"मीटू' आंदोलन के बाद से महिलाएं ज्यादा मुखर
Women more vocal after

मेघना पंत 

साल 2018 में भारत में हुए मीटू आंदोलन के बाद सुनने को मिल जाता है कि भारत में ये आंदोलन विफल रहा। पर बीते कुछ हफ्तों में सामने आए घटनाक्रमों ने एक बार फिर देश को विचलित किया है और सदियों से मौजूद स्त्रियों के प्रति घृणा, यौन उत्पीड़न और टॉक्सिक मर्दानगी पर ध्यान देने के लिए मजबूर किया है।

कोलकाता मामले के बाद अब हेमा कमेटी की रिपोर्ट ने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की परतें खोलकर रख दी हैं। पर क्यों ये समय भारत के मीटू आंदोलन के लिए महत्वपूर्ण है। ये संकेत है कि मीटू आंदोलन सफल था। पर कैसे!

पहली बात, यह न भूलें कि दुनियाभर में हुआ ‘मीटू’ एक उलझा मामला था। लेकिन इसने एक बात सर्वसम्मति से रख दी कि यौन उत्पीड़न या डराना-धमकाना सामान्य नहीं है, और किसी भी महिला को इसे सहन नहीं करना चाहिए। इसके परिणाम भुगतने होंगे और हम आज जो होता हुआ देख रहे हैं, वह महिलाओं को हुए नए अहसास के कारण है।

महिलाएं आज कार्यक्षेत्र पर सुरक्षित और एक समान कामकाजी माहौल के लिए लड़ रही है, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था। सदियों से ऐसा होता आया है कि यौन उत्पीड़न झेलने वाली महिला बस यह सोचकर घुटती रहती थी कि जो हो रहा है, वो सही नहीं है।

पहले पीड़िता के माता-पिता ही कहते थे कि ‘जाने दो’। दोस्त भी कहते थे कि ये कोई बड़ी बात नहीं है। आंतरिक शिकायत समिति कंपनी में ही नाम उजागर कर देती, जिससे काम मुश्किल हो जाता। पुलिस भी शर्मिंदा करती।

समाज भी कहता, हमें तुम पर यकीं नहीं। अगर वे शिकायत करतीं तो लोग हंसते कि उन पर कोई भरोसा नहीं करेगा, नौकरी चली जाएगी। इसलिए महिलाओं को लगता था कि सबसे अच्छा तरीका खुद में मजबूत बने रहने में है और इसे बर्दाश्त करें क्योंकि सब ऐसे ही होता आया है। पर अब समय के साथ यह बदल गया है।

‘मीटू’ ने इसे बदल दिया है। अब ऐसे मामलों से निपटने में कहीं ज्यादा संवेदनशीलता दिखने लगी है। असल बात ये है कि महिलाएं अब ज्यादा सुरक्षित और विश्वास से भरा महसूस कर रही हैं। यह इससे पता चलता है कि कई महिलाएं अब बिना किसी शर्म के खुलकर ऐसे लोगों का नाम सामने रख रही हैं, जिन्होंने अरसे से उन्हें दबाकर रखा और इस प्रक्रिया में व्यवस्था में सड़न की हद का खुलासा हो रहा है।

अब यौन शोषण की एक बिल्कुल सख्त परिभाषा स्पष्ट हुई है, जिससे अपराधियों का बच निकलना मुश्किल हो गया है। हेमा रिपोर्ट बताती है कि शोषण को लेकर हमारा विमर्श किस तरह बदला है। महिलाएं अब सबूत जुटा रही हैं, एकजुट हो रही हैं और कानूनी शक्ति का प्रदर्शन करके दिखा रही हैं कि वे अपराधियों के खिलाफ खड़े होने में कितनी दक्ष हो गई हैं।

यौन उत्पीड़न और इसके परिणामों का असर देश में सिर्फ महिलाओं पर ही नहीं हुआ है। जहां महिलाएं पुरुषों के खिलाफ बोलना सीख रही हैं, पुरुष भी पुरुषों के खिलाफ बोलना सीख रहे हैं। दुनिया को ज्यादा न्यायसंगत बनाने के लिए महिला-पुरुष दोनों सच्चे सहयोगी के रूप में जुड़कर आंदोलन में साथ हो गए हैं। देखकर अच्छा लग रहा है कि इतिहास, जिसे हमेशा पुरुषों ने लिखा, उसे अब महिलाएं नए सिरे से लिख रही हैं, वो भी बहादुरी से।

 

Dakhal News 4 September 2024

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