डॉक्टर-कंपनियों का कपट जाल : दवा की कीमत में उछाल
bhopal, Doctors and companies

देश में दवाओं की कीमत सरकार नहीं डॉक्टर खुद तय कर रहे हैं। डॉक्टर अपने मुताबिक ब्रांड बनवाते हैं, कीमतें फिक्स करते हैं। 38 रुपए की दवा की एमआरपी 1200 रुपए कर दी जा रही है। यह महज उदाहरण है, तमाम दवाइयों में ऐसा किया जा रहा है। एक्सपर्ट मानते हैं कि 20 साल में 40 हजार करोड़ से दवा का कारोबार 2 लाख करोड़ के करीब पहुँच गया है। इसका बड़ा कारण वह एमआरपी में बड़े खेल को मानते हैं। 2005 से 2009 तक 50 प्रतिशत एमआरपी पर दवाएँ बिक रही थी। अगर 1200 रुपए की एमआरपी है तो डीलर को 600 रुपए में दी जाती थी। अब डॉक्टर अपने हिसाब से एमआरपी तय करवा रहे हैं। जबकि नियमों के अनुसार दवाओं की कीमतें डॉक्टर नहीं बल्कि दवा बनाने वाली कंपनियाँ तय करती हैं। दवाओं के रेट तय करने में कई कारक शामिल होते हैं। दवाओं पर व्यापारियों को खासा मुनाफा होता है।


ब्रांडेड दवाओं पर रिटेलर ज्यादा से ज्यादा 20-25 प्रतिशत तक की छूट देते हैं। जेनेरिक दवाओं पर 50-70 प्रतिशत तक की छूट मिलती है। जेनेरिक दवाएँ सस्ती होती हैं क्योंकि उन्हें महंगी जांचों से नहीं गुजरना पड़ता। दवा खरीदते समय, दवा के रैपर पर क्यूआर कोड होना चाहिए। दवा के रैपर पर क्यूआर कोड से दवा का नाम, ब्रैंड का नाम, मैन्युफैक्चरर की जानकारी, मैन्युफैक्चरिंग की तारीख और एक्सपायरी की तारीख मिलती है। दवाओं या उनके अवयवों के बारे में जानकारी के लिए डॉक्टर या फार्मासिस्ट से पूछा जा सकता है। मगर जो दवाएँ सरकार के कंट्रोल से बाहर हैं, उनमें मनमानी दवा की क्वालिटी और एमआरपी की निगरानी के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइस अथॉरिटी काम करती है। सरकार ड्रग्स प्राइस कंट्रोल ऑर्डर के माध्यम से दवा की एमआरपी पर नियंत्रण रखती है। आवश्यक और जीवनरक्षक दवाओं के लिए अधिकतम मूल्य निर्धारित करने के साथ डीपीसीओ की जिम्मेदारी मरीजों के लिए दवाएँ सस्ती और सुलभ कराने की भी है।


सरकार जिन दवा को डीपीसीओ के अंतर्गत लाती है, उनकी एमआरपी तो कंट्रोल में होती है लेकिन सैकड़ों फॉर्मूले की दवाएँ आज भी सरकार के कंट्रोल से बाहर हैं, जिसकी एमआरपी में मनमानी चल रही है। दवाओं की कीमतों में इजाफे को लेकर सरकार की गाइडलाइन है कि एक साल में 10 प्रतिशत ही एमआरपी बढ़ाई जा सकती है। लेकिन कंपनियाँ प्रोडक्ट्स का नाम बदल कर हर साल डॉक्टरों की डिमांड वाली एमआरपी बना रही हैं। कंपनियाँ अलग डिवीजन और ब्रांड बदल कर एमआरपी अपने हिसाब से फिक्स कर देती हैं।


फार्मा फैक्ट्रियों से ही देश में दवाएँ सप्लाई की जाती हैं। कंपनियों और डॉक्टरों के इस खेल में कंपनियाँ अपने मुनाफे के लिए नियमों को ताक पर रखकर डॉक्टरों के हिसाब से न सिर्फ दवाएँ बनाने के लिए तैयार हो जाती हैं, बल्कि मनमानी कीमत तय कर देती हैं। तभी तो देशभर में डॉक्टर और हॉस्पिटल खुद अपनी दवाएँ बनवा रहे हैं और मनमाफिक मूल्य पर बेच रहे हैं। डॉक्टर और हॉस्पिटल खुद अपनी दवाएँ बनवा रहे हैं और माइक्रो पायलट का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे ही एक्सपायरी निर्धारित होती है। अगर दवा में माइक्रो पायलट की क्वालिटी थोड़ी डाउन कर दी जाए तो मार्जिन बढ़ जाएगा लेकिन एक्सपायरी का समय कम हो जाएगा। इसके पीछे कारण यह कि मटेरियल और एक्सपायरी को लेकर सरकार की कोई गाइडलाइन नहीं है। एक्सपायरी की डेट भी कंपनियाँ तय करती हैं। सरकार के कंट्रोल में जो दवाएँ हैं, इसे लेकर थोड़ी सख्ती है। बाकी मेडिसिन पर कोई खास निगरानी नहीं है।


ये गंभीर विषय है कि दवा का निर्माण, आयात या बिक्री करने वाली कंपनियाँ ही दवा की कीमतें निर्धारित करती हैं। नियमों में कहा गया है कि केवल प्रिस्क्रिप्शन वाली दवा और ओवर-द-काउंटर दवा के प्रकार जो केवल फर्मेसियों में बेचे जा सकते हैं, उन्हें सभी फर्मेसियों में बिल्कुल एक ही कमत पर बेचा जाना चाहिए। इसलिए ि दवाओं की कीमतें फर्मेसियों के बीच उतार-चढ़ाव नहीं करती हैं, जिसका अर्थ है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अपना प्रिस्क्रिप्शन भरने के लिए किस फर्मेसी को चुनते हैं। यही नहीं, दवा बनाने वाली कंपनियों पर ये नियम सख्ती से लागू किये जाए कि वह हर साल्ट का मूल्य भारत सरकार के नियमानुसार एक जैसा निर्धारित करे, चाहे ब्रांड कोई भी हो। मूल्य ब्रांड पर न होकर साल्ट पर हो ताकि डॉक्टरों और कंपनियों के काले धंधे पर लगाम लगे और मरीज को 300 रपये का इंजेक्शन बारह  में न खरीदना पड़े।


हर्बल दवाइयों और ओवर-द-काउंटर दवाइयों के प्रकार जो फार्मेसी के अलावा सुपरमार्केट और कियोस्क जैसी अन्य दुकानों  में बेची जा सकती हैं, उनकी भी कीमतों में बदलाव की अनुमति सरकार की तरफ से हो। ये कीमतें पूरी तरह स्टोर द्वारा निर्धारित की जाती हैं इसलिए ग्राहक को एक स्टोर से दूसरे स्टोर में कीमतों में अंतर का अनुभव होता है।

 
Dakhal News 25 February 2025

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