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जबलपुर । मध्यप्रदेश में दिव्यांग बच्चों के नाम पर"मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना" में करोड़ों रुपये के घोटाले को लेकर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका लगाई गई है। इसमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) जबलपुर कार्यालय में एक संविदा अधिकारी, सुभाष शुक्ला पर इसमें बड़े पैमाने पर सरकारी धन के दुरुपयोग का आरोप है।
शैलेंद्र बारी और सत्येंद्र कुमार यादव ने सूचना के अधिकार के तहत जुटाई जानकारी के बाद इस घोटाले की शिकायत की थी, परन्तु उक्त शिकायत के वावजूद सुभाष शुक्ला पर कोई कार्यवाही नहीं कि गयी। इसके बाद जनहित याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट का रुख किया गया। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस गंभीर प्रकरण पर संज्ञान लिया है।
ये है मामला
मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना के तहत, सरकार कॉक्लियर इंप्लांट्स और उसके बाद होने वाले फॉलो-अप चेकअप का खर्च उठाती है, ताकि सुनने में अक्षम बच्चे सामान्य जीवन जी सकें। लेकिन सुभाष शुक्ला पर आरोप है कि उन्होंने कथित तौर पर दिव्यांग बच्चों के “फॉलो-अप चेकअप” और “कॉक्लियर इंप्लांट्स” के नाम पर ऐसी संस्थाओं को लाखों-करोड़ों रुपये का भुगतान करा दिया, जहाँ वास्तव में कोई भी उपचार या फॉलो-अप सेवा प्रदान की ही नहीं गई। बच्चों के माता-पिता ने भी इस बात की पुष्टि की है कि उनके बच्चों को सरकार द्वारा कोई फॉलो-अप नहीं मिला और दस्तावेजों पर उनके हस्ताक्षर जाली थे। इस फर्जीवाड़े में भोपाल स्थित दिव्या एडवांस ईएनटी संस्था जैसी कुछ इकाइयां भी शामिल पाई गईं।
मामले को किसने छिपाया
दरअसल यह घोटाला उस समय ही सामने आ जाता जब नियंत्रक महालेखा परीक्षक ने 2019 में अपनी ऑडिट रिपोर्ट में इसका जिक्र कर इसका विस्तृत खुलासा किया था। इस रिपोर्ट में स्पष्ट बताया गया था कि अकेले दिव्या एडवांस ईएनटी संस्था को बिना किसी वास्तविक सेवा के 2.27 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, जिससे सरकारी खजाने को सीधा नुकसान हुआ। लेकिन भ्रष्टाचार को पोसने वालों ने CAG की इस गम्भीर रिपोर्ट के बावजूद, इस मामले को 2019 से लेकर अब तक पूरी तरह दबाकर रखा। सुभाष शुक्ला पर सिर्फ इस योजना में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत ऑडियो सिस्टम के लिए आवंटित धन के गबन और फर्जी अनुभव प्रमाण पत्रों के आधार पर अपनी नौकरी हासिल करने जैसे अन्य गंभीर आरोप भी हैं।
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