चुनाव हों या सामान्य दिन, आरोप-प्रत्यारोपों में संयम होना जरूरी
Be it elections or any ordinary day

नवनीत गुर्जर

जम्मू- कश्मीर और हरियाणा में चुनाव चल रहे हैं। इस वक्त चुनाव प्रचार अपने चरम पर है। सभी राजनीतिक दल एक- दूसरे पर आरोप- प्रत्यारोप लगाने में उलझे हुए हैं। राजनीतिक नैतिकता कहती है कि कोई कितना भी बडा विरोधी हो, उस पर आरोप लगाते वक्त मर्यादा का ख़्याल ज़रूर रखना चाहिए। संयम भी ज़रूरी है।

बात किसी एक दल या पार्टी की नहीं है, सभी दल या उनके नेता एक दूसरे पर मर्यादा छोड़कर आरोप लगा रहे हैं। कोई कह रहा है हरियाणा वाले भूपेन्द्र हुड्डा दरअसल, भाजपा की बी पार्टी हैं। वे खुद को बचाने के लिए भाजपा से मिल गए हैं।

इस बीच कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे बुधवार को कश्मीर में एक अलग ही स्तर पर चले गए। उन्होंने प्रधानमंत्री पर तो झूठ बोलने के आरोप लगाए ही, यह भी कह दिया कि लोकसभा चुनाव में अगर हमें बीस सीटें और मिल जाती तो ये भाजपा वाले आज जेल में होते!

आख़िर इसका क्या मतलब समझा जाए? खरगे साहब कहना क्या चाहते हैं? क्या आप किसी पार्टी या उसके नेताओं से बदला लेने के लिए केंद्र की सत्ता में आना चाहते हैं? फिर बीस सीटें और मिल जातीं, इसका तात्पर्य क्या है? क्यों रह गए पीछे? बीस और सीटें जीतने से आपको या आपकी कांग्रेस को आख़िर किसने रोक रखा था?

एक तरफ़ विदेश जाकर राहुल गांधी ने कोहराम मचाया हुआ है और दूसरी तरफ देश के भीतर खरगे साहब से अपने ग़ुस्से पर क़ाबू नहीं पाया जा रहा है। बेशक आप चुनाव जीतिए। सारे राज्यों में सरकार बना लीजिए।

अगला लोकसभा चुनाव भी जीत लीजिए, लेकिन आरोप लगाते वक्त मर्यादा का तो ख़्याल रखिए! ताकि कल को जब आप पर या आपकी पार्टी पर कोई आरोप लगाया जाए तो आप कह सकें कि यह राजनीतिक नैतिकता या मर्यादा के खिलाफ है।

कुल मिलाकर शब्दों की अपनी मर्यादा होती है और उसे बनाए रखना बहुत ज़रूरी है। सामान्य जीवन में भी। परिवार और समाज में भी। सार्वजनिक जीवन से जुड़े हुए लोगों, राजनेताओें नेताओं के लिए तो ये सबसे ज़्यादा जरूरी है।

Dakhal News 12 September 2024

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