आखिर क्यों धधक रही है पृथ्वी?
bhopal,Why earth blazing ,after all?

 

विश्व पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) पर विशेष

योगेश कुमार गोयल

इस साल मार्च महीने से ही भीषण गर्मी का जो कहर देखा जा रहा है, उसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। न केवल मार्च बल्कि अप्रैल मध्य तक तापमान प्रायः सामान्य ही रहता था लेकिन इस बार तापमान जिस तरह के रिकॉर्ड तोड़ रहा है, ऐसे में पूरी संभावना जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में पृथ्वी और ज्यादा तीव्रता के साथ तपेगी और भारत में लोगों को लू का भयानक कहर झेलना पड़ सकता है। वैसे न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी तथा मौसम का बिगड़ता मिजाज गंभीर चिंता का विषय बना है।

पर्यावरण के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाने तथा पृथ्वी को संरक्षण प्रदान करने के साथ दुनिया के समस्त देशों से इस कार्य में सहयोग व समर्थन हासिल करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 22 अप्रैल को ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ मनाया जाता है। ‘पृथ्वी दिवस’ पहली बार बड़े स्तर पर 22 अप्रैल 1970 को मनाया गया था और तभी से केवल इसी दिन यह दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया। उस समय अमेरिकी सीनेटर गेलार्ड नेल्सन द्वारा पृथ्वी को संरक्षण प्रदान करने के लिए इस महत्वपूर्ण दिवस की स्थापना पर्यावरण शिक्षा के रूप में की गई थी, जिसे अब दुनिया के कई देशों में प्रतिवर्ष मनाया जाता है।

दरअसल, धरती की सेहत बिगाड़ने और इसके सौन्दर्य को ग्रहण लगाने में समस्त मानव जाति जिम्मेदार है। आधुनिक युग में सुविधाओं के विस्तार ने पर्यावरण को सर्वाधिक क्षति पहुंचाई है और निरन्तर हो रहा जलवायु परिवर्तन इसी की देन है। हालांकि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विगत वर्षों में दुनियाभर में बड़े-बड़े अंतरराष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन होते रहे हैं और वर्ष 2015 में पेरिस सम्मेलन में 197 देशों ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए अपने-अपने देश में कार्बन उत्सर्जन कम करने और 2030 तक वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री तक सीमित करने का संकल्प लिया था। इसके बावजूद इस दिशा में अभी तक कोई ठोस कदम उठते नहीं देखे गए हैं।

हालांकि प्रकृति पिछले कुछ वर्षों से लगातार भयानक आंधियों, तूफान और ओलावृष्टि के रूप में स्थिति की गंभीरता का संकेत देती रही है कि विकास के नाम पर प्रकृति से भयानक खिलवाड़ के खतरनाक नतीजे होंगे लेकिन अपेक्षित कदम अबतक नहीं उठाए गए। जलवायु परिवर्तन से निपटने के नाम पर वैश्विक चिंता व्यक्त करने से आगे हम शायद कुछ करना ही नहीं चाहते। हम यह समझना नहीं चाहते कि पहाड़ों का सीना चीरकर हरे-भरे जंगलों को तबाह कर हम जो कंक्रीट के जंगल विकसित कर रहे हैं, वह वास्तव में विकास नहीं बल्कि अपने विनाश का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।

 

पृथ्वी का तापमान यदि इसी प्रकार बढ़ता रहा तो आने वाले वर्षों में हमें इसके बेहद गंभीर परिणाम भुगतने को तैयार रहना होगा। हमें यह बखूबी समझ लेना होगा कि जो प्रकृति हमें उपहार स्वरूप शुद्ध हवा, शुद्ध पानी, शुद्ध मिट्टी तथा ढेरों जनोपयोगी चीजें दे रही है, अगर मानवीय क्रियाकलापों द्वारा पैदा किए जा रहे पर्यावरण संकट के चलते प्रकृति कुपित होती है तो उसे सब कुछ नष्ट कर डालने में पलभर की भी देर नहीं लगेगी।

करीब दो दशक पहले देश के कई राज्यों में जहां अप्रैल माह में अधिकतम तापमान औसतन 32-33 डिग्री रहता था, अब वह मार्च महीने में ही 40 के पार रहने लगा है। यदि पृथ्वी का तापमान इसी प्रकार बढ़ता रहा तो इससे एक ओर जहां जंगलों में आग लगने की घटनाओं में वृद्धि होगी, वहीं पृथ्वी का करीब 20-30 प्रतिशत हिस्सा सूखे की चपेट में आ जाएगा। इसके साथ एक चौथाई हिस्सा रेगिस्तान बन जाएगा, जिसके दायरे में भारत सहित दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य अमेरिका, दक्षिण आस्ट्रेलिया, दक्षिण यूरोप इत्यादि आएंगे।

पृथ्वी का तापमान बढ़ते जाने का प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग है, जो तमाम तरह की सुख-सुविधाएं व संसाधन जुटाने के लिए किए जाने वाले मानवीय क्रियाकलापों की देन है। पेट्रोल, डीजल से उत्पन्न होने वाले धुएं ने वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड तथा ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा को खतरनाक स्तर तक पहुंचा दिया है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि वातावरण में पहले की अपेक्षा 30 फीसदी ज्यादा कार्बन डाईऑक्साइड मौजूद है, जिसकी मौसम का मिजाज बिगाड़ने में अहम भूमिका है। पेड़-पौधे कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित कर पर्यावरण संतुलन बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन पिछले कुछ दशकों में वन-क्षेत्रों को बड़े पैमाने पर कंक्रीट के जंगलों में तब्दील किया जाता रहा है।

एक और अहम कारण है जनसंख्या वृद्धि। जहां 20वीं सदी में वैश्विक जनसंख्या करीब 1.7 अरब थी, अब बढ़कर 7.9 अरब हो चुकी है। अब विचारणीय तथ्य यही है कि धरती का क्षेत्रफल तो उतना ही रहेगा, इसलिए कई गुना बढ़ी आबादी के रहने और उसकी जरूरतें पूरी करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर दोहन किया जा रहा है, इससे पर्यावरण की सेहत पर जो जबरदस्त प्रहार हुआ है, उसी का परिणाम है कि धरती बुरी तरह धधक रही है।

 

पृथ्वी का तापमान बढ़ते जाने का ही दुष्परिणाम है कि ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ पिघल रही है, जिससे समुद्रों का जलस्तर बढ़ने के कारण दुनिया के कई शहरों के जलमग्न होने की आशंका जताई जाने लगी है। यदि प्रकृति से खिलवाड़ कर पर्यावरण को क्षति पहुंचाकर हम स्वयं इन समस्याओं का कारण बने हैं और हम वाकई गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं को लेकर चिंतित हैं तो इन समस्याओं का निवारण भी हमें ही करना होगा। ताकि हम प्रकृति के प्रकोप का भाजन होने से बच सकें अन्यथा प्रकृति से जिस बड़े पैमाने पर खिलवाड़ हो रहा है, उसका खामियाजा समस्त मानव जाति को अपने विनाश से चुकाना पड़ेगा।

अब हमें ही तय करना है कि हम किस युग में जीना चाहते हैं? एक ऐसे युग में जहां सांस लेने के लिए प्रदूषित वायु होगी। पीने के लिए प्रदूषित और रसायनयुक्त पानी तथा ढेर सारी खतरनाक बीमारियों की सौगात। या फिर ऐसे युग में जहां हम स्वच्छंद रूप से शुद्ध हवा और शुद्ध पानी का आनंद लेकर एक स्वस्थ सुखी जीवन व्यतीत कर सकें।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Dakhal News 20 April 2022

Comments

Be First To Comment....

Video
x
This website is using cookies. More info. Accept
All Rights Reserved © 2024 Dakhal News.