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एन. रघुरामन
हाल ही में जब मैंने एक विदेशी पत्रिका में ‘रोमांटिसाइजिंग यॉर रेफ्रिजरेटर’ शीर्षक से एक आर्टिकल पढ़ा तो मुझे एक पुरानी तमिल कहावत याद आ गई कि “कपड़े ऐसे पहनें जो दूसरों को सुहाएं और खाना ऐसा खाएं जो आपके शरीर को सुहाए’।
वो इसलिए क्योंकि यह आर्टिकल इस बारे में था कि कैसे लोग आजकल अपने फ्रिज को सजावटी सामान से जमा रहे हैं या सीख रहे हैं कि कैसे रेफ्रिजरेटर के दरवाजे पर मिल्क या जूस के कार्टन जमाएं, साथ ही इसमें ये कहा कि क्यों लोग इन दिनों ऐसे रेफ्रिजरेटर खरीदते हैं, जिनके दोनों तरफ दरवाजे खुलें, ताकि सामान तीन जगहों पर फैलाकर रख सकें- बाएं दरवाजा, दायां दरवाजा और खुद फ्रिज में! और यह “फ्रिजस्केपिंग’ कहलाता है, जो दो शब्दों का मेल है- ‘फ्रिज, कीपिंग।’
तब मुझे अहसास हुआ कि लोग सेहत या स्वाद के लिए नहीं बल्कि इंस्टाग्राम रील्स बनाने के लिए अपनी किचन डिजाइन कर रहे हैं और खाने-पीने का सामान ला रहे हैं, फिर भले ही वह सेहत के लिए ठीक हो या नहीं! वे यह दिखाना चाहते हैं कि वो कौन-सी महंगी खाने-पीने की चीज इस्तेमाल करते हैं, वो भी रोजमर्रा में। कई लोग, जो वीकेंड पर कहीं बाहर जाने, नए कपड़े, छुट्टियों की तस्वीरों आदि नहीं दिखा पाते, उनके लिए सोशल मीडिया पर लोगों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए ये कंज्यूमेबल्स सस्ता विकल्प है।
ऐसा नहीं है कि हमारी मांओं ने कभी किचन नहीं जमाया। हॉरलिक्स की वो आधा किलो की कांच की बोतल मेरी मां की पसंदीदा थी। हॉरलिक्स खत्म होने के बाद वह बोतल खाने का दूसरा सामान रखने के काम आती थी। इसके अलावा घर में रीफिल करने वाला ऐसा कोई दूसरा आइटम नहीं होता था।
वह नियमित तौर पर वो बोतल जमा करतीं और किचन का सारा सामान उनमें जमाकर रख देतीं। इन बोतलों को हर पंद्रह दिन में मां धोती थीं ताकि ये धुंधली न दिखें। मां यह सब इसलिए नहीं करती थी क्योंकि वह “शेल्फकेपिंग’ करना चाहती थीं या किसी को दिखाने के लिए तस्वीरें लेना चाहती थीं, बल्कि इसे सुविधाजनक बनाने के लिए करती थीं, ताकि बच्चों समेत घर का कोई भी सदस्य किचन में आकर उन पारदर्शी बोतल में रखा सामान देख सके।
दिलचस्प बात थी कि हमारे घर अलग-अलग मसाले जैसे मिर्ची-धनिया पाउडर, जीरा, हल्दी आदि रखने के लिए कभी भी छह या नौ खाने वाला मसाले का डिब्बा नहीं रहा। हॉरलिक्स की बोतल शेल्फ में पीछे रखते थे, जबकि सामने किसान जैम की बॉटल्स रखते थे। उन दिनों खाली बोतलें और एक ही रंग के प्लास्टिक के ढक्कन अलग-अलग बेचना अच्छा बिजनेस था।
मैं हमेशा से चाहता था कि हमारे बच्चे अपनी अलमारी से वैसी मोहब्बत रखें! वो इसलिए क्योंकि मैंने हमेशा अनुभव किया है कि अगर गलती से मैंने अपनी बेटी की अनुपस्थिति में उसकी अलमारी खोल दी, तो अलमारी मुझ पर चीख पड़ती।
अगर इसे भाषा में ढाल पाते, तो इसमें से चंद टी-शर्ट निकालते ही जमीन पर गिरकर कहतीं, ‘अच्छा हो गया, आपने डोर खोला, दम घुट रहा था अंदर।’ जब मैंने बेटी को मारी-कॉन्डो के वीडियो दिखाए, जिनके लाखों फॉलोअर्स हैं, जहां वो अलमारी को बिना अस्त-व्यस्त किए साफ रखना बताती हैं, तो मेरे लिए उसकी अलमारी नहीं छूने का फरमान जारी हो गया।
दिलचस्प है कि आज के बच्चे हमें सिखा रहे हैं कि कैसे ‘फ्रिजस्केपिंग’ करें! वे नहीं जानते कि हम उस जमाने के हैं, जहां हमें यकीन दिलाया गया कि अगर घर में सफाई रहती है, तभी लक्ष्मी निवास करती हैं। इसलिए हमने दवाओं का दराज, किताबों की अलमारी, किचन शेल्फ, दराज व सभी सदस्यों द्वारा इस्तेमाल एक अलमारी को गंदा या अस्त-व्यस्त नहीं रखा। यही कारण था कि उन दिनों हमारी अलमारियां अच्छे से सांस लेती थीं।
फंडा यह है कि सोशल मीडिया की जगह हमारे घर के दराजों और दरवाजों से बाहर होनी चाहिए, नहीं तो आप अपनी निजता मोबाइल स्क्रॉल करते रहने वालों के हवाले कर देंगे, जो फिर हर पहलू पर आपके जीवन को आदेश देंगे। इसलिए सावधान रहें।
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