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भारतीय मीडिया जगत के लिए वर्ष 2024 कई मायनों में विशेष रहा। यह साल न केवल राजनीतिक घटनाओं से प्रभावित रहा, बल्कि मीडिया के कंटेंट और उसके नैरेटिव पर भी सवाल खड़े हुए। वर्ष 2024 को ‘सुधार का वर्ष’ कहा जा सकता है। लोकसभा चुनावों में ‘400 पार का नारा’ मीडिया के लिए एक सीख बन गया।
2024 का लोकसभा चुनाव एक ऐसी घटना थी, जिसमें अधिकांश मीडिया चैनलों ने ‘400 का आंकड़ा’ हासिल करने वाले नैरेटिव को बढ़ावा दिया। ऐसा लगा जैसे चुनावी बहस के बजाय ओपिनियन पोल और अनुमान खबरों का केंद्र बन गए। इसका असर यह हुआ कि चुनावी परिणामों के बाद मीडिया की साख पर सवाल उठने लगे। मीडिया ने जैसे ही यह महसूस किया कि उनकी भ्रामक रिपोर्टिंग से साख पर आंच आई है, तब जाकर उन्होंने अपने कंटेंट में सुधार की ओर कदम बढ़ाया।
मीडिया के सामने क्रेडिबिलिटी का सवाल:
भारतीय मीडिया का एक बड़ा वर्ग कथित तौर पर सत्ताधारी दल के समर्थन में रहा, जबकि डिजिटल प्लेटफॉर्म, खासकर यूट्यूब, विरोधी नैरेटिव का केंद्र बन गया। इस विभाजन ने दोनों पक्षों की साख पर असर डाला। जब आप किसी एक नैरेटिव के पक्ष में खड़े होते हैं, तो आपकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं। ऐसे में क्रेडिबिलिटी का टेस्ट मीडिया के लिए अनिवार्य हो जाता है।
मीडिया में सुधार और पाठकों की अपेक्षाएं:
वर्ष 2024 की घटनाओं ने मीडिया को यह सीख दी कि संतुलन और विश्वसनीयता बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। मीडिया और उसके दर्शकों के बीच का रिश्ता अब ‘साख के परीक्षण’ पर आधारित हो गया है। दर्शक खबरें सुनते और देखते हैं, लेकिन अंततः वे अपने निष्कर्ष खुद निकालते हैं।
2025 की ओर नजरें:
आने वाले वर्ष 2025 में भारतीय मीडिया को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। तकनीकी क्रांति और ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ (AI) के बढ़ते उपयोग के साथ, खबरों की सत्यता और नैतिकता सुनिश्चित करना और भी कठिन हो जाएगा। हालांकि, 2024 के अनुभव मीडिया जगत के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम करेंगे। मीडिया में सुधार और बिगड़ाव का चक्र चलता रहता है। लेकिन यह दर्शकों की जागरूकता और उनकी अपेक्षाओं पर निर्भर करता है कि मीडिया की साख कितनी बनी रह पाती है।
2024 भारतीय मीडिया के लिए आत्ममंथन का वर्ष साबित हुआ:
भारतीय मीडिया एक महत्वपूर्ण मुकाम पर खड़ी है। मौजूदा दौर में ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्यधारा के तमाम टीवी चैनलों और अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर निष्पक्षता और तथ्यात्मक रिपोर्टिंग का स्थान धीरे-धीरे खो रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय मीडिया एक ध्रुवीकृत (polarized) स्थिति में पहुंच गई है। इससे सबसे बड़ा नुकसान वास्तविकता को होता है। आम जनता और सरकार से जुड़े मुद्दों पर न तो न्यूट्रल बहस होती है और न ही तथ्य आधारित रिपोर्टिंग। मीडिया एक ऐसा मंच होना चाहिए जो समाज के दबावों और असहमति को सहेजकर सिस्टम के लिए सुधार का रास्ता तैयार करे। यह एक प्रेशर कुकर की तरह है, जो दबाव को नियंत्रित करता है। लेकिन जब मीडिया अपने तर्कों और विमर्श से हटकर केवल ध्रुवीय विचारों (polarized opinions) को बढ़ावा देती है, तो इसका नुकसान समाज और लोकतंत्र को होता है।
2024 भारतीय मीडिया के लिए आत्ममंथन का वर्ष साबित हुआ। वर्ष 2025 में मीडिया को अपने नैरेटिव और साख के बीच संतुलन बनाकर काम करना होगा। अगर मीडिया इस चुनौती को स्वीकार करता है तो यह न केवल उसकी साख को मजबूत करेगा बल्कि पाठकों और दर्शकों के साथ उसके संबंधों को भी बेहतर बनाएगा।
उम्मीद का दामन थामे रहना होगा : सभी चुनौतियों के बावजूद, उम्मीद ही वह तत्व है जो हमें आगे बढ़ने की ताकत देता है। लेकिन उम्मीद को व्यावहारिक बनाना और संवाद के जरिए समाधान निकालना सबसे जरूरी है। मुझे विश्वास है कि आत्ममंथन, सुधार और संवाद की प्रक्रिया से गुजरकर भारतीय मीडिया एक बेहतर और संतुलित भविष्य की ओर कदम बढ़ाएगी।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
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