आज भी जिंदा है अमृता प्रीतम की रूह
आज देश अमृता प्रीतम को याद कर रहा है : भारतीय उपन्यासकार, निबंधकार और पंजाबी की पहली प्रमुख महिला कवयित्री : जिन्होंने मोहब्बत, जुदाई और औरत की आज़ादी को अपनी कलम से अमर कर दिया : आज उनकी जयंती है : 31 अगस्त 1919 में गुजरांवाला, पकिस्तान में जन्मीं अमृता प्रीतम ने बंटवारे का दर्द अपनी रचनाओं में दर्ज किया : उनकी मशहूर कविता अज्ज आखां वारिस शाह नूं आज भी भारत-पाकिस्तान की सरहदों पर बिखरे दर्द को बयां करती है : विभाजन के वक़्त अमृता और उनका परिवार दिल्ली में आ बसा था ; अमृता प्रीतम सिर्फ कवयित्री ही नहीं : बल्कि एक आवाज़ थीं समाज की रूढ़ियों के खिलाफ, महिलाओं की स्वतंत्रता के लिए और इंसानियत के हक़ में ; उनके शब्द : मैं तैनूं फ़िर मिलांगी ; आज भी मोहब्बत के सबसे खूबसूरत इज़हार माने जाते हैं : अमृता प्रीतम ने लम्बी बीमारी के बाद 31 अक्टूबर 2005 को अपने प्राण त्यागे थे : वे 86 साल की थीं और दक्षिणी दिल्ली के हौज़ ख़ास इलाक़े में रहती थीं : अमृता प्रीतम को पद्म विभूषण और ज्ञानपीठ जैसे सम्मान मिले : लेकिन असली पहचान उन्हें पाठकों के दिलों में मिली : आज उनकी जयंती पर साहित्य जगत कह रहा है : अमृता सिर्फ कवयित्री नहीं थीं वो एक एहसास थी : और रहेंगी