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क्या पाकिस्तान ये जंग हार सकता है? ये इस पर निर्भर करता है कि हम “हारने” से क्या समझते हैं. अगर इंडिया की मंशा पाकिस्तान की फ़ौज को पूरी तरह तबाह करने की है, तो एटमी जंग का ख़तरा खड़ा हो जाता है. एक बार न्यूक्लियर हथियार सामने आ गए तो नतीजे किसी के कंट्रोल में नहीं रहेंगे—ना इंडिया के, ना पाकिस्तान के, और शायद ना ही पूरे रीजन के.
क्या इंडिया पाकिस्तान की ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर सकता है?
अगर इंडिया की कोशिश पाकिस्तान के इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने की है तो उसे बहुत बड़ी तादाद में फ़ौज भेजनी होगी. इसमें भारी जान-माल का नुक़सान होगा. सवाल ये है: क्या इंडिया इतना बड़ा रिस्क लेने को तैयार है? और बग़ैर ज़मीनी फ़ौज के किसी की ज़मीन छीनकर क़ब्ज़ा कर लेना नामुमकिन है. सीमा के पास के सुनसान इलाक़ों में भी इंडिया को सख़्त मुश्किलें आएंगी. घने आबादी वाले हिस्सों में इंडिया की फ़ौज को सख़्त मुख़ालिफ़त का सामना करना पड़ेगा. अमेरिका का मिलिटरी बजट इंडिया से दस गुना बड़ा है फिर भी उसे इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में जबरदस्त मुख़ालिफ़त झेलनी पड़ी थी. वहाँ 7,000 से ज़्यादा अमेरिकी सिपाही मारे गए थे. पाकिस्तान की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करना कुछ महीनों के लिए ही सरदर्द बन जाएगा.
क्या इंडिया ये जंग जीत सकता है?
सवाल ये है कि “जीतना” किसे कहते हैं. इंडिया की फ़ौज और आर्थिक ताक़त पाकिस्तान से बहुत ज़्यादा है. लेकिन पाकिस्तान की फ़ौज भी काबिल है और पिछले कई दशकों से लड़ाई के मैदान में है, ख़ासकर 1979 से अफ़ग़ानिस्तान के बॉर्डर वाले इलाक़े में.
पाकिस्तान की आबादी और क्षेत्रफल दोनों ज़्यादा हैं. इसलिए पूरी तरह से पाकिस्तान पर फ़तह नामुमकिन है. अगर इंडिया ना तो पाकिस्तान की कोई बड़ी ज़मीन ले पाता है, ना ही उसकी फ़ौजी सलाहियत को ख़त्म करता है, तो जीत सिर्फ़ नाम की होगी. इंडिया ने पाकिस्तान को 1965 और 1971 में हराया था. 1971 में तो मुल्क को दो टुकड़ों में बाँट दिया. फिर 1999 में कारगिल में भी इंडिया ने उसे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. लेकिन आज भी पाकिस्तान की फ़ौज एक बड़ा ख़तरा बनी हुई है.
अगर इंडिया ये लड़ाई जीत भी जाए और पाकिस्तान से अपनी शर्तें मनवा ले, तो क्या इससे अमन क़ायम हो जाएगा?
शायद नहीं. जब पाकिस्तान के पास न्यूक्लियर हथियार नहीं थे तब भी वो 1965 और 1971 की शिकस्त से नहीं सुधरा. अब तो उसकी मिलिटरी पॉलिसी, उसकी क़ौमी पहचान और जियोपॉलिटिक्स का रवैय्या और ज़्यादा सख़्त हो चुका है. ऐसे में ये उम्मीद करना कि एक और हार सब कुछ बदल देगी संभव नहीं है.
क्या चीन इस झगड़े में दख़ल दे सकता है?
अगर इंडिया पाकिस्तान की ज़मीन पर क़ब्ज़े के क़रीब पहुंचा, तो चीन ज़रूर कोई न कोई क़दम उठाएगा—आर्थिक, सियासी, या शायद फ़ौजी भी. चीन नहीं चाहेगा कि इंडिया और ज़्यादा असर वाला मुल्क बने. यही दुनिया की हक़ीक़त है—जो ताक़तवर मुल्क होते हैं वो अपने पड़ोसी को बग़ैर रोकटोक मज़बूत नहीं होने देते.
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