चुनाव का उत्साह कश्मीर की हकीकत नहीं बदल सकता
Election enthusiasm cannot change the reality of Kashmir

राजदीप सरदेसाई 

कश्मीर हमेशा चकित करता है और विधानसभा चुनाव भी इसका अपवाद नहीं हैं। अनंतनाग जिले के बिजबेहरा में पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती के चुनाव-अभियान का मुआयना करने जैसे ही हम पहुंचे, ट्रैफिक जाम में फंस गए।

हमें तेज आवाजें सुनाई देने लगीं। हमें लगा कि शायद कोई विस्फोट या आतंकी हमला हुआ है, लेकिन हमारे ड्राइवर ने मुस्कराते हुए बताया : ‘चिंता मत कीजिए, ये लोग घरेलू टीम और श्रीनगर के बीच बिजबेहरा प्रीमियर लीग का फाइनल देखने दौड़े जा रहे हैं!’ क्रिकेट के दीवाने प्रशंसकों से भरा एक स्थानीय मैदान शायद ‘नए’ कश्मीर का सबसे शानदार दृश्य है।

श्रीनगर के बीचों-बीच स्थित ऐतिहासिक लाल चौक पर उत्साहित दुकानदारों ने हमें बताया कि इलाके में बर्गर किंग और डोमिनोज की फ्रेंचाइजी खुलने वाली है। अतीत में लाल चौक की दुकानें अलगाववादी हुर्रियत के आह्वान पर बंद हो जाया करती थीं। लेकिन पिछले पांच सालों में, दुकानें सूर्यास्त के बाद तक खुली रहती हैं।

श्रीनगर में हमारे होटल के मालिक ने हमें बताया कि 2023-24 उनके लिए अब तक का सबसे अच्छा कारोबारी साल रहा है। कोविड के दौरान, उन्होंने अपनी प्रॉपर्टी बेचने का मन बना लिया था, लेकिन अब वे पर्यटकों की भारी आमद से खुश हैं। बेहतर हाईवे कनेक्टिविटी से लेकर अनवरत बिजली आपूर्ति तक, कश्मीर सही रास्ते पर चलता मालूम होता है।

लेकिन तसल्ली के इस अहसास को खत्म होने में ज्यादा समय नहीं लगता। श्रीनगर स्थित जामा मस्जिद में जुमे की नमाज खत्म हुई है। पहले यहां पत्थरबाजी आम बात थी, पर अब पुलिस की कड़ी निगरानी के बीच लोग मस्जिद से चुपचाप बाहर निकल रहे हैं।

जब तक मैं कैमरा ऑन करके भीड़ से बातें करना शुरू नहीं करता, तब तक सब कुछ ठीक लगता है। लेकिन कुछ ही मिनटों में गुस्साई आवाजें मुझे परेशान करना शुरू कर देती हैं। एक बुजुर्ग व्यक्ति कहते हैं, अगर कश्मीर में सब ठीक है तो मीरवाइज फारूक को क्यों नजरबंद किया गया है?

एक और गुस्साई आवाज कहती है, हम चुप हैं, इसका मतलब ये नहीं कि जो हो रहा है उसे कबूल लें। एक अन्य व्यक्ति ने कहा, हम डर में जी रहे हैं। इससे पहले कि हालात बेकाबू हो जाएं, एक पुलिस अधिकारी हमें बाहर ले जाते हैं। वे हमें याद दिलाते हैं कि अलगाववादी समूह हाशिए पर चले गए हैं, पर अलगाववादी मानसिकता कश्मीर में अभी जीवित है।

इसी पृष्ठभूमि में कश्मीर में एक दशक बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। बुधवार को पहले चरण की वोटिंग हुई। तीनों चरणों में रिकॉर्ड मतदान हो सकता है। ऐसा लगता है जो लोग पत्थर और गोलियों को ही समाधान मानते थे, उन्हें एहसास हो गया है कि वोट की ताकत अधिक प्रभावी है।

राजनीतिक दलों को भी समझ आ गया है कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद बदले हुए परिदृश्य में कठोर रुख के लिए कम गुंजाइश रह गई है। शायद यही वजह है कि उमर अब्दुल्ला ने दो क्षेत्रों से चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जबकि पहले उन्होंने कहा था वे चुनाव से दूर रहेंगे।

एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भले ही चुनाव नहीं लड़ रही हों, लेकिन उन्होंने अपनी बेटी इल्तिजा को मैदान में उतारा है। घाटी में भाजपा की मौजूदगी नाममात्र की है, लेकिन कांग्रेस को उम्मीद है कि राहुल गांधी का ‘मोहब्बत की दुकान’ का संदेश मजबूती से गूंजेगा।

लेकिन इस बार असली सुर्खियां बटोरने वाले छोटे दल और निर्दलीय हैं। मई में हुए लोकसभा चुनावों में इंजीनियर राशिद ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में बारामूला सीट पर दो लाख से अधिक वोटों से उमर अब्दुल्ला और सज्जाद लोन को हराकर सबको चौंका दिया था।​​

राशिद 2019 से तिहाड़ जेल में है, उस पर आतंकी फंडिंग मामले में यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए हैं। राशिद को तीन सप्ताह की जमानत दी गई है और उसकी अवामी इत्तेहाद पार्टी 34 सीटों पर मैदान में है। उसने प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के साथ एक ‘रणनीतिक’ गठबंधन भी किया है। क्या यह नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन को चुनौती देने का प्रयास है?

1990 के दशक में जब पंडितों को अपने घरों से भागने पर मजबूर होना पड़ा, तब ‘कश्मीरियत’ दफन हो गई थी। ‘इंसानियत’ तब मर गई, जब निर्दोष लोग आतंकियों की बंदूकों और राज्यसत्ता की ज्यादतियों के बीच फंस गए। और ‘जम्हूरियत’ सालों से आईसीयू में है। चुनावी उत्साह हकीकतों को नहीं बदल सकता!

पुनश्च : बिजबेहरा में हमने लोगों से पूछा उनका प्रिय क्रिकेटर कौन है। कुछ ने विराट कोहली का नाम लिया, कुछ ने जसप्रीत बुमराह व रोहित शर्मा का, पर ज्यादातर ने कहा- बाबर आजम! कश्मीर में, सीमाएं अकसर एलओसी को लांघ जाती हैं!

कश्मीर अब एक केंद्र-शासित प्रदेश बन गया है, जिसकी विधानसभा की शक्तियां नगरपालिका से भी कम हैं। परिसीमन ने घाटी की कीमत पर जम्मू का प्रतिनिधित्व बढ़ाया है। और प्रशासन की बागडोर एक अनिर्वाचित एलजी के हाथों में है।

 

 

Dakhal News 19 September 2024

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