बस यही पत्रकार बाकी सब बेकार
Only this journalist, all else is useless

एस. पण्डित

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की मीडिया जगत में एक नई क्रांति देखने को मिल रही है जहाँ डबल इंजन रूपी पत्रकारिता के दो संगठनो द्वारा मुस्लिम बेरोजगारों को पत्रकारिता क्षेत्र के ग्लैमर में नया रूप देकर ढाला जा रहा है, अंडे वाले, चाय वाले, मोटर मैकेनिक, ज़रदोज़ी चिकनकारी, कबाड़ी, जिम ट्रेनर, फोटोजीवी, रील मेकर,बर्तन बेचने वालों को एक ऐसा स्टार्टअप दिया गया है जिसमें ना सिर्फ ग्लैमर है बल्कि उनके दो पहिया वाहन पर शक्तिशाली और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का प्रेस जैसा निशान लग जाता है। जिस वर्दीधारी पुलिसकर्मी को देखकर अपना मुंह छुपाते थे अब उसी के साथ पुराने लखनऊ की गलियों से सेल्फी लेकर समाज में अपना मान सम्मान और रुतबा झाड़ते फिरते हैं, ऐसे ही डबल इंजन के संगठन द्वारा विकसित किया गया नमूना सुप्पा कब्रिस्तान पर अनाधिकृत रूप से कब्जा करके बनाई गई साइकिल, मोटरसाइकिल मरम्मत की दुकान से निकला, कल तक जिसका काम था गाड़ियों की मरम्मत करके अपना रोजगार चलाना और अपनी मिस्त्रिगिरी के चलते उसको अवैध रूप से दारुलशफा में कब्जा जमाए बुजुर्ग पत्रकार का साथ मिलते ही पत्रकार का मिल गया तमगा।डबल इंजन के संगठनो की आड़ में चल रही दुकान को मिस्त्री की गाड़ी का सहारा मिलते ही दुकान के पहिये लग गए और मिस्त्री का प्रमोशन पत्रकार के रूप में हो गया। संगठनो की दुकान में कार का सारथी बनते ही मिस्त्री ने रफ्तार पकड़ ली और गूगल टाइप से मिले ज्ञान ने मिस्त्री को स्वंयभू वरिष्ठ पत्रकार बना दिया और उम्र के आखिरी पड़ाव के नौजवानी को मात करते नेताजी ने जिन फर्ज़ी प्रपत्रों पर अपनी वरिष्ठ पत्रकार की मान्यता सूचना विभाग से कराई थी उसी पैतरेबाजी से अपने ही परिवार के अखबार से नियमविरुद्ध जिला मान्यता प्राप्त पत्रकार का प्रमाण पत्र भी मिस्त्री को उपलब्ध करा दिया। सूत्रों की मानें तो इस मान्यता के लिए मिस्त्री को अवैध रूप से कब्जाई सुप्पा कब्रिस्तान की दुकान का सौदा करके 50000 की मिली धनराशि का नजराना भेंट स्वरूप डबल इंजन के संगठन को ईंधन के रूप में चढ़ाया गया और यह पहला मौका नहीं था जब डबल इंजन के संगठन के परिवार द्वारा संचालित समाचार पत्र से किसी को जिले की मान्यता दिला कर माल पकड़ा गया हो, इससे पूर्व भी एक महिला पत्रकार को अपने जाल में फंसा कर जिले की मान्यता देकर शोषण की कहानी सूचना विभाग से लेकर लखनऊ शहर के हर पत्रकार की जुबान पर है। डबल इंजन के संगठन के काम करने का तरीका भी ग्लैमर से भरा हुआ है, नामचीन समाजसेवी और प्रतिष्ठित होटल स्वामी के विरुद्ध आरटीआई एक्टिविस्ट से आरटीआई लगवाकर उनको डराने का काम किया जाता है और फिर अपने दोनों एक्टिविस्ट को रॉयल पकवान खिलवाकर समझौता करा दिया जाता है और प्रतिष्ठित होटल मालिक पर अपना प्रभुत्व जमाते हुए दुकान बढ़ाने के काम में लाया जाता है और फ्री का मॉल उड़ाते हुए अपनी तस्वीरों को सोशल मीडिया पर लहरा दिया जाता है।

शासन-सत्ता मेरे हाथ की कठपुतली, मेरी मान्यता के लिए मेरे अपने नियम

डबल इंजन के संगठन द्वारा दुकान बढ़ाने के लिए पुराने लखनऊ के कुछ ऐसे मुस्लिम नौजवानों को पकड़ा है जो किसी अन्य काम धंधे में लिप्त हैं और उनको पत्रकारिता का ग्लैमर दिखाकर जिले की मान्यता का लालच देकर सरकारी दारुलशफा का भौकाल दिखाया जाता है और जन्मदिन मरण दिन जैसे कार्यक्रमों में सेल्फी और रील बनाना सिखाया जाता है। फोटोजीवी डबल इंजन संगठन के कर्ताधर्ता मुस्लिम नौजवानों को चलने, हाथ हिलाने और रील रेल बनाने की ट्रेनिंग देकर सम्मान समारोह में ले जाकर सम्मानित करवाने के नाम पर शुल्क वसूलते है।

Dakhal News 22 July 2024

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