नवाचारधर्मी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
bhopal, Innovative Chief Minister, Shivraj Singh Chouhan

प्रमोद भार्गव

 

सहज रूप में कोई पद नवाचारधर्मी नहीं होता वरन व्यक्ति का व्यक्तित्व होता है। व्यक्तित्व भी वह होगा, जिसके अंतर्मन में कृतित्व रचने का वैचारिक मर्म हो और वह निरंतर मंथन की प्रक्रिया में रहे। साधारणतः कृतित्व का अर्थ पुस्तक लेखन से जोड़ दिया जाता है, इसीलिए लेखक को तो सृजनधर्मी मान लिया जाता है लेकिन समाज के अन्य सृजनधर्मी जैसे राजनेता, शिल्पकार या आविष्कारक को अक्सर ऐसी विलक्षण उपमाओं से संबोधित नहीं किया जाता।

मेरी दृष्टि में यह बौद्धिक विडंबना है, जो संकीर्ण सोच के आवरण में आबद्ध है। यदि कोई राजनेता समाज परिवर्तन और समाज को सुखमयी बनाने के लिए नए प्रयोग करता है, उनका सुनिश्चित क्रियान्वयन करता है और वे वास्तविक रूप में फलीभूत होते हैं, तो यह नवाचार भी मौलिक सृजन की परिकल्पना से उत्पन्न है। हाल ही में मुख्यमंत्री ने सरकारी विद्यालयों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी (एआई) को पढ़ाने का ऐलान किया है। शिक्षा में यह प्रयोग नवाचार ही कहलाएगा।

 

इस मायने में शिवराज सिंह चौहान नवाचारधर्मी, कल्पनाशील व्यक्तित्व, जन सरोकारों से जुड़े मुख्यमंत्री हैं। अतएव प्रदेश में जब-जब बाढ़, अतिवृष्टि अनावृष्टि, ओलावृष्टि या अन्य तरह की प्राकृतिक आपदा का संकट पैदा हुआ है, तब-तब शिवराज सिंह ने इसे नई चुनौती माना और मुठभेड़ की। दरअसल चुनौती को स्वीकारने में ही आनंद है। जीवन में आए ठहराव को उन्मुक्त मन से स्वीकार करके ही समाप्त किया जा सकता है। किसी भी प्रकार के ठहराव से मुक्ति का उपाय ही समाज को वर्तमान परिस्थितियों में जीने के अनुकूल बनाती है।

कोरोना संकट को हम प्राकृतिक मानें या कृत्रिम, इस बहस में कोई नवाचारी पड़कर समय जाया नहीं करता, बल्कि उससे उपजे नैराश्य भाव को संवाद साधकर तोड़ता है। जब निराशा का परिवेश व्यापक या घनीभूत हो तब ऊर्जामयी संवाद ही समाज में चेतना जगाने के काम कर पाते हैं। हम देखते है कि कोरोना का जो डेढ़-दो साल का अंधकार था, सजग मुख्यमंत्री ने उस अवधि में भी जनता से प्रेरक संवाद किए और अनेक जन-कल्याण से जुड़े नवाचार जमीन पर उतारे। ये संवाद सभाओं के माध्यम से संभव नहीं था इसलिए तकनीक के माध्यम से संभव हुए। इस आभासी उपस्थिति में भी मुख्यमंत्री के जीवंत क्रियाकलापों ने मन और शरीर में आवेग जगाने का काम किया। फलतः प्रदेश के लाखों लोग अवसाद में जाने से बचे और कोरोना से बचाव के उपायों का उपयोग करते हुए सामान्य जीवन जीते रहे।

बालिकाओं की संख्या कम होना किसी भी विकासशील समाज के लिए बड़ी चुनौती थी। इस चुनौती से तभी निपटा जा सकता है, जब स्त्री की आर्थिक हैसियत तय हो और समाज में समानता की स्थितियां निर्मित हों। इस नजरिए से मध्य प्रदेश में ‘लाडली लक्ष्मी योजना‘ कारगर औजार साबित हुई और इसीलिए इसे देश के नवाचारी माॅडल के रूप में मान्यता मिली। दिल्ली, हरियाणा और पंजाब ने ही नहीं पूरे देश ने इस योजना का अनुकरण किया और बेटी बचाने के लिए जुट गए। क्योंकि बेटी बचेगी, तभी बेटे बचेंगे और सृष्टि की निरंतरता बनी रहेगी। जैविक तंत्र से जुड़े इस सिद्धांत को हमारे ऋषि-मुनियों ने भलि-भांति आज से हजारों साल पहले समझ लिया था इसीलिए भगवान शिव-पार्वती के रूप में अर्धनारीश्वर के प्रतीक स्वरूप मंदिरों में मूर्तियां गढ़ी गईं, जिससे पुरुष संदेश लेता रहे कि नारी से ही पुरुष का अस्तित्व अक्षुण्ण है। किंतु हमने शिव-पार्वती की पूजा तो की, परंतु उनके एकरूप में अंतर्निहित अर्धनारीश्वर के प्रतीक को आत्मसात नहीं किया।

भारत के लिए यह प्रसन्नता की बात है कि लिंगानुपात के अंतर्गत स्त्री का जो अनुपात घट रहा था, उसमें जनसांख्यिकीय बदलाव लाडली लक्ष्मी योजना के नवाचार को देशव्यापी स्वीकार्यता मिलने के बाद ही देखने में आया है। पहली बार महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक आई है। साथ ही लिंगानुपात 1020 के मुकाबले 1000 रहा है। यह जानकारी राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के ताजा निष्कर्षों से मिली है। स्त्रियों की संख्या 1000 के पार हो रही हैं तो इसका अर्थ है कि भारत आर्थिक प्रगति के साथ-साथ लिंगानुपात में भी विकसित देशों के समूह के बराबर आ रहा है। इसके लिए महिला सशक्तिकरण के अंतर्गत मध्य-प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा शुरू की गई लाडली लक्ष्मी योजना और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाएं रही हैं, जो शैक्षिक व वित्तीय समावेशन, लैंगिक पूर्वाग्रह तथा असमानताओं से लड़ने में सार्थक रही हैं। इन योजनाओं की सफलता के बाद, इन्हें केंद्र सरकार द्वारा देशभर में लागू किया गया।

 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की करीब डेढ़ दशक की सार्वजनिक यात्रा का अवलोकन करें तो यह साफ देखने में आता है कि उनकी कार्य संस्कृति अन्य मुख्यमंत्रियों से भिन्न रही। वे प्रकृति, कृषि व किसान प्रेमी हैं और युवाओं को कौशल दक्ष बनाने की प्रखर इच्छा रखते हैं। इसीलिए प्रदेश में अनेक प्रकार की छात्रवृत्तियां हैं, जिससे छात्रों को आर्थिक बाधा का सामना न करना पड़े। गांव से यदि पाठशाला कुछ दूरी पर है तो बालिका को आने-जाने में व्यवधान न हो, इस हेतु साइकिल है। ये योजनाएं मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता को रेखांकित करती हैं।

 

शिवराज कविता तो नहीं लिखते लेकिन दूरांचल वनवासी-बहुल जिले झाबुआ में परंपरागत ‘आदिवासी गुड़िया हस्तशिल्प‘ कला को संरक्षित करने और इसे आजीविका से जोड़ने का उपाय जरूर करते हैं। फलस्वरूप अब स्थानीय लोगों के नाजुक हाथों द्वारा निर्मित यह कपड़े की गुड़िया मध्य-प्रदेश सरकार के ‘एक जिला, एक उत्पाद‘ योजना के अंतर्गत व्यापारिक उड़ान भरकर जर्मनी और आस्ट्रेलिया के बच्चों का खिलौना बन गई है। सामाजिक सरोकार से इस संरचना की महिमा वही नवाचारी समझ सकता है, जो कल्पनाशील हो।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Dakhal News 22 March 2022

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