अप्राकृतिक देश है पाकिस्तान
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भारत और पाकिस्तान के मध्य यह पांचवा युद्ध है। इसके अलावा पाकिस्तान द्वारा समय-समय पर भेजे गए आतंकवादियों द्वारा की गई सैकड़ों हत्याएं भी इसी तरह के युद्ध का हिस्सा रही हैं। पाकिस्तान ने कोई विकल्प नहीं छोड़ा, तो भी भारत ने पहले दिन केवल आतंकवादी शिविरों पर ही हमला किया। पाकिस्तान की सेना या जनता पर नहीं, लेकिन पाकिस्तान ने धुआंधार युद्ध की कार्रवाई की। इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय तक भारत की तरफ से पाकिस्तान के 13 से ज्यादा शहरों पर जवाबी कार्रवाई की गई। पूरा राष्ट्र भारतीय नेतृत्व और सेना की कार्रवाई के समर्थन में मन, वचन, कर्म और संकल्प के साथ एकजुट है। दुनिया का कोई भी देश इस युद्ध में पाकिस्तान के पक्ष में नहीं बोला । भारत की प्रारम्भिक कार्रवाई का समर्थन भी कई देशों द्वारा किया गया है।


पाकिस्तान वस्तुतः स्वाभाविक मुल्क/राष्ट्र नहीं है। इसका जन्म मुस्लिम लीग द्वारा ’डायरेक्ट एक्शन’ नाम से कराए गए नरसंहार और रक्तपात के बीच हुआ था। देश विभाजन की त्रासदी जिन्हें याद है, वे आज भी कांप उठते हैं। किसी राष्ट्र के गठन के लिए एक सुनिश्चित भूमि अनिवार्य होती है। उसी भूमि पर संकल्पबद्ध रहने वाले लोग जन्मभूमि को प्यार करते हैं। इन अभिजनों की साझा संस्कृति होती है। भूमि, जन और संस्कृति तीनों मिलकर राष्ट्र बनते हैं। भारत ऐसा ही प्राचीन राष्ट्र है। भारतीय संस्कृति विश्ववरेण्य है। भारत के लोग भारत भूमि को प्यार करते हैं। उसे मां जानते हैं। पृथ्वी को मां कहने की यह अनुभूति हजारों वर्ष पहले अथर्ववेद के भूमि सूक्त में गायी गई है।

 

इस सूक्त के कवि अथर्वा कहते हैं, ''यह पृथ्वी हमारी माता है और हम इसके पुत्र। इस पृथ्वी पर उत्सव होते हैं। सम्मिलन होते हैं। गांव परस्पर मिलते हैं। अनेक तरह की भाषा बोली बोलने वाले लोग और अनेक तरह के रीति नीति से सम्बद्ध लोग पृथ्वी माता का संरक्षण पाते हैं।'' कहते हैं, ''हे माता, हम आप पर लेटते हैं, बैठते हैं। हमारे किसी पैर हाथ से आपको चोट न पहुंचे।'' यहां भाव प्रवणता का चरम है। अथर्वा कहते हैं, ''उत्सवों के आयोजनों के लिए, हे माता, हम आपको खोदते हैं। बांस की लकड़ी आदि गाड़ते हैं। माता आपको कष्ट हो, तो क्षमा करें।'' अमेरिकी विद्वान ब्लूमफील्ड ने इस सूक्त के अनुवाद में कहा है, ''ऋषि अथर्वा ने उत्कृष्ट काव्य की रचना की है।''


हजारों वर्ष पहले अथर्वा केवल बांस गाड़ने के लिए खोदी गई धरती से क्षमा याचना करते हैं। तमाम नदियों की घाटियों में और समतल जमीन वाले मैदानों में भी पुलिस और खनन माफियाओं के चलते तमाम जमीनें खोदी जाती हैं। प्राचीन भारतीय संस्कृति में पृथ्वी माता रही हैं और हैं। अथर्ववेद से चली यह परंपरा बंकिम चन्द्र के उपन्यास 'आनंद मठ' में 'वन्दे मातरम' कविता में विस्तार पाती है। बंटवारे के समय भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए लोग संस्कृति छोड़ गए। उन्होंने मजहब के आधार पर देश को बांट दिया।

 

पाकिस्तानी भूमि 1947 में भारत से अलग हुई। इसी भूमि में वैदिक काल के ऋषियों की नदीतमा सरस्वती प्रवाहमान रही है। इसी के तट पर तमाम वैदिक साहित्य गाया गया गया। सिन्धु नदी भी ऋग्वेद के ऋषियों की प्रिय नदी है। इसी के नाम पर प्राचीन भारतीय संस्कृति को सिन्धु घाटी सभ्यता भी कहते हैं। वैदिक काल में हिमालय से निकली सिन्धु, झेलम, सतलज, रवि, व्यास आदि सात नदियां वैदिक ऋषियों की प्रिय रही हैं। ऋग्वैदिक ऋषियों ने इन्द्रदेव को धन्यवाद दिया है कि वह सात नदियों के क्षेत्र में जल वर्षा करते हैं। पुलास्कर ने लिखा है, ''सात नदियों के इस क्षेत्र को देश कहना ज्यादा ठीक होगा।'' ऐसे प्राचीन राष्ट्र को तोड़कर केवल मजहब आधारित अप्राकृतिक देश बनाया गया है पाकिस्तान।


पाकिस्तान भारत से अलग हो गया। कट्टरपंथी तत्वों ने भारतीय संस्कृति का विरोध किया। उन्होंने देश गठन का आधार केवल मजहब माना और मजहब आधारित देश बनाया। अब पाकिस्तानी सेना के प्रमुख पाकिस्तान के गठन का औचित्य समझा रहे हैं। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने पाकिस्तानी आतंकवाद के साक्ष्य के रूप में पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल मुनीर के ताजा बयान को उद्धृत किया है। जनरल मुनीर ने हिन्दुओं का जिक्र करते हुए कहा, ''हमारे पूर्वजों ने सोचा कि हम जीवन के हर संभव क्षेत्र में हिन्दुओं से अलग हैं। हमारा धर्म अलग है, हमारे रीति-रिवाज अलग हैं। हमारी संस्कृति अलग हैं और हमारी सोच अलग है। हमारी महत्वकांक्षाएं अलग हैं। यह दो राष्ट्र के सिद्धांत की नींव थी।'' जनरल मुनीर जानबूझकर शरारत कर रहे हैं। बेशक आपकी सोच अलग है, लेकिन पूर्वज साझे हैं। फिर पाकिस्तान को स्वतंत्र राष्ट्र होने से किसने रोका है। देश तो आप उसी दिन हो गए थे जिस दिन ब्रिटिश पार्लियामेंट ने कानून बनाकर आजादी देने की घोषणा की। विभाजन का प्रस्ताव उसमें शामिल था। दोनों देशों ने अलग-अलग जीवन यात्रा की।


संप्रति भारत में सभी मत, पंथ, मजहब फल-फूल रहे हैं। यहां अल्पसंख्यक समुदाय तमाम विशेषाधिकार का आनंद उठा रहे हैं, लेकिन आपके यहां पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दू असुरक्षित हैं। उनके उपासना स्थल मंदिर गिराए जा रहे हैं। सेना चुनी हुई सरकारों को काबू में रखती है। काबू न कर पाने पर गिरा देती है। राजनीतिक बयानबाजी का काम निर्वाचित सरकारों को करना चाहिए था, लेकिन आप चुनी हुई सरकारों का काम खुद कर रहे हैं। सबसे खतरनाक बात यह है कि सेना के नेतृत्व में आतंकवादी यूनिवर्सिटी चल रही है। पाकिस्तान के संविधान में इसे इस्लामिक गणराज्य कहा गया। पाकिस्तान की अलग से कोई स्वतंत्र तहजीब नहीं है। न संस्कृति है, न सभ्यता है। इसलिए पाकिस्तान के राष्ट्र होने का सवाल ही नहीं होता। केवल सरकार बना लेने से राष्ट्र नहीं बनते।


पाकिस्तान वास्तविक स्वाभाविक राष्ट्र नहीं है। इसीलिए पाकिस्तान के जन्म के समय से ही रक्तपात जारी है। जन्म के दो-तीन महीने के भीतर ही उसने कबायली हमला बोला। भारत की सेना से पराजित हुआ। 1965 में फिर युद्ध हुआ। वह फिर पराजित हुआ। 1971 में भारत से युद्ध हुआ। आमने-सामने के युद्ध में 93000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। पूर्वी पाकिस्तान के नाम से अभिज्ञात हिस्सा बांग्लादेश बन गया। बलोचिस्तान के लोग अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। पाकिस्तान की नियति यही है। वह जन्म के समय से ही खण्ड-खण्ड होने के लिए अभिशप्त है।
पाकिस्तान के गर्भ में विघटन के जीवाणु कुलबुलाया करते हैं। ऐसा घटित होना सही भी है।

 

इस्लामी विद्वान दुर्रानी ने पाकिस्तान के जन्म के समय अपनी प्रतिक्रिया में कहा था, ''पाकिस्तान एक सैनिक छावनी होगा और यहीं से हम भारत का इस्लामीकरण करेंगे।'' उनकी आधी बात सच निकली। पाकिस्तान की सेना सरकार चलाती है। सेना को मौलवी/उलेमा चलाते हैं। पाकिस्तान वाकई सैनिक छावनी बन गया। इसीलिए वह प्रशिक्षित आतंकी भेजता रहा है। छावनी की कोई उम्र नहीं होती। राष्ट्र की उम्र होती है। भारत हजारों वर्ष पुराना राष्ट्र है और पाकिस्तान सैनिक छावनी है। अब तो संघर्ष रुक गया है और यह दोबारा शुरू हुआ तो तय मानिए भारत की ओर से यह युद्ध निर्णायक होगा। पूरा भारत जानता है कि विजय भारत की ही होगी।

Dakhal News 12 May 2025

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