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संसद का बजट सत्र आज 31 जनवरी से शुरू हो गया है। एक फरवरी 2023 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में सुबह 11 बजे बजट पेश करेंगी। अपने कार्यकाल के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का ये लगातार पांचवां बजट भाषण होगा। मोदी सरकार के लिए 2024 के आम चुनाव से पहले पेश होने वाला ये बजट बेहद खास है, लिहाजा इस दौरान तमाम मीडिया संस्थानों ने बजट की कवरेज को लेकर अपनी तैयारियां पूरी कर ली है। कुछ चैनलों ने बजट पेश होने के दो दिन पहले ही स्पेशल प्रोग्राम चलाने शुरू कर दिए हैं, जिनमें हिंदी न्यूज चैनल‘आजतक’कुछ खास रहा। ‘आजतक’ने अपने नए और यूनीक कॉन्सेप्ट के जरिए बजट के दो दिन पहले ही दर्शकों को अपने स्पेशल प्रोग्राम ‘बजट की उड़ान’ पेश कर दर्शकों को नोएडा के अद्भुत नजारा दिखाया और वह भी करीब 160 फीट की ऊंचाई से। दरअसल चैनल ने इस विशेष पेशकश के लिए फ्लाई स्टूडियो तैयार किया, जो जमीन और आसमान के बीच झूलता रहा। इस स्पेशल शो को चैनल की जानी-मानी एंकर श्वेता सिंह, अंजना ओम कश्यप, नेहा बाथम और सईद अंसारी ने होस्ट किया। एंकर्स के साथ गेस्ट के एक पैनल ने फ्लाई स्टूडियो में बैठकर चर्चा में हिस्सा लिया। हालांकि‘आजतक’का यह यूनीक कॉन्सेप्ट चर्चा में बना हुआ है।
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वरिष्ठ पत्रकार श्रीनिवासन जैन ने ‘एनडीटीवी’ में अपनी करीब तीन दशक पुरानी पारी को विराम देने की घोषणा की है। वर्तमान में इस चैनल में ग्रुप एडिटर की जिम्मेदारी निभा रहे श्रीनिवासन जैन ने एक ट्वीट के जरिये अपने फैसले की घोषणा की है। अपने ट्वीट में श्रीनिवासन जैन ने लिखा है, 'एनडीटीवी पर लगभग तीन दशक से चला आ रहा सिलसिला आज समाप्त हो गया। इस्तीफा देने का फैसला आसान नहीं था, लेकिन.. यही है जो है। बाकी बातें बाद में।'जैन वर्ष 1995 से NDTV के साथ काम कर रहे थे। वह NDV 24x7 पर साप्ताहिक शो ‘Truth vs Hype’ की एंकरिंग करते थे। वह वर्ष 2003 से 2008 तक मुंबई ब्यूरो चीफ रहे और NDTV के बिजनेस चैनल ‘प्रॉफिट’ के प्रबंध संपादक रहे थे। इसके अलावा उन्होंने ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ के लिए संपादकीय भी लिखे हैं।
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(प्रवीण कक्कड़) गणतंत्र दिवस पर एक सवाल सबके जेहन में होता है आखिर इतनी विविधता के बाद भी भारत एक गणतंत्र के रूप में एक कैसे है. वह कौन सा राग भैरवी है जो इन सारे सरगम के सुरों को एक कर देता है. आखिर इतने वैविध्य के बावजूद एक कैसे है भारत. इसका सवाल हजारों वर्ष प्राचीन उस इंसानी सभ्यता में छुपा हुआ है जो इस धरती पर तब जन्मी जब दुनिया के अधिकांश भाग आदिम युग में ही थे. जब दुनिया इंसान के रूप में विकसित हो रही थी तब भारत एक इंसानी सभ्यता के रूप में विकसित हो चुका था. जब दुनिया शक्तिशाली साम्राज्यों के नीचे एकत्र हो रही थी उस समय भारत में गणराज्य विकसित हो चुके थे. वैशाली जैसे गणराज्य दुनिया के नक्शे पर आ चुके थे. शायद यही कारण है कि भारत का गणतंत्र भारत की ही नहीं कि विश्व की पहचान है. यह धरती पर सबसे विविधता पूर्ण और सबसे अनूठा गणतंत्र है. जितनी भाषा, जितनी संस्कृति और जितने धर्म भारत की धरती पर हैं उतने दुनिया में किसी और जगह नहीं मिलते. हमारा गणतंत्र निश्चित रूप से हमारी अलग पहचान है. यह कहना न्याय संगत नहीं है कि गणतंत्र की अवधारणा हमने अपने संविधान को आत्मसात करने के बाद ही प्राप्त की. इतना अवश्य है कि हमारे संविधान के निर्माताओं ने संविधान बनाने से पूर्व विश्व के अनेक संविधानों का अध्ययन किया था इसलिए उन सारे संविधानों का अक्स हमारे संविधान में भी दिखाई देता है. लेकिन इस संविधान की मूल आत्मा तो भारत की ही है. संविधान का मूल स्वरूप तो भारत भूमि पर 3000 वर्ष पूर्व विकसित हो चुके उन गण राज्यों की शासन व्यवस्था से ही मिलता जुलता है. हमने कानून प्रणाली भले ही दुनिया के दूसरे संविधानों से ली हो लेकिन सच तो यह है कि गणराज्य की अवधारणा भारतवर्ष में तीन सहस्त्राब्दी पुरानी है. इसलिए भारत गणतंत्र का अनुभव तो बहुत पहले ही कर चुका था. किंतु बीच में एक समय ऐसा आया जब साम्राज्यवादी ताकतों ने भारत भूमि को अपनी चपेट में ले लिया. मुक्ति के संघर्ष के उस दौर को अलग रखा जाए तो भारत मूल रूप से एक गणतंत्र ही रहा है. यह बात अलग है कि आज भारत एक आधुनिक गणतंत्र है. यानी एक प्राचीन गणतंत्र आधुनिक गणतंत्र में बदल चुका है. भारत का संविधान 26 नवम्बर 1949 को ग्रहण किया गया. जो 26 जनवरी 1950 को प्रवृत्त हुआ.संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गई है. संविधान की निर्माण प्रक्रिया इतनी आसान नहीं थी. इतने विविधता पूर्ण देश में एक संविधान का निर्माण एक चुनौती ही थी. संविधान सभा, जिसकी अध्यक्षता बाबा साहब अंबेडकर कर रहे थे, के समक्ष यह चुनौती लगातार उपस्थित होती रही. किंतु संविधान सभा के अद्भुत मस्तिष्कों ने भारत की विविधता को ध्यान में रखते हुए जो संविधान निर्मित किया आज वही भारत के लोकतंत्र का आधार है. इतने विद्वानों के होने के बावजूद यह संविधान इतनी आसानी से नहीं बना बल्कि भारत के संविधान को बनने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा. संविधान निर्माताओं ने हर पहलू पर विचार किया. भारत में रहने वाले निवासियों की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता का गहराई से अध्ययन किया. भारत के समाज के निचले तल पर जाकर परीक्षण किया और उसके बाद संविधान का खाका तैयार किया. हमारे संविधान की यही तो खूबसूरती है कि इसकी शुरुआत होती है, 'हम भारत के लोग' से. इस संविधान में भारत को एक प्रभुत्व-सम्पन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक देश बनाने का संकल्प है और इसी संकल्प की तरफ हम निरंतर आगे बढ़ रहे हैं. अलग-अलग विचारधारा की लोकतांत्रिक पार्टियां होने के बाद भी संविधान की अधिकार सीमा का कोई अतिक्रमण नहीं करता यही इस संविधान की खूबसूरती और शक्ति है और यही गणतंत्र की शक्ति है. संविधान में जहां व्यक्ति के बुनियादी अधिकारों की बात है तो वही बुनियादी कर्तव्यों की बात भी है. यदि अधिकार चाहते हैं तो कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा. कर्तव्य एक नागरिक के रूप में और एक भारतवासी के रूप में. बिना कर्तव्य भावना के अधिकार की चाहत देश को दिशाहीन कर सकती है. इसलिए संविधान नागरिकों के कर्तव्य के प्रति भी नागरिकों को सचेत करता है और यही एक सफल गणतंत्र का गुण है. आज संविधान की वर्षगांठ के अवसर पर हमें एक नागरिक के रूप में अपने दायित्वों का बोध होना बहुत आवश्यक है. हमें राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने की आवश्यकता है. राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी परिलक्षित होती है कानून का पालन करने से. ईमानदारी बरतने से और मेहनत और लगन से काम करने से. विशेष बात यह है कि यह सारे गुण हमारे भारतीय वांग्मय में और हमारे धर्म ग्रंथों में भी लिखे हुए हैं. इसलिए जब हम कर्मण्येवाधिकारस्ते के सिद्धांत का पालन करते हैं तब राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध स्वतः ही हो जाता है. यदि हम वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को अपनाते हैं तो राष्ट्र के हर निवासी के प्रति सद्भाव और सौहार्द स्वतः ही विकसित हो जाता है. यह सब हमारे धर्म, हमारी संस्कृति और हमारे साहित्य का हिस्सा है. और यही संविधान में एक व्यवस्था के रूप में हमें प्रदान किया गया है. गणतंत्र दिवस पर जिस संविधान को हमने अपनाया था उसकी मूल भावना का पालन करते हुए अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों के निर्वहन करने का संकल्प लेना ही संविधान और गणतंत्र को सच्चे अर्थों में आत्मसात करना है.
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50 हज़ार बच्चों को परोसा जायेगा खाना सरकारी स्कूलो में मिडे मील का होगा वितरण,भोपाल में प्रदेश की सबसे बड़ी रसोई अक्षय पात्र की शुरुआत होने जा रही है जिसका उद्गाटन 25 जनवरी को प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान करेंगे अक्षय पात्र फाउंडेशन की यह देश की 66 वी और मध्यप्रदेश की पहली रसोई होगी जिसके माध्यम से रोज़ लगभग 50 हज़ार बच्चों को मिड डे मील उपलब्ध कराया जाएगा भोपाल में प्रदेश की सबसे बड़ी रसोई का उद्गाटन होने जा रहा है जिसका उद्गाटन मुख्यमंत्री शिवराज करेंगे यह रसोई अक्षय पात्र फाउंडेशन HEG , इस्कान और सरकार के सहयोग से काम मिड डे मील तैयार करेगी यह की देश की 66वीं और प्रदेश की पहली रसोई है इस अक्षय पात्र रसोई से पीएम पोषण कार्यक्रम के तहत रोज़ लगभग 50 हज़ार बच्चों को मिड डे मील परोसा जायेगा।
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पत्रकार पिंकी राजपुरोहित ने ‘एबीपी न्यूज़’ (ABP News) के साथ अपनी पारी को विराम दे दिया है। ‘एबीपी न्यूज़’ में अपनी करीब सात साल की इस पारी के दौरान पिंकी राजपुरोहित ने दक्षिण का कार्यभार संभालने के अलावा देश के विभिन्न राज्यों में चुनाव, रक्षा और स्पेस जर्नलिज्म के क्षेत्र में काफी काम किया और अपनी अलग पहचान बनाई। पिंकी राजपुरोहित ने नए साल पर अपनी नई पारी की शुरुआत ‘टाइम्स नाउ’ (Times Now) के साथ की है। यहां वह ‘टाइम्स नाउ नवभारत’ (Times Now Navbharat) के लिए दक्षिण का जिम्मा संभालेंगी। मूल रूप से राजस्थान के सिरोही की रहने वाली पिंकी राजपुरोहित को मीडिया में काम करने का करीब दस साल का अनुभव है। ‘एबीपी न्यूज़’ से पहले वह ‘न्यूज नेशन’ (News Nation) और ‘एएनआई’ (ANI) में भी काम कर चुकी हैं। पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो पिंकी राजपुरोहित ने चेन्नई से ग्रेजुएशन किया है।
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दो दशक से अधिक समय से देश के तमाम प्रमुख मीडिया संस्थानों में विभिन्न पदों पर योगदान दे चुके वरिष्ठ पत्रकार एवं कहानीकार रामनाथ राजेश अब ‘एबीपी’ (ABP) से जुड़ गए हैं। उन्होंने समूह की डिजिटल विंग में बतौर कंसल्टेंट जॉइन किया है। मूल रूप से बिहार के रहने वाले रामनाथ राजेश ने वर्ष 1987 में पटना में ‘नवभारत टाइम्स‘ से पत्रकारिता की शुरुआत की। लगभग 10 साल तक पटना स्थित ‘भारतीय व्यापार प्रबंधन संस्थान‘ से बतौर फैकल्टी मेंबर जुड़े रहे। वर्ष 2000 में जब पटना में ‘दैनिक जागरण‘ की शुरुआत हुई तो उसकी संपादकीय टीम के साथ संस्थापक सदस्य के रूप में जुड़े। करीब तीन साल बतौर रिपोर्टर काम करने के बाद जनरल डेस्क पर आए। वर्ष 2005 के दिसंबर में जब दिल्ली में ‘दैनिक जागरण‘ की सेंट्रल डेस्क की शुरुआत हुई तो बतौर बिहार-झारखंड के सेंट्रल डेस्क प्रभारी वह यहां आ गए और वर्ष 2015 तक अपनी भूमिका निभाई। ‘दैनिक जागरण‘ के बाद ‘लाइव इंडिया‘ से बतौर कंसल्टेंट उन्होंने डिजिटल मीडिया की दुनिया में कदम रखा और वर्ष 2016 में ‘इंडो एशियन न्यूज सर्विस‘ (IANS) में बतौर उपमुख्य संपादक रहे। फिर वर्ष 2017 में डिप्टी न्यूज एडिटर के रूप में ‘न्यूज18’ की डिजिटल विंग से जुड़े और करीब तीन साल हैदराबाद रहे। वर्ष 2000 में जब दिल्ली लौटे तो कोरोना का कहर शुरू हो गया। इस दौरान वह ‘ईटीवी भारत’ (Etv Bharat) की संपादकीय टीम के साथ बतौर अनुवादक जुड़े रहे। 58 साल की उम्र पूरी कर चुके रामनाथ राजेश ‘एबीपी’ से जुड़ने से पहले ‘ईटीवी भारत’ के झंडेवालान स्थित दफ्तर में दिल्ली की खबरों को देख रहे थे। वर्ष 1991 के एमबीए डिग्रीधारी राजेश का वर्ष 2016 में आया कहानी संग्रह 'वाट्सएप' काफी चर्चित रहा था। दो दर्जन से अधिक कहानियां और करीब 50 से अधिक कविताएं लिख चुके रामनाथ राजेश का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के पीरो अनुमंडल स्थित बचरी में हुआ था। राजेश की शुरुआती पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल से हुई। वर्ष 1972 में पटना जिला के बिहटा स्थित सरकारी स्कूल से पढ़ाई के बाद उन्होंने दानापुर स्थित बीएस कॉलेज से बीएससी और आईआईबीएम पटना से एमबीए (मगध विश्वविद्यालय) और पीजीडीसीए किया है। रामनाथ राजेश दिल्ली के आधा दर्जन से अधिक मीडिया संस्थानों में बतौर विजिटिंग फैकल्टी शिक्षण से भी जुड़े रहे हैं।
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(प्रवीण कक्कड़) मकर संक्रांति पूरे देश में हर्षोंल्लास से मनाया जा रहा है। सूर्यदेव की अराधना, तिल-गुड़ खाने और पतंग उड़ाने के साथ ही मकर संक्रांति पर्व कई संदेश देता है, हमें जीवन प्रबंधन की कला सिखाता है। संक्रांति यानी सूर्य का उत्तरायण, सूर्य धीरे-धीरे दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने लगते हैं। जो हमें जीवन में सकारात्मकता लाने और प्रकाश की ओर बढ़ने का संकेत देता है। तिल-गुड़ के संगम से संगठन की क्षमता, लोहड़ी की अग्नि में क्रोध और ईर्ष्या को जलाना और पतंगबाजी से जीवन में उल्लास लाने व खुशियां बांटने के संदेश मिलते हैं। सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश को मकर संक्रांति कहा जाता है। देश के अधिकांश हिस्सों में इसे मकर संक्रांति ही कहा जाता है, वहीं इसकी पूर्व संध्या पर उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में लोहड़ी पर्व मनाया जाता है, वहीं दक्षिण भारत में इसे पोंगल के रूप में मनाया जाता है। हर भारतीय त्यौहार का एक वैज्ञानिक महत्व है, हमारा हर पर्व रहन-सहन, खान-पान, फसलों व प्रकृति के परिवर्तनों पर आधारित है। हमारे पर्वों में जहां पौराणिक कथाओं का उल्लेख मिलता है, वहीं खगोलीय घटना, धरती के वातावरण, मनुष्य के मनोविज्ञान व सामाजिक कर्तव्यों की सीख भी परिलक्षित होती है। ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार देखें तो मकर संक्रांति वर्ष का पहला पर्व है। सूर्य को ब्रह्मांड की आत्मा माना जाता है। मकर संक्रांति सूर्य देव की अराधना का पर्व है। उत्तर भारत में लोहड़ी तो दक्षिण भारत में पोंगल भी इसी दौरान मनाया जाता है। चलिए अब बात करते हैं मकर संक्रांति के वैज्ञानिक महत्व और प्रबंधन को लेकर। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश परिवर्तन को दर्शाता है, हमें यह सीख देता है कि परिवर्तन ही प्रकृति का सबसे बड़ा नियम है और समय व परिस्थिति के साथ हमें स्वयं में परिवर्तन के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। पोंगल व संक्रांति का सीधा संबंध सूर्य से है सूर्य यानी उजास, रोशनी, सकारात्मकता और उंचाई। संक्रांति पर्व हमें सिखाता है कि हमारे लक्ष्य किस तरह उंचे और बड़े होना चाहिए। जिससे इन्हें हासिल करने के लिए हम मजबूत इरादों के साथ आगे बढ़ सकें। बॉक्स तिल-गुड़ से सीखिये संगठित होना हमारे शास्त्रों के अनुसार तिल को सृष्टि का पहला अन्न माना गया है। इसलिए हमेशा हवन-पूजन में तिल का प्रयोग होता है। तिल में एंटीऑक्सिडेंट, कैल्शियम और कार्बोहाइड्रेट होता है, इसे पानी में डालकर स्नान करने से स्वास्थ्य लाभ होता है, वहीं इसके तेल की मालिश से त्वचा में चमक आती है। इसे गुड में मिलाकर खाने से स्वास्थ्य लाभ होता है। गुड़ में मिले तिल के दाने हमें संगठन का संदेश देते हैं, वहीं गुड़ रिश्तों में मिठास की सीख देता है। लोहड़ी में जला दीजिये अहंकार इसी तरह लोहड़ी पर आग जलाकर जश्न मनाया जाता है, अग्नि को सबसे पवित्र माना जाता है, यह हमें संदेश देती है कि बैर, क्रोध, ईर्ष्या लालच और अहंकार जैसी भावनाओं को लोहड़ी की अग्नि में जला दिया जाए और इस आग की तरह गर्मजोशी से रिश्तों को निभाया जाए। पतंगबाजी से भरिये जीवन में उल्लास मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा है, पतंगबाजी हमें जीवन में उल्लास सिखाती है, यह संदेश देती है कि किस तरह हम जीवन को रंगों से भर सकते हैं, वहीं पतंग की डोर हमें संदेश देती है कि उड़ान कितनी ही उंची हो, उसकी कमान हमेशा सही हाथ में होनी चाहिए, नहीं तो वह जीवन को भटका सकती है। बस अगर अपने त्यौहारों के पीछे छुपे इस फंडे को हम समझ गए तो त्यौहार हम सिर्फ परंपरा निभाने के लिए नहीं मनाएंगे बल्कि जीवन को सकारात्मक बनाने के लिए भी मनाएंगे।
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मीडिया फर्म ‘नई दिल्ली टेलीविजन लिमिटेड‘ (NDTV) से एक बड़ी खबर निकलकर सामने आई है। इस खबर के मुताबिक ‘एनडीटीवी’ की ग्रुप प्रेजिडेंट सुपर्णा सिंह ने शुक्रवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। इस बारे में कंपनी की ओर से 'बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज' (BSE) को भी जानकारी दी गई है। ‘बीएसई’ को दी गई जानकारी के अनुसार, सुपर्णा सिंह के अलावा चीफ स्ट्रैटेजी ऑफिसर अरिजीत चटर्जी और चीफ टेक्नोलॉजी व प्रॉडक्ट ऑफिसर कंवलजीत सिंह बेदी ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। कंपनी का कहना है कि एक नई लीडरशिप टीम को नियुक्त करने की प्रक्रिया जारी है, जो कंपनी के लिए नई रणनीतिक दिशा और लक्ष्य निर्धारित करेगी। बाद में कंपनी के सीईओ और एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया ने भी इस खबर के बारे में एनडीटीवी के एंप्लॉयीज को एक इंटरनल मेल लिखा है। इस मेल में पुगलिया का कहना है, ‘हमारे तीन सहयोगियों: सुपर्णा सिंह, अरिजीत चटर्जी और कंवलजीत सिंह बेदी ने एनडीटीवी से हटने का फैसला लिया है और अपना इस्तीफा सौंप दिया है। वे समूह के लिए मजबूत स्तंभ रहे हैं और कंपनी को लाभप्रदता में वापस लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हम भविष्य के लिए उन्हें शुभकामनाएं देते हैं।’ इस मेल में कहा गया है, ‘टाउन हॉल में मैंने कहा था कि अडानी समूह एनडीटीवी को नए जमाने के ग्लोबल डिजिटल मीडिया ऑर्गनाइजेशन में परिवर्तित करने के लिए प्रतिबद्ध है। जैसा कि मैंने एनडीटीवी में आप में से कई लोगों के साथ बातचीत की है, उसके आधार पर मैं आश्वस्त हूं कि इन आकांक्षाओं को जल्द पूरा करने के लिए हमारे पास वैल्यू सिस्टम, मानसिकता, क्षमता और विश्वसनीयता है। हम साथ मिलकर काम करेंगे और आपको हर स्तर पर अपडेट रखेंगे।’ बता दें अमेरिका की सायरेकस यूनिवर्सिटी से टीवी, रेडियो और फिल्म में पोस्ट ग्रेजुएट सुपर्णा सिंह वर्ष 1994 से एनडीटीवी से जुड़ी हुई थीं और इस दौरान तमाम पदों पर अपनी जिम्मेदारी निभा चुकी थीं।
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(प्रवीण कक्कड़) स्वामी विवेकानंद एक ऐसे व्यक्ति जिन्होंने देश के आध्यात्म, शिक्षा और स्वाभिमान को विश्व पटल पर अंकित किया। करीब 118 वर्ष पहले अमेरिका के शिकागो में हुए उनके भाषण को आज भी याद किया जाता है। वास्तव में स्वामी विवेकानंद आधुनिक भारत के वे आदर्श प्रतिनिधि हैं। जिनकी प्रेरणाएं हमें आज भी मार्ग दिखाती हैं। शिकागो में जब विवेकानंद को दुनिया ने सुना तो जाना कि भारत की धरती पर एक ऐसा व्यक्तित्व पैदा हुआ है जो दिशाहारा मानवता को सही दिशा देने में समर्थ है। शिकागो में विवेकानंद ने कहा था "मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी"। इसका अर्थ यह है कि विवेकानंद भी भारत की सहिष्णुता और सर्वधर्म समभाव को भारत की सबसे बड़ी पूंजी मानते थे। वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को दुनिया से परिचित कराने में विवेकानंद का अभूतपूर्व योगदान था। 11 सितंबर 1893 का वह दिन विश्व के इतिहास में अविस्मरणीय बन गया जब शिकागो में विवेकानंद ने ऐतिहासिक भाषण दिया। उसके बाद से ही विवेकानंद के सिद्धांतों को दुनिया समझने की कोशिश करती रही लेकिन समझ में आया 118 वर्ष बाद, जब 11 सितंबर 2001 की सुबह अल-कायदा के 19 आतंकियों ने उसी अमेरिका के ट्विन टॉवर्स को ध्वस्त करके मानवता को सबसे बड़ा आघात पहुंचाया जिस अमेरिका में सार्वभौमिक सहिष्णुता की बात विवेकानंद ने की थी। इसीलिए 11 सितंबर की तारीख जहां विश्व में विवेकानंद के मुख से निकले सार्वभौमिक सहिष्णुता के सिद्धांत की दृष्टि से अभूतपूर्व है तो वह तारीख सबसे बड़े आतंकी हमले में उस सिद्धांत को आघात पहुंचाने की दृष्टि से भी अविस्मरणीय है। विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को मनाई जाती है लेकिन विवेकानंद के सिद्धांत पूरी दुनिया में 12 महीनों के 365 दिन प्रासंगिक हैं। जिस वेदांत को उन्होंने अपनी छोटी सी उम्र में रचा उसे उन्होंने जीवन पर्यंत अपनाया भी। वेदांत एक सिद्धांत के रूप में नहीं बल्कि एक व्यवहारिकता के रूप में विवेकानंद के जीवन में था। इसीलिए अपने छोटे से जीवन काल में विवेकानंद इतना प्रभाव उत्पन्न कर पाए। उन्होंने भारतीय वांग्मय और भारतीय धर्म-संस्कृति का ही विश्व को परिचय नहीं कराया बल्कि सार्वभौमिक सहिष्णुता के उस सिद्धांत को संसार के हर कोने तक पहुंचाने की कोशिश भी की। आज 2-2 विश्व युद्ध के बाद, सारे संसार में बढ़ती हिंसा और आतंकवाद के खतरों के बाद यदि किसी सिद्धांत को अपनाने की आवश्यकता है तो वह सार्वभौमिक सहिष्णुता का सिद्धांत ही है जो एक तरफा नहीं है। बल्कि जिसे दोनों तरफ से निभाने की आवश्यकता है। विवेकानंद की जयंती पर जरूरत है प्रज्ञावान बनने की, स्वयं को पहचानने की, अपनी आयु से ऊपर उठकर विचार करने की। आप सभी को स्वामी विवेकानंद की जयंती की अनेकानेक शुभकामनाएं। बॉक्स स्वामी विवेकानंद वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरू के रूप में स्वामी विवेकानंद का नाम पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। उनका वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदांत दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानंद के उद्बोधन के कारण हुआ। इस उद्बोधन में स्वामी विवेकानंद द्वारा सभी को ‘‘भाईयों एवं बहनों’’ कहकर संबोधित किए जाने ने सभी के मन पर गहरा प्रभाव डाला। वे संत रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना भी की, जो आज भी अपना काम कर रहा है। युवा दिवस स्वामी विवेकानंद की जयंती के उपलक्ष्य में 12 जनवरी 1984 को युवा दिवस की घोषणा की गई थी। इसके बाद से हर साल इस दिन युवा दिवस मनाया जाता है। वास्तव में स्वामी विवेकानंद आधुनिक मानव के आदर्श प्रतिनिधि हैं। विशेषकर भारतीय युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद से बढ़कर दूसरा कोई नेता नहीं हो सकता जिसने विश्व पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ी हो। उन्होंने हमें जो स्वाभिमान दिया है वह उत्तराधिकार के रूप् में प्राप्त कर हमारे अंदर आत्मसम्मान और अभिमान जगा देता है। स्वामीजी ने जो लिखा वह हमारे लिए प्रेरणा है। यह आने वाले लंबे समय तक युवाओं को प्रेरित व प्रभावित करता रहेगा।
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जाने-माने पत्रकार उपेंद्र राय के नेतृत्व में जल्द लॉन्च होने वाले ‘भारत एक्सप्रेस’ (Bharat Express) न्यूज नेटवर्क से तमाम पत्रकारों के जुड़ने का सिलसिला जारी है। अब इस कड़ी में वरिष्ठ टीवी पत्रकार सुमित कुमार झा का नाम भी जुड़ गया है। उन्होंने यहां डिप्टी एडिटर और सीनियर एंकर के तौर पर जॉइन कर लिया है। समाचार4मीडिया से बातचीत में सुमित कुमार झा ने खुद इसकी पुष्टि की है। बता दें कि सुमित कुमार इससे पहले ‘न्यूज नेशन’ (News Nation) नेटवर्क से जुड़े हुए थे। उन्होंने मई 2022 में यहां बतौर ब्यूरो हेड (बिहार) जॉइन किया था। सुमित झा के अनुसार, ‘इस पारी के दौरान मैं मैंने न्यूज स्टेट बिहार/झारखंड को सफलतापूर्वक लॉन्च कराया। इस दौरान बिहार में सत्ता परिवर्तन की एक्सक्लूसिव कवरेज की। डिप्टी सीएम बनने के बाद तेजस्वी यादव का पहला एक्सक्लूसिव इंटरव्यू लिया। शिक्षा मंत्री समेत कई मंत्रियों का इंटरव्यू लेने के अलावा मोकामा गोपालगंज उपचुनाव के दौरान भी शानदार कवरेज कर महज तीन महीनों में न्यूज स्टेट बिहार/झारखंड को नई पहचान दिलाई।‘मूल रूप से मधुबनी (बिहार) के रहने वाले सुमित कुमार झा को मीडिया के क्षेत्र में काम करने का डेढ़ दशक से ज्यादा का अनुभव है। पत्रकारिता में अपने करियर की शुरुआत सुमित ने वरिष्ठ पत्रकार नलिनी सिंह के लोकप्रिय शो ‘आंखों देखी’ के साथ की थी। सुमित कुमार पूर्व में ‘महुआ न्यूज’, ‘जी मीडिया’ और ‘नेटवर्क18’ में भी अपनी जिम्मेदारी निभा चुके हैं। पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो सुमित ने हरियाणा में हिसार स्थित गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन में ग्रेजुएशन किया है।
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बड़ी मात्रा में अमानक खाद्य सामग्री बरामद डिंडोरी में एक थोक किराना व्यापारी के ठिकाने पर खाद्य सुरक्षा अधिकारी टीम ने छापामार कार्रवाई की है खाद्य विभाग को उक्त ठिकाने पर मिलावट की सूचना मिली थी जिसके आधार पर यह कार्रवाई की गई वहीं इस दौरान किराना दुकान से बड़ी मात्रा में अमानक खाद्य सामग्री बरामद हुई है डिंडोरी में एक थोक किराना व्यापारी के खाद्य सामग्री में मिलावट होने की सूचना खाद्य सुरक्षा विभाग को लगी थी जिसके बाद खाद्य सुरक्षा अधिकारी प्रभा तेकाम ने राजस्व विभाग के राजस्व निरीक्षक और पटवारी की संयुक्त टीम के साथ मिलकर किराना दुकान पर छापामार कार्यवाही करते हुए बड़ी मात्रा में अमानक खाद्य पदार्थ बरामद किया है वहीं बड़ी मात्रा में खाद्य सामग्री में मिलाने वाले प्रतिबंधित रंग, को जप्त करने के साथ ही नष्ट करने के आदेश भी दिए हैं वही छापामार कार्रवाई के दौरान तेल, मिर्च पाउडर सहित अन्य खाद्य सामग्री के नमूने जब्त कर परीक्षण के लिए लेब भेज दिए गए हैं और जांच रिपोर्ट आने के बाद कार्यवाही की कही बात
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जानी-मानी न्यूज एंकर और वरिष्ठ पत्रकार कविता सिंह ने नए साल पर ‘भारत एक्सप्रेस’ के साथ अपनी नई पारी की शुरुआत की है।उन्होंने यहां पर बतौर एग्जिक्यूटिव एडिटर/सीनियर एंकर जॉइन किया है। गौरतलब है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में कविता सिंह को डेढ़ दशक से ज्यादा का अनुभव है। इससे पहले वह ‘न्यूज24’ और ‘रिपब्लिक भारत‘ की लॉन्चिंग टीम का हिस्सा रह चुकी हैं।इसके अलावा पूर्व में वह ‘इंडिया टीवी‘ , ‘जी न्यूज’ , ‘न्यूज नेशन‘ और ‘सहारा समय‘ में भी वरिष्ठ पदों पर काम कर चुकी हैं। डिबेट, स्पॉट एंकरिंग और रिपोर्टिंग उनकी खास पहचान है। मीडिया के निर्भीक, प्रतिभाशाली, जुझारू और बेहद लोकप्रिय पत्रकारों में कविता सिंह की गिनती होती है।समाचार4मीडिया से बातचीत में कविता सिंह ने बताया कि वह इकलौती ऐसी एंकर हैं, जिन्होंने 42 दिन लगातार कुंभ से लाइव शो की एंकरिंग की। जम्मू में हुए आतंकी हमले में उन्होंने जान जोखिम में डालकर ग्राउंड जीरो से 18 घंटे कवरेज की। हाथरस कांड में भी उन्होंने ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर ‘असली खबर’ दिखाई, जिसके बाद सच सामने आया। इस दौरान उन्हें धमकी भी दी गई, लेकिन वह डटी रहीं।बता दें कि बेहद वर्सेटाइल कविता सिंह की खूबी है कि वह हर तरह की खबरों (स्पोर्ट्स, एंटरटेनमेंट,डिबेट व आउटडोर आदि) में बेहतरीन तैयारी के साथ दर्शकों से रूबरू होती हैं। ‘न्यूज नेशन’ में उनका ‘आईपीएल’ शो आज भी याद किया जाता है।इसी तरह ‘इंडिया न्यूज’ में उनका शो ‘बेटियां’ भी काफी पसंद किया जाता था, जिसे वह खुद लिखती, शूट करतीं और प्रोड्यूस करती थी। इसके अलावा उन्होंने सरहद से दिवाली, और नए साल पर जवानों के बीच भी शो एंकर किए हैं। उनकी इलेक्शन कवरेज भी काफी लोकप्रिय रही है। समाचार4मीडिया की ओर से कविता सिंह को उनकी नई पारी के लिए ढेरों बधाई और शुभकामनाएं।
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देश के बड़े उद्योगपति गौतम अडानी का मीडिया कंपनी एनडीटीवी पर अब पूरी तरह नियंत्रण हो गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एनडीटीवी पर अडानी समूह का नियंत्रण स्थापित होने के बाद कंपनी के फाउंडर प्रणय रॉय और उनकी पत्नी राधिका रॉय समेत अन्य चार डायरेक्टर्स ने इस्तीफा दे दिया है। प्रणव रॉय और राधिका रॉय एनडीटीवी के कार्यकारी सह-चेयरपर्सन थे। इस्तीफा देने वाले डायरेक्टर्स में डेरियस तारापोरवाला और इंडिपिडेंट डायरेक्टर्स किंशुक दत्ता, इंद्राणी रॉय एवं जॉन मार्टिन ओलॉन शामिल हैं। अडानी एंटरप्राइजेज ने स्टॉक एक्सचेंज को इस अधिग्रहण की सूचना देते हुए कहा कि उसकी सहयोगी और एनडीटीवी के प्रमोटर ग्रुप में शामिल आरआरपीआर (RRPR) ने एनडीटीवी में प्रणव रॉय और राधिका रॉय की 27.26 प्रतिशत हिस्सेदारी का अधिग्रहण परस्पर ट्रांसफर के माध्यम से कर लिया है। चैनल में अब इनकी हिस्सेदारी अब 5 प्रतिशत रह गई है। वहीं, इसके साथ ही छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्य सचिव सुनील कुमार और पूर्व सचिव अमन सिंह को एनडीटीवी में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। एनडीटीवी प्रबंधन ने दोनों को एडिशनल डायरेक्टर बनाया हैं। इस संबंध में प्रबंधन की ओर से आदेश जारी कर दिए गए हैं। अडानी एंटरप्राइजेज की ओर से कहा गया कि एनडीटीवी के बोर्ड ने अमन कुमार सिंह को गैर-कार्यकारी अतिरिक्त निदेशक और सुनील कुमार को गैर-कार्यकारी स्वतंत्र निदेशक नियुक्त करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। एनडीटीवी में ये नियुक्तियां 30 दिसंबर 2022 से तीन साल के लिए की गईं हैं। वहीं, पिछले हफ्ते भी अडानी ग्रुप ने संजय पुगलिया और सेंथिल एस चेंगलवरयन को एनडीटीवी में डायरेक्टर मनोनीत किया था। बता दें कि सुनील कुमार 2012 से 2014 तक छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव थे। सुनील कुमार 1979 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। उन्होंने फिजिक्स में स्नातक और बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातकोत्तर की उपाधि ली है। वहीं, अमन कुमार सिंह भारतीय राजस्व सेवा के 1995 बैच के अधिकारी रहे हैं। वर्ष 2004 में छत्तीसगढ़ में बीजेपी की रमन सिंह सरकार में प्रतिनियुक्ति पर मुख्यमंत्री का प्रमुख सचिव नियुक्त होने पर उन्होंने आईआरएस से इस्तीफा दे दिया था। उन्हें फाइनेंस और प्लानिंग का विशेषज्ञ भी माना जाता है। उन्होंने कॉरपोरेट सेक्टर में भी काम किया। वह रतन इंडिया पावर में सीईओ भी रहे हैं। इसके बाद उन्हें अडानी ग्रुप में कॉरपोरेट ब्रैंड कस्टोडियन नियुक्त किया गया। वे कंपनी के अहमदाबाद स्थित कॉरपोरेट मुख्यालय में बैठते हैं और सीधे कंपनी चेयरमैन को रिपोर्ट करते हैं। वहीं, इस अधिग्रहण पर अडानी ग्रुप के संस्थापक और चेयरमैन गौतम अडानी ने कहा, ‘अडानी ग्रुप को एनडीटीवी को विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे और प्रतिभा के साथ आगे बढ़ाने और एक बहु-मंचीय वैश्विक समाचार नेटवर्क में बदलने का सौभाग्य मिला है।’ बता दें कि रॉय दंपति ने अपनी एनडीटीवी में शेष 32.26% हिस्सेदारी में से 27.26 प्रतिशत हिस्सेदारी शुक्रवार को अडानी ग्रुप को बेच दी थी। इसके साथ ही अडानी ग्रुप ने इस टेलीविजन नेटवर्क पर अपना पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया। इस हिस्सेदारी खरीद के साथ ही अडानी ग्रुप के पास अब एनडीटीवी की कुल 64.71 प्रतिशत हिस्सेदारी आ गई है। गौरतलब है कि न्यूज चैनल एनडीटीवी की शुरुआत करने वाले रॉय दंपति ने गत 23 दिसंबर को घोषणा की थी कि वे इस मीडिया कंपनी में अपनी बची हुई 32.26 प्रतिशत हिस्सेदारी में से 27.26 प्रतिशत हिस्सा अडानी ग्रुप को बेच देंगे। अडानी ग्रुप ने रॉय दंपति की हिस्सेदारी का अधिग्रहण 342.65 रुपये प्रति शेयर के भाव पर किया है। इस भाव पर 1.75 करोड़ शेयरों की बिक्री से रॉय दंपति को 602.30 करोड़ रुपए मिलने का अनुमान है। यह भाव ओपन ऑफर में अडानी समूह की तरफ से निर्धारित 294 रुपये के भाव की तुलना में 17 प्रतिशत अधिक है।
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(प्रवीण कक्कड़) साल का बदलना कैलेंडर में एक तारीख का बदलना ही तो है। दिसंबर का जनवरी में तब्दील होना ही तो है। 12 माह के चक्र का पूरा होना ही तो है। वही सूरज का उगना, वही नया दिन। वही सुबह, वही शाम और वही रात। किंतु ऐसा नहीं है। नए वर्ष में कैलेंडर ही नहीं बदलता बल्कि बहुत कुछ ऐसा होता है जो बदल जाता है। नया वर्ष हम सभी की उम्र में एक वर्ष जोड़ देता है। हमारे अनुभव की पूंजी में 12 माह की वृद्धि कर देता है। हमारे जीवन की गति को कुछ और तेज कर देता है। पूर्णाहुति की तरफ बढ़ रहे हमारे कदमों को अपनी मंजिल के कुछ और निकट ला देता है। इसलिए नया वर्ष जब आता है तो नए वर्ष का उगता सूरज हमें नए संकल्पों और नई ऊर्जा से सराबोर कर देता है। भारतीय वांग्मय में सूर्य की गति के अनुसार नए वर्ष के दिन और महीने तय किए जाते हैं। इसलिए भारतीय नववर्ष अंग्रेजी कैलेंडर से थोड़ा बाद में आता है या यूं कहें कि कुछ माह पहले आ जाता है। किंतु समय का चक्र तो वही है। चाहे दिसंबर के बाद जनवरी के रूप में आए या फिर अप्रैल (गुड़ी पड़वा)में हिंदू नव वर्ष के रूप में। जिसे नवसंवत्सर भी कहते हैं, जिसकी शुरुआत चैत्र मास की नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि से होती है। लेकिन हमारे देश के सारे महत्वपूर्ण कार्य अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से ही चलते हैं। इसलिए जितना नवसंवत्सर का धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व पर उतना ही लौकिक दृष्टि से जनवरी माह से प्रारंभ नव वर्ष का महत्व है। इसलिए इस नए वर्ष का आगाज सकारात्मकता के साथ करें। पुराने वर्ष की असफलता, दुख, नुकसान प्रियजन के बिछड़ने, कैरियर और व्यापार में घाटा होने, किसी से रिश्ता टूटने जैसे दुखों को भूल जाएं। बीते हुए वर्ष में जो कुछ पाया है उसकी खुशियां मनाते हुए नए साल का स्वागत करें। क्योंकि नया साल जीवन के बढ़ने का प्रतीक है। यह बीता हुआ समय हमें हर पल इस बात का स्मरण दिलाता है कि कोई भी परेशानी या सुख स्थाई नहीं है। परेशानी आती है तो जाती है और सुख भी आता है तो जाता भी है। आपका निष्काम कर्म योग ही आपके सुख की गारंटी है। नए वर्ष का केवल एक ही संकल्प है पुराने वर्ष की नकारात्मकता को भूलना और सकारात्मकता को याद रखना। बहुत से देशों में नए वर्ष पर पुराने बर्तनों को तोड़ने का रिवाज है। इसके पीछे भी यही तर्क है कि जो कुछ पुराना है और नकारात्मक है उसे भूल जाएं। 'नव गति, नव लय, ताल छंद नव, नवल कंठ नव जलद मंद्र रव। नव नभ के नव विहग वृंद को, नव पर नव स्वर दे।।' सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की इन पंक्तियों की तरह ही हमें अपने जीवन में नई सोच, नई उमंग और नए उत्साह के साथ आगे बढ़ना है। उम्मीद है कि वर्ष 2023 हम सबको कुछ नया कर गुजरने के लिए उत्साहित करेगा। नए वर्ष में आप सभी को सुख शांति और समृद्धि मिले। नए वर्ष की यही शुभकामनाएं है और यही संकल्प है।
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युवा पत्रकार शिवम प्रताप सिंह ने ‘नेटवर्क18’ के साथ मीडिया में अपनी नई पारी का आगाज किया है। उन्होंने इस समूह के हिंदी न्यूज चैनल ‘न्यूज18 इंडिया’ में बतौर करेसपॉन्डेंट जॉइन किया है | शिवम प्रताप सिंह इससे पहले ‘जी’ समूह के हिंदी न्यूज चैनल ‘जी हिन्दुस्तान’ में अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे थे, जहां से पिछले दिनों उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। ‘जी हिन्दुस्तान’ में करीब डेढ़ साल से बतौर रिपोर्टर वह पॉलिटिकल और क्राइम बीट कवर कर रहे थे।मीडिया में अब तक की अपनी पारी के दौरान उन्होंने गोरखपुर मंदिर हमला, मुंबई लाउडस्पीकर विवाद, पटियाला में खालिस्तानी हिंसा, नौसेना में INS वेला की लॉन्चिंग, अफगानिस्तान में तालिबान राज के दौरान भारतीयों की वापसी, श्रद्धा हत्याकांड और ज्ञानवापी मामले पर कई एक्सक्लूसिव स्टोरी की हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान यूपी में करीब चार महीने रिपोर्टिंग की | मीडिया से बातचीत में शिवम प्रताप सिंह ने बताया कि उन्होंने ‘हिन्दी खबर’ में शुरुआती काम के दौरान दिल्ली चुनाव में प्रियंका गांधी का एक इंटरव्यू किया था, जो काफी वायरल हुआ था। इसके अलावा हाथरस रेप कांड में आरोपी के पिता का पहला और एक्सक्लूसिव इंटरव्यू भी उन्होंने किया था।मूल रूप से इटावा के रहने वाले शिवम प्रताप सिंह ने शुरुआती पढ़ाई कानपुर से करने के बाद दिल्ली में ‘इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी’ से मास कम्युनिकेशन की डिग्री ली है। मीडिया में अपने करियर की शुरुआत उन्होंने हिंदी न्यूज चैनल ‘इंडिया न्यूज’ (India News) से की थी। यहां करीब एक साल तक असिस्टेंट प्रड्यूसर के तौर पर आउटपुट में अपनी जिम्मेदार निभाने के बाद उन्होंने यहां से बाय बोलकर ‘हिन्दी खबर’ का रुख कर लिया था। हालांकि यहां उनका सफर छोटा ही रहा और करीब छह महीने यहां अपनी संक्षिप्त पारी को निभाने के बाद वह ‘जी हिन्दुस्तान’ से जुड़ गए थे। इसके बाद अब यहां से बाय बोलकर वह ‘न्यूज18 इंडिया’ पहुंचे हैं।
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पत्रकार प्रशांत सिंह ने ‘जी’ समूह में अपनी पारी को विराम दे दिया है। वह करीब चार साल से ‘जी बिजनेस’ की अंग्रेजी वेबसाइट में बतौर डिप्टी एडिटर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। प्रशांत सिंह ने अपनी नई पारी की शुरुआत ‘टाइम्स नेटवर्क’ के साथ की है। यहां उन्होंने ‘ईटी नाउ’ की डिजिटिल टीम में सीनियर एडिटर के पद पर जॉइन किया है। वह यहां बिजनेस से जुड़ी खबरें देखेंगे। प्रशांत सिंह को मीडिया में काफी अनुभव है | मूल रूप से कानपुर के रहने वाले प्रशांत सिंह ने मीडिया में अपने करियर की शुरुआत ‘दैनिक जागरण’ से की थी। पूर्व में वह ‘डीडी न्यूज’, ‘डेली भास्कर’, ‘द फाइनेंसियल एक्सप्रेस’ और ‘जी न्यूज’ (अंग्रेजी) में भी अपनी भूमिका निभा चुके हैं। प्रशांत सिंह को मीडिया में काम करने का डेढ़ दशक से ज्यादा का अनुभव है | प्रशांत सिंह News18.com के संस्थापक सदस्य और इसके पहले शिफ्ट हेड भी रहे हैं। इसके अलावा वह ‘पेटीएम’ की पैरेंट कंपनी One97 Communications और IndiaMART.com के साथ भी कार्य कर चुके हैं। प्रशांत सिंह ने पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी (PTU) से मास कम्युनिकेशन में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। इसके अलावा उन्होंने ‘आईएमटी’ गाजियाबाद से एमबीए किया है।
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युवा पत्रकार आकांक्षा चौहान ने हिंदी न्यूज चैनल ‘जी न्यूज’ में अपनी करीब एक साल पुरानी पारी को विराम दे दिया है। पत्रकारिता में अपने करियर को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने अब जल्द लॉन्च होने वाले नेशनल न्यूज चैनल ‘भारत एक्सप्रेस’ से नई शुरुआत की है। यहां उन्होंने एंकर और विशेष संवाददाता के पद पर जॉइन किया है। बता दें कि ‘जी’ द्वारा आयोजित प्रतियोगिता ‘एंकर हंट’ जीतकर आकांक्षा ने ‘जी न्यूज’ से ही अपने करियर की शुरुआत की थी। कुछ ही महीनों में अपनी तेजतर्रार रिपोर्टिंग से वह ‘जी न्यूज’ का चेहरा बनकर उभरीं। एमसीडी चुनाव में उनकी शानदार रिपोर्टिंग को भी काफी सराहा गया था। मूल रूप से सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) के रहने वाली आकांक्षा ने सोफिया गर्ल्स सेकेंडरी स्कूल से पढ़ाई करने के बाद रुड़की से पत्रकारिता में ग्रेजुएशन पूरा किया और गोल्ड मेडलिस्ट बनीं।
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प्रवीण कक्कड़ 25 दिसंबर को पूरे विश्व में क्रिसमस का त्यौहार मनाया जा रहा है। ईसा मसीह का जीवन दया, प्रेम और शांति का संदेश देता है। क्रिसमस का पर्व धर्म के दायरे में नहीं बल्कि इंसानियत के दायरे में मनाने वाला त्यौहार है। प्रभु यीशु ने जो कहा उसका संकलन बाइबिल में है लेकिन उन्होंने जो जीवन जिया उसका संकलन मानवता की स्मृतियों में है। भारत की संस्कृति अद्वैतवाद की संस्कृति है। ऐसे में भारत में क्रिसमस पर्व सांस्कृतिक एकता को दर्शाता है। इंसानियत के मसीहा प्रभु यीशु इस धरती पर तब अवतरित हुए जब मानवता आक्रांत थी। धार्मिक वैमनस्य चरम सीमा पर था। अपने-अपने सिद्धांतों के लिए लड़ाई झगड़ा और रक्तपात आम बात थी। ऐसे समय में शांति के मसीहा जीसस क्राइस्ट ने जन्म लिया। रोमन साम्राज्य की रक्त पिपासा के बीच जीसस शांतिदूत बनकर पृथ्वी पर आए। दिशाहारा मानवता को उन्होंने एक दिशा प्रदान की। भटके हुए लोगों को सही राह दिखाई और इंसानियत के लिए ही अपना बलिदान दिया। उनके अंतिम शब्द थे 'हे प्रभु इनको माफ कर देना क्योंकि यह नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं'। क्राइस्ट ने जो कहा उसका संकलन तो बाइबिल में है। लेकिन उन्होंने जो जिया उसका संकलन मानवता की स्मृतियों में है। यही कारण है कि शुरु में तो ईसाई धर्म के लोग ईसा मसीह के जन्म के बारे में ही एक मत नहीं थे, कोई 14 दिसंबर कहता तो कोई 10 जून, तो कोई 2 फरवरी को उनका जन्मदिन मनाता था। तीसरी शताब्दी में जाकर 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिन मनाना शुरु किया गया। क्रिसमस भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रकटन है। धर्म, जाति और संप्रदाय से परे सभी लोग मिलकर इस त्योहार को मनाते हैं। यदि हम भारतीय वांग्मय में देखें तो अद्वैत की परिकल्पना सर्वश्रेष्ठ है। जब ईश्वर की प्रार्थना एकाकार होकर की जाए तो वह अद्वैत ही होता है। इसलिए ईशा का जन्म भले ही यरूशलम की धरती पर हुआ हो लेकिन वह भारत भूमि में भी उतने ही पूज्यनीय और मान्य हैं। भारत में इस त्यौहार का विशद रूप में मनाया जाना इस बात का प्रतीक है कि भारत एक ऐसा देश है जहां सभी धर्मों के बीच सांस्कृतिक एकता है और सांस्कृतिक प्रेम भी है। भारत भूमि पर अनेक धर्मों का जन्म हुआ किंतु जो धर्म भारत में नहीं जन्मे उन धर्मों को भी यहां सम्मान मिलता है। इसलिए क्रिसमस भी भारत की सांस्कृतिक एकता से जुड़ा हुआ है। ईसाई समुदाय इस दिन गिरजाघरों में जाकर प्रभु यीशु के समक्ष सर झुकाता है। गैर ईसाई बंधु इस दिन छुट्टियां मनाते हैं। पिकनिक मनाते हैं और एक दूसरे को मेरी क्रिसमस भी बोलते हैं। अनेक देशवासी सांता क्लॉस जैसी टोपी पहनते हैं यह भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सबसे बड़ा संदेश यही है कि हम त्योहार के समय एक दूसरे की खुशियां बांटें। हमारे मत हमारे सिद्धांत भले ही भिन्न-भिन्न हों लेकिन हम एक दूसरे से त्यौहार के दौरान अपनी भावनाओं का आदान-प्रदान करें। क्रिसमस का त्यौहार हमारी भावनाओं के आदान-प्रदान का एक अवसर है। ईश्वर के पुत्र प्रभु यीशु ने आपस में प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया है। इसलिए इस दिन को हम मानवता के एकता के प्रतीक के रूप में भी मना सकते हैं। आइए हम सब मिलकर क्राइस्ट के जन्म की खुशियों में शामिल हों।
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एडिटरजी टेक्नोलॉजीज’ (Editorji Technologies) के फाउंडर विक्रम चंद्रा नए साल पर ‘जी’ (Zee Media) समूह के अंग्रेजी न्यूज चैनल 'विऑन' (WION) के साथ मिलकर ‘द इंडिया स्टोरी’ (The India Story) और ‘दिस वर्ल्ड’ (This World) नाम से दो साप्ताहिक न्यूज शो लेकर आ रहे हैं। बताया जाता है कि देश की आवाज को पूरी दुनिया तक ले जाने की ‘जी मीडिया’ की प्रतिबद्धता को पूरा करते हुए ये दोनों शो ‘विऑन’ के रैखिक (linear) और डिजिटल दोनों प्लेटफॉर्म्स पर जनवरी 2023 की शुरुआत में लॉन्च किए जाएंगे। इस पार्टनरशिप के बारे में ‘जी मीडिया’ के पब्लिशर डॉ. सुभाष चंद्रा का कहना है, ‘विक्रम यकीनन एकमात्र ऐसे टीवी पत्रकार हैं, जो तटस्थ, गैर-विवादास्पद बने रहने और टीवी पर रात नौ बजे होने वाले ‘शोर' से ऊपर उठने में कामयाब रहे हैं। आज के ध्रुवीकरण के माहौल में यह एक खास विशेषता है। उन्हें निष्पक्ष और संतुलित पत्रकार के रूप में देखा जाता है, जो उच्च स्तर की विश्वसनीयता प्रदान करता है। किसी भी विषय पर लोग उनके विचारों पर भरोसा करते हैं। इस वजह से भी हम उनके साथ ये दो शो शुरू करने जा रहे हैं।’ विक्रम चंद्रा द्वारा विऑन पर पेश किए जाने वाले इन दोनों शोज का मुख्य उद्देश्य दुनियाभर की प्रमुख घटनाओं को भारतीय दृष्टिकोण से समझने में मदद करना है। 'This World' की यही थीम होगी, जिसे विक्रम चंद्रा विऑन पर होस्ट करेंगे। वहीं, वैश्विक स्तर पर विऑन की पहुंच ‘The India Story’ को बेहतर पहुंच प्रदान करेगी, जो पहले से ही एडिटरजी पर चल रहा है। वहीं, विक्रम चंद्रा का कहना है, ‘मैं कई वर्षों से टीवी न्यूज से दूर हूं और एडिटरजी में ऐसी टेक्नोलॉजी तैयार कर रहा हूं जो मुझे लगता है कि वीडियो न्यूज और इंफॉर्मेशन में बड़ा बदलाव ला सकती हैं। राजनीति के प्रभुत्व वाले न्यूज कार्यक्रमों के शोरगुल और हंगामे पर लौटने का मेरा कोई इरादा नहीं था, लेकिन विऑन कुछ अलग है। यह देश से बाहर एकमात्र सच्चा अंतर्राष्ट्रीय चैनल है और दुनियाभर में इसकी जबरदस्त पहुंच है। मैं 'The India Story' को विऑन पर लाने और 'This World' को प्रमुख वैश्विक घटनाओं को लेकर साप्ताहिक न्यूज शो बनाने के लिए उनकी प्रतिभाशाली टीम के साथ काम करने के लिए उत्सुक हूं।’ इस पार्टनरशिप के बारे में विऑन के चीफ बिजनेस ऑफिसर मधु सोमन का कहना है, ‘आप मानें या न मानें, हम दोनों कुछ महीने पहले ही लिंक्डइन पर मिले थे। विक्रम मुझे बहुत पहले से नहीं जानते हैं, लेकिन आज वह विऑन की यात्रा में एक दोस्त और सहयोगी है और मुझे यकीन है कि हमारी साझेदारी 'This World' को आगे बढ़ाएगी और 'The India Story' को नया आयाम देगी।’ इन दो शो के अलावा ‘जी मीडिया कॉरपोरेशन लिमिटेड’ और ‘एडिटरजी टेक्नोलॉजीज’ मिलकर सामाजिक परिवर्तनों के कार्यक्रमों पर काम करेंगे, जिन्हें विक्रम चंद्रा के अनुभव और जी समूह के तमाम प्लेटफॉर्म्स की पहुंच का फायदा मिलेगा। बता दें कि ‘Editorji’ को शुरू करने से पहले विक्रम चंद्रा वर्ष 2011 से 2016 तक ‘एनडीटीवी’ में कंसल्टिंग एडिटर और सीईओ के पद पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। एक पत्रकार के रूप में चंद्रा ने कश्मीर संघर्ष को कवर करते हुए अपनी नई पहचान बनाई। उन्हें ‘एनडीटीवी’ पर ‘Nine O'Clock News’, ‘Gadget Guru’ और ‘The Big Fight’ जैसे लोकप्रिय शो की मेजबानी के लिए जाना जाता है। चंद्रा को ‘वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम’ से ‘Global Leader for Tomorrow’ का खिताब भी मिल चुका है। वहीं, ‘WION’ की बात करें तो वर्ष 2015 में लॉन्च हुआ देश का डिजिटल-फर्स्ट यह इंटरनेशनल न्यूज चैनल तमाम चैनल्स की भीड़ में दर्शकों की बीच अपनी एक खास पहचान बनाने में कामयाब रहा है। भारतीय मीडिया के लिए ‘WION’ डॉ. सुभाष चंद्रा का एक बड़ा विजन है। वह देश को एक वैश्विक मंच पर ले जाने और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्र के सामने आने वाली चुनौतियों का उन्मूलन करना चाहते हैं। वह वसुधैव कुटुम्बकम यानी (One World – One Family) में दृढ़ विश्वास रखते हैं।
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ABP न्यूज लाया नया प्राइम टाइम शो ‘ देश के बड़े मीडिया नेटवर्क्स में शुमार ‘एबीपी नेटवर्क’ के हिंदी न्यूज चैनल ‘एबीपी न्यूज’ ने नया प्राइम टाइम शो शुरू किया है। रात आठ बजे ‘द इनसाइड स्टोरी’ नाम से शुरू हुए इस नए शो को टीवी पत्रकार और लंबे समय से ‘एबीपी न्यूज’ पर ‘घंटी बजाओ’ शो की एंकरिंग कर रहे अखिलेश आनंद होस्ट कर रहे हैं। जैसा कि शो का नाम है, उसी के मुताबिक दर्शकों को इस शो में हर खबर के अंदर की जानकारी दी जा रही है। बताया जाता है कि ‘द इनसाइड स्टोरी’ में न सिर्फ न्यूज होगी, बल्कि रिपोर्टर ग्राउंड जीरो से खबर के अंदर का सच भी दिखाया जाएगा। यहां बता दें कि पूर्व में ‘जी न्यूज’ और ‘न्यूज 24’ में एंकरिंग कर चुके अखिलेश आनंद लगभग दो दशक से मीडिया में सक्रिय हैं। ‘न्यूज 24’ में वह ‘सबसे बड़ा सवाल’ के नाम से डिबेट शो करते थे।राजनीतिक खबरों की ग्राउंड जीरो से एंकरिंग में माहिर अखिलेश आनंद ‘एबीपी न्यूज’ में ‘कौन बनेगा प्रधानमंत्री’ से लेकर ‘कौन बनेगा मुख्यमंत्री’ के दर्जनों एपिसोड होस्ट कर चुके हैं। पिछले दिनों अखिलेश आनंद को इंडियन टेलीविजन एकेडमी (ITA) अवॉर्ड्स से नवाजा गया है। अखिलेश आनंद को उनके शो ‘घंटी बजाओ’ के एपिसोड ‘वॉटर वेस्ट मैनेजमेंट’ के लिए ‘बेस्ट-शो न्यूज/ करेंट अफेयर्स’ कैटेगरी में यह अवॉर्ड दिया गया है।
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न्यूज़-24 चैनल 15 साल का हो गया. इस मौके पर मुझे भी कुछ पुरानी बातें याद आ रही हैं. साल 2007. शायद सितंबर का महीना था. न्यूज़-24 की पहली स्ट्रिंगर मीटिंग. देशभर के स्ट्रिंगर्स को बुलाया गया था. अजीत अंजुम जी ने 3 लोगों की ड्रेसिंग सेंस की तारीफ की थी. मैं भी उनमें से एक था. मीटिंग में खबरों का प्लान समझाया गया और लौट कर हम काम में जुट गए. फिर चैनल लॉन्च हुआ और नई ऊंचाईयों तक पहुंचा. श्वेता सिंह, अंजना ओम कश्यप, चित्रा त्रिपाठी, सईद अंसारी जैसे तमाम बड़े एंकर इस चैनल में एक साथ थे. ब्यूरो में एक से बढ़कर एक रिपोर्टर थे. असाइनमेंट पर बेहद ऊर्जावान साथी थे. मेरे ब्यूरो थे सलीम सैफी. उन्होंने पहले मुझे बुलंदशहर सिटी की जिम्मेदारी सौंपी और फिर जिला बुलंदशहर. इसके बाद ग्रेटर नोएडा भी. हालांकि बाद में कुछ और जिलों में जाकर भी काम करने का मौका मिला. सैंकडों फोन-इन, दर्जनों पीटीसी, एक लाइव. साढ़े तीन साल में मैं स्टार बन चुका था. पूरे वेस्ट यूपी की हर बड़ी खबर उंगलियों पर. 2009 का लोकसभा चुनाव कवर किया. 2007 का यूपी विधानसभा चुनाव कवर किया. एक से बढ़कर एक रैली कवर की. बड़े से बड़े नेताओं के इंटरव्यू किए. हर महीने कम से कम 30 खबरें कवर कीं. यानी 3 साल में 1000 खबरों से ज्यादा खबरें मैंने न्यूज़-24 के लिए कवर कीं। साल 2010 के जून में स्टार न्यूज़ में मेरा सलेक्शन हुआ और मैंने इसी महीने माइक आईडी वापस न्यूज़-24 में जमा करा दी. खैर, मैं आज जो कुछ भी हूं, उसमें न्यूज़-24 का भी एक अहम रोल है. मैं अच्छा रिपोर्टर बन सका, डेस्क पर आने के बाद लोकल खबरों को ठीक से समझ सका, डेस्क पर बैठकर भी रिपोर्टिंग कर सका, तो ये सब इसीलिए संभव हुआ क्योंकि न्यूज़-24 ने, मेरे ब्यूरो चीफ ने, असाइनमेंट के साथियों और वरिष्ठों ने मुझ पर भरोसा किया और मेरी खबरों में जान डाली. अब जब इस चैनल के 15 साल पूरे हो गए हैं तो कुछ पुरानी यादें ताजा हुई हैं.
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वरिष्ठ टीवी पत्रकार नवेद कुरैशी ने हाल ही में हिंदी न्यूज चैनल 'न्यूज नेशन' (न्यूज नेशन) से अपनी पारी को विराम देने के बाद अब यू-ट्यूब चैनल NFM न्यूज ज्वाइन किया है। वह अनुबंध इस यू-ट्यूब चैनल से जुड़े हैं। इस यू-ट्यूब चैनल के 15 मिलियन से अधिक सब्सक्राइबर हैं। बताएं कि 'न्यूज नेशन' में वह करीब पांच साल से एंकर एंकर और एंकर (स्पेशल दृष्टिकोण) के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। इस चैनल में नवेद की रूस-यूक्रेन युद्ध कवरेज ने बहुत सुरखियां बटोरी थीं। इसके अलावा यूपी चुनाव के दौरान उनका शो 'बड़े मियां किधर चले? भी काफी लोकप्रिय हुआ था। मूल रूप से उज्जैन (मध्य प्रदेश) के रहने वाले नवेद कुरैशी को मीडिया में काम करने का दो दशक से ज्यादा का अनुभव है। विक्रम यूनिवर्सिटी, उज्जैन से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने अपने करियर की शुरुआत प्रिंट मीडिया से की थी। इस दौरान वह कई शहरों में 'दैनिक जागरण' सहित कई अखबारों में बंद रही। इसके बाद टीवी की दुनिया का रुख करते हुए वह 'वाइस ऑफ इंडिया' (वॉयस ऑफ इंडिया) से जुड़ गए। यहां करीब चार साल तक अपनी भूमिका निभाने के बाद उन्होंने यहां से बोलकर 'न्यूज24' (न्यूज24) का दामन थम लिया। करीब चार साल बाद यहां से वह 'न्यूज एक्सप्रेस' (न्यूज एक्सप्रेस) चली गई और यहां करीब एक साल की अपनी जिम्मेदारी निभाई और इसके बाद 'आजतक' (आजतक) से जुड़ गई। 'न्यूज नेशन' से पहले वह करीब पांच साल से 'आजतक' से जुड़े थे।
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न्यूज एंकर साक्षी मिश्रा ने हिंदी न्यूज चैनल ‘टीवी9 भारतवर्ष’ (TV9 Bharatvarsh) से इस्तीफा दे दिया है। सूत्रों के हवाले से मिली खबर के अनुसार, जल्द ही वह ‘भारत 24’ चैनल में बतौर एंकर अपनी नई शुरुआत करने जा रही हैं। साक्षी मिश्रा करीब एक साल से ‘TV9 भारतवर्ष’ में काम कर रही थीं। यहां वह पैकेजिंग के साथ-साथ ‘TV9’ नेटवर्क के लिए एंकरिंग और रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी भी संभाल रही थीं। कोरोना गाइडलाइंस पर उनकी ग्राउंड रिपोर्टिंग की काफी सराहना हुई थी।‘TV9’ के डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए भी उन्होंने शो होस्ट किए थे। इससे पहले साक्षी ‘एनडीटीवी’ (NDTV) और ‘सीएनएन’ (CNN) के लिए भी काम कर चुकी हैं। साक्षी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म में BA ऑनर्स किया है और वह अपना पॉडकास्ट भी चलाती हैं।
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युवा टीवी पत्रकार लवीना राज ने ‘नेटवर्क18’ (Network18) समूह के साथ मीडिया में अपना नया सफर शुरू किया है। उन्होंने इस समूह के हिंदी न्यूज चैनल ‘न्यूज18 इंडिया’ में बतौर एंकर जॉइन किया है। बता दें कि लवीना राज इससे पहले करीब तीन साल से ‘जी समूह’ के साथ जुड़ी हुई थीं। यहां शुरू में इस समूह के रीजनल चैनल ‘जी’ (राजस्थान) में करीब डेढ़ साल बिताने के बाद पिछले करीब डेढ़ साल से वह ‘जी हिन्दुस्तान’ में बतौर एंकर अपनी भूमिका निभा रही थीं। इस चैनल पर वह दो प्राइम टाइम शो शाम सात बजे ‘मेरा राज्य मेरा देश’ और रात दस बजे ‘अखंड भारत’ होस्ट करती थीं। मूल रूप से जयपुर (राजस्थान) की रहने वाली लवीना को मीडिया में काम करने का करीब छह साल का अनुभव है। ‘जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी’ से जर्नलिज्म और मास कम्युनिकेशन में ग्रेजुएट लवीना ने मीडिया में अपने करियर की शुरुआत ‘न्यूज इंडिया’ जयपुर से की थी। इसके बाद यहां से वह ‘A1 TV’ होती हुईं ‘जी समूह’ पहुंची थीं, जहां से अलविदा बोलकर उन्होंने अब ‘न्यूज18 इंडिया’ जॉइन किया है।
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युवा पत्रकार अनामिका सिंह ने 'नेटवर्क18' (नेटवर्क18) समूह में अपनी पारी को विराम दे दिया है। वह इस ग्रुप के हिंदी न्यूज चैनल 'न्यूज 18' (यूपी/यूके) में लखनऊ में लगी हुई थीं और करीब तीन साल से जिम्मेदारियां सीनियर स्पेशल करेसपंडेंट अपनी जिम्मेदारी संभाल रही थीं। खबर है कि अनजाना सिंह अब नोएडा में 'रिपब्लिक इंडिया' (रिपब्लिक भारत) से मीडिया में अपनी नई यात्रा शुरू करने जा रहे हैं। यहां पर उन्होंने अपना अधिकार न्यूज न्यूज/एंकर अपनी जिम्मेदारी संभालेंगे। बता दें कि मूल रूप से बलिया (उत्तर प्रदेश) का रहना अनामिका सिंह को मीडिया में काम करने वाला का करीब दस साल का अनुभव है। बलिया से ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद उन्होंने 'महाराणा प्रताप यूनिवर्सिटी' से मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की है। अनामिका सिंह ने मीडिया में अपने करियर की शुरुआत 'सहारा' (सहारा) से की थी। इसके अलावा पूर्व में उन्होंने 'न्यूज नेशन' (न्यूज नेशन) में भी अपनी जिम्मेदारी निभाई है।
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ABP न्यूज को मिला लोकप्रिय हिंदी न्यूज चैनल का अवॉर्ड देश के प्रतिष्ठित हिंदी न्यूज चैनल्स में शुमार ‘एबीपी न्यूज’ को मुंबई में आयोजित इंडियन टेलीविजन एकेडमी (ITA) अवॉर्ड्स के दौरान लगातार दूसरे साल ‘मोस्ट पॉपुलर हिंदी न्यूज चैनल’ का पुरस्कार दिया गया। यह पुरस्कार जीआर 8 एंटरटेनमेंट लिमिटेड के चेयरमैन व मैनेजिंग डायरेक्टर शशि रंजन और जानी-मानी अभिनेत्री महिमा चैधरी के द्वारा दिया गया। कार्यक्रम के दौरान एबीपी न्यूज के सीनियर एंकर्स रुबिका लियाकत और अखिलेश आनंद को अलग से पुरस्कार दिए गए। रुबिका को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ उनके इंटरव्यू के लिए ‘बेस्ट टॉक/ चैट शो’ का पुरस्कार मिला। वहीं अखिलेश आनंद को उनके शो ‘घंटी बजाओ’ के एपिसोड ‘वॉटर वेस्ट मैनेजमेंट’ के लिए ‘बेस्ट-शो न्यूज/ करेंट अफेयर्स’ कैटेगरी में सम्मानित किया गया। एबीपी न्यूज ने 22वें आईटीए अवॉर्ड्स के दौरान विशेष और अलग एंट्रीज में सबसे ज्यादा पुरस्कार जीते हैं। इस उपलब्धि पर अपने विचार व्यक्त करते हुए एबीपी नेटवर्क के सीईओ अविनाश पांडे ने कहा, ‘मैं इस पुरस्कार के लिए शशि रंजन, अनु रंजन और आईटीए को धन्यवाद देना चाहूंगा। यह पुरस्कार हमारे सैंकड़ों पत्रकारों के लिए है, जो दिन-रात कड़ी मेहनत कर दर्शकों के लिए गुणवत्तापूर्ण कंटेंट लेकर आते हैं। रेटिंग की होड़ के बीच इतने अच्छे परिणाम और सराहना हासिल करना अपने आप में सबसे बड़ी उपलब्धि है। एबीपी नेटवर्क इसी दृष्टिकोण में भरोसा रखता है और यही कारण है कि हम अपने दर्शकों के लिए उत्कृष्ट गुणवत्ता की खबरें लेकर आते हैं। इस अवसर पर मैं एबीपी न्यूज की ओर से हमारे लाखों दर्शकों के प्रति आभार व्यक्त करना चाहता हूं, जिन्होंने एबीपी न्यूज को अपना वोट देकर इसमें अपना भरोसा जताया और सबसे लोकप्रिय हिंदी न्यूज चैनल साबित किया है। हमारे दर्शकों ने एक बार फिर से बता दिया है कि एबीपी न्यूज़ के लिए उनके दिलों में खास जगह है और यही बात इस अवॉर्ड को हमारे लिए सबसे खास बनाती है।’ उन्होंने आगे कहा कि यह पुरस्कार अपने दूसरे वर्ष में है, जो एबीपी न्यूज की लगातार बढ़ती लोकप्रियता की पुष्टि करता है। हमारे नेटवर्क की मजबूत प्रोग्रामिंग तथा दर्शकों के लिए सटीक एवं पक्षपात रहित खबरें लाने के समर्पण की वजह से ही यह संभव हो पाया है। यह चैनल प्रोग्रामिंग की व्यापक रेंज पेश करता है जो हर तरह के दर्शकों को लुभाती है और इसे भारतीय दर्शकों का सबसे पसंदीदा चैनल बनाती है।
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सोशल मीडिया के चर्चित चेहरे और युवा पत्रकार श्याम त्यागी ने हिंदी न्यूज चैनल ‘एबीपी न्यूज’ (ABP News) से मीडिया में अपनी नई पारी का आगाज किया है। उन्होंने यहां पर बतौर प्रड्यूसर जॉइन किया है। ‘एबीपी न्यूज’ में अपनी पारी शुरू करने से पहले श्याम त्यागी वरिष्ठ पत्रकार जगदीश चंद्रा के नेतृत्व में शुरू हुए ‘भारत24‘ (Bharat24) में करीब ढाई महीने से अपनी सेवाएं दे रहे थे। ‘भारत24‘ में श्याम त्यागी ने मॉर्निंग शिफ्ट में काफी अहम जिम्मेदारियां निभाईं और ईवनिंग बैंड के डिबेट शो भी प्रोड्यूस किए।‘भारत24‘ से पहले श्याम त्यागी करीब ढाई साल तक ‘टीवी9 भारतवर्ष’ (TV9 Bharatvarsh) का हिस्सा थे। 'इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च' गाजियाबाद से पढ़े-लिखे श्याम त्यागी ने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 2010 में ‘बीएजी फिल्म्स’ (BAG Films) के साथ की थी। इस दौरान उन्होंने ‘बीएजी फिल्म्स’ द्वारा 'नेशनल जियोग्राफी' के लिए बनाए गए शो 'India Investigates' की प्रोडक्शन टीम में काम किया। दो शॉर्ट्स फिल्में भी बनाईं, जिन्हें बाद में अवॉर्ड्स से भी सम्मानित किया गया। बाद में श्याम त्यागी ‘न्यूज24’ (News24) का हिस्सा हो गए और वर्ष 2014 तक ‘न्यूज24’ के कई चर्चित शो में काम किया | वर्ष 2014 में निजी कारणों से ‘न्यूज24’ को अलविदा बोलकर श्याम त्यागी ने गाजियाबाद में ही मैगजीन की शुरुआत की। श्याम त्यागी को यूट्यूब/डिजिटल में भी महारत हासिल है। उनके अपने पर्सनल चैनल पर हजारों सबस्क्राइबर्स हैं। वह अक्सर यूट्यूब की बारीकियां लोगों को बताते रहते हैं।समाचार4मीडिया से बातचीत में श्याम त्यागी ने बताया कि वर्ष 2015 में उनके एक यूट्यूब चैनल के सबस्क्राइबर्स की संख्या एक लाख को पार कर गई थी। तब यूट्यूब की नीतियां काफी कठोर थीं। तब कॉपीराइट को लेकर यूट्यूब बहुत सजग था।श्याम की राजनीतिक खबरों में गहरी दिलचस्पी है। उन्हें व्यंग्य लिखना पसंद है। कोविड काल में फेसबुक पर लिखी गयी श्याम की पोस्ट को लाखों लोगों ने पढ़ा और शेयर किया था। बाद में खुद फेसबुक ने वो पोस्ट डिलीट कर दी थी, जिसे लेकर लोगों ने फेसबुक की काफी आलोचना की थी।
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वरिष्ठ टीवी पत्रकार व इंडिया टुडे ग्रुप के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई को लेकर मीडिया गलियारों में चर्चाएं शुरू हो गई हैं कि वह इंडिया टुडे ग्रुप से अलग हो रहे हैं। दरअसल, इस तरह के कयास तब लगाए जाने लगे, जब उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से मात्र दो शब्दों का एक ट्वीट किया। ट्वीट था ‘THE END’. बस फिर क्या था, उनके ट्वीट करते ही मीडिया गलियारों में इन शब्दों को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। लोग कयास लगाने लगे कि उन्होंने इंडिया टुडे ग्रुप में अपनी पारी को THE END कह दिया है।
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वरिष्ठ टीवी पत्रकार रवीश कुमार के हाल ही में इस्तीफा देने के बाद 'NDTV इंडिया' से जुड़े कई पत्रकार एक के बाद एक ऑर्गनाइजेशन छोड़ रहे हैं। इसी कड़ी में अब वरिष्ठ टीवी पत्रकार अभिषेक शर्मा का नाम भी जुड़ गया है, जोकि 'NDTV इंडिया' के मुंबई ब्यूरो के अग्रणी सदस्यों में से एक हैं। उन्होंने 17 साल से अधिक समय तक चैनल से जुड़े रहने के बाद अब इस्तीफा दे दिया है। एक हफ्ते पहले, NDTV इंडिया के सीनियर एग्जिक्यूटिव एडिटर रवीश कुमार ने भी इस्तीफा दे दिया था। रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता रवीश कुमार 'हम लोग', 'रवीश की रिपोर्ट', 'देश की बात' और 'प्राइम टाइम' सहित कई कार्यक्रमों की मेजबानी करते थे। उन्होंने यह फैसला प्रणय रॉय और राधिका रॉय के एनडीटीवी की प्रमोटर कंपनी आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर पद से इस्तीफे के तुरंत बाद लिया था। बता दें कि 22 नवंबर को, अडानी समूह ने एक खुली पेशकश शुरू करके कंपनी में अतिरिक्त 26 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करने की प्रक्रिया शुरू की थी, जो 5 दिसंबर को समाप्त हो गई है।
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BARC के रेटिंग सिस्टम TVT में कोई गिरावट नहीं ‘टाइम्स नाउ’ के एडिटोरियल डायरेक्टर व एडिटर-इन-चीफ राहुल शिवशंकर ने एक गोलमेज चर्चा के दौरान कहा कि ‘बार्क’ (BARC) इस समय अपने मौजूदा अवतार में साफ-सुथरा (क्लीन) है। BARC द्वारा रेटिंग फिर से शुरू किए जाने के बाद के रेटिंग सिस्टम पर बोलते हुए राहुल शिवशंकर ने कहा कि चैनल की TVT में कोई गिरावट नहीं आयी है, बल्कि यह केवल बढ़ी है। उन्होंने कहा, ‘मैं इस समय मैन्युपुलेशन को लेकर बात कर रहा हूं, जो कथित तौर पर हुआ था। एक ऑडिट रिपोर्ट में भी यह बात साफ हुई है कि ‘टाइम्स नाउ’ के नंबर्स को जानबूझकर कम किया जा रहा था और हमें चयनित तरीके से टार्गेट किया गया था, क्योंकि हमें सहयोगी कॉम्पटीटर मार्केट में एक लीडर के तौर देखते थे। उन्होंने आगे कहा कि सिस्टम अब स्पष्ट और साफ है। अब हमारे पास तर्क हो सकते हैं कि कितने मीटर होने चाहिए, क्या सिस्टम जो प्रतिनिधित्व करता है, वह पर्याप्त है या नहीं। लेकिन मैं केवल प्रोसेस के बारे में बात कर रहा हूं और सुझाव है कि यह पूरी तरह से सही है। न्यूज जॉनर के दर्शकों की संख्या के बारे में बात करते हुए शिवशंकर ने कहा कि ओवरऑल रीच और TVT के आंकड़े दोनों में वृद्धि हुई है। सामूहिक रूप से दर्शकों की संख्य बढ़ी है। हालांकि, चुनौती प्रासंगिक बने रहने की है। जब आपके पास इतने अलग-अलग प्रकार के मीडिया माध्यम हैं, तो इसका मतलब है कि हमें अपनी कंटेंट स्ट्रैटजी को अलग तरीके से पेश करना होगा।’ उन्होंने यह भी साझा किया कि 2017 से 2019 तक मैन्युपुलेशन की वजह से ‘टाइम्स नाउ’ को ऐड रेवेन्यू का नुकसान उठाना पड़ा है और यह नुकसान लगभग 400 करोड़ रुपए का है। बावजूद इसके अब भी ‘टाइम्स नाउ’ के पास ही लीडरशिप है और चैनल को अब भी ऐड रेवन्यू की दोगुनी राशि मिलती है। BARC द्वारा फिर से रेटिंग शुरू किए जाने के बाद के समय को लेकर शिवशंकर ने कहा कि ‘टाइम्स नाउ’ की हिस्सेदारी 24% (जोकि रेटिंग के दोबारा शुरू किए जाने से पहले थी) से बढ़कर अब 40% हो गई है। उन्होंने कहा कि चैनल ने रीच और TSV दोनों में अपना नेतृत्व बरकरार रखा है।
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प्रियदर्शिनी पटवा को प्रसिद्ध मैगजीन ‘जीक्यू’ (GQ) इंडिया में मैनेजिंग एडिटर के पद पर नियुक्त किया गया है। वह यहां पहले की तरह एंटरटेनमेंट एडिटर की जिम्मेदारी भी संभालेंगी। एक सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से पटवा ने अपनी नई भूमिका के बारे में जानकारी शेयर की है।अपनी पोस्ट में पटवा ने लिखा है, ‘2022 मेरे लिए काफी अच्छा साल रहा है। इस दौरान बहुत कुछ सीखने को मिला और तमाम डेवलपमेंट्स देखने को मिले। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि मुझे अब जीक्यू इंडिया में मैनेजिंग एडिटर बनाया गया है। हालांकि, पूर्व की तरह मैं एंटरटेनमेंट एडिटर की भूमिका निभाना भी जारी रखूंगी।’ बता दें कि प्रियदर्शिनी पटवा करीब दो साल से ‘जीक्यू’ इंडिया के साथ काम कर कर ही है। पूर्व में वह ‘फ्री प्रेस जर्नल’ में फीचर एडिटर भी रह चुकी हैं।
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वरिष्ठ पत्रकार नीरज सिंह ने वरिष्ठ टीवी पत्रकार जगदीश चंद्रा के नेतृत्व में इसी साल 15 अगस्त को नोएडा से लॉन्च हुए हिंदी न्यूज चैनल ‘भारत24’ के साथ मीडिया में अपने नए सफर की शुरुआत की है। उन्होंने यहां पर बतौर आउटपुट हेड जॉइन किया है। नीरज सिंह इससे पहले जी’ समूह के हिंदी न्यूज चैनल ‘जी हिन्दुस्तान’ में बतौर आउटपुट हेड कार्यरत थे, जहां से पिछले दिनों उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। यहां टीवी के साथ-साथ नीरज ‘जी हिन्दुस्तान’ के सोशल और डिजिटल प्लेटफॉर्म को भी लीड कर रहे थे। ‘जी समूह’ के साथ नीरज सिंह की ये दूसरी पारी थी। ‘रिपब्लिक भारत’ से जुड़ने से पहले नीरज ‘जी न्यूज’ से करीब पांच साल तक जुड़े रहे थे। बता दें कि 'जी हिन्दुस्तान' से पहले नीरज सिंह ‘रिपब्लिक भारत’ में कार्यरत रहे हैं। ‘रिपब्लिक भारत’ में वह सीनियर एसोसिएट एडिटर के पद पर थे। वहां अरनब गोस्वामी के मशहूर शो ‘पूछता है भारत’ की जिम्मेदारी नीरज सिंह के पास ही थी। ‘रिपब्लिक भारत’ की डिजिटल टीम को भी नीरज लीड कर रहे थे।. इसके अलावा वह ‘एक्सचेंज4मीडिया’ समूह की हिंदी न्यूज वेबसाइट ‘समाचार4मीडिया’ में एडिटर के तौर पर भी अपनी भूमिका निभा चुके हैं। नीरज सिंह उन चुनिंदा पत्रकारों में हैं, जो प्रिंट, डिजिटल और टीवी तीनों ही माध्यमों में प्रमुख भूमिका निभा चुके हैं।
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'BQ प्राइम’ से बतौर कंसल्टेंट जुड़ टीवी न्यूज की दुनिया के जाने-माने चेहरे और सीनियर न्यूज एंकर सुमित अवस्थी के बारे में एक बड़ी खबर निकलकर सामने आयी है। दरअसल, खबर यह है कि वह अब क्विंटिलियन बिजनेस मीडिया ग्रुप की हिंदी न्यूज वेबसाइट ‘BQ प्राइम’ से बतौर कंसल्टेंट जुड़ गए हैं। ‘BQ प्राइम हिंदी’ पर उनका पहला वीडियो भी आ गया है, जिसमें उन्होंने जजों की नियुक्ति पर अपनी बेवाक राय भी दी है। बता दें कि इससे पहले सुमित अवस्थी ‘एबीपी न्यूज’ में वाइस प्रेजिडेंट (न्यूज व प्रॉडक्शन) के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे थे। सुमित अवस्थी ने वर्ष 2018 में ‘एबीपी न्यूज’ में बतौर कंसल्टिंग एडिटर जॉइन किया था। इससे पहले वह ‘नेटवर्क18’ में डिप्टी मैनेजिंग एडिटर के तौर पर अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे थे। वह ‘जी न्यूज’ में रेजिडेंट एडिटर भी रह चुके हैं। सुमित अवस्थी करीब पांच साल तक ‘आजतक’ में भी रह चुके हैं। यहां वह डिप्टी एडिटर के तौर पर कार्यरत थे। सुमित राजनीति में अच्छी पकड़ और बेहतर रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते हैं। सुमित अवस्थी को पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने का दो दशक से ज्यादा का अनुभव है। पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें अब तक ‘दादा साहेब फाल्के एक्सीलेंस अवॉर्ड‘ और ‘माधव ज्योति अवॉर्ड‘ समेत तमाम प्रतिष्ठित अवॉर्ड्स से नवाजा जा चुका है। इसके साथ ही उन्हें प्रतिष्ठित ‘एक्सचेंज4मीडिया न्यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (ENBA) से भी नवाजा जा चुका है। सुमित अवस्थी का जन्म लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में हुआ है। केंद्रीय विद्यालय, इंदौर से अपनी स्कूलिंग पूरी करने के बाद उन्होंने इंदौर में ही ‘होलकर साइंस कॉलेज’ से ग्रेजुएशन की है। इसके बाद उन्होंने दिल्ली स्थित ‘भारतीय विद्या भवन‘ से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। रिपोर्ट- शैफाली गुप्ता
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(प्रवीण कक्कड़) भारत में राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक यात्राओं का लंबा इतिहास है। कभी आमजन से जुड़ने, कभी समाज में चेतना को विकसित करने तो कभी राजनितिक परिवर्तन लाने के लिए यात्राएं निकलती रही हैं। इन दिनों देश में सबसे ज्यादा बातचीत किसी चीज की हो रही है तो वह है राहुल गांधी की कन्याकुमारी से कश्मीर तक जाने वाली पदयात्रा की। असल में बात किसी व्यक्ति की नहीं है बल्कि बात उस भावना की है जो लोगों को आकर्षित करती है। इतिहास में ऐसे अनेक प्रसंग मिलते हैं जब महान हस्तियों ने जनता से जुड़ने के लिए और अपनी बात रखने के लिए लंबी-लंबी यात्राएं की। अगर हम त्रेता युग से शुरू करें तो भगवान राम ने भी अयोध्या से रामेश्वरम तक पदयात्रा करने के बाद ही लंका पर चढ़ाई की थी। भगवान चाहते तो अपने भृकुटी विलास से ही किसी भी शत्रु को परास्त कर सकते थे लेकिन जब वह पैदल दूरदराज के इलाकों से निकले और जन सामान्य ने उनके दर्शन किए और उन्होंने जन सामान्य की परिस्थिति का अवलोकन किया तो नर और नारायण एक हो गए। भारत में पुराण काल में ही दूसरी महत्वपूर्ण यात्रा अगस्त मुनि की मानी जाती है। वह पहले ऐसे व्यक्ति माने जाते हैं जिन्होंने विंध्याचल पर्वत को पार किया। उत्तर भारत और दक्षिण भारत को सांस्कृतिक रूप से जोड़ने में अगस्त्यमुनि का ही महात्म्य हमारे ग्रंथों में बताया गया है। तीसरी महत्वपूर्ण पदयात्रा आदि गुरु शंकराचार्य की है। केरल में जन्मे शंकराचार्य ने पूरे भारत का भ्रमण किया और चारधाम की स्थापना की। उनकी इन्हीं यात्राओं से सनातन धर्म में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। इसी तरह गौतम बुद्ध और गुरु नानक देव जैसी विभूतियों ने उस दौर में यात्राएं करके जनमानस के बीच अपनी आध्यात्मिक चेतना का प्रसार किया। भारत के इतिहास में कुछ राजनीतिक यात्राएं भी हैं जिन्होंने भारत की राजनीति की दशा और दिशा को पूरी तरह बदल कर रख दिया। महात्मा गांधी की दांडी यात्रा ने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। इस यात्रा में महात्मा गांधी ने। अहमदाबाद से दांडी तक 241 किलोमीटर की यात्रा करके नमक का कानून तोड़ा और भारतीय जनमानस में स्वतंत्रता के प्रति राष्ट्रीय चेतना का संचार किया। विनोबा भावे ने भी भूदान आंदोलन के दौरान लंबी पदयात्रा की। किंतु आजादी के बाद सबसे लंबी पैदल यात्रा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को है। 6 जनवरी 1983 को तमिलनाडु से निकली चंद्रशेखर की यात्रा 25 जून 1983 को दिल्ली में खत्म हुई। लगभग 170 दिन तक की इस यात्रा में चंद्रशेखर 4000 से अधिक किलोमीटर पैदल चले थे। चंद्रशेखर की पदयात्रा का उद्देश्य था पीने का पानी, कुपोषण से मुक्ति, हर बच्चे की पढ़ाई, हर इंसान को स्वास्थ्य का अधिकार और सामाजिक सद्भाव। इस पदयात्रा से चंद्रशेखर भारत की राजनीति में एक ताकतवर राजनेता बन कर उभरे। बाद में कुछ समय के लिए देश के प्रधानमंत्री भी बने। भारतीय राजनीति में दक्षिण पंथ को मजबूती से स्थापित करने वाले लालकृष्ण आडवाणी भी एक नहीं दो-दो बार यात्रा पर निकले। किंतु आडवाणी पैदल नहीं चले। बल्कि अपनी पहली यात्रा में रथ पर सवार होकर 1990 में सोमनाथ से अयोध्या के लिए निकल पड़े। उनकी रथयात्रा को लालू यादव ने बिहार में रोक दिया। इसके बाद वर्ष 2011 में आडवाणी की जनचेतना रथ यात्रा भ्रष्टाचार के खिलाफ 38 दिन तक चली और 23 राज्यों व चार केंद्र शासित प्रदेशों से होकर गुजरी। इससे पहले वर्ष 2003 में वाईएसआर रेड्डी ने पदयात्रा की थी। 2013 में चंद्रबाबू नायडू भी पदयात्रा पर निकले थे। 2017 में दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश में नर्मदा परिक्रमा यात्रा निकाली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी 7 सितंबर 2022 से पदयात्रा कर रहे हैं। कन्याकुमारी से प्रारंभ उनकी पदयात्रा का आधे से अधिक मार्ग तय हो चुका है। भारत जोड़ो यात्रा के नाम से विख्यात यह 150 दिन की पदयात्रा कश्मीर में पूरी होगी। राहुल गांधी कहते हैं कि यह गैर राजनीतिक यात्रा है। जनता के दुख दर्द को समझने की यात्रा है। बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी जैसी समस्याओं पर जनचेतना जागृत करने की यात्रा है। राहुल गांधी की यात्रा में बिना बुलाए बड़ी संख्या में लोगों का पहुंचना इस बात का प्रतीक है कि इस यात्रा से जनता में राजनीतिक चेतना का विस्तार हो रहा है। साथ ही इतना अवश्य है कि अपनी यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने आमजन से मिलकर देश की जनता के बीच अपनी छाप छोड़ी है। राजनीति हस्तियों की यात्राएं जनता से सीधा संवाद करने का अवसर प्रदान करती हैं। और राजनीतिक मुद्दों पर जनजागृति का काम भी करती हैं। निश्चित रूप से जनता के बीच जाने का फायदा तो होता ही है। विश्व के इतिहास में जिन-जिन राजनेताओं ने राजनीतिक यात्राएं की हैं उन्हें एक नई पहचान मिली है जनता से उनकी कनेक्टिविटी भी स्थापित हुई है। यात्राएं देश को जानने, समस्याओं को समझने, जनता से रूबरू होने का सबसे सुगम और सरल माध्यम हैं।
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एनडीटीवी इंडिया’ (NDTV India) के सीनियर एग्जिक्यूटिव एडिटर रवीश कुमार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। वह यहां चैनल के फ्लैगशिप शो ‘हम लोग’, ‘रवीश की रिपोर्ट’, ‘देश की बात’ और ‘प्राइम टाइम’ समेत तमाम कार्यक्रम होस्ट करते थे। इस बारे में चैनल की ओर से जारी एक इंटरनल मेल में कहा गया है कि रवीश कुमार का इस्तीफा तत्काल प्रभाव से प्रभावी हो गया है। चैनल की ओऱ से जारी मेल में यह भी कहा गया है, ‘कुछ ही पत्रकार ऐसे हैं, जिन्होंने लोगों को रवीश जितना प्रभावित किया है। यह इस बात से परिलक्षित होता है कि वह जहां जाते हैं, लोग उनके पास खिंचे चले आते हैं। उनके बारे में लोगों से तमाम प्रतिक्रिया मिलती है। इसके अलावा उन्हें राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम प्रतिष्ठित अवॉर्ड्स से नवाजा जा चुका है।’ चैनल के मेल के अनुसार, ‘रवीश कुमार कई दशक से एनडीटीवी का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। उनका योगदान अमूल्य रहा है और हम जानते हैं कि वह एक नई शुरुआत करेंगे और सफल होंगे।’ बता दें कि रवीश कुमार को देश के लोगों को प्रभावित करने वाले आम मुद्दों की बेहतरीन कवरेज के लिए जाना जाता है। पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें दो बार प्रतिष्ठित ‘रामनाथ गोयनका’ अवॉर्ड और वर्ष 2019 में रैमन मैगसायसायअवॉर्ड मिल चुका है। गौरतलब है कि रवीश कुमार के इस्तीफे के एक दिन पहले ही ‘एनडीटीवी’ के फाउंडर्स प्रणय रॉय और राधिका रॉय ने ‘एनडीटीवी’ की प्रमोटर फर्म ‘आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड’ (RRPR Holding Private Limited) में डायरेक्टर्स के पद से इस्तीफा दे दिया है।
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जी मीडिया’ के हिंदी न्यूज चैनल ‘जी हिन्दुस्तान’ में मैनेजिंग एडिटर के पद से पिछले दिनों इस्तीफा देने के बाद वरिष्ठ टीवी पत्रकार शमशेर सिंह अब नई पारी की शुरुआत करने जा रहे हैं। वह वरिष्ठ पत्रकार जगदीश चंद्रा के नेतृत्व में इसी साल 15 अगस्त को लॉन्च हुए हिंदी न्यूज चैनल ‘भारत24’ में बतौर मैनेजिंग एडिटर जॉइन करने जा रहे हैं। शमशेर सिंह 28 नवंबर को नोएडा स्थित इस चैनल के मुख्यालय में अपना कार्यभार संभालेंगे। बता दें कि वरिष्ठ टीवी पत्रकार अजय कुमार ने पिछले दिनों ‘भारत24’ में मैनेजिंग एडिटर के पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से यह पद रिक्त था। हालांकि, सीनियर एडिटर सैयद उमर कार्यवाहक के तौर पर फिलहाल यह जिम्मेदारी संभाल रहे थे। गौरतलब है कि ‘जी हिन्दुस्तान’ में शमशेर सिंह की यह दूसरी पारी थी। ‘जी हिन्दुस्तान’ से पहले शमशेर सिंह हिंदी न्यूज चैनल ‘रिपब्लिक भारत’ (Republi Bharat) में कार्यरत थे। शमशेर सिंह नवंबर 2018 से ‘रिपब्लिक भारत’ के साथ जुड़े हुए थे और बतौर एडिटर अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे थे। मूल रूप से पूर्णिया (बिहार) के रहने वाले शमशेर सिंह 'रिपब्लिक भारत' से पहले ‘इंडिया न्यूज’ चैनल के साथ बतौर एडिटर (नेशनल अफेयर्स) जुड़े हुए थे। उन्होंने ‘इंडिया न्यूज’के साथ अपना सफर मार्च, 2018 में शुरू किया था। इसके पहले 'जी हिन्दुस्तान' में अपनी पहली पारी के दौरान वह पॉलिटिकल एडिटर के तौर पर कार्यरत थे। यहां वह अप्रैल, 2017 से अक्टूबर, 2017 तक रहे। दो दशक से ज्यादा समय से पत्रकारिता में सक्रिय भूमिका निभाने वाले टीवी पत्रकार शमशेर सिंह ‘इंडिया टीवी’ और ‘आजतक’ के चर्चित चेहरों में से एक रहे हैं। 'जी हिन्दुस्तान' से पहले वह ‘इंडिया टीवी’ में बतौर एडिटर (करेंट अफेयर्स) कार्यरत थे। यहां वह नवंबर 2013 से अप्रैल 2017 तक रहे। शमशेर सिंह ने अपने करियर की शुरुआत टीवी न्यूज चैनल से ही की थी। अप्रैल 1998 में उन्होंने ‘आजतक’ न्यूज चैनल से पत्रकारिता में अपना सफर शुरू किया और विभिन्न पदों पर रहते हुए यहां वे डिप्टी एडिटर तक बने। ‘आजतक’ में उन्होंने जापान सुनामी, वॉशिंगटन में न्यूक्लियर सम्मिट, कोपनहेगन सम्मिट से लेकर कई चुनावों और बड़ी घटनाओं को कवर किया। 16 साल बाद यानी 2013 में ‘आजतक’ के साथ उनका सफर थम गया और ‘इंडिया टीवी’, 'जी हिन्दुस्तान', ‘इंडिया न्यूज’ और ‘रिपब्लिक भारत’ व वर्ष 2020 में फिर 'जी हिन्दुस्तान' होते हुए अब वह ‘भारत24’ से जुड़ने जा रहे हैं। शमशेर सिंह को एक्सक्लूसिव स्टोरीज और स्पेशल शोज का मास्टर माना जाता है। ‘आन द स्पॉट’ रिपोर्टिंग के लिए शमशेर को रामनाथ गोयनका अवॉर्ड भी मिल चुका है। इसके अलावा पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पिछले दिनों उन्हें दिलीप सिंह पत्रकारिता अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। राजनीति के अलावा आंतरिक सुरक्षा और फॉरेन पॉलिसी पर भी उनकी खास पकड़ है।
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गुजरात विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। दो चरणों में यानी एक और पांच दिसंबर को होने वाले मतदान के लिए वोटों की गिनती आठ दिसंबर को होगी। ऐसे में तमाम उम्मीदवार मैदान में उतर चुके हैं। इस महासमर को जीतने के लिए बीजेपी, कांग्रेस और अन्य राजनीतिक पार्टियां जी-जान से लगी हुईं हैं। इस बीच तमाम मीडिया घरानों ने भी चुनाव से जुड़ी पल-पल की खबर अपने दर्शकों तक पहुंचाने के लिए कमर कस ली है। एबीपी न्यूज भी इनमें से एक है। एबीपी न्यूज की जानी-मानी एंकर रुबिका लियाकत अब अपनी ‘हुंकार’ टीम के साथ गुजरात के मैदान में उतर गई हैं। वह अब गुजरात में घर-घर जाकर यह पता लगाने की कोशिश करेंगी कि सूबे में किसकी सरकार बन सकती है, कौन हो सकता है अगला मुख्यमंत्री। यानी अब गुजरात के मैदान से ही रुबिका ‘हुंकार’ पर अब अपनी खबरों को देंगी धार और चुनाव से जुड़ी-जुड़ी पल की खबरों को दर्शकों तक पहुंचाने का करेंगी काम। रुबिका के प्रोग्राम हुंकार का एक ‘प्रोमो’ भी जारी किया गया, जिसमें वह एक कार से रिपोर्टिंग करती नजर आ रही हैं। बताया जा रहा है कि वह शहर-शहर गांव-गांव इसी कार से घूमकर रिपोर्टिंग करेंगी। बता दें कि गुजरात की कुल 182 सदस्यीय विधानसभा के लिए पहले चरण में 89 सीटों पर और दूसरे चरण में 93 सीटों पर मतदान होगा। फिलहाल, गुजरात में बीते ढाई दशक से भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और इस बार आम आदमी पार्टी की एंट्री से त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद है। बहरहाल, मौजूदा गुजरात विधानसभा का कार्यकाल अगले साल 18 फरवरी को समाप्त हो जाएगा रिपोर्टर- शैफाली गुप्ता
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दुर्गेश केशवानी भाजपा प्रवक्ता मप्र भाजपा के प्रवक्ता दुर्गेश केशवानी ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को लेकर कहा ये यात्रा कम और सर्कस ज्यादा नजर आ रहा है,कमलनाथ द्वारा जन्मदिन पर मन्दिर की आकृति का केक काटने से हिंदुओ की आस्था आहत हुई,माफी मांगे कमलनाथ आष्टा । भाजपा द्वारा ग्रामीण जनप्रतिनिधियों के एक दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग में विषय के मुख्य वक्ता के रूप में शामिल होने आष्टा आये मप्र भाजपा के प्रवक्ता डॉ दुर्गेश केशवानी ने आज चर्चा में राहुल गांधी की भारत जोडो यात्रा को ले कर कहा की ये भारत जोड़ो यात्रा कम सर्कस ज्यादा नजर आ रही है। आपने देखा चल रही यात्रा के दौरान वे हंटर मारते, कभी कुछ करते दिखे मतलब ये यात्रा कम सर्कस ज्यादा दिख रही है। श्री केशवानी ने कहा हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ द्वारा अपने जन्मदिन पर हनुमान जी के चित्र लगे,मन्दिर की आकृति के केक को काटा इससे हिंदुओ की धार्मिक भावना आहत हुई है। आखिर कमलनाथ जी को हिन्दू धर्म से इतनी घृणा क्यो है। उक्त केक को जिस प्रकार उन्होंने काटा उससे एक बार फिर मुगल आक्रांताओं की याद दिला दी। भगवान श्रीराम,हनुमान जी,राम मंदिर हमारी श्रद्धा आस्था के केंद्र बिंदु है। इस कृत्य के बदले कांग्रेस को ओर कमलनाथ जी को देश के हिंदुओं से माफी मांगना चाहिये। इसको लेकर देश उन्हें कभी माफ नही करेगा। उक्त कृत्य देश के हिंदुओं की धार्मिक भावना,उनकी आस्था पर प्रहार है। एक अन्य प्रश्न को लेकर केशवानी ने कहा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मप्र में आ रही है,उसको लेकर मप्र के गृहमंत्री श्री नरोत्तम मिश्रा जी ने स्पष्ट कर दिया है की कोई परिंदा भी पर नही मार सकता है,कमलनाथ जी को असली में चिंता कांग्रेस में जो अंदरूनी कलाह चल रही है उसकी है,घर की आंतरिक लड़ाई से उन्हें असुरक्षा का भाव लग रहा है। आयोजित प्रशिक्षण वर्ग को लेकर केशवानी ने कहा भाजपा में बैठक,वर्ग,प्रशिक्षण सतत चलने वाली प्रक्रिया का हिस्सा है। हम पूरी तैयारी से 23 एवं 24 में होने वाले विधानसभा लोकसभा के चुनाव में जनता के बीच अपने कार्यो,किये विकास को लेकर जायेंगे। निश्चित देश प्रदेश में हुए विकास के बदले जनता का आशीर्वाद भाजपा को पुनः मिलेगा।
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वरिष्ठ टीवी पत्रकार और जाने-माने न्यूज एंकर दीपक चौरसिया लगभग एक साल बाद वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय के नेतृत्व में जल्द लॉन्च होने वाले न्यूज चैनल ‘भारत एक्सप्रेस’ (Bharat Express) के साथ टीवी मीडिया की दुनिया में वापसी करने जा रहे हैं। विश्वस्त सूत्रों के हवाले से मिली खबर के अनुसार, दीपक चौरसिया अपनी इस पारी के दौरान इस चैनल में रात आठ बजे के प्राइम टाइम शो में नजर आएंगे। बता दें कि ‘सहारा इंडिया मीडिया’, ‘तहलका मैगजीन’, ‘स्टार न्यूज’ एवं ‘सीएनबीसी-आवाज’ को अपनी सेवाओं और नेतृत्व से नई ऊंचाइयां देने वाले वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय ने कुछ समय पूर्व ही ‘भारत एक्सप्रेस’ मीडिया समूह की शुरुआत की है। यह मीडिया समूह हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाषाओं में टीवी, डिजिटल और अखबार तीनों प्लेटफॉर्म पर जनता को अपनी सेवाएं देगा। उपेन्द्र राय का यह वेंचर टीवी के साथ-साथ अखबार और डिजिटल में खबरों के सभी पहलुओं पर जोर देगा। इस समूह के तहत 14 जनवरी 2023 को न्यूज चैनल लॉन्च किया जाना है, जिसमें दीपक चौरसिया जॉइन करने जा रहे हैं। फिलहाल चैनल ड्राई रन पर है। बता दें कि दीपक चौरसिया इससे पहले 'न्यूज नेशन' में कंसल्टिंग एडिटर के पद पर कार्यरत थे और वह पूर्व में 'दूरदर्शन', 'आजतक', 'इंडिया न्यूज' जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में विभिन्न पदों पर अपनी भूमिका निभा चुके हैं।
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विष्णुदत्त शर्मा हम सभी को स्मरण है कि पिछले साल 15 नवंबर 2021 को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे देश में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा की थी। विगत एक साल में हमने यह भी देखा है कि केंद्र की सरकार ने जनजाति समाज के हित के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं। सबसे बड़ा फैसला यह लिया कि जनजातीय समाज से आने वाली श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को देश का राष्ट्रपति बनाया गया। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी की इच्छाशक्ति के कारण आजादी के 70 साल बाद पहली बार देश के सर्वोच्च पद पर किसी जनजातीय महिला को स्थान मिला है। वस्तुतः विगत सात दशकों में भारतीय चेतना में यह बात गहरे रूप से बैठा दी गई थी कि जनजातीय समाज पिछड़ा समाज है, इसका कोई योगदान नहीं है, इनके पास कुछ भी गौरवशाली बात नहीं है। ऐसे अनगिनत झूठ थोपे और रोपे गये, जिसके पीछे बहुत बड़ी साजिश भी थी। क्योंकि एक भोले समाज को बरगलाना बहुत सरल है। उसे व्यवस्था के विरुद्ध भड़काना भी कठिन नहीं है। इसलिए यह तथ्य सभी को समझना चाहिए कि वांमपंथी इतिहासकारों और समाजशास्त्रियों ने देशभर में जनजातीय समाज को हीन-दीन बनाने व जताने के लिए हर प्रकार से षड्यंत्रपूर्वक प्रयास किये हैं। जबकि सच्चाई यह है कि भारतीय वांग्मय में हमारे वनवासी बंधुओं का महत्व और उनका योगदान हर कालखंड में रेखांकित किया गया है। उनकी महिमा, उनकी कुशलता, उन पर सर्व समाज की निर्भरता का बखान हमारे प्रचीन साहित्यों में उपलब्ध है। रामायण, महाभारत ही नहीं वेदों, उपनिषदों की ऋचाएँभी जनजाति गौरव की गाथा कहते हैं। दरअसल, भारत में जो कुछ भी हमें औद्योगीकरण से पहले दिखाई देता है, या हमने हासिल किया है, उसमें आरण्यक समुदायों का महान योगदान रहा है। वन-क्षेत्रों के आसपास बनाए गए ऐतिहासिक धरोहर भी उन्हीं की बदौलत हैं।कला-शिल्प और कौशल के अनेक विधाओं में हमारी जनजातियां निपुण रही हैं। उनकी अपनी देशज ज्ञान परंपराएँ भी हैं। परंतु देश की प्रारंभिक सरकारों ने इन पक्षों पर कोई खास ध्यान नहीं दिया। उन्होंने उन्हें उत्पादक समाज की बजाय उपभोक्ता समाजकी तरह ट्रीट किया। वर्ष 2014 में केंद्र की सत्ता में मोदी सरकार के आगमन के बाद देश में जनजातीय समाज के प्रति एक संवेदनशील युग की शुरुआत हुई। मोदी सरकार ने जनजातियों के लिए चल रही योजनाओं को और मजबूत किया है।साथ ही जनजातीय संस्कृति एवं परंपराओं को केंद्र में रखकर बड़े कदम उठाये हैं। इसी क्रम में केंद्र सरकार ने धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को जनजाति गौरव दिवसकेरूप में मनाने का निर्णय लिया। जनजातीय गौरव के तहत सभी सरकारें उनके विविध पक्षों पर चर्चा कर रही हैं तथा अनेक प्रकार की हितकारी योजनाओं को भी क्रियान्वित कर रही हैं। जनजातीय गौरव दिवस की स्थापना के पीछे का भाव भी यही है कि जनजातीय संस्कृति में विद्यमान प्रेरक प्रसंगों को आम जनमानस भी समझे और उसे आत्मसात करे। आने वाली पीढ़ियां हमारेसमस्त जनजातीय बंधुओं के गौरवशाली पक्षों को जान सकें और उन्हें अपनी विचार-यात्रा में स्थान दे सकें। कहना होगा कि स्वाधीनता के अमृत काल में लिया गया गया यह निर्णय भारतीय लोकतंत्र का सुनहरा अध्याय है। उल्लेखनीय है भगवान बिरसा मुंडा जनजातीय समाज से निकले एक ऐसे प्रतीक हैं, जिन्होंने अपने समय में उन शक्तियों के सामने अपनी आवाज बुलंद की जिनके सामने आंख उठाने वाले कुचल दिए जाते थे। अंग्रेजी शासन के विरुद्ध बिरसा मुंडा ने न केवल महाआंदोलन (उलगुलान) किया अपितु अपने लोगों को स्वधर्म की ओर लौटने की बड़ी मुहिम चलाई। उस मुहिम में वे अत्यंत सफल हुए और अंग्रेजों को यह संदेश देने में सफल हुए किउनके द्वारा संचालित धर्मांतरण का धंधा अब नहीं चल सकता। भगवान बिरसा मुंडा एक सनातनी धर्मयोद्ध थे, जिन्होंने अपने समाज को परधर्मियों के चंगुल से बचाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।इस अर्थ में वे पहले जनजाति नायक हैं जिन्होंने न केवल स्वाधीनता की लड़ाई लड़ी बल्कि अपने स्वधर्म की रक्षा का संघर्ष भी छेड़ा। उन्होंने चर्च द्वारा चलाए जा रहे धर्मांतरण से अपने लोगों को बचाने के लिए सद्मार्ग अपनाया और हजारों युवाओं को धर्म की ओर वापस मोड़ा। समय की आवश्य़कता के दृष्टिगत उन्होंने लोगों को नशामुक्ति से लेकर सदाचार के धर्मप्राण मार्ग बताए जिस पर लाखों लोग चल पड़े थे। 15 नवंबर 1875 को छोटानागपुर पठार के अत्यंत गरीब परिवार में जन्मे बिरसा मुंडा ने कम आयु में अंग्रेजों की नीतियों और कार्यशैली का प्रतिकार किया। मात्र 16 साल से 25 साल की कम आयु तक उन्होंने ऐसा आन्दोलन चलाया जो भारतीय संस्कृति की रक्षा में बड़ा अध्याय है। उन्होंने आस्थागत आक्रमण को समझकर लोगों को जागरुक किया। जून 1900 में जेल में उन्हें जहर देकर मार दिया गया । प्रारंभ में मिशनरी स्कूल से पढ़े बिरसा को अंग्रेजी और हिन्दी आती थी। उनके अनेक परिजन धर्म परिवर्तित कर चुके थे, वे भी चाहते तो उस समय अंग्रेजों के संरक्षण में बड़ा ओहदा हासिल कर सकते थे। लेकिन बिरसा मुंडा में अपनी धर्मचेतना से जागृत होकर मातृभूमि की रक्षा के साथ-साथ अपनी पहचान की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, इसलिए बिरसा मुंडा को लोकजगत ने भगवान का स्थान दिया। वे हमारी समस्त पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। जनजातीय समाज और संस्कृति का इतिहास अनेक गौरवशाली प्रसंगों से भरा पड़ा है। लेकिन कई दशकों तक वामपंथी इतिहासकारों ने एक विशेष परिवार और दल को गौरव का सारा श्रेय देने के लिए अनेक अध्यायों को ढक दिया। ऐसे परिदृष्य में मोदी सरकार ने बिरसा मुंडा के जन्मदिन को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में स्थापित करके उन सभी गौरवशाली पृष्ठों का पुनरुच्चारण किया है। आज हम इस अवसर पर जनजातीय गौरव के विविध पक्षों को सामने ला सकते हैं। यह हमारे लिए स्वाभिमान का पावन पर्व है। निःसंदेह केंद्र सरकार एवं मध्यप्रदेश सरकार ने जनजातीय गौरव की दिशा में कई ऐसे काम किये हैं, जिसकी चर्चा यहां लंबी हो सकती है लेकिन एक तथ्य जो आज चहुंओर स्वीकार किया जा रहा है कि भाजपा सरकारों ने जनजातीय इतिहास के उन नायकोंव नायिकाओं को विमर्श की मुख्य धारा में लाने में सफलता पाई है, जिन्हें अबतक भुलाया जाता रहा।साथ ही प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जनजातीय प्रतिनिधित्व का भी एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ है। आज हमारे लोकतंत्र के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर उसी समाज की एक बेटी विराजमान हुईं हैं, जिनके योगदान को कई साल तक कमतर आंका जाता रहा। जनजातीय गौरव दिवस की दूसरी वर्षगांठ और राष्ट्रपति बनने के बाद पहले जनजातीय गौरव दिवस परद्रौपदी मुर्मू जी का शहडोल में आगमन भी मध्यप्रदेश के लिए गौरव का विषय है।(लेखक मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष एवं खजुराहो लोकसभा से सांसद हैं)
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(प्रवीण कक्कड़) 14 नवंबर को महान स्वतंत्रता सेनानी एवं भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन है। उनकी जयंती को हम सब बाल दिवस के रूप में मनाते हैं। ऐसे में कई बार मन में सवाल आता है कि हम और भी किसी रूप में पंडित नेहरू का जन्मदिन मना सकते थे, जैसे कि राष्ट्र निर्माता के रूप में, प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में, लोकतंत्र को मजबूत करने वाले व्यक्ति के रूप में। फिर क्यों उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में चुना गया। इस बात को समझना है तो पंडित नेहरू के उन कार्यों पर निगाह डालनी पड़ेगी जो उन्होंने भारत का प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद किये। उन्होंने सबसे ज्यादा ध्यान अगर किसी चीज पर दिया तो वह था भारत के भविष्य का निर्माण। वह भविष्य किसके लिए बना रहे थे? भारत की आने वाली नस्लों के लिए, भारत के बच्चों के लिए। भारत के बच्चे आगे चलकर एक सभ्य, सुसंस्कृत और सुशिक्षित नागरिक के तौर पर विकसित हो और एक खुशहाल मुल्क बनाएं यही पंडित नेहरू का सपना और कार्यक्रम था। उन्होंने पहला काम यह किया कि भारत का कोई बच्चा भूखा ना रहे। आजादी के समय भारत में बड़े पैमाने पर भुखमरी की स्थिति थी और देश खाद्यान्न के भारी संकट से जूझ रहा था। ज्यादा उपज बढ़ाने के लिए पंडित नेहरू ने बड़े बांध और सिंचाई पर पूरा ध्यान लगा दिया। पंडित नेहरू ने सन 1955 तक भारत में सिंचित जमीन का इतना नया रकबा जोड़ दिया था जितना कि उस समय अमेरिका में कुल सिंचित क्षेत्र था। अपने शासन के 17 वर्ष में वह भारत को खाने के सामान की आत्मनिर्भरता की दहलीज तक ले आए थे और बाकी का काम लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में पूरा हुआ। दूसरा महत्वपूर्ण काम उन्होंने बच्चों के लिए यह किया है कि देश में शिक्षा के विश्वस्तरीय संस्थानों की स्थापना की। यह संस्थान सरकारी पैसे से बनाए गए और यहां पढ़ाई लगभग मुफ्त रही, लेकिन संस्थानों के प्रबंधन में सरकार का हस्तक्षेप ना के बराबर रहा। असल में पंडित नेहरू चाहते थे की ज्ञानी और विद्वान लोग अपने अनुसार संस्थानों को चलाएं और वहां बेवजह बाबूशाही हावी ना हो। भारत के सभी प्रमुख आईआईटी, आईआईएम, ऐम्स आदि संस्थान के निर्माण करने का श्रेय सीधे-सीधे पंडित नेहरू को ही जाता है। हम सब देखते हैं कि आज आजादी के 75 वर्ष बाद भी वही संस्थान देश में सर्वश्रेष्ठ हैं जो पंडित नेहरू ने बनाए। इससे पता चलता है कि उन्होंने जो भी काम किया, बहुत ठोस ढंग से किया और भविष्य को निगाह में रखकर किया। बच्चों के प्रति इसी लगाव के कारण उन्हें पूरा देश चाचा नेहरू कहता था। यह चाचा नेहरु का ही विजन था कि आप देखें तो जो भी संस्थान या अन्य चीजें उन्होंने बनाई उनमें बड़े-बड़े खेल के मैदान, कसरत करने के स्थान, टहलने के लिए खूब सारी जगह जरूर मिलेगी। पंडित जी को पता था कि बच्चे एक खुशहाल और खुले वातावरण में ही अपना संपूर्ण विकास कर सकते हैं चारदीवारी की बंदिशों में बुद्धि अपनी असीमित क्षमताओं का पूरा प्रदर्शन नहीं कर पाती। जिस समय नेहरू जी देश के प्रधानमंत्री बने तब देश में उच्च शिक्षा की व्यवस्था तो बहुत कम थी ही साथ ही प्राथमिक शिक्षा भी ना के बराबर थी। नेहरू जी ने यह सुनिश्चित किया कि गांव-गांव में प्राथमिक विद्यालय खुल जाएं और बच्चे वहां तालीम हासिल कर सकें। शिक्षा के माध्यम को लेकर भी बहुत ज्यादा सजग थे। आजादी के पहले उच्च शिक्षा का माध्यम तो सिर्फ अंग्रेजी था। वहीं स्कूली शिक्षा या तो अंग्रेजी में या फिर फारसी प्रभाव वाली उर्दू में दी जाती थी। नेहरू जी ने सिद्धांत स्थापित किया है कि किसी भी स्थिति में बच्चे को प्राथमिक शिक्षा उसकी मातृभाषा में ही दी जाए। उन्होंने तो यहां तक कहा कि अगर उत्तर भारत के बहुत से परिवार किसी दूसरी भाषा की प्रमुखता वाले महानगर में रहते हैं तो वहां भी इस बात की कोशिश होनी चाहिए कि हिंदी भाषी परिवारों के बच्चों के लिए हिंदी में शिक्षा का इंतजाम हो। वह अंग्रेजी के शत्रु नहीं थे लेकिन मातृ भाषाओं में पढ़ाई के कट्टर समर्थक थे। अभी एक 2 साल पहले भारत की जो नई शिक्षा नीति आई है उसमें भी पंडित जवाहरलाल नेहरु कि इसी दृष्टि को आगे बढ़ाने का प्रयास किया गया है। पंडित नेहरू और बच्चों से उनके प्यार के बारे में बहुत सी बातें कही जा सकती हैं लेकिन यहां मैं पंडित नेहरू का वह भाषण याद दिलाना चाहता हूं जो उन्होंने आईआईटी खड़गपुर जो कि देश की पहली आईआईटी थी उसके पहले दीक्षांत समारोह के वक्तव्य में दिया था। नेहरू जी ने आईआईटी के पहले बैच के नौजवान इंजीनियरों से कहा था कि आप लोग यहां से पास होकर जा रहे हैं। इंजीनियर बन रहे हैं। जाहिर है? आप लोग एक सम्मानजनक जीवन जी पाएंगे। आपके सामने आर्थिक संकट नहीं होंगे। आप अच्छी घर गृहस्थी बनाएंगे और सुख से रहेंगे। लेकिन अगर आप समझते हैं कि यही करना इस आईआईटी में पढ़ने का मकसद है तो फिर आपका पढ़ना बेकार है। आप यहां से जाइये और नए हिंदुस्तान का निर्माण करिए। ऐसे भी बहुत से देश हैं जो भारत से भी ज्यादा पिछड़े हैं, हम चाहते हैं कि अपने देश के साथ ही उन पिछड़े देशों को आगे बढ़ाने में भी आप अपने हुनर का परिचय दें। फिर नेहरु जी ने अपने भाषण के अंत में कहा कि "आदमी बड़ा नहीं होता है, काम बड़ा होता है। छोटा आदमी भी बड़े काम से जुड़ जाता है तो उसके ऊपर बड़प्पन के कुछ छींटे पड़ जाते हैं। तो जाइए और आपने सामने जिंदगी में कोई बड़ा लक्ष्य रखिए और उसे पूरा करने में अपना जीवन समर्पित करिए।" पंडित नेहरू कि यह वह सोच है जिसके कारण उनके जन्मदिवस को बाल दिवस के रूप में मनाते हैं। बच्चों को लाड़ दुलार और प्यार तो हर मां-बाप और चाचा कर सकता है, लेकिन बच्चों का भविष्य गढ़ना और उनके माध्यम से भारत माता का नाम ऊपर करने का सपना देखना पंडित नेहरू ही कर सकते हैं। इसीलिए वह देश के चाचा नेहरू हैं और उनका जन्म दिवस बाल दिवस।
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अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग को लेकर ‘सूचना प्रसारण मंत्रालय’ (MIB) की नई गाइडलाइंस ने इवेंट्स के लाइव टेलिकास्ट की प्रोसेसिंग फीस को लेकर ब्रॉडकास्टर्स की चिंता बढ़ा दी है। मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से यह खबर निकलकर सामने आई है। बता दें कि वर्तमान में प्रोसेसिंग फीस एक लाख रुपये है और ब्रॉडकास्टर्स का कहना है कि वह इसमें छूट की उम्मीद कर रहे थे। इन रिपोर्ट्स में इंडस्ट्री लीडर्स के हवाले से कहा गया है कि अब प्रत्येक खेल आयोजन (Sports Event) के लिए उन्हें चार करोड़ से पांच करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, चार बड़े ब्रॉडकास्टर्स प्रोसेसिंग फीस में छूट के लिए सरकार के समक्ष याचिका भेज सकते हैं। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में देश में टीवी चैनल्स के लिए अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग की नई गाइडलाइंस जारी की हैं। दरअसल, 11 साल बाद पुरानी गाइडलाइंस में संशोधन कर इसे जारी किया गया है, जिसे कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने इससे पहले वर्ष 2011 में गाइडलाइंस जारी की थीं।
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- कीर्तनकारियों का सम्मान करने के बाद बोले भाजपा प्रवक्ता भोपाल। कमलनाथ और जगदीश टाइटलर के इशारे पर हजारों सिखों को रातों रात घर से निकालकर कत्ल कर दिया गया। किसी के गले में जलते हुए टायर डाले गए, तो किसी को हथियारों से निर्ममता पूर्वक कत्ल कर दिया गया। ऐसे नरसंहार के जख्म आज भी सिख समाज के दिलों में ताजा है और इन्हें एक बार फिर ताजा करने का काम कमलनाथ ने किया है। यह बात भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश केसवानी ने बुधवार को ईदगाह हिल्स स्थित टेकरी साहिब गुरुद्वारे में कीर्तनकारी कुलविंदर सिंह, जसपाल सिंह और गुरप्रीत सिंह का सम्मान करने के बाद कही। दरअसल भाजपा प्रवक्ता इंदौर में कीर्तनकारी मनप्रीत सिंह कानपुरी द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का कड़ा विरोध करने के बाद टेकरी साहिब गुरुद्वारे पहुंचे थे। मुगलों के अत्याचारों से कराया मुक्त : भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि सिख समाज हमेशा ही देश को नई दिशा दिखाता आया है। मुगल आक्रांता औरंगजेब के अत्याचारों से जब पूरा देश कांप रहा था। तब सिख समाज ने उनका कड़ा विरोध किया था। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अत्याचार भी सिख समाज को नहीं डरा सके। ऑपरेशन ब्लू स्टार और उसके बाद सिख समाज के लोगों की निर्मम हत्याएं दो ऐसी घटनाएं हैं, जिन्होंने कांग्रेस की सिख विरोधी मानसिकता को उजागर किया है। डॉ. केसवानी ने कहा कि समय के साथ कई लोग कांग्रेस के इन अत्याचारों को भूल गए, लेकिन मंगलवार को इंदौर के खालसा काॅलेज में आयोजित गुरुनानक जयंती के कार्यक्रम में सिख दंगों के आरोपी कमलनाथ के सत्कार से कीर्तनकारी मनप्रीत सिंह कानपुरी ने लोगों को जागरूक करने का काम किया है। इसे उनके विरोध से ज्यादा लोगाें को जागरूक करने वाला संदेश माना जाना चाहिए। यह है मामला : इंदौर के खालसा कॉलेज में गुरुनानक जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के सत्कार से कीर्तनकारी मनप्रीत सिंह कानपुरी नाराज हो गए। उन्होंने कहा कि जिनके इशारे पर हजारों सीखों का कत्ल हुआ। उनके घर दुकान जला दिए गए। उनका यहां सम्मान हो रहा है। इसके बाद उन्होंने गुरु गोविंद सिंह की कसम खाते हुए कहा कि आज के बाद वे कभी भी इंदौर नहीं आएंगे। कार्यक्रम में कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी और संजय शुक्ला भी मौजूद थे।
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प्रवीण कक्कड़ सिख समाज के संस्थापक गुरूनानक देव जी का 553वां प्रकाश पर्व मंगलवार को मनाया जाएगा। यह प्रकाश पर्व हमें निःस्वार्थ सेवा का संदेश देता है। गुरूनानक देव जी ने भूखे संतों को भोजन कराने से सेवा के जिस बीज को बोया था, उसे अन्य गुरूओं ने अपने उपदेशों से मजबूत किया और दशमेश पिता तक आते-आते सेवा का यह वृक्ष पूरी तरह समृद्ध हो गया। आज पूरे विश्व में सिख समाज को उसकी सेवा भावना के लिए जाना जाता है। जीवन मूल्यों में संस्कारों का बड़ा महत्व है। ऐसा ही एक संस्कार है सेवा का भाव। नि: स्वार्थ भाव से यथासंभव जरूरतमंद की मदद करना, सेवा करना हमारे संस्कारों की पहचान कराता है। तन, मन और वचन से दूसरे की सेवा में तत्पर रहना स्वयं इतना बड़ा साधन है कि उसके रहते किसी अन्य साधन की आवश्यकता ही नहीं रहती। क्योंकि जो व्यक्ति सेवा में सच्चे मन से लग जाएगा उसको वह सब कुछ स्वत: ही प्राप्य होगा जिसकी वह आकांक्षा रखता है। दूसरों के प्रति नि:स्वार्थ सेवा का भाव रखना ही जीवन में कामयाबी का मूलमंत्र है। नि:स्वार्थ भाव से की गई सेवा से किसी का भी हृदय परिवर्तन किया जा सकता है। हमें अपने आचरण में सदैव सेवा का भाव निहित रखना चाहिए, जिससे अन्य लोग भी प्रेरित होते हुए कामयाबी के मार्ग पर अग्रसर हो सकें। सेवा भाव ही मनुष्य की पहचान बनाती है और उसकी मेहनत चमकाती है। सेवाभाव हमारे लिए आत्मसंतोष का वाहक ही नहीं बनता बल्कि संपर्क में आने वाले लोगों के बीच भी अच्छाई के संदेश को स्वत: उजागर करते हुए समाज को नई दिशा व दशा देने का काम करता है। जैसे गुलाब को उपदेश देने की जरूरत नहीं होती, वह तो केवल अपनी खुशबू बिखेरता है। उसकी खुशबू ही उसका संदेश है। ठीक इसी तरह खूबसूरत लोग हमेशा दयावान नहीं होते, लेकिन दयावान लोग हमेशा खूबसूरत होते हैं, यह सर्वविदित है। सामाजिक, आर्थिक सभी रूपों में सेवा भाव की अपनी अलग-अलग महत्ता है। बिना सेवा भाव के किसी भी पुनीत कार्य को अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सकता। सेवा भाव के जरिए समाज में व्याप्त कुरीतियों को जड़ से समाप्त करने के साथ ही आम लोगों को भी उनके सामाजिक दायित्वों के प्रति जागरूक किया जा सकता है। असल में सेवा भाव आपसी सद्भाव का वाहक बनता है। जब हम एक-दूसरे के प्रति सेवा भाव रखते हैं तब आपसी द्वेष की भावना स्वत: समाप्त हो जाती है और हम सभी मिलकर कामयाबी के पथ पर अग्रसर होते हैं। सेवा से बड़ा कोई परोपकार इस विश्व में नहीं है, जिसे मानव सहजता से अपने जीवन में अंगीकार कर सकता है। प्रारंभिक शिक्षा से लेकर हमारे अंतिम सेवा काल तक सेवा ही एक मात्र ऐसा आभूषण है, जो हमारे जीवन को सार्थक सिद्ध करने में अहम भूमिका निभाता है। बिना सेवा भाव विकसित किए मनुष्य जीवन को सफल नहीं बना सकता। हम सभी को चाहिए कि सेवा के इस महत्व को समझें व दूसरों को भी इस ओर जागरूक करने की पहल करें। प्रकाश पर्व गुरूनानक देवजी की शिक्षाओं व उनकी निस्वार्थ सेवा के अनुसरण करने का दिन है। इस दिन गुरूग्रंथ साहिब को शीश नवाने के साथ ही कीर्तन और लंगर के आयोजन होंगे। इन लंगरों में हर जाति, पंथ, वर्ग के लोग एकसाथ भोजन करेंगे जो हमारी एकता और निस्वार्थ भावना का प्रतीक है। गुरूनानक देव के उपदेशों को अगर हम समझने का प्रयास करें तो उसमें मानवसेवा को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। यह उपदेश भारतीय संस्कृति की मूल भावना में निहित हैं। इस भावना ने न केवल देश और विश्व के उत्थान में योगदान दिया है बल्कि भेदभाव से उपर उठकर मानवता की सेवा की है। विश्व के विभिन्न भागों में सिख समाज द्वारा की जा रही मानव सेवा इसका उदाहरण है। बॉक्स गुरूनानक देवजी गुरूनानक देवजी का जन्म 1469 की कार्तिक पूर्णिमा पर ग्राम तलवंडी, पंजाब में हुआ था। जो अब पाकिस्तान में है। वे सिख समाज के पहले गुरू थे। उन्होंने ही इस समाज की नींव रखी। गुरूनानक देव का जन्मदिन हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर प्रकाशपर्व के रूप में मनाया जाता है। उन्हें बाबा नानक और नानक शाह के नाम से भी पूजा जाता है। उनके उपदेशों में हमेशा नैतिकता, मेहनत, सच्चाई और सेवा भाव के संदेश रहे। उन्होंने विश्व को सांप्रदायिक एकता, शांति और सदभाव का संदेश भी दिया। 22 सितंबर 1539 को गुरूनानक देवजी का निर्वाण हुआ। जहां अब ननकाना साहिब गुरुद्वारा है। जो पूरे विश्व में उनके अनुयायियों की आस्था का केंद्र है।
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को विशेष कारणों का खुलासा किए बिना ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के नाम पर मलयालम न्यूज चैनल ‘मीडिया वन’ पर लगाए प्रतिबंध को लेकर केंद्र सरकार से सवाल-जवाब किए। कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि 'मीडिया वन' को सुरक्षा मंजूरी से इनकार करने के क्या कारण हैं और उन कारणों का खुलासा क्यों नहीं किया जा सकता है? जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने केंद्र की तरफ से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा कि एक आपराधिक मामले में आरोपी के खिलाफ चार्जशीट दायर की जाती है और आरोप कितने भी संवेदनशील क्यों न हों, उन्हें आरोपी को बताया जाता है। पीठ ने आगे कहा कि वर्तमान मामले में अभी तक आपराधिकता ही नहीं बताई गई है, यहां तक कि चार्जशीट की प्रक्रिया तक भी नहीं पहुंचे हैं और यहां आप सुरक्षा मंजूरी से इनकार कर रहे हैं। पीठ ने केएम नटराज से कहा, ‘उन्हें (मीडिया वन की पैरेंट कंपनी माध्यमम को) कम से कम यह मालूम होना चाहिए कि यहां राष्ट्रीय सुरक्षा का क्या उल्लंघन हुआ था। आप अपनी जानकारी के स्रोतों की रक्षा कर सकते हैं, लेकिन वह कौन-सी जानकारी थी जिसके कारण आपको सुरक्षा मंजूरी से इनकार करना पड़ा? मान लीजिए, आपको जानकारी मिली थी कि कोई अंतरराष्ट्रीय हवाला लेनदेन में शामिल था, या उसके नापाक जुड़ाव थे या फिर इसका स्वामित्व एक शत्रु देश के नागरिकों के हाथों में था... आपको स्वाभाविक तौर पर इसका खुलासा करना होगा।’ पीठ ने कहा कि मीडिया हाउस के लिए लाइसेंस का नवीनीकरण महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें पिछले 10 वर्षों में किए गए निवेश शामिल है, बीते एक दशक में बनाई उनकी प्रतिष्ठा जोखिम में है, लोगों को रोजगार दिया गया है। इस तरह से वे पिछले 10 सालों से चले आ रहे हैं, लिहाजा उनके लिए नवीनीकरण जरूरी है। अदालत ने यह भी जताया कि चैनल को जानने का मौका दिए बिना कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में सामग्री दिया जाना भी अनुचित था। मीडिया संस्थान की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे और अधिवक्ता हैरिस बीरन ने तर्क दिया कि स्वतंत्र भाषण और प्रेस पर प्रतिबंध ‘संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत उचित प्रतिबंध’ के दायरे में आना चाहिए। दवे ने कहा कि अदालत को इस तरह के प्रतिबंधों की अनुमति नहीं देनी चाहिए। अन्यथा, कोई भी मीडिया या प्रकाशन सुरक्षित नहीं है। किसी को कभी भी बंद किया जा सकता है। बता दें कि सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने 30 सितंबर, 2011 को माध्यमम ब्रॉडकास्टिंग कंपनी लिमिटेड द्वारा शुरू किए गए ‘मीडिया वन’ टीवी के लिए प्रसारण की अनुमति दी थी, लेकिन दस साल बीत जाने के बाद यह अनुमति 29 सितंबर, 2021 को समाप्त हो गई थी। लेकिन कंपनी अनुमति समाप्त होने से पहले यानी मई, 2021 में अगले 10 साल के लिए इसके नवीनीकरण के लिए आवेदन किया था। लेकिन 29 दिसंबर 2021 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसे ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का हवाला देते हुए सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद मंत्रालय ने इस साल 5 जनवरी को एक नोटिस जारी कर चैनल को यह बताने के लिए कहा था कि सुरक्षा मंजूरी से इनकार के मद्देनजर नवीनीकरण के लिए उसके आवेदन को खत्म क्यों नहीं किया जाना चाहिए? इसके बाद मंत्रालय ने 31 जनवरी, 2022 को न्यूज चैनल के प्रसारण पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था। मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने ‘मीडिया वन’ के प्रसारण पर प्रतिबंध लगाने वाले केंद्र के 31 जनवरी के फैसले पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी। सरकार का कहना था कि 10 साल की और अवधि के लिए प्रसारण अनुमति के नवीनीकरण के लिए गृह मंत्रालय से सत्यापन और मंजूरी की जरूरत है। इसने कहा था कि एक टीवी चैनल के लिए अनुमति का नवीनीकरण अधिकार का मामला नहीं था। सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने जवाब में कहा था, ‘टीवी चैनल के लिए अनुमति का नवीनीकरण किसी कंपनी के अधिकार का मामला नहीं है और इस तरह की अनुमति केवल अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग दिशानिर्देशों और अन्य प्रासंगिक वैधानिक ढांचे के तहत निर्धारित कुछ पात्रता शर्तों को पूरा करने पर ही दी जाती है।’
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जाने-माने पत्रकार सुदेश तिवारी ने अपनी नई पारी ‘भारत एक्सप्रेस’ मीडिया समूह के साथ शुरू की है। उन्होंने यहां पर बतौर एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर और ग्रुप एडिटर जॉइन किया है। पत्रकारिता का सफर इंदौर से शुरू करने वाले सुदेश तिवारी को मीडिया के क्षेत्र में काम करने का दो दशक से ज्यादा का अनुभव है। अपने अब तक के करियर में वह तमाम मीडिया समूहों में ब्यूरो चीफ से लेकर संपादक तक की भूमिकाएं निभा चुके हैं।बता दें कि ‘भारत एक्सप्रेस’ से पहले सुदेश तिवारी ‘सहारा समय’ (मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़) में चैनल हेड के पद पर कार्यरत थे। सुदेश तिवारी ‘भारत एक्सप्रेस’ मीडिया समूह के चेयरमैन, सीएमडी और एडिटर-इन-चीफ उपेन्द्र राय के बेहद करीबी और विश्वसनीय माने जाते हैं। उपेन्द्र राय के ही नेतृत्व और मार्गदर्शन में सुदेश तिवारी ने ‘सहारा समय’ (मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़) की कमान संभाली थी। जब उपेन्द्र राय ने ‘सहारा इंडिया’ न्यूज नेटवर्क छोड़ा तो सुदेश तिवारी ने भी उनके साथ ही सहारा को अलविदा कह दिया था।मूल रूप से रायबरेली (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले सुदेश तिवारी लंबे समय से इंदौर (मध्य प्रदेश) में रह रहे हैं। सुदेश तिवारी राजनीति से जुड़ी एक्सक्लूसिव खबरों के लिए भी जाने जाते हैं। यही कारण यह है कि प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों के साथ-साथ कॉरपोरेट जगत में भी उनकी मजबूत पैठ है। अपने लंबे पत्रकारिता जीवन में सुदेश तिवारी को तमाम अवॉर्ड्स से सम्मानित किया जा चुका है।पत्रकारिता का सफर इंदौर से शुरू करने वाले सुदेश तिवारी ने बहुत ही कम समय में राजधानी दिल्ली और राष्ट्रीय पत्रकारिता में भी अपनी विशेष छाप छोड़ी है।
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युवा पत्रकार अंजीत श्रीवास्तव ने मीडिया में अपने नए सफर का आगाज किया है। उन्होंने हिंदी न्यूज चैनल ‘न्यूज नेशन’में बतौर डिप्टी एडिटर/एंकर जॉइन किया है। बता दें कि ‘न्यूज नेशन’ में यह उनकी दूसरी पारी है। अंजीत इससे पहले ‘न्यूज18 इंडिया’में बतौर एंकर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। अंजीत को मीडिया में काम करने का करीब दस साल का अनुभव है। पत्रकारिता में अपने करियर की शुरुआत उन्होंने ’साधना न्यूज’ मध्य प्रदेश/छत्तीसगढ़ से की थी। फिर वह कुछ समय के लिए ‘4 Real News’ में भी रहे। बाद में उन्होंने यहां से बाय बोल दिया और ‘न्यूज नेशन’ आ गए, जहां वह इस चैनल के प्राइम टाइम शो ‘सबसे बड़ा मुद्दा‘ को होस्ट करते थे। इसके बाद वह ‘जी मीडिया’ से जुड़ गए और करीब सवा साल तक ‘जी हिन्दुस्तान’चैनल में बतौर न्यूज एंकर अपनी पारी खेली। ‘जी हिन्दुस्तान’ में वह ’दस का दंगल’ शो होस्ट करते थे। इसके बाद यहां से बाय बोलकर वह ‘न्यूज18 इंडिया’ होते हुए अब फिर ‘न्यूज नेशन’ पहुंचे हैं। मूल रूप से गोरखपुर के रहने वाले अंजीत श्रीवास्तव ने दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है। समाचार4मीडिया की ओर से अंजीत श्रीवास्तव को उनके नए सफर के लिए ढेरों बधाई और शुभकामनाएं।
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नेटवर्क18’ के यूपी/उत्तराखंड में बतौर एंकर काम कर रहीं युवा पत्रकार आरजू साईं ने यहां से अपनी पारी को विराम दे दिया है। उन्होंने अब अपनी नई पारी की शुरुआत ‘एनडीटीवी’ (NDTV) के साथ की है। यहां पर उन्होंने नेशनल ब्यूरो में बतौर एंकर और कॉरेस्पॉन्डेंट जॉइन किया है।मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले की रहने वालीं आरजू साईं को मीडिया में काम करने का करीब पांच साल का अनुभव है। ‘नेटवर्क18’ में अपनी पारी के दौरान आरजू ने कई मौकों पर फील्ड रिपोर्टिंग के साथ-साथ बड़े मीडिया इवेंट्स को भी कवर किया है।‘नेटवर्क18’ (यूपी/उत्तराखंड) से पहले वह हैदराबाद में ‘नेटवर्क18‘ के राजस्थान चैनल में एंकर के रूप में काम कर रही थीं। ‘नेटवर्क18‘ से पहले आरजू ने करीब तीन साल ‘ETV भारत‘ में दिल्ली डेस्क पर एंकरिंग और स्क्रिप्ट राइटिंग का काम किया है। हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी, शिमला से पत्रकारिता की पढ़ाई कर चुकीं आरजू को कविताएं लिखने और पढ़ने का बहुत शौक है। इनकी कई कविताएं इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर लोकप्रिय रही हैं। इसके अलावा वह देश से जुड़े तमाम मुद्दों पर सोशल मीडिया पर बेबाकी से अपनी राय रखती हैं
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यह कन्यायें अपने त्याग, तपस्या और सेवा से अनेकों के जीवन परिवर्तन के लिए निमित्त बनेगी। 'स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन' का मंत्र जीवन में धारण करने वाली यह शिव शक्तियां अनेकों के कल्याण का कारण बनेगी। यही वह चैतन्य ज्ञानगंगायें हैं जो भोपाल ही नहीं वरन सारे विश्व के जन जन के मन को पावन बनाने का पुनीत कार्य करेंगी, यह कहना था लंदन से पधारी ब्रह्मा कुमारीज की अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका, संस्थान के विदेश स्थित शाखाओं की समन्वयक एवं विश्व स्तरीय वृक्षारोपण अभियान कल्पतरुह की निर्देशिका परम श्रद्धेय राजयोगिनी जयंती दीदी का। इस भावपूर्ण कार्यक्रम में शहर के अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। चारों ही कन्याओं ने समर्पण की प्रतिज्ञा की। ब्रह्मा कुमारीज सुख शांति भवन की संचालिका बीके नीता दीदी ने समर्पण की प्रतिज्ञा का वाचन किया। और समर्पित होने वाली कन्याओं ने उसको दोहराया। उसके बाद कन्याओं के अभिभावकों को मंच पर बुलाया गया। उन्होंने तथा बीके नीता दीदी ने कन्याओं का हाथ आदरणीय राजयोगिनी बीके जयंती दीदी जी के हाथ में दिया। उसके बाद चारों कन्याओं को ईश्वरीय सौगात प्रदान की गई। इस भाव पूर्ण माहौल को और खुशनुमा बनाया सुपरस्टार सिंगर फेम मास्टर प्रत्युष तथा डॉ दिलीप नलगे के गीतों ने। दिल्ली से पधारे ब्रह्माकुमारीज के अतिरिक्त मुख्य सचिव बृजमोहन भाई जी ने आशीर्वचन प्रदान किए। तथा मुख्यालय माउंट आबू से पधारे ब्रह्माकुमारीज के कार्यकारी सचिव बीके मृत्युंजय भाई जी ने चारों कन्याओं को तथा उपस्थित सभी को श्रेष्ठ कर्मों का महत्व बताकर प्रेरित किया। ब्रह्मा कुमारीज भोपाल जोन की निर्देशिका अवधेश दीदी ने सभी कन्याओं को ईश्वरीय उपहार प्रदान किए। कार्यक्रम का सूत्र संचालन वरिष्ठ राजयोगिनी बीके शैला दीदी ने किया।
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-भूपेन्द्र गुप्ता मध्यप्रदेश में महात्मा गांधी जब सबसे पहले 1918 में इंदौर हिंदी सम्मेलन में भाग लेने के लिए आए थे तब उन्होंने घोषणा की थी कि देश की राष्ट्रभाषा बनने की शक्ति केवल हिंदी में है किंतु इसे लागू करने के लिए हमें देवनागरी लिपि और देश की अन्य भाषाओं की लिपि में समानता खोजनी पड़ेगी। इसके लिए गांधी जी ने काका कालेलकर की अध्यक्षता में एक कमेटी भी बनाई थी जिसका सचिव उन्होंने अपने पुत्र देवदास को बनाया था ताकि भारत की विभिन्न भाषाओं और लिपि में समानता खोजी जा सके और हिंदी की देवनागरी लिपि को सर्वग्राही बनाने के लिए आसानी हो सके। मातृभाषा से प्रेम की यह यात्रा लगभग 104 साल पुरानी है। मध्यप्रदेश में विश्व में पहली बार कुछ करने के काम का नशा तारी है और इसी उत्तेजना में जो प्रयोग हो रहे हैं उनमें से एक चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई हिंदी में करवाने का संकल्प भी है। भावनात्मक दृष्टि से यह बात उचित दिखाई पड़ती है किंतु व्यवहारिक रूप से यह एक आत्मघाती कदम है। मध्य प्रदेश में ये सारे प्रयोग लगभग 40 साल पुराने हैं किंतु इनमें सफलता ना मिल पाने के कारण बार-बार यह प्रयास छात्रों के लिए नुकसानदेह साबित होते रहे हैं ।यहां यह विचारणीय होगा कि 50 बरस पहले से यह प्रयोग मेडिकल कॉलेज के स्तर पर बार-बार हुए हैं। प्रोफेसर डॉक्टर के पी मेहरा जो कि गांधी मेडिकल कॉलेज में एनाटॉमी विषय के विभागाध्यक्ष थे उन्होंने इस पर बहुत काम किया था लेकिन जब वे कोशिश हार गए तो उन्होंने मेडिकल कॉलेज में ही हिंदी भाषायी छात्रों के लिए अंग्रेजी की कोचिंग की स्पेशल क्लास लगानी शुरू कीं। इन कक्षाओं को मोतीलाल विज्ञान महाविद्यालय के प्रोफेसर डॉक्टर लाल और डॉक्टर पारखी पढ़ाया करते थे। कांग्रेस की सरकार में हिंदी ग्रंथ अकादमी के माध्यम से कई विषयों पर काम शुरू किया गया कंप्यूटर साइंस के ऊपर कई पुस्तकों का हिंदी करण डॉक्टर संतोष चौबे ने किया किंतु वह भी प्रारंभिक शिक्षा से आगे नहीं बढ़ पाया। टेक्स्ट की किताबें प्रतिवर्ष नए विज्ञान, नई फार्मोकोलॉजी ,नए साल्ट्स की खोज, नई डायग्नोस्टिक एप्लीकेशन आदि के कारण निरंतर बदलती रहती हैं ।आधी अधूरी तैयारी से अगर ये कोर्स शुरू किए जाते हैं तो यह मध्य प्रदेश के छात्रों के लिए आत्मघाती कदम ही होगा। पूर्व में अटल बिहारी बाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा इंजीनियरिंग के कोर्स हिंदी माध्यम में शुरू किए गए थे किंतु अपेक्षित विकास ना हो पाने के कारण वह परवान नहीं चढ़ सके अंततः कोर्स बंद हो गए। जिन 8-10 छात्रों ने प्रवेश लिया था उनके कई वर्ष व्यर्थ हुए। राजनैतिक कारणों से एकेडमिक्स और करिकुलम में दखलअंदाजी भाव जगाने के लिए और वोट बैंक बनाने के लिए उत्तेजक लग सकती है किंतु आज की प्रतिस्पर्धी दुनिया में मध्यप्रदेश के बच्चों को निश्चित रूप से ऐसे प्रयोग पीछे की पंक्ति में खड़ा कर देंगे ।बहुत संभव है कि जैसा कई बरस पहले कई निजी नौकरियों में नोट लिखा रहता था कि मध्य प्रदेश के बच्चे आवेदन ना करें ।आज इस तरह के प्रयोग फिर से ऐसी परिस्थिति भी पैदा कर सकते हैं। किसी भी सरकार के जहन में पहला सवाल यह आना चाहिए कि जब प्रदेश में इंजीनियरिंग का कोर्स असफल हो चुका है 35 वर्ष से जो भाषागत प्रयोग हो रहे हैं वे सफल नहीं हो सके हैं। तब संपूर्ण कोर्स तैयार हुए बिना दो तीन किताबों के आधार पर ऐसी पढ़ाई शुरू करना मजाक ही कहा जाएगा ।ऐसा बताया जा रहा है कि फार्मोकोलॉजी, वायो टेक्नोलॉजी एवं एनाटॉमी में ही पुस्तकें अब तक तैयार की जा सकी हैं ।तो बाकी विषयों का क्या होगा? क्या सरकार ने यह विचार किया है कि ऐसा कोर्स करने के बाद प्रदेश के जो बच्चे दूसरे राज्यों से पीजी करना चाहेंगे उनके साथ क्या व्यवहार होगा? वर्तमान में जिन छात्रों ने नीट की परीक्षा दी है वे असमंजस में हैं कि जिस कॉलेज में उन्होंने चॉइस फिलिंग की है अगर वहां हिंदी में पढ़ाई की गई तो उन्हें अपनी पसंद बदलने के लिए मजबूर होना पड़ेगा ।उनका विचार है कि सरकार को नीट परीक्षा के पहले ही यह बात घोषित करनी चाहिए थी कि अमुक-अमुक कॉलेजों में हिंदी में शिक्षा दी जाएगी। तो छात्र अन्य कालेजों को वरीयता देते किंतु यह उन विद्यार्थियों को जो किसी पसंद के कॉलेज से एमबीबीएस ही करना चाहते हैं किंतु अंग्रेजी माध्यम से, ऐसे छात्रों को मजबूरन अपनी पसंद का कालेज बदलना पड़ सकता है।यह उनकी रैंकिंग और मेरिट के साथ अन्याय ही होगा। पूरे विश्व में 'श्री हरि'के साथ दवाई हिंदी में लिखने का सरकारी सुझाव मजाक का विषय बना हुआ है।डाक्टर्स परेशान हैं कि चमड़े के सिक्के चलाने के पहले सभी डिनामिनेशन के सिक्के तैयार किये बिना ही सब कुछ बदला जा रहा है।सभी असहाय तो जरूर हैं पर क्या कर सकते हैं।ट्रेन तो तुगलकाबाद की तरफ चल पड़ी है। (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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इस सभागार के माध्यम से भोपाल ही नहीं, देश- विदेश के जनमानस की भी सेवा होगी- जयंती दीदी भोपाल के इतिहास में इस सभागार का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। यहां आकर सबको सुख शांति की अनुभूति होगी। भोपाल ही नहीं, लेकिन देश विदेश के जनमानस की भी इस सभागार के माध्यम से सेवा होगी। भोपाल शहर के गौरव को बढ़ाने में यह मील का पत्थर साबित होगा। यहां से निकलने वाले ऊर्जा के सकारात्मक प्रकंपन जन-जन के जीवन की दशा और दिशा बदलने में कारगर सिद्ध होंगे। यह कहना था ब्रह्मा कुमारीज की अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका, संस्थान के विदेश स्थित शाखाओं की समन्वयक एवं विश्व स्तरीय वृक्षारोपण अभियान कल्पतरूह की निर्देशिका परम श्रद्धेय राजयोगिनी जयंती दीदी का। और मौका था ब्रह्मा कुमारीज सुख शांति भवन में नवनिर्मित अनुभूति सभागार के भव्य उद्घाटन का। कार्यक्रम का प्रारंभ कुमार कुशाग्र गुप्ता के निपुण तबला वादन से हुआ। अतिथियों द्वारा रिबन कटिंग से सभागार का उद्घाटन हुआ तथा दीप प्रज्वलन से कार्यक्रम शुरू हुआ। पौधों द्वारा तथा पट्टा एवं पगड़ी पहनाकर अतिथियों का स्वागत किया गया। ब्रह्मा कुमारीज भोपाल जोन की निर्देशिका राजयोगिनी अवधेश दीदी ने अपने मधुर वचनों से सबका स्वागत किया। स्वागत गीत डॉ दिलीप नलगे तथा स्वागत नृत्य हर्षिता, दिशा, सौम्या, सिमरन तथा अक्षया केशवानी ने किया। कार्यक्रम में मत्स्य एवं पशुपालन विभाग के निदेशक श्री पुरुषोत्तम धीमान, मध्य प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के डायरेक्टर जनरल डॉक्टर अनिल कोठारी, दैनिक स्वदेश के मालिक श्री अक्षत शर्मा, उद्योग, लघु उद्योग के प्रमुख सचिव एवं कमिश्नर श्री पी नरहरि जी आदि मेहमान उपस्थित थे। दिल्ली से पधारे ब्रह्मा कुमारीज के अतिरिक्त मुख्य सचिव आदरणीय राज योगी बृजमोहन भाई जी ने सबको आशीर्वचन प्रदान किए। मुख्यालय माउंट आबू से पधारे हुए ब्रह्माकुमारीज के कार्यकारी सचिव बीके मृत्युंजय भाई जी ने अपने छोटे से उद्बोधन में सभागार के भविष्य के उपयोग की दृष्टि से अनेक दिशा निर्देश तथा प्रेरणायें प्रदान की। जयंती दीदी जी ने अपने उद्बोधन के पश्चात सबको राजयोग मेडिटेशन की अनुभूति द्वारा गहन शांति का अनुभव कराया। सुपरस्टार सिंगर फेम मास्टर प्रत्यूष ने बहुत ही सुंदर गीत गाकर कार्यक्रम का समा बांधा।कार्यक्रम का सूत्र संचालन सीधी से पधारी यूथ विंग की जोनल कोऑर्डिनेटर बीके रेखा दीदी ने किया। आभार प्रदर्शन ब्रम्हाकुमारीज़ सुख शांति भवन की डायरेक्टर बीके नीता दीदी ने किया।
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राष्ट्र गौरव की बात में कमी निकालती है कांग्रेस, बाहर के लोगों को बुलाकर करते हैं यात्रा बड़ी मध्यप्रदेश के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने कांग्रेस आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जब भी राष्ट्र के गौरव की बात आएगी कांग्रेस उसमें मीन मेख निकालेगी इस दौरान उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा पर भी निशाना साधा | मध्यप्रदेश में हर दिन डेंगू का ख़तरा बढ़ता जा रहा हैं डेंगू पीड़ित मरीजों की रफ्तार हर दिन बढ़ती जा रही है डेंगू के कारण भोपाल में भी एक नर्स की मौत हो गई है सरकार के प्रवक्ता डॉ नरोत्तम मिश्रा ने कहा डेंगू के प्रकोप को देखते हुए सरकार ने प्रदेश के सभी जिलों को एहतियात बरतने और समुचित उपचार उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं | गृह मंत्री मिश्रा ने कहा कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में स्थानीय लोगों की भागीदारी ना के बराबर है कांग्रेसी बाहर के लोगों को बुलाकर यात्रा को बड़ी करते हैं हमारी पार्टी चुनाव को ध्यान में रखकर कोई कार्य नहीं करती बल्कि हमारी पार्टी सिर्फ विकास को दृष्टिगत रखते हैं कार्य करती है जब भी राष्ट्र के गौरव की बात आएगी कांग्रेस उसमें मीन मेख निकालेगी उन्होंने कहा केंद्रीय शीर्ष नेतृत्व में हमारा देश नई ऊंचाइयां प्राप्त कर रहा है और मध्यप्रदेश भी उसमें अग्रणी भूमिका निभा रहा है केंद्रीय नेतृत्व का मध्य प्रदेश को लगातार सौगातों की झड़ी लगाने के लिए आभार प्रधानमंत्री जी केंद्रीय गृह मंत्री जी लगातार मध्य प्रदेश को सौगात दे रहे हैं |
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अनुराग उपाध्याय भोपाल में एक पत्रकारों का ऐसा गैंग सक्रिय है जो गाहे बगाहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को कुर्सी से हटाता रहता है। इस गैंग की कोशिश रहती है कि कैसे भी नेताओं और अफसरों पर दबाव बना के अपना उल्लू सीधा किया जाए। इस गैंग ने हाल ही में मध्यप्रदेश में बड़े राजनैतिक फेबदल की खबरे फैलाई और उसके बाद कहा कि मध्यप्रदेश में बदलाव की शुरुवात भाजपा भोपाल के अध्यक्ष सुमित पचौरी को हटा के हो रही है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कार में बैठकर सुमित पचौरी से इस्तीफ़ा लिखवा लिया है और न जाने क्या क्या ? लेकिन जब इन मामलों की तह में जाओ तो पता चलता है ये सब सच्चाई से कोसों दूर है। अफवाह क्रियेटर गैंग के लोगों का मुख्य धंधा इधर की उधर करना है। कांग्रेस दफ्तर से भाजपा ,भाजपा दफ्तर से कांग्रेस और फिर जनसम्पर्क विभाग में जाकर इनकी ख़बरें अस्त हो जाती हैं। फिलहाल ये गैंग भाजपा को कमजोर बताने वाली अफवाहें फैलाकर कांग्रेस नेताओं से करीबी बढ़ाने का प्रयास कर रही है ताकि अगर कांग्रेस सत्ता में आ जाये तो ये वहां मजे मार सके। इस गैंग के लोगों के नाम हनी ट्रेप मामलों में भी सामने आते रहे हैं। [लेखक दख़ल न्यूज़ चैनल के मुख्यसंपादक हैं ]
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(प्रवीण कक्कड़) बाजार दीपोत्सव की रौनक से सजे हुए हैं, ऑटोमोबाइल्स से लेकर कपड़ा बाजार तक और स्वर्ण आभूषणों से लेकर गिफ्ट व मिठाईयों की खरीदी चल रही हैै। असल में भारत के पर्व इस अनुसार ढले हुए हैं कि जब त्यौहारों का समय आता है तो मौसम में भी उसी अनुसार बाहार नजर आती है और बाजार गुलजार दिखाई देते हैं। त्यौहारों पर लगने वाले बाजार अर्थव्यवस्था को भी गति देते हैं। प्राचीन समय से त्यौहारों के बाजार हमारी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं, वहीं अब नए परिवेश में बाज़ारों में खरीदी के साथ ही लोग त्यौहारों पर आने वाले शुभ मूर्हुत के अनुसार शेयर ट्रेडिंग, आईपीओ और अन्य डिजिटल सिक्यूरिटिज में निवेश करने लगे हैं। जानकारों की मानें तो त्यौहारी सीजन इस बार देशभर के व्यापारियों के लिए बड़े कारोबार का अवसर लेकर आ रहा है। दीपावली पर त्यौहारी खरीद एवं अन्य सेवाओं के जरिए करीब ढाई लाख करोड़ रुपये की तरलता का बाजार में आने की संभावना कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने जताई है। प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों को मिले दीपावली बोनस, खेतों में आई फसल बेचने से बाजार खरीदी करने निकले किसान और दीपोत्सव को लेकर युवाओं में खरीदी के उत्साह के कारण बाजार में कैश फ्लो बढ़ेगा। भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन, संमृद्ध और वैज्ञानिक है। हम संस्कृति के अनुसार पर्व, परंपराएं और पूजन का विधान पूरा करते हैं। हर भारतीय त्यौहार का एक वैज्ञानिक महत्व है, हमारा हर पर्व रहन-सहन, खान-पान, फसलों व प्रकृति के परिवर्तनों पर आधारित है। हमारे पर्वों में जहां पौराणिक कथाओं का उल्लेख मिलता है, वहीं खगोलीय घटना, धरती के वातावरण, मनुष्य के मनोविज्ञान व सामाजिक कर्तव्यों की सीख भी परिलक्षित होती है। सारे त्यौहारों का हमारे जीवन में बहुत गहरा महत्व है। यह सारे त्यौहार हमारी सभ्यता और संस्कृति में इस तरह से रचे बसे हैं कि असल में इन्हीं के माध्यम से समरस समाज का निर्माण होता है। हमारे त्यौहार सांस्कृतिक एकता की सबसे बड़ी धरोहर होने के साथ ही अर्थव्यवस्था का पहिया भी हैं। हमारे पूर्वजों ने इन त्यौहारों में बड़ी ही शालीनता से हमारी संस्कृति ने आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां भी जोड़ दीं। भारतीय त्यौहारों के दौरान बड़े पैमाने पर मेले लगते हैं, बाजार भराते हैं, छोटे बड़े कस्बों में भांति-भांति के आयोजन होते हैं, लोग जमकर खरीददारी करते हैं। घरों को सजाते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, नए वाहन खरीदते हैं और बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं, जो होती तो असल में उत्साह से हैं, लेकिन उन्हें आर्थिक गतिविधि बड़े सलीके से पिरोई जाती है। एक तरह से यह त्यौहार हमारी धर्म और संस्कृति के साथ ही हमारी अर्थव्यवस्था का सबसे प्राचीन पहिया है। यह अमीर को खर्च करने का और गरीब को नई आमदनी हासिल करने का मौका देते हैं। भगवान गणेश की प्रतिमाओं का निर्माण करने वाले, मां दुर्गा की प्रतिमाओं का निर्माण करने वाले और रावण के पुतले बनाने वाले ज्यादातर लोग कारीगर वर्ग से आते हैं। वे साल भर मेहनत करते हैं। इसी तरह दीपोत्सव पर सजने वाली बाजार के लिए मिट्टी के दिए जानी बताशे मूर्तियां, सजावटी सामान और इलेक्ट्रॉनिक झालरों से बाजार सजे रहते हैं जिन्हें साल भर तैयार करके कलाकार बाजार में लाते हैं। भारत में हिंदू धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के त्यौहार भी उसी उल्लास के साथ मनाया जाते हैं। धार्मिक और आर्थिक गतिविधि के साथ ही इन त्यौहारों में अलग-अलग धर्म के लोगों को एक दूसरे के रीति रिवाज और संस्कार समझने का मौका मिलता है। ऐसे में हिंदू जान पाता है पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के इस धरती पर आने से मानवता का क्या कल्याण हुआ और मुस्लिम समुदाय के लोग यह समझ पाते हैं कि भगवान राम ने असुरों का संहार करके यानी दुष्टों का संहार करके किस तरह से इस धरती को आम आदमी के रहने योग्य स्थान बनाया। वाल्मीकि जयंती पर वाल्मीकि समुदाय इसमें ना सिर्फ महर्षि वाल्मीकि की आराधना करता है, बल्कि उसे यह गौरव करने का अवसर भी प्राप्त होता है कि हिंदू समाज के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ वाल्मीकि रामायण की रचना उसी के समाज के महर्षि वाल्मीकि ने की थी। इस तरह से यह पर्व भारत में जात-पात के बंधन और ऊंच-नीच के भेदभाव को खत्म करने का भी काम करते हैं। जब समाज के हर धर्म और हर जाति के लोग समान रूप से प्रसन्न होते हैं। एक दूसरे से घूलते-मिलते हैं। एक दूसरे के तीज त्यौहार में शिरकत करते हैं तो उससे इन सारी संस्कृतियों के मिलन से महान भारतीय संस्कृति का निर्माण होता है। भारत की यही वह संस्कृति है जिसको पूरी दुनिया में श्रद्धा और सम्मान की निगाह से देखा जाता है।
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अनुराग उपाध्याय मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए दिल्ली के कुछ वामपंथी टाइप के पत्रकारों को हायर कर लाने के लिए कुछ पत्रकारों ने ठेकेदारी शुरू कर दी है। बाकायदा पैकेज अपोजिशन के नेताओं को दिए जा रहे हैं और उनसे कहा जा रहा है ये अपनी गाडी और अपनी टीम के साथ पूरा मध्यप्रदेश घूमेंगे और शिवराज सरकार की हकीकत बताएँगे। खासकर आपके इलाके में तो सरकार की बैंड बजा देंगे। इनके आपके इलाके में रहने से आपका वोट प्रतिशत बढ़ेगा वगैरह -वगैराह। इन ठेकेदार बने पत्रकारों में से तो एक 90 के दशक में हुए हनीट्रैप मामले से जुड़ा व्यक्ति है। तो दूसरी टीम में नेशनल न्यूज़ चैनल से जुड़े दो पत्रकार और उनका एक पप्पू मीडिया का साथी है । आपको बता दें जिन बड़े पत्रकारों को एमपी में शिवराज सरकार के खिलाफ लाने की तैयारी हैं। उन पत्रकारों को अब दिल्ली में काम नहीं मिल पा रहा है। इससे पहले ये लोग इसी तरह उत्तरप्रदेश में योगी की बैंड बजने गए थे लेकिन वहां भी हुआ उल्टा ही और योगी ने भरपूर बहुमत हांसिल किया। [लेखक दखल न्यूज़ चैनल के मुख्य सम्पादक हैं
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- कांग्रेस शासन काल में परियोजना का स्वरूप बिगाड़ने की रची गई साजिश - केवल विशेष वर्ग को संरक्षण दे सकती है कांग्रेस हराभरा वतन, भोपाल। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जब 2016 के सिंहस्थ में उज्जैन आए थे। तभी उन्होंने मन में महाकाल मंदिर को नया स्वरूप देने की परिकल्पना कर ली थी। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश केसवानी ने महाकाल लोक के निर्माण के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि मंदिर के आसपास बड़े पैमाने पर हुए अतिक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए प्रधानमंत्री श्री मोदी ने सीएम श्री शिवराज सिंह चौहान को मंदिर तक आसानी से पहुंचने के लिए एक अद्भुत कॉरिडोर बनाने की बात कही थी। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने मुख्यमंत्री श्री चौहान के साथ मन के विचार साझा करते हुए एक अद्भुत कॉरिडोर की कल्पना की थी। इसी कल्पना को मुख्यमंत्री श्री चौहान ने संकल्प बनाकर एक ऐसा कॉरिडोर बनाने का प्रण लिया, जिसका शिल्प और वास्तुकला अदभुत हो। बस यहीं से शुरुआत हुई श्री महाकाल लोक के निर्माण की। इस दौरान डॉ. केसवानी ने पूर्व सीएम कमलनाथ और पहले की कांग्रेस सरकार पर जमकर हमला बोलते हुए कहा कि कांग्रेस के कार्यकाल में श्री महाकाल लोक के भव्य स्वरूप को बिगाड़ने और काम की रफ्तार को धीमा करने का ही काम किया गया। उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस सरकार अस्तित्व में नहीं आई होती, तो महाकाल लोक 2020 में ही लोकार्पित हो चुका होता। कांग्रेस केवल सनातनियों की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने का ही काम करती आई है। कांग्रेस को हिंदू धर्म के विकास से कोई सरोकार नहीं है। सनातन संस्कृति को सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाने की योजना बना रहे हैं पीएम:डॉ. केसवानी ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी केवल सनातन संस्कृति को सर्वोच्च स्थान पर पहुंचाने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के कथन का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज पूरे भारत में प्राचीन हिंदू मंदिर इमारतों को देखा जाए तो हमें ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में हमारे शिल्प और कला का वैभव पूरी दुनिया में सबसे अधिक था। यह तभी संभव है, जब देश पूरी तरह से संपन्न हो। इससे हमें ज्ञात होता है कि हम कितने वैभवशाली और संपन्न थे। बाद में आक्रमणकारियों ने इस वैभव को नष्ट करने का प्रयास किया। महाकाल मंदिर को भी लुटेरे इल्तुतमिश ने नष्ट कर दिया था। बाद में मराठों ने इसका पुनर्निर्माण किया। मंदिर के मूल शिवलिंग को भी सैकड़ों साल तक मुस्लिम आक्रांताओं से बचाकर रखा गया। ऐसे में पीएम मोदी ऐसा काम कर रहे हैं, जिसके कारण हजारों सालों तक फिर से हमारी सनातन संस्कृति का पताका सर्वोच्च शिखर पर लहराता रहेगा। सभी पौराणिक स्थलों का हो रहा जीर्णोद्धार : डॉ. केसवानी ने बताया कि पीएम मोदी के नेतृत्व में एक एक कर सभी पौराणिक स्थलों का जीर्णोद्धार हो रहा है। जबकि कांग्रेस का तो हिंदू धर्म पर कभी भरोसा ही नहीं रहा। तो कैसे कांग्रेस कह सकती है उसके शासन काल में श्री महाकाल लोक की परिकल्पना की गई। उन्होंने कांग्रेस को सफेद झूठ बोलने वाली पार्टी कहते हुए कहा कि कांग्रेस केवल हिंदुओं को गुमराह ही कर सकती है। इसके पहले भी श्रीराम मंदिर के निर्माण के दौरान भी कांग्रेस हिंदू धर्मावलंबियों को बार बार गुमराह करती रही। यहां तक कि कपिल सिब्बल को कोर्ट में राम मंदिर के खिलाफ पैरवी करने के लिए भी खड़ा कर दिया। इसी कांग्रेस ने राम सेतु के अस्तित्व पर सवाल उठाकर इसे तोड़ने के लिए भी योजना बनाई थी।
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- कांग्रेस शासन काल में परियोजना का स्वरूप बिगाड़ने की रची गई साजिश - केवल विशेष वर्ग को संरक्षण दे सकती है कांग्रेस हराभरा वतन, भोपाल। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जब 2016 के सिंहस्थ में उज्जैन आए थे। तभी उन्होंने मन में महाकाल मंदिर को नया स्वरूप देने की परिकल्पना कर ली थी। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश केसवानी ने महाकाल लोक के निर्माण के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि मंदिर के आसपास बड़े पैमाने पर हुए अतिक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए प्रधानमंत्री श्री मोदी ने सीएम श्री शिवराज सिंह चौहान को मंदिर तक आसानी से पहुंचने के लिए एक अद्भुत कॉरिडोर बनाने की बात कही थी। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने मुख्यमंत्री श्री चौहान के साथ मन के विचार साझा करते हुए एक अद्भुत कॉरिडोर की कल्पना की थी। इसी कल्पना को मुख्यमंत्री श्री चौहान ने संकल्प बनाकर एक ऐसा कॉरिडोर बनाने का प्रण लिया, जिसका शिल्प और वास्तुकला अदभुत हो। बस यहीं से शुरुआत हुई श्री महाकाल लोक के निर्माण की। इस दौरान डॉ. केसवानी ने पूर्व सीएम कमलनाथ और पहले की कांग्रेस सरकार पर जमकर हमला बोलते हुए कहा कि कांग्रेस के कार्यकाल में श्री महाकाल लोक के भव्य स्वरूप को बिगाड़ने और काम की रफ्तार को धीमा करने का ही काम किया गया। उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस सरकार अस्तित्व में नहीं आई होती, तो महाकाल लोक 2020 में ही लोकार्पित हो चुका होता। कांग्रेस केवल सनातनियों की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने का ही काम करती आई है। कांग्रेस को हिंदू धर्म के विकास से कोई सरोकार नहीं है। सनातन संस्कृति को सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाने की योजना बना रहे हैं पीएम: डॉ. केसवानी ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी केवल सनातन संस्कृति को सर्वोच्च स्थान पर पहुंचाने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के कथन का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज पूरे भारत में प्राचीन हिंदू मंदिर इमारतों को देखा जाए तो हमें ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में हमारे शिल्प और कला का वैभव पूरी दुनिया में सबसे अधिक था। यह तभी संभव है, जब देश पूरी तरह से संपन्न हो। इससे हमें ज्ञात होता है कि हम कितने वैभवशाली और संपन्न थे। बाद में आक्रमणकारियों ने इस वैभव को नष्ट करने का प्रयास किया। महाकाल मंदिर को भी लुटेरे इल्तुतमिश ने नष्ट कर दिया था। बाद में मराठों ने इसका पुनर्निर्माण किया। मंदिर के मूल शिवलिंग को भी सैकड़ों साल तक मुस्लिम आक्रांताओं से बचाकर रखा गया। ऐसे में पीएम मोदी ऐसा काम कर रहे हैं, जिसके कारण हजारों सालों तक फिर से हमारी सनातन संस्कृति का पताका सर्वोच्च शिखर पर लहराता रहेगा। सभी पौराणिक स्थलों का हो रहा जीर्णोद्धार : डॉ. केसवानी ने बताया कि पीएम मोदी के नेतृत्व में एक एक कर सभी पौराणिक स्थलों का जीर्णोद्धार हो रहा है। जबकि कांग्रेस का तो हिंदू धर्म पर कभी भरोसा ही नहीं रहा। तो कैसे कांग्रेस कह सकती है उसके शासन काल में श्री महाकाल लोक की परिकल्पना की गई। उन्होंने कांग्रेस को सफेद झूठ बोलने वाली पार्टी कहते हुए कहा कि कांग्रेस केवल हिंदुओं को गुमराह ही कर सकती है। इसके पहले भी श्रीराम मंदिर के निर्माण के दौरान भी कांग्रेस हिंदू धर्मावलंबियों को बार बार गुमराह करती रही। यहां तक कि कपिल सिब्बल को कोर्ट में राम मंदिर के खिलाफ पैरवी करने के लिए भी खड़ा कर दिया। इसी कांग्रेस ने राम सेतु के अस्तित्व पर सवाल उठाकर इसे तोड़ने के लिए भी योजना बनाई थी।
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- विष्णुदत्त शर्मा सदियों से भारत अपनी सांस्कृतिक आध्यात्मिकता के लिए विख्यात है। यह देश आध्यात्मिक ज्ञान का केंद्र रहा है। यहां बहने वाले आस्था के सैलाब को सारी दुनिया देखने आती रही है। अनेक विदेशी यात्रियों ने भी अपने संस्मरणों में इनका उल्लेख किया है। हजारों साल के इतिहास में हमारे श्रद्धा केंद्रों को विधर्मियों द्वारा ध्वस्त किये जाने के बावजूद ये पवित्र स्थल अपने पुण्य प्रवाह के साथ वर्षों से टिके हुए हैं। अपनी उत्कृष्टता का दंभ भरने वाले मिस्र, रोम जैसी सभ्यताओं के चिन्ह आज नहीं के बराबर हैं, उनका एक भी सांस्कृतिक अंश अपने मूल स्वरूप में उपस्थित नहीं है। परन्तु भारत एकमात्र ऐसा देश है, जो यह दावा कर सकता है कि उसने लाखों विपत्तियों के बावजूद अपनी आध्यात्मिकता और आस्था केंद्रों की प्राण शक्ति से अपने सनातन चरित्र को जीवंत रखा है। बहरहाल, आजादी का सूरज निकलने के बाद उम्मीद थी कि स्वाधीन भारत की सरकारें इस पर ध्यान देंगी और हमारे आस्था के केंद्र अपनी प्राचीन अवस्था में पुर्नस्थापित होंगे परन्तु एक खास तरह के तुष्टिकरण की राजनीति ने अपनी जगह बना ली और भारत के अनेक श्रद्धा केंद्र विकास की राह ताकते रहे। यह दैवीय संयोग ही है कि 2014 से भारत के आध्यात्मिक जगत में सांस्कृतिक उत्थान के एक नये युग की शुरुआत हुई। 500 वर्षों से विवादित श्रीराम मंदिर का मार्ग प्रशस्त हुआ और आज मोदी सरकार के नेतृत्व में तेजी से मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है। भारी प्राकृतिक आपदा झेल चुके हमारे चारधाम में एक केदारनाथ धाम का कायाकल्प भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति से सम्पन्न हो चुका है। उत्तराखंड में चारधाम यात्रा नामक परियोजना परवान चढ़ चुकी है और लगभग सभी दुर्गम आस्था केंद्रों पर अब 12 महीने आसानी से पहुंचा जा सकता है। ऋषिकेश और कर्ण प्रयाग को रेलवे मार्ग से भी जोड़ा जा रहा है, जो 2025 तक पूरा होगा। कश्मीर में धारा 370 की समाप्ति के बाद मंदिरों के पुनरुद्धार का काम शुरू हुआ है। श्रीनगर स्थित रघुनाथ मंदिर हो या माता हिंगलाज का मंदिर, सभी प्रमुख मंदिरों के स्वरूप को नवजीवन दिया जा रहा है। पिछले साल भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी का पुनरुद्धार नरेंद्र मोदी के कर कमलों से ही संभव हुआ है। वह उनका संसदीय क्षेत्र है इसलिए काशी का विकास हुआ, ऐसा नहीं है। क्योंकि पहले भी अनेक बड़े नेता वहां का संसदीय नेतृत्व कर चुके हैं लेकिन किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि काशी की सकरी गलियों में विश्वनाथ भागवान के लिए कॉरीडोर बन सकता है। परन्तु यह संभव हुआ है और बहुत तेज गति से हुआ है। आज काशी अपने नए रंगरूप में अपनी आध्यात्मिक पहचान के साथ चमचमा रही है। काशी न्यारी हो गई है। जहां दुनिया भर के लोग आकर वास्तविक भारत और उसकी आध्यात्मिक राजधानी को निहार रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जितना ध्यान देशमंदिरों के पुनरुद्धार पर दिया है, उतना ही ध्यान विदेशों में भी जीर्ण शीर्ण हालत में पड़े पुराने मंदिरो की योजनाओं पर भी लगाया है। इस दिशा में सबसे पहले बहरीन स्थित 200 साल पुराने श्रीनाथ जी के मंदिर के लिए 4.2 मिलियन डालर खर्च किये जाने की योजना है। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अबूधाबी में भी यहां के पहले मंदिर की 2018 में आधारशिला रखी गई। अभी पिछले सप्ताह संयुक्त अरब अमीरात में विशाल हिन्दू मंदिर का लोकार्पण आधिकारिक रूप से वहां की सरकार ने किया। जेबेली अली अमीरात के कॉरीडोर ऑफ चॉलरेस में स्थित इस विशाल मंदिर के बनने से वहां के हिन्दुओं का दशकों पुराना सपना पूरा हुआ है, जिसके पीछे भारत की मोदी सरकार का अथक प्रयास है। बीते रविवार को गुजरात के मेहसाणा जिले में चालुक्य शासन में बनाए गये मोढेरा के सूर्य मंदिर का भी पुनरुद्धार हुआ। वहां 3डी प्रोजेक्शन लाइट एंड साउंड शो के उद्घाटन के दौरान देश के प्रधानमंत्री मोदी जब उसके अतीत का स्मरण करते हुए यह कह रहे थे कि इस स्थान पर अनगिनत आक्रमण किये गये लेकिन अब मोढेरा अपनी प्राचीन चरित्र को बनाए रखते हुए आधुनिकता के साथ बढ़ रहा है, तब वह देश की जनता को यह संदेश दे रहे थे कि भारत के सभी प्राचीन आस्था स्थल अपनी गौरवशाली पहचान के साथ आधुनिक सुविधाओं से लैस हो सकते हैं, और हो रहे हैं।लगभग एक साल पहले ही सोमनाथ के मंदिर के पुनरुद्धार और अन्य सुविधाओं के लिए पीएम ने कई परियोजनाओं का शुभारंभ किया था। आने वाले समय में सोमनाथ भी आधुनिक सुविधाओं से लैस दिखेगा। विगत जून महीने में पुणे के देहू में नये तुकाराम महाराज मंदिर और गुजरात के पावागढ़ मंदिर के ऊपर बने कालिका माता मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्घाटन भी प्रधानमंत्री मोदी ने किया था। पावागढ़ में मां कालिका को नमन करते हुए उन्होंने कहा था कि हमारे श्रद्धास्थल हर भारतीय के प्रेरणा केंद्र हैं और ये स्थल आस्था के साथ-साथ नई संभावनाओं का स्रोत भी बन रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की इस बात के बड़े गहरे अर्थ हैं क्योंकि यह स्वाभाविक है कि जिन मंदिरों या आस्था केंद्रों का पुनरुद्धार हो रहा है, वहां केवल मंदिर परिसर का ही कायाकल्प नहीं होता, बल्कि उसके साथ उस क्षेत्र का समग्र विकास भी होता है। काशी, सोमनाथ, केदारनाथ, देहू, पावागढ़ सहित सभी स्थलों पर पुनरुद्धार कार्य के साथ-साथ अनेक जरूरी, विकास और रोजगारपरक योजनाओं को भी अमलीजामा पहनाया जा रहा है। सभी स्थलों पर हजारों करोड़ों की परियोजनाओं को जमीन पर उतारा जा रहा है, जो नई संभावनाओं के द्वार खोलेंगे। निःसंदेह ऐसे सभी क्षेत्रों में आध्यात्म-संस्कृति का नया सवेरा हुआ है तो विकास की नई गंगा भी प्रवाहित हुई है। सबसे बड़े लोकतीर्थ अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के साथ-साथ लाखों करोड़ की परियोजनाओं पर काम हो रहा है। इंटरनेशनल एयरपोर्ट से लेकर एक्सप्रेसवे तक बन रहा है और अयोध्या को वैश्विक सुविधाओं वाला महानगर बनाने का कार्य तीव्र गति से चल रहा है। काशी, सोमनाथ, केदारनाथ सहित सभी स्थानों पर यही स्थिति है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उद्घाटित धार्मिक-आस्था स्थलों को विकास के एक नये मॉडल के रूप में भी देखा जाना चाहिए। इन स्थलों पर यात्रियों की संख्या बढ़ेगी तो रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और राजस्व में भी वृद्धि होगी। देश की अर्थव्यवस्था को भी इससे नई उड़ान मिलेगी। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के किसी भी हिस्से में जाते हैं तो वहां के प्रसिद्ध देवालयों में दर्शन-पूजन अवश्य करते हैं अथवा उनता पुण्य स्मरण करते हैं। हाल ही में नवरात्रि में शक्तिपीठ अंबाजी मंदिर में उन्होंने दर्शन-पूजन करते हुए कई विकास परियोजनाओं का शिलान्यास किया। देश ने विगत 8 साल में अनेक ऐसे अवसर देखे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान से पहले मोदी ने माता वैष्णो देवी के दर्शन किये तो चुनाव समाप्त होते ही एक दिन के लिए केदारनाथ स्थित गुफा में ध्यान किया। यह नरेंद्र मोदी की ही प्रेरणा है कि राज्य सरकारों ने भी देवालयों पर विशेष ध्यान देना शुरु किया है। उत्तर प्रदेश का मथुरा, विन्ध्याचल, प्रयागराज हो या मध्यप्रदेश का उज्जैन हो, अनेक ऐसे उदाहरण हैं जहां आधुनिक सुविधाओं से लैस विकास कार्य हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उज्जैन की पावन धरा पर महाकाल लोक के नये कॉरीडोर तथा अन्य लोकमुखी सुविधाओं का उद्घाटन भी इस कड़ी में एक ऐतिहासिक पड़ाव है, जहां से भारत के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, धार्मिक पुनरुत्थान का नया अध्याय प्रारंभ होगा। महाकाल की नगरी विश्व भर में विशेष धार्मिक महत्व रखती है, जहां प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु आते हैं।उज्जैन राज्य सरकार द्वारा किया नवनिर्माण और उसका नामकरण हमारी आध्यात्मिक यात्रा में नया अध्याय जोड़ेगा। वस्तुतः भारतीय संस्कृति का आधार-आदर्श आध्यात्मिकता है। यही वह धुरी है जिससे भारत में व्यक्तिगत जीवन, सामाजिक जीवन, राष्ट्रीय जीवन और आर्थिक जीवन के मध्य सदियों से सामंजस्य रहा है। हमारे शक्ति पीठों, मंदिरों, पुण्यस्थलों की सांस्कृतिक विरासत पर नरेंद्र मोदी जी की गहनदृष्टि से विगत 70 साल से जमी धूल हट रही है और भारत को उसकी प्राणशक्ति की ओर ले जा रही है। इस शक्ति की जागृति से भारत की सांस्कृतिक अस्मिता का पुनर्जागरण संभव हो रहा है और विश्व कल्याण में आध्यात्मिक अभ्युदय का नया दौर शुरु हुआ है। इस दौर का जब भी इतिहास लिखा जाएगा तब नरेंद्र मोदी द्वारा भारत के आध्यात्मिक पुनरुत्थान का योगदान स्वर्ण अक्षरों में दर्ज होगा। -लेखक मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष एवं खजुराहो लोकसभा से सांसद हैं
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डॉ.दुर्गेश केसवानी, भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अक्टूबर को उज्जैन में नव निर्मित भव्य महाकाल लोक का लोकार्पण करने के लिए पधार रहे हैं। कभी दुर्दांत आक्रांत इल्तुमिस के आक्रमण के कारण अपना वैभव खो चुका महाकाल मंदिर आज फिर पूरी दुनिया में गौरान्वित हो रहा है। महाकाल के प्रति भारत देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में फैले सनातनियों की आस्था जुड़ी है। बाबा महाकाल के दर्शन करने अन्य देशों के लोग भी पधारते हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की दूरदृष्टिता के कारण यह मंदिर आज वैश्विक धरोहर के रूप में स्थापित हो गई है। मूर्तिकला के द्वारा हमारे पौराणिक धर्म को जीवंत करने का प्रयास इस मंदिर के द्वारा किया गया है। यह पहला मौका नहीं है। इसके पहले भी 12 ज्योर्तिलिंगों को एक एक कर प्रधानमंत्री मोदी उनका खोया हुआ वैभव लौटा रहे हैं। इन मंदिरों को भूल चुकी युवा पीढ़ी इनको जान रही है। आज जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैश्विक नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं। वहीं हमारी खोई धार्मिक विरासतों के वापिस लौटने के कारण सनातन धर्म का डंका पूरी दुनिया में गूंज रहा है। मोदी काल में हमने राम मंदिर सहित 4 अन्य ज्योर्तिलिंगों का स्वरूप बदलते हुए देखा है। साथ ही जिन जगहों पर आक्रांताओं ने हमारे मंदिरों को जमींदोज कर दिया था। उन्हें फिर से स्थापित होते हुए भी देखा है। लगातार होते मंदिरों के जीर्णोद्धार के कारण प्रधानमंत्री सनातन धर्म के सबसे बड़े चेहरे के रूप में हम सबके सामने आए हैं। वहीं प्रधानमंत्री पूरे देश के लोग जो अपने तीर्थों को भूल गए थे। उनके लिए श्रवण कुमार बनकर सामने आए हैं। प्रधानमंत्री के इन कार्यों के कारण इन तीर्थ स्थानों तक पहुंचना सुलभ होगा। वहीं हम भविष्य में अन्य तीर्थ स्थानों का जीर्णोद्धार होते हुए भी देखेंगे। वहीं इन सबके बीच आइए जानते हैं पीएम मोदी के कार्यकाल में हमने कौन कौन सी धार्मिक विरासतें वापिस पाई हैं। 1. श्री महाकाल लोक, उज्जैन : 1234-35 में सुल्तान इल्तुतमिश ने महाकालेश्वर मंदिर को ध्वस्त कर मूल शिवलिंग को नष्ट करने का प्रयास किया, तीन सौ साल तक शिवलिंग कुंड में पड़ा रहा। लेकिन इसके बाद भी सदियों तक इसका धार्मिक महत्व बना रहा। इसके बाद सिंधिया काल में मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। लेकिन इस मंदिर के खोए हुए गौरव को लौटाने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है, जिन्होंने 920 मीटर लंबे नवीन कॉरिडोर की योजना के लिए मंजूरी दी। श्री महाकाल लोक को इस तरह बनाया गया है कि मंदिर तक जाने से पहले लोगों को लगेगा कि वे वास्तव में महाकाल लोक में उतर आए हैं और भगवान शिव के विभिन्न रूपों के साथ, सप्तऋषि, भगवान शिव के सभी अवतारों और शिव से जुड़ी कथाओं का प्रतिमाओं के द्वारा सजीव चित्रण देखते हुए मंदिर तक पहुंचेंगे। 2. राम मंदिर, अयोध्या : बाबर द्वारा लगभग 500 वर्ष पूर्व हमारे सबसे बड़े वैभव राम मंदिर को तोड़ दिया गया था। इसके बाद से ही मंदिर स्थल पर सदियों से सनातन धर्म के अनुयायी मंदिर होने का दावा करते आ रहे थे। लगभग 70 साल पहले मामला कोर्ट में गया और 7 दशकों की कानूनी लड़ाई के बाद 9 नवंबर 2019 को श्री रामजन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया। जिसके बाद हिंदू समाज का पांच सदियों पुराना सपना और संघर्ष पूरा हो गया। रामलला से जुड़ी लोगों की आस्था का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लगभग 500 सालों तक आसपास के 105 गांवों के सूर्यवंशी क्षत्रिय न तो पैरों में जूते पहनते थे और न ही सिर पर पगड़ी धारण करते थे। प्रधानमंत्री मोदी ने राम मंदिर निर्माण के साथ ही इनमें से हर एक सूर्यवंशी को उसका खोया हुआ सम्मान वापिस लौटाया है। अगस्त 2020 में जैसे ही पीएम ने इस मंदिर की नींव रखी। करोड़ों हिंदुओं की तपस्या पूरी हुई। 3. काशी विश्वनाथ, वाराणसी : काशी के विश्वनाथ सारी दुनिया में अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध हैं। वहीं मंदिर के चारों ओर स्थित गलियां इस पूरे वैभव को कमजोर कर देती थीं। काशी से सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके मूल स्वरूप को सुधारने पर खास काम करना शुरू किया। 8 मार्च 2019 को उन्होंने कॉशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना की शुरुआत की। शुरुआत में इस परियोजना को असंभव माना जा रहा था। इस प्रोजेक्ट के तहत मौजूदा संरचनाओं को संरक्षित कर मंदिर परिसर में नई सुविधाएं दी जाना थीं। मंदिर तक आवागतन सुलभ करना और मंदिर से घाट सीधा दिखे। इसकी व्यवस्था की जाना थी। प्रधानमंत्री मोदी मां गंगा और बाबा विश्वनाथ के बीच सीधा संबंध जोड़ना चाहते थे। असंभव दिखने वाला यह प्रोजेक्ट पूरा हुआ और विश्व के सामने पीएम ने असंभव को संभव करने की नजीर रख दी। खास बात यह है कि पूरे प्रोजेक्ट में प्राचीन 40 अन्य मंदिर भी हमारे सामने आए। 4. सोमनाथ मंदिर, सोमनाथ : सोमनाथ 12 ज्योर्तिलिंगों में एक ऐसा ज्योर्तिलिंग है, जिसे दुर्दांत आक्रांताओं ने बार बार तोड़ा और यह फिर से जीवंत हो गया। माना जाता है कि 12 ज्योर्तिलिंगों में सर्वप्रथम बाबा सोमनाथ के मंदिर का निर्माण सबसे पहले स्वयं चंद्रदेव ने किया था। सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह स्थित इस मंदिर का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने यहीं अपनी देह त्याग की थी। इस कारण यह मंदिर हर सनातनी के लिए सर्वप्रथम है। मंदिर के ईसा पूर्व भी होने के कई पौराणिक दस्तावेज मौजूद हैं। मंदिर का दूसरी बार निर्माण 649 ईस्वी में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने किया। 725 ईस्वी में इसे मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वा दिया। 815 में राजा नागभट्ट ने इसका तीसरी बार निर्माण कराया था। 1024 और 1026 में अफगानिस्तान के महमूद गजनवी ने दो बार मंदिर को तहस नहस कर लूट लिया। इस दौरान गजनवी ने हजारों निहत्थे लोगों को बर्बरता पूर्वक मार दिया। 1297 में नुसरत खां ने मंदिर को दुबारा तोड़ दिया। 1395 में मुज्जफरशाह और 1412 में उसके पुत्र अहमदशाह ने इसे तुड़वा दिया। बाद में 1665 और 1706 में इसे औरंगजेब के कार्यकाल में दो बार तोड़ा गया। 1783 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने मूल मंदिर से कुछ दूरी पर एक अन्य शिव मंदिर का निर्माण कराया। 1950 में पूर्व गृहमंत्री सरदार वल्लभ पटेल ने संकल्प लेकर मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर को कैलाश महामेरू शैली में बनाया गया। वर्तमान मंदिर के निर्माण का श्रेय सरदार वल्लभ पटेल को जाता है। 1995 में इसे राष्ट्र को समर्पित किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मंदिर के वैभव को और बढ़ाने के लिए कई परियोजनाएं शुरू कीं। प्रधानमंत्री ने एक प्रदर्शनी केंद्र और समुद्र तट पर सैरगाह का निर्माण किया। 5. केदारनाथ धाम, रूद्रप्रयाग : 2013 की बाढ़ के बाद मंदिर परिसर को दोबारा से तैयार किया गया और मंदिर को पूरी तरह से बदल दिया गया। पीएम मोदी ने कहा कि केदारनाथ का पुन: विकास उन्हें व्यक्तिगत रूप से प्रिय है और वे यह बात 2013 और 2017 के अपने भाषण में कह भी चुके हैं। इसके अलावा सरकार ने केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री तीर्थों को जोड़ने के लिए चारधाम परियोजना की शुरुआत की है। सड़क परियोजना के साथ ही रेल लाइन का काम भी तेज गति से चल रहा है। वहीं कश्मीर में भी ध्वस्त हो चुके प्रमुख हिंदू मंदिरों को बनाने का काम तेजी से चल रहा है। 952 हिंदू मंदिरों में से 212 चल रहे हैं, जबकि 740 जर्जर अवस्था में हैं। इनमें से कई धार्मिक स्थलों के नवीनीकरण का काम फिर से शुरु हो गया है। - श्री महाकाल लोक के बाद अन्य मंदिरों का भी वैभव फिर लौटेगा, दुनिया में गूंजेगा सनातन का डंका - मोदी एक एक कर लौटा रहे हैं देश की खोई हुई धार्मिक विरासतें, भूले-बिसरे गौरव को जान रही युवा पीढ़ी (लेखक भारतीय जनता पार्टी मप्र के प्रदेश प्रवक्ता हैं।)
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(प्रवीण कक्कड़) आज भागदौड़ भरे समय में रिश्तो के बीच संवाद घटता जा रहा है, हर व्यक्ति केवल स्वयं पर केंद्रित होकर आगे बढ़ रहा है लेकिन इन सबके बीच भी अगर विश्वास, त्याग और गहराई की बात की जाए तो पति-पत्नी का रिश्ता ही काफ़ी मजबूत नजर आता है। इसकी गहराई का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि हर रिश्ते का नाम लेने के लिए हमें दो शब्दों की जरूरत होती है, जैसे मां-बेटा, बाप-बेटी, भाई-बहन, चाचा-भतीजा लेकिन सिर्फ एक रिश्ता ऐसा है जो एक ही शब्द में बयां हो जाता है जीवनसाथी। इसी कारण इस रिश्ते को महत्वपूर्ण माना गया है। इसी रिश्ते के प्रति त्याग और समर्पण का प्रतीक है करवाचौथ। इस बार करवा चौथ व्रत 13 अक्टूबर को आ रहा है। यह व्रत जहां पत्नी के पति के प्रति त्याग और समर्पण की भावना को बयां करता है, वहीं पति के पत्नी से भावनात्मक लगाव का भी परिचायक है। करवाचौथ… पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाके में सदियों से मनाया जाने वाला यह पर्व आज पूरे भारत का एक बहुत ही लोकप्रिय त्यौहार बन गया है। अगर भारत के बाहर का कोई व्यक्ति आकर इस त्यौहार को देख ले, तो वह निश्चित तौर पर इसे अत्यंत कठिन व्रत के तौर पर देखेगा लेकिन भारतीय महिलाएं जिस उत्साह और आस्था के साथ दिनभर निराहार और निर्जला रहकर यह व्रत रखती हैं, वह अपने आप में बहुत ही विलक्षण बात है। दिन भर जल ग्रहण ना करना और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य चढ़ाकर पति के हाथ से पानी पीना बहुत ही श्रम साध्य काम है। व्रत की इस तपस्या और साधना के साथ ही इसके इस पक्ष पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह दांपत्य की पवित्रता का भी पर्व है। भारतीय संस्कृति में माना भी गया है कि प्रेम का मूल तत्व त्याग है। ऐसे में इस तरह त्याग का प्रदर्शन करके महिला दांपत्य के उस रिश्ते को एक नई ऊंचाई और गहराई प्रदान करती हैं जो असल में तो पति और पत्नी के बीच हमेशा ही होना चाहिए। यह उनके रिश्ते में आई किसी भी तरह की जड़ता को तोड़ने का काम करती है। आज सामूहिक परिवारों की तुलना में एकल परिवार बढ़ रहे हैं। ऐसे में पति-पत्नी पर स्वयं के करियर व एक-दूसरे से आपसी समझ के साथ ही भावी पीढ़ी को तैयार करने की जिम्मेदारी भी है। ऐसे में जीवनसाथी की भावनाओं को समझना और उनका सम्मान करना बेहद जरूरी है। भावनात्मक संबंध में यह सम्मान व विश्वास इस रिश्ते को खूबसूरत बनाए रखता है। हमारी प्राचीन संस्कृति का हिस्सा रहे त्यौहार व करवाचौथ जैसे व्रत खुशहाल वैवाहिक जीवन की नींव रखते हैं। व्रत और पर्व पति-पत्नी के बीच संवाद और स्नेह का जरिया बनते हैं। ऐसे अवसर वैवाहिक जीवन में आ रही कड़वाहट को दूर करने का सबसे सटिक माध्यम हैं। कभी करियर की भागदौड़ तो कभी स्वयं को सही सिद्ध करने की होड़ में पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति संयम खो बैठते हैं। कभी अहंकार तो कभी अविश्वास रिश्ते पर हावी होने लगता है। ऐसे में करवाचैथ का पर्व उन्हें एक-दूसरे के करीब लाता है। प्रेम और त्याग का अहसास कराता है। इसलिए करवाचौथ सिर्फ पति और पत्नी के प्रेम का त्यौहार नहीं है, यह पारिवारिक रिश्ते की मिठास का त्यौहार भी है। अगर यह मिठास ना हो तो कोई महिला दिन भर भूखे प्यासे रहने के बाद शाम को इस तरह से सोलह सिंगार करके चंद्रमा और अपने पति की आरती नहीं कर सकती। अब तो कई पुरुष भी पत्नी का हौसला बढ़ाने के लिए उनके साथ जोड़े से व्रत करने लगे हैं, ऐसे त्योहारों की रचना भारतीय समाज ही कर सकता है और उनका निर्वाह भी।
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अनुराग उपाध्याय मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए दिल्ली के कुछ वामपंथी टाइप के पत्रकारों को हायर कर लाने के लिए कुछ पत्रकारों ने ठेकेदारी शुरू कर दी है। बाकायदा पैकेज अपोजिशन के नेताओं को दिए जा रहे हैं और उनसे कहा जा रहा है ये अपनी गाडी और अपनी टीम के साथ पूरा मध्यप्रदेश घूमेंगे और शिवराज सरकार की हकीकत बताएँगे। खासकर आपके इलाके में तो सरकार की बैंड बजा देंगे। इनके आपके इलाके में रहने से आपका वोट प्रतिशत बढ़ेगा वगैरह -वगैराह। इन ठेकेदार बने पत्रकारों में से तो एक 90 के दशक में हुए हनीट्रैप राजदूत मामले से जुड़ा व्यक्ति है। तो दूसरी टीम में मंत्री से रिश्वत में टीवी मांगने वाले नेशनल न्यूज़ चैनल से जुड़े दो पत्रकार और उनका एक पप्पू मीडिया का साथी है । आपको बता दें जिन बड़े पत्रकारों को एमपी में शिवराज सरकार के खिलाफ लाने की तैयारी हैं। उन पत्रकारों को अब दिल्ली में काम नहीं मिल पा रहा है। इससे पहले ये लोग इसी तरह उत्तरप्रदेश में योगी की बैंड बजने गए थे लेकिन वहां भी हुआ उल्टा ही और योगी ने भरपूर बहुमत हांसिल किया। [लेखक दखल न्यूज़ चैनल के मुख्य सम्पादक हैं
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जी मीडिया कॉर्पोरेशन लिमिटेड' (ZMCL) ने ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (BARC) इंडिया के टीवी ऑडियंस मेजरमेंट सिस्टम से बाहर निकलने का फैसला किया, जिसके बाद अब कंपनी ने एक स्टेटमेंट जारी कर अपने इस फैसले की सही ठहराया है। जी मीडिया ने अपने बयान में इस बात का जिक्र किया कि BARC ने न तो कोई समाधान निकाला था और न ही उसे स्वीकार किया था, लेकिन इस बीच उन्होंने लैंडिंग पेज व बार्कर पेज के लिए अपनी रिपोर्टिंग जारी रखी। बयान में यह भी कहा गया कि BARC डेटा को दोबारा शुरू किए जाने के बाद से न्यूज जॉनर लगातार सिकुड़ती दिखाई दे रही है, जबकि इसके विपरीत जब डेटा बंद किया गया था, तो यह जॉनर अपने चरम पर थी। BARC के साथ कई मीटिंग और बातचीत करने के बावजूद भी एजेंसी न केवल विफल रही, बल्कि इस तरह की भारी गिरावट की जानकारी देने में भी फेल रही है। बयान में यह भी कहा गया कि BARC ने अब तक टीआरपी घोटाले पर कोई श्वेत पत्र नहीं दिया है और यह बहुत ही ज्यादा चिंता का विषय है कि इस षड्यंत्र में कौन शामिल थे और यदि वे अभी भी सिस्टम (लोग/ चैनल) का हिस्सा हैं, तो उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है ? बयान में कहा गया कि इन वजहों से जी मीडिया ने रेटिंग एजेंसी से हटने का फैसला किया और BARC से जी मीडिया के सभी 14 चैनलों की रिपोर्टिंग तत्काल प्रभाव से बंद करने को कहा है।
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(प्रवीण कक्कड़) आज गांधी जयंती है, जब भी हम महात्मा गांधी का नाम लेते हैं तो सबसे पहले जो शब्द ज़हन में आता है वह है सत्य क्योंकि उन्होंने सत्य के प्रति अडिग रहकर अपना पूरा जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया। महात्मा गांधी ने अपने विचारों से न केवल भारत को आजादी दिलायी बल्कि समाज में अनेक सुधार भी किए। महात्मा गांधी के सिद्धांतों की प्रासंगिकता आज भी कायम है। गांधी कहते थे कि सत्य ही ईश्वर है और ईश्वर ही सत्य है। उनके अनुसार धर्म से तात्पर्य किसी धर्म विशिष्ट से नहीं है बल्कि उस तत्व से है जो उसमें समान रूप से व्याप्त है। वे धर्म और नैतिकता में भेद नहीं मानते थे। गांधी जी ने अपना जीवन सत्य, या सच्चाई की व्यापक खोज में समर्पित कर दिया। उन्होंने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी स्वयं की गल्तियों और खुद पर प्रयोग करते हुए सीखने की कोशिश की। उन्होंने अपनी आत्मकथा को सत्य के प्रयोग का नाम दिया। गांधी जी ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ने के लिए अपने दुष्टात्माओं , भय और असुरक्षा जैसे तत्वों पर विजय पाना है। गांधी जी ने अपने विचारों को सबसे पहले उस समय संक्षेप में व्यक्त किया जब उन्होंने कहा भगवान ही सत्य है| बाद में उन्होंने अपने इस कथन को सत्य ही भगवान है में बदल दिया। इस प्रकार , सत्य में गांधी के दर्शन है " परमेश्वर "| महात्मा गांधी जिनका नाम मोहनदास कर्मचंद गांधी था, उनका जन्म 2 अक्टूबर को 1869 में हुआ था। सत्य और अहिंसा गांधी जी के दो सिद्धांत थे, यही वजह है कि 15 जून 2007 को यूनाइटिड नेशनल असेंबली ने 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाने का फैसला किया। अब देश ही नहीं दुनिया भी गांधी जी के सत्य और अंहिसा के सिद्धांत को मानती है। गांधी जी मानते थे कि आंख के बदले आंख की सोच रखेंगे तो पूरी दुनिया ही अंधी हो जाएगी। पापी से लड़कर किसी को कुछ नहीं मिलेगा इसलिए हमें अपनी भावनाओं का चुनाव करना सीखना चाहिए। स्वतंत्रता दिवस में तो गांधी जी के अहम योगदान के बारे में सभी जानते होंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि गांधीजी ने 15 अगस्त 1947 का दिन कैसे बिताया था, उन्होंने इस दिन 24 घंटे का उपवास रखा। उस वक्त देश को आजादी तो मिली थी, लेकिन इसके साथ ही मुल्क का बंटवारा भी हो गया था। पिछले कुछ महीनों से देश में लगातार हिंदू और मुसलमानों के बीच दंगे हो रहे थे। इस अशांत माहौल से गांधीजी काफी दुखी थे। महात्मा गांधी के राष्ट्रपिता कहे जाने के पीछे भी एक कहानी है। महात्मा गांधी को पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने 'राष्ट्रपिता' कहकर संबोधित किया था। 4 जून 1944 को सिंगापुर रेडिया से एक संदेश प्रसारित करते हुए 'राष्ट्रपिता' महात्मा गांधी कहा था। इसके बाद कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को महात्मा की उपाधि दी थी। इसी के साथ हम सभी को गांधी जी के सिद्धांतो को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेना चाहिए। आज हमें महात्मा गांधी के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करने के साथ ही यह भी विचार करना चाहिए कि कैसे हम उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारें। कैसे सत्य के सहारे हम अपनी बाधाओं का मुकाबला करें। अहिंसा के जरिए हम अपने लक्ष्यों की ओर आगे बढ़े और मजबूत चरित्र निर्माण के साथ पूरे समाज को एक सूत्र में बांधते हुए समभाव के साथ राष्ट्र निर्माण करें। बॉक्स असत्य पर सत्य की जीत सत्य हमारी परंपराओं में श्रेष्ठतम उपाधि प्राप्त शब्द है, आज गांधी जयंती के दिन हम सत्य की खोज में गांधीजी के जीवन समर्पण की चर्चा कर रहे हैं वहीं कुछ दिन बाद दशहरे का त्यौहार है। दशहरे को भी हम असत्य पर सत्य की जीत के रूप में देखते हैं। हिन्दुओं का यह प्रमुख त्योहार असत्य पर सत्य की जीत तथा बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसे में सत्य के संकल्प के लिए सर्वश्रेष्ठ समय है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष को दशहरा का त्योहार मनाया जाता है। मां भगवती के विजया स्वरूप पर इसे विजयादशमी भी कहा है। इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी इसलिए भी इस पर्व को विजयादशमी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस दिन ग्रह-नक्षत्रों की संयोग ऐसे होते हैं जिससे किये जाने वाले काम में विजय निश्चित होती है। भारतीय इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब राजा इस दिन विजय के लिए प्रस्थान किया करते थे।
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ओपी शर्मा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह जी की नर्मदा परिक्रमा प्रारंभ होने के आज 5 साल पूरे हो गए है। वर्ष 2017 में आज ही के दिन उन्होंने सपत्नीक 300 परिक्रमावासियों के साथ लगभग 3200 किलोमीटर की यह पैदल यात्रा प्रारंभ की थी। इसे एक सुखद प्रसंग ही कहा जायेगा कि गत वर्ष इसी दिन उनकी नर्मदा परिक्रमा पर मेरे द्वारा लिखा गया यात्रा वृतांत "नर्मदा के पथिक" का विमोचन हुआ था। आज पुनः एक ऐसा सुखद प्रसंग है जब वे देश की सबसे पुरानी और राष्ट्रीय स्वतंत्रता की अलख जगाकर राजनीति में सत्य और अहिंसा को प्रधान तत्व बनाने वाली कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के चुनाव में वे अपना नामांकन दाखिल कर रहे हैं। चुनाव प्रजातांत्रिक तरीके से सम्पन्न हो रहे है इसलिए उसके परिणाम पर अभी बात करना ठीक नही होगा लेकिन दिग्विजय सिंह जी का इस चुनाव में एक प्रमुख भागीदार के रूप में सामने आना कोई तिकड़मबाजी या परिस्थितिवश एकाएक हुई बात नही है। दिग्विजय सिंह जी को इस मुकाम तक उनके अध्यात्म ने ही शने:-शने: पंहुचाया है। आइए देखते है कि उनमें वे कौनसी आध्यात्मिक शक्तियां विकसित हुई जो उन्हें औरों से अलग बनाती है। उनका जीवन सनातन धर्म के प्रवाह में नर्मदा की भांति बहता हुआ है जिसमे कोई अवशिष्ट ठहर नही सकता। (1) सहयोग देने की शक्ति : अपने 50 साल के राजनीतिक सफर में उन्होने बिना सहयोग प्राप्त करने की अपेक्षा किये दूसरों को सहयोग दिया है। उनकी इसी सहयोग शक्ति के कारण उन्हें ठीक उसी प्रकार सहयोग मिलता गया जैसे नर्मदा को सैकड़ों छोटी नदियों और बड़े नद का सहयोग मिला। इन नदियों ने अपना अस्तित्व मिटाकर नर्मदा को बड़ा कर दिया। तो नर्मदा ने भी उन छोटी नदियों को अपने साथ ले जाकर समंदर बना दिया। (2) सहन करने की शक्ति : दिग्विजय सिंह जी की सहन करने की असीम शक्ति अद्भुद है। उनका जीवन नर्मदा की भांति जंगलों, मैदानों और चट्टानों के बीच बहता रहा है। अनेक बाधाएं उनके मार्ग में आई है। किंतु वे उन बाधाओं को सहते हुए आगे बढ़े है। बाधाओ से उन्हें कोई शिकायत नही। वे उन्हें रोकने वाली मजबूत चट्टानों को सहन करते है और उन्हें अपना सुंदर जलप्रपात बना लेते हैं। (3) समेटने की शक्ति : जब समय अपने अनुकूल न हो तो कछुआ अपने पैरों को समेट लेता है। नर्मदा भी अपने बिखरे हुए प्रवाह को सीमित कर लेती है। इसी प्रकार दिग्विजय सिंह जी भी अपनी समेटने की अद्भुत शक्ति के कारण सदैव सुरक्षित रहते है। वर्ष 2018 में उन्होंने इसी समेटने की शक्ति का परिचय दिया तथा जब सरकार ने उनसे भोपाल में सरकारी घर खाली करवा लिया तो समय अनुकूल न पाकर उन्होंने अपना सारा सामान समेट लिया और किराए के घर मे चले गए। (4) समाने की शक्ति : जिस तरह नर्मदा में अनेक छोटी नदियाँ आकर मिलती है किंतु वह अपने साथ सबको बहाकर ले जाती है। समुद्र में अनेक नदियाँ मिलती है किंतु वह बिना प्रभावित हुए सबको अपने मे समा लेता है इसी तरह दिग्विजय सिंह जी भी एक समुद्र है जिसमे भिन्न भिन्न तरह के लोगों के विचार, उनके कार्य और परिणाम समा जाते हैं। यह उनकी बड़ी विशेषता है। (5) निर्णय करने की शक्ति : नर्मदा की भांति वे भी निर्णय शक्ति से सम्पन्न है। नर्मदा जंगलों से गुजरते हुए उन्हें औषधीय गुण देती जाती है, पहाड़ों से गुजरते हुए उन्हें सौंदर्य प्रदान करती है और मैदानों से गुजरते हुए अपने तटवासियों को जल, फसल और समृद्धि देती है। वह अपने निर्णय पर अडिग होती है। उसी प्रकार दिग्विजय सिंह जी भी परिस्थिति वश जो भी निर्णय लेते है उस पर अडिग रहते है और कभी निर्णय न लेने को भी एक निर्णय बना देते है। (6) परखने की शक्ति: नर्मदा जिस तरह अपने मार्ग में मिलने वाले पत्थरों को परखकर उनमें से किसी को पूजा के योग्य शंकर बना देती है, किसी को इमारत बनाने वाली रेत बना देती है और किसी को नदी के सौंदर्य को बरकरार रखने के लिए वैसे ही छोड़ देती है उसी प्रकार दिग्विजय सिंह जी भी व्यक्तियों, परिस्थितियों और समय को परख लेते है और उसी अनुरूप उनका उपयोग करते है। (7) सामना करने की शक्ति : दिग्विजय सिंह जी का यह साहसिक गुण उन्हें सबसे न्यारा बनाता है। वे कठिन परिस्थितियों का सामना उसी प्रकार करते है जिस प्रकार नर्मदा कठोर चट्टानों का। या तो वह उन्हें काट देती है या उसपर से गुजर जाती है, पर रुकती नही। (8) साक्षी होने की शक्ति : दिग्विजय सिंह जी की यह शक्ति उन्हें हर हाल में समत्व भाव मे रखती है। यह उनका एक बड़ा आध्यात्मिक गुण है। गीता में कहा गया है- योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय । सिद्ध्यसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥ अर्थात- सफलता और असफलता की आसक्ति को त्याग कर तुम दृढ़ता से अपने कर्तव्य का पालन करो। यही समभाव योग कहलाता है। बारिश में उफनती, सर्दी में शांत बहती और ग्रीष्म में सिकुड़ती नर्मदा की जलधाराओ में जिस प्रकार उसके भक्तों का समान भाव रहता है उसी प्रकार दिग्विजय सिंह जी का भी किसी पद या सत्ता पर होने या न होने में वैसा ही समत्वभाव है। वे सदैव एक जैसे भाव मे रहकर कर्म करने में विश्वास करते है। उनकी सफलता का यही मूलमंत्र है। आज नर्मदा परिक्रमा की शुरुआत के 5 साल होने पर मैं श्री दिग्विजय सिंह जी सहित सभी परिक्रमावासियों को बधाई देता हूँ। नर्मदा परिक्रमा में हम जो देखते और सीखते है वह दिग्विजय सिंह जी के व्यक्तित्व में प्रतिदिन मौजूद है। इस नवरात्रि नर्मदा जी से प्रार्थना है कि वह भी हम सभी को उपरोक्त अष्टशक्तियों से नवाज़े। ये सारी शक्तियां हमारे पास होगी तो हमारी आत्मा अवश्य ही बलवान होगी और हम हर स्थिति में खुश रह सकेंगे।
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अपनी पार्टी तो बचा नहीं पाए राहुल, चिंता देश की कर रहे हैं भोपाल। कांग्रेस का किला पहले तिनका तिनका कर बिखर रहा था, लेकिन जब से राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हैं, तो कांग्रेस के किले के मजबूत स्तंभ एक एक कर ढह रहे हैं। कांग्रेस के पुराने लोगों ने मान लिया है कि कांग्रेस एक डूबता हुआ जहाज है। यह बात भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश केसवानी ने मंगलवार को कही। डॉ. केसवानी ने कहा कि राहुल गांधी की तथाकथित भारत जोड़ो यात्रा अब कांग्रेस तोड़ो यात्रा में बदल चुकी है। राहुल की अपरिपक्वता के कारण पार्टी पूरी तरह से टूट चुकी है, लेकिन राहुल हैं कि मानने को तैयार ही नहीं हैं। डॉ. केसवानी ने आरोप लगाया की टूट रही पार्टी को बचाने की हिम्मत भी किसी में नहीं दिख रही है। सब लोग केवल अपने स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हैं। डॉ. केसवानी ने कहा कि बिखर रही पार्टी को एक अदद अध्यक्ष तक नहीं मिल पा रहा है। अशोक गहलोत सीएम पद छोड़ना नहीं चाहते हैं और कमलनाथ भी मप्र नहीं छोड़ रहे हैं। वे भी अपनी राजनीतिक लालसाओं को सिद्ध करने में लगे हैं। नटवर, अजीज और पीके ने भी दिखाया है आईना : डॉ. केसवानी ने कहा कि राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा की जगह कांग्रेस बचाओ यात्रा पर निकलना चाहिए। कांग्रेस अंदर से पूरी तरह खोखली हो चुकी है। पहले तो राहुल को समझना होगा कि पार्टी की अंदरूनी स्थिति क्या है? हालांकि जिस तरह से कांग्रेस बिखरी है। उसका फिर से खड़ा हो पाना दूर की कौड़ी सा दिख रहा है। भाजपा प्रवक्ता ने राहुल के नेतृत्व को कमजोर बताते हुए कहा कि कांग्रेस के वरिष्ठ लोग ही उन्हें नकार चुके हैं। ऐसे में देश उन्हें कैसे स्वीकार करेगा। कांग्रेस नेता नटवर सिंह कह चुके हैं कि कांग्रेस को सोनिया गांधी और राहुल गांधी की जरूरत नहीं है। जबकि इन दोनों को कांग्रेस की जरूरत है। नटवर ने आरोप लगाया कि जब तक इन दोनों या गांधी परिवार में किसी के भी हाथ कांग्रेस की बागडोर रहेगी तो वे किसी भी योग्य व्यक्ति को आगे नहीं आने देंगे। अजीज कुरैशी ने भी राहुल गांधी को अपरिपक्व बताते हुए कहा था कि जब तक उनके हाथ कांग्रेस की बागडोर है, कांग्रेस का भला नहीं हो सकेगा। वहीं पीके ने भी राहुल को आइना दिखाते हुए कहा था कि उनके कार्यकाल में पार्टी 90 फीसदी चुनाव हारी है।
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praveenkakkar.com (प्रवीण कक्कड़ ) शक्ति पूजा का पर्व नवदुर्गा उत्सव प्रारंभ होने वाला है। देश में हर्षोल्लास का वातावरण है। शक्ति यानी रचियता, जिसमें रचने की शक्ति हो, जिसमें निर्माण की शक्ति हो, जिसमें संहार की शक्ति हो. नव दुर्गा के नौ रूप ऐसी ही शक्ति का प्रतीक हैं। दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अन्तर्गत देवी कवच स्तोत्र के श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं- माँ शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि महागौरी और माँ सिद्धिदात्री। मां नव दुर्गा के यह नौ रूप हमें सांसारिक जीवन में शक्ति और संयम का संतुलन सिखाते हैं। जब शक्ति अनियंत्रित होती है तो विनाश होता है। नियंत्रित शक्ति (संयम) रचना करती है. निर्माण करती है। अराजक शक्ति समाज को नष्ट करती है। वीतराग शक्ति सन्यास और त्याग का मार्ग प्रशस्त करती है। न्याय शक्ति लैंगिक, आर्थिक, सामाजिक समानता की प्रेरणा देती है। प्रतिवर्ष 2 बार 9 दिन के लिए हम नव दुर्गा की पूजा करते हैं। वसंत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। इन दोनों विशेष समय खास तौर पर मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते हैं। त्यौहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं। शारदीय नवरात्रि इस देश का सबसे बड़ा उत्सव भी है। यूनेस्को ने इसे विश्व की सांस्कृतिक विरासत में शामिल किया है। विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां वर्ष में दो बार स्त्री शक्ति की पूजा होती है। कन्याओं को भोजन कराया जाता है। नव दुर्गा के नव रूपों की उपासना होती है। भारत की संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण अंग है शक्ति पूजा। यही कारण है कि पवित्र शक्ति पीठ पूरे भारत के अलग-अलग स्थानों पर स्थापित हैं। पुराण में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। नवरात्र के दौरान कुछ भक्त उपवास रखकर मैया को प्रसन्न करते हैं तो कुछ मंदिरों में पहुंचकर देवी की आराधना में लीन रहते हैं। कई घरों में भी कलश की स्थापना कर मैया की भक्ति की जाती है। कहीं मैया के मंदिरों के बाहर मेले लगते हैं तो कहीं गरबों की गूंज सुनाई देती है। नवरात्र के शुरू होते ही देशभर में गरबा और डांडिया रास का रंग चारों ओर बिखरने लगता है। मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए जगह-जगह गरबा नृत्य और डांडिया रास का आयोजन किया जाता है। खूबसूरत पारंपरिक पोशाक और डांडियों की खनक नवरात्र के इस माहौल को और भी खुशनुमा बना देते हैं। नवरात्र के 9 दिन में मां को प्रसन्न करने के उपायों में से एक है नृत्य। शास्त्रों में नृत्य को साधना का एक मार्ग बताया गया है। गरबा नृत्य के माध्यम से मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए देशभर में इसका आयोजन किया जाता है। नवरात्र पर्व के आठवें और नौवें दिन कन्या पूजन व कन्या भोज किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से नौ कन्याओं की पूजा की जाती है, जो देवी नवदुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं। हिंदू दर्शन के अनुसार इन कन्याओं को सृजन की प्राकृतिक शक्ति की अभिव्यक्ति माना जाता है। आज शक्ति की साधना तो हम सभी कर रहे हैं किंतु लैंगिक समानता के धरातल पर हम सब अभी भी लक्ष्य तक नहीं पहुंच सके हैं। देश में शक्ति पूजा पर्व मनाने के बावजूद हम स्त्री-पुरुष भेदभाव रोकने में असफल रहे हैं। स्त्रियों के प्रति अपराध और सामाजिक दूषण लगातार बढ़ रहा है। इस शक्ति पर्व में यही विचारणीय प्रश्न है। इस धरती की हर नारी शक्ति का स्वरूप है जिस तरह हम नवरात्रि में मातृशक्ति के अनेक स्वरूपों का पूजन करते हैं, उनका स्मरण करते हैं। उसी प्रकार नारी के गुणों का हम सम्मान करें। हमारे परिवार में रहने वाली माता, पत्नी, बहन, बेटी के साथ ही समाज की हर नारी को सम्मान दें। तभी मां शक्ति की आराधना की सच्ची सार्थकता साबित हो सकेगी।
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टीवी जर्नलिस्ट और सीनियर न्यूज एंकर निधि वासंदानी ने हिंदी न्यूज चैनल ‘रिपब्लिक भारत’ में अपनी करीब साढ़े तीन साल पुरानी पारी को विराम दे दिया है। वह इस चैनल की शुरुआत से ही इसके साथ जुड़ी हुई थीं और इन दिनों बतौर डिप्टी न्यूज एडिटर/सीनियर एंकर अपनी जिम्मेदारी संभाल रही थीं। मीडिया से बातचीत में निधि वासंदानी ने बताया कि 24 सितंबर इस संस्थान में उनका आखिरी कार्यदिवस होगा। निधि ने बताया कि वह जल्द ही अपनी नई पारी शुरू करेंगी। ‘रिपब्लिक भारत’ को जॉइन करने से पहले निधि वासंदानी ‘इंडिया न्यूज’ में बतौर एग्जिक्यूटिव प्रड्यूसर और न्यूज एंकर की जिम्मेदारी निभा रही थीं। हालांकि, यहां उनका सफर महज आठ महीने ही रहा था। निधि वासंदानी को मीडिया में काम करने का करीब डेढ़ दशक का अनुभव है। ‘इंडिया न्यूज’ से पहले वह ’एबीपी न्यूज’ का चिर-परिचित चेहरा रही हैं। उन्होंने इस न्यूज चैनल के साथ करीब चार साल की पारी खेली। निधि वर्ष 2014 में ’एबीपी न्यूज’ के साथ जुड़ी थीं। वह 2014 के फीफा वर्ल्ड कप से लेकर ’एबीपी न्यूज’ के लोकप्रिय शो ‘कौन बनेगा मुख्यमंत्री’ तक कवर कर चुकी हैं। इसके साथ ही वह महाराष्ट्र और आस पास के राज्यों की खबरों वाला शो ‘मुंबई लाइव’ कवर कर चुकी हैं। निधि ये शो खुद ही बनाती थीं और इसकी एंकरिंग भी खुद ही करती थीं। नोटबंदी के दौरान निधि के काम को कई बार सराहा गया, क्योंकि उन्होंने कई ऐसे रिपोर्ट्स तैयार की थीं, जिसमें कैशलैस इंडिया की तस्वीर को उजागर किया गया था। ’एबीपी न्यूज’ से पहले निधि ’जी बिजनेस’ में कार्यरत थीं। यहां अप्रैल 2009 से मार्च 2014 तक अपनी पारी के दौरान उन्होंने प्रड्यूसर के साथ-साथ एंकरिंग की भी जिम्मेदारी संभाली। वह ‘जी मीडिया’ के अन्य न्यूज चैनलों में भी दे अपना योगदान दे चुकी हैं, जिनमें ‘जी’ यूपी/उत्तराखंड व ‘जी संगम’ शामिल है। इसके पहले वह मई 2007 से अप्रैल 2009 तक ‘सहारा समय’ में रही हैं। उन्होंने कुछ समय तक भोपाल में ‘राज न्यूज‘ और ‘भास्कर टीवी‘ के साथ भी काम किया है। निधि ने इकनॉमिक्स (ऑनर्स) में ग्रेजुएशन किया है और वह डबल पोस्ट ग्रेजुएट (मास कम्युनिकेशन और पॉलिटिकल साइंस) हैं। निधि एक ट्रेंड क्लासिकल डांसर भी हैं, जिन्होंने कथक में ग्रेजुएशन किया है। वह कई स्टेज शो भी कर चुकी हैं। वह बच्चों को डांस भी सिखाती हैं। चूंकि उनका नाता भोपाल से हैं, लिहाजा वह भोपाल के दूरदर्शन में कई बार परफॉर्मेंस भी दे चुकी हैं। भोपाल की सर्वश्रेष्ठ क्लासिकल डांसर के तौर पर निधि को शिवराज सिंह चौहान सम्मानित भी कर चुके हैं।इसके अलावा निधि को वर्ष 2004 में सिंधि प्रतिभा के लिए नेशनल अवॉर्ड समेत कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।
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पत्रकारों को राष्ट्रीय गौरव सम्मान विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने वालों का भी हुआ सम्मान पत्रकार सही मायने में समाज का सजग प्रहरी होता है। वह समाज में घटित होने वाली हर अच्छाई और बुराई से अवगत कराता है। अपनी कलम और कैमरे से सकारात्मक संदेश देकर राष्ट्र का मान भी बढ़ाता है। ऐसे में राष्ट्र का मान बढ़ाने वालों सम्मान समाज को नई ऊर्जा प्रदान करता है। पद्मश्री बाबा लक्खा सिंह ने यह बात कही। ग्वालियर में विजयाराजे सिंधिया फॉउंडेशन एवं अटल भारत स्पोर्ट्स एंड कल्चरल एसोसिएशन की ओर से बालभवन में आयोजित किये गए नेशनल गौरव अवॉर्ड सम्मान समारोह में बाबा लक्खा सिंह मुख्य अतिथि थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.केशव पाण्डेय ने की। जबकि मप्र पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष रघुराज कंषाना व सावित्री भदौरिया विशिष्ट अतिथि थे। मुख्य अतिथि श्री लक्खा सिंह ने कहा कि कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में जब निःस्वार्थ भाव से सेवा करता है , तो वह स्वतः ही सम्मान का हकदार होता है। पत्रकारिता, चिकित्सा, शिक्षा, खेल, उद्योग, व समाज सेवा सहित विभिन्न क्षेत्र में कार्य करने वाले लोग समाज के लिए प्रेरणा बनते हैं और यही लोग वास्तविक रूप से समाज, के साथ प्रदेश और देश का मान बढ़ाते हैं। विशिष्ट अतिथि श्री कंषाना ने कहा कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया फॉउंडेशन सेवा का संम्मान कर अनुकरणीय कार्य कर रहा है। इस तरह का सम्मान सेवा कार्य करने का उत्साह बढ़ाता है। इस दौरान जीवाराम मेमोरियल स्कूल के विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर सभी का मन मोह लिया। इस मौके पर विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट एवं अनुकरणीय कार्य करने वाली प्रतिभाओं और पेशेवरों को राष्ट्रीय गौरव सम्मान से सम्मानित किया। सांस्कृतिक कार्यक्रम के प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया। संस्था के संस्थापक दिलीप चंद यादव ने स्वागत भाषण दिया और सचिव नरेंद्र सिंह गुर्जर ने संस्था की गतिविधियों से अवगत कराया। संचालन आयुषी ने तथा आभार व्यक्त डॉ. केशव पाण्डेय ने किया। ---- इनका हुआ सम्मान डॉ. सैम्युल रेडी मोटिवेटर हैदराबाद, डॉ. चिंता रविंद्रा चिकित्सक आंध्रप्रदेश, पोसुरु रतनाम समाजसेवी तेलंगाना, वी श्रीनिवास नायक बिल्डर हैदराबाद, यरराम वैंकटा रेडी चिकित्सक विजयवाड़ा, डी कोंडा समैया वास्तुविद करीमनगर, पत्रकारगण राकेश अचल, देव श्रीमाली, रामविलास शर्मा, रवि शेखर, महेश गुप्ता, प्रमोद भार्गव, जोगेंद्र सेन, हरीश दुबे, लाजपत अग्रवाल, जितेंद सिंह जादौन, संदीप शर्मा, नासिर गौरी, विनोद शर्मा, समाज सेवी दीपक तोमर, खिलाड़ी नेहा पाण्डेय, अंश जादौन एवं सुबोध शर्मा सहित अन्य प्रतिभयों को सम्मानित किया गया।
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स्वस्थ शैली से तय होगी उन्नत जीवन की राह (प्रवीण कक्कड़) मनुष्य के विकास में उसकी जीवनशैली का बहुत बड़ा योगदान होता है। यह जीवनशैली उसके व्यक्तित्व को दर्शाती है जिसका स्वस्थ होना बहुत आवश्यक है। इसमें उसकी दिनचर्या से लेकर उसका खान-पान, सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक सब आता है। यदि, मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ होगी तो वह अपने कार्य पर पूर्ण रूप से ध्यान केंद्रित कर पाएगा लेकिन, यदि उसकी जीवनशैली सही नही हुई तो वह अपना पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर केन्द्रित नहीं कर पाएगा। स्वस्थ दिनचर्या से ही स्वस्थ शरीर और स्वस्थ शरीर से स्वस्थ जीवन का निर्माण होता है। इसलिए, मनुष्य को अपनी जीवनशैली पर बहुत अधिक ध्यान देने की जरूरत है। स्वस्थ जीवन शैली एक अच्छे जीवन की नींव है। हालांकि इस जीवनशैली को हासिल करने में ज्यादा मेहनत नहीं लगती लेकिन कई लोग व्यावसायिक प्रतिबद्धताओं, दृढ़ संकल्प की कमी और व्यक्तिगत मुद्दों जैसे कई कारणों से इसका पालन नहीं कर पाते हैं। आजकल एक स्वस्थ जीवन शैली का पालन करने के लिए बहुत दृढ़ संकल्प लेना पड़ता है। पूरे दिन के दौरान इतने सारे कार्यों को एक साथ पूरा करते हुए हमारा स्वास्थ्य का संतुलन अक्सर बिगाड़ जाता है। स्वस्थ जीवन शैली का पालन करने और उसे किस तरीके से हासिल किया जा सकता है यह समझना महत्वपूर्ण है। स्वस्थ जीवन शैली का अर्थ है स्वस्थ आहार खाने जैसी अच्छी आदतों का पालन करना, नियमित व्यायाम करना और रात में पर्याप्त नींद लेने के लिए समय निकालना। विभिन्न बीमारियों को दूर रखने और पूरी तरह से निरोगी जीवन जीने के लिए स्वस्थ जीवन शैली का पालन करना आवश्यक है। हमारे ऋषि-मुनि कह गए हैं, 'पहला सुख निरोगी काया, दूसरा सुख जेब में हो माया।' यदि काया अर्थात शरीर रोगी है तो आप धन कैसे कमाएंगे। यदि पहले से ही अपार धन है तो वह किसी काम का नहीं। धन से कोई रोग नहीं मिटता है। शरीर स्वस्थ और सेहतमंद है तभी तो आप जीवन का आनंद ले सकेंगे। घूमना-फिरना, हँसी-मजाक, पूजा-प्रार्थना, मनोरंजन आदि सभी कार्य अच्छी सेहत वाला व्यक्ति ही कर सकता है। अत: इसे समझना जरूरी है। यदि आप स्वस्थ हैं तो ही आपका जीवन है, अस्वस्थ काया में जीवन नहीं होता। व्यक्ति 4 कारणों से अस्वस्थ होता है: पहला मौसम-वातावरण से, दूसरा खाने-पीने से, तीसरा चिंता-क्रोध से और चौथा अनिद्रा से। मौसम और वातावरण आपके वश में नहीं, लेकिन घर और वस्त्र हों ऐसे कि वे आपको बचा लें। घर को आप वस्तु अनुसार बनाएं। हवा और सूर्य का प्रकाश भीतर किस दिशा से आना चाहिए, यह तय होना चाहिए ताकि वह आपके शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डाले। हमें स्वस्थ जीवन शैली जीने के लिए कई चीजों से बचना भी बहुत जरूरी है। इनमें उस तरह की प्रथाएं और आदतें शामिल हैं जो हमारे लिए और हमारे आसपास के लोगों, यानी समाज के लिए भी हानिकारक हैं। इस तरह की प्रथाओं और आदतों में जुआ, धूम्रपान, शराब पीना, ड्रग्स या कोई अन्य चीजें शामिल हैं जो एक लत में बदल सकती हैं। ये आदतें न केवल आपके लिए बल्कि आपके आस-पास के सभी लोगों के लिए हानिकारक हैं, क्योंकि व्यसन अस्वास्थ्यकर दृष्टिकोण और व्यवहार का कारण बनता है। अन्य अस्वास्थ्यकर प्रथाओं में भोजन छोड़ना और जंक फूड खाना शामिल है। स्वस्थ जीवन शैली के लाभ कई गुना हैं एक स्वस्थ जीवन जीने से आप लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं, जिसका अर्थ है कि आपको अपने परिवार के साथ अधिक समय बिताने का मौका मिलता है। रोजाना व्यायाम करने से आपको एंडोर्फिन रिलीज करने में मदद मिलेगी और आपको खुशी महसूस करने में मदद मिलेगी। नियमित व्यायाम से आपकी त्वचा और बालों के स्वास्थ्य में भी सुधार होता है. साथ ही आपकी उपस्थिति भी बेहतर होती है। स्वस्थ जीवन शैली भी मुख्य रूप से आपके जीवन के लिए खतरनाक बीमारियों जैसे कैंसर, मधुमेह, आदि के जोखिम को कम करती है और हृदय गति रुकने की आपकी संवेदनशीलता को भी कम करती है। बॉक्स इन उपायों के साथ जीवनशैली स्वस्थ बनी रहेगी सुबह जल्दी उठना। ध्यान/मेडिटेशन करना। स्वस्थ जीवन शैली दिनचर्या में जरुरी है नियमित व्यायाम। अपने तनाव के स्तर को कम करना। सुबह का नाश्ता नियमित और अनिवार्य करना। स्वस्थ जीवन शैली अपनानी है तो हर दिन पर्याप्त नींद जरूर लेना। स्वस्थ और संतुलित आहार लेना।
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वरिष्ठ टीवी पत्रकार पलकी शर्मा द्वारा ‘जी मीडिया’ समूह के अंग्रेजी न्यूज चैनल 'विऑन' में मैनेजिंग एडिटर पद से इस्तीफा देने के बाद से उनकी नई पारी को लेकर तमाम कयास लगाए जा रहे हैं।अब मीडिया इंडस्ट्री में इस तरह की चर्चाएं हैं कि वह ‘नेटवर्क18’ समूह के साथ अपनी नई पारी शुरू कर सकती हैं। अंदरखाने के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, वह यहां ‘नेटवर्क18’ समूह के किसी नए प्रोजेक्ट को लीड करेंगी। यह प्रोजेक्ट टीवी और डिजिटल दोनों के लिए शुरू होगा।सूत्रों का यह भी कहना है कि नेटवर्क प्रबंधन और पलकी शर्मा के बीच इस बारे में बातचीत काफी आगे बढ़ चुकी है। हालांकि, आधिकारिक रूप से अभी इस बारे में कहीं से पुष्टि नहीं हुई है। बता दें कि पलकी शर्मा ने पिछले दिनों 'विऑन' में मैनेजिंग एडिटर के पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने अपने प्राइम टाइम शो 'ग्रेविटास' के आखिरी एपिसोड की दो सितंबर को मेजबानी की थी। उन्हें इस साल मई में ही एग्जिक्यूटिव एडिटर से मैनेजिंग एडिटर के पद पर प्रमोट किया गया था। पिछले करीब तीन साल से पलकी शर्मा और विऑन एक-दूसरे के पर्याय बन गए थे। पलकी शर्मा को पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने का दो दशक से ज्यादा का अनुभव है। पूर्व में वह ‘दूरदर्शन न्यूज‘,‘हिन्दुस्तान टाइम्स‘,‘सीएनएन-आईबीएन‘ और ‘आईटीवी नेटवर्क‘ में भी अपनी जिम्मेदारी निभा चुकी हैं।तमाम अहम जिम्मेदारियों के अलावा वह अब तक कई राष्ट्राध्यक्षों समेत देश-विदेश की जानी-मानी हस्तियों का इंटरव्यू भी कर चुकी हैं और कई बड़े अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों को कवर कर चुकी हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें तमाम पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।
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सहारा न्यूज नेटवर्क’ से एक बड़ी खबर निकलकर सामने आ रही है। दरअसल सहारा न्यूज नेटवर्क के सीईओ व एडिटर-इन-चीफ उपेंद्र राय ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपने इस्तीफे की घोषणा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए की है। हालांकि समाचार4मीडिया ने उनसे संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन खबर लिखे जाने तक उनसे संपर्क नहीं हो पाया है। ता दें कि वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय ने सितंबर, 2019 में सहारा समूह की मास मीडिया कंपनी से मेनस्ट्रीम मीडिया में वापसी की थी। उस दौरान उन्हें कंपनी में बतौर सीनियर एडवाइजर नियुक्त किया गया था। यहां इनकी ये दूसरी पारी थी। इसके बाद कंपनी ने उपेंद्र राय की जिम्मेदारी में परिवर्तन करते हुए उन्हें ‘सहारा न्यूज नेटवर्क’ के सीईओ व एडिटर-इन-चीफ की जिम्मेदारी सौंपी थी। गौरतलब है कि उपेन्द्र राय पूर्व में 'तहलका' समूह और सहारा समूह में सीईओ और एडिटर-इन-चीफ की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। वह 'बिजनेस वर्ल्ड' मैगजीन के साथ भी एडिटोरियल एडवाइजर के तौर पर जुड़े रह चुके हैं। राय ने अपने करियर की शुरुआत 1 जून, 2000 को लखनऊ में ‘राष्ट्रीय सहारा’ से की थी। उन्होंने यहां विभिन्न पदों पर काम किया और वे यहां सबसे कम उम्र के ब्यूरो चीफ बनकर मुंबई पहुंचे। इसके बाद वे साल 2002 में ‘स्टार न्यूज’ की लॉन्चिंग टीम का हिस्सा बने। वहां उन्हें दो साल से भी कम समय में वरिष्ठ संवाददाता बनने का मौका मिला। वहीं से 'सीएनबीसी टीवी18' में 10 अक्टूबर, 2004 को प्रमुख संवाददाता के रूप में जॉइन किया। बतौर विशेष संवाददाता उन्होंने अक्टूबर 2005 में 'स्टार न्यूज' (अब 'एबीपी न्यूज') में वापसी की और दो वर्षो के अंदर एक और पदोन्नति मिली और चैनल में सबसे युवा एसोसिएट एडिटर बन गए। फिर जनवरी 2010 से दिसंबर 2014 तक 'सहारा न्यूज नेटवर्क' में एडिटर और न्यूज डायरेक्टर की जिम्मेदारी संभाली। साथ ही वे इस दौरान प्रिंटर और पब्लिशर की भूमिका में भी रहे।
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पत्रकारों के बीमा प्रीमियम की बढ़ी हुई राशि शिवराज देंगे एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा पत्रकारों की बीमा राशि के बढ़े हुए प्रीमियम की राशि सरकार जमा करेगी,इसकी अवधि भी अब 16 सितम्बर से बढ़ाकर 30 सितम्बर कर दी गई है। मुख्यमंत्री शिवराज ने कहा हमारे पत्रकार मित्र, समाज के महत्वपूर्ण अंग है। लोकतंत्र के आधार स्तंभ है। हमारी सरकार हमेशा पत्रकारों के साथ रही है। कोविड के पहले भी, कोविड के समय भी और कोविड के बाद भी! उन्होंने कहा आगे भी उनका जीवन सहजता और सरलता से चलता रहे और जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करते रहें इसका सदैव प्रयास रहेगा।अभी इस दौरान अनेकों स्थान पर मुझे कई पत्रकार मित्रों ने कहा, कोविड काल में बीमा की बढ़ी हुई प्रीमियम की राशि सरकार ने भरी थी। अब वह प्रीमियम की राशि फिर बढ़ गई है। बढ़ी हुई राशि का व्यय सहन करने में कई तरह की परेशानियां रही है।इसलिए हमने तय किया है गत वर्ष के भांति इस वर्ष भी बीमा की बढ़ी हुई प्रीमियम की तरह पत्रकार मित्र नहीं भरेंगे, सरकार भरेगी।* मुख्यमंत्री ने कहा पत्रकार साथियों के मांग पर इसके फॉर्म भरने की तिथि को भी हमने 16 सितंबर से बढ़ाकर 30 सितंबर कर दिया है।
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वरिष्ठ पत्रकार रवि के वैश्य ने हिंदी न्यूज चैनल ‘जनतंत्र टीवी’ के साथ मीडिया में अपने नए सफर का आगाज किया है। उन्होंने यहां पर बतौर मैनेजिंग एडिटर जॉइन किया है। अपनी इस भूमिका में वह सीधे चेयरमैन को रिपोर्ट करेंगे। इससे पहले रवि के वैश्य फिल्म और टीवी प्रॉडक्शन हाउस ‘D-Wish Production’ में करीब सवा चार साल से बतौर एडिटर और डिजिटल हेड अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। ‘D-Wish Production’ के साथ उनकी यह दूसरी पारी थी। मीडिया से बातचीत में रवि के वैश्य ने बताया कि ‘जनतंत्र टीवी’ में उन्हें टीवी के साथ डिजिटल का दायित्व भी मिला है। अपनी इस भूमिका में वह डिजिटल को आगे बढ़ाने के साथ-साथ चैनल के विस्तार की दिशा में भी काम करेंगे। उन्होंने बताया कि चैनल की उत्तराखंड, यूपी, दिल्ली, छत्तीसगढ़ और पंजाब-हरियाणा में मौजूदगी है। जल्द ही बिहार और झारखंड में भी चैनल पहुंचेगा। इसके अलावा चैनल में जल्द ही अन्य बदलाव भी देखने को मिलेंगे। रवि के वैश्य पूर्व में ’अमर उजाला टीवी’ के हेड भी रह चुके हैं। हालांकि, यहां उनका कार्यकाल महज कुछ महीनों के लिए रहा था। उन्होंने अमर उजाला का डिजिटल टीवी लॉन्च करवाया था, जिसे प्रबंधन ने बाद में किन्हीं कारणों से बंद कर दिया था। रेजिडेंट एडिटर और कंसल्टेंट क्रिएटिव (डिजिटल हेड) के रूप में रवि के वैश्य ’एपीएन न्यूज’ में भी अपनी भूमिका निभा चुके हैं। इसके अलावा वह ‘टीवी टुडे नेटवर्क’ के हिंदी न्यूज चैनल ‘आजतक’ के साथ भी काम कर चुके हैं। ‘आजतक’ में अपनी करीब साढ़े पांच साल की पारी के दौरान वह क्राइम शो ‘वारदात‘ के प्रोड्यूसर और स्पेशल करेसपॉन्डेंट रहे। उन्होंने ही देश को पहला डेली क्राइम शो ‘क्राइम रिपोर्टर’ दिया था। वर्तमान में खुद को पूरी तरह से डिजिटल स्ट्रैटेजिस्ट के तौर पर स्थापित कर चुके रवि के वैश्य ने टीवी पत्रकारिता की शुरुआत ‘जी न्यूज’ से की थी। करीब सात साल तक उन्होंने यहां पर अपनी भूमिका निभाई। ‘जी’ में अपनी पारी के दौरान वह उत्तराखंड और चेन्नई ब्यूरो संभाल चुके हैं। रवि के वैश्य की पहचान एक खोजी पत्रकार के रूप में रही है। उन्होंने काफी दिनों तक साउथ अफ्रीका में रहकर ड्रग्स ट्रैफिकिंग पर भी स्टोरी की है। वह पूर्व दस्यु सुंदरी फूलन देवी पर सीरीज भी तैयार कर चुके हैं। खोजी पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। रवि के वैश्य के अनुसार उन्होंने वर्ष 2013 में केदारनाथ आपदा को सबसे पहले कवर किया। इसके लिए उनकी इनसाइड स्टोरी के साथ-साथ ‘आजतक’ की टीम को नेशनल टेलिविजन अवॉर्ड भी मिल चुका है। मूल रूप से बरेली के रहने वाले रवि के वैश्य को पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने का करीब तीन दशक का अनुभव है। बरेली कॉलेज से ग्रेजुएट रवि के. वैश्य ने बरेली में ही ‘IASE Rohilkhand University’ से इलेक्ट्रॉनिक जर्नलिज्म में पीजी डिप्लोमा किया है। इसके अलावा उन्होंने हरियाणा में हिसार स्थित ‘गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी’ से मास कम्युनिकेशन में मास्टर्स की डिग्री ली है। दख़ल. नेट की ओर से रवि के वैश्य को उनके नए सफर के लिए ढेरों बधाई और शुभकामनाएं।
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(प्रवीण कक्कड़) हिंदू संस्कृति में पितृ पक्ष का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व पितरों यानि पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए मनाया जाता है। यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष के सोलह दिनों तक मनाया जाता है। पितृ पक्ष लोगो द्वारा अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। पितृ पक्ष के पर्व में लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने के लिए कई सारे प्रमुख स्थलों पर जाते है। इसके दौरान लोग अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए श्रद्धाभाव से सभी धार्मिक रीती रिवाजों का पालन करते है। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों की पूजा पाठ और श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। सरल शब्दों में कहें तो श्राद्ध पक्ष पूर्वजों के आदेशों को याद करने का समय है। उन्होंने अपने जीवन काल में जो मूल्य स्थापित के उन मूल्यों को आगामी पीढ़ी के लिए सहेजने और युवाओं को उससे अवगत कराने का समय श्राद्ध पक्ष है। हिन्दू धर्म में पूर्वजों की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए अनिवार्यता मानी गई हैं। पूर्वजों को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं। आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस उर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति का बड़ा सुन्दर और वैज्ञानिक विवेचन भी मिलता है। पितृपक्ष में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव (जौ) तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से अंश लेकर वह अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र उर्ध्वमुख होने लगता है। 16 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितर उसी ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ वापस चले जाते हैं। इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं और इसी पक्ष में श्राद्ध करने से पित्तरों को प्राप्त होता है। पुराणों में कई कथाएँ इस उपलक्ष्य को लेकर हैं जिसमें कर्ण के पुनर्जन्म की कथा काफी प्रचलित है। एवं हिन्दू धर्म में सर्वमान्य श्री रामचरित में भी श्री राम के द्वारा श्री दशरथ और जटायु को गोदावरी नदी पर जलांजलि देने का उल्लेख है एवं भरत जी के द्वारा दशरथ हेतु दशगात्र विधान का उल्लेख भरत कीन्हि दशगात्र विधाना तुलसी रामायण में हुआ है। भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया। पितृपक्ष में सनातन व्यक्ति मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते हैं; पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैं; निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं। पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है, मैं यह कहना चाहूंगा कि दान और भोज तो अपनी जगह धार्मिक महत्व लिए हुए हैं लेकिन श्राद्ध पक्ष वह समय है जब हम अपने पूर्वजों के आदर्शों को याद कर सकते हैं युवा पीढ़ी को पूर्वजों के आदेशों और संघर्षों से अवगत करा सकते हैं। जिस से आने वाली पीढ़ी को यह पता रहे कि वह किस विरासत के साथ वे दुनिया में आए हैं। हमारे धर्म-दर्शन के अनुसार जिस प्रकार जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है; उसी प्रकार जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी निश्चित है। ऐसे कुछ विरले ही होते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात् ही स्व-पितृ तर्पण किया जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं। जिस तिथि को पूर्वज का देहांत होता है, उसी तिथी को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है। सामान्य बोलचाल में श्राद्ध पक्ष को सिर्फ मरे हुये लोगों का काल कहा जाता है लेकिन यह धारणा सही नहीं है। श्राद्ध दरअसल अपने अस्तित्व से, अपने मूल से रूबरू होने और अपनी जड़ों से जुड़ने, उसे पहचानने और सम्मान देने की एक सामाजिक प्रक्रिया है। हम शादी पक्षों में अपने पूर्वजों को याद करें। उनके आदर्शों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाएं और समाज में भारतवर्ष के वही मूल्य स्थापित करें, जिसके कारण हम विश्व गुरु के रूप में जाने जाते हैं।
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(प्रवीण कक्कड़) हिंदू संस्कृति में पितृ पक्ष का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व पितरों यानि पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए मनाया जाता है। यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष के सोलह दिनों तक मनाया जाता है। पितृ पक्ष लोगो द्वारा अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। पितृ पक्ष के पर्व में लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने के लिए कई सारे प्रमुख स्थलों पर जाते है। इसके दौरान लोग अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए श्रद्धाभाव से सभी धार्मिक रीती रिवाजों का पालन करते है। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों की पूजा पाठ और श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। सरल शब्दों में कहें तो श्राद्ध पक्ष पूर्वजों के आदेशों को याद करने का समय है। उन्होंने अपने जीवन काल में जो मूल्य स्थापित के उन मूल्यों को आगामी पीढ़ी के लिए सहेजने और युवाओं को उससे अवगत कराने का समय श्राद्ध पक्ष है। हिन्दू धर्म में पूर्वजों की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए अनिवार्यता मानी गई हैं। पूर्वजों को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं। आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस उर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति का बड़ा सुन्दर और वैज्ञानिक विवेचन भी मिलता है। पितृपक्ष में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव (जौ) तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से अंश लेकर वह अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र उर्ध्वमुख होने लगता है। 16 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितर उसी ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ वापस चले जाते हैं। इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं और इसी पक्ष में श्राद्ध करने से पित्तरों को प्राप्त होता है। पुराणों में कई कथाएँ इस उपलक्ष्य को लेकर हैं जिसमें कर्ण के पुनर्जन्म की कथा काफी प्रचलित है। एवं हिन्दू धर्म में सर्वमान्य श्री रामचरित में भी श्री राम के द्वारा श्री दशरथ और जटायु को गोदावरी नदी पर जलांजलि देने का उल्लेख है एवं भरत जी के द्वारा दशरथ हेतु दशगात्र विधान का उल्लेख भरत कीन्हि दशगात्र विधाना तुलसी रामायण में हुआ है। भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया। पितृपक्ष में सनातन व्यक्ति मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते हैं; पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैं; निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं। पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है, मैं यह कहना चाहूंगा कि दान और भोज तो अपनी जगह धार्मिक महत्व लिए हुए हैं लेकिन श्राद्ध पक्ष वह समय है जब हम अपने पूर्वजों के आदर्शों को याद कर सकते हैं युवा पीढ़ी को पूर्वजों के आदेशों और संघर्षों से अवगत करा सकते हैं। जिस से आने वाली पीढ़ी को यह पता रहे कि वह किस विरासत के साथ वे दुनिया में आए हैं। हमारे धर्म-दर्शन के अनुसार जिस प्रकार जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है; उसी प्रकार जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी निश्चित है। ऐसे कुछ विरले ही होते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात् ही स्व-पितृ तर्पण किया जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं। जिस तिथि को पूर्वज का देहांत होता है, उसी तिथी को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है। सामान्य बोलचाल में श्राद्ध पक्ष को सिर्फ मरे हुये लोगों का काल कहा जाता है लेकिन यह धारणा सही नहीं है। श्राद्ध दरअसल अपने अस्तित्व से, अपने मूल से रूबरू होने और अपनी जड़ों से जुड़ने, उसे पहचानने और सम्मान देने की एक सामाजिक प्रक्रिया है। हम शादी पक्षों में अपने पूर्वजों को याद करें। उनके आदर्शों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाएं और समाज में भारतवर्ष के वही मूल्य स्थापित करें, जिसके कारण हम विश्व गुरु के रूप में जाने जाते हैं।
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टीवी9 भारतवर्ष’ जॉइन हुई कीर्ति सक्सेना न्यूज24’ से खबर है कि यहां कीर्ति सक्सेना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। वे यहां डिजिटल में सोशल मीडिया को हेड कर रही थीं। फिलहाल ‘न्यूज24’ से अलग होकर उन्होंने ‘टीवी9 भारतवर्ष’ जॉइन किया है, जहां वे सीनियर सोशल मीडिया एसोसिएट की जिम्मेदारी संभालेंगी। भारतीय विद्या भवन से टीवी प्रॉडक्शन में पीजी डिप्लोमा करने वाली कीर्ति ने ‘न्यूज24’ में पांच वर्षों तक अपना योगदान दिया। यहां वे ग्रुप के ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, फेसबुक अकाउंट्स को हैंडल करती थीं। साथ ही यहां रहते हुए उन्हें एंकरिंग में भी हाथ आजमाएं। कीर्ति इससे पहले ‘इंडिया टीवी’ और ‘फोकस न्यूज’ में भी काम कर चुकी हैं। कुल दस वर्षों से वे मीडिया फील्ड में एक्टिव हैं।
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100 एपिसोड पूरे हुए तीन ताल के इंडिया टुडे’ समूह के ऑफिशियल पॉडकास्ट प्लेटफॉर्म ‘आजतक रेडियो’ पर प्रसारित होने वाले ऑरिजनल पॉडकास्ट ‘तीन ताल’ के नाम एक खास उपलब्धि जुड़ने जा रही है। दरअसल, 10 सितंबर को इस शो के 100 एपिसोड पूरे होने जा रहे हैं। इस साप्ताहिक रेडियो पॉडकास्ट को वरिष्ठ पत्रकार और ‘इंडिया टुडे‘ समूह के न्यूज डायरेक्टर (डिजिटल) कमलेश किशोर, ‘आजतक‘ के एग्जिक्यूटिव एडिटर पाणिनि आनंद और ‘इंडिया टुडे‘ के एसोसिएट एडिटर कुलदीप मिश्रा होस्ट करते हैं। इस शो में उन्हें ’ताऊ’, ’बाबा’ और ’सरदार’ के उपनाम (निकनेम) से जाना जाता है। डेढ़ घंटे के इस शो पर तीनों वरिष्ठ पत्रकार मिलकर प्रत्येक शनिवार को राजनीतिक, सामाजिक, सोशल मीडिया पर वायरल कंटेंट, फूड, मूवीज समेत तमाम अहम मुद्दों पर बेहद ही रोचक तरीके से चर्चा करते हैं, जो लोगों को काफी पसंद आता है। सोशल मीडिया पर भी इस शो को काफी पसंद किया जाता है और लोग इस पर तरह-तरह के मीम्स बनाते रहते हैं। इस शो के सौ एपिसोड पूरे होने पर इसकी सफलता का जश्न मनाने के लिए 10 सितंबर को इंडिया टुडे ऑडिटोरियम में ‘तीन ताल सम्मेलन’ का आयोजन किया जाएगा। इस कार्यक्रम में श्रोताओं को अपने पसंदीदा होस्ट से मिलने और उनसे बातचीत करने का मौका मिलेगा। इसके साथ ही वे रिकॉर्डिंग रूम में कैसे काम होता है, यह भी देख सकते हैं। बता दें कि अपनी शुरुआत के बाद से ‘आजतक रेडियो’ 23 पॉडकास्ट प्रड्यूस कर चुका है, जिनमें छह दैनिक, आठ साप्ताहिक और नौ आर्काइव्ड शो शामिल हैं, जिन्हें कभी भी सुना जा सकता है। ‘आजतक रेडियो’ हर हफ्ते 58 एपिसोड तैयार करता है, जिनमें 15 घंटे की ऑडियो प्रोग्रामिंग होती है। इस बारे में ‘इंडिया टुडे’ समूह की वाइस चेयरपर्सन कली पुरी का कहना है, ‘आजतक रेडियो प्रभावशाली स्टोरीटेलिंग के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का एक और उदाहरण है, जो देश भर के श्रोताओं के लिए सुलभ, आकर्षक और प्रामाणिक है। ‘तीन ताल’ में मजाकिया अंदाज में जिस ईमानदारी से तमाम मुद्दों को लोगों के सामने रखा जाता है, वह उन्हें काफी पसंद आता है। इस शो को लोगों का जो प्यार मिला है, वह वाकई जबर्दस्त है।’
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बता दें कि मनोज मनु इससे पहले भी ‘आईटीवी नेटवर्क’ में एग्जिक्यूटिव एडिटर के तौर पर अपनी भूमिका निभा चुके हैं। करीब नौ महीने पहले उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी कारणों से यहां से बाय बोल दिया था। फिलहाल वह बंगाल की मीडिया कंपनी 'आरपी टेलिविजन' के साथ बतौर एडिटर अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे थे। यह कंपनी दिल्ली में अपना चैनल लॉन्च करने की तैयारी में है। 'कोलकाता टीवी' समेत बंगाल में इस मीडिया कंपनी के तीन चैनल्स हैं। गौरतलब है कि ‘आईटीवी नेटवर्क‘ में अपनी पहली पारी से पहले मनोज मनु ‘सहारा न्यूज नेटवर्क’ में ग्रुप एडिटर के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभा चुके हैं। मूल रूप से ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के रहने वाले मनोज मनु ने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत हिंदी दैनिक ‘स्वदेश’ से की और फिर ‘दैनिक भास्कर’ में काम किया। इसके बाद वह दिल्ली आ गए और वर्ष 2003 से ‘सहारा’ के साथ जुड़े हुए थे। इस नेटवर्क में छह चैनल हैं, जिनकी कमान मनोज मनु के हाथों में थी। दखल डॉट नेट की ओर से मनोज मनु को नई पारी के लिए ढेरों बधाई और शुभकामनाएं।
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बता दें कि मनोज मनु इससे पहले भी ‘आईटीवी नेटवर्क’ में एग्जिक्यूटिव एडिटर के तौर पर अपनी भूमिका निभा चुके हैं। करीब नौ महीने पहले उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी कारणों से यहां से बाय बोल दिया था। फिलहाल वह बंगाल की मीडिया कंपनी 'आरपी टेलिविजन' के साथ बतौर एडिटर अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे थे। यह कंपनी दिल्ली में अपना चैनल लॉन्च करने की तैयारी में है। 'कोलकाता टीवी' समेत बंगाल में इस मीडिया कंपनी के तीन चैनल्स हैं। गौरतलब है कि ‘आईटीवी नेटवर्क‘ में अपनी पहली पारी से पहले मनोज मनु ‘सहारा न्यूज नेटवर्क’ में ग्रुप एडिटर के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभा चुके हैं। मूल रूप से ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के रहने वाले मनोज मनु ने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत हिंदी दैनिक ‘स्वदेश’ से की और फिर ‘दैनिक भास्कर’ में काम किया। इसके बाद वह दिल्ली आ गए और वर्ष 2003 से ‘सहारा’ के साथ जुड़े हुए थे। इस नेटवर्क में छह चैनल हैं, जिनकी कमान मनोज मनु के हाथों में थी। दखल डॉट नेट की ओर से मनोज मनु को नई पारी के लिए ढेरों बधाई और शुभकामनाएं।
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वरिष्ठ पत्रकार पलकी शर्मा उपाध्याय ने ‘जी मीडिया’ समूह के अंग्रेजी न्यूज चैनल 'विऑन' से अपने इस्तीफे के खबर पर मुहर लगा दी है। इस बारे में उन्होंने एक ट्वीट किया है। अपने ट्वीट में पलकी शर्मा ने लिखा है, ‘यह अब खबर नहीं है, लेकिन फिर भी बता दूं कि मैंने विऑन में अपने साढ़े पांच साल के सफर को विराम दे दिया है। इस दौरान मैं आपके सभी संदेशों और शुभकामनाओं से अभिभूत हूं। नई पारी का विवरण शेयर करने के लिए मैं इंतजार नहीं कर सकती हूं! बता दें कि पलकी शर्मा ने पिछले दिनों 'विऑन' में मैनेजिंग एडिटर के पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने अपने प्राइम टाइम शो 'ग्रेविटास' के आखिरी एपिसोड की दो सितंबर को मेजबानी की थी। उन्हें इस साल मई में ही एग्जिक्यूटिव एडिटर से मैनेजिंग एडिटर के पद पर प्रमोट किया गया था। पिछले करीब तीन साल से पलकी शर्मा और विऑन एक दूसरे के पर्याय बन गए थे। माना जा रहा है कि पलकी शर्मा ‘सीएनएन न्यूज18’ या ‘इंडिया टुडे’ ग्रुप जॉइन कर सकती हैं। हालांकि, फिलहाल इस बारे में पुख्ता तौर पर कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी। पलकी शर्मा उपाध्याय को पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने का दो दशक से ज्यादा का अनुभव है। पूर्व में वह ‘दूरदर्शन न्यूज‘,‘हिन्दुस्तान टाइम्स‘,‘सीएनएन-आईबीएन‘ और ‘आईटीवी नेटवर्क‘ में भी अपनी जिम्मेदारी निभा चुकी हैं।
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- प्रवीण कक्कड़ जिस प्रकार एक शिल्पकार पत्थर को आकार देता है और कच्ची मिट्टी को तपाकर उसके विकारों को दूर करता है। ठीक उसी प्रकार एक शिक्षक भी छात्रों के अवगुणों को दूर कर काबिल बनाता है। एक शिक्षक ही है जो मनुष्य को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाता है और जीवन में सही गलत को परखने का तरीका सिखाता है। जैसे एक मजबूत भवन के लिए पक्की नींव जरूरी है, वैसे ही हमें बेहतर जीवन के लिए शिक्षक का सानिध्य और मार्गदर्शन जरूरी है। शिक्षक छात्र के जीवन को मूल्यवान बनाता है। शिक्षक समाज में नैतिक मूल्यों और आदर्श नागरिकों का निर्माण करते हैं। भारत में प्रतिवर्ष शिक्षकों के सम्मान में 5 सितंबर को टीचर्स डे मनाया जाता है। इस दिन शिक्षकों को समाज के विकास में उनके अनकहे योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है। ज्ञान ही इंसान को जीने योग्य जीवन की सीख देता है। शिक्षक ज्ञान का वह अविरल स्रोत है, जो लाखों छात्रों के भाग्य का निर्माण करता है। वह ज्ञान का एक ऐसा भंडार है, जो दूसरों को बनाने में स्वयं मिट जाता है। कहा जाता है कि, एक बच्चे के जन्म के बाद उसकी मां पहली गुरू होती है, जो अक्षरों का बोध कराती है। वहीं दूसरे स्थान पर शिक्षक होते हैं, जो हमें काबिल बनाते हैं और सांसारिक बोध कराते हैं। जिंदगी के इम्तिहान में शिक्षकों के सिखाए गए सबक हमें सफलता की बुलंदियों पर ले जाते हैं। प्राचीन काल से ही गुरुओं का हमारे जीवन में विशेष योगदान रहा। 5 सितंबर को भारत देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ राधा कृष्णन का जन्म हुआ था। वह एक महान दार्शनिक शिक्षक भी थे और शिक्षा के क्षेत्र में उनका अहम लगाव था। उन्होंने 40 साल तक शिक्षक के रूप में कार्य किया। वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति का भी पदभार संभाल चुके हैं। अपने जीवन काल के दौरान वह एक मेधावी छात्र, प्रसिद्ध शिक्षक, एक बहुप्रसिद्ध लेखक और प्रसाशक भी रहे। साथ ही अपनी प्रतिभा के दम पर ही वह देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति बने। इतने ऊंचे पद पर रहने के बावजूद डॉक्टर साहब की सादगी देखने लायक थी। रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी एक पुस्तक में डॉ. साहब के जीवन से जुड़े एक किस्से का उल्लेख किया है। जब राधा कृष्णन मॉस्को में भारत के राजदूत थे, तब स्टालिन काफी लंबे समय तक उनसे मुलाकात के लिए राजी नहीं हुए। अंत में दोनों की मुलाकात हुई तो, डॉ. साहब ने स्टालिन को एक किस्सा सुनाते हुए कहा कि हमारे देश में एक राजा था, जो बड़ा अत्याचारी और क्रूर किस्म का था। उसने काफी खून खराबा मचाया और उसी रक्त के आधार पर प्रगति की। किंतु एक युद्ध में उसके भीतर के ज्ञान को जगा दिया और तभी से उसने शांति और अहिंसा की राह को पकड़ लिया। स्टालिन आप भी उसी रास्ते पर क्यों नहीं आ जाते, स्टालिन ने राधा कृष्णन की इस बात पर कोई ऐतराज नहीं किया और वह मुस्कुरा उठे। इससे आप उनके लोकप्रियता का अंदाजा लगा सकते हैं। किसी भी देश के बेहतर भविष्य का निर्माण उस देश के शिक्षकों के जिम्मे रहता है। वे उस देश के नागरिक को सफलता की बुलंदियों पर पहुंचाने का रास्ता दिखाने का काम करते हैं। साथ हीं उन्हें सही और गलत को परखने का तरीका भी बताते हैं। इस तरह इंसान की पहली गुरु उसकी मां कही जाती है, जबकि शिक्षक उसे सांसारिक बोध कराने यानी जीवन में आगे बढ़ने का सही मार्गदर्शन करता है। शिक्षक के इसी महत्व को देखते हुए हमारे देश में हर साल शिक्षक दिवस मनाया जाता है। शिक्षक दिवस का महत्व किसी भी देश का उज्जवल भविष्य उस देश के शिक्षकों पर निर्भर करता है। वे युवाओं को सही दिशा में बढ़ने और सही रास्ता दिखाने का काम करते हैं। वे ही अपनी शाला में देश के नेताओं, डॉक्टर, इंजीनियर, किसान, शिक्षक, व्यवसाइयों की नींव डालते हैं और देश की नियति को सही आकार देते हैं। इसके अलावा, समाज में नैतिक और आदर्श नागरिकों के निर्माण में भी उनका अभिन्न योगदान होता है। इतनी बड़ी भूमिका निभाने वाले शिक्षकों को सम्मान देने के लिए यह दिन मनाया जाता है।
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पलकी शर्मा उपाध्याय का ‘विऑन’के मैनेजिंग एडिटर के पद से इस्तीफा ने मीडिया इंडस्ट्री के गलियारों में हलचल पैदा कर दी है।विऑन की मैनेजिंग एडिटर पलकी शर्मा के इस्तीफे के बाद ‘इंडिया अहेड’ के एडिटर-इन-चीफ व उनके पूर्व सहयोगी भूपेंद्र चौबे ने भी ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। अपने ट्वीट में उन्होंने कहा कि पलकी शर्मा ने भारत में अंतरराष्ट्रीय न्यूज कवरेज की धारणा को ही बदलकर रख दिया है। अतीत में उनके साथ काम करने के बाद अपने अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि वह काफी लंबा सफर तय करेंगी। बड़े मीडिया हाउस हमेशा ही उन प्रतिभाओं को जोड़े रखने चाहता हैं, जिन्होंने अपने दम पर एक नई पहचान बनायी है। हालांकि कई मामलों में यह पहचान उनकी ब्रैंड से भी बड़ी हो जाती है। जैसा कि समाचार4मीडिया ने पहले ही बता चुका है कि आज शुक्रवार दोपहर 2 बजे ‘विऑन’ टीम के साथ हुई मीटिंग में उन्होंने अपने इस्तीफे की घोषणा की। फिलहाल वे आज रात अपने प्राइम टाइम शो 'ग्रेविटास' के आखिरी एपिसोड की मेजबानी करेंगी। गौरतलब है कि पलकी शर्मा दुनिया भर की खबरों को कवर करने में काफी आगे रहती हैं। रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष पर उनकी रिपोर्ट की न केवल दुनिया भर के दर्शकों द्वारा, बल्कि भारत में यूक्रेन के राजदूत इगोर पोलिखा जैसे विश्व नेताओं द्वारा भी सराहना की गई है।
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स्थिति गंभीर , अस्पताल में चल रहा है इलाज मुंगावली में पत्रकार स्वदेश शर्मा पर जानलेवा हमला करने का मामला सामने आया है कवरेज करने गए पत्रकार पर लोगों ने जानलेवा हमला कर दिया ... मारपीट के साथ पत्रकार पर झूठा प्रकरण भी दर्ज कर लिया गया है वहीं बुरी तरह घायल पत्रकार को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है एक निजी चैनल के रिपोर्टर स्वदेश शर्मा पर कुछ लोगों ने जानलेवा हमला कर दिया स्वदेश शर्मा ने मुंगावली थाना प्रभारी को हमले की आशंका जताई थी जिसके बाद भी सिर्फ एक कॉन्स्टेबल घटनास्थल पर भेजा गया जो कि मूकदर्शक बनकर वीडियो बनाता रहा पीड़ित पत्रकार ने आरोप लगाया है कि दशरथ यादव और उसके परिवार के सदस्यों ने हथियार से लैस होकर हमला किया पत्रकार के साथ उसके पूरे परिवार के छोटे-छोटे बच्चों तक को बेरहमी से पीटा गया और यह धमकी दी गई है कि आगे अगर कोई कार्रवाई की गई तो परिवार को इसका अंजाम देखना पड़ेगा पत्रकार पर झूठा प्रकरण भी दर्ज करने की खबर सामने आई है स्वदेश शर्मा की स्थिति गंभीर है जिनको इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है
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स्वरूपानंद सरस्वती जी के प्राकट्योत्सव में हुए शामिल पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को लेकर भाजपा कितनी ही टीका टिपण्णी करे लेकिन कमलनाथ की हिंदुत्व में आस्था किसी से छिपी नहीं है कमलनाथ परमहंसी आश्रम पहुंचे और जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी के 99वें प्राकट्योत्सव एवं शताब्दी प्रवेश वर्ष महोत्सव में शामिल हुए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को जब अवसर मिलता है वे धर्म कर्म में लगे नजर आते हैं आज भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सांसद नकुलनाथ एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति गोटेगांव स्थित परमहंसी झोतेश्वर आश्रम में जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी के 99वें प्राकट्योत्सव एवं शताब्दी प्रवेश वर्ष महोत्सव में शामिल हुए इस दौरान कमलनाथ अपने धार्मिक अंदाज में नजर आये कमलनाथ के धर्म कर्म में व्यस्त होने पर भाजपा हमेशा टीका टिपण्णी करती रही है लेकिन कमलनाथ इस सब से बेफिक्र नजर आते हैं
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अलीम बजमी प्रशांत: नाम की तरह ही व्यक्तिव, लेखन भी आतिशी-रेशमी आज उसकी जयंती है। पुण्य स्मरण। विनम्र श्रद्धांजलि। आज हर दिल अजीज प्रशांत कुमार की जयंती है। गत 23 जून 2002 को उसकी पुण्य तिथि थीं। दोस्त की याद में कैफियत ठीक नहीं हैं। प्रशांत से जुड़ी ढेर सारी यादें आंखों के सामने घूम रही हैं। भोपाल दैनिक भास्कर के न्यूज रुम के भीतर और बाहर की मधुर स्मृतियां हैं। मेरा एक सच्चा दोस्त, सबका हमदर्द, भरोसेमंद साथी बहुत जल्द साथ छोड़कर चला गया। उसे विनम्र श्रद्धांजलि। फेस बुक पर पूर्व में लिखी पोस्ट शेयर कर रहा हूं। प्रशांत कुमार। शानदार इंसान। अच्छा पत्रकार। दोस्तों का मददगार। आंखों पर गोल। लेकिन बड़े फ्रेम का चश्मा। घुंघराले बाल। हमेशा मुस्कुराते रहना। उसकी पहचान। खबरों के कारण आम-खास में लोकप्रिय। लेखन कभी रेश्मी तो कभी आतिशी। चापलूसों की जमात से बहुत दूर। पत्रकारिता के ग्लैमर में कभी न तो खुद को बांधा। न ही अखबार नवीसों के किसी गिरोह से नाता रखा। पत्रकारिता के क्षेत्र में अलग पहचान बनाई। न किसी का पिछलग्गू बना। न ही किसी की छाप लगने दी। इसको लेकर सत्ता के गलियारों से मंत्रालय तक था, सिर्फ भ्रम। क्या नेता- क्या अफसर। सबके बीच खुसूरपुसर रहती। कुछ पूछते कि यार, यह किसका खास है। कौन सी विचारधारा का है? दरअसल उसका लेखन ही ऐसा था कि वह सबके करीब था। लेकिन यह सच नहीं। जीहां, हुजूर। यकीन मानिए। कुछ लोगों को तो गलतफहमी होगी। वे कोई किस्सा और कहानी गढ़ सकते हैं। किस्सा गो की तरह सुना भी सकते है। हकीकत यह है कि वे सिर्फ और सिर्फ पत्रकार था। आम आदमी की आवाज था। सामाजिक सरोकारों का पैरोकार था। मेहनतकश, मजलूम, मासूम और बेबस, बेसहारा की आवाज बुलंद करता। कर्मचारी वर्ग हो या राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता। सब उसे जानते। मौका मिलता तो ऐसी जमात से वे खूब बतियाता। तभी तो उसके पास रहता खबरों का खजाना। मेरे जैसे कई उससे रश्क करते। लेकिन उसकी काबलियत। सलाम और तारीफ करने लायक। प्रशांत की पत्रकारिता का सफर दिलचस्प है। पहले बैंक में नौकरी की। छटपटाहट में छोड़ दी। कुछ करने को लेकर बैचेनी थी। दिल है कि मानता नहीं, की तर्ज पर पहले उसने एक साप्ताहिक अखबार निकालकर खुद को तौला। फिर भोपाल दैनिक जागरण ज्वॉइन किया। उसे लगा कि यहां मंजिल नहीं हैं। कुछ माह बाद वे वर्ष 1989 में भोपाल दैनिक भास्कर में रिपोर्टर बन गया। यहां उसे संपादक के रूप में परम आदरणीय महेश श्रीवास्तवजी मिले। उनकी पारखी नजरों ने प्रशांत को पहचान लिया। उसे सबसे पहले बरकत उल्ला विश्वविद्यालय की कवरेज का जिम्मा सौंपा गया। साथ ही एप्को, एमपी पीसीबी जैसा संस्थान भी बीट की शक्ल में दिए गए। देखते ही देखते कलम के बूते पर वे छा गया। बाद में उसे प्रशासनिक और राजनीतिक रिपोर्टिंग का जिम्मा सौंपा गया। वे मगरुर नहीं था। सहयोगियों को हमेशा प्रोत्साहित करता। किसी की खामी या कमी को कोई मुद्दा नहीं बनाता। न ही कोई व्यंग्य करता। इस गुण के कारण दफ्तर के अंदर-बाहर वह सबका चहेता था। वे खबरों को लेकर बहुत संजीदा रहता। एकाग्रता के साथ लिखता। इस कारण उसकी कापी में शायद कभी करैक्शन या कटेंट के लेवल पर गलती निकली हो। याद नहीं पड़ता। सिद्धांत वादी भी था। उसने कभी खबर के स्त्रोत का नाम भी साझा नहीं किया। साइंस के स्टूडेंट रहे प्रशांत को आइंसटीन और न्यूटन के सिद्धांत की समझ थी। शायद यही वजह थी कि प्रयोगधर्मी पत्रकारिता के चलते 1990 के दशक में उसका कोई सानी नहीं था। मैंने भास्कर में काम करते हुए सुना था कि पूर्व संपादक (स्वर्गीय) श्याम सुंदर ब्यौहार जब सिटी रिपोर्टर थे, तब केएफ रुस्तमजी जैसे आईजी उन्हें फोन करके पूछते थे कि सब खैरियत हो तो मुझे सोने की इजाजत है। कुछ इस तरह मैंने प्रशांत के साथ भी देखा। कई मंत्री, अफसर उससे रोजाना बात करते। इस दौरान वह बात-बात में खबर निकाल लेता। तब मैं,प्रशांत न्यूज रूम में साथ ही बैठते थे। रोजाना काफी वक्त भी साथ गुजारते। उसने कई विषयों पर लेखन किया। उसकी लिखी कई खबरें भाषा शैली के कारण यादगार है। दुष्यंत कुमार की कई गजलें और शेर उसे याद थे। वे कुछ खास मौके पर अपने अंतरंग मित्रों के बीच इन्हें खास अंदाज में गुनगुनाता। इसी तरह हिंदी फिल्में देखने का उसे खूब शौक था। वे हास्य फिल्में खास तौर पर देखता। फिर हंसी-मजाक में उस फिल्म के किसी पात्र के नाम से अपने दोस्तों को बुलाता। बाद में खूब हंसता। सम्मान के नाम से तौबा। उसे खुद का सम्मान कराने में झिझक होती। कई संगठन आग्रह करते। लेकिन विनम्रता से इंकार करता। वे कहता कि पहले इस लायक तो बन जाऊं। हालांकि विधानसभा का संसदीय रिपोर्टिंग एवं नगर निगम का राजनीतिक रिपोर्टिंग समेत माधवसप्रे संग्रहालय का पुरस्कार उसने जरुर ग्रहण किया। वे अपने अंतरंग मित्रों के बीच अन्नू था। उसके मित्र जैसे प्रलय श्रीवास्तव, विजय पेशवानी और मैं अमूमन इसी नाम से बुलाते थे। आज वो नहीं है। फानी दुनिया को अलविदा कहे उसे करीब 18 बरस हो गए। उसका जाना किसी वज्र की तरह कम नहीं। अब उसकी यादें शेष हैं। हर लम्हा, ऐसा लगता हैं कि वो अब आता ही है। लेकिन जाने वाले कहां आते। इतने अर्से में अब उसके सभी मित्रों ने खुद को संभाल लिया। उसके परिजनों से लेकर दोस्तों ने नियति के हुक्म को मान लिया। ईश्वर उसकी आत्मा को शांति दें। यही परमपिता परमात्मा से प्रार्थना हैं। एक बार फिर शत्-शत्- नमन्। सादर आदरांजलि।(लेखक दैनिक भास्कर के न्यूज़ एडिटर हैं)
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प्रवीण कक्कड़ श्रीगणेशोत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, श्रीगणेश प्राचीन समय से हमारे आराध्य रहे हैं, पेशवा साम्राज्य में श्रीगणेशोत्सव की धूम रहती थी, फिर लोकमान्य बालगंगाधर तिलक द्वारा शुरू किए गए प्रयासों ने इसे सामाजिक और सार्वजनिक उत्सव के रूप में पहचान दिलाई। उस समय यह प्रयास आजादी आंदोलन में सभी को साथ लाने के लिए किया गया था। तब यह प्रयास सार्थक हुआ और अंग्रेजों के खिलाफ इस उत्सव के जरिए देशवासी एकजुट नजर आए। आज भी इस सार्वजनिक उत्सव में हमें सामाजिक, मानवीय और नैतिक मूल्यों की स्थापना पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके साथ ही हमें सभी की मदद करने, देशहित में लोगों को जोड़ने और समाज को एकजुट करने के प्रयास करना चाहिए। भादों माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी में यानी अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 31 अगस्त 2022 बुधवार को गणेश चतुर्थी के दिन मूर्ति स्थापना होगी। हम सबके घरों में विघ्नहर्ता भगवान गणेश विराजमान होंगे। जगह-जगह गणेश उत्सव का आयोजन होगा और सभी लोग समाज की मंगल कामना की प्रार्थना करेंगे। इस पवित्र त्यौहार का जितना अधिक महत्व है, उससे कम महत्व इसके इतिहास का भी नहीं है। अगर हम गणेश उत्सव के इतिहास की तरफ जाएं तो पाएंगे कि पहले लोग घरों में ही गणेशोत्सव मनाते थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया। आगे चलकर उनका यह प्रयास एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में इस गणेशोत्सव ने लोगों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। गणेशोत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किए जाने की बात पूरे महाराष्ट्र में फैल गयी। बाद में नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया। अंग्रेज भी इससे घबरा गये। इस बारे में रोलेट समिति रपट में भी चिंता जतायी गयी। रपट में कहा गया कि गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है। गणेशोत्सवों में भाषण देने वाले में प्रमुख राष्ट्रीय नेता थे - लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्ट चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू। पूजन का आयोजन किया तो उनका मकसद सभी जातियो धर्मो को एक साझा मंच देने का था जहां सब बैठ कर मिल कर कोई विचार करें। इस तरह गणेश उत्सव ने पूरे स्वतंत्रता संग्राम में एक बहुत व्यापक और जन हितैषी भूमिका निभाई। गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था।गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। श्रीगणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं। गणेश उत्सव के पावन पर्व के मौके पर इन सब बातों का इसलिए और ज्यादा महत्व है कि हम पूजा अर्चना के साथ इसके सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी महत्व को भी समझें। यह आस्था का पर्व है श्रद्धा का पर्व है और देश के अभिमान का पर्व है। आप सबको गणेश उत्सव की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
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प्रवीण कक्कड़ श्रीगणेशोत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, श्रीगणेश प्राचीन समय से हमारे आराध्य रहे हैं, पेशवा साम्राज्य में श्रीगणेशोत्सव की धूम रहती थी, फिर लोकमान्य बालगंगाधर तिलक द्वारा शुरू किए गए प्रयासों ने इसे सामाजिक और सार्वजनिक उत्सव के रूप में पहचान दिलाई। उस समय यह प्रयास आजादी आंदोलन में सभी को साथ लाने के लिए किया गया था। तब यह प्रयास सार्थक हुआ और अंग्रेजों के खिलाफ इस उत्सव के जरिए देशवासी एकजुट नजर आए। आज भी इस सार्वजनिक उत्सव में हमें सामाजिक, मानवीय और नैतिक मूल्यों की स्थापना पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके साथ ही हमें सभी की मदद करने, देशहित में लोगों को जोड़ने और समाज को एकजुट करने के प्रयास करना चाहिए।भादों माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी में यानी अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 31 अगस्त 2022 बुधवार को गणेश चतुर्थी के दिन मूर्ति स्थापना होगी। हम सबके घरों में विघ्नहर्ता भगवान गणेश विराजमान होंगे। जगह-जगह गणेश उत्सव का आयोजन होगा और सभी लोग समाज की मंगल कामना की प्रार्थना करेंगे। इस पवित्र त्यौहार का जितना अधिक महत्व है, उससे कम महत्व इसके इतिहास का भी नहीं है। अगर हम गणेश उत्सव के इतिहास की तरफ जाएं तो पाएंगे कि पहले लोग घरों में ही गणेशोत्सव मनाते थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया। आगे चलकर उनका यह प्रयास एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में इस गणेशोत्सव ने लोगों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। गणेशोत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किए जाने की बात पूरे महाराष्ट्र में फैल गयी। बाद में नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया। अंग्रेज भी इससे घबरा गये। इस बारे में रोलेट समिति रपट में भी चिंता जतायी गयी। रपट में कहा गया कि गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है। गणेशोत्सवों में भाषण देने वाले में प्रमुख राष्ट्रीय नेता थे - लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्ट चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू। पूजन का आयोजन किया तो उनका मकसद सभी जातियो धर्मो को एक साझा मंच देने का था जहां सब बैठ कर मिल कर कोई विचार करें। इस तरह गणेश उत्सव ने पूरे स्वतंत्रता संग्राम में एक बहुत व्यापक और जन हितैषी भूमिका निभाई। गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था।गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। श्रीगणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं।गणेश उत्सव के पावन पर्व के मौके पर इन सब बातों का इसलिए और ज्यादा महत्व है कि हम पूजा अर्चना के साथ इसके सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी महत्व को भी समझें। यह आस्था का पर्व है श्रद्धा का पर्व है और देश के अभिमान का पर्व है। आप सबको गणेश उत्सव की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
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प्रवीण कक्कड़ श्रीगणेशोत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, श्रीगणेश प्राचीन समय से हमारे आराध्य रहे हैं, पेशवा साम्राज्य में श्रीगणेशोत्सव की धूम रहती थी, फिर लोकमान्य बालगंगाधर तिलक द्वारा शुरू किए गए प्रयासों ने इसे सामाजिक और सार्वजनिक उत्सव के रूप में पहचान दिलाई। उस समय यह प्रयास आजादी आंदोलन में सभी को साथ लाने के लिए किया गया था। तब यह प्रयास सार्थक हुआ और अंग्रेजों के खिलाफ इस उत्सव के जरिए देशवासी एकजुट नजर आए। आज भी इस सार्वजनिक उत्सव में हमें सामाजिक, मानवीय और नैतिक मूल्यों की स्थापना पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके साथ ही हमें सभी की मदद करने, देशहित में लोगों को जोड़ने और समाज को एकजुट करने के प्रयास करना चाहिए। भादों माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी में यानी अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 31 अगस्त 2022 बुधवार को गणेश चतुर्थी के दिन मूर्ति स्थापना होगी। हम सबके घरों में विघ्नहर्ता भगवान गणेश विराजमान होंगे। जगह-जगह गणेश उत्सव का आयोजन होगा और सभी लोग समाज की मंगल कामना की प्रार्थना करेंगे। इस पवित्र त्यौहार का जितना अधिक महत्व है, उससे कम महत्व इसके इतिहास का भी नहीं है। अगर हम गणेश उत्सव के इतिहास की तरफ जाएं तो पाएंगे कि पहले लोग घरों में ही गणेशोत्सव मनाते थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया। आगे चलकर उनका यह प्रयास एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में इस गणेशोत्सव ने लोगों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। गणेशोत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किए जाने की बात पूरे महाराष्ट्र में फैल गयी। बाद में नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया। अंग्रेज भी इससे घबरा गये। इस बारे में रोलेट समिति रपट में भी चिंता जतायी गयी। रपट में कहा गया कि गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है। गणेशोत्सवों में भाषण देने वाले में प्रमुख राष्ट्रीय नेता थे - लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्ट चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू। पूजन का आयोजन किया तो उनका मकसद सभी जातियो धर्मो को एक साझा मंच देने का था जहां सब बैठ कर मिल कर कोई विचार करें। इस तरह गणेश उत्सव ने पूरे स्वतंत्रता संग्राम में एक बहुत व्यापक और जन हितैषी भूमिका निभाई। गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था।गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। श्रीगणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं। गणेश उत्सव के पावन पर्व के मौके पर इन सब बातों का इसलिए और ज्यादा महत्व है कि हम पूजा अर्चना के साथ इसके सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी महत्व को भी समझें। यह आस्था का पर्व है श्रद्धा का पर्व है और देश के अभिमान का पर्व है। आप सबको गणेश उत्सव की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
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श्रीगणेशोत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, श्रीगणेश प्राचीन समय से हमारे आराध्य रहे हैं, पेशवा साम्राज्य में श्रीगणेशोत्सव की धूम रहती थी, फिर लोकमान्य बालगंगाधर तिलक द्वारा शुरू किए गए प्रयासों ने इसे सामाजिक और सार्वजनिक उत्सव के रूप में पहचान दिलाई। उस समय यह प्रयास आजादी आंदोलन में सभी को साथ लाने के लिए किया गया था। तब यह प्रयास सार्थक हुआ और अंग्रेजों के खिलाफ इस उत्सव के जरिए देशवासी एकजुट नजर आए। आज भी इस सार्वजनिक उत्सव में हमें सामाजिक, मानवीय और नैतिक मूल्यों की स्थापना पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके साथ ही हमें सभी की मदद करने, देशहित में लोगों को जोड़ने और समाज को एकजुट करने के प्रयास करना चाहिए। भादों माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी में यानी अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 31 अगस्त 2022 बुधवार को गणेश चतुर्थी के दिन मूर्ति स्थापना होगी। हम सबके घरों में विघ्नहर्ता भगवान गणेश विराजमान होंगे। जगह-जगह गणेश उत्सव का आयोजन होगा और सभी लोग समाज की मंगल कामना की प्रार्थना करेंगे। इस पवित्र त्यौहार का जितना अधिक महत्व है, उससे कम महत्व इसके इतिहास का भी नहीं है। अगर हम गणेश उत्सव के इतिहास की तरफ जाएं तो पाएंगे कि पहले लोग घरों में ही गणेशोत्सव मनाते थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया। आगे चलकर उनका यह प्रयास एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में इस गणेशोत्सव ने लोगों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। गणेशोत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किए जाने की बात पूरे महाराष्ट्र में फैल गयी। बाद में नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया। अंग्रेज भी इससे घबरा गये। इस बारे में रोलेट समिति रपट में भी चिंता जतायी गयी। रपट में कहा गया कि गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है। गणेशोत्सवों में भाषण देने वाले में प्रमुख राष्ट्रीय नेता थे - लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्ट चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू। पूजन का आयोजन किया तो उनका मकसद सभी जातियो धर्मो को एक साझा मंच देने का था जहां सब बैठ कर मिल कर कोई विचार करें। इस तरह गणेश उत्सव ने पूरे स्वतंत्रता संग्राम में एक बहुत व्यापक और जन हितैषी भूमिका निभाई। गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था।गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। श्रीगणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं। गणेश उत्सव के पावन पर्व के मौके पर इन सब बातों का इसलिए और ज्यादा महत्व है कि हम पूजा अर्चना के साथ इसके सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी महत्व को भी समझें। यह आस्था का पर्व है श्रद्धा का पर्व है और देश के अभिमान का पर्व है। आप सबको गणेश उत्सव की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
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श्रीगणेशोत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, श्रीगणेश प्राचीन समय से हमारे आराध्य रहे हैं, पेशवा साम्राज्य में श्रीगणेशोत्सव की धूम रहती थी, फिर लोकमान्य बालगंगाधर तिलक द्वारा शुरू किए गए प्रयासों ने इसे सामाजिक और सार्वजनिक उत्सव के रूप में पहचान दिलाई। उस समय यह प्रयास आजादी आंदोलन में सभी को साथ लाने के लिए किया गया था। तब यह प्रयास सार्थक हुआ और अंग्रेजों के खिलाफ इस उत्सव के जरिए देशवासी एकजुट नजर आए। आज भी इस सार्वजनिक उत्सव में हमें सामाजिक, मानवीय और नैतिक मूल्यों की स्थापना पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके साथ ही हमें सभी की मदद करने, देशहित में लोगों को जोड़ने और समाज को एकजुट करने के प्रयास करना चाहिए। भादों माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी में यानी अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 31 अगस्त 2022 बुधवार को गणेश चतुर्थी के दिन मूर्ति स्थापना होगी। हम सबके घरों में विघ्नहर्ता भगवान गणेश विराजमान होंगे। जगह-जगह गणेश उत्सव का आयोजन होगा और सभी लोग समाज की मंगल कामना की प्रार्थना करेंगे। इस पवित्र त्यौहार का जितना अधिक महत्व है, उससे कम महत्व इसके इतिहास का भी नहीं है। अगर हम गणेश उत्सव के इतिहास की तरफ जाएं तो पाएंगे कि पहले लोग घरों में ही गणेशोत्सव मनाते थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया। आगे चलकर उनका यह प्रयास एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में इस गणेशोत्सव ने लोगों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। गणेशोत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किए जाने की बात पूरे महाराष्ट्र में फैल गयी। बाद में नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया। अंग्रेज भी इससे घबरा गये। इस बारे में रोलेट समिति रपट में भी चिंता जतायी गयी। रपट में कहा गया कि गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है। गणेशोत्सवों में भाषण देने वाले में प्रमुख राष्ट्रीय नेता थे - लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्ट चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू। पूजन का आयोजन किया तो उनका मकसद सभी जातियो धर्मो को एक साझा मंच देने का था जहां सब बैठ कर मिल कर कोई विचार करें। इस तरह गणेश उत्सव ने पूरे स्वतंत्रता संग्राम में एक बहुत व्यापक और जन हितैषी भूमिका निभाई। गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था।गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। श्रीगणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं। गणेश उत्सव के पावन पर्व के मौके पर इन सब बातों का इसलिए और ज्यादा महत्व है कि हम पूजा अर्चना के साथ इसके सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी महत्व को भी समझें। यह आस्था का पर्व है श्रद्धा का पर्व है और देश के अभिमान का पर्व है। आप सबको गणेश उत्सव की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
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उन्होंने सितंबर 2008 में इस्तीफा देने से पहले 14 महीने की अवधि के लिए चैनल 24 के लिए काम किया. उसी वर्ष उन्हें न्यूज 24 के साथ नौकरी मिली और रुबिका को एंकर और एक वरिष्ठ संवाददाता का पद मिला. कुछ समय बाद, उन्हें Zee News से एक प्रस्ताव मिला और उन्होंने Zee News के लिए काम करना शुरू कर दिया. रुबिका अपने शो के लिए ताल ठोक के नाम से जानी जाती थी और यह शो ज़ी टीवी पर प्रसारित होता है. यह मूल रूप से एक डिबेट शो था.अगस्त 2018 में रुबिका लियाकत ने ज़ी न्यूज़ से इस्तीफा दे दिया और एबीपी न्यूज़ नेटवर्क में शामिल हो गई. एबीपी न्यूज में उन्होंने सोमवार से शुक्रवार तक रात 9 बजे से प्राइमटाइम शो “मास्टर स्ट्रोक” की मेजबानी करना शुरू कर दिया देश के सबसे प्रतिष्ठित पत्रकारों में शुमार रजत शर्मा के फॉलोवर्स न सिर्फ ट्विटर पर लाखों में हैं, बल्कि फेसबुक पर भी उन्हें 23 लाख से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं। उनका स्पेशल शो 'आज की बात' दर्शकों में काफी पसंद किया जाता है। मैट नवारा ने 'State of Journalism on Twitter 2022' नाम से मीडिया से जुड़े कई आंकड़े जारी किए। उन्होंने ट्विटर पर सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले पत्रकारों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सबसे ज्यादा फॉलोवर्स के मामले में रजत शर्मा दुनिया में तीसरे नंबर पर हैं।
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अमेरिकी सांसदों ने जर्नलिज्म कॉम्पिटिशन एंड प्रिजर्वेशन एक्ट का रिवाइज्ड वर्जन पेश किया। इस बिल के जरिए गूगल और फेसबुक जैसे बिग टेक प्लेटफॉर्म के साथ न्यूज पब्लिशर्स का एक साथ बातचीत करना संभव हो पाएगा और पब्लिशर्स को इससे उनके कंटेंट का सही रेवेन्यू मिलने में मदद मिलेगी। दरअसल, गूगल-फेसबुक जैसी कंपनियां न्यूज ऑर्गेनाइजेशन के कंटेंट का इस्तेमाल करती है लेकिन सही मात्रा में रेवेन्यू शेयर नहीं करती। अमेरिका का यह कदम भारत के लिए भी महत्वपूर्ण है। भारत सरकार और देश के समाचार संगठन दोनों ही डिजिटल मीडिया स्पेस को डेमोक्रेटाइज करना चाहते हैं और अमेरिका का ये कदम उस दिशा में एक बड़ा बूस्ट है। ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका को लोकतंत्र और फ्री स्पीच के एक प्रकाशस्तंभ के रूप में देखा जाता है। डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) ने अमेरिका के इस डेवलपमेंट का स्वागत किया। DNPA भारत के टॉप मीडिया ऑर्गेनाइजेशन्स के डिजिटल आर्म का एक प्लेटफॉर्म है। DNPA के एक सूत्र ने कहा, 'अमेरिकी सांसदों का गूगल जैसे शक्तिशाली प्लेटफार्मों की मोनोपॉलिस्टिक टेंडेंसीज (एकाधिकारवादी प्रवृत्ति) को रोकने के लिए ऐसा कदम उठाना खुशी की बात है। यह सही दिशा में एक बड़ा कदम है।' DNPA पिछले कुछ साल से भारत के डिजिटल मीडिया हाउसेज के साथ गूगल के रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल को और अधिक पारदर्शी बनाने की मांग कर रहा है। इस साल की शुरुआत में DNPA की शिकायत पर कॉम्पिटिशन कमीशन ऑफ इंडिया ने गूगल के खिलाफ जांच शुरू की थी। अमेरिका से यह खबर ऐसे समय में सामने आई है, जब कई बिग टेक दिग्गज भारत में एक संसदीय पैनल के सामने अपनी गतिविधियों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। मंगलवार को फाइनेंस पर संसदीय स्थायी समिति ने देश में बिग टेक की मोनोपॉलिस्टिक पैक्ट्रिसेज (एकाधिकारवादी प्रथाओं) पर कुछ कठिन सवालों का सामना करने के लिए गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, नेटफ्लिक्स और कुछ अन्य के प्रतिनिधियों को बुलाया था। इससे पहले गूगल जैसे न्यूज इंटरमीडियरीज की मोनोपॉली और पोजीशन के गलत इस्तेमाल को लेकर कैनेडा और ऑस्ट्रेलिया में भी एक्ट पास हो चुका है। कैनेडियन ऑर्डर में न्यूज पब्लिशर्स के साथ उचित रेवेन्यू शेयर करने के प्रावधान किए गए हैं। ऑस्ट्रेलिया में भी टेक कंपनीज को पब्लिशर्स के साथ सही रेवेन्यू शेयर करना पड़ता है। दरअसल न्यूज मीडिया कंपनीज की ओर से जेनरेट किया गया कंटेंट एक ऐसा प्लेटफॉर्म प्रदान करता है जिस पर विज्ञापन चलाए जा सकते हैं।
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एशिया के सबसे अमीर कारोबारी गौतम अडाणी न्यूज चैनल NDTV की 29.18% हिस्सेदारी खरीदने जा रहे हैं। इस डील के बाद NDTV के इन्वेस्टर्स को खूब फायदा हो रहा है और बुधवार को भी इसके शेयरों पर अपर सर्किट लगा है। शानदार तेजी के साथ NDTV का शेयर बीएसई पर 380 रुपए पर खुला। थोड़ी ही देर में यह 5% की छलांग लगाकर 388.20 रुपए पर पहुंच गया। फिलहाल इसमें अपर सर्किट लगा हुआ है।इससे पहले मंगलवार को भी NDTV के शेयर पर अपर सर्किट लगा था और यह 5% चढ़कर 366.20 रुपए पर बंद हुआ था। NDTV का शेयर अगस्त 2008 के बाद के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। पिछले 1 महीने में ही NDTV के शेयर ने 42% का दमदार रिटर्न दिया है। वहीं अगर बीते 1 एक साल की बात करें तो इसने 392.95% का शानदार रिटर्न दिया है। एक साल पहले यानी 24 अगस्त 2021 को NDTV का शेयर 78.75 रुपए पर था। केडिया एडवाइजरी के डायरेक्टर अजय केडिया के अनुसार गौतम अडाणी के NDTV में हिस्सेदारी खरीदने से आने वाले दिनों में NDTV के शेयरों में तेजी जारी रह सकती है। ऐसे में जिन लोगों के पास NDTV के शेयर हैं उन्हें इसे होल्ड करना चाहिए। वहीं अगर कोई अब इसके शेयर खरीदने का मन बना रहा है तो लॉन्ग टर्म के लिए इसमें निवेश करना फायदा दिला सकता एशिया के सबसे अमीर बिजनेसमैन गौतम अडाणी NDTV में 29.18% की हिस्सेदारी खरीदने जा रहे हैं। मंगलवार शाम को अडाणी ग्रुप ने इसका ऐलान किया। AMG मीडिया नेटवर्क लिमिटेड (AMNL) की सहायक कंपनी विश्वप्रधान कॉमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड (VCPL) के जरिए यह इनडायरेक्ट स्टेक लिया जाएगा। AMG मीडिया अडाणी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) की ही सब्सिडियरी है।वहीं अडाणी ग्रुप NDTV में अतिरिक्त 26% हिस्सेदारी के लिए भी 294 रुपए प्रति शेयर के हिसाब से 493 करोड़ रुपए के ओपन ऑफर की पेशकश करेगा
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केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 27 अगस्त को रायपुर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय कार्यकाल को लेकर प्रकाशित पुस्तक 'मोदी एट द रेट 20" पर प्रदेश के चुनिंदा 1,500 प्रतिनिधियों से संवाद करेंगे। रायपुर के पंडित दीनदयाल उपाध्याय आडिटोरियम में आयोजित इस कार्यक्रम के लिए अलग-अलग वर्ग के लोगों को न्योता भेजा गया है। इनमें वकील, समाजसेवी, सीए, इंजीनियर, बुजुर्ग और युवा शामिल हैं। शाह सिर्फ संवाद कार्यक्रम में शामिल होने के लिए ही रायपुर आ रहे हैं।कार्यक्रम प्रभारी ओपी चौधरी ने बताया कि 'मोदी एट द रेट 20" पुस्तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यपद्धति पर आधारित है। देश की जानी-मानी हस्तियां मोदी के बारे में क्या सोचती हैं, उनके विचारों पर आधारित लेख इस पुस्तक में हैं। भारतरत्न स्वर्गीय लता मंगेशकर ने इस पुस्तक की प्रस्तावना लिखी है। देश के नागरिकों के लिए यूनिक आइडी के जनक नंदन नीलेकणी ने इस पुस्तक में पीएम मोदी के लिए लिखा है।अभी यह पुस्तक अंग्रेजी में है, लेकिन इसका हिंदी संस्करण जल्द ही बाजार में आएगा। इस पुस्तक का उद्देश्य देश की तरक्की के लिए लगातार प्रयासरत प्रधानमंत्री मोदी के बारे में देश के प्रबुद्धजनों की सोच को बताना है। देश के लिए सोचने वाले वर्ग के बीच इस पुस्तक का प्रसार किया जाना है। जिला स्तर पर भी संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।
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सेना के लिए रक्तदान शिविर में इकट्ठा हुआ 27 यूनिट रक्त - गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भी दी श्रद्धांजलि, युवाओं का किया उत्साहवर्द्धन भोपाल। शहर के वरिष्ठ समाजसेवी स्व. दादा निर्मल कुमार केसवानी की दूसरी पुण्यतिथि के अवसर पर शहर के लोगों ने उन्हें भावुक होकर याद किया। इस मौके पर जहांगीराबाद स्थित खटलापुरा श्रीराम मंदिर में ब्लड डोनेशन कैंप का आयोजन किया गया। इस मौके पर मप्र के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने शिविर स्थल पर पहुंचकर दादा निर्मल केसवानी को श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर और सह मीडिया प्रभारी नरेंद्र पटेल ने भी उपस्थित होकर पुष्प अर्पित किए। कार्यक्रम का आयोजन खटलापुरा भक्त मंडल, जागृत हिंदू मंच और हमारा भोपाल संस्था के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश केसवानी ने बताया कि कैंप में करीब 27 यूनिट रक्त इकट्ठा किया गया है। विभागीय अधिकारियों से कहा जाएगा कि यह रक्त सेना के जवानों के लिए ही विशेष रूप से भेजा जाए। शिविर के दौरान युवाओं ने उत्साह पूर्वक हिस्सा लिया। रक्तदान करने के बाद युवा भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे। गृहमंत्री ने किया बांटे सर्टिफिकेट : इस मौके पर मप्र के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने रक्तदान करने वाले युवाओं को सर्टिफिकेट देकर उनका उत्साहवर्द्धन किया। गृहमंत्री ने युवाओं से कहा कि देश के लिए किए गए कार्यों से ही देश का विकास होगा। इसलिए देश के प्रति समर्पित होकर काम करना चाहिए। रक्तदान शिविर के बाद मंदिर में सामूहिक हनुमान चालीसा पाठ और पूजा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर युवाओं को सेना की अग्नीवीर योजना के बारे में भी जानकारी दी गई। कार्यक्रम के अंत में सामूहिक भंडारे का आयोजन भी किया गया।
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परिवार के 2 बच्चों सहित 5 लोग घायल सिंगरौली में पानी के तेज़ बहाव से एक घर ढह गया जिसके कारण परिवार के 2 बच्चों समेत 5 लोग घायल हो गए पीड़ित रामसागर बसोर का कहना है कि सड़क का काम कर रही संविदाकार कंपनी tbcl की लापरवाही के कारण यह घटना हुई है कंपनी वालों ने जानबूझकर हमारे घर की ओर पानी की निकासी की जिससे यह घटना हुई गोंदवाली निवासी पीड़ित रामसागर बसोर के जमीन और घर का मुआवजा नहीं दिया गया जिससे वह और उसका परिवार पुराने घर में रह रहा था जोकि nh39 के बिल्कुल पास में है पानी की निकासी के लिए निर्माणाधीन कंपनी के कर्मचारियों ने उसके घर की ओर रास्ता बना दिया जिसके कारण मिट्टी और पानी एक साथ भारी मात्रा में बहा और पूरा का पूरा घर मिट्टी और पानी से गिर गया और घर के अंदर के लोग दब गए जिससे उनको काफी चोट लगी है फिलहाल घायलों को एंबुलेंस से अस्पताल भेज दिया गया है।
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(प्रवीण कक्कड़) हमारे देश में अतिवृष्टि आज भी एक भीषण समस्या है। मौजूदा दौर में लगातार बारिश से कई जगहों पर बाढ़ के हालात हैं। इससे जनजीवन प्रभावित हो रहा है। मानव द्वारा निर्मित कांक्रिट के जंगलों और अदूरदर्शी योजनाओं के बीच नदियों-तालाबों का प्राकृतिक बहाव प्रभावित है। ऐसे में इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। सिर्फ डिजास्टर मैंनेजमेंट के भरोसे चीजों को नहीं छोड़ा जा सकता। इसे लेकर प्री प्लानिंग जरूरी है, तभी हम आमजन और मुख्यरूप से ग्रामीण परिवेश की आबादी को सुविधा दे सकते हैं। अतिवृष्टि और बाढ़ प्रबंधन की तैयारियाँ पूरी तरह से करें। इसके साथ ही बाँधों में वर्षा जल के अधिक भराव को नहरों में छोड़कर फसल उगाने वाले किसानों के खेतों तक भी पानी पहुँचाना व्यर्थ पानी बहाने का अच्छा विकल्प हो सकता है। वर्षा जल संरक्षण पर वन , ग्रामीण विकास , जल-संसाधन विभाग समन्वित कार्य-योजना बनायें। कार्य-योजना ऐसी हो, जिसमें अतिवृष्टि से बाढ़ से बचाव के साथ-साथ वर्षा जल का उपयोग और संरक्षण भी किया जा सके। वर्षा जल संरक्षण महत्वपूर्ण कार्य है। भारत में घटित होने वाली सभी प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक घटनाएँ बाढ़ की हैं। यद्यपि इसका मुख्य कारण भारतीय मानसून की अनिश्चितता तथा वर्षा ऋतु के चार महीनों में भारी जलप्रवाह है, परंतु भारत की असम्मित भू-आकृतिक विशेषताएँ विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ की प्रकृति तथा तीव्रता के निर्धारण में अहम भूमिका निभाती हैं। बाढ़ के कारण समाज का सबसे गरीब तबका प्रभावित होता है। बाढ़ जान-माल की क्षति के साथ-साथ प्रकृति को भी हानि पहुँचती है। अतः सतत् विकास के नज़रिये से बाढ़ के आकलन की ज़रूरत है। सामान्यतः भारी वर्षा के बाद जब प्राकृतिक जल संग्रहण स्रोतों/मार्गों की जल धारण करने की क्षमता का संपूर्ण दोहन हो जाता है, तो पानी उन स्रोतों से निकलकर आस-पास की सूखी भूमि को डूबा देता है लेकिन बाढ़ हमेशा भारी बारिश के कारण नहीं आती है, बल्कि यह प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों ही कारणों का परिणाम है। बाढ़ का पानी संक्रमण को अपने साथ लाता है बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कई तरह की बीमारियाँ, जैसे- हैजा, आंत्रशोथ, हेपेटाईटिस एवं अन्य दूषित जलजनित बीमारियाँ फैल जाती हैं। बाढ़ की स्थिति इसे और अधिक हानिकारक बना सकती है। असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश (मैदानी क्षेत्र) और ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात के तटीय क्षेत्र तथा पंजाब, राजस्थान, उत्तर गुजरात एवं हरियाणा में बार-बार बाढ़ आने और कृषि भूमि तथा मानव बस्तियों के डूबने से देश की अर्थव्यवस्था तथा समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मध्यप्रदेश के धार में कारम डैम में हमने गंभीर हालातों को देखा। देश में असम में बाढ़ हो या हिमाचल में अतिवृष्टि हर जगह सरकारी प्रबंधन बौने नजर आते हैं। बाढ़ से बचने के लिए इस बारे में गंभीरता से सोचना जरूरी है, बारिश पूर्व और अतिवृष्टि के क्षेत्रों में शासन-प्रशासन को अधिक मुस्तैदी से आंकलन कराने की जरूरत है। तालाबों के गहरीकरण, बांधों से नहरों में पानी छोड़ने के प्रबंधन, वाॅटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा और किसी भी निर्माण कार्य में दूरदर्शी सोच और योजना से कई हालातों को टाला जा सकता है।
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घाट से हटाई गई दुकाने ,बाढ़ जैसे हालात बन रहे चित्रकूट में लगातार हो रही बारिश से मंदाकनी नदी का जलस्तर बढ़ा हुआ है जल स्तर बढ़ने से रामघाट की सभी सीढ़िया और दुकानें डूब गई हैं लगातार बारिश के चलते हालात बिगड़ते जा रहे हैं मध्यप्रदेश के कई जिलों में लगातार बारिश का दौर जारी है भारी बारिश के चलते नदी नाले उफान पर है वहीं जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया चित्रकूट में लगातार हो रही बारिश से मंदाकनी नदी का जलस्तर भी बढ़ा हुआ है लगातार बाढ़ का पानी शहर के अंदर प्रवेश कर रहा है घाट की सभी दुकानों में पानी भरने के कारण दुकानों को खाली कराया जा रहा है चित्रकूट की मंदाकनी नदी में बाढ़ आने से कई गांव प्रभावित हो सकते है पहाड़ क्षेत्र में लगातार हो रही बारिश से बाढ़ जैसे हालात निर्मित हो गए हैं।
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भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विश्व फोटोग्राफी दिवस पर प्रेस फोटोग्राफर्स के साथ पौध-रोपण किया। मुख्यमंत्री चौहान ने स्वयं प्रेस फोटोग्राफर्स की फोटो खींची तथा उन्हें विश्व फोटोग्राफी दिवस की शुभकामनाएँ दी।मुख्यमंत्री चौहान ने बादाम, पीपल और गोंदी के पौधे लगाए। फोटो जर्नलिस्ट वेलफेयर सोसाइटी भोपाल के अध्यक्ष शमीम खान, मुख्यमंत्री प्रेस प्रकोष्ठ के फोटोग्राफर सलीम मिर्जा, प्रदेश टाइम्स के रविंदर सिंह, हरिभूमि के जसप्रीत सिंह, स्वदेश के एन. चौकसे सहित प्रेस फोटोग्राफर संदीप गुप्ता, पृथ्वीराज और विष्णु भी पौध-रोपण में शामिल हुए। मुख्यमंत्री चौहान के साथ 6 वर्षीय दिव्यांका भोंसले ने भी पौधा लगाया .. छत्रपति शिवाजी सेवा कल्याण समिति भोपाल से जुड़े उनके परिवार के सदस्य दिनेश भोंसले, दुर्गेश भोंसले श्रीमती प्रियंका भोंसले ने भी पौध-रोपण किया। समिति के सदस्य मुकेश मेल, आकाश प्रजापति, विभा गरूड़, ज्योति अंधाडे भी पौध-रोपण में शामिल हुई।
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अनुराग भारत देश की आजादी की 75 वीं वर्षगांठ "आजादी का अमृत महोत्सव" के अवसर पर नई दिल्ली एनसीआर के नोएडा स्थित सेक्टर 62 से नेशनल हिंदी न्यूज़ चैनल "भारत 24" (vision of new India) की धमाकेदार लॉन्चिंग की गई। न्यूज़ चैनल का उद्घाटन केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर जी द्वारा किया गया। इस अवसर पर भारत 24 न्यूज़ चैनल के डायरेक्टर रमेश लांबा, चैनल के सीईओ जगदीश चंद्रा, मैनेजिंग एडिटर अजय कुमार सहित देश के जाने-माने न्यूज़ एंकर एवं रिपोर्टर सहित चैनल का समस्त स्टाफ उपस्थित रहा ।उद्घाटन के इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भारत 24 न्यूज़ चैनल को बधाई देते हुए कहा की "भारत 24"(vision of new India) न्यूज़ चैनल भारत सरकार की बात जनता तक और जनता की आवाज भारत सरकार तक पहुंचाने का काम करेगा।
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माँ शारदा की नगरी मैहर के पत्रकारों को दिल से सलाम करने का मन कर रहा है। मैहर के पत्रकारों ने लोगों को जागरूक करने के लिए एक शानदार तिरंगा यात्रा निकाली और हर घर तिरंगा अभियान को सफल बनाने में अपनी महती भूमिका अदा की मैहर का हर छोटा बड़ा पत्रकार तिरंगे की खातिर सड़क पर आया। हलाँकि ये काम महानगरों के पत्रकारों को करना चाहिए था। लेकिन अफसोस ऐसा हुआ नहीं। तमाम पत्रकारों के संगठन और क्लब इस मामले में फिसड्डी ही साबित हुए। हर शहर में पत्रकारों के भी कई धड़े हैं लेकिन पर मैहर जैसी चेतना किसी की जागृत नहीं हुई। छोटी जगह के पत्रकारों में बड़ा काम कर दिखाया वहीँ बड़ी जगह के बड़े पत्रकार कुछ और ही तीन तेरह में लगे रहे।
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अनुराग उपाध्याय मध्यप्रदेश सरकार ने डिजीटल मीडिया में काम कर रहे लोगों को खुश खबरी दे दी है। सरकार डिजीटल मीडिया को विज्ञापन देने की पॉलिसी ले आई है। वेब साईट हों ओटीटी प्लेटफॉर्म हों या फिर सोशल मीडिया अब हर जगह मध्यप्रदेश सरकार अपना प्रचार करती नजर आएगी। इस समय देश में 76 फीसदी लोग डिजीटल मीडिया से जुड़े हुए हैं। ऐसे में उन तक अपनी बात पहुँचने के लिए इस तरह की पॉलिसी की जरुरत एक लम्बे आरसे से महसूस की जा रही थी। हालाँकि इस पॉलिसी में भी कुछ कमियां और कुछ खूबियां हैं लेकिन यह सरकार के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
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डॉ. केसवानी संतों को आवश्यकता नहीं लक्जरी लाइफ की, मिर्ची बाबा जीता है लक्जरी लाइफ स्टाइल, जांच होने पर और भी मामले आएंगे सामने भोपाल। हाल ही में बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार हुए वैरागयनंद उर्फ मिर्ची बाबा को लेकर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश केसवानी ने कहा है कि मिर्ची बाबा एक पाखंडी है, जिसका काम केवल और केवल संत समाज को बदनाम करना है। मिर्ची बाबा संतों का चोला ओढ़ कर कांग्रेस के बैनर पर अपनी वासनाओं की पूर्ति कर रहा है। ऐसे फर्जी बाबाओं के कारण संत समाज को अपमान के घूट पीने पड़ते हैं। वहीं कांग्रेस की नीति सदैव सनातन धर्म को अपमानित करने की रही है। इसलिए वो सदैव से ऐसे पाखंडियों को आगे कर भाजपा और हिंदू धर्म को बदनाम करने की साजिश रचती रही है। डॉ. केसवानी ने कहा है कि इस मामले की पूरी जांच की जाएगी। संभवतः मिर्ची बाबा के और भी ऐसे मामले सामने आएंगे, जिसमें उसने मासूम युवतियों के साथ खिलवाड़ की होगी। मिर्ची बाबा साधु का चोला ओढ़ कर लक्जरी लाइफ स्टाइल जीता है। इसके आश्रम में छापा पड़ने के बाद कई वीआईपी प्रोडक्ट और ऐशो आराम की चीजें बरामद हुई थीं। दिग्विजय सिंह के हारने के बाद भी नहीं ली जल समाधि : मिर्ची बाबा को राजनीति में लाने का श्रेय दिग्विजय सिंह को जाता है। जिन्होंने इस पाखंडी को अपने फायदे के लिए हिंदुओं की भावनाओं से खिलवाड़ करने के लिए राजनीति में लॉन्च किया। बाबा धर्म का चोला ओढ़ हिंदुओं को कांग्रेस में जोड़ने का काम कर रहा था, लेकिन वो इसमें थोड़ा भी कामयाब नहीं हो पाया। लोकसभा चुनाव के समय बाबा ने घोषणा की थी कि यदि दिग्विजय सिंह भोपाल से चुनाव हार गए, तो वे जलसमाधि ले लेंगे। दिग्विजय चुनाव हार गए और बाबा कि जल समाधि की घोषणा भी झूठी साबित हुई। उसके बाद बाबा फिर से अपनी पाखंड की दुकान की ओर लौट गया, जिसके कारनामे अब सामने आने लगे हैं।कांग्रेस ने दिया था राज्य मंत्री का दर्जा :पूर्व सीएम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाने वाले मिर्ची बाबा को कांग्रेस ने राज्य मंत्री का दर्जा दिया था। मिर्ची बाबा का काम धर्म की आड़ लेकर कांग्रेस की राजनीति चमकाना है। जबकि संत समुदाय का काम लोगों को धर्म की शिक्षा देकर लोगों में परस्पर भाईचारा बढ़ाना होता है, इसके विपरित मिर्ची बाबा हमेशा कड़वी बातें कर लोगों को भड़काता रहा। वो लगातार राजनीति की आड़ में अपनी इच्छापूर्ति के लिए काम करता रहा, जिसका अंजाम उन्हें इस रूप में भुगतना पड़ा। उनकी लाइफ स्टाइल को देख अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो इसी तरह के कामों में लिप्त हैं। सरकार इस मामले की पूरी जांच जांच करेगी। ताकि जो भी पीड़ित हैं, उन्हें न्याय मिल सके।
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संसार की सबसे कीमती दौलत है “दोस्ती” प्रवीण कक्कड़ “कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति। बिपति-कसौटी जे कसे, सोई सांचे मीत।” सुविख्यात कवि रहीमदास द्वारा रचित यह दोहा हम सब ने अपने किताबों में पढ़ा है। इस दोहे के माध्यम से कवि हम से कहता है, जब व्यक्ति के पास संपत्ति होती है तब उसके अनेक सगे-संबंधी तथा मित्र बनते हैं, उसके समीप आते हैं, पर विपत्ती के समय में जो आपका साथ दे, वहीं सच्चा मित्र है। आमतौर पर हम उसे दोस्त मानते हैं जो हमारे साथ पढ़ता है, काम करता है, खेलता है या मौज मस्ती करता है लेकिन इसके वास्तविक मायने काफी गहरे हैं। वास्तव में दोस्ती संसार की सबसे कीमती दौलत है अगर यह समय, साथ और समर्पण के सूत्र से बंधी हो। आज फ्रेंडशिप डे है। अन्तरराष्ट्रीय मित्रता दिवस या फ्रेंडशिप डे प्रत्येक वर्ष अगस्त के प्रथम रविवार को मनाया जाता है। सर्वप्रथम मित्रता दिवस 1958 को आयोजित किया गया था। वर्ल्ड फ्रेंडशिप डे दोस्ती मनाने के लिए एक खास दिन है। यह दिन अमेरिकी देशों में बहुत लोकप्रिय उत्सव हो गया था जबसे पहली बार 1958 में पराग्वे में इसे 'अन्तरराष्ट्रीय मैत्री दिवस' के रूप में मनाया गया था। आरम्भ में ग्रीटिंग कार्ड उद्योग द्वारा इसे काफी प्रमोट किया गया, बाद में सोशल नेटवर्किंग साइट्स के द्वारा और इंटरनेट के प्रसार के साथ साथ इसका प्रचलन विशेष रूप से भारत, बांग्लादेश और मलेशिया में फैल गया। इंटरनेट और सेल फोन जैसे डिजिटल संचार के साधनों ने इस परम्परा को को लोकप्रिय बनाने में बहुत सहायता की। फ्रेंडशिप डे को सेलिब्रेट करना भले ही आज मॉडर्न ट्रेंड हो, लेकिन दोस्ती की यह परंपरा प्राचीन है। राम-सु्ग्रीव व कृष्ण-सुदामा से लेकर अकबर-बीरबल तक कई ऐसे उदाहरण हैं, जिनकी दोस्ती की आज भी चर्चा होती है। भारत के इतिहास व अनुश्रुतियों में इस तरह के कई उदाहरण दर्ज हैं। दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जिसे खून के रिश्ते की जरूरत नहीं होती। व्यक्ति को प्रत्येक रिश्ता अपने जन्म से ही प्राप्त होता है, अन्य शब्दों में कहें तो ईश्वर पहले से बना के देता है, पर दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है जिसका चुनाव व्यक्ति स्वयं करता है। सच्ची मित्रता रंग-रूप नहीं देखता, जात-पात नहीं देखता, ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी तथा इसी प्रकार के किसी भी भेद-भाव का खंडन करती है। आमतौर पर यह समझा जाता है, मित्रता हम-उम्र के मध्य होती है पर यह गलत है मित्रता किसी भी उर्म में और किसी के साथ भी हो सकती है। जरा सोच कर देखिए बिना दोस्तों की जिंदगी कितनी बोरिंग सी लगती है. हम किसके साथ अपने दिल की बात शेयर करते और बातों-बातों में किसकी टांग खींचते हैं। हंसी-मजाक, रूठना- मनाना बस यही है दोस्ती। व्यक्ति के जन्म के बाद से वह अपनों के मध्य रहता है, खेलता है, उनसें सीखता है पर हर बात व्यक्ति हर किसी से साझा नहीं कर सकता। व्यक्ति का सच्चा मित्र ही उसके प्रत्येक राज़ को जानता है। पुस्तक ज्ञान की कुंजी है तो एक सच्चा मित्र पूरा पुस्तकालय, जो हमें समय-समय पर जीवन की कठिनाईयों से लड़ने में सहायता प्रदान करता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण में दोस्तों की मुख्य भूमिका होती है। ऐसा कहा जाता है की व्यक्ति स्वयं जैसा होता है वह अपने जीवन में दोस्त भी वैसा ही चुनता है और व्यक्ति से कुछ गलत होता है तो समाज उसके दोस्तों को भी समान रूप से उस गलती का भागीदार समझते हैं। क्योकि दोस्तों का फर्ज होता है कि अगर दोस्त से गलती हो तो उसे सही राह दिखाएं और सदमार्ग पर लाने का प्रयास करें। जीवन के हर मोड़ में एक नया दोस्त बनता है। लेकिन गहरा संबंध कुछ ही दोस्तों के साथ हो पाता है हर जगह नहीं मुलाकात में एक नए दोस्त के रुप में कोई न कोई व्यक्ति आपके सामने जरूर आता है। लेकिन हर किसी के साथ गहरी दोस्ती नहीं हो पाती है। दोस्ती में कई बार झगड़े भी होते हैं। लेकिन बिना किसी घमंड के एक दूसरे से माफी मांग ली जाती है। क्योंकि यह रिश्ता निस्वार्थ रिश्ता है। आखिर में इतना कहूँगा कि अच्छे दोस्त बनाओ, कभी भी अपने दोस्तों का दिल मत दुखाओ और उन्हें कभी धोखा नहीं दो । चाहे दुःख हो या सुख हमेशा एक दूसरे का साथ दो और एक दूसरे की हमेशा सहायता करो। यही दोस्ती का असली रूप और असली मजा है।
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भ्रष्टाचारियों को है जेल में जाने का डर : डॉ. केसवानी कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी पर भाजपा प्रवक्ता ने साधा निशाना भोपाल। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश केसवानी ने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के उस बयान पर निशाना साधा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि वे प्रधानमंत्री मोदी से नहीं डरते हैं। भाजपा प्रवक्ता ने उनको आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी से वही लोग डरते हैं, जिन्हें देश के विकास की नहीं बल्कि अपनी तिजोरियां भरने की चिंता है। डॉ. केसवानी ने कहा कि देश का विकास, उन्नति, एकता और अखंडता चाहने वाला हर व्यक्ति पीएम मोदी से प्यार करता है। वहीं प्रधानमंत्री भी दिन रात इसी प्रयास में हैं कि देश का हर व्यक्ति विकास की धारा से जुड़े और उसे सम्मान पूर्वक जीने का अधिकार मिले। सुलभ हुआ इलाज, हर निर्धन को मिली छत डॉ. केसवानी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए हर व्यक्ति को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान देने की अनूठी योजना बनाई है। जिन लोगों को इस योजना के तहत पक्के मकान मिले हैं, वे पीएम से प्यार करते हैं। आयुष्मान योजना से जिन लोगों को बेहतर इलाज की सुविधा मिली है, वे पीएम मोदी से प्यार करते हैं। उज्जवला योजना ने चूल्हे के धुंए से 10 करोड़ से ज्यादा माताओं बहनों को मुक्ति दिलाई है। वे भी पीएम के साथ हैं। ऐसे अनेकों योजनाएं हैं, जिन्होंने आम लोगो का तो जीवन बदला है। देश की दशा और दिशा बदली है, देश आज विकास की राह पर अग्रसर है। वहीं जो लोग भ्रष्टाचार के कारण घबराए हुए हैं, वही पीएम मोदी से डर रहे हैं और खुद की घबराहट छिपाने ना डरने का राग अलाप रहे हैं।
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अनुराग उपाध्याय मध्यप्रदेश कांग्रेस के बहुत सारे प्रवक्ता फेल हो गए हैं। कांग्रेस के भीतर प्रवक्ताई की परीक्षा हुई और उसके परिणामों ने सबको सकते में डाल दिया। बताते है कांग्रेस के दमदार प्रवक्ता के के मिश्रा को सौ में से 28 भूपेंद्र गुप्ता को 22 ,अब्बास हाफिज को 20 ,संगीता शर्मा को 20 , अजय सिंह यादव को 19 नंबर मिले हैं। इस परीक्षा में सबसे ज्यादा 98 नंबर मिथुन अहिरवार और और 95 नंबर आनंद जाट के आये हैं। लेकिन कांग्रेस की कसौटी पर कई बड़े प्रवक्ता पासिंग मार्क्स भी नहीं ला पाए हैं। हालाँकि कांग्रेस नेता के के मिश्रा परीक्षा की बात को ही सिरे से खारिज करते हुए इसे भाजपा की शरारत बताते हैं।
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अनुराग उपाध्याय कांग्रेस दफ्तर में बैठाए गए पत्रकार पियूष बबेले भी गिरोह बंदी का शिकार हो गए हैं। उनके आने के बाद से मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के काम काज में तो कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है। अलबत्ता कुछ नए सहाफी उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते जरूर नजर आते हैं। नए पत्रकारों की मानें तो बबेले भी पत्रकारों की गोल्डन गैंग के आगे नतमस्तक नजर आते हैं और नए पत्रकारों को भाव नहीं देते हैं। यही वजह है कि एक मीडिया के व्यक्ति के बैठने के बावजूद कांग्रेस को मीडिया में वो जगह नहीं मिल पा रही जिसकी कांग्रेस हकदार है। वहीँ दूसरी तरफ भाजपा में पत्रकार लोकेन्द्र पराशर मोर्चे पर हैं। नए पत्रकार कहते हैं अगर पराशर और बबेले की तुलना की जाए तो लोकेन्द्र पाराशर को जहाँ सौ में से 80 नंबर दिए जा सकते हैं वहीँ पियूष बबेले के खाते में सिर्फ 20 नंबर जाते हैं।
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(प्रवीण कक्कड़) - ( चरक जयंती 2 अगस्त को ) - आज विदेशी भी अपना रहे हैं भारतीय आयुर्वेद सावन महीने की पंचमी को चरक जयंती मनाई जाती है। आयुर्वेद के ग्रंथ भावप्रकाश के अनुसार आज के ही दिन आयुर्वेद के महान आचार्य चरक का भी जन्म हुआ था। कहा जाता है कि आयुर्वेद को जानने और समझने के लिए आचार्य चरक के चिकित्सा सिद्धांतों को समझना बहुत जरूरी है। इसलिए आयुर्वेद के चिकित्सकों के बीच आचार्य चरक का महत्व सबसे ज्यादा है। चरक आयुर्वेद के पहले चिकित्सक थे, जिन्होंने भोजन के पाचन और रोगप्रतिरोधक क्षमता की अवधारणा को दुनिया के सामने रखा। भारत ही नहीं बल्कि, पूरे विश्व में चरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने आयुर्वेद का प्रमुख ग्रंथ ‘चरक संहिता’ लिखा था। मौजूदा दौर में भारतीय आयुर्वेद को देश के साथ ही विदेश में भी अपनाया जा रहा है और कारगर माना जा रहा है। इसलिए आचार्य चरक को याद करते हुए आज चर्चा करते हैं उनके आयुर्वेदिक सिद्धांतों पर और भारतीय परिपेक्ष में आयुर्वेद पर।चरक संहिता आयुर्वेद का प्राचीनतम ग्रंथ है, जिसमें रोगनिरोधक व रोगनाशक दवाओं का उल्लेख मिलता है। इसके साथ ही साथ इसमें सोना, चांदी, लोहा, पारा आदि धातुओं से निर्मित भस्मों और उनके उपयोग की विधि भी बताई गई है। आज हम जिस आयुर्वेद को देखते हैं वह महर्षि पतंजलि और महर्षि चरक के श्रम और साधना का ही परिणाम है। आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। आयुर्वेद, भारतीय आयुर्विज्ञान है। आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका शमन करने तथा आयु बढ़ाने से है। आयुर्वेदीय चिकित्सा विधि सर्वांगीण है। आयुर्वेदिक चिकित्सा के उपरान्त व्यक्ति की शारीरिक तथा मानसिक दोनों दशाओं में सुधार होता है। आयुर्वेदिक औषधियों के अधिकांश घटक जड़ी-बूटियों, पौधों, फूलों एवं फलों आदि से प्राप्त की जातीं हैं। अतः यह चिकित्सा प्रकृति के निकट है। व्यावहारिक रूप से आयुर्वेदिक औषधियों के कोई दुष्प्रभाव (साइड-इफेक्ट) देखने को नहीं मिलते। अनेकों जीर्ण रोगों के लिए आयुर्वेद विशेष रूप से प्रभावी है। आयुर्वेद न केवल रोगों की चिकित्सा करता है बल्कि रोगों को रोकता भी है। आयुर्वेद भोजन तथा जीवनशैली में सरल परिवर्तनों के द्वारा रोगों को दूर रखने के उपाय सुझाता है। आयुर्वेदिक औषधियाँ स्वस्थ लोगों के लिए भी उपयोगी हैं।आयुर्वेदिक चिकित्सा अपेक्षाकृत सस्ती है क्योंकि आयुर्वेद चिकित्सा में सरलता से उपलब्ध जड़ी-बूटियाँ एवं मसाले काम में लाये जाते हैं। आयुर्वेदीय चिकित्सा विधि सर्वांगीण है एवं इस चिकित्सा के उपरान्त व्यक्ति की शारीरिक तथा मानसिक दोनों दशाओं में सुधार होता है। आयुर्वेदिक औषधियों के अधिकांश घटक जड़ी-बूटियों, पौधों, फूलों एवं फलों आदि से प्राप्त की जातीं हैं। अनेकों जीर्ण रोगों के लिए आयुर्वेद विशेष रूप से प्रभावी है। आयुर्वेद न केवल रोगों की चिकित्सा करता है बल्कि रोगों को रोकता भी है। आयुर्वेदिक चिकित्सा अपेक्षाकृत सस्ती है क्योंकि आयुर्वेद चिकित्सा में सरलता से उपलब्ध जड़ी-बूटियाँ एवं मसाले काम में लाये जाते हैं। गत दिनों पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा था कि आयुर्वेद विशेषज्ञों से रोगों के उपचार एवं महामारी विज्ञान के नए-नए क्षेत्रों में आयुर्वेद की प्रभावशीलता एवं लोकप्रियता को बढ़ाने का आह्वान करते हुए कहा कि भारत के गांवों में आज भी पारंपरिक आयुर्वेद चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित हैं। उन्होंने कहा था कि अभी भी किसी अन्य चिकित्सा पद्धति ने इसका स्थान नहीं लिया है।
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भाजपा प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश केसवानी बोले, मोदी की नीतियों से हुआ भाजपा मय देश भाजपा मय प्रदेश त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव परिणामों में भाजपा को मिली शानदार जीत भोपाल। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव परिणामों में मप्र में भाजपा द्वारा कांग्रेस को दिए गए क्लीन स्वीप के बाद भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश केसवानी ने कहा है कि प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी की न्यू इंडिया विजन, मुख्यमंत्री माननीय श्री शिवराज सिंह चौहान की सेवा और प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा की चुनावी रणनीति का ही परिणाम है कि भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर साबित किया है कि भाजपा आज हर नागरिक के दिल में अपनी विशिष्ट जगह बना चुकी है। डॉ. केसवानी ने कहा कि चुनाव से पहले कांग्रेस द्वारा भाजपा को शहर की पार्टी कहकर कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ने का प्रयास किया गया। हालांकि नगरीय निकाय चुनाव परिणामों में भी भाजपा ने अपनी रणनीति और प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा किए गए विकास और न्यू इंडिया विजन का लोहा मनवाया, लेकिन त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के परिणामों ने यह साबित कर दिया है कि भाजपा आज देश और प्रदेश के कोने कोने में बैठे लोगों की दिल में जगह बना चुकी है। 65 हजार बूथों पर पहले डिजीटली फिर प्रत्यक्ष किया निरीक्षण : डॉ. केसवानी ने बताया कि इस जीत के लिए कार्यकर्ताओं ने दिन रात मेहनत की है। प्रदेश के 65 हजार बूथों पर भाजपा पहले डिजीटली पहुंची। बूथों के डिजीटल निरीक्षण के बाद भी कार्यकर्ता घर पर नहीं बैठे, बल्कि प्रत्यक्ष पहुंचकर बैठकें ली। इस दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत के विकास के लिए किए जा रहे कार्यों और न्यू इंडिया विजन को प्रदेश के कोने कोने में पहुंचाया गया। इसके साथ ही मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा 15 सालों की सेवा की जानकारी भी हर बूथ तक और कार्यकर्ताओं तक पहुंचाई गई। यह सीएम श्री शिवराज की मेहनत का ही परिणाम है, जिसके कारण प्रदेश विकास के मामले में नए कीर्तिमान रच रहा है। वहीं प्रदेश अध्यक्ष माननीय श्री वीडी शर्मा की कुशल रणनीति के कारण ही भाजपा ने इतनी बड़ी जीत हासिल की है। कुछ इस तरह रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2022 के चुनाव परिणाम : कुल जिला पंचायतों की संख्या : 52 भाजपा : 41 कांग्रेस : 10 कोर्ट स्टे : 01 कुल जनपद पंचायतों की संख्या : 313 भाजपा : 227 कांग्रेस : 65 अन्य : 21 कोर्ट स्टे : 01 कुल ग्राम पंचायतें : 22924 भाजपा समर्थित : 20613
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सहकारिता मंत्री डॉ. भदौरिया सहकारिता एवं लोक सेवा प्रबंधन मंत्री डॉ. अरविंद सिंह भदौरिया ने कहा है कि अब हर वर्ष अटेर उत्सव मनाया जायेगा। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार ओरछा उत्सव और अन्य उत्सव का आयोजन किया जाता है, उसी प्रकार संस्कृति विभाग द्वारा अटेर उत्सव का प्रतिवर्ष आयोजन होगा। इस वर्ष अटेर में 27-28 नवम्बर को अटेर उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। यह बातें सहकारिता मंत्री डॉ. भदौरिया ने भिण्ड में मीडिया प्रतिनिधियों से अनौपचारिक चर्चा के दौरान कहीं। सहकारिता मंत्री डॉ. भदौरिया ने कहा कि मुख्यमंत्री माननीय श्री शिवराज सिंह चौहान जी और पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री माननीय सुश्री उषा ठाकुर जी ने अटेर उत्सव आयोजन के उनके आग्रह को स्वीकार किया। इसके लिये वह क्षेत्र की जनता की ओर से उनका ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं। उन्होंने कहा कि अटेर उत्सव आयोजन के लिये उनके द्वारा पिछले वर्षों से पहल की जा रही थी। सहकारिता मंत्री डॉ. भदौरिया ने कहा कि अटेर के ऐतिहासिक, पुरातात्विक और सांस्कृतिक विरासत से नई पीढ़ी को अवगत कराने के लिये अटेर उत्सव में विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन किया जायेगा। भिण्ड जिले के अटेर की ऐतिहासिक, पुरातात्विक धरोहर के संरक्षण का कार्य भी होगा। अटेर उत्सव राज्य सरकार के सांस्कृतिक आयोजन के कैलेण्डर में सम्मिलित किया गया है।
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अपनी नाकामी छिपाने कार्यकर्ताओं की ले रहे हैं परीक्षा : डॉ. केसवानी भोपाल। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा हाल ही में आयोजित मीडिया कमेटी की परीक्षा पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश केसवानी ने तंज कसा कसते हुए इस परीक्षा पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। उन्होंने कहा है कि केंद्र में राहुल गांधी फेल और एमपी में कमलनाथ और पूरी कांग्रेस फेल हो गई है। तो इस तरह के एग्जाम क्यों कंडक्ट किए जा रहे हैं। भाजपा प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि नाथ अपनी और राहुल की फैलियर छिपाने कार्यकर्ताओं को परेशान कर रहे हैं। इससे केवल और केवल कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरेगा। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी और कमलनाथ हर मोर्चे और हर चुनाव में फेल साबित हुए हैं। देश और प्रदेश की जनता का भरोसा कांग्रेस से उठ गया है। उन्होंने कहा कि कोई ऐसा एग्जाम भी हो, जिसमें राहुल गांधी और कमल नाथ सहित सभी दिग्गजों की दक्षता को आंका जाए। जिससे पता चले की पार्टी की भविष्य में दिशा और दशा क्या होगी? नटवर, अजीज और पीके ने भी दिखाया है आईना भाजपा प्रवक्ता ने बताया कि राहुल के नेतृत्व को कांग्रेस के वरिष्ठ लोग ही नकार चुके हैं। हाल में नटवर सिंह ने कहा है कांग्रेस को सोनिया गांधी और राहुल गांधी की जरूरत नहीं है। जबकि इन दोनों को कांग्रेस की जरूरत है। नटवर ने आरोप लगाया कि जब तक इन दोनों या गांधी परिवार में किसी के भी हाथ कांग्रेस की बागडोर रहेगी तो वे किसी भी योग्य व्यक्ति को आगे नहीं आने देंगे। अजीज कुरैशी ने भी राहुल गांधी को अपरिपक्व बताते हुए कहा था कि जब तक उनके हाथ कांग्रेस की बागडोर है, कांग्रेस का भला नहीं हो सकेगा। वहीं पीके ने भी राहुल को आइना दिखाते हुए कहा था कि उनके कार्यकाल में पार्टी 90 फीसदी चुनाव हारी है।लगातार हार रही है कांग्रेस भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने 2018 में बनाई सरकार बनाई थी। लेकिन इसे नाथ संभाल नहीं पाए, 18 महीने बाद ये सरकार गिर गई। इसके बाद 28 उपचुनाव, नगरीय निकाय और जनपद हर चुनाव में कांग्रेस हारी ही है। ऐसे में एक टेस्ट तो नाथ का भी होना चाहिए। जिससे उनके कामकाज का आंकलन किया जा सके। ये है पूरा मामला कांग्रेस के मध्य प्रदेश चीफ कमल नाथ ने हाल ही में पीसीसी में कांग्रेस की प्रदेश मीडिया कमेटी का एक एग्जाम कंडक्ट किया था। इस एग्जाम में लगभग सभी पदाधिकारी फेल हो गए थे, एक पदाधिकारी को जीरो मार्क्स भी दिए गए। डॉ. केसवानी ने कहा कि इस तरह के एग्जाम केवल मनोबल को गिराने का ही काम करते हैं। इस कमेटी की जिम्मेदारी पार्टी के ऑफिशियल बयान मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से आम लोगों तक पहुंचाना है।
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(प्रवीण कक्कड़) भारत के 15वें राष्ट्रपति का चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू भारत की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बनीं और वरिष्ठ नेता श्री यशवंत सिन्हा ने संसदीय गरिमा के अनुरूप चुनाव में भाग लिया। इस लेख में हम राष्ट्रपति चुनाव की राजनीति के बजाय भारत के राष्ट्रपति के पद के महत्व के बारे में चर्चा करेंगे।जब भारत का संविधान बन रहा था, तब इस बात पर बड़ी गंभीरता से विचार चल रहा था कि भारत में अमेरिका की तर्ज की राष्ट्रपति प्रणाली होनी चाहिए या ब्रिटेन की तर्ज वाली संसदीय यानी प्रधानमंत्री प्रणाली। संविधान सभा की स्थापना से पहले ही पंडित जवाहरलाल नेहरू ने विधि विशेषज्ञ और उस जमाने के प्रतिष्ठित न्यायाधीश श्री बी एन राऊ से आग्रह किया की वे भारत के लिए एक भविष्योन्मुखी और वर्तमान पर खरा उतरने वाले संविधान का निर्माण करें। बीएन राउ साहब दुनिया के अलग-अलग देशों में गए और वहां के संविधान और शासन प्रणाली का अध्ययन किया।उसके बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पंडित नेहरू, डॉ राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना आजाद के साथ ही डॉक्टर भीमराव अंबेडकर आदि ने भारत की संसदीय प्रणाली के बारे में अपनी राय का निर्धारण किया।उस समय तक भारत में वर्तमान राष्ट्रपति के समकक्ष का पद गवर्नर जनरल का होता था। भारत के साथ आजाद हुए पाकिस्तान ने मोहम्मद अली जिन्ना को अपना पहला गवर्नर जनरल ही नियुक्त किया था। लेकिन भारत के लोगों ने तय किया कि भारत में कमोबेश ब्रिटेन की तर्ज का लोकतंत्र हो, जिसमें कैबिनेट सर्वोच्च हो और प्रधानमंत्री समान दर्जे के मंत्रियों के बीच पहला मंत्री बने। भारत में राष्ट्रपति का पद भी तय किया गया, जिसकी शक्तियां कुछ कुछ ब्रिटेन की महारानी की तरह होती है। लेकिन उसकी शक्तियां अमेरिका के राष्ट्रपति की तरह नहीं होती। अमेरिका का राष्ट्रपति एक सम्राट से थोड़ा कम और प्रधानमंत्री से कहीं अधिक शक्तिशाली होता है।क्योंकि भारत के राष्ट्रपति का पद ग्रेट ब्रिटेन के राजा या रानी की तरह का होता है तो उसमें कई बार ऐसा लगता है कि वह रबड़ स्टांप होता है। लेकिन ऐसा नहीं है। भारत के राष्ट्रपति को अपनी ज्यादातर जिम्मेदारियों का निर्वाह मंत्रिमंडल के परामर्श पर करना होता है, लेकिन उसके पास नीर क्षीर विवेक करने का पर्याप्त मौका भी होता है।इसकी प्रमुख वजह यह है कि वह जनता के द्वारा भले ही सीधे ना चुना गया हो लेकिन देश के विधायक और सांसद उसके लिए वोट डालते हैं। यानी राष्ट्रपति एकदम से बिना निर्वाचन के चुने जाने वाला व्यक्ति नहीं है।राष्ट्रपति से यह आशा की जाती है कि अगर लोकसभा लोकलुभावन फैसले लेने के दबाव में कोई कानून पास कर देती है और राज्यसभा के बुद्धिमान सदस्य भी उस पर अपनी मोहर लगा देते हैं तो उसके पास अधिकार है कि वह वापस संसद को उस कानून को एक बार फिर से देखने के लिए भेज सकें। भारत के राष्ट्रपति को शपथ दिलाने का काम प्रधानमंत्री या दूसरा कोई व्यक्ति नहीं करता बल्कि भारत के प्रधान न्यायाधीश करते हैं।भारत का राष्ट्रपति एक ऐसी सर्वोच्च संवैधानिक कचहरी है, जहां पर हर कोई अपनी फरियाद कर सकता है। आपने बहुत से ऐसे मामले देखे होंगे जब विपक्ष के नेता प्रतिनिधिमंडल लेकर प्रधानमंत्री या केंद्र सरकार के खिलाफ शिकायत करने राष्ट्रपति के पास जाते हैं। राष्ट्रपति इनमें से ज्यादातर मामलों में संबंधित शिकायत को गृह मंत्रालय के पास ही भेज देते हैं लेकिन राष्ट्रपति के पास शिकायत करने का नैतिक महत्व बहुत अधिक होता है।इस देश में हमने ऐसे भी उदाहरण देखे हैं जब डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से लेकर प्रणव मुखर्जी तक राष्ट्रपति ने कई जगह संसद के कार्यकलाप की बहुत सटीक संवैधानिक आलोचना की है या उसके किए फैसलों पर आंख मूंद कर सहमति जताने से इनकार किया है। क्योंकि भारत के राष्ट्रपति की परिकल्पना बहुत हद तक ग्रेट ब्रिटेन के राजा की तरह होती है। और यह माना गया है कि राजा कोई गलती नहीं कर सकता। गलती ना करने के लिए यह जरूरी है कि व्यक्ति अपने हाथ से कोई काम ना करे। इसीलिए ब्रिटेन के राजा की तर्ज पर भारत का राष्ट्रपति भी स्वयं कोई काम नहीं करता, उसकी तरफ से मंत्रिगण ही सारे काम संपादित करते हैं। इस हैसियत के कारण राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक होता है और उसके साथ लगभग वैसा ही सम्मान का व्यवहार किया जाता है, जैसा व्यवहार पुराने जमाने में राजाओं के साथ होता था। भारत में प्रधानमंत्री आवास बदलते रहे हैं, लेकिन राष्ट्रपति भवन आज तक वही है जो पहले राष्ट्रपति के लिए तय हुआ था। प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल 5 साल से पहले भी खत्म हो जाते हैं, लेकिन राष्ट्रपति पूरे 5 साल तक अपने पद पर रहता है।भारत का राष्ट्रपति अगर किसी कार्यक्रम में जाता है तो वह निर्वाचित प्रधानमंत्री या अन्य किसी संसदीय व्यक्ति की तुलना में उसकी कुर्सी सबसे ऊपर होती है। वह भारतीय लोकतंत्र की गरिमा का जीवंत प्रतिमान है।इसीलिए हम सबको याद रखना चाहिए कि राष्ट्रपति का सम्मान देश के सम्मान के समकक्ष है। वह चुनाव में उतरने से पहले ही अपने सभी किस्म के राजनीतिक राग द्वेष और संबंधों को त्याग देता है। पूरे देश में उसी के पास सुप्रीम कोर्ट में सुनाए गए फैसले के बारे में भी पुनर्विचार करने का अधिकार होता है। यह पद सर्वोच्च नैतिकता और सर्वोच्च सम्मान की मांग करता है। क्योंकि अगर पहली चीज नहीं आई तो दूसरी चीज चाह कर भी नहीं दी जा सकती। भारत के राष्ट्रपति के इन विशेषताओं और जिम्मेदारियों को हमें समझना चाहिए। और इन विशेषताओं के बहाने भारतीय लोकतंत्र की जटिलता और विकेंद्रीकृत स्वभाव को भी समझना चाहिए।
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प्रिंट की तुलना में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कम जवाबदेह भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने रांची में आयोजित एक कार्यक्रम में मीडियो को लेकर तीखी टिप्पणी की। CJI NV Ramana ने कहा, इन दिनों जजों पर हमले बढ़े हैं। बिना किसी सुरक्षा या सुरक्षा के आश्वासन के न्यायाधीशों को उस समाज में रहना होगा जिसमें उन्होंने लोगों को दोषी ठहराया है। न्यायमूर्ति एसबी सिन्हा स्मृति व्याख्यान के अवसर पर CJI ने कहा, 'मैंने कई मौकों पर अदालतों में लंबित मुकदमों का मामला उठाया है। मैं न्यायाधीशों को उनकी पूरी क्षमता के अनुसार कार्य करने में सक्षम करने का प्रबल समर्थक रहा हूं। इसके लिए के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार करने की आवश्यकता है।'इस दौरान उन्होंने देश में मीडिया की स्थिति पर भी बहुत कठोर टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि मीडिया अपनी जिम्मेदारियों का उल्लंघन करता है, जिससे हमारा लोकतंत्र दो कदम पीछे जा रहा है। प्रिंट मीडिया भी कुछ हद तक जवाबदेह है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जवाबदेही शून्य हो गई है। मीडिया ऐसे मुद्दों पर कंगारू कोर्ट चला रहा है, जो जजों के लिए भी काफी मुश्किल होते हैं।उन्होंने आगे कहा, आधुनिक लोकतंत्र में एक न्यायाधीश को केवल एक कानून निर्माता के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। लोकतांत्रिक जीवन में न्यायाधीश का विशेष स्थान है। वह समाज की वास्तविकता और कानून के बीच की खाई को पाटता है, वह संविधान की लिपि और मूल्यों की रक्षा करता है।
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नेहा बग्गा बूथ अध्यक्ष, महामंत्री और बी.एल.ए भारतीय जनता पार्टी की रीढ़ की हड्डी हैं। सजग और उत्साहित त्रिदेव ने स्थानीय निकाय के चुनाव में भाजपा का परचम लहराया।जब से जनसंघ की स्थापना हुई और भारतीय जनता पार्टी बनी, तभी से वह पूरे देश में एक मात्र ऐसी पार्टी है जो संगठन और विचारधारा के आधार पर चलती है। सभी पार्टियों का आप एक एक कर विश्लेषण कर लीजिए, सभी नेताओं के आधार पर चलती हैं, घरानों के आधार पर चलती हैं और जातियों के आधार पर भी चलती हैं। एक अकेली बीजेपी ऐसी पार्टी है, जिसका प्राण तत्व है उसका संगठन और संगठन में भी उसका प्राण तत्व है बूथ कमेटी, बूथ के इंचार्ज। मध्यप्रदेश के सभी कार्यकर्ता नेता अभिनंदन के पात्र हैं जिन्होंने त्रिदेव योजना को जमीनी स्तर पर लागू करने का कार्य किया।त्रिदेव बूथ के वह तीन कार्यकर्ता हैं जो भारतीय जनता पार्टी की रीढ़ की हड्डी हैं। अगर यह 3 कार्यकर्ता सजग हैं, उत्साहित हैं और अगर ये विजय का संकल्प लेते हैं तो कोई विजय को रोक नहीं सकता, विजय हो के रहती है। भारतीय जनता पार्टी जब भी चुनाव के मैदान में जाती है तो सबसे पहले बूथ के कार्यकर्ताओं को जागरूक और संगठित करने का कार्य करती है। जबकि बाकी सभी पार्टियां जातियों और नेताओं के आधार पर चुनाव लड़ती है। इसलिए आज नगर निगम में भारतीय जनता पार्टी को16 नगर निगम में से 9 नगर निगम भाजपा की विजयी हुई है। 76 नगर पालिका में 50 में भाजपा को स्पष्ट बहुमत है। (कुल 65) वही 255 नगर परिषद में से 185 में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला है, 46 में हमारी स्थिति अच्छी है। कुल (231).वर्ष 2014 में 98 नगर पालिकाओं के चुनाव में भाजपा 54 सीटों पर विजयी हुई थी, कुल 55 प्रतिशत, इस वर्ष 76 नगर पालिकाओं के चुनाव में भाजपा 65 सीटों पर अपना अध्यक्ष बनाने जा रही है, जीत का प्रतिशत 85 प्रतिशत रहा है।वर्ष 2014 में 264 नगर परिषद के चुनाव में भाजपा 154 सीटों पर विजयी हुई थी। कुल 58 प्रतिशत, इस वर्ष 255 नगर परिषद के चुनाव में भाजपा 231 सीटों पर अपना अध्यक्ष बनाने जा रही है। जीत का प्रतिशत 90.58 प्रतिशत रहा है। कटनी, रायसेन, राजगढ, सागर, जबलपुर, सिवनी, देवास, सीहोर, नरसिंहपुर, रीवा, मुरैना इन जिलों की नगर परिषदों में भाजपा का प्रदर्शन लगभग शत प्रतिशत रहा है।विदिशा, छिंदवाडा, सीहोर, सागर, नर्मदापुरम, नरसिंहपुर इन पांच जिलों की नगर पालिकाओं में हम शत प्रतिशत जीते है। छिंदवाडा जिले की तीनों नगर पालिकाओं (अमरवाडा, चौरई और परासिया) में भाजपा जीती है।जबलपुर में 8 में से 6 नगर परिषद में भाजपा विजयी हुई है। मुरैना में 5 में से 4 नगर परिषद में भाजपा विजयी हुई है। रीवा में 12 में से 11 नगर परिषद में भाजपा विजयी हुई है।ग्वालियर में सभी 5 नगर परिषदों में कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा का प्रदर्शन बेहतर है। कटनी में 3 नगर परिषद में से 3 में भाजपा विजयी हुई है।16 नगर निगम के 884 वार्डों में से 491 वार्डो में भाजपा विजयी रही।76 नगरपालिकाओं के 1795 वार्डों में से 975 वार्डों में भाजपा विजयी रही। 255 नगर परिषदों के 3828 वार्डों में 2002 वार्डो में भाजपा विजयी रही। भारतीय जनता पार्टी पॉलिटिक्स ऑफ परफॉर्मेंस के आधार पर राजनीति को बदलना चाहती है, राजनीति में ऐसी कार्य संस्कृति बनाना चाहती है, जिसका आधार सरकार के काम हों और उसी को जन जन तक पहुंचाने का काम बीजेपी के संगठन में त्रिदेव और बूथ विस्तारक योजना के जमीनी कार्यकर्ताओं ने किया है, जो राजनैतिक और सामाजिक तौर पर 365 दिन 24 घंटे जनता के बीच में रहकर सरकार की योजनाओं को अंतिम पंक्ति में बैठे हुए व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए सक्रिय रहते हैं। भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता हर बूथ पर, हर गांव पर, हर पहाड़ पर संघर्ष कर पार्टी और सरकार के कार्य को घर-घर पहुंचाने में सफल हुआ है।यह सभी के लिए गौरव का क्षण है और भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता यह अनुभूति करता है इस सरकार ने सदैव उनकी भी सेवा की जिन्होंने वोट नहीं दिया। वैक्सीन उनको भी लगाई जिन्होंने वैक्सीन का समर्थन नहीं किया। यह मेरी सरकार का संस्कार है। नरेंद्र मोदी जी का नारा है सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास। हम सर्वे भवन्तु सुखिन: वाली पार्टी हैं। पूरे प्रदेश में इतनी बड़ी संख्या में पार्षदों का चुन कर आना बीजेपी की बूथ विस्तारक योजना, बूथ के कार्यकर्ताओं के परिश्रम और जनता ने जिस तरीके से सहयोग किया वह भारतीय जनता पार्टी के प्रति लोगों के विराट विश्वास को दर्शाता है। (लेखिका भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश प्रवक्ता हैं | )
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सुधीर चौधरी आज तक पर प्रकट हुए तो उन्होंने कहा सिर्फ स्थान बदला है और नाम बदला है। अब परिवार और बड़ा हो गया है। अब रात नौ बजे से ‘आजतक’ पर सुधीर चौधरी शो ब्लैक एण्ड व्हाइट लेकर आये हैं ,ज़ी पर उनके शो का नाम डीएनए था।ज़ी छोड़ने के बाद से सुधीर चौधरी को लेकर तरह तरह की चर्चाएं थीं। जिन पर उनके आज तक पहुँचने पर विराम लगा। वे आजतक पहुंचे हैं तब से चर्चा थी कि उनके शो का नाम क्या होगा। इस काम में आजतक समूह भी जुटा हुआ था और अंततः उनके शो का नाम ब्लैक एण्ड व्हाइट रखा गया। सुधीर चौधरी का डीएनए शो जी न्यूज़ पर काफ़ी हिट था। खूब टीआरपी भी जबर आती थी। अब देखना है आजतक पर “ब्लैक एंड व्हाइट” शो जनता को कितना पसंद आता है और नंबर गेम में वो कहाँ तक पहुंचता है।
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हंगामे का वीडियो हुआ वायरल,अकेली छात्रा तीन छात्राओं पर भारी छतरपुर से एक हंगामे का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है जिसमे एक अकेली छात्रा तीन छात्राओं के साथ फ़िल्मी स्टाइल में मारपीट करती दिखाई दे रही हैं छात्राओं के बीच मारपीट में चाक़ू भी इस्तमाल किया गया है बताया जा रहा है ये छात्रा महाराजा छत्रसाल बुन्देलखण्ड यूनिवर्सिटी की है जिसे अन्य कॉलेज की तीनो छात्राएं परीक्षा देने से रोकने आई थी छतरपुर में छात्राओं के बीच हुई मारपीट का एक वीडियो सोशल मीडिया में जमकर वायरल हो रहा है जिसमे महाराजा छत्रसाल बुन्देलखण्ड यूनिवर्सिटी की एक छात्रा के साथ तीन छात्राऐं मारपीट करने पहुंची थी लेकिन जिस अकेली छात्रा को ये तीनो छात्राएं मारने पहुंची थी उस छात्रा ने तीनो छात्राओ की फिल्मी स्टाईल मे मारपीट कर दी छात्रों के बीच हुई मारपीट का वीडियो वहां खड़े हंगामा देख रहे कुछ छात्रों ने बना लिया जो अब सोशल मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है हंगामे की सूचना सिविल लाईन.पुलिस को लगते ही वह भी मौके पर पहुँच गयी और इस पूरे मामले की जांच में अनुशासन समिति जुटी है बताया जा रहा है की , छात्राओ के बीच किसी बात पर अनबन होना थी जो मारपीट मे बदल गयी मारपीट में चाक़ू का भी इस्तमाल किया गया है साथ ही यूनिवर्सिटी के कुलसचिव डॉ . जे पी मिश्रा , का कहना है कि यह सभी छात्राये गर्ल्स काँलेज की है जो यूनिवर्सिटी की छात्रा को परीक्षा देने से रोकने आई थी जिसकी लिखित शिकायत उनके पास है इस मामले को पुलिस को भेज दिया गया है।
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प्रवीण कक्कड़ गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परम ब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः संसार में वैसे तो महत्वपूर्ण दिवसों की कमी नहीं है, लेकिन गुरु पूर्णिमा का महत्व उनमें सबसे अलग है। इस दिन हम अपने गुरु का स्मरण करते हैं, उनका सम्मान करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। यह तो हम सब जानते हैं कि गुरु का प्रचलित अर्थ अध्यापक, शिक्षक, टीचर या इसी तरह के दूसरे शब्द हैं। लेकिन गुरु शब्द की व्युत्पत्ति कैसे हुई? गुरु शब्द में दो हिस्से हैं गु और रु। गु का अर्थ है अंधकार और रु का अर्थ है प्रकाश। अर्थात जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए वही गुरु है। इस तरह देखें तो उपनिषद का वाक्य "तमसो मा ज्योतिर्गमय" कहीं ना कहीं गुरु के लिए ही कहा गया है। इसीलिए आज भी हम अपने समाज में देखते हैं तो बहुत से लोग आपको ऐसे मिल जाएंगे जो अध्यापकों के प्रति कृतज्ञ होते हैं और व्यावहारिक अर्थ में उन्हें अपना गुरु भी मानते हैं। लेकिन असल में वे किसी ऐसे आध्यात्मिक व्यक्ति को अपना गुरु मानते हैं जिससे उन्होंने दीक्षा ली हो। भारतीय परंपरा में गुरु दीक्षा का बहुत महत्व है। इस परंपरा का अनुभव करने वाले जानते हैं कि जब गुरु दीक्षा देता है तो संबंधित व्यक्ति के कान में कोई मंत्र देता है। सामान्यतः गुरु अपने शिष्य से कोई ना कोई एक चीज का त्याग करने का आग्रह भी करता है।आजकल तो लोग खाने या पीने की कोई चीज छोड़ देते हैं लेकिन असल में इसका मूल मकसद किसी बुराई को त्यागने से होता है। हमारा गुरु हमसे ऐसे त्याग की अपेक्षा करता है जो संसार के कल्याण में हो। एक बात और ध्यान रखिए कि आजकल गुरु बड़ी जल्दी से गुरु दीक्षा और गुरु मंत्र दे देते हैं, लेकिन पुराने समय में शिष्य लंबे समय तक गुरुकुल में रहते थे। भिक्षा मांग कर खाते थे। अपने गुरु से विद्या सीखते थे और गुरु की सेवा करते थे। जब यह शिक्षा पूर्ण हो जाती थी तो गुरुजी परीक्षा लेते थे। और परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाने के बाद ही उससे गुरु दक्षिणा स्वीकार करते थे। उस जमाने में मासिक फीस भरने का चलन नहीं था। प्राचीन भारत के गुरुकुल में राज पुत्र और गरीब के बेटे दोनों को एक समान व्यवस्था में अध्ययन करना होता था। यह भारतीय परंपरा का पुराना समाजवाद है। खैर आपको भी लगता होगा कि कहां इस गुरु पूर्णिमा पर पुराने जमाने की बातों का सिलसिला शुरू कर दिया गया। कुछ बातें नए जमाने की भी होनी चाहिए। तो नए जमाने की बात करें। आजकल गुरुकुल तो नहीं होते हॉस्टल जरूर होते हैं। बहुत से शिक्षक सिर्फ गुरु दक्षिणा के उद्देश्य से पढ़ाते हैं लेकिन आज भी ऐसे शिक्षक मौजूद हैं जो बच्चे को किताबी शिक्षा देने के साथ ही उसके समग्र व्यक्तित्व का विकास करने पर ध्यान देते हैं। जो बच्चे के मनोभावों को पकड़ते हैं, उसकी प्रतिभा को पहचानते हैं और उसे सही दिशा में गढ़ने की कोशिश करते हैं। अगर आपको मेरी बात पर सहज विश्वास ना हो रहा हो तो जरा याद करिए की पहली कक्षा से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक आपको कितने शिक्षकों ने पढ़ाया है। क्या आपको वह सारे शिक्षक याद हैं? जवाब होगा, नहीं। लेकिन कुछ शिक्षक ऐसे होंगे जो आपको याद हैं। कुछ शिक्षक ऐसे होंगे जिनसे आप वर्षों से नहीं मिले लेकिन इस गुरु पूर्णिमा पर उन्हें फोन करेंगे, या सोशल मीडिया पर उन्हें प्रणाम निवेदन करेंगे। कई शिक्षक ऐसे होंगे, जिनका जिक्र आते ही आपका मन श्रद्धा से झुक जाता होगा। वर्तमान समय में यह जो अंतिम चरण का शिक्षक है असल में वही आपका गुरु है। असल में यह वही गुरु है जिसका वर्णन कबीर दास जी ने इस तरह किया है: गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ गढ़ काढ़े खोट| अंतर हाथ सहाय दे, बाहर मारे चोट|| कबीर दास जी ने इतना ही नहीं कहा। भक्ति आंदोलन से देखें तो उसने कहा गया "बिन गुरु मिले न ज्ञान"। कबीर दास जी के गुरु रामानंद जी थे, सूरदास जी के गुरु वल्लभाचार्य थे, स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस थे और बाकी संतो के गुरु की आप को खोजने पर मिल जाएंगे। असल में गुरु के महत्व पर इतना ज्यादा जोर इसलिए दिया गया है कि व्यक्ति ज्ञान तो कुछ भी प्राप्त कर सकता है लेकिन उसमें भटकाव की बहुत संभावना है। ज्ञान एकदम मौलिक चीज नहीं है बल्कि उसमें आपसे पहले की सभ्यता ने जो जो चीजें अर्जित की हैं वह सब शामिल हैं। गुरु का काम होता है कि वह अपने शिष्य को पूर्व अर्जित संपूर्ण ज्ञान से परिचित करा दे और उसके अंदर एक ऐसी दृष्टि विकसित करे जिससे वह अतीत के ज्ञान का उपयोग भविष्य की राह खोजने में कर सके। यही नहीं वह पूर्व संचित ज्ञान में अपने हिस्से का थोड़ा सा अनुभव भी जोड़ सके। अगर गुरु हमें पुराना ज्ञान नहीं देगा तो हमारा जीवन पुराने ज्ञान को समझने में ही निकल जाएगा और हम कोई नया काम नहीं कर पाएंगे। इस प्रक्रिया में पथभ्रष्ट होने की संभावना बहुत ज्यादा है। इसलिए गुरु और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।आजकल आप लोग अध्यापक की डांट से बहुत जल्दी नाराज हो जाते हैं। कई बार तो छोटे-छोटे बच्चे यह कहते हैं कि टीचर ने उनकी इंसल्ट कर दी। हमारे जमाने में तो माता-पिता अध्यापक से कह देते थे कि मास्टर जी हड्डी हड्डी हमारी और खाल खाल तुम्हारी। यानी अध्यापक महोदय आप बच्चे की इतनी पिटाई कर सकते हैं कि उसकी हड्डी ना टूटे, चमड़ी पर जितनी चाहे चोट पहुंच जाए। जाहिर है बदलती दुनिया में इस तरह के शारीरिक दंड की व्यवस्था अब समाप्त हो चुकी है। लेकिन दंड की व्यवस्था समाप्त होने का अर्थ यह नहीं है कि गुरु का सम्मान करने की व्यवस्था भी समाप्त हो जाए। इस तरह देखें तो गुरु हमारे जीवन में पहले भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं और आगे भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे। गुरु पूर्णिमा की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
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ज़ी न्यूज़ के एंकर रोहित रंजन को नोएडा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। बता दें कि, आज सुबह (5 जुलाई) ही छत्तीसगढ़ की रायपुर पुलिस उन्हें अरेस्ट करने पहुंची थी एंकर ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बयान को भ्रामक बनाकर पेश करने और फर्जी वीडियो क्लिप चला दी थी बयान को तोड़-मरोड़ने पर रोहित पर छत्तीसगढ़-राजस्थान में केस दर्ज हुए हैं।बताया जा रहा है कि रायपुर पुलिस ने रोहित को कोर्ट का गिरफ्तारी वारंट भी दिखाया था। रोहित रंजन के ट्वीट करने के बाद उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद पुलिस उनके फ्लैट पर पहुंची थी। जहां छत्तीसगढ़ पुलिस ने गाजियाबाद पुलिस को गिरफ्तारी वारंट दिखाया था गाजियाबाद में सुबह-सुबह जी न्यूज एंकर रोहित रंजन के घर छत्तीसगढ़ पुलिस पहुंचने पर रोहित रंजन ने ट्वीट करते हुए कहा कि “लोकल पुलिस को जानकारी दिए बिना छत्तीसगढ़ की रायपुर पुलिस मुझे अरेस्ट करने आई है।” जबकि इस ट्वीट के जवाब में रायपुर पुलिस ने कहा कि “सूचित करने का ऐसा कोई नियम नहीं है। हालांकि, इन सबके बीच जी न्यूज के एंकर रोहित रंजन को नोएडा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
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महाराष्ट्र के महामंथन के बाद जो अमृत और जहर निकल कर सामने आये हैं, उसने भारत की आर्थिक राजनीति पर नियंत्रण करने की भाजपा की कशमकश को उजागर कर दिया है। इतना ही नहीं सैकड़ों वर्ष पुरानी हिंदू पदपाद शाही और पेशवाई के द्वंद भी सामने ला दिए हैं । इस महाभारत में अमृत मंथन के जो परिणाम सामने आए हैं वे ना केवल चौंकाने वाले हैं बल्कि राजनैतिक विवशता की पराकाष्ठा को व्यक्त करते हैं। सभी जानते हैं कि देवेन्द्र फडनवीस 5 साल तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं और वे स्वयं ही शिवसेना के विद्रोही नेता एकनाथ शिंदे को उप-मुख्यमंत्री बनाने के ऑफर दे रहे थे। अचानक उन्ही फड़नवीस को विद्रोही एकनाथ शिंदे का उप-मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब वह कैडर आधारित पार्टी नहीं रही है, बल्कि पूर्णरूपेण राजनीतिक पार्टी बन गई है।सत्ता के लिए उसे किसी भी तरह के समझौते करने से कोई गुरेज नहीं है। आवश्यकता पड़ने पर वह आतंकवाद की पोषक बताई जाने वाली पार्टी पीडीपी के साथ भी सत्ता में भागीदार बनने तैयार हैं। अपने ही एक सीनियर पूर्व मुख्यमंत्री को अल्पमत के विद्रोहियों के नीचे उप मुख्यमंत्री बनाने भी तैयार है। यह एक संदेश है कि कार्यकर्ता केवल कार्यकर्ता ही है और सत्ता प्राप्ति के लक्ष्य मार्ग में अगर उसकी गर्दन कटती है तो पार्टी दुश्मन को भी अपना बनाने तैयार है। सभी जानते हैं कि महाराष्ट्र में अन्य पिछड़ा वर्ग बहुत शक्तिशाली है छोटी-छोटी अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियां ना केवल लड़ाकू है बल्कि सैन्य संरचना और साहस को समझती हैं और शिवसेना प्रतीक रूप में उनकी पहचान बन चुकी है ।छत्रपति शिवाजी ने जिन पिछड़ी जातियों को जोड़कर अपनी राज्य व्यवस्था कायम की थी लगभग वही जाति संतुलन शिवसेना के गठन में परिलक्षित होता है ।अगड़ी जातियों द्वारा आर्थिक राजधानी पर कब्जा करने की नीयत से दिल्ली की सहायता से मुंबई पर जो हमला किया है उसे यह पिछड़ी जातियां किस सीमा तक सहन करेंगीं यह समय के गर्भ में है। किंतु यह तो साफ ही है कि भविष्य में अगड़ी और पिछड़ी का संघर्ष आर्थिक राजधानी से ही शुरू होगा । बहुत संभव है कि शिवसेना इसे मराठी मानुस और गुजराती अर्थ सत्ता के संघर्ष में बदल दे। अगर ऐसा हुआ तो भारत के सामने एक नया अर्थ संकट खड़ा होने जा रहा है। शिवसेना सरकार के पतन और एकनाथ की ताजपोशी को अर्थ जगत ने कैसे लिया है इसका प्रमाण है कि दो दिन में ही सेंसेक्स लगभग एक हजार प्वाइंट नीचे आ गया और जून का महीना खुदरा निवेशकों के लिये लुटने का जून हो गया है। विद्रोही एकनाथ शिंदे ने बहुत ही सफाई से इस गठबंधन को हिंदुत्व का पैरोकार बता कर दलबदल की अनैतिकता पर पर्दा डालने की कोशिश की है। यह मुंबई में सभी जानते हैं कि भाजपा के साथ पिछली पंचवर्षीय सरकार में जब शिवसेना शामिल थी तब एकनाथ शिंदे ने ही सार्वजनिक कार्यक्रम में अपना इस्तीफा देकर शिवसेना पर भाजपा गठबंधन से निकलने का दबाव बनाया था। उनका कहना था कि भा ज पा शिवसेना को खाने की चेष्टा कर रही है और उद्धव ठाकरे को भाजपा से गठबंधन तोड़ लेना चाहिए ।आखिर कब तक शिवसैनिक भाजपा की प्रताड़ना और भेदभाव पूर्ण व्यवहार को सहन करें ।आज वही एकनाथ शिंदे उसी भाजपा से कथित हिंदुत्व के नाम पर समझौता कर रहे हैं,बल्कि महाविकास अघाड़ी की नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। देश के लगभग सभी दल जिन्होंने समय-समय पर भाजपा के साथ गठबंधन किया था यह मानते हैं कि भाजपा हमेशा सबसे पहले अपने ही गठबंधन के सहयोगियों को खाने की कोशिश करती है। पूर्व में चाहे बसपा रही हो, चाहे अकाली दल या नीतीश कुमार की पार्टी हो सभी पार्टियां लगभग समाप्त हो रहीं हैं,उनकी लीडरशिप का बड़ा हिस्सा भाजपा में जुड़ चुका है। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और बी जे डी जरूर ऐसी पार्टियां हैं जो हाथ छुड़ाकर ना भागीं होतीं तो वे भी शिवसेना की तरह विभाजन की पीड़ा से गुजर रहीं होतीं।उन्होंने मगरमच्छ के मुंह से बाहर निकल कर जान तो बचा ली है मगर भाजपा अपना अपमान और लक्ष्य नहीं भूली होगी यह भी तय है। तात्कालिक सत्ता के लिये अल्पमत के नीचे बहुमत होते हुए भी भाजपा काम करने तैयार है। याद कीजिए यही समझौता बिहार में हुआ था जहां अल्पमत के नीतीश कुमार तो मुख्यमंत्री हैं और बहुमत की भाजपा का उपमुख्यमंत्री। सत्ता के लिये महाराष्ट्र का ताजा सौदा भले ही भाजपा के लिये आर्थिक राजधानी के खजाने के दरवाजे खोल दे मगर आने वाले समय में उसके कार्यकर्ताओं का खजाना भी लुट सकता है,यह भी संभावना है। महाराष्ट्र का यह महाभारत अभी तक राजनीति के गलियारों में था आगे चलकर इस महाभारत के समाज में उतरने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता और उसी अग्निपथ पर आर्थिक राजधानी का भविष्य निर्भर होगा।फिलहाल तो राजनीति बारूद के ढेर पर बैठकर अगरबत्ती सुलगा रही है। -भूपेन्द्र गुप्ता 'अगम' (लेखक कांग्रेस नेता एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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देश के हर बच्चे का शिक्षा पाना वाकई बहुत जरूरी स्कूलों में नया सत्र शुरू हो गया है। बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए सरकारी मशीनरी गांवों और बस्तियों तक पहुंचकर हर बच्चे को स्कूल में प्रवेशित करने के प्रयास में लगी है। देश के हर बच्चे का शिक्षा पाना वाकई बहुत जरूरी है, क्योंकि शिक्षा वह शक्तिशाली हथियार है, जिसका उपयोग दुनिया को बदलने के लिए किया जा सकता है। इसलिए हम सबकी जिम्मेदारी है कि लक्ष्य की ओर बढ़ने वाले उम्मीदों के हर कदम को हम शिक्षा की राह दिखाएं। जिससे उनका भविष्य सुनहरा हो सके। यह खुशी की बात है कि हमारे देश के करीब 7 करोड़ बच्चे प्री प्रायमरी और प्रायमरी स्कूलों में जाते हैं लेकिन शिक्षा के लिए अभी ओर उचांईयों पर पहुंचना बाकी है। क्योंकि देश में 6 से 14 साल की आयु वर्ग के 60 लाख से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जाते। पहली कक्षा में प्रवेश लेने के बाद 37 प्रतिशत बच्चे प्रारंभिक शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाते और हाईस्कूल तक पहुंचते हुए तो यह संख्या चिंताजनक हो जाती है। स्कूल नहीं जाने वाले और स्कूल के बीच पढ़ाई छोड़ने वाले 75 फीसद बच्चे देश के छह राज्यों से आते हैं, इनमें से मध्यप्रदेश भी एक है। अन्य राज्यों में बिहार, ओड़िसा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं।सरकार ने बच्चों की शिक्षा के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू किया है। इस कानून के तहत शिक्षा निशुल्क भी है और अनिवार्य भी। मतलब 6 से 14 साल के बीच के बच्चे को शिक्षा से वंचित रखना कानूनन अपराध की श्रेणी में माना जाता है। शिक्षा के अधिकार के तहत सरकारी स्कूलों में तो शिक्षा, किताबें, ड्रेस और मध्याह्न भोजन निशुल्क मिलता ही है, साथ ही प्रायवेट स्कूलों पर भी यह नियम लागू होता है और वहां प्रारंभिक कक्षा में 25 प्रतिशत सीटें आरटीई के तहत आरक्षित की जाती हैं। जिससे वंचित वर्ग के बच्चों को निजी स्कूलों में भी निशुल्क शिक्षा का अधिकार मिल सके। शिक्षा के अधिकार के तहत सरकारी मशीनरी निजी स्कूलों में आरक्षित सीटोंर प्रवेश तो करा देती है लेकिन बाद में इन बच्चों की नियमितता की ओर न तो शिक्षा विभाग ध्यान देता है न ही निजी स्कूल का प्रबंधन। ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों से पलायन, निजी स्कूलों से तालमेल नहीं बैठा पाना, परिवार में शिक्षा का माहौल नहीं मिलना और बाल मजदूरी जैसे कई कारणों से 34 प्रतिशत से अधिक बच्चे आरक्षित सीटों पर प्रवेश मिलने के बावजूद आठवीं कक्षा तक निशुल्क शिक्षा हासिल नहीं कर पाते। ऐसे में शिक्षा का अधिकार अनिवार्य न होकर अधूरा रह जाता है। च्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए उन्हें स्कूल भेजना तो जरूरी है लेकिन यह भी जरूरी है कि वहां उन्हें बेहतर माहौल मिल सके। आज कई जगह स्कूलों में व्यवस्थाएं बेहतर नहीं हैं, स्कूलों में सबसे जरूरी होते हैं शिक्षक लेकिन प्रदेश के 21077 स्कूल महज एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं, प्रदेश में शिक्षकों के 87 हजार 630 पद खाली हैं। इस ओर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है, तभी बच्चों को वास्तविक रूप से शिक्षा का अधिकार मिल सकेगा। बाॅक्स हम ऐसे निभाएं अपनी जिम्मेदारीहम गरीब व वंचित वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए चिंतित होते हैं लेकिनहमें समझ नहीं आता कि किस प्रकार हम इनके लिए काम करें। इसके लिए मैं एकछोटा लेकिन महत्वपूर्ण सुझाव देना चाहूंगा। हम सब केवल यह पता करें हमारे घर व आॅफिस में काम करने वाले चैकीदार, माली, कामवाली बाई, रसोईया या अन्य कर्मियों के बच्चे स्कूल जा रहे हैं कि या नहीं। इनके बच्चों को स्कूल में प्रवेश कराने में मदद करें, निजी स्कूलों में आरटीई के तहत आरक्षित सीटों की जानकारी दें, अगर निजी स्कूलों में संभव न हो तो सरकारी स्कूल में निशुल्क प्रवेश कराएं, उन्हें किताबें-काॅपी, स्कूल ड्रेस या स्टेश्नरी क्रय करने के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान करें। आपका यह योगदान आने वाले देश के भविष्य के लिए सुदृढ़ युवाओं का निर्माण करेगा। (प्रवीण कक्कड़)
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स्कूलों में नया सत्र शुरू हो गया है। बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिएसरकारी मशीनरी गांवों और बस्तियों तक पहुंचकर हर बच्चे को स्कूल मेंप्रवेशित करने के प्रयास में लगी है। देश के हर बच्चे का शिक्षा पानावाकई बहुत जरूरी है, क्योंकि शिक्षा वह शक्तिशाली हथियार है, जिसका उपयोगदुनिया को बदलने के लिए किया जा सकता है। इसलिए हम सबकी जिम्मेदारी है किलक्ष्य की ओर बढ़ने वाले उम्मीदों के हर कदम को हम शिक्षा की राह दिखाएं।जिससे उनका भविष्य सुनहरा हो सके।यह खुशी की बात है कि हमारे देश के करीब 7 करोड़ बच्चे प्री प्रायमरी औरप्रायमरी स्कूलों में जाते हैं लेकिन शिक्षा के लिए अभी ओर उचांईयों परपहुंचना बाकी है। क्योंकि देश में 6 से 14 साल की आयु वर्ग के 60 लाख सेअधिक बच्चे स्कूल नहीं जाते। पहली कक्षा में प्रवेश लेने के बाद 37प्रतिशत बच्चे प्रारंभिक शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाते और हाईस्कूल तकपहुंचते हुए तो यह संख्या चिंताजनक हो जाती है। स्कूल नहीं जाने वाले औरस्कूल के बीच पढ़ाई छोड़ने वाले 75 फीसद बच्चे देश के छह राज्यों से आतेहैं, इनमें से मध्यप्रदेश भी एक है। अन्य राज्यों में बिहार, ओड़िसा,राजस्थान, उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं।सरकार ने बच्चों की शिक्षा के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू कियाहै। इस कानून के तहत शिक्षा निशुल्क भी है और अनिवार्य भी। मतलब 6 से 14साल के बीच के बच्चे को शिक्षा से वंचित रखना कानूनन अपराध की श्रेणी मेंमाना जाता है। शिक्षा के अधिकार के तहत सरकारी स्कूलों में तो शिक्षा,किताबें, ड्रेस और मध्याह्न भोजन निशुल्क मिलता ही है, साथ ही प्रायवेटस्कूलों पर भी यह नियम लागू होता है और वहां प्रारंभिक कक्षा में 25प्रतिशत सीटें आरटीई के तहत आरक्षित की जाती हैं। जिससे वंचित वर्ग केबच्चों को निजी स्कूलों में भी निशुल्क शिक्षा का अधिकार मिल सके।शिक्षा के अधिकार के तहत सरकारी मशीनरी निजी स्कूलों में आरक्षित सीटोंपर प्रवेश तो करा देती है लेकिन बाद में इन बच्चों की नियमितता की ओर नतो शिक्षा विभाग ध्यान देता है न ही निजी स्कूल का प्रबंधन। ग्रामीण वआदिवासी क्षेत्रों से पलायन, निजी स्कूलों से तालमेल नहीं बैठा पाना,परिवार में शिक्षा का माहौल नहीं मिलना और बाल मजदूरी जैसे कई कारणों से34 प्रतिशत से अधिक बच्चे आरक्षित सीटों पर प्रवेश मिलने के बावजूद आठवींकक्षा तक निशुल्क शिक्षा हासिल नहीं कर पाते। ऐसे में शिक्षा का अधिकारअनिवार्य न होकर अधूरा रह जाता है।बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए उन्हें स्कूल भेजना तो जरूरी है लेकिनयह भी जरूरी है कि वहां उन्हें बेहतर माहौल मिल सके। आज कई जगह स्कूलोंमें व्यवस्थाएं बेहतर नहीं हैं, स्कूलों में सबसे जरूरी होते हैं शिक्षकलेकिन प्रदेश के 21077 स्कूल महज एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं, प्रदेशमें शिक्षकों के 87 हजार 630 पद खाली हैं। इस ओर भी ध्यान दिया जानाजरूरी है, तभी बच्चों को वास्तविक रूप से शिक्षा का अधिकार मिल सकेगा।बाॅक्सहम ऐसे निभाएं अपनी जिम्मेदारीहम गरीब व वंचित वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए चिंतित होते हैं लेकिनहमें समझ नहीं आता कि किस प्रकार हम इनके लिए काम करें। इसके लिए मैं एकछोटा लेकिन महत्वपूर्ण सुझाव देना चाहूंगा। हम सब केवल यह पता करें हमारेघर व आॅफिस में काम करने वाले चैकीदार, माली, कामवाली बाई, रसोईया याअन्य कर्मियों के बच्चे स्कूल जा रहे हैं कि या नहीं। इनके बच्चों कोस्कूल में प्रवेश कराने में मदद करें, निजी स्कूलों में आरटीई के तहतआरक्षित सीटों की जानकारी दें, अगर निजी स्कूलों में संभव न हो तो सरकारीस्कूल में निशुल्क प्रवेश कराएं, उन्हें किताबें-काॅपी, स्कूल ड्रेस यास्टेश्नरी क्रय करने के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान करें। आपका यह योगदानआने वाले देश के भविष्य के लिए सुदृढ़ युवाओं का निर्माण करेगा। (प्रवीण कक्कड़)
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असफलताओं के सरताज है कमलनाथ भाजपा प्रवक्ता डॉ दुर्गेश केसवानी ने कसा पूर्व सीएम कमलनाथ पर तंज भोपाल। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के कदम से संकट में आई उद्धव सरकार को बचाने की जिम्मेदारी पूर्व सीएम कमलनाथ को जैसे ही मिली। भाजपा ने मामले पर चुटकी लेते हुए कहा कि को अपने विधायकों की नहीं सुन पाए। वे शिवसेना के विधायकों की क्या सुन पाएंगे। वो भी तब जब सभी विधायक बाला साहेब के सच्चे सिपाही हों। मामले में मीडिया से रूबरू होते हुए भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश केसवानी ने कहा कि कमलनाथ अपने विधायकों को तो बचा नहीं पाए। उद्धव सरकार को क्या खाक बचा पाएंगे। इस दौरान केसवानी ने नाथ को सबसे विफल नेताओं में से एक बताया। नाथ के नेतृत्व में हारे सभी चुनाव : डॉ. केसवानी ने नाथ को सबसे विफल नेताओं में से एक बताते हुए कहा कि उनके कार्यकाल में भी कांग्रेस का प्रदर्शन फिसड्डी रहा है। लोकसभा चुनाव, उप चुनाव सहित अन्य चुनावों में पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई। कांग्रेस के लोग हमेशा आरोप लगाते आए हैं कि हमारे पास न नेता है, न नीति है और न ही नियत है। कांग्रेस नेता ने इसे बखूबी चरितार्थ किया है। साथ ही उद्धव सरकार को बचाने जैसे ही कमलनाथ के नाम की घोषणा हुई। ये बात एक बार फिर साबित हो गई है। कमलनाथ जी 28 उपचुनाव, लोकसभा चुनाव ने कोई जादू नहीं दिखा पाए। कांग्रेस के घर घर चले अभियान को घर घर बैठो अभियान बना दिया। मप्र के लोगों को दिए 973 वचनों में से एक भी वचन कमलनाथ पूरा न कर पाए। उनके हिस्से में केवल और केवल असफलताएं हैं। जब वे एक बार महाराष्ट्र जा रहे हैं तो फिर असफल साबित होंगे।
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प्रवीण कक्कड़ बच्चों के हाथ में श्रम नहीं शिक्षा दीजिए बालश्रम यानी कानून द्वारा निर्धारित आयु से कम उम्र में बच्चों को मजदूरी या अन्य श्रमों में झोंक देना। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे शोषण करने वाली प्रथा और कानूनन अपराध माना गया है। इसी अवधारणा को सोचकर विश्व बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुआत साल 2002 में ‘इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन’ द्वारा की गई थी। इस दिवस को मनाने का मक़सद बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा की ज़रूरत को उजागर करना और बाल श्रम व अलग - अलग रूपों में बच्चों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघनों को ख़त्म करना है। हर साल 12 जून को मनाए जाने वाले विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र एक विषय तय करता है। इस वर्ष वर्ल्ड डे अगेंस्ट चाइल्ड लेबर 2022 की 'बाल श्रम को समाप्त करने के लिए सार्वभौमिक सामाजिक संरक्षण' रखी गई है। इस मौके पर अलग - अलग राष्ट्रों के प्रतिनिधि, अधिकारी और बाल मज़दूरी पर लग़ाम लगाने वाले कई अंतराष्ट्रीय संगठन हिस्सा लेते हैं, जहां दुनिया भर में मौजूद बाल मज़दूरी की समस्या पर चर्चा होती है। आज हम सभी को आगे आने की जरूरत है और जरूरत है उस सोच को साकार करने की कि इन नन्हें हाथों में श्रम नहीं शिक्षा दी जाए, क्योंकि शिक्षा ही वह अधिकार है, जो अपने हक की लड़ाई का सबसे मजबूत हथियार है। बाल-श्रम का मतलब यह है कि जिसमें कार्य करने वाला व्यक्ति कानून द्वारा निर्धारित आयु सीमा से छोटा होता है। इस प्रथा को कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने शोषण करने वाली प्रथा माना है। अतीत में बाल श्रम का कई प्रकार से उपयोग किया जाता था, लेकिन सार्वभौमिक स्कूली शिक्षा के साथ औद्योगीकरण, काम करने की स्थिति में परिवर्तन तथा कामगारों के श्रम अधिकार और बच्चों अधिकार की अवधारणाओं के चलते इसमें परिवर्तन हुआ है। देश एवं राष्ट्र के स्वर्णिम भविष्य के निर्माता उस देश के बच्चे होते हैं। अत: राष्ट्र, देश एवं समाज का भी दायित्व होता है कि अपनी धरोहर की अमूल्य निधि को सहेज कर रखा जाये । इसके लिये आवश्यक है कि बच्चों की शिक्षा, लालन-पालन, शारीरिक, मानसिक विकास, समुचित सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाये और यह उत्तरदायित्व राष्ट्र का होता है, समाज का होता है, परन्तु यह एक बहुत बड़ी त्रासदी है कि भारत देश में ही अपितु समूचे विश्व में बालश्रम की समस्या विकट रूप में उभर कर आ रही है । देश में श्रमिक के रूप में कार्य कर रहे 5 वर्ष से 14 वर्ष तक के बालक बाल श्रमिक के अंतर्गत आते हैं ।
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प्रवीण कक्कड़ ग्लोबल वॉर्मिंग का बढ़ना हम सभी के लिए चिंता का विषय है। चिंता होना भी स्वभाविक भी है, क्योंकि जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में पेड़ों का क्षरण हुआ है, प्रकृति का शोषण हुआ है उससे आने वाले समय में यह ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते स्तर के रूप में एक बड़ी चुनौती बन जायेगा। आज सारा विश्व चिंतित है। धरती की सतह का तापमान बढ़ रहा है। 2050 तक यह 2 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ जाएगा और यह ग्लेशियर पिघलने लगेंगे। हमने जिस तेजी से विकास के प्रति दौड़ लगाई उसमें हमने बहुत कुछ पीछे छोड़ दिया। इनमें प्रकृति और पर्यावरण सबसे बड़े मुद्दे थे और अब आज साफ दिखाई दे रहा है कि हमारी नदियां हों, जंगल हों वायु, मिट्टी हो यह सब कहीं न कहीं खतरे में आ गयें हैं। यह सब प्रमाणित कर रहे हैं कि आज हमारे चारों तरफ जो कुछ भी हो रहा है यह सब इन्हीं कारणों से हैं। *आज विश्व पर्यावरण दिवस पर हमें समझना होगा कि पेड़ों की कटाई और पर्यावरण का क्षरण समाज के लिए किस तरह चिंता का विषय है। बेहतर है कि हम अभी से ही पर्यावरण के प्रति सजक रहें क्योंकि अगर पर्यावरण स्वस्थ होगा तभी हम स्वस्थ होंगे। बेहतर पर्यावरण के बगैर स्वस्थ जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। मैं खुद एक जागरुक नागरिक होने के नाते पेड़ों और पर्यावरण के प्रति हमेशा चिंतित रहता हूं। जब कभी देखने में आता है कि इस जगह पर इतने पेड़ काट दिये गये, उस जगह पर इतने पेड़ काटने की प्रक्रिया निरंतर चल रही है। यह सब देख निश्चिततौर पर मन में एक आक्रोश का भाव आता है। आक्रोश होना भी चाहिए कि क्योंकि अगर हम विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई इसी तेजी के साथ करते चले गये तो वो दिन दूर नहीं जब हम सभी के लिए पर्यावरण संरक्षण एक चुनौती के रूप में सामने खड़ा हो जाये। नहीं भूला जा सकता वो संकटकाल कोरोना काल का वो संकट भला कौन भूल सकता है जब पूरे देश में ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा हुआ था। चारो तरफ अफरा-तफरी का माहौल था, एक-एक व्यक्ति के लिए ऑक्सीजन जुटा पाना किसी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन हम सभी को इस पर विचार करना होगा कि प्राकृतिक सोर्सेस से कम होते ऑक्सीजन स्तर का जिम्मेदार कौन है ? कोरोना के संकटकाल में अगर हम ऑक्सीजन के लिए परेशान हुए तो इसका जिम्मेदार कौन है ? यकीन मानिए अगर आप थोड़ा भी इस पर विचार करेंगे तो आपको इसका जबाव स्वतः प्राप्त होगा कि ऑक्सीजन की कमी के जिम्मेदार कहीं न कहीं हम और हमारा समाज है। हम दिन प्रतिदिन ऑक्सीजन के प्राकृतिक रिसोर्सेस का क्षरण करते जा रहे हैं, पेड़ों को नष्ट कर नई बिल्डिंग, इमारतें, मॉल, आदि का निर्माण कर रहे हैं। मैं किसी भी प्रदेश और शहर के विकास का विरोधी नहीं हूं लेकिन विकास के नाम पर पेड़ों का इस तरीके से क्षरण हो, मैं उसके पक्ष में बिल्कुल नहीं हूं। क्योंकि आज यदि हम और आप मिलकर इस तरह से पेड़ों की कटाई कर देंगे तो वो दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ियां ऑक्सीजन के प्राकृतिक रिसोर्सेस के लिए परेशान होंगी। आखिर नये पेड़ लगाने की जिम्मेदारी किसकी मैं किसी सरकार या पार्टी की बात नहीं कर रहा हूं, लेकिन पर्यावरण प्रेमी होने के नाते मेरे मन में केवल एक सवाल उठता है कि स्मार्ट सिटी के नाम पर जो भी पेड़-पौधों को काटा गया। उसके एवज में किस जमीन पर पेड़ लगाए गए। जिस समय पेड़ काटे जा रहे थे उस समय बहुत बड़ी बात हो रही थी कि इन पेड़ों को काटने के बाद नए स्थानों पर हजारों-लाखों पेड़ लगाए जाएंगे। लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ होता दिखाई दे नहीं रहा है। अगर कहीं होता भी है, पेड़ लगाए भी जा रहे हैं तो वे पेड़ देखभाल के अभाव में पूरी तरह से नष्ट हो रहे है। अगर हमें सही मायनें में पेड़ लगाने का कार्य और पर्यावऱण संरक्षण की दिशा में काम करना है तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पेड़ लगाने की जिम्मेदारी किसकी हो। आज विश्व पर्यावरण दिवस पर हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि पर्यावरण संरक्षण के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। अपने आसपास जितने कार्य हम पर्यावरण संरक्षण के लिए कर सकते हैं, वे सभी करें। पर्यावरण संरक्षण के लिए इन सुझावों को आप अपने जीवन में उतार सकते हैं 1. घर की खाली जमीन, बालकनी, छत पर पौधे लगायें 2. ऑर्गैनिक खाद, गोबर खाद या जैविक खाद का उपयोग करें 3. कपड़े के बने झोले-थैले लेकर निकलें, पॉलिथीन-प्लास्टिक न लें 4. लोगों को बर्थडे, त्योहार पर पौधे गिफ्ट करें 5. वायुमंडल को शुद्ध करने के लिए पेड़ लगाएं, भले एक पेड़ लगाएं लेकिन उसे बड़ा करने की जिम्मेदारी लें। 6. प्लास्टिक के खाली डब्बों में सामान रखें या पौधे लगायें 7. कागज के दोनों तरफ प्रिन्ट लें, फालतू प्रिन्ट न करें
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प्रवीण कक्कड़ हम जीवन में संतोष और खुशियां चाहते हैं लेकिन वास्तविक खुशियों की तलाश में आभासी खुशी के बीच खोकर रह जाते हैं। आज मोबाइल, कम्प्यूटर, इंटरनेट और अन्य गेजेट्स से मिलने वाली वर्चुअल खुशी के बीच हम वास्तविक खुशियों को कहीं खो बैठे हैं। आज मोबाइल हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है, इससे ज्ञान, विज्ञान, संचार और लोगों से संपर्क तो आसान हो गया है लेकिन अब मोबाइल की लत हमारे जीवन को प्रभावित करने लगी है। पिछले दो सालों से आनलाइन क्लास के कारण बच्चों में भी मोबाइल की लत विकसित हो गइ है। अब बच्चे अधिकांश समय इसी पर बिताते हैं लेकिन कई शोध में पता चला है कि स्वास्थ्य पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। हमारे स्वास्थ्य पर मोबाइल फ़ोन के लत का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके अधिक उपयोग से व्यक्ति में चिड़चीड़ापन का होना, हमेशा सिर दर्द की समस्या, नेत्र संबंधित समस्या, अनिंद्रा व मोबाइल के हानिकार रेडिएशन से हृदय संबंधित रोग भी हो सकते हैं। मोबाइल की लत ने हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है, अतः हमें इस लत को दूर करने के प्रयास करने चाहिए। आज हम सभी के हाथ में एक टूल है, जिसे मोबाइल कहते हैं। मोबाइल की लत से आशय मोबाइल के न होने पर असहज (discomfort) महसूस करने से है। वर्तमान में हम बहुत अधिक हद तक मोबाइल पर निर्भर है। इसके ऑफ हो जाने पर या गिर जाने पर ऐसा लगता है जैसे सीने पर चोट लगी है। प्रतीत होता है जैसे डिजीटल इंडिया का मार्ग मोबाइल से होकर ही गुज़रता है। मोबाइल का साइज़ उसे यात्रा अनुकूल (Travel Friendly) बनाता है, इस वजह से लोगों को और अधिक मोबाइल की लत (बुरी आदत) होती जा रही है। यह हर लहजे से हमारे आने वाले जीवन के लिए बुरा है। मोबाइल की लत में हम स्वयं को अपने मोबाइल से दूर नहीं रख पाते हैं। कोई विषेश काम न होने पर भी हम मोबाइल को स्क्रोल करते रहते हैं। आज के समय में हमें मोबाइल की इतनी बुरी लत है, इसका अनुमान आप इस वाक्य से लगा सकते हैं- ‘मोबाइल की लत को दूर करने के उपाय हम घंटों लगाकर मोबाइल पर ही ढूँढते हैं’। यह आदत हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करती है। हमारे स्वास्थ्य पर मोबाइल फ़ोन की लत का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। कुछ साल पहले तक मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल कर पाना सबके बस में नहीं था, पर समय बीतने के साथ आज आम तौर पर यह सभी के पास देखा जा सकता हैं। मोबाइल की लत ने हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है, अतः हमें इस लत को दूर करने के प्रयास करने चाहिए। ये कुछ उपाय हैं जिससे बच्चों को मोबाइल से दूर रखा जा सकता है- •आउटडोर गेम्स को बढ़ावा दें •मोबाइल कम दें •बच्चे से बात करें •पासवर्ड लगाएं •प्रकृति से जोड़ें •बच्चे के करीब रहने की कोशिश करें
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प्रवीण कक्कड़ हम जीवन में संतोष और खुशियां चाहते हैं लेकिन वास्तविक खुशियों की तलाश में आभासी खुशी के बीच खोकर रह जाते हैं। आज मोबाइल, कम्प्यूटर, इंटरनेट और अन्य गेजेट्स से मिलने वाली वर्चुअल खुशी के बीच हम वास्तविक खुशियों को कहीं खो बैठे हैं। आज मोबाइल हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है, इससे ज्ञान, विज्ञान, संचार और लोगों से संपर्क तो आसान हो गया है लेकिन अब मोबाइल की लत हमारे जीवन को प्रभावित करने लगी है। पिछले दो सालों से आनलाइन क्लास के कारण बच्चों में भी मोबाइल की लत विकसित हो गइ है। अब बच्चे अधिकांश समय इसी पर बिताते हैं लेकिन कई शोध में पता चला है कि स्वास्थ्य पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। हमारे स्वास्थ्य पर मोबाइल फ़ोन के लत का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके अधिक उपयोग से व्यक्ति में चिड़चीड़ापन का होना, हमेशा सिर दर्द की समस्या, नेत्र संबंधित समस्या, अनिंद्रा व मोबाइल के हानिकार रेडिएशन से हृदय संबंधित रोग भी हो सकते हैं। मोबाइल की लत ने हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है, अतः हमें इस लत को दूर करने के प्रयास करने चाहिए। आज हम सभी के हाथ में एक टूल है, जिसे मोबाइल कहते हैं। मोबाइल की लत से आशय मोबाइल के न होने पर असहज (discomfort) महसूस करने से है। वर्तमान में हम बहुत अधिक हद तक मोबाइल पर निर्भर है। इसके ऑफ हो जाने पर या गिर जाने पर ऐसा लगता है जैसे सीने पर चोट लगी है। प्रतीत होता है जैसे डिजीटल इंडिया का मार्ग मोबाइल से होकर ही गुज़रता है। मोबाइल का साइज़ उसे यात्रा अनुकूल (Travel Friendly) बनाता है, इस वजह से लोगों को और अधिक मोबाइल की लत (बुरी आदत) होती जा रही है। यह हर लहजे से हमारे आने वाले जीवन के लिए बुरा है। मोबाइल की लत में हम स्वयं को अपने मोबाइल से दूर नहीं रख पाते हैं। कोई विषेश काम न होने पर भी हम मोबाइल को स्क्रोल करते रहते हैं। आज के समय में हमें मोबाइल की इतनी बुरी लत है, इसका अनुमान आप इस वाक्य से लगा सकते हैं- ‘मोबाइल की लत को दूर करने के उपाय हम घंटों लगाकर मोबाइल पर ही ढूँढते हैं’। यह आदत हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करती है। हमारे स्वास्थ्य पर मोबाइल फ़ोन की लत का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। कुछ साल पहले तक मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल कर पाना सबके बस में नहीं था, पर समय बीतने के साथ आज आम तौर पर यह सभी के पास देखा जा सकता हैं। मोबाइल की लत ने हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है, अतः हमें इस लत को दूर करने के प्रयास करने चाहिए। ये कुछ उपाय हैं जिससे बच्चों को मोबाइल से दूर रखा जा सकता है- •आउटडोर गेम्स को बढ़ावा दें •मोबाइल कम दें •बच्चे से बात करें •पासवर्ड लगाएं •प्रकृति से जोड़ें •बच्चे के करीब रहने की कोशिश करें
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प्रवीण कक्कड़ हम जीवन में संतोष और खुशियां चाहते हैं लेकिन वास्तविक खुशियों की तलाश में आभासी खुशी के बीच खोकर रह जाते हैं। आज मोबाइल, कम्प्यूटर, इंटरनेट और अन्य गेजेट्स से मिलने वाली वर्चुअल खुशी के बीच हम वास्तविक खुशियों को कहीं खो बैठे हैं। आज मोबाइल हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है, इससे ज्ञान, विज्ञान, संचार और लोगों से संपर्क तो आसान हो गया है लेकिन अब मोबाइल की लत हमारे जीवन को प्रभावित करने लगी है। पिछले दो सालों से आनलाइन क्लास के कारण बच्चों में भी मोबाइल की लत विकसित हो गइ है। अब बच्चे अधिकांश समय इसी पर बिताते हैं लेकिन कई शोध में पता चला है कि स्वास्थ्य पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। हमारे स्वास्थ्य पर मोबाइल फ़ोन के लत का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके अधिक उपयोग से व्यक्ति में चिड़चीड़ापन का होना, हमेशा सिर दर्द की समस्या, नेत्र संबंधित समस्या, अनिंद्रा व मोबाइल के हानिकार रेडिएशन से हृदय संबंधित रोग भी हो सकते हैं। मोबाइल की लत ने हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है, अतः हमें इस लत को दूर करने के प्रयास करने चाहिए। आज हम सभी के हाथ में एक टूल है, जिसे मोबाइल कहते हैं। मोबाइल की लत से आशय मोबाइल के न होने पर असहज (discomfort) महसूस करने से है। वर्तमान में हम बहुत अधिक हद तक मोबाइल पर निर्भर है। इसके ऑफ हो जाने पर या गिर जाने पर ऐसा लगता है जैसे सीने पर चोट लगी है। प्रतीत होता है जैसे डिजीटल इंडिया का मार्ग मोबाइल से होकर ही गुज़रता है। मोबाइल का साइज़ उसे यात्रा अनुकूल (Travel Friendly) बनाता है, इस वजह से लोगों को और अधिक मोबाइल की लत (बुरी आदत) होती जा रही है। यह हर लहजे से हमारे आने वाले जीवन के लिए बुरा है। मोबाइल की लत में हम स्वयं को अपने मोबाइल से दूर नहीं रख पाते हैं। कोई विषेश काम न होने पर भी हम मोबाइल को स्क्रोल करते रहते हैं। आज के समय में हमें मोबाइल की इतनी बुरी लत है, इसका अनुमान आप इस वाक्य से लगा सकते हैं- ‘मोबाइल की लत को दूर करने के उपाय हम घंटों लगाकर मोबाइल पर ही ढूँढते हैं’। यह आदत हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करती है। हमारे स्वास्थ्य पर मोबाइल फ़ोन की लत का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। कुछ साल पहले तक मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल कर पाना सबके बस में नहीं था, पर समय बीतने के साथ आज आम तौर पर यह सभी के पास देखा जा सकता हैं। मोबाइल की लत ने हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है, अतः हमें इस लत को दूर करने के प्रयास करने चाहिए। ये कुछ उपाय हैं जिससे बच्चों को मोबाइल से दूर रखा जा सकता है- •आउटडोर गेम्स को बढ़ावा दें •मोबाइल कम दें •बच्चे से बात करें •पासवर्ड लगाएं •प्रकृति से जोड़ें •बच्चे के करीब रहने की कोशिश करें
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प्रवीण कक्कड़ प्रदेश के गुना में शिकारियों से मुठभेड़ में 3 पुलिसकर्मियों के शहीद होने की घटना दुखद और चिंताजनक है। खाकी वर्दी में पुलिस की नौकरी ऊपर से जितनी शानदार दिखती है, अंदर से उतनी ही चुनौतियां पुलिसकर्मियों के सामने होती हैं। इसका ज्वलंत उदाहरण गुना की घटना है, जहां फर्ज निभाते हुए इन जांबाजों ने अपने प्राणों की आहूति दे दी। यह घटना केवल शिकारी और पुलिसकर्मियों की मुठभेड़ की नहीं है, बल्कि वेकअप कॉल है जो जाहिर कर रहा है कि अपराधियों में पुलिस का भय खत्म होता जा रहा है। आज समय है जब समाज, प्रशासन और राजनेताओं को पुलिसकर्मियों के हितों के बारे में विचार करना चाहिए। समाज की सुरक्षा करने वालों की सुरक्षा को भी जरूरी समझा जाना चाहिए। इस घटना पर नज़र डालें तो शिकारी न सिर्फ खुलेआम शिकार करने का दुस्साहस कर रहे हैं, बल्कि उनके मन में पुलिस का किसी तरह का भय भी नहीं है। सामान्य परिस्थितियों में पुलिस के ललकारने पर अपराधी मुठभेड़ करने के बजाए माल छोड़ कर भाग जाते हैं। लेकिन जब अपराधी इस तरह से मुकाबले की कार्रवाई करते हैं तो उसका मतलब होता है कि उस इलाके में पुलिस और प्रशासन का वकार कमजोर हो गया है। अपराधी अपराध करने को अपना अधिकार समझने लगे हैं और उनके मन में शासन का भय नहीं रह गया है। यह सिर्फ कानून व्यवस्था का मामला नहीं है, बल्कि यह सोचने का विषय भी है कि पुलिस को इस तरह के संसाधनों के अनुसार सुसज्जित किया जाए और अपराधियों को मिलने वाले इस तरह के संरक्षण को समाप्त किया जाए। इस घटना का यह महत्वपूर्ण पहलू है कि क्या शिकारियों और तस्करों से रात में मुठभेड़ करने के लिए पुलिस के पास पर्याप्त सुरक्षा के उपाय हैं या नहीं। जिन जगहों पर पुलिस कर्मियों को सीधे गोलियों के निशाने पर आने का खतरा है। क्या कम से कम उन जगहों पर तैनात पुलिसकर्मियों को बुलेट प्रूफ जैकेट और नाइट विजन कैमरा जैसे उपकरण मुहैया नहीं कराए जाने चाहिए। क्या पुलिस वालों की इस बात की ट्रेनिंग दी गई है कि अगर शिकारी या अपराधी बड़ी संख्या में हो और उनके पास हथियार हो तो उनसे किस तरह से मुकाबला किया जाए। क्योंकि बिना पर्याप्त सुरक्षा इंतजामों के और बिना अत्याधुनिक हथियारों के इस तरह की मुठभेड़ आखिर पुलिस वालों के लिए किस हद तक सुरक्षित है। मध्य प्रदेश जैसे राज्य में इस विषय पर बहुत ही गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि आज भी मध्य प्रदेश देश के सबसे ज्यादा वन क्षेत्रफल वाले राज्यों में शामिल है। प्रदेश में बड़ी संख्या में अभयारण्य और नेशनल पार्क हैं। जिसमें दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीव पाए जाते हैं। सेना में भर्ती होने वाले लोगों के लिए चाहे वे सैनिक हों या उच्चाधिकारी बहुत सारी मानवीय सुविधाएं होती हैं। ऑफिसर्स के लिए अलग मैस होगा। सैनिकों का अपना मैस होता है। उनके बच्चों की पढ़ाई के लिए अलग से सैनिक स्कूल होते हैं। खेल कूद और व्यायाम के लिए शानदार पार्क और होते हैं। जवान खुद को चुस्त-दुरुस्त रख सकें इसके लिए बड़े पैमाने पर शारीरिक व्यायाम की सुविधा होती है। सेना के अपने अस्पताल होते हैं। जहां विशेषज्ञ डॉक्टर तैनात रहते हैं। इसके अलावा खेलों में सेना के जवानों का विशेष प्रतिनिधित्व हो सके इसके लिए पर्याप्त इंतजाम किए जाते हैं। निश्चित तौर पर सेना की जिम्मेदारी बड़ी है और उसे सरहदों पर देश की रक्षा करनी होती है लेकिन पुलिस की जिम्मेदारी भी कम नहीं है, उसे तो रात दिन बिना अवकाश के समाज की कानून व्यवस्था को बना कर चलना होता है। राज्य सरकारों को पुलिस के लिए नए आवासों के निर्माण के बारे में ध्यान से सोचना चाहिए। पुलिस कर्मियों के बच्चे अच्छे स्कूलों में शिक्षा ले सकें, इसलिए शहर के किसी भी कन्वेंट या सैनिक स्कूल के मुकाबले के स्कूल पुलिस कर्मियों के बच्चों के लिए खोले जाने चाहिए। मौजूदा दौर में सबसे जरूरी है कि पुलिस के पक्ष में सोचा जाए। कभी पुलिसकर्मियों को राजनीतिक हस्तक्षेप से तो जांबाजी से एनकाउंटर करने के बाद भी आयोगों की जांच में परेशान होना पड़ता है। एक पूर्व पुलिस अधिकारी होने के नाते मैं पुलिस सेवा के दौरान सामने आने वाली चुनौतियों को बखूबी समझ सकता हूं। आज पुलिस की सुरक्षा और संसाधनों के प्रति बढ़ाने हमें विचार करने की जरूरत है। इसके साथ ही परिदृश्य पर गौर करें तो राज्य पुलिस बलों में 24% रिक्तियां हैं,लगभग 5.5 लाख रिक्तियां। यानी जहां 100 पुलिस वाले हमारे पास होने चाहिए वहां 76 पुलिस वाले ही उपलब्ध हैं। इसी तरह हर एक लाख व्यक्ति पर पुलिसकर्मियों की स्वीकृत संख्या 181 थी, उनकी वास्तविक संख्या 137 थी। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र के मानक के अनुसार एक लाख व्यक्तियों पर 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए। इस तरह गौर करें तो राष्ट्रीय मानक से तो हम पीछे हैं ही अंतर्राष्ट्रीय मानक से तो बहुत पीछे हैं। गुना में हुई घटनाओं जैसे वेकअप कॉल में सभी का जागना जरूरी है, भले ही वे किसी भी पार्टी से जुड़े राजनेता हों, आला पुलिस अधिकारी हों या हमारा सिस्टम। ऐसी घटनाओं से सबक लेते हुए हमें पुलिस के लिए संसाधनों को बढाना होगा। सभी को मिलकर देशभक्ति और जनसेवा का जज्बा लिए पुलिसकर्मियों के लिए बेहतर प्रयास करने चाहिए। पुलिस पर हमला करने वालों को सख्त सजा मिले, शहीद हुए पुलिसकर्मियों के परिवार को मुआवजा मिले। इसके साथ ही ऐसी घटनाएं दोबारा न हों, इसके लिए भी पुख्ता सिस्टम तैयार हो। यही इन शहीद पुलिस जवानों को सच्ची श्रध्दांजलि होगी।
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-प्रो.संजय द्विवेदी भारत में ऐसा क्या है जो उसे खास बनाता है? वह कौन सी बात है जिसने सदियों से उसे दुनिया की नजरों में आदर का पात्र बनाया और मूल्यों को सहेजकर रखने के लिए उसे सराहा। निश्चय ही हमारी परिवार व्यवस्था वह मूल तत्व है, जिसने भारत को भारत बनाया। हमारे सारे नायक परिवार की इसी शक्ति को पहचानते हैं। रिश्तों में हमारे प्राण बसते हैं, उनसे ही हम पूर्ण होते हैं। आज कोरोना की महामारी ने जब हमारे सामने गहरे संकट खड़े किए हैं तो हमें सामाजिक और मनोवैज्ञानिक संबल हमारे परिवार ही दे रहे हैं। व्यक्ति कितना भी बड़ा हो जाए उसका गांव, घर, गली, मोहल्ला, रिश्ते-नाते और दोस्त उसकी स्मृतियां का स्थायी संसार बनाते हैं। कहा जाता है जिस समाज स्मृति जितनी सघन होती है, जितनी लंबी होती है, वह उतना ही श्रेष्ठ समाज होता है। परिवार नाम की संस्था दुनिया के हर समाज में मौजूद हैं। किंतु परिवार जब मूल्यों की स्थापना, बीजारोपण का केंद्र बनता है, तो वह संस्कारशाला हो जाता है। खास हो जाता है। अपने मूल्यों, परंपराओं को निभाकर समूचे समाज को साझेदार मानकर ही भारतीय परिवारों ने अपनी विरासत बनाई है। पारिवारिक मूल्यों को आदर देकर ही श्री राम इस देश के सबसे लाड़ले पुत्र बन जाते हैं। उन्हें यह आदर शायद इसलिए मिल पाया, क्योंकि उन्होंने हर रिश्ते को मान दिया, धैर्य से संबंध निभाए। वे रावण की तरह प्रकांड विद्वान और विविध कलाओं के ज्ञाता होने का दावा नहीं करते, किंतु मूल्याधारित जीवन के नाते वे सबके पूज्य बन जाते हैं, एक परंपरा बनाते हैं। अगर हम अपनी परिवार परंपरा को निभा पाते तो आज के भारत में वृद्धाश्रम न बन रहे होते। पहले बच्चे अनाथ होते थे आज के दौर में माता-पिता भी अनाथ होने लगे हैं। यह बिखरती भारतीयता है, बिखरता मूल्यबोध है। जिसने हमारी आंखों से प्रेम, संवेदना, रिश्तों की महक कम कर भौतिकतावादी मूल्यों को आगे किया है। न बढ़ाएं फासले, रहिए कनेक्टः आज के भारत की चुनौतियां बहुत अलग हैं। अब भारत के संयुक्त परिवार आर्थिक, सामाजिक कारणों से एकल परिवारों में बदल रहे हैं। एकल परिवार अपने आप में कई संकट लेकर आते हैं। जैसा कि हम देख रहे हैं कि इन दिनों कई दंपती कोरोना से ग्रस्त हैं, तो उनके बच्चे एकांत भोगने के साथ गहरी असुरक्षा के शिकार हैं। इनमें माता या पिता, या दोनों की मृत्यु होने पर अलग तरह के सामाजिक संकट खड़े हो रहे हैं। संयुक्त परिवार हमें इस तरह के संकटों से सुरक्षा देता था और ऐसे संकटों को आसानी से झेल जाता था। बावजूद इसके समय के चक्र को पीछे नहीं घुमाया जा सकता। ऐसे में यह जरूरी है कि हम अपने परिजनों से निरंतर संपर्क में रहें। उनसे आभासी माध्यमों, फोन आदि से संवाद करते रहें, क्योंकि सही मायने में परिवार ही हमारा सुरक्षा कवच है। आमतौर सोशल मीडिया के आने के बाद हम और ‘अनसोशल’ हो गए हैं। संवाद के बजाए कुछ ट्वीट करके ही बधाई दे देते हैं। होना यह चाहिए कि हम फोन उठाएं और कानोंकान बात करें। उससे जो खुशी और स्पंदन होगा, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। परिजन और मित्र इससे बहुत प्रसन्न अनुभव करेगें और सारा दिन आपको भी सकारात्मकता का अनुभव होगा। संपर्क बनाए रखना और एक-दूसरे के काम आना हमें अतिरिक्त उर्जा से भर देता है। संचार के आधुनिक साधनों ने संपर्क, संवाद बहुत आसान कर दिया है। हम पूरे परिवार की आनलाईन मीटिंग कर सकते हैं, जिसमें दुनिया के किसी भी हिस्से से परिजन हिस्सा ले सकते हैं। दिल में चाह हो तो राहें निकल ही आती हैं। प्राथमिकताए तय करें तो व्यस्तता के बहाने भी कम होते नजर आते हैं। जरूरी है एकजुटता और सकारात्मकताः सबसे जरूरी है कि हम सकारात्मक रहें और एकजुट रहें। एक-दूसरे के बारे में भ्रम पैदा न होने दें। गलतफहमियां पैदा होने से पहले उनका आमने-सामने बैठकर या फोन पर ही निदान कर लें। क्योंकि दूरियां धीरे-धीरे बढ़ती हैं और एक दिन सब खत्म हो जाता है। खून के रिश्तों का इस तरह बिखरना खतरनाक है क्योंकि रिश्ते टूटने के बाद जुड़ते जरूर हैं, लेकिन उनमें गांठ पड़ जाती है। सामान्य दिनों में तो सारा कुछ ठीक लगता है। आप जीवन की दौड़ में आगे बढ़ते जाते हैं, आर्थिक समृद्धि हासिल करते जाते हैं। लेकिन अपने पीछे छूटते जाते हैं। किसी दिन आप अस्पताल में होते हैं, तो आसपास देखते हैं कि कोई अपना आपकी चिंता करने वाला नहीं है। यह छोटा सा उदाहरण बताता है कि हम कितने कमजोर और अकेले हैं। देखा जाए तो यह एकांत हमने खुद रचा है और इसके जिम्मेदार हम ही हैं। संयुक्त परिवारों की परिपाटी लौटाई नहीं जा सकती, किंतु रिश्ते बचाए और बनाए रखने से हमें पीछे नहीं हटना चाहिए। इसके साथ ही सकारात्मक सोच बहुत जरूरी है। जरा-जरा सी बातों पर धीरज खोना ठीक नहीं है। हमें क्षमा करना और भूल जाना आना ही चाहिए। तुरंत प्रतिक्रिया कई बार घातक होती है। इसलिए आवश्यक है कि हम धीरज रखें। देश का सबसे बड़ा सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ऐसे ही पारिवारिक मूल्यों की जागृति के कुटुंब प्रबोधन के कार्यक्रम चलाता है। पूर्व आईएएस अधिकारी विवेक अत्रे भी लोगों को पारिवारिक मूल्यों से जुड़े रहने प्रेरित कर रहे हैं। वे साफ कहते हैं ‘भारत में परिवार ही समाज को संभालता है।’ जुड़ने के खोजिए बहानेः हमें संवाद और एकजुटता के अवसर बनाते रहने चाहिए। बात से बात निकलती है और रिश्तों में जमी बर्फ पिधल जाती है। परिवार के मायने सिर्फ परिवार ही नहीं हैं, रिश्तेदार ही नहीं हैं। वे सब हैं जो हमारी जिंदगी में शामिल हैं। उसमें हमें सुबह अखबार पहुंचाने वाले हाकर से लेकर, दूध लाकर हमें देने वाले, हमारे कपड़े प्रेस करने वाले, हमारे घरों और सोसायटी की सुरक्षा, सफाई करने वाले और हमारी जिंदगी में मदद देने वाला हर व्यक्ति शामिल है। अपने सुख-दुख में इस महापरिवार को शामिल करना जरूरी है। इससे हमारा भावनात्मक आधार मजूबूत होता है और हम कभी भी अपने आपको अकेला महसूस नहीं करते। कोरोना के संकट ने हमें सोचने के लिए आधार दिया है, एक मौका दिया है। हम सबने खुद के जीवन और परिवार में न सही, किंतु पूरे समाज में मृत्यु को निकट से देखा है। आदमी की लाचारगी और बेबसी के ऐसे दिन शायद भी कभी देखे गए हों। इससे सबक लेकर हमें न सिर्फ सकारात्मकता के साथ जीना सीखना है बल्कि लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाना है। बड़ों का आदर और अपने से छोटों का सम्मान करते हुए सबको भावनात्मक रिश्तों की डोर में बांधना है। एक दूसरे को प्रोत्साहित करना, घर के कामों में हाथ बांटना, गुस्सा कम करना जरूरी आदतें हैं, जो डालनी होंगीं। एक बेहतर दुनिया रिश्तों में ताजगी, गर्माहट,दिनायतदारी और भावनात्मक संस्पर्श से ही बनती है। क्या हम और आप इसके लिए तैयार हैं?
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(प्रवीण कक्कड़) एक जमाने में कहा जाता था कि भारतीय समाज में 3 सी सबसे ज्यादा प्रचलित हैं। सिनेमा, क्रिकेट और क्राइम। लेकिन आज के सार्वजनिक संवाद को देखें तो इन तीनों से ज्यादा लोकप्रिय अगर कोई चीज है तो वह है पत्रकारिता। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल अपने इन तीनों स्वरूपों में पत्रकारिता 24 घंटे सूचनाओं की बाढ़ समाज तक पहुंचाती है और लोगों की राय बनाने में खासी मदद करती है। जैसे-जैसे समाज जटिल होता जाता है, वैसे वैसे लोगों के बीच सीधा संवाद कम होता जाता है और वे सार्वजनिक या उपयोगी सूचनाओं के लिए मीडिया पर निर्भर होते जाते हैं। उनके पास जो सूचनाएं ज्यादा संख्या में पहुंचती हैं, लोगों को लगता है कि वही घटनाएं देश और समाज में बड़ी संख्या में हो रही हैं। जो सूचनाएं मीडिया से छूट जाती हैं उन पर समाज का ध्यान भी कम जाता है। आजकल महत्व इस बात का नहीं है कि घटना कितनी महत्वपूर्ण है, महत्व इस बात का हो गया है कि उस घटना को मीडिया ने महत्वपूर्ण समझा या नहीं। जब मीडिया पर इतना ज्यादा एतबार है तो मीडिया की जिम्मेदारी भी पहले से कहीं अधिक है। आप सब को अलग से यह बताने की जरूरत नहीं है कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के अलावा मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। मजे की बात यह है कि बाकी तीनों स्तंभ की चर्चा हमारे संविधान में अलग से की गई है और उनके लिए लंबे चौड़े प्रोटोकॉल तय हैं। लेकिन मीडिया को अलग से कोई अधिकार नहीं दिए गए हैं। संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी का जो अधिकार प्रत्येक नागरिक को हासिल है, उतना ही अधिकार पत्रकार को भी हासिल है। बाकी तीन स्तंभ जहां संविधान और कानून से शक्ति प्राप्त करते हैं, वही मीडिया की शक्ति का स्रोत सत्य, मानवता और सामाजिक स्वीकार्यता है। अगर मीडिया के पास नैतिक बल ना हो तो उसकी बात का कोई मोल नहीं है। इसी नैतिक बल से हीन मीडिया के लिए येलो जर्नलिज्म या पीत पत्रकारिता शब्द रखा गया है। और जो पत्रकारिता नैतिक बल पर खड़ी है, वह तमाम विरोध सहकर भी सत्य को उजागर करती है। संयोग से हमारे पास नैतिक बल वाले पत्रकारों की कोई कमी नहीं है। मीडिया को लेकर आजकल बहुत तरह की बातें कही जाती हैं। इनमें से सारी बातें अच्छी हो जरूरी नहीं है। पत्रकारिता बहुत से मोर्चों पर दृढ़ता से खड़ी है, तो कई मोर्चों पर चूक भी जाती है। आप सबको पता ही है की बर्नार्ड शॉ जैसे महान लेखक मूल रूप से पत्रकार ही थे। और बट्रेंड रसैल जैसे महान दार्शनिक ने कहा है कि जब बात निष्पक्षता की आती है तो असल में सार्वजनिक जीवन में उसका मतलब होता है कमजोर की तरफ थोड़ा सा झुके रहना। यानी कमजोर के साथ खड़ा होना पत्रकारिता की निष्पक्षता का एक पैमाना ही है। पत्रकारिता की चुनौतियों को लेकर हम आज जो बातें सोचते हैं, उन पर कम से कम दो शताब्दियों से विचार हो रहा है। भारत में तो हिंदी के पहला अखबार उदंत मार्तंड के उदय को भी एक सदी बीत चुकी है। टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदू जैसे अखबार एक सदी की उम्र पार कर चुके हैं। दुनिया के जाने माने लेखक जॉर्ज ऑरवेल ने आधी सदी पहले एक किताब लिखी थी एनिमल फार्म। किताब तो सोवियत संघ में उस जमाने में स्टालिन की तानाशाही के बारे में थी लेकिन उसकी भूमिका में उन्होंने पत्रकारिता की चुनौतियां और उस पर पड़ने वाले दबाव का विस्तार से जिक्र किया है। जॉर्ज ऑरवेल ने लिखा की पत्रकारिता के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह नहीं है कि कोई तानाशाह उसे बंदूक की नोक पर दबा लेगा या फिर कोई धन्ना सेठ पैसे के बल पर पत्रकारिता को खरीद लेगा लेकिन इनसे बढ़कर जो चुनौती है वह है भेड़ चाल। यानी एक अखबार या एक मीडिया चैनल जो बात दिखा रहा है सभी उसी को दिखा रहे हैं। अगर किसी सरकार ने एक विषय को जानबूझकर मीडिया के सामने उछाल दिया और सारे मीडिया संस्थान उसी को कवर करते चले जा रहे हैं, यह सोचे बिना कि वास्तव में उसका सामाजिक उपयोग कितना है या कितना नहीं। बड़े संकोच के साथ कहना पड़ता है कि कई बार भारतीय मीडिया भी इस नागपाश में फंस जाता है। सारे अखबारों की हैडलाइन और सारे टीवी चैनल पर एक से प्राइमटाइम दिखाई देने लगते हैं। भारत विविधता का देश है, अलग-अलग आयु वर्ग के लोग यहां रहते हैं। उनकी महत्वाकांक्षा अलग है और उनके भविष्य के सपने भी जुदा हैं। ऐसे में पत्रकार की जिम्मेदारी है कि हमारी इन महत्वाकांक्षाओं को उचित स्थान अपनी पत्रकारिता में दें। वे संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों को मजबूत करें। कमजोर का पक्ष ले। देश की आबादी का 85% हिस्सा मजदूर और किसान से मिलकर बनता है। ऐसे में इस 85% आबादी को भी पत्रकारिता में पूरा स्थान मिले। मैंने तो बचपन से यही सुना है कि पुरस्कार मिलने से पत्रकारों का सम्मान नहीं होता, उनके लिए तो लीगल नोटिस और सत्ता की ओर से मिलने वाली धमकियां असली सम्मान होती हैं। राजनीतिक दल तो लोकतंत्र का अस्थाई विपक्ष होते हैं, क्योंकि चुनाव के बाद जीत हासिल करके विपक्षी दल सत्ताधारी दल बन जाता है और जो कल तक कुर्सी पर बैठा था, वह आज विपक्ष में होता है। लेकिन पत्रकारिता तो स्थाई विपक्ष होती है। जो सत्ता की नाकामियों और उसके काम में छूट गई गलतियों को सार्वजनिक करती है ताकि भूल को सुधारा जा सके और संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों के मुताबिक राष्ट्र का निर्माण किया जा सके। मध्यप्रदेश इस मामले में हमेशा से ही बहुत आगे रहा है प्रभाष जोशी और राजेंद्र माथुर जैसे प्रसिद्ध संपादक मध्य प्रदेश की पवित्र भूमि की ही देन हैं। आज भी राष्ट्रीय पत्रकारिता के क्षेत्र पर मध्य प्रदेश के पत्रकार अपनी निष्पक्षता की छाप छोड़ रहे हैं। आशा करता हूं 21वीं सदी के तीसरे दशक में भारतीय पत्रकारिता उन बुनियादी मूल्यों का और दृढ़ता से पालन करेगी जिन्हें हम शास्वत मानवीय मूल्य कहते हैं।
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मप्र के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के जन्मदिन पर विशेष -डॉ. दुर्गेश केसवानी संसार में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जिनसे जितनी बार भी मिलें, हर बार की मुलाकात में एक नया अनुभव होता है। मप्र के गृहमंत्री माननीय डॉ. नरोत्तम मिश्रा भी ऐसी ही शख्सियत हैं, जिनसे हर मिलने पर मन आनंदित हो जाता है। वैसे तो गृहमंत्री जी से मेरी मुलाकात लगभग डेढ़ दशक पुरानी है, लेकिन इतने सालों में जितनी बार भी उनसे मिला। हर बार कुछ नया सीखने को अवसर मिला। आज जन्मदिन के अवसर पर आपको जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हुए आपके शतायु जीवन की कामना करता हूं। डॉ. नरोत्तम मिश्रा एक अच्छे राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक अच्छे पुत्र, एक अच्छे भाई, अच्छे पिता और अच्छे दादा भी हैं। उन्हें ईश्वर ने जीवन में जो भी जवाबदारी दी है। उसका उन्होंने पूरी ईमानदारी और लगन के साथ पालन किया है। बच्चों के साथ बच्चा बन जाना और बेजुबान जानवरों के साथ भी करुणा बनाए रखना। ऐसे गुण बिरले लोगों में ही मिलते हैं। इसके अलावा वे एक अच्छे मित्र भी हैं। जीवन के हर सुख-दुख में साथ देने के साथ ही सही बात को सराहते हैं और गलती होने पर सुधार करने की हिदायत भी देते हैं। सामाजिक और राजनैतिक जीवन में आने के बाद अपनी दिनचर्या में मर्यादा, गरिमा, दायित्वों और कर्तव्यों का पालन थोड़ा कठिन हो जाता है। आम लोगों का आप के प्रति भरोसा और प्रेम हमेशा बना रहे। इसके लिए अपने विचारों, भाषा और व्यवहार का खास ध्यान रखना होता है। डॉ. मिश्रा राजनीतिक जीवन के इन सभी बिंदुओं से परे आज स्वयं एक ऐसा उदाहरण बन चुके हैं, जो राजनीति में आए नौजवानों के लिए एक आदर्श के रूप में स्थापित हो चुकेहैं। उनके वर्तमान कार्यकाल की कुछ खास उपलब्धियों को आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। अपराध मुक्त होने की दिशा में बढ़ रहा प्रदेश : मप्र के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के कार्यकाल में जहां अपराधियों पर लगाम लगी है। वहीं सनातन धर्म पर उंगली उठाने वालों पर भी वे सख्त तेवर दिखाते नजर आए हैं। गरीब असहाय लोगों की सहायता हो या फिर संकट में फंसे प्रदेशवासी अपने अदम्य साहस और प्रेम के बल पर डॉ. मिश्रा ने हमेशा ही हम सबका दिल जीता है। उनके कार्यकाल में प्रदेश अपराध मुक्त होने की दिशा में काम कर रहा है। वहीं प्रदेश में आकर सनातन धर्म पर टिप्पणी करने से पहले वामपंथी 100 बार सोच रहे हैं। अपराधियों पर कस दी लगाम : प्रदेश की सियासत में संकटमोचक माने जाने वाले डॉ. नरोत्तम मिश्रा वैसे तो हर वर्ग और हर समुदाय के चहेते हैं, लेकिन गृहमंत्री बनते ही उनके सख्त तेवरों को देख आम जनसमुदाय उनकी कार्यशैली का दीवाना हो गया है। पिछले साल 2021 में गृहमंत्री के मार्गदर्शन में आम लोगों की जमीनों पर कब्जा करने वाले 1705 भू माफियाओं को गिरफ्तार किया गया। इस दौरान अवैध शराब के भी 139556 मामले दर्ज किए गए। खास बात यह रही कि इन भूमाफियाओं और दुर्दान्त अपराधियों की अवैध संपत्तियों को बुलडोजर से ध्वस्त करने की कार्रवाई की गई। चिटफंड कंपनियों द्वारा 55774 निवेशकों से ठगे गए 179.50 करोड़ रुपए वापिस दिलवाए गए। इस अवधि में पुलिस विभाग द्वारा 15114 गुम बच्चों को भी वापिस ढूंढ लिया गया। इस कार्यकाल में 42 नए महिला थाने, 52 मानव दुर्व्यापार निरोधी ईकाई और 700 ऊर्जा महिला डेस्क की स्थापना भी की गई। महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए 4500 गुम बालिकाओं को सकुशल उनके घर पहुंचाया गया। अनुसूचित जाति और जनजाति के भाई-बहनों को न्याय मिले। इसके लिए इन जातियों से होने वाले हॉटस्पॉट क्षेत्रों को चिन्हित कर अपराधों में कमी लाने के लिए निरंतर काम किया जा रहा है। वहीं अनुसूचित जनजाति के भाई बहनों को भड़काने वाले संगठनों पर कड़ी नजर रख उन पर लगातार कार्रवाई की जा रही है। बारीक नजरों से न बच सका कोई : डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने अपने कार्यकाल में वामपंथियों को एहसास करा दिया है कि सनातन धर्म पर डिजीटल हमले करना आसान नहीं है। यह उन्हीं के ही प्रयास हैं कि डाबर ने माफी मांगते हुए अपना विज्ञापन वापस लिया। विवाह जैसे पवित्र बंधन के नाम पर अश्लीलता परोसने वाले सब्यसाची ने अपना मंगलसूत्र का विज्ञापन वापिस लिया। इसके अलावा श्वेता तिवारी के विवादित बयान हों या अमेजन कंपनी द्वारा खुलेआम जहर की डिलीवरी करना जोमैटो द्वारा सड़क सुरक्षा का खुलेआम उल्लंघन या हिंदू धर्म पर हमला करने वाले कव्वाल, डॉ. मिश्रा की बारीक नजरों से कोई भी नही बच सका। आतंक मुक्त मप्र बनाने की पहल : गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के नेतृत्व में मप्र पुलिस लगातार अपराधियों पर सख्त कार्रवाई कर रही है। साथ ही मप्र को नक्सलवाद मुक्त और आतंकी संगठनों के मंसूबे नाकाम करने में भी लगातार काम कर रही है। मप्र पुलिस ने वर्ष 2020 से अब तक लगभग 82 लाख रुपए के ईनामी नक्सलवादियों को या तो सलाखों के पीछे पहुंचा दिया या फिर उन्हें मुठभेड़ में ढेर कर दिया। इस पूरी कार्रवाई में अपनी जान-जोखिम में डाल अपने कर्तव्य का निर्वहन करने वाले 100 पुलिस पुलिसकर्मियों को क्रम से पूर्व ही पदोन्नत कर दिया गया। वहीं रतलाम में आतंकी संगठ अलसूफा के ईनामी आंतकी इमरान को भी गिरफ्तार किया गया और संगठन को जड़ से उखाड़ फेंका गया। वहीं मार्च माह में बांग्लादेशी आतंकी संगठन जमात उल मुजाहिद्दीन के 4 आतंकियों को गिरफ्तार किया गया। शक्तिशाली हुआ पुलिस प्रशासन : शहरों को अपराध मुक्त रखने और पुलिस के अधिक पॉवर देने वाली कमिश्नर प्रणाली भोपाल और इंदौर में डॉ. मिश्रा के ही कार्यकाल में लागू हुई। इससे अपराधियों पर नियंत्रण करने में पुलिस को अधिक पावर मिली। सायबर अपराधों पर लगाम लगाने और लोगों को जागरूक करने के लिए 1 लाख से अधिक लोगों को सायबर सुरक्षा पर आधारित सेमिनारों में बुलाकर जागरूक किया गया। इसी के साथ रेडियो, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और पोस्टर के माध्यम से लोगों में जागरूकता लाने कार्यक्रम आयोजित किए गए। सभी पुलिस अधीक्षक कार्यालयों में सायबर अपराधों के अनुसंधान व सहायता हेतु एडवांस टेक्निकल सेल की स्थापना की गई। ई एफआईआर की सुविधा शुरू की गई। इसके अलावा आम जनमानस को लाभ पहुंचाने हेतु डॉ. मिश्रा ने न जाने कितने कार्य किए हैं। यदि उन सबका उल्लेख करने बैठेंगे तो बात बहुत लंबी खिंच जाएगी। इसलिए किसी शायर की इन चंद पंक्तियों को डॉ. मिश्रा को समर्पित करते हुए अपनी बात को विराम देता हूं३ प्रेम है मुझे इस माटी से, देश के गद्दारों से लड़ने की तैयारी है लोगों की दौलत है पैसा, मेरी दौलत तो केवल ईमानदारी है सब लड़ते हैं सत्ता के लिए और मकसद है इनका चुनाव जीतना मैं तो हर अबला का बेटा हूं, दिलों को जीतने की मेरी तैयारी है -लेखक भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के प्रदेश प्रवक्ता है।
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मप्र के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के जन्मदिन पर विशेष -डॉ. दुर्गेश केसवानी संसार में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जिनसे जितनी बार भी मिलें, हर बार की मुलाकात में एक नया अनुभव होता है। मप्र के गृहमंत्री माननीय डॉ. नरोत्तम मिश्रा भी ऐसी ही शख्सियत हैं, जिनसे हर मिलने पर मन आनंदित हो जाता है। वैसे तो गृहमंत्री जी से मेरी मुलाकात लगभग डेढ़ दशक पुरानी है, लेकिन इतने सालों में जितनी बार भी उनसे मिला। हर बार कुछ नया सीखने को अवसर मिला। आज जन्मदिन के अवसर पर आपको जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हुए आपके शतायु जीवन की कामना करता हूं। डॉ. नरोत्तम मिश्रा एक अच्छे राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक अच्छे पुत्र, एक अच्छे भाई, अच्छे पिता और अच्छे दादा भी हैं। उन्हें ईश्वर ने जीवन में जो भी जवाबदारी दी है। उसका उन्होंने पूरी ईमानदारी और लगन के साथ पालन किया है। बच्चों के साथ बच्चा बन जाना और बेजुबान जानवरों के साथ भी करुणा बनाए रखना। ऐसे गुण बिरले लोगों में ही मिलते हैं। इसके अलावा वे एक अच्छे मित्र भी हैं। जीवन के हर सुख-दुख में साथ देने के साथ ही सही बात को सराहते हैं और गलती होने पर सुधार करने की हिदायत भी देते हैं। सामाजिक और राजनैतिक जीवन में आने के बाद अपनी दिनचर्या में मर्यादा, गरिमा, दायित्वों और कर्तव्यों का पालन थोड़ा कठिन हो जाता है। आम लोगों का आप के प्रति भरोसा और प्रेम हमेशा बना रहे। इसके लिए अपने विचारों, भाषा और व्यवहार का खास ध्यान रखना होता है। डॉ. मिश्रा राजनीतिक जीवन के इन सभी बिंदुओं से परे आज स्वयं एक ऐसा उदाहरण बन चुके हैं, जो राजनीति में आए नौजवानों के लिए एक आदर्श के रूप में स्थापित हो चुकेहैं। उनके वर्तमान कार्यकाल की कुछ खास उपलब्धियों को आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। अपराध मुक्त होने की दिशा में बढ़ रहा प्रदेश : मप्र के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के कार्यकाल में जहां अपराधियों पर लगाम लगी है। वहीं सनातन धर्म पर उंगली उठाने वालों पर भी वे सख्त तेवर दिखाते नजर आए हैं। गरीब असहाय लोगों की सहायता हो या फिर संकट में फंसे प्रदेशवासी अपने अदम्य साहस और प्रेम के बल पर डॉ. मिश्रा ने हमेशा ही हम सबका दिल जीता है। उनके कार्यकाल में प्रदेश अपराध मुक्त होने की दिशा में काम कर रहा है। वहीं प्रदेश में आकर सनातन धर्म पर टिप्पणी करने से पहले वामपंथी 100 बार सोच रहे हैं। अपराधियों पर कस दी लगाम : प्रदेश की सियासत में संकटमोचक माने जाने वाले डॉ. नरोत्तम मिश्रा वैसे तो हर वर्ग और हर समुदाय के चहेते हैं, लेकिन गृहमंत्री बनते ही उनके सख्त तेवरों को देख आम जनसमुदाय उनकी कार्यशैली का दीवाना हो गया है। पिछले साल 2021 में गृहमंत्री के मार्गदर्शन में आम लोगों की जमीनों पर कब्जा करने वाले 1705 भू माफियाओं को गिरफ्तार किया गया। इस दौरान अवैध शराब के भी 139556 मामले दर्ज किए गए। खास बात यह रही कि इन भूमाफियाओं और दुर्दान्त अपराधियों की अवैध संपत्तियों को बुलडोजर से ध्वस्त करने की कार्रवाई की गई। चिटफंड कंपनियों द्वारा 55774 निवेशकों से ठगे गए 179.50 करोड़ रुपए वापिस दिलवाए गए। इस अवधि में पुलिस विभाग द्वारा 15114 गुम बच्चों को भी वापिस ढूंढ लिया गया। इस कार्यकाल में 42 नए महिला थाने, 52 मानव दुर्व्यापार निरोधी ईकाई और 700 ऊर्जा महिला डेस्क की स्थापना भी की गई। महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए 4500 गुम बालिकाओं को सकुशल उनके घर पहुंचाया गया। अनुसूचित जाति और जनजाति के भाई-बहनों को न्याय मिले। इसके लिए इन जातियों से होने वाले हॉटस्पॉट क्षेत्रों को चिन्हित कर अपराधों में कमी लाने के लिए निरंतर काम किया जा रहा है। वहीं अनुसूचित जनजाति के भाई बहनों को भड़काने वाले संगठनों पर कड़ी नजर रख उन पर लगातार कार्रवाई की जा रही है। बारीक नजरों से न बच सका कोई : डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने अपने कार्यकाल में वामपंथियों को एहसास करा दिया है कि सनातन धर्म पर डिजीटल हमले करना आसान नहीं है। यह उन्हीं के ही प्रयास हैं कि डाबर ने माफी मांगते हुए अपना विज्ञापन वापस लिया। विवाह जैसे पवित्र बंधन के नाम पर अश्लीलता परोसने वाले सब्यसाची ने अपना मंगलसूत्र का विज्ञापन वापिस लिया। इसके अलावा श्वेता तिवारी के विवादित बयान हों या अमेजन कंपनी द्वारा खुलेआम जहर की डिलीवरी करना जोमैटो द्वारा सड़क सुरक्षा का खुलेआम उल्लंघन या हिंदू धर्म पर हमला करने वाले कव्वाल, डॉ. मिश्रा की बारीक नजरों से कोई भी नही बच सका। आतंक मुक्त मप्र बनाने की पहल : गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के नेतृत्व में मप्र पुलिस लगातार अपराधियों पर सख्त कार्रवाई कर रही है। साथ ही मप्र को नक्सलवाद मुक्त और आतंकी संगठनों के मंसूबे नाकाम करने में भी लगातार काम कर रही है। मप्र पुलिस ने वर्ष 2020 से अब तक लगभग 82 लाख रुपए के ईनामी नक्सलवादियों को या तो सलाखों के पीछे पहुंचा दिया या फिर उन्हें मुठभेड़ में ढेर कर दिया। इस पूरी कार्रवाई में अपनी जान-जोखिम में डाल अपने कर्तव्य का निर्वहन करने वाले 100 पुलिस पुलिसकर्मियों को क्रम से पूर्व ही पदोन्नत कर दिया गया। वहीं रतलाम में आतंकी संगठ अलसूफा के ईनामी आंतकी इमरान को भी गिरफ्तार किया गया और संगठन को जड़ से उखाड़ फेंका गया। वहीं मार्च माह में बांग्लादेशी आतंकी संगठन जमात उल मुजाहिद्दीन के 4 आतंकियों को गिरफ्तार किया गया। शक्तिशाली हुआ पुलिस प्रशासन : शहरों को अपराध मुक्त रखने और पुलिस के अधिक पॉवर देने वाली कमिश्नर प्रणाली भोपाल और इंदौर में डॉ. मिश्रा के ही कार्यकाल में लागू हुई। इससे अपराधियों पर नियंत्रण करने में पुलिस को अधिक पावर मिली। सायबर अपराधों पर लगाम लगाने और लोगों को जागरूक करने के लिए 1 लाख से अधिक लोगों को सायबर सुरक्षा पर आधारित सेमिनारों में बुलाकर जागरूक किया गया। इसी के साथ रेडियो, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और पोस्टर के माध्यम से लोगों में जागरूकता लाने कार्यक्रम आयोजित किए गए। सभी पुलिस अधीक्षक कार्यालयों में सायबर अपराधों के अनुसंधान व सहायता हेतु एडवांस टेक्निकल सेल की स्थापना की गई। ई एफआईआर की सुविधा शुरू की गई। इसके अलावा आम जनमानस को लाभ पहुंचाने हेतु डॉ. मिश्रा ने न जाने कितने कार्य किए हैं। यदि उन सबका उल्लेख करने बैठेंगे तो बात बहुत लंबी खिंच जाएगी। इसलिए किसी शायर की इन चंद पंक्तियों को डॉ. मिश्रा को समर्पित करते हुए अपनी बात को विराम देता हूं३ प्रेम है मुझे इस माटी से, देश के गद्दारों से लड़ने की तैयारी है लोगों की दौलत है पैसा, मेरी दौलत तो केवल ईमानदारी है सब लड़ते हैं सत्ता के लिए और मकसद है इनका चुनाव जीतना मैं तो हर अबला का बेटा हूं, दिलों को जीतने की मेरी तैयारी है -लेखक भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के प्रदेश प्रवक्ता है।
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चौधरी मदन मोहन 'समर' कल रिलीव हो गया। परसों नई जगह ज्वाइन भी कर लूंगा। जिंदगी के दिन हमेशा की तरह करवट बदलकर अपने नए पथ नई जगह पर नए तौर-तरीकों से उदय-अस्त होने लगेंगे। लगभग सवा पांच साल तक मध्यप्रदेश पुलिस अकादमी भोपाल में शिक्षक की भूमिका से पुनः मैदान में वर्दी के उत्तरदायित्व निभाने चला हूँ। 30 वर्ष विभिन्न थानों का प्रभारी रहा, वह भूमिका भी बदल चुकी है। अब थानों का दिक़दर्शक रहूंगा, अपने अनुभव साझा करूंगा साथियों के साथ एसडीओपी के रूप में। (इस पद को कई प्रदेशों में सीओ भी कहते हैं। महानगरों में यह एसीपी कहलाता है।) एसडीओपी सुहागपुर जिला नर्मदापुरम (होशंगाबाद) अकादमी में बिताए दिन मेरे लिए विशेष स्मरणीय दिन रहेंगे। यहां पर मेरे वरिष्ठ अधिकारी हों अथवा मेरे समकक्ष साथी या मेरे कनिष्ठ सहयोगी, एक परिवार की तरह हमलोग रहे। सबका स्नेह मिला। सच बताऊँ यह सिर्फ कहने अथवा औपचारिक नहीं मेरे हृदय से कहा सच है, जो सम्मान मुझे यहां पर मिला है वह पूरा आकाश भर है। रत्तीभर भी कम नहीं।यहां हमारे आवासीय परिसर में रहने वाले परिवार मेरे अपने परिवार थे।तीज-त्यौहार पर उत्साह और उल्लास हमने मनाया। वर्ष में दो बार आने वाले नवरात्रि पर्व पर हमने ग्यारह बार मेरे घर महोत्सव का आनन्द लिया। हर परिवार मुझे मेरा कुल-गोत्र लगा। बहुत कुछ पाया यहां मैंने। जीवन भर के लिए स्नेहिल और मधुर रिश्ते, उनकी मिठास और अपनापन। किसका नाम लूँ विशेष रूप से। सभी तो अपने से भी बढ़ कर लगे। अकादमी में प्रशिक्षण हेतु मैं क्या योगदान दे पाया यह तो पता नहीं लेकिन 256 युवा उप पुलिस अधीक्षक, 1000 से अधिक उपनिरीक्षक, साथ ही विभिन्न कोर्स में आने वाले अनेक साथी मेरी स्मृतियों में रहेंगे। पूरे प्रदेश में मैं मौजूद हूँ मेरे इन साथियों के संग। मैं अपनी उस हर त्रुटि अथवा धृष्टता के लिए क्षमा चाहूंगा जो मुझसे किसी के प्रति हुई हो। मेरा AIG-7 का पता, जो अब बदल जायेगा का आंगन, इसमें मेरे साथ मुस्कुराने वाले पेड़-पौधे, गाने वाली गौरैया, मैना, बुलबुल, तोते, और तमाम पक्षी मुझे गुदगुदाते रहेंगे।आम अमरूद चीकू पपीते कटहल जामुन नींबू हमेशा फलते फूलते रहेंगे झूमकर। विदा भौरी, विदा अकादमी। लेकिन अलविदा नहीं। आता रहूंगा किसी न किसी रूप में।
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(प्रवीण कक्कड़) राज्य सरकार की जितनी सेवाएं होती हैं, उनमें पुलिस का एक खास महत्व है। हम चाहें या ना चाहें पुलिस हमारे सामाजिक जीवन के हर हिस्से से जुड़ी है। स्कूल की परीक्षाएं कराने से लेकर राजनैतिक समारोह तक सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस के पास ही है। परिवार का छोटा सा झगड़ा हो या बदमाशों का गैंगवार, मामला निपटाने की जिम्मेदारी अंततः पुलिस पर आती है। समाज में जिस तरह से छोटी-छोटी बातों को लेकर लोग ज्यादा उग्र होने लगे हैं, उसे देखते हुए पुलिस की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है। विशेषज्ञ इन समस्याओं और उनके प्रसार से लंबे समय से अवगत हैं। इसीलिए पुलिस सुधार की बात एक अरसे से चल रही है। पुलिस सुधार का मतलब क्या है? क्या पुलिस वालों के काम के तरीके को बदल देना? लेकिन इसमें कितना बदलाव आ सकता है, क्योंकि उनका मूल काम तो अपराध नियंत्रण का रहेगा ही। इसका मतलब है कि पुलिस सुधार का अर्थ कहीं व्यापक है। सबसे पहले तो यह देखना होगा कि पुलिस के ऊपर कहीं काम का ज्यादा बोझ तो नहीं है। राष्ट्रीय परिदृश्य पर गौर करें तो राज्य पुलिस बलों में 24% रिक्तियां हैं (लगभग 5.5 लाख रिक्तियां)। यानी जहां 100 पुलिस वाले हमारे पास होने चाहिए वहां 76 पुलिस वाले ही उपलब्ध हैं। हर एक लाख व्यक्ति पर पुलिसकर्मियों की स्वीकृत संख्या 181 है, उनकी वास्तविक संख्या 137 है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र के मानक के अनुसार एक लाख व्यक्तियों पर 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए। इस तरह गौर करें तो राष्ट्रीय मानक से तो हम पीछे हैं ही अंतर्राष्ट्रीय मानक से तो बहुत पीछे हैं। राज्य पुलिस बलों में 86% कॉन्स्टेबल हैं। अपने सेवा काल में कॉन्स्टेबलों की आम तौर पर एक बार पदोन्नति होती है और सामान्यतः वे हेड कॉन्स्टेबल के पद पर ही रिटायर होते हैं। इससे वे अच्छा प्रदर्शन करने को प्रोत्साहित नहीं हो पाते। एक तथ्य और महत्वपूर्ण है। राज्य सरकारों को पुलिस बल पर राज्य के बजट का 3% हिस्सा खर्च करना चाहिए जो कि अभी नहीं हो रहा है। राज्य पुलिस पर कानून एवं व्यवस्था तथा अपराधों की जांच करने की जिम्मेदारी होती है, जबकि केंद्रीय बल खुफिया और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े विषयों (जैसे उग्रवाद) में उनकी सहायता करते हैं। जब दोनों के काम लगभग समान है तो बजट भी समान होना चाहिए। यह तो वे पक्ष हुए जो यह बताते हैं कि पुलिस वालों को प्रशासन की और बेहतर कृपा दृष्टि की जरूरत है। अच्छी तरह से काम करने के लिए उन्हें बेहतर संसाधन चाहिए। दूसरा पक्ष भी बड़ा महत्वपूर्ण है। सेना में भर्ती होने वाले लोगों के लिए चाहे वे सैनिक हों या उच्चाधिकारी बहुत सारी मानवीय सुविधाएं होती हैं। ऑफिसर्स मैस होगा, सैनिक स्कूल, अस्पताल खेल कूद और व्यायाम के लिए पार्क और बड़े पैमाने पर शारीरिक व्यायाम की सुविधा होती है। इसके अलावा खेलों में सेना के जवानों का विशेष प्रतिनिधित्व हो सके इसके लिए पर्याप्त इंतजाम किए जाते हैं। मेजर ध्यानचंद जैसे महान खिलाड़ी इसी व्यवस्था से हमें प्राप्त हुए हैं। निश्चित तौर पर सेना की जिम्मेदारी बड़ी है और उसे सरहदों पर देश की रक्षा करनी होती है। लेकिन पुलिस की जिम्मेदारी भी कम नहीं है, उसे तो रात दिन बिना अवकाश के समाज की कानून व्यवस्था को बना कर चलना होता है। उसे अपने कानूनी दायित्व के साथ इस विवेक का परिचय भी देना होता है कि समाज में किसी तरह की अशांति ना फैले और बहुत संभव हो तो दो पक्षों का झगड़ा आपस की बातचीत से समाप्त हो जाए। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पुलिस के काम पर लगातार राजनीतिक नेतृत्व का एक खास किस्म का दबाव तो बना ही रहता है। ऐसे में पुलिस वालों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त उपाय करना पुलिस सुधार की पहली सीढ़ी होनी चाहिए। दूसरी बात यह होनी चाहिए कि भले ही कोई कांस्टेबल स्तर से भर्ती हुआ हो, लेकिन अगर वह पर्याप्त शैक्षणिक योग्यता हासिल कर लेता है तो इस तरह की परीक्षाएं उसे उपलब्ध हों जिससे वह शीर्ष पद तक पहुंच सके। अभी जिस तरह की पुलिस लाइन बनी हुई है, उनमें बहुत से सुधार की आवश्यकता है। उनकी क्षमता भी इतनी नहीं है कि एक शहर में पदस्थ सारे पुलिस वाले वहां रह सकें। ऐसे में पुलिस के लिए नए आवासों के निर्माण के बारे में ध्यान से सोचना चाहिए। पुलिस कर्मियों के बच्चे अच्छे स्कूलों में शिक्षा ले सकें, इसलिए सैनिक स्कूल के मुकाबले के स्कूल खोले जाने चाहिए। यहां न सिर्फ कक्षा की पढ़ाई होनी चाहिए बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी होनी चाहिए। राज्य पुलिस में अब पहले की तुलना में महिलाओं का योगदान बढ़ा है। पुलिस सेवा का पूर्व अधिकारी होने के नाते मैं अपने अनुभव से जानता हूं की महिलाओं के लिए पुलिस की नौकरी करना पुरुषों की अपेक्षा कठिन है। दिन भर धूप में खड़े रहना, धरना प्रदर्शन आदि को नियंत्रित करना और पुरुष पुलिस कर्मियों के साथ अपराध के स्थानों पर जाकर अपराध को नियंत्रण करना। भारत के पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को किस तरह की तकलीफों का सामना करना पड़ता है, इसे हम स्वीकार करें या ना करें, लेकिन समझ तो सकते ही हैं। खासकर ट्रैफिक पुलिस में बड़े पैमाने पर चौराहों पर ड्यूटी करती हुई महिला पुलिसकर्मी आपको मिल जाएंगी। किसी का चालान काटना, उसे ट्रैफिक नियमों का पालन करने की बात समझाना, इन मामलों में उन्हें वाहन चालकों के साथ कई तरह की बहस में पड़ना पड़ता है। इन सब परिस्थितियों से निपटने के लिए पुलिस के पुरुष और महिला कर्मचारियों की विशेष ट्रेनिंग होनी चाहिए। यह ट्रेनिंग इस तरह की ना हो कि नौकरी में भर्ती समय हो गई और बाकी समय वह पुराने ढर्रे पर काम करते रहें। कम से कम 6 महीने या 1 साल में हर बार नई परिस्थितियों के अनुसार विशेष ट्रेनिंग होनी चाहिए। पुलिस सुधार के यह वे पहलू हैं, जिनमें पुलिस को सक्षम बनाने के रास्ते बताए गए हैं। पुलिस के कामकाज में ऐसे बदलाव किस तरह किए जाएं कि जनता में पुलिस के प्रति समरसता का भाव उत्पन्न हो उसकी चर्चा हम इस लेख के दूसरे भाग में करेंगे।
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कौशल मूंदड़ा जी हां, आपने अबतक सुन ही लिया होगा, यूपी के शाहजहांपुर की बजरिया सब्जी मंडी से 60 किलो नींबू चोरी हो गए। चोरों ने लहसुन-प्याज और कांटा-बांट भी साथ लिया, लेकिन सर्वाधिक मात्रा में नींबू को टारगेट किया। भले ही, व्यापारी ने इसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई हो, लेकिन घटना हुई और इसकी चर्चा और भी जोरों पर हुई। लेकिन, यह घटना अखबारों के अंदर के पन्नों में सिंगल कॉलम में सिमट गई, जबकि इसे तो फ्रंट पेज पर हाईलाइट किए जाने की जरूरत थी। जब नींबू के भाव 300 पार होने की खबर हाईलाइट की गई तो 60 किलो नींबू चोरी की खबर को भी उचित स्थान मिलना तो बनता है। खैर, इस बार नींबू ने प्याज की याद दिला दी। गर्मी में जितना प्याज जरूरी है, उतना ही नींबू भी। लाखों हैं जिन्हें रात को नींबू सोड़ा पिये बिना चैन नहीं मिलता और चिलचिलाती दुपहरी में लू से बचने के लिए पुदीने वाली नींबू शिकंजी का गिलास ठंडक देता है। ऐसे में जब नींबू महंगा हो गया है तो जाहिर है सोडे से लेकर शिकंजी के गिलास तक सभी महंगे होने ही हैं। तो जनाब, कल ही हमने एक सोड़ा-शिकंजी वाले से पूछ ही लिया कि दाम बढ़ा दिये भैया, उसका भी जवाब था, भाईसाब, नींबू को भी तो देख लो, क्या करते। यहां तक तो बात समझ में आई लेकिन अगले सवाल का जवाब आपको हैरान जरूर करेगा... जब हमने पूछा कि नींबू सस्ता होते ही दाम फिर से पुराने करेंगे क्या, तो खी-खी करते हुए उन जनाब ने कहा कि ऐसा कभी हुआ है कि चढ़ा हुआ भाव कम हुआ हो। अब समझ में आया कि इन्होंने भी आपदा में अवसर खोज ही लिया। आखिर दो साल कोरोना में सोडा-शिकंजी का जोर नहीं चला, इस बार नींबू रूपी ‘आपदा’ ने इन्हें सहारा प्रदान कर दिया। इधर, अभी नींबू की खोज खत्म नहीं हुई है। पाव-भाजी खाने बैठे तो यह सोच रखा था कि नींबू नहीं आएगा, लेकिन गलत..... नींबू प्रकट हुआ.... पर जैसे ही हमने उसे निचोड़ने का प्रयास किया तो समझ में आ गया कि रस कम-छिलका जाड़ा (मोटा) है....। मित्रों के चेहरों पर मुस्कान आ गई। फिर एक मित्र से पूछा, भई वो होटल में जो हाथ धोने के लिए गुनगुने पानी वाला बाउल आता है, उसमें नींबू बचा या नहीं.... उसने कहा कि कहीं है तो कहीं नहीं। इसी बात पर सभी को वह दिन याद आ गए जब प्याज की बजाय सलाद में मूली ने जगह बना ली थी। ना.... ना.... अभी तो नींबू कथा जारी है। हर मंगलवार और शनिवार को ‘नजर’ से बचाने के लिए प्रतिष्ठानों के मुख्य द्वार के केन्द्र पर लटकने वाली नींबू-मिर्च की लड़ी पर भी ‘नजर’ लग गई है। नींबू की जुदाई में मिर्ची को भी इंतजार करना पड़ रहा है। दरअसल, इस लड़ी का ‘भाव’ नियमित बंधी के कारण फिक्स रहता है। कुछ मित्र दुकानदारों ने बताया कि इस वस्तु के फिक्स रेट के कारण लाने वाला किसी न किसी बहाने ‘अनुपस्थिति’ दर्ज करा रहा है। जो सीधे ही बाजार से खरीदते हैं, वे जरूर पांच-दस रुपये ज्यादा देकर खरीद रहे हैं। हम यहीं नहीं रुके, नींबू की खोज फिर जारी रखी गई। हमने मित्रों और परिवारजनों में जिनके पास फार्म हाउस हैं, उनसे पूछा कि भई नींबू उतर रहे हों तो थोड़े बुक कर देना... तो वहां से भी जवाब आया कि यदि नींबू उतर ही रहे होते तो फोन करने की जरूरत ही कहां पड़ती, बाजार में ही खूब उपलब्ध होते। यानी इस बार प्रकृति ने नींबू की खटाई कम भेजी है। अलबत्ता, आम की मिठास का दौर शुरू हो चुका है। नींबू की चर्चा यहीं खत्म नहीं हो रही है जी, इन दिनों जितने स्नेह भोज हो रहे हैं उनमें भी नींबू चर्चा में सर्वोपरि है। फिलहाल चर्चा खाने के स्वाद और आइटमों की संख्या की नहीं हो रही, सबसे पहले नींबू देखा जा रहा है कि सलाद वाली जगह पर नींबू की उपस्थिति है या नहीं। भई, अभी तो जिस जगह सलाद में प्रचुर नींबू उपलब्ध है, वह ‘शाही’ भोज से कम नहीं। खैर, जानकारों का कहना है कि नींबू को नीचे आने में कुछ दिन और लग सकते हैं, क्योंकि अभी तो सीजन चल रहा है। सूर्यदेव ने भी इस बार नींबू की जरूरत चैत्र में ही पैदा कर दी, बाकी तो वैशाख-जेठ की गर्मी में ही नींबू का उठाव ज्यादा होता रहा है। पर ऐसा नहीं हो जाए कि नींबू के इस बार के भाव को देखकर अगली फसल में नींबू ‘सिरमौर’ हो जाए और ‘भाव’ ही न रहे। फिलहाल डिमांड और सप्लाई की खाई थोड़ी चौड़ी है, इसलिए नींबू की खोज जारी रहेगी। तब तक यदि आपके घर पर पुराना नींबू का अचार है तो उसकी खटास का चटखारा लगाइये। (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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इंदौर। महात्मा गांधी के प्रति टिप्पणी को लेकर कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे कालीचरण का एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें वे हंसिया लहरा रहे हैं। उनका यह वीडियो वायरल होने के बाद कांग्रेस ने उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। वहीं, प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इसे कांग्रेस की दोहरी मानसिकता बताया है। कालीचरण मंगलवार को इंदौर आए थे। उस दौरान उनके भक्तों ने एयरपोर्ट से उनका जुलूस निकाला था। वीडियो उसी दौरान का है, जिसमें कालीचरण किसी भक्त द्वारा भेंट किए गए हंसिये को लहराते नजर आ रहे हैं। इस पर कांग्रेस ने कड़ी आपत्ति जताई है। कांग्रेस ने कहा कि इंदौर में कालीचरण का खुलेआम तलवार और हंसिया लहराकर कानून को चुनौती देना यह सिद्ध करता है कि गोडसेवादी विचारधारा ने भाजपा पर कब्जा कर लिया है। वीडियो सामने आने के बाद भी पुलिस कमिश्नर खामोश हैं। आर्म्स एक्ट के तहत इस मामले में तीन साल की अधिकतम सजा हो सकती है। मप्र कांग्रेस कमेटी ने छत्तीसगढ़ के सीएम को वीडियो भेजकर कालीचरण की जमानत खारिज कराने का निवेदन किया है। इसके साथ ही मप्र के सीएम और डीजीपी से भी कालीचरण पर फिर से एफआईआर दर्ज कर रासुका के तहत कार्रवाई करने की मांग की है। वहीं, कांग्रेस के इस रवैये को लेकर गुरुवार को इंदौर पहुंचे गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा की टिप्पणी भी सामने आई है। उन्होंने मीडिया से चर्चा के दौरान तंज कसा कि गोरखपुर में जो आतंकवादी पकड़ा है उसके बारे में कांग्रेस का कोई ट्वीट सुना क्या? दिग्विजयिसिंह का, उनके दोस्त जाकिर नाइकजी का? जाकिर नाइक का जो पट्ठा गोरखपुर मंदिर में मिला, उसके बारे में कांग्रेसी नहीं बोलेंगे। लेकिन कालीचरण के मामले में जरूर बोलेंगे।
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(प्रवीण कक्कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्त्रोक्त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य ने उज्जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्य को शक शकारि विक्रमादित्य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक तीज त्योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्ण जन्माष्टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्प और खगोल विज्ञान के रहस्य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्से होते हैं शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्पी हो तो इसे आप ज्योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्न जीवन का नया प्रस्थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं
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दैनिक हिंदुस्तान, गोरखपुर के संपादकीय विभाग में तैनात कर्मचारी पिछले 2 वर्षों से साप्ताहिक अवकाश के लिए तरस रहे हैं. आपको बता दें कि पिछले दिनों संपादकीय में तानाशाही के कारण लगभग दर्जनभर कर्मचारियों ने नौकरी छोड़ दी जिससे संपादकीय विभाग कर्मचारियों की कमी की समस्या से जूझने लगा। इस दौरान करोना लग गया और इसके कारण भर्तियां भी नहीं हो रही थी जिससे साप्ताहिक अवकाश बंद कर दिए गए। लेकिन वर्तमान में नियुक्तियां हो जाने के बाद भी कर्मचारियों को साप्ताहिक अवकाश नहीं मिल रहा है। इससे कर्मचारी अंदर ही अंदर आक्रोशित हैं लेकिन अभी तक सप्ताहिक अवकाश को लेकर कोई आदेश जारी नहीं किया गया। कर्मचारी भी कई बार साप्ताहिक अवकाश के लिए कह चुके लेकिन छुट्टी जारी न करने से वह तनाव में जी रहे हैं।
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विश्व दीपक- क्या आप जानते हैं? हमारे पड़ोसी देश, श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं. अखबार छापने के लिए कागज का स्टॉक लगभग खतम हो चुका है। इधर भारत में केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है. ये पहले लागू नहीं था. श्रीलंका में बहुत सारे लोगों को कई दिनों से दो जून का खाना नहीं मिल पा रहा। लोगों के पास रसोई गैस नहीं है. पेट्रोल भराने के लिए पैसे नहीं. जिनके पास पैसे हैं वो भरा नहीं पा रहे. कई लोग पेट्रोल भराने के लिए लाइन में खड़े-खड़े ही मर गए। उद्योग धंधे बंद होने लगे हैं. चारों तरफ छंटनी चल रही है. लोगों की नौकरियां जा रही हैं. स्कूल, कॉलेज बंद होने लगे हैं। अस्पतालों ने इलाज करना बंद कर दिया है. बहुत जगहों पर ओपीडी बंद की जा रही है। कोलंबो में लाखों की जनता इकट्ठा है. राजपक्षे सरकार के खिलाफ जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहे हैं. पूरा देश कर्ज में डूबा है. लाखों लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं. भारत आना चाह रहे हैं. मेरा मानना है कि भारत को खुशी-खुशी श्रीलंका के लोगों अपनाना चाहिए. उन्हें व्यवस्थित तरीके से कई राज्यों में भेजकर उनके रहने, खाने-पीने का इंतजाम करना चाहिए. भारत इतना कर सकता है. जब प्रधानमंत्री के लिए 8 हज़ार करोड़ का प्लेन खरीदा जा सकता है तो कम से कम 80 हज़ार श्रीलंकाई नगारिकों की जान भी बचाई जा सकती है. कोई बड़ी बात नहीं. भारत को बड़ा भाई बनकर यह फर्ज निभाना चाहिए. सवाल यह है कि श्रीलंका की यह हालत क्यों हुई? जाहिर है कई कारण हैं लेकिन दो अहम हैं जिनके बारे में जानना चाहिए – बहुत आसान शर्तों पर चीन का दिया हुआ कर्जा. कई सालों से श्रीलंका, चीन के डेट ट्रैप में हैं. चीनी साम्राज्यवाद की जकड़न से श्रीलंका टूटा. कई अफ्रीकी देश श्रीलंका की राह पर हैं. दूसरा कारण है रूसी तानाशाह पुतिन का यूक्रेन पर युद्ध थोपना. पुतिन द्वारा शुरू किए गए युद्ध की वजह से श्रीलंकाई संकट की प्रक्रिया तेज़ हो गई. जो अफरा-तफरी छह महीने में मचनी थी वह एक महीने में ही सतह पर आ गई. पुतिन सिर्फ रूस-यूक्रेन का ही नहीं संपूर्ण मनुष्यता का अपराधी है. याद रखिए अगर कच्चे तेल की कीमत 170-200 डॉलर प्रति बैरल तक गई तो समझिए कि हमारा आपका भी मिटना तय है. पड़ोसी देश श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं क्यूंकि उनके पास कागज़ ही नहीं है. वहां परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं. प्रश्न पत्र छपने तक के लिए कागज़ नहीं. महंगा कागज़ खरीदने के लिए पैसे नहीं. इसके पीछे एक बड़ा कारण पुतिन द्वारा, यूक्रेन पर थोपा गया युद्ध है. ये सब आप जान चुके हैं. अब सुनिए भारत का हाल. केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है.पहले लागू नहीं था जीएसटी का न्यूनतम क्राइटेरिया भी 5% से बढ़ाकर 8% किया जा सकता है भारत में भी कागज़ की किल्लत है. हालांकि स्थिति संकट जैसी नहीं लेकिन पहले से काफी महंगा हो चुका है कागज़ भारत का 40 फीसदी कागज़ कनाडा से आता है जो देश में बनता है, उसकी कीमत दो साल पहले तक 35 रुपए प्रति किलो थी. आज 75 रुपए प्रति किलो. यानि बस दो साल में दोगुना से ज्यादा कीमत बढ़ी विदेश से आयात होने वाला कागज पिछले साल यानी 2020 में 375 डॉलर प्रति टन था. आज 1000 डॉलर प्रति टन है7.भारत में बनने वाले कागज की एक तो क्वालिटी खराब होती है दूसरा लुगदी से बनता था. अब लुगदी वाली कंपनियां पैकेजिंग के लिए काम आने वाले बॉक्स आदि बनाने लगी हैं क्योंकि उसमे मुनाफा ज्यादा है फकीरचन्द की सरकार सब कुछ ऑनलाइन कर देने पर जो इतना जोर दे रही है, पेपरलेस होने की जो इतनी कवायद कर रही है — उसके पीछे यह एक बड़ा कारण है. समाज जितना पेपरलेस होगा, उतना ही माइंडलेस भी होगा. हां, एक फायदा हो सकता है. सरकार अब यह कहेगी कि कागज़ नहीं, मोबाइल दिखाओ.
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(प्रवीण कक्कड़) अगर आप अपनी जिंदगी को सुहाना बनाना चाहते हैं तो टूरिज्म का सहारा लीजिये। अधिकांश कामयाब लोगों के जीवन में एक चीज कॉमन है और वह हैं ट्रेवल यानी पर्यटन। हम सभी आज के दौर में एक रूटीन लाइफ जी रहे हैं। किसी को ऑफिस की चिंता है तो किसी को व्यापार की। ऐसे में हमारा दिमाग कुछ बातों में उलझ कर रह जाता है। पर्यटन हमारे दिमाग को खोलता है, हमें नई ऊर्जा देता है, स्ट्रेस से हमें दूर करता है और एक सामाजिक जीवन में हमें वापस लौटाता है। सही मायनों में टूरिज्म यानी पर्यटन आप की ग्रोथ करता है, आप में कॉन्फिडेंस का विकास होता है, आप में कम्युनिकेशन की कला विकसित होती है और आप अलग-अलग परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार कर पाते हैं। इसके साथ ही आपके लिए एक सुनहरी यादों का खजाना जुड़ जाता है जो जिंदगी भर के लिए एक अनमोल मेमोरी है। दुनिया में जो भी महान बना उसने सफर जरूर किया है। अगर त्रेता युग में श्रीराम की बात करें तो वह किसी एक वन में रहकर भी वनवास पूरा कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऋषियों के आश्रम जाकर आशीर्वाद और प्रेरणाएं लीं, वनवासियों की समस्या जानी, भेदभाव मिटाये और विकट परिस्थिति आने पर रावण का वध भी किया। इन्हीं अनुभव के आधार पर उन्होंने राम राज्य की स्थापना की। इसी तरह द्वापर युग में श्री कृष्ण ने भी भ्रमण किया, इसी दौरान उन्हें बेहतर विकल्प नजर आया और उन्होंने मथुरा से अपने राज्य को द्वारका में स्थापित किया। अब कलयुग में आदिगुरु शांकराचार्य हों या स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी हों या धीरूभाई अंबानी सभी ने खूब भ्रमण किया और अनुभव लिये, परिस्थितियों को समझा और उन्हें जीवन में उतारकार महान बने। अगर गहराई में समझा जाए तो हर महान व्यक्ति ने टूरिज्म से दोस्ती कर खुद को रि-डिस्कवर किया। अलग-अलग समाज, भाषा, खानपान, जलवायु, परंपरा और लोगों के रहन-सहन को जानकर इन्होंने खुद में जरूरी परिवर्तन किए और लोगों तक बेहतर ढंग से अपने संदेश को पहुंचा भी पाए। गर्मियों का मौसम सामने है और इसके साथ ही गर्मियों की छुट्टी की तैयारी होने लगी है। 2 साल कोरोनाकाल के कारण गर्मियों की छुट्टी बहुत संकट में गुजरी हैं। पिछला साल तो खासकर ऐसा रहा कि हर तरफ दुख और बीमारी का मंजर था। लॉकडाउन की पाबंदियां हमारे चारों तरफ कायम थी। लेकिन इस बार ईश्वर की कृपा से स्थितियां बेहतर हैं। ऐसे में गर्मियों की छुट्टी आते समय प्लानिंग का ध्यान करना बहुत जरूरी है। देश और प्रदेश में कुछ पर्यटन स्थल बहुत चर्चित हैं और ज्यादातर लोग उन्हीं जगहों का रुख कर लेते हैं। ऐसे में इन पर्यटन स्थलों पर बहुत ज्यादा भीड़ हो जाती है, और पर्यटन का जो आनंद लेने हम जाते हैं, वह पीछे छूट जाता है। इसलिए स्थान का चयन करने में सावधानी जरूर बरतनी चाहिए, क्योंकि 2 साल बाद घूमने फिरने का मौका मिला है तो हम इस तरह का इंतजाम करें कि घर के बूढ़े बुजुर्ग बच्चे और पूरा परिवार साथ मिलकर छुट्टियां मना सके। घर के बुजुर्ग सामान्य तौर पर इस तरह के सैर सपाटे में जाने से मना करते हैं, लेकिन यह तो उनके बच्चों और परिवार वालों की जिम्मेदारी है कि वे उन्हें मनाए समझाएं और पूरी सुरक्षा के साथ पर्यटन पर ले जाएं। पर्यटन को सिर्फ मौज मस्ती का माध्यम नहीं समझना चाहिए। असल में यह तो खुद को तरोताजा करने और पुरानी थकान को भुलाकर नई शक्ति का संग्रहण करने का बहाना होता है। नई ताकत के साथ जब हम वापस काम पर लौटते हैं तो दिमाग नए तरह से सोचने की स्थिति में आ जाता है। पश्चिमी देशों में छुट्टियों का इस तरह का सदुपयोग लंबे समय से किया जाता है। बल्कि यह उनकी संस्कृति का एक हिस्सा है। बच्चों के लिए तो इस बार दोहरी खुशी है, पहले तो कई दिनों बाद स्कूल खुले तो बच्चों ने दोस्तों के साथ मस्ती की और अब परीक्षा के बाद की छुट्टी शुरू हो गई हैं। अब बच्चे छुट्टियों का आनंद लेना चाहते हैं। हमारा मध्य प्रदेश तो इस समय देश में पर्यटन का सबसे बड़ा गढ़ है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पूर्वोत्तर, कश्मीर जैसे राज्यों में घूमने की बहुत अच्छी जगह हैं और उनका खूब प्रचार भी है। मध्यप्रदेश में बहुत ही सुंदर रमणीक जगह घूमने लायक हैं। हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम न केवल वहां घूमने जाएंगे बल्कि अपने अपने स्तर पर उनकी अच्छाइयों का खूब प्रचार प्रसार करें।
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(प्रवीण कक्कड़) आपने एक शब्द सुना होगा सकारात्मक सोच या पॉजीटिव थिंकिंग। छात्र हो या खिलाड़ी, नौकरीपेशा हो या व्यापारी हर कोई अपने जीवन में सकारात्मक सोच लाना चाहता है, दूसरी ओर कोच हो या शिक्षक हर कोई अपने अनुयायी को सकारात्मक सोच की घुट्टी पिलाना चाहता है लेकिन इस प्रक्रिया में हम थोड़ी सी गलती करते हैं। सकारात्मक सोच का अर्थ है अपने काम को सकारात्मक बनाना न की केवल नतीजों के सकारात्मक सपनों में खो जाना। हम अपने कर्म, लगन और व्यवहार को सकारात्मक करने की जगह केवल मन चाहे नतीजे के सकारात्मक सपने पर फोकस करने लगते हैं और सोचतें हैं कि यह हमारी पॉजीटिव थिंकिंग हैं। ऐसे में हमारे सफलता के प्रयास में कमी आ जाती है और हमारे सपनों का महल गिर जाता है, फिर हम टूटने लगते हैं। नकारात्मकता हम पर हावी हो जाती है। ऐसे में जरूरत है कि हम सकारात्मकता के वास्तविक अर्थ को समझें। सकारात्मक सोच यह है कि हम अपनी काबिलियत पर विश्वास करें, लगन से काम में जुटें और पूरी ऊर्जा से काम को पूरा करें। फिर नतीजे अपने आप सकारात्मक हो जाएंगे। जीवन में सकारात्मक सोच का होना बहुत जरूरी है। यह भी सच है कि सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति तेजी से आगे बढ़ते हैं व लक्ष्य को हासिल करते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि सकारात्मक सोच है क्या… कुछ लोग कहते हैं जो मैं जीवन में जो पाना चाहता हूं वह मुझे मिल जाएगा, कुछ कहते हैं जैसा में सोच रहा हूं मेरे साथ वैसा ही होगा या कुछ कहते हैं मेरे साथ जीवन में कुछ बुरा हो ही नहीं सकता…अगर इस तरह के विचारों को आप सकारात्मक सोच मान रहे हैं तो मेरे अनुसार आप गलत हैं। केवल नतीजों के हसीन सपनों को लेकर खुशफहमी पाल लेना सकारात्मकता नहीं है। सकारात्मक सोच का सही अर्थ है अपने प्रयासों को लेकर सकारात्मक होना, ऊर्जावान होना और लगनशील होना। जीवन में आसपास के हालातों से असंतुष्ट नहीं होना और अपना 100 प्रतिशन देकर किसी काम में जोश व जूनून के साथ जुटे रहना भी सकारात्&zwj