राज्यपालों का राज्य सरकारों से विवाद अप्रिय होता जा रहा है
Governors

पवन के. वर्मा 

किसी शायर ने लिखा है : ‘हम उनकी याद में अक्सर उन्हीं को भूल गए!’ कभी-कभी मुझे लगता है कि यह हमारे लोकतंत्र के बारे में सच है। हम इसकी प्रशंसा करते हैं, लेकिन इसी के सिद्धांतों को भूल जाते हैं। इसका एक उदाहरण विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपालों द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका है।

यह किसी एक पार्टी का एकाधिकार नहीं रहा है। कांग्रेस सरकारों ने इसे खुलेआम किया और 2014 के बाद भाजपा भी इससे अलग नहीं रही है। यह दु:खद है, क्योंकि हम उम्मीद करते हैं कि जैसे-जैसे लोकतंत्र विकसित होगा, इसकी कई विकृतियां ठीक हो जाएंगी, आगे नहीं बढ़ेंगी।

संविधान के अनुच्छेद 152 से 160 के तहत राज्यपालों की शक्तियों और भूमिका को परिभाषित किया गया है। इनके तहत राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, वह दलगत राजनीति से ऊपर होता है तथा संविधान और कानून के संरक्षण के लिए काम करता है।

हालांकि, चूंकि राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करते हैं, इसलिए कई राज्यपाल सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा नियुक्त होने के नाते उसके प्रतिनिधि के रूप में व्यवहार करते हैं। राज्यपालों द्वारा अपनी शक्तियों के दुरुपयोग का एक उदाहरण विधानसभाओं द्वारा विधिवत पारित विधेयकों की मंजूरी में देरी करना है।

तमिलनाडु, बंगाल, केरल, पंजाब, कर्नाटक, दिल्ली जैसे विपक्ष-शासित राज्यों में इस प्रवृत्ति ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। कांग्रेस-शासित कर्नाटक में, राज्यपाल थावरचंद गहलोत- जो अपनी नियुक्ति से पहले भाजपा-संघ के विश्वासपात्र सदस्य थे- ने राज्य की विधानसभा द्वारा पारित किए 11 विधेयकों को यह कहकर लौटा दिया है कि इन्हें और स्पष्ट किया जाए।

द्रमुक की सरकार वाले ​तमिलनाडु में राज्यपाल आरएन रवि ने 31 अक्टूबर 2023 से 28 अप्रैल 2024 के बीच विधानसभा द्वारा पारित 12 विधेयकों को मंजूरी नहीं दी। केरल में, आरिफ मोहम्मद खान ने 7 विधेयकों को दो साल तक मंजूरी नहीं दी, और बाद में उन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दिया। पश्चिम बंगाल में टीएमसी का दावा है कि राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने 8 विधेयकों को मंजूरी नहीं दी है। ‘आप’ शासित पंजाब में बनवारी लाल पुरोहित ने 4 विधेयक रोके हुए हैं।

संविधान के अनुच्छेद 200 के अनुसार विधेयक के लिए राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक है। राज्यपाल उनमें संशोधन या पुनर्विचार का सुझाव दे सकते हैं, लेकिन उन्हें ऐसा ‘जितनी जल्दी हो सके’ करना चाहिए। हालांकि, अगर विधानसभा राज्यपाल के सुझावों को ध्यान में रखते हुए विधेयक को फिर से पारित करती है, या उसे उसके मूल रूप में कायम रखती है, तब भी राज्यपाल ‘उस पर स्वीकृति नहीं रोक सकते’। राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ प्रेषित करने के लिए सुरक्षित रख सकते हैं, पर केवल तभी, जब प्रस्तावित कानून ‘उच्च न्यायालय की शक्तियों से वंचित’ होगा।

नवंबर 2023 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया। तमिलनाडु और केरल के मामले में, कोर्ट ने तीखे शब्दों में पूछा कि राज्यपाल दो से तीन साल तक विधेयकों को रोककर क्यों बैठे रहते हैं? कोर्ट ने ‘गंभीर चिंता’ जताते हुए कहा राज्यपाल ‘बिना किसी कार्रवाई के किसी विधेयक को अनिश्चित काल तक रोक नहीं सकते।’

ऐसा करने पर ‘राज्य के अनिर्वाचित प्रमुख के रूप में राज्यपाल विधिवत रूप से निर्वाचित विधायिका के कामकाज को वीटो करने की स्थिति में आ जाएंगे।’ न ही राज्यपाल, एक बार सहमति रोक लेने के बाद, विधायिका द्वारा पुनः अधिनियमित विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई हमारी संघीय राजनीति को प्रभावित करती है, जो कि संविधान का एक बुनियादी ढांचा है।

सच तो यह है कि कई राज्यों में राज्यपाल राज्य सरकार के अनिर्वाचित विरोधी बन गए हैं और अपनी विवेकाधीन शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं। यह सार्वजनिक बहस अब अप्रिय हो गई है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने हाल ही में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ‘लेडी मैकबेथ’ कहा और उनके साथ सार्वजनिक मंच साझा करने से इनकार कर दिया

दिल्ली के उपराज्यपाल ने चुनी गई सरकार की आलोचना करते हुए लेख लिखा। तमिलनाडु और केरल के राज्यपालों का अपनी सरकारों से सार्वजनिक विवाद चल रहा है। चेन्नई में राज्यपाल ने इस सप्ताह कहा कि ‘धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी अवधारणा है’ और ‘भारत को इसकी आवश्यकता नहीं’।

उन्होंने उसी संविधान को अस्वीकार कर दिया, जिसके आधार पर उन्होंने शपथ ली थी। जबकि संविधान कोई निष्प्राण दस्तावेज नहीं, जिसकी गलत व्याख्या की जाए। हमें उसके इरादों और भावनाओं को भूलना नहीं चाहिए।

कई राज्यों में राज्यपाल राज्य सरकार के अनिर्वाचित विरोधी बन गए हैं और अपनी विवेकाधीन शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं। वे विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों की मंजूरी में देरी करते हैं। यह सार्वजनिक बहस अब अप्रिय हो गई है ।

 

Dakhal News 28 September 2024

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