अपने स्टेटस के लिए मूक प्राणियों के अधिकार न छीनें
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रश्मि बंसल 

मेरे घर पर एक प्यारी सी बेटी है- माया। वो नटखट है, सयानी भी। बेहद प्यार करती है, डांट भी लगाती है। उसकी बड़ी बहन अपने दोस्तों की दुनिया में मशगूल है मगर माया मुझसे अब भी चिपक कर रहना चाहती है। मैं कहती हूं- ‘माया, बस’! - पर मुस्कराते हुए।

आप शायद समझ गए होंगे, माया मेरी डॉगी है। कुत्ता एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो मनुष्य के साथ मिलजुल कर रहता है। युधिष्ठिर के वफादार कुत्ते के बारे में आपने सुना ही होगा। लेकिन महाभारत की शुरुआत में भी एक प्राणी की कहानी है।

जब जन्मेजय भाइयों के साथ नागयज्ञ कर रहे थे, एक मासूम पिल्ला वहां आया और उसकी जमकर पिटाई की गई। इस पर उसकी मां ने जन्मेजय को शाप दिया कि एक दिन तुम्हारा कुल बरबाद हो जाएगा। कहने का मतलब ये कि हर प्राणी को जीने का अधिकार है और न्याय का हक भी।

आजकल सोशल मीडिया पर दर्दनाक वीडियो आते हैं- कोई डॉग की दुम पर पटाखा लगाकर फोड़ रहा है तो कोई उस पर पत्थर फेंक रहा है। मूक प्राणी की पीड़ा से जिसे किक मिलती है वो कोई अत्यंत गया-गुजरा होगा।

वैसे समाज में कई ऐसे लोग हैं जो स्ट्रीट डॉग से नफरत करते हैं। कोई उन्हें खाना खिलाता है, तो उस पर भी आपत्ति होती है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत मूक प्राणियों के भी कुछ अधिकार हैं। उनका शोषण एक अपराध है मगर उससे भी बड़ी क्रूरता है- थोड़े दिन पालकर फिर छोड़ देना।

जी हां, आजकल डॉग पालना एक फैशन है। बच्चे को आपने बर्थडे पर गिफ्ट कर दिया, फिर पता चला कि रखना इतना आसान नहीं। रोज उसे घुमाना पड़ता है, खिलाना पड़ता है, वैक्सीन लगवानी पड़ती है। क्यूट-सा पपी एक दिन बड़ा हो जाता है और अब इतना क्यूट नहीं।

फिर एक दिन आप उसे गाड़ी में बैठाकर कहीं दूर छोड़ देते हैं। भाई, मजा ले लिया खिलौने का, अब नहीं लुभाता। बेचारा वहां घंटों आपके इंतजार में बैठा रहता है। भूखा, प्यासा, उसकी आंखें आपको ढूंढ रही हैं। जरूर कोई गलती हुई है, वो मुझे लेने आएंगे।

राह में चलते हुए प्राणियों के किसी हमदर्द को दया आती है। वो एनजीओ को बताता है। एनजीओ के पास रोज पांच-सात फोन आते हैं इस तरह के। उनके पास जगह नहीं, उनकी जेब तकरीबन खाली, मगर दिल नहीं मानता। उस कुत्ते को आश्रय देते हैं, इस आशा से कि आगे चलकर कोई एडॉप्ट करेगा।

ये डॉग ज्यादा ‘ऊंची नस्ल’ वाले होते हैं। जो देखने में सुंदर माने जाते हैं, और जिनसे आपका ‘स्टेटस’ बढ़ता है। जैसे लेब्राडोर, गोल्डन रिट्रीवर, ल्हासा एप्सो इत्यादि। चूंकि इनकी डिमांड है, इन नस्लों का प्रजनन धंधा बन गया है। पैदा होते ही पिल्ले को मां से अलग करके बेच दिया जाता है। खैर लोगों के लिए ये एक ‘ब्रांडेड’ डॉग है, जैसे ब्रांडेड बैग या जूता।

स्टेटस दिखाने के और भी तरीके हैं। पेट्स पालना जिम्मेदारी है, पूरे परिवार की सहमति से ऐसा निर्णय लें। और हां, खरीदिए मत- एडॉप्ट कीजिए। आपके शहर में जरूर कोई एनजीओ होगा, जानवरों के हित में काम करने वाला।

वहां प्यारे-प्यारे मूक प्राणी आपका इंतजार कर रहे हैं। अब यूं नहीं कि आप किसी भी देसी कुत्ते को सड़क से उठा लो। अगर अकेला हो, मां आसपास नहीं, तो बात अलग है। कुत्ते पालने के साथ समाज को कुछ नियमों का भी पालन करना जरूरी है। एक प्यारा-सा डॉग अपना लीजिए, एक सच्चा साथी पा लीजिए।

Dakhal News 11 September 2024

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