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बरखा दत्त
इस सप्ताह ममता बनर्जी ने बताया कि कोलकाता पुलिस प्रमुख ने इस्तीफा देने की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने त्यौहारों का मौसम होने के कारण इसे नहीं स्वीकारा। उन्होंने एक बार फिर राजनीतिक सूझबूझ की कमी को दर्शाया।
ममता के व्यक्तित्व में हमेशा से ही एक तरह की उग्रता रही है और इसी ने उन्हें मजबूत जमीनी राजनेता बनाया, लेकिन कोलकाता के आरजी कर हॉस्पिटल में एक युवा डॉक्टर के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या के बाद से ही उन्होंने अपने व्यक्तित्व के इस गुण का हठपूर्वक दुरुपयोग किया है।
टीएमसी सरकार की सबसे बड़ी गलती आरजी कर कॉलेज के बदनाम पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष को तुरंत बर्खास्त न करना थी। अब तक इस बात के पर्याप्त साक्ष्य मिल चुके हैं कि घोष कॉलेज में भय का साम्राज्य चला रहा था। मैंने कॉलेज की दो छात्राओं से बात की है, जिन्होंने बताया कि एक समय तो उन्होंने घोष के उत्पीड़न से तंग आकर आत्महत्या तक करने का मन बना लिया था।
कॉलेज के एक पूर्व अधिकारी अख्तर अली ने बताया कि एक महिला डॉक्टर ने उन्हें बताया उसका भी यौन उत्पीड़न किया गया था। कॉलेज में मरीजों के मृत शरीरों और बायोमेडिकल कचरे के अंडरग्राउंड कारोबार के बारे में कई सबूत मिले हैं।
यह भी स्पष्ट है कि घोष के खिलाफ शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या के बाद क्या-क्या हुआ? हम जानते हैं कि कॉलेज के अधिकारियों ने युवा डॉक्टर के माता-पिता से झूठ बोला और कहा कि उनकि बेटी ने आत्महत्या कर ली है।
हम जानते हैं कि घोष के करीबी माने जाने वाले लोग उस सेमिनार हॉल के इर्द-गिर्द घूमते पाए गए, जो कि मौका-ए-वारदात है। हम जानते हैं कि मृत्यु की घोषणा में कम से कम तीन घंटे की देरी की गई और तुरंत ही हत्या व दुष्कर्म की एफआईआर दर्ज नहीं कराई गई।
इस सबके बावजूद, घोष की नौकरी नहीं जाती। उसका दूसरे सरकारी मेडिकल कॉलेज में तबादला कर दिया जाता है। जब प्रदर्शनकारी छात्र उसे उसमें प्रवेश नहीं करने देते तो टीएमसी क्या करती है? वह अपने दो नेताओं- एक राज्य मंत्री और एक विधायक को भेजकर छात्रों को मनाने की कोशिश करती है कि वे घोष को स्वीकार लें। अंत में हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करके उसे बर्खास्त करना पड़ता है; लेकिन पहले यह पूछा जाता है कि घोष इतना शक्तिशाली क्यों है कि उसकी मदद के लिए सरकारी वकील नियुक्त किया गया है?
अब टीएमसी के नेता कह रहे हैं कि घोष को जिन वित्तीय अनियमितताओं के लिए गिरफ्तार किया गया है (जिनकी शिकायतों को अतीत में नजरअंदाज किया गया था), उनका डॉक्टर की हत्या से कोई संबंध नहीं है। लेकिन एक भी प्रदर्शनकारी डॉक्टर इससे सहमत नहीं है।
पिछले महीने मैंने जितने भी डॉक्टरों से बात की, उनमें से हर एक का मानना है कि संजय रॉय- जिसे अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया था- अकेले ऐसा नहीं कर सकता था। बंगाल के सबसे अच्छे कार्डियक सर्जनों में से एक डॉ. कुणाल सरकार का कहना कि बड़े पैमाने पर कवर अप हुआ है। और हर कोई जानता है कि घोष के बिना यह संभव नहीं था।
घोष का बचाव करना ममता सरकार की पहली बड़ी गलती थी। दूसरी गलती थी कि पूरे देश, और विशेषकर कोलकाता में हो रहे विरोध-प्रदर्शनों को भाजपा और सीपीएम का राजनीतिक प्रतिशोध करार देना। खुद टीएमसी सांसद जवाहर सरकार ने पार्टी छोड़ने के बाद मुझसे कहा कि बेशक ममता के राजनीतिक विरोधी इसका फायदा उठाने की कोशिश करेंगे, लेकिन विरोध में हो रहे आंदोलन पार्टी की राजनीति से परे हैं।
तीसरी बड़ी गलती पुलिस के खिलाफ कोई कार्रवाई न करना थी। स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आरजी कर कॉलेज में आधी रात को हुई तोड़फोड़- जिसमें हजारों उपद्रवियों ने डॉक्टरों के विरोध-स्थल को तहस-नहस कर दिया- पुलिस की विफलता थी।
पुलिस प्रमुख को अगले ही दिन छुट्टी पर जाने के लिए कहा जाना चाहिए था। इसके बजाय टीएमसी ने उनकी सुरक्षा पर दोगुना जोर दिया। उसी रात नर्सिंग स्टाफ का अंजाम ‘पीड़िता के जैसा’ करने की धमकी दी गई थी और पुलिस उपद्रवियों को रोकने में असमर्थ या अनिच्छुक थी।
डॉक्टरों को काम पर लौटने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश सरकार को राहत नहीं दे सकता। अगर सरकार डॉक्टरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करती है तो डॉ. सरकार के मुताबिक 12,000 इस्तीफे तैयार हैं। एकमात्र तरीका यह है कि मुख्यमंत्री डॉक्टरों की ओर सुलह का हाथ बढ़ाएं। अगर सरकार की प्रतिक्रिया शुरू से ही आक्रामकता के बजाय विनम्रता की होती, तो शायद यह स्थिति ही नहीं पैदा होती।
अस्पताल में बड़े पैमाने पर कवर अप हुआ है। और हर कोई जानता है प्रिंसिपल घोष के बिना यह संभव नहीं था। लेकिन ममता सरकार पूरे देश में हो रहे विरोध-प्रदर्शनों को भाजपा और सीपीएम का राजनीतिक प्रतिशोध करार देने लगी।
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