बजट का मतलब हलवा हो गया है
Budget has become pudding

संजय कुमार सिंह

आज बजट की खबर के शीर्षक से बजट के बारे में जो पता चलता है वह मेरे सात अखबारों के शीर्षक से यह विवरण बनाता है – नई हकीकतों का बही खाता, युवाओं पर करम मिडिल क्लास पर मरहम, चुनाव परिणाम वाला बजट (लेकिन) रेस चल रहा है वित्त मंत्री ने चुनावी स्थिति के लिए तैयारी की, रोजगार का बोझ फर्मों पर थोप दिया, गठजोड़ का (यह) अर्थमिश्रण कई प्लेट में थोड़ा-थोड़ा है। बजट के बारे में मैंने लिखा था, “जब बजट का मतलब हलवा हो गया है”। इसमें मैंने लिखा था, बजट और हलवा का संबध पुराना है पर वह बजट बनाने और पेश करने के बीच एक साधारण सा मामला होता था। नरेन्द्र मोदी राज में बजट की खबर और उस पर चर्चा हलवा खाते-खिलाते और उसकी फोटो के साथ होने लगी है। इसे एक प्रतीक के रूप में देखिये बजट और उसका हाल समझ में आ जायेगा। रेल बजट के बिना और बजट में रेलवे की चर्चा के बिना बजट ऐसा ही है।

द हिन्दू ने आज इसे इसी रूप में प्रस्तुत किया है, शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होता – पत्तल ज्यादा हैं, थोड़ा-थोड़ा डाला है। जनसत्ता में एक बार ऐसा ही शीर्षक हमारे संपादक प्रभाष जोशी ने लगाया था, हर हाथ में एक बताशा। हेडलाइन मैनेजमेंट के दौर में आज के कुछ और शीर्षक हैं – 1) छोटे को बड़ी सहायता मिली (फाइनेंशियल एक्सप्रेस) 2) आर्थिक तौर पर फिट और रोजगार की तलाश में (दि इकनोमिक टाइम्स) 3) सीतारमन ने सभी बजटों का बाप पेश किया (यहां बाप यानी बीएपी या बिहार एंड आंध्र प्रदेश है) 4) ग्रोथ ऐट वर्क यानी काम पर विकास (मिन्ट) 5. केंद्रीय बजट : संपन्नता के लिए रोजगार, कौशल युक्त बनाने का रास्ता (द स्टेटसमैन) 6. रोजगार के लिए जोड़, कर राहत और गठजोड़ धर्म (द ट्रिब्यून) 7. राजनीतिक पर विवेकपूर्ण (बिजनेस स्टैंडर्ड) 8. बजट का फोकस नई नौकरियों, कौशल युक्त बनाने; मध्यम वर्ग, एमएसएमई के लिए टैक्स राहत (दि एशियन एज) 9. गुड जॉब (नवभारत टाइम्स) 9. बेरोजगारों, मध्य वर्ग पर मेहरबानी (हिन्दुस्तान) और 10. बजट में आंध्र, बिहार, रोजगार (जनसत्ता)। 

आज बजट का दिन है औऱ आज के अखबारों में बजट ही होना था। अमूमन बजट वाले दिन अखबारों में कोई और खबर होती नहीं है। कल मैं सोच रहा था कि आज छुट्टी मनाई जा सकती है। बाद में नीट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला महत्वपूर्ण लगा और मैंने तय किया कि उसकी प्रस्तुति पर लिखूंगा- लिखना चाहिये। बजट अब हलवा समारोह ही है। इसमें कुछ खास होता नहीं है। हेडलाइन मैनेजमेंट के दौर में इसे अच्छा ही कहा जाना है। बजट से मुझे कोई उम्मीद नहीं थी लेकिन अखबारों से लगता है कि कुर्सी बचाऊ बजट तो है ही। हेडलाइन मैनेजमेंट भी है ही। जहां तक नीट का मामला है, निजी तौर पर मैं नीट के फैसले से निराश हूं। निश्चित रूप से यह कानूनी मामला है और हजारों छात्रों के भविष्य तथा सहूलियत का भी ख्याल रखा जाना चाहिये। फैसला सब कुछ देखकर कानूनी आधार पर हुआ होगा। कानून मेरा विषय नहीं है इसलिए मैं उसपर टिप्पणी नहीं कर सकता लेकिन मोटे तौर पर वही हुआ दिख रहा है जो सरकार चाहती थी।

अरविन्द केजरीवाल या हेमंत सोरेन के मामले में भी यही होता रहा है। इसलिए मुझे कुछ अलग की उम्मीद भी नहीं थी। मोटे तौर पर सरकार जो चाहती है वही होता है। आप कह सकते हैं कि वह कानूनन सही होता भले पीएमएलए के कारण हो। दूसरी तरफ, इसका संदेश यही है कि कोई अपना काम अच्छी तरह करे, सबूत न छोड़े (जांच एजेंसियां नालायकी करें या अपराधी अनुभवी हो) तो उसे सजा नहीं हो सकती है क्योंकि कानून को सबूत चाहिये। भ्रष्टाचार और रिश्वत खोरी की भूमिका यहां हो सकती है पर वह मुद्दा नहीं है। जब बिना मुख्यमंत्री काम चल सकता है तो मुद्दा क्या होगा यह भी मुद्दा है। लेकिन अभी नहीं। अरविन्द केजरीवाल अनुभवी चोर हैं, प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं। उनके बारे में सबूत नहीं है। पर उन्हें जमानत नहीं मिल रही है क्योंकि कानून (पीएमएलए) ऐसा ही है। पीएमएलए ऐसा क्यों और कैसे है, यह अभी यहां बताने की जरूरत नहीं है। मोटे तौर पर इसीलिए कि सरकार ऐसा चाहती है। सरकार ने चाहा तो संबंधित जज को ईनाम दिया। सरकार चाहती है इसलिए उसकी समीक्षा पर सुनवाई नहीं हो पाई, नहीं हो रही है।

देश में सरकार और कानून की स्थिति यह है कि एक पूर्व तड़ी पार गृहमंत्री बन सकता है वह खुद से पहले वाले गृहमंत्री को जेल भेज सकता है, स्पष्ट दिखा कि हिसाब बराबर हो गया उसके बाद से मामले का कोई अता-पता नहीं है। यह सबके सामने है किसी को गलत या बुरा नहीं लग रहा है। ईवीएम और चुनाव आयोग की अपनी कहानी है। उसके बावजूद जनादेश मोदी सरकार के खिलाफ आया लेकिन नीतिश-नायडू के समर्थन से सरकार बन गई और सिर्फ सरकार बनती तो राजनीति होती उसे पूरी मजबूती दी गई और स्पीकर का चुनाव नहीं हो पाया सरकार जिसे चाहती थी उसे स्पीकर बना लिया। रमेश चंद्र विधूड़ी के मामले में कार्रवाई नहीं करने, मुहआ मोइत्रा की सदस्यता खत्म कर दिये जाने और उनके मामले में निर्णय करने वाले कई लोगों के हार जाने के बावजूद। उपाध्यक्ष नहीं बनाना है, अभी तक नहीं बना है। ऐसे में बजट कुर्सी बचाऊ ही होना था। है।

किसी ने लिखा है, किसी ने नहीं पर सरकार का समर्थन तो है ही संभव है इसलिए हो कि प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि उनका गला घोंटा गया है। इस कार्यशैली का समर्थन सिर्फ लाभार्थी करते तो बात समझ में आती है पर बहुमत कर रहा है या बहुमत लाभार्थी है तो वह मिल-बांट कर खाना है। यह रिश्वत खोरी है लेकिन शिकायत राहुल गांधी की खटाखट योजना से थी। कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में शिकायत की थी। फैसला उनके पक्ष में नहीं हुआ पर ऐसा सोचने वाले लोग तो हैं। और इसलिए मिल-बांट कर खाने की यह व्यवस्था चल रही है, खटाखट। दूसरा कोई दल करे तो रिश्वतखोरी बताने की कोशिश होती है, मुकदमे होते हैं, मुफ्त की रेवड़ी होती है। प्रचार ऐसा है कि मुफ्त राशन पाने वाला उसे नमक समझता है वोट के रूप में उसकी कीमत अदा करता है। लेकिन वह कहानी भी अलग है।

ऐसे में नीट की खबर आज हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड है, द हिन्दू में सिंगल कॉलम में है, इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है, अंदर होने की सूचना है, द टेलीग्राफ में सिंगल कॉलम में है जो अंदर जारी है। हिन्दी अखबारों में नवोदय टाइम्स में दो कॉलम में है और शीर्षक में ही बताया गया है कि चार लाख परीक्षार्थियों के चार अंक कम होंगे। इससे पहले कृपांक कम किये जा चुके हैं। कुल 720 अंक पाने वालों की संख्या कम हो चुकी है। लेकिन एनटीए से कोई शिकायत नहीं थी। उसकी अक्षमता और जांच या कार्रवाई से बचने की कोशिशें मुद्दा नहीं बनी। यह स्थिति तब है जब बजट को युवाओं पर करम मिडिल क्लास पर मरहम (नवोदय टाइम्स) कहा गया है। बजट की खास बात आज का द टेलीग्राफ का कोट भी है। पी चिदंबरम ने कहा है, मुझे यह जानकर खुशी है कि माननीय वित्त मंत्री ने कांग्रेस का घोषणा पत्र एलएस 2024 चुनाव नतीजों के बाद पढ़ा है। उनकी यह टिप्पणी बजट की तीन घोषणाओं के संबंध में है जो कांग्रेस के घोषणा पत्र से ली गई लगती हैं।   

अब बजट से संबंधित अन्य शीर्षक और खबर के बारे में। साथ ही पहले पन्ने की दूसरी खबर के बारे में बशर्ते कुछ हो। इंडियन एक्सप्रेस में एक खबर है, 28 सांसदों के लिए शुक्रिया : बिहार, आंध्र प्रदेश पर लुटाना। दूसरी खबर का शीर्षक है, स्टार्ट अप के लिए बड़ी राहत, सरकार ने एंजल टैक्स खत्म किया। द टेलीग्राफ की एक खबर का शीर्षक है, कोई अहम कर छूट नहीं, पुरानी व्यवस्था से निराशा। दूसरी खबर है, दो बड़े सहयोगियो पर सुविधाओं की बरसात। टाइम्स ऑफ इंडिया ने बजट की खबर को बैनर बनाया है। ऊपर फ्लैग शीर्षक की शुरुआत लाल स्याही से छपा सवाल है – नतीजों से संचालित? इसके बाद कहा गया है, भाजपा ने प्रमुख राज्यों के चुनाव से पहले अकले बहुमत खोने के बाद के पहले बजट में मोदी सरकार ने प्रमुख राजनीतिक क्षेत्रों – खासकर युवाओं और महिलाओं – के साथ-साथ गठजोड़ साझेदारों की चिन्ताओं को दूर करने की कोशिश की है। मुख्य खबर का इंट्रो है – फॉर्मूला वन : अब काम कराने पर फोकस। एक शीर्षक है, टैक्सेज (कर) कुछ खुशी लाने के लिए पटरी बदली गई जो दूसरों को महंगी पड़ेगी।

एक बड़ा सा शीर्षक है, सहयोगियों को फायदा : आंध्र प्रदेश और बिहार के लिए थैली खुली। द हिन्दू ने दो अलग खबरें छापी हैं। एक का शीर्षक है, आंध्र प्रदेश को राजधानी अमरावती के लिए 15,000 करोड़ रुपये मिलेंगे। बिहार को 58,900 करोड़ मिले हैं तो नीतिश ने बजट की तारीफ की। हिन्दुस्तान टाइम्स में मिन्ट की खबर का शीर्षक है, करों में बदलाव से वित्तीय बाजार पर प्रभाव। दूसरी खबर का शीर्षक है, युवा भारत को काम पर लगाने के लिए पांच बड़ी योजनाएं। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर का शीर्षक है, चार करोड़ को नौकरी देने, कौशल युक्त बनाने के लिए वित्त मंत्री ने दो लाख करोड़ रुपये रखे। 1500 प्वाइंट गिरने के बाद सेनसेक्स फिर से उछला।

नवोदय टाइम्स की एक खबर का शीर्षक है, 17500 रुपये का लाभ वेतनभोगियों को। पत्रकार राजेश रपरिया की एक टिप्पणी है जिसका शीर्षक है, ‘जनादेश का संदेश’ का पूरा सम्मान। उमर उजाला की पहले पन्ने की खबरे हैं, मध्य वर्ग की ली सुध, 7.75 लाख तक आय पर शून्य कर। दूसरी खबर का शीर्षक है, निर्मला@7 : युवाओं के रोजगार के लिए पांच योजनाएं। पुल बहने के लिए हाल में खबरों में रहे बिहार को नरेन्द्र मोदी ने 26,000 करोड़ रुपए तीन नये एक्सप्रेसवे के लिए दिये हैं। विकास का पूर्वोदय के तहत अखबार ने बताया है कि बिहार का गया औद्योगिक केंद्र बनेगा। नरेन्द्र मोदी ने इसे समृद्धि की राह पर ले जाने वाला बजट कहा है तो यह मानना पड़ेगा कि बहुमत नहीं मिला तो उन्हें समृद्धि का ध्यान आया। इससे पहले नोटबंदी और जीएसटी के समय कहते थे कि उन्होंने हिम्मत की और यह प्रचारित करते थे कि इससे काला धन कम होगा, भ्रष्टाचार कम होगा तो उम्मीद थी कि जनता का समर्थन मिलेगा। पर वह नहीं मिला तो जो किया वह कुर्सी बचाने वाला बजट ही है। राहुल गांधी ने यही कहा है और अमर उजाला ने छापा है तो मुझे जीएसटी के सख्त प्रावधान याद आते हैं जो गुजरात विधानसभा चुनाव के समय ठीक किये गये।

Dakhal News 24 July 2024

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