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14 January 2025लेखक: अनुराग आनंद
तारीख- 17 मई 1999। जगह- रावलपिंडी में ISI के ओझिरी कैंप का एक सीक्रेट मीटिंग रूम। बैठक में पाकिस्तान के उस वक्त के PM नवाज शरीफ, सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ समेत डिफेंस के टॉप ऑफिसर्स और विदेश मंत्री मौजूद थे।जनरल तौकीर जिया ने PM के सामने प्रेजेंटेशन देना शुरू किया। नक्शे में कुछ पॉइंट दिखाए गए और बताया कि पाकिस्तानी सेना ने भारत की इन चौकियों पर कब्जा कर लिया है। अब निशाने पर भारत का नेशनल हाईवे-1 है। ये प्रेजेंटेशन ऑपरेशन कोह-ए-पैमा का था, जिसे पाकिस्तानी सेना ने कारगिल घुसपैठ और कश्मीर को हथियाने के लिए बनाया था।जनरल मुशर्रफ ने PM को बताया कि ये ऑपरेशन 5 फेज का है। पहले फेज को पूरा कर लिया गया है और सेना कामयाबी के बेहद करीब है। अब वापसी संभव नहीं है। PM नवाज कुछ पूछते, इससे पहले ही चीफ ऑफ स्टाफ जनरल अजीज ने कहा- 'सर, अब कुछ मत सोचिए। बस आप इसकी इजाजत दीजिए। पाकिस्तान के इतिहास में आपका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। आप 'कश्मीर के मुक्तिदाता' कहलाएंगे।'विदेश मंत्री सरताज अजीज ने आगाह करते हुए कहा कि यह भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी से किए वादे के खिलाफ होगा। नवाज बोले- हम कब तक कागजी कार्रवाई के जरिए कश्मीर को आजाद कराने की कोशिश करेंगे। अब मौका मिला है तो क्यों ना इसका फायदा उठाया जाए।इसके बाद PM नवाज ने ऑपरेशन कोह-ए-पैमा को हरी झंडी दे दी। पाकिस्तानी पत्रकार नसीम जेहरा अपनी किताब 'फ्राम कारगिल टु द कू' में इस पूरी घटना का जिक्र किया है।
कारगिल विजय के 25 साल पूरे होने पर जानेंगे जंग का पाकिस्तानी साइड। पाक सेना के गैंग ऑफ फोर ने कैसे बनाया था कारगिल घुसपैठ का प्लान और ऑपरेशन विजय ने उसे कैसे नाकाम किया…1987 में लिखी गई स्क्रिप्ट: जब सियाचिन की चोटी पर चढ़ बैठी भारतीय सेना
13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हूण के नेतृत्व में कुमाऊं रेजिमेंट की एक पूरी बटालियन सियाचिन की चोटी पर चढ़ बैठी। इसे ऑपरेशन मेघदूत नाम दिया गया। पाकिस्तान में इस वक्त जनरल जियाउल हक की तानाशाही थी। सियाचिन पर भारतीय सेना की जीत से झल्लाए जनरल जियाउल हक ने पाकिस्तानी सेना को सियाचिन पर हमले के आदेश दिए।1986 में पाकिस्तानी सेना के स्पेशल सर्विस ग्रुप ने सियाचिन के पश्चिम में एक चोटी पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तानी सेना ने कायद-ए-आजम मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर इस पोस्ट का नाम रखा कायद। अगले ही साल भारतीय सेना ने कैप्टन बाना सिंह के नेतृत्व में इस पोस्ट पर कब्जा कर लिया और इसका नाम दिया बाना पोस्ट। सियाचिन और बाना टॉप पर हुई जंग के बाद भारत और पाकिस्तान में सियासी समझौते होते रहे, लेकिन पाकिस्तान के ब्रिगेडियर परवेज मुशर्रफ इस हार को पचा नहीं पाए।1987 में जियाउल हक ने परवेज को स्पेशल सर्विस ग्रुप का कमांडर बनाकर सियाचिन भेजा। वहां से लौटकर परवेज मुशर्रफ ने कारगिल और सियाचिन पर कब्जे के लिए जियाउल हक को एक डिटेल प्लान दिया। हालांकि, जियाउल हक तब इसके लिए तैयार नहीं हुए।
1998 में सेना प्रमुख बने जनरल मुशर्रफ: ISI ने कारगिल पर कब्जे के प्लान को स्ट्रैटिजिकली फेल बताया
1998 में पाकिस्तान के PM नवाज शरीफ ने दो सीनियर आर्मी जनरल को पीछे छोड़ जनरल परवेज मुशर्रफ को आर्मी चीफ बनाने का फैसला किया। मुशर्रफ सियाचिन में मिली हार को भूले नहीं थे। मौका मिलते ही उन्होंने दोबारा सियाचिन पर कब्जे के पुराने प्लान पर काम करना शुरू कर दिया। नसीम जेहरा अपनी किताब ‘फ्रॉम कारगिल टु द कू: इवेंट्स दैट शूक पाकिस्तान’ के पेज 45 पर लिखती हैं कि मुशर्रफ के सेना प्रमुख बनने से पहले ही पाकिस्तानी सेना ने कारगिल पर कब्जे के इस प्लान को प्लानिंग डायरेक्टरेट के पास भेजा था। इसके बाद ये प्लान रिव्यू के लिए डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन और फिर ISI के पास भेजा गया। ISI ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि टैक्टिकली ये अच्छा प्लान है। इसके जरिए हम कारगिल पर कब्जा तो कर लेंगे, लेकिन स्ट्रैटिजिकली ये नाकाम प्लान है, क्योंकि इस कब्जे को लंबे समय तक बरकरार रखना मुमकिन नहीं होगा। ISI की यह रिपोर्ट उन्हीं के एक बड़े अधिकारी जनरल अजीज खान को पसंद नहीं आई। दरअसल, 1998 की शुरुआत में जनरल अजीज ने भारतीय सीमा में घुसकर 28 चोटियों पर कब्जा किया था। इसलिए उन्हें लगता था कि ठंड के मौसम में इस प्लान को आसानी से अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है।
1998 में अमेरिका में मिले भारत-पाकिस्तान के PM: पाकिस्तानी सेना कर रही थी घुसपैठ की तैयारी
11 सितंबर 1998 को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक हो रही थी। भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के PM नवाज शरीफ भी इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए यहां पहुंचे थे। यह पहला मौका था, जब भारत और पाकिस्तान के दो बड़े नेता एक टेबल पर खाना खा रहे थे। इस वक्त बातचीत में नवाज शरीफ ने बताया कि जब 1982 में भारत में एशियन गेम्स हुए थे, तो वे लाहौर से दिल्ली कार से गए थे। कार भी उन्होंने खुद चलाई थी। पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने अपनी किताब "इंडिया एट रिस्क' में लिखा है कि जब अटल जी और शरीफ के बीच बातचीत हो रही थी तो वह वहीं मौजूद थे। उस समय विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान मामलों के अधिकारी विवेक काटजू मेरे कान में फुसफुसाए कि अमृतसर से लाहौर बस यात्रा शुरू करने वाली बात करने का यह सबसे बेहतर समय है। इसके बाद ये सुझाव नवाज और अटल के सामने रखा गया। दोनों नेताओं ने इस सुझाव को खूब पसंद किया
पाकिस्तान की पत्रकार नसीम जेहरा के मुताबिक अमेरिका में नवाज और अटल की मुलाकात के एक महीने बाद अक्टूबर में पाकिस्तानी सेना ने भारत पर हमले की तैयारी शुरू कर दी। अक्टूबर 1998 में ही जुबानी तौर पर परवेज मुशर्रफ ने कारगिल में घुसपैठ करने के लिए ऑपरेशन कोह-ए-पैमा को मंजूरी भी दे दी। भारतीय सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल जेएस सोढी के मुताबिक कारगिल पर चढ़ाई के लिए ऑपरेशन कोह-ए-पैमा का नाम पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय ने दिया था। यह एक फारसी शब्द है, जिसका मतलब पहाड़ों की चोटी तक पहुंचने वाला है। जिस बैठक में ये नाम तय किया गया था, उसमें पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ, चीफ ऑफ जनरल स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल अजीज खान, ऑफिसर कमांडिंग (GOC) 10 कोर जनरल महमूद और कमांडर FCNA ब्रिगेडियर जावेद हसन शामिल थे। इस ऑपरेशन को लीड जनरल अजीज खान कर रहे थे, जबकि फ्रंट पर जनरल जावेद हसन मोर्चा संभाल रहे थे। 17 हजार फीट की ऊंचाई पर -20 डिग्री सेल्सियस तापमान में ऑपरेशन कोह-ए-पैमा को अंजाम देने की जिम्मेदारी नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री रेजिमेंट यानी NLI को दी गई। जनरल जावेद हसन को NLI का प्रमुख बनाया गया। NLI पाकिस्तानी सेना, नहीं बल्कि पैरामिलिट्री फोर्स थी।
इस रेजिमेंट में ज्यादातर जवानों की बहाली गिलगित और बाल्टिस्तान क्षेत्र से हुई थी। इन जवानों को बर्फ में जंग करने की ट्रेनिंग दी गई थी। साथ ही इन्हें पैदल चलकर हमला करने, पहाड़ों की लड़ाई करने के लिए ट्रेंड किया गया था। नवंबर 1998 में पाकिस्तान के स्कार्दू और गिलगित में तैनात फ्रंटियर डिवीजन के जवानों की छुट्टियां भी रद्द कर दी गईं।
1999 में जंग से 3 महीने पहले: नवाज ने फोन कर अटल को पाकिस्तान बुलाया
जनवरी 1999 में भारत की तरफ से तय हो गया था कि वाजपेयी अमृतसर से बस को हरी झंडी दिखाएंगे। जनवरी में ही एक दिन नवाज ने वाजपेयी को फोन किया और पूछा- सुना है आप ग्रीन सिग्नल देने अमृतसर आ रहे हैं। वाजपेयी के हां कहते ही तपाक से नवाज बोले- करीब आकर भी मेरे दरवाजे आए बिना आप कैसे लौट सकते हो।इसके बाद 20 फरवरी 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी बस से लाहौर पहुंचे। लाहौर में पाकिस्तान के PM नवाज शरीफ ने अटल बिहारी वाजपेयी को गले लगाया। उनके स्वागत समारोह में 21 तोपों की सलामी दी गई। लाहौर के गवर्नर हाउस में अटल बिहारी वाजपेयी और शरीफ ने 'लाहौर घोषणा' पर हस्ताक्षर किए। इस दौरान अपने भावुक भाषण में वाजपेयी ने कहा था कि पांच दशकों की शत्रुता को समाप्त करना और शांति कायम करना दोनों देशों की नियति है दोस्ती का हाथ बढ़ाकर पीठ में खंजर घोंपा: पाकिस्तानी सेना ने किया भारतीय चौकियों पर कब्जा
जोजिला से लेह तक भारत और पाकिस्तान के बीच करीब 300 किलोमीटर सीमा लगती है। 1999 तक यहां इंडियन आर्मी की सिर्फ एक ब्रिगेड तैनात होती थी। 2500 सैनिकों के लिए 300 किलोमीटर लंबी सीमा की सुरक्षा करना बेहद मुश्किल काम था। 14 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर अक्टूबर से मई तक दोनों देशों की सेनाएं चोटियां खाली कर देती थीं। पाकिस्तान ने इसी समय का फायदा उठाया। मई में दोबारा भारतीय सेना पहाड़ों पर तैनात होती, इससे पहले ही जनवरी 1999 में मुश्कोह, द्रास, कारगिल और तुर्तुक सेक्टर में पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ कर दी। पाकिस्तानी सेना LoC सीमा से 10 किलोमीटर तक अंदर भारतीय सीमा में घुस गई। अपनी किताब ‘लाइन ऑफ फायर’ में परवेश मुशर्रफ ने लिखा था कि 1998 की सर्दियों में कारगिल में बॉर्डर के इस पार पाकिस्तानी आर्मी ने करीब 100 पोस्ट बनाकर इन सभी पर 20 से 25 जवानों की तैनाती की थी। LoC के पार करीब 100 वर्ग किलोमीटर तक भारतीय सीमा में हजारों मुजाहिदीन घुस गए थे। जंग के बाद पाकिस्तानी सेना के जनरल अजीज ने कहा था कि भारतीय सीमा में सिर्फ मुजाहिदीन नहीं, बल्कि हमारी फौज भी घुसी हुई थी। LoC के बॉर्डर पर तैनात दोनों देशों के सैनिकों के लिए ये नियम है कि वो बॉर्डर पार करने से पहले अपनी सरकार से इजाजत लेंगे। हालांकि, पाकिस्तानी सेना ने नवाज सरकार से इसकी इजाजत नहीं ली थी। जनवरी 1999 तक बॉर्डर के इस पार की जाने वाली किसी कार्रवाई की जानकारी सरकार को देने की जरूरत नहीं थी। जब इसकी जरूरत हुई तो मई 1999 में सरकार को जानकारी दी गई थी।कोह-ए-पैमा ऑपरेशन को शुरू करने से पहले पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI ने कारगिल वाले इलाके में भारतीय सेना की अस्थायी मूवमेंट होने की जानकारी दी। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने ब्रिगेडियर मसूद असलम को एक टुकड़ी के साथ कारगिल में ये जानने के लिए भेजा कि भारतीय सीमा में क्या चल रहा है।उन्होंने देखा कि भारतीय चौकियों पर बर्फ जमी है। वो थोड़ा और आगे गए, लेकिन किसी भारतीय जवान से मुठभेड़ नहीं हुई। इसकी जानकारी मिलते ही परवेज मुशर्रफ ने 16 जनवरी 1999 को पाकिस्तानी सेना मुख्यालय को ऑपरेशन के लिए हरी झंडी दे दी।
मई 1999 में रूसी हेलिकॉप्टर की मदद से पहाड़ों पर बम-गोले जमा करने लगे पाकिस्तानी सैनिक
भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी जनरल जेएस सोढ़ी के मुताबिक पाकिस्तान कारगिल की चोटियों पर अपनी सेना तैनात करके श्रीनगर और लेह को जोड़ने वाले नेशनल हाईवे 1 पर कब्जा करना चाहता था। अगर ऐसा करने में पाकिस्तानी सेना कामयाब हो जाती तो सियाचिन और लद्दाख की सप्लाई पूरी तरह से बंद हो जाती। हालांकि, इसके लिए पाकिस्तानी सेना के जवानों को मोर्चे पर भेजा जाने लगा था। सबसे मुश्किल काम पहाड़ की चोटियों तक असलहे और गोला-बारूद को भेजना था। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के पब्लिक रिलेशन विभाग ISPR के डिप्टी डायरेक्टर रहे कर्नल अशफाक हुसैन ने अपनी किताब 'विटनेस टु ब्लंडर' में लिखा कि रूस से मंगवाए गए MI17 हेलिकॉप्टर के जरिए साजो-सामान पहाड़ों पर पहुंचाए गए थे। इसके जरिए सैनिकों के खाने का सामान और छोटे हथियार तो 17 हजार फीट की ऊंचाई तक पहुंचाए जा सकते थे, लेकिन भारी तोप नहीं। पाकिस्तानी सेना के इंजीनियर ने तोपों के पुर्जे खोलकर उसे 8 हिस्सों में बांटकर पहाड़ों पर पहुंचाया।
पाकिस्तानी सेना पहाड़ों पर लंबी दूरी तक भारतीय सैनिकों की तैनाती नहीं देखकर आगे बढ़ती चली गई। ऑपरेशन की शुरुआत में 10 से 12 पोस्ट बनाने का फैसला पाकिस्तानी सेना ने किया था, जो अब बढ़कर 130 के करीब हो गई थी। यहां से असली समस्या शुरू हुई। प्लानिंग से आगे बढ़ने की वजह से सप्लाई लाइन कमजोर पड़ गई। NLI की यूनिट 5 LoC से 26 किलोमीटर अंदर भारतीय सीमा में तैनात थी। जिसे कई दिनों तक भूखे पेट लड़ाई लड़नी पड़ी।
NLI यूनिट 8 के लेफ्टिनेंट मोहम्मद माजूल्ला खान ने अपनी डायरी में लिखा था- 'मौसम खराब है। बर्फबारी हो रही है। 'मैं दिल से' और 'कुछ कुछ होता है' के गाने सुन रहा हूं। कई दिनों बाद पिछली रात पार्टी राशन लेकर आई। हमें सिगरेट, सूखे मेवे, मिल्क पाउडर मिले। अब सब ठीक है।' इससे समझ सकते हैं कि पाकिस्तानी सेना की हालत कितनी खराब हो गई थी।
भारत की तरफ क्या चल रहा थाः चरवाहे या किसी और तरह से भारतीय सेना को पता चला
नसीम जेहरा अपनी किताब फ्राम कारगिल टु द कूप में लिखती हैं कि जनवरी 1999 में पहली बार भारतीय सेना के कर्नल पुष्पिंदर ओबराय ने एक पत्र लिखकर अपनी 3 इन्फेंट्री के कमांडर बुधवर को कहा था कि टाइगर हिल एरिया में 6 किलोमीटर तक पाकिस्तानी घुसपैठ की संभावना है। इस क्षेत्र में हमारी तैयारी कमजोर है। हालांकि, ओबराय की ये बात मानने से कमांडर ने इनकार कर दिया। 3 मई 1999 को ताशी नामग्याल नाम के चरवाहे और उसके कुछ साथियों ने सबसे पहले पहाड़ी कपड़े पहने कुछ लोगों को बंकर बनाते देखा था। इसकी जानकारी मिलते ही 15 मई 1999 को लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और पांच सैनिक काकसर सेक्टर की बजरंग पोस्ट में पेट्रोलिंग करने पहुंचे। पहले से तैयार बैठी पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया और उनके साथियों पर जोरदार हमला बोल दिया। घायल कालिया को पाकिस्तानी सेना ने बंदी बना लिया। इस घटना के बाद भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना की इतनी बड़ी घुसपैठ और तैयारियों का अंदाजा लगा। 10 मई को पाकिस्तानी सेना से अपनी जमीन खाली कराने के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय की शुरुआत की। 20 मई 1999 को नेशनल हाईवे-1 के सबसे करीब तोलोलिंग चोटी पर कब्जे के लिए भारतीय सेना ने 18 ग्रेनेडियर्स यूनिट को इस चोटी पर कब्जे का टास्क दिया। सेना को वहां सिर्फ 4 से 5 मिलिटेंट होने की जानकारी थी, लेकिन आगे बढ़ते ही दोनों तरफ से भीषण गोलीबारी शुरू हो गई। करीब 23 दिनों तक चली इस लड़ाई के बाद 13 जून 1999 को भारतीय सेना तोलोलिंग पर कब्जा करने में कामयाब रही। इस लड़ाई में 18 ग्रेनेडियर यूनिट के 25 सैनिक शहीद हो गए।
टाइगर हिल पर कब्जा: बोफोर्स और मिराज 2000 से सबसे ऊंची चोटी पर मिली फतह
तोलोलिंग चोटी के बाद भारतीय सेना के लिए 17 हजार फीट की ऊंचाई पर टाइगर हिल और सेना चौकी पॉइंट 5287 और पॉइंट 4812 को वापस लेना जरूरी था। जून के पहले हफ्ते में भारतीय सेना ने कारगिल हिल पर कब्जा किए बैठे पाकिस्तानी सेना पर जबरदस्त पलटवार किया। इस हमले ने पाकिस्तानी सेना को पूरी तरह से हैरान कर दिया।30,000 से ज्यादा भारतीय सैनिकों की दो टुकड़ियों को पहाड़ियों पर कब्जा करने के लिए भेजा गया। भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने पहाड़ी चोटियों पर लेजर-गाइडेड बम गिराने शुरू कर दिए। इससे 'मुजाहिदीन' द्वारा बनाए गए पत्थर के बंकर टूट गए और पैदल सेना की टुकड़ियां खड़ी चट्टानों पर चढ़ गईं और खूनी हाथापाई में शामिल हो गईं। 3 जुलाई 1999 को इस चोटी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी 18 ग्रेनेडियर्स को मिली। उनकी मदद के लिए 8 सिख रेजिमेंट को साथ भेजा गया। दोनों ओर से हो रही गोलीबारी के बीच इंडियन आर्मी जैसे ही ऊपर चढ़ने की कोशिश करती थी तो दुश्मन आसानी से निशाना लगा लेते थे।22 ग्रेनेडियर्स के मेजर अजीत और उनकी यूनिट को दोनों चोटियों के बीच फुटहोल्ड बनाने का टास्क मिला। राशन, गोला-बारूद की कमी के बावजूद भारतीय सैनिक पहाड़ों पर लगातार चार दिनों तक लड़ते रहे। एक वक्त ऐसा भी आया, जब भारतीय सैनिकों के लिए पहाड़ों से हो रही गोलीबारी का सामना करना मुश्किल हो गया। इस वक्त भारत ने फ्रांस से खरीदे मिराज 2000 एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल करने का फैसला किया। इस एयरक्राफ्ट के एक बम की कीमत 2 करोड़ रुपए थी, जिसे भारत टाइगर हिल पर खर्च नहीं करना चाहता था। इस एयरक्राफ्ट के साथ ही फ्रांस ने 60 लेजर गाइडेड पॉड्स भारत को दिए थे। इन गोलों को भारत पड़ोसी देश के अहम ठिकानों पर इस्तेमाल करना चाहता था।भारत ने इजराइल से 1997 में इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल टार्गेटिंग पॉड्स खरीदने की डील की थी। जंग शुरू होते ही इजराइल इसकी सप्लाई करने लगा। इन पॉड्स में इस्तेमाल होने वाला Paveway-2 LGB बम अमेरिका से आना था। अमेरिका और UK दोनों ने भारत को इस अहम मौके पर ये बम देने से इनकार कर दिया।
इस मुसीबत की घड़ी में भारतीय सेना ने 1000 पाउंड के देसी बम बनाकर इस्तेमाल करने का फैसला किया। 24 जून की सुबह मिराज-2000 फाइटर जेट जुगाड़ बम के साथ टाइगर हिल की तरफ बढ़े। अटैक करते ही जुगाड़ बम बिल्कुल सटीक निशाने पर और पाकिस्तानी बेस पर जा गिरा। इस मिशन को अंजाम तक पहुंचाने में एयर मार्शल रघुनाथ नांबियार और एयर चीफ मार्शल ए वाई टिपनिस का सबसे बड़ा योगदान था।पाकिस्तानी सेना ने अपने जवानों के शव लेने से इनकार कियाकरीब 2 महीने तक चली जंग के बाद 8 जुलाई 1999 को स्थिति सामान्य हुई। भारतीय सैनिकों के टाइगर हिल पर कब्जा करने के बाद उस पर तिरंगा लहराने लगा। जंग खत्म होने के बाद सेना के बंकरों और खाइयों में 200 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों के शव मिले। इनकी जेब और बैग में मौजूद दस्तावेजों से उनकी शिनाख्त हुई। पाकिस्तानी जवानों के पास से उनकी पे बुक, मेस की पर्ची, मूवमेंट ऑर्डर और सिग्नल कोड मिले।
इतना ही नहीं, पाकिस्तानी सेना के 5 नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री के माज उल्लाह खान सुंबल की डायरी से कुछ अहम सुराग हाथ लगे थे। 31 जनवरी 1999 को पाकिस्तानी सेना के इस अधिकारी को अपने प्लाटून के साथ कारगिल में तैनाती का ऑर्डर मिला था। डायरी में सेना के MI-17 हेलिकॉप्टर का भी जिक्र किया गया था। माज उल्लाह खान ने लिखा था कि भारतीय गोलीबारी में उनके बाएं हाथ की हड्डी टूट गई थी।
जंग के बाद भारतीय सेना ने दावा किया कि पाकिस्तान ने अपने सैनिकों के शव लेने से इनकार कर दिया। पाकिस्तान ने सिर्फ 5 शवों को स्वीकारा, जिसमें 12 नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री के कैप्टन कर्नल शेर खान भी थे। शेर खान के शव की जेब में भारतीय सेना ने एक पर्चा लिख कर रख दिया था, जिसमें लिखा था कि ये बहुत बहादुरी से लड़े। उन्हें मरणोपरांत पाकिस्तान का सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार निशान-ए-हैदर दिया गया। इसके अलावा पाकिस्तान ने अपने जवानों के शवों को सड़ी-गली अवस्था में होने की वजह से स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
भारत को लेकर गलत कैलकुलेशन का नतीजा थी कारगिल जंग
पूर्व सेना अधिकारी जेएस सोढी कारगिल जंग को भारत को लेकर किए गए पाकिस्तान के गलत कैलकुलेशन का नतीजा बताते हैं। सोढी के मुताबिक पाकिस्तानी सेना के जनरल जब सरकार को इस ऑपरेशन की जानकारी दे रहे थे तो उन्होंने भारत पर जीत हासिल करने की 4 वजहें बताई थीं...
1. ऊंची चोटियों पर कब्जा: पाकिस्तानी सेना भारतीय सीमा के अंदर उन सभी ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लेगी जो रणनीतिक तौर पर अहम हैं। लेह-श्रीनगर हाईवे इन चौकियों की रेंज में होगा। भारतीय सेना के किसी एक्शन पर मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। उनके लिए दोबारा इन चोटियों को वापस ले पाना मुश्किल होगा।
2. पहाड़ों की लड़ाई से बचना: पाकिस्तानी सेना के जनरलों को लग रहा था कि भारतीय सेना में जमीन से इतनी ऊंचाई पर हमला करने की इच्छाशक्ति नहीं है। हालांकि, हुआ इसके ठीक उलट।
3. अंतरराष्ट्रीय दबाव नहीं होगा: पाकिस्तानी सेना ने PM नवाज को समझाया कि अभी जंग शुरू होने पर कोई अंतरराष्ट्रीय संगठन या दूसरे देश जंग खत्म कराने को लेकर दबाव नहीं बना पाएंगे।
4. सरकार से पाकिस्तानी सेना अतिरिक्त बजट नहीं मांगेगी: सेना प्रमुख ने कहा कि देश के आर्थिक संकट को देखते हुए पाकिस्तानी सेना सरकार से कोई अतिरिक्त पैसा नहीं मांगेगी।
हालांकि, पाकिस्तानी सेना के ये चारों ही अनुमान गलत साबित हुए। भारतीय सेना ने जब पलटवार किया तो पाकिस्तान के लिए उसे रोक पाना मुश्किल हो गया।
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26 July 2024
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