Dakhal News
26 April 2024डॉ. वेदप्रताप वैदिक
श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंद्र राजपक्ष को मजबूरन इस्तीफा देना पड़ गया। उनके छोटे भाई गोटबाया राजपक्ष अभी भी श्रीलंका के राष्ट्रपति पद पर डटे हुए हैं। श्रीलंका में आम-जनता के बीच इतना भयंकर असंतोष फैल गया है कि इस राजपक्ष सरकार को कई बार कर्फ्यू लगाना पड़ गया। इस राजपक्ष सरकार के मंत्रिमंडल में राजपक्ष-परिवार के लगभग आधा दर्जन सदस्य कुर्सी पर जमे हुए थे। जब आम जनता का गुस्सा बेकाबू हो गया तो मंत्रिमंडल को भंग कर दिया गया।
लोगों के दिलों में यह प्रभाव जमाया गया कि राजपक्ष परिवार को कोई पद-लिप्सा नहीं है। राष्ट्रपति गोटबाया ने सारे विपक्षी दलों से निवेदन किया कि वे आएं और मिलकर नई संयुक्त सरकार बनाएं लेकिन विपक्ष के नेता सजित प्रेमदास ने इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया। अब भी राष्ट्रपति का कहना है कि विपक्ष अपना प्रधानमंत्री खुद चुन ले और श्रीलंका को इस भयंकर संकट से बचाने के लिए मिली-जुली सरकार बनाए लेकिन विपक्ष के नेता इस प्रस्ताव पर अमल के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हैं। वे सारे श्रीलंकाइयों से एक ही नारा लगवा रहे हैं- ‘गोटा गो’ याने राष्ट्रपति भी इस्तीफा दें।
श्रीलंका के विपक्षी नेताओं की यह मांग ऊपरी तौर पर स्वाभाविक लगती है लेकिन समझ नहीं आता कि नए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की नियुक्ति क्या चुटकी बजाते हो जाएगी? उनका चुनाव होते-होते श्रीलंका की हालत और भी बदतर हो जाएगी। नये राष्ट्रपति और नई सरकार खाली हुए राजकोष को तुरंत कैसे भर सकेगी? श्रीलंका का विपक्ष भी एकजुट नहीं है। स्पष्ट बहुमत के अभाव में वह सरकार कैसे बनाएगा? वह सर्वशक्ति संपन्न राष्ट्रपति को कैसे बर्दाश्त करेगा?
यदि श्रीलंका का विपक्ष देशभक्त है तो उसका पहला लक्ष्य यह होना चाहिए कि वह मंहगाई, बेरोजगारी और अराजकता पर काबू करे। गोटबाया सरकार जैसी भी है, फिलहाल उसके साथ सहयोग करके देश को चौपट होने से बचाए। भारत, चीन और अमेरिका जैसे देशों से प्रचुर सहायता का अनुरोध करे और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा-कोष से भी आपात राशि की मांग करे। अभी तो लोग दंगों और हमलों से मर रहे हैं लेकिन जब भुखमरी और बेरोजगारी से मरेंगे तो वे किसी भी नेता को नहीं बख्शेंगे, वह चाहे पक्ष का हो या विपक्ष का! श्रीलंका की वर्तमान दुर्दशा से पड़ोसी देशों को महत्वपूर्ण सबक भी मिल रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने स्तंभकार हैं।)
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11 May 2022
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