उभरते हुए बाजार अब अमेरिका को टक्कर दे रहे हैं
markets are now giving competition to America

रुचिर शर्मा 

ये 2000 के दशक की बात है, जब उभरती अर्थव्यवस्थाओं में एक व्यापक इकोनॉमिक-बूम उनके बाजारों में अरबों डॉलर की बाढ़ ला रहा था। तब उस ऐतिहासिक पल को ‘राईज़ ऑफ द रेस्ट’ यानी विकसित अर्थव्यवस्थाओं की सूची से शेष रह गई ‘अन्य’ विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का उदय बताया गया था। आज फिर उभरते बाजारों से वैसी ही प्रेरक कहानी सामने आ रही है, लेकिन कम ही विश्लेषकों का ध्यान इस तरफ गया है। विदेशी निवेशकों को तो भनक तक नहीं लगी है।

पिछले दशक में उभरती अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट आई थी, लेकिन अब वे पुनर्निमाण के दौर से गुजर रही हैं और विकसित अर्थव्यवस्थाओं के समक्ष ग्रोथ की बढ़त दर्ज करने में मशगूल हैं। अमेरिका तक को चुनौती दी जा रही है।

ऐसा गत 15 वर्षों में नहीं देखा गया था। उभरती अर्थव्यवस्थाओं का अनुपात- जिसमें प्रति व्यक्ति जीडीपी अमेरिका से अधिक तेजी से बढ़ने की संभावना है- पिछले पांच वर्षों में 48 प्रतिशत से अगले पांच वर्षों में 88 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है। यह 2000 के दशक में उभरती दुनिया के पीक के अनुरूप होगा।

यह उभरता हुआ उछाल पिछली बार के बूम से कई अहम मामलों में अलग है। 2000 के दशक में उभरती दुनिया को चीन के तेजी से बढ़ते कदमों, कमोडिटी की कीमतों में भारी उछाल और पश्चिमी केंद्रीय बैंकों द्वारा अपनाई गई आसान मुद्रा नीतियों के कारण उछाल मिला था।

कई टिप्पणीकारों ने मान लिया था कि चीन के उदय के पीछे ‘अन्य’ अर्थव्यवस्थाएं भी बड़े पैमाने पर उछाल जारी रख सकती हैं, लेकिन वे बुरी तरह से निराश हुए। 2012 में ही मैंने चेतावनी दे दी थी कि अत्यधिक हाइप के चलते इन ‘अन्य’ अर्थव्यवस्थाओं का पतन हो सकता है। और यकीनन, अगला दशक उभरते बाजारों के लिए निराशाजनक था- वहीं वह अमेरिका के लिए शानदार रहा।

लेकिन अब कई उभरते हुए देश अमेरिका की तुलना में कहीं ज्यादा मजबूत वित्तीय स्थिति में हैं। एक अति-उत्तेजित महाशक्ति के रूप में, और विकास को गति देने के लिए रिकॉर्ड घाटे पर निर्भर रहने के कारण अमेरिका अब एक अस्थिर रास्ते पर है।

उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में बजट और चालू खाता घाटा बहुत कम है, जिससे उन्हें निवेश करने और भविष्य के विकास को आगे बढ़ाने की ज्यादा क्षमता मिलती है। यहां तक कि तुर्किये से लेकर अर्जेंटीना तक- जो देश अतीत में वित्तीय अपव्यय के लिए जाने जाते थे- वे भी पुराने चलन की आर्थिक नीतियों की ओर लौट आए हैं।

उभरते देशों का भाग्य अब पूरी तरह से सबसे अमीर देश पर निर्भर नहीं करता। वर्तमान में हो रहा उभार चीन के अलावा अन्य देशों द्वारा संचालित है, जिनकी अपनी कठिनाइयां हैं, घटती आबादी से लेकर भारी कर्ज तक।

बीजिंग के राष्ट्रवादी रुख और पश्चिम के साथ उसके बढ़ते तनावपूर्ण संबंधों ने वैश्विक निवेशकों को डरा दिया है। अब वे चीन से बाहर निकल रहे हैं और कहीं और कारखाने स्थापित कर रहे हैं। आने वाले दशक में ग्रीन टेक्नोलॉजी और उसके लिए आवश्यक कच्चे माल- जैसे कि तांबा और लिथियम- के लिए निर्यात विशेष रूप से मजबूत होने की संभावना है, जिनकी आपूर्ति मुख्य रूप से उभरते देशों द्वारा ही की जाती है।

एआई बूम पहले से ही एआई-संबंधित चिप्स (कोरिया और ताइवान) और इलेक्ट्रॉनिक्स (मलेशिया और फिलीपींस) के आपूर्तिकर्ताओं से निर्यात को बढ़ावा दे रहा है। कई उभरते बाजारों में निवेश भी बढ़ रहा है, जो कई खूबियों से प्रभावित है- भारत का बड़ा घरेलू बाजार, डेटा सेंटर के लिए मलेशिया का उपजाऊ वातावरण और मेक्सिको की अमेरिका से निकटता।

जैसे-जैसे आर्थिक विकास बढ़ता है, कॉर्पोरेट आय भी उसी के अनुरूप होती है। चीन को छोड़ दें तो वर्तमान में उभरते बाजारों में आय 16 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रही है, जबकि अमेरिका में यह 10 प्रतिशत ही है।

इस वर्ष की दूसरी तिमाही में- 2009 के बाद पहली बार- उभरते बाजारों (चीन को छोड़कर) में कॉर्पोरेशंस ने अपने अमेरिकी समकक्षों की तुलना में आय के पूर्वानुमानों को व्यापक अंतर से पीछे छोड़ दिया है। भारत और सऊदी अरब के पास तो घरेलू निवेशकों का भी मजबूत और तेजी से बढ़ता आधार है।

अमेरिका की छाया में लंबे समय तक रहने के बाद, उभरते बाजार तेजी से आकर्षक विकल्प बनते जा रहे हैं। हालांकि वे तेजी से आय वृद्धि दर्ज कर रहे हैं, लेकिन वे अमेरिका की तुलना में रिकॉर्ड कम मूल्यांकन पर कारोबार कर रहे हैं।

15 वर्षों तक, अमेरिका ने मुख्य रूप से बड़ी टेक कंपनियों द्वारा संचालित बेहतर आय वृद्धि प्रदान की थी, लेकिन यह भी बदल रहा है। अमेरिका की बड़ी टेक फर्मों की आय वृद्धि अब आने वाले वर्ष में आधे से अधिक गिरने की उम्मीद है।

ये ठीक बात है कि सभी उभरते हुए देशों को एक पांत में नहीं रखा जा सकता। ऐसे में उन्हें औसतन एक दशक तक अच्छा करना होगा और वैश्विक व्यापार, डॉलर, आर्थिक सुधार, नए राजनीतिक नेतृत्व आदि के अनुकूल ट्रेंड्स से अपने लिए मजबूती प्राप्त करना होगी।

याद करें कि अभी हाल ही तक अनेक टिप्पणीकार चेतावनी दे रहे थे कि महामारी के बाद उभरती हुई दुनिया और कमजोर हो जाएगी। उनसे कम ही उम्मीदें की जा रही थीं। उलटे इस बात का डर था कि उभरते बाजार वैश्विक निवेशकों की पसंद नहीं रह जाएंगे। लेकिन उन्होंने शानदार वापसी की है। टिप्पणीकारों को अब इसका संज्ञान लेना चाहिए।

बदलते दौर की इकोनॉमी...

एआई बूम चिप्स (कोरिया व ताइवान) और इलेक्ट्रॉनिक्स (मलेशिया व फिलीपींस) के आपूर्तिकर्ताओं से निर्यात को बढ़ावा दे रहा है। भारत का बाजार, डेटा सेंटर के लिए मलेशिया का सहयोगी माहौल और मेक्सिको की अमेरिका से निकटता निवेशकों को खींच रही है।

Dakhal News 28 August 2024

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