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जिस बच्चे को मां नौ महीने कोख में रखती है और उसकी हर हरकत पर फूल की तरह खिल उठती है. वही मां जब कोर्ट के सामने अपने उसी बच्चे को हमेशा के लिए मौत की नींद सुला देने की गुहार लगाए तो जाहिर है वजह कोई छोटी-मोटी तो हरगिज नहीं होगी. ऐसी ही एक गुहार अशोक राणा और उनकी पत्नी निर्मला देवी ने अपने बेटे हरीश के लिए दिल्ली हाई कोर्ट के सामने लगाई हरीश जिंदा है, उसकी सांसें चल रही हैं, लेकिन वो 11 साल से विस्तर पर पड़ा हुआ है. क्वाड्रिप्लेजिया से पीड़ित, यानी 100 प्रतिशत विकलांगता. उसी विस्तर से एक यूरीन बैग लगा हुआ है और खाने का एक पाइप भी हरीश के पेट से चिपका है. वो एक जिंदा कंकाल की तरह 2013 से उसी विस्तर पर यूं ही पड़ा हुआ है. 'हरीश एक दशक से भी ज्यादा समय से इस हालात में है. हम हमेशा तो उसके पास नहीं रहेंगे न, तो फिर उसकी देखभाल कौन करेगा.' ये कहना है 62 साल के राणा का, जिन्होंने अपने बेटे को इच्छामृत्यु दिए जाने की गुहार दिल्ली हाई कोर्ट से लगाई, लेकिन कोर्ट ने इसे 8 जुलाई को खारिज कर दिया टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में अपने बेटे की इस हालत को देखते हुए उसके पिता अशोक राणा कहते हैं, 'हर रोज अपने बच्चे की मौत की गुहार लगाना आसान नहीं होता, लेकिन हमारे पास कोई और रास्ता नहीं है क्योंकि हरीश जिस दर्द से गुजर रहा है वो असहनीय है.' हालात हमेशा ऐसे ही नहीं थे. हरीश मोहाली में चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक की पढ़ाई कर रहा था. उसका जीवन भी आम युवाओं की तरह ही था, लेकिन 2013 में उस दिन सब बदल गया, जब हरीश अपने पीजी के चौथे माले से गिर गया और उसके सिर में गंभीर चोटें आ गईं. इस घटना के पहले दिन से ही हरीश को देश के बड़े-बड़े अस्पतालों में अच्छा इलाज मिला, लेकिन वो फिर से पहले जैसा कभी न हो सका. हरीश का इलाज पीजीआई चंडीगढ़, एम्स, आरएमएल, लोक नायक और फॉर्टिस जैसे अस्पतालों में हुआ हरीश के पिता ने उसकी सेहत में सुधार के लिए हर संभव प्रयास किया. वो बताते हैं कि उन्होंने हरीश के लिए 27 हजार रुपए हर महीने की कीमत पर एक नर्स भी रखी थी. ये कीमत उनकी हर महीने की सैलरी यानी 28 हजार रुपए के बराबर ही पड़ रही थी. उन्होंने बताया कि इसके अलावा उन्होंने हर महीने 14 हजार रुपए हरीश की फीजियोथेरेपी पर भी खर्च किए. ये खर्च इतने ज्यादा थे कि उन्हें खुद ही उसकी देखभाल करना शुरू करना पड़ा. हरीश की दवाइयों का हर महीने का खर्च भी 20 से 25 हजार पड़ता है और उन्हें सरकार से भी किसी तरह की मदद नहीं मिलती. वो खुद ही सब मैनेज कर रहे हैं. सितंबर 2021 में राणा ने दिल्ली के महावीर एनक्लेव में अपने तीन मंजिल मकान को भी बेच दिया. इस वाकये के बारे में बताते हुए वो कहते हैं, '1998 से उस जगह को हम घर कहते आए थे. हमारी कई यादें उन दीवारों से जुड़ी हुईं थीं. हालांकि हमें उसे छोड़ना पड़ा, क्योंकि वहां तक एंबुलेंस नहीं पहुं पाती थी. हमारे घर तक डायरेक्ट एंबुलेंस का न पहुंच पाना हमारे लिए बड़ी बात थी, क्योंकि ऐसा होने से हमारे बेटे की जान से खिलवाड़ जैसे होता.'अब उसी बच्चे की जान लेने की गुहार लगाते हुए राणा कहते हैं, 'हम उसके अंगों को दान कर देंगे, ताकि कई अन्य लोगों को जिंदगी मिल सके. इससे हमें भी सुकून मिलेगा कि वो किसी और के शरीर में एक अच्छी जिंदगी जी रहा है.'
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