दिल्ली हिंसा के निहितार्थ
bhopal,implications , delhi violence

 

डॉ. रमेश ठाकुर

बुनियादी सवाल यही है कि दिल्ली हिंसा सुनियोजित थी? यह ट्रेलर मात्र है, पिक्चर अभी शेष है? या इसकी नींव राजनीतिक स्वार्थ को ध्यान में रखकर राजनीतिक शास्त्र ने रखी। घटना के बाद ऐसे कुछ सवाल उठ रहे हैं। सवाल उठने भी चाहिए, आखिर ऐसा क्या है जो किस्तों में कुछ अंतराल के बाद राजधानी में ऐसे फसाद होते रहते हैं। तब तो और जब चुनावों की सुगबुगाहट होने लगती हैं। कुछ समय बाद दिल्ली में एमसीडी चुनाव होने हैं। इसलिए कड़ियां आपस में काफी हद तक मेल खाती हैं।

 

राजधानी की हिंसा सुनियोजित थी या नहीं? ये सवाल पुलिस पर छोड़ देते हैं। पर, दूसरे सवाल का जवाब हम खुद खोजेंगे। आखिर कौन सौहार्द्रपूर्ण माहौल में जहर घोल रहा है। 16 अप्रैल की शाम को जब दिल्ली में हिंसा हो रही थी, उसी वक्त सोशल मीडिया पर दो बेहद खूबसूरत तस्वीरें हम सबको दिख रही थीं, जिसमें हनुमान जन्मोत्सव के दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग रैली में शामिल लोगों पर फूल बरसा रहे थे, कोल्ड ड्रिंक और पानी की बोतलों का वितरण कर रहे थे। ये तस्वीरें उत्तर प्रदेश के शामली और नोएडा की हैं। शामली में हिंदू-मुस्लिम भाईचारा काफी समय बाद दिखा।

 

घटना वाला इलाका जहांगीरपुरी दिल्ली का ऐसा आवासीय क्षेत्र है जहां बेहद गरीब तबके लोग रहते हैं, दिहाड़ी-मजदूरी करके अपना पेट पालते हैं, उन्हें राजनीति, दंगा-फसादों से कोई मतलब नहीं। लेकिन हनुमान जन्मोत्सव के दिन लोगों ने उन्हें उकसा कर इसे अंजाम दिलाया।

जहां हिंसा हुई, वहां दोनों तरफ आमने-सामने मंदिर और मस्जिद हैं, हिंदु-मुसलमान मिलजुल कर रहते आए हैं। किसी तरह की दिक्कत आजतक नहीं हुई। घटना कैसे हुई, इसे वहां के लोग समझ नहीं पाए हैं। हिंसक घटना के बाद से समूचा इलाका भयभीत है। हर तरह के काम-धंधे बंद हैं। सुरक्षा की दृष्टि से इलाके को छावनी में तब्दील कर धारा 144 लगा दी गयी है। गलियों के गेट पर ताला जड़ दिया है। स्कूल, प्रतिष्ठान, दुकानें, बाजार सब बंद हैं।

हिंसा को लेकर जमकर सियासत होनी शुरू गई है। पक्ष-विपक्ष की ओर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल पड़ा है। जबकि, इस वक्त सिर्फ और सिर्फ समाधान की बात होनी चाहिए। पर, लोग अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने की फिराक में हैं। कोई एक दल नहीं, बल्कि सभी पार्टियां मौके का फायदा उठाना चाहती हैं। लेकिन अंदरखाने राजधानी के हालात अच्छे नहीं हैं। इसके बाद भी कुछ अंदेशे ऐसे दिखते हैं जो सुखद नहीं।

ये तय है कि जो हिंसा हुई, वह अचानक होने वाली घटना नहीं थी। इलाके के कई लोग तो खुलेआम बोल रहे हैं कि अगर पुलिस सतर्क होती तो घटना नहीं होती। प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं जब लोग हिंसक हो रहे थे, तब पुलिसकर्मी तमाशबीन बने हुए थे। लोगों के हाथों में धारदार हथियार थे, पत्थर थे। दोनों तरफ से जब पथराव शुरू हुआ तो सबसे पहले लोगों ने पुलिसकर्मियों को ही निशाना बनाया, जिसमें कई पुलिसकर्मी और स्थानीय लोग घायल हुए। घायलों का इलाज पास के बाबू जगजीवन राम अस्पताल में हो रहा है।

 

फिलहाल पुलिस ने पूरे मामले पर एफआईआर दर्ज की हैं जिसमें मुस्लिम समुदाय के 14 लोगों को नामजद किया गया है जिसमें प्रमुख नाम मोहम्मद अंसार है, जिसने सबसे पहले विरोध शुरू किया था। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है। अंसार इलाके का कुख्यात है, कई मुकदमे दर्ज हैं, गैंगस्टर के तहत चार बार जेल जा चुका है।

समय का तकाजा यही है कि घटना की निष्पक्ष जांच हो, दोषी पर सख्त से सख्त कार्रवाई हो। हिंसा को लेकर केंद्र सरकार की नजर बनी हुई है, क्योंकि दिल्ली की सुरक्षा का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर है। घटना की जानकारी के लिए गृहमंत्री अमित शाह ने पुलिस कमिश्नर तलब कर जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी एलजी से बात करके दंगाईयों पर सख्त कार्रवाई की मांग की। गृह मंत्रालय में घटना को लेकर बड़ी बैठक भी हुई।

हालांकि ऐसा हर घटना के बाद होता ही है। पर, इस बार सिर्फ मामला शांत होने का इंतजार नहीं किया जाए, फसाद की तह तक जाने की जरूरत है। घटना की जांच में तीन टुकड़ियां लगी हैं। ड्रोन कैमरे भी लगे हैं जिन घरों से पथराव शुरू हुआ, उनकी जांच हो। हर एंगल से जांच की जाए। ईमानदारी और राजनीतिक चश्मे के बिना कड़ाई से जांच होगी, तभी प्रत्येक वर्ष होने वाले दंगों से राजधानी मुक्त हो पाएगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Dakhal News 18 April 2022

Comments

Be First To Comment....

Video
x
This website is using cookies. More info. Accept
All Rights Reserved © 2024 Dakhal News.