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4 October 2024डेरेक ओ ब्रायन
16 जनवरी, 2012 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र सरकार पर दबावपूर्ण संघवाद की नीति अपनाने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि वित्तीय आवंटन की शक्तियों पर एकाधिकार कायम करके राज्यों को मातहत की हालत में लाया जा रहा है और इससे राज्यों के संवैधानिक अधिकार घटे हैं।
वहीं इस स्तम्भकार को यह भी याद है कि 2015 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद के अपने कमरे में लगभग आधा दर्जन साथी सांसदों को दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया था। हमारे उदार मेजबान एक अच्छी खबर का जश्न मनाना चाहते थे : 14वें वित्त आयोग ने राज्यों को विभाज्य टैक्स-पूल का हस्तांतरण 32% से बढ़ाकर 42% करने की सिफारिश की थी। हम सभी ने इसे संघवाद की बड़ी जीत के रूप में देखा था। लेकिन जेटली के नेता और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री के विचार कुछ और थे। संघवाद को क्षति पहुंचाने वाला : उपकर (सेस)।
जैसा कि वाणिज्य में स्नातक करने वाला कोई भी व्यक्ति आपको बता सकता है, उपकर विभाज्य पूल का हिस्सा नहीं हैं; यानी उनके माध्यम से एकत्र किया गया धन राज्य सरकारों के साथ साझा नहीं किया जाता है। उपकरों को केंद्र सरकार किसी खास उद्देश्य के लिए धन जुटाने के लिए लागू करती है।
केंद्र सरकार वर्तमान में जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर लगाती है, साथ ही स्वास्थ्य और शिक्षा, सड़क और बुनियादी ढांचा, कृषि और विकास, स्वच्छ भारत, निर्यात और कच्चे तेल आदि पर उपकर हैं। 2012 में, उपकर केंद्र सरकार के कुल कर-राजस्व का 7% था।
2015 में, यह बढ़कर 9% हो गया। 2023 में, उपकरों ने कुल कर-राजस्व में 16% का योगदान दिया। 2019 से 23 के बीच, केंद्र सरकार ने उपकर के रूप में 13 लाख करोड़ रुपए एकत्र किए हैं। इसमें जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर शामिल नहीं है। पिछले पांच वर्षों में उसने कच्चे तेल पर उपकर के रूप में 84,000 करोड़ रुपए एकत्र किए हैं।
केंद्र सरकार के कुल कर-राजस्व में उपकरों का हिस्सा बढ़कर तिगुना हो गया है। 2011 में यह 6% था, 2021 में 18% हो गया। उपकर और अधिभार (सरचार्ज) में इस वृद्धि ने करों के विभाज्य पूल में कमी ला दी है। विभाज्य पूल 2011 में सकल कर-राजस्व के 89% थे, जो 2021 में घटकर 79% हो गए।
यह स्थिति तब है, जब 14वें वित्त आयोग ने अनुशंसित राज्यों को कर-हस्तांतरण में 10% की वृद्धि कर दी थी। कैग की एक रिपोर्ट ने उजागर किया कि 2018-19 में केंद्र सरकार ने भारत की समेकित निधि (सीएफआई) में विभिन्न उपकरों के माध्यम से एकत्र 2.75 लाख करोड़ रुपयों में से 1 लाख करोड़ रुपए रोक लिए।
वित्त-वर्ष के दौरान एकत्र किए गए सड़क और बुनियादी ढांचा उपकर के 10,000 करोड़ रुपए न तो संबंधित रिजर्व फंड में स्थानांतरित किए गए और न ही उस उद्देश्य के लिए उपयोग किए गए, जिसके लिए उपकर एकत्र किया गया था।
इससे भी चिंताजनक बात यह है कि पिछले एक दशक में कच्चे तेल पर उपकर के रूप में एकत्र किए गए 1.24 लाख करोड़ रुपए निर्दिष्ट रिजर्व फंड (तेल उद्योग विकास बोर्ड) में स्थानांतरित नहीं किए गए और सीएफआई में ही रखे गए। रिजर्व फंड्स के न बनने या उनका ठीक से उपयोग न होने से उपकरों और शुल्कों का उपयोग संसद द्वारा निर्धारित विशिष्ट उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता है।
उपकर बढ़ाने के बावजूद पिछले 10 वर्षों में राजस्व में मामूली वृद्धि ही हुई है- 2014 में यह जीडीपी की 8.8% थी तो 2024 में 9.6% हो गई यानी 1 प्रतिशत से भी कम। हाल ही में, कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने एनडीए और विपक्ष शासित राज्यों के आठ मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर चिंता जताई कि उच्च प्रति व्यक्ति जीएसडीपी वाले राज्यों को अनुपात से कम कर-आवंटन दिया जाकर उन्हें उनके अच्छे आर्थिक प्रदर्शन के लिए दंडित किया जा रहा है।
80 के दशक की शुरुआत में सरकरिया आयोग ने सिफारिश की थी कि उपकर और सरचार्ज एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए और सीमित समय के लिए लगाए जाने चाहिए। 2010 में पुंछी आयोग ने कहा था कि उपकर और सरचार्ज का विस्तार करना वित्त-आयोगों की सिफारिशों को कमजोर करने के बराबर है, क्योंकि इससे राज्य केंद्रीय कर-राजस्व में उनके उचित हिस्से से वंचित रह जाते हैं। लेकिन उपकरों की संख्या और मात्रा बढ़ती जा रही है। जो राज्य वैचारिक रूप से सत्तारूढ़ व्यवस्था का विरोध करते हैं, उन्हें अक्सर उनके उचित हिस्से से वंचित कर दिया जाता है।
उपकरों के माध्यम से एकत्र धन राज्य सरकारों के साथ साझा नहीं किया जाता है। उपकरों को केंद्र किसी खास उद्देश्य के लिए धन जुटाने के लिए लागू करता है। लेकिन इस धन का अपने प्रयोजन के लिए उपयोग नहीं किया जा रहा है।
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27 September 2024
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