मौत की सजा पर एक बार फिर से छिड़ गई है बहस
Debate has once again erupted on death penalty

अनिरुद्ध बोस 

किसी जघन्य अपराध के बाद या समाज में अपराधों में वृद्धि होने पर अपराधी के लिए कठोर दंड की मांग भी बढ़ जाती है। ये सच है कि सरकारों को लोगों की भावनाओं के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए। ऐसे में आंदोलनकारी जनमानस को संतुष्ट करने के लिए कठोरतम दंड की परिकल्पना की जाती है।

देश के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं के साथ अपराधों में वृद्धि से गंभीर यौन अपराधियों के लिए मृत्युदंड की मांग नए​ सिरे से तूल पकड़ चुकी है। इसी संदर्भ में, मृत्युदंड को बरकरार रखने के सवाल पर फिर से बहस शुरू होगी। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय रुझान तो मृत्युदंड को समाप्त करने की ओर प्रतीत होता है। 2023 तक, 112 देशों ने मृत्युदंड को समाप्त कर दिया था।

पिछले साल 1100 से अधिक दोषियों को फांसी दी गई। इनमें चीन के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। चीन के अलावा, पिछले साल सबसे ज्यादा फांसी की सजाएं ईरान, सऊदी अरब, सोमालिया और अमेरिका में दी गई थीं। आधुनिक राष्ट्र-राज्य तीन आधारों पर दंडित करता है। पहला है अपराधी को सुधारना।

दूसरा है दंडनीय कृत्य करने की सोच रहे अन्य लोगों को डराना। तीसरा आधार प्रतिशोधात्मक है- आंख के बदले आंख का सिद्धांत। हालांकि अपराधशास्त्री, सामाजिक सिद्धांतकार और धार्मिक प्रमुख भी दंड देने के लिए प्रतिशोध के कारण को खारिज करते हैं, लेकिन जघन्य अपराध के बाद भीड़ की प्रतिक्रिया प्रतिशोधात्मक न्याय के लिए ही होती है।

अपराध को नियंत्रित करने और रोकने के लिए सामाजिक उपकरण के रूप में मृत्युदंड का उपयोग हर समाज द्वारा किया जाता रहा है। बेबीलोन की हम्मुराबी संहिता (18वीं शताब्दी ईसा पूर्व) में 25 अपराधों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान था। एथेंस और रोम के कानूनों में भी मृत्युदंड था और इसके निष्पादन के तरीकों में जिंदा जला देना, सूली पर चढ़ाना, डुबोकर मार देना आदि शामिल थे।

मनुसंहिता में, उस शिकायतकर्ता के लिए भी मृत्युदंड प्रस्तावित है, जो गंभीर अपराध का आरोप लगाने के बाद अदालत के समक्ष गवाही नहीं देता है। 1801 में इंग्लैंड में एक 13 वर्षीय लड़के एंड्रयू ब्रेनिंग को एक घर में घुसकर चम्मच चुराने के जुर्म में फांसी पर लटका दिया गया था! सेंट्रल कलकत्ता में एक ‘फैंसी’ लेन है, जो ‘फांसी’ शब्द का अपभ्रंश है। फ्रांसीसी क्रांति के बाद 17000 लोगों को गिलोटिन मशीन से मार दिया गया था।

लेकिन 19वीं सदी के अंत से 20वीं सदी की शुरुआत तक मृत्युदंड के बारे में सोच में बदलाव आना शुरू हुआ। लियो टॉल्स्टॉय, विक्टर ह्यूगो, महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला जैसे बुद्धिजीवियों ने मौत की सजा का विरोध किया। पोप फ्रांसिस भी इसके विरोधी हैं। यह सोच पूरी तरह से नैतिक-धार्मिक तर्क पर आधारित नहीं। किसी भी मानक अध्ययन में इस निवारक सिद्धांत का कोई औचित्य नहीं पाया गया है।

महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शासनकाल के दौरान मृत्युदंड को समाप्त कर दिया था। त्रावणकोर और कोचीन राज्य ने औपचारिक रूप से वर्ष 1944 में इसे समाप्त कर दिया था, केवल कोचीन में इसे कुछ अपराधों के लिए बरकरार रखा गया था।मृत्युदंड के विरुद्ध सबसे ताकतवर तर्क यह है कि इसे उलटा नहीं जा सकता।

न्यायिक प्रक्रिया सौ प्रतिशत दोषरहित नहीं है और ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें राज्यसत्ता द्वारा एक निर्दोष को भूलपूर्वक मार दिया गया। 1950 में, टिमोथी इवांस नामक एक व्यक्ति को अपनी पत्नी और नवजात बेटी की हत्या के लिए दोषी ठहराकर मृत्युदंड दे दिया गया। बाद में पता चला कि वास्तव में जॉन क्रिस्टी नामक एक सीरियल किलर इसके लिए दोषी था। 2004 में मरणोपरांत उसे दोषमुक्त करार दिया गया।

दूसरा तर्क यह है कि मृत्युदंड का प्रावधान अपने स्वभाव से ही भेदभावपूर्ण है। अधिक संपन्न लोगों की तुलना में गरीब अभियुक्तों को मृत्युदंड दिए जाने की अधिक संभावना है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में ही समान प्रकृति के अपराध के दोषी गोरों की तुलना में अश्वेतों को फांसी की सजा मिलने की अधिक संभावना होती है।

भारत में हालांकि इस सजा को औपचारिक रूप से समाप्त नहीं किया गया है, लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में फांसी की सजा की दर में गिरावट आई है। 2023 में सत्र न्यायालय द्वारा मृत्युदंड दिए जाने वाले मामलों की संख्या 120 थी, वहीं 561 कैदियों को मृत्युदंड दिया जाना है (राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली के प्रोजेक्ट 39ए द्वारा किए एक अध्ययन के अनुसार)। अंततः इस विवाद पर अंतिम निर्णय विधायिका को ही लेना है, जिसके आयाम वैश्विक हैं।

मृत्युदंड के विरुद्ध सबसे ताकतवर तर्क यह है कि इसे उलटा नहीं जा सकता। न्यायिक प्रक्रिया सौ प्रतिशत दोषरहित नहीं होती है और अतीत में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें राज्यसत्ता द्वारा एक निर्दोष को भूलपूर्वक मार दिया गया था।

Dakhal News 9 September 2024

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