विनेश की यात्रा से हम सब अपने आपको जोड़ पाते हैं
We can all relate to Vinesh

बरखा दत्त 

विनेश फोगाट की उदास मुस्कान पेरिस ओलिम्पिक में उनकी अपात्रता की खबर से कहीं ज्यादा मर्मस्पर्शी थी। अस्पताल के बिस्तर पर लेटीं विनेश की तस्वीर देखकर मुझे बहुत व्यथा हुई। पिछले कुछ दिनों में विनेश ने जो कुछ भी खोया है, उसके बाद भी वे चेहरे पर बहादुर मुस्कराहट बनाए रखने में कामयाब रहीं।

तस्वीर में आप उनके कटे बाल देख सकते थे, जो 50 किलो-वर्ग के फाइनल में प्रतिस्पर्धा करने के लिए उनके और उनकी टीम द्वारा उठाए गए कई हताश उपायों में से एक का साक्षात् प्रमाण थे। उन्होंने रस्सियां कूदीं, ऊष्मा-कक्ष में बैठीं, पानी तक नहीं पिया, कपड़े छोटे कर लिए और खून तक निकाला! लेकिन अंत में उनका वजन मानक से 100 ग्राम अधिक पाया गया और उन्होंने अपना वह रजत पदक भी खो दिया, जिसकी वो सुपात्र थीं और जो उन्हें मिलना तय था 

विनेश की यात्रा से हम खुद को जोड़ पाते हैं। उनके द्वारा जिन परीक्षाओं का सामना किया गया, उनके कष्ट, अपेक्षाएं, त्रासदियां- इन सबमें हम- यानी हम भारत की महिलाएं- या तो अपने जीवन का प्रतिबिम्ब देखती हैं या उस साहस का अनुमोदन पाती हैं, जिसकी हमें अपने जीवन में भी कामना रहती है।

ऐसे लोग, जिन्होंने कभी कुश्ती का मुकाबला नहीं देखा- मैं भी उनमें से एक हूं- या जो खेलों में वजन मापने के तकनीकी तर्कों से चकित हैं; वे भी विनेश के साथ जो कुछ हुआ, उससे प्रभावित हुए हैं। संसद में विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया है कि विनेश के भाग्य में अचानक आया बदलाव किसी साजिश के चलते है। कहा गया कि पिछले साल भाजपा के कद्दावर नेता बृजभूषण शरण सिंह द्वारा कथित यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के खिलाफ उनके द्वारा जताए मुखर-विरोध को उनके अप्रत्याशित दुर्भाग्य से अलगाया नहीं जा सकता। कानाफूसी में कहा गया कि उन्हें जानबूझकर क्षति पहुंचाई गई। जबकि अधिक जानकार विशेषज्ञों ने तर्क दिया कि विनेश के मामले में जो हुआ, उसके लिए यकीनन जिम्मेदारों को दंडित किया जाना चाहिए, लेकिन इस मामले में किसी राजनीतिक साजिश की ओर संकेत करना तो अकल्पनीय और कपटपूर्ण है। मैं कुश्ती और उसकी विभिन्न भार-श्रेणियों की विशेषज्ञ नहीं। लेकिन इतना जरूर जानती हूं कि विनेश को जैसी सार्वभौमिक प्रशंसा मिली और उनके दुर्भाग्य पर जिस तरह से सामूहिक शोक जताया गया, उसका सरोकार दिल्ली की सड़कों पर लैंगिक भेदभाव से जूझते हुए उनके संघर्ष के साक्षी बनने और उसमें उनके अकेलेपन के साथ सहानुभूति रखने से था। हममें से कोई भी उस तस्वीर को भुला नहीं सकता, जिसमें उन्हें और साक्षी मलिक को पुलिस द्वारा ऐसे घसीटा जा रहा था, मानो वे जरायमपेशा अपराधी हों। हममें से कोई भी यह नहीं भूल सकता कि जिस व्यवस्था ने हमारी इन चैम्पियनों के साथ बल प्रयोग किया, उसने महिलाओं की पीड़ा का उपहास करने वाले बृजभूषण शरण सिंह की जमानत का अदालत में विरोध नहीं किया था। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विनेश उस व्यक्ति का मुकाबला कर रही थीं, जो अपने एक इंटरव्यू में कैमरे के सामने बड़ी बेबाकी से हत्या के बारे में बात कर चुके हैं। उनके खिलाफ डकैती और हत्या के प्रयास के मामले दर्ज हैं। एक समय ऐसा था, जब उन 38 आरोप लगे थे, लेकिन अभी तक एक भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ कल्पना कीजिए, विनेश और उनके साथियों को कितने जीवट की जरूरत पड़ी होगी। मुझे याद है उन विरोध-प्रदर्शनों के दौरान मैंने विनेश से बात की थी। उन्होंने मुझसे कहा था, ‘लाचारी महसूस होती है। अगर हमारे जैसी लड़की सुरक्षित नहीं है, तो किसका भविष्य सुरक्षित है?’ एक अन्य मर्तबा, पुलिस कार्रवाई का सामना करने पर मेरे साथ बातचीत में उन्होंने चुनौती के स्वर में कहा था, ‘अगर आप मेरे घर आओगे, तो आपको बस थोड़ा घी और भारत का झंडा मिलेगा। इस सबसे गुजरने के बाद यह देखना हताश कर गया कि उन्हें ओलिम्पिक के पोडियम पर तिरंगे में स्वयं को लपेटने का अवसर नहीं मिला। उनके रिटायरमेंट की खबर तो और अवसाद में झोंकने वाली थी। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री- सभी ने इस घटनाक्रम पर निराशा व्यक्त की। लेकिन अगर वे विनेश का भारत में स्वागत करना चाहते हैं, तो एक साधारण-सा कदम उनकी पीड़ा को कम कर सकता है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि विनेश को न्याय मिले और उनकी पीड़ाओं के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को बाहर का रास्ता दिखाया जाए। स्वर्ण के समान बहुमूल्य विनेश को हमें यह महसूस कराना होगा कि पदक की लड़ाई वे भले ही हार गई हों, लेकिन नैतिक युद्ध में उनकी जीत हुई है। विनेश के कष्ट, अपेक्षाएं, त्रासदियां- इन सबमें हम- यानी हम भारत की महिलाएं- या तो अपने जीवन का प्रतिबिम्ब देखती हैं या उस साहस का अनुमोदन पाती हैं, जिसकी हमें अपने जीवन में भी कामना रहती है।

Dakhal News 12 August 2024

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