बार काउंसिल ने SC में किया स्पष्ट, लीगल प्रैक्टिस के साथ पत्रकारिता नहीं कर सकते अधिवक्ता
बार काउंसिल ऑफ इंडिया

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि किसी भी अधिवक्ता को फुल-टाइम या पार्ट-टाइम आधार पर पत्रकारिता करने की अनुमति नहीं है। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने बीसीआई के इस रुख को रिकॉर्ड पर लिया, जिसमें बीसीआई ने अपने नियम 49 का हवाला दिया।

पीठ ने कहा, “हमने बीसीआई के वकील को सुना, जिन्होंने कहा कि बीसीआई के नियमों के अनुसार किसी अधिवक्ता को पार्ट-टाइम या फुल-टाइम पत्रकारिता करने की अनुमति नहीं है। याचिकाकर्ता ने हलफनामा दायर कर कहा है कि वह अब पत्रकार के रूप में कार्य नहीं करेंगे और केवल अधिवक्ता के रूप में ही अभ्यास करेंगे।”

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला मोहम्मद कामरान द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है, जिन्होंने खुद को अधिवक्ता और स्वतंत्र पत्रकार के रूप में पहचाना था। बीसीआई ने अपने हलफनामे में स्पष्ट किया कि फुल-टाइम पत्रकारिता तो अधिवक्ताओं के लिए पूरी तरह निषिद्ध है, साथ ही पार्ट-टाइम पत्रकारिता भी आमतौर पर वर्जित है।हालांकि, बीसीआई ने कहा कि “यदि पार्ट-टाइम पत्रकारिता में केवल विद्वतापूर्ण लेख, कानूनी विषयों पर राय या संपादकीय योगदान शामिल हो, जो विधि व्यवसाय से ‘सार्थक संबंध’ रखता हो, तभी इसे अनुमति दी जा सकती है।” लेकिन इसके बावजूद, यह अधिवक्ता के विधि अभ्यास पर प्रतिबंध के रूप में कार्य करेगा।

बीसीआई ने बताई शर्तें

बीसीआई ने कहा कि किसी भी अधिवक्ता की पत्रकारिता गतिविधि उनके प्राथमिक पेशेवर कर्तव्यों के विपरीत नहीं होनी चाहिए और न ही यह उनके कानूनी पेशे की गरिमा व स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती है। बीसीआई ने यह भी कहा कि अधिवक्ताओं के लिए दोहरे पेशे को अपनाना पूरी तरह प्रतिबंधित है बीसीआई नियम 51 में अधिवक्ताओं को कुछ हद तक पत्रकारिता करने की छूट दी गई है, लेकिन यह केवल उन्हीं योगदानों तक सीमित होना चाहिए जो कानूनी अभ्यास और समझ से सीधे जुड़े हों।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला और अगली सुनवाई

न्यायालय ने मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता कामरान के उस हलफनामे को स्वीकार कर लिया, जिसमें उन्होंने कहा कि वह अब पत्रकार के रूप में कार्य नहीं करेंगे और केवल अधिवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं देंगे। इस मामले की अगली सुनवाई 3 फरवरी, 2025 को होगी।

मामला कैसे शुरू हुआ?

यह याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आपराधिक मानहानि की कार्यवाही को खारिज कर दिया गया था।

दरअसल, सितंबर 2022 में बृजभूषण शरण सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को पत्र लिखे थे, जिनमें कामरान को “षड्यंत्रकारी और चोर” बताया गया था। ये पत्र सोशल मीडिया और समाचार पत्रों में भी प्रसारित हुए, जिसके बाद कामरान ने मानहानि का आरोप लगाते हुए सिंह के खिलाफ कार्यवाही को बहाल करने की मांग की।

यह भी उल्लेखनीय है कि बृजभूषण शरण सिंह एक अन्य मामले में यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे हैं, जो छह भारतीय पहलवानों द्वारा लगाए गए थे। बीसीआई के इस रुख से साफ हो गया है कि अधिवक्ता को पत्रकारिता जैसे अन्य पेशे को अपनाने की अनुमति नहीं है। इससे संबंधित कानूनी स्थिति को और स्पष्ट करने के लिए मामले की सुनवाई अगले वर्ष फरवरी में होगी

Dakhal News 17 December 2024

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