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अभी पूरे देश की लोकसभा और चार राज्यों की विधानसभा चुनावों की खुमारी उतरी भी नहीं है कि अब उपचुनाव की तैयारी शुरू हो गई है. पहले आम चुनावों पर लाखों करोड़ का खर्च होने के बाद अब उपचुनावों पर हजारों करोड़ रुपये खर्च करने की तैयारी है. ये सारे पैसे उसी टैक्स पेयर्स की जेब से जाने वाले हैं, जो किसानों का कर्ज माफ करने पर कहते हैं कि पैसा हमारा है तो किसानों की कर्ज माफी क्यों. ये पैसा उन्हीं टैक्स पेयर्स की जेब से जाने वाला है, जो सस्ती शिक्षा, पढ़ाई और दवाई जैसी वेलफेयर स्कीम्स पर सरकार के पैसे खर्च करने के नाम पर मुंह बिचकाते हैं, लेकिन ऐसे चुनावों में पानी की तरह बह रहे पैसे पर चुप्पी साध लेते हैं लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने दो सीटों से चुनाव लड़ा. दोनों ही जीते. वायनाड की सीट छोड़ी और रायबरेली अपने पास रखी. तो अब खाली पड़ी वायनाड सीट पर उपचुनाव होंगे. उत्तर प्रदेश के 9 विधायक अब सांसद बन गए तो उनकी विधानसभा पर उपचुनाव होंगे. एक सीट पर विधायक को सजा हो गई और विधायकी खत्म हो गई तो वहां उपचुनाव होंगे. बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक में उपचुनाव होने हैं. एक कानून की वजह से ऐसे उपचुनावों पर जो पैसा खर्च होगा, आप उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं
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