सरनेम बदलने का रिवाज सिर्फ महिलाओं के लिए क्यों?
the custom of changing surname for women

मेघना पंत 

मुंबई में पंत जैसे सरनेम के साथ मेरा जीवन आसान नहीं था। शाह, पटेल, देसाई, भंसाली, चोखानी, जिंदल, असरानी जैसे सरनेम वाली दुनिया में पहाड़ी सरनेम से मैं असहज स्थिति में पड़ जाती थी। कई बार उपहास के बाद मैं शादी तक का सोचने लगी थी, ताकि पंत सरनेम बदल सकूं, जो तब मुझे असहज कर देने वाला लगता था! लेकिन जब मेरी शादी हुई तो एक विचित्र चीज हुई।

अब मैं अपना सरनेम नहीं बदलना चाहती थी। क्यों? इसके कई कारण थे। पर मूल में ये था कि यह न सिर्फ उस चीज को त्याग देना था, जिसने मुझे अलग बनाया, बल्कि यह अपनी पहचान को भी छोड़ना होता।हमारे देश में यह परंपरा रही है कि शादी के बाद महिलाएं अपना सरनेम बदल देती हैं। हालांकि अब समय बदल गया है। एक बड़ा बदलाव आया है, जहां कई भारतीय महिलाएं शादी से पहले का सरनेम रखे हुए हैं और खुशहाल शादीशुदा जीवन बिता रही हैं।

पहला, यह कई व्यावहारिक कारणों से है, जिसकी कई परते हैं। आज महिलाएं हर पेशे में बराबरी से काम कर रही हैं। एक बार जब वे अपना नाम बना लेती हैं तो फिर बाद में नाम (उपनाम) बदलकर अपनी उपलब्धियां यूं ही क्यों ज़ाया होने देंगी? महिलाएं सबकुछ झेल रही हैं, यहां तक कि बच्चा पैदा करने और उसे पालने की चुनौती भी बखूबी निभा रही हैं, ऐसे में उनका पेशेवर स्टेटस उनकी वैवाहिक स्थिति पर निर्भर क्यों होना चाहिए? और फिर कागज-पत्री भी है।

डिजिटलीकरण के बावजूद किसी के लिए सरनेम बदलना उतना ही कष्टदायी है। महिलाएं आज सिर्फ कमा ही नहीं रही हैं, वे जानती हैं कि खर्च कैसे करें, निवेश कहां करें और कैसे बचाएं। कल्पना करिए, एक महिला के लिए किस तरह का दुःस्वप्न होगा, जहां उसे निवेश के दस्तावेजों, संपत्ति रिकॉर्ड, पासपोर्ट, लाइसेंस, रजिस्ट्रेशन आदि में सरनेम बदलवाना पड़े। कौन-सी समझदार महिला सिर्फ पति के अहंकार की पूर्ति के लिए ऐसा करेगी, जबकि वह यह ऊर्जा अधिक पैसा कमाने और निवेश में लगा सकती है?

यह प्रथा महिलाओं को वस्तु के रूप में मानती है जो केवल उनके पिता, फिर पति की है, जहां उसकी खुद की पहचान नहीं है। आपका नाम आपको परिभाषित करता है। कल्पना करें, आपके व्यक्तित्व, आपकी उपलब्धियों, सपनों, आपकी विरासत, आपकी स्वायत्तता के साथ-साथ इसे भी छोड़ दें। इसमें क्या तुक है?

विवाह में एक-दूसरे के साथ प्रतिबद्धताओं का दायरा व्यापक होना चाहिए, जहां व्यक्तिगत पहचान कायम रहने के साथ पेशेवर निरंतरता भी बनी रहे, ना कि इसमें उथल-पुथल मच जाए। शादियां तब बेहतर चलेंगी, जब यह महिलाओं को उनकी आजादी और उनकी अहमियत का अहसास कराए और पुरुषों को महिलाओं की आजादी का सम्मान करने के लिए प्रेरित करे। विवाह महिलाओं के लिए जेल नहीं होना चाहिए, बल्कि बेहतर कल की दिशा में एक कदम होना चाहिए।

जब कानून कहता है कि सरनेम बदलना व्यक्तिगत अधिकार है, ऐसे में क्या समाज को यह नहीं समझना चाहिए? एक महिला का शादी से पहले वाला सरनेम रखना उसकी व्यक्तिगत और व्यावसायिक उपलब्धियों के लिए सम्मान का प्रतीक है, और यही उसे एक अच्छी पत्नी बनाता है। अगली बार जब आप किसी विवाह में जाएं तो याद रखें कि अगर कोई पति से उसका सरनेम बदलने के लिए नहीं कह रहा, तो पत्नी से भी ऐसा नहीं कहना चाहिए।

Dakhal News 18 September 2024

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