Dakhal News
नवनीत गुर्जर
किसी भी आरोपी के घर पर ताबड़तोड़ बुलडोजर चलाने का सरकारों का निर्णय सही है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सरकार चाहे किसी भी दल की हो, एक ट्रेंड के बाद सभी ने बुलडोजर का इस्तेमाल किया है। कुछ कांग्रेस सरकारों ने भी। कुछ भाजपा सरकारों ने भी।
राज्य सरकारों का तर्क है कि उन्होंने क़ानून को हाथ में लेकर किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। बल्कि उन्हीं घरों- मकानों को गिराया गया है जो अवैध रूप से बने हुए थे। इन अवैध मकानों को भी नगरपालिका नियमों के तहत गिराया गया है।
अब सवाल यह है कि इस तरह के अवैध मकान बनने क्यों दिए गए? किस अफ़सर ने, कितनी घूस खाकर वो मकान बनने दिया था। फिर अचानक ही सरकार को यह कैसे सूझ जाता है कि यह मकान अवैध रूप से बना है?
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने फ़िलहाल कोई निर्णय तो नहीं सुनाया है लेकिन यह ज़रूर कहा है कि कोई आरोपी भले ही दोषी हो तो भी उसका मकान नहीं गिराया जा सकता। संबंधित राजनीतिक दलों और उनकी सरकारों को नोटिस देकर कहा भी है कि वे अपने- अपने तर्क दें, ताकि इस बारे में एक गाइडलाइन जारी की जा सके।
वैसे कुछ समूह इसे किसी वर्ग विशेष से जोड़कर भी देख रहे हैं लेकिन ऐसा स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता क्योंकि दूसरे वर्ग के लोगों के घरों पर भी बुलडोजर चलाए गए हैं। बुलडोजर कार्रवाई कितनी सही है और कितनी गलत? क़ानूनी तौर पर इसका कोई आधार भी है या नही, यह तो अब सुप्रीम कोर्ट ही तय करेगा, लेकिन कुछ पार्टियों या समूहों का यह तर्क है कि एक अपराध की दो सजा नहीं दी जा सकती।
दो सजा से यहाँ मतलब है एक तो उसके ख़िलाफ़ पुलिस और कोर्ट क़ानून के हिसाब से कार्रवाई करती है और दूसरी मकान गिराकर सरकार सजा देती है। बहुत हद तक यह तर्क सही भी प्रतीत होता है। अगर कोर्ट कहे कि इस आरोपी का मकान अगर अवैध है तो उसे गिरा दिया जाए तब यह कार्रवाई सही कही जा सकती है। सरकारें खुद सजा देने लगेंगी, तो फिर कोर्ट क्या करेगा?
Dakhal News
|
All Rights Reserved © 2025 Dakhal News.
Created By:
Medha Innovation & Development |