सामुदायिक हिंसा का बढ़ता खतरा
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भारत में हिन्दुओं पर सामुदायिक हिंसा की बढ़ती घटनाओं ने सरकार और देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। अपने ही देश में बहुसंख्य हिन्दू हिंसक घटनाओं का शिकार हो रहा है। वैसे सामुदायिक और नस्लीय हिंसा पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। लेकिन भारत के आसपास पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हमले और हिंसा बढ़ गई हैं। नेपाल जैसे देश में भी रामनवमी जुलूस पर हिंसा को अंजाम दिया गया। भारत के पड़ोसी इस्लामिक देश में हिन्दुओं की स्थिति बद से बदतर है, जबकि ये कभी भारत के हिस्सा थे। यहाँ हिन्दुओं पर लगातार धार्मिक उत्पीड़न और हिंसा की घटनाएं भारत की चिंता को बढ़ा दिया है। आतंकवाद से लड़ रहे भारत के सामने सामुदायिक हिंसा की घटनाएं बड़ी चुनौती बन रहीं हैं। सबसे अहम मुद्दा यह है कि अपने देश में ही हिन्दू बाहुल्य होने के बाद भी वह सामुदायिक हिंसा का शिकार बन रहा है। जबकि चीन में उइगर मुसमानों का दमन किसी से छुपा नहीं है, लेकिन चीन के खिलाफ पाकिस्तान, बांग्लादेश खामोश हैं। कश्मीर के पहलगाम में हुआ नरसंहार इसका ताज़ा उदाहरण है। भारत में इस तरह की हिंसा के पीछे वोट बैंक के लिए राजनीतिक तुष्टिकरण सबसे बड़ी समस्या है।
 
भारत में हिन्दुओं पर हिंसक हमले इस्लामिक आतंकवाद की एक सोची समझी रणनीति है। पाकिस्तान, बांग्लादेश में हिंदुओं का सफाया हो रहा है, जबकि अफगानिस्तान में हिन्दुओं की आबादी गिनती पर आ गईं है। भारत में इस तरह के सामुदायिक और धार्मिक दंगे भड़काने के लिए पाकिस्तान मूल रूप से जिम्मेदार है। लेकिन हम इस तरह की बात कर अपनी जिम्मेदारी से बच भी नहीं सकते हैं। भारत इस्लामिक आतंकवाद से तो हमेशा से पीड़ित रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में राजनैतिक कारणों और उसके फैसलों से देश में सामुदायिक हिंसा, प्रदर्शन और पत्थरबाजी की घटनाएं बढ़ गईं हैं। दोनों समुदायों में एक दूसरे के प्रति नफरत और डर का माहौल पैदा हुआ है। इस तरह की सामुदायिक हिंसा के पीछे सामाजिक, आर्थिक, राजनीति, सोशलमीडिया और धार्मिक कारण मुख्य हैं, जिसकी वजह से ऐसी घटनाएं देश के धार्मिक और सांप्रदायिक तानेबाने को विभाजित करती दिखती हैं।
 
जम्मू -कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जिस तरह निर्दोष पर्यटकों का नरसंहार किया, वह मानवता के खिलाफ है। इस हिंसा में 26 लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए। आतंकवादियों ने सिर्फ हिन्दुओं को निशाना बनाया और उनका धर्म पूछ कर उन्हें गोली मारीं । हालांकि की कश्मीर में इस नरसंहार को लेकर काफी गुस्सा देखा जा रहा है। इस बात पर भी गुस्सा है कि हमले में सिर्फ हिन्दू मारे गए। लोगों का कहना है कि पर्यटकों की जान बचाने के लिए एक मुस्लिम भी मारा गया। अब पूरा कश्मीर पीड़ित परिवारों के साथ है। देश के कई हिस्सों में मुस्लिम संस्थाओं ने प्रदर्शन कर पाकिस्तान के खिलाफ नारेबाजी भी की है।
 
इस साजिश के पीछे हाल में पाकिस्तान आर्मी चीफ जनरल कियानी की तरफ दिया गया वह उकसाऊ बयान भी अहम माना जा रहा है, जिसमें उन्होंने भारत व हिन्दुओं के खिलाफ भड़काने वाला बयान दिया था। कियानी के बयान के ठीक कुछ दिन बात पहलगाम में आतंकी हमला हुआ है, जिसमें पर्यटकों का धर्म पूँछ कर नरसंहार किया गया। यह पाकिस्तान की सोची समझी रणनीति है, क्योंकि वह भारत से सीधी जंग में कभी नहीं जीत सकता है। ऐसी स्थिति में वह हिन्दुओं को निशाना बनाकर भारतीय मुसलमानों का मसीहा बनना चाहता है। खैबर पख्तून में बलोच आर्मी की तरफ से किए ट्रेन हाईजैक के पीछे वह भारत का हाथ मानता है। जिसकी वजह से वह बौखलाया था और बदले के लिए बेताब था।  
 
उधर कश्मीर में धारा 370 खत्म होने के बाद कश्मीर आहिस्ता-आहिस्ता विकास की मुख्यधारा में लौट रहा है। आतंकी घटनाएं कम हुईं हैं। पर्यटकों की आमद बढ़ने लगी है। सेबों की खेती लहलाहने लगी है। यह सब देख पाकिस्तानी फ़ौज में बौखलाहट है जिसकी वजह से वह इस तरह की सामुदायिक हिंसा की साजिश रच रहा है। कश्मीर में सामुदायिक हिंसा की यह पहली घटना नहीं है। आतंकवादियों ने पुलवामा जैसी घटनाओं को अंजाम दिया है। कश्मीर में साल 2019 के बाद धारा 370 लागू होने के बाद यह पहली सबसे बड़ी आतंकी नरसंहार की घटना है। दूसरा अहम कारण ये कि कश्मीर के राजनैतिक और अलगाववादी कभी शान्ति और विकास नहीं चाहते हैं। क्योंकि धारा 370 खत्म होने के बाद उनकी तमाम स्वतंत्रता जहाँ बाधित हुईं, वहीं आर्थिक नुकसान हुआ है। वहां के राजनेताओं और अलगाववादियों का पाकिस्तान प्रेम दुनिया में जगजाहिर है। इसके बावजूद धारा 370 का खात्मा, तीन तलाक कानून और वक्फ संशोधन जैसे राजनैतिक फैसले इस आग में घी का काम किया है। हालांकि यह आम मुसलमानों और कश्मीरियों की सोच नहीं है। यह सिर्फ अलगाववादियों की सोच है। 
 
इस घटना में केंद्र और राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकतीं। जब वहां काफी तादात में पर्यटकों की आमद हो रहीं थी तो पर्यटकों की सुरक्षा के लिए सेना और राज्य पुलिस के जवानों की तैनाती क्यों नहीं की गईं। कियानी के विभाजनकारी संदेश को हमारी सरकार, ख़ुफ़िया एजेंसिया और सुरक्षा एजेंसिया नहीं समझ पाईं। ऐसे संवेदनशील पर्यटक स्थलों पर सुरक्षा के सख्त इंतजाम होने चाहिए थे। राज्य में इस तरह की घटनाएं पर्यटन उद्योग और उसकी संभावनाओं पर पानी फेरती हैं। हम अपनी चूक और नाकामियों से नहीं बच सकते। यह गंभीर मंथन का विषय है। कश्मीर के पर्यटन स्थलों पर हमें सुरक्षा व्यवस्था को सख्त रखना होगा। भविष्य में ऐसी स्थिति से बचने के लिए वहां सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होंगे। यह हमला भारत की आत्मा पर है यह राजनीति का वक्त नहीं है। सारा देश गुस्से में है। रणनीति बनाकर पाकिस्तान और आतंकवाद को सबक सिखाने की जरूरत है।
 
कश्मीर के पूर्व  बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ संशोधन कानून के विरोध में हिन्दुओं को जिस तरह निशाना बनाया गया, वह किसी से छुपा नहीं है। इसके अलावा रामनवमी जुलूस पर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश भी सुनियोजित तरीके से हिन्दुओं पर हमले हुए। उत्तर प्रदेश में संभल किसी से छुपा नहीं है। वहां किस तरह हिन्दुओं का उत्पीड़न हुआ, उसे कौन नहीं जानता। हिंसक हमलों में उनकी संपत्तियों और मंदिरों को नष्ट किया गया।  पश्चिम बंगाल राज्य में हिन्दुओं को पलायित होना पड़ा। पीड़ित हिन्दू बंगाल पुलिस की मदत के लिए चिल्लाते रहे, लेकिन कोई सुरक्षा नहीं मिली। बाद में बंगाल उच्च न्यायालय के आदेश के बाद हिंसा प्रभावित इलाके में केंद्रीय बल पंहुचा। यही हाल बांग्लादेश का है। भारत ने पाकिस्तान से अलग कराया उसी बांग्लादेश में पाकिस्तान की सह पर अतिवाद पांव पसार रहा है। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद हिन्दुओं के घरों, व्यवसायों और मंदिरों पर बड़े पैमाने पर हमले हुए। यूएन की एक रिपोर्ट में बताया गया कि हिन्दुओं को लक्षित कर हमले किए, जिसमें 1400 लोगों की मौत हुईं। मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश में साल 2024 की हिंदुओं के खिलाफ 2200 हिंसक घटनाएं दर्ज की गईं।
 
भारत -पाकिस्तान के विभाजन के बाद पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी 23 फीसदी थी, अब 3.7 फीसदी रह गईं। लगातार वहां हिंदुओं की आबादी घट रहीं है। हालांकि भारत में मुसलमानों के खिलाफ कुछ लिंचिंग की घटनाएं हुईं, लेकिन जैसा हिन्दुस्थान में हिन्दुओं के साथ हो रहा है, वैसा नहीं हुआ। वैसे अमेरिका में भी हिन्दुओं और सिखों के खिलाफ नस्लीय हिंसा हुईं है। हिंदुओं के मंदिरों को भी निशाना बनाया गया है। नस्लीय टिप्पणीयां हुईं हैं, लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसी नहीं। हमें इस तरह की सामुदायिक हिंसा से बचना होगा। राजनैतिक लाभ लेने के लिए देश को हिंदू -मुसलमान में बांटना ठीक नहीं। इससे देश की एकता, अखंडता कमजोर होगी। साम्प्रदायिक हिंसा को किसी भी तरीके का राजनैतिक संरक्षण नहीं मिलाना चाहिए। नफ़रती बयानबाजी और सोशलमीडिया पर फ़ैलते भड़काऊ वीडियो और संदेश पर कड़ाई से प्रतिबन्ध लागू होना चाहिए। देश, संसद और उसकी संवैधानिक संस्थाएं जाति, धर्म और समुदाय से सर्वोपरि हैं। हमें उनका सम्मान करना होगा। हमें किसी कानून या बिल से असहमति है तो देश में अदालत और कानून भी है। हिंसा और अपनी ताकत दिखाने के बजाय हमें ऐसी संस्थाओ का सम्मान करना होगा। हमारे लिए देश सर्वोपरि है।
 
Dakhal News 19 May 2025

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