आस्था को चुनौती मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है...!
bhopal,Challenge of faith ,not only difficult ,but impossible

कौशल मूंदड़ा

नंदी महाराज दूध पी रहे हैं। दोपहर में यह बात शुरू हुई और रात तक शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। कई लोगों को करीब 25 साल पहले गणपति बप्पा के दूध पीने का घटनाक्रम याद आ गया, तब भी पूरे देश में आस्था का ज्वार उमड़ पड़ा था। आस्था के इस सैलाब को चुनौती मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।

जी हां, ढाई दशक पहले भी गणपति बप्पा के दूध पीने के घटनाक्रम के बाद विज्ञानियों ने भौतिकी के सिद्धांत के जरिये घटनाक्रम को समझाया था, लेकिन जैसा कि भूलना मानव स्वभाव है, वह बातें भुला दी गईं। ऐसा नहीं है कि सभी लोगों ने आंख मूंदकर इस बात पर विश्वास किया। कुछ बुजुर्ग महिलाएं जिन्होंने 25 साल पहले का मंजर भी देखा था और अब भी देख रही थीं, उन्होंने कहा कि दूध और जल रिसकर बह रहा है, उस पर भी ध्यान देना चाहिए। उस दिन 5 मार्च 2022 को शनिवार था और उदयपुर के शनि महाराज के मंदिर के बाहर बैठी एक बुजुर्ग महिला श्रद्धालु ने कहा कि वे भी गई थीं और नंदी महाराज को दूध अर्पित करते हुए नीचे गले पर जब हथेली रखी तो हथेली गीली हो गई। कई जगह प्रतिमा सफेद होने के कारण दूध का रिसना नजर नहीं आ रहा था और जल का रिसना तो काले और सफेद दोनों ही रंग की प्रतिमा पर नजर आना मुश्किल है।

इस घटना के बाद हमने उदयपुर के विद्या भवन पॉलिटेक्निक कॉलेज के भौतिकी के प्राध्यापक हेमंत सालवी से चर्चा की। उन्होंने कहा कि आस्था को भौतिकी सिद्धांतों के साथ समझा जाए तो और भी बेहतर होगा। लगभग ढाई दशक पहले 21 सितम्बर 1995 में गणेश प्रतिमाओं द्वारा दूध पीने की बात फैली थी।

सालवी बताते हैं कि इसे हम भौतिक विज्ञान में कैपिलरी राइजिंग (केशकीय विधि) या केशकीय गति भी कहते है। इस विधि से पानी किसी छोटे-छोटे छिद्र से अंदर की ओर खिंच जाता है। नंदी की मूर्ति मार्बल की बनी होती है, इसमें कई छेद होते हैं, पानी से भरा चम्मच इन वैक्यूम चवतने (छिद्र) के पास लाया जाता है तो ये छिद्र पानी को अंदर सोख लेते हैं। जैसे दीपक में तेल धीरे-धीरे बाती में ऊपर की ओर चढ़ता है, पौधों को पानी जड़ों में दिया जाता है और इसी सिद्धांत से पानी पत्तियों तक पहुंच जाता है। दीपक की बाती व पौधों की जड़े कैपिलरी की तरह कार्य करती हैं।

यहां भौतिकी का एक और सिद्धांत पृष्ठ तनाव भी कार्य करता है। पृष्ठ तनाव हर तरल का गुण होता है। पृष्ठ तनाव के कारण तरल की बूंदें आपस में चिपक कर एक साथ रहना चाहती हैं, जैसे पानी की छोटी बूंद गोलाकार होती है। पानी के अणुओं में ससंजक बल लगता है (समान पदार्थों में), पर ससंजक बल पानी में बहुत कम होता है। पारे में ससंजक बल ज्यादा होता है। पानी में ससंजक बल कम होने के कारण पानी दूसरे पदार्थ के साथ चिपकता है व मार्बल के पास लाया जाता हे तो पानी उस मार्बल की बनी मूर्तियों के सूक्ष्म छिद्रों में चिपककर आसानी से मार्बल में चढ़ जाता है। इसे यूं भी समझ सकते हैं जैसे कोई एंटीसेप्टिक घाव पर आसानी से फैल जाता है। एंटीसेप्टिक व सर्फ के पानी का पृष्ठ तनाव कम होता है। ये आसानी से आगे की ओर गति करते हैं।

सालवी बताते हैं कि इस तरह की घटना में मौसम का भी बड़ा योगदान होता है। अभी के मौसम में तापमान बढ़ने लगा है। वायुमंडलीय दबाव भी बढ़ने लगा है। वायुमंडलीय दबाव वातावरण में ज्यादा और मार्बल की मूर्ति में कम होने से पानी अधिक दबाव से कम दबाव की तरफ बहता है, इसी कारण पानी आसानी से छोटे-छोटे छिद्रों में चढ़ता नजर आता है। ये तीनों कारण जब एक साथ होते हैं तब मार्बल की बनी मूर्ति पानी या दूध पीती नजर आती है। हालांकि, कुछ ही देर में द्रव की मात्रा ज्यादा होते ही वह रिसना भी शुरू कर देता है, क्योंकि छिद्रों में उतना ही द्रव समाहित हो सकता है जितनी वहां जगह है।

वैज्ञानिक कारण के साथ इस तरह की घटनाओं से मनोवैज्ञानिक प्रभाव को भी अलग नहीं रखा जा सकता। हमारे आस्था स्थल आत्मिक शांति के केन्द्र माने जाते हैं। व्यक्ति की आस्था जहां होती है, वहां पर वह सुकून महसूस करता है। जीवन की परेशानियों को लेकर व्यक्ति इन्हीं आस्था स्थलों पर समाधान की उम्मीद लेकर पहुंचता है। ऐसे में जब उसे इस तरह का घटनाक्रम दिखाई देता है तो उसका विश्वास और दृढ़ होता है और उसका आत्मिक बल बढ़ता है। व्यक्ति का आत्मिक बल मजबूत हो तो वह किसी भी मुसीबत का सामना करने के लिए स्वतः स्वयं को तैयार कर लेता है।

ऐसे में चाहे वैज्ञानिक कारण मानें या मनोवैज्ञानिक, आस्था के इस जन ज्वार में यदि आत्मिक शक्ति का संधान होता है, तब ऐसी घटनाओं को जनमानस की झोली में ही छोड़ दिया जाना उचित माना जाना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Dakhal News 10 March 2022

Comments

Be First To Comment....

Video
x
This website is using cookies. More info. Accept
All Rights Reserved © 2025 Dakhal News.