फोनो को खोजने में साईबर सेल की मदद ली गई एसपी अगम जैन ने बरामद मोबाइलों को उनके मालिकों को वापिस दिया गुम मोबाइल मिलने से लोग खुश नजर आये

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Dakhal News 6 May 2024


मतदान केंद्रों के लिए ईवीएम मशीन रवाना

अब आपकी बारी सबसे पहले करें मतदान लोकसभा चुनाव में तीसरे चरण का  मतदान  मंगलवार को होना है भोपाल के लाल परेड ग्राउंड में ईवीएम मशीन के वितरण का केंद्र बनाया गया है सुबह से ही ईवीएम मशीन मतदान दल के लिए वितरित की जा रही हैं मतदान केदो पर बैठने वाले बीएलओ का कहना है कि हमें पहले से ही ईवीएम मशीन को लेकर जानकारी और ट्रेनिंग दी गई है आज पर्ची के आधार पर हमें ईवीएम मशीन समेत पूरी सामग्री मुहैया कराई गई है कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह समेत सभी अधिकारियों ने इसका जायजा लिया और व्यवस्था पूरे तरीके से बहुत माना तीसरे चरण में मध्यप्रदेश के 9 लोकसभा क्षेत्र में मतदान किया जाएगा

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Dakhal News 6 May 2024


7 को 9 लोकसभा सीटो पर होगा मतदान

भिंड और मुरैना में वेब कास्टिंग की सुविधा मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी अनुपम राजन ने बताया कल एमपी के 9 लोकसभा सीटो पर मतदान किया जाएगा इन 9 लोकसभा सीटो में 19 जिले शामिल है गर्मी को ध्यान में रखते हुए मिनि ICU पानी,टेंट,पंखे,कुर्सियों  की व्यवस्था की गई है सुरक्षा के लिए 299 प्राइम स्क्वाड तैनात है 9 सीटो पर कुल 127 उम्मीदवार है जिनमें 9 महिलाए और 118 पुरुष है... सबसे ज्यादा प्रत्याशी भोपाल लोकसभा सीट पर कुल 22 प्रत्यासी है,सबसे कम भिंड लोकसभा सीट पर 7  प्रत्याशी  है 9 सीटो पर 20 हजार  456 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं 2043 पिंक पोलिंग बूथ है चुनाव घोषणा के बाद से अब तक 280 करोड़ रूपए से अधिक की जप्ती की गई है पहले और दूसरे चरण में करीब 60 से 65% बूथों वेब कास्टिंग की गई थी तीसरे चरण में भिंड और मुरैना में वेब कास्टिंग की सुविधा दी गई है

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Dakhal News 6 May 2024


स्वच्छ भारत को धूमिल करती ग्राम पंचायत सरसई

ग्रामीण बोले सीएम हेल्पलाइन को बंद करें मुख्यमंत्री तस्वीरों में आप देख सकते हैं कि कैसे बरसों से जाम पड़ी हुई है नालियां और लोग गंदे पानी से निकलने के लिए मजबूर हो रहे हैं ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि जब लाखों रुपए की राशि स्वच्छता के लिए दी जा रही है तो सरसई पंचयात में आखिर नालियां क्यों ब्लॉक पड़ी हुई है वही जब इस समस्या को लेकर ग्रामीणों से बात की तो उन्होंने जमकर सरपंच और जिम्मेदार अधिकारियों पर जुबानी हमला बोला कुछ ग्रामीण ने इसकी शिकायत सीएम हेल्पलाइन पर की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला ग्रामीणों ने कहा मुख्यमंत्री मोहन यादव अपनी  सीएम हेल्पलाइन बंद कर दें क्योंकि उस से  कोई समाधान नहीं होता

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Dakhal News 6 May 2024


200 पहले मतदाता बंपर ड्रा के जरिए होंगे सम्मानित

प्रत्येक बूथ पर हर 3 घंटे में तीन इनाम निकलेंगे चुनाव का तीसरा चरण सात मई को भरी गर्मी के बीच आ रहा है ऐसे में वोटर्स को घर से बाहर निकालने और वोट डालने के लिए चुनाव आयोग लुभावना आफर दे रहा है भोपाल कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि 7 तारीख को सभी को लोकतंत्र के महा अभियान में भागीदारी निभाई है मतदान बढ़ाने के लिए सरकारी तंत्र अपने स्तर पर जागरूकता फैलाएगा उन्होंने कहा कि जो सबसे पहले वोट करेगा उसे सम्मानित किया जाएगा प्रत्येक बूथ पर हर 3 घंटे पर तीन इनाम निकलेंगे ताकि अधिक से अधिक लोग वोट हों इसमें वोटर्स के नाम लकी ड्रॉ के ज़रिए निकाले जाएँगे

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Dakhal News 5 May 2024


निगम आयुक्त ने किया वाटर एटीएम का औचक निरीक्षण

निगम द्वारा निःशुल्क प्याऊ खोले जाऐंगे सिंगरौली निगम क्षेत्र के अंतर्गत 13 वाटर एटीएम लगे हुए है जिनकी देखरेख के लिए निगम आयुक्त डी के शर्मा ने निर्देश दिये इसके अलावा निगम के द्वारा अलग से निःशुल्क प्याऊ खोले जाऐंगे निगम आयुक्त ने बताया कि जल की सप्लाई हर वार्ड तक पहुंचे यह हमारी पहली प्राथमिकता रहेगी अतिक्रमण करने वालों पर लगातार निगम के द्वारा कार्यवाही जारी रहेगी उन्होंने वार्ड की जनता से स्वच्छता को बनाए रखने का आग्रह किया

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Dakhal News 4 May 2024


झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ छापेमार अभियान

आधा दर्जन क्लीनिक हुए सीज, चालान कटा तहसीलदार मनीषा बिष्ट और एसीएमओ डॉ रजत भट्ट के संयुक्त नेतृत्व में टीम ने लालकुआँ और हल्दूचौड़ क्षेत्र में झोलाछाप निजी क्लिनिकों और मेडिकलों में छापेमारी अभियान चलाया हल्दूचौड़ स्थित डीके क्लीनिक में संचालक द्वारा मिनी मेडिकल स्टोर चलाया जा रहा था यहां भारी मात्रा में इंजेक्शन एवं दवाएं बेची जा रही थी टीम ने क्लीनिक को सीज करते हुए संचालक का 10 हजार का चालान किया इस दौरान टीम ने आधा दर्जन क्लीनिक सीज कर दिए वही सभी के चालान करते हुए उन्हें तीन दिन के भीतर सीएमओ कार्यालय प्रपत्रों के साथ पहुंचने के निर्देश दिए हैं

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Dakhal News 4 May 2024


सरकारी कार्यालयों में अब फॉर्मल ड्रेस में आएंगे अधिकारी कर्मचारी

  कलेक्टर ने सभी से ड्रेस कोड का पालन करने की अपील अब दमोह जिले के सरकारी कार्यालयों में अधिकारी - कर्मचारी पेंट शर्ट पहने नजर आयेगे और ये शर्ट पेंट भी भड़कीले रंगों वाले नही होंगे दमोह कलेक्टर सुधीर कोचर ने एक आदेश जारी करते हुए कहा है कि जिले भर के सरकारी कार्यालयों में काम करने वाले सभी अधिकारी और कर्मचारी जींस टी शर्ट पहन कर नही आएंगे.. और जो आएगा उसे अनुशासन हीनता के दायरे में रखा जाएगा जिस पर प्रशासनिक कार्यवाही भी हो सकती है कलेक्टर कोचर के मुताबिक सरकारी ऑफिस सरकार के ऑफिस हैं और यहां काम करने वाले लोग सरकार के प्रतिनिधि है लिहाजा उनका रहन सहन वस्त्र भी सादगी पूर्ण होने चाहिए उन्होंने कहा कि सिविल सेवा के नियमों में भी इसका उल्लेख है शालीनता के साथ शालीन कपडे आम लोगों मे प्रशासन की छवि को और बेहतर बनाने में मदद करेगी इस आदेश के बाद जिले के हजारों सरकारी अधिकारी कर्मचारी प्रभावित होंगे वही जो लोग कपड़ो के शौकीन है खास तौर पर टिपटॉप रहते हुए जिन्हें जीन्स- टी शर्ट पसंद है उनके लिए जरूर मुसीबत बढ़ गई है  

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Dakhal News 3 May 2024


कांग्रेसियों की लोकप्रियता पाकिस्तान में ही बढ़ेगी

कांग्रेस तुष्टिकरण की राजनीति करती आई है भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में मीडिया से बातचीत करते हुए प्रियंका गांधी के मध्य प्रदेश दौरे पर तंज कसा उन्हाेंने कहा कि प्रियंका गांधी अमेठी भी गई थी लेकिन क्या हुआ वहां कांग्रेस का चोपड़ा साफ हो गया मध्य प्रदेश आने से भी कुछ फर्कनहीं पड़ने वाला है कांग्रेस आज भी फूड डालो राज करो कि राजनीति करती है भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि राहुल गांधी मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गए है वे पाकिस्तान को खुश करने के लिए बयान देते है कांग्रेस हमेशा से ही तुष्टिकरण की राजनीति करती आई है 

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Dakhal News 2 May 2024


अव्यवस्थाओं से चैती मेले की दशा की खराब

टेंडर महंगा होने से दुकानें हुई कम चैती मेले में दुकानों के महंगे किराये के कारण व्यवसायियों की कमर टूट गई है अधिक कीमत के कारण दुकानदारों के लिए किराया निकालना भी मुशिकल हो गया है इस बर्ष चैती मेले का टेंडर साढ़े तीन करोड़ रुपये से ऊपर का बताया जा रहा है जिसकी वजह से ठेकेदारों और दुकानदारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है व्यवसायियों का कहना है कि जब से चैती मेला सरकार के आधीन हुआ है तब से मेले की दशा खराब हो गई है आने वाले दिनों मे चैती मेले का अस्तित्व समाप्त होता नजर आ रहा है

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Dakhal News 2 May 2024


कॉलेज में रील बनाने वाली लड़की को नोटिस

लड़की के परिजनों को किया गया तलब दखल न्यूज़ पर कॉलेज का रील काण्ड दिखाए जाने के बाद अमरपाटन शासकीय महाविद्यालय के अंदर बन रही इंस्टाग्राम  रील के मामले में प्राचार्य ने कार्यवाही की हैं कॉलेज में चेतना कुशवाहा नामक युवती लगातार महाविद्यालय के अंदर से रील बना कर रही इंस्टाग्राम व फेसबुक पर पोस्ट कर वायरल कर रही थी , इस  खबर को दखल न्यूज ने प्रमुखता से दिखाया तो खबर का बड़ा असर हुआ इसके बाद प्राचार्य एक्शन में आए और छात्रा को नोटिस जारी किया ,साथ ही उसके माता पिता को भी तलब किया हैं  व अनुशासन समिति कोइस मामले की जांच का जिम्मा सौंपा है 

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Dakhal News 2 May 2024


रहवासियों ने नगर परिषद कार्यालय को घेरा

समस्याओं को लेकर CMO को सौंपा ज्ञापन पानी और सफाई जैसी मूलभूत समस्याओं को लेकर अमरपाटन में वार्ड क्रमांक पांच के रहवासी अब सड़क पर उतर आए है सोमवार को लोगों ने पानी और गंदगी की समस्या को लेकर नगर परिषद का घेराव किया इस दौरान वार्ड के पार्षद भी मौजूद रहे लोगों ने क्षेत्र में लंबे समय से चली आ रही समस्याओं को से सीएमओ काे अवगत कराया और उसके समाधान के लिए ज्ञापन सौंपा नगर परिषद CMO ने जल्द ही सभी समस्याओं के समाधान का आश्वासन दिया

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Dakhal News 30 April 2024


कांग्रेस ने लगाया षणयंत्र का आरोप

मंत्री सारंग ने की जीतू के इस्तीफे की मांग गुजरात की तरह मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस को एक झटका लगा है इंदौर लोकसभा सीट से पार्टी के उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने अपना नामांकन वापस ले लिया है जिसके बाद जुबानी जंग तेज हो गई है कांग्रेस मीडिया प्रभारी मुकेश नायक ने कहा है कि ऐसी घटना अचानक नहीं होती इसकी सूचना अचानक मिलती है भारतीय जनता पार्टी षड्यंत्र रचती है धनबल का प्रयोग करती है और शासन का सहयोग लेती है...तब जाकर ऐसी घटनाएं होती है बीजेपी से हमारा संघर्ष है अभी ऐसी और भी घटनाएं हमें देखनी है वहीं कांग्रेस प्रवक्ता विवेक त्रिपाठी ने मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भाजपा ने लोकतंत्र को फिर से एक बार शर्मशार करने का काम किया है भाजपा प्रत्याशी शंकर लालवानी बहुत ही कमजोर प्रत्याशी के रूप में उभर के सामनेआए हैं जिससे घबरा कर भाजपा ने कांग्रेस प्रत्याशी के ऊपर चार दिन बाद 307 का अपहरण अपराधिक प्रकरण दर्ज कराया था लगातार कांग्रेस प्रत्याशी पर दबाव बनाया जा रहा था वहीं इस पूरे मामले पर प्रदेश सरकार के मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि अक्षय क्रांति ने अपना फार्म वापस लिया है इस पर कांग्रेस बवाल मचा रही है सही मायने में तो कांग्रेस को अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी जिस शहर से आते हैं वहां के प्रत्याशी ने फॉर्म वापस लिया है सही मायने में तो जीतू पटवारी को अपना इस्तीफा दे देना चाहिए    

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Dakhal News 29 April 2024


दरोगा का डांसर संग ठुमका लगाते वीडियो वायरल

मर्यादाओं को भूलकर किया डांस मैहर जिले के रामनगर थाना में पदस्थ सहायक उप निरीक्षक सुशील कुमार अहिरवार का एक आपत्तिजनक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है इस वीडियो में दरोगा साहब सारी मर्यादाओं को भूलकर महिला डांसर के साथ पुलिस व मिलिट्री मिक्स ड्रेस पहनकर डांस करते नजर आ रहे हैं दरोगा साहब ने जिस वक्त यह डांस किया गया था उस वक्त वे अपनी पिस्टल भी कमर में खोंसे हुए दिखाई दे रहे हैं अब उनका यह वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया है

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Dakhal News 29 April 2024


भारतीय प्रबंध संस्थान का 11 वाँ दीक्षांत समारोह

 438 विद्यार्थियों को प्रदान मिली उपाधि  कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के पी. एम. जी इंडिया के सी ई ओ येजदी नागपुरबाला के साथ प्रबंध संस्थान के चैयरमेंन संदीप शर्मा और डायरेक्टर प्रोफेसर कुलभूषण वालोनि ने बताया कि दिक्षांत समारोह में आई आई एम के एक्जिक्युटिव एम वी ए के पहले बैच के 438 विद्यार्थियों को उपाधि और पदक प्रदान किये गए

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Dakhal News 28 April 2024


वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिये ट्रांसजेंडर्स का फैशन शो

फैशन शो के माध्यम से वोट डालने की अपील कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी कौशलेंद्र विक्रम सिंह की उपस्थिति में मतदाता जागरूकता का संदेश देने और सभी भोपाल वासियों को मतदान के प्रति जागरूक करने के लिए राग भोपली में ट्रांसज़ेंडर्स फ़ैशन शो का आयोजन किया गया इस फैशन शो में बुजुर्ग, फर्स्ट टाइम वोटर और अन्य प्रतिभागी भी शामिल हुए इस दौरान सीईओ जिला पंचायत एवं स्वीप नोडल अधिकारी ऋतुराज सिंह सहित भारी संख्या में आम जन उपस्थित रहे

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Dakhal News 28 April 2024


मतदान बढ़ाने के लिए प्रशासन की पहल

चुनाव का रंग मतदाताओं के संग चुनावी राहगीरी  कार्यक्रम में मुख्य अतिथि ग्वालियर जिलाधीश रुचिका चौहान थी यह कार्यक्रम जिला प्रशासन तथा नगर निगम के द्वारा आयोजित किया गया इस कार्यक्रम के तहत विभिन्न संस्थाओं  ,विद्यालयों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया इसका मुख्य उद्देश्य मतदाताओं को मतदान के प्रति जागरूक करना था इस अवसर पर ग्वालियर जिला कलेक्टर रूचिका चौहान ने कहा कि हमारा प्रयास है आगामी 7 मई को होने जा रहे लोकसभा चुनाव में मतदाता अपने मतदान का शत प्रतिशत प्रयोग करें और ग्वालियर जिला मतदान में प्रथम स्थान प्राप्त करे

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Dakhal News 27 April 2024


विद्वान पंडितों ने संपन्न कराया व्रतबंध

मप्र और उप्र के लोग हुए शामिल सामूहिक व्रतबंध कार्यक्रम में मध्य प्रदेश सहित उत्तर प्रदेश के भी लोग शामिल हुए आयोजन गुंजारी लाल तिवारी ने बताया कि 24 ब्राह्मण पुत्रों का व्रतबंध संपन्न कराया गया इस व्रतबंध में कई विद्वान पंडितों को बुलाया गया था व्रतबंध में आए हुए श्रद्धालुओं अतिथियों के लिए भव्य भंडारे का आयोजन किया गया था अब प्रत्येक वर्ष ब्राह्मण पुत्रों का व्रतबंध सामुहिक तौर पर कराया जाएगा

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Dakhal News 27 April 2024


कांग्रेस नेता का दावा बढ़ेगी कांग्रेस की सीट

डॉ राजेंद्र सिंह:इस चुनाव में उत्साह कम पूर्व मंत्री डॉ राजेंद्र कुमार सिंह ने मतदान के बाद मीडिया से चर्चा करते हुए कहा कि 2019 की अपेक्षा इस चुनाव में उत्साह कम नजर आ रहा है उन्होंने कहा कि लोकतंत्र खतरे में है जिसको बचाने के लिए मैंने अपने मत का प्रयोग किया है उन्होंने मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सीट बढ़ने का दावा किया है

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Dakhal News 26 April 2024


भूपेश बघेल पर देवव्रत की पत्नी विभा सिंह का बड़ा आरोप

बघेल ने पूर्व सांसद स्वर्गीय देवव्रत की भावनाओं को ठेस पहुंचाई छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का विवादों से पुराना नाता रहा है लगातार छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार के चलते उन पर विभिन्न जांच एजेंसियां पहले ही सक्रिय है वर्तमान में वह राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार है इस बीच पूर्व सांसद स्वर्गीय देवव्रत सिंह की पत्नी विभा सिंह ने भूपेश बघेल पर राजा साहब के वजूद को मिटाने का आरोप लगाया उन्होंने कहा कि पूर्व सीएम बघेल तलाक शुदा पदमा सिंह को स्वर्गीय देवव्रत की पत्नी बताकर जनता को गुमराह कर रहे हैं और वोट बटोरने का प्रयास कर रहे हैं

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Dakhal News 26 April 2024


धीरेंद्र शास्त्री के भाई ने टोल प्लाजा कर्मियों को पीटा

पहले शादी समारोह में घुसकर लहराया था तमंचा बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के भाई शालिग्राम गर्ग एक बार फिर विवादों में है शालिग्राम गर्ग पर टोल प्लाजा कर्मचारियों से मारपीट का आरोप लगा हैं पुलिस ने शिकायत मिलने पर शालिग्राम गर्ग सहित 10 लोगों पर मामला दर्ज किया है घटना के बाद से सभी आरोपी फरार है पुलिस आरोपियों की तलाश में जुट गई है बता दें कि इससे पहले भी शालिग्राम पर गंभीर आरोप लग चुके हैं शालिग्राम पर शादी समारोह में घुसकर तमंचा लहराने का आरोप लगा था उस वक्त उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया था

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Dakhal News 26 April 2024


स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का प्रयास

विजेताओं को मिलेगा नगद पुरस्कार प्राइम हॉस्पिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर विमल वोहरा ने बताया कि स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता  मैराथन 28 अप्रेल को होगी रेस में सभी आयु वर्ग के प्रतिभागी भाग लें सकेंगे रेस के दौरान सभी जरुरी सुविधाएं प्राइम हॉस्पिटल की टीम के द्वारा की जायेगी मैराथन रेस में प्रथम विजेता को 51 सौ रुपये, द्वितीय विजेता को 31 सौ रुपये और तीसरे विजेता को 21 सौ रुपये का इनाम दिया जायेगा

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Dakhal News 26 April 2024


सेनेटरी पैड को फ्री करने का अभियान

सेनेटरी पैड के लिए साइकल यात्रा सुरेंद्र बामने सेनेटरी पैड को फ्री करवाने को लेकर मध्य प्रदेश में साइकिल यात्रा  पर हैं सुरेंद्र बामने इटारसी के नर्मदापुरम अमराई गांव से हैं ये  6 दिसंबर 2023  से साइकिल यात्रा निकालकर हर जिले में जाकर महिलाएं एवं बच्चियों को सैनिटरी पैड के बारे में जागरूक कर रहे हैं एवं जिले के कलेक्टर को मुख्यमंत्री के नाम आवेदन देकर मुख्यमंत्री से सेनेटरी पैड को फ्री करने के लिए मांग कर रहे हैं सिंगरौली  पहुंचे सुरेंद्र बामने ने बताया कि अब तक 111 दिनों में 6350 किलोमीटर की साइकिल यात्रा कर चुके हैं और महिलाओं एवं बच्चियों को जागरुक कर रहे हैं सुरेंद्र बामने ने बताया कि वह मुंबई में सीरियल पर काम करते थे राधा कृष्ण  , चंद्रगुप्त जैसे सीरियलों  में काम करके जब वह अपने घर इटारसी  के  अमराई जा रहे थे तभी उन्हें ट्रेन में खंडवा में एक नाबालिक बच्ची पीरियड से परेशान दिखाई दी उन्होंने उस बच्ची की मदद की और वहीं से ठान  लिया और  सेनेटरी पैड को फ्री करवाने को लेकर साइकिल यात्रा शुरू की सुरेंद्र बामने बताते हैं कि ग्रामीण अंचल में आज भी महिलाएं एवं बच्चिया गंदे कपड़े यूज़ करती हैं जिसकी वजह से उन्हें  गंभीर बीमारियां हो रही है एवं सर्वाइकल कैंसर से लाखों महिलाओं की मौत हो चुकी है   

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Dakhal News 25 April 2024


रौनक सिंह को गणित संकाय से नौवा स्थान

बस कंडेक्टर का बेटा है रौनक सिंह बघेल  माध्यमिक शिक्षा मंडल ने 10 और12वी के परिणाम घोषित किये हैं मैहर के बस कंडेक्टर के बेटे रौनक सिंह बघेल ने प्रदेश में गणित संकाय से नौवा स्थान लाकर पूरे जिले को गौरान्वित किया है रौनक का रिजल्ट आने के बाद घर मे माता पिता ने मिठाई खिलाकर खुशिया मनाई रौनक मैहर जिले के रामपुर मुड़वाड़ के रहने वाले है जो 10 किलोमीटर दूर चलकर अमरपाटन स्थित सीएम राइज विद्यालय से पढ़ाई कर रहे थे रौनक के पिता राघवेंद्र सिंह पेशे से बस कंडक्टर हैं जो कम आमदनी होने के बाद भी बेटे की पढ़ाई में कोई कमी नही आने देते हैं रौनक घर मे रह कर 16-16 घंटे पढ़ाई करता था आज उसी के मेहनत का ही नतीजा हैं। ..  जिससे न सिर्फ उनके माता पिता बल्कि पूरे जिले का नाम गौरान्वित हुआ है  

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Dakhal News 25 April 2024


17 लाख स्टूाडेंट्स ने दी थी बोर्ड की परीक्षाएं

10वीं में 58.10% और 12वीं में 64.49 प्रतिशत स्टूडेंट्स हुए पास  माध्यमिक शिक्षा मंडल मध्यप्रदेश ने 10वीं और बारहवीं बोर्ड का रिजल्ट जारी कर दिया है इस साल दसवीं में 58.10% स्टूडेंट्स पास हुए हैं यह पिछले साल से 5.19 प्रतिशत कम है वहीं बारहवीं में इस साल 64.49 प्रतिशत नियमित और 22.46 प्रतिशत प्राइवेट स्टूडेंट पास हुए हैं मालूम हो कि इस साल इन दोनों परीक्षाओं में 17 लाख से अधिक स्‍टूडेंट्स ने भाग लिया था

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Dakhal News 24 April 2024


हर कलश पर नदी का नाम

वैशाख और ज्येष्ठ माह में होगा गलंतिका से अभिषेक श्री महाकालेश्वर मंदिर में परंपरानुसार भगवान महाकाल पर 11 मिट्टी के कलशों से सतत जलधारा हेतु गलंतिका बांधी गई है यह क्रम प्रतिदिन 22 जून तक चलेगा गलंतिका में उपयोग किये मिट्टी के कलशों पर प्रतीकात्मक रूप में नदियों के नाम गंगा, सिंधु, सरस्वती, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी, शरयु, क्षिप्रा, गण्डकी आदि अंकित किए गए है बता दें कि वैशाख और ज्येष्ठ माह में‎ गर्मी चरम पर होती है। ऐसे में महाकालेश्वर भगवान को शीतलता प्रदान करने के लिए मिट्टी के कलशों से सतत जलधारा प्रवाहित की जाती है

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Dakhal News 24 April 2024


बोर्ड पैटर्न पर हुई थी परीक्षा

5वीं का 90.97 और 8वीं में 87.71% पास मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल ने आज कक्षा 5वीं और 8वीं बोर्ड परीक्षा के नतीजे जारी कर दिए हैं इस साल 5वीं कक्षा के स्टूडेंट्स का पासिंग परसेंटेज 90.97% और 8वीं क्लास के स्टूडेंट्स का पासिंग परसेंटेज 87.71% रहा है इस वर्ष 12 लाख से अधिक बच्चों ने पांचवीं और 11 लाख से अधिक बच्चों ने आठवीं की परीक्षा दी थी दोनों परीक्षाओं में करीब 24 लाख बच्चे शामिल हुए हैं

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Dakhal News 23 April 2024


सड़क हादसे में महिला और मासूम की मौत

 शराबी चालक ने बाइक डिवाइटर में टकराई शराब के नशे में धुत बाइक चालक की गलती ने एक महिला और उसकी एक वर्ष की मासूम की जिंदगी छिन ली मांडा थाना की गीर गांव निवासी पांच लोग एक ही बाइक पर सवार होकर खरीदारी करने के लिए बाजार आ रहे थे इस दौरान शराबी चालक से बाइक अनियंत्रित होकर डिवाइडर से जा टकराई हादसे में एक महिला और उसकी एक साल की मासूम बच्ची की मौके पर दर्दनाक मौत हो गई जबकि मृतका की 4 साल की एक अन्य बच्ची और एक महिला गंभीर रूप से है घायल है घटना के बाद शराबी बाइक चालक फरार हो गया

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Dakhal News 23 April 2024


राम जानकी मंदिर में हुआ विशेष श्रृंगार

मूंगा रत्न से बना राम दरबार है विराजमान हनुमान जयंती का पर्व दतिया के प्राचीन एवं ऐतिहासिक राम जानकी मंदिर में धूमधाम से मनाया जा रहा है सुबह से ही मंदिर में पूजा का दौर शुरू हो गया वहीं मंदिर में भक्त अपने अराध्य के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में पहुंचे मंदिर में हनुमान जी का विशेष श्रृंगार किया गया बता दें कि इस प्राचीन राम जानकी मंदिर की विशेषता यह है कि यहां विराजमान श्री राम दरबार मूंगा रत्न से बना हुआ है

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Dakhal News 23 April 2024


आकाशीय बिजली की चपेट में आया मजदूर

खेत में पानी देते समय हुआ हादसा मध्य प्रदेश में इन दिनों मौसम का मिजाज बदला हुआ है कई जिलों गरज-चमक के साथ बेमौसमबारिश हो रही है लगातार हो रही बरसात से आसपास ग्रामीण अंचलों में आकाशीय बिजली गिरने के मामले सामने आ रहे हैं ऐसे ही देवास जिले के पीपलकोटा गांव में आकाशीय बिजली गिरने से 35 वर्षीय मजदूर भगवान सिंह की मौत हो गई घटना के बाद परिजन व स्थानीय लोग मौके पर पहुंचे और उसे अस्पताल लेकर गए जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया पुलिस ने मर्ग कायम कर जांच शुरू कर दी है

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Dakhal News 23 April 2024


युवा और वरिष्ठ मतदाताओं के बीच रोचक मुकाबला

मतदान के प्रति जागरुकता के लिए हुआ आयोजन नगरपालिका ने पहली बार वोट डालने वाले मतदाता और वरिष्ठ मतदाताओं के बीच मतदान जागरूक को लेकर विभिन्न तरह की प्रतियोगीता करवाई इसके बाद जीतने वाले को इनाम भी दिया गया बता दें कि एक तरह से पहला प्रयोग था जिसमें बढी संख्या में अधिकारियों के साथ आम मतदाता भी शामिल हुये प्रशासन का मानना है कि इस तरह के जागरूक कार्यक्रम से मतदान प्रतिशत बढेगा ही बल्कि लोगो मे मतदान को लेकर जागरूकता भी आयेगी

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Dakhal News 23 April 2024


पुलिस बल और IRBN ने निकाला फ्लैग मार्च

आमजन से शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील लोकसभा चुनाव 2024 को शांति पूर्वक संपन्न कराने और आदर्श आचार सहिंता का पालन के लिए फ्लैग मार्च निकाला गया जो कि शहर के मुख्य मार्गो से होते हुए नगर परिषद के वार्डो में पहुँचा इस दौरान SDOP शिव कुमार सिंह, थाना प्रभारी के पी त्रिपाठी व अमरपाटन थाना पुलिस बल मौजूद रहा SDOP व थाना प्रभारी द्वारा आमजन से शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील की गई

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Dakhal News 23 April 2024


भाजपा प्रत्याशी का सभी 29 सीट पर जीत का दावा

रोड शो में जनता से मांगे वोट लोकसभा प्रत्याशी गणेश सिंह ने रोड शो में जनता से भाजपा को वोट देने की अपील की इस दौरान सतना सांसद गणेश सिंह ने इस लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में सभी 29 सीटों पर भाजपा की जीत का दावा किया है और नरेंद्र मोदी की सरकार बनने की बात कही है

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Dakhal News 23 April 2024


जल संसाधन विभाग के सामने प्रदर्शन

इंटरव्यू निरस्त होने से अभ्यर्थी हुए नाराज जल संसाधन विभाग द्वारा आमंत्रित आवेदनों में दिव्यांगजनों को इंटरव्यू के लिए 22 और 23 अप्रैल की तिथि निर्धारित की गई थी लेकिन आचार संहिता के चलते इंटरव्यू निरस्त कर दिए गए जिससे नाराज होकर दिव्यांग अभ्यर्थी जन संसाधन विभाग के सामने धरने पर बैठ गए प्रदर्शनकारी अभ्यर्थियाें का आरोप है कि अगर इंटरव्यू निरस्त किये गए तो हमें इसकी जानकारी देनी चाहिए थे, लेकिन जिम्मेदारों ने ऐसा नहीं किया वही दूसरी तरफ विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इंटरव्यू निरस्त होने की जानकारी अखबार के द्वारा दी गई थी

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Dakhal News 22 April 2024


धूमधाम से मनाई गई महावीर जयंती

 रंगारंग कार्यक्रमों का हुआ आयोजन महावीर जयंती के अवसर पर आयोजित हुए कार्यक्रम में छोटे छोटे बच्चों ने नाटकीय तरीके से रंगा रंग कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये गए साथ ही संस्था के द्वारा सभी बच्चों और अतिथि गणों को सम्मानित किया गया है कार्यक्रम के उपरांत जैन समिति के द्वारा एक भव्य शोभा यात्रा निकाली गई जो कटोरताल से मैन चौराहा होते हुए जैन मन्दिर पर सम्पन्न हुई

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Dakhal News 22 April 2024


पं. प्रदीप मिश्रा ने दखल न्यूज को दी शुभकामनाएं

पं. प्रदीप मिश्रा का अंगवस्त्र पहनाकर किया सम्मान  दखल प्राइड अवार्ड की स्मारिका का विमोचन आज सीहोर में प्रख्यात कथावाचक पंडित श्री प्रदीप मिश्रा ने किया दखल प्राइड अवार्ड समारोह ने इस बार पंडित श्री प्रदीप मिश्रा ही मख्य अतिथि थे दखल की स्मारिका के विमोचन अवसर पर दखल न्यूज के प्रधान संपादक अनुराग उपाध्याय और संपादक शैफाली ने पंडित श्री प्रदीप मिश्रा का अंगवस्त्र पहनाकर स्वागत किया इस दौरान पंडित मिश्रा ने दखल न्यूज को प्रगति और सफलता के नये आयाम कायम करने का शुभ आशीष दिया स्मारिका विमोचन के मौके पर पत्रकार प्रदीप एस चौहान और समीर शुक्ला समेत दखल परिवार के सदस्य मौजूद रहे

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Dakhal News 21 April 2024


गरीब बच्चों का होगा उपनयन संस्कार

पैसों की बचत से बच्चे ले सकेंगे शिक्षा कार्यक्रम की जानकारी देते हुए गुंजारी लाल तिवारी ने कहा कि क्षेत्र में कई ऐसे परिवार हैं जो उपनयन संस्कार में राशि खर्च करने के बाद बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे पाते उनका मानना है कि जो उपनयन संस्कार में खर्च आता है अगर उसका बचत हो जाए तो उन पैसों से बच्चों को पढ़ाया जा सकता है

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Dakhal News 21 April 2024


पांच जुआरियों  को किया गया गिरफ्तार

जुआ प्रतिषेध अधिनियम के तहत कार्यवाहीजंगलपुर के जंगल में जुए के दांव लग रहे थे और जंगल में मंगल हो रहा था | इसकी जानकारी पुलिस को लगी तो उसने छापामार कार्यबाही करते हुए पांच जुआरियों को रेंज हाथों धार दबोचा | पुलिस की सायबर सेल को खबर लगी की जंगल पुर और रामपुर के बीच जुआरियों ने जुए का अड्डा बना रखा है |इसके बाद सायबर सेल के प्रभारी जितेन्द्र वर्मा एवं थाना प्रभारी लालबाग नंद किशोर गौतम ने थाना लालबाग एवं सायबर सेल की संयुक्त टीम ने ग्राम जंगलपुर और रामपुर के बीच छापा मार कर पांच जुआरियों को पकड़ा और जूआ प्रतिषेध अधिनियम के तहत कार्यवाही की इनके पास से ताश ,रुपये और बाइक जप्त की गई हैं |

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Dakhal News 17 January 2024


तेंदुए के बीमार शावक की  मस्ती

तेंदुए की मस्ती का वीडियो वायरल मुकुंदपुर व्हाइट टाईगर सफारी से तेंदुए के शावक का मस्ती करते का वीडियो सामने आया है |जिसमे बीमार शावक अब तंदरुस्त होने के बाद उछल कूद करता दिखाई पड़ रहा है | उमरिया जिले के ग्राम अमडी में दो दिन पहले तेंदुआ का यह शावक मिला था | इस शावक की उम्र करीब तीन माह है |उमरिया जिले से बीमार हालत में रेस्क्यू कर वन विभाग की टीम शावक को अमरपाटन के मुकुंदपुर स्थित महाराजा मार्तण्ड सिंह व्हाइट टाइगर सफारी लाइ थी |जहा पर टीम की देखरेख के बाद बीमार शावक अब चुस्त और तंदुरुस्त हो गया है | इस शावक के उछल कूद का वीडियो सामने आया है जो को सोशल मीडिया मे अब जमकर वायरल हो रहा है |

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Dakhal News 17 January 2024


 कियोस्क संचालक के रुपये हुए गायब

अज्ञात चोर ले गया 2 लाख 70 हजार रुपएअमरपाटन में अज्ञात चोरो का आतंक है | अब इन अज्ञात चोरों ने एक कियोस्क संचालक की गाड़ी में रखे 2 लाख 70 हजार पर हाथ साफकर दिया है | मामला अमरपाटन रामनगर रोड का है | जहाँ अज्ञात चोरो ने चोरी के घटना को अंजाम दिया | मझगवा निवासी अनिल पटेल जो कियोस्क संचालक है |अनिल पटेल ने एसबीआई बैंक से 2 लाख 74 हजार रुपये निकाले जिसमे से उसने चार हजार रूपए अपने खर्च के लिए अपने जेब में डाल लिए और 2 लाख 70 हजार रुपए झोले में डालकर अपनी कार में ड्राइवर सीट के पीछे रख दिए और वह पाइप लेने के लिए चले गए | जब वह पाइप लेकर लौटे तो उन्होंने देखा पैसे का झोला गायब था |उन्होंने आनन फानन अमरपाटन थाने पहुँचकर शिकायत दर्ज करवाई |

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Dakhal News 17 January 2024


 फैक्ट्री पर एक लाख रुपए का जुर्माना

प्लास्टिक के विरुद्ध अभियान जारी काशीपुर में पूर्व पार्षद के भतीजे के घर छापेमारी की गयी |जहां से कुल 66 पेटिया प्रतिबंधित प्लास्टिक का सामन बरामद किया गया | फैक्ट्री संचालक पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया | काशीपुर के ढकिया गुलाबो नगर में पूर्व पार्षद राधे श्याम प्रजापति के भतीजे के घर पर नगर निगम, राजस्व विभाग एवम पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की संयुक्त टीम ने छापेमारी की जहां से कुल 66 पेटिया प्रतिबंधित प्लास्टिक बरामद की गयी | जिसमें से 51 पेटी डिस्पोजल ग्लास की और 15 पेटी चम्मच बरामद हुई | इस मामले मे फैक्ट्री संचालक पर एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया | सहायक नगर आयुक्त यशवीर राठी ने बताया कि लगातार प्रतिबंधित प्लास्टिक के विरुद्ध नगर प्रशासन द्वारा अभियान जारी है |

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Dakhal News 17 January 2024


 मुख्य नगर परिषद महिला अधिकारी की दबंगई

अपने परिषद के ही एक कर्मचारी को दी धमकीअब मैहर जिले से एक महिला अधिकारी की अभद्रता का ऑडियो सामने आया है |इस ऑडियो में अधिकारी सुषमा मिश्रा अपने परिषद के एक कर्मचारी को धमकी देते हुए अभद्रता के साथ पेश आ रही हैं | मैहर जिले के अमरपाटन की मुख्य नगर परिषद अधिकारी सुषमा मिश्रा का एक अभद्रता ऑडियो सोशल मीडिया में जमकर वायरल हो रहा है | जिसमे महिला अधिकारी आपने परिषद के हीं एक कर्मचारी को धमकी देते हुए अभद्रता के साथ पेश आ रही हैं |पहले सुनिए ये ऑडियो की ये अधिकारी अपने अधीनस्थ से कैसा व्यवहार करती हैं |कर्मचारी विष्णु महात्मन के द्वारा बताया गया की यह ऑडियो उसी के द्वारा रिकॉर्ड किया गया है |पीड़ित ने बताया की वाह चालक के पद पर पदस्थ है इसके बावजूद उसके अधिकारी के द्वारा नाली सफाई कराने का दबाव बनाया जा रहा है और अभद्रता भी की जाती है |इसके साथ हीं उसे थप्पड़ मारने की धमकी दी गयी |

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Dakhal News 17 January 2024


एमपी में रुक नहीं रहीं दुष्कर्म की घटनाएं

दस साल की बच्ची को बनाया हवस का शिकारमध्यप्रदेश में दुष्कर्म की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं |अब एक दरिंदे ने दस साल की मासूम को अपनी हवस का शिकार बनाया | मासूम बच्ची को गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती करवाया गया है |छतरपुर जिले स्थित सटई थान