bhopal,  Vikram Samvat ,Maharaja Vikramaditya , Ujjain

(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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Dakhal News 4 April 2022


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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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Dakhal News 4 April 2022


bhopal,  Vikram Samvat ,Maharaja Vikramaditya , Ujjain

(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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Dakhal News 4 April 2022


bhopal,  Vikram Samvat ,Maharaja Vikramaditya , Ujjain

(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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Dakhal News 4 April 2022


bhopal,  Vikram Samvat ,Maharaja Vikramaditya , Ujjain

(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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Dakhal News 4 April 2022


bhopal,  Vikram Samvat ,Maharaja Vikramaditya , Ujjain

(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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Dakhal News 4 April 2022


bhopal,  Vikram Samvat ,Maharaja Vikramaditya , Ujjain

(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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Dakhal News 4 April 2022


bhopal,  Vikram Samvat ,Maharaja Vikramaditya , Ujjain

(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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Dakhal News 4 April 2022


bhopal,  Vikram Samvat ,Maharaja Vikramaditya , Ujjain

(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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Dakhal News 4 April 2022


bhopal,  Vikram Samvat ,Maharaja Vikramaditya , Ujjain

(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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Dakhal News 4 April 2022


bhopal,  Vikram Samvat ,Maharaja Vikramaditya , Ujjain

(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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Dakhal News 4 April 2022


bhopal,  Vikram Samvat ,Maharaja Vikramaditya , Ujjain

(प्रवीण कक्‍कड़) चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्‍त्रोक्‍त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्‍द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्‍तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्‍सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्‍वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्‍यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्‍य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्‍जैन के महाराजा विक्रमादित्‍य ने उज्‍जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्‍त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्‍य को शक शकारि विक्रमादित्‍य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्‍ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। आज के बच्‍चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्‍हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्‍कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीज त्‍योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्‍याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्‍योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं। कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्‍यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्‍यों नहीं आती। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्‍प और खगोल विज्ञान के रहस्‍य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्‍से होते हैं शुक्‍ल पक्ष और कृष्‍ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्‍या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्‍या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्‍या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्‍पी हो तो इसे आप ज्‍योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं। इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्‍न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्‍न जीवन का नया प्रस्‍थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्‍छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्‍य और नए आनंदों का वरण करें। भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं

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Dakhal News 4 April 2022


bhopal, Newspaper printing ,stopped in Sri Lanka

विश्व दीपक- क्या आप जानते हैं? हमारे पड़ोसी देश, श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं. अखबार छापने के लिए कागज का स्टॉक लगभग खतम हो चुका है। इधर भारत में केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है. ये पहले लागू नहीं था. श्रीलंका में बहुत सारे लोगों को कई दिनों से दो जून का खाना नहीं मिल पा रहा। लोगों के पास रसोई गैस नहीं है. पेट्रोल भराने के लिए पैसे नहीं. जिनके पास पैसे हैं वो भरा नहीं पा रहे. कई लोग पेट्रोल भराने के लिए लाइन में खड़े-खड़े ही मर गए। उद्योग धंधे बंद होने लगे हैं. चारों तरफ छंटनी चल रही है. लोगों की नौकरियां जा रही हैं. स्कूल, कॉलेज बंद होने लगे हैं। अस्पतालों ने इलाज करना बंद कर दिया है. बहुत जगहों पर ओपीडी बंद की जा रही है। कोलंबो में लाखों की जनता इकट्ठा है. राजपक्षे सरकार के खिलाफ जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहे हैं. पूरा देश कर्ज में डूबा है. लाखों लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं. भारत आना चाह रहे हैं. मेरा मानना है कि भारत को खुशी-खुशी श्रीलंका के लोगों अपनाना चाहिए. उन्हें व्यवस्थित तरीके से कई राज्यों में भेजकर उनके रहने, खाने-पीने का इंतजाम करना चाहिए. भारत इतना कर सकता है. जब प्रधानमंत्री के लिए 8 हज़ार करोड़ का प्लेन खरीदा जा सकता है तो कम से कम 80 हज़ार श्रीलंकाई नगारिकों की जान भी बचाई जा सकती है. कोई बड़ी बात नहीं. भारत को बड़ा भाई बनकर यह फर्ज निभाना चाहिए. सवाल यह है कि श्रीलंका की यह हालत क्यों हुई? जाहिर है कई कारण हैं लेकिन दो अहम हैं जिनके बारे में जानना चाहिए – बहुत आसान शर्तों पर चीन का दिया हुआ कर्जा. कई सालों से श्रीलंका, चीन के डेट ट्रैप में हैं. चीनी साम्राज्यवाद की जकड़न से श्रीलंका टूटा. कई अफ्रीकी देश श्रीलंका की राह पर हैं. दूसरा कारण है रूसी तानाशाह पुतिन का यूक्रेन पर युद्ध थोपना. पुतिन द्वारा शुरू किए गए युद्ध की वजह से श्रीलंकाई संकट की प्रक्रिया तेज़ हो गई. जो अफरा-तफरी छह महीने में मचनी थी वह एक महीने में ही सतह पर आ गई. पुतिन सिर्फ रूस-यूक्रेन का ही नहीं संपूर्ण मनुष्यता का अपराधी है. याद रखिए अगर कच्चे तेल की कीमत 170-200 डॉलर प्रति बैरल तक गई तो समझिए कि हमारा आपका भी मिटना तय है. पड़ोसी देश श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं क्यूंकि उनके पास कागज़ ही नहीं है. वहां परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं. प्रश्न पत्र छपने तक के लिए कागज़ नहीं. महंगा कागज़ खरीदने के लिए पैसे नहीं. इसके पीछे एक बड़ा कारण पुतिन द्वारा, यूक्रेन पर थोपा गया युद्ध है. ये सब आप जान चुके हैं. अब सुनिए भारत का हाल. केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है.पहले लागू नहीं था जीएसटी का न्यूनतम क्राइटेरिया भी 5% से बढ़ाकर 8% किया जा सकता है भारत में भी कागज़ की किल्लत है. हालांकि स्थिति संकट जैसी नहीं लेकिन पहले से काफी महंगा हो चुका है कागज़ भारत का 40 फीसदी कागज़ कनाडा से आता है जो देश में बनता है, उसकी कीमत दो साल पहले तक 35 रुपए प्रति किलो थी. आज 75 रुपए प्रति किलो. यानि बस दो साल में दोगुना से ज्यादा कीमत बढ़ी विदेश से आयात होने वाला कागज पिछले साल यानी 2020 में 375 डॉलर प्रति टन था. आज 1000 डॉलर प्रति टन है7.भारत में बनने वाले कागज की एक तो क्वालिटी खराब होती है दूसरा लुगदी से बनता था. अब लुगदी वाली कंपनियां पैकेजिंग के लिए काम आने वाले बॉक्स आदि बनाने लगी हैं क्योंकि उसमे मुनाफा ज्यादा है फकीरचन्द की सरकार सब कुछ ऑनलाइन कर देने पर जो इतना जोर दे रही है, पेपरलेस होने की जो इतनी कवायद कर रही है — उसके पीछे यह एक बड़ा कारण है. समाज जितना पेपरलेस होगा, उतना ही माइंडलेस भी होगा. हां, एक फायदा हो सकता है. सरकार अब यह कहेगी कि कागज़ नहीं, मोबाइल दिखाओ.

Dakhal News

Dakhal News 29 March 2022


bhopal, Newspaper printing ,stopped in Sri Lanka

विश्व दीपक- क्या आप जानते हैं? हमारे पड़ोसी देश, श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं. अखबार छापने के लिए कागज का स्टॉक लगभग खतम हो चुका है। इधर भारत में केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है. ये पहले लागू नहीं था. श्रीलंका में बहुत सारे लोगों को कई दिनों से दो जून का खाना नहीं मिल पा रहा। लोगों के पास रसोई गैस नहीं है. पेट्रोल भराने के लिए पैसे नहीं. जिनके पास पैसे हैं वो भरा नहीं पा रहे. कई लोग पेट्रोल भराने के लिए लाइन में खड़े-खड़े ही मर गए। उद्योग धंधे बंद होने लगे हैं. चारों तरफ छंटनी चल रही है. लोगों की नौकरियां जा रही हैं. स्कूल, कॉलेज बंद होने लगे हैं। अस्पतालों ने इलाज करना बंद कर दिया है. बहुत जगहों पर ओपीडी बंद की जा रही है। कोलंबो में लाखों की जनता इकट्ठा है. राजपक्षे सरकार के खिलाफ जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहे हैं. पूरा देश कर्ज में डूबा है. लाखों लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं. भारत आना चाह रहे हैं. मेरा मानना है कि भारत को खुशी-खुशी श्रीलंका के लोगों अपनाना चाहिए. उन्हें व्यवस्थित तरीके से कई राज्यों में भेजकर उनके रहने, खाने-पीने का इंतजाम करना चाहिए. भारत इतना कर सकता है. जब प्रधानमंत्री के लिए 8 हज़ार करोड़ का प्लेन खरीदा जा सकता है तो कम से कम 80 हज़ार श्रीलंकाई नगारिकों की जान भी बचाई जा सकती है. कोई बड़ी बात नहीं. भारत को बड़ा भाई बनकर यह फर्ज निभाना चाहिए. सवाल यह है कि श्रीलंका की यह हालत क्यों हुई? जाहिर है कई कारण हैं लेकिन दो अहम हैं जिनके बारे में जानना चाहिए – बहुत आसान शर्तों पर चीन का दिया हुआ कर्जा. कई सालों से श्रीलंका, चीन के डेट ट्रैप में हैं. चीनी साम्राज्यवाद की जकड़न से श्रीलंका टूटा. कई अफ्रीकी देश श्रीलंका की राह पर हैं. दूसरा कारण है रूसी तानाशाह पुतिन का यूक्रेन पर युद्ध थोपना. पुतिन द्वारा शुरू किए गए युद्ध की वजह से श्रीलंकाई संकट की प्रक्रिया तेज़ हो गई. जो अफरा-तफरी छह महीने में मचनी थी वह एक महीने में ही सतह पर आ गई. पुतिन सिर्फ रूस-यूक्रेन का ही नहीं संपूर्ण मनुष्यता का अपराधी है. याद रखिए अगर कच्चे तेल की कीमत 170-200 डॉलर प्रति बैरल तक गई तो समझिए कि हमारा आपका भी मिटना तय है. पड़ोसी देश श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं क्यूंकि उनके पास कागज़ ही नहीं है. वहां परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं. प्रश्न पत्र छपने तक के लिए कागज़ नहीं. महंगा कागज़ खरीदने के लिए पैसे नहीं. इसके पीछे एक बड़ा कारण पुतिन द्वारा, यूक्रेन पर थोपा गया युद्ध है. ये सब आप जान चुके हैं. अब सुनिए भारत का हाल. केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है.पहले लागू नहीं था जीएसटी का न्यूनतम क्राइटेरिया भी 5% से बढ़ाकर 8% किया जा सकता है भारत में भी कागज़ की किल्लत है. हालांकि स्थिति संकट जैसी नहीं लेकिन पहले से काफी महंगा हो चुका है कागज़ भारत का 40 फीसदी कागज़ कनाडा से आता है जो देश में बनता है, उसकी कीमत दो साल पहले तक 35 रुपए प्रति किलो थी. आज 75 रुपए प्रति किलो. यानि बस दो साल में दोगुना से ज्यादा कीमत बढ़ी विदेश से आयात होने वाला कागज पिछले साल यानी 2020 में 375 डॉलर प्रति टन था. आज 1000 डॉलर प्रति टन है7.भारत में बनने वाले कागज की एक तो क्वालिटी खराब होती है दूसरा लुगदी से बनता था. अब लुगदी वाली कंपनियां पैकेजिंग के लिए काम आने वाले बॉक्स आदि बनाने लगी हैं क्योंकि उसमे मुनाफा ज्यादा है फकीरचन्द की सरकार सब कुछ ऑनलाइन कर देने पर जो इतना जोर दे रही है, पेपरलेस होने की जो इतनी कवायद कर रही है — उसके पीछे यह एक बड़ा कारण है. समाज जितना पेपरलेस होगा, उतना ही माइंडलेस भी होगा. हां, एक फायदा हो सकता है. सरकार अब यह कहेगी कि कागज़ नहीं, मोबाइल दिखाओ.

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Dakhal News 29 March 2022


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विश्व दीपक- क्या आप जानते हैं? हमारे पड़ोसी देश, श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं. अखबार छापने के लिए कागज का स्टॉक लगभग खतम हो चुका है। इधर भारत में केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है. ये पहले लागू नहीं था. श्रीलंका में बहुत सारे लोगों को कई दिनों से दो जून का खाना नहीं मिल पा रहा। लोगों के पास रसोई गैस नहीं है. पेट्रोल भराने के लिए पैसे नहीं. जिनके पास पैसे हैं वो भरा नहीं पा रहे. कई लोग पेट्रोल भराने के लिए लाइन में खड़े-खड़े ही मर गए। उद्योग धंधे बंद होने लगे हैं. चारों तरफ छंटनी चल रही है. लोगों की नौकरियां जा रही हैं. स्कूल, कॉलेज बंद होने लगे हैं। अस्पतालों ने इलाज करना बंद कर दिया है. बहुत जगहों पर ओपीडी बंद की जा रही है। कोलंबो में लाखों की जनता इकट्ठा है. राजपक्षे सरकार के खिलाफ जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहे हैं. पूरा देश कर्ज में डूबा है. लाखों लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं. भारत आना चाह रहे हैं. मेरा मानना है कि भारत को खुशी-खुशी श्रीलंका के लोगों अपनाना चाहिए. उन्हें व्यवस्थित तरीके से कई राज्यों में भेजकर उनके रहने, खाने-पीने का इंतजाम करना चाहिए. भारत इतना कर सकता है. जब प्रधानमंत्री के लिए 8 हज़ार करोड़ का प्लेन खरीदा जा सकता है तो कम से कम 80 हज़ार श्रीलंकाई नगारिकों की जान भी बचाई जा सकती है. कोई बड़ी बात नहीं. भारत को बड़ा भाई बनकर यह फर्ज निभाना चाहिए. सवाल यह है कि श्रीलंका की यह हालत क्यों हुई? जाहिर है कई कारण हैं लेकिन दो अहम हैं जिनके बारे में जानना चाहिए – बहुत आसान शर्तों पर चीन का दिया हुआ कर्जा. कई सालों से श्रीलंका, चीन के डेट ट्रैप में हैं. चीनी साम्राज्यवाद की जकड़न से श्रीलंका टूटा. कई अफ्रीकी देश श्रीलंका की राह पर हैं. दूसरा कारण है रूसी तानाशाह पुतिन का यूक्रेन पर युद्ध थोपना. पुतिन द्वारा शुरू किए गए युद्ध की वजह से श्रीलंकाई संकट की प्रक्रिया तेज़ हो गई. जो अफरा-तफरी छह महीने में मचनी थी वह एक महीने में ही सतह पर आ गई. पुतिन सिर्फ रूस-यूक्रेन का ही नहीं संपूर्ण मनुष्यता का अपराधी है. याद रखिए अगर कच्चे तेल की कीमत 170-200 डॉलर प्रति बैरल तक गई तो समझिए कि हमारा आपका भी मिटना तय है. पड़ोसी देश श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं क्यूंकि उनके पास कागज़ ही नहीं है. वहां परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं. प्रश्न पत्र छपने तक के लिए कागज़ नहीं. महंगा कागज़ खरीदने के लिए पैसे नहीं. इसके पीछे एक बड़ा कारण पुतिन द्वारा, यूक्रेन पर थोपा गया युद्ध है. ये सब आप जान चुके हैं. अब सुनिए भारत का हाल. केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है.पहले लागू नहीं था जीएसटी का न्यूनतम क्राइटेरिया भी 5% से बढ़ाकर 8% किया जा सकता है भारत में भी कागज़ की किल्लत है. हालांकि स्थिति संकट जैसी नहीं लेकिन पहले से काफी महंगा हो चुका है कागज़ भारत का 40 फीसदी कागज़ कनाडा से आता है जो देश में बनता है, उसकी कीमत दो साल पहले तक 35 रुपए प्रति किलो थी. आज 75 रुपए प्रति किलो. यानि बस दो साल में दोगुना से ज्यादा कीमत बढ़ी विदेश से आयात होने वाला कागज पिछले साल यानी 2020 में 375 डॉलर प्रति टन था. आज 1000 डॉलर प्रति टन है7.भारत में बनने वाले कागज की एक तो क्वालिटी खराब होती है दूसरा लुगदी से बनता था. अब लुगदी वाली कंपनियां पैकेजिंग के लिए काम आने वाले बॉक्स आदि बनाने लगी हैं क्योंकि उसमे मुनाफा ज्यादा है फकीरचन्द की सरकार सब कुछ ऑनलाइन कर देने पर जो इतना जोर दे रही है, पेपरलेस होने की जो इतनी कवायद कर रही है — उसके पीछे यह एक बड़ा कारण है. समाज जितना पेपरलेस होगा, उतना ही माइंडलेस भी होगा. हां, एक फायदा हो सकता है. सरकार अब यह कहेगी कि कागज़ नहीं, मोबाइल दिखाओ.

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विश्व दीपक- क्या आप जानते हैं? हमारे पड़ोसी देश, श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं. अखबार छापने के लिए कागज का स्टॉक लगभग खतम हो चुका है। इधर भारत में केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है. ये पहले लागू नहीं था. श्रीलंका में बहुत सारे लोगों को कई दिनों से दो जून का खाना नहीं मिल पा रहा। लोगों के पास रसोई गैस नहीं है. पेट्रोल भराने के लिए पैसे नहीं. जिनके पास पैसे हैं वो भरा नहीं पा रहे. कई लोग पेट्रोल भराने के लिए लाइन में खड़े-खड़े ही मर गए। उद्योग धंधे बंद होने लगे हैं. चारों तरफ छंटनी चल रही है. लोगों की नौकरियां जा रही हैं. स्कूल, कॉलेज बंद होने लगे हैं। अस्पतालों ने इलाज करना बंद कर दिया है. बहुत जगहों पर ओपीडी बंद की जा रही है। कोलंबो में लाखों की जनता इकट्ठा है. राजपक्षे सरकार के खिलाफ जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहे हैं. पूरा देश कर्ज में डूबा है. लाखों लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं. भारत आना चाह रहे हैं. मेरा मानना है कि भारत को खुशी-खुशी श्रीलंका के लोगों अपनाना चाहिए. उन्हें व्यवस्थित तरीके से कई राज्यों में भेजकर उनके रहने, खाने-पीने का इंतजाम करना चाहिए. भारत इतना कर सकता है. जब प्रधानमंत्री के लिए 8 हज़ार करोड़ का प्लेन खरीदा जा सकता है तो कम से कम 80 हज़ार श्रीलंकाई नगारिकों की जान भी बचाई जा सकती है. कोई बड़ी बात नहीं. भारत को बड़ा भाई बनकर यह फर्ज निभाना चाहिए. सवाल यह है कि श्रीलंका की यह हालत क्यों हुई? जाहिर है कई कारण हैं लेकिन दो अहम हैं जिनके बारे में जानना चाहिए – बहुत आसान शर्तों पर चीन का दिया हुआ कर्जा. कई सालों से श्रीलंका, चीन के डेट ट्रैप में हैं. चीनी साम्राज्यवाद की जकड़न से श्रीलंका टूटा. कई अफ्रीकी देश श्रीलंका की राह पर हैं. दूसरा कारण है रूसी तानाशाह पुतिन का यूक्रेन पर युद्ध थोपना. पुतिन द्वारा शुरू किए गए युद्ध की वजह से श्रीलंकाई संकट की प्रक्रिया तेज़ हो गई. जो अफरा-तफरी छह महीने में मचनी थी वह एक महीने में ही सतह पर आ गई. पुतिन सिर्फ रूस-यूक्रेन का ही नहीं संपूर्ण मनुष्यता का अपराधी है. याद रखिए अगर कच्चे तेल की कीमत 170-200 डॉलर प्रति बैरल तक गई तो समझिए कि हमारा आपका भी मिटना तय है. पड़ोसी देश श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं क्यूंकि उनके पास कागज़ ही नहीं है. वहां परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं. प्रश्न पत्र छपने तक के लिए कागज़ नहीं. महंगा कागज़ खरीदने के लिए पैसे नहीं. इसके पीछे एक बड़ा कारण पुतिन द्वारा, यूक्रेन पर थोपा गया युद्ध है. ये सब आप जान चुके हैं. अब सुनिए भारत का हाल. केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है.पहले लागू नहीं था जीएसटी का न्यूनतम क्राइटेरिया भी 5% से बढ़ाकर 8% किया जा सकता है भारत में भी कागज़ की किल्लत है. हालांकि स्थिति संकट जैसी नहीं लेकिन पहले से काफी महंगा हो चुका है कागज़ भारत का 40 फीसदी कागज़ कनाडा से आता है जो देश में बनता है, उसकी कीमत दो साल पहले तक 35 रुपए प्रति किलो थी. आज 75 रुपए प्रति किलो. यानि बस दो साल में दोगुना से ज्यादा कीमत बढ़ी विदेश से आयात होने वाला कागज पिछले साल यानी 2020 में 375 डॉलर प्रति टन था. आज 1000 डॉलर प्रति टन है7.भारत में बनने वाले कागज की एक तो क्वालिटी खराब होती है दूसरा लुगदी से बनता था. अब लुगदी वाली कंपनियां पैकेजिंग के लिए काम आने वाले बॉक्स आदि बनाने लगी हैं क्योंकि उसमे मुनाफा ज्यादा है फकीरचन्द की सरकार सब कुछ ऑनलाइन कर देने पर जो इतना जोर दे रही है, पेपरलेस होने की जो इतनी कवायद कर रही है — उसके पीछे यह एक बड़ा कारण है. समाज जितना पेपरलेस होगा, उतना ही माइंडलेस भी होगा. हां, एक फायदा हो सकता है. सरकार अब यह कहेगी कि कागज़ नहीं, मोबाइल दिखाओ.

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Dakhal News 29 March 2022


bhopal, Newspaper printing ,stopped in Sri Lanka

विश्व दीपक- क्या आप जानते हैं? हमारे पड़ोसी देश, श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं. अखबार छापने के लिए कागज का स्टॉक लगभग खतम हो चुका है। इधर भारत में केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है. ये पहले लागू नहीं था. श्रीलंका में बहुत सारे लोगों को कई दिनों से दो जून का खाना नहीं मिल पा रहा। लोगों के पास रसोई गैस नहीं है. पेट्रोल भराने के लिए पैसे नहीं. जिनके पास पैसे हैं वो भरा नहीं पा रहे. कई लोग पेट्रोल भराने के लिए लाइन में खड़े-खड़े ही मर गए। उद्योग धंधे बंद होने लगे हैं. चारों तरफ छंटनी चल रही है. लोगों की नौकरियां जा रही हैं. स्कूल, कॉलेज बंद होने लगे हैं। अस्पतालों ने इलाज करना बंद कर दिया है. बहुत जगहों पर ओपीडी बंद की जा रही है। कोलंबो में लाखों की जनता इकट्ठा है. राजपक्षे सरकार के खिलाफ जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहे हैं. पूरा देश कर्ज में डूबा है. लाखों लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं. भारत आना चाह रहे हैं. मेरा मानना है कि भारत को खुशी-खुशी श्रीलंका के लोगों अपनाना चाहिए. उन्हें व्यवस्थित तरीके से कई राज्यों में भेजकर उनके रहने, खाने-पीने का इंतजाम करना चाहिए. भारत इतना कर सकता है. जब प्रधानमंत्री के लिए 8 हज़ार करोड़ का प्लेन खरीदा जा सकता है तो कम से कम 80 हज़ार श्रीलंकाई नगारिकों की जान भी बचाई जा सकती है. कोई बड़ी बात नहीं. भारत को बड़ा भाई बनकर यह फर्ज निभाना चाहिए. सवाल यह है कि श्रीलंका की यह हालत क्यों हुई? जाहिर है कई कारण हैं लेकिन दो अहम हैं जिनके बारे में जानना चाहिए – बहुत आसान शर्तों पर चीन का दिया हुआ कर्जा. कई सालों से श्रीलंका, चीन के डेट ट्रैप में हैं. चीनी साम्राज्यवाद की जकड़न से श्रीलंका टूटा. कई अफ्रीकी देश श्रीलंका की राह पर हैं. दूसरा कारण है रूसी तानाशाह पुतिन का यूक्रेन पर युद्ध थोपना. पुतिन द्वारा शुरू किए गए युद्ध की वजह से श्रीलंकाई संकट की प्रक्रिया तेज़ हो गई. जो अफरा-तफरी छह महीने में मचनी थी वह एक महीने में ही सतह पर आ गई. पुतिन सिर्फ रूस-यूक्रेन का ही नहीं संपूर्ण मनुष्यता का अपराधी है. याद रखिए अगर कच्चे तेल की कीमत 170-200 डॉलर प्रति बैरल तक गई तो समझिए कि हमारा आपका भी मिटना तय है. पड़ोसी देश श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं क्यूंकि उनके पास कागज़ ही नहीं है. वहां परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं. प्रश्न पत्र छपने तक के लिए कागज़ नहीं. महंगा कागज़ खरीदने के लिए पैसे नहीं. इसके पीछे एक बड़ा कारण पुतिन द्वारा, यूक्रेन पर थोपा गया युद्ध है. ये सब आप जान चुके हैं. अब सुनिए भारत का हाल. केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है.पहले लागू नहीं था जीएसटी का न्यूनतम क्राइटेरिया भी 5% से बढ़ाकर 8% किया जा सकता है भारत में भी कागज़ की किल्लत है. हालांकि स्थिति संकट जैसी नहीं लेकिन पहले से काफी महंगा हो चुका है कागज़ भारत का 40 फीसदी कागज़ कनाडा से आता है जो देश में बनता है, उसकी कीमत दो साल पहले तक 35 रुपए प्रति किलो थी. आज 75 रुपए प्रति किलो. यानि बस दो साल में दोगुना से ज्यादा कीमत बढ़ी विदेश से आयात होने वाला कागज पिछले साल यानी 2020 में 375 डॉलर प्रति टन था. आज 1000 डॉलर प्रति टन है7.भारत में बनने वाले कागज की एक तो क्वालिटी खराब होती है दूसरा लुगदी से बनता था. अब लुगदी वाली कंपनियां पैकेजिंग के लिए काम आने वाले बॉक्स आदि बनाने लगी हैं क्योंकि उसमे मुनाफा ज्यादा है फकीरचन्द की सरकार सब कुछ ऑनलाइन कर देने पर जो इतना जोर दे रही है, पेपरलेस होने की जो इतनी कवायद कर रही है — उसके पीछे यह एक बड़ा कारण है. समाज जितना पेपरलेस होगा, उतना ही माइंडलेस भी होगा. हां, एक फायदा हो सकता है. सरकार अब यह कहेगी कि कागज़ नहीं, मोबाइल दिखाओ.

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विश्व दीपक- क्या आप जानते हैं? हमारे पड़ोसी देश, श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं. अखबार छापने के लिए कागज का स्टॉक लगभग खतम हो चुका है। इधर भारत में केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है. ये पहले लागू नहीं था. श्रीलंका में बहुत सारे लोगों को कई दिनों से दो जून का खाना नहीं मिल पा रहा। लोगों के पास रसोई गैस नहीं है. पेट्रोल भराने के लिए पैसे नहीं. जिनके पास पैसे हैं वो भरा नहीं पा रहे. कई लोग पेट्रोल भराने के लिए लाइन में खड़े-खड़े ही मर गए। उद्योग धंधे बंद होने लगे हैं. चारों तरफ छंटनी चल रही है. लोगों की नौकरियां जा रही हैं. स्कूल, कॉलेज बंद होने लगे हैं। अस्पतालों ने इलाज करना बंद कर दिया है. बहुत जगहों पर ओपीडी बंद की जा रही है। कोलंबो में लाखों की जनता इकट्ठा है. राजपक्षे सरकार के खिलाफ जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहे हैं. पूरा देश कर्ज में डूबा है. लाखों लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं. भारत आना चाह रहे हैं. मेरा मानना है कि भारत को खुशी-खुशी श्रीलंका के लोगों अपनाना चाहिए. उन्हें व्यवस्थित तरीके से कई राज्यों में भेजकर उनके रहने, खाने-पीने का इंतजाम करना चाहिए. भारत इतना कर सकता है. जब प्रधानमंत्री के लिए 8 हज़ार करोड़ का प्लेन खरीदा जा सकता है तो कम से कम 80 हज़ार श्रीलंकाई नगारिकों की जान भी बचाई जा सकती है. कोई बड़ी बात नहीं. भारत को बड़ा भाई बनकर यह फर्ज निभाना चाहिए. सवाल यह है कि श्रीलंका की यह हालत क्यों हुई? जाहिर है कई कारण हैं लेकिन दो अहम हैं जिनके बारे में जानना चाहिए – बहुत आसान शर्तों पर चीन का दिया हुआ कर्जा. कई सालों से श्रीलंका, चीन के डेट ट्रैप में हैं. चीनी साम्राज्यवाद की जकड़न से श्रीलंका टूटा. कई अफ्रीकी देश श्रीलंका की राह पर हैं. दूसरा कारण है रूसी तानाशाह पुतिन का यूक्रेन पर युद्ध थोपना. पुतिन द्वारा शुरू किए गए युद्ध की वजह से श्रीलंकाई संकट की प्रक्रिया तेज़ हो गई. जो अफरा-तफरी छह महीने में मचनी थी वह एक महीने में ही सतह पर आ गई. पुतिन सिर्फ रूस-यूक्रेन का ही नहीं संपूर्ण मनुष्यता का अपराधी है. याद रखिए अगर कच्चे तेल की कीमत 170-200 डॉलर प्रति बैरल तक गई तो समझिए कि हमारा आपका भी मिटना तय है. पड़ोसी देश श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं क्यूंकि उनके पास कागज़ ही नहीं है. वहां परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं. प्रश्न पत्र छपने तक के लिए कागज़ नहीं. महंगा कागज़ खरीदने के लिए पैसे नहीं. इसके पीछे एक बड़ा कारण पुतिन द्वारा, यूक्रेन पर थोपा गया युद्ध है. ये सब आप जान चुके हैं. अब सुनिए भारत का हाल. केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है.पहले लागू नहीं था जीएसटी का न्यूनतम क्राइटेरिया भी 5% से बढ़ाकर 8% किया जा सकता है भारत में भी कागज़ की किल्लत है. हालांकि स्थिति संकट जैसी नहीं लेकिन पहले से काफी महंगा हो चुका है कागज़ भारत का 40 फीसदी कागज़ कनाडा से आता है जो देश में बनता है, उसकी कीमत दो साल पहले तक 35 रुपए प्रति किलो थी. आज 75 रुपए प्रति किलो. यानि बस दो साल में दोगुना से ज्यादा कीमत बढ़ी विदेश से आयात होने वाला कागज पिछले साल यानी 2020 में 375 डॉलर प्रति टन था. आज 1000 डॉलर प्रति टन है7.भारत में बनने वाले कागज की एक तो क्वालिटी खराब होती है दूसरा लुगदी से बनता था. अब लुगदी वाली कंपनियां पैकेजिंग के लिए काम आने वाले बॉक्स आदि बनाने लगी हैं क्योंकि उसमे मुनाफा ज्यादा है फकीरचन्द की सरकार सब कुछ ऑनलाइन कर देने पर जो इतना जोर दे रही है, पेपरलेस होने की जो इतनी कवायद कर रही है — उसके पीछे यह एक बड़ा कारण है. समाज जितना पेपरलेस होगा, उतना ही माइंडलेस भी होगा. हां, एक फायदा हो सकता है. सरकार अब यह कहेगी कि कागज़ नहीं, मोबाइल दिखाओ.

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विश्व दीपक- क्या आप जानते हैं? हमारे पड़ोसी देश, श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं. अखबार छापने के लिए कागज का स्टॉक लगभग खतम हो चुका है। इधर भारत में केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है. ये पहले लागू नहीं था. श्रीलंका में बहुत सारे लोगों को कई दिनों से दो जून का खाना नहीं मिल पा रहा। लोगों के पास रसोई गैस नहीं है. पेट्रोल भराने के लिए पैसे नहीं. जिनके पास पैसे हैं वो भरा नहीं पा रहे. कई लोग पेट्रोल भराने के लिए लाइन में खड़े-खड़े ही मर गए। उद्योग धंधे बंद होने लगे हैं. चारों तरफ छंटनी चल रही है. लोगों की नौकरियां जा रही हैं. स्कूल, कॉलेज बंद होने लगे हैं। अस्पतालों ने इलाज करना बंद कर दिया है. बहुत जगहों पर ओपीडी बंद की जा रही है। कोलंबो में लाखों की जनता इकट्ठा है. राजपक्षे सरकार के खिलाफ जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहे हैं. पूरा देश कर्ज में डूबा है. लाखों लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं. भारत आना चाह रहे हैं. मेरा मानना है कि भारत को खुशी-खुशी श्रीलंका के लोगों अपनाना चाहिए. उन्हें व्यवस्थित तरीके से कई राज्यों में भेजकर उनके रहने, खाने-पीने का इंतजाम करना चाहिए. भारत इतना कर सकता है. जब प्रधानमंत्री के लिए 8 हज़ार करोड़ का प्लेन खरीदा जा सकता है तो कम से कम 80 हज़ार श्रीलंकाई नगारिकों की जान भी बचाई जा सकती है. कोई बड़ी बात नहीं. भारत को बड़ा भाई बनकर यह फर्ज निभाना चाहिए. सवाल यह है कि श्रीलंका की यह हालत क्यों हुई? जाहिर है कई कारण हैं लेकिन दो अहम हैं जिनके बारे में जानना चाहिए – बहुत आसान शर्तों पर चीन का दिया हुआ कर्जा. कई सालों से श्रीलंका, चीन के डेट ट्रैप में हैं. चीनी साम्राज्यवाद की जकड़न से श्रीलंका टूटा. कई अफ्रीकी देश श्रीलंका की राह पर हैं. दूसरा कारण है रूसी तानाशाह पुतिन का यूक्रेन पर युद्ध थोपना. पुतिन द्वारा शुरू किए गए युद्ध की वजह से श्रीलंकाई संकट की प्रक्रिया तेज़ हो गई. जो अफरा-तफरी छह महीने में मचनी थी वह एक महीने में ही सतह पर आ गई. पुतिन सिर्फ रूस-यूक्रेन का ही नहीं संपूर्ण मनुष्यता का अपराधी है. याद रखिए अगर कच्चे तेल की कीमत 170-200 डॉलर प्रति बैरल तक गई तो समझिए कि हमारा आपका भी मिटना तय है. पड़ोसी देश श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं क्यूंकि उनके पास कागज़ ही नहीं है. वहां परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं. प्रश्न पत्र छपने तक के लिए कागज़ नहीं. महंगा कागज़ खरीदने के लिए पैसे नहीं. इसके पीछे एक बड़ा कारण पुतिन द्वारा, यूक्रेन पर थोपा गया युद्ध है. ये सब आप जान चुके हैं. अब सुनिए भारत का हाल. केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है.पहले लागू नहीं था जीएसटी का न्यूनतम क्राइटेरिया भी 5% से बढ़ाकर 8% किया जा सकता है भारत में भी कागज़ की किल्लत है. हालांकि स्थिति संकट जैसी नहीं लेकिन पहले से काफी महंगा हो चुका है कागज़ भारत का 40 फीसदी कागज़ कनाडा से आता है जो देश में बनता है, उसकी कीमत दो साल पहले तक 35 रुपए प्रति किलो थी. आज 75 रुपए प्रति किलो. यानि बस दो साल में दोगुना से ज्यादा कीमत बढ़ी विदेश से आयात होने वाला कागज पिछले साल यानी 2020 में 375 डॉलर प्रति टन था. आज 1000 डॉलर प्रति टन है7.भारत में बनने वाले कागज की एक तो क्वालिटी खराब होती है दूसरा लुगदी से बनता था. अब लुगदी वाली कंपनियां पैकेजिंग के लिए काम आने वाले बॉक्स आदि बनाने लगी हैं क्योंकि उसमे मुनाफा ज्यादा है फकीरचन्द की सरकार सब कुछ ऑनलाइन कर देने पर जो इतना जोर दे रही है, पेपरलेस होने की जो इतनी कवायद कर रही है — उसके पीछे यह एक बड़ा कारण है. समाज जितना पेपरलेस होगा, उतना ही माइंडलेस भी होगा. हां, एक फायदा हो सकता है. सरकार अब यह कहेगी कि कागज़ नहीं, मोबाइल दिखाओ.

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विश्व दीपक- क्या आप जानते हैं? हमारे पड़ोसी देश, श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं. अखबार छापने के लिए कागज का स्टॉक लगभग खतम हो चुका है। इधर भारत में केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है. ये पहले लागू नहीं था. श्रीलंका में बहुत सारे लोगों को कई दिनों से दो जून का खाना नहीं मिल पा रहा। लोगों के पास रसोई गैस नहीं है. पेट्रोल भराने के लिए पैसे नहीं. जिनके पास पैसे हैं वो भरा नहीं पा रहे. कई लोग पेट्रोल भराने के लिए लाइन में खड़े-खड़े ही मर गए। उद्योग धंधे बंद होने लगे हैं. चारों तरफ छंटनी चल रही है. लोगों की नौकरियां जा रही हैं. स्कूल, कॉलेज बंद होने लगे हैं। अस्पतालों ने इलाज करना बंद कर दिया है. बहुत जगहों पर ओपीडी बंद की जा रही है। कोलंबो में लाखों की जनता इकट्ठा है. राजपक्षे सरकार के खिलाफ जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहे हैं. पूरा देश कर्ज में डूबा है. लाखों लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं. भारत आना चाह रहे हैं. मेरा मानना है कि भारत को खुशी-खुशी श्रीलंका के लोगों अपनाना चाहिए. उन्हें व्यवस्थित तरीके से कई राज्यों में भेजकर उनके रहने, खाने-पीने का इंतजाम करना चाहिए. भारत इतना कर सकता है. जब प्रधानमंत्री के लिए 8 हज़ार करोड़ का प्लेन खरीदा जा सकता है तो कम से कम 80 हज़ार श्रीलंकाई नगारिकों की जान भी बचाई जा सकती है. कोई बड़ी बात नहीं. भारत को बड़ा भाई बनकर यह फर्ज निभाना चाहिए. सवाल यह है कि श्रीलंका की यह हालत क्यों हुई? जाहिर है कई कारण हैं लेकिन दो अहम हैं जिनके बारे में जानना चाहिए – बहुत आसान शर्तों पर चीन का दिया हुआ कर्जा. कई सालों से श्रीलंका, चीन के डेट ट्रैप में हैं. चीनी साम्राज्यवाद की जकड़न से श्रीलंका टूटा. कई अफ्रीकी देश श्रीलंका की राह पर हैं. दूसरा कारण है रूसी तानाशाह पुतिन का यूक्रेन पर युद्ध थोपना. पुतिन द्वारा शुरू किए गए युद्ध की वजह से श्रीलंकाई संकट की प्रक्रिया तेज़ हो गई. जो अफरा-तफरी छह महीने में मचनी थी वह एक महीने में ही सतह पर आ गई. पुतिन सिर्फ रूस-यूक्रेन का ही नहीं संपूर्ण मनुष्यता का अपराधी है. याद रखिए अगर कच्चे तेल की कीमत 170-200 डॉलर प्रति बैरल तक गई तो समझिए कि हमारा आपका भी मिटना तय है. पड़ोसी देश श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं क्यूंकि उनके पास कागज़ ही नहीं है. वहां परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं. प्रश्न पत्र छपने तक के लिए कागज़ नहीं. महंगा कागज़ खरीदने के लिए पैसे नहीं. इसके पीछे एक बड़ा कारण पुतिन द्वारा, यूक्रेन पर थोपा गया युद्ध है. ये सब आप जान चुके हैं. अब सुनिए भारत का हाल. केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है.पहले लागू नहीं था जीएसटी का न्यूनतम क्राइटेरिया भी 5% से बढ़ाकर 8% किया जा सकता है भारत में भी कागज़ की किल्लत है. हालांकि स्थिति संकट जैसी नहीं लेकिन पहले से काफी महंगा हो चुका है कागज़ भारत का 40 फीसदी कागज़ कनाडा से आता है जो देश में बनता है, उसकी कीमत दो साल पहले तक 35 रुपए प्रति किलो थी. आज 75 रुपए प्रति किलो. यानि बस दो साल में दोगुना से ज्यादा कीमत बढ़ी विदेश से आयात होने वाला कागज पिछले साल यानी 2020 में 375 डॉलर प्रति टन था. आज 1000 डॉलर प्रति टन है7.भारत में बनने वाले कागज की एक तो क्वालिटी खराब होती है दूसरा लुगदी से बनता था. अब लुगदी वाली कंपनियां पैकेजिंग के लिए काम आने वाले बॉक्स आदि बनाने लगी हैं क्योंकि उसमे मुनाफा ज्यादा है फकीरचन्द की सरकार सब कुछ ऑनलाइन कर देने पर जो इतना जोर दे रही है, पेपरलेस होने की जो इतनी कवायद कर रही है — उसके पीछे यह एक बड़ा कारण है. समाज जितना पेपरलेस होगा, उतना ही माइंडलेस भी होगा. हां, एक फायदा हो सकता है. सरकार अब यह कहेगी कि कागज़ नहीं, मोबाइल दिखाओ.

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विश्व दीपक- क्या आप जानते हैं? हमारे पड़ोसी देश, श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं. अखबार छापने के लिए कागज का स्टॉक लगभग खतम हो चुका है। इधर भारत में केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है. ये पहले लागू नहीं था. श्रीलंका में बहुत सारे लोगों को कई दिनों से दो जून का खाना नहीं मिल पा रहा। लोगों के पास रसोई गैस नहीं है. पेट्रोल भराने के लिए पैसे नहीं. जिनके पास पैसे हैं वो भरा नहीं पा रहे. कई लोग पेट्रोल भराने के लिए लाइन में खड़े-खड़े ही मर गए। उद्योग धंधे बंद होने लगे हैं. चारों तरफ छंटनी चल रही है. लोगों की नौकरियां जा रही हैं. स्कूल, कॉलेज बंद होने लगे हैं। अस्पतालों ने इलाज करना बंद कर दिया है. बहुत जगहों पर ओपीडी बंद की जा रही है। कोलंबो में लाखों की जनता इकट्ठा है. राजपक्षे सरकार के खिलाफ जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहे हैं. पूरा देश कर्ज में डूबा है. लाखों लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं. भारत आना चाह रहे हैं. मेरा मानना है कि भारत को खुशी-खुशी श्रीलंका के लोगों अपनाना चाहिए. उन्हें व्यवस्थित तरीके से कई राज्यों में भेजकर उनके रहने, खाने-पीने का इंतजाम करना चाहिए. भारत इतना कर सकता है. जब प्रधानमंत्री के लिए 8 हज़ार करोड़ का प्लेन खरीदा जा सकता है तो कम से कम 80 हज़ार श्रीलंकाई नगारिकों की जान भी बचाई जा सकती है. कोई बड़ी बात नहीं. भारत को बड़ा भाई बनकर यह फर्ज निभाना चाहिए. सवाल यह है कि श्रीलंका की यह हालत क्यों हुई? जाहिर है कई कारण हैं लेकिन दो अहम हैं जिनके बारे में जानना चाहिए – बहुत आसान शर्तों पर चीन का दिया हुआ कर्जा. कई सालों से श्रीलंका, चीन के डेट ट्रैप में हैं. चीनी साम्राज्यवाद की जकड़न से श्रीलंका टूटा. कई अफ्रीकी देश श्रीलंका की राह पर हैं. दूसरा कारण है रूसी तानाशाह पुतिन का यूक्रेन पर युद्ध थोपना. पुतिन द्वारा शुरू किए गए युद्ध की वजह से श्रीलंकाई संकट की प्रक्रिया तेज़ हो गई. जो अफरा-तफरी छह महीने में मचनी थी वह एक महीने में ही सतह पर आ गई. पुतिन सिर्फ रूस-यूक्रेन का ही नहीं संपूर्ण मनुष्यता का अपराधी है. याद रखिए अगर कच्चे तेल की कीमत 170-200 डॉलर प्रति बैरल तक गई तो समझिए कि हमारा आपका भी मिटना तय है. पड़ोसी देश श्रीलंका में अखबार छपने बंद हो चुके हैं क्यूंकि उनके पास कागज़ ही नहीं है. वहां परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं. प्रश्न पत्र छपने तक के लिए कागज़ नहीं. महंगा कागज़ खरीदने के लिए पैसे नहीं. इसके पीछे एक बड़ा कारण पुतिन द्वारा, यूक्रेन पर थोपा गया युद्ध है. ये सब आप जान चुके हैं. अब सुनिए भारत का हाल. केंद्र सरकार अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री पर भी जीएसटी लगाने की तैयारी कर रही है.पहले लागू नहीं था जीएसटी का न्यूनतम क्राइटेरिया भी 5% से बढ़ाकर 8% किया जा सकता है भारत में भी कागज़ की किल्लत है. हालांकि स्थिति संकट जैसी नहीं लेकिन पहले से काफी महंगा हो चुका है कागज़ भारत का 40 फीसदी कागज़ कनाडा से आता है जो देश में बनता है, उसकी कीमत दो साल पहले तक 35 रुपए प्रति किलो थी. आज 75 रुपए प्रति किलो. यानि बस दो साल में दोगुना से ज्यादा कीमत बढ़ी विदेश से आयात होने वाला कागज पिछले साल यानी 2020 में 375 डॉलर प्रति टन था. आज 1000 डॉलर प्रति टन है7.भारत में बनने वाले कागज की एक तो क्वालिटी खराब होती है दूसरा लुगदी से बनता था. अब लुगदी वाली कंपनियां पैकेजिंग के लिए काम आने वाले बॉक्स आदि बनाने लगी हैं क्योंकि उसमे मुनाफा ज्यादा है फकीरचन्द की सरकार सब कुछ ऑनलाइन कर देने पर जो इतना जोर दे रही है, पेपरलेस होने की जो इतनी कवायद कर रही है — उसके पीछे यह एक बड़ा कारण है. समाज जितना पेपरलेस होगा, उतना ही माइंडलेस भी होगा. हां, एक फायदा हो सकता है. सरकार अब यह कहेगी कि कागज़ नहीं, मोबाइल दिखाओ.

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Dakhal News 29 March 2022


bhopal,Tourism, Will remove stress, Life will get growth

(प्रवीण कक्कड़)  अगर आप अपनी जिंदगी को सुहाना बनाना चाहते हैं तो टूरिज्म का सहारा लीजिये। अधिकांश कामयाब लोगों के जीवन में एक चीज कॉमन है और वह हैं ट्रेवल यानी पर्यटन। हम सभी आज के दौर में एक रूटीन लाइफ जी रहे हैं। किसी को ऑफिस की चिंता है तो किसी को व्यापार की। ऐसे में हमारा दिमाग कुछ बातों में उलझ कर रह जाता है। पर्यटन हमारे दिमाग को खोलता है, हमें नई ऊर्जा देता है, स्ट्रेस से हमें दूर करता है और एक सामाजिक जीवन में हमें वापस लौटाता है। सही मायनों में टूरिज्म यानी पर्यटन आप की ग्रोथ करता है, आप में कॉन्फिडेंस का विकास होता है, आप में कम्युनिकेशन की कला विकसित होती है और आप अलग-अलग परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार कर पाते हैं। इसके साथ ही आपके लिए एक सुनहरी यादों का खजाना जुड़ जाता है जो जिंदगी भर के लिए एक अनमोल मेमोरी है। दुनिया में जो भी महान बना उसने सफर जरूर किया है। अगर त्रेता युग में श्रीराम की बात करें तो वह किसी एक वन में रहकर भी वनवास पूरा कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऋषियों के आश्रम जाकर आशीर्वाद और प्रेरणाएं लीं, वनवासियों की समस्या जानी, भेदभाव मिटाये और विकट परिस्थिति आने पर रावण का वध भी किया। इन्हीं अनुभव के आधार पर उन्होंने राम राज्य की स्थापना की। इसी तरह द्वापर युग में श्री कृष्ण ने भी भ्रमण किया, इसी दौरान उन्हें बेहतर विकल्प नजर आया और उन्होंने मथुरा से अपने राज्य को द्वारका में स्थापित किया। अब कलयुग में आदिगुरु शांकराचार्य हों या स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी हों या  धीरूभाई अंबानी सभी ने खूब भ्रमण किया और अनुभव लिये, परिस्थितियों को समझा और उन्हें जीवन में उतारकार महान बने। अगर गहराई में समझा जाए तो हर महान व्यक्ति ने टूरिज्म से दोस्ती कर खुद को रि-डिस्कवर किया। अलग-अलग समाज, भाषा, खानपान, जलवायु, परंपरा और लोगों के रहन-सहन को जानकर इन्होंने खुद में जरूरी परिवर्तन किए और लोगों तक बेहतर ढंग से अपने संदेश को पहुंचा भी पाए।     गर्मियों का मौसम सामने है और इसके साथ ही गर्मियों की छुट्टी की तैयारी होने लगी है। 2 साल कोरोनाकाल के कारण गर्मियों की छुट्टी बहुत संकट में गुजरी हैं। पिछला साल तो खासकर ऐसा रहा कि हर तरफ दुख और बीमारी का मंजर था। लॉकडाउन की पाबंदियां हमारे चारों तरफ कायम थी। लेकिन इस बार ईश्वर की कृपा से स्थितियां बेहतर हैं। ऐसे में गर्मियों की छुट्टी आते समय प्लानिंग का ध्यान करना बहुत जरूरी है। देश और प्रदेश में कुछ पर्यटन स्थल बहुत चर्चित हैं और ज्यादातर लोग उन्हीं जगहों का रुख कर लेते हैं। ऐसे में इन पर्यटन स्थलों पर बहुत ज्यादा भीड़ हो जाती है, और पर्यटन का जो आनंद लेने हम जाते हैं, वह पीछे छूट जाता है। इसलिए स्थान का चयन करने में सावधानी जरूर बरतनी चाहिए, क्योंकि 2 साल बाद घूमने फिरने का मौका मिला है तो हम इस तरह का इंतजाम करें कि घर के बूढ़े बुजुर्ग बच्चे और पूरा परिवार साथ मिलकर छुट्टियां मना सके। घर के बुजुर्ग सामान्य तौर पर इस तरह के सैर सपाटे में जाने से मना करते हैं, लेकिन यह तो उनके बच्चों और परिवार वालों की जिम्मेदारी है कि वे उन्हें मनाए समझाएं और पूरी सुरक्षा के साथ पर्यटन पर ले जाएं। पर्यटन को सिर्फ मौज मस्ती का माध्यम नहीं समझना चाहिए। असल में यह तो खुद को तरोताजा करने और पुरानी थकान को भुलाकर नई शक्ति का संग्रहण करने का बहाना होता है। नई ताकत के साथ जब हम वापस काम पर लौटते हैं तो दिमाग नए तरह से सोचने की स्थिति में आ जाता है। पश्चिमी देशों में छुट्टियों का इस तरह का सदुपयोग लंबे समय से किया जाता है। बल्कि यह उनकी संस्कृति का एक हिस्सा है। बच्चों के लिए तो इस बार दोहरी खुशी है, पहले तो कई दिनों बाद स्कूल खुले तो बच्चों ने दोस्तों के साथ मस्ती की और अब परीक्षा के बाद की छुट्टी शुरू हो गई हैं। अब बच्चे छुट्टियों का आनंद लेना चाहते हैं। हमारा मध्य प्रदेश तो इस समय देश में पर्यटन का सबसे बड़ा गढ़ है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पूर्वोत्तर, कश्मीर जैसे राज्यों में घूमने की बहुत अच्छी जगह हैं और उनका खूब प्रचार भी है। मध्यप्रदेश में बहुत ही सुंदर रमणीक जगह घूमने लायक हैं। हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम न केवल वहां घूमने जाएंगे बल्कि अपने अपने स्तर पर उनकी अच्छाइयों का खूब प्रचार प्रसार करें।

Dakhal News

Dakhal News 27 March 2022


bhopal,Tourism, Will remove stress, Life will get growth

(प्रवीण कक्कड़)  अगर आप अपनी जिंदगी को सुहाना बनाना चाहते हैं तो टूरिज्म का सहारा लीजिये। अधिकांश कामयाब लोगों के जीवन में एक चीज कॉमन है और वह हैं ट्रेवल यानी पर्यटन। हम सभी आज के दौर में एक रूटीन लाइफ जी रहे हैं। किसी को ऑफिस की चिंता है तो किसी को व्यापार की। ऐसे में हमारा दिमाग कुछ बातों में उलझ कर रह जाता है। पर्यटन हमारे दिमाग को खोलता है, हमें नई ऊर्जा देता है, स्ट्रेस से हमें दूर करता है और एक सामाजिक जीवन में हमें वापस लौटाता है। सही मायनों में टूरिज्म यानी पर्यटन आप की ग्रोथ करता है, आप में कॉन्फिडेंस का विकास होता है, आप में कम्युनिकेशन की कला विकसित होती है और आप अलग-अलग परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार कर पाते हैं। इसके साथ ही आपके लिए एक सुनहरी यादों का खजाना जुड़ जाता है जो जिंदगी भर के लिए एक अनमोल मेमोरी है। दुनिया में जो भी महान बना उसने सफर जरूर किया है। अगर त्रेता युग में श्रीराम की बात करें तो वह किसी एक वन में रहकर भी वनवास पूरा कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऋषियों के आश्रम जाकर आशीर्वाद और प्रेरणाएं लीं, वनवासियों की समस्या जानी, भेदभाव मिटाये और विकट परिस्थिति आने पर रावण का वध भी किया। इन्हीं अनुभव के आधार पर उन्होंने राम राज्य की स्थापना की। इसी तरह द्वापर युग में श्री कृष्ण ने भी भ्रमण किया, इसी दौरान उन्हें बेहतर विकल्प नजर आया और उन्होंने मथुरा से अपने राज्य को द्वारका में स्थापित किया। अब कलयुग में आदिगुरु शांकराचार्य हों या स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी हों या  धीरूभाई अंबानी सभी ने खूब भ्रमण किया और अनुभव लिये, परिस्थितियों को समझा और उन्हें जीवन में उतारकार महान बने। अगर गहराई में समझा जाए तो हर महान व्यक्ति ने टूरिज्म से दोस्ती कर खुद को रि-डिस्कवर किया। अलग-अलग समाज, भाषा, खानपान, जलवायु, परंपरा और लोगों के रहन-सहन को जानकर इन्होंने खुद में जरूरी परिवर्तन किए और लोगों तक बेहतर ढंग से अपने संदेश को पहुंचा भी पाए।     गर्मियों का मौसम सामने है और इसके साथ ही गर्मियों की छुट्टी की तैयारी होने लगी है। 2 साल कोरोनाकाल के कारण गर्मियों की छुट्टी बहुत संकट में गुजरी हैं। पिछला साल तो खासकर ऐसा रहा कि हर तरफ दुख और बीमारी का मंजर था। लॉकडाउन की पाबंदियां हमारे चारों तरफ कायम थी। लेकिन इस बार ईश्वर की कृपा से स्थितियां बेहतर हैं। ऐसे में गर्मियों की छुट्टी आते समय प्लानिंग का ध्यान करना बहुत जरूरी है। देश और प्रदेश में कुछ पर्यटन स्थल बहुत चर्चित हैं और ज्यादातर लोग उन्हीं जगहों का रुख कर लेते हैं। ऐसे में इन पर्यटन स्थलों पर बहुत ज्यादा भीड़ हो जाती है, और पर्यटन का जो आनंद लेने हम जाते हैं, वह पीछे छूट जाता है। इसलिए स्थान का चयन करने में सावधानी जरूर बरतनी चाहिए, क्योंकि 2 साल बाद घूमने फिरने का मौका मिला है तो हम इस तरह का इंतजाम करें कि घर के बूढ़े बुजुर्ग बच्चे और पूरा परिवार साथ मिलकर छुट्टियां मना सके। घर के बुजुर्ग सामान्य तौर पर इस तरह के सैर सपाटे में जाने से मना करते हैं, लेकिन यह तो उनके बच्चों और परिवार वालों की जिम्मेदारी है कि वे उन्हें मनाए समझाएं और पूरी सुरक्षा के साथ पर्यटन पर ले जाएं। पर्यटन को सिर्फ मौज मस्ती का माध्यम नहीं समझना चाहिए। असल में यह तो खुद को तरोताजा करने और पुरानी थकान को भुलाकर नई शक्ति का संग्रहण करने का बहाना होता है। नई ताकत के साथ जब हम वापस काम पर लौटते हैं तो दिमाग नए तरह से सोचने की स्थिति में आ जाता है। पश्चिमी देशों में छुट्टियों का इस तरह का सदुपयोग लंबे समय से किया जाता है। बल्कि यह उनकी संस्कृति का एक हिस्सा है। बच्चों के लिए तो इस बार दोहरी खुशी है, पहले तो कई दिनों बाद स्कूल खुले तो बच्चों ने दोस्तों के साथ मस्ती की और अब परीक्षा के बाद की छुट्टी शुरू हो गई हैं। अब बच्चे छुट्टियों का आनंद लेना चाहते हैं। हमारा मध्य प्रदेश तो इस समय देश में पर्यटन का सबसे बड़ा गढ़ है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पूर्वोत्तर, कश्मीर जैसे राज्यों में घूमने की बहुत अच्छी जगह हैं और उनका खूब प्रचार भी है। मध्यप्रदेश में बहुत ही सुंदर रमणीक जगह घूमने लायक हैं। हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम न केवल वहां घूमने जाएंगे बल्कि अपने अपने स्तर पर उनकी अच्छाइयों का खूब प्रचार प्रसार करें।

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Dakhal News 27 March 2022


bhopal,Tourism, Will remove stress, Life will get growth

(प्रवीण कक्कड़)  अगर आप अपनी जिंदगी को सुहाना बनाना चाहते हैं तो टूरिज्म का सहारा लीजिये। अधिकांश कामयाब लोगों के जीवन में एक चीज कॉमन है और वह हैं ट्रेवल यानी पर्यटन। हम सभी आज के दौर में एक रूटीन लाइफ जी रहे हैं। किसी को ऑफिस की चिंता है तो किसी को व्यापार की। ऐसे में हमारा दिमाग कुछ बातों में उलझ कर रह जाता है। पर्यटन हमारे दिमाग को खोलता है, हमें नई ऊर्जा देता है, स्ट्रेस से हमें दूर करता है और एक सामाजिक जीवन में हमें वापस लौटाता है। सही मायनों में टूरिज्म यानी पर्यटन आप की ग्रोथ करता है, आप में कॉन्फिडेंस का विकास होता है, आप में कम्युनिकेशन की कला विकसित होती है और आप अलग-अलग परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार कर पाते हैं। इसके साथ ही आपके लिए एक सुनहरी यादों का खजाना जुड़ जाता है जो जिंदगी भर के लिए एक अनमोल मेमोरी है। दुनिया में जो भी महान बना उसने सफर जरूर किया है। अगर त्रेता युग में श्रीराम की बात करें तो वह किसी एक वन में रहकर भी वनवास पूरा कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऋषियों के आश्रम जाकर आशीर्वाद और प्रेरणाएं लीं, वनवासियों की समस्या जानी, भेदभाव मिटाये और विकट परिस्थिति आने पर रावण का वध भी किया। इन्हीं अनुभव के आधार पर उन्होंने राम राज्य की स्थापना की। इसी तरह द्वापर युग में श्री कृष्ण ने भी भ्रमण किया, इसी दौरान उन्हें बेहतर विकल्प नजर आया और उन्होंने मथुरा से अपने राज्य को द्वारका में स्थापित किया। अब कलयुग में आदिगुरु शांकराचार्य हों या स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी हों या  धीरूभाई अंबानी सभी ने खूब भ्रमण किया और अनुभव लिये, परिस्थितियों को समझा और उन्हें जीवन में उतारकार महान बने। अगर गहराई में समझा जाए तो हर महान व्यक्ति ने टूरिज्म से दोस्ती कर खुद को रि-डिस्कवर किया। अलग-अलग समाज, भाषा, खानपान, जलवायु, परंपरा और लोगों के रहन-सहन को जानकर इन्होंने खुद में जरूरी परिवर्तन किए और लोगों तक बेहतर ढंग से अपने संदेश को पहुंचा भी पाए।     गर्मियों का मौसम सामने है और इसके साथ ही गर्मियों की छुट्टी की तैयारी होने लगी है। 2 साल कोरोनाकाल के कारण गर्मियों की छुट्टी बहुत संकट में गुजरी हैं। पिछला साल तो खासकर ऐसा रहा कि हर तरफ दुख और बीमारी का मंजर था। लॉकडाउन की पाबंदियां हमारे चारों तरफ कायम थी। लेकिन इस बार ईश्वर की कृपा से स्थितियां बेहतर हैं। ऐसे में गर्मियों की छुट्टी आते समय प्लानिंग का ध्यान करना बहुत जरूरी है। देश और प्रदेश में कुछ पर्यटन स्थल बहुत चर्चित हैं और ज्यादातर लोग उन्हीं जगहों का रुख कर लेते हैं। ऐसे में इन पर्यटन स्थलों पर बहुत ज्यादा भीड़ हो जाती है, और पर्यटन का जो आनंद लेने हम जाते हैं, वह पीछे छूट जाता है। इसलिए स्थान का चयन करने में सावधानी जरूर बरतनी चाहिए, क्योंकि 2 साल बाद घूमने फिरने का मौका मिला है तो हम इस तरह का इंतजाम करें कि घर के बूढ़े बुजुर्ग बच्चे और पूरा परिवार साथ मिलकर छुट्टियां मना सके। घर के बुजुर्ग सामान्य तौर पर इस तरह के सैर सपाटे में जाने से मना करते हैं, लेकिन यह तो उनके बच्चों और परिवार वालों की जिम्मेदारी है कि वे उन्हें मनाए समझाएं और पूरी सुरक्षा के साथ पर्यटन पर ले जाएं। पर्यटन को सिर्फ मौज मस्ती का माध्यम नहीं समझना चाहिए। असल में यह तो खुद को तरोताजा करने और पुरानी थकान को भुलाकर नई शक्ति का संग्रहण करने का बहाना होता है। नई ताकत के साथ जब हम वापस काम पर लौटते हैं तो दिमाग नए तरह से सोचने की स्थिति में आ जाता है। पश्चिमी देशों में छुट्टियों का इस तरह का सदुपयोग लंबे समय से किया जाता है। बल्कि यह उनकी संस्कृति का एक हिस्सा है। बच्चों के लिए तो इस बार दोहरी खुशी है, पहले तो कई दिनों बाद स्कूल खुले तो बच्चों ने दोस्तों के साथ मस्ती की और अब परीक्षा के बाद की छुट्टी शुरू हो गई हैं। अब बच्चे छुट्टियों का आनंद लेना चाहते हैं। हमारा मध्य प्रदेश तो इस समय देश में पर्यटन का सबसे बड़ा गढ़ है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पूर्वोत्तर, कश्मीर जैसे राज्यों में घूमने की बहुत अच्छी जगह हैं और उनका खूब प्रचार भी है। मध्यप्रदेश में बहुत ही सुंदर रमणीक जगह घूमने लायक हैं। हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम न केवल वहां घूमने जाएंगे बल्कि अपने अपने स्तर पर उनकी अच्छाइयों का खूब प्रचार प्रसार करें।

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Dakhal News 27 March 2022


bhopal,Tourism, Will remove stress, Life will get growth

(प्रवीण कक्कड़)  अगर आप अपनी जिंदगी को सुहाना बनाना चाहते हैं तो टूरिज्म का सहारा लीजिये। अधिकांश कामयाब लोगों के जीवन में एक चीज कॉमन है और वह हैं ट्रेवल यानी पर्यटन। हम सभी आज के दौर में एक रूटीन लाइफ जी रहे हैं। किसी को ऑफिस की चिंता है तो किसी को व्यापार की। ऐसे में हमारा दिमाग कुछ बातों में उलझ कर रह जाता है। पर्यटन हमारे दिमाग को खोलता है, हमें नई ऊर्जा देता है, स्ट्रेस से हमें दूर करता है और एक सामाजिक जीवन में हमें वापस लौटाता है। सही मायनों में टूरिज्म यानी पर्यटन आप की ग्रोथ करता है, आप में कॉन्फिडेंस का विकास होता है, आप में कम्युनिकेशन की कला विकसित होती है और आप अलग-अलग परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार कर पाते हैं। इसके साथ ही आपके लिए एक सुनहरी यादों का खजाना जुड़ जाता है जो जिंदगी भर के लिए एक अनमोल मेमोरी है। दुनिया में जो भी महान बना उसने सफर जरूर किया है। अगर त्रेता युग में श्रीराम की बात करें तो वह किसी एक वन में रहकर भी वनवास पूरा कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऋषियों के आश्रम जाकर आशीर्वाद और प्रेरणाएं लीं, वनवासियों की समस्या जानी, भेदभाव मिटाये और विकट परिस्थिति आने पर रावण का वध भी किया। इन्हीं अनुभव के आधार पर उन्होंने राम राज्य की स्थापना की। इसी तरह द्वापर युग में श्री कृष्ण ने भी भ्रमण किया, इसी दौरान उन्हें बेहतर विकल्प नजर आया और उन्होंने मथुरा से अपने राज्य को द्वारका में स्थापित किया। अब कलयुग में आदिगुरु शांकराचार्य हों या स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी हों या  धीरूभाई अंबानी सभी ने खूब भ्रमण किया और अनुभव लिये, परिस्थितियों को समझा और उन्हें जीवन में उतारकार महान बने। अगर गहराई में समझा जाए तो हर महान व्यक्ति ने टूरिज्म से दोस्ती कर खुद को रि-डिस्कवर किया। अलग-अलग समाज, भाषा, खानपान, जलवायु, परंपरा और लोगों के रहन-सहन को जानकर इन्होंने खुद में जरूरी परिवर्तन किए और लोगों तक बेहतर ढंग से अपने संदेश को पहुंचा भी पाए।     गर्मियों का मौसम सामने है और इसके साथ ही गर्मियों की छुट्टी की तैयारी होने लगी है। 2 साल कोरोनाकाल के कारण गर्मियों की छुट्टी बहुत संकट में गुजरी हैं। पिछला साल तो खासकर ऐसा रहा कि हर तरफ दुख और बीमारी का मंजर था। लॉकडाउन की पाबंदियां हमारे चारों तरफ कायम थी। लेकिन इस बार ईश्वर की कृपा से स्थितियां बेहतर हैं। ऐसे में गर्मियों की छुट्टी आते समय प्लानिंग का ध्यान करना बहुत जरूरी है। देश और प्रदेश में कुछ पर्यटन स्थल बहुत चर्चित हैं और ज्यादातर लोग उन्हीं जगहों का रुख कर लेते हैं। ऐसे में इन पर्यटन स्थलों पर बहुत ज्यादा भीड़ हो जाती है, और पर्यटन का जो आनंद लेने हम जाते हैं, वह पीछे छूट जाता है। इसलिए स्थान का चयन करने में सावधानी जरूर बरतनी चाहिए, क्योंकि 2 साल बाद घूमने फिरने का मौका मिला है तो हम इस तरह का इंतजाम करें कि घर के बूढ़े बुजुर्ग बच्चे और पूरा परिवार साथ मिलकर छुट्टियां मना सके। घर के बुजुर्ग सामान्य तौर पर इस तरह के सैर सपाटे में जाने से मना करते हैं, लेकिन यह तो उनके बच्चों और परिवार वालों की जिम्मेदारी है कि वे उन्हें मनाए समझाएं और पूरी सुरक्षा के साथ पर्यटन पर ले जाएं। पर्यटन को सिर्फ मौज मस्ती का माध्यम नहीं समझना चाहिए। असल में यह तो खुद को तरोताजा करने और पुरानी थकान को भुलाकर नई शक्ति का संग्रहण करने का बहाना होता है। नई ताकत के साथ जब हम वापस काम पर लौटते हैं तो दिमाग नए तरह से सोचने की स्थिति में आ जाता है। पश्चिमी देशों में छुट्टियों का इस तरह का सदुपयोग लंबे समय से किया जाता है। बल्कि यह उनकी संस्कृति का एक हिस्सा है। बच्चों के लिए तो इस बार दोहरी खुशी है, पहले तो कई दिनों बाद स्कूल खुले तो बच्चों ने दोस्तों के साथ मस्ती की और अब परीक्षा के बाद की छुट्टी शुरू हो गई हैं। अब बच्चे छुट्टियों का आनंद लेना चाहते हैं। हमारा मध्य प्रदेश तो इस समय देश में पर्यटन का सबसे बड़ा गढ़ है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पूर्वोत्तर, कश्मीर जैसे राज्यों में घूमने की बहुत अच्छी जगह हैं और उनका खूब प्रचार भी है। मध्यप्रदेश में बहुत ही सुंदर रमणीक जगह घूमने लायक हैं। हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम न केवल वहां घूमने जाएंगे बल्कि अपने अपने स्तर पर उनकी अच्छाइयों का खूब प्रचार प्रसार करें।

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Dakhal News 27 March 2022


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(प्रवीण कक्कड़)  अगर आप अपनी जिंदगी को सुहाना बनाना चाहते हैं तो टूरिज्म का सहारा लीजिये। अधिकांश कामयाब लोगों के जीवन में एक चीज कॉमन है और वह हैं ट्रेवल यानी पर्यटन। हम सभी आज के दौर में एक रूटीन लाइफ जी रहे हैं। किसी को ऑफिस की चिंता है तो किसी को व्यापार की। ऐसे में हमारा दिमाग कुछ बातों में उलझ कर रह जाता है। पर्यटन हमारे दिमाग को खोलता है, हमें नई ऊर्जा देता है, स्ट्रेस से हमें दूर करता है और एक सामाजिक जीवन में हमें वापस लौटाता है। सही मायनों में टूरिज्म यानी पर्यटन आप की ग्रोथ करता है, आप में कॉन्फिडेंस का विकास होता है, आप में कम्युनिकेशन की कला विकसित होती है और आप अलग-अलग परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार कर पाते हैं। इसके साथ ही आपके लिए एक सुनहरी यादों का खजाना जुड़ जाता है जो जिंदगी भर के लिए एक अनमोल मेमोरी है। दुनिया में जो भी महान बना उसने सफर जरूर किया है। अगर त्रेता युग में श्रीराम की बात करें तो वह किसी एक वन में रहकर भी वनवास पूरा कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऋषियों के आश्रम जाकर आशीर्वाद और प्रेरणाएं लीं, वनवासियों की समस्या जानी, भेदभाव मिटाये और विकट परिस्थिति आने पर रावण का वध भी किया। इन्हीं अनुभव के आधार पर उन्होंने राम राज्य की स्थापना की। इसी तरह द्वापर युग में श्री कृष्ण ने भी भ्रमण किया, इसी दौरान उन्हें बेहतर विकल्प नजर आया और उन्होंने मथुरा से अपने राज्य को द्वारका में स्थापित किया। अब कलयुग में आदिगुरु शांकराचार्य हों या स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी हों या  धीरूभाई अंबानी सभी ने खूब भ्रमण किया और अनुभव लिये, परिस्थितियों को समझा और उन्हें जीवन में उतारकार महान बने। अगर गहराई में समझा जाए तो हर महान व्यक्ति ने टूरिज्म से दोस्ती कर खुद को रि-डिस्कवर किया। अलग-अलग समाज, भाषा, खानपान, जलवायु, परंपरा और लोगों के रहन-सहन को जानकर इन्होंने खुद में जरूरी परिवर्तन किए और लोगों तक बेहतर ढंग से अपने संदेश को पहुंचा भी पाए।     गर्मियों का मौसम सामने है और इसके साथ ही गर्मियों की छुट्टी की तैयारी होने लगी है। 2 साल कोरोनाकाल के कारण गर्मियों की छुट्टी बहुत संकट में गुजरी हैं। पिछला साल तो खासकर ऐसा रहा कि हर तरफ दुख और बीमारी का मंजर था। लॉकडाउन की पाबंदियां हमारे चारों तरफ कायम थी। लेकिन इस बार ईश्वर की कृपा से स्थितियां बेहतर हैं। ऐसे में गर्मियों की छुट्टी आते समय प्लानिंग का ध्यान करना बहुत जरूरी है। देश और प्रदेश में कुछ पर्यटन स्थल बहुत चर्चित हैं और ज्यादातर लोग उन्हीं जगहों का रुख कर लेते हैं। ऐसे में इन पर्यटन स्थलों पर बहुत ज्यादा भीड़ हो जाती है, और पर्यटन का जो आनंद लेने हम जाते हैं, वह पीछे छूट जाता है। इसलिए स्थान का चयन करने में सावधानी जरूर बरतनी चाहिए, क्योंकि 2 साल बाद घूमने फिरने का मौका मिला है तो हम इस तरह का इंतजाम करें कि घर के बूढ़े बुजुर्ग बच्चे और पूरा परिवार साथ मिलकर छुट्टियां मना सके। घर के बुजुर्ग सामान्य तौर पर इस तरह के सैर सपाटे में जाने से मना करते हैं, लेकिन यह तो उनके बच्चों और परिवार वालों की जिम्मेदारी है कि वे उन्हें मनाए समझाएं और पूरी सुरक्षा के साथ पर्यटन पर ले जाएं। पर्यटन को सिर्फ मौज मस्ती का माध्यम नहीं समझना चाहिए। असल में यह तो खुद को तरोताजा करने और पुरानी थकान को भुलाकर नई शक्ति का संग्रहण करने का बहाना होता है। नई ताकत के साथ जब हम वापस काम पर लौटते हैं तो दिमाग नए तरह से सोचने की स्थिति में आ जाता है। पश्चिमी देशों में छुट्टियों का इस तरह का सदुपयोग लंबे समय से किया जाता है। बल्कि यह उनकी संस्कृति का एक हिस्सा है। बच्चों के लिए तो इस बार दोहरी खुशी है, पहले तो कई दिनों बाद स्कूल खुले तो बच्चों ने दोस्तों के साथ मस्ती की और अब परीक्षा के बाद की छुट्टी शुरू हो गई हैं। अब बच्चे छुट्टियों का आनंद लेना चाहते हैं। हमारा मध्य प्रदेश तो इस समय देश में पर्यटन का सबसे बड़ा गढ़ है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पूर्वोत्तर, कश्मीर जैसे राज्यों में घूमने की बहुत अच्छी जगह हैं और उनका खूब प्रचार भी है। मध्यप्रदेश में बहुत ही सुंदर रमणीक जगह घूमने लायक हैं। हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम न केवल वहां घूमने जाएंगे बल्कि अपने अपने स्तर पर उनकी अच्छाइयों का खूब प्रचार प्रसार करें।

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(प्रवीण कक्कड़)  अगर आप अपनी जिंदगी को सुहाना बनाना चाहते हैं तो टूरिज्म का सहारा लीजिये। अधिकांश कामयाब लोगों के जीवन में एक चीज कॉमन है और वह हैं ट्रेवल यानी पर्यटन। हम सभी आज के दौर में एक रूटीन लाइफ जी रहे हैं। किसी को ऑफिस की चिंता है तो किसी को व्यापार की। ऐसे में हमारा दिमाग कुछ बातों में उलझ कर रह जाता है। पर्यटन हमारे दिमाग को खोलता है, हमें नई ऊर्जा देता है, स्ट्रेस से हमें दूर करता है और एक सामाजिक जीवन में हमें वापस लौटाता है। सही मायनों में टूरिज्म यानी पर्यटन आप की ग्रोथ करता है, आप में कॉन्फिडेंस का विकास होता है, आप में कम्युनिकेशन की कला विकसित होती है और आप अलग-अलग परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार कर पाते हैं। इसके साथ ही आपके लिए एक सुनहरी यादों का खजाना जुड़ जाता है जो जिंदगी भर के लिए एक अनमोल मेमोरी है। दुनिया में जो भी महान बना उसने सफर जरूर किया है। अगर त्रेता युग में श्रीराम की बात करें तो वह किसी एक वन में रहकर भी वनवास पूरा कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऋषियों के आश्रम जाकर आशीर्वाद और प्रेरणाएं लीं, वनवासियों की समस्या जानी, भेदभाव मिटाये और विकट परिस्थिति आने पर रावण का वध भी किया। इन्हीं अनुभव के आधार पर उन्होंने राम राज्य की स्थापना की। इसी तरह द्वापर युग में श्री कृष्ण ने भी भ्रमण किया, इसी दौरान उन्हें बेहतर विकल्प नजर आया और उन्होंने मथुरा से अपने राज्य को द्वारका में स्थापित किया। अब कलयुग में आदिगुरु शांकराचार्य हों या स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी हों या  धीरूभाई अंबानी सभी ने खूब भ्रमण किया और अनुभव लिये, परिस्थितियों को समझा और उन्हें जीवन में उतारकार महान बने। अगर गहराई में समझा जाए तो हर महान व्यक्ति ने टूरिज्म से दोस्ती कर खुद को रि-डिस्कवर किया। अलग-अलग समाज, भाषा, खानपान, जलवायु, परंपरा और लोगों के रहन-सहन को जानकर इन्होंने खुद में जरूरी परिवर्तन किए और लोगों तक बेहतर ढंग से अपने संदेश को पहुंचा भी पाए।     गर्मियों का मौसम सामने है और इसके साथ ही गर्मियों की छुट्टी की तैयारी होने लगी है। 2 साल कोरोनाकाल के कारण गर्मियों की छुट्टी बहुत संकट में गुजरी हैं। पिछला साल तो खासकर ऐसा रहा कि हर तरफ दुख और बीमारी का मंजर था। लॉकडाउन की पाबंदियां हमारे चारों तरफ कायम थी। लेकिन इस बार ईश्वर की कृपा से स्थितियां बेहतर हैं। ऐसे में गर्मियों की छुट्टी आते समय प्लानिंग का ध्यान करना बहुत जरूरी है। देश और प्रदेश में कुछ पर्यटन स्थल बहुत चर्चित हैं और ज्यादातर लोग उन्हीं जगहों का रुख कर लेते हैं। ऐसे में इन पर्यटन स्थलों पर बहुत ज्यादा भीड़ हो जाती है, और पर्यटन का जो आनंद लेने हम जाते हैं, वह पीछे छूट जाता है। इसलिए स्थान का चयन करने में सावधानी जरूर बरतनी चाहिए, क्योंकि 2 साल बाद घूमने फिरने का मौका मिला है तो हम इस तरह का इंतजाम करें कि घर के बूढ़े बुजुर्ग बच्चे और पूरा परिवार साथ मिलकर छुट्टियां मना सके। घर के बुजुर्ग सामान्य तौर पर इस तरह के सैर सपाटे में जाने से मना करते हैं, लेकिन यह तो उनके बच्चों और परिवार वालों की जिम्मेदारी है कि वे उन्हें मनाए समझाएं और पूरी सुरक्षा के साथ पर्यटन पर ले जाएं। पर्यटन को सिर्फ मौज मस्ती का माध्यम नहीं समझना चाहिए। असल में यह तो खुद को तरोताजा करने और पुरानी थकान को भुलाकर नई शक्ति का संग्रहण करने का बहाना होता है। नई ताकत के साथ जब हम वापस काम पर लौटते हैं तो दिमाग नए तरह से सोचने की स्थिति में आ जाता है। पश्चिमी देशों में छुट्टियों का इस तरह का सदुपयोग लंबे समय से किया जाता है। बल्कि यह उनकी संस्कृति का एक हिस्सा है। बच्चों के लिए तो इस बार दोहरी खुशी है, पहले तो कई दिनों बाद स्कूल खुले तो बच्चों ने दोस्तों के साथ मस्ती की और अब परीक्षा के बाद की छुट्टी शुरू हो गई हैं। अब बच्चे छुट्टियों का आनंद लेना चाहते हैं। हमारा मध्य प्रदेश तो इस समय देश में पर्यटन का सबसे बड़ा गढ़ है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पूर्वोत्तर, कश्मीर जैसे राज्यों में घूमने की बहुत अच्छी जगह हैं और उनका खूब प्रचार भी है। मध्यप्रदेश में बहुत ही सुंदर रमणीक जगह घूमने लायक हैं। हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम न केवल वहां घूमने जाएंगे बल्कि अपने अपने स्तर पर उनकी अच्छाइयों का खूब प्रचार प्रसार करें।

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Dakhal News 27 March 2022


bhopal, Bring positivity,your work, get success in life

(प्रवीण कक्कड़)  आपने एक शब्‍द सुना होगा सकारात्‍मक सोच या पॉजीटिव थिंकिंग। छात्र हो या खिलाड़ी, नौकरीपेशा हो या व्‍यापारी हर कोई अपने जीवन में सकारात्‍मक सोच लाना चाहता है, दूसरी ओर कोच हो या शिक्षक हर कोई अपने अनुयायी को सकारात्‍मक सोच की घुट्टी पिलाना चाहता है लेकिन इस प्रक्रिया में हम थोड़ी सी गलती करते हैं। सकारात्‍मक सोच का अर्थ है अपने काम को सकारात्‍मक बनाना न की केवल नतीजों के सकारात्‍मक सपनों में खो जाना। हम अपने कर्म, लगन और व्‍यवहार को सकारात्‍मक करने की जगह केवल मन चाहे नतीजे के सकारात्‍मक सपने पर फोकस करने लगते हैं और सोचतें हैं कि यह हमारी पॉजीटिव थिंकिंग हैं। ऐसे में हमारे सफलता के प्रयास में कमी आ जाती है और हमारे सपनों का महल गिर जाता है, फिर हम टूटने लगते हैं। नकारात्‍मकता हम पर हावी हो जाती है। ऐसे में जरूरत है कि हम सकारात्‍मकता के वास्‍तविक अर्थ को समझें। सकारात्‍मक सोच यह है कि हम अपनी काबिलियत पर विश्‍वास करें, लगन से काम में जुटें और पूरी ऊर्जा से काम को पूरा करें। फिर नतीजे अपने आप सकारात्मक हो जाएंगे। जीवन में सकारात्‍मक सोच का होना बहुत जरूरी है। यह भी सच है कि सकारात्‍मक सोच वाले व्‍यक्ति तेजी से आगे बढ़ते हैं व लक्ष्‍य को हासिल करते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि सकारात्‍मक सोच है क्‍या… कुछ लोग कहते हैं जो मैं जीवन में जो पाना चाहता हूं वह मुझे मिल जाएगा, कुछ कहते हैं जैसा में सोच रहा हूं मेरे साथ वैसा ही होगा या कुछ कहते हैं मेरे साथ जीवन में कुछ बुरा हो ही नहीं सकता…अगर इस तरह के विचारों को आप सकारात्‍मक सोच मान रहे हैं तो मेरे अनुसार आप गलत हैं। केवल नतीजों के हसीन सपनों को लेकर खुशफहमी पाल लेना सकारात्‍मकता नहीं है। सकारात्‍मक सोच का सही अर्थ है अपने प्रयासों को लेकर सकारात्‍मक होना, ऊर्जावान होना और लगनशील होना। जीवन में आसपास के हालातों से असंतुष्‍ट नहीं होना और अपना 100 प्रतिशन देकर किसी काम में जोश व जूनून के साथ जुटे रहना भी सकारात्‍मक सोच है। आप सभी ने कभी न कभी क्रिकेट जरूर खेला होगा। जब हम किसी बॉल को मिस कर जाते हैं तो क्‍या मैदान छोड़कर चले जाते हैं, नहीं… हम अगली बॉल का इंतजार करते हैं और उस पर शॉट लगाने के लिए फोकस होते हैं। ऐसे ही अगर किसी बॉल पर छक्‍का मार देते हैं तो क्‍या नाचते हुए मैदान से बाहर चले जाते हैं, नहीं ना, फिर अगली बॉल का इंतजार करते हैं और बेहतर शॉट लगाने की योजना बनाते हैं। जीवन के क्रिकेट में जब तक हम जीवित हैं तब तक हम कभी आऊट नहीं होते न ही कभी गेंद खत्‍म होती हैं, सफलता रूपी रन बनाने के लिए अवसर रूपी गेंद लगातार आती रहती हैं। जीवन में बस इस एप्रोच की जरूरत है कि कोई अवसर छूट गया तो उसका अफसोस न करें, न ही जीवन से हार मानें, बल्कि अगले अवसर पर फोकस करें। इसी तरह अगर कोई सफलता मिल गई तो उसकी आत्‍ममुग्‍धता में खोएं नहीं बल्कि अगली सफलता के लिए रास्‍ता तैयार करने में जुट जाएं… यही सकारात्‍मकता है। अगर आप छात्र हैं और आपने लक्ष्‍य बनाया कि मुझे 95 प्रतिशत अंक हासिल करना है लेकिन आप लक्ष्‍य से पिछड़ गए तो हतोत्‍साहित न हों क्‍योंकि जिंदगी की गेंदबाजी जारी है, अगली गेंद पर इससे बेहतर प्रदर्शन का अवसर खुला है। अगर आप नौकरी के लिए इंटरव्‍यू देने गए हैं तो यह मत सोचिए कि नौकरी मुझे मिलेगी या नहीं, बल्कि यह सोचिए कि इस संस्‍थान को आगे बढ़ाने के लिए मैं क्‍या-क्‍या कर सकता हूं। अपना 100 प्रतिशत कैसे दे सकता हूं। यह उत्‍साह आपके व्‍यवहार में नजर आएगा और नौकरी आपको जरूर मिलेगी। स्‍वयं को काबिल बनाने में सकारात्‍मक सोच रखिए, नतीजे खुद-ब-खुद ही सकारात्‍मक आ जाएंगे।

Dakhal News

Dakhal News 24 March 2022


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(प्रवीण कक्कड़)  आपने एक शब्‍द सुना होगा सकारात्‍मक सोच या पॉजीटिव थिंकिंग। छात्र हो या खिलाड़ी, नौकरीपेशा हो या व्‍यापारी हर कोई अपने जीवन में सकारात्‍मक सोच लाना चाहता है, दूसरी ओर कोच हो या शिक्षक हर कोई अपने अनुयायी को सकारात्‍मक सोच की घुट्टी पिलाना चाहता है लेकिन इस प्रक्रिया में हम थोड़ी सी गलती करते हैं। सकारात्‍मक सोच का अर्थ है अपने काम को सकारात्‍मक बनाना न की केवल नतीजों के सकारात्‍मक सपनों में खो जाना। हम अपने कर्म, लगन और व्‍यवहार को सकारात्‍मक करने की जगह केवल मन चाहे नतीजे के सकारात्‍मक सपने पर फोकस करने लगते हैं और सोचतें हैं कि यह हमारी पॉजीटिव थिंकिंग हैं। ऐसे में हमारे सफलता के प्रयास में कमी आ जाती है और हमारे सपनों का महल गिर जाता है, फिर हम टूटने लगते हैं। नकारात्‍मकता हम पर हावी हो जाती है। ऐसे में जरूरत है कि हम सकारात्‍मकता के वास्‍तविक अर्थ को समझें। सकारात्‍मक सोच यह है कि हम अपनी काबिलियत पर विश्‍वास करें, लगन से काम में जुटें और पूरी ऊर्जा से काम को पूरा करें। फिर नतीजे अपने आप सकारात्मक हो जाएंगे। जीवन में सकारात्‍मक सोच का होना बहुत जरूरी है। यह भी सच है कि सकारात्‍मक सोच वाले व्‍यक्ति तेजी से आगे बढ़ते हैं व लक्ष्‍य को हासिल करते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि सकारात्‍मक सोच है क्‍या… कुछ लोग कहते हैं जो मैं जीवन में जो पाना चाहता हूं वह मुझे मिल जाएगा, कुछ कहते हैं जैसा में सोच रहा हूं मेरे साथ वैसा ही होगा या कुछ कहते हैं मेरे साथ जीवन में कुछ बुरा हो ही नहीं सकता…अगर इस तरह के विचारों को आप सकारात्‍मक सोच मान रहे हैं तो मेरे अनुसार आप गलत हैं। केवल नतीजों के हसीन सपनों को लेकर खुशफहमी पाल लेना सकारात्‍मकता नहीं है। सकारात्‍मक सोच का सही अर्थ है अपने प्रयासों को लेकर सकारात्‍मक होना, ऊर्जावान होना और लगनशील होना। जीवन में आसपास के हालातों से असंतुष्‍ट नहीं होना और अपना 100 प्रतिशन देकर किसी काम में जोश व जूनून के साथ जुटे रहना भी सकारात्‍मक सोच है। आप सभी ने कभी न कभी क्रिकेट जरूर खेला होगा। जब हम किसी बॉल को मिस कर जाते हैं तो क्‍या मैदान छोड़कर चले जाते हैं, नहीं… हम अगली बॉल का इंतजार करते हैं और उस पर शॉट लगाने के लिए फोकस होते हैं। ऐसे ही अगर किसी बॉल पर छक्‍का मार देते हैं तो क्‍या नाचते हुए मैदान से बाहर चले जाते हैं, नहीं ना, फिर अगली बॉल का इंतजार करते हैं और बेहतर शॉट लगाने की योजना बनाते हैं। जीवन के क्रिकेट में जब तक हम जीवित हैं तब तक हम कभी आऊट नहीं होते न ही कभी गेंद खत्‍म होती हैं, सफलता रूपी रन बनाने के लिए अवसर रूपी गेंद लगातार आती रहती हैं। जीवन में बस इस एप्रोच की जरूरत है कि कोई अवसर छूट गया तो उसका अफसोस न करें, न ही जीवन से हार मानें, बल्कि अगले अवसर पर फोकस करें। इसी तरह अगर कोई सफलता मिल गई तो उसकी आत्‍ममुग्‍धता में खोएं नहीं बल्कि अगली सफलता के लिए रास्‍ता तैयार करने में जुट जाएं… यही सकारात्‍मकता है। अगर आप छात्र हैं और आपने लक्ष्‍य बनाया कि मुझे 95 प्रतिशत अंक हासिल करना है लेकिन आप लक्ष्‍य से पिछड़ गए तो हतोत्‍साहित न हों क्‍योंकि जिंदगी की गेंदबाजी जारी है, अगली गेंद पर इससे बेहतर प्रदर्शन का अवसर खुला है। अगर आप नौकरी के लिए इंटरव्‍यू देने गए हैं तो यह मत सोचिए कि नौकरी मुझे मिलेगी या नहीं, बल्कि यह सोचिए कि इस संस्‍थान को आगे बढ़ाने के लिए मैं क्‍या-क्‍या कर सकता हूं। अपना 100 प्रतिशत कैसे दे सकता हूं। यह उत्‍साह आपके व्‍यवहार में नजर आएगा और नौकरी आपको जरूर मिलेगी। स्‍वयं को काबिल बनाने में सकारात्‍मक सोच रखिए, नतीजे खुद-ब-खुद ही सकारात्‍मक आ जाएंगे।

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(प्रवीण कक्कड़)  आपने एक शब्‍द सुना होगा सकारात्‍मक सोच या पॉजीटिव थिंकिंग। छात्र हो या खिलाड़ी, नौकरीपेशा हो या व्‍यापारी हर कोई अपने जीवन में सकारात्‍मक सोच लाना चाहता है, दूसरी ओर कोच हो या शिक्षक हर कोई अपने अनुयायी को सकारात्‍मक सोच की घुट्टी पिलाना चाहता है लेकिन इस प्रक्रिया में हम थोड़ी सी गलती करते हैं। सकारात्‍मक सोच का अर्थ है अपने काम को सकारात्‍मक बनाना न की केवल नतीजों के सकारात्‍मक सपनों में खो जाना। हम अपने कर्म, लगन और व्‍यवहार को सकारात्‍मक करने की जगह केवल मन चाहे नतीजे के सकारात्‍मक सपने पर फोकस करने लगते हैं और सोचतें हैं कि यह हमारी पॉजीटिव थिंकिंग हैं। ऐसे में हमारे सफलता के प्रयास में कमी आ जाती है और हमारे सपनों का महल गिर जाता है, फिर हम टूटने लगते हैं। नकारात्‍मकता हम पर हावी हो जाती है। ऐसे में जरूरत है कि हम सकारात्‍मकता के वास्‍तविक अर्थ को समझें। सकारात्‍मक सोच यह है कि हम अपनी काबिलियत पर विश्‍वास करें, लगन से काम में जुटें और पूरी ऊर्जा से काम को पूरा करें। फिर नतीजे अपने आप सकारात्मक हो जाएंगे। जीवन में सकारात्‍मक सोच का होना बहुत जरूरी है। यह भी सच है कि सकारात्‍मक सोच वाले व्‍यक्ति तेजी से आगे बढ़ते हैं व लक्ष्‍य को हासिल करते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि सकारात्‍मक सोच है क्‍या… कुछ लोग कहते हैं जो मैं जीवन में जो पाना चाहता हूं वह मुझे मिल जाएगा, कुछ कहते हैं जैसा में सोच रहा हूं मेरे साथ वैसा ही होगा या कुछ कहते हैं मेरे साथ जीवन में कुछ बुरा हो ही नहीं सकता…अगर इस तरह के विचारों को आप सकारात्‍मक सोच मान रहे हैं तो मेरे अनुसार आप गलत हैं। केवल नतीजों के हसीन सपनों को लेकर खुशफहमी पाल लेना सकारात्‍मकता नहीं है। सकारात्‍मक सोच का सही अर्थ है अपने प्रयासों को लेकर सकारात्‍मक होना, ऊर्जावान होना और लगनशील होना। जीवन में आसपास के हालातों से असंतुष्‍ट नहीं होना और अपना 100 प्रतिशन देकर किसी काम में जोश व जूनून के साथ जुटे रहना भी सकारात्‍मक सोच है। आप सभी ने कभी न कभी क्रिकेट जरूर खेला होगा। जब हम किसी बॉल को मिस कर जाते हैं तो क्‍या मैदान छोड़कर चले जाते हैं, नहीं… हम अगली बॉल का इंतजार करते हैं और उस पर शॉट लगाने के लिए फोकस होते हैं। ऐसे ही अगर किसी बॉल पर छक्‍का मार देते हैं तो क्‍या नाचते हुए मैदान से बाहर चले जाते हैं, नहीं ना, फिर अगली बॉल का इंतजार करते हैं और बेहतर शॉट लगाने की योजना बनाते हैं। जीवन के क्रिकेट में जब तक हम जीवित हैं तब तक हम कभी आऊट नहीं होते न ही कभी गेंद खत्‍म होती हैं, सफलता रूपी रन बनाने के लिए अवसर रूपी गेंद लगातार आती रहती हैं। जीवन में बस इस एप्रोच की जरूरत है कि कोई अवसर छूट गया तो उसका अफसोस न करें, न ही जीवन से हार मानें, बल्कि अगले अवसर पर फोकस करें। इसी तरह अगर कोई सफलता मिल गई तो उसकी आत्‍ममुग्‍धता में खोएं नहीं बल्कि अगली सफलता के लिए रास्‍ता तैयार करने में जुट जाएं… यही सकारात्‍मकता है। अगर आप छात्र हैं और आपने लक्ष्‍य बनाया कि मुझे 95 प्रतिशत अंक हासिल करना है लेकिन आप लक्ष्‍य से पिछड़ गए तो हतोत्‍साहित न हों क्‍योंकि जिंदगी की गेंदबाजी जारी है, अगली गेंद पर इससे बेहतर प्रदर्शन का अवसर खुला है। अगर आप नौकरी के लिए इंटरव्‍यू देने गए हैं तो यह मत सोचिए कि नौकरी मुझे मिलेगी या नहीं, बल्कि यह सोचिए कि इस संस्‍थान को आगे बढ़ाने के लिए मैं क्‍या-क्‍या कर सकता हूं। अपना 100 प्रतिशत कैसे दे सकता हूं। यह उत्‍साह आपके व्‍यवहार में नजर आएगा और नौकरी आपको जरूर मिलेगी। स्‍वयं को काबिल बनाने में सकारात्‍मक सोच रखिए, नतीजे खुद-ब-खुद ही सकारात्‍मक आ जाएंगे।

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Dakhal News 24 March 2022


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(प्रवीण कक्कड़)  आपने एक शब्‍द सुना होगा सकारात्‍मक सोच या पॉजीटिव थिंकिंग। छात्र हो या खिलाड़ी, नौकरीपेशा हो या व्‍यापारी हर कोई अपने जीवन में सकारात्‍मक सोच लाना चाहता है, दूसरी ओर कोच हो या शिक्षक हर कोई अपने अनुयायी को सकारात्‍मक सोच की घुट्टी पिलाना चाहता है लेकिन इस प्रक्रिया में हम थोड़ी सी गलती करते हैं। सकारात्‍मक सोच का अर्थ है अपने काम को सकारात्‍मक बनाना न की केवल नतीजों के सकारात्‍मक सपनों में खो जाना। हम अपने कर्म, लगन और व्‍यवहार को सकारात्‍मक करने की जगह केवल मन चाहे नतीजे के सकारात्‍मक सपने पर फोकस करने लगते हैं और सोचतें हैं कि यह हमारी पॉजीटिव थिंकिंग हैं। ऐसे में हमारे सफलता के प्रयास में कमी आ जाती है और हमारे सपनों का महल गिर जाता है, फिर हम टूटने लगते हैं। नकारात्‍मकता हम पर हावी हो जाती है। ऐसे में जरूरत है कि हम सकारात्‍मकता के वास्‍तविक अर्थ को समझें। सकारात्‍मक सोच यह है कि हम अपनी काबिलियत पर विश्‍वास करें, लगन से काम में जुटें और पूरी ऊर्जा से काम को पूरा करें। फिर नतीजे अपने आप सकारात्मक हो जाएंगे। जीवन में सकारात्‍मक सोच का होना बहुत जरूरी है। यह भी सच है कि सकारात्‍मक सोच वाले व्‍यक्ति तेजी से आगे बढ़ते हैं व लक्ष्‍य को हासिल करते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि सकारात्‍मक सोच है क्‍या… कुछ लोग कहते हैं जो मैं जीवन में जो पाना चाहता हूं वह मुझे मिल जाएगा, कुछ कहते हैं जैसा में सोच रहा हूं मेरे साथ वैसा ही होगा या कुछ कहते हैं मेरे साथ जीवन में कुछ बुरा हो ही नहीं सकता…अगर इस तरह के विचारों को आप सकारात्‍मक सोच मान रहे हैं तो मेरे अनुसार आप गलत हैं। केवल नतीजों के हसीन सपनों को लेकर खुशफहमी पाल लेना सकारात्‍मकता नहीं है। सकारात्‍मक सोच का सही अर्थ है अपने प्रयासों को लेकर सकारात्‍मक होना, ऊर्जावान होना और लगनशील होना। जीवन में आसपास के हालातों से असंतुष्‍ट नहीं होना और अपना 100 प्रतिशन देकर किसी काम में जोश व जूनून के साथ जुटे रहना भी सकारात्‍मक सोच है। आप सभी ने कभी न कभी क्रिकेट जरूर खेला होगा। जब हम किसी बॉल को मिस कर जाते हैं तो क्‍या मैदान छोड़कर चले जाते हैं, नहीं… हम अगली बॉल का इंतजार करते हैं और उस पर शॉट लगाने के लिए फोकस होते हैं। ऐसे ही अगर किसी बॉल पर छक्‍का मार देते हैं तो क्‍या नाचते हुए मैदान से बाहर चले जाते हैं, नहीं ना, फिर अगली बॉल का इंतजार करते हैं और बेहतर शॉट लगाने की योजना बनाते हैं। जीवन के क्रिकेट में जब तक हम जीवित हैं तब तक हम कभी आऊट नहीं होते न ही कभी गेंद खत्‍म होती हैं, सफलता रूपी रन बनाने के लिए अवसर रूपी गेंद लगातार आती रहती हैं। जीवन में बस इस एप्रोच की जरूरत है कि कोई अवसर छूट गया तो उसका अफसोस न करें, न ही जीवन से हार मानें, बल्कि अगले अवसर पर फोकस करें। इसी तरह अगर कोई सफलता मिल गई तो उसकी आत्‍ममुग्‍धता में खोएं नहीं बल्कि अगली सफलता के लिए रास्‍ता तैयार करने में जुट जाएं… यही सकारात्‍मकता है। अगर आप छात्र हैं और आपने लक्ष्‍य बनाया कि मुझे 95 प्रतिशत अंक हासिल करना है लेकिन आप लक्ष्‍य से पिछड़ गए तो हतोत्‍साहित न हों क्‍योंकि जिंदगी की गेंदबाजी जारी है, अगली गेंद पर इससे बेहतर प्रदर्शन का अवसर खुला है। अगर आप नौकरी के लिए इंटरव्‍यू देने गए हैं तो यह मत सोचिए कि नौकरी मुझे मिलेगी या नहीं, बल्कि यह सोचिए कि इस संस्‍थान को आगे बढ़ाने के लिए मैं क्‍या-क्‍या कर सकता हूं। अपना 100 प्रतिशत कैसे दे सकता हूं। यह उत्‍साह आपके व्‍यवहार में नजर आएगा और नौकरी आपको जरूर मिलेगी। स्‍वयं को काबिल बनाने में सकारात्‍मक सोच रखिए, नतीजे खुद-ब-खुद ही सकारात्‍मक आ जाएंगे।

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(प्रवीण कक्कड़)  आपने एक शब्‍द सुना होगा सकारात्‍मक सोच या पॉजीटिव थिंकिंग। छात्र हो या खिलाड़ी, नौकरीपेशा हो या व्‍यापारी हर कोई अपने जीवन में सकारात्‍मक सोच लाना चाहता है, दूसरी ओर कोच हो या शिक्षक हर कोई अपने अनुयायी को सकारात्‍मक सोच की घुट्टी पिलाना चाहता है लेकिन इस प्रक्रिया में हम थोड़ी सी गलती करते हैं। सकारात्‍मक सोच का अर्थ है अपने काम को सकारात्‍मक बनाना न की केवल नतीजों के सकारात्‍मक सपनों में खो जाना। हम अपने कर्म, लगन और व्‍यवहार को सकारात्‍मक करने की जगह केवल मन चाहे नतीजे के सकारात्‍मक सपने पर फोकस करने लगते हैं और सोचतें हैं कि यह हमारी पॉजीटिव थिंकिंग हैं। ऐसे में हमारे सफलता के प्रयास में कमी आ जाती है और हमारे सपनों का महल गिर जाता है, फिर हम टूटने लगते हैं। नकारात्‍मकता हम पर हावी हो जाती है। ऐसे में जरूरत है कि हम सकारात्‍मकता के वास्‍तविक अर्थ को समझें। सकारात्‍मक सोच यह है कि हम अपनी काबिलियत पर विश्‍वास करें, लगन से काम में जुटें और पूरी ऊर्जा से काम को पूरा करें। फिर नतीजे अपने आप सकारात्मक हो जाएंगे। जीवन में सकारात्‍मक सोच का होना बहुत जरूरी है। यह भी सच है कि सकारात्‍मक सोच वाले व्‍यक्ति तेजी से आगे बढ़ते हैं व लक्ष्‍य को हासिल करते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि सकारात्‍मक सोच है क्‍या… कुछ लोग कहते हैं जो मैं जीवन में जो पाना चाहता हूं वह मुझे मिल जाएगा, कुछ कहते हैं जैसा में सोच रहा हूं मेरे साथ वैसा ही होगा या कुछ कहते हैं मेरे साथ जीवन में कुछ बुरा हो ही नहीं सकता…अगर इस तरह के विचारों को आप सकारात्‍मक सोच मान रहे हैं तो मेरे अनुसार आप गलत हैं। केवल नतीजों के हसीन सपनों को लेकर खुशफहमी पाल लेना सकारात्‍मकता नहीं है। सकारात्‍मक सोच का सही अर्थ है अपने प्रयासों को लेकर सकारात्‍मक होना, ऊर्जावान होना और लगनशील होना। जीवन में आसपास के हालातों से असंतुष्‍ट नहीं होना और अपना 100 प्रतिशन देकर किसी काम में जोश व जूनून के साथ जुटे रहना भी सकारात्‍मक सोच है। आप सभी ने कभी न कभी क्रिकेट जरूर खेला होगा। जब हम किसी बॉल को मिस कर जाते हैं तो क्‍या मैदान छोड़कर चले जाते हैं, नहीं… हम अगली बॉल का इंतजार करते हैं और उस पर शॉट लगाने के लिए फोकस होते हैं। ऐसे ही अगर किसी बॉल पर छक्‍का मार देते हैं तो क्‍या नाचते हुए मैदान से बाहर चले जाते हैं, नहीं ना, फिर अगली बॉल का इंतजार करते हैं और बेहतर शॉट लगाने की योजना बनाते हैं। जीवन के क्रिकेट में जब तक हम जीवित हैं तब तक हम कभी आऊट नहीं होते न ही कभी गेंद खत्‍म होती हैं, सफलता रूपी रन बनाने के लिए अवसर रूपी गेंद लगातार आती रहती हैं। जीवन में बस इस एप्रोच की जरूरत है कि कोई अवसर छूट गया तो उसका अफसोस न करें, न ही जीवन से हार मानें, बल्कि अगले अवसर पर फोकस करें। इसी तरह अगर कोई सफलता मिल गई तो उसकी आत्‍ममुग्‍धता में खोएं नहीं बल्कि अगली सफलता के लिए रास्‍ता तैयार करने में जुट जाएं… यही सकारात्‍मकता है। अगर आप छात्र हैं और आपने लक्ष्‍य बनाया कि मुझे 95 प्रतिशत अंक हासिल करना है लेकिन आप लक्ष्‍य से पिछड़ गए तो हतोत्‍साहित न हों क्‍योंकि जिंदगी की गेंदबाजी जारी है, अगली गेंद पर इससे बेहतर प्रदर्शन का अवसर खुला है। अगर आप नौकरी के लिए इंटरव्‍यू देने गए हैं तो यह मत सोचिए कि नौकरी मुझे मिलेगी या नहीं, बल्कि यह सोचिए कि इस संस्‍थान को आगे बढ़ाने के लिए मैं क्‍या-क्‍या कर सकता हूं। अपना 100 प्रतिशत कैसे दे सकता हूं। यह उत्‍साह आपके व्‍यवहार में नजर आएगा और नौकरी आपको जरूर मिलेगी। स्‍वयं को काबिल बनाने में सकारात्‍मक सोच रखिए, नतीजे खुद-ब-खुद ही सकारात्‍मक आ जाएंगे।

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(प्रवीण कक्कड़)  आपने एक शब्‍द सुना होगा सकारात्‍मक सोच या पॉजीटिव थिंकिंग। छात्र हो या खिलाड़ी, नौकरीपेशा हो या व्‍यापारी हर कोई अपने जीवन में सकारात्‍मक सोच लाना चाहता है, दूसरी ओर कोच हो या शिक्षक हर कोई अपने अनुयायी को सकारात्‍मक सोच की घुट्टी पिलाना चाहता है लेकिन इस प्रक्रिया में हम थोड़ी सी गलती करते हैं। सकारात्‍मक सोच का अर्थ है अपने काम को सकारात्‍मक बनाना न की केवल नतीजों के सकारात्‍मक सपनों में खो जाना। हम अपने कर्म, लगन और व्‍यवहार को सकारात्‍मक करने की जगह केवल मन चाहे नतीजे के सकारात्‍मक सपने पर फोकस करने लगते हैं और सोचतें हैं कि यह हमारी पॉजीटिव थिंकिंग हैं। ऐसे में हमारे सफलता के प्रयास में कमी आ जाती है और हमारे सपनों का महल गिर जाता है, फिर हम टूटने लगते हैं। नकारात्‍मकता हम पर हावी हो जाती है। ऐसे में जरूरत है कि हम सकारात्‍मकता के वास्‍तविक अर्थ को समझें। सकारात्‍मक सोच यह है कि हम अपनी काबिलियत पर विश्‍वास करें, लगन से काम में जुटें और पूरी ऊर्जा से काम को पूरा करें। फिर नतीजे अपने आप सकारात्मक हो जाएंगे। जीवन में सकारात्‍मक सोच का होना बहुत जरूरी है। यह भी सच है कि सकारात्‍मक सोच वाले व्‍यक्ति तेजी से आगे बढ़ते हैं व लक्ष्‍य को हासिल करते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि सकारात्‍मक सोच है क्‍या… कुछ लोग कहते हैं जो मैं जीवन में जो पाना चाहता हूं वह मुझे मिल जाएगा, कुछ कहते हैं जैसा में सोच रहा हूं मेरे साथ वैसा ही होगा या कुछ कहते हैं मेरे साथ जीवन में कुछ बुरा हो ही नहीं सकता…अगर इस तरह के विचारों को आप सकारात्‍मक सोच मान रहे हैं तो मेरे अनुसार आप गलत हैं। केवल नतीजों के हसीन सपनों को लेकर खुशफहमी पाल लेना सकारात्‍मकता नहीं है। सकारात्‍मक सोच का सही अर्थ है अपने प्रयासों को लेकर सकारात्‍मक होना, ऊर्जावान होना और लगनशील होना। जीवन में आसपास के हालातों से असंतुष्‍ट नहीं होना और अपना 100 प्रतिशन देकर किसी काम में जोश व जूनून के साथ जुटे रहना भी सकारात्‍मक सोच है। आप सभी ने कभी न कभी क्रिकेट जरूर खेला होगा। जब हम किसी बॉल को मिस कर जाते हैं तो क्‍या मैदान छोड़कर चले जाते हैं, नहीं… हम अगली बॉल का इंतजार करते हैं और उस पर शॉट लगाने के लिए फोकस होते हैं। ऐसे ही अगर किसी बॉल पर छक्‍का मार देते हैं तो क्‍या नाचते हुए मैदान से बाहर चले जाते हैं, नहीं ना, फिर अगली बॉल का इंतजार करते हैं और बेहतर शॉट लगाने की योजना बनाते हैं। जीवन के क्रिकेट में जब तक हम जीवित हैं तब तक हम कभी आऊट नहीं होते न ही कभी गेंद खत्‍म होती हैं, सफलता रूपी रन बनाने के लिए अवसर रूपी गेंद लगातार आती रहती हैं। जीवन में बस इस एप्रोच की जरूरत है कि कोई अवसर छूट गया तो उसका अफसोस न करें, न ही जीवन से हार मानें, बल्कि अगले अवसर पर फोकस करें। इसी तरह अगर कोई सफलता मिल गई तो उसकी आत्‍ममुग्‍धता में खोएं नहीं बल्कि अगली सफलता के लिए रास्‍ता तैयार करने में जुट जाएं… यही सकारात्‍मकता है। अगर आप छात्र हैं और आपने लक्ष्‍य बनाया कि मुझे 95 प्रतिशत अंक हासिल करना है लेकिन आप लक्ष्‍य से पिछड़ गए तो हतोत्‍साहित न हों क्‍योंकि जिंदगी की गेंदबाजी जारी है, अगली गेंद पर इससे बेहतर प्रदर्शन का अवसर खुला है। अगर आप नौकरी के लिए इंटरव्‍यू देने गए हैं तो यह मत सोचिए कि नौकरी मुझे मिलेगी या नहीं, बल्कि यह सोचिए कि इस संस्‍थान को आगे बढ़ाने के लिए मैं क्‍या-क्‍या कर सकता हूं। अपना 100 प्रतिशत कैसे दे सकता हूं। यह उत्‍साह आपके व्‍यवहार में नजर आएगा और नौकरी आपको जरूर मिलेगी। स्‍वयं को काबिल बनाने में सकारात्‍मक सोच रखिए, नतीजे खुद-ब-खुद ही सकारात्‍मक आ जाएंगे।

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(प्रवीण कक्कड़)  आपने एक शब्‍द सुना होगा सकारात्‍मक सोच या पॉजीटिव थिंकिंग। छात्र हो या खिलाड़ी, नौकरीपेशा हो या व्‍यापारी हर कोई अपने जीवन में सकारात्‍मक सोच लाना चाहता है, दूसरी ओर कोच हो या शिक्षक हर कोई अपने अनुयायी को सकारात्‍मक सोच की घुट्टी पिलाना चाहता है लेकिन इस प्रक्रिया में हम थोड़ी सी गलती करते हैं। सकारात्‍मक सोच का अर्थ है अपने काम को सकारात्‍मक बनाना न की केवल नतीजों के सकारात्‍मक सपनों में खो जाना। हम अपने कर्म, लगन और व्‍यवहार को सकारात्‍मक करने की जगह केवल मन चाहे नतीजे के सकारात्‍मक सपने पर फोकस करने लगते हैं और सोचतें हैं कि यह हमारी पॉजीटिव थिंकिंग हैं। ऐसे में हमारे सफलता के प्रयास में कमी आ जाती है और हमारे सपनों का महल गिर जाता है, फिर हम टूटने लगते हैं। नकारात्‍मकता हम पर हावी हो जाती है। ऐसे में जरूरत है कि हम सकारात्‍मकता के वास्‍तविक अर्थ को समझें। सकारात्‍मक सोच यह है कि हम अपनी काबिलियत पर विश्‍वास करें, लगन से काम में जुटें और पूरी ऊर्जा से काम को पूरा करें। फिर नतीजे अपने आप सकारात्मक हो जाएंगे। जीवन में सकारात्‍मक सोच का होना बहुत जरूरी है। यह भी सच है कि सकारात्‍मक सोच वाले व्‍यक्ति तेजी से आगे बढ़ते हैं व लक्ष्‍य को हासिल करते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि सकारात्‍मक सोच है क्‍या… कुछ लोग कहते हैं जो मैं जीवन में जो पाना चाहता हूं वह मुझे मिल जाएगा, कुछ कहते हैं जैसा में सोच रहा हूं मेरे साथ वैसा ही होगा या कुछ कहते हैं मेरे साथ जीवन में कुछ बुरा हो ही नहीं सकता…अगर इस तरह के विचारों को आप सकारात्‍मक सोच मान रहे हैं तो मेरे अनुसार आप गलत हैं। केवल नतीजों के हसीन सपनों को लेकर खुशफहमी पाल लेना सकारात्‍मकता नहीं है। सकारात्‍मक सोच का सही अर्थ है अपने प्रयासों को लेकर सकारात्‍मक होना, ऊर्जावान होना और लगनशील होना। जीवन में आसपास के हालातों से असंतुष्‍ट नहीं होना और अपना 100 प्रतिशन देकर किसी काम में जोश व जूनून के साथ जुटे रहना भी सकारात्‍मक सोच है। आप सभी ने कभी न कभी क्रिकेट जरूर खेला होगा। जब हम किसी बॉल को मिस कर जाते हैं तो क्‍या मैदान छोड़कर चले जाते हैं, नहीं… हम अगली बॉल का इंतजार करते हैं और उस पर शॉट लगाने के लिए फोकस होते हैं। ऐसे ही अगर किसी बॉल पर छक्‍का मार देते हैं तो क्‍या नाचते हुए मैदान से बाहर चले जाते हैं, नहीं ना, फिर अगली बॉल का इंतजार करते हैं और बेहतर शॉट लगाने की योजना बनाते हैं। जीवन के क्रिकेट में जब तक हम जीवित हैं तब तक हम कभी आऊट नहीं होते न ही कभी गेंद खत्‍म होती हैं, सफलता रूपी रन बनाने के लिए अवसर रूपी गेंद लगातार आती रहती हैं। जीवन में बस इस एप्रोच की जरूरत है कि कोई अवसर छूट गया तो उसका अफसोस न करें, न ही जीवन से हार मानें, बल्कि अगले अवसर पर फोकस करें। इसी तरह अगर कोई सफलता मिल गई तो उसकी आत्‍ममुग्‍धता में खोएं नहीं बल्कि अगली सफलता के लिए रास्‍ता तैयार करने में जुट जाएं… यही सकारात्‍मकता है। अगर आप छात्र हैं और आपने लक्ष्‍य बनाया कि मुझे 95 प्रतिशत अंक हासिल करना है लेकिन आप लक्ष्‍य से पिछड़ गए तो हतोत्‍साहित न हों क्‍योंकि जिंदगी की गेंदबाजी जारी है, अगली गेंद पर इससे बेहतर प्रदर्शन का अवसर खुला है। अगर आप नौकरी के लिए इंटरव्‍यू देने गए हैं तो यह मत सोचिए कि नौकरी मुझे मिलेगी या नहीं, बल्कि यह सोचिए कि इस संस्‍थान को आगे बढ़ाने के लिए मैं क्‍या-क्‍या कर सकता हूं। अपना 100 प्रतिशत कैसे दे सकता हूं। यह उत्‍साह आपके व्‍यवहार में नजर आएगा और नौकरी आपको जरूर मिलेगी। स्‍वयं को काबिल बनाने में सकारात्‍मक सोच रखिए, नतीजे खुद-ब-खुद ही सकारात्‍मक आ जाएंगे।

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(प्रवीण कक्कड़)  आपने एक शब्‍द सुना होगा सकारात्‍मक सोच या पॉजीटिव थिंकिंग। छात्र हो या खिलाड़ी, नौकरीपेशा हो या व्‍यापारी हर कोई अपने जीवन में सकारात्‍मक सोच लाना चाहता है, दूसरी ओर कोच हो या शिक्षक हर कोई अपने अनुयायी को सकारात्‍मक सोच की घुट्टी पिलाना चाहता है लेकिन इस प्रक्रिया में हम थोड़ी सी गलती करते हैं। सकारात्‍मक सोच का अर्थ है अपने काम को सकारात्‍मक बनाना न की केवल नतीजों के सकारात्‍मक सपनों में खो जाना। हम अपने कर्म, लगन और व्‍यवहार को सकारात्‍मक करने की जगह केवल मन चाहे नतीजे के सकारात्‍मक सपने पर फोकस करने लगते हैं और सोचतें हैं कि यह हमारी पॉजीटिव थिंकिंग हैं। ऐसे में हमारे सफलता के प्रयास में कमी आ जाती है और हमारे सपनों का महल गिर जाता है, फिर हम टूटने लगते हैं। नकारात्‍मकता हम पर हावी हो जाती है। ऐसे में जरूरत है कि हम सकारात्‍मकता के वास्‍तविक अर्थ को समझें। सकारात्‍मक सोच यह है कि हम अपनी काबिलियत पर विश्‍वास करें, लगन से काम में जुटें और पूरी ऊर्जा से काम को पूरा करें। फिर नतीजे अपने आप सकारात्मक हो जाएंगे। जीवन में सकारात्‍मक सोच का होना बहुत जरूरी है। यह भी सच है कि सकारात्‍मक सोच वाले व्‍यक्ति तेजी से आगे बढ़ते हैं व लक्ष्‍य को हासिल करते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि सकारात्‍मक सोच है क्‍या… कुछ लोग कहते हैं जो मैं जीवन में जो पाना चाहता हूं वह मुझे मिल जाएगा, कुछ कहते हैं जैसा में सोच रहा हूं मेरे साथ वैसा ही होगा या कुछ कहते हैं मेरे साथ जीवन में कुछ बुरा हो ही नहीं सकता…अगर इस तरह के विचारों को आप सकारात्‍मक सोच मान रहे हैं तो मेरे अनुसार आप गलत हैं। केवल नतीजों के हसीन सपनों को लेकर खुशफहमी पाल लेना सकारात्‍मकता नहीं है। सकारात्‍मक सोच का सही अर्थ है अपने प्रयासों को लेकर सकारात्‍मक होना, ऊर्जावान होना और लगनशील होना। जीवन में आसपास के हालातों से असंतुष्‍ट नहीं होना और अपना 100 प्रतिशन देकर किसी काम में जोश व जूनून के साथ जुटे रहना भी सकारात्‍मक सोच है। आप सभी ने कभी न कभी क्रिकेट जरूर खेला होगा। जब हम किसी बॉल को मिस कर जाते हैं तो क्‍या मैदान छोड़कर चले जाते हैं, नहीं… हम अगली बॉल का इंतजार करते हैं और उस पर शॉट लगाने के लिए फोकस होते हैं। ऐसे ही अगर किसी बॉल पर छक्‍का मार देते हैं तो क्‍या नाचते हुए मैदान से बाहर चले जाते हैं, नहीं ना, फिर अगली बॉल का इंतजार करते हैं और बेहतर शॉट लगाने की योजना बनाते हैं। जीवन के क्रिकेट में जब तक हम जीवित हैं तब तक हम कभी आऊट नहीं होते न ही कभी गेंद खत्‍म होती हैं, सफलता रूपी रन बनाने के लिए अवसर रूपी गेंद लगातार आती रहती हैं। जीवन में बस इस एप्रोच की जरूरत है कि कोई अवसर छूट गया तो उसका अफसोस न करें, न ही जीवन से हार मानें, बल्कि अगले अवसर पर फोकस करें। इसी तरह अगर कोई सफलता मिल गई तो उसकी आत्‍ममुग्‍धता में खोएं नहीं बल्कि अगली सफलता के लिए रास्‍ता तैयार करने में जुट जाएं… यही सकारात्‍मकता है। अगर आप छात्र हैं और आपने लक्ष्‍य बनाया कि मुझे 95 प्रतिशत अंक हासिल करना है लेकिन आप लक्ष्‍य से पिछड़ गए तो हतोत्‍साहित न हों क्‍योंकि जिंदगी की गेंदबाजी जारी है, अगली गेंद पर इससे बेहतर प्रदर्शन का अवसर खुला है। अगर आप नौकरी के लिए इंटरव्‍यू देने गए हैं तो यह मत सोचिए कि नौकरी मुझे मिलेगी या नहीं, बल्कि यह सोचिए कि इस संस्‍थान को आगे बढ़ाने के लिए मैं क्‍या-क्‍या कर सकता हूं। अपना 100 प्रतिशत कैसे दे सकता हूं। यह उत्‍साह आपके व्‍यवहार में नजर आएगा और नौकरी आपको जरूर मिलेगी। स्‍वयं को काबिल बनाने में सकारात्‍मक सोच रखिए, नतीजे खुद-ब-खुद ही सकारात्‍मक आ जाएंगे।

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(प्रवीण कक्कड़)  आपने एक शब्‍द सुना होगा सकारात्‍मक सोच या पॉजीटिव थिंकिंग। छात्र हो या खिलाड़ी, नौकरीपेशा हो या व्‍यापारी हर कोई अपने जीवन में सकारात्‍मक सोच लाना चाहता है, दूसरी ओर कोच हो या शिक्षक हर कोई अपने अनुयायी को सकारात्‍मक सोच की घुट्टी पिलाना चाहता है लेकिन इस प्रक्रिया में हम थोड़ी सी गलती करते हैं। सकारात्‍मक सोच का अर्थ है अपने काम को सकारात्‍मक बनाना न की केवल नतीजों के सकारात्‍मक सपनों में खो जाना। हम अपने कर्म, लगन और व्‍यवहार को सकारात्‍मक करने की जगह केवल मन चाहे नतीजे के सकारात्‍मक सपने पर फोकस करने लगते हैं और सोचतें हैं कि यह हमारी पॉजीटिव थिंकिंग हैं। ऐसे में हमारे सफलता के प्रयास में कमी आ जाती है और हमारे सपनों का महल गिर जाता है, फिर हम टूटने लगते हैं। नकारात्‍मकता हम पर हावी हो जाती है। ऐसे में जरूरत है कि हम सकारात्‍मकता के वास्‍तविक अर्थ को समझें। सकारात्‍मक सोच यह है कि हम अपनी काबिलियत पर विश्‍वास करें, लगन से काम में जुटें और पूरी ऊर्जा से काम को पूरा करें। फिर नतीजे अपने आप सकारात्मक हो जाएंगे। जीवन में सकारात्‍मक सोच का होना बहुत जरूरी है। यह भी सच है कि सकारात्‍मक सोच वाले व्‍यक्ति तेजी से आगे बढ़ते हैं व लक्ष्‍य को हासिल करते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि सकारात्‍मक सोच है क्‍या… कुछ लोग कहते हैं जो मैं जीवन में जो पाना चाहता हूं वह मुझे मिल जाएगा, कुछ कहते हैं जैसा में सोच रहा हूं मेरे साथ वैसा ही होगा या कुछ कहते हैं मेरे साथ जीवन में कुछ बुरा हो ही नहीं सकता…अगर इस तरह के विचारों को आप सकारात्‍मक सोच मान रहे हैं तो मेरे अनुसार आप गलत हैं। केवल नतीजों के हसीन सपनों को लेकर खुशफहमी पाल लेना सकारात्‍मकता नहीं है। सकारात्‍मक सोच का सही अर्थ है अपने प्रयासों को लेकर सकारात्‍मक होना, ऊर्जावान होना और लगनशील होना। जीवन में आसपास के हालातों से असंतुष्‍ट नहीं होना और अपना 100 प्रतिशन देकर किसी काम में जोश व जूनून के साथ जुटे रहना भी सकारात्‍मक सोच है। आप सभी ने कभी न कभी क्रिकेट जरूर खेला होगा। जब हम किसी बॉल को मिस कर जाते हैं तो क्‍या मैदान छोड़कर चले जाते हैं, नहीं… हम अगली बॉल का इंतजार करते हैं और उस पर शॉट लगाने के लिए फोकस होते हैं। ऐसे ही अगर किसी बॉल पर छक्‍का मार देते हैं तो क्‍या नाचते हुए मैदान से बाहर चले जाते हैं, नहीं ना, फिर अगली बॉल का इंतजार करते हैं और बेहतर शॉट लगाने की योजना बनाते हैं। जीवन के क्रिकेट में जब तक हम जीवित हैं तब तक हम कभी आऊट नहीं होते न ही कभी गेंद खत्‍म होती हैं, सफलता रूपी रन बनाने के लिए अवसर रूपी गेंद लगातार आती रहती हैं। जीवन में बस इस एप्रोच की जरूरत है कि कोई अवसर छूट गया तो उसका अफसोस न करें, न ही जीवन से हार मानें, बल्कि अगले अवसर पर फोकस करें। इसी तरह अगर कोई सफलता मिल गई तो उसकी आत्‍ममुग्‍धता में खोएं नहीं बल्कि अगली सफलता के लिए रास्‍ता तैयार करने में जुट जाएं… यही सकारात्‍मकता है। अगर आप छात्र हैं और आपने लक्ष्‍य बनाया कि मुझे 95 प्रतिशत अंक हासिल करना है लेकिन आप लक्ष्‍य से पिछड़ गए तो हतोत्‍साहित न हों क्‍योंकि जिंदगी की गेंदबाजी जारी है, अगली गेंद पर इससे बेहतर प्रदर्शन का अवसर खुला है। अगर आप नौकरी के लिए इंटरव्‍यू देने गए हैं तो यह मत सोचिए कि नौकरी मुझे मिलेगी या नहीं, बल्कि यह सोचिए कि इस संस्‍थान को आगे बढ़ाने के लिए मैं क्‍या-क्‍या कर सकता हूं। अपना 100 प्रतिशत कैसे दे सकता हूं। यह उत्‍साह आपके व्‍यवहार में नजर आएगा और नौकरी आपको जरूर मिलेगी। स्‍वयं को काबिल बनाने में सकारात्‍मक सोच रखिए, नतीजे खुद-ब-खुद ही सकारात्‍मक आ जाएंगे।

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(प्रवीण कक्कड़)  आपने एक शब्‍द सुना होगा सकारात्‍मक सोच या पॉजीटिव थिंकिंग। छात्र हो या खिलाड़ी, नौकरीपेशा हो या व्‍यापारी हर कोई अपने जीवन में सकारात्‍मक सोच लाना चाहता है, दूसरी ओर कोच हो या शिक्षक हर कोई अपने अनुयायी को सकारात्‍मक सोच की घुट्टी पिलाना चाहता है लेकिन इस प्रक्रिया में हम थोड़ी सी गलती करते हैं। सकारात्‍मक सोच का अर्थ है अपने काम को सकारात्‍मक बनाना न की केवल नतीजों के सकारात्‍मक सपनों में खो जाना। हम अपने कर्म, लगन और व्‍यवहार को सकारात्‍मक करने की जगह केवल मन चाहे नतीजे के सकारात्‍मक सपने पर फोकस करने लगते हैं और सोचतें हैं कि यह हमारी पॉजीटिव थिंकिंग हैं। ऐसे में हमारे सफलता के प्रयास में कमी आ जाती है और हमारे सपनों का महल गिर जाता है, फिर हम टूटने लगते हैं। नकारात्‍मकता हम पर हावी हो जाती है। ऐसे में जरूरत है कि हम सकारात्‍मकता के वास्‍तविक अर्थ को समझें। सकारात्‍मक सोच यह है कि हम अपनी काबिलियत पर विश्‍वास करें, लगन से काम में जुटें और पूरी ऊर्जा से काम को पूरा करें। फिर नतीजे अपने आप सकारात्मक हो जाएंगे। जीवन में सकारात्‍मक सोच का होना बहुत जरूरी है। यह भी सच है कि सकारात्‍मक सोच वाले व्‍यक्ति तेजी से आगे बढ़ते हैं व लक्ष्‍य को हासिल करते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि सकारात्‍मक सोच है क्‍या… कुछ लोग कहते हैं जो मैं जीवन में जो पाना चाहता हूं वह मुझे मिल जाएगा, कुछ कहते हैं जैसा में सोच रहा हूं मेरे साथ वैसा ही होगा या कुछ कहते हैं मेरे साथ जीवन में कुछ बुरा हो ही नहीं सकता…अगर इस तरह के विचारों को आप सकारात्‍मक सोच मान रहे हैं तो मेरे अनुसार आप गलत हैं। केवल नतीजों के हसीन सपनों को लेकर खुशफहमी पाल लेना सकारात्‍मकता नहीं है। सकारात्‍मक सोच का सही अर्थ है अपने प्रयासों को लेकर सकारात्‍मक होना, ऊर्जावान होना और लगनशील होना। जीवन में आसपास के हालातों से असंतुष्‍ट नहीं होना और अपना 100 प्रतिशन देकर किसी काम में जोश व जूनून के साथ जुटे रहना भी सकारात्‍मक सोच है। आप सभी ने कभी न कभी क्रिकेट जरूर खेला होगा। जब हम किसी बॉल को मिस कर जाते हैं तो क्‍या मैदान छोड़कर चले जाते हैं, नहीं… हम अगली बॉल का इंतजार करते हैं और उस पर शॉट लगाने के लिए फोकस होते हैं। ऐसे ही अगर किसी बॉल पर छक्‍का मार देते हैं तो क्‍या नाचते हुए मैदान से बाहर चले जाते हैं, नहीं ना, फिर अगली बॉल का इंतजार करते हैं और बेहतर शॉट लगाने की योजना बनाते हैं। जीवन के क्रिकेट में जब तक हम जीवित हैं तब तक हम कभी आऊट नहीं होते न ही कभी गेंद खत्‍म होती हैं, सफलता रूपी रन बनाने के लिए अवसर रूपी गेंद लगातार आती रहती हैं। जीवन में बस इस एप्रोच की जरूरत है कि कोई अवसर छूट गया तो उसका अफसोस न करें, न ही जीवन से हार मानें, बल्कि अगले अवसर पर फोकस करें। इसी तरह अगर कोई सफलता मिल गई तो उसकी आत्‍ममुग्‍धता में खोएं नहीं बल्कि अगली सफलता के लिए रास्‍ता तैयार करने में जुट जाएं… यही सकारात्‍मकता है। अगर आप छात्र हैं और आपने लक्ष्‍य बनाया कि मुझे 95 प्रतिशत अंक हासिल करना है लेकिन आप लक्ष्‍य से पिछड़ गए तो हतोत्‍साहित न हों क्‍योंकि जिंदगी की गेंदबाजी जारी है, अगली गेंद पर इससे बेहतर प्रदर्शन का अवसर खुला है। अगर आप नौकरी के लिए इंटरव्‍यू देने गए हैं तो यह मत सोचिए कि नौकरी मुझे मिलेगी या नहीं, बल्कि यह सोचिए कि इस संस्‍थान को आगे बढ़ाने के लिए मैं क्‍या-क्‍या कर सकता हूं। अपना 100 प्रतिशत कैसे दे सकता हूं। यह उत्‍साह आपके व्‍यवहार में नजर आएगा और नौकरी आपको जरूर मिलेगी। स्‍वयं को काबिल बनाने में सकारात्‍मक सोच रखिए, नतीजे खुद-ब-खुद ही सकारात्‍मक आ जाएंगे।

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Dakhal News 24 March 2022


bhopal, Bring positivity,your work, get success in life

(प्रवीण कक्कड़)  आपने एक शब्‍द सुना होगा सकारात्‍मक सोच या पॉजीटिव थिंकिंग। छात्र हो या खिलाड़ी, नौकरीपेशा हो या व्‍यापारी हर कोई अपने जीवन में सकारात्‍मक सोच लाना चाहता है, दूसरी ओर कोच हो या शिक्षक हर कोई अपने अनुयायी को सकारात्‍मक सोच की घुट्टी पिलाना चाहता है लेकिन इस प्रक्रिया में हम थोड़ी सी गलती करते हैं। सकारात्‍मक सोच का अर्थ है अपने काम को सकारात्‍मक बनाना न की केवल नतीजों के सकारात्‍मक सपनों में खो जाना। हम अपने कर्म, लगन और व्‍यवहार को सकारात्‍मक करने की जगह केवल मन चाहे नतीजे के सकारात्‍मक सपने पर फोकस करने लगते हैं और सोचतें हैं कि यह हमारी पॉजीटिव थिंकिंग हैं। ऐसे में हमारे सफलता के प्रयास में कमी आ जाती है और हमारे सपनों का महल गिर जाता है, फिर हम टूटने लगते हैं। नकारात्‍मकता हम पर हावी हो जाती है। ऐसे में जरूरत है कि हम सकारात्‍मकता के वास्‍तविक अर्थ को समझें। सकारात्‍मक सोच यह है कि हम अपनी काबिलियत पर विश्‍वास करें, लगन से काम में जुटें और पूरी ऊर्जा से काम को पूरा करें। फिर नतीजे अपने आप सकारात्मक हो जाएंगे। जीवन में सकारात्‍मक सोच का होना बहुत जरूरी है। यह भी सच है कि सकारात्‍मक सोच वाले व्‍यक्ति तेजी से आगे बढ़ते हैं व लक्ष्‍य को हासिल करते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि सकारात्‍मक सोच है क्‍या… कुछ लोग कहते हैं जो मैं जीवन में जो पाना चाहता हूं वह मुझे मिल जाएगा, कुछ कहते हैं जैसा में सोच रहा हूं मेरे साथ वैसा ही होगा या कुछ कहते हैं मेरे साथ जीवन में कुछ बुरा हो ही नहीं सकता…अगर इस तरह के विचारों को आप सकारात्‍मक सोच मान रहे हैं तो मेरे अनुसार आप गलत हैं। केवल नतीजों के हसीन सपनों को लेकर खुशफहमी पाल लेना सकारात्‍मकता नहीं है। सकारात्‍मक सोच का सही अर्थ है अपने प्रयासों को लेकर सकारात्‍मक होना, ऊर्जावान होना और लगनशील होना। जीवन में आसपास के हालातों से असंतुष्‍ट नहीं होना और अपना 100 प्रतिशन देकर किसी काम में जोश व जूनून के साथ जुटे रहना भी सकारात्‍मक सोच है। आप सभी ने कभी न कभी क्रिकेट जरूर खेला होगा। जब हम किसी बॉल को मिस कर जाते हैं तो क्‍या मैदान छोड़कर चले जाते हैं, नहीं… हम अगली बॉल का इंतजार करते हैं और उस पर शॉट लगाने के लिए फोकस होते हैं। ऐसे ही अगर किसी बॉल पर छक्‍का मार देते हैं तो क्‍या नाचते हुए मैदान से बाहर चले जाते हैं, नहीं ना, फिर अगली बॉल का इंतजार करते हैं और बेहतर शॉट लगाने की योजना बनाते हैं। जीवन के क्रिकेट में जब तक हम जीवित हैं तब तक हम कभी आऊट नहीं होते न ही कभी गेंद खत्‍म होती हैं, सफलता रूपी रन बनाने के लिए अवसर रूपी गेंद लगातार आती रहती हैं। जीवन में बस इस एप्रोच की जरूरत है कि कोई अवसर छूट गया तो उसका अफसोस न करें, न ही जीवन से हार मानें, बल्कि अगले अवसर पर फोकस करें। इसी तरह अगर कोई सफलता मिल गई तो उसकी आत्‍ममुग्‍धता में खोएं नहीं बल्कि अगली सफलता के लिए रास्‍ता तैयार करने में जुट जाएं… यही सकारात्‍मकता है। अगर आप छात्र हैं और आपने लक्ष्‍य बनाया कि मुझे 95 प्रतिशत अंक हासिल करना है लेकिन आप लक्ष्‍य से पिछड़ गए तो हतोत्‍साहित न हों क्‍योंकि जिंदगी की गेंदबाजी जारी है, अगली गेंद पर इससे बेहतर प्रदर्शन का अवसर खुला है। अगर आप नौकरी के लिए इंटरव्‍यू देने गए हैं तो यह मत सोचिए कि नौकरी मुझे मिलेगी या नहीं, बल्कि यह सोचिए कि इस संस्‍थान को आगे बढ़ाने के लिए मैं क्‍या-क्‍या कर सकता हूं। अपना 100 प्रतिशत कैसे दे सकता हूं। यह उत्‍साह आपके व्‍यवहार में नजर आएगा और नौकरी आपको जरूर मिलेगी। स्‍वयं को काबिल बनाने में सकारात्‍मक सोच रखिए, नतीजे खुद-ब-खुद ही सकारात्‍मक आ जाएंगे।

Dakhal News

Dakhal News 24 March 2022


barabanki,Journalists behind bars , altercation over playing,DJ on Holi

बाराबंकी । रंगों के पर्व होली पर डीजे बजाने को लेकर हुए विवाद में पुलिस ने एक पत्रकार समेत तीन लोगों के ऊपर शांति भंग में चालान करके सलाखों के पीछे डाल दिया। पत्रकार के पक्ष की तमाम महिलाएं व पुरूष भी कोतवाली पंहुचे और पुलिस की तरफ से गई एकतरफ़ा कार्यवाई की निंदा करते हुए लोगों ने एक स्वर होकर कहा कि पुलिस ने बेवजह कार्यवाई की जो निंदनीय है। यदि शांतिभंग मे कार्यवाई करनी थी तो दोनो पक्षों के विरुद्ध करनी चाहिए थी। बताते चलें कि वर्षों तक अमर उजाला, दैनिक स्वतंत्र भारत में बतौर क्राईम रिपोर्टर काम कर चुके और अब एक न्यूज़ पोर्टल समाचार टुडे से वर्षों से जुड़े पत्रकार कपिल सिंह के घर शहर के पैसार इलाके में वर्षो से रंगारंग कार्यक्रम होता आया है. इस बार रंगारंग कार्यक्रम के लिये डीजे लगवाया गया था जिसमें पत्रकार कपिल सिंह इत्यादि डीजे की धुन पर नाच रहे थे. शुक्रवार की शाम किसी ने पीआरवी 112 को सूचना दी कि कुछ अराजक लोग शराब पीकर अश्लील गानों पर डांस कर रहे हैं. इसी सूचना पर पीआरवी 112 मौके पर पंहुची और पत्रकार कपिल सिंह को तत्काल हिरासत में लेकर कोतवाली नगर ले आई. यहां पर करीब एक घण्टे तक बाहर बिठाने के बाद कपिल सिंह व उनके साथ मौजूद दो अन्य युवकों को हवालात में भेज दिया. शुक्रवार देरशाम हुई इस कार्यवाई से जिले के पत्रकारों में रोष व्याप्त है. सभी पुलिस कार्रवाई पर सवालिया चिन्ह लगा रहे हैं कि ये कोई इतनी बड़ी बात तो नहीं थी कि पत्रकार को रात भर हवालात में रखा जाए. होली को रातभर हवालात में रहे पत्रकार की मनोदशा क्या हो गई होगी, ये विचारणीय है.   पत्रकारों ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री योगी समेत अन्य वरिष्ठ लोगों को कार्रवाई के लिए पत्र लिखने की तैयारी की है.

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Dakhal News 19 March 2022


barabanki,Journalists behind bars , altercation over playing,DJ on Holi

बाराबंकी । रंगों के पर्व होली पर डीजे बजाने को लेकर हुए विवाद में पुलिस ने एक पत्रकार समेत तीन लोगों के ऊपर शांति भंग में चालान करके सलाखों के पीछे डाल दिया। पत्रकार के पक्ष की तमाम महिलाएं व पुरूष भी कोतवाली पंहुचे और पुलिस की तरफ से गई एकतरफ़ा कार्यवाई की निंदा करते हुए लोगों ने एक स्वर होकर कहा कि पुलिस ने बेवजह कार्यवाई की जो निंदनीय है। यदि शांतिभंग मे कार्यवाई करनी थी तो दोनो पक्षों के विरुद्ध करनी चाहिए थी। बताते चलें कि वर्षों तक अमर उजाला, दैनिक स्वतंत्र भारत में बतौर क्राईम रिपोर्टर काम कर चुके और अब एक न्यूज़ पोर्टल समाचार टुडे से वर्षों से जुड़े पत्रकार कपिल सिंह के घर शहर के पैसार इलाके में वर्षो से रंगारंग कार्यक्रम होता आया है. इस बार रंगारंग कार्यक्रम के लिये डीजे लगवाया गया था जिसमें पत्रकार कपिल सिंह इत्यादि डीजे की धुन पर नाच रहे थे. शुक्रवार की शाम किसी ने पीआरवी 112 को सूचना दी कि कुछ अराजक लोग शराब पीकर अश्लील गानों पर डांस कर रहे हैं. इसी सूचना पर पीआरवी 112 मौके पर पंहुची और पत्रकार कपिल सिंह को तत्काल हिरासत में लेकर कोतवाली नगर ले आई. यहां पर करीब एक घण्टे तक बाहर बिठाने के बाद कपिल सिंह व उनके साथ मौजूद दो अन्य युवकों को हवालात में भेज दिया. शुक्रवार देरशाम हुई इस कार्यवाई से जिले के पत्रकारों में रोष व्याप्त है. सभी पुलिस कार्रवाई पर सवालिया चिन्ह लगा रहे हैं कि ये कोई इतनी बड़ी बात तो नहीं थी कि पत्रकार को रात भर हवालात में रखा जाए. होली को रातभर हवालात में रहे पत्रकार की मनोदशा क्या हो गई होगी, ये विचारणीय है.   पत्रकारों ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री योगी समेत अन्य वरिष्ठ लोगों को कार्रवाई के लिए पत्र लिखने की तैयारी की है.

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बाराबंकी । रंगों के पर्व होली पर डीजे बजाने को लेकर हुए विवाद में पुलिस ने एक पत्रकार समेत तीन लोगों के ऊपर शांति भंग में चालान करके सलाखों के पीछे डाल दिया। पत्रकार के पक्ष की तमाम महिलाएं व पुरूष भी कोतवाली पंहुचे और पुलिस की तरफ से गई एकतरफ़ा कार्यवाई की निंदा करते हुए लोगों ने एक स्वर होकर कहा कि पुलिस ने बेवजह कार्यवाई की जो निंदनीय है। यदि शांतिभंग मे कार्यवाई करनी थी तो दोनो पक्षों के विरुद्ध करनी चाहिए थी। बताते चलें कि वर्षों तक अमर उजाला, दैनिक स्वतंत्र भारत में बतौर क्राईम रिपोर्टर काम कर चुके और अब एक न्यूज़ पोर्टल समाचार टुडे से वर्षों से जुड़े पत्रकार कपिल सिंह के घर शहर के पैसार इलाके में वर्षो से रंगारंग कार्यक्रम होता आया है. इस बार रंगारंग कार्यक्रम के लिये डीजे लगवाया गया था जिसमें पत्रकार कपिल सिंह इत्यादि डीजे की धुन पर नाच रहे थे. शुक्रवार की शाम किसी ने पीआरवी 112 को सूचना दी कि कुछ अराजक लोग शराब पीकर अश्लील गानों पर डांस कर रहे हैं. इसी सूचना पर पीआरवी 112 मौके पर पंहुची और पत्रकार कपिल सिंह को तत्काल हिरासत में लेकर कोतवाली नगर ले आई. यहां पर करीब एक घण्टे तक बाहर बिठाने के बाद कपिल सिंह व उनके साथ मौजूद दो अन्य युवकों को हवालात में भेज दिया. शुक्रवार देरशाम हुई इस कार्यवाई से जिले के पत्रकारों में रोष व्याप्त है. सभी पुलिस कार्रवाई पर सवालिया चिन्ह लगा रहे हैं कि ये कोई इतनी बड़ी बात तो नहीं थी कि पत्रकार को रात भर हवालात में रखा जाए. होली को रातभर हवालात में रहे पत्रकार की मनोदशा क्या हो गई होगी, ये विचारणीय है.   पत्रकारों ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री योगी समेत अन्य वरिष्ठ लोगों को कार्रवाई के लिए पत्र लिखने की तैयारी की है.

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बाराबंकी । रंगों के पर्व होली पर डीजे बजाने को लेकर हुए विवाद में पुलिस ने एक पत्रकार समेत तीन लोगों के ऊपर शांति भंग में चालान करके सलाखों के पीछे डाल दिया। पत्रकार के पक्ष की तमाम महिलाएं व पुरूष भी कोतवाली पंहुचे और पुलिस की तरफ से गई एकतरफ़ा कार्यवाई की निंदा करते हुए लोगों ने एक स्वर होकर कहा कि पुलिस ने बेवजह कार्यवाई की जो निंदनीय है। यदि शांतिभंग मे कार्यवाई करनी थी तो दोनो पक्षों के विरुद्ध करनी चाहिए थी। बताते चलें कि वर्षों तक अमर उजाला, दैनिक स्वतंत्र भारत में बतौर क्राईम रिपोर्टर काम कर चुके और अब एक न्यूज़ पोर्टल समाचार टुडे से वर्षों से जुड़े पत्रकार कपिल सिंह के घर शहर के पैसार इलाके में वर्षो से रंगारंग कार्यक्रम होता आया है. इस बार रंगारंग कार्यक्रम के लिये डीजे लगवाया गया था जिसमें पत्रकार कपिल सिंह इत्यादि डीजे की धुन पर नाच रहे थे. शुक्रवार की शाम किसी ने पीआरवी 112 को सूचना दी कि कुछ अराजक लोग शराब पीकर अश्लील गानों पर डांस कर रहे हैं. इसी सूचना पर पीआरवी 112 मौके पर पंहुची और पत्रकार कपिल सिंह को तत्काल हिरासत में लेकर कोतवाली नगर ले आई. यहां पर करीब एक घण्टे तक बाहर बिठाने के बाद कपिल सिंह व उनके साथ मौजूद दो अन्य युवकों को हवालात में भेज दिया. शुक्रवार देरशाम हुई इस कार्यवाई से जिले के पत्रकारों में रोष व्याप्त है. सभी पुलिस कार्रवाई पर सवालिया चिन्ह लगा रहे हैं कि ये कोई इतनी बड़ी बात तो नहीं थी कि पत्रकार को रात भर हवालात में रखा जाए. होली को रातभर हवालात में रहे पत्रकार की मनोदशा क्या हो गई होगी, ये विचारणीय है.   पत्रकारों ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री योगी समेत अन्य वरिष्ठ लोगों को कार्रवाई के लिए पत्र लिखने की तैयारी की है.

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Dakhal News 19 March 2022


bhopal,What is B2B, B2C, D2C?

वैभव अग्रवाल- कल अलग अलग तरह के मार्केटिंग मॉडल के बारे में कुछ मित्र कंफ्यूज थे, उनकी जानकारी के लिये … B2B, B2C यह दोनो भारत मे सबसे मुख्य मॉडल थे, पर अब इनमें एक मॉडल और जुड़ गया है , जो कि है D2C. इनके अलावा और भी मॉडल है जैसे C2C, C2A, पर वो मुख्यत: e-कॉमर्स में यूज़ होते है। अधिक कॉम्प्लिकेटेड न करते हुए हम इसकी चर्चा नही करेंगे। इन मॉडल को समझने के लिये हम एक कॉमन example लेते है, जैसे मान लीजिए आपके मोबाइल में लगी आने वाले बैटरी.. अगर हम किसी मोबाइल बनाने वाली कंपनी (जैसे Samsung, Vivo आदि) से एक मोबाइल खरीदते है, तो साथ मे एक बैटरी फिट आती है। … जरुरी नही, मोबाइल कंपनी खुद उसे बनाये, सम्भव है वो किसी दूसरी कंपनी से बैटरी बनबा कर ले। … इस प्रकार से एक बिज़नेस द्वारा जो मैटेरियल दूसरे बिज़नेस को बेचा जाता है, वो B2B कहलाता है। … नोरेक्स का बिज़नेस डोमेन अधिकतम B2B है। जैसे हम अपने प्रोडक्ट, टूथपेस्ट, दवाई, फ़ूड, biscuit, केक बनाने वाली कंपनियों को बेचते है। आजकल सबसे ज्यादा पॉपुलर है D2C मॉडल, यह वैसे B2C का ही एक मोडिफाइड पार्ट है। … जिसमे डायरेक्ट 2 consumer बिज़नेस होता है। … अगर आप मोबाइल कंपनी की वेबसाइट से, या उसके ऐमज़ॉन , फ्लिपकार्ट स्टोर से सीधे ऑनलाइन बैटरी खरीद लेते है तो इसमे बीच में स्टॉकिस्ट, रिटेलर सबका मार्जिन, हैंडलिंग बच जाती है, यह सीधे Direct to consumer sale कहलाती है। … इसमे कस्टमर को फास्टर सर्विस मिलती है, और स्टॉकिस्ट और रिटेलर का मार्जिन कम होने से, बिज़नेस को प्रॉफिट अधिक मिलता है। ..पर उसे सीधे consumer को आकर्षित करने के लिये मार्केटिंग पर खर्च भी अधिक करना पड़ता है। म्मीद है मैं आपको B2B, B2C, D2C सही से समझा पाया हूँ।

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Dakhal News 8 February 2022


bhopal,New journalists ,ready for digital transformation

- प्रो. संजय द्विवेदी      एक समय था जब माना जाता है कि पत्रकार पैदा होते हैं और पत्रकारिता पढ़ा कर सिखाई नहीं जा सकती। अब वक्त बदल गया है। जनसंचार का क्षेत्र आज शिक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। वर्ष 2020 को लोग चाहे कोरोना महामारी की वजह से याद करेंगे, लेकिन एक मीडिया शिक्षक होने के नाते मेरे लिए ये बेहद महत्वपूर्ण है कि पिछले वर्ष भारत में मीडिया शिक्षा के 100 वर्ष पूरे हुए थे। वर्ष 1920 में थियोसोफिकल सोसायटी के तत्वावधान में मद्रास राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में डॉक्टर एनी बेसेंट ने पत्रकारिता का पहला पाठ्यक्रम शुरू किया था। लगभग एक दशक बाद वर्ष 1938 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के पाठ्यक्रम को एक सर्टिफिकेट कोर्स के रूप में शुरू किया गया। इस क्रम में पंजाब विश्वविद्यालय, जो उस वक्त के लाहौर में हुआ करता था, पहला विश्वविद्यालय था, जिसने अपने यहां पत्रकारिता विभाग की स्थापना की। भारत में पत्रकारिता शिक्षा के संस्थापक  कहे जाने वाले प्रोफेसर पीपी सिंह ने वर्ष 1941 में इस विभाग की स्थापना की थी। अगर हम स्वतंत्र भारत की बात करें, तो सबसे पहले मद्रास विश्वविद्यालय ने वर्ष 1947 में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की स्थापना की।     इसके पश्चात कलकत्ता विश्वविद्यालय, मैसूर के महाराजा कॉलेज, उस्मानिया यूनिवर्सिटी एवं नागपुर यूनिवर्सिटी ने मीडिया शिक्षा से जुड़े कई कोर्स शुरू किए। 17 अगस्त, 1965 को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भारतीय जन संचार संस्थान की स्थापना की, जो आज मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में पूरे एशिया में सबसे अग्रणी संस्थान है।  आज भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, रायपुर में कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय एवं जयपुर में हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय पूर्ण रूप से मीडिया शिक्षण एवं प्रशिक्षण का कार्य कर रहे हैं। भारत में मीडिया शिक्षा का इतिहास 100 वर्ष जरूर पूर्ण कर चुका है, परंतु यह अभी तक इस उलझन से मुक्त नहीं हो पाया है कि यह तकनीकी है या वैचारिक। तकनीकी एवं वैचारिकी का द्वंद्व मीडिया शिक्षा की उपेक्षा के लिए जहां उत्तरदायी है, वहां सरकारी उपेक्षा और मीडिया संस्थानों का सक्रिय सहयोग न होना भी मीडिया शिक्षा के इतिहास की तस्वीर को धुंधली प्रस्तुत करने को विवश करता है।     भारत में जब भी मीडिया शिक्षा की बात होती है, तो प्रोफेसर के. ई. ईपन का नाम हमेशा याद किया जाता है। प्रोफेसर ईपन भारत में पत्रकारिता शिक्षा के तंत्र में व्यावहारिक प्रशिक्षण के पक्षधर थे। प्रोफेसर ईपन का मानना था कि मीडिया के शिक्षकों के पास पत्रकारिता की औपचारिक शिक्षा के साथ साथ मीडिया में काम करने का प्रत्यक्ष अनुभव भी होना चाहिए, तभी वे प्रभावी ढंग से बच्चों को पढ़ा पाएंगे। आज देश के अधिकांश पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षण संस्थान, मीडिया शिक्षक के तौर पर ऐसे लोगों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिन्हें अकादमिक के साथ साथ पत्रकारिता का भी अनुभव हो। ताकि ये शिक्षक ऐसा शैक्षणिक माहौल तैयार कर सकें, ऐसा शैक्षिक पाठ्यक्रम तैयार कर सकें, जिसका उपयोग विद्यार्थी आगे चलकर अपने कार्यक्षेत्र में भी कर पाएं।  पत्रकारिता के प्रशिक्षण के समर्थन में जो तर्क दिए जाते हैं, उनमें से एक दमदार तर्क यह है कि यदि डॉक्टरी करने के लिए कम से कम एम.बी.बी.एस. होना जरूरी है, वकालत की डिग्री लेने के बाद ही वकील बना जा सकता है तो पत्रकारिता जैसे महत्वपूर्ण पेशे को किसी के लिए भी खुला कैसे छोड़ा जा सकता है?     दरअसल भारत में मीडिया शिक्षा मोटे तौर पर छह स्तरों पर होती है। सरकारी विश्वविद्यालयों या कॉलेजों में, दूसरे, विश्वविद्यालयों से संबंद्ध संस्थानों में, तीसरे, भारत सरकार के स्वायत्तता प्राप्त संस्थानों में, चौथे, पूरी तरह से प्राइवेट संस्थान, पांचवे डीम्ड विश्वविद्यालय और छठे, किसी निजी चैनल या समाचार पत्र के खोले गए अपने मीडिया संस्थान। इस पूरी प्रक्रिया में हमारे सामने जो एक सबसे बड़ी समस्या है, वो है किताबें। हमारे देश में मीडिया के विद्यार्थी विदेशी पुस्तकों पर ज्यादा निर्भर हैं। लेकिन अगर हम देखें तो भारत और अमेरिका के मीडिया उद्योगों की संरचना और कामकाज के तरीके में बहुत अंतर है। इसलिए मीडिया के शिक्षकों की ये जिम्मेदारी है, कि वे भारत की परिस्थितियों के हिसाब से किताबें लिखें।     मीडिया शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए आज मीडिया एजुकेशन काउंसिल की आवश्यकता है। इसकी मदद से न सिर्फ पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षा के पाठ्यक्रम में सुधार होगा, बल्कि मीडिया इंडस्ट्री की जरुरतों के अनुसार पत्रकार भी तैयार किये जा सकेंगे। आज मीडिया शिक्षण में एक स्पर्धा चल रही है। इसलिए मीडिया शिक्षकों को ये तय करना होगा कि उनका लक्ष्य स्पर्धा में शामिल होने का है, या फिर पत्रकारिता शिक्षण का बेहतर माहौल बनाने का है। आज के समय में पत्रकारिता बहुत बदल गई है, इसलिए पत्रकारिता शिक्षा में भी बदलाव आवश्यक है। आज लोग जैसे डॉक्टर से अपेक्षा करते हैं, वैसे पत्रकार से भी सही खबरों की अपेक्षा करते हैं। अब हमें मीडिया शिक्षण में ऐसे पाठ्यक्रम तैयार करने होंगे, जिनमें विषयवस्तु के साथ साथ नई तकनीक का भी समावेश हो।     न्यू मीडिया आज न्यू नॉर्मल है। हम सब जानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण लाखों नौकरियां गई हैं। इसलिए हमें मीडिया शिक्षा के अलग अलग पहलुओं पर ध्यान देना होगा और बाजार के हिसाब से प्रोफेशनल तैयार करने होंगे। नई शिक्षा नीति में क्षेत्रीय भाषाओं पर ध्यान देने की बात कही गई है। जनसंचार शिक्षा के क्षेत्र में भी हमें इस पर ध्यान देना होगा। मीडिया शिक्षण संस्थानों के लिए आज एक बड़ी आवश्यकता है क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम तैयार करना। भाषा वो ही जीवित रहती है, जिससे आप जीविकोपार्जन कर पाएं और भारत में एक सोची समझी साजिश के तहत अंग्रेजी को जीविकोपार्जन की भाषा बनाया जा रहा है। ये उस वक्त में हो रहा है, जब पत्रकारिता अंग्रेजी बोलने वाले बड़े शहरों से हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के शहरों और गांवों की ओर मुड़ रही है। आज अंग्रेजी के समाचार चैनल भी हिंदी में डिबेट करते हैं। सीबीएससी बोर्ड को देखिए जहां पाठ्यक्रम में मीडिया को एक विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है। क्या हम अन्य राज्यों के पाठ्यक्रमों में भी इस तरह की व्यवस्था कर सकते हैं, जिससे मीडिया शिक्षण को एक नई दिशा मिल सके।     एक वक्त था जब पत्रकारिता का मतलब प्रिंट मीडिया होता था। अस्सी के दशक में रिलीज हुई अमेरिकी फिल्म Ghostbusters (घोस्टबस्टर्स) में सेक्रेटरी जब वैज्ञानिक से पूछती है कि ‘क्या वे पढ़ना पसंद करते हैं? तो वैज्ञानिक कहता है ‘प्रिंट इज डेड’। इस पात्र का यह कहना उस समय हास्य का विषय था, परंतु वर्तमान परिदृश्य में प्रिंट मीडिया के भविष्य पर जिस तरह के सवाल खड़े किये जा रहे हैं, उसे देखकर ये लगता है कि ये सवाल आज की स्थिति पर बिल्कुल सटीक बैठता है। आज दुनिया के तमाम प्रगतिशील देशों से हमें ये सूचनाएं मिल रही हैं कि प्रिंट मीडिया पर संकट के बादल हैं। ये भी कहा जा रहा है कि बहुत जल्द अखबार खत्म हो जाएंगे। वर्ष 2008 में अमेरिकी लेखक जेफ गोमेज ने ‘प्रिंट इज डेड’ पुस्तक लिखकर प्रिंट मीडिया के खत्म होने की अवधारणा को जन्म दिया था। उस वक्त इस किताब का रिव्यू करते हुए एंटोनी चिथम ने लिखा था कि, “यह किताब उन सब लोगों के लिए ‘वेकअप कॉल’ की तरह है, जो प्रिंट मीडिया में हैं, किंतु उन्हें यह पता ही नहीं कि इंटरनेट के द्वारा डिजिटल दुनिया किस तरह की बन रही है।” वहीं एक अन्य लेखक रोस डावसन ने तो समाचारपत्रों के विलुप्त होने का, समय के अनुसार एक चार्ट ही बना डाला। इस चार्ट में जो बात मुख्य रूप से कही गई थी, उसके अनुसार वर्ष 2040 तक विश्व से अखबारों के प्रिंट संस्करण खत्म हो जाएंगे।         मीडिया शिक्षण संस्थानों को अपने पाठ्यक्रमों में इस तरह के बदलाव करने चाहिए, कि वे न्यू मीडिया के लिए छात्रों को तैयार कर सकें। आज तकनीक किसी भी पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मीडिया में दो तरह के प्रारूप होते हैं। एक है पारंपरिक मीडिया जैसे अखबार और पत्रिकाएं और और दूसरा है डिजिटल मीडिया। अगर हम वर्तमान संदर्भ में बात करें तो सबसे अच्छी बात ये है कि आज ये दोनों प्रारूप मिलकर चलते हैं। आज पारंपरिक मीडिया स्वयं को डिजिटल मीडिया में परिवर्तित कर रहा है। जरूरी है कि मीडिया शिक्षण संस्थान अपने छात्रों को 'डिजिटल ट्रांसफॉर्म' के लिए पहले से तैयार करें। देश में प्रादेशिक भाषा यानी भारतीय भाषाओं के बाजार का महत्व भी लगातार बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार अंग्रेजी भाषा के उपभोक्ताओं का डिजिटल की तरफ मुड़ना लगभग पूरा हो चुका है। ऐसा माना जा रहा है कि वर्ष 2030 तक भारतीय भाषाओं के बाजार में उपयोगकर्ताओं की संख्या 500 मिलियन तक पहुंच जाएगी और लोग इंटरनेट का इस्तेमाल स्थानीय भाषा में करेंगे। जनसंचार की शिक्षा देने वाले संस्थान अपने आपको इन चुनौतियों के मद्देनजर तैयार करें, यह एक बड़ी जिम्मेदारी है। (लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक हैं)

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Dakhal News 15 May 2021


bhopal,circumstances are better,  good jobs ,English people, Hindi people,wages

उर्मिलेश-   एक हिंदी-पत्रकार के तौर पर अपने लगभग चालीस वर्ष के अनुभव और देश-विदेश के अपने भ्रमण से अर्जित समझ के आधार पर पिछले कुछ वर्षो से यह बात मैं लगातार कहता आ रहा हूं. उसे आज फिर दोहराऊंगा. इस महामारी में भी नये सिरे से इसे कहने की जरुरत है. हमारा साफ शब्दों में कहना है कि अब उत्तर भारत के हिंदी-भाषी इलाकों के गरीबों और उत्पीड़ित समाज के लोगों को अपने बच्चों को शुरू से ही अंग्रेजी में शिक्षित करने का प्रबंध करना चाहिए. खर्च में कटौती करना पडे तो भी बच्चों की अच्छी शिक्षा पर कोई समझौता नही कीजिये. सामाजिक, धार्मिक या सामुदायिक संगठनों को गांव-गांव ऐसे स्कूल खोलने चाहिए, जहां बच्चों को शुरु से ही अंग्रेजी में शिक्षित किया जा सके. बेशक, वे एक भाषा के तौर पर हिंदी भी पढें-समझें!   अपने को आपका हितैषी बताने वाले राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं से भी यह सुनिश्चित कराइये कि वे सरकार में आने पर आपके बच्चों को भी अपने बच्चों की तरह अंग्रेजी में शिक्षा का प्रबंध करेंगे. हर चुनाव में आम लोग अपने नेताओं पर इसके लिए दबाव बनायें. याद रखिये, हर प्रमुख नेता(वह चाहे जिस जाति या धर्म का हो!) का बेटा अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ा होता है या पढ़ रहा होता है.   इस महामारी(कोविड-19) के बाद जब हालात कुछ संभलेंगे तो अच्छी नौकरियां अंग्रेजी वालों को मिलेंगी और मजदूरी का काम हिंदी वालों को. अंग्रेजी के बगैर होम-डिलीवरी वाली कंपनियों की साधारण नौकरी भी नहीं मिलेगी. मामला सिर्फ नौकरी का नही है. सूचना, ज्ञान और विज्ञान की दुनिया से बेहतर परिचय के लिए भी अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान ज़रूरी है. हिंदी में पढ़कर आपके बच्चे सूचना के लिए हिंदी उन अखबारों को पढ़ने और, टीवीपुरम् के कथित न्यूज़ चैनलों को देखने के लिए अभिशप्त होंगे, जिनका न्यूज़ की दुनिया से अब कोई वास्ता नहीं, वे सब एक अमानवीय सोच, एक जनविरोधी राजनीतिक धारा और कारपोरेट प्रोपगेन्डा के संगठित मंच भर हैं.   आपके बच्चे अगर फर्राटेदारअंग्रेजी नहीँ जानेंगे तो देश-विदेश के अपेक्षाकृत अच्छे मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग नहीं कर सकेंगे. घटिया प्रोपगेन्डा के घटिया मंच उनके दिमाग में घटिया विचार इंजेक्ट करेंगे.   अब इस महामारी में ही देख लीजिये. हर जरूरी चीज का नाम अंग्रेजी में है: टीका का नाम सब भूल चुके हैं. अब उसे ‘हिंदी’, ‘हिंदू’ और ‘हिन्दुस्थान’ वाले भी ‘वैक्सीन’ कहते हैं. देश के हिंदी अखबारों में भी ‘वैक्सीन’ और ‘वैक्सीनेशन’ जैसे शब्द प्रयुक्त होते हैं. इसे वे ‘अप-मार्केट’ की भाषा ‘हिंग्लिश’ कहते हैं. फिर आपके बच्चे ऐसी घटिया भाषा क्यों बोलें? वे सीधे अंग्रेजी ही क्यों न बोलें? महामारी के बारे में हिंदी अखबारों में सार्थक और ज़रूरी खबरें बहुत कम छप रही हैं. हिंदी के न्यूज़ चैनल इतना सब सामने होता देखकर भी सरकारी भोंपू बने हुए हैं—पूरे के पूरे टीवीपुरम्! उनमें काम करने वाले भी ज्यादातर कुछ ही समुदायों के होते हैं.   विदेश के अंग्रेजी अखबार-न्यूज चैनल ही आज भारत का सच बताते दिख रहे हैं. अगर देश में यह काम कोई कर रहा है तो वे भारत की अंग्रेजी न्यूज़ वेबसाइट हैं. इनमें कुछ दो भाषाओं मे भी हैं. देश के कुछेक अंग्रेजी चैनलों के कुछेक एंकर और विश्लेषक भी अच्छे कार्यक्रम पेश कर रहे हैं. वेबसाइटों की पहुंच अभी हमारे यहां ज़्यादा नहीं है.   लेकिन यह बात सौ फीसदी सच है कि ज्ञान-विज्ञान का बड़ा खजाना अंग्रेजी मे है. हमारी सरकारों ने बीते 73 वर्षो में हिंदी को इस लायक बनाया ही नहीं. सरकारों के असल संचालक अंग्रेजी में सोचते और करते रहे, नेता हिंदी भाषी क्षेत्रों की गरीब और उत्पीड़ित जनता खो हिंदी के नाम पर बेवकूफ़ बनाते रहे!   आज गरीबों के बच्चे हिंदी में क्यों पढें? क्या तर्क हैहिंदी-वादियो के पास? क्या सिर्फ मजदूरी करने के लिए हिंदी में पढ़ें? रिक्शा या टेम्पो चलाने के लिए? या कुछ ‘शक्तिशाली लोगों’ के इशारे पर काम करने वाली दंगाइयो की भीड़ का हिस्सा बनने के लिए ?   इसलिए, हिंदी भाषी क्षेत्र के उत्पीड़ित समाजों के लोगों, अब आप अपने बच्चों को वैज्ञानिक, प्रोफेसर, रिसर्चर, समाज विज्ञानी, न्यायविद्, लेखक, आईआईटियन, कम्प्यूटर विज्ञानी और अंतरिक्ष विज्ञानी बनाने के लिए अंग्रेजी को उनकी शिक्षा का माध्यम बनाइये. पढ-लिखकर वे स्वयं भी बदलेंगे और अपने समाजों में बदलाव का प्रेरक भी बनेंगे.   इस बारे में हिंदी क्षेत्र के कुछ बुजुर्ग होते नेताओं या कुछ आत्ममुग्ध हिंदी लेखकों-बुद्धिजीवियों की फ़ालतू और बासी दलीलो से कन्फ्यूज होने की जरूरत नहीं है. यही न कि वो आपसे कहने आयेंगे कि आप अपनी प्यारी हिंदी छोड़कर अपने बच्चों को अंग्रेजी में शिक्षा क्यों दिलाने लगे? आप पूछियेगा उनसे, उनमें कितनों के बच्चे निगम या पंचायत संचालित हिंदी वाले स्कूलों में पढ़ते हैं? फिर वे आपको बेवजह हिंदी-भक्त क्यों बनाये रखना चाहते हैं?सोचिये और बदलिये, वरना बहुत देर हो जायेगी!

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Dakhal News 8 May 2021


bhopal,circumstances are better,  good jobs ,English people, Hindi people,wages

उर्मिलेश-   एक हिंदी-पत्रकार के तौर पर अपने लगभग चालीस वर्ष के अनुभव और देश-विदेश के अपने भ्रमण से अर्जित समझ के आधार पर पिछले कुछ वर्षो से यह बात मैं लगातार कहता आ रहा हूं. उसे आज फिर दोहराऊंगा. इस महामारी में भी नये सिरे से इसे कहने की जरुरत है. हमारा साफ शब्दों में कहना है कि अब उत्तर भारत के हिंदी-भाषी इलाकों के गरीबों और उत्पीड़ित समाज के लोगों को अपने बच्चों को शुरू से ही अंग्रेजी में शिक्षित करने का प्रबंध करना चाहिए. खर्च में कटौती करना पडे तो भी बच्चों की अच्छी शिक्षा पर कोई समझौता नही कीजिये. सामाजिक, धार्मिक या सामुदायिक संगठनों को गांव-गांव ऐसे स्कूल खोलने चाहिए, जहां बच्चों को शुरु से ही अंग्रेजी में शिक्षित किया जा सके. बेशक, वे एक भाषा के तौर पर हिंदी भी पढें-समझें!   अपने को आपका हितैषी बताने वाले राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं से भी यह सुनिश्चित कराइये कि वे सरकार में आने पर आपके बच्चों को भी अपने बच्चों की तरह अंग्रेजी में शिक्षा का प्रबंध करेंगे. हर चुनाव में आम लोग अपने नेताओं पर इसके लिए दबाव बनायें. याद रखिये, हर प्रमुख नेता(वह चाहे जिस जाति या धर्म का हो!) का बेटा अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ा होता है या पढ़ रहा होता है.   इस महामारी(कोविड-19) के बाद जब हालात कुछ संभलेंगे तो अच्छी नौकरियां अंग्रेजी वालों को मिलेंगी और मजदूरी का काम हिंदी वालों को. अंग्रेजी के बगैर होम-डिलीवरी वाली कंपनियों की साधारण नौकरी भी नहीं मिलेगी. मामला सिर्फ नौकरी का नही है. सूचना, ज्ञान और विज्ञान की दुनिया से बेहतर परिचय के लिए भी अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान ज़रूरी है. हिंदी में पढ़कर आपके बच्चे सूचना के लिए हिंदी उन अखबारों को पढ़ने और, टीवीपुरम् के कथित न्यूज़ चैनलों को देखने के लिए अभिशप्त होंगे, जिनका न्यूज़ की दुनिया से अब कोई वास्ता नहीं, वे सब एक अमानवीय सोच, एक जनविरोधी राजनीतिक धारा और कारपोरेट प्रोपगेन्डा के संगठित मंच भर हैं.   आपके बच्चे अगर फर्राटेदारअंग्रेजी नहीँ जानेंगे तो देश-विदेश के अपेक्षाकृत अच्छे मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग नहीं कर सकेंगे. घटिया प्रोपगेन्डा के घटिया मंच उनके दिमाग में घटिया विचार इंजेक्ट करेंगे.   अब इस महामारी में ही देख लीजिये. हर जरूरी चीज का नाम अंग्रेजी में है: टीका का नाम सब भूल चुके हैं. अब उसे ‘हिंदी’, ‘हिंदू’ और ‘हिन्दुस्थान’ वाले भी ‘वैक्सीन’ कहते हैं. देश के हिंदी अखबारों में भी ‘वैक्सीन’ और ‘वैक्सीनेशन’ जैसे शब्द प्रयुक्त होते हैं. इसे वे ‘अप-मार्केट’ की भाषा ‘हिंग्लिश’ कहते हैं. फिर आपके बच्चे ऐसी घटिया भाषा क्यों बोलें? वे सीधे अंग्रेजी ही क्यों न बोलें? महामारी के बारे में हिंदी अखबारों में सार्थक और ज़रूरी खबरें बहुत कम छप रही हैं. हिंदी के न्यूज़ चैनल इतना सब सामने होता देखकर भी सरकारी भोंपू बने हुए हैं—पूरे के पूरे टीवीपुरम्! उनमें काम करने वाले भी ज्यादातर कुछ ही समुदायों के होते हैं.   विदेश के अंग्रेजी अखबार-न्यूज चैनल ही आज भारत का सच बताते दिख रहे हैं. अगर देश में यह काम कोई कर रहा है तो वे भारत की अंग्रेजी न्यूज़ वेबसाइट हैं. इनमें कुछ दो भाषाओं मे भी हैं. देश के कुछेक अंग्रेजी चैनलों के कुछेक एंकर और विश्लेषक भी अच्छे कार्यक्रम पेश कर रहे हैं. वेबसाइटों की पहुंच अभी हमारे यहां ज़्यादा नहीं है.   लेकिन यह बात सौ फीसदी सच है कि ज्ञान-विज्ञान का बड़ा खजाना अंग्रेजी मे है. हमारी सरकारों ने बीते 73 वर्षो में हिंदी को इस लायक बनाया ही नहीं. सरकारों के असल संचालक अंग्रेजी में सोचते और करते रहे, नेता हिंदी भाषी क्षेत्रों की गरीब और उत्पीड़ित जनता खो हिंदी के नाम पर बेवकूफ़ बनाते रहे!   आज गरीबों के बच्चे हिंदी में क्यों पढें? क्या तर्क हैहिंदी-वादियो के पास? क्या सिर्फ मजदूरी करने के लिए हिंदी में पढ़ें? रिक्शा या टेम्पो चलाने के लिए? या कुछ ‘शक्तिशाली लोगों’ के इशारे पर काम करने वाली दंगाइयो की भीड़ का हिस्सा बनने के लिए ?   इसलिए, हिंदी भाषी क्षेत्र के उत्पीड़ित समाजों के लोगों, अब आप अपने बच्चों को वैज्ञानिक, प्रोफेसर, रिसर्चर, समाज विज्ञानी, न्यायविद्, लेखक, आईआईटियन, कम्प्यूटर विज्ञानी और अंतरिक्ष विज्ञानी बनाने के लिए अंग्रेजी को उनकी शिक्षा का माध्यम बनाइये. पढ-लिखकर वे स्वयं भी बदलेंगे और अपने समाजों में बदलाव का प्रेरक भी बनेंगे.   इस बारे में हिंदी क्षेत्र के कुछ बुजुर्ग होते नेताओं या कुछ आत्ममुग्ध हिंदी लेखकों-बुद्धिजीवियों की फ़ालतू और बासी दलीलो से कन्फ्यूज होने की जरूरत नहीं है. यही न कि वो आपसे कहने आयेंगे कि आप अपनी प्यारी हिंदी छोड़कर अपने बच्चों को अंग्रेजी में शिक्षा क्यों दिलाने लगे? आप पूछियेगा उनसे, उनमें कितनों के बच्चे निगम या पंचायत संचालित हिंदी वाले स्कूलों में पढ़ते हैं? फिर वे आपको बेवजह हिंदी-भक्त क्यों बनाये रखना चाहते हैं?सोचिये और बदलिये, वरना बहुत देर हो जायेगी!

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Dakhal News 8 May 2021


bhopal,circumstances are better,  good jobs ,English people, Hindi people,wages

उर्मिलेश-   एक हिंदी-पत्रकार के तौर पर अपने लगभग चालीस वर्ष के अनुभव और देश-विदेश के अपने भ्रमण से अर्जित समझ के आधार पर पिछले कुछ वर्षो से यह बात मैं लगातार कहता आ रहा हूं. उसे आज फिर दोहराऊंगा. इस महामारी में भी नये सिरे से इसे कहने की जरुरत है. हमारा साफ शब्दों में कहना है कि अब उत्तर भारत के हिंदी-भाषी इलाकों के गरीबों और उत्पीड़ित समाज के लोगों को अपने बच्चों को शुरू से ही अंग्रेजी में शिक्षित करने का प्रबंध करना चाहिए. खर्च में कटौती करना पडे तो भी बच्चों की अच्छी शिक्षा पर कोई समझौता नही कीजिये. सामाजिक, धार्मिक या सामुदायिक संगठनों को गांव-गांव ऐसे स्कूल खोलने चाहिए, जहां बच्चों को शुरु से ही अंग्रेजी में शिक्षित किया जा सके. बेशक, वे एक भाषा के तौर पर हिंदी भी पढें-समझें!   अपने को आपका हितैषी बताने वाले राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं से भी यह सुनिश्चित कराइये कि वे सरकार में आने पर आपके बच्चों को भी अपने बच्चों की तरह अंग्रेजी में शिक्षा का प्रबंध करेंगे. हर चुनाव में आम लोग अपने नेताओं पर इसके लिए दबाव बनायें. याद रखिये, हर प्रमुख नेता(वह चाहे जिस जाति या धर्म का हो!) का बेटा अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ा होता है या पढ़ रहा होता है.   इस महामारी(कोविड-19) के बाद जब हालात कुछ संभलेंगे तो अच्छी नौकरियां अंग्रेजी वालों को मिलेंगी और मजदूरी का काम हिंदी वालों को. अंग्रेजी के बगैर होम-डिलीवरी वाली कंपनियों की साधारण नौकरी भी नहीं मिलेगी. मामला सिर्फ नौकरी का नही है. सूचना, ज्ञान और विज्ञान की दुनिया से बेहतर परिचय के लिए भी अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान ज़रूरी है. हिंदी में पढ़कर आपके बच्चे सूचना के लिए हिंदी उन अखबारों को पढ़ने और, टीवीपुरम् के कथित न्यूज़ चैनलों को देखने के लिए अभिशप्त होंगे, जिनका न्यूज़ की दुनिया से अब कोई वास्ता नहीं, वे सब एक अमानवीय सोच, एक जनविरोधी राजनीतिक धारा और कारपोरेट प्रोपगेन्डा के संगठित मंच भर हैं.   आपके बच्चे अगर फर्राटेदारअंग्रेजी नहीँ जानेंगे तो देश-विदेश के अपेक्षाकृत अच्छे मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग नहीं कर सकेंगे. घटिया प्रोपगेन्डा के घटिया मंच उनके दिमाग में घटिया विचार इंजेक्ट करेंगे.   अब इस महामारी में ही देख लीजिये. हर जरूरी चीज का नाम अंग्रेजी में है: टीका का नाम सब भूल चुके हैं. अब उसे ‘हिंदी’, ‘हिंदू’ और ‘हिन्दुस्थान’ वाले भी ‘वैक्सीन’ कहते हैं. देश के हिंदी अखबारों में भी ‘वैक्सीन’ और ‘वैक्सीनेशन’ जैसे शब्द प्रयुक्त होते हैं. इसे वे ‘अप-मार्केट’ की भाषा ‘हिंग्लिश’ कहते हैं. फिर आपके बच्चे ऐसी घटिया भाषा क्यों बोलें? वे सीधे अंग्रेजी ही क्यों न बोलें? महामारी के बारे में हिंदी अखबारों में सार्थक और ज़रूरी खबरें बहुत कम छप रही हैं. हिंदी के न्यूज़ चैनल इतना सब सामने होता देखकर भी सरकारी भोंपू बने हुए हैं—पूरे के पूरे टीवीपुरम्! उनमें काम करने वाले भी ज्यादातर कुछ ही समुदायों के होते हैं.   विदेश के अंग्रेजी अखबार-न्यूज चैनल ही आज भारत का सच बताते दिख रहे हैं. अगर देश में यह काम कोई कर रहा है तो वे भारत की अंग्रेजी न्यूज़ वेबसाइट हैं. इनमें कुछ दो भाषाओं मे भी हैं. देश के कुछेक अंग्रेजी चैनलों के कुछेक एंकर और विश्लेषक भी अच्छे कार्यक्रम पेश कर रहे हैं. वेबसाइटों की पहुंच अभी हमारे यहां ज़्यादा नहीं है.   लेकिन यह बात सौ फीसदी सच है कि ज्ञान-विज्ञान का बड़ा खजाना अंग्रेजी मे है. हमारी सरकारों ने बीते 73 वर्षो में हिंदी को इस लायक बनाया ही नहीं. सरकारों के असल संचालक अंग्रेजी में सोचते और करते रहे, नेता हिंदी भाषी क्षेत्रों की गरीब और उत्पीड़ित जनता खो हिंदी के नाम पर बेवकूफ़ बनाते रहे!   आज गरीबों के बच्चे हिंदी में क्यों पढें? क्या तर्क हैहिंदी-वादियो के पास? क्या सिर्फ मजदूरी करने के लिए हिंदी में पढ़ें? रिक्शा या टेम्पो चलाने के लिए? या कुछ ‘शक्तिशाली लोगों’ के इशारे पर काम करने वाली दंगाइयो की भीड़ का हिस्सा बनने के लिए ?   इसलिए, हिंदी भाषी क्षेत्र के उत्पीड़ित समाजों के लोगों, अब आप अपने बच्चों को वैज्ञानिक, प्रोफेसर, रिसर्चर, समाज विज्ञानी, न्यायविद्, लेखक, आईआईटियन, कम्प्यूटर विज्ञानी और अंतरिक्ष विज्ञानी बनाने के लिए अंग्रेजी को उनकी शिक्षा का माध्यम बनाइये. पढ-लिखकर वे स्वयं भी बदलेंगे और अपने समाजों में बदलाव का प्रेरक भी बनेंगे.   इस बारे में हिंदी क्षेत्र के कुछ बुजुर्ग होते नेताओं या कुछ आत्ममुग्ध हिंदी लेखकों-बुद्धिजीवियों की फ़ालतू और बासी दलीलो से कन्फ्यूज होने की जरूरत नहीं है. यही न कि वो आपसे कहने आयेंगे कि आप अपनी प्यारी हिंदी छोड़कर अपने बच्चों को अंग्रेजी में शिक्षा क्यों दिलाने लगे? आप पूछियेगा उनसे, उनमें कितनों के बच्चे निगम या पंचायत संचालित हिंदी वाले स्कूलों में पढ़ते हैं? फिर वे आपको बेवजह हिंदी-भक्त क्यों बनाये रखना चाहते हैं?सोचिये और बदलिये, वरना बहुत देर हो जायेगी!

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Dakhal News 8 May 2021


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उर्मिलेश-   एक हिंदी-पत्रकार के तौर पर अपने लगभग चालीस वर्ष के अनुभव और देश-विदेश के अपने भ्रमण से अर्जित समझ के आधार पर पिछले कुछ वर्षो से यह बात मैं लगातार कहता आ रहा हूं. उसे आज फिर दोहराऊंगा. इस महामारी में भी नये सिरे से इसे कहने की जरुरत है. हमारा साफ शब्दों में कहना है कि अब उत्तर भारत के हिंदी-भाषी इलाकों के गरीबों और उत्पीड़ित समाज के लोगों को अपने बच्चों को शुरू से ही अंग्रेजी में शिक्षित करने का प्रबंध करना चाहिए. खर्च में कटौती करना पडे तो भी बच्चों की अच्छी शिक्षा पर कोई समझौता नही कीजिये. सामाजिक, धार्मिक या सामुदायिक संगठनों को गांव-गांव ऐसे स्कूल खोलने चाहिए, जहां बच्चों को शुरु से ही अंग्रेजी में शिक्षित किया जा सके. बेशक, वे एक भाषा के तौर पर हिंदी भी पढें-समझें!   अपने को आपका हितैषी बताने वाले राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं से भी यह सुनिश्चित कराइये कि वे सरकार में आने पर आपके बच्चों को भी अपने बच्चों की तरह अंग्रेजी में शिक्षा का प्रबंध करेंगे. हर चुनाव में आम लोग अपने नेताओं पर इसके लिए दबाव बनायें. याद रखिये, हर प्रमुख नेता(वह चाहे जिस जाति या धर्म का हो!) का बेटा अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ा होता है या पढ़ रहा होता है.   इस महामारी(कोविड-19) के बाद जब हालात कुछ संभलेंगे तो अच्छी नौकरियां अंग्रेजी वालों को मिलेंगी और मजदूरी का काम हिंदी वालों को. अंग्रेजी के बगैर होम-डिलीवरी वाली कंपनियों की साधारण नौकरी भी नहीं मिलेगी. मामला सिर्फ नौकरी का नही है. सूचना, ज्ञान और विज्ञान की दुनिया से बेहतर परिचय के लिए भी अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान ज़रूरी है. हिंदी में पढ़कर आपके बच्चे सूचना के लिए हिंदी उन अखबारों को पढ़ने और, टीवीपुरम् के कथित न्यूज़ चैनलों को देखने के लिए अभिशप्त होंगे, जिनका न्यूज़ की दुनिया से अब कोई वास्ता नहीं, वे सब एक अमानवीय सोच, एक जनविरोधी राजनीतिक धारा और कारपोरेट प्रोपगेन्डा के संगठित मंच भर हैं.   आपके बच्चे अगर फर्राटेदारअंग्रेजी नहीँ जानेंगे तो देश-विदेश के अपेक्षाकृत अच्छे मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग नहीं कर सकेंगे. घटिया प्रोपगेन्डा के घटिया मंच उनके दिमाग में घटिया विचार इंजेक्ट करेंगे.   अब इस महामारी में ही देख लीजिये. हर जरूरी चीज का नाम अंग्रेजी में है: टीका का नाम सब भूल चुके हैं. अब उसे ‘हिंदी’, ‘हिंदू’ और ‘हिन्दुस्थान’ वाले भी ‘वैक्सीन’ कहते हैं. देश के हिंदी अखबारों में भी ‘वैक्सीन’ और ‘वैक्सीनेशन’ जैसे शब्द प्रयुक्त होते हैं. इसे वे ‘अप-मार्केट’ की भाषा ‘हिंग्लिश’ कहते हैं. फिर आपके बच्चे ऐसी घटिया भाषा क्यों बोलें? वे सीधे अंग्रेजी ही क्यों न बोलें? महामारी के बारे में हिंदी अखबारों में सार्थक और ज़रूरी खबरें बहुत कम छप रही हैं. हिंदी के न्यूज़ चैनल इतना सब सामने होता देखकर भी सरकारी भोंपू बने हुए हैं—पूरे के पूरे टीवीपुरम्! उनमें काम करने वाले भी ज्यादातर कुछ ही समुदायों के होते हैं.   विदेश के अंग्रेजी अखबार-न्यूज चैनल ही आज भारत का सच बताते दिख रहे हैं. अगर देश में यह काम कोई कर रहा है तो वे भारत की अंग्रेजी न्यूज़ वेबसाइट हैं. इनमें कुछ दो भाषाओं मे भी हैं. देश के कुछेक अंग्रेजी चैनलों के कुछेक एंकर और विश्लेषक भी अच्छे कार्यक्रम पेश कर रहे हैं. वेबसाइटों की पहुंच अभी हमारे यहां ज़्यादा नहीं है.   लेकिन यह बात सौ फीसदी सच है कि ज्ञान-विज्ञान का बड़ा खजाना अंग्रेजी मे है. हमारी सरकारों ने बीते 73 वर्षो में हिंदी को इस लायक बनाया ही नहीं. सरकारों के असल संचालक अंग्रेजी में सोचते और करते रहे, नेता हिंदी भाषी क्षेत्रों की गरीब और उत्पीड़ित जनता खो हिंदी के नाम पर बेवकूफ़ बनाते रहे!   आज गरीबों के बच्चे हिंदी में क्यों पढें? क्या तर्क हैहिंदी-वादियो के पास? क्या सिर्फ मजदूरी करने के लिए हिंदी में पढ़ें? रिक्शा या टेम्पो चलाने के लिए? या कुछ ‘शक्तिशाली लोगों’ के इशारे पर काम करने वाली दंगाइयो की भीड़ का हिस्सा बनने के लिए ?   इसलिए, हिंदी भाषी क्षेत्र के उत्पीड़ित समाजों के लोगों, अब आप अपने बच्चों को वैज्ञानिक, प्रोफेसर, रिसर्चर, समाज विज्ञानी, न्यायविद्, लेखक, आईआईटियन, कम्प्यूटर विज्ञानी और अंतरिक्ष विज्ञानी बनाने के लिए अंग्रेजी को उनकी शिक्षा का माध्यम बनाइये. पढ-लिखकर वे स्वयं भी बदलेंगे और अपने समाजों में बदलाव का प्रेरक भी बनेंगे.   इस बारे में हिंदी क्षेत्र के कुछ बुजुर्ग होते नेताओं या कुछ आत्ममुग्ध हिंदी लेखकों-बुद्धिजीवियों की फ़ालतू और बासी दलीलो से कन्फ्यूज होने की जरूरत नहीं है. यही न कि वो आपसे कहने आयेंगे कि आप अपनी प्यारी हिंदी छोड़कर अपने बच्चों को अंग्रेजी में शिक्षा क्यों दिलाने लगे? आप पूछियेगा उनसे, उनमें कितनों के बच्चे निगम या पंचायत संचालित हिंदी वाले स्कूलों में पढ़ते हैं? फिर वे आपको बेवजह हिंदी-भक्त क्यों बनाये रखना चाहते हैं?सोचिये और बदलिये, वरना बहुत देर हो जायेगी!

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Dakhal News 8 May 2021


delhi,Aaj Tak anchor ,Rohit Sardana, passed away

बहुत ही दुखद खबर है। आजतक के चर्चित एंकर और राइट विंग पत्रकार रोहित सरदाना की मौत हो गई है।   बताया जा रहा है कि रोहित कोरोना से संक्रमित थे। मेट्रो अस्पताल नोएडा में भर्ती थे। डाक्टरों की देखरेख में उनका इलाज चल रहा था। अचानक इसी दौरान इन्हें हार्ट अटैक आ गया और बचाया न जा सका।   रोहित के निधन की सूचना मिलते ही आजतक में मातम फैल गया है। किसी को इस मौत को लेकर यक़ीन नहीं हो रहा है।       कुछ प्रतिक्रियाएं देखें-   सुधीर चौधरी- अब से थोड़ी देर पहले @capt_ivane का फ़ोन आया। उसने जो कहा सुनकर मेरे हाथ काँपने लगे। हमारे मित्र और सहयोगी रोहित सरदाना की मृत्यु की ख़बर थी। ये वाइरस हमारे इतने क़रीब से किसी को उठा ले जाएगा ये कल्पना नहीं की थी। इसके लिए मैं तैयार नहीं था। ये भगवान की नाइंसाफ़ी है.. ॐ शान्ति!   साक्षी जोशी- आज तक के एंकर रोहित सरदाना के निधन की खबर ने अंदर तक हिला दिया है। ये अत्यंत ही दुखद समाचार है। अब तक विश्वास नहीं हो पा रहा है। ये किसकी नज़र लग गई हमारे देश को। बस अभी निशब्द हूँ।   चित्रा त्रिपाठी- हँसता-खेलता परिवार, दो छोटी बेटियाँ. उनके लिए इस दंगल को हारना नहीं था @sardanarohit जी.आज सुबह चार बजे नोएडा के निजी अस्पताल में ICU में आपको ले ज़ाया गया और दिन चढ़ने के साथ ये बहुत बुरी खबर. कुछ कहने को अब बचा ही नहीं.   राणा यशवंत- रोहित तुम सदमा दे गए यार! बहुत क़ाबू करने के बावजूद ऐसा लग रहा है कि शरीर काँप रहा है। ये ईश्वर की बहुत बड़ी नाइंसाफ़ी है!! ऊपर अगर कोई दुनिया है तो तुमको वहाँ सबसे शानदार जगह मिले। तुम ज़बरदस्त इंसान थे। इससे ज़्यादा अभी कुछ भी कहने की हालत में नहीं हूँ। उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़!!

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Dakhal News 30 April 2021


delhi,Aaj Tak anchor ,Rohit Sardana, passed away

बहुत ही दुखद खबर है। आजतक के चर्चित एंकर और राइट विंग पत्रकार रोहित सरदाना की मौत हो गई है।   बताया जा रहा है कि रोहित कोरोना से संक्रमित थे। मेट्रो अस्पताल नोएडा में भर्ती थे। डाक्टरों की देखरेख में उनका इलाज चल रहा था। अचानक इसी दौरान इन्हें हार्ट अटैक आ गया और बचाया न जा सका।   रोहित के निधन की सूचना मिलते ही आजतक में मातम फैल गया है। किसी को इस मौत को लेकर यक़ीन नहीं हो रहा है।       कुछ प्रतिक्रियाएं देखें-   सुधीर चौधरी- अब से थोड़ी देर पहले @capt_ivane का फ़ोन आया। उसने जो कहा सुनकर मेरे हाथ काँपने लगे। हमारे मित्र और सहयोगी रोहित सरदाना की मृत्यु की ख़बर थी। ये वाइरस हमारे इतने क़रीब से किसी को उठा ले जाएगा ये कल्पना नहीं की थी। इसके लिए मैं तैयार नहीं था। ये भगवान की नाइंसाफ़ी है.. ॐ शान्ति!   साक्षी जोशी- आज तक के एंकर रोहित सरदाना के निधन की खबर ने अंदर तक हिला दिया है। ये अत्यंत ही दुखद समाचार है। अब तक विश्वास नहीं हो पा रहा है। ये किसकी नज़र लग गई हमारे देश को। बस अभी निशब्द हूँ।   चित्रा त्रिपाठी- हँसता-खेलता परिवार, दो छोटी बेटियाँ. उनके लिए इस दंगल को हारना नहीं था @sardanarohit जी.आज सुबह चार बजे नोएडा के निजी अस्पताल में ICU में आपको ले ज़ाया गया और दिन चढ़ने के साथ ये बहुत बुरी खबर. कुछ कहने को अब बचा ही नहीं.   राणा यशवंत- रोहित तुम सदमा दे गए यार! बहुत क़ाबू करने के बावजूद ऐसा लग रहा है कि शरीर काँप रहा है। ये ईश्वर की बहुत बड़ी नाइंसाफ़ी है!! ऊपर अगर कोई दुनिया है तो तुमको वहाँ सबसे शानदार जगह मिले। तुम ज़बरदस्त इंसान थे। इससे ज़्यादा अभी कुछ भी कहने की हालत में नहीं हूँ। उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़!!

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Dakhal News 30 April 2021


bhopal, Islam, Hindutva and Christianity,Who changes whom!

संगम पांडेय-   अल बरूनी से लेकर मोहम्मद अली जिन्ना तक ने यह माना है कि इस्लाम और हिंदुत्व एक-दूसरे से इतने भिन्न हैं कि उनमें कोई तुलना संभव नहीं। लेकिन इस्लाम की तुलना ईसाइयत के साथ संभव है। क्योंकि दोनों में ही एक किताब, एक पैगंबर, धर्मांतरण, ईशनिंदा आदि एक जैसे कांसेप्ट मौजूद होने के साथ-साथ दोनों का ऐतिहासिक स्रोत भी एक ही है। पर इस्लामी समाजों में जहाँ ये कांसेप्ट हड़कंप का सबब बन जाते हैं वहीं ईसाई समाजों में इनका अक्सर उल्लंघन होता है और किसी को खास परवाह नहीं होती, जिसकी वजह है व्यक्ति की आजादी के सवाल को सबसे ऊपर रखना।   दारियो फो के नाटक ‘कॉमिकल मिस्ट्री’ और टीवी शो ‘फर्स्ट मिरेकल ऑफ इन्फैंट जीसस’ को वेटिकन द्वारा सबसे भयंकर ब्लाशफेमी करार देने के बावजूद कई दशकों तक उनके प्रदर्शन वहाँ होते रहे। वहीं एक जमाने में धरती को ब्रह्मांड का केंद्र मानने की बाइबिल की धारणा से उलट राय व्यक्त करने पर गैलीलियो को जिस चर्च ने हाउस अरेस्ट की सजा सुनाई थी उसी चर्च ने अभी कुछ साल पहले कबूल किया कि ईश्वर जादूगर नहीं है और ‘बिग बैंग’ और ‘थ्योरी ऑफ ईवोल्यूशन’ दोनों ही अपनी जगह सही हैं।   चर्च बदलते वक्त के मुताबिक अपनी नैतिकताओं में संशोधन या नवीकरण भी करती रहती है। सन 2009 में उसने ज्यादा धन को भी एक बुराई करार दिया था, जो शायद 1990 के बाद की आर्थिक प्रवृत्तियों के मद्देनजर ही होगा। इसी तरह धर्मांतरण को लेकर भी ईसाइयत इस्लाम की तरह उच्छेदवादी नहीं है। उसमें परंपराएँ छोड़ने और नाम बदलने के लिए नहीं कहा जाता, सिर्फ यीशु का भक्त और चर्च का अनुयायी होना ही इसके लिए काफी है। जबकि मुझे याद है इंडोनेशिया में (सुकर्ण पुत्री) मेगावती (जो पहले से ही मुसलमान थीं) के खिलाफ आवाजें उठी थीं कि सिर्फ इस्लाम अपनाने से काम नहीं चलेगा, नाम भी बदलो।     यूरोप के उदाहरण से पता चलता है कि धर्म ही समाजों को नहीं बदलते बल्कि समाज भी धर्म को बदल देते हैं। और यह सिर्फ ईसाइयत के हवाले से ही अहम नहीं है, बल्कि यूरोप में एक मुल्क अल्बानिया भी है जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। लेकिन वह देश उसी तरह समानता और व्यक्ति स्वातंत्र्य के नियमों को मानता है जैसे कि ज्यादातर अन्य यूरोपीय देश। यहाँ तक कि एक वक्त पर अनवर होजा ने वहाँ कम्युनिस्ट क्रांति भी कर दी थी, जो कि किसी मुस्लिम देश के लिए असंभव सी लगने वाली बात है। और न सिर्फ इतना बल्कि होजा ने अल्बानिया को एक नास्तिक राज्य भी घोषित कर दिया था।   यूरोप की तुलना में एशिया की प्रवृत्ति लकीर के फकीर की है। उदाहरण के लिए हिंदुत्व को ही लें। करीब ढाई सौ साल पहले तक हिंदुओं को इस बात का ठोस अहसास तक नहीं था कि वे कोई कौम हैं। अब ये अहसास आया है तो बजाय इसके कि वे हिंदुत्व की खामियों के मुतल्लिक सुधार का कोई डॉक्ट्राइन प्रस्तावित करें, वे सारा गौरव अतीत में तलाश लेने पर आमादा हैं। हो सकता है यह प्रवृत्ति उन्होंने इस्लाम से उधार ली हो या हो सकता है उनकी अपनी हो; क्योंकि खुद गाँधी वर्णाश्रम को हिंदुत्व के लिए अनिवार्य मानते थे, जिनकी इस धारणा की अच्छी चीरफाड़ अंबेडकर ने अपनी किताब ‘जाति का विनाश’ में की है। फेसबुक पर इस प्रश्न को पर मैं खुद दो बार अनफ्रेंड किया जा चुका हूँ।   दरअसल सेकुलर दृष्टिकोण जिस रीजनिंग से पैदा होता है उसकी हालत अपने यहाँ सुभानअल्ला किस्म की है। खुद को सेकुलर मानने वाले यहाँ के बुद्धिजीवी जिन नेहरू पर फिदा हैं वे नेहरू अपनी किताब ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में लिखते हैं कि ‘(अफगानों या तुर्कों के भारत पर आक्रमण को) मुस्लिम आक्रमण या मुस्लिम हुकूमत लिखना उसी तरह गलत है जैसे भारत में ब्रिटिश के आने को ईसाइयों का आना और उनकी हुकूमत को ईसाई हुकूमत कहा जाना।’   विश्लेषण के इस घटिया तरीके में दो भिन्न वास्तविकताओं को खींच-खाँचकर एक खोखली तुलना में फिट कर दिया जाता है। ऐसा वही लिख सकता है जो नहीं जानता कि इस्लाम में स्टेट और रिलीजन मजहबी एजेंडे के अंतर्गत मिक्स कर दिए जाते हैं, जिसके लिए धिम्मी, जजिया, शरिया आदि कई विधियों का प्रावधान है, जिस वजह से हमलावर के अफगान या तुर्क होने का फर्क मुस्लिम पहचान के मुकाबले अंततः एक बहुत कमतर किस्म का फर्क रह जाता है। साथ ही ऐसी खोखली तुलना वह कर सकता है जो नहीं जानता कि सोलहवीं शताब्दी में कैसे ब्रिटेन ने वेटिकन से नाता तोड़कर प्रोटेस्टेंटवाद का साथ दिया था, जिसके बाद कैथोलिज्म के रूढ़िवाद को वहाँ काफी संदेह और हिकारत से देखा जाता था।   स्पष्ट ही ब्रिटिश साम्राज्यवाद के मंतव्य मुस्लिम विस्तारवाद के मंतव्यों से बिल्कुल अलग थे, और मैग्ना कार्टा के बाद ब्रिटेन की यही आधुनिकता कालांतर में उसका वैश्विक साम्राज्य बना पाने में बड़ी सहायक वजह बनी। जो भी हो भारत के सेकुलर बुद्धिजीवी इसी नेहरू-पद्धति के तर्कों से आज तक काम चला रहे हैं। प्रसंगवश याद आया कि अंबेडकर निजी बातचीत में नेहरू को ‘चौथी कक्षा का लड़का’ कहा करते थे। ऐसा धनंजय कीर ने अंबेडकर की जीवनी में लिखा है।   यह भी लिखा है कि एक बार गाँधी से अंबेडकर के विरोध को देखते हुए जमनालाल बजाज ने उन्हें सलाह दी कि ‘कुछ समय के लिए खुद के मत को दूर रख आप नेहरू के आदर्श का अनुसरण क्यों नहीं करते?’ अंबेडकर ने जवाब दिया- ‘तात्कालिक यश के लिए खुद की विवेक-बुद्धि की बलि देने वाला इंसान मैं नहीं हूँ।’

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Dakhal News 13 April 2021


bhopal, Pradeep Bhai

राजेश अग्रवाल- हंसमुख, मृदुभाषी लेकिन समय-समय पर कटाक्ष कर आईना भी दिखाने वाले प्रदीप आर्य pradeep arya भाई का आज दोपहर करीब तीन बजे कोरोना संक्रमण के चलते निधन हो गया। खबर सुनकर व्यथित हूं। करीब तीन दशक का साथी रहा। हमने साथ-साथ लोकस्वर से काम शुरू किया और करीब 10 साल देशबन्धु में साथ रहे। रिपोर्टिंग और सम्पादन में निपुण होते हुए भी उनका एकमात्र लगाव कार्टून की ओर रहा। 90 के दशक में जब उन्होंने कार्टून बनाना शुरू किया तो जाहिर है, धार की कमी थी। मेरी आलोचना के शिकार हुआ करते थे। कई मौके आये जब किसी विषय पर बनाये गये कार्टून को बार-बार सुधारने कहा, फिर पेज पर जगह दी जा सकी। अपनी आलोचना का कभी बुरा नहीं माना और हमेशा खुद को परिष्कृत करते रहे। उन्हें तनख्वाह रिपोर्टिंग और डेस्क की मिलती थी पर पहचान कार्टून की वजह से थी। इन दिनों न केवल स्थानीय विषयों पर बल्कि राष्ट्रीय मुद्दों पर उनके कार्टून देखकर मैं हैरान होता रहा। कोरोना संक्रमण पर तो उन्होंने कई शानदार कार्टून बनाये। कुछ दिन पहले ही तेज धार, गहरी चोट वाले कार्टून तैयार करने पर मैंने उसे बधाई दी थी।   सब साथी देशबन्धु छोड़कर अपनी-अपनी अलग राह निकल गये लेकिन उन्होंने वहां करीब 30 साल काम किया। बीते साल ही उन्होंने इस अख़बार से विदाई ली थी। कहा था- मायूसी के साथ छोड़ा, वजह की बात रहने दें। खैर, उनके मित्र दूसरे अख़बारों में बैठे हुए हैं। जो कभी साथ काम करते थे। इन दिनों रोजाना लोकस्वर में उनका कार्टून छप रहा था। सम्पादकीय पन्ने पर अब आपको उनके रेखाचित्र नहीं दिखेंगे। करीबी दोस्तों को पता है कि वे युवावस्था से ही आंख की बीमारी से जूझते रहे। बड़ी, फिर और बड़ी लैंस का चश्मा लगता रहा। वे काम करते-करते हर घंटे, आधे घंटे में चश्मा उतारकर आंखों से निकले पानी को पोंछते थे। आंखों की हिफाजत के लिये कई बार उन्हें चेन्नई, चंडीगढ़ जाकर भर्ती होना पड़ा। पर इस शारीरिक पीड़ा को उन्होंने कभी रोड़ा नहीं माना। खुशमिजाजी कम नहीं हुई। आंखें कमजोर थी मगर दृष्टि बड़ी तीखी थी। इसका प्रतिबिम्ब उनके कार्टून में दिखाई देता है। अपनी स्कूटर में अक्सर प्रदीप को घुमाने ले जाने वाले सहकर्मी, हमारे व्यंग्य कार मित्र अतुल खरे कह रहे थे कि खबर सुनकर स्तब्ध हूं। लग रहा है जैसे मेरे जिस्म का एक हिस्सा मुझसे अलग हो गया। विडम्बना ही कहूंगा कि मेरे घर से सिर्फ 50 कदम के भीतर वह आरबी अस्पताल है जहां प्रदीप ने अंतिम सांसें लीं, मगर न मैं उसका चेहरा देख पाया, न कांधा दे सका। मना किया गया। आपदा ही कुछ ऐसी है। प्रदीप भाई के परिवार को साहस, संबल मिले। हम सदा साथ हैं। दैनिक अखबारों में नियमित छपने वाले बिलासपुर के पहले कार्टूनिस्ट को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि। प्रदीप के साथ बरसों काम किये वरिष्ठ पत्रकार राजेश अग्रवाल की फेसबुक वाल से।

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Dakhal News 13 April 2021


bhopal, Announcement ,end of

ईशमधु तलवार- ज्ञानरंजन जी का अभी-अभी फोन आया। बताया कि “पहल” का आने वाला 125 वां अंक, आखिरी अंक होगा! सुनकर अच्छा नहीं लगा, लेकिन क्या करें! हिंदी साहित्य की इस प्रतिष्ठित पत्रिका का इस तरह अवसान होना मन को दुखी कर गया। ज्ञानजी ने बताया कि संसाधनों की भी दिक्कत नहीं थी, लेकिन स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा। ज्ञानजी हमेशा स्वस्थ बने रहें, यही शुभकामना।

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Dakhal News 2 April 2021


bhopal, Announcement ,end of

ईशमधु तलवार- ज्ञानरंजन जी का अभी-अभी फोन आया। बताया कि “पहल” का आने वाला 125 वां अंक, आखिरी अंक होगा! सुनकर अच्छा नहीं लगा, लेकिन क्या करें! हिंदी साहित्य की इस प्रतिष्ठित पत्रिका का इस तरह अवसान होना मन को दुखी कर गया। ज्ञानजी ने बताया कि संसाधनों की भी दिक्कत नहीं थी, लेकिन स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा। ज्ञानजी हमेशा स्वस्थ बने रहें, यही शुभकामना।

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Dakhal News 2 April 2021


bhopal, Security was snatched ,from Amitabh Thakur,Avneesh Awasthi was questioned!

अमिताभ ठाकुर- अभी-अभी ज्ञात हुआ कि केंद्र सरकार के निर्देशों पर UPGovt द्वारा दिसंबर 2016 से मुझे प्रदत्त सुरक्षा कल 01/04 रात्रि को यकबयक @CPLucknow @lucknowpolice के आदेशों से हटा दिया गया. बताया गया कि “ऊपर” से आदेश था- “संवेदनशील मामला है, तत्काल सुरक्षा हटाई जाये”.   ज्ञात हो कि ताकतवर नौकरशाह अवनीश अवस्थी पर कल ही अमिताभ ठाकुर ने सवाल उठाए थे। आज सुरक्षा वापसी का आदेश हो गया। इससे पहले अमिताभ ठाकुर ने डीजीपी को पत्र लिख कर पारंपरिक तरीक़े से विदाई किए जाने की माँग की थी। कहा जा सकता है कि जबरन रिटायर किए जाने के बाद भी अमिताभ के तेवर ढीले नहीं पड़े हैं। वे अब भी सत्ता सिस्टम पर सवाल उठाकर उनकी आँखों की किरकिरी बने हुए हैं।

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Dakhal News 2 April 2021


bhopal,4 Resigns Declined ,Output After Interfering, HR Editorial

न्यूज़ 24 में आउटपुट में 4 रिजाइन एक साथ गिरने से हलचल बढ़ गई है. अचानक 4 रिजाइन गिरने का कारण एचआर को बताया जा रहा है. सूत्रों से पता चला है कि सत्या ओझा आजकल आउटपुट में हर चीज में दखलंदाजी कर रहे थे. प्रोड्यूसर्स को काम सिखा रहे थे. हर रोज बढ़ती दखलंदाजी से नाराज होकर हिमांशु कौशिक, सरोज झा, वीरेश राव और उत्कर्ष तिवारी ने रिजाइन दे दिया है. कहा तो ये भी जा रहा है कि सत्या ओझा का भाई आउटपुट में ही है जो न्यूज रूम की बातों को अपने भाई तक पहुँचाता है. बताया जा रहा है कि न्यूज़24 में जबसे अजय आज़ाद की टीम आई है तब से खूब तानाशाही चल रही है. ऊपर से यहाँ के एचआर ने भी परेशान कर रखा है. इसी सबको देखते हुए प्रोडक्शन के 4 सीनियर लोगों ने एक साथ रिजाइन दे दिया.

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Dakhal News 11 March 2021


bhopal, Shadow came out, my head, Awadhesh Bajaj

अवधेश बजाज हे गुरुदेव मैंने चौदह महीने पहले ही आपसे ये कहा था कि आपको कुछ नहीं होगा पर आप तो हार मान बैठे। मुझे आज ऐसा लग रहा है कि जैसे छह साल पहले मेरे पिता का साया मेरे सिर से उठा था वैसा ही साया आज उठ गया है।पत्रकारिता के संक्रमण काल में आप एक आशा की किरण थे। आपने हजारों हजार मेरे जैसे अवधेश बजाज पैदा किये होंगे। गुरुदेव मैं नि:शब्द हूं, स्तब्ध हूं। विश्वास नहीं हो रहा है कि अभी 7 फरवरी को आपसे बात हुई थी। आप 8 तारीख को मेरे कार्यक्रम में आने वाले थे। मैं सिर्फ इंतजार ही करता रहा गुरुदेव….. मेरी स्मृति में आप मेरे पिता श्री बनवारी बजाज के संघर्ष के साथी, मेरे अभिभावक, मेरे गुरू की तरह हमेशा मेरी स्मृतियों में रहेंगे। कमल दीक्षित   7 जनवरी 2020 को आपके लिए फेसबुक पर किया गया पोस्ट……. मैं आपका मानस पुत्र हूं आपको कुछ नहीं होगा आदरणीय कमल दीक्षित जी कुछ समय से बीमार हैं लेकिन पिछले एक सप्ताह से उनकी स्थिति गंभीर हो गयी है। कल मैं उनसे मिला मिलकर मन बहुत दुखी एवं द्रवित है क्योंकि मैं स्वयं को उनका मानस पुत्र मानता हूं। भगवान उन्हें स्वस्थ करे इसकी कामना करता हूं और उन्हें भी आश्वस्त कराना चाहता हूं कि गुरुदेव आपको कुछ नहीं होगा। दीक्षितजी के बारे में उद्गार व्यक्त करना मैं आसान नहीं समझता। क्योंकि इसके लिए मुझे खुद को कई प्रवृत्ति के मनुष्यों में परिवर्तित करना होगा। मुझे वह शिल्पी बनना होगा, जो शब्दों के गढऩे वाले हुनर के धनी दीक्षितजी के लिए एक-एक उत्कृष्ट अक्षर की रचना कर सके। उनके व्यक्तित्व को परिभाषित करने हेतु मात्र यही विकल्प बचता है कि मैं कलम में सियाही की जगह उनके प्रति अपनी अगाध श्रद्धा उड़ेलूं। कागज के स्थान पर अपने हृदय को बिछा दूं। शब्दों की पवित्रता के लिए के लिए वेदों की ऋचाओं से कुछ उधार की प्रार्थना करूं। वाक्य विन्यास की दीर्घायु के लिए मां के हृदय से निकले आशीर्वाद जैसे किसी तत्व की खोज करूं। क्या मुझ सरीखे किसी सामान्य इंसान के लिए यह संभव है! क्योंकि बहुत अच्छे असाधारण तत्व का मेरे जीवन में केवल एक पक्ष है। वह यह कि मुझे पत्रकारिता के जीवन की आरंभिक पायदान पर श्री दीक्षितजी का आशीर्वाद मिला। उनके सान्निध्य का ममतामयी आंचल हासिल हुआ। उनकी कृपाओं का पितृतुल्य साया मेरे ऊपर पड़ा। सन् 1985-86 का वह समय हमेशा याद आता है। सुबह की ओस जैसी पवित्रताओं में लिपटी हुई यादों के साथ। पिताजी ने मुझे पत्रकारिता जगत की ओर जाने का मार्ग दिखाया और दीक्षितजी ने वह रास्ता खोला, जिस पर चलकर वास्तविक पत्रकार बना जाता है। मेरा पत्रकार बनना दिवंगत पिताजी की अभिलाषा थी। मेरी उत्सुकता थी। ये दो भाव शिला की तरह तब तब निर्जीव ही पड़े रहे, जब तक दीक्षितजी के चरणों का उनसे स्पर्श नहीं हुआ। दीक्षितजी उस समय नवभारत के इंदौर संस्करण के संपादक हुआ करते थे। उन्होंने प्रयास किये, किंतु दुर्भाग्यवश इस अखबार में मेरा प्रवेश नहीं हो सका। मेरे युवा मन के लिए यह किसी बड़ी लडख़ड़ाहट साबित होता, यदि दीक्षितजी ने अपने व्यक्तित्व का सहारा देकर मुझे थाम न लिया होता। उन्होंने मेरे लिए नवभारत समाचार सेवा में स्थान बनाया। भोपाल में आवास की समस्या मेरे मुंह-बायें खड़ी थी। इसका पता चलते ही दीक्षितजी ने मेरे लिए दिवंगत रामगोपाल माहेश्वरी के आवास में प्रबंध कराया। उनसे हुए प्रत्येक वार्तालाप में मैं यह देखकर दंग रह जाता था कि आशा का संचार करने के कितने अनगिनत एवं विश्वसनीय स्रोत उनके सहचर बने हुए थे। वह सम्पूर्ण मनुष्य बनकर मेरे पथ प्रदर्शक बने रहे। मुझ सरीखे नये चेहरे को आगे बढ़ाने के लिए वह किसी अभिभावक की भूमिका में सक्रिय रहे। मेरे अंदर के बिखरे-बिखरे लेखक का रेजा-रेजा उन्होंने किसी कुशल कारीगर की तरह सहेजा और उसे एक मुकम्मल शक्ल प्रदान करने तक लगातार इसके लिए प्रयास करते रहे। सिखाने की प्रक्रिया में वह किसी सीनियर की तरह कभी-भी पेश नहीं आये। इसकी जगह उनके भीतर का वह गुरू सामने आया, जो स्वयं को मोमबत्ती की तरह जलाते हुए दूसरों के अंधेरे को हरने का कर्म करता है। आज यह सब लिखते समय मैं भावातिरेक से खुद को बचाने का पूरा प्रयास कर रहा हूं। भावावेश में व्यक्ति बहक जाता है। मैं इस लेखन के समय यह गुस्ताखी कतई नहीं कर सकता। हरेक शब्द की मैं पूरी क्रूरता से समीक्षा कर रहा हूं। उन्हें सुनार की भट्टी की आग में पिघलाने में मुझे किंचित मात्र भी पीड़ा महसूस नहीं हो रही। शब्दों की तलाश मुझे किसी हीरे की खदान में जमीन का बेदर्दी से सीना खोदते शख्स की तरह ही वसुंधरा की पीड़ा से विरत रख रही है। समुंदर के भीतर किसी सीप का पूरी निर्दयता से सीना चीरने वाले की ही तरह मैं भी निर्मिमेष भाव से शब्द रूपी मोती चुन रहा हूं। वजह केवल यह कि मामला गुरू दक्षिणा का है। मेरे गुरू ने शब्दों की जिस लहलहाती फसल का बीज मेरे भीतर बोया था, उन्हीं शब्दों को उनके लिए लिखना किसी गुरू दक्षिणा की पावन प्रक्रिया से भला अलग हो सकता है! इसलिए मैं अपने विचारों को कागज पर लाने से पहले सोने की तरह तपा रहा हूं। हीरे की तरह तराश रहा हूं। मोती की तरह तलाश रहा हूं। दीक्षितजी की दृष्टि में मैं यदि इनमें से किसी एक भी प्रयास में सफल रहा तो इसे अपने जीवन को धन्य करने वाले आशीर्वाद की तरह मानूंगा।

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Dakhal News 11 March 2021


delhi, Literature can not , tied to nationality

दिल्ली । ‘साहित्य भारतीय भाषाओं में लिखा गया हो या भारतीय भूमि में या भारतीय संवेदनाओं के साथ लिखा गया हो, उसे भारतीय साहित्य के अंतर्गत परिगणित किया जाना चाहिए । भारतीय साहित्य को समझने के लिए भारत को समझना आवश्यक है । भारत एक नक्शा नहीं संस्कृति है अर्थात् भारत को एक भौगोलिक क्षेत्र के बजाए सांस्कृतिक क्षेत्र की तरह देखा जाना चाहिए ।’ हिंदू कॉलेज के हिंदी विभाग की हिंदी साहित्य सभा द्वारा आयोजित ऑनलाइन व्याख्यान में सुप्रसिद्ध आलोचक और इग्नू के समकुलपति प्रो. सत्यकाम ने उक्त विचार व्यक्त किए । उन्होंने ‘भारतीय साहित्य की अवधारणा’ विषय पर बोलते हुए कहा कि भारतीय साहित्य का सबसे बड़ा गुण लोकतांत्रिक होना है।   भारतीय साहित्य जन-जन का विश्वास ग्रहण करता है । उसमें एक वर्ग या समुदाय का नहीं बल्कि समस्त समाज का चित्रण मिलता है । इससे पूर्व उन्होंने बल्गेरिया विश्वविद्यालय के अपने अनुभव को एक कहानी के रूप में साझा करते हुए कहा कि साहित्य को राष्ट्रीयता के दायरे में नहीं बांधा जा सकता। साहित्य मानवतावाद, वैश्विकता और वसुधैव कुटुंबकम् की विराट अभिव्यक्ति है। उनके अनुसार भारतीय साहित्य एक ही है जो अनेक भाषाओं में लिखा जाता है किंतु कुछ आलोचकों द्वारा भारतीय साहित्य को अनेक कहना भारतीय साहित्य और उसकी भारतीयता को कमजोर करने का प्रयास है।   भारत में हजारों जातियां, संस्कृतियां, सभ्यताएं, धारणाएं और भाषाएं हैं । नई शिक्षा नीति का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उसमें जो भाषा की विविधता है और विद्यालयी स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करने की बात बहुत महत्वपूर्ण है। भारत की संकल्पना राजनीतिक या भौगोलिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक है और भारतीय साहित्य को समझने से पूर्व इस सांस्कृतिक संकल्पना को समझना जरूरी है । अपनी बात स्पष्ट करने के लिए उन्होंने महाभारत का उदाहरण देते हुए संजय द्वारा व्यक्त भारत की परिभाषा उद्धृत करते हुए कहा कि भारतीय साहित्य एक है और विविधताओं के साथ है क्योंकि हम उन विविधताओं के बीच ही जीते हैं । रवींद्रनाथ ठाकुर का कथन उद्धृत करते हुए उन्होंने भारतीयों के आध्यात्मिक के साथ-साथ भौतिक होने पर बल दिया।   प्राचीन काल से साहित्य, दर्शन, कला और विज्ञान में कोई फर्क नहीं रहा । इन सभी क्षेत्रों में होने वाली रचनाएं (शून्य का आविष्कार आदि) हमारे भौतिक होने का प्रमाण है । भारतीय साहित्य मनुष्यता की खोज है। साहित्य के इतिहास पर बात करते हुए उन्होंने भक्तिकाल के साहित्य को जन-साहित्य कहा है जो आध्यात्मिकता, भौतिकता तथा सामूहिक भावना को सुंदर व्यक्त करता है । प्रो. सत्यकाम ने मीजो कविता के पाठ से अपने व्याख्यान का समापन किया जिसका हाल ही में उन्होंने अनुवाद किया था।   प्रश्नोत्तरी सत्र में ‘दक्षिण भारत हिंदी के प्रति उत्कट विरोध भारतीय एकता की पुष्टि पर सवाल उठाते हैं’ को महत्वपूर्ण प्रश्न मानते हुए उन्होंने कहा तमिल सबसे प्राचीन भाषा है और भारत की कोई भी भाषा कमतर नहीं है । विरोध केवल राजनीतिक है । उसका कोई भी सामाजिक या सांस्कृतिक संदर्भ नहीं है । लेकिन हिंदी वालों को तमिल साहित्य पढ़ना-लिखना चाहिए और उनके मनोविज्ञान को समझने की भी ज़रूरत है तो उनमें भी हिंदी के प्रति सद्भावना उत्पन्न होगी । सभी प्रश्नों के विस्तार से उत्तर देते हुए उन्होंने विद्यार्थियों के मन में उत्पन्न जिज्ञासाएं शांत की । इस सत्र का संयोजन साहित्य सभा की उपाध्यक्ष गायत्री द्वारा किया गया।   वेबिनार के प्रारंभ में विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. विमलेंदु तीर्थंकर ने प्रो. सत्यकाम का स्वागत करते हुए उनके व्यक्तित्व की सरलता और सहजता को रेखांकित किया। उन्होंने प्रेमचंद द्वारा हिंदी साहित्य सभा की प्रथम अध्यक्षता को याद करते हुए इसके गौरवशाली इतिहास से भी श्रोताओं का परिचय कराया । प्राध्यापक नौशाद अली ने वक्ता का परिचय देते हुए करोनाकाल में उनके नव-परिवर्तन शैक्षिणिक कार्य, रिकॉर्डेड व्याख्यानों को विद्यार्थियों तक पहुंचाने की सक्रिय भूमिका पर प्रकाश डाला। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विभाग प्रभारी डॉ. पल्लव ने कहा कि ऐसे व्याख्यान न केवल विद्यार्थियों के लिए बल्कि प्राध्यापकों एवं सामान्य पाठकों के लिए भी लाभदायक हैं। उन्होंने भारत के विभिन्न क्षेत्रों (झारखंड, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, गोवा आदि) से जुड़ने वाले साहित्य प्रेमियों का आभार व्यक्त किया। आयोजन का संयोजन प्राध्यापक डॉ धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने किया। वेबिनार में विभाग के वरिष्ठ अध्यापको डॉ अभय रंजन, डॉ हरींद्र कुमार सहित अन्य विश्वविद्यालयों के प्रध्यापक, शोधार्थी और छात्र भी उपस्थित थे ।   दिशा ग्रोवर(कोषाध्यक्ष)हिंदी साहित्य सभा, हिंदू कॉलेज,दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली – 110007

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Dakhal News 1 March 2021


bhopal, The Telegraph newspaper, has coined , new English word

Sanjaya Kumar Singh-   बंगाल ड्रैगथन… द टेलीग्राफ अखबार में आज चुनाव की खबर लीड है और मुख्य शीर्षक पश्चिम बंगाल का चुनाव आठ चरण में कराए जाने पर केंद्रित है। एक लाइन और कुछ ही शब्दों का छोटा सा शीर्षक रखने की अपनी खास शैली को बनाए रखते हुए अखबार ने आज अंग्रेजी का एक नया शब्द गढ़ा है – ड्रैगेथन। यह अंग्रेजी के दो शब्दों – ड्रैग और मैराथन को मिलाकर बनाया गया है। ड्रैग मतलब होता है घसीटना और लंबी दौड़ की प्रतियोगिता या विशेष आयोजन को मैराथन कहते हैं। बंगाल में चुनाव को लंबे समय तक घसीटने की इस घोषणा को अखबार ने बंगाल ड्रैगथन कहा है। और बेशक सही तुलना है।     इस मुख्य शीर्षक के साथ उपशीर्षक है, राज्य अलग दिखाई दे रहा है क्योंकि सबसे लंबा चुनाव होगा। बंगाल का अखबार बंगाल के साथ किए गए भेदभाव (या विशेष पैकेज, राहत, लाभ आप जो मानिए) को विशेष बता रहा है। बंगाल ड्रैगेथन 27 मार्च से 29 अप्रैल तक चलेगा, मतगणना 2 मई को है – यही खबर है। वरना आम चुनाव भी इतना लंबा कहां चलता है और यह भी नई बीमारी है। बहुत हाल तक आम चुनाव इससे बहुत कम समय में हो जाते थे। अखबार ने अपनी इस खबर के साथ अखबार ने प्रमुखता से बताया है कि किस राज्य में कितनी सीट है और कितने चरण में चुनाव होंगे।   इसके साथ यह भी बताया गया है कि मतदान का दिन कौन सा है। पश्चिम बंगाल में आठ दिन मतदान है तो असम में तीन दिन , तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में सिर्फ एक दिन 6 अप्रैल को और मतगणना 2 मई यानी इतवार को होगी। एक नजर में सब कुछ – कोई आरोप, कोई शिकायत भी नहीं।

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Dakhal News 1 March 2021


bhopal, When will ,find out , missing journalist ,Nalin Chauhan

संत समीर- मुझे लग रहा था कि बात हल्की-फुल्की होगी, जल्दी सुलझ जाएगी, इसलिए इस मसले पर अब तक कोई पोस्ट नहीं लिखी, लेकिन अब लग रहा है कि मामला गम्भीर है। बीते दिनों इण्डियन एक्सप्रेस के पत्रकार मित्र श्यामलाल यादव जी का फ़ोन आया तो चिन्ता और बढ़ी। पुलिस विभाग की ओर से तो ख़ैर पहले ही फ़ोन आ गया था। दिल्ली के सूचना और प्रचार निदेशालय के उपनिदेशक नलिन चौहान क़रीब दो महीने पहले 10 दिसम्बर से लापता हैं या जानबूझकर कहीं गए हैं, कुछ भी अन्दाज़ लगाना मुश्किल हो रहा है। नवम्बर में उनका पूरा परिवार कोरोना-ग्रस्त हुआ था। लोगों ने ले जाकर अस्पताल में भर्ती करा दिया तो वहीं से उन्होंने मुझे फ़ोन किया था। मैंने कुछ चिकित्सकीय सुझाव दिए थे और अच्छी बात थी कि वे जल्दी ही स्वस्थ होकर अस्पताल से बाहर भी आ गए थे। जहाँ तक मुझे याद है, 8 दिसम्बर को नलिन जी ने फिर से मुझे फ़ोन किया था और लिखने की एक बड़ी योजना पर मेरे साथ मिलकर काम करना चाहते थे। हमने हफ़्ते भर के भीतर आमने-सामने बैठकर चर्चा करने का भी तय कर लिया था, लेकिन 10 दिसम्बर को एक पारिवारिक समारोह के दौरान जाने क्या हुआ कि शाम को फ़ोन घर पर ही छोड़कर टहलते हुए बाहर निकले और अब तक वापस नहीं लौटे। घर के भीतर आपस में कोई कहा-सुनी हुई थी या घर के बाहर अपहरण जैसी कोई घटना हुई, कुछ भी कहना मुश्किल है। मैं यही मानकर चलता हूँ कि हल्की-फुल्की कोई नाराज़गी होगी और वे जल्दी ही वापस आ जाएँगे, लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो नलिन जी को तलाशने की हमें कुछ बड़ी कोशिश करने की ज़रूरत है। नलिन जी बेहद संवेदनशील व्यक्ति हैं, दुनिया-जहान की चिन्ता करते हैं। ऐसे लोगों के आसपास होने से हमारे जैसे लोगों को भी हौसला मिलता है। नलिन जी, अगर आप सचमुच किसी नाराज़गी की वजह से अपनों से दूर गए हों और इस पोस्ट को पढ़ रहे हों, तो ध्यान रखिए कि परिवार के बाहर भी आपके अपने हैं। मुझे लगता है कि आप एक अच्छे परिवार के मुखिया हैं, फिर भी अगर परिवार से नाराज़गी हो तो परिवार को भी छोड़िए और सामने आइए। हम सब तो हैं ही। परिवार समर्थ है अपने हिसाब से रह लेगा, आपके सोच-विचार की ज़रूरत समाज को ज़्यादा है।

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Dakhal News 14 February 2021


bhopal, When will ,find out , missing journalist ,Nalin Chauhan

संत समीर- मुझे लग रहा था कि बात हल्की-फुल्की होगी, जल्दी सुलझ जाएगी, इसलिए इस मसले पर अब तक कोई पोस्ट नहीं लिखी, लेकिन अब लग रहा है कि मामला गम्भीर है। बीते दिनों इण्डियन एक्सप्रेस के पत्रकार मित्र श्यामलाल यादव जी का फ़ोन आया तो चिन्ता और बढ़ी। पुलिस विभाग की ओर से तो ख़ैर पहले ही फ़ोन आ गया था। दिल्ली के सूचना और प्रचार निदेशालय के उपनिदेशक नलिन चौहान क़रीब दो महीने पहले 10 दिसम्बर से लापता हैं या जानबूझकर कहीं गए हैं, कुछ भी अन्दाज़ लगाना मुश्किल हो रहा है। नवम्बर में उनका पूरा परिवार कोरोना-ग्रस्त हुआ था। लोगों ने ले जाकर अस्पताल में भर्ती करा दिया तो वहीं से उन्होंने मुझे फ़ोन किया था। मैंने कुछ चिकित्सकीय सुझाव दिए थे और अच्छी बात थी कि वे जल्दी ही स्वस्थ होकर अस्पताल से बाहर भी आ गए थे। जहाँ तक मुझे याद है, 8 दिसम्बर को नलिन जी ने फिर से मुझे फ़ोन किया था और लिखने की एक बड़ी योजना पर मेरे साथ मिलकर काम करना चाहते थे। हमने हफ़्ते भर के भीतर आमने-सामने बैठकर चर्चा करने का भी तय कर लिया था, लेकिन 10 दिसम्बर को एक पारिवारिक समारोह के दौरान जाने क्या हुआ कि शाम को फ़ोन घर पर ही छोड़कर टहलते हुए बाहर निकले और अब तक वापस नहीं लौटे। घर के भीतर आपस में कोई कहा-सुनी हुई थी या घर के बाहर अपहरण जैसी कोई घटना हुई, कुछ भी कहना मुश्किल है। मैं यही मानकर चलता हूँ कि हल्की-फुल्की कोई नाराज़गी होगी और वे जल्दी ही वापस आ जाएँगे, लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो नलिन जी को तलाशने की हमें कुछ बड़ी कोशिश करने की ज़रूरत है। नलिन जी बेहद संवेदनशील व्यक्ति हैं, दुनिया-जहान की चिन्ता करते हैं। ऐसे लोगों के आसपास होने से हमारे जैसे लोगों को भी हौसला मिलता है। नलिन जी, अगर आप सचमुच किसी नाराज़गी की वजह से अपनों से दूर गए हों और इस पोस्ट को पढ़ रहे हों, तो ध्यान रखिए कि परिवार के बाहर भी आपके अपने हैं। मुझे लगता है कि आप एक अच्छे परिवार के मुखिया हैं, फिर भी अगर परिवार से नाराज़गी हो तो परिवार को भी छोड़िए और सामने आइए। हम सब तो हैं ही। परिवार समर्थ है अपने हिसाब से रह लेगा, आपके सोच-विचार की ज़रूरत समाज को ज़्यादा है।

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Dakhal News 14 February 2021


bhopal, When will ,find out , missing journalist ,Nalin Chauhan

संत समीर- मुझे लग रहा था कि बात हल्की-फुल्की होगी, जल्दी सुलझ जाएगी, इसलिए इस मसले पर अब तक कोई पोस्ट नहीं लिखी, लेकिन अब लग रहा है कि मामला गम्भीर है। बीते दिनों इण्डियन एक्सप्रेस के पत्रकार मित्र श्यामलाल यादव जी का फ़ोन आया तो चिन्ता और बढ़ी। पुलिस विभाग की ओर से तो ख़ैर पहले ही फ़ोन आ गया था। दिल्ली के सूचना और प्रचार निदेशालय के उपनिदेशक नलिन चौहान क़रीब दो महीने पहले 10 दिसम्बर से लापता हैं या जानबूझकर कहीं गए हैं, कुछ भी अन्दाज़ लगाना मुश्किल हो रहा है। नवम्बर में उनका पूरा परिवार कोरोना-ग्रस्त हुआ था। लोगों ने ले जाकर अस्पताल में भर्ती करा दिया तो वहीं से उन्होंने मुझे फ़ोन किया था। मैंने कुछ चिकित्सकीय सुझाव दिए थे और अच्छी बात थी कि वे जल्दी ही स्वस्थ होकर अस्पताल से बाहर भी आ गए थे। जहाँ तक मुझे याद है, 8 दिसम्बर को नलिन जी ने फिर से मुझे फ़ोन किया था और लिखने की एक बड़ी योजना पर मेरे साथ मिलकर काम करना चाहते थे। हमने हफ़्ते भर के भीतर आमने-सामने बैठकर चर्चा करने का भी तय कर लिया था, लेकिन 10 दिसम्बर को एक पारिवारिक समारोह के दौरान जाने क्या हुआ कि शाम को फ़ोन घर पर ही छोड़कर टहलते हुए बाहर निकले और अब तक वापस नहीं लौटे। घर के भीतर आपस में कोई कहा-सुनी हुई थी या घर के बाहर अपहरण जैसी कोई घटना हुई, कुछ भी कहना मुश्किल है। मैं यही मानकर चलता हूँ कि हल्की-फुल्की कोई नाराज़गी होगी और वे जल्दी ही वापस आ जाएँगे, लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो नलिन जी को तलाशने की हमें कुछ बड़ी कोशिश करने की ज़रूरत है। नलिन जी बेहद संवेदनशील व्यक्ति हैं, दुनिया-जहान की चिन्ता करते हैं। ऐसे लोगों के आसपास होने से हमारे जैसे लोगों को भी हौसला मिलता है। नलिन जी, अगर आप सचमुच किसी नाराज़गी की वजह से अपनों से दूर गए हों और इस पोस्ट को पढ़ रहे हों, तो ध्यान रखिए कि परिवार के बाहर भी आपके अपने हैं। मुझे लगता है कि आप एक अच्छे परिवार के मुखिया हैं, फिर भी अगर परिवार से नाराज़गी हो तो परिवार को भी छोड़िए और सामने आइए। हम सब तो हैं ही। परिवार समर्थ है अपने हिसाब से रह लेगा, आपके सोच-विचार की ज़रूरत समाज को ज़्यादा है।

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Dakhal News 14 February 2021


bhopal, Supreme Court ,again overturned

अविनाश पांडेय समर- सुप्रीम कोर्ट फिर पलटी मार गया। शाहीन बाग आंदोलन की रिव्यू पेटीशन ख़ारिज करते हुए बोला कि आंदोलनकारियों के पास कभी भी कहीं भी विरोध का अधिकार नहीं है! कमाल है कि पिछले महीने ही किसान आंदोलन पर एकदम उल्टी लाइन लेते हुए प्रदर्शन ख़त्म कराने से इंकार कर दिया था! वह भी तब जब किसान बाहर से आये हैं, शाहीन बाग वाले दिल्ली के ही हैं। माने चेहरा देख के फ़ैसला होगा अब? वह भी बड़ी बेंच का फ़ैसला बदल के? सर्वोच्च न्यायालय की 3 सदस्यीय खंड पीठ ने हिम्मत लाल शाह बनाम कमिश्नर दिल्ली पुलिस मामले (1973 AIR 87) में 5 सदस्यीय माने बड़ी- खंड पीठ के फैसले का अद्भुत पुनर्पाठ कर दिया था! उस फैसले में अदालत ने साफ़ कहा था कि ‘बेशक नागरिक जहाँ उनका मन करे ऐसी किसी भी जगह पर यूनियन बना के नहीं बैठ सकते- इसका यह मतलब भी नहीं है कि सरकार कानून बना कर सारे सार्वजनिक रास्तों पर शांतिपूर्ण ढंग से इकठ्ठा होने का अधिकार ख़त्म नहीं कर सकती.” (अनुवाद मेरा) अब देखिये कि जस्टिस संजय किशन कौल के नेतृत्व में तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इसका क्या पाठ कर डाला! “हम ये बात पूरी तरह से साफ़ करना चाहते हैं कि सार्वजनिक रास्ते और जगहें इस तरह से और अनंतकाल के लिए कब्जा नहीं की जा सकतीं। लोकतंत्र और असहमति साथ साथ चलते हैं पर प्रदर्शन चिन्हित जगहों में ही होने चाहिए’ (अनुवाद मेरा।) सबसे पहले तो 3 सदस्यीय खंडपीठ अपने से बड़ी 5 सदस्यीय खंडपीठ का फैसला बदल दे यह न्यायिक रूप से गलत है. फिर उसका पुनर्पाठ गलत करे यह और भी ज़्यादा! जो फैसला यह कह रहा है कि जनता कहीं भी प्रदर्शन नहीं कर सकती पर सरकार उसे हर सार्वजनिक जगह में प्रदर्शन करने से रोक भी नहीं सकती!

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Dakhal News 14 February 2021


bhopal, Internet shutdown, economy

योगेश कुमार गोयल 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद हरियाणा के कई जिलों सहित सिंघु, गाजीपुर तथा टीकरी बॉर्डर पर सरकार के निर्देशों पर इंटरनेट सेवा बाधित की गई थी, जो विभिन्न स्थानों पर करीब दस दिनों तक जारी रही। हरियाणा में दूरसंचार अस्थायी सेवा निलंबन (लोक आपात या लोक सुरक्षा) नियम, 2017 के नियम 2 के तहत क्षेत्र में शांति बनाए रखने और सार्वजनिक व्यवस्था में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को रोकने के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद करने के आदेश दिए गए थे। इंटरनेट आज न केवल आम जनजीवन का अभिन्न अंग बन चुका है बल्कि इसपर पाबंदी के कारण हरियाणा में कोरोना वैक्सीन कार्यक्रम भी प्रभावित हुआ। इंटरनेट सुविधा पर पाबंदी के कारण छात्रों की ऑनलाइन कक्षाएं बंद हो गई थी, इंटरनेट पर आधारित व्यवसाय ठप हो गए थे। विभिन्न सेवाओं और योजनाओं के माध्यम से एक ओर जहां सरकार ‘डिजिटल इंडिया’ के सपने दिखा रही है, अधिकांश सेवाओं को इंटरनेट आधारित किया जा रहा है, वहीं बार-बार होते इंटरनेट शटडाउन के चलते जहां लोगों की दिनचर्या प्रभावित होती है और देश को इसका बड़ा आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ता है। डिजिटल इंडिया के इस दौर में जिस तरह इंटरनेट शटडाउन के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और लोगों को बार-बार नेटबंदी का शिकार होना पड़ रहा है, उससे भारत की छवि पूरी दुनिया में प्रभावित हो रही है। ब्रिटेन के डिजिटल प्राइवेसी एंड सिक्योरिटी रिसर्च ग्रुप ‘टॉप-10 वीपीएन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वर्ष भारत में कुल 75 बार इंटरनेट शटडाउन किया गया। कुल 8927 घंटे तक इंटरनेट पर लगी पाबंदी से जहां 1.3 करोड़ उपभोक्ता प्रभावित हुए, वहीं इससे देश को करीब 2.8 बिलियन डॉलर (204.89 अरब रुपये) का नुकसान हुआ। इंटरनेट पर जो पाबंदियां 2019 में लगाई गई थी, वे 2020 में भी जारी रहीं और भारत को 2019 की तुलना में गत वर्ष इंटरनेट बंद होने से दोगुना नुकसान हुआ। फेसबुक की पारदर्शिता रिपोर्ट में बताया गया था कि जुलाई 2019 से दिसम्बर 2019 के बीच तो भारत दुनिया में सर्वाधिक इंटरनेट व्यवधान वाला देश रहा था। ‘शीर्ष 10 वीपीएन’ की रिपोर्ट में बताया गया है कि बीते वर्ष विश्वभर में कुल इंटरनेट शटडाउन 27165 घंटे का रहा, जो उससे पिछले साल से 49 प्रतिशत ज्यादा था। इसके अलावा इंटरनेट मीडिया शटडाउन 5552 घंटे रहा। ब्रिटिश संस्था द्वारा इंटरनेट पर पाबंदियां लगाने वाले कुल 21 देशों की जानकारियों की समीक्षा करने पर पाया गया कि भारत में इसका जितना असर हुआ, वह अन्य 20 देशों के सम्मिलित नुकसान के दोगुने से भी ज्यादा है और नुकसान के मामले में 21 देशों की इस सूची में शीर्ष पर आ गया है। वर्ष 2020 में 1655 घंटों तक इंटरनेट ब्लैकआउट रहा तथा 7272 घंटों की बैंडविथ प्रभावित हुई, जो किसी भी अन्य देश की तुलना में सर्वाधिक है। रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनियाभर में नेटबंदी से होने वाले कुल 4.01 अरब डॉलर के नुकसान के तीन चौथाई हिस्से का भागीदार बना है। इंटरनेट शटडाउन के मामले में भारत के बाद दूसरे स्थान पर बेलारूस और तीसरे पर यमन रहा। बेलारूस में कुल 218 घंटों की नेटबंदी से 336.4 मिलियन डॉलर नुकसान का अनुमान है। रिपोर्ट में ‘इंटरनेट शटडाउन’ को परिभाषित करते हुए इसे ‘किसी विशेष आबादी के लिए या किसी एक स्थान पर इंटरनेट या इलैक्ट्रॉनिक संचार को इरादतन भंग करना’ बताया गया है और इस ब्रिटिश संस्था के अनुसार ऐसा ‘सूचना के प्रवाह पर नियंत्रण’ कायम करने के लिए किया जाता है। उल्लेखनीय है कि भारत में सरकार द्वारा इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगाने के लिए अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग कानूनों का सहारा लिया जाता है, जिनमें कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (सीआरपीसी) 1973, इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 तथा टेंपरेरी सस्पेंशन ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज रूल्स 2017 शामिल हैं। पहले सूचना के प्रचार-प्रसार सहित इंटरनेट शटडाउन का अधिकार इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 तथा धारा-144 के तहत सरकार व प्रशासन को दिया गया था लेकिन टेंपरेरी सस्पेंशन ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज रूल्स 2017 के अस्तित्व में आने के बाद इंटरनेट शटडाउन का फैसला अब अधिकांशतः इसी प्रावधान के तहत लिया जाने लगा है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2016 में एक प्रस्ताव पारित किया गया था, जो इंटरनेट को मानवाधिकार की श्रेणी में शामिल करता है और सरकारों द्वारा इंटरनेट पर रोक लगाने को सीधे तौर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन बताता है लेकिन यह प्रस्ताव किसी भी देश के लिए बाध्यकारी नहीं है। इंटरनेट शटडाउन किए जाने पर सरकार और प्रशासन द्वारा सदैव एक ही तर्क दिया जाता है कि किसी विवाद या बवाल की स्थिति में हालात बेकाबू होने से रोकने तथा शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए अफवाहों, गलत संदेशों, खबरों, तथ्यों व फर्जी तस्वीरों के प्रचार-प्रसार के जरिये विरोध की चिंगारी दूसरे राज्यों तक न भड़कने देने के उद्देश्य से ऐसा करने पर विवश होना पड़ता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सोशल मीडिया के जरिये कुछ लोगों द्वारा झूठे संदेश और फर्जी वीडियो वायरल कर माहौल खराब करने के प्रयास किए जाते हैं लेकिन उनपर शिकंजा कसने के लिए इंटरनेट पर पाबंदी लगाने के अलावा प्रशासन के पास और भी तमाम तरीके होते हैं। विश्वभर में कई रिसर्चरों का दावा है कि इंटरनेट बंद करने के बाद भी हिंसा तथा प्रदर्शनों को रोकने में इससे कोई बड़ी सफलता नहीं मिलती है, हां, लोगों का काम-धंधा अवश्य चौपट हो जाता है और व्यक्तिगत नुकसान के साथ सरकार को भी बड़ी आर्थिक चपत लगती है। इंटरनेट पर बार-बार पाबंदियां लगाए जाने का देश को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। सरकार द्वारा इंटरनेट के जरिये अफवाहों और भ्रामक तथा भड़काऊ खबरों का प्रसार रोकने के लिए इंटरनेट शटडाउन किया जाता है लेकिन इससे लोगों की जिंदगी थम सी जाती है क्योंकि रोजमर्रा की जिंदगी को चलाए रखने से जुड़ा हर कार्य अब इंटरनेट पर निर्भर जो हो गया है। ऐसे में ये सवाल उठने स्वाभाविक हैं कि एक ओर जहां सरकार हर सुविधा के डिजिटलीकरण पर विशेष बल दे रही है और बहुत सारी सेवाएं ऑनलाइन कर दी गई हैं, वहीं आन्दोलनों को दबाने के उद्देश्य से नेटबंदी किए जाने के कारण लोगों के आम जनजीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। किसी को अपना आधार कार्ड बनवाना या ठीक कराना हो, किसी सरकारी सेवा का लाभ लेना हो, ऑनलाइन शॉपिंग करनी हो, खाने का ऑर्डर करना हो या फिर ऑनलाइन कैब, टैक्सी, रेल अथवा हवाई टिकट बुक करनी हो, बिना इंटरनेट के इन सभी सुविधाओं का इस्तेमाल किया जाना असंभव है। इंटरनेट शटडाउन के चलते एक ओर जहां ऐसे क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं पर प्रतिकूल असर पड़ता है, वहीं सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाना भी लोगों के लिए मुश्किल हो जाता है। नेटबंदी की स्थिति में कोई अपनी फीस, बिजली व पानी के बिल, बैंक की ईएमआई इत्यादि समय से नहीं भर पाता तो बहुत से युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर्म भरने तथा इंटरनेट का उपयोग कर उनकी तैयारी करने में खासी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में आज 480 मिलियन से भी ज्यादा स्मार्टफोन यूजर्स हैं, जिनमें से अधिकांश इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। आज हमें जीवन के हर कदम पर इंटरनेट की जरूरत पड़ती है क्योंकि आज का सारा सिस्टम काफी हद तक कम्प्यूटर और इंटरनेट की दुनिया से जुड़ चुका है। सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने कुछ समय पूर्व बताया था कि देश में इंटरनेट शटडाउन के कारण हर घंटे करीब ढाई करोड़ रुपये का नुकसान होता है। ‘सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर’ (एसएलएफसी) भी चिंता जताते हुए कह चुका है कि डिजिटल इंडिया के इस दौर में हम ‘डिजिटल डार्कनेस’ की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में इस महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि इंटरनेट शटडाउन से लोगों की जिंदगी किस कदर प्रभावित होती है और देश की अर्थव्यवस्था को इसके कारण कितना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है। ऐसे में जरूरत है कुछ ऐसे विकल्प तलाशे जाने की, जिससे पूरी तरह इंटरनेट शटडाउन करने की जरूरत न पड़े। मसलन, प्रभावित इलाकों में पूरी तरह इंटरनेट बंद करने के बजाय फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम इत्यादि सोशल साइटों पर अस्थायी पाबंदी लगाई जा सकती है, जिससे विषम परिस्थितियों में भी इंटरनेट का इस्तेमाल कर लोग अपने जरूरी काम कर सकें। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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Dakhal News 10 February 2021


bhopal, Internet shutdown, economy

योगेश कुमार गोयल 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद हरियाणा के कई जिलों सहित सिंघु, गाजीपुर तथा टीकरी बॉर्डर पर सरकार के निर्देशों पर इंटरनेट सेवा बाधित की गई थी, जो विभिन्न स्थानों पर करीब दस दिनों तक जारी रही। हरियाणा में दूरसंचार अस्थायी सेवा निलंबन (लोक आपात या लोक सुरक्षा) नियम, 2017 के नियम 2 के तहत क्षेत्र में शांति बनाए रखने और सार्वजनिक व्यवस्था में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को रोकने के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद करने के आदेश दिए गए थे। इंटरनेट आज न केवल आम जनजीवन का अभिन्न अंग बन चुका है बल्कि इसपर पाबंदी के कारण हरियाणा में कोरोना वैक्सीन कार्यक्रम भी प्रभावित हुआ। इंटरनेट सुविधा पर पाबंदी के कारण छात्रों की ऑनलाइन कक्षाएं बंद हो गई थी, इंटरनेट पर आधारित व्यवसाय ठप हो गए थे। विभिन्न सेवाओं और योजनाओं के माध्यम से एक ओर जहां सरकार ‘डिजिटल इंडिया’ के सपने दिखा रही है, अधिकांश सेवाओं को इंटरनेट आधारित किया जा रहा है, वहीं बार-बार होते इंटरनेट शटडाउन के चलते जहां लोगों की दिनचर्या प्रभावित होती है और देश को इसका बड़ा आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ता है। डिजिटल इंडिया के इस दौर में जिस तरह इंटरनेट शटडाउन के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और लोगों को बार-बार नेटबंदी का शिकार होना पड़ रहा है, उससे भारत की छवि पूरी दुनिया में प्रभावित हो रही है। ब्रिटेन के डिजिटल प्राइवेसी एंड सिक्योरिटी रिसर्च ग्रुप ‘टॉप-10 वीपीएन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वर्ष भारत में कुल 75 बार इंटरनेट शटडाउन किया गया। कुल 8927 घंटे तक इंटरनेट पर लगी पाबंदी से जहां 1.3 करोड़ उपभोक्ता प्रभावित हुए, वहीं इससे देश को करीब 2.8 बिलियन डॉलर (204.89 अरब रुपये) का नुकसान हुआ। इंटरनेट पर जो पाबंदियां 2019 में लगाई गई थी, वे 2020 में भी जारी रहीं और भारत को 2019 की तुलना में गत वर्ष इंटरनेट बंद होने से दोगुना नुकसान हुआ। फेसबुक की पारदर्शिता रिपोर्ट में बताया गया था कि जुलाई 2019 से दिसम्बर 2019 के बीच तो भारत दुनिया में सर्वाधिक इंटरनेट व्यवधान वाला देश रहा था। ‘शीर्ष 10 वीपीएन’ की रिपोर्ट में बताया गया है कि बीते वर्ष विश्वभर में कुल इंटरनेट शटडाउन 27165 घंटे का रहा, जो उससे पिछले साल से 49 प्रतिशत ज्यादा था। इसके अलावा इंटरनेट मीडिया शटडाउन 5552 घंटे रहा। ब्रिटिश संस्था द्वारा इंटरनेट पर पाबंदियां लगाने वाले कुल 21 देशों की जानकारियों की समीक्षा करने पर पाया गया कि भारत में इसका जितना असर हुआ, वह अन्य 20 देशों के सम्मिलित नुकसान के दोगुने से भी ज्यादा है और नुकसान के मामले में 21 देशों की इस सूची में शीर्ष पर आ गया है। वर्ष 2020 में 1655 घंटों तक इंटरनेट ब्लैकआउट रहा तथा 7272 घंटों की बैंडविथ प्रभावित हुई, जो किसी भी अन्य देश की तुलना में सर्वाधिक है। रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनियाभर में नेटबंदी से होने वाले कुल 4.01 अरब डॉलर के नुकसान के तीन चौथाई हिस्से का भागीदार बना है। इंटरनेट शटडाउन के मामले में भारत के बाद दूसरे स्थान पर बेलारूस और तीसरे पर यमन रहा। बेलारूस में कुल 218 घंटों की नेटबंदी से 336.4 मिलियन डॉलर नुकसान का अनुमान है। रिपोर्ट में ‘इंटरनेट शटडाउन’ को परिभाषित करते हुए इसे ‘किसी विशेष आबादी के लिए या किसी एक स्थान पर इंटरनेट या इलैक्ट्रॉनिक संचार को इरादतन भंग करना’ बताया गया है और इस ब्रिटिश संस्था के अनुसार ऐसा ‘सूचना के प्रवाह पर नियंत्रण’ कायम करने के लिए किया जाता है। उल्लेखनीय है कि भारत में सरकार द्वारा इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगाने के लिए अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग कानूनों का सहारा लिया जाता है, जिनमें कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (सीआरपीसी) 1973, इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 तथा टेंपरेरी सस्पेंशन ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज रूल्स 2017 शामिल हैं। पहले सूचना के प्रचार-प्रसार सहित इंटरनेट शटडाउन का अधिकार इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 तथा धारा-144 के तहत सरकार व प्रशासन को दिया गया था लेकिन टेंपरेरी सस्पेंशन ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज रूल्स 2017 के अस्तित्व में आने के बाद इंटरनेट शटडाउन का फैसला अब अधिकांशतः इसी प्रावधान के तहत लिया जाने लगा है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2016 में एक प्रस्ताव पारित किया गया था, जो इंटरनेट को मानवाधिकार की श्रेणी में शामिल करता है और सरकारों द्वारा इंटरनेट पर रोक लगाने को सीधे तौर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन बताता है लेकिन यह प्रस्ताव किसी भी देश के लिए बाध्यकारी नहीं है। इंटरनेट शटडाउन किए जाने पर सरकार और प्रशासन द्वारा सदैव एक ही तर्क दिया जाता है कि किसी विवाद या बवाल की स्थिति में हालात बेकाबू होने से रोकने तथा शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए अफवाहों, गलत संदेशों, खबरों, तथ्यों व फर्जी तस्वीरों के प्रचार-प्रसार के जरिये विरोध की चिंगारी दूसरे राज्यों तक न भड़कने देने के उद्देश्य से ऐसा करने पर विवश होना पड़ता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सोशल मीडिया के जरिये कुछ लोगों द्वारा झूठे संदेश और फर्जी वीडियो वायरल कर माहौल खराब करने के प्रयास किए जाते हैं लेकिन उनपर शिकंजा कसने के लिए इंटरनेट पर पाबंदी लगाने के अलावा प्रशासन के पास और भी तमाम तरीके होते हैं। विश्वभर में कई रिसर्चरों का दावा है कि इंटरनेट बंद करने के बाद भी हिंसा तथा प्रदर्शनों को रोकने में इससे कोई बड़ी सफलता नहीं मिलती है, हां, लोगों का काम-धंधा अवश्य चौपट हो जाता है और व्यक्तिगत नुकसान के साथ सरकार को भी बड़ी आर्थिक चपत लगती है। इंटरनेट पर बार-बार पाबंदियां लगाए जाने का देश को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। सरकार द्वारा इंटरनेट के जरिये अफवाहों और भ्रामक तथा भड़काऊ खबरों का प्रसार रोकने के लिए इंटरनेट शटडाउन किया जाता है लेकिन इससे लोगों की जिंदगी थम सी जाती है क्योंकि रोजमर्रा की जिंदगी को चलाए रखने से जुड़ा हर कार्य अब इंटरनेट पर निर्भर जो हो गया है। ऐसे में ये सवाल उठने स्वाभाविक हैं कि एक ओर जहां सरकार हर सुविधा के डिजिटलीकरण पर विशेष बल दे रही है और बहुत सारी सेवाएं ऑनलाइन कर दी गई हैं, वहीं आन्दोलनों को दबाने के उद्देश्य से नेटबंदी किए जाने के कारण लोगों के आम जनजीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। किसी को अपना आधार कार्ड बनवाना या ठीक कराना हो, किसी सरकारी सेवा का लाभ लेना हो, ऑनलाइन शॉपिंग करनी हो, खाने का ऑर्डर करना हो या फिर ऑनलाइन कैब, टैक्सी, रेल अथवा हवाई टिकट बुक करनी हो, बिना इंटरनेट के इन सभी सुविधाओं का इस्तेमाल किया जाना असंभव है। इंटरनेट शटडाउन के चलते एक ओर जहां ऐसे क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं पर प्रतिकूल असर पड़ता है, वहीं सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाना भी लोगों के लिए मुश्किल हो जाता है। नेटबंदी की स्थिति में कोई अपनी फीस, बिजली व पानी के बिल, बैंक की ईएमआई इत्यादि समय से नहीं भर पाता तो बहुत से युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर्म भरने तथा इंटरनेट का उपयोग कर उनकी तैयारी करने में खासी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में आज 480 मिलियन से भी ज्यादा स्मार्टफोन यूजर्स हैं, जिनमें से अधिकांश इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। आज हमें जीवन के हर कदम पर इंटरनेट की जरूरत पड़ती है क्योंकि आज का सारा सिस्टम काफी हद तक कम्प्यूटर और इंटरनेट की दुनिया से जुड़ चुका है। सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने कुछ समय पूर्व बताया था कि देश में इंटरनेट शटडाउन के कारण हर घंटे करीब ढाई करोड़ रुपये का नुकसान होता है। ‘सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर’ (एसएलएफसी) भी चिंता जताते हुए कह चुका है कि डिजिटल इंडिया के इस दौर में हम ‘डिजिटल डार्कनेस’ की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में इस महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि इंटरनेट शटडाउन से लोगों की जिंदगी किस कदर प्रभावित होती है और देश की अर्थव्यवस्था को इसके कारण कितना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है। ऐसे में जरूरत है कुछ ऐसे विकल्प तलाशे जाने की, जिससे पूरी तरह इंटरनेट शटडाउन करने की जरूरत न पड़े। मसलन, प्रभावित इलाकों में पूरी तरह इंटरनेट बंद करने के बजाय फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम इत्यादि सोशल साइटों पर अस्थायी पाबंदी लगाई जा सकती है, जिससे विषम परिस्थितियों में भी इंटरनेट का इस्तेमाल कर लोग अपने जरूरी काम कर सकें। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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Dakhal News 10 February 2021


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समरेंद्र सिंह- इस देश में किसान एक ताकतवर लॉबी है। ये अकेली ऐसी लॉबी है जो वर्ग रहित है। मतलब सैकड़ों एकड़ वाला, उन खेतों में मजदूरी करने वाला और एक-दो बीघे पट्टे पर लेकर खेती करने वाला – सब किसान हैं। जमीन के मालिक और मजदूर सब किसान हैं। इसलिए किसान लॉबी की ताकत अधिक है। किसी और क्षेत्र के कर्मचारियों से बहुत अधिक। औद्योगिक क्षेत्र के मजदूरों से तो इनकी कोई तुलना ही नहीं हो सकती है। फैक्ट्री मजदूर तो लावारिश प्रजाति हैं। किसान इतनी ताकतवर लॉबी है कि इनसे सरकार डरती है। वोट के लिए इनके कर्जे माफ करती है। गरीबों के लिए दिए जाने वाले पैसे का सीधा भुगतान नहीं करती है। बल्कि वो भुगतान किसानों को होता है। कुछ क्षेत्र के किसानों को। फिर भी तस्वीर ऐसी खींची जाती है कि सारे देश में किसानों का भला हो रहा है। गरीबों के हिस्से का सारा फायदा वो थोड़े से लोग उठा ले जाते हैं जिनके पास बड़ी जोत है। ये एक बात हुई। अब दूसरी बात देखिए। गांव से लेकर शहरों तक, लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम के स्कूल में पढ़ा रहे हैं। ABC के चक्कर में बच्चे कखग भूलते जा रहे हैं। जमीन से रिश्ता टूटता जा रहा है। वो खेती करने के लायक नहीं हैं। स्कूल से लेकर कॉलेज तक का सारा ढांचा कर्मचारी तैयार करने के लिए है। सरकारी तंत्र में काम करने वालों के अलावा हम इंजीनियर, डॉक्टर, एकाउंटेंट, सेक्रेटरी, वकील, टीचर जैसे अनेक लोग तैयार करते हैं। किसान नहीं तैयार करते। क्योंकि खेती और किसानी के लिए मिट्टी में उतरना होगा। गोबर उठाना होगा। पशुओँ से और पौधों से बात करनी होगी। उनके रंग बदलने का अर्थ समझना होगा। उनकी आवाज का अर्थ समझना होगा। मौसम का मिजाज समझना होगा। ये अर्थ आसान नहीं है। मेरे दोस्तों के बीच में बहुत से लोग खेती करना चाहते हैं। लेकिन ये उनका पहला विकल्प नहीं है। कुछ 40-50 साल की दहलीज पार करके खेती करना चाहते हैं। ये उनकी मजबूरी है या फिर शौक। विकल्प के अभाव में कुछ लोग खेती की तरफ मुड़े हैं। ये खुद को व्यस्त रखने का, उलझाए रखने का अच्छा तरीका हो सकता है, लेकिन व्यवसाय नहीं हो सकता। यहां यह भी बात ध्यान रखने लायक है कि ये सभी लोग इसलिए उधर मुड़ सके हैं क्योंकि उनके पास जमीन है। मेरे पास भी जमीन है। मैं भी जा सकता हूं। लेकिन ऐसे खुशकिस्मत लोग कितने हैं? दरअसल आजाद हिंदुस्तान के पास एक मौका था कि वो विकास की अपनी राह चुन सके और एक नया मॉडल तैयार कर सके। वह मौका छोड़ कर आसान राह चुनी गई। 1990 के दशक में उस राह पर तेजी से दौड़ने का फैसला लिया गया। सारा तंत्र उसी आधार पर विकसित हुआ। हजारों इंजीनियरिंग कॉलेज खुले। उनमें भर्ती के लिए हजारों की संख्या में कोचिंग इंस्टीट्यूट बने। इंजीनियरिंग कॉलेजों से कई गुना अधिक आईटीआई खोले गए। हर साल इन जगहों से पढ़ कर निकलने वालों की संख्या लाखों में है।2-4 लाख नहीं बल्कि 25-30 लाख है। मतलब हमने कृषि आधारित नहीं बल्कि उद्योग आधारित ढांचा विकसित किया। अब अचानक कोई आकर कर कहे कि राह बदल लो और राह बदलने का मंत्र MSP को जारी रखना है तो यह बात समझी नहीं जा सकती। लाखों-करोड़ों लोगों द्वारा दिए गए टैक्स की राशि गरीबों की बेहतरी पर तो खर्च की जा सकती है, लेकिन एक सड़े-गले ढांचे को और शोषण के सिस्टम को बचाने में खर्च नहीं की जा सकती है। वर्तमान दौर का हमारा खेती का मॉडल ऐसा ही है। इसमें कुछ लोगों के पास बड़ी जोत है और ये बड़ी जोत वाले किसान खेतीहर मजदूरों का शोषण करते हैं। उनके हिस्से का पैसा इन्हें चाहिए मगर उनके श्रम का भुगतान भी नहीं करना चाहते। मैं उदारीकरण के पक्ष में नहीं था और मैं आज भी नहीं हूं। लेकिन एमएसपी को ऐसे प्रस्तुत करना कि विद्रूप उदारीकरण दूर हो जाएगी, एक मूर्खता भरी बात है। एमएसपी की व्यवस्था खत्म होनी चाहिए और जल्दी खत्म होनी चाहिए। एक बात और इस देश में कोई किसी पर एहसान नहीं कर रहा। ना किसान और ना ही जवान। सब अपना-अपना काम कर रहे हैं। मेरे घर का चूल्हा किसी अन्नदाता की वजह से नहीं जलता है। इसलिए जलता है कि क्योंकि मैं और मेरे घर के लोग काम करते हैं। अन्न का सौदा करने वाला किस बात का अन्नदाता! ये जो आधुनिक ट्रैक्टर हैं, ये भी उसी उदारीकरण की देन है। हार्वेस्टर भी उसी की देन है। गायों के बछड़े और भैंसों के पाड़े ट्रैक्टरों की वजह से मार दिए जाते हैं। उदारीकरण भी चाहिए, ट्रैक्टर और हार्वेस्टर चाहिए, विदेशी कंपनियों के बीज चाहिए मगर सरकार ऐसी चाहिए जो माल खरीदे। इस सभी किसानों ने अपने लायक बच्चों को घर से खदेड़ दिया है। गांव के मजदूरों को काम देना बंद कर दिया है। बोआई-कठाई का हिस्सा देना भारी लगता है। मगर उन गरीबों के हिस्से की रकम इन्हें चाहिए। ये सब सवर्ण और कुछ पिछड़ी प्रभावी जातियों के किसान देश की छाती पर मूंग दल रहे हैं। किसान शब्द सभी किसानों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। ये सिर्फ बड़ी जमीन के प्रभावी किसानों का प्रतिनिधित्व करता है। किसान आंदोलन के बारे में कई लोगों ने मुझसे मेरी राय पूछी है। आंदोलन मुझे अच्छे लगते हैं। मैं चाहता हूं कि हर रोज हर पल आंदोलन होते रहें। ये आंदोलन बहुत जरूरी हैं। इससे सत्ता में बैठे लोगों में ये खौफ बना रहता है कि अगर उन्होंने ठीक से काम नहीं किया तो उनके खिलाफ आवाज बुलंद होगी। उन्हें सत्ता से उखाड़ फेंका जाएगा। इस लिहाज से ये आंदोलन बहुत अच्छा है। किसानों ने अपना टेंट गाड़ दिया है और उसकी कील सरकार की छाती पर ठोंक दी है। अब सरकार फंस गई है। करे तो क्या करे! लेकिन सरकार तो सरकार होती है। उससे जीतना आसान नहीं है। वह भी तब जब बात जिद पर आ जाए। इसलिए कुछ मुद्दों पर गंभीरता से सोचना चाहिए। (1) क्या मसला सिर्फ एमएसपी और तीन कानूनों का है?(2) क्या तीनों कानून वापस हो जाए तो उससे जीत मिल जाएगी?(3) कानून वापस लेने के बाद सरकार कोटा सिस्टम लगा दे तब क्या होगा? जिस राज्य में PDS के अनाज की जितनी जरूरत है, उसकी खरीद वहीं से होगी और कमी होने पर पड़ोसी राज्य से खरीद होगी – तब क्या होगा?(4) क्या सरकारों के लिए ये संभव है कि वो सभी किसानों के अनाज की खरीद कर सके और वो सारा अनाज अगर खरीद लिया जाएगा तो उसका होगा क्या?(5) और अगर यही करना है तो फिर WTO का क्या होगा? क्या भारत उससे बाहर आने के लिए तैयार है? क्या भारत के सभी दल इस बात के लिए तैयार हैं कि हमारे देश को WTO से बाहर आ जाना चाहिए?(6) यह संभव नहीं है कि कोई देश WTO में बना रहे और उसके लाभ ले मगर उसके हिसाब से भुगतान करने को तैयार नहीं हो। तो क्या सभी सियासी दल इस पर एकमत हैं?(7) अगर WTO से बाहर आने पर रजामंदी है तो फिर उस ढांचे का क्या होगा जो हमने उदारीकरण के हिसाब से खड़ा किया है?(8) आज हमारे देश में 4000 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। 16000 आईटीआई हैं। उनमें लाखों बच्चे पढ़ाई करते हैं। हर साल 10-14 लाख इंजीनियर पैदा होते हैं। लाखों तकनीकी श्रमिक तैयार होते हैं। उनका क्या होगा? क्या उन्हें नौकरी हमारी सरकार दे सकेगी?(9) हम अमेरिका में सबसे अधिक निर्यात करते हैं। ब्रिटेन में भी हमारा निर्यात सकारात्मक है। यूरोप में भी बड़ा निर्यात करते हैं। हमारे देश में उनका निवेश भी काफी ज्यादा है। हमारे यहां से हर साल लाखों लोग यूरोप और अमेरिकी देशों में काम करने जाते हैं। नागरिकता लेते हैं। उन सब का क्या होगा? सवाल बहुतेरे हैं। इन सब पर बात होनी चाहिए। आंदोलन अच्छा है। आंदोलन होते रहने चाहिए। लेकिन आंदोलन से जुड़े सभी मुद्दों पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए। बात रास्ता बदलने की है। यह देश 73 साल एक रास्ते पर चला है। देश का एक धड़ा अब रास्ता बदलना चाहता है। लिहाजा ये बात होनी ही चाहिए कि ये रास्ता छोड़ने के बाद हम किस रास्ते पर चलेंगे? वह धड़ा हमें किस रास्ते पर ले जाना चाहता है?

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Dakhal News 29 January 2021


bhopal,Discussion about, Rajdeep Sardesai

Sheetal P Singh-   राजदीप सरदेसाई ने इंडिया टुडे ग्रुप से स्तीफा दिया (ऐसी ख़बरें आ रही हैं, पुष्टि का इंतज़ार है)!   26 जनवरी को दिल्ली की घटनाओं पर उनके एक ट्वीट से विवाद हुआ था जिसे उन्होंने हटाकर बदल दिया था। एक किसान की ट्रैक्टर पलटने से हुई मृत्यु के बारे में यह ट्वीट था जिसके साथ के लोग आरोप लगा रहे थे कि वह दिल्ली पुलिस की गोली से मरा है । कारवां नामके पोर्टल/पत्रिका में भी यही दावा किया गया था और बताया गया था कि संबंधित थाने के लोगों ने सीसीटीवी फ़ुटेज हटा दिये हैं।   बाद में उत्तर प्रदेश में हुए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से उक्त किसान की दुर्घटना में मृत्यु होना बताया गया ।   राजदीप सरदेसाई के इंडिया टुडे से हटने के बाद इस ग्रुप में पूरी तरह सरकार प्रशंसकों / एंकरों / पत्रकारों का बाहुल्य सुनिश्चित हो गया है । वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह की एफबी वॉल से

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Dakhal News 29 January 2021


bhopal, Rajdeep Sardesai, Mrinal Pandey,d several journalists

शशि थरूर, राजदीप, मृणाल पांडेय के खिलाफ नोएडा सेक्टर 20 में fir दर्ज। मिसलीडिंग और आपत्तिजनक कंटेंट शेयर करने में मामला दर्ज     नोएडा – सेक्टर 20 कोतवाली में सांसद शशि थरूर, राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडेय समेत कई पत्रकारों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया है। इन सभी पर दिल्ली में किसान आंदोलन में हिसा भड़काने का आरोप लगाया गया है। इन पर आपत्तिजनक कंटेंट शेयर करने का आरोप लगाते हुए मुक़दमा दर्ज किया गया है। राजदीप सरदेसाई व अन्य के खिलाफ हुई एफआईआर में आपत्तिजनक व भ्रामक खबर फैलाने का आरोप लगाया गया है।         पढ़िएपुलिसप्रेसरिलीज़–   दिनांक 26 जनवरी 2021 को दिल्ली में हुई हिंसा से आहत होकर श्री अर्पित मिश्रा निवासी नोएडा के द्वारा थाना सेक्टर 20 , पुलिस कमिश्नरेट , नोएडा पर एक अभियोग संख्या 76/21 धारा 153a , 153b , 295a 298 ,504 ,506 ,505 ,124a ,34 ,120 बी भा द वि व 66 आईटी एक्ट पंजीकृत कराया गया है | इनके द्वारा 1. शशि थरूर सांसद कांग्रेस 2. राजदीप सरदेसाई पत्रकार ३. मृणाल पांडे पत्रकार ४. परेशनाथ पत्रकार ५. अनंतनाथ पत्रकार ६. विनोद के जोसेफ पत्रकार एवं कुछ अज्ञात व्यक्तियों को दिल्ली में हुई हिंसा के लिए दोषी माना गया हैं । वादी द्वारा यह भी आरोप लगाया गया हैं की इन लोगों के द्वारा जानबूझकर दुर्भावनापूर्ण तरीके से जनता को गुमराह करने वाले , जातीय व सांप्रदायिक तनाव पैदा करने वाले तथा उकसाने वाले कार्य व खबरें प्रसारित की गयी हैं ।   वादी के द्वारा पंजीकृत कराए गए अभियोग की विवेचना व अग्रिम विधिक कार्यवाही की जा रही है।

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Dakhal News 29 January 2021


bhopal,New terms of whatsapp

रंजना मिश्रा इस नए साल में व्हाट्सएप ने अपना एक नया नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसमें उपयोगकर्ताओं से व्हाट्सएप की न्यू टर्म्स एंड प्राइवेसी पॉलिसी में बदलावों को स्वीकार करने के लिए कहा गया है। 8 फरवरी 2021 तक ऐसा न करने पर उपयोगकर्ता के व्हाट्सएप अकाउंट को हटा दिया जाएगा। इस नोटिफिकेशन के मुताबिक अब व्हाट्सएप लोगों के डेटा को फेसबुक के साथ शेयर करेगा। व्हाट्सएप और फेसबुक एक ही कंपनी के हैं और यहां डेटा का मतलब है, लोगों के फोन नंबर, लोगों के कांटेक्ट और व्हाट्सएप स्टेटस जैसी तमाम जानकारियां। ये डेटा व्हाट्सएप अब फेसबुक के साथ शेयर करेगा और यदि किसी को ये शर्त स्वीकार न हो तो वह अपने व्हाट्सएप अकाउंट को डिलीट कर सकता है। वर्ष 2021 की शुरुआत में ही व्हाट्सएप ने ये नई शर्तें लागू कर दी हैं किंतु 2009 में जब व्हाट्सएप लांच हुआ था तो उसने अपनी सारी सेवाएं फ्री में देने का लालच दिया था। उसने लोगों के मैसेजेज और डेटा को प्राइवेट रखने का वादा किया था। अब दुनिया का हर तीसरा व्यक्ति व्हाट्सएप का इस्तेमाल कर रहा है। व्हाट्सएप पर करोड़ों लोगों के इस डेटा भंडार से फेसबुक का बिजनेस और बढ़ेगा तथा फेसबुक का और विस्तार होगा। भारत में करीब 40 करोड़ लोग अपने पर्सनल और प्रोफेशनल जीवन में व्हाट्सएप का इस्तेमाल करते हैं। अब तो अदालतों और पुलिस के नोटिस तक व्हाट्सएप में भेजे जा रहे हैं और कानून ने इसे स्वीकार भी कर लिया है। लोगों की अनुमति मिलने के बाद उनके मोबाइल फोन नंबर, उनके एड्रेस बुक के सभी कांटेक्ट व्हाट्सएप के पास होंगे। लोगों का स्टेटस मैसेज भी व्हाट्सएप देख पाएगा। उनके बैंक बैलेंस की जानकारी भी व्हाट्सएप के पास होगी। व्हाट्सएप पेमेंट सर्विस की मदद से कोई व्यक्ति अपना पैसा जहां भी खर्च करेगा उसकी एक-एक जानकारी व्हाट्सएप के पास होगी। अब व्हाट्सएप की पेमेंट सर्विस आ चुकी है। आगे चलकर देश की बड़ी कंपनियां पेमेंट के लिए व्हाट्सएप का ही इस्तेमाल करेंगी और तब व्हाट्सएप के पास लोगों की फाइनेंस व बैंकों से जुड़ी सारी महत्वपूर्ण जानकारियां होंगी। व्हाट्सएप के पास लोगों के घर और ऑफिस तक का पता होगा क्योंकि किसी भी व्यक्ति के मोबाइल से उसके लोकेशन का पता चल जाएगा। कोई भी व्यक्ति कहां शॉपिंग करता है, कहां पार्टी करता है, कहां छुट्टियां बिताता है, किस रेस्टोरेंट या होटल में खाना खाने जाता है, कौन-सा मोबाइल फोन इस्तेमाल करता है तथा उसके दोस्तों आदि की पूरी जानकारी व्हाट्सएप के पास होगी। किसी भी व्यक्ति के फोटोज़ और वीडियोज़ को व्हाट्सएप ज्यादा समय तक अपने सर्वर पर रख पाएगा। किसी व्यक्ति के मैसेजेज़ को सीधे पढ़ा नहीं जाएगा, यह वादा व्हाट्सएप अभी भी कर रहा है किंतु कोई व्यक्ति किससे बातें करता है, किसे मैसेज भेजता है, किस व्हाट्सएप ग्रुप में ज्यादा एक्टिव है, इस बात की जानकारी अभीतक केवल उस व्यक्ति को पता होती थी किंतु अब व्हाट्सएप भी इस बात का पता लगा सकता है। अब व्हाट्सएप बिजनेस अकाउंट पर भी नजर रखेगा। उनके जरिए लोगों तक पहुंचने वाले डेटा को रिकॉर्ड करेगा और उन सभी जानकारियों की मदद से लोगों की प्रोफाइल बनाई जाएगी। व्हाट्सएप से यह सारा डेटा फेसबुक के पास जाएगा। फेसबुक जैसी बड़ी कंपनियों ने करोड़ों लोगों के डेटा को एकत्र करने के लिए बड़े-बड़े डेटा सेंटर बनाए हुए हैं। फेसबुक इस डेटा को दूसरी कंपनियों के साथ शेयर करके उनसे पैसा कमाएगा। देश और दुनिया में ऐसी कई कंपनियां हैं जो लोगों के बारे में, उनकी आदतों के बारे में और उनकी सोच के बारे में जानना चाहती हैं। कोई व्यक्ति क्या खरीदना चाहता है, क्या सर्च कर रहा है, इस आधार पर डेटा ट्रैकिंग की मदद से उससे संबंधित विज्ञापन उसे डिजिटल वर्ल्ड में दिखाए जाते हैं। कंपनियां इस मनोविज्ञान को लेकर चलती हैं कि यदि एक ही विज्ञापन किसी को बार-बार दिखाया जाएगा तो एक न एक दिन वह व्यक्ति उसे खरीद ही लेगा। तात्पर्य यह है कि व्हाट्सएप अब फ्री मैसेजिंग सर्विस नहीं रहा। कोई भी एप यदि फ्री सर्विस देने का वादा करता है तो यह झूठ ही है क्योंकि हम इन एपों को फ्री सर्विस के बदले में अपना बहुमूल्य डेटा दे रहे हैं, फायदे में तो ये कंपनियां ही रहती हैं। डेटा को दुनिया में नया ऑयल माना जाता है। यह एक ऐसा प्रोडक्ट है जिसकी मांग लगातार बढ़ रही है। इस मांग को पूरा करने के लिए वर्ष 2014 में फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने 1 लाख 39 हजार रुपए में व्हाट्सएप को खरीदा था, तब ऐसा समझा जा रहा था कि फेसबुक ने इस डील पर बहुत अधिक पैसा खर्च कर दिया है, किंतु मार्क जुकरबर्ग के पास इस डील से पैसा कमाने की एक दूरदर्शी योजना थी। जुकरबर्ग व्हाट्सएप को खरीदने के दो वर्षों के बाद ही इसके डेटा को बेचकर पैसा कमाना चाहते थे, तब इसका विरोध करते हुए व्हाट्सएप के संस्थापकों ने इस कंपनी से इस्तीफा दे दिया था। फेसबुक की 99% कमाई डिजिटल विज्ञापनों से होती है और वर्ष 2019 में फेसबुक की कमाई 5 लाख 21हजार करोड़ रुपए थी। व्हाट्सएप से दुनिया के 200 करोड़ लोगों का डेटा मिलने के बाद फेसबुक का बिजनेस दिन दूना रात चौगुना तरक्की कर रहा है। फेसबुक का नेटवर्क 10 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा है। भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला सोशल मीडिया एप फेसबुक है, लोग अपनी पर्सनल जानकारी या डेटा फेसबुक पर शेयर करते हैं और फेसबुक इस डेटा को दूसरे एप्स के साथ शेयर कर सकता है। इस तरह से यदि व्हाट्सएप का डेटा फेसबुक में शेयर होगा तो व्यक्ति की सारी प्राइवेसी समाप्त हो जाएगी। (लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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Dakhal News 15 January 2021


bhopal,careful! Will Whatsapp, become dishonest?

ऋतुपर्ण दवे इण्टरनेट, संचार क्रान्ति में वरदान तो जरूर साबित हुआ और देखते ही देखते मानव जीवन की अहम जरूरत बन भी गया। हकीकत भी यही है कि ‘दुनिया मेरी मुट्ठी में’ का असल सपना इण्टरनेट ने ही पूरा किया। लेकिन अब बड़ा सच यह भी है कि इस सेवा का जरिया बने यूजर्स से ही कमाई कर रहे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स चोरी-छिपे न केवल सायबर डकैती करते हैं बल्कि यूजर्स डेटा को ही अपने पास स्टोर करने की कोशिशें करते रहते हैं। यह न केवल निजता का उल्लंघन है बल्कि भविष्य में हर किसी की हैसियत को नापने का जरिया भी। दरअसल अभी आम लोगों को इस बारे में वाकई में ज्यादा जानकारी नहीं है। लेकिन यदि इसपर रोक नहीं लगी और कानून नहीं बना तो आपके एक-एक हिसाब-किताब यहाँ तक कि लेन-देन तक की सारी जानकारियाँ विदेशों में बैठे ऐसे सोशल मीडिया प्रोवाइडर के पास होगी जो अन एडिटेड इसे सोशल मीडिया में सारा कंटेंट जस का तस परोस देते हैं। वहीं वैध इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिन्ट, जिम्मेदार संपादक से लेकर कंटेंट एडिटर, कॉपी एडिटर की लंबी-चौड़ी और लगातार काम करने वाली टीम होती है। इसके द्वारा एक-एक शब्द को परखा और समझा जाता है तब जाकर सामग्री प्रकाशित या प्रसारित की जाती है। हाल ही में वाट्सएप के द्वारा निजी डेटा के नाम पर जो इजाजत का प्रपंच रचा जा रहा है, वह देखने में तो महज चंद शब्दों का साधारण सा नोटिफिकेशन दिखता है लेकिन उसकी असल गहराई किसी साजिश से कम नहीं है। इससे सात समंदर पार दूर विदेश में बैठा वह सर्विस प्रोवाइडर जिसे यहाँ न उपयोगकर्ता जानता है न देखा है, उसे आपकी हर एक गतिविधि यहाँ तक कि मूवमेण्ट की भी जानकारी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ऐक्टिव होते ही हो जाएगी जो रिकॉर्ड होती रहेगी। मसलन आपने मॉल में कितने की खरीददारी की, आपकी मूवमेण्ट कहाँ-कहाँ थी, चूंकि भारत में वाट्सएप पेमेंट सेवा भी शुरू है तो लेन-देन तक यानी सारा कुछ जो आपके परिवारवालों को भी नहीं पता होता है, उस सोशल मीडिया सर्वर के जरिए वहाँ इकट्ठा होता रहेगी। झूठ और सच की महापाठशाला यानी वाट्सएप यूनिवर्सिटी भविष्य में उसी का काल बनेगी जो अभी मस्ती या सही, गलत सूचना के लिए इसका उपयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं। सच तो यह है कि इण्टरनेट ही तो वो दुनिया है जहां असल साम्यवाद है। सब बराबर हैं। किसी का रुतबा और पैसा यहां नहीं चलता। इसके लिए सारे यूजर समान हैं। किसी से भेदभाव भी नहीं है। सबको समान रूप से पल प्रतिपल इण्टरनेट ही तो अपडेट रखता है। लेकिन उसी इण्टरनेट की आड़ में निजी डेटा खंगालने का विदेशी खेल ठीक नहीं। अब वाट्सएप भारत सहित यूरोप से बाहर रहने वालों में लोकप्रिय इस इंस्टैंट मैसेजिंग ऐप के उपयोग के लिए अपनी निजी पॉलिसी और शर्तों में बदलाव करने जा रहा है। 8 फरवरी के बाद वॉट्सएप इस्तेमाल तभी कर पाएंगे जब इन्हें स्वीकारेंगे वरना एकाउण्ट डिलीट हो जाएगा। यानी वाट्सएप द्वारा जबरन इजाजत ली जा रही है। अबतक यह देखा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स इस तरह के अड़ियल रवैया नहीं अपनाते हैं और स्वीकार या अस्वीकार का ऑप्शन देते हैं। दरअसल फेसबुक ने 2014 में वाट्सएप को खरीदते ही कई बार पॉलिसी में बदलाव किए हैं। सितंबर 2016 से अपने उपयोगकर्ताओं का डेटा फेसबुक से शेयर भी कर रहा है। वाट्सएप की हालिया नई प्राइवेसी पॉलिसी और शर्तों की बारीकियों पर नजर डालें तो दिखता है कि यह हमारे आईटी कानूनों के अनुरूप कहीं से भी वाजिब नहीं है। यहाँ गौर करना होगा कि वाट्सएप भी अलग-अलग देशों में वहाँ के कानूनों के अनुरूप अपनी निजता की पॉलिसी बनाता है। मसलन जिन देशों में प्राइवेसी और निजता से जुड़े बेहद कड़े कानून मौजूद हैं वहाँ उनका पालन इनकी मजबूरी होती है। जैसे यूरोपीय क्षेत्र, ब्राज़ील और अमेरिका, तीनों के लिए अलग-अलग नीतियाँ हैं। यूरोपीय संघ यानी यूरोपियन यूनियन और यूरोपीय क्षेत्रों के तहत आने वाले देशों के लिए अलग तो ब्राज़ील के लिए अलग। वहीं अमेरिका के उपयोगकर्ताओं के लिए वहाँ के स्थानीय स्थानीय कानूनों के तहत अलग-अलग प्राइवेसी पॉलिसियाँ व शर्ते हैं। शायद इसीलिए तमाम विकसित देशों की इसपर गंभीरता दिखती है क्योंकि वे अपने नागरिकों की निजता को लेकर बेहद सतर्क रहते हैं। यही कारण है कि देश के कानूनों से इतर ऐसे ऐप्स को वहाँ के प्ले स्टोर्स में जगह तक नहीं मिलती। हालांकि हमारे देश में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल लंबित है परन्तु उससे पहले ही वॉट्सएप का यह फरमान निश्चित रूप से परेशानी में तो डाल ही रहा है। इसकी वजह यह है कि बिल के पास होने तक वाट्सएप लोगों के निजी डेटा को न केवल इकट्ठा कर चुका होगा बल्कि जहाँ फायदा होगा वहाँ तक भी पहुँचा चुका होगा। ऐसे में इस बिल की प्रासंगिकता से कुछ खास हासिल होगा, लगता नहीं है। भारतीयों के डेटा का बाहर कैसा उपयोग होगा इसको लेकर भी अनिश्चितता का माहौल है। साफ है कि इस बारे में कोई कानून नहीं है और जरूरत है सबसे पहले प्राइवेसी और निजी डेटा प्रोटेक्शन की। दरअसल हमारे देश में अभी भी अंग्रेजों के बनाए कानूनों की भरमार है। वक्त के साथ इन्हीं में बदलाव कर काम चलाने की हमारी आदत गई नहीं है। जबकि इक्कीसवीं सदी, तकनीकी और संचार क्रान्ति का जमाना है। सारा कुछ मुट्ठी में और एक क्लिक में होने के दावे का नया दौर। ऐसे में कोई पलक झपकते हमारी निजता को ही कब्जा ले, यह कहाँ की बात हुई? निजता चाहे वह डेटा में हो या अन्य तरीकों में, सुरक्षा बेहद जरूरी है। गौर करना होगा कि हमारे सुप्रीम कोर्ट ने भी 2017 में पुट्टुस्वामी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के प्रकरण में ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा था निजता का अधिकार हर भारतीय का मौलिक अधिकार है। तभी अदालत ने इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 यानी जीवन के अधिकार से जोड़ा था। सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला दिया और 1954 तथा 1962 में दिए गए फैसलों को पलटते हुए यह फैसला दिया था क्योंकि पुराने दोनों फैसलों में निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था। वाट्सएप की नीयत पर शक होना लाजिमी है। 2016 में अमेरिकी चुनाव के वक्त फेसबुक का कैंब्रिज एनालिटिका स्कैंडल लोग भूले नहीं हैं। जबकि 2019 में इसराइली कंपनी पेगासस ने इसी वॉटसएप के जरिए हजारों भारतीयों की जासूसी की थी। इधर भारत में भी फेसबुक की भूमिका पर जब-तब सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में फेसबुक की मिल्कियत वॉट्सएप द्वारा खुलेआम फेसबुक और इससे जुड़ी कंपनियों से उपयोगकर्ताओं का डेटा साझा करने की बात समझनी होगी। हालांकि सफाई में वाट्सएप का कहना है कि नई प्राइवेसी पॉलिसी से इसपर कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि आप अपने परिवार या दोस्तों से कैसे बात करते हैं। लेकिन यह भी तो सच है कि जानकारी, संपर्क, हंसी-ठिठोली और मनमाफिक असली-नकली सूचनाओं को बिना रुकावट भेजने का प्लेटफॉर्म बना वाट्सएप का इस्तेमाल बहुत सारी व्यापारिक गतिविधियों के बढ़ावे के लिए भी हो रहा है। इसमें कई संवेदनशील जानकारियाँ भी होती होंगी। स्वाभाविक है कि यह देश की सीमाओं के बाहर न जाएँ।  साफ लग रहा है कि हमारे यहाँ प्राइवेसी से सम्बन्धित कानूनों की कमी है, यही वजह है कि वॉट्सएप और ऐसे ही प्लेटफॉर्म्स के लिए भारत जैसा विशाल देश आसान निशाना होते हैं। शायद हो भी यही रहा है। वॉट्सएप के ताजा नोटिफिकेशन से जहाँ विशेषज्ञों की चिंताएँ बढ़ी होंगी वहीं सरकार भी जरूर चिन्तित होगी। इस सबके बावजूद इतनी बारीकियों से बेखबर एक औसत भारतीय को भी सजग होना होगा ताकि वह ऐसे झाँसे में आने से बचे। इसके लिए बिना समय गंवाए तत्काल मिल जुलकर कोई कदम उठाया जाए जो हमेशा के लिए ऐसे विवादों को ही समाप्त कर दे ताकि भारत में सायबर दायरों की आड़ में पैठ बनाते विदेशी प्लेटफॉर्म अपनी हदों में ही रहे। हाँ, यहाँ हमारे दुश्मन ही सही चीन से नसीहत लेनी होगी जिसने शायद इसी वजह से ही विदेशी प्लेटफॉर्म्स को देश में घुसने ही नहीं दिया, सारा कुछ खुद का बनाया इस्तेमाल करता है। यकीनन चिंताएं सबकी बढ़ी हैं और एक यूज़र के तौर पर हमको, आपको सबको इससे चिंतित होना चाहिए। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)  

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Dakhal News 12 January 2021


bhopal,SOT Diary Part One  Community-verified icon

कभी ट्रेन में इस वक़्त फ़र्स्ट एसी में मयखाना सज जाया करता था। टिकट तो होता थर्ड या सेकंड एसी का पर रेल विभाग के पियक्कड़ों के सौजन्य से आँखों ही आँखों में इशारा हो जाता। फिर अपन सब की महफ़िल फ़र्स्ट क्लॉस वाली शुरू हो जाती। जो भी आता जाता झांकता मुस्कराता उसे लखेद कर पिला दिया जाता। हालाँकि अपन सब उतने भी असभ्य नहीं जितना इतिहासकारों ने वर्णित किया है। कर्टसी के तहत पहले पूछा जाता- लोगे गुरु एक पैग! कोच अटेंडेंट से लेकर ज़्यादातर स्टाफ़ सेवा में लग जाता। टीटी साहब सबसे आख़िर में शरीक होते। डिब्बा डब्बा चेक चाक कर नौकरी बजाने के बाद।   जगह जगह स्टेशनों पर जंता को इत्तला एडवांस में कर दिया जाता कि बाबा फ़लाँ नम्बर की फ़लाँ ट्रेन से वाया फ़लाँ शहर फ़लाँ वक्त पर गुजर रहे हैं। जंता लोग वेज-नोनवेज बीयर दारू लेकर खड़े मिलते।   ट्रेन में या जीवन में, जो भी प्रेम से मिला हम उसी संग चीयर्स कर लिए।   एक दफे एक डिप्टी एसपी के साथ ट्रेन में जो पियक्कड़ी शुरू हुई तो सिलसिला ट्रेन के मंज़िल तक पहुँचने से बस एक स्टेशन पहले टूटा। स्टेशन आते जाते, ब्लैक डॉग के अद्धे गिरते जाते। क्रम यूँ बना रहता कि कोई किसी पर अहसान न लाद सके। किसी एक टेशन पर जय हिंद मारते हुए पुलिसकर्मी मदिरा लेकर आते तो अगले टेशन पर पत्रकार साथी अद्धा समर्पित कर देते।       आज बस चाय चिप्स है तो अतीत की नशीली रेल यात्राएँ दिलो दिमाग़ में छुकछुक कर गईं!   #dryyear21   #पियक्कड़_डायरी   भड़ास एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से.  

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Dakhal News 11 January 2021


bhopal,If you do not agree, your WhatsApp , deleted by February 8!

गिरीशमालवीय– क्या आपने व्हाट्सएप की नयी टर्म्स और प्राइवेसी पॉलिसी को ध्यान से पढ़ा? मंगलवार शाम से WhatsApp ने भारतीय व्हाट्सएप यूजर्स को अपनी टर्म्स और प्राइवेसी पॉलिसी को लेकर अपडेट भेजना शुरू किया है…….वॉट्सऐप ने यूजर्स को नई पॉलिसी को एक्सेप्ट करने के लिए 8 फरवरी 2021 तक का समय दिया है. तब तक पॉलिसी को यूजर्स को एक्सेप्ट करना होगा वरना अकाउंट डिलीट करना होगा. निया बहुत तेजी से बदली है आज विश्व मे व्हाट्सएप के यूजर की संख्या 200 करोड़ को भी पार कर गयी है यह सूचना क्रांति का युग है यह ई कॉमर्स का युग है रेडियो को जन जन तक पहुंचने में लगभग 50 बरस लगे थे, टीवी को लगभग 25 साल, इन्टरनेट को 15 साल और फेसबुक व्हाट्सएप जैसी सोशल साइट्स/ एप्प कुछ ही सालो में दुनिया मे छा गयी है प्रश्न यह उठता है कि हम पर इसका क्या प्रभाव हो रहा है इसे हम ठीक से समझ भी पा रहे हैं आज कोई भी एप्प हम इंस्टाल करते हैं और उसकी टर्म ओर कंडीशन को बिना ठीक से पढ़े एक्सेप्ट कर लेते हैं चूंकि व्हाट्सएप अब अधिकांश भारतीय लोगो के जीवन का एक हिस्सा हो गया है तो एक बार जरा इन सब बातों पर ठिठक कर विचार करने की जरूरत है वॉट्सएप अब आपके स्टेटस पढ़ने जा रहा है वॉट्सएप आपकी लोकेशन भी एक्सेस करेगा। अब अगर आप फोटो, वीडियो फॉरवर्ड करते हैं, तो वे वॉट्सएप के सर्वर पर अधिक समय तक स्टोर रहेंगे। एन्ड टू एन्ड इन्क्रिप्शन वाली बात अब खत्म ही समझिए वॉट्सएप ने कहा है कि वह ऐसा आपको फॉरवर्ड करने में मदद के लिए कर रहा है। लेकिन इसका मतलब है कि उसके पास जानकारी होगी कि फलां फोटो बहुत फॉरवर्ड हो रहा है। ऐसा वह फेक न्यूज को ट्रैक करने के लिए कर रहा है, पर असलियत में यह बात इतनी सरल नही है वॉट्सएप अब बिजनेस अकाउंट पर भी नजर रखेगा। इनसे शेयर होने वाले सारे कैटलॉग का एक्सेस उसके पास होगा। वॉट्सएप ने पहली बार कहा है कि वह आपके हर ऑनलाइन ट्रांजैक्शन का डेटा लेगा। यानी बैंक का नाम, कितनी राशि और डिलीवरी का स्थान आदि ट्रैक होगी। यही नहीं, फेसबुक-इंस्टाग्राम भी आपके फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन जान जाएंगे। ध्यान दीजिए कि कुछ ही महीनों में खुद की पेमेंट सर्विस शुरू कर रहा है दरअसल व्हाट्सएप का अधिपत्य अब फ़ेसबुक के पास ही है फ़ेसबुक ने व्हाट्सऐप को 2014 में 19 अरब डॉलर में खरीद लिया था अक्टूबर 2020 में फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने कहा था कि कंपनी मैसेंजर चैट, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप को मर्ज करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं. ताकि वे एक तरीके से जुड़े इंटरऑपरेबल सिस्टम की तरह काम करना शुरू कर सकें. यह नीति एक तरह की आर्टिफिशियल इंटलीजेंस को सपोर्ट करने को लायी जा रही है, वॉट्सऐप की पुरानी प्राइवेसी पॉलिसी में आपके पास ये आजादी थी कि अपने वॉट्सऐप अकाउंट की जानकारी को फ़ेसबुक के साथ साझा होने से रोक सकते थे, लेकिन नई पॉलिसी में इस बात की गुंजाइश खत्म हो गई है आप कहेंगे कि इनसे हमको क्या फर्क पड़ेगा ? जैसा कि मैने ऊपर लिखा है इक्कीसवीं शताब्दी की शुरुआत सूचना क्रांति से हुई है और यह ई कॉमर्स का युग है‘आज जो सूचनाओ ओर डेटा को नियंत्रण में रख रहा हैं, वही दुनिया के व्यापार और व्यवहार को नियंत्रित करेगा’यही इस वर्तमान ई-कॉमर्स जगत का आधारभूत सिध्दांत है. हमने अब तक बीसवी शताब्दी की शुरुआत में हमने केपेटेलिज्म को देखा है शताब्दी के अंत तक आते आते वह क्रोनी कैपटलिज्म परिवर्तित हो गया लेकिन यह शताब्दी एक नए तरह के पूंजीवाद को देख रही है जिसे सर्विलांस कैपिटलिज़्म कहा जा रहा है यह भयावह निगरानी पूंजीवाद हमारे चारों तरफ व्याप्त है इसकी भयानकता को समझने में बड़े बड़े बुद्धिजीवी भी चूक कर रहे हैं हम आर्टिफिशियल इंटलीजेंस की दुनिया मे प्रवेश कर चुके हैं ओर जब बिग डेटा के सहारे AI यानी आर्टिफिशियल इंटलीजेंस सूचनाओं के अंबार में से पैटर्न तलाशता है तो कई अचंभित करने वाली बातें सामने आती हैं। 2012 में एक अमेरिकी कस्टमर को एक बड़े अमेरिकी रिटेल विक्रेता द्वारा भेजे गए संदेश ने एक बड़े विवाद को जन्म दियादरअसल AI की सहायता से उस बड़े विक्रेता ने एक कस्टमर को होने वाले बच्चे के जन्म का बधाई संदेश भेज दिया था। बिग डेटा की सहायता से साइट ने ऑनलाइन सर्च और खरीदारी रुझान के आधार पर बच्चे के जन्म का अंदाजा लगाकर संदेश भेजा था। जबकि वह कस्टमर 12 साल की एक नाबालिग लड़की थी और उसके मां-बाप को गर्भावस्था के बारे में कोई खबर नहीं थी। यानी अब कुछ भी सम्भव है व्हाट्सएप द्वारा आपको यूजर पॉलिसी का टर्म्स एन्ड एग्रीमेंट पर एक्सेप्ट करने को कहना एक चेतावनी ही है आप चाहे तो इस पोस्ट को नजरअंदाज भी कर सकते हैं

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Dakhal News 8 January 2021


bhopal,Indian Journalism Festival , 19, 20 and 21 February

इंदौर । स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश के प्रतिष्ठा आयोजन भारतीय पत्रकारिता महोत्सव का आयोजन 19, 20 एवं 21 फरवरी 2021 को इंदौर में आयोजित किया जाएगा।   मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बुधवार को स्थानीय ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में आयोजित संक्षिप्त समारोह में महोत्सव के लोगो का विमोचन किया। इस अवसर पर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, सांसद शंकर लालवानी, संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर, जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट, शहर अध्यक्ष गौरव रणदिवे विशेष रूप से उपस्थित थे। स्टेट प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल ने बताया कि मूर्धन्य सम्पादक माणिकचंद वाजपेयी ‘मामाजी’, राजेन्द्र माथुर, राहुल बारपुते, प्रभाष जोशी एवं शरद जोशी की स्मृति में तीन दिवसीय आयोजन में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, वेब, कार्टून एवं फोटोग्राफी को लेकर विभिन्न सत्र आयोजित किए जाएंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आयोजन की सफलता के लिए शुभकामना दी। इस अवसर पर मुख्यमंत्री को महोत्सव का निमंत्रण भी भेंट किया गया। प्रारम्भ में स्टेट प्रेस क्लब के कमल कस्तूरी, आकाश चौकसे, डॉ. अर्पण जैन, शीतल रॉय, सोनाली यादव, रवि चावला, रूपेश व्यास, विजय गुंजाल पुष्पराज सिंह, राकेश द्विवेदी, सत्यजीत शिवणेकर, पंकज क्षीरसागर, प्रवीण धनोतिया आदि उपस्थित रहें। अंत में अजय भट्ट ने आभार माना।

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Dakhal News 8 January 2021


bhopal,Virat Kohli ,setting the record for Virat

योगेश कुमार गोयल अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) की हाल ही में जारी टेस्ट बल्लेबाजों की रैंकिंग में टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली ने अपना दूसरा स्थान बरकरार रखा है। पिछले दिनों भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) द्वारा दशक का सर्वश्रेष्ठ पुरुष क्रिकेटर चुना गया। उन्हें दशक के सर्वश्रेष्ठ पुरुष क्रिकेटर के लिए सर गारफील्ड सोबर्स पुरस्कार से नवाजा गया है। दशक के सर्वश्रेष्ठ वनडे क्रिकेटर की दौड़ में विराट कोहली के अलावा श्रीलंका के लसिथ मलिंगा और कुमार संगाकारा, आस्ट्रेलिया के मिचेल स्टार्क, दक्षिण अफ्रीका के एबी डीविलियर्स, रोहित शर्मा तथा महेन्द्र सिंह धोनी शामिल थे। दशक के आईसीसी पुरस्कारों में पिछले 10 वर्षों के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटरों को चुना गया, जिसमें पहली बार प्रशंसकों को भी मत देने का अधिकार दिया गया था। विराट कोहली चार पुरस्कारों की दौड़ में शामिल थे, जिनमें आईसीसी का दशक का सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर के अलावा दशक का सर्वश्रेष्ठ टेस्ट, वनडे और टी-20 अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेटर शामिल थे। विराट कोहली को जहां दशक का सर्वश्रेष्ठ पुरुष क्रिकेटर के अलावा दशक का सर्वश्रेष्ठ वन-डे पुरुष क्रिकेटर भी चुना गया, वहीं आस्ट्रेलिया के दिग्गज बल्लेबाज स्टीव स्मिथ को दशक का सर्वश्रेष्ठ टेस्ट और अफगानी स्पिनर राशिद खान को सर्वश्रेष्ठ टी-20 खिलाड़ी चुना गया। आईसीसी द्वारा दशक की टेस्ट, वनडे और टी-20 की जिन टीमों का चयन किया गया, स्टार बल्लेबाज कोहली इन तीनों फार्मेट में शामिल होने वाले एकमात्र क्रिकेटर रहे। विराट को दशक की टेस्ट टीम का कप्तान भी बनाया गया। पिछले 10 वर्षों में विराट कोहली ने 20 हजार से भी ज्यादा रन बनाए हैं और इस दौरान 66 अंतर्राष्ट्रीय शतक तथा 94 अर्धशतक भी जड़े हैं। 70 से अधिक पारी खेलते हुए उनका सर्वाधिक औसत 56.97 का रिकॉर्ड भी रहा। वन-डे में उन्होंने एक दशक में 39 शतक और 48 अर्धशतक जड़े तथा 112 कैच लपके। 10 वर्षों की अवधि में उन्होंने टेस्ट, टी-20 तथा वनडे में 56.97 के औसत से कुल 20396 रन बनाए और इस दशक में वनडे में 10 हजार से ज्यादा रन बनाने वाले एकमात्र खिलाड़ी भी बने, जो उन्होंने 61.83 के औसत से बनाए। वनडे मैचों में कोहली ने 12040 रन, टेस्ट क्रिकेट में 7318 रन और टी-20 अंतर्राष्ट्रीय मैचों में इन दस वर्षों में 2928 रन बनाए और सभी प्रारूपों में मिलाकर उनका औसत 50 से अधिक का रहा। विराट ने अपने कैरियर का पहला रन धोनी की कप्तानी में बनाया और अपना दस हजारवां रन भी उन्होंने धोनी की मौजूदगी में बनाया था। जब विराट के कैरियर की शुरूआत हुई थी, उस समय क्रिकेट में धोनी और सहवाग की तूती बोलती थी लेकिन विराट ने कुछ ही समय में अपने प्रदर्शन से हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि एकदिन यही विराट अपने नाम के अनुरूप क्रिकेट में विराट कीर्तिमान स्थापित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का इतना बड़ा सितारा बन जाएगा। अंडर-19 क्रिकेट टीम हो या सीनियर टीम, विराट ने हर जगह अपने बल्ले से ऐसे जलवे दिखाए हैं कि खेलप्रेमी उनके दीवाने हो गए। कहना गलत नहीं होगा कि अपने जोश, जुनून, तेज गति से रन बनाने की भूख और कड़ी मेहनत के बलबूते पर विराट आज जिस पायदान पर खड़े हैं, वहां विराट ने तमाम भारतीय खिलाड़ियों को पीछे छोड़ दिया है। एक ओर जहां सचिन ने विराट की निरंतरता और जुनून के साथ उनकी बल्लेबाजी को बेमिसाल बताया है, वहीं वीरेन्द्र सहवाग का कहना है कि विराट ने निरंतरता को नए आयाम दिए हैं और यह ‘सॉफ्टवेयर’ हर वक्त अपडेट होता रहा है। ऑस्ट्रेलिया के विख्यात क्रिकेटर टॉम मूडी का तो यहां तक कहना है कि विराट इस शिखर पर अकेले हैं, जहां न पहले कोई था और न बाद में कोई होगा। बांग्लादेश के स्टार बल्लेबाज तमीम इकबाल तो विराट की तारीफ करते हुए यह तक कह गए कि कभी-कभी ऐसा लगता है कि भारतीय कप्तान विराट कोहली इंसान नहीं हैं क्योंकि जैसे ही वह बल्लेबाजी के लिए उतरते हैं तो ऐसा लगता है कि वह हर मैच में शतक बनाएंगे। तमीम कहते हैं कि विराट जिस तरह अपने खेल पर कार्य करते हैं, वह अविश्वसनीय है। वह कहते हैं कि पिछले 12-13 वर्षों में उन्होंने सभी महान खिलाड़ियों को खेलते देखा है किन्तु ऐसा व्यक्ति नहीं देखा, जिसने विराट जैसा दबदबा बनाया हो। 5 नवम्बर 1988 को दिल्ली में जन्मे विराट का जीवन इतना आसान नहीं रहा। जिस दिन वह दिल्ली की ओर से कर्नाटक के खिलाफ रणजी मैच खेल रहे थे, उस दिन उनके पिता का देहांत हो गया था। दुखों का इतना बड़ा पहाड़ टूटने पर भी विराट ने टूटने के बजाय न केवल वह मैच पूरा किया बल्कि वह मैच अपने पिता के नाम समर्पित कर दिया था। 2008 में विराट ने एकदिवसीय मैचों में पदार्पण किया था और 2011 में उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में कदम रखा। 2011 में ही वो विश्वकप की विजेता टीम का हिस्सा भी बने और उसी दौरान अपने पदार्पण मैच में शतक जड़कर विराट ने दिखा दिया था कि उनके हौसले कितने बुलंद हैं। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)  

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Dakhal News 4 January 2021


bhopal, Agitating farmers ,also launched ,YouTube channel

रवीश कुमार- DD किसान बनाम किसान एकता मोर्चा का यू ट्यूब चैनल… 26 मई 2015 को मोदी सरकार ने जनता के पैसे से किसानों के लिए एक न्यूज़ चैनल लाँच किया। पाँच साल बाद दिसंबर 2020 में किसानों ने अपना यू ट्यूब चैनल लाँच कर दिया। ये सामान्य घटना नहीं है। सरकार के बनाए किसान चैनल की किसानों की सबसे बड़ी लड़ाई में कोई भूमिका नहीं दिखती। मुझे नहीं मालूम इस चैनल को कितने किसान देखते होंगे, जो भी देखते होंगे नहीं बता सकते हैं कि किसानों के आंदोलन की एक तस्वीर भी चली है या नहीं? DD किसान किसानों के बीच अनुपस्थित है। अगर उपस्थित होता तो किसान गोदी मीडिया की तरह उसका नाम लेते। गोदी मीडिया उनके जीवन में काफ़ी ठीक से मौजूद था तभी उसके अख़बारों और चैनलों में जब किसानों ने खुद को नहीं देखा तो हिल गए। जिस अख़बार को वे वर्षों से पैसे देकर ख़रीदते थे उस अख़बार ने दगा दे दिया। चैनलों ने उन्हें ग़ायब कर दिया और आतंकवादी कह दिया। आज किसानों को यू ट्यूब चैनल लाँच करना पड़ा है। देखना है कि इस यू ट्यूब चैनल को कितने लोग सब्स्क्राइब करते हैं? क्या किसान इसके सब्सक्रिप्शन की संख्या से कोरपोरेट और सरकार के गुलाम गोदी मीडिया को टक्कर दे पाएँगे? भारत का किसान गोदी मीडिया से लड़ने लगा है। इस गोदी मीडिया ने गाँवों को हिन्दू मुसलमान में बाँट दिया क्या किसान गोदी मीडिया को परास्त कर पाएँगे? किसानों ने यह चुनौती उठा ली है यह भी कम बड़ी बात नहीं है। अरबों रुपये के न्यूज़ चैनलों के होते हुए भारत का किसान अपना चैनल लाँच कर रहा है। ये बात दुनिया को मत बताइयेगा। वरना आपको शर्मिंदा होना पड़ेगा। देखें चैनल और सब्सक्राइब करें- https://youtu.be/ipMC9N8Io0w

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Dakhal News 21 December 2020


bhopal, Cyber ​​Terrorist, Precaution and alertness, way to avoid

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा अपराध की दुनिया में अब साइबर टेरेरिस्टों का प्रवेश हो गया है। इंटरनेट के बढ़ते उपयोग के चलते साइबर बुलिंग द्वारा यह टेरेरिस्ट लोगों को आसानी से शिकार बना रहे हैं। देश में साइबर बुलिंग के मामलों में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है। दिल्ली पुलिस के ही आंकड़े देखें तो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में इस साल दस फीसदी की इसमें बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। यह स्थिति केवल दर्ज मामलों की है। इनसे कई गुणा मामले ऐसे हैं जो किसी न किसी कारण पुलिस तक पहुंचते ही नहीं हैं। यह केवल दिल्ली की ही स्थिति नहीं अपितु समूचे देश की है। कोरोना के चलते इंटरनेट का उपयोग बढ़ने के साथ ही साइबर टेरेरिस्टों का आंतक और बढ़ने लगा है। खासतौर से सोशल मीडिया माध्यमों पर साइबर टेरेरिस्ट अधिक सक्रिय हैं। ई-मेल, फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्विटर पर साइबर टेरेरिस्ट अति सक्रिय हैं। बच्चे ऐसे तत्वों के सॉफ्ट टारगेट हैं। तो लालची, डरपोक किस्म के लोग इनके झांसे में जल्दी आ जाते हैं। साइबर बुलिंग का मतलब है ई-मेल, फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि सोशल साइट्स पर संपर्क साधकर धमकाने, ब्लैकमेल करने, गाली-गलौच करने, मानसिक रूप से प्रताड़ित कर अपना हित साधना। लोगों को लॉटरी आदि का लालच देकर, अश्लील फोटो डालने या सार्वजनिक करने की धमकी देकर, ब्लैकमेल कर रुपए ऐंठने से लेकर मानसिक तौर पर परेशान करने तक सारे हथकंडे अपनाए जाते हैं। साइबर टेरेरिस्ट ई-मेल, फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि पर संदेश भेजकर, संपर्क बनाकर गोपनीय जानकारी प्राप्त करते हैं और उसका उपयोग संबंधित के खिलाफ करते हैं। चूंकि कोरोना काल में बच्चे पढ़ाई के चलते ऑनलाईन क्लासों से जुड़ रहे हैं तो बच्चों में इंटरनेट का उपयोग बढ़ा है। ऐसे में बच्चों को आसानी से साइबर टेरेरिस्ट निशाना बना रहे हैं। उनसे परिवार, माता-पिता आदि की जानकारी प्राप्त कर उन्हें डरा-धमका कर तनाव में ला रहे हैं। इसी तरह से हनी ट्रैप के मामले भी इसी तरह संचालित हो रहे हैं। लोगों को लॉटरी का भय दिखाकर, इंश्योरेंस पॉलिसी में अधिक बोनस दिलाने, कहीं से पैसा आने और उस राशि को आपके खाते में डालने का झांसा देकर खाते की जानकारी लेकर ठगना आम है। इसी तरह महिलाओं-युवतियों के अश्लील फोटो सोशल साइट्स पर सार्वजनिक करने की धमकी देकर ब्लैकमेल करना आम होता जा रहा है। इसी तरह से आपके एटीएम कार्ड की वैधता खत्म होने या उसे रिन्यू करने या उससे लेन-देन की राशि को बढ़ाने, अपग्रेड करने का झांसा देकर नंबर प्राप्त कर खाते से धनराशि उड़ाना तो आम होता जा रहा है। दरअसल साइबर टेरेरिस्ट इंटरनेट व कम्प्यूटर के अच्छे जानकार होते हैं। ये आपकी मेल को हैक कर, सोशल मीडिया पर आपके नाम से गलत व भ्रामक सूचना अपलोड कर ठगी करने आदि में एक्सपर्ट होते हैं। लोग इनके झांसे में आसानी से आ जाते हैं। हालांकि बैंकों, इंश्योंरेस कंपनियों आदि द्वारा बार-बार समझाया जाता है कि बैंक किसी से मोबाइल, वाट्सएप आदि पर किसी तरह की जानकारी नहीं लेते। इसी तरह से बार-बार कहा जाता है कि अनजानी साइट पर जाने, अनजाने लिंक को ओपन करने से जितना बचा जाए, वहीं सबसे बड़ी सुरक्षा है। कभी भी सोशल साइट्स और ईमेल पर अनजाने लोगों को व्यक्तिगत जानकारी साझा नहीं करें। यहां तक कि सोशल साइट्स पर जानकारों से भी जानकारी साझा करते समय सावधानी बरतना आवश्यक है। दूसरी बात, थोड़े से लालच में अपनी कड़ी मेहनत से कमाई पूंजी को लुटाने का मतलब नहीं है। जब आपने लॉटरी ली ही नहीं तो आपकी लॉटरी कहां से निकलेगी। जब आपको कोई जानता नहीं तो लॉटरी के लिए आपका ही चयन क्यों करेगा। जब आप किसी को जानते ही नहीं तो वह आपके खाते में राशि क्यों ट्रासंफर करवाएगा। इसी तरह जब कोई आपको जानता नहीं तो आपके साथ साझा कारोबार क्यों कर करेगा, यह सब समझने की बात है। हमारे लालच या भय के कारण इन्हें प्रोत्साहन मिलता है और यह इसका गलत फायदा उठाते हैं। होना तो यह चाहिए कि जब इस तरह की कोई घटना आपके साथ हो रही हो तो तत्काल पुलिस की सहायता लेनी चाहिए। डरना या ब्लैकमेल से टेंशन में आना, इसका कोई निदान नहीं है। दूसरी ओर यह समझना चाहिए कि जो आपको ब्लैकमेल कर ठग रहा है, उसके लालच का कोई अंत नहीं है। ऐसे में बिना किसी सामाजिक भय के खुलकर सामने आते हुए पुलिस का सहयोग लेने में नहीं हिचकिचाना चाहिए। इस तरह की घटना होने लगे तो पुलिस के साइबर थाने या अपने निकट के थाने में पुलिस से संपर्क साधकर जानकारी देनी चाहिए। बच्चों और महिलाओं को भी सजग करते हुए उन्हें साइबर टेरेरिस्टों की गिरफ्त में आने से बचाने के लिए सजग करना चाहिए। साइबर टेरेरिस्टों के चंगुल में आ भी जाए तो हताश होने के स्थान पर पुलिस का सहयोग लेने में किसी तरह का संकोच नहीं करना चाहिए। नहीं तो साइबर टेरेरिस्टों के हौसले बढ़ते जाते हैं। बच्चों व महिलाओं को भी साइबर टेरेरिस्टों की संभावित गतिविधियों के बारे में सजग करना होगा ताकि वे किसी तरह की जानकारी साझा नहीं करें। वहीं भयभीत न होकर इस तरह की घटना होने की स्थिति में तत्काल जानकारी देने का साहस जुटा सकें। नए जमाने के इन साइबर टेरेरिस्टों से बचने के लिए हमें ही अधिक सजग और सशक्त होना होगा। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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Dakhal News 15 December 2020


bhopal,Remaining memory, Manglesh Dabral, lanterns given,mountain

मुकुंद देवभूमि उत्तराखंड में जन्मे मंगलेश डबराल विश्व साहित्य को अपनी अनमोल कृतियां दे गए। पहाड़ पर लालटेन-उनका कविता संग्रह उनके जन्मभूमि प्रेम के प्रति कृतज्ञता को दर्शाता है। उनके निधन पर विश्व के कवियों को आभासी मंच प्रदान करने वाले पोर्टल कविता कोश का ट्वीट मंगलेश डबराल को समझने के लिए मुकम्मल है- 'मंगलेश डबराल केवल एक कवि नहीं, भारतीय साहित्य के लिए पूरी किताब थे, साहित्य को ईमानदार साहित्यकार बहुत कम मिलते हैं, वो शायद आधुनिक साहित्य में आखिरी ईमानदार लेखक थे! युवा साहित्यकारों को उनसे साहित्य के साथ-साथ यह भी सीखना चाहिए कलम ईमानदार कैसे रहें...।' -पोर्टल कविता कोश का ट्वीट मंगलेश डबराल गाजियाबाद के वसुंधरा में जनसत्ता सोसाइटी के फ्लैट में 2012 से पत्नी संयुक्ता डबराल और बेटी अलमा के साथ रह रहे थे। 4 दिसम्बर की रात उन्हें बेटी और भांजे प्रमोद ने वसुंधरा के अस्पताल से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की आईसीयू में रेफर कराया था। बेटा मोहित गुरुग्राम की एक कंपनी में स्क्रिप्ट राइटर हैं। वह पत्नी और बेटी के साथ वहीं ही रहते हैं। 27 नवम्बर को तबीयत खराब होने पर उन्हें वसुंधरा स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कोविड-19 की टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। एम्स में 5 दिसम्बर को उन्हें वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया। वहां बुधवार शाम करीब 6:30 बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ा और 7:10 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली। मंगलेश डबराल के निधन की सूचना से जनसत्ता सोसाइटी में उनके पड़ोसी और पूर्व सहकर्मी असरार खान कहते हैं, अब कौन पूछेगा मियां कैसे हो? असरार कहते हैं, उनका जाना खल गया। मंगलेश डबराल ने आखिरी बार बेटी और पत्नी से वीडियो कॉल कर कहा था कि वह अब थक चुके हैं। वह घर आना चाहते हैं। काफलपानी की पगडंडियां: 16 मई,1948 को टिहरी गढ़वाल के काफलपानी गांव में जन्मे मंगलेश डबराल की शिक्षा -दीक्षा देहरादून में हुई। वह भोपाल में कला परिषद (भारत भवन) की पत्रिका पूर्वाग्रह में सहायक संपादक रहे। लखनऊ और इलाहाबाद से छपने वाले दैनिक अमृत प्रभात में भी रहे।  उनके खाते में  जनसत्ता का रविवारी बहुत बड़ी उपलब्धि है। उन्हें जनसत्ता दिल्ली के यशस्वी साहित्य संपादक के रूप में याद किया जाएगा।  वह हिंदी पैट्रियाट और प्रतिपक्ष में भी रहे।  फिलवक्त वह नेशनल बुक ट्रस्ट से संबद्ध थे। उनके पांच कविता संग्रह-पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नए युग में शत्रु शामिल हैं। सम्मान: साहित्य अकादेमी पुरस्कार (2000), पहल सम्मान, ओमप्रकाश स्मृति सम्मान (1982), श्रीकांत वर्मा पुरस्कार (1989)।  इनके अलावा अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से विभूषित। टूटते दायरे: वह ख्यातिलब्ध अनुवादक के रूप में भी जाने जाएंगे। उनकी कविताओं के अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, स्पानी, पोल्स्की और बल्गारी भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। कविता के अतिरिक्त वह साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति पर नियमित लिखते रहे। उनकी रचनाओं में सामंती बोध और पूंजीवादी छल-छद्म का प्रतिकार दिखता है। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म और भाषा पारदर्शी है। उन्होंने नागार्जुन, निर्मल वर्मा, महाश्वेता देवी, यूआर अनंतमूर्ति, कुर्रतुल ऐन हैदर और गुरुदयाल सिंह पर केंद्रित वृत्तचित्रों का पटकथा लेखन भी किया है। स्मृतियों में:  मंगलेश डबराल की दो कविताएं कविता कोश में स्मृति एक और स्मृति दो शीर्षक से दर्ज हैं। उन्होंने लिखा है- खिड़की की सलाखों से बाहर आती हुई लालटेन की रौशनी / पीले फूलों जैसी /हवा में हारमोनियम से उठते प्राचीन स्वर /छोटे-छोटे बारीक बादलों की तरह चमकते हुए /शाम एक गुमसुम बच्ची की तरह छज्जे पर आकर बैठ गई है /जंगल से घास-लकड़ी लेकर आती औरतें आंगन से गुजरती हुईं /अपने नंगे पैरों की थाप छोड़ देती हैं/ इस बीच बहुत-सा समय बीत गया/ कई बारिशें हुईं और सूख गईं/ बार-बार बर्फ गिरी और पिघल गई /पत्थर अपनी जगह से खिसक कर कहीं और चले गए/ वे पेड़ जो आंगन में फल देते थे और ज्यादा ऊंचाइयों पर पहुंच गए/ लोग भी कूच कर गए नई शरणगाहों की ओर /अपने घरों के किवाड़ बंद करते हुए / एक मिटे हुए दृश्य के भीतर से तब भी आती रहती है पीले फूलों जैसी लालटेन की रोशनी/ एक हारमोनियम के बादलों जैसे उठते हुए स्वर/ और आंगन में जंगल से घास-लकड़ी लाती स्त्रियों के पैरों की थाप। वह एक दृश्य था जिसमें एक पुराना घर था /जो बहुत से मनुष्यों के सांस लेने से बना था /उस दृश्य में फूल खिलते तारे चमकते पानी बहता/ और समय किसी पहाड़ी चोटी से धूप की तरह /एक-एक कदम उतरता हुआ दिखाई देता/ अब वहां वह दृश्य नहीं है बल्कि उसका एक खंडहर है /तुम लंबे समय से वहां लौटना चाहते रहे हो जहां उस दृश्य का खंडहर न हो /लेकिन अच्छी तरह जानते हो कि यह संभव नहीं है/ और हर लौटना सिर्फ एक उजड़ी हुई जगह में जाना है /एक अवशेष, एक अतीत और एक इतिहास में /एक दृश्य के अनस्तित्व में/ इसलिए तुम पीछे नहीं बल्कि आगे जाते हो/ अंधेरे में किसी कल्पित उजाले के सहारे रास्ता टटोलते हुए/ किसी दूसरी जगह और किसी दूसरे समय की ओर /स्मृति ही दूसरा समय है जहां सहसा तुम्हें दिख जाता है /वह दृश्य उसका घर जहां लोगों की सांसें भरी हुई होती हैं /और फूल खिलते हैं तारे चमकते हैं पानी बहता है /और धूप एक चोटी से उतरती हुई दिखती है। (लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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Dakhal News 10 December 2020


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मुकुंद देवभूमि उत्तराखंड में जन्मे मंगलेश डबराल विश्व साहित्य को अपनी अनमोल कृतियां दे गए। पहाड़ पर लालटेन-उनका कविता संग्रह उनके जन्मभूमि प्रेम के प्रति कृतज्ञता को दर्शाता है। उनके निधन पर विश्व के कवियों को आभासी मंच प्रदान करने वाले पोर्टल कविता कोश का ट्वीट मंगलेश डबराल को समझने के लिए मुकम्मल है- 'मंगलेश डबराल केवल एक कवि नहीं, भारतीय साहित्य के लिए पूरी किताब थे, साहित्य को ईमानदार साहित्यकार बहुत कम मिलते हैं, वो शायद आधुनिक साहित्य में आखिरी ईमानदार लेखक थे! युवा साहित्यकारों को उनसे साहित्य के साथ-साथ यह भी सीखना चाहिए कलम ईमानदार कैसे रहें...।' -पोर्टल कविता कोश का ट्वीट मंगलेश डबराल गाजियाबाद के वसुंधरा में जनसत्ता सोसाइटी के फ्लैट में 2012 से पत्नी संयुक्ता डबराल और बेटी अलमा के साथ रह रहे थे। 4 दिसम्बर की रात उन्हें बेटी और भांजे प्रमोद ने वसुंधरा के अस्पताल से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की आईसीयू में रेफर कराया था। बेटा मोहित गुरुग्राम की एक कंपनी में स्क्रिप्ट राइटर हैं। वह पत्नी और बेटी के साथ वहीं ही रहते हैं। 27 नवम्बर को तबीयत खराब होने पर उन्हें वसुंधरा स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कोविड-19 की टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। एम्स में 5 दिसम्बर को उन्हें वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया। वहां बुधवार शाम करीब 6:30 बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ा और 7:10 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली। मंगलेश डबराल के निधन की सूचना से जनसत्ता सोसाइटी में उनके पड़ोसी और पूर्व सहकर्मी असरार खान कहते हैं, अब कौन पूछेगा मियां कैसे हो? असरार कहते हैं, उनका जाना खल गया। मंगलेश डबराल ने आखिरी बार बेटी और पत्नी से वीडियो कॉल कर कहा था कि वह अब थक चुके हैं। वह घर आना चाहते हैं। काफलपानी की पगडंडियां: 16 मई,1948 को टिहरी गढ़वाल के काफलपानी गांव में जन्मे मंगलेश डबराल की शिक्षा -दीक्षा देहरादून में हुई। वह भोपाल में कला परिषद (भारत भवन) की पत्रिका पूर्वाग्रह में सहायक संपादक रहे। लखनऊ और इलाहाबाद से छपने वाले दैनिक अमृत प्रभात में भी रहे।  उनके खाते में  जनसत्ता का रविवारी बहुत बड़ी उपलब्धि है। उन्हें जनसत्ता दिल्ली के यशस्वी साहित्य संपादक के रूप में याद किया जाएगा।  वह हिंदी पैट्रियाट और प्रतिपक्ष में भी रहे।  फिलवक्त वह नेशनल बुक ट्रस्ट से संबद्ध थे। उनके पांच कविता संग्रह-पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नए युग में शत्रु शामिल हैं। सम्मान: साहित्य अकादेमी पुरस्कार (2000), पहल सम्मान, ओमप्रकाश स्मृति सम्मान (1982), श्रीकांत वर्मा पुरस्कार (1989)।  इनके अलावा अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से विभूषित। टूटते दायरे: वह ख्यातिलब्ध अनुवादक के रूप में भी जाने जाएंगे। उनकी कविताओं के अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, स्पानी, पोल्स्की और बल्गारी भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। कविता के अतिरिक्त वह साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति पर नियमित लिखते रहे। उनकी रचनाओं में सामंती बोध और पूंजीवादी छल-छद्म का प्रतिकार दिखता है। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म और भाषा पारदर्शी है। उन्होंने नागार्जुन, निर्मल वर्मा, महाश्वेता देवी, यूआर अनंतमूर्ति, कुर्रतुल ऐन हैदर और गुरुदयाल सिंह पर केंद्रित वृत्तचित्रों का पटकथा लेखन भी किया है। स्मृतियों में:  मंगलेश डबराल की दो कविताएं कविता कोश में स्मृति एक और स्मृति दो शीर्षक से दर्ज हैं। उन्होंने लिखा है- खिड़की की सलाखों से बाहर आती हुई लालटेन की रौशनी / पीले फूलों जैसी /हवा में हारमोनियम से उठते प्राचीन स्वर /छोटे-छोटे बारीक बादलों की तरह चमकते हुए /शाम एक गुमसुम बच्ची की तरह छज्जे पर आकर बैठ गई है /जंगल से घास-लकड़ी लेकर आती औरतें आंगन से गुजरती हुईं /अपने नंगे पैरों की थाप छोड़ देती हैं/ इस बीच बहुत-सा समय बीत गया/ कई बारिशें हुईं और सूख गईं/ बार-बार बर्फ गिरी और पिघल गई /पत्थर अपनी जगह से खिसक कर कहीं और चले गए/ वे पेड़ जो आंगन में फल देते थे और ज्यादा ऊंचाइयों पर पहुंच गए/ लोग भी कूच कर गए नई शरणगाहों की ओर /अपने घरों के किवाड़ बंद करते हुए / एक मिटे हुए दृश्य के भीतर से तब भी आती रहती है पीले फूलों जैसी लालटेन की रोशनी/ एक हारमोनियम के बादलों जैसे उठते हुए स्वर/ और आंगन में जंगल से घास-लकड़ी लाती स्त्रियों के पैरों की थाप। वह एक दृश्य था जिसमें एक पुराना घर था /जो बहुत से मनुष्यों के सांस लेने से बना था /उस दृश्य में फूल खिलते तारे चमकते पानी बहता/ और समय किसी पहाड़ी चोटी से धूप की तरह /एक-एक कदम उतरता हुआ दिखाई देता/ अब वहां वह दृश्य नहीं है बल्कि उसका एक खंडहर है /तुम लंबे समय से वहां लौटना चाहते रहे हो जहां उस दृश्य का खंडहर न हो /लेकिन अच्छी तरह जानते हो कि यह संभव नहीं है/ और हर लौटना सिर्फ एक उजड़ी हुई जगह में जाना है /एक अवशेष, एक अतीत और एक इतिहास में /एक दृश्य के अनस्तित्व में/ इसलिए तुम पीछे नहीं बल्कि आगे जाते हो/ अंधेरे में किसी कल्पित उजाले के सहारे रास्ता टटोलते हुए/ किसी दूसरी जगह और किसी दूसरे समय की ओर /स्मृति ही दूसरा समय है जहां सहसा तुम्हें दिख जाता है /वह दृश्य उसका घर जहां लोगों की सांसें भरी हुई होती हैं /और फूल खिलते हैं तारे चमकते हैं पानी बहता है /और धूप एक चोटी से उतरती हुई दिखती है। (लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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Dakhal News 10 December 2020


bhopal, After the water, grain occupies ,e market, be ready ,pay the price

जीवन का मूलभूत अधिकार और कर्तव्य दोनों हैं भोजन… भारतीय संविधान में मूलभूत अधिकार और कर्तव्य दोनों का विस्तार से वर्णन है। आज सत्तर साल बाद देश की जनता और नेता दोनों ही कर्त्तव्यों को लगभग भूल ही गए हैं सिर्फ हमें अधिकार ही याद रहते हैं। अब हम जीवन की बात करते हैं। ये पूरी मानव जाति के लिए है। मूलभूत मतलब सबसे पहले यानि जब हम अस्तित्व में आते हैं। उसके बने रहने के लिए आवश्यक वस्तु। पृथ्वी पर करोड़ों साल के जीवन के विकास के क्रम आज मानव के रूप में सबसे विकसित जीवन के रूप में हम हैं। होमोसैंपियंस से लेकर अभी तक मानव जाति के पास आज तक का सबसे विकसित मस्तिष्क है। आदिमानव की तुलना में आज हमारे पास सबसे परिष्कृत संसाधन मौजूद हैं। कभी ध्यान दिया है कि जीवन की विकट परिस्थितियों में जब जीवन पर ही संकट हो तो कौन सी ऐसी चीजें हैं जिनके सहारे हम बचे रहेंगे। रुपया पैसा, कपड़ा लत्ता, हीरे मोती, घर मकान, घोड़ा गाड़ी, डीजल पेट्रोल, पढ़ाई लिखाई, आधुनिक सुविधाजनक मशीनें या ऐसा कुछ भी। या जल वायु और भोजन। फिर से सोचिए कि अगर अत्याधुनिक विकास से मिले सुविधाजनक सारे संसाधन हों और जल वायु और भोज्य पदार्थ न हों तो जीवन चलेगा क्या? नहीं न। अब सोचिए जल वायु और भोजन हों लेकिन अन्य संसाधन न हों तो जीवन बचेगा क्या? हां बिल्कुल।   तो ये लड़ाई जीवन की इसी मूलभूत आवश्यकता के लिए है। भोजन नहीं होगा तो आप एक आध महीना जी सकते हैं। जल नहीं होगा तो कुछ दिन और वायु नहीं तो कुछ मिनट बस। पृथ्वी पर कुछ लोग अभी भी विश्वविजेता बनने का सपना पाले हैं जैसे इतिहास में समय समय पर कुछ महानुभाव करने की कोशिश करते रहे हैं। वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में किसी भी देश अथवा शासक के लिए ये अब संभव नहीं। महाशक्ति के लिए भी नहीं।   अब पहले जैसे युद्ध भी संभव नहीं। तो इसके लिए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही आर्थिक तौर तरीकों से ये उपक्रम किया जा रहा है। इसके लिए यूएनओ, डब्लूटीओ, डब्लूएचओ, आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाओं के जरिए अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिशें की जा रही हैं। इनके जरिए दुनिया के देशों की सरकारों पर दबाव बनाकर अपनी योजनाओं को लागू करवाने की कवायद चल रही है। इसमें मल्टीनेशनल कंपनियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। जो सभी देशों में कारोबार करने के बहाने घुसी हुई हैं।   जीवन के मूलभूत आवश्यक तत्व पेयजल संसाधनों पर इन कंपनियों का किसी न रूप में कब्जा हो चुका है जहां नहीं है वहां सरकारों के जरिए है। जहां नहीं है वहां करने की लगातार कोशिश हो रही है। गौर करियेगा शहरों में चाहे बोतल बंद पानी हो या नगर निगम की सप्लाई सब हम लोग खरीद ही रहे हैं। गांवों में भी भूमिगत जल लगातार प्रदूषित हो रहा है और वहां भी बोतलों में या पाइप सप्लाई के जरिए कब्जा हो रहा है।   अब बारी है भोजन की। होटल रेस्टोरेंट और पैकेज्ड प्रोसेस्ड फूड पर कब्जा हो चुका है। इनकी आप कीमत देते हैं जिसमें टैक्स शामिल हैं। अब निशाने पर हैं अनाज और फल सब्जी। अभी भी कच्चा अनाज वह फल सब्जी जो पैकेट में मिल रहा है वो अधिक कीमत में है और टैक्स शामिल है। अब खेत खलिहान तक कंपनियां और सरकार पहुंचना चाहती हैं। शुरू में लुभावनी स्कीमों से किसानों को भरमाया जाएगा फिर बाद में जब चंगुल में फंस जाएंगे तो खेत से ही पैकेट में अनाज फल सब्जी आएंगे और आपको मनमानी कीमत में बेचे जाएंगे। इसमें सरकार को टैक्स मिलेगा। यानि जल के बाद ये जीवन की दूसरी बड़ी मूलभूत आवश्यकता के लिए आपको मुंहमांगी कीमत देनी होगी और सरकार को टैक्स जाएगा।   आने वाले दो तीन दशकों में जल पूरी तरह नियंत्रण में होगा और भोजन भी। फिर यदि आप संकर्षण हुए तो आपको जीने के लिए या तो मुंहमांगी कीमत देनी होगी या अक्षम हुए तो आप सरकार के रहमो करम पर होंगे। पोलिटिकल पार्टियां आपको वोट के एवज में अनाज पानी देने के वादे करेंगी जिसका चलन शुरू भी हो गया है।   गनीमत है कि वायु अपनी प्रकृति के कारण इनके नियंत्रण में नहीं। अन्यथा सबसे पहले इसी पर नियंत्रण किया जाता और आप जीने के लिए इनकी गुलामी करने को मजबूर होते। हालांकि इसके भी प्रयास शुरू हैं। आधुनिक विकास के नाम पर वायू को इतना प्रदूषित कर दिया जाएगा कि आपको जीवन के लिए सर्वाधिक आवश्यक तत्व शुद्ध वायु को बोतलों में या अन्य तरीके से खरीदना होगा। संपन्न लोगों के यहां लाखों रुपए कीमत वाले शुद्ध मिनरल्स वाले पानी के प्लांट और शुद्ध अॉक्सीजन के प्लांट लगाने रहे हैं। शुद्ध अनाज फल सब्जी के अरबों रुपए के बाजार सज चुके हैं आर्गेनिक के नाम पर।   ये आप पर है कि इस वास्तविकता को समझें और स्वयं इस पर निर्णय करें कि कम से कम जीवन की मूलभूत आवश्यकता वाले तत्व जल वायु और भोजन कंपनियों और सरकारों के नियंत्रण में नहीं जाने देंगे। अभी जो लोग किसी भी विचारधारा या भावना से प्रेरित हों वो अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए जरूर सोचें क्योंकि वर्तमान परिस्थितियों में हम प्रौढ़ लोग कितना जीयेंगे बीस तीस साल वो भी कैसे ये भविष्य के गर्त में है लेकिन बीस तीस साल बाद हमारे बच्चों लिए जीवन का गंभीर संकट खड़ा होने वाला है और तब आने वाली पीढ़ी हमें हमारी मूर्खता के लिए माफ नहीं करेगी। जीवन की मूलभूत आवश्यकता के अपने अधिकार और इस पाने के लिए अपने कर्त्तव्य के पालन से मत चूकिए। लेखक राजीव तिवारी बाबा आध्यात्मिक चिंतक और सरोकारी पत्रकार हैं

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Dakhal News 9 December 2020


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असद ज़ैदी- मंगलेश डबराल के ताज़ा हाल को जानने की दोस्तों की ख़्वाहिश के सिलसिले में यह पोस्ट लिखता हूं। उनकी स्थिति को डॉक्टर गंभीर लेकिन स्थिर (‘critical but stable’) बता रहे हैं। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है। चिकित्सा की भाषा में फेफड़ों को नुक़सान पहुंचाने वाली उनकी व्याधि को कोरोना-प्रेरित ARDS (Corona induced acute respiratory distress syndrome) कहा गया है। सभी स्रोतों से मिली जानकारी और अपनी समझ से मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि AIIMS में प्रिय कवि के उपचार में पूरा ध्यान, जानकारी और समझदारी बरती जा रही है। कोशिश में कोई कमी नहीं है। उनके आत्मीयजन और क़रीबी लोग इस बात से भी वाक़िफ़ हैं कि हज़ारों हाथ मंगलेश के लिए दुआ में उठे हैं और असंख्य लोगों के दिलों में उनके लिए जगह है। कविवर तक भी इसकी भनक पहुंची थी और इससे उन्हें बल मिला।

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Dakhal News 7 December 2020


bhopal,Rahul Gandhi ,will not be able, meet you

अपूर्व भारद्वाज- पेट्रोल के भाव 100 को छूने जा रहे है गैस सिलेंडर के भाव दिनोदिन बढ़ते जा रहे है महँगाई अपने चरम पर है लेकिन क्या आपने कांग्रेस के किसी वरिष्ठ नेता को सिलेंडर लेकर या बैलगाड़ी के साथ सड़को पर प्रदर्शन करते देखा है नहीं ना..तो फिर आगे पढ़िए… कोरोना काल के दौरान निजी अस्पताल और चेरिटेबल हास्पिटल ने भारत की जनता को खूब लुटा सामान्य ओपीडी की फीस में 200 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है यह मैं नही कह रहा हूँ भारत सरकार की रिपोर्ट कह रही है लेकिन क्या आपने किसी वरिष्ठ कांग्रेसी को इन अस्पतालों के सामने धरना देते हुए देखा है क्या??..नहीं ना..तो फिर आगे पढिये… किसानों का आंदोलन अपने चरम पर है काले कानून को लेकर किसान सड़को पर है क्या आपने राहुल गाँधी या किसी और बड़े नेता को सड़कों पर बैठकर किसानों का साथ देते हुए देखा है क्या ?? नही ना.. तो फिर आगे पढिये… बीजेपी (जनसंघ) लगभग 60 साल से विपक्ष की राजनीति कर चुकी है इसलिए उनसे बेहतर विपक्ष की राजनीति इस देश मे क्या पूरे विश्व मे कोई नही कर सकता है क्या आपने इन 6 सालो में ट्विटर औऱ फेसबुक को छोड़कर कांग्रेसियों को असली विपक्ष की राजनीति करते हुए देखा है?? नही ना.. तो फिर आखरी पैरा जरूर पढिये.. मैं पिछले 10 दिनों से महाराष्ट्र में था बहुत से किसानों से बातचीत की एक गाँव मे किसान बिल के नुकसान समझाए..कुछ किसान तो इसे फायदे का सौदा समझ रहे थे लेकिन मैंने समझाया तो वो समझे भी और तो और अपने सरपंच तक को बुला लाए मैंने उन्हें केवल 1 घँटे में हर बात समझा दी वो बोले यह तो एक तरह की गुलामी है इससे तो रही सही किसानी समाप्त हो जायेगी यह बात इतनी आसानी से हमे लोकल एनसीपी, कांग्रेसी कार्यकर्ता क्यो नही समझाते .. राहुल चाहते तो एक फोन से शरद पंवार को इसके लिए समझा सकते थे शरद पंवार की सहकारी संस्थाओं का जाल पूरे महाराष्ट्र में है वो लोग मुझसे बेहतर किसानों को समझते है राहुल चाहते तो महाराष्ट्र का किसान, पंजाब और हरियाणा के किसानों के साथ खड़ा होता… और यह सरकार अभी तक घुटनों पर होती और काले कानून वापिस हो चुके होते.. अगर आप अब भी कांग्रेस की लगातार हार की वजह नही समझ रहे है तो अब आगे मत पढिये ..क्योंकि मेरे पास लिखने लायक कुछ नही बचा है मेरे पास केवल शून्य है जिसमें देर सबेर कांग्रेस को विलीन हो जाना है…

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Dakhal News 7 December 2020


bhopal,Defamation proceedings, against the activist ,who published , news in newspaper

शशिकांत सिंह- कोई ठीकठाक वकील करने के बाद सुप्रीम कोर्ट तक जाने की अगर आपकी औकात है तो आप न्याय पा सकते हैं. निचली अदालतों के अन्याय से राहत सुप्रीम कोर्ट ही दे सकता है लेकिन सुप्रीम कोर्ट पहुंचना सबके वश की बात नहीं है. पर एक एक्टिविस्ट को सौभाग्य से एक ठीकठाक वकील मिल गए और लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक ले गए तो इनको फौरन राहत मिल गई.   सुप्रीम कोर्ट ने एक्टिविस्ट के खिलाफ मानहानि की कार्रवाई पर रोक लगा दी है. एक्टिविस्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने अनावेदकों को भी नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया है. इसके लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है. कहानी होशंगाबाद निवासी एक्टिविस्ट संजय कुमार की है. इनके मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और न्यायाधीश कृष्ण मुरारी की बेंच के समक्ष हुई. एक्टिविस्ट संजय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एसके गंगेले पेश हुए. गंगेले साहब हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति हैं. गंगेले ने मजबूती से संजय का पक्ष रखा. सीनियर वकील एसके गंगेले ने ने दलील दी कि अपीलेट कोर्ट के आदेश को बहाल रखने वाला हाई कोर्ट का आदेश चुनौती के योग्य है. एक वकील और व्यवसायी के बीच हुए झगड़े की खबर अखबारों तक पहुंचाना कोई जुर्म नहीं था. एक्टिविस्ट ने खबर अखबार तक पहुंचाने में सूत्र की भूमिका निभाई थी. ऐसा करना गलत नहीं है. यह एक समृद्ध परम्परा है. ऐसा करके एक्टिविस्ट ने वकील की कोई मानहानि नहीं की है. लिहाजा, याचिकाकर्ता एक्टिविस्ट के खिलाफ मानहानि की कार्रवाई पर रोक अपेक्षित है. हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता एक्टिविस्ट संजय कुमार का पक्ष रखने वाले अधिवक्ता मोहनलाल शर्मा ने अवगत कराया कि वकील के परिवाद को अदालत ने खारिज कर दिया था. इसके बाद उसकी ओर से अपील दायर की गई. अपीलेट कोर्ट ने एक्टिविस्ट संजय से माफी मांगने के लिए कहा. लेकिन एक्टिविस्ट ने माफी नहीं मांगी. इसीलिए अपीलेट कोर्ट ने उसके खिलाफ मानहानि की कार्रवाई का आदेश पारित कर दिया. इसके खिलाफ हाई कोर्ट आने पर राहत नहीं मिली. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने प्रथमद्रष्टया मामला दुर्भावना का पाया. इसी के साथ स्थगनादेश पारित कर दिया.

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Dakhal News 30 November 2020


bhopal, Trump can ,bomb Iran ,on the go!

–डॉ. वेदप्रताप वैदिक– ईरान और बाइडन की दुविधा… ईरान के परमाणु-वैज्ञानिक मोहसिन फख्रीजाद की हत्या एक ऐसी घटना है, जो ईरान-इस्राइल संबंधों में तो भयंकर तनाव पैदा करेगी ही, यह बाइडन-प्रशासन के रवैए को भी प्रभावित कर सकती है। फख्रीजाद ईरान के परमाणु-बम कार्यक्रम के अग्रगण्य वैज्ञानिक थे। उनका नाम लेकर इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने उन्हें काफी खतरनाक आदमी बताया था। ईरानी सरकार का दावा है कि तेहरान के पास आबसर्द नाम के गांव में इस वैज्ञानिक की हत्या इस्राइली जासूसों ने की है।   इसके पहले इसी साल जनवरी में बगदाद में ईरान के लोकप्रिय जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या अमेरिकी फौजियों ने कर दी थी। ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनई ने कहा है कि ईरान इस हत्या का बदला लेकर रहेगा। यों भी पिछले 10 साल में ईरान के छह वैज्ञानिकों की हत्या हुई है। उसमें इस्राइल का हाथ बताया गया था। हत्या की इस ताजा वारदात में अमेरिका का भी हाथ बताया जा रहा है, क्योंकि ट्रंप के विदेश मंत्री माइक पोंपिओ पिछले हफ्ते ही इस्राइल गए थे और वहां उन्होंने सउदी सुल्तान और नेतन्याहू के साथ भेंट की थी। ईरानी सरकार को शंका है कि ट्रंप-प्रशासन अगली 20 जनवरी को सत्ता छोड़ने के पहले कुछ ऐसी तिकड़म कर देना चाहता है, जिसके कारण बाइडेन-प्रशासन चाहते हुए भी ईरान के साथ तोड़े गए परमाणु समझौते को पुनर्जीवित न कर सके। ओबामा-प्रशासन और यूरोपीय देशों ने ईरान के साथ जो परमाणु समझौता किया था, उसे ट्रंप ने भंग कर दिया था और ईरान पर से हटे प्रतिबंध को दुबारा थोप दिया था। अब ईरान गुस्से में आकर यदि अमेरिका के किसी बड़े शहर में कोई जबर्दस्त हिंसा करवा देता है तो बाइडन-प्रशासन को ईरान से दूरी बनाए रखना उसकी मजबूरी होगी। यह दुविधा ईरानी नेता अच्छी तरह समझ रहे होंगे। यह तो गनीमत है कि ट्रंप ने अपनी घोषणा के मुताबिक अभी तक ईरान पर बम नहीं बरसाए हैं। अपनी हार के बावजूद हीरो बनने के फेर में यदि ट्रंप ईरान पर जाते-जाते हमला बोल दें तो कोई आश्चर्य नहीं है। वैसे भी उन्होंने पश्चिम एशिया के ईरान-विरोधी राष्ट्रों इस्राइल, सउदी अरब, जोर्डन, यूएई और बहरीन आदि को एक जाजम पर बिठाने में सफलता अर्जित की है। बाइडन-प्रशासन की दुविधा यह है कि वह इस इस्राइली हमले की खुली भर्त्सना नहीं कर सकता लेकिन वह किसी को भी दोष दिए बिना इस हत्या की निंदा तो कर ही सकता है। ईरान और बाइडन-प्रशासन को इस मुद्दे पर फूंक-फूंककर कदम रखना होगा।

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Dakhal News 30 November 2020


bhopal,Watchmen allowed, local train, but not ,media persons

-शशिकांत सिंह- महाराष्ट्र में मीडियाकर्मियों को लोकल ट्रेन में जाने की इजाजत नहीं है। लोकल ट्रेन में सिर्फ उन्हीं पत्रकारों को यात्रा की इजाजत है जो मंत्रालय से मान्यता प्राप्त हैं। अब जाहिर सी बात है कि मान्यता ज्यादातर उन्ही पत्रकारों को मिलता है जो पोलिटिकल बीट कवर करते हैं। इनकी संख्या नाम मात्र है। महाराष्ट्र में उन पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की संख्या ज्यादा है जो क्राइम बीट, इंटरटेनमेंट बीट, सोशल तथा अन्य बीट को कवर करते हैं। इन्हें लोकल ट्रेन में यात्रा की इजाजत नहीं है। यहां तक कि जो रेलवे बीट को कवर करते हैं खुद उन्हें भी लोकल ट्रेन में जाने की इजाजत नहीं है। न्यूज़ पेपर प्रिंटिंग, इलेक्ट्रॉनिक टीवी, वेब न्यूज़ के मीडियाकर्मियों और इनसे जुड़े ज्यादातर पत्रकारों को लोकल ट्रेन में यात्रा की इजाजत नहीं है।  लोकल ट्रेन में वाचमैनों को यूनिफार्म पहनकर यात्रा की इजाजत है। वाचमैनों को लोकल में यात्रा के लिए आईकार्ड दिखाकर सीजन टिकट या नार्मल टिकट भी आसानी से मिल जा रहा है लेकिन बिना मान्यता प्राप्त पत्रकारों को लोकल का टिकट देने की जगह काउंटर पर बैठने वालों से जलालत झेलनी पड़ रही है। वाचमैनों के अलावा बैंकों के कर्मचारी और बैंकों के बाहर खड़े होकर क्रेडिट कार्ड बेचने वालों को भी लोकल में जाने की इजाजत है। सरकारी कर्मचारी, स्कूल कर्मचारी, मनपा कर्मचारी, अस्पताल कर्मचारी सबको लोकल ट्रेन में जाने की इजाजत है और इन्हें आवश्यक सेवा में माना जाता है लेकिन महाराष्ट्र के मीडियाकर्मियों को आवश्यक सेवा में शामिल नहीं माना जा रहा है। अचरज की बात यह है कि महाराष्ट्र में दर्जनों पत्रकार संगठन हैं लेकिन ज्यादातर इस मामले पर चुप हैं। एक दो संगठन ने इस मुद्दे पर लेटरबाजी और ट्वीट भी राज्य सरकार व रेलमंत्री को किया लेकिन न राज्य सरकार उनकी सुन रही है न रेल मंत्रालय। रेलवे के ज्यादातर पीआरओ की हालत है कि रेलवे के किसी बड़े अधिकारी की पत्नी किसी कार्यक्रम का फीता काटेंगी तो वो खबर भेज देंगे लेकिन सभी मीडियाकर्मियों को लोकल ट्रेन में जाने की इजाजत कब मिलेगी इस पर उनका कहना होता है कि यह सब राज्य सरकार को तय करना है कि सभी मीडियाकर्मियों को लोकल में कब से यात्रा की अनुमति मिलेगी। लोकल में यात्रा की अनुमति न मिलने से अधिकांश मीडियाकर्मी बेचारे सैकड़ों रुपये और 5 से 6 घंटे बर्बाद कर कार्यालय जाने को मजबूर होते हैं। राज्य सरकार और रेल मंत्रालय से निवेदन है कि इस ओर जल्द ध्यान दें। शशिकांत सिंह वॉइस प्रेसिडेंटन्यूज़ पेपर एम्प्लॉयज यूनियन ऑफ इंडिया

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Dakhal News 24 November 2020


bhopal,Journalism being ,done keeping ,TRP ratings, Javadekar

आईआईएमसी के 2020-21 शैक्षणिक सत्र का शुभारंभ नई दिल्ली । भारतीय जन संचार संस्थान के शैक्षणिक सत्र 2020-21 का सोमवार को ऑनलाइन माध्यम से उद्घाटन करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने पत्रकारिता के छात्रों को सलाह दी कि वे अनावश्यक सनसनी और टीआरपी केंद्रित पत्रकारिता के जाल में फंसने की बजाय, स्वस्थ पत्रकारिता के गुर सीखें और समाज में जो कुछ अच्छा काम हो रहा है उसे भी समाचार मानकर लोगों तक पहुंचाएं। उन्होंने यह भी कहा कि डिजिटल तकनीक के माध्यम से शिक्षा में हो रहे व्यापक बदलाव का हम सभी को स्वागत करना चाहिए और उसका भरपूर लाभ उठाना चाहिए। इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी, अपर महानिदेशक श्री के. सतीश नम्बूदिरिपाड सहित आईआईएमसी के सभी केंद्रों के संकाय सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। श्री जावड़ेकर ने कहा कि पत्रकारिता एक जिम्मेदारी है, दुरुपयोग का साधन नहीं। आपकी स्टोरी में यदि दम है, तो उसके लिए किसी नाटक अथवा सनसनी की जरुरत नहीं है। समाज में अच्छी खबरें इतनी हैं, परन्तु दुर्भाग्य से उन्हें कोई दिखाता नहीं है। रचनात्मक पत्रकारिता को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि जब से सरकार ने खाद की नीम कोटिंग शुरू की, तब से खाद की कालाबाजारी रुकी है। रेलवे का कोई गेट अब ‘अनमैन’ नहीं रहा, इसलिए दुर्घटनाएं बंद हो गई हैं। स्वच्छता की दृष्टि से भी रेलवे में बहुत सुधार हुआ है। पांच हजार रेलवे स्टेशन आज वाई-फाई से जुड़े हैं। करीब 100 नए एयरपोर्ट देश में शुरू हुए हैं, जिनका लाभ लाखों लोग ले रहे हैं। क्या ये सभी खबरें नहीं हैं? करीब दो लाख गांवों तक फाइबर कनेक्टिविटी पहुंची है, जिससे वहां के जीवन में बदलाव आया है। फ्री डिश के माध्यम से अब 104 चैनल और 50 एजुकेशनल चैनल निशुल्क देखे जा सकते हैं। देश में 300 कम्युनिटी रेडियो स्टेशन चल रहे हैं। कभी जाकर देखिए इनसे कितने स्थानीय कलाकारों को अवसर मिल रहा है और उनसे समाज जीवन में कैसा बदलाव आया है। ढाई करोड़ लोगों को प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना में मकान मिले हैं, बारह करोड़ लोगों को टॉयलेट्स मिले हैं, उज्ज्वला योजना में गैस कनेक्शन मिले हैं, चालीस करोड़ लोगों के बैंक खाते खुले हैं, पचास करोड़ लोगों को पांच लाख रुपए तक के मुफ्त इलाज की सुविधा मिली है। क्या ये सब खबरें नहीं हैं? ‘हर घर नल से जल’ का सपना अब आजादी के 70 साल बाद पूरा होने जा रहा है। प्रत्येक गांव में बिजली पहुंच चुकी है। आज चार—पांच सौ योजनाओं की सब्सिडी और मदद लोगों को डीबीटी के माध्यम से सीधे मिल रही है। इससे एक लाख 75 हजार रुपए की चोरी रुकी है। क्या ये न्यूज नहीं है? दूसरी घटनाएं भी न्यूज हैं, परन्तु ये भी न्यूज है, यह हमें समझना चाहिए। समाज को आगे बढाने की दिशा में योगदान ही पत्रकारिता का धर्म है। श्री जावड़ेकर ने कहा कि पत्रकारिता का पहला मंत्र यह है कि जीवन के सभी क्षेत्रों में लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाली सारी घटनाएं खबर हैं, जो ठीक से लोगों तक पहुंचानी हैं। मीडिया की आजादी लोकतंत्र का महत्वपूर्ण आयाम है। इसे संभालकर रखना है। परंतु यह आजादी जिम्मेदारी के साथ आती है। इसलिए हम सभी को जिम्मेदार भी होना है। पत्रकार के रूप में आप सभी पक्ष-विपक्ष को सुनें, परंतु समाज को अच्छी दिशा में ले जाने के लिए ही हमारी पत्रकारिता काम करें। टीआरपी रेटिंग को ध्यान में रखकर जो पत्रकारिता हो रही है, वह सही रास्ता नहीं है। 50 हजार घरों में लगा मीटर 22 करोड़ दर्शकों की राय नहीं हो सकता। हम इसका दायरा बढाएंगे, ताकि इस बात का पता चल सके कि सही मायने में लोग क्या देखते हैं और क्या देखना चाहते हैं। इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि एक शिक्षक के लिए उसके विद्यार्थियों से प्रिय कोई चीज नहीं होती। विद्यार्थियों की सफलता ही किसी संस्थान, उसके शिक्षकों और उसके प्रबंधकों की सफलता है। हमारी पूरी कोशिश है कि हम विद्यार्थियों को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान कर सकें। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि हम चाहते हैं कि दुनिया के सफलतम लोगों से हमारे विद्यार्थी संवाद कर पाएं। उनसे वह गुण और जिजीविषा सीख पाएं, जिससे कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में नेतृत्वकारी भूमिका में आता है। सिर्फ पत्रकार तैयार करना हमारा लक्ष्य नहीं है, हम चाहते हैं कि हम ग्लोबल लीडर्स पैदा करें, जो आने वाले दस वर्षों में पत्रकारिता और जनसंचार की दुनिया में सबसे बड़े और वैश्विक स्तर के नाम बनें। सत्रारंभ के प्रथम दिन अपर महानिदेशक श्री के. सतीश नम्बूदिरिपाड ने विद्यार्थियों को आईआईएमसी के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इसके बाद सभी संकाय सदस्यों का विद्यार्थियों से परिचय हुआ। कार्यक्रम का संचालन प्रो. सुरभि दहिया ने किया।

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Dakhal News 24 November 2020


bhopal,IIMC session, begins from Monday, Prakash Javadekar will start

23 नवंबर से 27 नवंबर तक आयोजित होगा कार्यक्रम नई दिल्ली, 20 नवंबर । भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) का सत्रारंभ समारोह 23 नवंबर से 27 नवंबर तक आयोजित किया जाएगा। कार्यक्रम का शुभारंभ सोमवार, 23 नवंबर को सुबह 10.30 बजे केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर करेंगे। कोरोना के कारण इस वर्ष पांच दिवसीय सत्रारंभ समारोह ऑनलाइन आयोजित किया जा रहा है। आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने बताया कि इस पांच दिवसीय आयोजन में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री श्री वी. मुरलीधरन, प्रसिद्ध फिल्म निर्माता श्री सुभाष घई, रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के मीडिया निदेशक एवं प्रेसीडेंट श्री उमेश उपाध्याय, पटकथा लेखक और स्तंभकार सुश्री अद्धैता काला, दूरदर्शन के महानिदेशक श्री मयंक अग्रवाल, हांगकांग बैपटिस्ट यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर दया थुस्सु, अमेरिका की हार्टफर्ड यूनिसर्विटी के प्रोफेसर संदीप मुप्पिदी जैसी जानी-मानी हस्तियां नए विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करेंगी। इसके अलावा हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादक श्री सुकुमार रंगनाथन, एक्सचेंज फॉर मीडिया ग्रुप के फाउंडर डॉ. अनुराग बत्रा, ऑर्गेनाइजर के संपादक श्री प्रफुल्ल केतकर, गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा, सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज, चेन्नई के निदेशक डॉ. जे.के. बजाज, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रो. सिद्धार्थ शेखर सिंह, उद्यमी आदित्य झा, माइक्रोसॉफ्ट इंडिया के डायरेक्टर, लोकेलाइजेशन श्री बालेंदु शर्मा दाधीच, गुडऐज़ के प्रमोटर श्री माधवेंद्र पुरी दास, रिलायंस के कम्युनिकेशन चीफ श्री रोहित बंसल, ईयरशॉट डॉट इन के फाउंडर श्री अभिजीत मजूमदार, न्यूज़जेप्ल्स के फाउंडर श्री शलभ उपाध्याय, एसोसिएटेड प्रेस टीवी की साउथ एशिया हेड सुश्री विनीता दीपक एवं नेटवर्क 18 के मैनेजिंग एडिटर श्री ब्रजेश सिंह भी समारोह में हिस्सा लेंगे। कार्यक्रम के समापन सत्र में आईआईएमसी के पूर्व छात्र नए विद्यार्थियों से रूबरू होंगे। इन पूर्व छात्रों में आज तक के न्यूज़ डायरेक्टर श्री सुप्रिय प्रसाद, न्यूज़ नेशन के कंसल्टिंग एडिटर श्री दीपक चौरसिया एवं कौन बनेगा करोड़पति के इस सीज़न की पहली करोड़पति श्रीमती नाज़िया नसीम शामिल हैं। कार्यक्रम का प्रसारण आईआईएमसी के फेसबुक पेज पर किया जाएगा। भारतीय जन संचार संस्थान अपने नए विद्यार्थियों के स्वागत और उन्हें मीडिया, जनसंचार, विज्ञापन एवं जनसंपर्क के क्षेत्र में करियर हेतु मार्गदर्शन दिलाने के लिए प्रतिवर्ष सत्रारंभ कार्यक्रम का आयोजन करता है।

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Dakhal News 20 November 2020


bhopal, New Board , News Broadcasters Association, formed, see list

सैटेलाइट न्यूज चैनल चलाने वालों की संस्था न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन उर्फ एनबीए का नया बोर्ड गठित कर दिया गया है. इंडिया टीवी के मालिक रजत शर्मा को सर्वसम्मति से एनबीए का चेयरमैन और न्यूज24 की मालकिन अनुराधा प्रसाद को वाइस प्रेसीडेंट बनाया गया है. टाइम्स नेटवर्क के सीईओ एमके आनंद कोषाध्यक्ष बनाए गए. एनबीए बोर्ड में अविनाश पांडेय (सीईओ एबीपी नेटवर्क), राहुल जोशी (एमडी, टीवी18 ब्रॉडकास्ट), कली पुरी (एमडी, टीवी टुडे नेटवर्क), सोनिया सिंह (एडिटोरियल डायरेक्टर-एनडीटीवी), सुधीर चौधरी (सीईओ-क्लस्टर1-जी मीडिया), आई वेंकट (डायरेक्टर-इनाडु टेलिविजन), एमवी श्रेयम्स कुमार (एमडी, मातृभूमि प्रिंटिंग एंड पब्लिशिंग)

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Dakhal News 20 November 2020


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सैटेलाइट न्यूज चैनल चलाने वालों की संस्था न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन उर्फ एनबीए का नया बोर्ड गठित कर दिया गया है. इंडिया टीवी के मालिक रजत शर्मा को सर्वसम्मति से एनबीए का चेयरमैन और न्यूज24 की मालकिन अनुराधा प्रसाद को वाइस प्रेसीडेंट बनाया गया है. टाइम्स नेटवर्क के सीईओ एमके आनंद कोषाध्यक्ष बनाए गए. एनबीए बोर्ड में अविनाश पांडेय (सीईओ एबीपी नेटवर्क), राहुल जोशी (एमडी, टीवी18 ब्रॉडकास्ट), कली पुरी (एमडी, टीवी टुडे नेटवर्क), सोनिया सिंह (एडिटोरियल डायरेक्टर-एनडीटीवी), सुधीर चौधरी (सीईओ-क्लस्टर1-जी मीडिया), आई वेंकट (डायरेक्टर-इनाडु टेलिविजन), एमवी श्रेयम्स कुमार (एमडी, मातृभूमि प्रिंटिंग एंड पब्लिशिंग)

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Dakhal News 20 November 2020


bhopal, Dainik Bhaskar, created history, appointing female resident editor

-अभिषेक उपाध्याय- ये हमारे वक़्त की सबसे शानदार खबर है। हमारी प्यारी दोस्त उपमिता वाजपेयी उपमिता दैनिक भास्कर की पहली महिला रेजिडेंट एडिटर (भोपाल एडिशन) नियुक्त हुई है। उपमिता अद्भुत फील्ड रिपोर्टर रही है। हर चैलेंजिंग असाइनमेंट पर टकराती रही है। डिफेंस की ऐसी शानदार रिपोर्टर आपको ढूंढे नही मिलेगी। आपको इस फील्ड में महिला संपादक भी ढूंढे नही मिलेगी। उपमिता ने आज अद्भुत लकीर खींची है। इस लकीर की उम्र दराज़ हो। -पूनम कौशल- मैंने एक लंबे अंतराल के बाद पत्रकारिता में वापसी की. बीच में फ्रीलांस करती रही थी. एक महिला के लिए दोबारा रेगुलर जॉब में आना मुश्किल होता है. ब्रेक के बाद पहली नौकरी में कुछ मुश्किलें देखी भीं. फिर दैनिक भास्कर से जुड़ी. यहां उपमिता वाजपेयी मेरी रिपोर्टिंग मैनेजर रहीं. उन्होंने मेरे लिए इस मुश्किल जॉब को बेहद आसान कर दिया. कोविड के इस मुश्किल वक्त में उन्होंने हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया कि काम के साथ-साथ मैं अपने बच्चों पर भी पूरा ध्यान दूं. कभी लगा ही नहीं वो बॉस है, हमेशा यही लगा कि मेरी एक फैमिली मेंबर हैं जिनसे बेझिझक कुछ भी कह सकती हूं. अभी पता चला है कि वो अब भोपाल में दैनिक भास्कर की पहली महिला रेज़िडेंट एडिटर होंगी. उपमिता एक शानदार डिफेंस रिपोर्टर रही हैं. एक रीचएबल मैनेजर तो वो है हीं. लेकिन अब दैनिक भास्कर की रेज़िडेंट ए़डिटर बनकर उन्होंने बहुत लंबी लकीर खींच दी है. ये पत्रकारिता में सक्रिय हम जैसी लड़कियों के लिए बड़ा दिन है. उम्मीद है Upmita Vajpai Mishra का यही जज़्बा और जुझारूपन बरकरार रहेगा. This is just a beginning. A long Journey Awaits ♥️

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Dakhal News 18 November 2020


bhopal, Dainik Bhaskar, created history, appointing female resident editor

-अभिषेक उपाध्याय- ये हमारे वक़्त की सबसे शानदार खबर है। हमारी प्यारी दोस्त उपमिता वाजपेयी उपमिता दैनिक भास्कर की पहली महिला रेजिडेंट एडिटर (भोपाल एडिशन) नियुक्त हुई है। उपमिता अद्भुत फील्ड रिपोर्टर रही है। हर चैलेंजिंग असाइनमेंट पर टकराती रही है। डिफेंस की ऐसी शानदार रिपोर्टर आपको ढूंढे नही मिलेगी। आपको इस फील्ड में महिला संपादक भी ढूंढे नही मिलेगी। उपमिता ने आज अद्भुत लकीर खींची है। इस लकीर की उम्र दराज़ हो। -पूनम कौशल- मैंने एक लंबे अंतराल के बाद पत्रकारिता में वापसी की. बीच में फ्रीलांस करती रही थी. एक महिला के लिए दोबारा रेगुलर जॉब में आना मुश्किल होता है. ब्रेक के बाद पहली नौकरी में कुछ मुश्किलें देखी भीं. फिर दैनिक भास्कर से जुड़ी. यहां उपमिता वाजपेयी मेरी रिपोर्टिंग मैनेजर रहीं. उन्होंने मेरे लिए इस मुश्किल जॉब को बेहद आसान कर दिया. कोविड के इस मुश्किल वक्त में उन्होंने हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया कि काम के साथ-साथ मैं अपने बच्चों पर भी पूरा ध्यान दूं. कभी लगा ही नहीं वो बॉस है, हमेशा यही लगा कि मेरी एक फैमिली मेंबर हैं जिनसे बेझिझक कुछ भी कह सकती हूं. अभी पता चला है कि वो अब भोपाल में दैनिक भास्कर की पहली महिला रेज़िडेंट एडिटर होंगी. उपमिता एक शानदार डिफेंस रिपोर्टर रही हैं. एक रीचएबल मैनेजर तो वो है हीं. लेकिन अब दैनिक भास्कर की रेज़िडेंट ए़डिटर बनकर उन्होंने बहुत लंबी लकीर खींच दी है. ये पत्रकारिता में सक्रिय हम जैसी लड़कियों के लिए बड़ा दिन है. उम्मीद है Upmita Vajpai Mishra का यही जज़्बा और जुझारूपन बरकरार रहेगा. This is just a beginning. A long Journey Awaits ♥️

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Dakhal News 18 November 2020


bhopal,When I got stuck in Shashishekhar

–Yograj Singh–   शशिशेखर ने हिन्दुस्तान को बर्बाद कर दिया, इसे फिर से खड़ा करने में 10 साल और लगेंगे   भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं है, यह कहावत चरितार्थ जरूर होती है। सन् 2000 की बात है, दैनिक जागरण से हिन्दुस्तान में छलांग लगाई। वहां पहुंचने का रास्ता भी बेढंगा ही है, अजय जी ने संदेश भिजवाया कि हमसे आकर मिलो। उनसे एक-दो बार मिला भी, पर इसी बीच केवल तिवारी ने कहा कि वहां तो लंबा समय लगेगा, आपको मैं संतोष तिवारी से मिलवाता हूं। संतोष तिवारी से मिला और एक हफ्ते में ऑफर दे दिया गया। उस समय हिन्दुस्तान अखबार लॉटरी वाला माना जाता था। 24 साल की उम्र थी, समझ सकते हैं कि काम करने का कितना उत्साह रहा होगा। दिल्ली में चार सेंटर खोले गए थे। हमें पूर्वी दिल्ली में काम करने के लिए बोला गया। पूर्वी दिल्ली में हालात यह थे कि कुछ रिपोर्टरों की खबर खुद ही लिखनी पड़ती थी और खबर कम पड़ने पर अपना खोजी दिमाग इस्तेमाल करके पेज को पूरा करते थे। कभी-कभार चारों सेंटर का काम भी हमारे पास ही आ जाता। मैं अधिक दिन सेंटर पर नहीं टिक सका, मेरा बुलावा हिन्दुस्तान टाइम्स हाउस के लिए आ गया। उन दिनों वहां की यूनियन बहुत मजबूत थी, किसी को बैठने नहीं देते थे। मेरे जाने पर हालांकि किसी ने कोई विरोध नहीं किया। पुराने सभी दिग्गज लोग थे, मुझे बहुत प्यार करते थे। 12-14 पेज का अखबार उन दिनों निकलता था, उसमें से 10-11 पेज पर मेरा ही काम होता था। हेडिंग लगाना, खबर को काटना, पेज को तैयार करना होता था। हिन्दुस्तान टाइम्स कमाता था, हिन्दुस्तान खाता था, इस तरह की कानाफूसी हुआ करती थी, इससे काम करने की ललक और बलवती हो जाती थी, मकसद सिर्फ एक था कि हिन्दुस्तान क्यों नहीं कमा सकता।   प्रमोद जोशी जी उन दिनों संपादक रात्रि थे, हालांकि उस समय उनके अनुभव का उपयोग बहुत कम ही होता था। उनकी उतनी चलती नहीं थी। लेकिन हम सबकी सुनते थे, कांट्रेक्ट और वेज बोर्ड के बीच एक माध्यम थे। धीरे-धीरे वेज बोर्ड के बहुत सारे लोग सेवानिवृत्त हुए, अधिकांश लोगों ने स्वैच्छिक रिटायरमेंट भी ले लिया। नए लोग आने शुरू हुए, अखबार का रंग-रूप बदला, जिसमें एक अहम कड़ी के रूप में मैं शामिल रहा, लेकिन दिखाने के लिए नहीं, काम को जमीन पर उतारने के लिए। अखबार भी कमाऊ बन गया। मृणाल जी संपादक थीं, प्रमोद जोशी अब अखबार की रीढ़ बन चुके थे। लेकिन इस बीच कुछ गडबड़ियां भी हुईं। जिन लोगों की बदौलत अखबार निरंतर बढ़ रहा था, उन्हें मजबूत नहीं किया गया, बाहर के लोगों को लाकर अनाप-शनाप पैसे दिए जाने लगे। आगरा, मेरठ, देहरादून संस्करण की शुरुआत हुई। दिल्ली-एनसीआर संस्करण के अलावा इन संस्करणों के लिए भी बहुत कार्य किया। कुछ समय पश्चात मृणाल जी के जाने की खबरें सुनाई देने लगी और एक दिन उन्हें प्रथम तल से नीचे छोड़ने के बाद मन बहुत खिन्न हुआ। सैलरी तो हमें बहुत नहीं मिलती थी, लेकिन मृणाल जी जो सम्मान करती थी, उसी सम्मान के लिए हम जी-जान से काम करते थे।   शशिशेखर आ गया, लोग कहते थे कि यह काम करने वाले लोगों को पसंद करता है। पर मेरा शशिशेखर के साथ का जो अनुभव है, उसके मुताबिक वह जो बात करता है, उसके ठीक उलटा काम करता है। हिन्दुस्तान टाइम्स ही नहीं, पूरी प्रिंट मीडिया में अभी भी कोई बराबरी करने को तैयार हो तो मैं उससे प्रतियोगिता करने को तैयार हूं। शशिशेखर ने जब देखा कि संस्करण टाइम पर नहीं जा रहा है तो उसने मुझे बुलाकर कुछ लॉलीपॉप दिया और मैं उसके लॉलीपॉप में फंस गया। जी तोड़ मेहनत करके सभी संस्करणों को टाइम पर छुड़वा देता था। तमाम साथियों के साथ प्रदीप तिवारी और पवनेश कौशिक इसके साक्षी हैं। लेकिन जब इनकिरीमेंट की बारी आई तो मेरा पैसा सबसे कम बढ़ा। स्वभाव के मुताबिक मैं गुस्से में आ गया और पत्र लेकर शशिशेखर के चेम्बर में चला गया। वहां गुस्से में कुछ बातें भी कहीं, लेकिन उसने और कुछ न कहने की बजाय सिर्फ यह बोला कि योगराज जी हमसे चूक हुई है, हम इसमें सुधार करेंगे। मैं चला आया, उसके बाद काफी दिन तक इंतजार किया, लेकिन सुधार तो नहीं हुआ। इसके बाद शशिशेखर ने ड्रामे की शुरुआत की, जब वह हटा पाने में नाकामयाब रहा तो उसने मेरा ट्रांसफर भागलपुर कर दिया। मैं भागलपुर चला भी जाता, लेकिन मैं ठहरा स्वाभिमानी आदमी। मैंने कुछ समय पश्चात सीधे एच.आर. को अपना त्याग पत्र दे आया।   आप सोच रहे होंगे इतनी लंबी कहानी बताने का क्या अर्थ है? दरअसल इतनी मेहनत जिस अखबार के लिए की हो, जिस अखबार को अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय दिया हो, ऐसे में हिन्दुस्तान अखबार को गिरता देखकर पुरानी बातें याद आ गईं। हिन्दुस्तान अखबार तो काफी पहले से बर्बाद हो चुका था, ऐसे में कोरोना महामारी का बहाना और मिल गया। बहुत लोगों की वहां से छंटनी भी हुई। बनी हुई चीज को बिगड़ने में समय लगता है। शशिशेखर ने हिन्दुस्तान को बर्बाद कर दिया, अब इसको फिर से खड़ा करने में दस साल और लगेंगे।   बात तकरीबन 2006-2007 की है, लेकिन थोड़ा आगे-पीछे भी हो सकता है। हिन्दुस्तान में कार्य करते हुए मन में कुछ उदासी थी। इसी दौरान दैनिक भास्कर का बिजनेस भास्कर लांच होने आया। सुदेश गौड़ जी दिल्ली के लिए भर्तियां कर रहे थे, उन्होंने मुझे बुलाया, बिठाकर चाय पिलाई और बिजनेस भास्कर में नौकरी करने का पत्र दे दिया। पैसा भी हिन्दुस्तान की अपेक्षा पांच हजार अधिक था। मैंने हिन्दुस्तान से छुट्टी लेकर एक सप्ताह में उनकी टीम भी बनवा दी। पर इस एक सप्ताह के दौरान ऑफिस आने-जाने में समय अधिक लगता था और कठिनाई भी होती थी। मेरे पास कोई वाहन तो था नहीं, कार्यालय से वापसी के समय जो परेशानी हुई, उससे मैं निराश हुआ और वहां काम न करने का मन बना लिया। सुदेश गौड़ जी को मना किया या नहीं, यह तो याद नहीं, लेकिन बिजनेस भास्कर जाना बंद कर दिया।   हिन्दुस्तान अखबार में बने रहने की मुख्य वजह गाजियाबाद से नई दिल्ली के लिए चलने वाली लोकल ट्रेन थी। जून-2013 में आखिरकार हिन्दुस्तान छोड़ना ही पड़ा। इस दौरान मेरे गुरुजी और पुराने साथी राकेश घंसोलिया ने मुझे टाइम्स ऑफ इंडिया बुलवाया और अमन नैयर जी से मिलवाया। अमन नैयर जी ने एक ही बार में मेरे बॉयोडाटा पर पद और पैसा दोनों मार्क करके भेज दिया। इसके बावजूद नवभारत के लिए मेरा क्यों नहीं हो पाया, इसका क्षोभ जरूर रहेगा और वजह क्या रही या किसकी वजह से मेरा पत्र अटका, यह संदेह बरकरार है। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया यानी नवभारत में काम न कर पाना मेरे मन में एक बोझ सा है।   इसके बाद दिल्ली विधानसभा के चुनाव में चार-पांच विधानसभाओं के लिए खूब खबरें लिखी। इसमें भी सारा कार्य मेरा लेकिन धन ज्यादा मेरा साथी कमाता था। पर इसका कोई मलाल नहीं है क्योंकि धन कहां से आएगा, इसकी कला मैं नहीं जानता हूं, साथ वाले व्यक्ति को ही पता था। नौकरी गई तो वसुंधरा का मकान भी बेच दिया। इस समय मैं वसुंधरा सेक्टर-2 में किराए के मकान में रहता था। इसी दौरान वार्ता लोक में रह रहे सुनील पांडेय जी से भेंट हुई। कुछ समय पश्चात उन्होंने मुझे आरएसएएस समर्थित संगठन भारतीय किसान संघ की पत्रिका किसान कुल को निकालने हेतु किसान संघ लेकर चले गए। दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर किसान संघ का कार्यालय था। यहां पैसा तो कामचलाऊ ही था, लेकिन मन को बड़ी संतुष्टि रहती थी।   …जारी…. पत्रकार योगराज सिंह की एफबी वॉल से

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Dakhal News 18 November 2020


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–अशोक कुमार साहू– रायपुर।छत्तीसगढ़ के जिला महासमुन्द में एसपी बंगला के पीछे स्थित है हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी। यहां परसकोल रोड, दीनदयाल नगर में शोकसभा आयोजित था। यहाँ का नजारा गमगीन करने वाला था। लेकिन, यह क्या.. यहां तो उपस्थित लोगों ने तालियां बजाना शुरू कर दिया। मैंने अपने जीवन में अनेक सुख-दुख के कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है। लेकिन, शोक सभा में तालियों की गड़गड़ाहट कहीं नहीं सुनी थी। 6 नवम्बर 2020 का दिन मेरे जीवन का अविस्मरणीय दिन बन गया। जब शोक सभा के पिन ड्राप साइलेंट के बीच यकायक तालियां बजने लगी। सैकड़ों लोग शोक सभा मे पुष्पांजलि अर्पित करने पहुंचे थे। जहां वे श्रद्धांजलि देने के पहले गर्व के साथ ताली बजा रहे थे। आइये आपको भी उस ऐतिहासिक घटना की आंखों देखी हाल सुनाते हैं। ऐसे हुआ शोक सभा का आयोजन जैसे कि पहले ही खबर दी जा चुकी है कि, प्रेस क्लब महासमुन्द अध्यक्ष आनंदराम साहू की माता देवकी देवी साहू का 29 अक्टूबर को देहावसान हो गया। उनकी आत्मा की शांति के लिए 6 नवम्बर को शोक/श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया था। उनके निवास के समीप स्थित ‘मातृ छाया’ सांस्कृतिक मंच में कार्यक्रम आयोजित हुआ। जहां परिजन, मित्र मंडली, जनप्रतिनिधियों, पत्रकार साथियों के अलावा कॉलोनी और प्रेस क्लब परिवार के लोग बड़ी संख्या में एकत्रित हुए थे। शोक सभा का संचालन शिक्षक महेंद्र कुमार पटेल कर रहे थे। उन्होंने शोक संतप्त परिवार द्वारा यह तीन संकल्प लेने की सार्वजनिक उदघोषणा की:- मन : मातृ स्वरूपा बेटी को समर्पित राष्ट्रीय कार्यक्रम “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” को फलीभूत करते हुए आनंद राम साहू का परिवार 28 दिन आयु के उस मासूम बच्ची, मातृ स्वरूपा “काव्या यादव माता- स्व.भुनेश्वरी यादव, पिता-परमेश्वर (गोलू) यादव” को पढ़ाने-बढ़ाने का संकल्प लिए हैं। जिन्होंने जन्म लेने (8 अक्टूबर) के तीसरे दिन ही (10 अक्टूबर 2020 को ) अपनी मां को खो दिया है। पहली से बारहवीं कक्षा तक की उसकी संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था का दायित्व साहू परिवार उठाएगा। इस पर होने वाले संपूर्ण व्यय की व्यवस्था माता देवकी देवी साहू की कृषि भूमि से होगी। तन : मानव समाज को समर्पित माता देवकी देवी की अंतिम इच्छा देहदान करने की थी। जिसका अनुशरण और पूर्ति करते हुए उनके सुपुत्र आनंदराम साहू पिता स्व. परसराम ने दृढ़ निश्चय के साथ ‘देहदान’ और ‘नेत्रदान’ का संकल्प लिया। उन्होंने कहा है कि मेरे देहावसान के बाद निकटस्थ मेडिकल कॉलेज अस्पताल में देहदान करके उनके परिजन इस संकल्प को पूरा करेंगे। उन्होंने यह भी संकल्प दोहराया कि उनके नेत्र को जरूरतमंद को दान करेंगे, जिससे कि कोई बदकिस्मत भी उनकी आंखों से इस दुनिया को देख सकेंगे। धन : जरूरतमंद पड़ोसियों को समर्पित माता देवकी देवी साहू की स्मृतियों को चिर स्थाई बनाये रखने के लिए परसकोल जनकल्याण समिति, दीनदयाल नगर महासमुन्द को एक लाख, ग्यारह हजार, एक सौ ग्यारह रुपये स्वेच्छानुदान उन्होंने दिया। जिससे कि उनके पिता स्व. परस राम साहू की स्मृति में शुरू हुआ सांस्कृतिक मंच निर्माण का अधूरा कार्य पूरा हो सके। और ‘कॉलोनी परिवार’ इस मंच का सुख-दुःख के कार्यक्रम में निःशुल्क उपयोग कर सकें। अश्रुपूरित श्रद्धांजलि का साक्षात्कारशोक सभा में इन तीनों संकल्पों (मन-तन-धन समर्पण) की उद्घोषणा के साथ ही तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। शोकसभा की मर्यादाओं पर ये तीन संकल्प भारी पड़े। और लोग अपने हाथों को रोक नहीं सके। उपस्थित लोगों में से अनेक के आंखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी। और देव स्वरूप माता देवकी देवी को यही अश्रुपूरित श्रद्धांजलि थी। मैंने पहली बार अश्रुपूरित श्रद्धांजलि का बहुत करीब से साक्षात्कार किया। बड़ी संख्या में पहुंचे थे लोगकोरोना काल में भी इस शोक सभा मे महासमुन्द क्षेत्र के लोकसभा सदस्य (सांसद) चुन्नीलाल साहू, महासमुन्द विधायक व छत्तीसगढ़ शासन में संसदीय सचिव विनोद सेवन लाल चंद्राकर, पूर्व विधायक डॉ विमल चोपड़ा, कांग्रेस जिलाध्यक्ष डॉ रश्मि चंद्राकर सहित अनेक जनप्रतिनिधि, विभिन्न समाज प्रमुख, वरिष्ठ पत्रकार और गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में पहुंचे थे। जीवन विद्या के प्रबोधक गेंदलाल कोकड़िया ने जीवन यात्रा पर सारगर्भित प्रकाश डाला। लाफिनकला गांव से आए भजन कीर्तन मंडली के लोक कलाकारों ने संगीतमय भक्ति प्रवाह से श्रद्धालुओं को जीवन दर्शन का मार्गदर्शन कराया।

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Dakhal News 9 November 2020


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के. विक्रम राव जानेमाने पत्रकार को घर में घुसकर पुलिस पकड़कर थाने अथवा जेल ले जाये, यह अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला नहीं माना जायेगा? उत्तर निर्भर करता है घटनाक्रम के तथ्यों और विवरण पर। साधारण मुजरिम को पकड़ने और ऐसे पत्रकार को कैद करने में अंतर स्पष्ट करना होगा। क्या वह भगोड़ा हो जाता? पकड़ के बाहर हो जाता? देश छोड़ देता? लापता हो जाता? उसकी संपत्ति क्या जब्त नहीं की जा सकती? उसका मुचलका अथवा जमानत देने वाला कोई न मिलता? क्या वह पेशेवर अपराधी है? मुलजिम और मुजरिम में अन्तर साफ समझना होगा। बिना उपरोक्त तथ्यों पर ध्यान दिये और संभावित कारणों पर विचार किये रायगढ़ (मुम्बई) पुलिस ने रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी को सागरतटीय वर्ली के सत्रहवीं मंजिल वाले उनके फ्लैट से सूर्योदय के पूर्व घर में घुसकर (4 नवम्बर) गिरफ्तार कर लिया। इसी प्रश्न के मद्देनजर बम्बई हाईकोर्ट की दो-सदस्यीय खण्डपीठ ने रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी की जमानत पर सुनवाई शुरू की। उद्धव ठाकरे सरकार के वकील की जिद के बावजूद हाईकोर्ट ने अर्णब को जेल नहीं भेजा। 4 नवम्बर को रायगढ़ की मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट महोदया ने मुम्बई पुलिस की मांग को ठुकरा दिया था कि उन्हें पुलिस हिरासत में भेजा जाये। मजिस्ट्रेट ने न्यायिक हिरासत में ही रखा। पुलिस हिरासत तथा न्यायिक हिरासत (जेल) के तेरह महीनों का मुझे दुर्दान्त अनुभव है। तब आपातकाल में पुलिस हिरासत (1975-76) में तीस दिनों तक पुलिस शारीरिक यातनायें देकर सरकारी गवाह बनाने तथा झूठे गुनाह कबूल करने का प्रयास मेरे साथ करती रही थी। अर्णब को कैद करने का कारण था कि दो वर्ष पूर्व गोस्वामी ने एक गृह सज्जाकार के 83 लाख का काम कराया तथा इसका भुगतान नहीं किया। मानसिक आघात से उस सज्जाकार ने आत्महत्या कर ली। पत्र में उस संतप्त सज्जाकार ने आत्महत्या का कारण यह दिया कि बकाया राशि न मिलने पर वह जान दे रहा है। किस्सा यहीं से शुरू होता है। पुलिस द्वारा 2018 में दर्ज मुकदमे को महाराष्ट्र की तत्कालीन भाजपा-शिवसेना सरकार ने (2018 में) ही बन्द कर दिया था। गौरतलब है कि शिवसेना दो वर्ष पूर्व भाजपा के साथ सरकार में थी और आज कांग्रेस के साथ सत्ता पर बैठी है। मुम्बई पुलिस आयुक्त परमवीर सिंह भी गत दस माह (29 फरवरी 2020) पदासीन हैं। वे मुठभेड़ विशेषज्ञ रहे। यूं तो वे सीधे आदेश लेते हैं मुख्यमंत्री उद्धव बाल ठाकरे से मगर मातहत हैं राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरद पवार) की पार्टी के गृहमंत्री अनिल वसंतराव देशमुख के। मुख्यमंत्री के महत्वपूर्ण आदेशों को पुलिस आयुक्त ने जारी किया था कि ''अति आवश्यक कार्य के अलावा इस कोरोना काल में कोई भी मुम्बईवासी अपने आवास से दो किलोमीटर दूर तक न जायें।'' पवार-पार्टी के गृहमंत्री के विरोध पर यह निर्देश निरस्त कर डाला गया। कुछ ही दिनों बाद गृहमंत्री अनिल देशमुख ने दस पुलिस उपायुक्तों का तबादला कर दिया। खिन्न उद्धव ठाकरे ने 72 घण्टे में यह आदेश भी रद्द कर डाला। अर्थात् दो घटक दलों- शिवसेना तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरद पवार) की कलह खुलकर उभर आयी। इसी राजनीतिक दिशाहीनता का नतीजा रहा जिससे सरकार और मीडिया के बीच टकराव बढ़ा। निवर्तमान भाजपा मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस सहृदय रहे तो मीडियाजनों से समर्थन मिलता रहा। इसलिये भी उनकी सरकार चंद दिनों में ही पलट दी गयी। कट्टर हिन्दू पार्टी शिवसेना के सरताज उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा के कारण मुम्बई की मीडिया भी बंट गयी। समर्थक और आलोचक खेमों में। इसमें रिपब्लिक-टीवी के अर्णब मुखर्जी विरोध में ज्यादा आक्रामक रहे। उन्हें पटरी पर लाने के हेतु शासनतंत्र जुट गया। एक मुकदमा दो वर्ष पूर्व दर्ज हुआ था अर्णब के विरुद्ध। उनपर किसी का उधार न लौटाने का आरोप लगा। मगर देवेन्द्र फड़नवीस के राज में यह देनदारी वाली रपट समाप्त कर दी गयी। जब ठाकरे से कलह बढ़ी तो पुरानी फाइलें पलटी गयीं। फिलहाल यहां इस वारदात से निष्पक्ष मीडिया के संदर्भ में कुछ अति महत्वपूर्ण सिद्धांत गौरतलब बन गये। सर्वप्रथम यह कि क्या पुराने कानूनी तौर बन्द कर दिये गये मुकदमे की दोबारा जांच की जा सकती है? इसी सवाल को इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (आईएफडब्ल्यूजे) के राष्ट्रीय विधि परामर्शदाता तथा उच्चतम न्यायालय में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अश्विनी कुमार दुबे ने रिपब्लिक टीवी को पेश की। प्रश्न था कि क्या बिना अदालत के आदेश के पुलिस किसी बन्द मुकदमे को खोलकर दोबारा जांच चालू कर सकती है? फिर मसला यह है कि शिवसेना का गत चार दशकों से मीडिया के हनन और भेदभाव का रुख रहा। बाल ठाकरे अपने दैनिक ''सामना'' द्वारा निष्पक्ष दैनिक (मराठी और हिन्दी) ''महानगर'' को खत्म करने में जुटे रहे। प्रतिष्ठित संपादक निखिल वागले तो शिवसेना के घोर विरोधी रहे। उनपर तथा उनके साथी युवराज रोहित तथा प्रमोद निर्गुडकर पर अक्सर घातक हमले होते रहे। इसी ''सामना'' दैनिक में सांसद और संपादक संजय राउत लिख चुके हैं कि भारतीय मुसलमानों को मताधिकार से वंचित कर दिया जाये। आज इसी संजय राउत का खुलेआम समर्थन सोनिया-कांग्रेस तथा पवार-कांग्रेस व शिवसेना को मिल रहा है। 'अर्णब काण्ड'' इन घटकों की टकराहट का शिकार है। मसलन महाराष्ट्र में रिपब्लिक टीवी को खत्म करना सरकार की प्राथमिकता है। अत: इस पृष्ठभूमि में प्रश्न ये है कि कानून की प्रक्रिया के तहत संपादक को दण्डित करने का प्रावधान क्यों नहीं अपनाया गया? उनके घर में तड़के घुसकर पकड़ ले जाना, धक्का-मुक्की करना, परिवार को आघात पहुंचाना, एक स्कूल को जेल घोषित कर अर्णब गोस्वामी को रात बिताने हेतु विवश करने के बजाये उन्हें पुलिस समन देकर पूछताछ कर सकती थी। पत्रकार के साथ एक अपराधी-सा व्यवहार करना अनुचित है। मुख्य दण्डाधिकारी (महिला) ने पुलिस की मांग खारिज कर दी कि अर्णब को पुलिस की हिरासत में दो सप्ताह दे दिया जाये। उन्होंने न्यायिक हिरासत में रखने का आदेश दिया जहां वे कोर्ट के संरक्षण में रहेंगे। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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Dakhal News 6 November 2020


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नई दिल्ली। खुद की तिजोरी भरने वाले मीडिया मालिकों को अपने अधीन काम करने वाले कर्मियों का तनिक खयाल नहीं रहता। ये सरकारी नियमों के तहत मिलने वाले वेतन व अन्य देय को भी देने में कतराते हैं। ऐसे ही एक मामले में एक पत्रकार ने अपने मालिकों को कोर्ट में तलब कराया है। कोर्ट ने सम्मन जारी करते हुए सबको तलब किया है।   मामला श्रमजीवी पत्रकार चन्द्र प्रकाश पाण्डेय का है। ये 1 जनवरी 2006 से लेकर 30 जून 2016 तक एनएनएस ऑनलाईन प्राइवेट लिमिटेड नामक मीडिया कंपनी में न्यूज कोआर्डीनेटर के पद पर कार्यरत रहे। पत्रकार चन्द्र प्रकाश पाण्डेय ने मजीठिया वेतनमान न मिलने की शिकायत श्रम विभाग में की। उनका आरोप है कि जबसे वे एनएनएस ऑनलाईन प्रा लि में न्यूज कोआर्डीनेटर के पद पर कार्य कर रहे हैं, तबसे उनको कंपनी ने मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार कोई लाभ नहीं दिया। श्रमजीवी पत्रकार चन्द्र प्रकाश पाण्डेय की शिकायत पर श्रम अधिकारी ए के बिरूली एवं इंस्पेक्टर मनीश कुमार ठाकुर ने एनएनएस आनलाइन मीडिया प्रबंधन को शोकॉज नोटिस जारी कर दिया। इस शोकाज नोटिस में मीडिया प्रबंधन का पक्ष मांगा गया। साथ ही जरूरी दस्तावेज के साथ उपस्थित होने का निर्देश दिया गया। प्रबंधन ठेंगा दिखाते हुए किसी सुनवाई पर उपस्थित नहीं हुआ। न ही कोई प्रत्युत्तर दिया। इस तरह एनएनएस आनलाइन मीडिया प्रबंधन ने श्रम विभाग, इसके अधिकारियों और दिल्ली सरकार की अवहेलना की। श्रम इंस्पेक्टर मनीष कुमार ठाकुर ने जवाब न देने वाले मीडिया प्रबंधन के खिलाफ कोर्ट में आपराधिक शिकायत प्रस्तुत की। न्यायालय ने दस्तावेजों को देखने के बाद आरोपी नंबर एक राजेश गुप्ता (डायरेक्टर एवं मालिक) एवं पांच अन्य आरोपियों के खिलाफ सम्मन जारी किया है।

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Dakhal News 1 November 2020


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बिहार के मधुबनी जिले के मधवापुर प्रखंड मुख्यालय के रामपुर गांव निवासी ई. कुमार प्रभात रंजन ने भारतीय जनसंचार संस्थान द्वारा आयोजित आईआईएमसी एंट्रेंस एक्जाम में ऑल इंडिया स्तर पर रेडियो एवं टीवी जर्नलिज्म में 19 वां रैंक तथा हिंदी जर्नलिज्म में 21 वां रैंक प्राप्त कर अपने परिवार, समाज व जिले का मान बढ़ाया है।   दो भाई व एक बहन में सबसे छोटे व पेशे से सिविल इंजीनियर छात्र ई. कुमार प्रभात रंजन के पिता गांधी मिश्र गगन वरिष्ठ पत्रकार हैं तो वहीं माता निभा देवी शिक्षिका हैं। पत्रकारिता पृष्ठभूमि से आनेवाले प्रभात के परिवार में कई जानेमाने पत्रकार हैं जहाँ उनके बड़े चाचा जगदीश मिश्र, छोटे चाचा संतोष मिश्र व बड़े भाई कुमार आशुतोष रंजन भी पत्रकार हैं। जबकि आईआईएमसी जैसे नामचीन संस्थान की परीक्षा में सफलता का परचम लहराने के साथ ही प्रभात की इस उपलब्धि से उनका गाँव गौरवान्वित है व उनके जाननेवालों में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी है। अब छात्र ई. कुमार प्रभात रंजन आगे एशिया के सर्वोत्कृष्ट पत्रकारिता संस्थान से मास कॉम की पढ़ाई पूरी करेंगे। प्रभात ने अपनी इस सफलता का श्रेय नॉलेज फर्स्ट के संचालक सुधीर कुमार झा सहित अपने पारिवारिक अभिभावकों को दिया है। कुमार प्रभात रंजन की इस सफलता पर पिता व माता सहित पशुपति मिश्र, शुभकला देवी, वरिष्ठ पत्रकार जगदीश मिश्र, संतोष कुमार मिश्र, अनिल कुमार मिश्र, राजेश कुमार मिश्र, मुकेश कुमार मिश्र, आशा झा, कुमार आशुतोष रंजन निखिल, निधि गांधी, चित्रार्थ रंजन मिश्र, हार्दिक रंजन मिश्र, रचित रंजन मिश्र, रिद्धि कुमारी, उषा देवी, रीता देवी, प्रीति कुमारी व अन्य शुभेच्छुओं ने खुशी प्रकट करते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना ईश्वर से की है।

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Dakhal News 1 November 2020


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आगरा । लॉकडाउन में मीडिया जगत में तमाम लोगों की नौकरी चली गई। अमर उजाला आगरा के एक युवा पत्रकार ने इस दरम्यान बड़ा साहस दिखाकर समाज के सामने मिसाल पेश की है। अमर उजाला आगरा में सिटी डेस्क इंजार्च रहे अविनाश चौधरी की अमर उजाला संपादक से नहीं बनी। काम के पक्के अविनाश को चाटुकारिता पसंद नहीं थी। इसके कारण संपादक ने अपनी हठधर्मिता दिखाते हुए अविनाश का ट्रांसफर रोहतक कर दिया। यह बात युवा पत्रकार को अखर गयी। मीडिया जगत में 15 साल से अधिक समय तक क्राइम समेत कई प्रमुख बीट पर काम कर चुके अविनाश ने पत्रकारिता को गुडबाय करने के बाद नई मंजिल की तलाश शुरू की। हालांकि इस बीच कई संस्थानों ने उनसे जुड़ने के लिए संपर्क किया। अविनाश ने मीडिया लाइन की दयनीय स्थिति को देखते हुए नया कुछ करने का इरादा किया। अविनाश ने एक नया काम शुरू करने के लिए सबसे पहले अपने आवास को बेच दिया। खुद के परिवार को किराये के मकान में रखा। इसके बाद अपनी 15 साल की गाढ़ी कमाई और जमापूंजी को लगाकर आगरा दयालबाग डीम्ड विवि के महज सौ मीटर की दूरी पर एक जमीन खरीदी। उन्होंने खरीदी गई जमीन पर बैंक से लोन लिया। लोन से जमीन पर चार माह के लॉकडाउन पीरियड में लगातार काम कराते हुए तीन मंजिला 24 कमरे का महिला छात्रावास तैयार करा दिया। इस हॉस्टल की आधुनिकता को देखकर आगरा पत्रकार जगत में अविनाश के दृढसंकल्प की सराहना हो रही है। अविनाश अब आगरा के पत्रकारों के लिए नजीर बन गए हैं। अविनाश का इस बारे में कहना है कि जिस नौकरी को हमने 15 साल का समय दिया, घर परिवार से बढ़कर समझा, उस नौकरी में केवल चापलूसों की ही दुनिया सुरक्षित है। मेरे पास परिवार है, उन्हें पालना है। परिजनों के चेहरे को देख मैंने हौसले को जिंदा रखा। जिस भी पत्रकार साथी की नौकरी जा रही है, उनसे केवल यह कहना चाहूंगा कि नौकरी रहे या न रहे, हौसले को अपने मरने न दीजिए, हौसला जिंदा रखिए।

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Dakhal News 27 October 2020


bhopal, When you ,run away ,media, you will get,same amount of dirt!

-Ashwini Kumar Srivastava- मुझे मीडिया की नौकरी छोड़े हुए अब दस साल से ज्यादा हो चुके हैं मगर अब भी अपने मीडिया के साथियों के संपर्क में रहता हूं। जैसे मैं तब मीडिया में वर्क प्लेस की गुटबाजी, राजनीति आदि गंदगियों के लेकर दुखी रहता था, वैसे ही आज भी मैं अपने ज्यादातर साथियों को दुखी पाता हूं। मीडिया के मेरे ज्यादातर साथी मुझसे बराबर यह अफसोस जताते हैं कि अगर मीडिया को छोड़कर वह कहीं और होते तो उन्हें एक बेहतर वर्कप्लेस मिल जाता। जबकि मेरा अनुभव अब मुझे यह स्पष्ट कर चुका है कि आदर्श वर्क प्लेस भी राम राज्य की तरह की कल्पना ही है। जिसका सपना देखने से कोई फायदा नहीं है। हकीकत में तो रावण राज की लंका जैसा माहौल ही हर वर्क प्लेस में नसीब होना है। मुझे याद है कि मैं जब पहली नौकरी में आया था, तब से लेकर अपना बिजनेस शुरू करने तक मैंने कई बार अपनी मनपसंद जगह ढूंढने के लिए कम्पनियां बदलीं। कम्पनी बार- बार बदलने का यह फायदा जरूर मिला कि चंद ही बरसों में कई गुना सेलरी और कई छलांगे मारकर सम्मानजनक पद हासिल हो गया। लेकिन उसके बाद यह भी पता चल गया कि लगभग हर कंपनी में गुटबाजी भयंकर तरीके से हर तरफ हावी है इसलिए सिर्फ मेहनत, ईमानदारी, लगन अथवा योग्यता के बल पर यहां टिक पाना तकरीबन असम्भव है। फिर अपना बिजनेस शुरू किया तो सोचा कि अब यहां तो किसी भी कीमत पर गुटबाजी की गंदगी कर्मचारियों में नहीं फैलने दूंगा। लेकिन पार्टनरशिप में बिजनेस शुरू करने के कारण लगातार गुटबाज कर्मचारियों को हटाते रहने के बावजूद यह गंदगी साफ नहीं कर पाया। क्योंकि कर्मचारी चाहे लाख बदल लूं, मगर जो आपकी ही तरह मालिक समझा जा रहा है यानी आपका पार्टनर, यदि वह गुटबाज है तो हर कर्मचारी उसी की छत्रछाया में जाने की फिराक में रहेगा या खुद पार्टनर ही हर कर्मचारी को अपनी तरह नाकारा और गुटबाज बनाने में लगा रहेगा। हालांकि किसी पार्टनरशिप के बिना जो लोग अकेले ही कोई बड़ा बिजनेस संभाल रहे हैं, वे भी अपने कर्मचारियों के बीच गुटबाजी को शायद ही रोक पाते होंगे। क्योंकि हर कम्पनी के मालिक को अपने दिशा- निर्देशों, नियमों आदि का पालन करवाने के लिए अपने ठीक नीचे ताकतवर पदों पर लोगों को तैनात करना ही होता है। जाहिर है, शीशे की तरह पारदर्शी नजर आने वाली गंगा में अगर गोमुख से निकलने के बाद कहीं आगे जाकर मसलन हरिद्वार से ही हर शहर की गंदगी भी मिलने लगे तो कानपुर पहुंचते-पहुंचते तो उसका पानी काला या मटमैला तो हो ही जाएगा। इसीलिए कम्पनियां भी मालिक के अच्छे होने के बावजूद अक्सर अपने कर्मचारियों के लिए आदर्श वर्क प्लेस नहीं तैयार कर पातीं। क्योंकि किसी एक के अच्छे और सच्चे होने से भी आदर्श संस्थान नहीं खड़ा किया जा सकता। लिहाजा अब अपने पूर्व साथियों को मैं यही राय देता हूं कि जहां हो जैसे हो , उसी में खुश रहना सीख लो। गुटबाजी आदि की गन्दगी हर जगह है और पर्याप्त मात्रा में है। मीडिया में रहकर कम्पनी बदलने या मीडिया छोड़कर किसी और क्षेत्र में कम से कम इसलिए तो मत जाओ कि जहां हो , वहां की गन्दगी से कोफ्त हो रही है। बाकी तरक्की या और ताकतवर पद अथवा बढ़िया सेलरी के लिए जहां छलांग मारनी हो मार लो। अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता जैसा दिव्य ज्ञान देने वाले महापुरुष की भावनाओं को समझो और बजाय आदर्श समाज या वर्क प्लेस तलाशने के, अपनी कामयाबी की डगर तलाशो। पत्रकार और उद्यमी अश्विनी कुमार श्रीवास्तव का विश्लेषण.

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Dakhal News 27 October 2020


bhopal, IIMC

आईआई एम सी की प्रवेश परीक्षा संपन्न, परिणाम अगले हफ्ते नई दिल्ली । भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा 8 पीजी डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए रविवार को प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया गया। इस वर्ष प्रवेश परीक्षा को कराने की जिम्मेदारी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) को दी गई थी। यह पहला मौका है जब परीक्षा एनटीए द्वारा आयोजित करवाई गई है। इससे पूर्व आईआईएमसी द्वारा स्वयं परीक्षाओं का आयोजन किया जाता था।   कोरोना महामारी के कारण इस वर्ष प्रवेश परीक्षा ऑनलाइन आयोजित की गई। एनटीए द्वारा 4 बैचों में सुबह 10 बजे से शाम 7 बजे तक प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया गया। आईआईएमसी के 6 परिसरों में संचालित होने वाले 8 पाठ्यक्रमों की 476 सीटों के लिए इस वर्ष लगभग 4600 विद्यार्थियों ने आवेदन किया था। इनमें से 3773 विद्यार्थी परीक्षा में शामिल हुए। प्रवेश परीक्षा का परिणाम अगले हफ्ते आईआईएमसी की वेबसाइट पर घोषित किया जाएगा। कोरोना महामारी की वजह से इस वर्ष सत्र नवंबर के पहले हफ्ते से शुरू होगा।

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Dakhal News 20 October 2020


bhopal, Why not TRP free news?

रंजना मिश्रा आम दर्शक तो टीवी पर केवल सच्ची और साफ-सुथरी खबरें ही देखना चाहते हैं, किंतु टीआरपी की होड़ ने आज न्यूज़ चैनलों की पत्रकारिता को इतने निचले स्तर पर ला दिया है कि अब अधिकतर न्यूज़ चैनलों पर सही न्यूज़ की जगह फेक न्यूज़ और डिबेट के रूप में हो-हल्ला ही देखने-सुनने को मिलता है। सभी चैनल यह दावा करते हैं कि हम ही नंबर वन हैं। अभी हाल ही में देश के दो बड़े न्यूज़ चैनलों पर टीआरपी से छेड़छाड़ के आरोप लगे हैं। टीआरपी की इस होड़ ने न्यूज़ चैनलों की पत्रकारिता का स्तर इतना अधिक गिरा दिया है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया से आम लोगों का भरोसा कम होता जा रहा है। हर हफ्ते गुरुवार के दिन टीआरपी यानी टेलीविज़न रेटिंग प्वाइंट जारी करने वाली संस्था बार्क (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल) ने यह घोषणा कर दी है कि अगले 8 से 12 हफ्ते तक अलग-अलग न्यूज़ चैनलों के टीआरपी के आंकड़े जारी नहीं किए जाएंगे। इनमें हिंदी न्यूज़ चैनल, इंग्लिश न्यूज़ चैनल, बिजनेस न्यूज़ चैनल और क्षेत्रीय भाषाओं के सभी न्यूज़ चैनल शामिल हैं। बार्क का कहना है कि इस दौरान उनकी तकनीकी टीम टीआरपी मापने के मौजूदा मानदंडों की समीक्षा करेगी और जिन घरों में टीआरपी मापने वाले मीटर लगे हैं, वहां हो रही किसी भी प्रकार की धांधली और छेड़छाड़ को रोकने की कोशिश करेगी। कुछ न्यूज़ चैनलों द्वारा किए गए कथित टीआरपी घोटाले के कारण दो से तीन महीनों के लिए टीआरपी को रोक दिया गया है। अब सवाल यह उठता है कि दो से तीन महीनों तक न्यूज़ चैनलों की टीआरपी की गतिविधियों को रोककर मीडिया को साफ-सुथरा करने की जो कोशिश की जा रही है, क्या वो सच में कामयाब होगी? जिस चैनल की टीआरपी जितनी ज्यादा होती है उसे उतने ही ज्यादा और महंगे विज्ञापन मिलते हैं। टेलीविजन के सभी चैनलों के मुकाबले न्यूज़ चैनलों की भागीदारी बहुत कम है, किंतु दर्शकों पर इनका प्रभाव सबसे ज्यादा होता है। देश के केवल 44 हजार घरों में ही टीआरपी मापने के मीटर लगे हैं, तो सवाल यह भी है कि केवल इतने घरों में लगे टीआरपी मापने के मीटर पूरे देश की टीआरपी कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं? घोटाले के आरोपों के मुताबिक इन घरों में से कुछ घरों को कुछ रुपए देकर टीआरपी के आंकड़ों से छेड़छाड़ की गई है। आजकल अधिकतर न्यूज़ चैनल डिबेट दिखाते हैं, क्योंकि डिबेट में टीवी का दर्शक उस न्यूज़ चैनल पर अपना ज्यादा समय खर्च करता है और जिससे उसकी टीआरपी बढ़ जाती है। आजकल ग्राउंड रिपोर्ट न्यूज़ चैनलों से धीरे-धीरे गायब ही होती जा रही है, क्योंकि अब कोई न्यूज़ चैनल ग्राउंड रिपोर्टिंग में मेहनत और पैसा खर्च करना नहीं चाहता और ना ही अपने रिपोर्टरों को बाहर भेजना चाहता है। अब सवाल यह है कि टीआरपी मापने की जो व्यवस्था फिलहाल लागू है, वो क्या वास्तव में सही है? क्या यह व्यवस्था सच्ची और साफ-सुथरी खबरें दिखाने वाले न्यूज़ चैनलों के लिए उपयोगी है? जवाब है नहीं। यदि ये न्यूज़ चैनल डिबेट करना बंद कर दें, मनोरंजक खबरें देने की बजाय सच्ची और साफ-सुथरी खबरें दिखाना शुरू कर दें तो उनकी टीआरपी निश्चित ही बहुत नीचे आ जाएगी। जिससे विज्ञापनदाता उन चैनलों को विज्ञापन देना बंद कर देंगे और विज्ञापन न मिलने के कारण, उन चैनलों को अपने रिपोर्टरों को तनख्वाह देना भी मुश्किल हो जाएगा और इस कारण उन न्यूज़ चैनलों को फिर से डिबेट और सस्ती खबरों को दिखाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। डिबेट और सस्ती, मनोरंजक खबरें चैनल की टीआरपी को बढ़ा देंगे, जिससे आगे लोगों को यह भरोसा हो जाएगा कि यही मॉडल सही है। न्यूज़ चैनलों के न्यूज़ रूम में बैठे प्रोग्राम एडिटर और पत्रकारों के दिमाग में न्यूज़ बनाते समय केवल एक ही बात ध्यान में रहती है कि कौन-सा प्रोग्राम और न्यूज़ ज्यादा टीआरपी लाएगा। अब आवश्यकता है कि टीआरपी की इस अंधी दौड़ को छोड़कर, न्यूज़ चैनलों का उद्देश्य, दर्शकों तक जरूरी खबरें और सूचनाएं पहुंचाना होना चाहिए, न कि मनमर्जी की खबरें दिखाना। यह खबरें रिसर्च और ग्राउंड रिपोर्टिंग पर आधारित होनी चाहिए, यही पत्रकारिता का सच्चा धर्म है। (लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)  

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Dakhal News 20 October 2020


bhopal,Do not spoil , environment by working ,more in the office

-जे सुशील- ज़िंदगी में नौकरी सबकुछ नहीं होता है नौकरी मिल जाए तो छुट्टी लेते रहना चाहिए. मैं जब नौकरी करता था तो शुरू शुरू में हीरो बना. छुट्टी नहीं लेता था. मुझे लगता था कि इससे मुझे लोग हीरो समझेंगे कि बहुत काम करता है. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. हमारे दफ्तर में साल की करीब तीस पैंतीस छुट्टियां होती थीं. मैं लेता नहीं था छुट्टी. लगता था काम बहुत करूंगा तो लोग पसंद करेंगे. दो साल में बहुत छुट्टी जमा हो गई. फिर एक बार जाकर संपादक से कहा कि मेरी इतनी छुट्टियां बची हुई हैं क्या अब ले लूं तो उन्होंने कहा नियम के अनुसार छुट्टियां तीस मार्च को खतम हो जाती हैं. तो आपकी चालीस छुट्टियां पिछले दो साल की खत्म हैं. मैं बड़ा दुखी हुआ. मैंने बहस की तो उन्होंंने कहा कि आपकी गलती है. हमने तो आपसे कहा नहीं था कि छुट्टियां न लें. आपकी छुट्टी है लेना ही चाहिए. नहीं ली तो आपकी गलती है. उस दिन के बाद मैंने तय कर लिया कि एक एक छुट्टी ज़रूर लेना है दफ्तर में. मैंने उस दिन के बाद मेडिकल वाली छुट्टियां भी ली. थोड़ी भी तबियत खराब रही या मूड नहीं हुआ तो छु्ट्टी ले ली. सालाना छुट्टियां बचा कर लेने लगा. इससे मेरा जीवन बेहतर हो गया. मैं किताब पढ़ने लगा. आर्ट करने लगा. दफ्तर में कई लोग दिन रात काम करते थे. लेकिन काम की कोई बखत नहीं थी. आगे वही बढ़ रहे थे तो जो मक्खन लगा रहे थे. कई लोग थे मेरे दफ्तर में जो सुबह आठ बजे आते और रात के आठ बजे जाते. मैं उनको गरियाता रहता था कि तुम लोग माहौल खराब कर रहे हो. मैं अपने अनुभव के बाद कभी भी समय से अधिक नहीं रूका और सार्वजनिक रूप से कहता रहा कि जो आदमी बिना किसी ब्रेकिंग न्यूज़ के दफ्तर में रूक रहा है समझो वो कामचोर है या नाकारा जो आठ घंटे में अपना काम पूरा नहीं कर पाता है. इससे मक्खनबाज़ों को बहुत दिक्कत हुई और उन्होंने मेरे खिलाफ शिकायतें की कि मैं माहौल खराब कर रहा हूं. लेकिन किसी ने मुझसे कुछ कहा नहीं. मैं इसी तरह से आठ घंटे की शिफ्ट में जितने ब्रेक अलाउड हैं वो भी लेता था. मैं जानता हूं बहुत लोग सीट पर चिपक कर बैठते हैं और दर्शाते हैं कि वो बहुत महान काम कर रहे हैं. मान लीजिए बात. चार पांच साल के बाद कमर में दर्द होगा तो संपादक बोलेगा कि आपकी गलती है. हमारे यहां एक वरिष्ठ थे. उनको डेंगू हुआ. छुट्टियां खत्म हो गईं. बीमारी ने उनके पैरों को कमजोर कर दिया था. हमारे यहां संपादक को अधिकार था कि छुट्टियां बढ़ा दे. संपादक ने बढ़ा दीं. एचआर खच्चर था. उसने पैसे काट लिए. बाद में पैसे वापस हुए क्योंकि संपादक अच्छा था. कहने का मतलब है कि आपको नौकरी में जो अधिकार मिले हैं छुट्टी के वो ज़रूर लीजिए. छुट्टी लेकर आप अहसान नहीं कर रहे हैं. छुट्टी लेंगे तो तरोताजा काम करते रहेंगे तो दफ्तर खुश रहेगा. जो छुट्टी नहीं लेते हैं दफ्तरों में वो मूल रूप से इनसेक्योर और नकारा लोग होते हैं जो कामचोरी करते हैं. हीरो बनने के लिए काम करना चाहिए. छुट्टी कैंसल कर के क्यों हीरो बनना. जब ज़रूरत होती थी तो मैं छुट्टियां कैंसल कर के भी काम पर लौटा हूं. तो ऐसा नहीं है कि दफ्तर में ज़रूरत हो तो मैं टांग पर टांग चढ़ा कर बैठा हूं लेकिन जबरदस्ती दफ्तर जाने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए. एक और महानुभाव थे. जब भी किसी व्यक्ति का निधन होता तो ये आदमी छुट्टी हो तो दफ्तर पहुंच जाता और तीन लोगों से फोन पर बाइट लेकर स्टोरी कर देता और एवज में छुट्टी ले लेता. ये सिलसिला चार पांच बार चला फिर किसी ने संपादक को कहा कि जो काम ये घर से आकर करते हैं वो तो यहां दफ्तर में जो बैठा है वो कर सकता है तो इन्हें बेवजह इस आसान काम की छुट्टी क्यों दी जा रही है. बाइलाइन चाहिए तो घर से कर के भेज दें. संपादक को समझ में आई बात और उनको मना किया गया कि आप दफ्तर आएंगे बिना बुलाए छुट्टी के दिन तो उसकी छुट्टी नहीं मिलेगी. बंदे ने आना तो बंद कर ही दिया फोन वाले इंटरव्यू भी बंद हो गए. यही सब है. सोचा बता दें. छुट्टी की महिमा अपरंपार है. लेते रहना चाहिए. आदमी का जनम नौकरी करने के लिए नहीं हुआ है जीने के लिए हुआ है. नौकरी कर के आज तक कोई महान नहीं हुआ है. बाकी इमेज बनाना हो तो अलग बात है. मोदी जी बिना छुट्टी लिए ही लाल हुए जा रहे हैं. हम भी पीएम होंगे तो कभी छुट्टी नहीं लेंगे. वैसे छुट्टी मनमोहन सिंह भी नहीं लेते थे लेकिन बोलते नहीं थे इस बारे में. खैर आजकल तो बोलना छोड़ो फोटो अपलोड करने का भी चलन है.

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Dakhal News 15 October 2020


bhopal, The roots are very deep in TRP

-श्रवण गर्ग- क्या चिंता केवल यहीं तक सीमित कर ली जाए कि कुछ टीवी चैनलों ने विज्ञापनों के ज़रिए धन कमाने के उद्देश्य से ही अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए उस बड़े फ़र्जीवाड़े को अंजाम दिया होगा जिसका कि हाल ही में मुंबई पुलिस ने भांडाफोड़ किया है ? या फिर जब बात निकल ही गई है तो उसे दूर तक भी ले जाया जाना चाहिए ? मामला काफ़ी बड़ा है और उसकी जड़ें भी काफ़ी गहरी हैं। यह केवल चैनलों द्वारा अपनी टीआरपी( टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट )बढ़ाने तक सीमित नहीं है। पूछा जा सकता है कि इस भयावह कोरोना काल में जब दुनियाभर में राष्ट्राध्यक्षों की लोकप्रियता में सेंध लगी पड़ी है, डोनाल्ड ट्रम्प जैसे चतुर खिलाड़ी भी अपने से एक अपेक्षाकृत कमज़ोर प्रतिद्वंद्वी से ‘विश्वसनीय’ ओपीनियन पोल्स में बारह प्रतिशत से पीछे चल रहे हैं, हमारे यहाँ के जाने-माने मीडिया प्रतिष्ठान द्वारा करवाए जाने वाले सर्वेक्षण में प्रधानमंत्री मोदी को 66 और राहुल गांधी को केवल आठ प्रतिशत लोगों की पसंद बतलाए जाने का आधार आख़िर क्या है ? मोदी का पलड़ा निश्चित ही भारी होना चाहिए, पर क्या उनके और राहुल के बीच लोकप्रियता का गड्ढा भी अर्नब के ‘रिपब्लिक’ और दूसरे चैनलों के बीच की टीआरपी के फ़र्क़ की तरह ही संदेहास्पद नहीं माना जाए? इस बात का पता कहाँ के पुलिस कमिश्नर लगाएँगे कि प्रभावशाली राजनीतिक सत्ताधारियों की लोकप्रियता को जाँचने के मीटर देश में किस तरह के लोगों के घरों में लगे हुए हैं ? जनता को भ्रम में डाला जा रहा है कि टीआरपी का फ़र्जीवाड़ा केवल विज्ञापनों के चालीस हज़ार करोड़ के बड़े बाज़ार में अपनी कमाई को बढ़ाने तक ही सीमित है। हक़ीक़त में ऐसा नहीं है। दांव पर और कुछ इससे भी बड़ा लगा हुआ है। इसका सम्बंध देश और राज्यों में सूचना तंत्र पर क़ब्ज़े के ज़रिए राजनीतिक आधिपत्य स्थापित करने से भी हो सकता है।देशभर में अनुमानतः जो बीस करोड़ टीवी सेट्स घरों में लगे हुए हैं और उनके ज़रिए जनता को जो कुछ भी चौबीसों घंटे दिखाया जा सकता है, वह एक ख़ास क़िस्म का व्यक्तिवादी प्रचार और किसी विचारधारा को दर्शकों के मस्तिष्क में बैठाने का उपक्रम भी हो सकता है।वह विज्ञापनों से होनेवाली आमदनी से कहीं बड़ा और किसी सुनियोजित राजनीतिक नेटवर्क का हिस्सा हो तो भी कोई आश्चर्य की बात नहीं। क्या कोई बता सकता है कि सुशांत सिंह राजपूत मामले में मुंबई पुलिस को बदनाम करने के लिए हज़ारों (पचास हज़ार ?) फ़ेक अकाउंट सोशल मीडिया पर रातों-रात कैसे उपस्थित हो गए और इतने महीनों तक सक्रिय भी कैसे रहे? इतने बड़े फ़र्जीवाड़े के सामने आने के बाद सत्ता के गलियारों से अभी तक भी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने क्यों नहीं आई? सोशल मीडिया पर इतनी बड़ी संख्या में फ़र्ज़ी अकाउंट क्या देश की किसी बड़ी राजनीतिक हस्ती या दल के ख़िलाफ़ इसी तरह से रातों-रात प्रकट और सक्रिय होकर ‘लाइव’ रह सकते हैं ? निश्चित ही इतने बड़े काम को बिना किसी संगठित गिरोह की मदद के अंजाम नहीं दिया जा सकता। चुनावों के समय तो ये पचास हज़ार अकाउंट पचास लाख और पाँच करोड़ भी हो सकते हैं !हुए भी हों तो क्या पता ! ‘रिपब्लिक’ या गिरफ़्त में आ गए कुछ और चैनल तो टीवी स्क्रीन के पीछे जो बड़ा खेल चलता है, उसके सामने कुछ भी नहीं हैं। वह खेल और भी बड़ा है और उसके खिलाड़ी भी बड़े हैं। उसके ‘वार रूम्स’ भी अलग से हैं। सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्मों पर नामी हस्तियों के लिए जिस तरह से ‘फ़र्ज़ी’ फ़ॉलोअर्स और ‘लाइक्स’ की ख़रीदी की जाती है, वे चैनलों के फ़र्जीवाड़े से कितनी अलग हैं ? एक प्रसिद्ध गायक (रैपर) द्वारा यू ट्यूब पर अपना रिकार्ड बनाने के लिए फ़ेक ‘लाइक्स’ और ‘फ़ॉलोइंग’ ख़रीदने के लिए बहत्तर लाख रुपए किसी कम्पनी को दिए जाने की हाल की कथित स्वीकारोक्ति, क्या हमें कहीं से भी नहीं चौंकाती ? ऐसी तो देश में हज़ारों हस्तियाँ होंगी, जिनके सोशल मीडिया अकाउंट बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ ही संचालित करती हैं और इसी तरह से उनके लिए ‘नक़ली फ़ालोअर्स’ की फ़ौज भी तैयार की जाती है। सवाल यह भी है कि एक ख़ास क़िस्म की विचारधारा, दल विशेष या व्यक्तियों को लेकर सच्ची-झूठी ‘खबरों’ की शक्ल में अख़बारों तथा पत्र-पत्रिकाओं में ‘प्लांट’ की जाने की सूचनाएँ और उपलब्धियाँ दो-तीन या ज़्यादा चैनलों द्वारा टीआरपी बढ़ाने के लिए अपनाए जाने वाले हथकंडों से कितनी भिन्न हैं ? सरकारें अपने विकास कार्यों की संदेहास्पद उपलब्धियों के बड़े-बड़े विज्ञापन जारी करती हैं और मीडिया संस्थानों में उन्हें लपकने के लिए होड़ मची रहती है।राज्यों में मीडिया (पर नियंत्रण) के लिए विज्ञापनों का बड़ा बजट होता है, जिस पर पूरी निगरानी ‘ऊपर’ से की जाती है। लिखे, छपे, बोले और दिखाए जाने वाले प्रत्येक शब्द और दृश्य की कड़ी मॉनीटरिंग होती है और उसी से विज्ञापनों की शक्ल में बाँटी जाने वाली राशि तय होती है। बताया जाता है कि ‘ सुशासन बाबू ‘ के बिहार में सूचना और जन-सम्पर्क विभाग का जो बजट वर्ष 2014-15 में लगभग 84 करोड़ था, वह पाँच सालों (2018-19) में बढ़कर 133 करोड़ रुपए से ऊपर हो गया।चालू चुनावी साल का बजट कितना है अभी पता चलना बाक़ी है।अनुमानित तौर पर इतनी बड़ी राशि का साठ से सत्तर प्रतिशत प्रचार-प्रसार माध्यमों को दिए जाने वाले सरकारी विज्ञापनों पर खर्च होता है।हाल में सरकार की ‘उपलब्धियों’ का नया वीडियो भी जारी हुआ है और वह ख़ूब प्रचार पा रहा है। कोई भी चैनल या प्रचार माध्यम, जिनमें अख़बार भी शामिल है, कभी यह नहीं बताता या स्वीकार करता कि पिछले साल भर, महीने या सप्ताह के दौरान कितनी अपुष्ट और प्रायोजित खबरें प्रसारित-प्रकाशित की गईं, कितने लोगों और समुदायों की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाई गई, साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने में क्या भूमिका निभाई गई ! तब्लीगी जमात को लेकर जो दुष्प्रचार किया गया, वह तो अदालत के द्वारा बेनक़ाब हो भी चुका है।दिल्ली के दंगों में मीडिया की भूमिका का भी आगे-पीछे खुलासा हो जाएगा। एक चैनल पर बहस के बाद एक राजनीतिक दल से जुड़े प्रवक्ता की मौत ने क्या एंकरों की भाषा, ज़ुबान और आत्माएँ बदल दी हैं या फिर सब कुछ पहले जैसा ही चल रहा है ? कोरोना सहित बड़े-बड़े मुद्दों को दबाकर महीनों तक केवल एक अभिनेत्री और उसके परिवार को निशाने पर लेने का उद्देश्य क्या हक़ीक़त में भी सिर्फ़ अपनी टीआरपी बढ़ाना था या फिर उसके कोई राजनीतिक निहितार्थ भी थे? ‘रिपब्लिक‘ चैनल या अर्नब जैसे ‘पत्रकार/एंकर’ कभी भी अकेले नहीं पड़ने वाले हैं ! न ही मुंबई पुलिस द्वारा पर्दाफ़ाश किए गए किसी भी फ़र्ज़ीवाड़े में किसी को भी कभी कोई सजा होने वाली है।मारने वालों से बचाने वाले के हाथ काफ़ी लम्बे और बड़े हैं। देश के जाने माने पत्रकार श्रवण गर्ग की एफबी वॉल से।

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Dakhal News 15 October 2020


bhopal,Ravish Kumar, jumps on all ,other channels , soon , gets a chance!

-समरेंद्र सिंह- आत्मश्लाघा में डूबा हुआ कोई भी जीव.. रवीश कुमार बन जाता है! रवीश कुमार को मौका मिलना चाहिए फिर वो बाकी सारे चैनलों पर कूद पड़ते हैं। उन्हें लगता है कि सारे चैनल मिल कर उनके खिलाफ साजिश करते हैं। एनडीटीवी और उनके कार्यक्रम प्राइम टाइम की टीआरपी साजिश के तहत ही कम की गई है। और चैनलों की इस साजिश में मोदी सरकार भी शामिल है। उन्हें ये भी लगता है कि वो रोज रोज ऐतिहासिक भाषण देते हैं और इतना ऐतिहासिक कि सारी पब्लिक बस उन्हें ही देखती और सुनती है। मगर साजिशन सौ में दो नंबर दिए जाते हैं। यहां सवाल उठता है कि उनकी टीआरपी तो मनमोहन सरकार में भी रसातल में थी। तो क्या मनमोहन सिंह भी एनडीटीवी के पीछे पड़े थे? एनडीटीवी तो मनमोहन सिंह का अपना चैनल था। प्रणव रॉय के मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी से बहुत अच्छे संबंध थे। उस दौर में राष्ट्रपति भी उनके अपने ही थे। राष्ट्रपति भवन में एनडीटीवी का जलसा होता था और उस जलसे में सारे कांग्रेसी नेता शामिल होते थे। तो क्या एनडीटीवी की चरण वंदना से खुश होने की जगह सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह नाराज रहते थे? इतने नाराज कि उन्होंने एनडीटीवी की टीआरपी गिरवा दी थी? दरअसल एनडीटीवी में कुछ अपवादों को छोड़ कर सारे के सारे शेखचिल्ली हैं। लेढ़ा और ढकलेट हैं। टीवी क्या होता है उन्हें पता ही नहीं, न्यूज भी नहीं पता। बस भाषण देना जानते हैं इसलिए सब के सब भाषण देते हैं। कोई स्टूडियो में भाषण देता है कोई सड़क से मोबाइल के जरिए भाषण देता है। खबर कोई नहीं करता। खबर द वायर वाले करें, क्विंट वाले करें। इंडियन एक्सप्रेस करे और द हिंदू करे। कोई भी कर ले, मगर ये खबर नहीं करेंगे। बस दूसरों की खबरों पर भाषण देंगे। फिर भी रवीश कुमार को लगता है कि इनकी लोकप्रियता नरेंद्र मोदी से भी अधिक है और पब्लिक सिर्फ इनके कार्यक्रम प्राइम टाइम का इंतजार करती है। अरे भई, यहां तो खुद बीजेपी वाले अपने युगपुरुष नरेंद्र मोदी के भाषण से उकता गए हैं। एक ही बात कितने दिन सुनें और क्यों सुनें? कोई आदमी मिठाई भी रोज रोज खाएगा तो उकता जाएगा या फिर डायबिटीज से मर जाएगा। रवीश कुमार को ये भी लगता है कि इनके जलवों में माधुरी दीक्षित और सलमान खान से अधिक जादू है। और पब्लिक इनके पीछे पागल है। इनकी अदाओं के देखने के लिए इनके चैनल की स्क्रीन से चिपकी रहती है। अगर दूसरे चैनल वाले और सरकार साजिश नहीं रचती तो ये हर रोज नया इतिहास रच देते। सरकारें बनाते और गिराते। आत्मश्लाघा में डूबा हुआ जीव ऐसा ही होता है। वो रवीश कुमार हो जाता है। उसे हर जगह मैं ही मैं दिखता है।

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Dakhal News 10 October 2020


bhopal, If JP were today, how many people, would have supported him?

-श्रवण गर्ग- लोक नायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) की आज पुण्यतिथि है और तीन दिन बाद ग्यारह अक्टूबर को उनकी जयंती ।सोचा जा सकता है कि वे आज अगर हमारे बीच होते तो क्या कर रहे होते ! 1974 के ‘बिहार आंदोलन’ में जो अपेक्षाकृत छोटे-छोटे नेता थे, आज वे ही बिहार और केंद्र की सत्ताओं में बड़ी-बड़ी राजनीतिक हस्तियाँ हैं। कल्पना की जा सकती है कि जेपी अगर आज होते और 1974 जैसा ही कोई आह्वान करते (‘सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है ‘) तो कितने नेता अपने वर्तमान शासकों को छोड़कर उनके साथ सड़कों पर संघर्ष करने का साहस जुटा पाते ! ऐसा कर पाना शायद उस जमाने में काफ़ी आसान रहा होगा ! चौबीस मार्च, 1977 को मैं उस समय दिल्ली के राजघाट पर उपस्थित था, जब एक व्हील चेयर पर बैठे हुए अस्वस्थ जेपी को गांधी समाधि पर जनता पार्टी के नव-निर्वाचित सांसदों को शपथ दिलवाने के लिए लाया गया था। वर्तमान की मोदी सरकार में शामिल कुछ हस्तियाँ भी तब वहाँ प्रथम बार निर्वाचित सांसदों के रूप में मौजूद थीं। जेपी के पैर पर पट्टा चढ़ा हुआ था।आग्रह किया जा रहा था कि उनके पैरों को न छुआ जाए। वह दृश्य आज भी याद आता है, जब भीड़ के बीच से निकल कर उनके समीप पहुँचने के बाद मैंने उन्हें प्रणाम किया तो वे हलके से मुस्कुराए और मैं स्वयं को रोक नहीं पाया … उनके पैरों के पास पहुँचकर हल्के से स्पर्श कर ही लिया।उन्होंने मना भी नहीं किया। जेपी ने (और शायद दादा कृपलानी ने भी) सांसदों को यही शपथ दिलवाई थी कि वे गांधी का कार्य करेंगे और अपने आप को राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित करेंगे।राजघाट पर हज़ारों लोगों की उपस्थिति थी।अभिनेता देव आनंद भी वहाँ पहुँचे थे।प्रशंसकों ने उन्हें अपने पैर ज़मीन पर रखने ही नहीं दिए।अपने कंधों पर ही उन्हें बैठाकर पूरे समय घुमाते रहे।शत्रुघ्न सिन्हा भी शायद वहाँ थे। अदभुत दृश्य था। राजघाट की शपथ के बाद के दिनों में दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय मार्ग स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में जे पी की उपस्थिति में ही सत्ता के बँटवारे को लेकर बैठकों का जो दौर चला उसका अपना अलग ही इतिहास है। राजघाट की आशाभरी सुबह के कोई ढाई वर्षों के बाद आज के ही दिन जेपी ने देह त्याग कर दिया।वे भी तब उतने ही निराश रहे होंगे जैसे कि आज़ादी प्राप्ति के बाद गांधी जी रहे होंगे। कांग्रेस, बापू को और जनता पार्टी जेपी को जी नहीं पाईं। जेपी के निधन तक उनका जनता पार्टी का प्रयोग उन्हें धोखा दे चुका था। याद पड़ता है कि जेपी को सबसे पहले राजगीर(बिहार) में 1967 के सर्वोदय सम्मेलन में दूर से देखने का अवसर मिला था।तब तक उनके बारे में केवल सुन-पढ़ ही रखा था।जेपी की देखरेख में ही सम्मेलन की सारी तैयारियाँ हुईं थीं।दलाई लामा भी उसमें आए थे।संत विनोबा भावे तो उपस्थित थे ही, पर जेपी के विराट स्वरूप को पहली बार नज़दीक से देखने का मौक़ा अप्रैल 1972 में मुरैना के जौरा में हुए चम्बल घाटी के दस्युओं के आत्म-समर्पण और फिर उसके अगले माह बुंदेलखंड के दस्युओं के छतरपुर के निकट हुए दूसरे आत्म समर्पण में मिला था। उनका जो स्नेह उस दौरान प्राप्त हुआ, वही बाद में मुझे 1974 में बिहार आंदोलन की रिपोर्टिंग के लिए पटना ले गया।तब मैं दिल्ली में प्रभाष जोशी जी और अनुपम मिश्र के साथ ‘सर्वोदय साप्ताहिक’ के लिए काम करता था। पटना गया था केवल कुछ ही दिनों के लिए पर जे पी ने अपने पास ही रोक लिया उनके कामों में मदद के लिए। पटना में तब जेपी के कदम कुआ स्थित निवास स्थान पर केवल एक ही कमी खटकती थी और वह थी प्रभावती जी की अनुपस्थिति की। वे 15 अप्रैल, 1973 को जेपी को अकेला छोड़कर चली गईं थीं। जे पी और प्रभावती जी के साथ केवल दो ही यात्राओं की याद पड़ती है।पहली तो तब की जब अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रकाश चंद सेठी के विमान में दोनों को लेने लिए दिल्ली से पटना गया था और वहाँ से हम तीनों बुंदेलखंड के दस्युओं के आत्म समर्पण के लिए खजुराहो के हवाई अड्डे पर पहुँचे थे। दूसरी बार (शायद) उसी वर्ष किसी समय जेपी और प्रभावती जी के साथ रेल मार्ग द्वारा दिल्ली से राजस्थान में चूरू की यात्रा और वहाँ से वापसी। चूरू में तब अणुव्रत आंदोलन के प्रणेता आचार्य तुलसी की पुस्तक ‘अग्नि परीक्षा’ को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। जेपी के मित्र प्रभुदयाल जी डाबरीवाला लोक नायक को आग्रह करके चूरू ले गए थे, जिससे कि वहाँ साम्प्रदायिक सौहार्द स्थापित हो सके। जेपी ने कहलवाया कि मुझे उनके साथ चूरू की यात्रा करनी है और मैं तुरंत तैयार हो गया। चूरू की वह शाम भूले नहीं भूलती है, जब जे पी ने पूछा था उनके साथ टहलने हेतु जाने के लिए … और मैं भाव-विभोर हो चूरू के एकांत में उस महान दम्पति के साथ घूमने चल पड़ा था।तब दिल्ली में स्वतंत्रता सेनानियों को ताम्रपत्र बाँटे जा रहे थे। मैंने उनसे इस दौरान किए गए कई सवालों के बीच यह भी पूछ लिया था कि:’ क्या सरकार आपको स्वतंत्रता सेनानी नहीं मानती ?’ जेपी शायद कुछ क्षण रुके थे फिर धीमे से सिर्फ़ इतना भर कहा कि :’हो सकता है, शायद ऐसा ही हो।’ मुझे याद नहीं पड़ता कि मैंने तब जेपी से कितने सवाल किए होंगे और उन्होंने क्या जवाब दिए होंगे।क्योंकि मैं तो उस समय अपने इतने निकट उनकी आत्मीय उपस्थिति के आभा मण्डल में ही पूरी तरह से खो गया था।जिस तरह से गांधी नोआख़ली में दंगों को शांत करवाकर चुपचाप दिल्ली लौट आए थे, वैसे ही जेपी भी चूरू से लौट आए। मुझे अच्छे से याद है कि हम दिल्ली के रेल्वे स्टेशन पर चूरू जाने वाली ट्रेन की प्रतीक्षा में खड़े थे। जेपी थे, प्रभावती जी थीं, उनके सहायक गुलाब थे और मैं था।शायद प्रभुदयाल जी भी रहे हों। लम्बे प्लेटफ़ार्म पर काफ़ी लोगों की उपस्थिति के बावजूद कोई जेपी को बहुत विश्वास के साथ पहचान नहीं पा रहा था।उनकी तरफ़ लोग देख ज़रूर रहे थे।हो सकता है कि किसी को उनके वहाँ इस तरह से उपस्थित होने का अनुमान ही नहीं रहा होगा। पर जेपी के चेहरे पर किसी भी तरह की अपेक्षा या उपेक्षा का भाव नहीं था।वे निर्विकार थे।बेचैनी मुझे ही अधिक थी कि ऐसा कैसे हो रहा है ! याद पड़ता है कि सर्वोदय दर्शन के सुप्रसिद्ध भाष्यकार दादा धर्माधिकारी ने एक बार जेपी को संत और विनोबा को राजनेता निरूपित किया था।ऐसा सच भी रहा हो ! स्मृतियाँ तो कई और भी हैं पर फिर कभी। जेपी की स्मृति को प्रणाम ।

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Dakhal News 10 October 2020


bhopal, China has shown ,right to impart knowledge , Indian media!

-अंकित माथुर-   ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू ने बुधवार को भारत स्थित चीनी मिशन द्वारा भारतीय मीडिया को जारी की गई मीडिया अड्वाइज़री के विषय में प्रतिक्रिया देते हुए चीनी मिशन को “भाड़ में जाने” (Get Lost) की नसीहत दे डाली। 10 अक्टूबर को ताइवान के राष्ट्रीय दिवस से पहले, दिल्ली में चीनी मिशन ने भारतीय मीडिया को लिखा और ताइवान को “राष्ट्र” के रूप में संदर्भित अथवा संबोधित नहीं करने का आह्वान किया। पत्र में चीनी मिशन ने कहा, हम अपने भारतीय मीडिया मित्रों को याद दिलाना चाहेंगे कि दुनिया में एक चीन है और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार पूरी चीन की एकमात्र वैध सरकार है। ताइवान चीन का एक अटूट व अभिन्न हिस्सा है। चीन के साथ राजनयिक संबंध रखने वाले सभी देशों को वन-चाइना नीति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करना चाहिए, जो कि भारत सरकार लंबे समय से करती आ रही है। चीन का मानना है कि भारतीय मीडिया ताइवान के सवाल पर भारत सरकार की आधिकारिक स्थिति पर ही रिपोर्टिंग करे। भारतीय मीडिया को ताइवान को “देश” या “रिपब्लिक ऑफ चाइना” के रूप में रिपोर्ट नहीं करने के लिए हिदायत दी गई है। चीन द्वारा दी गई अडवाइज़री में स्पष्ट किया गया है, कि राष्ट्रपति के रूप में या ताइवान अध्यक्ष त्साई इंग-वेन के रूप में कोई भी संबोधन भारत या विश्व की आम जनता के अंदर चीन की ताइवान के प्रति नीति को लेकर गलत संकेत भेज सकता है। इस अड्वाइज़री के बाद भारतीय मीडिया में अव्यक्त रोष अवश्य है। परंतु मुखर होकर दिखाई नहीं दे रहा। पत्रकार अंकित माथुर की रिपोर्ट  

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Dakhal News 10 October 2020


bhopal,Senior journalist dies from Corona

भोपाल। गंजबासौदा (विदिशा) के वरिष्ठ पत्रकार अनिल यादव का बीती रात निधन हो गया है। कोरोना संक्रमण के बाद उनका राजधानी के अस्पताल में उपचार चल रहा था। श्री यादव पत्रकारिता और वन्य प्राणी संरक्षण के कार्य में दशकों से साधक की तरह जुटे रहे । श्री यादव को सरोकारों की पत्रकारिता के लिए देश दुनिया में पहचाना गया है। वन्य प्राणियों और वन संपदा के संरक्षण के लिए श्री यादव ने कई डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया है। अपने सम्पादकीय उच्च स्तर और विचार की गुणवत्ता के कारण इन डाक्यूमेंट्री को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के सम्मान और पुरस्कार से नवाजा गया है। मूलतः गंजबसौदा निवासी अनिलजी ने पत्रकारिता के साथ अन्तर्राष्टीय स्तर पर पर्यावरण व जीव बचाव की चिंता को रेखांकित करते रहे। इनका असमय चला जाना अपूरणीय क्षति है। परमपिता परमात्मा दिवंगत आत्मा को श्रीचरणो में स्थान दे।

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Dakhal News 5 October 2020


bhopal,Navodaya Vidyalaya ,alumni donated ,16 Samsung smart phones

कोरोना काल ने डिजिटलाइजेशन को इस कदर बढ़ाया कि पढ़ाई-लिखाई भी अब आनलाइन होने लगी है. इससे बड़ा संकट उन छात्रों के समक्ष आ गया है जो गरीब घरों से हैं. खासकर नवोदय विद्यालय में पढ़ने वाले ज्यादातर होनहार छात्रों का बैकग्राउंड ऐसा नहीं होता कि उनके परिजन उन्हें मोबाइल फोन दे सकें. इसी कष्ट को देखते हुए नवोदय विद्यालय से पढ़कर अलग अलग क्षेत्रों में नाम रोशन कर रहे पूर्व छात्रों ने एक पहल की. इनने स्मार्ट फोन खरीदे और नवोदय विद्यालय में पढ़ रहे गरीब बच्चों में वितरित कर दिया. खबर यूपी के जिला गाजीपुर से है. जवाहर नवोदय विद्यालय गाजीपुर से पढ़े पूर्व छात्रों ने वर्तमान में पढ़ रहे छात्रों को 16 स्मार्ट फोन की सहायता दी. इससे अब ये छात्र आनलाईन अध्ययन अच्छे ढंग से कर सकेंगे. जवाहर नवोदय विद्यालय गाजीपुर के परिसर में आनलाईन पढ़ाई में आ रही परेशानी को देखते हुए यहीं के पूर्व छात्रों ने आज दिनांक 04/10/2020 को अपने अनुज छात्रों के संकट का हल कर दिया. इन पूर्व छात्रों ने 16 स्मार्ट फोन का वितरण किया. प्राचार्य महोदय डा. इकरामुद्दीन सिद्दीकी ने पूर्व छात्रों की इस दानवीरता की प्रशंसा की और उन्हें नेक काम के लिए धन्यवाद दिया. इस कार्य में श्रीमती निर्मला कश्यप सक्रिय रहीं। इनके निर्देशन में पूर्व छात्र संजय, आनन्द, डा0 अनिल, शिवबचन, विवेक, उपेन्द्र, अजहर एवं जितेन्द्र ने अन्य छात्रों से सहयोग लेकर 16 सैमसंग स्मार्ट फोन विद्यालय को प्रदान किया। इसको आज प्राचार्य की अध्यक्षता में छात्र एवं छात्राओं में वितरित किया गया। ये स्मार्ट फोन उन्हीं बच्चों को दिया गया जो फोन न होने के अभाव में अभी तक आन लाईन अध्ययन नहीं कर पा रहे थे। इस कार्यक्रम में वरिष्ठ शिक्षक वीपी दूबे, श्री सतीश कुमार पाण्डेय, श्री मनीष कुमार जायसवाल, श्री एसके मिश्रा, श्रीमती निर्मला कश्यप, श्रीमती सुशीला देवी, श्री कमल कुमार, एसके बिन्द, श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव समाजसेवी गाजीपुर एवं अन्य छात्र तथा अभिभावकगण उपस्थित थे।

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Dakhal News 5 October 2020


bhopal, Lata Mangeshkar , poem of nature written,inscription of Khushbu

-श्रवण गर्ग– लता जी पर मैंने कोई बीस-इक्कीस वर्ष पहले एक आलेख लिखा था ।अवसर था इंदौर में ‘माई मंगेशकर सभागृह ‘के निर्माण का ।उसमें मैंने लता जी के साथ उसके भी सोलह वर्ष पूर्व(1983) इंदौर की एक होटल में तब उनके साथ हुई भेंटवार्ता का ज़िक्र किया था ।उस आलेख का शीर्षक दिया था ‘ख़ुशबू के शिलालेख पर लिखी हुई प्रकृति की कविता’।आलेख की शुरुआत कुछ इस तरह से की थी :’लता एक ऐसी अनुभूति हैं जैसे कि आप पैरों में चंदन का लेप करके गुलाब के फूलों पर चल रहे हों और प्रकृति की किसी कविता को सुन रहे हों।’ अपने बचपन के शहर इंदौर की उनकी यह आख़िरी सार्वजनिक यात्रा थी।(वे बाद में कोई पंद्रह साल पहले स्व.भय्यू महाराज के आमंत्रण पर उनके आश्रम की निजी आध्यात्मिक यात्रा पर इंदौर आयीं थीं)।इंदौर और उसका प्रसिद्ध सराफा बाज़ार उनकी यादों में हमेशा बसा रहता है जिसका कि वे मुंबई में भी ज़िक्र करती रहतीं हैं। वर्ष 1983 की इस मुलाक़ात के बाद लता जी से फ़ोन पर कोई बारह-तेरह साल पहले बात हुई थी।तब मैंने ‘दैनिक भास्कर’ के एक आयोजन में समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था और उन्होंने अपने ख़राब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए असमर्थता व्यक्त कर दी थी।उनकी 1983 की इंदौर यात्रा कई मायनों में अविस्मरणीय कही जा सकती है।मैं तब ‘नई दुनिया’ हिंदी दैनिक को छोड़ देने के बाद अंग्रेज़ी दैनिक ‘फ़्री प्रेस जर्नल’ के साथ काम कर रहा था। लता जी तब इंदौर के एकमात्र अच्छे होटल श्रीमाया में वे ठहरी हुईं थीं। मैं उनके साथ जिस समय चर्चा कर रहा था ,उनके नाम के साथ जुड़कर होने जा रहे लता मंगेशकर समारोह का तब के बहुत बड़े कांग्रेस नेता स्व.सुरेश सेठ विरोध कर रहे थे। सेठ साहब का विरोध लता जी के प्रति नहीं बल्कि समारोह के आयोजक समाचार पत्र (नई दुनिया) के प्रति था।सेठ साहब का विरोध अपनी चरम सीमा पर था।होटल के बाहर काफ़ी हलचल थी ।ख़ासा पुलिस बंदोबस्त था।अर्जुन सिंह तब प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।सेठ साहब(शायद) उनकी सरकार में वरिष्ठ मंत्री भी थे। बहरहाल, श्रीमाया होटल के अपने छोटे से कमरे में प्रशंसकों से घिरी हुईं स्वर साम्राज्ञी के चेहरे पर बाहर जो कुछ चल रहा था उसके प्रति कोई विक्षोभ नहीं था।मन अंदर से निश्चित ही दुखी हो रहा होगा।मैं सवाल पूछता गया और वे अपनी चिर-परिचित मुस्कान के साथ जवाब देती रहीं।वे जब तक जवाब देतीं ,सोचना पड़ता था कि अगला प्रश्न क्या पूछा जाए।लता जी को जैसे पहले से ही पता चल जाता था कि आगे क्या पूछा जाने वाला है।वे जानतीं थीं कि दुनिया भर के पत्रकार एक जैसे ही सवाल पूछते हैं।प्रत्येक साक्षात्कार का पहला सवाल भी यही होता है कि आपको यहाँ (इंदौर) आकर कैसा लग रहा है ? इतने वर्षों के बाद सोचता हूँ कि इंदौर की बेटी को उसके शहर में आकर कैसा लगा होगा ,क्या यह भी कोई पूछने की बात थी ? शायद इसलिए थी कि उन्हें अपने ही गृह-नगर में इस तरह के विरोध की उम्मीद नहीं रही होगी।और निश्चित ही डरते-डरते पूछा गया आख़िरी सवाल भी वही था जो उनसे लाखों बार पूछा गया होगा :’आप पर आरोप लगता रहता है कि आप नयी गायिकाओं को आगे बढ़ने का मौक़ा नहीं देतीं ?’ चेहरे पर कोई शिकन नहीं।हरेक सवाल का जवाब वैसे ही दे दिया जैसे किसी ने निवेदन कर दिया हो कि अपनी पसंद का कोई गाना या भजन गुनगुना दीजिए।और फिर एक खिलखिलाहट ,पवित्र मुस्कान जिसके सामने आगे के तमाम प्रश्न बिना पूछे ही ख़त्म हो जाते हैं। भारत के ख्यातिप्राप्त क्रांतिकारी कवि, साहित्यकार और अपने जमाने की प्रसिद्ध पत्रिका ‘कर्मवीर’ के सम्पादक पंडित माखनलाल चतुर्वेदी से मैं उनके निधन (30 जनवरी,1968) के पहले खंडवा में जाकर मिला था।वे उन दिनों वहाँ एक अस्पताल में भर्ती थे।बातों ही बातों में उन्होंने लता जी का ज़िक्र किया ।उनका कहना था कि ‘ईथर वेव्ज़’ के रूप में लता(जी) आज हमारे चारों ओर उपस्थित हैं। उनके कहने का आशय था कि हमारे हृदय में अगर रेडियो की तरह कोई रिसीवर हो तो हम चौबीसों घंटे हर स्थान पर सुनते रह सकते हैं।स्वर साम्राज्ञी के प्रति इससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता था ! थोड़े दिनों बाद उक्त वार्ता मैंने माखनलाल जी के अभिन्न सहयोगी रहे प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार स्व. रामचंद्र जी बिल्लोरे को इंदौर में सुनाई।वे तब इंदौर क्रिश्चियन कॉलेज में हिंदी के विभागाध्यक्ष थे। डॉ.बिल्लोरे ने लता जी के प्रति माखनलाल जी के स्नेह और सम्मान का एक और प्रसंग याद करके मुझे बताया : ‘दादा (माखनलाल जी) के बैठक कक्ष में दीवार पर दो तस्वीरें लगी हुईं थीं ।इनमें एक महात्मा गांधी की थी और दूसरी किसी अन्य महापुरुष की थी।एक स्थान ख़ाली था।दादा से पूछा गया कि ख़ाली स्थान पर वे किसकी तस्वीर लगाएँगे तो उन्होंने जवाब दिया था कि लता मंगेशकर की।’ मराठी के प्रसिद्ध साहित्यकार विजय तेंडुलकर ने लता जी के बारे में एक बार कहा था :’लड़की एक रोज़ गाती है ।गाती रहती है-अनवरत।यह जगत व्यावहारिकता पर चलता है ,तेरे गीतों से किसी का पेट नहीं भरता। फिर भी लोग सुनते ही जा रहे हैं पागलों की तरह।’ और लताजी गाए ही जा रही हैं-बिना रुके ,बिना थके।और लोग सुनते ही जा रहे हैं ,पागलों की तरह। लता जी को उनके जन्मदिन पर कोटिशः प्रणाम। श्रवण गर्ग देश के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक हैं.

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Dakhal News 30 September 2020


mumbai, RK Sinha, punishing media persons ,

इन दिनों हिन्दुस्थान समाचार में हाहाकार मचा हुआ है। सैकड़ों कर्मचारी निकाले जा चुके हैं और बचे कर्मचारी वेतन के लिए विलाप कर रहे हैं। हिन्दुस्थान समाचार के चेयरमैन आरके सिन्हा ने पत्रकारों को पिछले चार महीने की सैलरी नहीं दी है। उनको दूसरी बार भाजपा द्वारा राज्यसभा न भेजे जाने के कारण वो नाराज हैं। यह नाराजगी वो हिन्दुस्थान समाचार के कर्मचारियों पर निकाल रहे हैं। सिन्हा इन दिनों संघ से इतने नाराज हैं कि उनके बड़े पदाधिकारियों को भी इग्नोर कर रहे हैं। संपादकीय टीम व संघ सिन्हा से सैलरी के लिए गिड़गिड़ा रहा है, इसके बाद भी सिन्हा अपने देहरादून की कोठी में सपरिवार आनंद ले रहे हैं। हिन्दुस्थान के कर्मचारी अपने बच्चों के दूध के पैसे नहीं जुटा पा रहे हैं। मकान का किराया नहीं दे पा रहे हैं। फीस, कॉपी, दवा नहीं जुटा पा रहे हैं। इसके बावजूद संस्थान के शीर्ष पदाधिकारियों पर कोई असर नहीं है। आखिर जब चार महीने का वेतन न मिला हो तो कर्मचारी कैसे जिन्दा हैं, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। वहीं सिन्हा का कहना है कि उन्होंने संस्थान को बहुत कुछ दिया, संघ की खूब सेवा की। पर उन्हें बदले में न राज्यसभा मिली और न राज्यपाल बनाए गए। इन दिनों सिन्हा के सुर बदले हैं। वो बिहार राजनीति में भाजपा से इतर अपना नया ठिकाना तलाश रहे हैं। हालांकि पार्टी विरोधी गतिविधि वो लोकसभा चुनाव में भी कर चुके हैं लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। सिन्हा का राजनैतिक रसूख इतना है कि उनकी सिक्योरिटी कंपनी दिन प्रतिदिन कमाई दोगुनी कर रही है। हर सरकारी जगह पर उनकी सिक्योरिटी एजेंसी को मौका दिया जा रहा। वहीं पत्रकार बंधु रोड पर आने को मजबूर हैं। कुछ कर्मचारियों का कहना है कि अब वेतन पाने के लिए केवल आमरण अनशन ही बचा है। हिन्दुस्थान समाचार के हालात अब लावारिश जैसे हैं। क्योंकि अब कर्मचारियों की पीड़ा का निदान तो दूर कोई महसूस करने वाला भी नहीं है। (छोटा कर्मचारी हूँ। इसलिए विनम्र निवेदन है कि पहचान गुप्त रखी जाए) एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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Dakhal News 30 September 2020


bhopal, Has India become a police state?

एस आर दारापुरीआईपीएस (सेवानिवृत्त) लेखक, स्टीवन लेविट्स्की और डैनियल ज़िब्लाट ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “हाउ डेमोक्रेसीज़ डाई: व्हाट हिस्ट्री रिवीलज़ फ़ॉर फ्यूचर” में कहा है कि “डेमोक्रेसी तख्तापलट के साथ मर सकती हैं- या वे धीरे-धीरे मर सकती हैं। यह एक भ्रामक रूप में धीरे धीरे होता है, एक तानाशाह नेता के चुनाव के साथ, सरकारी सत्ता का दुरुपयोग और विपक्ष का पूर्ण दमन। ये सभी कदम दुनिया भर में उठाए जा रहे हैं- कम से कम डोनाल्ड ट्रम्प के चुनाव के साथ- और हमें समझना चाहिए कि हम इसे कैसे रोक सकते हैं। ” अब अगर हम अपने देश को देखें तो यह उतना ही सत्य प्रतीत होता है जितना कि अमेरिका में। क्या उपरोक्त सभी घटनाएँ भारत में नहीं हो रही हैं? एक तानाशाह नेता और विपक्ष के पूर्ण दमन के रूप में मोदी के चुनाव के अलावा, सरकारी सत्ता का दुरुपयोग बहुत स्पष्ट है। सरकारी शक्तियों के बीच पुलिस किसी भी सरकार के हाथों में सबसे शक्तिशाली साधन है। वास्तव में इसे राज्य की शक्ति का डंडा कहा जाता है। सामान्य तौर पर, पुलिस को कानून और व्यवस्था बनाए रखने, अपराध को रोकने, अपराध की जांच करने और अपने अधिकारों के प्रयोग करने वाले लोगों की रक्षा करने के लिए एक उपकरण कहा जाता है। लेकिन यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि अक्सर राज्य द्वारा पुलिस को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जाता है ताकि विपक्ष और नागरिकों को दबाया जा सके, जो सरकार की नीतियों और कार्यों के साथ इत्तफाक नहीं रखते हैं। इस लिए सरकार पुलिस को अधिक से अधिक शक्तियां देना चाहती है। इसलिए धीरे धीरे लोकतांत्रिक व्यवस्था अपने सत्ता पक्ष यानी पुलिस के सहारे एक अधिनायकवादी संगठन में बदल जाती है। राज्य के अन्य संस्थान भी एक सत्तावादी मोड में बदल दिये जाते हैं। अंत में लोकतांत्रिक राज्य एक पुलिस राज्य बन जाता है।   अब अगर हम अपने देश को देखें तो हमें पता चलता है कि 2014 में मोदी के नेतृत्व में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से राज्य अधिक से अधिक तानाशाही होता जा रहा है। हर भाजपा शासित राज्य में पुलिस को अधिक से अधिक शक्तियां दी गई हैं और न केवल अपराधियों या कानून तोड़ने वालों के साथ बल्कि असंतुष्टों और राजनीतिक विरोधियों के साथ कठोर व्यवहार करने के लिए खुली छूट दी गयी है। सामान्य दंड वाले प्रावधानों के साथ यूएपीए और एनएसए जैसे कठोर कानूनों का दुरुपयोग किया जा रहा है। इसका परिणाम यह है कि यूएपीए और एनएसए के तहत बहुत बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार रक्षकों को बुक किया गया है। भीमा कोरेगांव मामला इसका एक भयानक उदाहरण है। गुजरात और उत्तर प्रदेश ऐसे राज्य हैं जहां पुलिस का दमन सबसे क्रूर है। उत्तर प्रदेश में योगी ने पुलिस को “ऑपरेशन ठोक दो” यानी अपराधियों पर कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हाथ दिया है। राज्य ने 5000 से अधिक मुठभेड़ों को अंजाम दिया है जिसमें 100 से अधिक लोग मारे गए हैं और बहुत बड़ी संख्या में टांग या पैरों में गोली मारी गयी है। निस्संदेह मारे गए और घायलों की अधिकतम संख्या मुसलमानों के बाद दलितों और सबसे पिछड़े वर्ग के लोगों की है। राज्य नीति के रूप में किए गए मुठभेड़ों के गुजरात मॉडल का ईमानदारी से पालन किया जा रहा है, यहां तक ​​कि कभी-कभी उत्तर प्रदेश में उससे अधिक भी। एक बहुत बड़ी संख्या में व्यक्तियों को एनएसए के तहत जेल में रखा गया है। आपातकाल के दौरान संख्या इससे कम हो सकती है। यहाँ भी मुसलमानों और दलितों का अनुपात मुठभेड़ों की तरह ही अधिक है। वर्तमान में हम कोरोना संकट का सामना कर रहे हैं। कोविड-19 संक्रमण के कारण न केवल लोगों की मौत हो रही है, बल्कि वे महामारी को नियंत्रित करने के नाम पर राज्य द्वारा दमन का सामना भी कर रहे हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि एक कानून “महामारी रोग अधिनियम, 1897 के रूप में जाना जाता है जो कि विभिन्न महामारियों के दौरान अब तक इस्तेमाल किया गया है। इस अधिनियम में केवल 4 धाराएं थीं। इस अधिनियम के तहत जारी किए गए सरकारी आदेशों के उल्लंघन के लिए, धारा 3 में एक माह की जेल की अधिकतम सजा और रुo 200 जुर्माना था. लेकिन मार्च में मोदी सरकार ने कोरोना वारियर्ज़ को साधारण चोट पहुँचाने के लिए इसमें 3 महीने से 5 साल तक की कैद की अधिकतम सजा और 50,000 से 2 लाख रुo तक का जुर्माना होने का संशोधन किया है। गंभीर चोट के मामले में 6 महीने से 7 साल तक की कैद और 2 लाख से 5 लाख रुपये का जुर्माना। इसके अलावा संपत्ति को नुकसान की कीमत की दुगनी लागत पर वसूली का प्रावधान है। इससे आप देख सकते हैं कि ब्रिटिश और पिछली सरकारें बहुत मामूली सजा से महामारी के खतरे से निपट सकती थीं लेकिन मोदी सरकार ने इसे बहुत कठोर दंड के रूप में बढ़ाया है। इसका उद्देश्य आम आदमी को आतंकित करना है। मोदी अक्सर कहते रहे हैं कि हमें संकट को अवसर में बदलना चाहिए। लेकिन कोरोना महामारी से लड़ने के उपायों को बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल करने के बजाय, उनकी सरकार ने जनता को आतंकित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया है। पुलिस द्वारा सताए जा रहे प्रवासी मजदूरों के दृश्य राज्य के आतंक और दुखी नागरिकों के प्रति अमानवीयता के उदाहरण हैं। इसी तरह दिसंबर में उत्तर प्रदेश में सीएए / एनआरसी प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी हजारों की संख्या में हुई, जिसमें 21 लोग मारे गए लेकिन पुलिस ने इससे इनकार करते हुए कहा कि यह प्रदर्शनकारियों की आपसी गोलीबारी से हुयी हैं. इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि असंतोष की आवाज को कुचलने के लिए पुलिस की ताकत का कैसे इस्तेमाल किया गया है। फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों में पुलिस न केवल हमलावरों से मिली रही, बल्कि अब उसने पीड़ितों को ही आरोपी बना दिया है। सीएए / एनआरसी के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं को साजिशकर्ता के रूप में गिरफ्तार किया गया है और उनके खिलाफ यूएपीए का कड़ा कानून इस्तेमाल किया गया है। यहां तक ​​कि सीपीएम के सीताराम येचुरी, स्वराज इंडिया के योगेन्द्र यादव, सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर, डॉ. अपूर्व नंद और फिल्म निर्माता राहुल रॉय जैसे राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं को भी चार्जशीट में रखा गया है। इसी तरह बड़ी संख्या में छात्र नेताओं और जामिया मिलिया और जेएनयू के सांस्कृतिक कर्मियों को झूठे आधार पर गिरफ्तार किया गया है। उमर खालिद की हालिया गिरफ्तारी राज्य की शक्ति के दुरुपयोग का एक क्रूर उदाहरण है। ऊपरोक्त से यह देखा जा सकता है कि मोदी सरकार के तहत भारत तेजी से पुलिस स्टेट बन रहा है। सामान्य कानूनों को और अधिक कठोर बनाया जा रहा है। राजद्रोह, यूएपीए और एनएसए जैसे काले कानूनों का धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है। लेखकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार रक्षकों और विपक्षी नेताओं को झूठे आरोपों में फंसाया जा रहा है। दुर्भाग्य से अदालतें भी आम आदमी के बचाव में नहीं आ रही हैं जैसा कि अपेक्षित है। विरोधियों या असंतुष्टों को दंडित करने के लिए पुलिस और अन्य पुलिस एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। इसलिए यह उचित समय है कि जो लोग लोकतंत्र और कानून के राज में विश्वास करते हैं, उन्हें तानाशाही के हमले के खिलाफ खड़े होने के लिए हाथ मिलाना चाहिए और हमारे देश को पुलिस स्टेट नहीं बनने देना चाहिए। अब चूंकि यह हिंदुत्ववादी ताकतों की राजनीतिक रणनीति का नतीजा है, अतः इसका प्रतिकार भी राजनीतिक स्तर से ही करना होगा जिसके लिए एक बहुवर्गीय पार्टी की ज़रुरत है क्योंकि वर्तमान विपक्ष इसको रोकने में असमर्थ दिखाई दे रहा है। एस आर दारापुरीआईपीएस (सेवानिवृत्त)राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट

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Dakhal News 28 September 2020


bhopal,Proverbs , pseudo intellectuals, foreign media

डॉ. अजय खेमरिया   भारत में बेनकाब हो चुके सेक्युलरिस्ट उदारवादियों का विदेशी नेक्सस वैश्विक जगत में भी सबको नजर आने लगा है। टाइम पत्रिका के ताजा अंक में विश्व की 100 ताकतवर शख्सियत के साथ हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जगह देना और साथ में शाहीन बाग धरने पर बैठी 82 वर्षीय महिला को इस सूची में शामिल किया जाना, बहुत कुछ स्पष्ट कर रहा है। वैसे भी अमेरिका और पश्चिमी मीडिया के लिए भारत के हिन्दू तत्व और दर्शन सदैव उसी अनुपात में हिकारत भरे रहे हैं जैसा भारत के वाम बुद्धिजीवियों का बड़ा वर्ग प्रस्तुत करता आया है। टाइम की सूची में यूं तो जिनपिंग, ट्रम्प, मर्केल सहित अन्य राष्ट्रों के प्रमुख भी शामिल हैं लेकिन जिस वैशिष्ट्य के साथ हमारे प्रधानमंत्री को छापा गया है, उससे दो बातें स्पष्ट होती हैं- प्रथम यह कि मोदी के बगैर विदेशी मीडिया का भी गुजारा नहीं होता है। दूसरा भारत को समझने और रिपोर्टिंग के लिए वामपंथी ही उनके पास अकेले स्रोत हैं।   "टाइम" ही नहीं बीबीसी, दी इकोनॉमिस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स, वाल स्ट्रीट जनरल, वाशिंगटन पोस्ट, गल्फ न्यूज, एफ़वी, डीपीए, रॉयटर्स, एपी, गार्डियन जैसे बड़े मीडिया हाउस का भारतीय एजेंडा देश के उन्हीं बुद्धिजीवियों द्वारा निर्धारित और प्रसारित होता है, जिनकी पहचान पिछले कुछ वर्षों में टुकड़े-टुकड़े, अवॉर्ड वापसी के रूप में सार्वजनिक हो चुकी है। मई 2014 के बाद से सरकारी धन और स्वाभाविक शासक दल की सुविधाओं पर टिके रहने वाला यह बड़ा बौद्धिक गिरोह भारतीय लोकतंत्र और संसदीय व्यवस्था के प्रति लोगों को भड़काने में भी जुटा हुआ है। सुविधाओं से सराबोर लुटियंस से बेदखली ने इस गिरोह को इतना परेशान कर दिया है कि आज भारत के विरुद्ध खड़े होने में भी इन्हें संकोच नहीं है। वस्तुतः हिंदुत्व और बाद में नरेंद्र मोदी के विरुद्ध लंबा प्रायोजित अभियान चलाने के बावजूद जनता द्वारा मोदी को राज दिए जाने के संसदीय घटनाक्रम ने इस वर्ग की कमर तोड़ दी है। 2014 के बाद 2019 की मोदी की ऐतिहासिक जीत तो किसी पक्षाघात से कम नहीं है। ध्यान से देखा जाए तो भारतीय उदारवादियों ने बेशर्मी की सीमा लांघकर दुनिया में भारत और हिंदुत्व को लांछित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हिन्दू नेशनलिस्ट, हिन्दू तालिबान, हिन्दू रेडिकल, हिन्दू मर्डरर जैसी शब्दावलियों को सर्वप्रथम किसी विदेशी मीडिया ने नहीं बल्कि भारतीय वाम बुद्धिजीवियों ने ईजाद किया है।   टाइम पत्रिका ने प्रधानमंत्री मोदी को लेकर 2012, 2015, 2019 में भी स्टोरी प्रकाशित की और सबकी इबारत में हिन्दू शब्द अवश्य आया है। बीजेपी के लिए हिन्दू राष्ट्रवादी विशेषण लगाया जाता है। मानों हिन्दू और हिंदुत्व कोई नाजिज्म का स्रोत हो। ताजा अंक में पत्रिका के संपादक कार्ल विक लिखते हैं- "लोकतंत्र के लिए निष्पक्ष चुनाव ही पर्याप्त नहीं है क्योंकि इससे केवल यही मालूम पड़ता है कि किसे अधिक वोट मिले हैं। भारत की 130 करोड़ आबादी में ईसाई, मुस्लिम, सिख, जैन, बौद्ध रहते हैं, 80 प्रतिशत हिन्दू हैं। अबतक सभी प्रधानमंत्री हिन्दू ही हुए। मोदी ऐसे शासन कर रहे हैं जैसे और कोई उनके लिए महत्व नहीं रखता। मुसलमान मोदी की हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी के निशाने पर है।" पत्रिका आगे लिखती है "नरेंद्र मोदी सशक्तीकरण के वादे के साथ सत्ता में आये। उनकी हिन्दू राष्ट्रवादी भाजपा ने न केवल उत्कृष्टता को बल्कि बहुलतावाद विशेषकर भारत के मुसलमानों को पूरी तरह खारिज कर दिया है। दुनिया का सबसे जीवित लोकतंत्र अंधेरे में घिर गया है।"   सवाल यह है कि दुनिया की सबसे बड़ी निर्वाचन प्रक्रिया से दो बार चुनकर आये मोदी को निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया के बाद भी खारिज किया जाएगा? लोकतंत्र का झंडा लेकर घूमने वाले अमेरिकी मीडिया के लिए भारत में निष्पक्ष चुनाव की स्वीकार्यता कोई महत्व नहीं रखती है?क्या यह निष्कर्ष हमारे संसदीय लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर ठीक वैसा ही आक्षेप नहीं है जो अवॉर्ड वापसी गैंग पिछले 6 वर्षों से स्थानीय विमर्श में लगाता आ रहा है। कभी ईवीएम, कभी वोट परसेंट, कभी चुनावी मुद्दों की विकृत व्याख्या और हिन्दू ध्रुवीकरण जैसे कुतर्कों को खड़ा कर मोदी सरकार की स्वीकार्यता पर प्रश्नचिह्न यहां भी लगाये जाते हैं। केवल बीजेपी को हिन्दू राष्ट्रवादी विशेषण लगाया जाना कुत्सित मानसिकता को प्रमाणित नहीं करता है? क्या अमेरिका, इंग्लैंड या यूरोप में गैर ईसाई राष्ट्राध्यक्ष बनते रहे हैं? चेक रिपब्लिक और फ्रांस को छोड़ कितने देशों ने खुद को धर्मनिरपेक्ष घोषित कर रखा है।   बुनियादी सवाल यही है कि क्यों भारत के सिर पर सेक्यूलरिज्म को थोपकर इसकी सुविधाजनक व्याख्या के आधार पर हमारे चुने हुए प्रधानमंत्री को लांछित किया जाए। इससे भी बड़ा सवाल यह है कि विदेशी मीडिया के पास क्या कोई अध्ययन और शोध मौजूद है जो यह प्रमाणित करता हो कि मोदी और बीजेपी मुसलमानों को निशाने पर ले रहे हैं? सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास मोदी सरकार का दर्शन रहा है। सरकार की फ्लैगशिप स्कीमों में प्रधानमंत्री आवास, उज्ज्वला, जनधन, हर घर शौचालय, सुकन्या, किसान सम्मान निधि, खाद्य सुरक्षा, मुद्रा लोन में किसी हितग्राही को केवल मुसलमान होने पर बाहर किया गया हो, ऐसा कोई उदाहरण आजतक सामने नहीं आया। प्रायोजित खबरें अक्सर तथ्य की जगह कथ्य का प्रतिबिम्ब होती है।   टाइम ने दुनिया के 100 ताकतवर शख्सियत में शाहीन बाग की 82 वर्षीय दादी बिलकिस बानो को जगह दी है। इसकी इबारत लिखाई गई है- राणा अयूब से। जी हां वही राणा अयूब जो सार्वजनिक तौर पर मोदी और अमित शाह के विरुद्ध झूठ का प्रोपेगंडा चलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में बेपर्दा हो चुकी हैं। "गुजरात फाइल्स"-एनाटॉमी ऑफ ए कवरअप 'कूटरचना में इन्ही राणा अयूब ने हरेन पांड्या की हत्या की मनगढ़ंत कहानियां गढ़ी और फिर एक जेबी एनजीओ से सुप्रीम कोर्ट में नए सिरे से जांच के लिए जनहित याचिका दायर कराई। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात फाइल्स को फर्जी, मनगढ़ंत, काल्पनिक बताकर खारिज कर दिया। दिल्ली दंगों के दौरान दो साल पुराना कोई वीडियो ट्वीट कर नफरत फैलाने के मामले में भी इन मोहतरमा का दामन दागदार रहा है। पत्रिका का बिलकिस को 100 ताकतवर शख्सियत में रखा जाना और राणा अयूब से ही उसके बारे में लिखवाना टुकड़े-टुकड़े गैंग और पश्चिमी मीडिया के गठबन्धन को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त हैं।   सभी जानते हैं कि शाहीन बाग का धरना अवैध था उस धरने में भारत के विरुद्ध षडयंत्र रचे गए। शरजील इमाम, उमर खालिद जैसे छात्र नेताओं ने भारत के चिकिन नेक काटने, ट्रम्प के दौरे पर अराजकता फैलाने से लेकर दिल्ली दंगों तक की पृष्ठभूमि तैयार की। नागरिकता संशोधन कानून का सबन्ध भारत के किसी मुसलमान से नही है, यह सर्वविदित तथ्य है। एनआरसी का प्रारूप तब और आज भी सामने नहीं था, लेकिन देश भर में झूठ और नफरत फैलाकर मोदी-अमित शाह के साथ भारत को बदनाम किया गया। इसी नकली और प्रायोजित धरना-प्रदर्शन की आइकॉन के रूप में राणा अयूब के जरिये टाइम ने बिलकिस को मोदी के समानान्तर जगह देकर अपनी चालाकी को खुद ही प्रमाणित कर दिया।   राणा के हवाले से बिलकिस को लेकर लिखा गया है कि "वो ऐसे देश में प्रतिरोध का प्रतीक बन गईं जहाँ मोदी शासन बहुमत की राजनीति द्वारा महिलाओं और अल्पसंख्यक की आवाज को बाहर कर रही है।" सवाल यह है कि तीन तलाक के नारकीय दंश से मुक्ति दिलाने वाले मोदी राज में महिलाओं और अल्पसंख्यक के उत्पीड़न का प्रमाणिक साक्ष्य किसी के पास उपलब्ध है? सिवाय अतिरंजित मॉब लिंचिंग की घटनाओं के जो 130 करोड़ के देश में स्थानीय कानून की न्यूनता का नतीजा है जो अखलाक के साथ पालपुर में भी घटित होती है। लेकिन शोर केवल अल्पसंख्यक और उसमें भी मुसलमानों को लेकर खड़ा किया जाता है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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Dakhal News 26 September 2020


bhopal,Disillusioned with Harivansh!

रवि प्रकाश- आप पत्रकारिता में हमारे हीरो थे। लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ते थे। ईमानदार थे। शानदार पत्रकारिता करते थे। ‘जनता’ और ‘सरकार’ में आप हमेशा जनता के पक्ष में खड़े हुए। आपको इतना मज़बूर (?) पहले कभी नहीं देखा। अब आप अच्छे मौसम वैज्ञानिक हैं। आपको दीर्घ जीवन और सुंदर स्वास्थ्य की शुभकामनाएँ सर। आप और तरक़्क़ी करें। हमारे बॉस रहते हुए आपने हर शिकायत पर दोनों पक्षों को साथ बैठाकर हमारी बातें सुनी। हर फ़ैसला न्यायोचित किया। आज आपने एक पक्ष को सुना ही नहीं, जबकि उसको सुनना आपकी जवाबदेही थी। आप ऐसा कैसे कर गए सर? यक़ीन नहीं हो रहा कि आपने लोकतंत्र के बुनियादी नियमों की अवहेलना की। क़रीब दस साल पहले एक बड़े अख़बार के मालिक से रुबरू था। इंटरव्यू के वास्ते। उन्होंने पूछा कि आप क्या बनना चाहते हैं। जवाब में मैंने आपका नाम लिया। वे झल्ला गए। उन्होने मुझे डिप्टी एडिटर की नौकरी तो दे दी, लेकिन वह साथ कम दिनों का रहा। क्योंकि, हम आपकी तरह बनना चाहते थे। लेकिन आज…! एक बार झारखंड के एक मुख्यमंत्री ने अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लाने के लिए सरकारी हेलिकॉप्टर भेजा। आपने पहले पन्ने पर खबर छापी। बाद में उसी पार्टी के एक और मुख्यमंत्री हर सप्ताहांत पर सरकारी हेलिकॉप्टर से ‘घर’ जाते रहे। आपका अख़बार चुप रहा। हमें तभी समझना चाहिए था। आपके बहुत एहसान हैं। हम मिडिल क्लास लोग एहसान नहीं भूलते। कैसे भूलेंगे कि पहली बार संपादक आपने ही बनाया था। लेकिन, यह भी नहीं भूल सकते कि आपके अख़बार ने बिहार में उस मुख्यमंत्री की तुलना चंद्रगुप्त मौर्य से की, जिसने बाद में आपको राज्यसभा भेजकर उपकृत किया। आपकी कहानियाँ हममें जोश भरती थीं। हम लोग गिफ़्ट नहीं लेते थे। (कलम-डायरी छोड़कर) यह हमारी आचार संहिता थी। लेकिन, आपकी नाक के नीचे से एक सज्जन सूचना आयोग चले गए। आपने फिर भी उन्हें दफ़्तर में बैठने की छूट दी। जबकि आपको उन पर कार्रवाई करनी थी। यह आपकी आचार संहिता के विपरीत कृत्य था। बाद में आप खुद राज्यसभा गए। यह आपकी आचार संहिता के खिलाफ बात थी। ख़ैर, आपके प्रति मन में बहुत आदर है। लेकिन, आज आपने संसदीय नियमों को ताक पर रखा। भारत के इतिहास में अब आप गलत वजहों के लिए याद किए जाएँगे सर। शायद आपको भी इसका भान हो। संसद की कार्यवाही की रिकार्डिंग फिर से देखिएगा। आप नज़रें ‘झुकाकर’ बिल से संबंधित दस्तावेज़ पढ़ते रहे। सामने देखा भी नहीं और उसे ध्वनिमत से पारित कर दिया। संसदीय इतिहास में ‘पाल’ ‘बरुआ’ और ‘त्रिपाठी’ जैसे लोग भी हुए हैं। आप भी अब उसी क़तार में खड़े हैं। आपको वहाँ देखकर ठीक नहीं लग रहा है सर। हो सके तो हमारे हीरो बने रहने की वजहें तलाशिए। शुभ रात्रि सर।

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Dakhal News 21 September 2020


bhopal, Editor Manoj Binwal ,dies from Corona

बेहद दुखदायी ख़बर मिल रही है। दैनिक भास्कर से जुड़े रहे और वर्तमान में प्रजातंत्र अखबार इंदौर में कार्यरत पत्रकार मनोज बिनवाल का कोरोना के कारण निधन हो गया है। मनोज का इलाज एक सुपर स्पेशिएलटी हास्पिटल में चल रहा था। मनोज के निधन से मीडियाकर्मी स्तब्ध हैं। सभी ने ईश्वर से कामना की, दुखी शोक संतप्त परिवार को दुख सहने की शक्तिप्रदान करें!   दैनिक भास्कर के डीबी संस्करण के मध्यप्रदेश में  संपादक रहे मनोज बिनवाल का कोरोना उपचार के दौरान निधन से अब वो मीडियाकर्मी भी कोरोना से सतर्क हो गए हैं जो इसे हल्के में ले रहे थे और लगातार बाहर निकल रहे थे। श्री बिनवाल ने हाल ही में प्रजातन्त्र अखबार जॉइन किया था. वे गुजरात, राजस्थान में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं. उन्हें चरक अस्पताल में कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद भर्ती किया गया था. मृत्यु से दो दिन पहले  कोविड केयर सुपर हास्पिलिटी सेंटर में दाखिल किया गया था. बताया जा रहा है कि बिनवाल के माता-पिता भी संक्रमित हैं  

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Dakhal News 21 September 2020


bhopal, Jaya worried, about which plate, cinema has become,drain of intoxication

-निरंजन परिहार अगर वह किसी हिंदी सिनेमा का कोई सीन होता, और वे इतने ही दमदार तरीके से बोलतीं, तो लोग हर डायलॉग पर तालियां बजाते, वाह वाह करते और खुश हो जाते। क्योंकि वे अभिनय बहुत अच्छा कर लेती हैं। जीवन भर किया भी तो वहीं है। सो, जया बच्चन सुपर हिट हो जाती। लेकिन बात थी जमाने की परवाह न करनेवाले सिनेमा में नशे को कारोबार की, और जगह थी संसद, जहां पर जो कह दिया, वही दर्ज हो जाता है इतिहास में। संसद में फिल्मों की तरह रीटेक के अवसर नहीं होते। यह वे जानती थीं। इसीलिए जमकर बोलीं। लेकिन बोलने पर बवाल मच गया। क्योंकि जिंदगी कोई सिनेमा नहीं है, जहां पटकथा के पात्रों को पढ़े पढ़ाए डायलॉग पर जीना होता है। यहां तो लोग खुलकर खेलते हैं, बोलते हैं और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर गालियां तक परोस देते हैं, जो कि जया बच्चन को सोशल मीडिया पर मिल भी खूब रही हैं। जया बच्चन ने संसद में कहा कि बॉलीवुड को बदनाम करने की साजिश चल रही है। कुछ लोग जिस थाली में खाते हैं, उसमें ही छेद करते हैं। ये गलत बात है। मनोरंजन उद्योग के लोगों को सोशल मीडिया के माध्यम से बदनाम किय़ा जा रहा है। उनकी तकलीफ यही थी कि बॉलीवुड को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए। जया बच्चन के कहने का अर्थ यही था कि सिनेमा के निष्पाप लोगों को अचानक गुनाहगार साबित किया जा रहा है। लेकिन संसद में यह कहते वक्त जया बच्चन शायद यह भूल गई थी कि सिनेमा के कलाकारों को तो अपनी बदनामी की असल में कोई चिंता ही नहीं होती। अगर होती, तो क्या वे फिल्में हिट करवाने के लिए खुद को बदनाम करने के नुस्खे ढूंढते ? खुद ही खुद के खिलाफ षड़यंत्र फैलाते ? और खुद ही खुद की इज्जत की भद्द पिटवाने की कारस्तानियां करते ? सो, ऐसे फिल्मवालों की क्या तो इज्जत और क्या ही उनकी बदनामी की चिंता। संसद में जया जब सोशल मीडिया के उलाहने दे रही थीं, तो उन्हें इस बात का कतई अंदेशा नहीं था कि वही सोशल मीडिया उनके लिए सनसनाता जबाव लेकर बाहर तैयार खडा मिलेगा। कंगना रणौत ने सोशल मीडिया पर ही उनसे पूछा – ‘जयाजी, क्‍या आप तब भी यही कहतीं अगर मेरी जगह पर आपकी बेटी श्‍वेता को किशोरावस्था में पीटा गया होता, ड्रग्‍स दिए गए होते और शोषण होता। क्‍या आप तब भी यही कहतीं अगर अभिषेक एक दिन फांसी से झूलते पाए जाते? थोड़ी हमदर्दी हमसे भी दिखाइए।‘ जाहिर है कंगना के इस सवाल का सीधा, सरल, सहज और सामान्य सा जवाब माननीय सांसद महोदया के पास हो ही नहीं सकता। कंगना के बाद तो बॉलीवुड सहित देश भर में जया बच्चन के विरोध और समर्थन में जो स्वर उठने लगे, उनमें उनके प्रति आभार के मुकाबले गालियां और गोलियां बहुत ज्यादा हैं। जया बच्चन के खिलाफ यह गुबार इसलिए भड़क रहा है, क्योंकि सिनेमा जगत में ड्रग्स की असलियत से अच्छी तरह वाकिफ होने के बावजूद जया बच्चन संसद में जो बोली, उसमें कितना सच था और कितना झूठ, यह वे खुद भी जानती है। यह सच है कि ‘सिलसिला’, ‘शोले’, ‘गुड्डी’, ‘अभिमान’, ‘जंजीर’ और ऐसी ही ढेर सारी फिल्मों में गजब का अभिनय करने वाली जया बच्चन आजकल बडे पर्दे पर कुछ खास नहीं कर पा रही हैं, लेकिन संसद में वे अभिनय जैसा ही कुछ करने में जबरदस्त कामयाब रही हैं। उन्हें सिनेमा के संसार की उड़ रही इज्जत की चिंता है। लेकिन सिनेमा खुद अपनी इज्जत की परवाह न करते हुए कोकीन, स्मैक और हेरोइन के धुएं में अपनी इज्जत उडाने को हर पल बेताब दिखता है और ड्रग्स की पार्टियां करता है। जया बच्चन चाहे कहे कुछ भी, लेकिन जानती वे भी हैं कि सिनेमा के संसार में सबसे ज्यादा नशेड़ी बसते हैं, और अक्सर वहीं से, किसी न किसी कलाकार के नशीले धुंए में धंसे होने की गंध आती रहती है। फिर भी वही सिनेमा, जया बच्चन की नजरों में दूध का धुला है, किसी हवन की आहुति से प्रज्वलित ज्वाला सा पवित्र है और सूरज की किरणों से निकली चमक सा पावन है। उसे कैसे कोई बदनाम करने की जुर्रत कर सकता है। सो, जया ने कहा, बॉलीवुड को बदनाम करने की साजिश चल रही है। कुछ लोग जिस थाली में खाते हैं, उसमें ही छेद करते हैं। ये गलत बात है। कायदे से देखें, तो बीजेपी के सांसद रविकिशन ने तो ऐसा कुछ कहा भी नहीं था, जिस पर जया बच्चन इतना बवाल मचाती। उल्टे जया बच्चन को तो रविकिशन समर्थन करना चाहिए था। क्योंकि उन्होंने तो पाकिस्तान और चीन से ड्रग्स की तस्करी रोकने और फिल्म उद्योग में इसके सेवन को लेकर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की जांच का मुद्दा उठाया था और इस दिशा में कड़ी कार्रवाई की मांग की थी। लेकिन वे तो भड़क उठीं। उसके उलट आश्चर्यजनक रूप से अमिताभ बच्चन चुप हैं। एकदम चुप। वे अकसर कई ज्वलंत विषयों पर ब्लॉग लिखते हैं। लेकिन फिल्म जगत में बहुत दिनों से हो रहे बवाल पर कुछ नहीं बोले। माना जा रहा है कि अमिताभ की बात उनकी पत्नी जया बच्चन ने कह दी है। वह भी सीधे संसद में। इसीलिए जया के साथ अमिताभ भी निशाने पर है। सोशल मीडिया में दोनों को लेकर जबरदस्त विरोध के स्वर सुलग रहे हैं। हर छोटे – बड़े मामले पर भी मुखर होकर अपना मत व्यक्त करनेवाले अमिताभ का राम मंदिर के शिलान्यास पर कुछ नहीं बोलना भी सोशल मीडिया में मुद्दा बना हुआ है और जया बच्चन का तो विरोध हो ही रहा है। जय़ा के जवाब में रवि किशन ने कहा है कि जिस थाली में जहर हो उसमें छेद करना ही पड़ेगा। और भी बहुत कुछ कहा जा रहा है। तो. अब शायद अमिताभ भी सोच रहे होंगे कि कभी कभी किसी मुद्दे पर न बोलना, बोलने के मुकाबले बहुत बेहतर होता है। (लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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Dakhal News 17 September 2020


bhopal, Take much money, you want, but soften ,your attitude, towards the government

-अमरीक- गुरशरण सिंह हमारे दौर के योद्धा थे। एक विलक्षण सांस्कृतिक महा-लोकनायक। एक ऐसी मशाल जो मनुष्य विरोधी हर अंधेरे को चीरने के लिए सदैव तत्पर रहती है। उन्होंने लोक चेतना के लिए जो किया और जैसा जीवन जिया, उसे पीढ़ियां-दर-पीढ़ियां यकीनन याद रखेंगी। उस विरली-निराली एक शख्सियत के कई मकबूल नाम थे। गुरशरण सिंह..भाजी..बाबा…भाई मन्ना सिंह…। आकड़ों और (विश्व स्तरीय) रिकॉर्डों का संकलन करने वाली नामी-गिरामी संस्थाओ तथा व्यवस्थाओं की जानकारी में हो या नहीं, लेकिन यह तथ्य ऐतिहासिक ओर बेहद जिक्रेखास है कि गुरशरण सिंह ऐसे नाटककार-संस्कृति कर्मी रहे जिन्होने अपने सूबे (पंजाब) के एक- एक गांव, कसबे और शहर में जाकर नाटक किए। बेशक ज्यादा तादाद नुक्कड़ नाटकों की रही। उन्हें नुक्कड़ नाटकों का अनथक व क्रांतिकारी रहनुमा बेवज़ह नहीं कहा जाता। भारत, उत्तर भारत, पंजाब का सियासी व सामाजिक इतिहास और गुरशरण सिंह का रंगकर्म-सफरनामा साथ-साथ चले है। जिस भी घटना ने देश और पंजाब की दशा-दिशा पर अहम असर छोड़ा, उन्होंने बाकायदा उस पर नाटक लिखा और किया। उनमें से कई घटनाएं आज भले ही विस्मृत है पर उन पर भाजी के लिखे नाटक जिंदा है। पंजाब में एक काला दौर ऐसा रहा है जब लोग अखबारों की खबरों और विश्लेषणों पर कम, गुरशरण सिंह के नाटकों और तर्कों पर ज्यादा भरोसा करते थे। खालिस्तानी-सरकारी आतंकवाद के उस खौफनाक दौर में गुरशरणजी ने जो महान काम किया, उसकी मिसाल समूची दुनिया में शायद दूसरी नहीं। उस काली आंधी में जब सूबे की ज्यादातर कलमें खामोश थीं और संस्कृतिकर्मी खौफजदा होकर घरों में आराम कुर्सियों पर बैठ गए थे तो इस बुजुर्ग बाबा ने खिलाफ वक्त को यूं ही बगल से नहीं गुजरने दिया। चौतरफा खूनखराबा और आपाधापी के बीच, ऐन जमीनी स्तर पर जाकर अमन और सद्भाव के लिए सशक्त काम किया। अपनी कला के जरिए अवाम को बड़ी बारीकी से समझाया-बताया कि हिन्दू-सिख एकता कायम रहेगी तो पंजाब बचेगा,देश बचेगा, वर्ना कुछ नहीं बचेगा।   आंतकवाद के काले दौर में कट्टरपंथी मरजीवड़े आतंकी तो गुरशरण सिंह के मुखर खिलाफ थे ही- हुकुमत तथा गैर वामपंथी सियासत भी उनके मुखालिफ थी। वजह भी शीशे की मानिंद साफ थी। उनके उस दौर के नाटको में संत जनरैल सिंह भिंडरावाला, संत हरचन्द सिंह लौंगोवाल, जत्थेदार,गुरूचरणसिंह तोहड़ा, जत्थेदार तलवंडी , सुरजीत सिंह बरनाला, और प्रकाश सिंह बादल के साथ-साथ इंदिरा गांधी, ज्ञानी जैल सिंह, दरबारा सिंह, राजीव गांधी और कैप्टन अमरिंदर सिंह भी बकायदा पात्र होते थे। सबके सब खलनायक की भूमिकाओ में होते थे। प्रसंगवश, भाजी का एक नाटक है ‘हिटलिस्ट’। इस नुक्कड़ नाटक का मंचन एक बार अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के पास किया गया।’संत जी’ इसमें पात्र बनाये गये थे। उन दिनो संत जी की दहशत समूचे पंजाब में बेतहाशा दनदना रही थी और उनकी बदनाम, जालिम तथा जानलेवा ‘हिटलिस्ट’ के किस्से खासजनों तथा आम लोगों को खूब थर्राते थे। चलते नाटक के बीच गुरशरण सिंह जी को धमकी दी गई, नाटक फौरन बंद करने का फरमान सुनाया गया और सूचित किया गया कि आज के बाद उनका नाम हत्यारी हिटलिस्ट में शुमार हो। लेकिन न नाटक रुका और न जान से मार दिये जाने की धमकी फौरी तौर असर दिखा पाई, उल्टे भाजी का बुलंद और अडिग जवाब था कि हथियारों के बूते उन्हें खौफजदा करने की कोशिश न की जाए। हथियार उन्हें भी चलाने-उठाने आते हैं। कोई गलतफहमी नहीं रहनी चाहिए, एक हिटलिस्ट अवाम के भीतर भी आकार ले रही है और उनमें उन सब के नाम शिखर पर हैं जो धर्म और राजनीति के नाम पर निहत्थे व बेगुनाह लोगों पर जुल्म कर रहे हैं। खैर, इस घटना के बाद गुरशरण सिंह को सरकारी एजेंसियों के जबरदस्त दबाव के चलते अमृतसर छोड़कर चंडीगढ़ चले जाना पड़ा। हालाकि उनके प्रशंसकों का एक बड़ा तबका भी चाहता व मानता था कि भाजी को जुनूनी आतंकियो का आसान शिकार कतई नहीं बनना चाहिए। इसी मानिंद गुरशरण सिंह के एक और मशहूर नाटक में बादल, बरनाला और कैप्टन पात्र थे। उसके एक मंचन के दौरान बतौर मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला भी दर्शक-दीर्घा में थे। खुद को पात्र और वह भी खलनायक के तौर पर देखकर वह नाराज होकर उठकर चले गए, पर गुरशरण सिंह ने इस सबकी कोई परवाह नहीं की। यही बरनाला जी मुख्यमंत्री थे और एक नाट्य उत्सव में मुख्य अतिथि थे। वहीं भाजी ने भी नाटक प्रस्तुत करना था। मुख्यमंत्री को बावक्त आता न पाकर उन्होने रोष स्वरूप बहिष्कार कर दिया और नाट्यशाला से बाहर आकर नाटक किया। वह बेखौफ तार्किक प्रतिरोध से लबालब से भरे हुए थे। सोलह सितम्बर 1929 को जन्मे गुरशरण सिंह ने बतौर इंजीनियर लंबा अरसा भाखड़ा डैम में बिताया। वहां वह अक्सर श्रमिक हितों को लेकर लैक डैम के प्रबंधतंत्र से टकराया करते थे। उसी सिलसिले में उन्होने कुछ निर्णायक हड़तालों और आंदोलनो की मजबूत अगुवाई भी बखूबी की। भाजी के भीतर सक्रिय नाटककार ने भाखड़ा डैम पर जन्म लिया। वह श्रमिकों और कर्मचारियों के बीच अर्थपूर्ण नाटक प्रस्तुत करते तो बहुधा प्रबंधन और शिखर अफसरशाही को उनके तीखे तेवर रास न आते। मगर गुरशरण पूरी जिद और लोक समर्पण की भावना से जुटे एवं अड़े रहते। जून, 1975 के बर्बर आपातकाल का उन्होंने हर लिहाज से पुरजोर से विरोध किया था। आपातकाल के जोरदार विरोध में नाटक किए तथा कई सेमीनार आयोजित किए। बौखलाई सरकार ने कई तरह की धमकियां देकर उन्नीस सितम्बर 1975 को उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया। बेशक इस इंकलाबी संस्कृतिकर्मी की सरकार विरोधी सांस्कृतिक गतिविधियां नहीं ही रूकीं। वह निरन्तर अलख जगाते रहे।   जून-84 और नवम्बर-84 ने पंजाबियों और पंजाब को बहुतेरे जख़्म दिये हैं। उस अवधि में भी गुरशरण सिंह पंजाब और पंजाबियत की गहरी पीड़ा की अभिव्यक्ति बनकर सामने आए। खालिस्तानी और राज्य आतंकवाद के प्रबलविरोधी गुरशरण ने आपरेशन ब्लू स्टार का भी अपने तई जबरदस्त विरोध किया और गाँव कस्बों तथा शहरो में जाकर नुक्कड़ नाटक करके तत्कालीन पंजाब संकट की असली परतों से अवाम को रू-ब-रू करवाया। यही काम उन्होंने नवंबर-84 के भयावह सिख विरोधी कत्लेआम के बाद किया। तब उन्होंने ने दिल्ली, कानपुर, हरियाणा व अन्य हिंसाग्रस्त इलाकों में जाकर नुक्कड़ नाटक किया। उनके हर नाटक में यह खुला संदेश है कि व्यवस्था न बदली और हम खामोश रहे तो बार-बार जून-84 और नवंबर-84 होंगे। 1969-71 की नक्सलबाड़ी लहर के साथ भाजी की खुली और सक्रिय सहानुभूति थी। उस लहर ने पंजाब में दस्तक दी तो उन्होने उसके पक्ष में सांस्कृतिक मोर्चा संभाला। पंजाबी के कतिपय नामवर लेखक, कवि व नाटककार नक्सलबाड़ी लहर की देन है। अवतार सिंह पाश, सुरजीत पातर, लालसिंह दिल, अमरजीत चंदन, संतराम उदासी, मित्रसेन मीत, वरियामसिंह संधू, अत्तरजीत,त्रिलोचन तथा अजमेर सिंह औलख आदि कुछ खास नाम है। इन सबका गुरूशरण सिंह से लगाव जगजाहिर है। बहुत कम लोग इस तथ्य से वाकिफ हैं कि पाश का पहला चर्चित कविता संग्रह और वरियामसिंह संधू का पहला कहानी संग्रह गुरशरणजी ने ही छापा था। कितने ही लेखक व नाटककार उनके संरक्षण में परिपक्व हुए और आम पाठकों तक पहुंचे। उन्होंने बलराज साहनी प्रकाशन की स्थापना की थी, जिसका मूल मकसद अच्छा जनवादी और प्रगतिशील साहित्य बेहद कम कीमत पर साहित्यप्रेमियों तक पहुंचाना था। अपनी इस मुहिम को उन्होंने ताउम्र जारी रखा। लोक मुद्दों और लोक साहित्य-संस्कृति पर आधारित कुछ पत्रिकाओं का संपादन-प्रकाशन भी गुरशरण सिंह ने समय-समय पर किया। बलराज साहनी उनके गहरे दोस्त थे तो मशहूर फक्कड़ हिन्दी कवि कुमार विकल भी बहुत करीबी दोस्तो में शुमार थे। उन्होंने प्रेमचंद से लेकर असगर वजाहत तक की कहानियों पर आधारित पंजाबी में कालजयी नाटक लिखे। कई पंजाबी उपन्यासों में गुरशरणजी नायक के तौर पर जनहित में लड़ाइयां लड़ते दिखते हैं। केंद्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखक मित्रसेन मीत ने तो अपने तीन उपन्यासों में उन्हे नायक बनाया है। तीनों उपन्यास हिन्दी में एक ही जिल्द में ’रामराज्य ’ के नाम से अनुदित होकर संकलित है। बेशुमार कहानियों और नाटको में भी गुरशरण सिंह ने अपने बड़े कद के साथ, पात्र बनकर उपस्थित हैं। उन पर ढेरों कविताएं और गीत भी है। ऐसा विरल सम्मान और स्नेह पंजाबी में शायद ही किसी और को हासिल हो। गुरशरण सिंह की अपार लोकप्रियता की ही मिसाल है कि पंजाब में सैकड़ों, हजारों नहीं बल्कि लाखों लोग ऐसे हैं, जिन्हें उनके कई नाटकों के दृश्य और संवाद हूबहू बखूबी याद हैं। इन नाटको में ‘बाबा बोलदा है’, ‘टोया’, ‘हिटलिस्ट’, ‘कुर्सीवाला-मंजीवाला’, ‘जंगीराम दी हवेली’, ‘ऐह लहू किस दा है’, ‘धमक नगारे दी’, ‘कुर्सी मोर्चा ते हवा दे विच लटकदे लोग’, ‘नवां जनम’ आदि प्रमुख हैं। ये वे नाटक हैं जिनका मंचन उन्होने पंजाब के चप्पे-चप्पे में किया है। एक गांव में किये जा रहे नाटक को आस-पास के कई गांवों के लोग, हजारों की संख्या में एकजुट होकर देखते थे। उन्होने दूरदर्शन के लिए धारावाहिक भी बनाया था-’भाई मन्ना सिंह’। इस धारावाहिक में पंजाब के संताप से जुड़ी कहानियो की नाटकीय प्रस्तुति होती थी। इस धारावाहिक ने उन्हें और ज्यादा मकबूल किया और उनका एक और नाम भाई मन्ना सिंह पड़ गया। देश के कई अन्य इलाको में भी वह भाई मन्ना सिंह के नाम से खासे मशहूर हैं। गौरतलब है कि धारावाहिक के लिए भाजी ने किसी किस्म का विचारधारात्मक समझौता नहीं किया था और पंजाब की बाबत् एक सही समझ शेष देश को देने की कोशिश की थी। यह काम उन सरीखा शख्स ही कर सकता था। गुरशरण सिंह ने प्रगतिशील इंकलाबी संगठनों को एक मंच पर लाने की कई बार कोशिश की। प्रमुख संगठन हर बार शहीद भगत सिंह शहादत दिवस पर उनके पुश्तैनी गांव खटकर कलां में बदस्तुर जुटते। इसी मानिंद हमख्याल लोग आए बरस जालंधर स्थित देशभगत यादगार हाल में होने वाले ‘मेला गदरी बाबयां’ इकठ्ठा होते। उन्होंने एक बेमिसाल काम सुदूर देशों मे नुक्कड़ नाटक करने का किया। यही वजह है कि उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोग जानते-मानते हैं। पंजाबी-हिन्दी के साथ-साथ गुरशरणसिंह ने अंग्रेजी में भी नाटक किये। विमर्श और संवाद का कोई भी मौका वे छोड़ते नहीं थे। विद्यार्थी तथा युवा संगठनो में भी उन्होंने खूब काम किया। विद्यार्थियों और युवाओं को वह अपनी असली ताकत मानते थे। महिला व बाल सरोकार भी उनकी चिन्ताओं में शिद्दत से शुमार थे। इन पंक्तियों के लेखक ने बतौर पत्रकार गुरशरणसिंह के कई इंटरव्यू लिये। एक बार उनसे पूछा कि मूलवाद और प्रगतिशीलता विरोधी ताकतों से लड़ने का ऐसा जज्बा पहले-पहल कब पनपा? एक वाकया उन्होंने सुनाया। 1947 में बँटवारे के वक्त वह करीब सत्रह साल के थे। अमृतसर के हाल बाजार से एक जुलूस निकल रहा था। अलफ नंगी औरतों का। वे मुसलिम परिवारों से थी और घोड़ों पर सवार, तलवारों-बरछों से लैस जुनूनी लोग उन्हे घेरे चल रहे थे- शर्मनाक तरीके से उन्हें अपमानित करते हुए। किशोर गुरशरण यह सब देखकर दहल गए और तभी प्रण लिया कि आज के बाद हर तरह की धार्मिक कट्टरता के खिलाफ काम करेगें। ताउम्र उन्होंने किया भी। चन्द्रशेखर जब प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने आतंकवादियों से खुली बातचीत की कवायद शुरू की। साप्ताहिक सण्डे-मेल के लिए इस मुद्दे पर मैने गुरशरण जी का लम्बा साक्षात्कार लिया। रोष में उन्होंने कहा था कि आतंकी संगठनों से भारत सरकार को जरूर बात करनी चाहिए, लेकिन बातचीत में उन समूहों को भी शामिल करना चाहिए, जिन्हें आंतकवादियो ने निशाने पर लिया। तत्कालीन केंद्र सरकार की शर्त थी कि आमने-सामने संवाद से पहले आतंकवादियों को हथियार छोड़ने होंगे और भारतीय संविधान में आस्था रखनी होगी। गुरशरण सिंह का दो टूक कहना था कि यह शर्त दरअसल एक सरकारी मजाक है। खालिस्तानी आंतकवादियों से बातचीत तो करनी ही इसलिये है कि वे हथियार छोड़ दें और भारतीय संविधान को मान लें। भाजी का कहना एकदम सही था। बाद में वह सरकारी कवायद एकदम मजाक बनकर रह गई थी। वह पंजाब के रेशे-रेशे से वाकिफ थे। एक बार उन्होंने न छापने की शर्त पर मुझे बताया था कि एक आला सरकारी एजेंसी के बड़े अधिकारी उनसे मिलने आए और पेशकश की कि जितना चाहे (सरकारी) पैसा ले लीजिए, आतंकवादियों के खिलाफ मुहिम तेज कीजिए पर सरकार के प्रति अपना रवैया नर्म कर लीजिए। गुरशरण सिंह ने सख्ती से इंकार करते हुए उक्त अधिकारियों को चलता किया तथा खूब खरी-खोटी सुनाई। भाजी ने जितना काम खालिस्तानी आतंकवाद पर किया, ठीक उतना ही सरकारी आतंकवाद के खिलाफ भी। उनका साफ मानना था कि व्यवस्था की विसंगतियां धार्मिक कट्टरतावाद और साम्प्रदायिक हिंसा को बल देती है। उन्होंने फर्जी मुठभेड़ों का भी जबरदस्त विरोध किया। जहां संत भिंडरावाला और कतिपय सियासतदानों को उन्होने नाटकों का खलनायक बनाया वहीं सूबे के तत्कालीन डीजीपी रिबेरो, केपीएस गिल व राज्यपाल सिद्धार्थ शंकर रे सरीखे मुठभेड़ विशेषज्ञों को भी नहीं छोड़ा । अब जिस्मानी तौर पर भाजी गुरशरण सिंह नही हैं पर उनका नाम जिन्दा है और सदैव जिंदा रहेंगे। और सदा जिंदा रहेंगे उनके विचार। उनके आलोचक सही ही कहते हैं कि उनके समूचे कृतित्व में कला-सौंदर्य कम बल्कि चिंतन-विचार ज्यादा है। वह हमेशा इसी पर अडिग रहे कि कला कला के लिए नहीं, अवाम और उसके बेहतरी के लिए होती है। तो सदा रहेगी गुरशरण सिंह की रोशनी……! लेखक अमरीक सिंह पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

Dakhal News

Dakhal News 17 September 2020


bhopal Garde ji

आलोक पराड़कर- हिंदी पत्रकारिता के आधार स्तंभ पत्रकारों में से एक तथा मराठी भाषी होते हुए भी कोलकाता और वाराणसी में पत्र-पत्रिकाओं के संपादन का मानदंड स्थापित करने वाले लक्ष्मण नारायण गर्दे के छोटे पुत्र पुरुषोत्तम लक्ष्मण गर्दे का मंगलवार को पूर्वाहन पत्थर गली स्थित पैतृक निवास में निधन हो गया।   अभी दो माह पूर्व ही पुरुषोत्तम लक्ष्मण गर्दे के पुत्र विश्वास गर्दे भाऊ का निधन हुआ था। 92 वर्ष पुरुषोत्तम लक्ष्मण गर्दे स्मृति लोप के शिकार थे और पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे। विश्वास ही उनकी देखभाल करते थे। उनके निधन के बाद बेटियों ने यह दायित्व संभाला था। अपने पिता की तरह पुरुषोत्तम लक्ष्मण गर्दे ने पत्रकारिता की राह नहीं चुनी बल्कि डाक विभाग में नौकरी की लेकिन वे एक कुशल चित्रकार थे। नागरी प्रचारिणी सभा, पराड़कर स्मृति भवन सहित कई स्थानों पर उनके बनाए प्रसिद्ध व्यक्तियों के चित्र लगे हुए हैं। वे गर्दे जीके छोटे पुत्र थे। बड़े पुत्र का वर्षों पहले निधन हो गया था। बाबूराव विष्णु पराड़कर के समकालीन और रिश्तेदार लक्ष्मण नारायण गर्दे ने मराठीभाषी होते हुए भी हिन्दी की अप्रतिम सेवा की है। भारतमित्र, नवजीवन, वेंकटेश्वर समाचार और हिंदी बंगवासी के संपादकीय दायित्वों का निर्वाह करने वाले गर्दे जी ने श्रीकृष्ण संदेश और नवनीत जैसी पत्रिकाएं भी निकाली। उन्होंने महात्मा गांधी की पुस्तक का अनुवाद किया। उनकी सरल गीता पुस्तक भी काफी लोकप्रिय रही। उन्होंने कल्याण के अंकों का संपादन भी किया।

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Dakhal News 11 September 2020


bhopal, Home Ministry, refuses to give list , people with Y category security

जहाँ गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने कंगना रानौत को दी गयी वाई श्रेणी सुरक्षा का जोरशोर से प्रचार-प्रसार किया है, वहीं कुछ दिन पहले ही इस मंत्रालय ने सुरक्षा दिये गए लोगों के नाम सार्वजनिक करने का जोरदार विरोध किया था. लखनऊ स्थित एक्टिविस्ट डॉ नूतन ठाकुर ने एक्स, वाई, जेड तथा जेड प्लस सुरक्षा प्रदत्त लोगों की सूची तथा अन्य संबंधित सूचना मांगी थी. गृह मंत्रालय ने मात्र सुरक्षा प्रदत्त लोगों की कुल संख्या बताई किन्तु उन्होंने आरटीआई एक्ट की धारा 8(1)(जी) में सूचना जिसे प्रकट करने से किसी के जीवन या सुरक्षा को खतरा हो तथा 8(1)(जे) में व्यक्तिगत सूचना के नाम पर सुरक्षा दिए गए लोगों के नाम सार्वजनिक करने से इंकार कर दिया. गृह मंत्रालय ने केंद्रीय सूचना आयोग के सामने भी वही बात कही जिससे सहमत होते हुए सूचना आयुक्त वाई के सिन्हा ने कहा कि सुरक्षा प्राप्त लोगों के नाम सार्वजनिक करने से सुरक्षा देने का उद्देश्य ही विफल हो जायेगा तथा इन लोगों की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है. नूतन ने कंगना का नाम सार्वजनिक करने तथा पूरी सूची को सामने लाने से मना करने की स्थिति को आपत्तिजनक बताया है. MHA declares Kangana Y security, denies info on other’s security While Ministry of Home Affairs, Government of India has announced grant of Y Category security to Kangana Ranaut with much fanfare, only few days ago, it had vehemently opposed providing names of those granted security cover. Lucknow based activist Dr Nutan Thakur had sought list of persons who have been provided various security covers like X, Y, Z, Z plus etc and other related information. MHA only provided total number of persons with different security categories, but opposed providing names of protectees under sections 8(1)(g), related with information, the disclosure of which would endanger the life or physical safety of any person and 8(1)(j), related with personal information. MHA took the same stand before Central Information Commission as well. Information Commissioner Y K Sinha agreed to it saying that revelation of names of the protectees or other details will militate against the very objective of providing security cover and may constitute a threat to the safety and security of the protectee. As per Nutan, making public Kangana’s grant of protection while opposing declaration of the list of other protectees is clearly objectionable.

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Dakhal News 11 September 2020


bhopal, Pro. KG Suresh,new vice-chancellor , Makhanlal Chaturvedi National Journalism University

भोपाल। प्रो. के.जी. सुरेश माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍व विद्यालय भोपाल के नए कुलपति बनाए गए हैं। उनकी नियुक्ति के संबंध में सोमवार को आदेश जारी कर दिये गए हैं। जारी आदेश के अनुसार प्रो. केजी सुरेश का कार्यकाल चार वर्ष का रहेगा। प्रोफेसर के.जी. सुरेश आईआईएमसी के महानिदेशक भी रह चुके हैं।   विदित हो कि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल के नए कुलपति की तलाश लंबे समय से चल रही थी। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद कुलपति दीपक तिवारी ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद प्रो. संजय द्विवेदी को प्रभारी कुलपति बनाया गया था। लेकिन इस बीच प्रभारी कुलपति प्रो संजय द्विवेदी को आईआईएमसी का महानिदेशक बनाया दिया गया है। जिसके बाद से यह पद खाली हो गया था। 

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Dakhal News 7 September 2020


mumbai, Film journalist ,Shyam Sharma ,dies from Corona

दुखद खबर मुंबई से आ रही है. फ़िल्म पत्रकार श्याम शर्मा का कोरोना से निधन हो गया है. फ़िल्म पत्रकार श्याम शर्मा मायापुरी फ़िल्म पत्रिका से जुड़े थे. कई फिल्मी सितारों का किया उनका इंटरव्यू काफी मशहूर हुआ था. मायापुरी फ़िल्म पत्रिका में वे फिल्मों की समीक्षा भी लिखते थे. उनके निधन पर फ़िल्म पत्रकारों की संस्था चेम्बर ऑफ फ़िल्म जर्नलिस्ट ने गहरा दुख जताया है. मुंबई से शशिकांत सिंह की रिपोर्ट.

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Dakhal News 5 September 2020


bhopal, Corona bomb, explodes ,Dainik Bhaskar Bhopal

दैनिक भास्कर के मुख्यालय भोपाल में इस बार कोरोना बम का विस्फोट हुआ है। बताया जा रहा है कि भास्कर के भोपाल ऑफिस में धड़ाधड़ लोग कोरोना पॉजिटिव आ रहे हैं। भास्कर के नेशनल न्यूज रूम, भोपाल में सबसे पहले बिक्रम प्रताप कोरोना पॉजिटिव हुए। बिक्रम ने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से बताया है कि वो भोपाल एम्स में फिलहाल भर्ती हैं और उनका इलाज चल रहा है। बिक्रम के बाद नेशनल न्यूज रुम के ही कृष्ण मोहन तिवारी भी पॉजिटिव आए हैं। बताया जा रहा है कि इस फ्लोर पर कई लोग बीमार हैं। कुछ लोगों ने अपना टेस्ट कराया है जिनकी रिपोर्ट आनी बाकी है। ज्यादातर लोगों को अब वर्क फ्रॉम होम भेजा जा रहा है। एचआर डिपार्टमेंट के भी कुछ लोग पॉजिटीव आए हैं लेकिन मामला छुपाया जा रहा है। वहीं भास्कर के डिजिटल विंग में गौरव पांडे और सत्य प्रकाश पॉजिटिव आए हैं। इस फ्लोर पर भी कई लोग बीमार हैं और टेस्ट करा कर आए हैं। कुछ लोगों का कहना है कि भोपाल ऑफिस में कोरोना फैलाने के लिए यहां के संपादक पूरी तरह जिम्मेदार हैं। भास्कर डिजिटल एडिटर प्रसून मिश्रा किसी जल्लाद से कम नहीं है। पिछले दिनों हितेश कुशवाहा नाम के पत्रकार का इस्तीफा पत्र भी भड़ास ने छापा था जिसमें प्रसून के उत्पीड़न के चलते हितेश ने इस्तीफा दे दिया था। जहां दुनिया भर के डॉट कॉम वर्क फ्रॉम होम सिस्टम से चल रहे हैं वहीं प्रसून मिश्रा लोगों को जबरदस्ती ऑफिस बुलाते हैं। नौकरी से निकालने की धमकी देकर लोगों को जबरिया ऑफिस बुलाया जाता है जबकि घर से आराम से काम हो सकता है। प्रसून मिश्रा के उत्पीड़न से यहां के ज्यादातर कर्मचारी त्रस्त हैं लेकिन कोई नौकरी की वजह से आवाज नहीं उठा पा रहा।   भास्कर के एक पूर्व पत्रकार ने बताया कि प्रूसन मिश्रा कर्मचारियों के उत्पीड़न के लिए कुख्यात आदमी है। किसी की एक छोटी सी गलती पर भी प्रसून एक एक घंटा डांटता है और व्यक्तिगत स्तर पर आकर कर्मचारियों की हद से भी ज्यादा बेइज्जती करता है। डिजिटल के पहले प्रसून नेशनल न्यूज रूम भोपाल का ही एडीटर था। उसके यहां से जाने के बाद कर्मचारियों ने आपस में चॉकलेट बांट कर जश्न मनाया था। एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।

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Dakhal News 3 September 2020


bhopal, TRP,Big bang , Republic India, number one chair, Aaj Tak

यशवन्त–   आजतक को पटखनी देकर नम्बर एक की कुर्सी पर पहुंचे रिपब्लिक भारत चैनल ने नया धमाका कर दिया। पूरे साढ़े तीन अंक की वृद्धि कर आजतक से बहुत ज्यादा आगे निकल गया है।   ऐसा पहली बार हुआ है जब आजतक के अलावा किसी चैनल की टीआरपी 20 अंक के पार पहुंची हो। ऐसा पहली बार हुआ है जब आजतक किसी दूसरे चैनल से चार से ज्यादा अंकों से पिछड़ कर नम्बर दो पर रहा हो।   सुशांत कांड ने हिंदी न्यूज़ चैनलों की दुनिया में बड़ा उलटफेर करा दिया है। सर्वकालिक नम्बर वन आजतक अब रिपब्लिक भारत के सामने घुटने टेक चुका है।   सबसे बुरा हाल हुआ है ज़ी न्यूज़ और एबीपी न्यूज़ का। ये क्रमशः सातवें और छठें स्थान पर सिसक रहे हैं।   देखें आज रिलीज हुई टीआरपी-   Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:NCCS 15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 34   Republic Bharat 20.1 up 3.5   Aaj Tak 16.0 up 1.4   India TV 12.8 up 0.8   TV9 Bharatvarsh 10.4 dn 0.8   News18 India 9.2 dn 0.9   ABP News 8.0 dn 1.3   Zee News 7.6 dn 1.0   News Nation 5.5 dn 0.8   Tez 3.9 dn 0.6   News 24 3.5 dn 0.3   NDTV India 1.8 same   India News 1.1 same   TG: NCCS AB Male 22+   Republic Bharat 20.6 up 3.7   Aaj Tak 15.6 up 1.3   India TV 13.3 up 0.5   TV9 Bharatvarsh 9.9 dn 0.9   News18 India 8.7 dn 1.1   Zee News 8.1 dn 1.1   ABP News 7.8 dn 1.4   News Nation 5.9 dn 0.6   News 24 3.6 dn 0.2   Tez 3.0 dn 0.3 NDTV India 2.1 same

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Dakhal News 3 September 2020


bhopal, Social media is becoming a threat to democracy?

देश में इस समय सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म्स-फ़ेसबुक और व्हाट्सएप -आदि पर नागरिकों के जीवन में कथित तौर पर घृणा फैलाने और सत्ता-समर्थक शक्तियों से साँठ-गाँठ करके लोकतंत्र को कमज़ोर करने सम्बन्धी आरोपों को लेकर बहस भी चल रही है और चिंता भी व्यक्त की जा रही हैं। पर बात की शुरुआत किसी और देश में सोशल मीडिया की भूमिका से करते हैं: खबर हमसे ज़्यादा दूर नहीं और लगभग एकतंत्रीय शासन व्यवस्था वाले देश कम्बोडिया से जुड़ी है। प्रसिद्ध अमेरिकी अख़बार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की वेब साइट द्वारा जारी इस खबर का सम्बंध एक बौद्ध भिक्षु लुओन सोवाथ से है, जिन्होंने अपने जीवन के कई दशक कम्बोडियाई नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा की लड़ाई में गुज़ार दिए थे। अचानक ही सरकार समर्थक कर्मचारियों की मदद से बौद्ध भिक्षु के जीवन के सम्बंध में फ़ेसबुक के पेजों पर अश्लील क़िस्म के वीडियो पोस्ट कर दिए गए और उनके चरित्र को लेकर घृणित मीडिया मुहीम देश में चलने लगी। उसके बाद सरकारी नियंत्रण वाली एक परिषद द्वारा बौद्ध धर्म में वर्णित ब्रह्मचर्य के अनुशासन के नियमों के कथित उल्लंघन के आरोप में लुओन सोवाथ को बौद्ध भिक्षु की पदवी से वंचित कर दिया गया। उनके खिलाफ इस प्रकार से दुष्प्रचार किया गया कि उन्होंने गिरफ़्तारी की आशंका से कहीं और शरण लेने के लिए चुपचाप देश ही छोड़ दिया। सबकुछ केवल चार दिनों में हो गया। फ़ेस बुक सरीखे सोशल मीडिया प्लेटफार्म के राजनीतिक दुरुपयोग को लेकर तमाम प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं में जो चिंता ज़ाहिर की जा रही है, उसका कम्बोडिया केवल छोटा सा उदाहरण है।हम अपने यहाँ अभी केवल इतने खुलासे भर से ही घबरा गए हैं कि एक समुदाय विशेष को निशाना बनाकर साम्प्रदायिक वैमनस्य उत्पन्न करने के उद्देश्य से प्रसारित की जा रही पोस्ट्स को किस तरह बिना किसी नियंत्रण के प्रोत्साहित किया जाता है। अभी यह पता चलना शेष है कि देश की प्रजातांत्रिक सम्पन्नता को एक छद्म एकतंत्र की आदत में बदल देने के काम में मीडिया और सोशल मीडिया के संगठित गिरोह कितनी गहराई तक सक्रिय हैं। कोरोना ने नागरिकों की जीवन पद्धति में सरकारों की सेंधमारी के लिए अधिकृत रूप से दरवाज़े खोल दिए हैं और इस काम में सोशल मीडिया का दुनिया भर में ज़बरदस्त तरीक़े से उपयोग-दुरुपयोग किया जा रहा है। महामारी के इलाज का कोई सार्थक और अत्यंत ही विश्वसनीय वैक्सीन नहीं खोज पाने या उसमें विलम्ब होने का एक अन्य पहलू भी है ! अलावा इसके कि महामारी का दुश्चक्र लगातार व्यापक होता जाएगा और संक्रमण के साथ-साथ मरनेवालों की संख्या बढ़ती जाएगी, नागरिक अब अधिक से अधिक तादाद में अपने जीवन-यापन के लिए सरकारों की कृपा पर निर्भर होते जाएँगे। पर इसके बदले में उन्हें ‘अवैध’ रूप से जमा किए गए हथियारों की तरह अपने ‘वैध’अधिकारों का ही समर्पण करना पड़ेगा। सरकारें अगर इस तरह की भयंकर आपातकालीन परिस्थितयों में भी अपने राजनीतिक आत्मविश्वास और अर्थव्यवस्थाओं को चरमराकर बिखरने से बचाने में कामयाब हो जातीं हैं, तो माना जाना चाहिए कि उन्होंने एक महामारी में भी अपनी सत्ताओं को मजबूत करने के अवसर तलाश लिए हैं। चीन के बारे में ऐसा ही कहा जा रहा है। महामारी ने चीन के राष्ट्राध्यक्ष को और ज़्यादा ताकतवर बना दिया है। रूस में भी ऐसी ही स्थिति है। दोनों ही देशों में सभी तरह का मीडिया इस काम में उनकी मदद कर रहा है। रूस में तो पुतिन के धुर विरोधी नेता नेवेल्नी को बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया का ज़बरदस्त तरीक़े से उपयोग किया गया। रूस के बारे में तो यह भी सर्वज्ञात है कि उसने ट्रम्प को पिछली बार विजयी बनाने के लिए फ़ेसबुक का किस तरह से राजनीतिक इस्तेमाल किया था। नागरिकों को धीमे-धीमे फैलने वाले ज़हर की तरह इस बात का कभी पता ही नहीं चल पाता है कि जिस सोशल मीडिया का उपयोग वे नागरिक आज़ादी के सबसे प्रभावी और अहिंसक हथियार के रूप में कर रहे थे वही देखते-देखते एकतंत्रीय व्यवस्थाओं के समर्थक के विकल्प के रूप में अपनी भूमिका-परिवर्तित कर लेता है।(उल्लेखनीय है कि महामारी के दौर में जब दुनिया के तमाम उद्योग-धंधों में मंदी छाई हुई है, सोशल मीडिया संस्थानों के मुनाफ़े ज़बरदस्त तरीक़े से बढ़ गए हैं।अख़बारों में प्रकाशित खबरों पर यक़ीन किया जाए तो चालीस करोड़ भारतीय व्हाट्सएप का इस्तेमाल करते हैं ।अब व्हाट्सएप चाहता है कि उसके पैसों का भुगतान किया जाए। इसके लिए केंद्र सरकार की स्वीकृति चाहिए। इसीलिए व्हाट्सएप की नब्ज पर भाजपा की पकड़ है।) ऊपर उल्लेखित भूमिका का सम्बंध अफ़्रीका के डेढ़ करोड़ की आबादी वाले उस छोटे से देश ट्यूनिशिया से है, जो एक दशक पूर्व सारी दुनिया में चर्चित हो गया था। सोशल मीडिया के कारण उत्पन्न अहिंसक जन-क्रांति ने वहाँ न सिर्फ़ लोकतंत्र की स्थापना की बल्कि मिस्र सहित कई अन्य देशों के नागरिकों को भी प्रेरित किया। ट्यूनिशिया में अब कैसी स्थिति है ? बढ़ती महंगाई, बेरोज़गारी, ख़राब अर्थव्यवस्था के चलते लोग देश में तानाशाही व्यवस्था की वापसी की कामना कर रहे हैं। वहाँ की वर्तमान व्यवस्था ने उन्हें लोकतंत्र से थका दिया है। ट्यूनिशिया के नागरिकों की मनोदशा का विश्लेषण यही हो सकता है कि जिस सोशल मीडिया ने उन्हें ‘अरब क्रांति’ का जन्मदाता बनने के लिए प्रेरित किया था वही अब उन्हें तानाशाही की ओर धकेलने के लिए भी प्रेरित कर रहा होगा या इसके विपरित चाहने के लिए प्रोत्साहित भी नहीं कर रहा होगा। नागरिकों को अगर पूरे ही समय उनके आर्थिक अभावों , व्याप्त भ्रष्टाचार और जीवन जीने के उपायों से ही लड़ते रहने के लिए बाध्य कर दिया जाए और सोशल मीडिया के अधिष्ठाता अपने मुनाफ़े के लिए राजनीतिक सत्ताओं से साँठ-गाँठ कर लें तो उन्हें (लोगों को) लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं, मानवाधिकार और संवैधानिक संस्थाओं का स्वेच्छा से त्याग कर एकाधिकारवादी सत्ताओं का समर्थन करने के लिए अहिंसक तरीक़ों से भी राज़ी-ख़ुशी मनाया जा सकता है।और ऐसा हो भी रहा है! लेखक श्रवण गर्ग देश के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.

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Dakhal News 31 August 2020


bhopal, Meaning of closure of Kadambini and Nandan

कादम्बिनी वह पत्रिका है जिसे हम पढ़ते हुए बड़े हए हैं। कादम्बिनी आपको रोचक अनुभवों, यात्रा वृतांतों, साहित्यिक कृतियों व जीवनशैली से जुड़े कभी उत्सुकता, कभी आश्चर्य तो कभी सुकून देने वाले सफर पर ले जाती है। कादम्बिनी के अंत में एक चित्र पर कहानी लिखने की प्रतियोगिता आपके बिम्ब निर्माण व कल्पना को सशक्त करती थी तो शब्द के अर्थ व प्रयोग का स्तम्भ शब्द ज्ञान को।   आरम्भ के दिनों में लघु आकार की सर्वप्रिय पत्रिका थी। मेरे यहां अखबार देने वाले महोदय कहते थे कि इसे आप तक पहुंचाने हेतु कुछ अतिरिक्त श्रम व समय व्यय करना पड़ता है। इसके लिए मैं आज भी उनका आभार व्यक्त करता हूँ।   मेरी जानकारी में 1998 या उससे भी पूर्व के संस्करण मेरे घर की अलमारियों, दराजों और एक पुराने अखबारों व पत्रिकाओं से भरे वर्षों से बन्द एक छोटे से कमरे में बिखरे हुएं हैं।   ना जाने कितनी बार मैंने चाय पीते हुए इसकी शब्द पहेलियों को हल करने व सोते समय पीछे दिए चित्र पर शीर्षक देने या कहानी लिखने के प्रयास किए।   सन् १९६० में शुरू हुई कादम्बिनी पत्रिका हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की एक सामाजिक व साहित्यिक पत्रिका थी जो नई दिल्ली से प्रकाशित होती थी। यह विगत पांच दशक से निरंतर हिंदी जगत में एक विशिष्ट स्थान बनाए रखी। संस्कृति, साहित्य, कला, सेहत जैसे विषयों पर सुरुचिपूर्ण सामग्री की प्रभावशाली अभिव्यक्ति ने इसे एक अलहदा पहचान दी। पत्रिका में संवेदना, यात्रावृत्तांत, अनुभवपरक लेख, स्वस्थ मनोरंजन, सहित भाषागत आलेख व बौद्धिक प्रतियोगिताएं रहती थीं। जीवनशैली संदर्भित इसके लेख खासा लोकप्रिय रहे। किशोर, बुजुर्ग, विद्यार्थी, नौकरीपेशा, महिला सहित अन्य सभी लोगों के लिए इसमें उपयोगी सूचनाएं लोगों को लाभान्वित करतीं थीं।   पत्रिकाओं के प्रकाशन बन्द होने की श्रृंखला में प्रसिध्द बाल पत्रिका नंदन भी बन्द होने की दुःखद घोषणा हो चुकी है।   बाल पत्रिका नंदन पिछले ४० वर्षो से प्रति मास प्रकाशित होती है। इस पत्रिका की शुरुआत १९६४ में प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी की स्मृति में हुई थी। नंदन का पहला अंक पंडित नेहरू को ही समर्पित था। नंदन की विषयवस्तु पौराणिक, परीकथाओं, पहेली, अंतर ढूढों आदि पर आधारित होता था। समय के साथ एवं अपने बाल पाठको की बदलती रुचि को ध्यान रख कर नंदन ने प्रासंगिक विषयों एवम महापुरुषों के जीवनवृत्त भी प्रकाशित करना प्रारम्भ कर दिया। आज तक नंदन में प्रकाशित हो चुकीं १०,००० से भी ज्यादा कहानियों ने लोगों को प्रेरणा, सूचना तथा शिक्षा दी। पत्रिका में सुशील कालरा द्वारा बनाई कॉमिक चित्रकथा चीटू-नीटू एक अलग ही पहचान बनाने में सफल रहे।   आज जबकि ऐसी पत्रिकाओं के प्रकाशन की और भी अधिक आवश्यकता है। इसका बन्द हो जाना ना सिर्फ मेरी तकिया की ऊंचाई को कुछ कम कर देगा बल्कि मेरे उस वैचारिक सफर को भी रोक देगा जिस पर मैं जब चाहे इसके पृष्ठों के साथ निकल पड़ता था।   सक्षम द्विवेदी, हिंदी कंटेंट राइटर, डिज़ाइन बॉक्सड क्रिएटिव इंडिया प्राइवेट लिमिटेड। चंडीगढ़।

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Dakhal News 29 August 2020


bhopal, Bring government job insurance policy

केंद्र सरकार को चाहिए कि वह नौकरी करने वालों की नौकरी सुरक्षित रखने के लिए नौकरी बीमा पॉलिसी बनाये। इसमें सरकार और नौकरी करने वालों दोनों को फायदा है। इसमें सरकार या उसके द्वारा नियुक्त बीमा कंपनी को भारी धनराशि प्रीमियम के रूप में मिलेगी और जो नौकरी कर रहे हैं उन्हें भी नौकरी खोने के बाद परिवार का खर्च चलाने में आर्थिक मदद मिलेगी। इसके लिए सरकार स्वाथ्य बीमा योजना की तर्ज पर हर महीने एक निर्धारित प्रीमियम राशि उन लोगों से ले जो कहीं भी निजी संस्थान में नौकरी कर रहे हैं। उसके बाद अगर प्रीमियम राशि देने वाले किसी भी व्यक्ति को उसके नियोक्ता नौकरी से निलंबित करते हैं तो निलंबन की अवधि तक उस व्यक्ति का जो अंतिम माह का वेतन होगा उसका 25 प्रतिशत हर महीने सरकार या उसके द्वारा नियुक्त बीमा कंपनी दे और अगर प्रीमियम देने वाले व्यक्ति को नियोक्ता टर्मिनेट करते हैं तो उस व्यक्ति को उसके अंतिम वेतन का पचास प्रतिशत या 75 प्रतिशत हर महीने सरकार या उसके द्वारा नियुक्त बीमा पॉलिसी कंपनी दे। पूरा वेतन हर महीने बीमा कंपनी ना दे। इसकी वजह ये है कि अगर पूरा वेतन बीमा कंपनी देगी तो नौकरी छोड़ने वालों की बाढ़ लग जायेगी। स्वेच्छा से सेवानिवृत्त होने पर बीमा कंपनी कोई धनराशि न दे। साथ ही सभी राज्य और केंद्र सरकार एक काम और करे। एक नियम बनाये कि कोई भी नियोक्ता अगर किसी भी कर्मचारी को नौकरी पर रखता है तो उसकी नियुक्ति पत्र की एक प्रति नौकरी करने वाले, उसकी बीमा कंपनी, पीएफ ऑफिस और लेबर विभाग को जरूर दे। आज होता ये है कि आज बड़ी बड़ी कंपनियां अपने कर्मचारियों को नियुक्ति पत्र नहीं देती या उनसे साइन कराकर दोनों प्रति रख लेती हैं। अगर कर्मचारियों का नियुक्ति पत्र लेबर विभाग में या पीएफ ऑफिस में होगा तो कंपनियां कर्मचारी को उसका नियुक्ति पत्र आराम से देंगी। अगर कोई कंपनी लेबर विभाग को बिना नियुक्ति पत्र भेजे किसी कर्मचारी की नियुक्ति करतीं हैं तो सरकार उस कंपनी पर भारी जुर्माना लगाए। साथ ही सभी कंपनियों के लिए स्टैंडिंग आर्डर बनाना अनिवार्य कर दे और उसकी एक प्रति लेबर विभाग तथा एक प्रति कर्मचारी को नियुक्ति के समय ही देना अनिवार्य हो। आज ज्यादात्तर कंपनियां स्टैंडिंग आर्डर की जगह मॉडल स्टैंडिंग आर्डर का इस्तेमाल कर रही हैं। साथ ही श्रमिकों की भलाई के लिए सरकार एक नियम और बनाये कि जिन कंपनियों में 100 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं उन्हें आरटीआई के दायरे में लाएं। शशिकांत सिंहपत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी

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Dakhal News 29 August 2020


bhopal, make a career, media,  profile on Linkedin!

इस समय मीडिया इंडस्ट्री में काफी लोग बेरोजगार हुए हैं। खासकर हिंदी मीडिया में। लिंकडीन नौकरियों के लिए अच्छा सोर्स है। यहां कमसे कम पता तो चलते रहता है। वो बात अलग है काम बने या न बने। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि बिल्कुल भी किसी का काम नहीं बनता है। अगर आप अभी तक लिंकडीन पर प्रोफाइल नहीं बनाए हैं और मीडिया में करियर बनाना चाहते हैं, तो आपको बिल्कुल बना लेना चाहिए। बहुत सारे मीडिया हाउस लिंकडीन के जरिए ही वैकेंसी निकाल रहे हैं और ज्वाइनिंग प्रोसेस बढ़ा रहे हैं। इसके साथ ही जिन लोगों के लिंकडीन पर फालोवर्स कम हैं या वह ज्यादा एक्टिव नहीं रहते हैं। उन्हें समय पर नौकरियों के बारे में पता नहीं चल पाता है। इसलिए, मैं हर JD को लिंकडीन पर पोस्ट, रिशेयर करते रहता हूं। ताकि जरूरतमंद तक हर जानकारी आसानी से पहुंच सके, और वह किसी पर नौकरियों के लिए निर्भर न रहें। लेकिन इसके साथ ही हम लोग WhatsApp पर Media Jobs ग्रुप भी चलाते हैं। अभी ग्रुप के चार पार्ट हैं। सभी ग्रुप में मेनस्ट्रीम मीडिया इंडस्ट्री के सीनियर्स और कुछ HR जुड़े हुए हैं। जो ग्रुप में JD शेयर करते रहते हैं। मीडिया जाब्स ग्रुप का मसकद स्पष्ट है। जरूरतमंद लोगों तक निस्वार्थ भाव से नौकरियों के संबंध में सूचना/जानकारी पहुंचाना। जिन लोगों को लगे कि उनके जुगाड़/सोर्स/यार दोस्त काम नहीं आ रहे हैं। वह सोशल मीडिया, जाब्स पोर्टल, जाब्स ऐप पर हमेशा एक्टिव न रहने के कारण नौकरियों से अपडेट नहीं रह पाते हैं। वह लोग मुझे DM करके ग्रुप से जुड़ने के लिए कह सकते हैं। कृपया कमेंट न करें। ग्रुप में मीडिया से संबंधित नौकरियों की सूचना को बिना देरी के शेयर किया जाता है। सिर्फ हिंदी मीडिया के ही नहीं। बल्कि रीजनल लैंग्वेज़। जैसे भोजपुरी, मराठी, बंगाली, गुजराती, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, उड़िया के भी पत्रकार (न्यूज़ प्रोड्यूसर, एंकर, रिपोर्टर), कंटेंट राइटर्स/कापी एडिटर/प्रूफ रीडर/ट्रांसलेटर/वीडियो एडिटर/ग्राफिक डिजाइनर/इंटर्न/पत्रकारिता के छात्र जुड़ सकते हैं।‌ लेकिन ध्यान रहे, कृपया वही लोग हमारे ग्रुप से जुड़े जो वाकई नौकरी को लेकर खुद परेशान हैं या खुद नौकरी करते हुए जरूरतमंद लोगों की निस्वार्थ भाव से मदद करना चाहते हैं। हमारा मकसद खराब करने वाले लोग ग्रुप से कतई न जुड़ें। युवा पत्रकार सिद्धार्थ चौरसिया की एफबी वॉल से.

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Dakhal News 26 August 2020


bhopal, Upendra Rai ,admitted in hospital ,due to deteriorating health!

सहारा मीडिया के सीईओ और एडिटर इन चीफ उपेंद्र राय के बारे में खबर आ रही है कि वे दिल्ली में बसंतकुंज इलाके में स्थित फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराए गए हैं. लगातार चार दिनों से उनका बुखार कम नहीं हो रहा है. 104 डिग्री तक बुखार रहने के कारण उन्हें चार दिनों बाद फोर्टिस हास्पिटल में ले जाया गया.   बताया जा रहा है कि गहन जांच पड़ताल के बाद सामने आया है कि उन्हें एक किस्म का टाइफाइड है. लगातार पत्रकारीय कार्य करने, सहारा मीडिया के लिए हर मोर्चे पर चौतरफा सक्रिय रहने, आराम बिलकुल न करने के चलते शरीर ने अचानक साथ देना बंद कर दिया. बुखार आने के कारण शक हुआ कि कहीं उन्हें कोरोना का संक्रमण तो नहीं. लेकिन कोविड टेस्ट में वे निगेटिव आए. इसके बाद हर किस्म का परीक्षण कराया गया जिसमें टाइफाइड के लक्षण दिखे.   डाक्टरों ने उन्हें अभी भी अपनी निगरानी में अस्पताल में रखा हुआ है. पिछले पांच दिनों से वे हर किस्म के कामकाज से दूर हैं. यहां तक कि वे मोबाइल व वाट्सअप पर भी रिस्पांड नहीं कर रहे.   उल्लेखनीय है कि सहारा मीडिया की जिम्मेदारी संभालने के बाद उपेंद्र राय ने रिकार्डतोड़ इंटरव्यू व शोज किए. इसके लिए उन्हें सहारा ग्रुप के चेयरमैन सुब्रत राय का प्रशंसा पत्र भी मिला. इस साल फरवरी से अगस्त तक के बीच हस्तक्षेप शो के कुल सौ एपिसोड किए. 45 परसनल इंटरव्यू किए. जिनके इंटरव्यू किए गए उनमें ज्यादातर कैबिनेट मिनिस्टर, चीफ मिनिस्टर और गवर्नर थे. बताया जा रहा है कि अभी हफ्ते भर तक उपेंद्र राय अस्पताल में रह सकते हैं या वहां से मुक्ति मिलने के बाद घर पर आराम करेंगे.

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Dakhal News 26 August 2020


bhopal,After shock, Aaj Tak ,walked through, Republic India!

-दयाशंकर शुक्ल सागर- देखिए टीवी के न्यूज चैनल कैसे काम करते हैं. रिपब्लिक भारत पिछले डेढ महीने से सिर्फ और सिर्फ सुशांत डेथ मिस्ट्री चला रहा है. और TRP के खेल यानी हफ़्ते की रेटिंग में कभी वह दूसरे तो कभी तीसरे नम्बर पर रहने लगा. लेकिन इस हफ्ते वह देश का नम्बर-1 चैनल बन गया. पिछले18 साल से नम्बर-1 पर चल रहा है ‘आज तक’ दूसरे नम्बर पर आ गया. अब आज तक दो दिन से सिर्फ और सिर्फ सुशांत डेथ मिस्ट्री चला रहा है. बाकी सारे चैनल भी यही कर रहे हैं.इसलिए टीवी देखने से बेहतर है अमेजन या नेटफिल्कस पर चले जाइए. वहां आपको ज्यादा बेहर मर्डर मिस्ट्री देखने को मिल जाएगी. वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर शुक्ल सागर की एफबी वॉल से।

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Dakhal News 24 August 2020


bhopal,Hear story ,Hemant Sharma, returning corona

हेमंत शर्मा– लौट आया कोविड से मुठभेड़ करके…. तो हो गयी अपनी भी मुठभेड कोविड से। भयानक। हाहाकारी और लगभग जानलेवा। बस यूं समझिए कि तीन रोज तक मौत से सीधा आमना-सामना था और मैं बस ज़िन्दगी और मौत के पाले को छूकर लौट आया। बीस रोज तक अस्पताल में कोविड से लड़ा। कभी थका ,कभी जीतता दीखता तो कभी हारता नज़र आया। सुबह कोरोना को पराजित करने की उम्मीद जगती। रात होते होते टूटती नज़र आती। यह ‘टग आफ वार‘ था। हर रोज़ डाक्टरों की टीम नई रणनीति बनाती मगर ये वाईरस उन्हें गच्चा दे जाता। ये एकदम चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु सी स्थिति थी। लंबे समय तक गाड़ी सातवें व्यूह पर अटकी रही। कई बार तो लगा कि ये सातवां व्यूह वाकई अभेद्य होता है। मगर डॉक्टर भी नए नए अस्त्रों से युद्ध में जुटे हुए थे। यह कोरोना वाईरस रहस्यमय तो है ही साथ ही षड्यन्त्रकारी और धूर्त भी है। एक बार लगेगा कि आप ठीक हो रहे हैं। आप काफी हद तक निश्चिंत होने लगते हैं। मगर यह आठवें, नवें और दसवें दिन पूरी ताक़त से व्यूहरचना करके फिर वापिस आता है और शरीर के सभी अंगों पर एक साथ हमला करता है। आपकी तैयारी, मेडिकल प्रबन्धन और जिजीविषा अगर नही टूटी तो आप लड़ लेंगे। वरना….सामने प्लास्टिक बैग आपका इन्तज़ार कर रहा होता है । कहानी लम्बी डरावनी और रोमांचक है। बस यूं समझिए की मित्रों की दुआएँ, आत्मबल और परिजनों की पुण्याई से ही मैं इसे हरा सका। पूरी ताक़त से जूझा, लड़ा और वापस आ गया। परेशान हुआ पर पराजित नही। इसे आप मेरा दूसरा जन्म भी मान सकते हैं। यह भी कह सकते हैं कि अब किसी और की उम्र पर तो नही जी रहा हूँ! मुझे पता है उन्नीस रोज से मैं यह लड़ाई अस्पताल में अकेले नही लड़ रहा था।आप सब मेरे साथ थे।इसलिए मुझे लगता है यह बचा हुआ दूसरा जीवन आप सबके हिस्से का है।मेरी कोशिश होगी कि अब वैसा ही जिया जाय। मित्रों,कोरोना से लड़ना सिर्फ़ चिकित्सकीय प्रबन्धन है और कुछ नही। प्रबन्धन कमजोर हुआ।या आपकी जिजीविषा घटी तो कोरोना जीतेगा। वरना आप उसे पटक देगें। यह मेरा भोगा हुआ यथार्थ है। कोविड शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंगों पर एक साथ हमला करता है लीवर ,किडनी ,फेफड़ों , दिल और पैक्रियाज को एक साथ निशाना बनाता है। फेफड़ों में सूजन आती है।दम फूलने लगता है। हार्ट की आर्टरी भी सूजने लगती है जिससे हार्ट के चोक होने का ख़तरा बराबर बना रहता है। उधर पैक्रियाज पर हमले से इंसुलिन कम बनती है। इसलिए शरीर में शुगर का स्तर उछाल मारता है। फेफड़ों में सूजन से सॉंस में दिक़्क़त होती है। इन्हे ठीक करने के चक्कर में लीवर और किडनी के एंजाइम इधर उधर भागने लगते है। डॉक्टर इन्हीं चीजों का प्रबन्धन करते हैं। चार रोज़ अस्पताल में भर्ती रहने के बाद मैं कोविड से उबर रहा था। सारे पैरामीटर ठीक थे। केवल निमोनिया के कारण सॉंस लेने में दिक़्क़त थी। सीटी स्कैन की रिपोर्ट बता रही थी कि फेफड़ों में बीस प्रतिशत संक्रमण है। तभी आठवें रोज़ रात में वाईरस ने पूरी ताक़त से दुबारा हमला किया। खून में आक्सीजन का लेवल गिरने लगा। रक्तचाप नीचे की तरफ़ आने लगा। दम घुटने लगा था। डॉक्टरों के हाथ पॉंव फूलने लगे। फ़ौरन फेफड़ों का दुबारा सीटी स्कैन हुआ। इस दौरान मै श्लथ था। डूब उतरा रहा था। पर समझ बनी हुई थी। मैंने डाक्टरों की बातचीत सुनी। संक्रमण ८४ प्रतिशत हो गया था। सिर्फ़ १६ प्रतिशत फेफड़ों पर सॉंस ले रहा था। माहौल बेहद डरावना था। सीटी स्कैन के कक्ष से ही मुझे आई सी यू में ले जाने का फ़ैसला हुआ। यह दूसरी दुनिया थी। आईसीयू जीवन का वह दोराहा होता है जहॉं से एक रास्ता मार्चुरी में जाता है और दूसरा आपके स्वजनों की पुण्याई से खींच कर आपको वापस लाता है। यहॉं एक क्षण में दरवाज़े का रूख बदल जाता है। डॉक्टर विमर्श कर रहे थे। तभी मेरी चिकित्सा में लगे डॉ शुक्ला ने कहा, आई सी यू से अभी बचना चाहिए। आईसीयू जनित समस्याएँ पीछे पड़ सकती है।डॉ शुक्ला कोविड के मास्टर हो गए है। हर रोज़ इटली ,यूके स्पेन में वेवनार के ज़रिए वहॉं के डॉक्टरों के सम्पर्क में रहते है।मेरे प्रति उनमें आत्मीयता का भाव भी है। आईसीयू में जाने न जाने पर डॉ महेश शर्मा का फ़ैसला था कि इनके कक्ष को ही आईसीयू बना दिया जाय। इसके बाद मेरी चेतनता पर असर होने लगा था। मुझे अब कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मुझे लगा कि मैं एक अन्धे गहरे कुएँ में डूबता जा रहा हूँ। शायद यह मेरा मृत्यु से साक्षात्कार था। मुझे अपने सारे दिंवगत मित्र और परिजन दिखने लगे थे। लगा सब छूट रहा है। पर अभी काम बहुत बाक़ी है। गृहस्थी कच्ची है। मित्रों का बृहत्तर परिवार मेरे भरोसे है। काम सिमटा नहीं है। थोड़ा समय मिलता तो सब चीज़ें पटरी पर ला देता। फिर जीवन जिस उत्सवधर्मिता से जिया है। उसमें यह कोरोना मौत तो ‘डिज़र्ब ‘ नहीं करता। अकेलेपन और प्लास्टिक बैग में। नहीं यह कैसे हो सकता है ? काशी यानी महाश्मशान का रहने वाला हूँ जहॉं मृत्यु उत्सव है। मृत्यु के देवता महाकाल का गण हूँ। इतनी छूट तो वो मुझे देगें। अगर नहीं देंगे तो आज उनसे भी मुठभेड़ होगी क्योंकि अब मेरे पास खोने के लिए क्या है? राम ,कृष्ण और शिव भारत की पूर्णता के तीन महान स्वप्न है। राम की पूर्णता मर्यादित व्यक्तित्व में है। कृष्ण की उन्मुक्त और शिव असीमित व्यक्तित्व के स्वामी है। तीनों से अपना घरोपा रहा है। काशी से कैलाश तक शिव का गण रहा हूँ। कृष्ण चरित पर सबसे बड़ा आख्यान कृष्ण की आत्मकथा पिता ने लिखी। वे बड़े भारी कृष्ण भक्त थे इसलिए इनसे भी अपना घरेलू नाता बना और राम की जन्मभूमि आन्दोलन में अपना भी योगदान रहा है। दो किताबें लिखी। सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को जन्मभूमि देने का जो फ़ैसला लिया उसमें इन किताबो की भी भूमिका है। पर इस बार मुझे इन तीनों ने झटका दिया। ऐसा क्यों हुआ यह समझ से परे है। शायद इसे ही भवितव्यता कहते है। पहली बार कोरोना से जंग लड़ते इन तीनों के प्रति मेरे मन में सवाल खड़े हुए। इन तीनों ने मेरी आस्था को डिगाया ही नही लम्बे समय से चली आ रही मेरी आस्था, धार्मिक परम्परा और सिलसिले को तहस नहस कर दिया। मैं गए तीस वर्षों से सावन के आख़िरी सोमवार को बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाज़िरी लगाता हूँ।पर इस बार उन्होंने ऐसी परिस्थितियाँ पैदा की।कि मैं वहॉं नहीं जा सका। मैं आज़ादी के बाद अयोध्या रामजन्मभूमि से सम्बन्धित सभी महत्वपूर्ण मौक़ों पर मैं अयोध्या में मौजूद रहा हूँ।पर इस बार भूमिपूजन के ऐतिहासिक मौक़े पर मर्यादा पुरूषोतम् ने मुझे जाने से रोका। होश सम्भालने के बाद गए साल तक जन्माष्टमी की झॉकी खुद से सजाता रहा। साईकिल पर लाद कर झॉंवा उनकी झॉंकी के लिए लाता था।लेकिन इसबार लीलाधर ने मुझे अस्पताल के एकांत में बिस्तर पर पटक दिया था। मैं अपने अकेलेपन और कमरे की दीवारों से पूछ रहा था मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है ? एक तरफ़ कोविड वाईरस से थका देने वाली जंग दूसरी तरफ़ इष्टदेवों का यह व्यवहार। तीसरे किसी परिजन और मित्र से दस रोज से देखा देखी नही। तीनों परिस्थितियॉं मृत्यु से भी ज़्यादा भयावह थी। यह सोच ही रहा था कि लगा, अरे सावन का अन्तिम सोमवार तो कल ही है। तीस साल से मैं इस रोज़ काशी विश्वनाथ केमंगला आरती में जाता रहा हूँ।यह सिलसिला अबकी टूटेगा। “क्या भोलेनाथ क्या बिगाड़ा है मैनें ? इसबार आप नहीं जाने देंगे।पुराना सेवक हूँ आपका। यह अन्याय क्यों भाई। हे विश्वनाथ यह जान लिजिए ईश्वर का अस्तित्व हमारी आस्था और विश्वास पर टिका है। ईश्वर कोई बाह्य सत्य नहीं है। वह तो स्वयं के ही परिष्कार की अंतिम चेतना-अवस्था है। उसे पाने का अर्थ स्वयं वही हो जाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।” सोचा आज इनसे सीधी बात कर ही लूँ। इतवार की रात बैचैन थी। कल सावन का आख़िरी सोमवार है।जीवन में इन्हीं परंपराओ को संस्कारों की अनमोल थाती की तरह सहेजकर रखा हुआ है।मेरे मन में रोग से डर और तकलीफ़ तो थी। पर बनारस न जाने का ग़ुस्सा ज़्यादा था। नाक में आक्सीजन ,उँगली में मानिटर का क्लम्पू, हाथ में केन्नडूला…. न जाने कब तंन्द्रा में आ गया। जीवन की अनिश्चितताओं और संसार की क्षणभंगुरता पर विचार के दौरान धुएँ सी एक आकृति उभरी। अरे यह तो अपने भंगड भिक्षुक भोलेनाथ है। वे गम्भीर आवाज़ में बोले “क्यों परेशान हो बालक।” डर की चरम सीमा पर मनुष्य निडर हो जाता है।मैंने सोचा मौत के मुहाने पर तो हूँ ही । अब और क्या बिगड़ेगा।तो आज बाबा से अपना सीधा संवाद हो जाय।मैंने पूछा “मेरा अपराध क्या है प्रभु? जाना था अन्तिम सोमवार में आपके दर्शन के लिए और आपने मुझे अस्पताल पहुँचा दिया।”“यह काल की गति है वत्स।”“पर मैं तो महाकाल से बात कर रहा हूँ।हे महाकाल मैं आपका पुराना भक्त हूँ। आपके सारे ज्योतिर्लिंगों का दर्शन कर चुका हूँ। आपके त्रिशूल पर टिकी काशी कीं पंचकोश परिक्रमा भी किया है। आपकी सेवा में कैलाश तक जा चुका। किताब लिख दी। अब तो अंग्रेज़ी में छप गयी।ताकि विधर्मी लोग भी आपका प्रताप जान ले। गुरूदेव अब जान ही लेंगे क्या?” मैं बड़बड़ा रहा था। वे मुस्करा रहे थे।तुम जानते हो।“यह काल की गति है। इसे कोई नहीं रोक सकता।”“पर आप तो काल के देवता हैं“। ऐसा लग रहा था मानो मेरे भीतर नचिकेता की शक्ति आ गई है। अभी कुछ ऐसा पूछ लूंगा कि महादेव भी निरूत्तर हो जाएंगे। “ठीक कहते हो पर हमारे काम बँटे है। ब्रह्मा, सृष्टि विष्णु पालन और मैं संहार करता हूँ।मैं इस वक्त संहार में निकला हूँ।” “प्रभु आप जगत के स्वामी है। आप कुछ भी कर सकते है। बेशक आपने सृष्टि के लिए एक विधान बनाया है। पर आप भी उस विधान से बंधे हुए है। विधाता भी विधान से उपर नहीं हो सकता।” “सच है विधान से ऊपर कोई नहीं हो सकता।लेकिन मनुष्य प्रकृति को कैसे जीत सकता हैं। यहॉं तो ऐसा लग रहा है कि लोग प्रकृति और काल को जीत रहे है। अपनी अलग सृष्टि बनाने में लगे है।“ वे क्रोधित होने लगे।मैंने कहा, “हे रूद्र ,आपकी छवि रौद्र है। नील लोहित शंकर नील लोहित। वह आपकी क्रोध मूर्ति थी। आप विनाशक, संहारक और उच्छेदक है। क्रोध न करे। क्रोध स्वभाव नहीं अभाव है। जहॉं शान्ति और संतोष का अभाव हुआ वहॉं क्रोध उत्पन्न हुआ। आपने क्रोध में काम के भस्म किया पर उसे भी फिर ज़िन्दा करना पड़ा भले अंनग होकर ही।“ मुझे लगा वे मेरी बात सुनने के मूड में है।इसलिए मेरी हिम्मत बढ़ी। “हे गंगाधर चाहे आप कैलाश के राजभवन में रहे या वाराणसी के महाश्मशान में। हिमालय के वैभव और काशी की दरिद्रता दोनो में आपका समभाव है। बाक़ी देव हैं आप महादेव। देवों के भी देव। राम के भी ईश्वर। तो हे रामेश्वर क्रोध में संहार का संकल्प न लें।” वह मुस्कुराए। “मेरे ज़िम्मे संहार का काम है।सृष्टि के संतुलन के लिए सृजन के साथ संहार ज़रूरी है।” “तो प्रभु एक सौ पैंतीस करोड़ में मैं ही मिला आपको। इस जिपिंगवा को क्यो नहीं पकड़ते। उसी ने सब गड़बड़ की है।” मैं निर्दोष मन से प्रश्न कर रहा था।वे बोले, “वही तो इस वक्त हमारे संतुलन का निमित्त है। पर अंत तो उसका भी है। “ “आप ठीक कह रहे है। पर इस वक्त आपके यहॉं सब ठीक नहीं चल रहा है। जिनकी यहॉं ज़रूरत है वो वहॉं जा रहे है। जो यहॉं पाप के बोझ से दबे है। उन्हें कोई नहीं पूछ रहा है। आपके यहॉं भी लालफ़ीताशाही की जकड़न दिख रही है। आपके भैंसे वाले सज्जन जो लोगों का वारंट काटते हैं, आज कल ले देकर लोगों की फ़ाईलों को इधर उधर कर देते हैं जिनका नंबर नहीं है उनका नम्बर पहले लगा देते है और जिनका नम्बर होता है। जो धरती पर बोझ है वह अपनी फ़ाइलों को ग़ायब करा धरती पर मज़ा ले रहे हैं?” महाकाल मुस्कराए, “तो आपकी पत्रकारिता हमारे दफ़्तर तक पहुँच चुकी है।” “इसे आप कंटेम्ट मत समझ लिजिएगा महादेव। ऐसी धारणा बन रही है” इस बात को टाल वे गम्भीर हुए। पूछा, “पर इस वक्त तुम क्यों परेशान हो। तुम बनारस नहीं जा पा रहे हो। इसलिए मैं स्वयं आ गया हूँ। मनुष्य खुद ईश्वर तक नहीं पहुंचता है, बल्कि जब वह तैयार हो जाता है तो ईश्वर खुद उस तक पहुंच जाते हैं।”मुझे लगा सचमुच यह मेरा यह सौभाग्य है। मैं उनके चरणों पर गिर पड़ा।“अगर आपका इतना स्नेह है। तो इस मुसीबत में मैं अस्पताल में क्यों प्रभु।”“इसे ही विधि का विधान कहते है। वत्स जीवन मिलता नहीं, उसे निर्मित करना होता है। जन्म मिलता है, जीवन तो खुद से बनाना होता है।आप जैसा बनाएँगे। वैसे प्रतिफल मिलेगें।”“पर मैंने तो वैसा कुछ नहीं किया है।कि यह रद्दी प्रतिफल मुझे मिले। “ “मृत्यु शाश्वत है वत्स। मनुष्य पैदा होते ही मरना शुरू हो जाता है।तुम जिसको जन्म-दिन कहते हो। वह मृत्यु की घड़ी है, शुरुआत है मृत्यु की। सत्तर वर्ष बाद वह मरेगा, सौ वर्ष बाद मरेगा, मरना आकस्मिक नहीं है कि अचानक आ जाता है, रोज-रोज हम मरते जाते हैं, धीमे-धीमे मरते जाते हैं। मरने की लंबी क्रिया है, जन्म से लेकर मृत्यु तक हम मरते हैं। रोज मरते जाते हैं, थोड़ा-थोड़ा मरते जाते हैं। इसी मरने की लंबी क्रिया को हम जीवन समझ लेते हैं।” मैं भी डटा रहा, “पर मेरे साथ आप ठीक नहीं कर रहे है। जिस काशी में आप चिता भस्म लगा मज़ा लेते हैं। उसी मिट्टी में जन्म लेने और पलने का मुझे सौभाग्य है। यह आपने ही दिया है ।दुनिया में जातिवाद ,परिवारवाद, क्षेत्रवाद फैला है।क्षेत्र के लिहाज से भी आप मेरा ध्यान नहीं रख रहे है। मैं आपका झन्डा उठाए घूमता हूँ। फिर मैं कैसे घुटते दम के साथ नितातं अकेले अस्पताल में हूँ। आपने खबर तक नहीं ली ।” “ये जो सफ़ेद कपड़े पहन कर आपकी देखभाल कर रहे है। इस वक्त वही हमारे प्रतिनिधि है। फिर अगर आप मेरे पास नही आ पा रहे है तो मै तो आपके पास आया।”महादेव की ये बात सुनकर मैं उनके चरणों पर गिर पड़ा।उन्होने पूछा, “क्या चाहते हो?” ” हे गल भुजंग भस्म अंग! अब तो पहले कोरोना से मुक्ति दिलवाए । कोविड निगेटिव होऊँ ।” “अरे निगेटिविटी बहुत ख़राब प्रवृति है।तुम्हें उससे बचना चाहिए।वर्तामान में दुनिया का यही संकट है चौतरफ़ा निगेटिविटी फैली है। ““नहीं भोलेनाथ दुनिया की सारी निगेटिविटी को आपने गरल के तौर पर अपने कण्ठ में रखा हैं ,नीलकण्ठ।” “ हॉं मैंने उसे गले मे रखा है ।पर उसे गले से नीचे नहीं उतरने दिया है।तभी से यह मुहावरा है कि गले की नीचे नहीं उतर रहा है। “ “तो क्या मैं जान दे दूँ।” “नहीं फ़िलहाल आप मंगला आरती में शामिल हो।” इतना कहते ही वे ग़ायब हुए। और मैं मंगला आरती कीतैयारियों में खुद को पा रहा था। अद्भुत दृश्य! अद्भुत दर्शन! मंगला आरती यानी बाबा भोले नाथ को जगाकर ,नहला – धुलाकर उनका श्रृंगार और आरती। दो घंटे की इस पूरी प्रक्रिया में मेरा और उनका आमना सामना रहा बीच में कोई नहीं। अनवरत गंगा की जलधार और दुग्ध धार। बाबा गदगद। यह भोलेपन का चरम नहीं तो और क्या है! इतनी ताक़तवर सत्ता और केवल जल से प्रसन्न! श्रृंगार का ये दृश्य भी आस्था के असीम संसार सा निराला है। श्रृंगार में लगे हुए पुजारी भॉंग धतूरा और न जाने किस किस चीज़ का भोग लगा रहे है। अब मेरी तल्लीनता मेरे फेफड़ों से निकल उनके भोग और जल प्रेम में उलझ चुकी है। सोचने में डूब गया हूं कि इस देव की यूएसपी क्या है? क्यों कोई दूसरा देवता ऐसा नहीं है? ऐसे अनुपम सामंजस्य और अद्भुत समन्वय वाला शिव ही क्यों है ?शिव अर्धनारीश्वर होकर भी काम विजेता हैं। वे गृहस्थ होते हुए भी परम विरक्त हैं। हलाहल पान करने के कारण नीलकण्ठ होकर भी विष से अलिप्त हैं। ऋद्धि-सिद्धियों के स्वामी होकर भी उनसे विलग हैं। उग्र होते हुए भी सौम्य हैं। अकिंचन होते हुए भी सर्वेश्वर हैं। भंगड भिक्षुक होकर भी देवाधिदेव महादेव हैं। यह शिव विरोधाभासों के अनंत महासागर हैं। पर ये विरोधाभास एक दूसरे के विरूद्ध न होकर, पूरक हैं। भयंकर विषधर नाग और सौम्य चन्द्रमा दोनों ही उनके आभूषण हैं। मस्तक में प्रलयकालीन अग्नि और सिर पर परम शीतल गंगाधारा शिव के अनुपम श्रृंगार है। उनके यहां वृषभ और सिंह व मयूर एवं सर्प अपना सहज वैर भाव भुलाकर साथ-साथ खेलते हैं। इतने विरोधी भावों के विलक्षण समन्वय वाला शिव का व्यक्तित्व जीवन शैली के अनंत अमृत से ओतप्रोत है। शिवत्व का दूसरा अर्थ ही दुनिया को सह-अस्तित्व का अनुपम संदेश देना है। रावण शिव तांडव के मंत्रों में शिव की जटाओं में गंगा और मस्तक पर प्रचंड अग्नि की ज्वालाओं का वर्णन करता है। अग्नि और जल के सह अस्तित्व का यही शिवत्व युगों युगों से मानव संतति की प्रेरणा और मार्गदर्शन की नींव बना हुआ है। मंगला की आरती , रूद्राष्टक की ध्वनियाँ ,मंदिर की घंटियों से टकराते हुए आत्मा के तहखानों में उतर गए। दो घंटे की उपासना के बाद मैं तो बाहर आ गया पर मन वहीं छूट गया। अपनी अस्तित्व के कतरे-कतरे को सार्थक करता हुआ। सुबह के पॉंच बज गए। कमरे में नर्स प्रकट हुंई। अरे मैं तो शायद अपने अवचेतन से बात कर रहा था। फिर रोज़ की जॉंच पड़ताल शुरू। रक्त सैम्पल लिए जाने लगे। ईसीजी ,एक्स रे का दौर शुरू। ….जारी…. हेमंत शर्मा लंबे समय तक जनसत्ता अखबार के लिए लखनऊ में बतौर ब्यूरो चीफ कार्यरत रहे। फिर इंडिया टीवी में वरिष्ठ पद पर रहे। इन दिनों टीवी9भारतवर्ष न्यूज़ चैनल का संचालन कर रहे हैं।

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Dakhal News 24 August 2020


bhopal, Recording TRPs is paid for watching TV!

-विवेक सत्य मित्रम- बात पुरानी है। जब टीआरपी का पैमाना टैम हुआ करता था, और मैं एक चैनल का संपादकीय प्रमुख, तब टैम से जुड़े अधिकारी ने अनौपचारिक बातचीत में खुलासा किया था कि राजधानी दिल्ली में टीआरपी मापने वाले सबसे ज़्यादा बक्से सीलमपुर में लगाए गए है़ं! और दूसरे शहरों में भी कमोबेश ऐसे ही इलाक़ों में ज़्यादा बक्से लगे हैं। अगर बार्क वालों ने इन बक्सों की लोकेशन से छेड़छाड़ नहीं की हो तो इस हफ़्ते टीआरपी में नंबर वन होने पर आजतक की खुल्लमखुल्ला बेइज्ज़ती करने वाले रिपब्लिक भारत को कल ही सीलमपुर जैसे सभी इलाक़ों में मिठाई बांट देनी चाहिए ताकि अगले हफ़्ते भी वो चिल्ला सकें न्यूज़रूम में! बाक़ी आपके लिए (ग़ैरचैनलवालों के लिए) ये जान लेने में कोई हर्ज़ नहीं है कि इस देश के नेशनल न्यूज़ चैनलों की औक़ात तय करने वाले लोगों का सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक (शैक्षिक पढ़ा जाए) परिवेश कैसा है? और, ये भी कि टीवी व्यूइंग पैटर्न डेटा कलेक्शन के लिए उन्हें टीवी देखने के पैसे दिए जाते हैं! अब आपके लिए समझना आसान होगा कि हर चैनल पर जो चिल्लमचिल्ली होती है उसका टारगेट ऑडिएंस कौन है? PS: इस पोस्ट का मकसद केवल तथ्य रखना है, इसे किसी ख़ास क्लास के विरूद्ध ना माना जाए। बाक़ी आपकी श्रद्धा! कई न्यूज़ चैनलों में कार्यरत रहे और वर्तमान में बतौर एंटरप्रेन्योर सक्रिय विवेक सत्य मित्रम की एफबी वॉल से।

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Dakhal News 21 August 2020


bhopal, Non-payment ,wages violation , workers

मुंबई : श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान करने में देरी या वेतन न देना संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त जीवन के उनके अधिकार का उल्लंघन है। यह बात बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को कही। जस्टिस उज्जल भुयान और एन आर बोरकर की पीठ ने यह बात उस समय कही जब एक कंपनी को आदेश दिया कि वह लॉकडाउन के दौरान वेतन का भुगतान करे। रायगढ़ में एक इस्पात कारखाने के लगभग 150 श्रमिकों ने अपनी यूनियन के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में कोरोनोवायरस महामारी को देखते हुए सुरक्षा उपायों को लागू करने के लिए कारखाने को दिशा-निर्देश देने की भी मांग की। कंपनी ने वरिष्ठ वकील गायत्री सिंह के माध्यम से दायर याचिका में कहा कि मार्च, अप्रैल और मई में मजदूरों को आधे से कम मजदूरी का भुगतान किया गया था। इसके अलावा, लॉकडाउन से पहले कंपनी ने उन्हें दिसंबर, जनवरी और फरवरी के लिए मजदूरी का भुगतान नहीं किया। हालांकि उन्हें लॉकडाउन लागू होने के बाद मार्च में काम बंद रखने के लिए कहा गया था, लेकिन बाद में कारखाना फिर से खुल गया। याचिका में कहा गया है कि महामारी के मद्देनजर सुरक्षा उपायों को लागू नहीं किया गया और न ही सार्वजनिक परिवहन के अभाव के बावजूद कारखाने से श्रमिकों को आने जाने के लिए कोई व्यवस्था की गई। परिणामस्वरूप, कई मजदूर काम को फिर से करने में असमर्थ हैं। याचिका में कहा गया है कि श्रमिकों और फैक्ट्री मालिकों के बीच विवाद के कारण भुगतान में देरी हुई। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि इस साल मई में हाईकोर्ट ने कारखाने के मालिकों को निर्देश दिया था कि तालाबंदी से पहले के महीनों के लिए श्रमिकों को उनका बकाया भुगतान करें, लेकिन कोई भुगतान नहीं किया गया था। फैक्ट्री मालिकों ने हालांकि आरोपों का खंडन किया और कहा कि यूनियन उनके साथ एक अनौपचारिक समझौता की थी, जिसके तहत श्रमिकों को किश्तों में उनके बकाये का भुगतान किया गया था। अदालत ने माना कि याचिकाकर्ताओं को अनौपचारिक समझौता के आधार पर उनके वेतन से वंचित नहीं किया जा सकता है। शशिकांत सिंहपत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी

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Dakhal News 20 August 2020


bhopal,News photo agency,

World Photography Day : Photojournalists launch News Photo Agency Shall provide large pool of pics for ‘pay and use’ model With an aim to revolutionise the world of photo journalists, an innovative photo agency, News Graph has been launched. The agency has been conceptualised by veteran photo journalists. This platform has been designed in a unique way where both photo journalists and media houses can be mutually benefitted. News Graph began its journey on February 3, 2018 in Chandigarh. After initial success, the founder converted it into Newsgraph Infotainment Media LLP on World Photography Day August 19, 2020. Now this platform is open for all upcoming and senior photo journalists across the country. This will provide a ready platform where photo journalists can learn and earn. By associating with this agency, photo journalists can have multiple benefits. The agency will allow them to create their own profile and photo gallery which will be showcased to all reputed media houses and various other organisations. If their photograph gets chosen for publication, then they shall get paid. The agency will help the photo journalists to earn a decent amount if they can share their exclusive pictures. In an interesting feature, the agency will give cash awards to the best picture of the day or month. Besides, News Graph will provide all relevant information related to photo journalists. A team of experts will help them through webinars and exclusive events. At the same time, the agency will help the media houses who are reeling under economic crisis as it will reduce their dependency on other agencies. The editor of Newsgraph Pankaj Sharma said that our visual database will bring forth the talent of photo journalists. The founder of the agency Anil Thakur said that an excellent platform has been created where media houses and photo journalists can draw innumerable benefits. प्रेस रिलीज

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Dakhal News 20 August 2020


bhopal, Crisis on Sushant, Shiv Sena, Supreme Court, CBI and Government!

-निरंजन परिहार महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार विपक्ष के साथ अपनों के भी निशाने पर है। सुप्रीम कोर्ट ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले को सीबीआई को सौंप दिया है। इस मामले में बीजेपी तो शुरू से ही शिवसेना पर हमलावर रही, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश के बाद कांग्रेस और एनसीपी के नेता भी शिवसेना के रुख पर खुलकर बोल रहे हैं। इस केस की जांच के मामले में शिवसेना पर शुरू से ही उंगली उठती रही है। कांग्रेस और एनसीपी महाराष्ट्र सरकार में शिवसेना की सहयोगी पार्टियां है और इनके नेताओं व मंत्रियों द्वारा इस मामले में बयानों की वजह से सरकार की एकता में फूट साफ दिखाई दे रही है। कांग्रेस के तेजतर्रार नेता संजय निरूपम, महाराष्ट्र सरकार में मंत्री असलम शेख और एनसीपी के शरद पवार, पार्थ पवार सहित गृह मंत्री अनिल देशमुख के बयानों सहित बिहार कांग्रेस के नेताओं के बयान इस मामले में शिवसेना पर हमले के रूप में देखे जा रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर सीबीआई जांच से शिवसेना परेशान क्यों हैं। सरकार में शामिल अपनों के ही हमलावर रुख को देखकर माना जा रहा है कि सरकार हिल रही है। शिवसेना शुरू से ही सुशांत सिह मामले में शक के दायरे में दिखती रही। उसके नेताओं के बयान भी जैसे किसी के बचाव की मुद्रा वाले ही हमेशा लगे और यह भी साफ लगता रहा कि किसी न किसी को तो इस मामले में बचाने की कोशिश हो रही है। हालांकि शुरू से ही महाराष्ट्र सरकार के एक मंत्री का नाम सुना जाता रहा, लेकिन मुख्यमंत्री के बेटे आदित्य ठाकरे ने जब एक बयान में कहा था कि वे सड़क छाप राजनीति नहीं करते, उनका नाम यूं ही घसीटा जा रहा है, तो सभी को लोगों को लगा कि जिस मंत्री का नाम लिया जा रहा है, वह आदित्य ठाकरे ही हो सकते हैं। लेकिन 14 जून को हुई वारदात को दो महीने से भी ज्यादा वक्त बीत जाने के बावजूद एफआईआऱ दर्ज नहीं होना, मुंबई पुलिस की भूमिका स्पष्ट न होने और शिवसेना के नेताओं की अनाप शनाप बयानबाजी ने इस मामले की जांच पर शक पैदा कर दिया। इसके अलावा बिहार पुलिस की टीम को जांच न करने देना और एक पटना पुलिस के एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को जांच के लिए मुंबई आने पर कोरोंटाइन कर दिए जाने से शिवसेना और सरकार की इस मामले में सपष्ट संदेहास्पद भूमिका सामने आई। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 16 अगस्त की सुबह सीबीआई को जांच सौंपे जाने के बाद अब महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार पर अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले चौतरफा हमले शुरू हो गए हैं। कांग्रेस पार्टी के नेता संजय निरुपम ने कहा कि मुंबई पुलिस इस मामले को नाहक प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करे और सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु की जांच सीबीआई को सौंप दे। निरुपम ने यह भी कहा कि मुंबई पुलिस की क्षमता पर किसी को शक नहीं है। लेकिन इस मामले की जांच में ढिलाई बरती जा रही थी, यह दिख भी रहा था। मगर इस ढिलाई का कारण तो सरकार ही जानती है। महाराष्ट्र सरकार में कांग्रेस के कोटे से मंत्री असलम शेख ने भी एएनआई से बातचीत में सीबीई जांच का स्वागत करते हुए कहा कि अगर इस मामले में केंद्र चाहता है कि जांच सीबीआई करे, तो होने देना चाहिए। महाराष्ट्र सरकार में उपमुख्यमंत्री अजित पवार के बेटे एनसीपी के नेता पार्थ पवार ने भी ट्वीट करके कहा – सत्यमेव जयते। इस मामले में महाराष्ट्र पुलिस पर लेकर उठ रहे सवालों पर 13 अगस्त को ही शरद पवार ने भी कहा था कि सीबीआई जांच कराए जाने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने भी कहा है कि वे सुशांत सिंह राजपूत मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत करते हैं। देशमुख ने यह भी कहा कि सीबीआई को जो भी सहयोग की आवश्यकता होगी, वो दी जाएगी। अभिनेता सुशांत सिंह केस की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है, लेकिन इस केस में शिवसेना अपनी भूमिका पर अड़ी हुई है। यह उसके नेताओं के बयानों से साफ है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने कहा कि सीबीआई को जांच सौंपने की कोई जरूरत नहीं थी। राऊत ने कहा कि मुंबई पुलिस जांच के लिए पूरी तरह सक्षम है। मगर बिहार चुनाव की वजह से मामले में राजनीति हो रही है। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले को सीबीआई को सौंप दिया है, तो शिवसेना सन्न है क्योंकि सरकार गिरने की बातें भी सुनने को मिल रही है। सरकार में शामिल तीनों दलों में मतभेद भी लगातार बढ़ रहे हैं। ताजा बयानबाजी के संकेत भी साफ हैं। उधर, बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने इसके स्पष्ट संकेत देते हुए कहा है कि दोस्तों जल्दी ही सुनेंगे महाराष्ट्र सरकार जा ‘रिया’ है। शिवसेना का रक्षात्मक रुख, उसके साथ सरकार में शामिल कांग्रेस व एनसीपी के सीधे हमले और संबित पात्रा के बयानों के अलावा महाराष्ट्र भाजपा के दो बड़े नेताओं प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल और हर मामले में बहुत आक्रामक तेवर दिखानेवाले विपक्ष के नेता देवेंद्र पडणवीस की रहस्यमयी चुप्पी किसी बड़ी राजनीतिक उथल पुथल के साफ सकेत दे रही है। शिवसेना शायद इसीलिए सुशांत सिंह की मौत का केस सीबीआई को सौंपे जाने से ज्यादा परेशान हैं। (लेखक निरंजन परिहार राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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Dakhal News 20 August 2020


bhopal, Why did stock, Hong Kong newspaper ,Apple Daily

–रवीश कुमार– हांगकांग में लोकतंत्र की लड़ाई चल रही है। चीन के आधिपत्य के ख़िलाफ़ हांगकांग की जनता महीनों से प्रदर्शन कर रही है। अब चीन ने एक नया सुरक्षा क़ानून बनाया है जिसके ख़िलाफ़ फिर से प्रदर्शन होने लगे है। इन प्रदर्शनों को कवर करने वाले अख़बार एप्पल डेली के मालिक ज़िम्मी लाई को पुलिस दफ़्तर से गिरफ्तार कर ले गई। हथकड़ी पहना कर। इस गिरफ़्तारी के अगले दिन अख़बार की हेडिंग था “Apple daily must fight on” लोकतंत्र के लिए लड़ने वाली जनता अख़बार के समर्थन में आ गई। लोग ढाई बजे रात को ही लाइन में लग गए कि इस अख़बार की कॉपी ख़रीदनी है। किसी ने कई कापियाँ ख़रीदी। अख़बार का सर्कुलेशन एक लाख से पाँच लाख हो गया। इसके बाद लोग एप्प डेली का कंपनी के शेयर ख़रीदने लगे। शेयरों के दाम हज़ार प्रतिशत तक बढ़ गए। ज़िम्मी लाई को ज़मानत पर रिहा किया गया है। यह ख़बर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के देश में झूठ मानी जाएगी। यहाँ प्रेस का दमन जनता की भागीदारी से हुआ है। तो विरोध कौन करे। बस जनता को ईमानदारी से एलान कर देना चाहिए कि हमें प्रेस की ज़रूरत ही नहीं है। अब देर हो गई है। जनता मर्ज़ी चाहे ट्रेंड करा लें या मीम बन कर वायरल हो जाए अब कोई फ़ायदा नहीं। यह सवाल अलग से है। ख़ुद को विश्व गुरु कहलाने की चाह रखने वाले भारत के प्रधानमंत्री हांगकांग या कहीं भी लोकतंत्र के दमन पर एक शब्द नहीं बोलते हैं। ट्रंप और अमरीका ने हांककांग में चीन के दमन और सुरक्षा कानून पर खुल कर बोला है। भारत के प्रधानमंत्री बेलारूस और हांगकांग पर बोलेंगे ? रूस की संसद ने पुतीन को 2036 तक पद पर बनाए रखने का क़ानून पास किया है। क्या भारत के प्रधानमंत्री या विपक्षों नेता इस पर कुछ बोलेंगे ? लोकतंत्र का मामला आंतरिक मामला नहीं होता है। मानवीय मूल्यों की रक्षा मामला है। मानवीय मूल्य सार्वभौम होते हैं। कभी सोचिएगा। लोड मत लीजिएगा।जो ख़त्म हो चुका है उसके सूखे बीज से माला बना गले में हार डाल लीजिएगा। नाचिएगा। ख़ुशी से । आपने जिस चीज़ को ख़त्म करने में इतनी मेहनत की है उसका जश्न तो मनाइये। Ndtv के चर्चित पत्रकार रवीश कुमार की एफबी वॉल से।

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Dakhal News 17 August 2020


bhopal, Death spokesperson ,alleged media compulsions!

एक राजनीतिक दल के ऊर्जावान प्रवक्ता की एक टीवी चैनल की उत्तेजक डिबेट में भाग लेने के बाद कथित मौत को लेकर टी आर पी बढ़ाने वाले कार्यक्रमों की प्रतिस्पर्धा पर चिंता व्यक्त की जा रही है। एक सभ्य समाज में ऐसा होना स्वाभाविक भी है। पर इस तरह की बहसों के पीछे काम कर रहे प्रभावशाली लोग और जो प्रभावित हो रहे हैं वे भी अच्छे से जानते हैं कि शोक की अवधि समाप्त होते ही जो कुछ चल रहा है, उसे मीडिया की व्यावसायिक मज़बूरी मानकर स्वीकार कर लिया जाएगा। मीडिया उद्योग को नज़दीक से जानने वाले लोग भी अब मानते जा रहे हैं कि बहसों के ज़रिए जो कुछ भी बेचा जा रहा है, उसकी विश्वसनीयता उतनी ही बची है, जितनी कि उनमें हिस्सा लेने वाले प्रवक्ताओं/प्रतिनिधियों के दलों/संस्थानों की जनता के बीच स्थापित है। सत्ता की राजनीति में बने रहने के लिए अपनाए जाने वाले हथकंडों ने समाज को जाति और वर्गों के साम्प्रदायिक घोंसलों में सफलतापूर्वक बांटने के बाद अब मीडिया के उस टुकड़े को भी अपनी झोली में समेट लिया है, जिसका जनता की आकांक्षाओं का ईमानदारी से प्रतिनिधित्व कर पाने का साहस तो काफ़ी पहले ही कमज़ोर हो चुका था। अब तो केवल इतना भर हो रहा है कि ‘आपातकाल’ ने जिस मीडिया के ऊपरी धवल वस्त्रों में छेद करने का काम पूरा कर दिया था, आज उसे लगभग निर्वस्त्र-सा किया जा रहा है। उस जमाने में (अपवादों को छोड़ दें तो )जो काम प्रिंट मीडिया का केवल एक वर्ग ही दबावों में कर रहा था, वही आज कुछ अपवादों के साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का एक बड़ा तबका स्वेच्छा से कर रहा है। यही कारण है कि एक राजनीतिक दल के प्रवक्ता की किसी उत्तेजक बहस के कारण कथित मौत दर्शकों की आत्माओं पर भी कोई प्रहार नहीं करती और मीडिया के संगठनों की ओर से भी कोई खेद नहीं व्यक्त किया जाता। समझदार दर्शक तो समझने भी लगे हैं कि टीवी की बहसों में प्रायोजित तरीक़े से जो कुछ भी परोसा जाता है, वह केवल कठपुतली का खेल है, जिसकी असली रस्सी तो कैमरों के पीछे ही बनी रहने वाली कई अंगुलियाँ संचालित करतीं हैं। एंकर तो केवल समझाई गई स्क्रिप्ट को ही अभिनेताओं की तरह पढ़ने काम अपने-अपने अन्दाज़ में करते हैं। पर कई बार वह अन्दाज़ भी घातक हो जाता है। हो यह गया है कि जैसे अब किसी तथाकथित साधु, पादरी, ब्रह्मचारी या धर्मगुरु के किसी महिला या पुरुष के साथ बंद कमरों में पकड़े जाने पर समाज में ज़्यादा आश्चर्य नहीं प्रकट किया जाता या नैतिक-अनैतिक को लेकर कोई हाहाकार नहीं मचता, वैसे ही मीडिया के आसानी से भेदे जा सकने वाले दुर्गों और सत्ता की राजनीति के बीच चलने वाले सहवास को भी ‘नाजायज़ पत्रकारिता ‘के कलंक से आज़ाद कर दिया गया है। एक राजनीतिक प्रवक्ता की मौत को कारण बनाकर अब यह उम्मीद करना कि मूल मुद्दों पर जनता का ध्यान आकर्षित करने से ज़्यादा उनसे भटकाने के लिए प्रायोजित होने वाली बहसों का चरित्र बदल जाएगा, एंकरों के तेवरों में परिवर्तन हो जाएगा या राजनीतिक दल उनमें भाग लेना ही बंद कर देंगे वह बेमायने है।ऐसा इसलिए कि जो कुछ भी अभी चल रहा है, उसे क़ायम रखना मीडिया बाज़ार की सत्ताओं की राजनीतिक मजबूरी और व्यावसायिक ज़रूरत बन गया है। मीडिया उद्योग भी नशे की दवाओं की तरह ही उत्पादित की जाने वाली खबरों और बहसों को बेचने के परस्पर प्रतिस्पर्धी संगठनों में परिवर्तित होता जा रहा है। दर्शकों और देश का भला चाहने वाले कुछ लोग अभी हैं जो लगातार सलाहें दे रहे हैं कि जनता द्वारा चैनलों को देखना बंद कर देना चाहिए। पर वे यह नहीं बता पा रहे हैं कि फिर देखने के लिए नया क्या है और कहाँ उपलब्ध है ? यह वैसा ही है जैसे सरकारें तो बच्चों से उनके खेलने के असली मैदान छीनती रही और उनके अभिभावक उन्हें वीडियो गेम्स खेलने के लिए भी मना करते रहें। ये भले लोग जिस मीडिया को ‘गोदी मीडिया’ बता रहे हैं उसे ही इस समय असली मीडिया होने की मान्यता हासिल है। जो गोदी मीडिया नहीं है वह फ़िल्म उद्योग की उन लो बजट समांतर फ़िल्मों की तरह रह गया है, जिन्हें बड़े-बड़े अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार तो मिल सकते हैं देश में बॉक्स ऑफ़िस वाली सफलता नहीं। एक प्रवक्ता की मौत से उपजी बहस का उम्मीद भरा सिरा यह भी है कि चैनलों की बहसों में जिस तरह की उत्तेजना पैदा हो रही है वैसा अख़बारों के एक संवेदनशील और साहसी वर्ग में (जब तक सप्रयास नहीं किया जाए )आम तौर पर अभी भी नहीं होता। यानी कि काली स्याही से छपकर बंटने वाले अख़बार चैनलों के ‘घातक’ शब्दों के मुक़ाबले अभी भी ज़्यादा प्रभावकारी और विश्वसनीय बने हुए हैं। उन्हें लिखने या पढ़ने के बाद व्यक्ति भावुक हो सकता है, उसकी आँखों में आंसू आ सकते हैं पर उसकी मौत नहीं होती।यह बात अलग से बहस की है कि जिस दौर से हम गुज़र रहे हैं उसमें मौत केवल अख़बारों को ही दी जानी बची है पर वह इतनी जल्दी और आसानी से होगी नहीं।चैनल्स तो खैर ज़िंदा रखे ही जाने वाले हैं।उनमें बहसें भी इसी तरह जारी रहेंगी। सिर्फ़ प्रवक्ताओं के चेहरे बदलते रहेंगे।एंकरों सहित बाक़ी सब कुछ वैसा ही रहने वाला है । लेखक श्रवण गर्ग देश के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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Dakhal News 17 August 2020


bhopal, Senior journalist ,Pramod Singh died , liver cancer

अखबारों के डेस्क किंग प्रमोद सिंह नहीं रहे… लखनऊ के बड़े-बड़े पत्रकारों की खबरों को सजाने से लेकर नवोदित पत्रकारों को ख़बर का शिल्प सिखाने वाले अखबारी डेक्स वर्क के बाजीगर प्रमोद सिंह नहीं रहे। ये मौजूदा समय में दैनिक प्रभात के लखनऊ एडीशन के स्थानीय संपादक थे।   पिछले 6 महीने से वो लीवर कैंसर से पीड़ित थे। चौथे स्टेज में कैंसर ट्रेस होने के बाद कोरोना काल के कारण परिजनों को उनके इलाज में तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा।   कल रविवार उन्होंने आंखिरी सांस ली। कोरोना से बचाव की एहतियात के चलते कम लोगों की उपस्थिति में आज इनका अंतिम संस्कार लखनऊ के गोमतीनगर स्थित बैकुण्ठ धाम में कर दिया गया। 65 वर्षीय प्रमोद सिंह ने करीब तीन दशक से लखनऊ के करीब आधा दर्जन बड़े अखबारों में डेक्स पर काम किया। दैनिक जागरण, पायनियर, स्वतंत्र भारत, कुबेर टाइम्स इत्यादि अखबारों में वो सब एडीटर, सीनियर सब, चीफ सब जैसे अखबारी डेस्क के ओहदों की सीढ़िया चढ़ते हुए स्थानीय संपादक के पद पर पंहुचे थे। उन्होंने माधवकांतमिश्रा, विनोद शुक्ला, प्रमोद जोशी, नवीन जोशी, ज्ञानेंद शर्मा, घनश्याम पंकज, गुरुदेव नारायण जैसे बड़े संपादको और दिग्गज पत्रकारों के साथ काम किया था।

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Dakhal News 17 August 2020


bhopal, Sand mafia, Madhya Pradesh ,threatens, kill litterateur, Uday Prakash

देश और दुनिया वैश्विक महामारी कोरोनावायरस से लड़ने और लोग अपनी जान बचाने की मुहिम में लगे हैं, वहीं मध्य प्रदेश में रेत माफिया लोगों की जान लेने पर तुले हैं। लॉकडाउन के दौरान राज्य में पूरी तरह रेत माफिया का राज रहा। राज्य में पिछले 4 महीने के दौरान उप जिलाधिकारी, एसडीओपी, तहसीलदार, थानाध्यक्ष, सब इंसपेक्टर से लेकर सिपाही तक रेत माफिया के हमले के शिकार हो चुके हैं। ताजा घटनाक्रम में विश्व के जाने माने और भारत में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले साहित्यकार उदय प्रकाश को ट्रक से कुचलकर मार देने की धमकी मिली है। उदय प्रकाश की गलती यह थी कि उन्होंने सड़क और उनके घर की बाउंड्री तोड़ रही रेत से भरी ट्रकों को रोकने की कोशिश की। रेत से लदे वाहनों ने उनके घर के बाहर से गुजरने वाली निजी सड़क की हालत बदतर कर दी है, जिसके सुधार के लिए उन्होंने स्थानीय प्रशासन से अनुरोध किया था। मंगलवार को उन्होंने रेत माफियाओं के वाहनों को रोका तो खनिज विभाग सहित माफिया के तमाम गुर्गे भी पहुंच गए। माफिया के गुर्गे उदय प्रकाश को धमकियां देने लगे। इस बीच एक युवा ने उन्हें ट्रक से कुचलकर मार देने की धमकी दी। उदय प्रकाश ने इस मसले पर कहा, “मैंने रेत से भरे ट्रकों की आवाजाही पर विरोध जताया, इसलिए माफिया के लोगों ने मुझे धमकी दी। अभी मैंने पुलिस में शिकायत नहीं की है।” उदय प्रकाश सामान्यतया राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के वैशाली इलाके में रहते हैं। कोरोनावायरस के प्रसार के पहले वह अपने पैतृक आवास अनूपपुर पहुंचे। उसके बाद हुए लॉकडाउन से वह गांव में ही फंस गए। वह सोन नदी के किनारे गांव में सुकून महसूस करते हैं। उनके मकान से सटे सोन नदी बहती है। वहीं से खनन माफिया बालू निकालते हैं। उदय प्रकाश का कहना है कि उनके घर के सामने बनी सड़क उनकी पुश्तैनी जमीन है। उन्होंने तत्कालीन जिला कलेक्टर अजय शर्मा को पत्र लिखकर वह जमीन जिला प्रशासन को सड़क के लिए दे दी थी, जिससे स्थानीय निवासियों की सुचारु आवाजाही सुनिश्चित हो सके। स्थानीय लोग रेत माफिया के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे उदय प्रकाश के साथ हैं, लेकिन राजनीति और अपराध जगत के कॉक्टेल के कारण वे विवश हैं। पहले भी मिल चुकी है परिवार को मारने की धमकी मई 2018 में रेत माफियाओं ने उदय प्रकाश के बेटे शांतनु और उनकी पत्नी कुमकुम को रिवॉल्वर दिखाते हुए गोली मार देने की धमकी दी थी। उस समय अनूपपुर के एसपी सुनील जैन ने कहा था कि पहले क्या हुआ, मैं नहीं बता सकता, मैं उस वक्त ट्रेनिंग पर था। सोन नदी में अवैध खनन होने की शिकायत बिल्कुल गलत है। उस समय उदय प्रकाश के परिवार के खिलाफ मिली धमकियों को लेकर साहित्य जगत के लोगों ने विरोध प्रदर्शन भी किए थे। 2018 में मिली धमकियों के बाद जब उदय प्रकाश का परिवार प्रशासन को शिकायत की तो माफिया ने उनके खिलाफ भी शिकायत दर्ज करा दी। इस समय उदय प्रकाश के खिलाफ 4 मुकदमें दर्ज हैं, जो अपराधियों ने उनके खिलाफ दर्ज कराए हैं। साहित्य जगत की वैश्विक हस्ती उदय प्रकाश को भारत की प्रशासनिक व्यवस्था, कानून, नेता व माफियाओं के गठजोड़ ने मुकदमों में उलझा रखा है। मध्य प्रदेश में रेत माफियाओं का राज   मध्य प्रदेश में रेत माफियाओं पर कोई कानून नहीं चलता। जानकारों का कहना है कि इसमें स्थानीय नेताओं से लेकर प्रदेश के आला नेताओं का माफियाओं के साथ गठजोड़ काम करता है, जिसके चलते अधिकारी पूरी तरह बेबस नजर आते हैं और जो भी अधिकारी या पुसिल विभाग का व्यक्ति माफिया का विरोध करता है, उसे मारने पीटने से लेकर हत्या तक कर देने की घटनाएं सामने आ जाती हैं। कुछ घटनाओं से मध्य प्रदेश में माफिया राज के बारे में समझा जा सकता है। मध्य प्रदेश के कटनी में 11 अगस्त 2020 को रेत माफिया पर ग्रामीणों ने लाठी डंडों से हमला कर दिया, जिसकी वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई। कटनी के बरही थाना क्षेत्र के नदावन गांव के केशव तिवारी ने रेत निकाल रहे माफिया का विरोध किया। रेत माफिया भी वहां पहुंच गया। रेत माफिया के लोगों ने तिवारी पर हमला कर दिया। उसके बाद गांव के लोग भी उग्र हो गए और रेत माफिया व उसके साथियों को दौड़ा दौड़ाकर पीटने लगे। मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में विजयपुर के गढ़ी चेकपोस्ट पर 17 जुलाई 2020 को रेत माफिया ने पुसिलकर्मियों पर हमला कर दिया। असिस्टेंट सब इंसपेक्टर राजेन्द्र जादौन को धमकाते हुए चांटा मारा और धक्का देकर जमीन पर पटक दिया। घटना का वीडियो वायरल होने के बाद मामला सामने आया, जिसमें पुलिसकर्मी रेत माफिया के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं। विजयपुर के गोहटा रोड पर ट्रैक्टर ट्रॉली पकड़ने पर 15 से ज्यादा रेत माफिया ने 26 जून 2020 को सहायक कलेक्टर और प्रभारी एसडीएम नवजीवन विजय और तहसीलदार अशोक गोबड़िया के साथ हाथापाई की। रेत माफिया अधिकारियों को धमकाते हुए रेत के ट्रैक्टर-ट्रॉली ले गए। मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में 28 जून 2020 को रेत माफिया ने अपने बेटे के साथ रेत के अवैध भंडारण के खिलाफ कार्रवाई करने पहुंचे वन रक्षक देवशरण और श्रमिक राम नरेश यादव के साथ मारपीट की। वन रक्षक को आरोपियों ने जमकर पीटा और उसकी वर्दी फाड़ डाली। देवास में एसडीओपी ने 29 जून 2020 को दो पुलिस जवानों के साथ रेत से भरी ट्रैक्टर ट्रॉली रोकने की कोशिश की। आरोपी ने एसडीओपी के ड्राइवर पर लोहे की रॉड से हमला कर दिया। इस बीच माफिया ने अन्य साथियों को भी बुला लिया। उसके बाद सभी ने पुलिस जवानों पर हमला कर दिया, जिसमें एसडीओपी के ड्राइवर और पुलिसकर्मी संदीप जाट घाटल हो गए। गढ़ी चेकपोस्ट पर रेत माफिया ने मई 2020 को दो कांस्टेबल को बुरी तरह पीटा। सिपाहियों ने तत्कालीन थाना प्रभारी सतीश साहू से इसकी शिकायत की, लेकिन रेत माफिया पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। 3 दिन बाद दोनों कांस्टेबल को लाइन हाजिर कर दिया गया। बैतूल जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर शाहपुर थाना क्षेत्र में ग्राम गुवाड़ी के पास 19 मई, 2020 को रात साढ़े 11 बजे अवैध रेत खनन कर रहे माफिया के गुर्गों ने राजस्व और पुसिल की टीम पर जानलेवा हमला किया। वाहनों पर पथराव में 2 पटवारी, तहसीलदार के वाहन चालक गंभीर रूप से घायल हो गए और तहसीलदार नरेंद्र ठाकुर और थाहपुर थाना प्रभारी प्रशिक्षु डीएसपी देवनारायण यादव को मामूली चोटें आईं। लॉकडाउन के दौरान नरसिंहपुर जिले में रात के अंधेरे में नर्मदा के साथ उसकी सहायक नदियों में अप्रैल 2020 में रेत का खनन हुआ। रेत माफिया इसका भंडारण कर रहे थे, जिससे मॉनसून शुरू होने पर महंगे दाम पर रेत बेची जा सके। स्थानीय लोगों ने इसकी शिकायत की। इसके बारे में जिले के खनिज अधिकारी रमेश पटेल ने कहा कि लॉकडाउन और कोरोना संकट को लेकर पुलिस बल अभी अन्य कामों में लगा है। सुरक्षा बल की कमी है। रेत खनन की शिकायतें आई हैं, लेकिन फोर्स मिलने के बाद ही कार्रवाई की जा सकती है। व्यावरा शहर की अजनार नदी के किनारे मोहनीपुरा गांव के पास अवैध रेत ले जाने वाले ट्रैक्टरों को पकड़ने गई राजस्व टीम पर मार्च 2020 में हमला हुआ। तहसीलदार की मौजूदगी में कार्रवाई करने पहुंचे आरआई ओपी चौधरी पर ट्रैक्टर चढ़ाने की कोशिश की गई, जिसे आस पास खड़े पटवारियों ने किसी तरह रोका। माफिया सरकारी कर्मियों से ट्रैक्टर छीनकर ले गए।  

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Dakhal News 12 August 2020


bhopal, Rahat Indorei: End of an era of Ghazal

जनाब राहत इंदौरी का जाना ग़ज़ल के एक युग का जाना है। 1 जनवरी 1950 को इंदौर में उनका जन्म हुआ था। इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक 1369 हिजरी थी और तारीख 12 रबी उल अव्वल थी। उन्होंने 1969-70 के दौरान शायरी शुरू की थी। वह जोश मलीहाबादी, साहिर लुधियानवी, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, अहमद फ़राज़ और हबीब जालिब की परंपरा के शायर थे। सचबयानी के उतने ही कायल। हुकूमत किसी भी रहनुमा की हो, राहत इंदौरी की ग़ज़ल ने उसे नहीं बख्शा। उन्होंने 1986 में कराची में एक शेर पढ़ा और पाकिस्तान के नेशनल स्टेडियम में हजारों लोग खड़े होकर पांच मिनट तक ताली बजाते रहे। उसी शेर को कुछ अर्से बाद दिल्ली के लाल किले के मुशायरे में पढ़ा, तब भी उसी तरह की शोरअंगेजी हुई। शेर था: ‘अब के जो फ़ैसला होगा वो यहीं पे होगा/हमसे अब दूसरी हिजरत नहीं होने वाली…।’ यह शेर पाकिस्तान और हिंदुस्तान के अवाम के मुश्तरका गम को बखूबी बयान करता है। उनका एक और शेर है: ‘ मेरी ख्वाहिश है कि आंगन में न दीवार उठे/मेरे भाई मेरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले…।’ यह शेर भी गौरतलब है: ‘हम ऐसे फूल कहां रोज़-रोज़ खिलते हैं/सियह गुलाब बड़ी मुश्किलों से मिलते हैं…।’   राहत इंदौरी दुनिया भर में घूमे लेकिन मन हिंदुस्तान और अपने घर ही रमा। उनकी शरीके-हयात सीमा जी ने कहीं एक इंटरव्यू में कहा था कि वह एक बार एक महीने अमेरिका रहकर लौटे तो सीधे रसोई में पहुंच गए और कहने लगे-“घर का खाना लाओ, इससे अच्छा खाना पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलता।” उनका एक शेर है: ‘फुर्सतें चाट रही हैं मेरी हस्ती का लहू/मुंतज़िर हूं कि कोई मुझको बुलाने आए…।’ उनकी तीन संतानें हैं–शिब्ली, फैसल और सतलज। बेहतरीन ग़ज़लकार और गीतकार के साथ-साथ वह उम्दा चित्रकार भी थे। मुसव्विरी में भी उनके जज्बात खूब-खूब उभरते थे। जिन्होंने उनकी चित्रकारिता देखी है वे बताते हैं कि ब्रश और रंगों से भी वह नायाब ग़ज़ल रचते थे। राहत साहब ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि चित्रकारी की प्रेरणा उन्हें गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर से हासिल हुई। पेंटिंग सीखने की बकायदा शुरुआत उन्होंने इंदौर के ज्योति स्टूडियो (ज्योति आर्ट्स) से की, जिस के संचालक छगनलाल मालवीय थे। इंदौर के गांधी रोड पर हाईकोर्ट के पास यह स्टूडियो था। उन दिनों ज्यादातर सिनेमा के बैनर और होर्डिंग का काम यहां होता था। इसी स्टूडियो के पास सिख मोहल्ला था, जहां किवदंती गायिका लता मंगेशकर जी का जन्म हुआ। प्रसंगवश, राहत साहब ने नायाब गीत भी लिखे और उनमें कुछ को लता जी ने स्वर दिया। राहत इंदौरी नौवीं जमात में थे। उनके नूतन हायर सेकेंडरी स्कूल में मुशायरा हुआ। जांनिसार अख्तर की खिदमत उनके हवाले थी। वह उनसे ऑटोग्राफ लेने गए तो कहा कि मैं भी शेर कहना चाहता हूं, इसके लिए मुझे क्या करना होगा। अख्तर साहब का जवाब था कि पहले कम से कम-से-कम पांच हजार शेर याद करो। राहत साहब ने कहां की इतने तो मुझे अभी याद हैं। जनाब जांनिसार ने सिर पर हाथ रखा और कहा कि तो फिर अगला शेर जो होगा वह तुम्हारा खुद का होगा। ऑटोग्राफ देने के बाद अख्तर साहिब ने अपनी ग़ज़ल का एक शेर लिखना शुरू किया: ‘हम से भागा न करो दूर, ग़जालों की तरह…।’ राहत साहब के मुंह से बेसाख्ता दूसरा मिसरा निकला: ‘हमने चाहा है तुम्हें चाहनेवालों की तरह…।’ वह ताउम्र जांनिसार अख्तर का बेहद एहेतराम करते रहे लेकिन शायरी में उनके उस्ताद कैसर इंदौरी साहब थे। उनकी शागिर्दी में आने के बाद राहत साहब ने अपना नाम ‘राहत कैसरी’ रख लिया था। उनके पहले मज्मूआ ‘धूप-धूप’ राहत कैसरी नाम से छाया हुआ था। बाद में अपने उस्ताद की सलाह पर ही उन्होंने अपना नाम राहत इंदौरी कर लिया। शुरुआती मुशायरों में उन्हें ‘इंदौरी’ होने का खामियाजा भी भुगतना पड़ा। खासतौर पर जो मुशायरे दिल्ली, लखनऊ और भोपाल में होते थे। उनका गोशानशीन उस्तादों और उनके नामनिहाद शागिर्दों को जवाब होता था: ‘जो हंस रहा है मेरे शेरों पे वही इक दिन/क़ुतुबफरोश से मेरी किताब मांगेगा..।’ शुरुआती दिनों का ही उनका एक शेर है: ‘मैं नूर बन के ज़माने में फैल जाऊंगा/तुम आफ्ताब में कीड़े निकालते रहना..।’ राहत इंदौरी वस्तुतः सियासी शायर थे। इन दिनों के मुशायरों में भी अक्सर वह विपरीत हवा पर शेर कहते थे। उनके ये अल्फ़ाज़ जिक्र-ए-खास हैं: ‘जिन चराग़ों से तअस्सुब का धुआं उठता है/ उन चराग़ो को बुझा दो तो उजाले होंगे..।’ इस शेर के जरिए वह सीधा फिरकापरस्त सियासत पर कटाक्ष करते हैं। उनके बेशुमार प्रशंसकों का एक पसंदीदा शेर है : ‘ज़रूर वो मेरे बारे में राय दे लेकिन/यह पूछ लेना कभी मुझसे वो मिला भी है?’ कोरोना उनके जिस्मानी अंत की वजह बना और कोरोनाकाल में हिजरत ने दुनिया भर में इतिहास बनाया। बहुत पहले उन्होंने लिखा था: ‘तुम्हें पता ये चले घर की राहतें क्या हैं/अगर हमारी तरह चार दिन सफ़र में रहो…।’ जनाब इंदौरी के यह अल्फ़ाज़ भी रोशनी की मानिंद हैं: ‘रिवायतों की सफें तोड़कर बढ़ो वर्ना, जो तुमसे आगे हैं वो रास्ता नहीं देंगे..।’। जिस प्रगतिशील रिवायत से उनकी शायरी थी, उसी में यह लिखना संभव था: ‘हम अपने शहर में महफूज भी हैं, खुश भी हैं/ये सच नहीं है, मगर ऐतबार करना है..।’ इसी कलम से यह भी निकला: ‘मुझे ख़बर नहीं मंदिर जले हैं या मस्जिद/मेरी निगाह के आगे तो सब धुआं है मियां..।’ यह भी लिखा: ‘महंगी कालीनें लेकर क्या कीजिएगा/अपना घर भी इक दिन जलनेवाला है…।’ और यह भी कि: ‘गुजिश्ति साल के ज़ख्मों हरे-भरे रहना/जुलूस अब के बरस भी यहीं से निकलेगा..।’   बहरहाल, अब आप जिस्मानी तौर पर नहीं हैं राहत इंदौरी साहब लेकिन आपका यह शेर आपके चाहने वालों के अंतर-कोनों में जरूर है: ‘घर की तामीर चाहे जैसी हो/उसमें रोने की कुछ जगह रखना..!’ आमीन!! लेखक अमरीक पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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Dakhal News 12 August 2020


bhopal, Journalist Bindiya Bhatt, becomes

फिल्मी दुनिया में खबरें तो बहुत होती हैं लेकिन TV वाले सारी खबरें कवर नहीं कर पाते। बॉलीवुड स्टार्स से जुड़ी ऐसी बहुत सी खबरें होती हैं जो लोग टीवी चैनल्स की जगह on the go देखना पसंद करते हैं। आज इस डिजिटल वर्ल्ड में लोग इनफार्मेशन से भरे हुए वीडियोस देखना चाहते हैं जो मनोरंजन के साथ-साथ उनकी नॉलेज भी बढ़ाएं। तो ऐसा ही एक नया Youtube channel लॉन्च हुआ है जिसका नाम है ‘फिल्म सर्किल’। ये यूट्यूब चैनल बॉलीवुड से रिलेटेड महत्वपूर्ण ख़बरों को तो कवर करता ही है साथ ही उन सारी खबरों को कवर कर रहा है जिसे TV चैनल समय की कमी के चलते छोड़ देते हैं. इस चैनल का फेस हैं तेजतर्रार जर्नलिस्ट बिंदिया भट्ट। बिंदिया भट्ट ‘फिल्म सर्किल’ यूट्यूब चैनल में आपको ‘फिल्मी बिंदिया’ के नाम से होस्ट के रूप में नज़र आएंगी। बिंदिया को मीडिया में 14 साल का एक्सपीरियंस हैं। BAG फिल्म्स & मीडिया लिमिटेड, News24, दैनिक भास्कर, न्यूज़ नेशन और माइक्रोसॉफ्ट न्यूज़ जैसी संस्थानों के लिए वो काम कर चुकी हैं। बिंदिया ने अपना ये Youtube चैनल अपने दो मित्रों के साथ, यानि एक छोटी सी टीम के साथ मिल-जुलकर शुरू किया है। बिंदिया के साथ उनकी टीम उनके लोग ‘फिल्म सर्किल’ चैनल का प्रोडक्शन संभाल रहे हैं। यह चैनल 7 जुलाई को लॉन्च किया गया था। इस चैनल पर कई रोचक और दर्शनीय वीडियोज अपलोड हो चुके हैं। आपको बता दें कि आत्मनिर्भरता की ओर बिंदिया का यह एक छोटा सा लेकिन महत्वपूर्ण प्रयास है। इसलिए आप सहयोग करें। नीचे दिए गए लिंक पर जाकर इस चैनल को सब्सक्राइब करें, अपने पसंदीदा वीडियोज को देखें और शेयर करें…

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Dakhal News 8 August 2020


bhopal, Because the one who died was a journalist…

पिछले 24 घंटे से मन बड़ा विचलित हुआ पड़ा है। हालांकि पहले विचलन कुछ अजीब सा होता था। घंटों, दिनों या कभी-कभी हफ़्तों तक मन नहीं लगता था, दिमाग झुंझलाया रहता था। मगर अब वक्त की ठोकरें कहें या मस्तिष्क की परिपक्वता, मन अब विचलन के साथ दैनिकचर्या का सामंजस्य बिठाने के तरीके सीख गया है। विचलन का कारण वही है जिससे कमोबेश कल से बनारस और आसपास के पत्रकारिता जगत के अलावा तमाम लोग विचलित हैं… राकेश चतुर्वेदी सर का असमय जाना। आज सुबह तो कलेजा मुंह को ही आ गया जब आंखें खुलते ही फेसबुक पर जन्मदिन का नोटिफिकेशन आया, उनमें एक विजय का भी था। विजय उपाध्याय… वही लड़का जो कम समय में तमाम सफ़र करते हुए एक सम्मानित अखबार तक पहुंचा और फिर अचानक एक दिन अनंत के सफ़र पर चल पड़ा। तमाम बातें थीं जो मन में सुबह से ही घुमड़ रही थीं। आखिर एक पत्रकार क्या है… समाजसेवी नहीं है, क्योंकि समाज को समय नहीं दे पाता। नौकरी से जो थोड़ा-मोड़ा समय मिलता है उसमें अपनी तमाम दुश्वारियों को दरकिनार कर सबसे ज्यादा हंसना चाहता है। खुद को larger then life दिखाना चाहता है। वह नौकरशाह भी नहीं है क्योंकि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के समय वो जिंदगी से सबक सीखने में अपना समय ‘नष्ट’ कर चुका होता है, बाद में अपने से कम उम्र या बेहद कम मेधा वाले अफसरों को सर या भाई साहब कहने को अभिशप्त होता है। वो कारोबारी नहीं है, नेता नहीं है, शिक्षक नहीं, वकील नहीं, डॉक्टर नहीं, पुलिस नहीं…समाज का नजरिया उसे एक सामान्य नौकरीपेशा बनने नहीं देता। तो कुल मिलाकर वो एक ऐसी अभिशप्त आत्मा का जीवन जीता है, जिसके पास न अपना कोई बड़ा बैंक बैलेंस होता है, न कारोबार, न नौकरी की निश्चिंतता। और तो और अगर कुर्सी पर नहीं रहा तो अंत समय में चार कंधे साथ होंगे या नहीं इसमें भी संदेह है। बच्चों के, परिवार के बड़े सपने उसे डराते हैं। ‘मुझे कुछ हो गया तो इनका क्या होगा’ की फिक्र कई लोगों की सच हो भी चुकी है। साथी अफसोस जताते हैं, जो सक्षम हैं वो मदद का ढांढस बंधाते हैं, कुछ अफसरों के यहां तक की दौड़ लगाते हैं और वहां बड़े ही विनम्र तरीके से ये बताकर लौट आते हैं कि जो गया उसका परिवार बड़ी ही परेशानी में है। अगर प्रशासन मदद कर देता तो उसका यशोगान होता आदि आदि… फेहरिस्त लंबी है ऐसे जाने वालों की। राकेश सर से पहले विजय, मंसूर चचा, गंगेश सर, सागर, सुशील चचा जैसे कई रहे जो असमय काल के गाल समा गए। कारण अलग अलग हो सकते हैं मगर नियति एक सी दिखी है अब तक। दो-चार दिनों की श्रद्धांजलियों का दौर, कुछ हफ़्तों की दौड़भाग। जो खुशकिस्मत थे उन्हें संस्थान और प्रशासन से सहयोग मिला। कुछ ऐसे भी थे जो अपने बाद बेटे और परिवार के लिए संघर्ष की थाती ही छोड़ पाए… समाज के किसी भी तबके से न जुड़ के भी हम पत्रकार हर तबके की सोच विकसित कर लेते हैं। हम एक नेता, एक नौकरशाह, एक समाजसेवी, एक डॉक्टर, एक वकील, एक पुलिस वाले, एक कारोबारी और ऐसे ही न जाने कितने एक-एक की तरह एक ही समय में सोच सकते हैं। लेकिन यह सब विकसित करने में हम अपने विकास को कहीं पीछे, बहुत पीछे छोड़ देते हैं। 30 साल से ज्यादा पत्रकारिता और 15 साल से ज्यादा संपादकी कर चुके एक वरिष्ठ पत्रकार को एक फ्लैट खरीदने के लिए मैंने पाई पाई जुटाते देखा है, एक अति वरिष्ठ को बार बार वही टुटही स्कूटर बनवाते देखा है, दशकों के क्राइम रिपोर्टर को अपने प्लॉट पर मिट्टी गिरवाने के लिए पिता से पैसे मांगते भी देखा है। आखिर क्यों ऐसा है। आखिर क्या वजह है कि इनके मरने पर अफसोस करने वाला सबसे पहले यही कहता है कि बेचारे का घर कैसे चलेगा !!! जबकि अखबारों के मालिकान या दिल्ली में बैठे जिल्ले-इलाहियों के बारे में ऐसी बातें नहीं होतीं !!! अफसोस होता है कभी कभी कि मैंने जीवन के अमूल्य डेढ़ दशक इस काम को दे दिए। अफसोस होता है जब पलट कर देखता हूं और सोचता हूं कि मुझे आज भी इस काम से उतना ही प्यार है। खैर, अफसोस बहुत से हैं। बस कामना है कि राकेश सर, विजय या मंसूर चचा जैसे अफसोस न करने पड़ें जिंदगी में आगे। आवाज़ वहां तक पहुंचे जहां संस्थान अपने लोगों की सुधि लेने का संकल्प लें। क्योंकि जो मरा वो सबकी सोचने वाला एक पत्रकार था… हे ईश्वर, उन्हें सद्गति और इन्हें सद्बुद्धि देना। पत्रकार अभिषेक त्रिपाठी की एफबी वॉल से।

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Dakhal News 8 August 2020


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आज दोपहर बारह से तीन बजे के दौरान लखनऊ के पत्रकरों के पास विदेश से लगातार जहरीले वाइस कॉल्स आने से हड़कंप मच गया है। यूसुफ अली नाम से ये कॉल दो नंबरों से आ रही है। इसके नंबर यूनाइटेड स्टेट के अटलांटा के हैं। फोन पर राम मंदिर और नरेंद्र मोदी का विरोध करने की अपील की जा रही है। साथ ही भारतीय मुसलमानों को भड़काने के प्रयास किये गये हैं। साथ ही कहा गया है कि स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को झंडा फहराने से रोकना चाहिए। इस जसरीली वाइस कॉल में ये भी कहा गया है कि हिंदुस्तान के मुसलमान उर्दूस्थान निर्माण के लिए प्रयास करें। पत्रकारों ने इस गंभीर मामले की इत्तेला तत्काल पुलिस को दी। इसके बाद हजरतगंज पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। नवेद शिकोह

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Dakhal News 8 August 2020


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हम आज भी अंग्रेज़ी हुकूमत के नियमों से फ़िल्म प्रमाणन प्रक्रिया करते हैं, सौ वर्षों की सिनेमाई यात्रा का पूरा विवरण पेश करती है पुस्तक ‘फ़िल्म सेन्सरशिप के सौ वर्ष’, पुस्तक में देश के जाने माने फ़िल्मकारों और फ़िल्म पत्रकारों के साक्षात्कार हैं समाहित   फ़िल्म सेन्सरशिप को लेकर देश भर में माहौल हमेशा से गरम रहा है. 1918 में अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा फ़िल्मों की सामग्री को परीक्षण करने के इरादे से आरम्भ की गई नीति आज 21वीं सदी में ओटीटी प्लेटफ़ोर्म के ज़माने में भी प्रासंगिक है. एक दर्शक फ़िल्म में क्या देखे? इसे तय करने की एक संस्था आज़ाद भारत में भी बनाई गई जिसे केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड का नाम दिया गया.   इसी क्रम में कई कमेटियाँ बनी जिसने इस बोर्ड के क्रियान्वयन और तरीक़ों में बदलाव लाने के लिए ज़रूरी सुझाव भी दिए. यह सब कितना सफल हुआ और क्या बदलाव हुए पुस्तक फ़िल्म सेन्सरशिप के सौ वर्ष बताती है. डॉ मनीष जैसल द्वारा लिखी गई यह किताब संभवत: हिंदी में इस विषय पर लिखी गई पहली किताब है जो फ़िल्म सेन्सरशिप के सौ वर्षों का पूरा लेखा जोखा पेश करती है.   दुनिया भर में फ़िल्म सेन्सरशिप को लेकर बने मॉडल में भारत में कौन सा सबसे उपर्युक्त होना चाहिए पुस्तक में दिए सुझावों से जाना और समझा जा सकता है. कभी पद्मावती जसी फ़िल्मों को लेकर विवाद होता है तो कभी उड़ता पंजाब के सीन कट हो जाने से मीडिया में हेडलाइन बनने लगती है. लेकिन इसके पीछे के तर्कों और इससे बचाव को लेकर सरकारें क्या क्या उपाय सोचती और उसे करने का प्रयास करती है पुस्तक कई उदाहरणों के साथ सामने लाती है. देश के शिक्षाविद, फ़िल्मकार,पत्रकारों, लेखकों आदि से किए गए साक्षात्कार फ़िल्म सेन्सरशिप के भविष्य को लेकर एक राह दिखते हैं. जिन पर अमल किया जाये तो संभवत: इस दिशा में सकारात्मक कार्य हो सकता है.   महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से फ़िल्म स्टडीज़ में पीएचडी डॉ जैसल ने काशीपुर के ज्ञानार्थी मीडिया कोलेज में भी अपनी सेवाएँ बतौर सहायक प्रोफ़ेसर और मीडिया प्रभारी दे चुके हैं. सीएसआरयू हरियाणा में सेवाएँ देने बाद वर्तमान में नेहरु मेमोरियल लाइब्रेरी नई दिल्ली के सहयोज से पूर्वोत्तर राज्यों के सिनेमा पर पुस्तक लिख रहे डॉ मनीष ने मशहूर फ़िल्मकार मुज़फ़्फ़र अली पर भी पुस्तक लिखी है, जो काफ़ी चर्चित रही.   बुक बजुका प्रकाशन कानपुर द्वारा इनकी तीनों किताबें प्रकाशित हुई हैं. प्रकाशक ने बताया कि सिनेमा पर लिखने वाले बहुत काम लोग हैं ऐसे में भारतीय सिनेमा और सेन्सरशिप पर लिखी गई इस पुस्तक में लेखक ने भारतीय संदर्भों के साथ अमेरिका यूरोप और एशिया के कई प्रमुख देशों के फ़िल्म सेन्सरशिप की विस्तृत चर्चा की है. वहीं प्रमुख फ़िल्मकारों और पत्रकारों से संवाद पुस्तक को और भी तथ्य परक बनाती है. फ़िल्म समीक्षक, लेखक और स्वतंत्र पत्रकार की भूमिका का बराबर निर्वहन कर रहे पुस्तक के लेखक डॉ मनीष जैसल ने सभी फ़िल्म रसिक, फ़िल्मी दर्शकों और पाठकों से पुस्तक को पढ़ने और उस पर टिप्पणी की अपील की है. वर्तमान में लेखक मंदसौर विश्वविद्यालय में जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग में सहायक प्रोफ़ेसर हैं. फ़िल्म मेकिंग, फ़ोटोग्राफ़ी, इलेक्ट्रोनिक मीडिया जैसे टेक्निकल विषय पर विशेष रुचि भी है. स्क्रीन राईटर एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया, आइचौकडॉटइन, अमर उजाला, हिंदुस्तान, भास्कर, न्यूजलांड्री जैसे पोर्टल में लगातार इनकी फ़िल्म समीक्षाए और लेख प्रकाशित होते रहते हैं. दो भागों में प्रकाशित ‘फ़िल्म सेन्सरशिप के सौ वर्ष’ को प्राप्त करने के लिए आप mjaisal2@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते है

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Dakhal News 4 August 2020


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ये खबर मेरे जैसों के लिए है जो कोरोना को हलके में लेते हैं. इधर उधर फुदकते रहते हैं. विजय विनीत जी बनारस के दबंग और मुखर पत्रकारों में से एक हैं. आम जन के दुखों, जनता से जुड़ी खबरों को लेकर शासन प्रशासन से टकराना इनकी फितरत है. इन्हें जब कोरोना का संक्रमण हुआ तो तनिक भी अंदाजा न था कि मरते मरते बचेंगे. यूं कहें कि ये मर ही गए थे, बस अपनी जीवटता और कुछ डाक्टरों की जिद के चलते जी गए. कृपया सावधान रहें. घर में रहें. बहुत जरूरी हो तो ही निकलें. कोरोना का कोई इमान धर्म नहीं है. कब किसे कहां पकड़ ले और मार डाले, कुछ कहा नहीं जा सकता. विजय विनीत जी ने अपनी स्टोरी विस्तार से लिखी है, पढ़िए पढ़ाइए और बहुत जरूरी न हो तो चुपचाप घर में बैठे रहिए. मुझे भी कुछ फीडबैक हैं. गर्दन, कंधे व हाथ के दर्द के कारण मैं फिजियोथिरेपी कराने जिस डाक्टर के पास जाता था, उनकी पत्नी एक सरकारी अस्पताल (ईपीएफ वाले) में हेड नर्स हैं. उनके फिजियोथिरेपिस्ट पति बता रहे थे कि वाइफ जहां काम करती हैं वहां के अस्पताल में तैनात मेडिकल स्टाफ में अघोषित तौर पर ये सहमति है कि जिन कोरोना मरीजों की हालत बिगड़ गई हो उसे छूना-छेड़ना नहीं है. उसे मरने के लिए छोड़ देना है क्योंकि उन्हें ठीक करने की लंबी कवायद में मेडिकल स्टाफ संक्रमित हो सकता है. उनने बताया कि कोरोना संक्रमित कई मरीजों को बचाया जा सकता था लेकिन मेडिकल स्टाफ के बीच एक मूक सहमति के चलते कोई मरीज के पास जाकर उसे बचाने की कवायद में खुद संक्रमित होने का जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं हुआ. मैं तो सुनकर दंग रह गया. मतलब जब हालत खराब हो और मदद की जरूरत हो तब मरने के लिए छोड़ दीजिए. जब माइल्ड लक्षण हों तो बस खाना वगैरह भिजवा कर अकेले पड़े पड़े डिप्रेशन में जाने के लिए छोड़ दीजिए. आप ठीक हो जाएं या मर जाएं, ये आपका भाग्य है. वैसे भी कोरोना पेशेंट के लिए आजकल अस्पतालों में न बेड है, न गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए आक्सीजन सिलेंडर. जो कुछ हैं भी तो वो बड़े व वीवीआईपी के लिए आरक्षित-सुरक्षित हैं. ज्यादा बड़े वीवीआईपी तो मैक्स व मेदांता जैसे प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं. ग़ज़ब है ये देश. ग़ज़ब है इस देश के हुक्मरां जिन्होंने अपनों की जेबें तो खूब भरी-भरवाईं लेकिन देश की जनता के इलाज के लिए बुनियादी सुविधाएं मुहैया न करा सके. हर कोई विजय विनीत जी जैसा भाग्यशाली नहीं है कि उन्हें मुश्किल वक्त में कुछ जिद्दी डाक्टर मिल जाएं. हर कोई विजय विनीत जैसा इच्छा शक्ति रखने वाला भी नहीं है. विजय विनीत की कहानी हमें डराती है. विजय विनीत की कहानी हमें बताती है फिलहाल तो सारी सत्ताओं से बड़ी मौत की सत्ता है जो अदृश्य होकर यहां वहां जहां तहां विराजमान है. कौन इसकी गिरफ्त चपेट में आएगा, न मालूम. ऐसे में जरूरी है कि हम आप यथासंभव प्रीकाशन रखें. जीवन-मृत्यु को उदात्तता से समझने-बूझने की प्रक्रिया शुरू कर दें ताकि मौत आए भी तो उसके साथ जाने में कोई मलाल शेष न रहे. हालांकि ये भी जान लीजिए कि मरता वही है जो दिमागी से रूप से मरने के लिए तैयार हो जाए. विजय विनीत जैसी कहानियां बताती हैं कि जिनमें जिजीविषा है, वो मौत को मात देकर उठ खड़े होते हैं. तो, समझिए बूझिए सब कुछ, पर जिजीविषा तगड़ी वाली बनाकर रखिए. जैजै भड़ास एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से.

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Dakhal News 4 August 2020


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भोपाल। सदाबहार गायक, अभिनेता किशोर कुमार की आज मंगलवार को जंयती है। बॉलीवुड की फिल्मों में कई शानदार गानों को अपनी आवाज देने वाले किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा में हुआ था और उनका निधन 13 अक्टूबर को 1987 में हुआ। किशोर कुमार का असली नाम आभास कुमार गांगुली था। बॉलीवुड में कई सिंगर्स आए और गए लेकिन किशोर कुमार की आवाज का जादू आज भी बरकरार है। किशोर कुमार अभिन्न प्रतिभा के धनी थे। इसके अलावा वो व्यवहार से मजाकिया और मस्तमौला किस्म के इंसान थे। अब किशोर कुमार तो हमारे बीच नहीं पर उनकी यादें आज भी जिंदा हैं।   किशोर कुमार की जयंती पर आज उन्हें हर कोई याद कर रहा है। आम आदमी से लेकर राजनेता तक उन्हें याद कर श्रद्धांजलि दे रहे हैं। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी किशोर कुमार को जयंती पर स्मरण कर उन्हें नमन किया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा ‘जिंदगी के हर पल को जिंदादिली के साथ जीने वाले, महान गायक, अभिनेता स्व. किशोर कुमार की जयंती पर नमन। वह बहुत शान से 'किशोर कुमार खंडवे वाले' कहते हुए अपना परिचय देते थे। अपनी जड़ों से इतना प्रेम करने और सदा जुड़े रहने वाले अपने रत्न को मध्यप्रदेश कभी विस्मृत न कर सकेगा।   भाजपा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने अपने संदेश में कहा ‘चलते चलते, मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा ना कहना...हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता, संगीतकार, निर्माता-निर्देशक और साथ में एक उम्दा पाश्र्व गायक श्री किशोर कुमार जी की जयंती पर सादर नमन...।   गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने अपने ट्वीट में कहा ‘मप्र की माटी के सपूत किशोर कुमार जितने अच्छे गायक थे, उतने ही जिंदादिल इंसान। उनकी गाने की शैली अद्वितीय थी।

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Dakhal News 4 August 2020


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एमआरपी से कम दाम पर और बिना किसी डिलिव्री शुल्क के किराने का सामान उपलब्ध वाराणसी : कोरोना महामारी के ऐसे मुश्किल समय में वाराणसी में रहने वाले लोगों के लिए एक ख़ुशखबरी है। अब ग्राहकों को घर बैठे एमआरपी से कम दाम पर और बिना किसी डिलिवरी शुल्क के किराने का सामान ऑर्डर फ़रमाइए द्वारा घर पर डिलिवर करवाया जाएगा। ग्राहकों को बस व्हाट्सएप या कॉल करके अपना ऑर्डर देना होगा और चंद मिनटों में उनके घर सामान पहुँचाया जाएगा। ऑर्डर फ़रमाइए के संस्थापक श्री जितेश पांडेय और राहुल अग्रहरी हैं। जितेश पांडेय ने बताया कि ‘जिस प्रकार हमारे प्रधानमंत्री जी का कहना है कि हमें आपदा को अवसर में बदलना है तो इसी बात से प्रेरणा लेते हुए हमने इस कंपनी की शुरुआत की। अभी हम ऑर्डर फ़ोन और वट्सऐप द्वारा ले रहे हैं और जल्द ही हम इसकी ऐप भी लॉंच करेंगे’। राहुल अग्रहरी का कहना है ‘ऑर्डर फ़रमाइए के द्वारा हम लोगों की समस्या का निवारण करना चाहते हैं। हम जानते हैं कि इस वैश्विक बीमारी के समय में लोग अपने घरों से बहुत कम निकलना चाहते हैं क्यूँकि सबके मन में डर बैठा हुआ है। हम लगातार प्रयास कर रहे हैं कि लोगों की ज़रूरतों का सामान उचित तरीके से सेनेटाइज़ करके उनको उपलब्ध करवाया जा सके जिससे लोगों को किसी परेशानी का सामना ना करना पड़े’।

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Dakhal News 30 July 2020


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तो क्या सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के बाद भी होगा कोरोना! दुनिया को ज्ञान देने वाले अमिताभ, शिवराज, सिकेरा जैसों ने क्या कोरोना से बचने के लिए एहतियात नहीं बरती थी! उठने वाले तमाम सवाल वाजिब भी हैं। तर्कपूर्ण सवालों के पीछे कोरोना से बचाव की जिज्ञासा और भय है। लेकिन सियासी प्रतिद्वंद्विता में बीमार का मज़ाक उड़ाने की मंशा बेहूदगी लगती है। ये सच है कि ऐसे लोग भी संक्रमित हो रहे हैं जो ना सिर्फ सोशल डिस्टेंसिंग का खूब पालन कर रहे थे बल्कि दूसरों को भी जागरुक कर रहे थे। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और चर्चित पुलिस अफसर नवनीत सिकेरा समेत दर्जनों ऐसे लोग कोरोना से संक्रिमित हो चुके हैं। अब इन दो बातों में एक बात तो सही होगी ही। या तो ये कि जितनी भी एहतियात कर लो फिर भी आप इस संक्रमण का शिकार हो सकते हैं। दूसरी बात कि अमिताभ और शिवराज जैसी देश दुनिया की तमाम खास हस्तियों ने सोशल डिस्टेंसिंग और तमाम एहतियातों को बरतने में लापरवाहियां कीं। ये लोग दुनियां को कोविड से बचने का ज्ञान देते रहे किंतु खुद ही जागरूक नहीं थे ! कोरोना के भय, मुसीबतों और इस पर डिबेट में ऐसी बातें भी चर्चा का विषय बनी हैं। इस संजीदा और बुरे वक्त में संक्रमित बड़ी.हस्तियों का मजाक उड़ाने वालों की भी कमी नहीं है। आम इंसान ही नहीं खास लोग भी कोरोना पीड़ित ख़ास लोगों का मज़ाक उड़ा रहे हैं। राजनीति कर रहे हैं। कोरोना पीड़ित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने सवाल पूछा है कि क्या आपने सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल नहीं रखा था ! दिग्विजय के अलावा मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी खोने वाले कमलनाथ ने भी ट्वीट करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पर तंज़ कसा है। गौरतलब है कि कुछ महीने पहले कोरोना काल में ही मध्यप्रदेश के सियासी घटनाक्रम में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार चली गयी थी और यहां भाजपा की सरकार बनी जिसमें शिवराज सिंह चौहान पुनः मुख्यमंत्री बनाये गये। कांग्रेस ने आरोप लगाये थे कि भाजपा ने खरीद-फरोख्त कर उनके विधायकों को तोड़ कर सरकार गिरवायी। जाहिर सी बात है कि सूबे के कांग्रेसी दिग्गजों को अपनी सरकार के गिरने का मलाल होगा ही। ये कुंठा कहिए या प्रतिशोध की भावना कहिए, अब कांग्रेसी नेता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का मज़ाक उड़ा रहे हैं। महामारी से जूझ रहे देश के संकटकाल में गंदी सायासत का आलम ये है कि संक्रमितों का उपहास उड़ा जा रहा है। बिहार भाजपा कार्यालय और राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के कुछ पदाधिकारियों को कोरोना होने पर व्यंग्य किये गये। इसके अतिरिक्त एक मीडियों समूह के कार्यालय से लेकर बिग बी के बंगले जलसा में संक्रमण फैलने को भी कुछ लोगों ने मजाक में लिया। हांलाकि कोई वर्ग, कोई क्षेत्र और पेशा कोविड के कहर से छूटा नहीं है। लेकिन जब जागरूकता की बात करने वाले और लापरवाही पर एतराज करने वाले इसका शिकार होते हैं तो ऐसे लोगों को सोशल मीडिया में खूब निशाने पर लिया जाता है। सिंगर कनिका कपूर और मरकज के जमातियों का भी जिक्र होता है। तर्क दिया जाता है कि कोरोना काल के शुरुआती दौर में कनिका और जमातियों के संक्रमित होने पर उन्हें लापरवाह बताया गया था। और अब ऐसे लोग भी संक्रमित हो रहे हैं जो कहते थे कि ये वायरस लापरवाही करने से क़ाबिज होता है। नवेद शिकोह

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Dakhal News 30 July 2020


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अजय कुमार, लखनऊ लखनऊ। पांच अगस्त को अयोध्या में प्रभु राम की जन्मस्थली पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन के साथ ही हिन्दुस्तान की सियासत का एक महत्वपूर्ण पन्ना बंद हो जाएगा। तीन दशकों से भी अधिक से समय से देश की सियासत जिस ‘मंडल-कमंडल’ के इर्दगिर्द घूम रही थी, वह अब इतिहास के पन्नों में सिमट गई है। मंडल यानी पिछड़ों को सरकारी नौकरियों में 52 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए बना आयोग और कमंडल मतलब आयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी द्वारा चलाया गया अभियान। मंडल-कमंडल की सियासत ने अगड़े-पिछड़े के नाम पर हिन्दुओं में बड़ी फूट डाली थी और इसके लिए संविधान को मोहरा बनाया गया था। दरअसल, 1931 की जनगणना के हिसाब से देश में पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की जनसंख्या 52 फीसदी और अनुसूचित जाति (एससी) की 16 एवं व अनुसूचित जनजाति (एसटी) की 7.5 प्रतिशत थी। एससी और एसटी वर्ग को सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिलता था, जबकि पिछड़ा समाज के लोग अपने लिए भी आरक्षण चाहते थे। इसकी वजह थी भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16 (4), जो कहता है कि सरकार पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर सकती है। बहरहाल, जब तत्कालीन केन्द्र सरकार पर पिछड़ों को आरक्षण के लिए काफी दबाव पड़ने लगा तो प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई ने बीपी मंडल की अध्यक्षता में एक आयोग गठित कर दिया। 1978 में बने बी पी मंडल आयोग ने 12 दिसंबर 1980 को अपनी रिपोर्ट मोरारजी सरकार को सौंपते हुए जनसंख्या के हिसाब से ओबीसी को 52 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की, लेकिन इन सिफारिशों को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। जब मंडल आयोग ने सिफारिश की थी तब मोरारजी देसाई की ही सरकार थी, जो आपसी खींचतान के चलते अपना कार्यकाल पूरा किए बिना गिर गई थी। मोरार जी की सरकार गिरने के बाद हुए लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। उनकी हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने लेकिन बोफोर्स घोटाले के कारण जनता में भरोसा खो दिया और एकजुट विपक्ष ने उन्हें चुनाव में पटखनी दे दी। तत्पश्चात वी पी सिंह संयुक्त मोर्चे के प्रधानमंत्री बने। मोर्चे में देवी लाल, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव जैसे दिग्गज नेता मौजूद थे जो अपने आप को पिछड़ों का नेता कहते थे और मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होते हुए देखना चाहते थे। प्रधानमंत्री वीपी सिंह के सामने हालात यह बन गए कि अगर मंडल कमीशन लागू नहीं किया तो उक्त नेता उनकी सरकार गिरा देंगे। इसी दबाव के बीच वीपी सिंह ने 7 अगस्त 1990 को मंडल कमीशन की रिपोर्ट की धूल झाड़ी और 13 अगस्त 1990 को इसे लागू कर दिया। लेकिन इसके कुछ दिनों के बाद इन नेताओं ने वीपी की सरकार गिरा कर ही चैन लिया। उधर, मंडल कमीशन लागू होते ही 12 सितंबर 1990 को दिल्ली में बीजेपी की मीटिंग बुला ली गई। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू किए जाने के तुरंत बाद ही भाजपा ने कमंडल अर्थात अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनवाने की लड़ाई अपने हाथों में ले ली। भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा शुरू करने का एलान कर दिया। आडवाणी की इस यात्रा को मंडल की काट के रूप में देखा गया। मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर पिछड़ों को सरकारी नौकरियों में 52 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने से देशभर में सवर्णों का विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। यह ऐसा दौर था जब उत्तर भारत की जाट, पटेल, मराठा जैसी बड़ी किसान जातियां सवर्णों के साथ विरोध प्रदर्शन में भाग ले रही थी तो दूसरी तरफ ‘आओ अयोध्या चलें’ वाले कमंडल के नारों के साथ जयकारे लगा रही थी। इसी बीच मंडल कमीशन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने 16 नवंबर 1992 को अपने फैसले में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण न करने की बात कहकर 52 फीसदी ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण तक सीमित कर दिया व एक लाख रुपये से ज्यादा आय वालों को क्रीमीलेयर की श्रेणी में डाल दिया, जो आज तक बदस्तूर जारी है। उधर, अन्य सियासी घटनाक्रम में एक तरफ लालू यादव व मुलायम सिंह यादव कमंडल का विरोध करते हुए मुसलमानों के नेता बन गए थे तो दूसरीं तरफ इन नेताओं ने यादवों को आरक्षण दिलवाकर उनका भी विश्वास जीत लिया। लेकिन समय के साथ मंडल की आग धीमी पड़ती गई और बीजेपी अयोध्या मुद्दे को गरमाती रही। मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किए जाने के बाद हिन्दुओं में जो खाई पैदा हो गई थी, उसे कमंडल की राजनीति ने पूरी तरह से पाट दिया और पूरा हिन्दू समाज एकजुट होकर मंदिर निर्माण के पक्ष में खड़ा हो गया। इसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। बहरहाल, पांच अगस्त को भगवान राम के मंदिर निर्माण के लिए भूमि-पूजन के साथ बीजेपी की कमंडल की सियासत भी खत्म हो जाएगी। उम्मीद यह भी की जानी चाहिए कि मंदिर निर्माण के साथ ही हिन्दू-मुसलमानों के बीच की खाई भी खत्म हो जाएगी क्योंकि मंदिर के साथ मस्जिद का भी निर्माण हो रहा है। यह काफी सौहार्दपूर्ण स्थिति है।   ऐसा लगता है कि अयोध्या में श्री राम मंदिर के भव्य निर्माण के साथ ही देश में सांप्रदायिक समरसता का भी नया युग प्रारम्भ हो जाएगा। तीन दशकों से जन्मभूमि विवाद के कारण देश के सांप्रदायिक सद्भाव को गहरी चोट पहुंच रही थी। गत वर्ष नवंबर में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विवाद के समाधान के लिए ऐतिहासिक फैसला सुनाए जाने के बाद दोनों पक्षों ने जिस सहिष्णु मानसिकता के साथ सारे पूर्वाग्रह त्यागकर इसे स्वीकार किया, उसने पूरी दुनिया को चौंकाया जबकि दशकों से इसे मुद्दा बनाकर वोटबैंक राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों को निराश किया। इससे यह धारणा भी पुष्ट हो गई कि मंदिर-मजिस्द के नाम पर राजनीति दल और कारोबारी मानसिकता के संगठन स्वार्थ सिद्ध कर रहे थे, दोनों पक्षों के आम लोगों की विवाद बढ़ाने में कोई रुचि नहीं थी। लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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Dakhal News 28 July 2020


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  एक बड़े कॉलेज के मैनेजिंग डायरेक्टर से बात हुई। हालचाल पूछा तो बोले- हाल तो बेहाल हैं। कोरोना के चलते हॉस्टल खाली हैं। छात्र गायब हैं, छात्रों ने फीस नहीं दी है। एडमिशन का समय है, लेकिन नए छात्र रजिस्ट्रेशन भी नहीं करवा रहे हैं। कमाई पूरी तरह ठप है। कहां से दें अध्यापकों और बाकी कर्मचारियों का का वेतन। बोले-भाई साहब ऐसा ही चलता रहा तो 70 फीसदी प्राइवेट कॉलेज बंद हो जाएंगे। प्राइवेट कॉलेज के अध्यापक आत्महत्या पर मजबूर हो जाएंगे।   कुछ दिन पहले एक मित्र का फोन आया था। कस्बाई इलाके में इंटर तक प्राइवेट स्कूल चलाते हैं। छात्रों ने स्कूल में आना बंद कर दिया तो अभिभावकों ने फीस भी बंद कर दी। अध्यापक से लेकर चपरासी तक पैदल हो गए। मुझसे कहा-सर मीडिया में ये बात उठवाइए, बेलआउट पैकेज तो स्कूल और कॉलेजों को मिलना चाहिए।     मेरे बहुत ही घनिष्ठ मित्र एजुकेशन के बिजनेस में हैं । उनके लाखों रुपये तमाम मेडिकल कॉलेजों में फंसे हैं। कॉलेज पैसे नहीं दे पा रहे हैं और इस पेशे में इतना बैक अप नहीं होता कि वो बहुत दिनों तक अपने पास से कर्मचारियों को वेतन दे पाएं।   गाजियाबाद के एक डेंटल कॉलेज की हालत ये है कि वहां चार महीने से स्टाफ को वेतन नहीं मिला है। मैनेजमेंट ने कह दिया है कि आप चाहे आएं या न आएं आपकी मर्जी। हम तनख्वाह देने की स्थिति में नहीं हैं। कॉलेज में फीस नहीं आ रही है। नीट का इम्तिहान भी आगे बढ़ गया है, जाने कब इम्तिहान होगा, कब नतीजे आएंगे और कब छात्र कॉलेज पहुंचेंगे। नए एडमिशन हो नहीं रहे हैं, कॉलेज में पैसे कहां से आएं। तमाम प्राइवेट स्कूल-कॉलेजों की हालत खस्ता है। प्राइवेट कॉलेज के कई अध्यापक अब सब्जी और फल बेच रहे हैं। ऐसी खबरें रोज आ रही हैं।   उन अभिभावकों की भी हालत खराब है, जो प्राइवेट नौकरी में रहते हुए छंटनी के शिकार हो गए या फिर बिजनेस में थे और कोराना काल के लॉकडाउन में उनके बिजनेस की रीढ़ ही टूट गई। जिंदगी में दो जून की रोटी के लाले पड़ गए तो बच्चों की फीस का इंतजाम कहां से करें..? ये लोग और आर्थिक दुष्चक्र में फंसे कॉलेज मालिक हर रोज एक नई सुबह का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन अंधेरा छंटने का नाम ही नहीं ले रहा है। कोरोना से बच भी गए तो इस अंधेरे से बचने का उनके पास रास्ता क्या है..?   ये हालत उन मेडिकल, इंजीनियरिंग और सामान्य प्राइवेट कॉलेजों की है, जिनमें फीस अपेक्षाकृत कम है, जो बहुत मशहूर नहीं हैं। जो ग्रामीण या कस्बाई इलाकों में हैं। जो बड़े शहरों में फाइव स्टार स्कूल और कॉलेज हैं, वहां ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है। छोटे-छोटे बच्चों की 4-4 घंटे तक ऑनलाइन क्लास चल रही है। बच्चे पस्त हो जा रहे हैं, गार्जियन के सामने नए-नए बहाने बना रहे हैं। बच्चे अवसाद के शिकार भी हो रहे हैं।   ऐसे स्कूलों में फीस न देने का कोई रास्ता नहीं है। कोई मुरव्वत नहीं, फीस नहीं तो नाम कट। अब जहां-तहां से इंतजाम करके लोग फीस भर रहे हैं। यही नहीं तमाम स्कूल तो तय सीमा से ज्यादा फीस ले रहे हैं। वाहन बंद हैं, लेकिन उसकी फीस भी ली जा रही है। स्कूल प्रशासन को अच्छी तरह पता है कि कोरोना काल में अभिभावक संगठित नहीं हो सकते तो इनकी पहले भी चांदी थी, अब भी चांदी है।   मेरे पुत्र भी एक फाइव स्टार प्राइवेट यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं। कर तो रहे हैं बीए ऑनर्स, लेकिन फीस देते वक्त मुझे इंजीनियरिंग और मेडिकल में बेटे को पढ़ाने का गौरव महसूस होता है। सैमेस्टर की फीस जमा करने के लिए यूनिवर्सिटी सिर्फ 2 दिन का वक्त देती है। वो भी बिना पूर्व सूचना के। फीस में एक दिन की भी देरी हुई तो लेट पेमेंट के नाम पर करीब हजार रुपये का चूना। ज्यादा देर हो गई तो दोगुनी फीस भी देनी पड़ सकती है।   उन तमाम मध्यमवर्गीय, निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों की परेशानियों का कोई अंत नहीं है, जिनके दो या उससे ज्यादा बच्चे हैं। सबकी ऑनलाइन क्लास एक ही वक्त चलनी है। घर में पहले एक स्मार्ट फोन था तो अब जरूरत उससे ज्यादा की है। स्मार्ट फोन पर ऑनलाइन क्लास तो सजा ही है, सही मायने में तो लैपटॉप चाहिए। लेकिन 3-4 बच्चों के लिए 3-4 लैपटॉप का इंतजाम अभिभावक कैसे करेंगे..? अभी एक खबर आई है कि एक आदमी ने अपनी गाय बेचकर बच्चे के लिए मोबाइल खरीदा ताकि बेटा ऑनलाइन पढ़ाई कर ले। अब वो शख्स हर महीने मोबाइल डाटा रिचार्ज करने का पैसा कहां से लाएगा, भगवान जाने।   मेरठ में मेरे एक परिचित के तीन बच्चे हैं, तीनों की क्लास एक ही वक्त शुरू हो जाती है, अड़ोस-पड़ोस से मोबाइल मांगकर लाते हैं। घर में एक लैपटॉप है, उसको लेकर झगड़ा मचता है। मेरी एक पूर्व साथी ने कॉल करके बोला- सर ये स्कूल वाले तो बच्चों की जान ले लेंगे। गाइडलाइन है कि 8वीं तक के छात्रों की ऑनलाइन क्लास डेढ़ घंटे से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन स्कूल वाले तो 3 से 4 घंटे तक बेटी को पीस रहे हैं। बेटी शायद दूसरी या तीसरी क्लास में पढ़ रही है।   कोरोना काल में अभिभावक की हालत ये है कि जैसे बच्चा पैदा करना अपराध हो गया है। वहां मुश्किल और भी ज्यादा जहां पति-पत्नी दोनों नौकरी में हैं। उन्हें अपने काम पर जाना है और बच्चे को ऑनलाइन क्लास भी अटेंड करनी है। माता-पिता की गैरमौजूदगी में इंटरनेट पर बच्चा अपनी क्लास के अलावा क्या-क्या देख सकता है, खतरा आप समझ सकते हैं। वो भी बच्चे को किसके भरोसे छोड़कर जाएं..? अब जरा सरकारी स्कूलों का हाल भी सुनिए। यूपी के प्राइमरी टीचर्स को राशन कार्ड पर मुफ्त राशन बंटवाने की जिम्मेदारी दी गई है। मेरी एक मित्र प्राइमरी स्कूल में अध्यापक है। एक दिन फोन पर बता रही थी-मुफ्त राशन उन्हीं को मिल रहा है, जिनके पास राशन कार्ड है, लेकिन जो वाकई जरूरतमंद हैं, उनमें से ज्यादातर के पास न तो राशन कार्ड हैं और न ही उन्हें राशन मिल रहा है। स्कूल भी चल रहा है, ऑनलाइन पढ़ाना है। अब अगर घर में स्मार्ट मोबाइल फोन की हैसियत होती तो वो सरकारी स्कूलों में क्यों पढ़ते। मेरी मित्र बता रही थी कि 40 बच्चों की क्लास में बमुश्किल दो बच्चों के घर मोबाइल फोन है। पढ़ाई भगवान भरोसे है।   आजतक न्यूज़ चैनल में वरिष्ठ पद पर कार्यरत पत्रकार विकास मिश्र की एफबी वॉल से। विकास मिश्र

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Dakhal News 28 July 2020


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नवेद शिकोह कोराना के मुश्किल दौर में भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की संशोशित ‘मीडिया नीति 2020’ एक अगस्त से लागू होने जा रही है। ये देश के हजझारों मझौले अखबारों को महा कोरोना बन कर डराने लगी है। हिन्दी पट्टी के सार्वाधिक अखबारों वाले उत्तर प्रदेश में इसका सबसे अधिक खौफ है। इस सूबे से प्रेस कॉउन्सिल ऑफ इंडिया के सदस्य संशोधित नीति के खिलाफ बगावती तेवर दिखा रहे है। मंझोले अखबारों पर लटकटी तलवार से प्रदेश की राजधानी के लगभग एक हजार राज्य मुख्यालय के मान्यता प्राप्त पत्रकारों में सैकड़ों पत्रकारों की मान्यता भी खतरे में पड़ सकती है। इसलिए यहां पत्रकार मीडिया संगठनों के नेताओं पर दबाव बना रहे हैं कि वो संशोधित मीडिया नीति के खिलाफ आवाज उठायें। इस संशोधित नीति के तहत पच्चीस से पैतालिस हजार के बीच प्रसार वाले पत्र-पत्रिकाओं को आर.एन.आई. या एबीसी की जटिल जांच करानी होगी। इस जांच में मंहगी वेब प्रिंटिंग मशीन, न्यूज प्रिंट(अखबारी क़ागज) और इंक इत्यादि की डिटेल, कार्यालय स्टॉफ, पीएफ, प्रसार डिस्ट्रीब्यूशन के सेंटर आदि का विवरण देना होगा। कम संसाधन वाले संघर्षशील समाचार पत्रों के लिए ऐसी अग्नि परीक्षा देना मुश्किल है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में अखबारों के पत्रकारों की राज्य मुख्यालय की मान्यता के लिए पच्चीस हजार से अधिक प्रसार होना ज़रूरी है। यदि मंझोले अखबार जांच से बचने के लिए अपने अखबारों का प्रसार पच्चीस हजार से कम करके लघु समाचार पत्र के दायरे में आ जाते हैं तो ऐसे अखबारों के सैकड़ों पत्रकारों की राज्य मुख्यालय की मान्यता समाप्त हो जायेगी। इसलिए यूपी के मीडिया संगठनों पर प्रकाशक और पत्रकार ये भी दबाव बना रहे हैं कि वे योगी सरकार से प्रेस मान्यता के मानकों को संशोधित करवाना का आग्रह करें। ताकि संशोधित मीडिया नीति के तहत जांच से बचने के लिए मझोले वर्ग से लघु समाचार पत्र के दायरे में आने वाले समाचार पत्रों के पत्रकारों की मुख्यालय मान्यता बच जाये।   इन तमाम घबराहट, बगावत, सियासत और विरोध के बीच प्रेस कॉउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य अशोक नवरत्न और रज़ा रिज़वी केंद्र सरकार के सूचना एंव प्रसारण मंत्रकालय के फैसले के खिलाफ प्रकाशकों और पत्रकारों के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। कुछ मीडिया संगठनों ने भी संशोधित नीति का विरोध करना शुरु कर दिया है। इसे छोटे अखबारों को खत्म करने की साजिश बताया जा रहा हैं। चर्चा ये भी है कि देश के चंद बड़े अखबारों ने स्थानीय अखबारों को खत्म करने के लिए ऐसी साजिश रची है। सोशल मीडिया पर प्रकाशकों और कलमकारों का विरोध मुखर हो रहा है- हर क्षेत्र की बड़ी ताकतें होती हैं। ऐसी शक्तियां अपने क्षेत्र की संघर्षशील प्रतिभाओं को उभरने नहीं देना चाहतीं। जैसा कि उभरते हुए फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह की आत्महत्या की वजह के पीछे फिल्म उद्योग की बड़ी ताकतों को शक की निगाहों से देखा जा रहा है। ताकत की ताकत से दोस्ती होती है। बड़ी मीडिया इंडस्ट्रीज की हर सरकार से दोस्ती रही है। दोस्त दोस्त के काम भी आता है। इन दिनों कोरोना काल की तबाही में तबाह होती हर इंडस्ट्री की तरह मीडिया की अखबारी खर्चीली ब्रॉड इंडस्ट्री बुरी तरह आर्थिक मंदी का शिकार है। कई संस्करण बंद कर दिए, पेज भी कम कर लिए। छंटनी कर ली। वेतन आधा कर दिया। कांट्रेक्ट पर काम कर रहे मीडियाकर्मियों का रिनिवल बंद कर दिया। कॉस्ट कटिंग और छट्नी की तलवाल भी चला दी, लेकिन फिर भी कमाई के मुख्य द्वारा लगभग बंद हैं। वजह साफ है। मीडिया में सरकारी और गैर सरकारी विज्ञापन ही अर्निंग के दो रास्ते होते हैं। कोरोना की चपेट में ये आधे हो गये हैं। सरकार आने वाले समय में विज्ञापन जैसे खर्चों का खर्च और भी कम कर सकती है। गैर सरकारी विज्ञापन आधे से भी कम हो गया है। कार्पोरेट के कामर्शियल विज्ञापनों से लेकर वर्गीकृत विज्ञापन बेहद कम हो गये हैं।अब कैसे अपने बड़े खर्च पूरे करें ! कैसे विज्ञापन का स्त्रोत बढ़ायें ! इस फिक्र में बड़े ब्रॉड अखबारों को एक रास्ता सूझा होगा ! विज्ञापनों के बजट का आधे से ज्यादा हिस्सा छोटे लोकल अखबारों के हिस्से में चला जाता है। ये खत्म हो जायें या लघु वर्ग में पंहुचकर इनकी विज्ञापन दरें बेहद कम हो जायें तो सरकारी विज्ञापन के अधिकांश बजट पर बड़े अखबारों का कब्जा हो जायेगा। ये डूबते को तिनके का सहारा होगा। शायद इसी लिए ही देश के बड़े मीडिया समूहों के दबाव में इस कोरोना काल के तूफान में भी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय संशोधित मीडिया पॉलिसी लागू कर रहा है।नहीं तो ऐसे वक्त में जब पीआई बी में नियमित अखबार जमा होने का सिलसिला तक चार महीने से रुका है। आर एन आई ने तीन महीने विलम्ब से एनुअल रिटर्न का सिलसिला शुरू किया। देश में सबकुछ अस्त-वयस्त है। पुराने जरूरी रुटीन काम तक बंद है। सूचना मंत्रालय के अधीन कार्यालय में ही कोरोना संक्रमण से बचाव के मद्देनजर शेडयूल वाइज थोड़े-थोड़े कर्मचारी बुलाये जाते हैं। ऐसे में देश के सैकड़ों अखबारों और सैकड़ों कर्मचारियों को फील्ड में निकल कर इकट्ठा होने का नया काम देने वाली नई संशोधित मीडिया पॉलिसी को हड़बड़ी में लागू करने का क्या अर्थ है ! नियमानुसार मीडिया पॉलिसी संशोधन से पहले प्रेस कॉउन्सिल ऑफ इंडिया की सहमति लेना जरुरी होती है, किंतु कौंसिल के सदस्य आरोप लगा रहे हैं कि इस संबंध में उनसे परामर्श के लिए कोई बैठक तक नहीं हुई। उत्तर प्रदेश से कौंसिल के सदस्य सवाल उठा रहे हैं कि कोरोना काल में कम संसाधन वाले संघर्षशील समाचार पत्र जो पहले ही आर्थिक तंगी से बेहाल हैं ऐसे में उनपर जांच थोपने का क्या अर्थ है। ऐसे में देश के कोरोना काल में मध्यम वर्गीय समाचार पत्रों के प्रकाशकों को एक नया कोरोना डराने लगा है। कोविड 19 वाले कोरोना वायरस की चपेट वाले तीन फीसद को जान का खतरा और 97% को ठीक होने की उम्मीद होती है। लेकिन यहां अखबार के प्रकाशकों को जिस नये कोरोना का डर सता रहा है उसमें 97% को खत्म हो जाने का डर है।   पब्लिशर्स को डराने वाले कोरोना संशोधित मीडिया पॉलिसी के अंतर्गत मंझोले वर्ग के प्रसार वाले पत्र-पत्रिकाओं को निर्देश दिया गया है कि इन्हें आर.एन.आई या ए बी सी की जटिल जांच की अग्नि परीक्षा से ग़ुजरना होगा। तब ही मध्यम वर्गीय प्रसार संख्या वर्ग में सरकारी विज्ञापन की दर बर्करार रहेगा, अन्यथा इनकी डीएवीपी की मान्यता समाप्त कर दी जायेगी। जांच ना कराने की स्थिति में प्रकाशकों के पास एक मौका है। वो पच्चीस हजार के ऊपर के प्रसार का दावा छोड़कर पच्चीस हजार के अंदर प्रसार का ही दावा करें। यानी लघु समाचार के वर्ग में आकर वो कम विज्ञापन दरों में ही संतोष करे, अन्यथा जांच करायें। जो ज्यादातार प्रकाशकों के लिए मुम्किन ही नहीं नामुमकिन है। इसलिए प्रकाशक कह रहे हैं कि जांच का ये कोरोना हमें मार देगा !

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Dakhal News 28 July 2020


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सूर्या समाचार सहित कई न्यूज़ चैनलों में बतौर एंकर और प्रोड्यूसर काम करने वाली दीप्ति यादव इन दिनों अपने पॉडकास्ट चैनल ‘मन का मेढ़क’ से वापसी कर चुकी है और पूरी तरह सक्रिय है। 9 जुलाई को लांच हुए इस पॉडकास्ट चैनल की लोकप्रियता को देखते हुए इसे स्पॉटीफाई सहित 6 प्लेटफॉर्म पर रिलीज किया गया है। इस चैनल के जरिये दीप्ति यादव युवा कवियों और लेखकों की रचनाओं और कहानियों को बिल्कुल अलग अंदाज में पेश करती हैं। इसके अलावा वह खुद की कविताओं को भी बेहद रोचक तरीके से पेश करती हैं। इस तरह यह प्लेटफॉर्म गलियों और मोहल्लों के युवा लेखकों को प्रमोट करने का एक माध्यम बनता जा रहा है। उनके पॉडकास्ट चैनल ‘मन का मेंढक’ का नाम जितना दिलचस्प है उतना ही दिलचस्प है इस चैनल का हर एक एपिसोड का कंटेंट। फिलहाल दीप्ति यादव खुद इसका कंटेंट भी लिख रही है, एडिटिंग भी कर रही है, आवाज़ भी दे रही है और सबसे खास बात इसके हर एपिसोड में एक मेंढक भी आता है जिसकी आवाज़ भी खुद दीप्ति ही दे रही हैं। हमेशा एंकर के रूप में दिखने वाली दीप्ति इन दिनों कविताएं भी लिख रही है और कवि सम्मेलनों में अपने एंकर और रेडियो जॉकी अंदाज़ को समावेशित कर बेहतरीन प्रस्तुति भी दे रही है। एक वॉइस ओवर आर्टिस्ट के तौर पर अब तक कई सारे कमर्शियल ऐड का चुकी है फ़िलहाल कुछ कार्टून कैरेक्टर के वॉइस ओवर के लिए भी कई कंपनियों से उनकी बात चल रही है। पॉडकास्ट एक नए तरीके का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है जिसमें खुद का रेडियो चैनल बना कर अपनी रचनात्मकता को नया आयाम दिया जा सकता है। इसे आवाज की दुनिया का टिकटॉक कहा जा सकता है। यूपी के उन्नाव जैसे छोटे शहर से निकली और कानपुर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी करने वाली दीप्ति रेडियो से भी बेहद प्यार है और इसी रेडियो को उन्होंने पॉडकास्ट में बेहतर उतारा है। उनके पॉडकास्ट चैनल की तारीफ ‘भाभी जी घर पर हैं’ के टिल्लू यानी सलीम ज़ैदी भी कर चुके है। 2019 में सूर्या समाचार में कार्यरत दीप्ति यादव ने स्वास्थ्य कारणों के चलते चँनेल से इस्तीफा दिया था। लॉकडाउन के दौर में जब मीडिया सेक्टर में जबर्दस्त छंटनी का दौर चल रहा है, दीप्ति ने दिखाया है कि अगर आपके अंदर रचनात्मकता और आईडिया है तो आपके पास विकल्पों की कमी नही है। सोशल मीडिया के इस जमाने में खुद को साबित करने के लिए किसी बड़े बैनर की जरूरत नही और न ही किसी एकलव्य की तरह किसी को अंगूठा काट के देने की विवशता झेलनी पड़ती है। आप भी उनके इस प्लेटफॉर्म से जुड़ सकते हैं और सुझाव भी दे सकते हैं.. आपका स्वागत है.

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Dakhal News 23 July 2020


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एक बादशाह ने रफूगर रखा हुआ था, जिसका काम कपड़ा रफू करना नहीं, बातें रफू करना था. एक दिन बादशाह दरबार लगाकर शिकार की कहानी सुना रहे थे, जोश में आकर बोले – एकबार तो ऐसा हुआ मैंने आधे किलोमीटर से निशाना लगाकर जो एक हिरन को तीर मारा तो तीर सनसनाता हुआ हिरन की बाईं आंख में लगकर दाएं कान से होता हुआ पिछले पैर के दाएं खुर में जा लगा. जनता ने कोई दाद नहीं दी. वो इस बात पर यकीन करने को तैयार ही नहीं थे. इधर बादशाह भी समझ गया ज़रूरत से ज़्यादा लम्बी छोड़ दी.. और अपने रफूगर की तरफ देखने लगा… रफूगर उठा और कहने लगा.. हज़रात मैं इस वाक़ये का चश्मदीद गवाह हूँ, दरसल बादशाह सलामत एक पहाड़ी के ऊपर खड़े थे हिरन काफी नीचे था, हवा भी मुआफ़िक चल रही थी वरना तीर आधा किलोमीटर कहाँ जाता है… जहां तक बात है ‘आंख’ , ‘कान’ और ‘खुर’ की, तो अर्ज़ करदूँ जिस वक्त तीर लगा था उस वक़्त हिरन दाएं खुर से दायाँ कान खुजला रहा था,… इतना सुनते ही जनता जनार्दन ने दाद के लिए तालियां बजाना शुरू कर दीं… अगले दिन रफूगर बोरिया बिस्तरा उठाकर जाने लगा… बादशाह ने परेशान होकर पूछा– कहाँ चले? रफूगर बोला- बादशाह सलामत मैं छोटी मोटी तुरपाई कर लेता हूँ, शामियाना सिलवाना हो तो इंडियन मीडिया को रख लीजिए!

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Dakhal News 23 July 2020


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Pushya Mitra : अगर यह अवमानना है तो सोचता हूँ, थोड़ी सी सविनय अवमानना मैं भी कर लूं। खबर है कि इस ट्वीट के लिये प्रशांत भूषण जी पर न्यायालय की अवमानना का मुकदमा हुआ है। Vijay Shankar Singh : सीजेआई जस्टिस बोबड़े की एक फोटो एक महंगी मोटर बाइक पर खूब चर्चित हुयी और उसी का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट प्रशांत भूषण ने एक ट्वीट कर दिया। अब उस ट्वीट पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना की नोटिस जारी कर दी है। यह भी खबर थी कि वह बाइक एक भाजपा नेता की थी, और जस्टिस बोबडे बिना हेलमेट के उस बाइक पर बैठे थे। न्यायमूर्ति अरुण मिश्र अवमानना पीठ के अध्यक्ष हैं। यह मामला वह सुनेंगे। प्रशांत भूषण का ट्वीट इस प्रकार है,CJI rides a 50 Lakh motorcycle belonging to a BJP leader at Raj Bhavan Nagpur, without a mask or helmet, at a time when he keeps the SC in Lockdown mode denying citizens their fundamental right to access Justice! इस ट्वीट में कौन से तथ्य मिथ्या हैं ? बाइक बीजेपी के नेता की है, सीजेआई, न तो मास्क लगाए हैं, और न हैलमेट। लॉक डाउन चल भी रहा था और अदालतें बंद भी थीं। फिर यह खुन्नस है या सच मे अदालत की तौहीन अब यह जब अदालत तय करे तो पता चले ! Jitendra Narayan : केवल प्रशांत भूषण पर ही क्यों? हम सब पर भी चलाओ अवमानना का केस…देश के मुख्य न्यायाधीश के रूप मे आपकी हरकतें निंदनीय है और मुख्य न्यायाधीश के पद की गरिमा के खिलाफ है…आपके दिए कई फैसले भी पूर्णतः पक्षपातपूर्ण और न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है!

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Dakhal News 22 July 2020


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Vikas Mishra : गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी पर गोली चलाने वाले पकड़े गए हैं। पुलिस ने 9 बदमाशों को गिरफ्तार किया है। आमतौर पर बदमाशों के पैर में गोली मारकर गिरफ्तार करने वाली यूपी पुलिस ने इन अपराधियों को ‘रक्तहीन’ तरीके से गिरफ्तार किया है। पत्रकार विक्रम जोशी की भानजी के साथ कुछ बदमाश छेड़खानी कर रहे थे। इसकी रिपोर्ट लिखवाने वे गाजियाबाद के विजय नगर थाने गए थे। पुलिस ने रिपोर्ट तो नहीं लिखी। अलबत्ता रिपोर्ट लिखवाने की कोशिश से खुन्नस खाए बदमाशों ने विक्रम जोशी पर ताबड़तोड़ गोलीबारी कर दी। एक गोली उनके सिर में लगी हुई है। अस्पताल में उनकी हालत गंभीर है। ईश्वर से प्रार्थना है कि वो जल्द ही विक्रम जोशी को पूर्ण स्वस्थ करें। जिस वक्त बदमाशों ने विक्रम जोशी को गोली मारी, उस वक्त वे अपनी दो बेटियों के साथ टहलने निकले थे। बेटियां चिल्ला रही थीं, लेकिन अपराधियों पर खून सवार था। अब इन अपराधियों को अदालत, हवालात या जेल ले जाते वक्त अगर पुलिस की गाड़ी पलट जाए तो अपराधी जरूर पुलिस से पिस्टल छीनकर भागने की कोशिश करेंगे। पुलिस पर गोली भी चलाएंगे। ऐसे में अगर पुलिस ‘आत्मरक्षार्थ’ उन्हें गोलियों से भून डालती है तो मैं व्यक्तिगत रूप से पुलिस का समर्थन करूंगा। यही नहीं, 24 घंटे बाद गिन लीजिएगा, मुझे यकीन है कि इस पोस्ट के कमेंट बॉक्स में आकर कम से कम 100 लोग इस बात का समर्थन करेंगे, जिनमें से ज्यादातर पत्रकार साथी होंगे। अगर पुलिस ऐसा कर पाई तो शायद अपना पाप भी धो सके। मुझे और मेरे तमाम पत्रकार साथियों को उम्मीद है कि बारिश के इस मौसम में गाजियाबाद पुलिस की गाड़ी जरूर फिसलेगी। नहीं फिसली तो भी पुलिस को ‘आत्मरक्षार्थ’ गोली चलाने का मौका जरूर मिलेगा। आजतक न्यूज चैनल में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार विकास मिश्र की एफबी वॉल से।

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Dakhal News 22 July 2020


bhopal, Journalist Vikram Joshi could not be saved

पत्रकार साथी विक्रम जोशी की इलाज के दौरान डेथ हो गई है। उनके भाई अनिकेत द्वारा ये जानकारी दी गई है। अनिकेत के अनुसार उन्हें आज सुबह 4 बजे इस बारे में बताया गया। भगवान विक्रम भाई की आत्मा को शांति दे। इस कठिन वक़्त में हम उनके परिवार के साथ खड़े हैं। विक्रम भाई को शहीद का दर्जा मिलना चाहिए। आरोपियों को मुठभेड़ में मारा जाना चाहिए। थाना प्रभारी पर कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए जिसने पत्रकार द्वारा लिखित कंप्लेन दिए जाने के बावजूद आरोपियों पर कार्रवाई नहीं की। उधर, इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के उपाध्यक्ष और उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी ने गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी की हत्या पर दुख और क्षोभ व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से 50 लाख रुपये की तात्कालिक सहायता और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की मांग की है। मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में हेमंत तिवारी ने कहा कि की विगत एक वर्ष के दौरान उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर हमले, सरकारी उत्पीड़न, फर्जी मुकदमे लगाने की दर्जनों घटनाएं हुईं और हर बार शासन के वरिष्ठ अधिकारियों से बात हुई, पत्र लिखे गए लेकिन यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि संवेदनशीलता नही दिखी । उन्होंने कहा है कि यदि सरकार इस बार भी नकारात्मक रवैया अपनाती है तो पूरे प्रदेश पत्रकारों से संग्रह कराकर पीड़ित परिवार का सहयोग किया जाएगा ।परसों आपराधिक तत्वों ने गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी की गोली मार दी थी जिनकी कल रात मौत हो गई है। जोशी को विजय नगर इलाके में स्कूटी सवार बदमाशों ने सोमवार को सिर में गोली मारी थी। इस सिलसिले में कल तक नौ लोगों को गिरफ्तार और चौकी इंचार्ज को निलंबित किया गया था।   विजयनगर बाईपास निवासी विक्रम जोशी एक समाचार पत्र से जुड़े थे। सोमवार रात वह माता कॉलोनी निवासी बहन के घर गए थे। रात करीब 10:30 बजे वहां से आते समय कुछ बदमाशों ने उन पर हमला बोल दिया। एक बदमाश ने तमंचा सिर से सटाकर विक्रम को गोली मार दी। घटना को अंजाम देकर हमलावर फरार हो गए। परिजनों के मुताबिक विक्रम जोशी के परिवार की एक लड़की के साथ छेड़छाड़ हुई थी। इस संबंध में थाने में नामजद शिकायत की गई थी। पुलिस द्वारा कार्रवाई न करने पर आरोपी पीड़ित पक्ष को लगातार धमकी दे रहे थे। विक्रम इस मामले की पुलिस में पैरवी कर रहे थे। इसी बात को लेकर आरोपियों ने उन्हें गोली मार दी।

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Dakhal News 22 July 2020


bhopal,Miscreants shot journalist, head ,Ghaziabad , opposing molestation

दिल्ली से सटे गाजियाबाद में बदमाश इतने बेखौफ हो गए हैं कि वह पत्रकारों पर भी गोली चलाने लगे हैं। गाजियाबाद में पत्रकार ने अपनी भांजी के छेड़ने की तहरीर पुलिस को दी थी। पुलिस ने ना उसमें कार्यवाही की और ना ही किसी की गिरफ्तारी की। तहरीर देने से नाराज बदमाशों ने पत्रकार को गोली मार दी। पत्रकार जिंदगी और मौत से अस्पताल में लड़ रहा है। गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी का कसूर बस इतना था अपनी भांजी को लगातार छेड़ने वालों के खिलाफ थाने में तहरीर दी थी। तहरीर देने से नाराज बदमाशों ने बीती रात विक्रम को गोली मार दी। विक्रम के सिर में गोली लगी है। वह गंभीर हालत में यशोदा अस्पताल में भर्ती है। पुलिस का कहना है कि आरोपियों पर कार्रवाई की जाएगी। सवाल ये है कि अगर पुलिस पहले ही आरोपियों पर कार्रवाई कर देती तो शायद विक्रम आज अस्पताल में भर्ती ना होता। गाजियाबाद में बदमाश लगातार हावी हो रहे हैं और पुलिस हाथ पर हाथ रख कर बैठी है। बदमाश अब पत्रकारों को भी अपना निशाना बनाने लगे हैं। जब पत्रकार ने तहरीर दी थी तो फिर आरोपी कैसे खुलेआम घूमते रहे? पुलिस लापरवाही का नतीजा है कि बदमाशों ने इस तरह की दुस्साहसिक वारदात को अंजाम दे डाला। फिलहाल पत्रकार साथी विक्रम जोशी की तबियत नाज़ुक बनी हुई है।

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Dakhal News 21 July 2020


bhopal,New phase of films on third screen

–रवि राय– दो महीने पहले तक मोबाइल पर मैंने कोई फ़िल्म नहीं देखी थी। लॉकडाउन के दौरान सिनेमाहाल बन्द हो गए। मित्रों की राय पर नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम और सोनी लिव डाउनलोड किया। पता चला कि यहां एक अलग फिल्मी दुनिया बसी हुई है। मिर्ज़ापुर, पाताल लोक, रंगबाज़, द फैमिली मैन, आर्या, स्पेशल ऑप्स, असुर, बेताल, डेल्ही क्राइम , माधुरी टाकीज़, ब्रीद, ब्रीद इनटू द शैडो, अपहरण आदि कई फिल्में देख डालीं। आठ से बारह एपिसोड्स की इन फिल्मों में नवाजुद्दीन सिद्दीकी, पंकज त्रिपाठी, मनोज बाजपेयी, माधवन, अमित साध, केके मेनन से लेकर सुष्मिता सेन, कल्कि, शेफाली शाह जैसे स्थापित कलाकार छाए हुए हैं। कोविड 19 के वर्तमान प्रकोप को देखते हुए यह तो स्पष्ट है कि सिनेमाहाल निकट भविष्य में खुलने वाले नहीं हैं।खुले भी तो कोरोना के डर से दर्शकों का टोटा ही रहेगा।ऐसी स्थिति में मोबाइल पर फ़िल्म देखने का यह दौर क्या ऐसे ही चलता रहेगा ? ज़ाहिर बात तो यही है कि कोरोना से पहले जब आम दर्शक के पास दोनों विकल्प थे, मोबाइल पर फ़िल्म देखना आम नहीं था।उच्च एवं मध्यवर्ग के दर्शकों के लिए हज़ार दो हज़ार के खर्च में परिवार के साथ हॉल में सीट पर बैठ कर फ़िल्म देखने का मज़ा ही कुछ और था।मगर फ़िल्म की असली कमाई टिकट खिड़की पर टूट पड़नेवाले सेकेंड क्लास, फर्स्ट क्लास, डीसी के दर्शकों से ही होती रही है। जैसे भी हो सिनेमा दर्शकों से हुई कमाई को ही बॉक्स ऑफिस का नाम दिया गया यानी सिनेमा की आमदनी। शुरुआती दिनों में सौ करोड़ को सफल और इससे भी अधिक की कमाई को सुपर-डुपर हिट कहा गया।सलमान, शाहरुख, आमिर आदि की कई फिल्में तो पांच से छह सौ करोड़ या इससे भी आगे तक चली गईं। वर्ष 2016 में आमिर खान की ब्लॉक बस्टर फ़िल्म ‘दंगल’ ने दो हज़ार करोड़ के वैश्विक आंकड़े के साथ सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। आमिर की ही पीके (2014) ने 832 करोड़,प्रभास की बाहुबली 2 (2016) ने 650 करोड़, सलमान की बजरंगी भाई जान (2015) ने 626 करोड़,सलमान की सुल्तान (2016) ने 584 करोड़, आमिर खान की धूम3 (2013) ने 542 करोड़ की कुल कमाई की। मूल प्रश्न तो यही है कि क्या मोबाइल एप्प से फिल्मों की लागत भर की कमाई भी हो सकेगी ?इसके उत्तर के लिए मोबाइल पर फिल्मों के बारे में थोड़ा गहरे उतरना पड़ेगा। ऑडियो विजुअल मनोरंजन क्षेत्र में सिनेमा स्क्रीन के बाद टेलीविजन को सेकेंड स्क्रीन की पहचान मिली । इसी क्रम में मोबाइल को अब थर्ड स्क्रीन कहा जाने लगा है। थर्ड स्क्रीन पर मनोरंजन या अन्य जानकारियां उपलब्ध कराने वाले एप्प्स को OTT कहते हैं यानी कि OVER THE TOP प्लेटफार्म। भारत में NETFLIX, AMAZON PRIME, VOOT, ZEE5, VIU, MAX, SONY LIV, ALT BALAJI आदि तमाम प्लेटफॉर्म ने तो खुद अपनी फिल्मों का प्रोडक्शन शुरू कर दिया है।अभी सामान्यतः इनका शुल्क डेढ़ से दो सौ रुपये मासिक है। यह सुविधा विज्ञापनयुक्त होती है और विकल्प यह है कि यदि आप विज्ञापनमुक्त स्ट्रीम चाहते हैं तो अधिक दाम देना होगा।इसे प्रीमियम सर्विस कहा गया है। सिनेमा से OTT का तो अभी मुकाबला ही नहीं है पर केबल या डिश टीवी बिजनेस में OTT ने सेंध लगा दी है। KPMG की रिपोर्ट है कि वित्तवर्ष 2019 में केबल और सेटेलाइट के कुल 19.7 करोड़ यूज़र्स में लगभग डेढ़ करोड़ यूज़र्स कम हुए। इस गिरावट की वजह ग्राहकों द्वारा केबल का नवीनीकरण न कराना, नए टैरिफ रेट में बढ़ोत्तरी और OTT पर बेहतर फिल्मों की उपलब्धता रही। इस वक्त भारत में करीब चालीस OTT प्रोवाइडर्स हैं। वर्ष 2018 में OTT से 2150 करोड़ की कुल कमाई हुई जो 2019 में 3500 करोड़ हो गई। इस वर्ष यह आराम से 5000 करोड़ तक पहुंचेगी । KPMG का आकलन है कि OTT का मार्केट वर्ष 2023 तक 13800 करोड़ तक पहुंच जाएगा । Ernst &Young ने कहा है कि वर्तमान वर्ष में भारत में 50 करोड़ एंड्रॉयड मोबाइल फ़ोनधारक OTT प्लेटफॉर्म से जुड़ जाएंगे। अब OTT की आमदनी का अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है। OTT का बढ़ता चलन देखते हुए कई स्मार्ट टीवी अब इनबिल्ट OTT चैनल्स भी दे रहे हैं। विगत दिनों में अमिताभ और आयुष्मान खुराना की गुलाबो सिताबो तथा अभिषेक बच्चन की ब्रीद इनटू द शैडो OTT पर रिलीज हुई। अगले कुछ दिनों में OTT पर आने वाली प्रमुख फिल्में हैं- सुशांत सिंह राजपूत की दिल बेचारा,विद्या बालन की शकुंतला देवी, अक्षय कुमार की लक्ष्मी बॉम्ब, अजय देवगन की भुज-द प्राइड ऑफ इंडिया, संजय दत्त, पूजा व आलिया भट्ट की सड़क 2, अभिषेक की द बिग बुल,विद्युत जामवाल की खुदा हाफ़िज़। इसके अतिरिक्त गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल, टोरबाज,लूडो, क्लास ऑफ ’83, रात अकेली है, डॉली किट्टी और वो, चमकते सितारे, काली खुही ,बॉम्बे रोज, भाग बीनी भाग, बॉम्बे बेगम्स ,मसाबा मसाबा, AK vs AK, गिन्नी वेड्स सनी, त्रिभंगा- टेढ़ी-मेढ़ी क्रेजी, अ सूटेबल बॉय, मिसमैच, सीरियस मेन भी थर्ड स्क्रीन पर उपलब्ध होंगी। कुल मिला कर भारत में फिल्मों का सीन तो यही बनता दिख रहा है कि अब अच्छी कहानी, पटकथा, फ़िल्म की स्पीड, अदाकारी और टेक्निकल सुपिरियारिटी के दम पर ही फिल्में चलेंगी। स्टारडम और प्रचार के बल पर फिल्में हिट कराने का दौर नहीं रहा।गुलाबो सिताबो या ब्रीद इनटू द शैडो का हाल सामने है।अब वह समय गया जब टिकट खरीद कर हाल में बैठ गए तो फ़िल्म अच्छी हो या खराब, देखनी ही है।बाद में हाल से बाहर भले ही झींकते हुए निकलें। OTT में फिल्म की शुरुआत में संक्षिप्त रिव्यू मौजूद है।फिर अगर कुछ देर देखने पर भी फ़िल्म मन माफिक नहीं लगी तो बन्द करिये दूसरी देखिये। क्यों अपना वक्त खराब करें ? सबसे बड़ी बात, फ़िल्म रिलीज़ के दिन ही आपके एंड्रॉइड मोबाइल पर हर फिल्म मौजूद है। अपनी सुविधानुसार जब चाहें देखें। OTT प्लेटफॉर्म पर यह तो रही सिर्फ फिल्मों की बात। खबरिया , किड्स, कुकरी , हेल्थ और रिलिजियस चैनल्स भी यहां आ गए हैं। ऑडियो स्ट्रीमिंग,VoIP कॉल, कम्युनिकेशन मैसेजिंग आदि भी OTT में ही शामिल हैं।अब पैसा फेंक तमाशा देख नहीं , पैसा फेंक और पैसावसूल तमाशा देख ! लेखक रवि राय गोरखपुर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के रिटायर्ड अधिकारी हैं. बैंकिंग करियर से पहले दैनिक जागरण, गोरखपुर के प्रारंभिक पत्रकारों में से रहे हैं और साहित्य के अनुरागी हैं.

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Dakhal News 21 July 2020


bhopal,Kanpuria editor ,earnestly helping ,Bhopal journalists, infected by Corona!

भोपाल : कोरोना संक्रमण में भी खुद को देश में नम्बर-1 बताने वाले अखबार के सम्पादक अस्पताल में भर्ती कोरोना पॉजिटिव स्टाफ से खबरें मंगा रहे हैं। जिन निगेटिव कर्मचारियों को ऑफिस बुला रहे थे, वे भी आ गए पॉज़िटिव! कनपुरिया सम्पादक सारी हदें पार कर जान लेने पर आमादा हैं। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में उत्तर प्रदेश से आये एक कनपुरिया सम्पादक इन दिनों खासी चर्चा में हैं। चर्चा है अखबार प्रेम को लेकर। अब इसके लिये पत्रकार चाहे कोरोना पॉजिटिव होकर मर ही क्यों न जाएं। दरअसल पिछले हफ्ते इस अखबार के कुछ पत्रकार कोरोना पॉजिटिव हुए तो सम्पादक जी ने उन्हे छुट्टी नहीं दी। नतीजा पॉजिटिव पत्रकारों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। पर संपादक जी लगातार दबाव बना रहे हैं कि नहीं दफ्तर आओ। वर्क फ्रॉम होम कुछ नहीं होता। दिलचस्प बात ये है कि कनपुरिया संपादक फोन पर दबाव बनाकर जिन कर्मचारियों को जबरन ऑफिस बुलाने धमका रहे थे, उन कर्मचारियों की रिपोर्ट भी पॉजीटिव आ गई। बस चले तो पूरा पॉजिटिव को भी अस्पताल से ऑफिस बुला लेंगे औऱ खुद घर मे दुबके बैठे हैं। तो साहब आलम ये है कि संपादक जी का पत्रकारों से प्रेम पत्रकारों पर ही भारी पड़ रहा है। मीडिया में खासकर प्रिंट मीडिया में कोरोना पॉजिटिव पत्रकारों के साथ ऐसे व्यवहार की खबरें आम होती जा रही हैं।।इस अखबार के मालिकान तो राज्यसभा सदस्य भी हैं।

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Dakhal News 17 July 2020


bhopal, Journalist organization welcomed Pyare Mian

IJU welcomes daily owner’s arrest in MP New Delhi : Welcoming the arrest of owner of Afkar daily Pyare Miyan, accused of raping four minor girls and running a sex racket in Madhya Pradesh, the Indian Journalists Union demanded strictest action be taken against him as other than his heinous crimes he had sullied the profession of journalism. Further, the Union demanded the SIT investigate the matter thoroughly in the backdrop of rumours he had a ‘quid pro quo relationship with those in power’. Miyan, who was absconding carried a reward of Rs 30,000 on his head, and was arrested in Srinagar, J&K on Wednesday following a group of minor girls in capital Bhopal being found by police in a disoriented condition on the city outskirts. Investigations reveal Miyan brought out Afkar, solely for ‘government advertisements and to get access to politicians, police and bureaucrats.’ SP (South) Sai Krishna Thota told The Indian Express that Miyan had travelled abroad with minor girls in past few years, though he passed these off as treatment/business-related. He was dealing in property and owns several properties in Bhopal and Indore and the district administration demolished a wedding hall built illegally by him and a flat among others. His flat, which the police broke into, resembles a dance bar with expensive liquor bottles and child pornography, sex toys etc. Miyan’s 21-year-old woman accomplice, a driver, a manager were taken into custody. In a statement, IJU President and former Member, Press Council of India Geetartha Pathak and Secretary General and IFJ Vice President Sabina Inderjit, regretted the media was getting a bad name because of crooks like Miyan. They welcomed cancellation of his accreditation and withdrawal of government quarter allotment in Professors’ Colony from where he ran his office. Noting Miyan’s activities suggest he had support of those in power the IJU insisted a thorough probe and all, including the powerful, be brought to book. Recalling, a similar case of Brajesh Thakur, who claimed to be a journalist and ran a sex racket in a girls’ shelter home in Muzaffarpur, Bihar, the Union called upon its members and journalist fraternity to uphold ethical standards and expose those who were misusing the profession for personal gains and power.

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Dakhal News 17 July 2020


bhopal, media dragons,frying , making dragon, gangster Vikas

अपराध के ‘रक्तबीजों’ को सींचता कौन है! हमारे देश का मीडिया अजब-गजब है। एक मुद्दे को चबाते हुए पचा नहीं पाता कि उसकी उल्टी कर दूसरे की तरफ लपक पड़ता है। ड्रैगन को बैगन बनाकर भून ही रहा था कि बीच में गैंगस्टर विकास दुबे आ गया..। प्राइम टाइम में सीधे श्मशान से अपने-अपने पैकेज के रैपर खोलने ही जा रहे थे कि..’सदी के महानायक’ कोरोना के साथ लीलावती अस्पताल पधार गए। कोरोना अब तेरी खैर नहीं, इसे ‘जंजीर’ में बाँधकर ‘शोले’ से जला देंगे बिग बी..से लेकर रेखा के रोमांस का ‘सिलसिला’ भी घुल गया। एंकर मोहतरमा रिपोर्टर से चीख-चीखकर पूछ रहीं थी..कि अब कोरोना की अगली स्ट्रैटजी क्या हो सकती है।   बंदरों के समान उस्तरे से अपनी ही नाक उतार रहे इन छिछोरों ने परदे पर गत्ते की तलवार भाँजने वाले लखटकिया (अरबटकिया) अभिनेता को सदी का महानायक घोषित कर दिया तो महात्मा गांधी, सुभाष बाबू, भगत सिंह, चंद्रशेखर और सरहद पर प्राण देने वाले परमवीर योद्घा क्या हैं..! समझ में नहीं आता कि ब्रैकिंग सूचनाओं की यह सँडांध श्रोताओं/दर्शकों/पाठकों को किस नरक-कुंड में धकेलने को आमादा है।   बहरहाल लेख का विषय यह नहीं बल्कि सिस्टम की सँडांध का है, जहाँँ विकास दुबे जैसे अपराधी पनपते हैं और मरने के बाद भी उनके रक्तबीज से बहुगुणित संख्या में पजाते रहते हैं।   अपने देश में नेता-गैंगस्टर-पुलिस के घालमेल की तुलना आप शराब-सोडा-कबाब से कर सकते हैं। नेता और अपराधी शराब में सोडे की तरह एक दूसरे में घुले हैं..। जो आज गैंगस्टर है कल नेता हो सकता है।   दोनों की युति से चुनावी रथ का पहिया आगे बढ़ता है। पुलिस को इस काकटेल में स्नैक्स समझिए कभी-कभी कबाब की हड्डियां जायका खराब कर देती है..मुश्किल तभी होती है..।   विकास दुबे मुख्तार अंसारी, शहाबुद्दीन, अतीक अहमद जैसे रसूख को प्राप्त कर पाता कि कच्ची उमर में ही फँस गया..और जो तय है वही हुआ।   राजनीति के अपराधीकरण या अपराध के राजनीतिकरण की ओर बढ़ते हुए विकास दुबे के मार्फत अपराध की राजनीति को भी समझते चलें..।   सोशल मीडिया मेंं गैंगस्टर की जाति को लेकर उबाल है। जिसका मूलस्वर यह कि ठाकुर जाति के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुन-चुनकर ब्राह्मण बाहुबलियों को निपटा रहे हैं। इन संदेशों की छुपी मंशा यह है कि उन्हें मुसलमान बाहुबलियों का संहार करना चाहिए.. ठाकुर-बाम्हन तो मिल-पटकर रह भी लेंगे।   इसलिए बार-बार याद दिलाया जा रहा कि बिहार में डीएम की हत्या करने का आरोपी शहाबुद्दीन सही सलामत है, न उसका घर धंसाया, न मुठभेड़ हुई। अतीक और मुख्तार के जेल में रहने के बावजूद उनका कालासाम्राज्य वैसे ही चल रहा है।   अपने यहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही नहीं स्वच्छंदता भी है सो सामाजिक समरसता जाए चूल्हे-भाड़ में जिसको जो मन पड़ेगा..लिखेगा. जहर घुलता है तो और घुले।   पिछले छह दशकों से अपराधी-पुलिस का साझा सहकार चलता रहा है, एक दूसरे का पूरक बनकर एक जैसी कार्यपद्धति अख्तियार करते हुए।   यह मैं नहीं कहता, साठ के दशक में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद नारायण मुल्ला ने एक फैसले में कुछ इसी तरह की तल्ख टिप्पणी की है – “मैं जिम्मेदारीपूर्वक सभी अर्थों के साथ कहता हूँ, पूरे देश में एक भी कानून विहीन समूह नहीं हैं जिसके अपराध का रिकार्ड अपराधियों के संगठित गिरोह पुलिस बल की तुलना में कहीं ठहरता हो”   इस टिप्पणी को सरलीकृत करके आमतौर पर उल्लेख किया जाता है कि भारत में पुलिस अपराधियों के संगठित गिरोह से ज्यादा कुछ भी नहीं।   पुलिस तंत्र ऐसा स्वमेव बना या बनने के लिए विवश किया गया इसकी कहानी अँग्रेजों के समय से शुरू होती है। तब उसकी एक मात्र भूमिका स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को अपराधी बताकर दमन करने की थी। इसी पुलिस की लाठी से शेर-ए-पंजाब लाला लाजपतराय की हत्या हुई थी।   वोहरा, रुस्तम जी समेत पुलिस तंत्र में सुधार के लिए बने तमाम आयोगों और समितियों की सिफारिशों और संतुस्तियों के बाद भी पुलिस के प्रायः सभी मूल कानून और संहिताएं अँग्रेजों के जमाने की हैं।     आजाद भारत का सत्ता समूह गुलाम भारत के जमाने की पुलिस चाहता है ताकि विरोधियों को अपराधी बताकर उसी तरह दमन किया जाता रहे जैसा कि अँग्रेजों के जमाने में था।   विपक्ष जब सत्ता समूह बनकर आता है तो चूँकि उसे भी बदला भँजाना होता है इसलिए वह भी वैसा ही पुलिस तंत्र चाहता है..जो विरोधियों के लिए दमनकारी हो।   बहुत पहले एक नाट्यकृति पढ़ी थी। लेखक और नाटक का नाम विस्मृत है पर तथ्य और कथ्य आज भी याद है। नाटक रावण और मारीच पर केंद्रित था। रावण को सत्ताधारी दल का नेता और मारीच को स्थानीय गुंडा बताया गया था। रावण उसे राम (विपक्षी दल के नेता)को मारने की सुपारी देता है।   विपक्षी दल के नेता के गुणों से प्रभावित गुंडा जब सुपारी लेने से मना करता है तब सत्ताधारी दल का नेता धमकाता है..कोई मरे या न मरे पर तेरा मरना तो तय है..इसलिए बेहतर है कि तू मेरे दुश्मन को मारते हुए मर या फिर मेरी पुलिस से मुठभेड़ में मरने के लिए तैय्यार रह।   यह नाटक साठ सत्तर दशक का है। अपराध राजनीति में प्रवेश ही पा रहा था..। राजनीति में पूँजीपतियों के धनबल, गैंगस्टरों के बाहुबल के बीच गठबंधन होना शुरू हो चुका था। इधर जयप्रकाश नारायण ने जितने भी दुर्दांत दस्युओं का आत्मसमर्पण करवाया था उनमेंसे ज्यादातर राजनीति में अपने भविष्य की तलाश में लग गए थे।   मुंबई में हाजी मस्तान, वरदाराजन मुदलियार और करीमलाला जैसे स्मगलर अपराध में जातीय और क्षेत्रीय अस्मिता के प्रतीक बनकर उभर रहे थे। चुनावी फायदों के लिए विभिन्न दलों के नेता आधीरात कंबल ओढ़कर इनके ठिकाने आने लगे थे।   उत्तरप्रदेश और बिहार में हरिशंकर तिवारी और सूरजदेव सिंह जैसे कई बड़े सफेदपोश राजनीति की छतरी ओढ़ चुके थे। समाजवादी डकैतों को सोशल जस्टिस के लिए बीहड़ पर उतरे बागी बताने लगे थे..।   सन् सत्तर-पचहत्तर के आसपास राजनीतिक लोकतंत्र में अपराध की विषबेल का लिपटना शुरू हो चुका था..। इसके बाद मामला तेज रफ्तार से आगे बढ़ा।   नब्बे के आर्थिक उदारीकरण के दौर में प्रायः सभी तरह के अपराधी उद्योगपति बनने की होड़ में जुट गए, रियल स्टेट और ठेकेदारी इनके कब्जे में आती गई।   राजनीति में अकूत धन की ताकत का निवेश चमत्कारी साबित होने लगा। और जब देखा कि बड़े-बड़े कतली गिरोहबाज विधायक, सांसद और मंत्री हैं, वही पुलिस उनको सैल्यूट कर रही है तो राजनीति अपराधियों के लिए सुरक्षित स्वर्ग बनता गया। विकास दुबे तो बड़ा कतली गैंगस्टर था, उसकी ख्वाहिश भी बड़ी थी। आज तो मोहल्ले का गुंडा भी पार्षदी अपनी जेब में रखता है।   इतिहास में अपराधियों की राजनीति में प्रवेश की इतनी फूलप्रूफ योजनाओं के दृष्टांतों के चलते आखिर विकास दुबे चूक कहाँ गया..?   शहाबुद्दीन, मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, रघुराज प्रताप सिंह, अमरमणि त्रिपाठी, ब्रजेश सिंह जैसों की तरह सांसदी, विधायकी भोगने की जगह सीधे ऊपर भेज दिया गया।   दरअसल नेता-पुलिस-माफिया के गठजोड़ का खेल साँप-सीढ़ी जैसे होता है। सभी एक दूसरे के कंधे को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करते हैं। इनमें छोटे से लेकर बड़े, सभी साइज के स्वार्थ होते हैं। विकास दुबे पुलिस की आपसी अदावत औ छोटे स्वार्थ की भेंट चढ़ गया।   अपराध जगत कांटे से काँटा निकालने के लिए जाना जाता है। कभी अपराधी अपने प्रतिद्वंद्वियों को निपटाने के लिए पुलिस को हथियार बनाते हैं।   जैसे कि मुंबई का एनकाउंटरर पुलिस काँप दया नायक था(इस आरोप में जेल में भी रहा)। तो कभी पुलिस ही आपसी अदावत के चलते अपने पुलिस सहकर्मी को निपटाने के लिए गैंगस्टर की मदद लेती है।   कभी -कभी पुलिस और गैंगस्टर समझ भी नहीं पाते कि वे किसके मोहरे के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं। बिल्कुल फिल्मी कथानक..नहीं यूँ कहें कि सही कथानक फिल्मों के लिए..। विकास दुबे इसी कथानक का एक मोहरा बनकर पिट गया।   कहानी बड़ी साफ है..। चौबेपुर के दरोगा विनीत तिवारी की उस परिक्षेत्र के डीएसपी देवेंद्र मिश्रा से अदावत थी। विनीत तिवारी विकास दुबे का खबरी और कानूनी मददगार था। विनीत ने विकास के दिमाग में यह बैठाया कि देवेन्द्र मिश्रा तुम्हारा दुश्मन है और तुम्हें बर्बाद कर देगा।   देवेंद्र मिश्रा वाकई विकास दुबे को बर्बाद करना चाहता था यह कहानी स्पष्ट नहीं, पर विकास ऐसा ही मानकर चल रहा था।   जिस विकास दुबे ने थाने में घुसकर एक राज्यमंत्री को गोली मारी हो, रसूख के चलते जल्दी ही अदालत से रिहा होकर फिर माफियागिरी में जुट गया हो, उसकी ताकत को जानते हुए मूरख से मूरख पुलिस अधिकारी भी सात आठ सिपाहियों के साथ मुठभेड़ करने नहीं जाएगा, यह जानते हुए कि सामने गैंग के रूप में समूची पलटन है।   यह भी संभव है कि देवेंद्र मिश्रा को यह फर्जी इनपुट दिया गया हो कि वह आज विकास दुबे को आसानी से पकड़ सकता है। कुलमिलाकर डबलक्रास जैसी स्थिति है।   अब इस घटना के प्रमुख किरदार विनीत तिवारी की तफसील से जाँच की जाए तो एक यह नया सूत्र सामने आ सकता है कि विनीत तिवारी को यह सब करने के लिए उस प्रतिद्वंद्वी ने प्रेरित किया हो जिसे विकास दुबे के बढ़ते राजनीतिक वर्चस्व से खतरा रहा हो।   गाँव की प्रधानी और जिला पंचायत में विकास दुबे परिवार का कब्जा था, निश्चित ही विकास की यह ख्वाहिश रही होगी कि वह भी अन्य गैंगस्टरों की भाँति विधायक-सांसद बने।   इस कहानी की बुनियाद में भावी चुनाव की विधायकी और सांसदी का मुद्दा जुड़ा निकले तो यह कोई हैरत की बात नहीं।   उज्जैन में सरेंडर कर चुके विकास दुबे को यूपी पुलिस ने कैसे मारा..तरीका सही था या गलत यह पुलिस तंत्र व न्यायजगत के बीच बहस का विषय है लेकिन इस घटना ने यूपी की राजनीति को एक ट्विस्ट जरूर दिया है।   विकास की मौत के बाद राजनीति साँप की तरह पलट रही है। जातीय ध्रुवीकरण की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं। कानपुर इलाके की वह पट्टी दबंग ब्राह्मणों के लिए जानी जाती है..विकास दुबे की रूह का चुनावी इस्तेमाल होगा।   यूपी में विधानसभा के चुनाव सामने हैं और भाजपा सपा दो के बीच मुकाबला। भाजपा सरकार पर विकास दुबे के मारने का आरोप है। संभव है कि समाजवादी पार्टी इस मुद्दे को वैसे ही टेकओवर करे जैसे कि मिर्जापुर जीतने के लिए फूलनदेवी का किया था। बात फिलहाल थमने वाली नहीं.. क्योंकि राजनीति तड़ित की तरह चंचल और भुजंग की भाँति कुटिल होती है। लेखक जयराम शुक्ल मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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Dakhal News 17 July 2020


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केंद्र की मोदी सरकार ने समाचार एजेंसी पीटीआई को सबक सिखाने का काम शुरू कर दिया है. चीनी राजदूत के इंटरव्यू से नाराज मोदी सरकार ने इस न्यूज एजेंसी पर 84.4 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. पीटीआई से कहा गया है कि उसने वर्ष 1984 से उस सरकारी बिल्डिंग के किराए का भुगतान नहीं किया है जिससे इसका कामकाज संचालित होता है. ज्ञात हो कि पीटीआई का ये आफिस संसद मार्ग पर स्थित है. पीटीआई पर लीज की शर्तों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए 84.48 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है. इसी लीज के तहत पीटीआई को दिल्ली में संसद मार्ग कार्यालय के लिए भूमि आवंटित की गई थी. ज्ञात हो कि केंद्र सरकार चीनी राजदूत सन सुन वेइदोन का इंटरव्यू पीटीआई द्वारा लिए जाने के जवाब में पीटीआई को दंडित कर रही है. पीटीआई को 84.48 करोड़ रुपये का डिमांड नोटिस जारी किया गया है. भुगतान के लिए 7 अगस्त का टाइम दिया गया है. न देने पर 10 प्रतिशत ब्याज लगेगा. किसी भी स्पष्टीकरण के लिए पीटीआई को एक सप्ताह का समय दिया गया है. कहा गया है कि पीटीआई ने 1984 के बाद से जमीन के किराए का भुगतान नहीं किया है. बेसमेंट के एक कार्यालय में बदलाव कर भूमि-आवंटन की शर्तों का दुरुपयोग किया है. लीज के अनुसार बेसमेंट का उपयोग केवल स्टोर के मकसद से करना था.

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Dakhal News 14 July 2020


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एक दुखी करने वाली खबर है. दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार रजत अमरनाथ को ब्रेन स्ट्रोक का सामना करना पड़ा है. इसके चलते उनके शरीर का बायां हिस्सा पैरलाइज हो गया है. डाक्टरों का कहना है कि रजत अमरनाथ को समय से अस्पताल लाने और ब्रेन स्ट्रोक तत्काल डायग्नोज होने के चलते इलाज अतिशीघ्र शुरू कर दिया गया जिससे उनकी जान बच गई. रजत अमरनाथ को बोलने में अभी भी तकलीफ है. डाक्टरों ने उन्हें बेड रेस्ट की सलाह दी है. साथ ही तनाव न लेने को कहा है. कुछ साल पहले रजत अमरनाथ को दो बार हार्ट अटैक से भी गुजरना पड़ा था. ज्ञात हो कि रजत अमरनाथ किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहे हैं. वे तत्कालीन स्टार न्यूज समेत कई न्यूज चैनलों में बड़े पदों पर रहे हैं. दिल्ली के दरियागंज के निवासी रजत अमरनाथ जीवन में दूसरों की मदद करने का काम लगातार करते रहे हैं. जब जब भड़ास पर किसी के लिए मदद की अपील छपी तो रजत अमरनाथ ने उस अपील पर फौरन पहल करते हुए यथोचित मदद पहुंचाई. साथ ही ये ताकीद भी की कि उनका नाम न किसी को बताया जाए और न प्रकाशित किया जाए. रजत अमरनाथ के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना उनके मित्रों-परिचितों ने की है.

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Dakhal News 14 July 2020


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भोपाल : जिस पत्रकार महोदय को राज्य सरकार मान्यता दिए हुए थी, उसे सरकारी बंगला मिला हुआ था, वही पत्रकार बच्चियों के यौन शोषण में लिप्त था. ऐसा घटिया पत्रकार समाज में अभी तक सम्मान पाता रहा है. लेकिन पोल खुलने के बाद अब इनसे सब लोग हाथ खींचने लगे हैं. प्रदेश सरकार ने बलात्कारी प्यारे मियां की सरकारी मान्यता निरस्त कर दी है. उनसे सरकारी बंगला खाली कराने का आदेश दे दिया गया है. प्यारे मियां के शासकीय आवास को खाली कराने औऱ अधिमान्यता समाप्त करने के निर्देश खुद मुख्यमंत्री ने दिए हैं. पत्रकारिता के नाम पर गलत एवं अनैतिक कार्यों में संलिप्त था प्यारे मियां। ऐसे लोग ही पत्रकारिता को बदनाम करते हैं. भोपाल में नाबालिग बेटियों के यौन शोषण के मामले पर मुख्यमंत्री ने अपनी कड़ी नाराजगी व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि इस मामले में जो भी शामिल है, उसमें से किसी को नहीं छोड़ा जाएगा. प्यारे मियां को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने के निर्देश दिए गए हैं. ऐसी सूचना है कि प्यारे मियां को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया है. प्यारे मियां के बारे में एक अपुष्ट जानकारी मिली है कि ये भोपाल के ख्यातनाम गुंडे हैं। बताया जाता है कि सारे अखबार मालिक इनके आगे नतमस्तक रहते हैं। चर्चा है कि बच्चियों के यौन शोषण के मामले में भोपाल के एक बड़े अखबार मालिक के रिलेटिव भी शामिल थे, लेकिन पुलिस ने बचा लिया।

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Dakhal News 14 July 2020


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लाकडाउन के बाद से बडे अखबारी समूहों में जहां बडे पैमाने पर छंटनी हो रही है , वहीं दैनिक अमृत विचार छंटनी का शिकार हुए बेरोजगार पत्रकारों – गैर पत्रकारों का सहारा बनता जा रहा है। बड़े अखबारों में लगातार स्टाफ कम करने का क्रम जारी है। ये समूह 35 से 40 प्रतिशत तक स्टाफ घटाने की योजना पर काम कर रहे हैं। जिलों के ब्यूरो आफिस बंद किये जा रहे या कार्यरत कर्मचारियों की संख्या कम कर दी गयी है। तहसीलों के आफिस बंद कर दिये गए हैं। इससे बडे पैमाने पर कोरोना जन्य संकट कालीन स्थित में मीडियाकर्मी , खासकर पत्रकारों के सामने आजीविका का बडा संकट उत्पन्न हो गया है। इसमें कई युवा पत्रकार भी हैं। हालत यह है कि तीस-पैंतीस हजार रुपये वेतन पाने पत्रकार पंद्रह-बीस हजार रुपये की नौकरी को भटक रहे हैं।   दैनिक जागरण, मुरादाबाद से छंटनी के शिकार डिप्टी चीफ सब एडिटर आशुतोष मिश्र ने अमृत विचार, मुरादाबाद में सिटी इंचार्ज के रूप में ज्वाइन किया है। दैनिक जागरण, मुरादाबाद के डिजाइनर रिजवान अहमद ने भी अमृत विचार , मुरादाबाद ज्वाइन किया है। हिंदुस्तान, नोएडा से छटनी कर दिए गए मनीष मिश्रा ने अमृत विचार, मुरादाबाद में सीनियर सब एडिटर के पद पर ज्वाइन किया है। वह मुरादाबाद में दैनिक जागरण और अमर उजाला में भी सेवारत रह चुके हैं। हिंदुस्तुान, नोएडा से छंटनी के शिकार हुए युवा पत्रकार पीयूष द्विवेदी भी अमृत विचार, बरेली आ गए हैं। वह दैनिक जागरण, बरेली से एक वर्ष पहले ही हिंदुस्तान गए थे और छंटनी की जद में आ गए। वह अमृत विचार, बरेली में सिटी प्रभारी के रूप सेवायें देंगे।   दैनिक जागरण, बरेली से छंटनी अभियान में बाहर कर दिये गए सर्कुलेशन मैनेजर त्रिनाथ शुक्ला ने अमृत विचार, बरेली में सर्कुलेशन मैनेजर के पद पर ज्वाइन किया है। वह दैनिक जागरण में सिटी सेल्स हेड थे और उससे पहले अमर उजाला, लखनऊ, टाइम्स आफ इंडिया, बिजिनेस स्टैंटर्ड, पायनियर, राजस्थान पत्रिका और आउटलुक में काम कर चुके हैं। दैनिक अमृत विचार लखनऊ, बरेली और मुरादाबाद से प्रकाशित है। समूह संपादक शंभू दयाल वाजपेयी के अनुसार प्रबंधन की योजना अखबार का चौथा संस्करण हल्द्वानी (नैनीताल) से भी शुरू करने की योजना है। नोएडा संस्करण भी प्रबंधन की योजना में है। अमृत विचार वेबसाइट और यूट्यूब चैनेल भी है। डिजिटल में एक दर्जन से अधिेक पूर्ण कालिक पत्रकार कार्यरत हैं। बरेली में अखबार का प्रकाशन शुरू हुए आठ महीने हुए हैं। पांच महीने पहले मुरादाबाद संस्करण शुरू हुआ। बेहतर कंटेंट, सभी रंगीन और अच्छा कागज व छपाई होने से अखबार ने कम समय में ही पाठकों में अपनी पहचान बनायी और तेजी से बढ़ रहा है। 14 -16 पेज के अखबार के साथ रविवार को चार पेज की मैगजीन भी है।

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Dakhal News 13 July 2020


bhopal,senior journalist, from Mumbai, joined Aam Aadmi Party

मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार द्विजेन्द्र तिवारी आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं। पिछले दिनों ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य व प्रवक्ता प्रीति शर्मा मेनन ने उन्हें पार्टी में शामिल कराया। समझा जाता है कि महाराष्ट्र में अपनी उपस्थिति दमदार करने के लिए आम आदमी पार्टी अपना विस्तार कर रही है और इस उद्देश्य से तिवारी को पार्टी में शामिल किया गया। तिवारी का पत्रकारिता में लंबा अनुभव रहा है। मुंबई में जनसत्ता के तेजतर्रार राजनीतिक संवाददाता के रूप में उनकी छवि रही है। इसके बाद नवभारत, मुंबई के स्थानीय संपादक और हमारा महानगर के संपादक के रूप में उन्होंने मुंबई की पत्रकारिता में अपना एक अलग मुकाम बनाया। तिवारी ने लगभग 30 साल मुंबई में राजनीतिक रिपोर्टिंग की और कई राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नेताओं के साथ उनके व्यक्तिगत संबंध रहे हैं। स्व.बाल ठाकरे, स्वर्गीय विलासराव देशमुख और शरद पवार जैसे नेताओं से लिए गए उनके इंटरव्यू काफी चर्चित रहे हैं। मुंबई में सबसे पहले बने हिंदी पत्रकार संघ के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई। इसके बाद महाराष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण संस्था मंत्रालय एवं विधि मंडल वार्ताहर संघ की कार्यकारिणी में भी वे तीन बार सदस्य रहे हैं। राजनीतिक पत्रकारिता में तिवारी का लंबा अनुभव देखते हुए उम्मीद जताई जा रही है कि उनके अनुभवों से महाराष्ट्र में आगामी चुनावों में आम आदमी पार्टी को लाभ मिल सकता है। विशेषकर आगामी मुंबई महानगरपालिका चुनाव में मुंबई के उत्तर भारतीय समाज के बीच एक मजबूत संदेश जाएगा।

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Dakhal News 13 July 2020


bhopal, Thoothu stunned, hear the story ,Ayyashi , elderly journalist

पत्रकार बिरादरी का नाम बदनाम कर दिया भोपाल के प्यारे मियां नामक पत्रकार ने। ये प्यारे मियाँ नामक पत्रकार एक अखबार निकालता है। अखबार का नाम ‘अफ़कार’ है। इस अखबार का मालिक प्यारे मियां भोपाल के पुराने पत्रकारों में से एक है। इसकी उम्र 68 साल है। पढ़ें इस कमीने का कारनामा- सिर्फ नाबालिग लड़कियां (14 से 15 साल की) ही होती थी निशाने पर। बालिग होते ही कट्टे की नोक पर कुछ पैसा देकर उनकी करवा देता था शादी। 6 नाबालिग बच्चियों के यौनशोषण से जुड़ा है मामला। आरोपियों में राजधानी भोपाल के 5 बड़े नाम आ रहे हैं सामने। चाइल्ड हेल्प लाइन की टीम कर रही है नाबालिग बच्चियों की काउंसलिंग। देर रात बालाओं के साथ डांस करते पकड़े गए रसूखदार। रातीबड थाना क्षेत्र के फ़ार्महाउस में बना रखा था डांस बार।

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Dakhal News 13 July 2020


bhopal, Anand Swaroop Varma, use of Hindi translation ,many happy birthday wishes

आज जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार और मेरे प्रिय लेखक-अनुवादक आनंद स्वरूप वर्मा का जन्मदिन है. मुझे 2009 से 2011 के बीच उनके साथ काम करने का मौका मिला जो मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ. खासकर, हिंदी में लेखन और अनुवाद सीखने का बहुत खूब अवसर साबित हुआ वह समय. आज तक उनसे हमेशा कुछ ना कुछ सीखने को मिलता है. एक किस्सा तो अनुवाद करने वाले सभी लोगों को सुनना ही चाहिए. 15 सितंबर 2009 इराकी पत्रकार मुंतसर अल जैदी जेल से रिहा हुए. उन्हें जेल होने की वजह बहुत क्रांतिकारी है. इराक को तबाह करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश की 14 दिसंबर 2008 को इराक में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जैदी ने उन पर अपने जूते फैंके थे. इसके बाद जैदी को गिरफ्तार कर लिया गया था और लगभग एक साल बाद उन्हें रिहा किया गया. जेल से बाहर आने के तुरंत बाद जैदी ने ब्रिटिश अखबार द गर्डियन पर “वाई आई थ्र्यू द शू” नाम से लेख लिखा. इस लेख को, जिसके पहले दो वाक्य हैं, “मैं आजाद हूं. लेकिन मेरा मुल्क अब भी युद्ध बंदी है”, सभी को पढ़ना चाहिए. अब उस प्रसंग पर आता हूं. जैदी के इस लेख का अनुवाद बहुतों ने हिंदी में किया. वर्मा जी ने भी सोचा कि समकालीन तीसरी दुनिया के उस माह के अंक में यह जाना चाहिए. उन्होंने अनुवाद किया और पढ़ कर सुनाया तो लगा कि जैदी ने ही लिखा है. इस बीच जितने अनुवाद पढ़े थे, वे अच्छे भले ही थे लेकिन एक तरह की कृत्रितमा थी उनमें. फिर वर्मा जी ने बताया कि क्योंकि लेखक महत्वपूर्ण हैं और अरब के हैं, इसलिए उन्होंने कोशिश कि है कि जरूरी स्थानों पर ऊर्दू के शब्द हों. फिर मैं समझा कि यही छोटा सा ट्विस्ट (twist) उस अनुवाद को शानदार बना दे रहा था. उस अनुवाद से मुझे सबक मिला कि अच्छे अनुवाद के लिए जरूरी है कि अनुवादक लेखक के बैकग्राउंड को समझे, उसके हावभाव पर गौर करे, लेखक किस संदर्भ में लिख रहा है उस संदर्भ को विजुअलाइज करे. अनुवाद सिर्फ एक भाषा से दूसरी भाषा में साहित्य को प्रकट करना नहीं बल्कि अच्छा अनुवादक उस संस्कृति और परिवेश को भी अनुवाद कर रहा होता है जिससे लेखक आया है. वर्मा जी के अनुवाद अनुवाद कला का सर्वोत्तम रूप हैं. मेरे पास उनके द्वारा अनूदित कई किताबें हैं. कुछ के नाम हैं : औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति, वेनेजुएला की क्रांति, नेपाली समरगाथा, आज की अफ्रीकी कहानियां, खून की पंखुडियां. इन सभी में अनुवाद का गजब कौशल देखने को मिलता है. अनुवाद में वर्मी जी ने जैसे प्रयोग किए हैं वे शायद ही किसी ने. और यही वजह है कि उनका एक भी अनुवाद कृत्रिम नहीं लगता. हम लोग अक्सर लेखन में प्रयोग की बात करते हैं लेकिन अनुवाद में होने वाले प्रयोगों पर ध्यान नहीं देते. वैसे भी हिंदी में अनुवाद को इतना सस्ता काम माना जाता है कि इसके कलात्मक पक्ष पर लोगों का ध्यान ही नहीं जाता. जो लोग करते हैं वे भी सिर्फ करते हैं. ना महत्व देते हैं, ना अपने काम को सुधारना ही चाहते हैं. कुछ तो लेखक पर एहसान करने के भाव से अनुवाद करते हैं और मूल पर हावी हो जाना चाहते हैं और ऐसे-ऐसे बोझिल शब्द डाल देते हैं कि सिर दर्द करने लगता है. लेकिन वर्मा जी के किसी भी अनुवाद में ऐसा दोष नहीं दिखता. वह एक शानदार अनुवादक हैं. अगर हम यूरोप या अमेरिका होते तो अनुवाद के रूप में वह ग्रेगोरी राबासा होते और कोई गैब्रियल गार्सिया मार्केज कहता, “आनंद स्वरूप वर्मा का अनुवाद मेरी मूल रचना से उत्कृष्ट है.” पत्रकार और अनुवादक विष्णु शर्मा की रिपोर्ट. संपर्क- simplyvishnu2004@yahoo.co.in

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Dakhal News 11 July 2020


bhopal, Shivraj , helplessCM ,forced government , Madhya Pradesh!

“मध्यप्रदेश मंत्रिपरिषद में विभागों के बँटवारे में वैसे ही स्थिति है जैसे रोटी के एक टुकड़े को बंदर-बिल्ली-कुत्ते और कौव्वे के बीच बाँटना” मध्यप्रदेश सरकार की स्थिति आज वैसे ही है जैसे कोई नटी आसमान में तने रस्से पर बाँस लेकर संतुलन साधे चीटी की गति से आगे बढ़ रही हो। प्रदेश की जनता मेले के तमाशबीनों की भाँति अवाक और हतप्रभ है। 21 मार्च को भाजपा की ‘लाए-जोरे’ की सरकार बनने के बाद पंच परमेश्वरों को मंत्री बनाने में पखवाड़े भर लग गए। फिर अगले विस्तार के लिए राज्यसभा चुनाव का उबाऊ इंतजार। 20 जून को चुनाव के बाद मंत्रिमंडल के पूर्ण विस्तार में 12 दिन लगे वह भी दिल्ली के बारह फेरे के बाद। अब विभागों के बँटवारे में वैसे ही स्थिति है जैसे रोटी के एक टुकड़े को बंदर-बिल्ली-कुत्ते और कौव्वे के बीच बाँटना। विस्तार के बाद से हल्ला है कि मंत्रिपरिषद में ‘लायन शेयर’ ज्योतिरादित्य सिंधिया ले गए और विभागों के बँटवारे में उनकी नजर अपने समर्थकों को मलाईदार विभाग दिलाने में है। अब सत्ता सेवा रह भी कहां गई..! वह तो मालपुआ है और कोरोना के संकट काल में यह पौष्टिकता कौन नहीं चाहेगा। सिंधियाजी ने शिवराज जी के ‘टाइगर अभी जिंदा है’ के चर्चित डायलॉग को भी हड़पने की कोशिश की है। जंगल की व्यवस्था में टाईगर की अपनी टेरेटरी होती है। वह दूसरे के बर्दाश्त नहीं करता। इस डायलॉग के निहतार्थ को अच्छे से समझ लेना चाहिए, वजह मध्यप्रदेश के सियासी जंगल की एक ही टेरेटरी में दो टाईगर आ चुके हैं। बहरहाल गठजोड़ की सरकार में यह स्वाभाविक है..। हम लोकतंत्र की नैतिकता और मर्यादा का भले ही कितना ढोल पीटें उसकी पोल में सभी धतकरम चलते रहते हैं। यह कोई आज से नहीं.. जमाने से चलता चला आ रहा है। हमने हरियाणा में भजनलाल-वंशीलाल-देवीलाल-रामलाल का दौर भी देखा है। रात किसी दल में सोते, सुबह होते ही किसी दूसरे दल की दालान में कुल्ला मुखारी कर रहे होते। अब इसी बार हरियाणा में यदि देवीलाल के पंती ने भाजपा सरकार को समर्थन नहीं दिया होता तो..बलात्कार और धोखाधड़ी के नामाजादिक आरोपी गोपाल कांड़ा के लिए दरवाजा खुला था। मध्यप्रदेश में लोकतंत्र का गला चपाने की बात करने वाली कांग्रेस का तो ट्रैक रिकॉर्ड ही दूसरे दलों की सरकार की अकाल हत्या का रहा है..सो हम लोक-फोकतंत्र की बात करने की बजाय बात करेंगे कि मध्यप्रदेश में क्या हो रहा है और आगे का अनुमान क्या है। जो लोग सरकार को लेकर सिंधिया जी के अपरहैंड और उनकी मनमर्जी की बात कर रहे हैं उनको यह अच्छे से समझ लेना चाहिए कि कांग्रेस सरकार को गिराने को लेकर उनका भाजपा के साथ यही ‘एमओयू’ हुआ था। जो कांग्रेस का मंत्रिपरिषद त्याग कर आए थे उन्हें तो मंत्री बनना ही था और उनको भी मंत्री बनाना था जो इसी की लालसा के चलते कांग्रेस छोड़ी। सो इसलिए यह अनहोनी नहीं कि कांग्रेस से आए लोगों को थोक के भाव मंत्री बना दिया गया। मुझे यह भी मिथ्या लगता है कि मलाईदार विभागों को लेकर सिंधिया जी का कोई पेंच है..। यदि पेंच है तो भाजपा के भीतर ही है और वह अबतक एक छत्र रहे शिवराज सिंह चौहान को कसने के लिए। इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि पहली किश्त में जब पाँच मंत्री बनाए गए तब एक भी उनकी पसंद के नहीं थे। पूर्ण विस्तार में सिर्फ़ सागर के भूपेन्द्र सिंह को उनके खाते का माना गया। भूपेन्द्र सिंह भले ही शिवराज जी के खाते के माने गए हों लेकिन उन्हें मंत्री बनने देने का ज्यादा योगदान गोविंद सिंह राजपूत को है जिन्हें सुर्खी से उपचुनाव लड़ना है। राजपूत के कहने पर सिंधिया जी ने भूपेन्द्र की पैरोकारी की ताकि उनके पट्ठे राजपूत का पथ प्रशस्त हो सके। राजपूत और भूपेन्द्र राजनीति में दुश्मनों की हद तक प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। भूपेन्द्र फुरसत में बैठते तो राजपूत का बंटाधार करते ऐसा मान लिया गया था। सो शिवराज जी अपने ही मंत्रिपरिषद में सदा सर्वथा अकेले हैं..और शेरी भोपाली का यह शेर कि- पीछे बँधे हैं हाथ मगर शर्त है सफरकिससे कहें कि पाँव के काँटे निकाल दे। मंत्रिपरिषद के गठन के दिनों मैं भी भोपाल में फँसा था, करोना की वजह से। 1 जुलाई की रात की बेसब्री देखी..यह लगभग वैसे ही थी जैसे कि दूसरे दिन लाटरी का बम्पर ड्रा निकलने वाला हो। 2 जुलाई को शपथ के बाद मेरे एक पत्रकार मित्र की जुबानी टिप्पणी थी कि ‘यह लचर नेतृत्व(संगठन), लाचार मुख्यमंत्री वाली मजबूर सरकार है। ऐसे-ऐसे मंत्रियों के चेहरे और घर बैठने को कह दिए गए कद्दावरों को देखकर साफ कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार बौनों ने आदमकदों की सीआर(गोपनीय चरित्रावली) लिखी है। भाजपा कार्यालय के बाहर एक बागी तेवर वाले पके हुए नेता की एक लाइन की टिप्पणी थी ‘आधी छोड़़ सारी को धावै, आधी मिलै न सारी पावै’। इस टिप्पणी की व्याख्या आप उमा भारती के वक्तव्य से समझ सकते हैं- इस सौदेबाज़ी से बेहतर होता कि मध्यावधि चुनाव कराकर नया जनादेश लेकर आते। पस्त कांग्रेस किसी भी कीमत पर दुबारा न जीतती। उमा भारती की तरह कई वरिष्ठ नेताओं को अंदेशा है कि यह मंत्रिमंडल और सरकार दशकों की मेहनत से अर्जित किए गए भाजपा के जनाधार को खो देगी..क्योंकि क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व, परफॉर्मेंस और जनाधार वाले नेताओं की गंभीर उपेक्षा की गई है। उपचुनाव को साधने के लिए चंबल-ग्वालियर के कंधे पर एक जुआँ रख दिया गया है..और दूसरा खाली। सत्ता की बैलगाड़ी कभी भी चरमराकर ध्वस्त हो सकती है। मंत्रिपरिषद में प्रतिनिधित्व को लेकर मालवा, महाकोशल से लेकर विंध्य तक में उबाल है। लावा जब तक बाहर नहीं आता पता ही नहीं चलता कि जमीन के भीतर ज्वालामुखी धधक रहा है। महाकोशल के दिग्गज भाजपा नेता अजय विश्नोई की यह टिप्पणी गौर करने लायक है कि संगठन और सरकार अपने विधायक और कार्यकर्ताओं को साध सकती है जनता को नहीं। सबसे ज्यादा उपेक्षा विन्ध्य व महाकोशल की हुई है। निवृत्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ महाकोशल से थे। कांग्रेस की सरकार में इस क्षेत्र का अच्छा खासा रसूख था। भाजपा ने इसे एक झटके में शून्य कर दिया। महाकोशल जन्मजात भाजपाई नहीं है। जबलपुर भले ही आरएसएस की शक्तिपीठ रहा हो लेकिन भाजपा को खाता खोलने में 1990 तक इंतजार करना पड़ा। महाकोशल की तासीर भी विंध्य की तरह कांग्रेसी और समाजवादी रही है। कार्यकर्ताओं ने बड़ी मेहनत से इसे भाजपा का अभेद्य गढ बनाया। महाकोशल के लोग आज भी यह नहीं भूले हैं कि 1956 में गठित मध्यप्रदेश की राजधानी जबलपुर को न बनाकर उसके साथ कैसा छल किया गया। आज प्रदेश के इस महानगर व जिले का प्रतिनिधित्व मंत्रिपरिषद में शून्य है। कार्यकर्ता से ज्यादा यहां की जनता उपेक्षित और असम्मानित महसूस कर रही है। विंध्य की बात तो और भी विकट है। आज प्रदेश में भाजपा की जो सरकार है उसकी इमारत विंध्य के बुनियाद पर टिकी है। विंध्य जिसे हम अब बघेलखण्ड तक ही सीमित मानकर चलते हैं, में 2018 के चुनाव में 30 में से 24 सीटें मिलीं। रीवा-शहड़ोल-सिंगरौली में तो कांग्रेस का खाता ही नहीं खुल सका..वह प्रतिनिधित्व शून्य है। उमरिया और सतना जिले से जिन मीना सिंह और रामखेलावन पटेल को मंत्री बनाया गया उन्हें पड़ोस के जिले के लोग भी अच्छी तरह से नहीं जानते। आजादी के बाद से 2018 तक इस क्षेत्र के प्रतिनिधित्व की ऐसी भीषण अवहेलना कभी नहीं हुई। विंध्य कभी विंध्यप्रदेश रहा है। इसकी अपनी अलग राजनीतिक पहचान भोपाल से दिल्ली तक रही। श्रेष्ठ नेताओं की एक भव्य परंपरा रही। पंडित शंभूनाथ शुक्ल, गोविंदनारायण सिंह यमुना शास्त्री, अर्जुन सिंह, श्रीनिवास तिवारी, बैरिस्टर गुलशेर अहमद, कृष्णपाल सिंह, चंद्रप्रताप तिवारी, शत्रुघ्न सिंह तिवारी, रामकिशोर शुक्ल, मुनिप्रसाद शुक्ल, रामानंद सिंह, जगन्नाथ सिंह, राजेंद्र कुमार सिंह, अजय सिंह राहुल से लेकर राजेंद्र शुक्ल तक व कई अन्य नेता भी। इन नेताओं ने अपनी राजनीतिक मेधा से भोपाल और दिल्ली तक विंध्य के प्रतिनिधित्व की धाक जमाई..। इसके बरक्स जब आज की स्थिति देखते हैं तो यहां के नेतृत्व को अपाहिज बना देने की साजिश साफ नजर आती है। यह कैसी विडंबना है..10 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रीवा जिले के गुढ़ बदवार में बने दुनिया के विशालतम समझे जाने वाले सोलर पार्क को लोकार्पित करेंगे और इस सोलरपार्क के योजनाकार राजेन्द्र शुक्ल महज एक विधायक की हैसियत में रहेंगे। यह तो आयोजकों का बडप्पन है कि उनको लोकार्पण समारोह में जगह दी वरना वो तो महज रीवा विधानसभा के सदस्य मात्र हैं..और यह सोलरपार्क गुढ़ विधानसभा में है। ऊर्जा के क्षेत्र में बतौर मंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने जो काम किया उसकी सराहना खुले मंच से नरेन्द्र मोदी स्वयं कई बार कर चुके हैं। मंत्रिपरिषद में सत्ता की सौदेबाजी के चलते प्रदेश के एक होनहार नेता की मेधा, क्षमता की बलि दे दी गई। जनता के बीच सही संदेश नहीं गया। विंध्य कभी जनसंघ और भाजपा का नहीं रहा।1990 के बाद यहां के कार्यकर्ताओं ने अपने खून पसीने से सींचकर इसे भाजपा का बाग बनाया। जनता में उम्मीदें जगीं और तब से लेकर अब तक हर चुनाव में अन्य क्षेत्रों के मुकाबले आगे बढ़कर भाजपा का साथ दिया। लेकिन मिला क्या…! सबके सामने है..। भाजपा के उस बुजुर्गवार का कहना सही ही है-“आधी छोड़ सारी को धावै आधी मिलै न सारी पावै”। कांग्रेस भाजपा के इसी विरोधाभास से मुदित है। उपचुनाव के उसके सर्वे में जीत ही जीत नजर आ रही है। ‘गद्दारों को हराओ’ के हुंकार के साथ उसका रथ चंबल-ग्वालियर में उतर चुका है। भाजपा की राह आसान नहीं… उसके पास ‘मोदी’ नाम के करिश्मे के सिवाय कुछ शेष नहीं बचा है। लोकसभा चुनाव में सिंधिया अपने ही एक सिपहसलार से हार चुके हैं। उन्हें हराने वाले केपी सिंह भाजपा में ही हैं। विधानसभा में जो-जो भी कांग्रेस से हारे हैं बदले समीकरण में वे उनकी जीत के लिए जाजम नहीं बिछाएंगे…काँटे ही बोएंगे। उनके भविष्य का सवाल है। दलबदलुओं का एक बार सिक्का जमा तो अपनी जवानी होम करने वाले वो भाजपाई पल भर में खरे से खोटे हो जाएंगे। वे और उनके समर्थक ऐसा कैसे होने देंगे। जनता के बीच में ऐसे असहाय भाजपाइयों के प्रति सहानुभूति और ऊपर से कांंग्रेस का ‘गद्दारों को हराओं’ वाला आक्रामक नारा इस उपचुनाव को सहज नहीं रहने देगा। कांग्रेस इन उप चुनावों में तन-मन-धन सभी झोंक देगी। भविष्य की एक और कल्पित तस्वीर सामने है, ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर। भाजपा यदि इन उप चुनावों में जीत जाती है तो सिंधिया का कद “लार्जर दैन लाइफ” हो जाएगा। उनके गुट के मंत्रियों के लिए अभी भी भाजपा नहीं महाराज ही अभीष्ट हैं..। कल सरकार बनी रही तो सत्ता के दो स्वाभाविक केंद्र बन जाएंगे.. वैसे अभी भी कमोबेश स्थिति ऐसे ही है। यदि उप चुनावों में भाजपा सफल नहीं रहती तो तय है कि वह भविष्यवाणी चरितार्थ होगी कि- छब्बीस जनवरी को कमलनाथ ही झंडा फहराएंगे। लगता है भाजपा अपने ही बुने जाल में उलझ चुकी है। बौने कद के योजनाकारों ने आदमकदों को घर बैठाकर घरफूँक तमाशा देखने की तैय्यारी कर ली है..। क्योंकि दोनों ही स्थितियों का असर भविष्य निर्धारित करेगा। मध्यप्रदेश भाजपा का अजेय किला समझा जाता था..। कभी कभार के चुनावों में बुर्ज के कंगूरे..या झाड़फनूस भले ही हिले हों पर किला अबतक सलामत ही बचा रहा। यह आगे भी सलामत बचा रहेगा.. एक अकेले शिवराज के बूते इसे आसान नहीं और वह तब, जब- पीछे बँधे हैं हाथ मगर शर्त है सफर। मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल का विश्लेषण. संपर्कः 8225812813

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Dakhal News 9 July 2020


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रायपुर। छत्तीसगढ़ के प्रेस क्लब महासमुंद के दो वर्षीय कार्यकाल के लिए नई कार्यकारिणी का गठन किया गया। अध्यक्ष आनंदराम साहू (नईदुनिया), उपाध्यक्ष संजय महंती (आज की जनधारा), महासचिव रवि विदानी (सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़) बहुमत से निर्वाचित हुए। वहीं एकल नामांकन होने से कोषाध्यक्ष देवीचंद राठी (चैनल इंडिया), सहसचिव संजय यादव (हरिभूमि)और प्रचार एवं संगठन सचिव प्रभात महंती (स्वतंत्र पत्रकार) निर्विरोध निर्वाचित घोषित किए गए। मिनी स्टेडियम रोड महासमुन्द स्थित प्रेस क्लब के सांस्कृतिक भवन में निर्वाचन अधिकारी शकील लोहानी ने चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ की। अध्यक्ष पद के लिए आनंदराम साहू और रत्‍‌नेश सोनी, उपाध्यक्ष के लिए संजय महंती, दिनेश पाटकर तथा महासचिव के लिए रवि विदानी और विपिन दुबे ने नामांकन दाखिल किया। मतदान के तत्काल बाद मतगणना हुई। जिसमें अध्यक्ष के लिए आनंदराम साहू को 18 और रत्‍‌नेश सोनी को 9 वोट मिले। इस तरह आनंदराम साहू नौ मतों के अंतर से लगातार दूसरी बार अध्यक्ष निर्वाचित हुए। वर्ष 2018 में हुए कांटे की टक्कर में आनंदराम साहू महज एक वोट के अंतर से अध्यक्ष चुने गए थे। उपाध्यक्ष पद के लिए संजय महंती को 15 और दिनेश पाटकर को 12 मत मिले। महासचिव पद के लिए रवि विदानी को 14 और विपिन दुबे को 13 वोट मिले। विजयी प्रत्याशियों को निर्वाचन अधिकारी ने संरक्षकों व सदस्यों की उपस्थिति में निर्वाचन प्रमाण पत्र सौंपा। नवनिर्वाचित पदाधिकारियों को उपस्थित सभी सदस्यों ने बधाई देते हुए प्रेस क्लब की उत्तरोत्तर प्रगति के लिए कार्य करने प्रेरित किया। कुल 28 सदस्यों में 27 सदस्यों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। उल्लेखनीय है कि 22 मार्च को प्रेस क्लब का चुनाव निर्धारित था। इस बीच कोरोना वायरस संक्रमण के कारण जनता कर्फ्यू और बाद में लॉकडाउन हो जाने से चुनाव स्थगित हो गया था। अनलाक के बाद प्रशासन से 23 जून को निर्वाचन के लिए विधिवत अनुमति ली गई थी। कार्यकारिणी का गठनचुनाव होने के बाद सांस्कृतिक सचिव और चार कार्यकारिणी सदस्यों का मनोनयन के आधार पर पदपूर्ति का विशेषाधिकार अध्यक्ष को प्रदान किया गया। अध्यक्ष आनंदराम साहू ने सांस्कृतिक सचिव ललित मानिकपुरी(नवभारत), कार्यकारिणी सदस्यों में प्रज्ञा चौहान(स्वदेश), दिनेश पाटकर(दैनिक भास्कर), जसवंत पवार(आवाम दामिनी), अजय पांडेय (स्वतंत्र पत्रकार) को मनोनीत किया है।

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Dakhal News 5 July 2020


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भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए लागू प्रतिबंधों के बावजूद अपराध बढ़ते जा रहे हैं। यहां दो दिन पहले दो इंजीयिरिंग के छात्रों की शराबियों ने पैसे नहीं देने पर चाकू से हमला कर हत्या कर दी थी। अब एक पत्रकार पर शराबियों ने मामलू बात पर जानलेवा हमला कर दिया। बताया गया है कि उन्होंने देर रात शराबियों को घर के पास बैठकर शराब पीने से रोका, जिसके चलते उन्होंने हमला किया। फिलहाल, पुलिस मामले की जांच कर रही है।   भोपाल के अयोध्या बायपास स्थित अभिनव होम्स में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार धनंजय प्रताप सिंह शनिवार की रात करीब साढ़े 10 बजे से अपने आफिस से घर पहुंचे थे। इस दौरान पड़ोसी ने उन्हें घर के पास कुछ लोगों के शराब पीकर हंगामा करने की जानकारी दी। उन्होंने देखा कि कॉलोनी में बनी टंकी पर बैठकर तीन युवक शराब पीकर अभी भी हंगामा कर रहे हैं। धनंजय ने उन्हें वहां से जाने के लिए कहा तो शराबियों ने उन पर लोहे की रॉड से हमला कर दिया। तब तक वहां पड़ोसी भी पहुंच गए तो शराबी वहां से भाग गए। उन्होंने रात में ही अयोध्या नगर थाना पुलिस को जानकारी दी। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर मामले की जानकारी ली और उन्हें थाने पहुंचकर प्रकरण दर्ज कराने को कहा।    इस घटना को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वयं संज्ञान में लिया है। उन्होंने रविवार को ट्वीट करके कहा है कि जिन्होंने पत्रकार धनंजय प्रताप सिंह जी के साथ ये हरकत की है, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है। पुलिस एवं प्रशासन को मैंने कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दे दिए हैं। मैं धनंजय प्रताप जी के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूँ। बता दें कि मुख्यमंत्री ने शनिवार को दोपहर में डीजीपी समेत सभी पुलिस अधिकारियों को प्रदेश से अपराधियों और को क्रश करने के निर्देश दिए थे। उन्होंने कहा था कि अगर कोई अपराध होता है तो टीआई नहीं बल्कि अफसर जिम्मेदार होंगे। उनके दिल्ली रवाना होते ही रात में यह घटना सामने आ गई।   वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने घटना को लेकर शिवराज सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने ट्वीट के माध्यम से कहा है कि कल ही मुख्यमंत्री ने कानून व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा की और अधिकारियों को कड़ी कार्यवाही के निर्देश दिये और आज यह घटना ख़ुद सवाल खड़े कर रही है? इस घटना के आरोपितों पर कड़ी कार्यवाही हो और धनंजय प्रताप सिंह को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाए।   बता दें कि बीते गुरुवार की रात ही भोपाल के छोला मंदिर थाना क्षेत्र में बदमाशों ने दो दिन पहले 21 साल के इंजीनियर छात्र समेत दो की हत्या कर दी थी। हमलावरों में 2 बदमाश और तीन नाबालिग के नाम सामने आए थे। जांच में सामने आया था कि आरोपितों ने शराब के लिए पैसे नहीं मिलने के कारण हमला किया था। फिलहाल, आरोपितों को दूसरे दिन ही गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था।

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Dakhal News 5 July 2020


bhopal,Media organizations, angry over ,Prasar Bharati ,threatening ,news agency PTI

IJU Concern Over Prasar Bharati Threat To PTI The Indian Journalists Union expresses profound concern over government’s latest attempt to rein in the media, this time the biggest news agency PTI through the so-called ‘autonomous’ public service broadcaster Prasar Bharati. It is learnt that the Prasar Bharati has written to PTI saying that its conduct has made it “no longer tenable’ to patronise the news agency, after it quoted the Chinese Ambassador in India, following an earlier interview with the Indian Ambassador in Beijing, on the ongoing India-China stand-off. The Prasar Bharati has reportedly accused the PTI of its coverage ‘disseminated widely to its domestic subscribers and prominently shared with foreign entities’, of being “detrimental to national interest while undermining India’s territorial integrity”. To justify its proposed action of reviewing its subscription, which amounts to a “huge fees”, the Prasar Bharati now recalls that it has often alerted the PTI on ‘editorial lapses resulting in dissemination of wrong news harming public interest.’ In a statement, the IJU President Geetartha Pathak and Secretary General Sabina Inderjit said that though Prasar Bharati was set up as an autonomous body, it is no secret that it functions as the Government’s mouth piece and its action against the PTI smacks of the known growing intolerance there is towards ethical and independent journalism. An embedded media has no place in a democracy, even in the times of a conflict, as going on between India and China, believes the IJU. Prasar Bharati needs to remember that citizens’ right to information and the journalists’ right to report facts are non-negotiable and that its attempt to threaten the PTI will be seen as yet another attempt by the government to treat country’s media as a hand maid. Prasar Bharati must review its decision, demanded the IJU. (Sabina Inderjit)Secretary General

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Dakhal News 1 July 2020


bhopal, Government threat to PTI

डॉ. वेदप्रताप वैदिक प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया (पीटीआई) देश की सबसे पुरानी और सबसे प्रामाणिक समाचार समिति है। मैं दस वर्ष तक इसकी हिंदी शाखा ‘पीटीआई-भाषा’ का संस्थापक संपादक रहा हूं। उस दौरान चार प्रधानमंत्री रहे लेकिन किसी नेता या अफसर की इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह फोन करके हमें किसी खबर को जबर्दस्ती देने के लिए या रोकने के लिए आदेश या निर्देश दे। अब तो प्रसार भारती ने लिखकर पीटीआई को धमकाया है कि उसे सरकार जो 9.15 करोड़ रु. की वार्षिक फीस देती है, उसे वह बंद कर सकती है। यह राशि पीटीआई को विभिन्न सरकारी संस्थान जैसे आकाशवाणी, दूरदर्शन, विभिन्न मंत्रालय, हमारे दूतावास आदि, जो उसकी समाचार-सेवाएं लेते हैं, वे देते हैं। यह धमकी वैसी ही है, जैसी कि आपात्काल के दौरान इंदिरा सरकार ने हिंदी की समाचार समितियों- ‘हिंदुस्थान समाचार’ और ‘समाचार भारती’ को दी थी। मैंने ‘हिंदुस्थान समाचार’ के निदेशक के रुप में इस धमकी को रद्द कर दिया था। मैं अकेला पड़ गया। मेरे अलावा सबने घुटने टेक दिए और इन दोनों एजेंसियों को उस समय पीटीआई में मिला दिया गया। क्या पीटीआई को दी गई यह धमकी कुछ वैसी ही नहीं है ? मैं पीटीआई के पत्रकारों से कहूंगा कि वे डरें नहीं। डटे रहें। 1986 में बोफोर्स कांड पर जब जिनीवा से चित्रा सुब्रह्मण्यम ने घोटाले की खबर भेजी तो ‘भाषा’ ने उसे सबसे पहले जारी कर दिया। प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उनके अफसरों की हिम्मत नहीं हुई कि वे मुझे फोन करके उसे रुकवा दें। अब पीटीआई ने क्या गलती की है ? सरकारी चिट्ठी में उस पर आरोप लगाया गया है कि उसने नई दिल्ली स्थित चीनी राजदूत सुन वीदोंग और पेइचिंग स्थित भारतीय राजदूत विक्रम मिसरी से जो भेंट-वार्ताएं प्रसारित की हैं, वे राष्ट्रविरोधी हैं और वे चीनी रवैए का प्रचार करती हैं। उनसे हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्तव्य का खंडन होता है। हमारे राजदूत ने कह दिया कि चीन गलवान घाटी में हमारी जमीन खाली करे जबकि मोदी ने कहा था कि चीन हमारी जमीन पर घुसा ही नहीं है। इसी तरह चीनी राजदूत ने भारत को चीनी-जमीन पर से अपना कब्जा हटाने की बात कही है। यही बात चीनी विदेश मंत्री ने हमारे विदेश मंत्री से कही थी। मेरी समझ में नहीं आता कि इसमें पत्रकारिता की दृष्टि से राष्ट्रविरोधी काम क्या हुआ है? यह पत्रकारिता का कमाल है कि वह दुश्मन से भी उसके दिल की बात उगलवा लेती है। जो काम नेता और राजदूत के भी बस का नहीं होता, उसे पत्रकार पलक झपकते ही कर डालते हैं। उन पर राष्ट्रविरोधी होने की तोहमत लगाकर प्रसार भारती अपनी प्रतिष्ठा को ही ठेस लगा रही है। मैं समझता हूं कि सरकार को चाहिए कि प्रसार भारती के मुखिया अफसर को वह फटकार लगाए और उसे खेद प्रकट करने के लिए कहे। लेखक डॉ. वेदप्रताप वैदिक देश के जाने माने पत्रकार और स्तंभकार हैं.

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Dakhal News 1 July 2020


bhopal,picture published, indian Express , shows , social justice , Chief Justice.

जो इस देश का मुख्य न्यायाधीश हो, उससे कम से कम ये अपेक्षा तो की ही जाती है कि वह जब तक पद पर रहे तब तक किसी खास पार्टी के पक्ष में अपने खड़े होने का दिखावा या प्रदर्शन न करे. पर वर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबड़ ने शर्म-लिहाज ताक पर रख दिया है. इस तस्वीर में दिख रहा है कि स्टैंड पर खड़ी एक शानदार मोटरसाइकिल, जिसे एक भाजपा नेता के पुत्र का बताया जाता है, पर बिना मास्क लगाए मुख्य न्यायाधीश महोदय बैठे हुए हैं और खास स्टाइल में तस्वीर क्लिक करा रहे हैं. तस्वीर क्लिक हुई है तभी तो इंडियन एक्सप्रेस में छपी है. यह सब कुछ जो माहौल बनाता है उससे देश के मुख्य न्यायाधीश पद की गरिमा गिरती है.

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Dakhal News 29 June 2020


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रतलाम। हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर,  गांधीवादी प्रदेश के सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुरेश आनन्द गुप्ता का शनिवार शाम देवलोगमन हो गया है। उनका अंतिम संस्कार रविवार को प्रात:  जवाहर नगर स्थित मुक्तिधाम पर किया गया। उनके एक मात्र पुत्र इंगित गुप्ता ने मुखाग्नि दी।    बताया गया है कि वे विगत कुछ माह से बीमार थे, वे जाने माने साहित्यकार थे, जिन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी तथा लगभग डेढ़ हजार से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख,कविताएं प्रकाशित हो चुकी है।    उनके पुत्र इंगित ने बताया कि उन्हें साहित्यालंकार सहित दर्जनों उपाधियों से सम्मानित भी किया गया। आकाशवाणी , दूरदर्शन पर उनकी रचनाएं प्रसारित हो चुकी है । ग्वालियर में पूर्व प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी वाजपेयी , जगदीश तोमर , शैवाल सत्यार्थी , स्व भवानी प्रसाद मिश्र, कवि नीरज, शैल चतुर्वेदी जैसे अनेक साहित्यकारों के साथ रह चुके हैं। ' छन छन कर आती है धूप , मेरे पर्दे से मेरे कमरे में , लड़ा बैठी आंखे मेरी दीवारों से उनका चर्चित गीत रहा है। उनके तीखे व्यंग्य किसी तीर के वार से कम नही रहे है । ' मैं हिंदुस्तान को हिन्दुस्तान देखना चाहता हूं , जिसने भी उठाई आंख उसे भेदना जानता हूँ , क्या हुआ मेरे पास तलबार नहीं है , मैं कलम में ही बारूद भरना चाहता हूँ  काव्य के ऊर्जावान साहित्यकार आनन्द जी के निधन की खबर मिलते ही उनके चाहने वाले उनके निवास पर पहुंच गए थे। 

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Dakhal News 28 June 2020


bhopal,Indira Gandhi, Narendra Modi ,Ram Bahadur Rai ,article

विषय : पत्रकार-बुद्धिजीवी राम बहादुर राय Communal & Prejudice Mind श्रीमान संपादक जी राजस्थान पत्रिका समूह के प्रसिद्ध समाचार पत्र दैनिक पत्रिका में अत्यंत वरिष्ठ और सम्मानीय पत्रकार के लेख पर मेरी यह प्रतिक्रिया आप धैर्य धारण कर अवश्य पढ़ लीजिए। शायद कुछ बातें आपको बहुत पसंद आए! पत्रिका अखबार के दिनांक 25 जून के अंक में “दूसरे आपातकाल की कोई आशंका नहीं” शीर्षक से वरिष्ठ, सम्मानित पत्रकार और बुद्धिजीवी राम बहादुर राय का लेख इंदिरा गांधी के आपातकाल के संबंध में निष्पक्ष और यथार्थवादी विवेचन नहीं है। श्री रामबहादुर राय को भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की स्मृति में बनाए गए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र का चेयरमैन मोदी राज में बनाया गया। श्री रामबहादुर राय का जन्म गाजीपुर में जुलाई 1946 में हुआ। उन्होंने देश के अत्यंत महत्वपूर्ण प्रकाशन संस्थानों में सक्रिय रहकर पत्रकारिता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन कड़वा सच यह भी है कि ये हमेशा कांग्रेस के विरोध में रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी से संबंधित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन के विस्तार में लगे रहे। उस संगठन के यह सचिव भी रहे हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदू शब्द हटाए जाने के संबंध में 1965 में इन्होंने विरोध आंदोलन में भाग लिया था। श्रीमती इंदिरा गांधी के शासनकाल में पश्चिम बंगाल में छात्र परिषदों के चुनाव पर रोक के संबंध में उग्र आंदोलन किया था। इंदिरा गांधी को काले झंडे दिखाए थे। साथ ही श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल के दिनों में यह 16 महीने जेल में भी रहे। इस तरह इंदिरा गांधी के प्रति इनका आक्रोश, इनकी नफरत और पूर्वाग्रह को अच्छी तरह समझा जा सकता है। श्री राय का चरित्र और स्वभाव और मूल चिंतन कट्टर हिंदू वाद है। यह इमरजेंसी की आलोचना करते हैं और श्रीमती गांधी पर व्यक्तिगत आक्षेप कर रहे हैं जो कुछ हद तक तो सही है परंतु इमरजेंसी में जो रेल रोको आंदोलन करके पूरे देश की अर्थव्यवस्था और जन सुविधा को तहस-नहस कर दिया गया था; पूरे देश में उग्र आंदोलन चल रहे थे, उसके संबंध में इन पत्रकार महोदय ने पूरी तरह चुप्पी साध ली। इमरजेंसी की घोषणा आजादी के संदर्भ में बहुत ही निंदनीय थी लेकिन जिस तरह कोरोना का एक पहलू बहुत अच्छा है वैसे ही इमरजेंसी में भी बहुत सारे अच्छे काम हुए थे। इंदिरा गांधी की व्यक्तिगत ईमानदारी, निष्ठा, निडरता, देशभक्ति पर संदेह नहीं किया जा सकता। भारत एक महाशक्ति बन चुका है, जैसा संदेश देना उनकी विशेषता है! इसमें कोई संदेह नहीं किया जा सकता, सिवाय चंद पूर्वाग्रही लोगों के! भूतपूर्व राजा महाराजाओं के सरकारी प्रीवि पर्स समाप्त करना और बैंकों का राष्ट्रीयकरण व बांग्लादेश का निर्माण तो उनके अमर ऐतिहासिक कदम है, उपलब्धियां हैं! इंदिरा गांधी और आपातकाल की निंदा करने के बाद राम बहादुर राय वर्तमान शासन काल और मोदी की प्रशंसा में लेख लिखे हैं। इस लेख से उनकी कर्तव्य निष्ठा, ईमानदारी, निष्पक्षता और निर्भीक पत्रकारिता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है और बड़े आश्चर्य की बात है कि पद्मश्री प्राप्त ऐसा तेजतर्रार और उच्च शिक्षा प्राप्त पत्रकार/लेखक उस शासन तंत्र की तारीफ कर रहा है जिसके शासनकाल में देश की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई है। डीजल पेट्रोल के दामों में भयानक वृद्धि की गई है जिससे पूरा देश विचलित है!! कोराना महामारी का इतना भयानक प्रचार-प्रसार हो गया। हिंदू मुसलमानों के बीच में जो नफरत और भेदभाव अंग्रेजों के शासन काल में भी नहीं हो सका; वह सन 2014 के बाद अब देखने को मिल रहा है। संपन्न तथा सत्तापक्ष से जुड़े लोगों को छोड़कर, एक अघोषित आपातकाल जैसा चल रहा है! अब तो देश की रक्षा के संबंध में प्रश्न पूछने वाले टीवी पत्रकारों और विपक्ष के बड़े-बड़े नेताओं को, नागरिकों को, कभी भी देशद्रोही/ गद्दार /और सेना का अपमान करने जैसा, आरोप लगाकर निम्न स्तरीय दुष्प्रचार किया जाता है। ये इस शासनकाल में आम बात हो गई है। श्री राम बहादुर राय अपने चिंतन में शायद कट्टर सांप्रदायिकता और कट्टर राष्ट्रवाद को बहुत सही मानते होंगे। आतंकवाद की समाप्ति और विकास के नाम पर पूरे कश्मीर राज्य के टुकड़े करके लगभग 6 महीने तक के लिए पूरे राज्य को जेल खाने में बदल दिया गया। उसके संबंध में ये पत्रकार महोदय जिन्हें पद्मश्री भी दी गई है, एक शब्द भी नहीं लिखते! व्यक्तिगत पूर्वाग्रह और व्यक्तिगत राग द्वेष की दृष्टि से, देश के अपने समय के अभूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के संबंध में एकपक्षीय दूषित विचार रखना, स्वस्थ निष्पक्ष निर्भीक पत्रकारिता नहीं है। संपादक जी आप अगर निष्पक्ष निर्भीक और स्वस्थ पत्रकारिता में विश्वास रखते हैं और इतना साहस भी रखते हैं (हालांकि इसकी आशा कम ही है) तो आप से निवेदन है कि हो सके तो श्री राम बहादुर राय तक मेरी यह प्रतिक्रिया अवश्य पहुंचा दें! बड़ा आभारी होऊंगा! श्रीकांत चौधरीभूतपूर्व शिक्षक एवं न्यायाधीशव्यंग्य लेखकएमए, एलएलबी (असली डिग्री धारी)दमोह (मध्य प्रदेश)shrikant2011dmo@gmail.com

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Dakhal News 27 June 2020


bhopal,Career in journalism

  प्रमोद भार्गव आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से पत्रकारिता जुड़ गई है। इसीलिए पत्रकारिता में विविधता को प्रस्तुत करने के लिए बहु आयाम भी विकसित हो गए हैं। इन्हें हम अभिव्यक्ति के रूप में मुद्रित और दृश्य व श्रव्य के रूप में प्रसारण से जुड़े संचार के अनेक माध्यमों के जरिए सुन व देख सकते हैं। सभी माध्यमों की आसान या कहें मुट्ठी में उपलब्धता के चलते इसकी पहुंच दूरांचलों के उन दुर्गम इलाकों में भी हो गई है, जहां आज भी सुगम रास्ते नहीं हैं। जबतक समाचार मुद्रित स्वरूप में उपलब्ध थे, तब यह जरूरी था कि इनका लाभ बिना पढ़ी-लिखी एक बड़ी आबादी नहीं उठा पा रही है और इस कारण वह देश के हालात, जनकल्याणकारी योजनाएं और जागरुकता से वंचित हैं। परंतु अब मुट्ठी में बंद मोबाइल ने इस कमी को पूरा कर दिया है। यदि आपके पास स्मार्टफोन है और उसमें इंटरनेट की सुविधा है तो फिर देश का नागरिक सीमाओं के भीतर कहीं भी बैठा हो, वह ई-पेपर से लेकर समाचार चैनलों के जरिए समाचार की भूख की पूर्ति कर सकता है। फेसबुक, वाट्सअप, इंस्ट्राग्राम व अन्य अनेक सोशल साइट्स पर वह अपनी समस्या भी टूटी-फूटी भाषा अथवा चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत कर सकता है। सोशल प्लेटफॉर्म पर आंख गढ़ाए बैठे पत्रकार इसे देखते ही उठा लेंगे और आम आदमी की यह पोस्ट खबर बन जाएगी। आजकल बाढ़ग्रस्त इलाकों में जहां पत्रकार की पहुंच संभव नहीं हो पाती है, वहां के समाचार धड़ल्ले से सोशल प्लेटफार्मों से ही उठाए जा रहे हैं। भारत में आधुनिक पत्रकारिता का इतिहास लगभग दो सौ साल पुराना माना जाता है। इसकी शुरुआत 30 मई 1826 को हिंदी में प्रकाशित साप्तहिक समाचार पत्र उदंत मार्तण्ड से हुई थी। किसी भी भारतीय भाषा में प्रकाशित होने वाला यह देश का पहला समाचार-पत्र है। उदंत मार्तण्ड का अर्थ उगता सूर्य है। पत्रकार और पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य में यह शब्द अत्यंत सार्थक हैं क्योंकि पत्रकार या लेखक वह रोशनी है जो देश के नागरिकों में उस ज्ञान की जानकारी भरती है जो नागरिक को संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों के प्रति सचेत बनाए रखने का काम करती है। प्रत्येक मंगलवार को छपने वाले इस अखबार के मालिक, मुद्रक व संपादक पंडित कुमार शुक्ला थे। इसमें खड़ी बोली और ब्रजभाषा का उपयोग होता था। अखंड या बृहत्तर भारत में सूचना संप्रेषण की शुरुआत नारद मुनि से मानी जाती है। नारद मुनि समाज में व्याप्त विसंगति या किसी आक्रांता शासक की मनमानी की सूचना ब्रह्मलोक में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को पहुंचाने का काम करते थे और फिर ये शक्तिशाली ईश्वरीय अवधारणा से जुड़े देव समस्या के समाधान के प्रति सचेत हो जाते थे। रामायण काल में सूचना के वाहक के रूप में यही काम रामभक्त हनुमान ने किया था। मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग से सेवानिवृत्त आरएमपी सिंह ने इस कालखंड की पत्रकारिता को बड़े ही सहज रूप में अति सुंदर शिल्प के साथ अपनी पुस्तक रामचरित मानस में संवाद संप्रेषण में अभिव्यक्त किया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में यह पुस्तक इसलिए अनूठी है क्योंकि पत्रकारिता के लगभग सभी आयामों को स्पर्श करते हुए हरेक पहलू को इस पुस्तक में आधुनिक संदर्भ में व्याख्यायित किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जो आज अनेक रूपों में है, स्वतंत्रता के पहले वह रेडियो और बाद में दूरदर्शन के माध्यमों में ही दिखाई देता था। किंतु यही माध्यम महाभारत काल में धृतराष्ट्र और संजय के वार्तालाप में इस ढंग से दर्शाया है कि कोई पत्रकार उपग्रह से जुड़े कैमरे के जरिए कुरुक्षेत्र में चल रहे महाभारत युद्ध का लाइव वृत्तांत सुना रहा हो। मेरी दृष्टि में यही कल्पना इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और उसमें भी लाइव प्रसारण का आधार स्रोत है। अब एक युवा जो पत्रकार बनने की जिज्ञासा रखता है, वह पत्रकारिता का समग्र अध्ययन करे कहां, सार्थक प्रायोगिक प्रशिक्षण कहां से ले तो इस जिज्ञासा शमण का सर्वश्रेष्ठ स्थान है भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय! यह मध्य प्रदेश का ही नहीं एशिया का सबसे पहला पत्रकारिता विवि है, जिसकी नींव 1990 में रखी गई थी। आज इस विवि से प्रशिक्षित होकर निकले पत्रकार प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं एवं समाचार चैनलों में श्रेष्ठतम सेवाएं दे रहे हैं। विवि के कुलपति संजय द्विवेदी कहते हैं, `हमारी कोशिश है कि यह विवि भारतीय भाषाई पत्रकारिता के प्रशिक्षण के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में विकसित हो। इसके लिए हरसंभव प्रयास करेंगे।' उनकी यह परिकल्पना इसलिए अहम् है क्योंकि आज हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं से प्रशिक्षण देने वाले विवि तो देशभर में खुल गए हैं लेकिन भारतीय भाषाओं में इनका अभाव खलता है। दरअसल, जितनी आज महत्वपूर्ण व राष्ट्रव्यापी पत्रकारिता हिंदी व अंग्रेजी की है उतनी ही महत्वपूर्ण देश की अन्य भाषाओं की भी है। इन भाषाओं में भी बड़े-बड़े समाचार पत्र व पत्रिकाएं प्रकाशित होते हैं और लगभग संविधान की अनुसूची में दर्ज प्रत्येक भाषा में टीवी समाचार चैनल हैं। जब देश में बड़ी राजनीतिक घटना या दुर्घटना घटती है तो हम देखते हैं कि हिंदी व अंग्रेजी के चैनल, भाषाई चैनलों से ही खबर उठाकर प्रसारित करते हैं। इसीलिए जरूरी है कि भाषाई पत्रकार भी पत्रकारिता के गुणों से संपूर्ण रूप में दक्ष हों और दायित्व को लेकर संविधान के नैतिक मानदंडों के प्रति स्वनियंत्रित हों। स्वनियंत्रण की नैतिकता ही किसी पत्रकार को इस क्षेत्र में लंबी पारी खेलने का अधिकारी बनाने का रास्ता खोलती है। स्वनियमन का प्रशिक्षण कोई विद्यार्थी आदर्श रूप में वहीं से ग्रहण कर सकता है जहां के परिवेश में नैतिक मूल्य आचरण में शुमार हों। स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारिता के माध्यम से मुख्य भूमिका निभाने वाले पंडित माखनलाल चतुर्वेदी न केवल समर्थ पत्रकार व लेखक थे बल्कि कर्मवीर नामक पत्र निकालकर उन्होंने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कलम चलाकर जनमानस को भी स्वतंत्रता के लिए खड़ा करने में अहम् भूमिका निभाई। गोया यह नाम ही आदर्श आचरण का प्रतिरूप है। यह विवि इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह खबर से आगे भी क्या संभव है, इस धारणा को विकसित करता है। यानी मौलिक सोच को कैसे फीचर लेखन का आयाम दिया जाए, इस समझ को विद्यार्थी के मन में विकसित करता है। इस लेखन में विचार भी अंगीकार होता है। यही वह समझ है जो नवोदित पत्रकार में संपादकीय लिखने की क्षमता विकसित करती है। इसलिए यहां के प्राध्यापक रामदीन त्यागी कहते हैं संचार माध्यमों के व्यापक परिदृश्य में सार्थक हस्तक्षेप और कर्तव्य के प्रति सचेत बने रहने के लिए हमें अत्यंत कर्मठ और लगनशील युवा पत्रकारों को गढ़ने की जरूरत है, जिससे वे राष्ट्रीय सरोकरों से जुड़े रहते हुए अपनी भाषा में आकर्षक ढंग से समाचार अभिव्यक्त करने की दक्षता इस परिसर से प्राप्त कर सकें। वर्तमान में इस विवि में प्रवेश की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। यहां मीडिया और आईटी पाठ्यक्रमों को पढ़ने की स्नातक व स्नातकोत्तर सुविधाएं हैं। इन क्षेत्रों में कैरियर के अभिलाषी छात्र-छात्राएं भोपाल स्थित विवि के अलावा इसी विवि के रीवा और खंडवा परिसरों में भी पढ़ने के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। प्रवेश की सुविधा ऑनलाइन के जरिए विवि की वेबसाइट पर जाकर भी सीधे आवेदन फॉर्म भर सकते हैं।  (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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Dakhal News 27 June 2020


bhopal,JP Nadda,huge amount ,Chinese institutions , Rajiv Gandhi Foundation

भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गुरुवार को मध्यप्रदेश की वर्चुअल रैली को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कांगेस पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन की विभिन्न संस्थाओं ने मोटी रकम मुहैया कराई है। इस फाउंडेशन के चेयरपर्सन सोनिया गांधी हैं और इससे कई कांग्रेस के नेता जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि चीन और कांग्रेस के बीच गुपचुप रिश्ता है।   भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने वर्चुअल रैली को संबोधित करते हुए कहा कि आज ही मैंने टेलीविजन में देखा और दंग हूं कि राजीव गांधी फाउंडेशन को 2005-06 में राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन की पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना और चाइनीज एंबेसी ने तीन हजार यूएस डॉलर मुहैया कराए हैं। इस फाउंडेशन को इतनी मोटी रकम क्यों दी गयी। देश जानना चाहता है कि फाउंडेशन को इतना पैसा किस उद्देश्य से दिया गया। उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि ये वही लोग हैं जो चीन से फंड लेकर उसके पक्ष में माहौल बनाते हैं, स्टडी कराई जाती है। सभी राजनीतिक दल के लोगों ने मोदी जी से कहा कि वह सभी देशहित में एक साथ खड़े हैं। एक परिवार ने विरोध किया। कांग्रेस पार्टी के हाथी के दांत है खाने और दिखाने के अलग हैं।   उन्होंने कहा कि गलवान घाटी में हुयी घटना पर भी कांग्रेस ने राजनीति की। ये वही कांग्रेस है, जिसने 2017 के अगस्त माह में जब चीन और भारत आमने सामने थे, तब राहुल गांधी चीन के राजदूत के साथ गुपचुप मुलाकात कर रहे थे और अब ये लोग चीन के मामले में सवाल उठा रहे हैं। तीन हजार यूएस डालर लेने वाले मुखर नहीं हो सकते हैं। ये अपने स्वार्थ के जाल में स्वयं उलझे हुये हैं। नड्डा ने गांधी-नेहरु परिवार पर निशाना साधते हुए कि एक ही परिवार, जिसे जनता ने वर्तमान में नकार दिया है, वह संपूर्ण विपक्ष नहीं हो सकता है। उन्होंने इस परिवार की नीयत और नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि उसकी ही गलती के कारण 43 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि चली गयी। जब गलवान घाटी को लेकर सभी राजनैतिक दल केंद्र की मोदी सरकार के साथ हैं, वहीं एक परिवार सवाल खड़े कर रहा हैं।   भाजपा अध्यक्ष ने वर्चुअल रैली में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि मैं मध्य प्रदेश को बधाई देना चाहता हूं कि कोराना संकट में 3 करोड़ फूड पैकेट्स, 30 लाख राशन किट और लगभग 5 करोड़ लोगों को फूड द निडी कार्यक्रम में और लगभग 70 लाख लोगों को फेस कवर पहुंचाने का काम मध्य प्रदेश की इकाई ने किया है। उन्होंने कहा कि मार्च में शक्तिशाली देश असहाय महसूस कर रहे थे। प्रधानमंत्री मोदी जी ने तुरन्त डिसीजन लेकर लॉकडाउन लगाकर लोगों को नया जीवन दान दिया। आज एक हजार कोविड के डेडिकेटेड अस्पताल हैं। दुनिया में 6 मौतें प्रति लाख हो रही हैं, जबकि हमारे देश में एक मौत प्रति लाख हो रही है।   उन्होंने कहा कि हम कोरोना संक्रमण काल से गुजर रहे हैं। बीते मार्च में बड़े-बड़े देश अपने आप को लाचार, असहाय महसूस कर रहे थे, लेकिन भारत मोदी जी के नेतृत्व में कोरोना संकट से लडऩे के लिए तैयार हुआ। आज देश अनलॉक हो रहा है, लेकिन कई राजनीतिक पार्टियां आज भी लॉकडाउन में हैं। मुझे खुशी है कि भाजपा ने डिजिटल तकनीक के माध्यम से लोगों के साथ जुडऩे की शुरुआत की है।   नड्डा ने कहा कि मुझे कोरोना काल में आपसे संवाद करने का मौका मिला। ये 45वी वर्चुअल रैली है। इस समय वर्चुअल रैली में 33 लाख लोग हमसे जुड़े हुए हैं। छह साल में प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में वह काम हुए जो 6 दशकों में भी नहीं हो सके थे। बता दें कि मध्यप्रदेश भाजपा की ओर से आयोजित इस वर्चुअल रैली को राज्य में लाखों लोगों ने सुना। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दिल्ली से अत्याधुनिक तकनीकी की मदद से संबोधित किया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और अन्य भाजपा नेताओं ने इसे भोपाल में संबोधित किया और सुना भी।

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Dakhal News 25 June 2020


gwalior, Alok Tomar, younger brother, Anurag Tomar, also died , cancer

ग्वालियर। देश के जाने माने पत्रकार स्वर्गीय आलोक तोमर के छोटे भाई अनुराग तोमर का भी गत दिनों यहां कैंसर के कारण असामयिक निधन हो गया। अनुराग केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग में इंजीनियर थे और अरूणाचल प्रदेश में तैनात थे। हाल में उनको कैंसर होने की जानकारी मिली जिसके बाद कुछ महीनों तक ग्वालियर में ही उनका उपचार चलता रहा लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। ज्ञात हो कि वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर का निधन कैंसर के चलते हुआ। आलोक तोमर की कई राउंड कीमियोथिरेपी हुई थी पर उन्हें बचाया न जा सका था।

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Dakhal News 24 June 2020


bhopal,Is this letter of UP STF real or fake?

वाट्सअप, फेसबुक, ट्विटर पर दो पन्ने का एक लेटर शेयर फारवर्ड किया जा रहा है जिसे यूपी एसटीएफ का बताया गया है. इस लेटर में चाइनीज एप्प हटाने के निर्देश हैं. आखिर में पुलिस महानिरीक्षक एसटीएफ लखनऊ का नाम लिखा गया है. पर यहां किसी के नाम से कोई हस्ताक्षर नहीं है.   हस्ताक्षर विहीन इस लेटर का लुक एंड फील भी प्रथम नजर में यह बता देता है कि यह आफिसियल लेटर नहीं है. लेटर में न तो यूपी पुलिस का लोगो है न ही कोई लेटर पैड है. न ही कोई पत्र क्रमांक संख्या है और न ही पत्र किसी को संबोधित है. पत्र की प्रतिलिपि भी किसी को नहीं है.   साथ ही ये भी सोचने की बात है कि जब भारत सरकार, यूपी सरकार ने ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया तो अचानक यूपी एसटीएफ कैसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार से जुड़े मामले में किसी एक देश का एप्प जोड़ने या हटाने को लेकर आदेश जारी कर देगी? हां ये हो सकता है कि अनआफिसियली ये लेटर जारी किया गया हो लेकिन अनधिकृत पत्र को कैसे असली व सरकारी मानकर खबर का प्रकाशन किया जा सकता है? आजतक, हिंदुस्तान समेत कई बड़े-छोटे मीडिया वालों ने इस लेटर के आधार पर खबर का प्रकाशन कर दिया. बताया जाता है कि कुछ जगहों से इस खबर को वरिष्ठों के निर्देश के बाद हटा लिया गया. देखें छोटे बड़े कई पोर्टलों पर छपी इस खबर का स्क्रीनशाट-

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Dakhal News 20 June 2020


bhopal, Vishwas Garde Bhau is being deceived like this!

प्रख्यात पत्रकार लक्ष्मण नारायण गर्दे के पौत्र विश्वास गर्दे ‘भाऊ’ की शल्य चिकित्सा और फिर निधन के दुख के बीच रविवार को बनारस से लखनऊ लौट रहा था तो रास्ते में फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की खबर आई। मुझे नहीं मालूम कि टेलीविजन और फिल्म की चकाचौंध भरी दुनिया में वह किस तरह का अवसाद और अकेलापन था जिसके कारण सुशान्त ने आत्महत्या जैसे पलायन का मार्ग चुना लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मैंने भाऊ को लगातार अकेला होते जाने को देखा है।   सम्पादकाचार्य बाबूराव विष्णु पराड़कर और लक्ष्मण नारायण गर्दे- बनारस में दो प्रसिद्ध और समकालीन मराठीभाषी पत्रकार तो थे ही, आपस में रिश्तेदार भी थे। पराड़कर जी की भतीजी का विवाह गर्दे जी के पुत्र से हुआ। भाऊ के पिता गर्दे जी के पुत्र और माता पराड़कर जी की भतीजी थीं। इस तरह भाऊ मेरे भाई थे। करीब डेढ़-दो दशक पूर्व हम जब भी भाऊ के घर जाते, अक्सर वे घर पर नहीं होते। उनके यार-दोस्तों का एक बड़ा दायरा था। वे जब भी आते, कुछ लोगों के साथ ही आते। उनके बहुत सारे दोस्तों के नाम हमें भी याद थे।   भाऊ का अर्थ भाई होता है और वे पूरे मोहल्ले में घर के बड़े भाई की तरह ही लोकप्रिय थे। ज्यादातर लोग उन्हें भाऊ कहते और कुछ लोग भाऊ को किसी नाम-उपनाम की तरह समझते हुए उसमें आदर से भैया भी जोड़ देते। इस प्रकार वे बहुत सारे लोगों के भाऊ भैया हो जाते जबकि दोनो का अर्थ एक ही है। भाऊ सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर भागीदारी करते। किसी के घर विवाह हो या कोई अस्पताल में हो, भाऊ उसमें शामिल मिलते। वे पत्थरगली, रतनफाटक, जतनबर, दूधकटरा, बीबी हटिया, गायघाट, ब्रह्माघाट, दुर्गाघाट, दूध विनायक और आसपास के क्षेत्रों के अघोषित सभासद की तरह थे। हालांकि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं रही लेकिन उनकी सामाजिक सहभागिता से अक्सर ये भ्रम होता कि वे किसी ऐसे लाभ के लिए ही ऐसा कर रहे हैं। भाऊ पक्के महाल के इन इलाकों में पत्रकारों के सबसे बड़े सूत्र थे। दिग्गज पत्रकार के परिवार से होने के कारण ज्यादातर समाचार पत्रों के संवाददाताओं के पास उनके नंबर होते और भाऊ उनके लिए हमेशा उपलब्ध रहते। इन मराठी बाहुल्य क्षेत्रों में मराठियों से जुड़े आयोजन की खबर तो भाऊ के बिना पूरी ही नहीं होती। गणेशोत्सव के दौरान तो उनकी खूब मांग रहती थी। भाऊ कभी स्वतः पत्रकार नहीं बन सके लेकिन वे बनारस की पत्रकारिता में लंबे समय तक अपरिहार्य रहे। यहां तक की कोई पराड़कर जी, गर्दे जी या रणभेरी आदि से जुड़े टीवी कार्यक्रमों का निर्माण कर रहा होता तो वह भाऊ की ही शरण में होता। हालांकि इन सब का कभी कोई क्रेडिट उन्हें नहीं मिला लेकिन भाऊ मदद करके ही खुश हो लेते। ये जरूर हुआ कि इन सारी चीजों का असर उनके व्यक्तिगत जीवन पर भी पड़ता गया। सामाजिक कार्यों में ऐसा मन रमता रहा कि न कहीं नौकरी कर सके और न विवाह। चार बहनों के विवाह और उनके परिवारों की खुशी में अपनी खुशी देखी लेकिन बहनों के बाद माता-पिता के देखभाल की जिम्मेदारियां बढ़ती चली गईं। फिर यह भी हुआ कि माता-पिता की देखभाल के कारण उनका सामाजिक दायरा कम होता चला गया और परिवार में पूरा वक्त बीतने लगा। फिर मां भी चल बसी और पिता को स्मृतिलोप के बाद संभाल पाना कठिन से कठिनतर होता चला गया लेकिन यहीं भाऊ ने समाज का बदला हुआ रूप भी देखा। जो भाऊ हमेशा दूसरों के कामों में बढ़चढ़कर शामिल होते थे, जो हमेशा यार-दोस्तों से घिरे रहते थे, जिनका पता मोहल्ले में कोई भी बता सकता था, जिनका नाम ज्यादातर लोगों की जुबान पर होता था, उनका हालचाल लेने वाला भी कोई नहीं बचा। वे लगातार अकेले होते चले गए। ऐसा समय भी आया कि मई के मध्य जब भाऊ बीमार पड़े और बेसुध रहने लगे तो उनका हालचाल लेने वाला तक कोई नहीं था। यह लाकडाउन का समय था और कोरोना के भय से लोग अपनों तक से दूर थे। भाऊ कई दिनों तक इलाज को तरसते रहे। अन्ततः योगेश सप्तर्षि, पूर्व सभासद घनश्याम और पत्रकार मनोज को खबर मिली तो उन्होंने जैसे-तैसे पास के एक अस्पताल में उन्हें दाखिल कराया। बाद में उन्हें एक निजी अस्पताल लाया गया लेकिन उनकी हालत बिगड़ चुकी थी। इस बीच सूचना पाकर उनकी बहनें और उनके पति भी वहां आ सके। लेकिन भाऊ को बचाया नहीं जा सका। 62 वर्ष की उम्र में भाऊ चल बसे लेकिन उनके निधन के बहुत पहले ही उनके उस विश्वास का अन्त भी हो गया था जो परपीड़ा और परहित को अपना समझने के दौरान उनके मन में कहीं न कहीं फल-फूल रहा था!  

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Dakhal News 20 June 2020


bhopal, Prime Minister, tweeting, death, film actor ,silent ,martyrdom soldiers

कम से कम अभी तक शहीद जवानों के नाम और तस्वीरें साझा होनी चाहिए थी। देरी हो रही है। क्यों देरी हुई पता नहीं। फ़िल्म अभिनेता की मौत पर ट्विट करने वाले प्रधानमंत्री चुप हैं। शायद उनके समर्थक बताने में लगे होंगे कि कोई बात नहीं, अभी कोई चुनाव होगा आप ही जीतेंगे। जवाब मिल जाएगा। लेकिन शहादत को सलाम करने में देरी कैसी? यही नहीं, पूरा दिन बीत गया संख्या बताने में। रक्षा कवर करने वाले पत्रकारों ने उसी वक्त संख्या को लेकर ट्विट करना शुरू कर दिया था मगर सरकारी बयान में संख्या तीन ही रही। रात दस बजे तक। यही नहीं आधिकारिक तौर पर उनके नाम नहीं बताए गए। ख़ैर यह बात चटखारे के लिए नहीं है। यह बात है कि हम कब हालात की संवेदनशीलता को समझेंगे। कब तक सूत्रों के सहारे से खबरों को प्लांट कर तीर मारा जाएगा। इससे आप चुनाव जीत सकते हैं । सच्चाई को हरा नहीं सकते। सतीश आचार्य का यह कार्टून उचित ही पूछ रहा है। आप बनने को तो हर चीज़ बन जाते हैं, प्रधानमंत्री कब बनेंगे। मीडिया मैनेजमेंट और तमाशे से कूटनीति में टी आ पी का जोश आता है लेकिन झूला झूलने से भव्यता आती होगी, कूटनीति इससे तय नहीं होती। प्रधानमंत्री को जनता ने दो वरदान दिए हैं। एक चुनाव में विजय और दूसरा पराजित और दंडवत् मीडिया। स्वीकार करें प्रधानमंत्री जी। कोई इवेंट की योजना बन रही हो तब तो कोई बात नहीं। उसके तमाशे में ऐसे सवाल धूल बन कर उड़ जाएँगे। बैंड बाजा बारात आपके पास है तो तमाशा करने की कला भी आपके ही पास होगी। आई टी सेल शहादत के सम्मान में जुटा होता तो आज पूछ रहा होता कि शहीदों के नाम क्या हैं ? उनकी संख्या क्या है? सीमा पर चीनी सैनिकों का जमघट बनने कैसे दिया गया? लेकिन इस सवालों की कोई क़ीमत नहीं है। मुझे यक़ीन है कि लोग राहुल गांधी पर ग़ुस्सा निकाल रहे होंगे, जो कोरोना की तरह इस बार भी चीन को लेकर अपना सर ओखली में डाल पूछ रहे थे। देश झूला नहीं है। प्रधानमंत्री जी। कोविड -19 से लड़ने की हमारी तैयारियाँ फुस्स हो चुकी हैं फिर भी आप कह रहे हैं कि हमारी तैयारियों का अध्ययन किया जाएगा। ऐसा आत्म विश्वास अच्छी यूनिवर्सिटी बनाने, अस्पताल बनाने और रोज़गार पैदा करने में होता तो क्या ही बात थी । लेकिन इसमें आपकी गलती नहीं है। राहुल गांधी की है। वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार की एफबी वॉल से.

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Dakhal News 17 June 2020


bhopal,Yogi remains intact within the government

भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था किसी भी सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए और यह तब संभव है जब सरकार की गंगोत्री यानि मंत्रिमंडल में शामिल लोग साफ-सुथरे हों। उत्तर प्रदेश की एसटीएफ ने हाल में आटा की आपूर्ति का ठेका दिलाने के लिए हुई 9 करोड़ 79 लाख रुपये की धोखाधड़ी के जिस मामले में कार्रवाई की है उसमें पशुधन राज्य मंत्री रजनीश दीक्षित के निजी सचिव को गिरफ्तार किये जाने से सरकार के अंदरूनी हालातों की झलक मिल गई है।   कैसे हो गया दिया तले अंधेरामुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने पदभार संभालते ही भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टोलरेंस की नीति की घोषणा की थी। लेकिन तब दिया तले अंधेरे की कहावत चरितार्थ हो गई थी जब उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों का निजी स्टॉफ काम कराने के लिए डील करते हुए स्टिंग ऑपरेशन में पकड़ लिया गया। इसके बाद अपने मंत्रिमंडल के पहले पुनर्गठन में योगी ने कुछ मंत्रियों की छुटटी कर दी और कुछ के पर कतर दिये जो बेहद प्रभावशाली थे। मुख्यमंत्री के क्यों बंधे हैं हाथमुख्यमंत्री के इस कठोर रुख से कुछ दिनों तक उनके सहयोगियों में खौफ रहा लेकिन यह स्थिति ज्यादा दिनों तक कायम नही रह सकी। इसके कारणों पर विचार करते हुए यह बात भी सामने आती है कि मुख्यमंत्री के हाथ ऊपरी हस्तक्षेप के चलते पूरी तरह खुले हुए नही हैं। कई दागी मंत्रियों को हटाने में वे इस कारण नाकामयाब हो गये थे क्योंकि उन्हें शीर्ष नेतृत्व का वरदहस्त प्राप्त था। पटरी से उतरी प्राथमिकताएंदरअसल मुख्यमंत्री के सामने यह स्पष्ट है कि जन समर्थन जुटाने में विकास, स्वच्छ शासन-प्रशासन और प्रभावी कानून व्यवस्था जैसे मुददे ज्यादा महत्व नही रखते। इसलिए उन्होंने भावनात्मक एजेंडे को आगे बढ़ाया। बसपा का बहुजन फार्मूला बेहद कारगर था लेकिन सत्ता पाने और उसे मुटठी में बनाये रखने की अधीरता में मायावती ने अपना भावनात्मक एजेंडा दरकिनार कर दिया और शासन की स्वाभाविक प्राथमिकताओं में बढ़त लेकर सिक्का जमाने की कोशिश की जिसमें वे बुरी तरह फेल रहीं। मायावती के इस हश्र से योगी ने कहीं न कहीं सबक सीखा है इसलिए उन्होंने ट्रैक बदला और गुड गवर्नेन्स के फेर में पड़ने के बजाय जिलों के नाम बदलकर उन्होंने भावनात्मक मुददों पर आगे बढ़ने की शुरूआत की। संकीर्ण राजनीति को लेकर उनकी आलोचना भी हुई, यहां तक कि केंद्रीय नेतृत्व को भी उनके तौर-तरीके रास नही आये लेकिन वे टस से मस नही हुए। आज हालत यह है कि उनके कटटरवादी रवैये को बड़ी जन स्वीकृति मिल चुकी है और उन्होंने उत्तर प्रदेश में अपनी व्यक्तिगत स्थिति इतनी मजबूत कर ली है कि लखनऊ में मोदी नही योगी चाहिए के पोस्टर तक लग गये हैं। कैलकुलेटिव योगी की कूटनीतिपर योगी संत होकर भी बहुत ही कैलकुलेटिव हैं। उन्होंने अपनी मंजिल तय कर रखी है। जिसकी ओर आहिस्ते-आहिस्ते आगे बढ़ने की निपुणता दिखा रहे हैं। वे नही चाहते कि केंद्रीय नेतृत्व के प्रतिद्वंदी के रूप में उनकी छवि बने और उनका पहले कौर में ही बिस्मिल्लाह हो जाये। इसकी बजाय उन्हें फिलहाल अनुयायी बने रहकर अपनी जड़ें मजबूत करते जाने की रणनीति पर भरोसा है। खबर है कि उत्तर प्रदेश में प्रशासन के बड़े पदों पर नियुक्तियां दिल्ली के निर्देशों पर होती हैं। इसलिए कई भ्रष्ट अफसर ऊपर के लोगों के कृपा पात्र होने के कारण प्राइज पोस्टिंग हासिल करने में सफल हो रहे हैं। योगी इसका कोई प्रतिरोध नही करना चाहते। मंत्रियों के मामले मे भी उन्होंने इसी तरह टकराव से बचने की नीति अपना रखी है। भ्रष्टाचार को लेकर संघ भी क्यों नही है दो-टूकसंघ को भी भ्रष्टाचार रोकने और विकास के मामले में बहुत दिलचस्पी नही है, भले ही संघ प्रमुख कहते हों कि उनका काम व्यक्ति और समाज का निर्माण करना हैं। इसी कारण संघ मंत्रियों और अधिकारियों को लेकर भ्रष्टाचार के आरोपों पर कान नही धर रहा। संघ समाज के उस पुराने मॉडल को पुनर्जीवित करने के लिए प्रतिबद्ध है जो उसका आदर्श है। उसे जो चाहिए योगी कर रहे हैं। इसलिए योगी संघ के और ज्यादा प्रिय बनते जा रहे हैं और वे यही चाहते हैं। रहस्य जानना नहीं रहा मुश्किलबहरहाल मंत्री का निजी स्टॉफ अपने बॉस की बिना जानकारी के गड़बड़ियां करे यह संभव नहीं है। इसलिए अपने निजी सचिव के कारनामें के छीटों से पशुधन राज्य मंत्री खुद को बचाना चाहें तो यह मुश्किल है। आम धारणा यह है कि अकेले पशुधन राज्य मंत्री ही नहीं ज्यादातर मंत्री इस सरकार में खुला खेल फर्रुखाबादी खेल रहे हैं। भ्रष्टाचार के मामले में खुद निष्कलंक होते हुए भी योगी व्यापक रूप से इस मोर्चे पर निर्णायक क्यों नही होना चाहते इसका रहस्य जाहिर है कि अबूझ नही है। लेखक केपी सिंह जालौन के वरिष्ठ पत्रकार हैं. संपर्क- 9415187850

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Dakhal News 17 June 2020


bhopal,Bharu

प्रख्यात पत्रकार लक्ष्मण नारायण गर्दे के पौत्र विश्वास गर्दे का वाराणसी में शनिवार की सुबह अन्ततः निधन हो गया था। वे पिछले एक पखवारे से मौत से संघर्ष कर रहे थे। शुक्रवार को उन्हें निजी चिकित्सालय से स्थानीय शिवप्रसाद गुप्त जिला चिकित्सालय में लाया गया था।   वे परिवारीजनों और मित्रों में भाऊ के नाम से लोकप्रिय थे। मिलनसार और सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहने वाले भाऊ का पिछले दिनों महमूरगंज स्थित एक निजी चिकित्सालय में आंत का आपरेशन किया गया था। तबसे वे सघन चिकित्सा कक्ष में थे। उनके रक्त में संक्रमण भी था। भाऊ वाराणसी के पत्थर गली स्थित अपने पैतृक निवास में पिता पुरुषोत्तम लक्ष्मण गर्दे के साथ रहते थे। पिता भी अस्वस्थ हैं। लाकडाउन के दौरान भाऊ की तबीयत बिगड़ने पर पहले उन्हें मच्छोदरी के बिडला अस्पताल में दाखिल कराया गया था। शनिवार की भोर उन्होंने अन्तिम सांस ली।लक्ष्मण नारायण गर्दे हिन्दी पत्रकारिता के आधारस्तम्भ पत्रकारों में रहे हैं। भारतमित्र, नवजीवन, वेंकटेश्वर समाचार और हिंदी बंगवासी के संपादकीय दायित्वों का निर्वाह करने वाले गर्दे जी ने मराठीभाषी होते हुए हिन्दी की अप्रतिम सेवा की। वे गांधी और तिलक के करीब रहे, सरल गीता लिखी। कल्याण के अंकों का संपादन भी किया।

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Dakhal News 13 June 2020


bhopal,Contractor appeasement of Muslim politics

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया और करोड़ो की सम्पति की मालिक मायावती तमाम ऐसे लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं जो दलित परिवार में जन्म लेने के कारण हीन भावना से ग्रस्त रहते हैं। मायावती ने कभी दलित होने को अभिशाप नहीं समझा। बल्कि अपनी सूझबूझ से माया ने दलित परिवार में जन्म लेने को भी एक सुनहरे मौके में बदल दिया। दलित चिंतक और नेता मान्यवर काशीराम को जब मायावती में अपनी ‘सियासी परछाई’ दिखाई दी तो उन्हें इस बात की तसल्ली हो गई कि जिस दलित मिशन को वह(काशीराम) बढ़ती उम्र के कारण मुकाम तक नहीं पहुंचा पाए हैं, उसे मायावती वह मुकाम दिलाएंगी,ताकि दलित समाज में शान से जी सके। इसी लिए काशीराम ने अपने जीतेजी उस मायावती को दलितों की आवाज बना दिया जो एक आईएएस अधिकारी बनकर देश-दुनिया को यह बताना चाहती थी कि दलितों में भी काबलियत की कमी नहीं है। बस उन्हें मौके की तलाश है।   काशीराम ने मायावती को सियासी जामा पहनाया तो माया ने अपनी काबलियत के बल पर मजबूत दलित वोट बैंक तैयार कर दिया। इसी वोट बैंक के सहारे माया ने चार बार उत्तर प्रदेश की बागडोर संभाली। माया ने कभी एतराज नहीं किया कि उन्हें लोग दलित की बेटी कहते हैं। राजठाठ से रहले वाली मायावती को चिढ़ तो तब होती थी,जब लोग उन्हें दौलत की बेटी कहते थे। हां, जब माया को सियासी रूप से यह लगने लग कि सिर्फ दलित वोट बैंक के सहारे सत्ता की सीढ़िया नहीं चढ़ी जा सकती हैं तो माया ने अन्य जातियों के मतदाताओं को लुभाने के लिए भी खूब पैतरेबाजी की। उनके द्वारा बनाई गई भाई-चारा कमेटी को कौन भूल सकता है। कभी वैश्य-ब्राहमणों पर डोरे डाले तो कभी क्षत्रिय वोटरों को लुभाया। सत्ता हासिल करने के लिए मायावती ने ‘सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाया’ का नारा भी खूब उछाला, लेकिन माया को सबसे अधिक दलित-मुस्लिम गठजोड़ की सियासत रास आई। यूपी के सियासी गलियारों में हमेशा इस बात की चर्चा होती रहती है कि समाजवादी पार्टी यादव-मुस्लिम तो बसपा दलित-मुस्लिम वोट बैंक के सहारे ही सियासत में सम्मानजनक स्थान हासिल कर पाए थे। उत्तर प्रदेश में मायावती पिछले तीन दशकों से दलित वोटरों की अकेली ‘ठेकेदार’ बनी हुई हैं। उन्हें कहीें से कोई विशेष चुनौती नहीं मिली। बीते कुछ वर्षो में अगर मायावती को किसी ने थोड़ा-बहुत परेशान किया है तो वह हैं भीम आर्मी के प्रमुख चन्द्रशेखर रावण। रावण अपने आप को मायावती का भतीजा भी बताता है और उनके दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश भी करता रहता हैं। दलित ही नहीं, माया की तरह मुस्लिम वोट बैंक पर भी रावण गिद्ध दृष्टि जमाए हुए हैं। इसी लिए नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जब कुछ मुसलमानों ने संघर्ष का बिगुल बजाया तो रावण भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल दिया। तब्लीगी जमात पर जब कोरोना फैलाने का आरोप लगा तब भी रावण ने इसके विरोध में हंगामा किया। बहरहाल, यह किसी ने नहीं सोचा था कि मायावती हों या फिर भीम आर्मी के मुखिया चन्द्रशेखर रावण दोनों मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत के चलते अपने कोर दलित वोटरों के साथ होने वाले अत्याचार से भी आंखें मंूद सकते हैं। अगर ऐसा न होता तो माया और रावण जौनपुर और आजमगढ़ में कुछ मुस्लिमों द्वारा दलितों के घर जलाए जाने और दलित बेटियों के साथ अभद्रता के मामले मेें चुप्पी नहीं साधे रहते। खैर, दलितों पर अत्याचार की खबरों से चन्द्रशेखर रावण और मायावती की जुबान पर लगा ‘मजबूरी का ताला’, भले नहीं खुला हो, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना का पता चलते ही आनन-फानन में उक्त घटना को अंजाम देने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून(एनएसए) और गैंगेस्टर एक्ट लगाने में देरी नहीं की। इस बीच इतना जरूर हुआ की जब माया को लगा की कहीं योगी दलित सियासत में बाजी मार नहीं ले जाएं तो उन्होंने सोशल मीडिया पर एक बयान जरूर जारी कर दिया कि उक्त घटना में लिप्त लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। मायावती ने ट्वीट किया, यूपी में चाहे आजमगढ़, कानपुर या अन्य किसी भी जिले में खासकर दलित बहन-बेटी के साथ हुए उत्पीड़न का मामला हो या फिर अन्य किसी भी जाति व धर्म की बहन-बेटी के साथ हुए उत्पीड़न का मामला हो, उसकी जितनी भी निंदा की जाये, वह कम है,बहरहाल, जब तक माया का ट्वीट आया तब तक योगी सरकार बदमाशों पर एनएसए और गैंगेस्टर एक्ट लगाने का आदेश दे चुकी थी। वैसे भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश में दलितों पर हो रहे अत्याचार तथा अपराध के मामले में बेहद सख्त हैं। जौनपुर में दलितों के साथ मारपीट के बाद घर जलाने के आरोपतियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत कार्रवाई की गई तो आजमगढ़ में भी दलित बालिकाओं के साथ छेड़छाड़ करने के मामले में एक दर्जन लोगों को अंदर भेजने के साथ एनएसए लगाया गया है। दर्जन भर से अधिक लोगों को गिरफ्तार भी किया जा चुका था। लब्बोलुआब यह है कि अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ अराजक तत्वों द्वारा अनुसूचित जाति के परिवारों पर जुल्म ढाए जाने की घटना तो निंदनीय है हीं, उससे अधिक दुखद यह है कि जो राजनीतिक दल दशकों से अनुसूचित जातियों का दशको तक भावनात्मक शोषण करते रहे, वह नेता दलितों के घर फूंके जाने और उनकी बेटियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ किए जाने पर इसलिए सधे लहजें में प्रतिक्रिया दे रहे थे कि कहीं पीड़ित दलितों के पक्ष में उनकी दी गई बयानबाजी से मुस्लिम वोटर नाराज न हो जाएं। दलितों के साथ इससे बड़ा धोखा और क्या हो सकता है कि जिन दलों और नेताओं पर बार-बार विश्वास करके उन लोगांे(दलितों ने) ने सत्ता की सीढ़िया चढ़ने में मदद पहुंचाई, वे दल इतने घटिया स्तर की वोटबैंक राजनीति कर रहे हैं कि दलितों की जान-माल और बहू-बेटियों की इज्जत पर हमलों का डंके की चोट पर विरोध करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। पीड़ित दलित परिवार के लोगों को इस बात का जरूर संतोष हुआ होगा कि मुख्यमंत्री ने उन पीड़ितों की भरपूर सहायता की,लेकिन यह बात मायावती को कैसे रास आ सकती थी,इस लिए उन्होंने नया शिगूफा छोड़ दिया। बसपा प्रमुख ने कहा कि आजमगढ़ में दलित बेटी के साथ हुए उत्पीड़न के मामले में कार्रवाई को लेकर यूपी के मुख्यमंत्री देर आए पर दुरुस्त आए, यह अच्छी बात है. लेकिन बहन-बेटियों के मामले में कार्रवाई आगे भी तुरन्त व समय से होनी चाहिये तो यह बेहतर होगा। आजमगढ़ और जौनपुर में दलितों पर अत्याचार और उसको लेकर माया की पहले चुप्पी और फजीहत पर मायावती ने घटना में लिप्त लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग भले कर दी हो,लेकिन मायावती का असली चेहरा और मकसद तो सब समझ ही गए। इसीलिए जानकार तो यही कह रहे हैं कि मुसीबत की घड़ी में दलित वोट बैंक की सियासत करने वाले नेता चुप रहे, इस बात का मलाल पीड़ितों और दलित चिंतकों को उतना नहीं हुआ होगा, जितना यह देखकर हो रहा होगा कि ट्विटर पर लगातार सक्रिय मायावती ने उसी बीच ट्वीट कर जेएनयू और जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी की रैंक बेहतर होने पर उक्त संस्थाओं को बधाई दी लेकिन, जौनपुर में अनुसूचित वर्ग के लोगों के घर जलाने के प्रकरण पर सहानुभूति जताने के लिए मायावती की जुबान से दो शब्द निकले में काफी समय लग गया। ऐसे मसलों पर अक्सर कूच का एलान करने वाले भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर को भी आजमगढ़ व जौनपुर के अपने समाज की पीड़ा का अहसास नहीं हुआ। अक्सर मुखर रहने वाले इन नेताओं की खामोशी ने अनुसूचित जातियों से उनके वोटबैंक की सियासत के चलते मायावती और चंद्रशेखर जैसे नेताओं के रवैये को लेकर सवाल उठने लगें है। माया-रावण के इस कृत्य से दुखी रिटायर्ड आइपीएस और पूर्व डीजीपी बृजलाल ने ट्वीट कर मायावती और चंद्रशेखर पर निशाना साधा। उन्होंने लिखा सुश्री मायावती आपने सियासी मंच पर दशकांे खुद को दलित की बेटी कहकर सत्ता का मजा लिया है। आज आजमगढ़ की दलित बेटियां आपको पुकार रही है। और आप चुप है। गेस्ट हाउस कांड की पीड़ा से कम यह दर्द नहीं है। बहनजी। आजमगढ़ में मुस्लिम लड़कों ने दलितों को बेरहमी से पीटा, जो कि अपनी बालिकाओं से की जा रही छेड़छाड़ का विरोध कर रहे थे। इनती संवेदनशील घटना पर मायावती और प्रो. दिलीप मंडल चुप्पी साधे हैं। बृजलाल ने भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर को भी कठघरें में खड़ा किया। उन्होंने लिखा दलित वर्ग कह रहनुमाई की नुमाइश करने वाले बहुरूपिए भीम आर्मी चीफ जौनपुर व आजमगढ़ की लोमहर्ष घटना पर खामोश हो? जौनपुर-आजमगढ़ की घटनाओं पर बसपा सुप्रीमों मायावती की चुप्पी और दबाव पड़ने पर उक्त घटना की आलोचना के कई मायने हैं। दरअसल, मायावती मुस्लिम-दलित गठजोड़ के सहारे 2022 में फिर से सत्ता हासिक करने का सपना देख रही हैं। इसी क्रम में बीते वर्ष हुए लोकसभा चुनावों में प्रदेश के 19 प्रतिशत मुस्लिम वोटों को हासिल करने के लिए टिकटों के बंटवारे में उनकी बड़ी हिस्सेदारी तय की गई थी मुस्लिम वोटों का बिखराव रोकने के लिए ही उन्होंने गत लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से भी गठबंधन किया था। इसी तरह भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर भी इसी समीकरण के सहारे खुद को बसपा का विकल्प बनाने की कोशिश में लगे है। इसी लिए चन्द्रशेखर ने पहले नागरिकता सुरक्षा कानून और फिर कोरोना संक्रमण के दौर में तब्लीगी जमात का खुला समर्थन कर मुस्लिमों में पकड़ बनाने की कोशिश की । जौनपुर और आजमगढ़ की घटनाओं को लेकर बसपा सुप्रीमों मायावती और भीम आर्मी के चन्द्रशेखर रावण की ही नहीं कांगे्रस की महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका वाड्रा और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादवकी चुप्पी भी सताती रही। अगर यूपी में किसी को छींक भी आ जाए तो प्रियंका वाड्रा मोदी-योगी को कोसने-काटने लगती हैं, लेकिन मुस्लिम वोटों के सहारे यूपी में पैर जमाने की मंशा के चलते प्रियंका इस मुद्दे पर मुंह सिले बैठी हैं। बात-बात पर मोदी-योगी सरकार के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनाने वाली प्रियंका के लिए संभवत: दलित बेटियों का सम्मान मायने नहीं रखता होगा। वर्ना दंगाइयों के घर जाकर मातम मनाने वाली प्रियंका वाड्रा यों शांत नहीं रहती। लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार का विश्लेषण

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Dakhal News 13 June 2020


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केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने पत्रकार कल्याण योजनाओं के लिए नौ सदस्यीय नई कमेटी की घोषणा कर दी है. मंत्रालय द्वारा जारी सूचना के अनुसार गैर सरकारी सदस्यों का कार्यकाल एक जून 2020 से 31 मई 2022 तक रहेगा. कमेटी की बैठक तिमाही हुआ करेगी. बैठक में पत्रकारों से जुड़ी कल्याण योजनाओं पर विचार करने और वित्तीय सहायता देने के लिए मामलों पर विचार किया जाएगा. अगर कोई तुरंत मदद का मामला आता है तो उसके लिए आपात बैठक बुलाई जा सकती है. इस कमेटी में मंत्रालय की ओर से सूचना सचिव, पीआईबी के महानिदेशक और मंत्रालय के संयुक्त सचिव के अलावा छह पत्रकार हैं. देखें छह पत्रकारों के नाम- राज किशोर तिवारी एबीपी गंगा संदीप ठाकुर लोकमत समूह सर्जना शर्मा सन्मार्ग हिंदी दैनिक अमित कुमार न्यूज24 चैनल उमेश्वर कुमार स्वतंत्र पत्रकार   गणेश बिष्ट फोटोजर्नलिस्ट हिंदुस्थान समाचार एजेंसी

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Dakhal News 10 June 2020


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  आज के कई अखबारों में चीन के पीछे हटने की खबर है। दैनिक जागरण का शीर्षक है, “रंग लाई भारतीय कूटनीति, पूर्वी लद्दाख में कई जगहों से ढाई किलोमीटर पीछे हटा चीन। नई दिल्ली डेटलाइन से जयप्रकाश रंजन की खबर इस प्रकार है, “पूर्वी लद्दाख एलएसी पर जारी गतिरोध को खत्‍म करने के लिए भारतीय कूटनीति का बड़ा असर सामने आया है। पूर्वी लद्दाख में चीन के सैनिकों ने कई बिंदुओं को छोड़ा है। सरकार के शीर्ष सूत्रों ने बताया कि गलवन क्षेत्र में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी पीएलए ने पैट्रोलिंग प्वाइंट 15 और हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र से ढाई किलोमीटर पीछे हटी है जबकि भारत ने अपने सैनिकों को कुछ पीछे हटाया है। इससे पहले चार जून को भी ऐसी रिपोर्ट आई थी कि चीनी सेना दो किलोमीटर पीछे हट गई है। चीन ने उक्‍त कदम छह जून को लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बैठक से पहले उठाए थे।” हिन्दी अखबारों में यह खबर दैनिक हिन्दुस्तान में भी है। सूत्रों के हवाले से दी गई इस खबर में नहीं बताया गया है कि चीन कब कितना अंदर आया था या कितने बिन्दुओं पर कब्जा कर लिया था लेकिन दिल्ली में सूत्रों ने बता दिया कि चीनी सैनिकों ने कई बिन्दुओं को छोड़ दिया है। कहने की जरूरत नहीं है कि खबर खुद ही कह रही है कि उसकी सत्यता की कोई गारंटी नहीं है। यह स्थिति तब है जब रक्षा मंत्री ट्वीटर पर कह चुके हैं कि वे संसद में जवाब देंगे और कल राहुल गांधी के ट्वीट का जवाब उन्होंने नहीं दिया। अंग्रेजी में यह खबर इंडियन एक्सप्रेस, हिन्दुस्तान टाइम्स, द हिन्दू में लीड छपी है। टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर है। एक्सप्रेस और हिन्दू में बाईलाइन भी। पर सब सूत्रों के हवाले से है। निश्चित रूप से यह उच्च स्तर का प्लांटेशन है। इसकी पोल द टेलीग्राफ ने खोली है, अंदर के पन्ने पर राहुल गांधी के सवाल के साथ छापा है जो उनने कल ट्वीट किया था और लिखा है कि जवाब अनाम सूत्रों के हवाले से है। यह एएनआई की खबर है। मुझे लगता है कि पीटीआई अभी भी सरकारी दबाव में नहीं आता है। खिलाफ खबरें तो रहती ही हैं प्लांटेशन एएनआई और बाईलाइन के जरिए हो रहा है। अखबारों में खबरें पहले भी प्लांट होती थीं। पर ऐसे एक ही खबर कई अखबारों में बाईलाइन और लीड भी छप जाए ऐसा बहुत कम होता था। अमूमन रिपोर्टर भी बुरा मानते थे कि उन्हें एक्सक्लूसिव कह दी गई खबर दूसरे अखबारों को भी दे दी गई। पहले ज्यादा अखबारों में छपवाने वाली खबर एजेंसी के जरिए लीक या प्लांट की जाती थी। तब एजेंसी की साख होती ही थी खबर वैसी ही बनाई जाती थी। इसके अलावा, एक अखबार में कोई खास खबर छपे तो दूसरे अखबार भी छापते थे। अब लाल लाल आंख दिखाने की सलाह और सूत्रों का कहना कि सेना पीछे चली गई – मानने वाली खबर नहीं है। इसलिए प्लांट करने वाले को भी पता है। सबको दे दी गई। और रिपोर्टर की हैसियत नहीं है कि बुरा मान जाए। अगली बार फिर ऐसा प्लांटेशन छापेगा। मैं फिर बताउंगा। दैनिक जागरण की आज की खबर में आगे लिखा है, “सूत्रों ने बताया कि पूर्वी लद्दाख के एलएसी के पास चीनी सैनिकों के जमावड़े में बीते छह जून, 2020 को हुई बातचीत से पहले ही कुछ कमी हुई थी। चीन कुछ चुनिंदा जगहों से धीरे धीरे अपनी सेनाओं की संख्या कम कर रहा है। बताया जाता है कि विदेश मंत्रालय के स्तर पर हुई बातचीत में बनी सहमति को सीमा पर पहुंचने से हालात को सामान्य बनाने में काफी मदद मिली है। इन दोनों बैठकों में पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी शिनफिंग के बीच दो अनौपचारिक बातचीतों में हर हाल में सीमा पर शांति बहाली बनाए रखने के मिले निर्देश का जिक्र किया गया था।“ ना सूत्रों के नाम ना वार्ताकारों के नाम। कूटनीति रंग ला रही है का दावा पर कूटनीति है किसकी यह नहीं बताएंगे।   वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह का विश्लेषण.

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Dakhal News 10 June 2020


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फ़तेहपुर । जिला पत्रकार संघ/एशोसिएशन के अध्यक्ष अजय भदौरिया व अन्य वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ जिला प्रशासन दमनकारी नीति अपनाए हुए हैं. कुछ समय पूर्व इन पत्रकारों के खिलाफ फर्जी मुकद्दमे दर्ज करवाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात करने का प्रयास किया. जिला प्रशासन के इस रवैए के खिलाफ लगभग पच्चीस दिन पूर्व पत्रकारों ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल व मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर अध्यक्ष समेत अन्य पत्रकारों पर दर्ज कराए गये फर्जी मुकद्दमों को स्पंज कर पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच कराते हुए दोषी अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही की मांग की थी. किन्तु लम्बे समयांतराल बीतने के बाद भी शासन द्वारा मामले पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया. इसके विरोध में जिले के एक दर्जन से अधिक स्थानों पर पत्रकारों ने 30 मई (हिन्दी पत्रकारिता) दिवस को काला दिवस के रूप में मनाया था. न्याय न मिलने पर 7 जून को जिलाधिकारी की सरकार विरोधी नीतियों के खिलाफ जल सत्याग्रह आंदोलन करने का आह्वान किया गया. इसको सफल बनाने के लिए एसोशिएशन ऑफ इंडियन जर्नलिस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष व जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष अजय भदौरिया के नेतृत्व में यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन फ़तेहपुर के जिलाध्यक्ष विवेक मिश्र के साथ जिले के लगभग पन्द्रह अलग अलग स्थानों में सैकडो की संख्या में एकत्र होकर पत्रकारों ने गंगा, यमुना आदि नदियों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए जल सत्याग्रह के आंदोलन को सफल बनाया. इस मौके पर जिलाधिकारी की निरंकुश कार्यशैली के खिलाफ पत्रकारों ने जमकर नारेबाजी की और सरकार से ऐसे अधिकारी को हटाकर उसके खिलाफ उच्च स्तरीय जांच की मांग की. गौरतलब है कि जिले भर के पत्रकारों ने रविवार को जिला पत्रकार संघ/एसोशियेसन के बैनर तले जल सत्याग्रह आंदोलन किया. जिला मुख्यालय के पत्रकारों ने हुसेनगंज के भृगुधाम के बलखण्ड़ी गंगा घाट पर प्रेम शंकर अवस्थी व अजय भदौरिया, विवेक मिश्र के नेतृत्व में गंगा नदी में सुबह दस बजे से बारह बजे तक पानी के अंदर रहकर आंदोलन को सफल बनाया. इसी प्रकार बिंदकी व जाफरगंज के पत्रकारों ने वरिष्ठ पत्रकार अरुण द्विवेदी वह श्याम तिवारी की अगुवाई में बक्सर के गंगा घाट पर पहुंचकर जिला प्रशासन की द्वेषपूर्ण कार्यशैली के खिलाफ प्रदर्शन किया. वहीं चौडगरा के पत्रकारों ने गंगा नदी के गुनीर गंगा घाट पर जल सत्याग्रह आंदोलन को गति दिया. इसी प्रकार बकेवर के पत्रकारों ने वरिष्ठ पत्रकार रवीन्द्र त्रिपाठी के नेतृत्व में पक्का तालाब में पहुंचकर जिला प्रशासन के खिलाफ जल सत्याग्रह को सफल बनाने की मुहिम को आगे बढाया. जहानाबाद में डॉ जौहर रज़ा व संतोष त्रिपाठी की अगुवाई में रिंद नदी में जिला प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर सत्य की जीत के लिए जल सत्याग्रह आंदोलन कर आंदोलन को मजबूती प्रदान की. उधर अमौली व जाफरगंज के पत्रकारों ने वरिष्ठ पत्रकार विमलेश त्रिवेदी के नेतृत्व में रुस्तमपुर घाट पर यमुना नदी में जल सत्याग्रह कर सरकार से ऐसे अधिकारी को हटाने की मुहिम को गति देने का सार्थक प्रयास किया। इसी प्रकार बहुआ के पत्रकारों ने मो. शाहिद वह प्रदीप सिंह की अगुवाई में कोर्राकनक यमुना नदी में जल सत्याग्रह के कार्यक्रम को गति दी। वहीं गाजीपुर के पत्रकारों ने प्रथम चंद्र की अगुवाई में यमुना नदी के औगासी घाट पर जिला प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी कर कार्यक्रम को सफल बनाया। असोथर के पत्रकारों ने यमुना नदी में गौरव सिंह व फूलचंद्र के नेतृत्व में यमुना के ब्रह्मकुंड घाट पर जिला प्रशासन की क्रूर कार्यशैली के खिलाफ जल सत्याग्रह कर आंदोलन को मजबूती प्रदान की। खागा मुख्यालय व किशनपुर के पत्रकारों ने किशनपुर यमुना नदी में दमदार प्रदर्शन कर जिला प्रशासन की दमनकारी नीति की जमकर आलोचना करते हुए कार्यक्रम को सफल बनाया. खखरेरू के पत्रकारों ने वरिष्ठ पत्रकार अशोक सिंह के नेतृत्व में यमुना नदी के कोट घाट पर जल सत्याग्रह को सफल बनाने का कार्य किया. धाता के पत्रकारों ने ज्ञान सिंह वह विवेक सिंह की अगुवाई में रानीपुर यमुना घाट पर जल सत्याग्रह को सफल बनाया. इसके साथ ही प्रेम नगर के पत्रकारों ने मंडवा गंगा घाट पर कार्यक्रम कर संगठन को मजबूती प्रदान की. इसी प्रकार हथगाम व छिउलहा के पत्रकारों ने कोतला गंगा घाट पर प्रदर्शन किया.   जिले के लगभग डेढ़ दर्जन स्थानो में पानी के अंदर घुसकर पत्रकारों ने अर्धनग्न प्रदर्शन किया. इकट्ठे पूरे जनपद के पत्रकारों के प्रदर्शन से जिले में हड़कम्प मचा रहा. लोग जिला प्रशासन की कार्यशैली पर तरह-तरह की चर्चाएं करते रहे. पत्रकारों के सामूहिक प्रदर्शन की जानकारी लगातार जनपद से लेकर मुख्यालय लखनऊ की खुफिया टीम भी जानकारी लेती रहीं.

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Dakhal News 9 June 2020


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वरिष्ठ पत्रकार व प्रेस क्लब कार्यकारिणी सदस्य अंकुर जायसवाल ने आज मुख्यमंत्री के सामने संझा लोकस्वामी, जीतू सोनी और अमित सोनी के संबंध में अपनी बात रखी। श्री जायसवाल ने बताया कि आज अभय प्रशाल में प्रेस कॉन्फ्रेंस समाप्त होने के बाद जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेन्दोला, तुलसी सिलवाट के साथ जा रहे थे तभी उन्होंने संझा लोकस्वामी के संबंध में मुख्यमंत्री से सवाल किया कि हनी ट्रैप मामले की सच्चाई छापने पर संझा लोकस्वामी कार्यालय को जमींदोज किया तथा लोकस्वामी के मालिक व वरिष्ठ पत्रकार जीतू सोनी और उनके पुत्र अमित सोनी सहित पूरे परिवार पर झूठे प्रकरण दर्ज किए गए।   यह सारी कार्रवाई कमलनाथ सरकार के शासनकाल में की गई है आप इस संबंध में उचित कार्रवाई करें। मुख्यमंत्री ने अंकुर जायसवाल से कहा कि इस संबंध में वे उचित कार्रवाई करेंगे हो सका तो पूरे मामले की जांच करवाएंगे।

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Dakhal News 9 June 2020


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कोरोना काल में देश ही नहीं बल्कि विदेश के मीडिया हाउस भी ध्वस्त हो रहे हैं. अमेरिकी मैगजीन ‘प्लेब्वॉय’ के खेल खत्म होने की खबर आ रही है. इस चर्चित मैग्जीन का प्रिंट एडिशन बंद कर दिया गया है. करीब 25 संपादकीयकर्मियों को हटा दिया है. इस मैग्जीन का प्रकाशन 66 साल बाद बीते मार्च महीने में बंद किया गया. यहां कार्यरत कर्मियों की छंटनी अब की गई है. जिन लोगों को हटाया गया है वे डिजिटल आपरेशन से जुड़े थे. एक दुखद खबर मातृभूमि ग्रुप से आ रही है. इस ग्रुप के प्रबंध निदेशक वीरेंद्र कुमार की मौत हो गई है. वीरेंद्र कुमार पीटीआई के निदेशक मंडल में भी शामिल थे. मलयालम लेखक-पत्रकार वीरेंद्र कुमार केरल से राज्यसभा सदस्य थे. 84 साल के वीरेंद्र का निधन कोझिकोड में हुआ. वे मलयालम दैनिक समाचार पत्र मातृभूमि समूह के प्रबंध निदेशक थे. उनका अंतिम संस्कार वायनाड में किया गया. बताया जाता है कि हार्ट अटैक के कारण उनकी मौत हुई.   इस बीच खबर है कि खेल पत्रकार अयाज मेमन ने 1 प्ले स्पोर्ट्स के साथ नई पारी की शुरुआत की है. वे भारत के लिए कंसल्टिंग एडिटर-इन-चीफ बनाए गए हैं.

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Dakhal News 1 June 2020


bhopal, Punjab Kesari journalist KK Sharma dies

पंजाब केसरी के वरिष्ठ पत्रकार केके शर्मा के निधन की सूचना है। केके शर्मा को गम्भीर हालत में संजय गांधी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। केके शर्मा के पुत्र अश्विनी शर्मा भी पत्रकार हैं जो हिंदुस्थान समाचार में कार्यरत हैं। पत्रकार अश्विनी कुमार श्रीवास्तव अपने संस्मरण में फेसबुक पर लिखते हैं- दिल्ली में पंजाब केसरी अखबार में एक के के शर्मा जी हुआ करते थे. यूं तो वह मेरे एक अभिन्न मित्र के बहुत जिगरी थे मगर जब से मैं उनसे मिला, उनके बेहद मिलनसार स्वभाव के चलते वे मेरे भी बेहद अच्छे मित्र हो गए थे. जिंदगी को ठहाके मार कर जीने वाले जिंदादिल और मस्तमौला इंसान शर्मा जी काफी तेज तर्रार पत्रकार भी थे.   एक आवाज पर दोस्तों की मदद के लिए आ जाने वाले और अपनी जान पर खेल जाने वाले शर्मा जी दिल्ली में मेरे रहने तक मेरे करीबी और प्रिय लोगों में से एक थे. पूरी-पूरी रात तक दोस्तों के साथ दारूबाजी की महफिलों का दौर जमाने और अपने उग्र स्वभाव के कारण मुसीबत में फंस जाने पर दिल्ली में भी मुझे न जाने कितनी बार अपने दोस्तों का सहारा लेना पड़ता था …ऐसे मौकों में से कुछ में शर्मा जी भी खुद मेरे लिए आधी-आधी रात को उठकर अपने घर या दफ्तर से कई- कई किलोमीटर दूर बस एक फोन करने पर भागे चले आए थे … और फिर चाहे पूरी रात जगकर उन्हें मेरे लिए दिल्ली पुलिस या सरकार के बड़े से बड़े नेता- अधिकारी को फोन करके जगाना पड़ा हो … या मीडिया में अपने दोस्तों को मेरे लिए आधी रात के बाद भी किसी समय बुलाना पड़ा हो, वह सब उन्होंने मेरे एक फोन पर करके दिखाया है. दिल्ली में मेरे कई ऐसे मित्र थे, जो इसी तरह मेरी दोस्ती पर जान लुटाते थे. उनमें से शर्मा जी का स्थान निसंदेह बेहद अहम था. दिल्ली क्या छूटा, माथे पर हर समय तिलक लगाकर चलने वाले मृदुभाषी और मेरे अजीज मित्र शर्मा जी से भी मेरा वास्ता लखनऊ में आकर कम होते- होते फिर खत्म ही हो गया. आज बरसों बाद एक खबर पढ़ी कि बीमारी से शर्मा जी का निधन हो गया तो दिल दुखी हो गया और उनसे दोस्ती के पल व मुझ पर किए उनके एहसान याद आ गए. ईश्वर शर्मा जी की आत्मा को शांति दे. मेरी तरफ से शर्मा जी को भावभीनी श्रद्धांजलि एवम् आखिरी नमन.

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Dakhal News 31 May 2020


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भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजय द्विवेदी ने सभी विभागाध्यक्षों एवं प्राध्यापकों के साथ बुधवार को ऑनलाइन बैठक की, जिसमें पूर्व में संचालित सभी पाठ्यक्रमों में प्रवेश की प्रक्रिया प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया। इसके बाद पाठ्यक्रमों एवं प्रवेश प्रक्रिया की जानकारी विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई है। मीडिया और आईटी के क्षेत्र में करियर बनाने की चाह रखने वाले विद्यार्थी विश्वविद्यालय के भोपाल, रीवा एवं खंडवा परिसर में प्रवेश के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। एमपी ऑनलाइन की वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है। आवेदन की अंतिम तिथि 31 जुलाई है। बैठक में कुलपति प्रो. द्विवेदी ने कहा कि लॉकडाउन के कारण विद्यार्थी पाठ्यक्रमों की जानकारी के लिए परिसर में नहीं आ सकते, इसलिए विद्यार्थियों को अधिक से अधिक जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध कराई जानी चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि प्रवेश की सूचना के लिए भी सबको मिलकर प्रयास करने चाहिए ताकि प्रवेश प्रक्रिया की जानकारी अधिक से अधिक युवाओं तक पहुँच सके। उल्लेखनीय है कि विश्वविद्यालय में मीडिया, कम्प्यूटर, आईटी और प्रबंधन के रोजगारोन्मुखी स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्यक्रम संचालित होते हैं। मीडिया के प्रमुख स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम हैं : एमए (पत्रकारिता), एमए (डिजिटल जर्नलिज्म), एमए-एपीआर (विज्ञापन एवं जनसंपर्क), एमए-बीजे (ब्राडकास्ट पत्रकारिता), एमए-एमसी (जनसंचार), एमएससी-ईएम (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया), एमएससी-एमआर (मीडिया शोध), एमएससी-एफपी (फिल्म प्रोडक्शन), एमएससी-एनएम (नवीन मीडिया)। विश्वविद्यालय में मीडिया प्रबंधन का स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम एमबीए (मीडिया बिजनेस मैनेजमेंट) है। एमफिल (मीडिया अध्ययन) में भी प्रवेश के लिए आवेदन आमंत्रित हैं। पत्रकारिता में स्नातक पाठ्यक्रम हैं : बीए-एमसी (जनसंचार), बीएससी-ईएम (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया), बीएससी-एमएम (मल्टी मीडिया), बीबीए-ई-कॉमर्स, बीए-जर्नलिज्म एंड क्रिएटिव राइटिंग, बीटेक-प्रिंटिंग एंड पैकेजिंग। इस वर्ष बैचलर ऑफ लाइब्रेरी एंड इंफोर्मेशन साइंसेज में भी प्रवेश हेतु आवेदन आमंत्रित हैं। कम्प्यूटर एवं आईटी के पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय की पहचान मीडिया पाठ्यक्रमों के साथ ही कंप्यूटर शिक्षा के क्षेत्र में भी है। विश्वविद्यालय की ओर से बीसीए, एमसीए के साथ-साथ एमएससी-इंफोर्मेशन एंड सायबर सिक्युरिटी जैसे नवीनतम विद्या के पाठ्यक्रम भी संचालित किए जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण एवं लॉकलाउन के समय में विद्यार्थियों के हित को ध्यान में रखकर विश्वविद्यालय द्वारा संचालित इन सभी पाठ्यक्रमों के लिए ऑनलाइन आवेदन मंगाया जा रहा है। किसी प्रकार की जानकारी के लिए दूरभाष नंबर- 0755-2553523 पर संपर्क किया जा सकता है।

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Dakhal News 29 May 2020


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अजय कुमार, लखनऊ कोरोना महामारी के चलते दुनिया भले ही ठहर गई, लेकिन केन्द्र और राज्यों की सरकारें लाकडाउन के चलते हुए ‘नुकसान’ की भरपाई के लिए फिर से हाथ-पैर मारने लगी हैं। एक तरफ योगी सरकार प्रदेश को पटरी पर लाने में लगी है तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में लगी है। इसी लिए लॉकडाउन-4 में ढिलाई मिलने के दूसरे ही दिन से भारतीय जनता पार्टी ने विधान परिषद और त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की तैयारियों को गति देना शुरू कर दिया। प्रदेश भाजपा आलाकमान ने मंडल एवं जिला स्तर के अपने पदाधिकारियों से वीडियो कांफ्रेंसिंग व ब्रिजकॉल जैसे संचार सुविधाओं के जरिए पंचायत चुनाव के लिये टोलियां तैयार करने को कहा है। उत्तर प्रदेश के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अक्टूबर में प्रस्तावित हैं। पंचायत चुनाव लडने के इच्छुक कार्यकर्ताओं से निरंतर सेवा कार्यों में जुटे रहने को कहा गया है तो दूसरी तरफ इस बात का भी ध्यान रखा जा रहा है कि पंचायत चुनाव के समय परिवारवाद से बचा रहा जाए। इसी लिए पंचायत चुनाव की जिम्मेदारी संभालने वालों को खुद और अपने परिवार के लिए टिकट मांगने की मनाही कर दी गई है। पंचायत चुनाव प्रभारी महामंत्री विजय बहादुर पाठक का कहना है कि वैसे तो अभी पार्टी कोरोना संक्रमण से बने विकट हालात से निपटने में जुटी है। साथ ही राजनीतिक गतिविधियों पर भी नजर रखी जा रही है। इस बार गांवों को आत्मनिर्भर बनाने का उद्देश्य लेकर भाजपा पूरी ताकत से पंचायत चुनाव में उतरेगी। कल्याणकारी योजनाओं से ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा के पक्ष में अनुकूल माहौल है। बूथ व सेक्टर स्तर पर संगठनात्मक सक्रियता का लाभ भी मिलेगा। गौरतलब हो, कोरोना संक्रमण आरंभ होने से पहले ही पंचायतीराज मंत्री भूपेंद्र सिंह, श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक, कमल रानी व रमाशंकर पटेल को कोर कमेटी में शामिल करके क्षेत्रवार दायित्व भी दिए गए थे। इसी क्रम में मंडल व जिलों से ऐसे प्रमुख कार्यकर्ताओं के नाम मांगे गए थे, जो कि पंचायत चुनावों के जानकार हों। जिलाध्यक्षों के साथ तीन वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की प्रशिक्षण कार्यशालाएं भी आयोजित हो चुकी हैैं। सूत्रों का कहना है कि भाजपा जिला पंचायत व क्षेत्र पंचायत चुनाव पर विशेष फोकस करेगी। खैर, बात आगामी अक्तूबर में प्रस्तावित उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव की करें तो अबकी पंचायत चुनाव में सीटों के आरक्षण का गणित काफी बदला-बदला नजर आएगा। इस बार आरक्षण का फिर से निर्धारण किया जाएगा। इस नए निर्धारण से प्रदेश में पंचायतों के आरक्षण की स्थिति पूरी तरह बदल जाएगी। वर्ष 2015 में हुए पिछले पंचायत चुनाव में जो पंचायत जिस वर्ग के लिए आरक्षित हुई थी, इस बार वह उस वर्ग के लिए आरक्षित नहीं होगी। चक्रानुक्रम से पंचायत का आरक्षण परिवर्तित हो जाएगा। मान लीजिए कि अगर इस वक्त किसी ग्राम पंचायत का प्रधान अनुसूचित जाति वर्ग से है तो अब इस बार के चुनाव में उस ग्राम पंचायत का प्रधान पद ओबीसी के लिए आरक्षित हो सकता है।चुनावों के लिए नए चक्रानुक्रम के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जाति महिला, अनारक्षित, महिला, अन्य पिछड़ा वर्ग, अन्य पिछड़ा वर्ग महिला, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जनजाति महिला के वर्गों में नए सिरे से आरक्षण तय किया जाएगा। प्रदेश का पंचायती राज विभाग आरक्षण में बदलाव की यह कवायद जुलाई-अगस्त में पूरी करेगा क्योंकि नए आरक्षण का निर्धारण चुनाव से तीन महीने पहले किया जाता है। अनुमान है कि पिछले 5 वर्षों में करीब 250 से 300 ग्राम पंचायतें शहरी क्षेत्र में पूरी तरह या आंशिक रूप से शामिल की गई हैं। इस हिसाब से इतनी पंचायतें कम हो जाएंगी। इनका ब्योरा राज्य निर्वाचन आयोग ने नगर विकास विभाग से मांगा है। राज्य निर्वाचन आयोग भी नगर विकास विभाग की इस कवायद के पूरे होने का इंतजार कर रहा है। उसके बाद ही आयोग आगामी चुनाव के लिए ग्राम पंचायतों की वोटर लिस्ट के पुनरीक्षण का अभियान शुरू करेगा जिसमें बूथ लेबल आफिसर घर-घर जाकर पंचायतों के वोटरों की जानकारी संकलित करेंगे।   इस बार पंचायत चुनाव को पूर्वी गंभीरता से लड़ने को तैयार बीेजेपी ने पंचायत चुनाव अभियान में पूर्व मंत्रियों, पूर्व विधायकों व सांसदों को भी जोड़ने का मन बना लिया है। पार्टी पंचायत चुनाव को आगामी विधानसभा चुनाव का पूर्वाभ्यास मानकर मैदान में उतरेगी। उधर, शिक्षक व स्नातक क्षेत्र की 11 सीटों पर होने वाले विधान परिषद चुनाव में घोषित प्रत्याशियों द्वारा मतदाताओं व कार्यकर्ताओं से ऑनलाइन संपर्क व संवाद जारी है।   अजय कुमार यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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Dakhal News 25 May 2020


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दिल्ली की महान केजरीवाल सरकार कभी कभी महानता की चरमसीमा भी लांघ जाती है. इस सरकार ने दिल्ली में फंसे मजदूरों के श्रमिक एक्सप्रेस से जाने के बारे में जरूरी जानकारी देने के लिए विज्ञापन निकाला पर ये विज्ञापन हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषा में न होकर अंग्रेजी में है. अरविंद केजरीवाल के पास शायद डाटा हो कि कितने मजदूर अंग्रेजी पढ़ते हैं. पर ये सच है कि बहुत सारे लोग ये देखकर हंस रहे हैं कि मजदूरों के लिए विज्ञापन, अंग्रजी में, अंग्रजी समाचारपत्र में.   अब दिल्ली के मजदूर ये विज्ञापन नहीं पढ़ रहे हैं तो इसमें भला दिल्ली सरकार का क्या दोष हो सकता है…

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Dakhal News 25 May 2020


bhopal, Post-Karona media

जयराम शुक्ल करोना के लाकडाउन ने जिंदगी को नया अनुभव दिया है, अच्छा भी बुरा भी। जो जहां जिस वृत्ति या कार्यक्षेत्र में है उसे कई सबक मिल रहे और काफी कुछ सीखने को भी। मेरा मानना है ये जो सबक और सीख है यही उत्तर करोना काल की धुरी बनेगी। करोना भविष्य में कालगणना का एक मानक पैमाना बनने वाला है। हमारे पंचाग की कालगणना सृष्टि के आरंभ से प्रारंभ हुई जिसमें सतयुग, त्रेता, द्वापर के बाद कलियुग के युगाब्ध, सहस्त्राब्ध हैं। सभी धर्मों/पंथों ने अपने हिसाब से कलैंडर बनाए। हमारे धर्म में शक और विक्रमी संवत शुरू होता है। क्रिस्चियन्स अपनी कालगणना क्राइस्ट के जन्म से शुरू करते हैं, जिसे हम बी,सी, ए,सी यानी कि ईसा पूर्व, ईसा बाद के वर्षों के साथ गिनते हैं। मुसलमानों का कैलेंडर हिजरी है, यानी कि हजरत मोहम्मद के पहले और बाद के वर्ष। अन्य धर्मों और पंथों के अपने-अपने कैलेन्डर होंगे। लेकिन अब एक नया वैश्विक कैलेन्डर प्रारंभ होगा, जाति, धर्म, पंथ, संप्रदाय से ऊपर उठकर। करोना का पूर्व व उत्तर काल। इसे हम ईसाई कैलेंडर के तर्ज पर बिफोर करोना यानी बी.सी और आफ्टर करोना यानी ए.सी कहेंगे। करोना ने मानवता को जाति,धर्म,संप्रदाय, नस्ल,रंग,ढंग भूगोल इतिहास के कुँओं से निकालकर समतल में ला खड़ा कर दिया। उसने कांगो-सूडान को भी अमेरिका-इंग्लैंड की बराबरी में ला दिया। करोना ने वसुधैव को कुटुम्बकम में बदल दिया। इसके त्रास से सर्वे भवंतु सुखिनः,सर्वे संतु निरामयः के समवेत स्वर उठने लगे हैं। इस परिस्थिति को आंकने और देखने का एक नजरिया यह भी है..। करोना ने सोचने, विचारने और महसूस करने के लिए इफरात वक्त दिया है। वक्त थमता नहीं अपने निकलने का रास्ता ढूँढ़ लेता है। अपन मीडियावी दुनिया के आदमी हैं इसलिए पहले इसकी बात करते हैं। इस करोना काल में लिखना, पढ़ना और रचना वैसे ही है जैसे अभावों के बीच तिलक जैसों ने मंडाले जेल लिखा रचा। पहली बार लगा कि छुट्टी भी एक सजा होती है। आराम और अवकाश अब चिढ़ाने वाले हैं। मीडिया का रूपरंग.. ढंग सब बदल गया। वर्क फ्राम होम का पहला विचार यहीं से शुरू होता है। इन दिनों घर बैठे जूम एप के जरिए बेवीनार संगोष्ठी में हिस्सा ले रहे हैं। तोक्षकभी कभारचैनल वाला स्काइप के जरिए जोड़कर लाइव कमेंट ले लेता है। बिस्तर में लेटे-बैठे यह सब मन बहलाऊ अंदाज में हो रहा है। इसे आप मीडिया के काम का करोनाई अंदाज भी कह सकते हैं। 24×7 वाले मीडिया को हर क्षण की खबर चाहिए। आँधी-तूफान, बाढ़-बूड़ा, महामारी, प्रलय कुछ भी हो पर इनके बीच से ही खबरें निकालनी पड़ेगी। मेरा अनुमान है कि कल्पित प्रलय के समय भी आखिरी व्यक्ति मीडियावाला ही रहेगा जो उफनाते समंदर की कश्ती पर बैठकर अपने चैनल के लिए लाइव दे रहा होगा। इसके बावजूद विरोधाभास भरी त्रासदी यह कि जो मीड़िया चौबीसों घंटे दुनिया भर की खबरे उगल रहा है उस मीडिया में मीडिया और मीडियावालों की खबरें कहीं नहीं आतीं। सड़क, मैदान, अस्पतालों और क्वारंटाइन होम्स से जो खबरें निकाल कर आपतक पहुँचा रहे हैं क्या वे करोना संक्रमण से बचे होंगे.? जी नहीं कुल करोना संक्रमितों में से कुछ हजार लोग मीडिया के भी हैं। लेकिन इन अभागों की खबरें हम तक नहीं पहुँचतीं। जो अखबार यह दावा करते हैं कि हम खबरें बाँटते हैं करोना नहीं, क्या उनसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे अपने किसी कर्मचारी करोना संक्रमण की खबरें दे या दिखाएं ? इसलिए उन अभागों को भी उसी श्रेणी में मानकर चलिए जिस श्रेणी में जान हथेली में लिए सड़कों पर मंजिल नापने वाले श्रमिक। सही बात यह कि कई चैनलों और अखबारों के मीडियाकर्मी संक्रमण की जद में हैं..मीडिया समूह के प्रबंधन ने उनसे दूरी बना ली है..साफ साफ कहें तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है। मीडिया में नौकरी से वो लोग भी निकाले जा रहे हैं जो संक्रमित नहीं हुए। 22 मार्च के बाद से अबतक पूरे देशभर के मीडिया समूहों ने लगभग 20 से 25 प्रतिशत कर्मचारियों की छँटनी कर दी। ऊँची तनख्वाह वाले पत्रकारों की सैलरी में 30 प्रतिशत तक की कटौती की जा चुकी है। संपादक श्रेणी के ऐसे पत्रकारों की बड़ी संख्या है जिन्हें कहीं दूसरी नौकरी ढूँढने के लिए कह दिया गया है। कुलमिलाकर मीड़ियाजगत में वैसे ही हाहाकार है जैसे कि सड़क पर मजदूरों का, फर्क इतना है कि मजदूरों की व्यथा सामने आती है और मीडियावालों की व्यथा उनका मीडिया प्रतिष्ठान ही हजम कर जाता है। भूखे सड़क पर वो मजदूर भी हैं और भूखे अपने घरों में ये विपत्ति के मारे मीडियाकर्मी भी। भोपाल के एक मित्र ने सूचना दी कि यहां दो दर्जन से ज्यादा ऐसे पत्रकार हैं जिनकी नौकरी इस करोना काल में चली गई। इनमें से कई प्रतिभाशाली उदयीमान पत्रकार हैं वे चाहते तो दूसरी नौकरी भी कर सकते थे लेकिन जुनून के चलते पत्रकारिता को अपना करियर बनाया। इनमें से प्रायः के पास माकान का किराया देने की कूबत नहीं बची। कई के घर का चूल्हा एनजीओ या सरकार द्वारा बाँटे गए राशन से जलता है। कुछ दिन बाद चूल्हे का ईंधन भी खतम हो जाएगा। भोपाल, इंदौर जैसे प्रादेशिक महानगरों में दूसरे प्रांत से आकर काम करने वाले मीडयाकर्मियों की बड़ी संख्या है। जो दस साल पहले आए थे उनकी गिरस्ती तो कैसे भी जमी है पर जो इस बीच आए उनका तो भगवान ही मालिक..। संस्थानों ने किनाराकशी की और सरकार को ये कभी सुहाए नहीं सो उनपर कृपा का प्रश्न ही नहीं उठता। भोपाल-इंदौर जैसी ही व्यथा देशभर के उन शहरों की है जहां मीडिया उद्योग फला-फूला और उनके मालिकों ने उसकी कमाई की बदौलत माल-सेज, उद्योग और कालोनियाँ खड़ी कीं। देशभर सिर्फ़ एक मीडिया बेवसाइट है..भड़ास फार मीडिया.. जो देशभर के पत्रकारों के दुखदर्द की कथा सुनाती रहती है। इन दिनों पत्रकारों की विपदा से जुड़े एक से एक दुखद किस्से सुनने को मिलते हैं, आप भी उसके लिंक को खोलकर पढ़ें कभी। हिंदी की पत्रकारिता तो आरंभ से ही दुख-दिरिद्रता से भरी रही है। हिंदी के जो स्वतंत्र पत्रकार हैं, स्तंभ व आलेख लिखते हैं वह स्वातःसुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा नहीं.. अपितु खुद के जिंदा रहने के सबूत के लिए लिखते हैं.. हिंदी पत्रकारिता का विचार पक्ष ‘थैंक्यू सर्विस’ में चलता है। इस श्रेणी में प्रायः भूतपूर्व संपादक प्रजाति के लोग होते हैं जिनका खाना खर्चा बीबी-बच्चे उठाते हैं, सो इनका तो कैसे भी चल जाता है। चिंता का विषय हिंदी पत्रकारिता की नई पौध को लेकर है..जिसके ख्वाबों-खयालों की दुनिया को इस करोना ने पलक झपकते ही बदलकर धर दिया। उत्तर करोना काल की मीड़िया का अक्श स्पष्ट होने लगा है। प्रिंट मीड़िया का दायरा जिस गति से सिकुड़ रहा है..हालात ठीक होने के बाद भी वह अपने पुराने रूप में आएगा मुश्किल ही लगता है। इन दो महीनों ने पाठकीय आदत बदल दी है। अब बिना अखबार की सुबह असहज नहीं लगती। प्रिंट कापियाँ सिर्फ बड़े अखबारों की ही निकल रही हैं। मध्यम दर्जे के अखबार फाइल काँपियों तक सिमट गए। पुल आउट पत्रिकाएं और विशेषांक शीघ्र ही इतिहास में दर्ज हो जाएंगे। पृष्ठ संख्या आधे से भी कम हो गई। इनका भी पूरा फोकस अब डिजिटल अखबार निकालने पर है। कागज, स्याही और मैनपावर की कमी ने पहले ही लघु अखबारों को डिजिटल में बदल रखा था। जिनका सर्कुलेशन वाट्सएप ग्रुप्स और एफबी प्लेटफार्म तक सीमित हो गया। अखबारों के समक्ष विग्यापन का घोर संकट है। विग्यापन की शेयरिंग दिनोंदिन घट रही है। डिजिटल मीडिया का दायरा सात समंदरों से भी व्यापक है। विग्यापन की हिस्सेदारी का लायनशेयर अब इनके पास है। विदेश का डिजिटल मीडिया भी देसीरूप धरके प्रवेश कर चुका है। वह तकनीकी तौरपर ज्यादा दक्ष और पेशेवर है। डिजिटल मीडिया में जाने वाले मेनस्ट्रीम के अखबारों के समक्ष यह बड़ी चुनौती होगी। खबरे शीघ्रगामी तो हुई हैं लेकिन उनकी विश्वसनीयता नहीं रही। आने वाले समय में पाठक का सबसे ज्यादा पराक्रम इसी पर खर्च होगा कि वह जो पढ़ रहा है वह सत्य है कि नहीं। सत्य की परख करने वाले तंत्र का मीडिया में वर्चस्व बढ़ेगा।   कुल मिलाकर जब हम करोना संकट से निवृत्त होंगे तब तक जो पत्रकार हैं उनमें पचास फीसद वृत्ति से पत्रकार नहीं रह जाएंगे। मध्यम और लघु अखबार अपने पन्ने डिजिटली छापेंगे और वाट्सएप में पढ़ाएंगे। बड़े समूह के कुछ अखबार बचेंगे लेकिन उनकी वो धाक नहीं रहेगी..जिसकी बदौलत अबतक सत्ता के साथ अपना रसूख दिखाते आए हैं। करोना समदर्शी है..वह राजा और रंक में भेद नहीं करता। लेखक जयराम शुक्ल मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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Dakhal News 22 May 2020


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जन्मदिन पर शरद जोशी जी को स्मरण करते हुए! शरद जोशी ने कोई पैतीस साल पहले हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे व्यंग्य निबंध रचा था। तब यह व्यंग्य था, लोगों को गुदगुदाने वाला। भ्रष्टाचारियों के सीने में नश्तर की तरह चुभने वाला। अब यह व्यंग्य, व्यंग्य नहीं रहा। यथार्थ के दस्तावेज में बदल चुका है। भ्रष्टाचार की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही व्यंग्य की मौत हो गई। समाज की विद्रूपताओं की चीर-फाड़ करने के लिए व्यंग्य का जन्म हुआ था। परसाईजी ने व्यंग्य को शूद्रों की जाति में रखते हुए लिखा था व्यंग्य चरित्र से स्वीपर है। वह समाज में फैली सड़ांध में फिनाइल डालकर उसके कीटाणुओं को नाश करने का काम करता है। जोशी-परसाई युग में सदाचार, लोकलाज व सामाजिक मर्यादा के मुकाबले विषमताओं, विद्रूपताओं और भ्रष्टाचार का आकार बेहद छोटा था। व्यंग्य उन पर प्रहार करता था। लोग सोचने-विचारने के लिए विवश होते थे। भ्रष्टाचार का स्वरुप इतना व्यापक नहीं था। व्यंग्य कब विद्रूपता के मुंह में समा गया पता ही नहीं चला। वेद पुराणों में भगवान का यह कहते हुए उल्लेख है कि हम भक्तन के भक्त हमारे। जोशी जी ने भ्रष्टाचार के लिए यही भाव लिया था। आज के दौर के बारे में सोचते हुए लगता है कि हमारे अग्रज साहित्यकार कितने बड़े भविष्यवक्ता थे। भ्रष्टाचार, सचमुच भगवान की तरह सर्वव्यापी है, कण-कण में, क्षण-क्षण में। कभी एक व्यंगकार ने लिखा था कि भगवान की परिभाषा और उनकी महिमा जो कि वेद-पुराणों में वर्णित है सब हूबहू भ्रष्टाचार के साथ भी लागू होती है।… बिन पग चलै,सुनै बिन काना कर बिनु कर्म करै विधि नाना। बिन वाणी वक्ता बड़ जोगी़..़़ आदि-आदि। मंदिर में, धर्माचार्यों के बीच भगवान की पूजा हो न हो, भ्रष्टाचारजी पूरे विधि-विधान से पूजे जाते हैं। आसाराम,नित्यानंद, निर्मलबाबा से लेकर धर्माचार्यों की लंबी कतार है जिन्होंने मंत्रोच्चार और पूरे कर्मकांड के साथ भ्रष्टाचार की प्राण-प्रतिष्ठा की है और हम वहां शीश नवाने पहुंचते हैं। भगवान को माता लक्ष्मी प्रिय है तो भ्रष्टाचारजी को भी लक्ष्मीमैया अतिप्रिय। रूप बदलने, नए-नए नवाचार और अवतार में भी भ्रष्टाचार का कोई सानी नहीं। आज के दौर में परसाई जी-शरद जोशी जी होते तो भ्रष्टाचार को लेकर और क्या नया लिखते! उनके जमाने में एक-दो भोलाराम यदाकदा मिलते जिनके जीव पेंशन की फाइलों में फड़फड़ाते। आज हर रिटायर्ड आदमी भोलाराम है, फर्क इतना कि वह परिस्थितियों से समझौता करते हुए परसेंट देने पर राजी है। परसेंट की यह कड़ी नीचे से ऊपर तक उसी तरह जाती है जैसे राजीव गांधी का सौ रुपया नीचे तक दस पैसा बनकर पहुंचता है। पिछले कुछ दिनों से भ्रष्टाचार पर भारी बहस चल रही है। भ्रष्टाचारी भी भ्रष्टाचार पर गंभीर बहस छेड़े हुए हैं। चैनलों ने इसे प्रहसन का विषय बना दिया। टीवी चैनलों में कभी-कभी बहस इतनी तल्ख हो जाती है कि मोहल्लों में औरतों के बीच होने वाले झगड़ों का दृश्य उपस्थित हो जाता है। एक कहती है..तू रांड तो दूसरी जवाब देती है तू रंडी़.. एक ने कहा तुम्हारी पार्टी भ्रष्ट तो दूसरा तड़ से जवाब देता है, तुम्हारी तो महाभ्रष्ट है। टीवी शो में एक पार्टी के प्रतिभागी ने कहा, फलांजी से बस इतनी गलती हो गई कि उन्होंने आपकी वाली पार्टी में जाकर प्रशिक्षण नहीं लिया था। वे लाखों करोडों गटक लेते हैं और पता भी नहीं चलता। भ्रष्टाचार अब बुद्घिविलास का विषय बन चुका है। चमड़ी इतनी मोटी हो गई कि व्यंग्य की कौन कहे गालियां तक जज्ब हो जाती हैं। एक नया फार्मूला है खुद को ईमानदार दिखाना है तो दूसरों को जोर-जोर से बेईमान कहिए। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई भी कर्मकांडी हो गई है। बाबा रामदेव और अन्ना हजारे ईमानदारी की अलख जगाने वाले नए पंडों के रूप में अवतरित हुए हैं। संसद पर हमले के गुनहगार अफजल गुरू की मुक्ति के लिए अभियान चलाने वाले और उद्योगपतियों के खिलाफ याचिका में फोकट का इन्टरविनर बनने वाले पिता-पुत्र की जोड़ी शांति भूषण और प्रशान्त भूषण टीम नैतिकता की आचार संहिता तय करती है। मंचीय कवियों का गिरोह चलाने वाले मसखरे कविकुलश्रेष्ठ इमानदारी की रुबाइयाँ लिखते हैं।योग सिखाने के लिए निर्मल बाबा की तर्ज पर करोड़ों की फीस वसूलने वाले बाबा रामदेव राष्ट्रवाद व नैतिकता का पाठ सिखाते हैं। रंगमंच पर यही सब नाटक चल रहा है। सड़े से मुद्दों पर कैण्डल मार्च निकालने वाले भ्रष्टाचार से लड़ने चंदे के पैसे से दिल्ली तो कूंच कर सकते हैं पर अपने गांव के उस सरपंच के खिलाफ बोलने से मुंह फेर लेते हैं जो गरीबों का राशन और मनरेगा की मजदूरी में हेरफेर कर दो साल के भीतर ही बुलेरो और पजेरो जैसी गाड़ियों की सवारी करने लगता है। इसके खिलाफ हम इसलिए कुछ नहीं बोल पाते क्योंकि यह हमारा अपना बेटा, भाई, भतीजा और नात-रिश्तेदार हो सकता है। जब शहर के भ्रष्टाचार की बात करनी होती है तो ये दिल्ली के भ्रष्टाचार पर बहस करते हैं, अपने गांव व शहर की बात करने से लजाते हैं, भ्रष्टाचारी कौन है? यह चिमनी लेकर खोजने का विषय नहीं है। समाज में भ्रष्टाचार की प्राण-प्रतिष्ठा करने वाले लोग कौन हैं? यह अलग से बताने की बात नहीं है, हम सबने मिलकर भ्रष्टाचार को अपने आचरण में जगह दी है। जिस दिन कोई पिता अपने बेटे को इसलिए तिरष्कृत कर देगा कि उसके भ्रष्टाचार की कमाई से बनी रोटी का एक टुकड़ा भी स्वीकार नहीं करेगा, कोई बेटा बाप की काली कमाई के साथ बाप को भी त्यागने का साहस दिखाएगा, परिवार और समाज में भ्रष्टाचार करने वालों का सार्वजनिक बहिष्कार होने लगेगा, उस दिन से ही भ्रष्टाचार की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। क्योंकि भ्रष्टाचार कानून से ज्यादा आचरण का विषय है। कत्ल करने वाले को फांसी दिए जाने का प्रावधान है लेकिन कत्ल का सिलसिला नहीं रुका है। कत्ल भी हो रहे हैं और फांसी भी। भ्रष्टाचारियों को कानून की सजा देने मात्र से भ्रष्टाचार रुकने वाला नहीं। क्या कोई अपने घर से भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़नें की शुरुआत करने को तैयार हैं?   लेखक जयराम शुक्ल मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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Dakhal News 22 May 2020


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भोपाल। वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया शिक्षक प्रो. संजय द्विवेदी को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय का प्रभारी कुलपति नियुक्त किया गया है। प्रो. द्विवेदी 10 वर्ष से अधिक समय से विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष रहे हैं। वहीं, विश्वविद्यालय में प्रभारी कुलसचिव की जिम्मेदारी मडिया प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष डॉ. अविनाश वाजपेयी को सौंपी गई है। इससे पूर्व वे विश्वविद्यालय में प्रशासनिक जिम्मेदारियां संभाल रहे थे।गौरतलब है कि प्रो. संजय द्विवेदी लंबे समय तक सक्रिय पत्रकारिता में रहे हैं। उन्हें प्रिंट, बेव और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कार्य करने का अनुभव है। उन्होंने कई अखबारों, टीवी चैनलों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाली। मुंबई, रायपुर, बिलासपुर और भोपाल में लगभग 14 साल सक्रिय पत्रकारिता में रहने के बाद प्रो. द्विवेदी शिक्षा के क्षेत्र में आए और फरवरी-2009 में वे माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जुड़े। विश्वविद्यालय में उन्होंने विभागाध्यक्ष एवं कुलसचिव जैसे महत्वपूर्ण पदों कार्य किया। वे विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में नियमित तौर पर राजनीतिक, सामाजिक और मीडिया के मुद्दों पर लेखन करते हैं। उन्होंने अब तक 25 पुस्तकों का लेखन और संपादन भी किया है। वे विभिन्न विश्वविद्यालयों की अकादमिक समितियों एवं मीडिया से संबंधित संगठनों में सदस्य एवं पदाधिकारी भी हैं।

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Dakhal News 21 May 2020


Indore ,gets five star rating , Kacharam-free cities, Bhopal also slipped

भोपाल। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने नई दिल्ली में मंगलवार को स्वच्छता सर्वेक्षण के अंतर्गत कचरामुक्त शहरों की स्टार रेटिंग के परिणाम घोषित किए। इसमें लगातार तीन बार देश के सबसे स्वच्छ शहर रहे मध्यप्रदेश के इंदौर को पांच स्टार रेटिंग मिली है, जबकि पिछले साल कचरामुक्त शहरों में इंदौर को सेवन स्टार रेटिंग दी गई थी। वहीं, प्रदेश की राजधानी भोपाल को थ्री स्टार रेटिंग दी गई है।केन्द्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी द्वारा घोषित किये गये स्टार रेटिंग के परिणामों में इंदौर को हालांकि पिछले साल की तरह सेवन स्टार रेटिंग तो नहीं मिली है, जिसका स्थानीय प्रशासन और नागरिकों द्वारा दावा किया गया था, लेकिन मध्यप्रदेश का यह शहर देश के कचरा मुख्त उन छह शहरों के साथ शीर्ष पर बना हुआ है, जिन्हें पांच स्टार रेटिंग मिली है। इनमें छत्तीसगढ़ का अंबिकापुर, गुजरात के राजकोट और सूरत, कर्नाटक का मैसूर और महाराष्ट्र का नवी मुंबई शामिल है। इंदौर के अलावा मध्यप्रदेश के 10 शहरों को थ्री स्टार रेटिंग मिली है। इनमें भोपाल भी शामिल है, जो कि एक बार देश का दूसरा सबसे स्वच्छ शहर रह चुका है। भोपाल के अलावा बुरहानपुर, छिंदवाड़ा, कांटाफोड़, कटनी, खरगोन, ओंकारेश्वर, पीथमपुर, सिगरौली और उज्जैन को भी थ्री स्टार रेटिंग मिली है। वहीं, प्रदेश के सात शहरों को एक स्टार रेटिंग दी गई है। इनमें ग्वालियर, सरदारपुर, हातोद, महेश्वर, खंडवा, शाहगंज और बदनावर है। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश के 18 नगरों को कचरामुक्त शहरों में रेटिंग मिली है। इनमें इंदौर पांच स्टार रेटिंग मिलने वाला प्रदेश का एकमात्र शहर है। 

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Dakhal News 19 May 2020


bhopal, Zee news, two dozen media workers, Corona positive!

बड़ी खबर जी न्यूज से आ रही है। यहां 4 लोगों के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद बाकी सभी का कोरोना टेस्ट कराया गया। सूचना है कि कुल 52 लोगों का टेस्ट कराया गया जिनमें से 28 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। इस रिपोर्ट के आते ही पूरे जी ग्रुप में हड़कंप मच गया है। बताया जाता है कि सीईओ पुरुषोत्तम वैष्णव नए हालात पर मीटिंग ले रहे हैं। ये मीटिंग ज़ूम पर ऑनलाइन आयोजित है। बताया जा रहा है कि पूरे ऑफिस को सील कर सैनिटाइज किया जा रहा है। ज़ी न्यूज़ का संचालन इसी ग्रुप के एक अन्य चैनल wion की बिल्डिंग से होगा।   ज़ी न्यूज़ ऑफिस में नोएडा अथारिटी के लोग और डॉक्टर्स की टीमें घुस चुकी है। अब पूरे ग्रुप के मीडियाकर्मियों का टेस्ट किया जा रहा है।

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Dakhal News 19 May 2020


bhopal, Life between corona

अमरीक देशव्यापी लॉकडाउन से पहले कर्फ्यू लगाने वाला पंजाब पहला राज्य था। सूबे ने इतना लंबा कर्फ्यू अतीत में कभी नहीं झेला। और न ऐसे नागवार हालात झेले जो अब दरपेश हैं। यक्ष प्रश्न है कि कर्फ्यू तो हट जाएगा लेकिन सामान्य जनजीवन आखिर पटरी पर कैसे आएगा? 55 दिन की कर्फ्यू अवधि ने राज्य में जिंदगी से लेकर कारोबार तक, सब कुछ एकबारगी स्थगित कर दिया था। लुधियाना, अमृतसर, जालंधर महानगरों सहित अन्य कई शहरों की दिन-रात चलने वाली जिन फैक्ट्रियों अथवा औद्योगिक इकाइयों के गेट पर कभी ताले नहीं लगे थे, वहां एकाएक पूरी तरह सन्नाटा पसर गया। लाखों श्रमिक एक झटके में बेरोजगार हो गए और रोटी के लिए बेतहाशा बेजार। हर वर्ग की कमर टूट गई। लोग घरों में कैद होने को मजबूर हो गए। कोरोना-काल के कर्फ्यू ने पंजाबियों को बेशुमार जख्म भी दिए हैं। लाखों लोग भूख से बेहाल हुए तो हजारों अवसादग्रस्त। जिन्हें कोरोना तो क्या, मामूली खांसी-बुखार ने भी नहीं जकड़ा-वे स्थायी तनाव के गंभीर रोगी हो गए। तिस पर डॉक्टरों की अमानवीय बेरुखी। सरकार के कड़े आदेशों और सख्ती के बावजूद प्राइवेट अस्पतालों की ओपीडी आमतौर पर बंद ही रहीं। ब्लड प्रेशर और शुगर तक चैक नहीं किए गए। डॉक्टर मरीज को छूने तक से साफ इंकार करते रहे। मेडिकल हॉल के दुकानदार बाकायदा डॉक्टरों की भूमिका में आ गए। चिकित्सा जगत की उपेक्षा का नागवार नतीजा था कि कर्फ्यू के इन 55 दिनों में 2000 से ज्यादा लोग हृदय रोग, कैंसर, लीवर, किडनी और मधुमेह की बीमारियों से चल बसे। राज्य के स्वास्थ्य विभाग भी मानता है कि इससे पहले कभी इतनी अवधि में बीमारियों से लोगों ने दम नहीं तोड़ा। ईएनटी, आंखों और दांतों की बीमारियों के इलाज करने वाले क्लीनिक और अस्पताल एक दिन के लिए भी नहीं खुले। मनोचिकित्सक तो मानो भूल ही गए कि समाज के एक बड़े तबके को इन दिनों उनकी कितनी जरूरत है। गोया अवाम की जिंदगी बेमूल्य हो गई। अमीर और गरीब एक कतार में आ गए। पंजाब में सवा सौ से ज्यादा मौतें कोरोना वायरस से हुईं हैं। संक्रमितों की संख्या हजारों में रही और वे एकांतवास में ठीक होकर घरों को लौट आए। लेकिन कोरोना मरीज होने के ठप्पा उन्हें निरंतर यातना दे रहा है। पंजाब के हर इलाके से उनके सामाजिक बहिष्कार की खबरें हैं। सामाजिक दूरी का संकल्प कोरोना वायरस से ठीक हुए मरीजों के लिए सामाजिक नफरत में तब्दील हो गया है। जालंधर और आसपास के इलाकों में इस पत्रकार ने कोरोना से ठीक होकर सही-सलामत लौटे कुछ मरीजों से मुलाकात में पाया कि वे मृत्यु के डर से तो निकल आए हैं लेकिन रिश्तेदारों और आस-पड़ोस के लोगों की घोर उपेक्षा उन्हें मनोरोगी बना रही है। दिनेश कुमार (बदला हुआ नाम) लगभग एक महीना एकांतवास में रहे। इलाज चला। अस्पताल में तो किसी ने क्या मिलने आना था, घर लौटे तो अपनों ने भी किनारा कर लिया। पत्नी और बच्चों के सिवा कोई बात नहीं करता। जबकि घर में माता पिता और दो भाई तथा उनके परिवार हैं। वह फफकते हुए कहते हैं, “कोरोना से ठीक हो कर घर लौटा तो उम्मीद थी कि सब खुश होंगे और तगड़े उत्साह के साथ मुझे गले लगाएंगे। लेकिन कोई मत्थे लगने तक को तैयार नहीं हुआ। जैसे ही मैं लौटा, मेरा भाई अपनी बीवी और बच्चों के साथ ससुराल चला गया। यह कहकर कि या तो यह यहां रहेगा या हम।” नवांशहर शहर के नसीब सिंह भी कोरोना को पछाड़कर सेहतमंद होकर अपनी लंबी-चौड़ी कोठी में लौटे तो बेटों ने उनका सामान पिछवाड़े के सर्वेंट क्वार्टर में रखा हुआ था और उनसे कहा गया कि अब वे वहीं रहेंगे। पिछले साल उनकी पत्नी का देहांत हो गया था। सारी जायदाद वह अपने दो बेटों के नाम कर चुके हैं। यह पत्रकार जब सर्वेंट क्वार्टर में कोठी के मालिक रहे नसीब सिंह से बात कर रहा था तो बारिश आ रही थी और सर्वेंट क्वार्टर की छत से पानी चू रहा था। फर्श पर गंदगी का ढेर था और नसीब सिंह का लिबास बेहद मैला था। उन्होंने बताया कि जो नौकर आज से एक महीना पहले उनके आगे पीछे सेवा-टहल के लिए भागते-दौड़ते रहते थे, अब उनका निवास बना दिए गए सर्वेंट क्वार्टर में झांकने तक को तैयार नहीं और न कपड़े धोने को। खाने की थाली भी बाहर रख दी जाती है। एक पानी की सुराही भर दी जाती है। रूआंसे होकर नसीब सिंह कहते हैं, “मुझे कोरोना हुआ तो इसमें मेरा क्या कसूर। अब डॉक्टरों ने मुझे पूरी तरह फिट घोषित कर दिया है। बकायदा इसका सर्टिफिकेट भी दिया है। लेकिन बच्चे मुझे अभी रोगी मानते हैं। मुझसे कौड़ियों जैसा सुलूक किया जा रहा है। मैं करोड़ों का साहिबे-जायदाद रहा हूं और इस बीमारी ने मुझे एकदम कंगाल बना दिया। बेटों को पास बुलाकर मैं उनसे बात करना चाहता हूं कि अगर उनकी यही मर्जी है तो मुझे वृद्ध आश्रम में दाखिल करवा दें लेकिन कोई पास खड़ा होने तक को तैयार नहीं। मुझसे मेरा फोन भी ले लिया गया है।” दिनेश कुमार और नसीब सिंह जैसी बदतर हालत ठीक हुए बेशुमार कोरोना मरीजों की है। लुधियाना में कोरोना वायरस से मरे एसीपी के परिजनों का पड़ोसियों ने आपत्तिजनक बहिष्कार किया और उस प्रकरण में स्थानीय पुलिस को दखल देनी पड़ी। उनके भांजे को ‘कोरोना फैमिली’ कहा गया और उस गली में जाने से रोका गया, जहां उनका अपना घर है। चार ऐसे मामले चर्चा में आए कि संक्रमण से मरे लोगों के शव उनके परिजनों ने लेने से दो टूक इनकार कर दिया। पुलिस-प्रशासन और सेहत महकमे को मृतकों के संस्कार और अंतिम रस में अदा करनी पड़ीं। किसी को श्मशान घाट के माली ने मुखाग्नि दी तो किसी को सफाईकर्मी ने। जबकि यह लोग भरे पूरे और संपन्न परिवार से थे। ‘कोरोना फैमिली’ पंजाब में इन दिनों प्रचलित नया गालीनुमा मुहावरा है और यह किन के लिए इस्तेमाल किया जाता है, बताने की जरूरत नहीं। इस कथन के पीछे छिपी दुर्भावना व नफरत बेहद पीड़ादायक है। बल्कि यातना है। जालंधर के ही नीरज कुमार को उनके करीबी दोस्तों ने उन्हें ‘कोरोना कुमार’ कहना शुरू किया तो वह गंभीर अवसाद रोगी बन गए। अब खुदकुशी की मानसिकता का शिकार हैं। वायरस से ठीक हुए एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि पड़ोसियों ने एकजुट होकर फैसला किया कि कभी हमारे घर नहीं आएंगे। वह कहते हैं, “लॉकडाउन और कर्फ्यू खुलते ही हम यह इलाका छोड़कर कहीं और घर खरीद लेंगे। दुकान का ठिकाना भी बदलना पड़ेगा।” लॉकडाउन और कर्फ्यू के बीच पंजाब में बड़े पैमाने पर श्रमिकों का सामूहिक पलायन हो रहा है। उनकी भीड़ और दशा देख कर लगता है कि 1947 का विभाजनकाल मई, 2020 में लौट आया है। जो श्रमिक घर वापसी के लिए प्रतीक्षारत हैं या फिलवक्त जा नहीं पा रहे उन्हें उनके मकान मालिक जबरन घरों-खोलियों से निकाल रहे हैं। उनसे मारपीट और छीना-झपटी रोजमर्रा का किस्सा है। यह हर शहर में हो रहा है। कहने को 55 दिन कर्फ्यू रहा लेकिन मजदूरों से अलग किस्म की हिंसा होती रही और हो रही है। जाने वाले प्रवासी श्रमिकों में से बहुतेरे ऐसे हैं जो मन और देह पर जख्म लेकर जा रहे हैं। लॉकडाउन और कर्फ्यू ने समाज का सारा ताना-बाना बदल दिया है। सामाजिक दूरियों ने दिलों की दूरियां भी बढ़ाईं हैं। इस बीच कई रिश्ते टूटे। बार-बार विवाह स्थगित होने से उपजे तनाव ने एक लड़की को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया। कम से कम 10 आत्महत्याएं कोरोना वायरस की दहशत की देन हैं।   इस रिपोर्ताज के लेखक अमरीक सिंह पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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Dakhal News 19 May 2020


bhopal, The path to online education is not easy!

वैश्विक महामारी कोविड-19 ने दुनिया की रफ़्तार पर ब्रेक लगा दिया है। वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी कई सालों पीछे कर दिया है। विश्व के अधिकांश देशों में लॉक डाउन है या फिर कर्फ़्यू जैसे हालात है। केवल जरूरी सामान व सेवाएं ही सुचारू रूप से संचालित हो रही है। भारत में भी इस महामारी ने विकराल रूप धारण कर लिया है। देश पूरी तरह से लॉक डाउन के कारण ठप्प पड़ा है। मानों लगता है, अब मानवीय सभ्यता अपनी आख़िरी सांसें गिन रही हो। ऐसे में भले ही आज संकट की घड़ी मानव सभ्यता पर आन पड़ी हो, लेकिन मानवीय जीवटता इतनी बलवती है कि वह इस संकट से हार नहीं मानेगी यह तो निश्चित है। ऐसे में सवाल उठता है शिक्षण संस्थानों का क्या होगा? जो कहीं न कहीं आता तो है जरूरी सेवाओं में, लेकिन जब सोशल डिस्टनसिंग बनाकर रखना है। फ़िर शिक्षण संस्थानों पर ताला लगना स्वाभाविक है। इन सब के बीच हमारी व्यवस्था ने बच्चों का भविष्य और समय बर्बाद न हो इसके लिए ऑनलाइन क्लासेज आदि का इंतज़ामात करा दिया है। लेकिन जिस शिक्षा व्यवस्था पर यूं तो हमेशा से ही सवाल उठते आ रहे है। वह शिक्षा ऑनलाइन होकर कैसे बेहतर विकल्प बन सकती बड़ा सवाल यह भी है। लॉकडाउन के वक्त शिक्षा में सकारात्मक बदलाव हुए है। आज देश ऑनलाइन शिक्षा की ओर आगे बढ़ रहा है । वैसे भी जब तक बहुत आवश्यक न हो हम बदलाव को स्वीकारते नही है । लेकिन इस महामारी ने, न केवल हमारी दिनचर्या में परिवर्तन किए बल्कि आज सामाजिक, सांस्कृतिक, रीति रिवाजों में भी बदलाव आ गए है । जिसकी तस्वीर आए दिनों हम देख रहे है । जन्म , शादी समारोह और मृत्यु ये तीन कर्म को भारतीय संस्कृति में बहुत ही धूमधाम से मनाए जाता था, लेकिन इस एक वायरस ने इन सब पर ग्रहण लगा दिया है । इस भागती ज़िन्दगी में लोगो के पास स्वयं के लिए भी समय नही था आज वह अपने परिवार के साथ समय बिता रहे है । अपने हुनर को तराश रहे है । इस लॉकडाउन में भले ही लोगो से मिलना जुलना बन्द हो गया हो। लेकिन संवाद का एक नया रूप हमारे सामने आया है । जिसका असर शिक्षण संस्थाओं पर भी दिखाई दे रहा है। आज से करीब साढ़े पांच दशक पहले सन 1964 में कनाड़ा के प्रसिद्ध दार्शनिक मार्शल मैकलुहान ने कहा था कि संस्कृति की सीमाएं खत्म हो रही हैं , और पूरी दुनिया एक ग्लोबल विलेज में तब्दील हो रही है । 1997 में वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं पत्रकार फ्रैंसिस केन्कोर्स ने ‘ द डेथ ऑफ डिस्टेंस ‘ सिद्धान्त दिया था। जिसमें कहा गया कि दुनिया की दूरियों का अंत हो गया है। लेकिन उन महान दार्शनिकों ने तो कभी वैश्विक महामारी की कल्पना नहीं की होगी और न ही कभी वैश्विक लॉक डाउन के बारे में सोचा होगा । कोरोना महामारी ने आज दुनिया भर में लोगो को अपने अपने घरों में कैद कर दिया है। लोग डर और भय के माहौल में जी रहे है, और दुनिया में हो रहे इस बदलाव को स्वीकार कर रहे है । देखा जाए तो प्रत्येक चुनौती अपने साथ नए अवसरों को लेकर आती है । आज जरूरत है उन अवसरों को समझने और उनका लाभ उठाने की । शिक्षण संस्थानों ने भी ऑनलाइन शिक्षा की दिशा में कदम बढ़ाया है । इसमें सरकार ने भी व्यापक पहल की है। जिसके तहत मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा लॉक डाउन के दौरान शिक्षा व्यवस्था गतिशील रह सकें, इसके लिए 11 अप्रैल 2020 को “भारत पढ़ें ऑनलाइन” की शुरुआत की। यह कार्यक्रम ऑनलाइन शिक्षा पारिस्थिकी तंत्र में सुधार और निगरानी के लिए लांच किया गया। इसके अलावा सरकार ने “युक्ति पोर्टल” भी लांच किया। सरकारी तंत्र द्वारा उठाया गया यह प्रयास अलहदा है। पर सवाल यह उठता है कि क्या ऑनलाइन शिक्षा, शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य चरित्र निर्माण और समाज कल्याण के लक्ष्यों की पूर्ति कर पायेगी ? माना कि इस नई शिक्षा नीति में चुनोतियाँ बहुत है । लेकिन इस ओर एक व्यापक पहल आने वाले समय मे शिक्षा के स्तर में सुधार की दिशा में एक नया कदम है। एक बात यह भी है। इन सब के दरमियान देखें तो भारत जैसे विविधताओं से भरे विशाल देश में ऑनलाइन शिक्षा में कई चुनौतियां है। शैक्षणिक संस्थानों , कालेजों के पाठ्यक्रम में भिन्नता इसमें बहुत बड़ा रोड़ा है । जो ऑनलाइन शिक्षा के लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है । देश मे समान पाठ्यक्रम पर लम्बी बहस बरसों से होती आई है , लेकिन इस पर एक राय कभी नही बन पाई । तो वही भारत में इंटरनेट की स्पीड भी ऑनलाइन क्लासेस में एक बड़ी समस्या रही है। ब्राडबैंड स्पीड विश्लेषण कम्पनी ऊकला की रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2019 में भारत में मोबाइल इंटरनेट स्पीड में 128 वें स्थान पर रहा । भारत में लॉकडाउन के दौरान इंटरनेट स्पीड 11.18 एमबीपीएस ओर अपलोड स्पीड 4.38 एमबीपीएस रही । ऑनलाइन क्लासेस के समय इंटरनेट स्पीड का कम ज्यादा होना समस्या पैदा करता है । गांवों में यह समस्या कई गुना बढ़ जाती है । गांव में अधिकांश विद्यार्थियों के पास ऑनलाइन पढ़ने के लिए न ही संसाधन उपलब्ध है और असमय बिजली कटौती एक गंभीर चुनौती है । ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा के सपने को सही रूप में साकार कर पाना दूर की कौड़ी नजर आती है । ऑनलाइन शिक्षा के कई नुकसान है तो वही इसके फायदों की बात की जाए तो यह शिक्षा पर होने वाले खर्चो को कई गुना कम कर सकता है। वही देश विदेश में उच्च संस्थानों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के सपनों को साकार करने का मार्ग भी सुगम कराता है । लेकिन ऑनलाइन शिक्षा के सुचारू संचालन भारत जैसे विशालकाय देश में एक ओर जहां फायदे का सौदा है तो वही तकनीकी रूप से इसमें होने वाली समस्याएं व चुनोतियाँ भी कम नही है । अभी लॉक डाउन की स्थिति में यह व्यवस्था भले भी बहुत आसान व फायदेमंद नजर आ रही हो । लेकिन इसके सभी पहलुओं को समझ कर ही आगामी समय मे इस पर विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि भारत जैसे देश मे गुरुकुल की परम्परा रही है । जहां छात्र ओर शिक्षक एक साथ उपस्थित होकर विद्या अध्ययन करते थे ।। जहां गुरु छात्र के चेहरे के भाव देखकर समझ जाते थे कि शिष्य को कहा समस्या आ रही है । गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था में जहां संस्कार ,संस्कृति , ओर शिष्टाचार की शिक्षा दी जाती थी। क्या ऑनलाइन शिक्षा में यह सब संभव हो सकेगा ? सवाल कई है लेकिन इन सवालों के जवाब मौजूदा वक़्त में संभव नही है । कोरोना काल के बाद आने वाला समय ही देश की शिक्षा व्यवस्था की दिशा और दशा को तय करेगा । तब तक देश के भविष्य से यही अपील है कि ऑनलाइन पढ़ते जाइए, क्योंकि समय अनमोल है, उसे व्यर्थ न जाने दें।   सोनम लववंशीखंडवामध्य प्रदेश

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Dakhal News 15 May 2020


bhopal, When difficult times come, Rajesh Joshi, find many mediums,expression.

अनिश्चितता में हम रोज़ कुछ निश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार, जरूरी व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करने में सक्रिय है तो आम जनता और कुछ संस्थाएं सड़क पर बदहवास चले जा रहे हैं लोगों के लिए खाना या पानी उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ दूर के लिए कोई सवारी मिल जाने से निश्चिन्तता नहीं मिलेगी। जरा राहत मिल जाएगी। उसकी निश्चिन्तता घर की पहुंच है। दरअसल यह कोशिशें ही इस समय का सच है। हमारे समय के सवालों का जवाब। लेखक अनु सिंह चौधरी ने राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव से जुड़कर कहा कि, “हमारे भीतर ये सवाल गूंजता है कि जो भी हम कर रहे हैं इसका मानी क्या है? इस बीमारी के बारे में कहीं कोई जवाब नहीं है। तब इतिहास और साहित्य के पन्ने को पलट कर देखना एक उम्मीद, एक हौसले के लिए कि कैसे हमारे पूर्वज़ों ने बड़ी त्रासदियों का सामना किया है। कहानियों, किस्सों या काल्पनिक कथाओं के जरिए अपने समय को देखा है। उम्मीद या नाउम्मीदी कोई तो रास्ता वहां से निकलेगा…” कई भाषाओं एवं बोलियों में न केवल महामारियों बल्कि अन्य प्राकृतिक आपदाओं का जिक्र हुआ है। सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, कमलाकान्त त्रिपाठी, विलियम शेक्सपीयर, अल्बैर कामू, गेब्रियल गार्सिया मार्केज़ जैसे कई साहित्यकारों ने अपने समय की आपदाओं को अपनी रचनाओं का हिस्सा बनाया है। “लेकिन जब कठिन समय आते हैं तो अभिव्यक्ति के कई माध्यम ढूँढने होते हैं।” राजेश जोशी ने यह बात लाइव बातचीत के दौरान कही। राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव से जुड़कर उन्होंने कहा, “यह महान दृश्य है चल रहा मनुष्य है – हरिवंश राय बच्चन की यह पंक्ति आज के समय में बिलकुल बदल जाती है। पैदल चलते हुए मनुष्यों का दृश्य महान दृश्य नहीं हृदय विदारक और दुखी कर देने वाले दृश्य हैं। इस समय उम्मीद देने वाला दृश्य उन डॉक्टर, स्वास्थकर्मियों, सुरक्षाकर्मियों, एक्टिविष्ट को देखना है जो जीवन को बचाने में रात दिन लगे हुए हैं।“ राजकमल प्रकाशन समूह के साथ फ़ेसबुक लाइव के जरिए राजेश जोशी ने अपनी कई नई कविताएं और कुछ पुरानी कविताओं का पाठ किया। राजेश जोशी ने अपनी कविताओं को जीवन को बचाने में लगे लोगों को समर्पित किया- “उल्लंघन / कभी जान बूझकर / कभी अनजाने में / बंद दरवाज़े मुझे बचपन से ही पसंद नहीं रहे / एक पांव हमेशा घर की देहरी से बाहर ही रहा मेरा / व्याकरण के नियम जानना मैंने कभी जरूरी नहीं समझा / इसी कारण मुझे कभी दीमक के कीड़ों को खाने की लत नहीं लगी / और किसी व्यापारी के हाथ मोर का पंख देकर उसे खरीदा नहीं / बहुत मुश्किल से हासिल हुई थी आज़ादी / और उससे भी ज़्यादा मुश्किल था हर पल उसकी हिफ़ाजत करना..”   प्रस्तुति- सुमन परमार

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Dakhal News 15 May 2020


bhopal, Politicians misuse ,entrepreneurial defamation, court , intimidate  media

नई दिल्ली : नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स इंडिया (एनयूजेआई) ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले का स्वागत किया है, जिसमें कहा गया है कि ताकतवर राजनेता और कॉरपोट जगत के लोग ‘मानहानि के मामलों का दुरूपयोग मीडिया को डराने-धमकाने के लिए करते हैं। कोर्ट ने कहा है कि रिपोर्टिंग में मात्र कुछ गलतियां अभियोजन पक्ष को यह अधिकार नहीं देती कि उसे अपराधी ठहराया जा सके। मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जी आर स्वामीनाथन ने अपने फैसले में कहा है कि शक्तिशाली राजनेता और कॉर्पोरेट्स मानहानि के मामलों का दुरूपयोग मीडिया के खिलाफ ’डराने-धमकाने के हथियार’ के रूप में कर रहे हैं। एनयूजे (आई) के अध्यक्ष रास बिहारी और महासचिव प्रसन्ना मोहंती ने एक संयुक्त बयान में कहा कि एनयूजे (आई) मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करता है। यह निर्णय पूरे कॉर्पोरेट जगत और राजनेताओं के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा। कोर्ट का यह फैसला उन लोगों को सबक सिखाने वाला साबित होगा जो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर दबाव डालकर और भय का वातावरण पैदा करके प्रेस की स्वतंत्रता को दबाते हैं। उन्होंने बताया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को और मजबूत करते हुए न्यायाधीश ने अपनी टिप्पणी में कहा कि उच्च न्यायपालिका द्वारा एक सक्रिय भूमिका निभानी होगी। यह एक रिकॉर्ड का विषय है कि पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही करना कॉर्पोरेट निकायों और शक्तिशाली राजनेताओं का एक साधन बन गई है। इन राजनेताओं की जेबें गहरी हैं और जिनके हाथों में लंबे समय तक मीडिया हाउसेज को बांधे रखने के लिए अच्छे संसाधन मौजूद हैं। न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने कहा कि हमेशा गलती का एक मार्जिन हो सकता है। तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर प्रत्येक मामले में मीडिया को इस बचाव का लाभ उठाने का हक है। रिपोर्टिंग में मात्र गलतियां अभियोजन के आरोपों को सही नहीं ठहरा सकते।

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Dakhal News 12 May 2020


bhopal, PMO refuses, benefits of extinguishing lights , lighting lamps

प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने लखनऊ स्थित एक्टिविस्ट डॉ नूतन ठाकुर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 05 अप्रैल 2020 को 09.00 बजे लाइट बुझाने तथा दिया आदि जलाने के संबंध में भाषण के बारे में सूचना देने से मना कर दिया है. नूतन ने पीएमओ को पीएमओ अभिलेखों के अनुसार इन निर्देशों को निर्गत करने से संबंधित तर्क एवं कारण एवं इससे संभावित लाभ की जानकारी मांगी थी. साथ ही उन्होंने पूछा था कि ये निर्देश अनिवार्य हैं या मात्र सुझाव हैं, और यदि ये अनिवार्य निर्देश हैं तो इनके उल्लंघन कर क्या दंड प्राविधानित है. नूतन ने इस संबंध में पीएमओ अथवा भारत सरकार द्वारा निर्गत सरकारी आदेश तथा पीएमओ की पत्रावली की प्रति भी मांगी थी. पीएमओ के जन सूचना अधिकारी प्रवीण कुमार ने यह कहते हुए सूचना देने से मना कर दिया कि मांगी गयी जानकारी आरटीआई एक्ट की धारा 2(एफ) में सूचना के अंतर्गत नहीं आता है.   नूतन ने इससे असहमत होते हुए इस संबंध में प्रथम अपील प्रस्तुत किया है.

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Dakhal News 12 May 2020


bhopal, Writers and literature lovers, paid tribute, story writer, Shashibhushan Dwivedi

कथाकार शशिभूषण द्विवेदी की असामयिक मृत्यु से हिन्दी जगत एवं साहित्य प्रेमियों के बीच गहरा शोक व्याप्त है। कल शाम ह्दयगति रूकने से 45 वर्ष के शशिभूषण द्विवेदी की मृत्यु हो गई। कोरोना काल के इस अमानवीय समय ने हमें हमारे शोक में नितांत अकेला कर दिया है। सामाजिक दूरी बनाए रखने की हमारी विवशता में हम गले मिलकर एक-दूसरे से अपना ग़म भी नहीं बाँट पा रहे। लेकिन, आभासी दुनिया के माध्यम से लोगों ने शशिभूषण द्विवेदी को याद कर उनके साथ के अपने संस्मरणों को साझा कर, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। लेखक ममता कालिया ने कहा, “उनकी हर कहानी के अंदर उत्तर आधुनिक चेतना देखने को मिलती है। उनकी कहानी ‘छुट्टी का दिन’ बहुत मार्मिक कहानी है। उनकी कहानियों से उनके व्यक्तित्व को अलग नहीं किया जा सकता, अपनी हर कहानी में वे दिखाई देते हैं। राजनीतिक बातों को प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त करना उनकी ख़ासियत थी।“ उन्होंने कहा, “कोरोना काल में जब हम अपने अपने घरों में रहने को मजबूर हैं ऐसे में आभासी माध्यम में साथ जुड़कर शशिभूषण द्विवेदी को याद करना खुद के दुखों को कम करने का एहसास मात्र है।“ ममता कालिया ने लाइव बात करते हुए शशिभूषण द्विवेदी की कहानी का पाठ भी किया। कहानीकार चंदन पांडेय ने शशिभूषण द्विवेदी को एक दोस्त और एक समकालीन कथाकार के रूप में याद करते हुए कहा कि, “वे एक बेबाक लेखक थे। उनकी कहानियों की ख़ासियत थी कि वे इतिहास को उसी दौर में, उसी नज़रिये से देखते हुए उसे वर्तमान की कहानी बना देते थे। ‘विप्लव’, ‘ब्रह्महत्या’, ‘खेल’ उनकी कुछ महत्वपूर्ण कहानियाँ हैं। सोशल मीडिया पर लोग कल शाम शशिभूषण द्विवेदी के निधन की ख़बर आने के बाद से लगातार उन्हें ही याद कर रहे हैं। जितने साहित्य की दुनिया के लोग याद कर रहे हैं, उतने ही उससे बाहर के विस्तृत हिंदी समाज के लोगों ने उनके किस्से साझा किए। आलोचक अमितेश कुमार ने आभासी दुनिया के मंच से जुड़कर शशिभूषण द्विवेदी के साथ बिताए बहुत सारे पलों को याद किया। उन्होंने कहा कि वो जीवन के मुश्किल क्षणों में भी हास्य का रस निकाल लाते थे। अमितेश ने कहा, “अभी तो हम इंतज़ार में थे कि हमें उनकी कई और रचनाओं को पढ़ने का मौका मिलेगा। लेकिन, जैसे उनकी कहानियों में शिल्प अचानक समाप्त हो जाता है, ठीक वैसे ही वे अचानक हमारे बीच से चले गए।   अमितेश ने लाइव बातचीत में कहा, “जीवन में कठिनाई और तनाव के बीच सकारात्मकता ढूँढ़ निकाल लाने वाले व्यक्ति के तौर पर शशिभूषण द्विवेदी बहुत याद आएंगे। अपने दोस्तों और उभरते लेखकों, साहित्यकारों के लिए वे एक बेबाक और स्पष्ट आलोचक थे जिनकी कही बातों ने बहुतों को कुछ नया सिखाया था।“ लॉकडाउन में राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा वाट्सएप्प से रोज़ साझा की जा रही पुस्तिका आज लेखक शशिभूषण द्विवेदी को समर्पित रही। पुस्किता में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी कहानियों को साझा किया गया है।

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Dakhal News 10 May 2020


bhopal, For six years, anonymous senior journalist ,writer Meenu Rani Dubey

प्रयागराज की वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका मीनू रानी दुबे के निधन से इस प्रदेश में महिला पत्रकारों के एक युग का अंत तो गया. मीनू ने उस समय पत्रकारिता में कदम रखा था जब प्रयागराज में एक भी महिला पत्रकार नहीं थी. उनका इस पेशे में आना एक कौतूहल से काम नहीं था. उन्होंने 1982 में तत्कालीन महिला मैगज़ीन मनोरमा में बतौर उप संपादक काम शुरू किया और बाद में वह इसकी सहयोगी संपादक बनीं. मैं इससे पहले 1979 से देशदूत (दैनिक अख़बार) के लिए खेल की न्यूज़ कवर करने लगा था. उस समय एलएलबी तृतीय वर्ष का छात्र था. डॉ राम नरेश त्रिपाठी इस अख़बार के चीफ रिपोर्टर थे. देशदूत स्व. नरेंद्र मोहन के चचेरे भाई वीरेंद्र कुमार का था. कुछ ही महीनों बाद दोनों में हिस्सेदारी का समझौता हुआ और देशदूत दैनिक जागरण हो गया. उसी साल अगस्त में तत्कालीन मुख्यमंत्री बनारसी दास ने जागरण का लोकार्पण किया. यहाँ मुझे स्पोर्ट्स के अलावा डेस्क पर भी काम करने को कहा गया. इसी दौरान मेरा मीनू रानी से परिचय हुआ. उल्लेखनीय है कि गत चार मई को त्रिपोलिया (प्रयागराज) स्थित घर पर गिरने से गंभीर रूप से घायल होने के कारण मीनू रानी का निधन हो गया था. मीनू रानी बहुत प्रतिभावान थीं. उन्हें सामयिक तथा रुचिकर व पठनीय विषयों की गहरी समझ थी और मैगज़ीन के दो अंक बाद वाले अंक में क्या-क्या सामग्री जा सकती है, वह पहले से ही तैयारी में जुट जाती थीं. डेस्क पर काम करने के साथ ही वह फील्ड में जाकर महिला सन्दर्भ पर रिपोर्टिंग भी करती थीं और शुद्ध रूप से रचनात्मक रिपोर्टिंग में ही प्रतिमान स्थापित किया. मनोरमा उस समय देश की नंबर वन महिला मैगज़ीन हुआ करती थी और दक्षिणी राज्यों में भी हिंदी भाषी परिवारों में वह पढ़ी जाती थी. उसकी लोकप्रियता के बराबर कोई अन्य मैगज़ीन नहीं पहुँच पायी. प्रयागराज के सभी नामी साहित्यकारों महादेवी वर्मा, उपेंद्र नाथ अश्क, डॉ राम कुमार वर्मा, जगदीश गुप्त, अमर कांत आदि उन्हें बहुत स्नेह देते थे. शहर के पत्रकारों के हर आयोजन और कार्यक्रम में मीनू रानी अनिवार्य रूप से की उपस्थित रहती थीं. उन्होंने इतने आलेख, इंटरव्यू, प्रसंग, संस्मरण लिखे जिनकी कोई संख्या उपलब्ध नहीं है. उन्होंने कभी पत्रकारों से सामान्य चर्चा में भी इसका कभी उल्लेख नहीं किया. हो सकता है इसलिए कि ऐसा कहने से अहंकार का भाव लक्षित होता. मैं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की साहित्यिक गतिविधियों में उन्हें भाग लेते देखता था. डेलीगेसी की मैगज़ीन में उनके लेख छपा करते थे. छात्र-छात्रों की गोष्ठियों में उन्हें विचार रखने के लिया बुलाया जाता था. मुझसे अक्सर वह यूनिवर्सिटी में ही इन सबकी चर्चा करती थीं. एक बार यूनिवर्सिटी की सेंट्रल लाइब्रेरी हाल में उन्होंने कोई मैगज़ीन अपने गाँधी झोले से निकाली और मुझे पन्ने पलटकर दिखाते हुए बोली, देखिये इंद्र कांत जी मेरा लेख छपा है. मैंने सरसरी तौर पर देखा और उन्हें बधाई दी तो वह खुश हो गयीं. प्रबंधन की आपसी लड़ाई के कारण मनोरमा मैगज़ीन बंद हो गयी तो वह स्वतंत्र रूप से अख़बारों और पत्रिकाओं में लेख देती रहीं. 1980 के आस पास प्रयागराज में उनके अलावा कोई महिला पत्रकार नहीं थी. हाँ लेखिकाएं कई थीं. बाद में नॉर्दर्न इंडिया पत्रिका अख़बार में संध्या सिंघल, सुनीता द्विवेदी (सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी की पत्नी और सुप्रीम कोर्ट के जज स्व एसएन द्विवेदी की पुत्रवधू और हाई कोर्ट के जस्टिस धवन की बहन) आयीं. सुनीता द्विवेदी डेस्क के अलावा रिपोर्टिंग का भी काम कर लेती थीं और उनके लेख भी छपते थे. अब चैनलों की बाढ़ आने के बाद महिला पत्रकारों की भी बाढ़ आ गयी है. इनमें स्क्रिप्ट पढ़ते हुए एंकरिंग की तो क्षमता दिखती है लेकिन लेखन में नहीं, क्योंकि वैचारिक शून्यता है. पांच छह साल से गुमनाम थीं इधर पांच-छह साल से वह गुमनाम जैसी हो गयी थीं. पत्रकारों से उनकी मुलाकात नहीं होती थी और अपने को घर तक सीमित कर लिया था. एक साल पहले मेरी उनकी मुलाकात इलहाबाद ब्लॉक वर्क्स (प्रिंटिंग प्रेस ) में हुई थी, मेरा वहां के मैनेजिंग डायरेक्टर मनोज मित्तल से 40 साल पुराना सम्बन्ध है. वह मनोज के पास बैठी थीं. मुझे देखती ही पूछी…अरे ..इंद्र कांत जी आप यहाँ कैसे.?.. मनोज ने कहा कि भाई साहब तो हमेशा यहाँ आते रहते हैं..वह बताई कि वह भी यहाँ अक्सर आती हें. मैंने एक बात देखी जिससे मैं कुछ क्षण विचलित भी हुआ..मीनू रानी बहुत कमजोर हो गयी थीं और चेहरे पर चिंतन और चमक गायब थी. मैंने पूछा…मीनू जी आप इतनी कमजोर क्यों हो गयी? स्वास्थ्य को क्या गया है? वह पल भर खामोश रहीं, फिर रोने लगीं और पल्लू से आंसू पोछते हुए kaha, मै ठीक भी हूँ और नहीं भी. मैंने कहा, हुआ क्या है? वह बोली, कुछ नहीं. फिर पूछा, आप कुछ बताएं, हो सकता है मै कुछ मदद कर सकूँ. …बोलीं..नहीं नहीं सब ठीक है. आप अपना हाल बताएं , स्वास्थ्य कैसा है? कुछ देर बाद वह सामान्य हुईं. मनोज से कुछ देर बात हुई फिर मैं मीनू रानी को अपना ख्याल रखने की बात कहकर चला गया. उनके शारीरिक हालत को देख मुझे लगा कि कुछ न कुछ प्रॉब्लम है जरूर. इस मुलाकात के दो महीने बाद अपने एक लेख के बारे में कुछ जानकारी लेने के लिए उन्हें फ़ोन किया तो वह उत्साह के साथ बात करती रहीं, खुश मिजाज लग रही थीं और पूरी जानकारी दीं. लगभग आधा घंटे तक मेरी उनकी बात हुई. उसके बाद फिर बात नहीं हो सकी. एक लेखिका और पत्रकार के रूप में मीनू रानी जितना रचनात्मक योगदान समाज को दे सकती थीं, उतना उन्होंने दिया. वह अपने पीछे आदर्श और सकारात्मक पत्रकारिता ऐसा अध्याय छोड़ गयी, जो भविष्य में किसी अन्य महिला पत्रकार के वश की बात नहीं जो इसे दोहरा सके.   लेखक इंद्र कांत मिश्र प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार हैं. 

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Dakhal News 10 May 2020


bhopal, Amit Shah, broke silence,no malice,pread rumors about my health

Amit Shah : पिछले कई दिनों से कुछ मित्रों ने सोशल मिडिया के माध्यम से मेरे स्वास्थ्य के बारे में कई मनगढ़ंत अफवाए फैलाई हैं। यहाँ तक कि कई लोगों ने मेरी मृत्यु के लिए भी ट्वीट कर दुआ मांगी है। देश इस समय कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से लड़ रहा और देश के गृह मंत्री के नाते देर रात तक अपने कार्यों में व्यस्त रहने के कारण मैंने इस सब पर ध्यान नहीं दिया। जब यह मेरे संज्ञान में आया तो मैंने सोचा कि यह सभी लोग अपनी काल्पनिक सोच का आनंद लेते रहें, इसलिये मैंने कोई स्पष्टता नहीं की। परन्तु मेरी पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओ और मेरे शुभचिंतकों ने विगत दो दिनों से काफी चिंता व्यक्त की और उनकी चिंता को मैं नज़र अंदाज़ नहीं कर सकता। इसलिए मैं आज स्पष्ट करना चाहता हूँ, कि मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हूँ और मुझे कोई बीमारी नहीं है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार ऐसा मानना है कि इस तरह की अफवाह स्वास्थ्य को और अधिक मज़बूत करती हैं। इसलिए मैं ऐसे सभी लोगों से आशा करता हूँ कि वो यह व्यर्थ की बातें छोड़ कर मुझे मेरा कार्य करने देंगे और स्वयं भी अपने काम करेंगे। मेरे शुभचिन्तक और पार्टी के सभी कार्यकर्ताओ का मेरे हालचाल पूछने और मेरी चिंता करने के लिए उनका आभार व्यक्त हूँ।   और जिन लोगों ने यह अफवाएं फैलाई है उनके प्रति मेरे मन में कोई दुर्भावना या द्वेष नहीं है। आपका भी धन्यवाद्।   देश के गृहमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह की एफबी वॉल से.  

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Dakhal News 10 May 2020


bhopal, Senior journalist of Kadambini Shasibhushan Dwivedi is no more

दुखद सूचना हिंदुस्तान ग्रुप की मैगजीन कादम्बिनी से आ रही है। यहां कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार शशिभूषण द्विवेदी का निधन हो गया है। फेसबुक पर महेंद्र अवधेश श्रीवास्तव लिखते हैं- भाई शशि भूषण द्विवेदी नहीं रहे। एक बेबाक-बिंदास टिप्पणीकार के रूप में इसी फेसबुक के जरिये मैंने उन्हें जाना। समझने-परखने का प्रयास किया, अपना कोई कद-पहचान न होते हुए भी। मिलने की बहुत इच्छा थी। सोचा था कि कभी किसी पुस्तक मेले में दर्शन का सौभाग्य मिला, तो उन्हें प्रणाम करूंगा। लेकिन, जिम्मेदारियों और बेबसी ने इस कदर जकड़ा कि पिछले दो-तीन पुस्तक मेले मुझसे छूट गए। शशि जी जब कुछ कहते थे, तो लगता कि जैसे कोई अपने बीच का आदमी बोला। मैं उनकी हर पोस्ट को पढ़ता और लाइक करता, लेकिन कमेंट नहीं करता। डर सा लगता था। सादर नमन मेरे भाई। विधाता आपकी आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें। अरुण शीतांश की टिप्पणी पढ़ें- Shashi Bhooshan Dwivedi से मेरी मुलाकात दिल्ली विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस में हरे प्रकाश उपाध्याय के साथ हुई थी, प्र ले सं का राष्ट्रीय सम्मेलन में। वहां हमलोग साथ में खाना-वाना खाए।विष्णु नागर ने कादम्बिनी पत्रिका में कविता प्रकाशित की थी तो उसकी चर्चा की। फोन पर बातचीत हमेशा होती रहती थी।विश्वास नहीं हो रहा है आज नहीं हैं। उनको रिक्शा पकड़ा कर गेस्ट हाउस लौट आया था। उस क्षण की बहुत याद आ रही है।मन बहुत दुःखी है। ये जाने की उमर नहीं थी। बहुत प्यारे इंसान थे। लग रहा है यह झूठी ख़बर है। उन्होंने अपना फ्लैट लिया। उसके बाद बात नहीं हो सकी।मैं तो लगातार सबको फोन कर रहा हूं जब से कोरोना काल की शुरुआत हुई है। अब इन्हीं से बात होने वाली थी कि….! नमन!! अजित प्रियदर्शी की प्रतिक्रिया- नयी सदी के चर्चित और अपने तरह के अनोखे कथाकार Shashi Bhooshan Dwivedi का इतनी जल्दी जाना हतप्रभ कर गया। वे जितने अच्छे कथाकार थे, उतने ही अच्छे इंसान। दोटूक, बेबाक, जि़न्दादिल इंसान की गवाही देते थे उनके पोस्ट। दिल्ली के आत्ममुग्ध और अहमन्य साहित्यिक परिदृश्य के बाहर था उनका व्यक्तित्व। किसी साहित्यिक प्रकरण की जानकारी लेने के लिए उन्होंने एक बार फोन किया था।उनसे दिलचस्प संवाद याद है। उनके परिवार को यह कठिन दुख सकने की शक्ति मिले। उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि! कश्यप किशोर मिश्र का कमेंट- “अतीत झूठा होता है अतीत में ठीक ठीक वापसी संभव नहीं।” “मरना ही सबकुछ नहीं होता सही समय पर मरना जरूरी होता है।” बीते चार घंटे पहले शशिभूषण जी के एकाएक न रहने की खबर पढ़ी। बड़ी देर तक दिमाग में कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही थी। कुछ सोचा ही नहीं जा रहा था। सिर्फ यहां वहां उनके नहीं रहने की खबर देख रहा था पढ़ रहा था। आज के दौर में, साहित्य और साहित्यकार “सुपर मार्केट” के प्रोडक्ट की तरह हैं उनके बीच शशिभूषण जी पुराने वक्त के कस्बाई या छोटे शहरों की एक परचून की दूकान की तरह थे। बिना किसी तड़क भड़क के बिना किसी चमकदार पैकिंग के, बिना किसी डिस्काउंट आफर के बेहद सहज तरीके से सिर्फ जरूरत भर की बात जरूरत भर की पुड़िया में बांध देते थे। विनीत कुमार नें शशिभूषण जी को याद करते हुए कहा कि “फोन पर बात करते हुए वो अपने साथ एक जंगल लेकर काल करते थे।” मेरे ख्याल में वो खुद में एक जंगल बन गये थे। भरी – पुरी आबादी के बीच एक पुरानी हवेली की मानिंद थे जिसमें समय के साथ साथ पौधों लतरों झाड़ झंखाड़ का एक जंगल उग आया हो। बीच आबादी एक मकान अपनें पैदा किये जंगल के साथ अपनी गति से जी रहा हो। ऐसी हवेलियां अपना जंगल लिए खत्म होती हैं या इनके जंगल इन्हें लिए दिए खत्म होते हैं। ऐसा ही हुआ भी। शशिभूषण जी के साथ साथ उनके परिवेश और व्यक्तित्व के सायबान तले फैला फूला जंगल भी सहसा ही खत्म हो गया।

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Dakhal News 8 May 2020


bhopal, Google added new meeting feature in Gmail

कोरोना के चलते दुनिया भर के देशों में लॉक डाउन के चलते कई किस्म की नई जरूरतें पैदा हुई हैं जिसे भुनाते हुए कई कंपनियों ने अपने अपने प्रोडक्ट/फीचर लांच किए हैं. इसमें जूम एप्प सर्वाधिक चर्चा में है जिसमें अलग अलग जगहों पर घर में बैठे लोग एक साथ चैट, मीटिंग, कांफ्रेंस कर सकते हैं. सबसे खास ये कि इस चैट मीटिंग कांफ्रेंस के वीडियो को सेव कर बाद में इसे किसी भी भी प्लेटफार्म (यूट्यूब, फेसबुक आदि) पर अपलोड भी कर सकते हैं. जूम के इस अविष्कार से सबसे बड़ा फायदा मीडिया वालों को हुआ जो घर बैठे दूसरे लोगों से कनेक्ट कर डिबेट परिचर्चा शो आदि कर पा रहे हैं. इस एप्प से कारपोरेट कंपनीज को भी काफी फायदा हो रहा है जो वर्क फ्राम होम के चलते अपने इंप्लाइज से इस एप्प के जरिए कनेक्ट हो पा रहे हैं. वाट्सअप ने भी एक साथ आठ लोगों के वीडियो चैट की सुविधा दी है. अभी तक चार लोग ही एक साथ चैट कर सकते थे. ताजा डेवलपमेंट जीमेल का है. गूगल की मेल कंपनी जीमेल ने मीटिंग का नया फीचर पेश कर दिया है. जब आप जीमेल खोलेंगे तो जिस तरफ इनबाक्स, स्टार्ड, सेंट, ड्राफ्ट, स्पैम आदि लिखा होता है, उसी के नीचे Meet करके एक फीचर लिखा आएगा. इस ‘मीट’ के नीचे दो फीचर लिखे आते हैं. स्टार्ट ए मीटिंग और ज्वाइन ए मीटिंग. स्टार्ट ए मीटिंग वाले फीचर में आप किसी नई मीटिंग की शुरुआत कर सकते हैं. इस प्रक्रिया में एक कोड जनरेट होगा जिसे आप मीटिंग में शामिल होने वाले अन्य व्यक्तियों को भेजेंगे और वो लोग उस कोड के जरिए आपकी मीटिंग में जुड़ जाएंगे, ज्वाइन ए मीटिंग पर क्लिक कर कोड डालते हुए. कोलकाता से श्वेता सिंह की रिपोर्ट.  

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Dakhal News 8 May 2020


bhopal, God bless Amit Shah

अमित शाह के बारे में बहुत बातें हो रही हैं. उनके स्वास्थ्य और निस्तेज (अच्छी हिंदी में कहे तो बुझे हुए) चेहरे को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं. कुछ लोग उन्हें बोन कैंसर से पीड़ित बता रहे हैं तो कुछ अन्य बीमारियों से. लेकिन मीडिया में उनके स्वास्थ्य को लेकर कोई अपडेट नहीं है. अमित शाह ठीक उसी समय गायब हुए थे जब उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन गायब हुए थे. इंडियन मीडिया ने बगदादी की तरह किम को 20 से अधिक बार मार डाला लेकिन किम वापस आ गए, हर तानाशाह की तरह.   इंडियन मीडिया के पास मिसाइल रहता तो खुद ही किम को मार देतें ये बोल हमारा मजा खराब करने क्यों वापस आया तू? जा अब मर!! खैर, अमित शाह जब गायब थे तब मीडिया ने यह स्टोरी गढ़ी कि परदे के पीछे कोरोना से जंग की कमान अमित शाह के हाथ में था. अब जब अमित शाह वापस आये हैं तो मीडिया में आई उनकी फोटो ज़ूम कर देखा जा रहा है, लोग उनके पतले हाथों को देख तंज़ कस रहे हैं कि मांस कहाँ गया? आवाज़ भी स्पष्ट सुनाई नहीं दे रही है जैसे वे गले को मोटा करते हुए बोलते थे “आप क्रोनोलॉजी समझ लीजिए.. पहले सीएबी आने जा रहा है, सीएबी आने के बाद एनआरसी आएगा. एनआरसी सिर्फ बंगाल के लिए नहीं आएगा, पूरे देश के लिए आएगा. ” लेकिन मामला उल्टा हो गया एनआरसी से पहले दुबले पतले अमित शाह आ गए. अब अमित शाह से लड़ने में मजा नहीं आ रहा है. कहाँ हट्टे -कट्टे अमित शाह और कहाँ माचिस की तीली सा अमित शाह. मैं बहुत निराश हूँ! क्या ये बात छुपाई नहीं जा सकती थी. जैसे बीमारी छुपा ली गई, जैसे उस हॉस्पिटल और डॉक्टर को छुपा लिया गया जिन्होंने रात के अंधेरे में अमित शाह का इलाज किया. उन लोगों को बोल दिया रहा होगा कि कोई जानकारी लीक नहीं होना चाहिए. अगर किसी ने किया तो लोया को याद कर लो. लेकिन मजा खुद अमित शाह ने खराब कर दिया. मेरी अमित शाह को एक सलाह है, जैसे हर तानाशाह अपना बॉडी डबल रखते हैं, वैसे ही उन्हें भी रख लेना चाहिए, जब लोग ज्यादा सवाल करने लगे तो एएनआई के कैमरामैन को बुलाकर हट्टे कट्टे बॉडी डबल की फ़ोटो खींच मीडिया में जारी कर दें. बाकी काम मीडिया कर देगा कि फलां फलां मिशन पर हैं अमित शाह. ये दुबला पतला अमित शाह हमें एकदम पसंद नहीं. तानाशाहों का परचम बुलंद रहे! विक्रम सिंह चौहान की एफबी वॉल से!

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Dakhal News 8 May 2020


bhopal, newspapers , relief package, government send money , media persons

अखबारों में कार्यरत कर्मचारियों को मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार वेतनमान व एरियर दिलवाने के लिए संघर्षरत अखबार कर्मियों की यूनियन न्‍यूजपेपर इम्‍प्‍लाइज यूनियन आफ इंडिया (न्‍यूइंडिया) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर अखबार मालिकों की संस्‍था आईएनएस की राहत पैकेज की मांग का विरोध करते हुए मजीठिया वेजबोर्ड लागू करवाने की लड़ाई में नौकरियां गवा चुके हजारों अखबारकर्मियों को सीधे तौर पर आर्थिक मदद की मांग की है। ज्ञात रहे कि ऐसे हजारों अखबार कर्मी नाैकरी छीन जाने के कारण रोजी रोटी को मोहताज हैं। इस संबंध में न्‍यूइंडिया द्वारा लिखा पत्र इस प्रकार से है: अखबार कर्मचारियों के लिए 11 नवंबर 2011 को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित और माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा संवैधानिक घोषित मजीठिया वेज बोर्ड को लागू ना करके देश के संविधान और संसद का मखौल उड़ाने वाले अखबार मालिकों के संगठन आईएनएस की हजारों करोड़ के राहत पैकेज की मांग का हम देश भर के पत्रकार और अखबार कर्मचारी कड़ा विरोध करते हैं। आईएनएस एक ऐसी संस्‍था है जो खुद को देश के संविधान, सर्वोच्‍च न्‍यायालय और संसद से बड़ा समझती है। इसका जीता जागता उदाहरण अखबारों में कार्यारत पत्रकार और गैरपत्रकार कर्मचारियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित और माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा वैध और उचित घोषित किए गए मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को लागू ना करना और वेजबोर्ड को लागू करवाने की लड़ाई में शामिल हजारों अखबार कर्मचारियों को प्रताड़ित करके उनकी नौकरियां छीन लेना है। महोदय, देश के लगभग सभी समाचारपत्रों की पिछली बैलेंसशीटें हर साल होने वाले करोड़ों रुपये के मुनाफे को दर्शाती हैं। वहीं देश भर के श्रम न्‍यायालयों में मजीठिया वेजबोर्ड की रिकवरी और उत्‍पीड़न के हजारों लंबित मामले साफ दर्शाते हैं कि किस तरह से अखबार प्रबंधन अपने कर्मचारियों का हक मार कर बैठे हैं और पत्रकारों, पत्रकारिता और रोजगार के नाम पर अपनी तिजोरियां ही भरते आए हैं। लिहाजा कोराना संकट में हजारों करोड़ के घाटे की बात करके आईएनएस राहत पैकेज की जो बात कर रहा है, यह सिर्फ अखबार मालिकों की तिजोरियां भरने का ही प्रपंच है। इससे अखबारों में कार्यरत कर्मचारियों को कोई लाभ नहीं होने वाला। यहां गौरतलब है कि लॉकडाउन में भी अखबारों की प्रिंटिंग का काम नहीं रोका गया है और अखबारों के प्रसार में मामूली फर्क पड़ा है। महंगाई के दौर में जहां हर वस्‍तु के दाम उसकी लागत के अनुसार वसूले जाते हैं तो वहीं बड़े बड़े अखबार घराने अखबार का दाम इसलिए नहीं बढ़ाते ताकि छोटे अखबार आगे ना बढ़ पाएं। उनकी इस चालाकी को घाटे का नाम नहीं दिया जा सकता है। यहां एक समाचारपत्र द हिंदू का उदाहरण सबके सामने है, जिसकी कीमत 10 रुपये हैं जबकि बाकी अखबार अभी भी इससे आधी से कम कीमत में बेचे जा रहे हैं, इसका खामियाजा देश की जनता की खून पसीने की कमाई को लूटा कर नहीं भरा जा सकता। महोदय, यहां यह बात भी आपके ध्‍यान में लाना जरूरी है कि आईएनएस से जुड़े अधिकतर अखबारों ने केंद्र सरकार की उस अपील का भी सम्‍मान नहीं किया है जिसके तहत कर्मचारियों का वेतन ना काटने को कहा गया था। करीब सभी अखबारों ने जानबूझ कर अपने कर्मचारियों से पूरा काम लेने के बावजूद उनका आधे के करीब वेतन काट लिया है ताकि सरकार को घाटे का यकीन दिलाकर राहत पैकेज का ड्रामा रचा जा सके। वेतन काटे जाने को लेकर कुछ यूनियनें माननीय सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दखिल कर चुकी हैं। महोदय, असल में राहत के हकदार तो वे अखबार कर्मचारी हैं, जो पिछले पांच से छह सालों से मजीठिया वेजबोर्ड की लड़ाई लड़ रहे हैं और इसके चलते अपनी नौकरियां तक गंवा चुके हैं। इनके परिवारों के लिए दो जून की रोटी का प्रबंध करना मुश्किल हो रहा है। केंद्र सरकार से मांग की जाती है कि राज्‍यों के माध्‍यम से श्रम न्‍यायालयों में मजीठिया वेजबोर्ड और अवैध तौर पर तबादले और अन्‍य कारणों से नौकरी से निकाले जाने की लड़ाई लड़ रहे अखबार कर्मचारियों की पहचान करके उन्‍हें आर्थिक तौर पर सहायता मुहैया करवाई जाए।   साथ ही कोरोना महामारी के इस संकट में सरकार सिर्फ उन्‍हीं सामाचारपत्र संस्‍थानों को आर्थिक मदद जारी करे जो अपने बीओडी के माध्‍यम से इस आशय का शपथपत्र देते हैं कि उन्‍होंने मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को केंद्र सरकार की 11.11.2011 की अधिसूचना और माननीय सुप्रीम कोर्ट के 07.02.2014 और 19.06.2017 के निर्णय के अनुसार सौ फीसदी लागू किया है और उसके किसी भी कर्मचारी का श्रम न्‍यायालय या किसी अन्‍य न्‍यायालय में वेजबोर्ड या इसके कारण कर्मचारी को नौकरी से निकालने का विवाद लंबित नहीं है। साथ ही इस संस्‍थान के दावे की सत्‍यता के लिए राज्‍य और केंद्र स्‍तर पर श्रमजीवी पत्रकार और अखबार कर्मचारियों की यूनियनों के सुझाव व आपत्‍तियां लेने के बाद ही इन अखबारों को राहत दी जाए।

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Dakhal News 7 May 2020


bhopal, Punjab Kesari journalist dies of cancer

जयपुर के वरिष्ठ पत्रकार एलएल शर्मा ने जानकारी दी है कि पंजाब केसरी के पत्रकार कमल शर्मा का निधन हो गया है. कमल शर्मा कुछ समय से कैंसर से पीड़ित थे.   दुःखद सूचना. हमारे युवा साथी पत्रकार श्री कमल शर्मा पंजाब केसरी का आज सुबह निधन हो गया. वे पिछले कुछ समय से कैंसर से पीड़ित थे.-एलएल शर्मा

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Dakhal News 7 May 2020


bhopal, Hurt by SP leader, making dirty allegations , character, women journalist

सुसाइड नोट के आधार पर लोहता पुलिस ने सपा नेता शमीम को किया गिरफ्तार वाराणसी। काशी की पत्रकार बिरादरी की एक तेज तर्रार बहुचर्चित महिला पत्रकार रिजवाना तबस्सुम ने रविवार की रात आत्महत्या कर ली। आरोप है कि एक सपा नेता ने रिजवाना पर झूठा इल्जाम लगाया था। दोनों के बीच रात करीब एक बजे विवाद हुआ। बाद में दो लाइन का सुसाइड नोट लिखकर रिजवाना फांसी पर झूल गई। इस घटना से बनारस के पत्रकार मर्माहत और सकते में हैं। रिजवाना की कई स्टोरीज राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो चुकी हैं। विज्ञान में स्नातक रिजवाना तबस्सुम (28 साल) का रविवार की रात अपने आवास पर कमरे में फांसी लगाकर जान देना किसी के गले नहीं उतर रहा है। बतौर स्वतंत्र पत्रकार अपने लेखन से परिवार का खर्च चलाने वाली रिजवाना तब्बसुम ने फंदे पर झूलने पहले लिखे सुसाइड नोट में सपा नेता शमीम नोमानी को जिम्मेदार ठहराया है। शमीम लोहता का रहने वाला है। वो समाजवादी पार्टी में कार्यकारिणी का सदस्य रहा है। रिजवाना की उससे दोस्ती थी। लाकडाउन में वो शमीम के साथ मिलकर गरीबों को राशन वितरित कर रही थी। पत्रकार रिजवाना तबस्सुम द वायर, न्यूज क्लिक, जनज्वार, द प्रिंट, एशिया लाइव, बीबीसी समेत तमाम पत्रिकाओं और न्यूज वेबसाइटों के लिए समसामयिक मुद्दों कवर करती थी। रविवार की रात 9.27 बजे रिजवाना ने न्यूज क्लिक को आखिरी रिपोर्ट भेजी थी। परिजनों के मुताबिक रात करीब एक बजे सपा नेता शमीम नोमानी ने उसे फोन किया था। उसने रिजवाना पर तमाम झूठे इल्जाम लगाए। शमीम ने उस पर कई लोगों के साथ नाजायज संबंध होने के झूठे आरोप जड़ दिए। रिजवाना इस इल्जाम को बर्दाश्त नहीं कर सकी। उसने चार शब्दों का सुसाइड नोट लिखा-शमीम नोमानी जिम्मेदार है। इस नोट को उसने अपने बिस्तर के पास लगे बोर्ड पर पिनअप किया। बाद में अपनी चुनरी निकाली और फांसी का फंदा लगाकर झूल गई। लोहता थाना क्षेत्र के हरपालपुर की रहने वाली फ्रीलान्सर रिजवाना तबस्सुम की आत्महत्या की खबर सोमवार की सुबह जब परिजनों को लगी तो उनके पैरों तले जमीन ही खिसक गई। उन्होंने तुरंत इसकी सूचना स्थानीय पुलिस को दी। मौत की सूचना मिलते ही मौके पर पहुंचे सदर सीओ अभिषेक पाण्डेय ने सुसाइड नोट के आधार पर सपा नेता के खिलाफ मुकदमा दर्ज करते हुए उसे गिरफ्तार कर लिया। सीओ अभिषेक पाण्डेय ने बताया कि रिजवाना की खोजी रपटों के वो भी कायल थे। ग्रामीण जनजीवन में किसानों और गरीबों की बदरंग जिंदगी से जुड़े मुद्दों को रिजवाना काफी अहमियत देती थी। सुसाइड नोट के आधार पर सीओ ने तत्काल समीम नोमानी के खिलाफ धारा 306 (आत्महत्या के लिए प्रेरित करना) के तहत मुकदमा दर्ज करते हुए आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। नोमानी समाजवादी पार्टी की जिला कार्यकारिणी का सदस्य है। आगामी विधानसभा चुनाव में वो सपा से टिकट का दावेदार था। बनारस के लोहता थाने में बंद शमीम अभी भी रिजवाना का चरित्र हनन करने से बाज नहीं आ रहा है। सूत्र बताते हैं कि शमीम की रिजवाना से दोस्ती थी। वो उससे शादी करना चाहता था, लेकिन रिजवाना अपने करियर पर ध्यान दे रही थी। शमीम का उसके दूसरे दोस्तों से बात करना काफी नागवार लगता था। काफी होनहार थी रिजवाना तेजतर्रार और प्रतिभाशाली युवा रिजवाना की मौत से बनारस के पत्रकार बेहद दुखी हैं। लाकडाउन के दौरान रिजवाना ने कई न्यूज वेबसाइटों के लिए यादगार स्टोरियां लिखीं। इन दिनों वो अपने करियर पर ज्यादा ध्यान दे रही थी।   पत्रकार रिजवाना हमेशा सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ी हुई थी। जिसके लिए उसे कई प्रतिष्ठित संस्थानों की ओर से सम्मानित भी किया जा चुका था। रिजवाना अपने पांच भाई बहनों में दूसरे नंबर की थी। इनकी मौत से उसके पिता अजीजुल हकीम, मांग अख्तरजहां, बड़े भाई मोहम्मद अकरम, छोटी बहन नुसरत जहां, इशरत जहां, छोटे भाई मोहम्मद आजम व मोहम्मद असलम का रो-रोकर बुरा हाल है।

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Dakhal News 7 May 2020


bhopal, Mahanayak has opened contracts

समरेंद्र सिंह जनता को कोठे पर बिठा कर पैसे मिले या फिर ठेके पर – सरकारों को बस पैसे से मतलब है…. हजारों साल बाद जो महानायक पैदा हुआ है उसने ठेके खुलवा दिए हैं. उसके इशारे पर विचारधारा की बंदिशें टूट गई हैं. जैसे सबको बस इसी इशारे का इंतजार हो. कुछ अपवादों को छोड़ कर सभी प्रदेश सरकारों ने ठेके खोल दिए हैं. सबने ऐसा क्यों किया है, यह सभी समझ रहे हैं. सरकारों को पैसे की जरूरत है. पैसे कहां से आएंगे? जनता से ही आएंगे. हर बार ऐसा ही होता है. जब भी संकट आता है, सरकार जनता से पैसे लेती है. चाहे वो दान की शक्ल में हो या फिर टैक्स कलेक्शन के नाम पर हो. जनता से पैसे उगाहने के बाद सरकार उस पैसे का बड़ा हिस्सा पूंजीपतियों के हवाले कर देती है. इतना ही नहीं जनता ने जहां-जहां पैसा निवेश करके रखा होता है, सरकार उस पैसे को भी पूंजीपतियों को दे देती है. पूंजीपति जनता के पैसे का एक हिस्सा दबा कर अपने पास रख लेते हैं. दूसरे खातों में साइफनऑफ कर देते हैं. बाकी पैसे काम धंधे में लगा देते हैं. फिर जनता के एक तबके को रोजगार के नाम पर थोड़े-थोड़े पैसे मिलने लगते हैं. सेठ उनके श्रम से मुनाफा कमाने लगते हैं और सरकार को उसका हिस्सा देने लगते हैं. जनता को उसके श्रम की जो भी कीमत मिलती है, उसमें से वो एक हिस्सा आड़े वक्त के लिए बचाकर रखती है. मगर विडंबना देखिए जब भी संकट आता है, उसकी पूंजी घट जाती है. चाहे उसने वो पैसे जमीन में लगाए हों, प्रोपर्टी बाजार में लगाए हों या शेयर बाजार में लगाए हों. सबकुछ घट जाता है. उनके अलावा पीएफ के तौर पर या नकदी और गहने के तौर पर जो कुछ भी होता है, सरकार धीमे-धीमे उनसे वह भी बिकवा देती है. मतलब आम लोगों के जीवन में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आता. वो पहले से अधिक गुलाम हो जाते हैं. इन आम लोगों का वो तबका जो सबसे निचली पायदान पर है, उसके लिए तो संकट और भी बड़ा है. उसके पास अपने श्रम के अलावा कुछ शेष नहीं होता. वो हर रोज मेहनत करके जो दो-चार सौ रुपये कमाता है, सरकार और शराब के व्यापारी उसकी मेहनत की कमाई का बड़ा हिस्सा खींच लेते हैं. सोख लेते हैं. वो शराब पीता है. घर में मारपीट करता है. घर में मारपीट मध्य वर्ग के लोग भी करते हैं. और घर में कोई भी मारपीट करे, बच्चों के दूध और किताबों के पैसे की दारू पी जाए, दवा के पैसे की दारू पी जाए… सरकार को इससे जरा भी फर्क नहीं पड़ता है. उसे बस पूंजी चाहिए. वो चाहे कैसे भी आए. गौर से देखिएगा तो लगेगा कि इस दौर की सरकारों ने अपना हाल “सड़क” फिल्म की “महारानी” है और “अग्निपथ” फिल्म के “रऊफ लाला” जैसा बना लिया है. इन सरकारों का मकसद बस पैसे कमाना है, चाहे पैसे जनता को कोठे पर बिठा कर मिलें या फिर ठेके पर बिठा कर मिलें. और ऐसा करने के बाद भी ये निकम्मी और क्रूर सरकारें नैतिकता का ढोल पीट सकती हैं. ये बेशर्म और वहशी नेता नैतिकता का ढोल पीट सकते हैं. और हां, सरकार किसी की भी हो इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता. गांधी का नाम लेने वाले और राम का नाम लेने वाले – इस मामले में दोनों एक हैं. पूरे नंगे.   (जिन्होंने भी अपने प्रदेश में ठेके बंद रखने का फैसला लिया है, उन सभी को मेरा सलाम।)

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Dakhal News 5 May 2020


bhopal,Independent journalist, Rizwana Tabassum ,commits suicide

यह खबर मेरे लिए ज़िन्दगी की अनबूझ पहेली है…. स्वतंत्र पत्रकार रिजवाना तबस्सुम नहीं रही। अभी एशिया विल के संवाददाता विकास कुमार से इस घटना की जानकारी हो सकी….उनकी पोस्ट में जो कारण है वह ज़िक्र नहीं करूंगा लेकिन बीते रविवार 3 मई को ही तो मेरी इनसे बात हुई थी फोन व व्हाट्सएप पर….बाँदा में तिंदवारी तहसील के भिरौड़ा गांव में दो दिन पहले हार्ट अटैक से किसान की मृत्य पर खबर को लेकर। हाल ही गत सप्ताह इन्होंने बाँदा से 19 फर्जी तब्लीगी जमाती मस्ज़िद से पकड़ने को लेकर भी रिपोर्ट लिखी थी। विकास भाई कहिये यह झूठ है जो आप पोस्ट किए ,कहिये झूठ है यह अविश्वसनीय हैं मेरे लिए। रिजवाना जो कुछ देश मे घटित हो रहा है उससे आहत ज़रूर थी पर इतनी अवसाद में नही थी। कल ही जब मैंने व्हाट्सएप पर बात की तो चलते हुए उनके खुशी के संकेत पर उन्होंने रोजा में होने की बात भी बतलाई थी। क्या हो गया है ये अविश्वसनीय और हृदयविदारक घटना है रिजवाना ने खुदकुशी कर ली! हमारे आसपास जैसा वातावरण बन चुका है व्यक्ति के अंतस को समझकर भी समझ पाना बेहद मुश्किल हो चुका है लेकिन यह भयावह और कोलाहल भरा माहौल है। रिजवाना तबस्सुम द वायर,जनज्वार और भी अन्य वेबसाइट के लिए बेबाकी से लिखती रही है गौरतलब है यह बुंदेलखंड से प्रसारित खबर लहरिया की पत्रकारिता भी करती रही है। आज सुबह रिजवाना नहीं रही….आत्महत्या कर लिया!   यह कैसा रमजान का रोजा था रिजवाना?

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Dakhal News 5 May 2020


bhopal,How easy, Irfan, Ajay Brahmatmaj

लॉकडाउन में 39 दिन से लगातार राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव पेज से साहित्यिक और वैचारिक चर्चाओं का आयोजन किया जा रहा है। इसी सिलसिले में गुरुवार का दिन वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी, लेखक रेखा सेठी, फ़िल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज और इतिहासकार पुष्पेश पंत के सानिध्य में व्यतीत हुआ। राजकमल प्रकाशन समूह के आभासी मंच से ‘हासिल-बेहासिल से परे : इरफ़ान एक इंसान’ सत्र में इरफ़ान के व्यक्तित्व और फ़िल्मों से जुड़े कई किस्से साझा किए फ़िल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज ने। 29 अप्रैल की सुबह इरफ़ान ख़ान हमें छोड़ कर चले गए लेकिन उनकी याद हमारे साथ, हमारे मानस में अमिट है। फ़िल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज ने इरफ़ान को याद करते हुए फ़ेसबुक लाइव के मंच से बताया कि “मुझे हमेशा लगता रहा है कि इरफ़ान हिन्दुस्तानी फ़िल्म इंडस्ट्री में मिसफिट थे। लेकिन, उन्हें यह भी पता था कि फ़िल्में ही ऐसा माध्यम है जो उनकी अभिव्यक्ति को एक विस्तार और गहराई दे सकता था इसलिए वे लगातार फ़िल्में करते रहे।“ इरफ़ान के जीवन की सरलता और सहजता पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि, “ज़िन्दगी की छोटी चीज़ों का उन्हें बहुत शौक था। पतंगबाज़ी करना और खाने का शोक उन्हें नए व्यंजनों की ओर आकर्षित करता था। उन्हें खेती करना बहुत पसंद था। जब भी उन्हें समय मिलता तो वे शहर छोड़कर गाँव चले जाते थे।“ साहित्य के साथ इरफ़ान के रिश्ते को इसी से आंका जाता सकता है कि उनकी बहुत सारी फ़िल्में साहित्यिक रचनाओं पर आधारित हैं। इस विषय पर अपनी बात रखते हुए अजय ब्रह्मात्मज ने कहा कि, “थियेटर की पृष्ठभूमि से आने वाले इरफ़ान के जीवन में साहित्य का बहुत बड़ा योगदान था। कई ऐसी साहित्यिक रचनाएं हैं जो उन्हें बहुत पसंद आयी थी और वे चाहते थे कि कोई इसपर फ़िल्म बनाएं। वे खुशी से इन फ़िल्मों में काम करना पसंद करते। उदय प्रकाश उनके सबसे पसंदीदा लेखकों में से थे। उनकी रचनाओं के नाट्य रूपांतरण में उन्होंने काम भी किया था।“ इरफ़ान अपनी फ़िल्मों के किरदार पर बहुत मेहनत करते थे। पान सिंह तोमर, अशोक गांगूली या इलाहाबाद के छात्र नेता का किरदार, यह सभी इस बात का प्रमाण है कि वे अपने दर्शकों को उस स्थान की प्रमाणिकता से अभिभूत कर देते थे। अजय ब्रह्मात्मज ने कहा कि, “इरफ़ान के जीवन में उनकी पत्नी सुतपा का रोल बहुत महत्वपूर्ण है। एनएसडी के समय से दोनों दोस्त थे और सुतपा ने राजस्थान की मिट्टी से गढ़े इरफ़ान के व्यक्तित्व को निखारने और संवारने में अपना बहुत कुछ अर्पित किया है।“ अलगाव की स्थिति स्थाई नहीं होनी चाहिए – अशोक वाजपेयी अप्रैल का महीना समाप्त होने वाला है। 40 दिन से भी अधिक दिनों से हम एकांतवास में हैं। लेकिन आभासी दुनिया के जरिए हम दूसरे से जुड़े हुए हैं। गुरुवार की शाम राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक पेज से जुड़कर वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने लोगों के साथ एकांतवास में जीवन एवं लॉकडाउन के बाद के समय की चिंताओं पर अपने विचार व्यक्त किए। आभासी दुनिया के मंच से जुड़कर अशोक वाजपेयी ने कहा, “इन दिनों इतना एकांत है कि कविता लिखना भी कठिन लगता हैं। हालांकि यह एक रास्ता भी है इस एकांत को किसी तरह सहने का। यही मानकार मैंने कुछ कविताएं लिखीं हैं।“ अशोक वाजपेयी ने कहा कि यह कविताएं लाचार एकांत में लिखी गई नोटबुक है। लाइव सेशन में उन्होंने अपनी कुछ कविताओं का पाठ किया– “घरों पर दरवाज़ों पर कोई दस्तक नहीं देता / पड़ोस में कोई किसी को नहीं पुकारता/ अथाह मौन में सिर्फ़ हवा की तरह अदृश्य/ हलके से हठियाता है / हर दरवाज़े हर खिड़की को / मंगल आघात पृथ्वी का/ इस समय यकायक / बहुत सारी जगह है खुली और खाली/ पर जगह नहीं है संग-साथ की/ मेल-जोल की/ बहस और शोर की / पर फिर भी जगह है/ शब्द की/ कविता की/ मंगलवाचन की…” लॉकडाउन का हमारे साहित्य और ललित कलाओं पर किस तरह का और कितना असर होगा इसपर अपने मत व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, “हमारे यहाँ सामान्य प्रक्रिया है कि श्रोता या दर्शक संगीत या नृत्य कला की रचना प्रक्रिया में शामिल रहते हैं। लेकिन, आने वाले समय में अगर यह बदल गया तो यह कलाएं कैसे अपने को विकसित करेंगी? साथ ही सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि, वो बिना कार्यक्रमों के जीवन यापन कैसे करेंगी? उनके लिए आर्थिक मॉडल विकसित कर उन्हें सहायता देना हमारी जिम्मेदारी है। जरूरत है इस संबंध में एकजुट विचार के क्रियान्वयन की। साहित्य में भी ई-बुक्स का चलन बढ़ सकता है।“ उन्होंने यह भी कहा, “कोरोना महामारी ने सामाजिकता की नई परिभाषा को विकसित किया है। लोग एक-दूसरे की मदद के लिए आगे आ रहे हैं लेकिन महामारी का यह असामान्य समय व्यक्ति और व्यक्ति के बीच के संबंध को नई तरह से देखेगा। जब हम एक दूसरे से दूर- दूर रहेंगे, एक दूसरे को बीमारी के कारण की तरह देखने लगेंगे…तो दरार की संभावनाएं बढ़ जाएगीं। यह भय का माहौल पैदा करेगा। हमारा सामाजिक जीवन इससे बहुत प्रभावित होगा। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि यह अलगाव स्थायी न हो।“ लॉकडाउन है लेकिन हमारी ज़ुबानों पर ताला नहीं लगा है। इसलिए हमें अपनी अभिव्यक्ति के अधिकार का पूरा उपयोग करना चाहिए। हम, इस समय के गवाह हैं। साहित्यिक विमर्श के कार्यक्रम के तहत राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव के मंच से रेखा सेठी ने स्त्री कविता पर बातचीत की। लाइव जुड़कर बहुत ही विस्तृत रूप में स्त्रियों पर आधारित कविताओं पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि, “स्त्रियों के प्रति संवेदनशीलता की कविताएं सिर्फ़ स्त्रियों ने नहीं लिखे हैं, बल्कि हिन्दी साहित्य में बहुत ऐसे कवि हैं जिन्होंने हाशिए पर खड़ी स्त्री को अपनी कविता का केन्द्र बनाया है।“ उन्होंने बातचीत में कहा कि “जब स्त्रियों ने अपने मानक को बदलकर अपने आप को पुरूष की नज़र से नहीं, एक स्त्री की नज़र से देखना शुरू किया, अपनी बात को संप्रेषित करना शुरू किया तो वहीं बदलाव की नई नींव पड़ी।“   स्त्री कविता पर रेखा सेठी की दो महत्वपूर्ण किताब – स्त्री कविता: पक्ष और परिपेक्ष्य तथा स्त्री कविता: पहचान औऱ द्वन्द राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है।

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Dakhal News 5 May 2020


bhopal, Corona tragedy is over, Sir Ration is over. Ask for money from home

वाराणसी। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में लाकडाउन में राशन खत्म होने से परेशान छात्र ने जब प्रशासन के सक्षम अधिकारी को फोन करके कहा कि सर राशन खत्म हो गया है तो जवाब मिला घर से पैसे मंगा लो। यही नहीं, अधिकारी ने कहा कि सभी को मदद करना संभव नहीं है, केवल 1 फीसदी लोगों को मदद करने के लिए ही योजना है। छात्र ने कहा कुछ कीजिए सर हमे घर ही भिजवा दीजिए तो फोन काट दिया गया। दरअसल लाकडाउन के चलते काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के धर्म विज्ञान संस्थान के छात्र रोशन पाण्डेय, विवेक उपाध्याय, सूर्यकान्त द्विवेदी और उनके साथी बनारस में ही फंस गए हैं। मूलतः बिहार के विभिन्न जिलों के निवासी इन छात्रों का कहना है कि उनके पास रखा अनाज पिछले एक महीने से जारी लाक डाउन के चलते खत्म हो गया है, पैसे की भी दिक्कत है। ऐसे में पिछले चार दिनों से वो जिला प्रशासन के अधिकारियों से सम्पर्क कर रहे हैं लेकिन उन्हें आगे का मोबाइल नंबर थमा कर टाला जा रहा है। उनकी समस्या को बाईपास किया जा रहा है। फोन करने पर फोन तक नहीं उठाया जा रहा है। आज खाद्य आपूर्ति विभाग के एक अधिकारी से जब उन्होंने मोबाइल से बात कर खाने में आ रही तकलीफ़ का जिक्र किया तो अधिकारी महोदय ने घर से पैसे मंगवाने की सलाह दे डाली। छात्रों का कहना है उन्हें तुंरत मदद की ज़रूरत है। प्रशासनिक अधिकारियों के रवैए से नाराज़ छात्रों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ट्वीट कर अपनी समस्या से अवगत कराया है।   बनारस से भास्कर गुहा नियोगी की रिपोर्ट.

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Dakhal News 1 May 2020


bhopal, A train departed silently 1225 workers returning to their country

जिस वक्त यह खबर भड़ास4मीडिया पर अपलोड हो रही है, 1225 यात्रियों को लेकर एक स्पेशल ट्रेन पटरियों पर धड़ाधड़ दौड़ रही होगी. ये ट्रेन आज सुबह पांच बजे लिंगमपल्ली से चली है और रात ग्यारह बजे हटिया पहुंच जाएगी. इस ट्रेन का संचालन इस कदर गोपनीय रखा गया कि ट्रेन के टीटी को कल रात बारह बजे यानि ट्रेन चलते से ठीक पांच घंटे पहले बताया गया कि आपकी इस ट्रेन में ड्यूटी है, समय से पहुंच जाएं. इस स्पेशल ट्रेन का नंबर है 02704. बताया जाता है कि तेलंगाना सरकार के अनुरोध पर और रेल मंत्रालय के निर्देशानुसार लिंगमपल्ली (हैदराबाद) से हटिया (झारखंड) तक ये विशेष ट्रेन चलाई गई. ये स्पेशल ट्रेन गिस लिंगमपल्ली स्टेशन से चली है, वह सिकंदराबाद में पड़ता है. सिंकदराबाद आंध्रप्रदेश में है. इस ट्रेन के जरिए मजदूरों को उनके होम टाउन भेजा जा रहा है. इस ट्रेन के संचालन को लेकर जो सरकुलर जारी हुआ वह भड़ास के पास है. इसे नीचे दिया जा रहा है. इस ट्रेन के कुछ वीडियो फुटेज भी भड़ास के पास है जिसे आप नीचे देख सकते हैं.   इन 1225 मजदूरों के लिए आज मजदूर दिवस वाकई सुखद और ऐतिहासिक रहा. ये लोग आज के एक मई को कभी न भूलेंगे.

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Dakhal News 1 May 2020


bhopal, Buddha ,most powerful man,world ,during the times, Mahaapada

मानवता का दुर्भाग्य है कि शताब्दियों में कभी एक बार आने वाली महाआपदा के काल में एक बौड़म दुनिया का सबसे ताकतवर आदमी है! जब Action का समय था, तब शेखी बघार रहे थे, चीनी वायरस-वुहान वायरस करके चीनियों का मजाक उड़ा रहे थे, नमस्ते ट्रम्प में व्यस्त थे, और अब जब अमेरिका में लाशों का अम्बार लगने लगा है, इनके हाथ-पैर फूल गए हैं, इस सनकी ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है! रोज पागलपनभरे बयान आ रहे हैं। ताज़ा बयान में इन्होंने फरमाया है कि अगर disinfectant जैसे डेटॉल, साबुन, डिटर्जेंट आदि से कोरोना मर रहा है, तो सभी मरीजों को इनका इंजेक्शन लगा दिया जाँय! इनके बयान से घबड़ाये डेटॉल (Lyson &Dettol) के मालिक/प्रवक्ता Reckitt Benckiser ने तुरंत बयान जारी कर कड़ी चेतावनी दिया कि किसी भी हाल में डेटॉल का इंजेक्शन किसी भी मरीज को न दिया जाय। यह घातक है! दरअसल, अमेरिका में मौत का तांडव जारी है, उधर ताकतवर कारपोरेट लॉबी का लॉकडाउन खोलने का आत्मघाती दबाव है और इधर राष्ट्रपति चुनाव नजदीक आता जा रहा है, इसमें भयभीत अमेरिकी जनता को दिलासा दिलाने, भटकाने, अच्छे दिन की उम्मीद जगाने के लिए ट्रम्प जादू की छड़ी की तलाश में हैं! कल उन्होंने और एक नायाब नमूना पेश किया, “लोग धूप का आनंद लें। इसका फायदा होता है तो यह बहुत अच्छी बात होगी। यह बस एक सुझाव है, from a brilliant lab, by a very very smart, perhaps brilliant man!” वैज्ञानिकों ने यह जरूर बताया है कि वातावरण में, धूप में वायरस कुछ घंटो मैं मर जाता है लेकिन मानव शरीर में जो वायरस है, उसका इस sun therapy से क्या लेना देना ? आप चाहें तो ट्रम्प के इन नायाब नुस्खों की तुलना गोमूत्र चिकित्सा या ताली-थाली, go Korona go से कर सकते हैं! आइए, अब अपने देश में कोरोना से निपटने के सबसे सफल मॉडल को लेकर चर्चा कर लें। मुझे केरल के अपने भाई-बहनों से ईर्ष्या होती है! काश भारत केरल का ही विस्तार होता, शैलजा टीचर हमारी स्वास्थ्यमंत्री और …. केरल आज पूरी दुनिया में चर्चा में है । ग्लोबल एक्सपर्ट्स, मीडिया, बुद्धिजीवी केरल के अनुभव से सबको सीखने की सलाह दे रहे हैं। केरल जहां भारत में सबसे पहले कोरोना ने दस्तक दी, जहां एक समय Covid19 के सबसे ज्यादा मामले थे, ताज़ा आंकड़ों के अनुसार वहां मात्र 1 नया मामला आया है, कुल 3 मौत हुई है, मात्र 138 मरीज हैं, 255 लोग ठीक हो चुके हैं विशेषज्ञों की तकनीकी भाषा में महामारी का curve वहां flatten हो गया है! जब‌कि, बाकी पूरे देश में कोरोना कहर बरपा कर रहा है। उधर केरल अब लॉकडाउन के संभावित खात्मे के बाद के दौर के लिए तैयारियों के अगले चरण की ओर बढ़ चुका है। जबकि, केरल देश के सबसे सघन आबादी वाले इलाकों में है, जो high international mobility वाला राज्य है और वैश्विक अर्थव्यवस्था से गहराई से जुड़ा हुआ है जहां से सम्भवतः आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा खाड़ी देशों समेत विदेशों में माइग्रेंट लेबर है, चीन समेत दुनिया के तमाम देशों में पढ़ाई और नौकरियां करता है। उक्त सब कारकों के सम्मिलित प्रभाव से केरल को कोरोना के सबसे बदतरीन शिकार Hotspots में होना चाहिए था। लेकिन हो रहा है ठीक उलटा, केरल हमारी सबसे बड़ी उम्मीद बन कर उभरा है । प्रधानमंत्री जी राष्ट्र के नाम अपने संबोधनों में इशारे इशारे में यह जताते हैं कि हमारे पास पश्चिम के समृद्ध देशों जैसे संसाधन नहीं हैं, फिर भी हम इतना कर रहे हैं, वे अपनी पीठ ठोंकते हैं। वे अमेरिका, यूरोप से भारत की तुलना करते हैं। आखिर केरल जो हमारे ही देश का एक राज्य है जिससे सीखने की बात पूरी दुनिया में हो रही है, उसका तुलनात्मक अध्ययन करते हुए उससे सीखने की बात वे क्यों नहीं करते? आज Experts की राय में हमारे लिए complacency का कोई कारण नहीं है। पूरी दुनिया भारत की आबादी, जनसंख्या घनत्व, गरीबों की जीवन-स्थितियों, भारत की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली, कोरोना के अत्यंत सीमित टेस्ट, यहां चल रहे नफरती सामाजिक-राजनीतिक एजेंडा आदि के मद्देनजर भारत को लेकर आशंकित और ख़ौफ़ज़दा है। महासंकट की इस घड़ी में क्या देश केरल मॉडल से सीखेगा? भारी विविधतापूर्ण समाज(जहां लगभग आधी आबादी धार्मिक अल्पसंख्यकों की है-25% मुस्लिम, 20% ईसाई आबादी सहित सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, यहूदी) की चट्टानी एकता और सामाजिक सौहार्द के साथ, अपनी शिक्षित मानवीय संपदा-नागरिक समाज, विकेन्द्रित लोकतांत्रिक राजनैतिक-प्रशासनिक मशीनरी, बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाओं और दूरदर्शी, चुस्त-दुरुस्त, समय रहते सटीक पहल लेते जवाबदेह नेतृत्व के बल पर केरल ने आज यह चमत्कार किया है! यही भारत के लिए उम्मीद की किरण है!   लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं.

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Dakhal News 27 April 2020


bhopal, Buddha ,most powerful man,world ,during the times, Mahaapada

मानवता का दुर्भाग्य है कि शताब्दियों में कभी एक बार आने वाली महाआपदा के काल में एक बौड़म दुनिया का सबसे ताकतवर आदमी है! जब Action का समय था, तब शेखी बघार रहे थे, चीनी वायरस-वुहान वायरस करके चीनियों का मजाक उड़ा रहे थे, नमस्ते ट्रम्प में व्यस्त थे, और अब जब अमेरिका में लाशों का अम्बार लगने लगा है, इनके हाथ-पैर फूल गए हैं, इस सनकी ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है! रोज पागलपनभरे बयान आ रहे हैं। ताज़ा बयान में इन्होंने फरमाया है कि अगर disinfectant जैसे डेटॉल, साबुन, डिटर्जेंट आदि से कोरोना मर रहा है, तो सभी मरीजों को इनका इंजेक्शन लगा दिया जाँय! इनके बयान से घबड़ाये डेटॉल (Lyson &Dettol) के मालिक/प्रवक्ता Reckitt Benckiser ने तुरंत बयान जारी कर कड़ी चेतावनी दिया कि किसी भी हाल में डेटॉल का इंजेक्शन किसी भी मरीज को न दिया जाय। यह घातक है! दरअसल, अमेरिका में मौत का तांडव जारी है, उधर ताकतवर कारपोरेट लॉबी का लॉकडाउन खोलने का आत्मघाती दबाव है और इधर राष्ट्रपति चुनाव नजदीक आता जा रहा है, इसमें भयभीत अमेरिकी जनता को दिलासा दिलाने, भटकाने, अच्छे दिन की उम्मीद जगाने के लिए ट्रम्प जादू की छड़ी की तलाश में हैं! कल उन्होंने और एक नायाब नमूना पेश किया, “लोग धूप का आनंद लें। इसका फायदा होता है तो यह बहुत अच्छी बात होगी। यह बस एक सुझाव है, from a brilliant lab, by a very very smart, perhaps brilliant man!” वैज्ञानिकों ने यह जरूर बताया है कि वातावरण में, धूप में वायरस कुछ घंटो मैं मर जाता है लेकिन मानव शरीर में जो वायरस है, उसका इस sun therapy से क्या लेना देना ? आप चाहें तो ट्रम्प के इन नायाब नुस्खों की तुलना गोमूत्र चिकित्सा या ताली-थाली, go Korona go से कर सकते हैं! आइए, अब अपने देश में कोरोना से निपटने के सबसे सफल मॉडल को लेकर चर्चा कर लें। मुझे केरल के अपने भाई-बहनों से ईर्ष्या होती है! काश भारत केरल का ही विस्तार होता, शैलजा टीचर हमारी स्वास्थ्यमंत्री और …. केरल आज पूरी दुनिया में चर्चा में है । ग्लोबल एक्सपर्ट्स, मीडिया, बुद्धिजीवी केरल के अनुभव से सबको सीखने की सलाह दे रहे हैं। केरल जहां भारत में सबसे पहले कोरोना ने दस्तक दी, जहां एक समय Covid19 के सबसे ज्यादा मामले थे, ताज़ा आंकड़ों के अनुसार वहां मात्र 1 नया मामला आया है, कुल 3 मौत हुई है, मात्र 138 मरीज हैं, 255 लोग ठीक हो चुके हैं विशेषज्ञों की तकनीकी भाषा में महामारी का curve वहां flatten हो गया है! जब‌कि, बाकी पूरे देश में कोरोना कहर बरपा कर रहा है। उधर केरल अब लॉकडाउन के संभावित खात्मे के बाद के दौर के लिए तैयारियों के अगले चरण की ओर बढ़ चुका है। जबकि, केरल देश के सबसे सघन आबादी वाले इलाकों में है, जो high international mobility वाला राज्य है और वैश्विक अर्थव्यवस्था से गहराई से जुड़ा हुआ है जहां से सम्भवतः आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा खाड़ी देशों समेत विदेशों में माइग्रेंट लेबर है, चीन समेत दुनिया के तमाम देशों में पढ़ाई और नौकरियां करता है। उक्त सब कारकों के सम्मिलित प्रभाव से केरल को कोरोना के सबसे बदतरीन शिकार Hotspots में होना चाहिए था। लेकिन हो रहा है ठीक उलटा, केरल हमारी सबसे बड़ी उम्मीद बन कर उभरा है । प्रधानमंत्री जी राष्ट्र के नाम अपने संबोधनों में इशारे इशारे में यह जताते हैं कि हमारे पास पश्चिम के समृद्ध देशों जैसे संसाधन नहीं हैं, फिर भी हम इतना कर रहे हैं, वे अपनी पीठ ठोंकते हैं। वे अमेरिका, यूरोप से भारत की तुलना करते हैं। आखिर केरल जो हमारे ही देश का एक राज्य है जिससे सीखने की बात पूरी दुनिया में हो रही है, उसका तुलनात्मक अध्ययन करते हुए उससे सीखने की बात वे क्यों नहीं करते? आज Experts की राय में हमारे लिए complacency का कोई कारण नहीं है। पूरी दुनिया भारत की आबादी, जनसंख्या घनत्व, गरीबों की जीवन-स्थितियों, भारत की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली, कोरोना के अत्यंत सीमित टेस्ट, यहां चल रहे नफरती सामाजिक-राजनीतिक एजेंडा आदि के मद्देनजर भारत को लेकर आशंकित और ख़ौफ़ज़दा है। महासंकट की इस घड़ी में क्या देश केरल मॉडल से सीखेगा? भारी विविधतापूर्ण समाज(जहां लगभग आधी आबादी धार्मिक अल्पसंख्यकों की है-25% मुस्लिम, 20% ईसाई आबादी सहित सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, यहूदी) की चट्टानी एकता और सामाजिक सौहार्द के साथ, अपनी शिक्षित मानवीय संपदा-नागरिक समाज, विकेन्द्रित लोकतांत्रिक राजनैतिक-प्रशासनिक मशीनरी, बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाओं और दूरदर्शी, चुस्त-दुरुस्त, समय रहते सटीक पहल लेते जवाबदेह नेतृत्व के बल पर केरल ने आज यह चमत्कार किया है! यही भारत के लिए उम्मीद की किरण है!   लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं.

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Dakhal News 27 April 2020


bhopal, this period,retrenchment, your job is left , media

कैसे मीडिया इंडस्ट्री के लिए काल बना कोरोना वायरस – पार्ट (2) पिछली पोस्ट पर जो भी प्रतिक्रियाएं आयी हैं, उनमें से सिर्फ दो जिक्र लायक हैं. पहली प्रतिक्रिया में किसी ने कहा है कि सभी सेक्टरों का हाल ऐसा ही है. दूसरी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया एक मझौले अखबार के संपादक महोदय की है. उन्होंने मीडियाकर्मियों की मौजूदा तनावपूर्ण स्थिति के लिए बड़े मीडिया संस्थानों को जिम्मेदार ठहराया है. उनके मुताबिक यह नैतिक भ्रष्टाचार का मसला है. हर साल सैकड़ों करोड़ का मुनाफा कमाने वाले मीडिया संस्थान क्या दो-तीन महीने भी अपने कर्मचारियों का ख्याल नहीं रख सकते? वो चाहते तो अपने कर्मचारियों का ख्याल रख सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा करने की जगह अवसर का फायदा उठना सही समझा. वो खर्च कम करने के लिए छंटनी कर रहे हैं. वेतन में कटौती कर रहे हैं और लोगों को छुट्टियों पर भेज रहे हैं. पहली प्रतिक्रिया, जिसमें कहा गया है कि सभी उद्योग धंधे संकट से जूझ रहे हैं, इस दौर की एक कड़वी सच्चाई है. पिछले पोस्ट में मैंने इसका जिक्र किया था कि इस साल देश की अर्थव्यवस्था की ग्रोथ निगेटिव रहने का अनुमान है. इस सीरीज में हम मीडिया पर चर्चा कर रहे हैं, इसलिए मोटे तौर पर बात इसी पर केंद्रित रखेंगे. लेकिन जब भी जरूरत महसूस होगी हम अर्थव्यवस्था के कुछ बुनियादी बदलावों की चर्चा भी करते रहेंगे. जहां तक संपादक महोदय की प्रतिक्रिया का सवाल है, वह एक आधी-अधूरी सच्चाई है. मसला इतना सीधा-सपाट नहीं हैं. चुनौती वाकई बड़ी है. यह चुनौती इसलिए भी बड़ी है क्योंकि मीडिया इंडस्ट्री बीते कुछ साल से संकट से जूझ रही थी. नोटबंदी और आर्थिक मंदी की वजह से उसका मुनाफा पहले ही घटा हुआ था. लिहाजा संपादक जी की प्रतिक्रिया पर भी हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे. अभी मीडिया इंडस्ट्री में कर्मचारियों की मौजूदा स्थिति पर गौर कर लेते हैं. उसके लिए सबसे पहले देश और दुनिया में मीडियाकर्मियों की छंटनी और वेतन कटौती से जुड़ी कुछ बड़ी घोषणाओं पर एक सरसरी नजर डालते हैं. पश्चिमी देश: 1) दुनिया के सबसे ताकतवर मीडिया समूह में से एक – डिजनी के चोटी के अधिकारियों ने 20-50 प्रतिशत तक वेतन कटौती का फैसला लिया. यह बड़ा फैसला है. 2) फॉक्स न्यूज को नियंत्रित करने वाली कंपनी फॉक्स कॉर्प ने 700 एक्जीक्यूटिव्स की तनख्वाह में कम से कम 15 प्रतिशत की कटौती की है. ऊपर के पदों पर यह कटौती और भी ज्यादा है. 3) लंदन के फाइनेंशियल टाइम्स के सीईओ ने 30 प्रतिशत का सेलेरी कट लिया है. बोर्ड अफसरों की वेतन में 20 प्रतिशत कटौती हुई है. जबकि मैनेजर और संपादकों के वेतन में 10 प्रतिशत की कटौती की गई है. 4) फॉर्चून मैगजीन ने 35 कर्मचारियों की छंटनी की है. सीईओ का वेतन 50 प्रतिशत कटा है. बाकी कर्मचारियों की तनख्वाह 30 प्रतिशत घटायी गई है. 5) ब्रिटेन के टेलीग्राफ मीडिया ग्रुप ने गैर संपादकीय विभाग के कर्मचारियों के काम का दिन घटा दिया है. अब उन्हें सप्ताह में सिर्फ 4 दिन का ही रोजगार मिलेगा. लिहाजा उनका वेतन 20 प्रतिशत काट दिया गया है. ये विकसित देशों के कुछ बड़े और सम्मानित मीडिया संस्थानों की मौजूदा स्थिति है. खबरों के मुताबिक ऐसे मीडिया संस्थानों की संख्या बहुत ज्यादा है जिन्होंने छंटनी की है, कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजा है या फिर वेतन में कटौती की है. कुछ संस्थानों ने इनमें से दो या फिर सभी तीन कदम उठाए हैं. ये शुरुआती आंकड़े हैं. विस्तृत लिस्ट के लिए आप इन दो लिंक्स में से किसी एक पर क्लिक कर सकते हैं: https://www.forbes.com/sites/noahkirsch/2020/04/06/tracker-media-layoffs-furloughs-and-pay-cuts/ भारत: 1) देश में सच्ची पत्रकारिता की मशाल जिंदा रखने का दावा इंडियन एक्सप्रेस समूह करता है. ये समूह हर साल लाखों रुपये गोयनका अवार्ड के नाम पर बांटता है. इस समूह ने वेतन कटौती का फैसला सबसे पहले लिया. यहां अस्थाई तौर पर कर्मचारियों के वेतन में 10 से 30 प्रतिशत की कटौती की गई है. 2) देश का सबसे बड़ा और ताकतवर अंग्रेजी मीडिया समूह टाइम्स ऑफ इंडिया है. विज्ञापन और अन्य तरीकों से इसको जितने पैसे मिलते हैं, उतना पैसा कोई और मीडिया समूह नहीं कमाता है. इस समूह ने अपनी संडे मैगजीन के सभी कर्मचारियों को एक झटके में नौकरी से निकाल दिया. जैसे वो कर्मचारी नहीं शत्रु हों. बाकी जगह भी कटौती का प्रस्ताव है. 3) हिंदुस्तान टाइम्स के टॉप मैनेजमेंट ने खुद ही 25 प्रतिशत वेतन कटौती का प्रस्ताव दिया है. 4) एनडीटीवी ने अपने कर्मचारियों की तनख्वाह में 10 से 40 प्रतिशत तक की कटौती का फैसला लिया है. ये स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड कंपनी है, इसलिए इसे अपने फैसलों के बारे में सेबी को बताना होता है. सेबी को कंपनी ने बताया है कि यह फैसला पहले क्वार्टर के लिए है. उसके बाद इस पर फिर से विचार होगा. 5) मीडिया ग्रुप क्विंट तो इस समय वजूद की लड़ाई लड़ रहा है. उसने अपने आधे कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया है. 50 हजार से ऊपर जिनकी भी तनख्वाह है उसमें 50 प्रतिशत की कटौती की है. लेकिन इसमें एक ख्याल रखा गया है कि 50 हजार से ऊपर की तनख्वाह वालों को कटौती के बाद भी कम से कम 50 हजार रुपये मिलते रहें. दो लाख रुपये से ऊपर वेतन वाले सभी कर्मचारियों को उनकी सीटूसी का सिर्फ 25 प्रतिशत ही भुगतान होगा. यह फैसला हालात सामान्य होने पर वापस ले लिया जाएगा. 6) न्यूज नेशन ने अपनी अंग्रेजी वेबसाइट पर तैनात 16 कर्मचारियों की पूरी टीम को एक झटके में विदा कर दिया है. वहां अन्य भी जगह पर छंटनी और कटौती की तलवार लटक रही है. 7) इंडिया न्यूज समूह में बीते कई महीने से कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं मिल रही थी. यह हाल कोरोना वायरस से पहले का था. अब वहां क्या होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. 8) पत्रिका समूह ने अपने यहां पर कर्मचारियों की तनख्वाह ही रोक दी है. एक खबर के मुताबिक सभी को सिर्फ 15-15 हजार रुपये का ही भुगतान किया गया. 9) हरिभूमि अखबार में 30 प्रतिशत तक कटौती की गई है. अधिक जानकारी के लिए आप इन लिंक्स पर क्लिक कर सकते हैं: https://www.exchange4media.com/coronavirus-news/media-houses-sanction-layoffs-pay-cuts-amid-covid-19-crisis-103948.html https://www.coverageindia.com/2020/04/30-50.html ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं. मीडिया इंडस्ट्री में काम करने वाले जानते हैं कि कोई भी संस्थान ऐसा नहीं है जो अछूता है. सभी जगह से छंटनी, छुट्टी पर भेजे जाने और वेतन कटौती की खबरें आ रही हैं. जिनकी नौकरियां बची हैं, उन्हें यह अहसास कराया जा रहा है कि वो खुशकिस्मत हैं. इसलिए ज्यादा चू-चपड़ नहीं करें, वरना उन्हें भी छांटा जा सकता है. कुछ मीडिया संस्थानों ने मार्च में ही ये फैसला लागू कर दिया है. कुछ इसे अप्रैल महीने से लागू कर रहे हैं. जो बचे हैं संकट जारी रहा तो वो भी ऐसा करने पर मजबूर हो जाएंगे. ज्यादातार मीडिया संस्थान इसे अस्थाई निर्णय बता रहे हैं. मगर कुछ ने ऐसा कोई इशारा नहीं किया है. मतलब वहां यह फैसला स्थाई भी हो सकता है. अतीत में ऐसे कई उदाहरण हमारे पास मौजूद हैं. कुछ बुनियादी सवाल- आखिर मीडिया कंपनियां वेतन कटौती और छंटनी क्यों कर रही हैं? जैसा कि एक मझौले अखबार के संपादक ने कहा है… क्या ये महज नैतिक भ्रष्टाचार का मामला है? या फिर संकट सच में बड़ा है? और संकट बड़ा है तो कितना बड़ा है? इससे मीडिया की संरचना पर क्या फर्क पड़ेगा? मीडिया के कौन-कौन से धड़े सबसे अधिक प्रभावित होंगे? मतलब प्रिंट, टेलीविजन और ऑनलाइन मीडिया में किस-किस तरह के बदलाव होंगे? इससे मीडिया की आजादी पर क्या असर पड़ेगा? पत्रकारों की स्वतंत्रता पर क्या असर पड़ेगा? मीडिया पर स्टेट कंट्रोल बढ़ेगा या घटेगा? स्टेट कंट्रोल का अर्थ क्या है? कॉरपोरेट-पॉलिटिकल नेक्सस किस तरह से अभिव्यक्ति की आजादी (फ्रीडम ऑफ स्पीच) नियंत्रित करता है? जब भी कोई मंदी या आर्थिक रुकावट आती है तो उससे मीडिया और पत्रकारों की आजादी पर किस तरह का फर्क पड़ता है? ये कुछ बुनियादी सवाल हैं. इन सवालों पर हम आने वाले दिनों में एक के बाद एक चर्चा करेंगे. लेकिन इन बुनियादी सवालों पर चर्चा करने के साथ हम कुछ और सवालों पर भी चर्चा करेंगे. मसलन इन बदलावों से मीडिया के फ्रंट लाइन पर किस तरह का असर होगा? वो पत्रकार जो जमीन पर काम कर रहे हैं, अपनी जान दांव पर लगा कर काम कर रहे हैं, उनकी सेहत पर कितना असर पड़ेगा? वो पत्रकार जो ईमानदार हैं और किसी तरह दो जून की रोटी कमा रहे हैं, वो कैसे जिंदा रहेंगे और अपनी जिम्मेदारियां को पूरा करेंगे? यहां एक बात हम सभी को ध्यान रखनी चाहिए कि आने वाले दिनों में बहुत कुछ बदलेगा. कोरोना वायरस का कहर जब थमेगा तो दुनिया पहले जैसे नहीं रहेगी. हम और हमारी दुनिया सीखेगी, उदार होगी इसकी संभावना कम है. आशंका ज्यादा इस बात है कि जो अधिकार, जो आजादी लंबे संघर्ष के बाद हासिल की गई थी, वो अधिकार छीने जा सकते हैं, वो आजादी कम हो सकती है. यह एक बहुत बड़ा सच है कि जो आर्थिक तौर पर गुलाम है, वो सियासी तौर पर आजाद नहीं हो सकता. और हमारे यहां मीडिया को ठीक उसी तरह विकसित किया गया, जैसे किसी गुलाम को खिला-पिला कर किसी युद्ध के लिए तैयार किया जाता है. (जारी) एनडीटीवी में लंबे समय तक कार्यरत रहे बेबाक पत्रकार समरेंद्र सिंह का विश्लेषण! 

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Dakhal News 27 April 2020


bhopal, How Corona Virus Part 1 Called for Media Industry

समरेंद्र सिंह किसी भी व्यवस्था में पूंजी का खास महत्व होता है, लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था में इसका महत्व अत्याधिक है. अमेरिकी प्रोफेसर डेविड हार्वे के मुताबिक जिस प्रकार हमारे शरीर को संचालित करने के लिए खून का संतुलित और निरंतर प्रवाह जरूरी है, ठीक वैसे ही पूंजीवादी व्यवस्था में “पूंजी का प्रवाह” महत्वपूर्ण है. पूंजी का प्रवाह जब भी रुकता है, व्यवस्था चरमराने लगती है. कोविड-19 ने ये प्रवाह बहुत हद तक रोक दिया है. पूरी दुनिया की व्यवस्था गड़बड़ा गई है. बड़ी-बड़ी कंपनियों की भी हालत खराब है. सब सरकार से पैकेज की आस लगाए बैठे हैं. यह हाल तो अभी का है. महामारी कुछ महीने और चली तो जो व्यवस्थाएं पूरी तरह पूंजीवादी हैं, वहां अराजक स्थिति हो सकती है. इसलिए दुनिया भर में इस पर शोध हो रहे हैं कि असर कितना होगा और दुनिया का सत्ता समीकरण किस हद तक परिवर्तित होगा. इसी सच्चाई को केंद्र में रख कर मैंने मीडिया पर यह सीरीज लिखने का फैसला लिया है. इसका मकसद जहां तक संभव हो सके सभी तथ्यों को एक जगह पर रखना है.ताकि जिसे ठीक लगे वो भविष्य में उनका इस्तेमाल कर सके. विश्व में मीडिया के दो मॉडल मौजूद हैं. सरकारी मीडिया और निजी क्षेत्र का मीडिया यानी स्वतंत्र मीडिया. कुछ दिन पहले मीडिया मोनेटाइजेशन पर हुए एक सेमीनार में किसी ने पूछा कि दूरदर्शन को कैसे मोनेटाइज किया जाए यानी ऐसा बना दिया जाए जिससे दूरदर्शन मुनाफा कमाने लगे? मैंने कहा कि दूरदर्शन को मोनेटाइज नहीं करना चाहिए. दूरदर्शन को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए और उसके आर्थिक हितों का ख्याल सरकार को रखना चाहिए. हम सभी अपने श्रम से अर्जित धन का ज्यादातर हिस्सा बुनियादी जरूरतों पर खर्च करते हैं. सरकार से संदर्भ में भी यह बात लागू होती है. उसे तो टैक्स से होने वाली आमदनी को जनता और शासन की जरूरतों पर ही खर्च करना चाहिए. संवाद तंत्र, सूचना तंत्र किसी भी शासन तंत्र की एक बुनियादी जरूरत है. मोनेटाइज करने के लिए, मुनाफा कमाने के लिए या फिर स्वतंत्र संचालन योग्य पूंजी अर्जित करने के लिए सरकारी मीडिया को भी बाजार की शर्तों का पालन करना होगा. जब बाजार की शर्तों का पालन होगा तो सरकार और समाज के प्रति जिम्मेदारियों से समझौता करना पड़ेगा. ऐसा करने से उसका चरित्र बदल जाएगा. चरित्र बदलने का अर्थ है कि उसका औचित्य खत्म हो जाएगा. उसकी सार्थकता खत्म हो जाएगी. जब चरित्र बदल जाए और सार्थकता खत्म हो जाए तो फिर होने या नहीं होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. कोई भी सरकार अपना मीडिया तंत्र एक खास मकसद से विकसित करती है. यह सरकार के लिए जनता तक पहुंचने का महज जरिया मात्र नहीं है. यह सरकार का प्रोपैगेंडा तंत्र भी है. इसे समझने के लिए आपको मौजूदा समय पर गौर करना होगा. दूरदर्शन पर रामायण, रामायण उत्तरकथा, महाभारत, चाणक्य, हमलोग जैसे सीरियल यूं ही नहीं दिखाए जा रहे हैं. यह सरकारी प्रोपैगेंडा है. सरकार अपने मीडिया के जरिए अपनी जरूरत के मुताबिक जनता का मानस तैयार करती है. यही नहीं इसके माध्यम के यह अपने लोगों को संरक्षण देती है. उन्हें वो जमीन मुहैया कराती है जिससे वो उसके पक्ष में लड़ सकें. और जब तक सरकार का यह मकसद पूरा होता रहेगा, सरकारी मीडिया पर बहुत असर नहीं पड़ेगा. वहां तैनात लोग थोड़े-बहुत एडजस्टमेंट यानी समायोजन के बाद अपना काम करते रहेंगे. इसके उलट निजी क्षेत्र में मूल-चूल परिवर्तन होगा. लाखों लोग अभी ही बेरोजगार हो चुके हैं. लाखों और बेरोजगार होंगे. जब यह महामारी खत्म होगी तो हम देखेंगे कि बहुतेरे मीडिया संस्थान बंद हो चुके हैं. और जो बचेंगे उनकी भी कमर टूट चुकी होगी. इस समय सबसे खराब स्थिति पारंपरिक मीडिया संस्थानों की है. वहां हाहाकार मचा है. बीते डेढ़ महीने से सिनेमा सेक्टर में काम ठप है. फिल्म प्रोडक्शन बंद है. इवेंट्स बंद हैं. आउटडोर मीडिया का बाजार ठप्प पड़ा है. होर्डिंग, बैनर को कोई पूछ नहीं रहा. अखबारों की छपाई न के बराबर हो रही है. मीडियाकर्मी जान जोखिम में डालकर लोगों तक खबर पहुंचाने में जुटे हैं, लेकिन उन्हें पूछने वाला कोई नहीं है. वो हर तरफ से मार झेल रहे हैं. जान भी संकट में है और आर्थिक तौर पर भी कमजोर हो रहे हैं. सच कहें तो खबरों के बाजार से जुड़े मीडियाकर्मियों के लिए तो यह एक डरावने सपने जैसा है और यह सपना अभी शुरू ही हुआ है. दूसरी तरफ न्यूज चैनलों के दर्शकों की संख्या बढ़ गई है. आजतक जैसे चैनल 33 करोड़ दर्शक बटोरने का दावा कर रहे हैं. कॉमस्कोर डेटा के मुताबिक डिजिटल मीडिया पर अब 60 प्रतिशत ज्यादा दर्शक हैं. ये नंबर उत्साहित करने वाले हैं. हर कोई टीवी देख रहा है. मोबाइल स्क्रीन से चिपका हुआ है. ऑनलाइन गेम खेल रहा है. ओटीटी प्लैफॉर्म्स पर फिल्म या फिर सीरियल देख रहा है. खबर पढ़ रहा है. मतलब टीवी और ऑनलाइन माध्यमों पर हम सभी ज्यादा से ज्यादा समय बिता रहे हैं. सामान्य समय होता तो विज्ञापन बाजार के जुड़े लोगों के लिए इससे अधिक सुखद स्थिति कोई और नहीं हो सकती थी. लेकिन यह आपातकाल है. इतना दर्शक बटोरने के बाद भी रेवेन्यू गिर गया है. यह गिरावट मामूली नहीं है. 40-50 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई है. ऐसा क्यों हुआ है – ये समझने के लिए आपको कोरोना वायरस की वजह से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर को देखना होगा. दुनिया की तमाम रेटिंग और फंडिंग एजेंसियों ने जो आंकड़े दिए हैं उनके मुताबिक कोरोना वायरस की वजह से इस साल भारत की अर्थव्यवस्था विकास दर 0.8 प्रतिशत तक गिर सकती है. साल की शुरुआत में आरबीआई ने 2020-21 वित्तीय वर्ष में 6 प्रतिशत विकास दर का अनुमान लगाया था, उसने बीते महीने इसे घटा कर 5.5 प्रतिशत कर दिया था. आईएमएफ ने 5.8 प्रतिशत विकास दर का अनुमान घटा कर 1.9 प्रतिशत, विश्व बैंक ने 5 से 1.5 प्रतिशत, मूडी ने 5.4 से 2.5 और फिंच ने 5.6 से 0.8 प्रतिशत कर दिया है. 6 प्रतिशत ग्रोथ रेट की तुलना में 0.8 प्रतिशत विकास दर का अनुमान डराता है. असली तस्वीर तीसरे क्वार्टर में उभरेगी. अगर यह लॉकडाउन मई के आखिर तक चला तो इस साल ग्रोथ निगेटिव हो सकती है. कुछ जानकारों के मुताबिक अगर सर्दियों में भी कोरोना वायरस का कहर जारी रहा तो 8-10 प्रतिशत निगेटिव ग्रोथ की आशंका है. रोजगार के लिहाज से यह एक खतरनाक स्थिति है. आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर साल 1.2 करोड़ श्रमिक तैयार हो रहे हैं. जबकि सिर्फ 55 लाख रोजगार सृजन हो रहा है. यही नहीं शोध के मुताबिक भारतीय संदर्भ में 5 प्रतिशत ग्रोथ रेट के लिए अतिरिक्त वर्क फोर्स की जरूरत नहीं होती है. मतलब उससे कम ग्रोथ रहने पर रोजगार सृजन नहीं होता है. निगेटिव ग्रोथ का मतलब है कि इस साल जो वर्क फोर्स तैयार होगी, उसमें से चुनिंदा खुशकिस्मत लोगों को छोड़ दिया जाए तो बाकी को काम नहीं मिलेगा और पिछले साल जितनी संख्या में लोग काम कर रहे थे, उस संख्या में भी गिरावट आ जाएगी. मतलब करोड़ों लोग बेरोजगार होंगे. इसके नतीजे बहुत बुरे होंगे. सामाजिक अस्थिरता बढ़ेगी. अपराध बढ़ेगा. तनाव बढ़ेगा तो मौत के आंकड़े बढ़ेंगे. मतलब नुकसान चौतरफा होगा. मीडिया इंडस्ट्री के लिए तो मुश्किलें और बढ़ जाएंगी. (… जारी)   एनडीटीवी में लंबे समय तक कार्यरत रहे बेबाक पत्रकार समरेंद्र सिंह का विश्लेषण! 

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Dakhal News 27 April 2020


bhopal, Humble tribute to two Delhi journalists

नई दिल्ली। वैश्विक महामारी करोना संक्रमण के इस लॉकडाउन की घड़ी में आज राष्ट्रीय राजधानी के पत्रकार बिरादरी से दो अत्यंत दुखद सूचनाएं प्राप्त हुई हैं। वरिष्ठ हिंदी पत्रकार प्रमोद कुमार जी की पत्नी नीलिमा जी का निधन हुआ है। वह स्वयं भी यूनीवार्ता में पत्रकार थीं। उन्होंने अपने कैरियर के दौरान कई ब्रेकिंग खबरें अपने पत्रकारिता के जीवन में दी है। वह लंबे समय से कैंसर से जूझ रही थीं। दूसरी मृत्यु हिंदी दैनिक पंजाब केसरी से अपना कैरियर कैमरामैन के रूप में शुरू करने के बाद फ़ोकस न्यूज के संपादक के सम्मानित पद पर पहुंचे चंद्रशेखर अग्रवाल जी की हुई है। चंद्रशेखर जी एक होनहार पत्रकार थे और लगातार संसद से लेकर तमाम राजनीतिक गलियारों में उनका आना-जाना था। उनका हंसता मुस्कराता चेहरा बार-बार सामने आ रहा है। उन्होंने मेरे साथ लंबे समय तक कार्य किया था। चंद्रशेखर जी की उम्र अधिक नहीं थी। वह लगातार मधुमेह (शुंगर) की बीमारी से जूझ रहे थे और अंततः मधुमेह बहुत बढ़ जाने के कारण उनका निधन कल शाम को हो गया। ‘दिल्ली पत्रकार संघ’ दोनों पत्रकार साथियों के निधन पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है। सर्वविदित है कि कोरोना महामारी के मद्देनजर लॉकडाउन के तहत अंत्येष्टि में सभी पत्रकारों का शामिल होना संभव नहीं था। बिहार का राष्ट्रीय राजधानी के तमाम पत्रकारों ने अपने शोक संवेदना व्यक्त करते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है। इस दुख एवं शोक की घड़ी में ‘डीजेए’ के तमाम सदस्यों एवं पदाधिकारियों की ओर से महासचिव केपी मलिक ने उनके परिवार को सहानुभूति एवं संवेदनाएं अर्पित करते हुए भगवान से उनकी दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने की प्रार्थना की। के पी मलिक महासचिव

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Dakhal News 25 April 2020


bhopal, Investigation report , 48 journalists, Lucknow ,corona positive

यूपी में लखनऊ के पत्रकारों के कोरोना टेस्ट का रुझान आना शुरू हो गया है। पहली लिस्ट में 48 पत्रकारों का नाम है जिसमें एक को छोड़ बाकी सबका रिजल्ट निगेटिव है। लिस्ट में एक पत्रकार का जांच नतीजा पॉज़िटिव आया है। बताया जा रहा कि जिनका टेस्ट रिजल्ट पॉजिटिव आया है वो पत्रकार नहीं बल्कि केबल ऑपरेटर हैं, यानि हैं मीडिया फील्ड से जुड़े ही।   देखें लिस्ट की एक झलक-

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Dakhal News 25 April 2020


bhopal,Supreme Court, bans ,Arnab

अर्नब गोस्वामी के ऊपर हुई सभी FIR में किसी भी तरह की कार्रवाई पर सुप्रीम शाखा ने फिलहाल 2 हफ्ते की रोक लगाई। कोर्ट ने अर्नब गोस्वामी को अपनी अर्ज़ी में संशोधन कर सभी FIR को एक साथ जोड़े जाने की प्रार्थना करने को कहा। कोर्ट ने कहा कि एक ही मामले की जांच कई जगह नहीं हो सकती।   सुप्रीम कोर्ट का आदेश अर्नब गोस्वामी को दो हफ़्ते का प्रोटेक्शननागपुर में दर्ज FIR के सिवा बाक़ी सभी पर स्टे अर्नब पर प्रोग्राम्स में किसी क़िस्म की रोक के सुप्रीम कोर्ट ख़िलाफ़ (प्रेस आजाद रहे , जस्टिस चंद्रचूड़) अर्नब निचली अदालतों में एंटीसिपेटरी बेल / प्रोटेक्शन ट्राई करें , जाँच में सहयोग करें महाराष्ट्र पुलिस अर्नब गोस्वामी के चैनल और स्टाफ़ की किसी संभावित हमले से सुरक्षा करें

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Dakhal News 25 April 2020


bhopal, attack is reprehensible, arnab , name of journalism , very shameful

Amitaabh Srivastava : रिपब्लिक चैनल के संपादक अरनब गोस्वामी पर हमला निंदनीय है। पिछले कुछ समय से पत्रकारिता के नाम पर वो जो कुछ भी कर रहे हैं, वह बहुत शर्मनाक है। अरनब गोस्वामी और उनके जैसे कुछ एंकर दरअसल पिछले कुछ समय से मीडिया की अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर स्वस्थ और स्वच्छ पत्रकारिता को कलंकित ही कर रहे हैं लेकिन उस सबका जवाब किसी भी तरह की शारीरिक हिंसा नहीं हो सकती। अरनब ने पालघर में साधुओं की पीट-पीटकर हत्या के बाद अपने कार्यक्रम में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उन पर हमला इसी से जोड़ कर देखा जा रहा है। महाराष्ट्र सरकार को इस मामले में कड़ी जांच-पड़ताल और कार्रवाई करनी चाहिए। उम्मीद के मुताबिक बीजेपी और उसके समर्थक अरनब गोस्वामी के समर्थन में बोल रहे हैं और इस हमले की निंदा के बहाने कांग्रेस पर निशाना साध रहे हैं।   मेरी राय में कांग्रेस को भी बड़प्पन दिखाते हुए इस हमले की निंदा करनी चाहिए‌। अरनब गोस्वामी पत्रकारीय अभिव्यक्ति की आज़ादी के आदर्श नहीं है , न ही उन्हें इस हमले के बहाने हीरो बनने का मौक़ा देना चाहिए।   वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.

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Dakhal News 23 April 2020


bhopal, Who will raise voice ,media persons , victims of lockdown

भारत के कनाडाई नागरिक अक्षय कुमार ने जब 25 करोड़ दान देने का एलान किया तो तुमने उन्हें सदी का सबसे बड़ा दानदाता घोषित किया। सिल्वर स्क्रीन के दबंग और बॉक्स ऑफिस के सुल्तान सलमान खान ने जब फिल्मनगरी के दिहाड़ी मजदूरों का पेट भरने की घोषणा की तो तुम्हारे शब्दों में सलमान से बड़ा कोई दलायु, कृपालु नहीं था। और जब कsssकsssकsss किंग यानी शाहरुख खान ने अपने ऑफिस को 14 दिनों के एकांतवासियों के लिए क्वारंटिन भवन बना दिया…तो तुम्हारे शब्दों में उसकी महिमा और भी शोभायमान हो गई। अमिताभ बच्चन की वीआर फैमिली के सदस्य बनने में भी तुम्हीं सबसे आगे थे। उद्योगपतियों की दानराशियों के आकर्षक ग्राफिक्स से लेकर, उनके ट्विट, वीडियो संदेश के बॉक्स आइटम बनाने में अपनी कल्पनाशीलता और ऊर्जा का उपयोग करने में तुमने ही सबसे अधिक पसीने बहाये। इसके बावजूद तुम बेगाने की शादी के अब्दुल्ला दीवाने नहीं थे। क्योंकि तुम्हारी ड्यूटी थी, जैसेकि सीमा पर सैनिक, अस्पताल में डॉक्टर, चौराहे पर खाकीवर्दी या कि घर घर सिलेंडर और हरी सब्जियां पहुंचाने वालों ने रोजमर्रा की जिंदगी और ज़िद नहीं छोड़ी थी। इतना ही नहीं, अपने-अपने गांव, घर जाने के उतावले हुए सड़कों पर पैदल रेंगने वाले दिहाड़ी मिल्खा सिंहों के हुजूम को भी तुमने सदी का सबसे ‘रिच विजुअल’ समझा और उसे कभी लाइव काटा तो कभी म्यूजिक के साथ मोंटाज में सजाया तो कभी उस पर राष्ट्रीय बहसें कर लीं और तब तक लूप में चकरघिन्नी की तकह घुमाते रहे जब तक कि उसके बारे में सत्ताधारियों के अनमोल वचन नहीं आ गए। यकीन मानिये उतने पर भी तुम बेगाने की शादी में अब्दुल्ला दीवाने नहीं थे। क्योंकि तुम्हारी कलम को खून के आंसू बहाने की लत है। तुम्हारे कलेजे को चट्टानी काया बनने का बड़ा शौक है। तुम्हारी फितरत को संवेदना से एकतरफा मोहब्बत करने की आदत है। याद करो तुमने ही चलाया न इस वक्त की सबसे बड़ी खबर है–प्रधानमंत्री ने कारोबारी जगत के स्वामियों से अपील की है कि कोरोना संकट को देखते हुए किसी कर्मचारी की सैलरी ना काटे। तुमने ही इस बयान को सत्तर साल का सबसे संवेदनशील बयान बताया था न! स्क्रीन पर दनादन चलाया था न! और तो और जब प्रधानमंत्री ने कहा कि लॉकडाउन के चलते किसी भी कर्मचारी की नौकरी ना जाये तो तुमने ही इसे सदी का सबसे मसीहाई स्टेटमेंट कहा था न! और सबके सब लट्टू हो गये थे। उत्साह इतना कि नौ मिनट के बदले नब्बे मिनट तक दीया जलाते रहे। जोश इतना कि ताली, थाली तो क्या बंदूक, पिस्तौल सब चलाने लगे। उन्होंने कहा लोग अपने अपने घरों में रहे लेकिन खून इतना खौला कि गली में जुलूस निकालने लगे। इन सब तस्वीरों को खूब चलाया न तुमने। यह दर्शाया न कि प्रधानमंत्री के एक आह्वान पर इस देश की जनता को भी हनुमान जैसी भूली बिसरी ताकत याद आने लगती है। लेकिन क्या कभी फॉलोअप किया कि प्रधानमंत्री के सैलरी और नौकरी वाले बयान और अपील का किस-किस बिजनेस घराने ने पालन किया? क्या कभी इस मुद्दे पर बहस कराई कि जब प्रधानमंत्री समाज में सभी को मिलकर रहने की अपील करते हैं तो लोगों पर उसका असर क्यों नहीं होता है? क्यों तमाशा वाले बयान को भक्त जल्दी लपक लेते है और उनके सामाजिक सन्देश को गोलगप्पे की तरह उड़ा देते हैं। क्या कभी इस मुद्दे पर मेहमानों से बयानबाजी करवाई कि ताली, थाली के बदले बंदूक क्यों चलाई गई? क्या कभी इस सवाल की प्लेट को स्क्रीन पर फायर किया कि सरकार और रिजर्व बैंक के राहत एलान के बावजूद उद्योग, कारखाने के मालिक अपने-अपने कर्मचारियों की सुध क्यों नहीं ले रहे? क्यों कर्मचारियों की नौकरियां जा रही हैं? क्यों मालिक कर्मचारियों की छंटनी कर रहे हैं? मैं जानता हूं इन सवालों को आप नहीं उठायेंगे। आप यह भी नहीं पूछेंगे कि जिस वक्त प्रधानसेवक लिट्टी चोखा खा रहे थे और और जब देश ट्रंपमय हो रहा था तब उसकी तस्वीर न्यूज मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक में अवतारी पुरुष की तरह छाई हुई थी उस वक्त कोरोना किस किस देश में कितनी दहशत मचा रहा था और अपने देश में उससे बचाव के लिए क्या-क्या किया जा रहा था? आप कम से कम यह भी नहीं लिखेंगे कि होली से पहले ही देश में एक दिन का जनता कर्फ्यू क्यों नहीं लग जाना चाहिये था? और तो और यह कि जनता कर्फ्यू के एक दिन बाद ही संपूर्ण लॉकडाउन क्यों हो गया…? जब लॉकडाउन करना ही था तो जनता कर्फ्यू क्यों? आप के पास यह सवाल भी नहीं होगा कि ताली, थाली बचाने और दीया जलाने से देश को क्या मिला? जबकि आप इस तरह के सवालों पर पहले खूब बहसें करते रहे हैं। पीएम की अपीलों के बाद सिवाय अनुशासनहीनता की तस्वीरों और लाखों लाख की संख्या में वीडियो के आदान प्रदान के कारण इंटरनेट की फिजूल डेटाखर्ची के सिवा और क्या मिला? इन आयोजनों में दिखी अनुशासनहीनता की तस्वीरों को आप किस पंथ या संप्रदाय से जोड़ेंगे? मैं समझता हूं आप ये सब नहीं पूछेंगे क्योंकि जेनुइन सवाल को इन दिनों सरकार विरोधी माना जाता है। और सरकार विरोधी छवि होने पर दर्शक और पाठक कम होते हैं और विज्ञापन गिरने का खतरा बढ़ता है। खैर छोड़िये…ये सवाल बहुतों के लिए शायद छोटा मुंह बड़ी बात हो। लेकिन चलिये अपने बारे में या अपने हित को लेकर खुद से ही कुछ सवाल पूछ लीजिये। मीडिया जगत पढ़ा लिखा तबका है इसलिये यहां ‘दिहाड़ी मजदूर’ शब्द का इस्तेमाल शायद बहुत लोगों को अच्छा न लगे, उनके लिए चलिये ‘ठेका कर्मचारी’ कह लेते हैं। कोरोना के बाद हजारों की संख्या में पत्रकार बंधु घर से काम कर रहे हैं। लेकिन जो बेरोजगार हैं, किसी संस्थान से संबद्ध नहीं हैं…फ्रीलांस से घर चला रहे थे, क्या फिल्म इंडस्ट्री की तरह किसी संगठन या नामचीन हस्ती ने उनकी मदद के लिए एलान किया? जिस सरकार की योजनाओं और बयानों पर जान न्योछावर करते रहे, सोशल मीडिया पर दिखाने के लिए प्रचार प्रसार करते रहे, उस सरकार की तरफ से किसी योजना या पैकेज का ऐलान हुआ? कितने बेरोजगार या फ्रीलांस पत्रकारों को मदद मिली? है कोई आंकड़ा? शायद नहीं। अपने रिसर्च विभाग को इस काम में लगाइए। जब तक कोई आंकड़ा निकले तब तक यह विचार कर लीजिए कि इस खबर को चलायेगा या छापेगा कौन? सोशल मीडिया पर भी लिखेंगे तो लोग आप ही को हिकारत की नज़रों से देखेंगे और दया भावना में कहेंगे – कितना ‘गिरा’ हुआ है? बहुत से लोग इसे सरकार को बदनाम करने की साजिश भी करार देंगे और कन्नी काट लेंगे। लेकिन जो ‘उठे’ हुये हैं…चलिये उन्हीं के बारे में बात कर लेते हैं। मीडिया ने ही प्रधानमंत्री के उस बयान को प्रमुखता से चलाया न कि उन्होंने कारोबारी जगत से कहा है कि किसी की नौकरी न जाये! लेकिन अब कोरोना और ल़ॉकडाउन के चलते कई मीडिया हाउसों में छंटनी और बंदी शुरू हो गई, उसके बारे में क्या किसी ने सोचा या सवाल उठाया…? हर दूसरे तीसरे दिन सुनने को मिलता है फलां मीडिया संस्थान में इतने फीसदी स्टाफ कम किये जा रहे हैं या कर दिये गये। इसको लेकर किसी ने प्रधानमंत्री से कहा? शायद इसकी इसलिए जरूरत नहीं क्योंकि मेंढ़क खुद को बड़े बुद्धिमान समझते हैं और उन्हें तराजू पर एकजुट रखा नहीं जा सकता।   -एक मीडियाकर्मी

Dakhal News

Dakhal News 23 April 2020


bhopal, Rajkamal Publishing Group,sharing literary works, through WhatsApp

नई दिल्ली। कोरोना महामारी के इस अंधेरे समय में राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से लगातार यह कोशिश है कि लॉकडाउन में लोग अपने-आप को अकेला महसूस न करें। कोरोना महामारी में हमारी लड़ाई दो तरफा है शारीरिक और मानसिक। घर पर रहकर अपना पूरा ध्यान रखते हुए, हम इस लड़ाई में समाज और देश के हित में सहायक कदम उठा रहे हैं। वहीं मानसिक रूप से अपने को मजबूत करना भी हमारी ज़िम्मेदारी है। इसी प्रयास के तहत राजकमल प्रकाशन के साथ Stay At Home With Rajkamal कार्यक्रम के अंतर्गत साहित्यकारों, रंगकर्मियों, अभिनेताओं और गीतकारों से रोज़ फ़ेसबुक लाइव के जरिए मुलाक़ात होती है। इस सार्थक पहल के बाद अब राजकमल प्रकाशन लेकर आया है ‘पाठ-पुनर्पाठ’ पुस्तिका। इसके तहत राजकमल प्रकाशन के आधिकारिक वाट्सएप्प नंबर से रोज़ कहानियाँ, कविताएं और लेख पाठकों से साझा किए जाएंगे। रोज़ अलग-अलग साहित्यिक कृतियों को एक जगह पीडीएफ में तैयार कर उसे पाठकों से साझा किया जाएगा। 18 अप्रैल की रात पहली पुस्तिका साझा की गई। आगे, 3 मई 2020 तक प्रतिदिन यह पुस्तिका पाठकों से साझा की जाएगी। इस पहल के बारे में बताते हुए राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, “सभी के लिए मानसिक खुराक उपलब्ध रहे, यह अपना सामाजिक दायित्व मानते हुए अब हम ‘पाठ-पुनर्पाठ’ पुस्तिकाओं की यह श्रृंखला शुरू कर रहे हैं। ईबुक और ऑडियोबुक डाउनलोड करने की सुविधा सबके लिए सुगम नहीं है। इसलिए हम अब व्हाट्सएप्प पर सबके लिए नि:शुल्क रचनाएँ नियमित उपलब्ध कराने जा रहे हैं। जब तक लॉक डाउन है, आप घर में हैं लेकिन अकेले नहीं हैं। राजकमल प्रकाशन समूह आपके साथ है। भरोसा रखें।“ इस पुस्तिका को पाठक वाट्सएप्प से आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। इन्हें प्राप्त करने के लिए राजकमल प्रकाशन समूह के व्हाट्सएप्प नम्बर 98108 02875 को फोन में सुरक्षित कर, उसी नम्बर पर अपना नाम लिखकर मैसेज भेज दें। आपको नियमित नि:शुल्क पुस्तिका मिलने लगेगी। राजकमल प्रकाशन समूह अपनी पूरी प्रतिबद्धता के साथ लॉकडाउन के इस समय में पाठकों के लिए हमेशा कुछ नया करने की कोशिश कर रहा है। 22 मार्च से लगातार चल रहे लाइव कार्यक्रमों के जरिए समूह के फ़ेसबुक पेज से जुड़कर लेखक और साहित्यप्रेमी लोगों से किताब और कला की बातें करते हैं। 90 से ज्यादा लेखक और साहित्य प्रेमी लाइव कार्यक्रम में भाग ले चुके हैं।   प्रेस रिलीज

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Dakhal News 21 April 2020


bhopal, Media Vigil, turned out, show mirror,corporate media

कॉरपोरेट मीडिया को आईना दिखाने निकला मीडिया विजिल तो कॉरपोरेट का बाप निकला। ऐसी मनमानी तो एक से एक घाघ मीडिया घराने नहीं करते। मै मशहूर चिंतक आनंद स्वरूप वर्मा का एक लेख खोज रहा था। जब बहुत देर तक खोजने के बाद भी उनका लेख नहीं मिला तो मैंने पड़ताल की। पता चला मीडिया वीजिल के मालिकों ने हर उस स्तंभकार का नाम उड़ा दिया है जो उनको मालिक की तरह नहीं साथी को तरह देख रहे थे। दरअसल मालिक कहलाने की भूख बड़ी कमाल होती है। किसी भी उम्र में किसी को भी लग जाती है। और जब लग जाती है तो उसकी तमाम प्रगतिशीलता के ढोंग बहुत घिनौने तरीके से बेपर्दा होने लगते हैं। मीडिया विजिल इसका ताजा उदाहरण है। संपादकीय दायित्वों और ट्रस्ट से अभिषेक श्रीवास्तव इस्तीफे के बाद मीडिया विजिल शुद्ध रूप से पारिवारिक मालिकाना हक वाली एक संपत्ति है। जिस कॉरपोरेट टीवी को गालियां देकर मीडिया वजिल के संचालकों ने मालिक होने का दर्जा हासिल किया वो पहली फुरसत में कॉरपोरेट से बड़े कॉरपोरेट हो चुका है। लेकिन ये तो किसी के बौद्धिक श्रम पर डकैती का मामला है। अकेले Anand Swaroop Verma ही नहीं मीडिया विजिल की यात्रा के स्तंभ रहे कई स्तंभकारों के योगदान पर ये संस्थान डाका मारकर बैठ गया है। Abhishek Srivastava से लेकर Nityanand Gayen और तमाम लेखकों का नाम और योगदान दोनों को मीडिया विजिल बेशर्मी के साथ निगल गया है। इनके नाम शातिराना तरीके से उड़ा दिए गए हैं। यह आपराधिक सोच है और इसके लिए उच्च कोटि की निर्लज्जता चाहिए। नाम देना न देना सस्थान और लेखक के बीच का समझौता होता है। लेकिन एक बार बाइलाइन दे देने के बाद व्यवस्थागत बदलाव के कारण नाम हटा देना बेहयाई है। इसकी जितनी निंदा की जाए कम है। जहां तक मुझे जानकारी है मीडिया वीजिल के फंडर्स ने शर्त रखी थी कि सभी लेखों पर संस्थान का अधिकार होगा। आनंद स्वरूप वर्मा और अभिषेक श्रीवास्तव जैसे लेखक इसके लिए हरगिज़ तैयार न होते। ये लोग लेखन को समाज की चीज मानते रहे हैं, खुद को उसका मालिक नहीं। यही बात मीडिया विजिल के नए मालिकों को खल रही होगी। इसलिए उनके नाम और काम दोनों को खारिज करके पूर्ण कॉरपोरेट मालिक बनने का खयाल उनके दिमाग में आया होगा। उन्हें अच्छी तरह पता है कि ये लोग किसी तरह का दावा नहीं करने वाले। मीडिया विजिल ने लेखकों की शराफत का फ़ूहड़ तरीके से मजाक उड़ाया है। अब मीडिया विजिल के लिए ना कॉमेंट्स फ्री रहे हैं और ना ही फैक्ट्स सैक्रेड।   टीवी पत्रकार नवीन कुमार की एफबी वॉल से.

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Dakhal News 21 April 2020


bhopal,Corona, will die , world

भारत को कोरोना से कौन बचा रहा है बहुत से लोगो बहुत से कारण दे रहे है कोई लॉकडाउन को वजह बता रहा है कोई भारतीयों की इम्युनिटी या बीसीजी के टीके को वजह बता रहा है लेकिन किसी के पास इसको साबित करने के लिए पर्याप्त डाटा और लाजिक नही है तो आखिकार इस देश को कोरोना से बचा कौन रहा है? भारत को कोरोना के कहर से भारत का दिनोदिन बढ़ता तापमान बचा रहा है जब मैंने विश्व के टॉप 10 तापमान वाले देशो का कोरोना के डाटा का विश्लेषण किया तो हैरान करने वाले रिजल्ट सामने आए, सभी उच्च तापमान वाले देशों में कोरोना वायरस की ग्रोथ बहुत धीरे है लीबिया विश्व का सबसे ज्यादा गर्म देश है वँहा आज के आंकड़ों के अनुसार केवल 49 केस दर्ज किए गए है और केवल एक मौत हुई है पूर्ण लॉकडाउन भी नही किया है और युद्ध प्रभावित गरीब देश होने के बाद भी टेस्टिंग 103 /मिलियन हो रही है लीबिया को तापमान बचा रहा है क्योंकि वँहा सरकार के नाम पर कुछ नही है ऐसा ही कुछ हालात सोमालिया, इथोपिया और जाम्बिया के है। सऊदी अरब विश्व का दूसरा गर्म देश है मिडिल ईस्ट के इस देश मे 8500 केसों में से 92 मौते हुई है और टेस्ट4900 /M हो रहे है सऊदी अरब में तानाशाही होने के बाद भी पूर्ण लाकडाउन् नही है इसलिए यँहा भी तापमान ही वायरस को रोक रहा है। मेक्सिको एक दक्षिणी अमेरिका का देश है वो तापमान की सूची में भारत से दो पायदान नीचे है और वँहा करीब 8000 केसों में 650 मौते हुई है एक समय दिवालिया हो चुके इस देश मे भी टेस्टिंग दर 381/M है यहाँ भी फूल लाकडाउन् नही है ड्रग और माफिया से भरे इस देश की सरकार सबसे ज्यादा लापरवाह है इसलिए इसे भी तापमान ही बचा रहा है। भारत विश्व का आठवां सबसे गर्म देश है भारत में टोटल लाकडाउन् है और 16300 से ज्यादा केस और 521 मौत हो चुकी है लेकिन विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था की दम भरने वाली सरकार केवल 270/M की दर से टेस्टिंग कर रही है जाहिर है इतनी लापरवाही के बाद भी केवल तापमान इस देश को बचा रहा है। जिस भारतीय उपमहाद्वीप विश्व की 20 फीसद आबादी रहती है वँहा 1000 से ज्यादा मौते नही हुई है और पाकिस्तान जैसे बदहाल देश मे भी फूल लाकडाउन् नही होने बाद भी मौत का आंकड़ा 150 तक ही पहुंचा है और टेस्टिंग दर 446/M है ऐसे में इस पूरे साउथ एशिया को तापमान ही बचा रहा है। मैंने इस विश्लेषण में अफ्रीका, मिडिल ईस्ट और एशिया के सारे गर्म देशो का डाटा विश्लेषण किया है इस पोस्ट को लिखने से पहले मैं डाटावाणी यह बात बता चुका था पोस्ट लिखते लिखते आज तक पर खबर आ गई कि अमेरिका में कोरोना कड़ी धूप से मर रहा है अतः डाटा विश्लेषण पर मेडिकल रिसर्च की मुहर भी लग गई है। अगर 20 मई के बाद भारत मे भी कोरोना मर जाए तो आश्चर्य मत कीजियेगा क्योंकि जब रोहिणी तपेगी तो उसकी आग से तपकर एक नया भारत उदय होगा लेकिन इसका श्रेय किसी एक आदमी और सरकार बिलकुल मत दीजियेगा अगर श्रेय देना ही तो केवल और केवल सूर्य देवता को दीजियेगा उन्ही के ताप से हमें कोरोना जैसे राक्षस से मुक्ति मिलेगी। ऊँ भास्कराय नमः!   युवा डेटा एनालिस्ट अपूर्व भारद्वाज की एफबी वॉल से.

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Dakhal News 21 April 2020


bhopal, Why are not talking ,Muslims clearly

हिंदी की एक प्रतिष्ठित वेब साइट (सत्यहिंदी.काम) में मुरादाबाद में हुए उस पागलपन को लेकर आलेख प्रकाशित हुआ है जिसमें वहां के एक मोहल्ले में इंदौर की टाटपट्टी बाखल की तरह ही स्वास्थ्य और पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया गया।लेखक इक़बाल रिज़वी ने तकलीफ़ ज़ाहिर की है कि इस समय मुसलमानों को ‘सॉफ़्ट टारगेट’ बनाकर पागलों की तरह व्यवहार करने पर मज़बूर किया जा रहा है ! लेखक ने आरोप लगाया है कि जमात’ की आड़ में मुसलमानों का बुरा हाल किया जा रहा है और इससे प्रशासन के प्रति जो अविश्वास भाव उनमें बढ़ रहा है उसने यह हालात कर दिए हैं कि मुरादाबाद जैसा पागलपन सामने आ रहा है।आलेख में यह भी कहा गया है कि एक सुनियोजित झूठ को इतनी बार पूछा जा रहा है कि मुसलमान ‘बैकफुट’ पर आ गए हैं।’ मुसलमानों की देश के प्रति निष्ठा को लेकर इस समय जो कुछ भी चल रहा है उससे कई नए सवाल खड़े होते है : पहला तो यह कि आज़ादी के बाद के तमाम सालों में (साम्प्रदायिक दंगों की घटनाओं और कश्मीर को छोड़कर) इस तरह का आचरण या पागलपन मुस्लिम बस्तियों की ओर से क्या पहली बार प्रकट हो रहा है या पहले के भी ऐसे कोई उदाहरण हैं जिन पर कि राष्ट्रीय स्तर की बहसें भी हो चुकीं हैं ? मुसलमान बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने या मलेरिया की दवा का छिड़काव करने या शहर को ‘नम्बर वन’ बनाने के लिए इन्हीं इलाक़ों में ‘अगर’ स्वास्थ्य या सफ़ाईकर्मी पहले भी गए हैं तो क्या तब भी ऐसी ही घटनाएं हुईं हैं ? अगर हुईं हैं तो उनका पैटर्न क्या था ?अगर ऐसा पहली बार हो रहा है तो क्या उसके कारणों में जाने की जानबूझकर कोशिश नहीं की गई ? दूसरा सवाल यह है कि हमलों को लेकर चल रही तमाम बहसों में मुसलमान समाज के उन्हीं लोगों की ज़्यादा भागीदारी क्यों हो रही है जो दूध को दूध और पानी को पानी कहने से हकलाते हैं ?तीसरा सवाल यह है कि जो कैमरे स्टूडियो के अंदर लगे हैं वे हमलावरों के घरों के अंदर पहुँचकर उनसे उनके पागलपन का असली कारण क्यों नहीं पूछ रहे हैं ? इंदौर की टाटपट्टी बाखल के मुसलमानों के पश्चाताप से भी दुनिया को रूबरू करवाना चाहिए था। अंत में यह कि देश का समूचा हिंदू समाज अगर विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल नहीं है तो समूची मुसलमान क़ौम कैसे तबलीगी जमात, टाटपट्टी बाखल और मुरादाबाद हो सकती है ? हम क्या ऐसा मानने को तैयार हो सकते हैं कि कोरोना की महामारी का आक्रमण अगर साल-छह महीने के बाद तब होता जब नागरिकता क़ानून और एन सी आर को लेकर मुस्लिमों की शंकाओं के घाव भर गए होते तो इस तरह की घटनाएं बिलकुल नहीं होतीं ?शाहीनबाग़ चल रहा था तभी कोरोना हो गया और तभी तबलीगी जमात का जमावड़ा भी हो गया। क्या कुछ अजीब सा नहीं लगता ? हुआ यह है कि जो एक और अवसर मुसलमानों को देश की मुख्यधारा के साथ एकाकार करने का मिला था उसे उन्होंने अपनी ही क़ौम के कुछ कट्टरपंथी सिरफिरों के कारण गंवा दिया।और फिर उसे बहुसंख्यक समाज के कुछ अनुदारवादियों ने लपक कर हथिया लिया और मीडिया के एक वर्ग ने भी उसे अपने एजेंडे का हथियार बना लिया। एक जो अंतिम सवाल ‘थर्ड पार्टी’ की तरफ़ से भी पूछने का बनता है वह यह है कि इतनी बड़ी आबादी की नीयत और राष्ट्रीयता पर अगर देश के अधिकांश लोगों का ही यक़ीन गड़बड़ा रहा है तो फिर यह भी बताया जाना चाहिए कि उसका क्या इलाज किया जाए ?साफ़-साफ़ क्यों नहीं बताया जा रहा है कि मुसलमानों से क्या करने को या कहाँ जाने को कहा जाए ?और यह आदेश देश के संविधान की तरफ़ से कौन देगा ? और अगर मुसलमान फिर भी यही कहते हैं कि हिंद की ज़मीन ही उनका ख़ुदा है तो उसके बाद किस तरह के दस्तावेज़ों की उनसे मांग की जानी चाहिए ? अगर इन सभी सवालों के जवाब उपलब्ध हैं तो उन्हें बिना किसी विलम्ब के सार्वजनिक किया जाना चाहिए कम से उस बड़ी जनसंख्या और उनके बच्चों का ख़याल करके जो दोनों तरफ़ की उत्तेजक भीड़ के बीच मौन और निःशस्त्र खड़ी हुई है।   लेखक श्रवण गर्ग देश के जाने-माने संपादक और वरिष्ठ पत्रकार हैं

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Dakhal News 19 April 2020


bhopal, Chief Minister , many states, started visiting Bihar, labor shortage

कोलकाता। अपने राज्यों में मजदूरों की कमी से उबरने के लिए पंजाब, तेलंगाना और दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री बिहार फोन लगा कर मजदूरों को मनाने की अपील कर रहे हैं। अधिकतर राज्यों में कृषि और तमाम उद्योग धंधों में प्रवासी मजदूरों की कमी महसूस की जा रही है। लॉकडाउन के बाद मजदूर या तो अपने गांव लौट चुके हैं या कुछ अब तक अलग-अलग जगहों में फंसे हुए हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार लॉकडाउन का हवाला देकर भले ही दूसरे राज्यों में फंसे बिहार के लोगों को वापस लाने में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं। मगर उद्योग धंधों में अन्य राज्यों के मजदूरों की कमी महसूस की जा रही है। इस कारण कई मुख्यमंत्री मजदूरों की खुशामद कर अपने यहां बुला रहे हैं। इससे पहले लॉकडाउन से घबराये प्रवासी मजदूरों की तकलीफ की सुनवाई नहीं हो रही थी। मदद की उम्मीद खो चुके मजदूर पैदल ही अपने गांवों की ओर चल पड़े। इन लोगों ने घर वापसी की जब-जब आवाज उठाने की कोशिश की तब पुलिस और प्रशासन ने धमकाकर और लाठियां बरसाकर इन पर काबू पा लिया। अब मंदी का असर दिखते ही सबको मजदूरों का ख्याल आया है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने बिहार फोन लगाकर मुख्यमंत्री नीतिश कुमार से कहा है कि वो मजदूरों से अपील करें कि जो मजदूर जहां हैं वो वहीं रहे, वहां की सरकारें उनका ख्याल रखेंगी। इधर तेलंगाना के मुख्य सचिव सोमेश कुमार ने उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को फोन कर कहा कि वे मजदूरों को तेलंगाना की चावल मिलों में वापस काम पर लौटने को राजी करें। उन्होंने मजदूरों को वापस लाने के लिए तेलंगाना से बस भेजने की भी पेशकश की है। मुख्य सचिव ने भरोसा दिलाया कि तेलंगाना में मजदूरों की हर जरूरत का ख्याल रखा जायेगा। अब भी देश के कई शहरों में बिहार के लोग फंसे पड़े हैं। कहीं से मजदूर तो कहीं से छात्र अपनी घर वापसी के लिए मुख्यमंत्री से गुहार लगा रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार पर इसका कोई असर नहीं हो रहा है। उन्हें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं। राजस्थान के कोटा में फंसे छात्रों को निकालने के लिए यूपी की योगी सरकार ने दो सौ भेजी हैं, वहीं इस कदम को नाइंसाफी करार देते हुए नीतिश कुमार ने कहा कि यह लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन है। ऐसा किया जाना गलत है।  राज्य सरकार हो या फिर केंद्र सरकार सभी दावा कर रही हैं कि स्थिति नियंत्रण में है। हम दूसरे देशों के मुकाबले अच्छी स्थिति में हैं। मगर लॉकडाउन की वजह से मजदूरों और गरीबों का जीना मुश्किल हो गया है। नौकरी गंवा चुके मजदूर भूखमरी से लड़ रहे हैं। राहत का सामान भी हर किसी को नहीं मिल रहा। दूरदर्शन पर पांच-पांच सौ रुपये पाकर धन्य हो रही कुछेक महिलाओं के वीडियो भी लगातार वाइरल हो रहे हैं। मगर उनमें से कोई भी गरीब और मोहताज नजर नहीं आ रही। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि सरकार किन्हें राहत पहुंचा रही है, गरीब तो अब भी राहत का इंतजार कर रहे हैं। सरकार जल्दी न जागी तो जिन लोगों को आज वह मोहताज समझ रही है, कल प्रवासी मजदूरों और बेरोजगारों की यही फौज अपने हक के लिए उनकी नींद हराम करने से नहीं चूकेगी।   कोलकाता की वरिष्ठ पत्रकार श्वेता सिंह का विश्लेषण

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Dakhal News 19 April 2020


bhopal, Chancellor , Makhanlal Chaturvedi University, Deepak Tiwari resigns

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति दीपक तिवारी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्‍होंने अपना इस्‍तीफा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम जनसंपर्क विभाग के सचिव पी. नरहरि को सौंपा है।   दरअसल प्रदेश के मुख्‍यमंत्री इस विश्वविद्यालय की महापरिषद के अध्यक्ष होते हैं, इसलिए प्राय: जब भी इस तरह से किसी भी कुलपति द्वारा अपना इस्तीफा भेजा जाता है तो वह मुख्‍यमंत्री को संबोधित करते हुए ही दिया जाता है। अपने दिए इस्‍तीफे के पत्र में दीपक तिवारी ने लिखा है वे कुलपति पद से अपना इस्तीफा प्रस्तुत कर रहे हैं, उनका कार्यकाल बहुत अच्‍छा रहा है और वे इससे बेहद संतुष्‍ट हैं। शनिवार रात दिए इस त्‍याग पत्र के पहले उन्‍होंने छात्रों और विश्वविद्यालय के स्टाफ के नाम भी एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने बतौर कुलपति के अपने अनुभव को साझा किया है।   उल्‍लेखनीय है कि उनका बतौर कुलपति कार्यकाल एक साल 2 महीने का रहा है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद दीपक तिवारी को 24 फरवरी,2019 में पत्रकारिता विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया था। उन्होंने वरिष्‍ठ पत्रकार जगदीश उपासने की जगह ली थी, जिन्होंने भाजपा की सरकार जाने के बाद कुलपति पद से इस्तीफा दिया था।   उल्लेखनीय है कि दीपक तिवारी के कुलपति बनने के बाद माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय चर्चा और विवादों में बना रहा है। विश्वविद्यालय की एक फैकल्टी की जातिवादी टिप्पणियों के बाद यहां छात्रों ने आंदोलन तक किया और इसके बाद 23 छात्रों का विश्वविद्यालय से निष्कासन किया गया था लेकिन जब छात्र आंदोलन तेज हुआ तो सभी का निष्कासन वापस लेना पड़ा था। इसके बाद उक्‍त फैकल्टी की सेवाएं भी विश्‍वविद्यायल ने वापस ले ली थी।

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Dakhal News 19 April 2020


bhopal,Google announced funding , journalists news publ

Journalism Emergency Relief Fund! जी हां, इसी नाम से गूगल ने एक रिलीफ फंड तैरा किया है. मकसद है छोटी-छोटी मीडिया संस्थाओं को डूबने और हजारों पत्रकारों को बेरोजगार होने से बचाना. न्यूज पब्लिशर्स की आर्थिक मदद के संबंध में गूगल ने ऐलान किया है. गूगल का कहना है कि कोरोना और लॉकडाउन संकट से प्रभावित छोटे-मीडियम न्यूज पब्लिशर्स व लोकल न्यूजरूम की आर्थिक मदद की जाएगी. जो मदद के इच्छुक हैं वे अप्लाई कर सकते हैं. गूगल फंड के लिए वो पब्लिशर्स अप्लाई कर सकते हैं जहां 2 से लेकर 100 तक फुल टाइम जर्नलिस्ट हैं. पब्लिकेशन की डिजिटल प्रेजेंस कम से कम 12 महीने की होनी चाहिए. गूगल न्यूज के वाइस प्रेसिडेंट रिचर्ड ने कहा है कि वैश्विक स्तर पर छोटे-मीडियम न्यूज पब्लिशर्स को पैसे दिए जाएंगे. इसी मकसद के लिए गूगल ने जर्नलिज्म इमरजेंसी रिलीफ फंड बनाया है. गूगल ने ये नहीं बताया है कि कितने पैसे इस काम के लिए खर्चे जाएंगे. गूगल की फंडिंग पाने के लिए न्यूज पब्लिकेशन्स दो हफ्तों में आवेदन करें. आखिरी तारीख 29 अप्रैल है. आवेदन के लिए इस वेबसाइट का यूज करें- https://newsinitiative.withgoogle.com/ जिन लोकल पब्लिशर्स के पास 100 से ज्यादा फुल टाइम जर्नलिस्ट हैं वो भी इसके लिए आवेदन कर सकती है. हालांकि इस तरह के आवेदन को गूगल अपने तरीके से जांच कर फिर फैसला लेगा कि फंड करना है या नहीं. गूगल की तरफ से एक मिलियन डॉलर दो संस्थाओं इंटरनेशनल सेंटर फॉर जर्नलिस्ट्स और कोलंबिया जर्नलिस्म स्कूल डार्ट सेंटर फॉर जर्नलिज्म एंड ट्रॉमा को दिए जाएंगे. ये संस्थाएं जर्नलिस्ट्स को सपोर्ट करती हैं. ज्ञात हो कि गूगल पहले भी गूगल न्यूज इनिशिएटिव के तहत 6.5 मिलियन डॉलर देने का ऐलान कर चुका है जो फैक्ट चेकर्स और कोरोना वायरस से जुड़े गलत इनफॉर्मेशन रोकने का काम करने वाले नॉन प्रॉफिट्स ऑर्गाइजेशन्स के लिए हैं.   गूगल के अलावा फेसबुक ने भी कहा है कि लोकल न्यूज ऑर्गनाइजेशन को कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौर में सपोर्ट करने के लिए 100 मिलियन डॉलर की मदद दी जाएगी. इनमें 25 मिलियन डॉलर लोकल कवरेज के लिए है, जबकि 75 मिलियन डॉलर मार्केटिंग के लिए है.

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Dakhal News 16 April 2020


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हमलावरों ने हमले के पहले कहा कि तुम्हारा पिता दिनभर इधर-उधर घूम कर काम कर रहा है, इससे मोहल्ले में कोरोनावायरस का खतरा बढ़ रहा है… नवभारत के फोटो ग्राफर गोपी डे के पुत्र शुभम डे के साथ जो घटना घटित हुई वह बेहद निंदनीय और चिंताजनक है. कल शाम को इस युवक पर कुछ लोगों ने जानलेवा हमला कर दिया. बुरी तरह घायल हुए शुभम डे को सिम्स में भर्ती कर दिया गया है. वहां उसका उपचार चल रहा है. इस हमले का कोई व्यक्तिगत कारण नहीं है, बल्कि यह हमला इसलिए हुआ है कि पीड़ित बच्चे का पिता श्री गोपी डे नवभारत प्रेस में प्रेस फोटोग्राफर है. दिन भर घूम घूम कर अपनी ड्यूटी किया करता है. इसलिए उससे कोरोना का संक्रमण फैलाने की मूर्खतापूर्ण आशंका जताते हुए मोहल्ले के बदमाश और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों ने श्री गोपी डे के पुत्र पर प्राणघातक हमला कर दिया.   सरकण्डा पुलिस ने हमलावरों को गिरफ्तार कर लिया है और उन पर गैर-जमानती धाराओं के तहत अपराध भी पंजीबद्ध कर लिया है.

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Dakhal News 16 April 2020


bhopal, Dalit landscape , Corona crisis

2011 की आर्थिक एवं जाति जनगणना के अनुसार भारत के कुल परिवारों में से 4.42 करोड़ परिवार अनुसूचित जाति (दलित) से सम्बन्ध रखते हैं. इन परिवारों में से केवल 23% अच्छे मकानों में, 2% रहने योग्य मकानों में और 12% जीर्ण शीर्ण मकानों में रहते हैं. इन परिवारों में से 24% परिवार घास फूस, पालीथीन और मिटटी के मकानों में रहते हैं. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि अधिकतर दलितों के पास रहने योग्य घर भी नहीं है. काफी दलितों के घरों की ज़मीन भी उनकी अपनी नहीं है. यह भी सर्विदित है कि शहरों की मलिन बस्तियों तथा झुग्गी झोंपड़ियों में रहने वाले अधिकतर दलित एवं आदिवासी ही हैं. यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इतने छोटे मकानों और झोंपड़ियों में कई कई लोगों के एक साथ रहने से कोरोना की रोकथाम के लिए फिज़िकल डिस्टेंसिंग कैसे संभव है. महाराष्ट्र का धार्वी स्लम इसकी सबसे बड़ी उदाहरण है जहाँ बड़ी तेजी से संक्रमण के मामले आ रहे हैं. ऐसी परिस्थिति में यदि ऐसी ही परिस्थिति रही तो इससे मरने वालों की संख्या का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. उपरोक्त जनगणना के अनुसार केवल 3.95% दलित परिवारों के पास सरकारी नौकरी है. केवल 0.93% के पास राजकीय क्षेत्र तथा केवल 2.47% के पास निजी क्षेत्र का रोज़गार है. इससे स्पष्ट है कि दलित परिवार बेरोज़गारी का सबसे बड़ा शिकार हैं. वास्तव में आरक्षण के 70 साल लागू रहने पर भी सरकारी नौकरियों में दलित परिवारों का प्रतिनिधित्व केवल 3.95% ही क्यों है? क्या आरक्षण को लागू करने में हद दर्जे की बेईमानी नहीं बरती गयी है? क्या मेरिट के नाम पर दलित वर्गों के साथ खुला धोखा नहीं किया गया है और दलितों को उनके संवैधानिक अधिकार (हिस्सेदारी) से वंचित नहीं किया गया है? यदि दलितों में मेरिट की कमी वाले वाले झूठे तर्क को मान भी लिया जाए तो फिर दलितों में इतने वर्षों में मेरिट पैदा न होने देने के लिए कौन ज़िम्मेदार है? इसी जनगणना में यह उभर कर आया है कि देश में दलित परिवारों में से केवल 83.55% परिवारों की मासिक आय 5,000 से अधिक है. केवल 11.74% परिवारों की मासिक आय 5,000 से 10,000 के बीच है और केवल 4.67% परिवारों की आय 10,000 से अधिक है. सरकारी नौकरी से केवल 3.56% परिवारों की मासिक आय 5,000 से अधिक है. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि गरीबी की रेखा के नीचे दलितों का प्रतिश्त बहुत अधिक है जिस कारण दलित ही कुपोषण का सबसे अधिक शिकार हैं. इसी प्रकार उपरोक्त जनगणना के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में 56% परिवार भूमिहीन हैं. इन में से भूमिहीन दलितों का प्रतिशत 70 से 80% से भी अधिक हो सकता है. दलितों की भूमिहीनता की दशा उन की सबसे बड़ी कमज़ोरी है जिस कारण वे भूमिधारी जातियों पर पूरी तरह से आश्रित रहते हैं. इसी प्रकार देहात क्षेत्र में 51% परिवार हाथ का श्रम करने वाले हैं जिन में से दलितों का प्रतिशत 70 से 80% से अधिक हो सकता है. जनगणना के अनुसार दलित परिवारों में से केवल 18.45% के पास असिंचित, 17.41% के पास सिंचित तथा 6.98% के पास अन्य भूमि है. इससे स्पष्ट है की दलितों की भूमिहीनता लगभग 91% है. दलित मजदूरों की कृषि मजदूरी पर सब से अधिक निर्भरता है. जनगणना के अनुसार देहात क्षेत्र में केवल 30% परिवारों को ही कृषि में रोज़गार मिल पाता है जिससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इन में कितने दलितों को कृषि से रोज़गार मिल पाता होगा. यही कारण है कि गाँव से शहरों को ओर पलायन करने वालों में सबसे अधिक दलित ही हैं. हाल में कोरोना संकट के समय शहरों से गाँव की ओर उल्टा पलायन करने वालों में भी बहुसंख्यक दलित ही हैं. दलितों की भूमिहीनता और हाथ की मजदूरी की विवशता उनकी सब से बड़ी कमज़ोरी है. इसी कारण वे न तो कृषि मजदूरी की ऊँची दर की मांग कर सकते हैं और न ही अपने ऊपर प्रतिदिन होने वाले अत्याचार और उत्पीड़न का मजबूती से विरोध ही कर पाते हैं. अतः दलितों के लिए ज़मीन और रोज़गार उन की सब से बड़ी ज़रुरत है परन्तु इस के लिए मोदी सरकार का कोई भी एजेंडा नहीं है. इस के विपरीत मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण करके दलितों को भूमिहीन बना रही है और कृषि क्षेत्र में कोई भी निवेश न करके इस क्षेत्र में रोज़गार के अवसरों को कम कर रही है. अन्य क्षेत्रों में भी सरकार रोज़गार पैदा करने में बुरी तरह से विफल रही है. सरकारी उपक्रमों के निजीकरण के कारण दलितों को आरक्षण के माध्यम से मिलने वाले रोज़गार के अवसर भी लगातार कम हो रहे हैं. इसके विपरीत ठेकेदारी प्रथा से दलितों एवं अन्य मज़दूरों का खुला शोषण हो रहा है. मोदी सरकार ने श्रम कानूनों का शिथिलीकरण करके मजदूरों को श्रम कनूनों से मिलने वाली सुरक्षा को ख़त्म कर दिया है. इससे मजदूरों का खुला शोषण हो रहा है जिसका सबसे बड़ा शिकार दलित परिवार हैं. अमेरिका में वर्तमान कोरोना महामारी के अध्ययन से पाया गया है कि वहां पर संक्रमित/मृतक व्यक्तियों में गोरे लोगों की अपेक्षा काले लोगों की संख्या अधिक है. इसके चार मुख्य कारण बताये गए हैं: अधिक खराब सेहत और कम स्वास्थ्य सुविधाओं की उप्लब्धता एवं भेदभाव, अधिकतर काले अमरीकन लोगों का आवश्यक सेवाओं में लगे होना, अपर्याप्त जानकारी एवं छोटे घर. भारत में दलितों के मामले में तो इन सभी कारकों के इलावा सबसे बड़ा कारक सामाजिक भेदभाव है. इसी लिए यह स्वाभाविक है कि हमारे देश में भी काले अमरीकनों की तरह समाज के सबसे निचले पायदान पर दलित एवं आदिवासी ही कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित होने की सम्भावना है. वर्तमान कोरोना संकट से जो रोज़गार बंद हो गए हैं उसकी सबसे अधिक मार दलितों/ आदिवासियों पर ही पड़ने वाली है. हाल के अनुमान के अनुसार कोरोना की मार के फलस्वरूप भारत में लगभग 40 करोड़ लोगों के बेरोज़गारी का शिकार होने की सम्भावना है जिनमें अधिकतर दलित ही होंगे. इसके साथ ही आगे आने वाली जो मंदी है उसका भी सबसे बुरा प्रभाव दलितों एवं अन्य गरीब तबकों पर ही पड़ने वाला है. यह भी देखा गया है कि वर्तमान संकट के दौरान सरकार द्वारा राहत सम्बन्धी जो घोषणाएं की भी गयी हैं वे बिलकुल अपर्याप्त हैं और ऊंट के मुंह में जीरा के सामान ही हैं. इन योजनाओं में पात्रता को लेकर इतनी शर्तें लगा दी जाती हैं कि उनका लाभ आम आदमी को मिलना असंभव हो जा रहा है. उत्तर कोरोना काल में दलितों की दुर्दशा और भी बिगड़ने वाली है क्योंकि उसमें भयानक आर्थिक मंदी के कारण रोज़गार बिलकुल घट जाने वाले हैं. चूँकि दलितों के पास उत्पादन का अपना कोई साधन जैसे ज़मीन तथा व्यापर कारोबार आदि नहीं है, अतः मंदी के दुष्परिणामों का सबसे अधिक प्रभाव दलितों पर ही पड़ने वाला है. इसके लिए ज़रूरी है कि भोजन तथा शिक्षा के अधिकार की तरह रोज़गार को भी मौलिक अधिकार बनाया जाये और बेरोज़गारी भत्ते की व्यवस्था लागू की जाये. इसके साथ ही स्वास्थ्य सुरक्षा को भी मौलिक अधिकार बनाया जाये ताकि गरीब लोगों को भी स्वास्थ्य सुरक्षा मिल सके. इसके लिए ज़रूरी है कि हमारे विकास के वर्तमान पूंजीवादी माडल के स्थान पर जनवादी समाजवादी कल्याणकारी राज्य के माडल को अपनाया जाये. यह उल्लेखनीय है कि डा. आंबेडकर राजकीय समाजवाद (जनवादी समाजवाद) के प्रबल समर्थक और पूंजीवाद के कट्टर विरोधी थे. उन्होंने तो दलित रेलवे मजदूरों के सम्मलेन को संबोधित करते हुए कहा था कि “दलितों के दो बड़े दुश्मन हैं, एक ब्राह्मणवाद और दूसरा पूँजीवाद.” वे मजदूर वर्ग की राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदारी के बहुत बड़े पक्षधर थे. डॉ आंबेडकर के मस्तिष्क में समाजवाद की रूप-रेखा बहुत स्पष्ट थी। भारत के सामाजिक रूपान्तरण और आर्थिक विकास के लिए वे इसे अपरिहार्य मानते थे। उन्होंने भारत के भावी संविधान के अपने प्रारूप में इस रूप-रेखा को राष्ट्र के समक्ष प्रस्तुत भी किया था जो कि “स्टेट्स एंड माइनॉरिटीज अर्थात राज्य एवं अल्पसंख्यक” नामक पुस्तक के रूप में उपलब्ध है। वे सभी प्रमुख एवं आधारभूत उद्योगों, बीमा, कृषि भूमि का राष्ट्रीयकरण एवं सामूहिक खेती के पक्षधर थे. वे कृषि को राजकीय उद्योग का दर्जा दिए जाने के पक्ष में थे. डा. आंबेडकर तो संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं बनाना चाहते थे परन्तु यह उनके वश में नहीं था. वर्तमान कोरोना संकट ने यह सिद्ध कर दिया है कि अब तक भारत सहित अधिकतर देशों में विकास का जो पूँजीवाद माडल रहा है उसने शोषण एवं असमानता को ही बढ़ावा दिया है. यह आम जन की बुनियादी समस्यायों को हल करने में बुरी तरह से विफल रहा है. जबसे राजनीति का कारपोरेटीकरण एवं फाइनेंस कैपिटल का महत्त्व बढ़ा है, तब से लोकतंत्र की जगह अधिनायिकवाद और दक्षिणपंथ का पलड़ा भारी हुआ है. इस संकट से यह तथ्य भी उभर कर आया है कि इस संकट का सामना केवल समाजवादी देश जैसे क्यूबा, चीन एवं वियतनाम आदि ही कर सके हैं. उनकी ही व्यवस्था मानव जाति के जीवन की रक्षा करने में सक्षम है। वरना आपने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को तो सुना ही होगा जिसमें वह कहते हैं कि लगभग ढाई लाख अमरीकनों को तो कोरोना से मरना ही होगा और इसमें वह कुछ नहीं कर सकते। पूंजीवाद के सर्वोच्च माडल की यह त्रासद पुकार है जो दिखा रही है कि मुनाफे पर पलने वाली पूंजीवादी व्यवस्था पूर्णतया खोखली है। इसलिए दलितों के हितों की रक्षा भी जनवादी समाजवादी राज्य व्यवस्था में ही सम्भव है। बाबा साहब की परिकल्पना तभी साकार होगी जब दलित, पूंजीपतियों की सेवा में लगे बसपा, अठवाले, रामविलास जैसे लोगों से अलग होकर, रेडिकल एजेंडा (भूमि आवंटन, रोज़गार, स्वास्थ्य सुरक्षा, शिक्षा, एवं सामाजिक सम्मान आदि) पर आधारित जन राजनीति के साथ जुड़ेंगे। यही राजनीति एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करेगी जिसमें उत्तर कोरोना काल की चुनौतियों का जवाब होगा। आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट इसी दिशा में जनवादी समाजवादी राजनीति का एक प्रयास है।   -एस आर दारापुरी आईपीएस (से.नि.), राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट

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Dakhal News 14 April 2020


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Soumitra Roy : लॉक डाउन कुछ समय के बाद तो खत्म हो ही जायेगा। लेकिन उसके बाद क्या? क्या आपने प्लान बनाया? किसका इंतज़ार है? अगर आपको यह लगता है कि लॉक डाउन खुलते ही बागों में बहार आ जायेगी तो आप बड़ी ग़लतफ़हमी में हैं। कोरोना के जन्मदाता चीन में कल 97 मरीज़ सामने आए हैं। मतलब संकट फिर गहरा रहा है। भारत में आईसीएमआर ने अपनी स्टडी में कह दिया है  कि कोरोना सितंबर में सबसे ज़्यादा सितम ढहायेगा। तो समझे पूरा साल गया। भूल जाइए दशहरा, दीवाली को। देश के कॉरपोरेट्स ने कह दिया है कि देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में 9 महीने तक का वक़्त लग सकता है। उधर विश्व बैंक ने दक्षिण एशिया इकनोमिक फोकस रिपोर्ट में भारत सहित 8 देशों को तबाही की चेतावनी दी है। बैंक का कहना है कि अगर जल्दी लॉक डाउन खुला तो भी भारत की विकास दर 2020-21 में 1.2-2.8% के बीच रहेगी। 2022 में ही भारत 5% की विकास दर हासिल कर सकेगा, वह भी तब जबकि सरकार सब संभाल ले। अगर लॉक डाउन लंबा चलता है तो हालात और भी खराब हो सकते हैं। तो अभी से किफ़ायत की आदत डाल लीजिये। सिर्फ ज़रूरी चीजों पर ही खर्च कीजिये, पैसा बचाइए और रोजगार को मजबूत कीजिये। लॉक डाउन खुलने के बाद देश में भयंकर बेरोज़गारी का आलम बन सकता है। यानी अभी तेज़, तूफानी लहरों के बीच भंवर भी है। अगले 2 साल में अगर मोदी सरकार अर्थव्यवस्था की कश्ती को बचा ले जाती है तो 2024 उनका है। वरना जनता आती है।   पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट सौमित्र राय की एफबी वॉल से.

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Dakhal News 14 April 2020


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एक बुरी खबर…लॉकडाउन में जब आप घरों में क़ैद हैं, ऐसे में गुड़गांव में अमेरिकन कंपनी फेयर पोर्टल (Fareportal) ने अपने 800 कर्मचारियों को कंपनी से निकाल दिया है। इसी कंपनी ने गुड़गांव के अलावा पुणे में भी कर्मचारियों को निकाला है। यह कंपनी ट्रेवल बिजनेस यानी फ्लाइट और होटल बुकिंग की बहुत बड़ी अमेरिकी कंपनी है। कर्मचारियों को निकाले जाने का सिलसिला कई दिनों से चल रहा है और मजाल है कि केंद्र सरकार, हरियाणा सरकार या उसके श्रम विभाग गुड़गांव ने इस पर कोई ऐतराज किया हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब देश को नौकरियां जाने का आश्वासन दे रहे थे, ऐसे समय में केंद्र सरकार भी #फेयरपोर्टल के इस घटनाक्रम पर चुप है। कर्मचारियों का कहना है कि गुड़गांव की मल्टीनैशनल कंपनियों (एमएनसी) में अभी ये शुरुआत भर है। जल्द ही कुछ और कंपनियां भी इसी रास्ते पर चलेंगी। कंपनी के एचआर डिपार्टमेंट ने बिना कोई नोटिस दिए फोन पर कर्मचारियों को अलग-अलग समय देते हुए दफ्तर बुलाया और उसने इस्तीफा देने को कहा। हर कर्मचारी से कहा गया कि अगर उन्हें वेतन चाहिए तो इस्तीफा देना होगा। अन्यथा वेतन भी रुक जाएगा। कर्मचारियों को मार्च का वेतन चाहिए था, उन्होॆने इस्तीफा लिख दिया। जो नए कर्मचारी थे यानी जिनको लगभग एक साल पूरा होने को था, उन्हें बर्खास्त करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी धारा 10ए का इस्तेमाल किया गया। इसके तहत कंपनी कभी भी उन्हें बर्खास्त कर सकती है। बर्खास्त कर्मचारियों को अभी तक मार्च का वेतन भी नहीं दिया गया। कंपनी से बर्खास्त की गई एक महिला कर्मचारी ने बताया कि उसके पास रखा पिछला सारा पैसा खत्म हो गया। अब उसके पास परिवार के साथ नेपाल लौटने तक के लिए पैसे नहीं हैं। तमाम कर्मचारियों का लगभग यही हाल है। हटाए गए कर्मचारियों में 8 और 10 साल तक सेवा देने वाले भी शामिल हैं। लेकिन ऐसे कर्मचारियों के मामले में किसी भी सेवाशर्त को लागू नहीं किया गया। सूत्रों का कहना है कि सबसे ज्यादा 500 कर्मचारी गुड़गांव दफ्तर से हटाए गए हैं। इसी तरह पुणे से 300 कर्मचारी हटाए गए हैं। पुणे में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी पुराने हैं। चार साल तक काम कर चुके एक टिकटिंग एग्जेक्यूटिव राजू प्रसाद ने बताया कि उसे और उसके कुछ साथियों को बर्खास्तगी का लेटर ईमेल पर मिला है। आल इंडिया सेंट्रल काउंसिल आफ ट्रेड यूनियनंस ने फेयरपोर्टल के कर्मचारियों को हटाए जाने के खिलाफ हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर को पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है कि कोरोना आपदा के दौरान कंपनी की यह हरकत कानून का खुला उल्लंघन है। इससे कर्मचारियों की दिक्कत बढ़ेगी। मुख्यमंत्री से इस मामले में फौरन दखल देने और कार्रवाई की मांग करते हुए कहा गया है कि इससे पहले हालात नाजुक हों, हरियाणा सरकार को फौरन ऐक्शन लेना चाहिए। इसी तरह का पत्र महाराष्ट्र सरकार को भी लिखा गया है। फेयरपोर्टल ने अपने पुराने कर्मचारियों को जो पत्र भेजा है, उसमें उन्हें हटाने की कोई वजह नहीं बताई गई है। कई अधिकारी स्तर के कर्मचारियों ने कंपनी के वाइस प्रेसीडेंट विनय कांची को संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने अपना मोबाइल बंद कर रखा है। इसी तरह कई और अफसरों से संपर्क की कोशिश भी बेकार गई। निकाले गए कर्मचारियों का कहना है कि सहानुभूति के तौर पर भी कोई अधिकारी बात नहीं कर रहा है। अपने काम से काम का मतलब रखने वाले कर्मचारियों को अब कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि वे किस तरफ जाए। अभी तक किसी ने पुलिस में कोई रिपोर्ट तक नहीं दर्ज कराई है। गुड़गांव के श्रम विभाग, डीएम, पुलिस कमिश्नर से लेकर डिविजनल कमिश्नर तक इस घटना की जानकारी हो चुकी है, लेकिन कर्मचारियों के आंसू पोंछने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है। देश का टीवी मीडिया जब हिंदू-मुसलमानों को लड़ाने और देश को बांटने की कोशिश में लगा हुआ है, उसकी नजर इन कर्मचारियों की बर्खास्तगी पर नहीं गई। एक कर्मचारी ने बताया कि उन लोगों ने तमाम चैनलों को जानकारी दी लेकिन कहीं से कोई हमारी कहानी सुनने नहीं पहुंचा। इस मीडिया के पास मुसलमानों को टारगेट करके फर्जी खबरें दिखाने का समय तो है लेकिन हमारा दर्द सुनने के लिए कोई समय नहीं है। कर्मचारियों को उम्मीद थी कि टीवी मीडिया देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम मनोहर लाल खट्टर से इस संबंध में सवाल करेगा लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है। लॉकडाउन की घोषणा किए जाते समय मोदी ने आश्वासन दिया था कि किसी की नौकरी पर संकट नहीं आएगा लेकिन न सिर्फ मोदी बल्कि खट्टर के आश्वासन भी फर्जी साबित हुए। गुड़गांव का निकम्मा श्रम विभाग इस मामले में कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज तो करवा ही सकता है। क्योंकि कंपनी ने नोटिस देकर कर्मचारियों को बर्खास्त करने जैसा मामूली कदम भी नहीं उठाया है। इसी तरह श्रम विभाग डीएम को इस कंपनी के बैंक खाते फ्रीज करने, चल-अचल संपत्ति कुर्क करने के लिए सुझाव दे सकता था। इसी तरह डीएम भी श्रम विभाग का सुझाव मिले बिना ये सारे कदम बतौर जिला मैजिस्ट्रेट ये सारे कदम खुद से उठा सकते थे।

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Dakhal News 12 April 2020


bhopal, Lockdown expected , continue, across  country,April 30

जरूरी अपडेट: उच्च पदस्थ सरकारी सूत्रों के अनुसार लॉक डाउन 30 अप्रैल तक जारी रहेगा। इसके बाद मई से लॉक डाउन चरणबद्ध तरीके से खोला जाएगा। प्रस्तावित तारीखें-धर्म स्थल: 5 मईफल-सब्जियों की दुकानें: 7 मईमॉल, सिनेमा हॉल: मई तीसरा हफ्ताट्रेन-फ्लाइट: 15 मईअन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें: जुलाई 30 ये प्रधानमंत्री कार्यालय के सामने आया प्रस्तावित प्लान है। मोदीजी 12 अप्रैल को देश के सामने अपनी योजना का खुलासा कर सकते हैं। न्यूज़ सोर्स- रेडिफ डॉट कॉम

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Dakhal News 12 April 2020


INS shed crocodile tears on Sonia Gandhi

वेजबोर्ड लागू करने को लेकर बेशर्मी और ढिठाई से बोला झूठ कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी के केंद्र सरकार को सरकारी विज्ञापनों पर रोक के सुझाव पर तिलमिलाया अखबार मालिकों का संगठन आईएनएस घड़ियाली आंसू बहा रहा है। आईएनएस ने विपक्षी नेता के सुझाव के खिलाफ जारी बयान में बेशर्मी की हदें लांघते हुए ऐसा ना करने के पीछे प्रिंट मीडिया की विश्‍वसनीयता के अलावा वेजबोर्ड लागू होने का बेतुका और सरासर झूठा हवाला दिया है। सच्‍चाई तो यह है कि आईएनएस से जुड़ा लगभग हर अखबार मालिक अपने कर्मचारियों को वेजबोर्ड की सिफारिशों के तहत वेतन दिए जाने के खिलाफ कोरोना वायरस की तरह हर उस कर्मचारी को शिकार बनाता जा रहा है या बना चुका है, जिसने भी मजीठिया वेजबोर्ड के तहत संशोधित वेतन की मांग की है। लगभग किसी भी समाचारपत्र संस्‍थान ने वर्ष 2011 से अधिसूचित मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद लागू नहीं किया है। इस वेजबोर्ड को लागू करवाने की लड़ाई में शामिल हजारों अखबार कर्मचारियों को प्रताड़ित करके उनकी नौकरियां छिन ली गई हैं। वेजबोर्ड के तहत वेतन की रिकवरी से जुड़े हजारों विवाद सुप्रीम कोर्ट होते हुए अब श्रम न्‍यायालयों में लंबित चल रहे हैं। इस सबके बावजूद आईएनएस ने जिस ढिठाई से अपने कर्मचारियों को वेजबोर्ड के तहत वेतन देने का हवाला देकर सोनिया गांधी के सरकारी विज्ञापन बंद किए जाने के सुझाव का विरोध किया है वो इनकी बेशर्मी से झूठ बोलने की आदत और धनलोलुपता को ही दर्शाता है। न्‍यूजपेपर इम्‍पलाइज युनियन ऑफ इंडिया(एनईयूआई) का अध्‍यक्ष होने के नाते मैं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से मांग/आग्रह करता हूं कि कारोना महामारी के इस संकट में सरकार सिर्फ उन्‍हीं सामाचारपत्र संस्‍थानों को सरकारी विज्ञापन जारी करे जो अपने बीओडी के माध्‍यम से प्रस्‍ताव पारित करके इस आशय का शपथपत्र देता है कि उसने मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को केंद्र सरकार की 11.11.2011 की अधिसूचना और माननीय सुप्रीम कोर्ट के 07.02.2014 और 19.06.2017 के निर्णय के अनुसार सौ फीसदी लागू किया है और उसके किसी भी कर्मचारी का श्रम न्‍यायालय या किसी अन्‍य न्‍यायालय में वेजबोर्ड से जुड़ा का विवाद लंबित नहीं है। साथ ही इस संस्‍थान के दावे की सत्‍यता के लिए राज्‍य और केंद्र स्‍तर पर श्रमजीवी पत्रकार और अखबार कर्मचारियों की युनियनों के सुझाव व आपत्‍तियां लेने के बाद ही इन अखबारों को सरकारी विज्ञापन जारी किए जाएं और वेजबोर्ड लागू ना करने वाले समाचारपत्र संस्‍थानों को सरकारी विज्ञापन देना पूरी तरह बंद किया जाए। ऐसी ही व्‍यवस्‍था राज्‍य सरकारों को भी करने के निर्देश जारी किए जाएं। रविंद्र अग्रवाल वरिष्‍ठ पत्रकार एवं अध्‍यक्ष, एनयूईआई

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Dakhal News 10 April 2020


bhopal, Spinal problems may increase during work from home.

कोविड-19 की विश्वव्यापी महामारी और देशभर में लॉकडाउन के कारण अधिकांश कामकाजी लोगों को घर से ही काम करने की सलाह दी गई है। हालांकि, इस स्थिति में सोशल डिस्टेंसिंग बहुत जरूरी है, लेकिन लोगों को वर्क फ्रॉम होम के दौरान रीढ़ की समस्याओं को लेकर भी सावधान रहने की आवश्यकता है। एक हालिया अध्ध्यन के अनुसार, 30-40 साल की आयु वर्ग में हर पांचवा भारतीय किसी न किसी प्रकार की रीढ़ की समस्या से पीड़ित है। पिछले एक दशक में, इस समस्या की चपेट में आई युवा आबादी की संख्या में 60 प्रतिशत वृद्धि देखी गई है। रीढ़ की हड्डी की समस्या पहले बुजुर्गों की बीमारी हुआ करती थी, लेकिन आज गतिहीन जीवनशैली और गलत मुद्रा में बैठने के कारण युवा भी इस समस्या का शिकार हो रहे हैं, जो एक चिंता का विषय है। मुंबई स्थित मुंबई स्पाइन स्कोलियोसिस एंड डिस्क रिप्लेसमेंट सेंटर के डॉ. अरविंद कुलकर्णी ने बताया कि, “गतिहीन जीवनशैली, गलत मुद्रा में बैठना, लेट कर लैपटॉप पर काम करना और उठने-बैठने के गलत तरीकों के कारण घर से काम कर रहे लोगों में रीढ़ की समस्याएं विकसित हो सकती हैं। ये सभी फैक्टर रीढ़ और पीठ की मांसपेशियों पर तेज दबाव बनाते हैं। सभी काम झुककर करने से रीढ़ के लीगामेंट्स में ज्यादा खिचाव आजाता है, जिससे पीठ में तेज दर्द के साथ अन्य गंभीर समस्याएं भी हो सकती हैं। हालांकि, एक स्वस्थ और सक्रिय जीवनशैली के साथ इन समस्याओं से बचा जा सकता है। ऐसे में रोज एक्सरसाइज करना, सही तरीके से उठना-बैठना, सही तरीके से झुकना और शरीर को सीधा रखना आदि स्वस्थ रीढ़ के लिए जरूरी है।” आमतौर पर, जो लोग पीठ के निचले हिस्से के दर्द से परेशान रहते हैं, उनमें से 95 प्रतिशत लोगों को लक्षण के पहले महीने में किसी खास टेस्ट की जरूरत नहीं पड़ती है। टूटी रीढ़ जैसी कुछ समस्याएं हैं जो किसी गंभीर समस्या का संकेत देते हैं। ऐसे में पीड़ित के लिए तुरंत किसी अच्छे डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी होता है। डॉ. कुलकर्णी ने आगे बताया कि, “वर्क फ्रॉम होम के साथ हमें घर के भी कई काम करने पड़ते हैं। ऐसे में अचानक झटके से उठना, ज्यादा झुकना, गलत तरीके से सामान उठाना, लेटकर लैपटॉप चलाना, लगातार एक ही मुद्रा में काम करना आदि आदतों से दूरी बनाना जरूरी है। काम के दौरान बीच-बीच में ब्रेक लेते रहें और यदि काम ज्यादा है तो किसी से मदद मांग लें। रोजाना एक्सरसाइज और वॉक करें, लेकिन इस दौरान बॉडी स्ट्रेच पर ज्यादा ध्यान दें। एक पोषणयुक्त डाइट लें, जिसमें प्रोटीन, सलाद, फल और हरी सब्जियां भरपूर मात्रा में मौजूद हों। शरीर में विटामिन डी की कमी न हो इसलिए रोज थोड़ी देर धूप में बैठना जरूरी है। यदि आप पेनकिलर दवाएं ले रहे हैं तो ‘आईब्युप्रोफेन’ वाली दवाइयां बिल्कुल न लें क्योंकि ये हमें कमजोर बनाती हैं जिससे हमारा शरीर घातक कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता नहीं रख पाता है।”

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Dakhal News 10 April 2020


bhopal, Lockdown and alcoholic beggars!

Yashwant Singh : भारत में असली ज़रूरतमंद को तलाशना भी एक बड़ा दिमागी गेम है। लोकडौन के नाम पर कुछ बवंडर किस्म के अल्कोहलिक नगद मदद के लिए गुहार लगा रहे, घर में अन्न राशन न होने का दावा कर के। किसी सज्जन पुरुष के फोन करने पर पर्याप्त रो-गा भी देते हैं ताकि नौटंकी में कोई कमी न रहे। मित्रों ने उनकी हजार पांच सौ नगद भेजने की मांग अनसुनी कर उसकी जगह पर्याप्त अन्न राशन भिजवा दिया है। खुद को फ़क़ीर बताने वाले ऐसे अल्कोहलिकों से सावधान रहें। नगद की जगह अन्न ही भिजवाएं। ये साले पियक्कड़ कई दिन दारू न मिलने पर आखिरी दांव भयंकर इमोशनल वाला ही खेलते हैं! जिनके बारे में बात कर रहा हूं वो पूर्व परिचित है। उसके नाटक मैं बारह पंद्रह साल से जानता हूँ। वो मेरी मित्र मंडली के लोगों को इमोशमल ब्लैकमेल कर रहा था। फिर भी उस तक अन्न राशन के अलावा बोतल भर पीने के लिए लोगों ने मदद पहुंचा दी है। मालूम हो कि लॉक डाउन में जगह जगह ब्लैक में दारू बिक रही है। एल्कोहलिक किस्म के प्राणी ब्लैक वाली दारू खरीदने का सामर्थ्य न होने के चलते भांति भांति तरीकों के बहानों से लोगों से पैसे मांग रहे हैं।

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Dakhal News 10 April 2020


bhopal, Tabligi Jama Coronas hotspot and mask issue in news headlines

तबलीगी जमात के जलसे में शामिल अधिकतर लोगों के कोरोना संक्रमित होने से पूरे देश में कोहराम मच गया है। निजामुद्दीन को संक्रमण का केंद्र माना जा रहा है क्योंकि इसमें शामिल लोगों से अब अन्य 20 राज्यों में भी कोरोना का संक्रमण फैलने की आशंका व्यक्त की जा रही है। आरोप-प्रत्यारोप का बाजार गर्म होता जा रहा है। निजामुद्दीन केंद्र के कोविड-19 मामलों से देश में खतरे की घंटी बज गयी है। कोरोना के संक्रमण को रोकने के पुख्ता इंतजाम के दावे भी किये जा रहे हैं। आइए देखते हैं अंग्रेजी औऱ हिंदी अखबारों ने किन खबरों को कितनी अहमियत दी है। द हिंदू में सौरभ त्रिवेदी और निखिल एम.बाबू की रिपोर्ट जिसका शीर्षक हिंदी मे कुछ इस प्रकार होगा- तबलीगी जमात के अधिकारियों पर कानून तोड़ने का आरोप। इस खबर में बताया गया है कि निजामुद्दीन थाने में मरकज के प्रमुख मौलाना मोहम्मद साद व अन्य पर केस दर्ज किया गया। इस खबर में बताया गया है कि चार सौ से अधिक लोगों को कोविड 19 के लक्षण देख कर अस्पताल में दाखिल कराया गया और तकरीबन एक हजार लोगों को क्वारंटाइन में रखा गया है। अधिकारियों को डर है कि जो लोग यहां से दूसरे शहरों में अपने घरों में जा पहुंचे हैं, वो सभी न जाने कितने और लोगों को संक्रमित किया होगा। इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंपी गई है। इनके खिलाफ आईपीसी के तहत बीमारी फैलाने के लिए लापरवाही बरतने, घातक व नुकसानदेरह काम करने, दूसरे की जान जोखिम में डालने, सरकारी आदेश के उल्लंघन और आपराधिक षडयंत्र के अलावा महामारी एक्ट 1897 के तहत केस दर्ज हुआ है। इसी अखबार में जेकॉब कोशी की बाइलाइन से जो खबर प्रकाशित हुई है उसका शीर्षक है- मास्क के इस्तेमाल पर स्वास्थ्य मंत्रालय और प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के दफ्तर में मतभेद। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के दफ्तर और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के बीच मास्क पहनने और न पहनने को लेकर मतभेद सामने आये हैं। द हिंदू में ही शोभना के.नायर और जेबराज की रिपोर्ट का शीर्षक है- जबरन रोके गये मजदूर, अब भूखमरी से लड़ रहे। इस रिपोर्ट में प्रवासी मजदूरों के दर्द और तकलीफ को बयां किया गया है। इस खबर में बताया गया है कि विश्व में कोरोना वायरस का सामना कर रहे अधिकतर देशों ने घर में रहें, सुरक्षित रहें पर अमल करने की कोशिश की है। भारत में भी लॉकडाउन जारी कर हर नागरिक को घरों में रहने की हिदायत दी जा रही है। सीमाओं को भी सील किया जा चुका है ताकि कोरोना संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। ऐसे हालात में बिना काम और पैसों की किल्लत से परेशान मजदूरों और गरीबों को भूखमरी का सामना करना पड़ रहा है। सच तो यही है कि सरकार भले ही कितने भी दावे कर ले मगर गरीबों के रहने खाने का भरपूर प्रबंध नहीं हो पाया है। द इंडियन एक्सप्रेस में अबंतिका घोष की जो रिपोर्ट छपी है उसका शीर्षक है- आईसीएमआर ने माना भारत में अब भी संक्रमण कम है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि तबलीगी जमात से देश भर में संक्रमण फैलने की आशंका के बाद भी आईसीएमआर को अब भी यकीन है कि विश्व में जिस तेजी से कोरोना का कहर बढ़ रहा है उसके मुकाबले भारत में संक्रमण अब भी कम है। सरकार के बाद भारत की प्रमुख संस्थाओं से इस तरह के बयान जारी कर यकीनन जनता के डर को कम करने की कवायद ही की जा रही है। इसी अखबार में सौम्या लखानी और सौरभ रायबर्मन की रिपोर्ट छपी है। इस खबर में लिखा है कि निजामुद्दीन केंद्र को खाली कराया गया है औऱ केजरीवाल ने मामले बढ़ने पर चेताया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इसे गैरजिम्मेदाराना करार दिया है। इसी बीच आप के विधायक अमानतुल्ला खान ने दिल्ली पुलिस को कटघरें में खड़ा कर सवाल दाग दिया कि उनके सूचना देने के बाद भी आवश्यक कदम क्यों नहीं उठाया गया। देश कोरोना के कहर से जूझ रहा है। मगर केंद्र और राज्य सरकारें अब आरोप-प्रत्यारोप के खेल में जुट गयी हैं। हर कोई अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने की जगह दूसरे पर ही दोष मढ़ने में व्यस्त हो गया है। द हिंदू में एक चौंकाने वाली खबर आत्री मित्रा के नाम से प्रकाशित हुई है जिसका शीर्षक है- 24 घंटों में तीन मौतें, एक मरीज जनरल वार्ड मे था। हावड़ा के अस्पताल में कोरोना वायरस से पीड़ित 48 वर्षीय महिला की मौत के बाद काफी हंगामा मचा है। महिला की मौत के बाद अस्पताल के 29 कर्मचारियों को क्वारंटाइन में रखा गया है। आरोप है कि महिला को जनरल वार्ड में रखा गया था। इसी बीच कोरोना के दो मरीजों की मौत की खबर आयी है जिसमें एक हावड़ा के 52 वर्षीय व्यक्ति और कोलकाता के एक 62 वर्षीय व्यक्ति शामिल हैं। पिछले चौबीस घंटों में कोरोना से तीन लोगों की मृत्यु के बाद से पश्चिम बंगाल में कोरोना से मरने वालों की संख्या पांच हो गयी है जबकि 37 लोग कोरोना से संक्रमित पाये गये हैं। हिंदी अखबारों में आज सबसे पहले अमर उजाला की बात करते हैं जिसकी लीड खबर का शीर्षक है- देश भर में खौफ का वायरस, 74 और जमाती संक्रमित। इस खबर में बताया गया है कि देश में कोरोना वायरस के मरीज लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। निजामुद्दीन मे आयोजित तबलीगी जमात का जलसा देश में कोरोना के संक्रमण का बड़ा स्त्रोत बन चुका है। जलसे में देश के 20 राज्यों के साथ-साथ 16 देश के जमाती भी शामिल हुए थे। इसके अलावा रूटिन खबरें छपी हैं जिसमें कोरोना के मरीजों के लगातार बढ़ते मामलों का जिक्र किया गया है। दिल्ली में तीसरे दिन भी 23 नए रोगी मिलने की पुष्टि हुई है। इसी बीच एक खबर और भी छपी है जिसका शीर्षक है- तब्लीगी कार्यक्रमों के लिए नहीं मिलेगा पर्यटक वीजा। हिंदुस्तान ने दूसरे अखबारों की तरह निजामुद्दीन की खबर को ही लीड बनाया है जिसमें बताया गया है कि मरकज ने 20 राज्यों को मुश्किल में डाला है। हालांकि पटना संस्करण में कुछ एक्सक्लूसिव खबरें भी प्रकाशित हुई हैं। इस खबर का शीर्षक है- 85 लाख उज्ज्वला लाभार्थी आज से खाते में पाएंगे गैस की राशि। राहत की खबर बताते हुए हिंदुस्तान में लिखा है कि पटना में रसोई गैस सिलेंडर 65 रुपये सस्ता कर दिया गया है। इस खबर के अनुसार बिना सब्सिडी वाले रसोई गैस और व्यावसायिक गैस सिलेंडरों की कीमतों में एक अप्रैल से कमी की गयी है। पटना में 14.2 किलोग्राम वाले सिलेंडर की कीमत 65 रुपये घटा दिया गया है। इन सबके साथ ही सरकार कितनी तेजी से हालात नियंत्रित कर रही है। इसका पक्ष रखते हुए मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के बारे में भी एक खबर छापी गयी है जिसका शीर्षक है- स्कूलों में बने क्वारंटाइन सेटंर में सरकारी कर्मी तैनात हों– सीएम। हिंदुस्तान ने लिखा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पदाधिकारियों को निर्देश दिया है कि गांवों के स्कूलों में बने क्वारंटाइन सेंटर में लोगों के ठहरने और भोजन की उत्तम व्यवस्था रखें। इन केंद्रों पर सरकारी कर्मचारी को प्रभारी बनाकर बेहतर ढंग से काम कराएं। जाहिर है अखबारों में इन खबरों से यही संदेश दिये जाने की कोशिश की जा रही है कि कोरोना के कोहराम से लड़ने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। सरकार की तरफ से कोताही नहीं बरती जा रही है। नवभारत टाइम्स ने भी निजामुद्दीन की खबर को ही लीड लिया है। मगर एंकर में आर्थिक पहलू का जिक्र करते हुए सिंगल कॉलम में छोटी सी खबर प्रकाशित की है जिसका शीर्षक है- छोटी बचत की ब्याज दरों में बड़ी कटौती। जबकि कोरोना का कहर झेल रही जनता की जेब पर सरकार के इस कदम से कितना भारी बोझ बढ़ेगा। इसका ब्यौरा देते हुए इस खबर को प्रमुखता दी जानी चाहिए थी। इसी खबर के साथ नवभारत में एक खबर और छापी गयी है जिसमें बताया गया है कि भीषण मंदी का साया है पर भारत-चीन बच सकते हैं। पाठकों को राहत देने के मकसद से ही इस खबर को छाप दिया गया है जिससे लोग आश्वस्त रहें कि उनकी मुश्किलें ज्यादा नहीं बढ़ेंगी। दैनिक भास्कर के जयपुर संस्करण में छपी एंकर स्टोरी ने ध्यान आकर्षित किया है । इस खबर में बताया गया है कि न्यूयार्क इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोध के अनुसार बीसीजी का टीका कोरोना की ढाल बन सकता है। इस खबर की मानें तो जिन देशों में बीसीजी का टीका नहीं लगा, वहां कोरोना का खतरा ज्यादा है। अमेरिकी शोध संस्थान ने विश्व भर में फैले कोरोना संक्रमण की वर्तमान स्थिति के आधार पर भविष्य की स्थित का आंकलन किया है। इसके परिणाम भारत सहित उन देशों के लिए सुखद हैं, जहां सालों से बीसीजी ( बैसिलस कैलमेट-गुएरिन ) का टीका लगता आया है। इसी खबर की बगल में सिंगल कॉलम में एक खबर छपी है। यह खबर है पीएम मोदी की मां हीराबेन के बारे में जिन्होंने 25,000 रुपये की मदद की है। पीएम केयर्स फंड में हीराबेन ने बचत के पैसे दान किए हैं। मोदी ने ट्वीट कर कहा यह मां का आशीष है। हैरत की बात है कि टीवी चैनलों, अखबारों और सोशल मीडिया में छाए रहने वाले पीएम मोदी की मां की यह खबर हाशिए पर रही। यह भी कोई विशेष रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है। शायद यही की पीएम अपने सगे संबंधियों ही नहीं मां से जुड़ी खबरों को प्रमुखता से नहीं छपवाते। पत्रकार एसएस प्रिया का विश्लेषण.

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Dakhal News 2 April 2020


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देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की जमीनी हकीकत जानिए… नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अप्रैल को दिया जलाने का अनुरोध किया है। ज्यादा अच्छा हो जो हम देश में स्वास्थ्य के इंफ्रास्ट्रक्चर को ठीक करें ताकि टोने टोटके की जरूरत ही न पड़े। दिमाग में ज्ञान की बत्ती जलाना जरूरी है। इतने बड़े देश की इतनी बड़ी आबादी के लिए जो स्वास्थ्य सुविधा होनी चाहिए, वो बिलकुल भी नहीं है, ये एक कटु सत्य है। बाकी अखबार जब मोदी जी के गुणगान में लगे हैं तो टेलीग्राफ ने हेल्थ सेक्टर के बारे में बात कर सोचने को मजबूर किया है। आज के द टेलीग्राफ अखबार में छपी लीड खबर देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की ज़मीनी हकीकत बयां कर रही है। जी.एस.मुदुर की बाइलाइन से छपी रिपोर्ट में लिखा है कि कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में सबसे आगे खड़े स्वास्थ्य कर्मियों के पास व्यक्तिगत सुरक्षा किट-पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट) तक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। यही वजह है कि डॉक्टरों में भी यह संक्रमण तेजी से फैल रहा है। सरकार के ढुलमुल रवैये से स्वास्थ्य सेवा में जुटा समुदाय बेहद परेशान है। कोरोना से लड़ रहे डॉक्टरों, नर्सों और तमाम दूसरे सहयोगी कर्मचारियों में भी संक्रमण फैलने का खौफ बढ़ता ही जा रहा। वे ड्यूटी तो निभा रहे हैं मगर वे सभी यह सोचकर परेशान हैं कि उनकी वजह से उनका परिवार भी संक्रमित हो सकता है। इस खबर की माने तो देश भर के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों, नर्सों और मेडिकल स्टाफ के पास मास्क और आवश्यक किट की कमी होने की वजह से वे सभी कोरोना से संक्रमित होते जा रहे हैं। कुछ डॉक्टरों के मुताबिक उन्हें नियमित रूप से नए मास्क नहीं मिल रहे हें। कोरोना से बचाने वाली कंप्लीट पीपीई किट सबको नहीं मिल पा रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, गृह मंत्रालय से भी सही आंकड़े न मिलने पर स्वास्थ्य सेवा समुदाय सोशल मीडिया और अपने संपर्कों से दस्तावेज इक्ट्ठा कर यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि कोरोना ने चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े कितने लोगों को संक्रमित किया है। रिपोर्ट में एम्स के वरिष्ठ डाक्टर का कहना है कि जिन्हें कोरोना वायरस की ड्यूटी नहीं दी गयी थी ऐसे डॉक्टर भी कोरोना की गिरफ्त में हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली के हिंदू राव अस्पताल के चार डॉक्टरों और कुछ नर्सों ने अपना इस्तीफा भेजा था। उल्टा इन डाक्टरों को उत्तरी दिल्ली म्युनिसिपल कार्पोरेशन की तरफ से सख्त कार्रवाई की सूचना भेज दी गयी। म्युनिसिपल की तरफ से भेजे गये संदेश में साफ कहा गया कि इन डाक्टरों और नर्सों के इस्तीफों को स्वीकार नहीं किया जायेगा और इनके नाम मेडिकल काउंसिल या नर्सिंग काउंसिल को भेज कर इनके खिलाफ अनशासनात्मक कार्रवाई की जायेगी। टेलीग्राफ की इस रिपोर्ट में नयी दिल्ली एम्स के रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के महासचिव श्रीनिवास राजकुमार के हवाले से बताया गया है कि पूरे देश में कोरोना वायरस से लड़ रहे डाक्टरों और नर्सों के पास भी पर्याप्त संसाधन नहीं हैं जिनसे वह खुद इस बीमारी से बच सकें। राजकुमार ने बताया कि मास्क और तमाम सुरक्षित संसाधनों की कमी की वजह से डॉक्टरों और नर्सों में ही नहीं स्वास्थ्य सेवा में जुटे सभी लोगों में डर का माहौल है। पोस्टग्रेजुएकट इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़ के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी महेश देवनानी ने अपने ट्वीटर हैंडल पर देश भर में कोरोना वायरस से संक्रमित स्वास्थ्य समुदाय से जुड़े लोगों के बारे में तमाम जानकारियां इक्ट्ठा की हैं। इसमें दिल्ली, हरियाणा, केरल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस से संक्रमित डाक्टरों, नर्सों और दूसरे स्वास्थ्य कर्मचारियों की जानकारी मौजूद है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुछ अस्पतालों में मुहैया किये गये सुरक्षा संसाधनों और मास्क की क्वालिटी इतनी खराब हैं कि इस्तेमाल करते वक्त ही वह खराब हो जा रहे। नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि स्वास्थ्य समुदाय नहीं चाहता कि इलाज कर रहे डाक्टर और नर्स खुद इस बीमारी से संक्रमित हो जायें। अगर ऐसा होता है तो वो जिन स्वास्थय कर्मियों के संपर्क में आएं उनका भी पता लगाना होगा। इस प्रकार से यह कड़ी बढ़ती ही जाएगी और हालात को संभालना काफी मुश्किल हो जाएगा। टेलीग्राफ की इस खबर से आसानी से समझा जा सकता है कि कोरोना से जंग लड़ रहे डाक्टरों और दूसरे मेडिकल स्टाफ संसाधनों की कमी की वजह से इस वायरस की चपेट में आने का जोखिम उठा रहे हैं। मगर सरकार अपनी पीठ थपथपाते नहीं थक रही कि स्वास्थ्य सुविधाओं में कहीं कोई कमी नहीं है। कोलकाता की पत्रकार एसएस प्रिया का विश्लेषण.

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Dakhal News 4 April 2020


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भारत सरकार से मान्यता प्राप्त पत्रकारों की संस्था प्रेस एसोसियेशन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया है कि कोरोना वायरस के खतरे के तहत अस्पतालों में जुटे डॉक्टर्स, नर्स और अन्य मेडिकल सेवा के लिए जिस तरह पचास लाख के इंश्योरेंस की घोषणा की गई वैसे ही पत्रकारों के लिए भी इंश्योरेंस की घोषणा की जानी चाहिए। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने कोरोना की विषम परिस्थितियों में स्वास्थ्य सेवा में जुटे मेडिकल सेवा के लिए पचास लाख रुपए इंश्योरेंस की घोषणा की है। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में प्रेस एसोसिएशन ने अनुरोध किया है कि मेडिकल सेवा के साथ उस लिस्ट में पत्रकारों को भी जोडा जाए। प्रधानमंत्री को याद दिलाया गया कि मीडिया के कामकाज को जरूरी सेवाओं में शामिल कर उनके कामकाज का उन्होंने खुद अभिवादन किया है। प्रेस एसोसिएशन ने कहा कि पत्रकारों के लिए भी इंश्योरेंस सेवा लागू होने से ग्राउंड ज़ीरो से पल पल की खबरें देश को पहुंचा रहे, राष्ट्र सेवा में जुटे पत्रकारों और उनके परिजनों को लगेगा कि केंद्र सरकार को उनकी भी उतनी ही चिंता है।

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Dakhal News 4 April 2020


bhopal, Tabligi Jama Corona

तबलीगी जमात के जलसे में शामिल अधिकतर लोगों के कोरोना संक्रमित होने से पूरे देश में कोहराम मच गया है। निजामुद्दीन को संक्रमण का केंद्र माना जा रहा है क्योंकि इसमें शामिल लोगों से अब अन्य 20 राज्यों में भी कोरोना का संक्रमण फैलने की आशंका व्यक्त की जा रही है। आरोप-प्रत्यारोप का बाजार गर्म होता जा रहा है। निजामुद्दीन केंद्र के कोविड-19 मामलों से देश में खतरे की घंटी बज गयी है। कोरोना के संक्रमण को रोकने के पुख्ता इंतजाम के दावे भी किये जा रहे हैं। आइए देखते हैं अंग्रेजी औऱ हिंदी अखबारों ने किन खबरों को कितनी अहमियत दी है। द हिंदू में सौरभ त्रिवेदी और निखिल एम.बाबू की रिपोर्ट जिसका शीर्षक हिंदी मे कुछ इस प्रकार होगा- तबलीगी जमात के अधिकारियों पर कानून तोड़ने का आरोप। इस खबर में बताया गया है कि निजामुद्दीन थाने में मरकज के प्रमुख मौलाना मोहम्मद साद व अन्य पर केस दर्ज किया गया। इस खबर में बताया गया है कि चार सौ से अधिक लोगों को कोविड 19 के लक्षण देख कर अस्पताल में दाखिल कराया गया और तकरीबन एक हजार लोगों को क्वारंटाइन में रखा गया है। अधिकारियों को डर है कि जो लोग यहां से दूसरे शहरों में अपने घरों में जा पहुंचे हैं, वो सभी न जाने कितने और लोगों को संक्रमित किया होगा। इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंपी गई है। इनके खिलाफ आईपीसी के तहत बीमारी फैलाने के लिए लापरवाही बरतने, घातक व नुकसानदेरह काम करने, दूसरे की जान जोखिम में डालने, सरकारी आदेश के उल्लंघन और आपराधिक षडयंत्र के अलावा महामारी एक्ट 1897 के तहत केस दर्ज हुआ है। इसी अखबार में जेकॉब कोशी की बाइलाइन से जो खबर प्रकाशित हुई है उसका शीर्षक है- मास्क के इस्तेमाल पर स्वास्थ्य मंत्रालय और प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के दफ्तर में मतभेद। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के दफ्तर और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के बीच मास्क पहनने और न पहनने को लेकर मतभेद सामने आये हैं। द हिंदू में ही शोभना के.नायर और जेबराज की रिपोर्ट का शीर्षक है- जबरन रोके गये मजदूर, अब भूखमरी से लड़ रहे। इस रिपोर्ट में प्रवासी मजदूरों के दर्द और तकलीफ को बयां किया गया है। इस खबर में बताया गया है कि विश्व में कोरोना वायरस का सामना कर रहे अधिकतर देशों ने घर में रहें, सुरक्षित रहें पर अमल करने की कोशिश की है। भारत में भी लॉकडाउन जारी कर हर नागरिक को घरों में रहने की हिदायत दी जा रही है। सीमाओं को भी सील किया जा चुका है ताकि कोरोना संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। ऐसे हालात में बिना काम और पैसों की किल्लत से परेशान मजदूरों और गरीबों को भूखमरी का सामना करना पड़ रहा है। सच तो यही है कि सरकार भले ही कितने भी दावे कर ले मगर गरीबों के रहने खाने का भरपूर प्रबंध नहीं हो पाया है। द इंडियन एक्सप्रेस में अबंतिका घोष की जो रिपोर्ट छपी है उसका शीर्षक है- आईसीएमआर ने माना भारत में अब भी संक्रमण कम है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि तबलीगी जमात से देश भर में संक्रमण फैलने की आशंका के बाद भी आईसीएमआर को अब भी यकीन है कि विश्व में जिस तेजी से कोरोना का कहर बढ़ रहा है उसके मुकाबले भारत में संक्रमण अब भी कम है। सरकार के बाद भारत की प्रमुख संस्थाओं से इस तरह के बयान जारी कर यकीनन जनता के डर को कम करने की कवायद ही की जा रही है। इसी अखबार में सौम्या लखानी और सौरभ रायबर्मन की रिपोर्ट छपी है। इस खबर में लिखा है कि निजामुद्दीन केंद्र को खाली कराया गया है औऱ केजरीवाल ने मामले बढ़ने पर चेताया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इसे गैरजिम्मेदाराना करार दिया है। इसी बीच आप के विधायक अमानतुल्ला खान ने दिल्ली पुलिस को कटघरें में खड़ा कर सवाल दाग दिया कि उनके सूचना देने के बाद भी आवश्यक कदम क्यों नहीं उठाया गया। देश कोरोना के कहर से जूझ रहा है। मगर केंद्र और राज्य सरकारें अब आरोप-प्रत्यारोप के खेल में जुट गयी हैं। हर कोई अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने की जगह दूसरे पर ही दोष मढ़ने में व्यस्त हो गया है। द हिंदू में एक चौंकाने वाली खबर आत्री मित्रा के नाम से प्रकाशित हुई है जिसका शीर्षक है- 24 घंटों में तीन मौतें, एक मरीज जनरल वार्ड मे था। हावड़ा के अस्पताल में कोरोना वायरस से पीड़ित 48 वर्षीय महिला की मौत के बाद काफी हंगामा मचा है। महिला की मौत के बाद अस्पताल के 29 कर्मचारियों को क्वारंटाइन में रखा गया है। आरोप है कि महिला को जनरल वार्ड में रखा गया था। इसी बीच कोरोना के दो मरीजों की मौत की खबर आयी है जिसमें एक हावड़ा के 52 वर्षीय व्यक्ति और कोलकाता के एक 62 वर्षीय व्यक्ति शामिल हैं। पिछले चौबीस घंटों में कोरोना से तीन लोगों की मृत्यु के बाद से पश्चिम बंगाल में कोरोना से मरने वालों की संख्या पांच हो गयी है जबकि 37 लोग कोरोना से संक्रमित पाये गये हैं। हिंदी अखबारों में आज सबसे पहले अमर उजाला की बात करते हैं जिसकी लीड खबर का शीर्षक है- देश भर में खौफ का वायरस, 74 और जमाती संक्रमित। इस खबर में बताया गया है कि देश में कोरोना वायरस के मरीज लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। निजामुद्दीन मे आयोजित तबलीगी जमात का जलसा देश में कोरोना के संक्रमण का बड़ा स्त्रोत बन चुका है। जलसे में देश के 20 राज्यों के साथ-साथ 16 देश के जमाती भी शामिल हुए थे। इसके अलावा रूटिन खबरें छपी हैं जिसमें कोरोना के मरीजों के लगातार बढ़ते मामलों का जिक्र किया गया है। दिल्ली में तीसरे दिन भी 23 नए रोगी मिलने की पुष्टि हुई है। इसी बीच एक खबर और भी छपी है जिसका शीर्षक है- तब्लीगी कार्यक्रमों के लिए नहीं मिलेगा पर्यटक वीजा। हिंदुस्तान ने दूसरे अखबारों की तरह निजामुद्दीन की खबर को ही लीड बनाया है जिसमें बताया गया है कि मरकज ने 20 राज्यों को मुश्किल में डाला है। हालांकि पटना संस्करण में कुछ एक्सक्लूसिव खबरें भी प्रकाशित हुई हैं। इस खबर का शीर्षक है- 85 लाख उज्ज्वला लाभार्थी आज से खाते में पाएंगे गैस की राशि। राहत की खबर बताते हुए हिंदुस्तान में लिखा है कि पटना में रसोई गैस सिलेंडर 65 रुपये सस्ता कर दिया गया है। इस खबर के अनुसार बिना सब्सिडी वाले रसोई गैस और व्यावसायिक गैस सिलेंडरों की कीमतों में एक अप्रैल से कमी की गयी है। पटना में 14.2 किलोग्राम वाले सिलेंडर की कीमत 65 रुपये घटा दिया गया है। इन सबके साथ ही सरकार कितनी तेजी से हालात नियंत्रित कर रही है। इसका पक्ष रखते हुए मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के बारे में भी एक खबर छापी गयी है जिसका शीर्षक है- स्कूलों में बने क्वारंटाइन सेटंर में सरकारी कर्मी तैनात हों– सीएम। हिंदुस्तान ने लिखा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पदाधिकारियों को निर्देश दिया है कि गांवों के स्कूलों में बने क्वारंटाइन सेंटर में लोगों के ठहरने और भोजन की उत्तम व्यवस्था रखें। इन केंद्रों पर सरकारी कर्मचारी को प्रभारी बनाकर बेहतर ढंग से काम कराएं। जाहिर है अखबारों में इन खबरों से यही संदेश दिये जाने की कोशिश की जा रही है कि कोरोना के कोहराम से लड़ने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। सरकार की तरफ से कोताही नहीं बरती जा रही है। नवभारत टाइम्स ने भी निजामुद्दीन की खबर को ही लीड लिया है। मगर एंकर में आर्थिक पहलू का जिक्र करते हुए सिंगल कॉलम में छोटी सी खबर प्रकाशित की है जिसका शीर्षक है- छोटी बचत की ब्याज दरों में बड़ी कटौती। जबकि कोरोना का कहर झेल रही जनता की जेब पर सरकार के इस कदम से कितना भारी बोझ बढ़ेगा। इसका ब्यौरा देते हुए इस खबर को प्रमुखता दी जानी चाहिए थी। इसी खबर के साथ नवभारत में एक खबर और छापी गयी है जिसमें बताया गया है कि भीषण मंदी का साया है पर भारत-चीन बच सकते हैं। पाठकों को राहत देने के मकसद से ही इस खबर को छाप दिया गया है जिससे लोग आश्वस्त रहें कि उनकी मुश्किलें ज्यादा नहीं बढ़ेंगी। दैनिक भास्कर के जयपुर संस्करण में छपी एंकर स्टोरी ने ध्यान आकर्षित किया है । इस खबर में बताया गया है कि न्यूयार्क इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोध के अनुसार बीसीजी का टीका कोरोना की ढाल बन सकता है। इस खबर की मानें तो जिन देशों में बीसीजी का टीका नहीं लगा, वहां कोरोना का खतरा ज्यादा है। अमेरिकी शोध संस्थान ने विश्व भर में फैले कोरोना संक्रमण की वर्तमान स्थिति के आधार पर भविष्य की स्थित का आंकलन किया है। इसके परिणाम भारत सहित उन देशों के लिए सुखद हैं, जहां सालों से बीसीजी ( बैसिलस कैलमेट-गुएरिन ) का टीका लगता आया है। इसी खबर की बगल में सिंगल कॉलम में एक खबर छपी है। यह खबर है पीएम मोदी की मां हीराबेन के बारे में जिन्होंने 25,000 रुपये की मदद की है। पीएम केयर्स फंड में हीराबेन ने बचत के पैसे दान किए हैं। मोदी ने ट्वीट कर कहा यह मां का आशीष है। हैरत की बात है कि टीवी चैनलों, अखबारों और सोशल मीडिया में छाए रहने वाले पीएम मोदी की मां की यह खबर हाशिए पर रही। यह भी कोई विशेष रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है। शायद यही की पीएम अपने सगे संबंधियों ही नहीं मां से जुड़ी खबरों को प्रमुखता से नहीं छपवाते। पत्रकार एसएस प्रिया का विश्लेषण.

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Dakhal News 2 April 2020


bhopal, Poster of Sonia Gandhi missing in Rae Bareli

अजय कुमार, लखनऊ लखनऊ। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में 26 मार्च की रात ‘लापता सांसद’ के पोस्टर लगाए गए। रविवार की सुबह जब लोगों की नजर इन पोस्टरों पर पड़ी तो चर्चा शुरू हो गई। इन पोस्टरों में सोनिया गांधी के संकट की इस घड़ी में अपने निर्वाचन क्षेत्र से बाहर होने पर सवाल उठाए गए। पोस्टर के शीर्षक में ‘चिट्ठी न कोई संदेश’ बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा नजर आ रहा है। इतना ही नहीं पोस्टर में सबसे अमीर सांसदों में से एक कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा चुनाव क्षेत्र में कोई वित्तीय सहायता नहीं देने पर भी सवाल उठाया गया। पोस्टर में आगे लिखा है, ‘तुम्हारा हाथ, न जाने हमारा साथ,’ ‘सबसे बुरी भूल, तुमको किया कबूल’ भी लिखा नजर आ रहा था। गौरतलब हो इस तरह के पोस्टर चिपकाए जाने से एक दिन 27 मार्च को ही सोनिया गांधी ने रायबरेली के जिला मजिस्ट्रेट को एक पत्र भेजा था, जिसमें उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में कोरोनो वायरस का मुकाबला करने के लिए एमपीएलएडी योजना के तहत सभी निधियां देने का वादा किया था। बहरहाल, इस पोस्टर में किसी का नाम नहीं है और प्रिंटर का नाम भी नहीं दिया गया है जो कि अनिवार्य होता है। कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का कहना था कि इन पोस्टरों के सहारे कुछ लोगों ने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की मानसिकता को दर्शाया है, जो इस संकट के समय का उपयोग राजनीतिक फायदे के लिए कर रहे हैं। सोनिया गांधी हमेशा अपने निर्वाचन क्षेत्र से जुड़ी रही हैं और दो दिन पहले ही उन्होंने कोरोना संकट के लिए अपना सारा फंड दे दिया। जनता सच्चाई जानती है और इस निम्न स्तर की राजनीति से गुमराह नहीं होगी। कांग्रेस जिलाध्यक्ष पंकज कुमार ने पोस्टर लगाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की और जिला प्रशासन से इस पर ध्यान देने को कहा है।

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Dakhal News 2 April 2020


bhopal, The noise in the media on the corona will now cease to be shown

क्या मीडिया में लॉकडाउन की परेशानी का शोर अब थम जाएगा…. मेरा मानना है कि कोरोना पर मीडिया में शोर अब थम जाएगा। जो दिखाना था दिखा लिया गया। अब मजदूरों के पलायन की चर्चा रुक जाएगी। राहत सामग्री बंटने की खबरें दिखेंगी और अब सब ठीक बताया जाएगा। इसका कारण यह है कि सरकार ऐसे ही काम करती है। जमीन पर काम करने से ज्यादा अखबारों में और अखबार वाले खुशी-खुशी सेवा करते हैं। निश्चित रूप से खबरों का चयन संपादकीय विवेक और प्राथमिकता का मामला है और पहले पन्ने पर खबर नहीं होने का मतलब नहीं है कि खबर अखबार में ही नहीं है और पाठक को जानकारी ही नहीं है। फिर भी संपादक अपने अखबार में किस और कैसी खबर को प्राथमिकता देगा यह पहले से तय हो और उसकी भविष्यवाणी की जा सके तो अखबार की खबरों का क्या भरोसा? आइए आपको बताऊं कि आज अखबारों में क्या है। सबसे पहले द टेलीग्राफ का पहला पन्ना देखिए। पहली फोटो एक व्यक्ति के जख्मी पैरों की है। कैप्शन में बताया गया है यह इलाहाबाद की सीमा पर आराम कर रहे एक दिहाड़ी मजदूर के पैर हैं जो जाहिर है, लॉक डाउन के बाद पैदल चलने से जख्मी हो गए हैं। अखबार में एक और फोटो बरेली में पैदल जा रहे लोगों पर कीटनाशकों का छिड़काव किए जाने की खबर के साथ है। मुझे लगता है कि आज के लिए ये दोनों खबरें सबसे महत्वपूर्ण हैं। पर मीडिया क्या बता रहा है? पैदल निकले प्रवासी मजदूरों को रास्ते में मना लिया गया है। वे सरकारी व्यवस्था में हैं। उन्हें ठीक से खाना मिल रहा है और रास्ते पर कोई नहीं है। सरकार यही बताना चाहेगी और अखबार यही बता रहे हैं। या चुप हैं। वरना ये दो खबरें सभी अखबारों में पहले पन्ने पर होनी चाहिए थी। पैदल चलने वाले मजदूर के जख्मी पैर की फोटो हिन्दी के जो अखबार मैं देखता हूं उनमें किसी में नहीं है। पैदल जा रहे मजदूरों पर कीटनाशक छिड़कने की खबर (फोटो के साथ, पहले पन्ने पर) अमर उजाला और राजस्थान पत्रिका में है। अमर उजाला की पूरी खबर कोरोना से संबंधित है और प्रवासी मजदूर सड़क पर हैं, उनके साथ अमानवीय व्यवहार हुआ इससे ज्यादा प्रमुखता मरीजों और मरने वालों की संख्या को दी गई है। प्रवासियों की स्थिति बताना सरकारी व्यवस्था की पोल खोलना है पर जो मौतें हो रही हैं वह सरकारी इंतजामों के बावजूद हो रही है – इसका अंतर आप समझ सकते हैं। यही नहीं, कोरोना से संबंधित कोई भी खबर छापना मना है। पर दैनिक जागरण में खबर है, 23 डिग्री सेल्सियस पर मरे आधे कोरोना वायरस। वाराणसी डेटलाइन से हिमांशु अस्थाना की बाईलाइन वाली खबर में यही बताने की कोशिश की गई है कि कोरोना तो बस गया समझो। गर्मी आई नहीं कि वायरस मरने लगे। अगर यह खबर वाकई गंभीर है तो सभी अखबारों में पहले पन्ने पर प्रमुखता से क्यों नहीं होनी चाहिए। और सरकार को ही क्यों नहीं जारी करना चाहिए। ऐसा नहीं है कि खबर बिल्कुल हवा हवाई है। बीएचयू के जीन वैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे और दिल्ली स्थित आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) के डॉ. प्रमोद कुमार ने अपने लैब में शोध से यह निष्कर्ष निकाला है। दैनिक भास्कर (पटना) में भी यह खबर पहले पन्ने पर है। अब आप इसका जो मतलब लगाना चाहें लगाइए। मैं इसे माहौल बनाना कहता हूं। वह इसलिए भी कि एक तरफ अगर जरूरी खबरें पहले पन्ने पर नहीं हैं तो दूसरी तरफ लॉक डाउन नहीं बढ़ेगा को पूरी प्राथमिकता दी गई है। दैनिक जागरण में यह सेकेंड लीड है जबकि तब्लीगी मरकज में शामिल छह लोगों की तेलंगाना में मौत लीड है। इसका उपशीर्षक है, लॉक डाउन के दौरान निजामुद्दीन में आयोजन में शामिल हुए थे। अमर उजाला ने इसे सात कॉलम में दो लाइन के शीर्षक के साथ छापा है। और इसके साथ ऐसी तस्वीर है कि आप कपड़े देखकर इनका धर्म जान लेंगे। लगभग ऐसा ही नवोदय टाइम्स और नवभारत टाइम्स में भी है। हिन्दुस्तान में इसे लीड के साथ छापा गया है और लीड है, लॉकडाउन बढ़ाने का इरादा नहीं। यहां समझने वाली बात यह है कि जब लॉकडाउन बगैर किसी पूर्व सूचना या योजना के लगाया गया तो दोबारा पूर्व सूचना दी जाएगी यह कहां जरूरी है. जब लगाने की जरूरत पहले तय नहीं हो पाई तो बढ़ाने की जरूरत पहले कैसे तय हो सकती है। वैसे भी लाकडाउन की घोषणा किसी ने की और कोई दूसरा कह रहा है कि इसे बढ़ाया नहीं जाएगा। ऐसे में इसे कितना महत्व देना है यह समझना मुश्किल नहीं है। इसके बावजूद यह राजस्थान पत्रिका में भी लीड है। ऐसा नहीं है कि खबरों का जो महत्व मैं बता रहा हूं वह कोई बहुत महान और गंभीर पत्रकारों को ही समझ में आएगा। इसके बावजूद अलग तरह की खबरों को महत्व देना और असली खबरों को महत्व नहीं देना कुछ संकेत तो देता ही है। हो सकता है मैं गलत होऊं पर पत्रकारिता चल ऐसे ही रही है। राजस्थान पत्रिका में आज पहले पन्ने पर एक खबर है, पैदल घर लौटने की कवायद में 29 कामगार सड़कों पर जान गंवा चुके हैं। क्या यह सामान्य है? या यह सूचना नजरअंदाज करने लायक है पर किसी अखबार में टॉप पर नहीं है। राजस्थान पत्रिका में भी नहीं। इसके साथ यह भी उल्लेखनीय है कि दैनिक हिन्दुस्तान ने पहले पन्ने पर लगभग आधे पेज के साथ सिर्फ एक फोटो छापी है। इसका कैप्शन है, नई दिल्ली के आनंद विहार में बस अड्डे पर सोमवार को लॉकडाउन का पालन कराने के लिए तैनात बीएसएफकर्मी। इससे आपको यह भरोसा होगा कि दिल्ली में अब सब ठीक है और दिल्ली छोड़कर जाना चाहने वाले अब सब संतुष्ट हैं। इसमें यह नहीं पूछेंगे कि केजरीवाल ने इनके घरों की बिजली और पानी के कनेक्शन कटवाए थे उसका क्या हुआ? जुड़ गए या कटे ही नहीं थे? सड़क पर पैदल चलते प्रवासियों के साथ बस पकड़ने आनंद विहार पर जुटी भीड़ को देखकर दुनिया भर में लॉक डाउन नाकाम होने की चर्चा उड़ी तो उसे राजनीतिक रंग दे दिया गया। भाजपा ने आम आदमी पार्टी पर आरोप लगाए और आम आदमी पार्टी ने अपना भरपूर बचाव किया। कल द टेलीग्राफ में इस आशय की एक खबर भी थी। हिन्दी के पाठकों के लिए मैंने उसका अनुवाद कर फेसबुक पर पोस्ट कर दिया। इसके बावजूद, बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा ने आरोप लगाया है कि अरविन्द केजरीवाल की सरकार ने सुनियोजित तरीकों से बसों में ढूंसकर 50 हजार से अधिक बिहारियों को एक साथ दिल्ली से निकला। दैनिक भास्कर ने पटना संस्करण में इस आरोप को पहले पन्ने पर छापा है लेकिन इस खबर में यह नहीं बताया गया कि वे बिहार पहुंचे कि नहीं और पहुंचे तो सब अपने घर गए या उन्हें एक जगह रखा गया है या रास्ते में कहीं रोक लिया गया। सरकारी प्रचार जैसी एक और खबर आज के दैनिक जागरण में है। इसका शीर्षक है, लॉकडाउन का असर: अब तक थमा है कोरोना वायरस का प्रसार। अमर उजाला में खबर है, एक दिन में 227 और मरीज, सात की मौत। इसका फ्लैग शीर्षक है, 1200 पार हुआ मरीजों का आंकड़ा … देश भर में अब तक 32 की मौत, दिल्ली में 25 और मिले। जबकि दैनिक जागरण की खबर है, स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल के अनुसार, भारत में कोरोना के मरीजों की संख्या 100 से 1000 पहुंचने में 12 दिन लगे हैं। इसकी तुलना दुनिया के दूसरे विकसित देशों से करें, तो वहां 12 दिनों में संख्या 100 से बढ़कर आठ हजार तक पहुंच गई थी। उन्होंने कहा, इसे आगे बनाए रखने को सौ फीसद अलर्ट रहने व सरकार के निर्देशों का कड़ाई से पालन करने की जरूरत है। लव अग्रवाल ने कोरोना के प्रसार की गति कम होने का श्रेय लॉकडाउन और दूसरे एहतियाती उपायों को देते हुए कहा कि जिन देशों ने समय पर एहतियाती कदम नहीं उठाए, उन देशों में यह बेकाबू होता गया। कहने की जरूरत नहीं है कि दोनों कबरें सही हैं। खेल प्रस्तुति का है।

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Dakhal News 31 March 2020


bhopal, Positive Journalist!

Pushya Mitra : इस वक़्त आप पॉजिटिव पत्रकार कैसे हो सकते हैं? कुछ टिप्स- हर समस्या की वजह विपक्ष और जनता में, गरीबों में, दलितों में, अल्पसंख्यकों में ढूँढिये। राहुल गांधी, केजरीवाल, लालू, नेहरू और पाकिस्तान में ढूँढिये। चीन में ढूँढिये। फिर भी काम न चल रहा हो तो नीतीश जैसों में भी ढूंढ लीजिये। भाजपा, मोदी और उनके लोगों में मत ढूँढिये। सरकार की विफलता की बात मत कीजिये, यह वक़्त सरकार की आलोचना करने का नहीं है। बेचारी हतोत्साहित हो जाएगी। चुप रहकर देखिये, मोदी जी ने किया है, ठीक ही किया होगा। ऐसा लग रहा हो तो राष्ट्र के लिये थोड़ी कुर्बानी दीजिये। कुछ दिन ऐसा करके देखिये। आपको लोग पॉजिटिव मानने लगेंगे। Samarendra Singh : संधी लौंडों को मौका मिल गया है। चौके-छक्के मार रहे हैं। ब्रज में देसी-विदेशी गोपियों संग होली खेल रहे थे तो कोरोना नहीं फैला? 19-20 मार्च तक तिरुपति बालाजी और बाबा जगन्नाथ से लेकर सभी मंदिर खुले थे और भजन कीर्तन जारी था मगर वहां भी कोरोना नहीं फैला! बस 13-15 मार्च को निजामुद्दीन में ही फैला है! इन संधी लौंडों और पंडों को मुल्लों ने और मीडिया ने एक और अवसर दिया है राजनीति करने का अगले कुछ दिन इसी के नाम। जय कोरोना!     निज़ामुद्दीन में लोग छिपे होते हैं। लेकिन वैष्णो देवी में लोग फँसे होते है। शब्दों के बारीक हेरफेर से न्यूज़ में नफ़रत की खेती होती है। विवेक राव

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Dakhal News 31 March 2020


bhopal,  FIR , Corona infected journalist ,former CM, press conference

भोपाल।  मध्य प्रदेश में राजधानी भोपाल पुलिस ने कोरोना वायरस संक्रमित एक पत्रकार के खिलाफ मामला दर्ज किया है। उक्‍त पत्रकार कोराना (कोविड-19) से संक्रमित था इसके बाद भी वे पूर्व सीएम कमलनाथ की आहूत पत्रकार वार्ता में शामिल होने पहुंच गए थे, जबकि चिकित्‍सकों द्वारा  इस पत्रकार की बेटी के लंदन से वापस लौटने पर कोरोना संक्रमित पाए जाने पर पूरे परिवार को घर में पृथक रहने की सलाह दी गई थी।    उल्‍लेखनीय है कि पूर्व मुख्‍यमंत्री कमलनाथ ने अपने पद से त्‍याग देने के पूर्व पत्रकारों को  20 मार्च को मुख्यमंत्री निवास में प्रेसवार्ता में शामिल होने के लिए बुलाया था। जिसमें कि लगभग सभी प्रमुख मीडिया संस्‍थानों के 200 से अधिक पत्रकार शामिल हुए थे। पत्रकारों से हुई बातचीत के बाद पत्रकार की बेटी और दो दिन बाद स्वयं पत्रकार के कोराना (कोविड-19) के संक्रमण की पुष्टि हुई थी।  वर्तमान में पिता और पुत्री दोनों इलाज के लिए भोपाल के एम्स में भर्ती हैं।    भोपाल पुलिस के प्रवक्ता ने बताया कि शहर के श्यामला हिल्स पुलिस थाने में इस पत्रकार के खिलाफ भादंवि की धारा 188 (सरकारी सेवक के कानूनी आदेश की अवहेलना), धारा 269 (उपेक्षापूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रमण फैलना संभाव्य हो), धारा 270 (परिद्वेषपूर्ण कार्य, जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रमण फैलना संभाव्य हो) के तहत मामला दर्ज किया गया है।  उनका यह भी कहना था कि कोरोना वायरस महामारी से संबंधित सरकार के प्रतिबंधात्मक आदेश का उल्लंघन करने पर पत्रकार के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है ।    इस घटना के बाद प्रदेश की राजधानी में रह रहे अनेक पत्रकारों ने स्‍वयं को होम कोरंटाइन कर लिया है, वहीं कई प्रशासनिक अधिकारी व पूर्व मंत्री एवं विधायक जोकि इस पत्रकार वार्ता में मौजूद थे, उन्‍होंने भी एतिहातन अपने को 14 दिन के लिए परिवार से अलग कर लिया है, जबकि कई लोग इस बीच अपनी कोरोना जांच करा चुके हैं, जिसमें कि अब तक सभी की रिपोर्ट नेगेटिव आई है।    वहीं, पूर्व मंत्री सचिन यादव ने शनिवार को इस बारे में ट्वीट कर जानकारी दी है। साथ ही उन्होंने वहां मौजूद पत्रकारों और अन्य लोगों से भी सावधानी बरतने का आग्रह किया हैं। उन्होंने ट्वीट कर लिखा ‘20 मार्च को कमलनाथ जी की आयोजित प्रेसवार्ता में मौजूद एक पत्रकार साथी कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं, इसीलिए सावधानी के तौर पर मैं सेल्फ़-आइसोलेशन में हूँ एवं पत्रकार साथियों से भी अनुरोध है अपना ख्याल रखें। मैं सरकार के सभी आवश्यक निर्देशों का पालन कर रहा हूँ और आप भी करें’।    इसी तरह से कमलनाथ की प्रेस वार्ता में मौजूद ग्वालियर से कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक ने भी सावधानी के तौर पर पहले ही खुद को होम आइसोलेट कर लिया है। वहीं पूर्व पशुपालन मंत्री और भितरवार से कांग्रेस विधायक लाखन सिंह ने भी अपना मेडिकल चेकअप करवाया है । हालांकि डॉक्टर ने सब सामान्य बताया है।    उधर,  प्रशासन ने भी तत्काल पत्रकार और उनके परिवार समेत इनके संपर्क में आए लोगों से होम क्वारेंटाइन की अपील की थी । अब तक ज्‍यादातर की जांच हो चुकी है।  शेष की जांच कराई जा रही है। बतादें कि आरोपी पत्रकार की 26 वर्षीय बेटी लंदन में कानून की पढ़ाई कर रही है1  18 मार्च को उसके लंदन से भोपाल आने पर परिवार को घर में पृथक (होम क्वारेंटाइन) की सलाह दी गई थी लेकिन उसके आने के दो दिन बाद ही, 20 मार्च को ये पत्रकार मुख्यमंत्री निवास पत्रकार प्रेसवार्ता में शामिल होने पहुंच गए थे ।   

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Dakhal News 28 March 2020


 Publication , newspapers, Maharashtra ,closed till 31 March

देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई सहित पूरे महाराष्ट्र में पहली बार ऐसा हुआ है कि समाचार पत्रों का प्रकाशन लगातार हफ्ते भर से ज्यादा दिनों के लिए स्थगित रखना पड़ा हो। नई जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र के अखबारों को अब 31 मार्च तक के लिए बंद कर दिया गया है। बताते हैं कि पिछले रविवार को मुम्बई सहित आसपास में समाचार पत्रों की प्रिंटिंग पूर्व की तरह हुई लेकिन कोरोना वायरस के खौफ और जनता कर्फ्यू के कारण समाचार पत्र विक्रेताओं ने समाचार पत्रों को बांटने के लिए नहीं खरीदा। इसके बाद प्रिंटिंग पेपर वापस अखबार प्रबंधन के लोगों ने मंगा लिया। उसके बाद रविवार की रात से मुम्बई की लाइफलाइन लोकल ट्रेन बंद हो गयी जिसे देखते हुए अखबारों का प्रकाशन नहीं हुआ। सोमवार को समाचार पत्र विक्रेताओं के संगठन बृहनमुंबई वृतपत्र विक्रेता संघ ने दोपहर 12 बजे उद्योगमंत्री सुभाष देसाई से मुलाकात की जिसमे सभी संगठन के प्रतिनिधियों ने इस चर्चा में हिस्सा लिया। इस चर्चा में दिनोदिन बढ़ रहे कोरोना वायरस के संक्रमण से सुरक्षा को देखते हुए तय किया गया कि 24 मार्च और 25 मार्च को समाचार पत्रों का वितरण नहीं किया जाएगा। उसके बाद अगली परिस्थिति की समीक्षा कर अगला निर्णय 26 मार्च से लिया जाएगा। आज 25 मार्च को फिर समाचार पत्र विक्रेताओं के संगठन के पदाधिकारियों की बैठक हुई जिसमें तय हुआ कि 31 मार्च तक पूरे राज्य में समाचार पत्रों की विक्री नही की जाएगी और 29 मार्च को संगठन की फिर बैठक होगी जिसमें स्थिति की समीक्षा कर आगे की रणनीति तय की जाएगी। उधर, सोमवार देर शाम महाराष्ट्र सरकार ने पूरे महाराष्ट्र में कर्फ्यू लगा दिया है। राज्य में कर्फ्यू और ऊपर से लोकल ट्रेन बन्द और 14 अप्रैल तक राष्ट्र व्यापी लॉक डाउन।जब तक लोकल चालू नहीं होगी तब तक ज्यादातर प्रिंट मीडिया के कर्मी घर पर रहेंगे। ऐसे में महाराष्ट्र में अखबारों का प्रकाशन कब शुरू होगा कोई नहीं जानता। आपको बता दें की ऐसा पहली बार हुआ है जब इतने लंबे समय तक मुम्बई में लोकल ट्रेन और समाचार पत्रों का प्रकाशन बंद रहेगा। कुछ अखबार ऑनलाइन एडिशन अपडेट कर रहे हैं और रिपोर्टरों को बोलकर खबर मंगा रहे हैं। उधर राज्य सरकार और महाराष्ट्र के कामगार आयुक्त ने एक आदेश जारी किया है कि राज्य में कोरोना वायरस से सुरक्षा के लिए सभी निजी कंपनियों को बंद किया जा रहा है। सरकारी परिपत्रक में कहा गया है कि न तो कर्मचारी को हटाना है और न ही उनका वेतन काटना है। कर्मचारियों के लिए राहत भरी खबर है।   शशिकांत सिंहपत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट

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Dakhal News 25 March 2020


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भोपाल। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी श्री सुधीर कुमार डेहरिया ने बताया कि विगत दिनों कोरोना संक्रमण पॉजिटिव पाई गई लड़की के पिता का कोरोना संक्रमण सेम्पल भी पॉजिटिव आया है। सीएचएमओ डेहरिया ने बताया कि के.के. सक्सेना के संपर्क में आये प्रत्येक व्यक्ति को 14 दिन तक होम आइसोलेशन में रहने की आवश्यकता है। 6 से 7 दिनों में सर्दी, खासी, बुखार आने पर तुरन्त कंट्रोल रूम से संपर्क करने की हिदायत दी जा रही है। लड़की के स्वास्थ्य मानकों के अनुसार मिलने जुलने वाले 10 व्यक्तियों के सैंपल जांच हेतु भेजे गए थे। उनमें से 9 लोगो के टेस्ट नेगेटिव आए है , उनकी माताजी, भाई, घर मे काम करने वाले लोगो की रिपोर्ट नेगेटिव आइ है।   केवल उनके पिताजी का टेस्ट पॉजिटिव आया है जिन्हे इलाज हेतु एम्स हॉस्पिटल में भर्ती कराया जा रहा है।श्री डेहरिया ने आमजन से अपील की है कि किसी को पेनिक होने या घबराने की आवश्यकता नहीं है लड़की और पिताजी भी नार्मल है दोनों का इलाज एम्स में चल रहा है। साथ ही साथ कोरोना पॉजिटिव आए व्यक्ति से क्लोज कॉन्टैक्ट मे आए व्यक्तियों को स्वयं को 14 दिन तक होम क्वारेन्टाईन करने की हिदायत भी दी गई है।

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Dakhal News 25 March 2020


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भोपाल। मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बनने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मंगलवार को पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कटाक्ष करते हुए लिखा है कि सिंधिया मध्य प्रदेश के जनादेश को नीलाम कर गए। दिग्विजय सिंह ने यह पत्र सोशल मीडिया पर भी शेयर किया है।  उन्होंने लिखा है कि पिछले दिनों ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस पार्टी छोड़ी और कांग्रेस की सरकार गिर गई। यह बेहद दुखद घटनाक्रम है जिसने न सिर्फ कांग्रेस कार्यकर्ताओं बल्कि उन सभी नागरिकों की आशाओं पर पानी फेर दिया, जो कांग्रेस की विचारधारा में यकीन रखते हैं। मुझे बेहद दुख है कि सिंधिया उस वक्त भाजपा में गए, जब वह खुलकर आरएसएस के असली एजेंडा को लागू करने के लिए देश को बांट रही है। कुछ लोग यह कह रहे हैं कि सिंधिया को कांग्रेस में उचित पद और सम्मान मिलने की संभावना समाप्त हो गई थी, इसलिए वह भाजपा में चले गए, लेकिन यह गलत है।सिंधिया गैर जिम्मेदार व्यक्ति को बनाना चाहते थे उपमुख्यमंत्रीदिग्विजय सिंह ने पत्र में आगे लिखा कि कांग्रेस ने सिंधिया को 2013 में प्रदेश अध्यक्ष बनाने का ऑफर दिया था, लेकिन तब वे केन्द्र में मंत्री बने रहे। फिर 2018 में चुनाव जीतने के बाद उन्हें उपमुख्यमंत्री बनने का ऑफर दिया गया, लेकिन उन्होंने अपने समर्थक तुलसी सिलावट के नाम की पेशकश कर दी। कमलनाथ सिलावट को उपमुख्यमंत्री बनाने के लिए तैयार नहीं हुए और उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बना दिया। सिलावट न सिर्फ भाजपा में ऐसे वक्त में जब राज्य में कोरोना वायरस की महामारी से निपटने की प्राथमिक जिम्मेदारी स्वास्थ्य मंत्री के नाते उन्हीं की थी। सिंधिया ऐसे गैर जिम्मेदार व्यक्ति को उपमुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, जो कांग्रेस की विचारधारा के प्रति बेईमान निकला।स्पेस छीनने के आरोप निराधारदिग्विजय सिंह ने पत्र में लिखा है कि सिंधिया के वैचारिक विश्वासघात को सम्माननीय बनाने के लिये सहानुभूति की आड़ लेने की कोशिश हो रही है। कहा जा रहा है कि कमलनाथ और दिग्विजय ने पार्टी में उनका स्पेस छीन लिया था। इसीलिए पार्टी में वह घुटन महसूस कर रहे थे। यह आरोप निराधार हैं। ऐसा कहने वाले लोग पार्टी का इतिहास नहीं जानते हैं। वे भूलते हैं कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस हमेशा से मजबूत नेताओं की सामूहिक पार्टी रही है। मेरे 10 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में अर्जुन सिंह, श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ला, शंकरदयाल शर्मा, माधवराव सिंधिया, मोतीलाल वोरा, कमलनाथ, श्रीनिवास तिवारी जैसे सम्मानित और बड़े जनाधार वाले नेता कांग्रेस पार्टी में थे। इन सभी को मेरी ओर से सदैव मान सम्मान मिला था। सभी मिलकर कांग्रेस को मजबूत भी करते थे। यही कारण है कि 1993 के बाद 1998 में कांग्रेस को दोबारा जनादेश मिला था।सिंधिया की तरह सत्ता का लोभ मेरी राजनीति का ध्येय नहींउन्होंने आगे लिखा है कि घर को बचाने के लिए घर में आग लगा देना समझदारी नहीं। सिंधिया देश में कांग्रेस पार्टी के सर्वोच्च नेताओं में से थे। वह एआईसीसी के महामंत्री के पद पर नियुक्त हुए थे। वे भी प्रियंका गांधी के साथ उत्तरप्रदेश के प्रभारी बनाए गये थे। पार्टी से उन्हें बहुत कुछ मिला था। पार्टी को केवल सत्ता प्राप्ति का माध्यम समझना कितना उचित है। 2003 में जब मेरे नेतृत्व में पार्टी मध्यप्रदेश में चुनाव हार गई थी, तब मैंने प्रण लिया था कि दस वर्ष तक मैं कोई सरकारी पद ग्रहण नहीं करूंगा। सिंधिया की तरह सत्ता का लोभ ही मेरी राजनीति का ध्येय होता, तो कांग्रेस के शासन वाले इन वर्षों में मैं सत्ता से दूर नहीं रहता, लेकिन राजनीति में जनसेवा का रास्ता हमेशा सत्ता की गली से नहीं गुजरता है।राजमाता मुझे जनसंघ में ले जाना चाहती थींदिग्विजय ने पत्र में आगे लिखा है कि मैंने 1971 में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की थी तो ये एक वैचारिक निर्णय था। राजमाता सिंधिया मुझे जनसंघ में ले जाना चाहती थी, लेकिन उस विचारधारा से मैं एकमत नहीं था और 1971 में मैं कांग्रेस में शामिल हो गया। स्वर्गीय माधव राव सिंधिया को कांग्रेस पार्टी में किसी प्रकार की शिकायत का कभी भी मौका नहीं दिया था। उनके दुखद निधन के पश्चात ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी में और गांधी परिवार में बहुत प्यार और सम्मान मिला। उनके क्षेत्र के सभी निर्णय उन्हीं की सहमति से होते थे। ये कहना गलत है कि पार्टी उन्हें राज्यसभा का टिकट नहीं देना चाहती थी, इसीलिये वे भाजपा में चले गए। जहां तक मेरी जानकारी है, किसी ने इसका विरोध नहीं किया था। कांग्रेस के पास दो राज्य सभा सीट जीतने के लिए जरूरी विधायक संख्या थी। इसलिए मुद्दा सिर्फ सीट का नहीं था। मुद्दा केंद्र सरकार में मंत्री पद का था, जो सिर्फ नरेंद्र मोदी और अमित शाह ही दे सकते थे। मोदी-शाह की इस जोड़ी ने पिछले 6 साल में इसी धनबल और प्रलोभन के आधार पर उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, बिहार और कर्नाटक में सत्ता पर कब्जा किया है। मध्य प्रदेश के जनादेश की नीलामी सिंधिया स्वयं करने निकल पड़े, तो मोदी-शाह तो हाजिर थे ही, लेकिन अपने घर की नीलामी को सम्मान का सौदा नहीं कहा जाता।

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Dakhal News 24 March 2020


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भोपाल। शिवराज सिंह चौहान ने सोमवार की रात चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मुख्यमंत्री बनते ही उनका ट्विटर स्टेटस भी बदला गया। मुख्यमंत्री बनने से पहले तक वह कामन मैन थे, लेकिन अब वे चीफ मिनिस्टर आफ मप्र हो गए हैं। वहीं, उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद दिग्विजय सिंह ने तंज कसा है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने धनबल और छलबल से प्रदेश की कमान उन्हें सौंपी है। वक्त आने पर जनता इसका जवाब देगी। शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद सोमवार को देर रात ही अपना ट्विटर हैंडल पर स्टेटस बदल दिया। पहले उन्होंने अपने ट्विटर स्टेटस में “द कॉमन मैन ऑफ मध्यप्रदेश” लिखा था। अब उन्होंने ट्विटर स्टेटस को “द चीफ मिनिस्टर ऑफ मध्यप्रदेश” कर लिया है।इधर शिवराज के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद दिग्विजय सिंह ने सोमवार देर रात ट्वीट कर तंज कसते हुए लिखा मामा का मुक्ति के लिये मप्र की जनता ने कांग्रेस को जनादेश दिया था। भ्रष्ट शासन को बदलने के लिए कांग्रेस में जनता ने विश्वास दिखाया था, लेकिन भाजपा ने धनबल और छलबल से फिर मामा को प्रदेश की कमान सौंप दी। जनता यह सब देख रही है और वक्त आने पर वह जवाब देगी।

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Dakhal News 24 March 2020


bhopal, Due, Yogi Sarkar , Maprap Committee,  senior journalist, was saved!

जब बारह लाख के सरकारी फंड से मिल गया एक गरीब पत्रकार को जीवन… करीब पच्चीस वर्षों से अधिक समय से आधा दर्जन से ज्यादा जाने पहचाने अखबारों से जुड़े लिक्खाड़ और ईमानदार पत्रकार राकेश मिश्रा की प्रेस मान्यता खत्म हो गई थी। ये जिस ‘प्रभात अखबार में काम कर रहे थे उसका प्रसार कम होने के तकनीकी कारणों से इनकी प्रेस मान्यता बरकरार नहीं रह पायी। ऐसे में पत्रकार मनोज मिश्रा ने इस जुझारू पत्रकार को अपने अखबार से मान्यता दिलवा दी। दुर्भाग्य से पत्रकार राकेश मिश्रा को मेजर ब्रेन स्ट्रोक पड़ा और डाक्टरों ने साफ कह दिया कि इनके बचने की उम्मीद 95% नहीं है। फिर उन्हें पीजीआई ले जाया गया जहां ये पूरे दो महीने वैंटीलेटर पर रहे। उ.प्र.मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति अपने अथक प्रयासों से मान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए पीजीआई में निशुल्क इलाज करवाने का जीओ बहुत पहले ही करवा चुकी थी। इसलिए राकेश मिश्रा का बारह लाख के सरकारी खर्चे पर बेहतरीन इलाज हुआ। इस तरह एक ईमानदार और गरीब पत्रकर की ज़िन्दगी बच गई। एक पत्रकार मित्र का जीवन बचाने के लिए धन्यवाद योगी सरकार। शुक्रिया उ.प्र. मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति।   लखनऊ के स्वतंत्र पत्रकार नवेद शिकोह की रिपोर्ट.

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Dakhal News 19 March 2020


bhopal, Patil Putappa was ideal during his lifetime

मनोहर यडवट्टि   बेंगलुरु, 18 मार्च (हि.स.)। वयोवृद्ध पत्रकार एवं राज्यसभा के पूर्व सदस्य पुट्टप्पा सिदालिंगप्पा पाटिल (पापु) अपने सभी पाठकों, प्रशंसकों के लिए सभी क्षेत्रों में महान शख्सियत और अद्वितीय व्यक्तित्व के साथ अपने जीवनकाल में आदर्श रहे। वह सार्वजनिक भाषणों और अपने प्रकाशनों में लिखे गए लेखों से संबंधित विषयों पर एक बहुमुखी संचारक होने के लिए अपने विचारों के लिए जाने जाते थे।   वह कन्नड़ वॉचडॉग समिति के पहले अध्यक्ष और सीमा सलाहकार समिति के संस्थापक अध्यक्ष भी थे। पुट्टप्पा साप्ताहिक 'प्रपंच' के संस्थापक संपादक थे और उन्होंने पहले कन्नड़ दैनिक समाचार पत्र 'नवयुग' का भी संपादन किया। उन्होंने विभिन्न दैनिक समाचार पत्रों में कॉलम भी लिखे। उन्होंने तत्कालीन बॉम्बे से प्रकाशित कई अंग्रेजी पत्रिकाओं में योगदान दिया था। पुट्टप्पा ने कन्नड़ भाषा में कई किताबें लिखी हैं, जिनमें कवि लेखकरु, नीवु नागबेकु, कर्नाटक संगीता कलारतनारु इत्यादि हैं। पाटिल पुटप्पा को कई पुरस्कार मिले हैं। इसमें नाडोज पुरस्कार, वुडे पुरस्कार और नृपतुंगा पुरस्कार शामिल हैं।   अविभाजित धारवाड़ जिले में 14 जनवरी,1921 को हावेरी तालुक के कुराराबोंडा में जन्मे पुट्टप्पा ने अपनी प्राथमिक शिक्षा हलगेरी गांव में पूर्ण की और उच्च शिक्षा ब्याडगी, हावेरी और धारवाड़ में की। उन्होंने अपनी कानून की डिग्री बेलगावी लॉ कॉलेज से पूरी कर बॉम्बे में वकालत शुरू की। हालांकि, पत्रकारिता में उनकी गहरी रुचि को देखते हुए सरदार वल्लभभाई पटेल ने उन्हें पत्रकारिता में बने रहने का सुझाव दिया।   उन्होंने कन्नड़ भाषी क्षेत्रों के एकीकरण के लिए चल रहे आंदोलन पर लिखकर फ्री प्रेस जर्नल और बॉम्बे क्रॉनिकल में योगदान देना शुरू किया। फिर फ्री प्रेस जर्नल के तत्कालीन सम्पादक के. सदानंद ने उन्हें फ्री प्रेस जर्नल ज्वाइन करने की पेशकश की। हालांकि उन्होंने हुबली से एक नए अखबार में काम करने का फैसला किया। उनकी वर्ष 1930 के दौरान हुई गिरफ्तारी ने उन्हें बदल दिया और फिर तब से वह जीवन भर खादी के कपड़े पहनने वाले व्यक्ति बन गए। वह जवाहरलाल नेहरू से प्रभावित थे, जिन्होंने बाद में हुबली का दौरा किया था।   वर्ष 1934 में महात्मा गांधी ब्याडगी की यात्रा पर आए और इस युवा स्वयंसेवक पाटिल पुटप्पा की पीठ थपथपाई। संयोग से उन्होंने 1934 में पहले आम चुनाव के दौरान कांग्रेस के लिए भी प्रचार किया। संभवतः वह 1949 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से पत्रकारिता पाठ्यक्रम को आगे बढ़ाने वाले पहले कन्नडिगा रहे। अपने छात्र दिनों के दौरान उन्होंने विल डुरंट, रॉबर्ट हचिंस, न्यायमूर्ति फेलिक्स फ्रैंकफर्टर, अल्बर्ट आइंस्टीन और कई अन्य लोगों की मेजबानी की। उन्होंने एक ब्रिटिश रूढ़िवादी राजनेता सर एंथनी एडेन का साक्षात्कार लिया था। मार्च 1954 के दौरान घर वापस लौटने पर उन्होंने 'प्रपंच' नामक कन्नड़ साप्ताहिक शुरू किया।    फिर 1956 में उन्होंने पहला कन्नड़ डाइजेस्ट 'संगम' और 1959 में कन्नड़ अखबार विश्ववाणी प्रकाशित करना शुरू किया। 1961 में वह कर्नाटक विश्वविद्यालय के सीनेट सदस्य बने, जबकि उन्हें 1962 में राज्यसभा के लिए चुना गया। वह राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा कन्नडिगों और राज्य के हितों के विपरीत किसी भी कदम के खिलाफ आवाज उठाते थे। किसान आंदोलन के साथ-साथ भाषा आंदोलन आर. गुंडूराव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को खत्म करने में एक उत्प्रेरक बना था और इस तरह रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व वाली पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ था। पाटिल पुट्टप्पा कन्नड़ और अंग्रेजी में अपने शानदार लेखन की तरह एक शक्तिशाली वक्ता थे।   1967 में वे धारवाड़ स्थित कर्नाटक विद्यावर्द्धक संघ के अध्यक्ष बने। साल 1915 में कन्नड़ साहित्य परिषद की स्थापना हुई, जो कन्नड़ साहित्य परिषद के अस्तित्व में आने से पहले और अंत तक उसी स्थिति में बनी रही। वह देश की सत्ता की राजनीति में नेहरू और इंदिरा गांधी परिवार की पारिवारिक तानाशाही के खिलाफ मुखर थे।   कर्नाटक विद्यावर्द्धक संघ के पूर्व महासचिव शंकर हलगट्टी कहते हैं कि चाहे कोई सहमत हो या असहमत, कन्नड़ और कन्नड़ भूमि के हितों से संबंधित सभी मुद्दों में पाटिल पुट्टप्पा का अपना एक तरीका था। कन्नड़ के कारण उसकी अखंडता और प्रतिबद्धता पर सवाल उठाने के बारे में कोई कभी सोच भी नहीं सकता। हालांकि वह आगे बढ़ने में हमेशा अकेले व्यक्ति बन गए थे।

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Dakhal News 19 March 2020


bhopal, Law and order in Noida is not bad night life safe

नोएडा में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लाागू करने और करोड़ों रुपये खर्चने के बावजूद लॉ एंड आर्डर में सुधार नहीं दिख रहा है. यहां की नाइट लाइफ उतनी ही अनसेफ है जितनी पहले थी. लगातार घटनाएं घटित हो रही हैं पर पुलिस महकमा कान में तेल डाले सोया पड़ा है. अखबारों में छपी खबर के मुताबिक शनिवार रात बाइक सवार बदमाशों ने BMW कार लूट ली. कार चला रहा युवक पेशाब करने के लिए रुका हुआ था. पीड़ित युवक नोएडा सेक्टर 137 स्थित टियरा सोसायटी का रहने वाला है. बताया जाता है कि पीड़ित ने पुलिस कंट्रोल रूम में सौ नंबर पर काल किया लेकिन कुछ नहीं हुआ. आखिरकार उसे देर रात भटकते हुए खुद ही फेज 2 थाने पर जाना पड़ा. पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है. नवभारत टाइम्स की महिला मीडियाकर्मी का रात में कार सवार शोहदों द्वारा पीछा करने की घटना हो ही चुकी है. इसके पहले एक मैनेजर गौरव चंदेल की गोली मार कर हत्या करने के बाद बदमाश कार व मोबाइल लैपटाप आदि लेकर भागे थे.   तमाम हो हल्ले और पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू करने के बाद भी हालात में सुधार नहीं है. पुलिस वालों की संख्या बढ़ाई गई. पुलिस अफसर भी ढेर सारे आए. पर जमीनी हालात जस का तस है.   सूत्रों का कहना है कि नोएडा में पुलिस अब निश्चिंतता की मोड में है. योगी सरकार ने बदमाशों को मारने तक की छूट दे रखी है लेकिन थानेदार खुद को अभयदान पाए और संरक्षित मान कर आराम फरमा रहे हैं. घटनाएं होती जा रही हैं लेकिन किसी की जिम्मेदारी तय नहीं हो पा रही न किसी को दंडित किया जा रहा. रात में सड़क पर पुलिस टीमें जितनी सक्रिय दिखनी चाहिए, उतनी हैं नहीं. नोएडा पुलिस अपना ध्यान उगाही और कमाई से थोड़ा-सा हटाकर कानून-व्यवस्था पर लगा दे तो स्थिति बदल सकती है.

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Dakhal News 17 March 2020


bhopal, Law and order in Noida is not bad night life safe

नोएडा में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लाागू करने और करोड़ों रुपये खर्चने के बावजूद लॉ एंड आर्डर में सुधार नहीं दिख रहा है. यहां की नाइट लाइफ उतनी ही अनसेफ है जितनी पहले थी. लगातार घटनाएं घटित हो रही हैं पर पुलिस महकमा कान में तेल डाले सोया पड़ा है. अखबारों में छपी खबर के मुताबिक शनिवार रात बाइक सवार बदमाशों ने BMW कार लूट ली. कार चला रहा युवक पेशाब करने के लिए रुका हुआ था. पीड़ित युवक नोएडा सेक्टर 137 स्थित टियरा सोसायटी का रहने वाला है. बताया जाता है कि पीड़ित ने पुलिस कंट्रोल रूम में सौ नंबर पर काल किया लेकिन कुछ नहीं हुआ. आखिरकार उसे देर रात भटकते हुए खुद ही फेज 2 थाने पर जाना पड़ा. पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है. नवभारत टाइम्स की महिला मीडियाकर्मी का रात में कार सवार शोहदों द्वारा पीछा करने की घटना हो ही चुकी है. इसके पहले एक मैनेजर गौरव चंदेल की गोली मार कर हत्या करने के बाद बदमाश कार व मोबाइल लैपटाप आदि लेकर भागे थे.   तमाम हो हल्ले और पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू करने के बाद भी हालात में सुधार नहीं है. पुलिस वालों की संख्या बढ़ाई गई. पुलिस अफसर भी ढेर सारे आए. पर जमीनी हालात जस का तस है.   सूत्रों का कहना है कि नोएडा में पुलिस अब निश्चिंतता की मोड में है. योगी सरकार ने बदमाशों को मारने तक की छूट दे रखी है लेकिन थानेदार खुद को अभयदान पाए और संरक्षित मान कर आराम फरमा रहे हैं. घटनाएं होती जा रही हैं लेकिन किसी की जिम्मेदारी तय नहीं हो पा रही न किसी को दंडित किया जा रहा. रात में सड़क पर पुलिस टीमें जितनी सक्रिय दिखनी चाहिए, उतनी हैं नहीं. नोएडा पुलिस अपना ध्यान उगाही और कमाई से थोड़ा-सा हटाकर कानून-व्यवस्था पर लगा दे तो स्थिति बदल सकती है.

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Dakhal News 17 March 2020


bhopal,  240 year, old feud, Gwalior and Raghogarh gharana

मध्यप्रदेश में जो सियासी घमासान मचा और कमलनाथ सरकार संकट में आ गई उसमें दो किरदारों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर, जहां भाजपा का कमल थाम लिया, वहीं पार्टी में ही उनके लगातार प्रतिद्वंदी रहे दिग्विजय सिंह राज्यसभा में जाने में जहां सफल रहे, वहीं इस पूरे मामले का ठिकरा भी उन्हीं पर फोड़ा जा रहा है। अगर इतिहास उठाकर देखा जाये तो ग्वालियर और राघोगढ़ की यह टसल 240 साल पुरानी हैं। उस दौरान अंग्रेजों ने समझौता भी कराया था, लेकिन कांग्रेस आलाकमान इस मामले मेें भी असफल साबित हुआ। अब दिग्गी का कहना है कि अतिमहत्वकांक्षा के चलते ज्योतिरादित्य भाजपा में गये, वहीं राहुल गांधी ने उन्हें अपना पुराना दोस्त बताया तो सिंधिया ने भी हुंकार भरी कि उनके परिवार को जब भी ललकारा गया तो चुप नहीं बैठे। प्रदेश की राजनीति में हमेशा दिग्गी और ज्योतिरादित्य की पटरी कभी नहीं बैठी और यही कारण है कि सिंधिया न तो प्रदेश अध्यक्ष बन सके और न ही मुख्यमंत्री। मध्यप्रदेश में जो राजनीतिक संकट आया और अच्छी भली चल रही कमलनाथ सरकार एकाएक ढहने के कगार पर पहुंच गई है और अब कोई चमत्कार ही उसे बचा सकता है। भाजपा भी सिंधिया की बगावत को गुटबाजी से जोड़ते हुए मिस्टर बंटाढार यानी दिग्गी को इसका जिम्मेदार बताती है, वहीं राजनैतिक विशेषज्ञ और जनता में भी यहीं चर्चा है कि दिग्गी ने ही सरकार को डूबों दिया, हालांकि दिग्गी इन आरोपी की स्पष्ट खंडन करते हैं। अगर इतिहास के पन्नों को खंगाला जाये तो पता चलेगा कि इन दोनों घरानों के बीच अदावत नई नहीं है, बल्कि 240 साल पुरानी हैं। 1677 में राघोगढ़ को दिग्गी के पुरखे लालसिंह खिंची ने बसाया था और 1705 में राघोगढ़ का किला बना, उधर औरंगजेब की मौत के बाद मुगलों को खदेड़ते हुए मराठा जब आगे बढ़े तो इंदौर में होलकर घराने और ग्वालियर में सिंधिया घराने ने अपनी रियासत कायम करते हुए आस-पास के छोटे और बड़े राजाओं को भी उसका हिस्सा बनाया, लेकिन राघोगढ़ से सिंधियाओं की ठनी और महादजी सिंधिया ने 1780 में दिग्विजय सिंह के पूर्वज राजा बलवंत सिंह और उनके बेटे जयसिंह को बंदी बना लिया। नतीजतन 38 सालों तक दोनों राज घरानों में टसल चलती रही और 1818 में ठाकुर शेर सिंह ने राघोगढ़ को बर्बाद किया, ताकि सिंधियाओं के लिए उसकी कोई कीमत न बचे, जब राजा जयसिंह की मौत हुई, तब अंग्रेजों की मध्यस्थता से ग्वालियर और राघोगढ़ के बीच एक समझौता भी हुआ, जिसमें राघोगढ़ वालों को एक किला और आसपास की जमीनें मिली और तब 1.4 लाख रुपये सालाना का लगान तय किया गया और राघोगढ़ से कहा गया कि सालाना अगर 55 हजार रुपये से ज्यादा लगान की वसूली होती है तो यह राशि ग्वालियर दरबार में जमा करनी होगी और यदि 55 हजार से कम लगान मिला तो ग्वालियर रियासत राघोगढ़ की मदद करेगा, लेकिन राघोगढ़ वाले कम लगान वसूलते रहे, जिसके चलते ग्वालियर दरबार ने दी जाने वाली मदद रोक दी और सारी संपत्ती भी जब्त कर ली। 1843 में अंग्रेजों ने फिर समझौता करवाया, जिसमें राघोगढ़ को ग्वालियर रियासत के अधीन लगान वसूलने की छूट दी गई। 1780 में शुरू हुई यह जंग आज 2020 तक बदस्तूर जारी है यानी 240 साल का इतिहास गवाह है, जो ग्वालियर और राघोगढ़ की अदावत को जाहिर करता है। यही कारण है कि कभी भी सिंधिया परिवार से दिग्गी परिवार की पटरी नहीं बैठी। मजे की बात यह है कि अंग्रेजों ने तो इन दोनों घरानों में दो बार समझौता करवाया, लेकिन कांग्रेस आलाकमान कभी भी समझौता कराने में सफल नहीं हो पाया। पूर्व के दो विधानसभा चुनावों में भी प्रदेश की कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंपने की मांग उठती रही और उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने के साथ-साथ मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाने की भी मांग होती रही, लेकिन हर बार दिल्ली दरबार से दिग्गी सहित अन्य प्रदेश के दिग्गजों जिनमें कमलनाथ, सुरेश पचौरी व अन्य गुट शामिल रहे, ने कभी भी सिंधिया को उम्मीदवार घोषित नहीं होने दिया। यहां तक की पिछले विधानसभा चुनाव में भी उन्हें प्रचार-प्रसार का प्रमुख तो बनाया और फिर लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश भिजवा दिया, जबकि भाजपा को विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा खतरा सिंधिया के चहरे से ही था और उसने अपना प्रमुख चुनावी नारा भी यही दिया था कि… बहुत हुआ महाराज… हमारे तो शिवराज। अब वहीं ज्योतिरादित्य कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा का कमल थाम चुके है और कल भोपाल में उनका जोरदार स्वागत हुआ और पहले जहां शिवराज ने अंग्रेजों का साथ देकर रानी झांसी को मरवाने का जिम्मेदार गद्धार बताते हुए सिंधिया पर आरोप लगाये थे, वहीं कल उन्होंने अपने घर उनके सम्मान में रात्रि भोज आयोजित किया, जहां उनकी पत्नी साधना सिंह ने अपने हाथों से शिवराज, सिंधिया, तोमर सहित अन्य भाजपा नेताओं को भोजन परोसा। मध्यप्रदेश की राजनीति में हमेशा से तीन गुट प्रमुख रहे और विधानसभा से लेकर लोकसभा की टिकटे भी इनकी पसंद से बटती रही, लेकिन अब कमलनाथ और दिग्गी के ही दो प्रमुख गुट बच गये हैं। भोपाल आये सिंधिया ने भी कम तेवर नहीं दिखाये और पुरानी बातों को याद करते हुये कहा कि सिंधिया परिवार का खुन सहित चुनाव करता है और जब-जब इस परिवार को ललकारा गया उसका माकूल जवाब भी दिया, हालांकि भाजपा में शामिल होते ही, जहां सिंधिया भाजपा के लिए गद्धार से देशभक्त बन गये तो कांग्रेसी उन्हें गद्धार की उपमा देने में पीछे नहीं रहे और इंदौर से भोपाल तक उनका विरोध भी किया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का स्पष्ट मानना है कि सिंधिया का साथ छोडऩा कांग्रेस के लिए नुकसान दायक है और भाजपा के लिए फायदेमंद, क्योंकि उन्हीं की बदौलत 15 माह पुरानी कमलनाथ सरकार को गिराकर अब भाजपा अपनी सरकार बना सकती है और प्रदेश में भी कर्नाटक की तर्ज पर रणनीति चल रही है। प्रोटोकॉल ने तय किया एक महाराजा तो दूसरा राजा यह भी जानकारी बहुत कम लोगों को होंगी की आखिरकार सिंधिया को महाराजा और दिग्गी को राजा क्यों कहा जाता है? दरअसल ऐतिहासिक परम्परा के मुताबिक प्रदेश के इन दोनों राज घरानों के बीच एक प्रोटोकॉल तय किया गया था, जिसमें यह तय हुआ कि सिंधिया हमेशा महाराज कहलायेंगे और राघोगढ़ वाले राजा। यही कारण है कि अतीत से लेकर अब तक सिंधिया को राजनैतिक क्षेत्र में भी सभी कार्यकर्ताओं से लेकर नेता महाराज ही कह कर संबोधित करते है और इसी तरह दिग्गी को राजा बोला जाता है। लंका विजय के बाद विभीषण का हुआ था राज्याभिषेक भोपाल आये ज्योतिरादित्य का स्वागत जहां भाजपा ने धूमधाम से किया वहीं शिवराज सिंह चौहान की जुबान फिसल गई।पहले जहां विधानसभा चुनाव में विरोधी के रूप में सिंधिया को गद्धार तक कह दिया था, तो कल विभीषण बोल गये। अब सोशल मीडिया पर भी लोग चुटकी ले रहे हैं कि अगर सिंधिया को शिवराज विभीषण बता रहे है तो इसका मतलब यह हुआ कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री उनकी बजाये सिंधिया बन सकते है, जब राम ने लंका विजय की तब उन्होंने विभीषण का ही राज्याभिषेक किया और अयोध्या लौटे। 4 हजार करोड़ से ज्यादा कीमती है जय विलास पैलेस अभी भाजपा में आये ज्योतिरादित्य पर जहां केंद्र सरकार के साथ डील करने के आरोप लग रहे है, वहीं यह भी कहा जा रहा है कि महल सहित उससे जुड़ी अरबों की संपत्तियों को बचाने के लिए उन्हें भाजपा का दामन थामना पड़ा। कल ही मुख्यमंत्री ने सिंधिया के खिलाफ चल रहे ईओडब्ल्यू के एक पुराने केस को फिर से खुलवा भी दिया, जिसमें जमीन घोटालों क आरोप उन पर लगे हैं। सिंधिया का ग्वालियर स्थित जयविलास पैलेस 150 साल पुराना है, जिसमें 400 कमरें है और दरबार हाल में अत्यंत बेशकीमती झूमर टंगे है। इस पूरे महर की कीमत 4 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा आकी जाती है, क्योंकि इसमें कई एंटिंक सामान मौजूद है। 40 कमरों का तो म्यूजियम ही है। 1874 में बने इसी पैलेस में सिंधिया परिवार रहता आया है और अभी ज्योतिरादित्य भी इसी जयविलास पैलेस में रहते हैं। इसके डायनिंग हाल में चांदी की ट्रेन से खाना परोसा जाता है।   लेखक राजेश ज्वेल वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.

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Dakhal News 17 March 2020


bhopal,  Read ,four well-read posts , Corona focused , Corona

पोस्ट 1- जैसे नियमित व्यायाम नहीं करने से मांसपेशियां शिथिल पड़ जाती हैं, वैसे ही बुद्धि भी नियमित व्यायाम नहीं करने से रूढ़ हो जाती है। बुद्धि को प्रश्नों और जिज्ञासाओं से चुनौती मिलती है। बुद्धि के परिमार्जन के लिए विमुक्ति का वह अनुभव आवश्यक है। किंतु इक्कीसवीं सदी के आरम्भिक बीस सालों में, ऐसा मालूम होता है, हमने बुद्धि के बजाय जड़ता का अभ्यास अधिक किया है। उसी के परिणाम आज देखने को मिल रहे हैं, जब एक वैश्विक महामारी मुंह बाए खड़ी है और हमारी बुद्धि उसे उसके वैश्विक और मानवीय आयामों में देखने में समर्थ ही नहीं हो पा रही है। हमारे औज़ार भोथरे साबित हो रहे हैं। बुद्धि की जड़ता से ही इस तरह की बातें कही जाती हैं कि आज संसार हाथ मिलाने के बजाय नमस्कार करने को विवश हो गया है, यह भारतीय संस्कृति का गौरव है। जैसे कि विषाणु भारतीयों को संक्रमित करने से बख़्श देगा? या यह कि केंद्र सरकार ने मेरी कॉलर ट्यून कैसे बदल दी, यह मेरी निजता में हनन है! कोई मुझे फ़ोन लगाए तो खांसने-खंखारने की आवाज़ उसे क्यूँ सुनाई देती है? जैसे कि यह संसार एक जलसाघर है, जिसमें आपकी अभिरुचि से बड़ा कोई चिंतन मनुष्य के सामने नहीं? या आपकी राजनीतिक निष्ठा ही सर्वोपरि है? बौद्धिक जड़ता की मिसाल तब मिली जब उन्होंने कहा, यह विषाणु चीन को ईश्वर का शाप है, क्योंकि उसने शिनशियांग में अत्याचार किए थे। फिर वैसा कहने वाले स्वयं विषाणु से संक्रमित हो गए। यक़ीनन, उनके ईश्वर उनसे भी बहुत ज़्यादा प्रसन्न नहीं मालूम होते थे। एक जड़ता ने कहा, तुम्हारा धर्मस्थल तो रिक्त हो गया, हमारे धर्मस्थल में देखो, कैसा रंग-गुलाल है। दूसरी जड़ता ने कहा, डैमोक्रेट्स होते तो बीमारी नहीं फैलती, रिपब्लिकन्स और उनका मंदबुद्धि नेता इस आपातकाल के लिए ज़िम्मेदार है। तीसरी जड़ता बोली, चमकी बुख़ार से इतने बच्चे मर गए, तब तो किसी ने ध्यान नहीं दिया। शायद बीमारियों के भी स्टेटस होते हैं। चौथी जड़ता बड़े आत्मविश्वास से बोली, यह रोग किसी ज्वर से अधिक नहीं, किंतु नक़ाबों की बिक्री के लिए झूठ रचा गया! जब मनुष्य की बुद्धि, जो कि इस सृष्टि का सबसे बड़ा कौतूहल है, किसी वस्तु या घटना का आमने-सामने, उन्मुक्त साक्षात् नहीं करके उसे किसी चश्मे से देखने की अभ्यस्त हो जाती है, तब वो इस तरह की बातें करती है। यह बुद्धि स्वयं को किन्हीं जातीय-सामुदायिक-राजनीतिक पहचानों के अनुक्रम में देखने की इतनी आदी हो चुकी होती है कि एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में स्वयं को पाकर सहसा किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाती है। उसकी स्थिति उस विदूषक की तरह हो जाती है, जिसे एक शोकसभा में व्याख्यान देने के लिए खड़ा कर दिया गया है, किंतु उसको केवल लोगों को हंसाना ही आता है। अब वह क्या कहेगा, कैसे कहेगा, चुप ही क्यूं न रह जाएगा? किंतु विषाणु तो समस्त भ्रमों से मुक्त है। वह आपको जानता तक नहीं। आप उसके लिए एक माध्यम हैं। लिविंग सेल्स का एक संगठन, जो उसके प्रसार के लिए उपयोगी है। जैसे मनुष्य प्रोटीन की प्राप्ति के लिए नि:शंक होकर पशुओं की हत्या करता है और उनके शुभ का एकबारगी चिंतन नहीं करता, उसी तरह यह विषाणु अपने री-प्रोडक्शन के लिए आपके जैविक-तंत्र का विघटन करेगा। वह प्रकृति के नियमों के अधीन है। और प्रकृति स्वयंसिद्ध है! और, अलबत्ता, प्रखर बुद्धि वाले की जान बख़्शी नहीं जाएगी, फिर भी मनुष्य को अपनी बुद्धि का अभ्यास करते रहना चाहिए। क्योंकि वह मनुष्य है। क्योंकि उसका समूचा इतिहास ही अपनी बुद्धि के परिमार्जन का रहा है। यही उसका अभिमान भी है। अब इतनी लम्बी यात्रा करने के बाद वह पीछे नहीं हट सकता। इंटरनेट पर स्वयं को जड़बुद्धि की तरह प्रस्तुत करके वह संतोष से नहीं भर सकता। वैश्विक महामारी सम्मुख हो या न हो, केवल ये ही प्रश्न पूछे जाने जैसे हैं- क्या सच में ही कहीं पर कोई ईश्वर है? जिस भूखण्ड पर मेरा जन्म हुआ, क्या मैंने उसका सचेत चयन किया था? जिन रीतियों का मेरे पुरखे पालन करते रहे, क्यों वो मेरे माध्यम से स्वयं को जिलाए रखेंगी? मैं कौन हूं? जन्म से पूर्व मैं कहां था, मृत्यु के बाद कहां जाऊंगा? इस धरती पर मेरे होने का क्या प्रयोजन है? हमें अब भी धर्म, जाति, राष्ट्र, समुदाय, राजनीति के चश्मे से देखकर स्वयं को “एम्बैरेस” नहीं करना चाहिए। वुहान से विकसे विषाणु के समक्ष यह, आख़िरकार, मनुष्य की अस्मिता का प्रश्न भी है! पोस्ट 2- कोरोना वायरस का केंद्र पश्चिम दिशा में खिसक रहा है. चीन कह रहा है कि हम सबसे बुरा दौर देख चुके हैं! किंतु अब यूरोप दुनिया में कोरोना का एपिसेंटर बन चुका है. वुहान से वेनिस तक की यात्रा पूरी कर ली गई है! इटली में हज़ार मृत्युओं के बाद कम्प्लीट लॉकडाउन की स्थिति है और लोगों ने ख़ुद को अपने-अपने घरों में क़ैद कर लिया है. अमेरिका ने 50 मौतों के बाद नेशनल इमरजेंसी घोषित कर दी है. भारत में अभी खाता खुला ही है, किंतु जैसे-जैसे संख्या बढ़ेगी, सामूहिक सम्भ्रम और वाइड स्प्रेड पैनिक का दृश्य निर्मित होगा. कोरोना के बारे में तमाम मालूमात हासिल करने के बाद दुनिया के लोग इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि अगर हम स्वयं को सबसे अलग कर लेंगे और घरों में क़ैद हो जाएंगे तो हम संक्रमण से सुरक्षित रहेंगे. तकनीकी रूप से यह तर्क ठीक मालूम होता है, किंतु अगर आधुनिक मनुष्य की समस्याएं इतनी ही सरल होतीं तो बात क्या थी. युवल नोआ हरारी का कहना है कि अगर आप फिर से पाषाण युग में जाने को तैयार हैं तो स्वयं को बंद कर लीजिए. किंतु आधुनिक वैश्वीकृत मनुष्य को तो घर से निकलना ही होगा. इटली में उन्होंने चौदह दिनों का क्वारेन्ताइन तय कर लिया है. कि चौदह दिन हम घर से नहीं निकलेंगे. वहां सड़कों पर भुतहा सन्नाटा व्याप्त हो गया है. इससे सरकार यह मान सकती है कि संक्रमितों की संख्या अब एक बिंदु पर आकर फ्रीज़ हो जाना चाहिए. पहले आपात स्थिति से निबटें. चौदह दिन के निर्वासन के बाद शेष की समस्या सुनी जाएगी. अगर भारत भी इस डगर पर चला तो यह निश्चय है कि सेवा क्षेत्र में “वर्क फ्रॉम होम” की कार्य संस्कृति सुदृढ़ होने जा रही है. पहले ही इसका व्यवहार असंगठित रूप से किया जा रहा था. लैपटॉप और इंटरनेट से घर बैठे काम करने वाला एम्प्लायी ड्राइव करके दफ़्तर जाने और ख़ुद को वायरस के लिए एक्सपोज़ करने की तैयारी नहीं ही दिखाएगा. मरण तो रोज़ कुआ खोदकर पानी पीने वाले दिहाड़ी मज़दूर का है. कोरोना पर वैश्विक चिंता के केंद्र में केवल लोक-स्वास्थ्य ही नहीं है. धड़कते दिल से दुनिया अर्थव्यवस्था पर नज़र जमाए है और उसे धीरे धीरे ध्वस्त होते देख रही है. पहले ही ग्लोबल इकोनॉमी बहुत अच्छी हालत में नहीं थी. 2020 को सुधार का साल होना था, किंतु यह 2008 के बाद सबसे बड़ी चुनौती की तरह सामने आया है. कौन जाने, यह भूमण्डलीकरण के तीस साल के इतिहास का सबसे बड़ा संकट सिद्ध हो. जब लोग ख़ुद को हफ्ता-पखवाड़े के लिए घर में क़ैद करने की तैयारी करेंगे तो वो “सीज-मेंटेलिटी” में सरक जाएंगे. पुराने वक़्तों में जब शहर की घेराबंदी होती थी तो अवाम चौमासे की रसद लेकर क़िले में चली जाती थी. मौजूदा दौर में यह सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द बनने जा रहा है. लोग तालाबंदी करेंगे तो जमाख़ोरी को बढ़ावा मिलेगा. जितना मैं भारत देश को समझता हूँ, जमाख़ोरी और कालाबाज़ारी पहले ही शुरू हो चुकी होगी. ज़रूरत की चीज़ों के दाम तेज़ी से बढ़ेंगे. बाज़ार में अप्रत्याशित मांग का सामना फ़र्ज़ी क़िल्लत से होगा. वॉर प्राफ़िटीयरिंग की तर्ज़ पर आपदा से मुनाफ़ा कमाने वाली ताक़तें सक्रिय हो चुकी होंगी. क्या सरकार इसके प्रति सजग है? अनेक मित्रों ने चिंता जताई है कि कोरोना पर इतना हाहाकार क्यूँ? वो कह रहे हैं कि जिस देश में दंगों, सड़क हादसों, बुख़ार से लाखों लोग मर जाते हैं, उसमें विदेशी विषाणु पर हायतौबा क्यूँ मचाई जा रही है. पता नहीं वो महामारी शब्द का अर्थ समझते हैं या नहीं. कोई भी आपदा अपने स्वरूप में बाहरी संकट प्रस्तुत करती है, जबकि महामारियां एक जटिल, अंदरूनी, साभ्यतिक मसला हैं और संक्रमण की प्रविधि आणविक विस्फोट से कम नहीं होती. मनुष्य का मनोविज्ञान यह है कि नगर में हादसा हो तो वह अपने परिजनों की कुशलक्षेम के लिए अकुलाता है. वो सकुशल घर लौट आएं तो निश्चिंत हो जाता है. फिर वह भले ही कितनी चिंता औरों के लिए जताता रहे, उसका दायरा मैं और मेरा परिवार तक सीमित रहता है. संक्रामक महामारियां इस निश्चिंतता में सेंध लगाती हैं. यह चार दिन चलकर रुकने वाला दंगा या बलवा नहीं है, यह नित्यप्रति अपने प्राणों की रक्षा करने की चुनौती है. इससे पहले आख़िरी बार कब एक वैश्विक महामारी ने दुनिया को अपनी गिरफ़्त में लिया था? बीसवीं सदी के आरम्भ का स्पैनिश फ़्लू? इक्कीसवी सदी का स्वाइन फ़्लू? यक़ीन मानिए, नॉवल-कोरोनावायरस इनसे आगे की चीज़ है. आज ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा, यह विषाणु ऊष्ण मौसम में भी पनप सकता है. तिस पर किसी ने अंदेशा जताया, तब तो हो ना हो यह एक मैन्युफ़ैक्चर्ड वायरस है, इसका कार्य-व्यवहार सर्वथा नया और अप्रत्याशित है. तो क्या चीन के पीले दैत्य ने दुनिया को एक घोर संकट में धकेल दिया है? यह तो समय ही बताएगा. किंतु तब तक सतर्कता की लाठी थामकर ही सबने इस डगर पर चलना है! पोस्ट 3- कोरोना वायरस पर युवल नोआ हरारी ने सर्वथा भिन्न दृष्टि प्रस्तुत की है। हरारी ने कहा है कि अगर आप सोचते हैं स्वयं को सबसे अलग-थलग करके इससे बच जाएंगे, तो यह आपकी भारी भूल है। चौदहवीं सदी में, जब न रेलगाड़ियां थीं, न हवाई जहाज़, एशिया से शुरू हुआ प्लेग यूरोप तक फैल गया था और इसने साढ़े सात करोड़ लोगों की जान ले ली थी। इसे इतिहास में ब्लैक डेथ के नाम से जाना जाता है। जब साल 1330-1350 में यह स्थिति थी, तो आज इक्कीसवीं सदी की भूमण्डलीकृत दुनिया में भूल ही जाइये कि आप सबसे कटकर बच जाएंगे। हरारी का कहना है कि वास्तव में ज़रूरत इससे ठीक विपरीत की है। हमें बंद होने की नहीं, अधिक से अधिक खुलने की आवश्यकता है। मनुष्यता को स्वयं को एक जाति मानना ही होगा, पूरी दुनिया को मिलकर इसका हल खोजना होगा, एक-दूसरे से निरंतर संवाद करना होगा, तभी इसका बेहतर ढंग से सामना किया जा सकता है। सरकारों पर बड़ी ज़िम्मेदारी है। निश्चय ही, जब हरारी यह कह रहे थे, तो वे इस पर विश्वास नहीं कर रहे थे। कोई भी नहीं कर सकता। यह राजनीति की अग्निपरीक्षा है, और राजनीति ऐसी परीक्षाओं में विफल रहती है। आज दुनिया अनेक राष्ट्रों में बंटी हुई है, उन सभी की अपनी-अपनी सरकारें हैं, उन सरकारों के अपने निजी हित और न्यस्त स्वार्थ हैं। मानव-संयोजन में ये सरकारें अत्यंत विफल सिद्ध होती हैं, वास्तव में वे विघटन की दृष्टि से सोचती हैं और मनुष्यता के निकृष्ट आयामों का आह्वान करके अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। आज तो उलटे संरक्षणवादी प्रवृत्तियां प्रबल हो चुकी हैं, और सभी राष्ट्र अपना हित पहले सोचते हैं। इंडिया फ़र्स्ट और अमेरिका फ़र्स्ट के इस दौर में यह वैश्विक संकट सामने आया है, जबकि राजनेता अपनी सरकार बचाने की फ़िराक़ में रहते हैं और कोई भी आपदा सामने आने पर उनकी पहली प्रतिक्रिया उसके वजूद से इनकार करने की होती है। ईरान में यही हुआ है। कोरोना वायरस का पता चलने के बावजूद वहां की सरकार लम्बे समय तक चुप रही। और अब वहां हालात नियंत्रण से बाहर होते जा रहे हैं। इटली में वे युवाओं को बचाने के लिए बूढ़ों को मर जाने दे रहे हैं। यह नात्सी-विचार की वापसी है, जिसमें ऑश्वित्ज़ के रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर सिलेक्शन-प्रक्रिया के दौरान कहा जाता था कि बूढ़ों को गैस चेम्बर में भेज दो और नौजवानों को काम पर लगाओ। उपयोगिता का सिद्धांत ऐसे ही काम करता है। उपयोगिता के सिद्धांत के कारण ही चीन, जो कि इस पूरी बीमारी की जड़ है, से यह ख़बर आई थी कि कोरोना संक्रमण से ग्रस्त मनुष्यों को मार देने की तैयारी की जा रही है, ताकि रोग आगे न फैले। और फिर, जैविक-हथियारों के प्रयोग की कॉन्स्पिरेसी थ्योरी तो है ही। दुनिया की सरकारें अंदरूनी मोर्चों पर प्रतिद्वंद्वी से राजनीतिक लड़ाइयों में मुब्तिला रहती हैं। अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसके भू-राजनीतिक हितों से संचालित गुट होते हैं। अमेरिका चीन से आने वाली किसी भी ख़बर पर भरोसा नहीं करता। ग्लोबल वॉर्मिंग को वह उसकी अर्थव्यवस्था को नष्ट करने की साज़िश बतलाता है और विकासशील अर्थव्यवस्थाएं कॉर्बन उत्सर्जन की अनिवार्यता के इस तर्क में उसका साथ देती हैं। 16 साल की क्लाइमेट चेंज एक्टिविस्ट ग्रेटा थुनबर्ग ने कोरोना वायरस के चलते सभी सार्वजनिक प्रतिरोधों को निरस्त करके डिजिटल स्ट्राइक की बात कही है। उसने यह भी कहा है कि आज हमें विज्ञान के साथ मिलकर खड़े होना है। किंतु राजनीति स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय-हितों की बात करती है, वह सार्वभौमिक हितों की बात करके चुनाव नहीं जीतती। राजनीति का सम्बंध विज्ञान से नहीं विभ्रम से है। तब वैश्विक महामारियों का सामना करने में भूमण्डलीकरण के साथ ही आधुनिक राष्ट्र-राज्यों का स्वरूप भी एक बाधा बन जाता है। राजनीति से ऐसे अवसर पर कोई उम्मीद रखना बेकार है। धर्म की तब बात ही क्या करें। ईश्वर, जो कि कहीं नहीं है, की परिकल्पना मनबहलाव के लिए ठीक है, किंतु आपदाओं में वह मनुष्य की कोई मदद नहीं कर सकता। अतीत में उसने कभी नहीं की है और आगे भी नहीं करेगा। इस विराट सृष्टि में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे मनुष्य का सामान्य-बोध ही इकलौती उम्मीद है। इंटरनेट इसमें उसकी मदद कर सकता है, बशर्ते उसका उपयोग विवेक से किया जाए। मनुष्यता को तोड़ने के लिए नहीं, जोड़ने के लिए उसे बरता जाए। धर्म और राष्ट्र, जाति और समुदाय काल्पनिक परिघटनाएं हैं, मनुष्य ही वास्तविक है। उसका हित ही सर्वोपरि होना चाहिए। मनुष्यता का इतिहास महामारियों का इतिहास रहा है। इतिहास में रोगों ने इतने लोगों की जान ली है, जितनी किसी और विपदा ने नहीं ली- दोनों विश्वयुद्धों ने भी नहीं। हैजा और चेचक, कोढ़ और तपेदिक, प्लेग और बुख़ार, सिफ़लिस और एड्स, भांति-भांति के फ़्लू, और हाल के सालों में उभरकर सामने आए इबोला, ज़ीका और अब कोरोना जैसे विषाणु- सर्वनाश की जितनी भी थ्योरियां प्रचलित हैं, उनमें अभी तक सबसे कारगर ये रोग और महामारियां ही साबित हुए हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग और आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस के ख़तरे भविष्य के गर्भ में हैं। एलीयन्स अभी तक धरती पर आए नहीं हैं। ज्वालामुखी लम्बे समय से सुषुप्त हैं। धरती से डायनोसोरों का ख़ात्मा कर देने वाले एस्टेरॉइड की जोड़ का अंतरिक्ष-पिण्ड फिर लौटकर नहीं आया है, पांच बार प्रलय होने के बावजूद। अभी तक के ज्ञात-इतिहास में महामारियां ही मनुष्य की सबसे बड़ी हत्यारिनी साबित हुई हैं। हमारे सामने एपिडेमिक और पेन्डिमिक का भेद है। संक्रामक रोग और वैश्विक महामारी। एक तरफ़ इबोला है, जो इतनी तेज़ी से मनुष्य की हत्या करता है कि रोग को लम्बी दूरी तक फैलने का अवसर ही नहीं मिलता। दूसरी तरफ़ मीज़ल्स हैं, जिनकी संक्रामक-क्षमता अत्यंत व्यापक है, किंतु इनका वैक्सीन सरलता से उपलब्ध है। और फिर कोरोना जैसे वायरस हैं, जो परस्पर-सम्पर्क से प्रसारित होते हैं, उजागर होने में समय लेते हैं और अनुकूल स्थिति प्राप्त होने पर दस प्रतिशत के स्ट्राइक रेट से रोगियों का ख़ात्मा करते हैं। ग्लोबल अवेयरनेस सिस्टम ही इससे बचाव में काम आ सकता है। शुक्र है कि हमारे पास सूचना-प्रौद्योगिकी है, इसका विवेकपूर्वक उपयोग कीजिये। और आपकी सरकारें क्या कह रही हैं, इससे ज़्यादा विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा जारी किए जा रहे अधिकृत प्रतिवेदनों और अपडेट्स पर भरोसा कीजिये। पोस्ट 4- कोरोना वायरस को लेकर आज की तारीख़ के दो अपडेट हैं- एक ये कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित कर दिया है। दूसरा ये कि इसके कारण इटली एक कम्प्लीट लॉकडाउन में चला गया है। अगर हम कोरोना वायरस को एक वैश्विक महामारी की तरह देखते हैं और उससे चिंतित हैं तो हमें चीन नहीं इटली की स्थिति पर ध्यान देना चाहिए। चीन में वह स्थानीय बीमारी थी, इटली में वह वैश्विक रोग है। मेरे सामने विश्व स्वास्थ्य संगठन की 11 मार्च की रिपोर्ट है, जो बतला रही है कि कोरोना वायरस से चीन में अब तक 3162 मौतें हुई हैं और इसके बाद इटली का नम्बर आता है, जहां अब तक इससे 631 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। यह एक दिन पुराना आंकड़ा है। 12 मार्च की रिपोर्ट इटली में मृत्युओं का आंकड़ा 31 प्रतिशत की नाटकीय बढ़ोतरी के साथ 827 बतला रही है। यह विनाश की चक्रवृद्धि गति है। यह किसी भी ग़ैर-चीनी, ग़ैर-एशियाई देश के लिए बहुत बड़ा आंकड़ा है। तीसरे नम्बर पर ईरान है, जहां 290 मृत्युएं हुई हैं। जब पहले-पहल हमने कोरोना वायरस का नाम सुना था, तो इसे वुहान-विषाणु कहकर पुकारा था। यह चीन के एक प्रांत में फैल रहा था। हमने इसके लिए चीन की खानपान की आदतों को दोषी ठहराया था। मेरी टाइमलाइन पर 31 जनवरी को लिखी गई पोस्ट है, जिसे ख़ूब पढ़ा गया। किंतु हमें स्वीकार करना होगा कि 31 जनवरी को हममें से कोई भी यह सोच नहीं रहा था कि यह महामारी इतनी तेज़ी से फैलेगी। हम स्वयं को सुरक्षित मान रहे थे। कल विश्व स्वास्थ्य संगठन के महासचिव ने कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित करते हुए जो भाषण दिया, उसमें उन्होंने कहा है कि आज की तारीख़ में दुनिया के 118 देशों के 1 लाख 25 हज़ार लोग इस विषाणु से ग्रस्त हैं। अच्छी ख़बर यह है कि अभी भी 77 देश ऐसे हैं, जहां से कोरोना के संक्रमण की कोई सूचना अभी तक नहीं मिली है। किंतु वे कब तक इससे बचे रहेंगे? अगर वे वैश्वीकरण के समक्ष लाचार हैं तो देर-अबेर यह विषाणु उन्हें जकड़ लेगा। अगर यह विषाणु पहले ही वहां पहुंच चुका है तो कौन जाने इसे कितने लोगों तक सीमित रखने में सफलता मिलेगी। जब मैंने देखा कि इटली में 827 लोग कोरोना वायरस से दम तोड़ चुके हैं, जो कि चीन में हुई मृत्युओं का एक-चौथाई है, तो भूमण्डलीकरण के इस अंधेरे पहलू ने मुझको निराशा से भर दिया। कोरोना से अब जाकर मैं सर्वाधिक चिंतित हुआ हूं। ये सच है कि इटली शीत-प्रधान देश है, भारत वैसा नहीं है, फिर भी यह दु:खद है कि जो बीमारी एक गांव से दूसरे गांव नहीं पहुंचना चाहिए थी, वो आज वैश्वीकरण की कृपा से दुनिया में फैल रही है और कोई इसे रोक नहीं पा रहा है। हम वैश्वीकरण के सामने लाचार हो चुके हैं। वैश्वीकरण का एक आयाम ग्लोबल मार्केट भी है और आज पूरी दुनिया के बाज़ार में आप शॉक-वेव्ज़ महसूस कर सकते हैं। महामारी अपने साथ महामंदी को लेकर आएगी। मृत्युबोध, नैराश्य, व्यामोह और असहायता- जो कि आधुनिक मनुष्य के चार बुनियादी गुण हैं- (अगर आप भारतीय हैं तो इसमें पांचवां गुण जोड़ लीजिये- मसखरी) – इस महामारी के सामने मुंह बाए खड़े होने पर अपनी पूरी आदिम त्वरा से उभरकर सामने आ रहे हैं। प्राणघातक विषाणु चीन से इटली कैसे पहुंचा? द गार्डियन बतलाता है जनवरी के अंत में इटली में कोराना वायरस के तीन मामले पाए गए थे। इनमें से दो चीनी पर्यटक थे, जो चीन-देश से अपने साथ यह तोहफ़ा लेकर यूरोप पहुंचे थे। रोकथाम की जो कोशिशें इटली में तब की जा सकती थीं, की गईं, किंतु फ़रवरी के महीने में उत्तरी इटली में रोग चुपचाप फैलता रहा। 18 फ़रवरी को इटली के कोन्डोंग्या में 38 वर्ष के एक स्वस्थ व्यक्ति में कोराना के लक्षण दिखलाई दिए। उसका चीन से कोई वास्ता नहीं था। आज उसे इतालवी मीडिया के द्वारा पेशेंट-वन कहकर पुकारा जा रहा है। वह 36 घंटे बिना इलाज के रहा। इससे भी बढ़कर, वह इस अवधि में सार्वजनिक सम्पर्क में रहा और अनजाने ही अपने से मिलने वाले लोगों को संक्रमित करता रहा। आज एक महीने से भी कम समय के बाद इटली में 10 हज़ार से ज़्यादा लोग संक्रमित हैं और 800 से अधिक की मृत्यु हो चुकी है। चीन से कहीं अधिक ठंडा मुल्क होने के कारण वहां पर कोरोना का स्ट्राइक रेट 10 फ़ीसद की घातक दर को छू रहा है। मात्र दो टूरिस्टों ने चीन से हज़ारों किलोमीटर दूर मौजूद यूरोप को सहसा एक वैश्विक महामारी के सामने एक्सपोज़ कर दिया। भारत देश में यह विषाणु 30 जनवरी को पहुंचा। बतलाने की आवश्यकता नहीं- चीन से। केरल में वुहान विश्वविद्यालय के एक छात्र के साथ इसकी आमद हुई। केरल के बाहर पहला मामला दूसरी मार्च को पाया गया। यह, ज़ाहिर है, इटली से लौटे एक व्यक्ति में था। फिर जयपुर, हैदराबाद और बेंगलुरु में मामले सामने आए। दुनिया में जिन तीन देशों में कोरोना का प्रकोप सबसे अधिक है- चीन, इटली और ईरान- अब वे शेष विश्व के लिए कोरोना के निर्यातक बन चुके हैं। एक से दो, दस से हज़ार, हज़ार से असंख्य की यह मल्टीप्लाइंग चेन-रिएक्शन है। आज दुनिया की आबादी 7.7 अरब है और सवा लाख संक्रमित लोग आबादी का बड़ा छोटा प्रतिशत हैं, किंतु महज़ तीन माह पूर्व तक यह केवल चीन-देश के एक प्रांत की फेफड़ाजनित बीमारी भर थी। वैश्विक सम्पर्क के इस कालखण्ड में आणविक विस्फोट की तरह इसका प्रसार हो सकता है। मुसीबत यह है कि जब आप घबड़ाकर तालाबंदी पर आमादा हो जाते हैं, जैसे कि इटली में हुआ है, तो इससे ग्लोबल इकोनॉमी, जो कि अत्यंत क्षणभंगुर परिघटना है, तीव्रगति से विषाद में चली जाती है। और सेवा क्षेत्र का फुगावा फूटने लगता है। हज़ार तरह की कॉन्स्पिरेसी थ्योरियां भी चलन में हैं। यह कि चीन-देश जैविक हथियारों का प्रयोग कर रहा था और उसके विफल रहने का यह दुष्परिणाम है। यह कि यह सब झूठ है (ग्लोबल वॉर्मिंग की तरह?) और इसके पीछे मास्क और सेनिटाइज़र का बाज़ार है। यह कि ज़ुकाम-नज़ला जितने लोगों को मारता हे, कोरोना की भी वही मारक क्षमता है। किंतु इटली के आंकड़े मुझको चिंतित कर रहे हैं। खेल-आयोजनों पर इसकी मार दिखने लगी है। शायद जब भारत में आईपीएल पर इसकी मार पड़ेगी, तभी जाकर यहां के लोगों को इसकी गम्भीरता का अहसास होगा। चीज़ों को समझने के भारत के अपने मानदण्ड हैं।   जब हमें भोजपुरी गीतों, सस्ते चुटकुलों, गंदे खानपान-रहनसहन पर गर्व और त्योहार की हुड़दंग से फ़ुरसत मिले, तब शायद हम सतर्कता को गम्भीरता से लेंगे। हर चीज़ में मसखरी भली बात नहीं है। चुटकुला-प्रधान देश अगर महामारी को लेकर थोड़ा-सा अधिक सचेत हो जाएगा तो दुनिया में उसकी नाक नहीं कट जावैगी।

Dakhal News

Dakhal News 14 March 2020


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संजय सक्सेना, लखनऊ लखनऊ से लगा जिला बाराबंकी वैसे तो अफीम की खेती के लिए जाना जाता है,लेकिन अब यह जिला विलुत्प होते गिद्धों को पुनःजीवनदान देने के चलते चर्चा में आ गया है। हाल ही में एक व्यक्ति ने विलुप्त होने केे कगार पर पहुंच चुके गिद्धों का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया में डाला तो यह खूब वायरल हुआ। गिद्ध एक ऐसा पक्षी है जो देखने में भले ही बहुत कुरूप लगता हो,लेकिन सृष्टि के लिए इसकी उपयोगिता अन्य तमाम पक्षियों और जानवरों से कहीं अधिक है। मुर्दाखोर गिद्ध को प्रकृति का सफाईकर्मी कहा जाता है। वे बड़ी तेजी और सफाई से मृत जानवर की देह को सफाचट कर जाते हैं और इस तरह वे मरे हुए जानवर की लाश में रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया और दूसरे सूक्ष्म जीवों को पनपने नहीं देते। लेकिन गिद्धों के न होने से टीबी, एंथ्रेक्स, खुर पका-मुंह पका जैसे रोगों के फैलने की काफी आशंका रहती है। इसके अलावा चूहे और आवारा कुत्तों जैसे दूसरे जीवों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई। इन्होंने बीमारियों के वाहक के रूप में इन्हें फैलाने का काम किया। आंकड़े बताते हैं कि जिस समय गिद्धों की संख्या में कमी आई उसी समय कुत्तों की संख्या 55 लाख तक हो गई। इसी दौरान (1992-2006) देश भर में कुत्तों के काटने से रैबीज की वजह से 47,300 लोगों की मौत हुई। बहरहाल, बात करीब 30-35 वर्ष पुरानी है। 1990 के उत्तरार्द्ध में जब देश में गिद्धों की संख्या में तेजी से गिरावट होने लगी उस दौरान गिद्धों की मौत के कारणों पर अध्ययन करने के लिये वर्ष 2001 में हरियाणा के पिंजौर में एक गिद्ध देखभाल केंद्र स्थापित किया गया। कुछ समय बाद वर्ष 2004 में गिद्ध देखभाल केंद्र को उन्नत करते हुए देश के पहले ‘गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र’ की स्थापना की गई। जब गिद्धों की संख्या में गिरावट का कारण तलाशा गया तो पता चला कि इसकी वजह डिक्लोफिनेक दवा है, जो पशुओं के शवों को खाते समय गिद्धों के शरीर में पहुँच जाती है। इसके बाद पशु चिकित्सा में प्रयोग की जाने वाली दवा डिक्लोफिनेक को वर्ष 2008 में प्रतिबंधित कर दिया गया। जिसका असर भी दिखाई देने लगा। इसी की एक बानगी है बाराबंकी जिले के महमूदपुर गांव में इतनी बड़ी संख्या में गिद्धों का दिखाई देना। डाइक्लोफेनिक दवा की मारक क्षमता को मात देकर गिद्ध अब फिर से इस आबोहवा में लौटने लगे हैं तो प्रकृति के इन ‘सफाईकर्मियों’ की वापसी के संकेत मिलने से प्रकृति प्रेमी खुश हैं। वहीं वन विभाग के अधिकारी भी इसे अच्छा संकेत मान रहे हैं। बताते चलें करीब बीस साल पहले घाघरा की तराई समेत अन्य इलाकों में हर जगह गिद्धों के बड़े झुंड अक्सर दिखाई देते थे। हर एक झुंड में 40-50 गिद्धों की मौजूदगी आम होती थी। 90 के दशक में यह सबसे ज्यादा आबादी वाला परभक्षी पक्षी भी था। लेकिन 1992 से 2005 के बीच इनकी संख्या 99 फीसदी तक घट गई। इसका मुख्य कारण पशुओं के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली डाइक्लोफेनिक दवाओं के इस्तेमाल को माना जा रहा है। इस दवा के इस्तेमाल के बाद मरने वाले पशु का मांस खाने से इनके गुर्दे फेल हो जाते थे। गिद्धों की कमी का असर सबसे अधिक पारसी समाज के एक अहम रिवाज पर भी पड़ा। पारसी समुदाय अपने मृतकों को प्रकृति को समर्पित करते हैं। इसके लिए वे मृत देह को ऊंचाई पर स्थित पारसी श्मशान में छोड़ देते हैं जहां गिद्ध उन्हें खा लेते थे। पर गिद्धों के न रहने पर उनकी यह परंपरा लगभग खत्म सी हो गई है। आंकड़े बताते हैं कि सफेद पीठ वाले गिद्ध की संख्या 43.9 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से गिर रही थी। गिद्धों के प्रजनन की दर बहुत धीमी होती है। वह एक बार में एक ही अंडा देते हैं जिसे लगभग 8 महीने सेना पड़ता है तब जाकर बच्चा अंडे से बाहर आता है।

Dakhal News

Dakhal News 14 March 2020


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भोपाल। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी, भोपाल ने जनसंपर्क एवं पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़ी महिलाओं को अचला और उदिता सम्मान से सम्मानित किया। सबधाणी कोचिंग संस्थान के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ पत्रकार अमृता राय ने कहा कि महिलाओं के हाथ में शासन हो तो दुनिया खूबसूरत हो सकती है।   अमृता राय ने कहा की जिस तरह आज की महिलाओं के हाथ में मोबाइल आ जाने से अभियक्ति की एक नयी आजादी उन्हें मिली है, उसी तरह उन्हें अगर शासन करने दिया जाये तो वे समाज को एक नयी दिशा दे सकती है। इसके लिए आवश्यक है की वे स्वयं के अधिकारों को स्थापित करे। इस दौरान उन्होंने आगे कहा की महिलाओं को अपने गौरवशाली इतिहास को मौजूदा वक्त और उज्जवल भविष्य के बारे में सोचना होगा। इस अवसर पर सचिव मध्यप्रदेश जनसंपर्क विभाग श्री पी.नरहरि ने कहा कि निर्णय जहाँ होने है महिलाओं को वहाँ पहुंचना है। श्री पी.नरहरि ने कहा कि आज के दौर में समाज में एक अच्छा बदलाव आया है। जिसमें महिलाओं को बेहतर भूमिका मिलनी शुरू हुई है। लेकिन पूर्ण समानता कब मिलेगी यह विचारणीय है। उन्होनें कहा कि जहाँ निर्णय लिए जाते हैं उस स्थान तक समाज के हर वर्ग की महिलाओं को पहुंचाना होगा तभी समानता की बात सार्थक होगी। वही वरिष्ठ पत्रकार श्री गिरजा शंकर ने कहा की महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने की जरुरत है जिसके लिए समाज की लुप्त हो रही सांस्कृतिक चेतना को जागृत करना होगा। फिल्म समीक्षक श्री अजित रॉय ने कहा की अपनी बात रखते हुए कहा की सत्य और न्याय के बीच द्वन्द होने पर न्याय पर ध्यान देना चाहिए द्यस्त्रियों के बारे में गंभीरता से बात करनी चाहिए कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ पत्रकार सुश्री स्वाति खंडेलवाल ने अपने विचार रखते हुए कहा की महिलाओं को अपनी राह खुद तलाशनी होगी और अपनी काबलियत से आगे बढ़ना होगा। महिलाओं को कई सारी भूमिकाएं निभानी होती हैं। जिस कारण उन्हें वर्क लाइफ बैलेंस में परेशानी होती है। महिलाओं को इससे उबरने के लिए मल्टीटास्किंग होने के साथ ही सकारात्मक होना होगा तभी सफलता प्राप्त होगी। मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक कुणाल चौधरी ने कहा कि महिलाएं समाज का आयना होती हैं। समाज को आगे ले जाने का कार्य इन्हीं का होता है। ईश्वर ने भी सृजन की शक्ति महिलाओ को ही सौंपी है। परन्तु पुरुष प्रधान समाज में उनकी स्थति तभी बेहतर होगी जब अपने अधिकारों को नारी जानेगी। वही वरिष्ठ पत्रकार एवं मेरी सहेली की डिजिटल एडिटर कमला बडोनी ने अपने विचार रखते हुए बताया की सार्थक प्रयास ये नहीं कि महिलाओं के समानता के अधिकार की केवल बात भर की जाये बल्कि उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना जरुरी है। उन्होंने बताया महिलाओं का एक वर्ग जो अधिकार से अनभिज्ञ है वहीँ दूसरा हमेशा पुरुषों की होड़ में लगा हुआ है। जिससे वे अपने स्त्री सुलभ गुण भूलने लगी हैं। जिस कारण उनमें मातृत्व सम्बन्धी परेशानी आती हैं जो समाज के लिए ठीक नहीं है। पब्लिक रिलेशन सोसाइटी भोपाल चैप्टर के अध्यक्ष पुष्पेंद्र पाल सिंह ने हाल ही में आई महिलाओं को लेकर रिपोर्ट ऑन स्टेटस ऑफ़ वीमेन इन मीडिया इन साउथ एशिया का जिक्र करते हुए बताया कि महिलाओं की डिशिजन मेकिंग पावर की स्थिति सही नहीं है, यह एक ग्लोबल ट्रेंड है। बांग्लादेश जैसे छोटे देश में भी वर्क लाइफ बैलेंस को लेकर पाठ्यक्रम हैं और भारत जैसे बड़े देशों में ऐसा कल्चर नहीं है। वही भारत में एक बात बेहतर है यहाँ महिलाओं को लेकर कानून अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा अच्छा है। इसलिए महिलाओं को सम्मान देने का हमारा प्रयास है क्योंकि यही अग्रणी महिलाएं समाज को सही दिशा प्रदान करेगी। सबधाणी कोचिंग के संचालक आनंद सबधाणी ने इस दौरान कहा कि समाज में जो अच्छा कार्य करे उसका सम्मान करना जरुरी है। घरेलू महिलाएं कामकाजी महिलाओं से भी ज्यादा सम्मानीय हैं क्यूंकि वे पूरे परिवार को एक सूत्र में पिरोती है। पब्लिक रिलेशंस सोसायटी भोपाल ने इस अवसर पर 2020 के अचला सम्मान से सुश्री श्रद्धा बोस, सुश्री आशा रोमन, डॉ. साधना गंगराडे, डॉ. अंजना तिवारी, डॉ. असमां रिजवान, डॉ. बबिता अग्रवाल, डॉ.राखी तिवारी, डॉ. आरती सारंग, सुश्री सुमन त्रिपाठी, सुश्री रंजना चितले, सुश्री रश्मि शुक्ला, सुश्री शीतल रॉय, सुश्री विभा शर्मा, सुश्री पल्लवी वाघेला, सुश्री गरिमा पटेल, सुश्री मुक्ता पाठक, सुश्री पूर्वा शर्मा त्रिवेदी, सुश्री शैफाली गुप्ता, सुश्री सीमा श्रीवास्तव, सुश्री आयुश्री सक्सेना, डॉ. जया सुरजानी सम्मानित किया तो उदिता सम्मान से सुश्री सोनी यादव, डॉ. अनु श्रीवास्तव, सुश्री राखी नंनदवानी, सुश्री उपमिता वाजपेयी, सुश्री सुधा कुमार, सुश्री अंजली राय, सुश्री ममता यादव, सुश्री आकांक्षा शर्मा, सुश्री दीक्षा मीना, सुश्री कीर्ति श्रीवास्तव, सुश्री दीपाली विर्क, सुश्री भूमिका विरथरे, सुश्री करिश्मा सचदेव, सुश्री अनादि तिवारी और सुश्री रश्क गौरी को सम्मानित किया गया।    

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Dakhal News 12 March 2020


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मां का निश्छल प्यार इतना अनमोल इसलिए है कि मां के गर्भ में भी बच्चा मां के प्यार को अनुभव कर सकता है, यही कारण है कि पैदा होने पर बच्चा सबसे ज्यादा अपनी मां से जुड़ा होता है और रोता हुआ शिशु भी मां की स्नेहिल गोद में आकर चुप हो जाता है। बड़ा होने पर बच्चा मां-बाप और भाई-बहनों, यानी, परिवार से सीखना शुरू करता है और जीवन को समझने की कोशिश करता है। कुछ और बड़ा होने पर बच्चा स्कूल जाता है और अपनी कक्षा में अध्यापकों से सीखता है। परिवार से मिले संस्कारों और सीख के बाद बच्चे की औपचारिक शिक्षा की शुरुआत यहां से होती है। हमारे देश में स्कूल-कालेज की शिक्षा अधिकतर किताबी होती है और शिक्षक सिर्फ शिक्षक है। हमारे देश में ज्यादातर अध्यापकों की अपनी शिक्षा भी किताबी है, स्कूल-कालेज-युनिवर्सिटी का पाठ्यक्रम भी किताबी है और विद्यार्थियों की ज्यादातर शिक्षा किताबों तक सीमित रहती है। यह जानना रुचिकर होगा कि सन् 1969 में शिक्षा जगत में एक प्रयोग किया गया जिसमें यह पता लगाया गया कि किन तरीकों से कितना सीखा जाता है। इस शोध के आधार पर एक ‘कोन आफ लर्निंग’ (सीखने का त्रिकोण) तैयार किया गया। इस शोध में यह बात सामने आई कि सीखने का सबसे कम प्रभावी तरीका पढऩा और लेक्चर सुनना है जबकि सबसे प्रभावी तरीका काम को सचमुच करके देखना है। अगला सबसे प्रभावी तरीका असली अनुभव की नकल (सिमुलेशन) करके सीखना है। इसके बावजूद क्या यह दिलचस्प नहीं है कि शिक्षा तंत्र इस प्रयोग के इतने वर्षों बाद भी मूलत: पढऩे और लेक्चर सुनने के पुराने तरीकों से ही सिखाता चला आ रहा है। इस शिक्षा पद्धति में व्यावहारिकता की तो कमी है ही, दूसरी कमी यह भी है कि अक्सर अगली कक्षा में जाने पर विद्यार्थी पिछली कक्षा का ज्ञान भूलता चलता है और जब वह शिक्षा समाप्त करके निकलता है तो अधिकांश ज्ञान को भूल चुका होता है। औपचारिक रूप से सिखाने वाले लोगों का दूसरा स्तर मार्गदर्शक का है। मार्गदर्शक वह व्यक्ति होता है जो स्वयं किसी व्यवसाय विशेष में पारंगत होता है और उस व्यवसाय में सक्रियता से जुड़ा होता है। मार्गदर्शक को उस व्यवसाय विशेष की लगभग हर छोटी-बड़ी बात की जानकारी होती है, तथा मार्गदर्शक को उस व्यवसाय की चुनौतियों और उनके संभावित समाधानों का भी पता होता है। अध्यापक और मार्गदर्शक में यही अंतर है। क्या आपने कभी सोचा है कि ज्यादातर वकीलों के बच्चे वकील, डाक्टरों के बच्चे डाक्टर और राजनीतिज्ञों के बच्चे राजनीतिज्ञ क्यों बनते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि एक वकील अपने पेशे की बारीकियों को समझता है और वह अपने बच्चे को उस व्यवसाय के सैद्धांतिक और व्यावहारिक, यानी, दोनों पक्षों का ज्ञान देता है। घर में वैसा ही वातावरण होता है क्योंकि उसी पेशे से जुड़ी बातों का जिक्र बार-बार होता रहता है। यह ज्ञान किताबी ज्ञान के मुकाबले में कहीं ज्य़ादा सार्थक, उपयोगी और प्रभावी होता है। इसीलिए जीवन में मार्गदर्शक का महत्व अध्यापक के महत्व से भी ज्यादा है। लेकिन हमें ज्ञान देने वालों में मार्गदर्शक से भी ज्यादा ऊँचा स्तर प्रायोजक का है। प्रायोजक की भूमिका को समझने के लिए हमें थोड़ा गहराई में जाना होगा। मार्गदर्शक से हमारा रिश्ता लगभग एकतरफा होता है। मार्गदर्शक हमें सिखाता है, समझाता है, हमारी गलतियों पर टिप्पणी करता है और हमें सही राह दिखाता है लेकिन हम उसे बदले में कुछ नहीं दे रहे होते। प्रायोजक की भूमिका इससे काफी अलग होती है। प्रायोजक वह होता है जो हमारे पेशेवर कैरिअर को आगे बढ़ाने के लिए सक्रिय भूमिका निभाता है, सिर्फ हमें हमारी गलतियां ही नहीं बताता बल्कि कंपनी के वरिष्ठ लोगों में हमारी छवि के बारे में भी जानकारी देता है और यदि उसमें कु छ सुधार आवश्यक है तो उसके रास्ते भी सुझाता है, आवश्यक होने पर हमारी सिफारिश करता है, हमारे संपर्क मजबूत करने में सहायक होता है। ऐसा व्यक्ति साधारणतया उसी कंपनी अथवा व्यवसाय में हमारा वरिष्ठ अधिकारी होता है जो हमें अपना समर्थन इसलिए देता है ताकि हम उसके विभाग अथवा कंपनी में उसके आंख-कान बन सकें। यहां एक बड़े फर्क को समझना आवश्यक है। अक्सर लोग मान लेते हैं कि किसी प्रायोजक की चमचागिरी करके आप सफलता की सीढिय़ां चढ़ सकते हैं। वह सफलता की एक राह अवश्य है पर यहां हम उन लोगों की बात नहीं कर रहे, उसके बजाए हम ऐसे लोगों की बात कर रहे हैं जो योग्य हैं, अपनी पूरी शक्ति से अपनी जिम्मेदारियां निभाने तथा कंपनी को आगे बढ़ाने का प्रयत्न ही नहीं करते बल्कि उसमें सफल होकर दिखाते हैं। यह भूमिका चमचागिरी से बिलकुल अलग है। यह ऐसी भूमिका है जहां दोनों पक्ष एक-दूसरे के काम आते हैं। वरिष्ठ अधिकारी अपने कनिष्ठ साथी को प्रबंधन तथा अन्य वरिष्ठ साथियों में उसकी छवि की जानकारी देता है, भविष्य में आने वाले अवसरों की पूर्व जानकारी देकर उसे उन अवसरों के लिए तैयारी करने की सुविधा देता है। कोई भी अधिकारी अकेला अपने विभाग के सारे लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकता, उसके लिए उसे अपने मातहतों के सहयोग की आवश्यकता होती है और एक ऐसा मातहत अधिकारी जो अपने वरिष्ठ अधिकारी की ताल में ताल मिलाकर काम कर सकता हो, उस वरिष्ठ अधिकारी के लिए उतना ही उपयोगी है जितना कि वह वरिष्ठ अधिकारी अपने मातहत के लिए। पेशेवर जीवन का यह एक अनुभूत सत्य है कि वे लोग जो किसी प्रायोजक के साथ जुडऩे की कला में माहिर होते हैं, सफलता की सीढिय़ां अक्सर ज्य़ादा तेज़ी से चढ़ते हैं। बहुत से ऐसे लोग जो योग्य तो हैं पर उन्हें किसी प्रायोजक का समर्थन हासिल नहीं है, योग्यता के बावजूद तेजी से उन्नति नहीं कर पाते।   यही कारण है कि आज के जमाने में नेटवर्किंग को इतनी महत्ता दी जाती है। नेटवर्किंग में सफल लोग ज्यादा आगे बढ़ते हैं, तेजी से आगे बढ़ते हैं और अक्सर ऐसे दूसरे लोगों को पीछे छोड़ देते हैं जो काबिल तो हैं पर नेटवर्किंग में माहिर नहीं हैं। लब्बोलुबाब यह कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। हम कितने ही काबिल हों और कितने ही ऊंचे पद पर हों, हमें दूसरों का साथ चाहिए, सहयोग चाहिए, समर्थन चाहिए, प्रायोजन चाहिए। ऐसा नहीं है कि इनके बिना हम सफल नहीं हो सकते लेकिन तब सफलता के शिखर छून में कदरन लंबा समय लग सकता है और यदि हम अपनी योग्यता का पूरा लाभ लेना चाहते हैं तो योग्यता बढ़ाने और काम में दक्ष होने के साथ-साथ हमें नेटवर्किंग में भी माहिर होना होगा और अध्यापक, मार्गदर्शक और प्रायोजक की अलग-अलग भूमिकाओं की बारीकियों को समझकर अपने रिश्ते विकसित करने होंगे, तभी हम सफल होंगे, ज्यादा सफल होंगे और जल्दी सफल होंगे।

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Dakhal News 12 March 2020


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  जनसम्पर्क मंत्री  पी.सी.शर्मा ने निजी अस्पताल में भर्ती पत्रकार सुनील तिवारी के स्वास्थ्य की जानकारी ली।  शर्मा ने तिवारी की पत्नी श्रीमती प्रेमलता और परिजनों से कहा कि इलाज में हर संभव मदद करेंगे। उन्होने चिकित्सकों से तिवारी के इलाज के संबध में चर्चा की और उचित उपचार और देखभाल के लिए कहा।

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Dakhal News 6 March 2020


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  मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने निवास पर आज यहां विश्व वन्यजीव दिवस के अवसर पर कार्टूनिस्ट  हरिओम तिवारी की बाघों को समर्पित कार्टून कला की किताब "टाइगर स्पीक" का विमोचन किया। इस अवसर पर श्री हरिओम ने टाइगर स्टेट विषय पर बनाया कार्टून चित्र मुख्यमंत्री को भेंट किया।    बाघों के जीवन और उनके पर्यावरण को समर्पित कार्टून किताब में संकटग्रस्त बाघ के प्रति मानवीय  संवेदना जगाने के लिए कार्टून कला का रचनात्मक उपयोग करने की पहल की गई है। बाघ को मानव समाज के भद्र पुरूष के रूप में देखते हुए उसकी वेदना को कार्टून कला के माध्यम से अभिव्यक्त  किया गया है। कार्टूनों में बाघ हंसाता भी है और गंभीर बातें भी करता है।   मुख्यमंत्री नाथ ने कार्टूनिस्ट हरिओम के टाइगर के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के प्रयास की सराहना की।    इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार सोमदत्त शास्त्री, मंजूल प्रकाशन के संपादक कपिल सिंह और डॉ. राखी तिवारी उपस्थित थी।  

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Dakhal News 4 March 2020


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  लड़खड़ाती सरकार में एक और मंत्री का ट्विस्ट    खनिज मंत्री प्रदीप जायसवाल बोले , जिसकी सरकार उसको समर्थन भाजपा को अपनी शर्तों के साथ समर्थन दे सकता हूँ | खनिज मंत्री प्रदीप जायसवाल के इस बयान ने प्रदेश की राजनीति में फिर अटकलों का बाजार गर्म कर दिया हैं | एक तरफ भाजपा पर  हार्स ट्रेडिंग को लेकर आरोप लग रहे हैं | वहीं खनिज मंत्री जायसवाल का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार गिरने पर अपनी शर्तों के साथ भाजपा को समर्थन दे सकते हैं।  अपने गृह नगर वारासिवनी पहुंचे प्रदेश के खनिज संसाधन मंत्री प्रदीप जायसवाल ने मीडिया से चर्चा करते हुए एक बड़ा बयान जारी कर आने वाले समय में जिसकी भी सरकार रहे अपनी इच्छा साफ जाहिर कर दी हैं | उन्होंने कहा कि अगर कमलनाथ की सरकार गिरती है और भाजपा सरकार बनाती हैं  |  तो वो जिले व क्षेत्र के विकास के लिए अपनी जनता व समर्थकों की सलाह पर भाजपा सरकार को बाहर से समर्थन दे सकते हैं। जिले व क्षेत्र के विकास के लिए हमारा विकल्प हमेशा खुला रहेगा। दूसरी तरफ उन्होंने अभी वर्तमान में कमलनाथ सरकार के गिरने की आशंकाओं को ही गलत साबित करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि भाजपा की आदत में शुमार है | कि वह हार्स ट्रेडिंग के माध्यम से विधायकों की खरीद फरोख्त करती है और जहां बहुमत नहीं होता है |  वहां पर जोड़-तोड़ की राजनीति कर सरकारें बनाने का प्रयास करती है।इसके पूर्व भी भाजपा ने कर्नाटक, आसाम, महाराष्ट्र, गोवा, हरियाणा आदि प्रदेशों में जोड़-तोड़ के माध्यम से सरकारें बनाई है। वहीं महाराष्ट्र में तो उसे मुंह की भी खानी पड़ी। उन्होंने कहा कि प्रदेश में चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए उन्हें भी भाजपा के बड़े नेताओं के फोन आए थे। उनके द्वारा बड़े-बड़े प्रलोभन दिए गए थे, किंतु उन्होंने क्षेत्र व जिले के विकास को दृष्टिगत रखते हुए कमलनाथ को समर्थन देकर सरकार बनाने में सहयोग किया था। मंत्री प्रदीप जायसवाल ने एक सवाल के जवाब में स्पष्ट रुप से कहा कि उन्हें क्षेत्र की जनता ने निर्दलीय रूप में चुनकर प्रदेश की विधानसभा में भेजा है। क्षेत्र की जनता को उनसे बहुत सी अपेक्षाएं है कि वह क्षेत्र का विकास करेंगे। वर्तमान समय में प्रदेश सरकार में खनिज मंत्री के पद पर रहते हुए वह क्षेत्र व जिले में विकास की गति को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे है। अगर कमलनाथ सरकार किन्हीं कारणों से गिरती है और भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में आती है। यदि भाजपा की ओर से उनसे सहयोग मांगा जाता है |  तो वह अपने क्षेत्र की जनता की आशाओं व जिले के विकास को देखते हुए अपनी शर्तों पर भाजपा को बाहर से समर्थन देने का उनका विकल्प हमेशा खुला रहेगा।

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Dakhal News 4 March 2020


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भोपाल। पीटीआई भोपाल के पूर्व ब्यूरो प्रमुख और वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा का गुरुवार सुबह निधन हो गया। 66 वर्षीय अरविंद शर्मा लंबे समय से बीमार चल रहे थे और भोपाल के नर्मदा हॉस्पिटल में उनका ईलाज चल रहा था। जहां उन्होंने गुरुवार सुबह अंतिम सांस ली। वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा नि:संतान थे और उनके परिवार में पत्नी का पहले ही देहांत हो चुका है। मप्र भाजपा नेताओं ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि दी है।    पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा के निधन पर दुख जताते हुए लिखा ‘वरिष्ठ पत्रकार, पीटीआई भोपाल के पूर्व ब्यूरो चीफ, मृदुभाषी, अरविंद शर्मा जी के निधन का दुखद समाचार मिला। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान और परिजनों को यह गहन दु:ख सहन करने की शक्ति प्रदान करें। ॐ शांति!   नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने ट्वीट पर अपने शोक संदेश में लिखा ‘वरिष्ठ पत्रकार श्री अरविंद शर्मा जी के निधन का समाचार मिला। श्री शर्मा जी के निधन पर शोक व्यक्त करता हूँ। ईश्वर दिवंगत की आत्मा को अपने श्रीचरणो में स्थान दें और शोक संतृप्त परिवार पर जो वज्रपात हुआ है उसे सहन करने की शक्ति प्रदान करे। ॐ शांति’।    भाजपा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने अरविंद शर्मा के निधन को अपूरणीय क्षति बताते हुए श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा ‘सादर श्रद्धांजलि !!!  वरिष्ठ पत्रकार और पीटीआई से जुड़े श्री अरविंद शर्मा जी का निधन पत्रकारिता के लिए अपूरणीय क्षति है। ख़बरों की दुनिया में उनका नाम हमेशा याद किया जाएगा। ईश्वर उनकी आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दे। ॐ शांति !

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Dakhal News 27 February 2020


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नई दिल्ली । चर्चित लेखिका वंदना राग के नए उपन्यास ‘बिसात पर जुगनू’ का लोकार्पण शुक्रवार की शाम इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुआ। पूर्व एमएलए संदीप दिक्षित, पंकज राग, मंगलेश डबराल, विनोद भारद्वाज, अपूर्वानंद के साथ साहित्य, राजनीति, मीडिया और कला जगत के चर्चित चेहरे ने कार्यक्रम में शामिल हुए। लोकार्पण के बाद लेखिका वंदना राग से, आलोचक संजीव कुमार और लेखक ब्लॉगर प्रभात रंजन ने बातचीत की। बिसात पर जुगनू, उपन्यास की कहानी हिन्दुस्तान की पहली जंगे-आज़ादी के लगभग डेढ़ दशक पहले के पटना से शुरू होकर, 2001 की दिल्ली में ख़त्म होती है। उपन्यास, भारत और चीन, इन दो देशों से जुड़ी कहानी साथ-साथ लेकर चलती है जिसके इर्द-गिर्द आज पूरी दुनिया का अर्थतन्त्र, राजनीति, युद्ध की आशंकाएं और कृत्रिम बीमारियां; सब कुछ छितराया हुआ है। किताब पर बातचीत करते हुए वंदना राग ने कहा, “इस किताब के लिए मैंने चीन की लंबी यात्राएं कीं और जाना की दोनों ही देशों के आम लोगों का संघर्ष एक जैसा है। इतिहास में ऐसी कई महिलाएं गुमनामी में रहीं जिन्होंने स्वतंत्रा संघर्ष में योगदान दिया। यह उपन्यास इन महिलाओं की भी कहानी है।“ आलोचक संजीव ने भी वंदना की बात से सहमति जताते हुए कहा कि, “यहाँ फ़िरंगियों के अत्याचार से लड़ते दोनों मुल्कों के दुःखों की दास्तान एक-सी है और दोनों ज़मीनों पर संघर्ष में कूद पड़नेवाली स्त्रियों की गुमनामी भी एक-सी है। ऐसी कई गुमनाम स्त्रियाँ इस उपन्यास का मेरुदंड हैं।“ कथाकार प्रभात रंजन ने अपनी बात रखते हुए कहा, “बहुत दिनों बार एक बड़े कैनवास का ऐतिहासिक उपन्यास है बिसात पर जुगनू।“ उन्होंने यह भी कहा, “19 वीं शताब्दी के इतिहास के द्वंद्व, भारत-चीन व्यापार, कम्पनी का राज, जन जागरण, विद्रोह। पटना कलम के कलाकारों का बिखराव। इस उपन्यास में इतिहास, कला के बहुत से सवाल आते हैं और बेचैन कर देते हैं। बहुत से किरदार डराते भी हैं, मन के भीतर रह जाते हैं।“ किताब के लोकार्पण पर राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, “इस उपन्यास को पढ़ते हुए हम कुछ तो इस बारे में सोचने के लिए विवश होंगे। किताब भाषा की बात करती है। चीन में आज भी बहुत कम लोग अंग्रेज़ी समझने वाले हैं। वे अपना सारा काम अपनी भाषा में करते हैं, विज्ञान की खोजें भी, यहां तक कि कम्प्यूटर पर काम भी। उन्होंने अपने बच्चों पर एक अतिरिक्त गैरजरूरी बोझ नहीं डाला। मुझे लगता है चीन, जापान आदि देशों के विकसित होने का बड़ा कारण अपनी भाषा में सोचना और काम करना है।“ उपन्यास बिसात पर जुगनू के बारे में बिसात पर जुगनू सदियों और सरहदों के आर-पार की कहानी है। हिन्दुस्तान की पहली जंगे-आज़ादी के लगभग डेढ़ दशक पहले के पटना से शुरू होकर यह 2001 की दिल्ली में ख़त्म होती है। बीच में उत्तर बिहार की एक छोटी रियासत से लेकर कलकत्ता और चीन के केंटन प्रान्त तक का विस्तार समाया हुआ है। यहाँ 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की त्रासदी है तो पहले और दूसरे अफ़ीम युद्ध के बाद के चीनी जनजीवन का कठिन संघर्ष भी।   वन्‍दना रागवन्‍दना राग मूलतः बिहार के सिवान ज़िले से हैं। जन्म इन्दौर मध्य प्रदेश में हुआ और पिता की स्थानान्तरण वाली नौकरी की वजह से भारत के विभिन्न शहरों में स्कूली शिक्षा पाई। 1990 में दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. किया। पहली कहानी हंस में 1999 में छपी और फिर निरन्तर लिखने और छपने का सिलसिला चल पड़ा। तब से कहानियों की चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं—यूटोपिया, हिजरत से पहले, ख्‍़यालनामा और मैं और मेरी कहानियाँ।

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Dakhal News 25 February 2020


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Alok Kumar : डोनाल्ड ट्रम्प की यात्रा के चकाचौंध से चौंधियाए भाई लोग इसे आखिरी मान कर आलोचना में तमाम ऊर्जा को उड़ेल मत देना.आलोचना – प्रत्यालोचना को बचाए रखना क्योंकि हाल फिलहाल ही अंदरूनी सियासत में इससे बड़ा घटने वाला है. इससे भी बड़े मौके आने वाले हैं. मौके की तैयारी मुक़म्मल हो रही है. खबर है कि इधर ट्रम्प लौटकर अमेरिका पहुंचे नहीं होंगे और घरेलू सियासी तुरुप के पत्ते तेज़ी से फेंटे जायेंगे. हौले हौले से राज्यों की सियासत के करवट बदलने का सिलसिला तेज हो जाएगा. बारी बारी से एक -दो नहीं बल्कि एक साथ कई राज्यों को बड़े सियासी बबंडर से गुजारा जाएगा. इसके मंचन की पूरी तैयारी है. यह संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिहाज से खास होगा. क्योंकि सहज़ शासन के लिए राज्यसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या को बढ़ाना सरकार की प्राथमिकता में शामिल है. तैयारी के हिसाब से संभव है कि सियासी नाटक इतना ज्यादा बड़ा हो कि उसकी तुलना में गोवा और कर्नाटक की कहानी लघु और पुरानी पड़ जाए. ओड़िशा और आंध्रप्रदेश में भाजपा अपने हिस्से से ज्यादा राज्यसभा सीट लेगी इसके लिए नवीन पटनायक और जगन मोहन रेड्डी तैयार हैं. सियासी नाटक के असली मंचन की जरुरत महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में है. इसे लेकर दांतों तले अंगुली दबाने वाली कोई बात हो जाए तो चौंकने से संकुचाईयेगा मत. दृश्य एक की तैयारी के मुताबिक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बड़ा गुल खिलाने वाले हैं.वह भाई राज की सक्रियता से सहमे हुए हैं. दबाव में सौदे की मेज पर आ बैठे हैं.बेटे आदित्य ठाकरे का भविष्य सुरक्षित होने की ताकीद के साथ ही वह किसी भी घड़ी दिल्ली के मेगा शो में भरत मिलाप का दृश्य फिल्माने वाले हैं. ट्रम्प की विदाई के बाद उद्धव की अयोध्या में मत्था टेकने की योजना है. संजय ने इसे बयां कर दिया है.7 मार्च को तय इस अभियान से वह सुर्खियों में छाने वाले है. सियासी तड़का लगाने वाले लोग काम पर लगे हैं. तलवार सिर पर लटकाया गया है, उद्धव वापसी के रास्ते पर नहीं आए तो राज ठाकरे को भगवान राम का बड़ा भक्त साबित करने की तैयारी होगी. दृश्य दो – मध्य प्रदेश में कुम्हलाए कमल का नया कर्णधार तय हो रहा है. नए गुल से राजमाता सिंधिया की संतति को प्रत्यक्ष लाभ मिलने की संभावना दिन ब दिन मजबूत हो रही है.अंजाम के बदले में भाजपा को मध्य प्रदेश से ज्यादा राज्यसभा सीट मिल जाय. मार्च में राज्यसभा चुनाव से पहले ही सब तय होना है. दृश्य तीन – झारखण्ड के नव निर्वाचित मुख्यमंत्री पर निशाना है. राज्यसभा की महज़ एक-दो ज्यादा सीट लेने के लिए झारखण्ड में बड़ा उलट फेर होने की संभावना है. संभव है कि वहां गठबंधन ही बदल जाए. मुख्यमंत्री तो हेमंत बने रहें लेकिन 2015 में रघुवर दास के मुख्यमंत्री बनने से पहले की स्थिति फिर से बहाल हो जाए. दृश्य चार – यह ज्यादा हंगामेदार होगा. कोलकाता से एक सीट भाजपा को मिल जाए, इसका इंतजाम जारी है. सफल हुआ तो संभव है, वो नज़र आए जिसे असली सियासत कहते हैं. बिहार में नीतीश के पुचकार के पीछे फिलहाल राज्यसभा चुनाव को ही पढ़िए.   दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार आलोक कुमार की एफबी वॉल से.

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Dakhal News 25 February 2020


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अखिलेश यादव कह रहे हैं कि वह सोशल मीडिया पर गाली देने वालों को लाइक कर रहे हैं। उनकी सूची बना रहे हैं। ब्याज सहित जवाब दिया जाएगा। अखिलेश या कोई भी वंचितों का नेता जब भी सत्ता में रहा है तो यह लोग बुनियादी गलतियां करते रहे हैं। इन लोगों ने कभी अपनी वैचारिक टीम नहीं बनाई। ऐसी कोई टीम नहीं है जो समाजवाद या उनके 1950 के बाद संसोपा से समाजवादी पार्टी की हिस्ट्री या उनके नेताओं के त्याग व बलिदान के बारे में लिखे। यहां तक कि इन लोगों ने यूनिवर्सिटी कॉलेज में ऐसे टीचरों की नियुक्ति नहीं की, जिन्होंने समाजवाद या समाजवादी नेताओं पर पीएचडी करवाई हो। इन्होंने पत्रकारों की ऐसी पीढ़ी नहीं तैयार की जिसे समाजवादी कहा जाए। कांग्रेसी, संघी, कम्युनिस्ट ढेरों मिल जाएंगे। इन्होंने अपना मीडिया हाउस, प्रिंट हाउस, बिजनेस खड़ा करने की कवायद नहीं की। इन्होंने अपनी विचारधारा के लोगों की पेशेवरों की टीम नहीं तैयार की। इस तरह की तमाम गलतियां हुई हैं। इसकी वजह से आज गर्त में हैं। कोई इनके फेवर में तार्किक तरीके से बोलने वाला नहीं है। इनके समर्थक भी पार्टी के संघर्षों को नही जानते। यह नहीं जानते कि समाजवादी आन्दोलन ने कितने आम नागरिकों के हाथों सत्ता की चाबी दी। इतने संकट के दौर में भी सपा, बसपा, राजद, जदयू जैसे दल ऐसी कोई कवायद नहीं कर रहे हैं। इसका खामियाजा जनता भुगत रही है।

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Dakhal News 23 February 2020


tikamgarh,   not be able, withdraw money,ATM, without OTP

टीकमगढ़। बैंक में रखे रुपये की सुरक्षा को लेकर फिक्रमंद रहने वाले स्टेट बैंक के खाताधरकों के लिए एक अच्छी खबर है। बैंक प्रबंधन ने उनकी कमाई की सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने एक नया सिस्टम लागू किया है। इस व्यवस्था के तहत अगर आपको रात के वक्त एटीएम का इस्तेमाल कर बड़ी रकम निकालनी हो, तो मोबाइल लेकर जाना होगा। एसबीआई अधिकारियों के अनुसार 10 हजार से अधिक रुपये निकालने की प्रक्रिया में ओटीपी जनरेट करना होगा। जिसे फीड करने के बाद ही मांगी गई। रकम एटीएम से निकल सकेगी। यह व्यवस्था केवल एसबीआई के खाता धारकों के लिए ही लागू की गई है। जिसमें जनरेट होने वाले ओटीपी को अन्य बैंकों के एटीएम में इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। यानी यह सिस्टम केवल एसबीआई के एटीएम में ही प्रयोग हो सकेंगे।पंजीकृत मोबाइल नंबरों से पहले सत्यता की जांच होगीसहायक जनसम्पर्क अधिकारी शैफाली तिवारी ने शनिवार को इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि रात को आठ बजे से सुबह आठ बजे के बीच इस व्यवस्था के तहत एटीएम से रकम निकासी को जाने वाले इन खाताधारकों के बैंक में पंजीकृत अधिकृत मोबाइल नंबरों के माध्यम से सत्यता की जांच की जाएगी। इस जांच प्रक्रिया के लिए ओटीपी जनरेट कर मोबाइल नंबर पर भेजा जाएगा, तभी रकम आहरित होगी। बिना ओटीपी के रात के वक्त कोई भी खाताधारक दस हजार के अधिक रकम नहीं निकाल सकेंगे। इस तरह खाताधारकों की रकम उड़ाने की फिराक में रहने वाले जालसाजों पर लगाम लगेगी।यह व्यवस्था सिर्फ एसबीआई के ग्राहकों के लिए ही लागूउन्होंने बताया कि यह व्यवस्था एसबीआई के ग्राहकों के लिए लागू की गई है। एटीएक क्लोनिंग को रोकने के लिए व रकम की सुरक्षा को लेकर इसे लागू किया गया है। रात आठ से सुबह आठ बजे के बीच ओटीपी नहीं निकाली जा सकेंगी। इसके लिए ग्राहक को मोबाइल साथ लेकर जाना होगा। इससे उपभोक्ता की राशि सुरक्षित रहेगी।हेराफेरी-क्लोन के फ्रॉड रोकने के लिए की तैयारीबैंक अधिकारियों का कहना है कि भारतीय स्टेट बैंक की ओर से ओटीपी आधारित यह नई व्यवस्था उन मामलों को रोकने के लिए है। जिनमें डेबिट कार्ड में हेराफेरी या क्लोन के जरिए एटीएम फ्रॉड कर लोगों की गाढ़ी कमाई उड़ाने की कोशिश की जाती है। एटीएम फ्रॉड की इन घटनाओं से सबक लेते हुए स्टेट बैंक ने अपने ग्राहकों की रकम की सुरक्षा करने यह नया इंतजाम किया है। इस व्यवस्था के तहत अगर आपको रात आठ बजे के बाद एटीएम से दस हजार रुपये की राशि निकालनी हो, तो अपना मोबाइल फोन साथ रखना होगा। अगर दस हजार रुपये से अधिक रकम आहरण करना हो, तो बैंक में अधिकृत किए गए खाताधारक के अधिकृत मोबाइल नंबर पर ओटीपी भेजा जाएगा।दूसरे बैंक के लिए यह नियम लागू नहींइस व्यवस्था के तहत अगर खाताधारक अपने एसबीआई डेबिट कार्ड का इस्तेमाल किसी दूसरे बैंक के एटीएम पर करते हैं तो वहां ओटीपी की जरूरत नहीं होगी। इसी तरह दूसरे बैंक के खाताधारक भी एसबीआई के एटीएम मशीन पर अपना डेबिट कार्ड इस्तेमाल करता है, तो भी ओटीपी जनरेट करने की जरूरत नहीं है।

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Dakhal News 22 February 2020


bhopal, The reality of Shiva\

21 फरवरी शिवरात्रि पर्व पर विशेष   प्रमोद भार्गव   पुराणों में शिव की कल्पना ऐसे विशिष्ट व्यक्ति के रूप में की गई है, जिनका आधा शरीर स्त्री तथा आधा पुरुष का है। शिव का यह स्त्री व पुरुष मिश्रित शरीर अर्धनारीश्वर के नाम से जाना जाता है। शिव पुराण के अनुसार शिव को इस रूप-विधान में परम पुरुष ब्रह्मात्मक मानकर, ब्रह्म से भिन्न उसकी शक्ति माया को स्त्री के आधे रूप में चित्रित किया गया है। शिव का रूप अग्नि एवं सोम अर्थात सूर्य एवं चंद्रमा के सम्मिलन का भी स्वरूप है। यानी पुरूष का अर्धांश सूर्य और स्त्री का अर्धांश चंद्रमा के प्रतीक हैं। यह भी पुराण सम्मत मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन शिव और शक्तिरूपा पर्वती हुए थे। कथा में यह भी है कि इसी दिन शिव अत्यंत क्रोधित हुए और संपूर्ण ब्रह्माण्ड के विनाश के लिए तांडव नृत्य करने लगे। शिव स्वयं मानते हैं कि स्त्री-पुरूष समेत प्रत्येक प्राणी की ब्रह्माण्ड में स्वतंत्र सत्ता स्थापित है। इसे ही वैयक्तिक रूप में ब्रह्मात्मक या आत्मपरक माना गया है।   अर्धनारीश्वर के संदर्भ में जो प्रमुख कथा प्रचलन में है, वह है जब ब्रह्मा ने सृष्टि के विधान को आगे बढ़ाने की बात सोची और इसे साकार करना चाहा तो उन्हें इसे अकेले पुरुष रूप में आगे बढ़ाना संभव नहीं लगा। तब उन्होंने शिव को बुलाकर अपना मंतव्य प्रगट किया। शिव ने ब्रह्मा के मूल भाव को समझते हुए उन्हें अर्धनारीश्वर में दर्शन दिए। अर्थात् स्त्री और पुरुष के सम्मिलन या सहवास से सृष्टि के विकास की परिकल्पना दी। इस सूत्र के हाथ लगने के बाद ही ब्रह्मा सृष्टि के क्रम को निरंतर गतिशील रखने का विधान रच पाए। सच्चाई भी यही है कि स्त्री व पुरुष का समन्वय ही सृष्टि का वास्तविक विधान है इसीलिए स्त्री को प्रकृति का प्रतीक भी माना गया है। अर्थात प्रकृति में जिस तरह से सृजन का क्रम जारी रहता है, मनुष्य-योनी में उसी सृजन प्रक्रिया को स्त्री गतिशील बनाए हुए है। अर्धनारीश्वर यानी आधे-आधे रूपों में स्त्री और पुरुष की देहों का आत्मसात हो जाना, शिव-गौरी का वह महा-सम्मिलन है, जो सृष्टि के बीज को स्त्री की कोख अर्थात प्रकृति की उर्वरा भूमि में रोपता है। सृष्टि का यह विकास क्रम अनवरत चलता रहे इसीलिए सृष्टि के निर्माताओं ने इसमें आनंद की उत्तेजक सुखानुभूति भी जोड़ दी।   सृष्टि के इस आदिभूत मातृत्व व पितृत्व को पुराणों की प्रतीकात्मक भाषा में पर्वती-परमेश्वर या शिव-पर्वती कहा गया है। अर्थात शिव-शक्ति के साथ संयुक्त होकर अर्धनारीश्वर बन जाते हैं। इसलिए शिव से कहलाया गया है कि शक्ति यानी स्त्री को स्वीकार किए बिना पुरुष अपूर्ण है। उसे शिव की प्राप्ति नहीं हो सकती। स्त्री के सहयोग के बिना कोई कल्पना फलित नहीं हो सकती। इसीलिए पुरुषरूपी शिव और प्रकृति रूपी स्त्री जब अर्धनारीश्वर के रूप में एकाकार होते हैं तो सभी भेद और विकार स्वतः समाप्त हो जाते हैं। अर्थात जब पति-पत्नी के रूप में स्त्री-पुरूष एक-दूसरे को आंतरिक रूप से तृप्त करते हैं तभी अर्धनारीश्वर स्वरूप सार्थक होता है। अर्धनारीश्वर की तरह एकाकार हुए बिना हम अपने जीवन अर्थात काल को आनंद या सुख की अनंत अनुभूति के साथ जी नहीं सकते। मनुष्य जीवन में सुख अनंतकाल तक बना रहे, इस हेतु स्त्री-पुरूष का एकालाप भी युग-युगांतरों में बने रहना जरूरी है।   शिवलिंग का रहस्य जाने बिना, शिव-महिमा का बखान अधूरा है। इसलिए लिंग के प्रकृति से जुड़े महत्व और इसकी पूजा के कारण भी जानना जरूरी है। वैसे आम प्रचलन में यही मान्यता है कि शिव और शक्ति दोनों का संयोगात्मक प्रतीक ही शिवलिंग है और यही इनकी माया है। क्योंकि सामान्यतः पुरूष और स्त्री के गुप्तंगों का आभास देने वाले शिवलिंग की प्रतीक मूर्तियों से साधारण अर्थ यही निकलता है। लेकिन ‘स्कंदपुराण‘ में इसका अर्थ प्रकृति की चेतना से संबंधित है, अर्थात आकाश लिंग है और पृथ्वी उसकी पीठिका है। यह आकाश इसलिए लिंग कहलाता है क्योंकि इसी में समस्त देवताओं का निवास है और इसी में वे गतिशील रहते हैं। आकाश को पुराणकारों ने इसलिए भी लिंग माना है क्योंकि इसका स्वरूप शिवलिंग जैसा अर्ध-वृत्ताकार है। दूसरे वह पृथ्वी रूपी पीठिका पर स्थित या अधिरोपित होने जैसा दिखाई देता है।   प्रकृतिमय इसी लिंग के आकार का वर्णन लिंग पुराण में है। इसके अनुसार सभी लोकों का स्वरूप लिंग के आकार का है। इसी लिंग में ब्रह्मा समेत सभी चर-अचर जीव, बीज स्वरूप लघु रूपों में प्रतिष्ठित हैं। सांख्य दर्शन भी लिंग और योनि को प्रकृति के रूपों में देखता है। इसमें व्यक्त प्रकृति के लिए लिंग शब्द का उपयोग किया गया है, जबकि अव्यक्त प्रकृति के लिए अलिंग शब्द का। अलिंग अर्थात जो लिंग नहीं है, यानी इसका आशय योनि से है। अर्थात शिवलिंग के रूप में जिस मूर्ति की पूजा की जाती है, वह लौकिक स्त्री-पुरूष के जननांग नहीं वरन् विश्व जननी व्यक्त एवं अव्यक्त प्रकृति की मूर्तिस्वरूपा प्रतिमा है। शिवपुराण में शिवलिंग को चैतन्यमय और लिंगपीठ को अंबामय बताया गया है। किंतु लिंग पुराण में लिंग को शिव और उसके आधार को शिव-पत्नी बताया गया है। यहीं से यह मान्यता लोक प्रचलन में आई कि शिव-लिंग उमा-महेश के प्रतीक स्वरूप हैं।   इस प्रसंग में शिव के वाहन नंदी यानी वृषभ का वर्णन जरूरी है। नंदी शिव के वाहन के रूप में इसलिए उपयुक्त हैं क्योंकि वृषभ लोकव्यापी प्राणी होने के साथ खेती-किसानी का भी प्रमुख आधार है। यानी खेती का यांत्रिकीकरण होने से पहले बिना बैल के खेती संभव ही नहीं थी। फिर शिव ने लोक-कल्याण की दृष्टि से सर्वहारा वर्ग के ज्यादा हित साधे हैं, उन्हीं के बीच उन्होंने अधिकतम समय बिताया है। इसलिए ऐसे उदार नायक का वाहन बैल ही सर्वोचित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने प्रकृति के रहस्यों की गवेषणा की आरंभिक अवस्था में ही समझ लिया था कि प्रकृति के अन्य जीव-जगत के साथ ही मनुष्य का सह-अस्तित्व संभव व सुरक्षित है। इसी कारण सभ्यता और संस्कृति का विकास क्रम जैसे-जैसे आगे बढ़ा, वैसे-वैसे अलौकिक शक्तियों में प्रकृति के रूपों को प्रक्षेपित करने के साथ, पशु-पक्षियों को भी देवत्व से जोड़ते गए। नंदी को विरक्ति का द्योतक माना जाता है इसलिए साधनारत शिव के लिए नंदी शक्ति के भी प्रतीक हैं।   पुराणों में वृषभ को धर्म-रूप में प्रस्तुत किया गया है। इनके चार पैरों को सत्य, ज्ञान, तप तथा दान का प्रतीक माना गया है। शिवलिंग की उत्पत्ति को विद्युत तरंगों से भी होना मानते हैं। इसके आकार को ब्रह्माण्ड का रूप माना गया है। इस कारण शिव को विद्युताग्नि और नंदी को बादलों का प्रतीक माना गया है। बादल के प्रतीक होने के कारण ही शिव के नंदी शुभ्र-श्वेत हैं। शिवलिंग के रूप में योनि और लिंग प्रजनन के शक्ति के प्रतीक भी हैं, इसलिए वृषभ को काम का प्रतीक भी माना गया है। इसे काम का प्रतीक इसलिए भी माना गया है, क्योंकि इसमें काम शक्ति प्रचुर मात्रा में होती है। इस नाते वृषभ, सृजन शक्ति का प्रतीक है। शिव को नंदी पर आरूढ़ भी दिखाया गया है। इसका आशय है, एक शिव ही हैं, जो कामियों की वासनाओं को नियंत्रित करने या उनपर विजय प्राप्त करने में सक्षम हैं। स्पष्ट है, काम के रूप में वृषभ का प्रतीक शिव को विश्व की सृष्टि के लिए अभिप्रेरणा का द्योतक भी है।   (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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Dakhal News 20 February 2020


jabalpur,  Film city, tourism department , invite  producer-directors

जबलपुर।  मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में फिल्म बनाए जाने का क्रेज लम्बे समय से देखने को मिल रहा है, लेकिन अब राज्य की संस्कारधानी के नाम से मशहूर महाकौशल क्षेत्र के जबलपुर शहर को भी फिल्म सिटी बनाने को जोर दिया जा रहा है। इसको लेकर पर्यटन विभाग ने अपनी तैयारी भी शुरू कर दी है। पर्यटन विभाग जबलपुर में करीब छह लाख रुपये खर्च कर एक कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है, जिसके लिए जाने माने निर्माता-निर्देशकों को जबलपुर आने का न्योता दिया है। इधर, भाजपा ने पर्यटन विभाग के इस कार्यक्रम पर सवाल उठाने शुरू कर दिये हैं। टूरिज्म एवं प्रमोशन कौंसिल के सीईओ हेमंत कुमार ने शुक्रवार को बताया कि एक अच्छी फिल्म के लिए जो लोकेशन होना चाहिए, वह सब कुछ जबलपुर में है और यही वजह है कि फि़ल्म इंडस्ट्री के कई निर्माता-निर्देशकों को जबलपुर जिला फिल्म बनाने के लिए पसन्द आ रहा है। मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग ने करीब 26 निर्माता-निर्देशकों को जबलपुर बुलाया है, जो कि यहां आकर अपनी फिल्म के लिए लोकेशन देखेंगे और कोशिश करेंगे कि वह जबलपुर में अपनी फिल्मों को तैयार करे।पर्यटन विभाग का मानना है कि जबलपुर में फिल्म सिटी बनने से यहां के लोगो को न सिर्फ रोजगार मिलेगा, बल्कि जबलपुर जिले का नाम देश मे होगा। पर्यटन विभाग करीब छह लाख रुपये इस कार्यक्रम को लेकर खर्च कर रहा है, लेकिन इस छह लाख में से पांच लाख रुपये निर्माता-निर्देशको के आने जाने पर ही खर्च हो जाएगा। इसके लोकर भाजपा ने सवाल उठाए हैं। पर्यटन विभाग के इस कार्यक्रम में भाजपा ने आपत्ति जताते हुए कहा है कि यह कार्यक्रम जबलपुर के लिए नहीं, बल्कि अधिकारी अपने बच्चों और परिजनों के प्रमोशन के लिए ये सब कर रहे हैं, क्योकि फिल्म निर्माता-निर्देशक अगर जबलपुर आएंगे तो उनसे मिलने के लिए अधिकारियों के परिवार वाले ही सबसे आगे रहते हैं।

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Dakhal News 14 February 2020


dhaar, Video ,in-charge of police station ,caught celebrating girl\

धार। पत्नी के होते हुए अन्य युवती के साथ रंगरेलियां मनाते पकड़ाए गंधवानी टीआई नरेंद्रसिंह सूर्यवंशी को पुलिस अधीक्षक ने निलंबित कर दिया है। एस.पी. ने पहले टी.आई. सूर्यवंशी को लाइन हाजिर किया था, वहीं बुधवार को एस.डी.ओ.पी. की रिपोर्ट मिलने के बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया। इस पूरे घटनाक्रम का वीडिया सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है जिसमें टीआई साहब पत्नी से पिटते देखे जा सकते है।    पत्नी ने किया था हंगामा टी.आई. नरेंद्रसिंह सूर्यवंशी की पत्नी इंदौर में रहती हैं। पति के आचरण पर शंका होने पर पत्नी मंगलवार शाम गंधवानी पहुंची थी। पत्नी ने जब टी.आई. के घर का दरवाजा खटखटाया, तो गेट नहीं खुला। जिसके बाद पत्नी ने वहां हंगामा कर दिया। शोर-शराबा सुनकर कई नागरिक भी वहां जमा हो गए। टी.आई. के निवास पर हंगामे की सूचना मिलने पर एस.डी.ओ.पी भी पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गए थे। जिसके बाद पुलिस टी.आई. के निवास से निकालकर युवती को मनावर थाने ले गई  थी। पत्नी का आरोप है कि टी.आई. सूर्यवंशी विगत तीन दिनों से अनजान युवती के साथ रह रहे हैं। इस मामले में एस.पी. आदित्यप्रताप सिंह ने टीआई नरेंद्रसिंह सूर्यवंशी को लाइन हाजिर कर दिया था, वहीं, इस मामले में एस.डी.ओ.पी. से रिपोर्ट मांगी थी। रिपोर्ट मिलने के बाद एस.पी. ने बुधवार को टी.आई. नरेंद्रसिंह सूर्यवंशी को निलंबित कर दिया। इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर टी.आई. के उक्त युवती के साथ फोटो वायरल हो रहे हैं। 

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Dakhal News 12 February 2020


bhopal, Fingerprints are also not safe

मीडिया डेस्क। अगर आप ये सोचते हैं कि आपकी उंगलियों के निशान यूनिक हैं और दुनिया में और किसी के पास नहीं हो सकते तो आप मूर्ख हैं। गुजरात पुलिस ने एक गैंग को पकड़ा है। ये 1000 रुपये में फिंगर प्रिंट के डुप्लीकेट बनवाता था। अब आप सोचें कि आपने कितने जगह अपने फिंगर प्रिंट लगा रखे हैं? मोबाइल से लेकर दफ्तर के गेट पर थंब स्कैनर तक। गांव का ग़रीब तो मानता ही है कि ईश्वर ने उसे अंगूठा दिया ही ठप्पा लगाने के लिए है। ताकि उसका हक कोई शातिर हड़प ले। मैं अंगूठे वाली व्यवस्था के पहले से ही खिलाफ़ रहा हूँ। किसी भी व्यक्ति या उसकी ईमानदारी की पहचान अंगूठा नहीं हो सकता। लेकिन DL, आधार बनवाने से लेकर मोबाइल अनलॉक तक के लिए धड़ल्ले से अंगूठा लिया जा रहा है। ये अंगूठा आपको मूर्ख बना रहा है। अंगूठा टेक। एक बार फिर मशीन पर सवाल है। व्यवस्था पर, आपकी चुप्पी पर सवाल है। इसका विरोध कीजिये। सिविल नाफरमानी कीजिये। ठान लीजिये, हम अंगूठा नहीं लगाएंगे। शुरुआत मोबाइल के अनलॉक को बदलने से ही कीजिये। पत्रकार सौमित्र राय की एफबी वॉल से

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Dakhal News 9 February 2020


chatarpur,  Locked children, were waiting in school

छतरपुर। प्रदेश सरकार सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने का भले की प्रयास कर रही हो, लेकिन शिक्षकों की मनमानी सरकार के प्रयासों पर भारी पड़ रही है। बच्चे अपने निर्धारित समय पर स्कूल पहुंच रहे हैं, लेकिन स्कूल के शिक्षक समय पर नहीं पहुंचते और बच्चे घण्टों स्कूल के बाहर खड़े होकर स्कूल खुलने का इंतजार करते रहते हैं। ऐसा ही मामला शनिवार को सामने आया है।   दरअसल, संकुल अंतर्गत आनी वाली शासकीय माध्यमिक शाला कराठा का शनिवार को जब मीडियाकर्मियों ने सुबह 11 बजे औचक निरीक्षण किया तो पाया कि बच्चे स्कूल के बाहर खड़े होकर स्कूल खुलने का इंतजार कर रहे हैं। छात्रों ने बताया कि यह हाल रोजाना का है। शिक्षक रोज ही देर से आते हैं और समय से पहले स्कूल बंद कर चले जाते हैं। इस संबंध में जब नौगांव बीआरसी विनोद गुप्ता से बात की गई और उन्हें स्कूल बंद होने की जानकारी दी गई तो उन्होंने कार्यवाही करते हुए एक जनशिक्षक को मौके पर भेजा, जिसने पंचानामा बनाया। ज्ञात हो कि कराठा माध्यमिक शाला में प्रधानाध्यापक किशोरी लाल प्रजापति के अलावा एक महिला शिक्षक और एक अतिथि शिक्षक पदस्थ हैं जो कि कभी भी समय पर स्कूल नहीं पहुंचते और यही कारण है कि इस क्षेत्र में लगातार शिक्षा का स्तर गिर रहा है।   इनका कहना   स्कूल बंद होने की शिकायत मिली थी, मैंने जनशिक्षक को भेज कर पंचानामा बनवाया है, लापरवाह शिक्षकों के विरुद्ध नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी तथा उनका एक दिन का वेतन भी काटा जाएगा।   विनोद गुप्ता, बीआरसी, नौगांव

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Dakhal News 8 February 2020


bhopal, Four trains canceled, four partially canceled,six diverted routes , track doubling work

भोपाल। रेल प्रशासन द्वारा सोगरिया, डीगोद, श्री कल्याणपुरा एवं भोनोरा स्टेशनों पर ट्रेक दोहरीकरण के लिए प्री-नॉन इंटरलॉकिंग एवं नॉन इंटरलॉकिंग के कार्य के चलते चार ट्रेनों को निरस्त,चार को आंशिक निरस्त एवं छह: ट्रेनों को परिवर्तित मार्ग से चलाने का निर्णय लिया गया है। यह जानकारी भोपाल रेल मंडल के जनसम्पर्क अधिकारी आईए सिद्दीकी ने शनिवार को मीडिया को दी। उन्होंने बताया कि ट्रेक दोहरीकरण कार्य के चलते गाड़ी संख्या 19811 कोटा-इटावा एक्सप्रेस रविवार, 09 फरवरी से आगामी 19 फरवरी तक, गाड़ी संख्या 19812 इटावा-कोटा एक्सप्रेस 10 फरवरी से 20 फरवरी तक, गाड़ी संख्या 19809 कोटा-जबलपुर एक्सप्रेस रविवार, 09 फरवरी से आगामी 19 फरवरी तक और गाड़ी संख्या 19810 जबलपुर-कोटा एक्सप्रेस 10 फरवरी से 20 फरवरी तक अपने प्रारम्भिक स्टेशन से निरस्त रहेगी।इसी प्रकार, रविवार, 09 फरवरी से 19 फरवरी तक अपने प्रारम्भिक स्टेशन से चलने वाली गाड़ी संख्या 14813 जोधपुर-भोपाल एक्सप्रेस, कोटा स्टेशन पर शार्ट टर्मिनेट होगी एवं कोटा-भोपाल स्टेशनों के मध्य आंशिक निरस्त रहेगी। इसी अवधि में प्रारम्भिक स्टेशन से चलने वाली गाड़ी संख्या 14814 भोपाल-जोधपुर एक्सप्रेस भोपाल-कोटा स्टेशनों के मध्य आंशिक निरस्त रहेगी एवं 10 फरवी से 20 फरवरी तक कोटा-जोधपुर स्टेशनों के मध्य चलेगी। वहीं, 9 फरवरी से 19 फरवरी तक अपने प्रारम्भिक स्टेशन से चलने वाली गाड़ी संख्या 51612 बीना-कोटा पैसेंजर बारॉ स्टेशन पर शार्ट टर्मिनेट होगी एवं बारॉ-बीना स्टेशनों के मध्य आंशिक निरस्त रहेगी, जबकि 10 फरवरी से 20 फरवरी तक  अपने प्रारम्भिक स्टेशन से चलने वाली गाड़ी संख्या 51611 कोटा-बीना पैसेंजर बारॉ स्टेशन से प्रारम्भ होगी एवं बीना-बारॉ स्टेशनों के मध्य आंशिक निरस्त रहेगी। जिन ट्रेनों के मार्ग परिवर्तित किये गए हैं, उनमें गाड़ी संख्या 13423 भागलपुर-अजमेर एक्सप्रेस, 14710 पुरी-बीकानेर एक्सप्रेस, 18573 विशाखापट्टनम-भगत की कोठी एक्सप्रेस, 18207 दुर्ग-अजमेर एक्सप्रेस, 18213 दुर्ग-अजमेर एक्सप्रेस और 13424 अजमेर-भागलपुर एक्सप्रेस शामिल हैं।

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Dakhal News 8 February 2020


bhopal, E calculator , department to remove, common problems, income tax payers

भोपाल। केंद्र सरकार ने नयी आयकर व्यवस्था में वैकल्पिक मार्ग चुनने की व्‍यवस्‍था देकर करदाताओं के सामने अपने लिए सही विकल्‍प का चुनाव करने का जो अवसर दिया है, उससे जहां अब तक कई करदाताओं के बीच भ्रम की स्‍थ‍िति बनी हुई है, आखिर वे अपने लिए कौन से आयकर स्लैब का चुनाव करें नए या पुराने? वहीं अब सरकार स्‍वयं उनकी मदद करने इस मामले में आगे आई है। आयकर विभाग की वेबसाइट को देखें तो आयकरदाताओं को मदद देने उसने  ई-कैल्कुलेटर लॉन्च किया है।    गौरतलब है कि इंडिया फिलिंग के डाटा के अनुसार मध्‍यप्रदेश में पिछले वित्‍त वर्ष के दौरान 26 लाख 35 हजार 445 लोगों ने आयकर जमा किया था, जबकि देशभर में कुल आयकर जमा करनेवालों की संख्‍या 08 करोड़ 45 लाख 14 हजार 539 थी । इसी तरह से पिछले वर्ष में 154 करोड़ रुपये केगत वर्ष रिफंड के मुकाबले 38.39 फीसदी अधिक यानी कि 213 करोड़ रुपये के रिफंड इश्यू किए थे और  पिछले वित्त वर्ष में करीब 6 लाख 80 हजार नए आयकरदाता पूरे मध्यप्रदेश में जोड़े गए हैं।     इस मामले में जब विभाग की अधिकारिक वेबसाइट incometaxindiaefiling.gov.in पर जाते हैं तो वहां एक ऑनलाइन ई-कैल्कुलेटर नजर आता है, जिसकी मदद से सभी आयकर दाता अपने लिए बेहतर विकल्‍प चुन सकते हैं । सभी करदाता यहां वेबसाइट की मदद से कैल्कुलेटर के जरिए बजट में प्रस्तावित नए और पुराने आयकर स्लैब विकल्पों की तुलना कर अब आसानी से जान सकते हैं  कि उनके लिए कौन सा विकल्‍प चुनना लाभकारी होगा ।    उल्‍लेखनीय है कि आयकर के मोर्चे पर करदाताओं कुछ राहत देते हुए वित्त मंत्री ने आयकर स्लैब में व्यापक बदलाव की घोषणा की है। नए टैक्स सिस्टम में 100 रियायतों में से 70 को खत्म करने के साथ ही कर के कई स्लैब बनाए हैं। नयी आयकर व्यवस्था वैकल्पिक है।  करदाताओं को पुरानी व्यवस्था या नयी व्यवस्था में से किसी एक को चुनने का विकल्प दिया गया है । उन्होंने कहा कि 15 लाख रुपए की आय पर पर आयकर दाता यदि किसी प्रकार की छूट या लाभ नहीं लेता है तो उसे एक लाख 95 हजार रुपए का कर देना होगा जबकि पुरानी प्रणाली में दो लाख 73 हजार रुपये का कर देना पड़ता था। इस प्रकार नयी प्रणाली को अपनाने पर 78 हजार का लाभ होगा। फिर भी कई मामलों में पुरानी कर प्रणाली चुनने में अपने अलग लाभ भी यहां आयकर विभाग ने बताए हैं।    उधर, यह जानना भी जरूरी है कि  नई आयकर व्यवस्था वैकल्पिक है और करदाता चाहे तो छूट और कटौती के साथ पुरानी कर व्यवस्था में पूर्वत ही रह सकता है। यहां महत्‍वपूर्ण और ध्‍यानदेने योग्‍य जरूरत यह है कि एक बार नई कर व्यवस्था को चुनने के बाद करदाता पर यह व्यवस्था आगामी वर्षों में भी लागू रहेगी। अब फैसला आयकर दाताओं को लेना है कि उनके लिए कौन सा स्‍लैब फायदेमंद है।   

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Dakhal News 7 February 2020


Prasar Bharati, budget cut

मोदी सरकार की नीति रही है बड़े मीडिया हाउसों को खुश रखना. इसी के तहत छोटे अखबारों की मोदी सरकार ने कमर तोड़ दी और बड़े अखबारों को भरपूर लालीपाप दिया. बजट में भी मोदी सरकार ने अखबार मालिकों को राहत दी है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में न्यूज प्रिंट के आयात पर लगने वाली कस्टम ड्यूटी आधा कर दिया है. इस कदम से अखबार निकालने का लागत घट जाएगा. मोदी सरकार के इस फैसले से प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री प्रसन्न है. न्यूज प्रिंट और लाइटवेट कोटेड पेपर के आयात पर पिछले साल जुलाई में दस प्रतिशत कस्टम ड्यूटी लगा दिया गया था. इस बजट में इसे घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया गया है. इस निर्णय से अखबार मालिकों को प्रति टन न्यूजप्रिंट पर 1500 से 1700 रुपए की बचत होगी. ज्ञात हो कि भारत में न्यूजप्रिंट की डिमांड 2.5 मिलियन टन सालाना है. अपने देश में साल भर में न्यूजप्रिंट उत्पादन करीब एक मिलियन हो पाता है. ऐसे में अखबार मालिकों को न्यूज प्रिंट आयात करना पड़ता है। बजट में सूचना-प्रसारण मंत्रालय के लिए 4375.21 करोड़ रुपए आवंटित किया गया है जो पिछले साल से ज्यादा है. प्रसार भारती का बजट पिछले वित्त वर्ष की तुलना में कम कर दिया गया है. पिछले वित्तीय वर्ष (2019-20) में ये 473 करोड़ रुपए था, लेकिन अब इसे घटाकर 370 करोड़ रुपए कर दिया गया है. इस बजट में ब्रॉडकास्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर नेटवर्क डेवलपमेंट (BIND) को भी आवंटन किया गया है. वित्त वर्ष 2020 में आवंटित किए गए 227 करोड़ रुपए के मुकाबले कुल सूचना बजट घटाकर 220 करोड़ रुपए कर दिया गया है. सूचना क्षेत्र के लिए संशोधित बजट अनुमान 215 करोड़ रुपए है. फिल्म क्षेत्र को 145.50 करोड़ रुपए का आवंटन प्राप्त हुआ है.    

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Dakhal News 4 February 2020


 big business, private prisons , America, privatization , entering into prisons,back door in India.

अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया ने एक जनवरी से निजी जेलों और डिटेंशन सेंटरों से कोई नया कांट्रैक्ट करने या रिन्यू करने पर रोक लगा दिया है. ऐसे सभी मौजूदा कांट्रैक्ट 2028 तक ख़त्म कर दिए जायेंगे. अमेरिका में निजी जेल का धंधा बहुत बड़ा है. 20 फ़ीसदी फ़ेडरल क़ैदी ऐसी जेलों में हैं. फ़ेडरल और राज्यों के क़ैदियों को मिलाकर देखें, तो यह आंकड़ा आठ फ़ीसदी से कुछ ज़्यादा है. सरकार एक क़ैदी पर जेल चलानेवाली कंपनी को 23 हज़ार डॉलर के आसपास देती है, जबकि अमेरिका में न्यूनतम वेज पर नियमित काम करनेवाला साल में सिर्फ़ 15 हज़ार डॉलर ही कमा पाता है. धंधा चलाने के लिए अधिक लोगों को अधिक दिनों तक जेलों में रखने का खेल भी होता है. डेमोक्रेटिक पार्टी के मुख्य उम्मीदवारों ने निजी जेल बंद करने का वादा किया है.   भारत में पिछले दरवाज़े से निजीकरण जेलों में घुस रहा है. इसके लिए लॉबिंग भी एक्टिवेटेड मोड में है. पता नहीं कि देश में अनेक जगहों पर बन रहे डिटेंशन सेंटर सरकार चलायेगी या निजी ठेकेदारों को सौंपेगी तथा देशभर की एनआरसी के बाद और जेलों की बढ़ती भीड़ को देखते हुए आगे क्या होता है. यह भी अहम है कि क्या डिटेंशन सेंटर और जेलों की समीक्षा/सर्वेक्षण की व्यवस्था भी ठीक से की जायेगी.

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Dakhal News 4 February 2020


bhopal,  BJP besieges, President ,Prime Minister, photo,Urdu Academy

भोपाल। राजधानी स्थित उर्दू अकादमी कार्यालय में अध्यक्ष बदलते ही राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वीरें हट गईं। इसे लेकर शुक्रवार को जमकर बवाल हुआ। इसके बाद दोनों तस्वीरें अपने पुराने स्थान पर लगा दी गई हैं और इस सिलसिले में एक व्यक्ति के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई है।    पूर्व राज्यपाल पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी के उर्दू अकादमी का अध्यक्ष बनने के बाद सरकारी कार्यालय से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें हटने का मामला सामने आया। इसकी जानकारी जब भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को लगी, तो शुक्रवार दोपहर में भाजपा कार्यकर्ताओं ने पूर्व भाजपा विधायक सुरेंद्रनाथ सिंह के साथ बाणगंगा स्थित उर्दू अकादमी कार्यालय का घेराव कर दिया। इस दौरान पार्टी नेताओं ने सरकार पर जातिवाद को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया। हालांकि बाद में पुनः दोनों तस्वीरें जहां लगी थी, वहीं लगा दी गई। लेकिन तब तक महौल खराब हो चुका था। जिसके बाद उर्दू अकादमी के सचिव हिशामुदद्दीन फारूकी कर्मचारियों पर ही भड़क गए। इस मामले को  लेकर कई घंटों तक कार्यालय परिसर में हंगामा चलता रहा।    कर्मचारी के विरुद्ध की शिकायत    उर्दू अकादमी के अध्यक्ष अजीज कुरैशी की ओर से टीटीनगर थाने में अकादमी के एक कर्मचारी राहिल के खिलाफ प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति की फोटो हटाने की शिकायत दर्ज कराई गई है। टीटीनगर पुलिस इस मामले की जांच कर रही है। बताया जा रहा है कि राहिल नागरिकता संशोधन कानून लागू किए जाने से नाराज था। सूत्रों के अनुसार इस शिकायत के आधार पर टीटीनगर पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है। 

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Dakhal News 31 January 2020


Talented journalist Abhay Sarwate ,dies due to oral cancer

दुखद खबरः- अभय सर्वटे नहीं रहे.. मेरे प्रिय मित्र, हरदिल अजीज, जिंदादिल इंसान, जाने-माने संस्कृतकर्मी, और वरिष्ठ पत्रकार अभय सर्वटे का अभी कुछ देर पहले आगरा के एक निजी अस्पताल में कार्डिअक अरेस्ट के चलते दुखद निधन हो गया। पिछले कुछ साल से वह मुख से कैंसर से पीड़ित थे लेकिन अपनी जुझारू प्रवृत्ति के कारण हर बार संकट से बाहर निकले और जीवटता के साथ जिंदगी का संघर्ष जारी रखा। ग्वालियर निवासी अभय सर्वटे लंबे समय से आगरा अमर उजाला के प्रबंधन से जुड़े हुए थे। इससे पहले वह स्वदेश और दैनिक भास्कर में अपनी प्रबंधन कार्यकुशलता का परिचय दे चुके थे। कोटि कोटि नमन मेरे भाई.. बहुत याद आओगे…   हिंदुस्तान अखबार के संपादक डॉ मनोज पमार की एफबी वॉल से.

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Dakhal News 23 January 2020


bhopal,5G services will get wings in the country

योगेश कुमार गोयल 17 जनवरी की सुबह 2.35 बजे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इस साल के अपने पहले मिशन के तहत दक्षिण अमेरिका के उत्तर-पूर्वी तट पर फ्रैंच गुयाना के कोरोऊ प्रक्षेपण केन्द्र से यूरोपियन रॉकेट ‘एरियन 5-वीए 251’ की मदद से अपना संचार उपग्रह ‘जीसैट-30’ लॉन्च किया। ‘एरियन स्पेस सेंटर’ से एरियन 5 रॉकेट का पहली बार पिछले वर्ष ही इस्तेमाल हुआ था और उस समय भी इसी रॉकेट के जरिये भारतीय सैटेलाइट लॉन्च किया गया था। एरियन 5 के जरिये इसरो के जीसैट-30 के अलावा यूटेलसैट के यूटेलसैट कनेक्ट उपग्रह को भी भूस्थिर अंतरण कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। सी तथा केयू बैंड की कवरेज क्षमता बढ़ाने के लिए आने वाले दिनों में जीसैट-30 को भूमध्य रेखा से 36 हजार किमी की ऊंचाई पर स्थित जियोस्टेशनरी (भू-स्थैतिक) कक्षा में स्थानांतरित किया जाएगा। कक्षा उठाने के अंतिम चरण में दो सौर सारणियों तथा एंटीना रिफ्लेक्टर को इसमें तैनात किया जाएगा, जिसके बाद इसे अंतिम कक्षा में स्थापित किया जाएगा। परीक्षणों के पश्चात् यह कार्य शुरू करेगा। हालांकि भारत के पास चार टन वजनी क्षमता का रॉकेट, जियोसिन्क्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल एमके-3 (जीएसएलवी-एमके-3) है लेकिन अगर इसरो ने अपने करीब 3.3 टन वजनी जीसैट-30 को अंतरिक्ष में भेजने के लिए यूरोपियन स्पेस एजेंसी ‘एरियन स्पेस’ की मदद ली है तो उसकी वजह जानना भी जरूरी है। दरअसल विशेषज्ञों का मानना है कि सिर्फ एक उपग्रह की लॉन्चिंग के लिए पूरी जीएसएलवी-एमके-3 तकनीक को अपनाने में लंबा समय लगता है और इसी कारण उन देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों से सम्पर्क किया जाता है, जो इस तरह की तकनीक के जरिये उपग्रह लॉन्च कर रही हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ तथा यूरोपियन एजेंसी ‘एरियन स्पेस’ दूसरे देशों के मिशन को अपने स्पेस सेंटर से अंजाम देती हैं। ‘एरियन स्पेस’ यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) की वाणिज्यिक शाखा है, जो भारत की पुरानी साझेदार है। इसी स्पेस एजेंसी की मदद से अब तक कई भारतीय उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जा चुके हैं। इस स्पेस एजेंसी द्वारा सबसे पहले वर्ष 1981 में भारत के एक छोटे प्रयोगात्मक उपग्रह ‘एप्पल’ को लांच किया गया था और इसी एजेंसी के एरियन लांचर से प्रक्षेपित किया गया जीसैट-30 भारत का 24वां उपग्रह है। एरियन स्पेस से 23 उपग्रहों की परिक्रमा चल रही है और भारत ने उसके साथ 24 उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए करार किया है। गुआना के एरियन स्पेस सेंटर से ही 6 फरवरी 2019 को भारत के संचार उपग्रह जी-सैट 31 को लॉन्च किया गया था और उससे पहले देशभर में इंटरनेट पहुंचाने के लिए 5 दिसम्बर 2018 को भी 5854 किलोग्राम वजनी इसरो द्वारा निर्मित सबसे भारी उपग्रह जी-सैट-11 को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। इसरो के यूआर राव सैटेलाइट सेंटर के निदेशक पी. कुन्हीकृष्णन के अनुसार एरियन 5 एक बेहद भरोसेमंद लांचर है, जिसके जरिये भारत ने जीसैट-30 को लॉन्च किया है। इसरो ने डिजिटल सिग्नल के लगातार बढ़ते प्रयोग और देश को इस कारोबार में नई दिशा देने के लिए ही संचार उपग्रह जीसैट-30 प्रक्षेपित किया है। बहरहाल, इसरो को 3357 किलोग्राम वजनी उपग्रह ‘जीसैट-30’ के लॉन्च के करीब 38 मिनट 25 सेकेंड बाद कक्षा में स्थापित करने में बहुत बड़ी सफलता मिली है। इसे इसरो के संवर्धित ‘आई-2के बस’ में संरूपित किया गया है, जो भू-स्थिर कक्षा में सी और केयू बैंड क्षमता बढ़ाएगा। जीसैट-30 अंतरिक्ष में अगले 15 वर्षों तक कार्य करेगा और यह इनसैट-4ए की जगह लेगा, जिसे साल 2005 में लॉन्च किया गया था। दरअसल इस संचार उपग्रह की उम्र पूरी हो रही है, इसीलिए इसकी जगह अब जीसैट-30 को जियो-इलिप्टिकल ऑर्बिट में स्थापित किया गया है। इसरो के अध्यक्ष के. सिवन का कहना है कि जीसैट-30 कई फ्रीक्वेंसी में काम करने में सक्षम है और साथ ही इसके सफल प्रक्षेपण से कवरेज में वृद्धि होगी। इस संचार उपग्रह से राज्य संचालित तथा निजी सेवा प्रदाता कम्पनियों के संचार लिंक देने की क्षमता बढ़ सकती है। अभी जीसैट सीरीज के 14 उपग्रह काम कर रहे हैं, जिनकी बदौलत देश में संचार व्यवस्था कायम है और अब प्रक्षेपित किया गया ‘जीसैट-30’ जीसैट सीरीज का बेहद ताकतवर और महत्वपूर्ण संचार उपग्रह है, जिसकी मदद से देश की संचार प्रणाली में और इजाफा होगा। जीसैट-30 डीटीएच, टेलीविजन अपलिंक, टेलीपोर्ट सेवाओं, डिजिटल सैटेलाइट खबर संग्रहण (डीएसएनजी), ई-गवर्नेंस, शेयर बाजार तथा वीसैट सेवाओं के लिए एक क्रियाशील संचार उपग्रह है। देश की संचार व्यवस्था को मजबूत बनाने में इसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होगी क्योंकि इसकी मदद से मोबाइल नेटवर्क तथा डीटीएच सेवाओं का भी विस्तार होगा। यह संचार उपग्रह पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन को समझने तथा भविष्यवाणी करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ‘जीसैट-30’ लॉन्च मिशन की सफलता से उत्साहित इसरो के यूआर राव सैटेलाइट सेंटर के निदेशक पी कुन्हीकृष्णन का कहना है कि वर्ष 2020 की शुरुआत एक शानदार लॉन्च के साथ हुई है। इस सैटेलाइट की मदद से जहां इंटरनेट की स्पीड बढ़ेगी, वहीं देश में जिन स्थानों में अभीतक मोबाइल नेटवर्क नहीं है, वहां मोबाइल नेटवर्क का विस्तार किया जा सकेगा। दुनिया भर में इस समय 5जी इंटरनेट पर तेज गति से कार्य चल रहा है और भारत में भी इंटरनेट की नई तकनीक आ रही है, ऑप्टिकल फाइबर बिछाए जा रहे हैं। ऐसे में देश को पहले के मुकाबले ज्यादा ताकतवर संचार उपग्रह की आवश्यकता थी और जीसैट-30 को भारत का अभीतक का सबसे ताकतवर संचार उपग्रह माना जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि इन्हीं सब जरूरतों को यह उपग्रह बखूबी पूरा करेगा। जीसैट-30 उपग्रह की जरूरत के बारे में इसरो का कहना है कि जिस तरह देश और दुनिया में संचार व्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, उस तरह हमें भी बड़े सुधारों की जरूरत है। इसरो द्वारा डिजाइन किए और बनाए गए इस दूरसंचार उपग्रह से राज्य-संचालित और निजी सेवा प्रदाताओं की संचार लिंक प्रदान करने की क्षमता बढ़ेगी और माना जा रहा है कि इस उपग्रह की बदौलत इंटरनेट की दुनिया में क्रांति आ सकती है क्योंकि इसकी मदद से देश में नई इंटरनेट टेक्नोलॉजी लाए जाने की उम्मीदों को बल मिला है। इस उपग्रह के जरिये देश की संचार प्रणाली, टेलीविजन प्रसारण, समाचार प्रबंधन, भू-आकाशीय सुविधाओं, आपदाओं की पूर्व सूचना और खोजबीन, मौसम संबंधी जानकारी व भविष्यवाणी तथा रेस्क्यू ऑपरेशन में भी बहुत मदद मिलेगी। यह उपग्रह उच्च गुणवत्ता वाली टेलीविजन, दूरसंचार एवं प्रसारण सेवाएं उपलब्ध कराएगा। इसरो के अनुसार जीसैट-30 के संचार पेलोड को विशेष रूप से डिजाइन किया गया है और अंतरिक्ष यान की बस में ट्रांसपॉन्डर की संख्या को अधिकतम करने के लिए अनुकूलित किया गया है। 12 सी तथा 12 केयू बैंड ट्रांस्पॉन्डरों से लैस जीसैट-30 इनसैट जीसैट उपग्रह श्रृंखला का उपग्रह है, जो छह हजार वॉट ऊर्जा का इस्तेमाल करेगा। इसे ऊर्जा प्रदान करने के लिए इसमें दो सोलर पैनल और बैटरी लगाई गई हैं। 12 केयू ट्रांसपॉन्डर से यह उपग्रह भारतीय भूमि और द्वीपों को जबकि 12 सी ट्रांसपॉन्डर से खाड़ी देशों, कई एशियाई देशों तथा ऑस्ट्रेलिया में उच्च गुणवत्ता वाली टेलीविजन, डीटीएच, दूसरसंचार व इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराएगा। केयू बैंड सिग्नल से पृथ्वी पर चल रही गतिविधियों को पकड़ा जा सकता है। इसरो के वैज्ञानिकों के अनुसार इस उपग्रह के सफल प्रक्षेपण के बाद केयू बैंड तथा सी-बैंड कवरेज में बढ़ोतरी होने से भारतीय क्षेत्र व द्वीपों के साथ बड़ी संख्या में खाड़ी और एशियाई देशों के साथ ऑस्ट्रेलिया में भी पहुंच बढ़ेगी। दरअसल इसरो ने इस उपग्रह को 1-3 केबस मॉडल में तैयार किया है, जो जियोस्टेशनरी ऑर्बिट के सी तथा केयू बैंड से संचार सेवाओं में मदद करेगा। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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Dakhal News 20 January 2020


bhopal,Social media, related journalists ,should also be honored

भोपाल। जनसम्पर्क मंत्री पी.सी. शर्मा माधवराव सप्रे स्मृति समाचार-पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान के राज्य-स्तरीय पत्रकारिता पुरस्कार समारोह में शमिल हुए। पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री सुरेश पचौरी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। समारोह में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य के पत्रकारिता की विभिन्न विधाओं के पत्रकारों को सम्मानित किया गया।  मंत्री श्री शर्मा ने कहा कि सोशल मीडिया से जुड़े पत्रकारों को सम्मानित किया जाना चाहिये। यह वर्तमान और भविष्य में समाचार जगत को मजबूत बनाने के लिये जरूरी है। उन्होंने सप्रे संग्रहालय द्वारा पत्रकारिता के इतिहास को संजोए रखने की दिशा में किये जा रहे कार्यों की सराहना की। श्री शर्मा ने संग्रहालय को डिजिटाइजेशन के लिए सहयोग स्वरूप 5 लाख रुपये देने की घोषणा की। पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री सुरेश पचौरी ने कहा कि सप्रे संग्रहालय की पूरी यात्रा संघर्षपूर्ण रही। इस संस्था ने देश भर में अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने कहा कि जिन्हें पुरस्कार मिले हैं, नि:संदेह उनके कार्यों से समाज लाभान्वित हो रहा है। जिन विभूतियों की स्मृति में पुरस्कारों की स्थापना की गई है, उनके कार्य भी नई पीढ़ी को प्रेरणा देते हैं। संग्रहालय के संस्थापक-संयोजक श्री विजयदत्त श्रीधर ने संस्था की गतिविधियों की जानकारी दी। सम्मानित व्यक्तित्व पत्रकारिता की शिक्षा में दीर्घ योगदान के लिए माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलाधिसचिव डा. श्रीकांत सिंह को सम्मानित किया गया। वरिष्ठ पत्रकार कमाल खान कमाल, रमेश तिवारी, सर्वदमन पाठक, महेश दीक्षित और मुकुन्द प्रसाद मिश्र को  'हुक्मचंद नारद पुरस्कार’ प्रदान  किया गया। संतोष कुमार शुक्ल लोक संप्रेषण पुरस्कार - अखिल कुमार नामदेव,माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार - पंकज मुकाती, लाल बलदेव सिंह पुरस्कार -  रश्मि खरे, जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी पुरस्कार -  विकास वर्मा, झाबरमल्ल शर्मा पुरस्कार-  संजीव कुमार शर्मा, रामेश्वर गुरु पुरस्कार- महेश सोनी, के.पी. नारायणन पुरस्कार- डा. ऋतु पाण्डेय शर्मा, राजेन्द्र नूतन पुरस्कार- विनोद त्रिपाठी, गंगाप्रसाद ठाकुर पुरस्कार-आसिफ इकबाल (रायपुर), जगत पाठक पुरस्कार -  सुशील पाण्डेय, सुरेश खरे पुरस्कार-  कृष्णमोहन झा, आरोग्य सुधा पुरस्कार-पुष्पेन्द्र सिंह तथा होमई व्यारावाला पुरस्कार- होमेन्द्र सुन्दर देशमुख को प्रदान किया गया।x

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Dakhal News 19 January 2020


pakistan

केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में केबल टेलिविजन ऑपरेटरों को मुस्लिम देशों के प्राइवेट चैनलों को दिखाने को लेकर चेतावनी जारी की है. इन मुस्लिम देशों में पाकिस्तान, तुर्की और मलेशिया के अलावा ईरान भी शामिल है.5 अगस्त को भारत सरकार ने जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने का फैसला किया तो पाकिस्तान के साथ-साथ मलेशिया और तुर्की ने भी विरोध जताया था. हालांकि, सऊदी अरब, यूएई और ईरान ने कश्मीर मुद्दे पर भारत के फैसले पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी.सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी एडवाइजरी  में केबल टीवी ऑपरेटरों को केबल टीवी नियमों के तहत उनके दायित्वों को याद दिलाया गया है.इस नोट में कहा गया है कि मंत्रालय के संज्ञान में आया है कि कुछ केबल ऑपरेटर अपने नेटवर्क पर मंत्रालय की प्रकाशित सूची से बाहर निजी चैनलों का प्रसारण कर रहे हैं. यह स्पष्ट तौर पर केबल टीवी रूल्स के उपनियम 6 (6) का उल्लंघन है और इस पर तुरंत कार्रवाई किए जाने की जरूरत है. बता दें कि सूचना प्रसारण मंत्रालय ने 500 से ज्यादा चैनल को मान्यता दी हुई है.एडवाइजरी पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के संयुक्त सचिव विक्रम सहाय के हस्ताक्षर हैं. एडवाइजरी में केबल टीवी ऑपरेटरों को चेतावनी दी गई है कि अगर वे नियमों का उल्लंघन करते हैं तो उनका लाइसेंस रद्द किया जा सकता है और उनके उपकरण जब्त किए जा सकते हैं. सहाय हाल ही में केबल टीवी ऑपरेटरों के साथ बैठक करने के लिए श्रीनगर पहुंचे थे.बैठक में शामिल हुए एक केबल ऑपरेटर ने बताया, अधिकारियों ने बैठक में कहा कि ईरान, तुर्की, मलेशिया और पाकिस्तान के सभी चैनलों को ब्लॉक किया जाना चाहिए.सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों को ऑपरेटरों ने बताया कि वे ईरान आधारित सहर चैनल और सऊदी अरब के अल-अरबिया चैनल का प्रसारण कर रहे हैं. कश्मीर की ज्यादातर आबादी के बीच इन चैनलों के कार्यक्रम लोकप्रिय हैं. शिया समुदाय के लोग इन चैनलों को धार्मिक कार्यक्रमों की वजह से बड़ी दिलचस्पी के साथ देखते हैं.मंत्रालय के एक अधिकारी ने ईटी से बताया, इंटरनेट बैन होने की वजह से ईरान, तुर्की, सऊदी अरब, मलेशिया और पाकिस्तान के कई धार्मिक चैनल स्थानीय केबल ऑपरेटरों के जरिए कश्मीर के टीवी सेट में जगह बना रहे थे. इसके बारे में हमें अलर्ट किया गया जिसके बाद हमने इस पर लगाम कसने का फैसला लिया 

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Dakhal News 19 November 2019


अंतर्वेद प्रवर

    पुस्तक ‘अंतर्वेद प्रवरः गणेश शंकर विद्यार्थी’ का लोकार्पण शुक्रवार को नई दिल्ली के 10, राजाजी मार्ग पर किया गया। भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को उनके आवास पर लेखक अमित राजपूत ने इस मौके पर अपनी किताब की पहली प्रति भेंट की। इसमें उनके साथ शैलेन्द्र भदौरिया, वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मी शंकर बाजपेयी और भारतीय जनसंचार के महानिदेशक वरिष्ठ पत्रकार केजी सुरेश शामिल रहे। लेखक ने बताया कि उनकी क़िताब ‘अंतर्वेद प्रवर’ गणेश शंकर विद्यार्थी का पुनरावलोकन है, जिसमें विद्यार्थीजी से जुड़ी इतिहास की उन जानकारियों का संग्रह किया गया है, जो अब तक प्रकाश में नहीं आयी हैं, ख़ासतौर से उनके गृह जनपद फतेहपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी के सरोकारों को इसमें शामिल किया गया है। आज़ादी के बाद गणेशजी के प्रभावों से पनपे अनेक राजनैतिक कुतूहल का भंडार भी इस पुस्तक में शामिल किया गया है। इस मौके पर राजीव तिवारी, राजश्री त्रिवेदी और हर्ष कुमार मिश्र सहित अनेक प्रशासनिक अधिकारी और विद्वान शामिल रहे।

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Dakhal News 13 November 2019


black mailar

ग्वालियर की महाराजपुरा थाना पुलिस ने 5 फर्जी पत्रकारों को गिरफ्तार किया है जो एक व्यवसायी को ब्लैकमेल कर उससे 50 हजार रुपये हड़पने की फिराक में थे।पुलिस ने बताया इन्होंने जयपुर और अन्य शहरों से भी अवैध बसूली की है पुलिस ने मामला कायम कर लिया हैं और इनसे कड़ी पूछताछ कर रही है। ग्वालियर के मुरार में रहने वाला सूरज कौशल शेयर मार्केट का काम करता है जिनके डीडी नगर स्थित ऑफिस पर कल 5 लोग आये जिन्होंने खुद को इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया का पत्रकार बताया और धमकी दी कि तुम फर्जी कंपनी चला रहे हो और तुम्हारी खबर बनाते है और उसे हड़काने लगे  बाद में उन्ही में शामिल दीपक तिवारी सूरज के पास दोबारा गया और मामला निपटाने के नाम पर 50 हजार रुपये मांगे और शाम को महाराजपुरा गेट 2 पर मिलकर पैसे देने का सूरज ने वायदा किया उसने इसकी पुलिस को जानकारी दी और पैसे देने के दौरान पुलिस ने आकस्मिक कार्यवाही कर पांचों को पकड़  लिया।पुलिस के मुताबिक पूछताछ में सभी फर्जी पत्रकार निकले पुलिस ने उनपर धारा 384 के अड़ीबाजी का मामला फिलहाल कायम कर लिया हैपुलिस के मुताबिक तथ्यों के आधार पर धोखाधड़ी का मामला भी पुलिस कायम करेगी।  पकड़े गए फर्जी 4 पत्रकारों में  सुभाष शुक्ला (ENN today )भगवान बसंत (तहलका ) विजय सिरोलिया (अखबार जगत) हुकुम सिंह (मानव अधिकार मीडिया  सभी इंदौर और दीपक तिवारी ग्वालियर के डबरा का रहने वाला बताया जाता है पुलिस को पूछताछ में इन्होंने बताया यह 5 नवंबर को निकले है और जयपुर सहित अन्य शहरों में भी इसी तरह ब्लैकमेल करते आये है पुलिस इनसे पूछताछ कर अन्य वारदातों की जानकारी भी ले रही है।

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Dakhal News 13 November 2019


Whatsapp वालों सावधान रहें

 बग गैलरी व्यू पर अटैक करता है व्हाट्स ऐप से जुड़े एक नए खतरे से मोबाइल यूजर्स को आगाह किया गया है। हैकर्स किसी भी GIF फाइल के जरिए वायरस भेजकर मोबाइल का डाटा हैक कर सकते हैं। द नेक्स्ट वेब की रिपोर्ट के अनुसार, इस व्हाट्स ऐप बग पर रिसर्च हो रहा है, लेकिन अभी खतरा बरकरार है। यूजर्स को सलाह दी गई है कि वे किसी अन्जान सोर्स से मिली GIF इमेज को ओपन न करें।इस बग को डबल फ्री बताया गया है। यह सीधा फोन की मेमोरी पर अटैक करता है। यानी इसके हमले से एप्लिकेशन क्रैश हो सकती है या अटैकर्स के हाथ पूरे मोबाइल का डाटा लगा सकता है, जिसका वे दुरूपयोग कर सकते हैं। GitHub में प्रकाशित एक पोस्ट के अनुसार, यह बग व्हाट्स ऐप के गैलरी व्यू पर अटैक करता है, जिससे फोटो, वीडियो और GIF का प्रिव्यू हासिल किया जाता है।रिपोर्ट में कहा गया है कि यह GIF मोबाइल में सेव होने के बाद यूजर्स द्वारा ओपन किए जाने का इंतजार करती है। यूजर्स जैसे ही इसे खोलता है, उसका मोबाइल हैक हो जाता है। शोधकर्ताओं ने लिखा है कि व्हाट्स ऐप वर्जन 2.19.230 में इसका खतरा ज्यादा है। व्हाट्स ऐप वर्जन 2.19.244 में इस जोखिम को खत्म कर दिया गया है।यह बग Android 8.1 और Android 9.0 OS पर भी अटैक करता है, लेकिन Android 8.0 और उससे नीचे के वर्जन वाले यूजर्स सुरक्षित हैं। पुराने Android संस्करणों में डबल-फ्री अभी भी ट्रिगर किया जा सकता है। हालांकि, डबल-फ्री के बाद सिस्टम द्वारा मॉलॉक कॉल के कारण ऐप क्रैश हो जाता है और इस कारण पीसी रजिस्टर को कंट्रोल नहीं किया जा सकता है।यह पहली बार नहीं है कि व्हाट्स ऐप पर डाटा सुरक्षा और गोपनीयता सुविधाओं के बारे में चिंताएं जताई गई हैं। इस साल की शुरुआत में एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि फेसबुक के स्वामित्व वाले इस मैसेजिंग ऐप में हैकर्स ने डिवाइस पर स्पाइवेयर भेजकर उसे हैक करने की कोशिश की है। हालांकि, यह मामला सामने आने के बाद व्हाटएस ऐप ने कहा कि उस समस्या को हल कर लिया गया है, लेकिन यह नहीं बताया कि यह बग क्या था और कैसे अटैक कर पाया।            

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Dakhal News 9 October 2019


इंडियाज मोस्ट पावरफुल वुमन इन मीडिया चुनी गईं  कली पुरी

इंडिया टुडे ग्रुप की वाइस चेयरपर्सन कली पुरी को ‘इंडियाज मोस्ट पावरफुल वुमन इन मीडिया’ अवॉर्ड से सम्मानित किया गया|  कली पुरी को ये सम्मान ब्रिटिश संसद में आयोजित लोकप्रिय कॉनफ्लुएंस एक्सीलेंस अवॉर्ड्स समारोह में दिया गया|  दो हफ्ते पहले ही कली पुरी को लंदन में 21st सेंचुरी आइकन अवॉर्ड्स में ‘आउटस्टैंडिंग मीडिया एंड एंटरटेनमेंट अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया था|इस अंतरराष्ट्रीय सम्मान को स्वीकार करते हुए कली पुरी ने कहा, 'इंडिया टुडे ग्रुप में हम इंडस्ट्री के रुझानों का नेतृत्व कर रहे हैं|  हमने मोबाइल के इर्द-गिर्द एक पूरा इकोसिस्टम तैयार किया है| हमने डिजिटल और मोबाइल के आधार पर सिर्फ दो साल के वक्त में 20 से ज्यादा चैनलों का नेटवर्क विकसित किया है और हमें लगता है कि हमने नई पीढ़ी के विचारों को पकड़ने में सक्षम होने का सराहनीय काम किया है| हम नई ऊर्जा, नए विचार और काम करने के नए तरीके में भरोसा रखते हैं|ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से राजनीति, दर्शनशास्त्र और अर्थशास्त्र में स्नातक कली पुरी का खबरों के भविष्य को लेकर नजरिया साफ है|  वे भविष्य की ओर उन्मुख एक ऐसे न्यूज रूम में, सबसे सम्मानित और प्रख्यात पत्रकारों की टीम का नेतृत्व कर रही हैं, जो आज की मल्टीमीडिया और मल्टी डिवाइस वाली दुनिया को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है| कली पुरी एक सतत उद्यमी हैं जिन्हें मीडिया के एक विस्तृत नेटवर्क को चलाने का समृद्ध अनुभव है| आज तक, आज तक एचडी, इंडिया टुडे टीवी, दिल्ली आज तक, तेज, एप्स, डिजिटल न्यूजपेपर, विश्वस्तरीय कार्यक्रमों का आयोजन, ग्रुप के लिए सोशल मीडिया रणनीति तैयार करने आदि का उन्हें गहन अनुभव है|    

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Dakhal News 29 September 2019


हनी के ट्रैप

  प्रकाश भटनागर हनी के ट्रैप में पत्रकारिता भी कांदा (प्याज) और फंदा (यहां हनी ट्रैप के संदर्भ में) कोई तालमेल नहीं है लेकिन एक विचित्र संयोग है। प्याज लगातार महंगी हो रही है। परत दर परत खुलने वाली इस खाद्य सामग्री की कीमत आसमान छूने लगी है। इधर हनी ट्रैप वाला फंदा भी लगातार भारी-भरकम कीमत वाले खेल के तौर पर सामने आ रहा है। परत-दर-परत नये-नये नाम (अघोषित रूप से) सामने आ रहे हैं। अभी किसी छिलके पर किसी राजनेता की तस्वीर दिख रही है तो कहीं कोई अफसर भी नजर आ जा रहा है। लेकिन एक छिलके में कोशिकाओं की तरह छिपी उन असंख्य तस्वीरों का सामने आना अभी बाकी है, जो इस सारे घटनाक्रम की जड़ हैं। जिनका सहारा लेकर इस घिनौने काम को बीते लम्बे समय से अंजाम दिया जा रहा था। किस्सा हनी-मनी कांड में मीडिया खासकर टीवी मीडिया की भूमिका का है।   बात शुरू से शुरू करते हैं। कहानी को कुछ ऐसे समझें। इस काम को सहारा देने का समय तब आया, जब कई मीडिया हाउस भयावह मंदी की चपेट में आ गए हैं। कुछ एक रीजनल टीवी चैनल तो अपने मालिकों के पापों को पिछले लंबे समय से भोग रहे हैं। यहां तक कि मनु वादी कहे जाने वाले मीडिया समूह के कर्मचारियों तक को तो इसलिए ही लंबे समय से वेतन के लाले हैं। घोर संकट का समय। दूसरी जगह नौकरी मिलने की संभावनाएं भी कम थी। तब प्रिंट मीडिया की पीत पत्रकारिता को मात देने वाले ये हनी-मनी टाईप के ट्रेप की कोमल सी कठोर आकांक्षाए रची गई जिसके तार दिल्ली तक जुड़ गए। योजनाबद्ध तरीके से ब्लैकमेलिंग के ताने बाने रचे गए। मीडिया से जुड़ी आधी आबादी के अति महत्वाकांक्षी कुछ हिस्से का इसमें चतुराई से उपयोग किया गया। अलग-अलग समूहों में कुछ लोगों की फौज मछली के चारे के तौर पर तैयार की गयी। इनमें उन तितलियों को सहारा लिया गया जो कम समय में बड़ा नाम ना सही दौलत बनाने सरकारी लाभ कमाने की ख्वाहिशमंद थी, जो केवल ग्लैमर के लालकालीन पर अपने पैर बढाती मीडिया इंडस्ट्री में आई थीं।  रात के अंधेरे में जो करना है, उसकी भूमिका सुबह की रोशनी में बनायी जाती। टारगेट पहले से ही तय रहते। महिला पत्रकार उनके पास बाइट लेने के नाम पर पहुंचतीं। यह औपचारिकता पूरी करने के बाद क्वालिटी समय बिताने की बात छेड़ी जाती। शाम ढले किसी खास जगह पर, किसी छिपे हुए कैमरे के सामने मामला शराब से शबाब के सेवन तक पहुंचता। इसके बाद ब्लैकमेलिंग का खेल शुरू किया जाता। भोपाल/इंदौर तक नये शिकार की तलाश में जुट जाते। पुराने शिकार से डील करने का काम दिल्ली के स्तर पर होता। इसके बाद होने वाली हिस्सा-बांट की व्यापकता इस बात से समझी जा सकती है कि कई मीडिया हाउस में असंख्य कर्मचारी लम्बे समय से तन्ख्वाह न मिलने के बावजूद एक दिन के लिए भी आर्थिक तंगी के शिकार नहीं हो पाये। बल्कि उनके संसाधन ऐसे तमाम पत्रकारों से कई गुना ज्यादा बेहतर हैं, जो नियमित रूप से वेतन पाने के बावजूद आर्थिक संतुष्टि की परिधि से कोसो दूर हैं।   मामला बेहद संजीदा होता जा रहा है। लिहाजा कुछ पल के लिए माहौल हलका कर देते हैं। 'अनुरोध' फिल्म का एक गीत है, 'तुम बे-सहारा हो तो, किसी का सहारा बनो...' तो यहां भी ऐसा ही हुआ। बे-सहारा और सहारा का ऐसा घालमेल बना, जिसने कि पीत पत्रकारिता को भी कई सदियों पीछे धकेल दिया। यह प्रीत पत्रकारिता बन गयी। प्रीत, पैसे के लिए। संसाधनों के लिए। प्रीत के जरिये लोगों को फंसाया गया और फिर 'भय बिन होय न प्रीत...' की तर्ज पर भयग्रस्त लोगों से इस प्रीत की तगड़ी कीमत वसूली गयी। इस कांड के नाम पर आपको अखबार तथा सोशल मीडिया पर जिन महिलाओं की तस्वीरें दिख रही हैं, वो तो महज मुखौटा हैं। कठपुतली हैं। जिनकी डोर कई अन्य लोगों के हाथ में थी। जबकि मुख्य डोर दिल्ली से खींची जाती रही।   तीन दशक से अधिक की पत्रकारिता में मैंने पीत पत्रकारिता के कई अध्याय देखे हैं। तब ऐसा करने वालों पर क्रोध आता था। आज उन पर दया आ रही है। क्योंकि वे सार्वजनिक रूप से ऐसा करने के लिए बदनाम थे। पढ़ने-लिखने वाले मीडिया के बीच वे शर्मिंदगी के भाव से घिरे नजर आते थे। लेकिन हनी ट्रैपनुमा पत्रकारिता वाले तो इस पेशे के रसूखदार लोगों में गिने जाते रहे हैं। पद, प्रतिष्ठा और सम्मान की उन्हें कभी भी कमी नहीं आयी। यहां तक कि इस घटनाक्रम का खुलासा होने के चार दिन बाद भी पुलिस तथा कानून के हाथ उन तक नहीं पहुंच सके हैं। यह हमारे सिस्टम की कमजोरी तो नहीं, मजबूरी जरूर हो सकती है।क्योंकि इतना बड़ा माफिया भारी-भरकम बैकिंग के बगैर कतई संचालित नहीं किया जा सकता। तो अब इंतजार इस बात का है कि इस सबको पीछे से मिल रहा सहारा कब हटे और कब असली गुनाहगारों का चेहरा सामने लाया जाएगा। फंदे में बड़े भारी भरकम लोग हैं, इसलिए संभावना कम है।   मामले की गंभीरता एक खयाल से और बढ़ जाती है। जो शिकार बने, वे सभी सरकारी तंत्र के असरकारी नाम बताये जा रहे हैं। जाहिर-सी बात है कि ब्लैकमेलर्स ने इन लोगों से उनके पद का दुरूपयोग भी करवाया होगा। कहा जा रहा है कि कई वरिष्ठ अफसरों सहित सत्तारूढ़ दल और प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा के  जन प्रतिनिधि भी बड़ी संख्या में इस सबके मजे से शिकार हुए हैं। तो क्या यह नहीं पता लगाया जाना चाहिए कि इन सभी ने मायाजाल से बाहर निकलने के लिए किस-किस तरह के गलत कामों को अंजाम दिया होगा। यह जांच हुई तो निश्चित ही यह भी पता चल जाएगा कि ऐसे गुनाहगारों को सहारा प्रदान करने वालों ने गलत तरीके से सरकारी काम करवाने का ठेका भी ले रखा था। देर-सबेर यह सच सामने आकर रहेगा। नाम चाहे सार्वजनिक न हो पाएं। डर है कि पहले ही किसी पतित-पावन को तरस रही पत्रकारिता के दामन पर इसके बाद और कितने दाग नजर आने लगेंगे। इस सबकी इबारत उसी दिन लिख दी गयी थी, जब पत्रकारिता को ग्लैमर से जोड़ने का महा-गुनाह किया गया। ऐसा पाप करने वालों की फौज अब गुजरे कल की बात हो चुकी है, लेकिन उनके द्वारा रोपा गया विषवृक्ष का बीज आज इस पूरी बिरादरी में भयावह प्रदूषित हवा का संचार कर रहा है। यह हवा दमघोंटू है। इससे बचने के लिए नई खिड़कियां खोलने की संभावनाएं कोई और नहीं मीडिया में ही लोगों को तलाशनी होगी। प्रिंट मीडिया तक तो विश्वसनीयता बाकी थी लेकिन इलेक्ट्रानिक, डिजीटल और सोशल मीडिया के दौर में पत्रकारिता की आत्मा 'विश्वसनीयता' घायल पड़ी हुई है। इसलिए खबरें बेअसर हो रही हैं।  ताजी हवा का यह प्रसार पत्रकारिता के मूल्यों की दोबारा स्थापना से ही संभव हो सकेगा। माना कि यह बहुत दुश्वारी वाला काम है, लेकिन इस पेशे में सिर उठाकर चलने का दौर वापस लाने के लिए इस कड़ी मेहनत के अलावा और कोई चारा बाकी नहीं रह गया है।  तो जो ये दमघोंटू माहौल है, इससे बाहर आने खिड़की खोलिए.....रोशनी आएगी तो चेहरे भी साफ साफ दिखाई देंगे.....और डिओडरेंट की खुशबूओँ में छिपाई गई दुर्गन्ध भी बाहर होगी.....

Dakhal News

Dakhal News 28 September 2019


अनुपमा सिंह

हनीट्रैप मामला भोपाल… किस -किस को धमकी दोगे…..कोई चुप नहीं है … कोई बोल रहा, तो कोई बोल नहीं रहा…. आपकी करतूतें खुल गईं है सबके सामने …. चमड़ी की कमाई जब खाई है…. तो खिसियाट कैसी…. क्या केवल महिलाएं ही दोषी हैं? उन्हें लाने वाले पुरूष पत्रकार, उनका उपयोग करने वाले पुरुष पत्रकार दोषी नहीं? उन्हें पैसों की चकाचौंध दिखाने वाले पुरूष दोषी नहीं है? उन पुरूष पत्रकारों से माइक id छीनने के लिए किसी ने पहल क्यों नहीं की? किसी ने कभी उस समय क्यों नहीं सोचा कि भोपाल में आखिर ऐसा क्या है, जो दो साल में आते ही लोग घर, गाड़ी और अन्य सुविधाएं जुटा लेते हैं। एक 22 हजार की मामूली नौकरी करने वाली 3-3 गृहस्थियों को कैसे पाल रही है। एक का मिसयूज करने के लिए दूसरे की नौकरी खाना। अरे कब तक किस -किस को धमकी देते फिरोगे। क्या पत्रकारिता नहीं करेगा तो भूखा मर जायेगा कोई … किसके पुरखे कह गए, पत्रकारिता ही करो। पत्रकारिता व्यवसाय कभी नहीं था पर गन्दे लोगों ने आकर इसे भी रेड लाइट एरिया बना दिया। बस अंतर इतना है उनका जमीर होता है, वो मजबूरी में ये सब करती हैं, वो किसी को ब्लैकमेल नहीं करती, उन बेचारियों को करोड़ो नहीं मिलते। यहाँ चकाचौंध भी, मीडिया का सम्मान भी, बड़े – बड़े नेताओं, मंत्रियों, अधिकारियों से सम्बंध भी… सम्मानीय भी…. गजब की तरक्की है, भाई। जय हो(ग्वालियर की टीवी पत्रकार अनुपमा सिंह की एफबी वॉल से)

Dakhal News

Dakhal News 27 September 2019


अनुपमा सिंह

हनीट्रैप मामला भोपाल… किस -किस को धमकी दोगे…..कोई चुप नहीं है … कोई बोल रहा, तो कोई बोल नहीं रहा…. आपकी करतूतें खुल गईं है सबके सामने …. चमड़ी की कमाई जब खाई है…. तो खिसियाट कैसी…. क्या केवल महिलाएं ही दोषी हैं? उन्हें लाने वाले पुरूष पत्रकार, उनका उपयोग करने वाले पुरुष पत्रकार दोषी नहीं? उन्हें पैसों की चकाचौंध दिखाने वाले पुरूष दोषी नहीं है? उन पुरूष पत्रकारों से माइक id छीनने के लिए किसी ने पहल क्यों नहीं की? किसी ने कभी उस समय क्यों नहीं सोचा कि भोपाल में आखिर ऐसा क्या है, जो दो साल में आते ही लोग घर, गाड़ी और अन्य सुविधाएं जुटा लेते हैं। एक 22 हजार की मामूली नौकरी करने वाली 3-3 गृहस्थियों को कैसे पाल रही है। एक का मिसयूज करने के लिए दूसरे की नौकरी खाना। अरे कब तक किस -किस को धमकी देते फिरोगे।       क्या पत्रकारिता नहीं करेगा तो भूखा मर जायेगा कोई … किसके पुरखे कह गए, पत्रकारिता ही करो। पत्रकारिता व्यवसाय कभी नहीं था पर गन्दे लोगों ने आकर इसे भी रेड लाइट एरिया बना दिया। बस अंतर इतना है उनका जमीर होता है, वो मजबूरी में ये सब करती हैं, वो किसी को ब्लैकमेल नहीं करती, उन बेचारियों को करोड़ो नहीं मिलते। यहाँ चकाचौंध भी, मीडिया का सम्मान भी, बड़े – बड़े नेताओं, मंत्रियों, अधिकारियों से सम्बंध भी… सम्मानीय भी…. गजब की तरक्की है, भाई। जय हो(ग्वालियर की टीवी पत्रकार अनुपमा सिंह की एफबी वॉल से)

Dakhal News

Dakhal News 27 September 2019


jamal khagoshi

   मुंह को मत ढंको, मुझे अस्थमा है, यह मत करो आप मेरा दम घोट देंगे  सऊदी के पत्रकार जमाल खाशोगी ने अपने अंतिम शब्दों में हत्यारों से कहा था कि वह उसका मुंह नहीं ढंके क्योंकि वह अस्थमा से पीड़ित थे और उनका दम घुट सकता था। तुर्की की सरकार के करीब माने जाने वाले समाचार पत्र ने यह खबर प्रकाशित की है। इसमें खशोगी की सऊदी के हिट स्क्वैड के सदस्यों से हुई बातचीत की एक रिकॉर्डिंग की नई जानकारी प्रकाशित की गई है, जो खशोगी की हत्या करने के लिए आए थे। अखबार का कहना है कि खशोगी की हत्या 2 अक्टूबर 2018 को इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास में की गई थी और उनकी बातचीत की रिकॉर्डिंग को तुर्की की खुफिया एजेंसी ने हासिल किया था। इसके अनुसार, सऊदी हिट दस्ते का एक सदस्य मैहर मुतरेब ने खशोगी को बताया कि उसके खिलाफ इंटरपोल के आदेश के कारण उसे रियाद वापस ले जाना है। पत्रकार इसका विरोध करता है और कहता है कि उसके खिलाफ कोई कानूनी मामला नहीं है और उसकी मंगेतर बाहर उसका इंतजार कर रही है।अखबार के अनुसार, मुतरेब और एक अन्य व्यक्ति खाशोगी को अपने बेटे को संदेश भेजने के लिए मजबूर करने की कोशिश करते हैं। रिकॉर्डिंग में सुना जा सकता है कि वे दोनों खाशोगी से कहते हैं कि वह अपने बेटे को मैसेज भेजे कि यदि वह बात नहीं कर पाते हैं, तो वे चिंता न करें। खशोगी इसका विरोध करते हुए कहते हैं कि मैं कुछ नहीं लिखूंगा।खशोगी की हत्या 2 अक्टूबर 2018 को इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास में की गई थी और उनका शव आज-तक नहीं मिला है। मुतरेब को बाद में यह कहते हुए सुना गया- हमारी मदद करो, ताकि हम तुम्हारी मदद कर सकें। क्योंकि आखिर में हम आपको सऊदी अरब ले जाएंगे और यदि आप हमारी मदद नहीं करते हैं, तो आप जानते हैं कि अंत में क्या होगा। सबा ने भी खशोगी के अंतिम शब्दों को भी प्रकाशित किया। उसे कथिततौर पर नशा दिए जाने और बेहोश होने से पहले यह कहते हुए सुना गया था कि मेरे मुंह को मत ढंको, मुझे अस्थमा है, यह मत करो आप मेरा दम घोट देंगे। अखबार में प्रकाशित कुछ जानकारी का विवरण पहले से ही खशोगी की हत्या पर संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में हैं, जो जून में जारी की गई थी। यूएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि सऊदी अरब को हत्या की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की हत्या में संभावित भूमिका की जांच की जानी चाहिए।सऊदी अरब ने शुरू में खशोगी के लापता होने के बारे में कई बार बयान बदला। मगर, अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने के बाद सऊदी ने आखिर में यह कहा कि खगोशी से विवाद होने के बाद उसके दुष्ट अधिकारियों ने अपने वाणिज्य दूतावास के अंदर मार दिया था। इस मामले में सऊदी ने 11 लोगों पर गैर-सार्वजनिक कार्यवाही में ट्रायल पर रखा है। 33 वर्षीय राजकुमार को अपने पिता किंग सलमान का समर्थन मिला हुआ है और वह हत्या में किसी भी तरह अपना हाथ होने की बात से इंकार करते हैं। 

Patrakar amitabh upadhyay

amitabh upadhyay 11 September 2019


जेल पानी

  कलेक्टर और एसपी नाव से पहुंचे जेल   हरदा जेल में बंद 229 कैदियों की जान पर उस समय बन आयी जब अचानक बारिश का पानी जेल में घुस गया और बैरकों में पहुँच गया  |  जेल के कुल दो बैरेक ऐसे थे जो पानी में डूबने से बच गए थे  | सभी कैदियों को इन दो बैरेक में शिफ्ट किया गया  |  मौके का जायजा लेने कलेक्टर और एसपी को भी जेल तक नाव से पहुंचना पड़ा   |   पिछले 24 घंटों  हरदा में जोरदार बारिश हुई  | बारिश का पानी इंदौर-हरदा रोड पर बने जिला जेल में घुस गया  | भारी बारिश के चलते सुकनी नदी पूरे उफान पर है और  नदी का पानी हरदा जेल में घुस गया  | दो बैरकों को छोड़ दें तो पूरे जेल में पानी भर गया है  | एहतियातन सभी कैदियों को इन्हीं दो बैरकों में रखा गया है  | जेल में पानी घुसने की खबर मिलते ही प्रशासन हरकत में आया | खुद कलेक्टर एस विश्वाथन और एसपी भगवंत सिंह नाव में सवार होकर जेल तक पहुंचे और हालात का जायजा लिया |      कलेक्टर एस विश्वानाथन ने बताया कि, "बीती रात हुई तेज बारिश के चलते सुकनी नदी के किनारे बने जिला जेल में बारिश का पानी घुस गया था  | फिलहाल जलस्तर घट रहा है  | जेल में कुल 229 कैदी हैं  |  जिन्हें उन दो बैरकों में रखा गया है |  जहां पानी नहीं भरा है  |  कैदियों के नाश्ते की व्यवस्था की गई है | कैदियों के अलावा जेल अफसरों और कर्मचारियों के  परिवार भी  जेल परिसर में हैं  |  

Dakhal News

Dakhal News 9 September 2019


car accident

  भोपाल से इंदौर का रहे थे सभी लोग   सीहोर में  भोपाल-इंदौर हाईवे पर आज सुबह एक कार नाले में गिर गई  | ... इस हादसे में पांच लोगों की मौत हो गई |  ... यह सभी लोग भोपाल से इंदौर जा रहे थे। ..   भोपाल से इंदौर जा रहे है लोग एक दर्दनाक हादसे का शिकार हो गए | यह हादसा सीहोर के पास हुआ |  जब इंदौर जा रहे लोगों की कार नाले में गिर गई |  अब तक पुलिस ने चार शव बरामद कर लिए हैं |   ये सभी लोग भोपाल के आशिमा मॉल के सामने बने कार शोरूम में काम करते थे  |  आज इंदौर में कंपनी की एक मीटिंग होनी थी | इसी सिलसिले में सभी लोग कार में सवार होकर मीटिंग के लिए इंदौर निकले थे |   तभी सीहोर के जटा खेड़ा के पास इनकी कार हादसे का शिकार होकर पुलिया से नीचे गिर गई और कार में बैठे पांच लोगों की डूबने से मौत हो गई |  हादसे की जानकारी लगते ही पुलिस मौके पर पहुंचीं और शवों को निकालने का काम शुरू किया गया | फिलहाल चार शव बरामद हो गए |  जिनका सीहोर के सरकारी अस्पताल में पोस्टमॉर्टम कराया जा रहा है | सभी मृतक जीवन मोटर शोरूम पर काम करते थे |  कंपनी के अधिकारी नीरज ने बताया कि, ये सभी पांचों लोग कार में सवार होकर मीटिंग के लिए आज सुबह निकले थे | लेकिन सीहोर में इनकी कार को पीछे से किसी गाड़ी ने टक्कर मार दी  |  जिसके बाद कार अनियंत्रित होकर नाले में गिर गई और पांच कर्मचारियों की मौत हो गई |  

Dakhal News

Dakhal News 9 September 2019


chandrayaan-2 painting

   बच्चियों ने बनाई चन्द्रयान-2 से जुडी पेंटिंग      भले ही हमारा चन्द्रयान-2 अपने मिशन में पूरी तरह सफल नहीं रहा हो   लेकिन इससे देश के उत्साह में कोई कमी नहीं है  |  पूरा देश इस मौके पर ISRO के वैज्ञानिकों के साथ खड़ा है  | इसमें स्कूली बच्चे भी शामिल हैं  | इस खास लम्हे को यादगार बनाने के लिए शिवपुरी के गीता पब्लिक स्कूल की सात छात्राओं ने 9100 स्केवयर फीट की एक पेंटिंग बनाई  |      चन्द्रयान-2  की पूरी यात्रा पर बनी पेंटिंग में बच्चियों ने देश का झंडा भी बनाया हैं  |  चंद्रयान 2  चांद से भले ही कुछ कदम की दूरी पर  रह गया हो मगर   भारत के महात्वाकांक्षी मिशन के विक्रम लैंडर से संपर्क टूटने के बावजूद भी देश भर में  इसरो के वैज्ञानिकों की तारीफ हो रही है  |  और इस पेंटिंग को बनाकर बच्चियों ने पुरे देश  की तरफ से इसरो के  वैज्ञानिकों को सन्देश दिया हैं की पूरा भारत उनके साथ हैं |     

Dakhal News

Dakhal News 7 September 2019


श्री महाकालेश्वर मंदिर को "स्वच्छ आइकॉनिक स्थल का पुरस्कार मिला

  नई दिल्ली में केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री ने दिया कलेक्टर को पुरस्कार   स्वच्छ भारत मिशन में महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन को जल शक्ति मंत्रालय एवं पेयजल और स्वच्छता विभाग, भारत सरकार द्वारा फेज-2 में फर्स्ट रनरअप 'स्वच्छ आइकॉनिक स्‍थल'' घोषित किया गया है। आज दिल्ली में यह पुरस्कार केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने उज्जैन कलेक्टर श्री शशांक मिश्रा को दिया।   द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक भगवान श्री महाकालेश्वर मंदिर के हर कोने में स्वच्छता एवं सुंदरता दिखाई पड़ती है। यहाँ पर आधुनिक मशीनों से साफ-सफाई करवाई जा रही है। इसीलिये स्वच्छता के सभी मानकों पर मंदिर की व्यवस्थाएँ खरी उतरी हैं।   इस दौरान जिला पंचायत, उज्जैन के सीईओ श्री नीलेश पारिख और महाकालेश्वर मंदिर समिति के प्रशासक श्री सुजान सिंह रावत उपस्थित थे।    

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Dakhal News 6 September 2019


नौकरी  कार्यवाही जल्दी

मंत्री श्री शर्मा द्वारा 65वीं शालेय खेल कूद प्रतियोगिता का शुभारंभ जनसम्पर्क मंत्री श्री पी.सी. शर्मा ने आज यहाँ  मेजर ध्यानचंद स्टेडियम मेँ 65वीं राज्य स्तरीय शालेय खेल कूद प्रतियोगिता का शुभारंभ किया। श्री शर्मा ने खिलाड़ियों को शपथ दिलाई और खिलाड़ियों से परिचय भी प्राप्त कियाl  मंत्री श्री शर्मा ने प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के स्कूलों से आये 1600  से अधिक बालक-बालिका वर्ग के खिलाड़ियों से कहा कि खेल का  शारीरिक और मानसिक विकास मेँ बड़ा योगदान हैl  उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के विभिन्न विभागों मेँ खेल कोटे से खिलाड़ियों को नौकरी देने की कई वर्षों से रुकी कार्रवाई को जल्दी शुरू की जाएगी। भोपाल मेँ खिलाड़ियों को ठहरने के लिये स्पोर्टस काम्प्लेक्स का निर्माण करवाया जाएगा।   श्री शर्मा ने विभाग के अधिकारियों से कहा कि खेलों के आयोजन की व्यवस्थाओं मेँ किसी प्रकार की कोई कमी नहीँ रहनी चाहिएl  पार्षद श्री योगेन्द्र सिंह चौहान गुड्डू , श्री नसीम खान, आयोजन समिति के पदाधिकारी और खेल टीमों के मैनेजर मौज़ूद थे l  

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Dakhal News 4 September 2019


सलमान गणेश विसर्जन

  स्वरा के साथ सलमान जमकर नाचे   अब बात आज के वीडिओ वायरल की  बॉलीवुड स्टार सलमान खान  के डांस का वीडिओ जमकर वाइरल हो रहा है |  सलमान ने गणेश विसर्जन कार्यक्रम में जमकर ठुमके लगाए   सलमान के डांस का वीडिओ जमकर वायरल हो रहा है |  इसमें सलमान स्वरा के साथ डांस करते नजर आ रहे हैं |  सलमान अपनी बहन अर्पिता के घर गणेश विसर्जन कार्यक्रम में पहुंचे थे | वहां सोनाक्षी सिन्हा, डेजी शाह, नेहा धूपिया भी नजर आयीं |    सलमान खान गणेश उत्सव के दूसरे दिन बहन अर्पिता खान शर्मा के घर गणेश विसर्जन पर परिवार के साथ पहुंचे | सलमान ने न केवल अपने भतीजे आहिल के साथ गणेश आरती की, बल्कि जमकर  डांस भी किया  |  सलमान खान फिल्म 'दबंग 3' की शूटिंग में व्यस्त हैं | फिल्म में सलमान के साथ सोनाक्षी सिन्हा. किच्चा सुदीप और अरबाज खान भी मुख्य किरदार निभा रहे हैं |  यह फिल्म दिसंबर में रिलीज होगी  अर्पिता के घर पर ये सभी नजर आये सलमान और अन्य सितारों ने गणेश जी की आरती में भाग लिया |      गणेश विसर्जन के दौरान नाच रहे सलमान का वीडियो वायरल हो गया है  | उनके साथ स्वरा भास्कर भी नाचती नजर आ रही है  सलमान को बराबर डांस में टक्कर दे रही स्वरा का डांस काफी बिंदास और मुंबईयां अंदाज का था |  ढोल-ताशों पर सलमान खान खूब नाचे |   गणेश विसर्जन में सोनाक्षी सिन्हा, डेजी शाह, नेहा धूपिया और अंगद बेदी सहित कई सेलेब्स ने शिरकत की | सलमान ने अर्पिता, आयुष और अपनी भतीजी अलीजा अग्निहोत्री के साथ भी जमकर डांस किया | फिल्ममेकर अतुल अग्निहोत्री ने इस उत्सव के दौरान के सलमान के कई वीडियो शेयर किए है | इन वीडियो में अर्पिता, अरबाज, सोहेल और उनकी मां सलमा खान भी नजर आ रही हैं | 

Dakhal News

Dakhal News 4 September 2019


davv -ganesh

  गणपति बप्पा के स्वागत में नाचे स्टूडेंट    इंदौर में गणेशोत्सव की धूम है |  आज सुबह सबसे पहले नाचते गाते विद्यार्थी सड़कों पर निकले पर  और गणपति बप्पा को लेकर देवी अहिल्या विश्वविद्यालय परिसर में लेकर आये और उनकी स्थापना की  |    खंडवा रोड स्थित देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश का आगमन हुआ  |  यूनिवर्सिटी कैंपस के सभी स्टूडेंट ने बप्पा का स्वागत नाच-गाकर किया  | यहां अलग-अलग डिपोर्टमेंट में गणेश प्रतिमाओं की स्थापना की गई है  | सभी डिपोर्टमेंट के स्टूडेंट्स में गणेश उत्सव को लेकर काफी उत्साह नजर आ रहा है  | सभी  स्टीडेंट गणेश उत्सव के लिए  ट्रेडिंशन ड्रेस में  पहुंचे और नाचते गाते गणपति बप्पा को लेकर विश्विद्यालय पहुंचे  |  

Dakhal News

Dakhal News 2 September 2019


air india

  और प्रसिद्ध होगा ग्वालियर का मानसिंह महल    ग्वालियर का ऐतिहासिक दुर्ग अब एयर इंडिया की फ्लाइट का हिस्सा बन गया है | जहाज के टेल पोर्शन में ग्वालियर किले  के मानसिंह पैलेस को जगह दी गई है | अब यह दुर्ग विश्व की हर उस जगह जाएगा, जहां एयर इंडिया की फ्लाइट जाती है |    ग्वालियर का किला और उसकी पहचान राजा मानसिंह का महल मान मंदिर अब हवा में उड़ता नजर आएगा |  एयर इण्डिया ने इसे अपने टेल पोर्शन पर जगह दी है | टूरिज्म कंपनी के मैनेजर पुनीत द्विवेदी ने बताया कि एयर इंडिया ने दिल्ली का लाल किला और ग्वालियर दुर्ग के मान सिंह पैलेस को चुना है |  एयर इंडिया की फ्लाइट की टेल पोर्शन पर टूरिज्म को प्रमोट करने के लिए कई ऐतिहासिक स्थल लिए हैं, लेकिन किले केवल दो ही हैं | ग्वालियर किला हमेशा से देशी विदेशी पर्यटकों में आकर्षण का केंद्र रहा है | किले का मुख्य आकर्षण महाराजा मानसिंह महल को देखने के लिए हर वर्ष  लाखों देसी विदेशी  पर्यटक यहां आते हैं। ग्वालियर दुर्ग का मानसिंह महल पूरी दुनिया में अपनी दुर्लभ बनावट के लिए  प्रसिद्ध है, एयर इंडिया के इस टेल डिजाइन में आने के बाद कई देश मानसिंह महल के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं | राजा मानसिंह तोमर ने 1486  से 1516 के बीच महल का निर्माण करवाया था |  इसकी बाहरी दीवारों पर पीले बतख, नीले, पीले और हरे रंग के हाथी, बाघ और मगरमच्छ और बेजोड़ पच्चीकारी की गई है | एयर इंडिया ने अपने अपने एयरक्राफ्ट पर ग्वालियर के दुर्ग सहित देश की ऐतिहासिक धरोहरों को स्थान देकर इन्हें दुनियाभर में प्रचारित करने का अनोखा प्रयोग किया है | इससे ग्वालियर सहित देश का गौरव दुनियाभर में बढ़ेगा |  

Dakhal News

Dakhal News 2 September 2019


ganesh ji

    मिट्टी की बनी मूर्तियां पसंद कर रहे हैं लोग  प्लास्टर ऑफ पैरिस की मूर्तियों पर लगा  प्रतिबन्ध   गणेश उत्सव की तैयारियां बड़े धूम धाम से की जा रही है |  जगह जगह गणेश भगवान् की एक फ्रेंडली  मूर्तियां बनाई गई हैं | प्रशासन के आदेश के बाद प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों पर प्रतिबन्ध लगाया गया है  | जिसको देखते हुए शहर में मिटटी की मूर्तियां बनाई गई हैं |    भोपाल में गणेश उत्सव को लेकर लोगों में काफी उत्साह देखने को मिल रहा है |  नगर निगम और प्रशासन के आदेश के बाद प्लास्टर ऑफ पैरिस की बनी मूर्तियों पर रोक लगाई गई है | जिसको देखते हुए शहर में मूर्तिकारों और विक्रेताओं ने मिटटी की मूर्तियां बनाई है | शाहपुरा स्थित एक बीज संस्था ने मिटटी की मूर्तियों के  विक्रय का एक बेहतरीन प्रयास किया है | जिसमे यह संस्था गांव में लोगों को मिटटी की मूर्ती बनाने को प्रेरित करती है | और बनी हुई मूर्तियों को बेचा जाता है | संस्था की ऑनर कंचन का कहना है की ऐसा करने से एक तो गांव में रोजगार पैदा होता है |  वही दूसरी ओर पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है |  

Dakhal News

Dakhal News 2 September 2019


गढढों की धड़कन

  गढढों की चेक की  धड़कन  चढ़ाया ग्लूकोस  सड़कों के जीवन के लिए महिलाओं ने रखा व्रत     शहर की लगभग सभी सड़के गढ्ढों में तब्दील हो चुकी हैं | ये सड़के कही सीवेज की लाईन बिछाने के नाम पर खोदी गई तो कही पानी की लाईन के लिए | मगर उसे फिर से बनाना प्रसाशन भूल गया और जब बारिश हुई तो कीचड़ और पानी से भरे गढ्ढे बचे  सड़के यमलोक सिधार गई | इसलिए लोगो ने दम तोड़ती सड़कों के गढढों की धड़कन चेक कर  ग्लूकोस चढ़ाया और रही बची सड़कों के लिए महिलाओं ने उनकी जीवन की प्रार्थना कर व्रत रखा |        सड़क के गड्ढों के कारण वाहन चालकों का निकलना बहुत मुश्किल हो गया है |  कई लोग गिरकर घायल हो रहे हैं |  तो किसी के वहान कीचड़ में फंस जाते हैं इसको देखते हुए सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए बाग मुगालिया एक्सटेंशन कॉलोनी विकास समिति द्वारा | एक अनोखा प्रदर्शन किया गया  | दशहरा मैदान सरिता सेतु के पास सड़क के गड्ढों की धड़कन चेक कर उपस्थित डॉक्टरों द्वारा ग्लूकोस की बोतल लगाई गई | घटिया निर्माण होने से बारिश में सड़कों के गड्ढों के कारण चलना नामुमकिन हो गया है |   इसको लेकर आज महिला पुरुष वृद्ध बच्चों द्वारा उपस्थित होकर अच्छी सड़कों की मांग सरकार से की गई भ्रष्टाचार के कारण हर दो-तीन महीने में सड़क खराब हो जाती है इसका खामियाजा टैक्स देने वाली जनता को भुगतना पड़ता है | प्रसाषन की आंखे खोलने और बची हुई सड़कों की लम्बी जिंदगी के लिए महिलाओं ने व्रत भी रखा |

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Dakhal News 1 September 2019


बस टकराई

  नागपुर से सागर जा रही बस दुर्घटनाग्रस्त    ड्राइवर की लापरवाही के कारण सागर से नागपुर जा रही बस अनियंत्रित हो कर पहाड़ से टकरा गई | ये हादसा परतापुर-कुंडाली मार्ग के  पास रात करीब 3 बजे हुआ  इसमें 12 यात्री घायल हो गए  |    नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर दूर छिंदवाड़ा जिले के  परतापुर-कुंडाली मार्ग के बीच एक बस देर रात अनियंत्रित होकर पहाड़ी से टकरा गई | हादसे में बस में सवार 12 यात्री घायल हो गए  |  बस नागपुर से सागर जा रही थी  |  हादसे में गंभीर रूप से घायल कंडक्टर अनिल अवस्थी को जबलपुर रेफर किया गया है  | बाकी 11 घायलों को एंबुलेंस के जरिए  नरसिंहपुर जिला अस्पताल में भर्ती करवाया गया है  | इसमें 9 यात्री सागर जिले के बताए जा रहे हैं  | हादसे की वजह रास्ते से गुजर रहे एक डंपर द्वारा बस को क्रासिंग के दौरान कट मारना बताया  जा रहा  है  | जबकि यात्रियों का कहना है बस ड्राइवर लापरवाही से बस चला रहा था और अचानक उसे झपकी लग जाने के कारण यह हादसा हुआ  |  

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Dakhal News 31 August 2019


sdrf rescue

  पानी में डूबे तीन दोस्तों में से एक बचा    भोपाल की केरवा नदी पर पिकनिक मानाने गए तीन दोस्त बह गए थे  | जिनमे से एक को तो रेस्क्यू टीम ने तत्काल बचा लिया था   लेकिन बाकि दो दोस्तों के शव ही वापस उनके घर पहुँच सके  | इस घटना के बाद केरवा इलाके में बड़ी संख्या में पुलिस को तैनात किया गया है   |   भोपाल  में केरवा नदी में नहाने के दौरान तीन युवकों के बहने की घटना के बाद मंगलवार को पुलिस और प्रशासन चेत गया   |  लिहाजा केरवा डैम के चप्पे-चप्पे पर अब पुलिसकर्मी तैनात कर दिए गए हैं  |सोमवार को केरवा नदी में तीन युवक बह गए थे   | उनमें से एक मुकेश कोचले तो बच गया था   | वहीं मंगलवार सुबह रेस्क्यू टीम को दूसरे युवक शंकर मंडलोई का शव मिल गया, जबकि तीसरे मुकेश हिरवे का  शव बुधवार को नदी से निकाला गया   इतनी बड़ी घटना के बाद भी लोग यहां के खतरनाक स्थानों में जाने से नहीं चूक रहे हैं   | स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स  की पुलिस और होमगार्ड की टीम सुबह पांच बजे से लेकर शाम 7 सात बजे तक रेस्क्यू करती रही, लेकिन मुकेश का लगाव नहीं मिला वहीं उसके परिजन सुबह से आस लगाए बैठे थे कि कहीं उनका बच्चा मिल जाए   | उसके पिता आस भरी नजरों से रेक्स्यू टीम को देख रहे थे  | तभी रेस्क्यू टीम को कुछ संकेत मिले और वह जल की तलहटी से मुकेश के शव को निकाल के लाये  | थोड़ी से मौज मस्ती में दो युवक असमय काल के गाल में समां गए  |   

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Dakhal News 28 August 2019


 hadsa

  बाल बाल बची महिला अफसर   नरसिंगपुर में लोक अभियोजन कार्यालय का पिलर कार पर  गिरने से कार चकनाचूर हो गई गनीमत रही की हादसे के  वक़्त  कार में कोई नहीं था  | पिलर गिरने से बिल्डिंग निर्माण को लेकर कई सवाल खड़े हो गए  है   |        नरसिंहपुर के जिला लोक अभियोजन कार्यालय में बड़ा हादसा हो गया  |   महिला अफसर जैसे ही  कार से उतरकर दफ्तर में घुसी, तभी पिलर  कार पर  गिर गया |  सहायक जिला अभियोजन अधिकारी संगीता दुबे एक बड़े हादसे का शिकार होने से बच गई  | पिलर गिरने की वजह से उनकी कार चकनाचूर हो गई   इस हादसे के बाद बिल्डिंग निर्माण को लेकर भी सवाल खड़े किये जा रहे  |  आशंका जताई जा रही है की बिल्डिंग निर्माण में गड़बड़ी के कारण  यह हादसा हुआ  |        

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Dakhal News 27 August 2019


gundagardi

नगर निगम की रिमूवल गैंग की गुंडागर्दी  इंदौर नगर निगम में गुंडों की फ़ौज    इंदौर नगर निगम की रिमूवल गैंग  |    गुंडा गैंग में तब्दील हो गई है  |  ये लोगों को धमकाती है उनके साथ अभद्रता करती है और जब कोई इनसे बातचीत करना चाहे तो ये उन्हें मारती है |   इस गैंग का एक महिला के साथ मारपीट का वीडिओ वायरल हुआ है |  जो बताता है कि इंदौर की सड़कों पर कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज ही नहीं हैं|    इंदौर नगर निगम की रिमूवल गैंग का एमआर टेन इलाके में मारपीट का वीडियो वायरल हुआ है |   इसमें नगर निगम के कर्मचारियों ने लाठियों से एक महिला की पिटाई की   | नगर निगम के ये गुंडे महिला को मरते हुए खुद को मर्द साबित करना चाह रहे थे   |  इस महिला की जो भी मदद करने आया नगर निगम के गुंडों ने उनकी भी पिटाई कर दी |  नगर निगम की ये रिमूवल  गैंग  यहां ठेला चालकों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पहुंची थी  |   इस महिला ने जब इनसे ऐसा करने का कारन पूछा तो गैंग के गुंडों को बुरा लग गया और ये सब लठ्ठ लेकर महिला पर पिल पड़े |    इस गैंग में शामिल इन लोगों ने सड़कों पर जमकर उत्पात मचाया और लोगों को मारा  | ऐसा लग रहा थी कि इंदौर जैसे शहर में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज है ही नहीं |     

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Dakhal News 21 August 2019


encounter

  एनकाउंटर की  मजिस्ट्रियल जांच के आदेश   जबलपुर के दो नामी बदमाशों  को नरसिंहपुर पुलिस ने मार गिराया है  | दोनों पर हत्या, लूटपाट,अवैध वसूली सहित अन्य गंभीर मामले दर्ज थे  |  पुलिस मुठभेड़ में मारे गए बदमाशों का नाम विजय  यादव और समीर खान बताए  है  |  इन पर जबलपुर के कांग्रेस नेता राजू मिश्रा और कुक्कू पंजाबी की हत्या का भी आरोप था  | इस मुठभेड़ में एएसपी राजेश तिवारी, गोटेगांव टीआई प्रभात शुक्ला और एक प्रधान आरक्षक भी घायल हुए हैं  | इस मुठभेड़  की  मजिस्ट्रियल जांच के आदेश भी किये गए हैं  | मुठभेड़ नरसिंहपुर के सुआतला थाना के कुमरोडा गांव के पास हुई   |   इसमें जबलपुर के दो इनामी बदमाश मारे गए हैं  |   जबलपुर के कोतवाली थाने ने इन दो बदमाशों के खिलाफ इनाम का ऐलान किया हुआ था  |   विजय यादव के बारे में जानकारी देने पर तीस हजार और समीर खान के बारे में बताने पर 15 हजार का इनाम घोषित  था   |   विजय यादव लंबे वक्त से फरार चल रहा था  |    वो जबलपुर के गोरखपुर इलाके का रहने वाला था  |    इस पर हत्या, आर्म्स एक्ट के अलावा कई और संगीन धाराओं में मामले दर्ज थे   |   वहीं इस मुठभेड़ में मारा गया दूसरा  बदमाश समीर हनुमानताल का रहने वाला था और उस पर भी कई गंभीर धाराओं में मामले दर्ज थे और वो भी लंबे वक्त से फरार चल रहा था  |     इस एनकाउंटर में घायल हुए पुलिस अफसरों को जिला अस्पताल लाया गया है  |  यहां सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं  |    मुठभेड़ सोमवार तड़के तीन बजे नेशनल हाईवे 12 पर हुई  |  जिसमें राजेश शर्मा नाम के एक प्रधान आरक्षक भी घायल हुए हैं  |    जिन्हें इलाज के लिए जिला अस्पताल लाया गया है   |  एनकाउंटर में शामिल रहे एएसपी राजेश तिवारी ने बताया कि पुलिस को मुखबिर से बदमाशों के इलाके में बड़ी वारदात अंजाम देने की जानकारी मिली थी  |   इसके बाद इलाके में तलाशी अभियान चलाया गया था    सोमवार तड़के तीन बजे पुलिस को एक गाड़ी नजर आई  .जिसे रोकने की कोशिश की गई तो अंदर से फायरिंग शुरू हो गई  |   पुलिस ने मोर्चा लेते हुए जवाबी फायरिंग की  |   जिसमें कार में बैठे दो बदमाशों को गोली लगी  |   जिन्हें  स्थानीय अस्पताल ले जाया गया  |   जहां दोनों को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया  |    एनकाउंटर के दौरान दोनों तरफ से 15 से 17 राउंड गोली चली है  |     दोनों बदमाशों  विजय यादव और समीर खान का पूरे महाकोशल में दबदबा था   |  दोनों पर हत्या, अपहरण और अवैध वसूली से जुड़े कई गंभीर मामले दर्ज थे   नरसिंहपुर एसपी गुरुकरण सिंह ने बताया कि, "ये दोनों बदमाश ढाई साल से फरार चल रहे थे   |  सोमवार तड़के जब इन्हें रोकने की कोशिश की तो इन्होंने पुलिस पर फायरिंग कर दी |    जवाबी कार्रवाई में दोनों बदमाश ढेर हो गए  |    मामले की गंभीरता को देखते हुए मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दे दिए गए हैं |     

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Dakhal News 19 August 2019


gas cylinder

  उमरिया में हादसा ड्राइवर क्लीनर घायल HP  गैस कम्पनी के खली सिलेंडर लेकर जा रहा ट्रक | सड़क पर पलट गया  | बताया जा रहा हैं की ट्रक एक अन्य गाड़ी को ओवर टेक करने की कोशिश कर रहा थी ट्रक की गति तेज थी जिसको वो नियंत्रित नहीं कर पाया और पलट गया  | हादसे में किसी तरह की जनहानि की खबर नहीं हैं | उमरिया मुख्यालय से 6 किमी दूर कोतवाली थाना अंतर्गत |  शहपुरा मार्ग पर एचपी कंपनी के खाली गैस सिलेंडर से भरा एक ट्रक पलट गया |  इस घटना में चालक महेश और क्लीनर धन्नू  गंभीर रूप से घायल बताए जा रहे हैं  | जिन्हें उपचार के लिए 108 की मदद से जिला अस्पताल  ले जाया गया  | बुधवार की सुबह 7 बजे हुए इस हादसे की मुख्य वजह ट्रक को अन्य गाडी को तेज गति से ओवर टेक करना बताया जा रहा हैं  | जिसके बाद अनियंत्रित होकर ट्रक पलट गया | दुर्घटनाग्रस्त ट्रक भोपाल के विकास जैन का है  | जो जबलपुर डिपो से सिलिंडर लेकर अनूपपुर जा रहा था |   

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Dakhal News 14 August 2019


vinod kapri

विनोद कापड़ी ने टीवी9 भारतवर्ष को गुडबॉय बोल दिया… टीवी9 भारतवर्ष के मैनेजिंग एडिटर विनोद कापड़ी ने आखिरकार चैनल को अलविदा कह दिया. भड़ास पर इस बाबत पहले ही खबर छप चुकी है. टीवी9 भारतवर्ष चैनल के स्टाफ ने विनोद कापड़ी को विदाई दी. इस मौके पर ग्रुप फोटो भी हुए. विनोद कापड़ी ने न्यूज रूम में जाकर सभी से हाथ मिलाया. भावुक कर देने वाले इस क्षण के दरम्यान हर कोई इस चैनल के निर्माण में विनोद कापड़ी की मेहनत और विजन की तारीफ कर रहा था. विनोद कापड़ी ने अपना अंतिम विदा पत्र पूरे स्टाफ को जो भेजा वो यूं है- दोस्तों… कुछ मीठा हो जाए… शाम 6.15 बजे आइए कैफ़ेटेरिया में .. जलेबी और समोसे के साथ…कुछ जश्न हो जाए…शानदार जानदार काम करने का और आप से जुदा होने का ?? .. कई दोस्तों ने पिछले कुछ दिनों में कई बार कहा कि सर launch party कब है? तो मैं उनसे कहता था farewell party की तैयारी करो…तो इसे वो पार्टी भी समझ लिया जाए ?? बात बस इतनी कहनी है कि जीवन भर अपने कुछ उसूलों पर अमल किया.. ये छोटे मोटे उसूल ही आपको उर्जा देते हैं…पिछले कुछ दिनों में कई बार लगा कि चलिए कुछ सुलह सफ़ाई समझौते कर लेते हैं… लेकिन वो जो आपका अंतर्मन होता है ना… वो आपसे जब सवाल करने लगता है तो फिर आप अपने मन की सुनते है… क्योंकि वही अंतर्मन आपको खुद अपने लिए सम्मान दिलाता है। और दूसरी बात.. आप सब जानते हैं कि फ़िल्म मेरा पहला प्यार है… ये फ़िल्मे ही हैं… जिस की वजह से पाँच साल पहले मैंने जमे जमाए टीवी करियर को छोड़ दिया था… मैंने वापसी की थी अपने 23 साल पुराने दोस्त रवि प्रकाश के लिए… जिसने हाड़ माँस से TV9 को पैदा किया…बनाया… और यहाँ तक पहुँचाया… मेरे सारे दोस्त जानते हैं कि रवि नहीं होता तो मैं टीवी में नहीं आता… हाँ .. इस मौक़े पर मैं उन सबसे माफ़ी माँगना चाहूँगा जो मुझ पर भरोसा करके यहाँ आए.. इस तरह इस क़दम के लिए मैं आपका गुनहगार हूँ पर आप अगर मुझे जानते हैं तो आप मेरी मजबूरी समझेंगे… फिर भी आपका विश्वास तोड़ने के लिए आपसे बार बार माफ़ी माँगता हूँ.. सच कहूँ तो ये वो आप ही लोग थे कि जिनकी वजह से मैंने सोचा कि चलो थोड़े बहुत समझौते जीवन में कौन नहीं करता.. मुझे भी कर लेने चाहिए.. लेकिन फिर उसकी भी एक सीमा होती है… साथ ही मैं आप सब को आश्वस्त करना चाहता हूँ TV9 एक शानदार ग्रुप है… 16 साल में इस ग्रुप ने जानदार काम किया है…आगे भी इस ग्रुप की बड़ी योजनाएँ हैं…नए मैनेजमेंट के भारतवर्ष को लेकर बड़े प्लान हैं… इसलिए आप सब लोग बिलकुल भी चिंता ना करें… सब कुछ यथावत चलता रहेगा… शायद और बेहतर होगा… कम से कम अब न्यूज़रूम में कोई चिल्लाने वाला नहीं होगा…News में कुछ प्रयोग किए थ…जिन पर मुझे गर्व ह … आप लोग उसे चलाते रहेंगे तो बेहद ख़ुशी होगी… आख़िरी बात .. आप सब जानते है .. टीवी पत्रकारिता के लिए ये एक बेहद मुश्किल वक्त है… मुझे बस इतना ही कहना है कि आप सिर्फ निष्पक्ष भी रहेंगे तो पत्रकारिता की बहुत बड़ी सेवा हो जाएगी… आप सबको बहुत सारा प्यार… आप सब को और भारतवर्ष के सपने को हमेशा मिस करूँगा…. BIG THANKS to all of you. All my love and best wishes friends [भड़ास फॉर मीडिया से साभार ]  

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Dakhal News 2 June 2019


 WhatsApp

लोकप्रिय मैसेजिंग प्लेटफॉर्म WhatsApp हमेशा की अपने फ्रेश रखने के लिए एक के बाद एक नए अपडेट पेश कर रहा है। फेसबुक के स्वामित्व वाली इस कंपनी ने अब अपने लेटेस्ट बीटा अपडेट के साथ कुछ दिलचस्प फीचर्स पेश किए हैं। WABetaInfo द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार ऐप स्टोर में नया बीटा अपडेट मिला है, जिसके बाद WhatsApp बहुत जल्द प्रोफाइल फोटो को कॉपी, सेव या डाउनलोड करने का ऑप्शन हटा देगा। आईओएस यूजर के लिए ये लेटेस्ट बीट अपडेट हो सकता है। बता दें कि यह फीचर पहले एंड्रॉयड के अपडेट में भी देखने को मिला था। हालांकि, ग्रुप चैट्स के लिए यह लागू नहीं है। यूजर्स WhatsApp ग्रुप आईकन की फोटो अभी भी सेव कर सकते हैं। WABetaInfo के पेज पर इस फीचर को हटाने को लेकर कई लोगों ने ये भी कहा है कि किसी भी प्रोफाइल फोटो को सेव करने के लिए स्क्रीनशॉट अब भी लिए जा सकते हैं। ऐसे में भले कोई प्रोफाइल फोटो डाउनलोड ना कर सके, लेकिन उसका स्क्रीनशॉट आसानी से ले सकता है इसके अलावा, अपडेट के साथ WhatsApp ने ऑडियो फॉर्मेट को लेकर भी बदलाव किए हैं। अभी तक ऑडियो भेजने और रिसीव करने के लिए OPUS फॉर्मेट का इस्तेमाल करता था, लेकिन WhatsApp ऑडियो फाइल्स को अब M4A फॉर्मेट में रिसीव करेगा और भेजेगा। इस बदलाव का कारण है कि OPUS फॉर्मेट सभी ऐप्स सपोर्ट नहीं करता है। गौरतलब है कि हाल ही में पुष्टि हुई है कि साल 2020 से WhatsApp में विज्ञापन दिखना शुरू हो जाएंगे। नीदरलैंड्स में एनुअल मार्केटिंग सबमिट के दौरान इस बारे में खुलासा हुआ कि शुरुआत में विज्ञापन यूजर्स को WhatsApp स्टोरी सेक्शन में दिखाए जाएंगे। बता दें कि इंस्टाग्राम में पिछले साल से ही विज्ञापन शुरू किए जा चुके हैं।

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Dakhal News 1 June 2019


 पिचाई  गूगल

    सर्च इंजन कंपनी गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने लाखों डॉलर के मूल्य के गूगल स्टॉक्स को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने 2 साल से इक्विटी अवॉर्ड (शेयरों के रूप में मिलने वाला भुगतान) नहीं लिया है। पिछले साल शेयर लेने से इनकार करते हुए पिचाई ने कहा था कि उन्हें पहले ही काफी भुगतान मिल चुका है। इस बात की जानकारी ब्लूमबर्ग मीडिया ने सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी है। पिचाई ने कितनी वैल्यू के शेयर छोड़े, इसे लेकर आई एक रिपोर्ट के अनुसार संभवतः इनकी कीमत 58 मिलियन डॉलर हो सकती है। हालांकि यह भी हो सकता है पिचाई ने रणनीति के तहत शेयर लेने से मना किया हो क्योंकि गूगल के कर्मचारी , सीईओ का वेतन बहुत ज्यादा होने को लेकर सवाल उठा चुके हैं। जबकि कई कर्मचारियों के लिए रोज की जरूरतें पूरा करना भी मुश्किल होता है। अल्फाबेट इस साल सीईओ के वेतन पर फिर से करेगी विचारअगर पिचाई के पिछले शेयर अवॉर्ड्‌स की बात करें तो 2014 में उन्हें 25 करोड़ डॉलर (1750 करोड़ रुपए) की वैल्यू के शेयर मिले थे। 2015 में गूगल ने उन्हें 10 करोड़ डॉलर (700 करोड़ रुपए) और 2016 में 20 करोड़ डॉलर (1400 करोड़ रुपए) की वैल्यू के शेयर दिए थे। गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फाबेट इस साल सीईओ के वेतन पर फिर से विचार करेगी। उस वक्त तक पिचाई के पिछले शेयर उनके खाते में आ जाएंगे।

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Dakhal News 1 June 2019


modi

    वर्ष 2019 के जनादेश से हमें दो संदेश मिलते हैं। एक तो यह कि तमाम विविधताओं के बावजूद जब भारत के नागरिकों के सामने अपने भविष्य की दिशा तय करने की चुनौती आती है तो वे एक राष्ट्रीय सहमति का निर्माण करने में सक्षम होते हैं। हम बुद्धिजीवी और पत्रकार दिशाभ्रम के शिकार हो सकते हैं, लेकिन जनता इस समस्या से पीड़ित नहीं है। जनादेश से जुड़ा दूसरा संदेश यह है कि मिथ्या प्रचार करने वाले सबसे पहले खुद अपने विचारों में कैद होकर बाहरी दुनिया से बेखबर हो जाते हैं। गुजरात से लेकर असम तक और कर्नाटक से लेकर हिमाचल तक मतदाताओं ने एकमत से देश की बागडोर प्रधानमंत्री मोदी को सौंपने का फैसला किया। यह राष्ट्रीय सहमति हमारे लोकतंत्र की परिपक्वता का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को विपक्ष कभी प्रभावी चुनौती नहीं दे पाया, लेकिन किसी सकारात्मक कार्यक्रम के आधार पर भारी बहुमत हासिल करने का एक उदाहरण पहले भी मिला था। 1971 में इंदिरा गांधी ने 'गरीबी हटाओ जैसे नारे के दम पर सत्ता हासिल की थी। हालांकि वह इस वादे को निभाने में बुरी तरह विफल रही थीं। 1984 में राजीव गांधी को भारी बहुमत मिला था, लेकिन वह जनादेश इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति का परिणाम था। पीवी नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की गठबंधन सरकारें अपने अस्तित्व को बचाने और रूठे सहयोगियों को मनाने में ही लगी रहीं। हालांकि इस दौरान कुछ बहुत अच्छे काम भी हुए, लेकिन मनमोहन सिंह के शब्दों में 'गठबंधन की राजनीति की मजबूरियों के कारण ये सरकारें सांसदों की खरीदफरोख्त, भ्रष्टाचार में लिप्त मंत्रियों के बचाव और देश की अर्थनीति और विदेश नीति से संबंधित कठोर फैसलों से कतराती रहीं। नकारात्मकता एक कुंठा है। भारत का युवा मतदाता राहुल गांधी की यह बात मानने के लिए तैयार नहीं था कि सिर्फ कुंठा और क्रोध से उसके अस्तित्व को परिभाषित किया जाए। चुनाव के दौरान देशव्यापी जनअसंतोष को लेकर भी दुष्प्रचार किया गया। मसलन युवा बेरोजगार है, किसान नाराज है, अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं, दलित हिंसा के शिकार हैं, व्यापारी टैक्स-आतंकवाद से व्यथित हैं यानी समाज के हर तबके को मोदी ने धोखा दिया है। दिल्ली के स्वनिर्मित वैचारिक बुलबुले में रहने वाले ये लोग जब चुनावी भ्रमण के लिए निकले तो उनकी चुनावी रिपोर्ट जनता की नब्ज नहीं पकड़ पाई। वे अपने ही प्रचार के शिकार बन गए। मिसाल के तौर पर, गांव में सिर पर भूसा ढोने वाली 11 वर्षीय एक किशोरी की मेहनत में हमारे अंग्र्रेजीदां पत्रकारों को शोषण दिखाई दिया। यह किशोरी नए भारत की बेटी है, जिसे मेहनत करने में शर्म नहीं आती। उसके सपने जिंदा हैं। वह डॉक्टर बनना चाहती है। उसके सपनों को पूरा करने के लिए कम आय के बावजूद उसके पिता उसे प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहे हैं। उसके पास पक्का मकान है, शौचालय भी है और मोदी सरकार ने उसे गैस सिलेंडर भी दिया है। भले ही वह सिलेंडर आज खाली हो, लेकिन जनवरी से लेकर मार्च तक उसे दो बार भरवाया भी गया है, किंतु चुनावी पर्यटन पर निकले पत्रकार महोदय इस किशोरी की जिंदगी पर तरस खाते हुए उसे गरीबी और शोषण के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते रहे। सच तो यह है कि यह किशोरी नए भारत में होने वाले अभूतपूर्व आर्थिक समावेशीकरण का एक नायाब उदाहरण है, लेकिन यह बात अंग्र्रेजियत के खंडहरों में आलीशान जिंदगी बिताने वाले दिल्ली के पत्रकारों की समझ से बाहर है। वे यह नहीं देख सके कि भारत के गांव और कस्बों में रहने वाले करोड़ों किशोर व युवा बेहतर जिंदगी का सपना देखने लगे हैं। इसी कारण जब देश की भावी सरकार चुनने का समय आया तो उन्होने राहुल गांधी की कुंठा और झुंझलाहट को ठुकराकर नरेंद्र मोदी द्वारा दिखाई आशाओं के लोकतंत्र की राह पर चलने का निर्णय लिया।  

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Dakhal News 1 June 2019


5g

मोबाइल और संचार की दुनिया में यह साल 5जी टेक्नोलॉजी के नाम रहने वाला है। हालांकि अभी 5जी तकनीक आने मे वक्त लगेगा, लेकिन न केवल मोबाइल डिवाइस बल्कि इसका पूरा इकोसिस्टम इस वर्ष 5जी में तब्दील हो जाएगा। यह साल विभिन्न 5जी उत्पादों के लांच का भी रहेगा जिसमें सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स पहला 5जी फोन लांच करके बाजी मार चुकी है। आने वाले समय में कई और कंपनियां भी 5जी हैंडसेट लाने की तैयारी में हैं। सैमसंग ने पिछले हफ्ते ही 5जी मोबाइल हैंडसेट एस-10 बाजार में उतारने का एलान किया है। हालांकि अभी 5जी मोबाइल सेवा की शुरुआत नहीं हुई है। लेकिन मोबाइल हैंडसेट व उपकरण बनाने वाली कंपनियों ने इसकी तैयारी लगभग पूरी कर ली है। मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस में तकरीबन सभी कंपनियों ने अपने 5जी उत्पादों का प्रदर्शन किया है। इन कंपनियों की घोषणाओं से स्पष्ट है कि इस वर्ष 5जी का पूरा इकोसिस्टम तैयार हो जाएगा। मोबाइल डिवाइस बनाने वाली कंपनियां भी साल 2020 की शुरुआत में ही अपने उत्पाद बाजार में उतारने को तैयार हैं। सैमसंग भी इनमें से एक है। मोबाइल चिप बनाने वाली कंपनी क्वालकॉम 5जी तकनीक पर आधारित स्नैपड्रैगन 855 मोबाइल चिप और स्नैपड्रैगन एक्स50 चिप बाजार में उतार चुकी है। सैमसंग ने अपने नवीनतम एस-10 5जी फोन में इनका इस्तेमाल किया है। क्वॉलकॉम 5जी डिवाइसेज के लिए एक और चिप जल्द बाजार में उतारेगी। क्वॉलकॉम के प्रेसिडेंट क्रिष्टियानो ने बताया कि इस चिप पर आधारित पहला मोबाइल फोन भी सैमसंग की तरफ से ही आएगा। दुनियाभर में 5जी तकनीक को विकसित होने से लेकर उस पर आधारित उत्पादों के बाजार में आने में मात्र 10 वर्ष का समय लगा है। साल 2009 में जब 4जी तकनीक लांच हुई थी, तब दुनियाभर में केवल चार ऑपरेटर और तीन उपकरण निर्माता कंपनियां थी। लेकिन आज 20 से अधिक ऑपरेटर 5जी टेक्नोलॉजी लांच की तैयारी पूरी कर चुके हैं और इतने ही ओईएम उपकरण और हैंडसेट बनाने के लिए तैयार हैं। भारत में रिलायंस जियो भी 5जी टेक्नोलॉजी के लांच के लिए पूरी तरह तैयार है। ब्रिटेन की टेलीकॉम दिग्गज वोडाफोन ने आरोप लगाया है कि पिछले दो वर्षों में भारत में टेलीकॉम सेक्टर के लिए नियामक संबंधी जितने भी फैसले आए हैं, वे रिलायंस जियो के पक्ष में और अन्य सभी कंपनियों के खिलाफ रहे हैं। वोडाफोन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) निक रीड ने यह भी कहा कि पिछले कुछ समय के दौरान भारत में कंपनी मुश्किल दौर से गुजरी है। लेकिन अब नेटवर्क में निवेश और संपत्तियों के मौद्रीकरण के माध्यम से वह भारतीय बाजार में टिकने के लिए बेहतर स्थिति में आ चुकी है। रीड ने यह भी कहा कि वर्तमान में भारतीय बाजार में टेलीकॉम सेवा की दरें सबसे कम और कारोबार के लिहाज से टिकाऊ नहीं हैं। उन्होंने कहा, 'सभी तीन टेलीकॉम कंपनियां नकदी की किल्लत से जूझ रही हैं। दुनियाभर में टेलीकॉम सेवाओं के दाम भारत में सबसे सस्ते हैं। वहां एक औसत ग्राहक इतनी कम दर में हर महीने 12 जीबी डाटा का इस्तेमाल कर रहा है, जो दुनियाभर में कहीं भी नजर नहीं आती हैं।' गौरतलब है कि कंपनी भारत में आदित्य बिड़ला ग्रुप से गठजोड़ के तहत वोडाफोन आइडिया लिमिटेड के तहत कारोबार का संचालन कर रही है।  

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Dakhal News 3 March 2019


5g

मोबाइल और संचार की दुनिया में यह साल 5जी टेक्नोलॉजी के नाम रहने वाला है। हालांकि अभी 5जी तकनीक आने मे वक्त लगेगा, लेकिन न केवल मोबाइल डिवाइस बल्कि इसका पूरा इकोसिस्टम इस वर्ष 5जी में तब्दील हो जाएगा। यह साल विभिन्न 5जी उत्पादों के लांच का भी रहेगा जिसमें सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स पहला 5जी फोन लांच करके बाजी मार चुकी है। आने वाले समय में कई और कंपनियां भी 5जी हैंडसेट लाने की तैयारी में हैं। सैमसंग ने पिछले हफ्ते ही 5जी मोबाइल हैंडसेट एस-10 बाजार में उतारने का एलान किया है। हालांकि अभी 5जी मोबाइल सेवा की शुरुआत नहीं हुई है। लेकिन मोबाइल हैंडसेट व उपकरण बनाने वाली कंपनियों ने इसकी तैयारी लगभग पूरी कर ली है। मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस में तकरीबन सभी कंपनियों ने अपने 5जी उत्पादों का प्रदर्शन किया है। इन कंपनियों की घोषणाओं से स्पष्ट है कि इस वर्ष 5जी का पूरा इकोसिस्टम तैयार हो जाएगा। मोबाइल डिवाइस बनाने वाली कंपनियां भी साल 2020 की शुरुआत में ही अपने उत्पाद बाजार में उतारने को तैयार हैं। सैमसंग भी इनमें से एक है। मोबाइल चिप बनाने वाली कंपनी क्वालकॉम 5जी तकनीक पर आधारित स्नैपड्रैगन 855 मोबाइल चिप और स्नैपड्रैगन एक्स50 चिप बाजार में उतार चुकी है। सैमसंग ने अपने नवीनतम एस-10 5जी फोन में इनका इस्तेमाल किया है। क्वॉलकॉम 5जी डिवाइसेज के लिए एक और चिप जल्द बाजार में उतारेगी। क्वॉलकॉम के प्रेसिडेंट क्रिष्टियानो ने बताया कि इस चिप पर आधारित पहला मोबाइल फोन भी सैमसंग की तरफ से ही आएगा। दुनियाभर में 5जी तकनीक को विकसित होने से लेकर उस पर आधारित उत्पादों के बाजार में आने में मात्र 10 वर्ष का समय लगा है। साल 2009 में जब 4जी तकनीक लांच हुई थी, तब दुनियाभर में केवल चार ऑपरेटर और तीन उपकरण निर्माता कंपनियां थी। लेकिन आज 20 से अधिक ऑपरेटर 5जी टेक्नोलॉजी लांच की तैयारी पूरी कर चुके हैं और इतने ही ओईएम उपकरण और हैंडसेट बनाने के लिए तैयार हैं। भारत में रिलायंस जियो भी 5जी टेक्नोलॉजी के लांच के लिए पूरी तरह तैयार है। ब्रिटेन की टेलीकॉम दिग्गज वोडाफोन ने आरोप लगाया है कि पिछले दो वर्षों में भारत में टेलीकॉम सेक्टर के लिए नियामक संबंधी जितने भी फैसले आए हैं, वे रिलायंस जियो के पक्ष में और अन्य सभी कंपनियों के खिलाफ रहे हैं। वोडाफोन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) निक रीड ने यह भी कहा कि पिछले कुछ समय के दौरान भारत में कंपनी मुश्किल दौर से गुजरी है। लेकिन अब नेटवर्क में निवेश और संपत्तियों के मौद्रीकरण के माध्यम से वह भारतीय बाजार में टिकने के लिए बेहतर स्थिति में आ चुकी है। रीड ने यह भी कहा कि वर्तमान में भारतीय बाजार में टेलीकॉम सेवा की दरें सबसे कम और कारोबार के लिहाज से टिकाऊ नहीं हैं। उन्होंने कहा, 'सभी तीन टेलीकॉम कंपनियां नकदी की किल्लत से जूझ रही हैं। दुनियाभर में टेलीकॉम सेवाओं के दाम भारत में सबसे सस्ते हैं। वहां एक औसत ग्राहक इतनी कम दर में हर महीने 12 जीबी डाटा का इस्तेमाल कर रहा है, जो दुनियाभर में कहीं भी नजर नहीं आती हैं।' गौरतलब है कि कंपनी भारत में आदित्य बिड़ला ग्रुप से गठजोड़ के तहत वोडाफोन आइडिया लिमिटेड के तहत कारोबार का संचालन कर रही है।  

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Dakhal News 3 March 2019


वॉट्सएप  ग्रुप कॉलिंग के लिएलाया यह बड़ा अपडेट

 WhatsApp ने पिछले साल अपने यूजर्स के लिए कईं फीचर्स पेश किए थे। इसी कड़ी में ग्रुप कॉलिंग फीचर भी शामिल था जिसकी मदद से यूजर अपने ग्रुप में वॉइस और वीडियो कॉल कर सकता है। यह फीचर आने के बाद अब कंपनी ने इसमें बड़ा अपडेट किया है। इस अपडेट के आने के बाद अब ग्रुप कॉलिंग और भी आसान और मजेदार हो जाएगी। खबरों के अनुसार अब तक ग्रुप कॉलिंग के लिए इसमें यूजर्स को अलग-अलग लोगों को एड करना पड़ता था। अब WhatsApp एंड्रॉइड ऐप के लिए एक नया अपडेट जारी किया गया है। इसके तहत ग्रुप कॉल के लिए एक अलग से बटन उपलब्ध कराया गया है। इस फीचर के जरिए यूजर्स ग्रुप कॉल के लिए पार्टिसिपेंट्स को एक बार में ही एड कर पाएंगे। पहले यह फीचर केवल iOS यूजर्स के लिए ही उपलब्ध था। लेकिन अब यह Android यूजर्स के लिए भी रोलआउट कर दिया गया है। WhatsApp (v2.19.9) की जानकारी सबसे पहले WABetaInfo पर दी गई है। जहां पहले ग्रुप कॉल में यूजर्स को एक एक कर लोगों को एड करना होता था। वहीं, इस फीचर के जरिए एक बार में ही ग्रुप कॉल में लोगों को एड किया जा सकेगा। एक व्यक्ति को कॉल लगाने के बाद दूसरे व्यक्ति को कॉल लगाने के लिए ऊपर दायीं तरफ दिए गए आइकन पर क्लिक करना होता था। ऐसे ही चार लोगों को एड करने के लिए चार बार यह प्रक्रिया दोहरानी पड़ती थी। नया ग्रुप कॉल बटन मिलने के बाद ग्रुप वीडियो या वॉयस कॉल करना और आसान हो जाएगा। इसके लिए एक अलग से बटन दिया गया होगा। इस पर टैप करते ही स्लाइड आउट ट्रे खुल जाएगी। यहां आपके सभी कॉन्टेक्ट कार्ड मौजूद होंगे। यहा से आप जिसे भी ग्रुप वॉयस या वीडियो कॉल का हिस्सा बनाना चाहते हैं उनन्हें चुन सकते हैं। इस फीचर को इस्तेमाल करने के लिए आपको WhatsApp एंड्रॉइड का लेटेस्ट स्टेबल वर्जन डाउनलोड करना होगा। इसके लिए गूगल प्ले स्टोर या WhatsApp.com/Android पर जाएं। आपको बता दें कि इस नए अपडेट में GIF के बग्स को भी फिक्स कर दिया गया है।  

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Dakhal News 18 January 2019


 गंगोत्री

संसार तभी आनंद देगा जब इसमें रहने वाला, यहां अपना दैनंदिन जीवन बिताने वाला मनुष्य भावनाओं और संवेदनाओं से भरा होगा। भाव-संवेदना रूपी गंगोत्री के सूख जाने पर व्यक्ति निष्ठुर बनता चला जाता है। आज का सबसे बड़ा दुर्भिक्ष इन्हीं भावनाओं के क्षेत्र का है। जब भी इस संसार में कोई अवतारी चेतना आई है, उसने एक ही कार्य किया- मनुष्य के अंदर से उस गंगोत्री के प्रवाह के अवरोध को हटाना और सृजन-प्रयोजनों में उसे नियोजित करना। कुछ कथानकों द्वारा व दृष्टांतों के माध्यम से इस तथ्य को भलीभांति समझा जा सकता है। देवर्षि नारद एवं वेद व्यास के वार्तालाप के एक तथ्य से स्पष्ट होता है कि मानवीय गरिमा का उदय जब भी होता है, सबसे पहले भावचेतना का जागरण होता है। तभी वह ईश्वर-पुत्र की गरिमामय भूमिका निभा पाता है। चैतन्य जैसे अंतर्दृष्टि-संपन्न् महापुरुष भी शास्त्र-तर्क मीमांसा के युग में इसी चिंतन को दे गए। भाव श्रद्धा के प्रकाश में मनुष्यता, जो कि इस समय में कहीं खो गई है, उसे पुन: पाया जा सकता है। पीतांबरा मीरा जीवनभर करुणा विस्तार का, ममत्व का ही संदेश देती रहीं। जब संकल्प जागता है, तो अशोक जैसा निष्ठुर भी बदल जाता है। अशोक एक मामूली व्यक्ति से अशोक महान बन जाता है। जीसस का जीवन करुणा के जन-जन तक विस्तार का संदेश देता है। दक्षिण अफ्रीका में वकालत सीखने-करने पहुंचे मोहनदास गांधी नामक एक सामान्य शख्स इसी भाव-संवेदना के जागरण के कारण एक घटना मात्र से महात्मा गांधी बन गए और जीवन भर आधी धोती पहनकर एक पराधीन राष्ट्र को स्वतंत्र करने में सक्षम हुए। ठक्कर बापा के जीवन में भी यही क्रांति आई। वस्तुत: अवतारी चेतना जब भी सक्रिय होती है, इसी रूप में व्यक्ति को बेचैन करके उसके अंतर्मन को आमूलचूल बदल डालती है। ये भाव-संवेदना ही है, जो मनुष्य को गहराई से जोड़कर उससे महान कार्य करवा लेती है। पं श्रीराम शर्मा

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Dakhal News 18 January 2019


tv channel

  TRAI के नए नियम का लागू होने में अब बस महज दो दिन बचे हैं और 29 दिसंबर के बाद से आपका टीवी देखने का अनुभव बदलने वाला है। टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने हाल ही में निर्देश जारी किए हैं जिसके बाद ब्रॉडकास्ट सेक्टर को अपने कंज्यूमर को चैनल सेलेक्ट करने और उसी के पैसे देने का ऑप्शन उपलब्ध कराना होगा। इसके बाद अब खबरें आ रहीं हैं कि ट्राई के इस आदेश के बाद अब टीवी देखना महंगा होगा। हालांकि, वास्तव में यह सब आपके केबल ऑपरेटर्स और डीटीएच सर्विस प्रोवाइडर पर निर्भर करेगा। फिलहाल डीटीएच सर्विस प्रोवाइडर भी नई कीमतों के आधार पर अपने पैक्स बनाने में लगे हैं। अब तक यह डीटीएच सर्विस प्रोवाइडर्स वेबसाइट्स और अपने चैनल्स के माध्यम से लोगों को नए पैक्स की जानकारी दे रहे हैं। हालांकि, वक्त कम बचा है और आम यूजर के मन में सबसे पहला सवाल यह है कि 29 दिसंबर के बाद क्या होगा, क्या उसने जो पैक ले रखा है वही जारी रहेगा या कोई नए पैक्स डीटीएच सर्विस प्रोवाइडर्स उपलब्ध करवाएंगे। साथ ही इनकी कीमतों को लेकर भी असमंजस बना हुआ है। इसलिए, हम आपको आज स्टार, जी, सोनी व अन्य चैनल ब्रॉडकास्चर्स द्वारा घोषित किए गए चैनल्स के दामों और पैक्स के हिसाब से होने वाले खर्च की जानकारी देने जा रहे हैं। यह तो साफ है कि अब तक आप जो फ्री टू एयर चैनल्स मुफ्त में देख रहे थे अब वो मुफ्त में नहीं मिलेंगे और उसके लिए आपको 130 रुपए चुकाने होंगे जिस पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगने वाला है। इसके अलावा हिंदी में देखे जाने वाले ज्यादातर चैनल्स सोनी, जी, स्टार व कलर्स के होते हैं। साथ ही कुछ अन्य भी है जिनके न्यूज चैनल्स देखे जाते हैं। अगर ब्रॉडकास्टर्स द्वारा घोषित किए गए आ ला कार्टे और बैक्वेट चैनल्स की कीमतों पर नजर डालें तो लगता है कि जहां तक अपनी पसंद के चैनल चुनने की बात है तो इसमें कुछ चैनल्स के पैकेज सस्ते हैं वहीं कुछ चैनल्स आ ला कार्टे के माध्यम से चुनना फायदेमंद होगा। हालांकि, डीटूएच सर्विस प्रोवाइडर्स ने इसे लेकर अब तक कोई जानकारी अपने ग्राहकों को उपलब्ध नहीं करवाई है कि उन्हें कैसे अपने पैक अपडेट करवाने होंगे। जैसा कि बताया जा रहा है आपका खर्च बढ़ेगा, यह संभव है लेकिन तब जब वर्तमान के हिसाब से उन चैनल्स को भी सबस्क्राइब करें जिन्हें आप खबी देखते भी नहीं। वहीं ट्राई का नया नियम कहता है कि अब आप वही चैनल्स देखेंगे जो आप चाहते हैं और उन्हीं का पैसा चुकाना होगा। इस आधार पर ब्रॉडकास्टर्स ने अपनी वेबसाइट्स पर बैंक्वेट और आ ला कार्टे के आधार पर चैनल्स की कीमतें दी हैं। बैंक्वेट्स में उन चैनल्स का शामिल किया गया है जो यूजर द्वारा सबसे ज्यादा देखे जाते हैं। स्टार ने अपने 49 रुपए के पैक में 13 सबसे ज्यादा देखे जाने वाले चैनल्स रखे हैं इनमें मूवी, एंटरटेनमेंट, जनरल नॉलेज और स्पोर्ट्स के सभी चैनल्स मौजूद हैं। हालांकि, अगर आप स्पोर्ट्स के चैनल्स नहीं देखना चाहते तो आपके लिए आ ला कार्टे ठीक रहेगा जिसमें सिर्फ स्टार प्लस, स्टार गोल्ड, स्टार गोल्ड सिलेक्ट, मूवीज ओके, नेशनल जियोग्राफी और नेट जियो वाइल्ड चुनते हैं तो आपको 37 रुपए ही खर्च करने होंगे। वहीं अगर आप इसमें एक भी स्पोर्ट चैनल एड करते हैं तो आपके आ ला कार्टे का खर्च सीधे 54 रुपए हो जाएगा। जी ने भी अपने 24 सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले चैनल्स का पैक पेश किया है और इसकी कीमत 45 रुपए है। जी के चैनल्स के मामले में बैंक्वेट पैक ज्यादा बेहतर नजर आता है क्योंकि 45 रुपए में यूजर को सभी जरूरी चैनल्स मिलते हैं। वहीं अगर वो आ ला कार्टे करता है तो महज 4-5 चैनल्स जिमें जी टीवी, जी सिनेमा, एंड पिक्चर्स, एंड टीवी जैसे चैनल्स के लिए ही 50 रुपए से ज्यादा चुकाने पड़ जाएंगे, ऐसे में न्यूज और स्टेट न्यूज के अलावा एंटरटेनमेंट के अन्य चैनल्स नहीं मिल पाएंगे। सोनी चैनल्स के मामले में भी कंपनी 31 रुपए में बैंक्वेट पैक लॉन्च किया है जिसमें 9 सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले चैनल्स हैं। इस चैनल के मामले में भी बैंक्वेट पैक चुनना ही बेहतर होगा क्योंकि आ ला कार्टे करने में सोनी सब, सोनी चैनल, सेट मैक्स के दाम ही लगभग 50 रुपए हो जाते हैं। वहीं स्पोर्ट्स चैनल्स का खर्च तो अलग ही है। हालांकि, सोनी ने अपने 31 रुपए वाले पैक में स्पोर्ट्स चैनल्स नहीं रखे हैं और इन्हें देखने के लिए 69 रुपए का प्लैटिनम पैक बनाया है जिसमें सभी बड़े चैनल्स शामिल हैं। टाइम्स, जिस्कवरी व अन्य ने मिलकर अपने अलग चैनल पैक्स लॉन्च किए हैं और बड़े ब्रॉडकास्टर्स के मुकाबले इन पैक्स के दाम कम हैं। मसलन डिस्कवरी के 8 चैनल्स महज 8 रुपए मे देख उपलब्ध हैं वहीं डिज्नी के 7 चैनल्स 10 रुपए में। इसके अलावा टाइम्स के 4 चैनल्स 7 रुपए में उपलब्ध होंगे जबकि टर्नर्स के 2 चैनल्स साढ़े चार रुपए में मिलेंगे। वायोकॉम ने भी 20 रुपए में 25 चैनल्स का पैक पेश किया है जिसमें न्यूज, एंटरटेनमेंट, म्यूजिक के अलावा कार्टून चैनल्स भी शामिल हैं हालांकि, आ ला कार्टे में भी इन चैनल्स की कीमत बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन इस मामले में भी वायोकॉम का बैंक्वेट पैक ज्यादा बेहतर नजर आता है। हालांकि, यह पूरा आंकलन चैनल कंपनियों द्वारा दी चैनल्स की कीमतों के आधार पर है। इसके बाद डीटीएच सर्विस प्रोवाइडर्स की भूमिका भी बेहद अहम है। अगर आपका डीटीएच सर्विस प्रोवाइडर वर्तमान की ही तरह कोई बजट पैक पेश करता है तो आपका खर्च ज्यादा प्रभावित नहीं होगा।  

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Dakhal News 26 December 2018


पत्रकार खशोगी

खबर इस्तांबुल से । पत्रकार जमाल खशोगी की मौत मामले में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पर संदेह बढ़ता जा रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति तैय्यिप एर्दोगन ने जोर देकर कहा है कि मामले का नंगा सच सामने लाया जाएगा। उनके बयान के बाद तुर्की सरकार समर्थक मीडिया ने सोमवार को नए दावे किए। मीडिया ने पत्रकार की मौत से सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस को जोड़ा है। बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच सऊदी के बादशाह और क्राउन प्रिंस ने खशोगी के बेटे को सोमवार सवेरे फोन किया और शोक जताया। एर्दोगन ने कहा है कि वह मंगलवार को संसद में खशोगी की गुमशुदगी के बारे में नई जानकारी देंगे। इस्तांबुल में सऊदी अरब के वाणिज्य दूतावास में दो अक्टूबर को दाखिल होने के बाद पत्रकार की हत्या की गई थी। दो सप्ताह तक मामले पर चुप्पी साधे रहने के बाद सऊदी अरब ने स्वीकार किया कि खशोगी की मौत वाणिज्य दूतावास में हुई, लेकिन सहयोगी और विश्व शक्तियों में शामिल देश उसके बयान को परस्पर विरोधी और संतोषजनक नहीं मान रहे हैं। एर्दोगन के सलाहकार ने रियाद के दावे पर सवाल उठाए तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के सलाहकार यासिन अक्ताय ने सोमवार को सरकार समर्थित अखबार में लिखा है, 'कोई भरोसा तो नहीं करेगा, लेकिन हैरत जरूर होगी कि 15 प्रशिक्षित लड़ाकों और 60 साल के अकेले निहत्थे खशोगी के बीच मारपीट कैसे हो सकती है? झगड़े की दलील हड़बड़ी में गढ़ी गई है क्योंकि यह साफ हो चुका है कि घटना की सच्चाई शीघ्र ही सामने आ जाएगी। जितना इसके बारे में सोचा जाए उतना ही यह महसूस होता है कि हमारे गुप्तचरों को मूर्ख बनाया जा रहा है।' तुर्की के अखबारों का क्राउन प्रिंस की ओर इशारा तुर्की के सरकार समर्थक अखबार येनि सफाक ने कहा है कि सऊदी सुरक्षा अधिकारी माहेर अब्दुलअजीज मुर्तेब इस अभियान का कथित लीडर था। उसने क्राउन प्रिंस के कार्यालय के प्रमुख बदर अल-अस्केर को हत्या के बाद चार बार फोन किया था। अखबार की एक हेडिंग में लिखा है, 'क्राउन प्रिंस के गिर्द तंग होता जा रहा घेरा।' हुर्रियत दैनिक में प्रकाशित एक कालम में कहा गया है कि नई जानकारी है। क्राउन प्रिंस को जवाबदेही स्वीकार करनी चाहिए और उन्हें पद से हटाया जाना चाहिए। सऊदी के हत्यारा दस्ते ने खशोगी को बांध दिया। इस काम में सिर्फ आठ मिनट लगे और फिर सऊदी फोरेंसिक विभाग में लेफ्टिनेंट कर्नल सलाह मुहम्मद अल-तुबैग्य ने शव के 15 टुकड़े किए। हत्या के बाद 'बॉडी डबल' को सऊदी ने बुलाया लिया निगरानी कैमरे एक वीडियो में एक आदमी को सऊदी वाणिज्य दूतावास से जमाल खशोगी के कपड़ों में बाहर आते देखा गया है। यह आदमी पत्रकार की हत्या के बाद बाहर आया था। सीएनएन ने सोमवार को निगरानी फुटेज जारी किया है। तुर्की के अधिकारियों ने इस आदमी को 'बॉडी डबल' कहा है। यह भी पत्रकार की हत्या करने के लिए भेजी गई सऊदी टीम का सदस्य था। पिछले दरवाजे से निकल कर इस आदमी ने टैक्सी ली अैर इस्तांबुल के मशहूर सुल्तान अहमद मस्जिद तक पहुंचा। वहां एक सार्वजनिक शौचालय में गया। अपने कपड़े बदलने के बाद वह वहां से रवाना हो गया। खशोगी की हत्या के बाद सऊदी अधिकारियों ने शुरू में कहा था कि वह वाणिज्य दूतावास से बाहर आ गए थे। यह सऊदी टीम की योजना के अनुसार कहा गया। बाद में तुर्की के अधिकारियों और मीडिया की जांच के बाद दावा बदल गया।  

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Dakhal News 23 October 2018


पेड़ न्यूज़

  पेड न्यूज को लेकर चुनाव आयोग अभी से काफी सतर्कता बरत रहा है। 2013 के विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक 37 पेड न्यूज के मामले बालाघाट में सामने आए थे। कुल 486 शिकायतें हुई थीं, जिनमें 172 को सही पाते हुए खर्च उम्मीदवारों के खाते में जोड़ा गया। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वीएल कांताराव ने सभी कलेक्टर और रिटर्निंग ऑफिसरों को पेड न्यूज के मामले में सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने बताया कि पिछले विधानसभा चुनाव में 486 पेड न्यूज की शिकायतें सामने आई थीं। जिला स्तरीय समिति ने 237 मामलों को पेड न्यूज मानकर प्रकरण पंजीबद्ध कर उम्मीदवरों को नोटिस थमाए थे। 17 मामलों में उम्मीदवारों ने पेड न्यूज को स्वीकार करते हुए खर्च खाते में शामिल करने की सहमति दी थी। वहीं, अपील आदि प्रक्रिया के बाद 155 मामलों को भी पेड न्यूज माना गया और खर्च निर्वाचन व्यय में जोड़ा गया। बालाघाट के बाद उज्जैन में 30, नीमच 18, रीवा 14, खंडवा 13, ग्वालियर 11, इंदौर 8, छतरपुर और कटनी में 6-6 और सतना में चार प्रकरण पेड न्यूज के बने थे। सत्तारूढ़ होने के बावजूद चुनाव के दौरान शिकायत करने में कांग्रेस से आगे भाजपा है। चुनाव आयोग के राष्ट्रीय पोर्टल पर भाजपा ने 46 शिकायतें दर्ज कराई हैं तो कांग्रेस 15 तक ही पहुंच सकी। पोर्टल पर कुल 781 शिकायतें दर्ज हुईं। इनमें से 507 का निराकरण हो चुका है और 274 लंबित हैं। वहीं, मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय में शिकायत देने की बात की जाए तो कांग्रेस बहुत आगे है। यहां कांग्रेस ने आचार संहिता लागू होने के बाद से अब तक 27 शिकायतें दी हैं तो भाजपा की ओर से मात्र आठ शिकायत ही की गईं। आम आदमी और समाजवादी पार्टी की ओर से एक-एक शिकायत दर्ज कराई गई हैं। बाकी 10 शिकायतें अन्य व्यक्तियों की ओर से की गई हैं।  

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Dakhal News 23 October 2018


narottm mishra

शहरी महिलाओं के साथ-साथ ग्रामीण महिलाओं से सतत संवाद और उनके बौद्धिक स्तर में वृद्धि के प्रयास करना जरूरी है। यह कार्य शासकीय और अशासकीय संस्थाओं को मिलकर करना होगा। जनसम्पर्क, जल-संसाधन एवं संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र ने वूमन प्रेस क्लब द्वारा आयोजित जन-संवाद कार्यक्रम में यह बात कही। इस अवसर पर महिला बाल विकास मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस भी उपस्थित थीं। कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने महिला कल्याण, सार्वजनिक क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका आदि मुद्दों पर सवाल पूछे, जिनके उन्हें समाधान कारक जवाब मिले। डॉ. मिश्र विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं और प्रश्नों के सटीक उत्तर दिये। कार्यक्रम में पत्रकारिता के विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। इस अवसर पर कुलपति  जगदीश उपासने भी उपस्थित थे। कार्यक्रम में महिलाओं की भागीदारी से संबंधित प्रीति त्रिपाठी निर्देशित फ़िल्म के अंश भी दिखाये गये।

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Dakhal News 3 October 2018


krishak jagat

  एमपी के जनसम्पर्क, जल संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र ने आज भोपाल में  साप्ताहिक समाचार पत्र कृषक जगत के मध्यप्रदेश के विकास पर केन्द्रित विशेषांक का विमोचन किया। विशेषांक में कृषि और सिंचाई के माध्यम से प्रदेश में आई समृद्धि का ब्यौरा सफलता कहानियों के साथ प्रकाशित किया गया है। विशेषांक विमोचन अवसर पर अखबार के संपादक  सुनील गंगराड़े और श्रीमती साधना गंगराड़े मौजूद थे।  

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Dakhal News 29 September 2018


बिग बॉस TRP में छठवें नंबर पर ,नागिन नंबर वन

भारत में टेलिविजन का क्रेज किसी से छिपा नहीं है। यहां फिल्मों से ज्यादा टीवी सीरियल्स को महत्व दिया जाता है। बार्क द्वारा जारी 38वें हफ्ते की टीआरपी रेटिंग्स में भी यह बात दिखाई दे रही है। इस बार की रेटिंग में काफी उलटफेर भी देखने को मिले हैं। हालांकि इस बार सभी की निगाहें सलमान खान द्वारा होस्ट बिग बॉस की रेटिंग पर थीं। इस सप्ताह बार्क की लिस्ट में इस शो को 6वां स्थान मिला है। जबकि, डांस दीवाने रियलिटी शो, एकता कपूर का नागिन 3 अभी भी टॉप 5 की लिस्ट में जमें हुए हैं। सबसे बड़ा झटका टीवी सीरियल 'ये हैं मोहब्बतें' को लगा है जो टॉप  पिछले हफ्ते की तरह इस हफ्ते भी 'नागिन 3' सबसे ज्यादा प्वाइंट्स के साथ पहले पायदान पर बना हुआ है। इसके दर्शकों की संख्या 10 मिलियन से भी उपर है। माधुरी दीक्षित के डांस रियलिटी शो 'डांस दीवाने' बार्क की लिस्ट में दूसरे नंबर पर काबिज है। यह शो पूरे समय टॉप 10 में जमा रहा। इस बार इसे 7 मिलियन दर्शक मिलें। टीवी सीरियल 'ये रिश्ता क्या कहलाता है' इस लिस्ट में तीसरे नंबर पर है। चौथा और पांचवां नंबर 'कुंडली भाग्य' और 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' को मिला। मशहूर रियलिटी शो बिग बॉस को 6वां स्थान मिला। कुमकुम भाग्य को इस हफ्ते रेटिंग में नुकसान का सामना करना पड़ा। यह टॉप 5 से बाहर होकर इस बार 7वें नंबर पर आ गई। इस हफ्ते जारी रेटिंग्स के अनुसार कलर्स, स्टार प्लस, सोनी इंटरटेनमेंट, जी टीवी और सब टीवी टॉप 5 में शामिल हैं  

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Dakhal News 27 September 2018


surendr patwa

  मध्यप्रदेश पर्यटन को एक बार फिर मिले 10 नेशनल अवार्ड  पिछले साल भी मिले थे 10 नेशनल अवार्ड मध्यप्रदेश पर्यटन को एक बार फिर से लगातार दूसरे साल नेशनल आवर्डस से नवाजे जाने का सुअवसर हासिल हुआ है। पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा आज नई दिल्ली में घोषित नेशनल अवार्डस में मध्यप्रदेश पर्यटन को 10 अवार्ड प्राप्त हुए हैं। इसके अतिरिक्त लगातार तीन साल से बेस्ट टूरिज्म स्टेट के रूप में हॉल ऑफ फेम का नेशनल अवार्ड भी दूसरे साल भी प्रभावशील है। यह अवार्ड लगातार तीन साल तक प्रभावी रहेगा। अवसर था; विश्व पर्यटन दिवस के मौके पर नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित गरिमापूर्ण समारोह का। समारोह में केन्द्रीय पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री के.जे. अल्फोन्स ने यह अवार्ड प्रदान किये। मध्यप्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री सुरेन्द्र पटवा, पर्यटन निगम के अध्यक्ष श्री तपन भौमिक, प्रमुख सचिव, पर्यटन एवं टूरिज्म बोर्ड के एमडी श्री हरि रंजन राव, पर्यटन निगम के एमडी श्री टी इलैया राजा एवं टूरिज्म बोर्ड की अपर प्रबंध संचालक श्रीमती भावना वालिम्बे आदि मौजूद थे। उल्लेखनीय है कि पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा विश्व पर्यटन दिवस पर घोषित अवार्डस में मध्यप्रदेश को एक्सीलेन्स एन पब्लिसिंग इन फॉरेन लेंगवेज अदर देन इंगलिश के लिए विदेशी भाषा जर्मनी में रूचिकर कॉर्पोरेट ब्रोशर के प्रकाशन, बेस्ट हेरीटेज वॉक का इन्दौर शहर को, बेस्ट हेरीटेज सिटी का सिटी ऑफ जॉय माण्डू को, बेस्ट एडवेंचर स्टेट का मध्यप्रदेश और उत्तराखण्ड को संयुक्त रूप से, एक्सीलेन्स एन पब्लिसिंग इन इंगलिश लेंगवेज में कॉफी टेबल बुक कान्हा टाईगर रिर्जव को स्वच्छता का नेशनल अवार्ड इन्दौर को, बेस्ट सिविक मैनेजमेंट का ओंकारेश्वर को, बेस्ट वाइल्ड लाइफ गाइड का पन्ना नेशनल पार्क के गाइड श्री राशिका प्रसाद को, वेस्ट एयरपोर्ट के रूप में देवी अहिल्या बाई होलकर एयरपोर्ट इन्दौर को और बेस्ट हेरीटेज प्रोपर्टी का देवबाघ ग्वालियर को नेश्नल अवार्ड मिला है। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, पर्यटन एवं संस्कृति राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री सुरेन्द्र पटवा सहित पर्यटन निगम के अध्यक्ष श्री तपन भौमिक ने इस महत्वपूर्ण उपलब्धि को मध्यप्रदेश के लिए गौरव का विषय बताते हुए हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त की है। उन्होंने पर्यटन की संपूर्ण टीम संबंधित विभाग और संस्थाओं को इस उपलब्धि के लिए बधाई देते हुए इसी तरह आगे भी टीम भावना से कार्य करने और इस गौरव को बरकरार रखने की अपेक्षा की है।    

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Dakhal News 27 September 2018


anadi tv

   जनसम्पर्क, जल-संसाधन एवं संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र ने आज टीवी चैनल अनादि के कार्यालय जाकर संपादकीय टीम से भेंट की। डॉ. मिश्र ने टीवी न्यूज रूम, एडीटिंग रूम की कार्य पद्धति की जानकारी प्राप्त की। इस अवसर पर चैनल के एडीटर इन चीफ श्री श्रीराम तिवारी, एडीटर श्री राकेश अग्निहोत्री सहित टीवी जर्नलिस्ट, एंकर्स और प्रोडक्शन से जुड़े अमले से परिचय प्राप्त किया। जनसम्पर्क मंत्री ने विभिन्न मुददों पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर भी दिए। चैनल द्वारा जनसम्पर्क मंत्री डॉ. मिश्र की विजिट का सजीव प्रसारण किया गया। डॉ. मिश्र को चैनल क ओर से भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्मृति स्वरूप भेंट की गई।  

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Dakhal News 17 September 2018


पत्रकारों के होम लोन पर पांच फीसदी ब्याज सरकार देगी

  पत्रकारों के कैमरे क्षतिग्रस्त होने पर मिलेगी 50 हजार की अार्थिक सहायता एमपी के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में  हुई मंत्रि-परिषद की बैठक में मध्यप्रदेश के अधिमान्यता प्राप्त श्रमजीवी पत्रकारों की मृत्यु होने पर उनके आश्रित पत्नि और नाबालिग बच्चों को आर्थिक सहायता देने की अधिकतम सीमा राशि एक लाख को बढ़ाकर 4 लाख रूपये करने का निर्णय लिया गया। इसी प्रकार प्रदेश के श्रमजीवी पत्रकारों/कैमरामैनों के वाहन/कैमरा आदि क्षतिग्रस्त होने पर पत्रकार कल्याण कोष से सहायता राशि 25 हजार से बढ़ाकर 50 हजार रूपये करने का निर्णय भी लिया गया। पत्रकारों को आवास ऋण पर 5 प्रतिशत ब्याज अनुदान मंत्रि-परिषद ने अधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों के आवास ऋण पर लगने वाले ब्याज का 5 प्रतिशत ब्याज अनुदान देने का निर्णय लिया है। ब्याज अनुदान भारतीय रिजर्व बैंक से मान्यता प्राप्त किसी भी वित्तीय संस्था से आवास ऋण लेने पर मिलेगा। अनुदान 25 लाख रूपये के आवासीय ऋण पर मिलेगा। यह 5 प्रतिशत ब्याज अनुदान पाँच वर्ष के लिये दिया जायेगा। यह सुविधा पत्रकार पति अथवा पत्नि को एक ही आवास के लिये इसी वित्तीय वर्ष से दी जायेगी।  

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Dakhal News 7 September 2018


bastar

  गिद्ध प्रकृति की एक सुंदर रचना है, मानव का मित्र और पर्यावरण का सबसे बड़ा हितैषी। साथ ही कुदरती सफाई कर्मी भी है। परंतु आज इन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं और अगर हालात इसी तरह से रहे तो आने वाले समय में गिद्ध विलुप्त हो जाएंगे। यह बात बर्ड काउंट इंडिया के परियोजना सहयोगी रवि नायडू ने अंतरराष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस के मौके पर कही। बीजापुर में यह पहला अवसर था, जब गिद्ध जागरूकता पर इस तरह की कार्यशाला आयोजित की गई थी। इस दौरान सामान्य वन मंडल एवं आईटीआर के रेंज स्तर अधिकारियों से लेकर अमले के सभी कर्मचारी उपस्थित थे। रवि नायडू ने बताया कि भारत में व्हाइट, बैक्ड, ग्रिफ, यूरेशियन और स्लैंडर प्रजाति के गिद्ध पाए जाते हैं। इनके संरक्षण के लिए विश्वभर में सितम्बर माह के प्रथम शनिवार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंतरराष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरूआत वर्ष 2009 से अफ्रीकन देशों से हुई जिसका मुख्य उद्देशय विलुप्त होते गिद्धों का संरक्षण करना है। कार्यशाला के दौरान उन्होंने यूरेशियन गिद्ध से जुड़ी एक महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने बताया कि हिमालय की तराई में पाया जाने वाला यूरेशियन गिद्ध जिसे ग्रिफॉन वल्चर के नाम से भी जाना जाता है। सर्दियों के मौसम में बस्तर संभाग का बीजापुर जिला इसकी शरणस्थली बन जाती है। ये दुर्लभ प्रजाति का गिद्ध है, जो हिमालय की तराई में पाए जाते हैं। रवि नायडू के मुताबिक सर्दियों की शुरूआत के साथ हिम आच्छादित इलाकों में जब तापमान में गिरावट आने के साथ इनका पलायन भी शुरू हो जाता है। मौसम के अनुकूल प्रवास के उद्देश्य से ये गिद्ध देश के कुछ हिस्सों की तरफ रूख करते हैं। जिनमें बीजापुर भी शामिल है। उन्होंने यह भी बताया कि पूरे भारतवर्ष में पाई जाने वाली पक्षियों की विभिन्न् प्रजातियों में अकेले बस्तर में पक्षियों की 315 प्रजातियां मौजूद है। इनमें से 159 प्रजातियों का बीजापुर के सघन वन क्षेत्र में नैसर्गिक रहवास भी है। रवि नायडू के मुताबिक छत्तसीगढ़ का बस्तर पक्षियों के रहवास के लिए आदर्श स्थल है। भौगोलिक रूप में पश्चिम और पूर्वी घाट के मध्य बस्तर एक कॉरिडोर की तरह है, जिसके चलते यहां पक्षियों की 315 प्रजातियां यह पाई जाती है और इसमें दिलचस्प बात यह है कि लगभग 150 प्रजातियां यहां रहवासी है। इस तरह भारत में पश्चिम बंगाल के बाद छत्तीसगढ़ का बस्तर पक्षियों के रहवास के लिहाज से आदर्श स्थल का सूचक है। हालांकि बस्तर में पाई जाने वाली पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों पर, जो दुर्लभ प्राय है उन पर गहन शोध की आवश्यकता है।  

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Dakhal News 4 September 2018


subrna

  बांग्लादेश में एक महिला टीवी पत्रकार की कुछ अज्ञात हमलावरों ने उन्हीं के घर में हत्या कर दी। 32 साल की सुबर्ना नोदी निजी चैनल आनंदा टीवी की संवाददाता थीं। इसके साथ ही वह "डेली जाग्रतो बांग्ला" अखबार के लिए भी काम करती थीं। सुबर्ना राजधानी ढाका से 150 किलोमीटर दूर पाबना जिले के राधानगर इलाके में रहती थीं। पुलिस के अनुसार, मंगलवार रात 10.45 बजे 10-12 लोग मोटरसाइकिल से उनके घर पहुंचे। डोर बेल बजाने पर सुबर्ना ने जैसे ही दरवाजा खोला हमलावरों ने धारदार हथियार से उन पर अंधाधुंध वार किए और फरार हो गए। स्थानीय लोग उन्हें तुरंत अस्पताल लेकर पहुंचे जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। सुबर्ना की नौ साल की एक बेटी है। पति राजिब हुसैन से उनका तलाक का मुकदमा चल रहा था। सुबर्ना के परिजनों ने उनके पति राजिब हुसैन और उसके पिता अब्दुल पर हत्या का संदेह जताया है।  

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Dakhal News 30 August 2018


डॉ. नरोत्तम मिश्र

  जनसम्पर्क, जल संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र ने वरिष्ठ पत्रकार श्री कुलदीप नैयर के निधन पर शोक व्यक्त किया है। मंत्री डॉ. मिश्र ने कहा कि श्री नैयर एक लोकप्रिय स्तंभ लेखक थे। ज्वलंत राष्ट्रीय मुददों पर उनकी लेखनी पाठकों को बहुत प्रभावित करती थी। मंत्री डॉ. मिश्र ने कहा कि स्व. नैयर दशकों तक सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले कलमकार बने रहे। जनसम्पर्क मंत्री डॉ. मिश्र ने स्व. नैयर की दिवगंत आत्मा की शांति और उनके शोकाकुल परिवार को यह दुख सहन करने की शक्ति देने की ईश्वर से विनती की है।  

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Dakhal News 24 August 2018


राजीव शुक्ला

राजीव शुक्ला अटलजी पर बहुत लोग बहुत कुछ कह रहे हैं, लेकिन किसी के लिए भी उनके जीवन से जुड़े सभी पहलुओं पर प्रकाश डालना संभव नहीं। वह एक ऐसे असाधारण व्यक्तित्व थे, जिनके बारे में जितना कहा जाए, कम है। मेरी उनसे प्रगाढ़ता उस समय बढ़ी, जब मेरे सुसर पूर्व मंत्री ठाकुर प्रसाद के निधन पर वह उनके घर पटना आकर रुके। ठाकुर प्रसाद जी से उनके आत्मीय संबंध थे। वह हमेशा उन्हीं के घर रुकते थे और कार के बजाय रिक्शे पर बैठकर उनके साथ अक्सर रेस्त्रां में जाकर कीमा समोसा और रसगुल्ला खाते थे। इतना बड़ा कद होने के बावजूद उनकी कोशिश एक आम आदमी की तरह रहने की होती थी। वह कम बोलते थे, सुनते ज्यादा थे, लेकिन भाषण देते वक्त सब कुछ कह जाते थे। यह उनके अद्भुत वक्तृत्व कौशल का ही कमाल था कि उनके विरोधी दल के लोग भी उनका भाषण सुनने उनकी सभाओं में जाते थे। भाषण में हास्य-व्यंग्य के साथ वह गंभीर बातें भी कह जाते थे। मुझे याद है कि परवेज मुशर्रफ के साथ आगरा वार्ता विफल होने के बाद राज्यसभा में जोरदार बहस हुई और दो दिन तक अटलजी को कोसा गया कि उन्होंने मुशर्रफ को क्यों बुलाया, लेकिन जब वह जवाब देने खड़े हुए तो एक मिनट में माहौल बदल गया। वह बोले, 'पहले मैं जब ट्रेन से दिल्ली आता-जाता था, तब दोनों तरफ दीवारों पर लिखा रहता था, रिश्ते ही रिश्ते, कम से कम मिल तो लें- प्रो. अरोड़ा। यदि हम मुशर्रफ साहब से रिश्ते बनाने के लिए मिले तो उसमें हमने कौन-सा गुनाह किया? उनकी यह बात सुनकर पूरा सदन ठहाकों से गूंज उठा और बहस समाप्त हो गई। राज्यसभा सदस्य बनने के बाद मेरे उनसे रिश्ते और प्रगाढ़ हो गए। मैं अक्सर उनसे मिलने लगा। उन्होंने मुझे समन्वय समिति में भी नामित किया। कलाम साहब को राष्ट्रपति बनाने का फैसला इसी समिति ने उन्हीं के प्रयासों से किया। अटलजी की यह खूबी थी कि वह कठिन से कठिन समस्या आने पर भी घबराते नहीं थे। एक बार समिति की बैठक में चंद्रबाबू नायडू ने गुजरात दंगों को लेकर समर्थन वापस लेने की धमकी दी, लेकिन अटलजी विचलित नहीं हुए। उन्होंने सहजता से कहा कि राजधर्म निभाएंगे, लेकिन दबाव में नहीं झुकेंगे। उन्होंने सबको समोसा, खस्ता और मिठाई खिलाई। सरकार जाने का उन्हें तनिक भी भय नहीं था। अपने घर वह एक आम इंसान की तरह रहते थे। हफ्ते में एक बार यूपी वाला खाना-पूड़ी-कचौरी और आलू टमाटर या फिर कद्दू की सब्जी खाते थे। वह चाहे प्रधानमंत्री रहें हों या नेता विपक्ष, सर्दियों में लॉन में खटिया बिछाकर धूप में बैठते थे। उन्होंने अपने बंगले में एक शिवलिंग स्थापित किया था, जिस पर नियमित जल चढ़ाते थे। उनके कक्ष में परिवार के अलावा सिर्फ एक शख्स को जाने-रहने की इजाजत थी और वह थे उनके करीबी मित्र भैरोसिंह शेखावत। उनकी जिंदगी में राजकुमारी कौल, जिन्हें हम सब कौल आंटी कहते थे, और उनकी बेटी नमिता का बहुत योगदान रहा। अटलजी की देखरेख की जो जिम्मेदारी कौल परिवार ने निभाई, वह भी अपने आपमें एक मिसाल है। नमिता के पति रंजन भट्टाचार्य रात-दिन उनकी सेवा में रहते थे। करीब चार वर्ष पहले कौल आंटी का देहावसान हो गया था। वह घर आने वाले लोगों का ख्याल अटलजी से भी ज्यादा रखती थीं। अटलजी हर साल संयुक्त राष्ट्रसंघ की बैठक में न्यूयॉर्क जाना पसंद करते थे। वह वहां काफी समय तक रहते थे। इंदिराजी, राजीवजी, नरसिंह राव सहित हर प्रधानमंत्री ने उन्हें इस प्रतिनिधिमंडल में भेजा। जब अटलजी खुद प्रधानमंत्री बने तो न्यूयॉर्क के साथ वाशिंगटन भी जाने लगे। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिटंन उन्हें बहुत इज्जत देते थे। उन्होंने ह्वाइट हाउस के लॉन में तंबू लगवाकर सिर्फ दो लोगों के लिए शाही भोज दिया- एक, चीनी राष्ट्रपति को और दूसरे, अटलजी को। उन दिनों अटलजी के घुटनों में दर्द रहता था। मैंने खुद देखा कि क्लिंटन अटलजी का हाथ पकड़कर पूरे समय उन्हें सहारा देते रहे। अटलजी को फिल्म देखने का भी शौक था। उनके प्रधानमंत्री रहते समय कई बार विशेष शो होते थे, जिनमें अक्सर मैं भी जाता था। वह शाहरुख, सलमान को पसंद करते थे। शाहरुख मेरे साथ कई बार बीमार अटलजी को देखने गए। एक बार उन्होंने मेरे जरिए अपने पसंदीदा क्रिकेटर इरफान पठान को भी पीएम हाउस बुलाया। जब 2003 में गृह मंत्रालय ने भारत-पाक क्रिकेट सीरीज का विरोध किया, तो मैंने अटलजी से मिलकर टीम को पाकिस्तान भेजने का आग्रह किया। उन्होंने अनुमति दिला दी। इसके बाद सबको पता है कि उस दौरे ने भारत-पाक संबंधों को बेहद मजबूत किया। अटल-आडवाणी के संबंधों को लेकर तमाम तरह की बातें होती हैं, लेकिन उनकी दोस्ती अनोखी थी। यदि कोई एक किसी बात पर अड़ जाता तो दूसरा झुक जाता था। शायद इसीलिए यह दोस्ती 65 साल तक चली। विवादित ढांचे के ध्वंस के दूसरे दिन अटलजी बेहद दुखी थे। संसद के केंद्रीय कक्ष में अपनी प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा, आज हमारा सर शर्म से झुका हुआ है। जब 2004 के चुनाव चल रहे थे तो मैंने उनसे कहा कि ज्यादातर सर्वे आपको जिता रहे हैं। इस पर वह तपाक से बोले, कोई सर्वे कुछ भी कहे, मेरी सरकार नहीं आ रही है। समय से पहले चुनाव कराकर बहुत गलती हो गई। मैं उनकी बात सुनकर अवाक रह गया। बाद में वही सच साबित हुए। (लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री व क्रिकेट प्रशासक हैं)  

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Dakhal News 18 August 2018


व्‍हाट्सएप का चुनावों में नहीं हो पायेगा गलत इस्तेमाल

आने वाले चुनावों में व्‍हाट्सएप के जरिये अपशब्द भरी राजनीतिक बयानबाजी को नहीं फैलाया जा सकेगा। व्‍हाट्सएप ने स्पष्ट कर दिया है कि वह चुनावों के वक्त इस तरह के संदेश प्रसारित करने वाले अकाउंट पर रोक लगाते हुए उसे ब्लॉक कर देगा। इस बारे में व्‍हाट्सएप चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को जानकारी दे चुका है। भारत की चिंताओं को देखते हुए व्‍हाट्सएप ने यहां अपना एक स्थानीय प्रतिनिधि भी नियुक्त करने का फैसला किया है। सरकार की तरफ से अफवाहों और फेक न्यूज को रोकने की दिशा में भेजे गए दूसरे नोटिस के जवाब में व्‍हाट्सएप ने कहा है कि वह अपने प्लेटफार्म का गलत इस्तेमाल होने से रोकने का हर संभव प्रयास कर रहा है। कर्नाटक के चुनाव में उसने ऐसे कई अकाउंट की पहचान की थी जिनका व्यवहार अवांछनीय पाया गया था। ऐसे सभी अकाउंट पर उस समय रोक लगा दी गई थी। 27 जुलाई को सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को भेजे गए अपने जवाब में व्‍हाट्सएप के डायरेक्टर एंड एसोसिएट जनरल काउंसिल ब्रायन हैंसी ने लिखा है कि चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से व्‍हाट्सएप सीधे इस संबंध में बात कर चुका है। व्‍हाट्सएप का कहना है कि वह बिना किसी राजनीतिक पक्षपात के इस तरह के अवांछित संदेशों को रोकने की व्यवस्था कर रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने पहले तीन जुलाई को व्‍हाट्सएप को पत्र लिखकर अफवाहें फैलाने वाले संदेशों पर रोक लगाने को कहा था। व्‍हाट्सएप ने उसके बाद कुछ कदम उठाए थे, लेकिन सरकार उन कदमों से संतुष्ट नहीं थी। लिहाजा 19 जुलाई को सरकार ने फिर पत्र लिखकर व्‍हाट्सएप को आगाह करते हुए और सख्त कदम उठाने को कहा था। ब्रायन ने इसके जवाब में कहा है कि उनकी संस्था चुनावों में व्‍हाट्सएप के दुरुपयोग को लेकर सरकार की इस चिंता को समझती है। खासतौर पर चुनाव के दौरान अफवाह फैलाने से लेकर अपशब्दों के जरिये छवि खराब करने वाले संदेश अधिक चिंता की वजह बनते हैं। इसलिए व्‍हाट्सएप भारत में होने वाले आगामी चुनावों को लेकर अधिक संवेदनशील है। व्‍हाट्सएप ने माना है कि इस संबंध में तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है। कंपनी का कहना है कि वह इस मामले में सरकार के साथ मिलकर काम करेगी। इसीलिए भारत में एक स्थानीय प्रतिनिधि नियुक्त करने का निर्णय हुआ है। यह प्रतिनिधि अपनी टीम गठित कर स्थानीय चिंताओं के संबंध में काम करेगा। ब्रायन ने अपने पत्र में व्‍हाट्सएप पर संदेश फारवर्ड करना सीमित करने जैसे कदमों का ब्यौरा भी दिया है। साथ ही व्‍हाट्सएप के दुरुपयोग को रोकने के लिए अवांछनीय अकाउंट बंद करने जैसे कदम उठा रहा है। लेकिन संदेशों के स्त्रोत का पता लगाने के बारे में व्‍हाट्सएप का कहना है कि लोगों के निजी संदेशों में स्त्रोत का पता लगाना उनकी निजता के अधिकार के हनन की श्रेणी में आ सकता है।  

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Dakhal News 16 August 2018


फेसबुक देना चाहता है बेहतर सेवाएं

  फेसबुक बैंकों और वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर उनके ग्र्राहकों को अपनी मैसेंजर व चैट सेवाओं के जरिये बेहतर सेवाएं देने की संभावनाएं तलाश रही है। उसने कहा है कि वह बैंकों और वित्तीय संस्थानों के साथ बातचीत कर रही है ताकि वह उनके ग्राहकों के लिए सेवाएं सुधारने में मदद कर सके। फेसबुक ने कहा है कि पे-पाल, सिटी बैंक और अमेरिकन एक्सप्रेस जैसे वित्तीय संस्थानों के यूजर्स अपना वित्तीय खाता फेसबुक मैसेंजर एंड चैट से जोड़ सकते हैं। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने एक रिपोर्ट में कहा है कि फेसबुक ने बैंक और वित्तीय संस्थानों से ग्राहकों का वित्तीय विवरण उपलब्ध कराने को कहा है। उसने कार्ड ट्रांजैक्शन और एकाउंट बैलेंस की भी जानकारी देने को कहा है। फेसबुक की एक प्रवक्ता ने कहा कि अगर बैंक फेसबुक के साथ समझौता करते हैं तो उसे उन बैंकों के ग्राहकों का कुछ वित्तीय विवरण मिल सकता है। फेसबुक इस डाटा का इस्तेमाल प्रचार या किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं करेगी। फेसबुक ने एक बयान में कहा कि इन सूचनाओं का इस्तेमाल ग्राहक सेवा के अलावा किसी और उद्देश्य से नहीं किया जाएगा। ग्राहकों के डाटा की संवेदनशीलता को अहम बताते हुए फेसबुक ने कहा कि बैंकों के साथ इस तरह के समझौतों में ग्राहकों की सूचनाएं सुरक्षित रखना महत्वपूर्ण काम है। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक ने पिछले साल जेपी मॉर्गन चेज, वेल्स फार्गो कंपनी, सिटी ग्र्रुप इंक और यूएस बैनक्रॉप के साथ फेसबुक मैसेजर पर ग्राहकों की दी जाने वाली सेवाओं के बारे में बातचीत की थी। इसके पीछे विचार यह था कि किसी ग्राहकों को सेवा देने के लिए फोन पर इंतजार करवाने के बजाय बेहतर होगा वह बैंक को अपनी जरूरत के बारे में मैसेज कर दे।  

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Dakhal News 8 August 2018


अभिषेक उपाध्याय

सारे दौलतमंद पत्रकार आज दहाड़ें मारकर रो रहे हैं। राजदीप सरदेसाई। सागरिका घोष। कमर वाहिद नक़वी। रवीश कुमार उर्फ रवीश पांडे। ओम थानवी। इनमें से सबकी आमदनी 30 फीसदी की सर्वोच्च आयकर सीमा के पार है। क्या कभी आपने इन्हें किसी स्ट्रिंगर के निकाले जाने पर आंसू बहाते देखा है? कभी किसी आम पत्रकार के निकाले जाने पर इन्होंने छाती पीटी है? जब IBN7 में करीब 300 पत्रकार एक झटके में निकाल दिए गए। उनके बच्चों की स्कूल फीस बंद हो गई। उनकी ईएमआई रुक गयी। उनकी बीबियां सोने चांदी की दुकानों पर अपने ब्याह के गहने गिरवी रखने की लाइन में लग गईं। तब क्या आपने इनमें से पत्रकारिता के एक भी कथित खुदा को अपने जमीर के सीने पर कान धरते देखा था? जब एनडीटीवी से सैकड़ों पत्रकार झींगुर और तिलचट्टों की तरह मुनाफे की गरम चिमटियों से पकड़कर फेंक दिए गए। तब क्या इस रवीश पांडे उर्फ रवीश कुमार नाम के गणेश शंकर विद्यार्थी के फूफा को उनके समर्थन में एक लफ्ज़ भी कहीं लिखते देखा था? ये सब उसके ही साथी थे। जिनकी मजबूरियों के मुर्दा जिस्म पर खड़ा होकर ये आदमी अपने मालिको को 21 तारीफों की सलामी ठोंक रहा था। मगर आज इन सभी का चैन लुट गया है। नींद उड़ गई है।आज इनके कुछ दौलतमंद साथी निकाले गए हैं। जिनकी तनख्वाह का औसत 8 से 15 लाख महीना हुआ करता था। सो आज देश मे आपातकाल आ गया है। आज पत्रकारिता की दसवीं है और ये सब के सब बाल मुंडवाने की खातिर लाइन लगा चुके हैं। और तो और हमे पत्रकारिता की नैतिकता का प्रवचन भी दे रहे हैं। आदर्शों और सिद्धांतों की गीता पढ़ रहे हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने टीआरपी की खातिर हर कर्म- कुकर्म किए। बिना ड्राइवर की कार भी चलवाई और सांप-बिच्छु भी जमकर नचवाये। टीआरपी कम होने पर अपने अधीनस्थों की नौकरियां खाई। उनकी ज़िम्मेदारियाँ बदलीं। इस बीच ईएमआई पर जीने वाले आम पत्रकार कीड़े मकोड़ों की तरह मसले-पीसे जाते रहे। मगर पत्रकारिता की कायनात के ये स्वघोषित खुदा मोटी तनख्वाहों वाले थ्रीडी चश्मे लगा जमकर अट्टहास करते रहे। आज यही फिक्रमंद हैं। आज ये डरे हुए हैं। ये अपने पूरे करियर टीआरपी के पीछे मजनुओं से नाचते रहे। टीआरपी लाने की खातिर “कुंजीलाल की मौत” का बेहूदा तमाशा दिखाते रहे। पर आज रिटायर होते ही ये “पत्रकारिता के रामप्रसाद बिस्मिल” बन चुके हैं। इनके दौलतमंद साथी इसी टीआरपी के कहर में मारे गए। अपनी निरी अयोग्यता और भीषण एजेंडेबाज़ी के चलते इनके कार्यक्रमों को दो कौड़ी की टीआरपी भी नही नसीब हो पाई और आखिरकार धक्के मारकर निकाले गए। इन्हीं दौलतमंदों के निकाले जाने पर कुछ दौलतमंद इस कदर आंसू बहा रहे हैं कि दिल्ली में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। यमुना खतरे के निशान को पार कर गयी है। इस बीच यूपी के मऊ का स्ट्रिंगर खून के आंसू रो रहा है। उसे तनख्वाह तक नही मिलती और निकालने वाले निकालते वक़्त अपनी घड़ियों में वक़्त तक नही देखते। कभी कभी तो रात के 12 बजे भी फायर कर देते हैं। गुजरात के मोरबी का स्ट्रिंगर देर रात तक मोटरसाइकिल चलाने के बाद अगली सुबह के पेट्रोल की चिंता में अब भी जाग रहा है। ईएमआई के छोटे-छोटे क्वाटरों में सहमे सिकुड़े न जाने कितने पत्रकार, कभी जबरिया लिखवा लिए गए इस्तीफे को देखते हैं, तो कभी नन्ही बच्ची की डायरी में लिखी हुई स्कूल फीस की नोटिस को। उन्हें नींद नही आती है। वे जीते जी पागल हो जाते हैं। मगर सवाल वही है। उनके लिए कौन रोता है? ये पूंजीपतियों गिरोह है। ये सिर्फ पूंजीपतियों के लिए रोता है। सरकार से लड़ना है तो प्रभाष जोशी बनना पड़ेगा। काली कमाई की मोटी तनख्वाहें लेने वाले। एक ईमानदार इनकम टैक्स कमिश्नर को लगभग 10 साल सस्पेंड रखवाने वाले। मैनेजिंग एडिटर की कुर्सी पर गिद्ध दृष्टि लगाकर पत्रकारिता के “अघोषित आपातकाल” का कलमा पढ़ने वाले भला क्या खाकर सरकार से लड़ेंगे! पुण्य प्रसून वाजपेयी, अभिसार शर्मा और रवीश कुमार उर्फ रवीश पांडे का निपट जाना तो प्राकृतिक न्याय है। ये सब इसी के काबिल हैं। जिनकी भी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत में आस्था है, उनके लिए आज जश्न का दिन है। लीजिए एक सिरे से इन सारे धंधेबाजों के मूल चरित्र को पहचानिए और इस बात का शोक मनाइए कि आज प्रभाष जोशी नही हैं। उनकी जगह ये रंगे हुए…..हैं। सबसे पहले अभिसार शर्मा। ये वो शख्स हैं जिनकी मोदी सरकार से सारी खुंदक ही इसी बात की है कि इनकी इनकम टैक्स कमिश्नर पत्नी के खिलाफ चल रही जांच अब अंजाम तक पहुंच रही है। ये ईमानदारी के पुतले महाशय जब एनडीटीवी में काम कर रहे थे, उसी वक़्त इनकी पत्नी की कलम से एनडीटीवी को करोड़ों के रिफंड मिल रहे थे। वो भी सारे नियम कानून को रसूख के बुलडोजरों से कुचलते हुए। बदले में एनडीटीवी की ओर से मिला सपरिवार यूरोप यात्रा का मलाईदार पैकेज। एनडीटीवी के खिलाफ राउंड ट्रिपिंग और मनी लॉन्ड्रिंग की जितनी भी शिकायतें आती रहीं, पति पत्नी पूरी तन्मयता से उन्हें किनारे सरकाते रहे और बदले में मोटी सैलरी और बड़ी गाड़ी वाली पत्रकारिता के वाटर कूलर से अपना अपना गला तर करते रहे। इन लोगों के रसूख ने संजय श्रीवास्तव नाम के एक ईमानदार इनकम टैक्स कमिश्नर को यूपीए सरकार के 10 सालों में लगभग लगातार सस्पेंड कराकर रखा क्योंकि उसने इनकी सारी कारगुजारियों का कच्चा चिट्ठा खोल दिया था जो बाद की जांच में सही भी पाया गया। सोचिए, उन्हीं संजय श्रीवास्तव को एक निजी अस्पताल से झूठी रिपोर्ट तैयार कराकर पागल तक करार दिया गया। वो तो भला हो एम्स का जिसने उनका फिर से परीक्षण किया और उन्हें पूरी तरह नार्मल घोषित किया। संजय श्रीवास्तव आज फिर से नौकरी पर हैं। इस शख्स का धुर विरोधी भी इसकी ईमानदारी की मिसाल देता है। कभी उनसे मिलिएगा और पूछियेगा कि उनके परिवार ने गुज़रे 10 सालों में इस सफेदपोश एजेंडेबाज़ कथित पत्रकार के चलते क्या क्या नही झेला! फिर से सोचिए कि ये आदमी व्यवस्था से लड़ने और भगत सिंह का फूफा बनने की बात कर रहा है। चैनल के प्लेटफार्म पर अपनी निजी खुंदक निकालते रंगे हाथों पकड़े गए इस शख्स की कहानी किसी एबीपी न्यूज़ वाले की जुबानी सुन लीजियेगा। बड़ा रस आएगा। अब पुण्य प्रसून वाजपेयी। इनकी भी तारीफ सुन लीजिए। ये इतने बड़े धंधेबाज पत्रकार हैं कि ज़ी न्यूज़ में रहते हुए अपने सम्पादक सुधीर चौधरी की गिरफ्तारी को पत्रकारिता का “अघोषित आपातकाल” बता रहे थे। उस वक़्त इनकी निगाह जनरल जिया उल हक की आंख की तरह जुल्फिकार अली भुट्टो की “कुर्सी” पर गड़ी हुई थी। लग रहा था कि अब मैनेजिंग एडिटर की कुर्सी अपने हाथ मे आई कि तब आई। मगर जैसे ही अंगूर खट्टे हैं का एहसास हुआ, ये सरकार क्रांतिकारी बन गए और इस्तीफा पटककर चलते बने। ये इतने बड़े सच्चाई और ईमानदारी के स्वघोषित हरिश्चंद्र हैं कि एडिटर इन चीफ बनने की हवस में देश के गरीब निवेशकों के हज़ारों करोड़ हड़पने के आरोपी सहारा के पैरों में पछाड़ खाकर गिर गए। वही सहारा ग्रुप जिसके गिरेबान पर सेबी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की मार के निशान हैं। जिसकी कमाई के स्रोत पर देश की सर्वोच्च अदालत टिप्पणी कर चुकी है। उसी सहारा के दफ्तर में बैठकर ये अपने “पुण्य” की लालटेन में “पाप” का मिट्टी का तेल उड़ेल रहे थे। इनकी अयोग्यता का ये आलम है कि उस चैनल की रही सही रेटिंग भी डुबो आए और अपने बड़बोलेपन के चलते एक रोज़ धक्के मारकर निकाले गए। एबीपी न्यूज़ में आते ही बड़े अहंकार के साथ सरकार ने दावा किया था कि अब हम आए हैं तो टीआरपी भी आएगी ही मगर इनका शो “मास्टर स्ट्रोक” टीआरपी को रेस में इस कदर फिसड्डी साबित हुआ कि अगर मोदी सरकार उसे संजीवनी न देती तो वो बहुत पहले ही बंद हो जाता। इस शो को जो भी फायदा हुआ वो इसके प्रसारण के दौरान इसके सिग्नल ब्रेक होने से मिली चर्चा से हुआ वरना इसे कब की फ़ालिज मार गयी थी। सोचिए, एक बेहद ही लिजलिजे, मैनेजिंग एडिटर बनने के नाम पर किसी भी चप्पल पर भहरा जाने वाले और चरम अहंकारी व्यक्ति को एक चैनल से उम्मीद थी कि वो उसे अपना व्यक्तिगत एजेंडा चलाने की फ्रेंचाइजी दे दे। ताकि वो एक रोज़ फिर प्रयोजित इंटरव्यू के तुरंत बाद “क्रांतिकारी, बहुत क्रांतिकारी” की सेटिंग करता पकड़ा जाए। ऐसे सेटिंगबाज़ नमूने भला क्या खाकर सरकार से लड़ेंगे! ये प्रभाष जोशी के पैर के नाखून की मैल भी नही हो सकते। और आखिर में रवीश पांडेय उर्फ रवीश कुमार। वो आदमी जिसकी लाखों की तनख्वाह और शानदार गाड़ी का खर्चा एक ऐसे चैनल से आता है जो कांग्रेस के ज़माने से ही काली कमाई के एक नही अनेक मामलों में फंसा हुआ है। वो आदमी जो एक दलित लड़की की आबरू नोचने के आरोपी “बिहार कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष” अपने सगे भाई के खिलाफ एक लाइन तक अपने चैनल पे नही चलने देता है। वो भी तब जब इंडियन एक्सप्रेस से लेकर दैनिक जागरण और आजतक से लेकर एबीपी न्यूज़ तक हर अखबार और हर चैनल में इसके सगे आरोपी कांगेसी भाई की कहानियां छाई हुई थीं। जो अपने चैनल से भारी तदाद में गरीब मीडिया कर्मियों के बेदर्दी से निकाल दिए जाने पर आह तक नही करता और उल्टा सूट बूट नापते हुए दलितों और गरीबों की संवेदना बेचने का कारोबार करता है। सोचिए, ऐसे दोगली और दोहरी सोच के कारोबारी क्या खाकर सरकार से लड़ेंगे? बर्गर खाकर? या फिर पिज़्ज़ा? हां, आज अगर प्रभाष जी होते तो सरकार और विपक्ष दोनों के झूठ की ईंट से ईंट बजा देते। उनका अपना कोई एजेंडा नही था। जो था वो पत्रकारिता का था। उनके भीतर वो नैतिक साहस था। सच्चाई की वो आग थी। ईमानदारी की वो छटपटाहट थी। ये बहुरुपिये और धंधेबाज भला क्या खाकर सरकार से लड़ेंगे! ये इस दुकान से उठेंगे तो उस दुकान पर गिरेंगे। आखिर में एक बार फिर से, आज प्रभाष जी होते तो सरकार और विपक्ष दोनों को मालूम पड़ जाता कि पत्रकारिता क्या होती है! [ पत्रकार अभिषेक उपाध्याय इंडिया टीवी में कार्यरत ,यह आलेख उनकी की एफबी वॉल से ]  

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Dakhal News 4 August 2018


किशोर कुमार

 - मंत्री डॉ. मिश्र   भारतीय सिनेमा जगत के सुप्रसिद्ध कलाकार, संगीतकार और गायक श्री किशोर कुमार बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। खंडवा जिले में जन्मे श्री किशोर कुमार ने पूरे देश में मध्यप्रदेश का नाम रोशन किया। एमपी के जनसम्पर्क, जल-संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र ने आज स्वर्गीय किशोर कुमार की जयंती पर उन्हें नमन करते हुए यह विचार व्यक्त किये। मंत्री डॉ. मिश्र ने पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहा कि स्वर्गीय किशोर दा हरदिल अजीज और खुशमिजाज इंसान थे। उनकी यादें देशवासियों के दिलों में हमेशा कायम रहेंगी। डॉ. मिश्र ने कहा कि उन्होंने गायन, निर्देशन, अभिनय सहित विभिन्न विधाओं में अपनी पहचान बनाई थी।

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Dakhal News 4 August 2018


एमपी में पत्रकारों की श्रद्धा-निधि में एक हजार रुपये की वृद्धि

गैर अधिमान्य पत्रकार भी बीमा योजना में शामिल होंगे   मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आज हुई मंत्रि-परिषद की बैठक में प्रदेश के वरिष्ठ एवं बुजुर्ग पत्रकारों की श्रद्धा-निधि 6 हजार रूपये प्रति-माह से बढ़ाकर 7 हजार रूपये प्रति माह करने का निर्णय लिया गया है। श्रद्धा-निधि के लिये आयु सीमा 62 वर्ष से घटाकर 60 वर्ष करने का भी निर्णय लिया गया है। मंत्रि-परिषद ने प्रदेश के गैर अधिमान्य पत्रकारों को बीमा योजना में शामिल कर प्रीमियम राशि का 50 प्रतिशत शासन द्वारा दिये जाने का निर्णय लिया है।

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Dakhal News 31 July 2018


adimanav

भोपाल के कोलार फाइन एवेन्यू फेस-1 कॉलोनी की सड़क के दोनों ओर डाली गई मुरम में पाषण युग और उत्तर पाषण युग के पत्थरों के औजार मिले हैं। यह दावा पुरातत्वविद् डॉ. नारायण व्यास ने किया है। इस मामले की नवदुनिया टीम ने जब पड़ताल की तो पता चला कि सड़क के दोनों ओर डाली गई मुरम बोरदा गांव स्थित पहाड़ी से लाई जा रही है। इससे यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस पहाड़ी पर लाखों वर्ष पहले आदिमानव रहते थे। कोलार के कोलूखेड़ी से करीब 3 किलोमीटर दूर स्थित बोरदा गांव की पहाड़ी की मुरम में पाषण युग और उत्तर पाषाण युग के पत्थरों से बनाए गए औजार मिले हैं। इन औजारों का इस्तेमाल आदिमानव जानवरों के शिकार और आत्मरक्षा के लिए करते थे। वह इन पत्थरों से कुल्हाड़ी, भाला, हाशिया, हथौड़ा सहित अन्य औजार बनाते थे। इन पत्थरों की पहचान राजधानी के पुरातत्वविद् डॉ. नारायण व्यास ने की है। उन्होंने बताया कि विंध्याचल पर्वत माला में भोपाल व आसपास का क्षेत्र बसा है। यह जगह आदिमानवों का पसंदीदा स्थान रहा है। क्योंकि यहां पर आदिमानव द्वारा बनाए गए शैलचित्र, गुफाएं और पत्थरों से बने औजार मिलते रहे हैं, जो एक धरोहर हैं। पुरातत्वविद् डॉ. नारायण व्यास को दो माह पहले कलियासोत डैम से लगी पहाड़ियों से पाषण युग में आदि मानव द्वारा बनाए गए पत्थरों के औजार मिले थे। एक दर्जन ऐसे पत्थर मिले थे, जिनका आकार कुल्हाड़ी की तरह था। श्री व्यास ने भदभदा, कोलार नहर तिराहे की पहाड़ी, लालघाटी, कठौतिया की पहाड़ी पर पाषण युग के पत्थरों से बने औजार मिलने का दावा किया है। वर्ष 2015 में स्पेन का पुरातत्व विशेषज्ञों का एक दल भोपाल व कोलार की पहाड़ियों को देखने आया था। इस दौरान यहां पर मिले कुछ शैलचित्रों व पत्थरों को देखा। स्पेन का दल शैलचित्रों की आयु का पता लगाने के लिए रिसर्च कर रहा है। संचालनालय पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से जुड़े पुरातत्व विशेषज्ञों द्वारा पूर्व में किए गए सर्वे में मनुआभान टेकरी, लालघाटी, कोलार कठौतिया, भोजपुर, भीम बैठिका, भदभदा, कलियासोत डैम से लगी पहाड़ियों पर शैलचित्र, गुफाएं और पत्थरों के बनाए गए पाषण युग के औजार मिले हैं। इससे इन जगहों पर 15 से 20 लाख साल पहले आदि मानवों के रहने का पता चलता है। उस समय आदिमानव पत्थरों का आकार बदलकर शिकार व जानवरों से आत्मरक्षा करने के लिए नुकीले औजार बनाते थे। पुरातत्वविद् डॉ. नारायण व्यास ने बताया कि अमूमन पत्थर साधारण होता है। लेकिन, आदिमानव उसे तोड़कर उसका आकार बदल देते थे। कुल्हाड़ी, भाला, फरसा, हशिया बनाने के लिए नुकीला करते थे। इससे आदिमानव द्वारा पत्थरों से बनाए गए औजार सामान्य पत्थर से अलग ही नजर आते हैं। हालांकि पुरातत्व विशेषज्ञ ही पत्थरों की पहचान कर पाते हैं। पुरातत्वविद् डॉ. नारायण व्यास ने बताया कि दो तरह के पत्थर होते हैं। बड़े पत्थर जो पूर्व पाषण युग के होते हैं और छोटे पत्थर जो उत्तर पाषाण युग के होते हैं। उन्होंने बताया कि मेरे संग्रहालय में पाषाण युग के 550 पत्थर हैं। फाइन एवेन्यू फेस-1 कॉलोनी की सड़क के दोनों ओर डाली गई मुरम पाषाण युग के 8 और उत्तर पाषाण युग के 3 पत्थर मिले हैं। पुरातत्व अधिकारी, संचालनालय पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय डॉ. रमेश यादव ने बताया भोपाल पहाड़ियों व झीलों का शहर है। मनुआभान टेकरी, लालघाटी, कोलार सहित अन्य ऐसे स्थान हैं, जहां आदिमानव द्वारा बनाए गए पत्थरों के औजार और शैलचित्र मिलते हैं। कोलार फाइन एवेन्यू की सड़क के दोनों और डाली गई मुरम में पाषण युग के पत्थर डॉ. नारायण व्यास को मिले हैं। डॉ. व्यास का पुरातत्व में लंबा अनुभव है। पाषण युग के पत्थरों का संग्रहालय उनके घर में भी है।  

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Dakhal News 31 July 2018


उदन्त मार्तण्ड व्याख्यानमाला

भारतीय पत्रकारिता की जन्मभूमि कोलकाता में अब प्रतिवर्ष "पं.युगलकिशोर शुक्ल स्मृति उदन्त मार्तण्ड व्याख्यान माला" आयोजित की जाएगी, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि. के कुलपति जगदीश उपासने ने कोलकाता प्रेस क्लब में आयोजित कार्यशाला के दीक्षांत समारोह में यह घोषणा की। उदन्त मार्तण्ड विश्व का पहला हिंदी समाचार पत्र है और पं. युगलकिशोर शुक्ल उसके संपादक। महान संपादक की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए विवि. की यह पहल हिंदी पत्रकारिता जगत के लिए ऐतिहासिक है।   

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Dakhal News 26 July 2018


जनसम्पर्क मंत्री डॉ. मिश्र केंद्रीय मंत्री  गडकरी से मिले

केन्द्रीय भूतल परिवहन और जल-संसाधन मंत्री श्री नितिन गडकरी से जनसम्पर्क, जल संसाधन एवं संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र ने सुबह ग्वालियर में सौजन्य भेंट की। डॉ. मिश्र ने श्री गडकरी को ग्वालियर-चंबल संभाग सहित संपूर्ण प्रदेश में सिंचाई सुविधाओं के विस्तार के लिए किए गए प्रयासों की जानकारी दी। श्री गडकरी ने उन्हें भरोसा दिलाया कि भारत सरकार मध्यप्रदेश के अधोसंरचनागत विकास के लिए धन की कमी नहीं होने देगी।  

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Dakhal News 25 July 2018


डॉ अबरार मुल्तानी

डॉ अबरार मुल्तानी ज़िन्दगी में कोई भी कभी भी ब्लैकमेल हो सकता है। यह मज़ाक में किया जा सकता है या फिर क्रिमिनल स्तर पर। यह किसी जान पहचान वाले द्वारा किया जा सकता है या फिर किसी शातिर बदमाश के द्वारा। नेता, शातिर बदमाश, पत्रकार, पुलिस वाला, वकील, आपका ही कोई कर्मचारी, भूतपूर्व या वर्तमान प्रेमी या प्रेमिका...कोई भी ब्लैकमेल कर सकता है।  ब्लैकमेल के लिए कोई वीडियो, कोई मैसेज, कोई ऑडियो, कोई फ़ोटो या कोई पेपर्स हो सकते हैं। अक्सर लोग इसमें उलझ जाते हैं और आत्महत्या या हत्या करने के विकल्प को चुन लेते हैं। आत्महत्या या हत्या करने के बाद तो सारे विकल्प ही खत्म हो जाते हैं और फिर कोई कुछ नहीं कर सकता। आजकल आये दिन हम खबर पढ़ते हैं कि एक व्यवसायी को किसी मॉडल द्वारा ब्लैकमेल किया गया और उसने आत्महत्या करली, या किसी महिला को ऑफिस के ही एक कुलीग ने ब्लैकमेल किया और उसने भी मरना चुना। कई लोग इस जाल से निकलने के लिए पैसा लूटा देते हैं तो कई अपनी जान। ब्लैकमेलिंग अक़्सर प्रतिष्ठित व्यक्ति या किसी महिला के खिलाफ की जाती है। यह सच्चे या झूठे तथ्यों पर आधारित हो सकती है। ब्लैकमेल करने वाला अपनी शर्त पूरी होने पर ब्लैकमेल करना बंद भी कर सकता है और इसे जारी भी रख सकता है। ब्लैकमेल करने वाला आपसे रुपया, संपत्ति, कोई सपोर्ट या शारिरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर कर सकता है। ब्लैकमेल होने वाला अपने आप को नरक की यातना झेलता हुआ पाता है जहाँ उसे दिन रात तिल तिल कर मारा जाता है। उसकी नींद उड़ जाती है और वह अपने अंधकारमय भविष्य को सोच सोचकर मरने या मारने पर उतारू हो जाता है। कई ब्लैकमेल करने वालों को मौत के घाट लोग उतार देते हैं और खुद को जेल में उम्र भर के लिए कैद करवा लेते हैं। ब्लैकमेल जब किसी को किया जाता है तो उसे लगता है कि यह क्या हो गया? क्या कहानी किस्सों और फिल्मों के अलावा यह हकीकत में भी होता है और होता भी है तो मेरे साथ ही क्यों? यह होते ही वह हल ढूंढने की बजाय चिंता में डूब जाता है, क्योंकि इसका हल निकालना किसी ने बताया ही नहीं उस बेचारे को। यह वह सबक है जो हमें हमारे स्कूल कॉलेज और माँ बाप भी नहीं सिखाते।  लेकिन अगर शांति से इसके हल के बारे में सोचा जाए तो बहुत आसानी से इस अंधेरे समंदर से निकला जा सकता है। सबसे पहले तो आप यह तय करें कि ब्लैकमेलर द्वारा जिस मुद्दे पर आपको ब्लैकमेल किया जा रहा है उसका सबसे बुरा परिणाम क्या हो सकता है। और उस बुरे परिणाम को स्वीकार कर लीजिए। चीनी दर्शन के अनुसार "मन की सच्ची शांति बुरे से बुरे को स्वीकार करने से आती है।" क्योंकि ऐसा करके हम नकारात्मक ऊर्जा को मुक्त करके सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने लगते हैं। जब हम बुरे से बुरे को स्वीकार कर लेते हैं तो हमारा मन शांत हो जाता है क्योंकि फिर हमारे पास खोने को कुछ नहीं बचता। जब मन शांत हो जाए तो अब यह सोचे कि इस बुरे से बुरे को कैसे टाला जाए। उसके लिए आप अपने दोस्तों, परिवार के सदस्यों या फिर कानून की मदद ले सकते हैं। हाँ, कानून इसमें मदद करता है और यदि ब्लैकमेल करने वाले के पास की जानकारी को आप गोपनीय रखना चाहे (जब वह गिरफ्तार हो जाए) तो भी रखी जा सकती है, यदि आपने कोई कानूनन अपराध नहीं किया है तो। कई बार हमारे पास बेहतरीन और असरदार मददगार होते हैं लेकिन हम उनकी मदद लेने में हिचकते हैं और खुद को मुसीबत में डाल लेते हैं। अकेले अकेले ना घुटे। और याद रखें मदद मांगोगे तो ही मदद मिलेगी। आपके पास एक अद्भुत दिमाग है जो ईश्वर ने आपको समस्याओं से निकलने के लिए ही दिया है तो आप उसका उपयोग कीजिये। अंत में याद रखें कि जो आपको ब्लैकमेल कर रहा है वह कानूनन एक अपराध कर रहा है और अपराधी के खिलाफ मदद लेने के लिए आपके पास बहुत सी संस्थाएँ और लोग हैं... उनकी मदद लीजिए। न कि अपनी जान दीजिये और न किसी की जान लेकर हत्यारे बनिये। सोचिये,समझिये, फैसला लीजिए और प्रक्रिया शुरू कर दीजिए ब्लैकमेलरों को सबक सिखाने की।  सत्यमेव जयते। [डॉ अबरार मुल्तानी जाने माने लेखक और चिंतक हैं ]

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Dakhal News 23 July 2018


कौशल किशोर चतुर्वेदी patrkar

    जनसम्पर्क, जल-संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र को पत्रकार और युवा कवि कौशल किशोर चतुर्वेदी ने आज अपना काव्य संग्रह 'जीवन राग'' भेंट किया। मंत्री डॉ. मिश्र ने श्री चतुर्वेदी को पुस्तक प्रकाशन के लिए बधाई दी।

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Dakhal News 20 July 2018


klpesh yagnik

  एक बड़े हिंदी अखबार का प्रधान संपादक रात साढ़े दस बजे अपने ही न्यूज रूम में कोलेप्स कर जाता है. महज 55 साल की उम्र में. यह महज सहानुभूति और सांत्वना व्यक्त करने वाली खबर नहीं है. यह खबर कहीं अधिक बड़ी है. यह एक सवाल है कि क्या हमारा न्यूजरूम पत्रकारों की जान लेने लगा है. अखबारों में काम करने वाले हमारे ज्यादातर मित्र इस बात से इत्तेफाक रखते होंगे कि पिछले कुछ सालों में न्यूजरूम का प्रेशर लगातार बढ़ रहा है. सीनियर लेवल के लोग लगातार प्रेशर में काम कर रहे हैं. अखबार में होने वाली एक चूक दिन भर के मूड का भट्ठा बैठा देती है. डांट-डपट का सिलसिला जो टॉप लेवल से शुरू होता है वह नीचे तक रिसता रहता है. जो अखबार जितना प्रोफेशनल है वहां यह तनाव उतना ही अधिक है.   और यह चूक कोई पत्रकारिता से संबंधित चूक नहीं होती. मुमकिन है आपने बहुत अच्छी खबर लगायी हो और उसकी वजह से सरकार के लोग आपके अखबार से नाराज हो जायें और यह तनाव का सबब बन जाये. क्योंकि सरकार के नाराज होने का मतलब है, विज्ञापन का फ्लो एक झटके में बंद हो जाना. यह तनाव इसलिए भी हो सकता है कि आपके कोई दो साथी आपस में झगड़ बैठे हों और उसे सुलझाने की जिम्मेदारी आपकी हो.   यह इसलिए भी हो सकता है कि आप ही सनक में आकर किसी पटना के पत्रकार का तबादला सूरत कर दें और वह पत्रकार भरे दफ्तर में आपसे गाली-गलौज या मारपीट कर बैठे. इसलिए भी कि प्रसार विभाग घटती बिक्री का खामियाजा संपादकीय विभाग पर फोड़ दे और आप जवाब देते रहें. यह इसलिए भी सकता है कि आपके बॉस आपसे किसी मंत्री का फेवर चाहते हों और आप ऐसा काम करने से बचते हों. यह इसलिए भी हो सकता है कि बिहार आया आपका बॉस चाहता हो कि आप उसके लिए कहीं से दारू की एक बोतल जुगाड़ दें. और कुछ तो परमानेंट किस्म के तनाव होते हैं, आप टॉप पर हैं तो आपके दस किस्म के दुश्मन होते हैं, आप हमेशा खतरे की जद में रहते हैं. वे आपके लिए गड्ढ़ा खोदने में जुटे रहते हैं, आप उनके लिए. यह सब ऐसा ही है जैसा किसी भी कॉरपोरेट कंपनी में होता है. यह सब इसलिए लिख रहा हूं कि जो पत्रकार नहीं हैं, वे इस दुनिया को समझें. अब पत्रकार पत्रकारिता के, खबर लिखने के और किसी को अपनी खबर से नाराज करने के दबाव में कम है. उस पर ज्यादा दबाव मैनेजेरियल किस्म के हैं. और हमारा न्यूजरूम इन दबावों की वजह से कत्लगाह बनता जा रहा है. कल्पेश जी की मौत कोई पहली घटना नहीं है. इससे पहले भी न्यूज रूम में पत्रकारों को हार्ट अटैक आये हैं और उनकी जान चली गयी है. इनमें संपादक और न्यूज एडिटर किस्म के लोग भी हैं. भड़ास डॉट कॉम जैसे मंचों का शुक्रिया कि ऐसी खबरें सामने आती रहती हैं. वरना इन मसलों पर बात भी कौन करता.   और एक प्रधान संपादक की या किसी पत्रकार की न्यूज रूम में मौत को ही न देखें. आप न्यूजरूम में काम करने वाले हमारे साथियों का हेल्थ प्रोफाइल चेक करें. अगर किसी न्यूज में रूम में 50 लोग काम करते हैं तो उनमें 30 जरूर हाई ब्लड प्रेशर का शिकार होगा और 10 से अधिक शुगर के मरीज बन चुके होंगे. इसी तरह स्पोंडेलाइटिस, किडनी, लिवर, गॉल ब्लाडर से जुड़ी परेशानियां यह आम है. हम रोज अपने साथियों को इनसे जूझते हुए देखते हैं और इसी प्रक्रिया में हमारा कोई साथी एक रोज अचानक विदा ले लेता है. फिर हम ऑर्बिच्युरी लिखते रह जाते हैं. दरअसल उदारीकरण की शुरुआत के साथ ही टाइम्स ऑफ इंडिया के समीर जैन ने भारतीय पत्रकारिता का कल्चर ही बदल दिया. उसके बाद अखबार एक आंदोलन नहीं, एक उत्पाद बनने लगा. उत्पाद बनते ही संपादक सुपर वाइजर की भूमिका में आ गया. वह खबरों से कम अखबार को रसीला बनाने की कोशिश में अधिक जुट गया. साथ ही यह प्रेशर भी कि सरकार के साथ-साथ हर बड़े विज्ञापनदाता को भी खुश रखना संपादक नामक पदाधिकारी की ही जिम्मेदारी बन गयी. जिलों और प्रखंडों तक फैली उसकी टीम विज्ञापन और प्रसार के मसले पर भी काम करने लगी, लिहाजा उसे भी इसमें शामिल होना पड़ा. फिर कंपनी की जायज नाजायज ख्वाहिशें जो सरकार से जुड़ी होती हैं, वह भी संपादक को ही करना है. यह साधारण दबाव नहीं है. मैंने अपने संपादक साथियों को देखा है, सुबह पांच बजे ही फोन आने शुरू हो जाते हैं कि फलां सेंटर पर अखबार समय से नहीं पहुंचा. आठ से नौ बजे तक यही झमेला रहता है. उसका बाद खबरों की मिसिंग. आज आगे रहे या पिट गये. फिर 11 बजे मीटिंग, वहां पत्रकारों की क्लास लेना और सीनियर्स को रिपोर्ट करना. फिर को स्पेशल प्लान, फिर एक या डेढ़ बजे घर गये दो घंटे आराम करके फिर दफ्तर वापस. कई संपादक फिर रात के बारह बजे घर लौटते हैं. कुछ समझदार हैं जो दस बजे लौट जाते हैं, वे भी आखिरी एडीशन छूटने तक घर में रहने के बावजूद जगे रहते हैं. टीवी और नेट पर नजर रहती है कि कहीं कोई बड़ी घटना तो नहीं हो गयी. ऑफिस से पन्ने बन बन कर वाट्सएप पर उनके पास भेजे जाते हैं. पहले दिन भर फोन घनघनाता था. अब इसकी जगह वाट्सएप ने ले ली है. मगर वाट्सएप से चीजें आसान होने के बदले और जटिल हो गयी हैं. वाट्सएप ग्रुप में पचास लोग हैं. उनके अनावश्यक झगड़े भी आपका अटेंशन खींचते हैं. आप उसमें उलझे रहते हैं. इसके अलावा आप संपादक बनते ही कई लोगों की निगाह में आ जाते हैं. हर कोई सोचता है कि आप मोटा माल बना रहे हैं, फिर आपके परिचित पत्रकारों को लगता है कि आप उन्हें आसानी से बेहतर नौकरी दे सकते हैं. मतलब आपको चैन नहीं हैं. यह गणेश शंकर विद्यार्थी या प्रभाष जोशी वाली संपादक की कुरसी नहीं है, जहां आप अपने विचारों से अपने अखबार और समाज को समृद्ध करते हैं. आज संपादकों की दुनिया बिल्कुल अलग है. आपको लिखना-पढ़ना छोड़कर तमाम किस्म के प्रबंधकीय काम में जुटना है. तनाव की जलती भट्ठी में खुद को झोंक देना है. जाहिर है कि ऐसे में ऐसी दुखद घटनाएं होती हैं. मगर सवाल यह है कि क्या मीडिया कंपनियों के मालिकानों की निगाह में यह बात है कि आपकी धनलिप्सा ने हमारे न्यूजरूम को कत्लगाह बना दिया है? क्या वे सोचते हैं कि इस स्थिति में कोई बदलाव होना चाहिए. अगर नहीं तो जैसे मोरचे पर फौजी शहीद होते हैं, वैसे न्यूजरूम में संपादक इसी तरह मरते रहेंगे। [बिहार के वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र की एफबी वॉल से]

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Dakhal News 17 July 2018


नरोत्तम मिश्रा- बुंदेलखंड बुलेटिन

 जनसम्पर्क मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र ने दतिया में  दैनिक 'बुंदेलखंड बुलेटिन' समाचार पत्र के मध्यप्रदेश संस्करण का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि समाचार पत्रों का प्रमुख कार्य जनता की आवाज को सरकार तक तथा सरकार की आवाज को जनता तक पहुंचाना है। इस दिशा में बुंदेलखंड बुलेटिन समाचार पत्र खरा उतरेगा, ऐसी मैं कामना करता हूँ। उन्होने कहा कि दतिया में विकास की दशा और दिशा दोनों बदली है, चौतरफा विकास हो रहा है। उन्होंने कहा कि मीडिया कर्मी बदलते हुए दतिया के साक्षी बनें। इस अवसर पर समाचार पत्र के सम्पादक श्री पुरूषोत्तम नारायण श्रीवास्तव, विधायक श्री प्रदीप अग्रवाल तथा गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।  

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Dakhal News 16 July 2018


anurag upadhyay

मध्यप्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल  ने भोपाल में चर्चित पत्रकार अनुराग उपाध्याय को मैन ऑफ़ मीडिया के रूप में सम्मानित किया। जनपरिषद के 29 वे स्थापना दिवस समारोह में 2017-18  में पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए अनुराग उपाध्याय को यह सम्मान दिया गया।  पत्रकार अनुराग उपाध्याय ने इस साल एक सर्जरी के 14 घंटे बाद अस्पताल के बेड से अपने पॉपुलर हेडलाइन शो को होस्ट कर एक इतिहास रच दिया। अनुराग से पहले किसी भी ऐंकर ने अस्पताल के पलंग से शो होस्ट नहीं किया। अस्पताल से पहले दिन लोकमत समाचार के वरिष्ठ पत्रकार लेखक शिवाअनुराग पटेरिया ,दूसरे दिन दैनिक भास्कर के राहुल शर्मा और तीसरे दिन दैनिक जागरण के स्थानीय सम्पादक मृगेंद्र सिंह लाइव शो में अनुराग के साथ रहे। हेडलाइन शो और बेबाक़ बात अनुराग के फेमस शो हैं एक मेजर एक्सीडेन्ट के बाद अनुराग का पैर जांघ के पास से टूट गया ,बड़ी सर्जरी के बाद अनुराग ठीक हुए और काम पर लौटे लेकिन पैर में लगी रॉड ,प्लेटें,और नट से होने वाली तकलीफ से निजात पाने के लिये उन्होंने 20 जून 2018 को फिर सर्जरी करवाई ,इससे पहले सुबह 10:30 बजे अपना प्रोग्राम हेडलाइन शो लाइव प्रजेंट किया...शाम को ऑपरेशन के बाद 21 जून 2018 की सुबह 10:30 बजे अनुराग टीवी स्क्रीन पर अस्पताल के icu से हेडलाइन शो प्रस्तुत करते नज़र आए। टीवी  पत्रकारिता की इतिहास में ऐसा इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ ,एक पत्रकार के हौसले के सामने हर चुनौती बहुत छोटी नजर आई। अनुराग के हौंसले को जनपरिषद ने मैन ऑफ़ मीडिया के रूप में सम्मानित किया।  जनपरिषद के समारोह में राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने कहा कि समाज में ऐसे ढेरों लोग हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं, लेकिन संस्थाएं उनको पूछती तक नहीं हैं। राज्यपाल का कहना था कि प्रदेश के जिलों, कस्बों और गांवों में कई ऐसी महिलाएं और युवा हैं, जो पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, नदी पुनर्जीवन, महिला सशक्तिकरण आदि पर उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। संस्थाओं का कर्तव्य है कि वे ऐसी प्रतिभाओं का खोजें और उनका सम्मान कर उनके कार्य को भी प्रोत्साहित करें। राज्यपाल आनंदी बेन ने कहा कि वर्तमान समय में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में सबसे अधिक काम करने की जरूरत है। पूरी दुनिया ग्लोबल वर्मिंग की समस्या से जूझ रही है।  इस मौके पर मध्यप्रदेश के  पूर्व डीजीपी डीपी खन्ना की किताब 'इतिहास पुनःपुनः' का विमोचन राज्यपाल सहित अन्य अतिथियों ने किया। इसके पूर्व समारोह के प्रारंभ में जनपरिषद के अध्यक्ष और पूर्व पुलिस महानिदेशक एनके त्रिपाठी ने अतिथियों को स्वागत किया। प्रतिवेदन संस्था के उपाध्यक्ष और होमगार्ड के महानिदेशक महान भारत सागर और मेजर जनरल (पूर्व) पीएन त्रिपाठी ने प्रस्तुत किया। समारोह में पुलिस महानिदेशक ऋषिकुमार शुक्ला, ब्यूरो ऑफ आउट रीच कम्यूनिकेशन (भारत सरकार) के डीजी अनिल सक्सेना का भी सम्मान किया गया।   

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Dakhal News 15 July 2018


गोविन्द न्यूज़ 24 छोड़ टाइम्स नाउ के साथ

 आखिरकार मध्य प्रदेश में अंग्रेजी चैनल टाइम्स नाउ  का 2 साल का सूखा खत्म और चैनल को मिल गया नया ब्यूरो...! हालांकि 2 साल पहले Times Now का भोपाल ब्यूरो खाली होने के बाद से ही दर्जनों पत्रकार भोपाल से दिल्ली तक और दिल्ली से दिल्ली तक भी , जमकर हाथ-पैर पटक रहे थे...लेकिन बाज़ी मारी 4 साल पहले News 24 ब्यूरो बनकर दिल्ली से भोपाल आये गोविंद प्रताप गुर्जर ने...गोविन्द  ने दिल्ली से आते ही न्यूज़-24 के लिए मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जमकर खबरदारी भी की और इस दौरान गोविंद के कार्यकाल में बारी-बारी से MP/CG में 2 भव्य कॉन्क्लेव भी हुए...इसका इनाम भी भाई को मिला...जो अब वो Times Now जैसे बड़े ब्रांड में ब्यूरो की ज़िम्मेदारी संभालने जा रहे हैं...! कह सकते हैं देर आये दुरुस्त आये की तर्ज पर Times Now ने इस फैसले के लिए भले ही 2 साल का लंबा वक्त लिया हो लेकिन बताते हैं कि दिल्ली-मुम्बई में बैठी Times Now की पूरी लीडिंग टीम ने गोविंद भाई को खूब ठोक-बजाकर परखा और उसके बाद ही फैसला लिया गया..! खैर MP/CG में चुनाव से ठीक पहले Times Now ने तो खाली स्थान भर दिया लेकिन News 24 के लिए बने खाली स्थान में कौन सा विकल्प चुना जाएगा ये जल्द ही तय होगा...!   

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Dakhal News 15 July 2018


नवेद शिकोह

  नवेद शिकोह डीएवीपी के खिलाफ कोर्ट जायेगा ‘अखबार बचाओ मंच’, पहले राजनीतिक दलों से मांगों फिर अखबारों से मांगना हिसाब! अस्तित्व बचाने की आखिरी कोशिश में ‘अखबार बचाओ मंच’ न्यायालय की शरण में जायेगा। मंच ये तर्क रखेगा कि जब राजनीतिक दल अपने चंदे का हिसाब और टैक्स नहीं देते तो फिर अखबारों पर एक-एक पैसे का हिसाब और नये-नये टैक्स क्यों थोपे जा रहे हैं। दरअसल दो-तीन महीने बाद पूरे देश के अखबारों का नवीनीकरण होना है। जिसके लिये डीएवीपी द्वारा एक-एक कागज और पाई-पाई का हिसाब मांग लेने से देश के 95%अखबार नवीनीकरण नहीं करा पायेंगे। अखबार बचाओ मंच का कहना है कि अखबारों से संबधित सरकार की पालिसी के खिलाफ डीएवीपी मनमाने ढंग से अखबारों के साथ सौतेला व्यवहार कर रहा है। सरकार की विज्ञापन नीति के हिसाब से एक करोड़ से अधिक टर्नओवर वाले अखबारों को बैलेंस शीट देना अनिवार्य है। जबकि डीएवीपी ने बीस लाख के ऊपर के टर्नओवर वाले अखबारों के लिए बैलेंस शीट अनिवार्य कर दी है। पूरा मामला जानिए :- शायद ही कोइ ऐसा व्यवसाय होगा जिसमे कोई manipulation न होता हो , उसी तरह नियमों और कानूनों को देखते हुए देश के 99% मान्यता प्राप्त अखबारों को भी प्रसार संख्या में manipulation करना पड़ता है। बड़े-बड़े ब्रांड अखबार भी बीस हजार कापी को दो लाख प्रसार बताने पर मजबूर है। इस झूठ की मंडी की जिम्मेदार सरकार की गलत नीतियां भी हैं। यदि कोई अपने अखबार का वास्तविक दो हजार के अंदर का प्रसार बताता है तो उसे डीएवीपी से विज्ञापन की सरकारी दरें नहीं मिलती। और यदि दो हजार से पंद्रह हजार तक के प्रसार का दावा करता है तो उसे लघु समाचार की श्रेणी में रखा जाता है। लघु श्रेणी की विज्ञापन दर इतनी कम होती हैं कि इन दरों से कम संसाधनों वाला अखबार भी अपना बेसिक खर्च भी नहीं निकाल सकता है। यूपी सहित देश के बहुत सारे राज्यों में कम प्रसार वाले अखबारों के पत्रकारों को राज्य मुख्यालय की मान्यता भी नहीं मिलती। शायद राज्य सरकारों का मानना है कि कम प्रसार वाले अखबारों में राज्य मुख्यालय यानी प्रदेश स्तर की खबरें नहीं छपतीं हैं। सरकारों की इन गलत नीतियों के कारण भी प्रकाशक अपना प्रसार बढ़ा कर प्रस्तुत करता है। अब ये झूठ देश के करीब 95% अखबारों को ले डूबेगा। और देश के लाखों अखबार कर्मी और पत्रकार बेरोजगार हो जायेंगे। यानी सरकारी नीतियों और प्रकाशकों के टकराव की इस चक्की में आम अखबार कर्मी/पत्रकार पिस जायेंगे। क्योंकि अब बताये गये प्रसार के हिसाब से करोड़ों की राशि के कागज की खरीद और अन्य प्रोडक्शन कास्ट का हिसाब दिये बिना डीएवीपी अखबारों का नवीनीकरण नहीं करेगा। अखबारी कागज पर जीएसटी होने के कारण अब तीन का तेरह बताना संभव नहीं है। यही कारण है कि अखबारी कागज पर से जीएसटी हटाने की मांग को लेकर प्रकाशकों, अखबार कर्मियों और पत्रकारों ने खूब संघर्ष किया। सरकार के नुमाइंदों को दर्जनों बार ज्ञापन दिये। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक धरना-प्रदर्शन किये। वित्त मंत्री से लेकर पीएमओ और जीएसटी कौंसिल से लेकर विपक्षी नेता राहुल गांधी तक फरियाद की। फिर भी हासिल कुछ नहीं हुआ। डीएवीपी ने अखबारों की नयी मान्यता के आवेदन पत्र में अखबारों से एक एक पैसे का पक्का हिसाब मांगा है। यानी कागज की जीएसटी से लेकर बैंक स्टेटमेंट मांग कर ये स्पष्ट कर दिया है कि तीन महीने बाद नवीनीकरण के लिए देशभर के सभी अखबारों से ऐसे ही हिसाब मांगा जायेगा। और इस तरह का हिसाब देशभर के 95%अखबार नहीं दे सकेंगे। इस संकट से लड़ने के लिए पत्रकार संगठन एक बार फिर सक्रिय हो गये हैं। इन संगठनों का मानना है कि अखबार बंद होने से प्रकाशक तो हंसी-खुशी अखबार बंद करके किसी दूसरे धंधे में आ जायेंगे लेकिन देश के लाखों अखबार कर्मी/पत्रकारों के पास रोजगार का दूसरा विकल्प नहीं होगा। इस बार पत्रकार संगठन सरकार से पहले तो ये मांग करेंगे कि अखबारों के कम और वास्तविक प्रसार को सरकारी विज्ञापनों की इतनी दरें मिल जायें कि कम संसाधनों का बेसिक खर्च निकल आये। दूसरी महत्वपूर्ण मांग ये होगी कि कम प्रसार वाले अखबारों के पत्रकारों की राज्य मुख्यालय की प्रेस मान्यता बरकरार रहे। दस लाख से कम कुल वार्षिक विज्ञापन पाने वालों से डीएवीपी आय-व्यय का हिसाब ना मांगे। कम संसाधनों, कम आमदनी और कम विज्ञापन पाने वाले इन अखबारों को जीएसटी से मुक्त किया जाये। अखबारों को इन संकटों से बचाने के लिए लड़ाई लड़ रहा पत्रकार संगठनों का साझा मंच ‘अखबार बचाओ मंच’ का कहना है कि यदि ये मांगे भी पूरी नहीं हुयीं तो न्यायालय का सहारा लेना पड़ेगा। मंच का सबसे मजबूत तर्क होगा कि जब राजनीतिक दल चंदे का हिसाब देने के लिए विवश नहीं हैं तो कम संसाधन और बहुत ही कम सरकारी विज्ञापन पाने वाले देश के अधिकांश अखबार एक-एक पैसे का हिसाब देने के लिए विवश क्यों किए जा रहे हैं। कार्पोरेट के अखबार करोड़ों रुपये की लागत लगाकर अखबारों में घाटे सह भी सकते हैं। क्योंकि वो अपने मुख्य व्यापार से अरबों रूपये का मुनाफा कमाते है। इनके मुख्य व्यापारों में सरकारों के सहयोग की जरूरत पड़ती है। सरकारों को समाचार पत्रों में सरकारों के गुड वर्क को ज्यादा उजागर करने और खामियों को छिपाने की गरज रहती है। इन कारणों से देश की जनता कार्पोरेट के ब्रांड अखबारों से विश्वसनीयता खोती जा रहे है। पाठक सच पढ़ना चाहता है। उसका रूझान छोटे-छोटे अखबारों की तरफ बढ़ रहा है। लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कार्पोरेट और पेड न्यूज की बेड़ियों में ना जकड़ जाये इसलिए पाठक चार पन्ने के छोटे अखबार में चार सच्ची खबरें पढ़ना चाहता है। जिस तरह राजनीतिक दलों की नीतियों से प्रभावित होकर लोग गुप्त दान करते हैं ऐसे ही छोटे अखबारों को अभी अब लोग दान स्वरुप टुकड़ों – टुकड़ों में कागज देने लगे हैं। जब राजनीतिक दलों के चंदे का हिसाब नहीं तो छोटे अखबारों का हिसाब क्यों?[भड़ास फॉर मीडिया से साभार ]  

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Dakhal News 10 July 2018


देश का प्रथम मीडिया इन्क्यूबेशन सेंटर भोपाल में

जनसम्‍पर्क, जल संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र ने आज माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्विद्यालय, भोपाल में नीति आयोग के सहयोग से स्थापित मीडिया इन्क्यूबेशन सेंटर का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि यह देश का पहला मीडिया इन्क्यूवेशन सेंटर है। इस सेंटर में मीडिया उद्यमशीलता का प्रशिक्षण दिया जाएगा और उद्यमियों को समय-समय पर मेंटरिंग करने की भी योजना है। उल्लेखनीय है कि मीडिया के सभी संस्थानों में विषय-वस्तु बनाना एवं मीडिया प्रबंधन का प्रशिक्षण भली प्रकार दिया जा रहा है, परंतु वास्तविक मीडिया के परिवेश में स्वतंत्र विषय वस्तु बनाने वालों की मांग बढ़ती जा रही है। इसलिए मीडिया में उद्यमशीलता का प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। इस आवश्यकता को ध्यान में रखकर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने नीति आयोग के सहयोग से अटल इन्क्यूबेशन सेंटर की स्थापना करने का निर्णय लिया। यह केन्द्र मीडिया उद्यमियों को प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन देने का कार्य करेगा। सेंटर का संचालन संवाद भारती संस्था के माध्यम से किया जाएगा। इस अवसर पर संचालक जनसम्पर्क श्री आशुतोष प्रताप सिंह, विश्वविद्यालय के कुलपति श्री जगदीश उपासने, कुलाधिसचिव श्री लाजपत आहूजा और कुलसचिव प्रो. संजय द्विवेदी सहित अन्य अधिकारी उपस्थति थे। नीति आयोग द्वारा मीडिया इन्क्यूबेशन सेंटर के लिए माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल का चयन एक विशेष उपलब्धि है। इस सेंटर को सक्षम, उपयोगी और विशिष्ट केन्द्र बनाकर मीडिया के क्षेत्र में उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया जाए। यह बात जनसम्पर्क मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र ने आज यहाँ विश्वविद्यालय की प्रबंध उप-समिति की बैठक में कही। डॉ. मिश्र ने आज विश्वविद्यालय में प्रारंभ मीडिया इन्क्यूबेशन सेंटर के लिए चार करोड़ 50 लाख रुपए की राशि आवंटन करने और सोशल मीडिया रिसर्च सेंटर के लिए दो करोड़ रुपए की अतिरिक्त बजट राशि मंजूरी का अनुमोदन भी किया गया। विश्वविद्यालय की महा-परिषद पूर्व में इसके लिए प्रशासकीय स्वीकृति ले चुकी है। जनसम्पर्क मंत्री डॉ. मिश्र ने कहा कि देश में इस तरह के इन्क्यूबेशन सेंटर का सर्वप्रथम मध्यप्रदेश में शुरू होना गर्व की बात है। उन्होंने कहा कि मीडिया के क्षेत्र में इसकी उपयोगिता को निरंतर बढ़ाने का प्रयास किया जाए। डॉ. मिश्र ने पत्रकारिता विश्वविद्यालय द्वारा दतिया में प्रारंभ परिसर के विकास के साथ ही अन्य केन्द्रों की गतिविधियों की जानकारी भी प्राप्त की। बैठक में अधिकारियों-कर्मचारियों के कल्याण से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए गए। मंत्री डॉ. मिश्र ने बैठक में विश्वविद्यालय की नवीन योजनाओं की प्रगति की समीक्षा की। डॉ. मिश्र ने प्रारंभ में नीति आयोग के सहयोग से विश्वविद्यालय में स्थापित विशेष मीडिया इन्क्यूबेशन सेंटर का लोकार्पण किया।  

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Dakhal News 5 July 2018


पाकिस्तानी रिपोर्टर ने खोली सरकार की पोल

इन दिनों पाकिस्तान में मानसून की जोरदार बारिश जारी है। लगातार हो रही बारिश के चलते कई शहरों में हालात खराब हैं और लाहौर में तो रिकॉर्ड तोड़ बारिश हुई है जिसके चलते 8 लोगों की मौत हो गई है। देश के बड़े शहरों में बारिश से बिगड़ते हालात की रिपोर्टिंग भी जारी है। बेहतर कवरेज और शानदार रिपोर्टिंग करने की होड़ में पत्रकार हर तरह की कोशिश में लगे हैं। इन्हीं में एक पत्रकार हैं जो सरकार की अनदेखी का कवरेज बड़े मजेदार तरीके से करता नजर आया। इस पत्रकार का वीडियो अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। दरअसल, लाहौर में हुए तेज बारिश के चलते शहर में हर जगह पानी भर गया, सड़कें भी नदी बन गईं और इसी का कवरेज एक स्थानीय न्यूज चैनल का रिपोर्टर करने निकला। उसने सरकार पर तंज कसने के लिए बेहद मजेदार तरीका अपनाया और सड़क पर ही स्विमिंग पूल में बच्चों के लिए उपयोग होने वाले खिलोनों और बाथटब को सड़क पर लेकर उन पर सवार हो गया। वाडियो में रिपोर्टर इन खिलौनों के बीच पानी में तैरता नजर आ रहा है। अपने कवरेज में उसने कहा कि, 'मैं किसी स्विमिंग पूल में नहीं हूं बल्कि सड़क के बीच में हूं जो पानी से भरी हुई है। ऐसे ही हाल शहर के अन्य हिस्सों के भी है। मैं पानी के इस पूल में मजे कर रहा हूं और लोगों को भी राय दूंगा कि वो भी ऐसा ही करें क्योंकि यह पानी जल्द उतरने वाला नहीं है।' यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तानी रिपोर्टर्स के इस तरह के मजेदार वीडियो सामने आए हों। इससे पहले भी कई भार कवरेज करते हुए उनकी अटपटी हरकतें कैमरे में कैद हुई हैं।

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Dakhal News 4 July 2018


मराठी साहित्य के लिये भास्कर रामचन्द्र तांबे पुरस्कार घोषित

एमपी के संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री सुरेन्द्र पटवा ने मराठी कृतियों के लिये संस्कृति विभाग की मराठी साहित्य अकादमी द्वारा स्थापित पुरस्कारों की पहली बार घोषणा की है। म.प्र. संस्कृति परिषद द्वारा राजकवि भास्कर रामचन्द्र तांबे के नाम से स्थापित मराठी कृतियों के वर्ष 2014 एवं 2015 के पुरस्कार हेतु रचनाकारों के नामों की घोषणा की गई है। कैलेण्डर वर्ष 2014 एवं 2015 के लिये मराठी साहित्य अकादमी द्वारा मराठी कविता अथवा नाट्य लेखन और मराठी कहानी अथवा कादम्बरी (उपन्यास) के क्षेत्र में यह पुरस्कार दिया जाएगा। घोषणा के मुताबिक कविता लेखन के क्षेत्र में श्री श्रीनिवास हवलदार की कृति 'ग्रेसच्या कविता' के लिए तथा मराठी कहानी के क्षेत्र में डॉ. म.द. वैद्य को उनकी कृति 'माझा चिकित्सा प्रवास' के लिये राजकवि भास्कर रामचन्द्र तांबे पुरस्कार दिया जाएगा। पुरस्कार के लिये चयनित प्रत्येक रचनाकार को 50 हजार रुपये की राशि तथा प्रशस्ति-पत्र, शॉल, श्रीफल भेट किया जाएगा। घोषित पुरस्कार राजकवि की उपाधि से अलंकृत श्री तांबे के कार्य क्षेत्र ग्वालियर में समारोह पूर्वक प्रदान किए जायेंगे।  

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Dakhal News 4 July 2018


व्हाट्सएप

  व्हाट्सएप लगातार अपने यूजर्स के लिए नए अपडेट्स लेकर आ रहा है और इसी कड़ी में उसने एक बड़ा फीचर पेश किया है। इस फीचर का नाम है 'सेंड मैसेज'। यह ऐसा फीचर है जो विशेष तौर पर ग्रुप एडमीन के लिए लाया गया है। इसके बाद ग्रुप एडमिन अपने ग्रुप में जुड़े सदस्यों को मैसेज भेजने से रोक सकेंगे। इसके लिए ग्रुप एडमिन को सेटिंग्स में जाकर कुछ बदलाव करने होंगे जिसके बाद वो ग्रुप मेंबर्स को मैसेज भेजने से रोक सकेंगे। ऐसा करने के लिए एडमिन को ग्रुप सेटिंग में जना होगा। यहां उसे दो ऑप्शन मिलेंगे 'सिर्फ एडमिन' और 'सभी मैंबर्स'। अगर एडमिन यहां सिर्फ एडमीन वाले ऑप्शन को चुनता है तो ग्रुप में उसके अलावा और कोई मैसेज नहीं भेज पाएगा। साथ ही सभी यूजर्स को इसका संदेश भी जाएगा कि उन्हें ग्रुप में मैसेज भेजने से रोक दिया गया है। हालांकि, इसमें एक फायदा यह है कि एडमिन किसी भी वक्त यह सेटिंग बदल सकता है और सभी ग्रुप मैंबर्स को मैसेज भेजने की मंजूरी दे सकता है। व्हाट्सएप के इस नए फीचर को साल का सबसे शानदार फीचर माना जा रहा है। यह फीचर एंड्रायड, आईओएस व अन्य ऑपरेटिंग सिस्टम्स के लिए जारी भी कर दिया गया है।

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Dakhal News 2 July 2018


जियो वालों को जल्‍द मिल सकती है 5G सेवा

टेलीकॉम कंपनी रिलायंस जल्‍द ही अपने ग्राहकों को 5जी की सुविधा प्रदान करने की कोशिश में लगी हुई है। इस बात की घोषणा रिलायंस जियो के एमडी आकाश अंबानी ने सगाई वाले दिन इस बात की घोषणा की थी। रिलायंस इसके लिए अमेरिकी कंपनी रेडिसिएसिस की पूरी हिस्‍सेदारी खदीदने वाली है। रिलायंस जियो की पेरेंट कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज से मिली जानकारी के मुताबिक ओपन टेलिकॉम प्लेटफार्म सॉल्यूशन में रेडिसिएसिस एक ग्लोबल लीडर है। इस जानकारी के मुताबिक रिलायंस इंडस्ट्रीज इस कंपनी में 100 प्रतिशत की हिस्सेदारी 1.72 डॉलर प्रति शेयर के हिसाब से खरीदने वाली है। रिलायंस इंडस्ट्री के निदेशक मुकेश अंबानी के बड़े बेटे आकाश अंबानी ने इस डील पर कहा कि इस अधिग्रहण से जियो को 5G और इंटरनेट ऑफ थिंग्स में आगे बढ़ने में काफी मदद मिलेगी। आपको बता दें कि बीते 30 जून को ही आकाश अंबानी और हीरा कारोबारी रसेल मेहता की पुत्री श्लोका मेहता की सगाई मुंबई में धूम-धाम से मनाई गई। आकाश अंबानी ने इस डील की घोषणा अपने सगाई के मौके पर की है। रिलायंस इंडस्ट्रीज से मिली जानकारी के मुताबिक इस डील के लिए फिलहाल ट्राई से मंजूरी नहीं मिली है। कंपनी को उम्मीद है कि इसके लिए 2018 की चौथी तिमाही में मंजूरी मिल सकती है। इस साल के अंत तक यह डील पूरी हो जाएगी। वहीं, रिलायंस जियो की प्रमुख प्रतिद्वंदी कंपनी भारती एयरटेल ने भी 5G सेवा के लिए तैयारी कर ली है। भारती एयरटेल इस समय देश के कई शहरों में 4G की अपग्रेडेड सेवा MIMO (मल्टीपल इनपुट मल्टीपल आउटपुट) उपलब्ध करा रही है। इस सेवा की शुरुआत बेंगलूरू से की गई है। MIMO को 4G और 5G के बीच की तकनीक कहा जाता है।  

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Dakhal News 2 July 2018


भोपाल में टीवी चैनल के सिग्नल चुराने के मामले में केस दर्ज

भोपाल में केबल कंपनी से अनुबंध समाप्त होने के बाद सिग्नल चोरी कर सोनी और कलर्स चैनल का प्रसारण करने के आरोप में पुलिस ने धोखाधड़ी, कॉपीराइट एक्ट के तहत केस दर्ज किया है। एमपी नगर पुलिस के मुताबिक मेसर्स रिचनेट केबल सर्विस प्रायवेट लिमिटेड की तरफ से प्रकाश मोहन कामले ने लिखित शिकायत दर्ज कराई थी। उसमें बताया था कि डीजी नेट केबल के भोपाल। केबल कंपनी से अनुबंध समाप्त होने के बाद सिग्नल चोरी कर सोनी और कलर्स चैनल का प्रसारण करने के आरोप में पुलिस ने धोखाधड़ी, कॉपीराइट एक्ट के तहत केस दर्ज किया है। एमपी नगर पुलिस के मुताबिक मेसर्स रिचनेट केबल सर्विस प्रायवेट लिमिटेड की तरफ से प्रकाश मोहन कामले ने लिखित शिकायत दर्ज कराई थी। उसमें बताया था कि डीजी नेट केबल के ऑपरेटर संतोष पंवार और उनके साथी सिग्नल चोरी कर सोनी और कलर्स चैनल का प्रसारण कर रहे हैं। शिकायत में बताया गया कि उनकी फर्म से पहले डीजी नेट केबल का अनुबंध था, लेकिन तय राशि का भुगतान नहीं करने पर अनुबंध समाप्त कर उनके चैनल ने डीजी नेट के लिए प्रसारण बंद कर दिया था। लेकिन डीजी नेट केबल ऑपरेटर ने पैसों का भुगतान करने के बजाय डीटीएच से सिग्नल चोरी कर कलर्स व सोनी चैनल का प्रसारण करना शुरू कर दिया। शिकायत की जांच कर आरोपित संतोष पंवार व उसके साथियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है।  

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Dakhal News 30 June 2018


जनसम्पर्क मंत्री से मिले पत्रकार संगठन के प्रतिनिधि

   मध्यप्रदेश के जनसम्पर्क, जल संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र से आज एम.पी.वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के प्रतिनिधि मंडल ने भेंट की। भेंट करने वालों में यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष श्री राधावल्लभ शारदा, संगठन महासचिव श्री विकास बोन्द्रिया, रायसेन जिले के अध्यक्ष श्री जगदीश जोशी और अन्य सदस्य उपस्थित थे।

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Dakhal News 28 June 2018


दबंग नेता ने पत्रकार के परिवार से की मारपीट

अंबिकापुर में खबर प्रकाशित होने से खफा दबंगई और मारपीट करने के आरोपी  भाजपा सांसद कमलभान सिंह के पुत्र व जनपद पंचायत अध्यक्ष देवेंद्र सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार तो किया लेकिन थाने लाकर खातिरदारी की और मुचकले पर रिहा कर दिया। सोमवार को देवेंद्र ने साथियों के साथ एक स्थानीय पत्रकार  के घर धावा बोल दिया था। वह कोई खबर छपने से नाराज थे। हद यह कि पत्रकार के बुजुर्ग माता-पिता को बेल्ट से पीटा। मामला रसूखदार से जुड़ा होने के कारण पुलिस मामला दर्ज करने में आनाकानी करती रही। जैसे तैसे सांसद पुत्र व उनके साथियों के खिलाफ घर में घुसकर मारपीट करने की धाराओं में मामला दर्ज किया था।  

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Dakhal News 28 June 2018


 पी नरहरि से मिले महाराष्ट्र के वरिष्ठ जनसम्पर्क अधिकारी

मध्यप्रदेश के जनसम्पर्क आयुक्त  पी. नरहरि से आज संचालनालय में महाराष्ट्र राज्य के जनसम्पर्क विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के प्रतिनिधि मंडल ने सौजन्य भेंट की। दल का नेतृत्व महाराष्ट्र के संचालक जनसम्पर्क शिवाजी मानकर ने किया। आयुक्त जनसम्पर्क श्री नरहरि ने प्रतिनिधि मंडल को बताया कि मध्यप्रदेश में हाल ही में लागू मुख्यमंत्री जनकल्याण (संबल) योजना विश्व की अनुकरणीय योजना साबित हुई है। इस योजना से राज्य सरकार, समाज के सभी वर्गों के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के जीवन स्तर में व्यापक स्तर पर बदलाव लाने में सफल हुई है। श्री नरहरि ने बताया कि इस योजना में करीब पौने दो करोड़ से अधिक लोगों ने अभी तक पंजीयन करवाया है। यह योजना पंजीबद्ध हितग्राहियों को जन्म से अंतिम समय तक मददगार साबित हो रही है। सौजन्य भेंट के दौरान महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश में संचालित जनसम्पर्क विभाग संबंधी गतिविधियों पर विस्तार से चर्चा हुई। अधिकारियों ने विभिन्न योजनाओं के बारे में आपसी तौर पर विचार-विमर्श भी किया।  

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Dakhal News 25 June 2018


पत्रकार शुजात बुखारी

कश्मीरी पत्रकार और राइजिंग कश्मीर के संपादक शुजात बुखारी की हत्या के मामले में पुलिस ने कहा है कि उनकी हत्या का आदेश पाकिस्तान से दिया गया था। जम्मू कश्मीर पुलिस का कहना है कि इस मामले में विभाग को कुछ ऐसे सुराग हाथ लगे हैं, जिसके बाद ऐसी उम्मीद की जा रही है कि सच्चाई सामने आ जाएगी। पुलिस सूत्रों ने बताया कि जून के आखिर तक शुजात बुखारी मामले में बड़ा खुलासा हो सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आतंकियों को सीमा पार से बुखारी की हत्या के आदेश मिले थे। शुजात बुखारी घाटी में शांति कायम करने के लिए काम कर रहे थे। रमजान के महीने मेंं 14 जून 2018 को अज्ञात हमलावरों ने पत्रकार शुजात बुखारी की उनके दफ्तर के बाहर हत्या कर दी थी। इससे पहले भी शुजात बुखारी पर हमले हुए थे। बुखारी की हत्या के मामले में पुलिस अलगाववादी हुर्रियत नेताओं की भूमिका को लेकर भी जांच कर रही है। हुर्रियत की ओर से वरिष्ठ पत्रकार बुखारी को दुबई में कॉन्फ्रेंस का हिस्सा न बनने की सलाह दी गई थी। जांच से सीधे जुड़े हुए अधिकारी ने बताया कि इस बात की ज्यादा आशंका है कि उनकी हत्या घाटी में शांति को बढ़ावा देने की उनकी कोशिशों के चलते की गई। उनके मुताबिक, ये बातें अलगाववादी और नियंत्रण रेखा (एलओसी) के दोनों ओर के जमियत-ए-इस्लामी नेताओं को नागवार गुजरी। उन्होंने बताया कि हमने आरोपियों को लेकर सीधी जांच की है। हत्यारे की पहचान कर ली गई है। खुफिया विभाग को मिले इनपुट हत्या के मामले में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की ओर इशारा कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने पाकिस्तानी पत्रकार और कार्यकर्ता इरशद महमूद के 16 जून को किए गए फेसबुक पर उर्दू पोस्ट को बेहद गंभीरता से लिया है। महमूद राइजिंग कशमीर के संपादक शुजात बुखारी के करीबी थे। अधिकारियों के मुताबिक, दुबई में आयोजित एक कॉन्फ्रेंस में शुजात बुखारी ने भी शिरकत की थी और उनकी बातें अलगाववादी समूहों को रास नहीं आई। महमूद के पोस्ट के मुताबिक, बुखारी की राय घाटी के अलगाववादियों और यूनाइटेड जिहाद काउंसिल की अध्यक्षता करने वाले सीनियर जमियत और हिजबुल मुजाहिदीन नेता सैयद सलाहुद्दीन को पसंद नहीं आई। महमूद ने दावा किया कि दुबई में आयोजित कॉन्फ्रेंस में शामिल होने वाले राइजिंग कश्मीर के संपादक और अन्य सभी लोगों को ‘इंडिया का पेड एजेंट्स’ बताने के बाद उन्होंने बुखारी को लेकर सलाहुद्दीन से बात की थी। प्रतिबंधित आतंकी संगठन के प्रवक्ता ने भी उस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने वाले लोगों को गद्दार कहते हुए उन्हें जल्द ही सबक सिखाने के बात कही थी। अरशद महमूद के अनुसार बुखारी भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत की वकालत करने को लेकर आतंकियों और आईएसआई के निशाने पर आ गए थे। महमूद ने उर्दू में लिखी अपनी फेसबुक पोस्ट में कहा, 'वह लोग कश्मीर पर किसी नए विचार के हिमायती नहीं हैं।' खुफिया ब्यूरो (आईबी) के पूर्व विशेष निदेशक एएस दुलत ने कहा कि वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी ने कुछ दिन पहले ही सुरक्षा बढ़ाने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से संपर्क किया था। निजी सुरक्षा गार्ड के तौर पर उन्हें उपलब्ध कराए गए दो पुलिस अधिकारी भी इस हमले में मारे गए थे। दुलत ने एक बयान में कहा था बुखारी ने बार-बार अलगाववाद, आतंकवाद में वृद्धि और व्यापक डर की चेतावनी दी थी और कहा था कि ऐसे माहौल में कोई भी सुरक्षित नहीं है।  

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Dakhal News 25 June 2018


सोशल मीडिया फेसबुक देगा पैसा कमाने का मौका

 फेसबुक जल्द ही अपने प्लेटफॉर्म पर विशेष सामग्री प्रदान करने के लिए सदस्यों को चार्ज करेगा। सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म पर पेरेंटिंग, कुकिंग और होम क्लीनिंग ग्रुप्स पहले होंगे जो इस पायलट कार्यक्रम के हिस्से के रूप में नई सुविधा का उपयोग करेंगे। फेसबुक के इस फीचर से कई ग्रुप को पैसा कमाने को मौका मिलेगा। फेसबुक पर सक्रिय ग्रुप में शामिल होने या ग्रुप के कंटेंट को एक्सेस करने के लिए महीने के 340 रुपए से लेकर 2,050 रुपए देने होंगे। फेसबुक ने अपने ब्लॉग में इसकी जानकारी देते हुए कहा कि कई सर्वे के बाद हमें पता चला कि जो लोग फेसबुक पर बड़े ग्रुप चला रहे हैं वे पैसे भी कमाना चाहते हैं। शुरुआत में फेसबुक मेंबरशिप फीस सिर्फ खाना बनाने और घरों को साफ करने वाले ग्रुप के लिए ही होगा। यहां आपको साफ तौर पर बता दें कि यह शुल्क आपके लिए नहीं, बल्कि फेसबुक ग्रुप के लिए है। उदाहरण के तौर पर फेसबुक पर कोई ग्रुप है जो काफी मशहूर है और आप उस ग्रुप में कुछ पोस्ट करना चाहते हैं या फिर उस ग्रुप का सदस्य बनना चाहते हैं तो आपको पैसे देने होंगे। फेसबुक ने कहा है कि इस कदम से ब्लॉगर और फेसबुक पर ग्रुप चलाने वालों की अच्छी कमाई होगी। यह फीस ग्रुप एडमिनिस्ट्रेटर ही डिसाइड करेगा। उनके पास विकल्प भी होगा कि वे फ्री में भी उपलब्ध करा सकते हैं, यह निर्भर करेगा कि उनका उद्देश्य क्या है। टेस्टिंग फेज़ में फेसबुक इस फीचर से कुछ कमाएगा नहीं। ये फीचर ग्रुप एडमिनिस्ट्रेटर्स को उनकी पोस्टिंग से कमाने का मौका देगा जो कि वह रेग्यूलर बेसिस पर पोस्ट करते हैं।एडमिनिस्ट्रेटर्स की कमाई होगी तो इससे कंटेंट की क्वॉलिटी भी सुधरेगी। यह पूरी तरह से कब शुरू होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है। यह भी पुष्टि नहीं हो पाई है कि यह फीचर भारत के एडमिनिस्ट्रेटर्स के लिए उपलब्ध होगा या नहीं।  

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Dakhal News 22 June 2018


फड़नवीस सरकार

पत्रकारों की सुरक्षा के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनाए गए कानून को केंद्र सरकार ने कुछ सवालों के साथ लौटा दिया है। यह कानून पिछले वर्ष तैयार कर राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया था। महाराष्ट्र मीडिया पर्सन्स एंड मीडिया इंस्टीट्यूशंस (प्रिवेंशन ऑफ वायलेंस एंड डैमेज ऑर लॉस टू प्रॉपर्टी) एक्ट 2017 को पिछले वर्ष राज्य सरकार द्वारा तैयार किया गया था। राज्य मंत्रिमंडल की मंजूरी और राज्यपाल के दस्तखत के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया था। केंद्र ने 15 दिन पहले इसे राज्य सरकार को लौटा दिया। यह कानून बनवाने के लिए मुंबई प्रेस क्लब सहित राज्य के कई पत्रकार संगठन करीब एक दशक से प्रयासरत थे। 2011 में जागरण समूह के अंग्रेजी दैनिक "मिड डे" के वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे की दिनदहाड़े हत्या के बाद राज्य सरकार पर पत्रकार संगठनों का दबाव बढ़ गया था। लेकिन यह कानून फड़नवीस सरकार में ही बन सका। राष्ट्रपति की मंजूरी के बगैर यह कानून राज्य सरकार को लौटाने की जानकारी देते हुए सूचना एवं जनसंपर्क सचिव बृजेश सिंह का कहना है कि कानून वापस नहीं हुआ है, बल्कि इससे संबंधित कुछ सवाल पूछे गए हैं। जिसका उचित समाधान राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि किसी भी कानून के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा इस प्रकार सवाल पूछा जाना एक सामान्य प्रक्रिया है। राज्य सरकार केंद्र के सवालों के उचित समाधान तैयार कर जल्द ही पुनः मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेज देगी। इस कानून में पत्रकारों या मीडिया संस्थानों पर किसी भी प्रकार के हमले को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इसके तहत आरोपी की गिरफ्तारी गैरजमानती होगी और पुलिस उपाधीक्षक स्तर से नीचे का अधिकारी इस मामले की जांच नहीं कर सकेगा। अपराध सिद्ध होने पर दोषी को तीन साल तक की कैद एवं/अथवा 50,000 रुपये का जुर्माना भी हो सकता है। यही नहीं, दोषी सिद्ध व्यक्ति को पीड़ित को हर्जाना देना पड़ सकता है। यह हर्जाना तोड़फोड़ में हुए नुकसान की भरपाई से लेकर पीड़ित के इलाज के खर्च तक हो सकता है। इस कानून में मीडिया संस्थानों एवं मीडियाकर्मियों को भी परिभाषित किया गया है।  

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Dakhal News 21 June 2018


पी. नरहरि

मध्यप्रदेश में जल्दी ही पत्रकारों के हित में पत्रकार सुरक्षा अधिनियम लाया जायेगा। पत्रकार सुरक्षा अधिनियम का मसौदा तैयार कर लिया गया है, इसके साथ ही राज्य सरकार पत्रकारों की दुर्घटना बीमा हितलाभ राशि भी बढ़ा दी हैं। 25 लाख तक के गृह ऋण पर साढ़े प्रतिशत का ब्याज भी सरकार भरेगी।  उक्त जानकारी  मध्यप्रदेश के जनसंपर्क आयुक्त पी. नरहरि ने ग्वालियर में मीडिया प्रतिनिधियों के एक सेमीनार में दी। उन्होंने बताया कि पत्रकार सुरक्षा अधिनियम तैयार है, इसे जल्दी ही केबिनेट में प्रस्तुत हो सकता है। नरहरि ने बताया कि राज्य सरकार पत्रकारों के हित में कई फैसले लागू कर रही है। पत्रकारों की दुर्घटना बीमा राशि को बढ़ाया जा रहा है। वहीं अब इसमें माता पिता को भी शामिल किया जा रहा है। इसके अलावा 25 लाख तक के पत्रकारों के गृह ऋण को सुगम बनाया जा रहा है, वहीं इस गृह ऋण का साढ़े पांच प्रतिशत का ब्याज भी सरकार ही देगी। जनसंपर्क आयुक्त पी. नरहरि ने बताया कि पत्रकार कल्याण के मामलों में भी सरकार ने उदारता से काम करने की कोशिश की है। उन्होंने बताया कि अधिमान्यता के नियमों में भी उदारता बरती जा रही है। जल्दी ही इसको साप्ताहिक, मासिक और न्यूज पोर्टल के लिये  भी खोला जायेगा। नरहरि ने पत्रकारों से विभिन्न मुददों पर सुझाव भी लिये, उन्होंने पत्रकारों द्वारा प्रेस टूर मामले पर कहा कि पत्रकारों के प्रेस टूूर जिले से लेकर संभाग बल्कि अन्य राज्यों में भी कराने के निर्देश दे दिये गये हैं।  नरहरि ने बताया कि हम चाहते है कि पत्रकारों के टूर हो ताकि दूसरे जिले, राज्यों से जाकर उनका विजन बदले और प्रदेश का इतिहास, पर्यटन व विकास की जानकारी अन्य जगह भी फेलें। नरहरि ने पत्रकारों के मानदेय प्रदान करने की उम्र 62 वर्ष से 60 वर्ष करने की घोषणा भी की। उन्होंने कहा कि यह मानदेय 6 हजार से बढ़ाकर 7 हजार रूपये कर दिया गया है। जनसंपर्क आयुक्त ने इलैक्ट्रोनिक मीडिया के पत्रकारों को सीएम कव्रेज के दौरान दिक्कत आने पर कहा कि अब सीएम की सुरक्षा डी को छोटा किया जा रहा है, ताकि फोटोग्राफ व इलैक्ट्रोनिक मीडिया के कैमरामैन बेहतर कवरेज कर सकें। जनसंपर्क आयुक्त पी. नरहरि ने जिलों में कलेक्टरों और पत्रकारों की त्रैमासिक बैठक कराने की भी बात कही।

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Dakhal News 11 June 2018


दिल्ली वर्किंग जर्नलिस्ट

  राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ‘ दिल्ली वर्किंग जर्नलिस्ट संशोधन अधिनियम को मंजूरी दे दी है। यह मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को प्रभावी ढंग से लागू किए जाने को सुनिश्चित करता है और कानून का पालन नहीं किए जाने की स्थिति में दंडनीय प्रावधान भी करता है। इस कानून का पालन नहीं किए जाने पर एक साल तक की कैद की सजा हो सकती है। दिल्ली विधानसभा ने ‘ वर्किंग जनर्लिस्ट अधिनियम ’ में संशोधन के लिए दिसंबर 2015 में यह विधेयक पारित किया था। इस कदम का उद्देश्य मौजूदा कानून में बदलावों को प्रभावी करना है। श्रम मंत्री गोपाल राय ने कहा कि देश में मजीठिया वेतन बोर्ड को प्रभावी ढंग से लागू करने को सुनिश्चित करने के लिए कानून में संशोधन करने वाला दिल्ली पहला राज्य बन गया है। यह कानून दिल्ली आधारित मीडिया संगठनों पर लागू होगा। इस कानून के मुताबिक अनुबंध ( कॉंट्रेक्ट ) पर रखे गए पत्रकारों से श्रमजीवी पत्रकार ( वर्किंग जनर्लिस्ट ) जैसा व्यवहार किया जाएगा। दिल्ली सरकार की एक अधिसूचना में कहा गया है कि किसी कर्मचारी को बकाया राशि का भुगतान नहीं करने की स्थिति में नियोक्ता को दंडित किया जाएगा। कानून , न्याय और विधायी मामलों के विभाग ने सात मई को यह अधिसूचना जारी की है। नये कानून के मुताबिक इसका उल्लंघन करने वाले पर 5,000 रूपया से 10,000 रूपया तक जुर्माना और उसे एक साल तक की सजा हो सकती हैं।

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Dakhal News 1 June 2018


भास्कर और राजस्थान पत्रिका

दैनिक भास्कर अखबार को राजस्थान में मीडियाकर्मियों की जरूरत है. इससे संबंधित एक विज्ञापन भास्कर ने छापा है. संपादकीय विभाग में कंटेंट राइटर/ कॉपी राइटर, सब एडिटर/ सीनियर सब एडिटर/ चीफ सब एडिटर, रिपोर्टर/ सीनियर रिपोर्टर, डीटीपी ऑपरेटर, ग्राफिक्स डिजायनर आदि चाहिए. प्रसार विभाग में सर्कुलेशन एग्जिक्यूटिव/ सर्कुलेशन मैनेजर की जरूरत है. ऐड सेल्स के लिए भी लोग चाहिए. जो आवेदन करना चाहते हैं वो रिज्यूमे hr_rajasthan@dbcorp.in पर भेजें. ज्यादा जानकारी के लिए उपरोक्त विज्ञापन देखें. उधर, राजस्थान पत्रिका अखबार को भी अनुभवी रिपोर्टरों की जरूरत है. खासकर उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी जिन्हें राजस्थान के बारे में ज्यादा समझदारी हो. सीनियर रिपोर्टर का यह पद दिल्ली ब्यूरो में खाली है. पांच साल का अनुभव होना चाहिए. प्रिंट और डिजिटल के लिए कॉपी लिख सकने और मोबाइल से विडियो कवरेज कर पाने वालों को प्राथमिकता. वेतन अनुभव और योग्यता के मुताबिक. रिज्यूमे यहां diwan.karki@gmail.com पर मेल करें.

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Dakhal News 1 June 2018


वरिष्ठ पत्रकार गोविंदलाल वोरा का निधन

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दैनिक समाचार-पत्र अमृत संदेश, रायपुर के प्रधान संपादक और वरिष्ठ पत्रकार श्री गोविंदलाल वोरा के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। श्री चौहान ने शोक संदेश में कहा है कि श्री वोरा का पूरा जीवन सादगी,सिद्धाँतों और सामाजिक सरोकारों के लिए समर्पित रहा। उनका आमजन से सीधा संवाद रहता था। उन्होंने पत्रकारिता का दीर्घ जीवन हमेशा सच के  लिए लड़ते हुये जिया। श्री वोरा के निधन से पत्रकारिता जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना की है और शोक संतप्त परिजनों के प्रति गहन संवेदना व्यक्त की है। उल्लेखनीय है कि श्री गोविंदलाल वोरा दैनिक समाचार-पत्र अमृत संदेश में स्थापना के समय से ही प्रधान संपादक के रूप में कार्य कर रहे थे। श्री वोरा लगभग 28 वर्ष तक नवभारत और क्रानिकल, रायपुर के संपादक रहे। उनका निधन गत दिवस 84 वर्ष की आयु में दिल्ली में हो गया।

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Dakhal News 14 May 2018


राजनीतिक विज्ञापन देने वालों के नाम बताएगा गूगल

  फेसबुक डाटा लीक के बाद खड़े हुए विवाद से सीख लेते हुए सर्च इंजन गूगल ने सियासी विज्ञापनों को पारदर्शी बनाने के लिए नई नीतियों की घोषणा की है। गत माह फेसबुक ने अपनी धूमिल छवि को सुधारने के लिए कई उपाय किए थे जिसमें राजनीतिक विज्ञापनदाताओं की पहचान की सत्यता जांचना आदि शामिल था। इसी तर्ज पर तकनीक के दिग्गज गूगल ने भी अपनी विज्ञापन नीतियों में सुधार किया है। नई नीति के मुताबिक, विज्ञापन देने वाले को कंपनी के सामने यह प्रमाणित करना होगा कि वह अमेरिका के वैध नागरिक हैं। इसके लिए उन्हें सरकार द्वारा जारी आइ-डी एवं अन्य जानकारियां जमा करनी होगी। गूगल के वरिष्ठ उपाध्यक्ष केंट वाल्कर ने कहा, 'विज्ञापन के साथ ही उसके लिए भुगतान करने वाले का नाम सार्वजनिक करना भी अब अनिवार्य होगा। इसके अतिरिक्त सियासी विज्ञापनों के लिए एक लाइब्रेरी भी तैयार की जा रही है। इससे यूजर खुद सियासी विज्ञापन और उसका भुगतान करने वाले का नाम सर्च कर पाएंगे।' इन सुधारों के साथ ही गूगल विशेष रूप से राजनीतिक विज्ञापनों पर केंद्रित एक 'पारदर्शी रिपोर्ट' भी जारी करने जा रहा है। इससे यह सामने आ जाएगा कि कौन-कौन से लोग सियासी विज्ञापन के लिए भुगतान कर रहे हैं और इसमें कितनी राशि खर्च की जा रही है। ऑनलाइन हमलों का शिकार होने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए गूगल ने अपने 'प्रोटेक्ट योर इलेक्शन' प्रोग्राम के तहत कई नए टूल्स भी तैयार किए हैं। वाल्कर ने बताया कि चुने गए अधिकारियों, अभियानों और कंपनी के कर्मचारियों के लिए एक सिक्योरिटी ट्रेनिंग प्रोग्राम भी चलाया जाएगा। प्रोग्राम को फंड करने के लिए कंपनी ने 'नेशनल साइबर सिक्योरिटी एलायंस' और हार्वर्ड केनेडी स्कूल के 'डिजिटल डेमोक्रेसी प्रोजेक्ट' से समझौता भी किया है।  

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Dakhal News 7 May 2018


अब एक और न्यूज चैनल जनतंत्र

    नोएडा से जल्द शुरू होने वाले नेशनल न्यूज़ चैनल “जनतंत्र” को युवा सहयोगियों की जरूरत है। अनुभवी से लेकर फ्रेशर्स तक आवेदन कर सकते हैं। योग्यता बस इतनी सी है कि आपके अंदर काम करने की ललक और चुनौतियों को स्वीकार करने का जज्बा होना चाहिए। जिन विभागों में योग्य मीडियाकर्मियों की आवश्यकता है वो हैं, आउटपुट, इनपुट, एंकर, असाइनमेंट, पीसीआर/एमसीआर, वीडियो एडिटर, ग्राफिक्स, आईटी और डिजिटल विंग। एंकरिंग और ग्राफिक्स के लिए आवेदन करने वाले अपनी शो-रील भी भेज दें तो बेहतर होगा। इच्छुक अभ्यर्थी अपना सीवी resume.jantantra@gmail.com पर भेज सकते हैं।

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Dakhal News 5 May 2018


india tv

  इस साल के 17वें सप्ताह की टीआरपी में कुछ भी ऐसा ख़ास नहीं है. सबकुछ लगभग पिछले सप्ताह जैसा ही है. आज तक नंबर एक पर डटा हुआ है और इंडिया टीवी का नंबर दो पर दबदबा कायम है. जी न्यूज नंबर तीन पर बना हुआ है. हालांकि अंबानी के चैनल न्यज 18 इंडिया की टीआरपी थोड़ी गिरी है. ABP न्यूज ने इस सप्ताह टीआरपी में थोड़ा सा सुधार किया है. Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 17 Aaj Tak 14.8 up 0.2 India TV 14.5 same Zee News 13.1 up 0.1 News18 India 12.5 dn 0.4 ABP News 11.9 up 0.4 News Nation 11.0 dn 0.2 India News 8.7 same News 24 7.0 up 0.6 Tez 2.7 dn 0.1 NDTV India 2.1 dn 0.2 DD News 1.9 dn 0.3 TG: CSAB Male 22+ India TV 14.7 up 0.3 Zee News 14.5 dn 0.1 Aaj Tak 14.3 up 0.5 News18 India 13.6 dn 0.4 ABP News 10.6 up 0.4 News Nation 10.3 dn 0.5 India News 8.3 up 0.1 News 24 6.4 up 0.2 Tez 3.2 dn 0.2 NDTV India 2.6 dn 0.1 DD News 1.5 dn 0.2  

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Dakhal News 5 May 2018


ani

आज प्रेस फ्रीडम डे मनाया जा रहा है यानी प्रेस की आज़ादी का दिन. वहीं हालिया जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में मीडिया की आज़ादी खतरे में हैं. लगातार बढ़ते पॉलिटिकल पार्टियों और सत्ता पक्ष के दबाव के चलते प्रेस की आज़ादी पूरी तरह से संकट में है. इसी की एक और भयावह तस्वीर उभरी है, यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा न्यूज एजेंसी एएनआई के साथ करार कर लेने से. दरअसल यूपी सरकार ने एक शासनादेश जारी किया है, जिसके मुताबिक़, योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यक्रमों की लाइव कवरेज करने पर समाचार एजेंसी एशियन न्यूज इंटरनैशनल यानी एएनआई को एक करोड़ रुपए सालाना मिलेंगे.  इस करार के चलते अब सरकार का हर कार्यक्रम चाहे वह छोटा हो या बड़ा एएनआई कवर करेगी. सरकार का इस बाबत कहना है कि उन्होंने बहुत सोच समझ कर यह निर्णय लिया है. सरकारी लोगों का इस बाबत कहना है कि सरकार की योजना योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार को सोशल मीडिया तक पहुंचाने की है. सोशल मीडिया द्वारा लोगों से जुड़ कर सरकार अपनी हर एक बात सीधे सीधे उन तक पहुंचाना चाहती है. साथ ही अपने कामों के बारे में लोगों से लगातार फीडबैक लेना चाहती है. गौरतलब है कि फेसबुक पर योगी के 5479051 और ट्विटर पर 26 लाख फॉलोवर्स हैं. वहीं यूपी सरकार को 6 लाख 32 हजार लोग फॉलो करते हैं. सरकार चाहती है कि इन सभी लोगों तक सरकार के हर कार्यक्रम की लाइव स्ट्रीमिंग पहुंच सके. ताकि सभी लोग इसे देख सके, इसीके चलते एएनआई को यह ठेका दिया गया. ऐसे में अब यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर हर जगह योगी सरकार का हर कार्यक्रम प्रसारित होगा और इसके प्रसारण की पूरी जवाबदारी एएनआई की होगी.[साभार भड़ास फॉर मीडिया ]  

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Dakhal News 3 May 2018


लोकसभा टीवी में इंटर्नशिप का मौक़ा

लोकसभा टीवी इंटर्नशिप तलाश रहे युवा लोगों के लिए एक सुनहरा मौक़ा लेकर आई है. यह मौक़ा है, इंटर्नशिप का और इस इंटर्नशिप के लिए छात्रों को मिलेंगे तीस हजार रुपए भी. यह इंटर्नशिप एक और तीन महीने की होगी. दोनों ही इंटर्नशिप के लिए 50 -50 सीटें तय की गई है. इनके लिए आप 4 मई तक   अप्लाई कर सकते हैं. तीन महीने वाली इंटर्नशिप 2 जुलाई से शुरू होकर 28 सितंबर तक चलेगी. इसके लिए आवेदक की आयु कम से कम 21 साल और अधिकतम 30 साल होनी चाहिए. साथ ही आवेदक का पोस्ट ग्रेजुएट होना भी जरूरी है. आवेदक को समाज शास्त्र, विज्ञान, पर्यावरण, क़ानून, पत्रकारिता और वाणिज्य का भी ज्ञान होना जरूरी है. इंटर्न को इसके लिए 20 हजार स्टाइपेंड और टाइपिंग के लिए 10 हजार का स्टाइपेंड दिया जाएगा. एक महीने वाली इंटर्नशिप 28 जून से 27 जुलाई तक चलेगी.इसके लिए आवेदक की आयु कम से कम 18 साल और अधिकतम 30 साल होनी चाहिए. साथ ही आवेदक का पोस्ट ग्रेजुएट होना भी जरूरी है. आवेदक को समाज शास्त्र, विज्ञान, पर्यावरण, क़ानून, पत्रकारिता और वाणिज्य का भी ज्ञान होना जरूरी है. इंटर्न को इसके लिए 20 हजार स्टाइपेंड और टाइपिंग के लिए 5 हजार का स्टाइपेंड दिया जाएगा. इस पोस्ट के लिए आपको ऑनलाइन फॉर्म भरना होगा. इसके लिए लोकसभा की साईट पर जाएं. आधिकारिक वेबसाइट sri.nic.in  विजित करें और फॉर्म भरें.

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Dakhal News 27 April 2018


1st इण्डिया चैनल के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर बने जगदीश चन्द्र

  जी मीडिया के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर का पद छोड़ने के बाद  जयपुर में जगदीश चन्द्र ने एक दूसरे रीजनल चैनल 1st India के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर का पदभार ग्रहण कर लिया. यह चैनल 5 वर्ष पुराना है. राजस्थान से संचालित सभी रीजनल चैनल्स में से सर्वश्रेष्ठ टेक्नोलॉजी और साजोसामान इसी चैनल के पास हैं. जगदीश चन्द्र के साथ ही Zee राजस्थान के 70 लोगों ने भी Zee से त्यागपत्र दे दिया है. ये सभी लोग जगदीश चन्द्र के साथ 1st India ज्वाइन करने जा रहे हैं. लगभग डेढ़ साल पहले इसी तर्ज पर लगभग २०० लोगों ने जगदीश चन्द्र के साथ ई टीवी राजस्थान छोड़ Zee राजस्थान ज्वाइन किया था. इसी कहानी की पुनरावृत्ति कल शाम जयपुर में देखने को मिली. राजस्थान में पहले से ही ई टीवी और Zee राजस्थान दो बड़े रीजनल न्यूज़ चैनल्स थे और इन दोनों को अलग अलग समय में जगदीश चन्द्र ने ही खड़ा किया था. रीजनल टेलीविज़न इंडस्ट्री में यह कैसा विचित्र संयोग है कि इस तीसरे 1st India चैनल को भी जगदीश चन्द्र ही खड़ा करने जा रहे हैं.  

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Dakhal News 23 April 2018


1st इण्डिया चैनल के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर बने जगदीश चन्द्र

  जी मीडिया के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर का पद छोड़ने के बाद  जयपुर में जगदीश चन्द्र ने एक दूसरे रीजनल चैनल 1st India के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर का पदभार ग्रहण कर लिया. यह चैनल 5 वर्ष पुराना है. राजस्थान से संचालित सभी रीजनल चैनल्स में से सर्वश्रेष्ठ टेक्नोलॉजी और साजोसामान इसी चैनल के पास हैं. जगदीश चन्द्र के साथ ही Zee राजस्थान के 70 लोगों ने भी Zee से त्यागपत्र दे दिया है. ये सभी लोग जगदीश चन्द्र के साथ 1st India ज्वाइन करने जा रहे हैं. लगभग डेढ़ साल पहले इसी तर्ज पर लगभग २०० लोगों ने जगदीश चन्द्र के साथ ई टीवी राजस्थान छोड़ Zee राजस्थान ज्वाइन किया था. इसी कहानी की पुनरावृत्ति कल शाम जयपुर में देखने को मिली. राजस्थान में पहले से ही ई टीवी और Zee राजस्थान दो बड़े रीजनल न्यूज़ चैनल्स थे और इन दोनों को अलग अलग समय में जगदीश चन्द्र ने ही खड़ा किया था. रीजनल टेलीविज़न इंडस्ट्री में यह कैसा विचित्र संयोग है कि इस तीसरे 1st India चैनल को भी जगदीश चन्द्र ही खड़ा करने जा रहे हैं.  

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Dakhal News 23 April 2018


महिला पत्रकार का गाल -राज्यपाल ने दी सफाई

महिला पत्रकार द्वारा सवाल पूछने पर उसका गाल छू कर विवादों में घिर गए तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने इस मामले में सफाई दी है। उन्होंने महिला पत्रकार को चिट्ठी लिखकर कहा है कि मैंने तुम्हें अपनी नातिन, पोती समझकर हाथ लगाया था। बता दें कि मंगलवार को राज्यपाल ने महिला कॉलेज में कथित स्कैंडल पर संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया था। इसी दौरान एक महिला पत्रकार के सवालों का जवाब देते समय उन्होंने उनके गाल छू लिए। उनके इस कदम की चौतरफा आलोचना होने लगी। द्रमुक ने इस घटना पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि संवैधानिक पद पर बैठे एक व्यक्ति की यह हरकत अशोभनीय है। द्रमुक के राज्यसभा सदस्य कनीमोरी ने ट्वीट में कहा है कि संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए था। उन्होंने महिला पत्रकार के निजी क्षेत्र का उल्लंघन किया। द्रमुक के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन ने भी अपनी ट्विटर हैंडल पर राज्यपाल की आलोचना की है। राज्यपाल पुरोहित यौन दुर्व्यवहार के एक अन्य मामले में भी घिरे हैं। संवाददाता सम्मेलन में उन्हें इसी मुद्दे पर घेरा गया था। सवाल पूछे जाने पर उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों को निराधार बताया। उनसे पूछा गया था कि क्या उनके खिलाफ गृह मंत्रालय जांच कर रहा है? राज्यपाल पुरोहित ने कहा कि स्कैंडल के दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। महिला कॉलेज की एक व्याख्याता ने कथित रूप से छात्राओं को अच्छे अंक के लिए विश्वविद्यालय के उच्चाधिकारियों के साथ एडजेस्ट करने का प्रलोभन दिया था। सोशल मीडिया पर रविवार को बातचीत का आडियो टेप वायरल होने के बाद व्याख्याता निर्मला देवी को सोमवार को गिरफ्तार कर लिया गया। मंगलवार को इस मामले की जांच तमिलनाडु पुलिस की अपराध शाखा को सौंप दी गई।

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Dakhal News 18 April 2018


  न्यूयॉर्कर और न्यूयॉर्क टाइम्स को पुलित्जर अवार्ड

अपनी खबरों के जरिये दुनियाभर में यौन उत्पीड़न को मुद्दा बनाने के लिए न्यूयॉर्क टाइम्स और द न्यूयॉर्कर अखबार को इस साल के प्रतिष्ठित पुलित्जर अवार्ड के लिए चुना गया है। दोनों अखबारों ने अपनी पैनी रिपोर्टिंग के जरिये हॉलीवुड के दिग्गज निर्माता हार्वे वीनस्टीन को कठघरे में खड़ा करते हुए अमेरिका के सबसे बड़े यौन उत्पीड़न मामले को उजागर किया था। न्यूयॉर्क टाइम्स के जोडी कानटोर व मेगन टोही और न्यूयॉर्कर के रोनन फैरो को पुलित्जर अवार्ड से नवाजा जाएगा। दोनों अखबारों ने पिछले साल अक्टूबर से यौन उत्पीड़न से जुड़ी खबरें प्रकाशित करना शुरू किया था। इसके बाद 100 से अधिक महिलाओं ने अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न को सार्वजनिक तौर पर उजागर किया। इसी के चलते सोशल मीडिया समेत अन्य प्लेटफार्म पर "मी टू" अभियान की शुरुआत हुई, जिसकी वजह से कई जानी-मानी हस्तियों को अपनी साख और नौकरी से हाथ धोना पड़ा। खोजी पत्रकारिता के वर्ग में वाशिंगटन पोस्ट को पुरस्कार के लिए चुना गया है। न्यूयॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट को 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रूसी दखल की रिपोर्टिंग के लिए साझा तौर पर नेशनल रिपोर्टिंग श्रेणी का पुरस्कार दिया जाएगा। फिलीपींस के राष्ट्रपति रॉड्रिगो दुतेर्ते की ड्रग्स के खिलाफ मुहिम की कवरेज के लिए संवाद एजेंसी रायटर को "इंटरनेशनल रिपोर्टिंग" और रोहिंग्या संकट की कवरेज के लिए "फीचर फोटोग्राफी" वर्ग में पुलित्जर अवार्ड दिया जाएगा।  

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Dakhal News 17 April 2018


5 जी सुविधा 21 से

  देश को सस्ती 5जी नेटवर्क सुविधा उपलब्ध कराने के लिए काउंट डाउन शुरू हो गया है। शुक्रवार को देश के पहले 5जी बेस स्टेशन में 5जी नेटवर्क का ट्रायल सफल रहा है। इसके बाद वैज्ञानिकों ने उम्मीद जताई हैं कि देश को वर्ष 2021 से सस्ती 5जी नेटवर्क सुविधा मिलनी शुरू हो जाएगी, जो वर्तमान दर से दस गुना सस्ती होगी। आईआईटी दिल्ली में देश का पहला 5जी बेस स्टेशन स्थापित किया गया है। प्रोफेसर सैफ खान मोहम्मद ने कहा कि यह लैब ऐल्गोरिदम सॉफ्टवेयर विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इस तरह के बेस स्टेशन अगले साल तक विभिन्न आईआईटी में स्थापित किए जाएंगे। अभी किसी भी सेलुलर कंपनी ने बेस स्टेशन देश में नहीं बनाया है। सभी विदेश में बने 4जी बेस स्टेशन से सुविधा लेती हैं, जो उन्हें महंगी मिलती हैं। इस कारण इंटरनेट टैरिफ मंहगा पड़ता है, लेकिन देश में स्थापित 5जी बेस स्टेशन के सुचारू हो जाने के बाद सेलुलर कंपनी को सुविधा यहीं से मिल जाएगी, जो दस गुना सस्ती होगी। इससे आम आदमी का इंटरनेट टैरिफ भी दस गुना तक सस्ता होगा।

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Dakhal News 16 April 2018


patrkar madhyprdesh

 मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने पत्रकारों के स्वास्थ्य एवं दुर्घटना समूह बीमा योजना में कैशलेस इलाज की व्यवस्था को बढ़ाकर 4 लाख रूपये करने की घोषणा की है। अभी तक यह सीमा दो लाख रूपये की है। उन्होंने पत्रकारों की मृत्यु होने पर आर्थिक सहायता देने की अधिकतम राशि को भी एक लाख से बढ़ाकर चार लाख रूपये करने, पत्रकारों के कैमरे क्षतिग्रस्त होने पर आर्थिक सहायता राशि 25 हजार से बढ़ाकर 50 हजार रूपये करने और पत्रकारों को 25 लाख रूपये तक के आवास ऋण पर पाँच प्रतिशत ब्याज अनुदान दिये जाने की घोषणा की है। श्री चौहान आज मुख्यमंत्री निवास में आयोजित राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय एवं आंचलिक पत्रकारिता सम्मान समारोह को संबोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि पत्रकारिता असाधारण और चुनौतिपूर्ण कार्य है। पत्रकार को विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग दायित्वों का निर्वहन करना पड़ता है। सूचना को खबर का आकार देने की तड़प और संघर्ष आसान नहीं होता है। लोकतंत्र में पत्रकार की भूमिका महत्वपूर्ण है। व्यवस्था का आधार स्तंभ है। गलतियों को उजागर करना उनका महत्वपूर्ण दायित्व है। खबरों की खबर निकालने के लिये किये जाने वाला संघर्ष सामान्यत: दिखाई नहीं देता है। प्राकृतिक विपदा, साम्प्रदायिक तनाव या आतंकी घटनाओं की खबरों की खोज में कई बार जान का जोखिम भी उठाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि पत्रकार समाज की सच्चाई को सही ढ़ंग से सामने लाने और समाज को सही दिशा देने का कार्य पूरी सक्रियता और सजगता के साथ करते रहें। मध्यप्रदेश सरकार सामाजिक सरोकारों में पत्रकारों की भूमिका का सम्मान करती है और समाज के प्रति उनकी सेवा भावना को बखूबी समझती है। इसी भाव से वरिष्ठ पत्रकारों के लिये श्रद्धानिधि स्थापित की है। श्री चौहान ने पत्रकारिता के बदलते दौर का जिक्र करते हुये कहा कि देश की आजादी, स्वतंत्रता आंदोलन, आपातकाल के दौरान पत्रकारों का योगदान महत्वपूर्ण और अविस्मरणीय है। उन्होंने वर्तमान युग की पत्रकारिता पर आधुनिक तकनीक के प्रभावों का जिक्र किया। साथ ही देश और प्रदेश के मूर्धन्य पत्रकारों का उल्लेख किया। उन्होंने वर्ष 2015 एवं 2016 के लिये राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय एवं आंचलिक पत्रकारिता सम्मान से 30 पत्रकारों को अलंकृत किया। जनसंपर्क एवं जल संसाधन मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने स्वागत उदबोधन दिया। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को निरंतर सजग और सक्रिय रहना होता है। प्रतिदिन नई चुनौतियों का सामना और दायित्वों का निर्वहन करना पड़ता है। राज्य सरकार पत्रकारों की इस भूमिका का सम्मान करती है। आभार प्रदर्शन आयुक्त जनसंपर्क श्री पी.नरहरि ने किया। इस अवसर पर सांसद श्री आलोक संजर, महापौर श्री आलोक शर्मा, मुख्य सचिव श्री बी.पी. सिंह, प्रमुख सचिव जनसंपर्क श्री एस.के. मिश्रा सहित वरिष्ठ पत्रकार, जनप्रतिनिधि और अधिकारी उपस्थित थे। कार्यक्रम में सम्मानित पत्रकारगण राष्ट्रीय सम्मान : माणिकचन्द्र बाजपेयी राष्ट्रीय पत्रकारिता सम्मान श्री रामबहादुर राय, दिल्ली और श्री रमेश पतंगे, मुम्बई को दिया गया। गणेशशंकर विद्यार्थी राष्ट्रीय पत्रकारिता सम्मान श्री अश्विनी कुमार, दिल्ली, सुश्री नलिनी सिंह, दिल्ली, विद्यानिवास मिश्र राष्ट्रीय पत्रकारिता सम्मान श्री अभिलाष खाण्डेकर, भोपाल और श्री पी. नारायणन, केरल को दिया गया। राष्ट्रीय चैनलों के मध्यप्रदेश में कार्यरत पत्रकार श्रेणी में श्री मनोज शर्मा को सम्मानित किया गया तथा राष्ट्रीय चैनलों के मध्यप्रदेश में कार्यरत कैमरामेन श्रेणी में श्री आर.सी. साहू को भी सम्मानित किया गया। राज्य-स्तरीय सम्मान : सत्यनारायण श्रीवास्तव राज्य-स्तरीय पत्रकारिता सम्मान श्री अरुण पटेल और श्री गणेश साकल्ले को दिया गया। राज्य-स्तरीय चैनलों के पत्रकारों को पत्रकारिता सम्मान श्री राकेश अग्निहोत्री और श्री अजय त्रिपाठी को दिया गया। महेन्द्र चौधरी राज्य-स्तरीय फोटो पत्रकारिता सम्मान श्री संजीव गुप्ता और श्री महेश झा को दिया गया। राज्य स्तरीय चैनलों के कैमरामेन श्रेणी में श्री मकरंद जंभोरकर और श्री अजय पाण्डेय को सम्मानित किया गया। आंचलिक पत्रकारिता सम्मान : शरद जोशी (भोपाल) आंचलिक पत्रकारिता सम्मान श्री ओ.पी. श्रीवास्तव और श्री अनिल दुबे को, राहुल बारपुते (इंदौर) आंचलिक पत्रकारिता सम्मान श्री जयप्रकाश तापड़िया और श्री रमण रावल को, रतनलाल जोशी (ग्वालियर) आंचलिक पत्रकारिता सम्मान श्री राजेन्द्र कुमार श्रीवास्तव और श्री गणेश सांवला, जीवनलाल वर्मा विद्रोही (जबलपुर) आंचलिक पत्रकारिता पुरस्कार श्री चैतन्य भट्ट और श्री योगेश कुमार को, कन्हैयालाल वैद्य (उज्जैन) पत्रकारिता सम्मान डॉ. घनश्याम बटवाल और श्री संदीप कुलश्रेष्ठ को, मास्टर बल्देव प्रसाद (सागर) आंचलिक पत्रकारिता सम्मान श्री रमेश राजपूत और श्री शैलेन्द्र ठाकुर को और श्री बनारसी दास चतुर्वेदी (रीवा) आंचलिक पत्रकारिता सम्मान से श्री गया प्रसाद श्रीवास एवं श्री संजय कुमार पयासी को सम्मानित किया गया।    

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Dakhal News 13 April 2018


फेसबुक विवाद - सियासी विज्ञापन के साथ दिखेंगे पैसे देनेवालों के नाम

  डाटा लीक मामले के कारण विवादों में घिरी दुनिया की दिग्गज सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक अब अपनी छवि सुधारने में जुट गई है। उसने चुनावों के दौरान राजनीतिक विज्ञापनों में अपनी पारदर्शिता और जवाबदेही को बेहतर करने के लिए कई उपायों की घोषणा की है। फेसबुक की नई नीति के अनुसार, विज्ञापनदाता की पहचान सत्यापित होने के बाद ही सियासी विज्ञापन दिखाई पड़ेंगे। इसके साथ ही विज्ञापन का भुगतान करने वाले के नाम का भी जिक्र होगा। फेसबुक ने यह कदम ऐसे समय उठाया है, जब उसने हाल ही में माना है कि उसके 8.70 करोड़ यूजरों के डाटा का इस्तेमाल ब्रिटिश कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका (सीए) ने किया था। इस मामले की जांच में सीए के एक पूर्व कर्मचारी ने ब्रिटेन की एक संसदीय समिति को बताया था कि फेसबुक यूजर्स के डाटा का उपयोग सीए ने कथित तौर पर साल 2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव प्रचार अभियान के दौरान किया था। फेसबुक पर यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि इस सोशल नेटवर्किंग साइट का उपयोग चुनावों को प्रभावित करने के लिए भी किया जा रहा है। फेसबुक की नई नीति के अनुसार, अब हर राजनीतिक विज्ञापन पैसा देने वाले व्यक्ति या संस्था के नाम के साथ जारी किए जाएंगे।  

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Dakhal News 9 April 2018


 इंडिया टीवी के नीतीश चंद्र

   बिहार में शराबबंदी के दो साल पूरे होने के मौके पर पटना के अधिवेशन भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक म्यूजिक वीडियो ‘तौबा तौबा शराब’ का लोकार्पण किया। इस म्यूजिक वीडियो को इंडिया टीवी के बिहार संवाददाता नीतीश चंद्र ने तैयार किया है। नीतीश पिछले 15 वर्षों से इंडिया टीवी से जुड़े हुए हैं। गीत के बोल हैं- ‘कहिए-कहिए जनाब तौबा-तौबा शराब, कहिए-कहिए जनाब छोड़ो-छोड़ो शराब…’. इसे खुद नीतीश चंद्र ने लिखा और गाया है. इसकी धुन भी उन्होंने ही तैयार की है। लोकार्पण के बाद काफी तेजी से ये गीत वायरल हो रहा है। खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस वीडियो से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मंच से ही अधिकारियों को निर्देश दिया कि इस वीडियो को बिहार के हर स्कूलों तक पहुंचाया जाय। ताकि बिहार की नई पौध शराब जैसी बुरी लत के प्रति जागरूक हो सकें। सीएम नीतीश कुमार ने सराहना करते हुए कहा कि मेरे हमनाम नीतीश जी ने काफी अच्छा गीत बनाया है। उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग की तरफ से आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के अलावा उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी, मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह, मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग के मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव, ग्रामीण विकास एवं संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार, पुलिस महानिदेशक एस.के. द्विवेदी, और उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग के प्रधान सचिव आमिर सुभानी ने भाग लिया। शराब छोड़ने की अपील से जुड़े इस वीडियो में यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि कैसे महिलाओं की तरफ से उठी मांग के बाद शराबबंदी का फैसला किया गया। इसके बाद समाज के हर तबके के लोगों का इसे समर्थन मिला। वीडियो में भोजपुरी सिनेमा के अभिनेता और बीजेपी सांसद मनोज तिवारी और रविकिशन के अलावा पटना के तेजतर्रार एसएसपी मनु महाराज, वरिष्ठ आईएएस अधिकारी प्रत्यय अमृत और बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय चौधरी ने भी नीतीश चंद्र के साथ ‘तौबा तौबा शराब’ कहा है। इस वीडियो में सभी दलों के विधायकों, पटना के डॉक्टरों, वकीलों और प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों ने भी भूमिका निभाई है। गौरतलब है कि इससे पहले भी नीतीश ने शादी से जुड़े एक गीत को रिलीज किया था। नीतीश चंद्र ने कहा, “संगीत में मेरी रुचि रही है। पत्रकारिता के दौरान मैने करीब से शराब से होने वाले नुकसान को देखा है, यही कारण है कि इस विषय पर मैं अपनी तरफ से भी कुछ योगदान देना चाहता था। शराबबंदी एक अच्छी पहल है।” लंबे समय से प्रतिष्ठित न्यूज चैनल के लिए रिपोर्टिंग करते रहे नीतीश स्वभाव से संवेदनशील हैं। उनकी संगीत में काफी रुचि है। नीतीश चंद्र इससे पहले शादी से जुड़े एक वीडियो को रिलीज कर चुके हैं जिसे काफी लोगों ने पसंद किया था। इनका नया म्यूजिक वीडियो ‘तौबा तौबा शराब’ न सिर्फ मनोरंजक है बल्कि ये लोगों को शराब से नुकसान के प्रति जागरूक भी करता है।[साभार -भड़ास फॉर मीडिया]  

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Dakhal News 7 April 2018


एमपी में पत्रकारों की सुरक्षा

   मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिये कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू की जायेगी।  भोपाल में मीडिया महोत्सव 2018 के अंतर्गत आयोजित ''भारत की सुरक्षा, मीडिया, विज्ञान एवं तकनीकी की भूमिका' विषय पर आयोजित सत्र को संबोधित कर रहे थे। श्री चौहान ने कहा कि व्यापक अर्थ में राष्ट्रीय सुरक्षा में महिलाओं, किसानों, श्रमिकों और गरीबों की सुरक्षा भी शामिल है। उन्होने कहा कि मीडिया की जिम्मेदारी बढ़ गई है। श्री चौहान ने कहा कि बेटियों के सम्मान से खिलवाड़ करने वालों के मानव अधिकार नहीं होते। इनका महिमामंडन किसी भी हाल में नहीं होना चाहिये। उन्होंने कहा कि बेटियों की गरिमा को धूमिल करने वालों को फांसी देने का कानून बनाया गया है। श्री चौहान ने कहा कि झूठी खबरों से भी सावधान रहने की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि समाज के सभी वर्गों को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा की जरूरत होती है। इसलिये श्रमिकों को जमीन और घर देने तथा महिलाओं को सुरक्षा देने जैसे कदम उठाये गये हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि देश में चुनावों की तैयारियां चलती रहती हैं और सरकारों को विकास पर फोकस करने के लिय कम समय मिल पाता है। इसीलिये लोक सभा और विधान सभा के चुनावों को एक साथ कराने पर चर्चा चल रही है। उन्होंने कहा कि मीडिया को भी इस विषय पर विचार करना चाहिये। मुख्यमंत्री ने इस मौके पर श्री निखिल दवे की किताब ''अंतस यात्रा'' और श्री ओम प्रकाश की किताब 'सृजन समुच्चय' का लोर्कापण किया।    

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Dakhal News 7 April 2018


न्‍यूज एंकर राधिका रेड्डी

भारत में एक महिला एंकर यह लिखकर सुसाइड कर लेती है कि- ”मेरा दिमाग ही मेरा दुश्मन है”.  आत्महत्या करने वाली यह महिला एंकर अपने पति से तलाक के बाद डिप्रेशन में चल रही थी. मामला आंध्र प्रदेश का है.   हैदराबाद के मूसपेट इलाके में न्‍यूज एंकर राधिका रेड्डी श्रीविला अपार्टमेंट में रहती थीं. रविवार को ऑफिस से घर लौटने के बाद उन्होंने इमारत के पांचवें फ्लोर से कूद कर आत्महत्या कर लिया. न्‍यूज एंकर राधिका रेड्डी की उम्र 36 साल थी. वे तेलुगू न्‍यूज चैनल ‘वी6’ में एंकर थीं. राधिका का 14 साल का एक विकलांग बेटा है. राधिका का साल भर पहले पति से तलाक हो गया था. उसके बाद वे माता-पिता के साथ श्रीविला अपार्टमेंट के कमरा नंबर 204 में रह रहीं थीं. सुसाइड के बाद मौके पर पहुंची पुलिस को राधिका का सुसाइट नोट भी मिला है. राधिका रेड्डी ने सुसाइड नोट में लिखा है- ‘मेरा दिमाग ही मेरा दुश्‍मन है. मैं डिप्रेशन में हूं. ये खतरनाक कदम उठाने जा रही हूं.’ पुलिस ने राधिका के फोन कॉल्स को खंगालना शुरू कर दिया है.

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Dakhal News 3 April 2018


संतोष गंगवा

 केंद्र सरकार ने आज स्वीकार किया कि मीडिया संस्थानों में पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारियों को कॉन्ट्रैक्ट पर नौकरी और मजीठिया वेतनबोर्ड के क्रियान्वयन का मामला वाकई में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमजोर कर रहा है, जिसके समाधान के लिए विशेष प्रयास की जरूरत है। केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष गंगवार ने दिल्ली स्थित अपने निवास पर आयोजित एक कार्यक्रम में ये बात कही। गंगवार ने मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को सुचारु रूप से लागू करने, पत्रकारों की समस्याओं को दूर करने और उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें मीडिया संस्थानों में पत्रकारों को अनुबंध पर नियुक्त  करने, मजीठिया वेतन बोर्ड को लागू करने से जुड़ी दिक्कतों और पत्रकारों की अन्य समस्याओं से अवगत कराया जाता रहा है। वह पत्रकारों की दिक्कतों काे दूर करने को लेकर काफी संजीदा है और इस बारे में चर्चा करने के लिए हमेशा उपलब्ध हैं। उन्होंने अगले सप्ताह पत्रकार संगठनों के पदाधिकारियों को वार्ता के लिए अपने कार्यालय में आमंत्रित भी किया। केन्द्रीय श्रम मंत्री ने कहा कि वह असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की समस्याओं को लेकर बहुत गंभीर हैं। देश में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 40 करोड़ लोगों को राहत एवं सुरक्षा देने के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार श्रम कानूनों को तर्कसंगत बनानेे के लिए प्रतिबद्ध है और वह 40 कानूनों को मिला कर चार कानून बनाने वाली है जिनमें श्रमजीवी पत्रकारों से जुड़े मामलों का विशेष ध्यान रखा जाएगा।  कार्यक्रम के दौरान उन्होंने नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट और दिल्ली जर्नलिस्ट एसोसिएशन के नवनिर्वाचित पदाधिकारियों को सम्मानित किया। कार्यक्रम में जल संसाधन व संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और सांसद धर्मेन्द्र कश्यप भी मौजूद थे।   मेघवाल ने माना कि यदि पत्रकार स्वतंत्र, सुरक्षित एवं निर्भीक नहीं रहेंगे तो लोकतंत्र भी सुरक्षित नहीं रहेगा। उन्होंने स्वीकार किया कि संसद की विभिन्न समितियों की बैठक में ठेके पर नौकरियों एवं मजीठिया वेतन बोर्ड का मामला आता रहा है लेकिन पहले यह उतना गंभीर नहीं लगा लेेकिन आज उन्हें इसकी गंभीरता का अहसास हुआ है। वह मानते हैं कि निश्चित रूप से पत्रकार समाज की सूरत में बदलाव आना चाहिए और सरकार इसके लिए गंभीरता से विचार करेगी।  कार्यक्रम में देश के जाने-माने पत्रकारों ने मंत्रियों को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के कामकाज की दशाओं की जानकारी दी। वयोवृद्ध पत्रकार और एनयूजे आई के संस्थापक सदस्य राजेन्द्र प्रभु, के.एन. गुप्ता, विजय क्रांति ने कहा कि ठेके पर नौकरी के चलन ने पत्रकारों व पत्रकारिता को कमजोर कर दिया है। पत्रकारों को सामाजिक सुरक्षा नहीं है और उनका जीवन अनिश्चितता से भरा है। सरकार को इन विसंगतियों को दूर करने के लिए कुछ करना चाहिए। महिला पत्रकारों ने भी अपनी दिक्कतों से उन्हें अवगत कराया। इस अवसर पर दोनों मंत्रियों वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र प्रभु, अच्युतानंद मिश्र और अन्य पत्रकारों को सम्मानित किया। इनमें श्री प्रभु, श्री गुप्ता, श्री हेमंत विश्नोई, रवीन्द्र अग्रवाल, यूनीवार्ता के विशेष संवाददाता एवं यूनाइटेड न्यूज आफ इंडिया वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष राजकुमार मिश्रा, एनयूजे आई के अध्यक्ष अशोक मलिक, महासचिव मनोज वर्मा, कोषाध्यक्ष राकेश आर्य, पाँच्यजन्य के संपादक हितेश शंकर, दिल्ली पत्रकार संघ के अध्यक्ष मनोहर सिंह, महासचिव प्रमोद कुमार आदि शामिल थे।

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Dakhal News 31 March 2018


पत्रकार संदीप शर्मा

      मध्यप्रदेश के भिंड में   रेत माफिया और पुलिस की साठ-गाठ का खुलासा करने वाले पत्रकार संदीप शर्मा को एक ट्रक ने कुचल दिया, जिससे उनकी मौत हो गई| वहीं यह सिर्फ एक हादसा नहीं बल्कि हत्या की साजिश की आशंका जताई जा रही है| इस मामले के तूल पकड़ने के बाद एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इस मामले की सीबीआई से जाँच करवाने की बात कही है।  संदीप शर्मा तत्कालीन अटेर एसडीओपी इंद्रवीर भदौरिया का स्टिंग कर चर्चा में आए थे। संदीप ने रेत माफिया और पुलिस की साठगांठ का खुलासा करने के बाद झूठे प्रकरण में फंसाने और हत्या की साजिश रचने की आशंका पहले ही जाहिर की थी और एसपी को पत्र लिखकर सुरक्षा की भी मांग की थी और सोमवार को एक घटना में उनकी मौत हो गई| घटना का सीसीटीवी वीडियो भी वायरल हुआ है, जिसके आधार पर हत्या की आशंका जताई जा रही है| फिलहाल पत्रकार संदीप शर्मा की मौत की जांच के लिए एसपी प्रशांत खरे ने एसआईटी गठित की है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक सोमवार को सुबह एक ट्रक ने बाइक पर जा रहे पत्रकार संदीप  शर्मा को कुचल दिया और तेजी से ट्रक चालक ट्रक लेकर मौके से फरार हो गया|  हादसे के बाद जो सीसीटीवी फुटेज सामने आए हैं उसमें स्पष्ट दिखाई दे रहा है ट्रक चालक ने संदीप शर्मा को जानबूझकर मारा है । फुटेज में स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि संदीप शर्मा बिल्कुल सड़क के किनारे कच्चे रास्ते में खड़े हुए थे और ट्रक चालक ने इतना ज्यादा ट्रक घुमाया कि वे उसकी चपेट में आ गए और जिससे उनकी मौत हो गई | इसके बाद में डायल हंड्रेड उनको लेकर जिला चिकित्सालय पहुंची तो डायल हंड्रेड के कर्मियों के द्वारा उन्हें सीधे डेड हाउस भेज दिया गया । जबकि नियमानुसार उन्हें ट्रॉमा सेंटर ले जाना था जहां पर उनका इलाज किया जा सकता था  । जब कुछ पत्रकार साथियों ने इस बात पर आपत्ति जताई तो उनके घायल शरीर को ट्रामा सेंटर लाया गया जहां चेकअप के बाद चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित किया | ज्ञात हो कि पत्रकार संदीप शर्मा ने करीब 6 महीने पहले तत्कालीन एसडीओपी अटेर इंद्रवीर सिंह भदौरिया का रेत के कारोबार में संलिप्तता का वीडियो वायरल किया था जो कि लगभग सभी चैनलों ने प्रमुखता से दिखाया था| इसके अलावा भी कई अन्य रेत कारोबारियों से उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा करता था | आज सुबह एक सामाजिक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए जब देखो तो वाली से गुजर रहे थे तो ठीक कोतवाली के सामने ट्रक ने उन्हें कुचल दिया| पुलिस ने अभी इस मामले में प्रकरण दर्ज कर लिया है लेकिन 302 का मुकदमा अभी तक दर्ज नहीं हुआ है और इस पूरे मामले में पुलिस अधीक्षक प्रशांत खरे कुछ भी कहने से अभी कतरा रहे हैं | संदीप शर्मा के द्वारा इस बात की शिकायत कोतवाली से लेकर डीजीपी तक की गई थी कि उनकी जान को खतरा है और उन्हें किसी झूठे संडयंत्र में फंसाया जा सकता है या फिर उनकी हत्या करवाई जा सकती है। मामले की जांच के लिए   एसपी प्रशांत खरे ने एसआईटी गठित की है। डीएसपी राकेश छारी, टीआई मेहगांव नरेंद्र त्रिपाठी, टीआई कोतवाली शैलेन्द्र कुशवाह, एसआई आशुतोष शर्मा, एएसआई सत्यवीर सिंह और साइबर सेल एसआईटी में शामिल हैं। एसआईटी जांच कर एसपी रिपोर्ट देगी।

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Dakhal News 27 March 2018


 पत्रकार जगदीश उपासने

राहुल शर्मा कोई भी व्यक्ति या संस्थान किसी पर अपनी विचारधारा नहीं थोप सकता। सभी किसी भी विषय पर विचार करने के लिए स्वतंत्र हैं। अगर विचारधारा थोपी जा रही होती तो सबकी सोच एक जैसी होना थी। लेकिन, ऐसा नहीं है। जो लोग सवाल उठाते हैं वे भी इसी समाज का हिस्सा हैं और बेहतरी चाहते हैं। यह बात माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के नए कुलपति और प्रतिष्ठित पत्रकार जगदीश उपासने ने कही। उन्होंने पत्रकारिता और समाज से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा की। वे जानी-मानी पत्रिका इंडिया टुडे (हिंदी) के लंबे समय तक संपादक रहे हैं। पेश हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश... सवाल - माखनलाल विवि पर हमेशा संघ की विचारधारा को आगे बढ़ाने या उस पर काम करने के आरोप लगते रहे हैं, आप क्या मानते हैं? उपासने - ऐसा नहीं है। अगर संघ की विचारधारा पर ही काम करने के आरोप हैं तो यह आरोप आए कहां से ? विश्वविद्यालय की बेहतरी चाहने वालों ने ही यह आरोप लगाए हैं। आरोप लगाने वाले बहुत से लोग यहां से किसी न किसी रूप से जुड़े हुए हैं। इनमें पूर्व छात्र भी शामिल हो सकते हैं। अगर विचारधारा थोपी जाती तो वे यह आरोप कैसे लगाते। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि संघ की विचारधारा को थोपा जा रहा है। सभी यह चाहते हैं कि विवि की बेहतरी के लिए काम हो। इसी पर फोकस भी करना है। सवाल - पत्रकारिता से विवि का कुलपति बनना। भूमिका बदली है, कैस लग रहा है? उपासने - विवि से पूर्व से जुड़ा रहा हूं। लंबे समय तक पत्रकारिता की है। इसकी चुनौतियों को समझता हूं। चाहता हूं कि यहां के छात्रों को अच्छा रोजगार मिले। जो मांग है उसके मुताबिक छात्र तैयार हों। डिजीटल मीडिया के आने से प्रिंट मीडिया के लिए चुनौती बढ़ी है। सवाल - आपको लगता है समाचारों के प्रस्तुतीकरण में बदलाव होना चाहिए? उपासने - समाचार मनोरंजन नहीं है। समाचार को मनोरंजन समझा भी नहीं जाना चाहिए। खासकर चैनलों को इस ओर ध्यान देना चाहिए। समाचारों की गंभीरता को बनाए रखना चाहिए। जब छात्र इस बात को समझते हैं तो मीडिया संस्थानों को भी इस ओर सोचने की जरूरत है। सवाल - विवि के नए परिसर में गौशाला खोले जाने के विचार का मुद्दा काफी गर्माया था। क्या गौशाला को यथावत रखेंगे ? उपासने - अभी तो मैं यहां आया ही हूं। इस बारे में सुना था। अभी इस पर कुछ नहीं कहना चाहूंगा। पूरी जानकारी लेने के बाद ही कुछ कह सकूंगा। सवाल - विवि के लिए क्या करना चाहेंगे? उपासने - छात्रों को बेहतर शिक्षा मिले। यहां से पास होने के बाद अच्छा रोजगार मिले इसके लिए काम करेंगे। बाजार की जरूरत के मुताबिक छात्र तैयार करेंगे। जरूरत पड़ी तो पाठ्यक्रम में भी बदलाव करेंगे।[नवदुनिया से साभार ]  

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Dakhal News 25 March 2018


दैनिक स्वदेश ग्वालियर

लम्बी फेहरिश्त है ऐसे पत्रकारों की ,पत्रकारिता का विद्यालय जैसा स्वदेश डॉ राकेश पाठक दैनिक स्वदेश ग्वालियर के बारे में पिछली पोस्ट पर स्वस्थ विमर्श हुआ।कुछ बिंदु स्पष्ट करना ज़रूरी है। 1.स्वदेश घोषित तौर पर एक विचारधारा विशेष से सम्बद्ध है।इसमें कुछ भी गलत नहीं है। 2.विचारधारा से जुड़े होने के कारण स्वदेश को जो भी हानि लाभ होता है वो उसके खाते में। 3.अन्य विचारधारों से सम्बद्ध अखबार भी तो आखिर निकल ही रहे हैं जैसे कांग्रेस से सम्बद्ध नवजीवन, नेशनल हेराल्ड, सीपीएम के लोकलहर, पीपुल्स डेमोक्रेसी, सीपीआई का न्यू एज, मुक्ति संघर्ष आदि आदि भी प्रकाशित होते हैं। लेकिन विचारधारा से बंधे अख़बार कभी भी व्यापक प्रसार प्रचार पाने में सफल नहीं होते। 4.स्वदेश भी इसी विडंबना का शिकार हुआ। यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के काडर तक ने अख़बार की चिंता नहीं की।  5.फिर भी किसी भी विचार समूह को प्रकाशनों के जरिये अपने विचार को प्रचारित, प्रसारित करने का अधिकार तो है ही । होना भी चाहिए।  विशेष विचार से सम्बद्ध होने के बावजूद 'स्वदेश' ने देश को अनगिनत पत्रकार दिए हैं। पहली किश्त में बताया था कि अटलबिहारी बाजपेयी और मामा माणिकचन्द बाजपेयी जैसे मूर्धन्य लोग स्वदेश के संपादक रहे। सिर्फ ग्वालियर की ही बात करें तो स्वदेश,ग्वालियर एक समय पत्रकारिता का विद्यालय हुआ करता था। राजेन्द्र शर्मा, जयकिशन शर्मा संपादक रहे तो बलदेवभाई शर्मा भी यहीं से निकले।बलदेवभाई बाद में 'पांचजन्य' के संपादक बने और इन दिनों राष्ट्रीय पुस्तक न्यास NBT के अध्यक्ष हैं। राजेन्द्र शर्मा मप्र की पत्रकारिता में विशिष्ट स्थान रखते हैं। जयकिशन शर्मा मप्र के सूचना आयुक्त पद पर रहे। महेश खरे स्वदेश से ही आगे बढ़े और नवभारत टाइम्स,भास्कर में संपादक रहे। हरीश पाठक जैसे जुझारू पत्रकार स्वदेश से निकल कर धर्मयुग में पहुंचे और बाद में हिंदुस्तान,राष्ट्रीय सहारा जैसे अखबारों में संपादक रहे। हरीश जाने माने कथाकार भी हैं। हरिमोहन शर्मा स्वदेश से निकल कर दैनिक भास्कर , पीपुल्स समाचार ,राज एक्सप्रेस आदि में वर्षों संपादक रहे। इसी पीढ़ी के प्रभात झा स्वदेश में पत्रकारिता के झंडे गाड़ने के बाद राजनीति में आये और आज बीजपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, राज्यसभा सदस्य हैं। डॉ तानसेन तिवारी भी इसी दौर का खास नाम हैं। वे लंबे समय स्वदेश में रहे और बाद में भास्कर का हिस्सा बने। आजकल डॉ तिवारी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय हैं। इसी पीढ़ी के बच्चन बिहारी कई साल स्वदेश में रहे और आजकल आचरण के संपादक हैं। देश मे अपनी विशिष्ट शैली के लिए विख्यात रहे आलोक तोमर(अब स्मृति शेष) भी स्वदेश से निकल कर जनसत्ता में पहुंचे थे और धूम मचा दी थी। बालेंद्र मिश्र स्वदेश ग्वालियर में लंबे समय रहे और कालांतर में नवस्वदेश सतना और परिवार टुडे आदि अखबारों में संपादक बने।नई पीढ़ी में भी तमाम नाम ऐसे हैं जो स्वदेश से पत्रकारिता की बारहखड़ी सीख कर निकले और आज देश में नाम कमा रहे हैं। भूपेंद्र चतुर्वेदी(अब स्मृति शेष) स्वदेश के बाद मुम्बई नवभारत के संपादक रहे। लोकेंद्र पाराशर संपादक रहे और अब बीजपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी हैं।इसी पीढ़ी के अनुराग उपाध्याय भोपाल पहुंचे और कई साल इंडिया टीवी के ब्यूरो चीफ रहने के बाद आजकल डीएनएन चैनल के संपादक हैं। अतुल तारे लगभग तीन दशक से स्वदेश में ही हैं और अब प्रधान संपादक का दायित्व निभा रहे हैं। जबर खबरनवीस प्रमोद भारद्वाज स्वदेश के बाद जनसत्ता,दैनिक भास्कर, अमर उजाला में संपादक रहे और अब हरिभूमि भोपाल में संपादक हैं। प्रदीप मांढरे स्वदेश से निकल कर भास्कर में गए और अब अपना खुद का अखबार ग्वालियर हलचल निकालते हैं। अनिल कौशिक भी स्वदेश से ही अपनी पारी शुरू कर नवभारत टाइम्स में पहुंचे। चंद्रवेश पांडेय ने स्वदेश से पत्रकारिता शुरू की फिर नवभारत, नईदुनिया में रहने के बाद आजकल प्रदेश टुडे में संपादक हैं। प्रखर पत्रकार हिमांशु द्विवेदी स्वदेश के बाद नवभारत और भास्कर में रहे और आजकल हरिभूमि के प्रधान संपादक हैं। अभिमन्यु शितोले ने मुम्बई की राह पकड़ी और बाल ठाकरे के  अखबार सामना और 'दोपहर का सामना' में काम किया। अब वे नवभारत टाइम्स मुंबई में राजनैतिक संपादक हैं। फिरोज खान भी स्वदेश से सीख कर आगे बढ़े।नवभारत, भास्कर में रहे और आजकल मुंबई नवभारत टाइम्स में चीफ कॉपी एडिटर हैं। देश के शीर्ष कार्टूनिस्ट में शुमार इरफ़ान भी स्वदेश ग्वालियर में ही आड़ी टेढी रेखाएं खींचते हुए जनसत्ता जैसे अखबार में पहुंचे और आज भी धूम मचाते हैं। हरिओम तिवारी भी स्वदेश में ही कार्टूनिस्ट थे। बाद में भास्कर, पत्रिका आदि में रहे और अब हरिभूमि भोपाल में हैं। के के उपाध्याय और मनोज पमार भी स्वदेश से निकले और आज हिंदुस्तान जैसे राष्ट्रीय अखबार में संपादक हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में मनोज मनु आज एक सुपरिचित नाम है। मनोज आजकल 'सहारा' मप्र चैनल के हेड हैं।वे भी ग्वालियर स्वदेश से ही निकले हैं। भोपाल के तमाम चैनलों में काम कर चुके अजय त्रिपाठी भी स्वदेश में ही थे। आजकल अजय आईबीसी चैनल में हैं। इंदौर के प्रतिष्ठित पत्रकार प्रतीक श्रीवास्तव भी स्वदेश में काम कर चुके हैं। प्रतीक चौथा संसार के संपादक रहे और आजकल साधना चैनल के ब्यूरो प्रमुख हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो स्वदेश में रहने के बाद अन्य क्षेत्रों में सक्रिय हुए उनमें से सुधीर फड़नीस का नाम प्रमुख है। सुधीर लंबे समय पत्रकार रहने के बाद अब स्वामी चिन्मयानंद मिशन में बड़ी जिम्मेदारी सम्हाल रहे हैं। ब्रजेश पूजा त्रिपाठी पत्रकारिता छोड़ सरकारी नौकरी में गए और आजकल महिला बाल विकास में अधिकारी हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जिला सचिव नरेंद्र पांडेय भी स्वदेश में रहे हैं। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विसुवविद्यालय में प्राध्यापक व लेखक लोकेंद्र सिंह लोकेन्द्र सिंह ने भी स्वदेश से ही पत्रकारिता शुरू की। बाद में जागरण, भास्कर व पत्रिका में भी रहे। अभय सरवटे स्वदेश में ही प्रबंधन में थे और आजकल अमर उजाला उत्तर प्रदेश में क्लस्टर हेड हैं।[डॉ राकेश पाठक की वॉल से ]  

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Dakhal News 24 March 2018


एमपी में वेब जर्नलिज्म

रजत मिश्रा प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के दौर में जैसे ही सोशल मीडिया खास कर वेब पोर्टल की शुरुआत हुई लोगों का फटा-फट और बगैर मैनेज होने वाले मीडिया से भरोसा जुड़ गया।चेनल जो फर्जी तरीके से सरकार पर अपने झूठे ID फर्जी स्ट्रिंगर और मार्फिन वीडियो के बल पर दबाव बनाकर येन केन प्रकारेण मोटी राशि वसूल रहे थे ,उनकी दुकान  बंद होती दिखी, प्रिंट मीडिया भी इससे अछूता नहीं रहा। फर्जी सरकुलेशन आंकड़े डीएवीपी को घूस देकर जिन्होंने विज्ञापन लेकर अपने खजाने चुपचाप भर लिए थे उनका भी पेट दर्द होने लगा। सोशल मीडिया को बढ़ाने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पहल करते हुवे एक विज्ञापन नीति बनाकर "जितने हिट उतने विज्ञापन" के फार्मूले पर 10 वर्ष पुरानी 5 वर्ष पुरानी और 3 वर्ष पुरानी अलग अलग वेब पोर्टल नीति के अनुसार 1 वित्तीय वर्ष में  विज्ञापन दिए जिसका अब दुष्प्रचार हो रहा है यह बात सही है कि भीड़ में  असली के बीच नकली भी जम गए ।पिछले दिनों ऐसे ही एक जलते भूनते आधे अधूरे पत्रकार ने कम पढ़े लिखे और जनहित से दूर स्वहित के सवाल पूछने वाले विधायक से विधानसभा में जानकारी बुलवा ली। विधायक की जानकारी को अब सार्वजनिक करके वे फूले नहीं समा रहे । विज्ञापन लेना देना और उसे प्रसारित करना क्या घोटाला है ?यदि विज्ञापन देना घोटाला है तो आजादी के बाद से अब तक जितने पत्र-पत्रिकाओं चैनल्स  स्मारिका आदि व्यक्तियों संगठनों उनके मालिकों ने जो लाभ लिया है शासन की योजनाओं के प्रचार के बदले उन्हें मिला उपहार है ....।तो वह सब अपना रिकॉर्ड सार्वजनिक करें और खुद को बेदाग साबित करें वेब पोर्टल 15 हजार से ₹50 हजार प्रतिमाह हिट संख्या के आधार पर गूगल एनालिटिक्स के जरिए जो पा रहा है उसका और उसके मालिकों का इनकम टैक्स से रिकॉर्ड भी निकाला जाए साथ ही जो कथित ईमानदार बन रहे हैं और पर्दे के पीछे सरकार के साथ अखबार और चैनल के माध्यम से अब तक जनता का पैसा  हजारों करोड़ लूटते आए हैं उन्हें अपना हिसाब देना चाहिए । 

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Dakhal News 22 March 2018


इंडिया टीवी फिर नंबर दो

  अंबानी जी का न्यूज चैनल हो और उसके अच्छे दिन न आएं, वो भी योगी राज में, हो ही नहीं सकता. अंबानी का चैनल News18 India टीआरपी में कुल 5.2 की उछाल के साथ नंबर तीन पर आ गया है. इंडिया टीवी भी अच्छी खासी टीआरपी गेन करके नंबर दो पर पहुंच गया है. सबसे ज्यादा नुकसान एबीपी न्यूज का हुआ है जो भयंकर रूप से गोता लगाते हुए चौथे नंबर पर टिकने को मजबूर हुआ है. आजतक की टीआरपी भी अच्छी खासी गिरी है, बावजूद इसके वह नंबर वन पर बना हुआ है. इंडिया न्यूज और न्यूज नेशन की टीआरपी में भी अच्छी खासी वृद्धि हुई है.  Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 10 Aaj Tak 16.5 dn 4.7  India TV 13.8 up 3.1  News18 India 12.9 up 5.2  ABP News 12.3 dn 8.7  Zee News 11.8 dn 0.6  News Nation 10.5 up 1.1  India News 8.9 up 3.2  News 24 6.8 up 0.7  Tez 2.8 same   NDTV India 1.9 up 0.1  DD News 1.8 up 0.6 TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.3 dn 4.6  India TV 14.3 up 2.6  News18 India 14.2 up 4.8  Zee News 13.5 up 0.5  ABP News 11.0 dn 6.9  News Nation 9.1 up 0.7  India News 8.0 up 2.2  News 24 6.6 up 0.6  Tez 3.1 dn 0.2  NDTV India 2.5 up 0.1  DD News 1.3 up 0.3

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Dakhal News 15 March 2018


ओम थानवी बने पत्रिका समूह में सलाहकार संपादक

  आज औपचारिक रूप से मैंने राजस्थान पत्रिका समूह के सलाहकार सम्पादक का ज़िम्मा संभाल लिया। ‘औपचारिक रूप से’ इसलिए कि अनौपचारिक विमर्श हफ़्ते भर पहले शुरू हो गया था! पत्रकारिता की विधिवत शुरुआत मैंने पत्रिका से ही की थी। 1980 में, संस्थापक कर्पूरचंद कुलिश के बुलावे पर। तीस वर्ष पहले पत्रिका से आकर ही चंडीगढ़ में जनसत्ता का सम्पादक हुआ। वहाँ से दिल्ली आया। आप कह सकते हैं, आज घर वापसी हुई। इस बीच पत्रिका समूह बहुत व्यापक हो गया है। अख़बार, टीवी, रेडियो, डिज़िटल आदि विभिन्न मीडिया क्षेत्रों में उसकी अपनी जगह है। दैनिक पत्रिका का प्रकाशन अब राजस्थान के अलावा दिल्ली, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, गुजरात, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और तमिलनाडु से भी होता है। 33 संस्करण छपते हैं। कोई 1 करोड़ 29 लाख पाठक इसे पढ़ते हैं। बीबीसी-रायटर के एक सर्वे में देश के सर्वाधिक विश्वसनीय तीन अख़बारों में पत्रिका एक था। मेरे लिए पत्रिका का प्रस्ताव स्वीकार करने की एक बड़ी वजह रहा समूह का जुझारू अन्दाज़। संघर्ष की ललक और सत्ता के समक्ष न झुकने का तेवर। इसकी एक वजह शायद यह है कि मीडिया ही इस समूह का मुख्य व्यवसाय है। इससे समझौते की जगह लिखना अहम हो जाता है। हाल में राजस्थान सरकार ने मीडिया को क़ाबू करने के लिए जिस काले क़ानून को थोपने की कोशिश की, वह पत्रिका के मोर्चा लेने के कारण ही आंदोलन बना और अंततः सरकार झुकी। क़ानून का इरादा हवा हुआ।[भड़ास फॉर मीडिया से ]

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Dakhal News 9 March 2018


शिवराज बोले -सोशल मीडिया का सकारात्मक उपयोग हो

जनसंपर्क अधिकारियों की सोशल मीडिया प्रशिक्षण कार्यशाला में मुख्यमंत्री  एमपी के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि सोशल मीडिया का सकारात्मक  उपयोग व्यापक जनहित में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया अत्यधिक गतिशील मीडिया है। नकारात्मक घटनाओं और असत्य सूचनाओं के प्रसार को रोकने  के लिए सक्रिय, सचेत और सावधान रहकर तथ्यों को  तत्काल प्रकाश में लाना चाहिए। इससे समाज में सकारात्मक वातावरण बनाने में मदद मिलेगी। श्री चौहान आज यहां जनसंपर्क अधिकारियों के लिये सोशल मीडिया पर प्रशिक्षण कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। श्री चौहान ने कहा कि सोशल मीडिया में आम लोगों और सरकार के बीच संपर्क सेतु बनने की क्षमता है। लोगों को सरकार की प्रत्येक कल्याणकारी और विकास गतिविधियों की जानकारी होना जरूरी है। यह उनका अधिकार भी है। उन्होंने कहा कि सकारात्मक गतिविधियों को लोगों तक पहुंचाना और उन्हें समाचारों की प्राथमिकता बनाना बड़ा काम है। इसे थोड़ी-सी विशेषज्ञता और प्रशिक्षण से आसान बनाया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सोशल मीडिया का स्वभाव तेज गति से काम करने का है। इसलिये गलत सूचनाओं के प्रसार से भ्रम फैलता है। इससे निपटने के लिये समय पर सही तथ्यों को प्रस्तुत करना होगा। समाज के हित में जरूरी है कि समाज की सकारात्मक सोच बनाने वाले अच्छे और प्रेरणादायी समाचारों का तेजी से प्रसार हो। इसके लिये सक्रिय और सावधान रहते हुए दक्षता के साथ काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सकारात्मक कार्यों और सृजनात्मक विकास की रणनीतियों को मूल्य आधारित समाचार के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए। श्री चौहान ने अनूठी योजनाओं और नवाचारी प्रयासों की चर्चा करते हुये कहा कि इन्हें आम हितग्राहियों तक पहुंचाने और नागरिकों को सूचना सम्पन्न बनाने के लिये सोशल मीडिया का प्रभावी उपयोग करना समय की आवश्यकता है। सरकार की नवाचारी और परिणामोन्मुखी योजनाओं की चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि सोशल मीडिया के सभी मंचों पर इनकी उपस्थिति होना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इनका लाभ मिले। साथ ही आम नागरिकों और संभावित हितग्राहियों के विचारों से भी सरकार अवगत हो सके, ताकि समय पर तत्काल प्रभाव से आवश्यक सुधार किया जा सके। आयुक्त जनसंपर्क श्री पी.नरहरि ने अपने स्वागत भाषण में बताया कि विभिन्न विभागों की गतिविधियों और नवाचारी योजनाओं की सोशल मीडिया में प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए काम शुरू कर दिया गया है। जिन हितग्राहियों ने सरकार की योजनाओं से लाभ लेकर अपना जीवन बदल लिया है, उन्हें भी सोशल मीडिया में सक्रिय रहकर अन्य लोगों को प्रेरित करने का आग्रह किया गया है। इस अवसर पर प्रमुख सचिव श्री एस. के. मिश्रा ने मुख्यमंत्री का स्वागत किया। अपर संचालक जनसंपर्क श्री सुरेश गुप्ता, अपर सचिव जनसंपर्क डॉ. एच.एल. चौधरी, कार्यकारी संचालक मध्यप्रदेश माध्यम श्री मंगला मिश्रा एवं वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। संचालक जनसंपर्क श्री अनिल माथुर ने आभार व्यक्त किया।  

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Dakhal News 7 March 2018


इंडिया टीवी नंबर दो पर

  इस साल के छठवें हफ्ते की टीआरपी के आंकड़े बताते हैं कि इंडिया टीवी ने जबरदस्त छलांग लगाकर नंबर दो की अपनी पुरानी कुर्सी हासिल करने में सफलता पा ली है. वहीं एबीपी न्यूज अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. यह चैनल ढेर सारी टीआरपी खोकर नंबर पांच पर आ गिर है. वहीं निचले पायदान पर घिसट रहे न्यूज ट्वेंटी फोर ने थोड़ी बहुत अपनी स्थिति बेहतर की है. यही हाल इंडिया न्यूज का भी है. टीआरपी  Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 6 Aaj Tak 17.0 up 0.1  India TV 13.5 up 1.1  Zee News 13.0 dn 0.9  News18 India 12.4 up 0.7  ABP News 10.9 dn 1.7  News Nation 10.4 up 0.6  India News 9.4 up 0.9  News 24 7.5 up 0.4  Tez 2.7 dn 1.2  NDTV India 1.8 dn 0.2  DD News 1.4 up 0.1 TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.2 dn 0.3  Zee News 14.3 dn 0.4  India TV 14.0 up 0.7  News18 India 13.3 up 0.9  ABP News 10.5 dn 1.4  News Nation 9.4 up 0.8  India News 8.5 up 0.8  News 24 7.1 up 0.5  Tez 3.1 dn 1.3  NDTV India 2.3 dn 0.2  DD News 1.3 same  

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Dakhal News 16 February 2018


लुढ़कने के बाद भी आज तक नंबर वन

  2018  के पांचवें हफ्ते की टीआरपी से पता चलता है कि एबीपी न्यूज अपनी स्थिति सुधारते हुए नंबर तीन पर पहुंच गया है. वहीं इंडिया टीवी की हालत पतली हुई है. यह चैनल चौथे नंबर पर खिसक गया है. सबसे ज्यादा टीआरपी आजतक की गिरी है लेकिन यह चैनल अभी काफी अंतर से नंबर एक पर बना हुआ है. जी न्यूज की भी टीआरपी गिरी है लेकिन यह अब भी दो नंबर पर है।    TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 5 Aaj Tak 16.9 dn 1.3  Zee News 13.9 dn 1.0  ABP News 12.6 up 0.4  India TV 12.4 same   News18 India 11.7 dn 0.3  News Nation 9.7 up 0.3  India News 8.4 up 0.4  News 24 7.2 same   Tez 3.9 up 1.3  NDTV India 2.0 up 0.2  DD News 1.4 dn 0.1    TG: CSAB Male 22+    Aaj Tak 16.5 dn 1.8  Zee News 14.7 dn 0.8  India TV 13.3 up 0.4  News18 India 12.4 dn 0.4  ABP News 11.9 up 0.3  News Nation 8.6 up 0.2  India News 7.7 up 0.6  News 24 6.6 up 0.1  Tez 4.4 up 1.3  NDTV India 2.5 up 0.2  DD News 1.3 dn 0.1  

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Dakhal News 8 February 2018


मार्क जकरबर्ग

  फेसबुक में किए गए जरूरी बदलाव के बाद फेसबुक यूजर्स फेसबुक पर अब फेसबुक पर कम समय में ज्यादा सुविधाओं का मजा ले रहे हैं। यह कहना है फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग का। पिछले साल दी गई सेवाओं के बदले फेसबुक पर अब यूजर्स 5 फीसद या 50 मिलियन घंटे कम समय बिता रहा है। जकरबर्ग ने लिखा है, 'पिछले क्वार्टर में हमने कुछ वायरल वीडियोज दिखने के लिए बदलाव किए। ये बदलाव इसलिए किए गए की यूजर्स साइट पर ज्यादा समय व्यतीत करें। कुल मिलाकर, हमने फेसबुक पर कुछ ऐसे बदलाव कर दिए जिसके परिणामस्वरूप यूजर्स साइट पर लगभग 50 मिलियन घंटे प्रति दिन कम समय बिताने लगे। बेहतर कम्युनिटी और बिजनस से जुड़ने के बाद आने वाले समय में हम और बेहतर प्लेटफार्म साबित होंगे।' कंपनी ने कंटेंट को लेकर भी बदलाव करने शुरू कर दिए हैं। फेसबुक को फेक न्यूज फैलाने और अन्य हिंसक सामग्री के सन्दर्भ में काफी आलोचना का सामन करना पड़ा था। पिछले वर्ष अप्रैल में एक फेसबुक यूजर्स ने एक वृद्ध पुरुष को जान से मारते हुए अपना वीडियो शूट कर के साइट पर अपलोड कर दिया था। पिछले वर्ष नवम्बर में जकरबर्ग ने कहा था, 'मैं यह साफ कर देना चाहता हूं की हमारे लिए मुनाफा कमाने से ज्यादा समुदाय की सुरक्षा मायने रखती है।' डिजिटल एक्टिवेशन के डाइरेक्टर Ben Hovaness के अनुसार, टाइम स्पेंट में कमी के चलते कंपनी को न्यूज फीड में अतिरिक्त एड डालने की जरुरत पड़ सकती है।  

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Dakhal News 3 February 2018


गूगल के डूडल लेखिका कमला दास

  गूगल ने गुरुवार को अपना डूडल मलयाली लेखिका कमला सुरय्या को समर्पित किया है। उनका पूर्व नाम कमला दास था और आज ही के दिन उनकी आत्मकथा छपी थी। वो आत्मकथा जिसने पूरे पुरुष समाज को हिला कर रख दिया। 1984 में उन्हों नोबल पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था। एक साधारण जिंदगी जीने वाली कमला दास वैसे तो कम ही पहचानी जाती थी लेकिन जब उन्होंने कागज पर अपनी भावनाओं को उतारा तो दुनिया के लिए प्रेरणा बन गईं। 1934 में केरल में जन्मी कमला ने काफी कम उम्र में कविताएं लिखना शुरू किया था। उन्हें यह विरासत में मिला था क्योंकि उनकी मां भी एक अच्छी कवियित्री थीं। कमला ने अपनी जिंदगी के ऊपर एक किताब लिखी जिसका नाम ता माई स्टोरी। उनकी इस आत्मकथा ने पुरुष समाज को हिलाकर रख दिया था। अपनी छवि के विपरीत उन्होंने जो आत्मकथा लिखी थी उसमें उन्होंने बड़ी ही बेबाकी से एक औरत की भावनाओं को व्यक्त किया था और इसके चलते कुछ लोगों ने उनकी लेखनी को गलत भी ठहराया।उनकी इस आत्मकथा ने उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याती दिलाई थी।  

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Dakhal News 1 February 2018


गूगल के डूडल लेखिका कमला दास

  गूगल ने गुरुवार को अपना डूडल मलयाली लेखिका कमला सुरय्या को समर्पित किया है। उनका पूर्व नाम कमला दास था और आज ही के दिन उनकी आत्मकथा छपी थी। वो आत्मकथा जिसने पूरे पुरुष समाज को हिला कर रख दिया। 1984 में उन्हों नोबल पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था। एक साधारण जिंदगी जीने वाली कमला दास वैसे तो कम ही पहचानी जाती थी लेकिन जब उन्होंने कागज पर अपनी भावनाओं को उतारा तो दुनिया के लिए प्रेरणा बन गईं। 1934 में केरल में जन्मी कमला ने काफी कम उम्र में कविताएं लिखना शुरू किया था। उन्हें यह विरासत में मिला था क्योंकि उनकी मां भी एक अच्छी कवियित्री थीं। कमला ने अपनी जिंदगी के ऊपर एक किताब लिखी जिसका नाम ता माई स्टोरी। उनकी इस आत्मकथा ने पुरुष समाज को हिलाकर रख दिया था। अपनी छवि के विपरीत उन्होंने जो आत्मकथा लिखी थी उसमें उन्होंने बड़ी ही बेबाकी से एक औरत की भावनाओं को व्यक्त किया था और इसके चलते कुछ लोगों ने उनकी लेखनी को गलत भी ठहराया।उनकी इस आत्मकथा ने उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याती दिलाई थी।  

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Dakhal News 1 February 2018


इंडिया टुडे सबसे ज्यादा बिकने वाली मैग्जीन

  ‘इंडियन री‍डरशिप सर्वे 2017’ के आंकड़े बताते हैं कि अंग्रेजी दैनिक अखबारों में ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ नंबर एक पर है. इसकी कुल रीडरशिप 1.3 करोड़ से ज्यादा है. ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ अंग्रेजी भाषा में दूसरा नंबर पर है. इसकी कुल रीडरशिप 68 लाख से ज्यादा है. 'द हिन्दू’ 53 लाख से ज्यादा रीडरशिप के साथ तीसरे नंबर पर है. ‘द इकनॉमिक टाइम्स’ ने ‘मुंबई मिरर’ और ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को पछाड़ दिया है. 'द इकनामिक टाइम्स' की कुल रीडरशिप 31 लाख से ज्यादा है. ‘मुंबई मिरर’ की 18 लाख से ज्यादा रीडरशिप है. ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की कुल रीडरशिप 15 लाख है. मैगजीन कैटगरी में ‘इंडिया टुडे’ अंग्रेजी नंबर एक पर है. इसकी कुल रीडरशिप 79 लाख है. इंडिया टुडे हिंदी नंबर दो पर है. इसकी कुल रीडरशिप 71 लाख से ज्यादा है. हिंदी की ‘सामान्य ज्ञान दर्पण’ मैग्जीन नंबर तीन पर है. इसकी कुल रीडरशिप 68 लाख से ज्यादा है.

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Dakhal News 20 January 2018


एबीपी न्यूज

‘एबीपी न्यूज’ चैनल को खोजी पत्रकारिता के लिए विशेष संवाददाताओं की जरूरत है. इनवेस्टिगेटिव स्टोरीज के लिए स्पेशल/प्रिंसिपल कॉरेस्पोंडेंट के पद हेतु अप्लाई वही लोग करें जो मीडिया में कम से कम 8 से 10 वर्षों का अनुभव रखते हैं. एबीपी न्यूज को नोएडा आफिस के लिए असिस्टेंट मैनेजर (प्रॉडक्टर मैनेजर- वेब, मोबाइल, ऐप, विडियोज) व सीनियर एग्जिक्यूटिव भी चाहिए. असिस्टेंट मैनेजर के लिए तीन वर्ष से ज्यादा का अनुभव होना चाहिए. सीनियर एग्जीक्यूटिव के लिए 2-3 वर्ष का अनुभव होना जरूरी है. इच्छुक अभ्यर्थी अपना बायोडाटा resumes@abpnews.in पर भेजें. साथ ही सब्जेक्ट लाइन में पद का नाम जरूर लिखें.

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Dakhal News 20 January 2018


जनसम्पर्क मंत्री डॉ. मिश्र मिले जर्नलिस्ट यूनियन के पदाधिकारी

एमपी के जनसम्पर्क, जल संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र से आज निवास पर जर्नलिस्ट यूनियन ऑफ मध्यप्रदेश, इंदौर शाखा के पदाधिकारियों ने सौजन्य भेंट की। भेंट करने वालों में श्री ओमप्रकाश फरकिया, श्री चम्पालाल गुर्जर, श्री राजेन्द्र पुरोहित, श्री ओमप्रकाश जैन, श्री ओम बाबा, श्री संतोष वाजपेयी, श्री घनश्याम सोनी और श्री अशोक बड़गुजर आदि शामिल थे। डॉ. मिश्र से की सौजन्य भेंट  जनसम्पर्क, जल संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र से आज निवास पर मालवा श्रमजीवी पत्रकार संघ, रतलाम के पदाधिकारियों ने सौजन्य भेंट की। इस अवसर पर मालवा श्रमजीवी पत्रकार संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष श्री लखन गेहलोत, जाट पत्रिका के संपादक श्री गजेन्द्र जाट, संस्कार टुडे के संपादक श्री गोपाल परमार आदि उपस्थित थे। डायरी, कैलेण्डर का विमोचन किया  डॉ. नरोत्तम मिश्र ने आज साप्ताहिक कृषक जगत भोपाल द्वारा प्रकाशित वर्ष 2018 की डायरी का विमोचन किया। इस अवसर पर समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील गंगराड़े और संपादकीय सहयोगी श्री राजेश दुबे उपस्थित थे। जनसम्पर्क मंत्री ने निवास पर दैनिक लोकोत्तर, भोपाल द्वारा प्रकाशित वर्ष 2018 के टेबिल कैलेण्डर का भी विमोचन किया। विमोचन अवसर पर अखबार के संपादक श्री विवेक पटैरिया और प्रबंध संपादक श्री कैलाश वाजपेयी उपस्थित थे।  

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Dakhal News 16 January 2018


जी न्यूज बढ़ा,इंडिया टीवी का बुरा हाल

  इस साल के पहले हफ्ते की टीआरपी में  सबसे अच्छी खबर जी न्यूज के लिए है. यह चैनल तेजी से नंबर एक की तरफ बढ़ रहा है. पंद्रह प्लस कैटगरी में यह सबसे ज्यादा टीआरपी हासिल करके अपने प्रतिद्वंदियों को काफी पीछे छोड़ चुका है. नंबर वन पर काबिज 'आजतक' को तगड़ी चुनौती दे रहा है. बाइस प्लस कैटगरी में तो जी न्यूज नंबर वन बन भी चुका है. सबसे बुरा हाल इंडिया टीवी का है. यह चैनल हमेशा नंबर दो पर रहा है और कभी कभी नंबर एक भी हो जाया करता था. लेकिन इसने पांच नंबर पर गोता लगा दिया है. इससे आगे एबीपी न्यूज, न्यूज एट्टीन इंडिया और जी न्यूज हो चुके हैं. लग रहा है नए साल में रजत शर्मा को कुछ बड़ा करना पड़ेगा और ठीकठाक नए-तेजतर्रार लोगों के हवाले चैनल को करना पड़ेगा.  नेशनल न्यूज़ चैनल trp week  1  Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 1'2018 Aaj Tak 16.0 dn 0.1 Zee News 15.6 up 1.8 News18 India 12.6 dn 0.6 ABP News 12.0 up 1.1 India TV 11.9 dn 0.5 News Nation 9.1 dn 0.4 India News 8.2 dn 0.5 News 24 7.9 dn 0.5 Tez 2.9 same  NDTV India 2.0 dn 0.1 DD News 1.8 dn 0.1 TG: CSAB Male 22+ Zee News 17.8 up 2.8 Aaj Tak 15.6 dn 0.8 News18 India 13.7 dn 0.3 India TV 12.1 dn 0.9 ABP News 11.2 up 0.5 News Nation 7.8 same  News 24 7.3 dn 0.5 India News 7.1 dn 0.8 Tez 3.4 same  NDTV India 2.5 dn 0.1 DD News 1.6 same  

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Dakhal News 15 January 2018


विष्णु श्रीधर वाकणकर

मध्यप्रदेश के प्रमुख सचिव संस्कृति  मनोज श्रीवास्तव एवं जनसम्पर्क आयुक्त पी. नरहरि ने स्वराज भवन में प्रख्यात कला गुरु और पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर पर केन्द्रित दस्तावेजी पुस्तक 'मालवा की कला-विभूति- पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर'' का संयुक्त रूप से लोकार्पण किया। अटल बिहारी हिन्दी विश्वविद्यालय के आचार्य श्री रामदेव भारद्वाज ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। वरिष्ठ साहित्कार श्री कैलाशचन्द्र पंत कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे। पुस्तक में डॉ. वाकणकर के व्यक्तित्व और कृतित्व के प्राय: सभी पक्षों का समावेश है। वरिष्ठ पुरातत्व वेत्ता पं. नारायण व्यास ने आभार व्यक्त किया। समारोह में कला, साहित्य और पुरातत्व विषय के जानकार विशिष्टजन के साथ-साथ डॉ. वाकणकर की वरिष्ठ शिष्या डॉ. पुष्पा चौरसिया (उज्जैन) भी मौजूद थीं।  

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Dakhal News 13 January 2018


प्रो.बीके कुठियाला

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को नया कुलपति मिलने तक यहां के वर्तमान कुलपति प्रो.बीके कुठियाला ही यहां की कमान सभालेंगे। उनका कार्यकाल 18 जनवरी को समाप्त हो रहा है। मंगलवार को विवि की प्रबंध समिति और महापरिषद की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई। नए कुलपति के लिए सर्च कमेटी के गठन को मंजूरी दी गई। बैठक में तय हुआ कि मीडिया के क्षेत्र में स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन देने के लिए विवि में मीडिया इंक्यूबेशन सेंटर स्थापित किया जाएगा। इसके लिये नीति आयोग से मंजूरी मिल गई है। यह बैठक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई। बैठक में निर्णय लिया गया कि समाज में सामाजिक, आर्थिक विषमता फैलाने वाले कारकों और उनके समाधान के विषयों पर विश्वविद्यालय द्वारा विस्तृत अध्ययन कराया जाएगा। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि विश्वविद्यालय में अद्वैत वेदांत विषय पर भी शोध और अध्ययन किया जाए। बैठक में कहा गया कि नए पदों की पूर्ति उधा शिक्षा और यूजीसी नियमों के अंतर्गत की जाए। बैठक में बताया गया कि विवि में भाषा अध्ययन और संस्कृति अध्ययन केंद्रों ने काम शुरू कर दिया है। 

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Dakhal News 10 January 2018


 मीडिया इन्क्यूबेशन सेंटर

मुख्यमंत्री चौहान की अध्यक्षता में प्रबंध समिति और महा-परिषद की बैठक सम्पन्न  मीडिया के क्षेत्र में स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन देने के लिये माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में मीडिया इन्क्यूबेशन सेंटर स्थापित किया जायेगा। इसके लिये नीति आयोग से मंजूरी मिल गयी है। समाज में सामाजिक, आर्थिक विषमता फैलाने वाले कारकों और उनके समाधान के विषयों पर विश्वविद्यालय द्वारा विस्तृत अध्ययन कराया जायेगा। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आज यहाँ सम्पन्न विश्वविद्यालय की प्रबंध समिति और महापरिषद की बैठक में ये निर्णय लिये गये। मुख्ममंत्री श्री चौहान ने कहा कि विश्वविद्यालय में अद्वैत वेदांत विषय पर भी शोध और अध्ययन किया जाये। नये पदों की पूर्ति उच्च शिक्षा तथा यूजीसी नियमों के अंतर्गत की जाये। बैठक में बताया गया कि विश्वविद्यालय में भाषा अध्ययन केन्द्र तथा संस्कृति अध्ययन केन्द्रों ने कार्य शुरू कर दिया है। विश्वविद्यालय में विदेशी मीडिया अध्ययन केन्द्र स्थापित किया जायेगा जिसमें पाकिस्तान, चीन और नेपाल के मीडिया में प्रकाशित समाचारों का विश्लेषण किया जायेगा। विश्वविद्यालय द्वारा बी.सी.ए. की परीक्षा ऑनलाइन ली गयी है। विश्वविद्यालय के अंतर्गत बीते एक वर्ष में 210 नयी अध्ययन संस्थाओं को मान्यता दी गई है। इस अवधि में विद्यार्थियों की संख्या 12 प्रतिशत बढ़ी है। विश्वविद्यालय द्वारा संस्कृत की पहली न्यूज मैग्जीन अतुल्य भारतम का प्रकाशन किया गया है। विश्वविद्यालय में सोशल मीडिया रिसर्च सेंटर बनाया गया है। बैठक में वित्त मंत्री श्री जयंत मलैया, जनसम्पर्क एवं जल-संसाधन मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, सांसद श्री आलोक संजर, कुलपति डॉ. बी.के. कुठियाला सहित महा-परिषद के अशासकीय और शासकीय सदस्यगण उपस्थित थे।  

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Dakhal News 10 January 2018


राकेश पाठक बने कर्मवीर के प्रधान संपादक

  वरिष्ठ पत्रकार व कवि डॉ राकेश पाठक को "कर्मवीर" के 'प्रधान संपादक' का दायित्व सौंपा गया है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दादा माखनलाल चतुर्वेदी सन 1920 में प्रारम्भ "कर्मवीर" के संस्थापक संपादक थे। वर्तमान में पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर के पास 'कर्मवीर' का सर्वाधिकार है। श्रीधर जी ने 'कर्मवीर' का दायित्व डॉ पाठक को सौंपा है। पहले चरण में "कर्मवीर" न्यूज़ पोर्टल/ वेबसाइट के रूप में अगले कुछ दिनों में प्रारम्भ होगा। 'कर्मवीर' पत्रिका का प्रकाशन विवेक श्रीधर के संपादन में नियमित हो रहा है। अगले चरण में 'कर्मवीर' अख़बार के रूप में पुनः प्रकाशित होगा। उल्लेखनीय है कि डॉ राकेश पाठक नईदुनिया, नवभारत, नवप्रभात,प्रदेशटुडे जैसे प्रतिष्ठित अखबारों में वर्षों तक संपादक रहे हैं। इसके अलावा न्यूज़ पोर्टल "डेटलाइन इंडिया" के 'प्रधान संपादक' रहे। 'सांध्य समाचार' से पत्रकारिता शुरू करने वाले डॉ पाठक ने स्वदेश, सांध्यवार्ता, आचरण, लोकगाथा आदि अखबारों में भी काम किया। उनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं। हाल ही में डॉ पाठक को उनके कविता संग्रह "बसंत के पहले दिन से पहले" के लिए राष्ट्रीय स्तर का "हेमंत स्मृति कविता सम्मान" देने की घोषणा की गई है। इसके अलावा अनेक सम्मान और पुरस्कार उन्हें मिल चुके हैं।

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Dakhal News 6 January 2018


सिंधी पत्रकारिता पर 6 को राष्ट्रीय संगोष्ठी

    भोपाल के संत हिरदाराम नगर में  राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद एवं अखंड सिंधु संसार विचार मंच ने सिंधी भाषा के विकास में सिंधी अखबारों का योगदान विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया है।  विचार मंच के अध्यक्ष ज्ञानचंद लालवानी के अनुसार दो दिवसीय संगोष्ठी 6 जनवरी को शहीद भवन में जनवरी को समन्वय भवन में होगी। संगोष्ठी में दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर, अजमेर, लखनऊ आदि शहरों के सिंधी संपादकों एवं प्रकाशकों को आमंत्रित किया गया है। कार्यशाला के दौरान सिंधी संस्कृति पर केंद्रित कार्यक्रम भी होंगे।  

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Dakhal News 4 January 2018


ओशो

ओशो रेत पर खींची गई लकीरों की तरह वह जिंदगी है। हवाएं आएंगी और रेत पुंछ जाएगी। कितने लोग हमसे पहले रहे हैं इस पृथ्वी पर! झहां हम बैठे हैं उस जमीन में नामालूम कितने लोगों की कब्र बन गई होगी। जिस रेत पर हम बैठे हैं वह रेत नामालूम कितने लोगों की जिंदगी की राख का हिस्सा है। लोग इस पृथ्वी पर रह रहे हैं और कितने लोग खो गए हैं! एाज कौन-सा उनका निशान है? खेौन-सा उनका ठिकाना है? उन्होंने क्या नहीं सोचा होगा, क्या नहीं किया होगा! बाहर की जिंदगी बेमानी है। बाहर की जिंदगी का बहुत अंतिम अर्थ नहीं है। मैं सुनता हूं कि द्वारिका सात बार बनी और बिगड़ी। सात करोड़ बार बन-बिगड़ गई होगी। कुछ पता नहीं है। इतना अंतहीन है विस्तार यह सब, इसमें सब रोज बनता है और बिगड़ जाता है। लेकिन कितने सपने देखे होंगे उन लोगों ने! इकतनी इच्छाएं की होंगी कि ये बनाएं, ये बनाएं। सब राख और खेत हो गया, सब खो गया। हम भी खो जाएंगे कल। हमारे भी बड़े सपने हैं। हम भी क्या-क्या नहीं कर लेना चाहते हैं! लेकिन समय की रेत पर सब पुछ जाता है। हवाएं आती हैं, और सब बह जाता है। बाहर की जिंदगी का बहुत अंतिम अर्थ नहीं है। बाहर की जिंदगी का बहुत अंतिम अर्थ नहीं है। बाहर की जिंदगी खेल से ज्यादा नहीं है। हां, ठीक से खेल लें, इतना काफी है। क्योंकि ठीक से खेलना भीतर ले जाने में सहयोगी बनता है। लेकिन बाहर की जिंदगी का कोई बहुत मूल्य नहीं है। तो कुछ लोग बाहर की जिंदगी में खोकर भटक जाते हैं। फिर कुछ लोग भीतर की तरफ चलते हैं तो वहां एक गलत रास्ता बनाया हुआ है। वहां धर्म के नाम पर दुकानें लगी हैं। वहां धर्म के नाम पर हिंदू, मुसलमान, ईसाइयों के पुरोहित बैठे हैं। वहां धर्म के नाम पर आदमी के बनाए हुए ईश्वर आदमी के बनाए हुए देवता, आदमी की बनाई हुई किताबें बैठी हैं। वे भटका देती हैं। बाहर से किसी तरह आदमी बचता है क्क कुएं से बचता है और खाई में गिर जाता है। उस भटकन में चल पड़ता है। उस भटकन से कुछ लोगों को फेायदा है। कुछ लोग शोषण कर रहे हैं। हजारों साल से कुछ लोग इसी का शोषण कर रहे हैं क्क आदमी की इस कमजोरी का, आदमी की इस नासमझी का, आदमी की इस असहाय अवस्था का-कि आदमी जब बाहर से भीतर की तरफ मुड़ता है तो वह अनजान होता है, उसे कुछ पता नहीं होता कि कहां जाऊं? वहां गुरु खड़े हुए हैं। वे कहते हैं, आओ, हम तुम्हें रास्ता बताते हैं। हमारे पीछे चलो। हम जानते हैं। और ध्यान रहे, जो आदमी कहता है, मैं जानता हूं, मेरे पीछे आओ, यह आदमी बेईमान है। क्योंकि धर्म की दुनिया में जो आदमी प्रविष्ट होता है, उसका मैं ही मिट जाता है, वह यह भी कहने की हिम्मत नहीं कर सकता कि मैं जानता हूं। सच तो यह है कि वहां कोई जानने वाला नहीं बचता, वहां कुछ जाना जाने वाला नहीं होता। वहां जानने वाला भी मिट जाता है, जो जाना जाता है वह भी मिट जाता है। वहां न ज्ञाता होता है और न ज्ञेय। इसलिए जो जान लेता है वह यह नहीं कहता कि मैं जानता हूं, आओ मैं तुम्हें ले चलूंगा। और जो जान लेता है वह यह भी जान लेता है कि कोई कभी किसी दूसरे को नहीं ले गया है। प्रन्येक को स्वय ही जाना पड़ता है। धर्म की दुनिया में कोई गुरु नहीं होते। लेकिन वह जो पाखंड का धर्म है, वहां गुरुओं के अड्डे हैं। इसलिए ध्यान रहे, जो गुरु के पीछे जाएगा वह कभी परमात्मा तक नहीं पहुंचता। क्योंकि वे गुरुओं की दुकानें अपने पीछे ले जाती हैं और आदमी के बनाए हुए जाल में उलझा देती हैं। करोड़ों-करोड़ों लोग चींटियों की तरह यात्रा करते रहते हैं पीछे एक- दूसरे के। यह सारी-की सारी यात्रा व्यर्थ है। न कोई धर्म का तीर्थ है, न कोई धर्म का मंदिर है, न कोई धर्म की किताब है, न कोई धर्मगुरु है। और जब तक हम इन बातों में भटके रहेंगे, तब तक हम कभी भी धर्म को नहीं जान सकते। लेकिन आप कहेंगे, फिर हम क्या करें? एगर हम गुरु के पीछे न जाएं तो हम कहां जाएं? इकसी के पीछे मत जाओ! ठहर जाओ! तुम वहां पहुंच जाओगे जहां पहुंचना जरूरी है। कुछ चीजें हैं, जहां चलकर पहुंचा जाता है और कुछ चीजें ऐसी हैं जहां रूककर पहुंचा जाता है। धर्म ऐसी की चीज है, वहां चलकर नहीं पहुंचना पड़ता। यह कभी शायद सोचा नहीं होगा। मैं द्वारिका तक आया तो मुझे यात्रा करके आना पड़ा, क्योंकि मेरे और आपके बीच में फेासला था। फेासले को पूरा करना पड़ा। अगर मैं अभी उटकर आपके पास आऊं तो मुझे चलना पड़ेगा, क्योंकि आपके और मेरे बीच में दूरी है, दूरी को पार करना पड़ेगा। लेकिन आदमी और परमात्मा के बीच में दूरी ही नहीं है। इसलिए चलने का सवाल नहीं है वहां। वहां जो चलेगा वह भटक जाएगा। वहां जो ठहर जाता है वह पहुंच जाता है। इसलिए पहली बात ठीक से समझ लेना, वहां चलकर नहीं पहुंचना है। इसलिए किसी गुरु की जरूरत नहीं है, किसी वाहन की जरूरत नहीं है, किसी यात्रा की जरूरत नहीं है। वहां तो वे पहुंचते हैं जो सब तरह से रुक जाते हैं और ठहर जाते हैं।  

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Dakhal News 31 December 2017


 सीडी कांड में पत्रकार विनोद वर्मा को मिली जमानत

    रायपुर में कथित अश्‍लील सीडी कांड मामले में पत्रकार विनोद वर्मा को जमानत मिल गई है। सीबीआई कोर्ट ने 1 लाख रुपए के मुचलके पर वर्मा को जमानत दी है। जानकारी के अनुसार नियत तिथि पर सीबीआई द्वारा चालान पेश नहीं करने का लाभ देते हुए जमानत दी गई है। सीबीआई कोर्ट के जज शांतनु देशलहरे ने उन्‍हें जमानत दी है। मंत्री की कथित सीडी मामले में विनोद वर्मा को गाजियाबाद से 28 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था। तय नियम के मुताबिक 60 दिन के भीतर चालान पेश किया जाना था लेकिन चालान अभी तक पेश नहीं किया। इसी वजह से जिला एवं सत्र न्यायालय ने बिनोद वर्मा की जमानत की याचिका मंजूर कर ली। आपको बता दें कि इस पूरे मामले में जांच सीबीआई कर रही है। पिछले दिनों ही मंत्री की कथित सीडी के मामले में गिरफ्तार वरिष्‍ठ पत्रकार विनोद वर्मा को सीबीआई ने 12 दिनों की न्यायिक रिमांड पर लिया था। सीबीआई ने 14 दिनों की रिमांड मांगी थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार करते हुए 3 जनवरी तक 12 दिनों की ही रिमांड दी गयी थी। मंत्री राजेश मूणत ने 27 अक्टूबर को रायपुर के सिविल लाइन थाने में विनोद वर्मा व भूपेश बघेल के खिलाफ शिकायत की थी। इसके बाद सरकार ने सीडी की जांच सीबीआई को सौंपने का निर्णय लिया। सरकार के आवेदन के बाद ही सीबीआई ने जांच शुरू की। मंत्री का आरोप है कि भूपेश बघेल व अन्य ने उनके नाम की झूठी सीडी लोगों को बांटी है।  

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Dakhal News 28 December 2017


चैतन्य कीर्ति

चैतन्य कीर्ति  अक्सर कुछ लोग अच्छे विचार को अपनाने से भी परहेज करते नजर आते हैं। उनका मानना है कि यह विचार उनके गुरु का तो नहीं है, उनके धर्म का तो है ही नहीं फिर उसे वे कैसे अपना सकते हैं। कुछ लोग अपने विचारों को दूसरों से छिपाकर रखते हैं और मानते हैं कि इस पर सिर्फ उनका या उनके अनुयायियों का ही अधिकार है। इन दोनों ही तरह के लोगों के लिए एक गुरु और शिष्य संवाद मिसाल हो सकता है। संवाद कुछ इस तरह है। एक बार एक शिष्य ने गुरु से कहा, 'हर दिन आप गूढ़ उद्बोधन देते हैं जो हमारे जीवन को बदलने की क्षमता रखते हैं। क्या अच्छा नही होगा कि हम इन विचारों को पुस्तक रूप में संग्रहित कर लें और उन्हें आने वाली पीढ़ी के लिए किताब रूप में सुरक्षित करें? किताबें आपकी कीर्ति को सदियों तक बनाए रखेंगी और जो पैसा आएगा उसका उपयोग हम आश्रम और अपने रोजमर्रा के खर्च में कर सकते हैं।' गुरु ने कहा, 'हां, इन्हें प्रकाशित करना एक अच्छा विचार है। लेकिन याद रहे कि मेरे उद्बोधन में जो गूढ़ तत्व और तीव्रता है वह मेरी अपनी नहीं है, वह तो दैवीय है जो मेरे जरिए व्यक्त हो रही है। मैं इन उद्बोधनों का श्रेय खुद नहीं लेना चाहता हूं। मैं तो सिर्फ खोखले बांस की तरह हूं और दैवीय गीत मेरे जरिए व्यक्त हो रहा है। जब भी साधु बोलता है तो वह तो केवल माध्यम होता है और उसके लिए दैवीय शक्ति लोगों तक पहुंचती है। बांसुरी अपने आप नहीं गा सकती है। मगर वह धुन को लोगों तक पहुंचाने की शक्ति रखती है। मनुष्य बांसुरी की तरह ही है। पक्षी, वृक्ष, सूर्य और चंद्रमा सबकुछ बांसुरी की तरह ही तो हैं। जो गूढ़ संदेश कृष्ण, बुद्ध, जीसस, मोहम्मद साहब, नानक, कबीर, मीरा और उपनिषद के अज्ञात संतों ने दिया है वह असल में तो दैवीय ही है।' गुरु ने आगे कहा, 'उपनिषद में कितनी गूढ़ बाते हैं लेकिन कितना आश्चर्य कि हम उसके लेखक को नहीं जानते। दैवीय शक्ति अपनी शिक्षा किसी भौतिक लाभ के लिए नहीं साझा करती है, यह सबकुछ नाम और ख्याति के लिए नहीं होता। अगर वे ऐसा करती हैं तो उनकी शिक्षाएं बेकार हो जाएंगी। इन लेखकों के जरिए सत्य प्रवाहित होता है और इससे ज्यादा वे ज्यादा कुछ नहीं सोचते हैं। उनके साथ यह भी जोखिम रहता है कि उन्हें गलत समझ लिया जाए और किसी भी तरह की छेड़छाड़ कर दी जाए लेकिन फिर भी वे कोई समझौता नहीं करते। जीसस को सत्य की राह पर चलने के लिए सूली पर चढ़ा दिया गया। सत्य किसी भी व्यक्ति से संबंधित नहीं है वह तो सार्वभौमिक है।' तब शिष्य ने एक और प्रश्न पूछा, 'प्रिय गुरु, मगर कुछ गुरु चोला ओढ़े हुए होते हैं। ये फर्जी साधु आपके शब्दों को चुरा सकते हैं और लोगों तक पहुंचा सकते हैं। क्या हमें आपके प्रवचनों को कॉपीराइट नहीं करना चाहिए, ताकि कोई उन्हें चुरा न सके?' गुरु ने जवाब दिया, 'सत्य पर सिर्फ मेरा अधिकार नहीं है। मैं सत्य को सिर्फ अपनी बपौती नहीं मान सकता। इस तरह का ज्ञान तो सदियों से ज्ञानी पुरुष देते आए हैं और भविष्य में भी यह व्यक्त किया जाता रहेगा। इसलिए विचारों के कॉपीराइट को लेकर उलझन में मत रहो। इस तरह की चिंता भी मत करो। अगर तुम कुछ करना ही चाहते हो तो इसे बिना किसी चिंता के लोगों के बीच फैलाओ। मैं तुम्हें वही बात कहना चाहूंगा जो जीसस ने अपने शिष्यों से कही थी। उन्होंने कहा था कि छत पर चढ़ जाओ और वहां से जोर से सच बोलो क्योंकि लोगों के कान बहरे हैं। उन्होंने कहा था कि जब तक तुम जोर से नहीं बोलोगे सच सुना नहीं जाएगा। मैं कहता हूं कि सच तो बिना किसी बाधा के लोगों तक पहुंचना चाहिए। इसके लिए सीमा मत बांधो। ज्ञान के प्रकाश को फैलने दो, इसकी सुगंध चारों ओर हो जाने दो। ओशो कहते थे, 'वस्तुओं का कॉपीराइट किया जा सकता है लेकिन विचारों का नहीं और इसलिए ध्यान का कॉपीराइट नहीं किया जा सकता। ये बाजार की चीजें ही नहीं हैं। कोई भी व्यक्ति इन पर अपना एकाधिकार नहीं कर सकता। पश्चिमी देश वस्तु और अनुभव के बीच का फर्क नहीं समझ सकते हैं। हजार वर्षों से पूर्व में ध्यान किया जाता रहा है लेकिन किसी ने भी उसके कॉपीराइट या ट्रेडमार्क की बात नहीं की है।  

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Dakhal News 24 December 2017


ndtv india

एनडीटीवी समूह में जमकर छंटनी की जा रही है. खुद एनडीटीवी ग्रुप ने मुंबई स्टाक एक्सचेंज को सूचित किया है कि वह करीब 25 प्रतिशत स्टाफ में कटौती करने जा रहा है. उधर, एनडीटीवी की एडिटोरियल डायरेक्टर और सीनियर एंकर सोनिया सिंह ने ट्विटर पर कहा है कि एनडीटीवी को सरकारी विज्ञापन नहीं मिल रहा है. पायनियर के पत्रकार जे गोपीकृष्णन ने ट्विटर पर कहा है कि एनडीटीवी में छंटनी के खिलाफ क्या कोई प्रेस क्लब में इकट्ठा होगा? ‘NDTV informs Stock Exchange of terminating 25% of staffers. anybody assembling in Press Clubs to protest?’. एनडीटीवी की पूर्व मैनेजिंग एडिटर बरखा दत्त ने  जे गोपीकृष्णन के ट्वीट का समर्थन करते हुए कहा कि वाकई अब कोई छंटनी के मारे पत्रकारों के समर्थन में प्रेस क्लब से मार्च नहीं निकालेगा. पायनियर के पत्रकार के ट्वीट के जवाब में एनडीटीवी की सोनिया सिंह ने सरकारी विज्ञापन न मिलने वाली बात कही है. ‘Yes they should actually to ask why NDTV isnt getting any 'official' ads. Speaking truth to power has its financial costs & we're paying it’। उधर, बताया जा रहा है कि कई दिनों से हर रोज पचास मीडियाकर्मी की नौकरी एनडीटीवी समूह से जा रही है. कुल तीन सौ लोगों को निकाला गया है या निकाला जाने की प्रक्रिया जारी है. इस बाबत वरिष्ठ पत्रकार शाहिद फरीदी कहते हैं : ''NDTV sacked 50 employees yesterday and will fire another 200 in the next couple of weeks. I hope Press Club managing committee would convene a meeting in support of fired journalists just like it did when the owners of NDTV were raided for alleged financial bungling. It's time to see if the present committee of the Press Club stands as strongly for working journalists as it did with owners of the TV channel.'' सूत्रों का कहना है कि एनडीटीवी वल्ड वाइड की पूरी टीम बाहर कर दी गई है. स्पोट्स डेस्क इंग्लिश से कई लोग बाहर किए गए हैं. अमिताव, अदिति, मधुसूदन आदि छंटनी के दायरे में आए हुए बताए जाते हैं. करीब पंद्रह वीडियो एडिटर्स की नौकरी गई है. एनडीटीवी इंडिया से भी ढेर सारे लोग निकाले गए हैं. [साभार भड़ास फॉर मीडिया ]    

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Dakhal News 21 December 2017


रवि जैन

  सागर में मोती नगर वार्ड निवासी रवि जैन को मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना ने सफल उद्यमी बना दिया है। इनके सामान्य परिवार का गुजारा फोटो फ्रेमिंग के परिवारिक व्यवसाय से ही अभी तक चलता रहा है। अब रवि उन्नत तकनीक से फोटो फ्रेमिंग करते हैं। इससे अच्छी आमदनी होने लगी है, परिवार की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है, बाजार में रवि की साख भी बढ़ी है।  रवि कुछ समय पहले तक अपने इस परिवारिक व्यवसाय को उन्नत तकनीक एवं नए उपकरणों की सहायता से आगे बढ़ाकर जिला एवं प्रदेश स्तर तक पहुँचाना चाहते थे। आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह यह सब कर पाएँ। इसी दौरान उन्हें अखबार एवं रेड़ियो के माध्यम से मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना के बारे पता चला। योजना की सम्पूर्ण जानकारी लेकर रवि ने तुरन्त इस योजना में पंजीयन करवाकर बैंक को ऋण के लिये आवेदन दिया। रवि जैन को व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए बैंक ने 99 लाख 37 हजार का रूपये का ऋण मिला। इसके साथ-साथ उन्हें सरकार द्वारा मार्जिन मनी की सहायता एवं ब्याज में अनुदान भी मिला। रवि जैन ने योजना में मिली सहायता से नए उपकरण खरीदे और उन्नत तकनीक का प्रयोग कर अपने व्यवसाय का विस्तार किया। आज रवि का कारोबार राज्य स्तरीय हो गया है। कारोबार इतना बढ़ गया है कि अन्य 5 लोगों को भी नियमित रोजगार पर रख लिया है। अब रवि अन्य लोगों को भी मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना का लाभ लेने के लिये प्रेरित कर रहे हैं।  

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Dakhal News 21 December 2017


जयपुर से आईबीए न्यूज़ चैनल

  जयपुर से आईबीए न्यूज़ चैनल  लांच होने जा रहा हैं | इस चैनल को ढेर सारे स्टॉफ की जरूरत है |  आईबीए को आउटपुट और इनपुट असाइनमेंट में ट्रेनी, असिस्टेंट प्रोड्यूसर, एसोसिएट प्रोड्यूसर, प्रोड्यूसर, सीनियर प्रोड्यूसर (जयपुर के लिए) 38 पद ,आई.टी. (जयपुर के लिए) 6 पद, ग्राफ़िक्स एडिटर (जयपुर के लिए) 6 पद,पैनल, एमसीआर, पीसीआर में काम करने वाले स्टॉफ (जयपुर के लिए), वीडियो एडिटर (जयपुर के लिए) 8 पद,एंकर,दिल्ली में रिपोर्टर, कैमरामैन |  जो लोग इन पदों के लिए आवेदन करना चाहते हैं, वो ibanewschannel@gmail.com पर CV  भेज सकते हैं।  

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Dakhal News 14 December 2017


वीरम टीवी

सैटेलाइट हिंदी न्यूज चैनल 'वीरम टीवी न्यूज 24×7' को नोएडा ऑफिस के लिए विभिन्न पदों पर अनुभवी युवक-युवतियों की शीघ्र आवयश्कता है |  चैनल में  मैनेजर 1 पोस्ट,संपादक न्यूज़ 2 पोस्ट, न्यूज़ एडिटर 6 पद , प्रोड्यूसर  6 पद ,वीडियो एडिटर 6 पद ,ग्राफिक्स एडिटर 6 पद , न्यूज़ एंकर  4 पद कम्प्यूटर ऑपरेटर 20 पद,कैमरामेन 5 पोस्ट,रिपोर्टर 5 पोस्ट,मार्केटिंग हेड 2 पोस्ट,आईटी 4 पोस्ट |  इंटर्नशिप से जुड़ने के लिए भी युवक युवतियां संपर्क कर सकते हैं... पूर्ण विवरण फ़ोटो सहित इस ईमेल पर बायोडाटा भेजें... सब्जेक्ट लाइन में पद का नाम जरूर लिखें... ईमेल पता Viramtvnews@gmail.com है |   

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Dakhal News 14 December 2017


नईदुनिया

  मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 'नईदुनिया संसदीय सम्मान' 2017 समारोह में प्रदेश के 10 विधायकों (महिला और पुरुष) को सम्मानित किया गया। नईदुनिया द्वारा स्थापित यह पुरस्कार उन विधायकों को दिया जाता है जिनका विधानसभा में प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहता है। जिन विधायकों को सम्मानित किया गया है, उनमें शामिल हैं - डॉ. गोविंद सिंह (कांग्रेस), ऊषा चौधरी (बसपा), यशपाल सिंह सिसोदिया (भाजपा), शीला त्यागी (बसपा), मुरलीधर पाटीदार (भाजपा), ममता मीना (भाजपा), सुखेंद्र सिंह (कांग्रेस) और हिना कावरे (कांग्रेस)। वित्त और वाणिज्यिक कर मंत्री जयंत मलैया को समारोह में उत्कृष्‍ट मंत्री का सम्मान मिला। संसदीय परंपराओं के बेहतर निर्वहन और सवालों के संतोषजनक उत्तर श्रेणी में उनका चयन किया गया। विधानसभा के मानसरोवर सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान थे। वहीं अध्यक्षता विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा ने की। विधानसभा उपाध्यक्ष डॉ. राजेंद्र कुमार सिंह कार्यक्रम के विशेष अतिथि रहे। आरंभ में नईदुनिया परिवार के सदस्यों ने अतिथियों का स्‍वागत किया। एक बड़ी स्‍क्रीन पर नईदुनिया, नवदुनिया के सामाजिक सरोकारों को प्रदर्शित किया गया। अपने संबोधन में दैनिक जागरण समूह के सीईओ व प्रधान संपादक संजय गुप्त ने कहा कि वे चाहेंगे कि अन्‍य प्रदेशों और संसद में भी उनके साथी यह कार्य आरंभ करें जो प्रेरणा बने। उन्होंने कहा कि पत्रकार होने के नाते हमने संसदीय सम्मान का बीड़ा उठाया है। अतिथियों के स्वागत की रस्म के बाद चुन गए सर्वश्रेष्‍ठ विधायकों को सम्‍मानित किया गया। मप्र विधानसभा के उपाध्यक्ष डॉ. राजेंद्र कुमार सिंह ने नईदुनिया/नवदुनिया परिवार को आयोजन के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम कहते थे, हमें सपने देखना चाहिए। आप बड़े सपने देखेंगे तो ही आगे बढ़ेंगे। डॉ. कलाम को हमने बुलाया था। उनका सम्मान किया था। हम सब उनसे बड़े प्रभावित हुए थे। उन्होंने कहा कि सदन में उपस्थिति रहती है तो इसका सार्थक नतीजा निकलता है। जो चार महिलाएं श्रेष्ठ चुनी गई हैं, वे किसी भी विषय पर बोलने में सक्षम हैं। श्री सिंह ने कहा कि गोविंद सिंह जी काफी अनुभवी हैं। हम उन्हें ऑलराउंडर करते हैं। जहां कमी पड़े, वहां हम बल्लेबाजी करने भेज देते हैं। कई बार उनके तेवर बहुत तीखे होते हैं। श्रेष्ठ चुने गए विधायकों को भी उन्‍होंने बधाई देते हुए कहा कि जयंत मलैया बड़े ही सहज व्यक्ति हैं। लांजी विधायक हिना कावरे जब मंच पर आई तो सीएम ने कहा बहुत-बहुत बधाई बेटी। हिना के प्रभावी भाषण देने की काबिलियत की भी मंच से तारीफ की गई। हमारी तीन बहनों और एक बेटी को सम्मान मिला है। ये भी बधाई के पात्र हैं। उन्‍होंने कहा कि गोविंद सिंह जी सिर्फ सच बोलते हैं। मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि जयंत भाई के हाथ में खजाना सुरक्षित है। नईदुनिया में स्वस्थ परंपरा सीएम ने कहा कि नईदुनिया में स्वस्थ परंपरा है। मुमकिन है आपने दिखाया। दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं। जनप्रतिनिधियों के सामने अपेक्षाओं का अथाह सागर होता है। बहुत उम्मीदें हैं। ऐसे में आपने सम्मानित करके मनोबल बढ़ाया है। इसके लिए नईदुनिया परिवार का धन्यवाद। उन्होंने कहा कि यह हम सब का सम्मान है। मैं उनका अभिनंदन करता हूं। अच्छे काम का सम्मान होने ही चाहिए। इन्होंने एक बड़ी लकीर खींची है। अपराधों के खिलाफ सामाजिक आंदोलन चले और इसमें नईदुनिया जैसे मीडिया संस्थान अहम भूमिका निभा सकते हैं। आभार प्रदर्शन नईदुनिया के वॉइस प्रेसीडेंट संजय शुक्ला ने किया। गुढ़ के विधायक सुंदरलाल तिवारी कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो सके। विधायकों का चयन विधानसभा सचिवालय द्वारा तैयार रिकॉर्ड के आधार पर ज्यूरी ने किया है। ज्यूरी ने उन विधायकों को चुना है जिन्होंने प्रश्न, ध्यानाकर्षण सूचना, विधेयक चर्चा और उपस्थिति में सर्वाधिक भागीदारी की है। संसदीय सम्मान समारोह का यह निरंतर दूसरा वर्ष है। ज्यूरी ने तय किए नाम विधानसभा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले विधायकों का चयन करने के लिए नईदुनिया ने वरिष्ठ नेताओं और संसदीय विशेषज्ञों की ज्यूरी बनाई थी।इनमें पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, पूर्व मंत्री चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी, पूर्व मंत्री नरेंद्र नाहटा, पूर्व विधायक शैलेंद्र प्रधान और विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव भगवानदेव ईसराणी शामिल थे।  

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Dakhal News 5 December 2017


CM शिवराज सिंह

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित 'नईदुनिया संसदीय सम्मान' 2017 समारोह में प्रदेश के श्रेष्ठ 10 विधायकों को सम्मानित किया गया। विधानसभा के मानसरोवर सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रहे। मुख्यमंत्री ने इस मौके पर कहा कि, राजनीति तोड़ती है, लेकिन नईदुनिया ने जोड़ दिया। उन्होंने सम्मानित विधायकों को बधाई देते हुए कहा, यह हम सब का सम्मान है। मैं अभिनंदन करता हूं। अच्छे काम का सम्मान होना ही चाहिए। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह ने कहा मैं बधाई देना चाहता हूं सम्‍मानित मित्रों को।जयंत मलैया जी खजाने को संभालने की कोशिश करते हैं लेकिन हम भावांतर जैसी योजना ले आते हैं तो एक झटके में 4 हजार करोड़ खजाने से निकल जाते हैं। लेकिन मैं आश्‍वस्‍त रहता हूं कि जयंत भाई के हाथ में प्रदेश का खजाना सुरक्षित है।हमारे सारे साथी गण बड़ी कुशलता से अपने कार्य को अंजाम देते हैं। डाॅ गोविंद सिंह जी जो सच होता है वही बोलते हैं, बाकी लोग तो सीआर खराब होने के डर से बोलते नहीं हैं।भाई यशपाल जी जब जरूरत पड़ती है तो हमेशा याद आते हैं। हमारी बहनें भी सम्‍मानित हुईं हैं। विधानसभा लोकतंत्र का मंदिर है | राजनीतिक विचारधाराएं अलग हो सकती हैं, लेकिन संजय जी (जागरण समूह के प्रधान संपादक) आपको धन्‍यवाद देना चाहूंगा कि आजकल हमारा मिलना-जुलना कम हो गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि राजनीति तोड़ती है और नईदुनिया ने आज सबको जोड़ दिया। डॉक्‍टर साहब थोड़ा शरमा रहे थे कि गले लगें या नहीं, लेकिन आखिर गले लग ही गए।आजकल प्रिंट मीडिया और इलेक्‍ट्रानिक मीडिया अक्‍सर दिखाता रहता है कि माननीय ने ऐसा कर दिया, वैसा कर दिया। माननीय शब्‍द एक व्‍यंग्‍य हो गया है।लेकिन यदि आप दिनचर्या देखें। सुबह से लेकर देर रात तक काम में व्‍यस्‍त रहते हैं।आज सुबह सात बजे टेलीफोन पर मैंने बात करना शुरू की। सुबह 10 बजे पहली मीटिंग की। उसके बाद 15-20 विधायक साथियों से चर्चा की। उसके बाद वाइल्‍ड लाइफ बोर्ड की बैठक, नर्मदा संघ की बैठक। वहां से निपटे तो पुलिस स्‍पोर्टस के कार्यक्रम में पहुंचे। उसके बाद खिलाडि़यों को पुरस्‍कृत करके आए। वहां से समाधान ऑनलाइन कार्यक्रम में कुछ को सस्‍पेंड कर आए। और यहां आकर अब पुरस्‍कार दे रहे हैं। अभी रात में मैं एक मीटिंग करूंगा जिसमें फूलों की स्थिति पर बात करना है कि कितने आ रहे हैं, जा रहे हैं। गोपालन का काम भी देखना है। ये मेरी कहानी नहीं है। हर विधायक की, सांसद की, निर्वाचित जनप्रतिनिधि की यही कहानी है। सुबह से लेकर देर रात तक वे व्‍यस्‍त रहते हैं। घनघोर परिश्रम करते हैं।  

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Dakhal News 5 December 2017


पद्मावती

  देशभर में पद्मावती को लेकर विरोध प्रदर्शनजारी हैं और वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर दखल से इन्कार किया है। सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म की रिलीज रोकने के लिए लगी याचिका पर सुनवाई करते हुए इस खारिज कर दिया है। अदालत ने इसके साथ ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों जैसे जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों द्वारा फिल्म को लेकर दिए बयानों पर भी नाराजगी जताई है। कोर्ट में निर्माता की तरफ से कहा गया कि सेंसर बोर्ड के प्रमाणपत्र के बाद ही फिल्म रिलीज होगी। अदालत ने कहा कि बिना फिल्म देखे जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग आखिर कैसे इसे लेकर बयान दे सकते हैं। अदालत ने सभी जिम्मेदार लोगों से कहा कि वो फिल्म को लेकर बयानबाजी बंद करे क्योंकि इससे सेंसर बोर्ड के दिमाग में पक्षपात पैदा होगा। जब तक मामला सेंसर बोर्ड के पास लंबित हो तब तक ऐसे मामलों में टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।  आपको बता दें कि वकील मनोहर लाल शर्मा ने फिल्म पद्मावती की रिलीज पर रोक लगाने के लिए एक याचिका दायर की थी। गौरतलब है कि करणी सेना और राजपूत समुदाय 'पद्मावती' पर बैन की मांग लगातार कर रहे हैं। कुछ सींस को लेकर उन्हें आपत्ति है। राजपूत समुदाय के प्रतिनिधियों को लगता है कि उन दृश्यों की वजह से रानी पद्मावती की तौहीन हो जाएगी। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले भंसाली ने कुछ पत्रकारों को भी फिल्म दिखायी थी, जिसके बाद उन्होंने फिल्म के पक्ष में अपनी प्रतिक्रिया दी थी।  

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Dakhal News 28 November 2017


राकेश पाठक

  ग्वालियर के कवि और वरिष्ठ पत्रकार डॉ राकेश पाठक को  प्रतिष्ठित "हेमंत स्मृति कविता सम्मान" देने  की घोषणा की गई है। हेमंत फाउंडेशन द्वारा स्थापित यह सम्मान उनके कविता संग्रह " बसंत के पहले दिन से पहले" (दख़ल प्रकाशन से प्रकाशित )के लिए दिया जा रहा है। पुरस्कार समिति के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार भारत भारद्वाज ने यह घोषणा की। राकेश जी खामोशी से लेखन करने वाले सशक्त हस्ताक्षर हैं जिनकी कविताओं में शब्द सीमित और भाव असीमित होते हैं। ग्वालियर (मप्र) निवासी डॉ पाठक वरिष्ठ पत्रकार हैं और 'नईदुनिया' , 'नवभारत,' 'नवप्रभात', 'प्रदेश टुडे 'जैसे अखबारों के संपादक और न्यूज़ पोर्टल 'डेटलाइन इंडिया' के प्रधान संपादक रहे हैं। उनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं। हेमंत फाउंडेशन की अध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव व सचिव डॉ प्रमिला वर्मा ने बताया कि डॉ राकेश पाठक को यह सम्मान जनवरी 2018 में मुम्बई में आयोजित समारोह में प्रदान किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि डॉ पाठक से पहले  राष्ट्रीय स्तर का यह सम्मान बोधिसत्व, संजय कुंदन,वाज़दा खान,आलोक श्रीवास्तव,हरि मृदुल,लीना मल्होत्रा, एकांत श्रीवास्तव,हरे प्रकाश उपाध्याय, यतीन्द्र मिश्र, कृष्णमोहन झा, रीता दास राम आदि को मिल चुका है।

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Dakhal News 11 November 2017


आजतक पहुंचे रोहित सरदाना

 जी न्यूज से इस्तीफा दे चुके पत्रकार रोहित सरदाना आजतक चैनल से जुड़ गए हैं. वे आजतक पर भी शाम 5 बजे के स्लॉट देखेंगे. रोहित के लिए 'आजतक' पर शाम पांच बजे का नया शो शुरू किया जा रहा है, ''दंगल : बहस का राजनीतिक अखाड़ा'' नाम से.  रोहित सरदाना जी न्यूज में सीनियर एंकर के साथ-साथ आउटपुट एडिटर भी हुआ करते थे. वे करीब दस साल से जी ग्रुप के साथ थे. उनका जी न्यूज में ‘ताल ठोक के’ डिबेट शो काफी चर्चित था और टीआरपी में नंबर वन था जिसके कारण आजतक प्रबंधन को रोहित को अपने यहां ज्वाइन कराने को मजबूर होना पड़ा. रोहित ईटीवी, सहारा समय में भी काम कर चुके हैं. उधर, खबर है कि अम्बुजेश कुमार ने एबीपी न्यूज ज्वाइन किया है.

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Dakhal News 11 November 2017


जयराम शुक्ल

  जयराम शुक्ल सोशल मीडिया में जीएसटी के रोलबैक को लेकर मचे शोर की तस्दीक करने के लिए सोचा, कि चलो देखें टीवी चैनल्स में क्या चल रहा है। पिछले एक महीने से राम रहीम की वही एनीमेटेड रहस्यमयी गुफा देखते देखते उकता सा गया था सो कई दिनों से चैनल्स खोलने की हिम्मत ही नहीं हुई। बहरहाल टीवी खोलते ही  चैनलों में  फिर वही बकवास चल रहा था, एक में किंमजोंग, दूसरे में रामरहीम की हनीप्रीत..हनीप्रीत। रात दस बजे का प्राइम टाइम इन्हीं के नाम था। कुछेक अँग्रजी चैनल जरूर इकोनामिस्टों को बैठाकर जीएसटी पर बहस चला रहे थे। अँग्रेजी समझने में वैसे भी दिमाग में अतिरिक्त जोर देना पड़ता है ऊपर से भभकती हुई लपटों वाले टीवी स्क्रीन से सिर्फ चीख और चिल्लाहट सिवाए कुछ भी सुनाई नहीं देता।  हमारा मीडिया भेड़ियाधसान है। जिधर एक भेड़ चली उधर ही सब निकल पड़ी। अर्नब ने जबसे ..नेशन वान्ट टु नो...की चिल्लपों शुरू की तब से सभी चैनल देशवासियों की जिग्यासा के स्वयंभू ठेकेदार बने हुए हैं। चैनलों ने भी एक दूसरे की देखा देखी एक अजीब सा तिलस्म रच रखा है। पढे लिखे एंकर भी उसीमें उलझे हैं,कई प्रिंट मीडिया से गए वे भी। जब वे अखबारों में तब अच्छी खासी विवेकसम्मत बातें लिख लिया करते थे। वही लोग जब किमजोंग की सनक और हनीप्रीत की रंगीन दुनिया को चटखारे के साथ परोसते हैं तो निरा जोकर लगते हैं। किमजोंग से पहले बगदादी का बुखार चढा़ था।.. बच के कहां जाएगा बगदादी.. जैसी पंच लाइनों के साथ सभी चैनल एकजुट होकर पिले थे फिर भी वो बचा हुआ है। इन दिनों किमजोंग के आगे बगदादी भूला हुआ है। उत्तर कोरिया के इस तानाशाह को लेकर जो फुटेज दिखाए जाते हैं,सभी चैनलों में लगभग एक से। तो क्या किमजोंग इन्हें यह उपलब्ध कराया है या अपने चैनलिया वीरबहादुर जान जोखिम में डालकर प्योंगयांग से शूट करके लाए हैं ? उत्तर कोरिया क्या तबाही मचाना चाहता है उसके पूरी कहानी और फुटेज की पटकथा कहीं और लिखी जाती है। किमजोंग सनकी है ये हम खुद नहीं चूंकि हमें  बार बार यही बताया जा रहा है इसलिए मान बैठे हैं कि सनकी ही होगा। क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि उत्तर कोरिया व किमजोंग को लेकर लगभग वही सब दोहराया जा रहा है जो कभी ईराक और सद्दाम को लेकर, लीबिया और गद्दाफी के साथ किया गया था। दरअसल यह किसी देश के खिलाफ युद्ध पूर्व प्रपोगंडा होता है ताकि उसपर हमले के लिए विश्व जनमत तैयार किया जा सके। दुनिया की नब्बे फीसदी सूचनाओं पर एसोशियेटड प्रेस आफ अमेरिका(एपी), रायटर ब्रिटेनऔर एएफपी फ्रांस का कब्जा है। ये तीनों मिलकर किसी भी देश या व्यक्ति की छवि को पलभर में नरकिस्तान और राक्षस गढ सकते हैं। शेष दुनिया की सभी मीडिया एजेंसियों से इनका अनुबंध होता है। इसी नियंत्रण को तोड़ने के लिए अरब में ..अलजजीरा.. पैदा हुआ था लेकिन अब उसे भी बधिया बना दिया गया। ताकतवर देशों के इस हेट मीडिया मिशन से क्यूबा के फिदेल कास्त्रो और लीबिया के ह्यूगोसावेज इसलिए बचे रहे क्योंकि ये गद्दाफी और सद्दाम की भाँति आत्ममुग्ध व स्वेच्छाचारी नहीं थे और देश की जनता की नब्ज इनके हाथ थी और दुनिया भर में अपने शुभचिंतक बना रखे थे। याद करिए 1982 में नई दिल्ली में हुए गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सम्मेलन के अगले वर्ष यहीं तीसरी दुनिया के मीडिया का सम्मेलन हुआ था। इसे ..नामीडिया.. के नाम से जाना गया। इस सम्मेलन में ये बात किसी पंच लाइन की तरह उभरकर आई थी कि ...अमेरिका के एटमबम्ब से ज्यादा खतरनाक है एपी और रायटर। शायद यह किसी अखबार की  हेडलाइन ही थी। उस वक्त मैं पत्रकारिता का विद्यार्थी था सो इस वैश्विक मीडिया सम्मेलन की खबरों की क्लिपिंग सालों तक मेरे संदर्भ में रही है। सम्मेलन में दूसरी बड़़ी बात जो निकल कर आई थी वो ये थी कि सूचनाओं के अधिनायकवाद से कैसे मुक्त हुआ जाए? एक सहमति बनी थी कि तीसरी दुनिया की मीडिया एजेंसियों का परिसंघ बने जो गुटनिरपेक्ष देशों के हितों की रक्षा कर सके। दुर्भाग्य से 1984 में तीसरे विश्व की नेता इंदिरा जी इस दुनिया में रही नहीं। गुटनिर्पेक्ष आंदोलन बिखरने लगा, रही सही कसर 1989 में सोवियत विघटन ने पूरी कर दी। और तब से दुनिया एकध्रुवीय व्यवस्था के आधीन है, जिसका स्वयंभू  चौधरी अमेरिका है। अब अमेरिका जो चाहता है भारत जैसे देशों का मीडिया वही दिखाता है क्यों कि वैश्विक मामलों में हमारा मीडिया कंगाल है। वे हमारे मीडिया को एक प्रपोगंडा मशीन की भांँति उपयोग करते हैं, हो सकता है इसके लिये वे पैसा भी देते हों। इराक युद्ध कवर करने गए एक पत्रकार ने पोल खोली थी कि किस तरह विदेशी मीडिया को युद्ध क्षेत्र से सैकडों किलोमीटर दूर किसी शहर के आलीशान होटलों में ठहराया जाता था। शाम को एक सैन्य अधिकारी फुटेज और ब्रीफिंग थमा देता था। वही सब चैनल्स देश को दिखाते थे और अब भी वही कर रहे हैं। दरअसल अमेरिका का मुख्य धंधा हथियारों का है। सो यदि युद्ध नहीं हुए, युद्ध का भय नहीं बना तो उसका बाजार धड़ाम से गिरकर दीवालिया हो जाएगा। गौर करिए कि क्या ऐसा कोई भी दिन,महीना या हफ्ता गुजरा है जब दुनिया के किसी कोने में युद्ध न हो रहा हो। रही आतंकवादियों की बात तो पिछले दिनों यूएनओ में पाकिस्तान के प्रतिनिधि ने यह कहकर आईना दिखा दिया कि कभी वो भी दिन थे जब ह्वाइट हाउस हाफिज सईद जैसे लोगों के लिए रेड कारपेट बिछाए रहता था। ये उस दौर की बात है जब अफगानिस्तान में सोवियत पालित सरकार थी और अमेरिका तालेबान और अलकायदा जैसे संगठनों को खड़ा करने की भूमिका में था। सो युद्ध के बाजार के लिए जरूरी है कि माहौल बना रहे, चाहे वह उत्तर कोरिया के किमजोंग के जरिए बने या आतंकवादी संगठनों के। जापान और दक्षिण कोरिया एशिया के ये दो सबसे बड़े सेठों में हैं,जब ये डरे रहेंगे तभी तक अमरीकी जंगीबाजार गुलजार रहेगा। इस फेर में गरीब भारत और पाकिस्तान भी फँसे हैं, जो शिक्षा और स्वास्थ के बजट मदों की कटौती करके रक्षा बजट बढाते जा रहे हैं। चैनलों के एंकर अब सेलिब्रिटी हैं जाहिर है मैं उनके मुकाबले जाहिल हूँ। वे इंडिया इंटरनेशनल, कांस्टीट्यूशन क्लब की बौद्धिक बैठकों गप्पे मारते हैं।लेकिन यही लोग जब डिजाइन सूट पर टाई बाँधे जोकरों जैसी हरकत करते हुए बेसिरपैर की वही-वही खबरें परोसते हैं तो इनकी नियति पर तरस आता है। अपना मीडिया या तो किसी वैश्विक ताकत की प्रपोगंडा मशीन है या फिर किसी की इज्जत की धज्जियाँ बिखेरने वाला परपीडक यंत्र। हनीप्रीत के साथ यही हो रहा है। अदालत से पहले ही सब ट्रायल में लगे हैं। अपने अपने तईं फैसला भी सुना रहे हैं। मीडिया एक महिला के इज्ज़त की चिंदियां बिखेर रहा है, हम देख रहे हैं। पूरा मीडिया उस डरी हुई लड़की के मुँह से कहवाना चाहता है कि ..कह.. तू अपने बाप की रखैल थी..। मुँह ढंके आयटमों से हनीप्रीत का रहस्य, रोमांच व प्रेमकथाएँ उगलवाई जा रही हैं। ये सब मीडियाकी फ्राडगीरी का हिस्सा है जो महज टीआरपी के लिए चल  रहा है। यदि हनीप्रीत अदालत से बरी होती है तो क्या उसके इज्जत की धज्जियों का शाल बुनकर ये चैनल वाले उसकी इज्जत लौटा पाएंगे ? ये निहायत गलत हो रहा है। महिला अधिकार की लड़ाई लड़ने वाली वो बाबकटें कहां हैं..? क्या उन्हें ये सब नहीं दिख रहा कि टीवी स्क्रीन पर एक पथ से भटकी हुई हिरण को शिकारी कुत्तों की तरह नोंचा जा रहा है। याद रखिये आज जो हम कर रहे हैं प्रकारान्तर में अपने भविष्य का ही इंतजाम कर रहे हैं।[लेखक पत्रकार जयराम शुक्ल की वॉल से उनसे  8225812813 पर संपर्क किया जा सकता है ]

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Dakhal News 11 October 2017


rajdhani patrkar

मुख्यमंत्री चौहान द्वारा “प्रेस एन्क्लेव” के प्रवेश द्वार का लोकार्पण भोपाल में मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी संस्था मर्या. की भूमि को फ्री-होल्ड करने का विचार किया जाएगा ताकि सदस्य आवास निर्माण के लिये आसानी से बैंक लोन ले सकें। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रानिक और फोटो पत्रकारिता में सक्रिय सदस्यों के लिये आवासीय सुविधा उपलब्ध कराने पर विचार किया जाएगा। मुख्यमंत्री आज यहां आवासीय कालोनी “प्रेस एन्क्लेव” के कार्यालय एवं प्रवेश द्वार के लोकार्पण समारोह को संबोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि पत्रकार विपरीत परिस्थितियों में भी काम करते हैं और समाज को सूचना संपन्न बनाते हैं। उन्होंने कहा कि श्रमजीवी पत्रकारों के लिये आवास एक आधारभूत सुविधा है। राज्य सरकार इसमें हर प्रकार से सहयोग करेगी। सहकारिता राज्य मंत्री श्री विश्वास सारंग ने कहा कि प्रजातंत्र के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता से जुड़े लोगों को मजबूत बनाने की दिशा में आवासीय कालोनी का निर्माण मील का पत्थर साबित होगा। सांसद श्री आलोक संजर ने पत्रकारों के लिये श्रद्धानिधि स्थापित करने जैसे प्रयासों के लिये मुख्यमंत्री श्री चौहान की सराहना की। संस्था के अध्यक्ष श्री के.डी. शर्मा ने अतिथियों का स्वागत किया। उपाध्यक्ष श्री वीरेन्द्र सिन्हा ने मुख्यमंत्री को कालोनी की समस्याओं से संबंधित ज्ञापन सौंपा। सेंट्रल प्रेस क्लब के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और संस्था के संस्थापक संचालक श्री विजयदास ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस अवसर पर प्रमुख सचिव जनसंपर्क श्री एस.के. मिश्रा, आयुक्त जनसम्‍पर्क श्री अनुपम राजन एवं बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी एवं संस्था के सदस्य उपस्थित थे।  

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Dakhal News 25 September 2017


 कड़वे वचन  का विमोचन

      भोपाल  में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज यहां अपने निवास पर मुनि श्री तरूण सागर महाराज की पुस्तक 'कड़वे वचन भाग -9' का विमोचन किया।  इस अवसर पर जैन समाज के प्रतिनिधि उपस्थित थे।  

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Dakhal News 23 September 2017


इण्डिया टीवी  अंजुम

सभी छोटे बड़े मसले पर तड़ाक तपाक टिप्पणी करने वाले अजीत अंजुम अपने इस्तीफे जैसे बड़े घटनाक्रम पर लंबी चुप्पी साध गए. उनकी कोशिश थी कि इंडिया टीवी से हटाए जाने की सूचना ज्यादा चर्चा में न आए क्योंकि इससे संपादक का मार्केट डाउन होता है, सो वह अपनी विदाई के मसले पर मुंह सिए रहे. पर अब उन्होंने धीरे से अपने एफबी एकाउंट में खुद को इंडिया टीवी का पूर्व मैनेजिंग एडिटर घोषित कर दिया है. इस तरह अजीत अंजुम के इंडिया टीवी से विदा होने को लेकर कायम सस्पेंस खत्म हो गया है और भड़ास पर प्रकाशित खबर सही साबित हुई. सबसे अच्छी बात ये हुई है कि सभी टीवी संपादकों ने मिलकर अपने बेरोजगार साथी अजीत अंजुम को ब्राडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन का जनरल सेक्रेट्री बनाकर एक नया काम सौंप दिया है ताकि उनकी सक्रियता बनी रहे और वे बेरोजगारी जैसा कुछ फील न कर सकें. पर अजीत अंजुम प्रतिभाशाली पत्रकार हैं और ढेर सारे संबंधों-संपर्कों के धनी हैं, इसलिए वे बहुत दिन तक घर न बैठेंगे. जल्द ही वे नई पारी शुरू करने का धमाका कर सकते हैं. कुछ और नहीं तो स्टार वाले उदय शंकर ही कोई न कोई प्रोजेक्ट दे देंगे ताकि रोजी रोटी चलती रहे. दरअसल न्यूज चैनल्स के बड़े लोगों यानि संपादकों / प्रबंधकों में आपस में खूब एकता होती है. ये एक दूसरे की जमकर तारीफ करते रहते हैं और एक दूसरे के बुरे वक्त में आड़ ढाल बनकर मदद करने को तैयार रहते हैं, हां इसके चलते मालिकों को भले ही ठीकठाक चून लग जाए. इनकी ये एकता एक तरह से हिंदी टीवी पत्रकारिता का दुर्भाग्य भी है जिसके चलते अच्छे भले प्रतिभावान पत्रकार कई बार इस संपादकों के रैकेट का कोपभाजन बन जाते हैं और अपने ठीकठाक करियर को बर्बाद कर बैठते हैं. जो लोग इस रैकेट को सलाम नमस्ते करते हुए 'यस सर यस सर' ठोंकते रहते हैं वह खूब तरक्की करते हैं. न्यूज चैनल्स के संपादकों पर 'तेरा आदमी मेरा आदमी' करने का गंभीर आरोप लगता रहा है लेकिन यही संपादक लोग पब्लिक डोमेन में किसी भी किस्म के डिसक्रिमिनेशन की मुखालफत करते पाए जाते हैं.[भड़ास फॉर मीडिया से साभार ]    

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Dakhal News 18 September 2017


पत्रकार भवन में दी श्रध्दांजलि

  भोपाल के प्रखर और प्रतिष्ठित पत्रकार महेश बागी के असमयिक निधन पर मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के तत्वावधान में पत्रकार भवन में एक शोक सभा रखी गई। जिसमें महेश बागी के साथ काम कर चुके और उनके अधीनस्थ रहे पत्रकारों के साथ शहर के कई पत्रकार उपस्थित रहे। इस अवसर पर उपस्थित पत्रकारों ने स्व. बागी के साथ बिताए गए समय के संदर्भ में अपने अनुभव साझा किए तथा स्व.बागी की विशेषताओं को विशेषरूप से रेखांकित किया। श्रद्धांजली कार्यक्रम में पत्रकार साथी सर्वश्री नीवन आनंद जोशी, गणेश पांडे, भगवान उपाध्याय, संजय शर्मा, शब्बीर कादरी, अनुराधा त्रिवेदी, शिशुपाल सिंह तोमर, दिलीप भदौरिया, अरशद अली खान, उदय मौर्या, दिनेश निगम, डा. राज, राजेन्द्र जैन, आलोक गुप्ता,प्रेम कुशवाह,रामानंद दिवेदी, जतिन मिंडोरे, दया प्रसाद, रमेश निगम, बलभद्र मिश्रा, उमाशरण श्रीवास्तव, महफूज अली, अनिल श्रीवास्तव, सरल भदौरिया, राजेन्द्र महेश्वरी,मोहम्मद इकराम और उज्जैन से उपस्थित हुए अनन्य साथियों में से सर्वश्री प्रकाश दिवेदी , प्रशांत अनजाना, ललित जैन, संजय कुंडल उन्हेल और राजधानी में कार्यरत साथी विनोद उपाध्याय विशेषरूप से उपस्थित थे।

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Dakhal News 14 September 2017


अरशद अली खान

भोपाल में शनिवार को पत्रकार महेश बागी का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।    अरशद अली खान मैं समझता हूं कि पत्रकारिता में सीधे दखल रखने वाला कोई भी ऐसा पत्रकार नहीं होगा जो महेश बाग़ी के तेवरों से वाक़िफ़ ना हो.... उनके लेखन में पत्रकारिता की उस आबरु की झलक दिखती थी, जिसका पत्रकारिता के मंचों और नारों में सिर्फ ज़िक्र होता है....और जिसकी अपेक्षा समाज एक पत्रकार से करता है... महेश बागी ने लगभग सभी बड़े बैनरों में काम किया लेकिन अपनी फक्कड़ मिज़ाजी और स्वाभिमान की क़ीमत पर वो कहीं टिक नहीं पाए.... मैं उन खुशनसीब लोगों में से हूं जिसे महेश बाग़ी जैसे बहुत ईमानदार और शानदार पत्रकार का साथ मिला.... महेश बाग़ी का साथ पाकर में अपने आप को गौरांवित महसूस करता रहा....बल्कि यूं कहें कि मुझे इस बात का घमंड था कि महेश बाग़ी जैसा नेक दिल पत्रकार मेरा दोस्त है....   महेश बाग़ी ने कभी अपने उसूलों से समझोता नहीं किया.... यही वजह है कि आज वो मुफलिसी की हालत में हमारा साथ छोड़ गए....आज उनके परिवार को सहयोग की सख्त ज़रुरत होगी... वो चाहते तो और लोगों की तरह पत्रकारिता को प्रोफेशन के तोर पर कर सकते थे, लेकिन उनहोंने पत्रकारिता मिशन के रूप में की....जिसका खामियाज़ा अब उनके परिवार को भोगना होगा.... मुझे इस बात का हमेशा अफ़सोस रहेगा कि जो साथी पत्रकारों पर कॉलम लिखते हैं उनकी नज़र इस हुनर बाज़ पर नहीं पड़ी... शायद इसलिए कि वह केवल बड़े बैनर में काम करने वालों को ही महत्व देते हैं.... जैसा नाम वैसा काम.... ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है... भाषा - शैली पर ऐसी पकड़ थी कि जवाब नहीं.... मैं दावे के साथ यह बात कह रहा हूं कि पत्रकारिता जगत में ऐसा सूरमा अब पैदा होने वाला नहीं है.... मुझे उनका यूं अचानक चले जाना बहुत खल रहा है...... यह मेरी व्यक्तिगत छति है, इसकी भरपाई दुनियां की कोई दौलत नहीं कर सकती.... आप बहुत याद आओगे "बाग़ी जी".... वरिष्ठ पत्रकार शलभ भदौरिया ने अपनी वॉल पर लिखा हैं प्रिय महेश के अचानक यूँ चले जाना हमारे परिवार के लिए पारिवारिक क्षति है।महेश उज्जैन से इंदौर होते हुए सीधे हमारे घर ही आया और कोई 2 साल परिवार का सदस्य की तरह रहा ।इतनी छोटी उमर और कच्चा परिवार छोड़ कर हमारे छोटे भाई के  निधन से आहत हूं ।ईश्वर से प्रार्थना है कि वो मेरे छोटे भाई महेश की पवित्र आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दे और समूचे पवार (बागी) परिवार को इस गहन दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे ।  

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Dakhal News 10 September 2017


पत्रकार लंकेश

पत्रकार गौरी लंकेश के हत्यारों का सुराग देने वाले को सरकार 10 लाख रुपये का इनाम देगी। कर्नाटक सरकार ने ये घोषणा की है। पुलिस ने गुरुवार को लोगों से अपील की थी कि इस हत्याकांड के बारे में कुछ भी पता है तो उसे बताए। इसके लिए एक ईमेल आइडी व फोन नंबर भी जारी किया गया है। इसके एक दिन बाद ही गृह मंत्री रामालिंगा रेड्डी ने दस लाख के इनाम की घोषणा की है। गृहमंत्री रेड्डी का कहना है कि मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने निर्देश दिया है कि एसआईटी में पर्याप्त संख्या में अधिकारी-कर्मचारी तैनात किए जाए ताकि जांच का काम तेजी से हो। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री ने एसआईटी के प्रमुख बीके सिंह के साथ एक बैठक भी की। बैठक में डीजीपी आरके दत्ता, डीजी (खुफिया) एएम प्रसाद भी मौजूद थे।रेड्डी ने बताया कि जांच टीम से कहा गया है कि भाजपा विधायक जीवराज को बुलाकर पूछताछ की जाए। उन्होंने गुरुवार को पत्रकार की हत्या को लेकर विवादास्पद बयान दिया था। रेड्डी ने ये भी कहा कि विधायक से पूछा जाएगा कि उन्होंने इस तरह का बयान क्यों दिया था। उन्होंने कहा कि ये बात अखरने वाली है कि गौरी लंकेश की हत्या के बाद न तो कोई भाजपा नेता उनके घर गया, न ही शमशान घाट पर। गौरी लंकेश की हत्या को लेकर अमेरिकी कांग्रेस में भी चर्चा की गई। दक्षिण व मध्य एशिया के मामलों को सहायक सचिव एलिस वेल्स ने एक उप समिति में कहा कि मामला वाकई हतप्रभ करने वाला है। पत्रकार की हत्या लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि भारत इससे जल्दी उबर जाएगा और लोकतंत्र वहां और ज्यादा मजबूत होगा। इंडियन नेशनल ओवरसीज कांग्रेस ने कहा कि लगता है कि एक प्रभावशाली आवाज को दबाने की साजिश पहले ही रच ली गई थी। यूनेस्को की महानिदेशक इरिना बोकोवा ने कहा कि भारत इस मामले का पर्दाफाश जल्द करे, क्योंकि प्रैस पर हमले का मतलब मूलभूत अधिकारों के हनन का प्रयास है।

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Dakhal News 8 September 2017


ज़ी न्यूज़ के कार्यक्रम में शिवराज

  शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के प्रयासों की केन्द्रीय मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने की सराहना मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि पूरे देश के लिये एक समान शिक्षा नीति होना चाहिये। इसके लिये मध्यप्रदेश पूरा सहयोग करेगा। उन्होने कहा कि प्रयोग के तौर पर माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के लिये बैतूल जिले में पठन-पाठन की सारी सुविधाओं और अधोसंरचनात्मक व्यवस्थाओं से सम्पन्न एक विद्यालय खोला जाएगा जिसमें आसपास के गांवों से विद्यार्थियों को लाया जाएगा और वापस छोड़ा जाएगा। इस प्रयोग के सफल होने पर इसका विस्तार करने पर विचार किया जाएगा। श्री चौहान आज यहां ज़ी न्यूज चैनल द्वारा राज्य शिक्षा समिट कार्यक्रम में सवालों के जवाब दे रहे थे। उन्होने शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे उत्कृष्ट शैक्षणिक संस्थाओं को सम्मानित किया। मप्र को शिक्षा में केन्द्र से मिलेगा पूरा सहयोग केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने एक सवाल के जवाब में मध्यप्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता बढ़ाने, स्वायत्तता बढ़ाने और नये शैक्षणिक संस्थानों को प्रोत्साहित करने के मुख्यमंत्री श्री चौहान के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति करने के बाद अब प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने पर लगातार ध्यान दिया जा रहा है। किसी समय बीमारू राज्य कहलाने वाला मध्यप्रदेश अब प्रथम श्रेणी के राज्यों में शामिल हो गया है। श्री जावड़ेकर ने कहा कि मध्यप्रदेश को शिक्षा के क्षेत्र में हर प्रकार से सहयोग दिया जाएगा। श्री जावड़ेकर ने कहा कि विशेषज्ञों का एक पैनल पूरे देश में बीस उत्कृष्ट विश्वविद्यालयों का चयन करेगा। उन्होंने आशा व्यक्त की कि मध्यप्रदेश का भी इसमें स्थान होगा। श्रमोदय विद्यालय खुलेंगे श्री चौहान ने राज्य में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिये किये गये प्रयासों की चर्चा करते हुये कहा कि उत्कृष्ट विद्यालय, एकलव्य विद्यालय, ज्ञानोदय विद्यालय खोले गये हैं । चार श्रमोदय विद्यालय भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में खोले जा रहे हैं। इन विद्यालयों में विशेष रूप से शिक्षित और प्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती की गई है। इनकी सेवा शर्ते भी भिन्न हैं। श्री चौहान ने कहा कि समाज की ओर से भी शिक्षकों को मान-सम्मान मिलना चाहिये। इस प्रवृत्ति में कमी आई है। उन्होंने कहा कि वेतन और सुविधाओं के अलावा शिक्षक मान-सम्मान चाहता है। उच्च शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने चलेगा अभियान मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि एक दशक पहले तक प्राथमिक शिक्षा बुरी स्थिति में थी। शुरू से ही कठिन प्रयास करने पड़े । उच्च शिक्षा का प्रतिशत 13-14 था जो अब 20 हो गया है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश को जब भी आवश्यकता पड़ी केन्द्र ने पूरी मदद की। अब उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये अभियान चलाया जाएगा। नये कॉलेज खुल रहे हैं, जो कम्प्यूटर लैब, लाइब्रेरी और आई.टी. आधारित अन्य पठन-पाठन टूल्स से सज्जित हैं। श्री चौहान ने मुख्यमंत्री मेधावी विद्यार्थी योजना की चर्चा करते हुये कहा कि अब प्रतिभाशाली बच्चों को उच्च शिक्षा के लिये पैसों की कमी नहीं आएगी। उनकी फीस सरकार भरेगी। प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता सुधारी जाएगी। उन्होंने बताया कि शिक्षकों की सेवा-शर्तें और वेतन में सुधार किया गया है। अब उन्हें सम्मानजनक 25 से 30 हजार रूपये प्रति माह वेतन मिल रहा है। उनका प्रशिक्षण भी आयोजित किया जाएगा। कक्षाओं में बच्चों की उपस्थिति का प्रतिशत भी बढ़ा है। उन्होंने बताया कि जिन बच्चों के माता पिता नहीं हैं, वे रेल्वे स्टेशनों, सड़कों पर भटकते रहते हैं, उनके लिये भी शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी। कलेक्टरों से कहा गया है कि वे किराये का आवास लें और उन्हें स्कूल भेजें। उन्होंने बताया कि विद्यार्थियों को साइकिल, गणवेश, लैपटॉप, स्मार्टफोन देने जैसी पहल की गई है। निजी क्षेत्र में कई विश्वविद्यालय स्थापित हो रहे हैं। मुख्यमंत्री ने शिक्षा के तीन आयाम गिनाते हुये कहा कि शिक्षा का उददेश्य ज्ञान देना, कौशल देना और नागरिक संस्कार देना है। विश्वस्तरीय आई.टी.आई की स्थापना भोपाल में की जा रही है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ी है इस साल के 12वी कक्षा के जो उत्कृष्ट परिणाम आये, उनमें सबसे ज्यादा बच्चे शासकीय स्कूलों के थे।  

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Dakhal News 3 September 2017


इंदौर वूमंस प्रेस क्लब

इंदौर वूमंस प्रेस क्लब, म.प्र. के स्थापना अवसर पर हक़, हैसियत और हिफाज़त विषय पर परिसंवाद ‘मंथन’ का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में श्रीमती मालिनी लक्ष्मणसिंह गौड़ महापौर, श्रीमती शोभा ओझा अध्यक्ष, अ.भा. महिला कांग्रेस, सुश्री कविता पाटीदार अध्यक्ष, जिला पंचायत, इंदौर, सुश्री माला ठाकुर क्षेत्रीय संयोजिका, दुर्गा वाहिनी, श्रीमती अर्चना जायसवाल, पूर्व अध्यक्ष, म.प्र. महिला कांग्रेस, डॉ. दिव्या गुप्ता, अध्यक्ष संस्था ज्वाला, श्रीमती फौजिया शेख अलीम नेता प्रतिपक्ष प्रमुख अतिथियों के रूप में उपस्थित थीं.  इस अवसर पर अतिथियों ने कहा कि पत्रकारिता हो या अन्य क्षेत्र अब महिलाओं के प्रति नजरिया बदल गया है. देश में सर्वोच्च पदों पर महिलाओं ने पुरुषों से बेहतर कार्य करके स्वयं को सिद्ध किया है. वर्तमान में महिला आरक्षण का फायदा उठाते हुए हमें कड़ी मेहनत के माध्यम से आगे बढ़ना चाहिए. पत्रकारिता के क्षेत्र में देश के महानगर मिसाल बन गए हैं जहाँ बराबरी की संख्या में महिला पत्रकार बेहतर कार्य कर रही हैं. मध्यप्रदेश की महिला पत्रकारों को भी संगठित होकर आगे बढ़ना चाहिए.  इस अवसर पर बाल संरक्षण आयोग, म.प्र शासन में सदस्य बनने पर डॉ रजनी भंडारी का अभिनन्दन किया गया. प्रारंभ में वूमंस प्रेस क्लब, म.प्र. की अध्यक्ष शीतल रॉय ने क्लब के उद्देश्यों के बारे में जानकारी दी. अतिथियों का स्वागत शीतल रॉय, नाज़ पटेल, गरिमा राजपूत, रीना शर्मा, वैशाली व्यास, नेहा चौधरी, संध्या शर्मा,मोनालिसा  मीना राणा शाह, पुष्पा शर्मा ने किया. कार्यक्रम का संचालन वैशाली व्यास ने किया और सचिव नाज़ पटेल ने आभार माना. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता उपस्थित थे.स्टेट प्रेस क्लब मध्यप्रदेश के पदाधिकारियों ने भी वूमंस प्रेस क्लब की स्थापना पर सभी सदस्यों को और अध्यक्ष को बधाई दी।

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Dakhal News 1 September 2017


सुप्रियो प्रसाद BEA के अध्यक्ष बने

आज तक और इंडिया टुडे के मैनेजिंग एडीटर सुप्रिय प्रसाद को ब्रॉडकास्ट एडीटर्स असोसिएशन (BEA) यानी न्यूज चैनलों के संपादकों की संस्था का नया अध्य़क्ष चुन लिया गया है। वहीं वरिष्ठ संपादक अजीत अंजुम नये महासचिव चुने गये। दिबांग (ABP NEWS) और अरनब गोस्वामी (Republic TV) उपाध्यक्ष और अजय कुमार (News Nation) कोषाध्यक्ष बने। इन सभी का चुनाव सर्वसम्मति से बीईए की आम सभा में हुआ। चुनाव में 15 सदस्यीय नयी एक्जीक्यूटिव कमेटी का भी गठन किया गया। इसमें वरिष्ठ संपादक क़मर वहीद नक़वी, शाज़ी ज़मां, एन के सिंह, मिलिंद खांडेकर (ABP NEWS), राहुल कंवल ( India Today  & Aajtak), संजय बरागटा ( ZEE NEWS), सोनिया सिंह (Ndtv), दीपक चौरसिया ( India News), संजीव पालीवाल (Aajtak), अभिषेक कपूर (Republic TV), रवि प्रकाश (TV9), सुकेश रंजन (News 24), नविका कुमार (Times Now), भूपेंद्र चौबे (CNN News18) और राजेश रैना ( ETV) शामिल हैं।  संस्था के नवनिर्नाचित अध्यक्ष सुप्रिय प्रसाद ने अपने स्वागत भाषण में पिछली कमेटी के योगदान और उनके द्वारा किये गये कार्यों की सराहना की। उन्होंने नये सदस्य बनाने, सदस्यों के बीच संवाद और जनता के बीच मीडिया की छवि को सुधारने के उपाय अपनाने पर जोर दिया। महासचिव अजीत अंजुम ने बताया कि बीईए के विस्तार के लिए क्षेत्रीय न्यूज चैनलों के संपादकों को जोड़ने की मुहिम चलायी जायेगी। इसी को ध्यान में रखते हुए सदस्यता बढ़ाने के लिये एक नयी कमेटी का गठन किया गया जिसमें संजीव पालीवाल, राहुल कंवल और संजय बरागटा होंगे।   

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Dakhal News 16 August 2017


 इंडिया टीवी से हेमंत शर्मा का इस्तीफा ?

एक बड़ी चर्चा इंडिया टीवी न्यूज चैनल से आ रही है. लंबे समय से इंडिया टीवी और इसके मालिक रजत शर्मा के आंख नाक कान बने रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा के बारे में खबर मिली है कि उन्होंने चैनल से इस्तीफा दे दिया है. भाजपा और भाजपा से जुड़ी सरकारों में गहरे पैठ रखने वाले हेमंत शर्मा ने अचानक क्यों इस्तीफा दे दिया, इसको लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. किसी का कहना है कि रजत शर्मा दिन प्रतिदिन हेमंत शर्मा के बढ़ते कद से परेशान थे और चैनल पर पूरी तरह काबिज हो चुके हेमंत से चैनल को मुक्त कराना चाहते थे जिसको लेकर उनकी आपस में बातचीत हुई और विवाद बढ़ता गया. इसके बाद हेमंत शर्मा ने इस्तीफा देकर खुद को चैनल से अलग कर लिया है. वहीं कुछ अन्य लोगों का कहना है कि चैनल की गिरती टीआरपी को लेकर चैनल प्रबंधन इन दिनों बेहद आक्रामक है और तरह-तरह से मंथन कर रहा है. प्रबंधन को ये समझा दिया गया कि हेमंत शर्मा द्वारा चैनल के कामकाज में हस्तक्षेप के कारण चैनल की टीआरपी सुधर नहीं रही है. कुछ लोग ये भी कहते सुने जा रहे हैं कि चैनल की टीआरपी गिरने की गाज अजीत अंजुम पर गिरने की चर्चा थी लेकिन गिर गई हेमंत शर्मा पर. इसे एक तरह से अजीत अंजुम खेमे की जीत मानी जा रही है और हेमंत के इस्तीफे के बाद चैनल अब पूरी तरह अजीत अंजुम के कब्जे में आ गया है. उधर, इंडिया टीवी प्रबंधन ने हेमंत के इस्तीफे पर चुप्पी साध रखी है. यह भी कहा जा रहा है कि हेमंत को प्रबंधन मनाने की कोशिश कर सकता है. फिलहाल हेमंत शर्मा के इस्तीफे की अफवाह जोरशोर से फैल रही है और इसको लेकर जितने मुंह उतनी बातें की जा रही हैं.  

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Dakhal News 9 August 2017


फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एंप्लॉयज

फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एंप्लॉयज ने की अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा  मुंबई मे फिल्म और टेलीविजन शो निर्माताओं की वायदा खिलाफी के विरोध में 'फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एंप्लॉयज' (एफ डव्लूआइ सी इ) की तरफ से 14 अगस्त की रात 12 बजे से अनिश्चित कालीन हड़ताल की घोषणा की गई है. इस हड़ताल में फिल्म एवं टीवी इंडस्ट्रीज के सभी कामगार, टेक्निशियन और कलाकार शामिल हो रहे हैं. फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एंप्लॉयज के प्रेसिडेंट श्री बीएन तिवारी ने कहा कि इस अनिश्चित कालीन हड़ताल का उद्धेश्य फिल्म और टेलीविजन इंडस्ट्रीज के सभी कामगारों, टैक्निशियनों और कलाकारों के साथ बरसों से हो रही वायदाखिलाफी और नाइंसाफी को हमेशा के लिये समाप्त करना है. श्री तिवारी के मुताबिक फेडरेशन लंबे समय से मांग करता रहा है कि आठ घंटे की शिफ्ट हो और हर अतिरिक्त घंटे के लिये डबल पेमेंट हो. तिवारी ने कहा कि हर क्राफ्ट के सभी कामगारों , टैक्निशियनों और कलाकारों आदि की चाहे वह मंथली हो या डेलीपेड, पारिश्रमिक में तत्काल वाजिब बढ़ोत्तरी, बिना एग्रीमेंट के काम पर रोक, मिनीमम रेट से कम पर एग्रीमेंट नहीं माना जायेगा. साथ ही जॉब सुरक्षा , उत्तम खानपान और सरकार द्वारा अनुमोदित सारी सुविधायें और ट्रेड यूनियन के प्रावधान हमारी प्रमुख मांग है. मगर निर्माता हमारी मांग को लगातार नजरअंदाज कर रहे हैं. 22 यूनियनों ने किया हड़ताल का समर्थन... इस हड़ताल को इंडस्ट्री के 22 यूनियनों का समर्थन प्राप्त है.फेडरेशन में जो 22 यूनियन शामिल हैं उसमें द साउंड एशोसिएशन आॅफ इंडिया, कैमरा एशोसिएशन , डायरेक्टर एशोसिएशन , आर्ट्स डायरेक्टर एशोसिएशन, स्टिल फोटोग्राफर एशोसिएशन, म्यूजिक डायरेक्टर एशोसिएशन, म्यूजिशियन एशोसिएशन , सिंगर एशोसिएशन, वाइसिंग एशोसिएशन, डांस मास्टर एशोसिएशन, डांसर एशोसिएशन, फाइटर एशोसिएशन , डमी एशोसिएशन , राइटर एशोसिएशन , प्रोडक्शन एशोसिएशन, एडिटर एशोसिएशन , जूनियर आर्टिस्ट एशोसिएशन, महिला कलाकार एशोसिएशन , मेकअप और ड्रेस डिपार्टमेंट एशोसिएशन, एलाइड मजदूर एशोसिएशन, सिने आर्टिस्ट एशोसिएशन और जूनियर आर्टिस्ट सप्लायर एशोसिएशन प्रमुख है. इस हड़ताल को देश की कई दूसरी भाषा की फिल्म इंडट्रीज का भी समर्थन मिला है. देश के किसी भी हिस्से में 15 अगस्त के बाद से फिल्म, टेलिविजन शोे और सिरीयलों की शूटिंग नहीं हो पायेगी. फेडरेशन आॅफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लाइज के प्रेसिडेंट श्री बीएन तिवारी के मुताबिक इस हड़ताल के बाद से देश के किसी भी हिस्से में 15 अगस्त के बाद से फिल्म, टेलिविजन शोे और सिरीयलों की शूटिंग नहीं हो पायेगी. बॉलीवुड में काम कर रहे ये कामगार अपना नया एमओयू साइन करवाना चाहते हैं, जिसकी मियाद पिछली फरवरी में खत्म हो चुकी है. ये एमओयू हर 5 साल में साइन होता है. इस बार नए एग्रीमेंट में कामगारों की मांगों में उनका मेहनताना, सुरक्षा, समय पर भुगतान, काम करने की समय सीमा और बीमा शामिल हैं. इनके मुताबिक इनका मेहनताना 3 से 6 महीने बाद मिलता है साथ ही 18-18 घंटे काम करवाया जाता है. फेडरेशन आॅफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लाइज के प्रेसिडेंट श्री बीएन तिवारी और जनरल सेक्रेटरी दिलीप पिठवा के मुताबिक 15 अगस्त से प्रस्तावित इस हड़ताल के बावत फेडरेशन की तरफ से फिल्म और टेलीविजन शो निर्माताओंं की संस्थायें इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर असोसिएशन, द फिल्म एंड टेलीविजन प्रोड्युसर गिल्ड आॅफ इंडिया लिमिटेड, इंडियन फिल्म एंड टीवी प्रोड्युसर काउंसिल, वेस्टर्न इंडिया फिल्म प्रोड्युसर्स असोसिएशन को भी मंगलवार 1 अगस्त को हड़ताल की लिखित सूचना दे दी गयी है. साथ ही हड़ताल के दौरान किसी भी कामगारों , टैक्निशियनों और कलाकारों को परेशान ना किया जाये इसके लिये फेडरेशन आॅफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लाइज की तरफ से मुंबई के पुलिस आयुक्त सहित सभी पुलिस स्टेशनों को भी लिखित सूचना दी गयी है.

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Dakhal News 9 August 2017


etv

  खबर है कि ईटीवी दिल्ली एनसीआर में बड़े पैमाने पर छंटनी चल रही है. अब तक तेरह रिपोर्टर हटाए जा चुके हैं. ये सभी लोग लंबे समय से ईटीवी से जुड़े हुए थे. हटाए गए जिन कुछ लोगों के नाम पता चले हैं, वे इस प्रकार हैं- सुनीता आर्या झा, अक्षय राय, हिमांशु देव, हाशिम इमरान, मनोहर विश्नोई, रामेश्वर, प्रकाश पीयूष, रवि यादव, रजा आदि. सूत्रों के मुताबिक रवि यादव ने लेबर कोर्ट में केस कर दिया है ईटीवी पर. मुकुंद शाही को लेकर चर्चा है कि उन्हें भी साइडलाइन कर दिया गया है. सुनीता आर्या झा पीएमओ कवर करती थीं. अक्षय राय बीजेपी बीट देखते थे. सूत्रों के मुताबिक शैलेंद्र बांगू, अविनाश कौल आदि मिलकर अपने खास लोगों को नियुक्त कर रहे हैं और पुराने लोगों को किसी तरह परेशान कर निकाल रहे हैं. जिन जिन लोगों को हटाया गया, उन्हें पहले न्यूज वाले ग्रुप से हटाया जाता, फिर इनका मेल बंद कर दिया जाता. अंत में हैदराबाद से सेवा समाप्त किए जाने की काल करा दी जाती.  

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Dakhal News 5 August 2017


स्ट्रिंगर भर्ती

अनिल सक्सेना  हाल ही में मध्यप्रदेश के दूरदर्शन केन्द्र के समाचार एकांश में हुई स्ट्रिगंरो की भर्ती इन दिनों राजधानी सहित प्रदेश के अंचलों में काफी चर्चा का विषय बनी हुई है। दूरदर्शन केन्द्र के समाचार एकांश की प्रमुख पूजा पन्नालाल वर्धन ने इन दो सालो में दूरदर्शन न्यूज के तो मायने ही बदल दिए हैं। अपनी विवादित कार्यप्रणाली के चलते अपने सहयोगी समाचार सम्पादक राय जो हाल ही में प्रमोट होकर सहायक निदेशक बने हैं, के साथ मिलकर अनियमितता के सारे रिकार्ड ही तोड़ दिये। उल्लेखनीय है कि फरवरी 2017 में दूरदर्शन समाचार एकांश भोपाल ने मध्यप्रदेश के सभी जिलों में स्ट्रिंगर की भर्ती के लिये विज्ञापन दिये। दूरदर्शन के इतिहास में पहली बार दूरदर्शन पर इसे भर्ती के आखरी दिन तक प्रचारित किया गया। एंकर बाईट में भी समाचारों को बीच में रोककर इस भर्ती के बारे में बताया गया। प्रसार भारती द्वारा प्रदेश के सभी जिलों में नियुक्त पीटीसी हाईकार्ट की शरण में चले गये। हाईकोर्ट में पहले जिन सात जिलों के पीटीसी ने शिकायत की उस पर हाईकार्ट ने इन जिलों में परिणाम घोषित करने पर रोक लगा दी। इसके बाद 14 और पीटीसी भी हाईकार्ट चले गये। न्यायालय में पीटीसी के ये दोनों मामले क्लब हो गये जो अब भी विचाराधीन हैं। एक समय था जव समाचार सम्पादक राय स्ट्रिगंरो और पीटीसी को स्टोरी के लिये अनुमति देते थे। बाद में इनकी अनियमितता को देखकर राय से स्टोरी अप्रूअल के अधिकार छीनकर पूजा वर्धन खुद स्टोरी अप्रूअल देने लगीं। समाचार सम्पादक राय हाशिये पर चले गये और पूजा बर्धन का विरोध करना शुरू कर दिया। जैसे ही दूरदर्शन केन्द्र के समाचार एकांश में स्ट्रिगंरो की भर्ती की कार्यवाही चली समाचार सम्पादक राय ने अपने समकक्ष और आकाशवाणी भोपाल में पदस्थ मित्र के साथ स्ट्रिंगरों की भर्ती से लाभ लेने की रूप रेखा बनाई। इन दोनो अधिकारियों ने दूरदर्शन केन्द्र के समाचार एकांश की प्रमुख पूजा पन्नालाल वर्धन को विश्वास में लेकर अनियमितता के खेल शुरू किए। आरोप है कि भर्ती में जमकर पैसा चलने लगा। कोर्ट के कारण जब नियुक्तियों में विलम्ब होने लगा और कई खेल तमाशे लोगों को मालूम पड़े तो पैसे वापस करने का दबाव बढने लगा। ऐसे में हाईकोर्ट का निर्णय आने से पहले ही सात जिले छोड़कर रिजल्ट घोषित कर दिये गए। दूसरे ही दिन राय का नागपुर का स्थानांतरण का आदेश आ गया। स्ट्रिगंर के पद पर कहीं गुन्डा लिस्ट में शामिल तो कहीं 10वीं पास तो कहीं जीवन में पत्रकारिता न करने वाले चाय पान के खोके चलाने वालों को चयन कर लिया गया। पत्रकारिता से स्नातक व स्नाकोत्तर डिग्रीधारी बाहर हो गये। लगभग पुराने अधिकांश स्ट्रिगंर भी बाहर कर दिये गये। इसे लेकर अब स्ट्रिंगर लामबन्द होकर हाईकोर्ट की शरण में जा रहे हैं और एक याचिका दायर कर रहे हैं।    पूजा वर्धन की पहले भी स्टाफ और स्ट्रिंगर दिल्ली उच्चाधिकारियों को शिकायत करते रहे हैं। लेकिन दिल्ली उच्चाधिकारी जाने किस भय से चुप्पी साधे रहे। आपको बता दें कि इस महिला अधिकारी ने  पूर्व में अपने महिला होने का लाभ उठाते हुए कई अधिकारियों की शिकायतें कर चुकी हैं जिससे विभागीय लोग इससे डरते हैं। इस महिला के लिए अपने पिता के पूर्व पुलिस अधिकारी होने की धमकी देना आम बात है। देखना है कि मध्य प्रदेश के योग्य स्ट्रिंगरों को दूरदर्शन भर्ती में न्याय मिल पाता है या नहीं।[भड़ास फॉर मीडिया से साभार ]  

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Dakhal News 4 August 2017


news trp week 30

  आजतक ने जी न्यूज़ को झटका दे दिया है। 30 वे सप्ताह की trp की बाद आजतक नंबर वन ,ज़ी टू ,एबीपी थ्री और इण्डिया टीवी फोर्थ पोजीशन पर है। इंडिया टीवी तमाम कोशिशों के बाद भी एबीपी को नहीं पछाड़ पा रहा है।  नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 30 Aaj Tak 17.7 up 0.8  Zee News 15.6 dn 0.6  ABP News 13.4 up 1.0  India TV 11.3 up 0.2  News18 India 10.6 dn 0.2  News Nation 9.1 dn 0.7  News 24 7.7 same   India News 7.4 dn 0.2  Tez 2.8 dn 0.4  DD News 2.2 up 0.2  NDTV India 2.1 same     TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 17.6 up 0.5  Zee News 16.8 dn 0.7  ABP News 13.5 up 1.1  India TV 11.9 up 0.4  News18 India 11.1 dn 0.3  News Nation 8.2 dn 0.7  News 24 7.2 dn 0.1  India News 6.2 dn 0.1  Tez 3.0 dn 0.2  NDTV India 2.6 up 0.1  DD News 1.9 up 0.1 मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव न्यूज़ चैनल Week 30   Zee                       70.6 Etv.                        14.6 Ibc24                     10.2 Sahara  sa            1.8 Bansal                   1.0   

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Dakhal News 3 August 2017


पत्रकार सुधीर जैन

श्रमजीवी पत्रकार संघ के रायपुर में संपन्न प्रादेशिक पत्रकार सम्मेलन में उत्कृष्ठ पत्रकारिता एवं बस्तर की समस्याओं को निरंतर उठाने के लिए मुख्य अतिथि प्रदेश के कबीना मंत्री प्रेमप्रकाश पांडे द्वारा बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार सुधीर जैन को सम्मानित किया गया।  इस अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह सहित संघ के प्रदेशाध्यक्ष अरविंद अवस्थी भी विशेष रूप से उपस्थित थे। उल्लेखनीय है कि सुधीर जैन विगत 38 वर्षों से सक्रिय पत्रकारिता में सेवारत हैं। इस दौरान लगभग ढाई दशक तक वे दैनिक नवभारत एवं दैनिक भास्कर से बतौर ब्यूरो प्रमुख जुड़े रहे। वर्तमान में वे पिछले एक दशक से हिंदुस्थान समाचार एवं राष्ट्रीय न्यूज सर्विस समाचार सेवा के ब्यूरो प्रमुख के पद पर सेवारत हैं।  

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Dakhal News 1 August 2017


राघवेंद्र सिंह

राघवेंद्र सिंह एक कहावत है अच्छी बातें तो बुरे लोग भी करते हैैं। इसलिये आदमी बातों से नहीं अपने कर्मों से पहचाना जाता है। यह कहावत राजनैतिक, सामाजिक, प्रशासनिक से लेकर मीडिया कर्मियों पर भी लागू होती है। यह इसलिये इन बिरादियों के लोगों से भी माफी के साथ आज की बातें। हमारा फोकस फिर सियासत पर है क्योंकि देश को दिशा देने के काम यही सबसे बड़े ठेकेदार हैैं। रावण ने भी सीता जी का हरण साधु बनकर किया था। गुरू का स्थान भी गोविंद के पहले था, डाक्टर को भगवान बाद दूसरा भगवान माना जाता था और मीडिया को महाभारत के संजय और विदुर की तरह सही बात बताने और सच दिखाना वाला माना जाता था। हम यहीं से अपनी बात शुरू कर रहे हैैं। पिछले दिनों नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की क्षेत्रीय बैठक में जो कुछ कहा गया वह सब बहुत अच्छा था लेकिन कहने वाले और कराने वालों के आचरण पर नजर डालें तो वही निकलकर आता है, अच्छी बातें तो बुरे लोग भी करते हैैं। हमेशा लोग कामकाज से ही जाने जाते हैैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने जल, जंगल और जमीन का जिक्र करते हुये बताया कि बंदर, भालू जंगल छोड़- छोड़ कर बाजार और शहरों में आने लगे हैैं क्योंकि हमने उनके घरों को उजाड़ दिया है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वे किसी अन्य राज्य को लेकर इसका जिक्र नहीं कर रहे हैैं। उन्हाेंने कि साल एेसा पेड़ जाे पानी छाेड़ता है। अमरकंटक से मंडला तक साल के पेड़ अगर सूख जायें ताे समझाे नर्मद जी संकट में अा जायेंगी। सूख जाएंगी, खत्म हो जाएंगी। यहां साल के पेड़ सूख रहे हैं अाैर किसी काे इसकी चिंता नहीं है। इनको बचाने के लिये कोई शाेध नहीं कर रहा है। जाहिर है कि यह एहतियात उन्होंने मध्यप्रदेश को लेकर बरता होगा क्योंकि एनजीटी के क्षेत्राधिकार में  मध्यप्रदेश भी आता है और अक्सर राजधानी भोपाल के केरवा पहाड़ी और कोलार क्षेत्र में  शेर, तेंदुए की आमद आम हो गई है। अक्सर शहर और गांव के लोगों से रात तो क्या दिन में भी जंगल महकमा इन इलाकों में जाने से रोकने की एडवाइजरी जारी करता है। यहां हम बता दें कि कोलार और केरवा इलाके में बस्तियों के साथ शिक्षण संस्थान भी खुल गये हैैं। याने अब गाय बैलों के साथ आम आदमी भी शेर, तेदुए की शिकारगाह में आ गया है। मुद्दा यहीं से शुरू होता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने भावुक और संवेदनशील स्वभाव के अनुरूप एनजीटी के निर्णयों की जमकर तारीफ की। उन्होंने जो कहा उसका लब्बोलुआब यह है कि ट्रिब्यूनल की  सक्रियता से भोपाल हिल स्टेशनों की तरह सुंदर बना हुआ है। यहां जंगल और नदियां एक तरह से सुरक्षित हैैं। इन बातों से अलग दूसरी तस्वीर भी है। मसलन हम भोपाल का ही जिक्र करें तो एनजीटी ने बड़ी झील को बचाने के लिये निर्देश दिये थे। उनके पालन में हफ्तों नहीं महीनों बीत गये हैैं लेकिन सरकार और प्रशासन का काम दीवार धकाने जैसा साबित हुआ है। मिसाल के तौर पर भोपाल के बीचोबीच आये स्लाटर हाउस को हटाने के निर्देश दिये थे लेकिन सरकारी जलेबी नहीं इमरतीनुमा कोशिशों के चलते अभी तक वह टस से मस नहीं हुआ है। जबकि एनजीटी ने नगर निगम, मुख्य सचिव तक को निर्देश दिये थे। मगर समूची कार्यवाही एनजीटी को थकाने वाली साबित हुई। ऐसे ही बड़ी झील को कहते तो भोपाल की लाइफ लाइन हैैं लेकिन इसका दम घोंटने के लिये रिटर्निंग वाल कैचमेंट एरिया में बनाने के बजाय झील की अंदर ही बना दी गई। यह बात पिछले साल बारिश की है। वह तो अच्छा हुआ कि बरसात इतनी हुई कि झील ने खुद अपनी हद तय कर ली। नतीजा यह हुआ कि रिटर्निंग वाल पानी में डूब कई और बड़ी झील कई मीटर दूर तक निकल गई।  इस पर खुद मुख्यमंत्री ने झील किनारे घूम कर रिटर्निंग वाल तोडऩे के निर्देश दिये थे। मगर एनजीटी और सीएम के आदेश सुरक्षित स्थान पर रखे हुये हैैं और समस्या का भी बालबांका नहीं हुआ है। ऐसी ही कहानी जो मुनारें झील के बाहर लगनी थी वे भी झील के भीतर लगा दी गईं। उन्हें भी एक साल से ढूंढा जा रहा है। मगर महापौर, चीफ सेक्रेटरी और चीफ मिनिस्टर की बातों के बावजूद उन्हें ढूंढा नहीं जा सका है। यानें झील का गला घोंटने वाली सरहद न तो तोड़ी गई हैैं और न ही मुनारें मिली हैैं। आगे इसकी कोई संभावना भी नजर नहीं आती है। आगे देखें तो सरकारें गुड गवर्नेंस की बातें करती हैैं। मगर होता उसके उलट है। स्कूल शिक्षा का स्तर उठाने की बात होती है, परिणाम में गिरता हुआ दिखता है। अस्पतालों में मरीज का इलाज और दवा देने की बात होती है लेकिन न डाक्टर होते हैैं न दवाएं मिलती हैैं। इसी तरह खेती को लाभ का धंधा बनाने की बात होती है और वह बनता है मौत का धंधा। एनजीटी के और आदेश की बातें करें नर्मदा समेत नदियों से रेत निकालने और पहाड़ को खोदने से रोकने की लेकिन होता है इसके खिलाफ। पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने कहा था कि रेत की चोरी रोकने के लिये अब नदियों के हरेक घाट पर तो हथियारबंद लोगों की तैनाती नहीं की जा सकती। सरकार ऐलान कर चुकी हैै कि मरीजों के इलाज के लिये अस्पतालों में डाक्टर नहीं मिल रहे हैैं। इसका मतलब अब जिसको जैसे इलाज कराना हो वह खुद तय कर ले। इसी तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी  अपने भाषणों में अक्सर कहती थीं गरीबी हटायेंगे। बाद में विरोधियों ने इसमें सुधार किया और कहा इंदिरा जी ने गरीबी तो नहीं गरीब को जरूर हटा दिया। ऐसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बातें करते हैैं कि न खाऊंगा न खाने दूंगा। लेकिन भाजपा शासित राज्यों में ही देखें तो वहां लोग खा भी रहे हैैं और खाने भी दे रहे हैैं और लोग देख रहे हैैं कि नरेंद्र मोदी के नारे के खिलाफ आचरण करने वालों का कुछ नहीं बिगड़ रहा है।  इस तरह की बातें के अनेक उदाहरण मिल सकते हैैं लेकिन बात वही है कि अच्छी बातें तो बुरे लोग भी करते हैैं। सही मायने में आदमी आचरण, व्यवहार और कर्मों से ही जाना जाता है।[पत्रकार राघवेंद्र सिंह की वॉल से ]  

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Dakhal News 31 July 2017


सोशल मीडिया

देश और दुनिया में वर्तमान में जितनी भी विद्याएं काम कर रही है, उनमें सोशल मीडिया सबसे सशक्त संचार माध्यम बन गया है। सोशल मीडिया वर्तमान में प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्रिाॅनिक मीडिया से भी आगे निकल गया है। सोशल मीडिया ने गांव-गांव में मोबाईल फोन, इंटरनेट के माध्यम से अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा दी है। आज देश और दुनिया में कहीं भी कोई घटना घटित होती है, तो सोशल मीडिया के माध्यम से हमें कुछ ही पलों में उसकी जानकारी लग जाती है। सूचनाओं के आदान-प्रदान में सोशल मीडिया अपनी महती भूमिका का निर्वाह करता है। यह बात भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद  नंदकुमारसिंह चौहान ने भोपाल में  पं. दीनदयाल परिसर में आयोजित आईटी सेल की बैठक के संबोधित करते हुए कही। उन्होने कहा कि आज का युग सोशल मीडिया का है इसलिए पार्टी की रीति नीति एवं केंद्र व प्रदेश सरकार की लोककल्याणकारी योजनाओं को सोशल मीडिया के माध्यम से जनता तक पहुंचाकर उन्हें राहत प्रदान करना युवाओं नैतिक कर्त्तव्य है। भारत युवाओं का देश है और युवाओं की उर्जा राष्ट्रहित के लिए उपयोगी है। नगर पालिका चुनाव में आईटी विभाग की टीम पूरी तरह तैयार है जिसके माध्यम से प्रचार प्रसार पर जोर दिया जायेगा। इस अवसर पर प्रदेश महामंत्री  अजयप्रताप सिंह, प्रदेश मीडिया प्रभारी  लोकेन्द्र पाराशर, आईटी विभाग के प्रदेश संयोजक  शिवराजसिंह डाबी, प्रदेश सह संयोजक  अनिल पटेल,  पवन दुबे,  सोमेश पालीवाल,  धर्मेन्द्र सिंह, श्री आशीष अग्रवाल, सेन गुप्ता,  विकास श्रीवास्तव, युवा मोर्चा आईटी के सह संयोजक  सत्येन्द्र सिंह, जिला संयोजक सहित आईटी विभाग के काॅलेज समन्वय उपस्थित थे।

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Dakhal News 29 July 2017


प्रवीण दुबे

प्रवीण दुबे   मेरे प्रिय टीआरपी मापक यंत्र, कई दिनों की खदबदाहट के बाद आज आपको खुला ख़त लिखने से खुद को रोक नहीं पाया. भैया, आपसे एमपी-छतीसगढ़ में कहीं कुछ चूक हो रही है ऐसा मुझे दिखता है. आप क्यूँ नहीं स्कूली या महाविद्यालयीन परीक्षा की तरह पुनर्गणना, वो जिसे अंग्रेजी में रिवैल्यूएशन कहते हैं, का प्रावधान कर देते..बताइए कि अव्वल आने वाले परीक्षार्थी ने क़माल क्या किया और बाकियों ने कहाँ ग़लती की....आप कहें तो हम तिथिवार आपको दिखा दें कि हमने क्या चलाया और कैसे चलाया और बाकियों ने क्या चलाया...बताइए कि 7 करोड़ से अधिक की आबादी वाले एमपी और ढाई करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाले छतीसगढ़ में आपने कितने टीआरपी मापक यंत्र लगा रखे हैं...प्रभु, मान ही नहीं सकता मैं कि आपके आंकड़े कंटेट का सटीक आकलन हैं. इतना बता दीजिए कि वैज्ञानिक तरीक़े से ही तो आप गणना करते हैं न...? आंकड़े देखकर तो लगता है कि टैरो कार्ड रीडर टाइप एक कार्ड निकालकर या फिर सिक्का उछालकर आप तय कर देते हो [क्षमा करिए...] प्रतिदिन अपना और बाकी चैनल का प्रस्तुतिकरण और ब्रेकिंग दम साधे देखता हूँ...23 साल से मुख्यधारा की पत्रकारिता कर रहा हूँ...ख़बरों से खेलने, कॉपी और प्रस्तुतीकरण का साधक हूँ...जो परीक्षार्थी आपकी मार्क-शीट में अव्वल में आ रहे हैं, उनकी क्षमता का भी ज्ञाता हूँ.. कुछ मत करिए सिर्फ तीन उचित कारण बता दीजिये कि जबरदस्त तरीके से आगे बढ़ने वाला चैनल ऐसा क्या कर रहा है, जो बाकी के नहीं कर रहे हैं...कितनी बड़ी ख़बरें सबसे पहले उनके पास होती हैं...एक उदाहरण आपको देता हूँ कि हमारी जिन ख़बरों के वीडिओ को हमारी वेव साईट में लाखों की तादात में वीडिओ व्यू मिलते हैं और हज़ारों लोग उसे शेयर करते हैं, उसे आप टीआरपी में ज़ीरो दिखा देते हो..श्रीमान आपको शायद पता नहीं होगा कि डिजिटल में नम्बर लाना बेहद कठिन है क्यूंकि व्यक्ति अपना डेटा पैक यानि रुपैया खर्च करके वीडिओ देखता है..ऐसा कैसे संभव है कि फोन में वीडियो देखा जा रहा हो और टीवी में नहीं...भैया आपकी मापक मशीन पुरानी हो गई हो या उसका कोई कल-पुर्जा घिस गया हो तो मरम्मत करा लो यार  ;) लेकिन आंकड़े तो ऐसे भेजो, जिसमें दाल में नमक के बराबर चूक दिखे...देखो, ऐसा है बिना पढ़े फेल होने वाला व्यक्ति नहीं कहता कि कॉपी ठीक से नहीं जाँची गयी लेकिन जो लपक के पढ़ रहा है, उसे कर्री तकलीफ़ हो जाती है..हम तो आपके साथ कैसा भी शाष्त्रार्थ करने को तैयार हैं...भैया, क्या है अन्याय करना जितना बड़ा पाप है,उसे चुपचाप सहन करना और भी बड़ा पाप है, जेई से अपन से मौन नहीं रहा जा रहा..और फिर आपकी विश्वसनीयता पर जनता भी सवाल उठाने लगे, ऐसा न करो.... सादर  आपका ही एक हितग्राही [ ईटीवी एमपी /सीजी के सीनियर एडिटर प्रवीण दुबे की फेसबुक वॉल से ]  

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Dakhal News 28 July 2017


सेंट्रल प्रेस क्लब

  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से सेंट्रल प्रेस क्लब की नई कार्यकारिणी के सदस्यों ने आज मुख्यमंत्री निवास में सौजन्य भेंट की। इस अवसर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अरूण दीक्षित, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री विजय कुमार दास, प्रदेश अध्यक्ष श्री गणेश साकल्ले, प्रदेश महासचिव श्री राजेश सिरोठिया, श्री मृगेंद्र सिंह, सुश्री सुचांदना गुप्ता, सुश्री दीप्ति चौरसिया, श्री धनंजय प्रताप सिंह, श्री कन्हैया लोधी, श्री अक्षय शर्मा, श्री के डी शर्मा, श्री अजय बोकिल, श्री अजय त्रिपाठी, श्री अश्विनी कुमार मिश्रा, श्री रिजवान अहमद सिद्धीकी, श्री नासिर हुसैन, श्री नितेंद्र शर्मा, श्री विकास तिवारी और श्री वीरेंद्र सिन्हा उपस्थित थे।  

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Dakhal News 28 July 2017


news trp 29

पिछले दो महीने से ज़ी न्यूज़ ने आजतक को कड़ी तक्कर दे रखी है,एक श्रेणी में जी न्यूज़ नंबर वन है तो एक में आज तक। एबीपी न्यूज़ नंबर तीन और इंडिया टीवी चौथे नंबर का चैनल बन गया है।  नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 29 Aaj Tak 17.0 up 0.3  Zee News 16.2 dn 0.2  ABP News 12.4 up 0.1  India TV 11.1 same   News18 India 10.8 same   News Nation 9.8 dn 0.2  News 24 7.7 dn 0.3  India News 7.6 same   Tez 3.2 same   NDTV India 2.1 same   DD News 2.0 up 0.3    TG: CSAB Male 22+ Zee News 17.5 up 0.3  Aaj Tak 17.1 up 0.6  ABP News 12.3 up 0.3  India TV 11.5 dn 0.1  News18 India 11.4 same   News Nation 9.0 same   News 24 7.3 dn 0.4  India News 6.4 dn 0.5  Tez 3.2 dn 0.3  NDTV India 2.5 dn 0.2  DD News 1.8 up 0.3 मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव न्यूज़ चैनल Week 29   Zee                       72.1 Ibc24                    12.3 Etv.                        11.1 Sahara  sa            1.7 Bansal                   1.0

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Dakhal News 27 July 2017


ईशर जज की किताब हमारे शहरों का रूपांतरण का विमोचन

मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि शहरीकरण की प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता लेकिन बेहतर प्रबंधन संभव है। बेहतर प्रबंधन से शहर स्वर्ग बन जाते हैं। उन्होंने कहा कि गांव तेजी से शहर की ओर बढ़ रहे हैं। इससे शहरों के लिये चुनौतियाँ भी पैदा हो रही हैं। इसलिये बेहतर शहरी प्रबंधन और नियोजन पर ध्यान देना जरूरी हो गया है। श्री चौहान आज यहाँ प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ईशर जज आहलूवालिया की किताब ‘हमारे शहरों का रूपांतरण’ का विमोचन कर रहे थे। इस किताब का प्रकाशन मंजुल प्रकाशन द्वारा किया गया है। इस अवसर पर पूर्व में कार्यरत योजना आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष श्री मोंटेक सिंह आहलुवालिया एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। श्री चौहान ने कहा कि हाल के सफाई सर्वेक्षण में सौ शहरों में 22 मध्यप्रदेश के हैं। इनमें भी इंदौर प्रथम और भोपाल दूसरे स्थान पर है। प्रदेश के सात शहर स्मार्ट शहर की सूची में शामिल हैं। श्री चौहान ने हिन्दी में इस किताब के प्रकाशन का महत्व बताते हुये कहा कि यह शहरी निकायों, प्रबंधन से जुड़े प्रतिनिधियों, नीति निर्माताओं के लिये मार्गदर्शी साबित होगी। उन्होंने कहा कि सभी शहरी निकायों को यह किताब उपलब्ध करायी जायेगी। किताब की लेखिका ईशर जज आहलूवालिया ने शहरी प्रबंधन और नियोजन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश द्वारा की गई प्रगति की सराहना करते हुये कहा कि मध्यप्रदेश स्मार्ट सिटी के लिये उपलब्ध फण्ड का बेहतर उपयोग कर रहा है। उन्होंने इंदौर में निजी और सार्वजनिक भागीदारी से शहर बस सेवा की परियोजना पर चर्चा करते हुये कहा कि भोपाल और इंदौर में शहरी यातायात में अनूठा काम हुआ है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने अपनी मेहनत, लगन और प्रतिबद्धता से शहरीकरण की चुनौतियों का सामना करते हुये बेहतर प्रक्रिया और व्यवस्थायें स्थापित की हैं उनकी प्रेरणादायी कहानियाँ किताब में शामिल की गई हैं।  

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Dakhal News 26 July 2017


सुदर्शन न्यूज चैनल को नोटिस

सुदर्शन न्यूज़ के सुरेश चह्वाणके को राज्यसभा की तरफ से नोटिस भेजा गया है. इस नोटिस में कहा गया है कि 28 सांसदों ने लिखित शिकायत की है कि सुदर्शन न्यूज चैनल ने उनकी मानहानि करते हुए धमकाया. नोटिस में 28 जुलाई तक सुदर्शन न्यूज चैनल को अपना पक्ष रखने को कहा गया है. अगर पक्ष नहीं रखा जाता है तो एकपक्षीय रूप से ही राज्यसभा के चेयरमैन इस मामले को देखकर अपना फैसला सुनाएंगे. उधर, इस मामले में  सुरेश चह्वाणके ने खुद को पीड़ित की तरह प्रस्तुत कर धार्मिक भावनाओं को भड़काते हुए पूरे मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश करने लगा है. सुरेश चह्वाणके का इस मामले पर कहना है-  ''नरेश अग्रवाल के ख़िलाफ़ बोलने के कारण मुझे और सुदर्शन न्यूज के ख़िलाफ़ राज्यसभा का गंभीर नोटिस मिला है। धर्म के अपमान पर आमादा व पद के मद में चूर नरेश अग्रवाल, दिग्विजय सिंह, सहित कुल 28 सांसदों ने राज्यसभा में दबाव बनाया जिसके बाद मुझे और चैनल के खिलाफ दबाव में राज्यसभा ने नरेश अग्रवाल की अवमानना का विशेषाधिकार नोटिस भेजा है. प्रभु श्रीराम के सम्मान लिए मैं मृत्यु से भी टकराने को तैयार हूँ, ये 28 सांसद तो बहुत छोटी चीज़ हैं... मुझे आशा है कि प्रभु राम के अलावा मेरे साथ आप भी हैं .... यही धर्मयुद्ध है और मैं ये चुनौती स्वीकार करता हूँ.''[भड़ास फॉर मीडिया से साभार ]

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Dakhal News 25 July 2017


महुआ प्लस का लाइसेंस रद्द

केंद्र सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने छह टीवी चैनलों के लाइसेंस रद करने का आदेश जारी किया है जिसमें महुआ प्लस भी है. प्रज्ञा विजन कंपनी का चैनल महुआ प्लस का लाइसेंस रद्द होने से मुश्किल में जी रहे पीके तिवारी एंड फेमिली को एक और झटका लगा है. इससे पहले मार्च महीने में मंत्रालय ने श्री न्यूज चैनल का लाइसेंस रद्द किया था. मंत्रालय ने जून में चार अपलिंकिंग और दो डाउनलिंकिंग लाइसेंस रद किए हैं. इसमें एक बांग्‍ला एंटरटेनमेंट चैनल के अपलिंकिंग लाइसेंस को रद किया गया है. ‘365 दिन’ नामक चैनल का भी लाइसेंस रद्द हुआ है.

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Dakhal News 24 July 2017


news paper

रतन भूषण  सुप्रीम कोर्ट ने मजीठिया को लेकर जो फैसला दिया है, उसके बाद हर जिले के डीएलसी आफिस यानी सहायक श्रम आयुक्त कार्यालय के हर कर्मचारियों का रवैया बदला है। इन कर्मचारियों का रुख इसलिए बदला है कि 19 जून 2017 को माननीय सुप्रीम कोर्ट के आये फैसले में यह स्पष्ट लिखा है कि मजीठिया वेतन आयोग के मामले में सरकारी अधिकारी या कर्मचारी के क्या दायित्व होंगे। यही वजह है कि मजीठिया का मामला 19 जून के बाद जहां भी शुरू हुआ है, मालिकान की तरफदारी करने वाले सभी सरकारी अधिकारी का रवैया बदला है। पहले इनकी बातों से, इनके काम करने के तरीकों से, इनके हाव भाव से स्पष्ट होता था जैसे ये अख़बार मालिकानों की नौकरी करते हों। वर्कर की मदद के लिए बनाये गए ये अफसर सही में मालिकानों के लिए काम करने में जुटे होते थे, लेकिन मजीठिया मामले के आये आदेश के बाद इनका मिजाज और काम करने का अंदाज़ बदला है। हालांकि माना यह भी जाता है कि ये किसी न किसी तरह अब भी मालिकान के लिए काम करेंगे। इसलिए अब वर्करों को भी इनसे सतर्क रहना होगा। इन पर नज़र भी रखनी होगी, इनकी कार्य करने के तरीके को समझना होगा और वर्कर को आगे बढ़ने के लिए तैयार रहना होगा, मसलन हाई कोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इनकी शिकायत करने के लिए। माननीय सुप्रीम कोर्ट से आये आदेश का डर सरकारी अफसर के मन में हुआ है। यही वजह है कि इन दिनों जहाँ भी मजीठिया का केस चल रहा है, अफसर इस काम को करने में देर नहीं लगा रहे हैं। पिछले दिनों राजस्थान पत्रिका का मामला वर्करों के लिए खुश करने वाला था। वहां जीतेन्द्र जाट के मामले में लेबर कोर्ट ने पत्रिका प्रबंधन से नौकरी पर रखने के लिए कहा। अभी कानपुर में दैनिक जागरण के वर्कर का मामला भी ऐसा ही सुना गया। कोर्ट ने जागरण की एक नहीं सुनी और लगातार सुनवाई करने की बात की। दो दिन सुनवाई हुई, जिसके बाद जागरण ने कोर्ट के आगे गिड़गिड़ाया कि सर एक तारीख आप अपनी मर्ज़ी से दे दें, तब कोर्ट ने एक सप्ताह की मोहलत दी। जागरण ने पिछले दिनों पंजाब के जालन्धर में भी सरकारी बाबू के आगे हाथ जोड़े और वर्कर के वकील से मिलकर और उन्हें लोभ देकर मामले को निपटाने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी। कुल मिलाकर वर्कर के पक्ष में हवा चली है और इसका श्रेय जाता है माननीय सुप्रीम कोर्ट को, जिनके फैसले ने मालिकानों की हर चाल को जकड़ रखा है। मालिकान तन से हारे अभी भले ही नहीं दिख रहे हैं, पर वे जल्दी ही तन और मन दोनों से हारे नज़र आएंगे। वर्करों का धन उन्हें देना ही पड़ेगा। संभव है, अख़बार मालिकानों के खिलाफ मजीठिया के केस जहां भी चल रहे होंगे, कमोवेश सभी सरकारी अफसर की नीयत अब बदली सी होगी और ये मालिकान के प्यादे सरकारी दफ्तर से पालतू की तरह भगाए जा रहे होंगे। बाबजूद हमें उस कहावत को नहीं भूलना चाहिए कि कुत्ते की दुम को सालोंसाल चोंगे में यानी पाइप में डाल कर छोड़ दो, वह तब भी सीधी नहीं होगी। सरकारी अफसर थोड़े बदल भी जाएँ, मालिकान के ये प्यादे कभी भरोसे के लायक नहीं हो सकते। [ पत्रकार रतन भूषण की फेसबुक वॉल से]  

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Dakhal News 23 July 2017


trp week 28

 28वें हफ्ते की टीआरपी में नई बात ये है कि जी न्यूज 15+ वाली कैटगरी में भी आजतक के सिर तक पहुंच गया है. दोनों के बीच बहुत मामूली-सा अंतर रह गया है. बुरा हाल इंडिया न्यूज का है. लगता है दीपक चौरसिया का जादू खत्म हो गया है और यह न्यूज चैनल आखिरी सांसें गिनने लगा है. इंडिया टीवी ने इस हफ्ते स्थिति सुधारी है और नंबर चार पर आ पहुंचा है. न्यूज18इंडिया ने भी बेहतर प्रदर्शन करते हुए नंबर पांच पर छलांग लगा दी है. न्यूज नेशन जो पिछले सप्ताह नंबर चार पर था, नंबर छह पर लुढ़क गया है. देखें आंकड़े... Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 28   Aaj Tak 16.7 same   Zee News 16.4 up 0.3  ABP News 12.4 dn 0.1  India TV 11.2 up 0.6  News18 India 10.7 up 0.5  News Nation 10.0 dn 0.8  News 24 8.0 up 0.6  India News 7.7 dn 0.4  Tez 3.2 up 0.1  NDTV India 2.1 dn 0.2  DD News 1.7 dn 0.5   TG: CSAB Male 22+ Zee News 17.2 dn 0.2  Aaj Tak 16.5 dn 0.2  ABP News 12.1 dn 0.1  India TV 11.5 up 0.7  News18 India 11.4 up 0.3  News Nation 9.0 dn 1.0  News 24 7.7 up 1.0  India News 6.9 dn 0.1  Tez 3.5 up 0.2  NDTV India 2.8 dn 0.1  DD News 1.6 dn 0.5  

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Dakhal News 22 July 2017


भारत रक्षा पर्व

  मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर बहनों की राखियां और शुभकामना संदेश जब सरहद पर तैनात जवानों को मिलेगे, तब उनका मनोबल और आत्मबल कई गुना बढ़ जायेगा। इस भावनात्मक प्रयास के लिये नव दुनिया परिवार बधाई का पात्र है। श्री चौहान ने यह बात आज मुख्यमंत्री निवास में नवदुनिया की पहल पर भारत रक्षा पर्व के अंतर्गत रक्षा रथ की फ्लैग ऑफ सेरेमनी में कही। इस अवसर मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह भी मौजूद थीं। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि हम अपने घरों में चैन से सोते हैं क्योंकि देश की सीमाओं पर हमारे जवान मुस्तैद रहते हैं। हमारे जवान सीमाओं की रक्षा के लिये होली, दीपावली और रक्षा बंधन आदि त्यौहार भी घर पर नहीं मनाते हैं। सदैव जान हथेली पर लेकर देश भक्ति के जज्बे के साथ सरहद की सुरक्षा करते हैं। उन्होंने कहा कि रक्षा बंधन पर्व पर जब मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की हजारों बहनों की राखियां और शुभकामना संदेश लेकर नवदुनिया का रक्षा रथ उनके पास पहुंचेगा, तब जवानों को अपार हर्ष होगा, भावनात्मक प्रसन्नता की अनुभूति होगी। मुख्यमंत्री ने पारंपरिक विधि विधान से रक्षा रथ को रवाना किया। इस अवसर पर बताया गया कि नवदुनिया द्वारा भारत रक्षा पर्व के अंतर्गत रक्षा रथ के माध्यम से मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भ्रमण कर बहनों से राखियां, ग्रीटिंग कार्ड और मैसेज का संकलन किया जा रहा है। संकलित सामग्री सेना के माध्यम से सीमा पर तैनात जवानों को उपलब्ध करवाई जायेगी। इस अवसर नवदुनिया के संपादक श्री सुनील शुक्ला, स्टेट ब्यूरो हेड श्री धनंजय प्रताप सिंह, श्री राजीव सोनी, हेड श्री विनित कौशिक सहित मॉडल स्कूल के एन.सी.सी.के छात्र एवं नव दुनिया के प्रतिनिधिगण मौजूद थे।

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Dakhal News 21 July 2017


भड़ास4मीडिया

दीपक आज़ाद  चर्चित मीडिया केन्द्रित वेबसाइट भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह ने ऐलान किया है कि 26 अगस्त से वेबसाइट का संचालन बंद कर दिया जाएगा। पिछले एक दशक से मीडिया संस्थानों के न्यूज़ रूम के अंदर और बाहर पत्रकारों और उनके मालिकों के अच्छे-बुरे कर्मों को बेबाकी के साथ प्रकाशित करने वाले यशवंत सिंह आर्थिक संकट की वजह से भड़ास को बंद करने की बात पहले भी करते रहे हैं, लेकिन जैसे-तैसे यह वेबसाइट अब तक चलती आ रही है। अब एक बार फिर यशवंत सिंह ने बकायदा 26 अगस्त का दिन मुर्करर करते हुए भड़ास को बंद करने का ऐलान किया है। यशवंत ने इसकी वजह आर्थिक संकट के साथ ही हिन्दी समाज और समझ को बताया है। भड़ास की भूमिका का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह वेबसाइट देश के ज्यादातर हिन्दी अखबारों व न्यूज़ चैनल के कार्यालयों में बैन कर दी गई है। संपादक की कुर्सी पर बैठकर सामंतों की तरह व्यवहार करने वाले मालिक-संपादकों को हमेशा इस बात की चिंता रहती है कि कहीं उनके काले कारनामे लीक होकर भड़ास तक न पहुंच जाएं। संपादकों की अयाशी से लेकर दलाली तक की खबरों को भड़ास पर जगह मिलती रही है। मीडिया के भीतर की सड़ाध को बाहर लाने में भड़ास का एक अहम रोल रहा है। यही वजह रही है कि भड़ास, भ्रष्ट व सत्ता की दलाली करने वाले पत्रकार व मीडिया मालिकों की आंख की किरकिरी बना रहता है। हालांकि भड़ास पर भी आरोप लगता रहा है कि वह एकतरफा रिपोर्टिंग के जरिये सनसनी की तरह खबरें प्रकाशित करता है और गाहे-बगाहे चिरकुट किस्म के धंधेबाजों को जरूरत से ज्यादा स्पेस देता है। ऐसे वक्त में जब भारत में मीडिया का कारपोरेटीकरण तेजी से हो रहा हैे, और मीडिया संस्थाओं के न्यूज़ रूम में साजिशों, षडयंत्रों का सिलसिला पहले से और भयावह होता जा रहा है, तब भड़ास जैसी संस्थाओं का होना और भी बेहद जरूरी है। ऐसे में भड़ास की बंदी का ऐलान हम सब जो भी उसके चाहने वाले हैं, के लिए एक बुरी खबर है। इस पर हम मातम ही मना सकते हैं! यशवंत की हिम्मत अब अगर जवाब दे रही है और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि  भड़ास के लिए अब मौत ही बेहतर विकल्प है तो यही सही! नई यात्रा के लिए शुभकामनाएं! [लेखक दीपक आज़ाद उत्तराखंड के तेजतर्रार पत्रकार और 'वाचडाग' के एडिटर हैं.]

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Dakhal News 19 July 2017


 नर्मदा सेवा यात्रा

सरकारी खर्चे पर अपने प्रचार-प्रसार का पागलपन किस हद तक जा सकता है। इसका नमूना सामने आया है। शिवराज सिंह सरकार ने भारत ही नहीं बल्कि विदेशी अखबार तक में नर्मदा सेवा यात्रा का विज्ञापन छपवाया। हर विज्ञापन में सीएम शिवराज सिंह चौहान का फोटो था। सरकार ने सेवा यात्रा के प्रचार-प्रसार पर करीब 22 करोड़ रुपए फूंक दिए वो भी उस समय जबकि मध्यप्रदेश पर डेढ़ लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज है और यह बढ़ता ही जा रहा है। सरकार ने न्यूयार्क से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र 'इंडिया एब्रॉड' में विज्ञापन दिया। न्यूयार्क के इस समाचार पत्र को 10 लाख 26 हजार रुपए का विज्ञापन दिया गया था। यह जानकारी विधानसभा में सरकार ने कांग्रेस विधायक डॉ. गोविंद सिंह और जीतू पटवारी के लिखित प्रश्न के उत्तर में दी है।  नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा के पत्र-पत्रिकाओं, इलेक्ट्रॉनिक चैनल और होर्डिंग्स के माध्यम से प्रचार-प्रसार पर सरकार ने 21 करोड़ 58 लाख 40 हजार 344 रुपए खर्च किए। हालांकि सरकार ने यह स्वीकारा कि न्यूयार्क के समाचार पत्र के अलावा किसी विदेशी चैनल को विज्ञापन नहीं दिया। यात्रा के लिए दो इवेंट फर्म मेसर्स भोपाल ग्लास एंड टेंट स्टोर और मेसर्स विजन फोर्स भोपाल को कार्य दिया गया था। यह भी बताया गया है कि नमामि देवि नर्मदे सेवा यात्रा के लिए जनसंपर्क विभाग की तरफ से प्रिंट मीडिया को 10.77 करोड़ रुपए, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को 1.74 करोड़ रुपए का विज्ञापन दिया गया तो इसके मुद्रण कार्य पर 48.71 लाख रुपए खर्च किए गए। इसके अलावा माध्यम ने भी इसके विज्ञापन और प्रचार-प्रसार पर 8 करोड़ 58 लाख 69 हजार 344 रुपए का खर्च किए।

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Dakhal News 19 July 2017


अमिताभ अग्निहोत्री ईटीवी

'के न्यूज' नामक चैनल के संपादक पद से इस्तीफा देकर अमिताभ अग्निहोत्री ईटीवी समूह पहुंच गए हैं. उन्हें ईटीवी में एक्जीक्यूटिव एडिटर बनाया गया है. अमिताभ 'के न्यूज' से पहले टोटल टीवी, समाचार प्लस समेत कई चैनलों में कार्यरत रहे. अमिताभ मीडिया में 30 साल से सक्रिय हैं. जेएनयू से पढ़ाई करने वाले अमिताभ मूलतः फर्रूखाबाद के रहने वाले हैं. करियर की शुरुआत वर्ष 1990 में उन्होंने दैनिक जागरण के दिल्ली से की थी. वे दैनिक आज, दैनिक भास्कर, देशबंधु में भी नौकरी कर चुके हैं.  

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Dakhal News 17 July 2017


रायपुर दैनिक भास्‍कर

दैनिक भास्‍कर, रायपुर को 1985 में कांग्रेस द्वारा प्रेस लगाने के लिए (अविभाजित मध्‍य प्रदेश में) पट्टे पर दी गई ज़मीन को छत्‍तीसगढ़ प्रशासन ने शुक्रवार 7 जुलाई के एक शासनादेश के माध्‍यम से रद्द कर के उस पर प्रशासनिक कब्‍ज़े का आदेश दे दिया है। ज़मीन का कुल आकार 45725 वर्गफुट और अतिरिक्‍त 9212 वर्ग फुट है यानी कुल करीब 5000 वर्ग मीटर है। नजूल की यह ज़मीन रायपुर भास्‍कर को प्रेस लगाने के लिए इस शर्त पर कांग्रेस शासन द्वारा दी गई थी कि संस्‍थान अगर प्रेस लगाने के विशिष्‍ट प्रयोजन से मिली ज़मीन को किसी और प्रयोजन के लिए इस्‍तेमाल करेगा तो शासन उसे वापस ले लेगा। इस ज़मीन का पट्टा 31 मार्च 2015 को समाप्‍त हो चुका था और दैनिक भास्‍कर ने इसके नवीनीकरण के लिए अग्रिम आवेदन किया था। छत्‍तीसगढ़ सरकार के राजस्‍व एवं आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा 7 जुलाई को जारी आदेश कहता है कि कलेक्‍टर रायपुर से प्राप्‍त स्‍थल निरीक्षण प्रतिवेदन में पाया गया है कि ”उक्‍त भूमि पर 7 मंजिला पक्‍का व्‍यावसायिक कांपलेक्‍स बनाया गया है तथा प्रत्‍येक मंजिल पर प्रेस स्‍थापना से भिन्‍न अन्‍य व्‍यावसायिक प्रयोजन के लिए भूमि का उपयोग किया जा रहा है।” इसके बाद शासन ने कई बार अख़बार से इस संबंध में जवाब मांगा लेकिन अखबार प्रबंधन ने जवाब देने के लिए लगातार वक्‍त मांगा और जवाब दाखिल नहीं किया। आदेश कहता है, ”तदनुसार उक्‍त भूमियों पर निर्मित परिसंपत्तियों को निर्माण सहित नियमानुसार राजसात कर बेदखली की कार्यवाही करने हेतु कलेक्‍टर, रायपुर को आदेशित किया जाता है।” आदेश की प्रति प्रधान संपादक, दैनिक भास्‍कर, रायपुर को भी भेजी गई है। सवाल है कि रमन सिंह किस बात पर बिफर गए हैं कि उन्‍होंने रायपुर से दैनिक भास्‍कर का डेरा-डंडा ही उखाड़ने का आदेश दे डाला? सवाल यह भी उठता है कि करीब तीन दशक से रायपुर शहर के भीतर अपना धंधा चला रहा यह अख़बार अब क्‍या करेगा?(साभार- मीडिया विजिल)  

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Dakhal News 16 July 2017


नईदुनिया जागरण समूह

  नईदुनिया जागरण समूह के भारत रक्षा रथ को मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने हरी झंडी दिखाकर किया रवाना। शुक्रवार को मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित भव्य कार्यक्रम में बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे, सामाजिक कार्यकर्ता और गणमान्य लोग शामिल हुए। जानकारी के मुताबिक शुक्रवार को भारत रक्षा रथ पूरे दिन राजधानी रायपुर में घूमेगा। इसके बाद यह रथ बिलासपुर के लिए रवाना हो जाएगा। वहां ये यह रथ जबलपुर, भोपाल, इंदौर और ग्वालियर होते हुए 2 अगस्त को जम्मू पहुंचेगा।

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Dakhal News 14 July 2017


 आनंद पांडे

पत्रकारिता जगत में अभी आनंद पांडे का नईदुनिया से इस्तीफा गंभीर चर्चा का विषय बना हुआ है। जिसने भी इस खबर को सुना, चौंक गया। आनंद पांडेय के फ़ोन घनघनने लगे। जो उन्हें सीधे कॉल नहीं कर सकते थे, वो करीबियों से पर्दे के पीछे की कहानी समझने की कोशिश करते रहे। अफवाहों का बाजार गर्म हो गया। लेकिन हकीकत किसी को पता नहीं कि आखिर इस्तीफा हुआ क्यों? इसके लिए थोड़ा बैक ग्राउंड जानना जरूरी है। नवंबर 2014 में पांडे जी ने दैनिक भास्कर से इस्तीफा दिया था। उस वक़्त वो भास्कर ग्रुप में शिखर पर थे। उनकी तेज तर्रार कार्यशैली के भास्कर के एमडी सुधीर अग्रवाल और डायरेक्टर गिरीश अग्रवाल इतने प्रभावित हुए कि उनका प्रमोशन पर प्रमोशन होता गया। एडिटोरियल से लेकर ब्रांड और अवार्ड organising कमिटी के वो मेंबर बन गए। हर महत्वपूर्ण इवेंट के लिए उनकी राय ली जाने लगी। पांडेजी के बढ़ते कद से ग्रुप एडिटर कल्पेश याग्निक तक को अपनी कुर्सी का खतरा महसूस होने लगा। सुधीरजी ने पांडे जी के काम को देखते हुए उन्हें गुजरात की बड़ी जिम्मेदारी दी। भाषायी प्रॉब्लम के कारण आनंदजी जाना नहीं चाहते थे और खुलकर इस बात को सुधीरजी के समाने रख भी नहीं पा रहे थे। इसी दौरान उन्हें नईदुनिया से आफर आया। एडिटर इन चीफ संजय गुप्ता से 2-3मीटिंग के बाद उन्होंने नईदुनिया जॉइन कर लिया। पद-पैसा दोनों की तरक्की हुई। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि श्रवण गर्ग के कार्यकाल में पहले से ही कमजोर हो चुका नईदुनिया रसातल में जा चुका था। पांडे जी ने challenge स्वीकारा। उन्हें काम करने की पूरी आजादी दी गई। वो भास्कर संस्थान के ही महत्वपूर्ण व्यक्ति मनोज प्रियदर्शी को नईदुनिया लाने में कामयाब रहे। सीनियर न्यूज़ एडिटर प्रियदर्शी को महत्वपूर्ण सेंट्रल डेस्क (एमपी-सीजी) की जिम्मेदारी उन्होंने दी। शुरुआती विरोध के बाद पांडे जी ने अपनी कार्य योजना को अंजाम देना शुरू किया। नए-नए आईडिया पर काम शुरू हुआ। अखबार चर्चा में आने लगा। चूंकि पांडे और प्रियदर्शी, दोनों भास्कर को बखूबी समझते थे, इसलिए अनेकों बार लोग फ्रंट पेज पढ़कर आश्चर्य में पड़ जाते थे कि भास्कर और नईदुनिया लगभग एक जैसा न्यूज़ कंटेंट और पैकेज कैसे दे रहे हैं? इसके बाद रुमनी घोष के काम से संतुष्ट नहीं होने के कारण सिटी की जिम्मेदारी प्रमोद त्रिवेदी को दी गई। उससे पहले भोपाल का संपादक भी बदल दिया गया और भास्कर के ही सुनील शुक्ला को वहां बैठाया गया। नईदुनिया ने अपने कामों से मुकाम हासिल करना शुरू किया। 'निःशब्द ' वाली तस्वीर हो या रेत-शराब के ठेके जैसी खबरें... सरकार हिलने लगी। जागरण के मालिकों को ये सूट नहीं कर रहा था। इस बीच संजय शुक्ला ने बतौर सीओओ जॉइन किया। उन्हें भी पांडेजी की तेज-तर्रार कार्यशैली से परेशानी होने लगी। वे खुद की मनमानी नहीं कर पा रहे थे, इसलिए उन्होंने मालिकों के कान भरने शुरू किए। पांडेजी अखबार को आगे ले जाना चाहते थे। लेकिन संजय शुक्ला के हर बात में टांग अड़ाने से वो इसे अंजाम नहीं दे पा रहे थे। कई कोशिशों के बाद भी रायपुर संपादक का प्रिंट लाइन में नाम नहीं दिया गया। जागरण ग्रुप के संजय गुप्ता ने कई दफे संजय शुक्ला को फटकार लगाई, चेतावनी दी, लेकिन उसके बावजूद वो एडिटोरियल और उनके खिलाफ साजिश करता रहा। लोग कहते हैं कि स्थानीय संपादक आशीष व्यास भी इसमें पर्दे के पीछे शामिल हो गए। इस बीच अचानक बिना जानकारी दिए जागरण मैनेजमेंट ने वाराणसी यूनिट प्रभारी आलोक मिश्र को रायपुर में राज्य संपादक बनाकर बैठा दिया। तीन ब्यूरो बंद कर दिए गए। पांडेजी जो सोचकर आए थे, उसमें उन्हें निराशा हाथ लगी। काम से ज्यादा सियासत होने लगी। इस बात को संजय गुप्ता भी नहीं समझ सके। इस बीच भास्कर ग्रुप से हर दो-तीन महीने में पांडेजी का बुलावा आने लगा। एमडी हर हाल में चाहते थे कि आनंद पांडे जल्द से जल्द जॉइन करें। चूंकि नईदुनिया और जागरण ग्रुप से उनका नेचर जेल नहीं कर रहा था और सियासत भी तेज हो गई थी, लिहाजा उन्होंने नईदुनिया को छोड़ना ही बेहतर समझा। भास्कर की भी कोशिश है कि नईदुनिया के सिर्फ 4-5 प्रमुख लोगों को वो तोड़े, जिससे इस अखबार का बचा-खुचा अस्त्तित्व भी खत्म हो जाए। इसके लिए वह इन्हें मुँह मांगी कीमत भी देने को तैयार है। वैसे ये चर्चा आम हो चली है कि पांडे जी के जाने के बाद नईदुनिया सामान्य अखबार बन जायेगा। उनके साथ जुड़े लोगों के साथ ही 2-3 और लोगों के भी नईदुनिया छोड़ने की अफवाह है। इसमें सबसे फायदे में आशीष व्यास हैं, जो लंबे वक्त से बड़ी कुर्सी पर नजर गड़ाए हैं। लोगों का कहना है कि श्रवण गर्ग को हटाने और आनंन्द पांडे का संबंध मैनेजमेंट से बिगाड़ने में उनकी बड़ी भूमिका हैं। [एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.भड़ास फॉर मीडिया से ]

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Dakhal News 12 July 2017


 प्रदीप परिहार

जी मप्र और छग के एसाइनमेंट हेड प्रदीप परिहार ने इस्तीफा दे दिया है. बताया जा रहा है वे किसी बड़े समूह के साथ जल्द ही अपनी पारी की शुरुआत करने जा रहे हैं. प्रदीप करीब तीन सालों से जी मीडिया के साथ जुडे हुए थे. इसके पहले वे ANI के साथ काम कर चुके हैं. प्रदीप की मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में राजनीतिक पकड़ काफी मजूबत मानी जाती है. साथ ही उनका रीजनल नेटवर्क भी बहुत तगड़ा है. प्रदीप ने जी में रहते हुए भोपाल और रायपुर में अच्छी रिपोर्टिंग भी की है. प्रदीप का इस्तीफा देना जी मप्र–छग के तगड़ा झटका माना जा रहा है.

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Dakhal News 11 July 2017


RSS की वेबसाइट सेवा गाथा

    मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि सबसे बड़ा धर्म जरूरतमंद की सेवा है। मदद के अच्छे कार्यों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिये। अच्छे कार्यों की जानकारियाँ लोगों को प्रोत्साहित करेंगी। इससे अच्छाई को मजबूती मिलेगी। समाज में सकारात्मक वातावरण बनेगा। श्री चौहान आज समन्वय भवन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सेवा प्रभाग की वेबसाईट 'सेवा गाथा' का लोकार्पण कर रहे थे। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि भारतीय चिंतन सारे विश्व को परिवार मानता है। एक ही चेतना सभी प्राणियों में देखता है। स्वयंसेवक संघ ऐसा ही विशाल हृदय वाला राष्ट्रवादी संगठन है। यह संगठन समाज के लिये जीने वाले नागरिकों का निर्माण करता है। सेवा के संकल्प में सर्वस्व अर्पित कर, समाज को रोशन करने का कार्य, इसके स्वयंसेवक करते हैं। उन्होंने मातृ छाया, आनंद धाम आदि सेवा कार्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि वहाँ के रहवासियों का स्वावलंबी और समरस जीवन देख आत्मिक आनंद की प्राप्ति होती है। ऐसे कार्यों का व्यापक प्रचार–प्रसार किया जाना चाहिये। इससे नैराश्य का भाव दूर होता है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि वेबसाइट से समाज को अच्छे कार्यों की प्रेरणा और नई ऊर्जा मिलेगी। संघ के सरकार्यवाह श्री सदाशिव सुरेश जोशी भैय्या जी ने कहा कि भारतीय जीवन-शैली में सेवा का संस्कार रचा-बसा है। यहाँ मानव सेवा ईश्वर की सेवा मानकर की जाती है। उन्होंने कहा कि सेवा कार्य निश्चित धारणा के साथ नहीं हो सकता है। इसके लिये दृष्टि और संवेदनशील विचारधारा की जरूरत है। बंधु भाव के साथ जरूरतमंद की पीड़ा, वेदना और दुर्बलता को समझ सेवा कार्य किया जाना चाहिये। इस भावना के साथ किये गये कार्यों के परिणाम सदैव अच्छे होते हैं। उन्होंने कहा कि गलत सामाजिक मान्यताओं से पीड़ित, अस्थिर जीवन शैली और दूरस्थ अंचलों में रहने वालों का एक बहुत बड़ा ऐसा वर्ग है, जो अपने मौलिक सामाजिक अधिकारों से वंचित है। उनमें बेहतर जीवन का आत्म-विश्वास जगाने के लिये समाज को विचार करना होगा। सामाजिक प्रश्नों के हल समाज को ही खोजने होंगे। उन्होंने आशा व्यक्त की कि वेबसाइट की गाथाएँ, सेवा कार्य के लिये लोगों को आगे आने के लिये प्रेरित करेंगी। अतिथियों का स्वागत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत संचालक मध्य भारत श्री सुरेश पिंपलीकर ने किया। आभार प्रदर्शन सह प्रांत संचालक मध्य भारत श्री अशोक पांडे ने किया। सेवा गाथा वेबसाइट की संपादक श्रीमती विजय लक्ष्मी ने गाथाओं के संकलन, वेबसाइट के स्वरूप और उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। वेबसाइट सृजक श्री स्वप्निल पारखिया ने तकनीकी पहलुओं की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मोबाइल फ्रेंडली होने के साथ ही फेसबुक और ट्वीटर पर शेयर भी की जा सकेगी।

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Dakhal News 10 July 2017


पत्रकार  शैलेन्द्र तिवारी

जनसंपर्क, जल-संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र को आज पत्रकार और लेखक श्री शैलेन्द्र तिवारी ने हाल ही में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'रावण एक अपराजित योद्धा' पुस्तक भेंट की। मंत्री डॉ. मिश्र ने लेखक श्री तिवारी को रचनात्मक लेखन और पुस्तक प्रकाशन के लिए बधाई दी

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Dakhal News 9 July 2017


पत्रकार अनुराग उपाध्याय की कविता

आक्रामक शैली में लिखने वाले चर्चित पत्रकार अनुराग उपाध्याय एक बेहतरीन कवि भी हैं। उनकी रचनाएँ जिंदगी और प्रकृति के इर्दगिर्द बतियाती हुई प्रतीत होती हैं। ऐसी ही उनकी एक रचना।  संपादक    //धूप // सुबह सुबह बिन बताये  तुम्हारी तरह  धूप जीने से उतर आई मेरे अँधेरे कमरे में । सुबह की धूप  का मिजाज तुम सा ही है, एकदम सिंदूरी  तमाम सौम्य लालिमा को खुद में समेटे।   दोपहर में तमतमाती हुई धूप तुम्हारी तरह घुस आई मेरे कमरे में, जैसे हो उसे मुझसे झगड़ना ठीक तुम जैसा उग्र रूप मैं समझ ही नहीं पाया तुम थीं या धूप  अद्भुत है धूप का ये रूप।   विदा हो रही थी धूप साँझ को मेरे कमरे से  तुम्हारी तरह, कुछ ठिठकी सी, कुछ अनमनी सी कुछ कहना चाहती लेकिन चुप सी कल आने का कुछ कहने का वादा करके  मेरे कमरे से रुखसत हो गई धूप। *अनुराग उपाध्याय

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Dakhal News 8 July 2017


रजत शर्मा -इंडिया टीवी की वाट लगी

बार्क की 26 वें सप्ताह की टीआरपी ने रजत शर्मा एण्ड कंपनी के होश उड़ा दिए हैं। रजत शर्मा के इंडिया टीवी को ऐसा झटका लगा कि वो खिसक कर  छठवे नंबर पर पहुँच गया है। इंडिया टीवी के महादफ्तर ब्रॉडकास्ट सेंटर में आपातकालीन बैठकों के दौर शुरू हो गई हैं और पूरे सम्पादकीय विभाग को नए सिरे से खड़ा करने पर विचार किया जा रहा है। इण्डिया टीवी में प्रमुख पदों पर बैठे लोगों को बहार करने पर भी कंपनी विचार कर रही है।    नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 26 Aaj Tak 16.6 up 0.1  Zee News 16.0 up 1  ABP News 12.0 dn 0.3  News18 India 10.5 dn 0.3  News Nation 10.0 up 0.2  India TV 9.7 dn 0.3  India News 8.8 dn 0.5  News 24 7.4 up 0.2  Tez 3.5 same   NDTV India 2.8 dn 0.2  DD News 2.7 up 0.2    TG: CSAB Male 22+ Zee News 17.7 up 2.1  Aaj Tak 16.3 same   ABP News 11.7 same   News18 India 11.3 dn 0.7  India TV 10.2 dn 0.5  News Nation 9.0 dn 0.4  India News 7.5 dn 0.6  News 24 6.8 up 0.1  Tez 3.8 up 0.1  NDTV India 3.2 dn 0.6  DD News 2.5 up 0.5 मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव न्यूज़ चैनल Week 26   Zee                       64.6 Etv.                        21.8 Ibc 24                   10.0 Sahara  sa            1.7 Bansal                   0.9

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Dakhal News 6 July 2017


पत्रकार शिवअनुराग पटैरया

  मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार शिवअनुराग पटैरया साल में एक दो किताबें तो लिख ही देते हैं। उनके इस अंदाज पर भोपाल के प्रदेश टुडे अखबार के कॉलम सूरमा की फैंक में खूब लिखा गया है।  सूरमा ने लिखा -ए खुदा अता कर मुझे इल्म की दौलत, इतनी अता कर जितना समंदर का पानी। शिवअनुराग पटैरया, सूबे के वो सहाफी हैं जो इल्मो-अदब से भी बावस्ता हैं। गोया के पत्रकार तो भोत सारे होते हैं बाकी ज्ञान, रिफरेंस और भाषा पे हरएक का अधिकार नहीं होता। पटैरयाजी के बारे में इस बात से हर कोई इत्तफाक रखता है कि मियां खां पत्रकारिता के साथ ही सूबे की तारीख, रिवायत, कल्चर वगैरह का जीता जागता रिफरेंस हैं। मध्यप्रदेश की सियासत और यहां के तमाम मुख्यमंत्रियों की खासियतें और किस्सों की तो खान हैं पंडितजी। जाहिर है छतरपुर के इस बुंदेली खांटी पत्रकार ने सहाफत में अड़तीस-चालीस साल ऐसेई नर्इं बिता दिये। चीजों को समझना, मेहसूस करना और अपने इल्म को दूसरों में बांटने की इनकी अदा ही निराली है। पत्रकारिता का कोई भी तालिबे इल्म इनसे कभी भी कोई रिफरेंस या जानकारी बेखटके ले सकता है। भैया ने कई किताबें लिखीं। हाल ही में इनकी एक और किताब आई है। मध्यप्रदेश: अतीत और आज। 453 पेज की इस किताब को मप्र हिंदी ग्रंथ अकादमी ने शाया किया है। इसके 56 चेप्टरों में सूबे की भाषा, बोली, शिल्प, कल्चर, मेले, तीज-त्यौहार, लोकनाट्य, खानपान वगैरह पे बेहद सटीक सामग्री है। इसे लिखने में कोई ढाई साल रिसर्च की पटैरयाजी ने। बिलाशक ये किताब पत्रकारिता के तालिबेइल्म बच्चों के लिए भी भोत सटीक साबित होगी। इस नायाब किताब के लिए मुबारकबाद कुबूल करें जनाब। 

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Dakhal News 5 July 2017


ईटीवी भारत

इनाडु ग्रुप ‘ईटीवी भारत’ लांच कर रहा है. यह इनाडु समूह का डिजिटल नेशनल न्यूज प्लेटफॉर्म होगा. इसमें ढेर सारे मीडियाकर्मियों की जरूरत है. न्यूज कोऑर्डिनेटर, रीजनल न्यूज कोऑर्डिनेटर, न्यूज एडिटर, ब्यूरो चीफ, चीफ-सीनियर कंटेंट एडिटर (शिफ्ट इंचार्ज), कंटेंट एडिटर, रिपोर्टर, बुलेटिन प्रड्यूसर, पैनल प्रड्यूसर, न्यूज कास्टर, कंटेंट रिसर्चर आदि के लिए आवेदन मांगा गया है. ये सभी पद हैदराबाद स्थित रामोजी फिल्म सिटी के लिए हैं. अनुभवीं लोगों को प्राथमिकताएं दी जाएगी. फ्रेशर भी आवेदन कर सकते हैं.

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Dakhal News 4 July 2017


etv up

  इसे 'जल्दबाज़ी जो न कराए' तभी कहा जाएगा जब यह मानवीय गलती हो. यानि 24 घंटे की जगह 25 घंटे गलती से टाइप हो गया हो. पर अगर जानबूझ कर 25 घंटे लिखा और दिखाया गया है तो इसका मतलब साफ है कि ईटीवी समूह योगी को तेल लगाने के चक्कर में खुद को अनपढ़-गंवार चैनल साबित करने से भी गुरेज नहीं कर रहा है. वैसे कहा भी जाता है कि मुख्यधारा की मीडिया में मोदी और योगी के प्रति प्रेम इस कदर उमड़ा है कि इनके अलावा देश में कोई दूसरा कायदे का नेता ही नहीं नजर आता है. फिलहाल सोशल मीडिया पर ईटीवी की इस गंभीर चूक को लेकर लोग खूब मजे ले रहे हैं.[साभार भड़ास फॉर मीडिया ]

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Dakhal News 1 July 2017


इंडिया टीवी की हालत ख़राब ,पहुंचा पांचवे नंबर पर

इस साल के 25 सप्ताह बीत जाने पर सबसे ज्यादा नुक्सान रजत शर्मा के इंडिया टीवी को हुआ है। चैनल पहले नंबर से खिसक खिसक पर पांचवे नंबर पर पहुँच गया है।  इंडिया टीवी की जितनी हालत अजीत अंजुम के आने के बाद ख़राब हुई है इतनी बुरी स्थिति उसके शुरुवाती दौर 2004 में भी नहीं रही। इंडिया टीवी के सूत्र बताते हैं अजीत अंजुम की कार्यप्रणाली से वहां का सारा स्टाफ नाराज़ है और उनकी चैनल में फैलाई गुटबाजी का नतीजा चैनल को भोगना पड़ रहा है। खबर तो यहाँ तक है कि अजीत अंजुम अपनी कार्यप्रणाली नहीं ठीक करते हैं तो इंडिया टीवी प्रबंधन तत्काल उनका विकल्प खोजना पडेगा। इंडिया टीवी के हाल इस कदर ख़राब हुए हैं कि अब न तो उसके पास दमदार ख़बरें न ही कोई बड़ी ब्रेकिंग ख़बरें। चैनल के रिपोर्टर भी सुस्त पड़े हैं और किसी का भी बड़ी ख़बरों  से कोई लेनादेना नजर नहीं आता है।    नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 25 Aaj Tak 16.6 dn 0.3  Zee News 15.0 up 0.7  ABP News 12.3 up 0.4  News18 India 10.8 up 0.3  India TV 10.1 dn 0.6  News Nation 9.8 dn 0.7  India News 9.3 up 0.1  News 24 7.2 dn 0.3  Tez 3.4 up 0.1  NDTV India 3.0 up 0.2  DD News 2.5 up 0.2    TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.4 same   Zee News 15.6 up 0.5  News18 India 12.0 up 0.4  ABP News 11.7 up 0.2  India TV 10.7 dn 0.8  News Nation 9.4 dn 0.6  India News 8.1 dn 0.1  News 24 6.7 dn 0.2  NDTV India 3.8 up 0.5  Tez 3.7 up 0.1  DD News 2.0 dn 0.1   मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव न्यूज़ चैनल Week 25   Zee                       61.7 Etv.                        23.9 Ibc 24                   10.5 Sahara  sa            1.6 Bansal                   1.0  

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Dakhal News 29 June 2017


एबीपी न्यूज़  जीएसटी

मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने नई दिल्ली में  जी.एस.टी. पर एबीपी न्यूज़ द्वारा आयोजित चर्चा में कहा कि जी.एस.टी. राज्य और देश के आर्थिक विकास के लिए लाभदायक सिद्ध होगा। जी.एस.टी. से देश का फायदा होगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नई सोच और पहल एवं वित्त मंत्री  अरुण जेटली के अथक प्रयास के कारण ही जीएसटी लागू होने से एक देश और एक कर व्यवस्था पूरे देश में आगामी एक जुलाई से लागू होगी। श्री चौहान ने कहा कि 30 जून को रात्रि 12 बजे पार्लियामेंट हाउस के प्रांगण में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी नई कर व्यवस्था का शुभारम्भ करेंगे। यह एक ऐतिहासिक पल होगा जिसजी.एस.टी. राज्य और देश के आर्थिक विकास के लिए लाभदायक सिद्ध होगा से जनता को 16 करों और उपकरों से आजादी मिलेगी, 1150 चुंगियों से निजात मिलेगी, टैक्स पर टैक्स लगने से आजादी मिलेगी, टैक्स ऑफिस के चक्कर लगाने से मुक्ति मिलेगी और पूरे देश में अलग-अलग कीमतों से छुटकारा मिलेगा तथा कर की जटिलताओं से आजादी मिलेगी। श्री चौहान ने बताया कि जी.एस.टी. लागू होने से कारोबार करना और आसान हो जायेगा। नौकरी के अवसर बढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि किसान सबसे बड़ा उपभोक्ता है वह भी इस नई कर प्रणाली से लाभ उठायेगा। आम आदमी के उपयोग की वस्तुओं के दाम घटेंगे और महँगाई कम होगी। वहीं दूसरी तरफ विलासिता वाली चीजों के दाम बढ़ेंगे। आम आदमी को राहत मिलेगी। नाके और चेक-पोस्ट खत्म होंगे। छोटे व्यापारियों को लाभ होगा। इंस्पेक्टर राज की समाप्ति होगी। उन्होंने बताया कि नयी कर प्रणाली से जुड़ी राज्यों की सभी आशंकाओं का निराकरण किया जा चुका है। इसके बाद भी जी.एस.टी. काउंसिल में राज्यों के वित्त मंत्रियों के माध्यम से शेष आशंकाओं को दूर किया जा सकेगा। श्री चौहान ने बताया कि मध्यप्रदेश में वाणिज्यिक कर विभाग द्वारा प्रत्येक स्तर पर जी.एस.टी. हेल्प डेस्क बनाई गई है। इस तरह की हेल्प डेस्क की संख्या 101 है। विभाग के अधिकारियों को जी.एस.टी. का प्रशिक्षण दिया जा चुका है तथा पूरे प्रदेश में लगभग 300 से अधिक कार्यशालाएँ आयोजित की गई हैं जिसमें नई कर प्रणाली जी.एस.टी. की बारीकियों को समझाया गया है। जी.एस.टी. के आने से राज्यों की आय में वृद्धि होगी और राज्य का विकास होगा।  

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Dakhal News 28 June 2017


पत्रकार राघवेंद्र की कलम से

राघवेंद्र सिंह राजनीति में एक जमाना था खास तौर पर कांग्रेस में, जब यह जुमला चलता था खाता न बही केसरी कहे वही सही... केसरी से तात्पर्य श्री सीताराम केसरी था। केसरी कांग्र्रेस के कोषाध्यक्ष थे बाद में वे राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने। कांग्र्रेस सत्ता में थी और सत्ताधारी दल के पास नामी-बेनामी चंदा बहुत आता है। सो उनके पास भी पैसे देने वालों की रेलमपेल मची रहती थी। मगर सत्ता के तमाम दुर्गुणों से भरी कांग्रेस में काजल की कोठरी में बैठे केसरी जी जो कहे वह सही माना जाता था। इसके पीछे नेतृत्व, कार्यकर्ता और जनता का भरोसा होना बड़ी बात थी। मगर यह गुजरे जमाने की बात हो रही है। अब सबसे ज्यादा संकट भरोसे का है और यह हर दिन टूट रहा है। यह मुसीबत तो देशव्यापी है मगर हम फोकस कर रहे हैैं मध्यप्रदेश पर। सत्ता संगठन और नौकरशाही ....सब के सब चाहते हैैं कि जो वह कहे वही सही लेकिन कोई ऐसा केसरी नहीं हो पा रहा है। कांग्रेस भी अपने केसरी की तरह नहीं। वह जनता के लिये संघर्ष करने एकजुट होने की बही तो खोलती है लेकिन खाते में सब सही नहीं दिखता। धर्म आधारित राजनीति का झंडा उठाने वाली भाजपा के धर्मराजों के रथ भी जो कभी जमीन से उपर चलते थे नीचे आ रहे हैैं। सात किसानों की मौत पर सत्ताग्र्रह करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उपवास पर ही प्रश्न खड़े हो चुके हैैं। वे किसान व जनहितैषी छवि को उजला करने के लिये पसीने-पसीने हो रहे हैैं। इसमें प्रदेश भाजपा और मंत्रीगण मदद तो कर रहे हैैं मगर अटपटी सी। प्रदेश अध्यक्ष नंदू भैया कहते हैैं किसानों की आत्महत्या के पीछे कर्ज को कारण बताना फैशन हो गया है। यह जख्मों पर नमक जैसा लगता है। कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन कहते हैैं दो सौ करोड़ की प्याज किसानों से खरीदेंगे भले ही भंडारण के अभाव में वह सड़ जाये। तेरह साल की सरकार भंडारण की व्यवस्था नहीं कर पाई, उचित दाम तय नहीं कर पाई जबकि उसका वादा दावा था कि किसानी लाभ का धंधा बनायेंगे और वह बन गया आत्महत्या का धंधा। विश्वास के टूटने की हजारों हजार वजहों में एक बड़ी वजह है। आमजन 2003 से भरोसा करके ही भाजपा को वोट देते आ रहे हैैं।  लेकिन खेती को लाभ का धंधा बनाने की तोता रटंत झूठ ही साबित हो रही है। भोला किसान इस सदमे को सह नहीं कर पा रहा है और उसकी आत्महत्या को सत्ताधारी दल तरह तरह के नाम दे रहे हैैं। इससे मुख्यमंत्री की छवि और भाजपा का ब्रांड मटियामेट हो रहा है। नेताओं के टूटते भरोसे के बीच करेला और नीम चढ़ा यह हो रहा है कि नौकरशाही ने झूठ बोलने में नेताओं को भी मात दे दी है। सबसे भयानक उदाहरण मंदसौर किसान गोलीकांड का है। जिसमें कलेक्टर एसपी तो होम मिनिस्टर से लेकर सीएम तक से झूठ बोलते रहे हैैं कि आंदोलनकारी किसानों की मौत पुलिस गोली से नहीं हुई। हालांकि बाद में सरकार ने स्वीकार किया पुलिस से ही किसान मरे। यह अपराध करने वाले कलेक्टर एसपी पंद्रह दिन बाद सस्पेंड किये गये। अभी इस सदमे से सूबा और सरकार उबरे भी नहीं थे कि भोपाल के कलेक्टर (अब इंदौर) निशांत बरबड़े ने अपने वरिष्ठ अफसरों को बता दिया कि किसानों से खरीदी गई हजारों क्विंटल प्याज का नब्बे फीसदी परिवहन हो गया है। वे सीएम की आंख के तारे अफसर हैैं सो भोपाल सिम्मी जेल तोड़ कांड के बाद भी उन्हें राज्य की आर्थिक राजनीति इंदौर की कमान लगता है इन्हीं काबिलियत भरी बातों के कारण सौैंप दी गई। हालांकि मुख्य सचिव वी.पी. सिंह ने तंज कसा कि यही है सक्सेसफुल अफसर की निशानी। लेकिन यहां मुख्य सचिव थोड़ा कमजोर साबित हुये उन्होंने सदन में गलत जानकारी देने से लेकर गोलीकांड और प्याज परिवहन के मसले पर कठोर कार्रवाई नहीं की।  ऐसी तमाम कमजोरियों के लिये कार्रवाई नहीं करने के लिये इतिहास में नेता-अफसरों को दागी के रूप में याद किया जायेगा। अफसर झूठ बोल रहे हैैं साथ ही नेताओं पर अवांछित टिप्पणी कर नियम कायदों का उल्लंघन कर रहे हैैं। लगता है कोई देखने सुनने वाला नहीं है। भाजपा का टूटता विधान नियम अनुशासन से चलने वाली प्रदेश भाजपा में लगता है स्वेच्छाचारिता हावी है। बयानवीरों को छोड़ दें  तो संगठन चलाने वालों का रवैया ऐसा है मानो वे पालिटिकल टूरिज्म पर आये हैैं। प्रदेश युवा मोर्चा पार्टी संविधान के बाहर जाकर निर्णय कर रहा है। मनमाने तरीके से तेरह समितियां गठित कर दीं। उस पर एतराज के बाद मोर्चा अध्यक्ष का बयान आता है कि जिन्हें आपत्ति है वे अपने पदों से त्यागपत्र दे दें। ऐसा लगता है पार्टी में इवेंट का नशा उसे जन संगठन के बजाये प्राइवेट प्रापर्टी में बदल रहा है। यह बीमारी प्रदेश भाजपा को भी लगी है। इसकी एक मिसाल यह है कि परंपरा के मुताबिक जिला भाजपा अध्यक्षों के द्वारा अपने जिले में भाजयुमो से लेकर अन्य मोर्चो की इकाइयां घोषित की जाती हैैं। ताकि वे मोर्चा उनके आग्र्रह पर पार्टी हित में काम करे। इसे समझने के लिये एक उदाहरण यह है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ही प्रदेश के मोर्चा अध्यक्षों की घोषणा करते हैैं न कि राष्ट्रीय अध्यक्ष। अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदेश के मोर्चा अध्यक्षों का ऐलान दिल्ली से  करे तो केसा रहेगा? होगा यह कि दिल्ली से घोषित मोर्चा अध्यक्ष अपने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की सुनेंगे ही नहीं। अब हो यह रहा है कि प्रदेश भाजपा कार्यालय से जिलों के मोर्चा अध्यक्षों की घोषणा हो रही है। ऐसे में आने वाले दिनों में जिला भाजपा अध्यक्षों की पकड़ से मोर्चा नेता निकल जायेंगे। वे मनमानी करेंगे तो उन्हें रोकने वाला कोई नहीं होगा क्योंकि वे तो प्रदेश नेतृत्व सीधे जुड़े हैं उनके द्वारा घोषित किये गये हैैं। इसके अलावा हर मोर्चा की कार्यकारिणी सदस्यों की संख्या जो कि अध्यक्ष समेत छियालीस होनी चाहिये उसका भी पालन नहीं हो रहा है। चिंताजनक यह है कि प्रदेश अध्यक्ष, संगठन महामंत्री से लेकर प्रदेश प्रभारी सब खामोश है। जबकि पार्टी विधान में पेज 32 के कालम छह में सब स्पष्ट है। मगर सब टूट फूट रहा है। नियम, परंपरा और भावनाएं भी...।

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Dakhal News 27 June 2017


इंडिया टीवी -अजीत अंजुम

इंडिया टीवी चैनल की टीआरपी लगातार गिरने से चैनल में हड़कंप मचा हुआ है. रजत शर्मा एंड कंपनी धांय-धूंय पर आमादा दिख रही है. सबसे भारी दबाव में अजीत अंजुम हैं. अंजुम जी के खासमखास आउटपुट हेड संत प्रसाद ने इस्तीफा दे दिया है. अब अंजुम पर दबाव है कि हफ्ते-दो हफ्ते में टीआरपी दुरुस्त करो वरना जाओ. बताया जा रहा है कि अजीत अंजुम ने अपने खास लोगों को इशारा कर दिया है कि जो अपनी जहां व्यवस्था कर पा रहा हो, कर ले. उधर, चर्चा है कि शाजी जमां या विनोद कापड़ी में से कोई एक इंडिया टीवी आ सकता है. विनोद कापड़ी लगातार फ्लाप फिल्में बनाने से काफी संकट में आ गए हैं और आजकल शिद्दत से नौकरी तलाश रहे हैं. पर उनके अतीत को देखते हुए कहीं कोई घास नहीं डाल रहा. ऐसे में वह अपने पुराने बॉस रजत शर्मा के पास रिरियाते हुए पहुंचे. कहा जा रहा है कि विनोद कापड़ी के चाल चरित्र चेहरे को देखते हुए इंडिया टीवी प्रबंधन उन्हें पूरा दायित्व नहीं देना चाह रहा. इसलिए संभव है कि वे संपादकीय सलाहकार टाइप का कोई पद पा जाएं. हालांकि यह अभी तक फाइनल नहीं है कि उनकी इंट्री किसी भी रूप में इंडिया टीवी में हो रही है या नहीं.  हां, रजत शर्मा और विनोद कापड़ी के बीच एक लंबी बैठक हो चुकी है, यह तो कनफर्म है. शाजी जमां एबीपी न्यूज से इस्तीफा देने के बाद से खाली बैठे हैं. अकबर पर एक किताब लिखने के बाद शाजी जमां किसी उपयुक्त मंच की तलाश में हैं. पर इंडिया टीवी का जो भाजपाई तेवर है, उसमें शाजी जमां वहां खुद को कैसे एडजस्ट करेंगे या रजत शर्मा उन्हें लाने को कितना उत्सुक होंगे, ये दोनों सवाल मुंह बाए खड़े हैं. इंडिया टीवी के सूत्रों का कहना है कि अजीत अंजुम को प्रबंधन ने दो हफ्ते का नोटिस दे रखा है. खासकर रजत शर्मा की पत्नी रीतू धवन बहुत नाराज चल रही हैं और उन्होंने इंडिया टीवी के पांच नंबर पर लुढ़क कर गिरने के बाद अजीत अंजुम की लंबी क्लास ली है. ज्ञात हो कि अजीत अंजुम इंडिया टीवी में आने के बाद यहां काम कर रहे कई पुराने लोगों की नौकरी खा चुके हैं और अपने कई खास लोगों की भर्ती कर चुके हैं. बावजूद इसके टीआरपी न आने से प्रबंधन नाराज है. उधर, चौथी दुनिया में लंबे समय से कार्यरत मनीष कुमार ने भी इंडिया टीवी ज्वाइन कर लिया है. मनीष लंबे समय तक चौथी दुनिया के एडिटर इन चीफ संतोष भारतीय के खासमखास हुआ करते थे.[भड़ास फॉर मीडिया से साभार ]  

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Dakhal News 26 June 2017


इंडिया टीवी की हालत पतली

इण्डिया टीवी की हालत लगातार पतली हो रही है ,रजत शर्मा का जादू भी दर्शकों पर असर नहीं डाल पा रहा है और ऐसे में कमजोर खबरदारी ने सात साल में पहली बार उसे चौथे नंबर पर धकेला है। वहीँ एबीपी न्यूज़ भी कुछ ख़ास नहीं कर पाया। ऐसे में आजतक नंबर वन और ज़ी न्यूज़ नंबर दो की पोजीशन पर कायम है।  नेशनल न्यूज़ चैनल Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 24 Aaj Tak 16.8 up 0.2  Zee News 14.3 dn 0.3  ABP News 12.0 dn 0.5  India TV 10.7 dn 0.1  News18 India 10.5 dn 0.1  News Nation 10.5 same   India News 9.2 up 0.2  News 24 7.5 up 0.5  Tez 3.3 up 0.3  NDTV India 2.9 dn 0.1  DD News 2.3 dn 0.1    TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.4 dn 0.2  Zee News 15.0 dn 1.2  News18 India 11.6 up 0.6  ABP News 11.5 dn 0.2  India TV 11.5 up 0.1  News Nation 10.0 up 0.4  India News 8.2 up 0.4  News 24 6.9 up 0.2  Tez 3.6 up 0.2  NDTV India 3.3 dn 0.2  DD News 2.1 dn 0.1 मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव न्यूज़ चैनल Week 24   Zee                       72.4 Etv.                        13.7 Ibc 24                    9.4 Sahara  sa            2.8 Bansal                   0.8

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Dakhal News 22 June 2017


राज्य सभा टीवी

राज्य सभा टीवी में जॉब की चाह रखने वालों के लिए सुनहरा मौका है। यहां विभिन्न पदों के लिए आवेदन निकाले गए हैं, जिसके लिए उसने वॉक इन इंटरव्यू/स्किल टेस्ट का सिस्टम अपनाया है। ये पोस्ट प्रड्यूसर (हिंदी), असोसिएट कॉपी एडिटर (न्यूज मीडिया- हिंदी व अंग्रेजी), सीनियर एंकर (हिंदी), एंकर (हिंदी), सीनियर गेस्ट कोआर्डिनेटर, गेस्ट कोआर्डिनेटर, जूनियर गेस्ट कोआर्डिनेटर, विडियो लाइब्रेरियन, विडियो लाइब्रेरियन  के लिए निकाली गई हैं। बता दें कि इन पदों के लिए 21 से 58 साल तक के योग्य व्यक्ति आवेदन कर सकते हैं। इच्छुक उम्मीदवारों को राज्य सभा टीवी की वेबसाइट पर मौजूद फॉर्म डाउनलोड कर भरने के बाद इंटरव्यू के लिए दी गई तारीखों पर राज्य सभा टीवी के नीचे दिए ऑफिस में पहुंचना है। इसके आवेदन फॉर्म के साथ सेल्फ अटेस्ट किए हुए क्वॉलिफिकेशन डॉक्युमेंट्स की कॉपीज ले जानी जरूरी है। ओरिजनल क्वॉलिफिकेशन डॉक्युमेंट्स नहीं ले जाने हैं। अधिक जानकारी के लिए आप लिंक http://rajyasabha.nic.in/rsnew/rstv/rstvrec.pdf पर क्लिक कर सकते हैं या फिर नीचे पढ़ सकते हैं: पता: Rajya Sabha Television, 3rd Floor, Talkatora Stadium Annexe Building, New Delhi-110001

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Dakhal News 21 June 2017


किशन कृष्णा युवक मंडल

  जनसंपर्क, जल संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र ने आज किशन कृष्णा युवक मंडल, ग्वालियर की स्मारिका का विमोचन किया। इस अवसर पर स्मारिका के संपादक श्री सौरभ सक्सेना सहित पत्रकार श्री संजय जैन, श्री संतोष हिंगणकर उपस्थित थे।

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Dakhal News 20 June 2017


tv एंकर

अरशद अली खान  एक जमाना था, जब दूरदर्शन ही था, तब प्रतिमा पुरी, मुक्ता श्रीवास्तव, सलमा सुलतान और जेवी रमन ही खबर वाचन किया करते थे। वे ही एंकर होते थे, वे ही वाचक होते थे। उनके चेहरे हमेशा खबर देने की जिम्मेदारी के प्रति एकदम सजग दिखते और अंत में मुस्कुरा कर विदा लेते। जब निजी खबर चैनल आए तब भी दो हजार सात आठ तक एंकर खबर देते, चरचा कराते। इनमें एक अनुशासन रहता। एनडीटीवी में बरखा दत्ता का ‘‘वी द पीपल’ या विक्रम चंद्रा का ‘‘बिग फाइट’ तीखी बहसें कराते, लेकिन एंकर संतुलित और संयोजक की भूमिका में ही रहते।लेकिन जब अन्ना आंदोलन दिन-रात कवर हुआ, रामदेव का अनशन लाइव चौबीस बाई सात के भाव से कवर हुआ, जब निर्भया कवरेज हुआ तो एंकरों की मुखमुद्रा बदलने लगी। वे दिन भर बैठते। फील्ड से आतीं रपटों को कंट्रोल करते। बहसें कराते और अांदोलनकर्ता के भाव में आ जाते, आह्वानकर्ता बनने लगते। जनता से कहने लगते कि निकल पड़ो। चुप मत बैठो। कब तक सहोगे। जनता जवाब मांगती है। लाइनें खुली हैं। आप बताइए कि क्या करना है? यह चैनल और एंकरों और रिपोर्टरों के ‘‘एक्टिविस्ट’ ‘‘विजिलांत’ होने की शुरुआत थी। पगार पर काम करने वाले एंकरों और रिपोर्टरों को लगने लगा कि वे चाहें तो ‘‘एक धरने’ को आंदोलन बना सकते हैं। सरकार को मजबूर कर सकते हैं। वे चाहें तो एक बर्बर बलात्कार को एक राष्ट्रीय आंदोलन बना सकते हैं। वे समाज का ‘‘आईना’ बनने की जगह उसे ‘‘हांकने वाले’ बन गए! तब भी एंकरों के चेहरे उतने क्रुद्ध नहीं दिखते थे, जितने आज दिखते हैं जबकि आज एंकर किसी आंदोलन को हवा न देकर सिर्फ विपक्ष का एक्सपोजे ज्यादा कर रहे हैं। तब वे किस बात पर इतने नाराज, इतने भड़के हुए, इतने कुपित, इतने आक्रामक नजर आते हैं? तीन लाख से पचास लाख की पगार लेने वालों को इतना गुस्सा क्यों आता है? हमें दो-तीन कारण नजर आते हैं: एक : यह वह दौर है जिसमें ‘‘बदतमीज’ और ‘‘बदमिजाज’ की कीमत है (सौजन्य : सोशल मीडिया); दूसरा : एंकर और उनके चैनल अपनी खास आवाज, अपनी खबर की प्रस्तुति शैली की जगह अपने क्षुब्ध और क्रुद्ध चेहरे को ही अपना ब्रांड समझते हैं। तीसरा : अस्थायी और ठेके की नौकरी की अस्थिरता, कभी भी नोकरी जाने का डर, एंकरों व रिपोर्टरों को दिन-रात ‘‘अंतस्फोट’ की स्थिति में पहुंचाते रहते हैं। इसलिए भी वे गुर्राते दिखते हैं। कारण जो भी हो, एक-दो घंटे तक ऐसा गुर्राना अगर अभिनय भी है, तो भी सेहत के लिए तो हानिकारक हो ही सकता है। 

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Dakhal News 19 June 2017


अखबारों पर एक्शन

269,556 समाचार पत्रों के टाइटल निरस्त होंगे सूचना एवं प्रसारण मंत्री एम वेंकैया नायडू ने  स्पष्ट करते हुए कहा कि सरकार छोटे या मझौले अखबारों पर कार्रवाई नहीं कर रही है| केवल उन्हीं अखबारों पर कार्रवाई होगी जो केवल फाइलों में छपते हैं। दिल्ली में अपने अन्य मंत्रालय से जुड़ी एक प्रेसवार्ता में उन्होंने कहा, ‘‘एक भी चलने वाला अखबार प्रभावित नहीं हुआ है| जो पेपर में पेपर हैं उन्हीं के ऊपर कार्यवाही की गई है| जो केवल विज्ञापन के लिए डीएवीपी के लिए छापे जाते हैं।’’ उन्होंने कहा कि ऐसे अखबारों को अलग रखा गया है जो नियमित छप रहे हैं| चाहे वह छोटा हो या बड़ा हो किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं दिखाया गया है। उन्होंने कहा कि एक तंत्र विकसित किया गया है कि अंग्रेजी, हिंदी और अन्य स्थानीय भाषाओं के लिए डीएवीपी के तहत क्या ज़रूरी है । उन्होंने कहा कि एक छवि बनाई जा रही है कि हम छोटे अखबारों पर कारवाई कर रहे हैं| अगर किसी को लगता है कि उनके अखबार के साथ गलत हुआ है तो वह उनसे या उनके अधिकारी से मिलकर पुन: जांच का आग्रह कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि एक प्रिंटिंग प्रेस में 65 अखबार छप रहे हैं, क्या यह संभव है? हमने राज्यों से भी सहायता मांगी है कि वह प्रिंटिंग प्रेस के बिजली के बिल चेक करें| उसी से पता चल जाएगा कितने अखबार छप रहे हैं। पिछले काफी समय से मोदी सरकार ने समाचार पत्रों की धांधलियों को रोकने के लिए सख्ती की है। आरएनआई ने समाचार पत्रों के टाइटल की समीक्षा शुरू कर दिया है। समीक्षा में समाचार पत्रों की विसंगतियां सामने आने पर प्रथम चरण में आरएनआई ने प्रिवेंशन ऑफ प्रापर यूज एक्ट 1950 के तहत देश के 269,556 समाचार पत्रों के टाइटल निरस्त कर दिए।

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Dakhal News 18 June 2017


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सिंगरौली में  इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट की जिला इकाई के तत्वाधान में 20 मई से लगातार चलाये जा रहे आंदोलन को विराम लगा। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री सूर्य कांत शर्मा, एसडीएम श्री विकास सिंह, एस्सार प्रबंधन के जनसंपर्क अधिकारी श्री सुधांशु चर्तुवेदी, सिक्योरिटी चीफ श्री परमिन्दर सिंह तथा आईएफडब्लूजे के प्रतिनिधियों के बीच हुयी त्रिपक्षीय वार्ता के दौरान मांगी गयी मांगो पर चर्चा की गयी। चर्चा के दौरान एस्सार प्रबंधन ने स्वीकार किया कि विस्थापितों के पुर्नवास में विसंगतियां है। उन्होंने पुर्नवास की विसंगतियों को सुधारने का वचन दिया।  हालांकि एस्सार प्रबंधन ने जो अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था उसमें उनके अनुसार पुर्नवास की समुचित व्यवस्था की गयी है। लेकिन कलमकारों तथा एसडीएम श्री विकास सिंह के तर्को का वे जवाब नहीं दे पाये।  एस्सार प्रबंधन के लिए हो रहे कोयला परिवहन के सवाल पर प्रबंधन ने विकल्प प्रस्तुत करते हुए बताया कि छ: माह के अंदर महुआगांव में कोल यार्ड की व्यवस्था की जायेगी तथा फिर वही से कोयले का परिवहन कराया जायेगा। ऐसी स्थिति में गोरबी से लेकर कर्सुआलाल तक हो रहे प्रदूषण पर भी पूर्ण विराम लगाया जा सकेगा।  प्रत्येक तीन महीने पर होगी कार्य समीक्षा वार्ता के दौरान लिखित रूप से तय किया गया कि एस्सार प्रबंधन प्रत्येक तीन माह पर सारी समस्याओं को लेकर शिविर का आयोजन करेगा। जिसमें प्रशासन तथा आईएफडब्लूजे के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया जायेगा। विस्थापितों की समस्याओं को लेकर होने वाली इस मानीटरिंग बैठक में सारे लंबित मामले सुलझाये जायेंगे। इस संदर्भ में 20 जुलाई के आस-पास एस्सार प्रबंधन द्वारा नंदविहार में कैंप का आयोजन किया जायेगा।  कलमकारों का अभूतपूर्व आंदोलन प्रदूषण, बेरोजगारी, विस्थापन, पुर्नवास जैसी जन समस्याओं को लेकर कलमकारो का आंदोलनरत होना संभाग की ऐतिहासिक घटना कही जा सकती है। जिले में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण, बीमारियां, बेरोजगारी तथा विस्थापन जैसी संवेदनशील समस्याओं को संज्ञान में लेते हुए इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट के कलमकारो ने सड़क पर उतर कर 25 दिनो तक तपती दोपहरी में पंडाल में बैठकर शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन किया। प्रदूषण की रोकथाम, बेरोजगारो को नौकरी, विस्थापितों को पुनर्वास का लाभ दिलाने की इस मुहिम में वे अपने मुकाम तक पहुंचे। पत्रकारों का यह मिशन अनवरत जारी रहेगा। प्रबंधन के साथ सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बनाकर पीड़ितो को न्याय दिलाना पत्रकारो का उद्देश्य था आगे भी जारी रहेगा। मांगी गयी मांगो के क्रियान्वयन तक कलमकार अपनी प्रतिबद्धता कायम रखने के लिए प्रयासरत रहेंगे। पत्रकारों के इस आंदोलन में शिवसेना, ऊर्जांचल विस्थापित एवं कामगार यूनियन, माकपा, भाकपा तथा अन्य पत्रकार संगठनो ने भी अपना योगदान दिया।  त्रिपक्षीय वार्ता के दौरान अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री सूर्यकांत शर्मा, एसडीएम श्री विकास सिंह, एस्सार प्रबंधन के जनसंपर्क अधिकारी श्री सुधांशु चर्तुवेदी, सिक्योरिटी चीफ श्री परमिन्दर सिंह के साथ आईएफडब्लूजे के प्रांतीय उपाध्यक्ष श्री आरके श्रीवास्तव, संभागीय उपाध्यक्ष आरएन पांडेय, संभागीय उपाध्यक्ष सुरेश पांडेय, जिलाध्यक्ष विकास देव पांडेय, महासचिव राजकिशोर पांडेय, कोषाध्यक्ष शशिकांत कुशवाहा, जिला सोशल मीडिया सेल के अध्यक्ष विजय वर्मा, दीपक वर्मा आदि उपस्थित थे।    

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Dakhal News 16 June 2017


trp इंडिया टीवी चौथे नंबर पर

ज़ी टीवी मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है इस सप्ताह उसकी टीआरपी 74. 8 रही है। वहीँ नेशनल चैनल में आज तक नंबर वन बना हुआ है। पूरी ताकत लगाने के बाद एबीपी तीसरे नंबर पर और रजत शर्मा का इण्डिया टीवी चौथे नंबर पर आ गया है। हिंदी भाषी इलाके में इण्डिया टीवी की रिपोर्टिंग टीम ने चैनल का भट्टा बैठा दिया है। मध्यप्रदेश ,राजस्थान ,यूपी ,बिहार में इण्डिया टीवी और एबीपी के दर्शक तेजी से घटे हैं।    BARC MARKET SHARE THIS WEEK IN MPCG:  ZEE MPCG 74.8 %,  ETV 11.7%,  IBC 7.8%   Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 23 Aaj Tak 16.7 up 0.2  Zee News 14.6 dn 0.5  ABP News 12.5 up 0.3  India TV 10.8 dn 0.1  News18 India 10.6 up 0.1  News Nation 10.5 up 0.2  India News 9.0 dn 0.1  News 24 7.0 up 0.2  Tez 3.1 dn 0.3  NDTV India 2.9 up 0.1  DD News 2.4 same     TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.5 up 1.1  Zee News 16.2 dn 0.5  ABP News 11.7 up 0.2  India TV 11.4 dn 0.3  News18 India 11.0 dn 0.7  News Nation 9.6 up 0.1  India News 7.8 same   News 24 6.7 up 0.5  NDTV India 3.5 same   Tez 3.4 dn 0.3  DD News 2.2 up 0.1

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Dakhal News 15 June 2017


jitu patvari

  कांग्रेस नेता जीतू पटवारी की पत्रकार वार्ता को भोपाल के दो प्रमुख समाचार पत्रों में नहीं मिला स्थान। बताया जा रहा है मध्यप्रदेश सरकार के एक प्रमुख अधिकारी ने दो प्रमुख समाचार पत्रों को कहा था कि जीतू पटवारी की प्रेस कॉन्फ्रेंस न छापें और बाद में ऐसा ही हुआ।  अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव और मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य जीतू पटवारी पत्रकारों से बात कर रहे थे। वह उन आरोपों का खंडन कर रहे थे जिसमे कुछ आन्दोलनकारी किसान युवकों के बारे में कहा जारहा है कि उनके नाम पर एक इंच ज़मीन भी नहीं है तो फिर वह किसान कैसे हो सकते हैं। पटवारी ने स्पष्ट किया कि देश - प्रदेश में लाखों युवा ऐसे हैं जिनके नाम पर ज़मीन नहीं है, ज़मीन उनके पिता चाचा अथवा दादा - काका के नाम पर है, लेकिन यह बात सिर्फ किसान ही समझता है। कांग्रेस नेता ने शिवराज के उपवास को भाजपा नेता - कार्यकर्ता सम्मलेन करार देते हुए कहा कि उस कार्यक्रम में भाजपा के लोगों का जमावड़ा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि शिवराज जी का उपवास तुड़वाने के लिए जिस किसान के आने की बात कही गयी है, उसका जवान बेटा पुलिस की गोली से मारा गया है और उसकी अभी तेरवीं भी नहीं हुयी है। पटवारी ने सवाल किया कि कौन पिता तेरवीं से पहले मुख्यमंत्री का उपवास तुड़वाने आएगा ? उन्होंने आरोप लगाया कि उस किसान को विधायक - अधिकारी डरा - धमका कर भोपाल लाए थे।  इसके अलावा भी जीतू पटवारी ने शिवराज सरकार पर बहुत गंभीर आरोप लगाए।  लेकिन पत्रकारिता का दुर्भाग्य देखिये अपने आपको पत्रकारिता का सूरमा समझने वाले राजधानी के दो प्रमुख समाचार पत्रों ने प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के नेता की इस पत्रकार वार्ता को अपने अखबार में ही स्थान नहीं दिया।  

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Dakhal News 14 June 2017


shiv sena-shivraj

मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह निशाने पर आ गए हैं। इस बार शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में मुख्यमंत्री पर हमला बोलते हुए लिखा है कि पहले तो किसानों पर गोली चलाई और अब उपवास का ड्रामा किया जा रहा है। सामना के संपादकीय में छपे लेख के मुताबिक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री माहात्मा गांधी के पदचिन्हों पर चल रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान को एक बेकार मुख्यमंत्री के तौर पर देखा गया। किसानों, महिलाओं और आम लोगों के लिए कल्याणकारी नीतियों के बावजूद किसान आंदोलन कर रहे हैं और अपनी जान गंवा रहे हैं। शिवसेना ने कहा कि शिवराज ने कभी किसानों का कभी अपमान नहीं किया और न प्रदर्शन को समाज-विरोधी गतिविधि कर कोई राजनीति करने की कोशिश की। शिवसेना ने कहा कि जब दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में आंदोलन का आह्वान किया तो बीजेपी ने अपना डबल स्टैंडर्ड दिखाया। शिवसेना ने कहा, 'हाल ही में बीजेपी ने केंद्र के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले दिल्ली के सीएम की आलोचना की। उन्हें प्रदर्शन करने की जगह नीतियों को सुलझाने कहा गया।' संपादकीय के मुताबिक, 'यह शिवराज सिंह चौहान पर भी लागू होता, जो कि फास्ट पर जाकर महात्मा गांधी की विचाराधारा का अनुसरण कर रहे हैं। क्या गाधी की विचाराधारा का अनुसरण करने से हर समस्या का समाधान हो जाएगा? पहले वे बुलेट चलाते हैं,फिर फास्ट पर जाते हैं।' उल्लेखनीय है कि कर्जमाफी और एमएसपी की मांग को लेकर मंदसौर में किसान प्रदर्शन कर रहे थे। इन प्रदर्शनकारी किसानों पर पुलिस ने गोलीबारी की थी जिसमें 5 किसानों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद किसानों का आंदोलन राज्य के दूसरे हिस्से में भी फैल गया।   

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Dakhal News 12 June 2017


अरुण शौरी

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्तनशीं था, उसको भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था. शुक्रवार की शाम दिल्ली के प्रेस क्लब में इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व संपादक और लेखक अरुण शौरी ने जब पाकिस्तानी शायर हबीब जालिब का ये शेर पढ़ा तो वहाँ मौजूद 500 से ज़्यादा पत्रकारों को मालूम था कि शेर दरअसल किसके लिए पढ़ा गया है. उन्होंने तालियों की गड़गड़ाहट से शेर का स्वागत किया. प्राइवेट टीवी चैनल एनडीटीवी के प्रोमोटरों प्रणय रॉय और राधिका रॉय के घर और दफ़्तरों पर पिछले हफ़्ते सीबीआई के छापों के ख़िलाफ़ दिल्ली के पत्रकारों की ये दुर्लभ बैठक थी और अरुण शौरी के सीधे निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे. हिंदुत्व की राजनीति के वो अकेले बुद्धिजीवी हैं जो खुले मंच पर नरेंद्र मोदी का नाम लेकर उनकी आलोचना करते हैं और मज़ाक उड़ाते हैं. पिछले तीन बरस में पत्रकारों को मोदी के साथ कई बार सेल्फ़ी खींचने की होड़ लगाते देखा गया है, लेकिन दिल्ली में उनकी ओर से विरोध की ये पहली तीखी आवाज़ थी. अपनी बात की शुरुआत में अरुण शौरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया कि "मोदी के कारण इतनी बड़ी संख्या में पुराने दोस्त यहाँ इकट्ठा हुए हैं." उन्होंने ये बातें प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ से सिर्फ़ डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर प्रेस क्लब में कहीं. और अगर मोदी की टीम ने इस बैठक का नोटिस नहीं लिया या इसको उसी तरह अपने ठहाके लगाकर हवा में उड़ा दिया जैसा कि वो राहुल गाँधी की राजनीति को हवा में उड़ाते हैं तो इसका सिर्फ़ एक ही मतलब है कि ये सरकार धरातल से छह इंच ऊपर तैर रही है. मंच पर वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर, एचके दुआ, शेखर गुप्ता, प्रणय रॉय के साथ क़ानूनविद् फली एस नरीमन आदि वो लोग बैठे थे जिनमें से ज़्यादातर ने इंदिरा गाँधी की इमर्जेंसी का दौर देखा था. तब बोलने की आज़ादी ख़त्म कर दी गई थी और प्रेस की आवाज़ दबा दी गई थी. हबीब जालिब का शेर पढ़ने के बाद अरुण शौरी ने मुस्कुराते हुए कहा कि ये पाकिस्तानी शायर का शेर था, पर मैं ख़ुद को बचाने के लिए गुरुग्रंथ साहिब में लिखी बात कहता हूँ: राम गयो, रावण गयो- जा के बहु परिवार. और थोड़ा रुककर उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- "राम गए, रावण गए… ये भी जाएँगे." अरुण शौरी और कुलदीप नैयर जैसे पत्रकार 1988 में भी सत्ता का प्रतिकार करने को ठीक इसी जगह पर एकजुट हुए थे जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने मानहानि विधेयक लाकर प्रेस (तब प्राइवेट टीवी चैनल नहीं हुआ करते थे) पर लगाम लगाने की कोशिश की थी. प्रेस बिल के ख़िलाफ़ विरोध जताने के लिए दिल्ली के पत्रकारों ने इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक जुलूस निकाला था जिसमें कई नामी-गिरामी संपादक शामिल हुए थे. सफ़ेद कुर्ता और धोती पहने रामनाथ गोयनका इस जुलूस की सबसे अगली क़तार में चले थे. उन दिनों राजीव गाँधी के मीडिया मैनेजरों ने बड़े जतन से उनकी 'मिस्टर क्लीन' की छवि गढ़ी थी. उनके पास लोकसभा में जैसा बहुमत था वैसा नरेंद्र मोदी के पास आज भी नहीं है. पर राजीव गाँधी को इस सबका कोई फ़ायदा नहीं हुआ. इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर पर सवार होकर सत्ता में पहुँचे राजीव गाँधी की 'गुडविल' मुट्ठी की रेत की तरह तेज़ी से छीजी जा रही थी. राजीव गाँधी के मंत्री जिस शहर में जाते उनसे सबसे पहले सवाल पूछा जाता कि क्या आप मानहानि विधेयक का समर्थन करते हैं या नहीं? अगर मंत्री गोलमोल जवाब देते या कहते कि हाँ, तो बिना कुछ कहे सभी पत्रकार चुपचाप उठकर प्रेस कांफ़्रेंस से बाहर आ जाते. ये सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक राजीव गाँधी ने अपनी कैबिनेट की बैठक बुलाकर मानहानि विधेयक को वापिस लेने का ऐलान नहीं कर दिया, हालाँकि इसे लोकसभा में पास किया जा चुका था. शुक्रवार को प्रेस क्लब में अरुण शौरी ने उन पुरानी घटनाओं को याद किया और पत्रकारों से नरेंद्र मोदी के मंत्रियों के लिए भी यही नुस्ख़ा अपनाने को कहा. उन्होंने कहा,"बॉयकॉट कीजिए. उनकी (मंत्रियों की) प्रेस कांफ़्रेंस का बॉयकॉट कीजिए. उन्हें (यानी मंत्रियों को) अपने किसी समारोह या सभा में आमंत्रित मत कीजिए." शौरी ने मीडिया के साथ नरेंद्र मोदी सरकार के रिश्तों पर बिना लाग लपेट के अपनी बात कही. उन्होंने कहा मोदी सरकार ने कई तरह से मीडिया को चुप कराने या उसे बहलाने की कोशिश की- "पहले विज्ञापन देकर मीडिया का पेट भरा- एक ज़ुलू कहावत है कि कुत्ते के मुँह में हड्डी डाल दो तो वो भौंकना बंद कर देता है. और अब भय फैलाया जा रहा है कि 'मोदी सब कुछ सुन रहे हैं'. 'अमित शाह सीबीआई को कंट्रोल करते हैं'." अपनी बात के आख़िर में उन्होंने कहा, "भारत में जिस किसी ने प्रेस के ख़िलाफ़ हाथ उठाया है, उसका हाथ जल गया है और उसे अपना हाथ वापिस खींचना पड़ा है." अरुण शौरी के ऐसे तेवर तब दिखाई पड़ते थे जब वो इमरजंसी और उसके बाद के दिनों में मानवाधिकार आंदोलनों में सक्रिय थे और सरकारें उन्हें चुप कराने की कोशिश करती थीं. अस्सी के दशक में जब इंडियन एक्सप्रेस के संपादक के तौर पर उन्हें हिंदुस्तान का सबसे बड़ा प्रतिष्ठान विरोधी पत्रकार माना जाता था. आम तौर पर एक्टिविज़्म या राजनीतिक विचारधाराओं के विवाद से दूर रहने वाले प्रणय रॉय तक का चेहरा बोलते वक़्त तमतमा उठा और उन्होंने मौजूद पत्रकारों से कहा - "अगर आप इनके सामने रेंगने लगे तो ये आप को छोड़ेंगे नहीं. लेकिन अगर आप डिगे नहीं और इनके सामने तने रहे तो आपको ये परेशान नहीं कर पाएँगे." इंडिया टुडे ग्रुप के संपादक और मालिक अरुण पुरी ने एक लिखित बयान जारी करके एनडीटीवी का खुलकर समर्थन किया, बुज़ुर्ग हो चले कुलदीप नैयर ने सत्ताधीशों के साथ अपने संघर्षों को याद किया, शेखर गुप्ता, ओम थानवी और कई दूसरे पत्रकारों ने मीडिया हाउस पर सीबीआई के छापे को आने वाले काले दिनों का संकेत बताया, कुलदीप नैयर ने कहा कि मैं सोचता था कि इमर्जेंसी के बाद अब ये और इमर्जेंसी नहीं लगाएँगे मगर इन्होंने फिर से वैसा ही कर दिया. और क़ानूनविद् फली एस नरीमन ने नात्सी विरोधी जर्मन पादरी मार्टिन निमोलर की वो प्रसिद्ध कविता सुनाई: पहले वो कम्युनिस्टों को दबोचने आए, पर मैं कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था… पर तीन बरस में क्या हुआ कि देश के बड़े संपादक मोदी की नाव के चप्पू चलाने की बजाए उनके सामने कमर पर हाथ रखकर खड़े हो गए हैं? एनडीटीवी और नरेंद्र मोदी सरकार के बीच की कड़वाहट कुछ वैसी ही होती जा रही है जैसी इमरजेंसी में और उससे पहले इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप और इंदिरा गाँधी के बीच हो गई थी. इंदिरा गाँधी जब एक्सप्रेस की पत्रकारिता को क़ाबू में करने में नाकाम रहीं तो उन्होंने एक्सप्रेस के मैनेजमेंट को हड़पने की कोशिश की. उनकी हत्या के बाद राजीव गाँधी और एक्सप्रेस के बीच भी वैसी ही कड़वाहट जारी रही. राजीव ने एक्सप्रेस ग्रुप पर और रामनाथ गोयनका के सुंदरनगर गेस्ट हाउस पर सीबीआई, इनकम टैक्स और एनफ़ोर्समेंट डायरेक्टरेट के छापे डलवाए. बाद की घटनाओं ने साबित कर दिया कि इस लड़ाई में न इंदिरा गाँधी जीतीं और न ही राजीव गाँधी. अरुण शौरी ने ठीक कहा कि जब भी सत्ताधीशों ने मीडिया पर हाथ डाला है तो उनका हाथ जला ही है. इंदिरा गाँधी को इमरजेंसी का भुगतान करना पड़ा और रोड रोलर बहुमत के दम पर मीडिया की बाँह मरोड़ने की हिम्मत करना राजीव गाँधी को भी भारी पड़ा. ये कोशिश उनसे पहले बिहार के काँग्रेसी मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र ने भी की थी और अपनी इसी कोशिश में उन्होंने बिखरे हुए मीडिया को एकजुट करने में मदद की. ठीक यही काम आज भी हो रहा है वरना शेखर गुप्ता, राज चेंगप्पा, अरुण पुरी और यहाँ तक कि ख़ुद प्रणय रॉय कब से सत्ता-प्रतिष्ठान विरोधी पत्रकार हो गए? इन सबका पाँच सौ पत्रकारों की मौजूदगी में कुलदीप नैयर और अरुण शौरी के साथ एक मंच पर बैठना ही ये साबित करता है कि नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के नॉन-स्टॉप बोलने वाले तमाम प्रवक्तागणों ने एनडीटीवी को भारत में प्रेस की आज़ादी का प्रतीक बना दिया है. देश में इमरजेंसी न होने के बावजूद बीजेपी सरकार ने एनडीटीवी को अपनी स्क्रीन काली करके विरोध दर्ज करने का मौक़ा दिया और अब सीबीआई के छापे डलवाकर प्रेस और सरकार के बीच एक नए और खुले द्वंद्व का बीज बो दिया है. पिछले तीन बरस में शायद ही किसी राजनीतिक पार्टी के किसी नेता ने मोदी और उनकी सरकार पर इतना सीधा और तीखा हमला बोलने की हिम्मत की हो. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ज़रूर 'घुस कर मारूँगा' की तर्ज़ पर राजनीति की शुरुआत की थी पर पंजाब, गोवा विधानसभा चुनावों और दिल्ली के स्थानीय चुनावों में हार के बाद वो भी चुप्पी साध गए हैं. क्योंकि उन्हें चुनावी राजनीति करनी है और वोटर फ़िलहाल नरेंद्र मोदी के बारे में कोई सवाल सुनने के मूड में नहीं है. पर अरुण शौरी कोई अरविंद केजरीवाल नहीं हैं. उन्हें न कोई चुनाव लड़ना है, न किसी वोट बैंक को मनाए रखने के लिए सोच समझ कर, सधी भाषा में बोलना है. मोदी ने जिस तरह लालकृषण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और यशवंत सिन्हा को बर्फ़ में लगाया उसी तरह शौरी को भी किनारे कर दिया. संघ परिवार से गर्भनाल का संबंध आडवाणी-जोशी का मुँह बंद रखने पर मजबूर करता है पर शौरी ने निक्कर-टोपी पहनकर संघ की शाखा में कभी ध्वज-प्रणाम नहीं किया. वो अगर अपनी पर उतारू हो गए तो हर फ़ोरम पर बोलने, लिखने और मोदी और उनके मंत्रियों का मखौल उड़ाने से उन्हें कौन रोकेगा? मसलन, मोदी के कैबिनेट मंत्री वेंकैया नायडू के बारे में उन्होंने कहा ही कि वेंकैया को तीसरी जमात की किताब से एक पन्ना लिखने को कहा जाए तो उन्हें नहीं आएगा और उनसे इंडियन एक्सप्रेस में लेख लिखवाए जाते हैं ! इसी तरह अरुण शौरी अभेद्य से लगने वाले मोदी के उस इमेज कवच को धीरे धीरे कुछ हद तक प्रभावहीन करने की ताक़त रखते हैं जो विज्ञापन और इमेज-मेकिंग कंपनियों ने कई वर्षों की मेहनत से तैयार किया है. अगर मोदी की इमेज के ये कवच-कुंडल एक बार उतर गए तो उन्हें हर मर्ज़ की दवा, हर सवाल का जवाब और हर समस्या का समाधान मानने वाले लोगों की नज़र बदलते देर नहीं लगेगी. लेकिन अभी वहाँ पहुँचने के लिए प्रेस और मीडिया पर कई छापे और डालने होंगे.[साभार ]

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Dakhal News 12 June 2017


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सरकार ने  277 अखबारों की मान्यता खत्म कर दी है जो केवल विज्ञापन लेने के लिए  प्रकाशित करते थे। पिछले एक साल में इन प्रकाशनों ने करीब दो करोड़ रपए का विज्ञापन बटोरा है। एक-एक प्रिंटिंग प्रेस से 70 अखबार छापे जा रहे हैं। सरकार केवल आफिस कापी छापने वाले अखबारों से विज्ञापन की राशि वापस लेने की कार्रवाई भी शुरू कर सकती है और उन नौ प्रिंटिंग प्रेस के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है जो एक दिन में 70 से अधिक अखबार छाप रहे थे।सामान्य तौर पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के विज्ञापन पाने के लिए कुछ लोग प्रिंटिंग प्रेस, डीएवीपी और राज्यों के सूचना निदेशालयों के साथ मिलकर केवल आधिकारिक कापी छापते हैं और उनको दिखाकर विज्ञापन ले लेते हैं। डीएवीपी के नियम के अनुसार प्रत्येक प्रकाशक को हर महीने अपने अंकों को जमा करना होता है। छोटे अखबारों को सीए सर्टिफिकेट देने की भी छूट है। प्रकाशक डीएवीपी में जमा करने लायक ही अखबार छापते हैं और बाजार में उनकी उपस्थिति नहीं होती है। सूचना एवं प्रसारण मंत्री एम वेंकैया नायडू के निर्देश पर आरएनआई और डीएवीपी से अधिकारियों ने कुछ प्रिंटिंग प्रेस और अखबारों के कार्यालयों पर छापेमारी की। चार दिल्ली की और चार लखनऊ की प्रिंटिंग प्रेसों से 70-70 अखबार छापे जा रहे थे। एक प्रिंटिंग प्रेस को एक से अधिक अखबार छापना भारी पड़ जाता है। ऐसे में 70 से अधिक अखबार छापने पर डीएवीपी और आरएनआई ने 277 प्रकाशकों और प्रिंटरों को नोटिस भेजा जिसमें से 118 ने सफाई दी जबकि 159 ने नोटिस का जवाब ही नहीं दिया। डीएवीपी ने इन अखबारों की मान्यता खत्म कर दी। अब इन अखबारों को विज्ञापन नहीं दिया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि झूठे काजग-पत्रों के मार्फत इम्पैनलमेंट कराने और विज्ञापन हासिल करने पर इनके खिलाफ कार्रवाई होगी। इनसे विज्ञापन की राशि वापस ली जा सकती है। इन अखबारों ने अकेले वर्ष 2015-16 के दौरान दो करोड़ रपए के विज्ञापन ले लिए थे। डीएवीपी के जो लोग इस घपले में शामिल हैं उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।

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Dakhal News 10 June 2017


एनडीटीवी फाउण्डर प्रणय रॉय

एनडीटीवी के को-फाउण्डर प्रणय रॉय के यहां सीबीआई के छापे के बाद भाजपा के राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी का ट्वीटर पर हर्षातिरेक में किलक उठना गौरतलब है कि 'कानून का डर हर किसी के अंदर होना चाहिए, फिर वो चाहे कितनी बड़ी शख्सियत क्यों न हो?' स्वामी का ट्वीटर सरकारी भयादोहन की उन काली परछाइयों की ओर इशारा करता है, जो कूट-संरचनाओं की काली दीवारों पर राजनीतिक हिकमत के साथ मंडरा रही हैं। केन्द्रीय सूचना प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ने इस छापे के बाद कहा है कि कानून अपना काम कर रहा है। वैसे जब कानून अपना काम करता है, तो  लोगों को डर नहीं लगता है। डर उस वक्त पैदा होता है, जब कानून 'अपना' काम करने के बजाय 'सरकार' का काम करने लगता है।  स्वामी का ट्वीट सीधे सवालों को आमंत्रित करता है कि क्या सही अर्थो में कानून का डर सब लोगों को समान रूप से आशंकित, आतंकित और आरोपित कर रहा है? स्वामी के ट्वीटर से उपजे डर के परिदृश्यै पर अदृश्या भयादोहन की इन परछाइयों के पीछे छिपी राजनीतिक हिकमतों को समझना और सुलझाना मुश्किल नहीं है। सूचना एवं प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ने यह कहकर घटना को वैधानिक-तिलिस्म की चादर से ढंकने की कोशिश की है कि कानून अपना काम कर रहा है। लेकिन नायडू का यह कानूनी-दांव पिलपिला है, क्योंकि प्रणय रॉय पर कार्रवाई के बाद 7.33 लाख करोड़ के लोन पर ऐश कर रहे देश के दस बड़े उद्योगपतियों के एनपीए अकाउंट्स, विराट प्रश्न-चिन्ह बनकर खड़े हो जाते हैं कि इन लोगों में कानून का भय कैसे अंकुरित होगा?  स्वामी क्या यह बता पाएंगे कि प्रणय रॉय के मन में डर पैदा करने को ये कोशिशें 1.14 लाख करोड़ के कर्जदार अनिल अंबानी को कैसे अपनी गिरफ्त में लेंगी? हाल ही में रिलायंस कम्युनिकेशन के नाम पर दस बैंको के कर्जदार अनिल अंबानी के लिए 25 हजार करोड़ की ऋण चुकाने की अवधि दिसम्बर 2017 तक क्यों बढ़ा दी गई है?  अनचीन्हे और अपर्याप्त आरोपों से घिरे प्रणय रॉय को डराने से पहले क्या केन्द्र सरकार को गौतम अडानी, रुईया ब्रदर्स, जिंदल, जयप्रकाश गौड़ या राजकुमार धूत जैसे अरबों के कर्जदारों को डराने की जरूरत नहीं हैं? प्रणय रॉय के मुताबिक ऋण की यह रकम भी वे सात-आठ साल पहले अदा कर चुके है।        एनडीटीवी घोषित रूप से मोदी-सरकार की रीति-नीति पर तीखे सवाल उठाता रहा है। यह बात आसानी से गले उतरने वाली नहीं है कि कोई भी, भले ही वह एनडीटीवी क्यों नहीं हो, दल-दल में खड़े होकर सरकार पर कीचड़ उछालने का दुस्साहस करेगा...? एनडीटीवी पर सीबीआई के छापे की प्रतिध्वनि में कानून की कम, सरकार की टंकार ज्यादा सुनाई दे रही है। एनडीटीवी से सरकार की नाराजी पुरानी है। उस पर शिकंजा कसने की कोशिशें भी नई नहीं हैं। नवम्बर 2016 के पहले सप्ताह में भी मोदी-सरकार ने एनडीटीवी के प्रसारण पर एक दिन की रोक लगाने की कोशिश की थी। मीडिया की आजादी के सवालों में उलझने के कारण आदेश को वापस लिया गया था। इस मर्तबा सरकार ने आपराधिक मामले को आगे रखा है ताकि कार्रवाई को मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से नहीं जोड़ा जा सके। लेकिन एनडीटीवी व्दारा प्रस्तुत तथ्यों के बाद कार्रवाई में बदनीयती सिर उठाती महसूस हो रही है।  एनडीटीवी के बहाने मीडिया में डर पैदा करने की कोशिशें आपातकाल की चालीसवीं सालगिरह पर प्रकाशित लालकृष्ण आडवाणी की उन आंशकाओं को गहरा कर रही हैं कि आपातकाल की प्रवृत्तियों से सावधान रहना जरूरी है। मोदी-सरकार सवालों से परहेज करती है, जो मीडिया सवाल करेगा, वह परेशान होगा। दशकों तक मीडिया-फ्रेण्डली रही भाजपा का यह कठोर राजनीतिक चेहरा मीडिया के लिए अजनबी है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर नकेल डालने के साथ ही सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने प्रिंट मीडिया पर फंदा कसने का क्रम शुरू कर दिया है। मध्यम और छोटे अखबारों का अस्तित्व सवालिया होता जा रहा है। अभिव्यक्ति के आजाद परिन्दों को कार्पोरेट-मीडिया के पिंजरों में बंद करने की साजिशें परवान चढ़ने लगी हैं।  2003 में फिल्म डायरेक्टर रामगोपाल वर्मा ने फिल्म बनाई थी- 'डरना मना है' ... 2006 में उन्होंने इसके सिक्वल का नाम रखा था- 'डरना जरूरी है'... रामगोपाल सुब्रमण्यम स्वामी जैसे ही विवादास्पद व्यक्ति हैं, जो कानून की लाठी से सबको डराना चाहते हैं। स्वामी ने प्रणय रॉय के मसले में कहा है कि सबका 'डरना जरूरी है।'  इसका जवाब 1975 में प्रदर्शित शोले फिल्म में गब्बर का यह डॉयलॉग है कि 'जो डर गया, वह मर गया' … मीडिया का तो मूल-मंत्र ही यही है कि वह डरे नहीं, क्योंकि 'जो डर गया, वह मर गया' ...। - उमेश त्रिवेदी - लेखक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है।

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Dakhal News 9 June 2017


abp-india tv

  22 वें सप्ताह के न्यूज़ टेलीविजन रेटिंग पॉइंट बताते हैं कि अब नंबर वन होने की दौड़ आज तक और ज़ी न्यूज़ के बीच है ,trp देखें तो पता चलता है abp न्यूज़ और इण्डिया टीवी के बीच तीसरे और चौथे नंबर पर बने रहने  का संघर्ष चल रहा है।  नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 22 Aaj Tak 16.5 up 0.5  Zee News 15.1 up 0.2  ABP News 12.2 dn 0.6  India TV 10.9 dn 0.6  News18 India 10.5 up 0.3  News Nation 10.2 up 0.5  India News 9.1 dn 1.0  News 24 6.8 dn 0.2  Tez 3.4 up 0.3  NDTV India 2.9 up 0.3  DD News 2.4 up 0.2    TG: CSAB Male 22+ Zee News 16.7 up 0.5  Aaj Tak 15.5 same   India TV 11.7 dn 0.1  News18 India 11.7 up 1.0  ABP News 11.5 dn 1.2  News Nation 9.5 up 0.3  India News 7.9 dn 0.9  News 24 6.3 dn 0.2  Tez 3.7 up 0.4  NDTV India 3.5 up 0.4  DD News 2.1 dn 0.1 मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव न्यूज़ चैनल Week 22 Zee                       66.7 Ibc 24                   14.6 Etv                         9.9 Sahara  sa            5.8 Bansal                   1.4

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Dakhal News 8 June 2017


प्रदेश टुडे

मध्यप्रदेश के प्रमुख सांध्य दैनिक प्रदेश टुडे अखबार ने छ किसानों की सरकारी गोलीबारी में मौत के बाद अपने सम्पादकीय को  खाली छोड़ दिया है। प्रदेश टुडे के इस कदम की सराहना की जा रही है। ऐसा तब ही होता है जब विचार होते हुए भी शब्द कम पड़ जाएँ।  प्रदेश टुडे ने सम्पादकीय स्थान भले ही रिक्त छोड़ा हो लेकिन सच्चाई यही है कि किसान आंदोलन को अब तक असामाजिक तत्वों का आंदोलन कह रही शिवराज सरकार अब बैकफुट पर है। पुलिस की गोलाबारी में छ किसानों की मौत ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अफसर उन्हें किस तरह गुमराह करते रहते हैं। पहला मौका है जब मीडिया ने भी सरकार के साथ मुख्यमंत्री को भी इस सब का जिम्मेदार माना है। जाहिर है जब अच्छे कामों का श्रेय शिवराज सिंह लेते हैं तो छ निर्दोष किसानों की मौत की जवाबदारी भी उनकी बनती है।   

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Dakhal News 7 June 2017


इंदौर  प्रेस क्लब

इंदौर  प्रेस क्लब के 'संवाद' कार्यक्रम पत्रकार  खबर इंदौर से। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की तरह मध्यप्रदेश में भी पत्रकार सुरक्षा कानून जल्दी से जल्दी लागू किया जाए, इसका लाभ सभी पत्रकारों को मिले और इसके प्रावधान ऐसे हों कि उनको शारीरिक और संपत्ति की सुरक्षा मिले। आज पत्रकार चौतरफा संघर्ष में घिरा है और हमें एकजुट होकर अपनी बात को आगे बढ़ाना चाहिए, तभी हम सरकार से पत्रकारों के हित में उक्त कानून लागू करवा पाएंगे और इसका लाभ हर श्रेणी के पत्रकार को मिले। यह बात इंदौर प्रेस क्लब में पत्रकार सुरक्षा कानून पर आयोजित 'संवाद' कार्यक्रम में इंदौर-उज्जैन संभाग के पत्रकारों के प्रतिनिधि संगठनों के नुमाइंदों ने कही। सभी ने एकमत से कहा कि एक लंबी लड़ाई का हम सूत्रपात कर रहे हैं। संवाद की शुरुआत में इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने प्रेस क्लब द्वारा विशेषज्ञों की मदद से तैयार किए गए पत्रकार सुरक्षा कानून प्रारूप के कानून की जानकारी दी और कहा कि इसे लागू करवाने के लिए हमारा एकजुट होना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि जब महाराष्ट्र व उत्तर प्रदेश में पत्रकार सुरक्षा कानून लागू हो सकता है तो मध्यप्रदेश में क्यों नहीं। इस कानून में यह प्रावधान भी होना चाहिए कि कोई भी पत्रकार इसका दुरुपयोग भी न कर सके। इस मुद्दे पर जल्दी ही पत्रकार संगठनों का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मुलाकात करेगा।  इंदौर प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष सतीश जोशी ने कहा कि सरकार व्यापक स्वरूप में पत्रकार सुरक्षा कानून तत्काल प्रभाव से लागू करे। यह बहुत ही गंभीर विषय है और इसके लिए हमें जिस भी स्तर पर संघर्ष करना पड़े हम उससे पीछे नहीं हटेंगे। वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी ने कहा कि सरकार हमारी सुरक्षा की व्यवस्था करे, उक्त कानून में हमारी संपत्ति और शरीर की सुरक्षा का प्रावधान हो। कानून लागू करने से पहले सरकार इस पर हमारी राय भी ले। वरिष्ठ पत्रकार हेमन्त पाल ने कहा कि एक्ट के दायरे में अंशकालिक पत्रकारों को भी लाया जाना चाहिए और पत्रकारों की भी एक परिभाषा तय होना चाहिए।  देवास प्रेस क्लब के अध्यक्ष अनिलसिंह सिकरवार ने कहा कि हम एक लम्बी लड़ाई का सूत्रपात कर रहे हैं। पत्रकार सुरक्षा कानून के दायरे में हर श्रेणी के पत्रकारों को शामिल करना चाहिए। इसके लिए हम तहसील व जिला स्तर से भी आवाज उठाएंगे। वरिष्ठ पत्रकार छोटू शा ी ने कहा कि उक्त कानून में ग्रामीण पत्रकारों की सुरक्षा का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। प्रेस क्लब महासचिव नवनीत शुक्ला ने कहा कि हम जल्दी ही उक्त प्रारूप के आधार पर एक अंतिम प्रारूप तैयार करेंगे, इस पर अलग-अलग पत्रकार संगठनों से भी चर्चा की जाएगी और सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रेस की आजादी में भरोसा रखने वाले संगठनों को साथ लेकर सरकार के सामने अपना पक्ष रखेंगे। प्रेस क्लब उपाध्यक्ष संजय जोशी ने कहा इस कानून के दायरे में हर पत्रकार को लाना चाहिए भले ही वह किसी भी पत्रकार संगठन से वास्ता रखता हो। सूरज उपाध्याय ने कहा हम अपनी लड़ाई में नेता, समाजसेवी और जनप्रतिनिधियों को भी शामिल करेंगे। प्रदीप जोशी ने कहा कि कवरेज के दौरान सुरक्षा का विशेष प्रावधान कानून में किया जाना चाहिए। संजय त्रिपाठी ने कहा कि महाराष्ट्र जैसा कानून मध्यप्रदेश में भी लागू हो और पत्रकारिता करने वाला हर शख्स इस कानून के दायरे में लाया जाए। मुकेश मिश्रा ने कहा हम एकजुट हो जाएंगे तो सरकार को निर्णय लेना ही पड़ेगा। प्रदीप मिश्रा ने कहा हम जनप्रतिनिधियों से बार-बार यह सवाल करें कि आखिर मध्यप्रदेश में पत्रकार सुरक्षा कानून क्यों लागू नहीं हो पा रहा है। म.प्र. श्रमजीवी पत्रकार संघ के जिलाध्यक्ष आलोक शर्मा ने कहा एक होकर ही हम इस कानून को लागू करवा पाएंगे। सुरक्षा मिलेगी तो ही हम मजबूती से काम कर पाएंगे। राहुल वावीकर ने कहा कि इसमें डॉक्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट जैसे ही प्रावधान होना चाहिए। प्रेस क्लब सचिव हेमन्त शर्मा, कोषाध्यक्ष दीपक कर्दम, वरिष्ठ पत्रकार विमल गर्ग, अनुराग पुरोहित ने भी इंदौर प्रेस क्लब द्वारा तैयार ड्राफ्ट पर अपनी राय प्रकट की। संवाद में उज्जैन प्रेस क्लब के अध्यक्ष श्री विशाल हाड़ा, नीमच प्रेस क्लब के अध्यक्ष भूपेन्द्र गौड़ बाबा, देवास प्रेस क्लब के सचिव मोदी, वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु राठौर, पवन शर्मा, प्रकाश त्रिवेदी, अनिलसिंह भाटी, कपिल पंवार, अभिषेक चेंडके, राजीव उपाध्याय, वरिष्ठ छायाकार राजू रायकवार, आशु पटेल सहित कई पत्रकार इस संवाद में शामिल हुए।

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Dakhal News 6 June 2017


पत्रकार आंद्रे वॉकर

  ब्रिटेन के एक पत्रकार ने लंदन ब्रिज पर हुए आतंकी हमले के बाद इस्लामिक स्टेट के आतंकियों को चुनौती दी है। इस हमले में आतंकियों ने सात लोगों की हत्या कर दी थी। हमले के कुछ समय बाद न्यूयॉर्क ऑब्जर्वर में पत्रकार आंद्रे वॉकर ने एक ट्वीट कर इस्लामिक स्टेट के आतंकियों को उन पर हमला करने की चुनौती दी है। आंद्रे ने आतंकी संगठन को चुनौती देते हुए ट्वीट किया, 'मैं अपने सिर पर खुद इनाम रखता हूं। अगर कोई भी आईएस का आतंकी मुझे मारता है, तो उसे 50 हजार पाउंड (41 लाख 42 हजार 209 रुपए) मिलेंगे। मैं आपको अपना पता देता हूं। पुलिस भी तुम्हें नहीं रोकेगी, लेकिन मैं बता दूं कि मेरे पास एक तलवार है। शुभकामनाएं।' आंद्रे ने इस युद्ध में अपना सिर काटने वाले आतंकी को 50 हजार पाउंड देने की बात लिखने के साथ ही थेम्स नदी के किनारे वेस्टमिंस्टर टेरस पर खींची गई एक तस्वीर भी लगाई है। इसमें दिख रहा है कि वह अपने दोनों हाथों में एक तलवार पकड़े हैं। उन्होंने आगे लिखा, 'मुझे इस बात की फिक्र नहीं कि ऐसा करके मैं कुछ लोगों को बेवकूफ दिख सकता हूं, न ही मैं आईएस के बारे में सोचकर परेशान हूं। आओ आओ, कोशिश करो।' लंदन ब्रिज और बरो मार्केट इलाके में हुए आतंकी हमले में 7 लोगों की हत्या और 48 लोगों के घायल हो जाने के बाद उन्होंने आईएस के आतंकियों को अपने साथ तलवारबाजी करने की चुनौती दी है। हालांकि, अब आंद्रे के इस ट्वीट पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। सोशल मीडिया पर कुछ लोग इस ट्वीट को मजाकिया तौर पर ले रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसे पोस्ट किए जाने की टाइमिंग के कारण इसकी आलोचना कर रहे हैं। एक शख्स ने कमेंट किया कि मैं नहीं जानता कि यह चुनौती देकर तुम क्या कहना चाहते हो? वहीं, एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि सीधे-सीधे बोलो कि तुम आतंकवाद की फंडिंग करने का प्रस्ताव दे रहे हो?' एक अन्य यूजर ने ट्वीट किया कि इस तरह सड़क पर तलवार लेकर चलना शायद गैरकानूनी है। आज सुबह तक ट्विटर पर मैंने इससे ज्यादा बेवकूफाना चीज नहीं देखी थी। इन आलोचनाओं पर आंद्रे ने कहा कि यह प्रस्ताव देने का कारण काफी सरल है। आतंकियों को किसी ऐसे इंसान से लड़ना चाहिए, जो उनके बराबर का हो। बच्चों को कुचलने में क्या बहादुरी है?' पुलिस ने लंदन ब्रिज में शामिल 3 आतंकवादियों को भी मार गिराया है और करीब दर्जनभर संदिग्धों को गिरफ्तार किया है। आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने इन हमलों की जिम्मेदारी ली है। मार्च से अब तक यह तीसरा बड़ा आतंकी हमला लंदन में हुआ है।  

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Dakhal News 5 June 2017


प्रणय रॉय के घर CBI का छापा

ndtv ने कहा- फंसा रहे झूठे केस में सीबीआई ने एनडीटीवी के को-फाउंडर और एग्जिक्यूटिव चेयरपर्सन प्रणय रॉय और उनकी पत्नी के घर छापामार कार्रवाई की है। जानकारी के अनुसार यह छापा उनके दिल्ली स्थित आवास पर पड़ा है। प्रणय रॉय पर फंड डायवर्जन का आरोप है। इस मामले में सीबीआइ ने केस दर्ज कर लिया है। इसके बाद चैनल ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि झूठे आरोप में रॉय को फंसाया जा रहा है। हम लोकतंत्र को इस तरह से कमजोर करने की कोशिशों के सामने घुटने नहीं टेकेंगे। सीबीआइ ने बताया कि दिल्ली और देहहरादून में छापेमारी की है। प्रणय रॉय पर आईसीआईसीआई बैंक को 48 करोड़ का घाटा पहुंचाने का आरोप लगा है। इस मामले पर भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है कि कानून का डर हर किसी के अंदर होना चाहिए फिर वो चाहे कितनी बड़ी ही शख्सियत क्यों न हो। सोमवार सुबह 8.00 बजे के करीब केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई की टीम एनडीटीवी न्यूज चैनल के प्रमोटर प्रणय रॉय के ग्रेटर कैलाश-1 स्थित घर पर पहुंची और छापेमारी की। प्रणय रॉय पर फंड डायवर्जन और बैंक से फ्रॉड का आरोप है। सीबीआइ की टीम प्रणय रॉय और उनकी पत्नी राधिका रॉय से बैंक फ्रॉड के मामले में भी पूछताछ कर रही है। इससे पहले प्रवर्तन निदेशालय ने फेमा प्रावधानों का उल्लंघन करने को लेकर एनडीटीवी के खिलाफ 2,030 करोड़ रुपये का नोटिस जारी किया था। ईडी का ये नोटिस प्रणय रॉय, राधिका रॉय और सीनियर एग्जीक्यूटिंव केवीएल नारायण राव के खिलाफ जारी किया गया था।  

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Dakhal News 5 June 2017


हिंदी वाले पत्रकार राहुल देव

देश के प्रतिष्ठित गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारिता पुरस्कार से प्रसिद्ध पत्रकार राहुल देव को सम्मानित किया गया।  राहुल देव ने पत्रकारिता की शुरूआत 1979 में स्नातकोत्तर पढ़ाई के दौरान लखनऊ में ‘दि पायोनियर’ से की। इस तरह वे आपातकाल की छाया से ताजा-ताजा मुक्त हुए वातावरण में पत्रकार बने थे, जो एक तरह से देश के दूसरे मोहभंग (नेहरू से विरक्ति के बाद) का काल था। इंदिरा गांधी को हराकर विपक्षी दलों ने केंद्र में जो सरकार बनाई थी, उसमें विखंडन और टूट-फूट का दौर चरम पर था। खोजी पत्रकारिता से प्रारंभ उनका सफर अंग्रेजी साप्ताहिक ‘करेंट’ के जरिए राजनैतिक और विश्लेषणात्मक लेखन की ओर मुड़ गया। ‘दि इलेस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया’ (दोनों दिल्ली), 'दि वीक’ व 'प्रोब इंडिया’ (दोनों लखनऊ) तक वे अंगरेजी के पत्रकार रहे। बाद में लोकप्रिय हिन्दी पत्रिका 'माया’ के दिल्ली ब्यूरो प्रमुख बने। तत्पश्चात कुछ समय वे अंगरेजी पत्रिका 'सूर्या इंडिया’ के संपादक भी रहे। 1989 में वे 'दैनिक जनसत्ता’ के मुंबई संस्करण के स्थानीय संपादक बने। सही कहा जाए तो यहीं से असली राहुल देव के बनने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। उनके नेतृत्व गुणों, संगठन कौशल तथा मानवीय गुणों का उत्कर्ष हमें यहीं देखने को मिलता है। उन्होंने जनसत्ता में कार्यरत विभिन्न विचारधाराओं तथा मिजाजों के साथियों को संभालते-संवारते हुए जनसत्ता को मुंबई और गैर हिन्दी प्रदेश महाराष्ट्र में लोकप्रिय ही नहीं, जीवन की आवश्यकता ही बनाया। उन्होंने जनसत्ता के दौरान 1993 में सिर्फ 11 दिन की अवधि में सांध्य दैनिक 'संझा जनसत्ता’ का प्रकाशन प्रारंभ किया। साप्ताहिक पत्रिका 'सबरंग’ भी उन्होंने ही शुरू की और ये तीनों प्रकाशन सामूहिक तौर पर मुंबई के साथ देशभर के पाठकों और लेखकों की अभिव्यक्ति का प्रभावी मंच साबित हुआ।  जब मुंबई में बाल ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना ने धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील  ताकतों व पत्रकारिता के खिलाफ हल्ला बोला था और कुछ पत्रकारों पर हमले भी हुए थे, तब राहुल देव ने ही शिवसेना भवन के ठीक सामने पत्रकारों का बड़ा धरना देकर शिवसेना को झुकाया था। यह इस मायने में ऐतिहासिक घटना थी कि वह ठोकशाही में विश्वास करने वाली पार्टी के कार्यालय के सामने हुआ और उसमें देश के अनेक बड़े पत्रकार शामिल हुए थे। इसके कारण राहुल देव को करीब दो महीने पुलिस सुरक्षा भी मुहैया कराई गई थी। जिस प्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी सांप्रदायिक सौहार्द्र के बड़े सेनानी थे, वैसे ही राहुल देव ने बाबरी मस्जिद के गिरने के कारण मुंबई में उपजी हिंसा को खत्म करने के लिए अपना जीवन दांव पर लगाते हुए अनेक दंगाग्रस्त क्षेत्रों में काम किया। शांति के लिए कार्यरत व्यक्तियों और संगठनों के साथ सामूहिक तौर पर तो कभी एकाकी रूप से उन्होंने काम किया। कुछ अशांत क्षेत्रों से राहुलजी ने अल्पसंख्यक परिवारों को सुरक्षित बाहर निकालने में भी मदद की।  जनसत्ता के माध्यम से राहुल देव ने मुंबई के हिन्दीभाषी समुदाय को सामाजिक और बौद्धिक नेतृत्व प्रदान किया। 100 से अधिक मंडलियों को जोड़कर रामलीला महासंघ बनाया और हिन्दीभाषियों को मुंबई में गरिमामय स्थान प्राप्त करने में मदद की। अनेक हिन्दीभाषी समुदायों की उपलब्धियों और गतिविधियों का प्रतिबिंब जनसत्ता बना।  बाद में राहुल देव जनसत्ता के दिल्ली में संपादक बने। फिर ‘आज तक’, ‘जी टीवी’, ‘सीएनईबी’, ‘दूरदर्शन’ आदि में कभी नियमित तो कभी बतौर फ्रीलांसर जुड़े और इलेक्ट्रानिक मीडिया को अपनी वैचारिकता, संवेदनशीलता और  प्रतिभा से संपन्न किया। अगर उनके प्रोफेशनल आयाम को एक तरफ रख दिया जाए, वर्तमान दौर में वे हिन्दी और भारतीय भाषाओं को बचाने का बड़ा अभियान छेड़े हुए हैं। हिन्दी की गहनता और ऊंचाइयों को दर्शाने वाले कार्यक्रम वे अपनी संस्था सम्यक न्यास की ओर से बनाते हैं तथा स्वयं देश भर में घूम-घूमकर हिन्दी को सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित करने तथा उसके अधिकाधिक उपयोग करने जनजागरण में रत हैं।  गणेश शंकर विद्यार्थी (26 अक्टूबर 1890-25 मार्च 1931) और राहुल देव के कालखंड चाहे पृथक हों, परंतु साम्प्रदायिक सद्भाव और हिन्दी की प्राणप्रतिष्ठा दो ऐसे तथ्य हैं, जो इन दोनों पत्रकारों को आपस में जोड़ते हैं। राहुलजी की पत्रकारिता चाहे देश के नैराश्यकाल से प्रारंभ हुई हो, परंतु उनके लेखन को आशावाद हमेशा दमकाता चला आया है। 

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Dakhal News 3 June 2017


निधि राजदान-संबित पात्रा

भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा और अंग्रेजी न्यूज चैनल एनडीटीवी की एंकर निधि राजदान के बीच इतनी तीखी बहस हो गई कि संबित पात्रा को शो से बाहर निकाल दिया गया। शो की एंकर निधि राजदान ने संबित को लगभग डांटते हुए ये कह दिया कि ये मेरा शो है मैं आपको निकाल रही हूं। दरअसल इस शो में केरल में कांग्रेस कार्यकतार्ओं द्वारा सार्वजनिक रूप से की गई गोहत्या पर डिबेट की जा रही थी । इस मुद्दे पर कांग्रेस की तरफ से अपना पक्ष रखने के लिए शर्मिष्ठा मुखर्जी मौजूद थीं तो वहीं भाजपा की तरफ से संबित पात्रा मौजूद थे। इन दोनों के साथ कुछ मेहमान और भी शो से जुड़े थे। इस मुद्दे पर अपनी राय रख रहे दूसरे मेहमानों के बोलने के दौरान ही बीच में संबित बोलने लगे। बीजेपी प्रवक्ता को दूसरों की बात के बीच में टोकता देख एंकर निधि राजदान ने पहले तो उन्हें आराम से समझाया कि आप दूसरों को इंटरप्ट ना करें। एंकर की ये बात सुनकर संबित ने कहा कि मैं दूसरों चैनलों पर भी जाता हूं वहां मैं किसी को डिस्टर्ब नहीं करता हूं लेकिन यहां मुझे करना पड़ रहा है क्योंकि एनडीटीवी एक एजेंडे पर काम कर रही है। संबित ने कहा कि चैनल गाय को बार-बार बैल बताने की कोशिश कर रहा है। पात्रा ने कहा कि एनडीटीवी का झुकाव कांग्रेस के प्रति है। संबित पात्रा की ये बातें सुनकर शो की एंकर निधि राजदान गुस्से में आ गईं। उन्होंने संबित से नम्रतापूर्वक उठकर चले जाने को कह दिया। एंकर के शो छोड़ने के लिए कहने वाली बात पर संबित और ज्यादा उखड़ गए और बोलने लगे कि आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझसे ऐसा बोलने की। एंकर ने कहा कि ये मेरा शो है मैं जो मर्जी करूंगी..आपकी हिम्मत कैसे हुई कि आप मेरे चैनल पर इस तरह का आरोप लगा रहे हैं। एंकर के बार-बार बोलने पर भी संबित शो छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए और बोलने लगे कि आपने मुझे बुलाया है मैं शो खत्म होने तक नहीं जाउंगा यहां से। संबित को अड़ता देख एंकर निधि राजदान ने कहा कि ठीक है आप बैठिये लेकिन पहले आपने चैनल के बारे में जो कहा उसके लिए माफी मांगिए। संबित माफी मांगने के लिए राजी नहीं हुए तो मजबूरन एंकर ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। इस डिबेट का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा है। लोग लिख रहे हैं कि आखिरकार वह दिन आ ही गया जब संबित पात्रा को टीवी पर से उठा कर भगाया गया।[जनसत्ता से साभार ]  

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Dakhal News 2 June 2017


india tv trp

21 वें सप्ताह में इण्डिया टीवी को झटका लगा और वो लुढ़क के चौथे नंबर पर आ गया है। रजत शर्मा की व्यू रचना और अजीत अंजुम का स्टाइल भी चैनल को नंबर वन नहीं बना पा रहे हैं। इंडिया टीवी को लगातार अपनी स्टेटजी बदलना पड़ रही है। एडिटोरियल से लेकर नेटवर्क सम्हालने वाले तक सभी को ठीक से काम करने के लिए ताकीद किया गया है।    नेशनल न्यूज चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 21 Aaj Tak 15.9 up 0.3  Zee News 14.9 up 1.3  ABP News 12.8 up 0.2  India TV 11.6 dn 1.3  News18 India 10.1 dn 0.3  India News 10.1 dn 0.2  News Nation 9.7 up 0.4  News 24 7.0 dn 0.2  Tez 3.1 same   NDTV India 2.5 dn 0.3  DD News 2.2 same    TG: CSAB Male 22+ Zee News 16.2 up 0.7  Aaj Tak 15.5 up 0.3  ABP News 12.7 up 0.3  India TV 11.8 dn 1.3  News18 India 10.7 dn 0.8  News Nation 9.3 up 0.7  India News 8.8 up 0.6  News 24 6.5 dn 0.1  Tez 3.3 same   NDTV India 3.1 dn 0.5  DD News 2.2 up 0.1     Mp/cg के टॉप फाइव न्यूज़ चैनल TRP Regional Channels WK 21 ज़ी           59.2 Ibc24      25.3 Etv          7.9 सहारा     4.0 Smbc     1.8

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Dakhal News 2 June 2017


पत्रकार कमलेश जैन हत्या

मध्यप्रदेश में मंदसौर के पिपलियामंडी में बुधवार शाम समाजसेवी और नईदुनिया के पत्रकार कमलेश जैन की दो अज्ञात बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी। प्रारंभिक जांच में जैन का एक माह पहले किसी से विवाद का मामला सामने आ रहा है। इस मामले में पुलिस के लापरवाही सामने आई है। वैसे भी मध्यप्रदेश में पुलिस की छवि पहले जैसी नहीं है और उसके अपराधियों से मिलीभगत के कई किस्से सामने आ चुके है।  कमलेश जैन (43) पिपलियामंडी में अन्नपूर्णा टॉकिज रोड स्थित लवली चौराहे पर अपने कार्यालय पर थे। टीआई अनिलसिंह ठाकुर ने बताया कि बाइक से दो बदमाश आए और कार्यालय में जाकर जैन पर गोली चला दी। गोली उनके सीने में लगी। हमले के बाद दोनों बदमाश बाइक से खात्याखेड़ी की तरफ भाग गए। घायल हालत में जैन को जिला अस्पताल लाया जा रहा था, रास्ते में ही उनकी मौत हो गई। घटना के बाद क्षेत्र में सनसनी फैल गई। पिपलियामंडी में व्यवसायियों ने अपनी दुकानें बंद कर लीं। जिला अस्पताल में एडीशनल एसपी अजयप्रतापसिंह, शहर थाना प्रभारी विनोदसिंह कुशवाह सहित पुलिस बल भी पहुंचा। पिपलियामंडी और आसपास क्षेत्र में पुलिस ने नाकाबंदी की। कमलेश गत 12 सालों से नईदुनिया वितरक के रूप में जुड़े हुए थे। पिपलियामंडी टीआई ठाकुर ने बताया कि करीब एक माह पहले एनडीपीएस एक्ट के मामले में जेल से छूटकर आए एक बदमाश से जैन का कुछ विवाद हुआ था। हत्या में उसका भी हाथ हो सकता है। यह बदमाश नाहरगढ़ क्षेत्र का है। इस विवाद के आधार पर भी जांच की जा रही है। कमलेश जैन के हत्यारों को बख्शा नहीं जाएगा : सीएम पिपलियामंडी में समाजसेवी और नईदुनिया वितरक ,पत्रकार कमलेश जैन की हत्या पर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हत्यारों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। कानून की कड़ी से कड़ी सजा हत्यारों को दी जाएगी। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि कमलेश जैन की आत्मा की शांति के लिए सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना करता हूं। कमलेश जैन की हत्या के विरोध में नागदा में पत्रकारों ने केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत को ज्ञापन देकर प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने की मांग की। बुरहानपुर में भी हत्या के खिलाफ रैली निकालकर कलेक्टर और एसपी को ज्ञापन दिया। आलीराजपुर में भी हत्या पर एसएसपी को ज्ञापन दिया गया।

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Dakhal News 1 June 2017


rakesh achal patrkar

ग्रामीण पत्रकारिता विकास संस्थान ग्वालियर अपने अलग तरह के कार्यक्रमों के लिए जाना जाता है । पत्रकारिता में आने वाले बदलावों , इनके विकास और विस्तार के चलते इसके नफा ,नुक्सान और चुनौतियों से निपटने के तरीको की खोजबीन  के सतत् प्रयास करता है । विचार और विमर्श । बदलाव पर चर्चा  और सम्मान ।हिंदी पत्रकारिता दिवस पर आयोजित कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थी देश की जानी मानी ब्लॉगर , ई पत्रिका की संस्थापक और सुप्रसिद्ध कवियित्री सुश्री प्रीति 'अज्ञात' । अज्ञात  अन्तर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मलेन में सम्मानित हो चुकी है । उल्लेखनीय यह कि वे भिंड में जन्मी और पली , बढ़ी है । कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार  राकेश अचल थे । अध्यक्षता संसथान के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार श्री देव श्रीमाली ने की । विशिष्ठ अतिथि के तौर पर सहायक संचालक जन संपर्क श्री मधु सोलपुरकर और पीआरओ हितेन्द्र भदौरिया मोजूद रहे । इस मौके पर स्वतंत्रता आन्दोलन से लेकर देश के नव निर्माण में हिंदी पत्रकारिता की गौरावशाली भूमिका , वर्तमान दशा और दिशा , शक्तिशाली होती सोशल और डिजिटल मीडिया और उससे जुडी समस्याओ तथा भाषा पर होने वाले अतिक्रमण आदि विषयो पर गंभीर चिंतन हुआ । इस मौके पर सुश्री प्रीति अज्ञात को हिंदी सेवी गौरव सम्मान भी दिया गया । कार्यक्रम का सफल सञ्चालन पत्रकार साहित्यकार श्री राजेश अवस्थी लावा ने किया । कार्यक्रम में प्रो एस  के जैन , विनोद शर्मा , जावेद खान,नासिर गौरी,तेजपाल सिंह,अतुल मल्होत्रा ,सुरेन्द्र ठाकुर ,रवि सिकरवार ,अजय दुबे सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार ,पत्रकार मौजूद थे ।

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Dakhal News 31 May 2017


 आईसना

म.प्र.मीडिया की विशेष बैठक दैनिक भारत मत के एमपी नगर स्थित प्रदेश कार्यालय मेअध्यक्ष आईसना व अवधेश भार्गव जी की अध्यक्षता मे सम्पन्न हुई। बैठक मे कई पत्रकारो ने ज्वलन्त विषयो पर चर्चा की। जिसमे पत्रकारो ने एक स्वर से मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चोहान से मांग की हे कि म.प्र.मे तत्काल  प्रभाव से पत्रकार प्रोटेक्शन एक्ट लागू किया जाये। म.प्र.सरकार मे कई पत्रकार झुठे मुकदमो का शिकार हुये है और इस बात को म.प्र मीडिया  संघ विभिन्न जिलो से जन-जागरण अभियान शुरु किया जायेगा। जिस तरह से महाराष्ट्र सरकार ने पत्रकार प्रोटेक्शन एक्ट लागु किया है इसी प्रकार म.प्र.सरकार भी पत्रकार हित मे त्वरित निर्णय ले।  बैठक मे म.प्र.मीडीया सँघ के प्रदेश अध्यक्ष  जयवन्त ठाकरे,प्रदेश प्रवक्ता  शुभकरण पान्डेय,प्रदेश मीडीया प्रभारी अनुज सक्सेना,आदित्य नारायण उपाध्याय(सम्पादक पालिटिकल व्यु),संजय रायजादा(सम्पादक),विमल कुँवर(सम्पादक ब्रह्म भारत),सन्तोष कुमार (सम्पादक अमन संवाद)दीपक शर्मा(सम्पादक प्रतिवाद ),समीम (सम्पादक दैनिक समाचार).जावेद अख्तर सिद्दिकी(सम्पादक समाचार का असर),नदीम भाई(सम्पादक नदीम एक्सप्रेस),गुलफान खान(सम्पादक मन समाचार) मौजूद थे। 

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Dakhal News 26 May 2017


पत्रकार अनुराग उपाध्याय की कविता

गोरे हों या फिर काले देखो सत्ता वालों  के साले देखो ...  भरे पड़े '' गोदाम'' तुम्हारे  आंत में अन्न के लाले देखो ...  वोट हमारे और सूरज तुम  हमारी आँख में  जाले देखो ... सड़कों सी अब टूटी निंदिया  कितने  सपने पाले देखो ... जनता को आस झोपड़ी की   नेताजी के कई माले देखो ... =================

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Dakhal News 23 May 2017


टॉप एंकर

कल्पना कीजिए....  एक टॉप का एंकर छह महीने तक गायब रहे, फिर एक दिन अपना चैनल लेकर आए और एक ही सप्ताह में अपने चैनल को सबसे ज्यादा इक्यावन फीसद दर्शक खींचने वाला बताए तो आप क्या कहेंगे ? इन आंकड़ों को देखकर कोई भी चौंकेगा। एक चैनल ने इस आंकड़े को  खारिज ही कर दिया। एक वक्त में एक ही चैनल टॉप पर हो सकता है। फिर भी सभी अपने को नंबर वन सिद्ध करने वाले आंकड़े दिखाते रहते हैं। जाहिर है कि सभी कुछ न कुछ गड़बड़ करते हैं वरना यह संभव नहीं कि एक ही सप्ताह में सब नंबर वन पर रहें। नंबर वन पर रहने की हवस इसलिए है क्योंकि दर्शक संख्या के हिसाब से ही इनको विज्ञापनों के रेट मिलते हैं। निजी चैनलों की कमाई का जरिया विज्ञापन ही होते हैं। अगर विज्ञापन न हों तो निजी खबर चैनल दो दिन में खत्म हो जाएं।खबर जुटाना एक महंगा काम है। अगर आपकी कमाई अधिक है तभी आप फील्ड रिपोर्टरों, कैमरामैनों और ओबी वैनों की तामझाम रख सकते हैं और विविध खबरें जुटा सकते हैं वरना नहीं। इसीलिए चैनल विविध खबरों की जगह ‘‘ओपिनियनों और चरचाओं’ से काम चलाते हैं। अगर बहुत हुआ तो पांच मिनट में पचास या दस मिनट में सौ खबरों की ‘‘कटपीस’ बांचकर काम चलाया जाता है जिनमें खबर पलभर आकर गायब हो जाती है। एक ही खबर को खींचतान कर, दिनभर बजाकर, बहुत सी खबरों की कमी को, पूरा किया जाता है और शाम से प्राइम टाइम तक किसी एक खबर की राजनीति पर बहस चलाके खबर चैनल होने का कर्तव्य पूरा किया जाता है। अगर किसी चैनल को किसी से किसी का ‘‘एक्सपोजे’ मिल गया या स्टिंग हाथ लग गया है तो उसी में दो-तीन दिन निकाले जा सकते हैं। इसीलिए हमारे चैनलों का रवैया किसी एनजीओ या एक्टिविस्ट जैसा नजर आरहा है कि अपने लक्षित दल या नेता को पहले नंगा करो; इसमें भी निशाने पर प्राय: विपक्ष ही रहता है, सत्ता पक्ष की सिर्फ उपलब्धियां ही गिनाई जाती हैं। फिर कहो कि कहां छिपा है? आकर बताता क्यों नहीं क्या सचाई है? यह एंकरों का ‘‘एक्टिविज्म’ है।कंपटीशन भी यहीं हैं : तरह-तरह के एक्सपोजे दिखाने में सब लगे हैं, लेकिन एक चैनल उनको नरम भाषा में दिखाता है और दूसरा चैनल गरम भाषा में दिखाता है तो बताइए कौन-सा चैनल ज्यादा देखा जाएगा? जाहिर है कि गरम भाषा वाला चैनल ही ज्यादा पसंद आएगा। अगर एक अंग्रेजी चैनल दिनभर लालू के या चिदम्बरम के या थरूर के पीछे पड़ा रहता है और उसका एंकर लालू को कहता है कि वह घर में बंद हो गए हैं और हमारा चैनल देख रहे हैं या कहता है कि ‘‘थरूर तुम; चारों तरफ से घेर लिए गए हो, अब तुम बचके नहीं जा सकते’ तो बताइए उसे अधिक दर्शक मिलेंगे कि नहीं? आजकल टीवी की खबरों के दर्शकों का मिजाज भी बिगड़ गया है। उनका मिजाज एक्टिविस्ट एंकरों ने बिगाड़ा है। वे बदल गए हैं। अब उनको सिर्फ ‘‘सूखी सूचना’ नहीं चाहिए। उनको हर पल नए से नया भंडाफोड़ चाहिए। हर वक्त एक खलनायक चाहिए। हर बड़े आदमी संदिग्ध है। उसे नंगा किया जाना चाहिए। यह ‘‘सूडो समाजवाद’ है,‘‘न्याय की चाहत’ है, जिसे हर एक्सपोजे के जरिए एंकरों ने दिन-रात बेचा है। समाजवाद लाना तो बेहद कष्टकर और फिलहाल असंभव-सा है, लेकिन एक-दो घंटे के आनंदकारी ड्रामे में एक प्रकार का ‘‘सूडो समाजवादी मजा’ तो पैदा किया जा सकता है। एंकर आजकल यही करते हैं। असली न सही तो ‘‘सूडो समाजवाद’ ही सही। इसी का बाजार है।विपक्ष ही खलनायक है/विपक्ष ही सारी समस्याओं की जड़ है/ विपक्ष से बड़ा कोई पापी नहीं है/ सारे भ्रष्टाचार के काम विपक्ष के नाम है/ सत्तर साल से ऐसा ही होता चला आया है /कभी कहा जाता है कि साठ साल से ऐसा ही होता चला आया है अब आकर उस पर रोक लगी है।बाहुबली ने पंद्रह दिन में पंद्रह सौ करोड़ कमा लिए। मीडिया ने उसे जिस तरह से उठाया वैसा कम ही फिल्मों को नसीब हुआ। पंद्रह दिन पहले से पंद्रह दिन बाद तक उसको जमाया जाता रहा। पिछले दिनों चार दशमलव आठ प्रतिशत के हिसाब से प्रिंट मीडिया बढ़ा है दुनिया के हर देश में प्रिंट मीडिया पिट रहा है कम छप रहा है खत्म हो रहा है, लेकिन हिंदुस्तान में वह बढ़ रहा है। कारण क्या हैं? सर्वे ने सीधे कारण तो नहीं बताए, लेकिन संकेत दे दिए कि क्या-क्या कारण हो सकते हैं।

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Dakhal News 22 May 2017


trp week 19

  टीआरपी बताती है कि एबीपी न्यूज़ अपनी गलतियों से सबक नहीं ले रहा है और चौथे नंबर का चैनल बना हुआ है। आज तक और इण्डिया टीवी को चौनौती देना फिलहाल उसके बूते की बात नहीं है।  नेशनल न्यूज़ trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 19 Aaj Tak 15.7 dn 0.4  India TV 13.6 dn 0.4  Zee News 13.3 dn 0.3  ABP News 12.1 up 0.1  News18 India 10.7 same   India News 10.3 up 0.5  News Nation 9.6 dn 0.5  News 24 6.6 up 0.5  Tez 3.2 up 0.3  NDTV India 2.8 up 0.1  DD News 2.2 up 0.1   TG: CSAB Male 22+ Zee News 15.6 up 0.8  Aaj Tak 15.2 dn 0.8  India TV 12.8 dn 1.1  ABP News 12.4 up 0.2  News18 India 11.3 dn 0.5  India News 9.0 up 0.4  News Nation 8.8 dn 0.1  News 24 5.8 up 0.4  NDTV India 3.6 up 0.2  Tez 3.3 up 0.2  DD News 2.3 up 0.3   Mp/cg के टॉप फाइव रीजनल न्यूज़ चैनल week-19 Zee         59.5 Ibc24      26.5 Etv          9.0 सहारा      4.9 बंसल        1.5

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Dakhal News 18 May 2017


vijay das patrkar

  भोपाल से प्रकाशित राष्ट्रीय हिंदी मेल के प्रधान संपादक विजयकुमार दास  को पिछले दिनों भुवनेश्वर में आयोजित सम्मान समारोह में हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में किये गए उत्कृष्ट कार्यों के लिए चिंतामणि पाणिग्रही अवार्ड से सम्मानित किया गया। श्री दास मध्यप्रदेश के एक मात्र ऐसे पत्रकार हैं,जिन्हें यह सम्मान मिला है।  

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Dakhal News 16 May 2017


राघवेंद्र सिंह

राघवेंद्र सिंह आज जब हम यह लिख रहे हैं तब अंग्रेजियत के हिसाब से पूरी दुनिया मदर्स डे मना रही है। यानि मां जैसा दुनिया में कोई नहीं। जब भगवान स्वर्ग से पृश्वी पर भेज रहे थे उनके साथ रहने की जिद करने वालों से उन्होंने कहा मैं तो साथ रहूंगा नहीं मगर तुम्हारे साथ मां रहेगी जो मेरी तरह तुम्हारा ध्यान रखेगी। जैसे मैं दिल से मांगी गई माफी से हर गुनाह माफ कर देता हूं वैसे ही मां भी करेगी, इसलिए सृष्टि की हर मां को नमन करते हुए यह बात कर रहे हैं। मध्यप्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों की जीवन दायिनी है मां नर्मदा। इसके अलावा पापियों को तो केवल दर्शनभर करने से ही पाप मुक्त कर देती हैं। उसके जल के आचमन करने का तो पुण्य ही अलग है। इसलिए नालायक बेटों ने उसके जल को लगता है आचमन करने लायक भी नहीं छोड़ा और भविष्य में दर्शन करने लायक भी नहीं छोड़ेगे, क्योंकि दुनिया के जानकार कहते हैं कि जैसा सुलूक मां नर्मदा के साथ हो रहा है आने वाले कुछ सालों में वह खेल का मैदान बन जाएगा। उसके बेटे नर्मदा मैया की जय के साथ हर दिन मार रहे हैं। जयकारे का नाद का दायरा बढता है उसी रफ्तार से उसपर प्रहार की गति बढ़ती है। सोमवार 15 मई को गुजरात के लाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमरकंटक आ रहे हैं। नर्मदा सेवा के समापन पर। यह उद्गम है माई का। मगर अपने आरंभ से कुछ ही किलोमीटर बाद वह सूख चुकी हैं। यह लिखते हुए हाथ कांपते हैं और शब्द ठिठक जाते हैं।  लेकिन सच यही है। कपिलधारा से लेकर कबीरकुंडी के पास आते आते इसके प्रमाण भी मिल जाते हैं। बस यहीं से मां नर्मदा की सांसें उखड़ने की कहानी शुरू होती है, जो पूरे प्रदेश में रेत उलीचने और नोंचने खचोटने तक चल रही है। उसे अब बेटों ने जीवित होने का दर्जा देने का ऐलान किया है। मगर यह तब जब उसके मरने की ताऱीखें लोग तय करने लगे हैं। इसके आभूषण रूपी पहाडों सतपुड़ा,विन्ध्याचल काटकर सड़कें बनाई जा रही हैं और गहनों के रूप में लगे सागौन और साल के वृक्षों को बेतहाशा काटकर फर्नीचल बनाए जा रहे हैं। कुल मिलाकर एक मां की बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम है। अब नर्मदा माई जगह जगह से कमजोर हैं। धाराएं टूट फूट गई हैं। उसकी शिराओं से रक्तरूपी जल और मज्जा में रेत खत्म सी हो रही है। लुटेरे बेटों ने लीवर,आंत,किडनी,दिल, जिगर सब छलनी सा कर दिया है। उसकी मदद करने वाली सखियां(सहायक नदियां) भी मर रही हैं। अब वे साल में कुछ महीने ही बहती हैं। बेटों के गांव से लेकर शहरों का मलमूत्र मिलना तो एक मां को मंजूर था लेकिन फैक्ट्री और शुगर मिलों का जहर उसे मारे डाल रहा है। हालात खतरनाक हैं और जीवन देने वाली नर्मदा माई वेंटीलेटर पर हैं। नरेन्द्रमोदी उसके उद्गम पर आकर क्या कहेंगे उसे सुनने समझने के लिए माई अपने दिल दिमाग को चैतन्य किए हुए है। मोदी ने भी कुछ नहीं किया तो अमेरिका की एक एजेंसी समेत कई जल के जानकारों ने उसे मरती हुई माई तो घोषित कर ही दिया है। हालात नहीं बदले तो कुछ ही सालों की मेहमान है वह। इस सबके बाद भी मां नर्मदा गुजरात और मध्यप्रदेश को बददुआ नहीं दे रही हैं क्योंकि वो मां जो है।  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि नर्मदा माई को नहीं बचाया तो वह खेल का मैदान बन जाएगी। बेटे के मुंह से मां के मरने का यह अघोषित ऐलान भला किसे अच्छा लगेगा लेकिन ऐसा भी हो रहा है। सत्ता पर बारह साल से काबिज एक परमज्ञानी,चुनाव जीतने वाले पराक्रमी बेटे का परमहंसी भाव हो सकता है। दुनिया कई बार बनी है और मिटी है । आगे भी ऐसा होगा। विकास के लिए रेत निकालों मगर आहिस्ता आहिस्ता ताकि तकलीफ न हो। विकास पुरुष बने बेटे इससे ज्यादा क्या संवेदना जता सकते हैं। लोग सवाल कर रहे हैं कि मां को तो मरना ही है। मरणासन्न मां को शायद इसी बात का सबसे ज्यादा दुख होगा कि उसे नोंचने वालों में उसके अपने बेटे की सबसे ज्यादा हैं। अब अपने बड़े बेटे नरेन्द्र मोदी से कुछ करने की आस लगाए होगी जैसे वह लुटेरे बेटों को डराएगा,धमकाएगा नहीं माने तो दंडित भी करेगा। क्योंकि उसके ही जल से तो साबरमती जिंदा हुई है। गुजरात के कच्छ में हरियाली आई है और धरती सोना उगलने लगी है। क्या इसका कोई मोल बेटा नहीं चुकाएगा। अभी तो उसके बचाने का जितना ढिंढोरा पीटा जा रहा है पैसा और श्रम बर्बाद हो रहा है उसे अगर उसके किनारे रहने वाले लोगों पर खर्च किया जाता तो हालात बिगड़ने से बचते। मां के दुख की कहानी यहीं नहीं रुकती। एक साल पहले बहन क्षिप्रा में उसे मिला दिया गया था, अरबों रुपए लगाकर, मगर सिंहस्थ के बाद क्षिप्रा भी नाले की तरह बनी हुई है। पैंतालिस छोटे बड़े शहर और कस्बों की गंदगी उसमें मिल रही है। जनअभियान परिषद ने तो उसमें मिलने वाले गंदे नालों का आंकड़ा सात सौ बताया है। हालत यह है कि उसमें पलने वाले जीव जंतु मर रहे हैं। साफ पानी में रहने वाली दुर्लभ प्रजाति की महाशीर मछली और पातल भी खत्म होने की कगार पर है। नर्मदा माई के दर्शन से पुण्य पाने वाले जल प्रदूषण के कारण अब उसके आचमन के लिए भी तरस रहे हैं। कभी पानी में कई फीट नीचे की रेत चांदी जैसी चमकती थी अब वह दिखना भी दुर्लभ हो गया है। इसलिए तो उसे डाईंग रिभर कहने लगे हैं। यह सुन कलेजा कांप उठता है। उसके प्राण ले रहे पुत्रों से इतना ही कहना है क्या भगवान से जरा भी डर नहीं लगता। नर्मदा माई की तलहटी में कई विजेता सदियों से मिट्टी बने पड़े हैं। कम से कम यह बात तो सबको याद रखनी चाहिए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और प्रधानमंत्री मोदीजी को भी। लिखने को बहुत कुछ है लेकिन अभी दिल भारी है और शब्द भी साथ नहीं दे रहे हैं। मामला मां का है और मदर्स डे भी तो है। तो शायर मुनव्वर राना का शेर तो बनता है... ‘किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई’ (लेखक IND24 के समूह प्रबंध संपादक हैं)

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Dakhal News 16 May 2017


 महबूबा मुफ्ती

    जम्मू कश्मीर राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने मीडिया से अनुरोध किया है कि वे घाटी के लोगों के खिलाफ घृणा फैलाने वाली चर्चाएं टीवी पर ना दिखाए। क्योंकि इससे राज्य के लोगों पर बुरा असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि पत्थरबाजी करने में कुछ छात्रों का हाथ जरूर है लेकिन इसके लिए सभी छात्राओं को गुनहगार समझा नहीं जा सकता। अगर सारे छात्र पत्थरबाजी करते होते तो हाल ही में निकले परिणाम में इतने छात्र पास ही ना होते।  उल्लेखनीय है कि कश्मीर में छात्रों के साथ-साथ अब छात्राएं भी पत्थरबाजी करने पर उतर आई हैं। सोपोर में छात्राओं द्वारा किए जा रहे हिंसक प्रदर्शन के दौरान सुरक्षा बलों ने जवाबी कार्रवाई की जिसमें 8 छात्र घायल हुए और 20 छात्राएं बेहोश हो गईं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब स्कूल की यूनिफॉरम पहन कर छात्राएं इस तरह से हिंसक प्रदर्शन में शामिल हुई हैं। इससे पहले भी कई बार इस तरह की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। 

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Dakhal News 8 May 2017


अरशद अली खान bhopal

अरशद अली खान  अपने चैनल खबर कम देते हैं बहसें ज्यादा। बहसों को भी ‘‘शो’ की तरह दिया जाता है। ‘‘शो’ में अतिरिक्त प्रदर्शन का तत्व होता है, जिसे एंकर अतिरिक्त उत्तेजना पैदा करके बनाए रखता है। ‘‘शो’ में आकर खबर अचानक विचार, और विचार अचानक ‘‘शो’ बन जाते हैं। हम विचार नहीं ओपिनियन भी नहीं विचारों या ओपिनियनों के शो को चुनते हैं।चूंकि एंकर इस तरह के शोज के संयोजक होते हैं, सवाल पूछने वाले होते हैं, नतीजे निकालने वाले और आखिरी फैसला देने वाले होते हैं, इसलिए दर्शक समझने लगते हैं कि असली ज्ञानी एंकर ही होते हैं, और कुछ एंकर भी ऐसा मान लेते हैं कि वे ही ज्ञानी हैं। कुछ एंकर तो ऐसे भी हो गए हैं, जो मानते रहे हैं कि वे अपने शो से देश का एजेंडा तय करते हैं, उसे हांकते हैं, उसे दिशा देते हैं। लेकिन जब उनके चैनलों के मालिकों ने किसी कारण से उनको काम से हटा दिया तो मालूम हुआ कि वे न देश चला रहे थे, न समाज को चला रहे थे बल्कि चैनल ही उनको चला रहा था। हमारा टीवी इसी शोबाजी की प्रक्रिया में खबर का माध्यम न रह कर शो बिज का माध्यम बन गया है। चैनलों के सबसे अच्छे दिन शनिवार और रविवार होते हैं, जब उनको अपने स्टूडियो को फिल्मी दुनिया के हवाले कर देना होता है, या इंपेक्ट फीर्चस यानी किराए के शो के हवाले कर देना पड़ता है। इन दिनों कॉनक्लेव, एन्कलेव, समिट आदि कराना भी विचारों के नए लाइव शोज की तरह आने लगा है, जिनमें खबरें ब्रेक की जाती हैं, ताली मिलती हैं, सलेक्टेड जनता सवाल करती है, और जवाब दिए जाते हैं। यह भी राजनीति के परफारमेंस में बदल जाने का परिणाम है कि खबर के स्रेत अब पांच सितारा होटल बनने लगे हैं।यह खबर की ऐलीट (श्रेष्ठि वर्ग) से ऐलीट तक की एक जैसी यात्रा है। ऐलीट ही खबर बना रहा है। इधर विचार चल रहा है, सवाल पूछे जा रहे हैं, जवाब दिए जा रहे हैं। उधर सामने बैठा उच्चवर्गीय ऐलीट विचारों के साथ अपने सामने रखी मेज पर रखी प्लेट से मेवे कुटक रहा है, भोजन कर रहा है, और पी-पिला रहा है, और ताली बजा रहा है, हंस रहा है। यह है ‘‘ओपिनियन का उपभोग’! ओपिनियन आई, हमने खाने के संग खाई और हजम। हम ओपिनियनों को हजम करते रहते हैं। वे हमें न सताती हैं, न परेशान करती हैं। वे हमें सिर्फ ‘‘आनंद’ देती हैं।ऐसा नहीं है कि टीवी में खबरें नहीं हैं। वे हैं लेकिन खंडित और टूटी हुई दो-चार खबरों की तरह होती हैं। एक खबर को तोड़कर उसकी दस टुकड़ा खबर बनाई जाती हैं, और बीच-बीच में तीखा म्यूजिक डाल कर सनसनी के अंदाज में दिखाई जाती हैं। इस तरह से हम खबर नहीं खबरों की चिंदियां देखते सुनते हैं। बाकी समय हम फीचर या ओपिनियनों के शो देखते हैं। ऐसे शोज में आप किसी के विचार की गुणवत्ता पर नहीं जाते। आप विचार को बोलने वाले की अदा, उसके शोर-शराबे, उसकी धमकी, उसकी ताल ठोकू मुद्रा के कायल होते हैं। आप विचार नहीं, विचारों का दंगल देखा करते हैं, जहां जो कुश्ती मार ले, वही सही माना जाता है। यानी विचार की सही-गलत होना उतना महत्त्वपूर्ण नहीं जितना कि कुश्ती मारने वाले की जीत की मुद्रा। इसलिए हम तर्क, तय, प्रति-तर्क या प्रति-तय की चिंता न करके शोर-शराबे और हल्ले को सत्य समझने लगते हैं। हम खबर की जगह हल्ले को देखते-सुनते हैं। अगर हमारे समाज में विचार-वितर्क की आदत कम हो रही है, एक दूसरे के विचार को सहने की आदत कम हुई जा रही है, तो उसका एक बड़ा कारण बहसों का शो में बदलना भी है, जिनकी नकल करके हम विचार की जगह हल्ले को सही समझते हैं। हम भी उसकी नकल पर हल्ले का शो ही करते हैं। इस खेल को बनाए रखने का कारण यह भी है कि खबर जुटाना महंगा पड़ता है। ओपिनियन जुटाना सस्ता पड़ता है। ओपिनियन जुटाने से एंकर का जनसंपर्क बढ़ता है। बुद्धिजीवी हलकों में गुडविल बनती है। अब हम जरा ‘‘डिबेट शोज’ की बात करें। डिबेट शो अपने आप में वैचारिक कट्टरता के हामी बन चले हैं। इन दिनों इन शोज से ‘‘वैचारिक विविधता’ का अवसान हो गया है। कई एंकर तो स्वयं कट्टर वैचारिकता के प्रवक्ता बन जाते हैं। यह हमारी वैचारिकता का संकट है। सवा सौ करोड़ की जनता में सत्तर से अस्सी करोड़ तक टीवी की पहुंच कही जाती है, यानी अस्सी करोड़ जनता तो दर्शक है ही लेकिन उसे समझाने वाले, नसीहत देने वालों की संख्या है कुल सौ से डेढ़ सौ। टीवी हमें इसी तरह विचार-विपन्न और विचार-संकीर्ण बना रहा है।{पत्रकार अरशद अली की वॉल से }

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Dakhal News 7 May 2017


trp week 17

  इस साल हर सप्ताह टीआरपी आने के बाद ये तय हो गया है कि सभी न्यूज़ चैनल आज तक की नक़ल करते हैं लेकिन उसकी जगह पर उसके बावजूद कोई चैनल नहीं पहुँच पा रहा। इंडिया टीवी और ज़ी न्यूज़ कुछ सम्हले हैं। लेकिन एबीपी की हालत अब भी पतली है।  नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 17 Aaj Tak 16.1 up 0.6  India TV 13.9 dn 0.3  ABP News 13.6 up 0.9  Zee News 13.5 up 0.5  News18 India 10.1 dn 0.5  News Nation 9.5 dn 0.4  India News 9.3 dn 1.0  News 24 5.9 dn 0.4  Tez 3.3 up 0.3  NDTV India 2.6 up 0.2  DD News 2.2 same    TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.1 up 1.4  Zee News 14.6 up 0.6  India TV 14.1 dn 0.9  ABP News 13.9 up 1.6  News18 India 10.8 dn 0.9  News Nation 8.8 dn 0.5  India News 7.9 dn 0.6  News 24 5.0 dn 0.7  Tez 3.6 up 0.2  NDTV India 3.2 up 0.2  DD News 2.0 dn 0.3 =========================== Mp/cg के टॉप फाइव रीजनल न्यूज़ चैनल week-17 Zee         46.1 Ibc24      35.7 Etv          10.0 सहारा      3.8 बंसल        2.2

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Dakhal News 4 May 2017


भारतीय मीडिया

उमेश त्रिवेदी 22-23 मार्च 2017 को राज्यसभा में भारत में मीडिया के दर्दनाक हालात पर सम्पन्न एक सार्थक बहस को 'ब्लैलक-आउट' करने वाले भारतीय मीडिया में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर पत्रकारिता की आजादी पर जारी शानदार बहस (?) सुनने के बाद कतई भ्रमित होने की जरूरत नहीं हैं कि हिन्दुस्तान में प्रेस की आजादी बेहतरीन दौर से गुजर रही है। दुनिया भर में 3 मई को मनाए जाने वाले विश्व 'प्रेस फ्रीडम-डे' पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीटर पर यह  औपचारिक संदेश दिया है कि 'विश्व प्रेस-फ्रीडम डे' पर हम स्वतंत्र और बहुमुखी पत्रकारिता का समर्थन करते हैं। यह लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है।'  सवा महीने पहले राज्यसभा में भी कई विपक्षी नेताओं ने 'प्रेस-फ्रीडम' के मसले पर भारत में मीडिया की बरबादी को लेकर कुछ इसी प्रकार की भावनाओं को व्यक्त किया था।  राज्यसभा की बहस में शरद यादव जैसे कई नेताओं ने कई सार्थक सवाल उठाए थे। राज्यसभा व्दारा व्यक्त प्रेस की आजादी से जुड़ी चिंताओं का 'ब्लैपक-आउट' करके मीडिया के कर्ताधर्ताओं ने खुद ही काला नकाब पहन लिया था। भारत में मीडिया का स्व-आरोपित 'ब्लैलक-आउट' ही मीडिया का असली चेहरा है। भारत दुनिया के उन 72 देशों में शामिल है, जहां प्रेस की आजादी गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है। 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 180 देशों में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का दावा करने वाला भारत वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 136 वें स्थान पर खड़ा है। पिछले साल की तुलना में भारत तीन स्थान नीचे उतरा है।  वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम के ये आंकड़े 2002 से जारी किए जा रहे हैं। इस रैंकिंग में विविधता, आजादी, वैधानिक-व्यवस्थाओं और पत्रकारों की सुरक्षा से जुड़े कारकों का अध्ययन किया जाता है। इन 180 देशों के विशेषज्ञों से एक प्रश्नावली के आधार पर जानकारी जुटाई जाती है। 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' की रिपोर्ट का सबसे चौंकाने वाला खुलासा यह है कि लोकतांत्रिक देशों में प्रेस की आजादी पर परोक्ष-अपरोक्ष नियंत्रण के चील-कौए मंडरा रहे हैं और उनसे बचाव के मामले में वहां की सरकारों का अजीबोगरीब उपेक्षा का भाव नजर आ रहा है। प्रेस की आजादी की यह हदबंदी बेहद चिंताजनक है।  तानाशाह देशों का जिक्र बेमानी है, लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश भी इससे अछूते नहीं हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव-अभियान में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जिस प्रकार मीडिया विरोधी-अभियान चलाया, उन्हे अच्छे संकेत नहीं कहा जा सकता है। ब्रिटेन में 'ब्रेक्जिट' जनमत संग्रह के दौरान मीडिया को हाशिए पर ढकेलने की कोशिशें चेतावनी हैं कि आने वाले दिन मीडिया के लिए मुनासिब नहीं हैं। भारत में सूचना के अधिकारों को बेड़ियों में जकड़ा जा रहा है और वैचारिक-खुलेपन को राष्ट्रसवाद की लक्ष्मण-रेखाओं में घेरा जा रहा है।  वैचारिक लक्ष्मण-रेखाओं का रेखांकन और राष्ट्रहित के नाम पर सूचना के दायरों को समेटना प्रेस की आजाद आबोहवा में जहर घोलने वाली प्रक्रिया है। लेकिन इस प्रक्रिया के साथ यह सवाल भी नत्थी है कि सरकारी प्रतिष्ठान इतने दुस्साहसी कैसे हो पा रहे हैं कि वो प्रेस की आजादी की हदबंदी और नसबंदी करने लगें...। मोटेतौर पर राजनेताओं और समाज में यह धारणा विकसित होती जा रही है कि मीडिया के अपने निहित-स्वार्थों और पूर्वाग्रहों ने तटस्थ पत्रकारिता के मानदंडों को छोटा कर दिया है। अमेरिका में मीडिया के प्रति डोनाल्ड ट्रम्प की बदमिजाजी और भारत में वैचारिक-लक्ष्मण-रेखाओं की घेराबंदी इन कमजोरियों को लिपिबध्द करने वाली है। आर्थिक-सर्वेक्षण कहते हैं कि भारत में मीडिया का कारोबार 1300 अरब रूपयों के आंकड़े को छू रहा है। मीडिया कारोबार की दुनिया में मानवीय सरोकारों और लोकतंत्र की संवेदनाओं का कद खुद छोटा होता जा रहा है। भारत में मीडिया काला-सफेद धंधा करने वाले सभी कारोबारियों का मुखौटा बन चुका है। सही अर्थों में एक व्यवसाय के रूप में मीडिया का आकलन कहता है कि यह पूंजी और कॉरपोरेट घरानों की कारोबारी जुगलबंदी है, जिसके तार निहित-स्वार्थों की लय पर तान छेड़ते हैं। सरकारों का यह उपेक्षा-भाव उन परिस्थितियों की देन है, जिन्हें मीडिया ने खुद अपने सामने खड़ा कर लिया है। सवाल यह है कि भारत में प्रेस की आजादी से जुड़ी इऩ 'इंटरनेशनल-एकडेमिक' चिंताओं को वैधानिकता और नैतिकता के  कौन से तराजू पर तौलना मुनासिब होगा। एक तराजू वह है, जहां मीडिया ने खुद को अनैतिक-दुराग्रहों के चक्रव्यूह में कैद कर रखा है। दूसरे तराजू में संवैधानिक व्यवस्थाओं की छत्रछाया झीनी पड़ने लगी है, जिसके लिए सरकारी प्रतिष्ठान उत्तरदायी हैं। भारत का मीडिया उस बुलबुल की तरह है, जिसने खुद को  निहित स्वार्थों के पिंजरे में कैद कर लिया है। पिंजरे के सामने यदि सत्ता के सैयाद मुस्कुरा रहे हैं तो इसके लिए दोषी किसे माना जाएगा...?  किसी ने ठीक ही कहा है- 'कैद में है बुलबुल सैयाद मुस्कुराए, रहा भी न जाए, कुछ कहा भी न जाए...?' मीडिया जब तक खुद अपनी बेडियां नहीं तोड़ेगा, तब तक प्रेस की आजादी से जुड़ी इन रिपोर्टों को तवज्जो नहीं मिल पाएगी।[लेखक भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है।]

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Dakhal News 4 May 2017


हिन्दी पत्रकारिता पर समग्र चिंतन

जनसंपर्क, जल-संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र ने आज निवास पर श्री निलय श्रीवास्तव द्वारा लिखित पुस्तक ''हिन्दी पत्रकारिता पर समग्र चिंतन'' का विमोचन किया। पुस्तक में पिछले आठ दशक के दौरान मध्यप्रदेश की हिन्दी पत्रकारिता पर केन्द्रित सामग्री का सचित्र विवरण है। इस अवसर पर सहारा एमपी के ब्यूरो प्रमुख वीरेंद्र शर्मा और बीजेपी मीडिया प्रभारी लोकेन्द्र पाराशर भी उपस्थित थे।  

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Dakhal News 3 May 2017


भोपाल जर्नलिस्ट एसोसिएशन

भोपाल जर्नलिस्ट एसोसिएशन की परिचर्चा में जनसंपर्क मंत्री डॉ. मिश्र   जनसंपर्क, जल-संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र आज भोपाल जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा ''समाचार-पत्रों में पाठकों का स्थान'' पर परिचर्चा में सम्मिलित हुए। इस अवसर पर राज्य सरकार द्वारा लिए गए पत्रकार कल्याण के फैसलों के लिए जनसंपर्क मंत्री डॉ. मिश्र का एसोसिएशन की ओर से अभिनंदन किया गया। परिचर्चा के मुख्य अतिथि जनसंपर्क मंत्री डॉ. मिश्र ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार ने पत्रकार कल्याण के निर्णय लेकर पत्रकारों को उनका हक ही दिया है। मंत्री डॉ. मिश्र ने कहा कि भोपाल जर्नलिस्ट एसोसिएशन की ओर से आयोजित यह परिचर्चा प्रासांगिक है क्योंकि आज पाठकों के मनोनुकूल अनेक स्तंभ सीमित हो गए हैं। नए संचार साधनों के उपयोग के बाद भी पत्र-पत्रिकाओं के स्तंभों और उन्हें लिखने वालों का महत्व बना रहेगा। इसलिए पाठक की भूमिका भी कम नहीं होगी। डॉ. मिश्र ने कहा कि संगठन की ओर से दिए गए सुझाव पर विचारोपरांत आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। वरिष्ठ पत्रकार और मध्यप्रदेश राष्ट्रीय एकता समिति के उपाध्यक्ष श्री महेश श्रीवास्तव ने कहा कि आज पत्रकारिता की स्थिति ऐसी है कि ''जान निकली है, मगर साँस अभी बाकी है।'' कहने का आशय पत्रकारिता का प्राण तत्व कम जरूर हुआ है लेकिन अभी कायम है। समय के साथ परिवर्तन हुए हैं। पाठक अखबार की रीढ़ है। वरिष्ठ पत्रकार श्री उमेश त्रिवेदी ने कहा कि अखबारों में पाठक का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रख्यात संपादक श्री राजेन्द्र माथुर ने अखबार में पाठकों के विचारों के लिए अधिक स्थान सुरक्षित रखा था। श्री उमेश त्रिवेदी ने जनसंपर्क मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र को सुदर्शन व्यक्तित्व का धनी बताया। परिचर्चा को श्री अलीम बज़मी ने भी संबोधित किया। प्रारंभ में एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री सतीश सक्सेना ने कहा कि पत्रकारों की समस्याओं को हल करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने सक्रिय भूमिका निभाई है। संचालन श्री पंकज शुक्ला ने किया। एसोसिएशन के महासचिव श्री संजय सक्सेना के अलावा श्री प्रेमनारायण प्रेमी, श्री आनंद सक्सेना, श्री राधेश्याम सोमानी आदि उपस्थित थे।

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Dakhal News 2 May 2017


 एंकर सोनिका सिंह चौहान

कोलकाता में  एंकर सोनिका सिंह चौहान (28) की तड़के कार हादसे में मौत हो गई, जबकि कार चला रहे बांग्ला धारावाहिकों के अभिनेता विक्रम चटर्जी गंभीर रूप से घायल हो गए। उनके सिर पर चोट लगी है। घटना की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कार के परखच्चे उड़ गए। पुलिस सूत्रों ने बताया कि पार्टी करने के बाद तड़के करीब 3.30 बजे दोनों कार से लौट रहे थे। टॉलीगंज थाना अंतर्गत लेक मॉल के पास उनकी कार बेकाबू होकर डिवाइडर से टकराकर फुटपाथ पर चढ़ गई। घटना में गंभीर रूप से घायल दोनों को रुबी अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान प्रातः पांच बजे के करीब सोनिका ने दम तोड़ दिया। टॉलीगंज थाने की पुलिस ने दुर्घटनाग्रस्त कार को जब्त कर जांच शुरू कर दी है। पार्टी में मौजूद उनके दोस्तों से पूछताछ कर पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि वहां से निकलने से पहले दोनों की मानसिक स्थिति कैसी थी। गौरतलब है कि सोनिका 2013 में "दीवा मिस इंडिया कांटेस्ट" की विजेता रह चुकी हैं। वह एक न्यूज चैनल में एंकरिग भी करती थीं। बताया जा रहा है कि कार विक्रम की है। घटना के समय वह काफी तेज गति से कार चला रहे थे। जब गाड़ी डिवाइडर से टकराकर फुटपाथ पर चढ़ी उस समय कार में मौजूद पांच एयरबैग में से एक भी नहीं खुला। पुलिस घटनास्थल के सीसीटीवी फुटेज को खंगाल रही है। इस बीच लापरवाही से गाड़ी चलाने को लेकर विक्रम के खिलाफ टॉलीगंज थाने में मामला दर्ज किया गया है।  

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Dakhal News 30 April 2017


पत्रकार-अखिलेश

समाजवादी पार्टी (सपा) मुखिया अखिलेश यादव ने कल एक पत्रकार पर गम्भीर टिप्पणी करने के मामले पर सफाई देते हुए कहा कि पत्रकार ने जो सवाल किया था, वह अच्छा नहीं था. वह सवाल पूछने वाले पहले सपा का संविधान पढ़ें. अखिलेश ने कल एक वरिष्ठ टीवी संवाददाता पर तल्ख टिप्पणी के बारे में पूछे गये सवाल पर कहा ‘देखिये, पत्रकार ने जो सवाल किया था, वह अच्छा नहीं था. वह कुछ जानते ही नहीं हैं मेरे बारे में. एक वरिष्ठ पत्रकार ने मुझसे कहा कि आपके घर का झगड़ा टीवी चैनलों पर बहुत ज्यादा चल गया, जिसकी वजह से चुनाव में सपा की हार हुई.’सपा प्रमुख ने कहा ‘अरे, क्या आपको मेरा ही घर मिला था. मैं नहीं चाहता कि कोई सवाल बार-बार पूछा जाए. आखिर किसके परिवार में झगड़ा नहीं होता है.’ हालांकि उन्होंने माना कि परिवार में रार भी पार्टी की हार का एक कारण है. इस सवाल पर कि सपा के वरिष्ठ नेता एवं विधायक शिवपाल सिंह यादव कह रहे हैं कि अखिलेश को चुनाव के बाद अपने वादे के मुताबिक सपा अध्यक्ष पद छोड़ देना चाहिये, उन्होंने कहा ‘आप हमारी पार्टी का संविधान पढ़ लें, चुनाव आयोग का संविधान पढ़ लें, फिर सवाल करें.’ हालांकि कल इसी सवाल पर अखिलेश ने एक टीवी चैनल के वरिष्ठ संवाददाता पर बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था ‘तुम्हारे जैसे लोगों की वजह से ही देश बरबाद हो रहा है.’ बहरहाल, अखिलेश ने आज भी मीडिया पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि उनकी सरकार के कार्यकाल में होने वाली किसी भी घटना की खबर को टीवी पर उनकी तस्वीर के साथ दिखाया जाता था. ‘क्या अब आप में से किसी की हिम्मत है कि मौजूदा मुख्यमंत्री (योगी आदित्यनाथ) की तस्वीर लगाकर खबर दिखा दे.’उन्होंने कहा कि सहारनपुर में दंगा हुआ, इलाहाबाद में एक परिवार की हत्या की गयी और प्रतापगढ़ में एक वकील का कत्ल हो गया. क्या ये खबरें मुख्यमंत्री की तस्वीर के साथ दिखायी गयीं?

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Dakhal News 26 April 2017


 के. विक्रमराव

 विक्रमराव बोले इंडियन फेडरेशन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट के  सम्मेलन में  आंध्रप्रदेश के विशाखापट्नम में इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट(IFWJ) के 126 वे वर्किंग कमेटी की बैठक आयोजित की गई । इस बैठक के मुख्यतिथि भारत सरकार में केंद्रीय स्टील मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह  और हरियाणा की विधायक श्रीमती प्रेमलता सिंह  थी। बैठक  की अध्यक्षता फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष के. विक्रमराव ने की । इस कार्यक्रम में देश के सभी राज्यो से आये पत्रकारो ने हिस्सा लिया।साथ ही पत्रकारों को अपने कार्य के दौरान हो रही दिक्कतों पर मंत्री बीरेंद्र सिंह  का ध्यान आकर्षित कराया, चर्चा के दौरान पत्रकारो की सुरक्षा के विषय में अतिशीघ्र कानून पास कराने के लिए अपनी मांग मंत्री  के सामने रखी और प्रधानमंत्री तक पत्रकारो की बात पहुँचाने के लिए भी कहाँ जिस पर मंत्री बीरेंद्र सिंह  ने आश्वासन दिया।  तमिलनाडु के पत्रकारों ने पुरे देश में पत्रकारों को टोल प्लाजा में छूट देने की मांग की जिसपर मंत्री ने शीघ्र नितिन गड़करी केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री से बात कर पत्रकारो को राहत देने की बात कही । देश के विभिन्न राज्यो से आये पत्रकारों ने इस कार्यक्रम में अपनी -अपनी बात रखी, मुख्यअतिथि ने देश के चौथे स्तभ को  मजबूत बताया और कहाँ की आप सब की जागरूकता से ही सरकार बेहतर कार्य कर पा रही है । कार्यक्रम के अंत में सभी राज्यो की इकाइयों ने मुख्यतिथि को स्मृतिचिन्ह देकर सम्मानित गया । वर्किंग कमेटी के दूसरे सत्र की बैठक पाढ़ेरु में रखी गई थी, जहां पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने की बात पर सभी राज्यो की मांगों को देखते हुए सभी की राय लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष के.विक्रमराव ने कहाँ की शीघ्र ही देश के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से समय लेकर  पत्रकार सुरक्षा सबंधी मांगपत्र लेकर फेडरेशन उनसे मिलेगा और कानून बनाने की मांग करेगा अगर हमारी मांग पर कोई हिला-हवाला किया गया तो IFWJ  में अपने हजारों सदस्यों के साथ  दिल्ली कूच करेगा और आर-पार, की लड़ाई पत्रकारो के हित के लिए सरकार से लड़ेगी । इस कार्यक्रम में फेडरेशन के सभी राष्ट्रीय पदाधिकारी,सभी प्रदेशों के अध्यक्षो के साथ उत्तर प्रदेश व  बिहार,दिल्ली,हरियाणा,मध्यप्रदेश,केरला, तमिलनाडू, आसाम,राजस्थान,काश्मीर,महाराष्ट्र,ओडिशा,तेलंगाना सहित अन्य राज्यो के पत्रकारो ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया । पत्रकार साथी कार्यक्रम में शामिल हुए । कार्यक्रम के समापन अवसर पर आंध्रप्रदेश के अध्यक्ष वीरभद्र राव ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए देशभर से आये सभी पत्रकारो का आभार व्यक्त किया ।   

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Dakhal News 24 April 2017


dijital mediya

केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया पत्रकारों को भी श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम के दायरे में लाने के लिए कदम उठाने शुरूकर दिए हैं। केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारु दत्तात्रेय ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो बीजेपी नीत एनडीए सरकार श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम में संशोधन करेगी ताकि इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया को भी इसके दायरे में लाया जा सके। उन्होंने कहा, 'हम श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम के तहत डिजिटल मीडिया समेत सभी इलेक्ट्रॉनिक चैनलों को लाने के लिए कदम उठा रहे हैं। अगर जरूरत पडी तो हम अधिनियम में संशोधन करेंगे।' कोच्चि में दत्तात्रेय ने  प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी श्रमजीवी पत्रकार कानून के अंदर लाने की तैयारी कर रही है। दत्तात्रेय ने कहा कि सरकार सुनिश्चित कर रही है कि न्यूज पेपर्स में श्रम कानून और वेजबोर्ड के सिफारिशो को लागू किया जा सके। उन्होंने कहा, 'मैंने सभी मुख्यमंत्रियों को लिखा है कि अगर किसी कर्मी को पर्याप्त मुआवजा और पारिश्रमिक नहीं मिल रही है तो उसपर ध्यान दिया जाए।' मंत्री ने कहा कि वह न्यूज आर्गनाइजेशन में श्रम से जुड़े मुद्दे पर चर्चा के लिए राज्यों के मुख्यमंत्रियों, मीडिया संगठन, जर्नलिस्ट असोसिएशन और श्रम मंत्रालय के अधिकारियों की बैठक बुलाएंगे।

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Dakhal News 23 April 2017


फर्जी प्रेस

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा वाहनों पर फर्जी तरीके से प्रेस या पुलिस लिखकर धौंस जमाने वालों की अब खैर नहीं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में निर्देश जारी कर दिए हैं । इसके तहत अब यदि कोई व्यक्ति फर्जी तरीके से अपने वाहन पर प्रेस या पुलिस लिखवाएगा, तो उसके खिलाफ 420 धारा के तहत कार्रवाई होगी। कोर्ट के निर्णय के बाद फर्जी पत्रकारों में हडकम्प मचा हुआ है। ख़ास तौर पर प्रेस लिखवाने वाले व्यक्ति से पत्रकारिता से सम्बंधित चीज़े भी पूछी जा सकती है व् पैसे देकर प्रेस कार्ड बनाने वाले व्यक्ति को एवं बनवाने वाले व्यक्ति को भारी जुर्माने के साथ साथ 7 वर्ष की कैद भी हो सकती है साथ ही सम्बंधित वहन सीज़ कर दिया जायेगा। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 के तहत किसी को व्यक्ति को कपट पूर्वक या बेईमानी से उत्प्रेरित कर आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, संपत्ति या ख्याति संबंधी क्षति पहुंचाना शामिल है। यह एक दंडनीय अपराध है। इसके तहत सात साल तक के कारावास की सजा का प्रावधान है।  

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Dakhal News 22 April 2017


मोदी सरकार - मीडिया

  प्रधानमंत्री मोदी ने देश में मीडिया पर प्रचार खरीदने के लिए सौ दो सौ करोड़ रुपये नही पूरे 11 अरब (1100करोड़) रुपये से ज्यादा खर्च किए।मीडिया को बिकाऊ कहने वाले बीजेपी के समर्थक भक्तों के लिए ये खबर झटका देने वाली हो सकती है। नोटबंदी को लेकर कठघरे में खड़ी भाजपा सरकार इस खुलासे के बाद और घिर सकती है। आर.टी.आई.के मुताबिक मोदी सरकार ने पिछले ढाई सालों के भीतर अपने प्रचार-प्रसार पर 11 अरब रुपए से ज्याघदा खर्च किए हैं। ग्रेटर नोएडा के आर.टी.आई. एक्टिविस्टे रामवीर तंवर ने 29 अगस्त 2016 को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से सूचना के अधिकार के जरिए पूछा था कि केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी ने सरकार बनाने से लेकर अगस्ते 2016 तक विज्ञापन पर कितना सरकारी पैसा खर्च किया है।तीन माह बाद जब आर.टी.आई.के जरिए मिले इस जवाब को देखकर आप जरूर चौंक जाएंगे. इसमें बताया गया है कि पिछले ढाई साल में मोदी सरकार ने विज्ञापन पर ग्यारह अरब रुपए से भी ज्यादा खर्च कर चुकी है। आर.टी.आई. के जरिए मंत्रालय से मिले विज्ञापन की जानकारी में बताया गया कि ब्रॉडकास्डह, कम्यु—निटी रेडियो, इंटरनेट, दूरदर्शन, डिजिटल सिनेमा, प्रोडक्शान, टेलीकास्ट, एसएमएस के अलावा अन्य खर्च शामिल हैं। प्रचार प्रसार के इन माध्यमों पर किया गया इतना खर्च SMS –  2014 – 9. 07 करोड़ 2015 – 5.15 करोड़ अगस्त 2016 तक – 3. 86 करोड़ इंटरनेट –  2014 – 6. 61 करोड़ 2015 – 14.13 करोड़ अगस्त 2016 तक – 1.99 करोड़ ब्राडकास्ट – 2014 – 64. 39 करोड़ 2015 – 94.54 करोड़ अगस्त 2016 तक – 40.63 करोड़ कम्युनिटी रेडियो – 2014 – 88.40 लाख 2015 – 2.27 करोड अगस्त 2016 तक – 81.45 लाख डिजिटल सिनेमा  2014 -77 करोड़ 2015 – 1.06 अरब अगस्त 2016 तक – 6.23 करोड़ टेलीकास्ट – 2014 – 2.36 अरब 2015-2.45 अरब अगस्त 2016 तक – 38.71 करोड़ प्रोडक्शन – 2014 – 8.20 करोड़ 2015 – 13.90 करोड़ अगस्त 2016 तक -1.29 करोड़ तीन साल में हर साल इतना किया खर्च 2014 – एक जून 2014 से 31 मार्च 2015 तक करीब 4.48 अरब रुपए खर्च 2015 – 1 अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2016 तक 5.42 अरब रुपए खर्च 2016 – 1 अप्रैल 2016 से 31 अगस्त 2016 तक 1.20 अरब रुपए खर्च जब ढाई साल में 1100 सौ करोड़ का खर्च आया है केवल विज्ञापन पर तो पूरे पांच साल में मोदी जी के विज्ञापनों पर 3000 हजार करोड़ का खर्च आ सकता है।इसकी तुलना उन्होंने अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भी की और कहा कि वहां सरकार के चुनाव प्रचार में 800 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। जबकि हमारे देश में एक केंद्र सरकार इतना पैसा खर्च कर दिया ये बहुत ही निंदनीय है। हुकुमत मुँह भराई के हुनर से खूब वाकिफ है, ये हर शख़्स के आगे शाही टुकड़ा डाल देती है  

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Dakhal News 21 April 2017


साइबर न्यूज बुलेटिन्स

 राजस्व, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री श्री उमाशंकर गुप्ता ने साइबर सुरक्षा संबंधी वीडियो और न्यूज पोर्टल साइबर न्यूज बुलेटिन्स का विमोचन किया। यह न्यूज बुलेटिन यू-ट्यूब पर दिखेगा। श्री गुप्ता ने कहा कि इस न्यूज बुलेटिन्स के माध्यम से लोग साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूक होंगे। बुलेटिन में वाट्सएप सुरक्षा, जी-मेल सुरक्षा, फेसबुक प्रोफाइल सुरक्षा और इंटरनेट गतिविधियों को सुरक्षित करने संबंधी 25 वीडियो देखे जा सकते हैं। वीडियो को देखने के लिए यू-ट्यूब पर सोसाइटी ऑफ एमटेक फॉर साइबर एथिक्स, भोपाल के चेनल को सब्सक्राइब करना होगा। एक वीडियो में यह भी बताया गया है कि साइबर सेल में किन साइबर क्राइम के खिलाफ किस तरह की शिकायत दर्ज करवाना है। पोर्टल का एड्रेस http://www.cybernewsbulletins.com/ है। बुलेटिन और वीडियो साइबर सिक्यूरिटी एक्सपर्ट श्री अक्षय वाजपेयी द्वारा तैयार किया गया है।  

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Dakhal News 20 April 2017


पत्रकार को जेल भेजने वाला SDM सस्पेंड

  वरिष्ठ पत्रकार दशरथ सिंह परिहार  के साथ मारपीट क्रर खुद को सरकारी गुंडा साबित करने वाले श्योपुर एडीएम वीरेंद्र सिंह को बुधवार को सस्पेंड कर दिया गया है। सीएम ने घटना पर नाराजगी जताते हुए एडीएम के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का भी आश्वासन दिया है। फिलहाल के लिए वीरेंद्र सिंह को ग्वालियर अटैच कर दिया गया है। गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर भी इस मामले को लेकर कई लोगों ने विरोध जताया था। वरिष्ठ पत्रकार दशरथ सिंह परिहार  के साथ हुई मारपीट के विरोध में पत्रकारों का प्रतिनिधि मंडल बुधवार को स्टेट हैंगर पर सीएम शिवराज सिंह चौहान से मिला था। पत्रकारों ने सीएम को वरिष्ठ पत्रकार के साथ हुई घटना की जानकारी देते हुए श्योपुर के एडीएम वीरेंद्र सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी। इस पर सीएम ने उचित कार्रवाई करने का आश्वासन देते हुए वीरेंद्र सिंह को सस्पेंड करते हुए ग्वालियर अटैच कर दिया है। मंगलवार को दशरथ सिंह परिहार को उस समय गिरफ्तार करवाया गया, जब वे जिला जनसंपर्क कार्यालय में बैठे थे। परिहार दैनिक भास्कर के श्योपुर ब्यूरोचीफ हैं।एडीएम के गनमैन उन्हें एडीएम के चेंबर में ले गए। वहां एडीएम वीरेंद्र सिंह मौजूद थे। गनमैन ने दशरथ से मारपीट शुरु कर दी। रीडर ने भी दशरथ के साथ मारपीट की।इस बीच पुलिस को बुलवाकर एडीएम ने दशरथ को गिरफ्तार करवा दिया। सूचना मिलने पर कई पत्रकार वहां पहुंचे तो एडीएम ने उन्हें भी धमकी दी कि यदि किसी ने बीच में हस्तक्षेप किया तो उसे भी जेल भिजवा दूंगा।इसके बाद में एडीएम ने दशरथ सिंह को जेल भिजवा दिया गया। उनसे मिलने जेल पहुंचे पत्रकारों ने बताया कि उनके शरीर पर गंभीर चोटों के निशान हैं। उनके कपड़े भी मारपीट में फट गए थे।पत्रकारों ने उनकी जमानत लेने का प्रयास किया था लेकिन एडीएम के इशारे पर उनकी जमानत भी नहीं हो सकी। जेल में हालत बिगड़ने पर पत्रकारों की मांग पर दशरथ सिंह को इलाज के लिए देर रात अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इस घटना की प्रदेश के पत्रकार संगठनों ने निंदा की हैं। मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष शलभ भदौरिया ने इस घटना की निंदा करते हुए इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया था।

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Dakhal News 19 April 2017


मजीठिया वेज नई दुनिया

छत्तीसगढ़ के श्रम आयुक्त ने मजीठिया वेज लागू करने के लिए नई दुनिया प्रबंधन को नोटिस किया है. नोटिस के साथ उन कर्मचारियों की सूची भी संलग्न की है  जिन्होंने मजीठिया वेज का क्लेम किया है. नोटिस में श्रम आयुक्त ने कहा है की क्लेम करने वाले कर्मचारियों के बैंक अकाउंट में क्लेम की राशि जमा कर 2 मई 17 को उनके कार्यालय को बैंक स्लीप सहित दस्तावेज प्रस्तुत करें. छत्तीसगढ़ श्रम आयुक्त की इस कार्रवाई से जहां नई दुनिया प्रबंधन सकते में है , वहीं कर्मचारियों में हर्ष है. लगभग छह सात माह से मजीठिया वेज के लिए संघर्ष कर रहे कर्मचारियों को सफलता मिली है.  

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Dakhal News 18 April 2017


मजीठिया वेज नई दुनिया

छत्तीसगढ़ के श्रम आयुक्त ने मजीठिया वेज लागू करने के लिए नई दुनिया प्रबंधन को नोटिस किया है. नोटिस के साथ उन कर्मचारियों की सूची भी संलग्न की है  जिन्होंने मजीठिया वेज का क्लेम किया है. नोटिस में श्रम आयुक्त ने कहा है की क्लेम करने वाले कर्मचारियों के बैंक अकाउंट में क्लेम की राशि जमा कर 2 मई 17 को उनके कार्यालय को बैंक स्लीप सहित दस्तावेज प्रस्तुत करें. छत्तीसगढ़ श्रम आयुक्त की इस कार्रवाई से जहां नई दुनिया प्रबंधन सकते में है , वहीं कर्मचारियों में हर्ष है. लगभग छह सात माह से मजीठिया वेज के लिए संघर्ष कर रहे कर्मचारियों को सफलता मिली है.  

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Dakhal News 18 April 2017


शिवसेना के सामना का सम्पादकीय

शिवसेना के सामना का सम्पादकीय  भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कहा, ‘भाजपा के लिए स्वर्णिम काल आ गया हो लेकिन जम्मू कश्मीर में हिंसा जारी है। पाकिस्तान ने कुलभूषण के मामले में रूख सख्त किया हुआ है, महाराष्ट्र जैसे राज्यों के किसान सामूहिक आत्महत्या करने पर आमादा हैं, मुद्रस्फीति कम नहीं हुई साथ ही रोजगार दर बढ़ा नहीं है। देश का स्वर्णिम काल अभी नहीं शुरू हुआ है।’ उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली पार्टी ने कहा कि उसका मानना है कि किसी एक पार्टी के लिए स्वर्णिम काल नहीं हो सकता बल्कि पूरे देश के लिए होना चाहिए।’ संपादकीय के अनुसार, प्रत्येक राज्य में पार्टी की सत्ता होने के बारे में सोचना काफी सुखद और उत्साहजनक है लेकिन भाजपा को राजग के 33 सहयोगियों के बारे में अपनी नीतियां स्पष्ट करनी चाहिए जिनके लिए हाल ही में (प्रधानमंत्री द्वारा) रात्रि भोज आयोजित किया गया था। शिवसेना, अकाली दल और तेदेपा जैसी पार्टियां अपने-अपने राज्यों में मजबूती के साथ खड़ी हैं। यह बात स्पष्ट होनी चाहिए कि हमारी मित्रता की आवश्यकता (भाजपा को) है या नहीं।   संपादकीय में आगे कहा गया कि भाजपा पंचायत से संसद तक शासन के अपने अभियान में आगे बढ़ती रहे लेकिन जो उनके खिलाफ बोलते हैं उन्हें देश विरोधी नहीं कहा जाना चाहिए नहीं तो लोकतंत्र में जो भी बचा है वह भी खो जाएगा।  प्रत्येक राजनीतिक दल को अपना विस्तार करने का हक है लेकिन भारत जैसे विशाल देश में, सत्तासीन दल पर विपक्षी पार्टियों को मजबूती देने और संसदीय लोकतंत्र चलता रहे यह सुनिश्चत करने की भी जिम्मेदारी है। गौरतलब है कि 15 अप्रैल को भाजपा के 2 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था, ‘भाजपा को अभी अपने शीर्ष पर पहुंचना बाकी है उसका स्वर्ण काल तब आएगा जब वह पंचायत से देशभर की विधानसभाओं और संसद तक उसका शासन होगा।

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Dakhal News 17 April 2017


आईएएस को धमकी के मामले में पत्रकार पर केस

भोपाल जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) आईएएस अफसर आशीष भार्गव को फोन पर मिली धमकी के मामले में पुलिस को प्रकरण दर्ज करने में 1 साल लग गया। पुलिस ने कॉल डिटेल निकलने के बाद नामजद आरोपी पत्रकार के खिलाफ हत्या की धमकी देने का प्रकरण दर्ज किया है। आरोपी जमीन के एक मामले को अपने पक्ष में निपटाने के लिए दबाव बना रहा था। बैरसिया पुलिस के अनुसार तत्कालीन एसडीएम बैरसिया आशीष भार्गव ने 16 मार्च 2016 में बैरसिया पुलिस से फोन पर धमकी मिलने की शिकायत की थी। पुलिस ने आरोपी के मोबाइल फोन नंबर की कॉल डिटेल निकालने के लिए कंपनी से जानकारी मांगी। पुलिस के कई बार आवेदन करने के बाद शनिवार को पुलिस को आरोपी की कॉल डिटेल मिल पाई। इसके बाद बैरसिया पुलिस ने शनिवार देर रात भोपाल निवासी पत्रकार अरशद अली खान के खिलाफ फोन पर धमकी देने का प्रकरण दर्ज किया। फिलहाल इस मामले में किसी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है। एसडीएम भार्गव की कोर्ट में जमीन के नामांतरण संबंधी एक मामला चल रहा था। यह जमीन अरशद के रिश्तेदारों के नाम पर बताई जाती है। इस संबंध में अरशद ने कई बार एसडीएम को फोन कर मामला निपटाने के लिए दबाव बनाया। उसने धमकाते हुए कहा था कि अगर उन्होंने फैसला उसके हक में नहीं दिया तो अंजाम बुरा होगा। टीआई एचसी लाडिया ने बताया कि जल्द ही आरोपी की गिरफ्तारी कर ली जाएगी। उसके बाद ही पूरे मामले का खुलासा हो पाएगा कि आखिर वह तत्कालीन एसडीएम को क्यों धमका रहा था?  

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Dakhal News 16 April 2017


शिवराज के करीबी नेता ने पत्रकार को धमकाया

पत्रकारवार्ता बुलाकर पत्रिका के ब्यूरो चीफ के साथ की बदसलूकी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सबसे खास और विदिशा के स्वयंभू सीएम व विदिशा नगर पालिका अध्यक्ष मुकेश टंडन, तो लगता है सज्जन, सहज और प्रदेश की जनता के सर्वप्रिय शिवराज सिंह  की लुटिया डुबोकर दम लेंगे। अभी तक तो टंडन की दहशत  से विदिशा की जनता, वरिष्ठ भाजपा कार्यकर्त्ता और अफसर ही परेशान थे, अब टंडन खुलेआम मीडिया को धमकाने लगे हैं।  सीएम के खास सिपहसालार टंडन ने गुरुवार को पत्रकार वार्ता बुलाकर पत्रिका के ब्यूरो चीफ  गोविंद सक्सेना के साथ नगर पालिका की वाहवाही न छापने के लिए न केवल उनसे बदसलूकी की, अभद्रता की, बल्कि उन्हें धमकाया कि, यदि बच्चे पालना है, तो चुपचाप  पत्रकारिता करो, हम जो कहें वो छापो, वर्ना हमें ठीक करना आता है(देखें वीडियो)। प्रिंट मीडिया जर्नलिस्ट एसोसिएशन (PMJA) के प्रदेश अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय महासचिव  महेश दीक्षित ने टंडन की मीडिया के साथ इस बदसलूकी की तीखी भर्त्सना की है। तथा इसे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर हमला करार दिया है। श्री दीक्षित ने मुख्यमंत्री से टंडन पर कड़ी कार्रवाई के साथ उन्हें पार्टी से बर्खास्त करने की भी मांग की है।  

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Dakhal News 14 April 2017


 रमेशचंद्र अग्रवाल

  दैनिक भास्कर ग्रुप के चेयरमैन रमेशचंद्र अग्रवाल (73) गुरुवार सुबह पंचतत्व में विलीन हो गए। अंतिम संस्कार भोपाल के भदभदा विश्राम घाट पर हुआ। इसमें एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह, राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत, बीजेपी के जनरल सेक्रेटरी कैलाश विजयवर्गीय समेत अादि शामिल हुए। बुधवार सुबह 11 बजे अहमदाबाद एयरपोर्ट पर रमेशजी को हार्ट अटैक आया था। उन्हें तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया, लेकिन बचाया नहीं जा सका।  रमेशजी को अंतिम विदाई देने के लिए छत्तीसगढ़ के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, एएस सिंह देव, मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री विश्वास सारंग और नरोत्तम मिश्रा भी अंतिम यात्रा में शामिल हुए। विधायक रामेश्वर शर्मा, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव भी शोक की इस घड़ी पर मौजूद थे।उमाशंकर गुप्ता, सुरेश पचौरी, मध्य प्रदेश बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने भी रमेशजी को अंतिम विदाई दी। जब लोगों ने मेरा मजाक बनाया, तब रमेशजी ने हौसला बढ़ाया था: शिवराज सीएम शिवराज सिंह चौहान ने रमेशजी को याद करते हुए भास्कर में लिखे एक लेख में कहा, "मुझे याद है कि जब मैंने इंदौर में पहली बार ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन किया था, उस समय प्रदेश में कोई भी बड़ा औद्योगिक घराना आना नहीं चाहता था। कई लोगों ने इस आयोजन को लेकर मजाक भी बनाया। "उस कठिन समय में रमेशजी ने न सिर्फ मेरा हौसला बढ़ाया, बल्कि खुलकर सहयोग दिया। उनके ही सुझावों और व्यक्तिगत संबंधों से उस समिट में देश के ही नहीं, बल्कि विदेश के भी कई प्रतिष्ठित उद्योग समूहों ने भाग लिया। यह उन्हीं के प्रयासों का ही परिणाम था कि कई औद्योगिक घरानों ने मप्र में पूंजी निवेश किया। वे मप्र की बेहतर छवि बनाने के लिए प्रयत्नशील रहे।हर बार उनका अतुलनीय सहयोग हमें प्राप्त हुआ। इसे प्रदेशवासी कभी भूल नहीं पाएंगे। असल में वे पूरे मध्य प्रदेश के ब्रांड एम्बेसडर थे। रमेशजी प्रदेश में हर किसी के लिए आसानी से उपलब्ध थे। रियल एस्टेट, सोयाबीन उद्योग, टेक्सटाइल्स, चेंबर ऑफ कॉमर्स और वैश्य समाज, सभी लोगों से उनका जीवंत संवाद बना रहता था।" 'उनके पास समस्याओं के समाधान रहते थे' शिवराज ने आगे कहा, "वह अक्सर लोगों के साथ मेरे पास समस्याओं को लेकर आते थे। किंतु उनकी एक अच्छी बात यह थी कि वह समस्याओं के साथ समाधान और सुझाव भी लेकर आते थे।वे सरकार की सीमाओं को समझते थे। जिन लोगों के साथ मांग और समस्याओं को लेकर आते थे, वे उनसे कहते थे कि हमें राज्य के हितों व राजस्व का भी ध्यान रखना है। हम सभी को मिलकर सरकार का सहयोग भी करना है। उनकी यह बात मुझे बहुत ही अच्छी लगती थी।"  "उन्होंने पूरे देश में दैनिक भास्कर को आगे बढ़ाया। यह सिर्फ भास्कर समूह या एक कंपनी का ही प्रसार नहीं, बल्कि देश के अलग-अलग राज्यों में मप्र के वर्चस्व का प्रसार था। दैनिक भास्कर आगे बढ़ा तो प्रदेश का नाम भी बढ़ा। हमें सदैव गर्व रहा कि मप्र का एक उद्योगपति इतना सफल हुआ। मुझे याद है कि दैनिक भास्कर पुराने भोपाल से निकलता था। वहां से प्रगति करते हुए वह आज सिर्फ भारत का ही नहीं, विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय अखबार बन गया है।" "दैनिक भास्कर की सफलता के शिखर पर पहुंचने की यह यात्रा रमेशजी के अथक परिश्रम, बुद्धिमत्ता एवं दूरदर्शिता का ही परिणाम है। दैनिक भास्कर आज अपनी निष्पक्ष लेखनी के लिए स्थापित हो चुका है। पत्रकारिता में नए प्रतिमान छूने के साथ ही रमेशजी हमेशा सामाजिक सरोकारों के लिए संवेदनशील भी रहे। पानी बचाने के अभियान में उनके मार्गदर्शन में भास्कर ने लोगों में जागृति लाने और उनके व्यवहार परिवर्तन में अतुलनीय सहयोग दिया।चाहे सूखे रंगों की होली हो या सिंहस्थ में वैश्य महासभा के द्वारा श्रद्धालुओं के लिए पेयजल की व्यस्था, ये पुण्य कार्य हमेशा याद किए जाएंगे। एक बड़े पत्र समूह की बागडोर संभालने की महती जिम्मेदारी के साथ ही वे सामाजिक एकता और समरसता के लिए हमेशा कार्यरत रहे। उनकी कोशिश होती थी कि सभी धर्मों और वर्गों के लोग मिल-जुलकर रहें। उनके होली-मिलन और ईद-मिलन जैसे कार्यक्रम समाज को यही संदेश देते रहे। यह उनका ही निरंतर योगदान रहा, जिससे राजधानी का भोपाल उत्सव मेला प्रदेश की पहचान बन गया।" मोदी-सोनिया ने दी श्रद्धांजलि नरेंद्र मोदी ने कहा, "मीडिया जगत में अपने योगदान की वजह से रमेशजी हमेशा याद किए जाएंगे।सोनिया गांधी ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा, "मीडिया और समाजसेवा के क्षेत्र में रमेशजी का योगदान सराहनीय है। उनके जाने से रिक्त हुई जगह भरने में समय लगेगा।लोकसभा स्पीकर ने सुमित्रा महाजन ने कहा, "मीडिया के मॉडर्नाइजेशन के लिए रमेशजी याद किए जाएंगे। वे मीडिया ही नहीं, सामाजिक कार्यों में भी सदा आगे रहते थे।मोरारी बापू ने कहा, "परमात्मा के निर्णय को स्वीकारना ही पड़ता है। चैत्र नवरात्रि में उन्होंने पूरी रामकथा सुनी। प्रसन्नता के साथ उन्होंने कथा की पूर्णाहुति की और खुद का जीवन रामायण को अर्पण कर गए। इस निर्वाण को मेरा प्रणाम और श्रद्धांजलि।आचार्य महाश्रमण ने कहा, "ज्ञात हुआ कि श्री रमेशजी का देहावसान हो गया। इस समय उनके सभी पारिवारिक व संबंधीजन धैर्य और मनोबल का परिचय दें। आध्यात्मिक मंगलकामना।"  

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Dakhal News 13 April 2017


 रमेशचंद्र अग्रवाल

भास्कर समूह के चेयरमेन रमेशचंद्र अग्रवाल का अहमदाबाद में आज सुबह 11 बजे हृदयाघात से  निधन हो गया। वे 73  वर्ष के थे। श्री अग्रवाल अहमदाबाद से एक फ्लाइट में जा रहे थे जब उन्हें हार्ट अटैक हुआ। उनके पार्थिक शरीर को आज शाम भोपाल लाया गया । श्री अग्रवाल का अंतिम संस्कार गुरूवार को भोपाल में किया जाएगा। एयरपोर्ट पर मध्यप्रदेश सरकार के जनसम्पर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा ,राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता और सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किये।  रमेशचंद्र अग्रवाल के निधन पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर दुख प्रकट किया। रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने भी ट्वीट कर अपनी संवेदना प्रकट की। शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर उनके परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की। उन्होंने ट्वीट किया, 'भास्कर समूह के चेयरमैन रमेश अग्रवाल जी के असामयिक निधन का समाचार अत्यंत दुखदायी है। वह संवेदनशीलता, त्वरित निर्णय हेतु याद किये जायेंगे।' श्री अग्रवाल ने भोपाल विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान डिग्री प्राप्त की थी है। उन्हें पत्रकारिता में राजीव गांधी लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। 2003, 2006 और 2007 में इंडिया टुडे द्वारा उन्हें भारत के 50 सबसे शक्तिशाली लोगों में शामिल किया गया था। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने दैनिक भास्कर समूह के अध्यक्ष श्री रमेशचन्द्र अग्रवाल के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। श्री चौहान ने कहा कि स्वर्गीय श्री अग्रवाल पत्रकारिता के उदात्त सिद्धांतों और मूल्यों से जुड़े थे। उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता को समृद्ध बनाने में अमूल्य योगदान दिया है। श्री चौहान ने कहा कि पत्रकारिता के साथ-साथ वे सामाजिक मुद्दों में गहरी रूचि लेते थे और एक प्रतिबद्ध समाज सेवक के रूप में उन्होंने कई प्रकल्प सफलतापूर्वक संपादित किये। इसके अलावा स्वर्गीय श्री रमेश जी आध्यात्मिक व्यक्ति थे और धर्म-संस्कृति के काम को तन-मन से पूरा करते थे। उनके निधन से प्रदेश ने एक कर्मठ पत्रकार, समाजसेवक और साधक को खो दिया है। मुख्यमंत्री ने ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति और शोकमग्न परिजनों को यह दुख सहने की शक्ति देने की प्रार्थना की है।

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Dakhal News 12 April 2017


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नरेंद्र मोदी सरकार की सख्ती की गाज छोटे अखबारों और पत्रिकाओं पर पड़ी है. इससे दूर दराज की आवाज उठाने वाली पत्र-पत्रिकाओं का संचालन ठप पड़ गया है, साथ ही इससे जुड़े लाखों लोग बेरोजगार भी हो गए हैं. ऐसे दौर में जब बड़े मीडिया घराने पूरी तरह कारपोरेट के चंगुल में आ चुके हैं और असल मुद्दों को दरकिनार कर नकली खबरों को हाईलाइट करने में लगे हैं, मोदी सरकार उन छोटे अखबारों और पत्रिकाओं की गर्दन दबोचने में लगी है जो अपने साहस के बल पर असली खबरों को प्रकाशित कर भंडाफोड़ किया करते थे. हालांकि दूसरा पक्ष यह है कि उन हजारों लोगों की अकल ठिकाने आ गई है जो अखबारों पत्रिकाओं की आड़ में सिर्फ और सिर्फ सरकारी विज्ञापन हासिल करने की जुगत में लगे रहते थे और उनका पत्रकारिता से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं हुआ करता था. वो अखबार पत्रिका के जरिए ब्लैकमेलिंग और उगाही के धंधे में लिप्त थे. मोदी सरकार द्वारा सख्ती के इशारे के बाद आरएनआई यानि समाचार पत्रों के पंजीयक का कार्यालय और डीएवीपी यानि विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय काफी सख्त हो चुके हैं. समाचार पत्र के संचालन में जरा भी नियमों को नजरअंदाज किया गया तो आरएनआई समाचार पत्र के टाईटल पर रोक लगाने को तत्पर हो जा रहा है. उधर, डीएवीपी विज्ञापन देने पर प्रतिबंध लगा दे रहा है. देश के इतिहास में पहली बार हुआ है जब लगभग 269,556 समाचार पत्रों के टाइटल निरस्त कर दिए गए और 804 अखबारों को डीएवीपी ने अपनी विज्ञापन सूची से बाहर निकाल दिया है. इस कदम से लघु और माध्यम समाचार पत्रों के संचालकों में हड़कम्प मच गया है. पिछले काफी समय से मोदी सरकार ने समाचार पत्रों की धांधलियों को रोकने के लिए सख्ती की है. आरएनआई ने समाचार पत्रों के टाइटल की समीक्षा शुरू कर दिया है. समीक्षा में समाचार पत्रों की विसंगतियां सामने आने पर प्रथम चरण में आरएनआई ने प्रिवेंशन ऑफ प्रापर यूज एक्ट 1950 के तहत देश के 269,556 समाचार पत्रों के टाइटल निरस्त कर दिए. इसमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के अखबार-मैग्जीन (संख्या 59703) और फिर उत्तर प्रदेश के अखबार-मैग्जीन (संख्या 36822) हैं. इन दो के अलावा बाकी कहां कितने टाइटिल निरस्त हुए हैं  बिहार 4796, उत्तराखंड 1860, गुजरात 11970, हरियाणा 5613, हिमाचल प्रदेश 1055, छत्तीसगढ़ 2249, झारखंड 478, कर्नाटक 23931, केरल 15754, गोआ 655, मध्य प्रदेश 21371, मणिपुर 790, मेघालय 173, मिजोरम 872, नागालैंड 49, उड़ीसा 7649, पंजाब 7457, चंडीगढ़ 1560, राजस्थान 12591, सिक्किम 108, तमिलनाडु 16001, त्रिपुरा 230, पश्चिम बंगाल 16579, अरुणाचल प्रदेश 52, असम 1854, लक्षद्वीप 6, दिल्ली 3170 और पुडुचेरी 52. [भड़ास फॉर मीडिया से साभार ]    

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Dakhal News 11 April 2017


पत्रकार की मौत

रजनीश जैन  पत्रकारों के सम्मान और पत्रकारिता पर व्याख्यानों की नियमित श्रंखला के इस नृशंस दौर में वाट्सएप पर पत्रकारों के एक ग्रुप में तफरी कर रहा था कि तीन तस्वीरें एक साथ सरकीं। पत्रकारनुमा भाजपा कार्यकर्ता ने अपने इलाके सागर के भूतेश्वर रोड से वे तस्वीरें दो लाइन के मैसेज के साथ पोस्ट की थीं। 'एक वृद्ध को सड़क किनारे लावारिस पड़े पाया गया,108 बुला कर उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया।उनकी जेब से ये कागजात मिले हैं।'दो कागज थे ,एक आधार कार्ड और दूसरा साप्ताहिक अखबार का परिचय पत्र जिसे देखकर मैं ठिठक गया था। वे छोटेलाल भारतीय थे, 'सैनिक गर्जना' अखबार के संपादक। इस मैसेज पर दिनभर और कोई डीटेल नहीं आया।अगले दिन के अखबारों में भी इस बाबत कुछ नहीं था। मैंने पोस्ट डालने वाले भाजपा कार्यकर्ता को संपर्क किया कि उन बुजुर्ग के बारे में कोई अपडेट है क्या? उसने बताया कि उनकी हालत गंभीर थी कुछ ही घंटे जीवित रहे।उनके परिवार का पता चल गया , वे लोग लाश लेने पहुँच गये थे।  कुछ साप्ताहिक अखबार वालों को मैंने जब यह खबर दी तो वे उनकी मौत पर दुखी तो हुए लेकिन लावारिस पड़े मिलने पर उन्हें कोई हैरत न थी। एक ने कहा हम लोगों की हालत अब यही है, गनीमत है कि उनका परिवार पहुँच गया था, यहां तो यह उम्मीद भी खत्म है। खामोश कथन था लेकिन हजार सवालों से भरा हुआ। लेकिन मैं चुप नहीं रह सकता।छोटेलाल भारतीय पर लिख रहा हूँ यह जानते हुए कि इस लेख को पाठक नहीं मिलेंगे ,...तो क्या सिर्फ इस वजह से मुझे भी खामोश रह जाना चाहिए। वह भी तब जब मुझे इल्म है कि यह सिर्फ साप्ताहिक वाले छोटेलाल की लावारिस मौत नहीं है बल्कि अखबारी दुनिया की एक दुर्धुष विधा की सोची समझी हत्या है जिसमें हमारी सरकारें और समाज शामिल है। छोटेलाल दलित थे ,'भारतीय' सरनेम लिखते थे।लेकिन इस निष्ठुर देश में नाम बदलने भर से जाति का फंदा काटा नहीं जा सकता। 1975 की एमरजेंसी के दमनकारी वक्त में जब अखबार और अखबार वाले बंद किए जा रहे थे, छोटेलाल अखबार निकालने की जिद पर काम कर रहे थे। लगातार निकालने पर 1976 में उनके अखबार को आरएनआई नंबर भी मिल गया। सागर,भोपाल और दिल्ली के गलियारों में वे कांग्रेस नेताओं के यहाँ सागर के ग्रामीण दलित समाज की समस्याएं ले जाते थे, समस्याओं के हल कराते समय ही सरकारी विज्ञापन भी लिखा लेते थे जिससे उनका और उनके अखबार का खर्च चलता था। पचास साल की उम्र तक शादी नहीं की।बाद में समाज की ही एक विवाहिता को उसकी संतानों सहित अपना मान लिया। एक दशक तक यही उनका परिवार था। वह परिवार बर्बादी जिसके मुखिया का इंतजार कर रही थी। मुख्यमंत्री रहते दिग्विजय सिंह को अपने परवर्ती काल में साप्ताहिकों की घातकता और व्यर्थता का बोध हुआ और उन्होंने साप्ताहिकों को मिलने वाले सरकारी विज्ञापनों पर सख्ती शुरु कर दी। अभी तक जिलों और कस्बों से सैकड़ों की तादाद में निकल रहे टेबलायड साइज के छोटे छोटे साप्ताहिकों को सरकारी विज्ञापनों की कुल राशि के 40 प्रतिशत एड दिए जाते थे। इसी वित्तीय आधार पर साप्ताहिकों की काली, सफेद, नीली, लाल, पीली दुनिया चलती थी। इनमें विभिन्न क्षेत्रीय और छोटी विचारधाराओं को भी खाद पानी मिलता था। दूरस्थ और गुमनाम इलाकों के भ्रष्टाचार और समस्याएं उजागर होती थीं। बिजली, पानी, सड़़कों की बढ़ती समस्याएं छाप रहे इन सैकड़ों इदारों पर नियंत्रण में असफल होता देख दिग्गी राजा ने इनका गला घोंटने की ठानी और बड़े अखबारी संस्थानों की तरफ फण्ड का प्रवाह बढ़ा दिया। राजा की गौरमेंट भी साप्ताहिकों के साथ ही रसातल में चली गयी। भाजपा आई तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की चमक में खो गयी। दिग्विजय की विज्ञापननीति को भाजपा नेतृत्व ने और कड़ाई से लागू किया।उधर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रमोद महाजन ने सन 77 में आडवाणी द्वारा लागू की गई विज्ञापननीति को बदलते हुए साप्ताहिक अखबारनवीसी को सूली पर चढ़ा दिया। यहां से साप्ताहिकों की उम्मीद का आखिरी चिराग बुझ गया। तकनीक के मंहगे दौर में जब बड़े संस्थानों के साप्ताहिक काल के गाल में समा गये तो छोटेलाल भारतीय की 'सैनिक गर्जना' कब तक गरजती। आखिरी बार चार पाँच साल पहले 'सैनिक गर्जना' का अंक लिए छोटेलाल भारतीय को सागर सर्किट हाऊस में ठहरे पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर से मिलते देखा गया।वे अखबार की कापी देने आए थे। इस अंक में उन्होंने एक लेख छापा जिसमें पीडब्ल्यूडी विभाग द्वारा पत्रकारों को दी जाने वाली मंथली पर तीक्ष्ण रिपोर्ट छपी थी। विभाग ने यह रसद रोक दी।कुछ स्थानीय पत्रकार लंबे समय तक छोटेलाल को कोसते रहे। पर किसी ने यह मालूम करने की कोशिश नहीं की कि परिवार के भरणपोषण में नाकाम भारतीय को अपना घर छोड़ देना पड़ा था। दस साल से वे अकेले शहर के एक रेस्टोरेंट के बाजू की छपरी में सो रहे थे और बचा खुचा खा रहे थे। कभी कभी उनके कोई शिष्य उनकी बौद्धिक मदद लेने के बहाने ठीकठाक खिला देते थे। शहर में वृद्धों के मुफ्त भोजन के ठिकाने सीताराम रसोई भी वे चले जाते थे। अपने मौसरे भाई के पास नजदीक के गांव कुड़ारी में भी कुछ दिन काट लेते थे। गांव में अब भी लोग उनसे सरकारी योजनाओं के आवेदन भरवाते और शहर भिजवा देते थे। बीमारी में कई कई दिन अस्पताल में कटे।एक थैला उनकी कुल संपत्ति था। जेब में हमेशा की तरह खुद के अखबार का ,खुद के हस्ताक्षर से , खुद को जारी आईडेंटिटी कार्ड और आधारकार्ड की फोटोकापी रहती थी। पर यह सब अब निराधार है। लावारिस ही सही,74 साल की पकी उम्र में वे चले गये हैं। अच्छा ही हुआ। छोटेलाल भारतीय विकास की राजनीति का ये दौर शायद ही बर्दाश्त कर पाते जिसके पैकेज में गरीब को 5 रु की थाली से लेकर सबको घर , कर्जामाफी, मुफ्त शिक्षा स्वास्थ्य तीर्थयात्राएं हैं। सचमुच जिंदगी घोषणापत्रों में कितनी आसान लगती है।...पर हम प्रदेश का पहला दैनिक निकालने वाले मास्टर बल्देवप्रसाद के शहर के लोग एक छोटे से अखबार वाले की मौत किस पन्ने पर लिखें।...कौन छापता है ऐसी मौतों को। शीर्षक की दूसरी पंक्ति दुष्यंत के शब्दों में कुछ यूं है,जोड़ कर पढ़ लें ...घर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।'  (पत्रकार रजनीश जैन की वॉल से )  

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Dakhal News 10 April 2017


navlok bharat

प्रचंड जनादेश: चुनौतियाँ और संभावनाएँ विषय पर हुई संगोष्ठी जनसंपर्क, जल-संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र ने आज पाक्षिक पत्रिका 'नवलोक भारत', भोपाल द्वारा आयोजित वैचारिक संगोष्ठी प्रचंड जनोदश: चुनौतियाँ और संभावनाएँ में हिस्सा लिया। मंत्री डॉ. मिश्र ने समन्वय भवन में आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता की। जनसंपर्क मंत्री ने संगोष्ठी में आए अतिथि वक्ताओं श्री सुधांशु त्रिवेदी और सुश्री शाज़िया इल्मी का मध्यप्रदेश आगमन पर स्वागत किया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता श्री सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि राजनैतिक दल को प्राप्त प्रचंड बहुमत अधिक अपेक्षाओं को साथ लाता है। उन्होंने कहा कि अपेक्षाओं के ज्वार और उत्तरदायित्वों के भार का संगम हाल ही में उत्तरप्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणामों में देखने को मिला है। श्री त्रिवेदी ने कहा कि उत्तरप्रदेश में विकास का नया युग प्रारंभ होगा। प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व का यह नैतिक प्रभाव ही है कि उनके स्वच्छता अभियान और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के आव्हान को जनता ने अंगीकार्य किया। श्री त्रिवेदी ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी की नेतृत्व क्षमता से विश्व के कई राष्ट्र प्रभावित हुए हैं। विषय प्रवर्तन वरिष्ठ पत्रकार और राष्ट्रीय एकता समिति मध्यप्रदेश के उपाध्यक्ष श्री रमेश शर्मा ने किया। संगोष्ठी को दैनिक भास्कर समाचार पत्र समूह के प्रमुख श्री रमेशचंद्र अग्रवाल और सुश्री शाजिया इल्मी,  ने भी सम्बोधित किया। सहकारिता राज्य मंत्री श्री विश्वास सारंग ने प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत किया। संचालन श्री विवेक सारंग ने किया। पत्रिका के संस्थापक संपादक वरिष्ठ राजनेता श्री कैलाश सारंग ने कहा कि पत्रिका द्वारा ऐसी विचार संगोष्ठियों का आयोजन भविष्य में भी किया जाएगा। इस अवसर पर अतिथियों को स्मृति-चिन्ह किए गए। कार्यक्रम में श्री राजीव मोहन गुप्त प्रधान संपादक दैनिक जागरण, श्री राजेन्द्र शर्मा प्रधान संपादक दैनिक स्वदेश, श्री भरत पटेल प्रधान संपादक दैनिक सांध्य प्रकाश, वरिष्ठ साहित्यकार श्री बटुक चतुर्वेदी के साथ ही राजधानी के अनेक वरिष्ठ पत्रकार, जन-प्रतिनिधि और प्रबुद्धजन उपस्थित थे। शुरूआत सुश्री उपासना सारंग के वन्दे-मातरम् गायन से हुई।  

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Dakhal News 9 April 2017


ibc 24 एन्कर सुरप्रीत

छत्तीसगढ़ में एक टीवी न्यूज एंकर सुरप्रीत कौर ने ब्रेकिंग न्यूज में अपने ही पति की मौत की खबर पढ़ डाली। यह न्यूज रीडर कौर छत्तीसगढ़ के एक प्राईवेट चैनल आईबीसी-24 में काम करती है। शनिवार सुबह वह रोजाना की तरह ऑफिस आई और न्यूज बुलेटिन पढ़ने लगी। इसी दौरान महासमु्ंद जिले के पिथौरा में हुए एक सड़क हादसे की जानकारी आई तो महिला एंकर ने उसकी ब्रेकिंग न्यूज पढ़ी। हालांकि इस दौरान महिला को पता नहीं था कि इस हादसे में उसके पति की भी मौत हो गई है। इसके बाद महिला एंकर ने रिपोर्टर को फोन करके घटना की जानकारी हासिल की। रिपोर्टर ने बताया कि हादसे में व्हीकल में पांच लोग सवार थे जिसमें से तीन की मौत हो गई है। रिपोर्टर ने यह भी बताया कि मरने वाले तीन लोगों की पहचान नहीं हो सकी है।  इस दौरान महिला एंकर कौर को याद आया कि जहां ये हादसा हुआ है उसी रूट से उस वक्त उसके पति अपने चार साथियों के साथ जाते हैं।  यह खबर सुनने के बाद महिला एंकर टूट गई और न्यूज अवर खत्म करने के बाद टीवी स्टूडियो से निकल गई। महिला एंकर के साथियों का कहना है कि वह बहुत बहादुर महिला है। हमें गर्व है कि वह हमारी एंकर है लेकिन इस घटना से आज हम सभी सदमे में हैं। 28 वर्षीय कौर आईबीसी-24 न्यूज चैनल में एंकर है। कौर की शादी एक साल पहले हरशद कवादे के साथ हुई थी और ये दंपत्ति रायपुर में रहता है। कौर न्यूज अवर के बाद हादसे वाली जगह गई थी, लेकिन उसके बाद वापस ऑफिस लौटी। खबर साभार- लाइव हिन्‍दुस्‍तान

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Dakhal News 8 April 2017


पत्रकार सुरक्षा कानून

महाराष्ट्र में पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर हमले करने वालों की अब खैर नहीं है। महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने बृहस्पतिवार को पत्रकार सुरक्षा कानून के मसौदे को मंजूरी दे दी है। संभवत: महाराष्ट्र देश का पहला राज्य है जहां की कैबिनेट ने पत्रकार सुरक्षा कानून पास किया है। राज्य में पत्रकारों पर हमले की घटनाओं के मद्देनजर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कुछ दिनों पहले विधानसभा ने आश्वासन दिया था कि इससे जुड़ा विधेयक इसी सत्र में लाया जाएगा। उम्मीद की जा रही है कि कैबिनेट में मसौदे को मंजूरी देने के बाद सरकार शुक्रवार को बजट सत्र के आखिरी दिन दोनों सदनों में पारित करा सकती है। सरकार ने जो मसौदा तैयार किया है उसके मुताबिक पत्रकारों, मीडिया संस्थानों के साथ कांट्रैक्ट पर काम करने वाले पत्रकारों पर हमला करना गैरजमानती अपराध होगा। हमला करने वाले को इलाज का खर्च और मुआवजा भी अदा करना होगा। मुआवजा न देने पर आरोपियों के खिलाफ दीवानी न्यायालय में मुकदमा चलाया जाएगा। वही, विधेयक में कानून का दुरुपयोग रोकने का भी प्रावधान है। यदि जांच में शिकायत झूठी पाई गई तो शिकायतकर्ता के खिलाफ भी मामला दर्ज कर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग 2005 से ही हो रही है। तत्कालीन गृहमंत्री दिवंगत एनसीपी नेता आरआर पाटिल ने पत्रकारों की सुरक्षा से जुड़ा कानून बनाने का वादा किया था। इसको लेकर नारायण राणे की अध्यक्षता  में समिति गठित की गई थी लेकिन कांग्रेस-एनसीपी की गठबंधन सरकार इस कानून को पारित करने में टालमटोल करती रही।

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Dakhal News 8 April 2017


पत्रकारअनुराग उपाध्याय

       // माकूल ज़वाब // उस के पास सवाल बहुत थे मेरे पास थे कुछ माकूल जवाब... सिलसिला चला तो मैं सवाल बन गया ,लेकिन उसके पास जवाब नहीं था ...  सवालों के जवाब उसकी खूबसूरत झुकी पलकें देती रहती थीं ... और लब ख़ामोशी अख्तियार  कर लेते थे ... उँगलियों पर सजे नाख़ून  दूसरे नाख़ून से नेलपेंट कुरेदने में लग जाते जैस पुराने जख्मों को शिद्दत से कुरेदा जा रहा हो... जवाब ढूंढते हुये हम सवालों की दीवार खड़ी करते रहे  पता ही नहीं चला वो दीवार गिर पड़ी ,हमारे रिश्ते उसमें लहूलुहान हो गए ... अनसुलझे सवाल अब भी उसके जहन में होंगे, कुछ माकूल हल मैंने भी लिख लिए थे उसके लिए ... शायद उम्र के किसी मोड़ पर उसे जरूरत पड़े तो ... "अनुराग उपाध्याय" 11/7/2016 * पत्रकार ,लेखक- कवि अनुराग उपाध्याय समाज के हर विषय पर अपनी कलम चलाते हैं।  साफ़ साफ़ और बिना लाग लपेट के सच बयान कर देना उनके लेखन की सबसे बड़ी खूबी है। अनुराग की कवितायेँ  कई बार रुमानियत की सरहदों पर चहलकदमी करती नज़र आती हैं तो कई दफ़ा सामाजिक बदलाव के लिए हल्ला बोलती प्रतीत होती हैं।  संपादक   

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Dakhal News 7 April 2017


एक्जिट पोल प्रतिबंधित

भारत निर्वाचन आयोग ने एक्जिट पोल के संबंध में निर्देश जारी किये हैं। उप निर्वाचन के संबंध में किसी भी प्रकार के एक्जिट पोल का संचालन तथा प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा उसका प्रकाशन या प्रचार अथवा किसी भी तरीके से उसके प्रसार पर प्रतिबंध रहेगा। किसी भी प्रकार के निर्वाचन संबंधी मामले का किसी भी ओपीनियन पोल या अन्य किसी पोल सर्वे के परिणामों सहित प्रदर्शन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से करवाने पर प्रतिबंध रहेगा।  

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Dakhal News 7 April 2017


trp week 13 indiatv

नेशनल न्यूज़ चैनल्स में आज तक सिरमौर बना हुआ है। लेकिन इण्डिया टीवी के लिए पिछले दो हफ्ते बहुत ही ख़राब साबित हुए हैं। ऐसा लग रहा है 2004 से लेकर अबतक  इंडिया टीवी के इतिहास का सबसे ख़राब दौर चल रहा है। रजत शर्मा की टीम के परफॉर्मेंस को दर्शकों ने नकार दिया है। इण्डिया टीवी के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम ने 12  वें सप्ताह में में इंडिया टीवी के ख़राब प्रदर्शन के चलते आधा दर्जन पत्रकारों को चैनल से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। अब देखना है 13 वें सप्ताह भी इंडिया टीवी के ख़राब प्रदर्शन की गाज किस पर गिरती है। देश के साथ मध्यप्रदेश में भी इंडिया टीवी पहले दूसरे नंबर से खिसक कर पांचवे और छठवे नम्बर पर पहुँच गया है। मध्यप्रदेश में पिछले एक साल से लगातार इंडिया टीवी की trp डाउन हुई है।  बीत सप्ताह हर दृष्टि से एबीपी न्यूज़ के लिए बेहतरीन परिणाम देने वाला रहा है।  -------------------------------------------------------------------- Mp/cg के रीजनल टॉप फाइव न्यूज़ चैनल trp week  13    --------------------------------------------------------------------     ज़ी न्यूज........  51.5  आईबीसी.....    21.8 ईटीवी.......       17.5 सहारा समय....    5.1 बंसल न्यूज.....     2.1 ------------------------------------- नेशनल न्यूज़ चैनल्स  trp Wk 13 Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs,  Aaj Tak 16.8 dn 0.5  ABP News 15.4 same   India TV 12.8 dn 0.3  Zee News 12.8 dn 0.8  News18 India 9.7 up 1.7  India News 9.4 same   News Nation 8.6 dn 0.1  News 24 6.9 dn 0.4  Tez 3.2 up 0.2  NDTV India 2.3 up 0.1  DD News 2.1 up 0.1    TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.1 dn 1.0  ABP News 15.3 up 0.3  Zee News 14.0 dn 0.6  India TV 13.2 dn 0.7  News18 India 10.1 up 1.6  India News 8.1 same   News Nation 8.0 dn 0.4  News 24 6.5 up 0.1  Tez 3.6 up 0.4  NDTV India 2.9 up 0.1  DD News 2.2 up 0.2 ------------------------------------------------------------------------  

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Dakhal News 6 April 2017


 शलभ भदौरिया

मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ ने जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा द्वारा विधानसभा में पत्रकारों के लिए पत्रकार कौशल विकास प्रकोष्ठ की स्थापना तथा श्रद्धानिधि की राशि में वृद्धि और आयु सीमा घटाकर62 से 60 वर्ष किए तथा फोटो जर्नलिस्ट, कैमरामेन को भी श्रद्धानिधि की पात्रता दिए जाने का स्वागत करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया है।  इसके लिए संघ मुख्यमंत्री व जनसंपर्क मंत्री का अभिनंदन करेगा।  संघ के प्रदेश अध्यक्ष शलभ भदौरिया तथा मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष शरद जोशी ने कहा कि जनसंपर्क मंत्रीजी ने पत्रकार चिकित्सा सहायता योजना में पत्रकार के आश्रित माता-पिता को भी इलाज के लिए सहायता देने, गंभीर रोगों के इलाज के लिए अब तक दिए जाने वाले अधिकतम सहायता राशि को 50 हजार से एक लाख रुपए करने, गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों को भी बीमा योजना में शामिल करने, श्रद्धानिधि की राशि को 6 हजार से 7 हजार रुपए बढ़ाने,राज्य तथा राज्य से बाहर पत्रकारों के लिए अध्ययन योजना लागू करने तथा पत्रकारों की समस्याओं के अध्ययन के निराकरण के लिए राज्य स्तर पर समिति का गठन करने, राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं से फाउंडेशन कोर्स प्रशिक्षण प्राप्त करने पर 50 प्रतिशत शुल्क शासन द्वारा वहन करने की घोषणा की है। शासन का यह निर्णय स्वागत योग्य है।  श्री भदौरिया तथा श्री जोशी ने बताया कि संघ विगत कई वर्षों से पत्रकारों के कल्याण और समस्याओं को लेकर संघर्षरत है। कई बार शासन को इस संबंध में ज्ञापन भी दिए है, जिसमें से अधिकांश मांगें शासन द्वारा स्वीकृत की गई, जिसमें श्रद्धानिधि की राशि में वृद्धि करने, आयु सीमा 62 से घटाकर 60 वर्ष करने, गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों को बीमा योजना में शामिल करने, अधिमान्य पत्रकारों को लेपटाप देने, स्वास्थ्य योजना मे पत्रकारों के माता-पिता को शामिल करने, अधिमान्य कार्ड की अवधि 2 वर्ष करने, टोल नाकों पर पत्रकारों को छूट देने, पत्रकारों की कार्यशाला आयोजित करने, तहसील स्तर पर अधिमान्यता देने, पत्रकार भवन के लिए अनुदान देने, पत्रकार प्रताडऩा के मामले में गृह मँत्रालय के परिपत्र का कड़ाई से पालन करने जैसी अनेक मांगे शासन ने संघ की पहल  पर स्वीकृत की है।  जनसंपर्क मंत्री श्री मिश्रा ने सलकनपुर सिहोर में आयोजित सम्मेलन के अवसर संघ के ज्ञापन के प्रति उत्तर में मांगे  शीघ्र स्वीकृत करने का आश्वासन दिया था और यह आश्वासन उन्होने विधानसभा में घोषणा कर पूरा कर दिया है। पूर्व जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने भी सिहोर में आयोजित जिला सम्मेलन में संघ के ज्ञापन को सरकार के लिए मार्गदर्शन भी बताया था और कहा था कि पत्रकारों की समस्याओं को लेकर इससे बढिय़ा कोई मांग पत्र नहीं हो सकता।  श्री भदौरिया व श्री जोशी ने बताया कि देश व  प्रदेश में पत्रकारों पर हो रहे हमलों और प्रताडऩा के मामलों को देखते हुए संघ   केंद्र व राज्य सरकार से पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने की मांग वर्षों से कर रहा है, जिस प्रकार से डाक्टरों के लिए प्रोटेक्शन एक्ट बना है, इसी प्रकार पत्रकारों के लिए भी एक्ट बनाया जाए, ताकि पत्रकार निर्भिक होकर अपने दायित्व का निर्वहन कर सके। इस संबंध मे सांसदोंं एवं केंंद्रिय मंत्री के माध्यम से प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन भी भेजे गए  और प्रदेश स्तर पर पोस्टकार्ड अभियान भी चलाया गया,जिसमें लगभग 10 हजार पोस्टकार्ड प्रधानमंत्रीजी को भेजे गए।   प्रदेश में टोल नाकों को सरकार समाप्त करे या पत्रकारों को रियायत दें। अधिमान्य पत्रकारों को राष्ट्रीय राजमार्ग के टोलनाकों पर छूट  दे। पत्रकार पंचायत बुलाने,  जिला स्तर पर  पत्रकार प्रताडऩा जांच सेल गठित करने, तहसील व ब्लाक स्तर पर पत्रकारों के नाम शासन की सूची में दर्ज करने, शासन की कमेटियों में संघ के सदस्यों को शामिल करने सहित कुछ ओर मांगे लंबित है,जिसकी ओर भी शासन का ध्यान आकर्षित किया गया है।  श्रम दिवस 1 मई को इन मांगों को लेकर पुन: शासन का ध्यान आकर्षित किया जाएगा। 

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Dakhal News 5 April 2017


यशवंत सिंह

यशवंत सिंह कहने को तो ये बड़े लोग होते हैं लेकिन दिल इनका इतना छोटा होता है कि ये अपने इर्द-गिर्द रहने वालों के दुखों-भावनाओं को भी नहीं समझते. इंडिया न्यूज चैनल के मालिक कार्तिक शर्मा उर्फ कार्तिकेय शर्मा अरबों-खरबों के मालिक हैं. होटल, मीडिया समेत कई किस्म के बिजनेस हैं. इनके पिता विनोद शर्मा हरियाणा के बड़े नेता हैं. एक भाई मनु शर्मा इन दिनों तिहाड़ जेल में जेसिका लाल मर्डर केस की सजा काट रहा है. सारे कारोबार का दारोमदार कार्तिक शर्मा के कंधों पर है. लेकिन इनकी ओछी मेंटलटी के चलते इनसे काफी लोग नाराज रहते हैं. इन महाशय ने अपने ड्राइवर तक को कई महीने की सेलरी नहीं दी थी. खफा ड्राइवर ने हिसाब बराबर करने का ऐसा खौफनाक प्लान बनाया कि सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. नोएडा पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार कार्तिकेय शर्मा अपने मित्र अशोक डोगरा के साथ इंडिया न्यूज चैनल के आफिस से दिल्ली के जोरबाग स्थित अपने घर जा रहे थे. बात 27-28 मार्च की रात की है. इंडिया न्यूज़ चैनल का आफिस नोएडा के सेक्टर तीन में है. कार्तिकेय शर्मा के ड्राइवर राम प्रकाश ने उनकी मर्सिडीज कार निकाली और दोनों को लेकर चल पड़ा. कार चालक रामप्रकाश मर्सिडीज को लेकर रजनीगंधा चौराहे के अंडरपास पर पहुंचा. इसके बाद उसने कार की स्पीड असामान्य रूप से बढ़ा दी. कार्तिकेय शर्मा के तो होश उड़ गये. उन्होंने ड्राइवर को डांटा और स्पीड कम करने को कहा. चालक रामप्रकाश ने सेलरी कई महीने से न देने की बात कहते हुए कार्तिकेय शर्मा को गरियाना शुरू किया और कहा- ''तुझसे तो आज हिसाब बराबर करके रहूंगा, तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.'' ड्राइवर रामप्रकाश कार को डीएनडी पर ले जाकर साइड से दीवार में टक्कर मारना शुरू कर दिया. टक्कर पीछे के उस साइड से मार रहा था जिस तरफ कार्तिकेय शर्मा बैठे हुए थे. इसके बाद उसने कार को बैक करते हुए कस कर टक्कर मारी. कार्तिकेय शर्मा और उनके मित्र को मौत साक्षात नजर आने लगी. ये लोग चिल्लाने लगे और अपनी जान की गुहार लगाने लगे. किसी तरह ये लोग कार से निकल कर भागे. पुलिस ने सूचना मिलते ही ड्राइवर को अरेस्ट कर लिया और आईपीसी की धारा 307 में मुकदमा लिखकर उसे जेल भेज दिया. फिलहाल यह बड़ी खबर न किसी चैनल के क्राइम शो में दिखी न किसी चैनल के टिकर में झलकी. मीडिया के धंधेबाज और काले दिल के मालिक अपनी एकता कायम रखते हुए इस बड़े घटनाक्रम को पी गए. हां नोएडा में कुछ एक अखबारों में खबर है लेकिन किसकी पक्षधरता लेकर लिखी गई है, उसे आप पढ़ कर जान सकते हैं.  सवाल यह है कि क्या इससे मीडिया मालिक सबक लेंगे? वे कई महीनों तक लोगों से काम कराते हैं और सेलरी दिए बिना निकाल देते हैं. एक ड्राइवर ने जिस तरह से बदला लिया, उससे समझा जा रहा है कि उसने बाकियों को भी रास्ता दिखा दिया है. नोएडा दिल्ली जैसे महंगे इलाके में कोई कर्मचारी बिना सेलरी कैसे अपने परिवार को जिंदा रख सकता है. एक ब्वायलिंग प्वाइंट आता है जिसके बाद खुद को कीड़े मकोड़े की तरह जिंदा रखने की जगह आर-पार करने का फैसला लेते हुए मरने मारने पर उतारू हो जाता है.[bhadas4media.com से साभार लेखक भड़ास4मीडिया के एडिटर हैं ]  

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Dakhal News 4 April 2017


अनुराग उपाध्याय की कविता

  * पेशे से पत्रकार ,लेखक- कवि अनुराग उपाध्याय समाज के हर विषय पर अपनी कलम चलाते हैं।  साफ़ साफ़ और बिना लाग लपेट के सच बयान कर देना उनके लेखन की सबसे बड़ी खूबी है। संपादक      //दंगा // अनुराग उपाध्याय    उस भीड़ में  तुम ही नहीं  हम भी थे ...  कुचले गए  सपने पाँव से  वो तुम्हारे नहीं  हमारे भी थे ...  टपकता रहा  शरीर से वह  लाल-लाल सा लहू  तुम्हारा नहीं  हमारा ही था ...  बदहवासी का आलम  चीखों का सिसकना  लाशों का सड़ना  जिस सहारे बैठे थे तुम  वो लहूलुहान जिस्म  हमारा ही था ...  ------------------------------------

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Dakhal News 2 April 2017


patrkar madhyprdesh

राज्य शासन द्वारा पत्रकारों को अधिमान्यता देने के लिये राज्य स्तरीय समिति का गठन कर दिया गया है। समिति का कार्यकाल दो वर्ष का होगा। समिति में आयुक्त जनसंपर्क या उनके द्वारा मनोनीत अधिकारी सदस्य सचिव होंगे। समिति में श्री आनंद पांडे नवदुनिया इंदौर, श्री मनीष दीक्षित दैनिक भास्कर भोपाल, श्री मृगेन्द्र सिंह दैनिक जागरण भोपाल, श्री राजेन्द्र शर्मा टाइम्स ऑफ इंडिया भोपाल, श्री मनोज शर्मा आईबीएन 7 भोपाल, श्री प्रकाश तिवारी न्यूज आर्बजर भोपाल, श्री शरद द्विवेदी बंसल न्यूज भोपाल, श्री अक्षत शर्मा स्वेदश भोपाल, श्री नवीन पुरोहित आईएनडी 24 भोपाल, श्री गिरजा शंकर स्वतंत्र पत्रकार भोपाल, श्री राजेश सिरोठिया अग्निबाण भोपाल, श्री उमेश निगम एमपी न्यूज टुडे डॉट कॉम, श्री नितेन्द्र शर्मा फ्री प्रेस भोपाल, श्री प्रवीण दुबे ईटीवी भोपाल, श्री प्रशांत जैन यूएनआई भोपाल, श्री सोमित्र जोशी तरूण भारत नागपुर, भोपाल, श्रीमती दीप्ति चौरसिया इंडिया न्यूज भोपाल, श्री रमेश राजपूत दैनिक भास्कर ग्वालियर, श्री अरविन्द तिवारी अध्यक्ष प्रेस क्लब इंदौर, श्री विशाल हाडा अध्यक्ष, प्रेस क्लब उज्जैन, श्री सूर्य प्रकाश चतुर्वेदी दैनिक यश भारत भोपाल, श्री रमाकांत द्विवेदी दैनिक भास्कर रीवा, श्री योगेश सोनी दैनिक भास्कर जबलपुर और श्री सुरेश शर्मा आचरण ग्वालियर को सदस्य बनाया गया है। राज्य शासन द्वारा पत्रकारों को जिला एवं तहसील-स्तरीय अधिमान्यता देने के लिये संभाग-स्तरीय अधिमान्यता समिति का गठन किया गया है। समिति दो साल के लिये प्रभावशील रहेगी। भोपाल संभाग श्री अनिल गुप्ता दैनिक भास्कर भोपाल, श्री कन्हैया लाल लोधी राज एक्सप्रेस भोपाल, श्री सीताराम ठाकुर पीपुल्स समाचार भोपाल, श्री अरूण त्रिवेदी दैनिक भास्कर विदिशा, श्री दिनेश निगम त्यागी हरिभूमि भोपाल, श्री कमल खस दैनिक जागरण राजगढ़, श्री रघुवीर तिवारी ब्यूरो चीफ स्वदेश ग्वालियर और श्री महेन्द्र सिंह पीटीआई सीहोर। ग्वालियर संभाग श्री उमेश भारद्वाज स्वदेश शिवपुरी, श्री गणेश सांवला दैनिक भास्कर दतिया, श्री लाजपत राय अग्रवाल दैनिक भास्कर भिण्ड, श्री रजनीश दुबे दैनिक भास्कर मुरैना, श्री सत्यप्रकाश शर्मा फ्री प्रेस ग्वालियर, श्री हरीश चंद्रा नव दुनिया ग्वालियर, श्री राजकुमार दुबे दैनिक जागरण मुरैना और श्री प्रवीण मिश्रा पत्रिका गुना। उज्जैन संभाग श्री राजेन्द्र पुरोहित दैनिक नई दुनिया उज्जैन, श्री अर्जुन सिंह चंदेल दैनिक अग्निपथ उज्जैन, श्री तरूण मेहता दैनिक अग्निबाण देवास, श्री शौकीन जैन दैनिक नवभारत नीमच, श्री दिलीप पाटनी पीटीआई रतलाम, श्री महेश शर्मा यूनीवार्ता आगर, श्री बृजेश परमार टाइम्स ऑफ इंडिया उज्जैन और श्री धनश्याम बटवाल स्वतंत्र पत्रकार मंदसौर। इंदौर संभाग श्री राजेश राठौर दैनिक प्रभात किरण इंदौर, श्री राजेश ज्वेल दैनिक अग्निबाण इंदौर, श्री कपीश दुबे नई दुनिया इंदौर, श्री ज्ञानेन्द्र त्रिपाठी धार, श्री राजेश शर्मा चौथा संसार धार, श्री हरिनारायण शर्मा दैनिक भास्कर इंदौर, श्री दिलीप वर्मा वार्ता झाबुआ और श्री हर्ष भान तिवारी निमाड़ दर्शन खण्डवा। रीवा संभाग श्री अजय सिंह दैनिक नव स्वदेश रीवा, श्री संजय कुमार पयासी दैनिक नवभारत सतना, श्री राम अवतार गुप्ता यूएनआई शहडोल, श्री राजेश शुक्ला दैनिक स्वतंत्र मत अनूपपुर, श्री ब्रजेश पाठक दैनिक स्टार समाचार सीधी, श्री गोपाल अवस्थी दैनिक भास्कर सिंगरौली, श्री देवेन्द्र सिंह दैनिक जागरण रीवा और श्री संतोष गुप्ता दैनिक जन-दुनिया उमरिया। जबलपुर संभाग श्री अंशुमान भार्गव दैनिक हितवाद जबलपुर, श्री जहीर अंसारी ईएमएस जबलपुर, श्री संजय सिंह जनपक्ष सिवनी, श्री आशीष शुक्ला दैनिक नई दुनिया डिण्डोरी, श्री धर्मेन्द्र दैनिक लोकमत समाचार छिन्दवाड़ा, श्री आदित्य पंडित दैनिक यशभारत बालाघाट, श्री कुशलेन्द्र श्रीवास्तव नरसिंहपुर और श्री संजय जैन कटनी। सागर संभाग श्री सुनील गौतम दैनिक भास्कर दमोह, श्री बी.एन. जोशी दैनिक आचरण पन्ना, श्री श्याम अग्रवाल दैनिक शुभ भारत छतरपुर, श्री जितेन्द्र सोनकिया दैनिक भास्कर सतना, टीकमगढ़, श्री रामशंकर तिवारी दैनिक सागर दिनकर सागर, श्री राघवेन्द्र दुबे दैनिक जागरण सागर, श्री अमित कृष्ण श्रीवास्तव दैनिक नई दुनिया सागर, श्री प्रमोद चौबे दैनिक नवदुनिया सागर। होशंगाबाद संभाग श्री पंकज पटेरिया स्वतंत्र पत्रकार, श्री प्रकाश मंडलोई सा. पिपरिया प्रकाश होशंगाबाद, श्री विनोद सोमवंशी दैनिक भास्कर, श्री सौरभ तिवारी पीटीआई, श्री नवनीत कोहली दैनिक पायनियर, श्री लोमेश गौर दैनिक नई दुनिया हरदा, श्री प्रकाश भारद्वाज दैनिक देशबंधु होशंगाबाद और श्री विनय वर्मा दैनिक नवदुनिया बैतूल को सदस्य बनाया गया है। पत्रकार संचार कल्याण समिति गठित  राज्य शासन द्वारा पत्रकारों को आर्थिक सहायता देने के लिये मध्यप्रदेश पत्रकार संचार कल्याण समिति का गठन किया गया है। समिति का कार्यकाल दो वर्ष का होगा। समिति में आयुक्त जनसंपर्क या उनके द्वारा मनोनीत अधिकारी सदस्य सचिव होंगे। श्री विजय मनोहर तिवारी दैनिक भास्कर भोपाल, श्री प्रकाश भटनागर एलएन स्टार भोपाल, श्री सुनील शुक्ला नवदुनिया भोपाल, श्री रंजन श्रीवास्तव हिन्दुस्तान टाइम्स भोपाल, श्री आशुतोष गुप्ता आईएनडी 24 भोपाल, श्री वीरेन्द्र शर्मा सहारा समय भोपाल, श्री विनोद तिवारी बी.टी.वी. भोपाल, श्री बृजेश राजपूत एबीपी न्यूज भोपाल, श्री सिंकदर अहमद सांध्य प्रकाश भोपाल, श्री सुनील शर्मा प्रदेश टुडे भोपाल, श्री शिव अनुराग पटेरिया लोकमत समाचार भोपाल, श्री अजय त्रिपाठी आईबीसी 24 भोपाल, डॉ. नवीन आनंद जोशी स्वदेश इंदौर, श्री सुरेश शर्मा शिखर वाणी भोपाल, श्री मनीष श्रीवास्तव पीटीआई भोपाल, श्री राकेश अग्निहोत्री नया इंडिया भोपाल, श्री विजय दास राष्ट्रीय हिन्दी मेल भोपाल, श्री हरीश दिवेकर डी. बी. पोस्ट भोपाल, श्री अवधेश गुप्ता संपादक नव स्वदेश रीवा, श्री श्याम अवस्थी सा. स्पूतनिक इंदौर, श्री सुदेश तिवारी आचरण सागर, श्री विनय अग्रवाल नवभारत ग्वालियर, श्री अनूप शाह नई दुनिया जबलपुर और श्री राजेश माली दैनिक भास्कर उज्जैन को समिति का सदस्य बनाया गया है।  

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Dakhal News 1 April 2017


चुनावी भविष्यवाणी पर भी रोक

चुनाव में नेताओं और पार्टियों की जीत की भविष्यवाणी करने वाले ज्योतिषियों से चुनाव आयोग नाराज है। एक्जिट पोल के प्रसारण पर प्रतिबंध से बचने के लिए मीडिया में [प्रकाशित /प्रसारित ] दिखाए जाने वाले ज्योतिषियों और टैरो कार्ड रीडरों की चुनावी भविष्यवाणी पर सख्त ऐतराज जताया है। आयोग ने अब इन ज्योतिषियों की चुनावी भविष्यवाणी पर भी रोक लगा दी है।  दिल्ली में चुनाव आयोग ने गुरुवार को इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया दोनों का उल्लेख करते हुए कहा कि भविष्य के चुनावों में प्रतिबंधित काल में ज्योतिषियों के माध्यम से भी ऐसी खबरों का प्रसारण और प्रकाशन न किया जाए। ताकि स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव संपन्न हो सकें। मीडिया संगठनों को भेजी गई एडवाइजरी में कहा गया है कि जनप्रतिनिधि कानून की धारा 126 ए के तहत किसी भी व्यक्ति कोई एक्जिट पोल नहीं कराना चाहिए। साथ ही इसका प्रकाशन या किसी भी तरीके से प्रिंट या इलेक्ट्रानिक मीडिया के जरिए उसका प्रचार-प्रसार नहीं करना चाहिए। चुनाव आयोग की ओर से निर्धारित एक निश्चित अवधि में किसी भी एक्जिट पोल का प्रसारण नहीं होना चाहिए।  

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Dakhal News 31 March 2017


trp 12 week इंडिया टीवी चौथे नंबर पर पहुंचा

  12 वें सप्ताह के टेलीविजन रेटिंग पॉइंट में रजत शर्मा का इंडिया टीवी लुढ़क कर चौथे नंबर पर आ गया है। लगता है दर्शकों को इंडिया टीवी  पर बीजेपी का गुणगान पसंद नहीं आया। आजतक पहले ,एबीपी दूसरे और ज़ी न्यूज़ तीसरे नंबर पर रहे। वहीँ एमपी -छत्तीसगढ़ में रीजनल ज़ी नंबर वन बना हुआ है लेकिन ibc 24 और etv तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।     Mp/cg रीजनल टॉप फाइव न्यूज़ चैनल  Trp week-12 ज़ी न्यूज............  45.1 आईबीसी............ 24.7 ईटीवी.........         20.7 सहारा.........          4.6 बंसल.......             2.9 नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 12 Aaj Tak 17.2 up 0.9  ABP News 15.4 up 0.4  Zee News 13.6 up 0.7  India TV 13.1 up 0.6  India News 9.4 dn 0.1  News Nation 8.7 up 0.2  News18 India 8.0 dn 1.4  News 24 7.3 dn 2.0  Tez 3.1 up 0.6  NDTV India 2.2 dn 0.1  DD News 2.0 up 0.1   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 17.1 up 0.9  ABP News 15.0 up 0.2  Zee News 14.6 up 0.9  India TV 13.9 up 0.9  News18 India 8.5 dn 1.5  News Nation 8.4 dn 0.5  India News 8.1 up 0.3  News 24 6.4 dn 1.5  Tez 3.1 up 0.5  NDTV India 2.8 same   DD News 1.9 dn 0.1

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Dakhal News 30 March 2017


मीडियाकर्मी से बदसलूकी

मध्यप्रदेश में पत्रकारों पर पुलिसिया जुल्म के पिछले दिनों 15 मामले सामने आये। कल एक ट्रेनी आईपीएस ने फिर पत्रकारों से बदसलूकी की। इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से की गई तो उन्होंने कहा वो ऐसे अफसरों पर नकेल कसेंगे।   भोपाल में नव दुनिया अखबार के प्रेस फोटोग्राफर निर्मल व्यास  का 70 हज़ार का कैमरा प्रशिक्षु आईपीएस धर्मराज मीना ने फेका ज़मीन पर और  कलेक्टर से शिकायत कर  निर्मल व्यास को बंद करने की  दी धमकी । अयोध्या नगर थाना इलाके में दिनदहाड़े महिला को बंधक बनाकर लूट के मामले में इस नए नवेले अफसर ने  मीडिया पर निकाला गुस्सा। लूट की घटना को दरकिनार करते हुए इस अफसर ने पूरे मामले को किया दबाने का प्रयास किया और कहा मेरा थाना क्षेत्र  है यहाँ नही कर सकते पीड़िता से बात। इनके बाद जब पीड़िता मीडिया को अपना पक्ष  बताने लगी तो लूट की घटना न होने के लिए पीड़िता को भी धमकाया ,मीडियाकर्मियों के साथ की अभद्रता। कैमरामैनों के कैमरा छीनकर तोड़े । मीणा को प्रशिक्षु के तौर पर एक दिन पहले ही 3 माह के लिए बनाया गया है थाना प्रभारी। आयोध्या नगर थाने में कवरेज के दौरन फोटो जर्नलिस्ट वेल फेयर समिति के संयोजक ,नव दुनिया के सीनियर फोटो जर्नलिस्ट  निर्मल व्यास का कैमरा  छीनने के कारण कैमरा बुरी तरहा से छतिग्रस्त हो  चुका है जिसके चलते नवदुनिया के फोटोग्राफर निर्मल व्यास  के द्वारा अयोध्या थाने में धर्मराज मीणा के खिलाफ आवेदन दिया गया। 

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Dakhal News 29 March 2017


सागर पत्रकारिता विभाग

पहला छात्र मिलन समारोह दिल्ली के एमपी भवन में आयोजित हुआ।  मध्यप्रदेश के सागर के डॉ हरिसिंह गौर विवि के पत्रकारिता विभाग के पूर्व विद्यार्थियों का पहला मिलन समारोह दिल्ली के मध्यप्रदेश भवन में आयोजित हुआ। इसमे पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो कृष्णा आत्रे, प्रो श्याम कश्यप सहित दिल्ली में कार्यरत पत्रकार और अधिकारी शामिल हुए।  निर्णय लिया गया कि पहले भोपाल और उसके बाद सागर विवि में 25 और 26 नवंबर को एल्युमिनी कार्यक्रम आयोजित किया जायेगा।  दिल्ली में आयोजित छात्र मिलान आयोजन को संबोधित करते हुए प्रो कृष्णा आत्रे ने कहा कि मैं दुनिया भर में घूमता रहा लेकिन सागर ले जैसी प्रतिभा और क्षमता कहीं नहीं मिली। प्रो श्याम कश्यप वा मुकेश कुमार सहित अन्य वरिष्ठ पत्रकारों ने अपने अनुभव साझा किए। इस कार्यक्रम में प्रो कृष्णा आत्रे, प्रो श्याम कश्यप, आलोक मोहन नायक, मुकेश कुमार, विनय मिश्रा, सूर्यकांत पाठक, मनोज वर्गीस, अखलेश श्रीवास्तव रामनारायण श्रीवास्तव,राज पाठक, अथोवा मिथी, दीपनारायण,ऋतु त्रिपाठी शामिल हुए।   

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Dakhal News 28 March 2017


 डा. एम एल सोनी बने साधना न्यूज के सीएमडी

भोपाल के जानेमाने शिक्षाविद एवं सामजिक कार्यकर्ता डा. एम एल सोनी साधना न्यूज मप्र छग के सीएमडी  (चेयरमेन व प्रबंध संचालक) नियुक्त किए गए हैं। यह जानकारी चेनल हेड रवीन्द्र जैन ने दी है। जैन ने बताया कि डा. सोनी लगभग 32 वर्ष तक उच्च शिक्षा विभाग में रहे। उन्होंने तत्कालीन सहकारिता मंत्री गोविंदसिंह व जल संसाधन मंत्री अनूप मिश्रा के ओएसडी के रूप में सफलतापूर्वक काम किया। वे भोपाल के एमएलबी कन्या महाविद्यालय में वाणिज्य विभाग के हेड आफ द डिपार्टमेंट के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। साधना न्यूज मप्र व छग को संचालित करने वाली एक्यूट डेली मीडिया प्रा लि में उन्हें सीएमडी बनाया गया है। डा.सोनी के आने के बाद साधना न्यूज में नई ऊर्जा का संचार हुआ है। डा.सोनी सरल, सहज व नेतृत्व क्षमता के धनी हैं, उनके निर्देशन में साधना न्यूज अपनी विशिष्ट पहचान बनाने में सफल होगा। शनिवार को साधना न्यूज के समस्त स्टाफ  ने डा.सोनी के सीएमडी बनने पर उन्हें बधाईयां दी हैं।

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Dakhal News 27 March 2017


शरद यादव बोले यह भाषण कोई नहीं छापेगा

पत्रकारिता छोड़कर सब धंधे कर रहे मीडिया मालिक जदयू सांसद शरद यादव ने यह भाषण 22 मार्च, 2017 को राज्यसभा में दिया. अपनी बात रखते हुए उन्होंने देश में पत्रकारिता की दशा और दिशा पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. पढ़ें पूरा भाषण… हिंदुस्तान का जो लोकतंत्र है, जो पार्लियामेंट है, उसमें दोनों सदन चुने हुए सदन हैं. इन दोनों सदनों के ऊपर हिंदुस्तान के पूरे लोगों की हिफाजत का जिम्मा है. हम सब लोगों की बात का हिंदुस्तान के लोगों के पास पहुंचने का रास्ता एक ही है और वह मीडिया है. आज हालत ऐसी है, एक नया मीडिया, विजुअल मीडिया आया है, सोशल मीडिया आया है. मैंने एक-दो बात सच्ची कही, उपसभापति जी, मैं आपसे कह नहीं सकता कि सोशल मीडिया किस तरह से बढ़ा है, उसमें कई तरह की अफवाह चल रही है, लेकिन किस तरह से गाली-गलौज चल रही है, उसका कोई अंदाजा नहीं लगा सकता है. मजीठिया कमीशन कब से मीडिया के लिए बना हुआ है. आज ये सारा मीडिया- हम लोकतंत्र में चुनाव सुधार की बात कर रहे हैं कि चुनाव सुधार कैसे हो? इस चुनाव सुधार की सबसे बड़ी बात है- हमारी लोकशाही और लोकतंत्र कहां जा रहा है, इसको वहां पहुंचाने वाले कौन लोग हैं? वह तो मीडिया ही है, जिसको चौथा खंभा कहते हैं, वही है ना? उसकी क्या हालत है? पत्रकार के लिए मजीठिया कमीशन बना हुआ है. याद रखना मीडिया और पत्रकारिता का मतलब है पत्रकार और वह उसकी आत्मा है. यह लोकशाही या लोकतंत्र जो खतरे में हैं, उसका एक कारण यह है कि हमने पत्रकार को ठेके में नहीं डाल दिया, बल्कि हायर एंड फायर एक नई चीज़ यूरोप से आई है यानी सबसे ज्यादा हायर एंड फायर का शिकार यदि कोई है, तो वह पत्रकार है. मैं बड़े-बड़े पत्रकार के साथ रहा हूं, मैं बड़े-बड़े लोगों के साथ रहा हूं. हमने पहले भी मीडिया देखा है, आज का मीडिया भी देखा है. उसकी सबसे बड़ी आत्मा कौन है? सच्ची खबर आए कहां से? राम गोपाल जी, जब पिछला चुनाव विधानसभा का हो रहा था, तो मैंने खुद जाकर चुनाव आयोग को कहा था कि यह पेड न्यूज है. आज जो पत्रकार है, वे बहुत बेचैन और परेशान हैं, पत्रकार के पास ईमान भी है, लेकिन वह लिख नहीं सकता. मालिक के सामने उसे कह दिया जाता है कि इस लाइन पर लिखो, इस तरह से लिखो. उसका अपना परिवार है, वह कहां जाए? वह सच्चाई के लिए कुछ लिखना चाहता है. हमारे लोकतंत्र में बाजार आया, खूब आए लेकिन यह जो मीडिया है, इसको हमने किनके हाथों में सौंप दिया है? यह किन-किन लोगों के पास चला गया है? एक पूंजीपति है इस देश का, उसने 40 से 60 फीसदी मीडिया खरीद लिया है. इस देश का क्या होगा? अब हिंदुस्तान टाइम्स भी बिकने वाला है. कल बिक गया? कैसे चलेगा यह देश? यह चुनाव सुधार, यह बहस, ये सारी चीजें कहां आएंगी? कोई यहां पर बोलने के लिए तैयार नहीं है? निश्चित तौर पर मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जो मीडिया है, लोकशाही में, लोकतंत्र में, यह आपके हाथ में है, इस पार्लियामेंट के हाथ में है. कोई रास्ता निकलेगा या नहीं निकलेगा? ये जो पत्रकार है, ये चौथा खंभा है, उसके मालिक नहीं हैं और हिंदुस्तान में जब से बाजार आया है, तब से तो लोगों की पूंजी इतने बड़े पैमाने पर बढ़ी है. मै आज बोल रहा हूं, तो यह मीडिया मेरे खिलाफ तंज कसेगा, वह बुरा लिखेगा. लेकिन मेरे जैसा आदमी, जब चार-साढ़े चार साल जेल में बंद रहकर आजाद भारत में आया, तो अगर अब मैं रुक जाऊंगा तो मैं समझता हूं कि मैं हिंदुस्तान की जनता के साथ विश्वासघात कर के जाऊंगा. सर, आज सबसे ज्यादा ठेके पर लोग रखे जा रहे हैं और पूरे हिंदुस्तान में लोगों के लिए कोई नौकरी या रोजगार नहीं पैदा हो रहा है. सब जगह पूंजीपति और सारे प्राइवेट सेक्टर के लोग हैं. अखबार में सबसे ज्यादा लोगों को ठेके पर रखा जाता है. इस तरह मजीठिया कमीशन कौन लागू करेगा? इनके कर्मचारियों को कोई यूनियन नहीं बनाने देता है. आप किसी पत्रकार से सच्ची बात कहो, तो वह दहशत में आ जाएगा क्योेंकि उसका मालिक दूसरे दिन उसे निकाल कर बाहर करेगा. तो यह मीडिया कैसे सुधरेगा? अगर वह नहीं सुधरेगा तो चुनाव सुधार की यह बहस यहीं मर जाएगी. ये भी उसे छांट-छांटकर देंगे. उसका मालिक बोलेगा कि किस का देना है, किस का नहीं देना है. हम रोज यहां बोलते हैं और ये रोज बोलता है कि हमारे जैसे आदमी को मत छापो क्योंकि यह सच बोल रहा है और सच ही इस बैलेट पेपर का ईमान है. इस ईमान को चारों तरफ से पूंजी ने घेर लिया है. बड़े पैसे वालों ने घेर लिया है और अब सब से बड़ी मुश्किल यह है कि बहस करें तो कैसे करें? सर यह देश बहुत बड़ा है, एक कांटिनेंट है, लेकिन हमारी बहस और हमारी बात कहीं जाने को तैयार नहीं है, कहीं पहुंचने को तैयार नहीं है. ये अखबार के पूंजीपति मालिक कई धंधे कर रहे हैं. इन्होंने बड़ी-बड़ी जमीनें ले ली हैं और कई तरह के धंधे कर रहे हैं. वे यहां भी घुस आते हैं. इनको सब लोग टिकट दे देते हैं. मैं आपसे कह रहा हूं इस तरह यह लोकतंत्र कभी नहीं बचेगा. सर, इसके लिए एक कानून बनना चाहिए कि अगर कोई मीडिया हाउस चलाता है या अखबार चलाता है , तो वह कोई दूसरा धंधा नहीं कर सकता है. सर, इस देश में क्रास होल्डिंग बंद होनी चाहिए. यह कानून पास करो, फिर देखेंगे कि कैसे हिंदुस्तान नहीं सुधरता? हमारे जैसे कई लोग हिंदुस्तान में हैं जिन्होंने सच को बहुत बगावत के साथ बोला है. पहले भी हिंदुस्तान को बनाने में ऐसे लोगों ने काम किया है. मैं नहीं मानता कि आज ऐसे लोग नहीं है. ऐसे बहुत लोग हैं जो सच को जमीन पर उतारना चाहते हैं लेकिन कैसे उतारें? यानी इस चौथे खंबे पर आपातकाल लग गया है. हिंदुस्तान में अघोषित आपातकाल लगा हुआ है. यह जो पत्रकार ऊपर बैठा हुआ है, वह कुछ नहीं लिख सकता है क्योंकि उसके हाथ में कुछ नहीं है. यही जब सूबे में जाता है तो मीडिया वहां की सरकार की मुट्ठी में चला जाता है. जो पत्रकार सच लिखते हैं उसे निकालकर बाहर कर दिया जाता है. फिर यह देश कैसे बनेगा? आप कैसे सुधार कर लोगे? मैं आप से ही नहीं सब से पूछना चाहता हूं कि सुधार कैसे होगा? सर, इस देश में मीडिया के बारे में बहस क्यों नहीं होती? इस देश में ऐसा कानून क्यों नहीं बनता कि कोई भी व्यापार या किसी तरह की क्रास होल्डिंग नहीं कर सकता? तब हिंदुस्तान बनेगा. सर, हिंदुस्तान जिस दिन आजाद हुआ था, तो इसी तरह था. गणेश शंकर विद्यार्थी थे, जिन्होंने हिंदुस्तान के लिए जान दे दी थी. मैं इस पार्लियामेंट में रविशंकर प्रसाद जी आप से निवेदन करना चाहता हूं कि आज आप वहां हैं, हम यहां हैं, कल चले जाएंगे, लेकिन आने वाले हिंदुस्तान के गरीब, मजदूर, किसान से लोकतंत्र दूर हट गया है. आप कितने ही तरीके से स्टैंड-अप करिए, आप कितनी भी तरह की योजनाएं, लेकिन वह दूर हटता जाएगा. हम सभी ने बहुत ताकत लगाई है, लेकिन वह गरीब तक नहीं पहुंच पाता है. सर, जब इनके यहां चुनाव हो रहा था, तो मैं तीन अखबारों के पास गया था. उन अखबार में मेरा कहा नहीं छप रहा था. मै महीने भर से कंप्लेंट कर रहा था, लेकिन उनमें मेरे बारे में एक लाइन नहीं आई. वे आज भी नहीं छापेंगे क्योंकि वहां मालिक बैठा हुआ है. वे सारे पत्रकार मेरी बात को हृदय से जब्त करेंगे, लेकिन उसका मालिक उसकी तबाही करेगा.  

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Dakhal News 25 March 2017


डॉ. अनिल सिरवैया

मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान को आज पत्रकारों ,लेखकों द्वारा मध्यप्रदेश के चहुँमुखी विकास पर आधारित पुस्तकें भेंट की गयी। श्री चौहान ने सराहना करते हुए लेखकों को शुभकामनाएँ दी। मध्यप्रदेश में पिछले एक दशक के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति और विकास कार्य एवं इनसे आम जन-मानस के जीवन में आये बदलाव पर आधारित इन पुस्तकों में पत्रकार  सरमन नगेले द्वारा लिखित पुस्तक 'डिजिटल मध्यप्रदेश', डॉ. अनिल सिरवैया द्वारा 'समुदाय और सरकार' पुस्तक एवं 'नॉलेज केलेण्डर' भेंट किया गया। मुख्यमंत्री को सुश्री रूबी सरकार ने 'नारी शक्ति का उदय', सुश्री पूजा सिंह ने 'मिसाल बनी महिलाएँ' एवं  राकेश मालवीय ने 'खेत-खलिहान की पुरवैया' पुस्तक भेंट की। इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री चौहान को श्री नगेले ने बताया कि डिजिटल मध्यप्रदेश का विमोचन विगत दिवस जापान में किया गया। पुस्तक में मध्यप्रदेश में सूचना तकनीक के विस्तार और इसके प्रयोग से आम-जनता के जीवन में आये बदलाव शामिल हैं। मुख्यमंत्री ने इन पुस्तकों का सेट प्रधानमंत्री कार्यालय को भी भेजने के लिये अधिकारियों को निर्देशित किया। इस मौके पर प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री श्री एस.के. मिश्रा मौजूद थे।  

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Dakhal News 24 March 2017


डॉ. अनिल सिरवैया

मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान को आज पत्रकारों ,लेखकों द्वारा मध्यप्रदेश के चहुँमुखी विकास पर आधारित पुस्तकें भेंट की गयी। श्री चौहान ने सराहना करते हुए लेखकों को शुभकामनाएँ दी। मध्यप्रदेश में पिछले एक दशक के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति और विकास कार्य एवं इनसे आम जन-मानस के जीवन में आये बदलाव पर आधारित इन पुस्तकों में पत्रकार  सरमन नगेले द्वारा लिखित पुस्तक 'डिजिटल मध्यप्रदेश', डॉ. अनिल सिरवैया द्वारा 'समुदाय और सरकार' पुस्तक एवं 'नॉलेज केलेण्डर' भेंट किया गया। मुख्यमंत्री को सुश्री रूबी सरकार ने 'नारी शक्ति का उदय', सुश्री पूजा सिंह ने 'मिसाल बनी महिलाएँ' एवं  राकेश मालवीय ने 'खेत-खलिहान की पुरवैया' पुस्तक भेंट की। इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री चौहान को श्री नगेले ने बताया कि डिजिटल मध्यप्रदेश का विमोचन विगत दिवस जापान में किया गया। पुस्तक में मध्यप्रदेश में सूचना तकनीक के विस्तार और इसके प्रयोग से आम-जनता के जीवन में आये बदलाव शामिल हैं। मुख्यमंत्री ने इन पुस्तकों का सेट प्रधानमंत्री कार्यालय को भी भेजने के लिये अधिकारियों को निर्देशित किया। इस मौके पर प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री श्री एस.के. मिश्रा मौजूद थे।  

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Dakhal News 24 March 2017


डाउन टू अर्थ पत्रिका

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि नर्मदा सेवा यात्रा नदी को स्वच्छ बनाने का उदाहरण प्रस्तुत करने का प्रयास है। श्री चौहान आज 'डाउन टू अर्थ' पत्रिका के हिन्दी संस्करण के विमोचन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि दुनिया को बचाने के लिये प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ को बंद करना होगा। नर्मदा सेवा यात्रा प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर दुनिया को बचाने का विनम्र प्रयास है। उन्होंने कहा कि अलग-अलग दृष्टिकोण से नदियों के संरक्षण के प्रति सक्रिय व्यक्तियों, संस्थाओं और संगठनों को एकत्रित करने का मंच देने की कोशिश नर्मदा सेवा यात्रा है। प्रयास है कि पर्यावरणविद् वैज्ञानिक, समाज, धर्म, राजनीतिक कार्यकर्ता, साहित्कार, कलाकार, आस्था, विश्वास, श्रद्धा आदि हर दृष्टिकोण के लोग नदी संरक्षण के लिये यात्रा के माध्यम से आगे आये। श्री चौहान ने नर्मदा नदी संरक्षण के लिये फलदार पेड़ लगवाने, विसर्जन कुंड, मुक्तिधाम, ट्रीटमेंट प्लांट, शौचालय बनवाने के कायों की जानकारी देते हुए बताया कि यात्रा से सामाजिक सोच में परिवर्तन आया है। पूजन पद्धति में बदलाव की प्रभावी कोशिशें हो रही हैं। उन्होंने बताया कि आगामी 2 जुलाई को नर्मदा के उद्गम से प्रदेश की सीमा तक नर्मदा के दोनों तट पर एक दिन में फलदार पौधों का रोपण करवाया जायेगा। इस दिन पचास लाख से अधिक व्यक्ति नर्मदा तट पर एकत्रित होंगे। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के साथ ही सामाजिक मुद्दों, बेटी बचाओ, साक्षरता और नशामुक्ति के लिये भी जन चेतना निर्माण के प्रयास किये गये हैं। प्रदेश में 1 अप्रैल से नर्मदा तट के दोनों ओर शराब की दुकानें बंद हो जायेगी। क्षिप्रा, ताप्ती और बेतवा नदी के संरक्षण का कार्य भी करवाया जायेगा। विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र की निदेशक सुश्री सुनीता नारायण ने कहा कि समाज को नदी से जल की जितनी आवश्यकता है, उतनी ही नदी को भी है। प्रदेश में नर्मदा नदी संरक्षण की समय रहते पहल शुरू हुई है। नर्मदा की इस चिंता से वह निरंतर बहती रहेगी, अविरल रहेगी। उन्होंने कहा कि सामान्यत:पर्यावरण बचाने की कोशिशें तब शुरू की जाती हैं, जब तबाही हो चुकी होती है। नर्मदा नदी के साथ ऐसा नहीं हुआ है। इस अवसर पर उन्होंने 'डाउन टू अर्थ' पत्रिका के हिन्दी संस्करण और प्रकाशन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।  इस अवसर पर विधायक और प्रमुख सचिव जनसंपर्क श्री एस.के.मिश्रा भी मौजूद थे।  

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Dakhal News 24 March 2017


योगी को लेकर मीडिया

उमेश त्रिवेदी टीआरपी के लिहाज से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मीडिया के लिए इसलिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बने हुए हैं कि उनके बारे में लिखा सबसे ज्यादा पढ़ा जा रहा है। उनके 'विजुअल्स' ज्यादा बिकाऊ सिध्द हो रहे हैं। सोशल मीडिया के घाट उनके समर्थकों के हिलोरों से लहलहा रहे हैं। योगी आदित्यनाथ के बारे में राजनीतिक कौतुक और कौतूहल जल्दी ठंडा होना वाला नही हैं। मीडिया उनके पीछे दौड़ लगाता रहेगा।  सोशल मीडिया पर योगी को लेकर आमजनों की सक्रियता बयां करती है कि लोगों की यह उत्सुकता और उन्माद कितना संवेदनशील है? मुख्यमंत्री के हर शॉट की समीक्षा के लिए उनके राजनीतिक वजूद की हितरक्षक रहीं धार्मिक और सांस्कृतिक कसौटियां मौजूद हैं। भाजपा और उनके समर्थक इस बात को समझ रहे हैं कि आदित्यनाथ अपने ही वैचारिक नाग-पाश में बुरी तरह बंधे हैं। जकड़न इतनी गहरी है कि राजनीतिक पिच पर योगी के लिए 'बैक-फुट' पर खेलना भी कठिन होगा और 'फारवर्ड-हिट' करना भी मुश्किल होगा। अभी तक योगी विपक्ष की राजनीति कर रहे थे, जहां प्रतिक्रियाओं के बाउन्सर को 'हैंडल' करके चौके-छक्के जड़ना आसान था। अब वो मुख्यमंत्री हैं और उन्हें सरकारी-प्रक्रियाओं की सधी हुई 'गुड-लेंग्थ' गेंदों पर रन बटोरना हैं। इसीलिए सोशल मीडिया पर उनके समर्थक इस धारणा को घनीभूत कर रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के रूप में काम करने का मौका दिया जाना चाहिए। मुद्दा यह है कि मीडिया की इस स्क्रीनिंग के पैमाने क्या और कैसे हों? लेकिन  लोगों के कौतूहल के मद्देनजर लगता नहीं है कि योगी आदित्यनाथ मीडिया के फ्लश-लाइट से बच पाएंगे?       मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 'एक्शन-मोड' को लोगों ने शूट करना प्रारंभ कर दिया है। मुख्यमंत्री के रूप में तीन सूर्योदय देखने वाले महंत आदित्यनाथ के संबंध में मीडिया की हेडलाइन्स भी अजब-गजब चमत्कार पैदा कर रही हैं। एक जानी-मानी वेबसाइट तीन दिनों में ही इस निष्कर्ष पर पहुंच गई है कि योगी के सत्ता संभालते ही ताजनगरी में क्राइम का ग्राफ बढ़ गया है। योगी-राज में किसान की हत्या से ग्रामीणों में आक्रोश बढ़ रहा है। कार्य-भार संभालने के बाद जहां मीडिया योगी के पहले दिल्ली–प्रवास की राजनीतिक-वजनदारी को टटोलता रहा है, वहीं लखनऊ में उसने यह हिसाब भी लगा लिया कि गृह-प्रवेश के पहले शुध्दि के उपक्रम में गाय के कितने दूध से किस प्रकार मुख्यमंत्री निवास की धुलाई हुई? पांच पंडित की पूजा-अर्चना कितनी देर चली और आवास के गेट को किस प्रकार काले से सफेद किया गया?  मीडिया ने यह हिसाब भी लगा लिया है कि तीन दिनों में योगी-सरकार पांच महत्वपूर्ण फैसले ले चुकी है। योगी-सरकार ने सभी जिलों मे एंटी-रोमियो दल गठित कर दिए हैं। गाजियाबाद में 15 अवैध बूचड़खानों को सील कर दिया गया है। नव-रात्रि और राम-नवमी के मद्देनजर सभी शक्तिपीठों और अयोध्या की सुरक्षा बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। राम म्यूजियम परियोजना को आगे बढ़ाने का सिलसिला शुरू हो गया है।           योगी आदित्यनाथ अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत से ही चर्चित चेहरा रहे हैं। लव-जेहाद से लेकर घर-वापसी जैसे मुद्दों  पर उन्होंने जमकर राजनीति की है। आदित्यनाथ के बारे में लोग बहुत कुछ जानना चाहते हैं। उनके पुराने भाषणों को खंगाला जा रहा है। विवादास्पद वीडियो वायरल हो रहे हैं। तीखे बयानों के लिए योगी आदित्यनाथ को जेल की सीखचों के पीछे भेजने वाले अनुपम खेर जैसे बड़बोले एक्टर बगलें झांक रहे हैं।  मुख्यमंत्री बनने के बाद सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने वाले व्यक्तियों में योगी आदित्यनाथ अव्वल थे। शपथ ग्रहण के पहले चौबीस घंटों में उनके सोशल मीडिया पेज को लाइक करने वालों की संख्या में 50 हजार से ज्यादा इजाफा हुआ था। यह सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। महंत आदित्यनाथ के रूप में उनके फेसबुक पर अधिकृत पेज को 3,74,779 लोग लाइक करते थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद यह संख्या 4,08,940 को पार कर निरन्तर बढ़ रही है। माइक्रो ब्लागिंग वेबसाइट ट्वीटर पर योगी के फॉलोअर 1 लाख 58 हजार से बढ़कर 2 लाख 10 हजार से ज्यादा हो चुके हैं। [ लेखक उमेश त्रिवेदी सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है।]  

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Dakhal News 23 March 2017


पेड पर न्यूज पर निगरानी

 मध्यप्रदेश के अटेर एवं बाँधवगढ़ विधानसभा उप चुनाव के दौरान संदेहास्पद पेड न्यूज पर निगरानी के लिए राज्य स्तरीय एमसीएमसी (मीडिया सर्टिफिकेशन एवं मॉनीटरिंग कमेटी) की आज बैठक हुई। बैठक की अध्यक्षता मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी श्रीमती सलीना सिंह ने की। श्रीमती सलीना सिंह ने समिति के सदस्यों को बताया कि राज्य स्तरीय कमेटी पेड न्यूज एवं मीडिया सर्टिफिकेशन पर जिला स्तरीय कमेटी के निर्णय के विरुद्ध की गई अपील पर भी सुनवाई करेगी। कमेटी जिला एवं राज्य स्तरीय विज्ञापन प्रमाणन समिति के निर्णय के विरुद्ध अपील पर सुनवाई निर्णय करेगी। जिला एमसीएमसी द्वारा संदेहास्पद पेड न्यूज पर पारित निर्णयों के विरुद्ध सुनवाई कर और निर्णय लिया जायेगा। साथ ही पेड न्यूज के प्रकरणों को स्व-विवेक से संज्ञान में लेकर रिटर्निंग ऑफिसर को कार्यवाही के लिए भेजा जायेगा। श्रीमती सलीना सिंह ने सदस्यों से अपेक्षा की कि वे अटेर व बाँधवगढ़ उप चुनाव को देखते हुए समाचार-पत्रों, दूरदर्शन इत्यादि के विज्ञापन समाचार का अवलोकन और विश्लेषण करें। आयोग के निर्देशों का उल्लंघन होने पर उसे कमेटी के संज्ञान में लाया जाये। बैठक में संयुक्त मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी श्री एस.एस. बसंल, समिति के सदस्य यूनीवार्ता के ब्यूरो प्रमुख श्री प्रशांत जैन, पीटीआई के ब्यूरो प्रमुख श्री मनीष श्रीवास्तव, दूरदर्शन केन्द्र के श्री शशिन राय और आकाशवाणी के श्री शारिक नूर उपस्थित थे।  

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Dakhal News 22 March 2017


शारद जोशी

  मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ बाजना  रावटी जनपद[रतलाम] क्षेत्र के तथा सैलाना ब्लाक के शिवगढ़ के सदस्यों का कार्ड वितरण कार्यक्रम यंहा जैन स्कूल में संपन्न हुआ।             .         मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष शरद जोशी ने इस अवसर पर पत्रकारों से श्रमजीवी पत्रकार आंदोलन को मजबूत बनाने की आवश्यक्ता पर जोर देते हूए कंहा कि आज कई त्योहारी पत्रकार संगठन बन गये है उसमें असल पत्रकार (कलमकार) कम फर्जी पत्रकार अधिक होते है जिनका पत्रकारिता मिशन से कोई वास्ता नही होता।एसे पत्रकार संगठनों के कारण पत्रकारों की साख प्रभावित हो रही है और सम्मान में कमी आ रही है।सरकार को चाहिये कि वह एसे पत्रकार संगठनों पर लगाम लगायें  जो पत्रकारिता की गरिमा को ठेस पहूंचा रहे है।पत्रकारों को भी चाहिये कि वह एसे पत्रकार संगठनों से सावधान रहें जो कलमकार न होकर केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने केलिये पत्रकार का नकली चोला पहने हुए है।।         .                    श्री जोशी ने श्रमजीवी पत्रकार संघ की गतिविधियों तथा पत्रकारों के हितो के लिये किये गये प्रयासों की जानकारी दी तथा कहा कि आने वाले समय में पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने ,पत्रकार आयोग बनाने ,टोल नाको को समाप्त करने सहित पत्रकारों की शेष रही मांगों के संबंध में शासन का ध्यान आकर्षित किया जाएगा। साथ ही जिले की विभिन्न समस्याओं का एक ज्ञापन जिला प्रशासन को दिया जाएगा सभी ब्लाक ईकाइयां इसकी तैयारी करें।जुलाई अगस्त में जिले का वृहद सम्मेलन भी आयोजित किया जाएगा।                                      संभागीय उपाध्यक्ष विनोद मांडोत,जिला महा सचिव दिनेश दवे,वरिष्ठ साथी हिम्मत मेहता,रावटी,दिलीप देवड़ा बाजना,भेरूलाल टांक, मनोज भंडारी सैलाना,ने भी संबोधित कर संगठन को मजबुत बनाने तथा क्षैत्रिय समस्याओं के लियेे संघर्ष करने का आव्हान किया।सभी ने जिले में ब्लाक ईकाइयों के गठन पर प्रसन्नता व्यक्त की।।               इस अवसर पर विमल मांडोत,सैलाना संजय शर्मा करिया,संजय टांक,पवन पितलिया,केलाश टांक जे.पी.कटारिया,शुभम पालरेचा,जगदीश टांक, कृष्णचंद पंवार, बाजना, आशिष टांक,मोहन टांक,डी.बाघेला शिवगढ़ तथा रावटी केपुरषोतम पांचाल,प्रकाश जैन,अवधेश प्रताप सिह,दीपक राठोड़,यशवन्त सिंहचौहान,नंद किशोर टांक सोयलकटारिया,अशोक टांक सहित सदस्यगण उपस्थित थे।आभार सुशील कटारिया ने व्यक्त किया।  

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Dakhal News 21 March 2017


 जीमेल

गूगल की ईमेल सर्विस, जीमेल हर हफ्ते कोई न कोई नया फीचर रिलीज करती है। इस बार भी जीमेल एक और नया फीचर लेकर आया है, जिसमें आप वीडियो को लाइव स्‍ट्रीमिंग तकनीक से देख सकेंगे। अब जीमेल में 50 मेगाबाइट तक के वीडियो अचैटमेंट फाइल के लिए सपोर्ट मिलना शुरूहो गया था। जीमेल वेब पर वीडियो सीधे स्ट्रीम हो जाएंगे और आपको उन्‍हें देखने के लिए पहले डाउनलोड करने की जरूरत नहीं होगी। अभी जीमेल में किसी वीडियो अटैचमेंट को देखने के लिए पहले डाउनलोड करना होता है। डाउनलोड करने पर काफी समय तथा डेटा खर्च हो जाता है। इसके बाद आपको किसी वीडियो प्‍लेयर की मदद से वीडियो का देखना होता है। लेकिन ऑनलाइन स्‍ट्रीमिंग में इन सब झंझटों से मुक्ति मिल जाएगी। इसमें आपको ईमेल में वीडियो अटैचमेंट के साथ क्लिप का एक थंबनेल दिखाई देगा। डबल टैप करने पर यह वीडियो प्लेयर में स्ट्रीम होने लगेगा। यूजर प्लेबैक स्पीड को अपनी सुविधानुसार एडजस्ट भी कर सकते हैं। गौरतलब है कि हाल ही में जीमेल एंड्रॉयड ऐप पर सेंड एंड रिसीव मनी फीचर को भी शुरू किया गया है। हालांकि यह फीचर भारत में काम नहीं करेगा। इससे यूजर जीमेल ऐप से किसी यूजर को पैसे ट्रांसफर कर सकते हैं। पैसे भेजने के लिए आप अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड के जरिए गूगल वॉलेट को रीचार्ज कर सकते हैं और फिर दुनियाभर में किसी भी जीमेल एंड्रॉयड और वेब यूजर को अटैचमेंट के रूप में पैसे भेज सकते हैं।    

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Dakhal News 18 March 2017


इंडिया टुडे कान्क्लेव

मुंबई में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि वे तथा किसी अन्य राज्य के मुख्यमंत्री केंद्र में मंत्री नहीं बनने जा रहे हैं। इस तरह की अफवाहें लोग जबरन चला रहे हैं। हम राज्य में ही रहेंगे और केंद्र में नहीं जाएंगे। मेरे अलावा महाराष्ट्र के सीएम देवेन्द्र फड़नवीस, छत्तीसगढ़ के रमन सिंह और राजस्थान की वसुंधरा राजे सिंधिया राज्य में ही काम करेंगे। सीएम चौहान ने आज मुंबई में इंडिया टुडे कान्क्लेव में ये बातें कहीं। इस कान्क्लेव में तीन राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हुए जिसमें मध्यप्रदेश के सीएम चौहान के अलावा महाराष्ट्र के देवेन्द्र फड़नवीस और जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती भी मौजूद रहीं। उन्होंने केंद्र में मंत्रिमंडल फेरबदल को लेकर एमपी, महाराष्ट्र के सीएम को दिल्ली में मंत्रालय देने संबंधी सवाल के जवाब में कहा कि हर राज्य में अफवाह चल रही है। केंद्र में कौन सा मंत्रालय संभालेंगे, इस सवाल के जवाब को देने से इनकार करते हुए मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि यह राजनीतिक सवाल है। इस दौरान उन्होंने पर्यावरण व नदी संरक्षण का जिक्र करते हुए कहा कि नर्मदा नदी के संरक्षण का काम एमपी में चल रहा है। सीएम चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री और उनका मंत्रिमंडल तथा राज्यों के मुख्यमंत्री टीम इंडिया की तरह काम कर रहे हैं। नीति आयोग को लेकर किए गए सवाल के जवाब में सीएम चौहान ने कहा कि इस आयोग के बनने के बाद विकास की प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। नीति आयोग किसी के साथ भेदभाव नहीं करता। इस दौरान जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र के सीएम ने इन्हीं मसलों पर अपनी राय व्यक्त की। पब्लिक के बीच रहने वाला मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि वे पब्लिक में रहने वाले मुख्यमंत्री हैं। इसलिए पब्लिक की समस्याओं को समझता हूं और उसका निदान भी करता हूं। नोटबंदी से मध्यप्रदेश में किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई। किसी को गुस्सा नहीं आया। कुछ नेताओं ने नोटबंदी के खिलाफ लोगों को भड़काने की कोशिश की तो भीड़ ने पीएम मोदी जिंदाबाद के नारे लगाकर उन्हें चुप करा दिया।  मुख्यमंत्री चौहान ने नोटबंदी के मुद्दे पर कहा कि कांग्रेस की नादानी थी कि नोटबंदी को लेकर बैठ गई और खुद विरोध झेला। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस ने पब्लिक की नस नहीं पकड़ी तो खत्म हो जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी ने पहले ही कहा था कि लोगों को थोड़ा परेशानी होगी और थोड़ी परेशानी लोगों ने झेली लेकिन मध्यप्रदेश में किसी ने उनसे शिकायत नहीं की।  

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Dakhal News 17 March 2017


इण्डिया टीवी पीछे खिसका ,एबीपी चौथे नम्बर पर

  मध्यप्रदेश में बिना कुछ किये भी ज़ी न्यूज़ एमपी /सीजी की बादशाहत कायम है। दसवें सप्ताह की टीआरपी में ज़ी न्यूज़ 51.5 के साथ टॉप पर बना हुआ है। वहीँ नेशनल चैनल में आज तक को पछाड़ने के चक्कर में इण्डिया टीवी पीछे खिसक गया है। एबीपी अब चार नंबर का चैनल हो गया है। एबीपी की सारी कोशिशें फ्लॉप साबित हो रही हैं। यूपी इलेक्शन के बाद अब नंबर गेम में टॉप पोजिशन पर बने रहने के लिए सभी नेशनल चैनल्स को नए सिरे से कवायत करना पड़ रही हैं।  --------------------------------------------------------- Mp/cg के टॉप फाइव रीजनल न्यूज़ चैनल ज़ी न्यूज........  51.5 आईबीसी 24 .......23.6  ईटीवी........... 18.9 बंसल......          2.6 सहारा....            2.2 -------------------------------------------------------- नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 10 Aaj Tak 16.9 up 0.8  India TV 13.9 dn 0.2  Zee News 13.2 up 0.7  ABP News 12.4 same   India News 9.9 dn 0.5  News18 India 9.0 up 0.2  News Nation 8.8 dn 0.2  News 24 8.6 dn 0.5  Tez 2.8 dn 0.8  NDTV India 2.3 up 0.1  DD News 2.1 up 0.4    TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.9 up 1.6  Zee News 14.2 up 0.7  India TV 14.0 dn 0.2  ABP News 12.3 up 0.4  News18 India 9.7 same   News Nation 8.9 dn 0.5  India News 8.3 dn 0.5  News 24 7.7 dn 0.6  NDTV India 3.0 same   Tez 2.8 dn 1.0  DD News 2.1 up 0.1

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Dakhal News 16 March 2017


अभिव्यक्ति नगर

  मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि रहने के लिये स्थान और प्रतिभा का सम्मान प्रदेश की धरती पर हर व्यक्ति का अधिकार होगा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार आवास के लिये भूमि के अधिकार का कानून बनाने जा रही है। प्रतिभावान छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा के प्रोत्साहन के लिये मुख्यमंत्री मेधावी छात्र प्रोत्साहन योजना बनाई गयी है। योजना के तहत प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में प्रवेश पाने वाले प्रतिभावान विद्यार्थियों की फीस राज्य सरकार भरेगी। श्री चौहान भोपाल में पत्रकारों के अभिव्यक्ति नगर लोकार्पण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह, प्रमुख सचिव जनसंपर्क श्री एस.के.मिश्रा, आयुक्त जनसंपर्क श्री अनुपम राजन भी उपस्थित थे। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि आज का जीवन संघर्ष भरा है। हर व्यक्ति की यह कामना होती है कि वह अपनी संतान के लिये एक मकान बनाकर जाये। उन्होंने कहा कि समाज में पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका है। वे अपनी कर्तव्य परायणता से स्थितियों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। यह आवासीय कॉलोनी उनके प्रति समाज के कर्तव्य की पूर्ति का प्रतीक है। कॉलोनी का लेआउट भारतीय संस्कृति का सुव्यवस्थित स्वरूप है। आशा व्यक्त कि आवासों का निर्माण भी ऐसा ही होगा। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल की परीक्षा में 85 प्रतिशत से अधिक अंक पाने वाले विद्यार्थियों, जिनका चयन विधि, चिकित्सा, इंजीनियरिंग आदि पाठ्यक्रमों के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में होगा, उनकी फीस राज्य सरकार भरेगी। इससे कम अंक वाले विद्यार्थियों की भी फीस राज्य सरकार भरवायेगी। किन्तु नौकरी मिलने पर उन्हें फीस की राशि बिना ब्याज के लौटाना होगी। कार्यक्रम के दौरान कालोनी की सदस्यों की ओर से मुख्यमंत्री को अभिनंदन पत्र भेंट किया गया। वरिष्ठ पत्रकार  दिनेश गुप्ता ने कॉलोनी विकास से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।  

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Dakhal News 15 March 2017


 विजय मत  बोनस

मीडिया संस्थानों में आमतौर पर कर्मचारियों को  दीवाली पर  बोनस देने की परम्परा है। मगर  भोपाल से प्रकाशित अखबार विजय मत ने अपने कर्मचारियों को होली के त्यौहार में वेतन के साथ बोनस देकर पत्रकारिता में एक नई परिपाटी शुरू की है। बीते रविवार को कर्मचारियों को वेतन के साथ जब बोनस का लिफाफा मिला तो उनके चेहरे खिल उठे। विजय मत पत्रकार विजय शुक्ला का अखबार है और पिछले दिनों उन्होंने इसकी विधिवत शुरुवात की।   

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Dakhal News 14 March 2017


trp week 9

नंबर गेम में लुढ़कने के बाद भी आजतक नौवे सप्ताह में नंबर वन बना हुआ है। वहीँ मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ में ज़ी न्यूज़ mp/cg अब भी सब पर भारी है। बाकि चेनलों की trp उससे आधी रही।    Mp/cg के टॉप फाइव न्यूज़ चैनल trp week 9 ज़ी न्यूज.   ..... 49.3 आईबीसी.....    20.5 ईटीवी.........     20.4 सहारा.........       4.4 बंसल....              3.2   नेशनल न्यूज चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 9 Aaj Tak 16.1 dn 0.9  India TV 14.1 up 0.2  Zee News 12.5 up 0.1  ABP News 12.4 dn 0.1  India News 10.4 up 0.6  News 24 9.1 up 0.2  News Nation 9.1 dn 0.6  News18 India 8.8 up 0.5  Tez 3.6 up 0.5  NDTV India 2.2 dn 0.1  DD News 1.7 dn 0.4   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 15.3 dn 0.9  India TV 14.2 dn 0.1  Zee News 13.6 dn 0.2  ABP News 11.9 dn 0.6  News18 India 9.7 up 0.9  News Nation 9.5 dn 0.4  India News 8.8 up 0.7  News 24 8.3 up 0.5  Tez 3.8 up 0.6  NDTV India 2.9 dn 0.2  DD News 2 dn 0.2  

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Dakhal News 10 March 2017


ETV की पहल विधवा महिला कही जाएंगी कल्याणी

मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश में विधवा महिलाओं को पेंशन स्वीकृति में अब बीपीएल होने की शर्त नहीं रहेगी। उनको कल्याणी के नाम से संबोधित किया जाएगा। राज्य की कल्याणकारी योजनाओं में प्राथमिकता देने के साथ ही उनकी ऊर्जा और शक्ति का प्रदेश के कल्याण और दूसरों की बेहतरी में भी उपयोग किया जाएगा। श्री चौहान  भोपाल में  ETV  के नारायणी नम: कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर जीवन की विपरीत परिस्थितियों के साथ संघर्ष कर मुकाम बनाने वाली हर उम्र की 10 महिलाओं और तीन महिला अधिकारियों को सम्मानित किया। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि महिलाओं ने हर चुनौती का सफलतापूर्वक सामना कर यह दिखा दिया है कि अब महिलाएँ अबला नहीं सबला है। उनमें बुद्धिमत्ता, संकल्प और प्रतिबद्धता की कोई कमी नहीं है। अवसर मिले तो वे दूसरों का भी जीवन रोशन कर सकती हैं। उन्होंने बताया कि महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया है। बेटियाँ परिवार पर बोझ नहीं रहे। उनका सशक्तीकरण करने के लिये अनेक योजनाएँ बनाई गई हैं। श्री चौहान ने कहा कि राज्य सरकार दुराचारियों को मृत्युदंड देने संबंधी कानून का प्रारूप बनाकर राष्ट्रपति को भेजेगी। मुख्यमंत्री द्वारा धार जिले की गुलाबो बाई, मंडला की तबस्सुम, देवास की मानकुंवर, भोपाल की फातिमा और पूनम श्रोती, बड़वानी की दया, कटनी की डॉ. स्नेह चौधरी, झाबुआ की तिजोबाई, इन्दौर की दिशा तिवारी और जबलपुर की शैली दुबे, आई.ए.एस. श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव, पुलिस अधिकारी इरमिन शाह और श्रद्धा तिवारी को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री कन्या विवाह, लाड़ली लक्ष्मी और तेजस्विनी योजनाओं के प्रथम हितग्राहियों और बालिकाओं के समूह ने मुख्यमंत्री से भेंट की। बालिकाओं ने महिला के साथ दुराचार करने वाले विकृत मानसिकता के अपराधियों को मृत्युदंड देने का ज्ञापन सौंपा। इस अवसर पर वित्त मंत्री श्री जयंत मलैया, स्वास्थ्य मंत्री श्री रूस्तम सिंह, महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस, ऊर्जा मंत्री श्री पारस जैन, उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ला, लोक निर्माण मंत्री श्री रामपाल सिंह, नगरीय विकास एवं आवास मंत्री श्रीमती माया सिंह, राज्य मंत्री सामान्य प्रशासन श्री लाल सिंह आर्य, राज्य मंत्री पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री श्रीमती ललिता यादव और राज्य मंत्री सहकारिता श्री विश्वास सारंग उपस्थित थे।  

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Dakhal News 9 March 2017


माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय

  माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में दो नये विभाग भाषा विज्ञान अध्ययन विभाग और सांस्कृतिक अध्ययन विभाग स्थापित किये जायेंगे। मुख्यमंत्री शिवराज  सिंह चौहान की अध्यक्षता में सम्पन्न विश्वविद्यालय की प्रबंध समिति की बैठक में इस संबंध में स्वीकृति दी गयी। बैठक में विश्वविद्यालय के रीवा और खण्डवा परिसर के निर्माण की स्वीकृति दी गई। इन दोनों परिसर के निर्माण पर करीब 120 करोड़ रूपये का व्यय होगा। बताया गया कि दोनों नये विभाग में विभिन्न विषय पर शोध के लिये तीन-तीन छात्रवृत्ति दी जायेंगी। बैठक में वित्त मंत्री श्री जयंत मलैया, कुलपति श्री बी.के. कुठियाला, प्रबंध समिति के सदस्य श्री उमेश उपाध्याय, प्रमुख सचिव जनसंपर्क श्री एस.के. मिश्रा और कुलाधिसचिव श्री लाजपत आहूजा उपस्थित थे।

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Dakhal News 8 March 2017


सबधाणी कोचिंग इंस्टिटयूट

  सम्मान समारोह 2017 में भोपाल के सबधाणी कोचिंग इंस्टिटयूट ने समस्त समाज सेवियो एवं पत्रकार जगत की हस्तियों का सम्मान किया।  भोपाल के सासंद अलोक संजर बी जे पी के  जिला उपाध्यक्ष कुलदीप खरे ,भोपाल  सबधाणी कोचिंग के संचालक  आनन्द सबधाणी  और महिला खिलाडी सुश्री बबीता फोगाट ने भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार वा समाजसेवी  राधेश्याम अग्रवाल , विनोद सूर्यवंशी एवं अन्य पत्रकारों का सम्मान किया।     

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Dakhal News 8 March 2017


पत्रकार अर्जुन रिछारिया

अर्जुन रिछारिया को भुवन भूषण देवलिया सम्मान सोशल मीडिया का सोशल ऑडिट जरूरी सहकारिता, भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)  विश्वास सारंग ने कहा है कि सोशल मीडिया का सकारात्मक उपयोग हो, यह एक बड़ी चुनौती है। यह मीडिया जिम्मेदार बने और इसका उपयोग जन-हित में हो, इसके लिये सोशल ऑडिट की व्यवस्था सबकी सहमति से की जाना जरूरी है। श्री सारंग आज भुवन भूषण देवलिया स्मृति व्याख्यान में 'सोशल मीडिया-अवसर और चुनौतियाँ'' विषय पर बोल रहे थे।राज्य मंत्री श्री सारंग ने इस मौके पर युवा पत्रकार  अर्जुन रिछारिया को भुवन भूषण देवलिया सम्मान से अलंकृत किया। राज्य मंत्री श्री सारंग ने कहा कि सोशल मीडिया की शुरूआत एक सकारात्मक उद्देश्य के साथ आपस में बेहतर संवाद के लिये हुई। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारा अधिकार जरूर है, लेकिन इसके साथ हमारी जिम्मेदारियाँ भी जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कहा कि आज सोशल मीडिया में नकारात्मकता का भी प्रवेश हो गया है। इस स्वस्थ माध्यम के जरिये नीचा दिखाने के भी प्रयास हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस माध्यम का उपयोग करने में अनुशासन और संयम की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इसके लिये जरूरी है कि हम व्यक्ति का निर्माण करें, जो पिछले 70 साल में नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति का निर्माण यदि होगा, तो हम न केवल सोशल मीडिया, बल्कि हर क्षेत्र में स्वस्थ मानसिकता के साथ विचार प्रक्रिया की स्थापना कर सकेंगे। श्री सारंग ने कहा कि आजादी के पूर्व नेता शब्द गौरव और सम्मान का प्रतीक था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुभाषचन्द्र बोस को नेताजी का खिताब जनता द्वारा दिया गया। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया में हम लोगों के कारण विकार न आने पायें और संवाद के इस जीवंत माध्यम का दुरुपयोग न हो, इसके लिये समाज को ही आचार संहिता बनाना होगी। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया का सकारात्मक उपयोग हो, नई पीढ़ी प्रशिक्षित हो, इसके लिये पाठ्यक्रम में यह विषय रहे, इस पर सरकार विचार करेगी। मुख्य वक्ता राज्यसभा टी.व्ही. के कार्यकारी निदेशक श्री राजेश बादल ने कहा कि सोशल मीडिया के अच्छे और बुरे दोनों पक्ष हैं। डायरेक्टर रिसर्च एण्ड स्ट्रेटेजिक प्लानिंग जॉन्स हॉपकिन्स वुनवर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ श्री प्रदीप कृष्णात्रे ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि जिस युग में आज हम रह रहे हैं, उसमें आगे बढ़ने में टेक्नालॉजी का बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि कम्युनिकेशन के क्षेत्र में उपकरण बड़े से इतने छोटे हो गये हैं कि अब हम उन्हें अपने साथ में लेकर संवाद कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया का समाज में व्यापक प्रभाव पड़ा है और इसने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में मूलभूत परिवर्तन किया है। उन्होंने कहा कि आज यह माध्यम लोगों के जीवन में इस तरह जरूरी हो गये हैं कि अगर इनका उपयोग न करें, तो हम पिछड़ते जायेंगे। जिस तेजी से सोशल मीडिया का विकास हो रहा है, उसके परिणाम क्या होंगे यह अभी भविष्य की गर्त में है। उन्होंने कहा कि फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्स-एप सहित अन्य माध्यमों की लोकप्रियता जिस तेजी से बढ़ी है, वह एक मिसाल है। उन्होंने कहा कि यह माध्यम बिछड़े हुए लोगों के बीच व्यक्तिगत और भावनात्मक संबंध स्थापित करने का माध्यम बना है। उन्होंने कहा कि तेजी से बढ़ता सोशल मीडिया हमारे जीवन को किस तरह प्रभावित करे, इसकी लाइन खुद हमें तय करना होगी। राज्य मंत्री श्री सारंग ने इस मौके पर युवा पत्रकार श्री अर्जुन रिछारिया को भुवन भूषण देवलिया सम्मान से अलंकृत किया। एक स्मारिका का भी विमोचन किया गया। अतिथियों को स्मृति-चिन्ह के साथ तुलसी का पौधा भी भेंट किया गया। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार श्री कमल दीक्षित, सुश्री देवेन्दर कौर उप्पल और बड़ी संख्या में पत्रकार तथा प्रबुद्धजन उपस्थित थे। वरिष्ठ पत्रकार श्री शिव अनुराग पटेरिया ने आयोजन की रूपरेखा की जानकारी दी।  

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Dakhal News 6 March 2017


गूगल में वैकेंसी

 गूगल ने हाल ही में नोटिफिकेशन जारी कर कई पदों पर आवेदन आमंत्रित किया हैं। पद: मेजरमेंट एंड एट्रीब्यूशन स्पेशलिस्ट        इंडिया और डिस्प्ले परफॉर्मेंस स्पेशलिस्ट मेजरमेंट एंड एट्रीब्यूशन स्पेशलिस्ट पद के लिए न्यूनतम योग्यता बीए/बीएस डिग्री है। स्टैटिसटिकल डाटा अनालिसिस और एक्सपेरिमेंटल डिजाइन कैपसिटी में अनुभव। वेब एनालिटिक्स और एप एनालिटिक्स का अनुभव होना भी आवश्यक है। डिस्प्ले परफॉर्मेंस स्पेशलिस्ट के लिए बीए/बीएस डिग्री या इसके समानान्तर डिग्री। एडवरटाइजिंग सेल्स, मार्केटिंग, कंसल्ट‍िंग या मीडिया में चार साल का अनुभव होना जरूरी है।

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Dakhal News 6 March 2017


एग्जिट पोल पर प्रतिबंध

चुनाव आयोग ने 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के मतदान बाद सर्वेक्षण पर रोक की अवधि बढ़ाकर 9 मार्च कर दी है। आयोग की  अधिसूचना के अनुसार उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में 9 मार्च को शाम साढ़े 5 बजे तक मतदान बाद सर्वेक्षण करने तथा उसके परिणामों को प्रकाशित और प्रसारित पर प्रतिबंध रहेगा।  आयोग के अनुसार उत्तर प्रदेश के अलापुर (सु) सीट से प्रत्याशी चंद्रशेखर और उत्तराखंड के कर्णप्रयाग सीट से प्रत्याशी कुलदीप सिंह कनवासी के निधन के कारण इन सीटों पर मतदान टाल दिया गया था। आयोग ने इन सीटों पर 9 मार्च को मतदान करवाने का फैसला किया है। इसके मद्देनजर मतदान बाद सर्वेक्षण को प्रकाशित-प्रसारित करने की अवधि बढ़ा दी गई है।   

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Dakhal News 5 March 2017


news world india

 न्यूज वर्ल्ड इंडिया ने अब मध्यप्रदेश में सीएसआर जनरल के साथ अपने चैनल का शुभारंभ किया  भोपाल के होटल जहांनुमा में न्यूज़ वर्ल्ड इण्डिया की लॉन्चिंग सेरेमनी में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी ,एमपी के  जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा ,राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता ,सहकारिता मंत्री  विश्वास सारंग ,भोपाल के सांसद आलोक संजर स्कूल शिक्षा मंत्री दीपक जोशी मं एवं कई व्यवसायियों ने भाग लिया।  न्यूज़ वर्ल्ड इण्डिया के शुभारंभ के  मौके पर पर कंपनी की ओर से सृष्टि जिंदल ,अमित उपाध्याय ,समीर प्रभाकर एवं रजनीश शुक्ला उपस्थित रहे। मध्य प्रदेश की खबरों को प्रमुखता से सीएसआर जनरल अब न्यूज़ वर्ल्ड पर दिखाया जाएगा ।    

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Dakhal News 4 March 2017


sadhana news

भोपाल में एमपी नगर पुलिस ने एक रीजनल न्यूज चैनल साधना के तत्कालीन डायरेक्टर्स के खिलाफ सात लाख की धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया है।  टीआई आशीष धुर्वे ने बताया कि ओल्ड पलासिया इंदौर निवासी घनश्याम पटेल ने शिकायत की है कि चैनल के डायरेक्टर राकेश गुप्ता, भाग्यश्री तिवारी, मनीकिशोर तिवारी, संदीप कुमार पांडे, उपासना पांडे, विनोद राय, मोनिका जैन ने उन्हें इंदौर और उज्जैन संभाग का ब्यूरो चीफ बनाने के एवज में सात लाख रुपए लिए थे। लेकिन उन्होंने शर्तें पूरी नहीं की।  इस मामले की जांच के बाद एमपी नगर पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर लिया है।   

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Dakhal News 3 March 2017


trp week 8

  आज तक ने अपनी खबरदारी को एक बार फिर शानदार तरीके से प्रस्तुत कर आठवें सप्ताह में अपनी बादशाहत को कायम रखा है। इण्डिया टीवी लाख कोशिश के बाद बीते सप्ताह नंबर दो ही पर रहा। वही मध्यप्रदेश /छत्तीसगढ़ के रीजनल चैनल में ज़ी न्यूज़ ने वापस अपने नंबर बढ़ा लिए हैं और 50 फीसदी से ज्यादा trp उसके पास हैं।    Mp/cg के टॉप फाइव रीजनल न्यूज़ चैनल Trp week 8 ज़ी न्यूज...  51.7  ईटीवी.......  23.3 आईबीसी...  15.2 सहारा.....     5  बंसल....       3 --------------------------------------------------- नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 8 Aaj Tak 17.0 up 1.3  India TV 13.9 dn 0.5  ABP News 12.5 up 1.7 Zee News 12.4 up 0.2   India News 9.8 dn 0.8  News Nation 9.6 up 0.8  News 24 8.9 dn 0.4  News18 India 8.3 dn 3.1 Tez 3.1 up 0.3 NDTV India 2.3 up 0.2 DD News 2.2 up 0.3   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.2 up 1.2  India TV 14.3 dn 0.1 Zee News 13.8 up 0.4 ABP News 12.4 up 1.8  News Nation 9.8 up 0.6 News18 India 8.8 dn 3.6n India News 8.2 dn 0.5 News 24 7.8 dn 0.7 Tez 3.3 up 0.2 NDTV India 3.1 up 0.3 DD News 2.2 up 0.4

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Dakhal News 2 March 2017


शाजिया इल्मी

  नई दिल्ली के जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने गई पुरानी पत्रकार और अब भाजपा नेता शाजिया इल्मी ने आरोप लगाया है कि उन्हें कार्यक्रम में ट्रिपल तलाक पर नहीं बोलने दिया गया। शाजिया के अनुसार 16 फरवरी को उन्हें जामिया विश्वविद्यालय में तीन तलाक पर एक लेक्चर देने जाना था लेकिन विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर की ओर से कहा गया कि शाजिया के वहां आने से माहौल खराब हो जाएगा। आपको बता दें कि शाजिया पूर्व में जामिया विश्वविद्यालय की छात्रा रह चुकी हैं। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम के आयोजक मुझे बुलाना चाहते थे लेकिन दबाव की वजह से मुझे नहीं बुलाया गया। उन्होंने कहा कि उमर खालिद, शेहला को देश के टुकड़े करने की आजादी है लेकिन शाजिया इल्मी ने कांग्रेस का भ्रष्टाचार उजागर किया और बीजेपी का साथ दिया इसलिए उन्हें बोलने की आजादी नहीं दी गई। शाजिया का आरोप है कि वो भाजपा नेता हैं और इसी कारण उन्हें जामिया में बोलने से रोका गया। उन्होंने कहा कि जो लोग अभिव्यक्ति की आजादी के बात करते हैं अब वो मेरी अभिव्यक्ति के छीने जाने पर चुप क्यों हैं। गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में एक सेमिनार को लेकर दो छात्र संगठनों के विवाद हुआ था जिसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा ने आरोप लगाया था कि एबीवीपी के विरोध में आवाज़ उठाने पर उसे सोशल मीडिया पर रेप की धमकी मिल रही है।  

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Dakhal News 1 March 2017


विदिशा प्रेस क्लब

मुख्यमंत्री ने विदिशा प्रेस क्लब के जीर्णोद्धार कार्यों का लोकार्पण किया मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने आज विदिशा में प्रेस क्लब में जीर्णोद्धार कार्यों का लोकार्पण किया। इस अवसर पर राज्य मंत्री  सूर्यप्रकाश मीणा, सांसद श्री लक्ष्मीनारायण यादव, कुरवाई विधायक  वीर सिंह पंवार, विदिशा नगरपालिका अध्यक्ष  मुकेश टण्डन और जिला पंचायत अध्यक्ष  तोरण सिंह दांगी उपस्थित थे। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि विषम परिस्थितियों में भी विदिशा के पत्रकारों ने प्रेस की गरिमा को बढाया है। फोटोग्राफरों के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता है। उन्होंने कमियों के साथ-साथ रचनात्मक कार्यो को भी अखबारों में स्थान देने की बात कही। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि समाज में जो अच्छे कार्य हो रहे है उन्हें भी मीडिया बंधु प्रमुखता से प्रकाशित करें ताकि अन्य के लिए प्रेरणादायी हों। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि विदिशा जिले का प्रेस क्लब प्रदेश का पहला प्रेस क्लब होगा जहाँ जिला स्तर पर पत्रकारों के लिए रूकने की व्यवस्था होगी। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने पत्रकारों के लिए पृथक से कॉलोनी की मांग पर कहा कि परीक्षण उपरांत उचित स्थान पर पत्रकारों के लिए आवासीय कॉलोनी की व्यवस्था की जाएगी। मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना में पत्रकार एवं उनके परिवारों को स्थान देने पर सहमति व्यक्त की। इससे पहले कार्यक्रम को वरिष्ठ द्वय पत्रकार श्री बृजेन्द्र पांडे, श्री अतुल शाह ने भी सम्बोधित किया।  विदिशा प्रेस क्लब के अध्यक्ष श्री भरत राजपूत ने प्रेस क्लब के जीर्णोद्वार कार्यो में राशि का सहयोग करने वालो के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए प्रेस क्लब में कराए गए कार्यो का ब्यौरा उनके द्वारा प्रस्तुत किया गया। प्रेस क्लब के अध्यक्ष श्री राजपूत ने चार सूत्रीय मांग पत्र भी मुख्यमंत्री जी को सौंपा।  इससे पहले मुख्यमंत्री जी समेत अन्य अतिथियों का का प्रेस क्लब के अध्यक्ष द्वारा शाल, श्रीफल से स्वागत किया गया। इस अवसर पर प्रेस क्लब के सभी सदस्यगणों के अलावा कलेक्टर  अनिल सुचारी, पुलिस अधीक्षक  धर्मेन्द्र चौधरी समेत अन्य विभागों के अधिकारी मौजूद थे।  

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Dakhal News 26 February 2017


barc survey

BARC survey NEW DELHI: Okay it’s out and the data does reflect that television is thriving in India and growing. According to the latest BARC India figures, the all-India TV universe has increased to 183 million from the earlier collated figure of 154 million with the growth in rural audience showing a quantum jump signifying that upswing is coming from non-urban areas. The data highlights that while the total urban TV universe stood at 84,414 (in ‘000) in 2017, the comparative rural figure is 98,639 (in ‘000), signifying that the rural segment has grown at a faster rate, which opens up whole new marketing options for broadcasters and advertisers. The comparative old figures as per BARC estimates in 2015 were 77544,000 (urban) vs. 75967,000 (rural). These data, part of the latest BARC India’s Broadcast India Survey 2017, shows that while the urban-rural audience mix was almost equal earlier, the rural segment has outpaced the urban as per latest figures in rate of growth. The new TV universe figures will be implemented from Week 8, 2017 by BARC India, though the latest audience data released by the measurement organisation pertaining to Week 6 adheres to the old figures of the total TV universe in India being 154 million. The data reiterates BARC’s recent reiterations that that since it started surveying rural audience, a whole new world has opened up for subscribers of the data, which, incidentally, also include government organisations apart from the traditional TV channels and advertising agencies. What are the few highlights of the latest BARCC India findings, which were surveyed over a four-month period from November 2015 to February 2016? First, the total TV universe has grown. Second, there has been a sizeable increase in audience in B and C category, signifying an upswing in general prosperity and purchasing power. Third, the rate of growth of rural and small towns is higher than their urban counterparts. With respect to the NCCS classification of a household (or BARC’s version of earlier classifications known as SEC), it is based on two main variables: education of the household’s chief wage earner, defined as the person who contributes the most to payment of household expenses and household ownership of 11 specific durable goods, which clearly catch the household’s worth. The 11 durables collectively owned by household members and considered in the NCCS classification of households in India are electricity connection, ceiling fan, LPG stove, two-wheeler, colour TV, refrigerator, washing machine, personal computer/laptop, car/jeep/van, aircon and agricultural land. As digital viewing proliferates, BARC India is readying itself to measure the digital world too and the data is expected to flow in sometime late 2017 or early 2018.

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Dakhal News 24 February 2017


trp week 7

इण्डिया टीवी दो सप्ताह नंबर दो रहा लेकिन वह इस मुकाम पर खुद को सम्हाल नहीं पाया और उसे आज तक ने फिर झटका देकर नंबर वन की पोजिशन हांसिल कर ली है। ज़ी न्यूज़ तीसरे और एबीपी पांचवे नंबर पर पहुँच गया है।    नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 7 Aaj Tak 15.6 up 0.2  India TV 14.4 dn 2.3  Zee News 12.3 up 0.4  News18 India 11.5 up 0.5  ABP News 10.9 up 0.1  India News 10.6 up 0.3  News 24 9.3 up 0.5  News Nation 8.7 same Tez 2.8 up 0.1  NDTV India 2.1 up 0.1  DD News 1.8 up 0.2   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 15.0 up 0.5  India TV 14.5 dn 3.2  Zee News 13.4 up 0.8  News18 India 12.4 up 0.1  ABP News 10.6 same News Nation 9.2 up 0.2  India News 8.6 up 0.3  News 24 8.5 up 0.6  Tez 3.1 up 0.1  NDTV India 2.8 up 0.1  DD News 1.9 up 0.4   एमपी/सीजी के टॉप फाइव रीजनल न्यूज़ चैनल Zee MP..........  28  Bansal..........   26  ETV MP.........   21 IBC 24.........     17  Sahara.......       5

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Dakhal News 23 February 2017


वीडियो जनर्लिस्ट सुशील

अम्बिकापुर शहर के गुदरी बाजार और कंपनी बाजार मे अपनी दबंगई और एकजुटता से किसानो की सब्जी औने पौने दाम मे खरीदने वाले सब्जी माफिया  अब बेखौफ हो चुके है। इन पर ना ही पुलिस का खौफ है और ना ही समाज का । जिसके परिणाम स्वरूप अब इन लोगों ने  पत्रकारो पर हमला करने से भी गुरेज नही कर रहे है। मामला रविवार की रात तकरीबन 10.30 बजे का है। जब शहर के दरिमा मोड पर पिकप वाहन पलटने की खबर पर एक इलेक्ट्रानिक मीडिया चैनल का वीडियो जनर्लिस्ट घटना का फुटेज बनाने पंहुचा था। हांलाकि मामले की सूचना पर तत्परता दिखाते हुए कोतवाली थाना के प्रभारी और प्रशिक्षु डीएसपी मणिशंकर चंद्रा ने पीडित पत्रकार को अस्पताल तक पंहुचाया , जहां पर गंभीर रुप से घायल पत्रकार का इलाज चल रहा है। जानकारी के मुताबिक शहर से लगे दरिमा मोड पर रविवार की रात करीब पौने बारह बजे एक पिकप वाहन पलटने और कुछ लोगो के हताहत होने की सूचना पर नवापारा निवासी वीडियो जनर्लिस्ट सुशील कुमार अपने अन्य दो मीडिया कर्मियो के साथ मौके पर पंहुचा और वहां पहुंच कर वो घटना को अपने कैमरे मे कैद करने लगा। चूंकि पिकप वाहन मे सब्डी लोड थी, लिहाजा इस सूचना मे शराब के नशे मे धुत्त सब्जी कोचिया रविशंकर गुप्ता, राजू सोनी उर्फ टीटी भी अपने अन्य पांच साथियो के मौके पर पंहुचे और उन्होने बिना बात किए वीडियो जनर्लिस्ट  पर हलमा कर दिया। घायल सुशील के मुताबिक पहले सब्जी कोचियो ने उसे लाठी डंडे से पीटा और जब वो जमीन पर गिर गया तो उनमे से एक दो लोगो ने अपने पास रखे धारदार हथियार से उसके सर और पेट पर हमला कर उसे जान से मारने का प्रयास किया। इधर धारदार हथियार से हमले मे सुशील के पेट से लेकर छाती तक कई सेंटीमीटर तक उसको चोट आई है वही पेट और सर पर आई गंभीर चोट के बाद सुशील बेहोश हो गया। इस जानलेवा हमला के दौरान उसके साथियो ने उसे बचाने का प्रयास किया, लेकिन शराब के नशे मे धुत्त लोगो पर ना जाने क्या सवार था वो नही माने और घटना को अंजाम देकर मौके से फरार हो गए। बाद मे घायल के साथियो ने मामले की सूचना कोतवाली थाना पुलिस को दी , जिसके बाद कोतवाली प्रभारी , प्रशिक्षु डीएसपी मणिशंकर चंद्रा खुद मौके पर पंहुचे। जिसके बाद पीडित वीडियो जनर्लिस्ट को इलाज के लिए जिला अस्पताल लाया गया। इलाज के दौरान घायल सुशील के पेट मे 25 टांके लगे है वही डाक्टरो ने सुशील ने अस्पताल मे एडमिट कर लिया है। इधर इलाज के लिए भर्ती कराने के बाद रात मे कोतावाली पुलिस ने सभी काजगी कार्यवाही रात मे ही कर ली थी , चूंकि मामला एक आदिवासी युवक के साथ मारपीट का था, लिहाजा मामले मे विशेष थाना मे अपराध पंजीबद्द किया गया है। पुलिस ने इस घटना पर दो नामजद्द आरोपियो के साथ पांच अन्य लोगो के साथ मुकदमा कायम कर लिया है। चूंकि मामला जान से मारने के प्रयाक का है इसलिए पुलिस ने जांच कर मामले मे हत्या के प्रयास का मामला कायम करने का आश्वासन दिया है। फिलहाल वीडियो जनर्लिस्ट सुशील कुमार बखला का अम्बिकापुर मेडिकल कालेज मे इलाज चल रहा है और बाहरी चोट के साथ शरीर की अंदुरुनी चोट के लिए सुशील का सीसी स्केन और बहुत सी जांच कराई जा रही है। फिलहाल सभी आरोपी फरार बताए जा रहे है लेकिन पुलिस उन्हे जल्द पकडने का भरोसा दिला रही है। दिव्यांग बहन की पढाई के लिए करता है काम सब्जी माफिया  की दरिंदगी का शिकार 27 वर्षीय वीडियो जनर्लिस्ट सुशील बखला पिता राम प्रकाश बखला जिले के बतौली का रहने वाला है। साधारण किसान का बेटा मिलनसार सुशील शहर मे एक इलेक्ट्रानिक मीडिया चैनल मे काम कर मिलने वाली पगार से अपनी दिव्यांग बहन की बेहतरी के लिए खर्च कर करता है। दरअसल शरीर के कई अंग कार्य नही करते है वो अपनी बहन को अपने साथ शहर मे रखकर एक प्रयावेट स्कूल मे पढाता है।   

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Dakhal News 21 February 2017


vedprkash sharma

उमेश त्रिवेदी मीडिया में हिन्दी के एक लेखक वेदप्रकाश शर्मा की मौत की खबर ने साठ-सत्तर के दशक का वह रचनात्मक जगत सामने खड़ा कर दिया है, जो 'हुस्नो-इश्क' और 'रूमानी-मिजाज' को कल्पनाशीलता में पिरोकर 'लुगदी' कहा जाने वाला साहित्य रचता था। समाज के दो छोरों पर खड़े व्यक्तियों की ज्ञान-पिपासा को शांत करने के लिए रचना की इन अलग-अलग धाराओं का ब्यो रा दिलचस्प है। साहित्य में नागार्जुन या निदा फाजली जैसे रचनाकार बौध्दिकता में पगे मध्यम वर्ग के 'सेण्टीमेण्ट्स' को 'एड्रेस' करते हैं, जबकि लुगदी-साहित्य के रचयिता न्यूनताओं और अभावों के गली-कूचों में तड़पते-तरसते रूमानी-संसार की विडम्बनाओं और व्यग्रताओं को अभिव्यक्त करते थे। 'ज्ञानपीठ' की कसौटियों पर खारिज यह रचना-संसार राज-पथ के 'लिंक-रोड्स' से दूर उन गली-कूचों के आखिरी मकान तक आत्मीय गहराई के साथ घुला-मिला दिखता है, जहां जीवन की विधाओं के रंगों में मटमैलापन और भूरापन है। साठ के दशक में भारत में सरकारी स्कूलों का दौर था, जहां निम्नु मध्यम वर्गीय माट'साब जी-जान से बच्चों को पढ़ाते थे। अंग्रेजी-विरोध के कारण हिन्दी का जोर उफान पर था। नीरज जैसे कवि भी साहित्यकारों की तीसरी-चौथी पांत में बैठा करते थे। पाठ्य पुस्तकों में प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, निराला, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, शिवमंगलसिंह सुमन, माखनलाल चतुर्वेदी की जबरदस्त उपस्थिति के बावजूद लुगदी-लेखकों की एक ऐसी जमात मौजूद थी, जो साहित्य के इन कालजयी रचनाकारों से ज्यादा चर्चा में रहते थे।    वेदप्रकाश शर्मा के प्रति जाग्रत इस कौतूहल के समानान्तर आप यह जान लें कि मैंने खुद इन ख्यातिप्राप्त शर्माजी की कोई रचना नहीं पढ़ी है। यह जानकारी भी  मेरे लिए नई है कि प्रकाशन के पहले दिन ही उनके उपन्यास 'वर्दी वाला गुंडा' की 15 लाख प्रतियां बिक गई थीं। उनके बारे में      जिज्ञासा इसलिए जागी कि साठ के दशक के उनके हमनाम लेखक वेदप्रकाश कम्बोज की किताबों पर प्यार के 'जुनूनी-मंजर' और प्रतिशोध के 'खूनी-खंजर' दर्शाने वाले कवर-पेज आज भी जहन में बतियाते रहते हैं। उन दिनों प्रबुध्द परिवारों में  इन लेखकों के नाम और नॉवेल प्रतिबंधित थे। शायद इसीलिए उत्सुकतावश हम जैसे लोग बस-स्टैण्ड की चवन्नी छाप दुकानों पर आने-दो आने देकर इनके उपन्यासों को पढ़ लिया करते थे। इनमें प्यारेलाल 'आवारा' सबसे बदनाम नाम था, जिनकी किताब का नाम भर ले लेने पर सिर पर चपत पड़ती थी। प्रेम वाजपेयी जैसे लेखकों के नॉवेल की कहानी भले ही याद नहीं हो, लेकिन उनके शीर्षक आज भी जहन में टकराते रहते है, जैसे 'गुनाह, जो मैंने किया',  'दर्द, जो मैंने पिया', 'जलती सिगरेट की कसम' या 'चलते फिरते चकले' ... आदि-आदि। इब्ने सफी, बीए के जासूसी उपन्यासों को इजाजत इसलिए मिल जाती थी कि उनमें रोमांस कम, रोमांच ज्यादा होता था और घर के बड़े-बूढ़ों की दिलचस्पी का जासूसी मसाला उनमें होता था।   वेदप्रकाश शर्मा के बहाने साठ और सत्तर के दशकों के लुगदी-लेखकों को याद करना बौध्दिक-संरचना के उन बागी और बेपरवाह इरादों को रेखांकित करना है, जो सामाजिक और साहित्यिक आचार-संहिता को अंगूठा बताते महसूस होते हैं। मसाला फिल्मों की तरह इन उपन्यासों में इमोशन्स, सेक्स, ड्रामा, अपराध और सुहाग-रात के वो सारे जीवंत और भाव-विव्हल 'इनग्रेडिएण्ट्स' होते हैं, जो अभाव की दहलीज पर खड़े युवा-मन के स्वप्नलोक को रचते हैं। लोकप्रियता के पैमाने पर लुगदी-साहित्य के वजूद को नकारना मुश्किल है। साल भर में हिंदी की जितनी साहित्यिक किताबें छपती हैं, लुगदी साहित्य की उतनी किताबें महीने-डेढ़ महीने में छप जाती हैं। साहित्य के रचनात्मक कलेवरों और मुखपृष्ठों की परम्परा से दूर 'रिजेक्टेड' और घटिया अखबारी कागजों पर छपे इन उपन्यासों की मांग भी गजब रही है । इनके कवर पर खूबसूरत महिला के सीने में खंजर के साथ खून की बूंदें टपकती हैं या आलिंगनबध्द जोड़े की रूमानियत नजर आती है।  भले ही ये किताबें हजारों लाखों की संख्या में बिकती रही हों लेकिन 'भारतीय ज्ञानपीठ' ने  इन लेखकों को हमेशा नकारा है। हिन्द पॉकेट बुक्स जैसे व्यावसायिक प्रकाशन भी इऩ लेखकों की किताबें नहीं छापते थे। बहरहाल, दिलचस्प यह है कि प्रेम वाजपेयी, इब्ने सफी, प्यारेलाल आवारा, वेदप्रकाश कंबोज, ओमप्रकाश पाठक, ऋतुराज, रानू जैसे सभी लेखकों के उपन्यासों का आंकड़ा दो-ढाई सौ से कम नहीं है। सवाल यह है कि हिंदी के मौजूदा लेखकों में ज्यादा बिकने वाला कौन है- निर्मल वर्मा, कमलेश्वर या राजेन्द्र यादव, अज्ञेय, जैनेन्द्र कुमार, धर्मवीर भारती या मुक्तिबोध...? वेदप्रकाश शर्मा या प्रेम वाजपेयी अथवा गुलशन नंदा जैसे रूमानी लेखकों की तुलना में हिन्दी साहित्य के ये पुरोधा कहीं भी नहीं टिकते हैं...। [ लेखक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है।]  

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Dakhal News 20 February 2017


ईश्वर दुबे अध्यक्ष बने

छ.ग. जर्नलिस्ट यूनियन की प्रदेश कार्यकारिणी गठित छत्तीसगढ़  जर्नलिस्ट यूनियन के प्रदेश पदाधिकारियों का निर्वाचन विगत दिनों  रायपुर में किया गया। निर्वाचित पदाधिकारियों में प्रदेश संरक्षक सर्वश्री शंकर पांडेय (रायपुर), अनिल साखरे (भिलाई), कुलवंत सलुजा (जांजगीर चांपा), प्रदेश संयोजक सर्वश्री सुभाष शर्मा (रायपुर), ब्यास पाठक (रायपुर), योगेश गुप्ता (भिलाई), प्रदेश अध्यक्ष- श्री ईश्वर दुबे ( भिलाई), प्रदेश महासचिव श्री पूरन साहू (राजनांदगांव), प्रदेश उपाध्यक्ष सर्वश्री चंद्रशेखर शर्मा (कबीरधाम), शेलेश शर्मा (जांजगीर चांपा),  कमलेश स्वर्णकार (राजनांदगांव), किशोर तिवारी (बेमेतरा), रवि शुक्ला (मुंगेली), प्रदेश कोषाध्यक्ष श्री राजेश मिश्रा (भिलाई), प्रदेश सचिव सर्वश्री मुकेश तिवारी (बिलासपुर), योगेश कबुलपुरिया (खरसिया जिला रायगढ़), शिव कुमार तिवारी ( बिलासपुर), रणवीर सिंह (सरगुजा), ठाकुर रणजीत प्रसाद सिंह (भिलाई), सहसचिव सर्वश्री ज्वालाप्रसाद अग्रवाल (दुर्ग), हरदीप छाबड़ा (अंबागढ़ चौकी), राजेश पुराणिक (रायपुर), प्रदीप सान्याल (भिलाई), रामेंश्वर प्रताप सिंह (कवर्धा), कार्यालय सचिव श्री खुमान सिंह जांगड़े (भिलाई) प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य श्रीमती किरण दुबे ( भिलाई), श्री लोकेश साहू (रायपुर), श्री संतोष तिवारी (भिलाई), श्री शकील अहमद (दंतेवाड़ा), श्री दिलीप सिंह (जांजगीर चांपा), श्री नरेंद्र जैन (मनेंद्रगढ), श्री संतोष राजपूत ( डोगढग़ढ), श्री हरप्रीत सिंह भाटिया (भिलाई), श्री सोनकुमार सिन्हा (राजनांदगांव), अशोक चंद्राकर (बालोद) निर्वाचित घोषित किए गए। इस प्रदेश कार्यकारिणी के गठन के पश्चात प्रदेश पदाधिकारियों की सलाह से अतिशीघ्र सभी संभाग अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष की सूची शीघ्र ही घोषित करने का निर्णय लिया गया है।            

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Dakhal News 19 February 2017


तहसीन मुनव्वर

जाने माने युवा कवि, ग़ज़लकार, शायर और पत्रकार तहसीन मुनव्वर ने ईटीवी के साथ नई पारी की शुरुआत की है. उन्हें ईटीवी उर्दू में सीनियर एडिटर नियुक्त किया गया है. वे पहले भी ईटीवी के हिस्से रह चुके हैं. ईटीवी के ग्रुप एडिटर राजेश रैना ने तहसीन मुनव्वर को ईटीवी नोएडा आफिस में सारे स्टाफ से रूबरू कराया और उनकी तैनाती के बारे में जानकारी दी. इस मौके पर राजेश रैना ने तहसीन मुनव्वर और पूरे स्टाफ के साथ एक सेल्फी लेकर फेसबुक पर प्रकाशित किया. बहुमुखी प्रतिभा के धनी तहसीन मुनव्वर उर्दू के जाने माने साहित्यकार हैं. उनके शायरी के दो संग्रह ‘धूप चांदनी’ और ‘सहरा में शजर’ प्रकाशित हो चुके हैं. दिल्ली उर्दू अकादमी ने उनके कहानी संग्रह ‘मासूम’ के लिए 2004 में उन्हें पुरस्कृत किया था. वह उर्दू अकादमी दिल्ली की गवर्निग कौंसिल के सदस्य भी रहे हैं. उर्दू के अलावा कई भाषाओँ के ज्ञाता हैं तथा पंजाबी में भी शायरी करते हैं. इसके अलावा मीडिया सलाहकार के रूप में चार-चार केंद्रीय रेल मंत्रियों के साथ जुड़े रहे जिनमें लालू प्रसाद यादव और ममता बनर्जी भी शामिल हैं.  तहसीन मुनव्वर उर्दू समाचार वाचक और एंकर के रूप में आकाशवाणी, दूरदर्शन और ईटीवी से भी जुड़े रहे हैं. 1990 के दशक में जब कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था उस समय दूरदर्शन पर समाचार वाचक के रूप में उन्होंने सेवाएं दी. कई धारावाहिक लिखे हैं तथा अभिनय भी किया. एक फीचर फिल्म के गीत भी इनके नाम हैं. देश विदेश में मुशायरों और कवि सम्मलेन में अपनी अलग छाप छोड़ते रहे हैं. रेडियो, टीवी और फिल्म के अलावा उर्दू व् हिंदी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में विभिन विषयों पर उनके लेख तथा स्तंभ प्रकशित होते रहते हैं. एक उर्दू पाक्षिक समाचारपत्र ‘पर्वाना ए हिन्द’ का स्वयं प्रकाशन व संपादन भी करते रहे हैं. देश के कई नामी पत्रकारिता विद्यालयों से भी जुड़े हैं. [भड़ास फॉर मीडिया से ]

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Dakhal News 18 February 2017


तहसीन मुनव्वर

 जाने माने युवा कवि, ग़ज़लकार, शायर और पत्रकार तहसीन मुनव्वर ने ईटीवी के साथ नई पारी की शुरुआत की है. उन्हें ईटीवी उर्दू में सीनियर एडिटर नियुक्त किया गया है. वे पहले भी ईटीवी के हिस्से रह चुके हैं. ईटीवी के ग्रुप एडिटर राजेश रैना ने तहसीन मुनव्वर को ईटीवी नोएडा आफिस में सारे स्टाफ से रूबरू कराया और उनकी तैनाती के बारे में जानकारी दी. इस मौके पर राजेश रैना ने तहसीन मुनव्वर और पूरे स्टाफ के साथ एक सेल्फी लेकर फेसबुक पर प्रकाशित किया. बहुमुखी प्रतिभा के धनी तहसीन मुनव्वर उर्दू के जाने माने साहित्यकार हैं. उनके शायरी के दो संग्रह ‘धूप चांदनी’ और ‘सहरा में शजर’ प्रकाशित हो चुके हैं. दिल्ली उर्दू अकादमी ने उनके कहानी संग्रह ‘मासूम’ के लिए 2004 में उन्हें पुरस्कृत किया था. वह उर्दू अकादमी दिल्ली की गवर्निग कौंसिल के सदस्य भी रहे हैं. उर्दू के अलावा कई भाषाओँ के ज्ञाता हैं तथा पंजाबी में भी शायरी करते हैं. इसके अलावा मीडिया सलाहकार के रूप में चार-चार केंद्रीय रेल मंत्रियों के साथ जुड़े रहे जिनमें लालू प्रसाद यादव और ममता बनर्जी भी शामिल हैं.  तहसीन मुनव्वर उर्दू समाचार वाचक और एंकर के रूप में आकाशवाणी, दूरदर्शन और ईटीवी से भी जुड़े रहे हैं. 1990 के दशक में जब कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था उस समय दूरदर्शन पर समाचार वाचक के रूप में उन्होंने सेवाएं दी. कई धारावाहिक लिखे हैं तथा अभिनय भी किया. एक फीचर फिल्म के गीत भी इनके नाम हैं. देश विदेश में मुशायरों और कवि सम्मलेन में अपनी अलग छाप छोड़ते रहे हैं. रेडियो, टीवी और फिल्म के अलावा उर्दू व् हिंदी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में विभिन विषयों पर उनके लेख तथा स्तंभ प्रकशित होते रहते हैं. एक उर्दू पाक्षिक समाचारपत्र ‘पर्वाना ए हिन्द’ का स्वयं प्रकाशन व संपादन भी करते रहे हैं. देश के कई नामी पत्रकारिता विद्यालयों से भी जुड़े हैं. [भड़ास फॉर मीडिया से ]

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Dakhal News 18 February 2017


इंडिया टीवी

  दिलीप मंडल  सपा के दोस्तों, इंडिया टीवी वाले जिस शर्मा साहेब को अखिलेश जी ने 11 लाख रुपए और 50,000 रुपए मासिक पेंशन वाली यश भारती दी, उनसे पूछिए कि वे अखिलेश के पक्ष में पहला शब्द कब बोलेंगे। ऐसे सैकड़ों उपकृत लोग हैं, उनसे बात कीजिए। दैनिक जागरण के मालिक को राज्यसभा भेजा था, उनसे पूछिए। विनीत जैन को नोएडा में 104 एकड़ ज़मीन दी है, टाइम्स ऑफ इंडिया से पूछिए। लखनऊ में जिन पत्रकारों को ज़मीन दी है, उनसे बात कीजिए। Zee न्यूज के मालिक पर आपके इतने उपकार हैं, मुलायम परिवार की शादी की पार्टी उनके फ़ार्म हाउस में होती है, उनको बोलिए कि आपके लिए गाएँ। उनमें लगभग सारे बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं। मैं क्यों? मैं किसी सरकार या पार्टी का उपकार नहीं लेता। अपने मन की लिखता हूँ। मुझसे मेरी मर्ज़ी के खिलाफ आप एक शब्द नहीं लिखवा सकते। वैसे भी मेरा क्या है? मैं तो आपका दैनिक इतिहास लेखक हूँ। डाटा पैक भी अपना है। रोज़नामचा लिखता हूँ। सही लगा तो कल फिर आपकी तारीफ कर दूँगा। मेरा डाटा पैक, मेरी मर्ज़ी। मैंने आपका पेंशन नहीं खाया है। आपके नमक का एक दाना नहीं खाया है। पेंशनहरामी करने वालों को पकड़िए। हर चैनल और अखबार या तो BSP को कमज़ोर दिखा रहे हैं या नहीं दिखा रहे हैं। उनका ईश्वर न करे, अगर बीएसपी पाँचवीं बार सत्ता में आ गई तो वे बेचारे क्या करेंगे? क्या करेंगे? कटोरा लेकर सरकारी विज्ञापन के लिए सरकार के दरवाज़े पर खड़े हो जाएँगे। और क्या? [वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल की एफबी वॉल से]

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Dakhal News 17 February 2017


rajat sharma

दिलीप मंडल  सपा के दोस्तों, इंडिया टीवी वाले जिस शर्मा साहेब को अखिलेश जी ने 11 लाख रुपए और 50,000 रुपए मासिक पेंशन वाली यश भारती दी, उनसे पूछिए कि वे अखिलेश के पक्ष में पहला शब्द कब बोलेंगे। ऐसे सैकड़ों उपकृत लोग हैं, उनसे बात कीजिए। दैनिक जागरण के मालिक को राज्यसभा भेजा था, उनसे पूछिए। विनीत जैन को नोएडा में 104 एकड़ ज़मीन दी है, टाइम्स ऑफ इंडिया से पूछिए। लखनऊ में जिन पत्रकारों को ज़मीन दी है, उनसे बात कीजिए। Zee न्यूज के मालिक पर आपके इतने उपकार हैं, मुलायम परिवार की शादी की पार्टी उनके फ़ार्म हाउस में होती है, उनको बोलिए कि आपके लिए गाएँ। उनमें लगभग सारे बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं। मैं क्यों? मैं किसी सरकार या पार्टी का उपकार नहीं लेता। अपने मन की लिखता हूँ। मुझसे मेरी मर्ज़ी के खिलाफ आप एक शब्द नहीं लिखवा सकते। वैसे भी मेरा क्या है? मैं तो आपका दैनिक इतिहास लेखक हूँ। डाटा पैक भी अपना है। रोज़नामचा लिखता हूँ। सही लगा तो कल फिर आपकी तारीफ कर दूँगा। मेरा डाटा पैक, मेरी मर्ज़ी। मैंने आपका पेंशन नहीं खाया है। आपके नमक का एक दाना नहीं खाया है। पेंशनहरामी करने वालों को पकड़िए। हर चैनल और अखबार या तो BSP को कमज़ोर दिखा रहे हैं या नहीं दिखा रहे हैं। उनका ईश्वर न करे, अगर बीएसपी पाँचवीं बार सत्ता में आ गई तो वे बेचारे क्या करेंगे? क्या करेंगे? कटोरा लेकर सरकारी विज्ञापन के लिए सरकार के दरवाज़े पर खड़े हो जाएँगे। और क्या? [वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल की एफबी वॉल से]

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Dakhal News 17 February 2017


trp week 6 इण्डिया टीवी नंबर वन

एबीपी न्यूज़ को झटके लग रहे हैं और वह छटवे सप्ताह में खिसक कर पांचवे नंबर पर आ गया है। वहीँ यूपी इलेक्शन के चलते इण्डिया टीवी दूसरे सप्ताह भी नंबर वन बना हुआ है।  मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव न्यूज़ चैनल Week-6  ज़ी न्यूज.............. 30.1 बंसल................   22.7 ईटीवी.................. 19.3 आईबीसी.........      16.7 सहारा..................   7.1   नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 6 India TV 16.7 up 1.5  Aaj Tak 15.4 up 0.2  Zee News 11.9 dn 0.7  News18 India 11.0 up 1.5  ABP News 10.8 same   India News 10.2 dn 0.5  News 24 8.9 dn 1.3  News Nation 8.7 dn 0.5  Tez 2.7 same   NDTV India 2.1 same   DD News 1.6 dn 0.1   TG: CSAB Male 22+ India TV 17.7 up 2  Aaj Tak 14.6 dn 0.2  Zee News 12.6 dn 0.9  News18 India 12.2 up 1.8  ABP News 10.6 dn 0.5  News Nation 8.9 dn 0.7  India News 8.3 dn 0.1  News 24 7.9 dn 1.3  Tez 3.0 up 0.2  NDTV India 2.7 same   DD News 1.5 dn 0.2  

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Dakhal News 16 February 2017


इण्डिया टुडे एडीटर अंशुमान तिवारी

इण्डिया टुडे के एडीटर अंशुमान तिवारी ने कहा राज्य निर्वाचन आयोग के 23वें स्थापना दिवस पर 'पंचायत एवं नगरपालिका निर्वाचनों एवं जमीनी-स्तर पर गवर्नेंस की उभरती चुनौतियों'' पर पेनल संवाद हुआ। पेनल संवाद में इण्डिया टुडे के एडीटर श्री अंशुमान तिवारी ने कहा कि रिप्रेजेंटेटिव डेमोक्रेसी को पार्टिसिपेटरी डेमोक्रेसी में बदलना होगा। पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त  सत्यानंद मिश्रा ने कहा कि आडंबर नहीं कंटेंट में ध्यान दें। नेशनल ज्यूडिशियल एकेडमी की प्रो. डॉ. गीता ओबेराय ने कहा कि महिला जन-प्रतिनिधियों को पूरे अधिकार मिलने चाहिये। पेनल संवाद में सहभागियों ने कहा कि जन-प्रतिनिधियों की योग्यताएँ पहले सांसद और विधायकों के लिये निर्धारित हो। इसके बाद पार्षदों और पंचों की। चुनाव में खर्च की मॉनीटरिंग और धारा-40 के औचित्य पर भी राय दी गयी। राज्य निर्वाचन आयुक्त श्री आर. परशुराम ने पेनल संवाद के विषय पर प्रकाश डाला। संवाद में अध्यक्ष, मध्यप्रदेश भू-संपदा विनायमक प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री अंटोनी डिसा, पूर्व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्री पी.के. दास, सलाहकार राज्य योजना आयोग श्री मंगेश त्यागी, उप सचिव राज्य निर्वाचन आयोग श्री गिरीश शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार श्री एल.एस. हरदेनिया, श्री महेश श्रीवास्तव, श्री विजय तिवारी, श्री पलाश सुरजन सहित अन्य सहभागियों ने महत्वपूर्ण सुझाव दिये। इस मौके पर उत्कृष्ट कार्यों के लिये कलेक्टर मंदसौर श्री स्वतंत्र सिंह सहित अन्य अधिकारियों को सम्मानित किया गया।संवाद का संचालन पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त श्री एन.बी. लोहनी ने किया। आभार सचिव श्रीमती सुनीता त्रिपाठी ने माना।  

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Dakhal News 15 February 2017


संपादक शेखर त्रिपाठी

  दैनिक जागरण डॉट कॉम के संपादक शेखर त्रिपाठी को गाजियाबाद की कविनगर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. दैनिक जागरण की वेबसाइट पर यूपी चुनाव के पहले चरण के बाद ही एग्जिट पोल दे दिया गया. इस पर चुनाव आयोग ने दैनिक जागरण के  प्रबंध संपादक, संपादक और एग्जिट पोल कराने वाली संस्था रिसोर्स डेवलपमेंट इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड यानि आरडीआई के खिलाफ केस दर्ज करने के आदेश दिए थे. इसी के बाद पहली गिरफ्तारी जागरण डॉट कॉम के संपादक शेखर त्रिपाठी के रूप में हुई है. कुछ लोगों का कहना है कि संभव है बीजेपी से खबर चलने के लिए पैसा लिया होगा मालिक ने, लेकिन जेल गए शेखर त्रिपाठी. यूपी में 11 फरवरी को पहले चरण के चुनाव हुए थे. इनमें पश्चिमी यूपी की 73 सीटों पर वोट डाले गए थे.  इन्हीं सीटों के एग्जिट पोल जागरण ने अपनी वेबसाइट पर डाले थे. दैनिक जागरण की ओर से सफाई भी दी गई है. जागरण की ओर से कहा गया है- ‘’डिजिटल इंग्लिश प्लेटफॉर्म के अलावा एग्जिट पोल से संबंधित खबर दैनिक जागरण अखबार में नहीं छापी गयी. इंग्लिश वेबसाइट पर एग्जिट पोल से जुड़ी एक खबर अनजाने में डाली गयी थी, इस भूल को फौरन सुधार लिया गया और संज्ञान में आते ही वरिष्ठ अधिकारियों की तरफ से संबंधित न्यूज रिपोर्ट को तुरंत हटा दिया गया था.’’ लेकिन चुनाव आयोग अपने आदेश पर कायम रहा. जिसके बाद 15 जिलों में जागरण और आरडीआई के खिलाफ केस दर्ज किए गए. चुनाव के सभी चरणों का मतदान पूरा होने से पहले एग्जिट पोल छापना आयोग के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 ए के मुताबिक यूपी चुनाव पर कोई भी व्यक्ति, 4 फरवरी की सुबह 7 बजे से लेकर 8 मार्च के शाम साढ़े 5 बजे तक कोई एग्जिट पोल नहीं कर सकता या इनके नतीजों को प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर प्रकाशित नहीं कर सकता. दोषी पाए जाने पर दो साल की कैद या जुर्माना या दोनों ही सजा का प्रावधान है.[भड़ास फॉर मीडिया से ]  

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Dakhal News 14 February 2017


मुकेश अंबानी  हिंदुस्तान टाइम्स

शशिकान्त सिंह शोभना भरतिया के स्वामित्व वाले हिंदुस्तान टाइम्स के बारे में चर्चा है कि इस अखबार को पांच हजार करोड़ रुपये में देश के सबसे बड़े उद्योगपति रिलायंस के मुकेश अंबानी को बेच दिया गया है। चर्चा है कि प्रिंट मीडिया की इस सबसे बड़ी डील के बाद शोभना भरतिया 31 मार्च को अपना मालिकाना हक रिलायंस को सौंप देंगी और एक अप्रैल 2017 से हिंदुस्तान टाइम्स रिलायंस का अखबार हो जाएगा। सूत्रों की मानें तो एक अप्रैल 2017 से रिलायंस प्रिंट मीडिया पर अपना कब्जा जमाने के लिए मुफ्त में ग्राहकों को हिंदुस्तान टाइम्स बांटेगा। ये मुफ्त की स्कीम कहां कहाँ चलेगी, इसका पता नहीं चल पाया है और इस पांच हजार करोड़ की डील में कौन कौन से हिंदुस्तान टाइम्स के एडिशन है और क्या हिंदुस्तान हिंदी अखबार भी शामिल है, इसका पता नहीं चल पाया है लेकिन ये हिंदुस्तान टाइम्स में चर्चा तेजी से उभरी है कि हिंदुस्तान टाइम्स को रिलायंस ने पांच हजार करोड़ रुपये में ख़रीदा है। अगर ये खबर सच है तो हिंदुस्तान टाइम्स के कर्मचारी 1 अप्रैल से रिलायंस के कर्मचारी हो जाएंगे। फिलहाल रिलायंस द्वारा प्रिंट मीडिया में उतरने और हिंदुस्तान टाइम्स को खरीदने तथा मुफ्त में अखबार बाटने की खबर से देश भर के अखबार मॉलिकों में हड़कंप का माहौल है। सबसे ज्यादा टाइम्स ऑफ इंडिया के प्रबंधन में हड़कंप का माहौल है। शोभना भरतिया और रिलायंस के बीच यह डील कोलकाता में कुछ हुयी। [लेखक पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट हैं ] भड़ास फॉर मीडिया से 

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Dakhal News 13 February 2017


पत्रकार विजय मनोहर तिवारी

  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने देशभक्ति पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि दूसरे की देशभक्ति को मापने का अधिकार किसी को नहीं है। यदि कोई खुद को देश का कर्ताधर्ता माने तो भी वो किसी की देशभक्ति नहीं नाप सकता। पत्रकार विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक ‘भारत की खोज में मेरे पांच साल’ के विमोचन समारोह में भागवत ने शनिवार को यहां कहा, ‘दूसरे की देशभक्ति मापने का अधिकार किसी को नहीं है। किसी को भी नहीं, मुझे भी नहीं। कोई अपने आपको इस देश का कर्ताधर्ता माने तो भी वो किसी की देशभक्ति कितनी है, यह नाप नहीं सकता या नाप कर उस पर बोल नहीं सकता।’ उन्होंने कहा कि हमारी आशा सागर का कोई किनारा नहीं है। ऐसी भक्ति की आंखों से देश को देखने के बाद देश समझ में आता है। इस पुस्तक के लेखों से यह आभास होता कि लेखक द्वारा ऐसी भक्ति की नजर से देश को देखा गया है।  

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Dakhal News 12 February 2017


सामना के निशाने पर पीएम

 शिवसेना मुखपत्र सामना के निशाने पर पीएम मोदी  शिवसेना ने केंद्र में एक के बाद एक कांग्रेस सरकारों द्वारा किए गए विकास कार्यों की सराहना की और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। शिवसेना ने कहा कि मोदी नोटबंदी के कारण पैदा हुई अराजकता को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। प्रधानमंत्री मोदी की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ की गई रेनकोट वाली टिप्पणी के बारे में शिवसेना ने कहा कि भ्रष्ट के साथ सत्ता में होना भी भ्रष्टाचार है। शिवसेना के मुखपत्र सामना में शुक्रवार को कहा गया कि यदि कांग्रेस सरकारों ने काम न किया होता तो मोदी आज अफ्रीका के किसी पिछड़े देश का राजकाज संभाल रहे होते। यदि पिछले 60 साल में यह सब न हुआ होता तो मोदी आज सोमालिया या बुरूंडी जैसे किसी देश की कमान संभाल रहे होते। शिवसेना ने कहा कि मोदी नोटबंदी के कारण पैदा हुई अराजकता को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। उनका निजी प्रचार तंत्र उनकी सरकार की हर गलत नीति को छिपाने की कोशिश करता है और कांग्रेस पर हमला बोलने का कोई मौका नहीं छोड़ता है। मोदी को अब इस नकारात्मक धारणा से बाहर निकल आना चाहिए। शिवसेना ने कहा कि यदि किसी को लगता भी है कि कांग्रेस ने भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हुए शासन किया, तो उन्हें यह जान लेना चाहिए कि कांग्रेस ने देश का कायाकल्प कर दिया, जिसमें स्वतंत्रता के दौरान एक सुई तक नहीं बनती थी। आज वही देश आर्थिक एवं औद्योगिक विकास के अग्रिम स्थान पर खड़ा है। भारत के पिछले शासकों ने ही आज के देश को खड़ा किया है। यदि कोई रेनकोट पहनकर नहा भी ले तो भी उसका शरीर भीगेगा ही। सत्तारूढ़ दल शिवसेना ने तंज कसते हुए कहा, आज यदि आप आंखें मूंद कर नहीं मानते हैं कि पिछली सरकार सिर्फ भ्रष्टाचार ही कर रही थी तो आपको राष्ट्रविरोधी करार दे दिया जाएगा और मार डाला जाएगा। इंदिरा गांधी का उल्लेख करते हुए शिवसेना ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को वर्ष 1971 के युद्ध में एक सबक सिखाया, राष्ट्रविरोधियों पर कभी पाखंडी रुख नहीं अपनाया, नोटबंदी करके कभी गरीबों को परेशान नहीं किया इसीलिए उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी ने "दुर्गा" की संज्ञा दी थी। शिवसेना ने कहा, इंदिरा गांधी की दृढ़ इच्छाशक्ति देश का कवच थी। उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाया, खालिस्तानी आतंकियों को मार गिराया और यह संदेश दिया कि भारत आतंकियों के समक्ष झुकेगा नहीं। उन्होंने देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। राजीव गांधी की सराहना करते हुए शिवसेना ने कहा, उनके पास स्वच्छ तरीके से कामकाज करने की इच्छाशक्ति थी। उन पर बोफोर्स का दाग भले ही लगा लेकिन भारत में कंप्यूटर युग लाने का श्रेय उन्हें ही है। आज टेक्नोलॉजी का विकास सिर्फ इसीलिए हुआ क्योंकि उन्होंने एक मजबूत नींव रखी। संपादकीय में कहा गया, नरसिंह राव और मनमोहन सिंह देश को आर्थिक असंतुलन से बचाने में सफल रहे।  

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Dakhal News 11 February 2017


इण्डिया टीवी नंबर वन ,एबीपी चौथे नंबर पर

मप्र -छग में तेजी से बढ़ रहा है बंसल न्यूज़  साल के पांचवे सप्ताह में आज तक को नंबर वन से पीछे धकेल कर रजत शर्मा का  इण्डिया टीवी नंबर वन बन गया है। ज़ी न्यूज़ तीसरे और एबीपी न्यूज़ चौथे नंबर पर पहुँच गया है। बीते सप्ताह सबसे जोर का झटका एबीपी को ही लगा है। लाख जातान के बावजूद एबीपी अपनी स्थिति नहीं सम्हाल पा रहा है। मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ में ज़ी न्यूज़ तेजी से नीचे खिसक रहा है लेकिन इसके बावजूद वह नंबर वन है ,बंसल न्यूज़ तेजी से आगे बढ़ते हुए नंबर दो पर पहुँच गया है।    मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव रीजनल न्यूज़ चैनल Week 5 ज़ी न्यूज...   34.6  बंसल न्यूज..  29.9 ईटीवी....       14.3 आईबीसी 24..13.1 सहारा समय.   5.3     नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 5 India TV 15.3 up 0.9  Aaj Tak 15.3 dn 0.3  Zee News 12.6 dn 0.6  ABP News 10.8 dn 1.2  India News 10.7 up 0.1  News 24 10.2 up 0.1  News18 India 9.4 up 1.2  News Nation 9.3 dn 0.1  Tez 2.7 up 0.1  NDTV India 2.0 dn 0.2  DD News 1.7 dn 0.2    TG: CSAB Male 22+ India TV 15.7 up 1.0  Aaj Tak 14.8 dn 0.3  Zee News 13.5 dn 0.2  ABP News 11.1 dn 0.8  News18 India 10.4 up 1.3  News Nation 9.7 up 0.2  News 24 9.2 dn 0.3  India News 8.4 dn 0.6  Tez 2.8 up 0.1  NDTV India 2.7 dn 0.1  DD News 1.7 dn 0.3

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Dakhal News 9 February 2017


अनिल शर्मा

अनिल शर्मा  जब हम बाज़ार से कोई जानवर ख़रीदते हैं तो सबसे पहले उसकी नस्ल के बारे में पूछते हैं! जब हम  बीज ख़रीदने जाते हैं तो भी बीज उन्नत-शील- नस्ल के बारे में पूछते हैं ,लेकिन पूरे देश में जो करोड़ों की संख्या में पांच फ़ुट, साढ़े पांच फ़ुट के सांवले या काले रंग के पुरुष तथा साढ़े चार फ़ुट, पांच फ़ुट की महिला को देखते हैं तो आला दर्जे के ज़हीन आदमी से लेकर अनपढ़ व्यक्ति तक के मन में यह विचार क्यों नहीं आता कि आख़िर इसकी नस्ल कौन-सी है ? इस देश में जब विदेशी आक्रमणकारियों, क्रमशः सिकन्दर, महमूद,गज़नवी, नादिरशाह आदि के आक्रमण हुए – वे मात्र इस देश की धन दौलत, जानवर, घोड़े,हाथी, गाय, बकरी,भेड़ आदि की लूट के लिए हुए ! इसके बाद वे अपनी सेना सहित वापिस लौट गए ! लेकिन सम्राट बाबर ने दिल्ली का ताज़ जीतने और देश का बादशाह बनने के बाद, इस देश में ही परिवार सहित रहने का मन बनाया ! इसके बाद सम्राट अकबर के कालखंड में गंगा-जमुनी संस्कृति का -उदय! आक्रमणकारी राजाओं की तलवार के आगे लाखों हिन्दुओं ने धर्म-परिवर्तन किया लेकिन तैमुर लंग, नादिरशाह की बर्बरता के साथ इस देश के लोंगों को सम्राट अकबर जैसा रहमदिल तथाहिन्दू-मुस्लिम के बीच सच्ची एकता कायम करने वाला एक अनोखा बादशाह भी मिला !सोचने की बात यह है कि अफ़गानिस्तान या अन्य दूसरे देशों से जितने भी आक्रमणकारी आये, उनकी तथा उनकी कौमों के जवानों की नस्ल कैसी थी ? वे सात फ़ुट ऊँचे कद वाले गोरे-चिट्टे लोग थे ! उस कद काठी व रंग-रूप के इंसान, कहीं आज दिखाई पड़ते हैं तो वह उस कद काठी व् रंग-रूप के इंसान, कहीं आज दिखाई पड़ते हैं तो वह पंजाब प्रदेश में सरदार तथा कश्मीर प्रदेश में कश्मीरी हैं ! तो बाकी औसत कद-काठी तथा सामान्य रंग-रूप के करोड़ों मुसलमान हिन्दू कहाँ से आये ? निश्चित रूप से सब भाई-भाई हैं ! उनका खून एक है ! सवाल यह है कि हिन्दू-मुस्लिम के बीच वैमनस्यता और नफरत के बीज किसने बोए ? उत्तर एकदम साफ़ है राजनीति ने ! सबसे पहले अंग्रेज सरकार ने हिन्दू-मुस्लिम को लड़वाकर नफ़रत के बीज बोए ! राजनीति ने, कुर्सी व् पद की चाहत में, भारत देश का वर्ष 1947 में बंटवारा कराया ! उस समय के नेताओं ने दोनों देशों के लोगों को आपस में भाई-भाई का रिश्ता महसूस कराने और उन्हें एक दूसरे से जोड़ने के बजाय उनको अपनी सत्ता और कुर्सी के लिए आपस में लड़ाना शुरू किया ! भारत पाकिस्तान के बँटवारे के समय दोनों आज़ाद मुल्कों में हिन्दुओं-मुसलमानों का क़त्ल-आम हुआ ! यह सब तो अंग्रेजों की राजनीति के कारण हुआ, लेकिन आज़ादी के 67 साल बाद भी सभी राजनैतिक पार्टियों के नेताओं ने इसे सत्ता पाने का मूलमन्त्र समझ लिया जिसके चलते आज़ादी के 67 साल में लाखों हिन्दू-मुस्लिम दंगे राजनीतिज्ञों ने योजनाबद्ध तरीक़े से कराये ! जिसके कारण यहाँ लाखों हिन्दू-मुस्लिम, निर्दोष लोगों की जान गई ! वहीँ अरबों-खरबों की संपत्ति की लूट खसोट की गई या फिर या फिर उसे जला कर रख कर दिया गया ! हमें सोचने की जरुरत है कि आख़िर इन दंगों से किस का लाभ हुआ ? निश्चित रूप से सिर्फ राजनीतिज्ञों का ! ज्यादा नहीं, सिर्फ हम 50-60 वर्ष पहले के गावों का स्मरण करें तो दृश्य बिल्कुल साफ़ नज़र आता है कि यदि किसी हिन्दू परिवार की जवान लड़की बिना कारण घर के बाहर खड़ी दिखती थी तो बिना किसी खौफ़ के कोई बुजुर्ग मुसलमान डांटकर उसे घर के भीतर जाने को कह देता था, क्यों कि हिन्दू मुसलामानों के बीच चाचा, ताऊ, भाई, चाची आदि के स्वाभाविक रिश्ते थे ! आज किसी गाँव या शहर के किसी मोहल्ले में कोई कल्पना कर सकता है कि कोई हिन्दू या मुसलमान बुजुर्ग दूसरे वर्ग की जवान लड़की को उसी तरह डांट सकता है ! अब तो इतनी-सी बात में दंगा-फ़साद हो जायेगा ! हमारे देश में नफ़रत के बीज जो बरसों पहले बोए पना पल्ला झाड़ लेते हैं ! इस साज़िश से दोनों वर्गों के लोगों को न केवल सावधान रहना होगा, बल्कि ऐसी ताक़तों के ख़िलाफ़ गोलबंद होना होगा ! दूसरी तरफ़ बाहरी मुल्कों में क्या स्थिति है, देंखें ! मुझे याद है वर्ष 1992-93 में, जब ‘जनसत्ता’ मुंबई में रिपोर्टर के रूप में काम करता था ! उस समय ‘मलाड-ईस्ट’ (मुंबई) में रहने वाले जब्बार खान ट्रक ड्राइवर तथा मुमताज़ खान राजगीर मिस्त्री ने इराक़ से लौटकर बड़ी तकलीफ़ भरी आवाज़ में बताया था कि हम वहां से पैसा ज़रूर कमा लाये लेकिन इराक़ में हमें शहर से 30-35 किलोमीटर दूर रखा जाता था ! वे हमें ‘हिंदी’ (यानि हिन्दुस्तानी) मुसलमान मानते थे ! उन्हें डर था कि यदि हमें शहर में उनके साथ ठहराया जायेगा तो उनका ‘रॉयल ब्लड’ ख़राब हो जायेगा ! इतना ही नहीं, आज भी इराक़, ईरान और अरब मुल्कों में भारतीय, बंगलादेशी तथा पाकिस्तान के मुहाजिर मुसलमानों को ‘हिंदी मुसलमानों’ के रूप में देखा जाता है ! जब बाहरी देशों में हमें हिंदी-मुसलमान कहा जाता है, कनवरटीड मुसलमान के रूप में देखा जाता है तो समय की माँग है कि हम सभी हिन्दू-मुस्लिम भाई-बहन इस अकाट्य तथ्य को समझें कि हम सब भारत माता की संतान हैं ! हमारा रूप-रंग क़द-काठी, नस्ल सब एक है ! सबसे बड़ी बात ये हमारे खून का रंग और रिश्ता एक हैं ! यदि हम राजनीतिज्ञों की हिन्दू-मुस्लिम जैसे दो सगे-भाइयों को आपस में लड़ाने की, उनकी सत्ता और कुर्सी की राजनीति को समझ पाए तथा ऐसे राजनीतिज्ञों के विरूद्ध हम हिन्दू-मुस्लिम गोलबंद हुए तो महात्मा गाँधी, चंद्रशेखर आज़ाद, अशफाक़उल्ला खां, खुदीराम बोस, ऊधम सिंह, जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया जैसे नेताओं तथा उस्ताद तानसेन, बैजू बावरा, अकबर अली खां, पं. रविशंकर, पं. भीमसेन पं. जसराज बिरजू महाराज सोनल मानसिंह जैसे कलाकारों और डॉ. इक़बाल, दद्दा मैथली शरण गुप्त, गीतकार प्रदीप, गोपालदास नीरज, फ़िराक गोरखपुरी, महाप्राण निराला, मुंशी प्रेमचंद, बाबा नागार्जुन, दुष्यंत कुमार आदि साहित्यकारों के सपनों का भारत बना पायेंगे, जहाँ हिन्दू-मुस्लिम अपने को एक खून और खानदान समझें ![लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ]

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Dakhal News 7 February 2017


shivpuri patrkar dharna

अपारदर्शी लोह कपाट तोड़ेगी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता शिवपुरी में मीडिया कवरेज पर प्रतिबंध लगाने के लिए मीडिया को व्यवस्था के नाम पर रोकने वाली प्रभारी कलेक्टर की कार्यशैली के खिलाफ 11 दिन से चल रहा विरोध और स्थागित धरना फिर शुरू होने वाला है। वरिष्ठ पत्रकारों ने स्थगित धरने के निर्णय को अनुचित ठहराते हुए धरना पुन: शुरू करने का निर्णय ले लिया है। रूप रेखा और तय नीति पर धरना देने के लिए तैयार पत्रकारों ने दमदारी से कहा है कि मीडिया पर पहरे लगाकर प्रभारी कलेक्टर नेहा मारव्या अपारदर्शिता के जो लोह कपाट लगा रही हैं उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तोड़कर रहेगी। पत्रकारों ने प्रभारी कलेक्टर नेहा मारव्या की कार्यशैली और मनमाने अंदाज में लिए गए निर्णय को पत्रकारिता की स्वतंत्रता के खिलाफ माना है। सनद रहे! प्रभारी कलेक्टर ने पीआरओ (सरकारी पत्रकार) को प्लेग्राउण्ड में गणतंत्र पर्व की व्यवस्था के नाम पर पत्रकारों की उपस्थिति(कवरेज) को लेकर जिस अंदाज में बेईज्जत (नौकरी खा जाऊंगी)किया ,वह पत्रकारों की साख पर सीधा हमला था। उन्होंने अस्पताल में  जो पास सिस्टम लागू करने का मन बनाया और प्रशिक्षु आईएएस अंकित अष्ठाना ने जो उसका प्रचार किया वह पत्रकारों के लिए विरोध करने का सशक्त कारण था और भी कई कारण हैं जो पत्रकारों के 11 दिनी विरोध को उचित ठहराते हैं। जिस अंदाज में जिस वजह से पत्रकारों ने धरना प्रदर्शन बंद किया है वह पत्रकारों के लिए सम्मान जनक नहीं है पत्रकारों अभी कुछ नहीं बिगड़ा है। एक कदम हम फिर बढ़ायेंगे। हमें कसम है हम पत्रकारिता की लाज बचायेंगे। आज से हिम्मती हौंसलों के साथ हम अपनी कलम की ताकत से हुक्मरानों को यह बता देंगे कि आप लोकतंत्र में व्यवस्था का हिस्सा हो न कि स्वयं में व्यवस्था।  उपलब्धि और योग्यता कभी एक दूसरे के पूरक पूरी तरह नहीं रहे हैं। यही बजह है कि कई मर्तवा उपलब्धि प्राप्त चेहरे (प्रसंगवंश नेहा मारव्या) योग्य (मीडिया) व्यक्तियों को आगे बढऩे से रोकने का काम करने लगते हैं। यह पूर्वाग्राही और आत्मकेन्द्रित होने की निशानी है। दुर्भाग्य जनक सत्य यह है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था विषाक्त है और इसका प्रमाण यह है कि वह नेहा मारव्या जैसे अधिकारी उत्पन्न कर रही है। जो अधिकार संपन्न होने के बाद लिए जाने वाले अपने निर्णयों से लोकतंत्र के पवित्र नाद लोकमंगल को खुली चुनौती दे रहीं हैं। उनके द्वारा लिए गए एक-एक निर्णय (जो सामने आ गए) में उनका जो मिजाज (तेवर) दिखाई दे रहा है वह  घोषित तौर पर तानाशाहों जैसा है। वह पूरी व्यवस्था को खुद में केन्द्रित करना चाहती हैं जो उनके अनुसार चलने को तैयार नहीं हैं। वह उनके आक्रोश का और उनके द्वारा तय की गई सीमाओं का शिकार तत्काल हो जाता है। उन्होंने प्लेग्राउण्ड में पुलिस के साथ जो व्यवहार 25 जनवरी को प्लेग्राउण्ड में किया वह उनके व्यवहार की एक वानगी भर है जिसका नतीजा यह निकला कि उनके व्यवहार से आहत पुलिस उन्हें प्लेग्राउण्ड में छोड़कर सामूहिक तौर पर निकल गई। पुलिस अनुशासित है और उसका मौन विरोध (चुपचाप चले जाना) बहुत हद तक अनुशासित था लेकिन लोकतंत्र और मौजूदा दौर में मीडिया मुखर है। मीडिया पर जब प्रतिबंध लगाए जाने के प्रारंभिक प्रयास किए गए तो मीडिया ने खौलकर प्रभारी कलेक्टर की कार्यशैली का विरोध करना शुरू कर दिया। 11 दिन तक विरोध चला तत्पश्चात न समझ में आने वाली सुलह से धरना स्थागित हो गया जिसे पत्रकारों का समर्थन नहीं मिला और धरना फिर शुरू होने जा रहा है। पत्रकारों ने तय किया है कि हम प्रभारी कलेक्टर नेहा मारव्या से संवाद कायम करेंगे और उन्हें बतायेंगे कि आपके निर्णय लोकतंत्र के प्राण तत्व पारदर्शिता का गला घोंटने वाले हैं। पत्रकार किसी तानाशाही तेवर के अधिकारी की कार्यशैली कोचुपचाप सहन नहीं करेंगे हम आपके निर्णयों के खिलाफ तर्क तथ्य और प्रमाण देंगे। संवाद और लेखनी हमारी ताकत है।  पत्रकारों को करो कॉपरेट:प्रभारी मंत्री सर्किट हाउस में प्रभारी मंत्री रूस्तम सिंह ने कलेक्टर की पत्रकारों को लेकर अपनाई जहा रही कार्यशैली पर नाखुशी व्यक्त करते हुए कहा कि लोकतंत्र में पत्रकारों की भूमिका महत्वपूर्ण है। उनसे हमें सटीक सूचनायें प्राप्त होती है। उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार सेमुअल दास की मौके पर तारीफ करते हुए नेहा मारव्या से कहा कि मुझे इन्होंने कई महत्वपूर्ण सूचनायें दी हैं। यह (पत्रकार)जैसा चाहते हैं वैसा कॉपरेट करो।  प्रशासन और पत्रकारों के द्वंद में संवाद जरूरी प्रशासन और पत्रकारों के बीच चल रहे मतभेद पूर्ण द्वंद में संवाद महत्वपूर्ण है। वरिष्ठ पत्रकारों ने संवाद की महत्वता को स्वीकार करते हुए कहा है कि हम शीघ्र ही प्रभारी कलेक्टर से उनकी कार्यशैली और उनसे प्रभावित हो रही मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर संवाद कायम करेंगे। अधिकांश पत्रकारों ने कहा है कि संवाद से किसी भी समस्या का हल संभव है और लड़ाई व्यक्तिगत न होकर व्यवस्थागत हैं।  

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Dakhal News 6 February 2017


trp week 4

  न्यूज़ चेनल्स की टीआरपी कहती है कि abp न्यूज़ का समय ख़राब चल रहा है। चैनल ने खुद में लाख बदलाव कर लिए लेकिन वह इसके बावजूद टॉप थ्री से बहार है। मध्यप्रदेश में जी न्यूज़ का किला ढह रहा है। ज़ी मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ को आईबीसी 24 और बंसल और ईटीवी से कड़ी चुनौती मिल रही है।  Trp week 4 मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव न्यूज़ चैनल Zee MP...  35.8 ETV....       17.7 IBC 24..... 20.8 Bansal....  18 Sahara...   5.3   नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 4 Aaj Tak 15.5 dn 0.7  India TV 14.4 up 0.1  Zee News 13.1 same   ABP News 12.0 dn 0.3  India News 10.6 up 0.6  News 24 10.1 up 0.3  News Nation 9.3 dn 0.5  News18 India 8.2 up 0.3  Tez 2.5 dn 0.2  NDTV India 2.2 same   DD News 1.9 up 0.3   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 15.2 dn 0.8  India TV 14.7 dn 0.4  Zee News 13.7 dn 0.2  ABP News 11.9 dn 0.2  News 24 9.5 up 0.3  News Nation 9.5 dn 0.5  News18 India 9.1 up 0.6  India News 9 up 0.6  NDTV India 2.8 up   Tez 2.7 dn 0.2  DD News 2.0 up 0.7  

Patrakar Anurag Upadhyay

Anurag Upadhyay 2 February 2017


अरुण जेटली मीडिया

बुधवार को संसद में बजट पेश करने के बाद वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने मीडिया को संबोधित किया। इस दौरान उन्‍होंने कहा कि बजट के उद्देश्‍य साफ हैं, ग्रामीण क्षेत्रों पर जोर के साथ ही कालेधन पर लगाम और जो क्षेत्र सफल है वहां पैसा लगाना। हमने रक्षा क्षेत्र को भी ज्‍यादा फंड दिया और जरूरत हुई तो और ज्‍यादा देंगे। हर क्षेत्र में सफलता की कहानी है और जो क्षेत्र सफल थे वहां पैसा लगाया है। वित्‍त मंत्री ने कहा कि कालेधन को लेकर लड़ाई जारी रहेगी। इसके लिए हमने लोगों को टैक्‍स के अनुरुप बनाने की कोशिश की है। हम चाहते हैं इमानदारी से टैक्‍स भरने वालों को फायदा हो। टैक्‍स रेट कम करने का उद्देश्‍य है कि ज्‍यादा लोग टैक्‍स दें। बजट में ग्रामीण और कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता है। राजनीतिक दलों के चंदे को लेकर उठाए कदम राजनीतिक चंदे पर सफाई और आर्थिक पारदर्शिता के लिए है। राजनीतिक दलों को जो बॉन्‍ड जारी होंगे वो अपने आधिकारिक अकाउंट में ही कैश होंगे। अगर दान देने वाले और लेने वाले दोनों ने ही टैक्‍स रिटर्न भरा है तो उन्‍हें राजनीतिक चंदे पर लगने वाले टैक्‍स में राहत मिलेगी। रोजगार को लेकर वित्‍त मंत्री ने कहा कि इस बजट में रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, यह कोई सेपरेट चैप्‍टर नहीं है।  

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Dakhal News 1 February 2017


tv riportar anurag upadhyay

नए रिपोर्टर छाये ,बड़े-बड़े हुए फेल  अनुराग उपाध्याय  लगातार टेलीविजन न्यूज़ देखने पर लगा कि मध्यप्रदेश में न्यूज़ 24 के  गोविन्द गुर्जर और न्यूज़ नेशन के नीरज श्रीवास्तव एक बेहतरीन पत्रकार के रूप में उभर के सामने आये हैं। पिछले एक बरस से मध्यप्रदेश की टेलीविजन पत्रकारिता को सांप सूंघा हुआ लगता है। खबर के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति इसे धीरे धीरे छत्तीसगढ़ की राह पर ले जा रही है। हालात ऐसे ही रहे तो हो सकता है एमपी में 18 के चुनाव के बाद दिल्ली में बैठे एडिटर मध्यप्रदेश को भी छतीसगढ़ की तर्ज पर ख़बरों के नजरिये से ड्राय स्टेट मान लें।  तमाम मित्र इस इलाके मध्यक्षेत्र में टीवी पत्रकारिता कर रहे हैं। लेकिन मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ के नेशनल टीवी न्यूज़ रिपोर्टरों की दृष्टि से बीता साल 2016 ठीक नहीं कहा जा सकता। इस दरम्यान कोई रिपोर्टर ख़ास और बड़ी खबर नहीं कर पाया। जिससे उसे राष्ट्रीय परिदृश्य पर पहचाना जाए। एक दो ख़बरें हुईं भी तो टेलीविजन रिपोर्टर उसमे सिर्फ लकीर पीटते नजर आये क्योंकि वेब मीडिया के मित्र उन ख़बरों पर उनसे पहले ही जम के खेल चुके थे। अब से पहले होता ये था कि पहले खबर और विज्युअल या फोटोग्राफ टीवी के पास होते थे और बाद में वेब ,सोशल और प्रिंट मीडिया के पास पहुँचते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं हो पा रहा। अब बाजी वेब मीडिया मार रहा है ,प्रिंट मीडिया मार रहा है और टीवी का बड़ा और महान माने जाने वाला रिपोर्टर सिर्फ उनकी बासी खबर चैनल पर चलवा के अपनी नौकरी बचाता प्रतीत होता है। ऐसे में टीवी रिपोर्टरों को ani के रिपोर्टर भी बड़ा झटका देते नजर आते हैं। उनकी तेजी के सामने कई बड़े -बड़े टीवी पत्रकार पानी भरते नजर आ रहे हैं।  समीक्षा करना ,सवाल उठाना मेरी आदत है ,उसके मुताबिक मैंने पाया कि पिछले कुछ सालों में मेरे [ins ,इण्डिया टीवी ] ,तब आजतक के राजेश बदल ,अमित कुमार दीप्ती चौरसिया ,तब ज़ी न्यूज़ के राजेन्द्र शर्मा ,तब न्यूज़ 24 के प्रवीण दुबे ,स्टार [बाद में एबीपी ]के बृजेश राजपूत ndtv की रुबीना खान बाद में सिद्धार्थ दास के बीच एक अघोषित मुकाबला था कि कौन बड़ी खबर करता है कौन सबसे पहले खबर करता है,तबके आईबीएन 7 के मनोज शर्मा का जिक्र इसलिए नहीं कर रहा हूँ कि वे उस दौर में ही खबर करने की तासीर खो कर इस मुकाबाले से खुद ही बाहर हो चुके थे। आईबीएन 7 लोड लेने का विषय नहीं था । इस अघोषित कॉम्पटीशन में हम सब एक से बढ़कर एक ख़बरें सामने लाते थे। ख़बरें भी ऐसीं की जिनसे जनता का ,समाज का भला तो होता ही था ,सरकार को घेर कर कटघरे में खड़ा कर देते थे। कौन खबर करता है यह उस समय  बहुत महत्वपूर्ण नहीं था ,महत्वपूर्ण यह था कि खबर पहले टीवी पर प्रसारित हुई और बाद में प्रिंट या वेब मीडिया की हैडलाइन बनी। अब मध्यप्रदेश /छत्तीसगढ़ के टीवी रिपोर्टर्स में उस कॉम्पटीशन का अभाव साफ़ नजर आता है।  ऐसे में अगर नेशनल न्यूज़ चैनल की बात करें तो सबसे अलग अलग तरह की ख़बरों को स्वीकार करने और उसे टेलीकास्ट करने का सर्वाधिक माद्दा इंडिया टीवी में हैं लेकिन उनके रिपोर्ट पुष्पेंद्र वैद्य सिवाए भर्ती की ख़बरें और ऊपर से मिले असाइनमेंट के आलावा कुछ नहीं कर पाए। उनके कारण इस इलाके में इण्डिया टीवी का भट्टा ही बैठ गया है। चैनल को इस इलाके में नंबर बढ़ाने के लिए अब ख़बरों के भरोसे नहीं नेटवर्किंग टीम के भरोसे काम करना पड़ रहा है।  दूसरे बड़े चैनल आजतक का एमपी /सीजी में नाम ही काफी है। आज तक अपने नाम और ब्रांड के दम पर सबका विश्वसनीय है ,काम करने वाला फिर अमित कुमार हो या हेमेंद्र शर्मा इससे आजतक की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। कई लोग वहां आये गए होते रहते हैं।  तीसरे बड़े चैनल में शुमार एबीपी न्यूज़ पिछले कुछ समय से खुद को ही आगे नहीं रख पा रहा है ,दर्शकों को आगे कैसे रखे । एक उम्दा रिपोर्टर बृजेश राजपूत चैनल की शुरुवात से जुड़े हैं। लंबे अरसे बाद उन्हें भी नहीं सूझता है कि खबर के नाम पर क्या करें ?या वो खुद को दोहराना नहीं चाहते। बहरहाल जो भी हो एबीपी की पकड़ दर्शकों पर लगातार कमजोर हुई है और दर्शकों ने फ़िलहाल इस एबीपी न्यूज़ को पीछे रख दिया है।  नेशनल न्यूज़ चैनल के मध्य क्षेत्र में ठन्डे रवैये के बीच ndtv का भोपाल दफ्तर बंद होने का फरमान जाहिर करता है सब कुछ ठीकठाक नहीं है। ऐसे में इस इलाके के दो रिपोर्टर न्यूज़ 24 के गोविन्द गुर्जर और न्यूज़ नेशन के नीरज श्रीवास्तव ने बीते साल शानदार और ख़ास ख़बरें कीं। वो ख़बरें जिनकी टेलीविजन और दर्शक दोनों को जरुरत होती है। न्यूज़ नेशन और न्यूज़ 24 नंबर गेम में जहाँ भी हों लेकिन खबरदारी जोरदार की। न्यूज़ 24 में गोविन्द गुर्जर की ख़बरें भी एक वजह बनी की उसे अब मध्यप्रदेश में दर्शकों की कमी नहीं है। 

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Dakhal News 31 January 2017


tv riportar anurag upadhyay

नए रिपोर्टर छाये ,बड़े-बड़े हुए फेल  अनुराग उपाध्याय  लगातार टेलीविजन न्यूज़ देखने पर लगा कि मध्यप्रदेश में न्यूज़ 24 के  गोविन्द गुर्जर और न्यूज़ नेशन के नीरज श्रीवास्तव एक बेहतरीन पत्रकार के रूप में उभर के सामने आये हैं। पिछले एक बरस से मध्यप्रदेश की टेलीविजन पत्रकारिता को सांप सूंघा हुआ लगता है। खबर के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति इसे धीरे धीरे छत्तीसगढ़ की राह पर ले जा रही है। हालात ऐसे ही रहे तो हो सकता है एमपी में 18 के चुनाव के बाद दिल्ली में बैठे एडिटर मध्यप्रदेश को भी छतीसगढ़ की तर्ज पर ख़बरों के नजरिये से ड्राय स्टेट मान लें।  तमाम मित्र इस इलाके मध्यक्षेत्र में टीवी पत्रकारिता कर रहे हैं। लेकिन मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ के नेशनल टीवी न्यूज़ रिपोर्टरों की दृष्टि से बीता साल 2016 ठीक नहीं कहा जा सकता। इस दरम्यान कोई रिपोर्टर ख़ास और बड़ी खबर नहीं कर पाया। जिससे उसे राष्ट्रीय परिदृश्य पर पहचाना जाए। एक दो ख़बरें हुईं भी तो टेलीविजन रिपोर्टर उसमे सिर्फ लकीर पीटते नजर आये क्योंकि वेब मीडिया के मित्र उन ख़बरों पर उनसे पहले ही जम के खेल चुके थे। अब से पहले होता ये था कि पहले खबर और विज्युअल या फोटोग्राफ टीवी के पास होते थे और बाद में वेब ,सोशल और प्रिंट मीडिया के पास पहुँचते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं हो पा रहा। अब बाजी वेब मीडिया मार रहा है ,प्रिंट मीडिया मार रहा है और टीवी का बड़ा और महान माने जाने वाला रिपोर्टर सिर्फ उनकी बासी खबर चैनल पर चलवा के अपनी नौकरी बचाता प्रतीत होता है। ऐसे में टीवी रिपोर्टरों को ani के रिपोर्टर भी बड़ा झटका देते नजर आते हैं। उनकी तेजी के सामने कई बड़े -बड़े टीवी पत्रकार पानी भरते नजर आ रहे हैं।  समीक्षा करना ,सवाल उठाना मेरी आदत है ,उसके मुताबिक मैंने पाया कि पिछले कुछ सालों में मेरे [ins ,इण्डिया टीवी ] ,तब आजतक के राजेश बदल ,अमित कुमार दीप्ती चौरसिया ,तब ज़ी न्यूज़ के राजेन्द्र शर्मा ,तब न्यूज़ 24 के प्रवीण दुबे ,स्टार [बाद में एबीपी ]के बृजेश राजपूत ndtv की रुबीना खान बाद में सिद्धार्थ दास के बीच एक अघोषित मुकाबला था कि कौन बड़ी खबर करता है कौन सबसे पहले खबर करता है,तबके आईबीएन 7 के मनोज शर्मा का जिक्र इसलिए नहीं कर रहा हूँ कि वे उस दौर में ही खबर करने की तासीर खो कर इस मुकाबाले से खुद ही बाहर हो चुके थे। आईबीएन 7 लोड लेने का विषय नहीं था । इस अघोषित कॉम्पटीशन में हम सब एक से बढ़कर एक ख़बरें सामने लाते थे। ख़बरें भी ऐसीं की जिनसे जनता का ,समाज का भला तो होता ही था ,सरकार को घेर कर कटघरे में खड़ा कर देते थे। कौन खबर करता है यह उस समय  बहुत महत्वपूर्ण नहीं था ,महत्वपूर्ण यह था कि खबर पहले टीवी पर प्रसारित हुई और बाद में प्रिंट या वेब मीडिया की हैडलाइन बनी। अब मध्यप्रदेश /छत्तीसगढ़ के टीवी रिपोर्टर्स में उस कॉम्पटीशन का अभाव साफ़ नजर आता है।  ऐसे में अगर नेशनल न्यूज़ चैनल की बात करें तो सबसे अलग अलग तरह की ख़बरों को स्वीकार करने और उसे टेलीकास्ट करने का सर्वाधिक माद्दा इंडिया टीवी में हैं लेकिन उनके रिपोर्ट पुष्पेंद्र वैद्य सिवाए भर्ती की ख़बरें और ऊपर से मिले असाइनमेंट के आलावा कुछ नहीं कर पाए। उनके कारण इस इलाके में इण्डिया टीवी का भट्टा ही बैठ गया है। चैनल को इस इलाके में नंबर बढ़ाने के लिए अब ख़बरों के भरोसे नहीं नेटवर्किंग टीम के भरोसे काम करना पड़ रहा है।  दूसरे बड़े चैनल आजतक का एमपी /सीजी में नाम ही काफी है। आज तक अपने नाम और ब्रांड के दम पर सबका विश्वसनीय है ,काम करने वाला फिर अमित कुमार हो या हेमेंद्र शर्मा इससे आजतक की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। कई लोग वहां आये गए होते रहते हैं।  तीसरे बड़े चैनल में शुमार एबीपी न्यूज़ पिछले कुछ समय से खुद को ही आगे नहीं रख पा रहा है ,दर्शकों को आगे कैसे रखे । एक उम्दा रिपोर्टर बृजेश राजपूत चैनल की शुरुवात से जुड़े हैं। लंबे अरसे बाद उन्हें भी नहीं सूझता है कि खबर के नाम पर क्या करें ?या वो खुद को दोहराना नहीं चाहते। बहरहाल जो भी हो एबीपी की पकड़ दर्शकों पर लगातार कमजोर हुई है और दर्शकों ने फ़िलहाल इस एबीपी न्यूज़ को पीछे रख दिया है।  नेशनल न्यूज़ चैनल के मध्य क्षेत्र में ठन्डे रवैये के बीच ndtv का भोपाल दफ्तर बंद होने का फरमान जाहिर करता है सब कुछ ठीकठाक नहीं है। ऐसे में इस इलाके के दो रिपोर्टर न्यूज़ 24 के गोविन्द गुर्जर और न्यूज़ नेशन के नीरज श्रीवास्तव ने बीते साल शानदार और ख़ास ख़बरें कीं। वो ख़बरें जिनकी टेलीविजन और दर्शक दोनों को जरुरत होती है। न्यूज़ नेशन और न्यूज़ 24 नंबर गेम में जहाँ भी हों लेकिन खबरदारी जोरदार की। न्यूज़ 24 में गोविन्द गुर्जर की ख़बरें भी एक वजह बनी की उसे अब मध्यप्रदेश में दर्शकों की कमी नहीं है। 

Patrakar Anurag Upadhyay

Anurag Upadhyay 30 January 2017


rajesh sansthapak

  सहारा समय के पूर्व संवाददाता & ANI इलेक्ट्रानिक मिडिया के पत्रकार राजेश स्थापक का सड़क दुर्घटना में निधन हो गया भोपाल से सिवनी लौटते समय परासिया घाट में एक्सीडेंट हो गया कल ही राजेश स्थापक को भोपाल में ABP न्यूज़ का सिवनी संवाददाता बनाया था ।   

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Dakhal News 25 January 2017


vijay mat

भोपाल दबंग दुनिया से निकाले गए वरिष्ठ पत्रकार विजय शुक्ला ने खुद का अख़बार विजय मत शुरू करने का फैसला किया।  भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार  रामकुमार तिवारी को  विजय मत परिवार में बतौर पॉलिटकल एडिटर शामिल किया है । विजय मत अखबार के प्रधान संपादक  विजय शुक्ला ने गुलदस्ता भेट कर तिवारी का स्वागत किया।इस मौके पर विजय मत  टीम के सांथी भी मौजूद रहे। तिवारी  ने सांध्य प्रकाश,प्रदेश टुडे, राज एक्सप्रेस जैसे अखबारों में अपनी सेवाएं दीं हैं ।  

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Dakhal News 22 January 2017


राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी

    कोलकाता में  राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मीडिया को खबरों के प्रस्तुतीकरण के मामले में बेहद सावधानी बरतने की सलाह दी है। गुरुवार को महानगर में एक बांग्ला दैनिक के 35वें वार्षिकी समारोह को संबोधित करते हुए प्रणब ने कहा कि सभी लोग सुबह उठने के बाद अखबार पढ़ते हैं। इसलिए मीडिया को खबरों के प्रस्तुतीकरण के मामले में बेहद सावधान रहने की जरुरत है, खासकर ऐसी खबरें जिसमें विचारों में मतभेद देखने को मिले। महामहिम ने कहा कि लोकतंत्र में असहिष्णुता को खत्म किया जाना चाहिए, चाहे वो मीडिया के क्षेत्र में हो या कहीं और। समारोह में राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी, राज्य के शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम, भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली समेत अन्य उपस्थित थे।      

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Dakhal News 20 January 2017


मोदी टॉप नेता

बराक ओबामा के अमेरिकी राष्ट्रपति पद से रिटायर होते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे नेता हो गए हैं, जिनके सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा फॉलोअर हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि सोशल मीडिया के सभी मंचों-फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और गूगल प्लस मिलाकर मोदी के सबसे ज्यादा फॉलोअर हैं। इतनी तादाद में दुनिया के किसी नेता के फॉलोअर नहीं हैं। मोदी के ट्विटर पर दो करोड़, 65 लाख, फेसबुक पर तीन करोड़, 92 लाख, गूगल प्लस पर 32 लाख और लिंक्डइन पर 19 लाख, 90 हजार फॉलोअर हैं। इंस्टाग्राम पर पीएम के फॉलोअरों की संख्या 58 लाख और यूट्यूब पर 5.91 लाख है। इसके अलावा उनके नाम पर बने मोबाइल एप को भी लगभग एक करोड़ बार डाउनलोड किया जा चुका है, जो एक रिकार्ड है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले ओबामा टॉप नेता थे , कल गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर आखिरी दिन था। अब उनकी जगह डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के नए राष्ट्र प्रमुख होंगे।  

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Dakhal News 20 January 2017


trp week 2

एबीपी और इण्डिया टीवी को दूसरे सप्ताह में झटके लगे हैं और इनके टेलीविजन रेटिंग पॉइंट कम हुए है। आज तक हमेशा की तरह नंबर वन पर कायम है। वहीँ न्यूज़ 24 का कहना है की वह पिछले 21 सप्ताह से मध्यप्रदेश में नंबर वन हैं।  Trp नेशनल न्यूज़ चैनल Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 2' 2017 Aaj Tak 17.0 up 0.1   India TV 14.1 dn 0.2  Zee News 12.9 up 0.1   ABP News 12.7 dn 1.4  India News 10.2 up 0.5  News 24 9.5 up 0.6  News Nation 8.9 up 0.4  News18 India 7.9 up 0.4  Tez 2.5 dn 0.2  NDTV India 2.4 same   DD News 1.8 dn 0.2  TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 15.8 dn 0.3  India TV 14.9 dn 0.3  Zee News 13.3 up 0.1  ABP News 12.9 dn 1.2  News Nation 9.1 up 0.6  News18 India 8.9 up 0.5  India News 8.9 up 0.5  News 24 8.8 up 0.6  NDTV India 3.0 dn 0.1  Tez 2.7 dn 0.1  DD News 1.8 dn 0.2 मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ के रीजनल न्यूज़ चैनल्स की स्थिति  BARC WK 2,  6 JAN-13 JAN TG: CS 15+ YRS  MP Market RELATIVE SHARE %  Bansal-40 Z MP-31 ETV-22 IBC24-5 Swaraj-1 India News-1 REACH'000 Z MP-1569 ETV-1415 Bansal-1026 IBC24-585 Swaraj-191 India News-119 TSV IN MINS Bansal-18:30 Z MP-10:55 ETV-08:20 India News-07:03 IBC24-05:34 Swaraj-04:48 GRP Bansal-6 Z MP-4 ETV-3 IBC24-1 Swaraj-0 India News-0 CG MARKET RELATIVE SHARE %  Z MP-38 IBC24-37 ETV-19 Bansal-5 Swaraj-1 India News-0 REACH'000 Z MP-1037 IBC24-919 ETV-627 Bansal-273 Swaraj-203 India News-46 TSV IN MINS Z MP-14:08 IBC24-12:26 ETV-10:57 Bansal-05:53 Swaraj-02:46 India News-02:00 GRP Z MP-9 IBC24-9 ETV-5 Bansal-1 Swaraj-0 India News-0 MPCG MRKT  RELATIVE SHARE %  Z MP-33 Bansal-26 ETV-21 IBC24-18 Swaraj-1 India News-1 REACH'000 Z MP-2606 ETV-2043 IBC24-1504 Bansal-1299 Swaraj-393 India News-165 TSV IN MINS Bansal-15:53 Z MP-12:10 IBC24-10:23 ETV-09:09 India News-05:04 Swaraj-03:46 GRP Z MP-6 Bansal-4 ETV-4 IBC24-3 Swaraj-0 India News-0

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Dakhal News 19 January 2017


arnab goswami

टीवी न्यूज एजेंसी एशियन न्यूज इंटरनेशनल यानि एएनआई ANI को नई दिल्ली कार्यालय के लिए कॉपी एडिटर (प्रिंट) और सब एडिटर्स (प्रिंट/सोशल मीडिया) की तलाश है।  कापी एडिटर पद के लिए तीन साल अनुभव की जरूरत है।  अंग्रेजी भाषा में अच्छी पकड़ होनी चाहिए।  खबरों की ठीकठाक समझ हो।  सब-एडिटर पद के लिए अनुभव की कोई बाध्यता नहीं है।  रिज्यूम  jaibans@aniin.com पर भेजा जा सकता है।  एएनआई की तरफ से इन जरूरतों के बारे में जो ट्वीट किया गया है, वह इस प्रकार है- @ANI_news  ANI is looking for sub-editors for Print/Social media. Experienced/Freshers may apply. Location-New Delhi. Contact: jaibans@aniin.com   @ANI_news ANI is looking for Print Copy-editor; minimum 3 yrs experience,news sense&strong command over English. New Delhi. Contact jaibans@aniin.com नए चैनल रिपब्लिक में वैकेंसी अरनब गोस्‍वामी नया न्यूज चैनल रिपब्लिक नाम से ला रहे हैं।  वे चैनल के लिए भर्ती जोर शोर से करने में जुटे हैं। इस बाबत दिल्‍ली समेत मुंबई, बेंगलुरु, श्रीनगर, जम्‍मू, हैदराबाद व कोलकाता के लिए पत्रकारों से आवेदन मांगे गए हैं।  चैनल को ग्राफिक डिजाइनरों की भी तलाश है। अरनब का कहना है कि उन्हें पत्रकार के रूप में किसी प्रवक्‍ता या पीआर एजेंट नहीं चाहिए।  हमें निर्भीक, जुझारू और न्‍यूज ब्रेक करने वाला पत्रकार चाहिए। जो लोग अरनब गोस्वामी के साथ काम करना चाहते हैं तो वो बायोडाटा careers@republicworld.com पर मेल कर सकते हैं।     

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Dakhal News 17 January 2017


samna

सामना का विरोधियों पर हमला  शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में विरोधियों पर हमला बोला है। महाराष्ट्र की 10 नगरपालिकाओं के लिए 21 फरवरी को चुनाव होने हैं। जिसके बाद 23 फरवरी को वोटों की गिनती होगी। सभी पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है। बीएमसी पर हमेशा से कब्जा करने वाली शिवसेना ने सामना लिखा है कि मुंबई के अस्तिव की लड़ाई अब तक शिवसेना अकेली लड़ती रही है। बीएमसी पर भगवा झंडा ही लहराया है। इस झंडे को जिसने भी उतारने की कोशिश की है उनकी राजनैतिक कब्र यही बन गई।मुखपत्र कहा गया है कि शिवसेना ने मुंबई की रक्षा ही नहीं की बल्कि मुबंई की सभी जातियों और धर्मबंधुओं को मातृत्व का आधार देकर उन्हें उत्तम सुविधा देने का वचन भी निभाया है। शिवसेना ने कहा कि मुबंई पर आए सकंट के समय जिन्होंने दुम दबा ली, वे मुंबई को बचाने के लिए सीने पर घाव झेलनेवाली शिवसेना के आड़े न आएं तो ही अच्छा है। शिवसेना ने मुखपत्र के माध्यम में लिखा कि मुंबई को लूटकर अपनी जेब भरने की परंपरा पिछले 60 सालों से भी अधिक समय से जारी है और आज भी उसका अंत नहीं हुआ है। बीजेपी पर निशाना साधते हुए शिवसेना ने कहा कि ठाणे जैसे शहरों को विकास के नाम पर केंद्र की ओर से जो कुछ भी दिया जाता है उसमें राजनैतिक स्वार्थ अधिक होता है। शिवसेना ने पूछा कि बुलेट ट्रेन और मेट्रो ट्रेन जैसे विकास के बुलडोजर तले जो परिवार बेघर और निर्वासित होने वाले हैं उनके भविष्य का क्या? क्या उनको उनके घर मिलेगें? नोटबंदी को लेकर केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा कि नोटबंदी के कारण जो लोग नाहक़ मारे गए, क्या उसे भी विकास के नाम पर बली कहा जाए? सामना में लिखा गया है कि कम से कम महाराष्ट्र और मुंबई में तो शिवसेना निरपराधियों को इस तरह नाहक़ कुचलने नहीं देगी। हमारी पीठ पर कितने ही वार क्यों ना हों, हमें परवाह नहीं है। शिवसैनिकों के रक्त में स्वार्थ नहीं है।  

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Dakhal News 14 January 2017


trp week 1

  साल के पहले सप्ताह की trp इंडिया टीवी और आज तक के लिए ठीक नहीं रही। दोनों चैनल इस सप्ताह डाउन हुए हैं ,इसके बावजूद आजतक नंबर वन और इण्डिया टीवी नंबर टू पर बना हुआ है।    नेशनल न्यूज़ चैनल  trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 1' 2017 Aaj Tak 16.9 dn 1.2  India TV 14.3 dn 1.6  ABP News 14.2 dn 0.2  Zee News 12.8 up 0.7  India News 9.7 up 0.7  News 24 8.8 up 0.3  News Nation 8.5 up 0.3  News18 India 7.5 same   Tez 2.8 up 0.4  NDTV India 2.4 up 0.2  DD News 2.1 up 0.3   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.1 dn 1.2  India TV 15.2 dn 1.8  ABP News 14.1 up 0.6  Zee News 13.2 up 0.4  News Nation 8.5 up 0.5  News18 India 8.4 up 0.3  India News 8.4 up 0.1  News 24 8.2 up 0.1  NDTV India 3.1 up 0.2  Tez 2.8 up 0.6  DD News 2.0 up 0.3

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Dakhal News 13 January 2017


भाजपा में जुबानबंदी

डॉ. वेदप्रताप वैदिक अपना देश भी कितना अदभुत है? एक तरफ भाजपा की कार्यकारिणी अपने अधिवेशन में नरेंद्र मोदी को नोटबंदी पर हार्दिक बधाई दे रही है और दूसरी तरफ भारत के प्रमुख सांख्यशास्त्री देश की आर्थिक दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं। भारत के मुख्य सांख्यशास्त्री टीसीए अनंत का कहना है कि भारत का सकल उत्पाद (जीडीपी) इस साल 0.5 प्रतिशत घट गया है। याने 7.6 से वह 7.1 प्रतिशत रह गया है। देखने में यह आंकड़ा बहुत छोटा लगता है- सिर्फ आधा प्रतिशत लेकिन इसे जरा फैलाएं तो अपने आप मालूम पड़ जाएगा कि भारत की अर्थव्यवस्था को कितना बड़ा झटका लगा है। आधा प्रतिशत की कमी का अर्थ है- लगभग 8 लाख करोड़ का झटका। भारत की कुल नगद मुद्रा के 50 प्रतिशत से भी ज्यादा है, यह राशि ! यह झटका अक्तूबर 2016 तक का है। नोटबंदी का भस्मासुर उतरा है, नवंबर और दिसंबर 2016 में। अभी इसका मूल्याकंन आना बाकी है लेकिन अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि इससे उबरने में लंबा वक्त लगेगा। अभी किसी की हिम्मत नहीं पड़ रही, यह बताने की कि 2017 में देश के सकल उत्पाद (जीडीपी) में कितनी कमी होने वाली है। जब नोटबंदी पर बोलते हुए डाॅ. मनमोहनसिंह ने संसद में कहा कि जीडीपी अब 2 प्रतिशत घट जाएगी तो मुझे लगा कि वे विरोधी नेता हैं, इसीलिए ऐसा बोल रहे हैं लेकिन सारा देश जानता है कि वे अर्थशास्त्र के पंडित हैं और रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रहे हैं। यदि सचमुच देश की जीडीपी यदि दो प्रतिशत या थोड़ी ज्यादा घट गई तो देश की अर्थव्यवस्था को संभलने में कई वर्ष लग जाएंगे। करोड़ों लोग बेकारी, भुखमरी और गरीबी के शिकार हो जाएंगे। जैसे मोदी जी की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने हमारे सीमांत पर दर्जनों सर्जिकल स्ट्राइकें कर दीं और 100 से ज्यादा लोगों को मार दिया, वैसे ही यह नोटबंदी भी फर्जीकल स्ट्राइक ही सिद्ध हो रही है। लेकिन कमाल है, हमारे भाजपा नेताओं की बोलती ही बंद है। कार्यकारिणी की इस बैठक में सब बैठे ही रहे। कोई खड़ा नहीं हुआ। किसी ने खड़े होकर कान नहीं खीचे। किसी ने यह नहीं पूछा कि तुमने देश को नोटबंदी के इस मूर्खतापूर्ण चक्कर में क्यों फंसाया और इतना आत्मघाती कदम उठाने के पहले किसी से क्यों नहीं पूछा? अब लगता है कि नोटबंदी के साथ-साथ भाजपा में जुबानबंदी का भी दौर शुरु हो गया है। देश के लोकतंत्र के लिए यह खतरे की घंटी है।[डॉ वेद प्रताप वैदिक दुनिया के चर्चित पत्रकार हैं ]

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Dakhal News 12 January 2017


प्रवीण दुबे

    ज़ी मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ के स्टेट हैड प्रवीण दुबे ने ज़ी को अलविदा कह दिया और ईटीवी मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ का दामन थाम लिया है। प्रवीण ईटीवी में बतौर स्टेट हेड काम करेंगे। वहीँ वरिष्ठ पत्रकार श्रीपाल शक्तावत बने ईटीवी राजस्थान के स्टेट हेड बनाये गए हैं।  प्रवीण दुबे ने 2016 अगस्त में ही ज़ी न्यूज़ ज्वाइन किया था और उनकी यह सबसे छोटी पारी रही। प्रवीण दुबे के ईटीवी जाने के बाद ज़ी न्यूज़ में एक बार फिर संकट आ गया है क्योंकि प्रवीण दुबे की टक्कर का पत्रकार मिलना थोड़ा कठिन है। वैसे ज़ी के नए प्रमुख जगदीश चंद्रा ने मध्यप्रदेश के लिए अपने पुराने संपर्कों को टटोलना शुरू कर दिया है।  प्रवीण दुबे ज़ी से पहले भास्कर डॉट कॉम और न्यूज़ 24 और नईदुनिया में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। ईटीवी में प्रवीण दुबे को लाने के पीछे एक प्रमुख वजह ईटीवी की गिरती साख और टीआरपी रही है। प्रवीण दुबे को इन दोनों मोर्चों पर काम करना होगा। प्रवीण 14 तारीख को एईटीवी विधिवत ज्वाइन करेंगे।  जगदीश चंद्र और उनके सिपहसालारों के ज़ी ग्रुप में जाने के बाद ईटीवी का जयपुर ऑफिस वीरान पड़ गया है। ईटीवी ने राजस्थान में एक ऐसे शख्स को ईटीवी की कमान सौंपी है जिसने राजस्थान की कई सरकारों को अपनी ख़बरों से हिला दिया था। ये नाम है श्रीपाल शक्तावत। श्रीपाल ने P7 चैनल में रहते हुए मंत्री मदेरणा की सीडी का भण्डाफोड़ करते हुए सत्ता में हलचल मचा दी थी। श्रीपाल शक्तावत अभी इंडिया न्यूज़ में थे। चैनल से इस्तीफा देते हुए ईटीवी बतौर स्टेट हेड ज्वाइन किया है। गौरतलब है कि ईटीवी से कई बड़े लोगों के जाने के बाद चैनल बैसाखी पर है। जगदीश चंद्रा के जाने के बाद उनके साथ करीब 50 से ज्यादा लोगों ने ज़ी न्यूज़ ज्वाइन कर लिया। इसके बाद नेटवर्क 18 के लोगों ने अपने सिपहसालारों को जयपुर भेजा। कई दिन की मशक्कत के बाद आखिरकार ईटीवी को राजस्थान में हेड मिल गया। श्रीपाल शक्तावत के आने के बाद ईटीवी के अधिकारियों ने चैन की सांस ली है।   

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Dakhal News 10 January 2017


अवधेश बजाज

अवधेश बजाज रोजाना प्रमाणिक और सकारात्मक पत्रकारिता का दम्भ भरने वाले देश के सबसे बड़े समाचार पत्र ने देश के सबसे प्रतिभावान चरित्र अभिनेता और अर्ध्द सत्य के नायक ओम पुरी की स्वाभाविक और नैसर्गिक मृत्यु को जिस तरह से आज (शनिवार) अपने प्रथम पृष्ठ पर रहस्य मौत बनाकर प्रकाशित किया है और उनकी मृत्यु पर जो तथ्य पेश कर सवाल उठाए हैं, वह घटिया पत्रकारिता का नायाब नमूना है।  पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में उनके सिर में ड़ेढ़ इंच गहरा घाव निकला है। तथा एक्सीडेंटल डेथ माना है। ऐसे में अखबार द्वारा ओमपुरी की दूसरी पत्नी नंदिता के आरोप और प्रोड्यूसर खालिद किदवयी के कथन के आधार पर ओमपुरी की स्वाभाविक मृत्यु को रहस्यमयी बनाकर पेश करना और उनकी मौत पर सवाल उठाना अत्यंत शर्मनाक है। ओमपुरी मेरे पारिवारिक मित्र थे। तथा उनका मेरे घर आना-जाना था। वे जेहनी रिश्तों को जीने वाले इंसान थे। अखबार ने जिस तरह से ओमपुरी की मृत्यु की खबर को पेश किया है, वह एक तरह से पारिवारिक जेहनी रिश्तों को सनसनीखेज भरा और खबर को बिकाऊ बनाने की कोशिश है। यह रोजाना नो-नेगेटिव न्यूज की बात करने वाले और  देश के सबसे बड़े समाचार पत्र की खुजलीभरी पत्रकारिता का परिचायक भी है। इस तरह की पत्रकारिता जितनी भर्त्सना की जाए उतनी कम है।[ वरिष्ठ पत्रकार अवधेश बजाज की वॉल से ]  

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Dakhal News 8 January 2017


ईटीवी में इस्तीफों की झड़ी लगी

देश के सबसे बड़े रीजनल न्यूज नेटवर्क ईटीवी में हड़कम्प मचा हुआ है। ईटीवी नेटवर्क के हेड पद से रिजाइन करके ज़ी रीजनल चैनलों के सीईओ बने जगदीश चंद्र के समर्थन में ईटीवी में इस्तीफों की लाइन लग गयी है। उनके समर्थन में ईटीवी राजस्थान समेत अन्य राज्यों के बड़े चेहरों ने पैरेंट कंपनी नेटवर्क18 को इस्तीफे भेजे हैं। सूत्रों के मुताबिक ईटीवी से संपादक रैंक के गिरिराज शर्मा, मीना शर्मा, ईटीवी राजस्थान डेस्क हेड रमाकांत चतुर्वेदी, 10 रिपोर्टर समेत करीब 40 लोगों ने कंपनी को इस्तीफा भेजा है। अन्य राज्यों से भी करीब 80-85 लोगों के संस्थान छोड़ने की खबर है।  अशित कुणाल ने भी ईटीवी से इस्तीफा देकर ज़ी मीडिया रीजनल ज्वाइन कर लिया है। वे पोलिटिकल एडिटर थे और इसी पद पर जी के हिस्से बने हैं। ईटीवी नेटवर्क के मार्केटिंग सैक्शन से आशीष दवे ने भी कंपनी को इस्तीफा भेजा है। ईटीवी में बड़े पैमाने पर इस्तीफे से हड़कम्प मच गया है। कामकाज ठप सा पड़ चुका है। हालात संभालने के लिए नेटवर्क18 के बड़े अधिकारी जयपुर पहुंचे हैं। ईटीवी न्यूज नेटवर्क के नए हेड राहुल जोशी भी जयपुर में कैम्प किए हुए हैं।  इस बीच जगदीश चंद्रा ने अपने जानने वालों को सन्देश भेज कर नई पारी के बारे में सूचित कर दिया है। उनकी तरफ से भेजा गया सन्देश इस प्रकार है-    ''I am glad to say that after serving ETV for more than 8 years, this morning, I have joined Zee Media Corporation Limited. In my new role, I will function as CEO , Zee regional channels , which includes Zee Rajasthan, MP-Chattisgarh, UP-Uttarakhand, Bihar-Jharkhand, Haryana-Himachal-Punjab, Zee Salam, Zee 24 Ghanta and Zee 24 Taas. At this juncture, I seek your good wishes and your valuable support in my new assignment.  Regards – Jagdeesh Chandra''   ज्ञात हो कि यूपी में ईटीवी के रीढ़ रहे वरिष्ठ संपादक बृजेश मिश्र ने इस्तीफा देकर चैनल को घुटनों के बल ला दिया। बृजेश के समर्थन में भी दर्जनों इस्तीफे यूपी में हुए। बृजेश अब खुद का यूपी यूके का रीजनल न्यूज़ चैनल ला रहे हैं जिससे ईटीवी के दर्जनों लोग इस्तीफा देकर जुड़ रहे हैं। अब जगदीश चंद्र और उनके चाहने वालों ने ईटीवी से रिजाइन करके चैनल के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी है। आने वाले दिनों में ईटीवी के थर्ड ग्रेड चैनल बन कर रह जाने की सम्भावना है। ईटीवी : अब छंटनी का दौर शुरू होने वाला है एक अन्य जानकारी के अनुसार ईटीवी में अब नेटवर्क18 के लोग पूरी तरह हावी होने लगे हैं जिससे चैनल के रीजनल स्वरूप पर संकट के बादल छाने लगे हैं। ईटीवी एमपी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि भोपाल असाइनमेंट से दो लोगों का हैदराबाद ट्रांसफर हुआ है। ये दोनों ही नए लोग थे। एक साल पहले हुई थी ज्वाइनिंग। ईटीवी भोपाल ऑफिस में करीब 50 से ज्यादा लोगों का स्टाफ है। नेटवर्क 18 का फरमान है कि स्टाफ कम किया जाए। इससे लगता है कि छंटनी का दौर शुरू होने वाला है। अभी एकाएक आदेश आ गया कि ग्वालियर ब्यूरो बन्द हो रहा है। सारा सामान भोपाल ऑफिस मंगवाया जा रहा है। ईटीवी की पूरी कमान नेटवर्क18 के पास आने के बाद ये भी कहा जा रहा है कि इंदौर और जबलपुर ब्यूरो भी जल्द बन्द करने की तैयारी है। फिलहाल तो ईटीवी एमपी में हड़कम्प मचा हुआ है। कब किसको हैदराबाद ट्रांसफर कर दिया जाए। हर कोई चुप है। कहा जा रहा है कि जगदीश चंद्र के द्वारा लाए गए लोग निशाने पर हैं। ब्यूरो बन्द करने और कई लोगों के तबादले का फरमान बस शुरुआत भर है।[भड़ास फॉर मीडिया से साभार ]

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Dakhal News 7 January 2017


trp Wk 52

    साल 2016 में नेशनल न्यूज़ चैनल्स में आजतक की बादशाहत कायम रही ,वहीँ मध्यप्रदेश में ज़ी एमपी-छत्तीसगढ़ का जलवा कायम रहा। बीते  पूरे साल पहले नंबर पर आजतक और उसके बाद इण्डिया टीवी रहा। इस साल सबसे ज्यादा हालात खस्ता एबीपी न्यूज़ की रही। मध्यप्रदेश में भी रीजनल न्यूज़ चैनल्स के ज़ी को टक्कर देने का सामर्थ कोई चैनल नहीं उठा पाया। ज़ी के बाद ibc 24 और ईटीवी में नंबर दो होने की जंग चलती रही।    मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव न्यूज़ चैनल Week 52 TRp Zee MPCG.    56.7% ETV MP CG   18.4% IBC 24.           12.0% Bansal.           11.3℅ Ind News       01.1%   नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 52 Aaj Tak 18.1 up 0.2  India TV 15.9 up 0.7  ABP News 14.4 up 0.9  Zee News 12.1 dn 0.1  India News 9.0 dn 1.4  News 24 8.5 dn 0.2  News Nation 8.1 up 0.1  News18 India 7.5 same   Tez 2.4 same   NDTV India 2.3 dn 0.3  DD News 1.8 up 0.2   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 17.3 dn 0.1  India TV 16.9 up 0.5  ABP News 13.5 up 0.2  Zee News 12.8 dn 0.3  India News 8.3 dn 0.2  News18 India 8.1 same   News 24 8.1 up 0.4  News Nation 8.1 same   NDTV India 2.9 dn 0.3  Tez 2.3 dn 0.1  DD News 1.6 dn 0.1  

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Dakhal News 5 January 2017


Jagdeesh Chandra quits ETV

The longest serving CEO of any regional network in the country in the recent times, Jagdeesh Chandra, who was heading ETV for the last more than 8 years, has finally moved out from Network18 (which also controls ETV) to pursue other major opportunities and his future entrepreneurship designs.  Mr.Chandra was the initial choice of Shri Ramoji Rao and when Reliance took over the Network in 2012, Mr.Chandra also continued with Network18 and during the last five years, Reliance launched 8 new regional News channels under his leadership. Mr.Chandra is credited to completely turnaround a loss-making regional News Network ETV into a profit-making venture.  Under his leadership, only during the last Financial Year (FY15-16), ETV Hindi and Urdu channels made a record EBITDA of Rs.87.04 crores. During the first six months (April-September) of the current year, under Mr.Chandra’s command, the entire ETV Network (13 ETV channels across 22 states), registered a record Ad revenue growth of 58.12%, as compared to the previous year. On the editorial front, he succeeded in converting the ETV News channel, especially in the Hindi heartland, as the voice of the common man.  Mr.Chandra’s 8 year ETV contract had expired on 31st August, 2016 and since then he was working on an extended tenure.   At this emotional moment, Mr.Chandra says that it was a great experience and a learning to work under the dynamic leadership of Shri Ramoji Rao and Reliance under Shri Mukesh Bhai and Manoj Bhai (Reliance). While making a special reference to Shri Manoj Modi, Mr.Chandra says that he is an execution miracle in the country. In fact, Reliance is a unique combination of Mukesh Bhai’s vision and Manoj Bhai’s execution. After relinquishing his Etv Charge this afternoon, soon after Mr.Chandra joined Zee Media Corporation as its CEO of Regional channels which includes Zee Marudhara Rajasthan, Zee Madhyapradesh-Chhatisgarh, Zee Purvaiya ( Bihar-Jharkhand), Zee Uttarpradesh-Uttrakhand (India 24x7), Zee Salam, 24 Ghanta, Zee 24 Taas and Zee Punjab-Hariyana-Himachal Pradesh. Mr Chandra will be on a 5 year contract , which can be further extended with mutual consent. Mr.Chandra says that he is proud to be associated with the country’s largest and oldest television network Zee, which is controlled by an another legendary media icon Dr.Subhash Chandra.  

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Dakhal News 5 January 2017


माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय

  माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान ने राज्य स्तरीय पत्रकारिता पुरस्कारों की घोषणा कर दी है। राजेश शर्मा को जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी पुरस्कार दिया जाएगा। वहीं अपर संचालक जनसंपर्क मंगलाप्रसाद मिश्र को संतोष कुमार शुक्ल लोक संप्रेषण पुरस्कार के लिए चुना गया है। इनके अलावा अजित वर्मा, राकेश दुबे, वेब मीडिया में ममता यादव, अजीत सिंह, टीवी न्यूज़ के लिए प्रवीण दुबे, श्रद्धा देसाई, वेद कुमार मौर्य व ऋचा नेमा राय, पृथ्वीराज सिंह, आदेश प्रताप सिंह भदौरिया, शाहिद कामिल, शशिकांत तिवारी को भी अन्य पुरस्कारों के लिए चुना गया है।   

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Dakhal News 1 January 2017


trp week 51

इस सप्ताह एबीपी न्यूज़ को झटका लगा है और वो तीसरे नंबर पर बना हुआ है। abp इस बार डाउन हुआ है वहीँ आजतक का तोड़ किसी चैनल के पास नजर नहीं आया है। आज तक नंबर वन तो इण्डिया टीवी दूसरे नंबर पर हैं। मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ में ज़ी न्यूज़ एमपी सीजी का कोई और चैनल मुकाबला नहीं कर पा रहा है। उसे चुनौती देने वाले चैनल ज़ी से आधी trp भी नहीं ला पा रहे हैं।  मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप थ्री रीजनल न्यूज़ चैनल weekl r s s   wk 51 Zee       51.6 Etv        19.3 Ibc 24    14.4 ------------------------------------------------------------ नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 51 Aaj Tak 17.9 up 0.3  India TV 15.2 up 1.2  ABP News 13.5 dn 0.3  Zee News 12.3 dn 0.5  India News 10.4 dn 0.8  News 24 8.7 dn 0.1  News Nation 8.0 same   News18 India 7.5 up 0.2  NDTV India 2.6 dn 0.2  Tez 2.3 up 0.1  DD News 1.6 up 0.2   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 17.4 up 1.1  India TV 16.5 up 1.8  ABP News 13.3 dn 0.1  Zee News 13.1 dn 0.4  India News 8.5 dn 1.6  News18 India 8.1 same   News Nation 8.1 dn 0.1  News 24 7.7 dn 0.9  NDTV India 3.2 dn 0.1  Tez 2.4 up 0.1  DD News 1.7 up 0.3  

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Dakhal News 29 December 2016


पत्रिकाएं

 फूलचंद मानव कल जो साहित्य पुस्तकाकार संकलित होकर आएगा, आज उससे पत्रिकाएं भरी पड़ी हैं। यह सतत प्रक्रिया जारी रहती है। साहित्य में स्थायी महत्व की सामग्री सहेज, संभालकर रखने योग्य भी आ रही है। साल दो हजार सोलह में तमाम पत्रिकाओं के विशेषांक मेरे सामने हैं। देशभर में हिंदी भाषी प्रांत, अकादमियों और भाषा विभाग ज्ञान, सूचना के साथ रचना-धर्म का निर्वाह करते आ रहे हैं। प्रकाशन घराने भी आज जानकारी देने वाली, रचनात्मक सामग्री के साथ अनेक पत्रिकाएं छपवा रहे हैं। पल प्रतिपल, कथा समय, सुगंधा, रेल पथ, देस हरियाणा आदि के साथ शब्द सरोकार, साहित्य कलश, शीराजा, काश्मीर संदेश, विकास जागृति, पंजाब सौरभ जैसे दर्जनों साहित्यिक पत्र यहीं आसपास दिखाई देते हैं। कुछ अहिंदी भाषी प्रांतों में भी पत्रिकाएं अब मुखरित हैं। भारत सरकार के विविध उपक्रम भी गगनांचल, आजकल, योजना, समाज कल्याण आदि के माध्यम से साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय, सार्थक भूमिका निभा रहे हैं। समकालीन भारतीय साहित्य, कथा बिम्ब, छपते-छपते जैसी पत्रिकाओं की तरह ही उद‍्भावना, मीडिया-विमर्श, पाखी, अभिनव इमरोज, साहित्य अमृत लमही, जनपथ, नया ज्ञानोदय, शुक्रवार, इंडिया टुडे, पक्षधर, जनसत्ता, समिधा सरीखी दर्जनों पत्रिकाओं के दिवाली विशेषांक, वार्षिक अंक अथवा महाविशेषांक पाठक को बांध रहे हैं। निश्चय ही पत्रिका में संजोया साहित्य ताजगी की ऊर्जा लेकर आता है। जन्मशताब्दी समारोह के अधीन, भीष्म साहनी पर 386 पृष्ठों का सितंबर-अक्तूबर-16 का उद‍्भावना, हरियश राय के संपादन में एक पठनीय सौगात है। पठन-पाठन के लिए भी शोध-खोज के लिए भी यहां भरपूर सामग्री संस्मरण, आत्मकथा-आज के अतीत, साक्षात्कार, भीष्म के उपन्यास, नाटक, कहानी कला पर समीक्षा लेख पाठक को बांधते हैं। अजात शत्रु भीष्मजी (अजेय कुमार), अतिथि संपादकीय और संगठनकर्ता प्रतिबद्ध कार्यकर्ता भीष्म साहनी बहुत कुछ बताते-समझाते या दिखाते हैं। कृष्णा सोबती, नामवर, बलराज साहनी, राजेंद्र यादव, नित्यानंद तिवारी, मैनेजर पांडेय तक ने खुद को भीष्म जी के साथ जोड़कर अपने आलेखों में इनकी चर्चा की है। चित्रों का संकलन विशेषांक को स्मरणीय बना रहा है। 20dcdt3विदेशों में हिंदी कहानियों की गुलदोजी, अभिनव इमरोज में नासिरा शर्मा ने 252 पृष्ठों में दिखाई-बताई है। इनमें विदेश में लिखी जा रही कहानियों का जायजा हम ले सकते हैं। देवेंद्र कुमार बहल के संपादन में आ रही मासिक पत्रिका अभिनव ‍‍इमरोज में आठ कॉलम का संपादकीय देकर नासिरा शर्मा ने न्याय ही किया है। ‘पाखी’ मन्नू भंडारी पर केंद्रित विशेषांक जनवरी में सचित्र, 578 पन्नों का मिला था। बगैर दस्तक दरवाजा खुलना, प्रेम भारद्वाज का संपादकीय ध्यान चाहता है। साहित्य अमृत, नया ज्ञानोदय, समकालीन साहित्य समाचार, सामयिक सरस्वती, विभोम समाचार, बया, ज्ञानपीठ समाचार हिंदी प्रचारक पत्रिका आदि हिंदी प्रकाशन, संस्थानों से निकलती ऐसी पत्रिकाएं हैं जहां ताजा प्रकाशनों, किताबों, गतिविधियों के साथ सृजन-साहित्य भी पठनीय रहता है। नया ज्ञानोदय ने जनवरी-16 में साहित्य वार्षिकी-264 पृष्ठों की प्रकाशित की। अनेक गद्य-पद्य रचनाएं संजोयी हैं। कालजयी, नये और बीच के मझौले हस्ताक्षर यहां विद्यमान हैं। ‘पक्षधर’ साल के पूर्वार्द्ध जन-जनांक के तौर पर उपन्यास आलोचना पर महाविशेषांक-2, संपादक विनोद तिवारी के संपादन में आया। दूधनाथ सिंह ने 1975 में पक्षधर पत्रिका शुरू की थी। शोधार्थी, गहन अध्येताओं के लिए यहां 260 पृष्ठों में बीसेक ठोस आलेख छपे हैं। हिंदी कहानी के 100 वर्ष पर जुलाई में अभिधा ने एक विशेषांक दिया, जिसमें कथालोचन पर आलेख, कथाएं, बातचीत, भाषांतर-सा 186 पृष्ठों में बहुत कुछ संग्रहणीय है। यों ही औपन्यासिक-2 ‘लमही’ वाराणसी से जुलाई-सितंबर में अर्चना वर्मा प्रियम अंकित, ज्योति चावला, प्रांजलधर, मधुर कांकरिया और राकेश कुमार सिंह उपन्यासों पर मुखर हुए हैं। ‘साहित्य अमृत’ प्रभात प्रकाशन ने कई विशेषांक इस साल दिए हैं। स्वतंत्रता अंक में त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी का संपादकीय ध्यान मांगता है। प्रतिस्मृति नाटक, पुस्तक अंश के साथ दर्जनों लेख विषय के आसपास हैं। सेतु (देवेंद्र गुप्ता) शिमला, प्रगतिशील वसुधा संयुक्तांक-98 (राजेंद्र शर्मा) भोपाल, बया पथ (चंचल चौहान) अंबेडकरवाद और मार्क्सवाद : पारम्परकिता के धरातल-दिल्ली, तद‍्भव (पूर्णांक 33, अखिलेश) लखनऊ, नया प्रतिमान-12 (राजेंद्र मल्होत्रा, श्याम किशोर) इलाहाबाद, वैचारिकी (भारतीय विद्या मंदिर-डॉ. बाबूलाल शर्मा) मुंबई, अकार-44 (प्रियवंद) कानपुर, संप्रेक्षण-162 ग्रीष्म (चंद्रभानु भारद्वाज) जयपुर और सदानीरा (आग्नेय) भोपाल दसेक ऐसी त्रैमासिक पत्रिकाएं हैं जो समकालीन साहित्य धारा को प्रोत्साहित करके छात्रों को भी उपयोगी सामग्री, शोध सिद्धांतों के जरिये प्रदान करती हैं। सदानीरा के हर अंक में विदेशी और भारतीय कवितानुवाद रहते हैं। तद‍्भव, नया पथ, वसुधा आदि प्रगतिवादी, जनवादी लेखक के लिए भी जानी जाती है। मुंबई के गांधी मेमोरियल रिसर्च सेंटर से हिंदुस्तानी जवान (सुशीला गुप्ता) और कथा बिंब (अरविंद), मंतव्य (लखनऊ-हरे प्रकाश उपाध्याय) के तीनों विशेष अंक पाठक को प्रभावित भी कर रहे हैं। लंबी कहानियों के अतिरिक्त अंक-6 में पंजाबी के आठ-दस युवा कवियों की कविताएं बांध रही हैं। पहल (ज्ञानरंजन), जबलपुर ने 102 से 105 अंक तक पांच पुस्तकें सदा की तरह संग्रहणीय दी हैं। पहल-105 अंक, नवंबर, 16 में रचनाकार नहीं, यहां रचना को तरजीह है। उद‍्भावना इसी तरह जरूरी पत्रिका हो रही है। हर अंक में सामग्री चयन, प्रस्तुति और स्तर पर ध्यान रहता है। राष्ट्रवाद निदा फाजली पर यहां संयुक्तांक 123-24 में पर्याप्त पठनीय रचनाएं शामिल हैं। लालटू, मंगलेश डबराल, सुभाष गाताडे, रोमिला थापर, कृष्णा सोबती, प्रमोद रंजन के साथ हरि मृदुल जानकी प्रसाद शर्मा भी यहां मौजूद हैं। अजेय कुमार एक आंदोलन, मिशन की तरह इसे निकालते आ रहे हैं। कोलकाता से निर्भय देव्यांश के संपादन में मासिक निकलने वाली विवाद व चर्चित सामग्री के लिए मशहूर लहक के संयुक्तांक ही अभी आ रहे हैं। मासिक पत्रिकाओं में मानो प्रतियोगिता चल रही है। समय पर निकलने, वक्त पर पहुंचने की होड़ के साथ आवरण पृष्ठ की सज्जा, संपादकीय सूझबूझ में ये पत्रिकाएं एक-दूसरे से आगे आने पर उतारू हैं। पत्रिका ककसाड सांस्कृतिक उद‍्घोष अणुव्रत भावना, प्रेस वाणी, गृहलक्ष्मी, तुलसी, हर्बल हेल्थ, तीसरी दुनिया, शब्द शिल्पी, आसपास, पंजाबी धारा, लाइफ पॉजिटिव से लेकर परिंदे, समाहुत, जनपथ, परिशोध, आधारशिला, परिकथा, रूपरेखा, शेष तक दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, हल्द्वानी, जोधपुर जैसे केंद्रों से विभिन्न क्षेत्रों में छपती रही है। स्वास्थ्य, समाज, संस्कृति, मीडिया, अध्यात्म, आत्मज्ञान से लेकर सूचना, सम्प्रदाय साहित्य तक इनकी पहुंच है। सेहत, मानसिक और शारीरिक पर भी एक बाढ़ आई है पत्रिकाओं की। ‘रूपाम्बरा’ स्वदेश भारती के संपादन में कोलकाता से आ रहा वार्षिक प्रकाशन है। भाषा साहित्य विशेषांक-26 में हिंदी साहित्य अकादमी के इस संकलन में संपादकीय के साथ संस्मरण-निबंध, कविता, कहानी, आलेख, गीत व आलोचना बहुत कुछ है। रचना की परख, चुनाव, बोलता-बतियाता है। मां पर पूरा एक अंक समर्पित करके अप्रैल जून के साहित्य कलश में सागर सूद ने जो दस्तावेजी काम किया है। ‘छपते-छपते’ 444 पृष्ठीय वृहताकार सालाना दीपांक सचित्र, प्राय: हर प्रांत से लेखकों का बेहतर सहयोग लिए हुए है। डॉ. श्रीनिवास शर्मा के चयन में कसाव और प्रतिनिधित्व है। मुंबई से ‘चिंतन दिशा’ के संपादक हृदयेश मयंक ने इसके तिमाही स्तर को बना रखा है। ‘वैचारिकी’ की तरह गहन मगर सुगम पठनीयता इस पत्रिका की खूबी ही है। प्रेम जनमानस दिल्ली से श्रेष्ठ पत्रिका व्यंग्य यात्रा के संपादक हैं। अपनी-अपनी अकादमी से तिमाही, मासिक, साहित्यिक पत्रिकाएं कम मूल्य में निकालती हैं। भाषा, वार्षिकी, समकालीन भारतीय साहित्य, संक्षेप, आलोक मधुमती, साक्षात्कार, हरिगंधा, पंजाब सौरभ, हिमप्रस्थ, विपाशा जैसी दर्जनभर पत्रिकाएं महत्वपूर्ण हैं। रणजीत साहा, खुर्शीद आलम, देवेंद्र कुमार देवेश, ये तीनों केंद्रीय साहित्य अकादमी, रवीन्द्रभवन के संपादक, मनोयोग से प्रयासरत हैं। मधुमती (उदयपुर), साक्षात्कार (भोपाल), पंजाब सौरभ (पटियाला), हरिगंधा, कथा समय (पंचकूला), विपाशा, हिमप्रस्थ (शिमला), उत्तर प्रदेश (लखनऊ) से छपती है। एनवीटी से पुस्तक संस्कृति, हिंदी अकादमी दिल्ली से इंद्रप्रस्थ भारती, दिल्ली सरकार से आजकल हिंदी तीनों ही स्तरीय, उल्लेखनीय पत्रिकाएं हैं। अहा जिंदगी, पाखी, अक्षर पर्व, हंस, कादम्बिनी, कथादेश, नया ज्ञानोदय के अतिरिक्त समयांतर नवनीत, वागर्थ सहित दर्जनों अन्य मासिक पत्रिकाएं भी उल्लेखनीय हैं। हंस अथवा कादम्बिनी या नवनीत कहीं-कहीं रेलवे बुक स्टाल पर भी इधर देखी जाती हैं। समयांतर, वागर्थ, अक्षर पर्व, पाखी प्राय: आदेश, आर्डर पर पहुंचती हैं। सामान्य पाठक तक छोटे शहरों में इनकी जानकारी भी नहीं रखते। साप्ताहिक पत्रकारिता में पापुलर मैगजीन आउटलुक, इंडिया टुडे, शुक्रवार, तहलका, यथावत, रविवार, उदय इंडिया जैसे पाक्षिक नाम भी बाजार का हिस्सा हैं। ‘बदल गयी दुनिया’ सालाना अंक, पृष्ठ 240 वाला, इंडिया टुडे उम्दा कागज पर अनेक व्यक्तित्व को रेखांकित मुखर कर पाया है। व्यावसायिक स्तंभकारों के कालम साप्ताहिक पत्रिकाओं में विधिवत हाजिर रहते हैं। रविवार दिल्ली, नवंबर में प्रवेशांक के साथ उतरा है, पर कलकत्ता के सुपरिचित रविवार से बिल्कुल अलग आउटलुक ने फिल्मों से जगमग 2016, जनवरी प्रथमांकेय संग्रहणीय-स्मरणीय सामग्री देकर गया है। ‘समावर्तन’ निरंजन क्षोत्रिय के संपादन में रंगीन मासिक शुद्ध ताजा साहित्य की मासिकी पत्रिका रही। समीक्षा, त्रैमासिक का गोपालराय स्मृति अंक मुंह बोलता संकलन है। छोटी-मोटी, बड़ी महत्वपूर्ण और सामान्य साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन 2016 में नया, ताजा, दस्तावेजी साहित्य भी दे पाया है। गत वर्ष 2015 की अपेक्षा साल 2016 में गुणवत्ता स्तर और गंभीरता की दिशा में सराहनीय कहा जा सकता है।

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Dakhal News 28 December 2016


प्रिंट मीडिया

प्रिंट मीडिया ने पिछले वित्तीय वर्ष में (last fiscal) 5.13  प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की और इस दौरान 5423 नए रजिस्‍ट्रेशन किए गए। ‘Press in India 2015-16’ रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 31 तक कुल पब्लिकेशंस की संख्‍या 1,10,851 तक पहुंच गई। इनमें हिन्‍दी में सबसे ज्‍यादा और उसके बाद अंग्रेजी में पब्लिकेशंस रजिस्टर्ड हुए हैं रिपोर्ट के अनुसार, इनमें हिन्‍दी अखबार और पत्रिकाओं की संख्‍या 44,557  थी जबकि अंग्रेजी में पब्लिकेशंस की संख्‍या 14,083 थी!सूचना एवं प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू द्वारा एक कार्यक्रम में जारी की गई इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि रजिस्टर्ड हुए कुल पब्लिकेशंस1,10,851 में दैनिक (dailies) और पाक्षिक-साप्ताहिक (bi-tri weeklies) की संख्‍या 16136 रही जबकि अन्‍य पीरियडिकल्‍स (periodicities) शामिल थे। कार्यक्रम के दौरान सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़ भी मौजूद थे। इस रिपोर्ट के अनुसार, यदि प्रसार संख्या (circulations) की बात करें तो हिन्दी पब्लिकेशंस की संख्या रोजाना सबसे ज्यादा 31,44,55,106 प्रतियां (copies) रही जबकि अंग्रेजी में यह संख्या 6,54,13,443 और उर्दू में 5,17,75,006 प्रतियां रहीं। बंगाल में ‘आनंद बाजार पत्रिका’ (Anand Bazar Patrika) की सबसे ज्यादा बिक्री 11,50,038 प्रतियां रही। दूसरा सबसे ज्यादा प्रसार संख्या वाला अखबार ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ (Hindustan Times), दिल्ली रहा। इसकी प्रसार संख्या 9,92, 239 रही। वहीं7,36,399 कॉपियों के साथ हिन्दी दैनिक ‘पंजाब केसरी’ (Punjab Kesari), जालंधर का सर्कुलेशन सबसे ज्यादा रहा। इसके अलावा मल्टी एडिशन में दैनिक अखबार की बात करें तो 46,14,939 कॉपियों के साथ ‘दैनिक भास्‍कर’ (Dainik Bhaskar) हिन्‍दी रहा। रिपोर्ट के अनुसार, मल्‍टी एडिशन डेली में ‘द टाइम्‍स ऑफ इंडिया’ (The Times of India) का सर्कुलेशन दूसरे नंबर पर सबसे ज्‍यादा 44,21,374 और ‘द संडे टाइम्‍स ऑफ इंडिया’(The Sunday Times of India) 8,02,466 सुर्कलेशन के साथ सबसे ज्‍यादा बिकने वाली पीरियडिकल्‍स (periodical) रहा। पब्लिकेशंस की संख्‍या के मामले में 2015-16 के आखिर में उत्‍तर प्रदेश पहले नंबर पर (16,984 पब्लिकेशंस), महाराष्‍ट्र दूसरे नंबरी पर (15,260पब्लिकेशंस) और 12,482 पब्लिकेशंस के साथ दिल्ली तीसरे नंबर पर रही। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष के दौरान 15 पब्लिकेशंस जब्त किए गए जबकि 22 पब्लिकेशंस अपंजीकृत (deregistered) किए गए। वहीं27,445 पब्लिकेशंस ने अपने वार्षिक स्‍टेटमेंट (Annual Statements) जमा कराए।  

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Dakhal News 27 December 2016


गिरीश उपाध्‍याय

गिरीश उपाध्‍याय पिछले एक सप्‍ताह के दौरान मुझे मीडिया से जुड़े दो कार्यक्रमों में जाने और वहां बोलने का मौका मिला। पहला कार्यक्रम इंडियन मीडिया सेंटर के भोपाल चैप्‍टर का था और उसका विषय था- ‘’भारत की संचार एवं मीडिया नीति: मुद्दे एवं सुझाव’’। मेरी आदत है कि ऐसे कार्यक्रमों में, जिनमें भागीदारी करनी हो,जाने से पहले नई पुरानी चीजों को टटोल लेता हूं। इससे विषय को ठीक से समझने में भी आसानी होती है और बात करने में भी। तो मैंने यूं ही गूगल पर तीन शब्‍द एक साथ सर्च कर डाले इंडिया, मीडिया और पॉलिसी… इसके जवाब में गूगल ने एक बहुत दिलचस्‍प दस्‍तावेज मेरे सामने प्रस्‍तुत किया। यह दस्‍तावेज अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्‍व में भारतीय जनता पार्टी द्वारा 1998 में लड़े गए लोकसभा चुनाव के दौरान जनता के सामने रखे गए चुनाव घोषणा पत्र का वह हिस्‍सा था जिसमें भाजपा ने मीडिया, सिनेमा और आर्ट्स पर नीति संबंधी विचार रखे थे। दस्‍तावेज के अनुसार भाजपा ने वादा किया था कि उसका विश्‍वास ऋग्‍वेद की उस ऋचा पर है जो कहती है ‘’आनो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत:’’ अर्थात विश्‍व के समस्‍त कल्‍याणकारी विचार, सभी दिशाओं से हमारे पास आएं। वास्‍तव में ऋग्‍वेद की यह ऋचा किसी भी संचार या मीडिया नीति का सशक्‍त एवं तार्किक आधार हो सकती है। क्‍योंकि अंतत: मीडिया और संचार का उद्देश्‍य विश्‍व का, समाज का और व्‍यक्ति का कल्‍याण ही तो है। भाजपा के इसी दस्‍तावेज में ऋग्‍वेद की इस ऋचा के आगे गांधी जी को भी उद्धृत करते हुए कहा गया था कि- ‘’हम अपनी सारी खिड़कियां खोलकर रखें ताकि वहां से ताजी हवा हम तक आ सके, लेकिन इसके साथ ही हम अपनी दीवारों को भी पुख्‍ता बनाएं, ताकि किसी भी आंधी में हमारे पैर न उखड़ जाएं…’’ उस समय भाजपा ने वादा किया था कि मीडिया से व्‍यवहार करते समय उसके लिए ये ही दो बातें मार्गदर्शी सिद्धांत की तरह होंगी। यह बात अलग है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में लड़े गए 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में मीडिया की नीति आदि को लेकर ऐसी कोई स्‍पष्‍ट बात नहीं कही थी। लेकिन संयोगवश हाथ लगा, देश में सत्‍तारूढ़ दल की मीडिया नीति या मीडिया से रिश्‍तों का स्‍वरूप बताने वाला यह पुराना दस्‍तावेज, आज कई सवाल, तर्क,विश्‍लेषण आदि के लिए उकसाता है। ‘कथनी और करनी’ को लेकर अच्‍छी खासी वाद विवाद प्रतियोगिता हो सकती है। अस्‍तु, ज्‍यादा पचड़े में न पड़ते हुए, मैं इस संबंध में सारा निर्णय अपने पाठकों पर छोड़ते हुए, अपनी बात को आगे बढ़ाता हूं… निश्चित रूप से किसी कल्‍याणकारी राज्‍य के लिए उसकी प्रथम और अंतिम नीति ‘जन कल्‍याण’ ही होना चाहिए। इस भावना को, महात्‍मा गांधी और भाजपा के ‘विचार पुरुष’ दीनदयाल उपाध्‍याय दोनों ने, अपनी अपनी भाषा में सर्वहारा से लेकर अंत्‍योदय और सीमांत से लेकर सर्वोदय जैसे शब्‍दों में परिभाषित किया है। और इसी अंत्‍योदय या सर्वोदय का बीजमंत्र है ‘लोक कल्‍याण’। लेकिन क्‍या आज मीडिया अथवा सरकार के केंद्र में यह‘कल्‍याण’ शब्‍द प्रतिष्ठित हुआ नजर आता है? हां, यह  शब्‍द मौजूद जरूर है, लेकिन वह परमार्थ के अर्थों में नहीं, बल्कि स्‍वार्थ के अर्थ में। कल्‍याण अर्थात् मेरा कल्‍याण, मेरे परिवार का कल्‍याण, ज्‍यादा हुआ तो मेरी पार्टी का कल्‍याण या फिर मेरी सरकार का कल्‍याण। उसी तरह मीडिया में भी मेरे अखबार का कल्‍याण, मेरे अखबार की आड़ में चलने वाले मेरे समस्‍त उद्योग धंधों का कल्‍याण, मेरी सात पीढि़यों का कल्‍याण आदि… ऐसे में आप किसी सुविचारित या सुसंगत मीडिया नीति का निर्माण करना तो दूर, उसकी कल्‍पना भी नहीं कर सकते। जिस तरह यह ‘गुड गवर्नेंस’ यानी सुशासन का नहीं, बल्कि ‘स्‍पॉन्‍सर्ड गवर्नेंस’ यानी प्रायोजित शासन का जमाना है, उसी तरह मीडिया में यह ‘क्रॉस सोसायटी वेलफेयर’ का नहीं बल्कि‘क्रॉसमीडिया ऑनरशिप’यानी मीडिया व संचार के समस्‍त उपक्रमों को चंद मुट्ठियों में दबा लिए जाने का समय है। ऐसे कठिन समय में अव्‍वल तो नीति बनाएगा ही कौन? और यदि कोई मजबूरी हुई भी, तो वे कौन लोग होंगे जो उसे बनाएंगे और वे कौनसे हाथ होंगे जो उस नीति का संचालन या क्रियान्‍वयन करेंगे? आज मीडिया/संचार का क्षेत्र गुणी और अवगुणी के पालों में नहीं बल्कि बड़े और छोटे, अथवा समर्थ और असमर्थ मीडिया में तब्‍दील हो गया है। जो बात 18 साल पहले भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में ऋग्‍वेद की ऋचा या गांधीजी के हवाले से कही गई थी, वैसी स्थितियां दूर दूर तक दिखाई नहीं देतीं। आज की स्थितियां चारों दिशाओं से कल्‍याणकारी विचारों के आगमन की नहीं, बल्कि एक चुनिंदा दिशा से, सिर्फ स्‍वयं के कल्‍याण की धारा के प्रवाह की हैं। आज का चलन, ताजी हवा के लिए खिड़कियां खोलने का नहीं, बल्कि उन्‍हें बंद रखने का है, ताकि कमरे में हवा का कतरा तक न पहुंच सके। यह ‘सिंगल विंडो’ का जमाना है…, और यह एकल खिड़की, सारे काम एक ही जगह से संपन्‍न करने के इरादे से नहीं, बल्कि सारी शक्तियां एक ही जगह केंद्रित रखने के लिए बनाई गई है। लिहाजा मीडिया नीति के निर्माण का मसला बहुत पेचीदा भी है और संवेदनशील भी…। 

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Dakhal News 26 December 2016


डॉ. नरोत्तम मिश्रा

जनसंपर्क, जल संसाधन तथा संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा को आज इंदौर में वरिष्ठ पत्रकार और जल संरक्षण क्षेत्र में कार्यरत अनुसंधानकर्ता  रविंद्र शुक्ला ने अपनी लिखी तीन पुस्तकें भेंट की। जल संरक्षण,जल संवर्धन और जल प्रबंधन के क्षेत्र में लम्बे समय से सक्रिय श्री शुक्ला ने अपनी पुस्तक "समन्वित जल प्रबंधन" और शिप्रा नदी के विकास पर केन्द्रित “शिप्रा-रिवर बेसिन विजन-2025” भेंट की।  जल संसाधन मंत्री डॉ. मिश्रा को श्री शुक्ला ने वर्ष-2031 तक की जल प्रबंधन की स्थिति पर आधारित पुस्तक “ए  टिवेन्टी ईयर परस्पेक्टिव वाटर मैनेजमेंट इन सैंट्रल इंडिया "भी भेंट की। यह पुस्तक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के परिपेक्ष्य में वर्ष 2011 को आधार वर्ष मानकर लिखी गई है। आने वाले दो दशक में उद्योग, कृषि, पर्यावरण आदि की दृष्टि से जल की खपत से संबंधित अध्ययन इस पुस्तक में किया गया है। देश में वॉटर एकाउंटिंग और वॉटर बजटिंग की दृष्टि से इस पुस्तक को महत्वपूर्ण माना गया है। जल संसाधन मंत्री डॉ. मिश्रा ने तीनों कृतियों को उपयोगी बताते हुए इनकी सराहना की। डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा  श्री शुक्ला के इस  अनुसंधान कार्य के दृष्टिगत आवश्यकतानुसार जरूरी कदम  उठाए जाएंगे।  

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Dakhal News 22 December 2016


वेद प्रताप वैदिक

वेद प्रताप वैदिक ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में छपे एक सर्वेक्षण ने आज मुझे जरा चौंका दिया। इसके अनुसार देश के पढ़े-लिखे और शहरी नौजवानों में आधे से भी ज्यादा भारत में नहीं रहना चाहते। वे भारत को अपनी अटल मातृभूमि नहीं मानते। उन्हें मौका मिले तो वे किसी अन्य देश में जाकर हमेशा के लिए बसना चाहेंगे। उन नौजवानों में से 75 प्रतिशत का कहना है कि वे किसी तरह भारत में रह रहे हैं। 62.8 प्रतिशत युवतियों और 66.1 प्रतिशत युवकों का मानना है कि इस देश में निकट भविष्य में अच्छे दिन आने की संभावना कम ही है। उनमें से 50 प्रतिशत का कहना है कि भारत की दशा सुधारने के लिए किसी ‘महापुरुष’ का अवतरण होना चाहिए। उनमें से लगभग 40 प्रतिशत ने कहा कि यदि उन्हें पांच साल के लिए प्रधानमंत्री बना दिया जाए तो वे देश की दशा सुधार सकते हैं। जाहिर है कि यह उनके आत्म-विश्वास की अति है। जिन लोगों को राजनीति करते-करते 30-40 साल हो गए और जिन्हें मुख्यमंत्री बने रहने का अनुभव भी है, ऐसे लोग भी प्रधानमंत्री बनने पर बुद्धु सिद्ध हुए और अपने होश-हवास खो बैठे तो ये 18 से 26 साल के नौजवान कौन सा तीर मार लेंगे? उनके इस दावे को तो हम कोरे उत्साह के खाने में डालकर छोड़ दे सकते हैं लेकिन इस काम के लिए किसी ‘महापुरुष’ की प्रतीक्षा का क्या मतलब है? क्या वे कोई तानाशाह चाहते हैं या कोई मुहम्मद तुगलक चाहते हैं या कोई हिटलर, मुसोलिनी और स्तालिन चाहते हैं? क्या वे स्तालिन के रुस और माओ के चीन की तरह भारत में डंडे का राज चाहते हैं? यदि हां तो मानना पड़ेगा कि उन्होंने लोकतंत्र को रद्द कर दिया है। यह रवैया निराशा और बौद्धिक गरीबी का सूचक है। यदि जनता जागरुक हो तो जैसा डा. लोहिया ने कहा था कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करतीं। यदि देश की व्यवस्था सड़ी-गली दिख रही है तो जैसे तवे पर रोटी उल्टी-पल्टी जाती है, वैसे ही सरकारों को बदल डालना क्यों नहीं चाहिए? भारत छोड़कर विदेशों में बस जाने की बात बेहद गंभीर है। यह हमारे युवकों में छा रहे पलायनवाद और घोर स्वार्थीपन का प्रमाण है। यह हमारी सरकारों की नकल की प्रवृत्ति का भी तार्किक परिणाम है। हमारे नेता, जो कि नौकरशाहों के नौकर हैं, पश्चिमी राष्ट्रों की नकल करते हैं। वे उनकी मानसिक गुलामी के शिकार हैं। हमारी युवा-पीढ़ी में दम हो तो वे देश के नेताओं को खदेड़ें, देश के हालात सुधारें और इस महान देश को अपने लिए ही नहीं, सारे संसार के युवकों के लिए आकर्षक बना दें। [लेखक डा. वेद प्रताप वैदिक देश के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं. उनसे संपर्क dr.vaidik@gmail.com के जरिए किया जा सकता है]

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Dakhal News 21 December 2016


ओम थानवी

ओम थानवी  नोटबंदी से ये कमाल का भ्रष्टाचार उन्मूलन हुआ। लोग क़तारों में खड़े हैं, कुछ जान पर खेल रहे हैं और देश भर में जगह-जगह से नए नोटों की लाखों-करोड़ों में बरामदगी की ख़बरें आ रही हैं। हालात ऐसे हैं कि नए नोटों की बरामदगी की किसी भी रक़म पर लोगों को अविश्वास नहीं होता। जब जयपुर में 1.57 करोड़ के नोट (1.38 करोड़ के नए) पकड़े गए, दशमलव जाने कहाँ उड़ गया और आजतक, अमर उजाला, जनसत्ता, न्यूज़ एक्स आदि में 157 और 138 करोड़ की ख़बर शाया हो गई। कहा जा सकता है कि टीवी-अख़बारों को तथ्य जाँचने चाहिए, पर इसका दूसरा पहलू यह है कि नोटों की तस्करी नोटबंदी में बहुत आम चीज़ हो गई है। पता नहीं कितने बैंक कर्मचारी इसमें पतित, कितने मालामाल हो गए। कमोबेश सारा काला धन सफ़ेद हो गया। इस गोलमाल में जो पकड़े गए, उनसे उनकी तादाद बहुत ज़्यादा होगी जो नहीं पकड़े जा सके। अब बैंकों के सीसीटीवी खंगाले जा रहे हैं (पीएम का कथित "स्टिंग"!)। और तो और, जनता तक पहुँचें न पहुँचें नए नोट आतंकवादियों तक पहुँच चुके हैं। जब नोटों की कालाबाज़ारी हो रही है तो क़ीमत देकर कोई भी ख़रीद, बदलवा सकता है। कहना न होगा, कांग्रेस के वक़्त भी ख़ूब घोटाले हुए, मगर यह नोटबंदी भी भ्रष्टाचार का मामूली हादसा नहीं।[वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी की एफबी वॉल से ]  

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Dakhal News 19 December 2016


अरनब लाएंगे अपना न्यूज़ चैनल रिपब्लिक

अंग्रेजी न्यूज चैनल टाइम्स नाऊ के साथ 10 साल तक रहने के बाद एडिटर इन चीफ पद से इस्तीफा देने वाले अर्नब गोस्वामी ने खुद का चैनल लाने की जो घोषणा की थी, वह अब मूर्त रूप लेने लगा है। चैनल के नाम की घोषणा कर दी है।  चैनल का नाम ‘रिपब्लिक’ होगा. अरनब गोस्वामी के नए वेंचर का नाम होगा Republic जो यूपी चुनाव से पहले लांच हो जाएगा।  चर्चा है कि रिपब्लिक चैनल की लांचिंग रिपब्लिक डे के दिन की जाएगी।  ज्ञात हो कि टाइम्स नाऊ छोड़ने के पूरे एक महीने बाद अरनब गोस्वामी ने अपने नए वेंचर के नाम की घोषणा की है।  अरनब का नया चैनल 2017 की पहली तिमाही में होने जा रहे उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव से पहले शुरू हो जाएगा।  अरनब गोस्वामी इस लिए भी जाने जाते हैं कि टाइम्स नाऊ पर उनके प्राइम टाइम डिबेट शो ‘The News Hour’ के कारण उस समय चैनल की 60 फीसदी कमाई सिर्फ इसी शो से होने लगी थी।  अरनब के इस कार्यक्रम को सभी चैनलों से ज्‍यादा दर्शक मिलने लगे थे और इसका विज्ञापन रेट भी सबसे ज्‍यादा था। [भड़ास फॉर मीडिया से ]  

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Dakhal News 18 December 2016


मानहानि मुकदमे

सुनील कुमार राहुल गांधी ने मोदी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप के सुबूत होने की बात तो उछाली, लेकिन उस बारे में कुछ कहा नहीं। अब सोशल मीडिया और इंटरनेट पर उनके दुबक जाने के तरह-तरह के विश्लेषण किए जा रहे हैं। इनमें से एक बात जो उभरकर आती है, वह यह है कि प्रधानमंत्री या भाजपा की तरफ से मानहानि का कोई मुकदमा होने पर वह राहुल गांधी को एक बार फिर अदालत तक घसीट सकता है, और वे अभी आरएसएस के बारे में कही अपनी एक बात को लेकर वैसे भी अदालती कटघरे में खड़े हुए हैं कि गांधी की हत्या संघ के लोगों ने की थी। लोगों का ऐसा मानना है कि वे संसद के भीतर तो यह बात कहना चाहते थे, क्योंकि संसद में कही बात पर कोई अदालती कार्रवाई नहीं हो सकती। लेकिन इस बारे में हम दो दिन पहले लिख चुके हैं, और आज लिखने का मुद्दा राहुल गांधी न होकर मानहानि का कानून और मानहानि के मुकदमे हैं। देश में अलग-अलग ताकत रखने वाले लोग मानहानि के कानून का अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल करते हैं। मोटे तौर पर कोई भी बयान मीडिया के मार्फत ही सार्वजनिक जीवन में आते हैं, और ऐसे बयान देने वाले लोगों के साथ-साथ अखबार या टीवी पर भी मुकदमा चलाया जाता है। ये मुकदमे दो तरीके के रहते हैं, एक में तो झूठी बदनामी करने के आरोप में बयान देने वाले, या रिपोर्ट छापने वाले को सजा की मांग की जाती है, और दूसरे मामले रहते हैं जिनमें मानहानि के लिए मुआवजे की मांग की जाती है। देश में सौ-सौ करोड़ रूपयों का मुआवजा मांगते हुए मानहानि के मुकदमे हर बरस दो-चार तो सामने आते ही हैं, और छत्तीसगढ़ में भी नेता, अफसर ऐसे कई मुकदमे दायर करते हैं, और उनमें से अधिकतर मामले किसी समझौते के साथ खत्म हो जाते हैं।  हम यहां मोटे तौर पर मीडिया के बारे में लिखना चाहते हैं, जिसका एक हिस्सा हमेशा ही ब्लैकमेलर की तरह बदनाम रहता है, और मीडिया में बुरे लोग उसी तरह रहते ही हैं जिस तरह सरकार या राजनीति में रहते हैं, कारोबार या धर्म-आध्यात्म में रहते हैं। ऐसे में जब कोई ताकतवर कमर कस लेते हैं कि झूठी खबर या रिपोर्ट छापने वाले या टीवी पर दिखाने वाले को अदालत से सजा दिलवाना ही है, तो भारत के कानून मीडिया का साथ अधिक दूर तक नहीं दे पाते। और ऐसा भी नहीं है कि किसी रिपोर्ट के सच होने पर कानून मीडिया का साथ देता हो। कानून केवल उसी सच का साथ दे पाता है जो अदालत के कटघरे में अपने पैरों पर खड़ा होकर अपने होने को साबित कर पाता है। जो सच अदालत में साबित नहीं हो पाता, वह सबको पता होने पर भी किसी काम का नहीं रहता। अदालत किसी सच को नहीं मान लेती, वह उसी सच को मानती है जिसे कि साबित किया जा सकता है। ऐसे में मीडिया के जो लोग किसी सच को लेकर इस धोखे में रह जाते हैं कि उसे दिखाकर या छापकर लोकतंत्र में बचा जा सकता है, वे लोग फंस जाते हैं। फिर मीडिया के कुछ लोग सोचा-समझा झूठ छापकर अपने आपको बेचते हैं, और सचमुच ही किसी की मानहानि में लग जाते हैं। ऐसे लोग भी तभी तक शान से घूम सकते हैं जब तक कोई उन्हें अदालत में चुनौती न दें। दरअसल भारत में मीडिया की आदतें इसलिए बिगड़ी हुई हैं कि सार्वजनिक जीवन के लोग मानहानि का मुकदमा दायर करके अदालती कटघरे में खड़े होकर सौ किस्म के और सवालों के जवाब देना नहीं चाहते। अदालत के बाहर की बातों पर तो वे अदालत तक आ जाते हैं, लेकिन जब अदालत में मीडिया के वकील उनसे सौ तरह के और दूसरे सवाल करते हैं, तो उनके जवाब देने का हौसला कम ही लोगों में रहता है। ऐसे में कानून रहते हुए भी उसकी तरफ से बेफिक्र मीडिया बदनीयत भी हो जाता है, और लापरवाह भी। कभी वह सोच-समझकर किसी के खिलाफ झूठी बातें छापने-दिखाने लगता है, तो कभी वह लापरवाही से यह सोचकर यह काम करने लगता है कि उसके खिलाफ भला कोई क्या अदालत जाएगा।  हमारा यह मानना है कि खुद मीडिया के भले के लिए मानहानि के मुकदमे होने चाहिए, और जब उनमें सचमुच कुसूरवार लोगों को सजा मिलेगी, तो ही बाकी मीडिया के लोगों को नसीहत मिलेगी। आज कुछ कुसूरवार बचे रहते हैं, तो बाकी लोग चाहकर या बिना चाहे ही कुसूरवार बनते रहते हैं। यह सिलसिला खत्म होना चाहिए, और लोकतंत्र में मीडिया की आजादी जितनी जरूरी है, उतना ही जरूरी है मीडिया का जिम्मेदार होना। किसी भी सभ्य समाज में जिम्मेदारी के बिना कोई अधिकार नहीं दिए जा सकते। [ सुनील कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं उनका यह आलेख दैनिक छत्तीसगढ़ का संपादकीय है ]  

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Dakhal News 17 December 2016


trp wk 49

एमपी-सीजी में जी न्यूज़ हर सप्ताह अपने ही रिकॉर्ड ब्रेक कर रहा है। बीते सप्ताह जी न्यूज़ की trp 61 पार पहुँच गई। वहीँ नेशनल न्यूज़ चैनल में सभी न्यूज़ चैनल की trp डाउन हुई है।    मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप थ्री  न्यूज़ चैनल Week 49th TRP Zee MPCG.    61.3% ETV MP CG   16.1 IBC 24.           15.7%     नेशनल न्यूज़ trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 49 Aaj Tak 16.5 dn 2.0  ABP News 14.0 dn 1.5  India TV 13.7 dn 1.8  Zee News 13.3 dn 1.6  India News 11.0 up 11.0 (released this week)  News 24 9.2 dn 1.5  News Nation 8.3 dn 1.2  News18 India 7.1 dn 1  NDTV India 3.0 dn 0.2  Tez 2.2 dn 0.1  DD News 1.7 dn 0.1    TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 15.9 dn 1.3  India TV 14.4 dn 1.3  Zee News 14.4 dn 1.2  ABP News 13.6 dn 1.4  India News 9.3 up 9.3 (released this wk)  News 24 8.5 dn 1.5  News Nation 8.4 dn 1.1  News18 India 7.9 dn 1.1  NDTV India 3.9 dn 0.1  Tez 2.2 dn 0.2  DD News 1.6 dn 0.1

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Dakhal News 15 December 2016


सिद्धार्थ मलैया

  मध्यप्रदेश  के वित्तमंत्री और इंदौर के प्रभारी जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया पर आरोप है कि उन्होने जीटीवी के बकाया 1 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं किया। जीटीवी ने पुलिस से शिकायत की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब मामला सीएम शिवराज सिंह के दरबार में पहुंचा है वित्त मंत्री के पुत्र की कम्पनी 'ओम सत्यम' दमोह, सागर, नरसिंहपुर, शहडोल, सतना आदि में केबल नेटवर्क चला रही है। सिद्धार्थ मलैया की कम्पनी पर आरोप है कि वह पेड चैनल का भुगतान किए बगैर, चोरी से ज़ी टीवी के पेड चैनल्स का प्रसारण कर रही है। ज़ी इंटरटेंटमेंट लिमिटेड ने सिद्धार्थ मलैया की कंपनी द्वारा पेड चैनल की पाईरेसी के सबूत इक्ट्ठा कर जब सिद्धार्थ मलैया से पेमेंट की मांग की, तो सिद्धार्थ मलैया ने यह कहकर हाथ झाड़ लिए कि अगर कोई निजी व्यक्ति उनकी कंपनी का बॉक्स लगाकर पेड चैनल की चोरी करता है, तो उसकी जिम्मेदारी उनकी नहीं है। ज़ी इंटरटेंटमेंट लिमिटेड के आईपीआर कंसलटेंट मोहम्मद अकील ने आरोप लगाया कि सिद्धार्थ मलैया की कंपनी द्वारा बगैर भुगतान किए पेड चैनल दिखाना पाईरेसी एक्ट के तहत एक जुर्म है। सिद्धार्थ मलैया की कंपनी द्वारा पेड चैनल दिखाने का भुगतान करीब एक करोड़ रुपए से अधिक का बनता है। इस मामले में कंपनी ने सतना में सिद्धार्थ मलैया की कम्पनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है। इसके अलावा ज़ी इंटरटेंटमेंट लिमिटेड ने दमोह में भी सिद्धार्थ मलैया की कंपनी के खिलाफ शिकायती आवेदन दिया है। जब इस आवेदन पर पुलिस द्वारा जांच के नाम पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो कम्पनी ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से की है। वहीं सिद्धार्थ मलैया का कहना है कि चार-पांच शहरों में नेटवर्क हैं। फ्रेंचाइजी भी दे रखी हैं। दमोह में पेड चैनल बंद कर रखा है, लेकिन यदि कोई हमारा बॉक्स लगाकर पायरेसी कर रहा है तो हम क्या करें। ऐसा नहीं है कि कोई शिकायत नहीं है, दो बार केस भी चला। सतना में पुलिस ने एक्शन भी लिया। हमने कुछ सुधार भी किए लेकिन अब कंपनी दबाव बना रही है। उन्होंने मुख्यमंत्री को शिकायत की है तो अब जांच होने दीजिए।  

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Dakhal News 14 December 2016


patrkaar hamla

भोपाल के होशंगाबाद रोड स्थिति कवर्ड कैंपस चिनार फॉर्चून सिटी में तीन बदमाशों ने एक पत्रकार पर जानलेवा हमला कर दिया। उनका कसूर सिर्फ इतना था उन्होंने कॉलोनी में घुसे बदमाशों को चोरी करने से रोका था। पत्रकार को पीठ और कंधे पर चाकू के दो गंभीर घाव लगने के बाद निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। फिलहाल पुलिस आरोपियों के बारे में पता नहीं लगा पाई है। मकान नंबर-302 चिनार फॉर्चून निवासी अभिषेक त्रिपाठी (24) पिता वेदप्रकाश त्रिपाठी पत्रकार हैं। उनके साथ उनके सीनियर मूलतः कानपुर निवासी आलोक पांडे (42) रहते हैं। अभिषेक ने बताया कि शनिवार रात करीब 12 बजे वे घर पर आकर सो गए। इसके बाद रात करीब डेढ़ से 2 बजे के बीच आलोक भी घर पहुंचे। खाना खाने के बाद रात करीब ढाई बजे आलोक को कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनाई दी। लगातार कुत्तों के भौंकने पर वे डंडा लेकर गैलरी से नीचे उतरे तो उन्हें एक अज्ञात युवक भागते दिखा। उन्होंने उसका पीछा कर दबोच लिया। उनके बीच झूमा-झपटी होने लगी। तभी दो और बदमाशों ने वहां पहुंचकर आलोक को घेर लिया। साथी को छुड़ाने के लिए बदमाशों ने उन पर ताबड़तोड़ पांच वार चाकू चलाया। दो वार उनके कंधे और कमर में लग गए। उनकी आवाज सुनकर मैं बाहर आया तो बदमाश भाग निकले। मैंने तत्काल आलोक को पास के निजी अस्पताल में भर्ती कराया। घाव गहरे होने के कारण उनका आईसीयू में इलाज चल रहा है। बदमाश कॉलोनी में वाहन चोरी की नियत से घुसे थे। बदमाश दो पहिया वाहनों के लॉक तोड़ने में लगे हुुए थे। इसी दौरान आलोक की नजर पड़ गई और बदमाशों को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। कवर्ड कैंपस होने के बाद भी कॉलोनी में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। पुलिस को जांच में कैंपस के अंदर लगे सभी सीसीटीवी कैमरे बंद मिले, जबकि रात को ड्यूटी पर तैनात दोनों गार्ड भी वारदात के दौरान सो रहे थे। वारदात के बाद भागे बदमाशों को गार्ड ने पकड़ने तक का प्रयास नहीं किया। मिसरोद टीआई राजबहादुर सिंह कुशवाहा ने बताया कि कैंपस के अंदर के सभी सीसीटीवी बंद मिले हैं। अब तक की जांच में आरोपियों का सुराग नहीं मिल पाया है। पुराने बदमाशों और चोरों से भी पूछताछ कर रहे हैं।  

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Dakhal News 12 December 2016


trp wk 48

  48 वें सप्ताह में भी आज तक पहले और इण्डिया टीवी दूसरे स्थान पर रहा। वहीँ एबीपी न्यूज़ का झटके खाना बंद नहीं हुआ है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में ज़ी न्यूज़ को  कोई दूसरा चैनल टक्कर नहीं दे पा रहा हैं।  नेशनल न्यूज़ trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 48 Aaj Tak 18.6 dn 1.0  India TV 15.5 dn 0.5  ABP News 15.5 up 0.6  Zee News 14.9 up 0.8  News 24 10.6 up 0.4  News Nation 9.5 up 0.3  News18 India 8.2 dn 0.3  NDTV India 3.2 dn 0.4  Tez 2.4 up 0.1  DD News 1.8 dn 0.1  India News NA     TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 17.2 dn 1.1  India TV 15.7 dn 0.9  Zee News 15.6 up 1.1  ABP News 14.9 up 1.0  News 24 10.0 up 0.7  News Nation 9.5 up 0.4  News18 India 9.0 dn 0.1  NDTV India 4.0 dn 0.8  Tez 2.4 dn 0.1  DD News 1.7 dn 0.2  India News NA Week 48th TRP मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव रीजनल न्यूज़ चैनल Zee MPCG.  57.0℅ IBC.               18..2℅ ETv.               15.4℅ Bansal.          05.2℅ Ind News       02.7℅

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Dakhal News 10 December 2016


time modi

अमेरिका की प्रतिष्ठित टाइम पत्रिका ने देश के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को "टाइम पर्सन ऑफ द ईयर 2016" घोषित कर दिया। ट्रंप को राष्ट्रपति चुनाव में अद्भुत जीत हासिल करने के लिए यह खिताब मिला। इससे पहले पाठकों के ऑनलाइन मतदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विजयी रहे थे। 18 फीसदी वोट के साथ मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज व ट्रंप जैसे दिग्गजों को पीछे छोड़ दिया था। मोदी टाइम द्वारा चयनित आखिरी 11 उम्मीदवारों में भी शामिल थे। टाइम ने कहा कि ट्रंप ने गैर-राजनीतिक व्यक्ति होते हुए भी व्यवस्था-विरोधी प्रचार किया और 70 साल की उम्र में अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति चुने गए। टाइम पर्सन की सूची में पहली उप-विजेता अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रबल दावेदार रहीं हिलेरी क्लिंटन रहीं। वहीं दूसरे उप-विजेता "ऑनलाइन हैकर्स" रहे। वहीं, पीएम मोदी के मामले में टाइम ने कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री देश की अर्थव्यवस्था को ऐसी स्थिति में ले गए हैं जो उभरते बाजार के तौर पर दुनिया की सबसे सकारात्मक कहानी है। यह दूसरा मौका था जब नरेंद्र मोदी ने रीडर्स पोल जीता था। इसमें ट्रंप को महज आठ फीसदी वोट मिले थे। 2014 में उन्हें कुल 50 लाख में से 16 फीसदी से ज्यादा मत हासिल हुए थे। मोदी लगातार चौथी बार इस खिताब के दावेदारों में शामिल हुए थे। पिछले साल जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल को टाइम पर्सन ऑफ द ईयर चुना गया था। टाइम का कहना है कि पाठकों का मतदान यह बताता है कि उनकी राय में साल 2016 को आकार देने में किस हस्ती का योगदान सबसे अहम रहा है। यह अमेरिकी पत्रिका हर साल एक ऐसी हस्ती को यह सम्मान प्रदान करती है जिसने "अच्छी" या "खराब" वजहों से खबरों और दुनिया को प्रभावित किया हो।  

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Dakhal News 8 December 2016


पत्रकार रवींद्र कैलासिया

  अक्खड़ और ईमानदार पत्रकारिता की मिसाल  महेश दीक्षित  मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और नवदुनिया भोपाल में न्यूज एडिटर रवीन्द्र कैलासिया प्रदेश के उन अक्खड़ एवं ईमानदार पत्रकारों में शुमार हैं कि उनसे ऐसा-वैसा तो बात करने मेें ही घबराता है। एक समय उनके बारे में कहा जाता था कि यदि कुछ सुनना है, तो कैलासिया से मुंहजोरी करो। वर्ना उनके सामने चुप रहो, तो ज्यादा ठीक है। पुलिस वाला हो या पत्रकार या फिर कोई रसूखदार उनसे बात करने में प्राय: झिझकते हैं। कैलासिया में यह कोई दुर्गुण नहीं, बल्कि उनकी विषय पर पकड़ को साबित करती है। वे हर विषय में इतने निपुण और जानकारी रखने वाले हैं कि उनसे बहस करना नामुमकिन है। कैलासिया प्रदेश के अच्छे क्राइम रिपोर्टर्स में से हैं। इस वजह से कई बार वे पुलिस महकमे के अफसरों की आंखों की किरकिरी भी बने। पर, कैलासिया ने रिपोर्टिंग का अपना स्टाइल नहीं बदला और जो सच लगा वह ही लिखा। तीन दशक से पत्रकारिता में सक्रिय कैलासिया ने स्कूली शिक्षा भोपाल के श्यामला हिल्स स्थित रीजनल स्कूल से पूरी की। इसके बाद 1984 में उच्च शिक्षा के लिए इंदौर चले गए। पिता के नईदुनिया से पारिवारिक रिश्ते थे, सो कैलासिया ने पढ़ाई के साथ नई दुनिया में काम करना शुरू कर दिया। पत्रकारिता के तत्कालीन पुरोधाओं के मार्गदर्शन में कोई ढाई साल तक पत्रकारिता की बेसिक ट्रेनिंग ली। धीमे-धीमे माहौल में ऐसे डूब गए कि पता ही नहीं चला कि कब पत्रकारिता का जुनून सवार हो गया। इसके बाद 1998 में इंदौर से प्रकाशित चौथा संसार से जुड़ गए। वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया के साथ जो कि उस समय चौथा संसार के भोपाल ब्यूरो चीफ हुआ करते थे, के साथ खूब काम किया। नईदुनिया समूह के भोपाल-इंदौर संस्करणों के विभाजन के दौरान नईदुनिया भोपाल में स्व. मदनमोहन जोशी के सानिध्य में क्राइम रिपोर्टिंग की शुरुआत की। एक के बाद एक सक्सेस स्टोरीज ने उन्हें एक अच्छे क्राइम रिपोर्टर के तौर पर प्रदेश में स्थापित कर दिया। इसके बाद कैलासिया ने वर्ष 1995 में नवभारत में बतौर सीनियर क्राइम रिपोर्टर ज्वाइन किया। यहां तत्कालीन संपादक श्री विजयदत्त श्रीधर और श्री अवधेश बजाज के सानिध्य में अपनी पत्रकारिता को नए तेवर दिए। श्री बजाज ने क्राइम रिपोर्टिंग के साथ उनका पॉलिटिकल रिपोर्टिंग में भी उपयोग किया। इस दौरान उनकी भोपाल में हुए दंगे की सही, संतुलित और सटीक रिपोर्टिंग की खूब चर्चा हुई। इसके लिए उन्हें पुरस्कृत भी किया गया। वर्ष 2000 में दैनिक भास्कर भोपाल ने श्री कैलासिया के लिए बतौर चीफ क्राइम रिपोर्टर ऑफर किया। यहां उन्होंने संपादक श्री महेश श्रीवास्तव, नरेंद्र कुमार सिंह और स्व बाबूलाल शर्मा के साथ काम करते हुए पत्रकारिता को खूब निखारा। उनकी प्रतिभा को देखते हुए भास्कर ने उन्हें सिटी चीफ, सिटी भास्कर प्रभारी, डीबी स्टार में विशेष संवाददाता प्रमोट किया। इस बीच उन्होंने भास्कर ग्वालियर और पत्रिका जबलपुर में भी काम किया। इसके बाद उन्होंने इलेक्ट्रानिक मीडिया की ओर रुख किया। भास्कर ने उन्हें बीटीवी में प्रभारी संपादक बनाया। यहां श्री कैलासिया ने तीन साल तक करते हुए इलेक्ट्रानिक मीडिया में अपनी अलग पहचान बनाई। इस दौरान श्री कैलासिया को श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए कई पुरस्कार भी मिले। इनमें सत्यनारायण श्रीवास्तव श्रेष्ठ रिपोर्टिंग प्रमुख हैं। 995 पुरस्कार मिले हैं। श्री कैलासिया का कहना है कि पत्रकारिता में अब मूल्यों के साथ काम करने की बड़ी चुनौतियां हैं।

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Dakhal News 6 December 2016


rajendr dhanotiya

छात्र राजनीति के धाकड़ बने धाकड़ पत्रकार महेश दीक्षित अपने समय के धाकड़ पत्रकार वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र धनोतिया के बारे में यह बात कम लोग ही जानते होंगे कि एक समय वे भोपाल की छात्र राजनीति में धाकड़ युवा राजनेता के तौर पर जाने जाते थे। आज उनकी पहचान एक कुशल और गंभीर पत्रकार के रूप में होती है। 1984-86 के दौरान रवींद्र कॉलेज में स्नातक की पढ़ाई करते हुए श्री धनोतिया युवा राजनीति में सक्रिय रहे। कॉलेज छात्र संघ का चुनाव स्वयं लड़ा और कई सालों तक अपने संगी-साथियों को चुनाव लड़ाया। 27 जुलाई, 1961 को जन्मे श्री धनोतिया बेहद पढ़े-लिखे हैं। वे बीए, एलएलबी, एमए (अर्थशास्त्र), एमए (समाजशास्त्र) और एमए (दर्शनशास्त्र) डिग्री प्राप्त हैं। पढ़ाई के दौरान राजेंद्र महाविद्यालय से प्रकाशित होने वाली पत्रिकाओं में लेखन का कार्य करते रहे। इसी दौरान उनकी पत्रकारिता की तरफ रुचि जागी और वे समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लिखने लगे। यह सिलसिला वर्ष-1983 तक चला। वर्ष 1984 से उन्होंने दैनिक भास्कर में बतौर प्रशिक्षु रिपेार्टिंग की शुरुआत की। भास्कर में रहते कई खबरों पर काम किया, जो बेहद चर्चा में रहीं। भास्कर में वरिष्ठ साथियों के मार्गदर्शन में श्री धनोतिया को जो पत्रकारिता में सीखने मिला, आज वे अपने जूनियर साथियों के साथ बांट रहे हैं। यहां 4 वर्षों तक काम करने के बाद वर्ष-1988 में नवभारत ज्वाइन कर लिया। यहां जिला प्रशासन, नगर निगम, अपराध एवं छात्र राजनीति से जुड़े विषयों की रिपोर्टिंग तथा विशेष संवाददाता के रूप में राजनीतिक एवं प्रशासनिक खबरों का संकलन करने का काम किया। नवभारत में छात्रों से जुड़ी खबरों को विशेष रूप से उठाया, ताकि उनके सामने आ रही दिक्कतों को दूर किया जा सके। नवभारत में उनकी लेखनी विशेष तौर पर सुधरी। इसके बाद वर्ष-2001 में ‘सी-न्यूज’ में विशेष संवाददाता के तौर पर जुड़े। खास बात यह है कि वे वर्ष-2003 में इसी चैनल के संपादक भी बने। मई 2006 में सांध्य दैनिक फाइन टाइम्स में संपादक के तौर पर सेवाएं दीं। जून 2008 में सांध्य प्रकाश और इसके बाद कुछ सालों तक पीपुल्स समाचार में विशेष संवाददाता के तौर पर सेवाएं दीं। लेकिन नौकरी के बंधन और समय की पाबंदी श्री धनोतिया को चुभने लगी तो उन्होंने वर्ष 2013 में अपना खुद का न्यूज पोर्टल-राजकाज शुरू कर दिया। राज्य विधान सभा में उत्कृष्ट रिपोर्टिंग के लिए विशेष तौर पर पुरस्कृत किया गया। इसके साथ ही प्रशासनिक रिपोर्टिंग के लिए भी पुरस्कृत किया गया। राजनीतिक समाचार संकलन के लिए स्वर्गीय सत्यनारायण श्रीवास्तव स्मृति सम्मान एवं विचित्र कुमार सिन्हा स्मृति पुरस्कार, कर्मचारी जगत की समस्याओं को लंबे समय तक उजागर करने के लिए स्वर्गीय सत्यनारायण तिवारी स मान दिया गया। राजेंद्र जी का कहना है कि वे एक ध्येय लेकर पत्रकारिता में आए है, वह है समाजसेवा। उनका कहना है कि पत्रकारिता समाज की भलाई के लिए एक ऐसा मंच है, जिसका उपयोग भरपूर करना चाहिए, ताकि हम समाज में फैली बुराई को मिटा सकें। समाज के प्रति कुछ करने की प्रेरणा राजेंद्रजी को पिता श्री रामचन्द्र धनोतिया से मिली है। पिता बचपन से ही कड़ी मेहनत और अच्छे संस्कारों की बात किया करते थे। उनका कहना है कि किसी सम्मान से प्रतिभा का आकलन नहीं किया जा सकता। ऐसे कई पत्रकार हैं, जो बिना सम्मान पाए भी बेहतर काम कर रहे हैं।  

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Dakhal News 5 December 2016


patrkar pension

मध्यप्रदेश के बुजुर्ग पत्रकारों को दी जा रही श्रद्धा निधि में सरकार ने एक हजार रुपये की बढ़ोतरी की है। जो इस महंगाई के समय में ऊंट के मुह  में  जीरे जैसी है।  मध्यप्रदेश के तमाम पत्रकार संगठनों ने इस श्रद्धा निधि को पांच हजार प्रतिमाह से बढ़ाकर पन्द्रहा हजार करने की मांग की थी। भोपाल में  शिवराजसिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकारों को मिल रही श्रद्धा निधि में 20 प्रतिशत की वृद्धि की मंजूरी दी है।  यह राशि अब 5 हजार रुपए प्रतिमाह से बढ़कर 6 हजार रुपए प्रतिमाह होगी। इससे प्रदेश के 109 वरिष्ठ एवं बुजुर्ग पत्रकार लाभान्वित होंगे। मंत्रिपरिषद ने प्रदेश की जनता को स्वास्थ्य सेवाओं की सहज उपलब्धता की दृष्टि से एलोपैथिक चिकित्सक विहीन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में आवश्यक प्रशिक्षण के बाद आयुर्वेदिक-यूनानी चिकित्सकों की सेवाएँ उपलब्ध करवाने का निर्णय लिया।  

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Dakhal News 3 December 2016


मजीठिया वेज बोर्ड

शशिकांत सिंह मीडियाकर्मियों के लिये गठित जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश को सही तरीके से लागू कराने के लिये महाराष्ट्र सरकार द्वारा गठित त्रिपक्षीय समिति की पहली बैठक में मुंबई के अखबार मालिकों के प्रतिनिधि गायब रहे। कल हुयी बैठक में नवाकाल की रोहिणी खांडिलकर सहित कुछ और सदस्य गैर-हाजिर रहे। जो सदस्य आये भी वे इस बात पर ज्यादा जोर दे रहे थे कि उन्हें वो लिस्ट दी जाये जो कामगार विभाग ने तैयार किया है कि किन किन प्रतिष्ठानों में जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश पूरी तरह नहीं लागू है या आंशिक रूप से लागू है ताकि वे अखबार मालिकों से इसे नैतिक रुप से लागू करने का आग्रह करें। त्रिपक्षीय समिती की पहली बैठक मुंबई में कामगार आयुक्त कार्यालय के समिती कक्ष में ३० नवंबर को दोपहर तीन बजे से आयोजित की गयी थी। इस बैठक में पत्रकारों की तरफ से पांच प्रतिनिधि नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट की महाराष्ट्र महासचिव शीतल हरीश करदेकर, बृहन मुंबई यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट के मन्त्रराज जयराज पांडे, रवींद्र राघवेंन्द्र देशमुख, इंदर जैन कन्वेनर ज्वाइन्ट एक्शन कमेटी ठाणे और किरण शेलार शामिल हैं। मालिकों की तरफ से जो पांच लोग शामिल हैं उनमें जयश्री खाडिलकर पांडे, वासुदेव मेदनकर, विवेक घोड़ वैद्य, राजेंद्र कृष्ण रॉव सोनावड़े और बालाजी अन्नाराव मुले हैं। इस समिति में लोकमत की तरफ से दो प्रतिनिधि शामिल किये गए हैं जिनके नाम बालाजी अन्ना रॉव मुले और विवेक घोड़ वैद्य हैं जबकि रोहिणी खाडिलकर नवाकाल की हैं। इसी तरह राजेंद्र सोनावड़े दैनिक देशदूत नासिक से हैं। वादुदेव मेदनकर सकाल मराठी पेपर से हैं। बैठक की अध्यक्षता करते हुये कामगार आयुक्त महाराष्ट्र श्री यशवंत केरुरे ने कहा कि वे माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश का पालन कराने के लिये कटिबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के सभी अखबार मालिकों से ३०० रुपये के स्टांप पेपर पर एफिडेविट मंगाया है और जिन अखबार मालिकों ने एफिडेविड नहीं दिया है उनके खिलाफ कठोर कारवाई की जायेगी। समिति का कोई भी सदस्य आरटीआई डालकर एफिडेविट की प्रति ले सकता है। इस अवसर पर नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट की महाराष्ट्र महासचिव शीतल करंदेकर ने कामगार आयुक्त को एक ज्ञापन भी दिया। शीतल करंदेकर ने समिति के पावर पर चर्चा की। उन्होंने महाराष्ट्र के अखबार प्रतिष्ठानों में हुये सर्वे पर सवाल उठाया और कहा कि इस कमेटी के सदस्यों को साथ लेकर अखबारों का सर्वे होना चाहिये। उन्होंने क्लेम करने पर पत्रकारों के साथ हो रहे शोषण पर भी चर्चा की।  इस बैठक में बृहन्मुंबई यूनियन आफ जर्नलिस्ट के मंत्रराज जयराज पांडे ने मांग की कि आर टी आई के जरिये जो एफिडेविट देने की बात हो रही है उसमें अलग अलग जगहों पर एफिडेविट देने की जगह सिर्फ एक डिविजन से पूरे प्रदेश के एफिडेविट की कापी उपलब्ध करायी जाये। इस मांग को कामगार आयुक्त ने मंजूर कर इसकी जवाबदारी श्री वागल को दी। इस अवसर पर अखबारों के प्रतिनिधियों ने मांग की कि उन्हें पूरी लिस्ट दी जाये जिससे उन्हें पता चल सके कि कहां कहां पूरी तरह मजिठिया वेज बोर्ड की सिफारिश नहीं लागू है और कहां आंशिक रूप से लागू है ताकि वे अखबार मालिकों पर अपनी तरफ से नैतिक रूप से दबाव बना सकें। उनकी इस मांग को मंजूर कर लिया गया और कहा गया कि कामगार आयुक्त कार्यालय अखबार मालिकों के प्रतिनिधियों और मीडियाकर्मियों के प्रतिनिधियों दोनो को मेल के जरिये पूरी लिस्ट देंगे। इस बैठक में यह भी तय किया गया कि जो भी विवादित मुद्दे हैं जिन पर सुप्रीमकोर्ट में १० जनवरी को सुनवाई होनी है उस पर निर्णय आने तक कोई चर्चा नहीं की जायेगी और कोई कदम नहीं उठाया जायेगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय आने के बाद ही इन मुद्दों पर चर्चा की जायेगी। इस बैठक में इस बात पर नाराजगी जतायी गयी कि एफिडेविट की प्रति आखिर बिना आरटीआई डाले कमेटी को क्यों नहीं दी जा सकती है। इस पर आयुक्त ने कहा कि ये एफिडेविट सुप्रीमकोर्ट को भेजने के लिये मंगाया गया है और उसे सरकार की तरफ से भी कमेटी को देने का कोई निर्देश नहीं प्राप्त हुआ है। इस बैठक मे लोकमत और सकाल के प्रतिनिधियों ने कहा कि जहां वेज बोर्ड की सिफारिश लागू नहीं है वहां नैतिक आधार पर इसे लागू कराने का आग्रह करेंगे। [ भड़ास फॉर मीडिया से साभार ]  

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Dakhal News 2 December 2016


trp week 47

एबीपी जहाँ अपनी खोई जगह पाने की जद्दोजहद में लगा है। वहीँ एड़ीचोटी का जोर लगाने के बाद भी इण्डिया टीवी आज तक को पछाड़ नहीं पा रहा है। 47 वें सप्ताह में आज तक 18 फीसदी पार कर गया है। मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ में ज़ी के मुकाबले कोई भी चैनल टिक नहीं पा रहा है। जी का कब्ज़ा अब भी आधे से ज्यादा दर्शकों पर हैं।    नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 47 Aaj Tak 19.5 dn 0.2  India TV 16.0 up 0.2  ABP News 14.9 up 0.3  Zee News 14.1 dn 0.4  News 24 10.2 up 0.5  News Nation 9.1 dn 0.2  News18 India 8.5 up 0.3  NDTV India 3.6 dn 0.4  Tez 2.3 up 0.2  DD News 1.8 dn 0.3  India News: NA   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 18.3 up 0.3  India TV 16.6 up 0.2  Zee News 14.5 dn 1.0  ABP News 13.9 up 0.2  News 24 9.3 up 0.2  News Nation 9.1 same   News18 India 9.1 up 0.1  NDTV India 4.8 dn 0.2  Tez 2.5 up 0.3  DD News 1.9 dn   India News NA मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव रीजनल न्यूज़ चैनल trp week 47 Zee MPCG 51.7% ETV MPCG       19.9% IBC 24 16.4% Bansal News - 8.0% India News MP -2.2%

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Dakhal News 1 December 2016


shivraj singh

समाचार चैनल न्यूज़ नेशन के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि डिजिटल इकानॉमी भारत का भविष्य है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी के फैसले के पीछे पूरा देश उनके साथ है। मुख्यमंत्री चौहान  समाचार चैनल न्यूज़ नेशन द्वारा उनके 11 वर्ष के कार्यकाल पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री चौहान ने कहा है कि इस तरह का फैसला देशभक्त और युगपुरूष प्रधानमंत्री ही ले सकते हैं। नोटबंदी से नकली करंसी, काला धन और भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी। प्रधानमंत्री ने यह साहसिक फैसला देश के बेहतर भविष्य के लिये लिया है। देश के व्यापक हित में देशभक्त नागरिक थोड़ी कठिनाई उठा सकते हैं जिसका जो लाभ होगा वो देश को आगे ले जायेगा। रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिये मध्यप्रदेश में 2.83 लाख करोड़ रूपये का पूँजी निवेश लाया गया है। प्रदेश के युवाओं को उद्यमी बनाने के लिये मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना और मुख्यमंत्री युवा स्व-रोजगार योजना लागू की गयी है। इस योजना में गत वर्ष 53 हजार युवाओं को लाभान्वित किया गया है। इस वर्ष 5 लाख युवाओं को स्व-रोजगार के लिये ऋण देंगे। युवाओं में उद्यमिता को प्रोत्साहित किया जा रहा है। युवा उद्यमियों की मदद के लिये वेंचर केपिटल फण्ड बनाया गया है। कृषि को लाभ का धंधा बनाने के लिये खेती और सिंचाई पर फोकस किया गया है। बेटियों के प्रति भेदभाव समाप्त करने के लिये लाड़ली लक्ष्मी योजना बनाई गई है। 

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Dakhal News 30 November 2016


patrkar bhopal

  अनुराग उपाध्याय  प्रवीण दुबे, अश्विनी कुमार मिश्रा ,नीरज श्रीवास्तव ,आर सी साहू और संदीप सिंह भोपाल के वो पत्रकार हैं जिन्होंने भोपाल जेलब्रेक और सिमी के भगोड़े आतंकियों के एनकाउंटर और उसके बाद के अपडेट देने में एड़ीचोटी का जोर लगाया और यह साबित कर दिया कि हर लम्हे में शानदार खबरदारी कैसे की जा सकती है। इन पांच पत्रकारों की चर्चा इसलिए भी लाज़मी है कि यह सभी टेलीविजन से जुड़े हुए हैं और इस पूरे घटनाक्रम को कवर करने में मीर साबित हुए। वहीँ इन लोगों ने टीवी के उन तथाकथित बड़े कहे जाने वाले पत्रकारों की नींद भी उड़ा दी है जो टेलीविजन में जुगाड़ के जरिये खुद को बड़ा पत्रकार तो कहलवाना पसंद करते हैं लेकिन बड़ी खबरदारी कभी नहीं कर पाए।  दीपावली  की अगली सुबह भोपाल जेल ब्रेक और उसके बाद आठों सिमी आतंकियों का एनकाउंटर भोपाल के टीवी पत्रकारों के लिए एक बड़ी घटना थी । इस तरह की घटनाएं कम ही होती है। ये बताती हैं कि पत्रकार कैसे और किस गति से काम कर रहे हैं। सुबह चार बजे लगातार मेरा फोन बज रहा था। अल सुबह भोपाल से एक पुलिस अधिकारी मित्र ने दीपावली की शुभकामनाओं के साथ जेल ब्रेक की अशुभ खबर भी दी।मेरी समझ आ गया था दीवाली की राम राम तो एक बहाना था।  मैने तत्काल टीवी चालू किया ,मेरी नजर के सामने दिनभर टीवी चैनल रहे और उनके अपडेट नजर आते रहे। ETV ने इस खबर को सबसे पहले दिखाया और अपनी पूरी ताकत इसमें झोंक दी। फिर ज़ी न्यूज़ और उसके बाद अन्य चैनल इस खबर पर अपनी समझ से खेलते नजर आये। इस बड़ी खबर से जुडी खबरें एक पखवाड़े तक सुर्ख़ियों में रहीं। इस बीच मुझे भी यह आकलन करने का समय मिल गया कि टीवी का कौन पत्रकार और चैनल कितने पानी में हैं।  जब यह सारा घटनाक्रम हुआ तब में ग्वालियर और डबरा में रहा लेकिन इस घटना ने मुझे टीवी और टीवी के पत्रकार साथियों से दूर नहीं होने दिया। हर पल क्या नया हो रहा है ये जानना भी जरुरी था। अलग अलग नजरियों से इस वाक्ये को समझना और ये सोचना कि अगर मैं मौका ऐ वारदात पर होता तो क्या -क्या और करता। घटना की जानकारी लगते ही ईटीवी मध्यप्रदेश छतीसगढ़ और ज़ी न्यूज़ मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ ने जेल ब्रेक से अवगत करवाया फिर बाकि रीजनल चैनल अपनी रौ में आये। डेढ़ दशक से ज्यादा इण्डिया टीवी में गुजरा है सो सबसे पहले आदतन उसे भी खंगाला लेकिन वहां निल बटे सन्नाटा था ,एबीपी ,आईबीएन 7 सो रहे थे। आज तक पर खबर सबसे पहले फ्लेश हुई बाकि इस घटना के कवरेज में आज तक भी राम भरोसे रहा। न्यूज़ नेशन जिस चैनल से मुझे  बहुत उम्मीद नहीं थी ,उसने जरूर इस घटना के कुछ वक्त बाद ही शानदार कवरेज शुरू कर दिया।  इस खबर को तत्काल तवज्जों देने में ईटीवी का कोई जवाब नहीं था। अपने सारे संसाधनों का प्रयोग करते हुए  ईटीवी के प्रमुख अश्विनी कुमार मिश्रा ने सबसे पहले अपने दफ्तर में स्टेटजी बनाई और जो रिपोर्टर जिस अवस्था में था उसे घटना स्थल से लेकर सड़क चौराहों और जंगल तक खड़ा कर दिया। भोपाल में अश्विनी को बाहरी मान कर कम आंकने वालों के लिए यह एक करार जवाब भी था और अपने काम के प्रति समर्पण भी। अश्विनी ने कम समय में जो व्यूह रचना इस खबर के लिए बनाई थी ,वह कामयाब रही। रीजनल चैनल में ज़ी न्यूज़ ने बिना संसाधन के एकदम आक्रामक रुख अपनाया। ज़ी एमपी के प्रमुख प्रवीण दुबे बहुत कम संसाधन के बीच खुद सड़कों पर उतर आये। प्रवीण ने खबर के किसी ऐंगल को नहीं छोड़ा और विश्लेषण वाले अंदाज में पूरे घटनाक्रम को अपने अंदाज में प्रस्तुत किया ,इस खबरदारी में प्रवीण को इस बात का भली भांति भान था की इस खबर में दर्शक क्या देखना और जानना चाहता हैं। रीजनल चैनल में बंसल ,इण्डिया न्यूज़ की टीम ने भी जमकर अपना दम दिखाया। बाकि के हाल क्या थे उसे लिखने की जरूरत महसूस नहीं हो रही।  अब बात करते हैं नेशनल चैनल्स की इस बड़ी खबर पर एबीपी के बृजेश राजपूत और न्यूज़ 24 के गोविन्द गुर्जर से  मुझे बहुत उम्मीद थी कि वो कुछ जल्दी ,नया ,खोजपूर्ण और तथ्यपरख खबर सामने लाएंगे। लेकिन वो ऐसा कर न सके। इण्डिया टीवी ,आजतक ,आईबीएन 7 के रिपोर्टर से ऐसे में बहुत कुछ की उम्मीद बेमानी थी। लेकिन ऐसे में न्यूज़ नेशन के नीरज श्रीवास्तव ने असल पत्रकारिता की और घटना के हर उस ऐंगल को सामने लाने में सफल हुए जिसे दर्शक जानना चाहता था। नेशनल चैनल के पत्रकारों में इस घटना को लेकर नीरज श्रीवास्तव सब पर भारी साबित हुए। बाद में पता चला कि इस घटनाक्रम के समय न्यूज़ 24 के गोविन्द गुर्जर भोपाल में नहीं थे जिसका खामियाजा न्यूज़ 24 को हुआ।  जेल ब्रेक और एनकाउंटर होने के बाद ऐसे में सवाल उठाता कि कई चैनल जब रामभरोसे थे तो उन पर भी शानदार खबरदारी कैसे हुई ? जेल ब्रेक से एनकाउंटर तक सब कुछ इतनी तेजी से घट रहा था कि कुछ साथी चाह के भी कुछ नहीं कर पाए। और जो चैनल पर नजर आ रहा था वो कोई और रिपोर्टर कर रहा था। वह थे ANI के आर सी साहू और संदीप सिंह। ANI  ने अपनी दो टीमें बनाकर इस घटनाक्रम को हर ऐंगल से कवर किया और कई टीवी चैनल्स के रिपोर्टरों को आईना देखने पर मजबूर कर दिया। बड़े बड़े चैनल्स के रिपोर्टर जब तक खबर के तत्वों के बारे में सोच रहे होंगे तब तक आर सी साहू और संदीप सिंह के जरिये वो खबर ऑन एयर हो चुकी थी।  कहावत है जो  मारे सो मीर और इस घटनाक्रम के मीर तो अश्विनी मिश्रा  ,प्रवीण दुबे  ,नीरज श्रीवास्तव ,संदीप सिंह और आर सी साहू जी ही नजर आते हैं।   

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Dakhal News 29 November 2016


india news

लोग इस बात से आश्चर्यचकित थे कि आखिरकार ऐसा कैसे हो गया कि इंडिया न्यूज चैनल टीआरपी में नंबर थ्री तक पहुंच गया. एकाध शो को छोड़ दें तो इस चैनल का कंटेंट आमतौर पर दूसरे चैनलों जैसा ही होता है. फिर वो फार्मूला क्या है जिसके कारण यह चैनल टीआरपी में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है. इसका भेद खुला है अब. पता चला है कि इंडिया न्यूज समेत कुल तीन न्यूज चैनल टीआरपी मीटर में छेड़छाड़ करके अपनी टीआरपी हाई करा ले रहे थे. इस का भंडाफोड़ होने के बाद टीआरपी मापने वाली कंपनी बार्क ने इंडिया न्यूज समेत तीनों न्यूज चैनलों की टीआरपी मापने का काम चार हफ्ते के लिए स्थगित कर दिया है. ब्रॉडकॉस्‍ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल ऑफ इंडिया (बार्क) ने तीन समाचार चैनलों हिंदी समाचार चैनल इंडिया न्‍यूज, तेलगू समाचार चैनल टीवी9 और वी6 पर जुर्माना लगाया है. इस तीनों समाचार चैनलों ने टीआरपी रेटिंग मीटर से छेड़छाड़ की है. इसके चलते अब इस चैनलों की अगले चार सप्‍ताह तक बार्क इन समाचार चैनलों की रेटिंग जारी नहीं करेगा. बार्क ने बताया कि 46 से 49 सप्‍ताह तक के बीच इस समाचार चैनलों की रेटिंग जारी नहीं की जाएगी. बार्क ने अपनी जांच में पाया कि इन समाचार चैनलों ने बार्क की तरफ से घरों में लगाए गए बार्क रेटिंग मीटर के संग छेड़छाड़ की थी. पिछले कई सप्‍ताह से ये तीनों चैनल अपनी भाषाओं में टॉप पांच में स्‍थान पाने में कामयाब हो रहे थे. इंडिया न्‍यूज के सीईओ वरुण कोहली ने टीआरपी मीटर में छेड़छाड़ का खंडन नहीं किया. उन्होंने यह जरूर कहा कि बार्क के इस निर्णय से धक्‍का लगा है और बात कर मामले को जल्‍द सुलझाने की कोशिश की जा रही है. दूसरे न्यूज चैनलों के पदाधिकारियों ने बार्क के निर्णय को सही ठहराया है. इनका कहना है कि इन चैनलों ने जो तरीके अपनाएं थे, उससे कई अच्‍छे रिपोर्टर और निर्माताओं की नौकरियां चली गई थीं.  गलत तरीके से अच्‍छी रेटिंग पाना सभी के लिए खतरनाक था क्‍योंकि ये चैनल गलत तरीके से अच्छे रेट पर सरकारी और प्राइवेट विज्ञापन पाना चाहते थे. ज्ञात हो कि बार्क ने देश भर के 22000 घरों में टीआरपी मीटर लगा रखे हैं.[भड़ास फॉर मिडिया से साभार ]

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Dakhal News 28 November 2016


bk kuthiyala

 'मीडिया की वर्तमान प्रवृत्तियाँ एवं रचनात्मक पत्रकारिता की आवश्यकताएँ'' विषय पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि मीडिया की भूमिका में रिसर्च और गहन चिंतन की आवश्यकता है। वर्तमान में देश में जो नवाचार हो रहा है। मीडिया में भी ऐसे ही नवाचार की आवश्यकता है। मीडिया में युवाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। मीडिया में युवा अपनी जिम्मेदारी सिर्फ नौकरी तक सीमित न रखकर सकारात्मक भूमिका में पत्रकारिता करें, तो बदलाव में उनकी अहम भूमिका रहेगी।  

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Dakhal News 26 November 2016


aajtak

  इण्डिया टीवी ,एबीपी एड़ीचोटी का जोर लगाने के बाद भी आजतक को पहले पायदान से हिला नहीं पा रहे हैं। चवालीसवें हफ्ते भी आजतक की बादशाहत बरकरार है। वहीँ मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ में ज़ी न्यूज़ नंबर वन पर कायम हैं। दूसरे और तीसरे नंबर के चैनल जी से आधी trp भी नहीं ला पा रहे हैं।    नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 44 Aaj Tak 17.1 up 2.1  India TV 14.5 up 0.1  ABP News 12.6 up 1.2  India News 12.6 dn 0.4  Zee News 11.5 dn 0.8  News 24 9.3 dn 1.3  News Nation 9.2 dn 1.3  IBN 7 6.8 up 0.2  NDTV India 2.7 up 0.6  Tez 2.0 dn 0.2  DD News 1.8 dn 0.2   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.3 up 1.4  India TV 14.7 dn 0.7  ABP News 12.7 up 1.4  Zee News 12.3 dn 0.2  India News 11.0 same   News Nation 9.3 dn 1.2  News 24 8.8 dn 1.6  IBN 7 7.4 up 0.4  NDTV India 3.5 up 0.5  Tez 2.2 up 0.1  DD News 1.7 dn 0.2    मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव न्यूज़ चैनल Current th Week 44 TRP Zee MPCG      55.6% IBC 24.            17.8%  ETV MP .         17.8% Bansal             05.1%  Ind News         01.9%

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Dakhal News 24 November 2016


पत्रकार राजीव सोनी

सामाजिक सरोकारों का शालीन पत्रकार महेश दीक्षित  प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और नवदुनिया के वरिष्ठ संवाददाता राजीव सोनी अलग अंदाज और मिजाज के पत्रकारों में शुमार हैं। सरल, मृदुभाषी और मिलनसारिता की वजह से सरकार कहो या प्रशासन में, उनका वृहद पीआर है। राजीव ने वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र माथुर के मार्गदर्शन में पत्रकारिता की बारीकियां सीखीं। राजीव का मानना है कि पत्रकारिता एक ऐसा माध्यम है, जिसके जरिए आप समाज को नई दिशा दे सकते हैं। 22 फरवरी 1963 को सागर में जन्मे राजीव बताते हैं कि उन्हें पत्रकारिता के प्रति रुझान यूनिवर्सिटी में आने के बाद ही बढ़ा। इसके बाद सागर विश्वविद्यालय में पत्रकारिता पाठ्यक्रम शुरू हुआ, तो 1985 में औपचारिक डिग्री हासिल कर ली। इसके बाद पत्रकारिता में हर दिन कुछ न कुछ नया सीखने का सिलसिला चलता रहा। 1985 में नवभारत टाइम्स एवं यूनीवार्ता दिल्ली में रहकर बतौर ट्रेनी खूब रिपोर्टिंग कीं। इस दौरान कई बड़े पत्रकारों के सानिध्य में काम किया। उनका मानना है कि वरिष्ठों के मार्गदर्शन में जो काम किया जाता है, वह आपको खुद ही दूसरों से अलग कर देता है। डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर और गवर्नमेंट मल्टीपरपज हायर सेकंडरी स्कूल सागर से शिक्षा हासिल करने वाले राजीव तीन दशकों से सक्रिय पत्रकारिता में हैं। इसके अलावा राजीव पत्रकारिता में एमजे एवं बैचलर ऑफ मास कम्युनिकेशन एंड जर्नलिज्म, एमफिल(समाजशास्त्र), बीएससी (अपराध शास्त्र एवं मानवशास्त्र), योग साइंस में डिप्लोमा हैं। राजीव बताते हैं कि शुरू से बैडमिंटन में रुचि रही, पर पत्रकारिता का रोमांच चित्त पर हर वक्त हावी रहा। राजीव ने 1987 में नईदुनिया, इंदौर से पत्रकारिता की शुरुआत की। अपने समय के धुर संपादक और सुयोग्य पत्रकार अभय छजलानी, राजेंद्र माथुर, मदन मोहन जोशी, उमेश त्रिवेदी और गिरीश उपाध्याय के साथ खूब काम किया। उनके सानिध्य में अपनी पत्रकारिता को निखारा और रिपोर्टिंग को नए तेवर दिए। राजीव दो दशक से भोपाल संस्करण (अब नवदुनिया) में काम कर रहे हैं। वर्ष 1992, 2004 और 2016 में उज्जैन में आयोजित सिंहस्थ कवरेज की रिपोर्टिंग के लिए उन्हें खूब वाहवाही मिली। शुरुआत में कुछ वर्षों तक नईदुनिया में रीजनल डेस्क के समन्वय का काम देखा। इस दौरान लोकसभा एवं विधानसभा का चुनाव कवरेज भी किया। इसके साथ राजीव राजनीतिक, विधानसभा, सीबीआई, आयकर एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ बीट पर काम करते रहे हैं। इन बीट का उन्हें मर्मज्ञ रिपोर्टर कहा जाता है। राजीव को पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान के लिए 2016 का रामेश्वर गुरु पत्रकारिता सम्मान के साथ कई पुरस्कार मिल चुके हैं। राजीव कहते हैं कि पत्रकारिता में सामाजिक सरोकार होना चाहिए। समाज को जनप्रतिनिधियों से कहीं अधिक अब पत्रकारिता से उम्मीद है। इसलिए पत्रकारिता अब पहले से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है।

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Dakhal News 23 November 2016


दैनिक भास्कर को iso

देश का सबसे बड़ा समाचार पत्र समूह दैनिक भास्कर अब आईएसओ 9001:2015 से भी प्रमाणित हो गया है। सेल्स एंड मार्केटिंग डेवलपमेंट (सर्कुलेशन विभाग) द्वारा क्वालिटी मैनेजमेंट सिस्टम के मानकों पर खरा उतरने के लिए दैनिक भास्कर को यह सर्टिफिकेट प्रदान किया गया। दैनिक भास्कर देश का पहला समाचार पत्र समूह है जिसके सर्कुलेशन विभाग द्वारा भोपाल रीजन में आईएसओ 9001:2015 मानकों के अनुरूप काम करने के लिए यह सर्टिफिकेट प्रदान किया गया।  इस सर्टिफिकेट से प्रमाणित होता है कि आर्गेनाइजेशन क्वालिटी मैनेजमेंट सिस्टम के अनुसार कार्य कर रही है और इसमें लगातार सुधार भी कर रही है। दैनिक भास्कर के सेल्स, डिस्ट्रीब्यूशन एवं मार्केट डेवलपमेंट की कार्यप्रणाली पर किये गए विभिन्न स्तरों के ऑडिट के बाद आईएसओ 9001:2015 से प्रमाणित किया गया।  दैनिक भास्कर समूह को इस वर्ष आईएसओ के अलावा और भी उपलब्धियां हासिल हुई हैं। विश्वप्रसिद्ध संस्था वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज पब्लिशर्स (वैन इफ्रा) की रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में प्रकाशित होने वाले अखबारों में दैनिक भास्कर की प्रसार संख्या चौथे नंबर पर है। इसके अलावा अखबारों की विश्वसनीय संस्था ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन (एबीसी) की जनवरी-जून 2016 रिपोर्ट के अनुसार दैनिक भास्कर लगातार पांचवीं बार देश में सबसे ज्यादा प्रसार संख्या वाला अखबार भी है। 

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Dakhal News 22 November 2016


क्यों चुप रहे मनमोहन

  ओम थानवी (एक प्रशासक की डायरी का पन्ना: पढ़ने को मिला था,नाम न देने की शर्त पर यहाँ साझा करता हूँ!) 1. जब देश जान चुका है कि भारत पाकिस्तान से डरता नहीं है। सर्जिकल स्ट्राइक से अभी मुँहतोड़ जवाब दिया गया है और पहले भी,जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे,तब भी एकाधिक बार ऐसे ही धावा बोला गया था। लेकिन सवाल मन में यह आता है कि तब मनमोहन सिंह आख़िर चुप क्यों रहे...? 2. उस वक़्त भी जब-जब ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक हुई,तत्कालीन विपक्ष यानी भाजपा से सरकार ने जानकारी साझा की थी,इस जानकारी के बावजूद भाजपा नेता मनमोहन सिंह पर लगातार वार करते रहे,उन्हें कायर तक कहा...! 3. सवाल फिर वही है - कि पाकिस्तान को सबक़ सिखाने के बावजूद मनमोहन सिंह चुपचाप भाजपा के हाथों अपमान क्यों सहते रहे...? 4. क्या यह सिर्फ़ संचार कौशल न होने का मामला था या जनता से संवाद स्थापित करने की नाकामी थी..? या फिर सोच-विचार कर चुप रहने का सायास फ़ैसला था..? 5. हम लोग,जो उस वक़्त की सरकार की अंदरूनी जानकारी रखते हैं, जानते हैं कि ये मनमोहन सिंह का दो-टूक फ़ैसला था कि देशहित में हमें चुप रहना चाहिए। 6. दरअसल, देशभक्ति चिल्लाने, ललकारने और सफलता मिलने पर अपनी पीठ ख़ुद ठोकने का नाम नहीं होती। 7. देश की ख़ातिर अक्सर चुपचाप क़ुरबानी देनी पड़ती है और उफ़्फ़ तक न करते हुए बहुत कुछ सह जाना पड़ता है। 8. ऐसे बहुत लोग हैं जो ज़िम्मेदारी के पदों पर रहे हैं,ज़ाहिर है वे बहुत कुछ जानते हैं,लेकिन देशहित में चुप हैं, चुप रहेंगे। 9. मनमोहन सिंह की समझ यह थी कि युद्धोन्माद पैदा होने से भारत विकास के रास्ते से भटक जाएगा, हमारी तरक़्क़ी रुक जाएगी । 10. इसीलिए उन्होंने पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक कर सबक़ दिया, लेकिन इसकी चर्चा नहीं की । 11. इस नीति के चलते पाकिस्तान को यक़ीनन सबक़ मिला। 2010 के बाद कोई बड़ी आतंकवादी घटना नहीं हुई। कश्मीर में माहौल इस तरह सामान्य हुआ कि घाटी में पर्यटकों की बहार आ गयी । लेकिन ढोल न पीटकर युद्धोन्माद से बचा गया, आपसी तनाव भी नहीं बढ़ा और विकास की यात्रा में कोई रुकावट नहीं आने पाई। ख़ुद कुछ नुक़सान उठाया, लेकिन देश को बचाते रहे। 12. भारतीय लोकज्ञान में नीलकंठ की परम्परा सभी जानते हैं, जब शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए विष अपने गले उतार लिया था। 13. नीलकंठ की ज़रूरत हमें आज भी है,आगे भी रहेगी। 14. मोदीजी को इसे समझना होगा। वे इस देश का नेतृत्व हैं। पाकिस्तान को एक सबक़ वे सिखा चुके। ज़रूरत हुई तो और भी सिखाएँ। लेकिन भारत की प्रगति को बरक़रार रखना भी उनकी ही ज़िम्मेदारी है।  15. जुनून भी कभी ज़रूरी हो सकता है, लेकिन पाकिस्तान को यह सुकून नहीं मिलना चाहिए कि उसने भारत के विकास-रथ को रोक दिया। ऐसा हुआ तो अंततः वह अपने मक़सद में कामयाब माना जाएगा । 16. यह हमेशा याद रखें की भारत पिछले सत्तर साल में न टूटा है, न डरा है, न विफल हुआ है।  17. भय की भाषा बोलना और भय जगाना कमज़ोरी की निशानी है। मज़बूत राष्ट्र चुपचाप जवाब देते हैं और अपने रास्ते पर आगे बढ़ते हैं। 'मजाज़' का शे'र है - दफ़्न कर सकता हूँ सीने में राज़ को... और चाहूँ तो अफ़साना बना सकता हूँ... [वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी जी की वाल से]

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Dakhal News 21 November 2016


दबंग दुनिया के  किशोर वाधवानी का काला सच

 90 लाख रुपए जब्ती में MP-CG के कई शहरों में कार्रवाई की तैयारी छत्तीसगढ़ में जब्त किए गए इंदौर के गुटखा व्यापारी और दबंग दुनिया अखबार के मालिक किशोर वाधवानी के 90 लाख रुपए को लेकर तमाम जांच एजेंसियां सक्रिय हो गई हैं। इसके नक्सली लिंक होने के संदेह में जहां आईबी और पुलिस चौकस है, वहीं कालेधन और मनी लॉन्ड्रिंग की आशंका ने आयकर विभाग के कान खड़े कर दिए हैं। इसके अलावा वाधवानी के हवाला लिंक से प्रवर्तन निदेशालय भी सजग हो गया है। दिल्ली से लेकर मप्र-छग में सभी एजेंसियों की सक्रियता बढ़ गई है। किशोर वाधवानी से जुड़े मीडिया जगत और व्यापार जगत के लोग पुलिस और आर्थिक अपराध पर नजर रखने वाली एजेंसियों के निशाने पर हैं। -----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------   छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 90 लाख रुपए के मामले को लेकर दबंग दुनिया अखबार के मालिक किशोर वाधवानी के सच को खंगालने में पुलिस, आयकर विभाग सहित अन्य विभाग, जांच एजेंसिया जुट गई है। इसमें आयकर विभाग जितनी महत्वपूर्ण भूमिका छत्तीसगढ़ की स्टेट इंटेलीजेंस ब्रांच (एसआईबी) की भी मानी जा रही है। इतनी बड़ी मात्रा में नोटों के बैंक तक आने की पूरी जानकारी एसआईबी को थी, जिसमें उन्हें पता चला था कि मोटी राशि बैंक में जमा होने के लिए रायपुर आ रही है। इस जानकारी पर एसआईबी के जवान सादा कपड़ों में रायपुर के बैंक आॅफ इंडिया की देवेंद्र नगर ब्रांच में खड़े हो गए । इसके कुछ देर बाद दबंग दुनिया अखबार रायपुर के संपादक कपिल भटनागर और अकाउंटेंट मोहम्मद शरीफ 90 लाख 56 हजार रुपए जमा करवाने पहुंचे थे। यह राशि जमा करते ही एसआईबी ने दोनों को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू की। हवाला का तो नहीं पैसा? छत्तीसगढ़ में बरामद 90 लाख रुपए के हवाला कारोबार लिंक के भी संदेह जताए जा रहे हैं। हवाला की आशंका के चलते छत्तीसगढ़ एसआईबी (स्टेट इंटेलीजेंस ब्यूरो)  और मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय  को जानकारी देने की तैयारी कर रहे हैं। माना जा रहा है कि जानकारी मिलने के बाद ईडी इस मामले से जुड़े लोगों पर शिकंजा कस सकती है। ईडी और आयकर की रडार पर ऐसे कई लोग हैं, जिसके साथ किशोर वाधवानी के कारोबारी लिंक हैं। इनमें मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के साथ महाराष्टÑ के कई लोग भी शामिल हैं। CBI की गिरफ्त में जा चुका है किशोर वाधवानी गुटखे के कारोबार में करोड़ों रुपए की कर चोरी का इल्जाम झेल रहे किशोर वाधवानी को सीबीआई गिरफ्तार कर चुकी है। सेंट्रल एक्साइज विभाग द्वारा  करोड़ों रुपए की टैक्स चोरी का इसे नोटिस भी थमाया गया है, लेकिन कालेधन में लिप्त भ्रष्ट अफसरों की सांठगांठ से इसने टैक्स चोरी के मामले को लंबित करवा के रखा है। अब यह परतें भी खुलेंगी। आरोप लगाए जा रहे हैं कि सीबीआई, सेंट्रल एक्साइज और अपने टैक्स चोरी की कारगुजारियों पर पर्दा डालने के लिए ही किशोर वाधवानी ने अखबार का संचालन शुरू किया है। सरकारी अफसरों पर अड़ी डालकर अपना उल्लू सीधा करने के उद्देश्य से डाले गए इस समाचार पत्र को लेकर भी कई सवाल उठ रहे हैं। MP-CG में बैंक खातों पर आयकर की नजर इधर इतनी बड़ी रकम एक साथ मिलने से आयकर विभाग के भी कान खड़े हो गए हैं। आयकर विभाग ने किशोर वाधवानी के मध्य प्रदेश के इंदौर से लेकर रायपुर तक के खातों पर नजर रखना शुरू हो कर दी है। जिग्नेश कुमार, जेडी एनकम टैक्स, रायपुर  ने बताया कि हमें एसआईबी रायपुर द्वारा 90 लाख रुपए मिले हैं, जिसकी जांच की जा रही है। इन रुपयों के साथ कपिल भटनागर और मोहम्मद सलीम को भी पकड़ा गया है। हम इन लोगों से पूछताछ कर रहे हैं और पता लगा रहे हैं कि यह धन कहां से आया है। यदि यह पैसा अवैध पाया गया तो उस पर नियमानुसार जुर्माना लगाया जाएगा। नक्सली लिंक को लेकर जांच जारी: पी सुंदरराजन SSP छत्तीगढ़  एसआईबी के एसएसपी पी. सुंदरराजन ने कहा है कि हमें 90 लाख रुपए मिले थे। यह राशि फिलहाल आयकर विभाग को दे दी है। नक्सली कनेक्शन को लेकर हमारी जांच अभी जारी है। अभी जांच बहुत ही प्रारंभिक स्थिति में है।  MP पुलिस लेगी जानकारी एमपी-छग की आयकर विंग इस संबंध में किशोर से पूछताछ कर सकती है। वहीं मध्य प्रदेश में नक्सल विरोधी अभियान शाखा भी इस मामले में किशोर से पूछताछ कर सकती है। मध्य प्रदेश में बालाघाट नक्सलियों का बड़ा गढ़ है। मध्य प्रदेश की नक्सल विरोधी अभियान इस संबंध में छत्तीसगढ़ एसआईबी से संपर्क करेगा। एडीजी नक्सल विरोधी अभियान सीवी मुनिराजू ने कहा कि वे इस संबंध में जानकारी लेंगे।  गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के 8 जिले नक्सल प्रभावित हैं। पुलिस को आशंका है कि यहां भी नक्सलियों को संदिग्ध लोग फंडिंग कर रहे हैं।[प्रदेश टुडे से ]  

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Dakhal News 18 November 2016


आजतक देश में और ज़ी एमपी सीजी में टॉप पर

45 वें हफ्ते में भी आज तक टॉप पर बना हुआ है। वहीँ मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ में ज़ी की बादशाहत कायम है। इस सप्ताह इण्डिया न्यूज़ को झटका लगा है। एबीपी भी रेंग रेंग के आगे बढ़ने की कोशिश में लगा है।  नेशनल न्यूज़ trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 45 Aaj Tak 16.5 dn 0.6  India TV 14.2 dn 0.3  ABP News 12.9 up 0.3  Zee News 11.9 up 0.4  India News 11.8 dn 0.8  News 24 9.5 up 0.2  News Nation 9.5 up 0.4  News18 India 6.8 same   NDTV India 3.1 up 0.4  Tez 2.1 up 0.2  DD News 1.7 dn 0.1   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.1 dn 0.3  India TV 14.7 same   Zee News 12.8 up 0.5  ABP News 12.7 dn 0.1  India News 10.0 dn 1.0  News Nation 9.7 up 0.3  News 24 9.0 up 0.2  News18 India 7.4 same   NDTV India 4.1 up 0.6  Tez 2.2 same   DD News 1.5 dn 0.2 मध्यप्रदेश छतीसगढ़ के टॉप फाइव रीजनल चैनल  लगातार 57 हफ्तों से नंबर वन है ज़ी  Zee MPCG - 51.6% IBC 24 -27.4% ETV MPCG- 15.6% Bansal News - 3.3% India News MP -1.1% Swaraj Express -0.9%

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Dakhal News 18 November 2016


narottm mishra

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर नरोत्तम की बधाई  मध्यप्रदेश के जनसंपर्क, जल-संसाधन तथा संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने भारतीय प्रेस दिवस पर मीडिया के सभी मित्रों को हार्दिक बधाई दी है। जनसंपर्क मंत्री डॉ. मिश्रा ने अपने संदेश में कहा कि पत्रकारिता का गौरवशाली इतिहास है। स्वतंत्रता आंदोलन में भी पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मंत्री डॉ. मिश्रा ने कहा कि हिन्दी के साथ ही भाषायी पत्रकारिता ने स्वतंत्रता दिलवाने में योगदान दिया। उन्होंने राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर मीडिया के साथियों से सामाजिक सरोकार की पत्रकारिता के लिए वर्तमान सक्रिय भूमिका को जारी रखने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि समाज में हो रहे सकारात्मक विकास को जनता तक पहुँचाने की जिम्मेदारी भी प्रेस द्वारा निभाई जा रही है। आशा है, इसमें और गति आएगी ।  

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Dakhal News 17 November 2016


निजता को लांघ रहा सोशल मीडिया

भोपाल में आयोजित लोक मंथन  में डॉ. विजय चौथाईवाले,  उमेश उपाध्याय,  प्रशांत कौल और सुश्री शेफाली वैद्या ने सोशल मीडिया पर  विमर्श किया।  सोशल मीडिया के माध्यम से सामूहिक बौद्धिक क्षमता का इस्तेमाल हो रहा है। साथ ही इससे राजनैतिक, व्यवसायी और मनोवैज्ञानिक व्यवहार प्रभावित हो रहा है। इसके बिना शायद सार्वजनिक जीवन में काम चलना कठिन हो गया है। खास बात यह है कि इसमें विज्ञापन न होते हुए भी इसे चलाने वालों का उद्देश्य व्यवसायिक है। हमारी निजता को सोशल मीडिया लांघ रहा है। यह सोशल कॉज के लिए नहीं है। यह हमारी कुशलता है कि हम इसका उपयोग कैसे कर लेते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हमें विश्वसनीयता बनाए रखनी है और विरोधियों के झूठ को भी बेनकाब करना है। यह हम लोगों के लिए चुनौती है और अवसर भी। ट्वीटर ट्रेंड के माध्यम से इलेक्ट्रानिक मीडिया जनमत का रूझान समझकर समाचार प्रसारित करने को विवश है। प्रिंट मीडिया के समाचार-पत्र भी पहले ट्वीटर पर समाचारों को फ्लेश करते हैं तथा उन पर आने वाले हिट्स के अनुसार तय करते हैं कि किसे छापा जाए किसे नहीं। अपने विचार को प्रभावी ढंग से लोगों तक पहुँचाने के लिए कंटेन्ट आवश्यक है। उसे जनरेट करने की क्षमता हमें अपने अंदर विकसित करती है। यह निष्कर्ष है विधानसभा भवन के कक्ष क्रं. 6 में राष्ट्रीय विमर्श 'लोक-मंथन' के अंतिम दिन 'सोशल मीडिया एवं नया समाज' सत्र का। सत्र में डॉ. विजय चौथाईवाले, श्री उमेश उपाध्याय, श्री प्रशांत कौल और सुरी शेफाली वैद्या ने विमर्श किया।

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Dakhal News 15 November 2016


dinesh gupta

प्रशासनिक गलियारों का चर्चित पत्रकार महेश दीक्षित  वरिष्ठ पत्रकार दिनेश गुप्ता प्रदेश के ऐसे पत्रकार हैं, जिनकी लेखनी ही उनकी पहचान है। उनकी कलम की धार ऐसी है कि प्रशासनिक गलियारों में चर्चा होती है। ब्यूरोक्रेट तक उनकी खबरों का इंतजार करते रहते हैं। दिनेश को इस मुकाम तक पहुंचने के लिए काफी संघर्षों भरा रास्ता पार करना पड़ा है। वे बताते हैं कि पत्रकारिता में आज वे जिस मुकाम पर हैं वहां तक पहुंचने के लिए उन्हें कई ऐसी परीक्षाओं से गुजरना पड़ा, जो हर किसी के लिए आसान नहीं होती, बावजूद इसके वे हर कसौटी पर खरे उतरे। दिनेश प्रशासनिक गलियारों के विशेषज्ञ पत्रकार के रूप में यात हैं। शहर के कई पत्रकार उनसे अपनी खबरों को लेकर चर्चा तक करते हैं। दिनेश में अपनी प्रतिभा का रंज मात्र भी अभिमान नहीं है। यही कारण है कि वे पत्रकारिता जगत में सभी के चहेते हैंंंं। दिनेश में एक और बात है, जो उन्हें दूसरों से अलग करती है। उनका पत्रकारिता का अपना अलग अंदाज है। शिवपुरी में जन्मे दिनेश ने स्नातक की शिक्षा ग्रहण की है। पत्रकारिता चुनने का सपना उन्होंने पढ़ाई के दौरान ही देख लिया था, लिहाजा स्नातक होते ही वे इस क्षेत्र में आ गए। करीब 33 साल से वे प्रशासनिक संवाददाता के पद पर कार्य कर रहे हैं। ऐसा करने वाले वे प्रदेश के इकलौते पत्रकार हैं। वर्ष 1983 में अपने समय की देश की चर्चित पत्रिका माया से पत्रकारिता की शुरुआत की। उन दिनों सुधीर सक्सेना माया के मप्र ब्यूरो होते थे। यहां उन्होंने पत्रकारिता की कई बारीकियां सीखीं। माया में काम करने के दौरान उन्हें जो अनुभव मिले, उसका लाभ आज भी उन्हें मिल रहा है। इसके बाद दैनिक जागरण, चौथा संसार, दैनिक भास्कर और दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिन्दुस्तान के मप्र ब्यूरो रहे। दैनिक हिन्दुस्तान में उन्होंने सात साल तक काम किया और उनकी रिपोर्टिंग की देशव्यापी चर्चा हुई। इसके बाद एक साल तक पीपुल्स समाचार, भोपाल में समूह संपादक के पद पर रहे। जब अखबारों की नौकरी से उब होने लगी तो अखबारों की नौकरी छोड़, खुद की पॉवर गैलरी और प्रतियोगिता सेतु नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू कर दिया। यह पत्रिकाएं आज प्रदेश के बहुप्रसारित पत्रिकाओं में शुमार है। पॉवर गैलरी सरकार और ब्यूरोक्रेटस के गतिविधियों पर केंद्रित पत्रिका है, जबकि प्रतियोगिता सेतु पत्रिका केवल प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए है। प्रतियोगिता सेतु पत्रिका शुरू करने के पीछे उनका मत है कि हमें समाज के लिए भी कुछ करना चाहिए। युवा समाज और देश के भविष्य होते हैं, ऐसे में उन्हें सही राह दिखाने के लिए सही मार्गदर्शन जरूरी है। सेतु पत्रिका आज हर युवा की पसंद बन चुकी है। वैसे तो दिनेश के नाम ऐसी कई स्टोरी हैं, जिन्होंने उन्हें पहचान दिलाई, मगर मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड, भोपाल के पहाड़ों से बलात्कार और कोका कोला पर कृपालु सरकार काफी चर्चा में रहीं। इनसे दिनेश को पत्रकारिता में काफी प्रसिद्धि मिली। दिनेश पत्रकारिता के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। यह गुण उन्हें पिता बीएल गुप्ता से मिला है। फिलहाल दिनेश उन पत्रकारों के लिए काम कर रहे हैं, जिनके पास खुद का मकान नहीं है। दिनेश पत्रकारों को सरकार से रियायती दरों पर जमीन का आवंटन कराकर आवासीय कॉलोनी का निर्माण कराने का काम कर रहे हैं। दिनेश को अपने पत्रकारिता जीवन में ऐसे कई मुकाम हासिल हुए हैं, जो अविस्मरणीय हैं।

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Dakhal News 11 November 2016


 aajtak no 1

चवालीस वें सप्ताह में भी आज तक पहले इण्डिया टीवी दूसरे और एबीपी तीसरे नंबर पर है। एबीपी ने अपनी दयनीय स्थिति में सुधर किया है वहीँ इण्डिया न्यूज़ अपनी स्थिति नहीं सम्हाल पा रहा है।  नेशनल न्यूज़ चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 44 Aaj Tak 17.1 up 2.1  India TV 14.5 up 0.1  ABP News 12.6 up 1.2  India News 12.6 dn 0.4  Zee News 11.5 dn 0.8  News 24 9.3 dn 1.3  News Nation 9.2 dn 1.3  IBN 7 6.8 up 0.2  NDTV India 2.7 up 0.6  Tez 2.0 dn 0.2  DD News 1.8 dn 0.2   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.3 up 1.4  India TV 14.7 dn 0.7  ABP News 12.7 up 1.4  Zee News 12.3 dn 0.2  India News 11.0 same   News Nation 9.3 dn 1.2  News 24 8.8 dn 1.6  IBN 7 7.4 up 0.4  NDTV India 3.5 up 0.5  Tez 2.2 up 0.1  DD News 1.7 dn 0.2  

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Dakhal News 10 November 2016


ndtv

विष्णु गुप्त  क्या सही में देश के अंदर आपातकाल जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है? क्या सही में देश के अंदर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संकट खडा हो गया है? क्या सही में नरेन्द्र मोदी सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गल्ला घोटने के रास्ते पर चल रही है? क्या सही में एनडीटीवी पर एक दिन का प्रतिबंध पूरे मीडिया को निशाने पर लेने की कार्रवाई मानी जानी चाहिए? क्या कांग्रेस की मनमोहन सरकार में इलेक्टोनिक मीडिया पर प्रतिबंध नहीं लगा था? आज शोरगुल मचाने वाले तथाकथित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हथकंडेबाज उस समय कहां थे जब मनमोहन सिंह सरकार ने लाइव इंडिया टीवी चैनल पर एक सप्ताह का प्रतिबंध लगाया था? एनडीटीवी के पक्ष में वैसे लोग और वैसी राजनीतिक पार्टियां क्यों और किस उद्देश्य के लिए खडी है जो खुद अभिव्यक्ति की आाजदी का गल्ला घोटती रही हैं, जिनके अंदर लोकतंत्र नाम की कोई चीज ही नहीं है, ऐसी राजनीतिक पार्टियां क्या एक प्राइवेट कंपनी के रूप में नहीं चल रही हैं? क्या एनडीटीवी का अपराध अक्षम्य हैं? क्या एनडीटीवी ने रिर्पोटिंग करते समय देश की सुरक्षा की चिंता की थी? क्या एनडीटीवी ने हमलावर पाकिस्तान आतंकवादियों की मदद करने वाली रिपोर्टिंग नहीं की थी? क्या एनडीटीवी ने यह नहीं बताया था कि हमलावर उस जगह के नजदीक हैं जहां पर वायु सेना का भंडार है और जहां पर रौकेट लांचर से लेकर अन्य हथियार रखे हुए है? क्या एनडीटीवी को देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड करने का अवसर पर अवसर दिया जाना चाहिए? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देश की सुरक्षा और सम्मान को ताक पर रखकर होनी चाहिए? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देश की सुरक्षा से बडी होनी चाहिए? क्या अब यह समय नहीं आ गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की लक्ष्मण रेखा तय कर दी जाये? क्या यह सही नहीं है कि मीडिया की गैर जिम्मेदार रिपोर्टिंग और गैर जिम्मेदार आलोचना से सेना का मनोबल प्रभावित होता है? अब तक खासकर इलेक्टोनिक मीडिया के लिए नियमन जैसी कोई व्यवस्था क्यों नहीं बनायी गयी है? क्या यह सही नहीं है कि अभिव्यक्ति की आजादी के शोर ने एनडीटीवी के अपराध पर आवरण डाल दिया है। जबकि एनडीटीवी के गैर जिम्मेदारना रिर्पोटिंग पर भी खुल कर बहश होनी चाहिए? मीडिया की विश्वसनीयता किस प्रकार गिरी है, मीडिया किस प्रकार भ्रष्ट हुआ है, मीडिया किस प्रकार अराजक हुआ है, मीडिया किस प्रकार गैर जिम्मेदार हुआ है, इसका एक उदाहरण टिवटर का एक सर्वे निष्कर्ष है। टिवटर ने एक सवाल पूछा था कि भारत में लोकतंत्र का कौन खंभा सबसे भ्रष्ट, सबसे अविश्वसनीय, सबसे गैर जिम्मेदार है? इस सर्वे में 17000 हजार लोगों ने भाग लिया था। पचास प्रतिशत से अधिक लोगों का जवाब चौथा खंभा यानी मीडिया था। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान की धारा 19 ए में निहित है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अभिप्राय यह है कि देश के नागरिकों को अपनी बात रखने या विरोध दर्ज करने की आजादी होनी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अक्षुण रखने में मीडिया की भूमिका सर्वश्रेष्ठ और निर्णायक रही है। मीडिया भी एक समय जिम्मेदार और सजग था। तब इलेक्टॉनिक मीडिया का उतना शोर नहीं था। खासकर प्रिट मीडिया की भूमिका लगभग संयम और देश की सुरक्षा की कसौटी पर चाकचौबंद हुआ करती थी। निसंदेह तौर पर जब से इलेक्टानिक मीडिया का शोर देश में हुआ है तबसे मीडिया की विश्वसनीयता घटी है, मीडिया को अविश्वसनीय माना जाने लगा है। इसलिए कि इलेकटोनिक मीडिया के नियमन की कोई सरकारी व्यवस्था ही नहीं बनी है, जबकि प्रिट मीडिया के नियमन के लिए प्रेस परिषद जैसी संस्था है। जब कोई नियमन की व्यवस्था ही नहीं होगी तो फिर जिम्मेदारी, अनुशासन का भाव कहां से आयेगा, डर कहां से उत्पनन होगा। यही कारण है कि इलेकटानिक मीडिया पूरी तरह से अराजक और अनियंत्रित रिपोटिंग की प्रतीक बन गयी। कई फर्जी घटनाओं को दिखाना, पैसे वूसली के लिए फर्जी स्टिरग आपरेशन करने जैसे खेल खेले गये है। फर्जी स्टिंग आपरेशन का कोई एक नहीं बल्कि अनेकों खेल खेले गये हैं। खबर बनाने के लिए आत्महत्या करने और आत्मदाह करने के लिए उकसाने के आरोप इलेक्टानिक मीडिया पर लगे हैं। जहां तक एनडीटीवी की बात है तो उसकी सच्चाई कौन नहीं जानता है। एनडीटीवी का मालिक कभी टूटपूंजिया पत्रकार हुआ करता था, उसकी हैसियत मीडिया उद्योग स्थापित करने जैसी नहीं थी। पर एनडीटीवी जैसा उद्योग खडा करना, मीडिया कारपोरेट संस्था खड़ा करना कोई चमत्कार जैसा ही खेल है। एक आम पत्रकार अपने वेतन से सिर्फ अपना परिवार पाल सकता है, भारी-भरकम मीडिया चैनल, मीडिया उद्योग और मीडिया कारपोरेट संस्था खडा न कर सकता है? दिल्ली में रहने वाले पत्रकार यह सच्चाई जानते हैं। अपने चैनल में सरकारी नौकरशाहों और मंत्रियों के नालायक बेटे-बेटियों को नोक्री दी गयी ताकि सरकारी नौकरशाहों और मंत्रियों से सेटिंग बनायी जा सके। दूरदर्शन के टेप को अदल-बदल कर खेल खेला गया। एनटीवी सिर्फ अभी ही नहीं चर्चे और विवाद में आयी है, अपनी गैर जिम्मेदार भूमिका के कारण पहली बार ही निशाने पर नहीं रही है, इसके पहले भी एनडीटीवी विवाद में रही है, उसकी भूमिका बदबूदार रही है, उसकी भूमिका सेंटिगबाज की रही है, उसकी भूमिका सरकार को प्रभावित करने की रही है। तथ्य भी चाकचौबंद है, तथ्य पूरे देश के सजग नागरिकों को मालूम है। याद कीजिये टू जी स्पेक्टरम घोटाला और ए राजा की कहानी और आपको पता चल जायेगा कि एनटीवी की कैसी बदबूदार भूमिका थी, उसकी भूमिका पत्रकारिता को गति देने की थी या फिर सेंटिग बाज की थी? एनडीटीवी की पत्रकार बरखा दत और टू जी घोटाले के मुख्य आरोपी ए राजा के बीच हुई बातचीत का टेप मौजूद है। बरखा दत ने ए राजा को दूरसंचार मंत्री बनवाने की विसात विछाई थी और फायदे की विसात विछायी थी। तब मीडिया में बरखा दत के खिलाफ ऐसे-ऐसे चुटकूुले चले थे जो लिखने योग्य नहीं थे। अगर एनडीटीवी में ईमानदारी होती, अगर एनडीटीवी में नैतिकता होती तो फिर एनडीटीवी तुरंत बरखा दत्त को अपने चैनल से निकाल बाहर कर देती। बरखा दत्त आज भी एनडीटीवी की स्टार बनी हुई है। एनडीटीवी में महिला पत्रकारों का यौन शोषण भी मीडिया में चर्चा का विषय रहा है। एनडीटीवी का एक नामी स्टार पत्रकार का सेक्स वीडियो कई महीनों तक मीडिया में घूमा-फिरा था। तथाकथित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन में यह तथ्य, यह सच्चाई दबायी जा रही है कि पहली बार मीडिया को निशाना बनाया जा रहा है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गल्ला घोटा जा रहा है, लोकतंत्र पर प्रहार किया जा रहा है। जबकि कांग्रेस जमाने की बात छिपायी जा रही है, कांग्रेस जमाने की बात कोई कर ही नहीं रहा है। याद कीजिये लाइव इंडिया टीवी प्रकरण को। कांग्रेस की मनमोहन सरकार ने लाइव इंउिया टीवी चैनल पर कोई एक दिन का नहीं बल्कि एक सप्ताह का प्रतिबंत लगायी थी। लाइव इंडिया टीवी के एक रिपोर्टर ने एक शिक्षिका को ब्लैकमेल करने की झूठी कहानी गढी है और उस कहानी में उस शिक्षिका की जान जाते-जाते बची थी। लाइव इडिया के रिपोर्टर पर मुकदमा भी दर्ज हुआ था। जब कांग्रेस सरकार ने लाइव इंउिया टीवी पर एक सप्ताह का प्रतिबंध लगाया था तब कहीं शोर तक नहीं मचा था। आज शोर मचाने वाले लोग तब चुप्पी साध रखे थे। यह भी सही है लाइव इंउिया टीवी चैनल ने उसी तरह की लक्ष्मण रेखा पार की थी जिस प्रकार की लक्ष्मण रेखा एनडीटीवी ने पार की है। आज सिर्फ प्रिंट और इलेक्टानिक मीडिया का ही दौर नहीं है। आज सोशल मीडिया और वेव मीडिया का भी दौर है। जनमत बनाने के नये-नये तकनीक अस्तित्व में आये हुए हैं। इसलिए प्रिंट या इलेक्टानिक मीडिया अपने आप को भगवान न समझे, प्रिंट और इलेक्टानिक मीडिया अपने आप को कानून और संविधान से उपर न समझे, प्रिंट और इलेक्टानिक मीडिया अपने आप को देश की सुरक्षा से उपर न समझे। प्रिंट और इलेक्टॉनिक मीडिया को यह खुशफहमी छोड़ देनी चाहिए कि सिर्फ वे ही जनमत बनाते हैं। जनमत बनाने वाले और भी है। सोशल मीडिया और वेब मीडिया आज एनडीटीवी के खिलाफ खडा है। सोशल मीडिया ने एनडीटीवी के काले कारनामों की तह पर तह खोल रखी है। सोशल मीउिया में प्रमाण के साथ है कि कैसे एनडीटीवी ने देश की सुरक्षा को ताक पर रख कर आतंकवादियों को मदद करने वाली रिपोर्टिग की थी। इस लिए तथाकथित एनडीटीवी के समर्थक हथकंडे बाज खुशफहमी छोड दे कि वे ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर है। सरकार का यह कदम सीधे तौर पर देश की सुरक्षा और देश के जवानों के सम्मान व मनोबल से निकला हुआ है। मीडिया को आज विरोध का हथकंडा बनने की जगह आत्म चिंतन करने की जरूरत है और विश्वसनीयता सुरक्षित, संरक्षित करने की होनी चाहिए। प्रणव रॉय से यह भी हिसाब मांगना चाहिए तुमने टूटपूजियां पत्रकार से कैसे एनडीटीवी मीडिया हाउस उद्योग का मालिक बन गया? [लेखक विष्णु गुप्त दक्षिणपंथी विचारधारा के बेबाक पत्रकार हैं , भड़ास फॉर मीडिया से साभार ]  

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Dakhal News 9 November 2016


trp

मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव रीजनल चैनल Zee MPCG 55.1% IBC 24 21.6% ETV MPCG -16.9% Bansal News -3.6% India News MP -1.9%   "Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 43 Aaj Tak 14.9 dn 0.8  India TV 14.4 no change   India News 13 dn 0.2  Zee News 12.3 up 0.9  ABP News 11.4 up 0.1  News 24 10.7 dn 0.1  News Nation 10.5 up 0.3  IBN 7 6.6 up 0.1  Tez 2.1 no change NDTV India 2.1 dn   DD News 2 dn 0.4   TG: CSAB Male 22+ India TV 15.4 up 0.1  Aaj Tak 14.9 no change   Zee News 12.5 dn 0.2  ABP News 11.3 up 0.1  India News 11 dn 0.3  News Nation 10.5 up 0.5  News 24 10.4 up 0.1  IBN 7 7 dn 0.3  NDTV India 3 up 0.1  Tez 2.1 up 0.1  DD News 1.9 dn 0.2  

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Dakhal News 7 November 2016


vijaydatt shreedhar

राजनाथ सिंह ने  किया सम्मान मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार विजयदत्त श्रीधर काे छत्तीसगढ़ के राज्योत्सव में ‘माधव राव सप्रे राष्ट्रीय रचनात्मकता सम्मान 2015’ से विभूषित किया गया। राज्योत्सव के समापन मौके पर केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और छग के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने यह पुरस्कार दिया।  श्रीधर को यह सम्मान रचनात्मक लेखन और हिंदी भाषा के लिए समर्पित भाव से किए गए कार्यों के लिए दिया गया। छग सरकार का यह सर्वोच्च सम्मान है, जिसमें ढाई लाख रुपए व प्रशस्ति पत्र भी दिया गया। यहां बता दें कि 2012 में भारत सरकार श्रीधर को पद्मश्री से तथा 2014 में भारतेंदू हरीशचंद्र पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। मप्र सरकार ने 2015 में उन्हें महर्षि वेदव्यास राष्ट्रीय सम्मान दिया था।       

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Dakhal News 6 November 2016


ndtv india

भारत सरकार ने टीवी चैनल एनडीटीवी इंडिया को आदेश दिया है जिसके तहत चैनल को एक दिन के लिए ऑफ-एयर करने को कहा गया है।  एनडीटीवी के हिंदी चैनल एनडीटीवी इंडिया के खिलाफ़ ये आदेश भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भेजा है और ये मामला पठानकोट हमलों की कवरेज़ से जुड़ा है।  सूत्रों का कहना है कि एनडीटीवी इंडिया से 8-9 नवंबर की आधी रात से 9-10 नवंबर की आधी रात तक प्रसारण बंद करने के लिए कहा गया है।  एनडीटीवी ने गुरुवार को इस आदेश पर हैरानी जताते हुए कहा कि चैनल की कवरेज पूरी तरह से संतुलित थी।  संवेदनशील जानकारियां उजागर करने का आरोप इस मामले में एक अंतर-मंत्रिस्तरीय समिति ने यह पाया कि चैनल ने जनवरी में पंजाब में हुए आतंकवादी हमले की कवरेज के दौरान प्रसारण नियमों का उल्लंघन किया है. समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, चैनल ने सैन्य अड्डे की कुछ संवेदनशील जानकारियां उजागर की थी।  पठानकोट हमलों के दौरान टीवी चैनलों की कवरेज़ को लेकर एक उच्च स्तरीय पैनल का गठन हुआ था। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार इस पैनल ने ही एनडीटीवी इंडिया के कवरेज़ पर आपत्ति जताते हुए इसे एक दिन के लिए ऑफ एयर करने की सिफारिश की थी।  पैनल के अनुसार एनडीटीवी इंडिया ने पठानकोट हमले की कवरेज़ के दौरान सामरिक रूप से संवेदनशील सूचनाएं प्रसारित की थीं।  एनडीटीवी का बयान सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का आदेश प्राप्‍त हुआ है।  बेहद आश्चर्य की बात है कि NDTV को इस तरीके से चुना गया।  सभी समाचार चैनलों और अखबारों की कवरेज एक जैसी ही थी।  वास्‍तविकता में NDTV की कवरेज विशेष रूप से संतुलित थी।  आपातकाल के काले दिनों के बाद जब प्रेस को बेड़ियों से जकड़ दिया गया था, उसके बाद से NDTV पर इस तरह की कार्रवाई अपने आप में असाधारण घटना है। इसके मद्देनजर NDTV इस मामले में सभी विकल्‍पों पर विचार कर रहा है। 

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Dakhal News 4 November 2016


महेश दीक्षित PMJA के राष्ट्रीय महासचिव

प्रिंट मीडिया जर्नलिस्ट एसोसिएशन (PMJA) की हाल ही में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में वरिष्ठ पत्रकार एवं सांध्य दैनिक 6PM के संपादक  महेश दीक्षित को सर्वसम्मति से PMJA का राष्ट्रीय महासचिव मनोनीत किया गया है।  उनके मनोनयन का ऐलान PMJA के राष्ट्रीय अध्यक्ष  परवेज भारतीय ने किया। श्री दीक्षित मप्र का नया अध्यक्ष नियुक्त होने तक PMJA के राष्ट्रीय दायित्व के साथ मध्यप्रदेश के अध्यक्ष का दायित्व भी संभालेंगे। बैठक में राष्ट्रीय कार्यकारिणी पदाधिकारी-सर्वश्री-सिबा नारायण पात्रे(उडीसा), ओमप्रकाश शर्मा  जयपुर (राजस्थान), अरूण कुमार साहू(छत्तीसगढ) और इरशाद अशरफी पूना(महाराष्ट्र) मौजूद थे।

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Dakhal News 4 November 2016


पत्रकार दीपक चौरसिया

  इण्डिया न्यूज़ प्रबंधन और पत्रकार दीपक चौरसिया के बीच सब कुछ ठीकठाक नहीं है। पिछले कुछ दिनों से दीपक ऑफिस नहीं जा रहे हैं। हालाँकि इण्डिया न्यूज़ चैनल को इस स्थिति तक पहुँचाने का श्रेय दीपक चौरसिया को ही जाता है।   पिछले दिनों मीडिया की खबरदारी करने वाले भड़ास फॉर मीडिया ने लिखा कि ऐसी चर्चा तेज है कि दीपक चौरसिया का इंडिया न्यूज चैनल से बोरिया बिस्तर बंध गया है।  प्रबंधन से कई किस्म के मतभेद के कारण दीपक ने आफिस जाना बंद कर दिया है।  पिछले दिनों टीआरपी में चैनल के नंबर दो पोजीशन पर आने के उपलक्ष्य में हुई एक बड़े होटल में आयोजित की गई पार्टी में भी दीपक और उनके खास लोगों ने शिरकत नहीं की।  सूचना तो यह भी है कि दीपक चौरसिया 'लाइव इंडिया' न्यूज चैनल को टेकओवर करने के चक्कर में है।  हालांकि इन सूचनाओं की पुष्टि नहीं हो पाई है। भड़ास की तरफ से दीपक चौरसिया का वर्जन लेने के लिए उनको कई फोन और कई मैसेज किए गए लेकिन उन्होंने न तो फोन उठाया और न ही किसी मैसेज का जवाब दिया।  वहीं दीपक के करीबी लोगों से जब इस बारे में बात की गई तो उनका कहना है कि दीपक चौरसिया को शुगर  की बीमारी है।  कुछ अन्य शारीरिक दिक्कतें हैं जिसके कारण उनका इलाज चल रहा है।  डाक्टरों ने दीपक को स्वास्थ्य लाभ करने के लिए कहा है।  वे इलाज के लिए अस्पताल में भी भर्ती हुए थे। सेहत ठीक न होने के कारण ही दीपक चौरसिया आफिस नहीं जा रहे हैं।  उनके संस्थान से हटने की खबर में कोई दम नहीं है।  ज्ञात हो कि कई संपादकों के आने जाने के बाद इंडिया न्यूज को स्थापित दीपक चौरसिया और उनकी टीम ही कर पाई। चैनल स्थापित हो जाने के बाद चैनल मालिक कार्तिक शर्मा ने धीरे धीरे दीपक चौरसिया पर अंकुश लगाना शुरू किया।  इससे नाराज दीपक ने कई बार आपत्ति की , लेकिन चैनल के मालिकान अपनी जिद पर अड़े रहे और दीपक के करीबियों पर गाज गिराने लगे।  माहौल खराब होते देख चैनल के कई बड़े एंकरों ने दूसरे न्यूज चैनलों का रुख कर लिया। दीपक के बेहद करीबी संजय सूद और निधि कौशिक तक को प्रबंधन ने हटा दिया।  नाराज दीपक ने अंतत: आफिस जाना बंद कर दिया है। 

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Dakhal News 3 November 2016


arnab goswami

टाइम्स नाऊ से अरनब गोस्वामी ने इस्तीफा दिया मीडिया इंडस्ट्री की एक बड़ी खबर सामने आ रही है. टाइम्स नाऊ न्यूज चैनल के चर्चित एडिटर इन चीफ अर्णब गोस्वामी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने संपादकीय विभाग की बैठक में अपने इस्तीफे का ऐलान किया. बताया जा रहा है कि अर्णब जल्द ही अपना न्यूज चैनल लांच करेंगे. टाइम्‍स नाऊ चैनल का मालिक टाइम्स आफ इंडिया अखबार समूह है जिसके मालिक विनीत जैन और समीर जैन हैं. अरनब टाइम्‍स नाऊ के साथ साथ बिजनेस न्यूज चैनल ईटी नाऊ के भी एडिटर इन चीफ थे. अरनब गोस्वामी का शो ‘न्‍यूज आवर’ कई वजहों से सुर्खियों में रहा करता है. अरनब पर कई बार पीत पत्रकारिता करने और मोदी सरकार का बचाव करने जैसे आरोप लगे. अरनब की आलोचना शो में चिल्‍लाने और बहुत जल्‍दी आपा खो देने के लिए होती रही है. अरनब गोस्वामी मूलत: असम के रहने वाले हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से सोशियालॉजी में बीए (आनर्स) और ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से सोशल एंथ्रोपॉलजी में एमए करने वाले अरनब ने अपने करियर की शुरुआत 1995 में कोलकाता के अखबार द टेलीग्राफ से की थई. फिर वह एनडीटीवी चैनल से जुड़े. उन्होंने 2003 तक एनडीटीवी पर न्यूज आवर कार्यक्रम की एंकरिंग की. अरनब 2006 में टाइम्स नाऊ के एडिटर इन चीफ बने. अरनब गोस्वामी के दादा असम के जाने माने वकील थे और उनके नाना गौरी शंकर भट्टाचार्य कम्युनिस्ट नेता और असम में विपक्ष के नेता रहे हैं. अरनब गोस्वामी के पिता मनोरंजन गोस्वामी सेना में कर्नल के पद से रिटायर हुए हैं. उनके पिता 1998 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर गुवाहाटी से लोक सभा चुनाव लड़ चुके हैं. उनके मामा गुवाहाटी पूर्व से बीजेपी के विधायक हैं और असम के वर्तमान मुख्यमंत्री सरबानंद सोनोवाल से पहले पार्टी की असम इकाई के प्रमुख भी थे.[भड़ास फॉर मीडिया से साभार ]

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Dakhal News 2 November 2016


नेशनल मीडिया अवार्ड

भारत निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता शिक्षा एवं जागरूकता के लिए प्रिंट, इन्टरनेट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को दिये जाने वाले नेशनल मीडिया अवार्ड के नामांकन 7 नवम्बर तक स्वीकार किये जायेगें। नामांकन के लिए आवेदन  सुमन कुमार दास, अवर सचिव (कम्युनिकेशन), भारत निर्वाचन आयोग, निर्वाचन सदन, अशोक रोड, नई दिल्ली के पते पर भेजे जा सकते है।

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Dakhal News 1 November 2016


rishi pandey patrkar

राजनीतिक रिपोर्टर बना मीडिया मालिक राजधानी के वरिष्ठ पत्रकार ऋषि पांडे पॉलीटिकल रिपोर्टर से अब मीडिया हाउस के मालिक की भूमिका में हैं। अलग अंदाज की पत्रकारिता के लिए ऋषि पांडे ने बिग-टॉक नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया है। बिग-टॉक पत्रिका का पांचवा अंक बाजार में है।  श्री पांडे की पत्रकारीय पहचान प्रदेश के एक बेहतरीन पॉलीटिकल रिपोर्टर (राजनीतिक संवाददाता) की रही है। यदि उनकी शुरुआती पत्रकारिता को छोड़ दें, तो उन्होंने ज्यादातर समय सिर्फ पॉलीटिकल रिपोर्टिंग की या राजनीतिक खबरें ही लिखी हंै। 1990 के दशक में अखबारों में साप्ताहिक राजनीतिक डायरी प्रकाशन का एक अलग क्रेज था। किसी प्रतिष्ठित समाचार-पत्र में राजनीतिक डायरी न जाए, ऐसा हो नहीं सकता था।  श्री पांडे और दैनिक जागरण की कैमिस्ट्री इतनी मिलती थी कि उन्होंने कोई पंद्रह सालों तक दैनिक जागरण में अलग-अलग समय में पत्रकारिता की। उनकी लिखी साप्ताहिक राजनीतिक डायरी परत-दर-परत कई सालों तक अखबार का अहम हिस्सा रही। श्री पांडे की राजनीतिक डायरी में पक्ष-विपक्षी पार्टियों के काम का मूल्यांकन इतना सटीक और प्रमाणिक होता था कि, राजनेता और रणनीतिकार, राजनीतिक-डायरी पढऩे पूरे सप्ताह तक इंतजार करते थे। धार में पढ़े-लिखे और जन्मे ऋषि ने चाचा महेश पांडे, जो कि कई सालों तक जनसत्ता के मप्र ब्यूरो रहे, की प्रेरणा से वर्ष 1987 में दैनिक जागरण, भोपाल से पत्रकारिता की शुरुआत की। इसके बाद श्री पांडे ने चौथा संसार, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक भास्कर, राष्ट्रीय दैनिक जागरण और पत्रिका में अलग-अलग हैसियत से काम किया। पत्रकारिता में आदर्श राजनीतिक रिपोर्टिंग के प्रतिमान स्थापित किए।  इस बीच नईदुनिया, ग्वालियर में संपादक और बीबीसी के मप्र-छग ब्यूरो के तौर पर भी काम किया। ऋषि को बेहतरीन राजनीतिक रिपोर्टिंग के लिए सत्यनारायण श्रीवास्तव पुरस्कार और सप्रे संग्रहालय का जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी सहित कई सम्मान-पुरस्कार भी मिल चुके हैं। साइंस में स्नातक ऋषि को पत्रकारिता के साथ शास्त्रीय गीत-संगीत (क्लासिकल म्युजिक) का भी शौक है। इसके लिए उन्होंने बाकायदा क्लासिकल म्युजिक की पढ़ाई की। हालांकि वे संगीत में पेशेवर नहीं हैं। वे कहते हैं कि पत्रकारिता जीविका चलाने और लोकसेवा का साधन है, तो शास्त्रीय संगीत आत्मा का आनंद है। उनका कहना है कि आज पत्रकारिता चुनौती पूर्ण हो गई। सब तरफ प्रतिस्पर्धा का दौर है। ऐसे में अपने को विषय विशेषज्ञता के साथ अपडेट रखते हुए काम करना जरूरी हो गया है

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Dakhal News 31 October 2016


jio

रिलायंस जियो यूजर्स वेलकम ऑफर के तहत 31 दिसंबर की बजाय मार्च 2017 कर मुफ्त सेवाओं का लुत्फ ले सकेंगे। कंपनी इस बारे में पहले ही संकेत दे चुकी है कि इस ऑफर को बढ़ाया जा सकता है। जियो के वॉइस कॉलिंग के मुद्दे पर कोई सुधार होता नहीं दिख रहा है। कंपनी का टारगेट करीब 100 मिलियन यूजर्स को अपने साथ जोड़ना है। मौजूदा आंकड़ों के अनुसार, अब तक कोई 25 मिलियन यूजर कंपनी के साथ जुड़ चुके हैं। इसी टारगेट को पूरा करने के लिए वेलकम ऑफर मार्च 2017 तक चलाया जा सकता है। 16 हजार टीबी डेटा के यूज के साथ ही यह विश्व रिकॉर्ड बन गया है। रिलायंस के सामने सबसे बड़ी चुनौती फिलहाल टैरिफ प्लान्स में फ्री वॉइस कॉलिंग की सुविधा मुहैया कराना है। मगर, दूसरी टेलिकॉम कंपनियां जैसे वोडाफोन, एयरटेल आदि जियो को इंटरकनेक्ट प्वांट मुहैया कराने में फेल हो रही हैं। ऐसे में जियो को अपने नेटवर्क में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ना है। 4G LTE फोन की कीमत कम होने के साथी ही अधिकांश लोग इसके वोल्ट कॉलिंग सपोर्ट का लाभ ले सकेंगे। इसलिए यदि जिओ में 100 मिलियन यूजर्स होते हैं, तो उनका वॉइस कॉलिंग प्लान प्रभावी हो पाएगा। कंपनी चाहती है कि जब तक ग्राहक को सही सेवा नहीं मिले और वे संतुष्ट नहीं हो जाएं, उनसे चार्ज लेना गलत होगा।

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Dakhal News 29 October 2016


patrkar vijay das

पत्रकार विजय दास और राष्ट्रीय हिंदी मेल एक दूसरे के पर्याय है। कोई 21 बरस पहले भोपाल से इस अखबार का प्रकाशन शुरू किया था तो कई सारे किन्तु परन्तु सामने आये थे। लेकिन विजय दास के साथ हिंदी मेल का सफर भी अपनी गति से चलता रहा।   अब दास और उनके अखबार को लेकर प्रदेश टुडे अखबार में सूरमा भोपाली ने अपनी कलम चलाई है। सूरमा ने लिखा है कि हौसले बुलंद कर रास्तों पर चल दे, तुझे तेरा मुकाम मिल जाएगा, अकेला तू पहल कर काफिला खुद बन जाएगा। राष्ट्रीय हिंदी मेल आज इक्कीस बरस का हट्टा-कट्टा नौजवान हो गया। 26 अक्टूबर 1996 को जब शहर के भन्नाट पत्रकार विजय दास ने इस अखबार की इब्तिदा करी तो कईयों ने इसके मुस्तकबिल को लेके शक-शुबहे बयां किए। बाकी दास साब तो खां धुन के पक्के थे, लोगों की बातों को दरकिनार कर लग गए अपने काम में। समूह की प्रेसीडेंट मेडम माया दास ने भी उने हिम्मत दी। तब का दिन है और आज का दिन इन बीस बरसों में राष्ट्रीय हिंदी मेल ने अपनी अलग पहचान गढ़ी और अपने रीडरों की जरूरत बन गया। आज सियासी और प्रशासनिक खबरों में इस अखबार का जवाब नहीं है। बकौल विजय दास पूंजिपतियों के अखबारी कुनबों के सामने एक मामूली पत्रकार की हिम्मत कहां टिक पाती। फिर भी मैदाने जंग में डटे रहे। आज अपनी खबरों और भरोसे के बूते ये अखबार भोपाल के अलावा इंदौर, ग्वालियर और रायपुर से भी शाया हो रहा है। मियां खां केते हेंगे के हमने एडिटर नाम की इंस्टिट्यूट को हमेशा जिंदा रखा। इसी लिए हमारे यहां विजयदत्त श्रीधर, दाऊलाल साखी, राजेन्द्र नूतन, यशवंत अरगरे जैसी दिग्गज हस्तियां संपादक रहीं। इनके अलावा इस अखबार में रवीन्द्र जैन, अजीत सिंह, रवि भोई, प्रकाश भटनागर और ज्ञानेश उपाध्याय जैसे पत्रकारों ने भी अपनी अलग पेहचान बनाई। दास साब भरोसे के साथ केते हैं के उन्ने अभी भी मील का पत्थर नहीं देखा है, उनका कारवां मंजिल की तलाश में चल रहा है। तो साब... आपका ये सफर यूं ही लगातार चलता रहे सूरमा यही कामना करता है और इक्कीसवीं सालगिरह पे दिली मुबारकबाद पेश करता है।

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Dakhal News 27 October 2016


वाइल्ड लाइफ वंडर्स ऑफ मध्यप्रदेश

मध्यप्रदेश टाइगर फाउण्डेशन सोसायटी ने फोटोग्राफी प्रतियोगिता 'वाइल्ड लाइफ वंडर्स ऑफ मध्यप्रदेश'' के लिये 31 अक्टूबर तक आवेदन आमंत्रित किये हैं। प्रतियोगिता के नियम और प्रवेश-पत्र फाउण्डेशन के फेसबुक पेज से डाउनलोड किये जा सकते हैं। विजेता को 50 हजार और 8 चुनी हुई प्रविष्टि को 5-5 हजार के पुरस्कार दिये जायेंगे। 'फेसबुक फेवरेट' अवार्ड में फेसबुक सर्वाधिक लाइक पर 5000, द्वितीय 3000 और तृतीय पुरस्कार 2000 रुपये का होगा। सोसायटी के सचिव जीतेन्द्र अग्रवाल ने बताया कि वन्य-प्राणियों के छायाकारों को प्रोत्साहित करने और उनकी प्रतिभा को मंच उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से सोसायटी के फेसबुक पेज पर यह प्रतियोगिता इसी वर्ष से आरंभ की जा रही है। प्रतिभागी सोसायटी के फेसबुक पेज पर अपनी प्रविष्टि अपलोड कर सकते हैं। प्रतियोगिता का विषय है 'मध्यप्रदेश के वन्य-प्राणी''। सोशल मीडिया पर आने से युवा वर्ग भी वन्य-प्राणी संरक्षण से जुड़ेगा और वन्य-प्राणियों का अद्भुत फोटो संसार बनेगा, जिसमें प्रदेश, देश और विश्व के वन्य-प्राणी के फोटो एक क्लिक पर उपलब्ध होंगे।  

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Dakhal News 26 October 2016


अ फील्ड गाइड टु इन्सेक्ट्स एण्ड स्पाइडर्स ऑफ कान्हा टाइगर रिजर्व

मुख्य वन्य-प्राणी अभिरक्षक  जितेन्द्र अग्रवाल ने  भोपाल में वन्य-प्राणीविद  अनिरुद्ध धामोरीकर द्वारा तैयार 'अ फील्ड गाइड टु इन्सेक्ट्स एण्ड स्पाइडर्स ऑफ कान्हा टाइगर रिजर्व' का विमोचन किया। किताब में रिजर्व में पायी जाने वाली 600 से अधिक कीट-प्रजातियों, मकड़ियों और तितलियों की जानकारी का संकलन है। यह संकलन  धामोरीकर ने रिजर्व में सघन क्षेत्र भ्रमण के बाद तैयार किया है। श्री जितेन्द्र अग्रवाल ने गाइड की प्रशंसा करते हुए कहा कि छोटे-छोटे कीट-पतंगे हमारे ईको-सिस्टम के अत्यंत महत्वपूर्ण घटक हैं। खाद्य श्रंखला को बनाये रखने में इनकी भूमिका अपूरणीय है। फील्ड गाइड से न केवल शोध विद्यार्थियों को सहायता मिलेगी, बल्कि इन छोटे परंतु प्रकृति के लिये महत्वपूर्ण वन्य-प्राणियों के बारे में लोगों को भी जानकारी मिलेगी।  

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Dakhal News 26 October 2016


patrkar

महिला पत्रकारों को निशाना बनाते हैं दो टके के लोग   दुनिया भर में जो पत्रकार, लोगों की खबर लेते और देते रहते हैं वो कब खुद खबर बन जाते हैं इसका पता नहीं चलता है। पत्रकारिता के परम्परगत रेडियो, प्रिंट  टीवी ,वेब मीडिया से बाहर, ख़बरों के नए आयाम और माध्यम बने हैं। जैसे जैसे ख़बरों के माध्यम का विकास हो रहा है, ख़बरों का स्वरूप और पत्रकारिता के आयाम भी बदल रहे हैं। वहीँ पत्रकार तमाम हमलों का शिकार हो रहे हैं और खासकर आक्रामक महिला पत्रकारों को दो टके के नेता और उनके शागिर्द निशाना बना रहे हैं।  फटाफट खबरों के दौर में सबको चुनौती देता वेब मीडिया ऐसे में  24 घंटे के चैनल्स में कुछ एक्सक्लूसिव दे देने की होड़, इतनी बढ़ी हैं कि ख़बरों और विडियो फुटेज के संपादन से ही खबर का अर्थ और असर दोनों बदल जा रहा है। पत्रकारों और पत्रकारिता में रूचि रखने वालों के लिए ब्लॉग, वेबसाइट, वेब पोर्टल, कम्युनिटी रेडियो, मोबाइल न्यूज़, एफएम, अख़बार, सामयिक और अनियतकालीन पत्रिका समूह के साथ-साथ आज विषय विशेष के भी चैनल्स और प्रकाशन उपलब्ध हैं। कोई ज्योतिष की पत्रिका निकल रहा है तो कोई एस्ट्रो फिजिक्स की, कोई यात्रा का चैनल चला रहा है तो कोई फैशन का। फिल्म, संगीत, फिटनेस, कृषि, खान-पान, स्वास्थ्य, अपराध, निवेश और रियलिटी शो के चैनल्स अलग-अलग भाषा में आ चुके हैं। धर्म आधारित चैनल्स के दर्शकों की संख्या बहुतायत में होने का परिणाम ये हुआ कि पिछले 10-15 वर्षों में, दुनिया के लगभग सभी धर्मों के अपने अपने चैनल्स की बाढ़ आ गई। जैसे-जैसे दर्शक अपने पसंद के चैनल्स की ओर गए, जीवन में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के विज्ञापन भी उसी तर्ज़ पर अलग-अलग चैनल्स और भाषा बदल कर उन तक पहुँच गए।  संचार क्रांति के आने और मोबाइल के प्रचार-प्रसार से ख़बरों का प्रकाश में आना आसान हो गया है। वेब और सोशल  मीडिया के आने से एक अच्छी शुरुआत ये हुयी है कि ख़बरों को प्रसारित करने के अख़बार  समूहों और चैनल्स के सीमित स्पेस के बीच आम लोगों को असीमित जगह मिली है। ख़बरें अब देश की सीमाओं की मोहताज नहीं रही हैं। ख़बरों की भरमार है।  इधर मोबाइल ने 'सिटीजन जर्नलिज्म' को बढ़ावा दिया है और आज मोबाइल रिकॉर्डिंग और घटना स्थल का फोटो, ख़बरों की दुनिया में महत्वपूर्ण दस्तावेज़ की तरह उपयोग में आ रहा है। लेकिन मीडिया की इस विकास यात्रा में, पत्रकारों के  जीवन में क्या बदलाव आया है? दुनिया के स्तर पर सबके अधिकारों की बात करने वाले, पत्रकारों पर हमले की घटनाएं बढ़ी हैं। जर्नलिस्ट्स विदाउट बॉर्डर की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में 66 पत्रकार मारे गए थे और इस तरह पिछले एक दशक में मारे जाने वाले पत्रकारों की संख्या 700 से ऊपर बताई जाती है। 66 मारे गए पत्रकारों में, बड़ी संख्या सीरिया, उक्रेन, इराक़, लीबिया जैसे देशों में मारे गए नागरिक पत्रकार और मीडिया कर्मियों की थी। ब्लॉग ख़बरों और विचार अभिव्यक्ति के एक नए मॉडल के रूप में उभर रहा है। 2015-2016 में बांग्लादेश से कई ब्लॉगर्स की हत्या की खबरें आई हैं जो चिंताजनक हैं।  कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के अनुसार, 70% रिपोर्टर/कैमरा मैन, युद्ध और हिंसा की खबर कवर करने के दौरान मारे जाते हैं। साहसिक कार्य के दौरान हुयी हिंसा के शिकार ज़यादातर पत्रकार किसी एक अख़बार या चैनल्स के नहीं होते हैं। कभी 'स्ट्रिंगर' तो कभी छोटे समूह के लिए काम करने वाले पत्रकारों की मौत के बाद उनके परिवार की सामाजिक सुरक्षा एक बड़ी चुनौती बन जाती है। अपने देश में भी समय-समय पर पत्रकारों के उत्पीड़न की ख़बरें आती रहती हैं, कई बार घटना की सत्यता आरोप-प्रत्यारोप में दब जाती है। पत्रकार की नौकरी जहाँ असुरक्षा की भावना से घिरी रहती है वहीँ पूरी दुनिया के स्तर पर राजनीतिक और संवेदनशील मुद्दों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। रिपोर्टिंग के दौरान मारे जाने के साथ साथ, सोशल मीडिया पर उनको गाली और धमकी आम होती जा रही है। महिला पत्रकारों का काम और कठिन हो रहा है। महिला पत्रकारों को लेकर दो टके के नेता और उनके दलाल सोशल मीडिया पर गाली और चरित्र हनन की घटनाओं  को अंजाम दे रहे हैं। पत्रकारिता के प्रमुख सिद्धांतों का पालन, जिसमें निष्पक्षता और सत्य उजागर करना प्रमुख सिद्धांत में से है, चुनौती बनता जा रहा है। ईमानदार पत्रकारिता, इस बदले समय में काफी चुनौतीपूर्ण लग रही है। ये भी सच है कि पत्रकारों में भी एक वर्ग, अपने राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए ख़बरों और अपने रसूख का इस्तेमाल करता है और जनता को गुमराह करता है।  

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Dakhal News 25 October 2016


akhbaar

बीसवीं सदी में पाठक अखबार तलाशते थे , इक्कीसवीं सदी में अखबार पाठक को  ढूंढ रहे हैं। ऐसे में नया पाठक अखबार से दूरी बनाकर वेब मीडिया में जा पहुंच है। बीसवीं सदी में विज्ञापनदाता आते थे अखबार के दफ्तर, इक्कीसवीं सदी में अखबार जा रहे हैं विज्ञापनदाता के पास। पूरा माहौल बदल गया है ,अखबारी दुनिया में सब कुछ ठीक नहीं है।  ये दो संकेत यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि प्रिंट मीडिया के भविष्य की दशा और दिशा कौनसी है? प्रिंट मीडिया पर पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो अब वेब मीडिया की तलवार लटक रही।  यह कोई प्रिंट मीडिया की कमजोरी नहीं है बल्कि तकनीकी विकास से उत्पन्न संकट है जिस पर गंभीरता से सोचने और उसके सापेक्ष बदलाव लाने की जरूरत है. तर्क-कुतर्क करनेवाले, आंकड़ों की बाजीगरी दिखानेवाले, हो सकता है इस वक्त इसे हवा में उड़ा दें लेकिन आंख बंद करने से सच्चाई नहीं बदल सकती है।  ऐसा ही दौर मनोरंजन जगत देख चुका है जब टीवी ने सिनेमाघरों पर ताले लगवा दिए थे।  तब बड़े बड़े फिल्मी सितारे टीवी को बहुत छोटा मानते थे लेकिन बाद में ये सिर के बल टीवी में घूस गए।  यदि कोई ऐसा बड़ा बदलाव प्रिंट मीडिया में आता है तो प्रिंटिंग यूनिट का क्या अच्छा उपयोग हो सकता है? इस पर अभी से सोचने की जरूरत है।  दूसरी बड़ी समस्या मेनपावर को लेकर है, ये सभी पूरी तरह से अखबार पर निर्भर हैं।  इनकी प्रतिभा का कहां और क्या उपयोग हो सकता है, इस पर विचार करने की जरूरत है।  इन कुछ वर्षों में बड़ा बदलाव आया है।  अखबार का विज्ञापन टीवी ले गया जो बचा उसे वेब मीडिया ने झटक लिया ,तो बड़े मीडिया ने छोटे अखबारों का विज्ञापन लेकर अपनी कमी पूरी कर ली, लेकिन सच्चाई यह है कि प्रिंट मीडिया के विज्ञापन में लगातार कमी हो रही है जिसका असर पहले छोटे अखबारों पर और फिर बड़े अखबारों पर नजर आएगा।  एक बड़ा बदलाव सरकारी विज्ञापन को लेकर है।  जहां सरकार अखबारों पर विज्ञापन के लिए नए नए नियम लाद रही है वहीं विज्ञापन लगातार कम भी हो रहे हैं।  वैसे भी दुर्भाग्य से सरकारी विज्ञापन का पैमाना कभी भी अच्छा अखबार नहीं रहा है, वह तो सर्कूलेशन पर और कागजों पर आधारित रहा है इसलिए कई अच्छे अखबार और संपादक तो अखबार की दुनिया को पहले ही अलविदा कह चुके हैं।  सोचनेवाली बात यह है कि अब किसी को अखबार का बेसब्री से इंतजार नहीं रहता है और युवा तो इस ओर से एकदम बेपरवाह हैं तो नया पाठक कहां से पैदा होगा? नया विज्ञापनदाता कहां से आएगा?जिसे हम नया पाठक मानते हैं वो अपने काम और ज्ञान की ख़बरें वेब मीडिया पर ढूंढ कर पढ़ लेता है।  इस दीपावली से पहले ही कई अखबार विज्ञापन की कमी को लेकर परेशान हैं तो जाहिर है कि इस दीपावली के बाद उन्हें कोई ना कोई कठोर निर्णय लेने पड़ेंगे।  

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Dakhal News 24 October 2016


दिलीप सूर्यवंशी इन्फ्रास्ट्रक्चर पर्सन ऑफ ईयर

दिलीप बिल्डकॉन को तीन श्रेणियों में मिला अवाॅर्ड इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र की इंटरनेशनल मैग्जीन ‘कंस्ट्रक्शन वीक’ के 6वें ऑल इंडिया अवाॅर्ड समारोह में अग्रणी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी दिलीप बिल्डकॉन लिमिटेड को 3 श्रेणियों में पुरस्कार मिले।  मैग्जीन ने मुंबई में आयोजित समारोह में कंस्ट्रक्शन और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट क्षेत्र की कंपनियों की संस्थान कार्यक्षमता, व्यक्तिगत दक्षता व कार्य सफलता के आधार पर 18 श्रेणियों में अवाॅर्ड दिए। भोपाल की दिलीप बिल्डकॉन को ‘रोड कंट्रेक्टर ऑफ द ईयर’ तथा कंपनी द्वारा निर्मित ‘हैदराबाद से डिंडी राजमार्ग’ को बेस्ट रोड ऑफ द कंट्री का अवाॅर्ड मिला। संस्था के प्रबंध संचालक दिलीप सूर्यवंशी को ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर पर्सन ऑफ ईयर’ अवाॅर्ड से नवाजा गया।  विजेताओं के चयन के लिए ज्यूरी का गठन किया गया था। इसमें एचडीएफसी रियल्टी के सीईओ विक्रम गोयल, रिलायंस इंडस्ट्रीज की ईपीसी अकादमी वाइस प्रेसिडेंट प्रोजेक्ट सरोश बाला, टाटा हाउसिंग डेवलपमेंट एमडी व सीईओ ब्रोटिन बेनर्जी, एस्सल इन्फ्रा के अध्यक्ष सिटिज़ एंड स्टेटिक्स गाय पैरी, हैवल्स इंडिया में उपाध्यक्ष ईडबल्यूयूए बिजनेस यूनिट विवेक यादव शामिल थे। 

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Dakhal News 19 October 2016


patrikarita vishvvidhyalay

एनएसयूआई ने लगाया आराेप भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता व संचार विश्वविद्यालय में हुई नियुक्तियों पर सवाल उठाए हैं। संगठन के प्रदेश प्रवक्ता विवेक त्रिपाठी  का आराेप है कि विश्वविद्यालय में की गई नियुक्तियों में अनियमितता हुई है और विवि दोबारा से यूजीसी के नियमों को दरकिनार कर नियुक्ति की तैयारी में है।  उन्होंने गत अगस्त में आयोजित महापरिषद की बैठक में हुए नियुक्तियों से संबंधित निर्णयों को निरस्त करने की मांग की है। साथ ही संगठन ने विवि द्वारा गलत तरीके से संस्थाओं को संबद्धता जारी करने का भी आरोप लगाया है। त्रिपाठी का कहना है कि 2010 में जहां विवि से महज 400 संस्थाएं संबद्ध थी वहीं अब यह संख्या बढ़कर 900 तक पहुंच गई है। उधर विवि के रेक्टर लाजपत आहुजा ने इन आरोपों का खंडन किया है। उनका कहना है कि पुरानी नियुक्तियों को नई बताकर गुमराह किया जा रहा है।  नियुक्तियों से संबंधित सारे निर्णय महापरिषद की बैठक में हुए हैं। 

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Dakhal News 18 October 2016


पत्रकार हरीश चंद्र बर्णवाल

मोदी मंत्र के बाद मोदी सूत्र महेश दीक्षित  हाल ही में वरिष्ठ पत्रकार हरीश चन्द्र बर्णवाल की किताब मोदी सूत्र आई है। यह किताब दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित और हैरी पॉटर सीरीज छापने वाले प्रकाशक ‘ब्लूम्सबरी’ ने छापी है। नाम के अनुरूप ये किताब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जीवन और कृत्तित्व पर आधारित है। इससे पहले हरीश की नरेंद्र मोदी पर ही एक और किताब मोदी मंत्र भी प्रकाशित हो चुकी है। इस किताब की प्रस्तावना खुद नरेंद्र मोदी ने लिखी है।  हरीश के मुताबिक मोदी सूत्र किताब नरेंद्र मोदी को एक नए नजरिए से देखने की कोशिश है। वे कहते हैं कि अब तक लोग उन्हें राजनेता के तौर पर जानते हैं… लेकिन लेखक के मुताबिक ये उनके व्यक्तित्व का सिर्फ एक पहलू भर है। इस किताब में नरेंद्र मोदी की जिंदगी से जुड़े कई नए आयाम सामने लाने की कोशिश की गई। उनके चरित्र का कुछ और नया चेहरा उभरता नजर आता है। लेखक हरीश चन्द्र बर्णवाल के मुताबिक किताब के माध्यम से वो नरेंद्र मोदी के अनुभवों को आम आदमी तक पहुंचाना चाहते हैं। इस किताब से समाज के हर तबके को फायदा होगा। चाहे स्कूल में पढऩे वाला बच्चा हो, किसी भी प्रोफेशन में काम करने वाला युवा हो, खिलाड़ी हो या उद्यमी हो। नरेंद्र मोदी कमियों को छिपाते नहीं हैं बल्कि उजागर करते हैं… ताकि उसे दुरुस्त किया जा सके।  किताब मोदी सूत्र के जल्द अंग्रेजी और गुजराती में प्रकाशन की भी योजना है। हरीश की ये पांचवीं किताब है। इससे पहले उनकी चार किताबें टेलीविजन की भाषा, सच कहता हूं, लहरों की गूंज और मोदी मंत्र प्रकाशित हो चुकी है। हरीश को भारत सरकार के भारतेंदु हरिश्चन्द्र समेत कई पुरस्कार-सम्मान मिल चुके हैं। हरीश की एक बात और है कि जब मेनस्ट्रीम मीडिया का कोई भी पत्रकार नरेंद्र मोदी की नीतियों पर कुछ भी अच्छी बातें लिखने से घबराता था, तब से हरीश ने नरेंद्र मोदी की नीतियों का सूक्ष्मता से विश्लेषण करना शुरू कर दिया था। बर्णवाल का कहना है कि एक अच्छा पत्रकार वो है, जो रोजाना की घटनाओं पर सतत नजर रखने के साथ समाज में होने वाले राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों का निष्पक्ष व तटस्थ विश्लेषण भी करता है।

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Dakhal News 16 October 2016


पत्रकार कृष्णा शर्मा सम्मानित

  भोपाल के पत्रकार कृष्णा शर्मा को उनकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया गया।  भोपाल के अखबार राज एक्सप्रेस में काम करने वाले पत्रकार कृष्णा शर्मा को भोपसल के महापौर  अलोक शर्मा और मप्र पर्यटन निगम के अध्यक्ष तपन भौमिक  ने पत्रकारिता  में उल्लेखनीय योगदान के लिए शाल,श्री फल एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।पत्रकार  कृष्णा शर्मा ने कहा कि सम्मान और गति के साथ निष्पक्षता के साथ काम करने की प्रेरणा देता है। 

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Dakhal News 15 October 2016


farmer suicide

कर्नाटक के बेल्‍लारी स्थित एक गांव में जहर पीकर आत्‍महत्‍या की कोशिश कर रहे एक किसान का सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो गया है। लेकिन इसमें हैरानी वाली बात यह है कि इस आत्‍महत्‍या के प्रयास को‍ कथित तौर पर कैमरामैन दृश्‍य तैयार करते नजर आए। वीडियो शूट करने के पहले किसान वाकई आत्‍महत्‍या करने का प्रयास कर रहा था क्‍योंकि उसकी मिर्च की फसल पानी के कमी के कारण सूख गई थी। स्‍थानीयों ने मीडिया को इस शख्‍स की फसल जलाने और आत्‍महत्‍या करने की योजना की जानकारी दी लेकिन कुछ गांववालों ने इलेक्‍ट्रॉनिक मीडियाकर्मियों के पहुंचने तक किसान की आत्‍महत्‍या के प्रयास को रोके रखा।अपने चैनल की टीआरपी के लिए मीडियाकर्मियों ने कथित तौर पर किसान को आत्‍महत्‍या करने के प्रयास के दृश्‍य को दोहराने को कहा और उसे कहा कि वह ऐसे एक्‍ट करे कि वह कीटनाशक पी रहा है। वीडियो में आप देखेंगे कि अन्‍य किसान इस तरह से जता रहे थे कि जैसे वह उसे मरने से रोक रहे हैं। वीडिये में लोगों को कन्‍नड़ में बोलते सुना जा सकता है और कैमरामैन ने तो यह तक किसान को बताया कि कीटनाशक की बॉटल कैसे पकड़े।यह वीडियो सोशल मीडिया पर नाराजगी का कारण बना हुआ है और कई लोग इसकी जांच और इस वीडियो को बनाने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

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Dakhal News 14 October 2016


naiduniya

पत्रकारिता की स्वस्थ परंपरा के साथ नईदुनिया ने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक दशक पहले यानी 13 अक्टूबर 2006 को देश व समाज हित में सरकारी सिस्टम में फैली अव्यस्थाओं और भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने के लिए 'सर्जिकल स्ट्राइक' शुरू की थी। बड़ी ही गंभीरता और जिम्मेदारी से चलाए गए इस मिशन ने जमीनी नतीजे दिए। नईदुनिया ने खबरों से सरोकार के साथ पाठकों से भी जीवंत संपर्क रखा। उन मुद्दों पर कलम के जरिए लगातार प्रहार किए, जिनसे कहीं न कहीं व्यवस्था बदलने की उम्मीद थी। हुआ भी यही, जनता, समाज और सरकार ने इन्हें हाथो हाथ लिया। दैनिक जागरण समूह का प्रकाशन और आपका नईदुनिया 10वां पड़ाव पार कर 11वें पर कदम रखने जा रहा है, तब लगता है कि अपने पाठक परिवार से सीधा संवाद किया जाए। नईदुनिया खुद के बारे में लिखता है -मंथन और मूल्यांकन हो, जनहित के मुद्दों पर जागरूकता बढ़े। नईदुनिया का मिशन और तेजी से जन-जन तक पहुंचे। हम 'विश्वास की परंपरा' के वाहक रहे हैं, तो 'नई सोच-नए अंदाज' पर भरोसा किया। आप पल-पल साथ रहे हैं। नकारात्मक खबरों के दौर में सबसे पहले साल 2007 से नईदुनिया ने 'सकारात्मक सोमवार' की पहल की। नईदुनिया में लिखा है हिन्दी पत्रकारिता में यह अपनी तरह का अनूठा प्रयास था, जिसे पाठकों ने तहेदिल से सराहा। नईदुनिया ने हर सोमवार पहले पेज पर सकारात्मक तस्वीरें, खबरें और यहां तक कि प्रेरक कविताएं भी दीं, ताकि जनमानस में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो। अब मीडिया में स्टिंग ऑपरेशन कर खुलासे खूब हो रहे हैं, लेकिन 2007 में नईदुनिया इसकी शुरुआत कर चुका था। पीओके में घुसकर जिस तरीके से भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकियों का सफाया किया था, वैसे ही 'सर्जिकल स्ट्राइक' की तर्ज पर नईदुनिया ने सरकारी सिस्टम की जड़ों में छिपे भ्रष्टाचारियों के लगातार खुलासे किए और उन्हें बेनकाब किया। मंत्रालय से लेकर सीएम जनदर्शन तक स्टिंग ऑपरेशन किए। शासन ने भी नईदुनिया के इन खुलासों पर त्वरित कार्रवाई की। नईदुनिया के स्थापना दिवस पर अंदर के विशेष चार पेजों पर पाठकों की जागरूकता और खबरों के इतिहास पर नजर डालने के लिए सामग्री दी गई है। इस भरोसे के साथ कि पाठकों के सहयोग के बूते 'नई सोच, नया अंदाज' की परंपरा अनवरत जारी रहेगी।    

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Dakhal News 13 October 2016


trp news

  नेशनल न्यूज़ चैनल्स में आज तक सबसे लोकप्रिय    मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जी न्यूज़ की बादशाहत कायम हो गई है। बीते 52 हफ़्तों [एक साल ] से जी न्यूज़ पहले नंबर पर बना हुआ है। वहीँ बंसल न्यूज़ दूसरे और ibc तीसरे नंबर पर है। इन चैनल की शानदार ख़बरों और प्रोग्रामिंग ने बाकि चैनल्स को पछाड़ दिया है। जी न्यूज़ के दफ्तर में 40 वें हफ्ते की टीआरपी के बाद जश्न का माहौल है। वहीँ नेशनल चैनल्स में आज तक के तिलिस्म को कोई तोड़ नहीं पा रहा हैं।    मध्यप्रदेश/ छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव चैनल Week 40 .... Zee MP CG.... 47.1 Bansal....         19.1 IBC....                18.5 etv..........            12.2 India news....      2.0   टीआरपी नेशनल न्यूज़ चैनल्स Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 40 Aaj Tak 16.6 dn 0.6  India TV 14.3 up 0.6  India News 14.0 up 0.6  Zee News 12.1 dn 0.1  ABP News 11.7 dn 0.4  News 24 9.8 up 0.5  News Nation 9.3 dn 0.3  IBN 7 6.6 up 0.5  NDTV India 2.1 dn 0.2  Tez 1.9 dn 0.1  DD News 1.6 dn 0.4   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.2 dn 1.0  India TV 15.3 up 0.3  Zee News 13.3 up 0.8  ABP News 12.2 up 0.1  India News 11.1 up 0.1  News   9.5 dn 0.5  News 24 9.2 up 0.3  IBN 7 7.4 up 0.8  NDTV India 2.6 dn 0.5  Tez 1.9 up 0.1  DD News 1.4 dn 0.5  

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Dakhal News 13 October 2016


patrkar prvin dubey

फिर लौटे पत्रकारिता के नए अंदाज में  डिंडोरी और दिल्ली में धूम मचाने के बाद वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण दुबे फिर पत्रकारिता के पुराने, पर दबंग अंदाज में भोपाल लौटे हैं। उन्होंने हाल में जी-न्यूज ज्वाइन किया है। उन्हेें जी-न्यूज, मध्यप्रदेश का हेड बनाया गया है।  इसके पहले प्रवीण भास्कर डिजिटल के सरताज रहे। बतौर डिप्टी एडिटर दैनिक भास्कर डिजिटल को नए आयाम दिए। उनकी ज्वाइनिंग के साथ ही भोपाल में डिजिटल भास्कर की शुरूआत हुई। बिलकुल नए अंदाज और अलग ऑफिस कल्चर के साथ। ऑफिस में दबाव और तनाव से मुक्त रहकर काम करने की संस्कृति विकसित की गई है। प्रवीण की बदौलत ही आज भास्कर डिजिटल का पाठकीय सूचकांक इंटरनेट न्यूज की दुनिया में आसमान पर है। यह रेटिंग में भारत में 43 वीं और दुनिया में 400वीं रैंक पर है।  प्रवीण ने पत्रकारिता की पूरी सैद्धांतिक पढ़ाई माखनलाल राष्ट्रीय पत्रकारिता विवि और बरकतउल्ला विवि से की। इसके बाद 1995 में दैनिक नईदुनिया-भोपाल से पत्रकारिता की शुरुआत की। इसके बाद अमर उजाला, दैनिक भास्कर-इंदौर और आउट लुक-दिल्ली सहित कई समाचार पत्रों और चैनल्स में अपनी सेवाएं दीं और अपने को नामचीन पत्रकार के तौर पर स्थापित किया।  चर्चित कार्यक्रम पोल खोल का आइडिया और इनपुट कंटेट प्रवीण का ही था। इस चर्चित प्रोग्राम के एंकर थे प्रख्यात अभिनता शेखर सुमन। भास्कर डिजिटल जैसी अपार्चनुटी छोडऩे की वजह पूछने पर कहते हैं कि मुख्य धारा की पत्रकारिता करनी थी। कुछ नया करने की कसक परेशान कर रही थी। भास्कर में प्राप्त पत्रकारिता का विलास छोड़कर जी-न्यूज ज्वाइन कर लिया। निरंतर समाचारों की खोज-पड़ताल रोमांचित करती है।  अब आगे क्या चाहना है? यह पूछने पर प्रवीण दार्शनिक अंदाज में कहते हैं कि कोई शिकायत नहीं जीवन से… जो जी करता गया, कई सारी वर्जनाएं तोड़ी… कभी रीढ़ टेढ़ी नहीं की… मन की शादी की, मन का रोजग़ार तलाशा… ईश्वर अभी तक साथ देता आ रहा है… आगे भी देगा… किसी का दिल नहीं दुखाया… संबंधों में बेईमानी नहीं बरती…। वे कहते हैं कि पत्रकारिता आज के दौर में भले ही चुनौतीपूर्ण हो गई हो लेकिन आपकी कीमत तभी लगाई जाएगी जबकि आप बिकने को तैयार होंगे। मैं किसी भी कीमत पर बिकने के लिए तैयार नहीं हॅू। क्योंकि इस जहां में, मैं अनमोल हूं।

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Dakhal News 12 October 2016


shiv anurag pateriya

    भोपाल के पत्रकार शिवअनुराग पटेरिया जितने शानदार पत्रकार हैं उतने ही मकबूल वे लेखक भी हैं। पटेरिया की दो और किताबे बाजार में आ रही हैं। उनकी किताब आने पर मध्यप्रदेश के प्रमुख सांध्य दैनिक प्रदेश टुडे के कॉलम ''सूरमा की फेंक '' में उन पर लिखा है। खालिस भोपाली अंदाज में उन पर कलम चलाई गई है।  सूरमा ने लिखा है है -शिवअनुराग पटेरिया। एक ऐसे सहाफी जो खुद तो कम बोलते हैं, लेकिन उनका हुनर ज्यादा नुमायां होता है। सूबे की पत्रकारिता में तो उनका अलग ही मुकाम हेगा। मियां खां ऐसे जर्नलिस्ट हें जो खाली समय में या तो पढ़ते है या फिर लिखने में मशगूल रहते है। बेशक पटैरिया जी बुंदेलखंड के हैं लेकिन वहां के ठसक भरे मिजाज के बरक्स इनकी खुशअखलाकी से सभी मुतआस्सिर हैं। अभी तक कोई अट्ठाइस-तीस किताबें लिख चुके जनाब की दो और किताबें भोत जल्दी मंजरे आम पे आने वाली हैं। इनमें एक है ‘मप्र की जल निधियां’ और दूसरी है ‘मप्र की गौरवशाली जल परंपरा’। पहली किताब में सूबे के सभी नदी, तालाब, बावड़ियों वगैरह की फुल डिटेल है तो दूसरी किताब में भोपाल के तीन तालाब, जबलपुर में रानी कमलापति के बनवाए गए तमाम तालाबों सहित वाटर बॉडीज का दिलचस्प खाका खींचा गया है। ये किताबें हमें बताएंगी के हमारे सूबे में 207 नदियां और 45 हजार तालाब हैं। बेशक ये किताबें रिसर्च कर रहे नौजवानों के लिए किसी रिफरेंस बुक से कम नहीं होंगी। इनके अलावा ‘बुंदेलखंड’ उनवान से लिखी गई इनकी एक किताब का दूसरा एडिशन भी जल्द आ रहा है। भाई मियां 6 संदर्भ ग्रंथ सहित दर्जनों किताबें लिख चुके हैं। इस नायाब काम के लिए पटैरिया जी को भोत-भोत मुबारकबाद।

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Dakhal News 11 October 2016


पत्रकार भगवान उपाध्याय

संस्कार-सरोकारों का लेखन जिनकी पहचान महेश दीक्षित भगवान उपाध्याय पत्र लेखन में  स्कूल लाइफ से ही जुड़ गए थे, इसलिए भाषा पर पकड़ बनाने में कोई परेशानी नहीं हुई। अखबारों में नौकरी करने से पहले ही उनके सम-सामयिक विषय-परक आलेख और रिपोर्ताज धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा, सरिता, रीडर्स डायजेस्ट, कादम्बिनी, नईदुनिया, दैनिक भास्कर, नवभारत सहित कई पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे थे। पिताजी रमेश प्रसाद उपाध्याय हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत के शिक्षक थे। तीनों विषयों में एमए के साथ साहित्य रत्न और वैद्य विशारद थे।। उनका ही असर रहा कि इन तीनों विषयों में भगवान के 90 प्रतिशत से कम अंक कभी नहीं आए।  भाषा पर अच्छी पकड़ रही। भगवान ने साप्ताहिक और शाम के अखबारों से पत्रकारिता का ककहरा सीखने के बाद 1990 में देशबंधु, भोपाल में अपराध की रिपोर्टिंग से असल स्कूल शुरू हुआ। मायाराम सुरजन जैसे सुप्रसिद्ध पत्रकार के सामने बैठकर पत्रकारिता के आदर्श, अनुशासन और सबक सीखे। राज भारद्वाज के टिप्स और गिरजाशंकर के मार्गदर्शन मेें कलम की धार तराशी। कुछ साल मशहूर पत्रकार स्वामी त्रिवेदी के अखबार से भी जुड़े। वर्ष 1994 से मार्च 2000 तक दैनिक जागरण, भोपाल में रहे। एक अप्रैल, 2000 से अब तक दैनिक भास्कर से जुड़े हैं।  वर्तमान में भोपाल, इंदौर और ग्वालियर सैटेलाइट का जिम्मा संभाल रहे हैं। भगवानजी को श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए माधवराव सप्रे संग्रहालय का राजेंद्र नूतन सम्मान और सत्यनारायण तिवारी स्मृति सम्मान के साथ कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं। भगवानजी का कहना है, पत्रकारिता धैर्य और संयम का पेशा है। इसमें जल्दबाजी में लिए गए फैसले घातक हो सकते हैं। चंद ज्यादा पैसे और बड़े पद के प्रलोभन में आकर लिए गए फैसले घातक ही नहीं बल्कि आत्मघाती हो सकते हैं। इस पेशे में पुरानी पीढी़ ने जितनी चुनौतियां झेली होंगी, उसका अंदाजा नई पीढी़ को नहीं होगा। लेकिन तब जितना सम्मान पत्रकारों का था, आज उतना नहीं दिखाई देता। आज सबकुछ पका-पकाया मिलने लगा है। मेहनत करने की आदत छूटती जा रही है। संबंध और संपर्क मोबाइल फोन और नेट तक सीमित रह गए हैं। इसके बावजूद मध्यप्रदेश में पत्रकारिता का माहौल निराशाजनक नहीं है। यहां अपार संभावनाएं हैं। बदलते परिवेश में नए पत्रकारों में से जिन्होंने संस्कारों और सरोकारों की राह पकडी़, वे सफलता की सीढिय़ां चढ़ रहे हैं।  

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Dakhal News 9 October 2016


hirdesh dixit

महेश दीक्षित मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया हाउस प्रदेश टुडे के मालिक हृदयेश दीक्षित जल्द ही न्यूज चैनल शुरू करने जा रहे हैं। यह समाचार-विचार (न्यूज-व्यूज) के साथ मनोरंजन चैनल भी होगा। लेकिन अभी चैनल्स पर जो कुछ भी दिखाया जा रहा है, प्रदेश टुडे का यह चैनल इन सबसे हटकर, कुछ अलग अंदाज में परदे पर उतरेगा। इसके साथ प्रदेश टुडे अपना प्रसार क्षेत्र बढ़ाते हुए जल्द प्रदेश टुडे के कुछ नए संस्करण करने की तैयारी में भी है।  अभी प्रदेश टुडे का भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, उज्जैन, सागर, रीवा, कटनी, छिंदवाड़ा, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र एवं नई दिल्ली समेत 13 स्थानों से अलग-अलग प्रकाशन हो रहा है। हृदयेश दीक्षित ने वर्ष 1989 में इंदौर के साप्ताहिक अखबार स्पूतनिक से पत्रकारिता की शुरुआत की। इसके बाद हृदयेश ने 1993 में दैनिक भास्कर में बतौर सिटी रिपोर्टर ज्वाइन किया। इंदौर में दैनिक भास्कर के स्टार रिपोर्टर साबित हो जाने के साथ ही वे भास्कर समूह की आंख का तारा बन गए। इसके बाद भास्कर ने उन्हें भोपाल ज्वाइन करने का प्रस्ताव दिया, तो उन्होंने भोपाल भास्कर में बतौर विशेष संवाददाता ज्वाइन कर लिया। इस दौरान भोपाल में काम करते हुए राजनीति और प्रशासन में हृदयेश दीक्षित ने अपनी अलग पहचान बनाई। लेकिन हृदयेश दीक्षित ने पत्रकारिता में ठहराव तो सीखा ही नहीं था, सो इसके बाद उन्होंने इलेक्ट्रानिक मीडिया की ओर रुख किया। जी-न्यूज और सहारा में दिल्ली से भोपाल तक कई दायित्वों का बखूबी निर्वाहन किया। जी-न्यूज और सहारा न्यूज में मप्र-छत्तीसगढ़ हेड रहे। पर इतने भर से हृदयेश दीक्षित को संतोष कहां था?  ह्रदेश का  सपना खुद का मीडिया हाउस स्थापित करने का था। सो प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया का पर्याप्त अनुभव लेने के बाद वर्ष 2010 में उन्होंने प्रदेश टुडे के नाम से भोपाल से सांध्यकालीन अखबार शुरू किया। इसके जरिए हृदयेश दीक्षित ने मीडिया जगत में बिरला इतिहास रचा। मध्य प्रदेश की राजधानी से इससे पहले भी शाम के अखबार हुआ करते थे, लेकिन वे पाठकों में अपनी साख और धाक नहीं बना पाए। हृदयेश दीक्षित ने अपनी पत्रकारीय और व्यापारिक सूझ-बूझ से इसे पहले प्रदेश का और फिर देश का सबसे अधिक प्रसार संख्या वाला सांध्य दैनिक अखबार बना दिया। हृदयेश दीक्षित कहते हैं कि आगे बढऩा और सबको लेकर चलना चुनौती पूर्ण जरूर है, लेकिन यह बेहद आनंददायी है। वे कहते हैं कि जब तक हम पत्रकारिता में कुछ नया और दूसरों से अलग नहीं करेंगे, प्रतिस्पर्धा के इस दौर में अपनी अलग पहचान नहीं बनाए रख सकते हैं। प्रिंट मीडिया जगत में ऊंचाइयों के झंडे स्थापित करने के बाद अब हमारा टास्क इलेक्ट्रानिक मीडिया है।

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Dakhal News 8 October 2016


जी एमपी में और आजतक देश में नंबर वन

  39 में सप्ताह की trp में मध्यप्रदेश में जी न्यूज़ और देश में आज तक सिरमौर बना हुआ है। इस सप्ताह इण्डिया टीवी को झटका लगा है ,इसके बावजूद इण्डिया टीवी नंबर दो पर है।  मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव रीजनल चैनल Week 39 TRP Zee MPCG    50.9% IBC 24.          18.3%   Bansal News 16.2% ETV MP CG.   11.8%      Ind News MP  1.9%   नेशनल चैनल  Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 39 Aaj Tak 17.3 up 0.6  India TV 13.7 dn 0.6  India News 13.4 dn 0.2  ABP News 12.2 up 0.5  Zee News 12.2 up 1.3  News Nation 9.5 dn 0.4  News 24 9.4 dn 1.3  IBN 7 6.1 up 0.8  NDTV India 2.3 dn 0.2  DD News 2.1 same   Tez 1.9 dn 0.5   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 17.2 up 1.0  India TV 14.9 dn 0.5  Zee News 12.5 up 1.3  ABP News 12.0 up 0.4  India News 11.0 dn 0.2  News Nation 9.9 dn 0.3  News 24 8.9 dn 1.4  IBN 7 6.5 up 0.6  NDTV India 3.1 dn 0.3  DD News 2.0 dn 0.1  Tez 1.9 dn 0.4

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Dakhal News 6 October 2016


मीडिया मालिकों - सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के जिस रूख की हम कल्पना कर रहे थे, ठीक वैसा ही देखने को मिला। माननीय सुप्रीम कोर्ट को मीडिया मालिकों की पूरी कारस्तानी समझ में आ गई है। इसलिए उन्होंने मंगलवार को हुई सुनवाई में शुरू से ही मीडिया मालिकों की क्लास लगाना शुरू कर दिया। इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने तिहाड़ में अकेले बोर हो रहे सहाराश्री को 'सहारा' देने के लिए कई मीडिया मालिकों की लिस्ट बना ली है।  इसकी शुरूआत करते हुए दैनिक जागरण के मालिक संजय गुप्ता और महेन्द्र मोहन गुप्ता को अगली सुनवाई 25 अक्टूबर को कोर्ट में तलब कर लिया है। अब कोर्ट उनसे ही पूछेगा कि क्या वे स्वयं को कानून से बड़ा मानते हैं। विधि विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई के दिन दैनिक जागरण के मालिकों को जेल भी भेज सकता है। क्योंकि, पिछली सुनवाई में उन्हें मजीठिया देने का आदेश दिया गया था। इसके बाद दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, अमर उजाला, दैनिक हिन्दुस्तान के मीडिया मालिकों का नम्बर आएगा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के श्रमायुक्तों को तीन माह में सभी कर्मचारियों की वसूली करने के आदेश दिए हैं। 25 अक्टूबर को राजस्थान आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक सहित पांच राज्यों की सुनवाई है।  पीड़ित कर्मचारियों के वकील कोलिन गोंसाल्विस ने माननीय सुप्रीम कोर्ट को बताया कि विभिन्न राज्यों से अभी तक जो श्रमायुक्तों की रिपोर्ट आई हैं, उनमें भी मजीठिया नहीं देने की बात है। ऐसे में मीडिया मालिक खुलेआम माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना कर रहे हैं। कोलिन ने इसके साथ ही राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक हिन्दुस्तान के मालिकों की कारस्तानियों से भी कोर्ट को अवगत कराया। इस पर कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि 25 अक्टूबर को  सुप्रीम कोर्ट दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, दैनिक हिन्दुस्तान, अमर उजाला के खिलाफ अवमानना का केस ठोक सकता है। सुप्रीम कोर्ट के इस रूख को देखते हुए संभावना बन रही है कि 25 अक्टूबर का दिन मीडिया मालिकों के लिए काली दीवाली बन जाएगा।  वरिष्ठ वकील कोलिन गोंसाल्विस ने कोर्ट को बताया कि मीडिया मालिकों ने किस तरह 20 जे धारा की गलत व्याख्या कर रखी है। जबकि कानून में साफ लिखा है कि जो सैलेरी ज्यादा होगी, वही मान्य होगी। इस पर कोर्ट ने मौखिक कहा कि रिकवरी 20 जे कानून के अनुसार ही होगी। यानी मीडिया मालिकों जिसे ढाल बनाकर अब तक बच रहे थे, उसे एक ही झटके में सुप्रीम कोर्ट ने चकनाचूर कर दिया। इसी सुनवाई के लिखित आदेश में 20 जे पर भी अहम फैसला आएगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वसूली के मामले में सारे अधिकार श्रमायुक्त के पास हैं। रिकवरी का कोई भी मामला श्रम कोर्ट में नहीं जाएगा। यानी जो श्रमायुक्त अभी तक मीडिया मालिकों का बचाव कर रहे थे, वे अब अपनी खाल बचाने के लिए मजीठया पीड़ित का साथ देंगे।  वरिष्ठ वकील कोलिन गोंसाल्विस ने कोर्ट को इस तथ्य से भी अवगत कराया कि जिस कर्मचारी ने भी मजीठिया की मांग की। उसे तबादला, बर्खास्त और सस्पेंड कर दिया गया। श्रमायुक्तों की रिपोर्ट में भी इसका उल्लेख है, जिसमें हजारों की तादाद में पीड़ित कर्मचारियों ने शिकायत दी है और सुप्रीम कोर्ट में भी इस बारे में शपथ-पत्र दिया है। इस पर माननीय कोर्ट ने इस मामले में अलग से शिकायत मांगी और 25 अक्टूबर को इस बारे में आदेश जारी होगा। 

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Dakhal News 5 October 2016


pib

देश के आरएनआई के दफ्तर अब पीआईबी से जोड़े दिए गए हैं। जल्द ही इन दफ्तरों  से आरएनआई का काम भी संचालित होगा। पीआईबी के अधिकारी ही आरएनआई का काम इन दफ्तरों से देखेंगे। पीआईबी कार्यालयों को एक सॉफ्टवेयर भी दिया जाएगा जिसके जरिए वे अखबारों के सर्कुलेशन को लेकर मासिक रिपोर्ट तैयार कर आरएनआई मुख्यालय को भेजेंगे।  आरएनआई के रजिस्ट्रार एसएम खान ने पत्र सूचना कार्यालय में मीडिया से चर्चा के दौरान यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि  दिल्ली में आरएनआई का मुख्यालय है। इसके अलावा हमारे पांच क्षेत्रीय कार्यालय है। इनमें मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, भोपाल और गोहाटी के कार्यालय शमिल है। गोहाटी और कलकत्ता के कार्यालय अभी नान फंक्शनल थे। शेष तीन कार्यालयों से ही देशभर के अखबारों, पत्रिकाओं का काम देखा जा रहा था। अब पत्र सूचना कार्यालय के देशभर के 42 कार्यालयों को आरएनआई से जोड़ते हुए उन्हें यह काम करने का अधिकार दिया गया है। पीआईबी के अधिकारी अब आरएनआई के अधिकारी भी कहलाएंगे। ये सभी आरएनआई के कामकाज का संचालन भी करेंगे। रजिस्ट्रार खान ने बताया कि अब तक 75 हजार प्रसार संख्या वाले समाचार पत्रों को  आरएनआई और एबीसी से प्रमाण पत्र लेना होता था पर अब हम 45 हजार प्रसार संख्या वालों को भी यह जरूरी करने जा रहे हैं। यह व्यवस्था एक जुलाई 2017 से प्रभावशील हो जाएगी।

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Dakhal News 4 October 2016


प्रिंट मीडिया का लगातार बढ़ रहा है प्रभाव

रजिस्ट्रार आॅफ न्यूज पेपर फाॅर इंडिया में अभी भी प्रतिदिन औसतन सौ आवेदन पत्र हिन्दी, अंग्रेजी व अन्य भारतीय भाषाओं में नए समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं प्रारंभ करने के पंजीयन के लिए प्राप्त होते हैं। इससे स्पष्ट है कि देश में प्रिंट मीडिया का प्रभाव अभी लगातार बढ़ ही रहा है। इस समय आर.एन.आई. में कुल 1 लाख पांच हजार पत्र-पत्रिकाएं पंजीकृत हैं। इसमें से सर्वाधिक संख्या हिन्दी भाषी पत्र-पत्रिकाओं की है। जिसके बाद अंग्रेजी, मराठी और उर्दू का क्रम आता है। यह जानकारी रजिस्ट्रार आॅफ न्यूज पेपर फाॅर इंडिया और महानिदेशक  एस.एम. खान ने भोपाल में  पब्लिक रिलेशन सोसायटी आॅफ इंडिया (पी.आर.एस.आई.), भोपाल चैप्टर द्वारा आयोजित विशेष व्याख्यान में दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता पी.आर.एस.आई. भोपाल चैप्टर के अध्यक्ष पुष्पेन्द्रपाल सिंह ने की। भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ अधिकारी  खान ने बताया कि आर.एन.आई. द्वारा समाचार पत्रों के पंजीयन की प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाने का प्रयास हो रहा है। इसके लिए प्राप्त आवेदनों पर कार्रवाई के विभिन्न चरणों में आवेदकों को एस.एम.एस. भेजना प्रारंभ कर दिया गया है। इस प्रक्रिया में आवेदन प्राप्त होने, दस्तावेज प्राप्त होने और पत्र-पत्रिकाओं के टाईटल पंजीकृत होने पर आवेदकों को सूचना भेजी जाती है। उन्होंने यह जानकारी दी कि पंजीकृत समाचार पत्रों में से कई का अब प्रकाशन नहीं हो रहा है। लेकिन उनके द्वारा डी-रजिस्ट्रेशन नहीं कराए जाने से हजारों टाईटल ब्लाॅक हो गए हैं। इससे नए आवेदकों को अच्छे टाईटल प्राप्त करने में असुविधा हो रही है। यही कारण है कि बहुत से हास्यास्पद टाईटल के साथ नए पत्र-पत्रिकाएं प्रारंभ हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस संबंध में देश के सभी डी.एम. को पत्र लिखकर लंबे समय से अप्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं की जानकारी विस्तृत रूप से मंगाई जा रही है। इसके पश्चात निर्णय लिया जाएगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पी.आर.एस.आई., भोपाल चैप्टर के अध्यक्ष पुष्पेन्द्र पाल सिंह ने कहा कि आर.एन.आई. से जुड़ी बहुत सी तकनीकी जानकारियों को लोगों तक पहुंचाने और उन्हें जागरूक करने की आवश्यकता है। कई बार नए आवेदन करने वाले लोगों के अलावा लंबे समय से पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन कर रहे लोग भी अखबार पंजीयन के कानून और प्रक्रिया से अनभिज्ञ रहते हैं। कार्यक्रम के प्रारंभ में मुख्य वक्ता श्री एस.एम. खान ने महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्जवलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन पी.आर.एस.आई. भोपाल चैप्टर के कोषाध्यक्ष मनोज द्विवेदी ने और कार्यक्रम का संचालन पी.आर.एस.आई. के सचिव डाॅ. संजीव गुप्ता द्वारा किया गया। कार्यक्रम में आकाशवाणी के निदेशक  मनीष गौतम, पत्र सूचना कार्यालय के उपनिदेशक अखिल कुमार नामदेव, एमपी पोस्ट डाॅट काॅम के संपादक सरमन नगेले, समय जगत के प्रधान संपादक अशोक त्रिपाठी, पी.आर.एस.आई. भोपाल के वरिष्ठ सदस्य विजय बोंद्रिया, विष्णु खन्ना, अविनाश वाजपेयी, महेन्द्र परमार एवं उमा भार्गव, मेट्रो मिरर डाॅट काॅम के संपादक हर्ष सुहालका, जागरण लेकसिटी यूनिवर्सिटी के योगेश पटेल, विशेष सोनी, राजेश गाबा, सत्येन्द्र पंडित, अमरेंद्र आर्य, अनिल पाण्डे, राहुल जैन, अभिषेक कौशल, जेनब सुल्तान, अनुर्षा हिरवे, भाषित दीक्षित, यशा जैन, अंकुर अवस्थी, राकेश पाण्डे, गोविंद चैरसिया सहित कई पत्रकार, शैक्षिक संगठनों के प्रतिनिधि और मीडिया के विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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Dakhal News 3 October 2016


hasan nisaar

भारत के द्वारा किए गए सर्जिकल ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान बुरी तरह से घबरा गया है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार, पॉलिटिकल एनलिस्ट हसन निसार ने एटमी हमले की धमकी देने वालों को नसीहत दे डाली। हसन निसार ने कहा कि भारत के NSA अजीत डोभाल जो कह रहे हैं उसे मान लो, वरना सचमुच पाकिस्तान खत्म हो जाएगा। हसन निसार ने कहा कि पाकिस्तान में पागलों का हुजूम है, ‘यहां अनपढ़ों का जो टोला है, यहां पाकिस्तान में, इन जाहिलों को पता ही नहीं कि एटम बम क्या होता है। इंडिया की आबादी 1 अरब से ज्यादा है और पाकिस्तान की 20 करोड़ तो सोचिए अगर एटमी जंग हुई तो क्या होगा? आपका तो 18 करोड़ गया, और आपने 4 गुना ज्यादा भारत का नुकसान किया तो भी भारत में 20 करोड़ बच जाएंगे, तो यह लोग होश में रहें। हसन निसार ने आगे कहा कि ‘यह बहुत बड़ी बदमाशी है कि पाकिस्तान ने उकसा-उकसा कर एक दुश्मन बना लिया। आउट ऑफ द वे जाकर दुश्मन बना लिया, फिर एटम बम बना लिया। आपने एटम बम बना तो लिया लेकिन अपने बच्चे को किताब नहीं दिया. अपने मरीज को इलाज नहीं दिया, अपने लोगों को इंसाफ नहीं दिया। निसार इतने पर ही नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा कि ‘पाकिस्तान आए दिन भारत को एटमिक हमले की धमकी देता रहता है, बिना इस बात को सोचे कि अगर भारत ने पाकिस्तान के विरुद्ध एटमिक युद्ध छेड़ दिया तो पाकिस्तान दुनिया के नक्शे में इतिहास बनकर रह जाएगा।

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Dakhal News 2 October 2016


MP/CG में जी न्यूज़ की बादशाहत

  38 वें हफ्ते की टीआरपी के कारण मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जी न्यूज़ की बादशाहत का परचम लहरा रहा है। बीते तक़रीबन एक साल में नंबर गेम में जी न्यूज़ को टक्कर देने का सहस कोई चैनल नहीं कर पाया है।  मध्यप्रदेश /छत्तीसगढ़ के टॉप फाइव रीजनल चैनल Current Week 38 TRP Zee MPCG   54.3 % IBC 24.         21.9 % Etv.                15.4 % Bansal.         6.7 % India  News.    1.2 % -------------------------------- मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में राजेन्द्र शर्मा जैसे योग्यतम पत्रकार ने जी न्यूज़ को स्टेबलिस्ट करने में कोई कसार नहीं छोड़ी। लेकिन जी न्यूज़ से राजेन्द्र शर्मा की विदाई के बाद यह चैनल लड़खड़ा सा गया। मगर लोगों के भरोसे और फिर इसकी कमान योग्य पत्रकार प्रवीण दुबे के हाथों आने के बाद जी न्यूज़ में फिर कसावट नजर आने लगी। ज़ी न्यूज़ ने अपने मिजाज के मुताबिक आम लोगों की बात की और दर्शकों को अपना मुरीद बनाया। जी की चुनौती से निपटने के लिए ibc 24 को बहुत सारे बदलाव करना पड़ रहे हैं। वहीँ नंबर गेम में बने रहने के लिए etv ,बंसल और इण्डिया न्यूज़ भी पूरे दम के साथ मैदान में हैं।  मध्यप्रदेश में इस समय चुनाव के मद्देनजर  बरसाती मेंढक की तरह रीजनल चैनल आ रहे हैं। लेकिन दर्शक किसी को तवज्जो देते नजर नहीं आते। मौके का फायदा उठाकर कुछ दलाल और अपराधी किस्म के लोगों ने भी चॅनल के नाम पर दुकानें सजाईं लेकिन दर्शकों ने इन्हें सिरे से नकारना शुरू कर दिया है। जो की टीवी की स्वच्छ पत्रकारिता के लिए बेहद जरूरी है।

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Dakhal News 30 September 2016


aajtak trp

  आज तक अपनी ताकत को वापस बना रहा है और दर्शकों की कसौटी पर खरा उतर रहा है। 38 वें सप्ताह में उसने अपनी स्थिति में सुधार किया है और टीआर पी में नंबर वन बना हुआ है। इण्डिया टीवी दूसरे नंबर पर बना हुआ है। झटके खा रहा एबीपी अपने में कोई सुधार नहीं ला पाया है।   नेशनल न्यूज़  चैनल trp Weekly Relative Share: Source: BARC, HSM, TG:CS15+,TB:0600Hrs to 2400Hrs, Wk 38 Aaj Tak 16.7 up 0.7  India TV 14.3 dn 0.6  India News 13.6 dn 1.1  ABP News 11.7 up 0.1  Zee News 10.8 up 0.3  News 24 10.7 up 0.6  News Nation 10.0 dn 0.1  IBN 7 5.3 up 0.1  NDTV India 2.6 same   Tez 2.4 dn 0.2  DD News 2.1 up 0.1   TG: CSAB Male 22+ Aaj Tak 16.2 up 1.2  India TV 15.5 dn 0.7  ABP News 11.7 dn 0.2  Zee News 11.3 dn 0.7  India News 11.2 dn 0.5  News 24 10.3 up 0.5  News Nation 10.3 up 0.2  IBN 7 6.0 up 0.2  NDTV India 3.4 up 0.1  Tez 2.3 dn 0.3  DD News 2.0 up 0.1

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Dakhal News 29 September 2016


पत्रकारिता और साहित्य का अनूठा संग्रहालय

जनसंपर्क मंत्री डॉ. मिश्रा ने किया दुर्लभ पत्र-पत्रिकाओं का अवलोकन  जनसंपर्क, जल संसाधन तथा संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने  कोलार रोड पर माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय पहुँचकर संग्रहीत पुराने समाचार-पत्र, पत्रिकाओं और अन्य महत्वपूर्ण साहित्य सामग्री और दस्तावेज का अवलोकन किया। मंत्री डॉ. मिश्रा ने कहा कि यह संग्रहालय एक विशिष्ट धरोहर की रक्षा और उससे नई पीढ़ी को अवगत करवाने का महत्वपूर्ण काम कर रहा है। यह संग्रहालय ज्ञान का अदभुत सागर और अनूठा केन्द्र है। अन्य संस्थाओं के लिए भी इस केन्द्र का काम अनुकरणीय है।   जनसंपर्क मंत्री डॉ. मिश्रा को संग्रहालय के संबंध में जानकारी देते हुए  विजय दत्त श्रीधर ने बताया कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 के स्वतंत्रता संग्राम तक समाचार-पत्रों द्वारा देश की आज़ादी के लिए जनता में जागृति लाने संबंध सामग्री का भी संकलन किया गया है। इसके अलावा प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं की दुर्लभ प्रतियाँ, अनेक लेखकों की मूल पांडुलिपियाँ भी संग्रहालय में सहेजी गई हैं। अनेक पुराने गजट, जिलों के गजेटियर और ग्रंथ इस संग्रहालय में व्यवस्थित रखे गए हैं। वर्ष 1984 में संग्रहालय ने आकार लेना प्रारंभ किया था। इस समय यह देश में अपनी तरह का अनोखा संग्रहालय बन चुका हैं। लाखों लोग संग्रहालय का अवलोकन कर चुके हैं। विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए यह संग्रहालय इसलिए महत्व रखता है क्योंकि एक स्थान पर शोध सामग्री उपलब्ध हो जाती है। अनेक साहित्य प्रेमी और पत्रकार समय-समय पर संग्रहालय आकर वांछित सामग्री का अवलोकन भी करते हैं। संग्रहालय द्वारा पत्रकारिता से संबंधित अनेक प्रकाशन भी किए गए हैं। मंत्री डॉ. मिश्रा ने श्री श्रीधर को इस संग्रहालय के संचालन और प्रबंधन के लिए बधाई दी। मंत्री डॉ. मिश्रा ने संग्रहालय के विभिन्न खण्ड का अवलोकन भी किया।    

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Dakhal News 28 September 2016


डीएवीपी नयी विज्ञापन नीति

ओंकारेश्वर पांडेय डीएवीपी ने अपनी नयी विज्ञापन नीति में हाल में कुछ संशोधन तो कर दिया है। लेकिन इसके बावजूद देश के हजारों छोटे और मझोले अखबार आंदोलन की राह पर हैं।  इन अखबारों से सीधे व परोक्ष रूप से जुड़े लाखों लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है।  देश भर में छोटे और मझोले अखबारों से जुड़े मालिक, संपादक व पत्रकार 'अखबार बचाओ - लोकतंत्र बचाओ' आंदोलन चला रहे हैं. कहा जा रहा है कि ये नीति देश में प्रिंट मीडिया खासकर छोटे-मझोले अखबारों का सफाया कर देगी।  आखिर इसका सच क्या है - यह जानने के लिए डीएवीपी की विज्ञापन नीति और उसके पीछे की मंशा को समझना होगा।  डीएवीपी की नयी नीति क्यों बनी कहते हैं कि यूपीए सरकार के शासनकाल से ही केन्द्र सरकार को यह शिकायतें मिल रही थीं कि डीएवीपी - प्रिंट मीडिया के लोग मिलकर भ्रष्टाचार कर रहे हैं। कम प्रसार वाले अखबार ज्यादा प्रसार संख्या दिखाकर और कई तो नियमित अखबार छापे बिना भी विज्ञापन ले लेते हैं और जाहिर है कि ऐसे अखबारों को विज्ञापन बिना डीएवीपी के अधिकारियों की मिलीभगत के हो नहीं सकता, लिहाजा वे भी शक के दायरे में आ गये।  सरकार ने जब अंदरूनी सर्वेक्षण कराया तो ऐसे भी तमाम मामले सामने आये जिसमें डीएवीपी से जुड़े कर्मियों के परिजनों द्वारा भी अनेक अखबार नाम मात्र को चलाने और खूब विज्ञापन वसूलने के उदाहरण सामने आये।  यानी भ्रष्टाचार बाहर और भीतर दोनों जगह था।  उधर छोटे व मझोले अखबारों को हमेशा से शिकायत रही है कि सरकार उन्हें समुचित विज्ञापन नहीं देती, और डीएवीपी से विज्ञापन तो बिना मिली भगत के मिल ही नहीं सकता।  ये आरोप बहुत हद तक सही भी रहा है।  यहां तक कि बड़े बड़े अखबारों के मीडिया मैनेजर भी डीएवीपी में लॉबिंग करते रहे हैं  और अगर आपने ज्यादा सवाल किये तो आपके अखबार को विज्ञापन मिलना बंद ही समझो।  तो ऐसे हालात में सूचना प्रसारण मंत्रालय में डीएवीपी के विज्ञापनों को जारी करने के लिए ऐसी नीति बनाने की कवायद शुरु हुई, जिसमें ज्यादा से ज्यादा पारदर्शिता हो, जिम्मेवारी हो, प्रोफेशनलिज़्म हो और भ्रष्टाचार की गुंजाइश ही कम हो।  डीएवीपी की नयी नीति - प्वाइंट सिस्टम और तब मंत्रालय के बड़े बड़े अफसरों ने माथापच्ची कर एक नया फार्मूला निकाला, प्वाइंट सिस्टम का. 7 जून 2016 को डीएवीपी ने एक पत्र जारी कर कहा कि अब 25 हजार प्रतियों से ज्यादा प्रसार संख्या बताने वाले समाचार पत्रों को तभी विज्ञापन मिलेंगे, जब उनके पास एबीसी और आरएनआई का प्रमाण पत्र हो।  इसके लिए 25 अंक रखे गए।  इसी तरह कुल 100 अंकों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया गया है और न्यूनतम अनिवार्य 45 अंक प्राप्त करने वाले को ही विज्ञापन देना तय कर दिया गया है -  (1) आरएनआई/एबीसी सर्कुलेशन सर्टीफिकेट होने पर 25 अंक (2) ईपीएफ कटता है तो 20 अंक प्रति कर्मचारी एक अंक के हिसाब से (3) अपनी प्रिटिंग मशीन है तो 10 अंक (4) समाचार एजेंसी की सेवा है तो 15 अंक (5) प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की लेवी फीस जमा की है तो 10 अंक (6) समाचार पत्र की पेज संख्या के आधार पर 20 अंक (अगर आपका अखबार 8 पेज का है, तो 12 अंक, 10 पेज का है तो 14 अंक, 12 पेज पर 16 अंक, 14 पेज पर 18 और 16 पेज अथवा इससे ज्यादा होने पर पूरे 20 अंक मिलेंगे ) मुझे लगता है कि अखबारों-पत्रकारों में इस नयी नीति को लेकर देशव्यापी स्तर पर भय व्यप्त हो गया है। सोशल मीडिया और व्हाट्सअप पर सैकड़ों समूहों में इस पर दिन रात चल रही चर्चा से साफ है कि प्रिंट मीडिया का एक बड़ा हिस्सा अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है और उनके अंदर सरकार की नयी नीति को लेकर गंभीर आक्रोश भरा हुआ है।  अखबारों के दर्जनों संगठनों ने प्रधानमंत्री से लेकर विभिन्न केन्द्रीय मंत्रियों को पत्र लिखे और जन प्रतिनिधियों से लिखवाकर दिये भी हैं।  पर सरकार ने मामूली संशोधन कर चुप्पी साध ली है।  चूंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं देश में भ्रष्टाचार समाप्त करने का नारा देकर सरकार में आये हैं, इसलिए हर विभाग भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अपने अपने तरीके से कदम उठाने में लगा है।  उठाना भी चाहिए - मीडिया भ्रष्टाचार से मुक्त रहे, ये देश के लोकतंत्र के लिए जरूरी है।  पर साथ ही जरूरी ये भी है कि देश में मीडिया रहे, ताकि लोकतंत्र बचा रहे।  अगर मीडिया में भ्रष्टाचार हुआ तो लोकतंत्र प्रभावित होगा।  मीडिया में पारदर्शिता, व्यावसायिकता और जिम्मेवारी का होना तो आवश्यक है ही, सकारात्मकता भी हो और राष्ट्रीयता की भावना भी हो जो कि सौभाग्य से भारतीय प्रेस में आजादी के पहले से रही है।  कहने की आवश्यकता नहीं कि देश की आजादी की लड़ाई से लेकर आज उच्चतम स्तर तक भ्रष्टाचार को उजागर करने और लोकतंत्र को मजबूत बनाये रखने में इसी मीडिया की भूमिका रही है।  इसलिए हर हाल में मीडिया को बचाना और इसे आगे बढ़ाना भी देश और समाज की जिम्मेवारी है।  तो डीएवीपी की नयी विज्ञापन नीति पर बिंदुवार बात कर लें (1) प्रसार संख्या के आधार पर विज्ञापन देने की अवधारणा ही आज के डिजिटल युग में सही नहीं है. प्रिंट में छपे अखबार और उसके समाचार आज डिजिटल के माध्यम से पूरी दुनिया में पहुंच जाते हैं।  इसलिए प्रसार संख्या को आधार बनाना ही गलत है।  इसपर नये सिरे से विचार करना चाहिए। वेब संस्करणों पर आकर अखबार सोशल मीडिया और व्हाट्सअप जैसे माध्यमों से कहां कहां नहीं पहुंच रहे।  सरकार को इस बारे में पुनर्विचार करना चाहिए।   अभी तक आरएनआई और एबीसी सर्टीफिकेट की मांग 75000 से ज्यादा प्रसार संख्या वाले अखबारों से की जाती थी, जिसे नयी नीति में घटाकर अब 45000 कर दिया है। हुजूर, तो क्या आप ये कह रहे हैं कि 45000 तक फर्जीवाड़ा मान्य है, उससे ज्यादा करोगे तो नहीं मानेंगे?? क्योंकि अगर सीए सर्टिफिकेट गलत है तो 45 हजार तक भी मत मानिये।  वैसे प्रसार तो सर्वाधिक मनोहर कहानियां जैसी पत्रिकाओं का होता है।  डिजिटल पर सर्वाधिक हिट्स पोर्न साइट्स के हैं, तो डीएवीपी उनको ज्यादा विज्ञापन देगी? क्या सरकार की निगाह में कंटेंट का कोई मूल्य नहीं? डीएवीपी ने प्रसार संख्या में नये नियम को तुरंत लागू करने का आदेश भी दे दिया है।  क्या एबीसी और आरएनआई इतनी बड़ी संख्या में इतनी जल्दी अखबारों के प्रसार का वेरीफिकेशन करने में सक्षम हैं? सच तो ये है कि आरएनआई अभी सर्कुलेशन सार्टिफिकेट जारी ही नहीं कर रही है। और आरएनआई उन्हीं अखबारों के प्रसार की जांच को वरीयता देती है। जिनके पास स्वयं का प्रिंटिंग प्रेस हो।  (2) ईपीएफ - कर्मचारियों के भविष्य निधि को प्वाइंट सिस्टम में लाने का फैसला निस्संदेह पत्रकारों के हित में है।  इसका पालन होना चाहिए. लेकिन ये भी सच है कि बड़ी संख्या में छोटे-मझोले समाचार पत्रों के पास इतने कर्मचारी नहीं होते जो ईपीएफ खाता संख्या प्राप्त कर सकें। आज खर्च बचाने के लिए लोग मल्टी टास्किंग कर रहे हैं।  क्या ऐसा करना गलत है? लघु या मझोले समाचार पत्र लगभग 7-8 कर्मचारियों से प्रकाशित हो जाते हैं। जबकि ईपीएफ के लिए सामान्यतया 10 कर्मचारी अनिवार्य होते हैं। (3) अपनी प्रिटिंग मशीन रखना कौन अखबार वाला नहीं चाहेगा? लेकिन एक तरफ तो सरकार कह रही है कि वह पत्र-पत्रिकाओं के पंजीयन में उनको वरीयता देगी, जिनके पास पत्रकारिता का अनुभव और प्रमाण हो और दूसरी तरफ आप कह रहे हैं कि आप इतने धनी भी हों कि अपना प्रिंटिंग प्रेस रख सकें।  प्रेस लगाना करोड़ों का प्रोजेक्ट है, जो हर समाचार पत्र मालिक के सामर्थ्य के बाहर की बात है? छोटे अखबार जो घंटे या तीन चार घंटे में छप जाते हैं, उनके लिए करोड़ों का प्रेस लगाने की परोक्ष अनिवार्यता उनको हतोत्साहित करना ही तो है।  यह नियम तो पेशेवर पत्रकारों का मीडिया मालिक बनने का रास्ता ही बंद कर देगा।  फिर आप क्यों कहते हैं कि बिल्डर माफिया आदि आदि मीडिया में आ रहे हैं।  (4) पहले डीएवीपी ने महज तीन समाचार एजेन्सियों में से किसी एक की सेवा लेना अनिवार्य किया था, जो अब पीआईबी से मान्यता प्राप्त किसी भी एजेंसी से लेने की अनुमति दे दी गयी है।  इसके पीछे सरकार की मंशा ये है कि लोग मूल स्रोतों से खबरें लें।  मंशा ठीक है।  पर क्या सरकार को पता है कि खबरों के मामले में पीटीआई-यूएनआई को छोड़ बड़ी बड़ी एजेंसियों का क्या हाल है ? और अगर अखबार अपने संवाददाताओं से काम चला रहे हों, उनको वेतन दे रहे हों और ज्यादातर क्षेत्रीय समाचारों का प्रकाशन करते हों तो यह अनिवार्यता कहां तक उचित है?  आज मीडिया प्रधानमंत्री की खबरें भी उनके ट्वीट से लेते हैं, दुनिया भर के तमाम अखबारों से लेकर टीवी चैनल भी गूगल से खबरें लेते हैं, पर आप कह रहे कि एजेंसी से लो - क्यों भई? आजकल पीआईबी, डीआईपीआर पीआर व स्थानीय निकाय समाचार पत्रों को नियमित व दैनिक नि:शुल्क समाचार वेबसाइट पर फोटो समेत उपलब्ध कराते हैं या ईमेल से भेजते हैं जो काफी होता है।  (5) डीएवीपी की नीति के अनुसार प्रिंटिंग एरिया न्यूनतम 7600 सेमी होनी चाहिए। नई नीति में 8 कम पृष्ठ संख्या वाले अखबारों को शून्य अंक दिया गया है। ये हास्यास्पद नीति है।  कम पृष्ठ वाले अखबार भी बेहतर अखबार हो सकते हैं और ज्यादा पृष्ठ वाले भी बेकार।  फिर तो कम पृष्ठों वाले अखबारों को डीएवीपी के पैनल में ही न रखें।  वास्तव में डीएवीपी की नयी नीति के अनेक बिंदु न सिर्फ लघु व मझोले अखबारों के लिए घोर अन्यायपूर्ण व असंगत हैं, बल्कि लोकतंत्र व भारतीय संविधान की उस मूल भावना के विपरीत हैं, जिसके तहत सरकार सबसे पिछली कतार में खड़े व्यक्ति को लाभ पहुंचाने की घोषणा करती है और तदनुरूप सारी नीतियां बनाती है।  यह नीति तो स्पष्टतया बड़े यानी अमीर अखबारों को अतिरिक्त लाभ पहुंचाने वाली है और छोटे-मझोले अखबारों को समाप्त कर देने वाली।  इस नीति से तो देश में पेड-न्यूज जैसी बीमारियां और फैलेंगी।  सरकार कहती है कि देश का विकास गांवों के विकास से होगा।  और मीडिया के मामले में सरकार चाहती है कि गांवों-कस्बों और छोटे शहरों का मीडिया बंद हो।  क्या इससे देश में चल रहे हजारों मीडिया प्रशिक्षण संस्थानों के सामने भी बंदी के हालात नहीं पैदा होंगे? सरकार की मौजूदा नीति में 50 फीसदी विज्ञापन बड़े अखबारों को दिया जाएगा।  उसके बाद उन्हें अलग अलग पृष्ठों पर प्रीमियम भी दिया जाएगा।  तो छोटे अखबारों के लिए प्रैक्टिकली कितना बजट बचेगा।  ध्यान रहे कि डीएवीपी की इस नीति से जब छोटे अखबारों को सरकारी विज्ञापन मिलने बंद हो जाएगे तो वे निजी विज्ञापनों के भरोसे रह जाएंगे।  ऐसे में क्या ऐसे छोटे अखबार पेड न्यूज जैसे रास्ते अपनाने को मजबूर नहीं होंगे ? तो क्या एक तरह से सरकार छोटे अखबारों को पेड न्यूज जैसे अनैतिक रास्ते अपनाने को परोक्ष रूप से प्रोत्साहित नहीं कर रही? इस नीति की सबसे बड़ी खामी ये है कि इसमें न तो अखबार की कंटेंट क्वालिटी का ध्यान है और न ही सकारात्मक पत्रकारिता का।  एक तरफ जहां संघ, भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर यूपीए सरकार के काल में बनी ये विज्ञापन नीति मोदी सरकार की जड़ों में मट्ठा डालने का काम कर रही है।  विरोधियों ने मोदी की काट के लिए मोदी की भ्रष्टाचार विरोधी नीति का ही इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है।  भ्रष्टाचार खत्म करना है तो डीएवीपी के पैनल में आ चुके हर अखबार को हर माह अनिवार्य रूप से मिलने वाले विज्ञापनों की संख्या टांग दीजिये।  या स्वयं ये जांच कर लें कि किसी को कम किसी को ज्यादा अखबार क्यों मिलते हैं।  मोदी सरकार ने स्टार्ट अप इंडिया से लेकर तमाम योजनाएं युवाओं, महिलाओं और नये उद्यमियों के लिए बनायी हैं, पर देश में लोकतंत्र की रक्षा करने वाले सर्वाधिक रिस्क उठाकर भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करने वाले और देश में जागरूकता फैलाने में अहम योगदान देने वाले मीडिया के लिए प्रोत्साहन की बजाय ये घातक योजना क्यों ? अगर भ्रष्टाचार है तो वह संसद में भी है, तो क्या संसद को ही खत्म कर दिया जाय?

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Dakhal News 27 September 2016


पत्रकारों की सुरक्षा

    पत्रकारों पर बढ़ती हिंसा से आहत हो IFWJ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के.विक्रम रॉव  ने एक विधयक पत्रकारों को रक्षा, सुरक्षा एवं राहत देने तैयार किया। गहन अध्ययन एवम् शोध के उपरांत IFWJ के विधिक सलाहकार एवं सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता अश्वनी कुमार दुबे ने इसे  तैयार किया है। जिसे आज वे IFWJ के 71वें अंतराष्ट्रीय अधिवेशन में रखेगे।   इस ड्राफ्ट में कई चीजों को मीडिया कर्मियों के हित में शामिल किया गया है।  1. एक्ट का नाम पत्रकार सुरक्षा एवम् कल्याण अधिनियम,2016 रहेगा। 2. ये  भारत में एक साथ लागू होगा। 3. एक्ट अभी स्थाई, अस्थाई एवम् संविदा पत्रकार जो किसी भी समाचार समूह में कार्य करने वाले तथा स्वतंत्र पत्रकार को जो पंजीकृत मीडिया संस्थान, पंजीकृत प्रेस क्लब या IFWJ की भाँति पंजीकृत पत्रकार यूनियन से जुड़े हो और उनके पास इनमे से एक का वैद्य कार्ड हो उनपर लागू होगा। 4. केंद्र सरकार देश भर में मकान निर्माण के लिए लॉन का प्रबन्ध हो। 5. एक्ट में इंट्रेस्ट फ्री लोन का भी प्रबन्ध है, पत्रकारों के लिए। 6. पत्रकारों के पर्किंग एवम् टूल टैक्स से मुक्त रखा जाएगा। 7. पत्रकारों का पुरे देश में मुफ़्त इलाज उसके परिवार(पत्नी, बच्चे व माता-पिता) के साथ किया जाए। 8. पत्रकारों के बच्चों के हर चरण की पढ़ाई के लिए मुफ़्त शिक्षा की व्यवस्था के साथ उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति की व्यवस्था है। 9.किसी पत्रकार को उसे घर या किसी स्थान पर असुरक्षित महसूस होने की स्थिति में सम्बंधित क्षेत्र के थानाध्यक्ष उन्हें सुरक्षा प्रदान करे। 10. किसी SHO(थानाध्यक्ष) को सूचना देने के बाद कोई कार्यवाही न करने पर पत्रकार के साथ किसी प्रकार की अनहोनी होने पर SHO ही जिम्मेदार होगा। 11. पत्रकारों के लिए सामाजिक सुरक्षा कोष का भी प्रवधान है। 12. कार्य के दौरान मृत्यु की स्थिति में 30 लाख, गम्भीर रूप से घायल होने की स्थिति में 10 लाख एवम् चोट पर 5 लाख का मुवावजा दिया जाए। 13. राष्ट्रीय पत्रकार परिषद का गठन किया जाए, जिसमे निम्नलिखित सदस्य होंगे:- १. पत्रकार संगठन से 2 सदस्य २. पत्रकार संस्थान से 1 सदस्य ३. न्यायपालिका से 2 सदस्य ४. संसद से 2 सदस्य ५. सचिव, सुचना एवम् प्रसारण मंत्रालय भी सदस्य ६. सचिव गृह मंत्रालय भी सदस्य हो 14. इसमें सजा का भी प्रवधान है, व्यवधान उत्पान करने वाले पर कम से कम 1 लाख का अर्थदण्ड एवम् कम से कम 6 माह की सजा का विधान है। विधयक को लोक सभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन एवम् राज्य सभा के सभापति मोहम्मद हामिद अंसारी IFWJ सदस्य सौपेंगे। ताकि शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत हो सके।

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Dakhal News 26 September 2016


akhilesh yadav ख़बरें समाजवादियों की वजह से बनती हैं

पत्रकारों के बीच बोले अखिलेश यादव  उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है खबरें  समाजवादियों की वजह से बनती है, विरोधी कहते हैं कि हम उनकी खबरे नहीं चलने दे रहे ,खबरों पर कार्रवाई सपा सरकार करती है,सपा सरकार लिबरल और लोकतांत्रिक है।  लखनऊ में ऑल इंडिया न्यूजपेपर कॉन्फेडरेशन के कार्यक्रम में  मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने ही रंग में नजर आये उन्होंने कहा लखनऊ खबरों का शहर है, खबरें  समाजवादियों की वजह से बनती है, विरोधी कहते हैं कि हम उनकी खबरे नहीं चलने दे रहे ,खबर को हम जानकारी मानते हैं,खबरों पर कार्रवाई सपा सरकार करती है,सपा सरकार लिबरल और लोकतांत्रिक है पत्रकारों की समस्याओं को हम समझते हैं,समाधान निकालने का प्रयास हमने किया।  अखिलेश इतने पर भी नहीं रुके उन्होंने कहा पत्रकारों को सपा सरकार पूरी मदद दे रही है ,पहले से ज्यादा मुआवजा दे रही सपा सरकार,पत्रकारों के निधन पर 20 लाख का मुआवजा दे रहे है हम।  दिल्ली के फोटोग्राफर को झांसी में मौत पर दी मदद,सपा सरकार मदद करने के लिए पीछे नहीं है यहाँ तक की दूसरे राज्यों के पत्रकारों को भी मदद दी सरकार  ने ,पत्रकारों के आवास की समस्या भी जल्द खत्म करेंगे।    मुख्यमंत्री इसके बाद अपनी सरकार के कामों को गिनवाने लगे यूपी के शहरों में कुछ न कुछ बड़ा काम किया,सपा सरकार में सड़कों का विकास हुआ,हाईवे बनने से लोगों का वक्त बचा रहा है। सपा सरकार ने देश के सामने उदाहरण पेश किया,मेट्रो और एक्सप्रेस-वे रिकार्ड टाइम पर बना रहे हैं हम।  एक्सप्रेस-वे से किसानों को भी मदद मिलेगी,लैपटॉप बांटा, स्मार्टफोन की दिशा में काम कर रहे गरीबों को टेक्नोलॉजी से जोड़ रहे हैं ,स्मार्टफोन से आम नागरिकों को जोड़ेंगे,स्मार्टफोन सरकार और जनता के बीच अब  ब्रिज बनेगा। 

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Dakhal News 24 September 2016


मीडिया हाउस मालिकों से मांगे वेज बोर्ड के मुताबिक वेतन

छत्तीसगढ़  में पत्रकारों ,मीडिया कर्मियों के हित के लिए मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू  करवाने के लिए प्रदेश स्तरीय मॉनिटरिंग समिति की बैठक प्रमुखसचिव श्रम आर पी मंडल  की अध्यक्षता  में हुई. मोनिटरिंग समिति की बैठक में  श्रम आयुक्त अविनाश चम्पावत ,सहायक आयुक्त जांगड़े ,सत्यव्रत ,और जनसंपर्क अपर संचालक संजीव तिवारी ,के साथ समिति के सदस्य अरविन्द अवस्थी ,मनीष गुप्ता ,शिव वर्मा शामिल हुए।  बैठक में निर्णय लिए गए  कि जिन अख़बार मालिको के द्वारा वेज बोर्ड के नियमो का पालन नहीं किया जा रहा है उनके  शासकीय विज्ञापन रोकने  जनसंपर्क विभाग को प्रस्ताव भेजा जाए , सभी जिलो में बैठक लेकर मीडिया जगत में कार्य करने वाले मीडिया  कर्मियो की वास्तविक सूचि बनाई जाए ,मीडिया कर्मी अपने मालिको से वेज बोर्ड के अनुसार वेतन की मांग करें , जिसके लिए उन्हें इक प्रारूप दिया जायगा उसकी कॉपी   श्रम विभाग को प्रेषित  किया जाए , जिससे श्रम विभाग को कार्यवाही करने में मदद मिलेगी। जो मीडिया के  साथी जिला मुख्यालयों में, कस्बो में ,ग्रामीण क्षेत्र में काम कर रहे हैं  उनके साथ अख़बार मालिक घोर अन्याय करते है वो अकेला प्रेस के लिए कई काम करता है। पेपर का सर्कुलेशन ,पेपर के बिल की  वसूली ,विज्ञापन ,फोटोग्राफी ,और समाचार संकलन। फिर भी उन्हें कमीशन के अलावा कुछ नहीं मिलता उन्हें भी वेज बोर्ड के अनुसार वेतन की पात्रता दिलाई जाय।  श्रमायुक्त  चम्पावत  ने इस पर भी ठोस कदम उठाने की बात कही। 

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Dakhal News 23 September 2016


pohari patrkar

पोहरी में हुआ एमपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन का सम्मेलन  शिवपुरी जिले के पोहरी में एमपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन का संभागीय सम्मेलन एवं रक्तदाता सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें ग्वालियर चम्बल संभाग के पत्रकार एकत्रित हुए एवं विश्व रक्तदान करने वाले रक्तदाताओं का सम्मान किया गया।  पत्रकार पं गोपाल कृश्ण पौराणिक जी की जन्म एवं कर्मस्थली पोहरी में ग्वालियर चंबल संभाग के पत्रकारों ने रक्तदान को सबसे बड़ा दान बताया और पत्रकारों पर हो रहे हमलों पर चिंता जाहिर की।    समारोह में  रक्तदान करने वाले रक्तदाताओं का सम्मान समारोह में  एमपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष  राधावल्लभ शारदा, उपाध्यक्ष बालराजे शिंदे , पोहरी विधायक प्रहलाद भारती,  लेखक प्रमोद भार्गव, अनुपम शुक्ला,  भारती जी पी आर ओ शिवपुरी, सविता तिवारी, बीरेन्द्र भुल्ले, मुकेष जैन, एसडीएम पोहरी मुकेष षर्मा, जिला भाजपा सदस्य प्रथ्वीराज जादौन, घनष्याम ओझा, कृश्णगंज सरपंच रामकली सिठेले, भगवती सिंघल, निर्मल पचैरी आदि ने मंच की शोभा  बढाई।  कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा माॅ सरस्वती एवं पं गोपालकृश्ण पौराणिक जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीपप्रज्वलन कर विधिवत प्रारंभ किया।  लेखक , पत्रकार  प्रमोद भार्गव ने बताया कि आज की पत्रकारिता काफी कठिन दौर से गुजर रही है, शहरी एवं राजधानी के पत्रकारों की अपेक्षा छोटी जगह पर पत्रकारिता में काफी चुनौतियां एवं कठिनाई आती हैं, कई लोगों का विरोध झेलना पडता है, प्रहलाद भारती पोहरी विधायक ने  कहा कि वर्तमान में पत्रकारिता काफी हद तक नकारात्मकता के दौर से गुजर रही है परंतु कुछ लोग हैं जो आज भी सकारात्मक विचारों को जवज्जो देते हैं, उन्होने कहा कि पोहरी में पं गोपालकृश्ण जी की समाधी स्थल को विधायक निधि से सुंदर स्वरूप दिया जायेगा।  कार्यक्रम में पत्रकार राधावल्लभ शरदा ने पत्रकारों के हित की बात करते हुए बताया कि पत्रकारों पर आये दिन झूठे मुकदमे दर्ज किये जा रहे हैं जिसके लिये सरकार को पत्र लिखे गये परंतु उनमें से कुछ लोगों की जाॅच ही कराई गई परंतु आगामी दो अक्टूबर के दिन भोपाल में एक दिवसीय धरना दिया जा रहा है जिसमें पत्रकारों के हित में कई मांगें रखी जानी हैं ,जिसमें से प्रमुख मांगें तहसील स्तर के पत्रकारों की अधिमान्यता के साथ ही संबंधित समाचारपत्र के नियुक्तिपत्र की बाध्यता को समाप्त करने की मांग भी रखी जायेगी। कार्यक्रम का संचलन भूपेन्द्र विकल द्वारा किया गया।  रक्तदान करने वाले रक्तदाताओं का भी सम्मान किया गया जिसमें कपिल कुषवाह, मलखान सिंह, नंदकिषोर, मंगलसिंह, पुश्पेन्द्र भार्गव, राजकुमार तोमर, धर्मेन्द्र राजावत, अनिल गुर्जर, दीपक गुप्ता, मनोहर षर्मा, संतोश षर्मा आदि को प्रमाणपत्र के साथ ही माल्यार्पण कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का आयोजन पोहरी पत्रकार संघ द्वारा किया गया , जिसमें आयोजक मनोहर शर्मा एवं सह आयोजक संतोश शर्मा की मुख्य भूमिका रही, साथ ही पोहरी के योगेन्द्र जैन, रोहित , इश्ताक  खान, अनिल झा, संजीव भदौरिया, अभिशेक शर्मा, हितेष जैन, रसीद खान, रवि यादव आदि का सयहयोग रहा। 

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Dakhal News 22 September 2016


rajkumar soni

    रायपुर के पत्रकार एवं पत्रिका के स्टेट ब्यूरो प्रमुख राजकुमार सोनी को किशोरी मोहन त्रिपाठी सम्मान से सम्मानित किया गया। रायगढ़ में सक्रिय पत्रकार संघ सहित देशभर के पत्रकार संगठनों की ओर से छत्तीसगढ़ में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर आहुत की गई एक कार्यशाला में उन्हें यह सम्मान पर्यावरण के नोबल प्राइज विजेता रमेश अग्रवाल, देश के जाने-माने साहित्यकार गिरीश पंकज, वरिष्ठ पत्रकार शंकर पाण्डे, सुभाष त्रिपाठी,राधा वल्लभ शारदा, गुजरात की प्रसिद्ध पत्रकार शहनाज मलक ने प्रदान किया।  धारधार लेखनी और मानवीय सरोकार से जुड़ी रिपोर्टिग की वजह से राजकुमार  सोनी को हाल के दिनों में ही पीयूसीएल की ओर से दिए जाने वाले देश के सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। श्री सोनी इससे पहले केपी नारायणन और उदयन शर्मा बाजपेयी बाजपेयी पुरस्कार भी हासिल कर चुके हैं। थिएटर में लंबे समय तक सक्रिय रहे श्री सोनी अखिल भारतीय स्तर के कई पुरस्कार जीत चुके हैं। पत्रकारिता में उल्लेखनीय कामों की वजह से उन्हें एक फैलोशिप भी मिल चुकी हैं। इडियन फेडरेशन अॉफ मीडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष राधावल्लभ शारदा ने कहा कि पिछले दो वर्षों से पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग  फेडरेशन द्वारा की जा रही है । इसके लिये उन्होने अभी तक सत्रह हजार किलोमीटर की यात्रा कर पत्रकारों की  एकता पर बल दिया है । पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग  राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर के सभी पत्रकार संगठनों एक साथ उठानी चाहिये । मध्य प्रदेश मे 2 अक्टूबर 2016  गॉधी जयंती पर इस संबंध मे एकदिवसीय धरना प्रदर्शन किया जा रहा है , छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर मे भी 21  एवं 22 अक्टूबर को दोदिवसीय राष्ट्रीय अधि़वेशन पत्रकारों की समुचित सुरक्षा पर आयोजित होगा । वरिष्ठ पत्रकार शंकर पाण्डेय व गिरीश पंकज ने पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की मांग  को जायज ठहराते हुए अपने अपने अनुभव बाटे व इसे यथाशीघ्र क्रियाशील करने पर जोर डाला ।                      छत्तीसगढ़ सक्रिय पत्रकार संघ के बैनर तले स्व.पंडित किशोरी मोहन त्रिपाठी व् स्व.जयंत श्रीवास्तव के स्मृति में पत्रकार सम्मेलन एवम् सम्मान समारोह का आयोजन किया गया ।जंहा छत्तीसगढ़ के आधा दर्जन पत्रकार संगठनों के पदाधिकारी सदस्यों के अलावा भारत के हर राज्यो के पत्रकारो ने शिरकत की  ।कार्यक्रम के मुख्य एवम् विशिष्ठ अतिथि  राधावल्लभ शारदा (राष्ट्रीय अध्यक) इंडियन फेडरेशन अॉफ मीडिया , शंकर पाण्डे वरिष्ठ पत्रकार , गिरीश पंकज वरिष्ठ पत्रकार एवम् साहित्यकार , सुभाष त्रिपाठी (संपादक,सांध्य दैनिक अ बयार) , राज गोस्वामी (प्रदेश महासचिव ,छत्तीसगढ़ सकिय पत्रकार संघ ) , रमेश अग्रवाल सामाजिक कार्यकर्ता (जनचेतना मंच) गंगेश कुमार द्विवेदी उपाध्यक्ष, छत्तीसगढ़ सकिय पत्रकार संघ,प्रेम गुप्ता वरिष्ठ पत्रकार, शहनाज मलिक वरिष्ठ पत्रकार गुजरात अतिथी के रूप मे मौजूद रहे। जिसके पश्चात मंचासीन अतिथियों ने कार्यक्रम में उपस्थित पत्रकार एवम् सामाजिक कार्यकर्ताओं से पत्रकारो पे हो रहे  प्रताड़ना एवम् उनकी समस्याओं पर अपने विचार साझा किये । साथ ही उत्कृष्ठ पत्रकारिता एवम् निस्वार्थ सामाजिक गतिविधियों में  हिस्सा लेने वाले सामजिक कार्यकर्ताओ का सम्मान किया गया । बस्तर मे पुलिसिया अत्याचार से प्रताड़ित समारू नाग की पत्नी को छत्तीसगढ़ सक्रीय पत्रकार संघ ने इक्कीस हजार रूपये की आर्थिक सहायता प्रदान की  ।

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Dakhal News 19 September 2016


indiatv rajat sharama

पिछले दिनों मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में इण्डिया टीवी के रिपोर्टर पुष्पेंद्र वैद्य की पिटाई का मामला सुर्ख़ियों में रहा। लेकिन पुष्पेंद्र वैद्य की पिटाई क्यों की गई इस रहस्य से पर्दा उठना अभी बाकि है। इंदौर के असल पत्रकार इस प्रकरण को लेनेदेन का मामला मानते हैं और इससे पर्याप्त दूरी बनाये हुए हैं। इसके पीछे की वजह भी बड़ी साफ़ है की पुष्पेंद्र इंदौर में लंबे समय तक इण्डिया टीवी के रिपोर्टर  रहे हैं और उनकी कारगुजारियों से इंदौर के पत्रकार भलीभांति परिचित हैं। इस घटना के बाद इण्डिया टीवी ने भी इस मसले से अपने हाथ पीछे  खींच लिए हैं। भोपाल में बैठे नेशनल चैनल के एक रिपोर्टर जो खुद को मध्यप्रदेश का स्टार पत्रकार कहते हैं वो इस मामले को इसलिए तूल दे रहे हैं ताकि पुष्पेंद्र वैद्य से जुडी सच्चाई सबके सामने आ जाये और इण्डिया टीवी इन्हें बाहर का रास्ता दिखाए और ये महाशय इण्डिया टीवी में आमद दे सकें। इसी महीने के पहले रविवार को इंदौर के मॉडर्न मेडिकल कॉलेज के बाहर इण्डिया टीवी के रिपोर्टर पुष्पेंद्र वैद्य  की पिटाई  लगा दी गई। इण्डिया टीवी के क्रू में वैद्य के आलावा   कैमरामैन प्रदीप त्रिवेदी और ड्राइवर दीपक भी थे। कॉलेज की लू पोल के मसले पर  कॉलेज संचालक से उनका विवाद हो गया। पुष्पेंद्र वैद्य का आरोप है कि कॉलेज  संचालक डा रमेश बदलानी  और उसके बाउंसर ने उनकी टीम पर हमला कर कैमरा, मोबाइल, लैपटाप और कार की चाबी छीन ली, उनके साथ मारपीट कर उन्हें बंधक तक बनाया। मारपीट में उनकी रीढ़ की हड्डी तक डैमेज हो  गई। इस मामले में शुरू से ही पुष्पेंद्र वैद्य ने मनगढंत कहानी बनाई। इस मारपीट के घटनाक्रम के बाद इण्डिया टीवी रिपोर्टर ने स्वयं 100 डायल पर फोन करके पुलिस को बुलाया और वो और उनका कैमरामैन पुलिस को घटनास्थल से दो किलोमीटर दूर मिले। अकेला उनका ड्राइवर दीपक और कार घटनास्थल पर थे जिसकी चाबी कॉलेज वालों ने निकालकर उसकी जमकर पिटाई की थी। ख़ैर इंदौर पुलिस ने मामला दर्ज कर पुष्पेंद्र वैद्य द्वारा बताये गए तीनों आरोपियों को तुरंत ही गिरफ्तार कर लिया। पुष्पेंद्र वैद्य रजत शर्मा के चैनल से जुड़ा है इसलिए पुलिस ने भी कुछ ज्यादा गति में काम किया। लेकिन इस मामले की जांच में पुष्पेंद्र वैद्य की बताई कहानी पुलिस के गले नहीं उतर रही है। पुष्पेंद्र के समर्थन में कुछ वो लोग सामने आये इंदौर में जिनकी छवि दलालों की है। इस कारण इंदौर का असल मीडिया इस सब से कन्नी काट गया। इस घटना के बाद इस सब की जानकारी पुलिस से भी पहले पुष्पेंद्र वैद्य ने अपनी कंपनी इण्डिया टीवी को दी वहां भी चैनल प्रमुख हेमंत शर्मा ,अजीत अंजुम और राहुल चौधरी ने तय किया कि इस सिलसिले में कोई खबर और ब्रेकिंग और स्क्रॉल तक न चलाया जाए क्योंकि पुष्पेंद्र वैद्य का खुदका ट्रेक रिकॉर्ड ठीक नहीं हैं। यही नहीं अपने ही रिपोर्टर पर संदेह व्यक्त करते हुए कंपनी ने खुद अपने लेबल पर इस मसले की जांच भी शुरू कर पुष्पेंद्र वैद्य से पूछताछ शुरू कर दी। इस सब से बचने के लिए पुष्पेंद्र वैद्य ने एक अस्पताल में भर्ती होकर अपने कुछ फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड किये ताकि इण्डिया टीवी और मध्यप्रदेश सरकार की सिम्पेथी हांसिल कर सकें। पुष्पेंद्र वैद्य के मित्र और इंदौर में उनका काम देखने वाले सचिन शर्मा कहते हैं पुष्पेंद्र भैया को बैक बॉन में पिछले दस साल से प्रॉब्लम है। इण्डिया टीवी में भी इस बैक बॉन की समस्या के जरिये पुष्पेंद्र कई बार लीव ले चुके हैं। मध्यप्रदेश में इंदौर प्रेस क्लब और पत्रकारों के अन्य संगठनों का अलग ही रुतबा है। लेकिन पुष्पेंद्र की पिटाई के मसले पर सबने अपने हाथ खड़े कर दिए। इंदौर प्रेस क्लब के सूत्र कहते हैं पुष्पेंद्र वैद्य सांप -बिच्छू की ख़बरें करते रहे हैं ,उनकी छवि भी पत्रकार वाली नहीं है देवास से इंदौर और भोपाल तक उनके बारे में सब ,सब कुछ तो जानते हैं। इंदौर के घटनाक्रम में भी जिस मेडिकल कॉलेज की खबर पर झगड़ा हुआ वो खबर बीसियों  लोगों ने प्रकाशित और प्रसारित की ,लेकिन किसी के साथ मारपीट नहीं हुई। इनके साथ ऐसा क्यों हुआ इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच होना चाहिए। इण्डिया टीवी रिपोर्टर ने डॉ  रमेश बदलानी से क्या कह दिया कि बात मारपीट तक पहुँच गई।  इधर इंदौर में पुष्पेंद्र पिटे और उधर इण्डिया टीवी में नौकरी चाहने वाले भोपाल में खुद को स्टार रिपोर्टर बताने वाले पत्रकार सक्रिय  हो गए और इस उधेड़बुन में लग गए हैं कि पुष्पेंद्र की किस्से का खुलासा हो और इण्डिया टीवी वैद्य को बाहर करे और इनकी एंट्री इण्डिया टीवी में हो सके। इस घटना को लेकर वैद्य ने मुख्यमंत्री से लेकर पुलिस महानिदेशक तक को इन्डिया टीवी की और से पत्र लिखे हैं। जिस पर इस घटना की ख़ुफ़िया रिपोर्ट सरकार ने मंगाई है जिस में भी शक की सुई खुद इण्डिया टीवी रिपोर्टर पर है।[साभार भड़ास फॉर मीडिया ]

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Dakhal News 17 September 2016


अमिताभ को  वादे पूरे नहीं कर पाने का अफ़सोस

  ऑफ़ द कफ में बोले बिग बी  ऑफ़ द कफ  कार्यक्रम में अमिताभ बच्चन ने कहा कि  राजनेता के तौर पर किए गए वादे पूरे नहीं कर सका। हिंदी फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन का राजनीतिक करियर भले ही बहुत कम वक्त का रहा लेकिन उनका कहना है कि वह आज भी उस समय के बारे में सोचते हैं, क्योंकि उन्हें अपने संसदीय क्षेत्र इलाहाबाद के लोगों से किए गए वादे पूरे नहीं कर पाने का अफसोस है । पूर्व प्रधानमंत्री और अपने पारिवारिक दोस्त राजीव गांधी के समर्थन से अमिताभ ने 1984 में राजनीति में कदम रखा था । अमिताभ ने इलाहाबाद सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था और काफी बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। बहरहाल, उनका राजनीतिक करियर काफी कम समय का रहा, क्योंकि उन्होंने तीन साल बाद ही सांसद के पद से इस्तीफा दे दिया था । ‘ऑफ द कफ’ नाम के  कार्यक्रम में जानेमाने पत्रकार शेखर गुप्ता और बरखा दत्त के साथ चर्चा में अमिताभ ने कहा, ‘मैं अक्सर इसके बारे में सोचता हूं क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान आप कई वादे करते हैं, जब आप लोगों से वोट मांग रहे होते हैं । उन वादों को नहीं पूरा कर पाना कभी-कभी अफसोसनाक लगता है । यदि मैं किसी चीज पर अफसोस करता हूं, तो वह यही चीज है ।’ उन्होंने कहा, ‘मैंने इलाहाबाद और वहां के लोगों से काफी वादे किए थे, लेकिन मैं उन्हें पूरा नहीं कर सका ।’

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Dakhal News 16 September 2016


2030 तक होगा कुपोषण समाप्त

केंद्र सरकार देश में अगले तीन साल में चार लाख नए आंगनवाड़ी केंद्र खोले जाएंगे और सरकार साल 2030 तक भूख और कुपोषण को समाप्त करने का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में काम कर रही है।  महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने बताया  कि आंगनवाड़ियों की सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में अहम भूमिका है और पोषण, मातृत्व, बाल विकास और महिला स्वास्थ्य में उनकी भूमिका को देखते हुए देश में अगले तीन साल में चार लाख नए आंगनवाड़ी केंद्र खोले जाएंगे। उन्होंने कहा कि सरकार साल 2030 तक भूख और कुपोषण को समाप्त करने के लक्ष्य की दिशा में काम कर रही है। उन्होंने बताया कि आंगनवाड़ियों की लगातार निगरानी के साथ ही आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को उचित प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि चार लाख आंगनवाड़ियां देश में दस करोड़ बच्चों की देखभाल करती हैं लेकिन यह कार्यक्रम बिना उचित निगरानी और प्रशिक्षण के चल रहा है।उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जाहिर किया कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को मतदान, जनगणना और ऐसे ही अन्य सरकारी कार्यों में लगाया दिया जाता है। मेनका गांधी ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि किसी भी राज्य में बच्चों के पोषण की स्थिति संतोषजनक नहीं है। इसके लिए उन्होंने बाजरा, रागी जैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थों को आंगनवाड़ी केंद्रों में बढ़ावा दिए जाने की योजना साझा की। उन्होंने आर्गेनिक भोजन पदार्थ की दिशा में सिक्किम राज्य के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि सतत विकास लक्ष्यों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है लिंगभेद को समाप्त करना। उन्होंने कहा कि पिछले एक साल में उनके मंत्रालय की ओर से किए गए प्रयासों के चलते लिंगानुपात को 830 से बढ़ाकर 907 तक पहुंचाने में कामयाबी मिली है। महिला एवं बाल विकास मंत्री ने कहा कि सतत विकास लक्ष्यों को राज्यों के साथ मिलकर ही हासिल किया जा सकता है।इस मामले में उन्होंने पश्चिकम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भी सराहना की और प्रदेश की तर्ज पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बाजरे को प्रमुखता से शामिल किए जाने की वकालत की। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि महिला सशक्तिकरण के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय के साथ मिलकर महिला सरपंचों को गांव में कराए जाने वाले विभिन्न कार्यों जैसे नालियां बनवाना, बैठक बुलाना, खातों को अपडेट करना आदि का प्रशिक्षण दिया जाएगा।उन्होंने कहा कि इससे महिला सरपंचों के स्थान पर काम करने वाले सरपंच पति या प्रधान पति की भूमिका समाप्त होगी और महिलाएं सशक्त बनेंगी।

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Dakhal News 15 September 2016


ibc24 svarn sharda

 सम्मानित हुई की प्रतिभाशाली बेटियां मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के रीजनल न्यूज चैनल IBC-24 ने अपनी सामाजिक प्रतिबध्दता को दोहराते हुए मध्यप्रदेश के 51 जिलों की स्टेट बोर्ड की 12 वीं की टॉपर बालिकाओं और राज्य की टॉपर बालिका को सम्मानित किया।मध्यप्रदेश के  मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान के हाथों इन बेटियों सम्मान हुआ।इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री चौहान ने ऐलान किया कि बारहवीं के स्टेट बोर्ड में जिलों में टॉप करने वाले बच्चों की यूपीएससी की तैयारी की पूरी फीस प्रदेश सरकार भरेगी।मुख्यमंत्री ने मंच से ही मौजूद मंत्रियों को योजना बनाने के लिए कहा,इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने ऐलान किया कि प्रतियोगी परीक्षाओं में चयनित होने वाली छात्राओं की पारिवारिक स्थिति अगर ठीक नहीं है तो उनके हर कोर्स की फीस भी सरकार भरेगी  । राजधानी भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह ने जिले के टॉपर बेटियों को 50-50 हजार रुपये की राशि और स्टेट टॉपर को 1 लाख रुपये की छात्रवृत्ति औऱ स्टेट टॉपर के स्कूल को 1 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान की। आईबीसी-24 स्वर्ण शारदा स्कॉलरशिप की संकल्पना को मूर्त रुप देने वाले औऱ बालिका शिक्षा के प्रबल पक्षधर गोयल ग्रुप और आईबीसी न्यूज चैनल के चेयरमेन  सुरेश गोयल की ओर से घोषित प्रदेश के 6 दिव्यांग बच्चों को भी प्रोत्साहन राशि माननीय मुख्यमंत्री  के हाथों प्रदान की गयी।मुख्यमंत्री ने प्रदेश की इन प्रतिभाशाली बेटियों के संघर्ष की गाथा को दर्शाने के लिए आई बी सी की ओर से प्रकाशित कॉफी टेबल बुक ..मेधा...का विमोचन भी किया। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि मीडिया अक्सर सरकार के कामकाज में कमियां निकालता है।मीडिया को यह काम करना भी चाहिए,लेकिन आई बी सी -24 ऐसा चैनल है,जो कमिया दिखाने के साथ ही सामाजिक जिम्मेदारी भी निभा रहा है।उन्होने गोयल ग्रुप और आईबीसी-24 के चेयरमेन श्री सुरेश गोयल के इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि उनका यह प्रयास प्रदेश की बेटियां में नई  प्रेरणा का प्रवाह करेगा। गोयल ग्रुप और आई बी सी -24 न्यूज चैनल के चेयरमेन सुरेश गोयल ने कहा कि बेटियों के प्रति हमारे दायित्व हैं,उनको निभाने की कोशिश में हमने बेटियों की शिक्षा को बढ़ावा देने का फैसला किया।स्वर्ण शारदा स्कॉलरशिप कोई मदद नहीं बल्कि समाज की सूरत बदलने का अभियान है।उन्होने देश की तरक्की के लिए बेटियों की शिक्षा की दिशा में जुट जाने का आह्वान किया। इस दिशा में पिछले साल से स्वर्ण शारदा स्कॉलरशिप की शुरुआत भोपाल से की गयी थी।चैनल ने अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए इस वर्ष भी छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की प्रतिभाशाली बेटियों को स्कॉलरशिप का वितरण किया है औऱ यह अभियान आगे भी अनवरत चलता रहेगा।उन्होने मुख्यमंत्री  से मुरैना की होनहार बेटी मन्नू यादव का दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिल दिलाने के लिए प्रयास करने का अनुरोध भी किया। गोयल ग्रुप और आईबीसी-24 न्यूज चैनल के चेयरमेन  सुरेश गोयल ने घोषणा की कि अगले साल से आईबीसी-24 बेटियों के साथ ही प्रदेश के होनहार बेटों को छात्रवृत्ति देगा। कार्यक्रम में प्रदेश के जनसम्पर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा,गृह मंत्री भूपेन्द्र सिंह ,स्कूल शिक्षा मंत्री कुंवर विजय शाह,गोयल ग्रुप के एम डी  नरेन्द्र गोयल,भोपाल के सांसद आलोक संजर,मेयर आलोक शर्मा, आईबीसी-24 न्यूज चैनल के सी ई ओ श्री विद्याधर खटावकर और संपादक  रविकांत मित्तल सहित प्रदेश सरकार के वरिष्ठ अधिकारीगण और गणमान्य नागरिक मौजूद थे।इस अवसर पर इंदौर और भिलाई से आए सांस्कृतिक दलों ने मनमोहक प्रस्तुतियों से सबका मन मोह लिया।  

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Dakhal News 14 September 2016


sharad joshi

प्रख्यात व्यंगकार पत्रकार शरद जोशी स्मृति समारोह उज्जैन के लोकमान्य तिलक विज्ञान एवं वाणिज्य महाविद्यालय में 14-15 सितम्बर को होगा। साहित्य अकादमी एंव लोकमान्य तिलक महाविद्यालय के संयुक्त आयोजन के पहले दिन 14 सितम्बर को विद्यार्थियों द्वारा अंतरमहाविद्यालयीन निबंध/कविता लेखन किया जायेगा। मुख्य अतिथि पाणिनी संस्कृत विद्यालय उज्जैन के पूर्व कुलपति डॉ. मोहन गुप्ता होंगे। अध्यक्षता उज्जैन सिंहस्थ प्राधिकरण के अध्यक्ष दिवाकर नातू होंगे। दोपहर के सत्र में रचना-पाठ होगा। रचनाकार डॉ. शशि मोहन श्रीवास्तव,  मोहन सोनी,  अशोक भाटी, श्री हेमंत श्रीमाल, सुश्री अरूणेश्वरी गौतम एवं श्री सूरज नागर रचनाएँ पढ़ेंगे। अध्यक्षता डॉ. शिव चौरसिया करेंगे। अंतिम दिन 15 सितम्बर को उत्कृष्ट तीन कविता पाठ और निबंध का वाचन छात्र-छात्राओं द्वारा किया जायेगा। लोकमान्य तिलक सांस्कृतिक न्यास उज्जैन के मुख्य कार्यपालन अधिकारी छात्र-छात्राओं को प्रमाण-पत्र देंगे। इसी दिन 'हिन्दी कल आज और कल' विमर्श सत्र होगा। प्राच्य विधा शोध संस्थान उज्जैन के निदेशक डॉ. बालकृष्ण शर्मा अध्यक्ष एवं चिन्तक-विचारक डॉ. श्रीकांत मुख्य अतिथि होंगे। विमर्श सत्र में प्रो. हरिमोहन बुधौलिया, डॉ. पिलकेन्द्र अरोरा, श्री हरीश कुमार सिंह, डॉ. प्रतिष्ठा शर्मा, डॉ. क्षमा सिसोदिया शिरकत करेंगे।  

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Dakhal News 13 September 2016


IBC-24 स्वर्णशारदा स्कॉलरशिप 2016

  बालिकाओं की उच्च शिक्षा के लिए कारगर प्रयास   बेटी पढ़ेगी, देश गढ़ेगी, प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी जी के इस सूत्र वाक्य को मध्यप्रदेश- छत्तीसगढ़ के विश्वसनीय न्यूज चैनल आईबीसी24 ने साकार करने का बीड़ा उठाया है । आईबीसी24 देश का पहला ऐसा चैनल है, जो अपने संकल्प को दोहराते हुए लगातार दूसरे साल प्रतिभावान छात्राओं को बड़ी संख्या में विशेष स्कॉलरशिप देने जा रहा है । इस छात्रवृत्ति का नाम है IBC24 स्वर्णशारदा स्कॉलरशिप । यह छात्रवृत्ति उन प्रतिभाओं को सम्मानित और प्रोत्साहित करने का माध्यम है,जो देश और दुनिया को दिशा और नेतृत्व देने के शिक्षा के माध्यम से कठोर संघर्ष कर मुकाम बनाने के लिए प्रयासरत है। IBC-24 स्वर्ण शारदा स्कॉलरशिप की परिकल्पना को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए संकल्पित गोयल ग्रुप और IBC-24 न्यूज चैनल के चेयरमैन सुरेश गोयल ने बताया कि भोपाल में 13 सितम्बर को आयोजित कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों राज्य शिक्षा बोर्ड की 12 वीं की परीक्षा में अपने-अपने जिलों में टॉप करने वाली छात्राओं को 50-50 हजार रुपये की छात्रवृत्ति और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जायेगा।इसके साथ ही राज्य की टॉपर छात्रा को 1लाख रुपये की राशि और प्रशस्ति पत्र के अलावा राज्य टॉपर के स्कूल को 1 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जायेगी।जिन जिलों में एक से अधिक टॉपर छात्राएं हैं,उनके बीच छात्रवृत्ति की राशि बराबर-बराबर प्रदान की जायेगी।कार्यक्रम प्रदेश सरकार के माननीय मंत्रीगणों नरोत्तम मिश्रा, भूपेन्द्र सिंह और  कुंवर विजय शाह  सहित गणमान्य जनों की उपस्थिति में होगा। श्री गोयल ने बताया कि पिछले वर्ष भोपाल में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान और योगऋषि स्वामी रामदेव जी की पावन उपस्थिति में IBC-24 स्वर्णशारदा स्कॉलरशिप की शुरुआत की गयी थी।इसके बाद रायपुर में पिछले वर्ष और इस वर्ष भी छत्तीसगढ़ की प्रतिभावान छात्राओं को स्वर्णशारदा स्कॉलरशिप प्रदान की जा चुकी है। भोपाल में 13 सितम्बर को आयोजित होने वाले कार्यक्रम में डिंडौरी जिले से सरस्वती शिशु मंदिर की छात्रा कु मेघना श्रीधर को नामांकित किया गया है। श्री गोयल के अनुसार बालिका शिक्षा की दिशा में आईबीसी24 द्वारा शुरू की गई यह मुहिम लगातार जारी रहेगी । हमारी कोशिश होगी कि IBC-24 स्वर्ण शारदा स्कॉलरशिप बेटियों के लिए वरदान साबित हो।

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Dakhal News 12 September 2016


mamta yadav

  मल्हार मीडिया की संपादक ममता यादव को भड़ास फॉर मीडिया ने भड़ास सम्मान से नवाज है।  हिंदी पत्रकारिता में वेब पत्रकारिता को लेकर अब तक गंभीरता नहीं थी , प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के सामने वेब पत्रकारिता को दोयम दर्जे का समझा जाता था! लेकिन, Bhadas4media ने आज दिल्ली में अपने सम्मान समारोह में जिन जीवट हस्तियों को सम्मानित किया, उनमें एक ममता यादव भी हैं, जिन्होंने वेब पत्रकारिता को नई दिशा दी।  ममता पिछले 16 सालों से पत्रकारिता में सक्रीय हैं ,लेकिन उन्हें पहचान वेब मीडिया के पत्रकार के रूप में मिली। 

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Dakhal News 12 September 2016


news 24 manthan

न्यूज़ 24 के मंथन में शिवराज सिंह चौहान  अमिताभ उपाध्याय  मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने राहुल गांधी पर मजाकिया लहजे में हमले बोला। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को राहुल गांधी जुमला बता रहे हैं शिवराज सिंह ने राहुल गांधी को ही जुमला करार दिया दे दिया।वहीँ शिवराज सिंह ने करप्शन के मसले पर कहा हम गंभीर हैं ,हम करप्शन ख़त्म करना चाहते हैं। इसके लिए प्रयास किये जा रहे हैं। शिवराज सिंह भोपाल में न्यूज़ 24 के मंथन कार्यक्रम में चैनल की एडिटर इन चीफ अनुराधा प्रसाद के सवालों के जवाब दे रहे थे।  मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि पिछले दस साल में राज्य सरकार द्वारा किये गये प्रयासों से अब मध्यप्रदेश विकसित राज्यों की पंक्ति में आ गया है। अब प्रदेश की जनता को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के काम प्राथमिकता से किये जा रहे हैं। विकास तभी ही सार्थक है जब इसका लाभ गरीबों तक पहुँचे।  मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रदेश की विकास दर पिछले सात साल से लगातार दहाई अंक में है। प्रदेश की कृषि विकास दर चार साल से 20 प्रतिशत से अधिक है। प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय 13 हजार से बढ़कर 59 हजार रूपये प्रति व्यक्ति हो गयी है। पिछले दस वर्षों में एक लाख किलोमीटर सड़कें बनाई गई हैं। बिजली की उपलब्धता 4 हजार मेगावॉट से बढ़कर 18 हजार मेगावॉट हो गई है। इससे मध्यप्रदेश अब पावर सरप्लस राज्य बन गया है। सिंचाई क्षमता 7.5 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 40 लाख हेक्टेयर हो गयी है। नदी जोड़ो कार्यक्रम में किसानों के खेतों तक पानी पहुँचाया गया है। कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज पर कृषि ऋण उपलब्ध करवाया गया है। अब कृषि ऋण किसानों से 90 प्रतिशत ही वापस लिया जायेगा। उद्यानिकी का क्षेत्र बढ़कर 15 लाख हेक्टेयर हो गया है। किसानों की आय पाँच वर्ष में दोगुना करने का रोडमेप बनाया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि समाज के गरीब और कमजोर वर्गों के कल्याण के लिये कई योजनाएँ क्रियान्वित की गई हैं। गरीबों को एक रुपये किलो गेहूँ और चावल उपलब्ध करवाने की योजना, गरीबों को नि:शुल्क दवाई और गरीबों के लिये आवास की योजना बनाई गई है। राज्य बीमारी सहायता निधि से गरीबों के उपचार की व्यवस्था की गई है। गरीब और प्रतिभाशाली बच्चों की शिक्षा के लिये योजनाएँ बनाई गई हैं। समाज के गरीब और मेहनतकश वर्गों के लिये सहायता की कई योजनाएँ बनाई गई हैं। प्रदेश में महिला सशक्तिकरण के लिये 23 लाख बेटियों को लाड़ली लक्ष्मी बनाया गया है। इनके खातों में 7900 करोड़ जमा करवाये गये हैं, जो उन्हें 21 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर 27 हजार 600 करोड़ मिलेंगे। स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये 50 प्रतिशत आरक्षण किया गया है। शिक्षकों की नौकरी में महिलाओं के 50 प्रतिशत तथा वन विभाग को छोड़कर अन्य सेवाओं में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिये कई योजनाएँ बनाई गई हैं। प्रदेश में नगरीय विकास के लिये अगले 4 साल में 75 हजार करोड़ खर्च किये जायेंगे। प्रदेश के सभी नगरीय निकायों में स्मार्ट सिटी बनाई जायेगी। युवा उद्यमी योजना में 50 हजार युवाओं को उद्योग लगाने के लिये मदद की गई है। इससे 5 लाख लोगों को रोजगार मिला है। सुशासन के लिये लोक सेवा गारंटी अधिनियम लागू किया गया है तथा भ्रष्टाचार के मामलों में त्वरित कार्रवाई के लिये विशेष न्यायालय बनाये गये हैं। प्रदेश में बेहतर कानून-व्यवस्था की स्थिति है। डकैतों की समस्याओं को समाप्त किया गया है। भ्रष्टाचार के मामलों में सख्त कार्रवाई की गई है। व्यवस्था को बदलने के लिये हितग्राहियों के खातों में सीधे राशि भेजने की प्रणाली लागू की गई है। प्रदेश में जनता के हित में बेहतर काम किया जा रहा है। प्रदेश में पिछली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के प्रस्ताव में से 2 लाख 75 हजार करोड़ का निवेश आया है। रोजगार बढ़ाने के लिये वर्तमान में सूचना प्रौद्योगिकी, टेक्सटाईल और फूड प्रोसेसिंग क्षेत्र को प्राथमिकता दी जा रही है। मध्यप्रदेश में युवाओं के लिये मुख्यमंत्री युवा उद्यमी तथा मुख्यमंत्री युवा कांट्रेक्टर योजना बनाई गई है। युवाओं के शिक्षा ऋण की गारंटी राज्य सरकार द्वारा दी जा रही है। लोगों की जिन्दगी में आनंद बढ़ाने के लिये राज्य सरकार ने आनंद विभाग गठित किया है। ख़ास बातें  न्यूज 24 चैनल के खास कार्यक्रम ' मध्य प्रदेश मंथन ' में शिरकत करते हुए शिवराज सिंह चौहान ने कहा 'मैं राहुल गांधी का आदर करता हूं लेकिन धीरे धीरे वो खुद ही एक जुमला बन कर रह गए हैं।  शिवराज सिंह चौहान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शान में कसीदे पढ़ते हुए कहा कि ' मोदीजी वैश्विक नेता और मैन ऑफ़  आईडियाज हैं। न्यूज 24 की एडिटर इन चीफ अनुराधा प्रसाद के साथ 'मंथन' में एक सवाल के जवाब में शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि वो पार्टी के भीतर और बाहर लोगों को खुश करके अपनी कुर्सी नहीं बचाते वो तो जनता के प्यार से इस पर टिके हैं। चौहान ने कहा कि मैं फेवीकोल से नहीं जनता के प्यार की वजह से कुर्सी पर चिपका हूं। अपने न्यूयार्क दौर और विदेशी निवेश पर आंकड़ा देते हुए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले दो वर्षों में एमपी में दो लाख पचहत्तर हजार करोड़ रुपए के निवेश हुआ है. जल्दी ही आईटी के क्षेत्र में दस हजार नौकरियों का सृजन होगा। शिवराज ने कहा कि मंदी के दौर में भी निवेश के लिहाज से मध्य प्रदेश में बड़ा काम हुआ है।  

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Dakhal News 11 September 2016


samachar patr sangrahlay

 समाचार पत्र संग्रहालय में नितिन मेहता कक्ष का लोकार्पण   हम हमारे अतीत और जड़ों से जुड़े रहें तो हमारी तरक्की के रास्ते हमेशा ही खुले रहते हैं। एक स्वस्थ और जागृत समाज को अपना इतिहास कभी नहीं भूलना चाहिए। इस आशय के विचार शुक्रवार को माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान में सुनाई दिए। मौका था खड़ी बोली हिन्दी के निर्माता भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती के अवसर पर आयोजित वरेण्य पत्रकार नितिन मेहता की स्मृति में स्थापित कक्ष के लोकार्पण का। इस अवसर पर प्रमुख सचिव जनसंपर्क  एस.के. मिश्र तथा आयुक्त जनसंपर्क श्री अनुपम राजन, श्री नितिन मेहता के सुपुत्र डॉ. राजेश मेहता मौजूद थे। प्रमुख सचिव  मिश्रा ने कहा कि इस संग्रहालय में आने पर किसी तीर्थ स्थल पर आने का अहसास होता है। यहां जो सामग्री संग्रहणीय है वह हमें हमारे अतीत की याद दिलाती है। उन्होंने युवा पीढ़ी को संग्रहालय से जोड़ने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेने का सुझाव भी दिया। आयुक्त जनसंपर्क  अनुपम राजन ने कहा कि तरक्की के लिए हमारा इतिहास से भी जुड़े रहना जरूरी है। श्री राजन ने संग्रहालय द्वारा किए जा रहे कार्यो को स्तुत्य बताया। दोनों ही अतिथियों ने संग्रहालय के विकास में शासन की ओर से हरसंभव सहयोग का भरोसा दिलाया। आरंभ में अतिथियों ने नवनिर्मित कक्ष का लोकार्पण करने के बाद अवलोकन भी किया। संग्रहालय के संस्थापक निदेशक पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर ने संस्थान की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। निदेशक डॉ. मंगला अनुजा तथा  विवेक श्रीधर ने अतिथियों का स्वागत् किया। आभार प्रदर्शन जनसंपर्क संचालक अनिल माथुर ने किया। कार्यक्रम में अपर संचालक जनसंपर्क  सुरेश गुप्ता, साहित्यकार  युगेश शर्मा,  वसंत निरगुणे,  दीपक पगारे,  प्रकाश साकल्ले,  शिवकुमार अवस्थी, डॉ रत्नेश आदि उपस्थित थे। नितिन मेहता कक्ष में इतिहास के गवाह विभिन्न कालखंडों के रेडियो,दूसरे विश्व युद्ध में सेना के उपयोगी रहे ट्रांसमीटर, विभिन्न समय के कैमरे, गुजरे समय के टेलीफोन उपकरण के अलावा सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं संपादक डॉ. धर्मवीर भारती की पत्नी पुष्पा भारती द्वारा भेंट सामग्री, पुरातत्वविद् रायबहादुर हीरालाल का आठ दशक पुराना ग्रामोफोन तथा उनकी आवाज का संग्रह संग्रहीत है।

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Dakhal News 10 September 2016


कर्मवीर माखनलाल चतुर्वेदी

मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि बाबई में प्रख्यात कवि पत्रकार पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के घर को भव्य स्मारक बनाया जायेगा। इस पर होने वाला खर्च राज्य सरकार उठायेगी। उन्होंने कहा कि बाबई में आईटीआई खोली जायेगी। मुख्यमंत्री  चौहान  होशंगाबाद जिले के बाबई में अंत्योदय मेले को संबोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने 33 करोड़ 7 लाख रुपये के निर्माण कार्य का लोकार्पण और 12 करोड़ 76 लाख से अधिक के 19 कार्य का भूमि-पूजन किया। इस मौके पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा, लोक निर्माण मंत्री  रामपाल सिंह, खाद्य प्र-संस्करण राज्य मंत्री  सूर्यप्रकाश मीणा, पूर्व मंत्री  सरताज सिंह, सांसद  राव उदय प्रताप सिंह और विधायक श्री ठाकुरदास नागवंशी भी मौजूद थे। अंत्योदय मेले अब से गरीब मेले मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि अंत्योदय मेले का नाम बदलकर अब इसे गरीब मेले का नाम दिया गया है। राज्य सरकार गरीबों की भलाई के लिये प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि जो गरीब एक ही स्थान पर वर्षों से रह रहा है, उन्हें पट्टा देकर जमीन का मालिक बनाया जायेगा। श्री चौहान ने कहा कि वर्ष 2018 तक प्रदेश में 2 लाख मकान बनाकर गरीबों को दिये जायेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर एक-एक किलोमीटर पर फलदार पौधे लगाये जायेंगे। इसके लिये किसानों की सहमति ली जायेगी। उन्होंने कहा कि पवित्र नदी नर्मदा में अब सीवेज का पानी नहीं जाने दिया जायेगा। इसके लिये 1500 करोड़ की लागत से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया जा रहा है।

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Dakhal News 9 September 2016


news24 manthan

न्यूज़ 24 का कॉन्क्लेव मंथन मध्यप्रदेश का आयोजन 10 सितंबर को भोपाल में होगा। इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सहित राजनीति के कई दिग्गज शामिल होंगे।    न्यूज़ 24 के इस आयोजन में मध्यप्रदेश के ताजा परिवेश और भविष्य पर चर्चा होगी। होटल नूर-उस -सबाह में मंथन के पहले सत्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने विचार और पक्ष आमंत्रित लोगों के सामने रखेंगे।मंथन के दूसरे सत्र में बीजेपी उपाध्यक्ष प्रभात झा ,एमपी के जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा और कार्यकारी नेता प्रतिपक्ष बाला बच्चन अपने विचार रखेंगे।  तीसरे सत्र में दोपहर दो बजे एमपी के उद्योग मंत्री राजेन्द्र शुक्ला और कोंग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह आज के मध्यप्रदेश पर अपनी राय रखेंगे।मंथन का चौथा सत्र एमपी के स्वास्थ्य मंत्री रुस्तम सिंह और कोंग्रेस के सीनियर लीडर मुकेश नायक के नाम रहेगा।  मंथन का अंतिम सत्र सबसे शानदार रहने की उम्मीद है। इसमें कोंग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ,एमपी कोंग्रेस के अध्यक्ष अरुण यादव और एमपी बीजेपी के अध्यक्ष नंदकुमार चौहान मध्यप्रदेश की तस्वीर पर अपना पक्ष रखेंगे।  मंथन को चैनल के एमपी ब्यूरो चीफ गोविन्द सिंह गुर्जर कोडिनेट कर रहे हैं। 

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Dakhal News 8 September 2016


india tv

ये हैं आरोपी -----------------   इंदौर में एक प्रायवेट मेडिकल कॉलेज (मॉडर्न मेडिकल कॉलेज) के बाहर इण्डिया टीवी के रिपोर्टर पुष्पेंद्र वैद्य  की ठुकाई लगा दी गई। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि वैध अपने कैमरामैन प्रदीप त्रिवेदी और ड्राइवर दीपक के साथ काफी देर से उस इलाके में थे और इसी दौरान कॉलेज संचालक से उनका विवाद हो गया। पुष्पेंद्र वैद्य का आरोप है कि कॉलेज  संचालक डा रमेश बदलानी  और उसके गुर्गों  ने उनकी टीम पर हमला कर कैमरा, मोबाइल, लैपटाप और कार की चाबी छीन ली, उनके साथ मारपीट की और उन्हें बंधक बनाने की कोशिश भी की।जबकि प्रत्यक्षदर्शी  कुछ और ही कहानी बयान कर रहे हैं। इंदौर पुलिस ने मामला दर्ज कर जाँच शुरू कर दी है। इण्डिया टीवी के सूत्र बताते हैं चैनल के लोगों को भी इस घटना में कुछ संदेह है और वो अपने स्तर पर मामले को देख रहे हैं। फिलहाल इस मामले की सच्चाई उजागर होना बाक़ी है।    यह घटना रविवार की है।रिपोर्टर पुष्पेंद्र मूलतः इंदौर के हैं और वो मॉर्डन मेडिकल कॉलेज पर खबर बनाने पहुंचे थे  लेकिन वहां के मैनेजमेंट से हुई कहासुनी के बाद उनकी पिटाई का किस्सा नुमाया हो गया और वो खुद खबर बन गए। इंदौर पुलिस का कहना है घटना की जानकारी जैसे ही वैद्य ने दी उनके अधिकारी मौके पर पहुंचे और कॉलेज के बाहर से इण्डिया टीवी के लोगों को कनाड़िया पुलिस स्टेशन लाये उनका मेडिकल करवाया और तीन आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर  उन्हें पकड़ा। इस मामले में इंदौर पुलिस ने बहुत ही तेज गति से एक्शन लिया।    इस मामले में प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है इण्डिया टीवी के ड्राइवर दीपक और रिपोर्टर पुष्पेंद्र की जमकर पिटाई हुई है ,कैमरामैन प्रदीप अपना सामन समेटकर दूर निकल गया था ,लेकिन इस सब में कैमरे की लाइट टूट गई। मौके पर पुष्पेंद्र और कॉलेज संचालकों का झगड़ा पहले आम कहासुनी जैसा नजर आ रहा था इसी बीच न जाने क्या बात हुई दोनों पक्ष तैश में आ गए और बात बढ़ गई।    इस घटना को इण्डिया टीवी ने गंभीरता से लिया है सूत्र बताते हैं यह घटना क्यों हुई इसकी जाँच इण्डिया टीवी के अधिकारी खुद भी कर रहे हैं। इस मामले में अब तक आरोपी का पक्ष सामने नहीं आया है इण्डिया टीवी के लोग उसका पक्ष भी जानना चाहते हैं।   

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Dakhal News 6 September 2016


torge bargar

अविस्मरणीय कव्हरेज की सुविधा के लिये जनसम्पर्क विभाग की सराहना   दुर्गेश रायकवार प्रसिद्ध फोटो जर्नलिस्ट तथा ब्लागर  तोरगे बर्गर 19 फरवरी  को जर्मन म्यूजियम में सिंहस्थ-2016 पर वृहद प्रजेंटेशन देगे। श्री बर्गर विश्व के विभिन्न देश का निरंतर भ्रमण कर वहाँ आयोजित महत्वपूर्ण आयोजन का फोटो कव्हरेज करते रहे हैं। उन्होंने भारत में विभिन्न कुंभ मेलों के विशिष्ट फोटो कव्हरेज द्वारा अविस्मरणीय छवियों को दुनिया भर में पहुँचाया है। श्री बर्गर ने इस बार उज्जैन पहुँचकर सिंहस्थ महाकुंभ में अंतिम शाही स्नान के दुर्लभ क्षणों को अपने केमरे में कैद किया। उन्होंने सिंहस्थ की विशेषताओं पर केन्द्रित अपना एक विशिष्ट आलेख विश्व के प्रतिष्ठित केमरा ब्लाग पर प्रदर्शित किया है।   सिंहस्थ-2016 के दौरान दुनिया भर से अनेक महत्वपूर्ण मीडिया संस्थानों के प्रतिनिधि तथा फोटो जर्नलिस्ट एवं वीडियोग्राफर उज्जैन पहुँचे थे। सिंहस्थ में जर्मनी से आये फोटो जर्नलिस्ट एवं ब्लागर श्री तोरगे बर्गर भी इनमें शामिल थे। जनसम्पर्क विभाग द्वारा सिंहस्थ-2016 के दौरान मीडिया प्रतिनिधियों को सिंहस्थ की महत्वपूर्ण गतिविधियों तथा प्रमुख स्नान और शाही स्नान के कव्हरेज की सुविधाजनक व्यवस्थाओं के बेहतर इंतजाम किये गये थे। श्री बर्गर ने सिंहस्थ के अंतिम शाही स्नान के अवसर पर जनसम्पर्क विभाग के सहयोग की मुक्त कंठ से सराहना की है।   सिंहस्थ के अंतिम शाही स्नान के समय 21 मई की रात्रि में करीब ढाई बजे रामघाट क्षेत्र में कव्हरेज के दौरान श्री बर्गर का सिंहस्थ प्रवेश-पत्र कही गिर गया था। उन्होंने अपर संचालक, संभागीय जनसम्पर्क कार्यालय, उज्जैन को इसकी जानकारी दी। रात्रि में ठीक 3 बजे दत्त अखाड़ा क्षेत्र में शैव सम्प्रदाय के साधुगण और नागाओं का शाही स्नान प्रारंभ होने वाला था। ऐसे में इस महत्वपूर्ण फोटो कव्हरेज से वंचित हो जाने के विचार से श्री बर्गर बहुत चिंतित थे। अपर संचालक  देवेन्द्र जोशी ने पब्लिक एनाउसमेंट सिस्टम पर एनाउस करवाया कि श्री बर्गर का प्रवेश-पत्र मिलने पर तुरंत प्रेस गैलरी रामघाट पर जमा करवा दिया जाये। कुछ ही समय बाद श्री बर्गर का प्रवेश-पत्र प्राप्त हो गया। श्री तोरगे बर्गर को जब प्रवेश-पत्र प्रदान किया तब उन्होंने प्रसन्न होकर जनसम्पर्क विभाग और पुलिस कर्मियों के प्रति कृतज्ञता जताई। श्री बर्गर ने दिनांक 31 अगस्त 2016 को प्रेषित मेल द्वारा सिंहस्थ महाकुंभ के अवसर पर शाही स्नान के दौरान प्रेस पास खो जाने के बाद त्वरित खोजकर उन्हें उपलब्ध करवाने के लिये जनसम्पर्क विभाग के प्रति आभार जताया है। उन्होंने ई-मेल के साथ सिंहस्थ महाकुंभ पर केन्द्रित उनका आलेख भी भेजा है।   श्री बर्गर ने जानकारी दी है कि वे जर्मन म्यूजियम में 19 फरवरी 2017 को सिंहस्थ महाकुंभ-2016 पर वृहद प्रेजेंटेशन देंगे। इस उददेश्य से उनके द्वारा अतिविशिष्ट जानकारियों और अन्य महत्वपूर्ण फोटोग्राफ्स तथा वीडियो संकलित किये जा रहे हैं।    

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Dakhal News 4 September 2016


arun yadav

कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव का ट्वीट मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर अमेरिका के दौरे से लौट आये   हैं, सीएम के अमेरिका जाने पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने चुटकी ली है और एक ट्वीट किया है। अरुण यादव ने ट्वीट करा खोजी पत्रकारों से कहा है कि वे पता लगाएं सीएम शिवराज बार-बार अमेरिका क्यों जाते हैं।  इंदौर में अक्टूबर महीने में होने वाली ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट में निवेशकों को आमंत्रित करने के लिए सीएम शिवराज सिंह चौहान अमेरिका के दौरे पर गए थे  इस दौरे की आलोचना करते हुए मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने ट्वीट किया है, उन्होंने ट्वीट में कहा है कि ” खोजी पत्रकारों को पता लगाना चाहिए कि सीएम शिवराज सिंह चौहान बार-बार अमेरिका क्यों जाते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने अपने दूसरे ट्वीट में कहा है कि ” प्रदेश कर्ज में डूब है और सीएम इन्वेस्टर्स समिट के नाम पर अधीनस्थों के साथ विदेशों में मौजमस्ती में मशगूल हैं, हद है।    ट्वीट के बाद कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष यादव ने एक बयान जारी कर कहा कि प्रदेश में ‘इन्वेस्टर्स समिट’ और विदेशी निवेश के नाम पर निजी दौरों को राजस्व कोष से करोड़ों रुपये खर्च कर सरकारी दौरा बनाने वाले मुख्यमंत्री चौहान इस बात का खुलासा करें कि उनके इन दौरों से राज्य में कितना विदेशी निवेश हुआ, कितने प्रवासी भारतीय फ्रेंड्स ऑफ एमपी के तहत ‘टैलेंट पूल’ से जुड़े हैं तथा कितने प्रवासी भारतीय निवेशक मध्य प्रदेश में आए।    यादव ने कहा है कि एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्रीय मंत्रियों ही नहीं, मुख्यमंत्रियों तक की फिजूल की विदेशी यात्राओं पर कथित तौर पर तल्ख रुख अपनाए हुए हैं, वहीं दूसरी ओर प्रदेश के मुखिया चौहान और उनके सलाहकार अधिकारी विदेशों में अध्ययनरत अपने पुत्र-पुत्रियों से मुलाकात करने और उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रवेश दिलवाने के लिए व्यक्तिगत दौरे करते हैं।  अरुण यादव ने मुख्यमंत्री के विदेशी दौरों और उसके बाद आए निवेश पर ‘श्वेत पत्र’ जारी करने की मांग की है। 

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Dakhal News 3 September 2016


santosh sejkar

  प्रधानमंत्री की  सतर्कता से  बचे कई लोग  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सजगता से एक कैमरामैन सहित कई लोगों की जान बच गई। अगर प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान उस पर नहीं जाता तो भोपाल के कैमरामैन संतोष सेजकर पानी में बह जाते। प्रधानमंत्री की सजगता से संतोष के साथ 22 अन्य लोगों की भी जान बच गई।  दूरदर्शन के कैमरामैन संतोष सेजकर ने बताया मैं भोपाल दूरदर्शन की टीम के साथ जामनगर जिले में स्थित साउनी डेम के उद्घाटन का कवरेज करने गए थे । डेम के गेट खोलकर इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  कर रहे थे ,उसी समय संतोष  गेट नंबर एक के पास खड़ा होकर कवरेज कर रहा था इतने में डेम के अन्य गेट खुलने पर जलस्तर बढ़ गया। प्रधानमंत्री मोदी ऊपर से यह सब देख रहे थे। वे समझ गए कि बड़ा हादसा हो सकता है। उन्होंने तुरंत पुलिस को इशारा किया और संतोष सेजकर को बहाव वाली जगह से बाहर निकाला गया। इस दौरान संतोष का  कैमरा बह गया ।  कैमरामैन संतोष  भोपाल  के कोलार इलाके  में रहते हैं। संतोष सेजकर ने अपनी पत्नी कला सेजकर को घटना की जानकारी दी।  श्रीमती सेजकर ने पति की सलामती को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया अदा किया। संतोष ने बताया कि  भोपाल से डेम के उद्घाटन का कवरेज करने 15 लोगों की टीम गई थी। मैं भी उसमें शामिल था। हमने अलग-अलग एंगल पर अपने कैमरे लगाए थे। वे गेट नंबर एक के पास समतल जगह पर कैमरा लगाकर कवरेज कर रहे थे। गेट से यह जगह करीब 25 फीट दूर होगी। जब पहला गेट खुला तो जल स्तर सामान्य था। लेकिन दो और तीन नंबर का गेट खुलते ही जलस्तर तेजी से बढ़ने लगा। मैंने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और शूटिंग में लगा रहा। संतोष ने बताया प्रधानमंत्रीजी डेम के ऊपर से सारा नजारा देख रहे थे ,उन्होंने  मुझे देखा और समझ गए कि मेरा ध्यान पानी के बहाव पर नहीं है ऐसे में मैं बह भी सकता हूं। उन्होंने तुरंत पुलिस को इशारा किया और तत्काल मुझे बाहर निकाला गया। जलस्तर इतना बढ़ गया था कि यह ट्रायपॉड के लेवल पर आ गया और कैमरा सहित अन्य सामान पानी में बह गए। कुछ अन्य लोकल मीडिया के कैमरे भी पानी में बहे। पर मैं उस स्थान पर था जो खतरनाक साबित हो सकता था। बाद में गेट बंद होने पर कैमरा कुछ दूर पर मिला । संतोष  ने बताया कि पूरा घटनाक्रम करीब सात मिनट का होगा। पानी इतनी तेजी से बढ़ा कि कुछ समझ नहीं आया। पीएम ने ऊपर से कम्युनिकेट किया जिस पर तत्काल एक्शन लिया गया। यह उनकी सजगता था कि वे सब ओर ध्यान दे रहे थे, जिससे बड़ी दुर्घटना टल गई और मैं सही सलामत हूँ। संतोष सेजकर ने भी प्रधानमंत्री मोदी के प्रति आभार प्रकट किया है।   

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Dakhal News 31 August 2016


ajit singh patrkar kalahandi

अजीत ने पहले निभाया मानवीय धर्म फिर की पत्रकारिता  कालाहांडी का कला चेहरा उजागर करने वाले पत्रकार अजीत  सिंह को उनकी दुनिया को झकझोरने वाली रिपोर्ट पर सोशल मीडिया के  कॉपी पेस्ट समुदाय के साथ कुछ कथित बुद्धिजीवी जमकर कोस रहें है कि  उन्होनेे दाना मांझी की किसी प्रकार की मदद नहीं की। जबकि सच्चाई यह है कि अगर अजीत प्रयास नहीं करते तो दान मांझी को अपने गंतव्य पर पहुँचने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता और दाना के साथ हुए सरकारी अमानवीय व्यव्हार का सच सामने ही नहीं आ पाता।    सबकुछ जानें अजीत सिंह की जुबानी  ...  अजीत कहते हैं, “मुझे कालाहांडी अस्पताल के एक सूत्र ने बताया कि एक आदमी अपनी पत्नी के शव को लेकर पैदल अपने गांव जा रहा है , जन्माष्टमी का दिन था और फ़ोन सुबह पांच बजे आया...  मैंने पता किया कि वो किस ओर जा रहा है और मैं शागड़ा गांव वाली सड़क पर तेज़ी से बाइक से निकल पड़ा। मांझी अजीत को शागड़ा गांव के पास नज़र आ गए।  सुबह सात बज रहे थे...  कालाहांडी अस्पताल के टीबी वार्ड से शागड़ा गांव क़रीब 12-13 किलोमीटर दूर है।    अजीत कहते हैं, “मैंने मांझी से पूरी बात पूछी ...  उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी की मौत रात में 2 बजे हो गई थी और अस्पताल वाले बार बार शव ले जाने को कह रहे थे...  लेकिन उनके पास महज़ 200-250 रुपये ही थे , उन्हें कोई एंबुलेंस नहीं मिल पाई तो वे अपनी पत्नी के शव को किसी तरह ले जाने की कोशिश कर रहे हैं  ...    इसके बाद मैने [अजीत] मांझी के लिए एंबुलेंस की कोशिश शुरू कर दी ,सबसे पहले जिला अधिकारी बृंदा डी को फ़ोन किया। जिलाधिकारी ने  कहा, “  सीडीएमओ से एंबुलेंस का प्रबंधन करने को कहती हूं....  कालाहांडी की जिलाधिकारी बृंदा डी बताती हैं, "अजीत का फ़ोन आया था. इसके बाद कुछ स्थानीय लोगों के भी फ़ोन आए , मैंने अस्पताल के अधिकारी, सीडीएमओ को एंबुलेस की व्यवस्था कराने को कहा भी। "   अजीत बताते हैं -लेकिन इन सबमें वक्त लग रहा था और दिन चढ़ने लगा था, मांझी की 12 साल की बेटी चौला का सुबकना जारी था... तब मैने  लांजीगढ़ के स्थानीय विधायक बलभद्र मांझी को भी फ़ोन किया, वे भुवनेश्वर में थे ,उन्होंने अपना आदमी भेजने की बात कही ... लेकिन कुछ नहीं हुआ।    मगर अंत में अजीत ने एक स्थानीय संस्था से मदद मांगी ... और उन लोगों को बताया कि दाना का घर क़रीब 60 किलोमीटर दूर है , जिसके बाद एंबुलेंस उपलब्ध हो पाई... एंबुलेंस की मदद से ही दाना की पत्नी का शव मेलाघर गांव पहुंच पाया।    लेकिन क्या अजीत को एहसास था कि ये कहानी देश भर को झकझोर देगी? वो कहते हैं, “मुझे दाना मांझी के लिए अच्छा नहीं लग रहा था. ..  हमारे इलाके में बहुत गरीबी है , मैं उसकी मदद करना चाहता था।  लेकिन काफी कोशिश करने के बाद भी दो घंटे में जब सिस्टम से कोई मदद नहीं मिली, तो मुझे लगा कि कहानी करनी चाहिए।  मुझे उस वक्त ये बिलकुल एहसास नहीं हुआ था कि ये इतनी बड़ी बन जाएगी।  अजीत कहते हैं 14 साल की पत्रकारिता के सफ़र में मुझे न तो ऐसी कहानी पहले कभी मिली, ना दिखी और ना ही कभी सुना था।   

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Dakhal News 30 August 2016


patrkaar dharna

  एम.पी.वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन की जबलपुर के विश्राम भवन में संपन्न हुई बैठक की अध्यक्षता प्रदेश अध्यक्ष राधावल्लभ शारदा ने की। बैठक में मंडला, कटनी, नरसिंहपुर एवं जबलपुर के प्रांतीय, संभागीय एवं जिला अध्यक्षों की उपस्थिति रही।  बैठक का संचालन प्रदेश संगठन सचिव गणेश बैरागी  ने किया। बैठक में विभिन्न विषयों पर चर्चा की। मुख्य मुद्दा आयुक्त जनसम्पर्क को लिखे पत्र जिसमें 70 के लगभग पत्रकारों पर दर्ज प्रकरणों की पुन: पुलिस विभाग द्वारा समीक्षा न कराने पर पदाधिकारियों ने रोष प्रकट किया तथा निर्णय लिया कि 2 अक्टूबर गांधी जयंती पर भोपाल में एक दिवसीय धरना दिया जाये।  प्रदेश अध्यक्ष राधावल्लभ शारदा ने बताया कि आयुक्त जनसम्पर्क अनुपम राजन ने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (शिकायत) भोपाल को 9 दिसंबर 2015 को पत्र लिखा। परन्तु लगता है कि पुलिस विभाग पत्रकार जगत से नाराज है अत: अभी तक परिणाम सामने नहीं आया। यूनियन द्वारा संबंधित प्रकरण की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई है।  श्री शारदा ने कहा कि आयुक्त जनसम्पर्क के पत्र को भी पुलिस विभाग ने गंभीरता से नहीं लिया अत: 2 अक्टूबर को भोपाल में प्रदेश के पत्रकार एक दिवसीय धरना देंगे।  बैठक में सरकार से मांग की है कि पत्रकार सुरक्षा कानून शीघ्र बनाया जाये। पत्रकारों को दी जाने वाली श्रद्धा निधि की राशि बढ़ाकर 10 हजार तथा 70 वर्ष से अधिक उम्र के पत्रकारों को रुपये 15 हजार दी जाये। सरकार तहसील स्तर तक मीडिया सेंटर बनाये जिसका संचालन जिला जनसम्पर्क अधिकारी करें। निर्णय लिया गया कि यूनियन की जिला इकाईयां अपने जिला मुख्यालय पर जिला चिकित्सालय में भोपाल एवं बैतूल की तर्ज पर पत्रकार प्राइवेट वार्ड का निर्माण सांसद अथवा विधायक निधि एवं जनसहयोग से करायें।  संभागीय बैठक में प्रदेश अध्यक्ष राधावल्लभ शारदा, प्रदेश संगठन सचिव गणेश बैरागी ‘गन्नू भैया’, संभागीय अध्यक्ष  मीना विनोदिया, जबलपुर जिला इकाई अध्यक्ष पवन पटेल, कटनी इकाई अध्यक्ष अभिषेक मिश्रा, नरसिंहपुर जिला इकाई के अध्यक्ष उमेश पाली, जबलपुर सदस्यता प्रभारी अशोक उपाध्याय, संजय सिंह, लखनलाल भांडे (मंडला) सहित यूनियन के अनेक सदस्य उपस्थित थे।   

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Dakhal News 29 August 2016


patrkar bastar

    बस्तर के पत्रकार अपने सीनियर्स से पत्रकारिता के गुर सीख रहे हैं। इस ट्रेनिंग प्रोग्राम का आयोजन यूनिसेफ ने किया है।    यूनिसेफ के माध्यम से राजधानी रायपुर में बस्तर संभाग के पत्रकारों को दो दिवसीय रिफ्रेशन ट्रेनिंग कोर्स देश के वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा दिया जा रहा है । इसके लिए   बस्तर संभाग के कॉडीनेटर हरजीत सिंह ने इस आयोजन में मुख्य भूमिका अदा की हैं।   

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Dakhal News 28 August 2016


davp

  विज्ञापन नीति में मान्य एजेंसियो को सूची मे शामिल करने के आदेश    प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया की  विशेष बैठक मे डीएव्हीपी की विज्ञापन नीति २०१६ पर विचार किया गया। आल इंडिया स्माल एवं मीडियम न्यूज पेपर के अध्यक्ष गुरमिंदर ने देश भर के मध्यम एवं लघु भाषाई समाचार पत्रों को उक्त विज्ञापन नीति को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि इससे लघु एवं मध्यम श्रेणी के समाचार पत्र बंद हो जाएंगे। गुरिंदर सिंह और कौंसिल के अन्य सदस्यो के बीच विज्ञापन नीति की विसंगतियो पर चर्चा हुई। यह बैठक लगभग ५ घंटे चली।  आल इंडिया स्माल एंड मीडियम न्यूज पेपर फेडरेशन के सचिव अशोक नवरत्न ने  ईएमएस एजेंसी को जानकारी  देते हुए कहा कि प्रेस काउंसिल आफ इंडिया ने डीएव्हीपी को सुनवाई करते हुए आदेशित किया है। कि विज्ञापन पालिसी २०१६ में निम्नानुसार संशोधन किए जाऐं।  प्रेस कौंसिल ने अपने आदेश में लिखा है कि किसी भी समाचार पत्र को एबीसी से प्रसार संख्या प्रभावित कराने सदस्यता लेने से बाध्य नहीं किया जा सकता है। कोंसिल ने कहा कि ९० दिन के अंदर यदि आरएनआई प्रसार संख्या को प्रमाणित नहीं करती है तो समाचार पत्र द्वारा प्रस्तुत प्रसार संख्या का प्रमाण पत्र वैध माना जाना चाहिए।  न्यूज एजेंसी के संदर्भ में प्रेस कौंसिल ने आदेश दिया है कि डीएव्हीपी केन्द्र और राज्य सरकार से अधिमान्य न्यूज एजेेंंसियों को भी शामिल करे। डीएव्हीपी की नीति में प्रिंटिंग प्रेस के लिए जो अंक निर्धारित किए गए है। वह गैर जरूरी है। इसी तरह कोई समाचार पत्र यदि समाज विरोधी अथवा अनैतिक गतिविधियों में शामिल पाया जाता है तो विज्ञापन नीति में उसे विज्ञापन सूची से बाहर करने का प्रावधान किया जाए।  प्रेस कौंसिल ने यह आदेश सुझावों के साथ डीएव्हीपी को भेज दिया है। डीएव्हीपी को अब प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के आदेश और सुझाव पर निर्णय करना होगा।  इस मामले में डीएव्हीपी से इस संबंध में अभी तक कोई जानकारी नहीं मिली है। प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के आदेश की अधिकृत प्रति भी अभी सार्वजनिक नहीं की गई है। बैठक में जो सदस्य शामिल थे उनसे प्रेस काउंसिल के आदेश और अनुशंसा के संबंध में जानकारी एजेन्सी को प्राप्त हुई है।

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Dakhal News 27 August 2016


cg patrkar beema

    छत्तीसग़ढ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की घोषणा के अनुसार छत्तीसगढ़ के पत्रकारों एवं संचार प्रतिनिधियों का 5 लाख रूपए का व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा कराया जायेगा। योजना के तहत जिले में निवासरत अशासकीय समाचार पत्र एवं समाचार एजेंसी, टेलीविजन न्यूज चैनल में नियोजित पत्रकार, संवाददाता, फोटोग्राफर और कैमरामेन का 5 लाख रूपए का व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा राज्य शासन द्वारा कराया जायेगा।     बीमा की प्रीमियम राशि 165 रूपए निर्धारित की गई है। बीमे के लिए प्रतिवर्ष संचार प्रतिनिधि को अथवा उसके नियोक्ता को वार्षिक प्रीमियम की निर्धारित राशि का केवल 25 प्रतिशत हिस्सा मात्र 42 रूपए जमा करना होगा। शेष 75 प्रतिशत अंशदान रूपए 123 रूपए राज्य शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा वहन किया जायेगा। दुर्घटना बीमा की अवधि एक वर्ष की होगी और बीमा अवधि पूरी होने पर नये वर्ष के लिए बीमा कराने समस्त कार्रवाई पुनः करनी होगी।                   बीमा योजना का लाभ लेने आवेदन तथा सभी आवश्यक जानकारी जनसम्पर्क संचालनालय की वेबसाईट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट डीपीआरसीजी डॉट जीवोव्ही डॉट इन  पर उपलब्ध है। वेबसाईट से आवेदन तथा नियम शर्ते डाउनलोड कर आवेदन पूर्णतः भरकर वांछित दस्तावेजों के साथ अंशदान राशि 42 रूपए जिला जनसम्पर्क कार्यालय, कलेक्टोरेट परिसर राजनांदगांव में 30 अगस्त 2016 तक कार्यालयीन समय में जमा किये जा सकते हैं।

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Dakhal News 26 August 2016


rakesh shukla patrkar

  ईटीवी छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार राकेश शुक्ला ने इस्तीफा दे दिया है। स्थानीय संपादक प्रियंका कौशल की तानाशाही से नाराज होकर उन्होंने चैनल हेड जगदीश चंद्रा को अपना इस्तीफा भेजा है।  राकेश लंबे समय से ईटीवी को अपनी सेवाएं दे रहे थे तथा ईटीवी के दिग्गज पत्रकारों में शुमार थे।     ईटीवी के लिए कांकेर जिलें में पिछले 12 वर्षों से पत्रकारिता कर रहें राकेश शुक्ला ने  अपना इस्तीफा चैनल हेड को भेज दिया  बताया जा रहा है कि राकेश शुक्ला को ईटीवी के छत्तीसगढ़ संपादक प्रियंका कौशल और असाइनमेंट हैड मनोज साहू लंबे समय से प्रताड़ित कर रहे थे। इसके पहले ईटीवी छत्तीसगढ़ के संपादक प्रकाश चंद्र होता और ब्यूरों प्रमुख मनोज सिंह बघेल ने इस्तीफा दिया था।  जिसके बाद से लगातार ईटीवी के पत्रकारों ने अपना इस्तीफा देकर चैनल से दूरी बना ली।    रायपुर ईटीवी में कंट्रोल रूम के प्रभारी शैलेष पाण्डेय,  वैभव शिव पाण्डेय, ईटीवी के स्टार रिपोर्टर रहे अवधेश मिश्रा तथा गौरव शुक्ला ने प्रताड़ना से तंग आकर अपना इस्तीफा दे दिया।  इस्तीफे का दौर यहीं नहीं रूका इसके बाद सिलसिलेवार तरीके से बिलासपुर के रिपोर्टर प्रशांत सिंह और संवाददाता विशाल झा समेत दुर्ग के विनोद दुबे, भिलाई के नरेंद्र मार्कण्डे, जशपुर के पवन तिवारी, जांजगीर-चांपा के संजय मानिकपुरी ने इस्तीफा देकर ईटीवी को अलविदा कह दिया।    नक्सल प्रभावित बस्तर इलाकें में ईटीवी के दंतेवाड़ा के आजाद सक्सेना, नारायणपुर के संवाददाता हरीश पारेख, सुकमा संवाददाता महेश राव, बीजापुर के संतोष तिवारी, कोंडागांव के प्रमोद निर्मल ने इस्तीफा दे दिया है।  इसमें बीजापुर के संतोष तिवारी को ईटीवी में वापस बुलाए जाने की खबर है।    सूत्रों के मुताबिक इस्तीफे की शुरुआत ईटीवी के छत्तीसगढ़ संपादक प्रकाश चंद्र होता और ब्यूरो चीफ मनोज सिंह बघेल के द्वारा तब की गई जब उन्हें चैनल हेड जगदीश चंद्रा ने मौखिक रूप से इस्तीफा देने का फरमान सुना दिया था।  प्रकाश चंद्र होता की गलती ये थी कि उन्होंने ईटीवी के द्वारा घोषित  नीतियों का विरोध जताया था। इसके साथ ही बस्तर के संवाददाताओं को झीरम कांड के नक्सली जोड़ों के विवाह समारोह के कवरेज के बाद बिना कारण के हटाने से इंकार कर दिया था।    चर्चा है कि पत्रकारों का इस्तीफा ईटीवी के खबर ही जीवन है के स्लोगन  से इतर सत्ताधारी पार्टी से सांठगाठ कर खबरों को दबाने को लेकर उपजा आक्रोश है। जनहित की खबरों को नहीं दिखाए जाने से नाराज होकर पत्रकारों ने अपना इस्तीफा दिया है। दिन रात चैनल को अपनी सेवाएं देने वाले पत्रकारों का लंबे समय से शोषण हो रहा है।  खबर है कि दूसरों के हक़ की लड़ाई लड़ने का दम्भ भरने वाले ईटीवी के कर्मचारी खुद का शोषण करा रहे है।  छत्तीसगढ़ में ईटीवी एक प्रमुख दल के लिए कार्य कर रहा है।  ईटीवी के बड़े पत्रकार  खुद भी मैनेजर का काम कर रहे  हैं। 

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Dakhal News 26 August 2016


majithiya

  उत्तराखंड के श्रम आयुक्त के खिलाफ वारंट  जारी देश के सर्वाधिक चर्चित आयोग मजीठिया वेज बोर्ड के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर सख्त कदम उठाया और उत्तराखंड के श्रम आयुक्त को  हाजिर रहने की पूर्व सूचना के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में अनुपस्थित रहने पर कोर्ट ने वारंट जारी कर दिया है। साथ ही उत्तर प्रदेश के श्रम आयुक्त को साफ कह दिया कि 6 हफ्ते के अंदर मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश को पूरी तरह लागू कराईये।  4 अक्टूबर को महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और दिल्ली के लेबर कमिश्नर को हाजिर होने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया और  20जे के मुद्दे पर मौखिक रूप से कहा कि जो भी वेतन ज्यादा होगा, उसे माना जायेगा।    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कौन कर्मचारी होगा जिसे वेतन ज्यादा मिले तो वह लेने से मना कर देगा। देश भर के पत्रकारों की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में लड़ रहे एडवोकेट उमेश शर्मा ने इस खबर की पुष्टि करते हुये कहा है कि  सुप्रीम कोर्ट का फैसला काफी एतिहासिक माना जायेगा। श्रम आयुक्तों ने अपनी सफाई में कहा कि कर्मचारी हमारे पर 17(1) के तहत क्लेम नहीं कर रहे हैं। जो क्लेम कर रहे हैं हम उनके पक्ष में खुलकर हैं। श्री उमेश शर्मा ने एक बार फिर कहा है कि लोग 17 (1) के तहत श्रम आयुक्त कार्यालय में क्लेम लगायें।   एडवोकेट उमेश शर्मा ने   पत्रकारों से कहा कि मैं बार-बार सबसे कह रहा हूं कि 17(1) के तहत लेबर कमिश्नर के यहां क्लेम लगाईये और फिर सबसे यही बात कहूंगा कि पहले उन्हीं को श्रम विभाग वरियता देगा जिसने 17(1) के तहत क्लेम किया है। अब 4 अक्टूबर को महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, झारखंड और दिल्ली के लेबर कमिश्नर को माननीय सुप्रीम कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया गया है। इन प्रदेशों के पत्रकार जल्द से जल्द 17(1) के तहत श्रम आयुक्त कार्यालय में क्लेम लगायें।  

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Dakhal News 25 August 2016


up patrkar aavas

    उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि वे कोशिश करेंगे कि पत्रकारों से सरकारी आवास खाली न कराये जाएँ। इसके लिए मुख्यमंत्री यादव ने अधिकारियों से क़ानूनी पहलुओं का अध्ययन कर रिपोर्ट देने को कहा है।    उत्तरप्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से विधान सभा में मुलाक़ात की और पत्रकारों के सरकारी आवास खाली कराये जाने को लेकर माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुपालन में राज्य संपत्ति विभाग की और से पत्रकारों को भेजी गयी नोटिस के सम्बन्ध में चर्चा  की  ।    मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने  हेमंत तिवारी को आश्वस्त किया की पत्रकारों के मकान खाली नही कराये जायेंगे और इस सम्बन्ध में उच्च अधिकारीयों को उपयुक्त कार्यवाही करने के निर्देश जारी किये हैं । श्री हेमंत तिवारी ने सेंट्रल हॉल में समस्त पत्रकारों को मुख्यमंत्री से हुई बातचीत से अवगत कराया की मुख्यमंत्री ने पत्रकार आवास आवंटन की नियमावली को वर्तमान विधान सभा सत्र में ही पारित कराने हेतु आश्वासन दिया है और मुख्यमंत्री ने आश्वस्त किया है की संविधिक प्रावधानों के द्वारा पत्रकारों के आवास संबंधी नियमों को संरक्षित किया जायेगा जिससे आवास की समस्या न उत्पन्न हो ।

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Dakhal News 24 August 2016


up patrkaar makan

31 अगस्त तक खाली करो सरकारी आवास    उत्तर प्रदेश में पत्रकारों को सरकारी मकान खाली करने के लिए नोटिस जारी किये गए हैं। राज्य संपत्ति विभाग ने  सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को आधार बनाकर यह नोटिस जारी किये हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को आधार बना कर उत्तरप्रदेश पत्रकारों को नोटिस दे सकता है तो अगली कार्यवाही दिल्ली और मध्यप्रदेश के पत्रकारों पर हो सकती है। इन दोनों जगह सबसे बड़ी तादात में पत्रकार सरकारी मकानों में कब्ज़ा जमाये हुए हैं।    उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में 15 दिन में सरकारी मकान खाली करने के निर्देश,राज्य सम्पत्ति विभाग ने पत्रकारों को दिए हैं , लखनऊ में 500 से ज्यादा पत्रकार सरकारी आवास में रहते हैं, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के परिपेक्ष में यह नोटिस जारी किये गए हैं।    उत्तरप्रदेश सरकार के प्रवक्ता ने  सुप्रीम  कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए  बताया कि राज्य संपत्ति विभाग ने कुल 586 सरकारी आवासों का आवंटन निरस्त कर दिया है। इनमें एनजीओ, संस्थाओं के मनोनीत पदाधिकारियों, वरिष्ठ पत्रकारों आदि को आवंटित सरकारी आवास शामिल हैं।  सभी को 31 अगस्त तक सरकारी आवास खाली करने का आदेश दे दिया गया है।   

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Dakhal News 23 August 2016


विनय द्विवेदी

  विनय द्विवेदी   सबा सौ करोड़ से अधिक की आबादी वाला देश ओलंपिक में एक मैडल के लिए तरसे इससे दयनीय स्थिति भला क्या हो सकती है? जो समाज महिला को कमजोर मानता हो। उसके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करता हो। जिस समाज के अधिकतम पुरुष अपने पुरुषत्व के दम्भ में महिला को नोच कर खा जाने की मानसिकता रखते हों। उस समाज के गाल पर ओलंपिक में महिला खिलाड़ियों के मैडल थप्पड़ जैसे हैं. गनीमत है सिंधु और साक्षी भारतीय समाज की पित्रसत्तात्मक चेतना की शिकार नहीं हुईं जिस तरह लाखों बच्चियां होती हैं, जो अल्ट्रासाउंड मशीन से बच नहीं पाती हैं और जिनका कोख में ही क़त्ल कर दिया जाता है। ऐसी सोच के लोगों को शर्मसार होना चाहिए।   बड़ा सवाल यही है की क्या भारतीय समाज ओलंपिक में मैडल जीत के इस शानदार और फक्र करने वाले अवसर से कुछ सीखेगा? पुराने अनुभव बताते हैं कि शायद नहीं। क्योंकि इससे पहले भी कई महिला खिलाड़ी ओलंपिक में मैडल ले कर आई हैं। दूसरी ओर सोशल मीडिया पर खूब चला की रक्षाबंधन के अवसर पर सिंधु की जीत देशवासियों के लिए एक बड़ी गिफ्ट है लेकिन कुछ दिन बाद हम सब भूल जाएंगे। ऐसा पहले भी हो चुका है. मैं खेलों का विशेषज्ञ नहीं हूँ इसलिए खेल की बारीकियों पर बात करने के बजाय ओलम्पिक में महिलाओं ने जो मैडल हासिल किये हैं उसके सामाजिक प्रभाव पर ही लिखूंगा।   भारतीय समाज में धर्म के धंधेबाज लड़कियों के कौमार्य बचाने के लिए जीन्स न पहनने का प्रवचन देते हैं, महिलायें को चार बच्चे पैदा करने की सलाह देते हैं, हिज़ाब-बुरका पहनना जरुरी बताते हैं। अपने व्यवहार और विचार को लेकर कुख्यात हो चुकी खाप पंचायतें कितनों के सपनों की लील चुकी हैं। बलात्कार को एक खूंखार मानसिकता मानने के बजाय बहुत से लोग लड़कियों के कपड़ों को इसके लिए दोषी मानते हैं। बेटियां घर पर जल्दी आ जाएँ लेकिन बेटा आधी रात को आये तो इस समाज को कोई तकलीफ नहीं है। बहू को गुलाम की तरह होना चाहिए लेकिन उनकी खुद की बेटी ससुराल में राज करे। और भी बहुत कुछ नकारात्मक है जो समाज में घटित होता है।   गला फाड़ कर कहा जाता रहा है और कहा जा रहा है, देश तेजी से विकास कर रहा है। दरअसल जब विकास को देखने की चेतना और चश्मा ही भेदभावपूर्ण हो तो वास्तविकता से दो-चार होना चाहेगा कौन। GDP की तख्ती को गले में कई दशकों से हर प्रधानमन्त्री टाँगे घूमते रहे हैं लेकिन किसी की समझ में ये क्यों नहीं आता कि हमारी सामाजिक व्यवस्था अभी भी बहुत से मामलों में सडांध मार रही है। कन्या भ्रूण हत्या हमारे समाज में आज भी कलंक बनी हुई है. महिलाओं पर होने वाले अपराध कम होने का नाम ही नहीं ले रहे. हर अपराध के लिए फांसी की सजा से क्या अपराध कम हो जाएंगे। घटनाओं के सामाजिक पहलुओं पर सरकारें कोई सकारात्मक पहल करने में नाकाम रही हैं, यही बड़ी समस्या भी है.   हमारा समाज नारी को देवी बताता है, देवियों को पूजा भी जाता है और यही समाज नारी को ताड़न का अधिकारी भी बताता है। महिला के मासिक धर्म को अपवित्र मानता है जबकि वो ये जानता है कि अगर महिला को माहवारी नहीं होगी तो वो बच्चे पैदा नहीं कर सकती। अगर वो विधवा हो गई हो तो उसके साथ यही समाज कौन सा अच्छा व्यवहार करता है ये बताने की जरुरत नहीं है। बच्चियां युवा होने से लेकर महिला की मौत तक उसकी रक्षा की जिम्मेदारी किसी ना किसी रिश्ते के पुरुष की होती है। दरअसल पुरुष यहाँ रक्षा नहीं कर रहा होता है बल्कि वो महिला पर भरोसा नहीं करता है इसलिए रक्षा के नाम पर चौकीदारी करता है। क्यों की हमारे ही समाज में एक सोच ये भी है कि महिला को कोई समझ नहीं सकता और महिला के चरित्र का सर्टिफिकेट पुरुष ही जारी कर रहा होता है जिसके चरित्रहीनता की शिकार ही महिला होती है।   आर्थिक विकास भर से सामाजिक चेतना का विकास नहीं हो जाता, ये समझना ही पडेगा। समाज को दोगले (इस शब्द को लिखने के लिए माफ़ी चाहता हूँ, क्योंकि ये शब्द भी महिला के लिए गाली है और महिला के चरित्र पर ही सवाल खड़े करता है, लेकिन दूसरा शब्द मेरे पास नहीं है) व्यवहार से बाहर आना ही चाहिए। विज्ञान भी यही है कि बिना खराब चीजों के नष्ट हुए नई और अच्छी चीजें नहीं आ सकती। जो पहले से अच्छी हैं उन्हें और उन्नत होना होगा, नहीं तो ठहराव की शिकार होने पर वो भी ख़त्म हो जाएंगी। राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन की तरह ही सामाजिक स्वच्छता अभियान की भारतीय समाज को बहुत जरुरत है। एक शानदार और बेहतर सामाजिक चरित्र के निर्माण के लिए दम्भ, जिद. पुरातन धारणाएं और कुंठाएं और परंपराएं कूड़ेदान में आज नहीं तो कल फेकनी ही होंगी।[लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ]  

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Dakhal News 22 August 2016


dr surendr kumar kushvah

    समय के संवाददाता डॉ सुरेंद्र कुमार कुशवाह को उत्कृष्ठ पत्रकारिता के लिए सम्मानित किया गया। कुशवाह को यह सम्मान ग्वालियर के आईजी आदर्श कटियार ने प्रदान किया।    ग्वालियर में स्वतंत्रता दिवस पर उत्कृष्ठ कार्य के लिये  विशिष्ठ व्यक्तियों को सम्मानित किया गया। पुलिस लाईन के सभागार में ग्वालियर रेंज  के पुलिस महानिरीक्षक आदर्श  कटियार एवं एसएसपी हरिनारायणचारी मिश्रा सहित अन्य अधिकारियों की मौजूदगी में सालभर में कानून व्यवस्था को संभालने में महती भूमिका निभाने या फिर किसी अपराध में बेहतर तफ्तीश  एवं बदमाशों  की धरपकड़ में सराहनीय कार्य करने पर पुलिस कर्मचारियों-अधिकारियों को सम्मानित किया गया। इस दौरान पुलिस महकमें के अलावा पहली बार बीएसएफ,परिवार परामर्श  केन्द्र,आलम्बन सेवा,डायल हंड्रेस एवं पत्रकारों को सम्मानित किया गया। इस मौके पर समय संवाददाता डाॅ.सुरेन्द्र कुमार कुशवाहा को उत्कृष्ठ एवं रचनात्मक  पत्रकारिता के लिये आईजी  कटियार ने सम्मानित किया।

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Dakhal News 21 August 2016


trai

  भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने सभी मल्टीसिस्टम ऑपरेटरों (एमएसओ) को चेतावनी देते हुए एक पत्र जारी किया है कि वे केवल लिखित इंटरकनेक्शन समझौता करने वाले स्थानीय केबल ऑपरेटरों (एलसीओ) को ही टीवी चैनलों के सिग्नल प्रदान करे। नियामक संस्था ने आगाह किया है कि उल्लंघन करने वाले एमएसओ के खिलाफ ट्राई अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार कड़ी कार्रवाई की जाएगी।   ट्राई ने देखा कि कुछ एमएसओ एलसीओ को रिझाने के लिए इंटरकनेक्शन समझौता किए बिना ही सिग्नल प्रदान कर रहे हैं तो उसने पत्र जारी किया। प्राधिकरण ने पत्र में कहा, “इस तरह की व्यवस्था इंटरकनेक्शन विनियमों के खिलाफ हैं और इससे विवाद पैदा हो सकते हैं। तदनुसार, सभी एमएसओ को सलाह दी जाती है कि इस तरह का सौदा/व्यवस्था न करे जो ट्राई अधिनियम के तहत दंडित किया जा सकता है।”   दूरसंचार (प्रसारण और केबल सेवाएं) इंटरकनेक्शन (डिजिटल एड्रेसेबल केबल टेलिविज़न सिस्टम) विनियम, 2012 के अनुसार “कोई एमएसओ बिना लिखित इंटरकनेक्शन समझौते के किसी भी जुड़े एलसीओ को टीवी चैनलों के सिग्नल उपलब्ध नहीं कराएगा।” इसके अलावा, एमएसओ को एमएसओ व एलसीओ द्वारा हस्ताक्षर किए इंटरकनेक्शन समझौते की एक प्रति 15 दिनों के भीतर संबंधित एलसीओ को सौंपनी होगी और उसके लिए एक रसीद प्राप्त करनी होगी एम एस ओ और एलसीओ के बीच बराबरी सुनिश्चित करने के लिए और एमएसओ और एलसीओ के बीच कम विवाद पैदा हों, इसके लिए ट्राई ने मॉडल इंटरकनेक्शन समझौते (एमआईए) और स्टैंडर्ड इंटरकनेक्शन समझौते (एसआईए) के प्रारूप अधिसूचित किए हैं।   एमआईए, एमएसओ और एलसीओ के बीच विनियामक ढांचे के साथ मेल खाता संरचित तरीके से एक आपसी समझौते का प्रारूप है और अगर वे परस्पर एमआईए पर सहमत होने में विफल रहे तो एसआईए, विनियमन के मानक नियम और शर्तों का प्रारूप है जो कि टीवी सिग्नल के रीट्रांसमिशन के लिए एमएसओ और एलसीओ द्वारा अपनाया जा सकता है।   ट्राई का पूरा पत्र:  विषय:  एमएसओ केवल लिखितइंटरकनेक्शन समझौते के बाद ही एलसीओ को टीवी चैनलों के सिग्नल प्रदान करे। 1. डिजिटल एड्रेसेबल केबल टीवी सिस्टम में, अक्सर टीवी सिग्नल का रीट्रांसमिशन मल्टी सिस्टम ऑपरेटर (एमएसओ) और उसके जुड़े स्थानीय केबल ऑपरेटर (एलसीओ) के माध्यम से एन्क्रिप्टेड रूप में ग्राहकों को दिया जाता है। एमएसओ और एलसीओ के बीच इंटरकनेक्शन ‘दूरसंचार (प्रसारण और केबल सेवाएं) इंटरकनेक्शन (डिजिटल एड्रेसेबल केबल टेलिविज़न सिस्टम) विनियम, 2012’ के तहत नियंत्रित होता है।   2. विनियमन 5 के उप-विनियम 17 और 18 के अनुसार: (क) एमएसओ को इंटरकनेक्शन समझौतों की शर्तों और नियमों को लिखित में करना चाहिए (ख) कोई एमएसओ बिना इंटरकनेक्शन लिखित समझौते के किसी भी एलसीओ को टीवी चैनलों के सिग्नल उपलब्ध नहीं कराएगा। इसके अलावा, विनियम 5 के उप-विनियम 20 में दिया गया है कि एमएसओ को इंटरकनेक्शन समझौता करने के 15 दिनों के भीतर संबंधित एलसीओ को एमएसओ-एलसीओ द्वारा हस्ताक्षर की गई एक प्रति देनी होगी और उसके एक रसीद प्राप्त करनी होगी।   3. सभी के लिए बराबरी का स्तर उपलब्ध कराने के लिए और इंटरकनेक्शन समझौते से एमएसओ और एलसीओ के बीच विवादों को कम करने में मदद करने के लिए, ट्राई ने मॉडल इंटरकनेक्शन समझौता (एमआईए) और स्टैंडर्ड इंटरकनेक्शन समझौता (एसआईए) का प्रारूप एमएसओ और एलसीओ के लिए अधिसूचित किया है। एमआईए, एमएसओ और एलसीओ के बीच विनियामक ढांचे के साथ मेल खाता संरचित तरीके से एक आपसी समझौते का प्रारूप है और अगर वे परस्पर एमआईए पर सहमत होने में विफल रहे तो एसआईए, विनियमन के मानक नियम और शर्तों का  प्रारूप है जो कि टीवी सिग्नल के रीट्रांसमिशन के लिए एमएसओ और एलसीओ द्वारा अपनाया जा सकता है।   4. यह ट्राई की जानकारी में आया है कि कुछ एमएसओ इंटरकनेक्शन समझौते के बिना सिग्नल प्रदान करने के लिए एलसीओ को लुभा रहे हैं। इस तरह की व्यवस्था इंटरकनेक्शन नियमों के खिलाफ ही नहीं है बल्कि इससे विवादों के पैदा होने की संभावना भी है। 5. सभी एमएसओ को इसके द्वारा आगाह किया जाता है कि इस तरह की कोई भी व्यवस्था इंटरकनेक्शन नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन मानी जाएगी। ट्राई अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार ऐसे एमएसओ के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। 

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Dakhal News 20 August 2016


world photogaraphi

प्रकृति के कैमरे से आपके कैमरे तक    विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस प्रत्येक वर्ष 19 अगस्त को मनाया जाता है। संसार में प्रकृति ने प्रत्येक प्राणी को जन्म के साथ एक कैमरा दिया है, जिससे वह संसार की प्रत्येक वस्तु की छवि अपने दिमाग में अंकित करता है। वह कैमरा है उसकी 'आँख'। इस दृष्टि से देखा जाए तो प्रत्येक प्राणी एक फ़ोटोग्राफ़र है। वैज्ञानिक तरक्की के साथ-साथ मनुष्य ने अपने साधन बढ़ाना प्रारंभ किये और अनेक आविष्कारों के साथ ही साथ कृत्रिम लैंस का भी आविष्कार हुआ। समय के साथ आगे बढ़ते हुए उसने इस लैंस से प्राप्त छवि को स्थायी रूप से सहेजने का प्रयास किया। इसी प्रयास की सफलता वाले दिन को अब "विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस" के रूप में मनाया जाता है।     शुरुआत  सर्वप्रथम 1839 में फ़्राँस के वैज्ञानिक लुईस जेकस तथा मेंडे डाग्युरे ने फ़ोटो तत्व को खोजने का दावा किया था। ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम हेनरी फॉक्सटेल बोट ने नेगेटिव-पॉजीटिव प्रोसेस ढूँढ लिया था। सन 1834 में टेल बॉट ने लाइट सेंसेटिव काग़ज़ का आविष्कार किया, जिससे खींचे चित्र को स्थायी रूप में रखने की सुविधा प्राप्त हुई। फ़्राँसीसी वैज्ञानिक आर्गो ने 7 जनवरी, 1839 को फ्रेंच अकादमी ऑफ़ साइंस के लिए एक रिपोर्ट तैयार की। फ़्राँस सरकार ने यह प्रोसेस रिपोर्ट ख़रीदकर उसे आम लोगों के लिए 19 अगस्त, 1939 को मुफ़्त घोषित किया। यही कारण है कि 19 अगस्त को विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस मनाया जाता है। फ़ोटोग्राफ़ी के माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपने घर, परिवार, रिश्तेदार और कभी न भूल सकने वाले पलों की तस्वीरें लेकर उन्हें सहेज सकता है।   फ़ोटोग्राफ़ी का योगदान  फ़ोटोग्राफ़ी का आविष्कार जहाँ संसार को एक-दूसरे के क़रीब लाया, वहीं एक-दूसरे को जानने, उनकी संस्कृति को समझने तथा इतिहास को समृद्ध बनाने में भी उसने बहुत बड़ी मदद की है। आज संसार के किसी दूरस्थ कोने में स्थित द्वीप के जनजीवन की सचित्र जानकारी बड़ी आसानी से प्राप्त होती है, तो इसमें फ़ोटोग्राफ़ी के योगदान को कम नहीं किया जा सकता। वैज्ञानिक तथा तकनीकी सफलता के साथ-साथ फ़ोटोग्राफ़ी ने भी आज बहुत तरक्की की है। आज व्यक्ति के पास ऐसे साधन मौजूद हैं, जिसमें सिर्फ बटन दबाने की देर है और मिनटों में अच्छी से अच्छी तस्वीर उसके हाथों में होती है। किंतु सिर्फ अच्छे साधन ही अच्छी तस्वीर प्राप्त करने की ग्यारंटी दे सकते, तो फिर मानव दिमाग का उपयोग क्यों करता? तकनीक चाहे जैसी तरक्की करे, उसके पीछे कहीं न कहीं दिमाग ही काम करता है। यही फ़र्क़ मानव को अन्य प्राणियों में श्रेष्ठ बनाता है। फ़ोटोग्राफ़ी में भी अच्छा दिमाग ही अच्छी तस्वीर प्राप्त करने के लिए जरूरी है।   अच्छा फ़ोटो हमें आँखों से दिखाई देने वाले दृश्य को कैमरे की मदद से एक फ्रेम में बाँधना, प्रकाश व छाया, कैमरे की स्थिति, ठीक एक्सपोजर तथा उचित विषय का चुनाव ही एक अच्छे फ़ोटो को प्राप्त करने की पहली शर्त होती है। यही कारण है कि आज सभी के घरों में एक कैमरा होने के बाद भी अच्छे फ़ोटोग्राफ़र गिनती के ही हैं। अच्छा फ़ोटो अच्छा क्यों होता है, इसी सूत्र का ज्ञान किसी भी फ़ोटोग्राफ़र को सामान्य से विशिष्ट बनाने के लिए पर्याप्त होता है। प्रख्यात चित्रकार प्रभु जोशी का कहना है कि "हमें फ्रेम में क्या लेना है, इससे ज्यादा इस बात का ज्ञान जरूरी है कि हमें क्या-क्या छोड़ना है।" भारत के संभवतः सर्वश्रेष्ठ फ़ोटोग्राफ़र रघुराय के शब्दों में- "चित्र खींचने के लिए पहले से कोई तैयारी नहीं करता। मैं उसे उसके वास्तविक रूप में अचानक कैंडिड रूप में ही लेना पसंद करता हूँ। पर असल चित्र तकनीकी रूप में कितना ही अच्छा क्यों न हो, वह तब तक सर्वमान्य नहीं हो सकता, जब तक उसमें विचार नहीं है। एक अच्छी पेंटिंग या अच्छा चित्र वही है, जो मानवीय संवेदना को झकझोर दे। कहा भी जाता है कि एक चित्र हजार शब्दों के बराबर है।"   आजीविका का साधन  उपभोक्तावाद आज के समय में अपनी चरम सीमा पर है, ऐसे में ग्राहक को उत्पादन की ओर खींचने में फ़ोटोग्राफ़ी का भी बहुत बड़ा योगदान है। विज्ञापन को आकर्षक बनाने के लिए फ़ोटोग्राफ़र जो सार्थक प्रयत्न कर रहा है, उसे अपने दैनिक जीवन में अच्छी तरह अनुभव कर सकते हैं। इसी प्रयास में फ़ोटोग्राफ़ी को आजीविका के रूप अपनाने वाले बहुत बड़े लोगों की संख्या खड़ी हो चुकी है। ये लोग न सिर्फ फ़ोटोग्राफ़ी से लाखों कमा रहे हैं, बल्कि इस काम में कलात्मक तथा गुणात्मक उत्तमता का समावेश कर 'जॉब सेटिस्फेक्शन' की अनुभूति भी प्राप्त कर रहे हैं। अपने आविष्कार के लगभग 100 वर्ष लंबे सफर में फ़ोटोग्राफ़ी ने कई आयाम देखे हैं।

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Dakhal News 19 August 2016


dev shrimali

      स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ग्वालियर में आयोजित एक गरिमामय कार्यक्रम में पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए ग्वालियर चम्बल संभाग के वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली को देश शक्ति सम्मान दिया गया । उन्होंने यह सम्मान प्रदेश शासन की नगरीय शासन मंत्री  माया सिंह , संत कृपाल सिंह , वरिष्ठ पत्रकार डॉ राकेश पाठक और डॉ सुरेश सम्राट ने दिया  ।    समारोह में वक्ताओं ने कहा देव श्रीमाली  सचमुच में हर सम्मान के हकदार है । वे अंचल में इकलौते पत्रकार है जिन्होंने मीडिया की तीनो विधाओ - प्रिंट,इलेक्ट्रॉनिक औए बेव में अपनी पत्रकारिता का लोहा मनवाया । वे न केवल प्रदेश अपितु देश में हिंदी पत्रकारिता में अपना अग्रणीय स्थान बनाया है । आज देश प्रदेश में अनेक पत्रकार ऐसे हैं जिनके आदर्श देव  है ।    सम्मान समारोह के बाद देव श्रीमाली ने कहा कि हमेशा उनका प्रयास रहा है कि आम आदमी की आवाज को वे सबके सामने लाएं। उनका यह सम्मान उस आम आदमी की आवाज का सम्मान है। 

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Dakhal News 17 August 2016


ptrkar devesh klayani

        समाज के वंचितों का एक्टिविस्ट जर्नलिस्ट   महेश दीक्षित   मात्र 16 वर्ष की उम्र से पत्रकारिता को अपने जीवन का उद्देश्य मानने वाले पत्रकार देवेश कल्याणी एक ऐसा नाम हैं, जिन्हें पत्रकारिता जगत के साथ-साथ समाज में भी हर कोई जानता है। देवेश अब तक पत्रकारिता के जरिए समाज को काफी कुछ दे चुके हैं। साथ ही पत्रकारिता से अलग ऐसे सामाजिक कार्य किए हैं, जो उन्हें दूसरों से अलग करता है।    वर्ष-1969 को इंदौर में जन्मे देवेश कल्याणी बताते हैं कि जब वे हायर सेकंडरी में थे, तब से ही देवास से निकलने वाले अखबार चिंगारी से पत्रकारिता शुरू कर दी थी। इसके बाद सीटीवीटी प्रसार संधि अखबार में काम किया। उनकी मूल पत्रकारिता या कहें, उनकी गंभीर पत्रकारिता की शुरुआत आज का दौर के संपादक राजेश तस्की के जरिए हुई। उन्होंने अखबार की लाइन से जोड़ा। इस दौरान भी लिखना-पढऩा चलता रहा। कई अखबारों के लिए क्राइम रिपोर्टिंग की, जिनमें चेतना, नवभारत और नईदुनिया प्रमुख हैं। एमए, बीजेएमसी और एमजेएमसी की शिक्षा हासिल करने वाले देवेश बताते हैं कि उन्होंने भास्कर इंदौर और भोपाल में काम किया। चंडीगढ़, पानीपत और गुजरात लॉन्च में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे सुधीर अग्रवाल की कोर टीम के अहम सदस्य के रूप में रहे। ऑपरेशन लुक स्मार्ट के दौरान एन रघुरमन की टीम का हिस्सा बने।    देेवेश, भास्कर में 1995 से 97 तक रहे। इसके बाद 1997 से 2000 नई दुनिया से जुड़े रहे। 2000 से 2010 तक राज एक्सप्रेस में विभिन्न जिम्मेदारियों को निर्वहन किया। यहां लंबा सफर तय करने के बाद 2010 से वर्तमान में प्रदेश टुडे के संपादक के तौर पर जिम्मेदारी को निभा रहे हैं। देवेश बताते हैं कि उनमें पत्रकारिता को लेकर जुनून इस कदर था कि उन्होंने 1994 में एक्साइज ऑफिसर में सिलेक्शन के बाद भी उसे जॉइन नहीं किया। बल्कि पत्रकारिता को चुना। देवेश वर्ष 1998 में अवकाश लेकर गुडिय़ा मूवमेंट के लिए तीन माह बनारस रहे। इसके बाद 1999 में राजीव जॉर्ज, बेलू जॉर्ज के साथ जूनी इंदौर की बस्ती को बचाने के लिए उनके साथ आंदोलन किया। वे नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े रहे। कई अन्य सोशल मूवमेंट से भी जुड़े। देशभर के वंचित वर्ग की प्रतिनिधि संस्थाओं के साथ काम किया। पंजाब के आदिधर्म समाज के साथ अभी भी जुड़े हैं। देवेश अभी दिल्ली के भाजपा सांसद उदित राज, अभा कर्मचारी संगठन, अजाक्स के साथ काम रहे हैं।    उन्होंने लंबे समय तक हिंदी-मराठी थिएटर भी किए। जिसमें उनकी अभिनेता की छवि के भी दर्शन लोगों को हुए। बताते हैं कि थिएटर में भी देवेश ने अपनी प्रतिभा से सभी को कायल कर दिया था। वे मध्य प्रदेश के ऐसे इकलौते पत्रकार हैं, जिसने सोशल इंजीनियरिंग, सोशल अपग्रेडेशन पर 1000 लेख लिखे हैं। देवेश प्रदेश टुडे के संस्थापक हृदयेश दीक्षित के आभारी हैं। वे कहते हैं कि हृदयेशजी ने ही उन्हें बड़ा ब्रेक दिया। इसके साथ खुद को वरिष्ठ पत्रकार अवेधश बजाज जी का भी ऋणी मानते हैं, जिन्होंने उनकी पत्रकारिता के हुनर को पहचाना और उसे तराशा। देवेश को उनकी प्रतिभा और काम के लिए ढेरों सम्मान मिल चुके हैं, जिनमें प्रशांत सक्सेना पुरस्कार-2005, अंबेडकर सम्मान, इनसाइट मीडिया सम्मान सहित कई सम्मान और पुरस्कार मिल चुके हैं। देवेश अपनी सफलता के पीछे पिता आरएल कल्याणी का बड़ा योगदान मानते हैं। उनका कहना है कि उनके पिता ने उन्हें कड़ा परिश्रम और ईमानदारी का पाठ सिखाया था, यही आज उनके व्यावसायिक जीवन में काम आ रही है।  

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Dakhal News 16 August 2016


मातेश्वरी श्री तनोटराय के मंदिर

  तीन दिवसीय सम्मेलन में जमा हो रहे देश भर के पांच सौ पत्रकार    देश के सबसे बड़े पत्रकार संगठन इंडियन फेडरेशन आफ वर्कींग जर्नलिस्ट से सबंद्ध राजस्थान राज्य (आईएफडब्लयूजे) की राज्य इकाई के संयुक्त प्रयास एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष के विक्रमराव के मार्गदर्शन में इस बार देश भर के पांच सौ पत्रकारो को राजस्थान के जैसलमेर शहर में आयोजित सम्मेलन में भाग लेने का मौका मिल रहा है।    तीन दिवसीय 71 वें राष्ट्रीय अधिवेशन के आखरी दिन 26 सितम्बर को इंडो - पाक सीमा पर स्थित मातेश्वरी श्री तनोटराय के मंदिर के मत्था टेकने एवं सीमा सुरक्षा बल के सैनिको के संग बीताने जा रहे है।  सीमा क्षेत्र में उसी पत्रकार साथी को प्रवेश मिलेगा जिनके परिचय पत्र वहां तक पहुंचने के बाद उनका सत्यापन होने के बाद सीमा क्षेत्र में प्रवेश पत्र जारी होगा । सीमा क्षेत्र इंडो /पाक के बारे में सर्व विदित है कि 1965 एवं 1971 के भारत पाक युद्ध की साक्षी युद्ध वाली देवी माँ मातेश्वरी श्री तनोट राय के आर्शिवाद की छत्रछाया में रहेगें उस एतिहासिक पल के साक्षी जब देश की सरहदो के सिपाही और कलम के सिपाही का मिलन होगा।     अखण्ड भारत के केन्द्र बिन्दु बैतूल जिले से पत्रकारो का दल मध्यभारत के बैतूल - छिन्दवाड़ा- बालाघाट - होंशगाबाद - सिवनी - हरदा जिले के पत्रकार राष्ट्रीय कौसिंल के सदस्य रामकिशोर पंवार के नेतृत्व में एवं बैतूल जिले के पत्रकार बैतूल जिलाध्यक्ष राज मालवीय की अगुवाई में चेन्नई जयपुर एक्सप्रेस से 21 सितम्बर 2016 को प्रस्थान करेगा। पाक सेना के द्वारा 1965 के युद्ध में 3000 (तीन हजार) बम एवं गोले दगाने के बाद माँ मातेश्वरी श्री तनोट राय के मंदिर पर दागे गए उसके बाद भी बालबांका नहीं हुआ। जैसलमेर से 125 किमी की दूर पर स्थित माँ श्री मातेश्वरी तनोट राय के मंदिर में माता रानी के दर्शन का लाभ 23 से 26 सितम्बर 2016 तक जैसलमेर राजस्थान में होने जा रहे आई एफ डब्लयू जे के 71 वें राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग लेने के लिए 21 सितम्बर को जयपुर एक्सप्रेस से रवाना होने वाले बैतूल जिले के पत्रकारो को 25 सितम्बर 2016 को दर्शन लाभ का सौभाग्य मिलने जा रहा है। यहां के इतिहास के बारे में इतिहास के पन्नो में मौजूद  कहानी के किस्से मौजूद है। उल्लेखनीय है कि बीते 16 नवम्बर 1965 भारत पाक सीमा पर स्थित जैसलमेर इंडो - पाक सीमा पर पाक सेना ने एन्ट्री टैंक एवं 124 स्पोटिंग गनो 30 - 16 गनो तनोट क्षेत्र को तीन ओर से घेर लिया। हमारे पास मात्र कर्नल जयसिंह राठौर थैलासार (बीकानेर) के कुशल नेतृत्व में तीन दिनो तक पाक सेना का सामना किया। भारतीय सेना की 13 सीमा सुरक्षा बल की टुकडी को दो भागो में बांट कर तीन दिनो तक भारतीय सेना ने 15 सौ पाक सैनिको की घेराबंदी से तानोट को आजाद करवाया और पांच सौ पाक सैनिको को मौत के घाट उतार दिया। जिनकी निशानदेही कब्र आज भी यहां पर मौजूद है। 1965 के युद्ध में माँ श्री तानोट राय स्वंय दुर्गा का रूप लेकर सैनिको के संग - संग युद्ध लड़ रही थी। पाक सैनिको के द्वारा दागे गए 3000 गोलो एवं बमो के बाद भी माँ के मंदिर को रत्ती भर भी नुकसान हुआ न हमारे सैनिको का बालबांका हुआ। मात्र एक ऊंट की पुछ भर उस गोलेबारी में एक गोले से कट गई थी। आज भी मातेश्वरी श्री तनोट राय के मंदिर में वे बम एवं गोले मौजूद है

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Dakhal News 14 August 2016


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    अब सात शहरों से ऑल इण्डिया रेडियों के क्षेत्रीय बुलेटिन बंद नहीं होंगे। पहले खबर आई थी की सूचना प्रसारण मंत्रालय  ने इन्हें बंद करने का निर्णय लिया है ।    प्रसार भारती ने फैसला किया है कि सात शहरों में ऑल इंडिया रेडियो (एआइआर) से प्रसारित होने वाली क्षेत्रीय बुलेटिन को बंद नहीं किया जाएगा। प्रसार भारती के अध्यक्ष ए. सूर्यप्रकाश ने इस बारे में एआइआर के न्यूज सर्विस डिविजन को निर्देश दिया है। एआइआर के डीजी (न्यूज) सितांशु कार द्वारा जारी एडवाइजरी के मुताबिक इंदौर, पुणे, डिब्रूगढ़, भुज, धारवाड़, त्रिची और कोझीकोड की क्षेत्रीय न्यूज यूनिट अपनी सामान्य सेवाएं बहाल रखेंगी।    इसमें यह भी कहा गया है कि इलाहाबाद, पौड़ी, जालंधर, पटियाला, कोयंबटूर और कोच्चि के संवाददाता अपनी सेवाएं जारी रखेंगे। ऐसी रिपोर्ट आई थी कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय इन शहरों में दशकों पुरानी समाचार सेवा बंद कर रहा है। सूर्यप्रकाश ने इन सेवाओं के कायम रहने की पुष्टि की और कहा कि वह इस संबंध में सूचना एवं प्रसारण मंत्री एम. वेंकैया नायडू से हस्तक्षेप करने की मांग करेंगे।

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Dakhal News 12 August 2016


mso

    सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने उन मल्टी-सिस्टम ऑपरेटरों (एमएसओ) को खोज निकालने में ब्रॉडकास्टरों की मदद मांगी है जिन्होंने अभी तक डिजिटल एड्रेसेबल सिस्टम (डैस) चौथे चरण के इलाकों में लाइसेंस के लिए आवेदन तक नहीं किया है।   हाल की डैस टास्क फोर्स की बैठक के दौरान, प्रसारण मंत्रालय की संयुक्त  सचिव (ब्रॉडकास्टिंग) आर जया ने ब्रॉडकास्टरों के प्रतिनिधियों से कहा कि चौथे चरण के लिए 7 अगस्त तक लाइसेंस के लिए आवेदन नहीं करने वाले एमएसओ की सूची वे मंत्रालय को भेजे। जया ने कहा कि मंत्रालय ने 965 एमएसओ पंजीकरण अब तक जारी किए हैं और लगभग 200 आवेदन प्रक्रिया के तहत हैं।   ट्राई की रिपोर्ट के अनुसार चूंकि देश में करीब 6000 एमएसओ हैं, यह स्पष्ट है कि एमएसओ की एक बड़ी संख्या ने एमएसओ पंजीकरण के लिए अब तक आवेदन नहीं किया है। जया ने कहा कि ब्रॉडकास्टरों के पास चौथे चरण के क्षेत्रों में परिचालन करने वाले सभी एमएसओ की जानकारी होनी चाहिए। इस विवरण को प्रसारण मंत्रालय की वेबसाइट पर पंजीकृत एमएसओ की सूची के साथ मिलान कर पहचाना जा सकता है कि किन एमएसओ ने अभी तक पंजीकरण के लिए आवेदन नहीं किया है।   उन्होंने कहा कि अगले कदम के रूप में ब्रॉडकास्टर इन एमएसओ के साथ संवादकर सकते हैं और एमएसओ को कह सकते हैं कि अगर वे डैस-अधिसूचित क्षेत्रों में एमएसओ के रूप में परिचालन जारी रखना चाहते हैं तो पंजीकरण के लिए आवेदन कर लें।   भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) के प्रतिनिधि एस के सिंघल ने कहा कि 900 टीवी चैनलों में से करीब 600 चैनल फ्री टू एयर (एफटीए) हैं और 2,000 स्थानीय केबल ऑपरेटर (एलसीओ) उनके हेडएंड्स से इन चैनलों को डिस्ट्रीब्यूट करते हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें इन एलसीओ से कह सकती हैं कि एमएसओ पंजीकरण के लिए आवेदन करें। प्रसारण मंत्रालय ने इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन (आईबीएफ), न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) और एसोसिएशन ऑफ रीजनल टेलिविज़न ब्रॉडकास्टर्स ऑफ इंडिया (एआरटीबीआई) से अनुरोध किया है कि वे अपने सदस्यों को बताएं कि उनके जिन एमएसओ के साथ इंटरक्नेक्ट करार हैं उनसे पूछे कि क्या उन्होंने मंत्रालय से चौथे चरण के लिए एमएसओ पंजीकरण लिया है। ऐसे मामले में जहां एमएसओ ने पंजीकरण के लिए आवेदन नहीं किया है, ब्रॉडकास्टरों को उन्हें तुरंत आवेदन करने की सलाह देने के लिए कहा गया है।

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Dakhal News 11 August 2016


patrkaar madhyprdesh

    मोदी के कवरेज में नहीं पहुँच सकी पत्रकारों की बस    मध्यप्रदेश के शाम के प्रमुख अखबार प्रदेश टुडे के मीडिया मिर्ची कॉलम में आज सूरमा खूब लाल पीले हुए हैं। सूरमा ने लिखा है  ... जरा याद करो कुर्बानी का कवरेज करने भोपाल से अलीराजपुर गए भोपाली पत्रकार भी खां खुद कुरबान होते-होते बचे। पीएम नरेन्द्र मोदी के इस इवेन्ट के कवरेज के लिए जनसंपर्क ने जिस बस का इंतजाम किया था वो सही टाइम पे वहां नहीं पहुंच पाई। लिहाजा सभी 28 पत्रकार पीएम की सभा मेंई नहीं पोंच पाए। इत्ता तक तो खां ठीक था बाकी अलीराजपुर पोंचने के बाद बस के ड्रायवर ने बताया के खां बस का बे्रक पाइप फटा हुआ हेगा और जब तक ये रिपेयर नर्इं होएगा तब तक वापसी नहीं हो पाएगी। ताज्जुब तो खां तब हुआ के ये बस भोपाल से इसी खराब हालत में इंदौर भी पहुंची थी और अगली सुबा पीएम के पिरोगराम के लिए भी रवाना हो गई। सिर्फ ड्राइवर ही ये जानता था के बस के पावर ब्रेक सिस्टम में फाल्ट है। ये तो खां ऊपर वाले का करम रहा के बस के बिरेक फेल नहीं हुए, वना खबरों के पीछे भागने वाले ये पत्रकार खुद खबर का हिस्सा बन जाते। चलो खां भलेई पीएम की सभा में नर्इं पोच पाए बाकी जान बची येई भोत हे। अगली दफे ऐसी किसी बस में बैठने से पेले बिरेकिंग सिस्टम के बारे में पेलेइ पता कर लेना वर्ना खुद बिरेकिंग न्यूज से चूक जाओगे।     दूसरी और सोशल मीडिया पर भी जनसंपर्क की जम कर खिल्ली उड़ाई गई। एक पत्रकार ने लिखा  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम से मध्यप्रदेश जनसंपर्क विभाग ने पत्रकारों को रखा दूर। जी हां ये सुनने में जरुर अजीब लग रहा होगा, लेकिन ये कारनामा किया है... मध्यप्रदेश के जनसंपर्क विभाग ने... विभाग ने भोपाल से पत्रकारों को अलीराजपुर में पीएम मोदी के कार्यक्रम का कवरेज करने के लिए वाहन की व्यवस्था की थी... लेकिन ये वाहन तय समय पर नहीं पहुंच पाए... पीएम तो समय पर आए... लेकिन कवरेज करने के लिए अपने तय समय से आफिस से निकले पत्रकार अलीराजपुर नहीं पहुंच पाए... इस कारण पीएम मोदी के कार्यक्रम में पत्रकारों की भीड़ कुछ कम ही दिखाई ​दी... जिसका मलाल पीएमओ के अधिकारियों को भी खला... वहीं जनसंपर्क विभाग के आलाधिकारी भी पत्रकारों की रास्ते में आओभगत में जुट रहे... ये पत्रकारों की नाराजगी को नाश्ते से मिटाते दिखाई दिए... लेकिन कानाफूसी है कि... इस कवरेज को लेकर प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह भी जनसंपर्क विभाग से खासे नाराज दिखे...    कुछ और रोचक कमेंट थे मेहमान  पहुंचे लेकिन मेजबान नदारद/ जनसंपर्क विभाग की लचर कार्यशैली/ विभाग की लापरवाही से तय समय पर नहीं पहुंचा पत्रकारों का ​काफिला/ जनसंपर्क विभाग की लापरवाही से नहीं हो पाया पीएम का कवरेज/ विभाग ने मीडिया और पीएम के बीच खींची दीवार।   

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Dakhal News 10 August 2016


shivraj singh branding

    महेश दीक्षित    मध्य प्रदेश सरकार जनता के पैसों को लेकर किस कदर 'फिक्रमंद' है, इसका नमूना समय-समय पर मिलता ही रहता है। फिजूलखर्ची को लेकर शिवराज सरकार पर भले ही आरोप लगें, पर उसे इसकी बिल्कुल भी परवाह नहीं है। अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ब्रांडिंग को लेकर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। वह भी प्राइवेट कंपनी के जरिए। यह हालत तब है, जब प्रदेश करोड़ों रुपए के कर्ज में डूबा है।    मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ब्रांडिंग ठीक उसी तरह कराई जा रही है, जैसे किसी प्रोडक्ट या नए नवेले स्ट्रगलर नेता की होती है। ब्रांडिंग का ठेका इवेंट कंपनी मेडिसिन के पास है। इसके बदले मेडिसिन हर साल सरकार से दो करोड़ रुपए वसूल रही है। ब्रांडिंग का जिम्मा वरिष्ठ पत्रकार अमित जैन देख रहे हैं। अमित जैन एक समय न्यूज चैनल आज तक में हुआ करते थे। मेडिसिन का काम है फेसबुक, ट्विटर और वाट्सएप यानी सोशल मीडिया पर शिवराजजी की जनता के बीच ब्रांडिंग करना। दो साल में शिवराज जी की ब्रांडिंग क्या हुई, यह तो खुद सरकार के जिम्मेदारों को पता नहीं है, लेकिन मेडिसिन तो ब्रांडिंग कर रही है। हाल के महीनों में शिवराज सरकार द्वारा ग्लोबल समिट, सिंहस्थ और वैचारिक कुंभ पर एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्चा किया गया। इनका प्रचार-प्रसार भी मेडिसिन ने ही किया था, पर क्या हुआ? इन बड़े इंवेट्स को नेशनल मीडिया में जो कवरेज मिलना चाहिए था, नहीं मिला। प्रादेशिक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में जो स्थान मिलना था, नहीं मिला। नतीजन मुख्यमंत्री के प्रदेश विकास के यत्न-प्रयत्न और नवाचार जनमानस पर उल्लेखनीय छाप नहीं छोड़ पाए। इसके उलट, शिवराज सरकार की सोशल मीडिया और अखबारों में जमकर किरकिरी जरूर हुई, जबकि मीडिया में शिवराज सरकार के इन आयोजनों का बेहतर प्रचार हो, यह मैनेज करने का जिम्मा मेडिसिन का था। मुख्यमंत्री का प्रोटोकॉल है कि जनसंपर्क विभाग या सरकारी सेवक के अलावा कोई भी निजी कंपनी का व्यक्ति किसी भी मकसद से मुख्यमंत्री के साथ नहीं रह सकता है, लेकिन मुख्यमंत्री जहां भी जाते हैं, मेडिसिन का एक कर्मचारी हेलीकाप्टर में उनके साथ चलता है। इसी तरह सरकार के नियमों को ताक पर रखकर जनसंपर्क संचालनालय के भवन में एज-फैक्टर नामक कंपनी को अलग से दफ्तर भी उपलब्ध कराया गया है, जो सिर्फ ट्विटर पर शिवराज जी की ब्रांडिंग कर रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर मेडिसिन और एज-फैक्टर पर इतनी मेहरबानी किसी की कृपा से और क्यों हो रही है? सवाल यह भी है कि क्या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद देश के दूसरे सबसे लोकप्रिय राजनेता हैं और पूरे मप्र में मामा के नाम से विख्यात, उन्हें किसी निजी कंपनी से अपनी ब्रांडिंग कराने की जरूरत है? बिल्कुल नहीं, फिर भी जनता के पैसों की नुमाइश हो रही है। शिवराज जी प्रोडक्ट नहीं, प्रदेश की सबसे चर्चित और लोकप्रिय शख्यिसत हैं। वे अपने आप में एक ब्रांड हैं। फिर जिसके पास मप्र के जनसंपर्क विभाग, माध्यम और उसके प्रमुख सचिव एसके मिश्रा, आयुक्त अनुपम राजन, आयुक्त अनिल माथुर, ईडी मंगला मिश्रा, अपर संचालक द्वय-सुरेश गुप्ता और एचएल चौधरी जैसे अनुभवी व काबिल अफसर और जनसंपर्क अधिकारियों-कर्मचारियों की फौज हो, क्या उसे अपनी ब्रांडिंग और प्रचार-प्रसार के लिए मेडिसिन की जरूरत है? या फिर ये सारे अफसर नाकाबिल हैं, जिसकी वजह से शिवराज सरकार की ब्रांडिंग के लिए मेडिसिन की आवश्यकता पड़ी? निश्चित तौर पर जनसंपर्क महकमा और माध्यम शिवराज जी और उनकी सरकार की ब्रांडिंग के लिए काफी है। मेडिसिन इंटरनेट और सोशल मीडिया के तौर दक्ष हो सकता है, लेकिन अपनी सरकार की बेहतर ब्रांडिंग और प्रचार कैसे हो, कितना हो और किस स्तर पर हो, जनसंपर्क के काबिल अफसरों से भला बेहतर कौन कर सकता है। फिर जनसंपर्क के अफसरों-पीआरओ को मालूम है कि मीडिया में किसे-कितनी तब्वजो देनी है? किसे अडेंट करना है और किसे निगलेक्ट करना है? कहीं प्राइवेट कंपनियों को शिवराजजी की ब्रांडिंग का ठेका देने के पीछे जनसंपर्क विभाग को खत्म करने की साजिश तो नहीं हो रही है? ----------- जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा से पांच सवाल -------------- -ऐसा कौन सा काम था जो जनंसपर्क और माध्यम के अफसर-पीआरओ नहीं कर पा रहे थे? जो मेडिसिन से ब्रांडिंग कराने की आवश्यकता पड़ी? -मेडिसिन का क्राइट एरिया क्या है? -मेडिसिन कर्मचारी सीएम के साथ रहता है? क्या इससे सीएम के सुरक्षा प्रोटोकाल की अवज्ञा नहीं होती? -क्या मेडिसिन शिवराज जी की ब्रांडिंग में सफल रही? -क्या सरकार जनसंपर्क विभाग को खत्म कराना चाहती है?

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Dakhal News 9 August 2016


davp

    देशभर मे पदयात्रा निकलेगी pmja                                                  नई डीएवीपी विज्ञापन नीति 2016 के विरोध में pmja की बैठक हुई! जिसमे भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा बीती 15 जून 2016 को डीएवीपी की बेबसाइट पर बिना समाचार पत्र प्रकाशकों की सहमति-सुझाव-विचार विमर्श के विज्ञापन नीति 2016 को लागू कर दिया गया है। जबकि वर्ष 2018 तक सभी समाचार पत्रों का davp  से अनुबन्ध है।प्रिंट मीडिया जर्नलिस्ट एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव   ओमप्रकाश शर्मा ने नई विज्ञापन नीति 2016 का पूर्ण रूप से विरोध किया हैं।  श्री शर्मा ने कहाँ ये नियम सिर्फ चंद बड़े समाचार पत्रों के इशारे पर davp द्वारा लागू किया जा रहा है ताकि देश भर से स्थानीय समाचार पत्र का अस्तित्व समाप्त हो सके और वह इसकी आड़ में भरपूर विज्ञापन प्राप्त कर सकें। पूर्व में मा. सर्वोच्च न्यायालय ने भी समाचार पत्रों के विज्ञापन पर रोक को अमान्य माना था। उसके बावजूद डी.ए.वी.पी को यह गलत नियम बनाने की क्या आवश्यकता पड़ी? डीएवीपी की वेबसाइट पर डाली गई नई विज्ञापन नीति 2016 का सम्पूर्ण देश के लघु एवं मध्यम समाचार पत्र पुरजोर विरोध करते हैं। डीएवीपी की इस विज्ञापन नीति से देशभर के लघु एवं मंझोले समाचार पत्र बंद होने की कगार पर पहुंच जाएंगे।श्री शर्मा ने बताया की pmja के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री परवेज़ भारतीय ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री वैंकेंया नायडू को पत्र लिखकर न्यायोचित कार्यवाही करने का आग्रह किया है।राष्ट्रीय महासचिव श्री शर्मा ने कहाँ की सरकार   पत्रकार सुरक्षा (कानून)विधेयक को संसद मे मंजूरी दे !उन्होंने आगे कहाँ जो मीडिया समूह मजीठिया वेज बोड का पालन नही कर रहे है ! उन पर कार्यवाही करते हुए उनके तत्काल विज्ञापन बंद किये जाएँ !!

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Dakhal News 9 August 2016


छत्तीसगढ़ में जोगी टाइम्स

      छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की नई पार्टी के गठन के बाद राजनैतिक गलियारों के साथ साथ अखबारी दुनिया में भी जोगी का असर दिखने लगा है,, दरअसल मध्यप्रदेस के शहडोल जिले के धनपुरी निवासी अतीकुर्रहमान जो कई वर्षो से समाचार पत्रों के माध्यम से पत्रकारिता कर रहे हैं , पिछले कुछ सालो से वो अपने मूल निवास को छोड़ छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित अपने मकान में शिफ्ट हो गए और छत्तीसगढ़ में काम करना शुरू कर दिया।  अतीकुर्रहमान द्वारा कराये गए समाचार पत्र के रजिस्ट्रेशन ने हलचल मचा दी है,, दरअसल इनके द्वारा रजिस्टर्ड कराये गए अखबार का नाम है “जोगी टाइम्स”।    क्या वजह है अखबार जोगी के नाम से  इस समाचार पत्र में मालिक से जब हमने फोन पर बात की तो उन्होंने बताया की श्री अजीत जोगी  छत्तीसगढ़  में नई पार्टी बना कर जन सरोकार की लड़ाई लड़ रहे है,और एक अखबार का भी मुख्य काम यही होता है,, जोगी जी मजलूम और बेसहारा लोगो की आवाज बुलंद करते है और हमारे अखबार का मकसद भी यही है, बस यही वजह है की अजीत जोगी से प्रेरित होकर अपने समाचार पत्र का नाम “जोगी टाइम्स” रख दिया।    कही छजका मुखपत्र तो नही  सोशल नेटवर्किंग साईट पर इस अखबार की खबर तेजी से वाइरल हो रही है और यह कयास भी लगाए जा रहे है की कही शिव सेना के सामना की तर्ज  पर “जोगी टाइम्स” छजका का मुख पत्र तो नहीं बनने वाला ,बहरहाल अखबार के मालिक ने इस से इनकार किया है लेकिन उन्होंने कहा है की अगर जोगी जी चाहेंगे तो भविष्य में संभावनाए कुछ भी बन सकती है, सूत्रों के मुताबिक़ जोगी टाइम्स अखबार के पेज डिजाइन में जोगी पार्टी के झंडे का (पिंक) कलर का इफेक्ट भी इस अखबार में देखने को मिल सकता है।

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Dakhal News 6 August 2016


gulab kothari

      गुलाब कोठारी मंगलवार को लोकसभा में मध्यप्रदेश से कांग्रेस सांसद कांतिलाल भूरिया ने केन्द्र सरकार सहित कई राज्य सरकारों द्वारा राजस्थान पत्रिका समूह के सरकारी विज्ञापनों पर रोक लगाने का मामला उठाने की आज्ञा मांगी। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने स्वीकृति नहीं दी। आसन की स्वीकृति नहीं मिलने पर कागज सदन के पटल पर रख दिया गया। भूरिया का कहना था कि मीडिया पर अंकुश लगाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। मामला टेबल पर रखे जाने के बाद सरकार को बताना चाहिए कि राजस्थान पत्रिका समूह ने ऐसा क्या किया कि यह नौबत आई। सरकारों ने कब-कब पत्रिका को चेतावनी पत्र लिखे, क्या-क्या कारण दिए तथा कब (सूचना प्रसारण विभाग) विज्ञापन बंद करने के नोटिस जारी किए। पत्रिका द्वारा जारी पत्रावली भी सदन के बीच आनी चाहिए। इन सबके बिना तो दोनों-तीनों सरकारों को मानना पड़ेगा कि लोकतंत्र में उनका विश्वास ही नहीं है।   पिछले आम चुनावों में सबको विश्वास हो गया था कि अच्छे दिन आने वाले हैं। सरकारें बन जाने के बाद सुषमा स्वराज, शिवराज सिंह और वसुंधरा राजे के विरुद्ध चले घटनाक्रम से वातावरण ऐसा गहराया कि मानो वे तुरंत जाने वाले हैं। राजनीति में सबके पांव कमजोर होते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इनसे कुछ न कुछ समझौते तो कर लिए, किंतु लगता है इनके सिर पर तलवार भी लटका दी। आज हमारी मुख्यमंत्री को यह तो स्पष्ट है कि भाजपा उनको फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी। अत: वे खुद तो सात पीढिय़ों की चिंता में व्यस्त हैं। हर भ्रष्ट अधिकारी को बचाती जा रही हैं। पिछले ढाई वर्षों में राज्य में बड़े-बड़े राष्ट्रीय स्तर और व्यक्तिगत स्तर के दलाल पैदा हो गए। उनमें से कई जेल तक पहुंच गए। सरकार उनके साथ व्यस्त होकर जनता को भूल गई। उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के आदेश मानो मनोरंजन का विषय बनकर रह गए। राज्य की ही भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियां रोज जिस तरह की धरपकड़ कर रही हैं, उससे लगता है कि जैसे यहां लूट-खसोट और बंदरबाट के अलावा कुछ हो ही नहीं रहा।   पत्रिका जब ऐसे समाचार प्रकाशित करता है तो सरकार के अहंकार को ठेस लगती है। समाचार मनगढ़ंत नहीं होता, ब्लैकमेल कभी किया ही नहीं जाता। बस, सरकार के विरुद्ध क्यों छपा? मानो राजाओं का राज लौट आया हो। मीडिया की स्वतंत्रता एवं अभिव्यक्ति का अधिकार राजस्थान पत्रिका के लिए आज उपलब्ध नहीं है। हां, सरकार अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने के लिए स्वतंत्र है। एक मात्र राह का रोड़ा है राजस्थान पत्रिका जो सारे कारनामों को जनता तक पहुंंचा देता है। उसका मुंह बंद करना तो अनिवार्य हो गया था। सत्ता में इसका एक ही उपाय होता है- विज्ञापन बंद कर दो। मानो अगले का भाग्य बदल जाएगा। अब तो यह चर्चा भी चल पड़ी है कि आजादी के बाद इतनी भ्रष्ट सरकार प्रदेश में नहीं आई। आज पूरा राजस्थान त्राहि-त्राहि कर रहा है। चाहे बोले कोई नहीं पर भाजपा के मंत्री, सांसद, विधायक सब दु:खी हैं। क्योंकि पिछले ढाई साल में कोई भी योजना नीचे तक नहीं पहुंची है। सब अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर आशंकित हैं। स्वयं मुख्यमंत्री का विधानसभा क्षेत्र रो रहा है किन्तु इनकी गतिविधियों पर किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ा। न दिल्ली कुछ रोक रहा है। न पत्रिका को ही खरीद पाए। न पत्रिका ने कुछ मांगा ही। यह तो पद का अहंकार ही है। जिनसे हर संकट में मदद मांगी जाती थी, स्वार्थवश उन पर ही गोलियां चलाई जा रही हैं।   पत्रिका अपना कार्य अपने सिद्धान्तों से करता आ रहा है। आगे भी जनहित में करता रहेगा। कहीं कोई दाग धब्बा नहीं। यह बात सरकार के अहंकार को मंजूर नहीं। उन्हें तो हर मीडिया अपने अंगूठे के नीचे चाहिए। दिल्ली में भी भाजपा की ही सरकार है। इनकी बिरादरी के लोग ही बैठे हैं। एक फोन से डीएवीपी के केन्द्रीय सरकार के विज्ञापनों पर भी रोक लगा दी। पाठकों को याद होगा कि इमरजेंसी में भी पत्रिका को कांग्रेस विरोधी मानकर तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल फोन पर धमकियां देते रहते थे। कलेक्टर कार्यालय ने सेन्सरशिप बनाए रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी, किन्तु तब भी हमारे सरकारी विज्ञापन बंद नहीं हुए थे। आश्चर्य है कि बिना किसी सूचना के आज अच्छे दिनों में भी बंद हैं। क्या यह इमर्जेंसी से भी बड़ा तानाशाही का संकेत नहीं हैं? हमारी मुख्यमंत्री तो बराबर कहती हैं कि वे तो अपनी दिवंगत माता विजयराजे सिंधिया के पदचिन्हों पर चलती हैं। वे भी स्वर्ग से देख रहीं होंगी कि किस-किस के दबाव में सीएम क्या-क्या गलत निर्णय कर रही हैं।   आज भाजपा में मुख्य चर्चा यह है कि, मुख्यमंत्री का पुत्र मोह भयंकर रूप से जाग्रत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुष्यंत सिंह को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में लेने से मना कर दिया था। अब मुख्यमंत्री उसे राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाने के सपने देख रही हैं। पहले यह तो उनको समझ लेना चाहिए कि वह अपने क्षेत्र में जीत भी पाएंगे या नहीं। आज तो भाजपा के साथ  सहयोगी वातावरण भी नहीं है। सरकार ऐसे ही चली तो भाजपा निपट भी सकती है। जनता केवल उनके पुत्र पर मेहरबान होगी यह विचारणीय प्रश्र है।   विभिन्न भाजपा सरकारों ने हमारे समाचारों से नाराज होकर क्रमबद्ध तरीके से, मानो योजनाबद्ध ढंग से, विज्ञापन बंद किए। सबसे पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने पत्रिका पर हमला बोला। इस बीच मध्य प्रदेश में हमारे अच्छे दिन आए। बाद में विज्ञापन तो चालू हो गए फाइलें नहीं चली आगे। राजस्थान तो एकदम आक्रामक ही दिखाई दिया। करीब आठ माह हो गए, उसे राजस्थान पत्रिका के विज्ञापन बंद किए हुए। मुंबई की एक विज्ञापन एजेंसी ने तो बताया कि स्वयं मुख्यमंत्री कार्यालय ने हमको विज्ञापन जारी करने से मना किया है। दिल्ली में इन्हीं के सांसद राज्यवर्धन सिंह, सूचना एवं प्रसारण विभाग में राज्य मंत्री हैं। क्या नहीं कराया जा सकता? अब यह तो उम्मीद नहीं कि इस सरकार के रहते अच्छे दिन आएंगे। हम तो हमेशा की तरह अपने पाठकों के बूते अपना कुछ सामान बेचकर भी अगले ढाई साल गुजार लेंगे, किंतु क्या इसी वातावरण के रहते भाजपा सत्ता तक पहुंच पाएगी अगले चुनावों में? और तब क्या दुष्यंत ही नए मुख्यमंत्री होंगे? पुत्र मोह में धृतराष्ट्र बनने से अच्छा है मुख्यमंत्री समय रहते अहंकार छोड़कर जनता की सुध लेना शुरू करें। शायद ईश्वर आपकी सुन ले!

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Dakhal News 5 August 2016


ajit anjum

    डिंपल के नाम अजीत अंजुम का खत    इंडिया टीवी के मैनेजिंग एडिटर और पत्रकारिता जगत में अपनी बेबाकी के लिए मशहूर वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम बुलंदशहर में हुए जघन्य रेप कांड से बेहद विचलित है। वे उस दर्द को समझ रहे हैं जिससे वे पीड़ित परिवार गुजर रहा है। इसी बारे में उन्होंने सूबे के व्यस्त मुख्यमंत्री की पत्नी और सूबे से ही सांसद डिंपल यादव से गुजारिश की है। इंडिया टीवी की वेबसाइट पर एक चिट्टी उन्होंने डिंपल को लिखी है, जो हम आपके साथ ज्यों की त्यों शेयर कर रहे हैं… बुलंदशहर गैंगरेप वारदात पर  अजीत अंजुम का खुला खत…     एक दो दिन संसद और विधानसभाओं में हंगामा होगा ..सत्ता से सवाल पूछने की रस्म अदायगी होगी ..गैंग रेप पर सरकार को घेरने की सियासत होगी …मीडिया के दबाव में पुलिस की दिखावटी मुस्तैदी होगी ..टीवी चैनलों मे बहस , ग़ुस्सा और हल्ला बोल होगा …फिर गैंग रेप की ये घटना सबकी स्मृति से लोप हो जाएगी …सब अपने-अपने अगले एजेंडे को साधने में लग जाएँगे ..लेकिन इस पीडित परिवार का क्या होगा ? ज़रा उस बेटी के बारे में सोचिए …जिसके साथ दरिंदगी हुई है ..उस माँ के बारे में सोचिए ..जो बेटी के साथ ख़ुद भी शिकार हुई है ..उस पिता के बारे में सोचिए , जिसकी बेटी से साथ रेप हुआ है ..जिसकी चीख़ें सुनकर भी वो कुछ कर नहीं सका …जब बेटी ने पापा …पापा ..की आवाज़ लगाई और पापा ने बेटी को बचाने की कोशिश की तो उसकी इतनी पिटाई कर दी गई कि वो बेदम हो गया ..बेबस बेटी की निरीह आवाज़ उसे कैसे जीने देगी ..बेटी ने विरोध किया तो माँ -बाप को मार देने की धमकी देकर उसके साथ ज़बरदस्ती की गई …माँ भी बेचारी क्या करती …वो ख़ुद भी तो उन दरिदों के चंगुल में थी …आज पिता कह रहा है अगर हमें इंसाफ़ नहीं मिला तो परिवार समेत ख़ुदकुशी कर लेंगे …उसकी बेटी उसे कह रही है – पापा …मैं सोने की कोशिश करती हूँ तो उन हैवानों के डरावने चेहरे सामने आ जाते हैं …क्या करे पापा ?अपनी बेटी को संभालने के लिए क्या करे वो माँ ..जो ख़ुद दरिंदगी का शिकार हुई है …मैं तो ये पंक्तियाँ लिखते समय रो रहा हूँ उस पिता का दर्द महसूस करके ..चश्मे पर आँसुओं की बूँदे इन शब्दों को बार बार ओझल कर रही है .. काश! सत्ता ..सरकार और सिस्टम के भीतर धड़कने वाला कोई पुर्जा  होता… डिंपल जी …आप नेता भी हैं …सांसद भी हैं ..सूबे के सीएम की पत्नी भी हैं और बच्चों की माँ भी ..हो सकता है अखिलेश जी अपने राज -काज में इतने व्यस्त हों कि उन्हें यूपी समेत देश में हर रोज़ हो रही रेप की रूटीन घटनाओं की तरह लगे और उनके पास इतनी फ़ुर्सत भी न हो कि एक पिता ..एक माँ या एक बेटी के दर्द को समझ पाएँ ..मीडिया के दबाव में चार – अफ़सरों को सस्पेंड करके उन्हें अपना सियासी फ़र्ज़ निभा देने का अहसास भी हो रहा होगा …उनके लिए यूपी के 20 करोड़ नागरिक में से ये भी हैं ..हर रोज़ हो रही रेप की घटनाओं की तरह एक घटना ये भी है लेकिन आप तो थोड़ा वक़्त निकाल सकती हैं ..इस परिवार का दर्द समझने के लिए … संसद और मुख्यमंत्री आवास की व्यस्तताओं से समय निकालकर एक बार उस पिता /बेटी और माँ से मिलिए ..और हाँ …अपने सरकारी अमले और क़ाफ़िले से अलग हटकर मिलिए …उनके दर्द को समझिए और सोचिए कि ताउम्र किस दंश के साथ जिएँगे वो ? एक ग़रीब पिता जो टैक्सी चलाकर अपने परिवार को पाल रहा था , उसे तो अब समाज /मोहल्ला /परिवेश सभी चाहे अनचाहे घुटने और ठीहा बदलने को मजबूर कर रहे हैं …क्या करे वो बाप ? क्या करे वो माँ ? क्या करे वो बेटी ? अब देखिए न …अखिलेश यादव के चाचा जान और आपकी सरकार के मंत्री आज़म खान को तो गैंगरेप की इस जघन्य घटना में भी विपक्षी दल की साज़िश नज़र आ रही है …सत्ता और सरकार के चचा जान को अगर गैंगरेप में भी साज़िश नज़र आ रही है तो हम आपका पक्ष जानना चाहते हैं … और अंत में रोते हुए पिता के नाम… तुम भी एक बाप हो …मैं भी बाप हूँ …तुम भी रो रहे हे …मैं भी रो रहा हूँ …रोना हमारी नियति हैं क्योंकि नीति नियंता के लिए हम और तुम सवा सौ करोड़ की भीड़ का एक हिस्सा भर हैं …वोट भर हैं …तुम्हारी बात तो दुनिया सुन भी रही है लेकिन लाखों ऐसे अभागे माँ – बाप हैं , जिनकी तो कोई सुनता भी नहीं …हिम्मत रखो …ख़ुद को भी हौसला दो अपनी बेटी और पत्नी को भी … (लेखक अजीत अंजुम India TV  में मैनेजिंग एडिटर है।)  

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Dakhal News 4 August 2016


davp

    डीएवीपी की विज्ञापनी नीति के विरोध में आज समाचार पत्रों के प्रकाशकों द्वारा ‘अख़बार बचाओं मंच’ के तत्वावधान में दिल्ली में डीएवीपी कार्यालय पर भूख हडताल रखी गई और मांग की कि इस विज्ञापन नीति को तुरन्त वापिस किया जाए। यह नीति छोटे और मंझोेले अख़बारों को खत्म कर बडे औद्योगिक घरानों के अख़बारों को संरक्षण देने का एक षड्यंत्र है। सभी प्रकाशकों की ओर से डीएवीपी के महानिदेशक को उनके कार्यालय में एक ज्ञापन दिया गया जिसमें कहा गया कि तत्काल प्वाइंट सिस्टम प्रणाली समेत अन्य शर्तों को खत्म किया जाए। उन्होने इसे स्वीकार करते हुए यह मांगे सरकार के सक्षम स्तर पर रखने का आश्वासन दिया और कहा कि सभी के साथ न्याय होगा। दिल्ली व आसपास के शहरों से छोटे एवं मझोले समाचार पत्रों के प्रकाशकों ने डीएपीवी कार्यालय पर पहंुच कर इस नीति के खिलाफ आवाज बुलंद की और भूख हडताल में हिस्सा लिया। सभी ने एक सुर में इस नीति के वापिस होने तक इसके विरोध में संर्घष करने का ऐलान किया और कहा कि 8 अगस्त को जन्तर-मन्तर पर देश भर के प्रकाशक एकजुट होकर दिखा देंगे कि छोटे एवं मझोल अखबारों के अस्तित्व को मिटाया नहीं जा सकता। यह अखबार लोकतंत्र की रीढ हैं और समाज के हर स्तर के लोगों की आवाज शासन-प्रशासन व सत्ता के गलिहारों तक बुलंद करते हैं। भूख हड़ताल पर उपस्थित प्रकाशकों व मीडिया कर्मियों को ऑल इंडिया स्मॉल एंड मीडियम न्यूजपेपर्स फेडरेशन के राष्ट्रीय सचिव अशोक कुमार नवरत्न, कौमी पत्रिका के सम्पादक श्री गुरचरण सिंह, एक्सप्रेस मीडिया समूह (ईएमएस) के स्वामी श्री सनत जैन, लीड इंडिया पब्लिशर्स (लीपा) के अध्यक्ष सुभाष सिंह, डेली वीकली न्यूजपेपर्स एसों. के अध्यक्ष श्री अनिल शर्मा, सालार-ए-हिन्द के एडिटर वसीउद्दीन सिद्दीकी, एनसीआर टूडे के एडिटर संजय शर्मा, दै. ‘रोज़ाना’ के सम्पादक श्री पवन सहयोगी, स्वराज टाइम्स के सम्पादक डा. अजय शर्मा व सियासी तकदीर के एडिटर मुस्तकीम खान, व दि कंट्री टाइम्स के एडिटर विष्णु पुरोहित ने सम्बोधित किया। कार्यक्रम में सर्व श्री सतेन्द्र दीक्षित (दै. दीक्षित टाइम्स, आगरा), मौ. इकबाल खान (राबता टाइम्स),  तनवीर अहमद (सियासी उफूक), अर्जुन जैन (सिंह की आवाज़), नरेन्द्र शर्मा परवाना (ज्ञान ज्योति दर्पण), संदीप सिंह (एक्सप्रैस न्यूज), वेद प्रकाश शर्मा (हिन्द प्रहरी), सुभाष पाण्डेय (आइसना), इमरान कलीम (रेस एक्सप्रैस), मौ. सऊद आलम (झुमरी तिलैया एक्सप्रैस), अजीज अली (दै. राजपथ), भूवनेश्वर पाण्डेय (दै. देशरत्न, आगरा), मौ. सरफराज (सदा-ए-वतन), गिरीश चन्द शर्मा (दै. भेदी नजर), शक्ति माथुर शर्मा (रोज़ाना सबकी खबर) सहित काफी प्रकाशक उपस्थित थे।

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Dakhal News 3 August 2016


kumbh

      इंदौर के ओपी सोनी और ऋषभ को प्रथम पुरस्कार      'तस्वीरों में सिंहस्थ-2016' फोटो प्रतियोगिता के परिणाम घोषित कर दिये गये हैं। पेशेवर श्रेणी में एक लाख रुपये का प्रथम पुरस्कार इंदौर के  ओ.पी. सोनी को मिला है। जन सामान्य श्रेणी में 25 हजार रुपये का पहला पुरस्कार इंदौर के श्री ऋषभ मित्तल को प्राप्त हुआ है।   फोटो के अवलोकन एवं गुणवत्ता के आधार पर समिति द्वारा छायाकारों का चयन किया गया। पुरस्कार के लिये चयनित छायाकारों में पेशेवर श्रेणी के श्री ओ.पी. सोनी, इंदौर, प्रथम पुरस्कार एक लाख, श्री शंकर मोर्य, इंदौर, द्वितीय पुरस्कार 51 हजार, श्री चित्रांगद कुमार, दिल्ली, द्वितीय पुरस्कार 51 हजार, श्री रमेश सोनी, धार, तृतीय पुरस्कार 21 हजार, श्री दिलीप गिरी नरसिंहपुर गिरि गोस्वामी, बडोदरा, तृतीय पुरस्कार 21 हजार, श्री सांई किरण कोटा कोंडा, तेलंगाना, तृतीय पुरस्कार 21 हजार, श्री जितेन्द्र शर्मा, देवास, श्री राज पवार इंदौर, श्री मनीश किंगर इंदौर, श्री निर्मल जैन, इंदौर, श्री अरूण मोघे, इंदौर, श्री देवेन्द्र, रतलाम, श्री प्रवीण दीक्षित, भोपाल, श्री शाहिद खान, उज्जैन, श्री कैलाश मित्तल, इंदौर और श्री विवेक पटैरिया, भोपाल को 10-10 हजार रुपये का सांत्वना पुरस्कार मिलेगा।   जन सामान्य (Amateur) श्रेणी- श्री ऋषभ मित्तल, इंदौर प्रथम पुरस्कार 25 हजार, श्री हेमंत जायसवाल, इंदौर द्वितीय पुरस्कार 15 हजार, सुश्री सुमेधा पुराणिक, इंदौर, द्वितीय पुरस्कार 15 हजार, श्री उमाकांत यादव, इंदौर, तृतीय पुरस्कार रुपये 5000 श्री आदित्य त्रिवेदी, इंदौर, तृतीय पुरस्कार 5000, श्री धर्मेन्द्र श्रीवास्तव, इंदौर, तृतीय पुरस्कार 5000 और श्री विकास सतविंजा, शाजापुर, श्री परवेज खान, उज्जैन, श्री अक्षय वाजपेयी, भोपाल, श्री राहुल, ग्वालियर, श्री जयेश मालवीय, इंदौर, श्री अनूप गुजराती, उज्जैन, श्री श्याम यादव, इंदौर, श्री शेखर सतविंज इंदौर, श्री राकेश सोलंकी, उज्जैन और श्री शंकर गुप्ता, इंदौर को 2,100-2100 रुपये का सांत्वना पुरस्कार मिलेगा।   'तस्वीरों में सिंहस्थ-2016' फोटो प्रतियोगिता जनसम्पर्क विभाग और मध्यप्रदेश माध्यम द्वारा की गयी थी। पुरस्कारों के चयन के लिए ज्यूरी में पद्मश्री वामन ठाकरे, वरिष्ठ फोटोग्राफर भोपाल, पद्मश्री भालू मोंढे, वरिष्ठ फोटोग्राफर इंदौर,  राकेश जैमिनी, वरिष्ठ फोटोग्राफर भोपाल,  पवन बिरोरिया, फोटो शाखा प्रमुख जनसम्पर्क संचालनालय, भोपाल,  हेमंत वायंगणकर, महाप्रबंधक, म.प्र. माध्यम शामिल थे।      

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Dakhal News 2 August 2016


akhbaar

      भोपाल में मप्र समाचार पत्र संचालक संघ की बैठक संपन्न हुई। इस बैठक में डीएव्हीवी विज्ञापन नीति २०१६ के विरोध में प्रस्ताव पारित किया गया और  कुछ प्रस्तावों  पर आम सहमति बनी।   इस बैठक में तय किया गया की डीएव्हीवी विज्ञापन नीति २०१६ के विरोध में १ अगस्त २०१६ से हर अखबार में विज्ञापन प्रकाशित किया जाएगा और आगामी ८ अगस्त को देश भर के समाचार पत्रों के मालिक दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना एवं प्रदर्शन कर रहे हैं उस दौरान मप्र के समाचार पत्र संचालक भी शामिल हों।   मप्र के सभी समाचार पत्रों के मालिकों से इस मीटिंग ४ अगस्त 2016 गुरुवार को ईएमएस कार्यालय चित्तोड़ काम्प्लेक्स भोपाल में आयोजित करने के लिए सहमति बनी। जिसमें प्रदेश के सभी दैनिक समाचार पत्रों के मालिकों को आमंत्रित कर आगे की रणनीति विचार किया जाएगा। उक्त नीति के खिलाफ जबलपुर हाईकोर्ट में पिटीशन लगाने हेतु विचार किया गया एवं पिटीशन हेतु होने वाले खर्च के लिए  फंड एकत्रित करने के लिए सहमति दी गई

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Dakhal News 1 August 2016


makhnlal

  माखनलाल चतुर्वेदी वि.वि. के कार्यक्रम में जयभान सिंह        उच्च शिक्षा मंत्री  जयभान सिंह पवैया ने कहा है कि विद्यार्थी को स्वाध्यायी बनना चाहिये। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी को पाठ्यक्रम से हटकर अतिरिक्त ज्ञान स्वाध्यायी होने से ही प्राप्त होता है। श्री पवैया ने यह बात माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के 'सत्रारंभ-2016'' के समापन समारोह में कही। उन्होंने कहा कि स्वाध्यायी का आधार मजबूत होता है।   श्री जयभान सिंह पवैया ने कहा कि पत्रकारिता में एक लोकेषणा और धमक होती है। इसमें जल्द ख्याति प्राप्त होती है और फिसलने की गुंजाइश। पत्रकार वह है जो दूसरे को हीरो बनाने का काम करता है। पत्रकारिता के विद्यार्थियों में सूक्ष्म अहंकार भी हो सकता है। इससे उसके पब्लिक से रिलेशन कमजोर होते हैं और जिसके टर्म्स अच्छे नहीं, वह अच्छा पत्रकार नहीं।   उच्च शिक्षा मंत्री श्री पवैया ने कहा कि इंसान कुछ बन जाने के बाद त्याग और समर्पण से ही देश को कुछ दे सकता है। राष्ट्र की सेवा के लिये भारत-माता का कर्ज उतारने के लिये काम करना होगा। उन्होंने कहा कि इंसान अपने वातावरण में मौजूद कण-कण का ऋणी है, जिसका कर्ज उसे उतारना होगा। श्री पवैया ने कहा कि राष्ट्र के लिये समर्पण और प्रतिबद्धता से हम भारत-माता के रत्न बन जाते हैं। दरिद्रनारायण की सेवा का संकल्प ही हमें आगे बढ़ाता है।   श्री पवैया ने विश्वविद्यालय के कार्यक्रम की सराहना की। उन्होंने कहा कि सत्र आरंभ में ऐसे कार्यक्रम विद्यार्थियों के लिये प्रेरणा का काम करते हैं। उन्होंने भी इस संबंध में निर्देश दिये हैं। श्री पवैया ने कहा कि लोगों ने जाना है कि पत्रकार और मीडिया देशहित के लिये जरूरी हैं। किसी संविधान में नहीं लिखा है कि पत्रकारिता चौथा स्तंभ है, लेकिन पत्रकारिता अपने कार्यों से विधान मण्डल का चौथा स्तंभ बन गयी है।   श्री पवैया ने विद्यार्थियों को त्याग और समर्पण की भावना से काम करने को कहा। उन्होंने साधु और शादी होकर जा रही बिटिया का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके त्याग से कई लोग ऋणी हो जाते हैं। साधु के त्यागे हुए हिस्से का भोग हम करते हैं और ब्याही बेटी द्वारा छोड़ी गयी सम्पत्ति पर उसके भाई का अधिकार होता है, इसलिये वह पूजनीय है।   उच्च शिक्षा मंत्री श्री पवैया ने कहा कि आज के समय में लोगों में पढ़ने की आदत कम हुई है। सोशल मीडिया, मोबाइल आदि से उतना ज्ञान नहीं होता, जितना किसी ग्रंथ और साहित्य के पढ़ने से। उन्होंने विद्यार्थियों को चेताया भी कि किसी खबर में अपनी भड़ास निकालने से किसी व्यक्ति विशेष का सार्वजनिक जीवन बर्बाद हो जाता है, जिसका फिर कितना भी खण्डन करते रहो, उसका कोई असर नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता एक पवित्र पेशा है, इसके लिये बड़ी सोच रखना जरूरी है। श्री पवैया ने कहा कि आपको अपनी कलम से भारत-माता की सेवा करने का काम मिला है। अच्छा काम करने से आप भारत-माता के सच्चे सपूत साबित होंगे।   कार्यक्रम को कुलपति प्रो. ब्रजकिशोर कुठियाला ने भी संबोधित किया। कुलसचिव एवं रजिस्ट्रार  दीपक शर्मा ने कार्यक्रम का संचालन किया। रेक्टर  लाजपत आहूजा ने आभार माना।

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Dakhal News 30 July 2016


chandrkant khaeraie

विज्ञापन नीति का मामला राज्यसभा में,रोक की माँग    राज्यसभा में शिवसेना के उपनेता चंद्रकांत खैरेे ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की प्रिंट मीडिया विज्ञापन नीति 2016 का मामला राज्यसभा में उठाया।    उन्होंने कहा कि डीएवीपी ने जो नीति लागू की है, उसमें जो शर्तेंऔर अंकव्यवस्था लागू की है।उन्हें लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों द्वारा पूरा किया जाना संभव ही नहीं है।इस विज्ञापन नीति से भाषाई समाचार पत्र जिसमें हिंदी तमिल तेलुगू कन्नड़ मराठी गुजराती सहित भाषायी 95 फीसदी लघु एवं मध्यम समाचार पत्र बंद होने की स्थिति में पहुंच गए हैं।   सांसद खेरे ने राज्य सभा में नियम 377 के अधीन सूचना के द्वारा राज्य सभा में यह मसला उठाते हुए कहा कि  औद्योगिक घरानों की मीडिया कंपनियों को फायदा पहुंचाने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समाप्त करने का सुनियोजित प्रयास किया जा रहा है।उन्होंने सरकार से इस विज्ञापन नीति को संशोधित करने की मांग की। लघु एवं मध्यम वर्ग के समाचार पत्रों के अनुकूल विज्ञापन नीति बनवाने की दिशा में सरकार निर्णय करें। इस विज्ञापन नीति 2016 का क्रियान्वयन तत्काल रोका जाए।

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Dakhal News 29 July 2016


patrkar

      दूरदर्शन सहित देश में चल रहे चैनल जो हमें हर पल की खबर से रूबरू कराते है। इन चैनल में काम करने वाले पत्रकार जो चैनल की आईडी और कैमरा लेकर चलने वाले कैमरामैन के साथ 24 घंटे सातों दिन आम जनता की समस्याएं, अफसरों की लापरवाही और नेताओं को खट्टे-मीठे बोल बोलते हुये दिखाते हैं। वो पत्रकार की श्रेणी में नहीं आते यह खुलासा हुआ प्रधानमंत्री को लिखे पत्र के जवाब में।    देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को पत्र तो लिखा था दूरदर्शन में काम करने वाले पत्रकारों को लेकर। उस पत्र को प्रधानमंत्री कार्यालय से संबंधित विभाग को उचित कार्यवाही के लिये भेजा गया। पिछले दिनों केन्द्रीय सरकार के प्रसार भारती से एक पत्र फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राधावल्लभ शारदा को प्राप्त हुआ। उस पत्र से यह तो स्पष्ट हो गया कि दूरदर्शन में काम करने वाले पत्रकारों को द वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट 1955 के अनुसार पत्रकार नहीं माना गया इसलिये उनके वेतन आदि के बारे में विचार नहीं किया जा सकता।  हमारे देश में दूरदर्शन लगभग 1982 में प्रारंभ हुआ और उसके बाद अन्य चैनल धीरे-धीरे वजूद में आये। परन्तु 1955 में बने वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट में 2016 जुलाई तक कोई संशोधन नहीं हुआ।  1. वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट 1955 में स्पष्ट है कि न्यूज पेपर का मतलब मुद्रित समाचार पत्र। 2. न्यूज पेपर एम्पलाई का अर्थ वर्किंग जर्नलिस्ट। 3. न्यूज पेपर इस्टवलिसमेंट का अर्थ व्यक्ति अथवा कंपनी का मालिकाना हक। 4. वर्किंग जर्नलिस्ट जो न्यूज पेपर में कार्यरत हो। उसमें संपादक, न्यूज एडीटर, लीडर राईटर, सब एडीटर, फीचर राईटर, कापी लेस्टर, रिर्पोटर, क्रसपांडेन्ट, कार्टूनिस्ट, न्यूज फोटोग्राफर और प्रूफ रीडर शामिल है।  एक्ट में यह भी स्पष्ट है कि मैनेजमेंट अथवा एडमिनिस्ट्रेशन जैसे कार्य करने वाले वर्किंग जर्नलिस्ट की श्रेणी में नहीं आते है।  

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Dakhal News 27 July 2016


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    अमेरिका में हुए एक शोध में अखबार के रिपोर्टर की नौकरी को दुनिया के सबसे खराब जॉब में रखा गया है। यह सर्वे करियरकास्ट ने किया है।    इस सर्वे में अखबार के रिपोर्टर की नौकरी को दुनिया की सबसे खराब नौकरी बताया गया है। यह सर्वे सैलरी, फ्यूचर, आउटलुक और काम के माहौल के हिसाब से तैयार की गई है।  शोध में तकरीबन 200 पेशों को दुनिया के बेहतरीन और बुरे कामों की लिस्ट में रखा गया। इसमें क्राइटेरिया का आधार इनकम, दबाव, काम का माहौल और नियुक्ति के स्थायित्व के आधार पर था। करियरकास्ट फर्म के शोध के मुताबिक वैज्ञानिक की नौकरी सबसे अच्छी और अखबार के रिपोर्टर की सबसे खराब मानी। गई है।   शोध बताता है कि बीते पांच सालों में रिपोर्टर बनने का क्रेज तेजी से घटा है। साल 2022 तक इसमें और गिरावट आने का अंदेशा है, क्योंकि तमाम कंपनियां अखबार बंद कर रही हैं। दस सबसे खराब जॉब की लिस्ट में जो जॉब है उनमें टैक्सी ड्राइवर, रिटेल सेल्स पर्सन, एड्वर्टाइजिंग सेल्स मैन , मेन शेफ, दमकल विभाग और कचरा विभाग में काम करने वाले कर्मचारी भी शामिल है। 

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Dakhal News 25 July 2016


media samuh

  सरकार की लापरवाही और मीडिया समूह का शोषण  जिम्मेदार     भोपाल के पत्रकार शिवराज सिंह की प्रतिभावान बेटी ने पिता की आर्थिक तंगी से परेशान होकर आज खुदकुशी कर ली। वह आठवीं की छात्रा थी। इंडियन प्रेस फोरम के अध्यछ महेश दीक्षित ने इस झकझोर देने वाली दुखद घटना पर शोक जताया है।तथा कहा कि इसके लिए पूर्णत: शोषक मीडिया समूह और सरकार की लापरवाही दोषी है।  उन्होंने पत्रकार शिवराज को समुचित आर्थिक सहायता देने की राज्य सरकार से मांग की है। तथा पत्रकार साथियों से दुख की इस घड़ी में शिवराज के साथ खड़े होने का आग्रह किया है।    पत्रकार शिवराज सिंह भोपाल के कई अखबारों में काम कर चुके हैं। कुछ दिन पहले प्रबंधन की मनमानी के चलते उन्हे भोपाल के एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र से नौकरी से निकाल दिया गया था। इसके बाद से वे भयंकर आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे। स्कूल की टॉपर उनकी बेटी पिता की इस  तंग हालत से परेशान थी। वो पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती थी, इसलिए उसने जान दे दी।    फोरम के अध्यछ श्री दीक्षित ने कहा कि ऐसे सैकड़ों काबिल पत्रकार आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे हैं और उनके बच्चे इसका खामियाजा भुगत रहे हैं। वजह मीडिया मालिक उन्हें काम का पूरा दाम (वेतन) न देकर उनका शोषण कर रहे हैं। आज प्रदेश के कई मीडिया समूह पत्रकारों के साथ  यह रवैया अपनाए हुए हैं। उन्हें कई-कई महीने वेतन नहीं दिया जा रहा है। यदि पत्रकार कर्मी वेतन मांगने जाता है तो उसे मैनेजमेंट द्वारा अपमानित किया जाता है या फिर उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है। जबकि मीडिया समूह खुद सरकार से समस्त सुविधाओं का लाभ से रहे हैं। दबाव बनाकर हर महीने लाखों के विग्यापन ऐंठ रहे हैं।  श्री दीछित ने कहा कि हालांकि सरकार ने पत्रकारों के हित में पत्रकार स्वास्थ्य बीमा और पत्रकार दुर्घटना जैसी योजनाएं लागू की हैं।पत्रकारों को इन योजनाओं का लाभ भी मिल रहा है, लेकिन पत्रकारों के लिए बनाए गए मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार लागू नहीं करा पा रही है।  दीक्षित ने कहा अखबारों के दफ्तरों में मजीठिया वेजेज को लागू कराने और पत्रकारों को वेजेज के अनुसार वेतन मिल रहा है या नहीं इसकी निगरानी करने की जिम्मेदारी सरकार के श्रम विभाग की है। लेकिन लगता है श्रम विभाग ने इन निरंकुश हो चुके मीडिया समूहों के सामने घुटने टेक दिए हैं।  पत्रकार शिवराज की प्रतिभावान बेटी की आर्थिक तंगी में खुदकुशी, सरकार की लापरवाही और मीडिया समूहों की शोषण नीति का नतीजा है।  श्री दीछित ने कहा कि, फिर कोई पत्रकार की बेटी खुदकुशी न करे, इसके लिए सरकार को चाहिए कि, वह ऐसे मीडिया समूहों पर कार्रवाई करे, जो मजीठिया वेजेज का लाभ अपने यहां काम करने वाले पत्रकार कर्मियों को नहीं दे रहे हैं। तथा जब तक मीडिया समूह अपने यहां कार्यरत पत्रकार कर्मियों को मजीठिया वेतनमान नहीं दे देते हैं, तब तक इन मीडिया समूहों को दी जाने वाली समुचित सरकारी सुविधाएं तथा सरकारी विग्यापन बंद कर देना चाहिए।

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Dakhal News 24 July 2016


ashok nagar patrkar

    मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन   अशोकनगर  में जिला मुख्यालय पर पत्रकारों को आवास की सुविधा उपलब्ध कराने म.प्र मीडिया संघ के तत्वाधान में मुख्यमंत्री के नाम कलेक्टर को एक ज्ञापन दिया गया। म.प्र.मीडिया संघ ईकाई अशोकनगर के तत्वाधान में दिए गए ज्ञापन में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से आग्रह किया गया है कि प्रदेश के अन्य स्थानों अन्य जिलों में पत्रकारों के आवास हेतु शासन स्तर पर आवासीय कालोनियों का निर्माण कराया गया है। उसी स्तर पर जिला एवं तहसील स्तर के पत्रकारों के लिए अशोकनगर में भी आवासीय भू-खण्ड उपलब्ध कराये जाएं।  उल्लेखनीय हो कि प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश की राजधानी भोपाल, सीहोर आदि स्थानों पर पत्रकारों को आवास सुविधा प्रदान करने के लिए पत्रकार कालोनियों को निर्माण किया गया है। इसी तर्ज पर अशोकनगर में पत्रकार कालोनी की मांग शासन से की गई है।  ज्ञापन देने वालों में संघ के जिलाध्यक्ष देवेन्द्र ताम्रकार, सुनील कलाकार जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा, नीरज शुक्ला महासचिव मीडिया संघ, शरद  व्यास उपाध्यक्ष मीडिया संघ, नरेश गोस्वामी, कोषाध्यक्ष, नरेन्द्र शर्मा, लक्ष्मीनारायण योगीराज, अखिलेश श्रीवास्तव आदि पत्रकार उपस्थित थे।  

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Dakhal News 23 July 2016


nav duniya

    नवदुनिया के दफ्तर में जबरन घुसकर किया हंगामा     नवदुनिया अखबार में बावड़ियाकलां इलाके में गुमठी वालों को सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर अतिक्रमण करवाने का मामला प्रकाशित करना वार्ड-52 के पार्षद रामबाबू पाटीदार को  इतना नागवार गुजरा कि वे विरोध जताने गुंडागर्दी तक पर आमादा हो गए। रामबाबू ने पहले तो मंगलवार की देर शाम सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर अपने लोगों को गुमठियां रखने के लिए मार्किंग कर दी, लेकिन जब इस संबंध में नवदुनिया ने खबर प्रकाशित की तो रामबाबू दो दर्जन से ज्यादा उपद्रवियों को साथ लेकर  नवदुनिया के दफ्तर में नारेबाजी करते हुए जबरन घुस गए। इस दौरान पाटीदार व उनके साथी ऑफिस में मौजूद स्टाफ के साथ बदसलूकी और देख लेने की धमकी देते रहे।   सोमवार को नगर निगम के अमले ने इस इलाके में अतिक्रमण कर रखी गईं जिन गुमठियों को हटाया था, उन्हीं लोगों को वार्ड 52 के पार्षद रामबाबू पाटीदार ने सरकारी जमीन पर अवैध रूप से कब्जा दे दिया। मंगलवार शाम को रामबाबू ने स्वयं ही खड़े होकर सूची तैयार करवाई और नपती कराकर चूने की लाइन भी डलवा दी। पाटीदार ने इंडस चौराहे से दानिश ब्रिज की ओर जा रही सड़क के फुटपाथ पर सफेद चूने से नपती कर नौ-नौ फीट की मार्किंग करवा दी। साथ ही कुछ स्थानों पर चूने से कब्जाधारियों के नाम भी लिखवा दिए। अवैध तरीके से गुमठी वालों को पार्षद द्वारा दी गई सरकारी जमीन के इस मामले को नवदुनिया ने प्रकाशित किया था।   पार्षद रामबाबू पाटीदार और उनके उपद्रवी साथियों ने करीब एक घंटे तक नवदुनिया के ऑफिस में हंगामा किया। इस दौरान उन्हें कई बार शांति के साथ अपना पक्ष रखने के लिए समझाया गया, लेकिन वे नहीं माने। रामबाबू पाटीदार तो धमकी भरे लहजे में ये कहने से भी नहीं चूके कि अभी तो मेरे साथ कम ही जनता आई है, और लोगों को बुला लिया तो फिर समझ लेना क्‌या होगा।   नवदुनिया के दफ्तर में हंगामे की सूचना मिलते ही बड़ी संख्या में एमपी नगर थाने से पुलिसबल मौके पर पहुंच गया। पुलिसकर्मियों ने पार्षद और उनकी शह पर उपद्रव कर रहे लोगों को कड़ी कार्रवाई की चेतावनी देते हुए दफ्तर के बाहर किया। साथ ही रामबाबू पाटीदार सहित अन्य सभी के खिलाफ बलवा करने 147, गाली गलौच 294 और जान से मारने की धमकी देने पर धारा 506 के तहत प्रकरण कायम किया है।     सरकारी जमीन बांटने की खबर में नवदुनिया ने अपनी निष्पक्षता की परंपरा का निर्वहन करते हुए मंगलवार को पार्षद रामबाबू का पक्ष लिया और प्रकाशित भी किया। इसके बाद भी वे उपद्रवियों के साथ बुधवार को नवदुनिया के दफ्तर में जबरन घुसे। इस पर भी उन्हें अपना पक्ष पुनः लिखकर देने को कहा गया। तब भी रामबाबू ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने सरकारी जमीन पर गुमठियां रखने के लिए मार्किंग करवाई है। साथ ही कहा कि इसके एवज में किसी गुमठी वाले से चवन्नी भी नहीं ली है। उनका कहना था कि ऐसा उन्होंने गुमठीवालों के लिए क्षेत्र में एक जगह हाकर्स कार्नर बनवाने के लिए किया है। कार्नर बनने पर गुमठियों को वहां स्थापित करवा दिया जाएगा।   गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह ने पार्षद रामबाबू पाटीदार व उनके समर्थकों द्वारा नवदुनिया कार्यालय में घुसकर गाली-गलौज करने के मामले में जांच के आदेश दिए हैं।   भाजपा जिलाध्यक्ष एवं महापौर भोपाल आलोक शर्मा ने कहा पार्षद पाटीदार एवं उनके समर्थकों ने जिस तरह अखबार के कार्यालय में पहुंचकर गाली-गलौच और नारेबाजी की वह गंभीर मामला है। पार्टी ने इसे संज्ञान में लिया है। मामले में पाटीदार को नोटिस देकर पूछताछ की जाएगी।   बीजेपी के संगठन महामंत्री सुहास भगत ने कहा यह मामला हमारे संज्ञान में लाया गया है, पार्टी इस पर सख्त रुख अपनाएगी।     नईदुनिया समूह के भोपाल दैनिक नवदुनिया पर भाजपा पार्षद और उनके गुर्गों का हमला कहीं अभिव्यक्ति की स्वाधीनता पर पार्टी की अभिव्यक्ति तो नहीं है ! यह दरअसल यह सत्ता के अहंकार का निर्लज्ज प्रदर्शन है जिसमे सत्तारूढ़ पार्टी के जिम्मेदार लोग भी आकंठ डूबे हुए हैं।  चिंता की बात यह है की सरकार ने मीडिया मालिकों को तो खूब मैनेज कर रखा है जिससे इस भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ खबरें कभी-कभार ही छपती हैं। इसे भी सत्ताधीश और उनसे जुड़े लोग पचा नहीं पाते और उनके कोप का शिकार पत्रकारों को होना पड़ता है।    ऐसे अवसरों पर तो मीडिया हाउसों को व्यावसायिक प्रतिद्वंदिता बिसरा कर साथ खड़े होना चाहिए। दैनिक भास्कर ने इस हमले की खबर तो छापी है पर आधी-अधूरी, जिसे पढ़ने पर पता ही नहीं चलता की किस अखबार पर हमला हुआ है। जो पाठक केवल एक अखबार ही खरीदता है वह इस जानकारी से वंचित रह गया। बताते चलें की जिस शीर्ष पर आज दैनिक भास्कर विराजमान है वहाँ कभी नईदुनिया का कब्जा था। बहरहाल अभिव्यक्ति की आजादी पर अहंकार के आत्मघाती आक्रमण का सिर्फ मीडिया नहीं बल्कि सभी  एक्टिविस्टों और एनजीओ को एकजुट होकर जवाब देना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार नरेन्द्रकुमार सिंह ने सही कहा है की पार्टी को भी इस पर कार्रवाई करनी चाहिए।  

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Dakhal News 21 July 2016


ashutosh nadkar

  आशुतोष नाडकर   अभी  पढ़ा कि माँ बनने को लेकर पूछे गये एक सवाल पर सानिया ने धाकड़ पत्रकार राजदीप सरदेसाई की लू उतार दी.. कुछ दिन पहले ही तुलसी... सॉरी स्मृति ईरानी ने डियर को लेकर एक मंत्री की खटिया खडी करने की कोशिश की थी.. और सुपरस्टार सुल्तान की जुबान भी कुछ ऐसी फिसली की लाखों महिलाओं के दिलों पर राज करने वाला ये 50 साल का नौजवान अचानक महिलाओं के ही निशाने पर दिखाई देने लगा।    इन सब घटनाओं में एक समानता जरुर है। वह ये कि देश में महिलाओं की खिलाफ बात करने वालों को आडें हाथों लिया जा रहा है। परंपरागत भारतीय समाज में आ रहे इस बदलाव को एक बेहतर संकेत भी माना जा सकता है। बीच सड़क या चौराहे पर मनचलों की पिटाई करने वाली युवतियों को वीरांगनाओं का दर्जा भी दिया जा रहा है, लेकिन इस सब के बीच एक पक्श उन पुरुषों का भी है, जो बेचारे सरल, सज्जन या शरीफ है..(यकीन मानिये कई पुरुष ऐसे भी होते हैं) ये कहानी एक ऐसे ही बेचारे सज्जन पुरुष की है। कहानी के नायक को हिन्दुस्तान के औसत, मध्यवर्गीय, बेचारे मर्दों का प्रतिनिधि भी माना जा सकता है।    मर्द को भी दर्द होता है...   परदे पर अमितावच्चन ( अमिताभ बच्चन) को गुंडों की पिटाई करते देखना करते देखना मुझे हमेशा से बहुत भाता था.. शायद मैं १२ साल का था जब मनमोहन देसाई की मर्द फिल्म में प्रभु  अमिताभ बच्चन के श्रीमुख से ये सुना कि "मर्द को दर्द नहीं होता".. इसे अमिताभ की अदाकारी का कमाल कहें या फिर मेरी बाल सुलभ मूर्खता कहें, मैंने भी मान लिया की मर्द को दर्द नहीं होता.. स्कूल में जब मास्साब खडी स्केल से मेरी पिटाई करते था तो मैैं इसी डायलॉग को मंत्र मानकर  दर्द की अनदेखी करता रहा.. मास्साब ने इसे उनकी 'मारक क्षमता' पर चुनौती मान लिया.. अब मैं अदना सा छात्र मास्टर के संकल्प के आगे क्या खाक ठहर पाता.. उनकी स्केल ने मेरे कूल्हे का रंग लाल कर दिया और मेैं 'टैं' बोल गया.. यानि मेरे मुँह से चीख निकल ही गई..मास्टर की पिटाई और परीक्षा में फेल होने से ज्यादा मुझे दुख इस बात का था कि मर्द को दर्द आखिर दर्द क्यों हुआ..?   फिर मैंने सोचा की मैं अभी बच्चा हूँ.. शायद वयस्क मर्द होने पर शायद इस दर्द से पार पा लूँ.. लेकिन जोडों के दर्द से जूझते दादाजी को देखकर मेरी ये गलतफहमी भी दूर हो गई.. हाँ पिताजी को कभी किसी दर्द की शिकायत करते नहीं सुना था सो मैं ये मानने लगा था कि  इंदर राज आनंद (फिल्म के डायलॉग राइटर) की ये सूक्ति जवां मर्दों पर लागू होती होगी.. पर पिताजी के अपेन्डिक्स पेन ने एक दिन घर में ऐसा कोहरारम मचाया कि इंदर राज आनंद का झूठ मेरे सामने बेनकाब हो गया।    तो जनाब ये बात तो साफ हो गई कि मर्द को भी दर्द होता है.. तो फिर सवाल ये है कि आनंद साहब ने ये संवाद लिखा किस आधार पर.. और लिखा तो लिखा ये संवाद इतना पॉपुलर कैसे हुआ..? क्या इस डायलॉग पर तालियाँ पीटने और सिक्के उछालने वालों को दर्द नहीं होता.. मुझे लगता है कि दर्द तो जरुर होता है, लेकिन हमारी समाजिक व्यवस्था ये अपेक्षा करती है कि मर्द को दर्द नहीं होना चाहिए.. और इसी प्रवृत्ति ने इस डायलॉग को जन्म दिया।    मर्द चाहे ५ साल का बच्चा ही क्यों ने उससे दर्द न होने की अपेक्षा बचपन से की जाती है.. जब में चौथी क्लास में एक बार मैं सितोलिया खेलते हुए अपनी कोहनियाँ और घुटने छिलवा बैठा.. रोते हुए घर पहुँचा तो चचा ने डाँटते हुए कहा- "क्या लडकियों की तरह टेसुएँ बहा रहा है..?" अब चचा का ये कथन कितना महिला विरोधी है ये तो नारीवादी जाने लेकिन चचा के ताने ने मेरे जैसे बच्चे की मर्दानगी को भी झकझोर  कर कुछ देर के लिये तो जगा ही दिया था.. घुटने छिलने का दर्द तो मैं जैसे-तैसे झेल गया लेकिन जैसे-जैसे बडा होता गया ये सवाल  बार-बार सामने आने लगा कि  क्या रोने का हक केवल जनाना है.. ? रोने से मर्दानगी कम हो जाती है..?  भई महिला और पुरुष दोनों ही ऊपरवाले के बनाये हाड-माँस के पुतले हैं .. तो फिर चोट लगने पर मर्द को रोने का हक क्यों न हो..? फिल्म में  इमोशनल सीन पर औरतें चाहें रो-रोकर कई रुमाल गीले कर डालें.. मर्द के लिये आँखे भर आना भी शर्मनाक क्यों है.?. मानों आँसू गिरने का तात्लुक सीधे पौरुष क्षमता में कमी से हो.. और ज्यादा आंसू बह गये तो मर्द को सीधे डॉ शाहनी की शरण लेनी पडेगी।    मेरी दर्द भरी कहानी की शुरुआत उसी दिन हो गई थी जब मैंने मर्द के रुप में एक पढे-लिखे मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म लिया था.. चार भाई-बहनों में एक बहन मुझसे डेढ साल बडी और दो बहनें मुझसे छोटी थी..  हमारे देश में बेटियों को गर्भ में मार देने का महापाप किया जाता है.. मर्दों को गर्भ में भले न मारा जाता हो.. लेकिन खुर्राट किस्म के बाप इस बात की कमी बेटों के जवाँ होने तक हर कभी उन्मुक्त भाव से उनकी सुताई कर पूरी कर ही लेते हैं..  कश्मीर से कन्याकुमारी और अटक से कटक तक मेरे द्वारा किये गये सर्वे के मुताबिक भारतवर्ष के नब्बे फीसदी पिताजी, बाऊजी, पापा, बापू, डैड, बाबा, अण्णा, अप्पा (संबोधन चाहे इनमें से कौन सा भी हो) पर हर एक बाप खुर्राट ही होता है..  बेटियों पर हाथ न उठाने के लिये दृढसंकल्पित मेरे पिता ने मुझे कभी संटी, कभी बेल्ट, कभी चप्पल जैसे उपकरणों से(आप इस फेहरिस्त को अपने अनुभव के आधार पर आगे भी बढा सकते हैं)  कितनी बार सूता है इसकी गिनती न उन्हें याद होगी न ही मुझे।    पढने में मैं हमेशा से गधा था.. और बड़की के हाल तो मुझसे भी बुरे थे.. मुझसे एक कक्षा आगे पढने वाली बडकी छटवीं कक्षा में फेल हो गई और हम दोनों एक ही क्लास में आ गये.. परीक्षा के समय मुझे ये समझ आ गया कि आखिर बडकी फेल क्यों हुई..एलजेब्रा और ज्योमेट्री के  सवालों के भंवर में उलझकर मेरा गणित उलझ ही गया.. मैं पहली बार और बड़की लगातार दूसरी बार छटवीं में फेल हो गये.. मुझे पूरा विश्वास था कि पिताजी ने घर पर पिटाई के सारे उपकरण पहले ही जुटा लिये होंगे.. लेकिन एक संतोष भी था कि मैं अकेला नहीं हूँ जिस पर इन उपकरणों का इस्तेमाल होने वाला है.. लेकिन तमाम पूर्वानुमान धराशाई हुए और उपकरणों का इस्तेमाल केवल और केवल मुझपर हुआ.. बड़की को ये कहते हुए 'डिस्काउंट' दे दिया गया कि- "उसकी तो हम शादी कर देंगे.. साले.. लेकिन तेरा यही हाल रहा तो तुझे जिंदगी भर कौन खिलायेगा.." मुझे फिर अपने मर्द होने पर कोफ्त हुई.. आखिर पिताजी मेरी शादी कराने की बाद इतनी आसानी से क्यों नहीं कहते।    बड़की देखने में सुंदर थी.. ग्रेज्युएशन किये बिना ही उसकी शादी कर दी गई.. मैंने और मंझली ने  जैसे-तैसे ग्रेज्युएशन पूरा किया.. पहले पढ़ाई को लेकर गरियाने वाले मेरे पिता के पास अब मुझे गरियाने की नई वजह थी, मेरा बेरोजगार होना.. "खा-खाकर सांड हो गया है.." ये जुमला अक्सर मेरे कानों में मिश्री घोलता रहता था.. लेकिन मंझली  का बेकार घर में बैठना उन्हें कभी नहीं खला.. मझली खूबसूरत नहीं थी.. सो उसकी शादी में दान-दहेज की चिंता पिताजी को ज्यादा रहती थी.. और उनका ये मानसिक तनाव मेरे सर पर फटना लाजमी था.. क्योंकि मैं उनका एकलौता बेटा यानि की मर्द था..   सबसे छोटी यानि छुटकी पापा की आँखों का नूर था.. पढ़ने में तेज, बोल्ड एंड ब्यूटीफुल.. छुटकी लडकों तरह कपड़े पहनती थी.. कई बार तो वो मेरे टी-शर्ट भी पहन लेती थी.. पिताजी अक्सर अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच फ़ख्र से छुटकी के कंथे पर हाथ रखकर कहते थे- "ये बेटा है मेरा.. बेटा.." कई बार मुझे लगा कि पिताजी से पूछना चाहिए कि कुदरत ने जब छुटकी को लड़की बनाया है तो आप उसकी तारीफ में ही सही उसे बेटा क्यों कह रहे हैं.. क्या मेरे जनाना कपडे पहनने पर वे ये बात गर्व से कहेंगे की ये मेरा बेटा नहीं बल्कि बेटी है बेटी।    मुझे पेंटिंग का काफी शौक था.. लेकिन पिताजी का कहना था कि ये क्या लौंडियों के तरह के शौक पाल रखे हैं.. और मेरी पेंटिग्स से उन्हें कोई आर्थिक फायदा भी नज़र नहीं आ रहा था.. लिहाजा मेरी चित्रकारी को दो गज ज़मीन के नीचे दफ़न कर दिया गया..  पिताजी के तानों के चलते मेरे पास मामूली सी नौकरी करने के सिवाय कोई चारा नहीं था.. मर्द होने के कारण घर चलाने में पिताजी की मदद करने की जिम्मेदारी मेरी थी..  मेरी कमाई की पाई-पाई की जानकारी रखने वाले पिताजी मुझसे जेबखर्च तक का पूरा हिसाब लेते थे.. उधर  छुटकी ने अव्वल नंबरों से इंजीनियरिंग की डिग्री ली और नौकरी भी करने लगी.. आर्थिक संकट के बावजूद पिताजी ने छुटकी से वेतन लेना तो दूर कभी उसकी सैलेरी का हिसाब तक नहीं मांगा.. यहाँ तक कि जब छुटकी ने अपने ही एक सहकर्मी से शादी का फैसला किया तो मामूली सी ना-नकुर के बाद उन्होंने इस विजातीय रिश्ते के लिये भी हामी दे दी..   इस बीच मेरे विवाह की दुर्घटना भी हो ही गई.. जी नहीं, मेरे पिताश्री दकियानूसी नहीं थे.. उन्होंने न केवल मुझे प्रेम विवाह करने की अनुमित दी बल्कि मेरी पत्नी को अपनी बेटियों के समान स्नेह भी दिया.. लेकिन मेरी लिये उनका स्नेह झिडकियों और गालियों के जरिये ही प्रकट होता था.. मंझली की शादी अब तक नहीं हो पाई थी..  पंद्रह हजार की नौकरी में मेरे लिये घर चलाना अब मुश्किल हो गया था.. मैं जिस कंपनी में सुपरवाइजर था उसी कंपनी में कंप्यूटर ऑपरेटर की दरकार थी.. मैंने अपनी पत्नी और मंझली दोनों से इस नौकरी के लिये प्रयास करने को कहा.. लेकिन यहाँ भी मेरे 'सुलझे हुए विचारों वाले पिता' के नारी स्वतंत्रता और अस्मिता के विचार आडे आने लगे..  पिताजी ने टांग अड़ाते हुए फरमान जारी किया कि दोनों यदि खु़द चाहेंगी तभी नौकरी करेंगी..(जब भी पिताजी बेटियों के लिये ऐसी बातें करते थे तो मेरी मर्द होने की कोफ्त और बढ जाती है और लगता है कि हाय मैं इनकी बेटी क्यों न हुआ)  शायद मेरी किस्मत अच्छी थी कि दोनों ने ही नौकरी को हामी भर दी.. और आर्थिक संकट के भंवर में फंसी हमारे परिवार की नैया को दो खेवैये और मिल गये थे।                       आर्थिक परेशानियाँ कुछ कम जरूर हुई, लेकिन मुसीबतें अब भेस बदलकर आने लगी थीं.. घऱ में मर्दाना समझे जाने वाले काम जैसे पानी भरना, चक्की से गेहूँ पिसवा के लाना, बैंक के काम तो मैं पहले से ही किया करता था लेकिन अब तो सब्जी काटने जैसे काम भी कई बार मेरे हिस्से में आने लगे थे.. पिताजी ने अतिरिक्त सह्रदयता दिखाते हुए बहू और मंझली को ऑफिस जाने के लिये स्कूटी भी खरीद दी थी.. पेट्रोल इंडिकेटर  की ओर देखे  बिना स्कूटी को लगातार चलाना और फिर पेट्रोल खत्म होने के बाद मुझे फोन कर बुलाने का कारनामा ये दोनों कई बार कर चुकीं थीं.. इस प्रकार की मूर्खता से परेशान होकर यदि मेरा सब्र का बांध कभी टूट जाता था.. तो पिताजी फौरन उनके लिये रक्षा कवच बन जाते थे.. " तुम्हें फोन कर बुला लिया तो कौन सा पहाड़ टूट पडा, तुम क्या बिल गेट्स या अंबानी हो, जो आधा-पौन घंटा जाया होने से करोडों का नुक्सान हो जायेगा.. बऱखुरदार, इतना गुस्सा करना है तो पहले इतना तो कमा लो कि बहन और पत्नी को नौकरी न करना पडे। "   हालाँकि ये परेशानी भी मुझे ज्यादा समय तक नहीं झेलनी पडी.. दिवाली के मौके पर मेरी पत्नी को उनके सेक्शन इंचार्ज  ने छुट्टी नहीं दी.. दोनों के बीच कुछ वाद-विवाद हुआ और मेरी पत्नी ने तत्काल नौकरी को अलविदा कह दिया.. मैंने पत्नी को समझाने की कोशिश की कि ऐसी मामूली  सी तकरार तो नौकरी में होती ही रहती हैं.. लेकिन वह नहीं मानी.. शाम को घर पहुँचा तो पिताजी अपनी बहू की पीठ थपथपाते दिखे- " बहुत अच्छा किया बेटा, आत्मसम्मान से समझौता कर नौकरी करने की कोई जरुरत नहीं है. " मुझे देखते ही पिताजी मुझसे मुखातिब हुए- "सीखो बहू से की आत्मसम्मान क्या होता "  पिताजी के ये शब्द मुझे कुछ साल फ्लैश बैक में ले गये.. तब उन्होंने मुझे जबरदस्ती  एक फैक्ट्री में नौकरी पर लगवाया था .. सुपरवाईजर बेहद बदतमीज और सनकी किस्म का आदमी था.. बात-बात या फिर बिना बात भी सुपरवाईजर की  डाँट-फटकरा का मैं आदी हो चुका था, लेकिन एक दिन पानी सिर से गुजर गया.. सुपरवाईजर मुझे माँ-बहन की नंगी गालियाँ देने पर उतर आया.. दिल तो था कि सुपरवाईजर की तबीयत से मरम्मत करुँ, लेकिन पिताजी की याद आई तो महज अपनी आपत्ति दर्ज करवाकर नौकरी छोड दी.. घर पहुँचकर जब पिताजी को सारा वाकया सुनाया तो तमाम लानतों के साथ पिताजी ने  मुझे इतनी गालियां बकी, मानों कान में किसी ने पिघला सीसा घोल दिया हो...  सुपरवाईजर की गालियाँ बहुत ही मामूली लगने लगीं.. उस दिन से आज तक तमाम गालियाँ झेलकर भी नौकरी किये जा रहा हूँ.. क्योंकि मैं एक मर्द हूँ.. चाहूँ या न चाहूँ पैसे कमाना मेरी मजबूरी है, रोना आने पर आँसुओं को सुखा देना मेरी और मेरे जैसे करोडों लोगों की मजबूरी है.. और हाँ मंझली की शादी पर पिताजी ने उसके कमाये सारे पैसे मय ब्याज के उसके एकाउंट में ट्रांसवर कर दिये।      Attachments area          

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Dakhal News 19 July 2016


haribhumi newspaper

    महेश दीक्षित  यदि, बेहतर कंटेंट और लीक से अलग हटकर खबरों को देखें तो हरिभूमि पाठकों के बीच स्थापित अखबारों से अलग अपनी पहचान बना रहा है। अपने इसी तेवर के बूते अखबार ने पिछले एक साल में परंपरागत और गैर परंपरागत पाठकों के बीच अपनी पकड़ बनाई है। साल भर पहले किसी भी स्कीम के साथ अखबार लिया तो जाता था पर ठहर नहीं पाता था। टूट जाता था। जैसे-जैसे अखबार ने खबरों के तेवर तेज किए, कंटेंट की जबरदस्त पैकेजिंग की और रिपोर्टिंग के कुछ ऐसे अनकवर्ड, अन-एक्सप्लोर क्षेत्रों को छुआ, वैसे ही अखबार अपनी धाक जमाता गया। प्रसार के मोर्चे पर भी यह साबित हुआ कि अच्छा अखबार दिया जाए तो पाठक उससे जुड़ते चले जाते हैं। भले ही ये बहुत धीमी प्रक्रिया होती है पर जो पाठक इस रीति से जुड़ते हैं, वे फिर पूरे पक्के पाठक ही होते हैं। हरिभूमि ने एक बेहतर अखबार देकर पक्के पाठक ही जोड़ें हैं। इसी तरह, हरिभूमि पाठकों की आदत भी बदल रहा है। खबरों का विश्लेषण किया जाए तो साफ देखा जा सकता है कि अखबार ने किसी किस्म की सनसनी क्रिएट नहीं की। खबरों को उसी अंदाज में रखा, जिस अंदाज में वे रखी जाना चाहिए। अति-उत्साह और हड़बड़ी में और आगे निकलने की होड़ में अखबार ने कभी किसी खबर में मिर्च-मसाले का इस्तेमाल नहीं किया। एक गंभीर और सधी हुई रिपोर्टिंग का अखबार ने प्रदर्शन किया। ये सब संभव हो सका प्रबंध संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के विजन-कुशल मार्गदर्शन, युवाओं की ऊर्जा से भरी कमाल की रिपोर्टिंग और डेस्क की टीम और उसके कैप्टन-स्थानीय संपादक प्रमोद भारद्वाज की प्रयोगधर्मिता और खबर को अलग नजरिए से देखने की उनकी विशेषज्ञता से। वे हमेशा एक नई सोच के साथ खबर में उतरते दिखतेे हैं। अखबार में हरिभूमि की सारी टीम की काम करने की धारावाहिकता और वक्त के साथ चुनौती लेने की क्षमता का भी पता चलता है। हरिभूमि में कई खबरें ऐसी रहीं, जिनसे उसने प्रतिस्पद्र्धी अखबारों की तुलना में पाठकों में अलग जगह बनाई। चाहे देर रात सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और आंतकी को फांसी देने वाला एपिसोड हो या फिर हरदा में रात में ट्रेन एक्सीडेंड हो या फिर पुराने भोपाल में आधी रात के बाद पुल गिरने की घटना हो। हरिभूमि ने रातों-रात सारी टीम को लगाकर कवरेज कराया और नंबर एक माने जा रहे राजधानी के अखबारों को जबरदस्त चुनौती दी। अब तो हालत ये है कि अपराध की खबरों में ये अखबार नंबर वन तो है ही, अलग खबरों में भी बाजी मार रहा है। हरिभूमि की कई खबरों को, दूसरेे या तीसरे दिन स्थापित अखबार बाइलाइन तक ठोक दे रहे हैं। यही किसी भी नए अखबार की सफलता का पैमाना है। राजधानी के अखबार के बाजार की यही खासियत है कि पहले छोटा जानकर नजरअंदाज करते हैं, फिर जब बराबरी पर आ जाता है तो अकड़ ढीली करते हैं और जब बाजार का नेतृत्व धीरे-धीरे आने लगता है तो स्थापित अखबार दो कदम पीछे हटने लगते हैं। अभी तीसरी स्टेज नहीं आई है पर स्थापित अखबारों की अकड़ हरिभूमि ने जरूर ढीली कर दी है। हालांकि, लड़ाई अभी लंबी है, क्योंकि, दो साल और खास तौर से इस एक साल में हरिभूमि ने जो छलांग लगाई है, वह काबिले-तारीफ है, क्योंकि, राजधानी में उसका महा-मुकाबला तो पचास साल पुराने अखबारों से है और उनके अकूत संसाधनों से भी है। ऐसे में हरिभूमि का प्रकाश की गति से आना, एक अच्छे अखबार के आने की उम्मीद पाले बैठे प्रदेश के पाठकों के लिए भरोसे जैसा है कि जब एक आम आदमी की खबरें सिर्फ बड़े अखबारों में इसलिए जगह नहीं बना पा रही हैं, वह टारगेट रीडर के लिए नहीं हैं, तब हरिभूमि उनके लिए इस अकेलेपन और अंधेरे में कंदील जैसी भूमिका में है। साथ भी देगा और लड़ेगा भी। फर्जी, तथ्यहीन, मैनेज्ड और बोगस रिपोर्टिंग के इस दौर में हरिभूमि ने जिस प्रामाणिकता और जनसरोकारों की पक्षधरता साबित की है, वह निश्चय ही एक अलग लकीर तो है ही, और उन अखबारों के लिए एक सीख भी कि सिर्फ बड़े होकर खूब इतराएं पर पाठकों से तो दूरी न बनाएं।

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Dakhal News 12 July 2016


patrkar samman

  उद्योग मंत्री  शुक्ल ने उमरिया में किया पत्रकारों का सम्मान    वाणिज्य, उद्योग और रोजगार तथा खनिज साधन मंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने कहा है कि सामाजिक विकास के लिए रचनात्मक पत्रकारिता की अहम भूमिका है। उन्होंने कहा कि पत्रकार देश और समाज के पथ-प्रदर्शक हैं। श्री शुक्ल आज उमरिया में स्वर्गीय श्री रमाशंकर अग्निहोत्री पत्रकारिता सम्मान समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। समारोह में मंत्री  शुक्ल ने पत्रकार  ऋतुपर्ण दवे,अमित शुक्ला,गोपाल बंसल, प्रकाशचंद्र जायसवाल और अरूण त्रिपाठी को सम्मानित किया।पत्रकार सम्मान समारोह श्री नर्मदे हर सेवा न्यास रेवा धाम, अमरकंटक जिला अनूपपुर द्वारा आयोजित किया गया था।   श्री शुक्ल ने कहा कि पत्रकारिता सम्मान समाज के लिए गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सूचना का स्वतंत्र प्रवाह होता है। उद्योग मंत्री में कहा कि वर्तमान समय में पत्रकारिता क्षेत्र में अनेक चुनौतियाँ हैं। उन्होंने नैतिक मूल्यों में दिन-प्रतिदिन आ रही गिरावट को रोकने के लिए मूल्य आधारित पत्रकारिता को बढ़ावा दिये जाने की भी जरूरत बतायी। श्री शुक्ल ने कहा कि चौथे स्तम्भ के रूप में पत्रकारिता उभर कर सामने आई है। इन चुनौतियों से निपटने के बारे में सोचे जाने की जरूरत हैं।   उन्होंने पत्रकारों से कहा कि वे अपने कार्यक्षेत्र को बड़ा रखकर काम करें। श्री शुक्ल ने अपेक्षा की कि शासन द्वारा चलाई जा रही जन-कल्याणकारी योजनाओं को भी प्रकाशित कर आमजन तक पहुँचाए। श्री शुक्ल ने कहा कि विधायिका और पत्रकारिता दोनों मिलकर काम करेंगे, तो निश्चित ही हम प्रगति की ओर अग्रसर होंगे।   अनुसूचित जाति-जनजाति कल्याण मंत्री  ज्ञान सिंह ने कहा कि पत्रकार अपनी कलम को अपनी ताकत बनाये। पत्रकारों के सामने कभी-कभी चुनौतियाँ भी सामने आती हैं, वे उन चुनौतियों से लड़कर निष्पक्ष अपनी बातों को जनता के सामने रखे। उन्होंने कहा कि आज सोशल मीडिया के माध्यम से भी खबरों का आदान-प्रदान किया जा रहा है, इसके लिए सभी पत्रकार बधाई के पात्र हैं। श्री सिंह ने कहा कि पत्रकार समाज का आईना होता है तथा अच्छे-बुरे कामों को जनता और शासन, प्रशासन तक पहुँचाता है।   नर्मदे हर न्यास के अध्यक्ष  भागवत शरण माथुर ने कहा कि आज के समय में समस्याएँ उत्पन्न करने वाले ही समस्याओं का निदान कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि यदि हम अपना आचरण, व्यवहार, चरित्र अच्छा बनाकर चले तो निश्चित तौर पर हम पर कोई उँगली नहीं उठा सकता है। चुनौतियों का सामना डटकर करें। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, इसलिए पत्रकार पूरी ईमानदारी के साथ खबरों का प्रकाशन करें।      Attachments area          

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Dakhal News 10 July 2016


ashutosh nadkar

आशुतोष नाडकर एक के फेसबुक पर डेढ करोड फॉलोअर्स हैं, तो दूसरा शायद ये भी नहीं जानता कि फेसबुक क्या है? एक को क़ुरान ही नहीं वेद-पुराण, बाईबल जैसी सभी पाक  किताबें पेज नंबर और पैराग्राफ के साथ कंठस्थ है, तो दूसरे को शायद इतना भाषा ज्ञान भी नहीं कि इन किताबों को पढ़ सके। एक टेलीविजन और इंटरनेट के माध्यम से पूरे विश्व में शांति का संदेश देने का दावा करता है, तो दूसरे को दुनिया तो क्या उसके शहर में भी लोग ठीक से नहीं जानते। पहले की तकरीरें सुनकर कुछ सिरफिरे जेहाद के नाम पर रमज़ान के पाक महीने में लोगों के गले रेत देते हैं। वहीं दूसरा एक ऐसा काम कर जाता है जो दुनिया में हर धर्म को मानने वाले यहाँ तक कि नास्तिकों के लिये भी एक मिसाल है। शायद आप समझ गये हों कि मैं किन दो लोगों के बारे में बात कर रहा हूँ। जी हाँ, पहला शक्स वही है जिसे दुनिया डॉक्टर जाकिर नाईक के नाम से जानती है, जिनके टेलीविजन चैनल का नाम ही ‘पीस’ यानि की शांति का टीवी है।  दूसरा नाम है याकूब बी का। अगर आप इन दिनों अखबार नहीं पढ सके हैं, तो बेशक कह सकते हैं कि ये याकूब बी कौन है...? कल तक मैं भी इस नाम से पूरी तरह से नावाक़िफ़ था, लेकिन अख़बार की सुर्खियों से याकूब बी के बारे में पता चला तो विश्वास हो गया कि धर्म और इंसानियत की इससे बेहतर मिसाल शायद ही कहीं देखने मिले। एक बुजुर्ग, जिसे उसके बडे बेटे ने घर से निकाल दिया और उसकी मौत के बाद दूसरे बेटे ने ये कहकर मुखाग्नि देने से इंकार कर दिया कि वह किसी अन्य धर्म को अपना चुका है, लिहाजा दाह कर्म करने की उसे इजाजत नहीं है। ऐसे में याकूब बी, जिन्होंने पहले भी इस बेसहारा बुजुर्ग को सहारा दिया था वे ही इस बार भी आगे आईं  और बुजुर्ग की चिता को मुखाग्नि दी। मेरा विश्वास है कि याकूब बी ने जो किया है वह हम सबके लिये एक ऐसा संदेश है जो डॉ. जाकिर तो क्या किसी भी धर्म का कोई भी उपदेशक नहीं दे सका। पीस टीवी के माध्यम से जाकिर नाईक के उपदेशों को मैं भी लंबे समय से सुनता रहा हूँ।  डॉ. नाईक के बातें कितनी जायज़ या नाजायज़ है इसकी चर्चा मैं यहाँ करना मुनासिब़ नहीं समझता क्योंकि महाराष्ट्र पुलिस इसकी जाँच कर ही रही है। इस बात से भी इत्तेफ़ाक रखा जा सकता है कि शांति का उपदेश देने वाले किसी शक़्स की बात सुनकर भी यदि कुछ लोग आतंक फैलाने पर आमादा हों तो भला इसमें शांति उपदेशक का क्या कूसूर है? लेकिन ये सवाल जरूर उठता है कि शांति का संदेश देने वाले नाईक के मुरीद इस कदर बर्बर कैसे हो सकते हैं और याकूब बी जैसी साधारण समझी जानी वाले महिला इतना मजबूत संदेश कैसे दे सकती है? शायद इसलिये क्योंकि याकूब बी जैसे लोग बोलने के बजाय करने में यकीन रखते हैं। ताज्जुब है कि कुऱान, हदीस, वेद, पुराण, गीता, बाईबिल जैसी पवित्र पुस्तकों के ज्ञाता समझे जाने वाले भी इन ग्रंथों में छुपे प्रेम और भाईचारे के पैगाम को अपने फॉलोअर्स तक नहीं पहुँचा पाते। शायद इसी स्थिति को लेकर कबीर सदियों पहले ही लिख गये थे – पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया ने कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।। जरा सोचिये, क्या कोई धर्म किसी बेटे को अपने पिता का अंतिम संस्कार करने से रोक सकता है..? मजहबी किताबें इस बारे में क्या कहती हैं ये तो मुझे मालूम नहीं, लेकिन मुझे विश्वास है किसी भी मज़हब में अपने पिता का अंतिम संस्कार करने पर रोक नहीं हो सकती। फिर क्यों मरने वाले बुजुर्ग का पुत्र धर्म का मर्म ही समझ नहीं पाया? सवाल केवल डॉ नाईक या याकूब बी का नहीं है। समाज में ऐसे सैकडों लोग है। कुछ याकूब बी जैसे खामोश रहकर असाधारण काम कर रहे हैं तो कुछ ज्ञान से ओतप्रोत उपदेशक (खासकर मजहबी ज्ञान) अपने ढंग से धर्म परोस रहे हैं। इनमें दाढी-टोपी लगाने वालों से लेकर गेरुआ धारण करने वाले और नृत्य-संगीत के माध्यम से लोगों को प्रेम का संदेश देने वाले भी शामिल हैं। एक ओर फिल्मी गानों पर नाच-गाकर ईश्वर को पाने का दावा करने वाली राधे माँ भी मौजूद हैं तो दूसरी ओर समोसे-चटनी खिलाकर समस्याओं का समाधान करने वाले निर्मल बाबा भी मिल जाते हैं। लगभग हर शहर में भागवत कथाओं में भारी भीड उमडती देखी जा सकती है। धर्म और प्रेम का संदेश देने का ये सबका अपना-अपना तरीका है। इन तरीकों पर ऐतराज करुँ इतनी मेरी औकात नहीं है, लेकिन अपने गुरु से प्रेम और शांति का संदेश पाने वाले ये भक्त विवाद की स्थिति में किस तरह से गदर काटते हैं ये बात भी किसी से छुपी नहीं है। ऐसे में विनम्र प्रश्न ये है कि हमें उपदेशकों की ज्यादा जरुरत है या याकूब बी जैसे इंसानों की..? पूछते हुए डर भी लग रहा है कि किसी बंधु की भावनाऐं आहत न हो जाये, क्योंकि इन दिनों हमारे देश में और कुछ हो न हो भावनाऐं बेहद जल्दी आहत हो जाती है। अगर किसी की भावनाऐं आहत हुई हो तो दोनों हाथ जोडकर माफी मांगता हूँ।

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Dakhal News 9 July 2016


ravish kumar m j akbar

        सीनियर जर्नलिस्‍ट रवीश कुमार की ओर से बीजेपी में मंत्री बनाए गए पूर्व पत्रकार एमजे अकबर को लिखे गए लेटर पर जी न्‍यूज के पत्रकार रोहित सरदाना ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। सरदाना ने रवीश से पूछा है कि क्‍या उन्‍होंने पत्रकार बरखा दत्‍त को भी राडिया टेप्‍स को लेकर ऐसा ही ओपन लेटर लिखा था? बता दें कि बरखा दत्‍त भी रवीश कुमार की तरह एनडीटीवी न्‍यूज चैनल से जुड़ीं सीनियर जर्नलिस्‍ट हैं। दरअसल, रवीश ने एमजे अकबर को ओपन लेटर लिखकर उनसे पूछा था कि पत्रकार से राजनेता बनकर उन्‍हें कैसा लगता है? इसके अलावा, ये सवाल भी उठाया था कि वे पत्रकार और राजनेता के कामकाज में कैसे सामंजस्‍य बि‍ठाते हैं? रवीश ने इस ओपन लेटर में इशारों ही इशारों में अकबर पर तीखा कटाक्ष किया था। सरदाना ने उसका ही जवाब देने की कोशिश की है       नीचे पढ़ें, रोहित सरदाना का पूरा पत्र और उसके नीचे है रवीश कुमार का पत्र        आदरणीय रवीश  कुमार जी नमस्कार. सर, ट्विटर, फेसबुक, ब्लॉग, फेस टाइम के दौर में आपने चिट्ठी लिखने की परंपरा को ज़िंदा रखा है उसके लिए आप बधाई के पात्र हैं. हो सकता है कि चिट्ठियां लिखने की वजह ये भी हो कि ट्विटर, फेसबुक पे लोग जवाब दे देते हैं और चिट्ठी का जवाब मिलने की उम्मीद न के बराबर रहती है, इस लिए चिट्ठी लिखने का हौसला बढ़ जाता हो. पर हमेशा की तरह एक बार फिर, आपने कम से कम मुझे तो प्रेरित किया ही है कि एक चिट्ठी मैं भी लिखूं – इस बात से बेपरवाह हो कर – कि इसका जवाब आएगा या नहीं.   ये चिट्ठी लिखने के पहले मैंने आपकी लिखी बहुत सी चिट्ठियां पढ़ीं. अभी अभी बिलकुल. इंटरनेट पर ढूंढ कर. एनडीटीवी की वेबसाइट पर जा कर. आपके ब्लॉग को खंगाल कर. एम जे अकबर को लिखी आपकी हालिया चिट्ठी देखी. पीएम मोदी को लिखी चिट्ठी देखी. मुख्यमंत्रियों के नाम आपकी चिट्ठी देखी. विजय माल्या के नाम की चिट्ठी देखी. पुलिस वालों के नाम भी आपकी चिट्ठी देखी.   सर लेकिन बहुत ढूंढने पर भी मैं आपकी वरिष्ठ और बेहद पुरानी सहयोगी बरखा दत्त के नाम की खुली चिट्ठी नहीं ढूंढ पाया, जिसमें आपने पूछा होता कि नीरा राडिया के टेप्स में मंत्रियों से काम करा देने की गारंटी लेना अगर दलाली है – तो क्या आपको दलाल कहे जाने के लिए वो ज़िम्मेदारी लेंगी ?   बहुत तलाशने के बाद भी मैं आपके किसी ठिकाने पर वरिष्ठ पत्रकार और संपादक रहे आशुतोष जी (जो अब आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं) के नाम आपकी कोई खुली चिट्ठी नहीं ढूंढ पाया, जिसमें आपने पूछा होता कि साल-डेढ़ साल तक स्टूडियो में हॉट-सीट पर बैठ कर , अन्ना के पक्ष में किताब लिखना और फिर उस मेहनत कूपन को पार्टी प्रवक्ता की कुर्सी के बदले रिडीम करा लेना अगर दलाली है – तो क्या आपको दलाल कहे जाने के लिए वो ज़िम्मेदारी लेंगे?   सर मैंने बहुत ढूंढा, लेकिन मैं आपके पत्रों में आशीष खेतान के नाम कोई चिट्ठी नहीं ढूढ पाया, जिसमें आपने पूछा होता कि सवालों में घिरे कई स्टिंग ऑपरेशनों, प्रशांत भूषण जी के बताए पक्षपातपूर्ण टू जी रिपोर्ताजों के बीच निष्पक्ष होने का दावा करते अचानक एक पार्टी का प्रवक्ता हो जाना अगर दलाली है – तो क्या वो आपको दलाल कहे जाने की ज़िम्मेदारी शेयर करेंगे ?   सर मैं अब भी ढूंढ रहा हूं. लेकिन राजदीप सरदेसाई के नाम आपका कोई पत्र मिल ही नहीं रहा. जिसमें आपने पूछा हो कि 14 साल तक एक ही घटना की एक ही तरफ़ा रिपोर्टिंग और उस घटना के दौरान आए एक पुलिस अफसर की मदद के लिए अदालत की तल्ख टिप्पणियों के बावजूद, वो हाल ही में टीवी चैनल के संपादक होते हुए गोवा में आम आदमी पार्टी की रैली में जिस तरह माहौल टटोल रहे थे, अगर वो दलाली है, तो क्या राजदीप जी आपको दलाल कहे जाने की ज़िम्मेदारी लेंगे?   सर मैंने बहुत तलाशा. लेकिन मैं उन सब पत्रकार (पढ़ें रिपोर्टर) दोस्तों के नाम आपकी कोई चिट्ठी नही ढूंढ पाया, जिन्हें दिल्ली सरकार ने ईनाम के तौर पर कॉलेजों की कमेटियों का सम्मानित सदस्य बना दिया. सर जब लोग आ कर कहते हैं कि आपका फलां साथी रसूख वाला है, उससे कह के दिल्ली के कॉलेज में बच्चे का एडमिशन करा दीजिए. आपका मन नहीं करता उनमें से किसी से पूछने का कि क्या वो आपको दलाल कहे जाने की ज़िम्मेदारी आपके साथ बांटेंगे ?   पत्रकारों का राजनीति में जाना कोई नई बात नहीं है. आप ही की चिट्ठियों को पढ़ के ये बात याद आई. लेकिन पत्रकारों का पत्रकार रहते हुए एक्टिविस्ट हो जाना, और एक्टिविस्ट होते हुए पार्टी के लिए बिछ जाना – ये अन्ना आंदोलन के बाद से ही देखा. लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ़ थी. मैं भी जाता था अपनी 3 साल की बेटी को कंधे पर ले कर. मैं भीड़ में था. आप मंच पर थे. तब लगा था कि क्रांतिकारी पत्रकार ऐसे होते हैं. लेकिन फिर इंटरव्यू में किरण बेदी को दौड़ाते और अरविंद केजरीवाल को सहलाते आपको देखा तो उसी मंच से दिए आपके भाषण याद आ गए.   क्रांतिकारी से याद आया, आपकी चिट्ठियों में प्रसून बाजपेयी जी के नाम भी कोई पत्र नहीं ढूंढ पाया. जिसमें आपने पूछ दिया हो कि इंटरव्यू का कौन सा हिस्सा चलाना है, कौन सा नहीं, ये इंटरव्यू देने वाले से ही मिल के तय करना अगर दलाली है – तो क्या वो आपको दलाल कहे जाने की ज़िम्मेदारी लेंगे ?   सर गाली तो लोग मुझे भी देते हैं. वही सब जो आपको देते हैं. बल्कि मुझे तो राष्ट्रवादी भी ऐसे कहा जाता है कि जैसे राष्ट्रवादी होना गाली ही हो. और सर साथ साथ आपसे सीखने की नसीहत भी दे जाते हैं. पर क्या सीखूं आपसे ? आदर्शवादी ब्लॉग लिखने के साथ साथ काले धन की जांच के दायरे में फंसे चैनल की मार्केटिंग करना ?   सर कभी आपका मन नहीं किया आप प्रणय रॉय जी को एक खुली चिट्ठी लिखें. उनसे पूछें कि तमाम पारिवारिक-राजनीतिक गठजोड़ (इसे रिश्तेदारी भी पढ़ सकते हैं) के बीच – आतंकियों की पैरवी करने की वजह से, देश के टुकड़े करने के नारे लगाने वालों की वकालत करने की वजह से, लगभग हर उस चीज़ की पैरवी करने की वजह से जो देश के बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को आहत करती हो – अगर लोग आपको दलाल कहने लगे हैं तो क्या वो इसकी ज़िम्मेदारी लेंगे ?   उम्मीद करता हूं आप मेरे पत्र को अन्यथा नहीं लेंगे. वैसे भी आपकी चिट्ठी की तरह सारे सोशल मीडिया ब्लॉग्स और अखबार मेरे लिखे को हाथों हाथ नहीं लेंगे. लेकिन आपकी राजनीतिक/गैर राजनीतिक सेनाएं इस चिट्ठी के बाद मेरा जीना हराम कर देंगी ये मैं जानता हूं. जिन लोगों का ज़िक्र मेरी चिट्ठी में आया है – वो शायद कभी किसी संस्थान में दोबारा नौकरी भी न पाने दें. पर सर मैं ट्विटर से फिर भी भागूंगा नहीं. न ही आपको ब्लॉक कर दूंगा (मुझे आज ही पता लगा कि आपने मुझे ब्लॉक किया हुआ है, जबकि मेरे आपके बीच ये पहला संवाद है, न ही मैंने कभी आपके लिए कोई ट्वीट किया, नामालूम ये कड़वाहट आपमें क्यों आई होगी, खैर).   सर आप भगवान में नहीं मानते शायद, मैं मानता हूं. और उसी से डरता भी हूं. उसी के डर से मैंने आप जैसे कई बड़े लोगों को देखने के बाद अपने आप को पत्रकार लिखना बंद कर दिया था, मीडियाकर्मी लिखने लगा. बहुत से लोग मिलते हैं जो कहते हैं पहले रवीश बहुत अच्छा लगता था, अब वो भी अपने टीवी की तरह बीमार हो गया है. शायद आप को भी मिलते हों. वो सब संघी या बीजेपी के एजेंट या दलाल नहीं होते होंगे सर. तो सबको चिट्ठियां लिखने के साथ साथ एक बार अपनी नीयत भी टटोल लेनी चाहिए, क्या जाने वो लोग सही ही कहते हों? आपका अनुज रोहित   ----------------------------------------------------- रवीश कुमार की चिट्ठी एम जे अकबर के नाम  --------------------------------------------------- आदरणीय अकबर जी, प्रणाम,   ईद मुबारक़। आप विदेश राज्य मंत्री बने हैं, वो भी ईद से कम नहीं है। हम सब पत्रकारों को बहुत ख़ुश होना चाहिए कि आप भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता बनने के बाद सांसद बने और फिर मंत्री बने हैं। आपने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। फिर उसके बाद राजनीति से लौट कर सम्पादक भी बने। फिर सम्पादक से प्रवक्ता बने और फिर मंत्री। शायद मैं यह कभी नहीं जान पाऊंगा कि नेता बनकर पत्रकारिता के बारे में क्या सोचते थे और पत्रकार बनकर पेशेगत नैतिकता के बारे में क्या सोचते थे? क्या आप कभी इस तरह के नैतिक संकट से गुज़रे हैं? हालांकि पत्रकारिता में कोई ख़ुदा नहीं होता लेकिन क्या आपको कभी इन संकटों के समय ख़ुदा का ख़ौफ़ होता था ?   अकबर जी, मैं यह पत्र थोड़ी तल्ख़ी से भी लिख रहा हूं। मगर उसका कारण आप नहीं है। आप सहारा बन सकते हैं। पिछले तीन साल से मुझे सोशल मीडिया पर दलाल कहा जाता रहा है। जिस राजनीतिक परिवर्तन को आप जैसे महान पत्रकार भारत के लिए महान बताते रहे हैं, हर ख़बर के साथ दलाल और भड़वा कहने की संस्कृति भी इसी परिवर्तन के साथ आई है। यहां तक कि मेरी मां को रंडी लिखा गया और आज कल में भी इस तरह मेरी मां के बारे में लिखा गया। जो कभी स्कूल नहीं जा सकी और जिन्हें पता भी नहीं है कि एंकर होना क्या होता है, प्राइम टाइम क्या होता है। उन्होंने कभी एनडीटीवी का स्टूडियो तक नहीं देखा है। वह बस इतना ही पूछती है कि ठीक हो न। अख़बार बहुत ग़ौर से पढ़ती है। जब उसे पता चला कि मुझे इस तरह से गालियां दी जाती हैं तो घबराहट में कई रात तक सो नहीं पाई।   अकबर जी, आप जब पत्रकारिता से राजनीति में आते थे तो क्या आपको भी लोग दलाल बोलते थे, गाली देते थे, सोशल मीडिया पर मुंह काला करते थे जैसा मेरा करते हैं। ख़ासकर ब्लैक स्क्रीन वाले एपिसोड के बाद से। फिर जब कांग्रेस से पत्रकारिता में आए तो क्या लोग या ख़ासकर विरोधी दल, जिसमें इन दिनों आप हैं, आपके हर लेखन को दस जनपथ या किसी दल की दलाली से जोड़ कर देखते थे? तब आप ख़ुद को किन तर्कों से सहारा देते थे? क्या आप मुझे वे सारे तर्क दे सकते हैं? मुझे आपका सहारा चाहिए।   मैंने पत्रकारिता में बहुत सी रिपोर्ट ख़राब भी की हैं। कुछ तो बेहद शर्मनाक थीं। पर तीन साल पहले तक कोई नहीं बोलता था कि मैं दलाल हूं। मां बहन की गाली नहीं देता था। अकबर सर, मैं दलाल नहीं हूं। बट डू टेल मी व्हाट शुड आई डू टू बिकम अकबर। वाजपेयी सरकार में मुरली मनोहर जोशी जी जब मंत्री थे तब शिक्षा के भगवाकरण पर खूब तक़रीरें करता था। तब आपकी पार्टी के दफ्तर में मुझे कोई नफ़रत से बात नहीं करता था। डॉक्टर साहब तो इंटरव्यू के बाद चाय भी पिलाते थे और मिठाई भी पूछते थे। कभी यह नहीं कहा कि तुम कांग्रेस के दलाल हो इसलिए ये सब सवाल पूछ रहे हो। उम्र के कारण जोशी जी गुस्साते भी थे लेकिन कभी मना नहीं किया कि इंटरव्यू नहीं दूंगा और न ऐसा संकेत दिया कि सरकार तुमसे चिढ़ती है। बल्कि, अगले दिन उनके दफ्तर से ख़बरें उड़ाकर उन्हें फिर से कुरेद देता था।   अब सब बदल गया है। राजनीतिक नियंत्रण की नई संस्कृति आ गई है। हर रिपोर्ट को राजनीतिक पक्षधरता के पैमाने पर कसने वालों की जमात आ गई। यह जमात धुआंधार गाली देने लगी है। गाली देने वाले आपके और हमारे प्रधानमंत्री की तस्वीर लगाए हुए रहते हैं और कई बार राष्ट्रीय स्वयं संघ से जुड़े प्रतीकों का इस्तमाल करते हैं। इनमें से कई मंत्रियों को फॉलो करते हैं और कइयों को मंत्री। ये कुछ पत्रकारों को भाजपा विरोधी के रूप में चिन्हित करते हैं और बाकी की वाहवाही करते हैं।   निश्चित रूप से पत्रकारिता में गिरावट आई है। उस दौर में बिल्कुल नहीं आई थी जब आप चुनाव लड़े जीते, फिर हारे और फिर से संपादक बने। वो पत्रकारिता का स्वर्ण काल रहा होगा। जिसे अकबर काल कहा जा सकता है अगर इन गाली देने वालों को बुरा न लगे तो। आजकल भी पत्रकार प्रवक्ता का एक अघोषित विस्तार बन गए है। कुछ घोषित विस्तार बनकर भी पूजनीय हैं। मुझसे तटस्थता की आशा करने वाली गाली देने वालों की जमात इन घोषित प्रतिकारों को कभी दलाल नहीं कहती। हालांकि अब जवाब में उन्हें भी दलाल और न जाने क्या क्या गाली देने वाली जमात आ गई है। यह वही जमात है जो स्मृति ईरानी को ट्रोल करती है।   आपको विदेश मंत्रालय में सहयोगी के रूप में जनरल वी के सिंह मिलेंगे जिन्होंने पत्रकारों के लिए ‘प्रेस्टिट्यूड’ कहा। उनसे सहमत और समर्थक जमात के लोग हिन्दी में हमें ‘प्रेश्या’ बुलाते हैं। चूंकि मैं एनडीटीवी से जुड़ा हूं तो N की जगह R लगाकर ‘रंडी टीवी’ बोलते हैं। जिसके कैमरों ने आपकी बातों को भी दुनिया तक पहुंचाया है। क्या आपको लगता है कि पत्रकार स़ख्त सवाल करते हुए किसी दल की दलाली करते हैं? कौन सा सवाल कब दलाली हो जाता है और कब पत्रकारिता इस पर भी कुछ रौशनी डाल सकें तो आप जैसे संपादक से कुछ सीख सकूंगा। युवा पत्रकारों को कह सकूंगा कि रवीश कुमार मत बनना, बनना तो अकबर बनना क्योंकि हो सकता है अब रवीश कुमार भी अकबर बन जाये।   मै थोड़ा भावुक इंसान हूं। इन हमलों से ज़रूर विचलित हुआ हूं। तभी तो आपको देख लगा कि यही वो शख्स है जो मुझे सहारा दे सकता है। पिछले तीन साल के दौरान हर रिपोर्ट से पहले ये ख़्याल भी आया कि वही समर्थक जो भारत के सांस्कृतिक उत्थान की आगवानी में तुरही बजा रहे हैं, मुझे दलाल न कह दें और मेरी मां को रंडी न कह दें। जबकि मेरी मां ही असली और एकमात्र भारत माता है। मां का ज़िक्र इसलिए बार बार कह रहा हूं क्योंकि आपकी पार्टी के लोग ‘एक मां की भावना’ को सबसे बेहतर समझते हैं। मां का नाम लेते ही बहस अंतिम दीवार तक पहुंच कर समाप्त हो जाती है।   अकबर जी, मैं यह पत्र बहुत आशा से लिख रहा हूं। आपका जवाब भावी पत्रकारों के लिए नज़ीर बनेगा। जो इन दिनों दस से पंद्रह लाख की फीस देकर पत्रकारिता पढ़ते हैं। मेरी नज़र में इतना पैसा देकर पत्रकारिता पढ़ने वाली पीढ़ी किसी कबाड़ से कम नहीं लेकिन आपका जवाब उनका मनोबल बढ़ा सकता है।   जब आप राजनीति से लौट कर पत्रकारिता में आते थे तो लिखते वक्त दिल दिमाग़ पर उस राजनीतिक दल या विचारधारा की ख़ैरियत की चिन्ता होती थी? क्या आप तटस्थ रह पाते थे? तटस्थ नहीं होते थे तो उसकी जगह क्या होते थे? जब आप पत्रकारिता से राजनीति में चले जाते थे तो अपने लिखे पर संदेह होता था? कभी लगता था कि किसी इनाम की आशा में ये सब लिखा है? मैं यह समझता हूं कि हम पत्रकार अपने समय संदर्भ के दबाव में लिख रहे होते हैं और मुमकिन है कि कुछ साल बाद वो ख़ुद को बेकार लगे लेकिन क्या आपके लेखन में कभी राजनीतिक निष्ठा हावी हुई है? क्या निष्ठाओं की अदला बदली करते हुए नैतिक संकटों से मुक्त रहा जा सकता है? आप रह सके हैं?   मैं ट्वविटर के ट्रोल की तरह गुजरात सहित भारत के तमाम दंगों पर लिखे आपके लेख का ज़िक्र नहीं करना चाहता। मैं सिर्फ व्यक्तिगत संदर्भ में यह सवाल पूछ रहा हूं। आपसे पहले भी कई संस्थानों के मालिक राज्य सभा गए। आपने तो कांग्रेस से लोकसभा चुनाव लड़ा और बीजेपी से राज्य सभा का। कई लोग दूसरे तरीके से राजनीतिक दलों से रिश्ता निभाते रहे। पत्रकारों ने भी यही किया। मुझे ख़ुशी है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेसी सरकारों की इस देन को बरक़रार रखा है। भारतीय संस्कृति की अगुवानी में तुरही बजाने वालों ने यह भी न देखा कि लोकप्रिय अटल जी ख़ुद पत्रकार थे और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी अपने अख़बार वीरअर्जुन पढ़ने का मोह त्याग न सके। कई और उदाहरण आज भी मिल जायेंगे।   मुझे लगा कि अब अगर मुझे कोई दलाल कहेगा या मां को गाली देगा तो मैं कह सकूंगा कि अगर अकबर महान है तो रवीश कुमार भी महान है। वैसे मैं अभी राजनीति में नहीं आया हूं। आ गया तो आप मेरे बहुत काम आयेंगे। इसलिए आप यह भी बताइये कि पत्रकारों को क्या करना चाहिए। क्या उन्हें चुनाव लड़कर, मंत्री बनकर फिर से पत्रकार बनना चाहिए। तब क्या वे पत्रकारिता कर पायेंगे? क्या पत्रकार बनते हुए देश सेवा के नाम पर राजनीतिक संभावनाएं तलाश करती कहनी चाहिए?  ‘यू कैन से सो मेनी थिंग्स ऑन जर्नलिज़्म नॉट वन सर’!   मैं आशा करता हूं कि तटस्थता की अभिलाषा में गाली देने वाले आपका स्वागत कर रहे होंगे। उन्हें फूल बरसाने भी चाहिए। आपकी योग्यता निःसंदेह है। आप हम सबके हीरो रहे हैं। जो पत्रकारिता को धर्म समझ कर करते रहे मगर यह न देख सके कि आप जैसे लोग धर्म को कर्मकांड समझकर निभाने में लगे हैं। चूंकि आजकल एंकर टीआरपी बताकर अपना महत्व बताते हैं तो मैं शून्य टीआरपी वाला एंकर हूं। टीआरपी मीटर बताता है कि मुझे कोई नहीं देखता। इस लिहाज़ से चाहें तो आप इस पत्र को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं। मगर मंत्री होने के नाते आप भारत के हर नागरिक के प्रति सैंद्धांतिक रूप से जवाबदेह हो जाते हैं। उसी की ख़ैरियत के लिए इतना त्याग करते हैं। इस नाते आप जवाब दे सकते हैं। नंबर वन टीआरपी वाला आपसे नहीं पूछेगा कि ज़ीरो टीआरपी वाले पत्रकार का जवाब एक मंत्री कैसे दे सकता है, वह भी विदेश राज्य मंत्री। वन्स अगेन ईद मुबारक सर। दिल से।   आपका अदना,   रवीश कुमार    

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Dakhal News 8 July 2016


patrkar pitai

    सिमी का आतंकी बताकर  पत्रकारों को पुलिस ने पीटा   राजधानी भोपाल की पुलिस ने दैनिक भास्कर दो पत्रकारों के साथ गुंडागर्दी करते हुए उन्हें सिमी का आतंकी बताया और ढाई घंटे तक लात-घूंसों और डंडों से इतना पीटा कि उनको अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। पिटाई करने वाले तीनों पुलिसकर्मियों को निलंबित करते हुए जांच सीएसपी गोविंदपुरा अजय सिंह को सौंपी गई है। इस मामले में लापरवाही बरतने के आरोप में अवधपुरी  पुलिस स्टेशन की टीआई को भी हटा दिया गया है।    एक दैनिक भास्कर  के दो पत्रकार विजय प्रभात शुक्ला और कृृष्णमोहन तिवारी देर रात काम खत्म कर प्रेस कॉम्पलेक्स से अवधपुरी स्थित अपने घर जा रहे थे। रास्ते में डायल-100 में आए पुलिसकर्मियों ने उन्हें रोका। परिचय देने के बावजूद एएसआइ रघुबीर सिंह दांगी ने विजय को यह कहते हुए जोरदार तमाचा जड़ दिया कि तुम दोनों सिमी के आतंकी हो, यहां एटीएम उखाड़ने आए हो।   इसके बाद दांगी ने अपने साथी हेड कांस्टेबल सुभाष त्यागी और संतोष यादव को थाने ले चलने का आदेश दिया। अवधपुरी थाने ले जाकर किसी अपराधी की तरह व्यवहार करते हुए डायल-100 के तीनों पुलिसकर्मियों के अलावा थाने में मौजूद अन्य पुलिसकर्मियों ने भी उन्हें ढाई घंटे तक गंदी गालियां देते हुए लात-घूंसों के साथ डंडों से पीटा। दोनों पत्रकार गुहार लगाते रहे लेकिन उन पर कोई असर नहीं हुआ।   जब यह घटना हो रही तभी किसी तरह कृृष्णमोहन तिवारी ने अपने मोबाइल की रिकॉर्डिंग चालू कर ली थी। जिसमें साफ सुनाई दे रहा है कि पुलिसकर्मियों ने किस तरह से बर्बरता की है। दोनों को अंदरू नी चोटें आई हैं। ============================================================= 100 लगाओ, नशे में धूत गुंडे बुलाओ। क्या पीसीआर का यही मतलब है? क्या रात में शराब  पीकर ड्यूटी करने वाले पुलिस पर खुद विभाग के अफसर को ही कार्यवाही नहीं करनी चाहिए? रात में आपदा से घिरे पीड़ित क्या इन पियक्कड़ों से मदद की उम्मीद करें? हाल के दिनों में प्रदेश और राजधानी में हुई घटनाओं से लगता नहीं कि पुलिस निरंकुश हो गई है? सरकार पुलिस विभाग में रिफार्म पर काम क्यों नहीं कर रही? एक ऒर पत्रकार सुरक्षा की मांग और उसपर सरकार का आश्वासन, तो दूसरी ऒर ऐसी घटनाएं। वर्तमान घटना में क्या पुलिसवालों को सिर्फ निलंबित किया जाना चाहिए? क्या उन्हें सेवा से पृथक् नहीं किया जाना चाहिए? ================================================================================= शिवराज की नाक तले शराबी पुलिसियों का तांडव सोमवार देर रात भोपाल में दैनिक भास्‍कर के दो पत्रकारों की शराब के नशे में धुत्‍त पुलिसवालों ने रास्‍ते में रोक कर पीटा, भद्दी गालियां दीं और रात भर थाने में बैठाए रखा। दोनों पत्रकारों को गंभीर चोट आई है और वे अस्‍पताल में भर्ती हैं। फिलहाल घटना के तीन दोषी पुलिसकर्मी निलंबित किए जा चुके हैं और अवधपुरी थाने में इस संबंध में एक शिकायत दर्ज करायी जा चुकी है। मेडिकल रिपोर्ट आने के बाद कल एफआइआर दर्ज कराई जाएगी। दैनिक भास्‍कर भोपाल के वरिष्‍ठ पत्रकार अमन नम्र ने फोन पर इस सूचना की पुष्टि की।    घटनाक्रम यों है कि देर रात की शिफ्ट के बाद भास्‍कर के पत्रकार विजय प्रभात शुक्‍ला और कृष्‍ण मोहन तिवारी अवधपुरी में अपने घर जा रहे थे। रात ढाई बजे नशे में धुत्‍त एएसआइ रघुबीर सिंह डांगी और हेड कांस्‍टेबल सुभाष त्‍यागी व संतोष यादव ने उन्‍हें रोका और पूछताछ करने लगे। इसके बाद उन्‍हें भद्दी गालियां देनी शुरू कीं और मारते-पीटते हुए थाने में ले गए जहां सुबह चार बजे तक उन्‍हें पुलिसवाले पीटते ही रहे। पुलिसवालों ने दोनों पत्रकारों को सिमी का आतंकवादी कहा, कहा कि वे एटीएम लूटने जा रहे थे और फिर एनकाउंटर की धमकी भी दी।  इन तीनों पुलिसवालों ने जिन अपशब्‍दों का इस्‍तेमाल किया है, उससे पुलिस का असली चरित्र समझ में आता है। सुबह पत्रकार जब एफआइआर कराने पहुंचे तब तक पुलिसवाले नशे में ही थे। बाद में ऑडियो टेप के साक्ष्‍य पर इन्‍हें निलंबित कर दिया गया और पत्रकारों की ओर से शिकायत ले ली गई।फिलहाल दोनों पत्रकार अस्‍पताल में भर्ती हैं और उन्‍हें गंभीर चोट आई है।  घटना की चौतरफा निंदा हो रही है और मध्‍यप्रदेश की कथित ''संवेदी पुलिस'' पर सवाल उठ रहे हैं।   

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Dakhal News 6 July 2016


rajyvardhan singh rathore

  IFWJ प्रतिनिधिमंडल को केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर का आश्वासन     केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने कहा है कि उनकी सरकार पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर काफी गंभीर है।  और वे शीघ्र ही राज्य सरकारों से विचार विमर्श करके कोई सार्थक कानून बनाने की पहल करेंगे। उन्होने यह भी कहा कि लघु और मध्यम समाचार पत्रों के लिये प्रस्तावित विज्ञापन नीति को लागू करने से पहले विभिन्न संगठनों से बात करके ही कोई निर्णय लेंगे। राठौर ने यह आश्वासन आज 'इंडियन फैडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्टस' (आई.एफ.डब्ल्यू.जे.) के एक प्रतिनिधि मंडल को दिया। प्रतिनिधिमंडल में आई.एफ.डब्ल्यू.जे. के उपाध्यक्ष  हेमंत तिवारी व  उमेश कुमार, प्रधान महासचिव परमानंद पाण्डेय एवं कोषाध्यक्ष रिंकू यादव शामिल थे।     आई.एफ.डब्ल्यू.जे. प्रतिनिधिमंडल ने जयपुर सम्मेलन में पारित दो प्रस्तावों से संबंधित दो अलग अलग ज्ञापन कंद्रीय राज्यमंत्री श्री राठौर को दिये,पहला ज्ञापन पत्रकारों की सुरक्षा से संबंधित मजबूत कानून बनाने से संबंधित था। और दूसरा सरकार की नई विज्ञापन नीति से संबंधित था। पत्रकारों की सुरक्षा पर आई.एफ.डब्ल्यू.जे. ने मांग की है कि इस पर ऐसा कानून बनाया जाये जिससे गुण्डे, माफिया और असामाजिक तत्व उन पर हमला करने को सोच भी न सकें। और जो लोग उनपर हमला करें उन्हें कठोर दंड दिया जाये।   इसके अलावा पत्रकारों को झूठे मुकदमों में फंसाने वाली एफआईआर दर्ज करने से पहले पूरी निष्पक्ष जांच सक्षम अधिकारी द्वारा करा ली जाये। देखा ये गया है कि जिन भ्रष्ट एवं असामाजिक तत्वों के कारण पत्रकार रिपोर्ट करता है, वे बौखला कर न केवल उनपर हमले करवाते हैं, बल्कि शासन प्रशासन से मिलकर उन्हें झूठे मुकदमें में भी फंसा देते हैं। आई.एफ.डब्ल्यू.जे. की मांग है कि पत्रकारों के लिये जोखिम बीमा  योजना हो जो कम कम से एक करोड रूपये की हो।  पत्रकारों के दुखद निधन पर उनके परिवार को पर्याप्त अनुग्रह राशि और किसी सदस्य को नौकरी भी दी जाये।     विज्ञापन नीति आई.एफ.डब्ल्यू.जे. का मानना है कि सरकार की प्रस्तावित विज्ञापन नीति छोटे एवं मझले समाचार पत्रों के प्रति भेदभाव पूर्ण है, जबकि बडे समाचार पत्रों के लिये कोई शर्त नहीं रखी है. किन्हीं तीन समाचार एजेंसियों की अनिवार्यता पर भी आईएफडब्ल्यूजे ने अपनी आपत्ती जतायी है. संगठन से यह भी मांग की है कि सभी समाचार पत्र श्रम कानूनों का पूरी तरह पालन करें।  और उन बडे समाचार पत्रों का विज्ञापन तुरंत बंद कर दिया जाये जिन्होने अभी तक मजेठिया वेज बोर्ड की सिफारशों को लागू नहीं किया है। कंद्रीय राज्य मंत्री ने करीब एक घंटे विस्तार से चली बातचीत के बाद प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि इन दोनों विषयों में कोई भी निर्णय लेने से पहले 'इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्टस' संगठन से विस्तृत विचार विमर्श किया जायेगा

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Dakhal News 5 July 2016


bjp

  बीजेपी नेता की नसीहत    भोपाल में भाजपा के वरीष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी ने मीडिया पर  हमला बोला  । उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा है की मीडिया संजय की भूमिका में रहे नारद बनने की कोशीश नही करे तो ठीक रहेगा ।  जोशी ने कहा संजय जो देखते थे वही बताते थे । आज कुछ लोग मीडिया में नारद की भूमिका में है जो गलत है । नारद की तरह की गई लोकहित की आलोचना सबको सहन करना चाहीए । उन्होंने कहा की आलोचना अगर लोकहित के बाहर हो तो सबको इसका विरोध करना चाहीए ।   जोशी ने कहा की मीडिया में कभी कभी इस तरह की बाते आ जाती है जो हुई ही नही होती है और उनका कोई धरातल नही होता है । उन्होंने मीडिया में सुधार को असम्भव बताया और सबके साथ मीडिया को भी मर्यादा में रहने की चेतावनी दी है । गौरतलब है की भाजपा के सीनियर नेता कैलाश जोशी को भी विधानसभा चुनावो के समय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एक स्टिंग आपरेशन से दिक्क़त का सामना करना पड़ा था ।

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Dakhal News 1 July 2016


pushpa rokde

      दैनिक प्रखर समाचार के (बीजापुर) ब्यूरो चीफ पुष्पा रोकडे को  मानवाधिकारों के लिए कार्यरत लोक स्वातंत्र्य संगठन ( पीयूसीएल ) और पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष समिति की ओर से निर्भीक पत्रकारिता के लिए सम्मानित किया गया। इस अवसर पर उन्हें कासे के कटोरे में धान, कलम और प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।   राजधानी रायपुर के ग्रास मेमोरियल सभागार में प्रेस, जनता और राज्य विषय पर आयोजित नागरिक सम्मेलन में समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा, पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष लाखन सिंह, महासचिव और हाईकोर्ट की अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, राजेन्द्र सायल, सामाजिक कार्यकर्ता आनंद मिश्रा, नंद कश्यप, जनकलाल ठाकुर, आदिवासी मामलों के जानकार अरविंद नेताम, छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के आलोक शुक्ला, चितरंजन बख्शी ने प्रदान किया।  छत्तीसगढ़ पीयूसीएल की तरफ से यह पुरस्कार अब तक वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ,कुलदीप नैयर, भारत डोगरा, प्रफुल विदवई और आनन्द वर्मा को प्रदान किया जा चुका है। इस मौके पर पत्रकार आलोक पुतुल,मालिनी सुब्रमण्यम, सुभोजित बागची, प्रभात सिंह, राजकुमार सोनी अनिल मिश्रा, क्रांति रावत, तामेश्वर, लिगा कोडपी, दिनेश सोनी,देवशरण तिवारी, नितिन सिन्हा, उत्तम कुमार  को भी सम्मानित किया गया।   सभागार में आदिवासी नेत्री सोनी सोढ़ी, अधिवक्ता शालिनी गेरा, गोल्डी जार्ज, सामाजिक कार्यकर्ता डिग्री चौहान, ईशा खंडेलवाल, प्रिया शुक्ला, सुकमा के पूर्व जस्टिज प्रभाकर ग्वाल, पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त समिति के संयोजक कमल शुक्ला, फिल्मकार अजय टीजी, इंडिया न्यूज के प्रदेश प्रमुख शेखर , सहित सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता, गणमान्य नागरिक व पत्रकार मौजूद थे।  

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Dakhal News 29 June 2016


etv

      मुख्यमंत्री  चौहान ई.टी.वी. के कार्यक्रम ब्लैक एण्ड व्हाइट में   ऋतु साहू   एमपी के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि प्रदेश की जनता के चेहरे मुस्कुराते रहें। जिन्दगी बोझ नहीं, वरदान लगे। इसके लिये प्रदेश में आनंद मंत्रालय का गठन किया जा रहा है। जिसमें रोटी, कपड़ा, मकान, आध्यात्म, योग और ध्यान के साथ ही कला, संस्कृति और गान भी होगा। श्री चौहान भोपाल में  ईटीवी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ द्वारा आयोजित हिन्दी फिल्मों के दि ब्लैक एण्ड व्हाईट शो में संबोधित कर रहे थे। शो में निश इंटरटेनमेंट द्वारा हिन्दी सिनेमा के ब्लेक एण्ड व्हाईट युग के गीतों के साथ भारतीय सिनेमा के इतिहास को प्रस्तुत किया गया।   मुख्यमंत्री  चौहान ने कहा कि दि ब्लैक एण्ड व्हाईट शो अद्भुत कार्यक्रम है। इसका प्रदेश के अन्य स्थानों पर भी आयोजन करवाया जाये ताकि प्रदेश की अधिक से अधिक जनता शो का आनंद ले सकें। उन्होंने शो के कलाकारों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि पुरानी फिल्मों के गीत अर्थपूर्ण होते हैं। उन्होंने भूले-बिसरे गीतों के कार्यक्रम के माध्यम से पुराने गीतों को भूलने नहीं देने के लिये ईटीवी को बधाई दी। उन्होंने अपने बचपन की स्मृतियों का स्मरण करते हुये 'एहसान मेरे दिल पर तुम्हारा है दोस्तों'' गीत का गायन भी किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने शो के कलाकारों को स्मृति चिन्ह भेंट किये।   ईटीवी के चैनल हेड  जगदीश चन्द्रा ने बताया कि शो का जयपुर के बाद दूसरा आयोजन मध्यप्रदेश में हो रहा है। उन्होंने प्रदेश सरकार की नीतियों और कार्यों की सराहना करते हुये कहा कि मध्यप्रदेश में विकास और सुशासन के नित नये चमत्कार हो रहे हैं।   कार्यक्रम में लोकायुक्त  पी.पी. नावलेकर, विधानसभा अध्यक्ष  सीताशरण शर्मा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री  नरोत्तम मिश्रा, परिवहन मंत्री  भूपेन्द्र सिंह, पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री  गोपाल भार्गव, राजस्व मंत्री  रामपाल सिंह, महिला एवं बाल विकास मंत्री  माया सिंह, लोक निर्माण मंत्री  सरताज सिंह, नर्मदा घाटी विकास राज्य मंत्री  लालसिंह आर्य एवं सांसद प्रदेशाध्यक्ष भाजपा  नंदकुमार सिंह चौहान, सांसद  आलोक संजर, महापौर  आलोक शर्मा, विधानसभा उपाध्यक्ष  राजेन्द्र कुमार सिंह, विधायक  विश्वास सारंग, मुख्य सचिव  अंटोनी डिसा, पुलिस महानिदेशक  सुरेन्द्र सिंह एवं बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।  

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Dakhal News 27 June 2016


dinesh malviya

माध्यम के महाप्रबंधक बने मालवीय प्रलय श्रीवास्तव मध्यप्रदेश जनसम्पर्क संचालनालय में 34 साल की उल्लेखनीय सेवा के बाद 31 मई 2016 को उप संचालक  दिनेश मालवीय सेवानिवृत्त हो गये। श्री मालवीय कर्मठ, सेवाभावी, निष्ठावान अधिकारी रहे है। अनेक पुस्तकों का अनुवाद और विभिन्न विषय पर पुस्तक का प्रकाशन कर चुके श्री मालवीय की हिन्दी, अंग्रेजी के साथ-साथ उर्दू एवं संस्कृत भाषा पर अच्छी पकड़ रही। ज्ञान और शब्द संग्रह की मानों वे खदान है। संचालनालय के प्रत्येक महत्वपूर्ण लेखन कार्य अथवा प्रकाशन में उनकी लेखनी खूब चली। अनेक फिल्म की पटकथा अथवा विज्ञापन के मैटर का में, मालवीय  ने महत्वपूर्ण योगदान किया। अपनी विशिष्ट भाषा शैली, हिन्दी-अंग्रेजी का गहन ज्ञान और वित्तीय आंकड़े उन्हें सदैव कंठस्थ रहे, यही उनकी पहचान भी रही है। विशिष्ट व्यक्ति और वरिष्ठ अधिकारी श्री दिनेश मालवीय की लेखनी को लोहा मानते है, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है।मालवीय जी के संघर्ष को मैने करीब से देखा और महसूस किया है। कार्य के प्रति उनकी लगन, जुझारूपन और निष्ठा सदैव नये युवा अधिकारियों को प्रेरित करेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। मेरा मानना है कि अपर संचालक रहे स्व. श्री के.डी. झा के कृतित्व की छाप  दिनेश मालवीय पर पड़ी है, यही कारण है कि श्री झा साहब के जाने के बाद जनसम्पर्क के क्षेत्र में जो रिक्तता आई उसे भरने का प्रयास मालवीय जी ने अपने अथक परिश्रम और समर्पण भाव से की गई सेवा से किया। जनसम्पर्क में सर्विस की पारी खेल चुके दिनेश मालवीय को राज्य शासन ने उनकी सेवाओं को देखते हुए मध्यप्रदेश माध्यम में महाप्रबंधक के पद पर नियुक्त किया है। इस तरह उनकी सेवाएं सतत मिलती रहेगी।  दिनेश मालवीय को उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएँ।       जिसके लफजों में हमें अपना अक्स मिलता है।       बड़े नसीब से दिनेश मालवीय जैसा शख्स मिलता है॥

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Dakhal News 24 June 2016


aanand panday

  आनंद पांडे को मिला माधवराव सप्रे सम्मान      'समाज के हर क्षेत्र में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। पत्रकारिता भी इससे अछूती नहीं है। अब पत्रकारिता के सभी माध्यमों में प्रयोग करने का समय आ गया है। एक समय था जब अखबारों की क्वालिटी ठीक नहीं थी, लेकिन पठन सामग्री बेहतर होती थी। हमें बेहतर और विश्वसनीय पठन सामग्री उपलब्ध करना होगा। इसके लिए पत्रकारिता जगत को नए सिरे से परिभाषित करना होगा। पत्रकारिता में नए प्रयोगों का समय आ गया है।"   नईदुनिया के समूह संपादक आनंद पांडे ने रविवार को सप्रे संग्रहालय यह बातें कहीं। उन्हें 'रतनलाल जोशी जन्मशती स्मरण और राष्ट्रीय अलंकरण समारोह" में 'माधवराव सप्रे" सम्मान प्रदान किया गया।   उन्होंने 'पत्रकारी अवधारणा" पर अपनी बात रखी। यहां भारतीय ज्ञान परंपरा के जानकार डॉ. कपिल तिवारी को 'महेश सृजन" सम्मान से नवाजा गया। सम्मान स्वरूप शॉल, श्रीफल व प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित जनसंपर्क मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने कहा, पत्रकारिता और राजनीति लोकतंत्र के प्रमुख स्तंभ हैं। इनकी जिम्मेदारी है कि समाजहित के लिए मिलकर काम करें।   डॉ. कपिल तिवारी ने कहा, 'ज्ञान खुद को जगाने का माध्यम है। यह हमेशा अच्छे आचरण की बात करता है, लेकिन हम आचरणों को आत्मसात नहीं कर रहे। बस, हर कीमत पर सफलता पाना चाहते हैं। यही चाहत हमें जीवन मूल्यों से समझौता करने पर मजबूर करती है।" स्व. रतनलाल जोशी की बेटी कवयित्री शांति शर्मा ने उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर विचार रखे। कार्यक्रम में सांसद आलोक संजर, रतनलाल जोशी परिवार व अन्य अतिथि उपस्थित थे।     कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार मलय श्रीवास्तव को 'हुकुमचंद नारद" सम्मान दिया गया। राष्ट्रीय एकता परिषद के अध्यक्ष चुने जाने पर वरिष्ठ पत्रकार महेश श्रीवास्तव, जनसंपर्क के क्षेत्र में ताहिर अली और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. देवेंद्र दीपक को विशेष रूप से सम्मानित किया गया।     Attachments area          

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Dakhal News 21 June 2016


udta panjab

      आशुतोष नाडकर    ई-मेल, एसएसएस और व्हॉट्सऐप ने चिठ्ठी-पत्री लिखने का जमाना बिसरा दिया है, लेकिन इन दिनों खुली चिठ्ठियाँ लिखने का चलन जोरों पर है। पत्रकार, नेता, अधिकारियों से लेकर आम आदमी भी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व अहम् ओहदों पर बैठे लोगों के नाम पर खुला खत लिख रहे हैं। ऐसे में मेरा मन भी चिठ्ठीबाजी के लिये मचल उठा, तो मैंने भी लिख मारा एक खत फिल्म निर्माता-निर्देशक अनुराग कश्यप को..       प्रिय अनुराग कश्यप जी,   मेरी पहचान केवल इतनी है कि मैं आपकी फिल्मों का जबरदस्त प्रशंसक हूँ। इसी नाते मैं ‘उडता पंजाब’ की रिलीज पर आपको बधाई देना चाहता हूँ। फिल्म को न केवल दर्शकों का बेहतर रिस्पॉन्स मिल रहा है, बल्कि समीक्षकों से भी खासी सराहना मिल रही है। जाहिर है कि फिल्म की सफलता से आप भी काफी प्रसन्न होंगे, लेकिन मेरे पत्र लिखने की वजह केवल इतनी नहीं है। दरअसल, ‘उडता पंजाब’ की कामयाबी के बीच मुझे करीब एक हफ्ते पुराना आपका ट्वीट याद आ रहा है। जी हाँ, वहीं ट्वीट जब आपका गुस्सा चरम पर रहा होगा और शायद इसीलिये आपके देश की तुलना उत्तर कोरिया से कर दी। अनुराग जी आपने ट्वीट कर लिखा था कि- 'मुझे हमेशा आश्चर्य होता था कि उत्तर कोरिया में रहने पर कैसा महसूस होगा. अब तो प्लेन पकड़ने की भी जरूरत नहीं है।' आपके ट्वीट का मैं अपनी सामान्य समझ से इतना अर्थ निकाल पाता हूँ कि आप भारत में भी अभिव्यक्ति की आजादी (उडता पंजाब के संदर्भ में) को लेकर उत्तर कोरिया जैसे हालात महसूस कर रहे हैं।     उत्तर कोरिया के बारे में मेरी जानकारी बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन  मीडिया में बनने वाली सुर्खियों के कारण इतना समझ पाया हूँ कि उत्तर कोरिया की पहचान उसके क्रूर और सनकी कहे जाने वाले तानाशाह को लेकर है। क्या आपको लगता है कि भारत में भी ऐसे किसी सनकी तानाशाह का राज चल रहा है ?   क्या आपको लगता है कि उत्तर कोरिया में कोई फिल्मकार अपनी फिल्म को लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है और वहाँ का कोर्ट फिल्मकार की याचिका पर सेंसर बोर्ड को फटकार लगा सकता है ?   आपको लगता है कि लगता है कि उत्तर कोरिया में गैरवाजिब ढंग से किसी फिल्म में की गई  कांट-छांट के बाद वहाँ की जनता सोशल मीडिया पर फिल्मकार का जबरदस्त समर्थन कर सकती है ? (जैसा भारत में किया गया)   क्या उत्तर कोरिया की फिल्म इंडस्ट्री किसी फिल्मकार के समर्थन में भारत की तरह खडी हो सकती है ?       मेरी समझ से तो इन सभी सवालों के जवाब ‘ना’ में हैं। मुझे नहीं लगता की उत्तर कोरिया जैसे देश में कोई फिल्म निर्माता या निर्देशक अपनी फिल्म को लेकर इस तरह की कानूनी लडाई के बारे में सोच भी सकता है।    कश्यप जी, इसमें कोई शक नहीं कि लेखक, फिल्मकारों से लेकर आम आदमी तक को अपनी अभिव्यक्ति की पूरी आजादी होनी चाहिए। ‘उडता पंजाब’ को लेकर सेंसर बोर्ड, पहलाज निहलानी और यहाँ तक की सरकार या उसके किसी नुमाइंदे से आपकी नाराजगी को भी समझा जा सकता है।  हमारे देश में किसी फिल्म, किताब या तस्वीर को लेकर उठने वाले विवाद नये नहीं है। सरकारे चाहें किसी की भी रहीं हो, अभिव्यक्ति की राह  में काटें हमेशा से ही बिछाये जाते रहे हैं। लेकिन इसे भारतीय लोकतंत्र की खूबी ही कहेंगे कि इसी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर चलकर हमारे लेखक, पत्रकार व कलाकार अभिव्यक्ति का हक हासिल करते आये हैं(जैसा आपने भी किया है)। ये भी सच है कि कई बार हमारी व्यवस्था कलात्मकता का गला घोंटने का प्रयास करती है, लेकिन ऐसे हालत में हमला सिस्टम व उसकी कमियों पर होना चाहिए। क्या आपको लगता है कि किसी एक फिल्म पर लगाये गये अंकुश के कारण दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र को तानाशाह मुल्कों की जमात में खडा कर देना उचित है?   आप और आपके जैसे ख्यातनाम कलाकारों के न केवल देश में बल्कि पूरी दुनियाँ में हजारों प्रशंसक होते हैं। आपकी कही हर बात से पूरी दुनिया में एक मजबूत संदेश जाता है। यही वजह है कि आप लोगों से अतिरिक्त संवेदनशीलता की उम्मीद की जाती है। रही बात अभिव्यक्ति को कुचलने वाली व्यवस्था से नाराजगी की, तो आप ही की तरह देश के कई खासो-आम इस सिस्टम से परेशान है। ऐसे में मुल्क छोडने या उसकी तुलना अलोकतांत्रिक देशों से करने से पहले इस सिस्टम से ही दो-दो हाथ कर लें। फिर आपके साथ तो ये लडाई लडने के लिये दीवाने प्रशंसकों की एक लंबी फौज खडी है। अपेक्षा केवल इतनी है कि कोई ट्वीट ऐसा भी हो-‘उडता पंजाब को मिला इंसाफ और उत्तर कोरिया में ये मुमकिन नहीं होता....’  

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Dakhal News 20 June 2016


news paper

    सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नई विज्ञापन नीति जारी की है। इस विज्ञापन नीति के लागू हो जाने के बाद देश के 80 से 90 फ़ीसदी लघु एवं मध्यम श्रेणी के भाषाई समाचार पत्र विज्ञापन के अभाव में बंद हो जाएंगे। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने जो नई अंकीय व्यवस्था लागू की है। उसके बाद लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों को केंद्र एवं राज्य सरकारों के विज्ञापन मिलना संभव ही नहीं होगा। डीएवीपी ने जो नई नीति जारी की है उसमें अंकों के आधार पर समाचार पत्रों को विज्ञापन सूची में वरीयता क्रम में विज्ञापन देने के लिए चयन करने की बात कही गई है। सूचना प्रसारण मंत्रालय के डीएव्हीपी द्वारा दिनांक 15 जून को जो पत्र जारी किया गया है उसमें एबीसी और आरएनआई का प्रमाण पत्र 25 हजार प्रसार संख्या से अधिक वाले समाचार पत्रों के लिए अनिवार्य किया गया है । इसके लिए 25 अंक रखे गए हैं । इसी तरह कर्मचारियों की पीएफ अंशदान पर 20 अंक रखे गए हैं । समाचार पत्र की पृ… संख्या के आधार पर 20 अंक निर्धारित किए गए हैं। समाचार पत्र द्वारा जिन 3 एजेंसियों के लिए 15 अंक निर्धारित किए गए हैं। स्वयं की प्रिंटिंग प्रेस होने पर 10 अंक और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की प्रसार संख्या के आधार पर फीस जमा करने पर 10 अंक दिए गए हैं । इस तरह 100 अंक का वर्गीकरण किया गया है, जो वर्तमान में 90 फीसदी लघु एवं मध्यम समाचार पत्र पूरा नहीं कर सकते हैं।   इस नई विज्ञापन नीति के लागू होने के बाद बड़े राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों को ही अब केंद्र एवं राज्य सरकारों के विज्ञापन जारी हो सकेंगे। लघु एवं मध्यम श्रेणी के समाचार पत्र डीएवीपी की विज्ञापन सूची से या तो बाहर हो जाएंगे या उन्हें साल में 15 अगस्त 26 जनवरी के ही विज्ञापन मिल पाएंगे। सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा विज्ञापन नीति 2016 के अनुसार 25 हजार से ऊपर प्रसार संख्या वाले समाचार पत्रों को 30 जून तक नई विज्ञापन नीति के अनुरूप ऑनलाइन जानकारी भरने को कहा गया है। इस पत्र में यह भी कहा गया है कि जिन समाचार पत्रों को 45 अंक से कम प्राप्त होंगे, उन समाचार पत्रों को विज्ञापन सूची से पृथक किया जा सकता है। नई विज्ञापन नीति में डीएवीपी देश के 90 फीसदी भाषाई समाचार पत्र डीएवीपी की विज्ञापन सूची से बाहर हो जाएंगे।    अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात केंद्र एवं राज्य सरकारें विज्ञापन के बल पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को पूरी तरह नियंत्रित कर पाने में सफल हुई हैं। अब यही प्रयोग प्रिंट मीडिया पर लागू किया गया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जो नई विज्ञापन नीति जारी की गई है। उसके लागू होने के बाद देशभर के राष्ट्रीय स्तर के करीब एक दर्जन समाचार-पत्र तथा प्रादेशिक स्तर के लगभग 100 समाचार पत्र ही अब केंद्र सरकार के विज्ञापनों पर प्राथमिकता से हक अधिकार रख पाएंगे। डीएवीपी व्यवसायिक दृष्टि को अपनाते हुए केवल उन्हीं समाचार पत्रों को विज्ञापन जारी करेगी जिनकी पृष्ठ संख्या काफी ज्यादा है और काफी बड़े समाचार पत्र हैं। उन्हें ही विज्ञापन जारी करेगी। सरकार की इस नीति से भाषाई अखबार जो बड़े पैमाने पर विभिन्न प्रदेशों से भाषा के आधार पर कई दशकों से प्रसारित हो रहे हैं और उनका जनमानस में बहुत बड़ा असर है। अब इनको विज्ञापन मिलना संभव नहीं होगा ।     डीएवीपी को आधार मानती है देश की सभी राज्य सरकारें  डीएवीपी के रेट को आधार मानकर राज्यों में उन्हीं समाचार पत्रों को विज्ञापन प्राथमिकता से जारी करते हैं जो डीएवीपी की सूची में दर्ज है । उनके रेट डीएवीपी ने मान्य किए हैं। नई नीति में देश के 90 फीसदी लघु एवं मध्यम श्रेणी के समाचार पत्र अब सूची से बाहर हो जाएंगे। इस स्थिति में उन्हें राज्य सरकारों के विज्ञापन भी नहीं मिल पाएंगे ।      सुनियोजित षड्यंत्र  सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा 2016 में जारी की गई है। नीति में षडय़ंत्र की बू आ रही है। समाचार पत्र संचालकों के अनुसार इसमें मात्र तीन समाचार एजेंसी को मान्यता दी है। जबकि पिछले 10 वर्षों में भाषाई एजेंसियां बड़े पैमाने पर काम कर रही हैं। उनकी सेवाएं हजारों समाचार पत्र ले रहे हैं। उन्हें नई नीति में अनदेखा किया गया है।   6000 से 75000 की प्रसार संख्या वाले समाचार पत्रों के लिए अभी तक सीए (चार्टर्ड एकाउन्टेंट) का प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य था। नई नीति में 25000 से 75000 तक के समाचार पत्रों को एबीसी अथवा आरएनआई से प्रसार संख्या प्रमाणित कराने की अनिवार्यता रखी गई है। मात्र 15 दिनों के अंदर यह प्रमाण पत्र प्राप्त कर पाना किसी भी समाचार पत्र के लिए संभव नहीं है । एबीसी और आरएनआई के लिए भी हजारों समाचार पत्रों की प्रसार संख्या का ऑडिट कर पाना संभव भी नहीं है। नई व्यवस्था में जान-बूझकर इस तरीके के प्रावधान रखे गए हैं जो लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों द्वारा न तो पूरे किए जा सकते हैं ना ही उन पर लागू होते हैं । ऐसी स्थिति में नए नियमों में 25000 से 75000 संख्या वाले समाचार पत्रों को 25 से 30 अंक मिलना भी संभव नहीं होगा। डीएवीपी ने न्यूनतम 45 अंक अनिवार्य किया है। लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों द्वारा इस नीति का व्यापक विरोध किया जा रहा है। समाचार एजेंसी को कई प्रादेशिक संगठनों एवं समाचार पत्र संचालकों द्वारा बताया गया है कि यह नीति स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति पर अभी तक का सबसे बड़ा आघात माना जा सकता है। कई समाचार पत्र मालिकों ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि बड़े-बड़े कारपोरेट घरानों का यह एक बहुत बड़ा षडयंत्र है। जिस तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर विज्ञापन देकर सरकारों ने अपना नियंत्रण कर लिया है। उसी तरह अब प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करने भाषाई अखबारों को समाप्त करने का षड्यंत्र रचा गया है । जिसका भारी विरोध समाचार पत्र संचालक कर रहे हैं । इस नीति के लागू होने से देश के लगभग 1 लाख पत्रकारों के बेरोजगार होने की संभावना बन गई है।

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Dakhal News 18 June 2016


jagdesh diwedi

    महेश  दीक्षित   बड़बोले, खोजी निगाहें, स्निग्ध मुस्कान, गोरांग, सामान्य सी कद-काठी। जब तक कुछ बोले नहीं, तब तक उनके व्यक्तित्व की थाह पाना मुश्किल ही होता है। दिखने में बेहद सरल, लेकिन भीतर से बेहद संजीदा, खुद के लिए भी और दूसरों के लिए भी। उसकी वजह है अपने भीतर विचारों का, योजनाओं का, सपनों का, जज्बातों का सैलाव संभाले रहते हैं। हम बात कर रहे हैं भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार जगदीश द्विवेदी की। उन्होंने पत्रकारिता में बेहद कम समय ही अपनी अलग पहचान स्थापित की है। एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले 47 वर्षीय जगदीश ने स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही पत्रकारिता में कुछ कर गुजरने का सपना खुली आंखों से देखना शुरू कर दिया था। वे 1991 में भोपाल आए ही थे, कि उन्हें दैनिक जागरण में बतौर ट्रेनी रिपोर्टर काम करने का मौका मिल गया। बस फिर क्या था, जागरण में ही लंबी पारी खेलते हुए 1996 में उन्हें अपराध रिपोर्टिंग का प्रभारी बना दिया गया। इसके बाद उन्होंने लगातार अपराध जगत की कई खोजपरक और अकादमिक स्पेशल स्टोरीज से क्राइम रिपोर्टिंग में कई नए प्रतिमान स्थापित किए। परंपरागत क्राइम रिपेार्टिंग करने वाले रिपोर्टरों को बताया कि क्राइम रिपोर्टिंग ऐसी भी हो सकती है। इसके बाद उनकी खूबियों और काबिलियत को देखते हुए प्रबंधन ने उन्हें प्रोविंसियल हेड के साथ जागरण की लोकप्रिय साप्ताहिक पत्रिका सत्यकथा का प्रभारी बनाया। सत्यकथा को उन्होंने अपनी श्रेष्ठ पत्रकारिता के जरिए नई ऊंचाईयां दी। इसमें द्विवेदी ने उस समय के चंबल बीहड़ों के कुख्यात डकैत निर्भय गुर्जर, राजू तोमर और दस्यु मलखान के इंटरव्यू किए। जो पत्रकारिता जगत में काफी चर्चित रहे। उनके इन इंटरव्यू को पत्रकारिता में मील का पत्थर कहा गया। क्योंकि जिन डकैतों को तलाशने में सरकार की पुलिस रात-दिन एक किए हुए थे, उस समय द्विवेदी ने उनके इंटरव्यू किए। इसके बाद जागरण गु्रप ने द्विवेदी को बतौर राजनीतिक संपादक प्रमोट किया। जिसका निर्वाह करते हुए उन्होंने कई सक्सेस और चर्चित स्टोरीज की। इनमें-साधना सिंह को बोले गए संवादों ने छीन ली लालबत्ती, संगठन में कंवारों को मिलेगी जगह, शादी-शुदाओं की होगी छुट्टी जैसी कई स्टोरीज बेहद सुर्खियों में रहीं। द्विवेदी वर्तमान में शाम के अखबार प्रदेश टुडे में ब्यूरो चीफ हैं। द्विवेदी ने क्रिमनोलॉजी एंड फोरेंसिक साइंस और अंग्रेजी विषय में एमए, एलएलबी किया है। द्विवेदी कहते हैं कि पत्रकारिता में अभी तो यह पड़ाव है, मुझे बहुत दूर जाना है, कुछ कर दिखाना है। द्विवेदी को श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए कई सम्मान, पुरस्कार मिल चुके हैं। लेकिन वे इनका जिक्र नहीं करना चाहते। वे कहते हैं कि किसी भी मान-सम्मान से कहीं ज्यादा जरूरी है, जीवन में निरंतरता, कठोर परिश्रम, खोजी दृष्टि, अपने पेशे को लेकर सजगता और ईमानदार होना। यदि आपके जीवन में यह पांच तत्व हैं, तो फिर आपको आगे बढऩे से कोई ताकत नहीं रोक सकती है।[बिच्छू डॉट कॉम]

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Dakhal News 15 June 2016


media

    केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने प्रकाशन मीडिया में विज्ञापन जारी करने में पारदर्शिता और विश्वसनीयता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) के लिए एक नई प्रकाशन मीडिया विज्ञापन नीति बनाई है। नीति में सरकारी विज्ञापन जारी करने को आसान बनाने और समाचार पत्रों व पत्रिकाओं की विभिन्न श्रेणियों के बीच समानता और निष्पक्षता को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।    नई विज्ञापन नीति में पारदर्शिता और विश्वसनीयता के लिए पहली बार ऐसे समाचार पत्रों को बढ़ावा देने के लिए नई अंकीय व्यवस्था पेश की गई है, जो बेहतर व्यावसायिक मानकों का पालन करते हैं और उनकी प्रसार संख्या की पुष्टि एबीसी व आरएनआई द्वारा की गई हो। इससे डीएवीपी द्वारा विज्ञापन जारी करने में पारदर्शिता और विश्वसनीयता भी सुनिश्चित होगी। अंकीय व्यवस्था छह विभिन्न मानदंडों पर दिए गए अंकों पर आधारित है। इसके मानदंडों में एबीसी/आरएनआई द्वारा प्रमाणित प्रसार संख्या (25 अंक), कर्मचारियों के लिए ईपीएफ अंशदान (20 अंक), पृष्ठों की संख्या (20 अंक), यूएनआई/पीटीआई/हिंदुस्तान समाचार की वायर सेवाओं की सदस्यता (15 अंक), अपनी प्रिंटिंग प्रेस (10 अंक), पीसीआई को सालाना सदस्यता भुगतान (10 अंक) शामिल हैं। हर समाचार पत्र को मिले अंकों के आधार डीएवीपी द्वारा विज्ञापन जारी किए जाएंगे। इससे डीएवीपी द्वारा विज्ञापन जारी करने में पारदर्शिता और विश्वसनीयता भी सुनिश्चित होगी। नीति में डीएवीपी के पैनल में शामिल होने के लिए प्रसार की पुष्टि की प्रक्रिया के बारे में भी बताया गया है।    नीति एक समाचार पत्र के बहु-संस्करणों के लिए सूचीबद्धता की प्रक्रिया भी बताती है। समाचार पत्र के हर संस्करण के लिए एक अलग आरएनआई पंजीकरण संख्या की जरूरत है और आरएनआई को प्रसार के सत्यापन के साथ हर संस्करण के लिए अलग इकाई माना जाएगा। नीति में इस बात का भी उल्लेख है कि पीएसयू और स्वायत्त संस्थाएं डीएवीपी के पैनल में शामिल समाचार पत्रों को सीधे डीएवीपी दरों पर विज्ञापन जारी कर सकती हैं। हालांकि, उन सभी को सभी वर्गीकृत जारी करने और सभी छोटी, मझोली व बड़ी श्रेणियों के विज्ञापनों के प्रकाशन के लिए डीएवीपी द्वारा तय प्रक्रियाओं का पालन करना होगा।   नीति में उन समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में विज्ञापनों को प्रमुखता से प्रकाशित किए जाने पर प्रीमियम की व्यवस्था भी की गई है, जिनकी प्रसार संख्या एबीसी व आरएनआई द्वारा प्रमाणित है। नीति में समाचार पत्रों व पत्रिकाओं को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है, जो छोटी (प्रतिदिन 25,000 प्रतियों से कम), मध्यम (25,001-75,000 प्रतियां प्रतिदिन) और बड़ी (प्रतिदिन 75,000 प्रतियों से ज्यादा) हैं। नीति में डीएवीपी के सभी ग्राहकों को नए वित्त वर्ष के पहले महीने के भीतर डीएवीपी को बीते साल के वास्तविक खर्च का 50 प्रतिशत भुगतान अधिकार पत्र/चेक/डीडी/एनईएफटी/आरटीजीएस के माध्यम से करने के लिए निर्देशित किया गया है। साथ ही वित्त वर्ष की 28 फरवरी से पहले बाकी भुगतान करने के भी निर्देश दिए गए हैं। वैकल्पिक तौर पर ग्राहक मंत्रालयों को विज्ञापनों पर अनुमानित खर्च का 85 प्रतिशत तक अग्रिम भुगतान भी करना पड़ सकता है।

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Dakhal News 13 June 2016


anand pandey

    नईदुनिया संसदीय पुरस्कार 11 मंत्री-विधायक  सम्मानित   नईदुनिया के समृद्ध और गौरवशाली पत्रकारिता के 70 साल के इतिहास पर देश-प्रदेश को गर्व है। इस अखबार ने राहुल बारपुते, राजेन्द्र माथुर और प्रभाष जोशी जैसे दिग्गज संपादक दिए हैं। नईदुनिया के 70वें स्थापना दिवस पर गुरुवार को विधानसभा के मानसरोवर सभागार में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ये बात कही। मुख्यमंत्री बोले- नईदुनिया अब नई सोच और नए अंदाज के साथ नए कलेवर में और लोकप्रिय होगा।   इससे पूर्व संसदीय पुरस्कार समारोह का आगाज जागरण परिवार के पितृपुरुष पूर्णचंद गुप्त और नरेंद्र मोहन गुप्त के चित्रों पर पुष्पांजलि अर्पण के साथ किया गया। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा, जागरण प्रकाशन समूह के सीएमडी महेंद्र मोहन गुप्त, एग्जीक्यूटिव प्रेसीडेंट देवेश गुप्त ने उनके चित्र पर पुष्प अर्पित किए। नईदुनिया के सीईओ संजय शुक्ला ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया।   जनप्रतिनिधियों को अच्छे काम के लिए प्रेरित करेगा नईदुनिया संसदीय पुरस्कार: तोमर केंद्रीय इस्पात व खनन मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने नईदुनिया के कार्यक्रम को मन को अविभूत करने वाला बताया। उन्होंने नईदुनिया/जागरण परिवार की इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि यह संसदीय पुरस्कार मध्यप्रदेश के जनप्रतिनिधियों को अच्छा काम करने की प्रेरणा प्रदान करेगा। 1975 में आपातकाल के दौर में नईदुनिया/नवदुनिया ने अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात का पुरजोर विरोध किया था और संपादकीय पेज को विरोध स्वरूप कोरा प्रकाशित किया था। उत्तर प्रदेश में यही काम जागरण ने किया। मुझे याद है कि महेंद्र मोहन गुप्त अपातकाल में जेल भी गए थे। लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी के प्रति दोनों का योगदान नजीर माना जाता रहेगा।   विश्वसनीयता नईदुनिया की पहचान: सीतासरन शर्मा विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा ने कहा कि आज देश में 88 हजार अखबार प्रकाशित हो रहे हैं। किसी अखबार को निरंतर 70 साल प्रकाशित करना बहुत कठिन काम हैं। इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के दौर में प्रिंट मीडिया के लिए अपना अस्तित्व बनाए रखना चुनौती भरा है। 1977 के चुनाव में नईदुनिया मध्यप्रदेश में सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला और भरोसेमंद माने जाना वाला अखबार रहा। नईदुनिया की विश्वसनीयता बरकरार रही। नईदुनिया ने वही भूमिका निभाई जो एक सच्चा देशभक्त और लोकतंत्र का प्रहरी निभाता है।   समारोह में इन्होंने की शिरकत नईदुनिया संसदीय पुरस्कार समारोह में मप्र के 170 से ज्यादा विधायक और गणमान्य लोग मौजूद रहे। समारोह में मंत्री गोपाल भार्गव, जयंत मलैया, डॉ. गौरी शंकर शेजवार, गौरी शंकर बिसेन, पारस जैन, माया सिंह, भूपेंद्र सिंह, राजेंद्र शुक्ल, ज्ञान सिंह, अंतर सिंह आर्य, लाल सिंह आर्य, दीपक जोशी, सुरेंद्र पटवा और डॉ. नरोत्तम मिश्रा की मौजूदगी उल्लेखनीय रही।   हर साल निभाएंगे संसदीय पुरस्कार की परंपरा: महेंद्र मोहन गुप्त मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने भाषण के दौरान संसदीय पुरस्कार की इस परंपरा को जारी रखने के लिए कहा। इस पर नईदुनिया / जागरण प्रकाशन समूह के सीएमडी महेंद्र मोहन गुप्त ने हर साल वर्षगांठ के अवसर पर संसदीय पुरस्कारों की ये परंपरा जारी रखने की घोषणा की। श्री गुप्त ने कहा कि चार साल पहले छजलानी परिवार आर्थिक नुकसान की वजह से नईदुनिया अखबार को बंद करने जा रहा था, तब हमने नईदुनिया की गौरवशाली परंपरा का ख्याल रखते हुए विनय छजलानी से कहा कि इस विरासत को आप हमें दे दीजिए, हम इस उत्कृष्ट परंपरा को आगे बढ़ाएंगे। श्री गुप्त ने कहा कि हम विश्वास दिलाते हैं कि पत्रकारिता के उन्हीं मानदंडों को कायम रखेंगे, जो 70 साल में नईदुनिया ने स्थापित किए हैं।   लोकतंत्र में ब्रम्हास्त्र है मीडिया : राजेंद्र सिंह विधानसभा उपाध्यक्ष डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा कि यह एक सुखद अवसर है जब हम देख रहे हैं कि कोई अखबार जनप्रतिनिधियों की प्रशंसा कर रहा है। दरअसल, आलोचना करना बड़ा सरल है, लेकिन प्रशंसा के लिए उदार हृदय की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए नईदुनिया साधुवाद का पात्र है। पुरस्कार समारोह से विधायक विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्च‍ित करने के लिए और अधिक ईमानदारी से प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि बाल्यकाल से ही वे नईदुनिया से जुड़े रहे हैं। उन्होंने मीडिया की ताकत को लोकतंत्र का ब्रम्हास्त्र निरूपित किया।   हम आज भी प्रोडक्ट नहीं अखबार हैं : आनंद पांडे नईदुनिया के समूह संपादक आनंद पांडे ने कहा कि ड्राइंग रूम में बैठकर लोकतंत्र और राजन‍ीति को कोसने से कुछ नहीं होगा, जब हम जनप्रतिनिधियों की कमियों को रेखांकित करते हैं, तो हमारा धर्म है कि अच्छा काम करने वालों को प्रशंसा के साथ पुरस्कृत भी करें। नईदुनिया, नवदुनिया आज भी प्रोडक्ट नहीं, बल्कि अखबार की तरह ही प्रकाशित होता है।   इनका हुआ सम्मान - सदन में सर्वाधिक उपस्थिति एवं सर्वाधिक सवालों के जवाब देने वाले मंत्री   नरोत्तम मिश्रा, स्वास्थ्य और विधि एवं विधायी कार्य मंत्री   - विधानसभा में सर्वाधिक ध्यानाकर्षण सूचना लगाने के लिए   - पुरुष वर्ग - डॉ. गोविंद सिंह, लहार   - महिला वर्ग - सरस्वती सिंह   बजट सत्र के सदन में सर्वाधिक भागीदारी   - पुरुष वर्ग - बहादुर सिंह चौहान, (उज्जैन) - महिला वर्ग - झूमा सोलंकी, विधायक कनगांव (खरगोन)   सर्वाधिक प्रश्न पूछने वाले विधायक   - पुरुष वर्ग - कालू सिंह ठाकुर   - महिला वर्ग - ऊषा चौधरी   सदन में सर्वाधिक उपस्थिति   - पुरुष वर्ग - प्रताप सिंह, विधायक जवेरा (दमोह) ह महिला वर्ग - ममता मीणा, विधायक चाचौड़ा (गुना)   विधेयक चर्चा में सर्वाधिक भागीदारी   - पुरुष वर्ग - डॉ. रामनिवास रावत विधायक - विजयपुर (श्योपुर)   - महिला वर्ग - शीला त्यागी, विधायक मनगवां (रीवा)

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Dakhal News 10 June 2016


raipur

    हादसे में कैमरामेन की भी मौत        रायपुर-बिलासपुर हाईवे पर बुधवार को हुए सड़क हादसे में एक चैनल के कैमरामैन और उसकी मां की मौत हो गई। दोनों एक बाइक पर सवार थे जिसे एक तेज रफ्तार ट्रक ने चपेट में ले लिया। गंभीर हालत में करीब ढाई घंटे तक मां-बेटे सड़क पर तड़पते रहे। इस बीच उनकी मदद के लिए न कोई एंबुलेंस नहीं पहुंची।  एक रीजनल चैनल में कैमरामैन की पोस्ट पर कार्यरत राकेश चौहान (24) अपनी मां को पहुंचाने रायपुर से सिमगा जा रहा था। सिमगा के पास तेज रफ्तार ट्रक ने बाइक को टक्कर मार दी, जिससे दोनों सड़क पर गिर गए। मां-बेटे को गंभीर चोटें आईं। खून से लथपथ दोनों को देख मौके पर लोगों की भीड़ जुट गई। किसी ने 108 पर फोन लगाकर संजीवनी एंबुलेंस को बुलाने की कोशिश की। दूसरी ओर से आश्वासन तो मिला पर एंबुलेंस नहीं पहुंची। आखिकार करीब ढाई घंटे तड़पने के बाद मां-बेटे ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक राकेश घर का इकलौता कमाने वाला शख्स था। उसकी मौत से परिवार को कमाकर खिलाने वाला कोई नहीं रह गया है। दरअसल 108 संजीवनी और 102 महतारी एक्सप्रेस के पायलट्स अपनी मांगों के लिए हड़ताल पर हैं। इसीलिए हादसों में घायल लोगों को अस्पताल पहुंचाने की यह सरकारी व्यवस्था ठप पड़ी हुई है।सरकार ने वैकल्पिक व्यवस्था करने की कोशिश की है, लेकिन एक लिमिट से ज्यादा मदद कर नहीं पा रही है।  

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Dakhal News 9 June 2016


ram vraksh

    प्रवीण दुबे  मैंने कभी अपनी दादी को नहीं देखा वो मेरे पैदा होने से पहले गुज़र गई थीं लेकिन दादी के रोल मे बुआ को ज़रूर देखा है । बाबूजी से बहुत बड़ी थीं और उनमे दादियों टाईप के सभी गुण थे। सफ़ेद झक साड़ी, अपनी अलग बादशाहत, खुश होने पर पैसा देने की आदत, नाराज़ होने पर कान खींचने की प्रवृत्ति। कब आओगे,कहाँ जा रहे हो बिना नागा टोकने का दादीपना। बहरहाल ,  वो अक्सर पूजा के पहले बुदबुदाती थीं "राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट, अंतकाल पछताओगे जब प्राण जाएँगे छूट"  आज के बाबाओं को देखकर मुझे अपनी बुआ की वो लाइनें याद आती हैं ।  सब साले राम नाम को लूट रहे हैं.... रामपाल, आसाराम और ये नया फ़ितूरी, सनकी रामवृक्ष। इन कलयुगी पाखंडियों  के अनुयायी भी ढेरों की तादात मे हैं। एक अकेले आदमी कैसे पूरी सत्ता को व्यवस्था को चुनौती दे देता है, ये मैंने तीनों के मामलों मे देखा। दो के मामले को  रिपोर्टिंग करते हुये क़रीब से देखा और तीसरे को दूर बैठकर देख रहा हूँ ।.... इस रामवृक्ष नाम के प्राणी के बारे मे बहुत दिनों पहले सुना था लेकिन "पागल है" सोचकर इग्नोर कर दिया था । मुझे पूरा इत्मीनान है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने मेरी तरह नहीं सोचा था । उसे कुछ न कुछ फायदा इस रामनामी मे ज़रूर दिखा होगा, तभी तो उसे इतना बड़ा होने दिया । ये तमाचा सिर्फ मथुरा के या उत्तर प्रदेश के प्रशासन पर नहीं है बल्कि हम सभी पर है ।  इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि दूसरा रामनामी पाखंडी अब नहीं होगा । फिर कोई आयेगा, फिर पूजा जाएगा, समानान्तर सत्ता का केंद्र बनेगा और फिर उसके बाद शुरू होगी उसकी टीआरपी की चीर-फाड़ । मेरे पैदा होने से पहले एक बड़े विद्वान साहित्यकार हुये और चले गए, जो इसी पाखंडी के हमनाम थे......रामवृक्ष बेनीपुरी । बिहार के भूमिहार, बेनीपुर मे पैदा हुये इसलिए बेनीपुरी कहलाए । उन्होने अपने निबंध गेंहू और गुलाब मे लिखा है..."वह कमाता हुआ गाता था और गाते हुये कमाता था....पृथ्वी पर चलता हुआ वह आकाश को नहीं भूला था और जब आकाश की ओर देखता तो उसे याद रहता था कि उसके पैर धरती पर ही हैं ।" इस रामवृक्ष को शायद आकाश की तरफ देखते वक़्त ये याद नहीं रहा या फिर यूपी सरकार ने याद नहीं दिलाया कभी । और जब याद दिलाने की बारी आई तब तक ये ज़मीन से चार फुट ऊपर चलना सीख गया था । ऐसे रामनामियों को शुरुआत मे ही जूते क्यूँ नहीं लगाए जाने चाहिए ...? सरकार तो सरकार आम लोग भी उन्हे क्यूँ सिर आँखों पर बैठा लेते हैं ...? क्यूँ इनकी हरकत पहले अदा दिखती हैं और बाद मे उन्ही हरकतों की चीर-फाड़ होती है । दरअसल, इसकी एक वजह सरोकारी पत्रकारिता से मीडिया का कटना भी है । उस इलाक़े का कोई स्ट्रिंगर कभी ऐसी खबरें भेजा भी होगा, तो उसे यह कह डंप करा दिया गया होगा कि "छोड़ो उसे कौन जानता है । क्यूँ मामूली बाबा को ग्लोरीफ़ाई कर रहे हो ।"  अब वही मामूली बाबा इतना बड़ा हो गया कि सरोकारी पत्रकारिता का तमगा लेकर घूमने वाले न्यूज़ चैनल का भी एक रिपोर्टर वहाँ तैनात है और "वरिष्ठ बुद्धिजीवी एंकर " उससे प्राइम टाइम मे पूछ रहे हैं...."फलाने.....तुम ये बताओ, इस बाबा की करतूत क्या डीएम या लोकल प्रशासन को नहीं दिख रही थी...? फलाने का जवाब होता है.......जी बुद्धिजीवी जी, यही तो हैरत की बात है, जबकि डीएम की कोठी यहाँ से सटी हुई है ।''  भाईसाहब, कुछ सरोकार आप भी दिखाओ...आपके पास तो चैनलों की भीड़ से अलग दिखने का स्वयंभू तमगा है। चलाओ ऐसे बाबाओं के खिलाफ के मुहिम.....हर दिन एक बुलेटिन तय कर दो इन बाबाओं के नाम। पूछो ढेरों सवाल उस इलाक़े के डी एम से...माफ करना, आपसे अच्छे वे दूसरे चैनल हैं, जिनके बारे मे आप ही कई बार अपने चैनल कटाक्ष करते रहते हो, वे लगभग रोज़ किसी न किसी बाबा की 12 तो बजाते हैं । आपकी तरह अचानक सरोकारी तो नहीं होते ।  मुझे तो लगता है आप भी इन पाखंडी रामनामियों की तरह आकाश की तरफ देखते समय ये भूल जाते हो कि आपके पैर भी धरती पर नहीं हैं।[प्रवीण दुबे की वॉल से ]

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Dakhal News 7 June 2016


kamlesh jamini

    महेश दीक्षित मध्यप्रदेश के जाने-माने फोटोग्राफर कमलेश जैमिनी एक ऐसी शख्सियत हैं, जिनकी तस्वीरें खुद उनका हुनर साबित करती हैं। कमलेशजी पिछले पांच दशकों से फोटोग्राफी के क्षेत्र में सक्रिय हैं। हालांकि, अब उन्होंने खुद का व्यवसाय स्थापित कर लिया है, पर फोटोग्राफी का जुनून आज भी वैसा ही है, जैसा युवा अवस्था में था। अपने फोटोग्राफी कॅरियर में भोपाल गैस त्राासदी को वे सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने गैस कांड त्रासदी की जो तस्वीरें कैमरे में कैद की हैं, भगवान किसी को ऐसे दिन न दिखाए। एक नवंबर 1948 को भोपाल में जन्मे कमलेशजी का कहना है कि उन्होंने अपने कॅरियर में भोपाल के सभी अखबारों में काम किया, जिसमें नईदुनिया, भास्कर, नवभारत प्रमुख हैं। इसके अलावा उन्होंने कई और अखबारों के लिए भी काम किया है। डिप्लोमा इन फोटोग्राफी की शिक्षा हासिल करने वाले कमलेशजी बताते हैं कि आज फोटो जर्नलिस्ट का जो दौर चल रहा है, नाम लेने का चलन बढ़ रहा है, वह उनके समय में नहीं था। उस समय खुद ही फोटो खींचनी भी पड़ती थी और बनानी भी। वे आज की फोटो पत्रकारिता से थोड़े खिन्न भी हैं। उनका कहना है कि नाम के लिए काम करना ठीक नहीं है। एक मिशन के लिए जब काम किया जाता है, तो उसका परिणाम भी दिखता है। फोटो समाज का आईना होता है, समाज की समस्याओं को जाहिर करती है। इस ओर खास ध्यान देना चाहिए। अपने छात्र जीवन के बारे में कमलेशजी बताते हैं कि वे पढ़ाई में बेहतर रहे। पढ़ाई के अलावा एनसीसी में खास रुचि थी। इस दौरान उन्होंने हवाई जहाज भी उड़ाया। इस प्रशिक्षण में उनकी मुलाकात पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी से भी हुई। यह बात उस समय की है, जब राजीव गांधी पायलट हुआ करते थे। एनसीसी कैडेट के तौर पर उन्होंने दिल्ली में राजपथ पर होने वाली गणतंत्र दिवस परेड का भी हिस्सा बने। अपने फोटो कॅरियर की बड़ी उपलब्धि के तौर पर वे बताते हैं कि एक बार उन्होंने राजीव गांधी का एक फोटो कॉकपिट में बैठे रहने के दौरान खींचा था। उनके निधन के बाद कांग्रेस अध्यक्ष और राजीवजी की पत्नी सोनिया गांधी को यह फोटो इतना पसंद आया कि उन्होंने तस्वीर को निगेटिव के साथ अपने पास मंगवाया। आज यह फोटो राजीव गांधी के समाधि स्थल वीरभूमि में स्थापित एक फोटो गैलरी में सबसे पहले लगाया गया है। इस फोटो के नीचे उनका नाम भी अंकित है। अपने सामाजिक जीवन के बारे में कमलेशजी बताते हैं कि वे नेशनल एसोसिएशन फॉर ब्लाइंड की भोपाल शाखा का पूरा काम देख रहे हैं। इस शाखा में करीब 40 ऐसे बच्चों की देखरेख होती है, जो दृष्टिहीन हैं। उनके खाने-पीने से लेकर सारी व्यवस्थाएं की जाती हैं। हालांकि इसमें सरकारी सहयोग भी है, पर कम है। लिहाजा लोगों के सहयोग से खर्च पूरा हो जाता है। अपने लंबे फोटोग्राफी कॅरियर में सम्मान न मिलने का मलाल उन्हें नहीं है। उनका मानना है कि नाम के लिए काम करने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। वे इस बात से नाराज भी हैं कि सरकार ने उनके काम को कभी तवज्जो नहीं दी। वे यह जरूर कहते हैं कि अच्छे काम की तारीफ होनी चाहिए, वह चाहे जिसने किया हो।[बिच्छू डॉट कॉम से ]     Attachments area          

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Dakhal News 3 June 2016


shiv anurag patariya

    महेश दीक्षित वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया सामाजिक सरोकारों के साथ ज्वलंत मुद्दों के लिए खबरनवीसी करने वाले देश के ऐसे पत्रकारों में शुमार हैं, जिन्हें सिर्फ खबर से सरोकार और खबरनवीसों से अनुराग है। वे स्वभाव से जितने विनम्र हैं, काम में उतने ही अक्खड़ हैं। 38 सालों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।  1978 में छतरपुर से आंचलिक पत्रकारिता से शुरुआत की। इसके बाद प्रदेश के तमाम समाचार पत्र-पत्रिकाओं के लिए खबरनवीसी के साथ टेलीविजन के लिए भी काम किया। प्रदेश के वे ऐसे पहले पत्रकार हैं जिन्होंने 1980 में समाचार पत्र खबरों का स्त्रोत बताने के लिए बाध्य हैं या नहीं, इस मुद्दे को लेकर लंबी लड़ाई लड़ी। इसे पत्रकारिता के इतिहास में छतरपुर कांड से जाना गया। इसमें पटैरिया नायक की भूमिका में रहे। पटैरिया ने इस छतरपुर कांड को संघर्ष गाथा शीर्षक से किताब बद्ध किया है।  श्री पटैरिया वर्तमान में महाराष्ट्र से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र लोकमत के मप्र ब्यूरो प्रमुख हैं। श्री पटैरिया इसके पहले नईदुनिया इंदौर, जनसत्ता मुंबई, चौथा संसार, संडेमेल, जन्मभूमि और दैनिक नईदुनिया भोपाल में महत्वपूर्ण पदों पर रहकर अपनी कलम के जौहर दिखा चुके हैं। पत्रकारिता के साथ अब तक 25 से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं। इनमें व्यवस्था के खिलाफ बंदूक, मप्र में पत्रकारिता का इतिहास, बिन पानी सब सून उनकी चर्चित किताबों में हैं। अकेले समाचार पत्र और पत्रकारिता विषय पर उनकी नौ किताबें प्रकाशित हैं। इसके साथ पटैरिया दूरदर्शन के लिए दस्तक शीर्षक से 13 डाक्यूमेंट्रीज का निर्माण कर चुके हैं।  पटैरिया को श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए फैलोशिप के साथ कई सम्मान भी मिले हैं। इनमें माखनलाल चतुर्वेदी आंचलिक पत्रकारिता पुरस्कार, मेन आफॅ द मीडिया और सत्यनारायण तिवारी लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान प्रमुख हैं। इसके साथ उन्हें राजेंद्र माथुर फैलोशिप और माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विवि द्वारा मप्र के पत्रकारिता इतिहास पर शोध फैलोशिप प्रदान की गई। श्री पटैरिया का कहना है कि श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए पत्रकार का सतत सक्रिय, जुझारू और खबर के प्रति ईमानदार होना आवश्यक है। यदि स्टोरी में कोई मुद्दा रेस किया है, तो फिर उसका समापन करके ही पत्रकार को दम लेना चाहिए। यही उसकी कमाई और थाती है। वे कहते हैं कि पत्रकार में सामाजिक सरोकार होना चाहिए। जो देखो, वह कहने और लिखने की कोशिश होनी चाहिए, यदि कहीं कोई मजबूरी भी है, तो भी बिकाऊ तो कतई नहीं होना चाहिए।  

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Dakhal News 1 June 2016


rajendr shukla

  जनसंपर्क मंत्री  शुक्ल पत्रिका के वार्षिक कार्यक्रम में      जनसंपर्क एवं ऊर्जा मंत्री  राजेन्द्र शुक्ल ने कहा कि समाज में ऐसे प्रयास किए जाने की जरूरत है, जिससे लोग मन से खुशी की अनुभूति महसूस कर सकें। इसके लिए समाज में सकारात्मकता के माहौल को बढ़ाये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ऐसे भी प्रयास किये जाना चाहिए, कि जन-सामान्य में सेवा की भावना प्रबल हो। जनसंपर्क मंत्री श्री शुक्ल आज भोपाल में दैनिक समाचार पत्र 'पत्रिका'' के वार्षिक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। वार्षिक कार्यक्रम 'खुशहाल शहर और गाँव' पर केन्द्रित था।   जनसंपर्क मंत्री श्री शुक्ल ने कहा कि साधन सम्पन्न होने मात्र से ही खुशहाली नहीं आती। राज्य सरकार ने इस बात को ध्यान में रखते हुए आनंद मंत्रालय बनाने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि आनंद मंत्रालय का गठन कर राज्य सरकार ने इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाये हैं। जनसंपर्क मंत्री श्री शुक्ल ने कहा कि समाज में कुछ लोगों में दूसरों की सेवा करने की भावना होती है और वे ऐसा कर खुशी का अनुभव करते हैं। यह प्रवृति उनकी सकारात्मकता को प्रदर्शित करती है।   जनसपंर्क मंत्री श्री शुक्ल ने कहा कि समाज में हो रहे अच्छे कार्यों को प्राथमिकता से सामने लाया जाना चाहिए। जिससे अधिक से अधिक लोग उनका अनुसरण कर सकें। उन्होंने पत्रिका के वार्षिक कार्यक्रम की प्रशंसा की। श्री शुक्ल ने कहा कि कार्यक्रम में दौरान जो निष्कर्ष सामने आएगें, उसका उपयोग राज्य सरकार द्वारा किया जाएगा।   पत्रिका के ग्रुप एडिटर भुवनेश जैन ने बताया कि पत्रिका का वार्षिक कार्यक्रम मध्यप्रदेश में पहली बार भोपाल में किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पत्रिका ने भोपाल के बड़े तालाब की सफाई और पुलिस का मनोबल बढ़ाने संबंधी कार्यक्रम जन-भागीदारी से चलाये। इन कार्यक्रमों में जनता ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि समाचार-पत्र का काम सत्य को दिखाना है। इसके साथ ही पत्रिका का यह प्रयास है कि प्रत्येक शहर और गाँव खुशहाल हो और उसके नागरिक खुशी की अनुभूति मन से कर सकें। इसी बात को ध्यान में रखते हुए वार्षिक कार्यक्रम में विषय-विशेषज्ञों के विचार रखे जा रहे है। इसका फायदा जन-सामान्य को मिलेगा। उदघाटन सत्र में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान का संदेश भी सुनाया गया।

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Dakhal News 28 May 2016


shivraj bajaj

  स्व. बनवारी लाल बजाज प्रथम पुण्य समारोह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि स्वर्गीय बनवारीलाल बजाज ने पत्रकारिता में उच्च मूल्यों और मापदंडों के लिये काम किया। उन्होंने जीवनपर्यन्त राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ सक्रिय रूप से देश और समाज की सेवा की। श्री चौहान आज यहाँ पंडित रामेश्वर दास गार्गव सभागार में श्री बनवारीलाल बजाज के प्रथम पुण्य स्मरण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री और स्व. बजाज की धर्मपत्नी श्रीमती प्रमिला बजाज ने स्व. बनवारी लाल बजाज के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित स्मारिका स्मृति शेष का लोर्कापण किया। मुख्यमंत्री  चौहान ने कहा कि स्वर्गीय बजाज को राष्ट्रवादी विचारधारा पारिवारिक संस्कार में मिली थी। उन्होंने इसी विचारधारा के साथ पत्रकारिता की। उनकी प्रतिभा से पत्रकारिता जगत भलीभांति परिचित है। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका विशिष्ट योगदान रहा है। इससे पहले श्री चौहान ने श्री बजाज के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। कार्यक्रम में प्रख्यात भजन सम्राट प्रभंजय चतुर्वेदी द्वारा समुधर भजनों की प्रस्तुति दी गई। इस अवसर पर उच्च शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता, लोकस्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री नरोत्तम मिश्रा, महापौर आलोक शर्मा, भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष, सांसद नंदकुमार सिंह चौहान, भाजपा प्रदेश महामंत्री अरविंद भदौरिया, प्रदेश महामंत्री विनोद गोटिया, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव, कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा, रवि सक्सेना, जेपी धनोपिया, मानक अग्रवाल, करूणाधाम आश्रम के पीठाधीश सुदेश शांडिल्य, स्व. बजाज के ज्येष्ठ पुत्र अम्बरीश बजाज, अवधेश बजाज, प्रणव बजाज सहित बड़ी संख्या शहर के पत्रकार, साहित्यकार और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन श्री विनय उपाध्याय ने किया।

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Dakhal News 22 May 2016


anand panday

        नईदुनिया के समूह संपादक आनंद पांडे को 'माधव राव सप्रे' राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार के लिए चुना गया है। आनंद पांडे को रतनलाल जोशी जन्म शताब्दी समारोह में 19 जून को यह पुरस्कार दिया जाएगा, वहीं डॉ. कपिल तिवारी को 'महेश सृजन' सम्मान दिया जाएगा। माधवराव सप्रे संग्रहालय एवं शोध संस्थान की निदेशक डॉ. मंगला अनुजा ने बताया कि कार्यक्रम में अशोक जोशी पिता रतनलाल जोशी के संस्मरणों को साझा करेंगे। रतनलाल 'नवनीत' और 'सारिका' के संस्थापक संपादक रहे हैं।

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Dakhal News 21 May 2016


anand panday

        नईदुनिया के समूह संपादक आनंद पांडे को 'माधव राव सप्रे' राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार के लिए चुना गया है। आनंद पांडे को रतनलाल जोशी जन्म शताब्दी समारोह में 19 जून को यह पुरस्कार दिया जाएगा, वहीं डॉ. कपिल तिवारी को 'महेश सृजन' सम्मान दिया जाएगा। माधवराव सप्रे संग्रहालय एवं शोध संस्थान की निदेशक डॉ. मंगला अनुजा ने बताया कि कार्यक्रम में अशोक जोशी पिता रतनलाल जोशी के संस्मरणों को साझा करेंगे। रतनलाल 'नवनीत' और 'सारिका' के संस्थापक संपादक रहे हैं।

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Dakhal News 21 May 2016


bastar-patrkar

      Translate message Turn off for: Hindi           नक्सल प्रभावित बस्तर में पुलिस द्वारा नक्सल मामले में पत्रकारों की गिरफ्तारी के विरोध में छत्तीसगढ़ व बस्तर के पत्रकारों ने देश की राजधानी दिल्ली के जन्तर मन्तर में धरना दिया और राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंप संवेदनशील इलाकों में काम कर रहे पत्रकारों की सुरक्षा की गुहार लगाई। धरना प्रदर्शन में छत्तीसगढ़ के साथ ही दिल्ली के पत्रकारों ने भी भाग लिया।   ज्ञात हो कि पिछले एक साल में बस्तर में चार पत्रकारों को पुलिस ने नक्सल समर्थक होने के आरोप में जेल में डाल दिया है। पिछले साल दिसंबर में पत्रकार सुरक्षा संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर तले पत्रकारों ने जगदलपुर में जेल भरो आंदोलन किया था। तब मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह ने पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात प्रदेश में निष्पक्ष व स्वतंत्रपत्रकारिता के लिए सभी जरूरी कदम उठाने का आश्वासन दिया था। गिरफ्तार पत्रकारों के मामलों की समीक्षा की बात भी कही गई थी। लेकिन कई महीने बाद भी इस मुद्दे पर सरकार द्वारा समुचित कदम न उठाए जाने से पत्रकारों ने दिल्ली में प्रदर्शन कर राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग की है। बस्तर में पत्रकारों की गिरफ्तारी का मुद्दा विधानसभा के बजट सत्र में भी उठा लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।  राष्ट्रपति के नाम सौंपे गए ज्ञापन में पत्रकारों ने कहा है कि पिछले एक साल में पुलिस ने बस्तर में चार पत्रकारों सोमारू नाग, संतोष यादव, प्रभात सिंह व दीपक जायसवाल को फर्जी मामलों में जेल भेज दिया है। इससे पहले नक्सलियों ने साईं रेड्डी व नेमीचंद जैन को मौत के घाट उतार दिया। ग्रामीण इलाकों मेंपत्रकारों के लिए काम करना मुश्किल हो गया है। इसमें कहागया है कि बस्तर में पदस्थ आईजी एसआरपी कल्लूरी पत्रकारों को फोन करके धमकाने में लगे हैं। इससे पत्रकारो में भय का माहौल है। प्रदेश में पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने,गिरफ्तार पत्रकारों की रिहाई करने तथा दोषी अफसरों पर कार्रवाई की मांग की गई है।

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Dakhal News 18 May 2016


पत्रकार सुनील शर्मा

    सामाजिक सरोकार से खुद को जोडऩे वाले पत्रकार सुनील शर्मा का मानना है कि समाज में व्याप्त समस्याओं को सामने लाना और उनका निराकरण कराना ही पत्रकारिता का धर्म है। सुनील के नाम ऐसे कई काम हैं, जो उनकी पहचान बन गए हैं। पत्रकारिता करते सुनील की अवैध खनन को लेकर की गई स्टोरी को काफी सराहना मिली। यह स्टोरी उन्होंने पत्रिका में रहते की थी। इसके अलावा पत्रिका में सड़कों की बदहाली पर कई महीने तक विशेष कैंपेन चलाया, जिसने सरकार की नींद उड़ा दी थी। वे सरकार की फूड कूपन योजना को लेकर की गई स्टोरी से चर्चा में आए। सुनील की यह तीन स्टोरी किसी भी नए पत्रकार के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती हैं। धार के नालछा में 25 सितंबर 1974 को जन्मे सुनील ने होल्कर साइंस कॉलेज से बीएससी और देवी अहिल्या विवि, इंदौर से एमएएमसी-मास्टर इन मास क युनिकेशन में डिग्री प्राप्त की। सुनील बताते हैं कि उन्होंने पत्रकारिता में जो सीखा, आज वे युवाओं में बांट रहे हैं। वे चाहते हैं कि पत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाली नई पीढ़ी को बेहतर मार्गदर्शन मिले, ताकि जिस उद्देश्य को लेकर वे इस क्षेत्र में आए हैं, उसमें भटकाव न हो। उनका मानना है कि आज पत्रकारिता पैसा कमाने का जरिया बन गई है, यहीं से पत्रकारिता धर्म का पतन शुरू होता है। पत्रकारिता का मूल उद्देश्य समाज की भलाई है। सुनील अपने सफल कॅरियर का श्रेय पिता मोहनलाल शर्मा को देते हैं। उनके आदर्शों और शिक्षा के बूते ही आज वे अपना मुकाम हासिल कर सकने में सफल हुए। सुनील ने पत्रकारिता की शुुरुआत 1998 में चौथा संसार से की। इसके बाद 2001-2003 भास्कर टीवी, 2004-07 भास्कर भोपाल, 2007-09 इंडिया न्यूज-ब्यूरो, मप्र, 2009-2013 पत्रिका, भोपाल स्टेट ब्यूरो चीफ के पद पर काम किया। 2013 से अब तक वे प्रदेश टुडे में स्टेट हेड के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। सुनील ने बीटीवी में आपकी आवाज प्रोग्राम शुरू किया, जो काफी सराहा गया। इसी तरह इंडिया न्यूज-जनप्रतिनिधियों (सांसद-विधायक) से चाय पर चर्चा पर प्रोग्राम चलाया। इसमें जनप्रतिनिधि क्या कर रहे हैं, इस पर लगातार कई महीनों तक कैंपेन चलाया। सुनील को माधव सप्रे संग्रहालय के माखन लाल चतुर्वेदी श्रेष्ठ पत्रकारिता के साथ दर्जनभर पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं।

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Dakhal News 12 May 2016


ujjain-media

  उज्जैन में सोमवार को सदी का दूसरे सिंहस्थ का दूसरा शाही स्नान किया जा रहा है।इस स्नान को देश-विदेश से कवर करने पहुंचे प्रेस बॉक्स में बैठे मीडियाकर्मियों से पुलिस की झड़प के बाद धरने पर बैठे स्थानीय पत्रकार।पुलिस ने अभद्र व्यवहार किया जिसके विरोध स्वरूप मीडियाकर्मियों ने आधे घंटे का लाइव कवरेज रोक दिया और सभी पत्रकारों ने मिलकर इसका विरोध किया। दरअसल, यह मामला उस वक्त शुरु हुआ जब कुछ पुलिसकर्मी अचानक प्रेस बॉक्स में घुस आए और पत्रकारों से अभद्र व्यवहार करने लगे। सूत्रों अनुसार उन्होंने एक पत्रकरा की पिटाई भी कर दी।इसके बाद पत्रकारों ने कवरेज रोककर विरोध प्रदर्शन स्वरूप धरने पर बैठ गए जिसके चलते रामघाट पर तनाव का माहौल बन गया। बाद में संबंधित आधिकारी द्वारा माफी मांगने के बाद पत्रकारों का गुस्सा शांत हुआ।     Attachments area          

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Dakhal News 9 May 2016


bastar

      दुर्ग जिले के ई टीवी रिपोर्टर के साथ भारतीय जनता पार्टी के नेता व्दारा किए गए अभद्र व्यवहार और मारपीट के मामले की बस्तर जिला पत्रकार संघ सह प्रेस क्लब ने कड़ी निंदा करते हुए मांग की है कि आरोपी माने जा रहे भाजपा नेता के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करें।   जगदलपुर में बस्तर जिला पत्रकार संघ सह प्रेस क्लब के अध्यक्ष एस करीमुद्दीन ने घटना को न केवल निंदनीय बताया, बल्कि इस कृत्य को भाजपाइयों की गरिमा के प्रतिकूल ठहराया। उन्होंने कहा कि पत्रकार का काम निष्पक्ष रूप से हर खबर को समाज के सामने लाना है। ऐसे में खबरों को लेकर यदि कोई मतभेद हो तो लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात रखनी चाहिए थी। वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र बाजपेयी, सुधीर जैन, दिलशाद नियाजी, बस्तर जिला पत्रकार संघ के महासचिव सतीश तिवारी, सचिव राजेश दास, धर्मेंद्र महापात्र और सुनील मिश्रा ने भी घटना की निंदा करते तत्काल आरोपी के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की मांग की है।   बस्तर जिला प्रेस क्लब अध्यक्ष रजत बाजपेयी, सचिव सुब्बा राव और उपाध्यक्ष श्रीनिवास नायडू ने कहा कि पत्रकार निष्पक्ष होकर अपना काम करता है। दलगत राजनीति से पत्रकारों का कोई सरोकार नहीं होता। लोकतंत्र में पत्रकारिता का महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसे में यह हमला केवल पत्रकार पर नहीं, वरन पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर किया गया है। बस्तर जिले के समस्त पत्रकारो ने घटना की निंदा करते तत्काल संबंधित जनप्रतिनिधि के खिलाफ एक्शन लिए जाने की मांग करते हुए कहा है कि इस तरह के हमले पत्रकारों और जनप्रतिनिधियों के बीच एक दीवार खड़ा करती है। यदि मामले में तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो इसका गलत संदेश लोगों तक पहुंचेगा।

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Dakhal News 9 May 2016


नगर नगम में बीजेपी का चौका

नगरीय निकाय चुनाव के दूसरे चरण में भाजपा ने भोपाल, इंदौर, जबलपुर और छिंदवाड़ा नगर निगम सहित तीन नगर परिषदों पर भगवा परचम फहराया। दो नगर परिषद पर कांग्रेस जीत दर्ज करने में सफल रही। पहले चरण के चुनाव में भी भाजपा ने 10 नगर निगमों में जीत दर्ज कराई थी। प्रदेश की16 में से एक नगर निगम मुरैना का मामला कोर्ट में है। नगर सरकार की जंग में भी जनता ने भाजपा पर भरोसा जताया। दूसरे चरण में हुए चार नगर निगम में भाजपा के सभी मेयर प्रत्याशी जीते। सबसे बड़ी जीत इंदौर में भाजपा की मालिनी लक्ष्मण सिंह गौड़ के नाम रहीं। जबकि सबसे कम मतों का अंतर छिंदवाड़ा में रहा। यहां पर दोनों प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर थी। भोपाल, जबलपुर में भी जीत का अंतर पहले के मुकाबले इस बार काफी बड़ा रहा।सबसे ज्यादा इंदौर, सबसे कम अंतर शमशाबादनगर सरकार के लिए सबसे ज्यादा मतों का अंतर नगर निगम इंदौर में रहा। यहां पर भाजपा की मालिनी लक्ष्मण सिंह गौड़ ने कांग्रेस की अर्चना जायसवाल को 2,46,596 मतों से पराजित किया। सबसे कम जीत का अंतर विदिशा जिले की शमशाबाद नगर परिषद में रहा। यहां कांग्रेस के कृष्ण कुमार माहेश्वरी ने बीजेपी के मूलचंद माहेश्वरी को मात्र 102 मतों से पराजित किया।हरदा में होगा चुनाव, छनेरा में निर्दलीय जीतेनगर पालिका परिषद हरदा में अध्यक्ष को वापस बुलाने के लिए हुए मतदान में कांग्रेस की संगीता बंसल पराजित हुईं। इसके कारण वहां पर चुनाव फिर से कराए जाएंगे। इसी तरह खंडवा जिले की छनेरा में निर्दलीय प्रत्याशी कमलकांत भारद्वाज पद पर बने रहेंगे।नोटा का भी हुआ उपयोगनगरीय निकाय चुनाव के दूसरे चरण में कई प्रत्याशी जनता की नापसंद रहे। इसके लिए उन्होंने नोटा का उपयोग किया। चार नगर निगमों में हुए मतदान में 22,103 लोगों ने नोटा का बटन दबाया। जबकि पार्षद प्रत्याशियों के लिए 15,444 लोगों ने नोटा का उपयोग किया। इसी तरह अध्यक्ष पद के लिए 437 नोटा के वोट पड़े।वार्ड : सबसे कम और ज्यादा वोटों से जीतनगर निगम भोपाल के चुनाव में वार्ड क्रमांक 20 से भाजपा प्रत्याशी संजीव गुप्ता महज 22 वोटों से जीत हासिल कर सके। गुप्ता को जहां 3,895 वोट मिले वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी मो. रशीद खान को 3,873 वोट मिले। वहीं, कांग्रेस की वार्ड क्रमांक 9 से शबाना शाहिद अली ने अपनी प्रतिद्वंद्वी भाजपा की शमीम अफजल को सबसे ज्यादा 4,898 वोटों के अंतर से हराया।

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Dakhal News 5 February 2015


छत्तीसगढ़ के झटके के बाद बीजेपी एलर्ट

पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के नगरीय निकाय चुनाव में सत्तारुढ़ दल भाजपा को उम्मीद के मुताबिक सफलता न मिलने पर पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई अलर्ट हो गई है। इसके बाद वह किसी तरह का जोखिम उठाने को तैयार नहीं है। हाल ही में भाजपा ने दो विधायकों सहित कई कार्यकर्ताओं को नोटिस जारी कर यह संदेश देने की कोशिश की है कि इसी माह होने वाले चारों नगर निगम के चुनावों में किसी ने गड़बड़ी या भितरघात किया तो उसे बख्शा नहीं जाएगा। चाहे वह कितना बड़ा नेता क्यों न हो।पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में हुए नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस ने पिछले चुनावों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है और नगर पालिका व नगर निगम में बाजी बराबरी पर रही है तो नगर पंचायतों में कांग्रेस, भाजपा से कहीं आगे निकल गई है। कुल मिलाकर नगर निकाय चुनाव के नतीजे कांग्रेस को उत्साहित और भाजपा में अंदर खाने सवाल उठाने वाले हैं। मध्य प्रदेश में दो चरणों में हुए नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया। पिछले दिनों जिन 10 नगर निगमों में चुनाव हुए, उन सभी में भाजपा ने अपना परचम फहराया। अब चार नगर निगमों के चुनाव इसी माह के अंत में हैं। भाजपा ने चुनाव तो आसानी से जीत लिए थे मगर दो नगर निगमों में पार्षद ज्यादा होने के बावजूद सभापति के चुनाव में उसे नुकसान उठाना पड़ा है। राज्य में चार नगर निगमों सहित नौ नगर निकायों के चुनाव की तैयारियों में पार्टी जुटी थी तभी छत्तीसगढ़ के नगर निकाय चुनाव के नतीजे आ गए। इन नतीजों ने पार्टी को चेता दिया है कि अगर उसकी ओर से बगावत करने वालों या उनका साथ देने वालों पर लगाम न कसी गई तो चुनाव में नुकसान हो सकता है।

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Dakhal News 14 January 2015


विकास के लिये नया सोचना और करना  महत्वपूर्ण

मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने मौजूदा सरकार की तीसरी पारी का एक वर्ष पूर्ण होने पर मंत्रियों और सभी विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों की संयुक्त बैठक में वर्ष भर के कार्यों का लेखा-जोखा लिया। उन्होंने कहा कि नया सोचते रहना और करते रहना प्रदेश के विकास के लिये महत्वपूर्ण होता है।श्री चौहान ने लगभग 5 घंटे की इस मैराथन बैठक में सी.एम.हेल्पलाइन, विभिन्न पंचायत में की गई घोषणाओं सहित 11 विभाग की समीक्षा भी की। उन्होंने कहा कि पहले क्षेत्र भ्रमण पर शिकायतों का अंबार मिलता था। सी.एम.हेल्पलाइन के बाद से इस तरह के आवेदकों की संख्या में बड़ी कमी आयी है। श्री चौहान ने बताया कि वे अमूमन प्रतिदिन सी.एम. हेल्पलाइन के चार-छह आवेदक से अलग-अलग फोन से बात कर निराकरण की वास्तविक स्थिति ज्ञात करते हैं। उन्होंने सभी विभाग के अधिकारियों से जानकारी ली कि उन्होंने कितने आवेदक से फोन पर सीधी बात की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि फोन पर शिकायत निराकृत करने के इस प्रयोग को गुड गवर्नेंस की दृष्टि से पूरी गंभीरता से लिया जाय। उन्होंने मुख्य सचिव को निर्देश दिये कि जो अधिकारी आवेदकों से बात नहीं करते उसका उल्लेख उनके गोपनीय प्रतिवेदन में किया जाय। जायज समस्याओं का निराकरण होना ही चाहिये। गड़बड़ी पाये जाने पर संबंधित अधिकारी के विरूद्ध कार्रवाई हो। देखने में आया कि जनता से सीधे जुड़े पंचायत एवं ग्रामीण विकास, नगरीय कल्याण, कृषि, स्कूल एवं उच्च शिक्षा, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, राजस्व, महिला-बाल विकास विभाग से संबंधित सर्वाधिक शिकायत प्राप्त होती हैं।मुख्यमंत्री ने निर्देश दिये कि शहरी विकास और ग्रामीण विकास विभाग प्रदेश में स्वच्छता की विस्तृत कार्य-योजना बनाये। इसके लिये संपूर्ण संस्थागत व्यवस्था तैयार करें। साथ ही स्वच्छता के संबंध में लोगों की मानसिकता परिवर्तन और जागरूकता के लिये कार्य जारी रहे। प्रत्येक शासकीय विभाग अपनी संस्थाओं में स्वच्छता पर विशेष ध्यान दे।आम लोगों से संवाद की पहल के तहत राज्य सरकार द्वारा आयोजित पंचायतों की घोषणाओं की समीक्षा के दौरान जानकारी दी गयी कि अभी तक हुई 36 पंचायत में की गई 1000 घोषणा में से अधिकांश पूरी हो गई हैं। लोक सेवा गारंटी अधिनियम के तहत की गई कार्रवाई की समीक्षा करते हुए मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि अधिनियम के तहत अधिसूचित सेवाओं की अद्यतन स्थिति की जानकारी तैयार करें। अधिनियम के तहत और सेवाएँ शामिल करने की प्रक्रिया जारी करें। उन्होंने निर्देश दिये कि प्रदेश में जिन 500 गाँव के नक्शे नहीं हैं उनका सर्वेक्षण कर नक्शे तैयार किये जाये।श्री चौहान ने निर्देश दिये कि प्रदेश में उपलब्ध खनिज संपदा के व्यापक सर्वे का कार्य किया जाये। सहकारी बेंकों में कोर बेंकिंग को प्रभावी बनायें। अनुसूचित जाति-जनजाति के प्रतिभावान विद्यार्थियों के लिये विदेश अध्ययन के लिये कोचिंग की सुविधाएँ दें। आगामी 10 माह में सभी स्कूल में शौचालय निर्माण कार्य करवाये जायें। मेडिकल कॉलेज से अस्पतालों की व्यवस्था में सुधार किया जाये। अधूरी पड़ी पेयजल योजनाओं को प्राथमिकता से पूर्ण किया जाये। आंगनवाड़ियाँ समय पर खुलें, उनमें बच्चों की उपस्थिति हो तथा पोषण आहार अच्छी गुणवत्ता का मिले।बैठक में वाणिज्यिक कर, परिवहन, खनिज, सहकारिता, अनुसूचित जनजाति कल्याण, अनुसूचित जाति कल्याण, स्कूल शिक्षा, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, चिकित्सा शिक्षा, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी और महिला-बाल विकास विभाग की उपलब्धियों की जानकारी दी गयी। बताया गया कि वाणिज्यिक कर विभाग द्वारा पाँच जिले में ई-पंजीयन योजना लागू की गई हैं जिसे आगामी एक अप्रैल से प्रदेश के सभी जिलों में लागू किया जायेगा। प्रदेश में ग्रामीण परिवहन नीति लागू की गई है। बस स्टेण्डों के संचालन के लिये कंपनी बनायी जायेगी। खनिज विभाग ने ई-खनिज परियोजना तैयार की है जिसे इसी वर्ष से लागू किया जायेगा। सहकारिता विभाग द्वारा आगामी 31 मार्च तक 7 लाख किसान को किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध करवाये जायेंगे। अभी पाँच लाख किसान को किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध करवाये जा चुके हैं। अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग द्वारा इस वर्ष 250 स्कूल भवन बनाये गये हैं तथा छात्रगृह योजना में 12 हजार विद्यार्थियों को लाभान्वित किया गया है। अनुसूचित जाति कल्याण विभाग द्वारा विभाग की 12 योजना में सुधार कर उन्हें प्रासंगिक बनाया गया है। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा 90 लाख से अधिक बच्चों को नि:शुल्क पाठ्य-पुस्तकें, 87 लाख बच्चों को गणवेश, करीब साढ़े सात लाख बच्चों को साइकिल उपलब्ध करवायी गयी है। विभाग द्वारा 201 वर्चुअल क्लास शुरू की गई है। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग द्वारा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम में राज्य की कुल आबादी के 72 प्रतिशत को एक रूपये किलो पर सस्ता खाद्यान्न उपलब्ध करवाया जा रहा है। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने वर्ष 2018 तक प्रदेश में 5400 चिकित्सक प्रतिवर्ष तैयार करने की योजना बनायी है। वर्तमान में प्रदेश में प्रतिवर्ष 1620 चिकित्सक तैयार हो रहे हैं। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा प्रदेश में 15 समूह नल-जल योजनाओं का कार्य शुरू किया गया है। जारी वर्ष में नल-जल योजना से 1 लाख 38 हजार घरेलू नल कनेक्शन दिये गये हैं। महिला-बाल विकास द्वारा प्रदेश में 92 हजार 216 आँगनवाड़ियों का संचालन किया जा रहा है। इनमें प्रतिदिन 77 लाख बच्चे आते हैं। बैठक में मंत्रीगण, मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक तथा विभिन्न विभाग के प्रमुख उपस्थित थे।

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Dakhal News 16 December 2014


बिजली को लेकर कांग्रेस का विधानसभा में हंगामा किया सदन से वाकआउट

राज्य विधानसभा में मंगलवार को बिजली को लेकर जमकर हंगामा हुआ और कुछ देर सदन हंगामें डूबा रहा। कांग्रेस का आरोप था कि सूखे की मार झेल रहे किसान को एक तो सरकार पर्याप्त बिजली नहीं दे रही है ऊपर से उससे मनमाने बिल वसूले जा रहे हैं और मुकदमें दर्ज कर उन्हें जेल भेजा जा रहा है। सरकार ने विपक्ष की बात को सिरे से खारिज किया तो उत्तेजित सदस्य गर्भ गृह में आकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। इस बीच विधायक जीतू पटवारी ने लोक अदालत में छह साल के बच्चे को सजा का मामला उठा दिया। इसके बाद सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए कांग्रेसी सदस्यों ने सदन से वाकआउट कर दिया।कांग्रेस के महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा ने आरोप लगााया कि राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना में सरकार ठीक से काम नहीं करवा पा रही है। उन्होंने भी कम वोल्टेज से बिजली का मुद्दा उठाते हुए कहा कि इससे किसानों को सिंचाई में समस्या आ रही है। कालूखेड़ा ने मांग की कि नई फसल के आने तक सरकार को किसानों से बिजली बिल की वसूली स्थगित कर देनी चाहिए। उन्होंने फीडर सेपरेशन में भी अनियमितताओं का आरोप लगाया। वहीं कांगे्रस के सुंदरलाल तिवारी ने आरोप लगाया कि विधायकों को दो हार्सपावर के मोटर कनेक्शन पर पांच ेहार्सपावर के बिल दिए जा रहे हैं। इस पर जब मंत्री ने कांग्रेस विधायकों की बात सिरे से नकार दी तो उत्तेजित कांग्रेस विधायक गर्भगृह में आकर नारेबाजी करने लगे। इस पर मंत्री मलैया ने जब बिजली बिलों की जांच कराने पर मामला शांत ही हुआ था कि विधायक जीतू पटवारी ने अपने सवाल के दौरान लोक अदालत में सागर जिले के विजयपुरा में एक छह साल के बच्चे को बिजली चोरी के मामले सजा का मामला उठाते हुए कहा कि सरकार इस मामले में झूठ बोल रही है। इस कांग्रेस के रामनिवास रावत, मुकेश नायक समेत कई विधायक एक साथ बोलने लगे। इन विधायकों ने नारेबाजी करते हुए सदन से वाक आउट कर दिया।

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Dakhal News 8 December 2015


सड़कों की खुदाई बना MLA का दुखड़ा

विधानसभा में आज पूर्व मंत्री और विधायक अर्चना चिटनिस ने उनके क्षेत्र में खोदी जा रही सड़कों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि वे इससे दुखी है। ध्यानाकर्षण के जरिये यह मसला उठाते हुए उन्होंने कहा कि उनके विधानसभा क्षेत्र बुरहानपुर में ग्राम पंचायतों में ई कनेक्टिविटी के लिए एफओसी पाइप लाइन डालने में सड़कों के सोल्डरों को पूरी तरह से खोद दिया गया है। उन्होंने कहा कि 19 सड़कों पर खुदाई होने से आए दिन एक्सीडेंट हो रहे हैं। चिटनिस का कहना था कि इस मामले में ग्रामीण विकास विभाग और बीएसएनल में समन्वय न होने के कारण नियमों का भी उल्लंघन हो रहा है। जब गोपाल भार्गव ने अपने जवाब में सारे काम नियमों के तहत होने और विभागों में पूरा समन्वय होने की बात कही तो चिटनिस ने कहा कि वे बहुत दुखी होकर कह रही है कि एक विकास योजना के लिए दूसरी विकास योजना को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। मंत्री भार्गव ने उन्हें भरोसा दिलाया कि जो सड़के खोदी गई हैं उनकी बीएसएनएल से मरम्मत कराई जाएगी।

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Dakhal News 10 December 2015


भोपाल-इंदौर के बीच बनेगी स्मार्ट सिटी

मुख्यमंत्री चौहान की स्मार्ट सिटी कम्पनी से चर्चा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तीन दिवसीय दुबई यात्रा के पहले दिन उन्होंने स्मार्ट सिटी दुबई के सी.ई.ओ. अब्दुल लतीफ अल मुल्ला से मुलाकात की। श्री अब्दुल लतीफ ने विशेषताओं की जानकारी देते हुए मध्यप्रदेश में स्मार्ट सिटी के निर्माण में दिलचस्पी दिखाई। यह तय हुआ कि कम्पनी इंदौर और भोपाल के मध्य स्मार्ट सिटी की संभावनाओं को तलाशेगी। इस उद्देश्य से कम्पनी के विशेषज्ञों का एक दल प्रदेश का भ्रमण करेगा।स्मार्ट सिटीस्मार्ट सिटी ज्ञान आधारित व्यावसायिक शहरों के विकास के क्षेत्र में अग्रणी नाम है। अभी तक इसने मध्य एशिया में 12 बिजनेस टाउनशिप और 5 इण्डस्ट्री कलस्टर विकसित किये हैं। स्मार्ट सिटी दुबई इंटरनेट सिटी, दुबई मीडिया सिटी और दुबई नॉलेज विलेज के सफल मॉडलों पर आधारित है। जहाँ ज्ञान आधारित कम्पनियों आधुनिकतम अधोसंरचना परिवेश और सपोर्ट सिस्टम उपलब्ध करवाया जाता है। केरल के कोच्चि में विकसित की जा रही स्मार्ट सिटी एक आत्म-निर्भर औद्योगिक शहर होगा जहाँ ज्ञान आधारित कम्पनियाँ काम करेंगी। यह भारत का सबसे बड़ा बिजनेस पार्क होगा।इस अवसर पर नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता और उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया उपस्थित थे।मुख्यमंत्री चौहान और कम्पनी के अधिकारियों के बीच इस बात पर भी सहमति बनी कि कम्पनी अक्टूबर माह में इंदौर में होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में भाग लेगी।नखील प्रापर्टीज मुख्यालय का भ्रमणमुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मध्यप्रदेश के उच्च स्तरीय प्रतिनिधि-मंडल ने बुधवार की देर शाम को दुबई स्थित नखील प्रापर्टीज के मुख्यालय का भी भ्रमण किया। नखील प्रापर्टीज के सीईओ श्री संजय मनचंदा ने मुख्यमंत्री को कम्पनी की जानकारी दी। नखील दुबई में एक रियल एस्टेट डेव्हलपर है और इसने अनेक लेंड रिकलेमेशन परियोजनाओं पर काम किया है। इनमें पॉम आइलेंडस दुबई, वाटर फ्रन्ट और वर्ल्ड एंड द यूनीवर्स आइलेंडस शामिल हैं। प्रापर्टीज ने अनेक आवासीय परियोजनाओं पर भी काम किया है। जिनमें दि गार्डन्स, इंटरनेशनल सिटी, जुमेरियाह आइलेंडस एण्ड जुमेरियाह लेंड टावर्स शामिल है। प्रापर्टीज के शापिंग प्रोजेक्टस में ड्रेगन मार्ट और इब्न बतूता मॉल शामिल है।

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Dakhal News 23 August 2014


भोपाल-इंदौर के बीच बनेगी स्मार्ट सिटी

मुख्यमंत्री चौहान की स्मार्ट सिटी कम्पनी से चर्चा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तीन दिवसीय दुबई यात्रा के पहले दिन उन्होंने स्मार्ट सिटी दुबई के सी.ई.ओ. अब्दुल लतीफ अल मुल्ला से मुलाकात की। श्री अब्दुल लतीफ ने विशेषताओं की जानकारी देते हुए मध्यप्रदेश में स्मार्ट सिटी के निर्माण में दिलचस्पी दिखाई। यह तय हुआ कि कम्पनी इंदौर और भोपाल के मध्य स्मार्ट सिटी की संभावनाओं को तलाशेगी। इस उद्देश्य से कम्पनी के विशेषज्ञों का एक दल प्रदेश का भ्रमण करेगा।स्मार्ट सिटीस्मार्ट सिटी ज्ञान आधारित व्यावसायिक शहरों के विकास के क्षेत्र में अग्रणी नाम है। अभी तक इसने मध्य एशिया में 12 बिजनेस टाउनशिप और 5 इण्डस्ट्री कलस्टर विकसित किये हैं। स्मार्ट सिटी दुबई इंटरनेट सिटी, दुबई मीडिया सिटी और दुबई नॉलेज विलेज के सफल मॉडलों पर आधारित है। जहाँ ज्ञान आधारित कम्पनियों आधुनिकतम अधोसंरचना परिवेश और सपोर्ट सिस्टम उपलब्ध करवाया जाता है। केरल के कोच्चि में विकसित की जा रही स्मार्ट सिटी एक आत्म-निर्भर औद्योगिक शहर होगा जहाँ ज्ञान आधारित कम्पनियाँ काम करेंगी। यह भारत का सबसे बड़ा बिजनेस पार्क होगा।इस अवसर पर नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता और उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया उपस्थित थे।मुख्यमंत्री चौहान और कम्पनी के अधिकारियों के बीच इस बात पर भी सहमति बनी कि कम्पनी अक्टूबर माह में इंदौर में होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में भाग लेगी।नखील प्रापर्टीज मुख्यालय का भ्रमणमुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मध्यप्रदेश के उच्च स्तरीय प्रतिनिधि-मंडल ने बुधवार की देर शाम को दुबई स्थित नखील प्रापर्टीज के मुख्यालय का भी भ्रमण किया। नखील प्रापर्टीज के सीईओ श्री संजय मनचंदा ने मुख्यमंत्री को कम्पनी की जानकारी दी। नखील दुबई में एक रियल एस्टेट डेव्हलपर है और इसने अनेक लेंड रिकलेमेशन परियोजनाओं पर काम किया है। इनमें पॉम आइलेंडस दुबई, वाटर फ्रन्ट और वर्ल्ड एंड द यूनीवर्स आइलेंडस शामिल हैं। प्रापर्टीज ने अनेक आवासीय परियोजनाओं पर भी काम किया है। जिनमें दि गार्डन्स, इंटरनेशनल सिटी, जुमेरियाह आइलेंडस एण्ड जुमेरियाह लेंड टावर्स शामिल है। प्रापर्टीज के शापिंग प्रोजेक्टस में ड्रेगन मार्ट और इब्न बतूता मॉल शामिल है।

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Dakhal News 23 August 2014


हिंदुत्व पर शिवसेना भागवत के साथ

शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के देश को हिंदू राष्ट्र कहने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का समर्थन किया है।उन्होंने कहा कि भागवत के बयान में कुछ भी गलत नहीं है। बकौल उद्धव, 'मैं मोहन भागवत का समर्थन करता हूं। बाला साहेब ठाकरे लंबे समय तक यही बात करते रहे, तो आज हम इस मुद्दे पर अपनी राय कैसे बदल सकते हैं।'गौरतलब है कि मोहन भागवत ने रविवार को कहा था कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और हिंदुत्व इसकी पहचान है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने रविवार को फिर कहा कि भारत की पहचान हिंदू राष्ट्र की है। वह विश्व हिंदू परिषद के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित कर रहे थे। इससे पहले भागवत ने ओड़िशा के एक कार्यक्रम में भारत को हिंदू राष्ट्र बताया था।विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने रविवार को अपने स्वर्ण जयंती समारोह के मंच पर लगभग सभी भारतीय पंथों के संतों को बुलाकार यह संदेश देने का प्रयास किया कि भारत में प्रचलित सिख, बौद्ध और जैन आदि पंथ भी सनानत हिंदू परंपरा के ही अंग हैं।इसी बात को स्पष्ट करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि भारत के जिन प्राचीन मूल्यों के आधार पर सारे संप्रदाय कार्य करते हैं वे समान हैं। इन प्राचीन मूल्यों को देखकर सारी दुनिया कहती है कि आप हिंदू हैं क्योंकि उन मूल्यों को हिंदू मूल्यों के रूप में ही पहचाना जाता है।हिंदू राष्ट्र की पहचान बताते हुए भागवत ने कहा कि हिंदुत्व में अनेक पंथ-संप्रदाय हैं और उसमें इतनी ताकत भी है कि वह कई और पंथों-संप्रदायों को हजम कर सकती है।हालांकि विहिप ने अगले 50 वर्ष के एजेंडे में देश से छुआछूत मिटाने को प्राथमिकता पर रखा है लेकिन उसे पहचान दिलानेवाले राम जन्मभूमि आंदोलन को भी वह भूली नहीं है। विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि हिंदू समाज अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनाकर ही रहेगा।

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Dakhal News 20 August 2014


लंबे समय के बाद एक सरकार!

संजय द्विवेदी हिंदुस्तानी मन की आकांक्षाएं बहुत अलग हैं। वह बहुत कम प्रतिक्रिया करके भी ज्यादा कहता है। 2014 के चुनाव इस बात की गवाही देते हैं कि जनता के मन में चल रही हलचलों का भान हमें कहां हो पाया। हम सब सेकुलरिज्म की ढोल बजाते रहे और ऐसे लोग सरकार में आ गए जिनके सेकुलर होने पर लगभग सभी राजनीतिक दलों को सामूहिक शक है। तो क्या देश की जनता अब सेकुलर नहीं रही? या उसकी पंथनिरपेक्षता को एक संकल्प नहीं, बल्कि राजनातिक नारे के रूप में इस्तेमाल करने वालों को उसने पहचान लिया है। उसने जता दिया कि काम कीजिए तभी भरोसा बनेगा और तभी आपकी राजनीति चलेगी। सिर्फ नारे पर अब वोट बरसने वाले नहीं हैं। ये भरोसा तब और गहरा होता है जब नवीन पटनायक (उड़ीसा), जयललिता (तमिलनाडु) और ममता बनर्जी (बंगाल) जैसे नेताओं की जमीन बनी रहती है, किंतु तमाम भूमिपुत्रों के पैर जमीन से उखड़ जाते हैं। एक सक्षम विकल्प बनी भाजपा के लिए भी संदेश साफ हैं कि सारा कुछ नारों से हासिल नहीं हो सकता। विकास-सुशासन और नकली पंथनिरपेक्षता नारों की स्पर्धा के बीच लोगों ने विकास-सुशासन को जगह दी है। लोग उम्मीद से खाली नहीं हैं। एक राजनेता के तौर नरेंद्र मोदी ने फिर एक हारे हुए देश की उम्मीदों को जगा दिया है। आप अन्ना हजारे के आंदोलन में रामलीला मैदान में जमे लोगों को याद कीजिए। उनकी भाषा को सुनिए- मध्यवर्ग के वे चेहरे किस तरह राजनीति और राजनेताओं से खिसियाए हुए थे। किस तरह वे हमारी राजनीति और संसद के खिलाफ एकजुट थे। संसद और सरकार मिमिया रही थी। वक्त की उस तारीख ने आज काफी कुछ बदल दिया है। राजनेताओं के प्रति घृणा का स्तर, एक अकेले नेता ने कम कर दिया है। आज लोगों का जनतंत्र पर भरोसा बढ़ा है तो राजनीतिक नेतृत्व पर भी। राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति लोकधृणा का वह स्तर आज नहीं है। इसके लिए निश्चय ही देश के राजनेताओं को रामलीला मैदान के दृश्यों को ध्यान में रखते हुए नरेंद्र मोदी को बधाई देनी चाहिए। यह बात बताती है कि कम काम और कम सफलताओं के बावजूद अगर आपके जीवन और मन में सच्चाई है। आप ईमानदार प्रयत्न करते हुए भी दिखते हैं तो लोग आपको सिर-माथे बिठाते हैं। किंतु जब आप अहंकार भरी देहभाषा से जनतंत्र में ‘जनता’ को ‘प्रजा’ समझने की भूल करते हैं, तो वह भारी पड़ती है।संवाद से सार्थक होता जनतंत्रःसत्ताधीशों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे संवाद से भागते हैं। जनता के सवालों पर बातचीत करने के बजाए असुविधाजनक प्रश्नों से वे बचना चाहते हैं। पिछली सरकार ने इसी संवादहीनता के फल अर्जित किए हैं। वहां खामोशी एक रणनीति की तरह इस्तेमाल की जा रही थी। सरकार के मुखिया खामोश थे तो शेष पार्टी नेतृत्व दूसरों की लिखी स्क्रिप्ट पढ़ने में व्यस्त था। असुविधाजनक सवालों पर गहरी और लंबी चुप्पी उनकी रणनीति बन गयी थी। यूपीए के दुबारा चुनाव जीतने के बाद यह चुप्पी, अहंकार में बदल गयी। पांच साल तक जनता द्वारा दी गयी सत्ता को जागीर मानने की भ्रम भी पैदा हुआ। रामलीला मैदान के सभी प्रतिरोधों में सरकार का जवाब यही होता था कि “हमें पांच साल का जनादेश मिला है।“ जनादेश को जागीर और उपनिवेश में बदलने की शैली भारी पड़ी। कांग्रेस की त्यागमूर्ति अध्यक्षा ने प्रधानमंत्री का पद तो चाहे-अनचाहे छोड़ दिया किंतु सत्ता के मोह से वे बच नहीं पाईं। भरोसा न हो तो संजय बारू की किताब जरूर देखिए। सत्ता पर नाजायज नियंत्रण और जनता से संवादहीनता दोनों ही खबरें हवा में रहीं और समय ने इसे सच साबित किया। नरेंद्र मोदी यहीं बाजी मार ले गए। वे जनता के बीच रहे और संवाद में कोई कमी नहीं की। लगातार बातचीत करते हुए मोदी ने जनता के दिलों में उतरकर वो उम्मीदें जगा दीं, जिनके इंतजार में लोग लंबे अरसे से प्रतिक्षारत थे। संवाद की शैली, संचार माध्यमों के सही इस्तेमाल ने उन्हें नायक से महानायक बना दिया।सपनों के सौदागरःइस पूरे दौर में नरेंद्र मोदी सपनों के सौदागर की तरह प्रकट हुए हैं। हताश-निराश देश और उम्मीद तोड़ती राजनीतिक धाराओं के बीच वे एक नई और ताजा विचारधारा तथा एक ठंडी हवा के झोंके की तरह हैं। भारत जैसे महादेश को संभालने और उससे संवाद करने के लिए उनके पीछे एक चमकदार अतीत है। संघर्ष है और त्याग से उपजी सफलताएं हैं। जनमानस के बीच वे एक ऐसे धीरोदात्त नायक की तरह स्थापित हैं, जो बदलाव ला सकता है। परिवारवादी, जातिवादी, क्षेत्रवादी राजनीति के पैरोकारों के लिए वे सचमुच एक चुनौती की तरह हैं। उनकी वाणी और कृति में बहुत कुछ साम्य दिखता है। वे जैसे हैं, वैसे ही प्रस्तुत हुए हैं। उन्होंने गुजरात दंगों के लिए माफी न मांगकर और टोपी पहनने के सवाल पर जो स्टैंड लिया है वह बताता है कि वे इस नकली राजनीति में एक असली आदमी हैं। सवा करोड़ हिंदुस्तानियों की बात करने वाले मोदी, अगर जाति-धर्म के बंटवारे से अलग सबको एक मानने की बात कर रहे हैं तो उनके साहस की दाद देनी पड़ेगी। यह पारंपरिक राजनीति से अलग है और अच्छा भी। कश्मीर जैसे संवेदनशील सवालों पर कश्मीर पंडितों को उनकी जमीन पर वापस ले जाने की पहल एक नई तरह की शुरूआत है। अपने शपथ ग्रहण से लेकर भूटान यात्रा तक जो भी संदेश उन्होंने दिए हैं वह एक बेहतर शुरूआत तो है ही। इसके अलावा सांसदों-मंत्रियों को निजी स्टाफ में रिश्तेदारों को न रखने की हिदायत, है तो छोटी पर इसके मायने बहुत बड़े हैं। राजनीतिक क्षेत्र में आज मोदी का कद अपने समतुल्य नेताओं में सबसे बड़ा है तो इसके पीछे उनके सुनियोजित प्रयास,निजी ईमानदारी,कर्मठता और निरंतर कुछ करते रहने की भावना ही है। वे सही मायने में एक ऐसे राजनेता हैं जो परिवारवाद की राजनीति को घता बताकर मैदान में उतरा है।सुशासन नारा नहीं एक संकल्पःजिसके लिए सुशासन एक नारा नहीं पवित्र संकल्प है। उसने देश की नौकरशाही को शक्ति देने की बात कही ताकि वे तेजी से फैसले ले सकें। राजनीति में पारदर्शिता और संवाद से ही वे आगे बढ़ने की सोचते हैं। ऐसा व्यक्ति कोई भी हो, लोगों का दुलारा बन जाता है। वे सिर्फ नायक हैं नहीं, नायक सरीखा आचरण भी कर रहे हैं। देश की जनता बहुत भावुक है। लंबी गुलामी ने उसके मन में यह बैठा दिया है कि केंद्र कमजोर होगा, शासक कमजोर होगा तो देश टूट जाएगा। इस निराशाजनक समय में मोदी को लाकर जनता ने एक मजबूत केंद्र और मजबूत शासक देकर दरअसल अपने मन में पल रहे अज्ञात भयों से मुक्ति पायी है। उसे अब सेकुलरिज्म के बदले अराजकता, सार्वजनिक धन की लूट, वंशवाद की लहलहाती बेलें नहीं चाहिए- उसे एक ऐसा भारत चाहिए जिसमें सम्मान,सुरक्षा,रोजगार और आर्थिक प्रगति के अवसर हों। नरेंद्र मोदी जब अपनी सरकार को गरीबों को समर्पित करते हैं तो इसके मायने बहुत अलग हैं। वे जानते हैं कि सरकारी स्कूलों और अस्पतालों के हालात क्या हैं। इनके बरबाद होने के मायने क्या हैं। वे यह भी जानते हैं कि गरीब आदमी के हक में कोई खड़ा है तो वह सिर्फ सरकार है। इसलिए सरकारी तंत्र को अपेक्षित संवेदना से युक्त करना जरूरी है। सरकारी तंत्र की संवेदनशीलता ही इस जनतंत्र की जड़ों को मजबूती देगी। संसाधनों की लूट में लगी कंपनियों और रोज और विकराल होती गैरबराबरी के बीच भी उम्मीदों का एक दिया टिमटिमा रहा है कि आखिर कभी तो हम अपने लोकतंत्र को न्यायपूर्ण और संवेदनशील होता देख पाएंगें। एक सक्षम सरकार को लगभग तीन दशक बाद पाकर लोगों में आशाएं जगी हैं। राजनीति से भी कुछ बदल सकता है, यह भरोसा भी जगा है। लोगों की आशाएं पूर्ण हों इसके लिए सरकार के साथ आम लोगों को भी अपनी सार्वजनिक सक्रियता बढ़ानी होगी। समाज एक दंडशक्ति के रूप में, निगहबानी के लिए सरकारी तंत्र पर नजर रखे तभी जनतंत्र अपने को सार्थक होता हुआ देख पाएगा। उम्मीद की जानी चाहिए आमजन भी चुनाव के बाद अपने कठघरों में बंद होने के बजाए सरकार और उसके तंत्र पर चौकस निगाहें रखेंगें। [दखल]

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Dakhal News 28 July 2014


2014 का सबसे बड़ा सवाल, मुसलमान!

क़मर वहीद नक़वी मुसलमान? 2014 की राजनीति का सबसे बड़ा सवाल! चुनाव के पहले भी और चुनाव के बाद भी! चौदह का चुनाव कोई मामूली चुनाव नहीं था. पहली बार किसी चुनाव में आशाओं और आशंकाओं का ध्रुवीकरण हुआ. मोदी और मुसलमान! चुनाव के बाद फिर यही सवाल है. मोदी और मुसलमान! सवाल दोनों तरफ़ हैं. घनघोर. और दोनों तरफ़ क्या, राजनीति के हर मुहाने पर यह बड़ा सवाल उपस्थित है. मुसलमान? नयी सरकार और मुसलमान?यह सवाल सिर्फ़ देश की मुसलिम आबादी के लिए ही नहीं, बल्कि भविष्य की राजनीति की दिशा के लिए भी बड़ा महत्त्वपूर्ण है. भगवा बनाम सेकुलर के दो छोरों में बँटी राजनीति अगले पाँच बरसों में क्या शक्ल लेगी, यह देखना वाक़ई दिलचस्प होगा. संघ, उसकी ‘हिन्दू राष्ट्र’ की आकाँक्षा, ‘हिन्दुत्व’ का उग्र एजेंडा ले कर चलनेवाले उसके परिवार के विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और दुर्गा वाहिनी जैसे तमाम संगठन और राजनीतिक प्लेटफ़ार्म के तौर पर बीजेपी हमेशा से एक ख़ास क़िस्म की भगवा राजनीतिक विचारधारा के वाहक रहे हैं. उनके विरुद्ध दूसरी तरफ़ सेकुलर राजनीति रही है, जिसमें राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और जातीय पहचान से लेकर तमाम तरह की अलग-अलग विचारधाराओं वाली पार्टियाँ रही हैं. यह अलग बात है कि इनमें से कई दल अकसर ‘सेकुलर एजेंडे’ की चादर ओढ़ कर बीजेपी के साथ सत्ता बाँटते रहे हैं. लेकिन चौदह के चुनाव ने पहली बार बीजेपी को अकेले अपने बूते केन्द्र में सत्ता सौंपी है. इसलिए उसके पास अब कोई ‘सेकुलर चादर’ ओढ़ने की मजबूरी नहीं है. फिर भी बीजेपी और उससे भी ज़्यादा आगे बढ़ कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुसलमानों को बार-बार भरोसा भी दिला रहे हैं और न्योता भी दे रहे हैं कि विकास की यात्रा में वे बीजेपी के साथ आयें क्योंकि पार्टी और मोदी सरकार दोनों उन्हें पूरी तरह साथ लेकर चलना चाहते हैं! क्यों?यह ‘क्यों’ ही सबसे बड़ा सवाल है! बीजेपी के लिए भी, मोदी के लिए भी, मुसलमानों के लिए भी, तमाम दूसरे ‘सेकुलर’ राजनीतिक दलों के लिए भी और भविष्य की राजनीति के लिए भी! अब तक कभी नरम, कभी गरम ‘हिन्दुत्व’ की बैसाखियों पर चलती रही बीजेपी को 2014 की सफलता के बाद अब राजनीति में अपने लिए ‘भारत विजय’ का एक सुनहरा अवसर दिख रहा है. उसके पास मोदी जैसा एक जादुई चिराग़ है, जिसका जादू फ़िलहाल पूरे शबाब पर है! इसलिए बीजेपी को लगता है कि ‘हिन्दुत्व’ अब बैसाखी के बजाय बाधा ही है. देश का नया क्रेज़ है विकास! इसलिए विकास के वशीकरण मंत्र की मोहिनी से वह अब तक ‘अविजित’ रही जनता को भी मुग्ध कर सकती है. दूसरी और, काँग्रेस समेत तमाम दूसरे दलों की मौजूदा लस्त-पस्त हालत को देख कर भी बीजेपी को लगता है कि अगले दो-तीन बरस उसके लिए बड़े सुभीते के हैं और वह मज़े से बेरोक-टोक देश के तमाम दूसरे राज्यों में अपना फैलाव कर सकती है, अपनी जड़ें मज़बूत कर सकती है और लम्बे समय तक भारत पर राज कर सकती है. इसलिए ‘समावेशी विकास’ की बात बीजेपी की स्वाकार्यता को और बढ़ायेगी और जो लोग अब तक सेकुलरिज़्म के नाम पर बीजेपी से परहेज़ करते रहे हैं, उनके ‘बीजेपी-विरोध’ के तर्कों को कबाड़ कर देगी! इस तरह, अगर अगले कुछ सालों में बीजेपी ‘सेकुलरिज़्म’ के पूरे मु्द्दे को ही भारतीय राजनीति के लिए ‘अर्थहीन’ बना दे, तो यह उसकी सबसे बड़ी राजनीतिक जीत होगी! ‘हिन्दुत्व’ के अपने एजेंडे को ठंडे बस्ते में रख कर बीजेपी फ़िलहाल इसी एजेंडे पर काम कर रही है! लेकिन बीजेपी के सामने संकट यह है कि वह अपने ‘हिन्दुत्ववादी वोट बैंक’ को कैसे सम्भाले? अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए तात्कालिक तौर पर मुसलमानों की तरफ़ बढ़ना उसकी मजबूरी है, लेकिन अपने ‘हिन्दुत्ववादी समर्थकों’ को वह किसी क़ीमत पर खोना नहीं चाहेगी. इसलिए वह सम्भल-सम्भल कर बहुत आहिस्ता-आहिस्ता क़दम रख रही है. पुणे की ताज़ा हिंसा के मामले में बीजेपी की यह दुविधा खुल कर सामने आयी भी!दूसरी तरफ़, मोदी भी जानते हैं कि समय और संयोग ने उन्हें जहाँ पहुँचा दिया है, वहाँ से आगे का रास्ता कम से कम एक मामले में तो ‘गुजरात माडल’ से नहीं ही तय किया जा सकता! ‘हिन्दू हृदय सम्राट’ और ‘विकास पुरुष’ के मिले-जुले गुजरात के ‘मोदी माडल’ के बजाय उन्हें फ़िलहाल अभी तो एक ऐसा चमकदार, जगमग अखिल भारतीय ‘मोदी माडल’ गढ़ना है, जिसकी चकाचौंध में 2002 दिखना बन्द हो जाय! इसलिए 16 मई के बाद मोदी बिलकुल ही बदले हुए मोदी नजर आ रहे हैं! भाषा, तेवर, अन्दाज़ सभी कुछ नया-नया-सा है, ऐसा जो बरबस मन मोह ले और शशि थरूर से भी अपना क़सीदा पढ़वा ले. मोदी जानते हैं कि दिल्ली के सिंहासन पर बैठने के शुरुआती दिनों में किस-किस बात के लिए उनकी स्क्रूटनी होगी, इसलिए वह उन तमाम बाणों को भोथरा कर देना चाहते हैं जो उन पर चलाये जा सकते थे. वह बड़े जतन से अपनी एक ऐसी छवि गढ़ रहे हैं, जो उनके सारे विरोधियों को, उनके विरोध के हर मोरचे को फुस्स पटाख़ा साबित कर दे! इसीलिए, जब मौक़ा मिलता है, वह इस बात को दोहराना नहीं भूलते कि विकास के उनके सपने में मुसलमान भी उतने ही शामिल हैं, जितने बाक़ी और लोग. और अब ख़बरें हैं कि मोदी और बीजेपी इस रणनीति पर काम कर रहे हैं कि मुसलमानों के साथ संवादहीनता कैसे तोड़ी जाये, आपसी समझ बनाने-बढ़ाने के लिए क्या किया जाये और आशंकाओं की खाइयों को कैसे पाटा जाय! मुसलिम बुद्धिजीवियों, मौलानाओं और मुसलिम समाज के तमाम दूसरे प्रभावशाली लोगों के साथ सम्पर्क का नया सिलसिला पार्टी ने बाक़ायदा शुरू कर दिया है!लेकिन सवाल यह है कि संघ और हिन्दुत्ववादी राजनीति के साथ मुसलमानों के जो अब तक के अनुभव रहे हैं, उनसे आशंकाओं की जो खाइयाँ उपजी और गहरी हुई हैं, उन्हें क्या केवल विकास में सहभागी बना कर पाटा जा सकता है? इससे इनकार नहीं कि मुसलमानों के लिए ग़रीबी और पिछड़ापन एक बेहद चिन्तनीय और बड़ा मुद्दा है, लेकिन इससे भी बड़ा मुद्दा भावनात्मक सम्मान का है. मुसलमानों के बारे में जैसी भ्रान्तियाँ फैलायी जाती हैं, जिस प्रकार बात-बात पर उनकी निष्ठा और देशभक्ति को कटघरे में खड़ा किया जाता है, उसे दूर करना सबसे पहली और ज़रूरी शर्त है. संघ परिवार के तमाम संगठनों के प्रशिक्षण शिविरों में मुसलमानों के ख़िलाफ़ कार्यकर्ताओं के दिमाग़ में जिस तरह ज़हर घोला जाता है, और जिसके तमाम सबूत बार-बार सामने आ चुके हैं, उसे पूरी तरह बन्द किये बग़ैर मुसलमानों के बारे में संघ परिवार के लोगों में ‘अच्छी धारणा’ कैसे पनपेगी? मुसलमान लड़के और हिन्दू लड़की के बीच एक सामान्य प्रेम विवाह को ‘लव जिहाद’ घोषित करते रहने से दोनों समुदायों में नज़दीक़ी कैसे आयेगी?अगला मुद्दा है आतंकवाद का. सबको मालूम है कि आतंकवाद की जड़ कहाँ है और कैसे सीमापार के कुछ कुख्यात संगठन कुछ मुसलमान युवकों को बरगला कर आतंकवाद की ग़र्त में झोंक कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं. कोशिश होनी चाहिए कि सरकार और मुसलिम समाज मिल कर एकजुट अभियान चलायें कि मुसलिम युवक आतंकवाद के झाँसे में न आने पायें. दूसरी बात यह कि सरकार को देखना चाहिए कि आतंकवाद के नाम पर पुलिस निर्दोष लोगों को न फँसाये, फ़र्ज़ी एन्काउंटर न हों और हर मुसलमान को शक की नज़र से न देखा जाय. अमित शाह जैसे लोगों के आज़मगढ़नुमा बयान ऐसी ही ग़लत समझ का नतीजा हैं.मुसलमानों का विकास ज़रूरी है, लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है कि मुसलमानों के बारे में सही समझ विकसित हो. आज का मुसलमान किसी भी आम भारतीय की तरह भारतीय है, और उसकी भारतीयता किसी से किसी भी मामले में कम नहीं. संघ परिवार को यह बात अच्छी तरह समझनी होगी. मुसलमान भी मोदी और बीजेपी को नये सिरे से देख-परख रहे हैं. वह मोदी के न्योते को भी तौल रहे हैं और उसके निहितार्थ समझने की कोशिश कर रहे हैं कि यह वास्तव में दिल बदलने की शुरुआत है या ‘हिन्दुत्व’ को कुछ दिन तक ‘स्थगित’ रख कर राजनीतिक साम्राज्य के विस्तार की रणनीति?[दख़ल ]लोकमत समाचार से साभार

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Dakhal News 28 June 2014


ग़लती बाबा और ‘हड़बड़ पार्टी’ की गड़बड़!

क़मर वहीद नक़वी एक ग़लती बाबा हैं! दूसरों की ग़लतियों से पनपे और फूले. फूल-फूल कर कुप्पा हो गये! और अब अपनी ग़लतियों से पिचक भी गये! आप तो समझ ही गये होंगे कि हम ‘आप’ ही की बात कर रहे हैं! अरे वही तो, ‘आप’ के ग़लती बाबा केजरीवाल जी की! वह एक कहावत है, नेकी कर और दरिया में डाल. यानी नेकी कर और भूल जा. अपने ग़लती बाबा ने इसे ग़लती से पढ़ लिया, ग़लती कर और भूल जा! सो वह ग़लती करते जाते हैं, ग़लती मानते जाते हैं और फिर नयी ग़लती कर देते हैं!raagdesh_ग़लती बाबा और 'हड़बड़ पार्टी' की गड़बड़!ग़लती से हो या क़िस्मत से, राजनीति ने औचक करवट ले ली है. चुनावों में चटनी हार से काँग्रेस ढुलमुल यक़ीन हुई पड़ी है! सवाल उठने लगे हैं कि काँग्रेस का हाथ किसके हाथ में रहे? यह काँग्रेस के लिए बहुत बड़ा और बहुत कड़ा सवाल है! पता नहीं, काँग्रेस कोई कड़ा फ़ैसला ले पायेगी या फिर ऐसे ही चलती रहेगी. जवाब दोनों में से चाहे जो भी हो, काँग्रेस के सामने हाड़-तोड़ चुनौतियाँ हैं! पिछले बीस-पच्चीस बरसों में काँग्रेस एक-एक करके देश के तमाम राज्यों से लगातार सिमटती गयी है. और इस चुनाव ने उसकी रही-सही बखिया भी उधेड़ दी! ऐसे में वह चाहे पुरानी उँगलियों के इशारों पर चले या किसी नये करिश्मे की डोरी पर पेंगे भरने की सोचे, उसका निकट भविष्य में फिर से मोदी सेना से लड़ने लायक़ बन पाना फ़िलहाल तो आसमान से तारे तोड़ लाने जैसा नामुमकिन दिखता है!अब पता नहीं, केजरीवाल जी को एहसास है कि नहीं? समय एक बार फिर एक सम्भावना बन कर उनके सामने उपस्थित है! देश को फ़िलहाल एक जुझारू विपक्ष चाहिए! ऐसा विपक्ष, जिसकी उपस्थिति सारे देश में हो. ‘आप’ को भले ही लोग ‘नकटी’ कह कर चिढ़ा रहे हों क्योंकि पिछले चुनाव में उसके लगभग सारे ही उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गयी थी, लेकिन यह कम बड़ी उपलब्धि है क्या कि ‘आप’ ने एक-डेढ़ साल की अपनी उम्र में ही हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज तो करा ली है. जनता में ‘आप’ की साख काँग्रेस से कहीं बेहतर हो सकती है, बशर्ते कि ‘आप’ राजनीति को गम्भीरता से लेना शुरू कर दे! ख़ास कर तब, जब काँग्रेस ख़ुद ही अपनी ऊहापोह की धुँध में बुरी तरह उलझी और अकबकाई हुई हो और उसे आगे का रास्ता न सूझ रहा हो! क्या केजरीवाल और उनके साथियों के मन में यह सवाल कौंधा है कि अब देश भर में बीजेपी का मुक़ाबला कौन करेगा? ज़ाहिर है कि बीजेपी के अलावा केवल दो ही और पार्टियों का विस्तार राष्ट्रीय स्तर पर है, एक काँग्रेस और दूसरी ‘आप.’ काँग्रेस की चर्चा हम पहले कर चुके. अब बाक़ी बच गयी आप! क्या ‘आप’ सत्ता के बजाय विपक्ष की लड़ाई लड़ कर बीजेपी का रास्ता रोकने की कोशिश करेंगे या ठाले बैठ कर उसे आराम से ‘स्पेस’ दे देंगे?क्योंकि सत्ता तो अब ‘आप’ को शायद दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी न मिल पाये! इसलिए वह चाहे न चाहे, लड़ना तो उसे अब विपक्ष की लड़ाई ही है! यह भी अजब संयोग है कि काँग्रेस की तरह ‘आप’ के सामने भी नेतृत्व का ही संकट है, लेकिन एक दूसरे क़िस्म का? किसी को केजरीवाल की ईमानदारी, उनके इरादों, उनके जुझारूपन, इच्छाशक्ति, उनके नारों और वादों पर कोई शक नहीं. लोगों को अगर केजरीवाल पर भरोसा नहीं तो वह इस बात पर कि इसका कोई ठिकाना नहीं कि वह कब क्या कर बैठेंगे? कब धरने पर बैठ जायेंगे, कब कुर्सी छोड़ देंगे, कब जेल जाने की ठान लेंगे, कब क्या बोल देंगे, बिना यह सोचे-समझे कि बैठे-बिठाये उसका क्या ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ेगा. इसलिए ग़लती बाबा जब तक अपने आपको नहीं बदलेंगे, अपना काम करने और फ़ैसला लेने का तरीक़ा नहीं बदलेंगे, तब तक ‘आप’ ऐसे ही हाँफ़ू-हाँफ़ू करके घिसटती रहेगी.और दुर्भाग्य से केजरीवाल की ग़लतियों का सिलसिला लम्बा है. सोमनाथ भारती के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के बजाय उनको ‘न्याय’ दिलाने के लिए धरने पर बैठ जाना! मुख्यमंत्री होते हुए ख़ुद ही क़ानून और सरकारी शिष्टाचार का मखौल उड़ाना! सांविधानिक प्रक्रियाओं का सम्मान न कर ज़बर्दस्ती अपना इस्तीफ़ा थोप देना! बिना कारण ही गालियाँ दे-देकर मीडिया को अपना दुश्मन बना लेना, आ मीडिया मुझे मार! बार-बार ऐसी बातें करना, जिसे निभाया न जा सके और आख़िर उनसे यू-टर्न लेना पड़े, चाहे वह बातें अनाड़ीपन में की गयी हों, ज़िद में की गयी हों या पार्टी के लोगों के दबाव में, लेकिन ऐसी बातों ने केजरीवाल को जहाँ मज़ाक़ का विषय बना दिया, वहीं उनके कट्टर समर्थकों तक को बिदका दिया!अब सोचने वाली बात यह है कि इतनी ग़लतियाँ हुई क्यों और क्या तरीक़ा है कि ग़लतियाँ आगे न हों? यह सही है कि ‘आप’ हड़बड़ी में बनी एक पार्टी थी, लेकिन यह भी सोचनेवाली बात है कि यह कब तक ‘हड़बड़ पार्टी’ बनी रहेगी? लोकसभा चुनावों ने पार्टी को समर्पित कार्यकर्ताओं की लम्बी-चौड़ी फ़ौज दी है, अब उस पर संगठन का एक विधिवत और मज़बूत ढाँचा खड़ा करने की ज़रूरत है. नीचे से लेकर ऊपर तक पार्टी के फ़ैसले कैसे लिये जायें, इसकी कोई सुनिश्चित प्रक्रिया हो. यह नहीं कि कुमार विश्वास अगर पार्टी के बड़े नेता हैं तो मनमाने ढंग से अमेठी से अपनी उम्मीदवारी का एलान कर दें और पार्टी देखती रह जाय. फिर देखादेखी बाद में केजरीवाल को भी लगे कि उन्हें भी मोदी जैसे किसी ‘बिग शाॅट’ के ख़िलाफ़ लड़ना चाहिए तो वह भी आँख बन्द कर चुनाव मैदान में कूद जायें! और आपने चार सौ से ज़्यादा जिन उम्मीदवारों को चुनावी महाभारत में झोंक दिया हो, वे बेचारे अपने-अपने चक्रव्यूहों में अकेले पड़ कर मारे जायें! कोई बड़ी पार्टी ऐसे नहीं चल सकती!टीम मोदी ने जिस तरह पिछला चुनाव लड़ा, ज़ाहिर-सी बात है कि अगले चुनाव अब उससे भी ज़्यादा ताक़त लगा कर लड़े जायेंगे और बीजेपी के अश्वमेध रथ को रोकने का सपना देखनेवालों को यह बात समझनी ही पड़ेगी. इसलिए ‘आप’ को भी समझना होगा कि पार्टी अब और ‘तमाशेबाज़ी’ से नहीं चल सकती! ऐसे तमाशों का अब कोई ख़रीदार नहीं! इसलिए पार्टी को एक राजनीतिक दल की तरह चलाइए, सर्कस कम्पनी की तरह नहीं! पार्टी का एक स्पष्ट ‘मिशन स्टेटमेंट’ होना चाहिए, एक सुविचारित ‘विज़न डाक्यूमेंट’ हो, यह तय हो कि पार्टी के क्या लक्ष्य हैं और उन्हें वह कैसे पूरा करेगी, राजनीतिक गठबन्धनों के बारे में क्या नीति हो और यहाँ तक कि सामान्य सदस्यता देने के आधार क्या हों, इन सब पर विचार और नीतियाँ स्पष्ट होनी चाहिए. ख़ास तौर पर इसलिए कि ‘आप’ ने राजनीति के एक नये आदर्श और शुचिता की एक लक्ष्मण रेखा को अपना ‘यूएसपी’ बनाया है, जनता उससे एक अलग तरह की राजनीति की उम्मीद रखती है. इसलिए पार्टी का दिमाग़ इस बारे में साफ़ होना चाहिए कि वह बाक़ी पार्टियों की तरह सत्ता की अवसरवादी राजनीति करेगी या शुचिता का झंडा उठाये रहेगी? मुझे लगता है कि राजनीतिक शुचिता और ईमानदारी पर ही ‘आप’ की साख टिकी है, यही उसकी इकलौती जीवनरेखा है और पार्टी अगर सत्ता के लालच में इससे डिगी तो कहीं की न रहेगी! अभी लोकसभा चुनावों के बाद ‘आप’ ने दिल्ली की गद्दी वापस पाने के लिए जो बचकानी कोशिशें की, उससे तो यही सन्देश गया कि पार्टी और उसके विधायक कुर्सी पाने के लिए तरस रहे हैं. जिस किसी ने भी अरविन्द केजरीवाल को लेफ़्टिनेंट गवर्नर को चिट्ठी लिखने की सलाह दी थी, तय मानिए कि उसे राजनीति के ‘र’ तक की समझ नहीं है!(लोकमत समाचार से )

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Dakhal News 9 June 2014


मुख्यमंत्री  शिवराज ने की प्रधानमंत्री मोदी से  मुलाकात

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गुरुवार को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सौजन्य भेंट की और शाल, श्रीफल एवं फूलों का गुलदस्ता देकर अभिवादन किया।प्रधानमंत्री मोदी से भेंट के बाद मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री जी को मध्यप्रदेश के अनेक मुद्दों से अवगत करवाया। मध्यप्रदेश में होने वाले सिंहस्थ 2016 के सम्बन्ध में चर्चा हुई, मध्यप्रदेश के चावल को बासमती का दर्जा दिलाने, मनरेगा का स्वरूप बदलने और विकास के नये द्वार खोलने के सम्बन्ध में भी चर्चा हुई।श्री चौहान ने कहा कि वे प्रधानमंत्री से सौजन्य भेंट करने आये हैं। मध्यप्रदेश की एवं अन्य राज्यों की समस्याओं से प्रधानमंत्री पूर्णतः अवगत हैं। वे स्वयं मुख्यमंत्री रहे हैं। अब किसी भी राज्य से कोई भी भेदभाव नहीं होगा। सभी राज्यों को केन्द्र से परस्पर सहयोग मिलेगा, अनुदान राशि, करों के वितरण में राज्यों की राशि बढ़ाने एवं राज्यों को योजना बनाने के लिए और अधिक स्वायत्तता की बात भी प्रधानमंत्री के समक्ष रखी। मुख्यमंत्री ने कहा कि अब सभी के लिये अच्छे दिनों की शुरूआत हुई है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सभी राज्यों और देश के सभी क्षेत्रों का समता के आधार पर विकास होगा। फसल बीमा योजना को लागू करने पर भी चर्चा हुई। साथ ही शिक्षा के अधिकार अधिनियम पर केन्द्र-राज्य के अंशदान के साथ मनरेगा के बिन्दुओं पर भी चर्चा हुई।सांसद सुमित्रा महाजन को लोकसभा का स्पीकर बनाये जाने पर भी चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश को संसद में प्रमुख स्थान मिला है। अब ताई को स्पीकर चुना जाना भी हमारे लिये खुशी का क्षण है।

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Dakhal News 6 June 2014


8 दिन से मंत्री उमा भारती का फोन नहीं उठा रहे सीएम अखिलेश यादव

ई-मेल का भी रिस्पांस नहीझांसी में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती के मुताबिक सीएम अखिलेश यादव ने उनका फोन आठ दिन से नहीं उठाया है। नाराज उमा भारती ने संवाददाताओं से बातचीत में अखिलेश को खूब खरी-खोटी सुनाई। सपा परिवार को घमंडी तक करार दिया। उन्होंने कहा, ”अखिलेश को मन में घमंड है कि कुछ जातियों को ​​मिलाकर सरकार बना लेते हैं। फिर चाहे भ्रष्टाचार हो या फिर गरीबी और बेकारी। इसका उन पर कोई असर नहीं पड़ता। यही हाल बसपा का भी है। जनता जब तक इनका घमंड नहीं तोड़ेगी। तब तक कुछ नहीं बदलेगा।”उमा के फोन पर नहीं आ रहे अखिलेश, ई-मेल का भी रिस्पांस नहींउमा भारती ने कहा कि वह केंद्रीय जल संसाधन मंत्री हैं और सूखे की समस्या के साथ यमुना और गंगा के प्रोजेक्ट को लेकर वह बीते आठ दिन से सीएम अखिलेश यादव को फोन कर रही हैं पर वह फोन पर नहीं आ रहे हैं। इसके बाद उनको ई-मेल भी किया है। पर उसका भी कोई रिस्पांस नहीं आया है।‘किसानों और सूखे की अखिलेश को चिंता नहीं’उमा ने सूखे के सवाल पर कहा, ”अखिलेश दिल्ली आएं। सूखे से निपटने का काम मेरा और कृषि मंत्री का है। पर वह फोन लाइन पर ही नहीं आ रहे हैं। इससे जाहिर होता है कि उन्हें किसानों और सूखे की कितनी चिंता है।”‘सभ्यता का तकाजा तोड़ दीजिए पर गरीबों की फिक्र करिए’ केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने कहा, ”जिन लोगों ने अखिलेश को भरोसा दिलाया और सरकार बनाई। उन्हीं लोगों की समस्याओं को लेकर सीएम कितने चिंतित हैं। यह साफ हो गया है। एक केंद्रीय मंत्री कई दिनों से फोन कर रही है और फोन नहीं उठ रहा है। सभ्यता का एक तकाजा होता है उसे तोड़ दीजिए पर गरीबों की तो फिक्र करिए। मैं कोई साधारण मंत्री नहीं, बल्कि मुलायम यूपी में सीएम थे तब मैं भी सीएम थी।

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Dakhal News 15 February 2016


सभी जिले एपिक और जेण्डर गेप को दूर करें

विधानसभा चुनाव के लिये प्रत्येक जिले में होंगे 12 नोडल अधिकारी मध्यप्रदेश में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर की जा रही तैयारियों को देखते हुए सभी जिलों को एपिक और जेण्डर गेप को दूर करने के निर्देश दिये गये हैं। निर्वाचन संबंधी तैयारियों को लेकर भोपाल में आयोजित जिलों के उप जिला निर्वाचन अधिकारियों और निर्वाचन पर्यवेक्षकों की बैठक में यह निर्देश मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी जयदीप गोविंद द्वारा दिये गये।श्री जयदीप गोविंद ने अधिकारियों को निर्वाचक नामावली के लिये मतदाताओं के छायाचित्र एकत्रित करने की मुहिम को सतत जारी रखने को कहा। उन्होंने बताया कि विगत 15 जनवरी को 3 लाख 14 हजार छायाचित्र एकत्रित किये जाने थे, लेकिन अब तक 60 हजार छायाचित्र एकत्रित हुए हैं। इस कार्य में जिन जिलों को ज्यादा संख्या में छायाचित्र एकत्रित करना हैं, उनमें मुरैना, भिण्ड, दमोह, रीवा, सतना, सीधी, बालाघाट, सिवनी, रतलाम, धार और झाबुआ शामिल हैं। एपिक-कार्ड का जो अंतर 15 जनवरी को 2 लाख 36 हजार था, वह नये लगभग 2 लाख मतदाता जुड़ने से अब 2 लाख 53 हजार हो गया है। गत 15 जनवरी के बाद लगभग 50 हजार नये एपिक-कार्ड बने हैं। एपिक-कार्ड के गेप को पूरा करने के लिये जिलों को आगे आना होगा। एपिक गेप को शून्य-स्तर पर लाने वाले जिलों को उन्होंने प्रशंसा-पत्र देने के निर्देश भी दिये। उन्होंने बताया कि अभी भी लगभग 1 लाख 92 हजार युवा मतदाता को जोड़ा जाना शेष है। जिलों को इस कार्य में भी आगे आना होगा।मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने बताया कि 15 जनवरी की स्थिति में जेण्डर गेप 895 था, जो अब बढ़कर 896.5 हो गया है। जिन जिलों में जेण्डर गेप अधिक है, वे महिला-बाल विकास विभाग के सहयोग से शिविर लगाकर उसे दूर करें। श्री गोविंद ने अधिकारियों को ऐसे मतदाताओं के नाम सूची से हटाने के निर्देश दिये, जिनका निधन, स्थानांतरण हो गया है या जिनके नाम का दोहराव है अथवा जो गुमशुदा या निर्वाचन आयोग द्वारा नियमानुसार अयोग्य घोषित हों। उन्होंने मतदाता सहायता केन्द्रों को समग्र रूप से संचालित करने को कहा। केन्द्र को लेकर जिन जिलों में दिक्कतें आ रही हैं, वहाँ कलेक्टर इस मामले को देखेंगे। उन्होंने निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार स्वीप प्लॉन का पालन करवाने को भी कहा।श्री जयदीप गोविंद ने जिलों को निर्वाचन संबंधी एक्शन प्लॉन का बेहतर संचालन करने के निर्देश दिये। उन्होंने बताया कि निर्वाचन संबंधी विभिन्न कार्यों को लेकर प्रत्येक जिले में 12 नोडल अधिकारी नियुक्त होंगे। सभी जिलों में शत-प्रतिशत फोटोयुक्त मतदाता परिचय-पत्र होना चाहिये। मतदाता-सूची में युवाओं तथा महिलाओं के नाम जोड़ने पर विशेष ध्यान दिया जाये। उन्होंने बताया कि मतदाताओं को निर्वाचन संबंधी जानकारी देने के लिये उनके मोबाइल फोन के नम्बर भी एकत्रित किये जा रहे हैं। श्री गोविंद ने निर्वाचन अधिकारियों को उनके जिले में प्रचार-प्रसार माध्यमों का भरपूर उपयोग करने को कहा तथा टोल-फ्री नम्बर 1950 का भी व्यापक प्रचार किये जाने की आवश्यकता बताई। उन्होंने जिलों में किये जा रहे बेसलाइन सर्वे से प्रतिष्ठित संस्थानों को जोड़ने को कहा। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि सीईओ कार्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध करवाये गये विभिन्न प्रपत्र की पूर्ति नियमित रूप से की जाये। जिलों में तैनात बूथ-लेवल ऑफीसर (बीएलओ) के नाम, फोन नम्बर आदि जानकारी भी सभी को होनी चाहिये।प्रारंभ में निर्वाचन संचालन के संबंध में अधिकारियों को विस्तृत दिशा-निर्देश दिये गये। बैठक में निर्वाचन संचालन, निर्वाचक नामावली और स्वीप प्लॉन की विस्तृत जानकारी प्रस्तुतिकरण के माध्यम से अधिकारियों को दी गई। इस मौके पर संयुक्त मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी श्री एस.एस. बंसल तथा अन्य अधिकारी उपस्थित थे।[दखल]

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Dakhal News 17 April 2013


कालसर्प योगी ,चाणक्य और किंगमेकर

पंडित पीएन भट्ट सोचिए! दिल्ली विधानसभा चुनावों में अमित शाह के 60 के आंकड़े को। जो मात्र 03 में बदलकर घातक कालसर्प योगी श्री अरविंद केजरीवाल ने समूचे भाजपा परिवार को किंकत्र्तव्यविमूढ़ कर दिया तथा श्रीमती किरण बेदी के प्रशासनिक एवं राजनैतिक अहंकार को दफन कर दिया।वस्तुत: अमित शाह को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सुरक्षा कवच के रूप में भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है। तीन टिकट महा विकट के कैनवास में जिन त्रिमूर्तियों के भाग्य दर्पण को ज्योतिषीय आईने में देखने का मैंने प्रयास किया है, उसमें नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व उतना विशाल नहीं है, जितना चुनावों के दौरान मीडिया तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा उनका प्रकटन किया गया है। कदापि इसका अर्थ यह नहीं है कि नरेन्द्र मोदी कमजोर हैं और न ही उनके अदम्य साहस में कहीं कमजोरी है।नरेन्द्र मोदी: भारतीय राजनीति का चाणक्यनरेन्द्र मोदी का जन्म 17 दिसम्बर, 1950 को वृश्चिक लग्न, अनुराधा नक्षत्र के तृतीय चरण में रविवार को दिन के 11 बजे, ग्राम बडऩगर, जिला मेहसाणा (गुजरात) में हुआ था। जन्म लग्न तथा जन्म राशि वृश्चिक है। लग्नस्थ स्वक्षेत्री मंगल कुण्डली में मंगली योग बना रहा है। कुण्डली में वरिष्ठ योग सफल अमल कीर्ति योग, केदार योग, महापुरुष योग, गजकेसरी योग, अखण्ड साम्राज्य योग, अमर योग, केन्द्र त्रिकोण राजयोग, दान योग, पर्वत योग, शंख योग, भेरी योग, चन्द्र मंगल योग सरीखे महान योगों ने इस जातक को सामान्य से विराट व्यक्तित्व का धनी बनाया है।योगिनी में संकटा की महादशा 26.01.71 से 26.01.79 तक चली। वस्तुत: संकटा की महादशा में (8 वर्ष) नरेन्द्र मोदी के संघर्षों का काल था, जिसने इन्हें तपाकर सोने से कुन्दन बना दिया। 06 जून, 1975 को जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातकालीन स्थिति घोषित कर दी। उसी दौरान इन्होंने ‘संघर्ष मा गुजरात नामक पुस्तक लिखी जिसमें आपातकालीन घटनाओं का उल्लेख था।सत्ता से सत्ता के शिखर तक (राज्याभिषेक)07 अक्टूबर 2001 को श्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। उस समय वर्गोत्तम शुक्र की महादशा चल रही थी।24 फरवरी, 2002 को राजकोट विधानसभा चुनाव में अपने कांग्रेसी प्रतिद्वंदी को 14728 वोटों से पराजित कर विजयश्री प्राप्त की। उस समय शुक्र में बुध (लाभेश) की अन्तर्दशा चल रही थी। उसी ने इन्हें सत्ताधीश बनवाने में अहम् भूमिका निभाई। राज्येश सूर्य की महादशा काल में 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनते रहे।देश के सत्ता सिंहासन पर: 2014 03.12.2011 से भाग्येश चन्द्र की महादशा का शुभारम्भ हुआ। ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित है कि भाग्येश की महादशा एक तो आती ही नहीं, यदि आ जाए तो जातक ‘रंक से राजा, राजा से महाराजाÓ बनता है।26.05.2014 को राष्ट्रपति भवन में जब उन्हें प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी उस समय भाजपा ने लोकसभा चुनाव में 282 सीटों पर विजयश्री प्राप्त की थी। उस समय श्री नरेन्द्र मोदी की कुण्डली में भाग्येश चन्द्र की महादशा में राज्यभवन में विराजे वर्गोत्तम शुक्र की प्रत्यन्तर दशा चल रही थी। भाग्येश चन्द्रमा की महादशा 02.12.2021 तक चलेगी तथा योगनी में मंगला, पिंगला और धान्या की महादशा 25.01.2021 तक चलेगी। जन्म कुण्डली के सभी प्रकार उच्च कोटि के राजयोगों की परिणति ने उन्हें देश का शासनाध्यक्ष बनाया। स्वराशिगत् होकर मंगल लग्नस्थ है, जो शत्रुहन्ता योग भी बना रहा है।विश्वस्तरीय सम्मान पाने में सक्षमअनेक महायोगों से प्रभावित यह जातक विश्वस्तरीय सम्मान पाने में सक्षम है। बस, वर्तमान में शनि की साढ़ेसाती चल रही है। 26.10.2017 से शनि की साढ़ेसाती का अन्तिम चरण प्रारम्भ होगा, हो सकता है 26.10.2017 के पश्चात् कुछ राजनैतिक प्रतिकूलताओं का सामना करना पड़े। इस विराट व्यक्तित्व को, किन्तु भाग्येश का सुरक्षा कवच इस जातक के अखण्ड साम्राज्य योग को और अधिक प्रभावी बना सकता है।किंग मेकर अमित शाह22 अक्टूबर, 1964 दिन गुरुवार को दिन के 12 बजे मुम्बई में जन्मे इस राजपुरुष की शारीरिक कद-काठी एवं शक्ल-सूरत कांग्रेस नेता अरुण नेहरू के समान ही नजर आती है। जन्म के समय धनु लग्न उदित तथा भरणी नक्षत्र का द्वितीय चरण चल रहा था। कुण्डली में स्वक्षेत्री शनि तथा चार ग्रहों का राशि परिवर्तन योग बड़ा प्रभावशाली है। पिता अनिल चन्द्र शाह के वैष्णव परिवार में जन्मे इस जातक की जन्म कुंडली में सुनफा योग, भेरी योग, महाभाग्य योग, नीच भंग राजयोग, विमल योग, जैमिनी राजयोग, धन योग, पराक्रम योग, मातृ स्नेह योग, महापरिवर्तन योग, पूर्णायु योग, राज संबंध योग तथा खलवात योग (गंजा होने का योग) सरीखे अद्भुत योग हैं। जन्म के समय शुक्र की महादशा। शुक्र की महादशा में जन्मा यह जातक सन् 1997 में सरखेज से उपचुनाव जीतकर विधायक बना। पुन: सरखेज विधानसभा से चुनाव लड़कर 1998, 2002 और 2007 में उसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे। इस जातक को 02.05.2009 से 02.05.2016 तक योगिनी में सिद्धा की महादशा चलेगी। यही समयकाल इस जातक के प्रभा मण्डल को दैदीप्यमान करता नजर आएगा।अशुभ काल: सिद्धा में संकटा की जब अन्तर्दशा आई तो 2010 में फर्जी एनकाउंटर केस (सोहराबुद्दीन शेख) में फंसे। 08 जून, 2010 को इनकी मातुश्री की मृत्यु हो गई। श्री अमित शाह अपनी माता के प्रति बड़ी श्रद्धा रखते थे। श्री शाह 25 जुलाई 2010 को गिरफ्तार हुए तथा तीन माह जेल में रहने के बाद 29.10.2010 में इनकी जमानत हुई। साथ ही गुजरात राज्य में इनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। सन् 2012 को नारानपुर से विधानसभा चुनाव लड़े और 1,03,988 वोटों से विजयी हुए। इस जातक को 02.05.2009 से 02.05.2016 तक योगिनी में सिद्धा की महादशा चलेगी। दिनांक 02.05.2016 से योगिनी में संकटा की महादशा इनके राजनैतिक प्रभामण्डल को प्रभावित कर सकती है। यदि राजनीतिक स्वास्थ्य के प्रति सावधानी नहीं बरती गई, तो?राष्ट्रीय राजनीति: 2014 लोकसभा चुनावों में श्री नरेन्द्र मोदी ने श्री अमित शाह को उत्तर प्रदेश का चुनाव प्रभारी बनाया। श्री अमित शाह ने ऐसा चुनावी संचालन किया, जो अचम्भित कर देने वाला रहा। 80 में से 71 सीटें जीतकर भा.ज.पा. ने इतिहास रच डाला, उत्तर प्रदेश के चुनावी परिणामों में। दो सीटें सहयोगी अपना दल के हिस्से में भी ाई। जुलाई, 2014 को अमित शाह को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्विरोध चुना गया। अनेक राज्यों में विजय पताका फहराते हुए भाजपा के अश्वमेघ यज्ञ के अश्व को अरविन्द केजरीवाल की ‘आप पार्टी’ ने रोका तथा विजयश्री प्राप्त की। दिल्ली व बिहार विधानसभा की चुनावी जंग में भाजपा हारी। असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, यूपी के विधानसभा चुनाव में चुनौती न बने, इसके लिए श्री अमित शाह को अपनी चुनावी रणनीति में काफी परिवर्तन करना होंगे, अन्यथा चुनावी परिणाम भा.ज.पा. के चुनावी अश्वमेघ यज्ञ पर प्रश्नचिन्ह लगा सकते हैं? क्योंकि उस समय श्री अमित शाह की कुण्डली में संकटा की महादशा अपना जौहर दिखला सकती है?राजनैतिक पराक्रम अक्टूबर 2001 में श्री नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री बने गुजरात के। सन् 2002 में श्री अमित शाह सरखेज विधानसभा से पुन: चुनाव लड़े और कांग्रेस प्रत्याशी को भारी मतों से पराजित कर सबसे युवा मंत्री बने, मोदी सरकार में। उस समय 12 विभाग थे, अमित शाह के पास। तब राहु में गुरु की अन्तर्दशा चल रही थी।घातक कालसर्प योगीअरविन्द केजरीवाल अरविन्द केजरीवाल का जन्म 16 अगस्त, 1968 की रात्रि 11:48 पर हरियाणा प्रदेश के सिवानी (हिसार) में हुआ था। वृष लग्न तथा वृष राशि वाला यह जातक कृतिका नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्मा। लाभ भवन में राहु और पंचम भवन में केतु के मध्य सभी ग्रह पदस्थ हैं, जो केजरीवाल को घातक कालसर्प योगी बना रहे हैं। जातक की कुण्डली में वर्गोत्तम शनि, जो भाग्येश और राज्येश है। शुक्र लग्न और शत्रु भवन का स्वामी है, जो शत्रुहन्ता योग बना रहा है। उच्च राशिगत् चन्द्र पराक्रमेश होकर लग्न में बैठे हैं, जो वाणी तथा व्यवहार द्वारा अनुयाईयों की संख्या में इजाफा कर सकते हैं तथा मौका आने पर उन्हें भयाक्रान्त भी कर सकते हैं। स्वक्षेत्री सूर्य राजयोग कारक है। इस जातक की कुण्डली में घातक कालसर्प योग के अलावा केदार योग, गजकेशरी योग, अनफा योग, अधम योग, वेशि योग, जड़ योग (बोलने में अपना संतुलन खोने वाला) उत्तम गृह योग, बन्धू पूज्य योग, दुर्योग, शंख योग, भेरी योग, नीच भंग राजयोग, देह कष्ट योग, अखण्ड साम्राज्य योग, अमर योग, राज लक्षण योग, केन्द्र त्रिकोण राजयोग, धन योग, पूर्णायु योग, मृतका योग, (जातक श्रेष्ठ सेवक होगा) सूर्य, मंगल योग, सूर्य गुरु योग, सूर्य बुध योग, सूर्य शुक्र योग आदि अनेक योगों को धारण करने वाला यह जातक महान पराक्रमी तथा जन मानस का श्रेष्ठ सेवक होगा। कालसर्प योगी बड़े प्रतिभा सम्पन्न तथा प्रभावशाली होते हैं यथा भगवान गौतम बुद्ध, अब्राहीम लिंकन, पं. जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, चर्चिल, चंगेज खां, पीवी नरसिम्हा राव, धीरूभाई अम्बानी, आचार्य रजनीश सरीखे व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में अपनी धाक, प्रतिष्ठा तथा अपना लोहा मनवाने वाले अनगिनत व्यक्तित्वों ने अपनी कथनी-करनी से इतिहास में अपना स्थान बनाया और बनाते रहेंगे।मुख्यमंत्री, दिल्ली, प्रथम पारी 2013सन् 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित को 25,864 वोटों से पराजित कर दिल्ली विधान सभा में 28 सीटें जीत कर 28 दिसम्बर, 2013 को सबसे युवा मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उस समय गुरु में वर्गोत्तम शुक्र की अन्तर्दशा चल रही थी। बहुमत के अभाव में 14 फरवरी, 2014 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उस समय योगनी दशा में संकटा में संकटा की अन्तरदशा चल रही थी, जिसने राजयोग भंग किया।लोकसभा चुनाव 2014‘आम आदमी पार्टी’ की आम राय पर श्री अरविन्द केजरीवाल ने भा.ज.पा. के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी श्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बनारस से लोकसभा चुनाव लड़ा। श्री मोदी तो भाग्येश की महादशा में युद्ध-देही का शंखनाद फूंक रहे थे। श्री अरविन्द केजरीवाल संकटा की महादशा में विजय कैसे प्राप्त कर सकते थे, जबकि सामने भाग्येश की महादशा वाला महारथी चुनाव लड़ रहा हो। अंततोगत्वा श्री केजरीवाल चुनावी जंग में परास्त हो गये।मुख्यमंत्री, दिल्ली, दूसरी पारी 2015केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली विस की 70 सीटों पर आप पार्टी ने चुनाव लड़ा। भाजपा प्रत्याशी नुपुर शर्मा को 31583 मतों से पराजित किया। आप पार्टी ने 70 में से 67 सीटों पर विजय प्राप्त की। भाजपा तीन सीटों पर सिमट कर रह गई। कांग्रेस 8 से 0 पर पहुंच गई। उस समय केजरीवाल को संकटा में धान्या की अन्तर्दशा चल रही थी। गर्व से आल्हादित श्रीमती किरण बेदी चुनावी जंग में ‘बडे बेआबरू होकर, तेरे कूचे से हम निकले’ की कहावत चरितार्थ करती पराजित हुई। सम्भवत: भा.ज.पा. के राजनैतिक अहंकार को ईश्वरीय श्राप मिला हो? बेताल मौन है? वक्त अट्टहास कर रहा है। कांगे्रस तो जड़ होकर न हंसी, न रोई। श्री नरेन्द्र मोदी की तरह अरविन्द केजरीवाल को भी 15.08.2020 से 15.8.2039 तक भाग्येश और राज्येश वर्गोत्तम शनि की महादशा का राजनैतिक लुत्फ उठाने का अवसर मिलेगा और उसी दौरान योगनी महादशा में मंगला, पिंगला, धान्या की गौरव प्रदान करने वाली महादशाएं केजरीवाल की राजनैतिक परिक्रमा करती नजर आएंगी। हो सकता है यह घातक कालसर्प योगी अरविन्द केजरीवाल भारतीय राजनैतिक आकाश में धूम-केतू की तरह उभर कर तत्कालीन अन्य राजनैतिक हस्तियों के राजनैतिक पराभव का इतिहास लिखने को आतुर नजर आए।आप पार्टी: राजनीतिक सफरनवम्बर 2012 में ‘आम आदमी पार्टी’ का गठन हुआ। इसमें अरविन्द केजरीवाल को राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया। जीवन में संघर्षों की जो दास्तान लिखी गई और जिसमें तपकर यह जातक प्रभावशाली व्यक्तित्व धनी बना। वह 18 वर्षीय राहु की महादशा का समय काल रहा, जो 15.08.1986 से लेकर 15.08.2004 तक चला। कालसर्प योगी श्री धीरूभाई अम्बानी भी राहु की 18 वर्षीय महादशा में रंक से राजा बने थे। वस्तुत: कालसर्पयोगी जातकों का अभ्युदय राहु या केतु की महादशा में ही प्रारम्भ हो जाता है। [पंडित पीएन भट्ट से इन नंबर्स पर संपर्क कर सकते हैं -9407266609, 07582223168 ]

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Dakhal News 7 March 2016


रामराज के आदर्श मूल्य

डॉ. विजय अग्रवालजो प्राप्ति यानी राज्याभिषेक किसी भी व्यक्ति के जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि होती है वही राम को बंधनकारी लग रही है। जंजीर, हथकड़ी, फिर चाहे वह सोने की ही क्यों न बनी हुई हो, होती तो हथकड़ी ही है। राम राजसिंहासन को इसी रूप में देख रहे थे। वे इसे इस रूप में ले रहे थे कि इसका अर्थ होगा जीवन की स्वाभाविक स्थितियों से विलग हो जाना। इसका अर्थ होगा-अपनी ही जमीन से, अपने ही लोगों से कट जाना। इसका अर्थ होगा-राजकीय विधि-विधानों से जकड़ जाना। उनकी परेशानी यह थी कि जिसकी पत्नी पृथ्वी हो उसे मर्यादा में तो रखा जा सकता है, लेकिन गुलाम बनाकर, बंधनों में जकड़कर कैसे रखा जाए। सच मानिए तो राम के इस रूप पर, इस भाव पर सहज ही विश्वास करना थोड़ा कठिन हो जाता है। राम के मन की इस स्थिति में हमें व्यक्तित्व के विकास का एक अन्य सूत्र मिलता है और यह सूत्र है स्वतंत्रता का, बंधविहीनता का। लेकिन उस स्वतंत्रता या बंधनमुक्ति को सही तरीके से न समझने पर गड़बड़ी होने की पूरी-पूरी संभावना निकल आएगी। यहां राम ने जिसे बंधन माना है वह किसी अनुशासन, किसी मर्यादा या नैतिक मूल्यों का बंधन नहीं है। जो स्वयं मर्यादापुरुषोत्तम कहलाए हों वे मर्यादा को बंधन भला कैसे मान सकते हैं। वे तो अपने आचरण से पुरानी मर्यादाओं को नए संदर्भो में परिभाषित कर रहे थे।उनके लिए जो सबसे बंधनकारी वस्तु थी, वह राजगद्दी थी, राजतिलक था। तभी तो उन्हें इसकी सूचना पाकर दुख हुआ था। वे यह तो मानते थे कि राजसिंहासन आवश्यक है, क्योंकि इसी से समाज की व्यवस्था बनी रहती है। किसी न किसी को तो इस पर बैठना ही होगा और अपने दायित्वों को निभाना भी होगा, क्योंकि जिसके राच्य में प्रजा दुखी रहती है वह राजा निश्चित रूप से नर्क को प्राप्त होता है। इस प्रकार यह एक चुनौती का पद है और राम को चुनौती से कोई भय भी नहीं है, लेकिन इसकी एक सीमा तो है ही। सीमा यह है कि राजगद्दी पर बैठने के बाद आपके कार्यक्षेत्र की सीमा सिमटकर अपनी राजनीतिक सीमाओं तक रह जाती है। जबकि राम की इच्छा 'बड़काजू' की है। उन्हें केवल अपनी अयोध्या की प्रजा के लिए ही काम नहीं करना है, बल्कि इस धरती की प्रजा के लिए काम करना है। विश्वामित्र के साथ जाकर राम देख आए थे कि अयोध्या के बाहर के हालात क्या हैं? हो सकता है कि यही कारण रहा हो कि राम ने सोचा कि यदि पृथ्वी के हित के लिए ही काम करना है तो क्यों न पहले पृथ्वी की पुत्री यानी कि सीता का वरण किया जाए। सीता यानी जनकसुता के वरण का मतलब केवल संतति प्राप्त करना नहीं था, बल्कि राम ने ऐसा करके एक प्रकार से पृथ्वी की रक्षा करने के दायित्व को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था।फिर यह भी कि राम की दृष्टि में राजगद्दी कर्मक्षेत्र की अपेक्षा भोग का क्षेत्र अधिक है। वह विलासिता का हाट है, बजाय कर्म की रणभूमि के। बाद में गौतम बुद्ध ने भी अपने तरीके से इसी सिद्धांत को माना था। बुद्ध भी राजकुमार थे और अपने पिता की इकलौती संतान थे। उनके तो पिता की एक ही पत्‍‌नी थी इसलिए रामचरित मानस जैसे विवाद की वहां कोई संभावना थी ही नहीं, इसके बावजूद उन्होंने राजगद्दी का त्याग कर दिया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया होगा, क्योंकि उन्हें लगा होगा कि राजगद्दी के द्वारा जनकल्याण, विश्वकल्याण को साध पाना असंभव है। हां, राजकल्याण भले ही सध जाए। अन्यथा राजा बनने के बाद अच्छे-अच्छे नियम-कानून बनाकर, अच्छी-अच्छी जनकल्याणकारी योजनाएं लागू करके वे कुछ कर सकते थे। और यह सच भी है कि कुछ न कुछ तो हो ही जाता। कितना? थोड़ा सा। लेकिन कब तक के लिए? कुछ समय के लिए। च्यादा नहीं हो पाता। हमेशा-हमेशा के लिए नहीं हो पाता। राम इसे हमेशा-हमेशा के लिए करना चाहते थे। गौतम बुद्ध भी यही चाहते थे।अब आप ही देख लीजिए कि राच्याभिषेक के बाद राम की कथा में बचता ही क्या है, सिवाय इसके कि रामराच्य में चारो ओर सुख और शांति छाई हुई है। इसके बाद न तो घटनाएं हैं, और न ही एक्शन। सब कुछ थम गया है। आप कल्पना करके देखें कि यदि यही स्थिति उस समय स्थापित हो गई होती, जब राम का राच्याभिषेक होना था तब क्या हुआ होता। राम दूरदर्शी थे। वे जानते थे कि राजतिलक होते ही सब कुछ पर पूर्ण विराम लग जाएगा। इसलिए उन्हें यह घटना बेहद बंधनकारी लगने लगी और उनका मन इससे छुटकारा पाने के लिए छटपटाने लगा। और उन्हें छुटकारा पाने का मौका मिला कैकेई के दो वरदानों से। प्रकृति भी अपने आपमें विचित्र है। राम राजगद्दी से छुटकारा पाना चाहते हैं, लेकिन राजगद्दी उन्हें छोड़ना नहीं चाहती। राम के पीछे-पीछे वैसे ही भागती है, जैसे कि शरीर के पीछे परछाई। राम वन को चले गए हैं। सोच रहे होंगे कि पीछा छूटा, लेकिन पीछा छूटा कहां। भरत चल दिए राजगद्दी को लेकर राम के पीछे-पीछे। भैया, लो संभालो अपना ये जंजाल। मुझसे नहीं संभलने वाला। राम ने बड़ी तसल्ली से भरत को समझाया और इस समझाने के केंद्र में रहा पिता की आज्ञा का पालन करने का धर्म। यहां राम पूरी तरह सही थे, सौ फीसदी खरे। इसमें संदेह की तनिक भी गुंजाइश नहीं है कि महाराज दशरथ ने कैकेई के प्रथम वरदान को स्वीकार करते हुए बहुत ही स्पष्ट शब्दों में भरत को राजगद्दी सौंप दी थी। यहां राम ने राच्य के उत्तराधिकारी के च्येष्ठ पुत्र के सिद्धांत के स्थान पर पिता की इच्छा की सर्वोपरिता के सिद्धांत की स्थापना की। तभी तो यहां राम कह रहे हैं कि यह वेद में प्रसिद्ध है और सभी शास्त्रों की सम्मति भी यही है कि राजतिलक उसी का होता है जिसे पिता देता है।इस प्रकार हम देखते हैं कि राम ने राजगद्दी को एक बार नहीं, बल्कि दो-दो बार ठुकराया है। इतना ही नहीं, बाद में उन्हें दो मौके ऐसे मिले जब वे अपना राजतिलक करवा सकते थे। यहां 'मौके मिले' की जगह 'प्राप्त किया' शब्द अधिक सही होगा, क्योंकि ये उन्हें किसी ने दिए नहीं थे, बल्कि उन्होंने हासिल किए थे। पहला था बालि वध के बाद किष्किंधापुर का राच्य तथा दूसरा रावण-वध के बाद सोने की लंका की राजगद्दी। उन्होंने इन्हें भी ठुकराया। ये बातें उनकी दृष्टि में राच्य की निस्सारता का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं, लेकिन ध्यान रहे कि केवल अपने लिए, सबके लिए नहीं। अन्यथा उन्होंने वन में आए हुए भरत से कहा ही कि मेरा और तुम्हारा परम पुरुषार्थ, स्वार्थ, सुयष, धर्म और परमार्थ इसी में है कि हम दोनों भाई पिता की आज्ञा का पालन करें।[दखल][लेखक डॉ. विजय अग्रवाल, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी हैं]

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Dakhal News 2 January 2013


अब बोलो आत्या

राकेश अचलआत्या यानि बुआ जी।सिंधिया खानदान में इस समय केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की तीन आत्या हैं ,लेकिन सुर्ख़ियों में हैं केवल यशोधरा राजे।यशोधरा विवाह के बाद मायके में रहकर राजनीति करने वाली सिंधिया घराने की अकेली महिला हैं।उनके पति के बारे में लोग कम ही जानते हैं। ग्वालियर से दूसरी बार भाजपा के टिकिट पर सांसद चुनी गयीं यशोधरा राजे को किसी ने अपने पति के साथ नहीं देखा,हाँ वे अप ने बेटे के साथ जरूर सार्वजनिक रूप से देखी गयीं हैं।आत्या का सिंधिया खानदान से म्लोमालिन्य है भी या नहीं ये भी कम ही लोग जानते थे किन्तु अपने भाई स्वर्गीय माधवराव सिंधिय की प्रतिमा के अनावरण समारोह में आत्या ने ही सिंधिया परिवार से अपनी दूरियों का मुजाहिरा कर अपने लिए सवाल खड़े करा लिए. ख़ास बात ये है की आत्या यशोधरा राजे से ये सवाल खुद उनके भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किये हैं। सिंधिया परिवार की विशेषता रही है की इस परिवार के किसी भी सदस्य ने अभी तक अपने किसी भी पारिवारिक विवाद पर सार्वजनिक रूप से कभी कुछ नहीं कहा।स्वर्गीय राजमाता विजयाराजे सिंधिया की वसीयत विवाद पर हम जैसे माधवराव सिंधिया के करीबी अनेक पत्रकार कोशिशें करते रह गये थे,किन्तु सर्गिय माधवराव सिंधिया ने एक शब्द भी नहीं कहा था. माधवराव सिंधिया के अपनी माँ और आत्याओं से सम्पत्ति को लेकर अनेक मुकदमे चले,{आज भी उनमें से अनेक का निराकरण नहीं हो सका है }किन्तु किसी ने कभी इस बारे में सार्वजनिक चर्चा नहीं की।राजमाता विजयाराजे सिंधिया एवं उनके इकलौते पुत्र माधवराव सिंधिया के निधन के बाद भी इस परिवार ने कभी एक-दूसरे के खिलाफ न कभी कोई चुनाव लड़ा और न ही कभी सार्वजनिक रूप से कभी किसी को कुछ कहा.उलटे सार्वजनिक अवसरों पर सभी ने एक -दूसरे के मान-सम्मान का पूरा ख्याल रखा ,लेकिन भीतर ही भीतर कुछ ना कुछ दरकता रहा। खुद आत्या यशोधरा राजे ने जानबूझ कर या भावुकतावश इसका मुजाहिरा कर दिया ।हार कर सिंधिया परिवार के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया को खानदान की परम्परा तोड़ कर सार्वजनिक रूप से कहा की -आत्या आप हमारा परिवार हो,आपको एक होने से किसने रोका है?एक पूर्व शासक परिवार के बीच के इस विवाद में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हस्तक्षेप करते हुए सिंधिया से कहना पडा की आत्या की और से उन्हें फ़िक्र करने की कोई जरूरत नहीं है,उनकी गारंटी वे खुद लेते हैं। सार्वजनिक रूप से ग्वालियर में जो कुछ हुआ उसे ग्वालियर ने पहली बार देखा।जबकि सब जानते हैं की आत्या ने हाल ही में शिवपुरी की एक जमीन के मामले में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा द्वारा भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया पर लगाये गये आरोपों के बाद कड़ी प्रतिक्रिया दी थी।उन्होंने झा के आरोपों को स्वर्गीय राजमाता विजयाराजे सिंधिया का अपमान बताया था। बुआ-भतीजे के रिश्ते में इस खटास के बारे में उत्सुक पाठकों को ये भी पता होना चाहिए की सिंधिया खानदान में राजमाता की राजनीतिक विरासत पर पहली बार यशोधराराजे सिंधिया ने अपना हक जताते हुए गुना संसदीय क्षेत्र से भाजपा का टिकिट माँगा था,किन्तु उस समय भाजपा में निर्णायक भूमिका में रहने वाले राजमाता के राजनीतिक सलाहकार संभाजीराव आंग्रे ने यशोधरा की दाल नहीं गलने दी थी,राजे को शिवपुरी से विधानसभा के टिकिट से ही संतोष करना पडा था। बाद में भाजपा ने यशोधरा राजे को ग्वालियर से लोकसभा का टिकिट दे दिया क्योंकि ग्वालियर से सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य चुनावी मैदान में नहीं था।राजमाता स्वर्गीय विजयाराजे सुन्धिया के अहसानों के निचे दबी भाजपा ने यशोधरा राजे को संगठन के विरोध के बावजूद मौके दिए हैं. मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा से तो राजे की सार्वजनिक रूप से झड़पें हो चुकी हैं,किन्तु भाजपा सिंधिया परिवार में कोई दरार डाले बिना आगे बढने में लगी है। लेकिन अब विवाद सतह पर आ गये हैं.देखना ये है की आत्या अब अपने भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया का न्योता स्वीकार कर एक बार फिर सिंधिया परिवार का हिस्सा बनतीं हैं या नहीं।खबर दोनों ही स्थितिओं में बनने वाली है. अगर सिंधिया परिवार में एका होता है तो भाजपा और कांग्रेस दोनों का फायदा होना तय है ,और यदि दूरियां बढ़तीं हैं तो कांग्रेस का कम भाजपा का ज्यादा नुकसान होने की आशंका है।इस सबके बाद भी ये हैरान करने वाली बात है की यशोधरा राजे सिंधिया उसी रानी महल में रहतीं हैं जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया रहते हैं।दोनों की पेंट्री और निजी स्टाफ भले ही अलग-अलग हों किन्तु बाहर से सब कुछ एक ही दिखता है।यहाँ तक की दोनों महल के एक ही दरवाजे से आते-जाते हैं।[दखल ]राकेश अचल देश के जाने माने पत्रकार हैं और ग्वालियर में रहते है |

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Dakhal News 20 November 2012


अब बोलो आत्या

राकेश अचलआत्या यानि बुआ जी।सिंधिया खानदान में इस समय केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की तीन आत्या हैं ,लेकिन सुर्ख़ियों में हैं केवल यशोधरा राजे।यशोधरा विवाह के बाद मायके में रहकर राजनीति करने वाली सिंधिया घराने की अकेली महिला हैं।उनके पति के बारे में लोग कम ही जानते हैं। ग्वालियर से दूसरी बार भाजपा के टिकिट पर सांसद चुनी गयीं यशोधरा राजे को किसी ने अपने पति के साथ नहीं देखा,हाँ वे अप ने बेटे के साथ जरूर सार्वजनिक रूप से देखी गयीं हैं।आत्या का सिंधिया खानदान से म्लोमालिन्य है भी या नहीं ये भी कम ही लोग जानते थे किन्तु अपने भाई स्वर्गीय माधवराव सिंधिय की प्रतिमा के अनावरण समारोह में आत्या ने ही सिंधिया परिवार से अपनी दूरियों का मुजाहिरा कर अपने लिए सवाल खड़े करा लिए. ख़ास बात ये है की आत्या यशोधरा राजे से ये सवाल खुद उनके भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किये हैं। सिंधिया परिवार की विशेषता रही है की इस परिवार के किसी भी सदस्य ने अभी तक अपने किसी भी पारिवारिक विवाद पर सार्वजनिक रूप से कभी कुछ नहीं कहा।स्वर्गीय राजमाता विजयाराजे सिंधिया की वसीयत विवाद पर हम जैसे माधवराव सिंधिया के करीबी अनेक पत्रकार कोशिशें करते रह गये थे,किन्तु सर्गिय माधवराव सिंधिया ने एक शब्द भी नहीं कहा था. माधवराव सिंधिया के अपनी माँ और आत्याओं से सम्पत्ति को लेकर अनेक मुकदमे चले,{आज भी उनमें से अनेक का निराकरण नहीं हो सका है }किन्तु किसी ने कभी इस बारे में सार्वजनिक चर्चा नहीं की।राजमाता विजयाराजे सिंधिया एवं उनके इकलौते पुत्र माधवराव सिंधिया के निधन के बाद भी इस परिवार ने कभी एक-दूसरे के खिलाफ न कभी कोई चुनाव लड़ा और न ही कभी सार्वजनिक रूप से कभी किसी को कुछ कहा.उलटे सार्वजनिक अवसरों पर सभी ने एक -दूसरे के मान-सम्मान का पूरा ख्याल रखा ,लेकिन भीतर ही भीतर कुछ ना कुछ दरकता रहा। खुद आत्या यशोधरा राजे ने जानबूझ कर या भावुकतावश इसका मुजाहिरा कर दिया ।हार कर सिंधिया परिवार के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया को खानदान की परम्परा तोड़ कर सार्वजनिक रूप से कहा की -आत्या आप हमारा परिवार हो,आपको एक होने से किसने रोका है?एक पूर्व शासक परिवार के बीच के इस विवाद में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हस्तक्षेप करते हुए सिंधिया से कहना पडा की आत्या की और से उन्हें फ़िक्र करने की कोई जरूरत नहीं है,उनकी गारंटी वे खुद लेते हैं। सार्वजनिक रूप से ग्वालियर में जो कुछ हुआ उसे ग्वालियर ने पहली बार देखा।जबकि सब जानते हैं की आत्या ने हाल ही में शिवपुरी की एक जमीन के मामले में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा द्वारा भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया पर लगाये गये आरोपों के बाद कड़ी प्रतिक्रिया दी थी।उन्होंने झा के आरोपों को स्वर्गीय राजमाता विजयाराजे सिंधिया का अपमान बताया था। बुआ-भतीजे के रिश्ते में इस खटास के बारे में उत्सुक पाठकों को ये भी पता होना चाहिए की सिंधिया खानदान में राजमाता की राजनीतिक विरासत पर पहली बार यशोधराराजे सिंधिया ने अपना हक जताते हुए गुना संसदीय क्षेत्र से भाजपा का टिकिट माँगा था,किन्तु उस समय भाजपा में निर्णायक भूमिका में रहने वाले राजमाता के राजनीतिक सलाहकार संभाजीराव आंग्रे ने यशोधरा की दाल नहीं गलने दी थी,राजे को शिवपुरी से विधानसभा के टिकिट से ही संतोष करना पडा था। बाद में भाजपा ने यशोधरा राजे को ग्वालियर से लोकसभा का टिकिट दे दिया क्योंकि ग्वालियर से सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य चुनावी मैदान में नहीं था।राजमाता स्वर्गीय विजयाराजे सुन्धिया के अहसानों के निचे दबी भाजपा ने यशोधरा राजे को संगठन के विरोध के बावजूद मौके दिए हैं. मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा से तो राजे की सार्वजनिक रूप से झड़पें हो चुकी हैं,किन्तु भाजपा सिंधिया परिवार में कोई दरार डाले बिना आगे बढने में लगी है। लेकिन अब विवाद सतह पर आ गये हैं.देखना ये है की आत्या अब अपने भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया का न्योता स्वीकार कर एक बार फिर सिंधिया परिवार का हिस्सा बनतीं हैं या नहीं।खबर दोनों ही स्थितिओं में बनने वाली है. अगर सिंधिया परिवार में एका होता है तो भाजपा और कांग्रेस दोनों का फायदा होना तय है ,और यदि दूरियां बढ़तीं हैं तो कांग्रेस का कम भाजपा का ज्यादा नुकसान होने की आशंका है।इस सबके बाद भी ये हैरान करने वाली बात है की यशोधरा राजे सिंधिया उसी रानी महल में रहतीं हैं जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया रहते हैं।दोनों की पेंट्री और निजी स्टाफ भले ही अलग-अलग हों किन्तु बाहर से सब कुछ एक ही दिखता है।यहाँ तक की दोनों महल के एक ही दरवाजे से आते-जाते हैं।[दखल ]राकेश अचल देश के जाने माने पत्रकार हैं और ग्वालियर में रहते है |

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Dakhal News 20 November 2012


सीएम के पुतले की आग से बाल-बाल बचीं कोंग्रेस नेता मांडवी

शैफाली गुप्ता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी का पुतले की आग से कोंग्रेस नेता मांडवी चौहान बाल -बाल बच गईं ,इस घटना से इलाके में अफरा तफरी मच गई |आज कोलार के बीमा कुँज इलाके में भारी तादात में कांग्रेस के स्थानीय नेता इकट्ठे हो गए | पहले तो सभी ने मिलकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और विधान सभा अध्यक्ष ईश्वर दास रोहाणी के खिलाफ जमकर नारेबाजी की | फिर सीएम् और अध्यक्ष का पुतला फूंका | कांग्रेसी नेता मांडवी चौहान ने बाताया की कल शाम ही हमें पी सी सी से निर्देश आये थे की पुतला फूंक कर विरोध करना हैं | हमारे दो विधायको की विधान सभा सदस्यता को समाप्त किया गया हैं , जिसका विरोध हमने पुतले फूंक कर किया हैं | हमारा यह कार्यक्रम सिर्फ दो मिनिट का था ,जिसमे मैं बाल बाल बच गई |कोग्रेसियों ने पुतले सुबह १० बजे के वक्त फूंकें | जिस वक़्त कोलार की सड़के स्कूल की बसों , ऑफिस की बसों ,स्कूल , ऑफिस और काम पर जाने वाले लोगों से पटी रहती हैं | कांग्रेसियों के इस कार्यक्रम के कारण सड़के जाम हुई और आम लोगो को आवाजाही में खासी दिक्कत उठानी पड़ी , हद उस वक्त हुई जब जलता हुआ पुतला एक बस के सामने फेंक दिया गया | इतना सब हो रहा था मगर पुलिस मौके से नदारत थी |कोलर पुलिस के एस आई नितिन अमलावर ने बताया की कांग्रेसियों ने इस कार्यक्रम की कोई लिखित सूचना पुलिस को नहीं दी थी | इस वजह से कोई इंतजामात नहीं किये थे मगर घटना होने की सूचना पर हम पहुच गए थे | कांग्रेसियों पर कार्यवाही करने की बात पर पुलिस का कहना था कि कोई शिकायत मिलेगी तब ही हम कोई कार्यवाही करेंगे ,अभी तक कोई शिकायत नहीं मिली हैं |इस पूरी घटना पर बीजेपी के स्थानीय विधायक प्रतिनिधि ललित चतुर्वेदी ने कहा कि यह सिर्फ कांग्रेसियों का ओछापन हैं |उन्होंने कहा की इन लोगों की गैर जिमेदाराना हरकतों के कारण ही इनके दो विधायकों की विधानसभा सदस्यता को समाप्त किया हैं | अब यह सीएम् और अध्यक्ष का पुतला सड़क पर फूंक कर फिर गैर जिमेदाराना हरकतों को दोहरा रहे हैं | कहावत हैं की दूसरों के घर जलाओ तो खुद के हाथ भी जलते हैं आज वही मांडवी चौहान के साथ भी हुआ | जब यह सब खुद को नहीं बचा पा रहे तो अगर सड़क पर कोई दुर्घटना हो जाती तो इसकी जावाबदारी कौन लेता यह सब तो राजनीति करके घर चले जाते नुक्सान आम जनता को उठाना पड़ता|बीजेपी नेता ललित ने कहा कि चूँकि इन लोगो ने किसी भी तरह के कार्यक्रम की सूचना पुलिस को नहीं दी थी इसलिए इन पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए |

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Dakhal News 19 July 2012


सीएम के पुतले की आग से बाल-बाल बचीं कोंग्रेस नेता मांडवी

शैफाली गुप्ता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी का पुतले की आग से कोंग्रेस नेता मांडवी चौहान बाल -बाल बच गईं ,इस घटना से इलाके में अफरा तफरी मच गई |आज कोलार के बीमा कुँज इलाके में भारी तादात में कांग्रेस के स्थानीय नेता इकट्ठे हो गए | पहले तो सभी ने मिलकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और विधान सभा अध्यक्ष ईश्वर दास रोहाणी के खिलाफ जमकर नारेबाजी की | फिर सीएम् और अध्यक्ष का पुतला फूंका | कांग्रेसी नेता मांडवी चौहान ने बाताया की कल शाम ही हमें पी सी सी से निर्देश आये थे की पुतला फूंक कर विरोध करना हैं | हमारे दो विधायको की विधान सभा सदस्यता को समाप्त किया गया हैं , जिसका विरोध हमने पुतले फूंक कर किया हैं | हमारा यह कार्यक्रम सिर्फ दो मिनिट का था ,जिसमे मैं बाल बाल बच गई |कोग्रेसियों ने पुतले सुबह १० बजे के वक्त फूंकें | जिस वक़्त कोलार की सड़के स्कूल की बसों , ऑफिस की बसों ,स्कूल , ऑफिस और काम पर जाने वाले लोगों से पटी रहती हैं | कांग्रेसियों के इस कार्यक्रम के कारण सड़के जाम हुई और आम लोगो को आवाजाही में खासी दिक्कत उठानी पड़ी , हद उस वक्त हुई जब जलता हुआ पुतला एक बस के सामने फेंक दिया गया | इतना सब हो रहा था मगर पुलिस मौके से नदारत थी |कोलर पुलिस के एस आई नितिन अमलावर ने बताया की कांग्रेसियों ने इस कार्यक्रम की कोई लिखित सूचना पुलिस को नहीं दी थी | इस वजह से कोई इंतजामात नहीं किये थे मगर घटना होने की सूचना पर हम पहुच गए थे | कांग्रेसियों पर कार्यवाही करने की बात पर पुलिस का कहना था कि कोई शिकायत मिलेगी तब ही हम कोई कार्यवाही करेंगे ,अभी तक कोई शिकायत नहीं मिली हैं |इस पूरी घटना पर बीजेपी के स्थानीय विधायक प्रतिनिधि ललित चतुर्वेदी ने कहा कि यह सिर्फ कांग्रेसियों का ओछापन हैं |उन्होंने कहा की इन लोगों की गैर जिमेदाराना हरकतों के कारण ही इनके दो विधायकों की विधानसभा सदस्यता को समाप्त किया हैं | अब यह सीएम् और अध्यक्ष का पुतला सड़क पर फूंक कर फिर गैर जिमेदाराना हरकतों को दोहरा रहे हैं | कहावत हैं की दूसरों के घर जलाओ तो खुद के हाथ भी जलते हैं आज वही मांडवी चौहान के साथ भी हुआ | जब यह सब खुद को नहीं बचा पा रहे तो अगर सड़क पर कोई दुर्घटना हो जाती तो इसकी जावाबदारी कौन लेता यह सब तो राजनीति करके घर चले जाते नुक्सान आम जनता को उठाना पड़ता|बीजेपी नेता ललित ने कहा कि चूँकि इन लोगो ने किसी भी तरह के कार्यक्रम की सूचना पुलिस को नहीं दी थी इसलिए इन पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए |

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Dakhal News 19 July 2012


बहके बहके नजर आये गडकरी विवेकानंद से की दाऊद की तुलना

भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने स्वामी विवेकानंद के आईक्यू की तुलना आतंकी दाऊद इब्राहिम से कर दी । उन्होंने कहा कि दाउद ने अपने आईक्यू का उपयोग अपराध के क्षेत्र में किया तो वह अपराधी बन गया,जबकि विवेकानंद ने समाज, देश के हित में अपने आईक्यू का इस्तेमाल किया तो वे महान बन गए। आईक्यू दोनों जगह समान है, पर महत्वपूर्ण ये है कि बुद्धिमत्ता, कौशल का उपयोग किस तरह होता है। गडकरी रविवार को भोपाल में ओजस्विनी अलंकरण समारोह में शामिल होने आए थे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी ने कहा कि महिलाओं में आत्म विश्वास जगाने की जरूरत है। विज्ञान हो या आध्यात्म, पर्यावरण हो अथवा पारिस्थितिकी जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाएें सर्वश्रेष्ठ योगदान दे सकती है। उन्हें पूरी क्षमता और मनोयोग के साथ आगे आना होगा। उन्होंने कहा कि देश को बदलना है तो समाज की सोच को बदलना होगा। अतीत की लिंग, जाति, धर्म और क्षेत्र के भेदभाव की कटु स्मृतियाँ को भूलकर पूरी क्षमता और सकारात्मक सोच के साथ राष्ट्र निर्माण के लिये आगे आना होगा। श्री गडकरी ने कहा कि भारत विश्व की महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। मूल्य आधारित शिक्षा और आधुनिक विज्ञान के साथ 21वीं सदी के देश का निर्माण किया जा सकता है। उन्होंने ओजस्विनी द्वारा नारी शक्ति जागरण के प्रयासों की सराहना करते हुये इसकी निरंतरता बताए रखने की आवश्यकता बताई।गडकरी ने कहा कि जब गरीब थे, तब खुश थे। जब बंगला, घर बना तो दु:खों का सागर आ गया। उन्होंने कहा कि चुने हुए प्रतिनिधि देश की स्थिति नहीं बदल सकते, बल्कि समाज के हर व्यक्ति को इस काम के लिए आगे आना होगा। गडकरी ने दार्शनिक अंदाज में कहा कि समाज में कोई पूर्ण नहीं है।गडकरी ने 500 साल पुरानी भारतीय संस्कृति और विरासत का जिक्र करते हुए कहा कि अस्पृश्यता, महिलाओं की दयनीय स्थिति, भेदभाव आदि चीजें सही नहीं थी। उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि महिलाओं को समाज में पुरूष के बराबर स्थान मिलना चाहिए। इससे पहले राजधानी के स्टेट हैंगर से जब गडकरी बाहर निकले तो उनसे पूछा गया कि कांग्रेस की रैली में भाजपा पर तमाम आरोप लगाए जा रहे हैं, इस पर आप क्या कहेंगे? गडकरी चुप रहे। जब पूछा कि भ्रष्टाचार के आरोपों पर आपका क्या रूख है? तो वे झल्ला गए और उन्होंने मीडियाकर्मियों को दोनों हाथों से अपने रास्ते से हटाया और बिना कुछ कहे आगे बढ़ चले। गडकरी स्टेट हैंगर से सीधे रवींद्र भवन में आयोजित ओजस्विनी अलंकरण समारोह में हिस्सा लेने पहुंचे। यहां मीडिया ने उन पर सवालों की बौछार कर दी। बिना जवाब दिए गडकरी झल्लाए और आगे बढ़कर सीधे कार्यक्रम में शामिल होने चल दिए। समारोह में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा कि स्त्री-पुरूष में भेदभाव के परिदृश्य को बदलने की जरूरत है। महिलाओं के प्रति विकृत सोच का, विरोध करना जरूरी है। विरोध की इसी आवाज को मजबूती देने के लिये, बेटी बचाओ अभियान चलाया जा रहा है। इस अवसर पर जल संसाधन मंत्री श्री जयंत मलैया, संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री प्रभात झा भी उपस्थित थे। कार्यक्रम में ओजस्विनी पत्रिका में प्रकाशित संपादकीय के संकलन भूमिजा का विमोचन भी किया गया।मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि बेटी बचेगी और बढ़ेगी, तभी कल है। समाज में बेटियों के प्रति भेदभाव की भावना को समाप्त करने के जन जागरण के प्रयासों में आगामी 19 नवम्बर को ग्वालियर में एक लाख से अधिक माताओं-बेटियों के सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। यह अभियान रानी लक्ष्मीबाई की जयंती 19 नवम्बर से राजमाता विजयाराजे सिंधिया की जयंती तक मनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि जहाँ पर पुरूष की सार्मथ्य समाप्त हो जाती है वहीं से मातृशक्ति प्रारंभ होती है। देवता जब विवश हो जाते थे तब मातृशक्ति ही उनका बचाव करती थी। उन्होंने देश की महान महिला विभूतियों का स्मरण करते हुए नारी शक्ति की क्षमताओं और योग्यताओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जड़ और चेतन सभी एक ही चेतना के विभिन्न रूप हैं। इसलिये किसी के साथ भी भेदभाव अनुचित है।[दखल ]

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Dakhal News 11 April 2012


बहके बहके नजर आये गडकरी विवेकानंद से की दाऊद की तुलना

भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने स्वामी विवेकानंद के आईक्यू की तुलना आतंकी दाऊद इब्राहिम से कर दी । उन्होंने कहा कि दाउद ने अपने आईक्यू का उपयोग अपराध के क्षेत्र में किया तो वह अपराधी बन गया,जबकि विवेकानंद ने समाज, देश के हित में अपने आईक्यू का इस्तेमाल किया तो वे महान बन गए। आईक्यू दोनों जगह समान है, पर महत्वपूर्ण ये है कि बुद्धिमत्ता, कौशल का उपयोग किस तरह होता है। गडकरी रविवार को भोपाल में ओजस्विनी अलंकरण समारोह में शामिल होने आए थे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी ने कहा कि महिलाओं में आत्म विश्वास जगाने की जरूरत है। विज्ञान हो या आध्यात्म, पर्यावरण हो अथवा पारिस्थितिकी जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाएें सर्वश्रेष्ठ योगदान दे सकती है। उन्हें पूरी क्षमता और मनोयोग के साथ आगे आना होगा। उन्होंने कहा कि देश को बदलना है तो समाज की सोच को बदलना होगा। अतीत की लिंग, जाति, धर्म और क्षेत्र के भेदभाव की कटु स्मृतियाँ को भूलकर पूरी क्षमता और सकारात्मक सोच के साथ राष्ट्र निर्माण के लिये आगे आना होगा। श्री गडकरी ने कहा कि भारत विश्व की महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। मूल्य आधारित शिक्षा और आधुनिक विज्ञान के साथ 21वीं सदी के देश का निर्माण किया जा सकता है। उन्होंने ओजस्विनी द्वारा नारी शक्ति जागरण के प्रयासों की सराहना करते हुये इसकी निरंतरता बताए रखने की आवश्यकता बताई।गडकरी ने कहा कि जब गरीब थे, तब खुश थे। जब बंगला, घर बना तो दु:खों का सागर आ गया। उन्होंने कहा कि चुने हुए प्रतिनिधि देश की स्थिति नहीं बदल सकते, बल्कि समाज के हर व्यक्ति को इस काम के लिए आगे आना होगा। गडकरी ने दार्शनिक अंदाज में कहा कि समाज में कोई पूर्ण नहीं है।गडकरी ने 500 साल पुरानी भारतीय संस्कृति और विरासत का जिक्र करते हुए कहा कि अस्पृश्यता, महिलाओं की दयनीय स्थिति, भेदभाव आदि चीजें सही नहीं थी। उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि महिलाओं को समाज में पुरूष के बराबर स्थान मिलना चाहिए। इससे पहले राजधानी के स्टेट हैंगर से जब गडकरी बाहर निकले तो उनसे पूछा गया कि कांग्रेस की रैली में भाजपा पर तमाम आरोप लगाए जा रहे हैं, इस पर आप क्या कहेंगे? गडकरी चुप रहे। जब पूछा कि भ्रष्टाचार के आरोपों पर आपका क्या रूख है? तो वे झल्ला गए और उन्होंने मीडियाकर्मियों को दोनों हाथों से अपने रास्ते से हटाया और बिना कुछ कहे आगे बढ़ चले। गडकरी स्टेट हैंगर से सीधे रवींद्र भवन में आयोजित ओजस्विनी अलंकरण समारोह में हिस्सा लेने पहुंचे। यहां मीडिया ने उन पर सवालों की बौछार कर दी। बिना जवाब दिए गडकरी झल्लाए और आगे बढ़कर सीधे कार्यक्रम में शामिल होने चल दिए। समारोह में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा कि स्त्री-पुरूष में भेदभाव के परिदृश्य को बदलने की जरूरत है। महिलाओं के प्रति विकृत सोच का, विरोध करना जरूरी है। विरोध की इसी आवाज को मजबूती देने के लिये, बेटी बचाओ अभियान चलाया जा रहा है। इस अवसर पर जल संसाधन मंत्री श्री जयंत मलैया, संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री प्रभात झा भी उपस्थित थे। कार्यक्रम में ओजस्विनी पत्रिका में प्रकाशित संपादकीय के संकलन भूमिजा का विमोचन भी किया गया।मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि बेटी बचेगी और बढ़ेगी, तभी कल है। समाज में बेटियों के प्रति भेदभाव की भावना को समाप्त करने के जन जागरण के प्रयासों में आगामी 19 नवम्बर को ग्वालियर में एक लाख से अधिक माताओं-बेटियों के सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। यह अभियान रानी लक्ष्मीबाई की जयंती 19 नवम्बर से राजमाता विजयाराजे सिंधिया की जयंती तक मनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि जहाँ पर पुरूष की सार्मथ्य समाप्त हो जाती है वहीं से मातृशक्ति प्रारंभ होती है। देवता जब विवश हो जाते थे तब मातृशक्ति ही उनका बचाव करती थी। उन्होंने देश की महान महिला विभूतियों का स्मरण करते हुए नारी शक्ति की क्षमताओं और योग्यताओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जड़ और चेतन सभी एक ही चेतना के विभिन्न रूप हैं। इसलिये किसी के साथ भी भेदभाव अनुचित है।[दखल ]

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Dakhal News 11 April 2012


लोकपाल मामला: लोकसभा में राहुल और राज्यसभा में सोनिया हारीं

सुरेश शर्मा याद करिये आपातकाल के पहले के राजनीतिक लम्हों को, देश ने सबसे ताकतवर नेता श्रीमती इंदिरा गांधी को चुनाव में पराजित कर दिया था। उन्होंने आपातकाल लगा कर देश को छलने का प्रयास किया। सभी विरोधी नेताओं को मीसा में निरूद्ध कर दिया था। वे हार को नहीं पचा पाईं थीं। देश उनके ईशारे पर चलता था तो उनको दंभ होना स्वभाविक था। लेकिन देश ने उनके दंभ को मिटा दिया और उन्हें 1977 की आंधी में तिनके की तरह उड़ा दिया था। आज न तो श्रीमती इंदिरा गांधी की तरह देश में स्वीकार्य कांग्रेस का नेतृत्व है और न ही सोनिया-राहुल में वह सब प्रतिभा। सरकार सहयोगियों के रहमोकरम पर चल रही है और लोकपाल मामले में देश कांग्रेस के खिलाफ खड़ा हुआ है। ऐसे में जो ड्रामा कांग्रेस ने खेला है उससे न केवल पार्टी व सरकार की किरकिरी हुई है बल्कि लोकसभा में पार्टी के युवराज हारे हैं और राज्यसभा में पार्टी सुप्रीमों। हिन्दूस्तान वह देश है जिसकी प्रज्ञा में ज्ञान का संचार होता है। गांव में काम करने वाला मजदूर हो या अन्न्दाता किसान, सब समझता है। वह न बोले तो क्या है जब उसे कहना होता है मतपेटियों में उसका जवाब मिल जाता है। अटल बिहारी वाजपेयी के काम की कौन तारीफ नहीं करता लेकिन प्रमोद महाजन और उन सरीखे नेताओं के कारण चुनाव परिणाम वे आये जिनके बारे में भाजपा सोचती भी नहीं थी। जब अटल जी का नाम दूर करके लालकृष्ण आडवानी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचना चाहते थे तो किसी की भी कल्पना में यह नहीं था कि सत्ता से वे इतने दूर हो जायेंगे। तो कांग्रेस किस भाव से यह मुगालता पाल रही है कि वह अन्ना को धोखा देकर देश को भी गुमराह कर देगी। देश की जनता महंगाई और भ्रष्टाचार से कहार रही है। मनमोहन सरकार लाचार होकर आये दिन पेट्रोल के भावों को बढ़ाने की स्वीकृति दे देती है। क्या तेल कंपनियों की मनमानी पर केन्द्र सरकार पल्ला झाड़ सकती है? नहीं। क्या ए. राजा और कलमाड़ी के भ्रष्ट खेल से केन्द्र सरकार पल्ला झाड़ सकने की स्थिति में है? नहीं? क्या भ्रष्टाचार और काले धन को लेकर आन्दोलन करने वाले बाबा रामदेव पर रात के अंधेरे में लाठियां भांजने के अपराध से केन्द्र सरकार पिंड छुड़ा सकती है? और देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिये लोकपाल बनाने का आग्रह, आन्दोलन और व्यापक विरोध करने वाले अन्ना को गुमराह, अपमानित और धमकाने के कारनामें से केन्द्र सरकार और कांग्रेस पार्टी अपने आपको जनता की अदालत में बरी करवा सकती है? जवाब फिर आयेगा नहीं? सभी समझते हैं कि श्री मनमोहन सिंह को श्री प्रणव मुखर्जी की बजाये प्रधानमंत्री बनाने का श्रीमती सोनिया गांधी का निर्णय कोई देशहित को ध्यान में रख कर लिया गया निर्णय था? नहीं। परिवार हित को ध्यान में रखकर लिया गया निर्णय था। आज सबके सामने है। बाबा रामदेव को जिस तरह से काले धन की मांग करने पर रातों रात खदेड़ा गया वह अंग्रजों के जमाने की याद दिलाता है। लेकिन अन्ना हजारे के द्वारा लोकपाल बिल बनाये जाने की मांग पर अनशन करने का उपचार जिस प्रकार किया गया और बाद उन्हें धोखा दिया गया और देश को गुमराह किया गया वह भी अपने आप में देश को पीछे धकेलने के बराबर है। संसद सर्वोपरी है यह सवाल उठाने का क्या औचित्य है? कब अन्ना हजारे ने कहा कि उनका बिल पारित घोषित किया जाता है। सब जानते हैं जब तक लोकसभा अध्यक्ष हां की जीत हुई हां की जीत हुई विधेयक पारित हुआ नहीं कह देते हैं कोई कितना भी कहता रहे कानून नहीं बनता है। लेकिन सब अन्ना को गलत और संसद को कमजोर करने वाला बताते रहे। अब सवाल यह उठता है कि कांग्रेस के युवराज और सरकार के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी का लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने का ऐलान सरकार की प्राथमिकता में कहां था? क्यों राहुल गांधी को संसद में कांग्रेसियों ने हराया। जब सरकार की संविधान संशोधन करने की स्थिति नहीं थी तो सहयोगी दलों या लोकपाल चाहने वाले दलों को साथ लेने का प्रयास क्यों नहीं किया गया? कानून का मसौदा देशहित में बनाने की बजाये अपराधियों के हित में बनाने का प्रयास सरकार की ओर से क्यों किया गया? यही कारण था कि कानून बनाने का बहुमत सरकार के पास था तो उसे पास करा लिया गया लेकिन संवैधानिक दर्जा देने के मामले में सरकार का साथ देने के लिये साथ मलाई चाटने वाले भी नहीं आये। सरकार चलाने वाले अन्ना को सबक सिखाने की आड़ में राहुल गांधी की किरकिरी करवा बैठे। राहुल गांधी यूपी में बता रहे हैं कि दर्जा क्यों नहीं मिला। बूते से ज्यादा वजन उठाने का प्रयास किया और सरकार बेनकाब हो गई। कांग्रेसी यही नहीं संभल पाये और राज्यसभा में पार्टी सुप्रीमों की भी किरकिरी करवा बैठे। स्पीकर चाहे तो संशोधनों पर एक साथ मत ले सकते हैं। पहले तो राज्यसभा में एक दिन बिगाड़ा गया और बाद में मतदान कराने से भागने का प्रयास किया गया। इस घटनाक्रम में कांग्रेस सोनिया गांधी की लाज नहीं बचा पाई यह तो एक पक्ष है ही लेकिन दूसरा खतरनाक पक्ष और भी है जो दिखाई दे रहा है लेकिन कहा कम जा रहा है। उप राष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं। उनकी लोकपाल बिल पर कर्यप्रणाली सवालों के घेरे में आती दिखाई दे रही है। वे सरकार को बचाने के लिये रास्ता निकालें यह तो समझ में आता है लेकिन बिना किसी कारण सदन का समय बर्वाद कर दें और बाद में मतदान कराने की बजाये सदन को अनिश्चित काल के लिये स्थगित कर दें यह देश के साथ न्याय नहीं है। हमारे सामने गंभीर सवाल इस लोकपाल बिल ने छोड़ दिये हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि क्या राज्यसभा रात के 12 बजे के बाद नहीं चल सकती थी? चल सकती थी क्योंकि संसद लगातार चल रही है और सदन की सहमति से उसे चलाया जा सकता था। राष्ट्रपति की अधिसूचना का उल्लंधन उस स्थिति में होता जब सदन को स्थगित कर दिया जाता। हमने देखा है कि पीठासीन अधिकारी अनेकों बार यह कहता है कि बिल पर चर्चा होने तक सदन के समय में बढ़ोतरी की जाती है मैं समझता हूं कि सदन इससे सहमत है। ऐसे में देश को गुमराह मत करिये। दूसरी बात यह है कि अब इस बिल का स्टेटस क्या है? बिल मरा नहीं है और न ही लेप्स हुआ है। इस बिल पर चर्चा जारी है और जब फिर से सदन समवेत होगा इसी बिल पर चर्चा की जा सकती है। सरकार की सबसे बड़ी लापरवाही यह है कि जब लोकसभा में संविधान संशोधन करने लायक बहुमत नहीं है और राज्यसभा में साधारण बहुमत ही नहीं है तो सभी दलों खास कर सहयोगी दलों के साथ मिलकर देशहित का कानून बनाने की बजाये राजनीतिक हेकड़ी दिखाने की क्या जरूरत थी? देश के सामने यह सरकार भ्रष्टों और कालेधन वालों की पैरोकार के रूप में अधिक दिखी देशभक्तों के साथ खड़ी कम। केन्द्र सरकार ने संसद को गुमराह, अन्ना हजारे को अपमानित और देश को धोखा देने का प्रयास किया है। तो यह नहीं मानना चाहिये कि देश की जनता को जवाब देना नहीं आता है वह अपना मानस बना चुकी है परिणाम आने दीजिये।(दखल)

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Dakhal News 6 January 2012


लोकपाल मामला: लोकसभा में राहुल और राज्यसभा में सोनिया हारीं

सुरेश शर्मा याद करिये आपातकाल के पहले के राजनीतिक लम्हों को, देश ने सबसे ताकतवर नेता श्रीमती इंदिरा गांधी को चुनाव में पराजित कर दिया था। उन्होंने आपातकाल लगा कर देश को छलने का प्रयास किया। सभी विरोधी नेताओं को मीसा में निरूद्ध कर दिया था। वे हार को नहीं पचा पाईं थीं। देश उनके ईशारे पर चलता था तो उनको दंभ होना स्वभाविक था। लेकिन देश ने उनके दंभ को मिटा दिया और उन्हें 1977 की आंधी में तिनके की तरह उड़ा दिया था। आज न तो श्रीमती इंदिरा गांधी की तरह देश में स्वीकार्य कांग्रेस का नेतृत्व है और न ही सोनिया-राहुल में वह सब प्रतिभा। सरकार सहयोगियों के रहमोकरम पर चल रही है और लोकपाल मामले में देश कांग्रेस के खिलाफ खड़ा हुआ है। ऐसे में जो ड्रामा कांग्रेस ने खेला है उससे न केवल पार्टी व सरकार की किरकिरी हुई है बल्कि लोकसभा में पार्टी के युवराज हारे हैं और राज्यसभा में पार्टी सुप्रीमों। हिन्दूस्तान वह देश है जिसकी प्रज्ञा में ज्ञान का संचार होता है। गांव में काम करने वाला मजदूर हो या अन्न्दाता किसान, सब समझता है। वह न बोले तो क्या है जब उसे कहना होता है मतपेटियों में उसका जवाब मिल जाता है। अटल बिहारी वाजपेयी के काम की कौन तारीफ नहीं करता लेकिन प्रमोद महाजन और उन सरीखे नेताओं के कारण चुनाव परिणाम वे आये जिनके बारे में भाजपा सोचती भी नहीं थी। जब अटल जी का नाम दूर करके लालकृष्ण आडवानी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचना चाहते थे तो किसी की भी कल्पना में यह नहीं था कि सत्ता से वे इतने दूर हो जायेंगे। तो कांग्रेस किस भाव से यह मुगालता पाल रही है कि वह अन्ना को धोखा देकर देश को भी गुमराह कर देगी। देश की जनता महंगाई और भ्रष्टाचार से कहार रही है। मनमोहन सरकार लाचार होकर आये दिन पेट्रोल के भावों को बढ़ाने की स्वीकृति दे देती है। क्या तेल कंपनियों की मनमानी पर केन्द्र सरकार पल्ला झाड़ सकती है? नहीं। क्या ए. राजा और कलमाड़ी के भ्रष्ट खेल से केन्द्र सरकार पल्ला झाड़ सकने की स्थिति में है? नहीं? क्या भ्रष्टाचार और काले धन को लेकर आन्दोलन करने वाले बाबा रामदेव पर रात के अंधेरे में लाठियां भांजने के अपराध से केन्द्र सरकार पिंड छुड़ा सकती है? और देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिये लोकपाल बनाने का आग्रह, आन्दोलन और व्यापक विरोध करने वाले अन्ना को गुमराह, अपमानित और धमकाने के कारनामें से केन्द्र सरकार और कांग्रेस पार्टी अपने आपको जनता की अदालत में बरी करवा सकती है? जवाब फिर आयेगा नहीं? सभी समझते हैं कि श्री मनमोहन सिंह को श्री प्रणव मुखर्जी की बजाये प्रधानमंत्री बनाने का श्रीमती सोनिया गांधी का निर्णय कोई देशहित को ध्यान में रख कर लिया गया निर्णय था? नहीं। परिवार हित को ध्यान में रखकर लिया गया निर्णय था। आज सबके सामने है। बाबा रामदेव को जिस तरह से काले धन की मांग करने पर रातों रात खदेड़ा गया वह अंग्रजों के जमाने की याद दिलाता है। लेकिन अन्ना हजारे के द्वारा लोकपाल बिल बनाये जाने की मांग पर अनशन करने का उपचार जिस प्रकार किया गया और बाद उन्हें धोखा दिया गया और देश को गुमराह किया गया वह भी अपने आप में देश को पीछे धकेलने के बराबर है। संसद सर्वोपरी है यह सवाल उठाने का क्या औचित्य है? कब अन्ना हजारे ने कहा कि उनका बिल पारित घोषित किया जाता है। सब जानते हैं जब तक लोकसभा अध्यक्ष हां की जीत हुई हां की जीत हुई विधेयक पारित हुआ नहीं कह देते हैं कोई कितना भी कहता रहे कानून नहीं बनता है। लेकिन सब अन्ना को गलत और संसद को कमजोर करने वाला बताते रहे। अब सवाल यह उठता है कि कांग्रेस के युवराज और सरकार के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी का लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने का ऐलान सरकार की प्राथमिकता में कहां था? क्यों राहुल गांधी को संसद में कांग्रेसियों ने हराया। जब सरकार की संविधान संशोधन करने की स्थिति नहीं थी तो सहयोगी दलों या लोकपाल चाहने वाले दलों को साथ लेने का प्रयास क्यों नहीं किया गया? कानून का मसौदा देशहित में बनाने की बजाये अपराधियों के हित में बनाने का प्रयास सरकार की ओर से क्यों किया गया? यही कारण था कि कानून बनाने का बहुमत सरकार के पास था तो उसे पास करा लिया गया लेकिन संवैधानिक दर्जा देने के मामले में सरकार का साथ देने के लिये साथ मलाई चाटने वाले भी नहीं आये। सरकार चलाने वाले अन्ना को सबक सिखाने की आड़ में राहुल गांधी की किरकिरी करवा बैठे। राहुल गांधी यूपी में बता रहे हैं कि दर्जा क्यों नहीं मिला। बूते से ज्यादा वजन उठाने का प्रयास किया और सरकार बेनकाब हो गई। कांग्रेसी यही नहीं संभल पाये और राज्यसभा में पार्टी सुप्रीमों की भी किरकिरी करवा बैठे। स्पीकर चाहे तो संशोधनों पर एक साथ मत ले सकते हैं। पहले तो राज्यसभा में एक दिन बिगाड़ा गया और बाद में मतदान कराने से भागने का प्रयास किया गया। इस घटनाक्रम में कांग्रेस सोनिया गांधी की लाज नहीं बचा पाई यह तो एक पक्ष है ही लेकिन दूसरा खतरनाक पक्ष और भी है जो दिखाई दे रहा है लेकिन कहा कम जा रहा है। उप राष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं। उनकी लोकपाल बिल पर कर्यप्रणाली सवालों के घेरे में आती दिखाई दे रही है। वे सरकार को बचाने के लिये रास्ता निकालें यह तो समझ में आता है लेकिन बिना किसी कारण सदन का समय बर्वाद कर दें और बाद में मतदान कराने की बजाये सदन को अनिश्चित काल के लिये स्थगित कर दें यह देश के साथ न्याय नहीं है। हमारे सामने गंभीर सवाल इस लोकपाल बिल ने छोड़ दिये हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि क्या राज्यसभा रात के 12 बजे के बाद नहीं चल सकती थी? चल सकती थी क्योंकि संसद लगातार चल रही है और सदन की सहमति से उसे चलाया जा सकता था। राष्ट्रपति की अधिसूचना का उल्लंधन उस स्थिति में होता जब सदन को स्थगित कर दिया जाता। हमने देखा है कि पीठासीन अधिकारी अनेकों बार यह कहता है कि बिल पर चर्चा होने तक सदन के समय में बढ़ोतरी की जाती है मैं समझता हूं कि सदन इससे सहमत है। ऐसे में देश को गुमराह मत करिये। दूसरी बात यह है कि अब इस बिल का स्टेटस क्या है? बिल मरा नहीं है और न ही लेप्स हुआ है। इस बिल पर चर्चा जारी है और जब फिर से सदन समवेत होगा इसी बिल पर चर्चा की जा सकती है। सरकार की सबसे बड़ी लापरवाही यह है कि जब लोकसभा में संविधान संशोधन करने लायक बहुमत नहीं है और राज्यसभा में साधारण बहुमत ही नहीं है तो सभी दलों खास कर सहयोगी दलों के साथ मिलकर देशहित का कानून बनाने की बजाये राजनीतिक हेकड़ी दिखाने की क्या जरूरत थी? देश के सामने यह सरकार भ्रष्टों और कालेधन वालों की पैरोकार के रूप में अधिक दिखी देशभक्तों के साथ खड़ी कम। केन्द्र सरकार ने संसद को गुमराह, अन्ना हजारे को अपमानित और देश को धोखा देने का प्रयास किया है। तो यह नहीं मानना चाहिये कि देश की जनता को जवाब देना नहीं आता है वह अपना मानस बना चुकी है परिणाम आने दीजिये।(दखल)

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Dakhal News 6 January 2012


उमा भी खामोश और बीजेपी भी खामोश

शाहनवाज खान पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती की छह साल के वनवास के बाद घर वापसी तो हो गई लेकिन स्वयं उमा सहित पूरी भाजपा उनको लेकर खामोश है। यह खामोशी कब टूटेगी? इसे लेकर भाजपा के अंदर और बाहर बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। उमा की वापसी से नफा-नुकसान को लेकर चल रही अटकलों का दौर अब भी जारी है। उनकी भाजपा में वापसी के लाभ और फायदे क्या होंगे, यह तो भविष्य में पता चलेगा लेकिन उनकी वापसी से उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में फिर प्रदेश के दो दिग्गज नेताओं में टक्कर तय है। सुश्री भारती ने ही दस साल तक प्रदेश की सत्ता में काबिज रहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को दस साल के वनवास पर जाने के लिए मजबूर कर दिया था। लंबे अंतराल के बाद यह दोनों नेता एक बार फिर आमने-सामने हैं। उत्तरप्रदेश चुनाव सुश्री भारती के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं हैं। इसके परिणामों पर ही उनके भविष्य की भूमिका काफी हद तक निर्भर है। बहरहाल सुश्री भारती की वापसी से फिलहाल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान और उनकी सरकार को कोई फर्क नहीं पडऩे वाला है लेकिन संगठन पर जरूर असर पड़ेगा। उनकी अनुपस्थिति में प्रदेश के जिन नेताओ के कद तेजी से बढ़े थे अब उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है। प्रदेश से राष्ट्रीय राजनीति में उभरे महासचिव नरेंद्र सिंह तोमर और थावरचंद गहलोत को नुकसान उठाना पड सकता है। तोमर उत्तरप्रदेश के प्रभारी महासचिव हैं जहां पार्टी ने उमा भारती को जिम्मेदारी सौंपी गई है। यहां पार्टी विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करती है तो इसका सारा श्रेय उमा के खाते में जाएगा न कि तोमर के। पार्टी भले ही अभी भारती को संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी न सौंपे लेकिन उत्तरप्रदेश के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन पर पार्टी में उन्हें संगठन में लेने का दबाव बढ़ेगा। पार्टी सूत्रों की माने तो भारती को पार्टी महासचिव जैसे महत्व वाले पदों से अभी दूर ही रखा जाएगा। उनका उपयोग गंगा अभियान, हिन्दुत्व व राम मंदिर मुद्दे को लेकर किया जाएगा। वह एक बार फिर देश में हिन्दुत्व के लिए संघ की गाइडलाइन पर काम करेंगी। उनकी वापसी भी इसी उद्देश्य को लेकर ऐसे समय में की गई जब इस मुद्दे को हवा दी जा सकती है। दूसरा पार्टी उनके जरिए पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को भी करारा जवाब दे सकेगी। सुश्री भारती ने ही प्रदेश में दिग्विजय सरकार को उखाडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उन्हें मिस्टर बंटाढार की संज्ञा दी थी। पार्टी उत्तरप्रदेश में भी दिग्विजय सिंह को शिकस्त देना चाहती है। उमा के जरिए भाजपा मप्र के सीमावर्ती उत्तरप्रदेश के जिलों में माहौल बनाने का काम करेगी। असंतुष्ट होंगे सक्रिय अभी तक प्रदेष में षिव सरकार और संगठन से असंतुष्ट भाजपा नेता, मंत्री और कार्यकर्ता अब तक षांत बैठे थे लेकिन भारती की वापसी से यह सक्रिय होंगे। उन्हें सुश्री भारती के रूप में एक सरपरस्त और दमदार नेता मिल गया है। पार्टी सूत्र बताते हैं कि अभी तक ऐसे असंतुष्ट मंत्रियों और नेताओं से उमा के अच्छे संबंध रहे हैं। अब तक खामोषी ओडे बैठे यह नेता अब आगे बढकर उनकी वापसी पर बयान जारी कर रहे हैं।[ दखल]

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Dakhal News 7 July 2011


उमा भी खामोश और बीजेपी भी खामोश

शाहनवाज खान पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती की छह साल के वनवास के बाद घर वापसी तो हो गई लेकिन स्वयं उमा सहित पूरी भाजपा उनको लेकर खामोश है। यह खामोशी कब टूटेगी? इसे लेकर भाजपा के अंदर और बाहर बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। उमा की वापसी से नफा-नुकसान को लेकर चल रही अटकलों का दौर अब भी जारी है। उनकी भाजपा में वापसी के लाभ और फायदे क्या होंगे, यह तो भविष्य में पता चलेगा लेकिन उनकी वापसी से उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में फिर प्रदेश के दो दिग्गज नेताओं में टक्कर तय है। सुश्री भारती ने ही दस साल तक प्रदेश की सत्ता में काबिज रहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को दस साल के वनवास पर जाने के लिए मजबूर कर दिया था। लंबे अंतराल के बाद यह दोनों नेता एक बार फिर आमने-सामने हैं। उत्तरप्रदेश चुनाव सुश्री भारती के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं हैं। इसके परिणामों पर ही उनके भविष्य की भूमिका काफी हद तक निर्भर है। बहरहाल सुश्री भारती की वापसी से फिलहाल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान और उनकी सरकार को कोई फर्क नहीं पडऩे वाला है लेकिन संगठन पर जरूर असर पड़ेगा। उनकी अनुपस्थिति में प्रदेश के जिन नेताओ के कद तेजी से बढ़े थे अब उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है। प्रदेश से राष्ट्रीय राजनीति में उभरे महासचिव नरेंद्र सिंह तोमर और थावरचंद गहलोत को नुकसान उठाना पड सकता है। तोमर उत्तरप्रदेश के प्रभारी महासचिव हैं जहां पार्टी ने उमा भारती को जिम्मेदारी सौंपी गई है। यहां पार्टी विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करती है तो इसका सारा श्रेय उमा के खाते में जाएगा न कि तोमर के। पार्टी भले ही अभी भारती को संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी न सौंपे लेकिन उत्तरप्रदेश के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन पर पार्टी में उन्हें संगठन में लेने का दबाव बढ़ेगा। पार्टी सूत्रों की माने तो भारती को पार्टी महासचिव जैसे महत्व वाले पदों से अभी दूर ही रखा जाएगा। उनका उपयोग गंगा अभियान, हिन्दुत्व व राम मंदिर मुद्दे को लेकर किया जाएगा। वह एक बार फिर देश में हिन्दुत्व के लिए संघ की गाइडलाइन पर काम करेंगी। उनकी वापसी भी इसी उद्देश्य को लेकर ऐसे समय में की गई जब इस मुद्दे को हवा दी जा सकती है। दूसरा पार्टी उनके जरिए पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को भी करारा जवाब दे सकेगी। सुश्री भारती ने ही प्रदेश में दिग्विजय सरकार को उखाडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उन्हें मिस्टर बंटाढार की संज्ञा दी थी। पार्टी उत्तरप्रदेश में भी दिग्विजय सिंह को शिकस्त देना चाहती है। उमा के जरिए भाजपा मप्र के सीमावर्ती उत्तरप्रदेश के जिलों में माहौल बनाने का काम करेगी। असंतुष्ट होंगे सक्रिय अभी तक प्रदेष में षिव सरकार और संगठन से असंतुष्ट भाजपा नेता, मंत्री और कार्यकर्ता अब तक षांत बैठे थे लेकिन भारती की वापसी से यह सक्रिय होंगे। उन्हें सुश्री भारती के रूप में एक सरपरस्त और दमदार नेता मिल गया है। पार्टी सूत्र बताते हैं कि अभी तक ऐसे असंतुष्ट मंत्रियों और नेताओं से उमा के अच्छे संबंध रहे हैं। अब तक खामोषी ओडे बैठे यह नेता अब आगे बढकर उनकी वापसी पर बयान जारी कर रहे हैं।[ दखल]

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Dakhal News 7 July 2011


भ्रष्टाचार का वध सियासत से

शरद यादव आज भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में जो माहौल बना है, वह निश्चय ही बहुत बड़ी बात है । हमें इस मौके को बर्बाद नहीं करना चाहिए । लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई सही तरीके से लड़ी जानी चाहिए । आज कुछ लोग अनशन और भूख हड़ताल को इसके खिलाफ लड़ाई का हथियार बना रहे हैं । मेरा मानना है कि यह गलत तरीका है । अनशन में मुद्दा पीछे छूट जाता है और अनशन करने वाले आदमी पर सारा ध्यान केन्द्रित हो जाता है। मुद्दे को पीछे छोड़कर हम कुछ हासिल नहीं कर सकते । महात्मा गांधी ने अनशन का हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था, लेकिन महात्मा जी का मामला अलग था और तब देश की हालत भी भिन्न थी । सही तरीका चुनें :- आजादी के बाद लोहिया जी ने कभी अनशन का सहारा नहीं लिया । जयप्रकाश जी ने भी इसे आन्दोलन का माध्यम नहीं बनाया । सांप्रदायिकता के खिलाफ हमारे नेता वी.पी. सिंह ने अनशन किया था, तो उनकी किडनी ही खराब हो गई और उन्हें उसके कारण सक्रिय राजनीति से हट जाना पड़ा । अनशन के अलावा आन्दोलन के अन्य तरीके हैं, जिनका इस्तेमाल करके सरकार और समाज पर दबाव बनाया जाना चाहिये । भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए हमें इसके स्वरूप को समझना पड़ेगा । यह सत्ता की ही बुुराई नहीं है, बल्कि एक सामाजिक बुराई भी है । यह हमारी सामाजिक व्यवस्था से निकलता है, इसलिए हमें उसके स्तर पर भी इसका निराकरण करना होगा । विपक्ष का दबाव :- आजादी के बाद हमारे देश में भ्रष्टाचार बढ़ता गया है । जहां-जहां सरकारी योजनाएं पहुंचती हैं, वहीं उसके साथ भ्रष्टाचार भी पहुंच जाता है । किस योजना में भ्रष्टाचार नहीं है ? चाहे वह महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना हो, इंदिरा गांधी आवास योजना हो या सार्वजनिक वितरण प्रणाली, सब में भ्रष्टाचार है । सरकाारी कार्यालयों से काम करवाने के लिए भ्रष्टाचार के आगे सिर झुकाना पड़ता है । यह इतना व्यापक हो गया हैकि इसका होना नियम है और न होना अपवाद । लेकिन पिछले कुछ महीनों से भ्रष्टाचार के जो मामले सामने आए हैं आर उनमें जो बड़ी राशि शामिल है, उसने देश के लोगों के दिलोदिमाग को झकझोर दिया है। राष्ट्रमंडल खेलोें के दौरान हजारों करोड़ रूपयों की लूट । २ जी स्पेक्ट्रमें १ लाख ७० हजार करोड़ रूपये का सरकारी खजाने को नुकसान । उपग्रह स्पेक्ट्रम में २ लाख करोड़ रूपये का नुकसान करने वाले सौदे व भ्रष्टाचार के मुकदमे का सामान करने वाले एक व्यक्ति की सीवीसी के रूप में नियुक्ति ने हमें हिलाकर रख दिया है । भ्रष्टाचार के इन मामलों पर सरकार ने जो प्रतिक्रिया दिखाई, वह भी लोगों को परेशान करने वाली रही । प्रधानमंत्री की छवि एक ईमानदार व्यक्ति की है और माना जाता है कि अपनी ईमानदारी के कारण ही वह इस पद पर पहुँचे हैं । लेकिन उनके नेतृत्व में बनी सरकार में इतना भ्रष्टाचार हो तो, लोगों के हाश उड़ेंगे ही । भ्रष्टाचार का अंत राजनैतिक प्रक्रिया के इस्तेमाल से ही होगा । यह सोचना गलत है कि राजनैतिक लोगों को अलग-थलग करके इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सकती है । आज भ्रष्टाचार के खिलाफ जो माहौल बना है, वह राजनैतिक पार्टियों द्वारा पैदा किए गए दबाव की भी देन है । विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने का मुद्दा पिछले लोकसभा चुनाव के पहले सबसे पहले मैने उठाया था । उसके बाद बीजेपी के सर्वोच्च नेता लालकृष्ण आडवाणी जी ने उठाया । फिर बाबा रामदेव अपने योग शिविर में इसकी चर्चा करने लगे । नगरों, महानगरों और राष्ट्रीय राजमार्गो के आसपास की जमीन पर भू-माफियाओं की नजर के खिलाफ भी मैने देश के लोगों को चेताया था । अन्य राजनैतिक दल भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं । यह कहना गलत है कि बाबा रामदेव और अन्ना हजारे जैसे गैर राजनैतिक लोगों के कारण भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लोग उठ खड़े हुए हैं । सच तो यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उन दोनों के अनशन करने के पहले ही अनेक प्रभावशाली लोग २ जी स्कैम में जेल में पहुँच चुके हैं । राजनैतिक दबाव के तहत मुकदमे दर्ज हुए । अदालतों का भी उसमें योगदान राहा । सुप्रीम कोर्ट द्वारा केन्द्र सरकार को लगाई गई लताड़ की हम अनदेखी नहीं कर सकते । पिछले साल देश की सभी विपक्षी पार्टियों ने करप्शन के सवाल को लेकर सफल भारत बन्द करवाया था । आईपीएल घोटाले में राजनैतिक दलों के दबाव के कारण शशि थरूर को मंत्रिपरिषद से बाहर जाना पड़ा था । २जी स्पेक्ट्रम स्कैम में जेपीसी की मांग करते हुए पूरे विपक्ष ने संसद के शरद सत्र को ही नहीं चलने दिया था । देशभर में हम जेपीसी के गठन की मांग को बुलंद कर रहे थे और संसद के बजट सत्र पर भी खतरा पैदा हो रहा था । उसके कारण सरकार दबाव में आई थी और जेपीसी का गठन भी हो गया । इसमें मीडिया की भी बजर्दस्त भूमिका रही । उसने भ्रष्टाचार के मामले को अच्छा कवरेज दिया । भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने में संसद की सर्वोपरि भूमिका की कोई भी अनदेखी नहीं कर सकता । हमें संसद पर भरोसा करना चाहिए । भ्रष्टाचार के खिलाफ जो सवाल खड़े हो रहे हैं, उनका हल अंततः संसद से ही निकलना है । लोकतंत्र की मजबूती :- सिविल सोसाइटी व विभिन्न संस्थाओं से जुड़े लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आगे आएं । वे इसके खिलाफ अभियान चलाएं व जनता को जागरूक करें । वे सरकार पर तेजी से काम करने के लिए दबाव बनाएं । यह सब अच्छी बात है और हमारे देश के लोकतंत्र के मजबूत होते जाने के संकेत हैं । इनसे देश की राजनैतिक प्रक्रिया और भी स्वस्थ होती है । पर भ्रष्टाचार के जिस राक्षस का हम सामना कर रहे हैं, उसका वध तो अंततः राजनैतिक प्रक्रिया के तहत होना है । (दखल)( लेखक एनडीए के संयोजक हैं )

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Dakhal News 29 June 2011


भ्रष्टाचार का वध सियासत से

शरद यादव आज भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में जो माहौल बना है, वह निश्चय ही बहुत बड़ी बात है । हमें इस मौके को बर्बाद नहीं करना चाहिए । लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई सही तरीके से लड़ी जानी चाहिए । आज कुछ लोग अनशन और भूख हड़ताल को इसके खिलाफ लड़ाई का हथियार बना रहे हैं । मेरा मानना है कि यह गलत तरीका है । अनशन में मुद्दा पीछे छूट जाता है और अनशन करने वाले आदमी पर सारा ध्यान केन्द्रित हो जाता है। मुद्दे को पीछे छोड़कर हम कुछ हासिल नहीं कर सकते । महात्मा गांधी ने अनशन का हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था, लेकिन महात्मा जी का मामला अलग था और तब देश की हालत भी भिन्न थी । सही तरीका चुनें :- आजादी के बाद लोहिया जी ने कभी अनशन का सहारा नहीं लिया । जयप्रकाश जी ने भी इसे आन्दोलन का माध्यम नहीं बनाया । सांप्रदायिकता के खिलाफ हमारे नेता वी.पी. सिंह ने अनशन किया था, तो उनकी किडनी ही खराब हो गई और उन्हें उसके कारण सक्रिय राजनीति से हट जाना पड़ा । अनशन के अलावा आन्दोलन के अन्य तरीके हैं, जिनका इस्तेमाल करके सरकार और समाज पर दबाव बनाया जाना चाहिये । भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए हमें इसके स्वरूप को समझना पड़ेगा । यह सत्ता की ही बुुराई नहीं है, बल्कि एक सामाजिक बुराई भी है । यह हमारी सामाजिक व्यवस्था से निकलता है, इसलिए हमें उसके स्तर पर भी इसका निराकरण करना होगा । विपक्ष का दबाव :- आजादी के बाद हमारे देश में भ्रष्टाचार बढ़ता गया है । जहां-जहां सरकारी योजनाएं पहुंचती हैं, वहीं उसके साथ भ्रष्टाचार भी पहुंच जाता है । किस योजना में भ्रष्टाचार नहीं है ? चाहे वह महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना हो, इंदिरा गांधी आवास योजना हो या सार्वजनिक वितरण प्रणाली, सब में भ्रष्टाचार है । सरकाारी कार्यालयों से काम करवाने के लिए भ्रष्टाचार के आगे सिर झुकाना पड़ता है । यह इतना व्यापक हो गया हैकि इसका होना नियम है और न होना अपवाद । लेकिन पिछले कुछ महीनों से भ्रष्टाचार के जो मामले सामने आए हैं आर उनमें जो बड़ी राशि शामिल है, उसने देश के लोगों के दिलोदिमाग को झकझोर दिया है। राष्ट्रमंडल खेलोें के दौरान हजारों करोड़ रूपयों की लूट । २ जी स्पेक्ट्रमें १ लाख ७० हजार करोड़ रूपये का सरकारी खजाने को नुकसान । उपग्रह स्पेक्ट्रम में २ लाख करोड़ रूपये का नुकसान करने वाले सौदे व भ्रष्टाचार के मुकदमे का सामान करने वाले एक व्यक्ति की सीवीसी के रूप में नियुक्ति ने हमें हिलाकर रख दिया है । भ्रष्टाचार के इन मामलों पर सरकार ने जो प्रतिक्रिया दिखाई, वह भी लोगों को परेशान करने वाली रही । प्रधानमंत्री की छवि एक ईमानदार व्यक्ति की है और माना जाता है कि अपनी ईमानदारी के कारण ही वह इस पद पर पहुँचे हैं । लेकिन उनके नेतृत्व में बनी सरकार में इतना भ्रष्टाचार हो तो, लोगों के हाश उड़ेंगे ही । भ्रष्टाचार का अंत राजनैतिक प्रक्रिया के इस्तेमाल से ही होगा । यह सोचना गलत है कि राजनैतिक लोगों को अलग-थलग करके इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सकती है । आज भ्रष्टाचार के खिलाफ जो माहौल बना है, वह राजनैतिक पार्टियों द्वारा पैदा किए गए दबाव की भी देन है । विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने का मुद्दा पिछले लोकसभा चुनाव के पहले सबसे पहले मैने उठाया था । उसके बाद बीजेपी के सर्वोच्च नेता लालकृष्ण आडवाणी जी ने उठाया । फिर बाबा रामदेव अपने योग शिविर में इसकी चर्चा करने लगे । नगरों, महानगरों और राष्ट्रीय राजमार्गो के आसपास की जमीन पर भू-माफियाओं की नजर के खिलाफ भी मैने देश के लोगों को चेताया था । अन्य राजनैतिक दल भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं । यह कहना गलत है कि बाबा रामदेव और अन्ना हजारे जैसे गैर राजनैतिक लोगों के कारण भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लोग उठ खड़े हुए हैं । सच तो यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उन दोनों के अनशन करने के पहले ही अनेक प्रभावशाली लोग २ जी स्कैम में जेल में पहुँच चुके हैं । राजनैतिक दबाव के तहत मुकदमे दर्ज हुए । अदालतों का भी उसमें योगदान राहा । सुप्रीम कोर्ट द्वारा केन्द्र सरकार को लगाई गई लताड़ की हम अनदेखी नहीं कर सकते । पिछले साल देश की सभी विपक्षी पार्टियों ने करप्शन के सवाल को लेकर सफल भारत बन्द करवाया था । आईपीएल घोटाले में राजनैतिक दलों के दबाव के कारण शशि थरूर को मंत्रिपरिषद से बाहर जाना पड़ा था । २जी स्पेक्ट्रम स्कैम में जेपीसी की मांग करते हुए पूरे विपक्ष ने संसद के शरद सत्र को ही नहीं चलने दिया था । देशभर में हम जेपीसी के गठन की मांग को बुलंद कर रहे थे और संसद के बजट सत्र पर भी खतरा पैदा हो रहा था । उसके कारण सरकार दबाव में आई थी और जेपीसी का गठन भी हो गया । इसमें मीडिया की भी बजर्दस्त भूमिका रही । उसने भ्रष्टाचार के मामले को अच्छा कवरेज दिया । भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने में संसद की सर्वोपरि भूमिका की कोई भी अनदेखी नहीं कर सकता । हमें संसद पर भरोसा करना चाहिए । भ्रष्टाचार के खिलाफ जो सवाल खड़े हो रहे हैं, उनका हल अंततः संसद से ही निकलना है । लोकतंत्र की मजबूती :- सिविल सोसाइटी व विभिन्न संस्थाओं से जुड़े लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आगे आएं । वे इसके खिलाफ अभियान चलाएं व जनता को जागरूक करें । वे सरकार पर तेजी से काम करने के लिए दबाव बनाएं । यह सब अच्छी बात है और हमारे देश के लोकतंत्र के मजबूत होते जाने के संकेत हैं । इनसे देश की राजनैतिक प्रक्रिया और भी स्वस्थ होती है । पर भ्रष्टाचार के जिस राक्षस का हम सामना कर रहे हैं, उसका वध तो अंततः राजनैतिक प्रक्रिया के तहत होना है । (दखल)( लेखक एनडीए के संयोजक हैं )

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Dakhal News 29 June 2011


देश में बिगड़ता लैंगिक अनुपात

पंकज चतुर्वेदी भारत की जनगणना और कनाडा के मेडिकल शोध ने भारत में व्याप्त लैंगिक असामनता की समस्या को फिर ज्वलंत कर दिया है |आज भी देश में एक हजार किशोरों पर किशोरियों की संख्या ९४० है |आगामी बीस वर्षों में भारत में युवतियों की संख्या, युवकों की तुलना में लगभग दस से बीस प्रतिशत कम होगी ,अर्थात भविष्य में हर नौजवान अपने लिए एक उपयुक्त वधु की तलाश में संघर्ष करता नजर आएगा | उस देश में जहाँ वर्त्तमान में देश की राष्ट्राध्यक्ष ,सत्ताधारी दल की मुखिया ,सदन की अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष सब महिलाएं है ,वहाँ ऐसी स्तिथियाँ शर्मनाक एवं चिंतनीय है |अपने देश में हर घर में शक्ती देवी दुर्गा ,विद्या दायिनी सरस्वती की पूजा –अर्चना होती ,हर आमो-खास धन लक्ष्मी की कमाना रखता है, ऐसे धर्मभीरु समाज में कन्या भ्रूणहत्या महा पाप है|देश का बहुसंख्य समाज माता के नाम पर साल में दो बार उपवास रखता है|देश में देवताओं से ज्यादा मंदिर देवियों के है फिर भी ये सब हो रहा है | यह लैंगिक असंतुलन समाज के लिए बड़े व्यापक स्वरुप में नुकसान पहुँचाने वाला है |यद्यपि अभी भी हमारे देश में अंतरजातीय विवाहों का स्वागत नहीं किया जाता है ,अनेक जातियों और उपजातियों में बटा देश अभी भी स्वजातीय विवाह के पक्ष में है ,जिसके चलते कई समाज इस भ्रांति में है कि उनकी समाज में लैंगिक असंतुलन नहीं है ,व सब ठीक है |लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है यह असंतुलन हर जाति ,उपजाति के लिए घातक सिद्ध होगा वर्तमान आंकड़े इस बात की पुष्टि कर रहें है, कि इस असंतुलन से कोई भी जाति या उपजति नहीं बचेगी सब पर इसका असर पड़ेगा | इस विषय में बने वर्तमान भारतीय कानून भी बहुत प्रभावकारी नहीं दिखे है ,ऐसा लगता है कि अन्य कानूनों की भांति इसकी धार भी कुंद हो गयी है | इसके साथ ही जिस तरह से यह अपराध घटित होता है वो पूरी प्रक्रिया भी ऐसी है की अपराधियों की पकड़ आसान नहीं है और पकड़ भी आ जाये तो क़ानून की कमजोरियों का लाभ ले मुक्त हो जाते है ,और फिर से समाज को गन्दा करने लगते है | आवशकता है कि सबसे पहले देश के वर्तमान कन्या भ्रूणहत्या कानून को और सशक्त किया जाये और इस विषय में कमजोर पड़ रही सामजिक सोच को भी बदलने और मजबूत करने की जरुरत है |क्योकिं देश की वर्तमान अभिभावक पीढ़ी शिशु के लिंग से लेकर उसका भविष्य तक सब कुछ अपने हिसाब से निर्धारित करना चाहती है ,अपितु यह माता –पिता के रूप में उनका उत्तरदायित्व एवं अधिकार भी है ,किन्तु इसमें सीमा से आगे जाने के कारण बच्चों का बचपन और भविष्य दोनों का ही हरण उनके अभिभावकों द्वारा ही किया जा रहा है लेंगिक असंतुलन का नैतिक जिम्मा हम और आप सब का है यह सबका सार्वजनिक जिम्मा है क्योकि इसके दुष्प्रभाव पूरे समाज पर होंगे ना कि सिर्फ किसी व्यक्ती विशेष मात्र पर |यह बात और है कि हम इस जिम्मेदारी को माने या ना माने |हम सब उस भारतीय समाज का ही भाग है ,जहाँ कन्या के साथ भ्रूण से लेकर भूमि तक हर जगह भेदभाव हो रहा है|खानपान ,शिक्षा,उत्सव ,आयोजन ,पहनवा और स्वस्थ सब जगह अंतर स्पष्ट है |लड़के के जन्म पर जश्न और लड़की के जन्म पर शोक अभी भी होता है जो निहायत गैर जिम्मेदाराना और शर्मनाक है | अपने देश में साक्षरता की दर बढ़ती जा रही है किन्तु नैतिकता और नैतिक मूल्यों की दर घटी जा रही है |इस साक्षर और शिक्षित भारत में कन्या भ्रूणहत्या और भेदभाव इस पतन की जिन्दा मिसाल है |यदि हर माता –पिता लड़की और लड़के का भेद अपने मन से हट दे तो आकडों का यह भेद स्वत ही मिट जायेगा |आज की स्थितियों से यह स्पष्ट है कि इस तरह कि समस्या कानूनी कम और सामाजिक ज्यादा है |इस सामजिक मानसिकता को बदलने का जिम्मा देश की वर्तमान युवा पीढ़ी को ही उठाना होगा ,जो कथित रूप से साक्षर तो है पर इन सब बातों से जिसके शिक्षित होने पर पर प्रशन चिन्ह लगा है | जिस दिन हम और हमारा समाज यह तय कर ले उसी दिन यह बीमारी जड़ से मिट जायेगी व फिर यह किसी सरकारी नियम कानून की मोहताज भी नहीं रहेगी| जिस दिन हमारा निर्णय हो जायेगा उस दिन देश से लैंगिक असंतुलन भी मिट जायेगा |यह इस देश का दुर्भाग्य है कि हम प्यास लगने पर ही कुआँ खोदने का स्थान ढूंडने निकलते है .नदिया सुखाने लगी है तब पानी बचाने की बात हो रही है |गले –गले तक भ्रष्टाचार में डूब गए अब उबरने के प्रयास हो रहें है |लैंगिक असंतुलन में अभी बात ज्यादा बिगड़ी नहीं है| समय रह्ते हम जाग जाये तो आने वाले दस –बीस वर्षों में युवतियों की संख्या ,युवकों की संख्या के बराबर लाना मुश्किल नही ,बशर्ते कोशिशें आज से और इमानदारी से शुरू कर दी जायें सिर्फ कन्या भ्रूण बचने के वर्ष में एक दिवस मनाने के बजाय रोजमर्रा की दिनचर्या ,चर्चा और मानसिकता में इसे शामिल कर लिए जाये |(दखल) लेखक- एन.डी.सेंटर फार सोशल डेवलपमेंट एंड रिसर्च के अध्यक्ष है |

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Dakhal News 12 May 2011


देश ने खो दिया एक महान राजनेता

एल.एस. हरदेनिया कांग्रस के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह के निधन से देश ने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का एक महान योद्धा, अत्यधिक कुशल राजनीतिज्ञ, दक्ष प्रशासक, महान पुस्तक प्रेमी और हर दृष्टि से एक उत्कृष्ट बुद्धिजीवी खो दिया है । अर्जुन सिंह जिस पद पर भी रहे, उस पद से जुड़ी जिम्मेदारियों को उन्होंने अत्यंत कुशलता से निभाया । उनका राजनीतिक कैरियर सन्‌-१९५७ से प्रारंभ हुआ था, जब वे एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नवगठित मध्यप्रदेश की प्रथम निर्वाचित विधानसभा के सदस्य चुने गए थे । एक नौजवान विधायक के रूप में उन्होंने विधानसभा को अपनी वक्तव्य कला से प्रभावित किया था । उनकी प्रतिभा से प्रभावित हाकर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें कांग्रेस में शामिल होने का निमंत्रण दिया, जिसका अर्जुन सिंह ने सहर्ष स्वीकार कर लिया । इसके बाद वे सन्‌ १९६२ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार बने और चुनाव जीतकर विधायक बने । सन्‌-१९६३ में पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र मुख्यमंत्री बने और उन्होंने अर्जुन सिंह को राज्यमंत्री के रूप में अपनी मंत्रिपरिषद में शामिल किया । अर्जुन सिंह की काम करने की लगन देखकर पं० मिश्र उनसे बहुत प्रभावित थे । दुर्भाग्य से वे सन्‌ १९६७ का चुनाव हार गए, लेकिन कुछ अंतराल के बाद वे पुनः विधायक बने और मिश्रजी ने उन्हें दुबारा अपनी मंत्रिपरिषद में शामिल किया । सन्‌-१९६७ में प्रदेश में एक भारी दलबदल के परिणामस्वरूप कांग्रेस के हाथ से सत्ता छिन गई थी । इसके बाद अर्जुन सिंह ने अन्य कांग्रेसी नेताओं की तरह प्रतिपक्ष की भूमिका निभाई। उनकी वह भूमिका इसलिए यादगार है, क्योंकि सत्तापक्ष उनके सवाल सुन-सुनकर परेशान हो जाता था । सन्‌-१९७२ में वे पुनः विधायक बने और प्रकाशचंद्र सेठी की मंत्रिपरिषद में शामिल हुए । सन्‌-१९७५ से १९७७ तक देश में आपातकाल रहा । आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस की भारी हार हुई और अर्जुन सिंह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने । प्रतिपक्ष के नेता के रूप में उनकी भूमिका काबिले तारीफ रही । सन्‌-१९८० में कांग्रेस पुनः सत्ता में आई और अर्जुनसिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने । मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए । उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में प्रदेश में औद्योगीकरण के मामले में महत्वपूर्ण पहल की गई । गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के हित में अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए गए । झुग्गी-झोपड़ी वालों को पट्टे दिए गए । सन्‌-१९८५ का विधानसभा चुनाव अर्जुन सिंह के नेतृत्व में लड़ा गया और कांग्रेस को भारी जीत हासिल हुई । अर्जुन सिंह पुनः मुख्यमंत्री बने, लेकिन अत्यधिक नाटकीय ढंग से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के मात्र दो दिन बाद उन्हें पंजाब का राज्यपाल बनाने का निर्णय ले लिया गया । उस समय पंजाब आतंकवाद की गिरफ्त में था और वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू था । अर्जुन सिंह ने पंजाब में आतंकवाद की समाप्ति की पहल की और अकाली नेता संत हरचंद सिंह लोंगोवाल और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच एक ऐतिहासिक समझौता कराया । पंजाब के राज्यपाल का पद छोड़ने के बाद उन्हें कांग्रेस का उपाध्यक्ष्ज्ञ और फिर केन्द्रीय मंत्री बनाया गया । मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के लगभग दो वर्ष बाद वे पुनः मुख्यंत्री बने । इस बार मुख्यमंत्री बनते समय वे विधानसभा के सदस्य नहीं थे । उन्होंने छत्तीसगढ़ के खरसिया से विधानसभा का चुनाव लड़ा। चुनाव के पूर्व उन्होंने तेंदूपत्ता के व्यापार का सहकारीकरण किया । इस कदम से तेंदूपत्ता तोड़ने वाले लाखों मजदूरों को लाभ हुआ । यह अर्जुन सिंह का ऐतिहासिक कदम था । उन्होंने मुख्यमंत्री की हैसियत से कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए । भारत भवन उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में बना, जो आज कला और संस्कृति का एक महान केन्द्र बन गया है । अर्जुन सिंह ने केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री के रूप में जिस कल्पनाशीलता का परिचय दिया, उसे सदैव याद रखा जाएगा । उनसे पहले सीबीएसई के पाठ्यक्रम का भगवाकरण हो चुका था । उसको इस दलदल से अर्जुन सिंह ने ही बाहर निकाला । सांप्रदायिक शक्तियों ने उन पर हमले तो खूब किए, पर अर्जुन सिंह नहीं रूके । वे एक राजनीतिक योद्धा थे और अपने विरोधियों को परास्त करने में उन्हें जबर्दस्त महारथ हासिल थी । उनको जिसने भी चुनौती दी, कुछ ही समय बाद वह चारों खाने चित्त हो जाता था । वे अत्यधिक प्रभावशाली वक्ता थे। एक बार विधानसभा में किसी सदस्य ने उनके पिता के संदर्भ में कुछ अशोभनीय बात कही, तो उन्होंने उस सदस्य को यह कहकर निरूत्तर कर दिया था कि ÷ पिता चुनने का अधिकार तुम्हें रहा होगा, मुझे नहीं था ।' इसी तरह उनके अनेक भाषण चिरस्मरणीय हैं । उन्होंने नरसिंहराव केप्रधानमंत्रित्वकाल में कांग्रेस छोड़ी और सोनिया गांधी द्वारा नेतृत्व संभालने पर वे पुनः कांग्रेस में आ गए । वे कुछ समय तक लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता भी रहे । उनकी प्रतिष्ठा कम बोलने वाले, रणनीति बनाने में विशेषज्ञ और कला प्रेमी के रूप में थी । वे मध्यप्रदेश के एक महान सपूत थे । जहां तक हमारे संविधान में वर्णित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का सवाल है, तो उनकी प्रतिबद्धता सौ प्रतिशत थी । इसीलिए अल्पसंख्यक उन्हें अपना मसीहा मानते थे । अल्पसंख्यकों के हितों पर जब भी प्रहार हुआ, अर्जुनसिंह ने उसका मुखर विरोध किया । उनकी एक और खास बात यह थी कि वे बुद्धिजीवी नेता थे । आज की राजनीति में बृद्धिजीवियों का अकाल-सा हो गया है । अर्जुन सिंह चुनावी जनसंभाएं संबोधित करने के बाद भी किताबें पढ़ने का समय निकाल लेते थे । आप किसी भी विषय पर उनसे बात कर सकते थे । ज्ञान का अथाह भंडार उनके पास था । वे शेरो-शायरी भी पसंद करते थे । नेता संवेदनशील है या नहीं, इस बात की कसौटी यह होती है कि वह जनता के किस हद तक जुड़ा हुआ है । आजकल के अधिकतर नेता लोग जनता से केवल चुनाव के समय ही मिलते हैं, जब उन्हें वोट मांगने जाना पड़ता है । अर्जुन सिह ऐसे नहीं थे। वे किसी भी पद पर रहे हों या न रहे हों, जनता के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते थे । जो भी उनके पास पहुंच गया, उनको उन्होंने कभी निराश नहीं किया । वे जनता की समस्याओं को गंभीरता से सुनते थे और उनका फौरन निराकरण कराते थे । वे देश-प्रदेश की कांग्रेस की राजनीति में कई नए लोगों को लाए और उनको काम करने का मौका दिया । कांग्रेस में आज भी कई नेता ऐसे हैं, जिन पर अर्जुन सिंह की पारखी नजर नहीं पड़ी होती, तो शायद उन्हें राजनीति में आने का मौका तक नहीं मिलता । अर्जुन सिंह गरीबों की आवाज थे, दलितों-पिछड़ों के हितों के प्रवक्ता थे और अल्पसंख्यकों के संरक्षक थे । उनके निधन से देश, कांग्रेस और भारतीय राजनीति को अपूरणीय क्षति हुई है। उनके न रहने से मध्यप्रदेश को जो नुकसान हुआ है, उसकी पूर्ति कभी नहीं हो सकती । मैं मध्यप्रदेश के महान सपूत अर्जुन सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ । (दखल)

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Dakhal News 5 March 2011


शिवराज  पहले, दिग्विजय दूसरे सर्वाधिक लोकप्रिय  मुख्यमंत्री

लक्ष्मीकांत शर्मा, बाबूलाल गौर, ज्योतिरादित्य और नरोत्तम टॉप नेताशैफाली गुप्ता मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब तक के मुख्यमंत्रियों में सर्वश्रेष्ठ हैं यह कहना है पीपुल्स समाचार के सर्वे का । इस सर्वे में टॉप नेताओं में शिवराज सिंह, बाबूलाल गौर, लक्ष्मीकांत शर्मा, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरोत्तम मिश्रा के नाम हैं । पीपुल्स समाचार ने मध्यप्रदेश के चालीस जिलों में इस सर्वे को किया और टॉप टेन नेताओं की सूची जारी की है । मध्यप्रदेश के सर्वाधिक लोकप्रिय मुख्यमंत्री कौन में पाँच मुख्यमंत्रियों के नाम लागों से पूछे गये थे । जिसमें पहले नंबर पर शिवराज सिंह चौहान, दूसरे नंबर पर दिग्विजय सिंह, तीसरे नंबर पर बाबूलाल गौर, चौथे नंबर पर उमा भारती और पाँचवें नंबर पर अर्जुन सिंह सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री माने गये । यह सर्वे अलग-अलग पेशा अपनाने वाले लोगों के बीच किया गया, जिसमें ५५ फीसदी से ज्यादा युवा शामिल हैं । सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के टॉप टेन नेताओं में भी पहला स्थान शिवराज सिंह का रहा । दूसरे स्थान पर लक्ष्मीकांत शर्मा, तीसरे स्थान पर नरेन्द्र सिंह तोमर, चौथे स्थान पर प्रभात झा, पाँचवे स्थान पर बाबूलाल गौर, छठवें स्थान पर अनूप मिश्रा, सातवें स्थान पर कैलाश विजयवर्गीय, आठवें स्थान पर सुमित्रा महाजन, नौवें स्थान पर विजय शाह और दसवें स्थान पर लोगों ने प्रहलाद पटेल को पसंद किया । मध्यप्रदेश के तमाम मंत्रियों पर कई आरोपों, प्रत्यारोपों के बीच पीपुल्स समाचार के सर्वे में बाबूलाल गौर टॉप पर हैं । नरोत्तम मिश्रा दूसरे, लक्ष्मीकांत शर्मा, तीसरे, जयंत मलैया चौथे, अजय विश्नोई पाँचवें, उमाशंकर गुप्ता छठवें, कैलाश विजयवर्गीय सातवें, राघवजी भाई आठवें नंबर पर रहे । मंत्रियों में लोगों ने नौवाँ स्थान गोपाल भार्गव और दसवाँ स्थान विजय शाह को दिया । इस सर्वे में मध्यप्रदेश के दस लोकप्रिय कांग्रेस नेता कौन, के जवाब में पहला नाम दिग्विजय सिंह का है । लोगों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को दूसरे और कमलनाथ को तीसरा सर्वाधिक लोकप्रिय कांग्रेस नेता माना है । प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी चौथे, अजय सिंह राहुल पाँचवे, महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा छठवें, अरूण यादव सातवें, कांतिलाल भूरिया आठवें, बाला बच्चन नौवें और गोविन्द सिंह राजपूत दसवें लोकप्रिय कांग्रेस नेता चुने गये । हालांकि कांग्रेस के दस नेताओं के नाम चुनने में लोगों को खासी मशक्कत करना पड़ी । लोगों से पीपुल्स टीम ने जब पसंदीदा नेता प्रतिपक्ष के बारे में जानने की कोशिश की तो अजय सिंह ''राहुल'' पहले और चौधरी राकेश सिंह दूसरे नंबर पर रहे । महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा को तीसरे, बाला बच्चन को चौथे और गोविन्द सिंह राजपूत को लोगों ने पाँचवे स्थान पर रखा । अपनी तरह के इस अनोखे सर्वे को पीपुल्स समाचार के सभी एडिशन के संपादकों ने अपनी निगरानी में पूरा करवाया । इस सर्वे में तकरीबन ८० संवाददाताओं ने दस हजार लोगों से बातचीत कर इसे पूरा किया । पीपुल्स समाचार से जुड़े सूत्रों ने बताया की इस तरह के और भी कई सर्वे और किये जायेंगे |[दखल]

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Dakhal News 3 January 2011


शिवराज  पहले, दिग्विजय दूसरे सर्वाधिक लोकप्रिय  मुख्यमंत्री

लक्ष्मीकांत शर्मा, बाबूलाल गौर, ज्योतिरादित्य और नरोत्तम टॉप नेताशैफाली गुप्ता मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब तक के मुख्यमंत्रियों में सर्वश्रेष्ठ हैं यह कहना है पीपुल्स समाचार के सर्वे का । इस सर्वे में टॉप नेताओं में शिवराज सिंह, बाबूलाल गौर, लक्ष्मीकांत शर्मा, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरोत्तम मिश्रा के नाम हैं । पीपुल्स समाचार ने मध्यप्रदेश के चालीस जिलों में इस सर्वे को किया और टॉप टेन नेताओं की सूची जारी की है । मध्यप्रदेश के सर्वाधिक लोकप्रिय मुख्यमंत्री कौन में पाँच मुख्यमंत्रियों के नाम लागों से पूछे गये थे । जिसमें पहले नंबर पर शिवराज सिंह चौहान, दूसरे नंबर पर दिग्विजय सिंह, तीसरे नंबर पर बाबूलाल गौर, चौथे नंबर पर उमा भारती और पाँचवें नंबर पर अर्जुन सिंह सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री माने गये । यह सर्वे अलग-अलग पेशा अपनाने वाले लोगों के बीच किया गया, जिसमें ५५ फीसदी से ज्यादा युवा शामिल हैं । सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के टॉप टेन नेताओं में भी पहला स्थान शिवराज सिंह का रहा । दूसरे स्थान पर लक्ष्मीकांत शर्मा, तीसरे स्थान पर नरेन्द्र सिंह तोमर, चौथे स्थान पर प्रभात झा, पाँचवे स्थान पर बाबूलाल गौर, छठवें स्थान पर अनूप मिश्रा, सातवें स्थान पर कैलाश विजयवर्गीय, आठवें स्थान पर सुमित्रा महाजन, नौवें स्थान पर विजय शाह और दसवें स्थान पर लोगों ने प्रहलाद पटेल को पसंद किया । मध्यप्रदेश के तमाम मंत्रियों पर कई आरोपों, प्रत्यारोपों के बीच पीपुल्स समाचार के सर्वे में बाबूलाल गौर टॉप पर हैं । नरोत्तम मिश्रा दूसरे, लक्ष्मीकांत शर्मा, तीसरे, जयंत मलैया चौथे, अजय विश्नोई पाँचवें, उमाशंकर गुप्ता छठवें, कैलाश विजयवर्गीय सातवें, राघवजी भाई आठवें नंबर पर रहे । मंत्रियों में लोगों ने नौवाँ स्थान गोपाल भार्गव और दसवाँ स्थान विजय शाह को दिया । इस सर्वे में मध्यप्रदेश के दस लोकप्रिय कांग्रेस नेता कौन, के जवाब में पहला नाम दिग्विजय सिंह का है । लोगों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को दूसरे और कमलनाथ को तीसरा सर्वाधिक लोकप्रिय कांग्रेस नेता माना है । प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी चौथे, अजय सिंह राहुल पाँचवे, महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा छठवें, अरूण यादव सातवें, कांतिलाल भूरिया आठवें, बाला बच्चन नौवें और गोविन्द सिंह राजपूत दसवें लोकप्रिय कांग्रेस नेता चुने गये । हालांकि कांग्रेस के दस नेताओं के नाम चुनने में लोगों को खासी मशक्कत करना पड़ी । लोगों से पीपुल्स टीम ने जब पसंदीदा नेता प्रतिपक्ष के बारे में जानने की कोशिश की तो अजय सिंह ''राहुल'' पहले और चौधरी राकेश सिंह दूसरे नंबर पर रहे । महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा को तीसरे, बाला बच्चन को चौथे और गोविन्द सिंह राजपूत को लोगों ने पाँचवे स्थान पर रखा । अपनी तरह के इस अनोखे सर्वे को पीपुल्स समाचार के सभी एडिशन के संपादकों ने अपनी निगरानी में पूरा करवाया । इस सर्वे में तकरीबन ८० संवाददाताओं ने दस हजार लोगों से बातचीत कर इसे पूरा किया । पीपुल्स समाचार से जुड़े सूत्रों ने बताया की इस तरह के और भी कई सर्वे और किये जायेंगे |[दखल]

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Dakhal News 3 January 2011


शिवराज गाय लाये  ,करेला बाहर फेंका

विजय कुमार दास मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी इकबाल सिंह बैंस से नाराज नहीं थे और उनकी कार्यशैली उन्हें इतनी पसंद थी कि वे कभी चाहकर भी उन पर नाराजगी नहीं जताते फिर भी उन्हें मुख्यमंत्री के सचिव पद से मुक्त करने का अंतत: फैसला क्यों ले लिया यह आज राजधानी की नहीं बल्कि समूचे मध्यप्रदेश की नौकरशाही में खोज का विषय बन गया है? एक ओर विधान सभा का सत्र दूसरी और मुख्य सचिव अवनि वैश्य की बेटी का विवाह और तीसरी तरफ पुलिस महानिदेशक एस. के. राऊत के बेटे का विवाहोत्सव यूं कहें मंडप से लेकर सड़क तक चारों तरफ केवल यही चर्चा गर्म रही कि इकबाल सिंह बैंस ने आखिर मुख्यमंत्री का क्या बिगाड़ा? बिगाड़ा भले ही कुछ ना हो परंतु भारतीय जनता पार्टीं का सत्तारूढ़ राजनीतिक दंगल यह मान रहा है कि मुख्यमंत्री ने अपने इस होनहार सर्वगुण संपन्न सचिव को हटाया नहीं बल्कि अपने आपको बचाया। यूं कहा जाए कि मुख्य सचिव अवनि वैश्य ने भी अपने आपको बचाने में सफलता प्राप्त कर ली है तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। बचाने का तात्पर्य हैं बैंस की वजह से मुख्यमंत्री पर लगते रहे लगातार आरोपों से बचाव। आरोप थे कि श्री बैंस, पार्टी के विधायकों सांसदों और यहां तक कि मंत्रिमण्डल के वरिष्ठ सदस्यों के सुझावों की परवाह नहीं करते थे। इसी के चलते मुख्यमंत्री शिवराज ङ्क्षसह चौहान के कान पक गए थे। बावजूद इसके वह जानते थे कि इकबाल सिंह बैंस कही गलत नहीं है। सूत्रों के अनुसार 'आग में घी उस समय डल जाता जब मुख्य सचिव अवनि वैश्य भी कामों के रूकने और फाईलों के लटकने में श्री बैंस को दोषी ठहरा देते। बताते है कि वैश्य तो यहां तक कह देते कि 'लाजिस्टिक्स राज्य ऐसे में कहां से बना पाएंगे। मामला यहीं तक नहीं था बताया जाता है कि मुख्यमंत्री से मिलने वाले देशभर के जितने भी प्रभावशाली लोग है उन्हें पहले इकबाल सिंह बैंस को प्रभावित करना पड़ता वरना उनकी दाल नहीं गलती थी। यह बात सच है कि श्री बैंस के स्थान पर आने वाला वरिष्ठ आए.ए.एस. अधिकारी निहायत 'गाय की तरह सीधा-साधा इंसान है जबकि बैंस 'करेले की तरह व्यवहार करने में नहीं चूकते थे। श्री बैंस कहते थे सच-सच बोलो साफ-साफ मना करों, इसी में स्वास्थ्य ठीक रहता है। किसी को झुलाने से क्या फायदा-शायद इसी आचरण का उन्हें शिकार भी होना पड़ा है। सच क्या है, अंर्तकथा क्या है कोई नहीं जानता सब यही मान रहे है कि मुख्य सचिव के साथ श्री बैंस की नहीं पट रही थी इसलिये मुख्यमंत्री के पास उन्हें वहां से विदा करने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था। जबकि पार्टी के सूत्र कहते हैं चाहे श्री बैंस हो या फिर और कोई बड़ा से बड़ा नौकरशाह, वे अपने मुख्यमंत्री को कर्नाटक के 'यादुरप्पा की तरह मुख्यमंत्री और बौना आदमी नहीं बनने देंगे। सूत्रों का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान कद से आगे बहुत बड़े होने होने वाले राजनीतिज्ञ है, लेकिन नौकरशाह की इसी तरह की बाधाओं ने उन्हें दो कदम आगे बढऩे से हमेशा रोका है। ऐसे कई फैसले, जिसे मुख्यमंत्री करना चाहते थे शायद इकबाल सिंह बैंस ने नहीं करने दिया यह कह कर कि मेसेज गलत जायेगा। हो सकता है श्री बैंस सही रहे हों परंतु पार्टी का एक वर्ग इस बात को नहीं मानता। सूत्रों कहते है कि श्री बैंस को प्रशासनिक सत्ता के जिम्मेदारियों से मुक्त करने के लिये संघ का भी दबाव आया, हालांकि मुख्यमंत्री ने ऐसा कभी अहसास नहीं होने दिया। परंतु जब मुख्य सचिव और बैंस के रिश्तों में सीमा से अधिक खटास का आभास हुआ तो शायद उन्होंने यही बेहतर समझा कि सत्ता में बने रहो, लेकिन लोगों में कड़वाहट पनपे इसकी गुंजाइश बिल्कुल ना हो। इसी के चलते यह कहा जा रहा है कि बैंस को मुख्यमंत्री ने हटाया नहीं है बल्कि अपने ऊपर पार्टी के जनप्रतिनिधियों का लगातार जो आरोप लग रहा था उससे बचने के लिए एक सुगम रास्ता ढूंढा हैं, तो इसमें किसी को आश्चर्य चकित नहीं होना चाहिए। हालांकि यह भी सच है मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार अपने ही कार्यकाल में किसी मुख्यमंत्री ने अपने सचिव को विदा करने की जहमत उठाई है।[दखल ]पत्रकार विजय दास का यह लेख राष्ट्रीय हिंदी मेल से साभार इस विषय पर पत्रकार और कवि अनुराग उपाध्याय ने भी सन २००८ में कवितायेँ लिखी थी ,सुधि पाठकों के लिए उसके कुछ अंश भोले उठ काम कर।वल्लभ भवन जासोते अफसरों को जगा।.....भोले राज चला।बक बक मतकरपेड़ गिरा, पत्ते मत हिला।.....भोले राज इक "बाल" हैउसे हटासरकार की खालमत खराब करवा [दखल]

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Dakhal News 24 November 2010


शिवराज गाय लाये  ,करेला बाहर फेंका

विजय कुमार दास मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी इकबाल सिंह बैंस से नाराज नहीं थे और उनकी कार्यशैली उन्हें इतनी पसंद थी कि वे कभी चाहकर भी उन पर नाराजगी नहीं जताते फिर भी उन्हें मुख्यमंत्री के सचिव पद से मुक्त करने का अंतत: फैसला क्यों ले लिया यह आज राजधानी की नहीं बल्कि समूचे मध्यप्रदेश की नौकरशाही में खोज का विषय बन गया है? एक ओर विधान सभा का सत्र दूसरी और मुख्य सचिव अवनि वैश्य की बेटी का विवाह और तीसरी तरफ पुलिस महानिदेशक एस. के. राऊत के बेटे का विवाहोत्सव यूं कहें मंडप से लेकर सड़क तक चारों तरफ केवल यही चर्चा गर्म रही कि इकबाल सिंह बैंस ने आखिर मुख्यमंत्री का क्या बिगाड़ा? बिगाड़ा भले ही कुछ ना हो परंतु भारतीय जनता पार्टीं का सत्तारूढ़ राजनीतिक दंगल यह मान रहा है कि मुख्यमंत्री ने अपने इस होनहार सर्वगुण संपन्न सचिव को हटाया नहीं बल्कि अपने आपको बचाया। यूं कहा जाए कि मुख्य सचिव अवनि वैश्य ने भी अपने आपको बचाने में सफलता प्राप्त कर ली है तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। बचाने का तात्पर्य हैं बैंस की वजह से मुख्यमंत्री पर लगते रहे लगातार आरोपों से बचाव। आरोप थे कि श्री बैंस, पार्टी के विधायकों सांसदों और यहां तक कि मंत्रिमण्डल के वरिष्ठ सदस्यों के सुझावों की परवाह नहीं करते थे। इसी के चलते मुख्यमंत्री शिवराज ङ्क्षसह चौहान के कान पक गए थे। बावजूद इसके वह जानते थे कि इकबाल सिंह बैंस कही गलत नहीं है। सूत्रों के अनुसार 'आग में घी उस समय डल जाता जब मुख्य सचिव अवनि वैश्य भी कामों के रूकने और फाईलों के लटकने में श्री बैंस को दोषी ठहरा देते। बताते है कि वैश्य तो यहां तक कह देते कि 'लाजिस्टिक्स राज्य ऐसे में कहां से बना पाएंगे। मामला यहीं तक नहीं था बताया जाता है कि मुख्यमंत्री से मिलने वाले देशभर के जितने भी प्रभावशाली लोग है उन्हें पहले इकबाल सिंह बैंस को प्रभावित करना पड़ता वरना उनकी दाल नहीं गलती थी। यह बात सच है कि श्री बैंस के स्थान पर आने वाला वरिष्ठ आए.ए.एस. अधिकारी निहायत 'गाय की तरह सीधा-साधा इंसान है जबकि बैंस 'करेले की तरह व्यवहार करने में नहीं चूकते थे। श्री बैंस कहते थे सच-सच बोलो साफ-साफ मना करों, इसी में स्वास्थ्य ठीक रहता है। किसी को झुलाने से क्या फायदा-शायद इसी आचरण का उन्हें शिकार भी होना पड़ा है। सच क्या है, अंर्तकथा क्या है कोई नहीं जानता सब यही मान रहे है कि मुख्य सचिव के साथ श्री बैंस की नहीं पट रही थी इसलिये मुख्यमंत्री के पास उन्हें वहां से विदा करने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था। जबकि पार्टी के सूत्र कहते हैं चाहे श्री बैंस हो या फिर और कोई बड़ा से बड़ा नौकरशाह, वे अपने मुख्यमंत्री को कर्नाटक के 'यादुरप्पा की तरह मुख्यमंत्री और बौना आदमी नहीं बनने देंगे। सूत्रों का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान कद से आगे बहुत बड़े होने होने वाले राजनीतिज्ञ है, लेकिन नौकरशाह की इसी तरह की बाधाओं ने उन्हें दो कदम आगे बढऩे से हमेशा रोका है। ऐसे कई फैसले, जिसे मुख्यमंत्री करना चाहते थे शायद इकबाल सिंह बैंस ने नहीं करने दिया यह कह कर कि मेसेज गलत जायेगा। हो सकता है श्री बैंस सही रहे हों परंतु पार्टी का एक वर्ग इस बात को नहीं मानता। सूत्रों कहते है कि श्री बैंस को प्रशासनिक सत्ता के जिम्मेदारियों से मुक्त करने के लिये संघ का भी दबाव आया, हालांकि मुख्यमंत्री ने ऐसा कभी अहसास नहीं होने दिया। परंतु जब मुख्य सचिव और बैंस के रिश्तों में सीमा से अधिक खटास का आभास हुआ तो शायद उन्होंने यही बेहतर समझा कि सत्ता में बने रहो, लेकिन लोगों में कड़वाहट पनपे इसकी गुंजाइश बिल्कुल ना हो। इसी के चलते यह कहा जा रहा है कि बैंस को मुख्यमंत्री ने हटाया नहीं है बल्कि अपने ऊपर पार्टी के जनप्रतिनिधियों का लगातार जो आरोप लग रहा था उससे बचने के लिए एक सुगम रास्ता ढूंढा हैं, तो इसमें किसी को आश्चर्य चकित नहीं होना चाहिए। हालांकि यह भी सच है मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार अपने ही कार्यकाल में किसी मुख्यमंत्री ने अपने सचिव को विदा करने की जहमत उठाई है।[दखल ]पत्रकार विजय दास का यह लेख राष्ट्रीय हिंदी मेल से साभार इस विषय पर पत्रकार और कवि अनुराग उपाध्याय ने भी सन २००८ में कवितायेँ लिखी थी ,सुधि पाठकों के लिए उसके कुछ अंश भोले उठ काम कर।वल्लभ भवन जासोते अफसरों को जगा।.....भोले राज चला।बक बक मतकरपेड़ गिरा, पत्ते मत हिला।.....भोले राज इक "बाल" हैउसे हटासरकार की खालमत खराब करवा [दखल]

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Dakhal News 24 November 2010


मत चूके चौहान

धनंजय प्रताप सिंह मामला भ्रष्टाचार, अनुशासनहीनता, अपराधीकरण अथवा चाल, चरित्र-चेहरे का हो, ऐसे सभी मुद्दों पर राजनेताओं में हो रहे अवमूल्यन पर आम लोगों का टका सा जवाब होता हैं कि जैसी कांग्रेस वैसी भाजपा | पार्टी विथ डिफ़रेंस के लिए जो पार्टी पहचानी जाती थी, उस भाजपा ने भी स्वीकार कर लिया सत्ता-संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे नेताओं, मंत्रियों के आचरण से पार्टी कि छवि को खासा नुकसान उठाना पड़ा हैं | यह मामला कुछ दिनों पहले दिल्ली में हुई राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ की बैठक में भी सामने आया | पार्टी सुप्रीमो नितिन गडकरी और अनंत कुमार दोनों उस बैठक में मौजूद थे | इसी बैठक में तय किया गया कि अब भाजपा अपनी छवि से समझौता नहीं करेंगी | इस बैठक के फैसलों का सबसे पहला टारगेट मध्यप्रदेश बना हैं | जहां प्रदेश कार्य समिति की बैठक में अनंत और गडकरी दोनों आये और पार्टी के शुद्धिकरण की शुरुआत करने की बात कही | पहले दिन अनंत ने कहा दागियों-बागियों को बहार करों, गडकरी ने भी दूसरे दिन उस पर मुहर लगा दी कि पार्टी अब साख से समझौता नहीं करेगी |दरसल दोनों दिग्गजों ने यह सीख संघ के दबाव में दी है| दोनों ने ही स्पष्ट कर दिया कि भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था के मामलों में जिन मंत्रियों के कारण सरकार और संगठन कि छवि ख़राब हो रही हैं, उनके बारे में फैसला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लेंगे | इसका आशय स्पष्ट हैं कि अब मुख्यमंत्री भी संघ या हाईकमान का बहाना करके किसी दागी को बचा नहीं पाएंगे | दरसल अब पार्टी, संघ और हाईकमान ने गेंद शिवराज के पाले में डाल दी हैं कि वाही फैसला करें | अब शिवराज को चाहिए कि दागियों का फैसला लेते समय ध्यान रखें कि किन मंत्रियों के आचरण, कार्यसंस्कृति, भ्रष्टाचार के कारण सामाज में गलत संदेश जा रहा हैं |ऐसा न हो भ्रष्ट, ताकतवर मंत्री अपनी ताकत या प्रभाव का इस्तेमाल बन कर फिर बच जाएं | ब्यूरोक्रेसी के भ्रष्टाचार के मामले में मापदंड अलग हैं | ऐसा न हो | यहाँ यह भी जरुरी हैं कि फैसला भी जल्दी हो जाए अन्यथा शिमला कि चिंतन बैठक की तरह ही इस बार की कवायद भी सिर्फ कोरी घोषणा साबित न हो | गडकरी ने एक बात और कही कि भाजपा अब ऐसे प्रशिक्षित कार्यकर्त्ता तैयार करेगी जो विचारधारा के लिए प्रतिबद्ध हों, संगठन के लिए समर्पित हो, पार्टी कि कार्यशैली को स्वीकार करें, अनुशासित और इमानदार हों, जरुरी यह हैं कि संघ की तर्ज पर ऐसे प्रशिक्षण सबसे पहले संगठन और सरकार के महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठे नेताओं को दिए जाए, ताकि भाजपा और अन्य दलों के बीच अंतर दिखलाई पड़े | मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चाहिए कि वे दागियों-बागियों का फैसला जल्द करें| यदि ऐसा हुआ तो रतलाम दस्तावेज भाजपा कि नई यात्रा के लिए ऐतिहासिक साबित होंगे | शिवराज के दागी-बागी और भ्रष्ट मंत्रियों ने सरकार के चेहरे पर कालिख पोतने में कोई कसर नहीं छोड़ी | जब 'पत्रिका' ने इनके चेहरे बेनकाब किए तो इन्होने अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल कर लोकतंत्र के चौथे खंभे कि आवाज दबाने कि भी कोशिश कि, लेकिन उनकी ये कोशिश कामयाब न हो सकी | अब शिवराज के पास वक्त भी हैं और मौका भी | जरूरत हैं इस मौके को किसी ठोस और सही फैसले में तब्दील का बीजेपी को वाकई पार्टी विथ डिफ़रेंस बनाने का | यदि शिवराज ने मत चूके चौहान कि तर्ज पर काम किया तो इसका असर अकेले पार्टी पर नहीं बल्कि पूरे प्रदेश पर पड़ेगा | (दखल) (पत्रकार धनंजय प्रताप सिंह की यह टिप्पणी पत्रिका से साभार |)

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Dakhal News 3 July 2010


शिवराज की संकटमोचक ऐश्वर्या राय

गौरव चतुर्वेदी मध्यप्रदेश सरकार पर होते चौतरफा हमले और मंत्रियों की कारगुजारी ऐसे अवसरों पर अचानक संसदीय कार्य एवं विधि-विधायी मंत्री नरोत्तम मिश्रा सामने आते हैं और पूरी बाजी को पलट देते हैं । मामला विपक्ष का विधायक रहते हुए जनता के मुद्दे उठाकर सरकार को घेरने का रहा हो या फिर सदन में संसदीय परंपराओं के साथ सरकार की बात रखने का । दोनों ही अवसरों पर अपनी भूमिका को ईमानदारी के साथ निभाते आए हैं नरोत्तम मिश्रा । सुन्दरता को लेकर तो कई बार विपक्ष के विधायक भी नरोत्तम मिश्रा को ऐश्वर्या राय कहने से नहीं चूके हैं । साल भर पहले ऐसा राजनीतिक संघर्ष भी धैर्य के साथ किया कि धीरे-धीरे आज सरकार के संकटमोचक और सरकारी प्रवक्ता की हैसियत को पा गए । ० हाल ही में सरकार ने आपको प्रवक्ता के पद से नवाजा है । सरकार की छवि को आमजन में बेहतर बनाने के लिए क्या प्रयास करेंगे ? जो भी अच्छे प्रयास हो सकते हैं वो सारे प्रयास करेंगे । सरकार की योजनाओं का लाभ गरीबों को मिल सके और सरकार के बारे में कोई भ्रम न फैले, ऐसे प्रयास प्राथमिकता के साथ करेंगे ।० क्या कारण है कि म.प्र. विधानसभा की मर्यादा निरंतन भंग हो रही है ? संसदीय कार्यमंत्री होने के नाते आप क्या महसूस करते हैं ? यह बात गलत है । म.प्र. विधानसभा की मर्यादा कहीं भी भंग नहीं हो रही है । सदन की वैभवशाली और गौरवशाली परम्परा है, जिसे किसी भी कीमत पर भंग नहीं होने देंगे । इस परम्परा को जीवित रखने के लिए प्राण-पण से जुटेंगे । विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी भी इस परंपरा को जीवित रखने के लिए चिंतित रहते हैं । हम इसको कायम रखेंगे । ० एक वर्ग विशेष ने विधानसभा की कार्यवाही के सीधे प्रसारण की बहस को जन्म दिया है, आपकी क्या प्रतिक्रिया है ? इस बारे में विधानसभा अध्यक्ष का बयान आ चुका है । अंतिम फैसला उन्हीं को करना है । मैं इस मामले में अपनी भूमिका को आंशिक रूप से पाता हूँ और अपने आपको सहमत पाता हूँ ।० सत्ता और संगठन के समन्वय में आपकी क्या भूमिका होगी ? अन्य दलों में सरकार संगठन को चलाता है, हमारे यहाँ संगठन सरकार को चलाता है । भारतीय जनता पार्टी और सरकार के बीच पूर्ण समन्वय हैं । यहाँ यह हो ही नहीं सकता । आपको कोई भ्रम है जिसे आप स्वयं दूर करें ।० क्या कारण है कि सरकार के मंत्रियों की छवि खराब हो रही है ? क्या कठोर कदम उठाए जाना चाहिए ? ऐसा कुछ नहीं है । आरोप कोई भी लगा सकता है, लेकिन आरोप तथ्यपूर्ण हों तो कछ कहा भी जाए । बिना प्रमाणों के आरोप लगाने की क्या तुक है । इसलिए इस पर किसी भी तरह के कदम उठाए जाने की आवश्यकता नहीं है । ० सरकार के संकटमोचक के तौर पर आपका नाम लिया जा रहा है, कई अवसरों पर आपने अपनी काबिलियत का प्रदर्शन भी किया है, इसे लेकर आप क्या मानते हैं ? सरकार का संकटमोचक नहीं, टीम के खिलाड़ी की हैसियत से काम करता हूँ। इस बात को ध्येय मानते हुए कि टीम का कैप्टन खिलाड़ी को जहाँ खड़ा करे वहाँ उसे अच्छा प्रदर्शन करना चाहिए । मेरी भूमिका कैप्टन ने तय की थी । मेरा काम सिर्फ उस भूमिका को ईमानदारीपूर्वक निर्वाह करना था, जो मैने किया । ० एक समय था जब पार्टी आपकी उपयोगिता को लेकर कोई निर्णय नहीं कर पा रही थी । आप कैसा महसूस करते थे ? आज की स्थिति क्या उसी संघर्ष का परिणाम नहीं है ? मैने अभी कहा था कि खिलाड़ी की भूमिका कैप्टन तय करता है वो हमारे बारे में ज्यादा अच्छे से सोचते हैं । बनिबस्त इसके कि कई बार हम स्वयं के बारे में ज्यादा सोच लेते हैं । कैप्टन का काम सबके बारे में सोचने का और निर्णय लेने का है । उन्हें जब मेरी उपयोगिता नजर आई तो उन्होंने उसका बेहतर उपयोग किया । ० म.प्र. में जब भारतीय जनता पार्टी विपक्ष की भूमिका में थी तब आपका नाम ÷हल्का ब्रिगेड' में शामिल था । आज आप संसदीय कार्यमंत्री हैं, दोनों स्थिति में रहते हुए आपके क्या अनुभव रहे और आप किस भूमिका के साथ न्याय कर पाय हैं ? जब विपक्ष की भूमिका भी तब विपक्ष के विधायक की हैसियत से जनता के मुद्दों को उठाया । अब संसदीय कार्यमंत्री हूँ । अपने-अपने स्थानों पर दोनों ही जगह मैने ईमानदारी के साथ सौंपे गए दायित्व का निर्वहन किया है । ० एक समय आपके राजनीति में प्रवेश को लेकर आपके परिवारजन भी नाराज थे। आज क्या स्थिति है, क्या राजनीति को लेकर आपके परिवारजनों के नजरिये में बदलाव आया है ? यह जानकारी गलत है कि मेरा परिवार राजनीति से नाराज था । मेरा परिवार पूर्णरूप से राजनीतिक रहा है । मेरे ताऊजी म.प्र. में विधायक रहे हैं, मंत्री रहे हैं । मेरे व्यक्तिकत राजनीति में सक्रिय रहने को लेकर भी कोई नाराजगी नहीं थी । (दखल)

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Dakhal News 22 June 2010


शिवराज की संकटमोचक ऐश्वर्या राय

गौरव चतुर्वेदी मध्यप्रदेश सरकार पर होते चौतरफा हमले और मंत्रियों की कारगुजारी ऐसे अवसरों पर अचानक संसदीय कार्य एवं विधि-विधायी मंत्री नरोत्तम मिश्रा सामने आते हैं और पूरी बाजी को पलट देते हैं । मामला विपक्ष का विधायक रहते हुए जनता के मुद्दे उठाकर सरकार को घेरने का रहा हो या फिर सदन में संसदीय परंपराओं के साथ सरकार की बात रखने का । दोनों ही अवसरों पर अपनी भूमिका को ईमानदारी के साथ निभाते आए हैं नरोत्तम मिश्रा । सुन्दरता को लेकर तो कई बार विपक्ष के विधायक भी नरोत्तम मिश्रा को ऐश्वर्या राय कहने से नहीं चूके हैं । साल भर पहले ऐसा राजनीतिक संघर्ष भी धैर्य के साथ किया कि धीरे-धीरे आज सरकार के संकटमोचक और सरकारी प्रवक्ता की हैसियत को पा गए । ० हाल ही में सरकार ने आपको प्रवक्ता के पद से नवाजा है । सरकार की छवि को आमजन में बेहतर बनाने के लिए क्या प्रयास करेंगे ? जो भी अच्छे प्रयास हो सकते हैं वो सारे प्रयास करेंगे । सरकार की योजनाओं का लाभ गरीबों को मिल सके और सरकार के बारे में कोई भ्रम न फैले, ऐसे प्रयास प्राथमिकता के साथ करेंगे ।० क्या कारण है कि म.प्र. विधानसभा की मर्यादा निरंतन भंग हो रही है ? संसदीय कार्यमंत्री होने के नाते आप क्या महसूस करते हैं ? यह बात गलत है । म.प्र. विधानसभा की मर्यादा कहीं भी भंग नहीं हो रही है । सदन की वैभवशाली और गौरवशाली परम्परा है, जिसे किसी भी कीमत पर भंग नहीं होने देंगे । इस परम्परा को जीवित रखने के लिए प्राण-पण से जुटेंगे । विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी भी इस परंपरा को जीवित रखने के लिए चिंतित रहते हैं । हम इसको कायम रखेंगे । ० एक वर्ग विशेष ने विधानसभा की कार्यवाही के सीधे प्रसारण की बहस को जन्म दिया है, आपकी क्या प्रतिक्रिया है ? इस बारे में विधानसभा अध्यक्ष का बयान आ चुका है । अंतिम फैसला उन्हीं को करना है । मैं इस मामले में अपनी भूमिका को आंशिक रूप से पाता हूँ और अपने आपको सहमत पाता हूँ ।० सत्ता और संगठन के समन्वय में आपकी क्या भूमिका होगी ? अन्य दलों में सरकार संगठन को चलाता है, हमारे यहाँ संगठन सरकार को चलाता है । भारतीय जनता पार्टी और सरकार के बीच पूर्ण समन्वय हैं । यहाँ यह हो ही नहीं सकता । आपको कोई भ्रम है जिसे आप स्वयं दूर करें ।० क्या कारण है कि सरकार के मंत्रियों की छवि खराब हो रही है ? क्या कठोर कदम उठाए जाना चाहिए ? ऐसा कुछ नहीं है । आरोप कोई भी लगा सकता है, लेकिन आरोप तथ्यपूर्ण हों तो कछ कहा भी जाए । बिना प्रमाणों के आरोप लगाने की क्या तुक है । इसलिए इस पर किसी भी तरह के कदम उठाए जाने की आवश्यकता नहीं है । ० सरकार के संकटमोचक के तौर पर आपका नाम लिया जा रहा है, कई अवसरों पर आपने अपनी काबिलियत का प्रदर्शन भी किया है, इसे लेकर आप क्या मानते हैं ? सरकार का संकटमोचक नहीं, टीम के खिलाड़ी की हैसियत से काम करता हूँ। इस बात को ध्येय मानते हुए कि टीम का कैप्टन खिलाड़ी को जहाँ खड़ा करे वहाँ उसे अच्छा प्रदर्शन करना चाहिए । मेरी भूमिका कैप्टन ने तय की थी । मेरा काम सिर्फ उस भूमिका को ईमानदारीपूर्वक निर्वाह करना था, जो मैने किया । ० एक समय था जब पार्टी आपकी उपयोगिता को लेकर कोई निर्णय नहीं कर पा रही थी । आप कैसा महसूस करते थे ? आज की स्थिति क्या उसी संघर्ष का परिणाम नहीं है ? मैने अभी कहा था कि खिलाड़ी की भूमिका कैप्टन तय करता है वो हमारे बारे में ज्यादा अच्छे से सोचते हैं । बनिबस्त इसके कि कई बार हम स्वयं के बारे में ज्यादा सोच लेते हैं । कैप्टन का काम सबके बारे में सोचने का और निर्णय लेने का है । उन्हें जब मेरी उपयोगिता नजर आई तो उन्होंने उसका बेहतर उपयोग किया । ० म.प्र. में जब भारतीय जनता पार्टी विपक्ष की भूमिका में थी तब आपका नाम ÷हल्का ब्रिगेड' में शामिल था । आज आप संसदीय कार्यमंत्री हैं, दोनों स्थिति में रहते हुए आपके क्या अनुभव रहे और आप किस भूमिका के साथ न्याय कर पाय हैं ? जब विपक्ष की भूमिका भी तब विपक्ष के विधायक की हैसियत से जनता के मुद्दों को उठाया । अब संसदीय कार्यमंत्री हूँ । अपने-अपने स्थानों पर दोनों ही जगह मैने ईमानदारी के साथ सौंपे गए दायित्व का निर्वहन किया है । ० एक समय आपके राजनीति में प्रवेश को लेकर आपके परिवारजन भी नाराज थे। आज क्या स्थिति है, क्या राजनीति को लेकर आपके परिवारजनों के नजरिये में बदलाव आया है ? यह जानकारी गलत है कि मेरा परिवार राजनीति से नाराज था । मेरा परिवार पूर्णरूप से राजनीतिक रहा है । मेरे ताऊजी म.प्र. में विधायक रहे हैं, मंत्री रहे हैं । मेरे व्यक्तिकत राजनीति में सक्रिय रहने को लेकर भी कोई नाराजगी नहीं थी । (दखल)

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Dakhal News 22 June 2010


शिवराज अच्छे मुख्यमंत्रियों में तीसरे नंबर पर

मध्यप्रदेश में हो रहे विकास कार्यो की गति और ठीक-ठाक ढंग से शासन चलाने वाले मुख्यमंत्रियों में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह तीसरे नंबर पर रहे हैं । जी.एफ. के मोड़ और एन.डी.टी.पी. ने देश के १८ राज्यों में ३४ हजार २७७ लोगों के बीच सेम्पल सर्वे किया । इस सर्वे में सामने आया कि शिवराज ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने अपने प्रदेश में कम से कम समय में बेहतर काम किया है । इस सर्वे में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को पहले, उड़ीसा के मुख्यमंत्री को दूसरे और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज को तीसरा स्थान दिया गया है । सर्वे में कहा गया है कि शिवराज ने अपने राज्य में विकास को सुनियोजित स्वरूप दिया है और उसे परिणाम मूलक बनाया है । शिवराज सिंह को इस सेम्पल सर्वे में ७७ फीसदी लोगों ने बेहतर मुख्यमंत्री माना है । (दखल)

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Dakhal News 21 May 2010


शिवराज अच्छे मुख्यमंत्रियों में तीसरे नंबर पर

मध्यप्रदेश में हो रहे विकास कार्यो की गति और ठीक-ठाक ढंग से शासन चलाने वाले मुख्यमंत्रियों में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह तीसरे नंबर पर रहे हैं । जी.एफ. के मोड़ और एन.डी.टी.पी. ने देश के १८ राज्यों में ३४ हजार २७७ लोगों के बीच सेम्पल सर्वे किया । इस सर्वे में सामने आया कि शिवराज ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने अपने प्रदेश में कम से कम समय में बेहतर काम किया है । इस सर्वे में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को पहले, उड़ीसा के मुख्यमंत्री को दूसरे और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज को तीसरा स्थान दिया गया है । सर्वे में कहा गया है कि शिवराज ने अपने राज्य में विकास को सुनियोजित स्वरूप दिया है और उसे परिणाम मूलक बनाया है । शिवराज सिंह को इस सेम्पल सर्वे में ७७ फीसदी लोगों ने बेहतर मुख्यमंत्री माना है । (दखल)

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Dakhal News 21 May 2010


ज़रा देखें मुख्यमंत्री जी किसके पास है आपका पी आर...

प्रवीण दुबे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ जितनी ख़बरें टी वी पर आती हैं उतनी किसी भी राज्य के मुख्य मंत्री के खिलाफ नहीं आतीं. इसकी वजह ये नहीं है कि शिवराज सारा ही काम उलटा-पुल्टा करते हैं बल्कि वजह ये है कि एम् पी सरकार का जनसंपर्क विभाग मुख्य धारा के पत्रकारों से सरोकार ही नहीं रखता. शिवराज बहुत अच्छी छवि वाले नेता हैं लेकिन उसे तराशने वाला विभाग पूरी तरह से उदासीन है.सबसे बड़ा उदाहरण है पिछले दिनों मुख्य मंत्री शिवराज सिंग चौहान के गृह ग्राम जैत में दलितों के साथ भेदभाव की ख़बरों का . ये खबर बाहर ही नहीं आती यदि मुख्यमंत्री के अधीन काम करने वाला जनसंपर्क विभाग, जो सरकार की छवि बनाने का ही वेतन लेता है यदि थोड़ा सजग होता तो.किसी भी राज्य में सरकार के खिलाफ होने वाली गतिविधियाँ चाहे वो विरोधी दल या पार्टी के विरोधियों की ही क्यों न हो, इस पर नज़र इंटेलिजेंस रखता है. इसी तरह मीडिया सरकार के बारे में किस दिशा में सोचता है ये नज़र इंटेलिजेंस की तरह ही रखना जन संपर्क विभाग का काम है. मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग में यदि रविन्द्र पंडया,लाजपत आहूजा,रामू माकोड़े,सुरेश तिवारी और मंगला मिश्रा को छोड़ दें तो एक भी अधिकारी मुख्य धारा के पत्रकारों से संवाद ही नहीं रखते. उनके पास चंदाखोर पत्रकारों की भीड़ बैठी रहती है और कई तरह के लाभ में लगी रहती है लेकिन जो असल पत्रकार हैं उनसे संपर्क ही न्यूनतम है. ज़ाहिर है ऐसे हालात में जन संपर्क को ये पता चलने से रहा कि असल पत्रकार सरकार के खिलाफ कौन सी ख़बरें पका रहे हैं. गोर करने लायक बात ये है कि जो पत्रकार जनसंपर्क के अधिकारियों के पास चापलूसी में लगे रहते हैं उनके पास या तो दो पन्ने का अखबार है या फिर कोई चन्दा मांगने वाला टीवी. वे ना तो ख़बरों को चला सकते हैं और ना ही रुकवा सकते हैं. जैत की घटना को ही उदाहरण बतौर सामने रखिये. इंटेलिजेंस को पता था कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी जैत जा रहे हैं लेकिन जनसंपर्क विभाग को भनक भी नहीं थी कि भोपाल से कौन कौन से पत्रकार जैत जा रहे हैं इस स्टोरी को करने के लिए. जनसंपर्क विभाग ऐसी ख़बरों को बेशक छपने या दिखने से नहीं रोक सकता क्योंकि जो चंदाखोर, मुफ्तखोर पत्रकार नहीं हैं वे भला जनसंपर्क के कहने पर क्यों चलेंगे. लेकिन इतना तय है कि ऐसी ख़बरों को डायलूट करना या इसका तोड़ निकालना जनसंपर्क का ही काम था.जैसे ही ये खबर बाहर आई इसी विभाग को सलाह देना था कि.......सर पचोरी या मीडिया के पहुँचने के पहले दलितों को मंदिर में बैठा कर कोई पूजा या धार्मिक आयोजन करवा सकते हैं. जब मीडिया या पचोरी जैत पहुँचते और देखते कि मंदिर में दलित बैठे पूजा कर रहे हैं तो मीडिया के लिए खबर मर जाती और पचौरी के लिए मुद्दा...... लेकिन दिक्कत ये है कि जब विभाग के अधिकारियों को ये पता नहीं कि आज मीडिया जैत में ज़मा हो रहा है तो भला उन्हें कैसे इसका तोड़ पता होता. किसी तरह सीहोर कलेक्टर ने जाकर हालात को संभाला लेकिन तब तय तो रायता फ़ैल चुका था.ऐसा नहीं है कि जनसंपर्क विभाग का बजट बहुत कम है या उसके पास अधिकारी कम है..पूरा भरा हुआ अमला है जो चाटुकारों से घिरा हुआ है. हर साल का बजट देखिये पत्रकारों के नाम पर समितियों में चहेतों को रखकर उन्हें करोड़ों रूपये काम देकर ये अधिकारी सरकार को कागजों में इत्मीनान कराते रहते हैं कि उनका पत्रकारों से जीवंत संपर्क है जबकि देखा जाए तो अंगुली में गिने जाने लायक मुख्य धारा के प्रिंट और टीवी के पत्रकार हैं जो वाकई वेतनभोगी पत्रकार हैं सरकारी सुविधा भोगी नहीं, उन तक विभाग की पहुँच ही नहीं है.होना ये चाहिए कि जनसंपर्क के किसी न अधिकारी की रोज़ पत्रकारों से बातचीत होती रहे ताकि पता चलता रहे कि क्या पक रहा है मीडिया में लेकिन जनसंपर्क वाले सिर्फ उन्हें ही पत्रकार मानते हैं जो या तो दलाली करते हो या चिरोरी.ज़ाहिर है ऐसे व्यक्ति से मीडिया की सोच का भला क्या ख़ाक पता चलेगा? इस क्रम में बेशक पंडया जी और मंगला मिश्रा की सोच अपने काम के प्रति समर्पित दिखती है क्योंकि वे मुख्यमंत्री और सरकार के खिलाफ चल रही मीडिया के कदमताल को बखूबी भांप लेते हैं. नए जनसंपर्क आयुक्त को समझना चाहिए कि उनके विभाग में दरअसल हो क्या रहा है.....मुख्यमंत्री को भी इस विभाग के समीक्षा समय समय पर करते रहना चाहिए कि ये विभाग वाकई अपने काम में इमानदार है भी या नहीं. उन्हें पता चल जाएगा कि कमीसन वाली डोक्युमेंट्री बनवाने के अलावा विभाग ने कब सरकार की ढाल बनने की कोशिश की है. जिक्र बेशक जनसंपर्क विभाग के न्यूज़ सेक्सन का भी होना चाहिए, इस शाखा को भी ख़बरों से जुड़े मसलों पर मुख्य धारा के पत्रकारों से संवाद रखना चाहिए. सरकार का दुर्भाग्य ही है कि जनसंपर्क विभाग के फोन अक्सर इसी बात को लेकर असल पत्रकारों के पास आते हैं कि....."माननीय मुख्यमंत्री जी आज शाम को इलेक्ट्रोनिक मीडिया से इतने बजे वल्लभ भवन में या सी एम् हाउस में बात करेंगे..." यदि सिर्फ इतना ही काम जनसंपर्क विभाग का है तो मेरी तो मुफ्त की सलाह है सरकार को कि आउट सोर्सिंग करवा लीजिये. इतना मेसेज और प्रेस कोंफ्रेस तो आराम से कोई भी इवेंट मेनेजमेंट कम्पनी अरेंज कर सकती है. अकारण इतना बड़ा अमला खडा करके उस पर हर साल करोड़ों रूपये क्यूँ खर्चे जाएँ....? (दखल)(लेखक प्रवीण दुबे NEWS 24 के प्रदेश हेड हैं)

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Dakhal News 8 May 2010


ज़रा देखें मुख्यमंत्री जी किसके पास है आपका पी आर...

प्रवीण दुबे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ जितनी ख़बरें टी वी पर आती हैं उतनी किसी भी राज्य के मुख्य मंत्री के खिलाफ नहीं आतीं. इसकी वजह ये नहीं है कि शिवराज सारा ही काम उलटा-पुल्टा करते हैं बल्कि वजह ये है कि एम् पी सरकार का जनसंपर्क विभाग मुख्य धारा के पत्रकारों से सरोकार ही नहीं रखता. शिवराज बहुत अच्छी छवि वाले नेता हैं लेकिन उसे तराशने वाला विभाग पूरी तरह से उदासीन है.सबसे बड़ा उदाहरण है पिछले दिनों मुख्य मंत्री शिवराज सिंग चौहान के गृह ग्राम जैत में दलितों के साथ भेदभाव की ख़बरों का . ये खबर बाहर ही नहीं आती यदि मुख्यमंत्री के अधीन काम करने वाला जनसंपर्क विभाग, जो सरकार की छवि बनाने का ही वेतन लेता है यदि थोड़ा सजग होता तो.किसी भी राज्य में सरकार के खिलाफ होने वाली गतिविधियाँ चाहे वो विरोधी दल या पार्टी के विरोधियों की ही क्यों न हो, इस पर नज़र इंटेलिजेंस रखता है. इसी तरह मीडिया सरकार के बारे में किस दिशा में सोचता है ये नज़र इंटेलिजेंस की तरह ही रखना जन संपर्क विभाग का काम है. मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग में यदि रविन्द्र पंडया,लाजपत आहूजा,रामू माकोड़े,सुरेश तिवारी और मंगला मिश्रा को छोड़ दें तो एक भी अधिकारी मुख्य धारा के पत्रकारों से संवाद ही नहीं रखते. उनके पास चंदाखोर पत्रकारों की भीड़ बैठी रहती है और कई तरह के लाभ में लगी रहती है लेकिन जो असल पत्रकार हैं उनसे संपर्क ही न्यूनतम है. ज़ाहिर है ऐसे हालात में जन संपर्क को ये पता चलने से रहा कि असल पत्रकार सरकार के खिलाफ कौन सी ख़बरें पका रहे हैं. गोर करने लायक बात ये है कि जो पत्रकार जनसंपर्क के अधिकारियों के पास चापलूसी में लगे रहते हैं उनके पास या तो दो पन्ने का अखबार है या फिर कोई चन्दा मांगने वाला टीवी. वे ना तो ख़बरों को चला सकते हैं और ना ही रुकवा सकते हैं. जैत की घटना को ही उदाहरण बतौर सामने रखिये. इंटेलिजेंस को पता था कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी जैत जा रहे हैं लेकिन जनसंपर्क विभाग को भनक भी नहीं थी कि भोपाल से कौन कौन से पत्रकार जैत जा रहे हैं इस स्टोरी को करने के लिए. जनसंपर्क विभाग ऐसी ख़बरों को बेशक छपने या दिखने से नहीं रोक सकता क्योंकि जो चंदाखोर, मुफ्तखोर पत्रकार नहीं हैं वे भला जनसंपर्क के कहने पर क्यों चलेंगे. लेकिन इतना तय है कि ऐसी ख़बरों को डायलूट करना या इसका तोड़ निकालना जनसंपर्क का ही काम था.जैसे ही ये खबर बाहर आई इसी विभाग को सलाह देना था कि.......सर पचोरी या मीडिया के पहुँचने के पहले दलितों को मंदिर में बैठा कर कोई पूजा या धार्मिक आयोजन करवा सकते हैं. जब मीडिया या पचोरी जैत पहुँचते और देखते कि मंदिर में दलित बैठे पूजा कर रहे हैं तो मीडिया के लिए खबर मर जाती और पचौरी के लिए मुद्दा...... लेकिन दिक्कत ये है कि जब विभाग के अधिकारियों को ये पता नहीं कि आज मीडिया जैत में ज़मा हो रहा है तो भला उन्हें कैसे इसका तोड़ पता होता. किसी तरह सीहोर कलेक्टर ने जाकर हालात को संभाला लेकिन तब तय तो रायता फ़ैल चुका था.ऐसा नहीं है कि जनसंपर्क विभाग का बजट बहुत कम है या उसके पास अधिकारी कम है..पूरा भरा हुआ अमला है जो चाटुकारों से घिरा हुआ है. हर साल का बजट देखिये पत्रकारों के नाम पर समितियों में चहेतों को रखकर उन्हें करोड़ों रूपये काम देकर ये अधिकारी सरकार को कागजों में इत्मीनान कराते रहते हैं कि उनका पत्रकारों से जीवंत संपर्क है जबकि देखा जाए तो अंगुली में गिने जाने लायक मुख्य धारा के प्रिंट और टीवी के पत्रकार हैं जो वाकई वेतनभोगी पत्रकार हैं सरकारी सुविधा भोगी नहीं, उन तक विभाग की पहुँच ही नहीं है.होना ये चाहिए कि जनसंपर्क के किसी न अधिकारी की रोज़ पत्रकारों से बातचीत होती रहे ताकि पता चलता रहे कि क्या पक रहा है मीडिया में लेकिन जनसंपर्क वाले सिर्फ उन्हें ही पत्रकार मानते हैं जो या तो दलाली करते हो या चिरोरी.ज़ाहिर है ऐसे व्यक्ति से मीडिया की सोच का भला क्या ख़ाक पता चलेगा? इस क्रम में बेशक पंडया जी और मंगला मिश्रा की सोच अपने काम के प्रति समर्पित दिखती है क्योंकि वे मुख्यमंत्री और सरकार के खिलाफ चल रही मीडिया के कदमताल को बखूबी भांप लेते हैं. नए जनसंपर्क आयुक्त को समझना चाहिए कि उनके विभाग में दरअसल हो क्या रहा है.....मुख्यमंत्री को भी इस विभाग के समीक्षा समय समय पर करते रहना चाहिए कि ये विभाग वाकई अपने काम में इमानदार है भी या नहीं. उन्हें पता चल जाएगा कि कमीसन वाली डोक्युमेंट्री बनवाने के अलावा विभाग ने कब सरकार की ढाल बनने की कोशिश की है. जिक्र बेशक जनसंपर्क विभाग के न्यूज़ सेक्सन का भी होना चाहिए, इस शाखा को भी ख़बरों से जुड़े मसलों पर मुख्य धारा के पत्रकारों से संवाद रखना चाहिए. सरकार का दुर्भाग्य ही है कि जनसंपर्क विभाग के फोन अक्सर इसी बात को लेकर असल पत्रकारों के पास आते हैं कि....."माननीय मुख्यमंत्री जी आज शाम को इलेक्ट्रोनिक मीडिया से इतने बजे वल्लभ भवन में या सी एम् हाउस में बात करेंगे..." यदि सिर्फ इतना ही काम जनसंपर्क विभाग का है तो मेरी तो मुफ्त की सलाह है सरकार को कि आउट सोर्सिंग करवा लीजिये. इतना मेसेज और प्रेस कोंफ्रेस तो आराम से कोई भी इवेंट मेनेजमेंट कम्पनी अरेंज कर सकती है. अकारण इतना बड़ा अमला खडा करके उस पर हर साल करोड़ों रूपये क्यूँ खर्चे जाएँ....? (दखल)(लेखक प्रवीण दुबे NEWS 24 के प्रदेश हेड हैं)

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Dakhal News 8 May 2010


कविता, मास्टर प्लान और शिवराज

नीरज श्रीवास्तव अव्यवस्था के खिलाफ आवाज बुलंद करना पत्रकार अनुराग उपाध्याय की आदत में शुमार हैं | भोपाल के "मास्टर प्लान" में जब तमाम खामियाँ नजर आई तो वे अकेले नहीं थे तमाम लोगो ने इस पर अपना विरोध जाहिर किया | क्या लेखक , क्या पत्रकार, क्या कलाकार, क्या समाज सेवी और क्या आम आदमी | सब सरकारी मास्टर प्लान की मुखालफत कर रहे थे | लेकिन इसमें भी पत्रकार अनुराग उपाध्याय का अंदाज जुदा था | लिखने में यह कंजूस कतई नहीं हैं लेकिन जब प्रहार पूरी ताकत से करना हो तो वे खबर के अलावा कविताओं से भी सरकार पर जम कर आक्रमण करते हैं | उनके ब्लाँग पर कुछ दिन पहले जो कवितायेँ थी वह सरकार के जले पर नमक छिड़कने के लिए पर्याप्त और एक दम माकूल थी | उनका प्रिये पात्र "भोले" यहाँ भी साफ़ नजर आया | हालाँकि उन्होंने इन कविताओं को काली कविता की संज्ञा दी हैं | लेकिन यह तमाम सारे सफेदपोशों के पीछे की कालिख बयान बखूबी करती हैं | (1) भोले उठ,भाषण मत पिला !सारा शहर कर दिया है,माफियाओं ने पिलपिला !! (2)भोले,अपने कान धोले,कान का निकाल ले मैल ! जमीन माफियाओं को,मत करने दे खेल !!साबित कर तेरा इनसेनहीं है कोई मेल !!!नहीं तो अन्त में सबके लिए है इक जेल !!!!(3)भोले इधर आ, सच का कर सामना !तुझसे यही है कामना !!भोपाल को बचा,तेरा मास्टर प्लान नहीं,ये है एक सजा !!! (4)भोले,देख चहुँओर,तुझे घेरे हैं जमीनखोर !तेरी हर बकवास पर,ये कहते हैं वन्समोर-वन्समोर !!(5)भोले आ,काले और गोरे को बुला,जाँच करवा,काला, भीतर और बाहरदोनों जगह से काला है,गौरा, सिर्फ अन्दर से काला है !इन दोनों के पास जमीन हड़पने का जाला है !! (6)भोले,तेरी मण्डली चमत्कारी है !इसमें आधे भ्रष्टाचारी हैं !!तो आधे,जमीन के बलात्कारी हैं !!!(7)भोले ध्यान लगा,धुनी रमा,रतजगा करईमान वालों को बिठा !शीशमहल तुड़वा !!शहर बचा !!! (8)भोले बुच की मत सुन,खुच-पुच !यहाँ आएगा,तो दाउद इब्राहिम भी डर जाएगा !!तेरे जमीनखोरों के सामनेवो भी बौना पड़ जाएगा !!! (9)भोले मत डर,ताण्डव कर,जलजला ला !राजा भोज बन जा,भोजपाल का तालाब बचा !! (10) भोले,तू फेल, तेरी प्लानिंग फेल,वक्त रहते चेत जा !वरना बर्बाद कर देगाभोपाल को तेरा ये खेल !! इन कविताओं के जरिये सत्ता के केंद्र बिंदु बने मुख्यमंत्री को जगाने की जबरदस्त कोशिश अनुराग की हैं | इस मामले पर वे खुद कहते हैं, शिवराज सिंह एक बेहतरीन इन्सान हैं लेकिन उनकी मण्डली उनकी आड़ में काला-पीला करती हैं जिसको उजागर करना हर उस आम आदमी का काम हैं जिसके भीतर सच अभी मारा नहीं हैं | बकौल अनुराग "कई बार कविताएँ वो काम कर जाती हैं जो कई बार कई ख़बरें नहीं कर पातीं, मैं भी अब भोपाल का हूँ कुछ भ्रष्ट नेता , जमीनखोर अफसर और बिल्डर्स का गठजोड़ भोपाल को बर्बाद करे यह किसी को भी मंजूर नहीं हैं | इसलिए मुख्यमंत्री को नींद से जगाने के लिए तमाम लोगों ने प्रयास किया उन सब का सहभाग मैंने कविताओं के जरिये किया | मास्टरप्लान मसले पर जिस तरह लोगों ने अपना गुस्सा जाहिर किया वो सरकार के नकारात्मक सोच को सकारात्मक बनाने में कामयाब रहा हैं और मुख्यमंत्री शिवराज को इस पर पुनर्विचार करना पड़ा | लेकिन इस सब पर राजनैतिक दलों की बेरुखी से साफ़ जाहिर हुआ भोपाल को लूटने में वे सब एक साथ हैं |(दखल)(नीरज सवतंत्र पत्रकार हैं |

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Dakhal News 19 April 2010


कविता, मास्टर प्लान और शिवराज

नीरज श्रीवास्तव अव्यवस्था के खिलाफ आवाज बुलंद करना पत्रकार अनुराग उपाध्याय की आदत में शुमार हैं | भोपाल के "मास्टर प्लान" में जब तमाम खामियाँ नजर आई तो वे अकेले नहीं थे तमाम लोगो ने इस पर अपना विरोध जाहिर किया | क्या लेखक , क्या पत्रकार, क्या कलाकार, क्या समाज सेवी और क्या आम आदमी | सब सरकारी मास्टर प्लान की मुखालफत कर रहे थे | लेकिन इसमें भी पत्रकार अनुराग उपाध्याय का अंदाज जुदा था | लिखने में यह कंजूस कतई नहीं हैं लेकिन जब प्रहार पूरी ताकत से करना हो तो वे खबर के अलावा कविताओं से भी सरकार पर जम कर आक्रमण करते हैं | उनके ब्लाँग पर कुछ दिन पहले जो कवितायेँ थी वह सरकार के जले पर नमक छिड़कने के लिए पर्याप्त और एक दम माकूल थी | उनका प्रिये पात्र "भोले" यहाँ भी साफ़ नजर आया | हालाँकि उन्होंने इन कविताओं को काली कविता की संज्ञा दी हैं | लेकिन यह तमाम सारे सफेदपोशों के पीछे की कालिख बयान बखूबी करती हैं | (1) भोले उठ,भाषण मत पिला !सारा शहर कर दिया है,माफियाओं ने पिलपिला !! (2)भोले,अपने कान धोले,कान का निकाल ले मैल ! जमीन माफियाओं को,मत करने दे खेल !!साबित कर तेरा इनसेनहीं है कोई मेल !!!नहीं तो अन्त में सबके लिए है इक जेल !!!!(3)भोले इधर आ, सच का कर सामना !तुझसे यही है कामना !!भोपाल को बचा,तेरा मास्टर प्लान नहीं,ये है एक सजा !!! (4)भोले,देख चहुँओर,तुझे घेरे हैं जमीनखोर !तेरी हर बकवास पर,ये कहते हैं वन्समोर-वन्समोर !!(5)भोले आ,काले और गोरे को बुला,जाँच करवा,काला, भीतर और बाहरदोनों जगह से काला है,गौरा, सिर्फ अन्दर से काला है !इन दोनों के पास जमीन हड़पने का जाला है !! (6)भोले,तेरी मण्डली चमत्कारी है !इसमें आधे भ्रष्टाचारी हैं !!तो आधे,जमीन के बलात्कारी हैं !!!(7)भोले ध्यान लगा,धुनी रमा,रतजगा करईमान वालों को बिठा !शीशमहल तुड़वा !!शहर बचा !!! (8)भोले बुच की मत सुन,खुच-पुच !यहाँ आएगा,तो दाउद इब्राहिम भी डर जाएगा !!तेरे जमीनखोरों के सामनेवो भी बौना पड़ जाएगा !!! (9)भोले मत डर,ताण्डव कर,जलजला ला !राजा भोज बन जा,भोजपाल का तालाब बचा !! (10) भोले,तू फेल, तेरी प्लानिंग फेल,वक्त रहते चेत जा !वरना बर्बाद कर देगाभोपाल को तेरा ये खेल !! इन कविताओं के जरिये सत्ता के केंद्र बिंदु बने मुख्यमंत्री को जगाने की जबरदस्त कोशिश अनुराग की हैं | इस मामले पर वे खुद कहते हैं, शिवराज सिंह एक बेहतरीन इन्सान हैं लेकिन उनकी मण्डली उनकी आड़ में काला-पीला करती हैं जिसको उजागर करना हर उस आम आदमी का काम हैं जिसके भीतर सच अभी मारा नहीं हैं | बकौल अनुराग "कई बार कविताएँ वो काम कर जाती हैं जो कई बार कई ख़बरें नहीं कर पातीं, मैं भी अब भोपाल का हूँ कुछ भ्रष्ट नेता , जमीनखोर अफसर और बिल्डर्स का गठजोड़ भोपाल को बर्बाद करे यह किसी को भी मंजूर नहीं हैं | इसलिए मुख्यमंत्री को नींद से जगाने के लिए तमाम लोगों ने प्रयास किया उन सब का सहभाग मैंने कविताओं के जरिये किया | मास्टरप्लान मसले पर जिस तरह लोगों ने अपना गुस्सा जाहिर किया वो सरकार के नकारात्मक सोच को सकारात्मक बनाने में कामयाब रहा हैं और मुख्यमंत्री शिवराज को इस पर पुनर्विचार करना पड़ा | लेकिन इस सब पर राजनैतिक दलों की बेरुखी से साफ़ जाहिर हुआ भोपाल को लूटने में वे सब एक साथ हैं |(दखल)(नीरज सवतंत्र पत्रकार हैं |

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Dakhal News 19 April 2010


शत्रुघ्न ने कहा अमिताभ को बनाओ राष्ट्रपति

भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने आगरा में कहा कि महानायक अमिताभ बच्चन को भारत का राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए। यह भी कहा कि अपने प्रशंसकों और देश के लिए सुपर स्टार अमिताभ बच्चन 100 साल जिएं। यह उनके प्रशंसकों और देश के लिए जरूरी है। ताज लिटरेचर फैस्टीवल के आखिरी दिन भाजपा सांसद और फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने 11 सीढ़ी, मेहताब बाग पर अपनी आने वाली पुस्तक ‘एनीथिंग बट खामोश, द शत्रुघ्न सिन्हा बायोग्राफी’ को रिलीज किया।सांसद सिन्हा ने कहा कि बच्चों को वह न बनाएं, जो आप चाहते हैं, बल्कि वह करने दें जो वे करना चाहते हैं। वह खुद डॉक्टरी छोड़कर फिल्मी दुनिया में आए। उन्होंने बताया कि बड़े भाई लखन भैया ने इस फिल्मी सफ र के लिए मेरा बहुत सहयोग किया। इस मौके पर मंडलायुक्त प्रदीप भटनागर, हरविजय सिंह बाहिया, डा. रंजना बंसल आदि मौजूद थे। फिल्म अभिनेत्री विद्या बालन ने कविता पाठ किया।

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Dakhal News 1 March 2016


विस्थापन के नाम पर 1,700 करोड़ रुपए की लूट

बांध पीडि़तों के साथ अब तक का सबसे बड़ा फर्जीवाड़ाविनोद कुमार उपाध्यायनर्मदा नदी पर जितने भी बांध बने हैं उनके निर्माण से विस्थापितों के पुनर्वास तक में फर्जीवाड़ा सामने आता रहा है, लेकिन सरदार सरोवर बांध में विस्थापितों के पुनर्वास के नाम पर ऐसा फर्जीवाड़ा सामने आया है। इससे जबलपुर हाईकोर्ट भी अचंभित है। सरदार सरोवर परियोजना में वैसे तो हर स्तर पर भ्रष्टाचार हुआ है, लेकिन सबसे चौंकाने वाला भ्रष्टाचार रिटायर्ड जज जस्टिस एसएस झा की अध्यक्षता वाली कमेटी की रिपोर्ट में सामने आया है।1800 फर्जी रजिस्ट्रियां करीब सात साल की पड़ताल के बाद कमेटी ने अपनी रिपोर्ट जबलपुर हाईकोर्ट को सौंप दी है। विस्थापन के दौरान किस तरह से व्यापक गड़बडिय़ा की गई है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खेती की 3636 रजिस्ट्रियों में से 1800 फर्जी बताई जा रही हैं। सबसे बड़ी बात यह भी सामने आई है कि इसमें कई रसूखदार भी शामिल हैं। कई फर्जी रजिस्ट्रियां ऐसी भी साnarmada5_650_062813081457मने आई हैं जिसमें दर्शाए गए भू-खंड पर किसी रसूखदार का कब्जा है, जबकि रजिस्ट्री किसी विस्थापित के नाम पर है। अनुमान लगाया जा रहा है कि विस्थापन की आड़ में हुई फर्जी रजिस्ट्रियों का यह भ्रष्टाचार 1,700 करोड़ से अधिक का हो सकता है। चार जनवरी को सरदार सरोवर बांध विस्थापितों को फर्जी रजिस्ट्री के जरिए छले जाने के मामले की जांच के लिए गठित जस्टिस एसएस झा आयोग रिपोर्ट पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लेकर आगे की कार्रवाई सुनिश्चित करने की व्यवस्था दे दी है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अजय माणिकराव खानविलकर व जस्टिस केके त्रिवेदी की डबल बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। इस दौरान जनहित याचिका पेश करते हुए नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर ने अपना पक्ष स्वयं रखा। पाटकर कहती हैं कि हाईकोर्ट में पेश रिपोर्ट सरदार सरोवर परियोजना में हुए भ्रष्टाचार की पोल खोलेगी। रिपोर्ट में पुनर्वास के नाम पर किए गए अधिकांश कार्यों में भारी अनियमितताएं एवं घोटाला सामने आया है। इस रिपोर्ट को सात साल की जांच के बाद तैयार की गई है।4 तरह के भ्रष्टाचार की 7 साल चली जांच2008 में मामले को गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने जस्टिस एसएस झा आयोग का गठन किया था। इस आयोग ने 7 साल तक गहरी जांच के बाद 4 तरह के भ्रष्टाचार का लेखा-जोखा तैयार किया है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से कहा गया है कि किसानों को कानून के अनुसार जमीन के बदले विशेष पुनर्वास अनुदान से कितनी फर्जी रजिस्ट्री के जरिए छला गया है। इसका आंकड़ा रिपोर्ट के जरिए सामने आएगा। साथ ही इस फर्जीवाड़े के लिए जो दोषी हैं, उनके नामों का भी खुलासा होगा। राज्य शासन ने महज 686 रजिस्ट्री फर्जी मानी थीं, जबकि शेष के आगे सही का निशान लगा दिया था। जस्टिस झा आयोग की रिपोर्ट सामने आने के बाद साफ होगा कि वास्तविक आंकड़ा 3 से 4 गुना अधिक है। यही नहीं आयोग की जांच से 88 पुनर्वास स्थलों पर हुए करोड़ों रूपए के निर्माण कार्य की गुणवत्ता और खर्च के समीकरण में कितना भ्रष्टाचार और अनियमितताएं हुई हैं, यह भी स्पष्ट होगा। एक अंदाज के मुताबिक आवंटित किए गए 2300 करोड़ में से कम से कम 1000 से 1500 करोड़ रूपया शासन की तिजोरी से व्यर्थ चला गया। आयोग की रिपोर्ट सभी घपलों पर से पर्दा उठाएगी।पंजीयन विभाग के अधिकारियों से साठगांठ कर हर स्तर पर किया फर्जीवाड़ा सरदार सरोवर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है। यह नर्मदा नदी पर बना 800 मीटर ऊंचा है। नर्मदा नदी पर बनने वाले 30 बांधों में सरदार सरोवर और महेश्वर दो सबसे बड़ी बांध परियोजनाएं हैं और इनका लगातार विरोध होता रहा है। अब से करीब 55 साल पहले 5 अप्रैल 1961 को जवाहर लाल नेहरू ने इस बांध का शिलान्यास किया था। तभी से यह विवादों में है। पहले इस परियोजना से जुड़े राज्यों के बीच आपसी सहमति न बनने के कारण परियोजना रुकी रही। 1979 में मामला नर्मदा जल विवाद प्राधिकरण में पहुंचा। जहां उन राज्यों में सहमति बनीं। विश्व बैंक ने इस परियोजना के लिए धन स्वीकृत किया। यही वह कालखंड है जब स्थानीय लोगों ने नर्मदा बचाओ आंदोलन के तहत इस बांध के निर्माण का विरोध करना शुरू कर दिया था। नर्मदा बचाओ आंदोलन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में बांध निर्माण रोकने के लिए जनहित याचिका दायर की गई। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2000 में फैसला सुनाया कि बांध उतना ही बनाया जाना चाहिए, जहां तक लोगों का पुर्नस्थापन और पुनर्वास हो चुका है। बांध की ऊंचाई को लेकर समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले आते रहे हैं। दूसरी तरफ विरोध, राजनीति और सहमति का खेल चलता आ रहा है। दरअसल, इन परियोजनाओं का उद्देश्य गुजरात के सूखाग्रस्त इलाकों में पानी पहुंचाना और मध्य प्रदेश के लिए बिजली पैदा करना है लेकिन इन परियोजनाओं के निर्माण में इसके डूब प्रभावित क्षेत्र में आने वाले लोगों का पुनर्वास करना सबसे बड़ी समस्या थी। इस परियोजना के चलते गुजरात सरकार ने डूब प्रभावितों के पुनर्वास के लिए 2300 करोड़ रुपए मप्र सरकार को दिए थे। इतनी बड़ी रकम मिलते ही दलालों और अफसरों ने इसे हड़पने की तैयारी कर ली। नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर कहती हैं कि किसानों और हमारे कार्यकर्ताओं ने सूचना के अधिकार में फर्जी रजिस्ट्रियों का मामला 2005 में सामने लाए थे। तब मुख्यमंत्री को भी बताया गया लेकिन प्रदेश सरकार ने ध्यान नहीं दिया। आखिर केंद्र और केंद्रीय सतर्कता आयोग तक शिकायत करनी पड़ी। इसके बाद झा आयोग बनाया गया। अनुमान है कि विशेष पुनर्वास पैकेज और पुनर्वास स्थलों के निर्माण में 1,000 से 1,500 करोड़ से अधिक का घोटाला हुआ है। दरअसल, सरकार ने डूब प्रभावितों को जमीन के बदले जमीन देना तय किया था। देश का यह पहला प्रोजेक्ट था, जिसमें इतने बड़े पैमाने पर जमीन उपलब्ध न होने पर विस्थापितों को अपने स्तर पर ही कहीं भी जमीन खरीदने के लिए विशेष पुनर्वास पैकेज दिया था। विशेष पैकेज का पैसा हासिल करने के लिए शर्त रखी थी कि विस्थापित को खरीदी गई जमीन की रजिस्ट्री पेश करनी होगी। इस पैसे को निकालने के लिए मालवा और निमाड़ की नर्मदा घाटी में बड़े पैमाने पर दलाल खड़े हो गए। उन्होंने नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण, राजस्व और पंजीयन विभाग के अधिकारियों से साठगांठ कर हर स्तर पर फर्जीवाड़ा किया। फर्जीवाड़े की लगातार शिकायतें मिलने के बाद नर्मदा बचाओ आंदोलन ने इसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी। नर्मदा बचाओ आंदोलन की शिकायतों और तथ्यों के बाद हाईकोर्ट ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएस झा की अध्यक्षता में अक्टूबर 2008 में जांच आयोग गठित किया था। जांच आयोग ने पुनर्वास स्थलों की तकनीकी जांच मैनिट भोपाल और आईआईटी पवई के इंजीनियरों की टीम से कराई तकनीकी रिपोर्ट से पुनर्वास स्थलों की हकीकत सामने आई।जमीन की खरीदी-बिक्री में ऐसे किया गया फर्जीवाड़ाजमीन की खरीदी-बिक्री में चार स्तर पर धांधली हुई। एक ही जमीन की 5 से 10 बार रजिस्ट्री हो गई। कई मामलों में जमीन बेचने वालों के नाम भी काल्पनिक हैं। खरगोन की झिरन्या तहसील, कसरावद तहसील के भट्याण बुजुर्ग, कुंडारा गांवों में ऐसे उदाहरण हैं। खरगोन में 1312 रजिस्ट्रियां हुई जिसमें लगभग 800 रजिस्ट्री फर्जी बताई जा रही हैं। देवास जिले के बागली में 316 रजिस्ट्री हुई, इनमें 90 फीसदी रजिस्ट्रियां बोगस हैं। आलीराजपुर जिले में 65 रजिस्ट्री हुई हैं जिसमें एक रजिस्ट्री को छोड़कर सब फर्जी की श्रेणी में हैं। धार की मनावर और कुक्षी तहसील में भी कई फर्जी रजिस्ट्रियां हुई हैं। न सर्वे नंबर सही, न गांव में उस नाम का व्यक्ति है और जमीन बिक गई। धार की कुक्षी तहसील के ननोदा, कुंडारा, खंडवा इसकी बानगी हैं। बड़वानी जिले की ठीकरी तहसील के कालापानी गांव में एक ही जमीन की रजिस्ट्री 10 बार हो गई। रिकॉर्ड में विस्थापित का नाम है, जबकि कब्जा किसी और का है। पैसा निकालने के लिए रजिस्ट्रियां घर-परिवार में ही आपसी करार से हो गईं। ससुर ने दामाद को, पिता ने पुत्र को और बहन ने भाई को जमीन बेच दी बड़वानी जिले सेमल्दा, अवल्दा और धार के निसरपुर, सेमल्दा में ऐसे केस है।कई मामलों में पटवारियों ने लोगों को लोन दिलाने के नाम पर जमीन की पावती ली और उनके हस्ताक्षर करवाकर वही जमीन बेच डाली। धार जिले की धरमपुरी तहसील में देवल्दा, देदला, झिर्वी और कोठड़ा गांवों में ऐसे मामले आए कि गरीब विस्थापितों को शराब पिलाकर लोन देने के नाम पर रजिस्ट्री करवा ली। खरगोन के जामली गांव में मंदिर, सरकारी स्कूल, तालाब और सड़क के नाम की जमीनें भी बिक गईं चरनोई की भूमि भी बेच डाली। पुनर्वास स्थलों की जांच में सामने आया कि बड़वानी जिले के धनोरा गांव में रिकॉर्ड में 15 चबूतरे बनाना बताया गया, लेकिन मौके पर एक भी नहीं पाया गया एक चबूतरे की लागत 90 हजार रुपए बताई गई थी। फर्जी रजिस्ट्रियों की जांच की शुरुआत में 2007 में ही राज्य शासन और एनवीडीए ने माना था कि 686 रजिस्ट्रियां फर्जी हैं शिकायकर्ताओं ने इससे अधिक रजिस्ट्रियां फर्जी होने का दावा किया था इस मामले में पंजीयन विभाग के कुछ सब रजिस्ट्रार और पटवारियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हुई थी। जांच आयोग के अध्यक्ष एसएस झा कहते हैं कि आयोग का कार्यकाल 31 दिसंबर को समाप्त हो गया। रिपोर्ट हाईकोर्ट जबलपुर के समक्ष पेश कर दी गई है।बताया जाता है कि गुजरात सरकार से मिली रकम को हड़पने के लिए अफसरों ने सुनियोजित तरीके से फर्जीवाड़ा किया। मुआवजे का पैसा निकलवाने के लिए नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) से लेकर कलेक्टर कार्यालय, पंजीयन विभाग में कई दलाल खड़े हो गए। इसमें बड़े पैमाने पर अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत भी रही। ये फर्जीवाड़ा बड़वानी, धार, खरगोन, खंडवा, आलीराजपुर, झाबुआ और देवास जिलों में हुआ। एक ही जमीन की चार-पांच बार रजिस्ट्री हो गई। कई काल्पनिक रजिस्ट्रियां हो गईं जिनके सर्वे नंबर ही नहीं थे। अधिकारियों की मिलीभगत से कई अपात्रों को भी मुआवजा मिल गया, जबकि हजारों वास्तविक प्रभावित आज भी पुनर्वास के लिए भटक रहे हैं। मेधा पाटकर का कहना है कि अफसरों ने न केवल भ्रष्टाचार किया है बल्कि लोगों के साथ धोखाधड़ी और छल भी किया है। 55 गांवों सहित धरमपुरी शहर को भी डूब से बाहर करने का खेल किया गया, लेकिन इसे पर्यावरण विभाग द्वारा नकारने के बाद लोगों को राहत मिली है।तंगहाली में काम करता रहा आयोगआपको जानकर आश्चर्य होगा कि विस्थापन में हुए फर्जीवाड़े की जांच करने वाले झा आयोग को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। अंतिम दौर में तो आयोग को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा। आलम यह रहा कि मध्यप्रदेश सरकार ने दो-तीन माह से आयोग के खर्चों का भुगतान नहीं किया। इस कारण आयोग के कार्यालय का किराया नहीं दिया जा सका। यहां तक कि रिपोर्ट तैयार करने के लिए स्टेशनरी खरीदने की भी दिक्कत आ गई थी। इसे लेकर आयोग ने जबलपुर हाईकोर्ट के प्रिंसिपल रजिस्ट्रार को भी पत्र लिखा था। आयोग के सचिव की ओर से लिखे पत्र में बताया गया था कि प्रदेश शासन ने कार्यालयीन खर्चों के बिलों पर रोक लगा दी है। टेलीफोन कनेक्शन भी कट गए। बिजली बिल भी नहीं भरा जा सका। अतिरिक्त बजट उपलब्ध कराने के लिए हाईकोर्ट के माध्यम से शासन को भी लिखा गया। दरअसल, हाई कोर्ट के आदेश पर ही सरकार को जांच आयोग बनाना पड़ा। आयोग का कार्यकाल अक्टूबर 2015 में पूरा हो गया था, लेकिन रिपोर्ट तैयार करने में लगने वाले समय के कारण दो माह का अतिरिक्त समय दिया गया था। झा आयोग के सचिव बीपी शर्मा कहते हैं कि करीब तीन माह से आयोग के कार्यालय का किराया, बिजली का बिल नहीं दे पाए। बिल न चुकाने पर तीन-चार बार टेलीफोन भी कट गए। स्टेशनरी का पैसा भी नहीं रहा। आयोग ने अपनी समस्याओं के बारे में हाई कोर्ट को लिखा था। तब जाकर राज्य शासन ने पैसा मंजूर किया। मेधा पाटकर कहती हैं कि शुरू से ही आयोग को सरकार की ओर से सहयोग नहीं किया गया। अब हम चाहते हैं आयोग की अनुशंसाओं पर सरकार कार्रवाई करे।अभी भी हजारों देख रहे विस्थापन का रास्ता…करोड़ों रुपए के घपले-घोटाले की वजह से विस्थापितों का दर्द 31 साल के संघर्ष के बाद भी दूर नहीं हुआ है। कई विस्थापित अब भी पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं। कुछ जगहों पर कागजी खानापूर्ति कर ली गई, लेकिन जमीनी हकीकत तो यह है कि विस्थापन तो हुआ, लेकिन पुनर्वास नहीं। गरीब जनता के हकों को मारा गया। अब जनता तिल-तिल कर सरकार को कोस रही है, लेकिन सरकार के पास अपने दावों को साबित करने के लिए अपने सबूत हैं। इसी से मामला उलझा है।नर्मदा बचाओ आंदोलन का कहना है कि एक ओर राज्य सरकार द्वारा बार-बार यह कहा जा रहा है कि सरदार सरोवर परियोजना के डूब क्षेत्र में संपूर्ण पुनर्वास हो चुका है और जीरो बेलेंस है। वहीं दूसरी ओर वास्तविता यह है कि हजारों लोग विस्थापन का रास्ता देख रहे हैं। धार व बड़वानी जिले के पुनर्वास स्थलों पर स्थिति बदतर है। पुनर्वास व विस्थापन पर सरकार सिर्फ भ्रम फैला रही है। सरदार सरोवर बांध निर्माण के लिए पुनर्वास के बाद सरकार अब फिर से जमीन हथियाना चाहती है। 30 परिवारों से जमीन छीन ली तथा एक हजार परिवार से जमीन लौटाने को कहा जा रहा है। जबकि 6 हजार परिवारों का अभी भी पुनर्वास नहीं किया गया है। आज भी बांध के डूब में करीब 48 हजार परिवार निवास कर रहे हैं। मप्र में ही 45 हजार परिवारों का भविष्य अंधेरे में है। यहां हजारों किसानों, आदिवासियों से खेती लायक, सिंचित जमीन का हक तथा भूमिहीनों, मछुआरों, कुम्हारों से आजीविका का हक छीनकर जीवित गांवों को डुबाया जा रहा है। वह कहती है कि बांध से मध्य प्रदेश को कोई फायदा भी नहीं हुआ। 3900 से ज्यादा परिवारों को जमीन के बदले जमीन मिलने की पात्रता है, लेकिन जमीन नहीं मिली। सरकार कोर्ट में देनदारी जीरो बताती है, पर ऐसा नहीं हुआ। 40-45 हजार लोग पुनर्वास के इंतजार में हैं। सरदार सरोवर की ऊंचाई 139 मीटर करने से मध्यप्रदेश जलसमाधि के लिए तैयार हो चुका है। पाटकर ने आरोप लगाया कि मध्यप्रदेश ने प्रदेशवासियों के हितों को ताक पर रखकर गुजरात के साथ गठजोड़ कर लिया है। गुजरात नर्मदा का पानी उद्योगों को दे रहा है। 4 लाख हैक्टेयर कृषि भूमि पर सिंचाई होनी थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।30 साल में मात्र 30 प्रतिशत नहरें ही बन पाई: सरादार सरोवर बांध में अब तक करीब 90,000 हजार करोड़ रूपए फूंके जा चुके हैं लेकिन 30 सालों में मात्र 30 प्रतिशत नहरें ही बन पाई हैं वो भी पहले से ही सिंचित क्षेत्र की खेती को उजाड़ कर बनाई जा रही है। इसलिए गुजरात के किसानों ने अपनी जमीन नहरों के लिए देने से इंकार कर दिया है। 122 मी. ऊंचाई पर 8 लाख हैक्टेयर सिंचाई का वादा था जबकि वास्तविक सिंचाई मात्र 2.5 लाख हैक्टेयर से भी कम हुई है। बांध के लाभ क्षेत्र से 4 लाख हेक्टेयर जमीन बाहर करके कंपनियों के लिए आरक्षित की गई है। पीने का पानी भी कच्छ-सौराष्ट्र को कम, गांधीनगर, अहमदाबाद, बड़ौदा शहरों को अधिक दिया जा रहा है जो कि बांध के मूल उद्देश्य में था ही नहीं। पर्यावरणीय हानिपूर्ति के कार्य अधूरे हैं और गाद, भूकंप, दलदल की समस्याएं बनी हुई है। सरदार पटेल की लोहे की बड़ी मूर्ति बनाने के बहाने बांध विस्थापित किसानों के पुनर्वास समेत सभी अन्य शर्तों को धता बताने का दौर चल गया। यह बात कोई नहीं देख पा रहा है कि जितना बांध बना है उसका भी पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है। शायद यह भारत का पहला बांध है जिसमें महाराष्ट्र और गुजरात में 11,000 परिवारों को भूमि आधारित पुनर्वास मिला है। किंतु हर कदम पर लड़ाई करने के बाद। जिस मप्र और महाराष्ट्र को मुफ्त बिजली के झूठे राजनीतिक वादे किए जा रहे हैं जो कि असलियत से कही दूर है। वहां आज भी पुनर्वास के लिए 30,000 एकड़ जमीन जरूरत है। जमीन न देने और पुनर्वास पूरा दिखाने डूब में आ रहे 55 गांवों और धरमपुरी शहर को डूब से बाहर कर दिया गया है।शर्तें अब तक पूरी हो सकी हैं साल 2000 और 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा है कि सरदार सरोवर की ऊंचाई बढ़ाने के छह महीने पहले सभी प्रभावित परिवारों को ठीक जगह और ठीक सुविधाओं के साथ बसाया जाए। मगर 8 मार्च, 2006 को ही बांध की ऊंचाई 110 मीटर से बढ़ाकर 121 मीटर के फैसले के साथ प्रभावित परिवारों की ठीक व्यवस्था की कोई सुध नही ली गई और 2014 में बांध की ऊंचाई 138.68 मीटर करने की मंजूरी मिल गई है, लेकिन विस्थापन की व्यवस्था अभी भी अधर में है। तत्कालीन मध्य प्रदेश सरकार ने भी स्वीकारा था कि वह इतने बड़े पैमाने पर लोगों का पुनर्वास नहीं कर सकती। इसीलिए 1994 को राज्य सरकार ने एक सर्वदलीय बैठक में बांध की ऊंचाई कम करने की मांग की थी ताकि होने वाले आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक और पर्यावरणीय नुकसान को कम किया जा सके। 1993 को विश्व बैंक भी इस परियोजना से हट गया था। इसी साल केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय के विशेषज्ञ दल ने अपनी रिपोर्ट में कार्य के दौरान पर्यावरण की भारी अनदेखी पर सभी का ध्यान खींचा था। इन सबके बावजूद बांध का काम जारी रहा। अगर सरदार सरोवर परियोजना में लाभ और लागत का आंकलन किया जाए तो बीते 20 सालों में यह परियोजना 42,000 करोड़ रूपए से बढ़कर करीब 70,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है।आंदोलन नहीं आया कामआज भले ही कहा जा रहा है कि नर्मदा बचाओ आंदोलन के कारण लोगों का कुछ हद तक पुनर्वास हो पाया है, लेकिन करीब 31 सालों में नर्मदा बचाओ आंदोलन बांधों के निर्माण में केवल व्यवधान उत्पन्न करने के अलावा कुछ नहीं कर पाया है। आंदोलन का नारा था कोई नहीं हटेगा, बांध नहीं बनेगा लेकिन बांध तो बने। एक, दो नहीं, सरकारी योजना के मुताबिक सारे बांध बने। और इस योजना का प्रतीक सरदार सरोवर बांध भी धड़ल्ले से बना। बाकायदा सुप्रीम कोर्ट की रजामंदी के साथ बना। यह 121 मीटर ऊंचा बन चुका है और 139 मीटर तक चढऩे वाला है। आंदोलन की तरफ से आंकड़े गिनाए जा सकते थे। मसलन यह कहा जा सकता था कि इस आंदोलन के चलते कोई 11,000 विस्थापित परिवारों को भूमि के बदले भूमि मिली। इतनी बड़ी मात्रा में जमीन पहले कभी नहीं मिली। इसी आंदोलन के चलते सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धांत को मान्यता दी कि डूब से पहले पुनर्वास अनिवार्य है। इसी सिद्धांत के सहारे आज भी विस्थापितों ने बांध की ऊंचाई बढ़ाने के विरूद्ध स्टे लिया। इस आंदोलन ने पुनर्वास के हकदार हर परिवार को सूचीबद्ध किया, जिससे पता लगा कि किनका हक मारा जा रहा है। पुनर्वास में हर कदम पर हो रहे भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ भी इसी आंदोलन ने किया। जब सरदार सरोवर बांध की योजना बनी तो अनुमानित लागत कोई 9,000 करोड़ रूपए थी। अब उससे दस गुना ज्यादा लागत का अनुमान है। इतने में गुजरात के किसानों के लिए कितने छोटे बांध बन सकते थे? वादा था कि 8 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो सकेगी लेकिन वास्तव में 2.5 लाख हेक्टेयर में भी सिंचाई का लाभ नहीं मिला। किसान के बदले सरदार सरोवर का पानी अब उद्योगों और शहरों को दिया जा रहा है। कच्छ की प्यास बुझाने की बजाय यह पानी कोका-कोला जैसी कंपनियों को बेचा जा रहा है। क्या इसलिए हजारों परिवारों, मंदिर-मस्जिदों और जंगल को डुबाया गया था?पर्यावरणीय उपायों के शर्तों का घोर उल्लंघनभारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा भारतीय वन सर्वेक्षण के पूर्व महानिदेशक डॉ. देवेन्द्र पांडेय की अध्यक्षता एवं 9 अन्य सदस्यों वाली नियुक्त की गई विशेषज्ञ समिति ने नर्मदा घाटी में अति विवादास्पद सरदार सरोवर परियोजना (एसएसपी) और इंदिरा सागर परियोजना (आईएसपी) के सुरक्षा उपायों से संबंधित सर्वेक्षण, अध्ययन व योजनाओं एवं उनके कार्यान्वयन पर मंत्रालय को अपनी दूसरी अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की है। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत हासिल हुई यह रिपोर्ट वास्तव में सरदार सरोवर परियोजना के लिए चार राज्य सरकारों, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों एवं आईएसपी के लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज पर आधारित है।रिपोर्ट में इन दो महाकाय परियोजनाओं के जलग्रहण क्षेत्र उपचार, लाभ क्षेत्र विकास, जीव, जंतुओं एवं वहन क्षमता, क्षतिपूरक वनीकरण एवं स्वास्थ्य पर पडऩे वाले असरों सहित अति महत्वपूर्ण पर्यावरणीय पहलुओं के अनुपालन पर चौंकाने वाली जानकारियां हैं। समिति के रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि परियोजना प्राधिकारों द्वारा ‘शर्तों का घोर उल्लंघन’ किया गया है। सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड (एसएसएनएनएल), गुजरात सरकार एवं नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए), मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र सरकार द्वारा शर्तों के घोर उल्लंघन की वजह से ‘पर्यावरण को अपूरणीय क्षति’ हो रही है। दोनों परियोजनाओं को पहली बार 1987 में सशर्त पर्यावरणीय मंजूरी मिलने के 28 साल बाद भी इन सबका अनुपालन नहीं हुआ है। इस तरह इनके बगैर लाभों की प्राप्ति एवं टिकाऊ प्रवाह और पर्यावरणीय लागत एवं क्षति का न्यूनीकरण संभव नहीं है।जलग्रहण क्षेत्र उपचार (कैट) के मामले में विशेषज्ञ स्मिति का निष्कर्ष है कि सरदार सरोवर परियोजना के लिए कुल 4,29,000 हैक्टेयर क्षेत्र का जलग्रहण क्षेत्र उपचार किया जाना है जबकि उसमें से सिर्फ 1,61,000 हैक्टेयर का ही उपचार हो पाया है, जो कि कुल क्षेत्र का मात्र 38 फीसदी है। सरदार सरोवर परियोजना में जलाशय का 80 फीसदी हिस्सा भर दिया गया है, जबकि संबंधित राज्यों की रिपोर्ट के अनुसार जलग्रहण क्षेत्र का उपचार केवल 45 फीसदी ही हो पाया है। इस तरह एनवीडीए ने कैट के निर्धारित शर्तों का घोर उल्लंघन किया है।लाभ क्षेत्र विकास के मामले में समिति का कहना है कि सिंचाई परियोजना मेें वर्षा आधारित क्षेत्र को सिंचित क्षेत्र में बदला जाता है। इस तरह उस जमीन में नियमित रूप से पानी आने लगता है, जबकि वह जमीन इसके अनुकूल नहीं होता है। इसलिए लाभ क्षेत्र के विकास के लिए कुछ दिशानिर्देश तय किए जाते हैं। सरदार सरोवर परियोजना के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने 1987 में, योजना आयोग ने 1988 में एवं ईएसजी की बैठकों में 1988 से 2005 के बीच अलग अलग दिशा निर्देश तय किए गए थे। इन्हीं के आधार पर लाभ क्षेत्र के विकास की योजना का क्रियान्वयन एवं सिंचाई का पर्यावरण पर पडने वाले असरों की निगरानी सुनिश्चित की जानी चाहिए। प्रारम्भ में गुजरात द्वारा 21.24 लाख हैक्टेयर को सिंचाई के लिए चुना था, जबकि राजस्थान ने 75,000 हैक्टेअर और मध्य प्रदेश में 1.23 लाख हैक्टेअर क्षेत्र को सिंचाई के लिए चुना गया था। परियोजना की मंजूरी के शर्तों के अनुसार पर्यावरणीय कार्य योजना नहर निर्माण के पहले तैयार हो जाना चाहिए और उसका क्रियान्वयन सिंचाई शुरू करने से पहले हो जाना चाहिए। लेकिन दोनों ही परियोजनाओं में किसी भी राज्य में ऐसा नहीं हुआ है।गुजरात में अब तक ड्रेनेज योजना तैयार नहीं हुआ है जबकि पहले चरण के नहर निर्माण का काम पूरा हो गया है और सन 2003 में ही अनियोजित सिंचाई का काम शुरू हो चुका है। पहले चरण में 52 ब्लॉकों में माइक्रो लेवल की योजना तैयार होनी चाहिए थी जबकि अब तक केवल 5 ब्लॉकों के लिए ही योजना तैयार हो सकी है। राजस्थान में भी पर्यावरणीय कार्य योजना को अंतिम रूप नहीं दिया गया है, जबकि नहर के निर्माण का काम लगभग पूरा हो गया है और सन 2008 से सिंचाई शुरू भी हो चुकी है। इसी तरह मध्य प्रदेश में अक्तूबर 2009 में पर्यावरणीय कार्य योजना का मसौदा तैयार हुआ है जबकि सन 2007 से ही अनियोजत सिंचाई चालू है। इस तरह स्पष्ट है कि तीनों राज्यों ने पर्यावरणीय कार्य योजना के शर्तों का उल्लंघन किया है।वन भूमि का पूरी तरह हस्तांतरणक्षतिपूरक वनीकरण के मामले में तीनो राज्यों ने शर्तों का घोर उल्लंघन किया है। सरदार सरोवर परियोजना में 13,386 हैक्टेयर वनभूमि डूब के अंतर्गत और 42 हैक्टेयर वनभूमि पुनर्वास के लिए हस्तांतरण किया गया था। जबकि इंदिरा सागर परियोजना के लिए 41,112 हैक्टेयर वनभूमि डूब के अंतर्गत हस्तांतरित हुआ। वन संरक्षण अधिनियम 1980 के अनुसार इन जमीनों के हस्तांतरण के लिए क्षतिपूरक वनीकरण कानूनी रूप से बाध्यकारी है। समिति ने पाया कि तीनों राज्यों ने वन भूमि का पूरी तरह हस्तांतरण कर लिया। गुजरात ने क्षतिपूरक वनीकरण के लिए अंतिम अधिसूचना अभी तक जारी नहीं किया है जबकि मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र ने करीब 90 प्रतिशत के लिए ही अधिसूचना जारी किया है। इसके अलावा समिति का सुझाव है कि, Óन तो एसएसपी में और न आईएसपी में आगे जलाशय को तब तक नहीं भरा जाय जब तक कि एसएसपी और आईएसपी दोनों के जलग्रहण क्षेत्र का पूरी तरह उपचार न हो जाय और जीव व जंतुओं के संरक्षण के लिए मास्टर प्लान तैयार करने एवं वन्य जीव अभयारण्य तैयार करने सहित बची हुई सारी आवश्यकताएं पूरी न हो जाएं। नहर के नेटवर्क निर्माण का काम और आगे न किया जाय और यहां तक कि मौजूदा नेटवर्क से भी सिंचाई की अनुमति तब तक न दी जाय जब तक कि जल प्रबंधन के अलावा लाभ क्षेत्र के विभिन्न पर्यावरणीय मानदंडों का पालन साथ साथ न हो।[बिच्छू डॉट कॉम से ]

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Dakhal News 20 February 2016


सबसे बड़ा डायनासोर के जीवाश्म मिले रायसेन में

रायसेन-दुनिया के बैज्ञानिक डायनासोर की खोज में लगे हुए हैं और नर्मदा बेली इनके निवास स्थान रहें हैं कलयुग की गंगा कहलाने माँ नर्मदा नदी के किनारे रहस्मय बस्तुए छुपी हुयी हैं दुनिया के बैज्ञानिक डायनासोर की खोज में लगे हैं बहीं विश्व का सवसे बड़ा डायनासोर रायसेन जिले के नर्मदा नदी के किनारे ग्राम पतई के सिद्धघाट पर मिला हैं यहाँ पर आधा दर्जन डायनासोर के जीवशम होने का दावा किया हैं तो बहीं उड़ने बाले डायनासोर के पंखे का जीवाश्म भी मिला हैं। प्राचीन मांसाहारी विशव का सबसे बड़ा डायनासोर जिसकी लम्बाई 25 फिट पाई गई है ।साथ में २ अंडे मिले है । ३ कि. मी. लम्बाई में एक दर्जन से अधिक डायनासोर ,और अधिक तादात में कंकाल फैले हैं ।सिदरा आर्कियोलाजी इन्वायमेंट एंड नर्मदा बेली के पुराताव्बेता वसीम खान और नर्मदा कालेज होशंगाबाद कि 6 सदस्यी टीम ने विशाल डायनासोर कि खोज कि हैं बही उड़ने वाले डायनासोर और उसी समय के सायकस पौधा एवं फल के जीवाश्म मिले हैं वसीम खान के अनुसार सायकस के फल डायनासोर का मुख्य भोजन था और इसी कि पतियों से अन्डो को ढक कर रखते थे पुरातत्ववेता डॉ वसीम खान के साथ होशंगबाद महाविद्यालय से आएं डॉ शाह वनस्पति शास्त्र डॉ रवि उपाध्याय जन्तुशास्त्र विशेषज्ञ सहित 6 सदस्यी टीम ने इनको चिन्हित भी किया।दुनिया के विज्ञानिक जिस की खोज में जूटे हैं बहीं यहाँ पर पड़े जीवाशमो को संरक्षित करने से मप्र सरकार कोशो दूर हैं । ईनाडु इंडिया हिंदी की टीम ने सबसे पहले इसे दिखाना चाहती हैं।नर्मदा श्रद्धालु इन्हें पत्थर समझ कर इनको घरो में जातें हैं और पत्थरो को रखकर उनपर भोजन पकाते हैं ।

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Dakhal News 4 February 2016


क्या मोदी के खास दिनेश शर्मा की किस्मत बदलेगी  ?

उत्तर प्रदेश की सियासत में ब्राह्मण और मुसलमान इस बार नई सरकार बनाने में मुख्य सूत्रधार होंगे. इसे अब सभी दल समझने लगे हैं. अब चलिए शुरूआत करते हैं बीएसपी मुखिया मायावती से.तिलक, तराजू और तलवार...........! ऐसे नारे से अपने दल को स्थापित करने वाली मायावती आज अपने जन्मदिन के अवसर पर अगड़ी जाति को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की मांग की. इससे पहले इस मुद्दे पर वे प्रधानमंत्री को खत भी लिख चुकी हैं. यह यूं ही नहीं हुआ है. ऐसे सफर की शुरूआत 2007 के चुनाव में ही हो चुकी थी. तिलक, तराजू और तलवार..... का नारा बदल कर 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है' तक पहुंच गया. बहुजन सुखाय से सर्वजन सुखाय के बदलाव से बहन जी बहुमत के साथ सत्ता में पहुंच गईं. एक बार फिर बहन जी उसी को दोहराने की कोशिश में हैं.उधर लोकसभा में भारी बहुमत मिलने से बीजेपी को भी अपने पुराने वोट बैंक पर प्रेम उमड़ रहा है. इसी का असर है कि राज्य में एक बार फिर किसी ब्राह्मण को ही पार्टी की कमान देने का विचार हो रहा है. जनवरी में राज्य को नया मुखिया मिलेगा. सूत्रों के मुताबिक राज्यों के अध्यक्ष चुनने में अमित शाह कम दिलचस्पी ले रहे हैं. इसकी कमान संगठन मंत्री रामलाल और पूर्णकालिक संघ के स्वंयसेवक या यूं कहे संघ में बीजेपी का काम देखने वाले कृष्ण गोपाल देख रहे हैं. सबसे अधिक माथापच्ची यूपी को लेकर है. क्योंकि बिहार के बाद अब सबसे अहम विधानसभा चुनाव यूपी का ही है. कृष्ण गोपाल की इच्छा ये है कि राज्य को ऐसा मुखिया दिया जाए जिसकी पहुंच सभी तक हो और वह लो प्रोफाइल भी हो. वर्तमान में ब्राह्मण होने के बाद अब ये पद किसी पिछड़े को दिया जाए. क्योंकि बिहार चुनाव में बीजेपी पर सवर्णवाद का गहरा धब्बा लग गया है. इसलिए ये पिछड़ा लेकिन मजबूत व्यक्तित्व चाहते हैं. अब इसमें तीन नाम सबसे अहम हैं.पहले नंबर पर दिनेश शर्मा - लखनऊ के मेयर दिनेश शर्मा यूपी के सबसे ताकतवर बीजेपी नेताओं में हैं जिनकी सीधी पकड़ प्रधानमंत्री मोदी तक है. दिल्ली में मोदी के आगमन के बाद ही दिनेश शर्मा का कद बेहद मजबूती के साथ बढ़ा है. उदाहरण के रूप में देख सकते हैं कि मोदी के कहने से ही उन्हें अमित शाह के सहयोगी के तौर पर पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बनाया गया. वैसे अमित शाह को भी दिनेश शर्मा बेहद पसंद है. अमित शाह-मोदी की जोड़ी इन्हें यूपी में बीजेपी की कमान देने के पक्ष में हैं. लेकिन फिलहाल इनका ब्राह्मण होना इनके लिए रूकावट है. इसी रूकावट की वजह से शाह-मोदी खेमा मनोज सिन्हा का नाम भी आगे बढ़ा रहे हैं. लेकिन उनकी उम्र बाधा बन सकती है.दूसरा धर्मपाल सिंह और तीसरा स्वतंत्र देव सिंह ने नाम पर भी चर्चा हो रही है. इन्हें इनके पिछड़े होने का फायदा मिलता दिख रहा है. इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार का भी नाम तेजी से आगे बढ़ रहा है. क्योंकि इनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर तक है.अब यदि दिनेश शर्मा बीजेपी अध्यक्ष बनते हैं तो ये स्पष्ट हो जाएगा कि मोदी के आगे संघ की नहीं चली. यदि दिनेश शर्मा या मनोज सिन्हा बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनते हैं इससे स्पष्ट जो जाएगा कि मोदी के सामने अभी संगठन या संघ में चुनौति खड़ी करना टेढ़ी खीर है. इस बार यूपी विधानसभा चुनाव में सामुहिक दायित्व और सामुहिक अधिकार वाली रणनीति पर कृष्ण गोपाल और रामलाल मंथन कर रहे हैं. बीजेपी ब्राह्मण मतदाता के साथ गैर यादव पिछड़ों पर ज्यादा फोकस है. राजनाथ सिंह के हिस्से राजपूत मतदाताओं को गोलबंद करने की जिम्मेदारी दी जा रही है.यूपी में मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी इस बार घोषित कर दिया जाएगा. कुल मिलाकर कहा जाए कि मोदी के नाम पर यूपी विधानसभा चुनाव बीजेपी नहीं लड़ेगी. संघ किसी युवा चेहरे की तलाश में है. ऐसा चेहरा जिसे पूरा प्रदेश जानता है और उसकी जाति कभी मुद्दा ना बन पाये. ध्रुवीकरण की भी गुंजाइश बनी रहे.

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Dakhal News 28 January 2016


एमपी  में रिलायंस समूह डिफेंस पार्क और एयरोस्पेस पार्क स्थापित करेगा

तीन हजार करोड़ रूपए के निवेश पर 327 करोड़ की छूट मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में यहाँ हुई निवेश संवर्धन समिति की बैठक में रिलायंस समूह द्वारा प्रदेश में डिफेंस पार्क तथा एयरोस्पेस पार्क परियोजना के प्रस्ताव पर विचार किया गया। इसके अलावा भारत ओमान रिफायनरी बीना के प्रस्तावित विस्तार की परियोजना पर विचार किया गया।बैठक में बताया गया कि रिलायंस समूह द्वारा एसईजेड पीथमपुर में डिफेंस पार्क स्थापित किया जाएगा। इसके लिए समूह को पीथमपुर में 25 प्रतिशत प्रीमियम पर 300 एकड़ भूमि उपलब्ध करवाई जाएगी। समूह को रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट के लिए 10 करोड़ तक का अनुदान उपलब्ध करवाया जाएगा। साथ ही वेट तथा सीएसटी में 20 साल तक की छूट दी जाएगी। इसी तरह रिलायंस समूह द्वारा भोपाल में स्थापित किए जाने वाले एयरोस्पेस पार्क के लिए 25 प्रतिशत प्रीमियम पर 40 एकड़ भूमि उपलब्ध करवाई जाएगी। अधोसंरचना पर व्यय, स्टाम्प ड्यूटी, वेट, सीएसटी पर उद्योग नीति के प्रावधान के अनुसार छूट दी जाएगी। रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट के लिए अनुदान उपलब्ध करवाया जाएगा। समूह को राज्य की उद्योग-संवर्धन नीति के तहत इन दोनों उद्योग में तीन हजार करोड़ के निवेश पर करीब 327 करोड़ की छूट मिलेगी।बैठक में रिलायंस समूह द्वारा पीथमपुर में स्थापित किए जाने वाले इंटरनेट डाटा सेंटर के प्रस्ताव पर भी चर्चा की गई। बीना रिफायनरी के विस्तार परियोजना के प्रस्ताव पर पूर्व की तरह वेट पर 100 करोड़ का ब्याज मुक्त ऋण देने और क्रूड आइल पर प्रवेश कर से छूट देने का अनुमोदन किया गया।बैठक में वित्त मंत्री जयंत मलैया, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया, राजस्व मंत्री रामपाल सिंह, श्रम मंत्री अंतरसिंह आर्य, नगरीय प्रशासन राज्य मंत्री लालसिंह आर्य, मुख्य सचिव अंटोनी डिसा, अपर मुख्य सचिव वित्त ए.पी. श्रीवास्तव सहित संबंधित विभाग के अधिकारी उपस्थित थे।

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Dakhal News 12 January 2016


किरार परिणय सेतु स्मारिका का विमोचन

सामाजिक पत्रिकाएँ समाज में संवाद का सशक्त माध्यम मुख्यमंत्री श्री चौहानमुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि समाज के सदस्यों के मध्य संवाद और संपर्क का सशक्त माध्यम समाज की परिचय पत्रिकाएँ हैं। श्री चौहान आज यहाँ 'किरार परिणय सेतु' स्मारिका का विमोचन कर रहे थे।मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि समाज के सभी वर्गों के कल्याण के कार्य सरकार ने किए हैं। बिना किसी भेदभाव के जनता के हक में सर्वश्रेष्ठ फैसले लिये हैं। उन्होंने बताया कि बड़वानी घटना के पीड़ितों को आजीवन 5 हजार रूपये प्रतिमाह पेंशन देने की विधानसभा में घोषणा की है। सरकार किसानों के खातों में 7000 करोड़ रूपये राहत और बीमा दावा राशि के रूप में जमा कर रही है। इतनी बड़ी राशि पहले कभी किसानों को नहीं मिली है। उन्होंने बताया कि वन विभाग को छोड़कर अन्य सभी विभाग की नौकरियों में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत स्थान आरक्षित किये गये हैं।अखिल भारतीय किरार क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष श्री शिवाजी पटेल ने श्री चौहान को मुख्यमंत्री के रूप में 10 वर्ष पूरा करने की बधाई दी। उन्होंने समाज के सदस्यों के मध्य संवाद और संपर्क के कार्यों की जानकारी दी। श्री पटेल ने बताया कि जून 2016 में महासभा के गठन के 50 वर्ष हो रहे हैं।संचालन श्री प्रदीप चौहान ने किया। श्री रामकिशन पटेल, पूर्व अध्यक्ष एम.पी. एग्रो श्री रामकिशन चौहान, पत्रिका की संपादक श्रीमती इंदु चौहान एवं किरार समाज की प्रतिभाएँ उपस्थित थी।

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Dakhal News 8 December 2015


तीसरे दिन भी मंत्री पहुँचे गाँव में

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर तीसरे दिन भी मंत्री-मण्डल के सदस्य गाँव में पहुँचे और किसानों से उनकी परेशानी साझा की। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने सूखे की गंभीर चुनौती से निपटने के लिये चौतरफा प्रयास किये हैं। बजट में कटौती कर किसानों को राहत देने का फैसला लिया है। निर्माण कार्य और ऋण वसूली स्थगित की गयी है। अल्पकालीन ऋणों को मध्यमकालीन ऋण में बदलागया है।वन एवं जैव प्रौद्योगिकी मंत्री और पन्ना जिला प्रभारी मंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार ने अमानगंज, पवई एवं शाहनगर तहसील के विभिन्न ग्राम का भ्रमण किया। उन्होंने मुराछ, पटोरी, शिकारपुरा, खमतरा, चौपरा, सुंगरहा आदि ग्राम में पहुँचकर धान एवं सोयाबीन की फसलों को हुए नुकसान को देखा। उन्होंने सूखा पीड़ित किसानों को बताया कि जिले को 93 करोड़ रुपये की राहत राशि मंजूर की गयी है। डॉ. शेजवार ने कहा कि किसानों को हुई क्षति का सर्वे पूरी पारदर्शिता के साथ करवाया गया है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में बड़ी संख्या में निर्माण कार्य प्रारंभ करवाये जा रहे हैं। इन निर्माण कार्यों में ग्रामीणों को काम मिल सकेगा। वहीं किसानों को रबी फसल की बोनी करने के लिये खाद, बीज एवं अन्य सहायता उपलब्ध करवायी जा रही है। जिन गाँव में विद्युत बिल बकाया होने के कारण कनेक्शन काट दिये गये हैं, ऐसे गाँव में पुन: विद्युत कनेक्शन जोड़ने के निर्देश मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा दिये गये हैं।प्रभारी मंत्री ने गाँव में चौपाल लगाकर समस्याओं को सुना। उन्होंने पेयजल, खाद्यान्न, केरोसिन वितरण, स्कूल संचालन, निर्माण कार्यों में कार्यरत मजदूरों की मजदूरी भुगतान आदि की जानकारी ली। प्रभारी मंत्री ने निर्देश दिये कि संकट की इस घड़ी में किसानों की पूरी तरह ईमानदारी के साथ मदद करें। राहत राशि वितरण में संवेदनशील रहकर कार्यवाही करें। राहत राशि वितरण में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जायेगी।वाणिज्य, उद्योग तथा रोजगार एवं युवा कल्याण, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व तथा राजगढ़ जिला प्रभारी मंत्री श्रीमती सिंधिया ने किसानों से कहा है कि मौसम ने उनका साथ नहीं दिया तो क्या हुआ, सरकार हर समय-हर घड़ी उनके साथ है। श्रीमती सिंधिया ने नरसिंहगढ़ तहसील के ग्राम बोरखेड़ा, पिपलियारसोडा, पचोर तहसील के ग्राम उदनखेड़ी, ब्यावरा तहसील के ग्राम भाटखेड़ी, खिलचीपुर तहसील के ग्राम बड़बेली और राजगढ़ तहसील के ग्राम लिम्बोदा का भ्रमण किया तथा किसान भाइयों एवं ग्रामीणों से चर्चा की। उन्होंने कहा कि बदलते मौसम को देखते हुए किसान कम पानी में ली जाने वाली फसलें, मिश्रित खेती, उन्नत कृषि तकनीकी अपनायें ताकि मौसम के कारण होने वाले नुकसान से बचा जा सके। किसानों ने अपनी जरूरतों से मंत्री को अवगत करवाया।खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति एवं प्रभारी मंत्री श्री विजय शाह ने बड़वानी जिले के सूखा प्रभावित गाँव का दौरा किया। उन्होंने खेतों में पहुँचकर प्रभावित फसलों को देखा। उनके साथ सांसद श्री सुभाष पटेल भी थे। श्री शाह ने ग्राम करी पहुँचकर कृषक टीकाराम भावसार के खेत में अनियमित वर्षा एवं वायरस से प्रभावित मिर्च की फसल को देखा। मौके पर ही प्रभारी मंत्री ने अधिकारियों के दल को समुचित आदेश दिये। उन्होंने कृषकों से कहा कि वे फसल बीमा अनिवार्य रूप से करवायें, जिससे क्षति होने पर बीमा कम्पनी से मुआवजा मिल सके।प्रभारी मंत्री ने विद्युत विभाग को निर्देश दिया कि वे राज्य शासन के नये नियमों की जानकारी किसानों को बतायें, जिससे किसान तीन माह के स्थान पर दो माह की राशि भरकर अस्थायी विद्युत कनेक्शन ले सकें। साथ ही खराब ट्रांसफार्मर को बकाया की दस प्रतिशत राशि देकर बदलवा सके। पूर्व में खराब ट्रांसफार्मर को बकाया की 50 प्रतिशत राशि भरकर ही बदलवाया जा सकता है।अनुसूचित-जाति, जनजाति कल्याण मंत्री और अनूपपुर जिले के प्रभारी मंत्री श्री ज्ञान सिंह ने किसानों को आश्वस्त किया कि अल्प वर्षा के कारण उत्पन्न संकट की इस घड़ी में शासन-प्रशासन पूरी दृढ़ता से किसानों के साथ खड़ा है। सूखे की स्थिति का सामना सरकार और किसान मिलकर करेंगे। प्रभारी मंत्री पुष्पराजगढ़ जनपद पंचायत के ग्राम भेजरी, सरफा तथा कोडार में जन-सभाओं में किसानों से संवाद कर रहे थे। प्रभारी मंत्री ने किसानों को सलाह दी कि वे आगामी रबी फसल के लिये कम पानी लगने वाली फसल लें। इसके लिये बीज की आपूर्ति की व्यवस्था प्रशासन द्वारा की जायेगी। गेहूँ की शीघ्र पकने वाली एवं कम सिंचाई वाली जातियों का उपयोग करने की सलाह भी उन्होंने दी।नगरीय विकास एवं पर्यावरण तथा सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री श्री लाल सिंह आर्य ने आदिवासी विकासखण्ड क्षेत्र के ग्राम टिकटोली, मोरावन, अदवाड़ा, सेसईपुरा, गोरस में ग्रामीणों के साथ चौपाल में चर्चा की। उन्होंने फसलों के नुकसान का आकलन किया तथा रबी फसल के लिये सुविधाओं एवं आवश्यकताओं पर चर्चा की। उन्होंने ग्राम मोरावन एवं अदवाड़ा को आबादी क्षेत्र घोषित करने के निर्देश देते हुए कहा कि आगामी एक माह में इस संबंध में प्रक्रिया पूर्ण कर ली जाये। प्रभारी मंत्री श्री आर्य ने कहा कि अब केवल 10 प्रतिशत राशि जमा कर ट्रांसफार्मर बदला जा सकता है। उन्होंने कहा कि फसल नुकसान के सर्वे का कार्य जारी है। उन्होंने ग्राम टिककोली में 12 किसान को तथा ग्राम सेसईपुरा में 36 किसान को सिंचाई के लिये स्प्रिंकलर सिस्टम का वितरण किया। उन्होंने ग्राम मोरावन में कन्या छात्रावास तक सड़क निर्माण कार्य का शिलान्यास किया। ग्रामीणों से चर्चा के दौरान मेदा एवं पीरो आदिवासी को बीपीएल में शामिल कर पेंशन का लाभ देने के निर्देश दिये गये।स्कूल एवं उच्च शिक्षा राज्य मंत्री श्री दीपक जोशी ने मनासा तहसील के ग्राम बरलई में चौपाल में ग्रामीणों और किसानों से चर्चा की।श्री जोशी ने विधायक श्री कैलाश चावला एवं अधिकारियों के साथ रात्रि विश्राम ग्राम बरलई में ही किया। श्री जोशी को किसानों ने खेती-किसानी से जुड़ी जरूरतों के बारे में बताया। प्रभारी मंत्री ने कहा कि बिजली की समस्या का एक साल में समाधान कर दिया जायेगा। किसानों को पानी की उपलब्धता अनुसार दो माह के विद्युत कनेक्शन देने की व्यवस्था की गयी है।श्री जोशी ने ग्राम सुवाखेड़ा एवं गिरदोड़ा का भी दौरा किया। चौपाल लगाकर किसानों की समस्याएँ सुनी। उन्होंने कहा कि जावद क्षेत्र में 25 प्रतिशत आनावारी आयी है। क्षेत्र के किसानों को फसल बीमा योजना का पूरा लाभ मिलेगा। प्रभारी मंत्री ने कहा कि आपदा की घड़ी में मुआवजा दिलवाने, फसल बीमा योजना का लाभ दिलवाने की शुरूआत श्री शिवराज सिंह चौहान ने की है। गत वर्ष भी ईसबगोल की नुकसानी का मुआवजा सरकार ने दिया है।

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Dakhal News 29 October 2015


पेटलावद बलास्ट मृतकों की संख्या 94 ,घटना की न्यायिक जाँच होगी

मृतकों के परिजन को मिलेंगे 5-5 लाख रुपये झाबुआ के पेटलावद ब्लास्ट में मरने वालों की संख्या 94 पहुँच गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने झाबुआ जिले के पेटलावद पहुँचकर घटना का जायजा लिया। वे शनिवार को यहाँ हुए एक भीषण हादसे के घायल तथा मृतकों के परिजनों से मिले। उन्होंने कहा कि पेटलावद में हुए भीषण हादसे की न्यायिक जाँच करवायी जायेगी। मृतकों के परिजनों को पाँच-पाँच लाख रुपये दिये जायेंगे। प्रत्येक मृतक के परिवार के एक सदस्य को पात्रता अनुसार रोजगार/स्व-रोजगार मुहैया करवाया जायेगा। किसी भी हाल में अपराधी को छोड़ा नहीं जायेगा। अपराधी की सूचना देने वाले को एक लाख रुपये का इनाम दिया जायेगा।मुख्यमंत्री श्री चौहान पेटलावद में मृतकों के परिजन और घायलों से मुलाकात के दौरान बहुत द्रवित दिखे। उन्होंने न केवल सबको ढाँढस बँधाया बल्कि हरसंभव मदद की बात भी कही। अनेक जगह उन्होंने जमीन पर बैठकर लोगों की बात को गंभीरता से सुना।एसडीएम और एसडीओपी हटायामुख्यमंत्री श्री चौहान ने पेटलावद के एस.डी.एम. और एस.डी.ओ.पी. को तत्काल प्रभाव से हटाने के निर्देश दिये। उन्होंने पेटलावद थाना के पूरे अमले को भी तत्काल प्रभाव से बदलने के निर्देश दिये।40 परिवारों से मिलकर की संवेदना व्यक्तमुख्यमंत्री ने अपने पेटलावद प्रवास के दौरान 40 परिवारों से मिलकर संवेदना प्रकट की। उन्होंने सभी को ढाँढस बताया और जाँच में कोई कोताही न बरतने की बात की।मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सोमवार की सुबह पुन: पेटलावद जायेंगे। मुख्यमंत्री सोमवार को मृतकों और घायलों से संबंधित 17 गाँव में जाकर परिजनों से भेंटकर उन्हें दिलासा देंगे।मुख्यमंत्री चौहान सबसे पहले सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पेटलावद पहुँचकर घायलों से मिले। उन्होंने घायलों के स्वास्थ्य की जानकारी ली तथा उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना की। उन्होंने चिकित्सकों को निर्देश दिये कि घायलों के मध्यप्रदेश और मध्यप्रदेश के बाहर जहाँ भी जरूरी होगा, उपचार में किसी भी तरह की कोई कसर नहीं छोड़े। घायलों को बेहतर से बेहतर चिकित्सा मुहैया करवायी जाये। उन्होंने घायलों के परिजनों को आश्वस्त किया कि घायलों के उपचार में व्यय होने वाली सम्पूर्ण राशि राज्य शासन वहन करेगा। शासन द्वारा हरसंभव आवश्यक मदद दी जायेगी। मुख्यमंत्री श्री चौहान हादसे में मृत लोगों के परिजन से भी मिले और उन्हें सांत्वना दी। उन्होंने राज्य शासन की ओर से उन्हें सहायता देने की बात कही।मुख्यमंत्री घटना स्थल के आसपास एकत्र स्थानीय नागरिकों से भी मिले। उन्होंने सभी की बात को गंभीरता से सुना तथा नागरिकों द्वारा दिये गये सुझावों पर अमल करने का भरोसा दिलाया। श्री चौहान ने घटना स्थल का मुआयना करने के बाद पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिये।मुख्यमंत्री श्री चौहान स्थानीय मुक्तिधाम भी गये जहाँ मृतकों का अंतिम संस्कार किया गया था। वहाँ मुख्यमंत्री ने मृतकों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की।

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Dakhal News 17 September 2015


पाकिस्तान पर दबाव बनाओ और सबक सिखाओ

गुरदासपुर में हुए आतंकी हमले की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि पाक समर्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा के दो आतंकियों ने जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर बीएसएफ की गाड़ी को निशाना बनाया, जिसमें एक आतंकी कासिम खान स्थानीय लोगों की सूझ-बूझ के कारण जिन्दा पकड़ा गया। भारत तमाम वैश्विक बैठकों और संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का मुद्दा उठाता रहा है। पाकिस्तान पर कूटनीति के जरिये आतंकवादियों पर कारर्वाई करने का दबाव भी बनाये हुए है। 26/11 को मुंबई में हुए आतंकी हमले के वे सारे साक्ष्य भी पाकिस्तान सरकार को सौंपे गए जिनसे यह साबित होता है कि मुंबई हमला पाक समर्थित आतंकवादियों द्वारा सोची समझी साजिश के तहत हुआ था। इन साक्ष्यों की सहायता से हमले के दोषी प्रतिबंधित आतंकी संगठन जमात उद दावा के सरगना हाफिज सईद और जकी उर रहमान लखवी को सजा दी जा सकती है। भारत द्वारा प्रस्तुत साक्ष्योंकी जाँच करने वाले पूर्व पाकिस्तानी अधिकारी तारिक खोसा ने भी एक लेख में इस बात का उल्लेख किया है कि भारत ने मुंबई हमले के सन्दर्भ में जो साक्ष्य प्रस्तुत किये हैं वे पर्याप्त हैं। अब पाकिस्तान को यह मान लेना चाहिए कि उसकी सरजमीं का इस्तेमाल आतंक फैलाने के लिए किया जा रहा है। फिर भी पाकिस्तान आतंकवादियों पर कारर्वाई करने के बजाए उन्हें संरक्षण दे रहा है। उसकी इसी करतूत का खामियाजा न केवल भारत बल्कि वह स्वयं भी भुगत रहा है। दिसम्बर 2014 में पेशावर के आर्मी स्कूल में हुआ आतंकी हमला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। जल्द ही दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच बैठक होने वाली है जिसमें भारत द्वारा पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दी जानी चाहिए कि वह आतंकवाद के लिए अपनी भूमि का उपयोग बंद करे अन्यथा इसके गंभीर परिणाम उसे भुगतने होंगे। यदि वह सचमुच आतंक के विरुद्ध लड़ाई में शामिल है तो पहले अपने यहां पनाह लिए हुए आतंकियों का सफाया करे तभी उसकी कथनी और करनी पर विश्वास किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान की करतूतों का पर्दाफाश करने का यह बिलकुल सही समय है। आतंकी कासिम खान की गिरμतारी से भारतीय सुरक्षा एजेंसियां कई महत्वपूर्ण तथ्य हासिल कर सकती है जो पाकिस्तान को वैश्विक बिरादरी के समक्ष जवाब देने के लिए काफी होंगे। खासतौर पर अमेरिका के सामने जो पाकिस्तान को करोड़ों डॉलर की सहायता आतंकवाद से लड़ने के लिए करता है। भारत सरकार चाहे तो इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भी ले जा सकती है। पाकिस्तान जैसे धूर्त देश पर चौतरफा दबाव बनाकर ही भारत बाह्य आतंकवाद का मुकाबला कर सकता है।

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Dakhal News 11 August 2015


किसानों को  सहायता के लिये नई योजना बनेगी

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि किसानों को आपदा और प्रतिकूल परिस्थिति में जीवन यापन के लिये पर्याप्त राशि के लिये सरकार किसानोन्मुखी फसल बीमा योजना या किसान-कल्याण प्रकोष्ठ बनायेगी। मुख्यमंत्री देवास जिले के ग्राम कमलापुर में गेहूँ खरीदी केन्द्र का निरीक्षण करने के बाद किसानों की सभा सम्बोधित कर रहे थे। इस दौरान शिक्षा राज्य मंत्री दीपक जोशी भी उपस्थित थे।मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्तमान फसल बीमा योजना किसानों को अपेक्षित लाभ देने में सफल नहीं रही है। सरकार नयी फसल बीमा योजना बनाने पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रही है, जिसके लिये बीमा कम्पनियों से बातचीत की जा रही है। उन्होंने कहा कि अगर कोई बीमा कम्पनी इसके लिये राजी नहीं हुई, तो सरकार किसान-कल्याण प्रकोष्ठ बनायेगी। इसके जरिये प्राकृतिक आपदा से नष्ट होने वाली फसलों, अन्य किसी कारण से उत्पादन गिरने या अप्रत्याशित रूप से भाव गिरने की स्थिति में किसानों को सरकार पर्याप्त सहायता उपलब्ध करवायेगी। श्री चौहान ने बताया कि पिछले दिनों किसानों पर आयी आपदा के बाद किसानों को 2187 करोड़ की सहायता उपलब्ध करवायी गई।श्री चौहान ने कहा कि इस बार सरकार ने ऐसी व्यवस्था की है, जिससे किसानों को गेहूँ खरीदी केन्द्र में रात न बिताना पड़े। उनका गेहूँ जिस दिन वे केन्द्र पर लायेंगे, उसी दिन खरीदा जायेगा और 7 दिवस में उसका भुगतान किया जायेगा। उन्होंने बताया कि सरकार किसानों को बोनस देने की जगह अब खाद-बीज के ऋण के रूप में दी गई राशि में से कुछ राशि किसानों को देने पर विचार कर रही है। योजना को शीघ्र ही अंतिम रूप दिया जायेगा। उन्होंने किसानों से कहा कि वे अगली फसल के लिये खाद-बीज का अग्रिम भण्डारण करें ताकि उन्हें बाद में कोई परेशानी न हो। उन्होंने स्पष्ट किया अग्रिम भण्डारण करने पर सरकार 3 माह का ब्याज किसानों से नहीं लेगी।मुख्यमंत्री चौहान ने ग्राम कमलापुर के गेहूँ खरीदी केन्द्र का निरीक्षण कर किसानों से चर्चा की। उन्होंने गेहूँ बेचने आये कुछ किसानों से चर्चा भी की और व्यवस्थाओं की जानकारी ली, जिसे किसानों ने संतोषप्रद बतलाया।

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Dakhal News 4 May 2015


ओलापीड़ित किसानों की बेटियों के विवाह पर मिलेंगे 25 हजार रुपये

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि ओला वृष्टि से प्रभावित किसानों की बेटियों की शादी पर कन्यादान योजना के अलावा 25 हजार रुपये की राशि दी जायेगी। यह सुविधा अगली फसल आने तक जारी रहेगी। श्री चौहान आज शिवपुरी जिले के ग्राम गुरावल में ओला पीड़ित किसानों को संबोधित कर रहे थे। राजस्व मंत्री श्री रामपाल सिंह तथा उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया भी उनके साथ थीं।मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि किसानों पर जब भी आपदा आयी है, राज्य सरकार ने कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ दिया है। उन्होंने कहा कि किसानों को फसल बीमा का 2127 करोड़ रुपये का लाभ दिलवाया है। उन्होंने कहा कि आज फिर संकट की घड़ी आयी है। इससे निपटने के लिये सरकार फिर से उनके साथ खड़ी है। उन्होंने कहा कि ऐसे किसान, जिनकी 50 प्रतिशत से अधिक फसल नष्ट हुई है, उनकी कर्ज वसूली स्थगित कर दी गई है। अगली फसल आने तक उन्हें चावल और गेहूँ एक रुपये किलो की कीमत पर दिया जायेगा। किसी भी किसान को अगर सर्वे से कोई शिकायत है तो पुन: उसका सर्वे करवाया जायेगा।मुख्यमंत्री चौहान ने गुरावल पहुँचते ही देवेन्द्र सिंह और ताराचन्द्र के खेत पर जाकर फसल का जायजा लिया। उन्होंने आश्वस्त किया कि नष्ट हुई फसल का पूरा मुआवजा दिया जायेगा।

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Dakhal News 20 March 2015


देश की सीमाओं पर भेजें युवाओं को

"माँ तुझे प्रणाम" योजनामुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निर्देश दिये हैं कि माँ तुझे प्रणाम योजना में अधिक से अधिक युवाओं को देश की सीमाओं की यात्रा पर भेजा जाये। वर्षा ऋतु एवं परीक्षा के माहों को छोड़कर केलेण्डर बनाकर वर्ष भर नियमित रूप से यात्राएँ भेजी जायें। श्री चौहान योजना की समीक्षा कर रहे थे।मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि योजना का उद्देश्य युवाओं में देश भक्ति का जजबा बढ़ाना है। उन्होंने योजना के जरिये सीमावर्ती क्षेत्रों की यात्रा कर लौटे युवाओं के साथ चर्चाओं का स्मरण किया। बताया कि यात्रा से लौटने के बाद व्यक्ति में एक नया जोश और जज़्बा, सैनिकों के प्रति सम्मान और राष्ट्र-प्रेम का भाव पैदा होता है। उन्होंने योजना में विभिन्न क्षेत्रों की मेधावी प्रतिभाओं को यात्रा पर जाने का अवसर दिए जाने की जरूरत बतलाई। श्री चौहान ने पारदर्शी प्रक्रिया बनाकर बड़ी संख्या में युवाओं विशेष कर किशोर-किशोरियों को शामिल करने के लिये कहा। सीमा सुरक्षा बल के साथ ही इन्डो-तिब्बत पुलिस और थल सेना के साथ समन्वय कर नये स्थलों को भी चिन्हित करने के लिये कहा।बैठक में बताया गया कि इस वर्ष 2014-15 में 73 सदस्यीय युवतियों का दल मार्च के अंतिम सप्ताह में यात्रा पर भेजा जायेगा। योजना में जम्मू-कश्मीर में कारगिल, लेह द्रास, आर.एस.पुरा, पंजाब में हुसेनीवाला, बाघा बार्डर, राजस्थान में लोगोंवॉल, तानोत माता का मंदिर, केरल में कोच्चि की यात्राएँ की गई।बैठक में मुख्य सचिव अंटोनी डिसा, मुख्यमंत्री के विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी राजीव टंडन, खेल एवं युवा कल्याण सचिव अमित राठौर और संचालक श्री उपेन्द्र जैन भी उपस्थित थे।

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Dakhal News 14 March 2015


असली शिक्षा वही जो हमारा कल्याण करे

इंदौर में 300 करोड़ के एन.एम.आई.एम.एस. विश्वविद्यालय का भूमि-पूजन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि असली शिक्षा वही है जो हमारा कल्याण करे। प्रदेश में तकनीकी शिक्षा का विस्तार किया जायेगा। प्रदेश में पानी, बिजली, सड़क के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। अब शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्योग के क्षेत्र में विशेष ध्यान देने की जरूरत है, जिससे भारत के तकनीकी रूप से सक्षम युवा पूरे विश्व में अपनी कला का प्रदर्शन करें।मुख्यमंत्री इंदौर में 300 करोड़ की लागत से बनने वाले नरसी मोंजी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एण्ड साइंस यूनिवर्सिटी (एन.एम.आई.एम.एस.) का भूमि-पूजन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रदेश को बीमारू राज्य से उभारकर अब देश के प्रथम पंक्ति के राज्यों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है। पिछले तीन साल से भारत सरकार से कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये राष्ट्रीय कृषि कर्मण पुरस्कार मिल रहा है। इस वर्ष भी यह पुरस्कार हमें मिला है, जो सरकार और जनता के लिये गर्व की बात है। श्री चौहान ने कहा कि प्रदेश में व्यावसायिक शिक्षा में प्रतियोगिता लाने की जरूरत है। इस दिशा में मध्यप्रदेश शासन कृत-संकल्पित है। प्रदेश में एन.एम.आई.एम.एस. जैसे अनेक राष्ट्रीय स्तर के शैक्षणिक संस्थान अपने संस्थान की शिक्षा शाखाएँ खोलने के लिये इच्छुक हैं। उसी श्रंखला में आज यह संस्थान खोला गया है।मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत के लोग हर देश में मिलेंगे। अमेरिका सहित विश्व के सभी प्रमुख देशों के विकास में भारतीयों का अमूल्य योगदान है। अमेरिका में विशेषकर न्यूयार्क में चिकित्सा के क्षेत्र में भारतीयों ने उल्लेखनीय काम किया है।नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि एन.एम.आई.एम.एस. विश्वविद्यालय एक समाजसेवी संस्था है। शिक्षा के क्षेत्र में इस विश्वविद्यालय ने अनेक उल्लेखनीय कार्य किये हैं। विश्वविद्यालय में 22 कॉलेज में 40 हजार विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं। संस्था का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है, बल्कि गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करना है। एन.एम.आई.एम.एस. के अध्यक्ष अमरीश पटेल उज्जैन (मध्यप्रदेश) में जन्मे हैं। श्री अमरीश पटेल ने कहा कि विश्वविद्यालय एस.व्ही.के.एम. शिक्षा समूह का एक अंग है।

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Dakhal News 22 February 2015


दोनों पैर गँवा चुके चंदन को मुख्यमंत्री  ने ढाँढस बँधाया

मध्यप्रदेश आने से अब चंदन यहाँ का बेटा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले दिनों ट्रेन दुर्घटना में दोनों पैर गवाँ चुके चंदन झा को देखने आज एक निजी अस्पताल पहुँचे। मुख्यमंत्री ने चंदन को ढाँढस बँधाया तथा कहा कि वह अपना सामान्य जीवन जी सकेगा। इलाज सहित उसकी पढ़ाई-लिखाई तथा जॉब उपलब्ध करवाने में हरसंभव सहयोग दिया जायेगा। मुख्यमंत्री इस अस्पताल में स्वाईन फ्लू के मरीजों की चिकित्सा व्यवस्था देखने आईसोलेशन वार्ड भी गये।चंदन झा बिहार के समस्तीपुर जिले के खरतुआहा गाँव का रहने वाला है। बिहार से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने भोपाल आया है। उसके माता-पिता नहीं हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश आने से वह अब हमारा बेटा है। उसको कृत्रिम पैर लगवाये जायेंगे। इस बारे में अस्पताल को निर्देशित कर दिया गया है। ज्ञात हो कि पिछले दिनों दिल्ली से आते हुए भोपाल में केरला एक्सप्रेस से उतरते समय स्लिप हो जाने से उसके दोनों पैर कट गये थे।मुख्यमंत्री ने अस्पताल में भर्ती स्वाईन फ्लू के मरीजों से भी चर्चा की। उन्होंने इस बीमारी के इलाज के लिये अस्पताल में किये गये प्रबंधों की जानकारी ली।

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Dakhal News 14 February 2015


अमेरिकी कंपनियाँ, शैक्षणिक संस्थान करेंगे मध्यप्रदेश के विकास में भागीदारी

फ्रेंड्स ऑफ एम.पी. पहल के सकारात्मक रूझानमुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा अमेरिका के न्यूयार्क से शुरू किये 'फ्रेंड्स ऑफ एम.पी.' फोरम की शुरूआत के साथ ही सकारात्मक रुझान मिलना शुरू हो गये हैं। अमेरिका प्रवास के दौरान चौहान को करीब दो दर्जन निवेशक ने अपने प्रस्ताव दिये और निवेश संभावनाओं पर चर्चा की। मेनहटटन् न्यूयार्क में आयोजित बिजनेस संवाद में अमेरिकी निवेशकों ने उत्साहपूर्वक भागीदारी की।मुख्यमंत्री की पहल पर मध्यप्रदेश के पूर्व चिकित्सा विद्यार्थियों के उत्तरी अमेरिका स्थित संघ ने चिकित्सा शिक्षा के लिये एक परामर्शदात्री पेनल स्थापित करने का प्रस्ताव दिया। इसके माध्यम से यह संघ मध्यप्रदेश और उत्तरी अमेरिका के चिकित्सा शास्त्र के शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच अकादमिक ज्ञान के आदान-प्रदान का कार्यक्रम शुरू करना चाहती है। संघ के सदस्यों को मध्यप्रदेश के चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय में अतिथि प्राध्यापक का विशेष दर्जा मिलेगा ताकि प्रदेश को विभिन्न शैक्षणिक अवसर उपलबध हो सके। संघ ने मुख्यमंत्री को इसके लिये विस्तृत प्रस्ताव सौंपा।इसी प्रकार ट्रिटान सोलर कंपनी न्यूयार्क से अपना मुख्यालय मध्यप्रदेश में स्थापित करना चाहती है। यह कंपनी मध्यप्रदेश में निर्माण, वितरण और विक्रय संबंधी सुविधाएँ उपलब्‍ध करवायेगी। इससे कई स्तर पर रोजगार की नई संभावनाएँ प्रदेश में उपलब्ध होंगी। इससे स्थानीय स्तर पर अर्थ-व्यवस्था को मजबूती मिलेगी और कर राजस्व के माध्यम से राज्य और केन्द्र सरकार के लिये भी आय के नये स्त्रोत उपलब्‍ध होंगे।इसी प्रकार न्यूयार्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय ने भोपाल में इंस्टीटयूट आफ एडवांस स्टडीज इन एजुकेशन को आधुनिक बनाने के लिये प्रस्ताव दिया है। प्राथमिक रूप से इसे राष्ट्रीय स्तर पर विकसित करने का प्रस्ताव है। बाद में इसे शिक्षण से जुड़े दक्ष मानव संसाधन तैयार कर इसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थान के रूप में विकसित किया जायेगा। कोलंबिया विश्वविद्यालय के अर्थ इंस्टीटयूट में वैश्विक और सतत विकास केन्द्र की संचालक सुश्री राधिका अयंगर ने मुख्यमंत्री श्री चौहान के साथ प्रस्ताव पर विस्तार से चर्चा की। प्रस्ताव के अनुसार इंस्टीटयूट आफ एडवांस स्टडीज इन एजुकेशन के संकाय सदस्य कोलंबिया आयेंगे और दो माह का प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे। प्रशिक्षित सदस्य भोपाल आकर अकादमिक रूप से विद्यार्थियों को सक्षम बनायेंगे और अकादमिक सुविधाओं और अधोसंरचना की स्थापना करेंगे।टीटीए सिस्टम्स के जितेन्द्र एस. तोमर मास ट्रांजिट रेल्वे सिस्टम में निवेश की संभावनाओं का अध्ययन करेंगे। इस कंपनी ने पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप के माध्यम से मध्यप्रदेश के साथ भागीदारी करने का प्रस्ताव दिया है। इस कंपनी की सिस्टम डिजाइन, इलेक्ट्रिफिकेशन, ट्रेकिंग, सिग्‍नलिंग, फेयर कलेक्शन और रोलिंग स्टाक प्रदाय में विशेषज्ञता है।मेरीलैंड के जसदीप सिंह ने मध्यप्रदेश और मेरीलैंड के बीच संबंधों को मजबूत करने का प्रस्ताव दिया है। वे दक्षिण एशियाई कार्यों के लिये बने आयोग के अध्यक्ष हैं। प्रदेश में हरित ऊर्जा से जुड़ी परियोजनाओं की स्थापना की संभावनाओं के साथ शिक्षा, पर्यटन और सामाजिक मुददों पर निवेश प्रस्तावों पर भी निवेशकों ने विस्तार से चर्चा की।

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Dakhal News 4 February 2015


मध्यप्रदेश आयें यहाँ सब आपला मानुष

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह प्रवासी भारतीय सम्मेलन मेंमुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने देश-विदेश में निवासरत भारतवासियों को मध्यप्रदेश आने का आत्मीय न्यौता दिया है। उन्होंने कहा है कि निवेश करें या नहीं, मध्यप्रदेश जरूर आयें। श्री चौहान गुजरात में गाँधीनगर के महात्मा मंदिर में प्रवासी भारतीय सम्मेलन के समापन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। केन्द्रीय गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने कार्यक्रम का संचालन किया। सम्मेलन में मध्यप्रदेश सहित नौ राज्य के मुख्यमंत्री मौजूद थे।श्री चौहान ने कहा कि हमारी औद्योगिक नीति निवेशक मित्र है। यहाँ सातों दिन 24 घंटे बिजली रहती है। पहले यह चमत्कार गुजरात ने किया था। अब मध्यप्रदेश के गाँवों में भी बिजली नहीं जाती। मध्यप्रदेश शांति का टापू है। यहाँ उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम का भेद नहीं है। मध्यप्रदेश में जो भी आता है यहाँ का हो जाता है। यहाँ सब आपला मानुष है। मध्यप्रदेश पहले डाकुओं के लिये कुख्यात था अब डाकू या तो ऊपर हैं या जेल में। श्री चौहान ने कहा मध्यप्रदेश में कानून व्यवस्था की बेहतर स्थिति है। औद्योगिक शांति है। यहाँ चाहे जो मजबूरी हो मांग हमारी पूरी हो, हमसे जो टकरायेगा मिट्टी में मिल जायेगा जैसे नारे सुनाई नहीं देते। निवेशकों की सुविधा के लिये हमने सिंगल विंडो नहीं सिंगल डोर पालिसी बनायी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं स्वयं प्रति सोमवार आधा दिन निवेशकों से सीधे मिलता हूँ। संबंधित विभागों के अधिकारी भी वहाँ उपस्थित रहते हैं। निवेशकों से जुड़े मसलों पर तुरंत फैसले होते हैं।मुख्यमंत्री ने कहा कि एन. आर. आई. के लिये मध्यप्रदेश में एक नया प्रकोष्ठ बनाया जायेगा। हर प्रोजेक्ट के लिये अलग अधिकारी नियुक्त होगा। श्री चौहान ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री ने 'मेक इन इंडिया' का नारा दिया है। इसे सफल बनाने के लिये मुख्यमंत्री ने 'मेक इन मध्यप्रदेश' का आव्हान करते हुए निवेशकों से कहा कि वे मध्यप्रदेश आयें, उन्हें यहाँ सभी आवश्यक सुविधाएँ दी जायेंगी।श्री चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश पहले बीमारू राज्य कहा जाता था। नौ साल पहले जब मैं मुख्यमंत्री बना उस समय केवल तीन घंटे बिजली आती थी। सड़कों का अता-पता नहीं था। अब मध्यप्रदेश की विकास दर 11.08 प्रतिशत है जो देश में सर्वाधिक है। पिछले 10 वर्ष से लगातार प्रदेश की विकास दर डबल डिजिट में है। उस समय सिंचाई केवल 7.5 लाख हेक्टेयर में बा-मुश्किल हो पाती थी। अब सिंचाई का रकबा बढ़कर 27.5 लाख हेक्टेयर हो गया है। उन्होंने कहा कि कृषि में 24.99 प्रतिशत विकास दर के साथ मध्यप्रदेश देश ही नहीं दुनिया में सबसे आगे है। प्रदेश गेहूँ उत्पादन में पिछले वर्ष हरियाणा से आगे था। इस वर्ष पंजाब से भी आगे होगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। प्रदेश की औद्योगिक विकास दर भी अच्छी है पर इससे अभी संतोष नहीं। उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिये श्री चौहान ने पिछली ग्लोबल इन्वेटर्स समिट का विशेष उल्लेख किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश बहुत अच्छा प्रदेश है। यहाँ निवेशकों को आशातीत सफलता मिलेगी।श्री चौहान ने प्रदेश के पर्यटक आकर्षणों का भी अपने संबोधन में विशेष रूप से उल्लेख किया। उन्होंने कहा यहाँ तीन विश्व धरोहर हैं। नौ नेशनल पार्क हैं जहाँ बाघ से सीधा साक्षात्कार होता है। बारह ज्योर्तिलिंगों में से दो महाकालेश्वर एवं ओंमकारेश्वर मध्यप्रदेश में हैं। अगले वर्ष अप्रैल में 12 वर्ष बाद सिंहस्थ होने जा रहा है। उज्जैन में होने वाले इस महाकुंभ में सनातन परम्परा के अनुसार शाही स्नान तो होगा ही साथ ही यह सिंहस्थ विश्व को मानवता, पर्यावरण सुधार, बेटी बचाओ, सभी धर्मों की मूलभूत एकता और नैतिकता का संदेश भी देगा। विश्व विख्यात विद्वतजन इन विषय पर सिंहस्थ में विचार-विमर्श करेंगे। मुख्यमंत्री ने सम्मेलन में आये प्रवासी भारतीय को सिंहस्थ आने का भी निमंत्रण दिया। प्रमुख सचिव श्री एस.के. मिश्रा मुख्यमंत्री के साथ गाँधीनगर (गुजरात) गये थे।गुजरात के गांधीनगर में चल रहे ‘ब्राइवेंट गुजरात’ में मध्यप्रदेश के जैविक उत्पादों, जैविक खेती सहित अन्य जैविक स्टॉल्स का जलवा दिखा। प्रवासी भारतीय सम्मेलन में आए मेहमानों ने भी इनकी जमकर तारीफ की। इसके अलावा मध्यप्रदेश की स्कीमों को भी खूब सराहा गया। गांधीनगर में ब्राइवेंट गुजरात का आयोजन चल रहा है। यह आयोजन 7 जनवरी से शुरू हुआ है और 13 तक चलेगा। इसमें देशभर के कई राज्यों ने भागीदारी की है। इनमें मध्यप्रदेश के जैविक उत्पादों, जैविक खेती सहित मध्यप्रदेश की स्कीमों के भी स्टॉल लगाए गए हैं। इन स्टॉलों पर बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं और इन स्कीमों के बारे में समझ रहे हैं।7 जनवरी से शुरू हुए इस आयोजन में अब तक 30 हजार से ज्यादा मेहमानों ने मध्यप्रदेश के स्टॉलों को देखा। गांधीनगर में हुए प्रवासी भारतीय सम्मेलन में आए देशी-विदेशी मेहमानों ने भी इनको देखा एवं तारीफ की। साथ ही जैविक उत्पादों को खरीदने में भी दिलचस्पी दिखाई।एमपी के स्टॉलों पर आने वाले लोग जैविक खेती के बारे में जानकारी ले रहे हैं।

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Dakhal News 10 January 2015


इको फ्रेंडली महाकुम्भ

मध्यप्रदेश में सिंहस्थ की तैयारियां चल रही हैं। ऐसे में नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की ईको फ्रेंडली अवधारणा ने भारतीय धार्मिक परंपराएं और आयोजन कभी पूर्णत: ईको फ्रेंडली ही हुआ करते थे लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद कृत्रिम तरीके से पैदा हुए उत्पादों ने इस स्थिति को ध्वस्त कर दिया है। आज चारों तरफ धार्मिक परंपराओं में प्लास्टिक रसायन और कृत्रिम उत्पादों को प्रचालन लगातार बड़ रहा है। इससे इस बात पर अधिक ध्यान गया कि हम सिंहस्थ जैसे विशाल आयोजनों को ईको फ्रेंडली तरीके से आयोजित करें। हालांकि इस अवधारणा को और व्यापक बनाने की आवश्यकता है। पूरी तरह से अमल में नहीं आई है, जैसे जैसे यह अवधारण गति करेगी कई नई चीजों को पता भी चलेगा। अभी इसमें ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की बात की जा रही है, यातायात आदि को इसमें शामिल किया है। आने वाले वक्त में इसमें पानी की स्वच्छता, प्लास्टिक उत्पादों को रोकने, रसायनों के न्यूनतम इस्तेमाल और कचरे का वैज्ञानिक तरीकों से निपटान को शामिल किया गया है।धार्मिक परंपराओं के तहत किसी समय पेड़ों की पूजन, जंगलों की रक्षा, पानी की स्वच्छता को बनाए रखने की परंपराएं कायम थीं लेकिन अब ये समाप्त हो चुकी हैं और कुछ समाप्त होने के करीब हैं। पर्यावरण अनुकूल आयोजनों में इन सब बातों का ख्याल रखना एक बड़े बदलाव का संकेत हो सकता है। इन आयोजनों में वृक्षा रोपड़ को भी शामिल किया जा सकता है। कुछ वृक्षों को अनादि काल से आज तक पूजा जाता है। लोक-आस्था और लोक-विश्वास के अतिरिक्त धार्मिक ग्रंथों में इनकी महिमा, गुण एवं उपयोगिता वैज्ञानिक कसौटी पर खरी उतरती है। कुछ वृक्षों को वैसा ही सम्मान दिया जाता है, जैसे पुरातन पुरुषों को दिया जाता है। कुछ वृक्ष केवल वंदनीय ही नहीं होते, अपितु औषधीय गुणों से परिपूर्ण होते हैं, इसलिए सेवन करने के लिए उपयोगी होते हैं। आंवला, बहेड़ा, आम आदि वृक्ष बेहद उपयोगी होते हैं। इसलिए यज्ञ में समिधा के निमित्त इनकी लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है। इस तरह इन वृक्षों के साथ हमारा गहरा और आत्मीय रिश्ता है। सदाबहार वन अगर इस धरती को शीतल छाया और समृद्धि प्रदान करते हैं तो उसकी गोद से निकली धाराएं अपने अमृत से धरती को सींचती हैं और प्राणीयों के जीवन को आधार भी प्रदान करती है। वन, वायु, जल, भूमि, आकाश हमारे लिए प्रकृति के अमूल्य उपहार हैं। मानव की संस्कृति का विकास इन्हीं के मध्य हुआ है। मानव ने अपनी संस्कृति व सभ्यता का विकास नदियों के किनारों से किया। नदियां हमारे अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जल देती हैं, इसलिए ये हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। वायु और जल, पृवी पर जीवन के अस्तित्व के लिए नितांत आवश्यक हैं। वेदों में इनके प्रति हार्दिकता का गान गाया है। ऐसे में मानवीय सभ्यता की समझ जब विकसित हो रही है तो हमें अपनी परंपराओं में इसको जोड़ना ही होगा। वैज्ञानिक दृष्टिकोण अब हर आयोजन के साथ जोड़ी जानी चाहिए।

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Dakhal News 22 December 2014


स्मार्ट फोन ,उच्च वेतनमान और ग्रामीण परिवहन

शिवराज सरकार की तीन सौगातेंमुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में सम्पन्न मंत्रि-परिषद् की बैठक में ऐसे शासकीय सेवकों को तृतीय उच्च वेतनमान देने का निर्णय लिया गया जिन्हें शासकीय सेवा में नियुक्ति की तिथि से दो पदोन्नत/क्रमोन्नत/समयमान वेतनमान का ही लाभ प्राप्त हुआ है और जिन्होंने एक जुलाई 2014 अथवा इसके बाद की तिथि से 30 वर्ष या इससे अधिक अवधि की सेवा पूरी कर ली हो। इस निर्णय के फलस्वरूप सरकार पर 418 करोड़ रुपये का व्यय भार आयेगा।शासकीय सेवक की तीसरे उच्च वेतनमान के लिये सेवावधि की गणना वर्तमान सेवा के आधार पर प्रतियोगी/चयन परीक्षा के माध्यम से किसी सीधी भर्ती के पद पर कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से होगी। ऐसे शासकीय सेवक जिन्हें सेवा की समयावधि के आधार पर समयमान वेतनमान की पात्रता बनती है तथा देय समयमान वेतनमान/ग्रेड वेतन उस शासकीय सेवक को लागू भर्ती नियमों में उसके पदोन्नत पद के वेतनमान/ग्रेड वेतन से न्यून है, तब पदोन्नत पद के लिये भर्ती नियमों में निर्धारित शैक्षणिक अर्हताएँ समयमान/वेतनमान की पात्रता के लिये विचार में नहीं ली जायेंगी।प्रदेश के दूरस्थ गाँवों तथा आदिवासी अँचलों में सुरक्षित और आरामदेह सार्वजनिक परिवहन सेवा उपलब्ध करवाने के लिये मंत्रि-परिषद् ने मुख्यमंत्री ग्रामीण परिवहन योजना लागू करने का निर्णय लिया। इससे इन क्षेत्रों का आर्थिक और सामाजिक विकास भी होगा। योजना में ग्रामीण मार्ग उन्हें माना जायेगा, जो गाँवों को निकट के मुख्य मार्गों अथवा ब्लॉक/तहसील(जिला मुख्यालय को छोड़कर) से जोड़ते हों। इन मार्गों का अंश मुख्य मार्ग भी हो सकते हैं, किन्तु यह अंश 10 किलोमीटर से अधिक नहीं होगा।इन मार्गों पर चलने वाली वाहनों को खास रंग दिया जायेगा ताकि उनकी अलग से पहचान हो सके और उनका दुरुपयोग अन्य क्षेत्रों में न किया जाये। वाहनों पर दोनों तरफ 'मुख्यमंत्री ग्रामीण परिवहन सेवा' लिखा रहेगा। यह वाहन जीपीएस से युक्त होंगे।मंत्रि-परिषद् ने पारम्परिक कारीगरों की बेहतरी के लिये मुख्यमंत्री कारीगर समृद्धि योजना लागू करने का निर्णय लिया। योजना में अनौपचारिक रूप से प्रशिक्षित कारीगरों को तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग द्वारा प्रशिक्षण एवं प्रमाणीकरण की व्यवस्था की जायेगी। योजना में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में सबसे पहले मध्यप्रदेश भवन एवं संन्निर्माण कर्मकार निर्माण मंडल में पंजीकृत निर्माण श्रमिकों का प्रमाणीकरण किया जायेगा। योजना में निर्माण क्षेत्र में संलग्न 5000 व्यक्ति का प्रमाणीकरण किया जायेगा, जिस पर लगभग 3 करोड़ रुपये का खर्च आयेगा। सबसे पहले यह योजना इंदौर, भोपाल, सीहोर और जबलपुर जिले में लागू की जायेगी। पीढ़ियों से विभिन्न कौशलपूर्ण कार्यों में लगे कारीगरों को इस योजना का लाभ मिलेगा और उनके जीवन में समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा।मंत्रि-परिषद् ने दृष्टिपत्र संकल्प-2013 के अनुसार उच्च शिक्षा विभाग के महाविद्यालयों में प्रथम वर्ष में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों को स्मार्ट फोन देने का निर्णय लिया। विद्यार्थियों की उपस्थिति प्रवेश दिनांक से स्मार्ट फोन वितरण किये जाने तक 75 प्रतिशत अनिवार्य होगी। सभी शासकीय महाविद्यालयों के विद्यार्थियों को यह सुविधा मिलेगी और इसमें किसी प्रकार का बंधन नहीं होगा।मंत्रि-परिषद् ने मध्यप्रदेश में 18 वर्ष तक के गंभीर परिस्थितियों में रहने वाले, सड़क पर कूड़ा बीनने वाले एवं बेसहारा बच्चों के पुनर्वास के लिये संचालित समेकित बाल संरक्षण योजना को पुनरीक्षित वित्तीय मापदंडों के अनुसार लागू करने को मंजूरी दी है। योजना में ऐसे बच्चों को समुचित संरक्षण और पोषण दिया जाता है। वर्तमान में राज्य-स्तर पर राज्य परियोजना सहायता इकाई, राज्य बाल संरक्षण समिति, राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन अभिकरण और जिला स्तर पर जिला बाल संरक्षण समिति, बाल कल्याण समिति, किशोर न्याय बोर्ड, शासकीय तथा अशासकीय गृह संचालित हैं।

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Dakhal News 3 September 2014


स्मार्ट फोन ,उच्च वेतनमान और ग्रामीण परिवहन

शिवराज सरकार की तीन सौगातेंमुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में सम्पन्न मंत्रि-परिषद् की बैठक में ऐसे शासकीय सेवकों को तृतीय उच्च वेतनमान देने का निर्णय लिया गया जिन्हें शासकीय सेवा में नियुक्ति की तिथि से दो पदोन्नत/क्रमोन्नत/समयमान वेतनमान का ही लाभ प्राप्त हुआ है और जिन्होंने एक जुलाई 2014 अथवा इसके बाद की तिथि से 30 वर्ष या इससे अधिक अवधि की सेवा पूरी कर ली हो। इस निर्णय के फलस्वरूप सरकार पर 418 करोड़ रुपये का व्यय भार आयेगा।शासकीय सेवक की तीसरे उच्च वेतनमान के लिये सेवावधि की गणना वर्तमान सेवा के आधार पर प्रतियोगी/चयन परीक्षा के माध्यम से किसी सीधी भर्ती के पद पर कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से होगी। ऐसे शासकीय सेवक जिन्हें सेवा की समयावधि के आधार पर समयमान वेतनमान की पात्रता बनती है तथा देय समयमान वेतनमान/ग्रेड वेतन उस शासकीय सेवक को लागू भर्ती नियमों में उसके पदोन्नत पद के वेतनमान/ग्रेड वेतन से न्यून है, तब पदोन्नत पद के लिये भर्ती नियमों में निर्धारित शैक्षणिक अर्हताएँ समयमान/वेतनमान की पात्रता के लिये विचार में नहीं ली जायेंगी।प्रदेश के दूरस्थ गाँवों तथा आदिवासी अँचलों में सुरक्षित और आरामदेह सार्वजनिक परिवहन सेवा उपलब्ध करवाने के लिये मंत्रि-परिषद् ने मुख्यमंत्री ग्रामीण परिवहन योजना लागू करने का निर्णय लिया। इससे इन क्षेत्रों का आर्थिक और सामाजिक विकास भी होगा। योजना में ग्रामीण मार्ग उन्हें माना जायेगा, जो गाँवों को निकट के मुख्य मार्गों अथवा ब्लॉक/तहसील(जिला मुख्यालय को छोड़कर) से जोड़ते हों। इन मार्गों का अंश मुख्य मार्ग भी हो सकते हैं, किन्तु यह अंश 10 किलोमीटर से अधिक नहीं होगा।इन मार्गों पर चलने वाली वाहनों को खास रंग दिया जायेगा ताकि उनकी अलग से पहचान हो सके और उनका दुरुपयोग अन्य क्षेत्रों में न किया जाये। वाहनों पर दोनों तरफ 'मुख्यमंत्री ग्रामीण परिवहन सेवा' लिखा रहेगा। यह वाहन जीपीएस से युक्त होंगे।मंत्रि-परिषद् ने पारम्परिक कारीगरों की बेहतरी के लिये मुख्यमंत्री कारीगर समृद्धि योजना लागू करने का निर्णय लिया। योजना में अनौपचारिक रूप से प्रशिक्षित कारीगरों को तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग द्वारा प्रशिक्षण एवं प्रमाणीकरण की व्यवस्था की जायेगी। योजना में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में सबसे पहले मध्यप्रदेश भवन एवं संन्निर्माण कर्मकार निर्माण मंडल में पंजीकृत निर्माण श्रमिकों का प्रमाणीकरण किया जायेगा। योजना में निर्माण क्षेत्र में संलग्न 5000 व्यक्ति का प्रमाणीकरण किया जायेगा, जिस पर लगभग 3 करोड़ रुपये का खर्च आयेगा। सबसे पहले यह योजना इंदौर, भोपाल, सीहोर और जबलपुर जिले में लागू की जायेगी। पीढ़ियों से विभिन्न कौशलपूर्ण कार्यों में लगे कारीगरों को इस योजना का लाभ मिलेगा और उनके जीवन में समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा।मंत्रि-परिषद् ने दृष्टिपत्र संकल्प-2013 के अनुसार उच्च शिक्षा विभाग के महाविद्यालयों में प्रथम वर्ष में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों को स्मार्ट फोन देने का निर्णय लिया। विद्यार्थियों की उपस्थिति प्रवेश दिनांक से स्मार्ट फोन वितरण किये जाने तक 75 प्रतिशत अनिवार्य होगी। सभी शासकीय महाविद्यालयों के विद्यार्थियों को यह सुविधा मिलेगी और इसमें किसी प्रकार का बंधन नहीं होगा।मंत्रि-परिषद् ने मध्यप्रदेश में 18 वर्ष तक के गंभीर परिस्थितियों में रहने वाले, सड़क पर कूड़ा बीनने वाले एवं बेसहारा बच्चों के पुनर्वास के लिये संचालित समेकित बाल संरक्षण योजना को पुनरीक्षित वित्तीय मापदंडों के अनुसार लागू करने को मंजूरी दी है। योजना में ऐसे बच्चों को समुचित संरक्षण और पोषण दिया जाता है। वर्तमान में राज्य-स्तर पर राज्य परियोजना सहायता इकाई, राज्य बाल संरक्षण समिति, राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन अभिकरण और जिला स्तर पर जिला बाल संरक्षण समिति, बाल कल्याण समिति, किशोर न्याय बोर्ड, शासकीय तथा अशासकीय गृह संचालित हैं।

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Dakhal News 3 September 2014


ओलापीड़ित किसानों की बेटियों के विवाह पर मिलेंगे 25 हजार रुपये

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि ओला वृष्टि से प्रभावित किसानों की बेटियों की शादी पर कन्यादान योजना के अलावा 25 हजार रुपये की राशि दी जायेगी। यह सुविधा अगली फसल आने तक जारी रहेगी। श्री चौहान आज शिवपुरी जिले के ग्राम गुरावल में ओला पीड़ित किसानों को संबोधित कर रहे थे। राजस्व मंत्री श्री रामपाल सिंह तथा उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया भी उनके साथ थीं।मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि किसानों पर जब भी आपदा आयी है, राज्य सरकार ने कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ दिया है। उन्होंने कहा कि किसानों को फसल बीमा का 2127 करोड़ रुपये का लाभ दिलवाया है। उन्होंने कहा कि आज फिर संकट की घड़ी आयी है। इससे निपटने के लिये सरकार फिर से उनके साथ खड़ी है। उन्होंने कहा कि ऐसे किसान, जिनकी 50 प्रतिशत से अधिक फसल नष्ट हुई है, उनकी कर्ज वसूली स्थगित कर दी गई है। अगली फसल आने तक उन्हें चावल और गेहूँ एक रुपये किलो की कीमत पर दिया जायेगा। किसी भी किसान को अगर सर्वे से कोई शिकायत है तो पुन: उसका सर्वे करवाया जायेगा।मुख्यमंत्री चौहान ने गुरावल पहुँचते ही देवेन्द्र सिंह और ताराचन्द्र के खेत पर जाकर फसल का जायजा लिया। उन्होंने आश्वस्त किया कि नष्ट हुई फसल का पूरा मुआवजा दिया जायेगा।

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Dakhal News 20 March 2015


जैविक खेती बढ़ाने निजी क्षेत्र आया आगे

मध्यप्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिये राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों में सहयोग के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने वाली है। हाल ही में मण्डला में हुए राष्ट्रीय जैविक कृषि उत्सव में विभिन्न कम्पनी ने जैविक खेती उत्पादों के साथ 20 एमओयू कर हस्ताक्षर किये। उल्लेखनीय है कि भारत में होने वाले जैविक खेती उत्पादन में मध्यप्रदेश का योगदान 40 प्रतिशत है। राज्य सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिये जैविक कृषि नीति भी लागू की है।मण्डला में राष्ट्रीय जैविक कृषि उत्सव में लेन्टस इंद्रा प्रायवेट लिमिटेड, भोपाल द्वारा कान्हा कृषि वनोपज उत्पादक प्रोडयूसर कम्पनी, बिछिया जिला मण्डला के साथ 30 गाँव में जैविक खेती के कार्य में समग्र सहयोग के लिये एमओयू किया। राय ब्रदर्स आर्गेनिक एग्रो प्रायवेट लिमिटेड, इंदौर ने 5 एमओयू किये गये। इनमें ग्रीन हेवन आर्गेनिक, इंदौर के साथ 500 क्विंटल प्रोसेस्ड पल्सेस और मसाले के लिये, सशक्त किसान प्रोडयूसर कम्पनी गोहपारू जिला शहडोल के साथ 3 टन हल्दी, 10 टन मिलेट और एक टन अदरक के लिये, हरिओम आर्गेनिक प्रोडक्ट जबलपुर के साथ 200 क्विंटल फ्लेक्स बीज, मिलेट्स और चावल के लिये, कान्हा कृषि वनोपज उत्पादक प्रोडयूसर कम्पनी बिछिया जिला मण्डला के 2000 क्विंटल मिलेट्स, छिंदीकपूर और आसाम कोटी चावल के लिये तथा मण्डला ट्रायबल फार्मर प्रोडयूसर कम्पनी पोडीलिंगा मण्डला के साथ 300 क्विंटल मिलेट्स एवं रॉय के लिये किये गये एमओयू शामिल हैं।हरिओम आर्गेनिक प्रोडक्ट जबलपुर ने प्राकृत उन्नत आजीविका फार्मर्स प्रोडयूसर कम्पनी डिण्डोरी के साथ 500 क्विंटल मिलेट्स, अलसी और रामतिल के लिये तथा कान्हा कृषि वनोपज उत्पादक प्रोडयूसर कम्पनी बिछिया जिला मण्डला के साथ 500 क्विंटल कोदो कुटकी के लिये एमओयू किये।नेचर बॉयो फूड लिमिटेड, नई दिल्ली द्वारा कान्हा कृषि वनोपज उत्पादक प्रोडयूसर कम्पनी बिछिया जिला मण्डला के साथ 200 क्विंटल धान, कोदो कुटकी, मक्का, सरसों, गेहूँ और मटर के लिये तथा आजीविका प्रोडयूसर कम्पनी श्योपुर के साथ 200 क्विंटल बासमती धान और सोयाबीन के लिये एमओयू किये।दिव्या पृथ्वी एग्रोनॉमिक्स प्रायवेट लिमिटेड महाराष्ट्र द्वारा कान्हा कृषि वनोपज उत्पादक प्रोडयूसर कम्पनी बिछिया जिला मण्डला के साथ 300 क्विंटल आँवला, हर्रा, बहेड़ा, बेल और नागरमोथा के लिये तथा आजीविका प्रोडयूसर कम्पनी लिमिटेड, श्योपुर के साथ 200 क्विंटल एनटीएफपी के लिये, ग्रीन हेवन आर्गेनिक इंदौर द्वारा आजीविका प्रोडयूसर कम्पनी लिमिटेड, श्योपुर के साथ 500 क्विंटल गेहूँ, मक्का और चावल के लिये, एमपी विंध्या जैविक एवं हर्बल डेव्हलपमेंट फाउण्डेशन, जबलपुर द्वारा कान्हा कृषि वनोपज उत्पादक प्रोडयूसर कम्पनी बिछिया जिला मण्डला के साथ 500 क्विंटल आँवला, हर्रा, बहेड़ा और कान्हा राइस तथा प्राकृत उन्नत आजीविका प्रोडयूसर कम्पनी लिमिटेड, डिण्डोरी के साथ 100 क्विंटल कोदो कुटकी, चावल और विष्णु भोग के लिये एमओयू किये गये।नवभारत एग्रो छिंदवाड़ा द्वारा 3 एमओयू किये गये। इनमें कान्हा कृषि वनोपज उत्पादक प्रोडयूसर कम्पनी बिछिया जिला मण्डला के साथ 2000 क्विंटल उन्नत तरबूज के लिये, बुढ़नेर नर्मदा महिला संघ, मण्डला के साथ 2000 क्विंटल उन्नत तरबूज तथा 1000 नग उन्नत बकरियों के लिये एमओयू शामिल हैं। इसी तरह लवकुश क्राप प्रोडयूसर कम्पनी लिमिटेड रायसेन द्वारा कान्हा कृषि वनोपज उत्पादक प्रोडयूसर कम्पनी बिछिया जिला मण्डला के साथ 500 क्विंटल मक्का तथा कान्हा कृषि वनोपज उत्पादक प्रोडयूसर कम्पनी बिछिया जिला मण्डला द्वारा अजय राय जिला सिवनी के साथ 3000 क्विंटल मक्का 9133 के लिये एमओयू किया गया।

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Dakhal News 28 October 2014


दीक्षांत समारोह में गाउन नहीं

एमपी के उच्च शिक्षा मंत्री उमा शंकर गुप्ता ने कहा कि विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह में गाउन की जगह कोई दूसरा ड्रेस तय किया जाये। उन्होंने कहा कि इसके लिये विश्वविद्यालयों के कुलपति की समिति बनाई जाये। समिति के प्रतिवेदन के आधार पर नियम बनाये जायें। श्री गुप्ता ने कहा कि कक्षा में विद्यार्थियों और फेकल्टी की उपस्थिति सुनिश्चित करें। जरूरी हो तो टीचिंग मेथड बदलें। विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों के परीक्षा हॉल में सी.सी. टी.व्ही. केमरे लगवायें। उन्होंने कहा कि डीपीसी हर छह माह में करें। विश्वविद्यालय के क्षेत्र में आने वाले प्रत्येक जिले के लीड कॉलेज में जून-2015 तक क्षेत्रीय कार्यालय खोल दिया जाये। प्रशासक हैं तो निर्णय लेने में कोताही नहीं बरतें। पेपर बनाने और कॉपी जाँचने से इंकार करने वाले प्राध्यापकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। उच्च शिक्षा मंत्री गुप्ता ने यह निर्देश विश्वविद्यालयों के कुलपति की बैठक में दिये। उच्च शिक्षा राज्य मंत्री दीपक जोशी ने कहा कि क्षेत्रीय कार्यालय की मॉनीटरिंग के लिये सहायक/उप रजिस्ट्रार की ड्यूटी लगाई जाये।उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि सभी विश्वविद्यालय में रिक्त शैक्षणिक एवं अशैक्षणिक पदों पर भर्ती समय-सीमा में करें। कुलपतियों ने बताया कि कार्यवाही प्रचलन में है। उन्होंने कहा कि शैक्षणिक स्टॉफ की भर्ती छात्रों की विषयवार प्रवेश संख्या के आधार पर पदों का युक्ति-युक्तकरण कर करें।शोध और रिसर्च पेपर की जानकारी भेजेंउच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि सभी फेकल्टी उनके द्वारा करवाये गये शोध और प्रकाशित रिसर्च पेपर की जानकारी शासन को भेजें। उन्होंने कहा कि यह जानकारी विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर भी अपलोड की जाये। श्री गुप्ता ने कहा कि पी-एच.डी. का कार्य समय पर पूर्ण किया जाना चाहिये।जन-सुनवाई कुलपति स्वयं करेंउच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि प्रति मंगलवार जन-सुनवाई कुलपति स्वयं करें। जन-सुनवाई में प्राप्त प्रकरणों पर हुई कार्यवाही की जानकारी प्रतिमाह भेजें।श्री गुप्ता ने कहा कि रेगिंग को चुनौती के रूप में लें। हर हाल में इसे रोकें। रेगिंग करने वालों के प्रति कोई सदभावना नहीं रखें। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों की समस्याओं का निराकरण विश्वविद्यालय-स्तर पर ही करें। ऐसी नौबत नहीं आये कि विद्यार्थी को सी.एम. हेल्प-लाइन का सहारा लेना पड़े। श्री गुप्ता ने कहा कि स्वच्छता अभियान को निरंतर जारी रखें। यह अभियान फोटो खिंचवाने के लिये नहीं है।शर्तें पूरी नहीं करने वाले कॉलेजों की मान्यता निरस्त होगीउच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि सभी प्रायवेट कॉलेज का निरीक्षण करवाया जायेगा। शर्तें पूरी नहीं करने पर उनकी मान्यता का नवीनीकरण नहीं किया जायेगा। उन्होंने कहा कि निजी कॉलेज खोलने की अनुमति क्षेत्र विशेष की आवश्यकता के आधार पर ही की जायेगी। कॉलेज की जन-भागीदारी समिति को 50 लाख तक के तथा इसके ऊपर की राशि के कार्य स्वीकृत करने के अधिकार कमिश्नर उच्च शिक्षा को होंगे। संभाग-स्तर पर कॉमर्स कॉलेज खोले जायेंगे। श्री गुप्ता ने कहा कि सभी बड़े कॉलेज में कन्या छात्रावास बनवाये जायेंगे। बैठक में प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा श्री के.के. सिंह, आयुक्त उच्च शिक्षा श्री सचिन सिन्हा सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।

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Dakhal News 16 October 2014


करण के ध्यानचंद होंगे शाहरुख़

हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने का मामला भले ही खटाई में पड़ा हो लेकिन करण जौहर उन पर फिल्म बना रहे हैं और सब ठीक रहा तो शाहरुख़ खान एक बार फिर परदे पर ध्यानचंद बन के हॉकी खेलते नजर आएंगे । '' मेजर ध्यानचंद '' एक आम आदमी की कहानी है कि कैसे अंग्रेजों के ज़माने में एक सामन्य घर का लड़का फ़ौज में जाता है । दिनभर कड़ी मेहनत और शाम से चांदनी रात में हॉकी का अभ्यास।लक्ष्य सबसे अच्छा खेलना और जीतना और यही जिद और जुनून उसे जर्मनी में हिटलर के सामने ला देती है ,हिटलर जब इस आम फौजी को कई प्रलोभन देता है तो ध्यानचंद कह देता है पहले हिंदुस्तान और सब बाद में। आम लड़के के फौजी और फौजी से हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद बनने की दास्तान को परदे पर ल रहे हैं करण जौहर उनकी इस फिल्म को निर्देशित करेंगे रोहित वैद्य। पिछले दो साल से इसकी कथा पर काम चल रहा है और अब सब ठीक रहा तो अभिनेता शाहरुख़ खान परदे पर ध्यानचंद के रूप में हॉकी खेलते नजर आएंगे।अपने पिता को भारत रत्न दिए जाने की मांग कर रहे ध्यानचंद के पुत्र हॉकी खिलाडी अशोक ध्यानचंद अपने पिता के जीवन पर फिल्म बनाये जाने की खबर से खासे खुश नजर आये । ध्यानचंद ने उस समय हॉकी खेलना शुरू किया था जब लोग हॉकी के बारे में ज्यादा जानते तक नहीं थे । मेजर ध्यानचंद के पुत्र पूर्व ओलम्पियन और मध्यप्रदेश हॉकी अकादमी के कोच इस समय हॉकी की नई पौध तैयार करने में लगे हैं । उनके पास जब मेजर ध्यानचंद पर फिल्म बनाने का प्रस्ताव आया तो उन्होंने सहज स्वीकार कर लिया । इससे पहले शाहरुख़ खान ने चक दे इण्डिया में मीररंजन नेगी का किरदार अदा किया था और एथलीट मिल्खा सिंह ,बॉक्सर मेरीकॉम पर बनी फिल्म भी सुर्ख़ियों में रही हैं । बीटाउन में इन दिनों टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के जीवन पर बन रही फिल्म "एमएस धोनी-द अनटोल्ड स्टोरी" के बेहद चर्चे है। करण जौहर ने इस बारे में टि्वटर पर जानकारी दी। उन्होंने ट्वीट किया, मेरी दोस्त पूजा...आरती और मैं इस बात से खुश और गौरवान्वित हैं कि हमें महान खिलाड़ी ध्यानचंद की कहानी को दिखाने का अधिकार मिला है। आपको बतादें हॉकी का जादूगर कहे जाने वाले स्वर्गीय ध्यानचंद की मौजूदगी में भारतीय टीम ने 1928, 1932 और 1936 में स्वर्ण पदक जीता था।

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Dakhal News 10 September 2014


रेडक्रास को भी देना  होगी जनता के पैसे से किए कामों की जानकारी

राज्य सूचना आयुक्त का महत्वपूर्ण फैसलामप्र राज्य सूचना आयोग ने भारतीय रेडक्रास सोसायटी से चाही गई जानकारी उपलब्ध कराने के लिए सीएमएचओ को आदेशित किया है। यह जानकारी देने से रेडक्रास ने यह कह कर इंकार कर दिया था कि रेडक्रास पर आरटीआई अधिनियम लागू नहीं होता। संभागीय संयुक्त संचालक, स्वास्थ्य सेवाएं तथा जिला कलेक्टर ने भी इसी आधार पर अपीलार्थी की प्रथम अपील खारिज कर दी थी।राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने द्वितीय अपील की सुनवाई कर गत दिवस पारित आदेश में कहा कि अपीलार्थी ने रेडक्रास द्वारा आशा कार्यकर्ताओं को दिए गए प्रशिक्षण पर हुए व्यय संबंधी जानकारी मांगी है। राष्टीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत आशा कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने रेडक्रास को सौंपा तथा इसके लिए उसे भुगतान किया। इस बारे में हुए अनुबंध के तहत रेडक्रास चिकित्सा विभाग को प्रशिक्षण संबंधी जानकारी देने को बाध्य है। अत: लोक सूचना अधिकारी एवं सीएमएचओ गुना, रेडक्रास सोसायटी गुना से वांछित जानकारी एकत्र कर अपीलार्थी वीरेंद्र शर्मा गुना को 15 दिन में पंजीकृत डाक से निशुल्क उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें और यथाशीघ्र आयोग के समक्ष पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करें। संभागीय संयुक्त संचालक की ओर से सुनवाई में कहा गया कि आयोग के आदेश पर आपीलार्थी को वांछित जानकारी मुहैया करा दी जाएगी।आयोग ने की महत्वपूर्ण टिप्पणीसूचना आयुक्त आत्मदीप ने फैसले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा-‘‘भारतीय रेडक्रास सोसायटी का गठन संसद द्वारा पारित अधिनियम 1920 के अंतर्गत हुआ। इस सोसायटी के संरक्षक राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रपति, राज्य स्तर पर राज्यपाल तथा जिला स्तर पर कलेक्टर हैं। आयोग की दृष्टि में ऐसी संस्थाओं से अपेक्षा की जा सकती है कि भले ही वे शासन से नियमित अनुदान प्राप्त न होने/शासन से सारत: वित्तपोषित न होने से आरटीआई अधिनियम की परिधि में न आती हों, किंतु वे शासन के प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोग तथा दानदाताओं से प्राप्त दानराशि से संचालित हैं। उनके क्रियाकलाप व्यापक लोकहित से संबंधित हैं। अत: ऐसी संस्थाओं द्वारा आरटीआई को मात्र कानूनी दृष्टि से देखने की बजाए लोकहित में स्वेच्छा से अंगीकार किया जाना चाहिए। स्वयं के कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करने तथा जनता के प्रति जवाबदेही प्रदर्शित करने की दृष्टि से ऐसा किया जाना चाहिए।’’ आयोग ने यह भी कहा कि आयोग के मत में रेडक्रास को उसके द्वारा शासन से राशि प्राप्त कर क्रियान्वित किए गए कामों से संबंधित जानकारी देने से गुरेज नहीं करना चाहिए। केंद्रीय मुख्य सतर्कता आयुक्त व सतर्कता आयुक्तों की नियुक्ति संबंधी प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणी की है, उसका भावार्थ भी यही है कि पारदर्शिता ऐसा मानक है, जो जनहित के सभी सार्वजनिक कार्यों में तो अपनाया ही जाना चाहिए।कलेक्टर ने किया था इंकारनिर्णित प्रकरण में सचिव रेडक्रास गुना की दलील थी कि रेडक्रास अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था है, जिसे शासकीय अनुदान प्राप्त नहीं है। अत: किसी व्यक्ति को रेडक्रास से आरटीआई के तहत जानकारी लेने का अधिकार नहीं है। कलेक्टर गुना के आदेश में भी कहा गया था कि रेडक्रास पर आरटीआई कानून इसलिए लागू नहीं होता, क्योंकि यह संस्था शासन के स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन व सरकार से सारत: वित्त पोषित नहीं है। ऐसे निकाय/गैर सरकारी संस्थान जिसे सालाना टर्नओवर का 50 प्रतिशत या 50 हजार रुपए, जो भी कम हो, शासन या उसकी किसी संस्था से अनुदान के रूप में प्राप्त नहीं होता है, तो ऐसी संस्था आरटीआई एक्ट की परिधि में नहीं आती हैं। आयोग ने इन तर्कों के पार जाकर फैसला सुनाया है।

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Dakhal News 26 September 2014


भोपाल-इंदौर के बीच बनेगी स्मार्ट सिटी

मुख्यमंत्री चौहान की स्मार्ट सिटी कम्पनी से चर्चा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तीन दिवसीय दुबई यात्रा के पहले दिन उन्होंने स्मार्ट सिटी दुबई के सी.ई.ओ. अब्दुल लतीफ अल मुल्ला से मुलाकात की। श्री अब्दुल लतीफ ने विशेषताओं की जानकारी देते हुए मध्यप्रदेश में स्मार्ट सिटी के निर्माण में दिलचस्पी दिखाई। यह तय हुआ कि कम्पनी इंदौर और भोपाल के मध्य स्मार्ट सिटी की संभावनाओं को तलाशेगी। इस उद्देश्य से कम्पनी के विशेषज्ञों का एक दल प्रदेश का भ्रमण करेगा।स्मार्ट सिटीस्मार्ट सिटी ज्ञान आधारित व्यावसायिक शहरों के विकास के क्षेत्र में अग्रणी नाम है। अभी तक इसने मध्य एशिया में 12 बिजनेस टाउनशिप और 5 इण्डस्ट्री कलस्टर विकसित किये हैं। स्मार्ट सिटी दुबई इंटरनेट सिटी, दुबई मीडिया सिटी और दुबई नॉलेज विलेज के सफल मॉडलों पर आधारित है। जहाँ ज्ञान आधारित कम्पनियों आधुनिकतम अधोसंरचना परिवेश और सपोर्ट सिस्टम उपलब्ध करवाया जाता है। केरल के कोच्चि में विकसित की जा रही स्मार्ट सिटी एक आत्म-निर्भर औद्योगिक शहर होगा जहाँ ज्ञान आधारित कम्पनियाँ काम करेंगी। यह भारत का सबसे बड़ा बिजनेस पार्क होगा।इस अवसर पर नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता और उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया उपस्थित थे।मुख्यमंत्री चौहान और कम्पनी के अधिकारियों के बीच इस बात पर भी सहमति बनी कि कम्पनी अक्टूबर माह में इंदौर में होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में भाग लेगी।नखील प्रापर्टीज मुख्यालय का भ्रमणमुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मध्यप्रदेश के उच्च स्तरीय प्रतिनिधि-मंडल ने बुधवार की देर शाम को दुबई स्थित नखील प्रापर्टीज के मुख्यालय का भी भ्रमण किया। नखील प्रापर्टीज के सीईओ श्री संजय मनचंदा ने मुख्यमंत्री को कम्पनी की जानकारी दी। नखील दुबई में एक रियल एस्टेट डेव्हलपर है और इसने अनेक लेंड रिकलेमेशन परियोजनाओं पर काम किया है। इनमें पॉम आइलेंडस दुबई, वाटर फ्रन्ट और वर्ल्ड एंड द यूनीवर्स आइलेंडस शामिल हैं। प्रापर्टीज ने अनेक आवासीय परियोजनाओं पर भी काम किया है। जिनमें दि गार्डन्स, इंटरनेशनल सिटी, जुमेरियाह आइलेंडस एण्ड जुमेरियाह लेंड टावर्स शामिल है। प्रापर्टीज के शापिंग प्रोजेक्टस में ड्रेगन मार्ट और इब्न बतूता मॉल शामिल है।

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Dakhal News 23 August 2014


एक कॉल 181 से होगी शिकायत दूर

सी.एम. हेल्पलाइन का लोकार्पण एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि मध्यप्रदेश में सभी सुखी हों, निरोगी हों, सबका कल्याण हों, कोई दुखी ना रहे, यही शासन व्यवस्था का ध्येय है। इसी की पूर्ति के लिये प्रदेश में सी.एम. हेल्पलाइन 181 प्रारंभ की गई है।श्री चौहान ने प्रदेश की सुशासन व्यवस्था को अधिक चुस्त-दुरूस्त और जनहित में सक्रिय करने की ऐतिहासिक पहल करते हुए भोपाल में सी.एम. हेल्पलाइन का लोकार्पण किया। देश में अपने तरह की अनूठी इस हेल्पलाइन से प्रदेश के विभिन्न विभाग के पाँच हजार अधिकारी-कर्मचारियों को जोड़ा गया है। ये अधिकारी इस हेल्पलाइन से प्राप्त समस्याओं का निराकरण करेंगे। हेल्पलाइन के नि:शुल्क टोल नम्बर 181 से जन-कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी भी प्राप्त की जा सकेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि किसी प्रदेशवासी को अपनी समस्या के लिये भटकना नहीं पड़े, यह हेल्पलाइन जनहेतु-जनसेतु के रूप में कार्य करेगी। समस्या का पूर्ण निराकरण होने पर आवेदक की संतुष्टि के पश्चात ही यहाँ दर्ज किया गया प्रकरण बंद किया जायेगा।श्री चौहान ने कहा कि प्रत्येक शासन व्यवस्था का कर्त्तव्य है कि विकास करे, जन कल्याणकारी योजनाएँ बनायें और उनकी सबको जानकारी देकर बेहतर क्रियान्वयन सुनिश्चित करें। मध्यप्रदेश में इन तीनों पर लगातार ध्यान देने का ही परिणाम है कि कभी बीमारू कहा जाने वाले इस राज्य ने देश में ही नहीं विश्व में सर्वाधिक 24.99 प्रतिशत कृषि विकास दर और देश में सबसे अधिक 11.02 प्रतिशत विकास दर हासिल की है। सभी वर्गों के कल्याण की योजनाएँ बनी हैं। सबकी समस्याओं के समय पर निराकरण, योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा के लिये परख, समाधान ऑन लाइन तथा लोक सेवा गारंटी अधिनियम जैसी व्यवस्थाएँ लागू की गयीं। उन्होंने कहा कि आज युग बदल रहा है। आमजन क्यों भटके। यह हेल्पलाइन शुरू की गयी है जिसमें कोई भी अपने मोबाइल टेलीफोन द्वारा जहाँ है वहीं से 181 डायल कर अपनी बात शासन तक पहुँचा सकेगा। श्री चौहान ने अधिकारियों से कहा कि इस हेल्पलाइन को चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए अपनी दक्षता तथा कर्मठता का परिचय दें।मुख्यमंत्री चौहान ने सी-21 मॉल में स्थापित सी.एम. हेल्प लाइन का अवलोकन किया। उन्होंने यहाँ हेल्प लाइन एक्जीक्यूटिव पूजा देशवाड़ी तथा ललिता वर्मन से हेल्प लाइन संचालन के बारे में जानकारी ली। उन्होंने इस हेल्प लाइन में आ रहा फोन कॉल भी रिसीव किया।लोक सेवा प्रबंधन मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि सरकार सबसे पीछे और गरीब जरूरतमंद तक पहुँचे तभी प्रजातंत्र की सार्थकता है। सी.एम. हेल्पलाइन देश में पहली बार लोक सेवा की गारंटी देने वाले राज्य का सुशासन की दिशा में एक सशक्त प्रयास है। उन्होंने कहा कि जनता से सीधे जुड़ने की देश में यह पहली अभिनव पहल है। शासन की योजनाओं का लाभ आवेदक, घर से फोन कर प्राप्त कर सकता है। उन्होंने कहा कि इस सेवा के क्रियान्वयन में कोई कमी नहीं रहने दी जायेगी। भविष्य में आवश्यकतानुसार सुधार भी किये जायेंगे। कार्य की मॉनीटरिंग के लिये वे स्वयं भी सप्ताह में एक दिन हेल्प लाइन की समीक्षा करेंगे।सचिव लोक सेवा प्रबंधन हरिरंजन राव ने बताया कि छह माह के प्रयोग और प्रशिक्षण के उपरांत यह सेवा तैयार की गई हैं। टोल-फ्री नम्बर पर प्रतिदिन पाँच से लेकर 10 हजार कॉल रिसीव कर संबंधित अधिकारी को मामले निराकरण के लिये भेजे जायेंगे। यही नहीं, निराकरण की स्थिति से भी आवेदकों को अवगत करवाया जायेगा। हेल्पलाइन में 100 से अधिक कॉल एक साथ रिसीव करने की व्यवस्था है। उन्होंने कहा कि यह प्रयास फेसलेस गव्हर्नमेन्ट का उत्कृष्ट नमूना है। उन्होंने बताया कि परीक्षण अवधि में ही इस हेल्प लाइन में 12 लाख फोन रिसीव हुए हैं। उन्होंने कहा कि नागरिकों की संतुष्टि के सर्वोच्च मानदण्ड स्थापित करने की कोशिश होगी।आभार अविनाश लवानिया ने माना। संचालन सुधीर कोचर ने किया। कॉल सेंटर के संबंध में विस्तृत जानकारी देने वाला ऑडियो-वीडियो प्रस्तुतिकरण भी किया गया। प्रारंभ में मुख्यमंत्री सहित अतिथियों ने दीप-प्रज्जवलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

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Dakhal News 1 August 2014


भ्रष्टाचार से अर्जित सम्पत्ति से बने भवन में स्कूल खुला

राजसात सम्पत्ति जन-उपयोग में लाई गयी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत राजसात किये गये एक आलीशान भवन को शासकीय स्कूल और आँगनवाड़ी केन्द्र के लिये समर्पित किया। प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुख्यमंत्री द्वारा चलाये गये अभियान के तहत राजसात सम्पत्ति को जनता को लोकार्पित करने का यह पहला मामला है। मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार करने वाले किसी भी व्यक्ति को छोड़ा नहीं जायेगा और भ्रष्ट आचरण के साथ कमाई गई सम्पत्ति को सरकार राजसात कर जन-उपयोग में लायेगी।इस मौके पर परिवहन मंत्री भूपेन्द्र सिंह, महापौर कृष्णमुरारी मोघे, इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शंकर लालवानी और विधायक मालिनी गौड़ उपस्थित थीं।मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ देश का सबसे बेहतर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम मध्यप्रदेश में बनाया गया है। इस अधिनियम में ऐसे लोक सेवक जो भ्रष्टाचार और अन्य आर्थिक गड़बड़ियों में लिप्त हैं, उनके विरूद्ध प्रकरण दर्ज किये जा रहे हैं। यह प्रकरण विशेष न्यायालय द्वारा निराकृत किये जा रहे हैं जिसकी अवधि एक साल तय की गई है। दोषी पाये जाने पर आय से अधिक सम्पत्ति रखने वाले शासकीय कर्मियों की सम्पत्ति को राजसात किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज का आयोजन ऐसी ही एक सम्पत्ति को जनता को सौंपने का अवसर है। उन्होंने कहा कि लोक सेवकों की श्रेणी में मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक और अधिकारी-कर्मचारी शामिल है।मुख्यमंत्री चौहान ने राजसात संपत्ति के आलीशान भवन में शासकीय विद्यालय और आँगनवाड़ी केन्द्र का शुभारंभ किया। उन्होंने स्वयं विद्यालय में सतीश महादेव को तथा आँगनवाड़ी में राखी उपाध्याय का नाम दर्ज कर उन्हें प्रवेश दिया। मुख्यमंत्री ने नव-प्रवेशित बच्चों का स्वागत किया और उन्हें पाठय-पुस्तक वितरित की।उल्लेखनीय है कि लोकायुक्त संगठन द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना देवास के उप यंत्री श्री अरविंद तिवारी के विरुद्ध कार्रवाई कर चालान प्रस्तुत करने पर विशेष न्यायालय द्वारा संबंधित की सम्पत्ति को राजसात करने के आदेश प्रदान किये गये थे। संबंधित द्वारा कब्जा नहीं सौंपने पर कलेक्टर इंदौर श्री आकाश त्रिपाठी द्वारा श्री तिवारी की सम्पत्तियों का अधिग्रहण कर सुदामा नगर स्थित आलीशान भवन को प्राथमिक विद्यालय और आँगनवाड़ी स्थापित करने के लिये आवंटित किया गया। करीब 1700 वर्ग फीट के प्लाट पर लगभग 2500 वर्ग फीट में निर्मित इस भवन में अब प्राथमिक विद्यालय और आँगनवाड़ी संचालित होंगे।

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Dakhal News 12 July 2014


न्यूज़ एक्सप्रेस ,साई प्रसाद ग्रुप के ठिकाने पर छापा

चिटफंडियों का एक दफ्तर सील ग्वालियर में न्यूज एक्सप्रेस की आड़ में चल रहे साई प्रसाद ग्रुप के तहत संचालित कंपनियां मैसर्स साई प्रसाद फूड लिमिटेड, मैसर्स साई प्रसाद प्रापर्टीज लिमिटेड और साईप्रसाद कारपोरेशन के एक ठिकाने को जिला प्रशासन ने मंगलवार को कुर्क करके सील कर दिया। छापमार कार्रवाई के दौरान प्रशासनिक टीम को चिटफंड कारोबार चालू रहने के सुबूत मिले हैं। समूह की परिसंपत्ति का सर्वे कर उसे प्रशासन सील करेगा। ताकि छह हजार से अधिक आवेदकों को उनका पैसा वापस कराया जा सके।एसडीएम अजयदेव शर्मा, विदिशा मुखर्जी अखिलेश जैन के नेतृत्व में सिटी सेंटर स्थित न्यूज एक्सप्रेस गुप के नाम से संचालित परिसर में छापा मारा। गहन छानबीन की गई तो यहां चिटफंड कारोबार के तमाम दस्तावेज मिले। इनमें डिबेंचर, निवेशकों के चेक, पॉलिसियां, नोट गिनने की तीन मशीनें और साईप्रसाद ग्रुप्स के तीनों कंपनियों की सीलें बरामद हुई। कार्रवाई के दौरान कंपनी का कोई आधिकारिक प्रतिनिधि नहीं मिला। निचले स्तर के कर्मचारी जरूर मिले। जिनके पंचनामा पर हस्ताक्षर करा लिए गए। प्रशासन से समूची हार्ड डिस्क और सॉफ्टवेयर आदि जब्त कर पूरे परिसर को विधिवत सील कर दिया।ये प्रशासनिक कार्रवाई कलेक्टर पी नरहरि के धारा 144 के तहत जारी आदेश के तहत हुई। प्रशासनिक जानकारी के मुताबिक जिले में इसके छह हजार से अधिक निवेशक हैं। जिनकी देनदारी करीब दस करोड़ से अधिक है। प्रशासनिक जानकारी 2011 के आकलन पर आधारित है। कार्रवाई के दौरान जांच टीम में तहसीलदार डीडी शर्मा, नायब तहसीलदार योगिता बाजपेयी, मधुलिका सिंह, राजस्व निरीक्षक संदीप तिवारी,शिवदयाल शर्मा और महेन्द्र यादव शामिल रहे।प्रशासन निवेशकों के मदद के लिए वचनबद्ध हैं। किसी भी गैर वैधानिक कंपनी को कामकाज नहीं करने दिया जाएगा। लोगों का पैसा वापस हो। इसके लिए अभी और प्रभावी कार्रवाई की जाएगी।- पी नरहरि,कलेक्टरकोरियर ने उगली सच्चाईप्रथम दृष्टया जांच अफसरों को कोई खास जानकारी नहीं मिली। तभी अचानक वहां कुरियर पहुंचा। चिटफंड प्रकोष्ठ की प्रभारी अफसर विदिशा मुखर्जी ने तत्काल उससे पूछताछ की। पूछताछ में उससे पूछा क्या लाए हो, बोला कि साईप्रसाद फूड की डाक है। कब से ला रहे हो, मैं ही हमेशा लाता हूं।तब तक कुरियर वाला समझ नहीं पाया कि सवाल दागने वाले ये लोग कौन है? उसने देखा कि दूर पुलिस भी है तो वह समझ गया कि जांच हो रही है। बोला साहब मैं जाऊं। इसके बाद अफसरों ने कुरियर के लिफाफे को खोल तो उसमें साईप्रसाद फूड और प्रापर्टीज के लिए काम कर रहे एजेंटों के कमीशन का विवरण था। आठ कमीशन एजेंटों का मई माह का कमीशन दो लाख से अधिक बताया गया।फैक्ट फाइलवष्ाü 2011 में तत्कालीन कलेक्टर ने साईप्रसाद फूड एवं प्रापर्टीज के कार्यालयों पर कार्रवाई की थी। तब ये मामला हाईकोर्ट में चला गया। तब प्रभावी कार्रवाई से ये ग्रुप बच गया था।जबलपुर हाईकोर्ट में रिट याचिका क्रमांक 6371/2011,6451/2011 एवं 11247/2011 पीआईएल तथा रिट अपील 596/2011 में 12 मई 2014 को आदेश पारित किया गया। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि ये ग्रुप जमा स्वीकार नहीं कर सकता। क्योंकि रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने इस कंपनी को जनता से जमा स्वीकार करने के लिए पंजीयन प्रमाण पत्र नहीं दिया है। इस कंपनी ने कलेक्टर से मध्यप्रदेश निक्षपकों के हित संरक्षण अधिनियम के तहत लेन देने की अनुमति भी नहीं ली।जबलपुर हाईकोर्ट ने कलेक्टर्स को कार्रवाई के लिए लिखा।हाईकोर्ट के आदेश के पालन के लिए मध्यप्रदेश वित्त विभाग ने सभी कलेक्टर्स को प्रभावी कार्रवाई के लिए लिखा था।[पत्रिका से साभार ]

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Dakhal News 25 June 2014


एमपी में प्रति व्यक्ति आय में 350 प्रतिशत से अधिक वृद्धि

दिनेश मालवीयबीते कुछ वर्षों से मध्यप्रदेश सरकार द्वारा कृषि के क्षेत्र में की जा रही पुरजोर कोशिशों के चलते मध्यप्रदेश ने कृषि विकास दर का नया इतिहास रच दिया है। केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन, नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2013-14 के अग्रिम अनुमान के अनुसार मध्यप्रदेश में कृषि विकास दर 24.99 प्रतिशत रही। इसमें पशुपालन भी शामिल है।उल्लेखनीय है कि कृषि के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य के लिये भारत सरकार द्वारा लगातार दो वर्ष से मध्यप्रदेश को प्रतिष्ठित कृषि कर्मण अवार्ड से नवाजा जा रहा है। वर्ष 2012-13 में प्रदेश की कृषि विकास दर 20.16 प्रतिशत तथा वर्ष 2011-12 में 19.85 प्रतिशत रही थी।कृषि क्षेत्र में आधार वर्ष 2004-05 में सकल घरेलू उत्पाद से आय 31238.30 करोड़ रुपये थी, जो वर्ष 2013-14 में बढ़कर 69249.89 करोड़ रुपये हो गई। इस प्रकार आधार वर्ष की तुलना में यह वृद्धि 121 प्रतिशत है। प्रदेश में वर्ष 2004-05 में गेहूँ का उत्पादन 73 लाख 27 हजार मीट्रिक टन था, जो वर्ष 2013-14 में बढ़कर 193 लाख मीट्रिक टन हो गया है। इसी तरह सोयाबीन उत्पादन 37 लाख 60 हजार मीट्रिक टन से बढ़कर 50 लाख मीट्रिक टन और चावल का उत्पादन 13 लाख 09 हजार मीट्रिक टन से बढ़कर 69 लाख 50 हजार मीट्रिक टन हो गया है। इन फसलों के अंतर्गत क्षेत्रफल 104 लाख 80 हजार हेक्टेयर से बढ़कर 140 लाख 15 हजार हेक्टेयर हो गया, जो 34 प्रतिशत अधिक है।उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012-13 में सभी खाद्यान्नों में 278 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ था। इसमें कुल गेहूँ 161 लाख मीट्रिक टन था। सकल अनाज के उत्पादन की वृद्धि में इस प्रकार मध्यप्रदेश गत वर्ष की तुलना में दोहरे अंक से ज्यादा की बढ़त हासिल करते हुए देश में सर्वाधिक कृषि उत्पादन वृद्धि वाला राज्य बना।नवाचारी योजनाएँकृषि के क्षेत्र में नवाचारों में भी मध्यप्रदेश आगे रहा है। विशेष रूप से उल्लेखनीय पहल जो मध्यप्रदेश में हुई उसमें जीरो प्रतिशत ब्याज पर कृषि ऋण, बीज उत्पादन सहकारी समितियों का विस्तार, गेहूँ, धान, मक्का, चने के खाद्यान्नों में बीज प्रतिस्थापन दर में उल्लेखनीय वृद्धि प्राप्त करना, कृषि केबिनेट का गठन, हलधर योजना के माध्यम से किसानों के खेतों में गहरी जुताई, रिज एण्ड फरो का वितरण, श्री पद्धति से धान उत्पादन, संकर मक्का का 90 प्रतिशत अनुदान पर किसानों को वितरण, यंत्रदूत ग्राम योजना में 139 ग्राम को विकसित किया जाना, उर्वरक के अग्रिम भंडारण की योजना, ई-उपार्जन जैसे अभिनव नवाचारों को विशेष रूप से मध्यप्रदेश में अपनाया गया। सिंचित क्षेत्र का भी तेजी से विस्तार हुआ, जिससे गेहूँ और अन्य सिंचित फसलों की उत्पादकता बढ़ी।आर्थिक विकासप्रति व्यक्ति आय प्रचलित मूल्यों परवर्ष प्रति व्यक्ति आय2004-05 15,4422005-06 16,6312006-07 19,0282007-08 20,9352008-09 25,2782009-10 28,6512010-11 32,4532011-12 37,9792012-13 44,9892013-14 54,030 केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा वर्ष 2013-14 के लिये जारी अग्रिम अनुमान के अनुसार मध्यप्रदेश की सकल राज्य घरेलू उत्पाद दर स्थिर मूल्यों पर 11.08 प्रतिशत है। देश के बड़े राज्यों में यह सबसे अधिक है। आधार वर्ष 2004-05 में मध्यप्रदेश का सकल घरेलू उत्पाद 112926.89 करोड़ था, जो वर्ष 2013-14 में बढ़कर 238526.47 करोड़ हो गया है। इस प्रकार आधार वर्ष की तुलना में वित्तीय वर्ष 2013-14 में राज्य सकल घरेलू उत्पाद में 111 प्रतिशत वृद्धि हुई है।प्रति व्यक्ति आयमध्यप्रदेश की प्रति व्यक्ति आय में आधार वर्ष की तुलना में 350 प्रतिशत से अधिक की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्ष 2004-05 में प्रचलित मूल्यों पर मध्यप्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 15 हजार 442 थी, जो वर्ष 2013-14 में बढ़कर 54 हजार 30 रुपये हो गई है। यह वृद्धि लगातार हर वर्ष होती आ रही है।(dakhal)

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Dakhal News 31 May 2014


इन्वेस्टर्स समिट में फल-सब्जी उद्योग के निवेश पर भी चर्चा होगी

मध्यप्रदेश में आगामी 8 से 10 अक्टूबर को इंदौर में होने जा रही इन्वेस्टर्स समिट में फल-सब्जी उद्योग में निवेश पर भी उद्योगपतियों से चर्चा की जायेगी। समिट में फल-सब्जी संबंधी उद्योग के बारे में जानकारी देकर निवेशकों से मध्यप्रदेश में उद्योग स्थापित करने का अनुरोध किया जायेगा। यह जानकारी उद्यानिकी एवं खाद्य प्र-संस्करण मंत्री सुश्री कुसुम महदेले की अध्यक्षता में स्टेट एग्रो इण्डस्ट्रीज डेव्हलपमेंट कार्पोरेशन के संचालक मण्डल की बैठक में दी गई। बैठक में जनसंपर्क आयुक्त एवं एग्रो के प्रबंध संचालक एस.के. मिश्रा भी उपस्थित थे।बैठक में कुसुम महदेले ने एग्रो द्वारा जिलों में स्थापित बॉयोगैस संयंत्रों का सर्वे करवाने के निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि जिन व्यक्तियों के निवास पर बॉयोगैस संयंत्र स्थापित हैं, उनके टेलीफोन नम्बर एकत्रित किये जायें। सुश्री महदेले ने एग्रो की चालू वित्तीय वर्ष की व्यवसायिक प्रगति की समीक्षा करते हुए आगामी मार्च, 2015 तक निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने को कहा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रत्येक व्यक्ति के प्रति सकारात्मक सोच रखते हैं। उनकी इसी मंशा के अनुरूप एग्रो अपने हितग्राहियों को योजनाओं का लाभ पहुँचाए।एग्रो की गतिविधियों की जानकारी देते हुए एस.के. मिश्रा ने बताया कि बॉयोगैस संयंत्र के संबंध में शीघ्र ही पन्ना, दमोह और शिवपुरी का सर्वे करवाया जायेगा। उन्होंने बताया कि कृषि को प्रोत्साहन देने की मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप किसानों को अत्याधुनिक कृषि संयंत्र उपलब्ध करवाये जा रहे हैं। एग्रो द्वारा इस वर्ष अगस्त माह तक 367 करोड़ 35 लाख रुपये का व्यवसाय किया गया है, जो निर्धारित लक्ष्य का 26.33 प्रतिशत है। चालू माली साल में क्षेत्रीय कार्यालय में कम्प्यूटर, प्रिंटर आदि उपलब्ध करवाये जा रहे हैं। प्रदेश में इस वर्ष अगस्त तक 1529 बॉयोगैस संयंत्र स्थापित किये गये हैं और 401 संयंत्र निर्माणाधीन हैं। बॉयोगैस संयंत्र को शौचालय से जोड़ने के लिये 1200 रुपये प्रति संयंत्र के मान से अतिरिक्त वित्तीय सहायता उपलब्ध करवायी जायेगी। इस साल बॉयोगैस संयंत्रों के संबंध में 10 मेसन प्रशिक्षण और 75 उपभोक्ता प्रशिक्षण कार्यक्रम होंगे।

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Dakhal News 10 March 2014


एमपी में गेहूँ एक रूपये और चावल दो रूपये प्रतिकिलो

मध्यप्रदेश में गरीब परिवारों को अब एक दिन की मजदूरी में पूरे माह का राशन मध्यप्रदेश में बी.पी.एल और अंत्योदय परिवारों को एक दिन की मजदूरी से पूरे माह का राशन मिलेगा। यह संभव होगा मुख्यमंत्री शिवराज सिहं चौहान के निर्देश पर राज्य शासन द्वारा जून 2013 से अंत्योदय और बी.पी.एल. परिवारों को एक रूपये प्रति किलोग्राम गेहूँ और 2 रूपये प्रति किलोग्राम चावल उपलब्ध करवाने के निर्णय से । खाद्यान्नों के मूल्य में यह विशेष रियायत मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना के अंतर्गत दी जायेगी। योजना में वर्तमान में अंत्योदय परिवारों को 35 किलो और बी.पी.एल परिवारों को 20 किलो खाद्यान्न प्रति माह उपलब्ध करवाया जा रहा है।उल्लेखनीय है कि वर्तमान में अंत्योदय परिवारों को गेहूँ 2 रूपये प्रति किलोग्राम और चावल 3 रूपये प्रति किलोग्राम उपलब्ध करवाया जा रहा है। बी.पी.एल परिवारों को गेहूँ 3 रूपये प्रति किलोग्राम और चावल 4रूपये 50 पैसे प्रति किलोग्राम की दर पर उपलब्ध हो रहा है।मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ के बाद देश का पहला ऐसा प्रदेश होगा जो इन विशेष रियायती दरों पर गरीब परिवारों को खाद्यान्न उपलब्ध करवायेगा। इस विशेष रियायती दर पर खाद्यान्न की उपलब्घता से प्रदेश की लगभग आधी आबादी अर्थात् 3.5 करोड़ गरीब नागरिक लाभान्वित होंगे। इनमें 8 लाख परिवार अंत्योदय श्रेणी के और 56 लाख परिवार बी.पी.एल. श्रेणी के होंगे।राज्य शासन के इस महत्वपूर्ण और लोक हितैषी फैसले से राज्य सरकार पर करीब 360 करोड़ रूपये का अतिरिक्त सबसिडी भार आयेगा। वर्तमान में मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना के अंतर्गत प्रदेश में अंत्योदय परिवारों को 35 किलोग्राम खाद्यान्न और बीपीएल परिवारों को 20 किलोग्राम खाद्यान्न प्रतिमाह उपलब्ध करवाया जाता है। इस पर राज्य सरकार पहले ही 440 करोड़ की सबसिडी का भार उठा रही है।मध्यप्रदेश में बीपीएल और अंत्योदय परिवारों को विशेष रियायती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध करवाने का राज्य शासन का यह फैसला भारत सरकार के प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक से भी एक कदम आगे का फैसला है। खाद्य सुरक्षा विधेयक में 2 रूपये प्रति किलोग्राम गेहूँ और 3 रूपये प्रति किलोग्राम चावल उपलब्ध करवाया जाना प्रस्तावित है।यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश को केन्द्र सरकार से वर्तमान में बी.पी.एल परिवारों के लिये प्राप्त खाद्यान्न 5 रूपये प्रति किलोग्राम गेहूँ और 6.50 रूपये प्रति किलोग्राम चावल की दर पर प्राप्त हो रहा है। इस खाद्यान्न को हितग्राही परिवारों को उपलब्ध करवाने के लिये परिवहन और सहकारी और शीर्ष समितियों के कमीशन पर होने वाला व्यय राज्य सरकार पहले से ही वहन कर रही है।अब प्रदेश के सभी विकासखण्डों में एक रूपये किलो की दर से आयोडीनयुक्त नमकराज्य सरकार ने एक ओर महत्वपूर्ण निर्णय जून 2013 से प्रदेश के सभी 313 विकासखण्ड में बी.पी.एल और अंत्योदय परिवारों को प्रति माह एक रूपये प्रति किलोग्राम की विशेष रियायती दर से आयोडीनयुक्त नमक उपलब्ध करवाने का भी लिया है। वर्तमान में प्रदेश के सिर्फ 89 अनुसूचित जनजाति बहुल विकासखण्ड में यह सुविधा प्रदाय की जा रही है।इस फैसले का उद्देश्य यह है कि न केवल अनुसूचित जनजाति के परिवारों बल्कि प्रदेश के सभी बी.पी.एल और अंत्योदय परिवारों को स्वस्थ पोषण के लिये आयोडीनयुक्त नमक सस्ती से सस्ती दर पर उपलब्ध हो सके।इस अहम फैसले पर अमल से राज्य शासन पर 40 करोड़ रूपये सालाना का अतिरिक्त व्यय भार आयेगा, जो वर्तमान में सिर्फ 25 करोड़ था।इस तरह आयोडीनयुक्त नमक को एक रूपये प्रति किलोग्राम की विशेष दर पर प्रदेश के सभी अंत्योदय और बी.पी.एल परिवारों को उपलब्ध करवाने पर राज्य शासन कुल 65 करोड़ रूपये सालाना का भार वहन करेगा।[दखल]

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Dakhal News 23 April 2013


इस साल गेहूँ  पर खर्च होंगे 22,000 करोड़

मध्यप्रदेश में इस साल 2013-14 में समर्थन मूल्य पर गेहूँ के उपार्जन कार्य के लिये लगभग 22,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की जा रही है। किसानों को उनकी फसल के मूल्य के भुगतान में कोई परेशानी न हो, इसके लिये भी पर्याप्त धनराशि रखी गई है। गेहूँ उपार्जन के अनुमानित लक्ष्य 110 लाख मीट्रिक टन को ध्यान में रखते हुए अकेले बोनस राशि के लिये 1050 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। गेहूँ खरीदी के पहले चरण में अब तक चार संभाग में एक लाख 9 हजार मीट्रिक तक गेहूँ की खरीदी की जा चुकी है।प्रदेश में चालू रबी विपणन वर्ष में 110 लाख मीट्रिक टन गेहूँ खरीदी का अनुमान है। यह खरीदी प्रदेशभर में स्थापित 2847 खरीदी केन्द्र के माध्यम से की जायेगी। केन्द्रों की यह संख्या गत वर्ष की तुलना में 531 अधिक है। रबी विपणन वर्ष 2012-13 से प्रारंभ हुए ई-उपार्जन के अंतर्गत समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न उपार्जन के लिये सम्पूर्ण व्यवस्था का कम्प्यूटराइजेशन करवाया गया है। किसानों से सुविधाजनक तथा पारदर्शी व्यवस्था के अंतर्गत गेहूँ का उपार्जन करने के लिये एस.एम.एस. अलर्ट सुविधा का प्रावधान कर कार्य को और बेहतर स्वरूप देने के प्रयास किये गये हैं। इस साल अभी तक लगभग 14 लाख 33 हजार किसान ने अपना पंजीयन करवाया है।गेहूँ खरीदी के अनुमान को दृष्टिगत रखते हुए बारदानों की व्यवस्था का काम योजनाबद्ध तरीके से प्रारंभ किया गया था, ताकि प्रत्येक उपार्जन केन्द्र पर बारदानों की पर्याप्त उपलब्धता खरीदी के दौरान बनी रहे। अब तक कुल 5 लाख गठान उपलब्ध हो चुकी हैं, जिससे लगभग 110 लाख मीट्रिक टन गेहूँ की खरीदी की जा सकती है। इस वर्ष गेहूँ के विक्रय में बारदाना इत्यादि को लेकर कोई अवरोध उत्पन्न न हो, ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।बेहतर परिवहन और मॉनीटरिंग के लिये गेहूँ उपार्जन बहुल जिलों को सेक्टरों में विभाजित किया गया है। स्टेट सिविल सप्लाईज कार्पोरेशन को 23 जिलों में तथा मार्कफेड को 27 जिलों में गेहूँ के उपार्जन की एजेंसी बनाया गया है। कार्पोरेशन के 23 जिलों में 73 सेक्टर बनाये गये हैं। इसी प्रकार विपणन संघ के 27 जिलों के लिये 45 सेक्टर बनाये गये हैं। प्रत्येक सेक्टर में पृथक-पृथक परिवहनकर्ता नियुक्त किये गये हैं। एक परिवहनकर्ता को अधिकतम दो सेक्टर का ही कार्य दिया गया है। प्रत्येक रेलवे रेक पाइंट पर एक परिवहनकर्ता की नियुक्ति की गई है।बेहतर और अनुभवी परिवहनकर्ता नियुक्त करने के उद्देश्य से टेण्डर की शर्तों में विशेष प्रावधान किये गये हैं। इनमें वाहनों का फिटनेस प्रमाण-पत्र अनिवार्य किया जाना, कार्य का अनुभव एक वर्ष तथा बैंक साल्वेंसी प्रत्येक कार्य के लिये 10 लाख रुपये की अनिवार्यता की गई है। इसके अतिरिक्त उपार्जन कार्य के लिये आवश्यक ट्रकों की सूची अनुबंध के समय प्रस्तुत करना अनिवार्य करने के साथ ही परिवहन में विलम्ब होने की दशा में 2 रुपये प्रति क्विंटल प्रतिदिन का दण्डात्मक प्रावधान किया गया है। उपार्जन के दौरान आने वाली कठिनाइयों के निराकरण के लिये शासन स्तर पर दो टोल-फ्री दूरभाष क्रमांक 155343 एवं 18002335343 स्थापित किये गये हैं।[दखल]

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Dakhal News 23 March 2013


Wheat to be procured at Rs. 1500 per quintal in Madhya Pradesh

shafali gupta Wheat will be procured at support price of Rs. 1500 per quintal in Madhya Pradesh. The State Government has increased bonus on wheat procurement to Rs. 150 per quintal. For farmers’ convenience, power tariff for them has been fixed at Rs. 1200 per horsepower per year. Farmers will have to pay electricity bills only twice a year. Cases against farmers for recovery of electricity bill dues will be redressed by organising special Lok Adalats. A special campaign will be launched to provide copies of khasra maps and loan books to farmers. Chief Minister Shivraj Singh Chouhan made these announcements at Kisan Mahapanchayat here today. Former Union Minister Shri Rajnath Singh was the chief guest at this massive congregation of farmers.The Chief Minister also announced Mukhyamantri Kisan Videsh Addhyan Bhraman Yojna to apprise them of latest farming techniques underway in foreign countries. He said that disposal of cases pertaining to non-controversial nomination, division and demarcation of land will be brought under the purview of the Public Service Delivery Guarantee Act. Reiterating the resolve to increase irrigation facility for ensuring good cultivation, he said that six lakh hectare irrigation capacity will be increased every year. Every inch of land will be irrigated. Narmada-Kshipra Link Project work will be completed at the earliest. The project will irrigate 16 lakh hectare in Malwa region apart from providing drinking water to 3000 villages and 72 towns.The Chief Minister said that core banking is being introduced in cooperative banks for depositing funds under various schemes directly in farmers accounts. About wheat procurement, he said that there will be no problem of gunny bags this time. Every grain will be procured from farmers. At present, wheat procurement arrangements exist in 108 mandis. Arrangements will be made in 102 additional mandis also. He said that custom hiring centres will be opened. Target to extend benefit of 80 percent subsidy on sprinkler will be increased five fold. One hundred small industries will be established in kodo-kutki producing areas. Chouhan said that SMS service will be launched to acquaint farmers with important information regarding cultivation. Rs. one thousand crore will be spent on group horticulture scheme by forming farmers’ group. Similarly, a Rs. 75 crore scheme will be introduced for motivating use of modern cultivation methods abolishing method of sprinkling seeds in fields. Urging farmers to adopt new agriculture methods, the Chief Minister advised them to use Madagascar method for paddy, poly-house for vegetables, ridge & furrow method for soybean and other modern methods.The Chief Minister urged the Union Government to increase wheat procurement price to Rs. 1600 per quintal and announced support price for kodo-kutki. About doda-chura production, he said that if the Union Government has asked farmers to burn it then it should give compensation to farmers. Describing hike in prices of DAP ferliter as injustice, the farmers cannot be allowed to remain at the mercy of market only. Urding the Union Government to roll back diesel price, he said that diesel price should not be hiked frequently.Shri Chouhan said that the Union Government does not recognise 25 to 50 percent loss to crop as natural calamity. The State Government provides relief from its own resources at this percent. Now the maximum limit of providing relie against loss to crops due to natural calamity will be increased from Rs. 40 thousand to Rs. 50 thousand. In the state, relief will be provided to farmers even if loss is below 25 percent. About report regarding recent loss to crops due to frost, he directed officers to conduct survey immediately throughout the state and provide relief amounts to affected farmers.Shri Chouhan said that the Union Government has exercised discrimination regarding fertilisers. He urged farmers to store fertilisers in advance. No interest will be payabe on this. Shri Chouhan said that there will be no shortage of power for farmers now. All villages will get 24-hour power supply from May this year. For this, feeder separation work is being done at a rapid pace. A sum of Rs. 11 thousand crore has been spent on feeder separation and distribution system. State will get rid of darkness for good. This year, irrigation facility will be provided in 24 lakh hectare. The Chief Minister asked farmers to motivate youths to establish small industries in villages availing benefit of availability of power. Mukhyamantri Yuva Swarozgar Yojna is being launched from April this year. Under it, loan upto Rs. 25 lakh will be provided to young entrepreneurs and the State Government will also bear 5 percent interest subsidy for 5 years.Let India become agriculture capital of worldFormer Union Minister Rajnath Singh said that Madhya Pradesh has done a charismatic work by achieving 18.9 percent agriculture growth rate. Its credit goes to farmers and Madhya Pradesh government. India would have been world’s most powerful country, if plans were made by recognising importance of agriculture. There should be balanced economic growth in India. Seeing India’s progress in information technology it is tipped to become world’s intellectual capital. But greater happiness will be experienced if the country becomes agriculture capital of the world.Shri Singh said that majority of Indian population is engaged in agriculture. They are both the biggest producers and biggest consumers. Industries and business will progress only with economic development of farmers. He said that dearness as well as fiscal loss is increasing and value of rupee is declining. Economy cannot be strengthened by bringing funds from abroad. Whoever comes from abroad comes to earn profit. Therefore, decision of introducing FDI in retail sector should be withdrawn. There is no dearth of human resources and natural resources in India. The country can become the richest in the world by tapping then resourcefully.He said that Madhya Pradesh has done a miracle by increasing area under irrigation upto to 21 lakh. He urged the Union Government to include irrigation in concurrent list. MNREGA should be linked with agriculture so that people can get employment in agriculture-related works also. Seed Bank should be established at each district headquarters to provide quality seeds to farmers. Bank accounts of all farmers should be opened. A plan should be chalked out to fix agricultural income and farmers be provided benefit of crop insurance. Tax should not be levied on tractors, thrashers and other agricultural implements. Agriculture should be declared as national occupation.Member of Parliament Narendra Singh Tomar said that Madhya Pradesh government has given top priority to agriculture. As a result, Madhya Pradesh became the best state in agriculture. Record production and procurement of wheat was registered. About 85 lakh metric tonnes of wheat was procured and payment of Rs. 814 crore was made to farmers. Power generation has been increased from 2600 MW to 9000 MW during last seven years. Adequate power, fertilisers, seeds and water have been provided to farmers. This helped Madhya Pradesh become the pioneer state in food grains production. It is a matter of pride for farmers of Madhya Pradesh.At the outset, Agriculture Minister Dr. Ramkrishna Kusmaria delivered the welcome address. He said that important decisions have been taken in the state like extension of loan to farmers at zero percent rate and formation of Agriculture Cabinet, irrigation potential was increased that resulted into record agrictulture production and bestowal of Krishi Karman Award on the state.As a representative of farmers at Kishan Panchayat, Smt. Radhabai Dube of Raisen district said that meadows should be protected for removing shortage of fodder. Shri Ramesh Verma of Bhopal district said that bonus on wheat procurement should be continued. Shri Kashinath of Betul said that farmers should be allowed to pay electricity bills once a year. Shri Yogendra Joshi of Ujjain district said that cooperative banks should be connected with core banking and field staff of the Agriculture Department should be increased. Shri Bharatlal Patidar of Alirajpur district said that subsidies on the Agriculture Department’s schemes should be increased.At the programme, Panchayats & Rural Development Minister Gopal Bhargava presented a photograph of Kisan Panchayat held in year 2008 at Chitrakoot for former Union Minister Shri Singh. Damoh district’s progressive farmer Shri Balwan Singh presented kits of paddy produced in record quantity in his field through organic farming to Shri Rajnath Singh and Shri Shivraj Singh Chouhan. Shri Balwan Singh created a record by producing 35 quintal paddy in one acre.[dakhal]

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Dakhal News 4 February 2013


मुख्यमंत्री श्री चौहान द्वारा प्रदेशवासियों को दीपोत्सव की शुभकामनाएँ

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने दीपावली के पावन पर्व पर प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ दी हैं।मुख्यमंत्री श्री चौहान ने अपने शुभकामना संदेश में कहा है कि उनकी प्रार्थना है कि देवी लक्ष्मी की कृपा और आशीर्वाद पूरे प्रदेश की जनता पर रहे। प्रदेश को देश का अग्रणी प्रदेश बनाने के प्रयास लगातार जारी रहेंगे। उन्होंने कहा है कि विकास का प्रकाश आम आदमी और गरीबों तक पहुँचे। उन्होंने सभी प्रदेशवासियों से आग्रह किया है कि अपने घरों पर दीपावली के दौरान दीपों के साथ प्रदेश की समृद्धि और विकास के लिये भी दीपक लगायें। उन्होंने आव्हान किया है कि सभी प्रदेशवासी इस पावन पर्व पर प्रदेश को अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने का संकल्प लें।(dakhal)

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Dakhal News 13 November 2012


खतरनाक है देह व्यापार को कानूनी मान्यता

संजय द्विवेदी कांग्रेस की सांसद प्रिया दत्त ने वेश्यावृत्ति को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है । उन्होंने कहा कि ÷ मेरा मानना है कि वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता प्रदान कर देनी चाहिए ताकि यौन कर्मियों की आजीविका प्रभावित न हो ।' प्रिया के बयान के पहले भी इस तरह की मांगें उठती रही हैं । कई संगठन इसे लेकर बात करते रहे हैं । खासकर पतिता उद्धार सभा ने वेश्याओं को लेकर कई महत्वपूर्ण मांगें उठाई थीं । हमें देखना होगा कि आखिर हम वेश्यावृत्ति को कानूनी जामा पहनाकर क्या हासिल करेंगे ? क्या भारतीय समाज सके लिए तैयार होगा । दूसरा विचार यह भी है कि इससे इस पूरे दबे-छिपे चल रहे व्यवसाय में शोषण कम होने के बजाए बढ़ जाएगा । सांसद दत्त ने भी अपने बयान में कहा है कि ÷ वे समाज का हिस्सा हैं, हम उनके अधिकारों को नजरअंदाज नहीं कर सकते । सही मायने में स्त्री को आज भी भारतीय समाज में उचित सम्मान प्राप्त नहीं है । अनेक मजबूरियों से उपजी पीड़ा भरी कथाएं वेश्याओं के इलाकों में मिलती हैं । हमारे समाज के इसी पाखंड ने इस समस्या को बढ़ावा दिया है । वेश्यावृत्ति के कई रूप हैं जहाँ कई तरीके से स्त्रियों को इस अंधकार में धकेला जाता है । आदिवासी इलाकों से लड़कियों को लाकर मंडी में उतारने की घटनाएं हों या बंगाल और पूर्वोत्तर की स्त्रियों की दारूण कथाएं सब कंपा देने वाली हैं । किन्तु सारा कुछ हो रहा है और हमारी सरकारें और समाज सब कुछ देख रहा है । गरीबी इसका एक कारण है, दूसरा कारण है पुरूष मानसिकता । जिसके चलते स्त्री को बाजार में उतरना या उतारना एक मजबूरी और फैशन दोनों बन रहा है । क्या ही अच्छा होता कि स्त्री को हम एक मनुष्य की तरह अपनी शर्तो पर जीने का अधिकार दे पाते । समाज में ऐसी स्थितियां बना पाते कि एक औरत को अपनी अस्मत का सौदा न करना पड़े । किन्तु हुआ इसका उलटा । इन सालों में बाजार की हवा ने औरत को एक माल में तब्दील कर दिया है । मीडिया माध्यम इस हवा को तूफान में बदलने का काम कर रहे हैं । औरत की देह को अनावृत्त करना एक फैशन में बदल रहा है । फिल्मों, इंटरनेट, मोबाइल, टीवी चैनलों से आगे अब वह मुद्रित माध्यमों पर पसरा पड़ा है । अखबारों में ग्लैमर वर्ल्ड के कॉलम ही नहीं, खबरों के पृष्ठों पर भी लगभग निर्वसन विषकन्याओं का कैटवाग खासी जगह घेर रहा है । एक आंकड़े के मुताबिक मोबाइल पर अश्लीलता का कारोबार भी पांच सालों में ५ अरब डॉलर तक जा पहुँचेगा । बाजार के केन्द्र में भारतीय स्त्री है और उद्देश्य उसकी शुचिता का अपहरण । सेक्स सांस्कृतिक विनिमय की पहली सीढ़ी है । शायद इसीलिए जब कोई भी हमलावर किसी भी जातीय अस्मिता पर हमला बोलता है तो निशाने पर सबसे पहले उसकी औरतें होती हैं । यह बाजारवाद अब भारतीय अस्मिता के अपहरण में लगा है - निशाना भारतीय औरतें हैं । ऐसे बाजार में वैश्यावृत्ति को कानूनी जामा पहनाने से जो खतरे सामने हैं, उससे यह एक उद्योग बन जाएगा । आज कोठेवालियाँ पैसे बना रही हैं तो कल बड़े उद्योगपति इस क्षेत्र में उतरेंगे । युवा पीढ़ी पैसे की ललक में आज भी गलत कामों की ओर बढ़ रही है, कानूनी जामा होने से ये हवा एक आंधी में बदल जाएगी । जिन शहरों में ये काम चोरी-छिपे हो रहा है, वह सार्वजनिक रूप से होने लगेगा । हमें समाज में बदलाव की शक्तियों का साथ देना चाहिए, ताकि एक औरत के मनुष्य के रूप में जिंदा रहने की स्थितियां बहाल हो सके । हमें स्त्री की गरिमा की बात करनी चाहिए - उसे बाजार में उतारने की नहीं । (दखल)

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Dakhal News 26 February 2011


ग्रेटर भोपाल होने की राह पर राजधानी

मनोज सिंह मीकनिम्न एवं मध्यम आय वर्ग में डेलवपर बड़ा बाजार देखने लगा है । उसे मकान या फ्लेट की कीमत को संतुलित रखना आवश्यक है जो सिर्फ कम मूल्य की भूमि पर ही संभव है । कीमतें आसमान पर :- भूमि के बढ़ते भावों ने शहर को केन्द्र से कई किलोमीटर तक फैला लिया है । सामान्य गति से बढ़ता शहर और कीमतें अब बेकाबू हैं । पिछले कुछ दशकों पहले ६-८ प्रतिशत की वृद्धि विगत दशक में ३५-४० तक पहुँच चुकी थी, जो अब यहाँ से ८० प्रतिशत तक पहुंचती जान पड़ती है । जमीन की कीमतों में यह तेजी डेवलपर्स न्यूनतम लाभ संजोए ग्राहक को शहर से दूर जाने को मजबूर कर रहे हैं । भोपाल जैसे टीयर-३ शहरों में वैसे भी डेवलपर न्यूनतम लाभ पर काम कर रहा है, ऐसे में एक प्रोजेक्ट पूरा करके वह सामान्य लोकेशन पर उतनी ही जमीन खरीदने में अक्षम प्रतीत होता है और फिर प्राइज बैंड बढ़ जाने के कारण अनुपातिक रूप से बायर नजर नहीं आता । मजबूरन शहर से दूर जाकर अपेक्षाकृत सस्ती जमीन पर योजना को मूर्त रूप देना उसे उचित मालूम होता है क्योंकि किसी भी रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में भूमि का मूल्य मुख्य घटक है । विकास व व्यय शहर की किसी भी लोकेशन पर लगभग एक समान रहता है । निम्न एवं मध्यम आय वर्ग में डेवलपर बड़ा बाजार देखने लगा है । अतः उसे मकान या फ्लेट की कीमत को संतुलित रखना आवश्यक है, जो सिर्फ कम मूल्य की भूमि पर ही संभव है । स्वतंत्र मकानों एवं रो-हाउस के दिन भी इसी बढ़ते भूमि भाव के कारण तद गए हैं । एक एकड़ में जितने स्वतंत्र मकान बनते थे, उससे लगभग दोगुना फ्लेट बन जाते हैं, जो भूमि की कीमत को आधा कर देने में सहायक सिद्ध होते हैं । निर्माण व विकास खर्च में विशेष अंतर नहीं होने के कारण दिनोंदिन हाई राइज प्रोजेक्ट बाजार में उतर रहे हैं । बचतों पर ध्यान :- मकान की बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए डेवलपर्स ने निर्माण की नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल तेज कर दिया है । छोटी-छोटी बचत की ओर बड़ा ध्यान दिया जाने लगा है । स्टील की बढ़ती कीमतों के चलते स्ट्रक्चर में उपयोग हो रहे स्टील की ओवरलेपिंग में व्यर्थ होने वाले स्टील की बचत पर भी डेवलपर्स का ध्यान जाने लगा है । साइट पर बिल्डिंग मटेरियल के अपव्यय एवं दुरूपयोग को नियंत्रित किया जाने लगा है । स्टोर एवं निर्माण स्थल पर ऑनलाइन कैमरे लगाए जाने लगे हैं । इन्वेंट्री व परचेसिंग के लिए ईआरपी जैसे आधुनिक सॉफ्टवेयर का उपयोग भी शुरू हुआ है । सीमेंट, रेत, गिट्टी का अपव्यय रोकने व गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए आरएमसी रेडी मिक्स कांक्रीट का उपयोग प्रारंभ हुआ है । भाड़ा, चेली, लिफ्ट व मानव श्रम पर व्यय नियंत्रित किया जा रहा है । बचत व गुणवत्ता के लिहाज से पीएमसी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट तैनात होते हैं । मार्केटिंग व्यय को कम कर अधिक रूझान कैसे पैदा किया जाए, इसके लिए ऑर्गेनाइज्ड रियल एस्टेट प्रोफेशनल को यह दायित्व आउटसोर्स किए जाने का नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है । प्रिंट मीडिया के अलावा कम बजट वाले प्रभावशाली मीडिया की तरफ प्रोजेक्ट के विज्ञापन का रूप दिखाई देने लगा है । कारपेट एरिया :- जमीन पर ज्यादा खर्च करने की बजाय डेवलपर प्रोजेक्ट की डिजाइन, सोंदर्य एवं ग्राहक की संतुष्टि पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं । समान्तर अर्थव्यवस्था वाले हमारे देश में एक सुखद परिवर्तन देखने को मिल रहा है कि रियल एस्टेट में अधिकतर लेन-देन चेक के जरिए होने लगा है । हमारे प्रदेश में स्टाम्प ड्यूटी सर्वाधिक होने के कारण यह प्रचलन अपेक्षाकृत कम उत्साहजनक है । सुपर बिल्टअप, बिल्डअप के अलावा डेवलपर पारदर्शिता बरतते हुए कारपेट एरिया भी दर्शाने लगे हैं । जिस बिल्डिंग मटेरियल या फिनिशिंग मटेरियल पर डेवलपर को गारंटी-वारंटी मिल रही है, वह ग्राहक तक पहुँचाने में पारदर्शिता बरती जा रही है ।प्लॉटेड प्रोजेक्ट्स :- महंगी जमीनों की मांग में काफी गिरावट देखने को मिल रही है । दुनिया के तीसरे बड़े रेसिडेंशियल बाजार मुम्बई में भी बिग-टिकट लेंड डील में भारी सुस्ती है, कीमतों को लेकर भूमि स्वामियों की अपेक्षाएं काफी ऊंची हैं। इसके चलते डेवलपर सतर्क होकर खरीदी कर रहे हैं । मार्केट में लैंड डील लगभग हॉल्ट पर है । डेवलपर जमीन की कीमतों के नीचे आने के इंतजार में वेट एंड वॉच की स्थिति में आ गए हैं । बने हुए मकानों की खरीद-फरोख्त सामान्य से नीचे है । इसके चलते प्लॉटेड डेवलपर ने जोर पकड़ा है, ताकि मकान बनाने की इच्छा रखने वाला बायर पहले प्लॉट खरीद सके, ताकि बढ़ते भूमि मूल्य की मार उस पर न पड़े । फिर क्रमबद्ध रीके से अपने मकान का निर्माण सुविधानुसार करा सके । देश के सभी भागों में बढ़ती कीमतों से बचने के लिए प्लॉट खरीदने का यानी प्लॉटेड डेवलपमेंट का मॉडल तेजी से लोकप्रिय हुआ है । अब इस प्रकार के प्रोजेक्ट्स में भी सभी प्रकार की एमिनिटीज, सुविधाओं, सुरक्षा का खासा ख्याल रखा जाना है । निवेशकों के साथ-साथ कम बजट के लोगों के लिए प्लॉटेड डेवलपमेंट का मॉडल मध्यम या दीर्घ अवधि योजना के लिए कारगर सिद्ध हुआ है । इसके चलते बड़े साइज के प्लॉट्स भी उपलब्ध होने लगे हैं, ताकि सभी वर्ग के लोग अपनी पसंद का घर बनाने के सपने को साकार कर सकें । सर्वाधिक चर्चित प्लॉट साइज ६०० से १२०० वर्गफीट हुआ करता था, जो बढ़कर २४०० से १०,००० वर्गफीट तक जा पहुंचा है । विगत कई वर्षो से बड़े प्लॉट साइज उपलब्ध न होने के कारण यह मांग तेजी से उभरी है । जमीन खरीदकर प्रोजेक्ट करने के बजाय जॉइंट वेंचर प्रोजेक्ट डेवलपमेंट जैसे शब्द आम होने लगे हैं । लोकल बिल्डर्स, इस क्षेत्र के बड़े ब्रांड तथा नेशनल लेवल के रियल एस्टेट प्लेयर्स के पेशवराना अंदाज को भांपकर खुद को तेजी से बदल रहे हैं । अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर के बड़े ब्रांड्स ने शहरों के प्रमुख ब्रांड्स के साथ जुड़ना प्रारंभ कर दिया है, ताकि टियर-२, टियर-३ शहरों में भी अपनी ठोस उपस्थिति दर्ज करा सके । छोटे शहरों के डेवलपर्स के लिए यह अच्छा मौका है कि वे बड़े ब्रांड्स से जड़कर अपना स्केल बढ़ा सके और वर्क कल्चर में सुधार कर सकें । जॉइंट वेंचर :- टॉप हाउसिंग एवं गोदरेज प्रॉपर्टीज जैसे ब्रांड भी मिलियन प्लस आबादी वाले शहरों में तेजी से जॉइंट वेंचर वाले प्रोजेक्ट तलाश रहे हैं । लैंड बैक वाले लोकल प्लेयर्स एवं इन्वेस्टर भी नेशनल एवं इंटरनेशनल ब्रांड्स में जुड़कर काम करना चाहते हैं, ताकि प्रोजेक्ट की एक्जीक्यूशन एवं डिलीवरी समय पर हो सके और तकनीकी एवं आधुनिक एमिनिटीज पर उसकी विशेषता व अनुभव का लाभ मिले । आर्थिक तेजी के चलते निम्न आय वर्ग तेजी से मध्यम आय वर्ग में शामिल हो रहा है, मध्यम आय वर्ग उच्च आय वर्ग के मुहाने पर खड़ा है और उच्च आय वर्ग के बाद एक और वर्ग का उदय हुआ है, जिसे अपर सर्किल में अल्ट्रा हाई इनकम ग्रुप के नाम से संबोधित किया जाता है । रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को सबसे बड़ा बाजार इन्हीं निचले दोनों वर्ग में समाहित है । (दखल)( श्री मनोज सिंह मीक, शुभालय ग्रुप के चेयरमेन हैं)

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Dakhal News 4 February 2011


बेचैनी के बीच बजट से  जुडी आम जन की उम्मीदें

डॉ. मुरली मनोहर जोशीलगभग हर कोई आम बजट की उत्सुकता से प्रतीक्षा करता है। यह न सिर्फ एक सालाना कार्यक्रम है, बल्कि देशवासी मानते हैं कि आम बजट उनके भविष्य को सही दिशा प्रदान करता है और सरकारी सेवाओं को बेहतर बनाता है। बजट में आंकड़ों के अतिरिक्त लोग दूसरी तरह की भी रियायत मिलने की उम्मीद करते हैं। सोमवार को पेश किया जाने वाला आम बजट काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि देश के लोगों की आशाएं उच्च स्तर पर हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि लोग व्याकुल हैं। मेरे दृष्टिकोण में यह बजट देश के लिए दूरगामी साबित होगा। अर्थव्यवस्था सिर्फ शांत वातावरण में ही फल-फूल सकती है। आम बजट इसी उद्देश्य को पूरा करने वाला होना चाहिए।सरकार आम बजट में अपने स्तर पर चाहे जैसे प्रावधान करे, लेकिन उसे यह याद रखना चाहिए कि विभिन्न्क्षेत्रों में निवेश की दिशा कुछ विशेष उद्देश्यों की ओर केंद्रित होती है। ये उद्देश्य हैं किसानों और मजदूरों (संगठित और असंगठित) के जीवन स्तर और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाना, तेजी से टिकाऊ नौकरियां पैदा करना, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक सभी की पहुंच सुनिश्चित करना और आम आदमी की क्रय क्षमता को बढ़ाने पर जोर देना।पिछले एक साल के राजनीतिक हालात यह इंगित करते हैं कि देश के युवा बेचैन हो रहे हैं और हमारी अर्थव्यवस्था उस स्थिति में नहीं है कि उन्हें रोजगार मुहैया करा सके। यदि रोजगार और बढ़ती कीमतों पर ध्यान नहीं दिया गया तो आगे चलकर स्थिति और खराब हो सकती है। प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री के आश्वासनों के बाद भी किसान, छात्र और कामकाजी वर्ग अपने भविष्य को लेकर सशंकित हैं।बैंकों के एनपीए (फंसे हुए कर्ज) की बात करें तो यह काफी बढ़ गया है। यदि इसी तरह सब कुछ चलता रहा तो यह आठ-दस लाख करोड़ रुपए के खतरनाक स्तर पर पहुंच सकता है। दूसरी ओर वैश्विक अर्थव्यवस्था भी अच्छी स्थिति में नहीं है। कमोडिटी की गिरती कीमतें, निर्यात में लगातार गिरावट और कॉरपोरेट जगत के लाभ में कमी देखी जा रही है। घरेलू स्तर पर भी अर्थव्यवस्था की तस्वीर कुछ अच्छी नहीं है, जिससे आने वाले दिनों में खुश हुआ जा सके। ऐसे में एनपीए में आगे भी बढ़ोतरी की आशंका बनी हुई है। इसका मतलब यही है कि अभी भुगतान में चूक के कई और मामले सामने आएंगे।यहां पर हमें यह ध्यान भी रखना होगा कि एनपीए कोई अचानक खतरनाक स्तर पर नहीं पहुंचा है। हमें इस समस्या की पूरी जानकारी थी और इसी कारण भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में बैंकिंग सेक्टर में एनपीए की समस्या के समाधान का जिक्र किया था। एक तरफ हमें सिस्टम की उन खामियों को दूर करने की आवश्यकता है, जिससे देश की वित्तीय प्रणाली दशकों से पीड़ित है और दूसरी तरफ बैंकिंग सेक्टर यह सुनिश्चित करे कि एमएसएमई और कृषक समुदाय के लिए पैसे की कमी न हो। बैंकिंग सेक्टर को अपने अंदर निहित चेक एंड बैलेंस के जरिए चीजों को दुरुस्त रखना होगा।पिछले लगातार दो साल बारिश की अनियमित स्थिति ने कृषि पर निर्भर आबादी के बड़े हिस्से को अपने कोप का भाजन बनाया है और यदि यह लगातार तीसरे साल भी जारी रहता है तो हमारे सामने देश में सबसे अधिक एनपीए का नया क्षेत्र उभर सकता है और यह क्षेत्र होगा - कृषि। इस स्थिति का सामना हमारा देश नहीं कर सकता। हम उम्मीद और प्रार्थना करते हैं कि इस साल हमारे देश में सामान्य वर्षा हो, ताकि देश अपनी ग्रोथ की रफ्तार पकड़ ले और उभरते वैश्विक आर्थिक वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित कर ले। इसके लिए जरूरी है कि सरकार कृषि और उससे संबंधित सेक्टर में भारी निवेश की योजना बनाए और इस साल यदि सूखे के हालात बनते हैं तो कीमतों को नियंत्रित करने के कदम उठाए। इसके साथ ही यह स्थिति देश के उपभोग को भी काफी प्रभावित करेगी। इसके फलस्वरूप औद्योगिक उत्पादन में सुस्ती आएगी, क्योंकि तब ग्रामीण जगत और कृषि पर निर्भर आबादी की तरफ से मांग में भी गिरावट आएगी।सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि कैसे भी हालात हों, सामाजिक सेक्टर से जुड़ी योजनाओं को मिलने वाले फंड में कटौती नहीं हो और स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और ग्रामीण विकास सेक्टर को उनका वाजिब हिस्सा-हक मिले। इससे लगेगा कि मौजूदा सरकार सभी का ध्यान रख रही है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी स्वास्थ्य और शिक्षा सेवा से वंचित है। ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां कोई विकासशील देश निवेश करता है तो उसे अधिकतम प्रतिफल मिलता है। ऐसी उम्मीद है कि बजट इन क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता देगा।जहां तक गवर्नेंस और सार्वजनिक सेवाओं की डिलेवरी का प्रश्न है तो बजट में इस बात के पर्याप्त प्रावधान किए जाएं कि भ्रष्टाचार और काले धन की कोई गुंजाइश नहीं हो। इसके साथ ही ई-गवर्नेंस का ऐसा ढांचा तैयार किया जाए, जिससे सार्वजनिक सेवाओं की डिलेवरी में जबरदस्त सुधार आए। कारोबार करने को आसान बनाया जाए। न्यायपालिका और पुलिस सुधार के लिए भी निवेश जरूरी है। बजट में उनकी समस्याओं का निदान हो।इसी प्रकार शहरी-ग्रामीण विषमता और इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में भारत को एक जीवंत अर्थव्यवस्था बनाने के लिए हमें शहरी-ग्रामीण कनेक्टिविटी और आधारभूत ढांचे को मजबूत करने की जरूरत है। यह कनेक्टिविटी सिर्फ शहरी-ग्रामीण जगत को जोड़ने तक नहीं सीमित न रहे, बल्कि अमीरों और गरीबों के बीच की खाई को भी पाटा जाना चाहिए।सुरक्षा के मामले में हमें जिस तरह का परिदृश्य नजर आ रहा है, उसे देखते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा में भी पर्याप्त निवेश अपरिहार्य है। यदि इसमें पर्याप्त निवेश नहीं किया गया तो उसकी कीमत चुकानी होगी। हमें जवानों की जरूरतों पर संवेदनशील होने की जरूरत है।मैं यह उम्मीद करता हूं कि देश के सामान्य नागरिकों और वरिष्ठ नागरिकों को टैक्स छूट का लाभ दिया जाएगा। साथ ही जिस तरह से बचत की दर में गिरावट आ रही है, उसे देखते हुए आम बजट में बचत को प्रोत्साहित करने के लिए जरूरी उपाय किए जाएंगे। हमें देश के मध्यवर्ग की आमदनी में बढ़ोतरी करने की आवश्यकता है। इस प्रकार से हम उनके खर्च और बचत, दोनों में इजाफा कर सकते हैं। [लेखक भाजपा के वरिष्ठतम नेता हैं]

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Dakhal News 27 February 2016


मध्यप्रदेश बजट

घर बनाना और खरीदना महंगा हुआ ,हर चीज के बढ़ेंगे दाम मध्यप्रदेश के वित्त मंत्री जयंत मलैया ने शुक्रवार को विधानसभा में प्रदेश का बजट पेश किया. बजट 2016-17 में सरकार ने अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कई वस्तुओं पर टैक्स बढ़ाया। पेट्रोल-डीजल पर टैक्स फिक्स करने के बाद सरकार द्वारा लग्जरी चीजों पर लगा टैक्स भी बढ़ा दिया गया है. वैट को पांच प्रतिशत से बढ़ाकर 14 प्रतिशत किया गया है, जिससे 10 हजार रुपए से ज्यादा कीमत की साइकिल, गैस-गीजर जैसी चीजें महंगी हो जाएंगी। हालांकि, जरूरत की वस्तुओं पर कर का बोझ नहीं बढ़ाया गया जो आम जनता के लिए सुकून की बात है। मध्यप्रदेश बजट 2016-17 : पढ़ें, क्या हुआ महंगा और क्या हुआ सस्ताप्लास्टिक की वस्तुएं महंगीराज्य सरकार ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली वस्तुओं पर टैक्स बढ़ाने का निर्णय लिया है. ऐसे प्रोडक्ट्स जो प्लास्टिक से बने हैं उन पर कर बढ़ाकर सरकार लोगों के बीच इन चीजों के उपयोग को घटाना चाहती है. दूसरी ओर ऐसी वस्तुएं जिनसे पर्यावरण को हानी नहीं पहुंचती उन पर टैक्स की दरों को घटाया गया है। घर और जमीन खरीदना हुआ महंगाएमपी में अब घर का सपना देखना महंगा हो गया है. सरकार ने 2016-17 के बजट में स्टांप शुल्क भी बढ़ा दिया गया है, जिससे घर और जमीन की कीमतों में इजाफा होगा. दूसरी ओर मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत घर लेने वाले श्रमिकों को स्टांप शुल्क में छूट दी गई है। ऑनलाइन शॉपिंग हुई महंगीइन दिनों मध्यप्रदेश में भी ऑनलाइन शॉपिंग का ट्रेंड बढ़ गया है. लेकिन इससे प्रदेश सरकार को किसी तरह का कोई फायदा नहीं पहुंच रहा है, उल्टा कारोबारियों को नुकसान हो रहा है, जिससे सरकार को राजस्व में नुकसान हो रहा है। ऐसे में अब सरकार ने ऑनलाइन शॉपिंग पर भी टैक्स लगाने का फैसला किया है. जिस वजह से अब लोगों को घर बैठे मिल रहा सामान महंगा पड़ेगा. वहीं कीमतों में इजाफा होने पर संभवत: लोगों का रुझान एक बार फिर सीधे बाजार की ओर बढ़ेगा जिससे कारोबारियों की आय में बढ़ोतरी होगी और सराकर के राजस्व में सुधार होगा। 600 करोड़ की आयकर्ज के बोझ तले दबते जा रहे मध्यप्रदेश की आर्थिक स्थिति को सहारा देने के लिए सरकार ने टैक्स का सहारा लिया है. जानकारों के अनुसार टैक्स बढ़ाने से सरकार को करीब 600 करोड़ रुपए सालाना की अतिरिक्त आय होगी. इसी को देखते हुए वित्त मंत्री ने वैट टैक्स भी बढ़ाया है जिससे कई तरह के सामान महंगे हो जाएंगे। इनके घटेंगे दाम- हैवी लोडिंग वाहनों पर एक फीसदी वैट टैक्स कम किया जाएगा-बायोफ्यूल और इंडक्शन चूल्हा सस्ता होगा- नए मल्टीप्लेक्स में मनोरंजन कर में छूट दी जाएगी- दूध निकालने वाली मशीन हुई सस्ती-38 कृषि यंत्रों को टैक्स फ्री किया गया है-12 टन से ज्यादा क्षमता वाले वाहन सस्ते हुए-बैटरी से चलने वाला रिक्शा हुआ टैक्स फ्री- ऑर्गेनिक पेस्टीसाइड सस्ते

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Dakhal News 26 February 2016


हनुवंतिया के टापुओं को विश्व-स्तरीय पर्यटन स्थल बनाएंगे मुख्यमंत्री

जल महोत्सव 15 दिसम्बर से शर्ट पेंट पहने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि खण्डवा जिले के हनुवंतिया जल-क्षेत्र के टापुओं को अगले एक वर्ष में अंतर्राष्ट्रीय-स्तर के पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जायेगा। उन्होंने कहा कि हनुवंतिया पर्यटन क्षेत्र के प्रति पर्यटकों में अपार उत्साह एवं आकर्षण देखा जा रहा है। इस क्षेत्र में पर्यटकों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। मुख्यमंत्री चौहान हनुवंतिया में जल-महोत्सव में शामिल पर्यटकों से चर्चा कर रहे थे।मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि इस वर्ष माह दिसम्बर से एक माह तक चलने वाला जल-महोत्सव 15 दिसम्बर, 2016 से 15 जनवरी, 2017 तक मनाया जायेगा। महोत्सव में पर्यटकों की सुविधा की सभी आवश्यक व्यवस्थाएँ की जायेंगी। उन्होंने महोत्सव की राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ब्राण्डिंग अभी से करने के निर्देश भी दिये। मुख्यमंत्री चौहान ने अपने भ्रमण के दौरान क्रॉफ्ट बाजार का अवलोकन भी किया। उन्होंने चर्मशिल्प कला, पेपरमेसी वर्क, पीतल की मूर्तियों का स्टॉल भी देखा।मुख्यमंत्री चौहान ने रेडियम ऑर्ट, आर्टीफिशियल ज्वेलरी, एम्ब्रायडरी वर्क, काष्ठ कला, मार्बल ऑर्ट, सिरेमिक वर्क, लाख कला, हस्तशिल्प, मांडना कला के कलाकारों से चर्चा भी की। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने पर्यटकों के लिये उपलब्ध करवायी गयी बैलगाड़ी की सवारी भी की। उन्होंने सांस्कृतिक कार्यक्रम में बुंदेलखण्ड के लोक-नृत्य का आनंद लिया। श्री चौहान ने ग्राम मूंदी निवासी दिनेश प्रजापति द्वारा मिट्टी से तैयार की जा रही पुराई एवं मटकी का जीवंत प्रदर्शन भी देखा।

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Dakhal News 20 February 2016


इतने चैनलों के मालिक जेल में ! तौबा तौबा !!

डॉ प्रकाश हिन्दुस्तानी आजादी के बाद यह पहला मौका है, जब इतनी बड़ी संख्या में ‘मीडिया’ के मालिक जेल की सलाखों के पीछे पहुंचे हैं। सहारा टीवी समूह के मालिक सुब्रत रॉय सहारा जेल में हैं और जमानत की राशि के इंतजाम में लगे है। लगभग दो साल में वे जमानत की राशि इकट्ठा नहीं कर पाए। दो लाख करोड़ के साम्राज्य का मालिक होने का दंभ भरने वाले सुब्रत रॉय दस हजार करोड़ नहीं जुटा पा रहे हैं। इसी तरह पी-7 चैनल और पर्ल ग्रुप के मालिकनिर्मल सिंघ भंगू भी जेल में हैं। खबर भारती चैनल के मालिक बघेल सांई प्रसाद समूह के शशांक भापकर, महुआ ग्रुप के हिन्दी, भोजपुरी, बांग्ला भाषाओं के कई चैनलों के मालिक पी.के. तिवारी भी जेल में हैं। इसी तरह शारदा ग्रुप के चैनल-10 के मालिक सुुदीप्तो सेन भी जेल मेंहैं। समृद्ध जीवन परिवार नामक चिटफंड कंपनी के मालिक और लाइव इंडिया नाम के चैनल के मालिक महेश किसन मोतेवार जेल में बंद हैं।इनमें से अधिकांश टीवी चैनलों के मालिक धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार हैं। स्टार के पूर्व सीईओ पीटर मुखर्जी शीना बोहरा हत्याकांड में अपनी पत्नी इंद्राणी के साथ बंद हैं। ओडिशा के कामयाब टीवी चैनल के मालिक मनोज दास और ओडिशा भास्कर न्यूज पेपर के मधुसुदन मोहंती भी सीबीआई के जाल में हैं।इनमें से अधिकतर लोग आर्थिक घोटालों में जेल में बंद हैं। घोटाले भी छोटे-मोटे नहीं, सभी हजारों करोड़ के मामलों में सलाखों के पीछे हैं। इनमें से ज्यादातर चिटफंड घोटाले में फंसे हैं। सुब्रत रॉय सहारा जो कभी अरबों में खेलते थे, तिहाड़ जेल में बंद हैं और अपनी इज्जत बचाने के लिए जेल में किताबें लिख रहे हैं। मानो उन्हें आजादी की लड़ाई के लिए जेल की सजा मिली हो। सुब्रत रॉय सहारा हजारों लोगों के अरबों रुपए खाकर डकार नहीं ले रहे हैं। हजारों लोगों से उन्होंने अरबों रुपए मकान के नाम पर लिए और शायद ही किसी को मकान उपलब्ध कराया। चेन मार्केटिंग के सहारे लोगों को ब्याज का लालच दे देकर उन्होंने अरबों रुपए इकट्ठे किए। सेबी, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया उनके खिलाफ अनेक मामलों की जांच करा चुका है। उनकी कंपनियों के खिलाफ सैकड़ों मामले विचाराधीन है। इसके बावजूद सुब्रत रॉय ऐसे बड़ी-बड़ी बातें करते है, मानो वे कोई देवदूत हो।निर्मल सिंघ भंगूपर्ल ग्रुप के निर्मल सिंघ भंगू की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। धोखेबाजी में वे सुब्रत रॉय को पीछे छोड़ चुके हैं। पूरे देश में अरबों की संपत्ति बना चुके निर्मल सिंघ भंगू ने भी सुब्रत रॉय सहारा की ही तरह सुरक्षा कवच के रूप में मीडिया के धंधे में आगमन किया। उन्हें लगा था कि चैनल के बहाने कोई उन्हें हाथ नहीं लगाएगा, लेकिन कानून के लंबे हाथ और अपनी पापों के कारण निर्मल सिंह भंगू भी जेल की सलाखों के पीछे है। भंगू का पी-7 चैनल बंद हो चुका है। लाखों निवेशक उनके नाम पर खून के आंसू रो रहे है। सैकड़ों पत्रकार रोजी रोटी की तलाश में जुटे हैं। इसके बाद भी भंगू लोगों को कह रहे है कि वे धीरज बनाए रखे, उनका पैसा उन्हें मिल जाएगा।जिस तरह सुब्रत रॉय सहारा लम्ब्रेटा स्कूटर पर घूम-घूमकर अपनी चिटफंड कंपनी के लिए लोगों से पैसे मांगा करते थे, उसी तरह निर्मल सिंघ भंगू ने भी अपना सफर मामूली से काम से शुरू किया था। पंजाब के चमकौर साहब जिले में भंगू साइकिल पर घर-घर जाकर दूध बेचते थे। इस दौरान उनके संपर्क में कई लोग आए और उन्होंने चिटफंड कंपनी के एजेंट का काम भी शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनका धंधा चल निकला और उन्होंने अपना पर्ल ग्रुप शुरू किया। फिर निर्माण के धंधे में आए, जो पैसे इकट्ठे किए थे, उसे जमीन-जायदाद के धंधे में लगा दिया और जमीनों के भाव बढ़ते ही उन्हें बेचकर करोड़ों रुपए कमाए। नियमों के विरुद्ध चिटफंड चलाने के मामले में उनकी जांच हुई और वे करीब 49 हजार करोड़ रुपए के डिफाल्टर पाए गए।महेश किसन मोतेवारलाइव इंडिया चैनल के मालिक महेश मोतेवार की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। महेश मोतेवार ने अपनी चिटफंड कंपनी खोली, जिसका नाम था समृद्ध जीवन परिवार। सुब्रत रॉय सहारा के सहारा इंडिया परिवार की तरह ही वे भी अपनी कंपनी को समृद्ध जीवन परिवार के नाम पर प्रचारित करते रहे। मोतेवार की कंपनी ने पुणे में गाय और बकरिया पालने का धंधा शुरू किया। पशु-पालन फॉर्म खोले और लोगों से कहा कि इस धंधे में जबरदस्त कमाई है, उनके पास जितने भी पैसे हो वे इस कंपनी में लगा दे। बकरी और गाय पालने से जो भरपूर मुनाफा मिलता है, उसका फायदा गांव वाले भी उठाएं और एक रुपए को तीन रुपए में तब्दील करें। यानि दोगुना शुद्ध मुनाफा। शुुरू में कुछ लोगों को मोतेवार की कंपनी ने पैसे दिए भी। लालच में आकर बड़ी संख्या में लोग समृद्ध जीवन परिवार के सदस्य बने। पैसा आते ही मोतेवार ने हिन्दी और मराठी न्यूज चैनल शुरू किए। अपनी इमेज चमकाने के लिए उनकी कंपनी देशभर में रक्तदान के शिविर लगाती रही और यह माहौल बनाया गया कि सहारा समूह की तरह मोतेवार का समृद्ध जीवन परिवार भी जनकल्याण के काम में लगा है।पश्चिम बंगाल के रोजवैली और शारदा चिटफंड कंपनी के मालिक भी धोखेबाजी के मामले में कानून की गिरफ्त में हैं। शारदा ग्रुप के मालिक सुदीप्तो सेन पुलिस की गिरफ्त में हैं। रोजवैली चिटफंड कंपनी के मालिक गौतम कुंडू भी जेल जा चुके है। रोजवैली ग्रुप के देशभर में ढाई हजार से ज्यादा बैंक खाते सील किए जा चुके है। शारदा चिटफंड घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के कई नेता फंसे है। शारदा ग्रुप के मालिक सुदीप्तो सेन एखून समय नामक टीवी चैनल की बिक्री के फर्जीवाड़े में शामिल बताए जा रहे है। सीबीआई और ईडी के जाल में पूर्व केन्द्रीय मंत्री मतंग सिंह भी फंस चुके हैं।शशांक भापकरबालासाहेब भापकरआजादी के पहले जवाहर लाल नेहरू, माखनलाल चतुर्वेदी, लोकमान्य तिलक, बालगंगाधर गोखले आदि अनेक लोग हुए, जो आजादी की लड़ाई लड़ते हुए शान से जेल गए। इन लोगों का जेल जाने का एक मकसद था कि भारत की आजादी की लड़ाई तेज हो, लेकिन अब जो मीडिया मालिक जेल जा रहे है, उनका एक मात्र मकसद बड़े आर्थिक घोटाले करना रहा। आजादी के बाद जो मीडिया मालिक जेल गए वे आर्थिक घोटालों में शामिल थे। इंडियन एक्सप्रेस के मालिक रामनाथ गोयनका के एकलौते पुत्र भगवानदास गोयनका को न्यूज प्रिंट की धोखाधड़ी के मामले में जेल जाना पड़ा। टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के ही अशोक कुमार जैन विदेशी मुद्रा के मामले में फंसे थे। वे दोषमुक्त हो पाते, इसके पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। महू के अल-हलाल जैसे ग्रुप भी थे, जो छोटे-मोटे अखबार निकालते थे और अब चिटफंड के अरबों रुपए इकट्ठा करके भाग गए। ऐसे लोगों की संख्या इतनी ज्यादा है कि उनका पता लगाना भी आसान नहीं।इंद्राणी और पीटर मुखर्जीओडिशा के कामयाब टेलीविजन और ओडिशा भास्कर अखबार के सीएमडी मनोज दास और मधुसूदन मोहंती भी कानून की गिरफ्त में हैं। इन लोगों ने भी लोगों से अवैध तरीके से पैसे जमा किए थे। कुल मिलाकर इनमें से अधिकांश लोगों को काम मीडिया समूह का संचालन करने के बजाय लोगों को लालच देकर फांसने में ज्यादा रहा। इनके अलावा ऐसे मीडिया मालिक भी है, जो हत्या, बलात्कार, गुंडागर्दी और दूसरे गैरकानूनी कामों के कारण जेल की सलाखों के पीछे है। ऐसे मीडिया मालिकों की भी एक लंबी सूची है, जो किसी भी क्षण जेल जा सकते है। अभी ये लोग किसी न किसी बहाने जेल जाने से बच रहे है।साभार

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Dakhal News 11 February 2016


मतदाता दिवस तो मना मगर नहीं मिल पाये मतदाता को कार्ड

कम्पनी का पेमेंट फंसा तो वोटर आईडी नहीं बनी राजधानी में राष्ट्रीय मतदाता दिवस 25 जनवरी के दिन ही मतदाताओं की जमकर फजीहत हुई है। शहर की 7 विधानसभाओं में करीब 27 हजार लोगों ने नए मतदाता कार्ड बनवाने आवेदन किया था, लेकिन कार्ड बनाने वाली कंपनी और अधिकारियों की लापरवाही से करीब 7 हजार कार्ड ही छपे। ऐसी स्थिति में आवेदक परेशान होते रहे। फिर भी उन्हें सही जवाब नहीं मिला। गुस्साए युवाओं ने प्रशासन के विरोध में नारेबाजी भी की। सूत्रों के मुताबिक कंपनी का पेंमेंट नहीं होने से यह कार्ड रुके हैं।मतदाता कार्ड बनवाने वाले लोगों को प्रशासन द्वारा आश्वासन दिया गया था कि जहां पर उन्होंने बीते एक महीने में मतदाता कार्ड बनवाने के लिए आवेदन किया था, वहीं से मतदाता दिवस 25 जनवरी को वोटर कार्ड मिलेगा।इस आश्वासन पर लोग एसडीएम कार्यालय, स्थानीय मतदान केंद्र के चक्कर लगाते रहे। वहां पर उनसे कहा गया कि एक बार कलेक्ट्रेट में भी जाकर जानकारी लें। इस पर सैकड़ों मतदाता कलेक्ट्रेट में चक्कर लगाते रहे। हुजूर विधानसभा के आस्तिक, महेश विश्वकर्मा, संजय गुप्ता, अनुराग मिश्रा सहित दर्जनों लोग हुजूर कार्यालय के चक्कर लगाते रहे, लेकिन उन्हें सही जानकारी नहीं दी गई। इससे वे दिनभर परेशान हुए।भोपाल सहित 11 जिलों में वोटर कार्ड प्रिंट कार्ड बनाने का जिम्मा भुवनेश्वर की कंपनी जीएमजी को दिया है। भोपाल में कंपनी को 27 हजार वोटर कार्ड बनाने थे। लेकिन भुगतान नहीं होने के कारण कंपनी ने 7 हजार ही वोटर कार्ड प्रिंट किए। कंपनी के जीएम त्रिलोचन का कहना है कि भोपाल में 35 लाख रुपए का भुगतान नहीं हुआ है। इसके चलते कार्ड का मटेरियल नहीं आ पाया है। इस संबंध में अफसरों को पहले ही बता दिया गया था। इधर, निवार्चन आयोग के ज्वाइंट सेक्रेट्री एसएस बंसल का कहना है कि पैसे का भुगतान जिलों के कलेक्टर द्वारा किया जाता है। कंपनी के पास कार्ड बनाने वाले मटेरियल की कमी आ गई थी। इसके चलते कार्ड नहीं मिले हैं। एक सप्ताह के भीतर वोटर को कार्ड मिल जाएंगे।

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Dakhal News 28 January 2016


भारत नये उत्साह और ऊर्जा से आगे बढ़ रहा है

सिंगापुर में आयोजित बिजनेस सेमीनार में मुख्यमंत्री चौहानमुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि प्राचीन और महान राष्ट्र भारत आज तेजी से बदल रहा है। आर्थिक विकास दर बढ़ रही है और पॉलिसी पेरालेसिस समाप्त हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, क्लीन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसे अनूठे कार्यक्रम शुरू किए हैं। आज भारत नये उत्साह और ऊर्जा से आगे बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री श्री चौहान आज यहाँ सिंगापुर यात्रा के तीसरे दिन प्रदेश में विदेशी निवेश बढ़ाने के लिये बिजनेस सेमीनार को संबोधित कर रहे थे।मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश विकास के मामले में देश का अग्रणी राज्य है। प्रदेश की विकास दर लगातार सात वर्ष से दहाई अंक में है। प्रदेश की कृषि विकास दर पिछले चार वर्ष से बीस प्रतिशत से अधिक है, जो विश्व में सर्वाधिक है। प्रदेश को केन्द्र सरकार द्वारा लगातार चार वर्ष से कृषि कर्मण अवार्ड दिया जा रहा है। मध्यप्रदेश में विकास का रोडमेप बनाकर कार्य किया गया है। पहले अधोसंरचना विकास पर ध्यान दिया गया। प्रदेश में एक लाख 60 हजार किलोमीटर सड़कें बनाई गई। चौबीस घंटे विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था की गई। आज प्रदेश पॉवर सरप्लस प्रदेश बन गया है। एक दशक पहले विद्युत उपलब्धता 2900 मेगावॉट थी, जो बढ़कर 16 हजार 800 मेगावॉट हो गई है। नवकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय काम हुआ है। एशिया का सबसे बड़ा सोलर पॉवर प्लांट 130 मेगावॉट का प्रदेश के नीमच में लग चुका है और विश्व का सबसे बड़ा सोलर पॉवर प्लांट 750 मेगावॉट का रीवा में लगने जा रहा है। प्रदेश की सिंचाई क्षमता साढ़े सात लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 36 लाख हेक्टेयर तक पहुँच चुकी है जिसे अगले पाँच वर्ष में 60 लाख हेक्टेयर तक पहुँचाया जाएगा।श्री चौहान ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का सपना नदी जोड़ो परियोजना थी। इसकी शुरूआत मध्यप्रदेश में नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना पूरी कर की गई। परियोजना से 16 लाख हेक्टेयर में सिंचाई होगी और 72 शहर को पीने का पानी मिलेगा। अब केन-बेतवा नदी को जोड़ने का कार्य किया जा रहा है। इन परियोजनाओं के माध्यम से पाईप लाईन के जरिये से हर खेत तक पानी पहुँचायेंगे।मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि अब प्रदेश में औद्योगिकीकरण पर ध्यान दिया जा रहा है। खाद्य प्र-संस्करण को प्राथमिकता दी जा रही है जिससे मूल्य संवर्धन होगा और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। मध्यप्रदेश में अपार खनिज सम्पदा है। लाईम स्टोन, कोयला, आयरन ओर सहित अन्य खनिजों के भंडार हैं। इनकी प्रोसेसिंग के उद्योग प्रदेश में लग सकते हैं। प्रदेश नवकरणीय ऊर्जा, सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। प्रदेश में पर्यटन के क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं। एशिया की सबसे बड़ी जल संरचना इंदिरा सागर मध्यप्रदेश में है। प्रदेश देश के टेक्सटाईल हब के रूप में उभर का सामने आया है। अर्बन प्लानिंग के क्षेत्र में तेजी से काम हो रहा है। प्रदेश में निवेश मित्र वातावरण है। उद्योगों के लिए आवश्यक भूमि उपलब्ध है, चौबीस घंटे गुणवत्तापूर्ण विद्युत और पानी उपलब्ध है। प्रदेश में कानून व्यवस्था बेहतर है तथा कुशल मानव संसाधन उपलब्ध है। हमने मध्यप्रदेश में सिंगल विण्डो नहीं बल्कि सिंगल टेबल कान्सेप्ट अपनाया है। इसमें एक टेबल पर उद्योगों के लिए सभी स्वीकृतियाँ दी जायेंगी।मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं मध्यप्रदेश के सीईओ के रूप में काम कर रहा हूँ। मध्यप्रदेश को देश और दुनिया का सबसे विकसित राज्य बनाना हमारा लक्ष्य है। उन्होंने इंदौर में आगामी 19 से 21 अक्टूबर 2016 तक होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिए निवेशकों को आमंत्रित किया। उन्होंने उज्जैन में 22 अप्रैल से 21 मई 2016 तक होने वाले सिंहस्थ महाकुंभ के लिए भी सिंगापुरवासियों को आमंत्रित किया।

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Dakhal News 14 January 2016


एमपी में विदेशी निवेश बढ़ाने के लिये शिवराज सिंगापुर में

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सिंगापुर यात्रा के दौरान मध्यप्रदेश में विदेशी निवेश बढ़ाने के मकसद से वहाँ के प्रधानमंत्री, व्यापार एवं उद्योग मंत्री, रक्षा और विदेश मंत्री तथा विभिन्न प्रतिनिधि-मंडल से भेंट करेंगे। मुख्यमंत्री बिजनेस सेमीनार में भी शिरकत करेंगे। इस दौरान श्री चौहान को प्रतिष्ठित ली कुआन यू एक्सचेंज फेलोशिप से सम्मानित किया जायेगा।मध्यप्रदेश में विदेशी निवेश बढ़ाने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि-मण्डल के साथ 12 से 15 जनवरी तक सिंगापुर की यात्रा पर रहेंगे। उनके साथ उद्योग मंत्री श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया, राज्य शासन के वरिष्ठ अधिकारी और प्रमुख उद्योगपति भी यात्रा करेंगे। इस दौरान मुख्यमंत्री के नेतृत्व में प्रतिनिधि-मण्डल वर्ष 2016 में प्रदेश में होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिये सिंगापुर की प्रमुख कम्पनियों, उद्योग समूहों और व्यापारिक संगठनों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर आमंत्रण देंगे। मुख्यमंत्री सिंगापुर से 15 जनवरी की शाम स्वदेश के लिये रवाना होंगे।

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Dakhal News 12 January 2016


GROHE India Recognises Excellence with the Third Edition of NDTV Design and Architecture Awards

shruti GROHE India, the no. 1 international sanitary fittings brand in the country and the Founding Partner of NDTV Design & Architecture Awards announces the third edition of the felicitation ceremony. The event will be held in the month of January 2016 in TAJ WEST END, Bengaluru. The awards have received a tremendous response to their last two editions and this year too, the event promises to offer a vital and powerful platform to India’s design and architecture community to showcase its compelling work and receive due recognition for the headway it’s been steadily making. GROHE’s brand philosophy is firmly ingrained in the values of innovation, elegant aesthetics, enduring style and subtle luxury. It is also the founding partner of the World Architecture Festival and has now carried forward this legacy by presenting the prestigious Design and Architecture Awards, hosted by India’s premium media conglomerate, NDTV. The affiliation of GROHE with NDTV for these awards ties up seamlessly with GROHE’s brand proposition of creating homes and home spaces that are timeless epitomes of aesthetics and sustainability. The first and the second edition of NDTV Design & Architecture Awards were hailed as the best by the architect guild for its rigour, discipline, credibility and an impeccable evening event itself. The 2nd edition of the awards received huge appreciation by the fraternity, with over 1000 entries being submitted by India’s most talented architects and design firms. At a sterling gathering, held in Mumbai in February 2015, the winners were facilitated by leading artists, architects and renowned personalities. This year too, the awards will take a collective view of the jury and recognise architectural excellence and innovation that our country has to offer. Renu Misra, Managing Director, GROHE India said, “We were extremely pleased with the stupendous response received for both the editions of the GROHE NDTV Design & Architecture Awards. This time, too, we are equally excited to offer an ideal platform for recognising path-breaking innovations and talent in the area of design, architecture and construction in both the residential and commercial spheres. Through awards such as these, we wish to provide greater impetus for India’s architecture and design professionals to push the envelope of achievement and creativity. ” Vikram Chandra, Group CEO, NDTV said, “We are glad to partner with a world-renowned brand such as GROHE to present the third edition of the awards programme in the Design and Architecture categories. With the Grohe India-NDTV Design and Architecture Awards, we aim to provide an important opportunity to every architect and interior designer to be duly recognised. The platform serves as the best way for them to reveal their talent and adds to the vibrancy of the industry as a whole.” Design and Architecture has now evolved to become the oasis of households, hotels and spas, with sophisticated design led products that perform to the highest standards. The highly-coveted GROHE NDTV Design and Architecture Awards focus on the complexities of building projects from a design, aesthetic, sustainability and conservation perspective, as well as the local context.About GROHE India Pvt. Ltd. (GIPL):GROHE India Pvt. Ltd. (GIPL) is a wholly owned subsidiary of GROHE AG and has completed nine years of direct operations in India. In this time has acquired a dominant position in the Indian market as one of the largest selling foreign brands. GROHE launched its second Indian ‘GROHE Live! Centre’ in Mumbai in February 2012. This centre is a great opportunity for people to come and experience the world of GROHE. Besides featuring the entire range of GROHE products, the Live! Centre also showcases the GROHE elements of Quality, Technology and Design. GROHE has been recently awarded with two Good design Japan awards for its innovative products ‘Minta Touch‘ and ‘GROHE Blue mono‘, taking its 2013 tally to an impressive 18 awards. As an organisation, Grohe takes mutual responsibilities very seriously, examples of which can be seen with the successful launch of the Grohe Jal Academy at the Don Bosco Institute. This Academy trains underprivileged individuals to learn plumbing skills that can be utilised towards a lifelong vocation. About GROHE Group:The GROHE Group based in Luxembourg comprises Grohe AG and Joyou AG, both based in Germany, and other subsidiaries in foreign markets. The GROHE Group is the world’s leading provider of sanitary fittings. With its global GROHE brand, the GROHE Group relies on its brand values of quality, technology, design and responsibility to deliver “Pure Freude an Wasser”. With the JOYOU brand, the Group addresses the fast growing Chinese market. The GROHE Group was taken over by the LIXIL Group and the Development Bank of Japan in January 2014. The LIXIL Group is the global leader in the building materials and housing equipment industry. GROHE and Joyou remain independent within the LIXIL Group. About LIXIL Group and LIXIL Corporation:Led by President and CEO Yoshiaki Fujimori, LIXIL Group Corporation (TSE Code: 5938) is a listed holding company posting 1.6 trillion JPY in consolidated sales in FY March 2014. The Group is involved in a broad spectrum of housing-related businesses, ranging from the manufacture and sales of building materials and housing equipment to the operation of home centers and a network of homebuilding franchises. LIXIL Corporation, a consortium of building material companies, is a core enterprise of the Group, generating 80% of its consolidated sales. LIXIL is the largest housing and building materials company in Japan with a vast and unique business portfolio, a 55% market share in exteriors, a 50% share in housing sashes and doors, a 40% share in building sashes and shutters and a 40% share in sanitary ware. LIXIL is also a leading brand in product lines such as tiles, unit bathrooms and kitchen systems. Launched in April 2011 under its present structure and name, LIXIL Corporation has been active in strategic acquisitions and partnerships in order to fortify and accelerate its growth globally. It currently operates in more than 30 countries through various brands offering a broad line-up of products and services; Permasteelisa Group is a curtain wall business leader; American Standard Brands is one of the largest primary housing equipment providers in North America; the German-based GROHE Group is the world’s leading manufacturer and supplier of sanitary fittings, including kitchen and bathroom faucets and shower systems. Joyou, GROHE’s subsidiary, covers the Chinese sanitary market and expands the brand also to other markets. For more information about LIXIL Group and LIXIL Corporation, please visit: http://www.lixil-group.co.jp/e/About NDTV:NDTV Ltd., founded in 1988, is India's largest news and infotainment network. It is home to the country's best and brightest reporters, anchors, camerapersons and producers. Offices and studios across the country host India's most modern and sophisticated production, newsgathering and archiving facilities. NDTV has an unmatched track record of successfully launching both news and lifestyle channels; NDTV 24x7 is a clear leader in the English news segment; NDTV Profit, a business plus channel, is India's number one markets’ news channel; NDTV India is amongst the country's leading Hindi news channels; while NDTV Good Time straddles issues from health and holistic healing to fashion and food. NDTV is credited with pioneering several broadcasting and programming initiatives in Indian television and has expanded into one of the nation's biggest broadcasting houses by growing beyond news broadcasting and venturing into non news verticals with NDTV Worldwide and NDTV Convergence.

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Dakhal News 2 January 2016


एमपी के कई हिस्से पानी पानी ,सभी जिलों में आपदा प्रबंधन दल तैयार

मुख्यमंत्री चौहान ने की अतिवर्षा की स्थिति की समीक्षा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निर्देश दिए हैं कि सभी जिले में आपदा प्रबंधन दल तैयार रखें। लगातार सतर्क रहें और सूचना मिलते ही तत्काल कार्रवाई करें। आपात-स्थिति से निपटने के लिए भोपाल में सेना का हेलीकाप्टर तैयार रखें। मुख्यमंत्री चौहान प्रदेश में हाल ही के दो दिन में हुई अति वर्षा की स्थिति की समीक्षा कर रहे थे। बैठक में राजस्व मंत्री रामपाल सिंह, मुख्य सचिव अंटोनी डिसा और पुलिस महानिदेशक सुरेन्द्र सिंह भी उपस्थित थे।मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि सभी जिले में सावधानी रखी जाए कि नदी-नालों में पानी बढ़ते ही लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाये। स्थिति पर लगातार नजर रखें तथा प्रतिदिन समीक्षा करें। बाढ़ से प्रभावित होने पर स्थिति में तत्काल राहत की कार्रवाई शुरू करें।मुख्यमंत्री चौहान ने सीहोर जिले में बुधनी के पास खंडावार में नाले में पानी बढ़ने से दस लोग के बहने की घटना में तत्काल राहत दल भेजने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि बह गए लोगों को खोजने की कार्रवाई युद्ध स्तर पर शुरू की जाये। आज सुबह की इस घटना में दो महिलाओं की मृत्यु हो गई है। मृतकों के परिजन को डेढ़-डेढ़ लाख रूपए की सहायता दी जाएगी। उन्होंने उज्जैन में अति वर्षा से विद्युत आपूर्ति प्रभावित होने की सूचना पर शीघ्र विद्युत आपूर्ति बहाल करने के निर्देश दिए। राज्य-स्तरीय बाढ़ नियंत्रण कक्ष के दूरभाष क्रमांक 0755-2441419 के संबंध में लोगों को जानकारी दी जाए। सेना के हेलीकाप्टर के अलावा राज्य शासन के दोनों हेलीकाप्टर भी तैयार रखें।cबैठक में बताया गया कि प्रदेश में बाढ़ से बचाव के लिए 700 लोगों को स्थानांतरित किया गया और 2000 लोग की मदद की गई है। उज्जैन में क्षिप्रा नदी में जल-स्तर काफी बढ़ा है। गुना जिले के नसीरपुर के पास एक ग्रामीण क्षेत्र का पुल बह गया है, पर वहाँ आवागमन की वैकल्पिक व्यवस्था है। इन्दौर के पास खान नदी में पानी बढ़ने से 31 लोग घिर गए थे, जिन्हें स्थानांतरित किया गया है। शाजापुर जिले के ग्राम भाढ़ में बाढ़ में घिरे 15 तथा गुना जिले के मकसूदनगढ़ में 16 लोगों को बचाया गया है। बैठक में अपर मुख्य सचिव बी.पी. सिंह, प्रमुख सचिव राजस्व के.के. सिंह, प्रमुख सचिव लोक निर्माण प्रमोद अग्रवाल सहित विभागीय अधिकारी उपस्थित थे।

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Dakhal News 21 July 2015


गेहूँ खरीदी  केन्द्रों पर किसानों को परेशानी न हो

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निर्देश दिये हैं कि प्रदेश में गेहूँ उपार्जन के लिये बनाये गये केन्द्रों पर बेहतर व्यवस्था रहे। उपार्जन केन्द्रों पर आने वाले किसान को कोई परेशानी नहीं हो इसका ध्यान रखें। ओलावृष्टि के कारण जिस गेहूँ की थोड़ी चमक चली गई है तो भी उसे खरीदा जाये। प्रदेश के चार संभाग इन्दौर, उज्जैन, भोपाल और नर्मदापुरम् में समर्थन मूल्य पर गेहूँ की खरीदी गत 25 मार्च से शुरू हो गई है तथा शेष संभागों में आगामी 6 अप्रैल से शुरू होगी। मुख्यमंत्री स्वयं खरीदी केन्द्रों का निरीक्षण कर व्यवस्थाओं का जायजा लेंगे।मुख्यमंत्री चौहान ने बैठक में गेहूँ उपार्जन की तैयारियों की जानकारी ली। उन्होंने कहा कि गेहूँ उपार्जन के लिये बनाये गये खरीदी केन्द्रों पर छन्ने की तथा आद्रता मीटर की व्यवस्था रखें। यदि गेहूँ का समर्थन मूल्य 1450 रुपये प्रति क्विंटल से कम आकलन किया जाता है तो उसका नमूना लेकर मंडी सचिव प्रमाणित करें। जहां बड़े-बड़े तौल कांटे लगे है वहां दोबारा तुलाई नहीं हो। गेहूँ के उपार्जन से संबंधित किसी भी शिकायत के लिये एक टेलीफोन नम्बर निर्धारित किया जाये, जिस पर कोई भी किसान शिकायत कर सके। इस तरह की शिकायत पर तत्काल कार्रवाई करें।बैठक में बताया गया कि गेहूँ के उपार्जन के लिये प्रदेश में 18 लाख 74 हजार किसानों का पंजीयन किया गया है जो पिछले वर्ष से डेढ लाख अधिक है। गेहूँ के उपार्जन के लिये 2974 केन्द्र बनाये गये हैं। खरीदी के पहले दिन 25 मार्च को 2 हजार 73 किसानों से 10 हजार 614 मीट्रिक टन गेहूँ खरीदा गया। किसानों को राहत देने में मध्यप्रदेश देश में सबसे आगे राजस्व मंत्री श्री रामपाल सिंह ने कहा है कि किसानों को राहत देने के मामले में मध्यप्रदेश शासन देश में सबसे आगे है। पिछले दस वर्ष में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा किसानों के हित में राजस्व पुस्तक परिपत्र 6-4 में समय-समय पर संशोधन किये गये हैं। श्री सिंह ने कहा कि इन संशोधन के जरिये प्रदेश में प्राकृतिक आपदा राहत के प्रावधानों में से कोई प्रावधान ऐसा नहीं है, जिसमें उल्लेखनीय वृद्धि न की गई हो। उन्होंने कहा कि अनेक प्रावधानों में तो दो गुना से लेकर दस गुना तक वृद्धि की गई है। अनेक नयी फसलों के नुकसान को राहत के दायरे में लाया गया।श्री सिंह ने कहा कि प्रदेश में पहली बार अरहर और ईसबगोल की फसल को बारहमासी फसल के रूप में मान्य किया गया है। जन-हानि/अंग-हानि के मामलों को छोड़कर अन्य मामलों में उपखण्ड अधिकारी/तहसीलदार के वित्तीय अधिकारों में वृद्धि की गई है। पान-बरेजे आदि की हानि के लिये 25 से 50 प्रतिशत हानि होने पर 16 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर या 400 रुपये प्रति पारी और 50 प्रतिशत से अधिक हानि होने पर 25 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर या 625 रुपये प्रति पारी के मान से राहत प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।मंत्री श्री रामपाल सिंह ने बताया कि राजस्व पुस्तक परिपत्र 6-4 में किये गये संशोधन के परिप्रेक्ष्य में फसल हानि के मामलों में दी जाने वाली सहायता राशि के मापदण्ड में उल्लेखनीय वृद्धि की गई है। फलदार पेड़ और उन पर लगी फसलें आम, संतरा, नींबू के बगीचे, पपीता, केला, अंगूर, अनार आदि की फसलें तथा पान-बरेजे को छोड़कर सभी जगह उगाई जाने वाली फसलें, जिनके अंतर्गत सब्जी की खेती, तरबूज-खरबूज की खेती (डांगरवाड़ी) भी सम्मिलित है, चाहें वह नदी या खेतों के किनारे हो। इनकी हानि के लिये दी जाने वाली अनुदान सहायता में कुल खाते की धारित कृषि भूमि के आधार पर खातेदार कृषक की श्रेणी में लघु एवं सीमांत कृषक को जीरो हेक्टेयर से 2 हेक्टेयर कृषि भूमि धारित करने वाले खातेदार को 25 से 50 प्रतिशत फसल हानि होने पर वर्षा आधारित फसल के लिये 3500 रुपये प्रति हेक्टेयर, सिंचित फसल के लिये 6000 रुपये प्रति हेक्टेयर, बारहमासी बोवाई एवं रोपाई से 6 माह से अधिक कम अवधि में क्षतिग्रस्त होने पर 6000 रुपये प्रति हेक्टेयर के मान से राहत दिये जाने का प्रावधान है।

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Dakhal News 27 March 2015


दृष्टि- संकल्प पत्र के मुताबिक बनेगा बजट

मुख्यमंत्री ने संयुक्त बैठक में की समीक्षा मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान अब हर तीन माह में मंत्रियों और शीर्ष अधिकारियों की उपस्थिति में सामूहिक बैठक लेकर विभागवार समीक्षा करेंगे। चौहान ने वार्षिक विभागीय लक्ष्यों की उपलब्धियों के संबंध में संयुक्त बैठक में निर्देश दिये कि विभागों के बजट प्रस्ताव राज्य सरकार के दृष्टि-पत्र और संकल्प-पत्र के आधार पर बनाये जाये। मंत्रीगण स्वयं बजट प्रस्ताव का परीक्षण करें। नये साल में नये उत्साह, उमंग और ऊर्जा के साथ काम करें। बैठक में मंत्रीगण, मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और सचिव उपस्थित थे। यह मेराथन बैठक दोपहर 12 बजे से देर शाम तक चली। अगली सामूहिक बैठक अप्रैल माह में होगी।निवेश के लिये बनायें सकारात्मक मानसिकताश्री चौहान ने कहा कि प्रदेश में निवेश बढ़ाना राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। इसके लिये सभी विभाग सकारात्मक मानसिकता से काम करें। वे स्वयं हर सोमवार को निवेशकों से मुलाकात करते हैं। अब माह के अंतिम सोमवार को पूर्व के तीन सोमवार को दिये गये निर्देशों का फॉलोअप करेंगे। सभी विभाग वर्ष 2015-16 में दृष्टि-पत्र के अनुसार किये जाने वाले कार्यों का रोड मेप बनायें। राजस्व संग्रहण करने वाले विभाग आगामी तीन माह में सघन प्रयास कर लक्ष्य के अनुरूप कर संग्रहण करें। सिंहस्थ 2016 के लिये सभी विभाग आवश्यक रिक्त पदों की पूर्ति तत्काल करें।मुख्यमंत्री ने कहा कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिये केन्द्र सरकार द्वारा जिन बिन्दु को चिन्हित किया गया है उन पर कार्रवाई के लिये सभी विभाग दो सप्ताह के अंदर रोड मेप बनायें। राज्य सरकार द्वारा प्रक्रियाओं के सरलीकरण के लिये 68 बिन्दु चिन्हांकित किये गये हैं। स्वच्छ भारत अभियान में सभी विभाग स्व-प्रेरणा से कार्य करें। सभी मंत्रीगण और अधिकारी पाले से फसल को बचाने के संबंध में किसानों को जागरूक करें। शीत लहर से निपटने की व्यवस्था का अपने-अपने क्षेत्र में निरीक्षण करें।लोकायुक्त द्वारा प्राप्त प्रकरणों का निराकरण समय-सीमा में करेंश्री चौहान ने कहा कि भ्रष्टाचार किसी भी हालत में स्वीकार नहीं। रंगे हाथ पकड़े गये अधिकारी-कर्मचारी को तत्काल निलंबित किया जाये। अभियोजन स्वीकृति के लिये लोकायुक्त द्वारा प्राप्त प्रकरणों का निराकरण दो माह की समय-सीमा में हो। विभागीय जाँच एक वर्ष की समय-सीमा में पूरी की जाये। एक वर्ष की अवधि के ऐसे न्यायालयीन प्रकरण जिनमें शासन की जीत नहीं हुई उनकी विभागवार सूची तैयार की जाये। विधि विभाग में सेल बना कर ऐसे प्रकरणों की समीक्षा हो। ऐसे शासकीय अधिवक्ता जो शासन के पक्ष में खड़े नहीं हुए उन्हें पुन: नहीं लिया जाय। न्यायालयीन प्रकरणों में सक्षम अधिकारी को प्रभारी अधिकारी बनाया जाये। मंथन की अनुशंसाओं पर सभी विभाग आगामी 14 जनवरी तक अनिवार्य रूप से अपनी राय दें। श्री चौहान ने किसानों को पाले से बचाने के उपाय सुझाने और शीत लहर के चलते प्रशासन को पूरी ताकत के साथ राहत कार्यों में लगाने के निर्देश दिये। उन्होंने पिछले दिनों रात में किये गये रैन बसेरों और नगर भ्रमण का उल्लेख करते हुए मंत्रियों से भी रात्रि में व्यवस्थाएँ देखने को कहा।ग्रामवार फर्टिलाइजर मेपिंग होगीबैठक में विभिन्न विभाग ने वार्षिक लक्ष्यों और उपलब्धियों के बारे में जानकारी दी। बताया गया कि धान, मूँगफली और कपास में प्रदेश राष्ट्रीय उत्पादकता से अधिक हो गया है। अगले वर्ष गन्ना, गेहूँ, मसूर और मक्का की उत्पादकता बढ़ाने का कार्य किया जायेगा। प्रदेश में अगले एक साल में ग्रामवार फर्टिलाइजर मेपिंग की जायेगी। प्रदेश में इस वर्ष 23 लाख 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की गई है, जो लक्ष्य से 30 हजार हेक्टेयर अधिक है। प्रदेश में 150 के लक्ष्य के विरूद्ध 195 लघु सिंचाई योजनाएँ पूरी की गई हैं। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का फॉलोअप सिस्टम बनाया गया है। इसमें प्राप्त 3,164 निवेश प्रस्तावों की ऑनलाइन मानीटरिंग की जा रही है। प्रदेश में इस वर्ष देश में सर्वाधिक 309 मेगावॉट नवकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित हुई है। जारी वर्ष के अंत तक प्रदेश में नवकरणीय ऊर्जा क्षमता 1700 मेगावॉट हो जायेगी। वन विभाग द्वारा टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में सड़कों के विकास कार्य प्रारंभ किये गये हैं। विन्ध्य क्षेत्र में पुन: सफेद टाइगर बसाने का कार्य किया जा रहा है। गृह विभाग महिला अपराधों के विरुद्ध जीरो टालरेंस की नीति पर कार्य कर रहा है। महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में की गयी त्वरित और सक्षम विवेचना से 17 प्रकरण में मृत्यु दण्ड की सजा हुई है। पुलिस बल के लिये 10 हजार 500 मकान हुडको से ऋण लेकर बनाये जा रहे हैं। चरित्र सत्यापन की गति तेज हो गयी है। लोक सेवा प्रबंधन में प्रदेश में किये गये परिणाममूलक कार्यों के फलस्वरूप विश्व बेंक द्वारा सर्व सेवा परियोजना के तहत लोक सेवा प्रबंधन के लिये 300 करोड़ की फंडिंग की जारही है।मुख्यमंत्री श्री चौहान ने नगरीय विकास, श्रम, नर्मदा घाटी विकास, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, लोक निर्माण, राजस्व, सामाजिक न्याय, धर्मस्व, खेल एवं युवा कल्याण, पर्यटन, पशुपालन, जेल, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग की समीक्षा की। उन्होंने विभागों की उपलब्धियों, नये लक्ष्यों का निर्धारण एवं पूर्ति और आगामी योजनाओं के संबंध में जानकारी ली। उन्होंने विभाग प्रमुखों से मैदानी दौरों के संबंध में भी पूछा।नगरीय विकास और पर्यावरण विभाग की समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री ने शहरी अधोसंरचना विकास परियोजनाओं में तेजी लाने के निर्देश दिये। उन्होंने शहरी गरीब लोगों के लिये सस्ते मकान बनाने की योजनाओं में जमीन संबंधी मुद्दों को भी तेजी से हल करने के लिये कहा। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की समीक्षा में मुख्यमंत्री ने सभी गाँवों को सड़कों से जोड़ने का काम पूरा करने के निर्देश दिये। उच्च शिक्षा विभाग की समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री ने वर्चुअल क्लासेस को और प्रभावी बनाने और ऑल इण्डिया परीक्षाओं के लिये विद्यार्थियों को कोचिंग सुविधा जल्दी शुरू करने के निर्देश दिये।मुख्यमंत्री ने श्रम विभाग की समीक्षा करते हुए कहा कि सभी पंजीकृत श्रमिक को मूलभूत सुविधाओं का लाभ मिलना चाहिये। श्री चौहान ने ग्राम आरोग्य केन्द्रों को सक्रिय बनाने और सभी जिलों में केन्सर के इलाज की सुविधा बढ़ाने, डायलेसिस मशीन स्थापित करने के निर्देश देते हुए कहा कि अगले एक साल के भीतर स्वास्थ्य विभाग को देश का सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य विभाग बनाने के सभी जरूरी कदम उठायें।बैठक में बताया गया कि स्वास्थ्य सेवा गारंटी योजना को भारत सरकार ने अपना लिया है और हर राज्य को इसे लागू करने की सलाह दी गई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि 2015 को पर्यटन वर्ष घोषित किया गया है। सिंहस्थ के आयोजन तक पर्यटन की गतिविधियाँ जारी रहेंगी। सिंहस्थ को धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से प्रचारित किया जायेगा।तीर्थ-दर्शन में मंत्री भी जायेधर्मस्व विभाग की समीक्षा में मुख्यमंत्री ने सुझाव दिया कि तीर्थ-दर्शन योजना में मंत्रियों, विधायकों को भी श्रद्धालुओं के साथ जाना चाहिये। जेल विभाग की समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री ने सभी जिलों में सी.सी.टी.व्ही केमरा और सीमित उपयोग वाला जेमर लगाने के भी निर्देश दिये।तकनीकी और कौशल विकास की समीक्षा में बताया गया कि कारीगर समृद्धि योजना बनाई जा रही है। इसमें कारीगरों के कौशल का प्रमाणीकरण किया जायेगा जिससे उन्हें अपने हुनर का ज्यादा मेहनताना मिले। यह भी बताया गया कि उद्योग और पॉलिटेक्निक के बीच प्रशिक्षण एवं पाठ्यक्रम निर्माण के लिये एम.ओ.यू. हुआ है। इससे विद्यार्थियों को अच्छा प्लेसमेंट मिलेगा।वित्त मंत्री टीम की सराहनामुख्यमंत्री चौहान ने प्रदेश में कुशल वित्तीय प्रबंधन के लिये वित्त मंत्री श्री जयंत मलैया सहित अपर मुख्य सचिव वित्त अजय नाथ तथा उनकी टीम की सराहना की। मुख्यमंत्री ने कहा कि किसानों की मदद में खर्च किये गये 12,000 करोड़ रुपये तथा शासकीय अमले को केन्द्र के समान महँगाई भत्ता देने में हुए अतिरिक्त खर्च के बावजूद प्रदेश की वित्तीय स्थिति पूरी तरह पटरी पर रही।

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Dakhal News 7 January 2015


बिना भवनों के लड़खड़ाती  शिक्षा व्यवस्था

मध्यप्रदेश के शासकीय प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं में एक लाख 40 हजार से अधिक भवनों की कमी है। जिन स्कूलों में भवन नहीं हैं वहां कक्षाएं एक ही कक्ष में संचालित होती हैं। ऐसे में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की सार्थकता साबित नहीं हो पा रही है। इस संदर्भ में शिक्षा के अधिकार को देखें तो इस कानून को लागू हुए करीब पांच वर्ष हो रहे हैं, लेकिन शालाओं में भवनों की स्थिति नहीं सुधर सकी है। एक अनुमान के अनुसार करीब 11 फीसदी प्राथमिक एवं माध्यमिक शालाओं के लिए भवन नहीं हैं। आरटीई के तहत हर शिक्षक के लिए बच्चों को पढ़ाने के लिए अलग कक्ष होना चाहिए। वर्ष 2013 की स्थिति के अनुसार स्कूलों में 1 लाख 41 हजार कमरों की कमी है। इस संदर्भ में एक और खबर आई थी कि करीब पचास हजार शिक्षकों के पद स्कूलों में खाली हैं। ये दो समाचार शासन और समाज दोनों की शिक्षा व्यवस्था की उपेक्षा को दर्शाते हैं।यानी बौद्धिक और संसाधनगत दोनों स्तरों पर शिक्षा की उपेक्षा जारी है। शिक्षा एक समाज की नींव होती है, जो कि एक मजबूत तथा समृद्ध देश का गठन करती है। परन्तु राज्यों की शिक्षा व्यवस्था एक तरह से शिक्षा का परिहास है, इसमें बिना बदलाव के हम एक स्वस्थ, मानसिक तथा शारीरिक तौर पर स्थिर समाज की कल्पना नहीं कर सकते। हमारी वर्तमान शिक्षा नीति, एक नैतिक तथा प्रतिभावान चरित्र के किशोर और युवा पैदा करने में असफल है। शिक्षा व्यवस्था यह साफ दिखाई देता है कि जिन सुधारों की जरूरत शिक्षा व्यवस्था को थी एक औपनिवेशिक प्रक्रिया से निकलकर के और एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया बनने के लिए उन सुधारों के अमल में बहुत परेशानियां आती रही हैं। ऐसा नहीं है कि कोई सुधार नहीं हुआ, लेकिन हम कुछ बुनियादी मुद्दों पर सुधारों की बात करें तो हमें लगेगा कि आजादी के बाद जो पहला राष्ट्रीय आयोग बना था, मुदलियार आयोग, जिसका मुख्य फोकस माध्यमिक शिक्षा पर था। उसके नजरिये से अगर देखें, 1952-53 का यह आयोग है, तो ऐसा लगता है कि शिक्षा व्यवस्था की कुछ बुनियादी कमजोरियां परिलक्षित हुईं, पहचानी गईं लेकिन उनको सुधारने के लिए जितनी बड़ी मुहिम या कि जिस तरह की एक इच्छा शक्ति की आवश्यकता थी उसकी कमी राज्यों और केंद्र सरकारों में लगातार बनी रही। आज जब लोग राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा जो 2005 में केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड द्वारा स्वीकार की गई है, उस सन्दर्भ में बात करते हैं तो हम उन सभी कमजोरियों को दुबारा एक तरह से सुधार के एंजेडा पर लाने की बात करते हैं। इनमें से सबसे बड़ी कमजोरी है बच्चे के दृष्टिकोण से पढ़ाई को संचालित न कर पाने की विवशता और संसाधनों का अभाव। इसके लिए संविधान परिवर्तनकारी भूमिका शिक्षा को देता है। संविधान बहुत स्पष्टता से निर्धारित कर देता है कि शिक्षा को किन मूल्यों के लिए और किन आदर्शों के लिए काम करना चाहिए। ये हमारे संविधान के बिलकुल शुरुआती हिस्से में रखे गए हैं कि हम शिक्षा की भूमिका समाज के सन्दर्भ में बड़ी आसानी से पहचान सकते हैं। उम्मीद है शासन भी इसे समझेगा।

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Dakhal News 31 December 2014


मध्‍यप्रदेश में मिलावटखरों को होगी उम्रकैद

मध्यप्रदेश में मिलावटी करने वाले को अब आजीवन कारावास की सजा होगी। इस संबंध में विधानसभा ने दंड-विधि विधेयक 2014 में संशोधन विधेयक पारित कर दिया। इसके अनुसार अब यह अपराध गैर जमानती होगा। इसकी सुनवाई भी सेशन कोर्ट में होगी। अब तक इसके लिए अधिकतम सजा 6 माह और एक हजार जुर्माने का प्रावधान था।नए कानून के अनुसार दूध से बने उत्पाद, अन्य खाने-पीने का सामान और दवाओं में मिलावट करने अथवा बेचने पर आजीवन कारावास होगा। उल्लेखनीय है कि मिलावट पर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि ऐसे कई मामलों में मिलावटखोरों को पकड़ कर सजा भी दी गई है, लेकिन अधिकतम 6 माह का कारावास होने से मिलावट खोरी पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के राज्य का हवाला देते हुए सभी राज्यों को मिलावट करने वालों को आजीवन कारावास का कानून बनाने के निर्देश दिए थे।दो मिनट में दो विधेयक पारित -हंगामे के बीच ही दो महत्वपूर्ण विधेयक दंड विधि और आकस्मिकता निधि संशोधन विधेयकों को दो मिनट में पारित करवा दिया। इस बारे में विधि मंत्री कुसुम महदेले ने कहा कि नए कानून से पहले जो सजा थी उसका असर मिलावटखोरों पर नजर नहीं आ रहा था ,इसलिए अब आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है। मध्यप्रदेश के एक अन्य मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा की मिलावटखोरों के लिए दो ही विकल्प थे पहला मृत्युदंड और दूसरा उम्रकैद और हमने दूसरा विकल्प चुना है।

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Dakhal News 10 December 2014


एमपी में 20% महंगी होगी बिजली

एमपी पावर मैनेजमेंट कंपनी बिजली की दरों में 20 फीसदी तक बढ़ोतरी की तैयारी में है। कंपनी का प्रस्ताव तैयार है। सबसिडी के बढ़ते बोझ और दो सालों से दाम नहीं बढ़ाए जाने की दलील देते हुए विद्युत नियामक आयोग को प्रस्ताव 19 दिसंबर को सौंप दिया जाएगा।प्रदेश सरकार अटल ज्योति अभियान के तहत 24 घंटे बिजली मुहैया करा रही है। खेती के लिए किसानों को थ्री फैज पर 8 से 10 घंटे बिजली देने का सरकार का दावा है। सर्वहारा वर्ग और किसानों को तमाम सबसिडी बिजली कंपनी दे रही है। नौ हजार करोड़ के करीब का घाटा कंपनी को अनुमानित है। लिहाजा आयोग 20 प्रतिशत तक बढ़ोतरी टैरिफ में चाहता है। हालांकि बिजली कंपनियों ने फ्यूल कास्ट एडजस्टमेंट (एफसीए) के नाम पर पिछले दरवाजे से उपभोक्ताओं से अधिक वसूली की है। सूत्रों के अनुसार बिजली कंपनी ने प्रस्ताव तैयार कर लिया है। उसकी योजना 40 पैसे प्रति यूनिट तक बिजली के दाम बढ़ाए जाने की है। मोटे तौर पर 20 फीसदी के करीब की वृद्धि का उसका प्रस्ताव है।

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Dakhal News 5 December 2014


ऑर्गनिक खेती का दिया संदेश

भोपाल गैस कांड की तीसवीं बरसी पर गैस पीड़ितों के न्याय की लड़ाई लड़ रहे सामाजिक संगठनों ने इकबाल मैदान में विकल्प मेला लगाया है। मेले में भोपाल सहित देश भर के सामाजिक संगठन आर्गनिक खेती पर बल दे रहे हैं। पंजाब के खेती विरासत मिशन के सदस्य अजय त्रिपाठी ने आॅर्गनिक खेती के बारे में कहा कि गैस त्रासदी जैसे हादसे फिर नहीं होंगे। त्रिपाठी पंजाब में आॅर्गनिक खेती का अभियान चला रहे हैं। वे कहते हैं कि भोपाल के पीड़ितों का दर्द कीटनाशक दवाओं से जुड़ा है, इसलिए आए हैं। कीटनाशक दवाओं के उत्पादन से ही हादसा हुआ और हमारी कोशिश है कि कीटनाशक दवाओं का उपयोग ही बंद हो जाए। इस मौके पर पीएचडी स्कॉलर लवलीन ने कहा कि मप्र का गेहूं हम बेहद अच्छा मानते थे, लेकिन पंजाब की तरह यहां भी अत्यधिक कीटनाशकों का उपयोग होता है। मप्र में पंजाब की तरह दवाओं का इस्तेमाल न हो, ये संदेश देने आए हैं। इसके अलावा मेले में पवन ऊर्जा के मॉडल भी दिखाए जा रहे हैं। मेले में गैस कांड पर एक फोटो प्रदर्शनी भी लगाई गई है। इसमें हादसे के बाद लोगों का जीवन दर्शाया गया है।

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Dakhal News 1 December 2014


नगरीय निकाय चुनाव में लगेंगी 17 वि.स.बल कंपनी

एमपी में नगरीय निकाय निर्वाचन-2014 में विशेष सशस्त्र बल की 17 कंपनी लगायी जायेंगी। इसके अलावा 44 राजपत्रित अधिकारी और 2880 अन्य इकाई बल चुनाव डयूटी करेगा। यह जानकारी राज्य निर्वाचन आयुक्त आर. परशुराम की पुलिस महानिदेशक सुरेन्द्र सिंह के साथ बैठक में दी गयी। बैठक में आगामी पंचायत निर्वाचन में फोर्स डिप्लॉयमेंट के संबंध में भी चर्चा हुई। इस दौरान आई.जी. मकरंद देउस्कर सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।श्री परशुराम ने कहा कि क्रिटिकल मतदान केन्द्रों पर सुरक्षा के विशेष प्रबंध किये जाये। उन्होंने प्रतिबंधात्मक कार्यवाही तत्परता से करने के निर्देश भी दिये। अभी तक 581 वल्नरेबल पॉकेट में 1180 प्रतिबंधात्मक कार्यवाही की गयी हैं। बैतूल जिले के मुलताई थाने में निर्वाचन संबंधी अपराध के 3 प्रकरण दर्ज किये गये हैं।2 लाख 22 हजार 489 शस्त्र जमाअभी तक प्रदेश में 2 लाख 22 हजार 489 शस्त्र विभिन्न थाना में जमा करवाये जा चुके हैं। इसी तरह 37 हजार 269 लीटर देशी और 47 हजार 669 लीटर विदेशी अवैध शराब जप्त की जा चुकी। यह कार्यवाही लगातार जारी है।

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Dakhal News 25 November 2014


ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में  डिजिटल इंडिया

मध्यप्रदेश में आईटी, आईटीईएस, बीपीओ, बीपीएम में निवेश की सुविधाओं पर सेक्टोरल सेमीनार ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के दौरान आज इन्दौर में मध्यप्रदेश में आईटी, आईटीईएस, बीपीओ, बीपीएम में निवेश की सुविधाओं विषयक सेक्टोरल सेमीनार में मध्यप्रदेश में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुए काम की सराहना की गई। सेमीनार में भारत सरकार के अधिकारियों, उद्यमियों तथा विशेषज्ञों ने प्रतिभागिता की। उन्होंने इस काम को और बेहतर करने के संबंध में सुझाव भी दिये। भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रो. आर.एस. शर्मा ने अपने मुख्य वक्तव्य में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के डिजिटल इंडिया के अभियान पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि अभियान का उद्देश्य भारत के हर नागरिक की ब्राण्ड बेंड कनेक्टिविटी तक पहुँच बनाना है। अगले दो वर्ष में हर पंचायत में यह सुविधा उपलब्ध हो जायेगी। डिजिटल सर्विस डिलीवरी के विषय में उन्होंने बताया कि इसमें पहचान के प्रमाणीकरण पर जोर दिया गया है। प्रत्येक व्यक्ति के पास मोबाइल फोन होना चाहिए, जिससे वह डिजिटल सुविधाओं का लाभ ले सके। डिजिटल इंडिया में हर नागरिक के बेंक एकाउंट खोलने की योजना है। वित्तीय समावेशन डिजिटल इंडिया का महत्वपूर्ण अंग है।श्री शर्मा ने बताया कि डिजिटल इंडिया में सरकार द्वारा जारी किये जाने वाले सभी प्रमाण-पत्र और दस्तावेज डिजिटाइज होंगे। किसी भी व्यक्ति को सरकार के विभागों द्वारा जारी प्रमाण-पत्रों की प्रति दिखाने के लिये मजबूर नहीं किया जायेगा। साथ ही कोई व्यक्ति देश के किसी भी कोने में रहे, उसे पात्रता के अनुसार सुविधाएँ वहीं मिलेंगी। नगद भुगतान को कम से कम कर इलेक्ट्रॉनिक भुगतान को अधिकतम किया जायेगा।प्रो. शर्मा ने कहा कि ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में मध्यप्रदेश में बहुत अच्छा काम हुआ है। अभी विभिन्न एप्लीकेशन्स के बीच कनेक्टिविटी देना जरूरी है। ई-गवर्नेंस मोबाइल फोन पर उपलब्ध हो और इसके एप्लीकेशन्स को री-डिजाइन करने की जरूरत है।पार्टनर, इन्फ्रा-स्ट्रक्चर्स एण्ड गव्हनर्मेंट सर्विसेज के जयजीत भट्टाचार्य ने ईएसडीएम नीतियों के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहाकि इलेक्ट्रॉनिक के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएँ हैं। उन्होंने प्रक्रियाओं को सरल बनाने के साथ-साथ इससे जुड़े विषयों पर जन-जागरूकता बढ़ाने पर बल दिया। अनेक देशों का उदाहरण देते हुए बेहतर कनेक्टिविटी की जरूरत बताई। वीपी हेड-ग्लोबल गव्हनर्मेंट इंडस्ट्री ग्रुप के श्री तन्मय चक्रवर्ती ने मध्यप्रदेश में हुए शानदार विकास के लिये सरकार और मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को बधाई दी। उन्होंने कहा कि प्रदेश में आईटी, आईटीईएस, बीपीओ, बीपीएम के क्षेत्र में अच्छा काम हुआ है। उन्होंने कहा कि उन्हें मध्यप्रदेश को केवल एक सुझाव देना है कि अगली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट तक सरकार की सारी सुविधाओं और प्रक्रियाओं को डिजिटाइज कर लिया जाये। उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में एन्ड्राइड मोबाइल फोन का व्यापक रूप से प्रयोग होने लगा है। अत: अब हमें एम-गवर्नेंस की ओर बढ़ने की जरूरत है।टेली परफार्मेंस इंडिया के संजय मेहता ने कहा कि उनकी कंपनी 2007 से प्रदेश में बीपीओ सेवाएँ दे रही हैं और अभी तक कोई समस्या नहीं आई है। यहाँ की सरकार बहुत संवेदनशील है और तत्काल कार्यवाही करती है। उन्होंने बताया कि उनकी संस्था में बड़ी संख्या में कर्मचारी छोटे शहरों से और 25 साल से कम उम्र के हैं। उन्होंने इस क्षेत्र में प्रशिक्षण सुविधा के विस्तार की जरूरत बताते हुए ट्रेनिंग सब्सिडी दिये जाने का सुझाव दिया।डायरेक्टर सर्व इन बीपीओ सर्विसेज अभिषेक गुप्ता ने कहा कि उन्हें भोपाल में बीपीओ चलाने का बहुत अच्छा अवसर प्राप्त हुआ है। उन्हें इस काम में कोई कठिनाई नहीं आई है और उनका व्यवसाय सुचारू रूप से चल रहा है। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश की बीपीओ नीति बहुत अच्छी है। उन्होंने छोटे उद्यमियों को ग्रामीण क्षेत्रों में बीपीओ स्थापित करने का सुझाव दिया। मेनेजिंग डायरेक्टर नेटलिंक साफ्टवेयर श्री अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार की अच्छी नीतियों और संवेदनशील प्रशासन के कारण यहाँ उद्योगपति निवेश करने को आकर्षित हो रहे हैं। उन्होंने छोटे शहरों में युवाओं को रोजगार देने तथा लोगों को सुविधाएँ देने के लिये बीपीओ स्थापित करने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि इसके लिये युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।एक्सेनच्योर इंडिया के वाईस प्रेसीडेंट श्री रवीन्द्र रेड्डी ने इस क्षेत्र में दुनिया में हुए अच्छे कार्यों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि स्थानीय उद्यमियों के माध्यम से इस क्षेत्र में उद्यम शुरू किये जाने चाहिए। उन्होंने स्थानीय तौर पर टेलेंट पूल बनाने का भी सुझाव दिया।सूचना प्रौद्योगिकी एवं मुख्यमंत्री के सचिव हरिरंजन राव ने विषय-प्रवर्तन कर सेमीनार के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।मध्यप्रदेश इलेक्ट्रानिक विकास निगम के प्रबंध संचालक एम. सेलवेन्द्रन ने कहा कि सेमीनार में विशेषज्ञों द्वारा दिये गये सुझावों को शासन की नीति में शामिल किया जायेगा। उन्होंने कहा कि भविष्य में भी समय-समय पर आवश्यकतानुसार नीतिगत परिवर्तन किये जाते रहेंगे।

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Dakhal News 11 October 2014


मध्यप्रदेश की आर्थिक रेटिंग "ए" श्रेणी की हुई

मुख्यमंत्री चौहान ने इन्दौर में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की तैयारियों की समीक्षामुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज ब्रिलिएंट कन्वेंशन सेंटर, इंदौर में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2014 की तैयारियों की समीक्षा की। मुख्यमंत्री के साथ उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया भी थीं।मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि समिट के आयोजन से विश्व-स्तर पर मध्यप्रदेश की पहचान बन रही है। समिट की देश में ही नहीं वरन विश्व-स्तर पर भी चर्चाएँ हो रही हैं। उन्होंने बताया कि भोपाल में आज आस्ट्रेलिया के हाई कमिश्नर ने मुलाकात कर प्रदेश में डेयरी उद्योग में निवेश की संभावनाओं के संबंध में चर्चा की। कनाडा से भी समिट के पूर्व, दौरे का प्रस्ताव आया है। इस प्रकार पूरा विश्व हमारी ओर संभावनाओं की दृष्टि से देख रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश असीम संभावनाओं का प्रदेश है। प्रकृति ने अपनी अनमोल संपदा से हमें परिपूर्ण किया है। प्रदेश की आर्थिक रेटिंग भी ए ग्रेड में है। उन्होंने कहा कि निवेशकों को प्रदेश के विकास से जोड़ेंगे और प्रदेश की जनता को भी विकास में सहभागी बनायेंगे।मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि समिट देश में ही नहीं वरन पूरे मध्यप्रदेश के उद्योगपतियों को भी अन्य देशों में व्यापक बाजार उपलब्ध करवायेगी। इस ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में सात से अधिक देश अपने प्रेजेन्टेशन देंगे। ये देश मध्यप्रदेश में निवेश की संभावनाओं तथा अपने देशों में निवेश की संभावनाओं पर अपना दृष्टिकोण रखेंगे। अभी तक 3000 से अधिक डेलीगे अपना पंजीयन करा चुके हैं और 250 से अधिक डेलीगेट् के आवेदन लंबित हैं। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि समिट विश्व-स्तर की होना चाहिये। आने वाले सभी डेलीगेट् को हर तरह से बेहतर माहौल मिले।इसके पूर्व मुख्यमंत्री चौहान ने एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के 9 अक्टूबर के आगमन की तैयारियों का जायजा लिया। पुराना एयरपोर्ट के बाहर कॉरिडोर का निरीक्षण किया। एयरपोर्ट से एमआर-10 से होते हुए ब्रिलिएंट कन्वेंशन सेंटर तक के मार्ग का निरीक्षण किया और निर्देश दिये कि मार्ग के दोनों ओर सभी व्यवस्थाएँ चाक-चौबंद हों। आकर्षक होर्डिंग लगे जिनमें मध्यप्रदेश के पर्यटन, उद्योग, संस्कृति, कृषि एवं प्राकृतिक विषय अंकित हों।मुख्यमंत्री चौहान ने ब्रिलिएंट कन्वेंशन सेंटर के मुख्य हाल और व्यवस्थाओं की जानकारी ली। वहाँ के अन्य कक्षों का भी निरीक्षण किया और बैठक व्यवस्था देखी। उन्होंने निर्देश दिये कि निवेशकों और मंच पर उपस्थित अन्य लोगों के लिये एक समान व्यवस्था की जाये। मुख्यमंत्री ने प्रेस ब्रीफिंग कक्ष, मीडिया कक्ष के संबंध में भी चर्चा की और वहाँ सभी आधुनिक व्यवस्थाएँ उपलब्ध करवाने के निर्देश दिये। पार्किंग, होटलों और बैठक व्यवस्था पूर्ण होने पर पुनः प्रेजेन्टेशन के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिये कि इस दौरान आम जनता को कोई परेशानी न हो।मुख्यमंत्री के साथ मुख्य सचिव एंटोनी डिसा, विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी पुलिस सुरेन्द्र सिंह, ट्रायफेक के एमडी डी.पी. आहूजा सहित इंदौर के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

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Dakhal News 30 September 2014


सपनि में वन टाइम सेटलमेंट

राज्य सरकार ने सड़क परिवहन निगम को पूरी तरह बंद करने की तैयारी कर ली है। जहां तक कर्मचारियों का सवाल है तो उन्हें वन टाइम सेटलमेंट में पैसा देकर उन्हें घर बैठा दिया जाएगा। निगम के कर्मचारी इस फैसले को घाटे का सौदा बता रहे हैं। वे संविलियन की मांग पर अड़े हुए हैं। हालांकि निगम को बंद करने के मामले में श्रम मंत्रालय के निर्देश पर 15 सितंबर को दिल्ली में त्रिपक्षीय बैठक होने जा रही है। निगम सूत्रों ने बताया कि सपनि को बंद करने के मामले में परिवहन विभाग के अधिकारी केन्द्रीय श्रम मंत्रालय के सामने प्रस्ताव रखेंगे। दरअसल केन्द्रीय श्रम कानून के चलते राज्य सरकार चाहकर भी निगम में पूरी तरह से तालाबंदी नहीं कर पा रही है। श्रम मंत्रालय का कहना है कि जब तक निगम के एक-एक कर्मचारी का पुनर्वास नहीं हो जाता राज्य सरकार इसे पूरी तरह से बंद नहीं कर सकती। इसके चलते परिवहन महकमे के आला अफसरों ने सभी कर्मचारियों को वन टाइम सेटेलमेंट के तहत 5 से 6 लाख रुपए का पैकेज तैयार किया है। दिल्ली में होने वाली बैठक में निगम को बंद करने का अंतिम फैसला होने की संभावना है। मालूम हो कि निगम में 463 कर्मचारी शेष है। इसमें से 177 प्रतिनियुक्ति पर है। इधर, कर्मचारियों को वन टाइम सेटलमेंट मंजूर नहीं है। उनका कहना है कि इसका पर्याप्त फायदा कर्मचारियों को नहीं मिलेगा। सड़क परिवहन निगम कर्मचारी अधिकारी उत्थान समिति के अध्यक्ष श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं कि हम बैठक में अपनी बात रखेंगे। उनका कहना है कि हम तिलहन संघ की तरह अपने कर्मचारियों का संविलियन चाहते हैं। जो कर्मचारी इस समय जहां प्रतिनियुक्ति पर है, उनका वही पर संविलियन कर दिया जाए। बाकी कर्मचारियों का संविलियन अन्य विभागों में करें।

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Dakhal News 16 September 2014


सपनि में वन टाइम सेटलमेंट

राज्य सरकार ने सड़क परिवहन निगम को पूरी तरह बंद करने की तैयारी कर ली है। जहां तक कर्मचारियों का सवाल है तो उन्हें वन टाइम सेटलमेंट में पैसा देकर उन्हें घर बैठा दिया जाएगा। निगम के कर्मचारी इस फैसले को घाटे का सौदा बता रहे हैं। वे संविलियन की मांग पर अड़े हुए हैं। हालांकि निगम को बंद करने के मामले में श्रम मंत्रालय के निर्देश पर 15 सितंबर को दिल्ली में त्रिपक्षीय बैठक होने जा रही है। निगम सूत्रों ने बताया कि सपनि को बंद करने के मामले में परिवहन विभाग के अधिकारी केन्द्रीय श्रम मंत्रालय के सामने प्रस्ताव रखेंगे। दरअसल केन्द्रीय श्रम कानून के चलते राज्य सरकार चाहकर भी निगम में पूरी तरह से तालाबंदी नहीं कर पा रही है। श्रम मंत्रालय का कहना है कि जब तक निगम के एक-एक कर्मचारी का पुनर्वास नहीं हो जाता राज्य सरकार इसे पूरी तरह से बंद नहीं कर सकती। इसके चलते परिवहन महकमे के आला अफसरों ने सभी कर्मचारियों को वन टाइम सेटेलमेंट के तहत 5 से 6 लाख रुपए का पैकेज तैयार किया है। दिल्ली में होने वाली बैठक में निगम को बंद करने का अंतिम फैसला होने की संभावना है। मालूम हो कि निगम में 463 कर्मचारी शेष है। इसमें से 177 प्रतिनियुक्ति पर है। इधर, कर्मचारियों को वन टाइम सेटलमेंट मंजूर नहीं है। उनका कहना है कि इसका पर्याप्त फायदा कर्मचारियों को नहीं मिलेगा। सड़क परिवहन निगम कर्मचारी अधिकारी उत्थान समिति के अध्यक्ष श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं कि हम बैठक में अपनी बात रखेंगे। उनका कहना है कि हम तिलहन संघ की तरह अपने कर्मचारियों का संविलियन चाहते हैं। जो कर्मचारी इस समय जहां प्रतिनियुक्ति पर है, उनका वही पर संविलियन कर दिया जाए। बाकी कर्मचारियों का संविलियन अन्य विभागों में करें।

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Dakhal News 16 September 2014


मध्यप्रदेश में एक वर्ष में 466 नई बैंक शाखा खुली

बैंकों में लगभग ढाई लाख करोड़ जमा मध्यप्रदेश में बैंक शाखाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। मार्च 2013 की तुलना में वर्ष 2014 के मार्च तक 466 नई बैंक शाखा खुलीं। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में 182, अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 136 तथा शहरी क्षेत्रों में 148 शाखा शामिल हैं। वर्तमान में प्रदेश में कुल 6415 बैंक शाखा हैं। इनमें 2730 ग्रामीण क्षेत्रों में, 1975 अर्ध-शहरी तथा 1710 शहरी क्षेत्रों में हैं। बैंक शाखाओं में से 4102 वाणिज्यिक बैंक, 1121 सहकारी बैंक तथा 1192 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक हैं।जमा राशि बढ़ीप्रदेश की बैंक शाखाओं में मार्च 2014 की स्थिति में 2 लाख 49 हजार 525 करोड़ रुपये जमा हैं। यह पिछले वर्ष मार्च 2013 में जमा 2 लाख 20 हजार 689 करोड़ की तुलना में 28 हजार 836 करोड़ अधिक है। यह प्रदेश की आर्थिक प्रगति का सूचक है। इससे यह भी पता चलता है कि लोगों के पास पहले की तुलना में ज्यादा पैसा आ रहा है। घरेलू बचत के प्रोत्साहन तथा बैकिंग के जरिये उसके वित्तीय बाजार में संचार में वृद्धि का भी पता चलता है।साख जमा अनुपातमध्यप्रदेश में मार्च 2014 की स्थिति में साख जमा अनुपात 66 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय मानक 60 प्रतिशत से अधिक है। इसी तरह कुल अग्रिम का प्राथमिक क्षेत्र में अग्रिम राष्ट्रीय मानक 40 प्रतिशत की तुलना में 59 प्रतिशत है। कुल अग्रिम में कृषि अग्रिम राष्ट्रीय मानक 18 प्रतिशत की तुलना में 34 प्रतिशत है। प्रदेश में कुल अग्रिम में कमजोर वर्गों को दिया गया अग्रिम कुल अग्रिम का 13 प्रतिशत है, जबकि इसका राष्ट्रीय मानक 10 प्रतिशत है।प्रदेश में पिछले वर्ष मार्च 2014 तक एक लाख 64 हजार 877 करोड़ का अग्रिम दिया गया इसमें 55 हजार 681 करोड़ कृषि क्षेत्र को, 22 हजार 937 लघु उद्योग क्षेत्र को तथा 21 हजार 271 करोड़ कमजोर वर्गों को दिया गया अग्रिम शामिल है।वित्तीय समावेशनग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा बैकिंग सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के लिये वित्तीय समावेशन का काम तेजी से चल रहा है। दो हजार से ज्यादा जनसंख्या वाले चिन्हित 2736 गाँव में वित्तीय समावेशन का काम शुरू हो चुका है। वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में हुए बेहतर कार्यों के लिये मध्यप्रदेश को प्रतिष्ठित स्कॉच फायनेंशियल इन्क्लूजन और डीपनिंग अवार्ड 2014 से सम्मानित किया गया है।वित्तीय समावेशन का लाभ जरूरतमंदों ग्रामीणों को आसानी से पहुँचाने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में हर पाँच किलोमीटर के दायरे में अल्ट्रा स्माल बैंक खोली जा रही है। इन बैंक के जरिये 1500 करोड़ से अधिक का कारोबार हो चुका है।

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Dakhal News 22 July 2014


अंतर्राष्‍ट्रीय बाजार में भारतीय बॉस्केट के कच्चे तेल की कीमत घटी

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अंतर्गत पेट्रोलियम नियोजन और विश्‍लेषण प्रकोष्‍ठ (पीपीएसी) द्वारा आज संगणित/प्रकाशित सूचना के अनुसार भारतीय बॉस्‍केट के लिए कच्‍चे तेल की अंतर्राष्‍ट्रीय कीमत 01.07.2014 को मामूली घटकर 109.55 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल हो गई। यह पिछले कारोबारी दिवस 30.06.2014 की कीमत 109.75 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल से कम है। रुपये के संदर्भ में कच्‍चे तेल की कीमत 01.07.2014 को घटकर 6588.34 रुपये प्रति बैरल हो गई, जबकि 30.06.2014 को यह 6594.88 रुपये प्रति बैरल थी। रुपया 30.06.2014 के 60.09 रुपये प्रति अमरीकी डॉलर की तुलना में 01.07.2014 को कमजोर होकर 60.14 रुपये प्रति अमरीकी डॉलर पर बंद हुआ। भारत मर्राकेश समझौते को समर्थन देने वाला पहला देश बना नेत्रहीनों, दृष्टि बाधित व्यक्तियों के लिए प्रकाशित पुस्तकों/कार्यों तक पहुंच सुलभ कराने में मदद से जुड़े मर्राकेश समझौते को समर्थन देने वाला पहला देश बन गया है। अभी तक विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) के 79 सदस्य देशों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। 20 देशों द्वारा इस समझौते को समर्थन दिए जाने के बाद मर्राकेश समझौता लागू हो जाएगा। संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के स्थायी प्रतिनिधि श्री दिलीप सिन्हा ने डब्ल्यूआईपीओ के मुख्यालय में एससीसीआर (कॉपीराइट एवं संबंधित अधिकारों पर स्थायी समिति) के 28वें सत्र के दौरान आयोजित एक समारोह में डब्ल्यूआईपीओ के महानिदेशक श्री फ्रांसिस गुर्रे को समर्थन पत्र सुपुर्द किया। मार्क्‍समैनशिप प्रशिक्षण प्रणाली भारतीय सेना में शामिल सीएसआईआर- नेशनल ऐरो स्‍पेस लेबोरेट्रीज (सीएसआईआर-एनएएल), बेंगलुरू द्वारा गोली के प्रभाव की सटीक स्थिति का पता लगाने के लिए तथा वास्‍तविक समय फीडबैक देने के द़ृष्टिगत सुनिश्चित मार्क्‍समैनशिप दक्षता के लिए विकसित की गई ध्‍वनि (पहचान एवं अकाष्टिक एन-वेब पहचान) नामक स्‍टेट ऑफ दी आर्ट टार्गेट प्रशिक्षण प्रणाली को भारतीय सेना में शामिल किए जाने की वैधता एवं इसका अनुमोदन कर दिया गया है। बेंगलुरू, सिकंदराबाद तथा इन्‍फैंट्री स्कूल, महू में सेना की रेंजों में कड़े क्षेत्रीय परीक्षणों के उपरांत इस ध्‍वनि प्रणाली को भारतीय सेना को औपचारिक रूप से सौंप दिया गया है ।

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Dakhal News 3 July 2014


मध्यप्रदेश में खुदरा और किराना व्यापार में विदेशी निवेश (एफडीआई) नहीं लाने का ऐलान

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुदरा और किराना में विदेशी निवेश (एफडीआई) को मध्यप्रदेश में नहीं लाने का ऐलान किया है। श्री चौहान ने कहा कि वे इसका प्राणपन से विरोध करेंगे । उन्होंने कहा कि यह उनके लिए सिर्फ एक क्षेत्रीय मुद्दा नहीं है बल्कि उनकी अवधारणा राष्ट्र का भी मुद्दा है। श्री चौहान नई दिल्ली में टीवी चैनल आजतक द्वारा आयोजित ''आज का एजेन्डा''कार्यक्रम में एफडीआई का विरोध क्यों : विदेशी दुकान बदलेगा हिन्दुस्तान विषय पर परिचर्चा में बोल रहे थे। श्री चौहान ने यह भी साफ किया कि वह एफडीआई के विरोधी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि एफडीआई का अधोसंरचना विकास, सड़क निर्माण, एयरपोर्ट और विकास आदि कार्यों में स्वागत है लेकिन खुदरा और किराना व्यापार क्षेत्र में वह इसका पुरजोर विरोध करते हैं। श्री चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश में किसी भी कीमत पर एफडीआई लागू नहीं करेंगे।श्री चौहान ने कहा कि खुदरा और किराना व्यापार में एफडीआई लाने पर राष्ट्रीय सहमति बनानी चाहिए। उन्होंने इसके लिए विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के बीच विचार-विमर्श कर आम सहमति बनाने पर जोर दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि किसानों की स्थिति सुधारना जरूरी है और इसके लिए उन्होंने अपनी कटिबद्धता जाहिर की। श्री चौहान ने खुदरा व्यापार में (एफडीआई) लाने से किसानों को लाभ पहुँचने की स्थिति को काल्पनिक बताया। मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर वोट की राजनीति न करने की बात कही और सभी वर्गों के हित का कैसे ध्यान रखा जाय पर जोर दिया।श्री चौहान ने बताया कि कृषि के बाद खुदरा व्यापार देश में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान 11 प्रतिशत है। लगभग 96 प्रतिशत खुदरा व्यापार असंगठित क्षेत्र में है। इसमें ठेले वाले, फेरी वाले, बस्ती मंे दुकान चलाने वाले, फुटपाथ पर व्यापार करने वाले आदि अपना जीवन यापन करते हैं। उन्होंने कहा कि केवल मध्यप्रदेश में ही लगभग एक करोड़ लोग इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। लगभग चार करोड़ खुदरा दुकानें हैं। इनसे जुड़े दुकानदार इसी के माध्यम से अपना जीवन यापन करते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि जब किसी को कोई रोजगार नहीं मिलता तो वह परचून की दुकान खोलकर दो-चार पैसे कमा लेता है।उन्होंने कहा कि चीन, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, सिंगापुर, ताइवान, थाईलैंड के उदाहरण हैं जहाँ किराना में (एफडीआई) आने से बेरोजगारी बढ़ी है और पारम्परिक किराना दुकानें बंद हो गयी हैं। उन्होंने इस बात पर भी आशंका जतायी कि (एफडीआई) लाने से बिचौलिये दूर हो जायेंगे और किसानांे को सीधे फायदा होगा। उन्होंने बिचौलिया कहे जाने वाले लोगों का पक्ष लेते हुए कहा कि वह भी एक भारतीय नागरिक हैं और उनका उत्पादकों के साथ सीधा और सहज सम्बन्ध है।श्री चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश में खुदरा व्यापार को आज भी व्यापार नहीं माना जाता। यह दो पक्षों के बीच सम्बन्धों का एक ताना-बाना है। व्यापारी खरीददार को जानता है और उसकी आवश्यकताओं से परिचित होता है। उसकी आर्थिक स्थिति जानता है और दूसरी ओर खरीददार को भी व्यापारी की जानकारी होती है। दोनों में आपस में यह एक विश्वास का रिश्ता होता है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने यह आशंका भी जाहिर की कि एफडीआई आने से उत्पाद सस्ता होगा और स्थानीय मेन्युफेक्चरिंग उद्योग भी खत्म हो जायेगा।[दखल]

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Dakhal News 8 December 2012


गरीब  महिलाओं ने बनाया समुदाय आधारित बीमा संगठन

विश्व बैंक दल ने की इस प्रयास की सराहनामध्यप्रदेश के भ्रमण पर आये विश्व बैंक दल ने पन्ना, रीवा, सागर एवं नरसिंहपुर जिले का भ्रमण कर स्व-सहायता समूहों एवं ग्राम उत्थान समितियों में शामिल महिलाओं से उनके द्वारा प्रारम्भ की गई आजीविका गतिविधियों से उनकी आमदनी में हो रही वृद्धि के संबंध में जानकारी प्राप्त की। पन्ना जिले के भ्रमण के दौरान विश्व बैंक के टास्क टीम लीडर केविन क्रॉक फोर्ड एवं अन्य सदस्यों ने जिला गरीबी उन्मूलन परियोजना (डी.पी.आई.पी.) की पहल पर एक अभिनव प्रयास के रूप में प्रारम्भ समुदाय आधारित बीमा संगठन में शामिल महिलाओं से चर्चा की। समिति की अध्यक्ष राजकुमारी यादव एवं उपाध्यक्ष अनिता विश्वकर्मा ने विश्व बैंक दल को बीमा संगठन के उद्देश्यों एवं कार्यप्रणाली से अवगत करवाया।उल्लेखनीय है पन्ना जिले के सुदूर गाँवों के स्व-सहायता समूहों में शामिल महिलाओं द्वारा समुदाय आधारित बीमा संगठन बनाया गया है। इस सामूहिक सामाजिक सुरक्षा कोष से अभी तक 4,926 महिलाएँ जुड़ चुकी हैं। महिलाओं ने इस कोष में अभी तक 14 लाख 78 हजार रुपये जमा किये हैं। कोष के जरिये 15 प्रकरण में सवा दो लाख की राशि त्वरित सहायता के रूप में उपलब्ध करवाई गई है। कोष का संचालन जिला स्तर पर गठित महिला समिति द्वारा किया जा रहा है। अनेक गाँवों में ग्राम उत्थान समितियों के माध्यम से समूहों में शामिल महिलाओं का बीमा भी करवाया गया है।विश्व बैंक दल ने आज रीवा जिले के गेरूआर एवं पहाड़ी गाँव में डी.पी.आई.पी. के समूहों में शामिल महिलाओं से चर्चा कर उनके द्वारा मुर्गीपालन व्यवसाय से जुड़कर अपनी आमदनी बढ़ाने की दिशा में प्रारम्भ प्रयासों की जानकारी हासिल की। इन दोनों गाँव में लगभग 61 महिलाएँ मुर्गीपालन गतिविधि से जुड़ी हैं। इनके द्वारा 61 शेड में मुर्गीपालन का काम किया जा रहा है। मुर्गीपालन व्यवसाय में लगी महिलाओं को तकरीबन ढाई से तीन हजार रुपए की आमदनी हो रही है। महिलाओं ने बताया कि वे अपने बच्चों की तरह चूजों की देखभाल बड़े जतन से करती हैं। उन्हें इस व्यवसाय से घर बैठे पैसे मिल जाते हैं और वे मजदूरी करने नहीं जाती।रीवा के जिला परियोजना प्रबंधक डी.पी. सिंह ने बताया कि पी.पी.सी.पी. मॉडल के तहत रीवा में पोल्ट्री सेक्टर विकसित करने का कार्य हाथ में लिया गया है। इसमें जिला पंचायत द्वारा 32 लाख 49 हजार की राशि कन्वजर्ेंस के जरिये उपलब्ध करवाई गई है। विश्व बैंक दल ने इसके पूर्व रीवा जिले के करहिया एवं बिसार गाँव का भ्रमण कर समूहों की महिलाओं द्वारा प्रारम्भ सब्जी उत्पादन गतिविधि का अवलोकन किया। यहाँ सब्जी की खेती में ड्रिप सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल किया जा रहा है।रीवा में एक बैठक में विश्व बैंक दल के साथ जिला पंचायत अध्यक्ष माया सिंह पटेल एवं जिला कलेक्टर एस.एन. रूपला ने डी.पी.आई.पी. परियोजना की गतिविधियों के संबंध में चर्चा की। जिला परियोजना प्रबंधक डी.पी. सिंह द्वारा प्रेजेंटेशन के माध्यम से जिले में संचालित गतिविधियों से अवगत करवाया गया। इस मौके पर स्व-सहायता समूहों के बैंक लिंकेज में अग्रणी भूमिका के लिए यूनियन बैंक के मैनेजर श्री नरेश कुमार को प्रशस्ति-पत्र दिया गया। दल ने डी.पी.आई.पी. द्वारा प्रवर्तित क्रॉप प्रोड्यूसर कम्पनी के आउटलेट का अवलोकन कर शेयर होल्डर से चर्चा की।विश्व बैंक दल ने सागर जिले के कंजेरा गाँव का भ्रमण कर वहाँ पॉली मल्चिंग की नवीन तकनीक से की जा रही टमाटर तथा अन्य सब्जियों की खेती का अवलोकन किया। कंजेरा में गठित श्रीराम स्व-सहायता समूह की सदस्यों द्वारा इस तकनीक से सब्जी की खेती करने से प्राप्त फायदों से अवगत करवाया गया। विश्व बैंक दल ने नरसिंहपुर जिले के मानेगाँव, डोंगरगाँव एवं बिछुआ का भ्रमण कर ग्राम उत्थान समिति के पदाधिकारियों से चर्चा की एवं महिलाओं द्वारा प्रारम्भ सेनेटरी नेपकिन तैयार करने की गतिविधि का अवलोकन किया।विश्व बैंक दल में टास्क टीम लीडर केविन क्रॉक फोर्ड के साथ मकिको, समिक दास, पापिया भट्टाचार्य, गीतिका, सुश्री श्रुति, श्री शोविक, अतिन कुमार एवं वरुण सिंह आदि शामिल हैं।[dakhal]

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Dakhal News 26 November 2012


28 लाख से अधिक परिवार को एक रुपये किलो की दर से आयोडीनयुक्त नमक

मध्यप्रदेश में 71 लाख से अधिक परिवार को खाद्यान्न सुरक्षा रियायती दर पर मिल रहा है गेहूँ-चावलप्रलय श्रीवास्तव मध्यप्रदेश सरकार ने गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले और अति गरीब 71 लाख से अधिक परिवार की खाद्यान्न सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। राज्य में 55 लाख 69 हजार 638 बीपीएल (गरीबी की रेखा से नीचे) परिवार को राशन कार्ड के आधार पर रियायती दर पर गेहूँ-चावल उपलब्ध करवाया जा रहा है। अति गरीब परिवारों के लिए लागू एएवाय (अंत्योदय अन्न योजना) में 15 लाख 81 हजार 565 परिवार को भी अत्यंत कम मूल्य पर खाद्यान्न मुहैया करवाया जा रहा है। अनुसूचित-जनजाति वर्ग के लोगों के बेहतर स्वास्थ्य की चिंता करते हुए राज्य सरकार ने उनके लिए एक रुपये प्रति किलोग्राम की दर पर आयोडीनयुक्त नमक की व्यवस्था सुनिश्चित की है।मध्यप्रदेश में वर्ष 2008 से लागू मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना में बीपीएल हितग्राहियों को अत्यंत रियायती दर 3 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ एवं साढ़े चार रुपये प्रति किलोग्राम चावल उपलब्ध करवाया जा रहा है। योजना में बीपीएल हितग्राहियों को प्रति राशन-कार्ड गेहूँ-चावल को मिलाकर 20 किलोग्राम खाद्यान्न प्रदाय करने की व्यवस्था राज्य सरकार ने सुनिश्चित की है।अंत्योदय अन्न योजना में गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले अति गरीब उपभोक्ताओं को प्रति राशन-कार्ड 2 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से गेहूँ तथा 3 रुपये प्रति किलोग्राम के मान से चावल का वितरण करवाया जा रहा है। योजना में प्रति राशन-कार्ड 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्रदाय की पुख्ता व्यवस्था सरकार ने की है। साथ ही प्राथमिक एवं माध्यमिक शालाओं के विद्यार्थियों को मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था भी की गई है।राज्य सरकार ने घेंघा रोग के उन्मूलन को दृष्टिगत रखते हुए अनुसूचित-जनजाति बहुल 20 जिलों 89 ब्लॉक में आयोडीनयुक्त नमक अत्यंत रियायती दर एक रुपये प्रति किलोग्राम पर मुहैया करवाया जा रहा है। इसका लाभ एपीएल, बीपीएल, एएवाय के 28 लाख 52 हजार 719 परिवार को प्रतिमाह मिल रहा है। आयोडीनयुक्त नमक की गुणवत्ता को और बेहतर बनाने के लिये आई.एस.आई. मार्क रिफाइन्ड नमक आकर्षक पैक में चालू साल से उपलब्ध करवाया जा रहा है। इसकी विशेषता है कि यह अत्यंत सफेद और शुद्ध और आई.एस.आई. मानक के अनुसार है। राज्य शासन द्वारा प्रतिवर्ष इस पर 22 करोड़ रुपये का अनुदान भी उपलब्ध करवाया जा रहा है।राज्य नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली की एपीएल योजना में सभी जिलों में 189 प्रदाय केन्द्र के माध्यम से खाद्यान्न वितरित करवाया जा रहा है। योजना में 10 किलोग्राम प्रति हितग्राही 9 रुपये प्रति किलो के मान से गेहूँ एवं 11 रुपये प्रति किलो के मान से चावल उपलब्ध करवाया जा रहा है। इस साल 85 लाख 4 हजार मीट्रिक टन गेहूँ की रिकार्ड खरीदी के बाद अब एपीएल, बीपीएल, एएवाय वर्ग के हितग्राहियों को इसका वितरण सुनिश्चित किया जा रहा है।राज्य सरकार की कल्याणकारी योजना में निराश्रित व्यक्तियों की संस्थाओं, शासन से सहायता प्राप्त अनुसूचित जाति-जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग के छात्रावासों, मदरसों, वृद्धाश्रमों, नारी निकेतन, अनाथ आश्रमों तथा स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा संचालित संस्थाओं को खाद्यान्न प्रदाय की व्यवस्था सुनिश्चित करवाई गई है। इसमें 15 किलोग्राम प्रति हितग्राही बीपीएल दर पर खाद्यान्न उपलब्ध करवाया जा रहा है। पोषण आहार कार्यक्रम में महिला-बाल विकास विभाग द्वारा आँगनवाड़ी केन्द्रों में पूरक पोषण आहार के रुप में एक करोड़ से अधिक हितग्राहियों को सामग्री प्रदाय की जा रही है। कार्यक्रम में स्व-सहायता समूहों को बीपीएल दर पर खाद्यान्न प्रदाय किया जा रहा है।

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Dakhal News 12 November 2012


ओबामा ने कहा...काम अभी ख़त्म नहीं हुआ

बहुत-बहुत आभार,अपनी नियति के निर्धारण का अधिकार हासिल करने के दो सौ साल से भी अधिक समय बाद अपने देश को हर तरह से परिपूर्ण करने की दिशा में आज रात फिर हम कुछ कदम आगे बढ़े हैं। यह सिर्फ आपके कारण संभव हुआ है, क्योंकि आपने उस भावना को फिर से मजबूत किया है जिसने युद्ध और तनाव पर हमें जीत दिलाई। यही वह जज्बा है जिसने हमारे देश को हताशा के बीच उम्मीद की नई ऊंचाइयां दिखाई हैं। यही वह भावना है कि हम सभी एक अमेरिकी परिवार हैं और हम एक राष्ट्र राच्य या एक व्यक्ति के तौर पर साथ-साथ उठेंगे।आज की रात आपने याद दिला दिया कि चाहे डगर कितनी ही कठिन क्यों न हो, मंजिल कितनी ही दूर क्यों न हो, हम तमाम बाधाओं से लड़कर यहां पहुंचे और हम जानते हैं कि बेहतर अमेरिका सामने है। मैं तहेदिल से पूरे अमेरिका का शुक्रिया अदा करता हूं, जिसने अपने दिल की आवाज सुनी और नई सुबह में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की। मैं मिट रोमनी और उनके परिवार के साथ अपने चार साल के साथी जो बिडेन का भी शुक्रिया अदा करता हूं। और उस महिला का जिसके बिना आज मैं जो कुछ भी हूं, नहीं होता। मिशेल, जो 20 साल पहले मुझसे शादी करने को राजी हुई। आप लोगों में से कुछ शुरू से मेरे साथ होंगे, तो कुछ पिछले दिनों ही मेरे साथ आए होंगे, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हम सभी एक परिवार हैं। मैं आप सभी का आभारी हूं, जिन्होंने मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया। मैं जानता हूं कि राजनीतिक प्रचार बड़े ओछे और कभी-कभी मूर्खतापूर्ण भी लगते हैं और इसी से धारणा बन जाती है कि राजनीति सिवाय अहं की लड़ाई के और कुछ भी नहीं। लेकिन यदि आप जमीन से जुड़े लोगों को देर रात तक काम करते देखेंगे, उन लोगों को देखेंगे जो कॉलेज से हमारी रैली में उमड़कर आए तो आपको राजनीति कुछ और नजर आएगी। आपको उस युवा की आवाज में वह दृढ़ इच्छाशक्तिदिखेगी जो हर बच्चे के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना चाहता है। आप एक स्वयंसेवी की आवाज में उस गर्व को महसूस करेंगे जो घर-घर जा रहा है, क्योंकि पड़ोस के प्लांट में उसके भाई को नौकरी मिल गई है। आप उस सैनिक की पत्नी की आवाज में राष्ट्रप्रेम महसूस करेंगे, जो देश की सेवा में लगा है ताकि किसी भी बच्चे के सिर से कभी छत न हटे।राजनीति यही है। चुनाव इसीलिए होते हैं। जब हम कठिन दौर से गुजर रहे होते हैं, जब एक राष्ट्र के तौर पर बड़े फैसले कर रहे होते हैं तो विवाद भी होते हैं। यह आज की रात के बाद भी बदलने वाला नहीं है और बदलना भी नहीं चाहिए। सभी का अपना-अपना मत होता है, लेकिन तमाम मत विभाजन के बाद भी हमें बेहतर अमेरिका की उम्मीद है-ऐसा अमेरिका जहां हमारे बच्चों को सबसे अच्छे स्कूल मिलें, जो तकनीक में दुनिया का अगुआ रहे, सभी के लिए अच्छी नौकरियां हों, नई संभावनाएं हों। ऐसा अमेरिका जो हमारे बच्चों के लिए विरासत में कर्ज न छोड़े, जिसमें असमानता न हो, जो इस आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़े कि वह दुनिया के हर इंसान को आजादी और सम्मान दिलाने की दिशा में आगे बढ़ेगा। ऐसा अमेरिका जो उस प्रवासी की बेटी का हर सपना पूरा करे जो हमारे स्कूलों में पढ़ती है।हमारी अर्थव्यवस्था सुधर रही है। एक दशक पुराना युद्ध समाप्ति की ओर है। एक लंबा अभियान अब खत्म हो चुका है। मैंने आपका मत हासिल किया हो या नहीं, लेकिन मैंने आपको सुना है। आपसे सीखा है और आपने मुझे अब एक बेहतर राष्ट्रपति बनाया है। आपकी कहानियों और संघर्ष को सुनने के बाद मैं कहीं अधिक प्रतिबद्धता और प्रेरणा से व्हाइट हाउस लौट रहा हूं। आपने काम करने के लिए मतदान किया है, न कि राजनीति के लिए। आपने हमें चुना है कि हम आपकी नौकरियों पर ध्यान दें, न कि अपनी। आने वाले सप्ताहों और महीनों में मैं दोनों दलों के नेताओं के साथ मिलकर काम करने की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा हूं ताकि हम चुनौतियों का मिलकर मुकाबला कर सकें।आपका काम अभी खत्म नहीं हुआ है। हमारे लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका मतदान करते ही समाप्त नहीं हो जाती। अमेरिका, अमेरिका नहीं होता यदि हम यह सोचते कि हमारे लिए क्या किया जा सकता है, बल्कि यह इसलिए ऐसा है, क्योंकि हमने यह सोचा कि हम मिलकर क्या कर सकते हैं? हमारे पास किसी भी देश की तुलना में अधिक संपदा है, लेकिन केवल इससे हम धनी नहीं हो जाते। अमेरिका को जो चीज असाधारण बनाती है वह है एक ऐसा बंधन जो इतनी विभिन्नताओं के बावजूद हमें एक रखता है। जिस आजादी के लिए इतने सारे अमेरिकियों ने संघर्ष किया और अपनी जान दी वह अपने साथ अधिकारों के साथ-साथ जिम्मेदारी भी लाई है। मैं आज आशान्वित हूं, क्योंकि मैंने अमेरिका में शानदार भावना देखी है। मैंने घरेलू व्यवसाय में देखा है कि मालिक किस तरह अपने वेतन में कटौती पसंद करेगा, न कि लोगों को काम से निकालना। इसी तरह कर्मचारी अपने साथी की नौकरी गंवाने की अपेक्षा अपना कुछ नुकसान कराने के लिए तैयार हैं। मैंने न्यूजर्सी और न्यूयार्क में देखा है कि हर दल के नेता अपने मतभेदों को किनारे रखकर भयानक तूफान के बाद स्थितियों को संभालने और लोगों की मदद करने में लगे थे। ओहायो में एक पिता ने अपनी आठ साल की बेटी की कहानी सुनाई जो ल्यूकेमिया से पीड़ित थी। इस बीमारी से लड़ने में उसका पूरा परिवार अपना सब कुछ गंवाने वाला था, लेकिन हेल्थकेयर रिफार्म ने उसे बचा लिया। मैंने केवल उस लड़की के पिता को ही नहीं सुना, बल्कि उसकी असाधारण बेटी से भी मिला। जब वह अपनी बेटी की कहानी सुना रहे थे तो वहां मौजूद सभी लोगों की आंखों में आंसू थे। हर कोई उसे अपनी बेटी मान रहा था। मुझे पता है कि हर अमेरिकी चाहता है कि उस लड़की का भविष्य उज्जवल हो। यही वह भावना है जो हमें खास बनाती है। मुझे अपने इसी देश पर गर्व है और खुशी है कि मैं एक बार फिर इसका नेतृत्व करने जा रहा हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि हम अपनी अब तक की प्रगति के आधार पर आगे बढ़ सकते हैं और नई नौकरियों के लिए अपने संघर्ष को जारी रख सकते हैं। अगर आप कठिन परिश्रम के लिए तैयार हैं तो इसका कोई मतलब नहीं कि आप क्या हैं, कहां से आए हैं और आप क्या चाहते हैं? अगर आप कोशिश करने के लिए तैयार हैं तो अमेरिका में अपनी जगह बना सकते हैं।धन्यवाद अमेरिका, ईश्वर इस देश की और आपकी रक्षा करें।[विजयी होने के बाद बराक ओबामा द्वारा दिए गए भाषण का संपादित अंश]

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Dakhal News 8 November 2012


ओबामा ने कहा...काम अभी ख़त्म नहीं हुआ

बहुत-बहुत आभार,अपनी नियति के निर्धारण का अधिकार हासिल करने के दो सौ साल से भी अधिक समय बाद अपने देश को हर तरह से परिपूर्ण करने की दिशा में आज रात फिर हम कुछ कदम आगे बढ़े हैं। यह सिर्फ आपके कारण संभव हुआ है, क्योंकि आपने उस भावना को फिर से मजबूत किया है जिसने युद्ध और तनाव पर हमें जीत दिलाई। यही वह जज्बा है जिसने हमारे देश को हताशा के बीच उम्मीद की नई ऊंचाइयां दिखाई हैं। यही वह भावना है कि हम सभी एक अमेरिकी परिवार हैं और हम एक राष्ट्र राच्य या एक व्यक्ति के तौर पर साथ-साथ उठेंगे।आज की रात आपने याद दिला दिया कि चाहे डगर कितनी ही कठिन क्यों न हो, मंजिल कितनी ही दूर क्यों न हो, हम तमाम बाधाओं से लड़कर यहां पहुंचे और हम जानते हैं कि बेहतर अमेरिका सामने है। मैं तहेदिल से पूरे अमेरिका का शुक्रिया अदा करता हूं, जिसने अपने दिल की आवाज सुनी और नई सुबह में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की। मैं मिट रोमनी और उनके परिवार के साथ अपने चार साल के साथी जो बिडेन का भी शुक्रिया अदा करता हूं। और उस महिला का जिसके बिना आज मैं जो कुछ भी हूं, नहीं होता। मिशेल, जो 20 साल पहले मुझसे शादी करने को राजी हुई। आप लोगों में से कुछ शुरू से मेरे साथ होंगे, तो कुछ पिछले दिनों ही मेरे साथ आए होंगे, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हम सभी एक परिवार हैं। मैं आप सभी का आभारी हूं, जिन्होंने मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया। मैं जानता हूं कि राजनीतिक प्रचार बड़े ओछे और कभी-कभी मूर्खतापूर्ण भी लगते हैं और इसी से धारणा बन जाती है कि राजनीति सिवाय अहं की लड़ाई के और कुछ भी नहीं। लेकिन यदि आप जमीन से जुड़े लोगों को देर रात तक काम करते देखेंगे, उन लोगों को देखेंगे जो कॉलेज से हमारी रैली में उमड़कर आए तो आपको राजनीति कुछ और नजर आएगी। आपको उस युवा की आवाज में वह दृढ़ इच्छाशक्तिदिखेगी जो हर बच्चे के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना चाहता है। आप एक स्वयंसेवी की आवाज में उस गर्व को महसूस करेंगे जो घर-घर जा रहा है, क्योंकि पड़ोस के प्लांट में उसके भाई को नौकरी मिल गई है। आप उस सैनिक की पत्नी की आवाज में राष्ट्रप्रेम महसूस करेंगे, जो देश की सेवा में लगा है ताकि किसी भी बच्चे के सिर से कभी छत न हटे।राजनीति यही है। चुनाव इसीलिए होते हैं। जब हम कठिन दौर से गुजर रहे होते हैं, जब एक राष्ट्र के तौर पर बड़े फैसले कर रहे होते हैं तो विवाद भी होते हैं। यह आज की रात के बाद भी बदलने वाला नहीं है और बदलना भी नहीं चाहिए। सभी का अपना-अपना मत होता है, लेकिन तमाम मत विभाजन के बाद भी हमें बेहतर अमेरिका की उम्मीद है-ऐसा अमेरिका जहां हमारे बच्चों को सबसे अच्छे स्कूल मिलें, जो तकनीक में दुनिया का अगुआ रहे, सभी के लिए अच्छी नौकरियां हों, नई संभावनाएं हों। ऐसा अमेरिका जो हमारे बच्चों के लिए विरासत में कर्ज न छोड़े, जिसमें असमानता न हो, जो इस आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़े कि वह दुनिया के हर इंसान को आजादी और सम्मान दिलाने की दिशा में आगे बढ़ेगा। ऐसा अमेरिका जो उस प्रवासी की बेटी का हर सपना पूरा करे जो हमारे स्कूलों में पढ़ती है।हमारी अर्थव्यवस्था सुधर रही है। एक दशक पुराना युद्ध समाप्ति की ओर है। एक लंबा अभियान अब खत्म हो चुका है। मैंने आपका मत हासिल किया हो या नहीं, लेकिन मैंने आपको सुना है। आपसे सीखा है और आपने मुझे अब एक बेहतर राष्ट्रपति बनाया है। आपकी कहानियों और संघर्ष को सुनने के बाद मैं कहीं अधिक प्रतिबद्धता और प्रेरणा से व्हाइट हाउस लौट रहा हूं। आपने काम करने के लिए मतदान किया है, न कि राजनीति के लिए। आपने हमें चुना है कि हम आपकी नौकरियों पर ध्यान दें, न कि अपनी। आने वाले सप्ताहों और महीनों में मैं दोनों दलों के नेताओं के साथ मिलकर काम करने की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा हूं ताकि हम चुनौतियों का मिलकर मुकाबला कर सकें।आपका काम अभी खत्म नहीं हुआ है। हमारे लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका मतदान करते ही समाप्त नहीं हो जाती। अमेरिका, अमेरिका नहीं होता यदि हम यह सोचते कि हमारे लिए क्या किया जा सकता है, बल्कि यह इसलिए ऐसा है, क्योंकि हमने यह सोचा कि हम मिलकर क्या कर सकते हैं? हमारे पास किसी भी देश की तुलना में अधिक संपदा है, लेकिन केवल इससे हम धनी नहीं हो जाते। अमेरिका को जो चीज असाधारण बनाती है वह है एक ऐसा बंधन जो इतनी विभिन्नताओं के बावजूद हमें एक रखता है। जिस आजादी के लिए इतने सारे अमेरिकियों ने संघर्ष किया और अपनी जान दी वह अपने साथ अधिकारों के साथ-साथ जिम्मेदारी भी लाई है। मैं आज आशान्वित हूं, क्योंकि मैंने अमेरिका में शानदार भावना देखी है। मैंने घरेलू व्यवसाय में देखा है कि मालिक किस तरह अपने वेतन में कटौती पसंद करेगा, न कि लोगों को काम से निकालना। इसी तरह कर्मचारी अपने साथी की नौकरी गंवाने की अपेक्षा अपना कुछ नुकसान कराने के लिए तैयार हैं। मैंने न्यूजर्सी और न्यूयार्क में देखा है कि हर दल के नेता अपने मतभेदों को किनारे रखकर भयानक तूफान के बाद स्थितियों को संभालने और लोगों की मदद करने में लगे थे। ओहायो में एक पिता ने अपनी आठ साल की बेटी की कहानी सुनाई जो ल्यूकेमिया से पीड़ित थी। इस बीमारी से लड़ने में उसका पूरा परिवार अपना सब कुछ गंवाने वाला था, लेकिन हेल्थकेयर रिफार्म ने उसे बचा लिया। मैंने केवल उस लड़की के पिता को ही नहीं सुना, बल्कि उसकी असाधारण बेटी से भी मिला। जब वह अपनी बेटी की कहानी सुना रहे थे तो वहां मौजूद सभी लोगों की आंखों में आंसू थे। हर कोई उसे अपनी बेटी मान रहा था। मुझे पता है कि हर अमेरिकी चाहता है कि उस लड़की का भविष्य उज्जवल हो। यही वह भावना है जो हमें खास बनाती है। मुझे अपने इसी देश पर गर्व है और खुशी है कि मैं एक बार फिर इसका नेतृत्व करने जा रहा हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि हम अपनी अब तक की प्रगति के आधार पर आगे बढ़ सकते हैं और नई नौकरियों के लिए अपने संघर्ष को जारी रख सकते हैं। अगर आप कठिन परिश्रम के लिए तैयार हैं तो इसका कोई मतलब नहीं कि आप क्या हैं, कहां से आए हैं और आप क्या चाहते हैं? अगर आप कोशिश करने के लिए तैयार हैं तो अमेरिका में अपनी जगह बना सकते हैं।धन्यवाद अमेरिका, ईश्वर इस देश की और आपकी रक्षा करें।[विजयी होने के बाद बराक ओबामा द्वारा दिए गए भाषण का संपादित अंश]

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Dakhal News 8 November 2012


महंगाई में डायन कहाँ से आई

संगीता प्रणवेन्द्रसखी सइयां तो खूब ही कमात है... महंगाई डायन खाए जात है... गीत के बोल महंगाई से जूझ रहे हर शख्स के दिल को वाकई कचोटते हैं... वो सोचने लगता है की उसी की व्यथा-कथा का गान हो रहा है...रुपहले परदे पर महंगाई को एक बार डायन बता कर गीत क्या गा दिया गया... महंगाई तो साक्षात डायन ही बन गई... बैरन है, निगोड़ी है, दुखदायी है... सब कुछ है... लेकिन डायन क्यों? अब हिंदी के व्याकरण ने उसे स्त्री की श्रेणी में जो डाला है... तो अब स्वतः ही स्त्री से जुड़े भेदभाव और तिरस्कार भी उसे झेलने पड़ेंगे ही. ये तो अब उसकी नियति है... किसी महिला को डायन करार दिया जाना सामाजिक और कानूनी अपराध है... फिर भी डायन कहलाया जाना महंगाई की नियति क्यों? मध्य-प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र में आये दिन खबरें छपतीं हैं की फलां जगह, फलां महिला को डायन बता कर उसे अमानवीय प्रताडनाएं दी गयीं. निर्वस्त्र किया गया, बेघर किया गया, बाल काट दिए गए, मल और मूत्र उनके मुंह में डाला गया और शरीर को दागा गया... क्यों? क्योंकि उसके आस पास कुछ ऐसा घट गया... जिसके लिए जब कोई ज़िम्मेदार नहीं मिला... तो दोष उसी पर मढ़ दिया गया... बगल के स्कूल में बच्चे बीमार हो गए, खड़ी फसल पर कीड़ा लग गया , गाँव में किसी की असमय मौत हो गयी या पडोसी के घर तीसरी बेटी हो गई ... वो दोषी करार दे दी गयीं... और शुरू हो गया उसकी प्रताड़ना का सिलसिला... घर और गाँव निकाले का सिलसिला.....क्या कुछ ऐसा ही हाल महंगाई का नहीं है... वो बढ़ रही है तो दोष भला उसका अपना थोड़े ही है... पर डायन का ख़िताब तो उसी को मिल गया है... राष्ट्रीय महिला आयोग के संकलित आंकड़ों के मुताबिक देश के लगभग 50 जिलों में ये प्रथा आज भी बड़े पैमाने पर पायी जाती है. डायन करार दी जाने वाली अधिकांश महिलाएं आदिवासी या दलित तबके से ताल्लुक रखतीं हैं. और ज़्यादातर विधवा या बेसहारा होती है... सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुतबिक इनके मामलात पर अगर नज़र डालें तो पायेंगे कि बहुत से मामले ऐसे होते हैं जहां सदियों पुरानी प्रथा की आड़ में महिलाओं से उनकी संपत्ति छीन ली जाती है.ठीक वैसे ही जैसे महंगाई को डायन करार दे कर उससे आर्थिक समस्या होने का अधिकार छीन लिया जा रहा है... क्योंकि समस्या होगी तो हल निकलना पड़ेगा... डायन कह कर तो इतिश्री कर दी जायेगी... देश के तमाम राज्यों पर के कानून पर नज़र डालें तो झारखण्ड ही ऐसा एक राज्य है जहां साल 2001 से डायन प्रथा की रोकथाम के लिए कानून है. राजस्थान के महिला बाल विकास विभाग ने 2011 में ऐसा कानून प्रस्तावित किया है जिसके तहत महिला को डायन करार देने पर सात साल तक की सजा हो सकती है. राजस्थान की सामाजिक कार्यकर्त्ता निशा सिद्धू ने डायन प्रथा से पीड़ित महिलाओं के मामले तुरंत निपटाने के लिए एक विशेष सेल स्थापित करने और उनकी संपत्ति कि सुरक्षा, पीड़िताओं के पुनर्वास के लिए ठोस कानून बनाने की मांग को लेकर राजस्थान उच्च न्यायलय का दरवाज़ा खटखटाया था, मई 2011 में राज्य सरकार, महिला आयोग और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी किये गए. . कानून बनाने की दिशा में काम जारी है... किन्तु कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन की रोकथाम जैसे व्यापक केन्द्रीय कानून बनाने की सख्त ज़रुरत है. ठीक उसी तरह जैसे आज देश में सख्त आर्थिक सुधारों की ज़रुरत है...महिला को डायन बताना और प्रताड़ित करने की प्रथा सिर्फ भारत में ही नहीं है. सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में यूरोप में महिलाओं को डायन बता कर जिंदा जलाया जाता था. अधिकांश गरीब तबके की महिलाएं थीं. यूरोप में आज इतिहासकार उन डायनों की सच्चाई तलाश रहे हैं... उनकी-उनके परिवारों की खोयी प्रतिष्ठा लौटने के प्रयास में जुटे हैं.... लेकिन क्या लांछन कभी धुल पायेंगे ?शुक्र है महंगाई अंग्रेजी भाषा में स्त्रीलिंग शब्द नहीं है... वरना यूरोप के हालिया रिसेशन में उसपर न जाने कितनी भाषाई तोहमतें मढ़ दी जाती. खैर दुनिया-जहान की चर्चा के बाद... मुद्दा वहीँ का वहीँ... महंगाई को डायन का खिताब क्यों? क्यों दूसरों के नाकारापन की सजा वो भुगत रही है? भला महंगाई किस कानून की दुहाई देकर, कहाँ गुहार लगाये कि उसे डायन न बुलाया जाए... स्त्री हैं... लेकिन वो पुरुषों के हाथ की कठपुतली -- एक बार फिर हिंदी व्याकरण की दृष्टि से शब्दों का लिंग देखें तो - राष्ट्र: पुरुष उसके कर्ता-धर्ता पुरुष, नीति-निर्धारक: पुरुष..., कानून: फिर पुरुष..., व्यापार: अरे भाषा की दृष्टि से ये भी पुरुष...बेचारी महंगाई इनके सब के मिले जुले कुप्रबंधन (फिर एक पुल्लिंग शब्द) का नतीजा है... इनकी अकर्मण्यता का नतीजा है... अब कोई बताये कि भला उसे डायन कहना कहां तक जायज़ है.... [दखल]

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Dakhal News 13 September 2012


हवाई खबरों का स्टार

नकुव देश के कुछ खबरिया चैनल भेड़ चाल में विश्वास करते हैं। कंटेंट के तौर पर वे क्या दिखा रहे हैं, इसे लेकर वे खुद ही भ्रमित हैं। आधारहीन खबरें प्रसारित करते वक्त वे किसी की नहीं सुनते और किसी के प्रति अपनी जवाबदेही भी नहीं स्वीकार करते। न्यूज ब्रॉडकॉस्टर एसोसिएशन (एनबीए) द्वारा बनाई गई स्वंयं की नियामक परिषद भी ऐसे चैनलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती। बीते दिनों मध्य प्रदेश के ग्वालियर संभाग में प्रशासन ने कुछ चिटफंड कंपनियों के लेनदेन पर प्रतिबंध लगाया। स्टार न्यूज सहित कई खबरिया चैनलों द्वारा उस खबर को सनसनीखेज बना कर पेश कर दिया गया। वह खबर स्थानीय स्ट्रिंगर द्वारा भेजी गई थी। चैनलों में ऐसा माना जाता है कि स्ट्रिंगरों द्वारा भेजी गई खबरें तथ्यों के आधार पर परिपूर्ण नहीं होतीं और चैनलों द्वारा उन्हें काफी परखने के बाद ही प्रसारित किया जाता है। चिटफंड कंपनियों से संबंधित उक्त खबर को स्टार न्यूज सहित कई चैनलों ने एक विशेष कंपनी पीएसीएल को निशाना बना कर प्रसारित करना शुरू कर दिया जबकि पीएसीएल वास्तविकता में चिटफंड कंपनियों की श्रेणी में नहीं आती, लेकिन किसी भी चैनल ने पीएसीएल का पक्ष जानने की जरूरत नहीं समझी। उल्टे खबर को एक अभियान की तरह चलाना शुरू कर दिया, मानो पीएसीएल से व्यक्तिगत रंजिश हो?कुछ समय पहले खबरिया चैनलों खासतौर पर स्टार न्यूज द्वारा सिंगापुर में कार्यरत स्पिक एशिया नामक ऑनलाइन सर्वे का काम करने वाली कंपनी के खिलाफ एक अभियान छेड़ दिया था। उक्त कंपनी द्वारा जब प्रेस कांप्रें*स करके अपनी स्थिति स्पष्ट की गई तो स्टार न्यूज के रिपोर्टरों द्वारा भरी प्रेस कांप्रें*स में कंपनी के अधिकारियों से आक्रामक मूड में इस तरह सवाल किए गए जैसे वह प्रेस कांप्रें*स न होकर अदालत हो। मजे की बात देखिए कि जिस स्पिक एशिया कंपनी के खिलाफ स्टार न्यूज ने हफ्तों तक अपना एक तरफा अभियान चलाया था, उसी स्टार न्यूज ने कुछ दिनों बाद खबर दिखाई कि स्पिक एशिया में निवेश करने वाले निवेशकों और ऑनलाइन सर्वे का काम करने वाले लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि स्पिक एशिया के खाते में 80 करोड़ रुपया आ गया है। वह अपने निवेशकों को पैसा देने का काम शुरू करने वाली है। उक्त खबर दिखाने के बाद ज्स्टार न्यूजज् ने ज्स्पिक एशियाज् के खिलाफ कोई भी खबर नहीं दिखाई। ज्स्पिक एशियाज् वालों का कहना है कि ज्स्टार न्यूजज् ने उसके खिलाफ अभियान इसलिए चलाया क्योंकि ज्स्टार न्यूजज् खुद ज्स्टार पैनलज् के नाम से ऑनलाइन सर्वे के धंधे में कूद चुका है, लिहाजा पहले से बाजार में जमे अपने प्रतिस्पद्र्घियों के पांव उखाड़ने के लिए स्टार न्यूज ने स्पिक एशिया के खिलाफ अभियान चलाया था। चैनलों द्वारा पीएसीएल के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर खबरें दिखाई गईं, जिसका खुलासा खुद पीएसीएल के ग्राहकों द्वारा किया गया। इतना ही नहीं, जबलपुर से लेकर प्रतापगढ़ और इलाहाबाद से लेकर पटना तक के ग्राहकों ने पीएसीएल के दफ्तरों पर आकर कहा कि उन्हें 20 वर्षो में कभी भी पीएसीएल से कोई शिकायत नहीं रही। कंपनी के सभी ग्राहक चैनलों के कैमरों के सामने साफ-साफ कह रहे थे कि भ्रामक खबरों से माहौल न बिगाड़ें लेकिन चैनलों ने उन ग्राहकों की बाइटें दिखाने की जहमत नहीं उठाई। पीएसीएल के हक में देश के विभिन्न हिस्सों में ग्राहकों के खड़े होने के बाद चैनलों ने उनका पक्ष नहीं दिखाया। इससे साफ पता चलता है कि खबरिया चैनल किस भेड़ चाल पर चल रहे हैं। पीएसीएल के सीईओ ने खुद कई चैनलों पर कहा कि कंपनी का काम साफ-सुथरा और सरकारी नियम, कायदे-कानूनों से चल रहा है। कंपनी के पास 75 हजार करोड़ की जमीन है, इसलिए कोई भी ग्राहक झूवी, आधारहीन और भ्रामक खबरों से परेशान न हो।पीएसीएल के सीईओ ने स्पष्ट किया कि वह कोई चिटफंड कंपनी नहीं है। अगर कोई व्यक्ति, अधिकारी या संस्था इस तरह की टिप्पणी करती है तो वह माननीय न्यायालय के खिलाफ है। चिटफंड कंपनियों के लेन-देन में अनियमितता की बात पर प्रशासन द्वारा कार्रवाई की गई थी। खास बात यह है कि सभी चिटफंड कंपनियां स्थानीय थीं, लेकिन उनकी आड़ में खबरिया चैनलों द्वारा पीएसीएल को निशाना बना कर राष्ट्रीय स्तर पर कंपनी के ग्राहकों के बीच सनसनी फैलाने का काम किया गया।खबरिया चैनलों द्वारा इस तरह किसी को निशाना बनाना नई बात नहीं है। कई चैनलों ने तो इस परिपाटी को शुरू रखने का काम किया है। दर्शकों को बहकाने वाली उक्त खबरें दिखाकर खबरिया चैनलों द्वारा क्या साबित किया जा रहा है, यह बात आम दर्शक के गले नहीं उतरती। खबरिया चैनलों के एक गुट द्वारा इस तरह की खबरें दिखाकर किसी कंपनी की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के नाम को कौन-सी पत्रकारिता कहा जाएगा? जबकि देश के कुछ हिंदी और अंग्रेजी खबरिया चैनलों द्वारा कभी ऐसा नहीं किया जाता। तथाकथित टीआरपी की अंधी दौड़ में क्या आधारहीन खबरें चलाना सही है? स्टार न्यूज और दूसरे खबरिया चैनलों के पुरोधाओं को इस पर मंथन करना होगा।[दखल]यह लेख शुक्रवार पत्रिका से साभार देश के कुछ खबरिया चैनल भेड़ चाल में विश्वास करते हैं। कंटेंट के तौर पर वे क्या दिखा रहे हैं, इसे लेकर वे खुद ही भ्रमित हैं। आधारहीन खबरें प्रसारित करते वक्त वे किसी की नहीं सुनते और किसी के प्रति अपनी जवाबदेही भी नहीं स्वीकार करते। न्यूज ब्रॉडकॉस्टर एसोसिएशन (एनबीए) द्वारा बनाई गई स्वंयं की नियामक परिषद भी ऐसे चैनलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती। बीते दिनों मध्य प्रदेश के ग्वालियर संभाग में प्रशासन ने कुछ चिटफंड कंपनियों के लेनदेन पर प्रतिबंध लगाया। स्टार न्यूज सहित कई खबरिया चैनलों द्वारा उस खबर को सनसनीखेज बना कर पेश कर दिया गया। वह खबर स्थानीय स्ट्रिंगर द्वारा भेजी गई थी। चैनलों में ऐसा माना जाता है कि स्ट्रिंगरों द्वारा भेजी गई खबरें तथ्यों के आधार पर परिपूर्ण नहीं होतीं और चैनलों द्वारा उन्हें काफी परखने के बाद ही प्रसारित किया जाता है। चिटफंड कंपनियों से संबंधित उक्त खबर को स्टार न्यूज सहित कई चैनलों ने एक विशेष कंपनी पीएसीएल को निशाना बना कर प्रसारित करना शुरू कर दिया जबकि पीएसीएल वास्तविकता में चिटफंड कंपनियों की श्रेणी में नहीं आती, लेकिन किसी भी चैनल ने पीएसीएल का पक्ष जानने की जरूरत नहीं समझी। उल्टे खबर को एक अभियान की तरह चलाना शुरू कर दिया, मानो पीएसीएल से व्यक्तिगत रंजिश हो?कुछ समय पहले खबरिया चैनलों खासतौर पर स्टार न्यूज द्वारा सिंगापुर में कार्यरत स्पिक एशिया नामक ऑनलाइन सर्वे का काम करने वाली कंपनी के खिलाफ एक अभियान छेड़ दिया था। उक्त कंपनी द्वारा जब प्रेस कांप्रें*स करके अपनी स्थिति स्पष्ट की गई तो स्टार न्यूज के रिपोर्टरों द्वारा भरी प्रेस कांप्रें*स में कंपनी के अधिकारियों से आक्रामक मूड में इस तरह सवाल किए गए जैसे वह प्रेस कांप्रें*स न होकर अदालत हो। मजे की बात देखिए कि जिस स्पिक एशिया कंपनी के खिलाफ स्टार न्यूज ने हफ्तों तक अपना एक तरफा अभियान चलाया था, उसी स्टार न्यूज ने कुछ दिनों बाद खबर दिखाई कि स्पिक एशिया में निवेश करने वाले निवेशकों और ऑनलाइन सर्वे का काम करने वाले लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि स्पिक एशिया के खाते में 80 करोड़ रुपया आ गया है। वह अपने निवेशकों को पैसा देने का काम शुरू करने वाली है। उक्त खबर दिखाने के बाद ज्स्टार न्यूजज् ने ज्स्पिक एशियाज् के खिलाफ कोई भी खबर नहीं दिखाई। ज्स्पिक एशियाज् वालों का कहना है कि ज्स्टार न्यूजज् ने उसके खिलाफ अभियान इसलिए चलाया क्योंकि ज्स्टार न्यूजज् खुद ज्स्टार पैनलज् के नाम से ऑनलाइन सर्वे के धंधे में कूद चुका है, लिहाजा पहले से बाजार में जमे अपने प्रतिस्पद्र्घियों के पांव उखाड़ने के लिए स्टार न्यूज ने स्पिक एशिया के खिलाफ अभियान चलाया था। चैनलों द्वारा पीएसीएल के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर खबरें दिखाई गईं, जिसका खुलासा खुद पीएसीएल के ग्राहकों द्वारा किया गया। इतना ही नहीं, जबलपुर से लेकर प्रतापगढ़ और इलाहाबाद से लेकर पटना तक के ग्राहकों ने पीएसीएल के दफ्तरों पर आकर कहा कि उन्हें 20 वर्षो में कभी भी पीएसीएल से कोई शिकायत नहीं रही। कंपनी के सभी ग्राहक चैनलों के कैमरों के सामने साफ-साफ कह रहे थे कि भ्रामक खबरों से माहौल न बिगाड़ें लेकिन चैनलों ने उन ग्राहकों की बाइटें दिखाने की जहमत नहीं उठाई। पीएसीएल के हक में देश के विभिन्न हिस्सों में ग्राहकों के खड़े होने के बाद चैनलों ने उनका पक्ष नहीं दिखाया। इससे साफ पता चलता है कि खबरिया चैनल किस भेड़ चाल पर चल रहे हैं। पीएसीएल के सीईओ ने खुद कई चैनलों पर कहा कि कंपनी का काम साफ-सुथरा और सरकारी नियम, कायदे-कानूनों से चल रहा है। कंपनी के पास 75 हजार करोड़ की जमीन है, इसलिए कोई भी ग्राहक झूवी, आधारहीन और भ्रामक खबरों से परेशान न हो।पीएसीएल के सीईओ ने स्पष्ट किया कि वह कोई चिटफंड कंपनी नहीं है। अगर कोई व्यक्ति, अधिकारी या संस्था इस तरह की टिप्पणी करती है तो वह माननीय न्यायालय के खिलाफ है। चिटफंड कंपनियों के लेन-देन में अनियमितता की बात पर प्रशासन द्वारा कार्रवाई की गई थी। खास बात यह है कि सभी चिटफंड कंपनियां स्थानीय थीं, लेकिन उनकी आड़ में खबरिया चैनलों द्वारा पीएसीएल को निशाना बना कर राष्ट्रीय स्तर पर कंपनी के ग्राहकों के बीच सनसनी फैलाने का काम किया गया।खबरिया चैनलों द्वारा इस तरह किसी को निशाना बनाना नई बात नहीं है। कई चैनलों ने तो इस परिपाटी को शुरू रखने का काम किया है। दर्शकों को बहकाने वाली उक्त खबरें दिखाकर खबरिया चैनलों द्वारा क्या साबित किया जा रहा है, यह बात आम दर्शक के गले नहीं उतरती। खबरिया चैनलों के एक गुट द्वारा इस तरह की खबरें दिखाकर किसी कंपनी की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के नाम को कौन-सी पत्रकारिता कहा जाएगा? जबकि देश के कुछ हिंदी और अंग्रेजी खबरिया चैनलों द्वारा कभी ऐसा नहीं किया जाता। तथाकथित टीआरपी की अंधी दौड़ में क्या आधारहीन खबरें चलाना सही है? स्टार न्यूज और दूसरे खबरिया चैनलों के पुरोधाओं को इस पर मंथन करना होगा।[दखल]यह लेख शुक्रवार पत्रिका से साभार

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Dakhal News 20 July 2011


BHOPAL GAS TRAGEDY VERDICT A LEGAL DISASTER; NEW LAW NEED OF THE HOUR

Fr. Anand Muttungal The first verdict of the Bhopal gas tragedy after 25-years of wait on June 7 came as a rude shock to its victims and all other law abiding citizens across the glob. It is a wake up call to people across the glob to build safeguards against the industrial disaster in the corporate world. The Bhopal trial court, obviously, handed down two years imprisonment to the accused, the maximum the charge of “causing death by negligence” prescribed in the law book. The order, however, failed to take stock of the irreparable losses the tragedy had done to human lives and the environment. This, as I understand, no less than a classical example of the sheer helplessness of our legal and political system where everyone tries to pass the buck on the other with a bleak hope that any law abiding citizen can get justice in the present system. There should be someone held responsible for the loss of an estimated 35,000 lives in the aftermath of the world’s biggest industrial disaster that struck the Bhopal , the state capital of Madhya Pradesh way back on December 3, 1984 when the forty tonnes of methyl isocyanate escaped from the Union Carbide plant. Now it is explicitly clear that the existing laws in the country have lost their teeth to deal with such huge human catastrophe and we need new law to deal with such situation. Before that we need to know what all contributed for this tragedy and it will give you a quick insight as who are all responsible for it as well. According to authenticated government documents, the US Company was permitted to set up the plant in the midst of human habitat without proper testing of the risks involved it. However, after two year of the tragedy, the Central government woke up to the need for some laws rather than a full proof law to check such disaster. The Union government enacted Environment (Protection) Bill in 1986 against the “Principle of Strict Liability” on which the Indian industry was working. The Indian Judiciary, however, treated disasters in the light of the case, Rylands vs Fletcher (1866). Accordingly, ‘there are certain industrial activities which, though lawful, are so fraught with the possibility of harm to others that the law has to treat them as allowable only on the term of insuring the public against injury’, (Principle of Strict Liability). As a result the powerful accused used this provision all through in the similar nature of cases and escaped from punishment. The same thing has almost repeated in the Bhopal gas tragedy verdict as well. Union Carbide made the US District Court Judge to believe that the UCIL was a "separate entity, owned, managed and operated exclusively by Indian citizens in India ". So the whole case was shifted to India . The law suit continued in the Indian Supreme Court which told both sides to come to an out-of-court settlement. At last agreement was reached for US$ 470 million for damages caused in the Bhopal disaster, 15% of the original $3 billion claimed in the lawsuit(1989). Bhopal Gas Tragedy Relief and Rehabilitation Department released a report in 2003 stating that it has awarded the compensation to 554,895 people for injuries received and 15,310 survivors of those killed. The average amount to families of the dead was $2,200, the cost of a precious Indian life. All these must force us to formulate new laws to deal with such disaster in the corporate world. Legal experts say that the Public Liability Insurance Act (PLIA-1991), the National Environment Tribunal Act (NETA), 1995, the National Green Tribunal Bill, 2009 are not sufficiently equipped to deal with such disaster. All these laws are speaking about the victims of disaster but it has much deeper side in a disaster like gas tragedy. It causes genetic damage for generations. The children of the victims and their descendants also medically suffer the impact of the tragedy in one way or the other. How do we compensate the injustice done to the unborn? The law that we propose must have provisions to deal with better design of the facilities to handle toxic materials, location of such industries, preventive maintenance strategies, worker training programs, environmental education programs, development of systemic hazard evaluation models, emergency planning, disaster preparedness programme, time bound compensation and justice to victims etc. If these industrial and legal disasters do not force us to clamour for better system, it would be an unforgivable sin against our future generation. (dakhal) Industrial and Legal Disaster, Bhopal Gas Tragedy, Clamour for a New Law The long awaited legal hope of people ended with a disaster. It has attracted the attention of the plight of the survivors as well the ineffective legal system of India to secure justice for them. It has become a classical example of helplessness of a Nation against the corporate world. Despite the fact that the documentary evidence was all available against the UCC, USA and Warren Anderson that they were well aware in 1973 that the technology for the MIC plant in Bhopal was “untested” , the top investigative agency and Indian Judicial system failed to bring the culprits under law. This disaster made the Union Government to pass Environment (Protection) Bill in 1986 against the “Principle of Strict Liability” on which the Indian industry was working. The Indian Judiciary treated disasters in the light the case, Rylands vs Fletcher (1866). According to this rule, ‘there are certain industrial activities which, though lawful, are so fraught with the possibility of harm to others that the law has to treat them as allowable only on the term of insuring the public against injury’, (Principle of Strict Liability). As a result the powerful accused used this provision all through the case. All the accused who are believed to be responsible for the life of twenty five thousand people have gone almost unpunished. Union Carbide made the US District Court Judge to believe that the UCIL was a "separate entity, owned, managed and operated exclusively by Indian citizens in India ". So the whole case was shifted to India . The law suit continued in the Indian Supreme Court which told both sides to come to an out-of-court settlement. At last agreement was reached for US$ 470 million for damages caused in the Bhopal disaster, 15% of the original $3 billion claimed in the lawsuit(1989). Bhopal Gas Tragedy Relief and Rehabilitation Department released a report in 2003 stating that it has awarded the compensation to 554,895 people for injuries received and 15,310 survivors of those killed. The average amount to families of the dead was $2,200, the cost of a precious Indian life. All these must force us to formulate new laws to deal with such disaster in the corporate world. The legal experts say that the Public Liability Insurance Act (PLIA-1991), the National Environment Tribunal Act (NETA), 1995, the National Green Tribunal Bill, 2009 are not sufficiently equipped deal with such disaster. All these laws are speaking about the victims of disaster but it has much deeper side in a disaster like gas tragedy. It causes genetic damage for generations. The children of the victims and their descendants also medically suffer the impact of the tragedy in one way or the other. How do we compensate the injustice done to the unborn? The law that we propose must have provisions to deal with better design of the facilities to handle toxic materials, location of such industries, preventive maintenance strategies, worker training programs, environmental education programs, development of systemic hazard evaluation models, emergency planning, disaster preparedness programme, time bound compensation and justice to victims etc. If this industrial and legal disaster does not force us to clamour for better system, it would be an unforgivable sin against our future generation. (dakhal)

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Dakhal News 20 June 2010


आईसलैंड ज्वालामुखी विस्फोट प्रकृति की चुनौती

पंकज चतुर्वेदी १५ अप्रैल गुरूवार को ''अयाजाफजलाजोकुल'' ग्लेशियर के नीचे स्थित ज्वालामुखी ने यूरोप सहित सारे विश्व को चिंता और परेशानी में डाल दिया है । यूरोप में आईसलैंड जैसे छोटे से टापूनुमा देश में स्थित यह ज्वालामुखी एक महीने से कम समय के अंतराल में दूसरी बार फटा है, और इस दूसरे विस्फोट से जो लावा निकला है, उसकी तीव्रता से सभी अचंभित और आश्चर्यचकित हैं । ज्वालामुखी विस्फोट एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है, पर इसके लावे से उत्पन्न परिस्थितियों ने यूरोप सहित दुनिया भर की ईंसानी बिरादरी के सरोकारों को प्रभावित किया तो इस पर चर्चा एवं चिंता शुरू हो गई । पिघलती बर्फ, आसमान तक मुंह उठाए काला स्याह धुंआ जिसके साथ ज्वालामुखी से निकलने वाला द्रव पदार्थ इन सबसे मिलकर आसपास के सैकड़ों लोगों को पलायन के लिए मजबूर तो किया ही, वहीं इस ज्वालामुखी की राख ने अटलांटिक महासागर के इर्द-गिर्द के एक बड़े क्षेत्र के वायु यातायात को प्रभावित किया है । यह प्रभाव इसलिए और व्यापक हो गया कि अटलांटिक महासागर यूरोप को अफ्रीका के साथ-साथ उत्तरी एवं दक्षिण अमेरिका से भी पृथक करने वाली जल राशि है । और पृथ्वी के इन चार बड़े भू-भागों के मध्य के आसमानी रास्ते का अवरूद्ध होना एक बड़ी भारी समस्या थी जिससे जुझने में सब जुटे हुए थे । सम्पूर्ण ब्रिटेन एवं उत्तरी यूरोप में स्थिति सबसे ज्यादा विषम है, फ्रांस, बेल्जियम, हालैंड, आयरलैंड, स्वीडन, फिनलैंड और स्विटजरलैंड जैसे देश इस घटनाक्रम से सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं । ज्वालामुखी की इस राख ने वायु यातायात को प्रभावित किया है जिससे आम यात्रियों की तकलीफें तो बढ़ी ही हैं साथ-साथ इस क्षेत्र से होने वाली आयात-निर्यात की व्यापारिक गतिविधियों पर भी बुरा असर पड़ा है । क्योंकि बहुत सा व्यापारिक परिवहन भी वायु मार्ग से भी होता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस राख में उपस्थित सूक्ष्म आकार के कण मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत घातक हैं । जैसे-जैसे यह राख और धुंए का गुबार धरती की सतह के करीब आता जाएगा, यह सूक्ष्म कण सांस के जरिए फेफड़ों में प्रवेश कर सकते हैं । ऐसी स्थिति में श्वसन तंत्र पर शीघ्र असर पड़ेगा और अस्थमा एवं श्वांस के अन्य रोगों से पीड़ित लोगों के लिए यह चेतावनी है कि यथा संभव यह प्रयास रखें कि इस समय घर के बाहर न निकलना पड़े अन्यथा नुकसान होने की पूर्ण संभावना है। इस ज्वालामुखी विस्फोट ने सूक्ष्म आकार के कणों की ऐसी परत तैयार करी जो पृथ्वी की सतह से लगभग ६००० मीटर या २०,००० फीट की ऊंचाई तक व्याप्त है और कई-कई जगह तो यह अदृश्य भी है । जैसे-जैसे यह गुबार पृथ्वी की सतह के करीब आता जाएगा तो वह वायु यातायात को तो सुगम बना देगा किंतु स्वास्थ्य संबंधी तमाम परेशानियां उत्पन्न करेगा । आंखों में जलन एवं खुजली, नाक का बहना, सूखा कफ और गले में खराश जैसे लक्ष्ण प्रकट होंगे, वहीं अंडे सड़ने की दुर्गंध भी महसूस होगी जो मूलतः गुबार में शामिल ष्सल्फरष् की होती है । ज्वालामुखी की राख और लावे में मुख्य रूप से पिसे हुई चट्टान और कांच के अंश होते हैं जो इसके फटने से उत्पन्न होते हैं । सामान्यतः इनका व्यास २ मि.मि. से भी कम होता है । ज्वालामुखी की राख निर्माण सामान्यतः तीन प्रकार से होता है, एक तो गैस के रूप से निकले अवयव, ताप के रूप में निकले अवयव व भाप के रूप में निकले अवयव या पदार्थ । इस तरह से बनी राख इंसान की सांस से लेकर मशीन की जान तक को खतरे में डाल देती है । ज्वालामुखी विस्फोट के बाद सतह पर जमी राख को ''ऐशफॉल डिपाजिट'' कहते हैं । जब यह ऐशफॉल डिपाजिट भारी मात्रा में एकत्रित हो जाता है तो यह सीधे-सीधे स्थानीय परिस्थिति तंत्र या जिसे हम इको सिस्टम कहते हैं, को प्रभावित करने लगता है। ज्यादा समय बीते और इस को कोई छोडे नही ंतो यह ऐशफॉल डिपाजिट उपजाऊ भूमि के रूप से लेकर मजबूत चट्टान तक का स्वरूप ले सकता है । यही कारण है कि ज्वालामुखी के आसपास की भूमि सदा उपजाऊ रहती है। यह विस्फोट ग्लेशियर के नीचे हुआ था और इस तरह के विस्फोटों में पिघलती बर्फ का ठंडा पानी ज्वालामुखी के लावे को ठंडा कर देता है, और इस प्रक्रिया में लावा शीघ्र ही कांच के रूप में परिवर्तित हो जाता है और वातावरण में बिखरे यह बारीक कांच के कण सबसे पहले विमान संचालन में बाधा बनते हैं । इसी कारण से तुरंत ही इस क्षेत्र में वायु यातायात बंद कर दिया गया था । इस ज्वालामुखी की राख के बहुत बारीक कण कई बरसों तक वायुमंडल में बने रह सकते हैं । पर वह इतनी ऊंचाई प्राप्त कर लेते हैं कि सामान्य जीवन में बाधा नहीं आती । अपितु यह सूक्ष्म कण सूर्यास्त का सौंदर्य बढ़ाते हैं व यहीं अधिक ऊंचाई की राख वातावरण में ठंडक पैदा करने में भी सक्षम है । इस तरह की घटना का आखरी जिक्र सन् १९९१ में माउंट पिनाटूने ज्वालामुखी विस्फोट में आया था जब इस प्रकार की राख ने वातावरण में ठंडक पैदा कर दी थी । यह सब प्रकृति की इंसानी बिरादरी को खुली चुनौती है कि इंसान विज्ञान और तकनीक की दम पर प्रकृति को जीतने के इरादे छोड़कर उससे सामंजस्य और सद्भाव कायम रखे । इस चुनौती ने विश्व स्वास्थ संगठन और संयुक्त राष्ट्र महासंघ जैसी बड़ी-बड़ी संस्थाओं को विचार विमर्श करने के लिए मजबूर कर दिया कि किस तरह ऐसी प्राकृतिक विपदाओं से निपटने की रणनीति बनायी जाए ताकि आने वाले समय में ऐसे किसी ज्वालामुखी विस्फोट से भारी तादाद में जनजीवन और कामकाज पर प्रभाव ना पड़े साथ ही प्रकृृति ने इस ज्वालामुखी विस्फोट से अपने इरादे स्पष्ट कर दिये हैं कि यदि उसके तंत्र से छेड़छाड़ या ज्यादती की जायेगी तो प्रकृति किसी को नहीं बख्शेगी पर शायद स्वार्थी इंसान अपनी आदतानुसार इस घटना को जल्दी भूल फिर प्रकृति से जंग लड़ने के लिये तैयार हो जायेगा ।(दखल) (लेखक एन.डी. सेंटर फॉर सोशल डेवलपमेंट एवं रिसर्च के अध्यक्ष हैं |)

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Dakhal News 24 April 2010


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