हाल की आपदाएं प्राकृतिक ही नहीं, मानव-निर्मित भी हैं
Recent disasters are not only natural

सुनीता नारायण 

हाल ही में केरल के वायनाड में भूस्खलन की त्रासद-घटना के कारण 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। उसका सम्बंध जलवायु परिवर्तन से था भी और नहीं भी। उससे पहले केदारनाथ या हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं भी जलवायु परिवर्तन से जुड़ी थीं, और नहीं भी।

हम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन से भविष्य में चरम-मौसम की और भी अधिक घटनाएं होंगी। हमने देश भर में कई क्षेत्रों में रिकॉर्ड तोड़ तापमान देखा है। फिर बारिश से मुसीबतों का मौसम आया। अत्यधिक बारिश और जलवायु-परिवर्तन से उसके संबंध का भी एक स्पष्ट विज्ञान है।

जैसे-जैसे समुद्र का तापमान बढ़ेगा, दुनिया में ज्यादा बारिश होगी, और वह अतिवृष्टि के रूप में होगी। इसलिए कम बारिश वाले दिनों में भी ज्यादा बारिश देखने को मिलेगी। अनुमान है कि भारत में एक साल के लगभग 8700 घंटों में से कुछ सौ घंटे बारिश होती है। लेकिन जुलाई 2024 में भारतीय मेट्रोलॉजी विभाग (आईएमडी) के अनुसार ‘बहुत भारी बारिश’ के रूप में वर्गीकृत की गई घटनाएं पिछले पांच सालों में दोगुनी से भी ज्यादा हो गई हैं।

जुलाई में ऐसी घटनाएं 2020 में 90 थीं, जो 2024 में बढ़कर 193 हो गई हैं। यूपी के बरेली का डेटा लें। 8 जुलाई को इस जिले में 24 घंटे में 460 मिमी बारिश हुई। बरेली में हर साल औसतन 1100 से 1200 मिमी बारिश होती है। तो 24 घंटे में ही इसकी आधी बारिश हो गई।

उत्तराखंड के चम्पावत जिले का भी यही हाल था। 8 जुलाई को ही 24 घंटे में 430 मिमी बारिश हुई। अगर आप 25 जुलाई को पुणे जिले को लें तो 24 घंटे में 560 मिलीमीटर बारिश हुई। यह इस जिले में साल भर में होने वाली बारिश की आधी से भी ज्यादा है।

हिमालय को ही लीजिए। यह दुनिया की सबसे युवा पर्वतमाला है। यह भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं के लिए एक जोखिम भरा स्थल है और यह अत्यधिक भूकंपीय-क्षेत्र भी है। यह नाजुक है। फिर भी हम हिमालय में कुछ इस अंदाज में निर्माण करते हैं मानो दिल्ली के किसी भीड़भाड़ वाले इलाके में पार्किंग स्थल बना रहे हों।

हमारे पास हिमालय की वादी में बसे कस्बों के लिए कोई मास्टर प्लान नहीं है। हम बाढ़ के मैदानों पर निर्माण कर रहे हैं। वास्तव में, हम नदियों के ऊपर भी निर्माण करने लगे हैं। हम पहाड़ों को नष्ट कर रहे हैं। और पेड़ों को तो ऐसे काट रहे हैं, मानो कल इसका अवसर न मिलेगा। ये सच है कि हमें हिमालय-क्षेत्र में विकास करना चाहिए, लेकिन बिना सोचे-समझे विकास-परियोजनाओं का कोई औचित्य नहीं। हिमालय में चलाई जा रही जलविद्युत परियोजनाएं इसकी बानगी हैं।

हमें इन परियोजनाओं के खिलाफ नहीं होना चाहिए। आखिर, जलविद्युत एक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत है। यह एक अक्षय और स्वच्छ ऊर्जा स्रोत भी है। सवाल यह है कि हिमालय की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए इन परियोजनाओं पर हमें कैसे काम करना चाहिए?

2013 में, मैं एक उच्चस्तरीय समिति की सदस्य थी, जिसे इन परियोजनाओं की जांच के लिए गठित किया गया था। इंजीनियरों ने बताया कि वे 9000 मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए गंगा पर 70 पनबिजली-परियोजनाएं बनाने का प्रस्ताव रखते हैं।

इस योजना के अनुसार शक्तिशाली गंगा नदी का 80 प्रतिशत हिस्सा ‘संशोधित’ किया जाता और नदी में लीन पीरियड में उसमें 10 प्रतिशत से भी कम पानी बचता। तब वह एक नाले से ज्यादा नहीं रह जाती। मैंने पूछा, इसे विकास कैसे कहा जा सकता है?

मैंने इसका विकल्प सुझाया कि हमें नदी के प्रवाह के अनुरूप परियोजनाओं को फिर से डिजाइन करना चाहिए, ताकि जिस मौसम में नदी में अधिक पानी हो, तब उससे अधिक बिजली पैदा हो और जब पानी कम हो, तो कम।

इसका मतलब यह था कि परियोजनाओं को इस तरह से तैयार किया जाना चाहिए कि नदी में हर समय 30 से 50 प्रतिशत प्रवाह बना रहे। तब आप परियोजनाओं में संशोधन कर रहे होंगे, नदी में नहीं।

केरल का वेस्टर्न-घाट- जहां भूस्खलन हुआ- 2013 में के. कस्तूरीरंगन समिति द्वारा अनुशंसित पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र का हिस्सा है। समिति ने सिफारिश की थी कि इन क्षेत्रों में खनन और उत्खनन जैसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। लेकिन केरल सरकार ने इसे नहीं माना और परिणामस्वरूप अत्यधिक बारिश में वहां की कुछ पहाड़ियां ढह गईं और बड़े पैमाने पर जान-मा​ल की हानि हुई। इसलिए ध्यान रहे, देश भर में हम आज जो भी प्राकृतिक आपदाएं देख रहे हैं, वे प्राकृतिक ही नहीं मानव निर्मित भी हैं।

हम बाढ़ के मैदानों पर निर्माण कर रहे हैं। नदियों पर भी निर्माण करने लगे हैं। हम पहाड़ों को नष्ट कर रहे हैं। पेड़ों को तो ऐसे काट रहे हैं, मानो कल इसका अवसर न मिलेगा। जबकि हिमालय और वेस्टर्न घाट अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र हैं।

Dakhal News 24 August 2024

Comments

Be First To Comment....

Video
x
This website is using cookies. More info. Accept
All Rights Reserved © 2024 Dakhal News.