खेलों में बहुत कम से ही हम बहुत खुश क्यों हो जाते हैं?
Why  we become very happy with little in sports

पवन के. वर्मा 

स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस ओलिम्पिक में हमारे एथलीटों के प्रदर्शन के लिए उन्हें बधाई दी। लेकिन मैं अचरज करता हूं कि क्या खेलों में संतुष्टि की हमारी सीमा अस्वीकार्य रूप से कम नहीं है? पेरिस ओलिम्पिक में, भारत ने एक रजत और पांच कांस्य पदक जीते, लेकिन एक भी स्वर्ण नहीं जीता। 140 करोड़ से अधिक की आबादी वाले देश के लिए यह एक निराशाजनक प्रदर्शन है।

इसका मतलब है लगभग 25 करोड़ लोगों पर एक पदक! पदक तालिका में हम 84 प्रतिभागी देशों में से 71वें स्थान पर रहे। अमेरिका के पास 30 स्वर्ण सहित 126 पदकों की सबसे अधिक संख्या थी। चीन 96 पदकों के साथ दूसरे स्थान पर था, लेकिन उसके पास भी उतने ही स्वर्ण थे। विकासशील देशों में, ब्राजील ने 20 पदक जीते और केन्या ने 11... 1900 से, यानी जब से आधुनिक ओलिम्पिक शुरू हुए हैं- भारत ने कुल 41 पदक ही जीते हैं।

खेलों में हमारे लगातार खराब प्रदर्शन के क्या कारण हैं? सबसे पहली बात तो यह है कि मामूली सुधारों के बावजूद, हमारा खेल बुनियादी ढांचा पूरी तरह से अपर्याप्त है। 2008 तक, चीन में 3000 खेल संस्थान थे; जबकि 2024 में हमारे पास केवल 150 ही हैं। इनमें से भी केवल 26 सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के स्वामित्व में हैं।

ओलिम्पिक के स्तर तक खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए बच्चों को कम उम्र में ही उच्चतम गुणवत्ता के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। हमारा पहला राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय 2018 में मणिपुर के इम्फाल में स्थापित किया गया था। राष्ट्रीय खेल विकास संहिता को 2017 में अपनाया गया, लेकिन अब भी सभी खेल महासंघों ने इसका अनुपालन नहीं किया है।

प्रशिक्षण की गुणवत्ता भी खराब है और नौकरशाही व लालफीताशाही से ग्रस्त है। यही कारण है कि अभिनव बिंद्रा जैसे साधन-सम्पन्न एथलीट घर पर ही प्रशिक्षण लेना पसंद करते हैं। खेल मंत्रालय को 2020 में पिछले ओलिम्पिक के बाद से 45 करोड़ रुपयों की मामूली वृद्धि मिली है। इसके विपरीत, चीन में 2023 तक देश भर में खेल स्थलों की कुल संख्या 45 लाख से अधिक हो गई थी।

ये सच है कि हमारा खेलो इंडिया कार्यक्रम बढ़ा है, लेकिन इसके तहत खेल के बुनियादी ढांचे के लिए धन का आवंटन तर्क से परे है। उदाहरण के लिए, 8 करोड़ से कम आबादी वाले गुजरात को 426.13 करोड़ मिलते हैं, जबकि 13 करोड़ से अधिक लोगों वाले बिहार को मात्र 20.34 करोड़!

राजनीति और खेल का गठजोड़ भी एक समस्या है। महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न करने और उन्हें डराने-धमकाने के आरोपी, भाजपा के बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह भारतीय कुश्ती महासंघ को अपनी निजी जागीर समझते थे और जब कुश्ती सुपरस्टार विनेश फोगाट ने उनका विरोध किया तो उनके साथ इतना बुरा व्यवहार किया गया कि इससे उनका मनोबल टूट गया होगा। कई अन्य खेल महासंघों के अध्यक्ष भी राजनेता हैं।

एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल लगातार चार बार अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के अध्यक्ष रहे हैं। टेनिस महासंघ के अध्यक्ष भाजपा सांसद अनिल जैन हैं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओपी चौटाला के बेटे अभय सिंह चौटाला लगातार तीन बार मुक्केबाजी महासंघ के अध्यक्ष रहे।

असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा बैडमिंटन महासंघ के अध्यक्ष हैं। भाजपा के पूर्व सांसद विजय कुमार मल्होत्रा ने तो चार दशकों तक तीरंदाजी महासंघ के अध्यक्ष रहते हुए सारे रिकॉर्ड ही तोड़ दिए! इन राजनेताओं ने हमारे खेलों के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए क्या किया है? क्रिकेट के प्रति हमारे जुनून ने भी अन्य खेलों की उपेक्षा की है।

बीसीसीआई- जिसके महासचिव अमित शाह के बेटे जय शाह हैं- दुनिया भर में सबसे अमीर खेल लीगों में से एक है। 2023 में इसकी कमाई 18,700 करोड़ रुपए थी। इसके विपरीत, हॉकी महासंघ की 2023 में कमाई 86.7 करोड़ रुपए थी। क्रिकेट की छाया में अन्य खेलों का हमारा कौशल अवरुद्ध हो गया है।

आश्चर्य नहीं कि पेरिस के 32 खेल आयोजनों में से हम केवल 16 में प्रतिस्पर्धा कर सके। जबकि चीन ने 30 में प्रतिस्पर्धा की थी। खेल-प्रतिभाओं की पहचान और पोषण के लिए हमारा कैचमेंट एरिया भी सीमित और ज्यादातर शहरी है। देश की आबादी में 2 प्रतिशत और कुल क्षेत्रफल में 1.6 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले हरियाणा ने हमारे 36 प्रतिशत पदक जीते हैं। हरियाणा को बधाई, लेकिन क्या हमने अन्य राज्यों में प्रतिभाओं को खोजने के लिए पर्याप्त काम किया है?

अफसोसनाक तथ्य यह है कि खेलों में बहुत कम से ही हम बहुत अधिक खुश हो जाते हैं। इस मौके पर मुझे एक शे’र याद आता है : ‘कितने जनम से प्यासे होंगे यारो सोचो तो शबनम का कतरा भी जिनको दरिया लगता है!’

Dakhal News 17 August 2024

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