बुद्धिज्म में तंत्रयान
tantrayana in buddhism

सत्येंद्र पी एस-

कई साथियों ने जानने की कोशिश की और कहा कि आप बुद्धिज्म के वज्रयान या तंत्रयान के बारे में बताएं। तंत्रयान के बारे में बताने के लिए मैं बहुत छोटा आदमी हूँ। उस फील्ड में मेरी कोई प्रैक्टिस नहीं है। इधर उधर से पाया ज्ञान ही दे सकता हूँ। शायद यह फायदेमंद भी हो, क्योंकि बुद्धिज्म के जानकार गुरु उसे इतनी गहराई से बताते हैं कि दिमाग मे घुसना तो दूर की बात है, वह कई फुट दूर से ही गुजर जाता है।बुद्धिज्म का तंत्रयान शुद्ध श्रमण परंपरा है। बुद्धिज्म के तंत्रयान या वज्रयान की कई पद्धतियां हैं। बुद्ध ने दुःखों से मुक्ति के 84000 उपाय बताए हैं। लेकिन सभी के पीछे एक ही परिणाम है। विजडम, माइण्डफुलनेस और एनलाइटनमेंट। तरीके अलग अलग हो सकते हैं, लक्ष्य एक है।

बुद्धिज्म के महामाया तंत्र की गुणवती टीका में लिखा गया है…

तन्त्रम त्रिविधम। हेतुतन्त्रम, फलतन्त्रम, उपायतन्त्रम च।

यानी तंत्र 3 प्रकार के होते हैं। हेतुतन्त्र, फल तंत्र, उपाय तंत्र।

चित्त यानी बोधिचित्त निरन्तर बना रहता है। इसका कभी नाश या क्षय नहीं होता है। शून्यता यानी emptiness और प्रभास्वर यानी Luminosity को मिलाकर बोधिचित्त बनता है।

सरल शब्दो मे कहें तो प्रकाशमान मस्तिष्क की प्रकृति को पहचानना हेतु तंत्र है। यानी अपका प्रकाशमान मस्तिष्क कैसे काम करता है, वह किस तरह व्यवहार कर रहा है, उसको पहचान लीजिए।जब आप इसको पहचान लेते हैं तो उससे काम लेने की बारी आती है। इस प्रकाशमान मस्तिष्क को इस्तेमाल कैसे किया जाए, इसी को फल तंत्र कहते हैं। जब आप फलतन्त्र पर पहुँचते हैं तो इम्पावरमेंट आ जाता है। समथा और विपश्यना यानी उत्पत्ति क्रम और निष्पन्न क्रम की प्रैक्टिस करने से एनलाइटनमेन्ट आ जाती है। मतलब जब आप ल्यूमिनस माइंड या प्रकाशमान मस्तिष्क को पहचान लेते हैं, पहचान करने के साथ उसका इस्तेमाल कर लेते हैं तो अगला क्रम प्रकाशमान मस्तिष्क पर मेडिटेट करने का नम्बर आता है।जब आप ल्यूमिनस माइंड से मेडिटेट करते हैं तो लगातार प्रैक्टिस से एनलाइटनमेन्ट हासिल हो जाता है। इसमें अनात्मबोध और शून्यताबोध किया जाता है। यही बज्रयान की प्रैक्टिस है। इसमें न तो कोई आत्मा है, न कोई ईश्वर है। बड़ा सीधा सा मसला है। लेकिन अपने प्रकाशमान मस्तिष्क की चाल पकड़ पाना है बहुत कठिन काम। आपका मस्तिष्क कैसे बेहतर फैसला करे, किस परिस्थिति में कौन सा निर्णय फिट होगा, यह जानना कठिन खेल है। हिंदू तंत्रयान ईश्वरवादी है। इसमें आत्मबोध किया जाता है। इसमें पशुआचार, वीराचार और दिव्याचार किया जाता है। हिन्दू तंत्रयान के मुताबिक “तननात त्रायते इति तन्त्रम।” यानी जीवात्मा को तानकर यानी उसको व्यापक करके ईश्वर में मिला दिया जाता है। पशुआचार में किसी देवता की शरण में जाया जाता है, काली, तारा, शिव…जिस की प्रैक्टिस करें। इसमें खुद को समर्पित कर दिया जाता है ईश्वर के लिए। इसमें कहा जाता है, दासोहम, यानी मैं आपका दास हूँ। वीराचार में खुद को ईश्वर में शामिल कर दिया जाता है। उसमें प्रैक्टिशनर काली, त्रिपुरसुंदरी, तारा में खुद को डिजॉल्व कर लेता है।उसके बाद दिव्याचार में प्रैक्टिसनर अपने को गायब कर देता है कि मैं कुछ नहीं हूँ। मैं बचा ही नहीं। मैं ईश्वर में समाहित हो गया। प्रैक्टिशनर कहता है शिवोहम, यानी मैं आपमें डिजॉल्व हो गया, मैं ही शिव हूँ। हिंदू तंत्र से मिलती जुलती प्रैक्टिस इस्लाम और ईसाई धर्म में भी है। मंसूर ने पहले खुद को अल्ला का सेवक कहा और उसके बाद अनलहक का नारा दिया कि मैं अल्ला में समाहित हो गया।

कुल मिलाकर बुद्धिज्म का तंत्रयान बिल्कुल ही अलग चीज है। उम्मीद है कि स्थिति थोड़ी साफ हुई होगी कि बुद्धिज्म में तंत्रयान क्या है। आगे कुछ और सरल समझ पाया तो और सहज लिखूँगा। आप बताएं कि मामला कुछ समझ में आया क्या?

Dakhal News 22 July 2024

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