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26 March 2024डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
आखिरकार पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई और पीएमएलएन के नेता शहबाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन गए। पिछले कुछ समय से पाकिस्तान में जो घटनाक्रम चल रहे थे उससे साफ हो गया था कि अब इमरान सरकार अंतिम सांसें ले रही है और इसका भी हस्र पाकिस्तान के अब तक के इतिहास के अनुसार ही होगा। यह सही है कि इतिहास अपने आप को दोहराता है। खासतौर से पाकिस्तान के मामले में यह साफ है।
धर्म के आधार पर पाकिस्तान का गठन हमसे ठीक एक दिन पहले 14 अगस्त, 1947 को हुआ और इसे दुर्भाग्यजनक ही कहा जाएगा कि धर्म और संप्रदाय पर बना पाकिस्तान 75 साल में ऐसा प्रधानमंत्री नहीं दे सका जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया हो। किसी ना किसी प्रकार से उसे अपने कार्यकाल के बीच में ही सत्ता गंवानी पड़ी। यह भी साफ हो जाना चाहिए कि शहबाज शरीफ की कुर्सी भी दूर-दूर तक सुरक्षित नहीं लगती है। जैसी की संभावना थी और जो सही भी हो गई कि शहबाज शरीफ को शपथ दिलाने से पहले ही राष्ट्रपति अल्बी की तबीयत बिगड़ गई। यह कोई नई बात नहीं है बल्कि राजनीतिक विश्लेषक पहले से ही अंदाज लगा रहे थे कि इमरान अपनी हारी बाजी में अंतिम प्रयास राष्ट्र्पति को हथियार के रूप में करेंगे और किया भी पर सत्ता गंवानी पड़ी।
आखिर क्या कारण है कि आजादी के 75 साल में भारत में लोकतंत्र दिन-प्रतिदिन मजबूत होता जा रहा है। लोकतांत्रिक मूल्यों की कदर है। लोगों का लोकतंत्र में लगातार विश्वास बढ़ता गया। दो कदम आगे बढ़कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर असहिष्णुता और सरकार का लाख विरोध करने वालों की मुखरता में भी कोई कमी नहीं आई है। यहां रहकर हिन्दुस्तान के टुकड़े होने के नारे सरेआम लगाते हैं, पर यहां की माटी का कमाल है कि लोकतंत्र यहां आज भी हरा-भरा है।
ठीक इसके विपरीत मुस्लिम राष्ट्र होने के बावजूद पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान से लेकर 19 वें प्रधानमंत्री इमरान खान तक एक भी तो ऐसा उदाहरण नहीं मिलता कि किसी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा किया हो। चाहे सेना द्वारा चाहे कोर्ट द्वारा या हाल ही में अविश्वास प्रस्ताव द्वारा पाकिस्तान में प्रधानमंत्रियों को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया जाता रहा है। सत्ता लोलुपता ही ऐसी है कि भले आज शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री बन गए हों पर लोग उनकी कुंडली खंगालने लगे हैं। यही कुंडली उन्हें मौका मिलते ही बाहर का रास्ता दिखाने के काम में आएगी। आखिर सत्ता संघर्ष का ही परिणाम है कि 75 साल में पाकिस्तान एक से दो राष्ट्र यानी कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में बदल चुका है।
सवाल यह है कि पाकिस्तान में 75 सालों में एक भी प्रधानमंत्री बाइज्जत अपना कार्यकाल पूरा क्यों नहीं कर पाया। क्या पाकिस्तान में लोकतांत्रिक व्यवस्था केवल दिखावा मात्र है और राष्ट्र्पति या सेनाध्यक्ष जिसको भी जब मौका मिलता है येन केन प्रकारेण सत्ता संघर्ष को हवा देकर प्रधानमंत्री की कुर्सी को डांवाडोल कर देता है। इमरान ने आखिरी दम तक राजनीति के साम, दाम, दंड भेद अपनाने के प्रयास किए। यहां तक कि बाहरी ताकतों का हवाला देकर विपक्षियों को नाकाम करने की कोशिश की पर आखिर मेें सब हथियार भोथरे साबित हुए। उन्हें रातोंरात इस्तीफा देने के साथ अपना सरकारी बंगला खाली करना पड़ा। यह कोई इमरान खान के साथ ही हुआ हो ऐसा नहीं है, यह पाकिस्तान का 75 साल का इतिहास है जो थोड़े-थोड़े अंतराल में अपने को दोहरा रहा है।
पाकिस्तानी नेताओं को एक बात साफ हो जानी चाहिए कि कश्मीर का राग अलापने से सत्ता में बने रहेंगे, यह कोई गारन्टी नहीं है। नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी सत्ता संभालते ही कश्मीर राग अलापना शुरु कर दिया। कश्मीर राग अलापने या कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को प्रोत्साहित कर अधिक दिनों तक राजनीतिक लाभ नहीं ले सकते। बल्कि देखा जाए तो कश्मीर राग अलाप कर पाकिस्तानी नेता सेना को ही सशक्त करते हैं और इसका खामियाजा उन्हें देर सबेर भुगतना पड़ता है।
आज तो कश्मीर के हालात काफी बदल गए हैं। अलगाववादियों की हिम्मत जवाब दे गई है तो अब पाकिस्तान को पीओके की चिंता सताने लगी है। कश्मीर में धारा 170 हटाने और हालात में तेजी से सुधार का प्रयास ही है कि लाख विरोध के बावजूद पाकिस्तान को दुनिया के देशों में भारत के खिलाफ समर्थन देने वाला नहीं मिला। यह दुनिया के देशों में भारत की मजबूत उपस्थिति को भी दर्शाती है।
कश्मीर राग अलापने या भारत विरोध से सरकारें चलने वाली नहीं है, यह पाकिस्तान के सत्ताधीशों को समझना होगा। नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी शपथ लेते ही यह गलती की है। पिछले सालों में जिस तरह से पाकिस्तान हर मोर्चे पर विफल रहा है और आतंकवादी गतिविधियों के कारण दुनिया के देशों से अलग-थलग होकर आर्थिक बदहाली से गुजर रहा है, ऐसे में पाकिस्तान के नुमांइदों को अपने घर को सुधारने की ओर ध्यान देना होगा। अन्यथा पाकिस्तान का भविष्य अंधकारमय रहेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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14 April 2022
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