जीवन में जो जरूरी है उसके लिए समय तो निकालना ही पड़ेगा
We have to make time for what is important

एन. रघुरामन 

हालांकि उनका जन्मदिन मई के महीने में आता है, लेकिन उन्होंने इसे 15 सितंबर को मनाने तक इंतजार किया, ताकि अलग-अलग शहरों में रहने वाले परिवार के सभी लोग एक साथ आ सकें।

आखिर, वे दोनों मां हैं और उन दोनों के कुल 13 बच्चे हैं और उन 13 के भी अपने बच्चे और पोते-पोतियां हैं। वे जुड़वां थीं और अपना 102वां जन्मदिन मना रही थीं, इसलिए यह खास था।

1922 में अमेरिका के जॉर्जिया में जन्मीं ये दोनों बहनें- मर्लिन राइट और मैडलिन कैस्पर अभी भी बहुत अच्छे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में हैं। 102 साल पूरे करना एक विशेष उपलब्धि है- लेकिन अपने जुड़वां के साथ ऐसा कर पाना तो और अनूठा है।

इसने कुछ शोधकर्ताओं को यह पता लगाने के लिए प्रेरित किया कि एक-दूसरे की हमशक्ल ये जुड़वां बहनें सामान्य आबादी की तुलना में अधिक समय तक कैसे जीवित रहीं। उन्होंने पाया कि नजदीकी और मददगार संबंध बनाए रखने से लोगों को लंबे समय तक जीने में मदद मिलती है।

जब मैं इस बर्थडे पार्टी के बारे में पढ़ रहा था, मेरे मोबाइल पर एक बुरी खबर आई। इसमें पुणे में एक 26 वर्ष के युवा की "काम के दबाव के चलते' मृत्यु की सूचना थी। इससे मुझे अपने दादाजी की याद आ गई, जिनका काम, करियर और जीवन का संतुलन बहुत बढ़िया था।

उन्होंने हमारे गांव में 94 साल की उम्र तक अपने कपड़े खुद धोए, और उनके कपड़ों की सफेदी इतनी रहती थी कि आज के वॉशिंग पाउडर के विज्ञापन भी शरमा जाएं। अपनी चमचमाती धोती और कुर्ता पहनकर वे बगीचे में अपनी रोजाना की सैर को कभी नहीं भूलते थे।

वे शाम 6 बजे खाना खाते थे, फिर बरामदे में बैठकर मुक्तकंठ से गाना गाते थे और रात 9 बजे से पहले सो जाते थे। सुबह 4 बजे वे दिन की शुरुआत करते थे और ब्रह्म मुहूर्त में खुद कुएं से ठंडा पानी भरकर नहाते थे। अपने करियर में वे तेजी से आगे बढ़े थे और तमिलनाडु के तंजावुर जिले में अपनी प्रतिभा के दम पर भूमि रजिस्ट्रार कार्यालय में नंबर 2 बन गए थे।

वे अच्छी तरह जानते थे कि वे कभी नंबर 1 नहीं बन सकते, क्योंकि उस स्तर पर उन्हें कई समझौते करना होते, जो वे शायद न कर पाते। इसलिए उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षा पर रोक लगाई और अपनी ऊर्जा को अपने आठ बच्चों के पालन-पोषण में लगाया।

उन्होंने कड़ी मेहनत की और ईमानदार बने रहे। उन्होंने अपनी स्वीकृत छुटि्टयां लेकर परिवार की सभी जिम्मेदारियों को पूरा किया, और इसी दौरान उनके बॉस रजिस्ट्रार कार्यालय में अपने उच्च अधिकारियों को संतुष्ट करने के लिए वह सब कर सके, जो वे दादाजी की उपस्थिति में नहीं कर सकते थे, क्योंकि वे कागजात पर दूसरे हस्ताक्षरकर्ता हुआ करते थे।

वे कभी भी घर में कोई उपहार नहीं लाए, न ही उन्होंने त्योहारों के दौरान भी किसी उपहार की उम्मीद की। कार्यालय बंद होने के ठीक 30 मिनट बाद वे घर में होते थे। उनके घर में हमेशा अलग-अलग उम्र के कुछ पोते-पोतियां हुआ करते थे।

वे हमेशा यह सुनिश्चित करते थे कि घर में बच्चों की चहल-पहल बनी रहे। उनकी मृत्यु तभी हुई, जब उन्हें चेन्नई में उनके बेटे के घर ले जाया गया, जहां वे बाथरूम में गिर गए और काफी लंबे समय तक बीमार रहे।

आज हम उनके आठ बच्चों से हुए दो दर्जन पोते-पोतियां उन्हें हमेशा एक ख्याल रखने वाले, प्यार करने वाले और सभी से उदारता से बातें करने वाले व्यक्ति के रूप में याद करते हैं, उनसे भी जिन्हें वे पसंद नहीं करते थे।

हम सभी को उन चीजों के लिए समय निकालने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, जो हमारे लिए मायने रखती हैं। हम सभी अपने दिन की शुरुआत अच्छे इरादों के साथ करते हैं, लेकिन जब व्यस्त ऑफिस मीटिंग, काम के दबाव और नियोक्ता, परिवार और दोस्तों के वॉट्सएप निर्देशों के साथ-साथ लगातार ईमेल में समय बर्बाद हो जाता है, तो हम समय पर नियंत्रण खो देते हैं।

अगर पोते-पोतियों या नाती-नातिनों के साथ रहकर आपको खुशी मिलती है, तो रहिए या जोर से गाना आपको खुश करता है, तो गाएं और इस बात की परवाह न करें कि कौन सुन रहा है, और जंगल में दोस्तों के साथ घूमना आपको खुश करता है, तो आगे बढ़ें, दोस्त बनाएं और उनके साथ निकल पड़ें।

फंडा यह है कि जीवन में जो मायने रखता है उसके लिए समय निकालना ही पड़ेगा, क्योंकि समय ही इकलौता ऐसा है, जो आपके जीवन को खुशनुमा बना सकता है।

Dakhal News 23 September 2024

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