Patrakar Priyanshi Chaturvedi
संजय कुमार
हम एक राष्ट्र एक चुनाव को लेकर कितने गम्भीर हैं? यह सवाल इसलिए पूछा जाना चाहिए, क्योंकि इस बारे में नीति-निर्माताओं की कथनी-करनी में अंतर है। चार पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों और रामनाथ कोविंद समिति द्वारा परामर्श किए गए आठ में से सात राज्यों के चुनाव आयुक्तों ने एक राष्ट्र एक चुनाव के विचार को मंजूरी दी है, लेकिन जब चुनाव कराने की बात आती है तो चुनाव आयोग एक अलग पद्धति का पालन करता है।
2024 का लोकसभा चुनाव सात चरणों में हुआ था। कुछ साल पहले, न केवल दो राज्यों के चुनाव कुछ महीनों के अंतराल में एक के बाद एक हुए थे, बल्कि दोनों की तारीखों की घोषणा भी अलग-अलग की गई। महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव एक साथ नहीं बल्कि कुछ महीनों के अंतराल में एक के बाद एक होंगे। क्या हम वास्तव में एक साथ चुनाव कराने के बारे में गंभीर हैं? या इसमें आने वाली बाधाएं चुनाव आयोग के मन में हिचकिचाहट पैदा कर रही हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी समय से इस बात पर जोर देते आ रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी उन्होंने एक साथ चुनाव कराने की जरूरत का जिक्र किया था। एक राष्ट्र एक चुनाव के विचार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाने के लिए बिना समय गंवाए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई।
समिति ने अपनी पहली बैठक से 361 दिनों के रिकॉर्ड समय में रिपोर्ट पेश की, जिसे अब कैबिनेट की बैठक में मंजूरी मिल गई है। समिति ने 47 राजनीतिक दलों से परामर्श किया, जिनमें से 32 ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि 15 ने विरोध किया।
प्रस्ताव का विरोध करने वाले 15 दलों में से 5 विभिन्न राज्यों में सत्ता में हैं। केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की सहयोगी टीडीपी ने पहले तो कोई राय नहीं दी, लेकिन अब वह भी प्रस्ताव का समर्थन कर रही है। बसपा ने प्रस्ताव का विरोध करने का अपना रुख बदलते हुए अब प्रस्ताव का समर्थन कर दिया है।
चुनाव आयोग इस मुद्दे पर एक भाषा में बात नहीं कर रहा है। वर्ष 2015 में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति को सौंपे अपने निवेदन में आयोग ने इस विचार को लागू करने में आने वाली कई कठिनाइयों को बताया था।
उसने कहा कि एक साथ चुनाव कराने के लिए ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की बड़े पैमाने पर खरीद की आवश्यकता होगी। इसमें 9,284.15 करोड़ रुपए खर्च हो सकते हैं। मशीनों को हर 15 साल में बदलने की भी आवश्यकता होगी, जिसके लिए फिर से खर्च करना होगा। इसके अलावा, मशीनों के स्टोरेज से वेयरहाउसिंग लागतें बढ़ जाएंगी।
कोविंद समिति के समक्ष अपने प्रस्तुतीकरण में आयोग ने लॉजिस्टिक्स संबंधी कठिनाइयों का जिक्र किया। उसने कहा कि 2029 में एक साथ चुनाव कराने के लिए कुल 53.76 लाख बैलेट यूनिट और ईवीएम की 38.67 लाख कंट्रोल यूनिट और 41.65 लाख वीवीपैट की आवश्यकता होगी। लेकिन 10 मार्च 2022 को तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ने एक सार्वजनिक बयान में कहा था कि अगर सरकार चाहती है तो आयोग एक साथ चुनाव कराने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने एक विशेष साक्षात्कार में कहा था, एक राष्ट्र एक चुनाव एक अच्छा सुझाव है, लेकिन इसके लिए संविधान में बदलाव की जरूरत है। जो विधानसभा 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी, उसे इस बारे में सोचना होगा या फिर देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए संसद का कार्यकाल बढ़ाने की जरूरत है। यह संसद में तय होना है, लेकिन चुनाव आयोग सभी चुनावों को एक साथ कराने में सक्षम है।
लेकिन आश्चर्य की बात है कि जब वर्ष 2022 में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने थे, तब चुनाव आयोग इन दोनों के विधानसभा चुनाव एक साथ नहीं करा सका। दोनों राज्यों के चुनावों की तिथियों की घोषणा भी अलग-अलग की गई- हिमाचल के लिए चुनाव की तिथि 12 अक्टूबर को घोषित की गई, जबकि चुनाव 12 नवंबर को होने थे, वहीं गुजरात में विधानसभा चुनाव की तिथि 3 नवंबर को घोषित की गई, जबकि मतदान 1 और 3 दिसंबर को होना था।
दोनों ही राज्यों की मतगणना 8 दिसंबर को एक साथ होनी थी। हाल ही में चुनाव आयोग ने बिना किसी जायज वजह के दो राज्यों (महाराष्ट्र और हरियाणा) के लिए एक साथ होने वाले चुनावों को भी बाधित किया। क्या चुनाव आयोग वास्तव में एक साथ चुनाव कराने के लिए तैयार है या इसमें उसकी ओर से कोई कोर-कसर है?
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