बांग्लादेश में तख्तापलट के हमारे लिए मायने
What does the coup in Bangladesh mean

अभिजीत अय्यर मित्रा

बांग्लादेश में हुए तख्तापलट ने दक्षिण-एशिया क्षेत्र में उथल-पुथल मचा दी है। प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है और उनका भविष्य अनिश्चित है। लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि आखिर वहां पर ऐसा क्यों हुआ और अब भारत के पास क्या विकल्प हैं।

बांग्लादेश में इसी साल चुनाव हुए थे, जिनमें विवादास्पद परिस्थितियों में शेख हसीना की अवामी लीग को भारी बहुमत मिला था। हालांकि चुनाव से पहले ही वहां पर विपक्ष का दमन शुरू हो गया था। शेख हसीना को लगता था कि फौज के हाथ मजबूत करके, उसे वह सब देकर जो वह चाहती है, फौजी अधिकारियों के स्पष्ट भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करके वे उन्हें अपने पाले में कर लेंगी और वो उनके प्रति वफादार रहेंगे।

आखिर 2009 में जब अर्धसैनिक बांग्लादेश राइफल्स ने तख्तापलट करने की कोशिश की थी, तो फौज ने हसीना का ही साथ दिया था। तो क्या अब फौज ने हसीना को दरकिनार कर दिया है? ऐसा पूरी तरह से सच नहीं है, क्योंकि शेख हसीना ने बांग्लादेशी वायुसेना के विमान से ही देश छोड़ा है। न ही वहां के सैन्य प्रमुख हसीना के आलोचक हैं।

सवाल उठता है कि ऐसे हालात क्यों बने और इस बार सेना के हाथ-पैर क्यों फूल गए? कई सालों से यह तर्क दिया जा रहा था कि बांग्लादेश जैसी स्थिति में- जहां विपक्ष कमजोर है- फौज ही विपक्ष की भूमिका निभाएगी। लेकिन समस्या यह है कि अगर सेना ऐसा करती है, तो उसे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा, और बांग्लादेश इसका बिल्कुल भी सामना नहीं कर सकता।

कुछ का निष्कर्ष है कि फौज दबाव से कुछ राहत चाहती थी, इसलिए वह अंतरिम नागरिक सरकार बना रही है, जिसके सफल होने की कोई संभावना नहीं है। ऐसे में हसीना की सत्ता में वापसी की गुंजाइश कायम रहेगी।

यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अमेरिका ने बांग्लादेश के चुनावों में हुई धांधली की तो निंदा की थी, लेकिन पाकिस्तान के चुनावों को सराहा था। इसी की प्रतिक्रिया में अपनी हाल की वॉशिंगटन यात्रा के दौरान शेख हसीना ने अमेरिकी सरकार के अधिकारियों से बातचीत करने से इनकार कर दिया था और इसके बजाय अमेरिका-बांग्लादेश चैंबर ऑफ कॉमर्स के कार्यालयों में बैठकें की थीं।

दांव पर बांग्लादेश द्वारा खोजे गए विशालकाय ऑफशोर गैस भंडार हैं। चीन के साथ हसीना की सांठगांठ अमेरिका को रास नहीं आ रही थी। लेकिन वे बीजिंग के प्रति भी बेसब्र बनी हुई थीं। वे अपनी चीन यात्रा को बीच में ही छोड़कर गुस्से में घर लौट आई थीं।

ऐसे में किसी को आश्चर्य नहीं हुआ था, जब पिछले महीने 1971 के योद्धाओं और उनके परिवारों के लिए कोटा के मुद्दे पर विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए। ध्यान रहे कि उन विरोध-प्रदर्शनों के बाद बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने अधिकांश कोटा को खत्म कर दिया था। फिर नए विरोध-प्रदर्शन किस बारे में हो रहे थे?

इन आरोपों को लेकर कि शेख हसीना तानाशाह और गैर-लोकतांत्रिक हैं। वैसे भी बांग्लादेश में बार-बार किसी न किसी मुद्दे पर विरोध-प्रदर्शन होते रहते हैं, क्योंकि वहां एकमात्र बचा हुआ विपक्ष- जमात-ए-इस्लामी- नहीं जानता कि कब उनकी किस्मत चमक जाएगी।

बांग्लादेश के हिंदू ऐतिहासिक रूप से अवामी लीग, शेख हसीना और उनके पिता मुजीबुर्रहमान के समर्थक रहे हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि वे हिंदू समुदाय के बहुत अच्छे दोस्त साबित हुए हों। उदाहरण के लिए शेख मुजीब विभाजन के दंगों में शामिल हुए थे, जिसके कारण 1947 में लाखों हिंदू मारे गए थे।

हालांकि 1971 तक वे एक मुस्लिम होने से बढ़कर एक बांग्लादेशी के रूप में सोचते थे, जबकि पाकिस्तान ने स्पष्टतया मुस्लिम कार्ड खेला था। 1971 के बाद से और बांग्लादेश की मुक्ति में भारत की भूमिका के बाद से वहां की सभी अवामी सरकारें हिंदुओं के प्रति स्पष्ट रूप से मैत्रीपूर्ण रही हैं।

ऐसे में विपक्ष ने अवामियों को एक ‘हिंदू पार्टी’ के रूप में चित्रित किया और बेरोकटोक तरीके से भारत पर निशाना साधा। वास्तव में, अवामी लीग भारत की सुरक्षा चिंताओं के प्रति संवेदनशील होने के लिए असामान्य हद तक चली गई है।

भारत के लिए यह एक बड़ा उलटफेर है। शेख हसीना ने भारत के विरुद्ध बेकार के दुष्प्रचार से इनकार कर दिया था। वे खालिदा जिया की तरह बांग्लादेश की तमाम समस्याओं के लिए भारत को दोष नहीं देने वाली थीं। इसके बजाय उन्होंने अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित किया और इसे प्रभावशाली ढंग से संभाला।

बांग्लादेश को एक समय गरीबी के लिए काम करने वाले एनजीओ के लिए स्वर्ग के रूप में जाना जाता था। अब इन एनजीओ की कोई आवश्यकता नहीं रह गई थी और बांग्लादेश ने कुछ आर्थिक-संकेतकों पर भारत को भी पीछे छोड़ दिया था।शेख हसीना न केवल भारत के साथ मित्रता सुनिश्चित कर रही थीं, बल्कि भारत में बांग्लादेशियों के प्रवास की आवश्यकता को समाप्त करके सीमा-सुरक्षा का भी ख्याल रख रही थीं। लेकिन इसका यह मतलब भी था कि भारत उन लगभग 3 करोड़ अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को वापस नहीं भेज सकता था, जो यहां रह रहे हैं। अब जब बांग्लादेश में बनने जा रही नई हुकूमत यकीनन भारत के लिए बहुत मैत्रीपूर्ण नहीं होने जा रही है, ऐसे में भारत इन प्रवासियों को वापस भेजने की शुरुआत कर सकता है।

यहां यह याद रखा जाना चाहिए कि श्रीलंका के विपरीत बांग्लादेश की बगावत आर्थिक तंगहाली के चलते नहीं हुई है और पाकिस्तान के विपरीत वहां पर फौज की मुखालफत में लोग नहीं उमड़े हैं। ऐसे में शेख हसीना के पास वहां पर सत्ता में वापसी की गुंजाइश अभी बाकी है।

भारत अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों का क्या करेगा...

अभी तक भारत बांग्लादेशी प्रवासियों को वापस नहीं भेज सकता था, लेकिन अब जब बांग्लादेश में बनने जा रही नई हुकूमत भारत के लिए बहुत मैत्रीपूर्ण नहीं होने जा रही है, ऐसे में अवैध प्रवासियों को भेजने की शुरुआत की जा सकती है।

Dakhal News 7 August 2024

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