नैतिक उच्चादर्शों की ओर ले जाती है शिक्षा
Education leads to moral high ideals

अरुण कुमार दीक्षित

शिक्षा हमें प्रकाशवान बनाती है। हमारे अंतस में प्रज्ञा लाती है। हम संस्कारवान शिक्षा से सामाजिक बनते हैं। प्रज्ञावान व्यक्ति सुंदर समाज का निर्माण करते हैं। शिक्षा सदाचारी व शीलवान बनाती है। शिक्षा हमें सत्य और सन्मार्ग पर ले जाती है। शिक्षा के ज्ञान से हम अनेक समाज और राष्ट्रों के विषय में अध्ययन कर पाते हैं । संस्कृतियों, सभ्यताओं को जानने-समझने का माध्यम शिक्षा ही है। हमारे अंतस में तरह-तरह की शक्तियों के प्रकट होने में शिक्षा ही हमारी सहायक होती है। शिक्षा हमें नैतिक और उच्च आदर्शों की ओर ले जाती है। भारत में शिक्षा के पूर्व विद्या शब्द है। विद्या को ज्ञान कहते हैं । ज्ञान को प्रकाश रूप में हम सब जानते हैं ।

पश्चिमी देश प्रकाश को लाइट कहते हैं। हम भारत में किसी ज्ञानवान व्यक्ति को विद्वान, प्रज्ञावान, विद्यावान कहते हैं। अब तक जो व्यक्त किया जा रहा है, जो व्यक्त हो चुका है, वह किसी अन्य के भीतर घटित हुआ है ,उसकी प्रतीति और अनुभव उसके हैं। दूसरा नहीं जान सकता है जो किसी ने जाना- समझा। जिसके अंतस में ऋषित्व घटित हुआ, वही उसका अधिकारी है । दृष्टा है। उसके अनुभव और जानकारी उसी की है। पढ़ने वाले ,विद्या ग्रहण करने वाले उपासक-आराधक की नहीं है। उसका बताया हुआ हम उसे दोहरा सकते हैं। समाज, व्यक्ति, राष्ट्र के लिए उसका उपयोग कर सकते हैं, पर जो किसी द्रष्टा ने जाना, वह उसके द्वारा उसके सूत्रों से ही प्रकट होता है।

हम सब लगातार प्रयास करते हैं, कि विद्यावान बनें। समाज के लिए उपयोगी बनें, मगर दूसरे के अनुभव हमें प्राय: कठिनाई में डालते हैं । वह उधार के होते हैं। व्यक्ति किसी विशेष शिक्षा के अध्ययन के लिए जाता है, उसे स्मृति में लेकर लगातार प्रयास करता है। वह सफल या असफल होता है । वह किसी बड़ी-छोटी नौकरी में जाता है, मगर वह शिक्षित होकर भी सबके काम नहीं आता है। वह व्यक्तिगत ही रह जाता है। समाज राष्ट्र के निमित्त की बात नहीं करता, जबकि विद्यावान होने का मतलब सर्वजन हिताय होना चाहिए।

प्राचीन यूनानी दार्शनिक प्लेटो को व्यापक रूप से पश्चिमी शिक्षा का जनक माना जाता है। अंग्रेजी में शिक्षा को एजुकेशन कहा जाता है। एजुकेशन शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के एजुकेटम शब्द से मानी जाती है, जिसका अर्थ बताया गया है कि आंतरिक को बाहर लाना। आखिर सनातन धर्म में कैसे खोजें कि भारत में प्रज्ञावान , मेधावान बनाने का आरंभ कब हुआ। भारत हमेशा से है। आदि-अनादि है। यहां विद्या का नाम धर्म भी है। अध्यापन भी है। जो विद्या धर्म के मार्ग पर नहीं ले जाती है, वह विद्या नहीं है। कुमार्ग है। शिक्षा का अर्थ है सीखना और जानना। जाने हुए को अन्य को बताना। अब विद्या और शिक्षा को एक समझना और भी लगता है कि द्वंद्व भरा है। हम देख रहे हैं कि लगातार व्यापार या नौकरी के लिए कई दशक से कौशल शब्द का प्रयोग किया जा रहा है। सरकारें कौशल मिशन पर जोर दे रही हैं। विद्यावान व्यक्ति को भारत में बगैर नौकरी चाकरी ही बड़ा माना जाता है। अनेक विद्यावान ऋतम्भरा वाले महापुरुषों की जन्म तिथि नहीं है। सर्टिफिकेट नहीं है। तो भी वे स्मरणीय हैं। उपासना के सुयोग्य हैं।

भारत में सुबह हनुमान चालीसा पाठ अनेक परिवारों में किया जाता है । हनुमान चालीसा में हनुमान को विद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर वर्णित है। अब हनुमान जी अपने निजी काम से नहीं है। राम काज में हैं। लोक मंगल में हैं। इसका सीधा अर्थ है कि विद्या हम सबको भव्य और दिव्य बनाती रही है। वह राष्ट्रोन्मुखी है। विद्या दूसरे के जैसा नहीं। प्रत्येक को अपने जैसा निर्मित करती है। महाभारत युद्ध में जब अर्जुन विचलित होकर कहते हैं कि हम युद्ध नहीं करेंगे। हे, केशव आप हमें प्रकाशित करें । यहां पर प्रकाशित अर्थात हमें मार्ग बताएं । ज्ञान और सद्बुुद्धि से भर दें। विद्यावान बनाने की कार्रवाई करें। तब श्री कृष्ण विराट रूप का दर्शन अर्जुन को कराते हैं। सरस्वती विद्या और बुद्धि की देवी हैं। वे हंस पर विराजमान हैं। उन्हें भारतीय वाग्देवी, महाश्वेता, वीणापाणि ज्ञानदा नामों से जाना और आराधन किया जाता है । कवि साहित्यकार, पत्रकार, लेखक सरस्वती की उपासना वंदना अपने गद्य-पद्य की रचना के पूर्व करते हैं। वैदिक साहित्य में विद्या के दो रूप बताए गए हैं। पहली है अपरा विद्या जिसे निम्न श्रेणी में रखा गया है। दूसरी है पराविद्या इसी को आत्म विद्या या ब्रह्म विद्या भी कहा जाता है ।

दयानंद सरस्वती के अनुसार जिस पदार्थ के यथार्थ रूप का ज्ञान हो, उसे विद्या कहते हैं। शिक्षा की समस्या पुस्तक में पृष्ठ 57 में, महात्मा गांधी एक विद्यार्थी के प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि आज हम गुलाम हैं, जिन्होंने हमको पराधीन कर रखा है, उनके फायदे की दृष्टि से हमारी पढ़ाई का कार्यक्रम रखा गया है। हमारे शासकों ने आजकल की शिक्षा के सिलसिले में अनेक प्रलोभन पैदा कर रखे हैं। इसमें संदेह नहीं कि आज के सरकारी शिक्षण में भी कुछ अच्छाई है तो भी सब मिलकर हम चाहें या न चाहें ,उसका उपयोग अनिष्टकारी हो जाता है। धन और पद के लोभ में गुलामी प्यारी लगने लगती है। सा विद्या या विमुक्तये। विद्या वही है जो मुक्त करें । मुक्ति से मतलब इस जीवन में सब तरह की गुलामी से छुटकारा पाना । गांधी ने यह हरिजन सेवक में 1946 में लिखा है। गांधी भी विद्या को मुक्ति का मार्ग बता रहे हैं । आज की शिक्षा हमें मुक्त नहीं करती। वह नौकरी, धन, शासन करने की ओर ले जाती है।

राधाकृष्णन ने शिक्षा का केंद्र विद्यार्थी को माना है। विद्यार्थी में नैतिक, बौद्धिक आध्यात्मिक, सामाजिक आर्थिक व्यावसायिक मूल्यों का संरक्षण करने का प्रयास करना चाहिए । वह कहते हैं प्रेम एवं मानवता का समन्वय होना चाहिए। उनका मानना था कि सही शिक्षा से समाज की अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि दुनिया के इतिहास को देखेंगे तो पाएंगे कि सभ्यता का निर्माण महान ऋषियों- वैज्ञानिकों के हाथों हुआ है । जो स्वयं विचार करने की सामर्थ्य रखते हैं।ज्ञान हमें शक्ति देता है। प्रेम पूर्णता देता है। वे कहते हैं शिक्षा में न केवल बुद्धि का प्रशिक्षण शामिल होना चाहिए बल्कि हृदय का परिष्कार और आत्मानुशासन भी होना चाहिए।

वर्तमान में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र की एनडीए सरकार ने 29 जुलाई 2020 को नई शिक्षा नीति बनाई थी। भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्कूलों से लेकर कॉलेज तक भारतीय शिक्षा प्रणाली में आधुनिक सुधार लाने के उद्देश्यों के आलोक में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की स्वीकृति दी थी। साथ ही सरकार ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम भी बदलकर शिक्षा मंत्रालय करने की मंजूरी दी थी। सरकार का कहना था कि पूर्व की शिक्षा नीति में कई खामियां थीं। नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में पढ़ाई पर जोर दिया जा रहा है। नई शिक्षा नीति यह मानती है कि बच्चे मूल भाषा को तेजी से समझते हैं। पूर्व में एक समान प्रणाली नहीं थी । उसे अब समाप्त किया गया है। सरकार का दावा है कि नई व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता है और देश में शिक्षा प्रणाली की एक ही एजेंसी काम करेगी। इसरो के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में विशेषज्ञों के एक समूह ने भारतीय शिक्षा प्रणाली की कठिनाइयों को देखते हुए यह प्रस्ताव किया था। बाद में मंत्रालय ने मंजूरी दी थी। नई शिक्षा नीति में छात्रों के समग्र विकास के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने के साथ उन्हें 21वी सदी के कौशल से लैस किया जाना है। आलोचनात्मक सोच पर जोर देना है। सरकार ने इस बात की चिंता की है कि पिछले कुछ वर्षों में बहुत कम छात्रों ने उच्च शिक्षा का विकल्प चुना। सरकार की नई शिक्षा नीति से शिक्षाविद् और प्रबुद्ध जन आशान्वित हैं कि इससे पूरी शिक्षा प्रणाली के दूरदर्शी परिणाम होंगे।

Dakhal News 30 July 2024

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