सामाजिक एकता और विरासत का प्रतीक है श्रीगणेशोत्सव
सामाजिक एकता

प्रवीण कक्कड़

श्रीगणेशोत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, श्रीगणेश प्राचीन समय से हमारे आराध्य रहे हैं, पेशवा साम्राज्य में श्रीगणेशोत्सव की धूम रहती थी, फिर लोकमान्य बालगंगाधर तिलक द्वारा शुरू किए गए प्रयासों ने इसे सामाजिक और सार्वजनिक उत्सव के रूप में पहचान दिलाई। उस समय यह प्रयास आजादी आंदोलन में सभी को साथ लाने के लिए किया गया था। तब यह प्रयास सार्थक हुआ और अंग्रेजों के खिलाफ इस उत्सव के जरिए देशवासी एकजुट नजर आए। आज भी इस सार्वजनिक उत्सव में हमें सामाजिक, मानवीय और नैतिक मूल्यों की स्थापना पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके साथ ही हमें सभी की मदद करने, देशहित में लोगों को जोड़ने और समाज को एकजुट करने के प्रयास करना चाहिए।

भादों माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी में यानी अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 31 अगस्त 2022 बुधवार को गणेश चतुर्थी के दिन मूर्ति स्‍थापना होगी। हम सबके घरों में विघ्नहर्ता भगवान गणेश विराजमान होंगे। जगह-जगह गणेश उत्सव का आयोजन होगा और सभी लोग समाज की मंगल कामना की प्रार्थना करेंगे। इस पवित्र त्यौहार का जितना अधिक महत्व है, उससे कम महत्व इसके इतिहास का भी नहीं है। अगर हम गणेश उत्सव के इतिहास की तरफ जाएं तो पाएंगे कि पहले लोग घरों में ही गणेशोत्सव मनाते थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया। आगे चलकर उनका यह प्रयास एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में इस गणेशोत्सव ने लोगों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई।

 

गणेशोत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किए जाने की बात पूरे महाराष्ट्र में फैल गयी। बाद में नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया। अंग्रेज भी इससे घबरा गये। इस बारे में रोलेट समिति रपट में भी चिंता जतायी गयी। रपट में कहा गया कि गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है। गणेशोत्सवों में भाषण देने वाले में प्रमुख राष्ट्रीय नेता थे - लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्ट चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू। पूजन का आयोजन किया तो उनका मकसद सभी जातियो धर्मो को एक साझा मंच देने का था जहां सब बैठ कर मिल कर कोई विचार करें। इस तरह गणेश उत्सव ने पूरे स्वतंत्रता संग्राम में एक बहुत व्यापक और जन हितैषी भूमिका निभाई।

 

गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था।गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। श्रीगणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं।

गणेश उत्सव के पावन पर्व के मौके पर इन सब बातों का इसलिए और ज्यादा महत्व है कि हम पूजा अर्चना के साथ इसके सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी महत्व को भी समझें। यह आस्था का पर्व है श्रद्धा का पर्व है और देश के अभिमान का पर्व है।

आप सबको गणेश उत्सव की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

Dakhal News 28 August 2022

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