 
									Dakhal News
 31 October 2025
									31 October 2025
									 
								
								आतिशी के बारे में जो राजनीतिक चर्चा चल रही थी, सही निकली। सोमवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद का कार्यकाल सँभालते वक्त आतिशी ने केजरीवाल के नाम का सिंहासन ख़ाली छोड़ा और बग़ल में एक कुर्सी रखकर वहाँ बैठ गईं।
होना तो यह चाहिए कि इन राजनेताओं को अपनी चालें चलने और नित नए समीकरण भिड़ाने के लिए कम से कम पौराणिक पात्रों के उदाहरण देना बंद कर देना चाहिए। क्योंकि खड़ाऊं रखकर राज ज़रूर चलाए जा रहे हैं, लेकिन आज की राजनीति में न तो जिसकी खड़ाऊं रखी जा रही है वो राम है और न ही जो खड़ाऊं रख रहा है, वो भरत।
बात केवल आप पार्टी की ही नहीं है, और भी राजनीतिक दल हैं जहां कोई न कोई किसी न किसी की खड़ाऊं रखकर किसी न किसी प्रदेश का राज चला रहा है। हो सकता है ज्यादातर राज्य सरकारें रिमोट से चलाई जा रही होंगी, लेकिन आतिशी की तरह राम और भरत का उदाहरण देकर तो नहीं ही।
इसके पहले भी कुछ राजनीतिक उदाहरण सामने आए थे जिनमें खड़ाऊं शासन की झलक मिली थी। जे जयललिता को जब जेल हो गई थी तो उन्होंने भी पन्नीरसेलवम को डमी मुख्यमंत्री बनाया था।
तब पन्नीरसेल्वम भी आतिशी की तरह ही जयललिता का सिंहासन ख़ाली छोड़कर बग़ल की कुर्सी पर बैठकर सरकार चलाया करते थे। यदा-कदा जेल से फ़ोन आ जाया करता था तो केवल पन्नीरसेल्वम ही नहीं, पूरा मंत्रिमंडल कुर्सी से खड़ा होकर बात किया करता था।
खैर, चार महीने के लिए ही सही, आतिशी दिल्ली की मुख्यमंत्री बन गईं हैं, लेकिन इतना तय है कि सरकार केजरीवाल ही चलाने वाले हैं। जैसे जेल में बैठकर जयललिता चलाया करती थीं। जैसे मनमोहन सिंह के वक्त सरकार दस, जनपथ से चलाई जाती रही।
हो सकता है उनकी इसी स्वामिभक्ति के कारण उनका नेता पद पर चयन किया गया हो, लेकिन कुर्सी खाली छोड़ते वक्त जो तर्क आतिशी ने दिया वह और भी हैरत कर देने वाला है।
आतिशी ने कहा- जिस तरह भगवान राम वनवास गए थे तब चौदह साल तक उनके छोटे भाई भरत ने राम की खड़ाऊं रखकर राज चलाया था, उसी तरह मैं भी दिल्ली का शासन चलाऊंगी। जब चुनाव में जीतकर केजरीवाल वापस आएँगे तो इसी कुर्सी पर बैठकर फिर से दिल्ली का शासन वे ही चलाएँगे।
 
							
							
							
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 24 September 2024
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