हमें अपने उत्सवों में क्लाइमेट का भी ध्यान रखना होगा
We also have to keep the climate

प्रो. चेतन सिंह सोलंकी 

पिछले कुछ दिनों में मैंने गहरी पीड़ा महसूस की, जब मैंने देखा कि गणेश जी की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं विसर्जित करने के दौरान खंडित हो रही हैं। कुछ लोग दूर से ही प्रतिमाओं का विसर्जन कर रहे थे और मुंबई की चौपाटी में समुद्र का पानी पीछे लौटने पर उन्हीं सुंदर प्रतिमाओं के अवशेष दिखने लगे। मैं सोच रहा था कि क्या गणेश जी को भी यह देखकर पीड़ा होती होगी? हम अपने प्रिय गणेश जी के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? वही गणेश जिनकी हम कुछ दिन पहले तक पूजा कर रहे थे?

हम विसर्जन की आवश्यक सुविधाओं या मूर्तियां बनाने में लगी सामग्रियों के पर्यावरणीय परिणामों पर विचार किए बिना बड़ी-बड़ी मूर्तियां स्थापित कर रहे हैं। इसका पर्यावरण पर गहरा प्रभाव हो रहा है, जो दिखता भी नहीं है।

इन मूर्तियों को बनाने और सजाने में लगी लोहे की फ्रेम, रंगीन पेंट्स और प्लास्टिक आदि हमारे जल निकायों को प्रदूषित करते हैं। विसर्जित हुई ये सामग्रियां जल में विषैले रसायन छोड़ती हैं, जिससे जलीय जीवन प्रभावित होता है और पारिस्थितिक तंत्र बाधित होता है।

ये क्रियाएं ना केवल जलीय-प्रजातियों को बल्कि हमें और हमारे बच्चों को भी नुकसान पहुंचाती हैं क्योंकि हम भी प्रकृति का अभिन्न हिस्सा हैं। हमारा देश त्योहारों से समृद्ध है, नवरात्र और फिर दीपावली आने वाली है। क्या जागरूक नागरिक आगे आकर समुदायों और मंडलों का मार्गदर्शन कर सकते हैं ताकि पिछली गलतियां न दोहराई जाएं?

हमारे त्योहार, हमारी परंपराओं और पर्यावरण दोनों का सम्मान करें, इसके लिए हमें अपनी पारंपरिक प्रथाओं को पुनर्जीवित करना चाहिए। केवल भव्य प्रदर्शनों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, गायन, कीर्तन और सामुदायिक नाटकों जैसी गतिविधियों को अपनाएं।

हम इन अवसरों का उपयोग सामूहिक रूप से अपने परिवेश को साफ और सुंदर बनाने के लिए कर सकते हैं? इस तरह की सामुदायिक रूप से की जाने वाली गतिविधियां न केवल लोगों को साथ लाती हैं, बल्कि हमारे उत्सवों को भी समृद्ध करती हैं, और हमें भक्ति की सच्ची भावना की याद दिलाती हैं।

इसके अलावा, हम प्राकृतिक सामग्रियों से बनी छोटी, पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियों का चयन कर सकते हैं। विसर्जन-स्थानों की अलग से योजना बनाई जाए ताकि नदियों-महासागरों के प्रदूषण को रोका जा सके। क्या हम पंडाल बनाने के लिए सिर्फ बायोडिग्रेडेबल मटेरियल का उपयोग कर सकते हैं? पंडालों को बांस, कपड़े, केले के पत्तों से बनाया जा सकता है।

शिक्षित और सचेत नागरिकों को सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए और स्थानीय मंडलों के साथ मिलकर इस तरह की प्रथाओं को बढ़ावा देना चाहिए। सामूहिक रूप से काम कर के हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि त्योहार न केवल आनंदमय हों बल्कि धरती का भी ध्यान रखें।

आइए हम नवरात्र की अभी से तैयारी करें, ताकि इस पर्व को पूरी भव्यता के साथ मना सकें। परंतु संकल्प भी लें कि विसर्जन की समुचित व्यवस्था के साथ, मां की प्रतिमा का भी पूरा आदर करेंगे। और इस सबमें पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी ख्याल रखेंगे।

Dakhal News 24 September 2024

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