समाज के सीसीटीवी में भेदभाव की धुंध
mumbai, fog of discrimination ,CCTV of the society

 

डॉ. रीना रवि मालपानी

जीवन सदैव नियति के विधान से चलता है पर समाज के सीसीटीवी के अनोखे विश्लेषण है। यह मानता है कि बेटी विवाह के बाद माता-पिता के घर नहीं रुक सकती। माता-पिता को रखना केवल बेटों की जिम्मेदारी है। लड़की की कमाई से माता-पिता का जीवनयापन करना ठीक नहीं। आप किसी अनाथ को गोद लेकर उसका लालन-पालन करोगे तो वह खून के रिश्ते की तरह वफादार नहीं होगा। ऐसे अनेकों प्रश्न हैं जिन पर समाज सदैव अपना सीसीटीवी लगाए रखता है। विश्लेषण और मूल्यांकन समाज करता है। मगर अपेक्षित सहयोग समाज नहीं करता। समाज के सीसीटीवी में बहू की कमाई से घर चलाना ठीक नहीं है। कन्या संतति से वंश का आगे उद्धार नहीं हो सकता। यदि आपने परिस्थिति या मन के अनुरूप निर्णय लिए हैं तो वहां उनका अतिरिक्त मूल्यांकन होने लगता है। कई माता-पिता को समाज के इस सीसीटीवी के डर से बेटी का विवाह शीघ्र करना होता है। फिर भले ही उसकी क्षमताओं को मारा जाए। वह घर उसके अनुरूप उचित हो या न हो। बाद में वह लड़की भले ही घुट-घुट कर अपना दम तोड़ती रहे।

कई बार अपनों और रिश्तेदारों के कहने में आकर खर्च करते-करते हम स्वयं पूरी तरह रंक बन जाते हैं और दुख की अवस्था में हमारा कोई सहयोगी नहीं होता। यदि कोई भी स्त्री भक्ति का मार्ग चुन ले और वह अपना अत्यधिक समय ईश भक्ति में लगा दे तो यही समाज उस पर उंगली उठाने लगेगा। इस समाज की घटिया सोच के कारण ही स्त्री शादी के बाद मायके में स्वयं को बोझ समझने लगती है। क्यों समाज की सोच जीवन में उलझनों को जन्म देती है और सुलझने का मार्ग क्यों नहीं सुझाती। समाज के दिखावे के चलते लोग महंगी-महंगी पार्टी करते हैं। शादी, बर्थडे पार्टी और सेलिब्रेशन में अनाप-शनाप रुपया खर्च किया जाता है। यह रुपया हम समाज में लोगों के इलाज, शिक्षा और उनके दुख को कम करने में नहीं लगाते। यह समाज दोहरा चरित्र निभाता है। कुछ समय झूठी तारीफ कर पुनः मीन-मेख निकालने लग जाता है। इस समाज के सीसीटीवी में आदर्श बेटे-बहू की संकल्पना है पर उन आदर्शों के साथ गृहस्थी का बोझ भी ढोना है। अत्यधिक अच्छाई की कीमत कभी-कभी आत्महत्या, घुटन, संत्रास, उत्पीड़न, अवसाद और खुद को रंक बनाकर भी अदा की जाती है। यह समाज आपके विवाह न करने, देरी से विवाह करने, प्रेम विवाह करने यानी हर स्थिति पर आपसे स्पष्टीकरण चाहता है। वह आपके परिस्थिति अनुरूप स्वतंत्र निर्णय का समर्थन नहीं करेगा पर कैमरे की चौकसी जरूर बढ़ाएगा। और उल्टे-सीधे विश्लेषण से सत्य से गुमराह करने में सहयोगी बनेगा।

क्यों हमारा समाज लोगों के अतिरिक्त मूल्यांकन के पहले उनकी यथार्थ स्थिति को समझने का प्रयत्न नहीं करता। क्यों उनके उन्नति के सोपानों में सहयोगी नहीं होता। समय के अनुरूप निर्णय का भी स्वागत होना चाहिए। जीवन सदैव वैसा नहीं होता जैसा आप अपने सीसीटीवी में देखते है। हर व्यक्ति की अपनी परिस्थितियां, अपने भविष्य के लिए विचार या अपने स्वतंत्र निर्णय हो सकते हैं। समाज को समृद्धि, खुशहाली और सकारात्मक सोच में सहयोगी होना चाहिए, क्योंकि आप भी इसी समाज का अंग हैं। परिवर्तन संसार का नियम है, जिस कसौटी पर आज आप लोगों को तौल रहे हैं कल शायद उस तराजू में आपको भी खड़ा होना हो सकता है। समाज के सीसीटीवी से बुराई, आलोचना, नकारात्मकता और अतिरिक्त मूल्यांकन की धुंध समाप्त होनी चाहिए।

(लेखिका, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Dakhal News 14 May 2022

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