नर्मदा की भांति बहता हुआ है दिग्विजय सिंह का जीवन
नर्मदा की भांति बहता हुआ है  दिग्विजय सिंह  का जीवन

ओपी शर्मा

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह जी की नर्मदा परिक्रमा प्रारंभ होने के आज 5 साल पूरे हो गए है। वर्ष 2017 में आज ही के दिन उन्होंने सपत्नीक 300 परिक्रमावासियों के साथ लगभग 3200 किलोमीटर की यह पैदल यात्रा प्रारंभ की थी। इसे एक सुखद प्रसंग ही कहा जायेगा कि गत वर्ष इसी दिन उनकी नर्मदा परिक्रमा पर मेरे द्वारा लिखा गया यात्रा वृतांत "नर्मदा के पथिक" का विमोचन हुआ था। आज पुनः एक ऐसा सुखद प्रसंग है जब वे देश की सबसे पुरानी और राष्ट्रीय स्वतंत्रता की अलख जगाकर राजनीति में सत्य और अहिंसा को प्रधान तत्व बनाने वाली कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के चुनाव में वे अपना नामांकन दाखिल कर रहे हैं। चुनाव प्रजातांत्रिक तरीके से सम्पन्न हो रहे है इसलिए उसके परिणाम पर अभी बात करना ठीक नही होगा लेकिन दिग्विजय सिंह जी का इस चुनाव में एक प्रमुख भागीदार के रूप में सामने आना कोई तिकड़मबाजी या परिस्थितिवश एकाएक हुई बात नही है। दिग्विजय सिंह जी को इस मुकाम तक उनके अध्यात्म ने ही शने:-शने: पंहुचाया है। आइए देखते है कि उनमें वे कौनसी आध्यात्मिक शक्तियां विकसित हुई जो उन्हें औरों से अलग बनाती है। उनका जीवन सनातन धर्म के प्रवाह में नर्मदा की भांति बहता हुआ है जिसमे कोई अवशिष्ट ठहर नही सकता।

(1) सहयोग देने की शक्ति : अपने 50 साल के राजनीतिक सफर में उन्होने बिना सहयोग प्राप्त करने की अपेक्षा किये दूसरों को सहयोग दिया है। उनकी इसी सहयोग शक्ति के कारण उन्हें ठीक उसी प्रकार सहयोग मिलता गया जैसे नर्मदा को सैकड़ों छोटी नदियों और बड़े नद का सहयोग मिला। इन नदियों ने अपना अस्तित्व मिटाकर नर्मदा को बड़ा कर दिया। तो नर्मदा ने भी उन छोटी नदियों को अपने साथ ले जाकर समंदर बना दिया।

(2) सहन करने की शक्ति : दिग्विजय सिंह जी की सहन करने की असीम शक्ति अद्भुद है। उनका जीवन नर्मदा की भांति जंगलों, मैदानों और चट्टानों के बीच बहता रहा है। अनेक बाधाएं उनके मार्ग में आई है। किंतु वे उन बाधाओं को सहते हुए आगे बढ़े है। बाधाओ से उन्हें कोई शिकायत नही। वे उन्हें रोकने वाली मजबूत चट्टानों को सहन करते है और उन्हें अपना सुंदर जलप्रपात बना लेते हैं।

(3) समेटने की शक्ति : जब समय अपने अनुकूल न हो तो कछुआ अपने पैरों को समेट लेता है। नर्मदा भी अपने बिखरे हुए प्रवाह को सीमित कर लेती है। इसी प्रकार दिग्विजय सिंह जी भी अपनी समेटने की अद्भुत शक्ति के कारण सदैव सुरक्षित रहते है। वर्ष 2018 में उन्होंने इसी समेटने की शक्ति का परिचय दिया तथा जब सरकार ने उनसे भोपाल में सरकारी घर खाली करवा लिया तो समय अनुकूल न पाकर उन्होंने अपना सारा सामान समेट लिया और किराए के घर मे चले गए।

(4) समाने की शक्ति : जिस तरह नर्मदा में अनेक छोटी नदियाँ आकर मिलती है किंतु वह अपने साथ सबको बहाकर ले जाती है। समुद्र में अनेक नदियाँ मिलती है किंतु वह बिना प्रभावित हुए सबको अपने मे समा लेता है इसी तरह दिग्विजय सिंह जी भी एक समुद्र है जिसमे भिन्न भिन्न तरह के लोगों के विचार, उनके कार्य और परिणाम समा जाते हैं। यह उनकी बड़ी विशेषता है।

(5) निर्णय करने की शक्ति : नर्मदा की भांति वे भी निर्णय शक्ति से सम्पन्न है। नर्मदा जंगलों से गुजरते हुए उन्हें औषधीय गुण देती जाती है, पहाड़ों से गुजरते हुए उन्हें सौंदर्य प्रदान करती है और मैदानों से गुजरते हुए अपने तटवासियों को जल, फसल और समृद्धि देती है। वह अपने निर्णय पर अडिग होती है। उसी प्रकार दिग्विजय सिंह जी भी परिस्थिति वश जो भी निर्णय लेते है उस पर अडिग रहते है और कभी निर्णय न लेने को भी एक निर्णय बना देते है।

(6) परखने की शक्ति: नर्मदा जिस तरह अपने मार्ग में मिलने वाले पत्थरों को परखकर उनमें से किसी को पूजा के योग्य शंकर बना देती है, किसी को इमारत बनाने वाली रेत बना देती है और किसी को नदी के सौंदर्य को बरकरार रखने के लिए वैसे ही छोड़ देती है उसी प्रकार दिग्विजय सिंह जी भी व्यक्तियों, परिस्थितियों और समय को परख लेते है और उसी अनुरूप उनका उपयोग करते है।

(7) सामना करने की शक्ति : दिग्विजय सिंह जी का यह साहसिक गुण उन्हें सबसे न्यारा बनाता है। वे कठिन परिस्थितियों का सामना उसी प्रकार करते है जिस प्रकार नर्मदा कठोर चट्टानों का। या तो वह उन्हें काट देती है या उसपर से गुजर जाती है, पर रुकती नही। 

(8) साक्षी होने की शक्ति : दिग्विजय सिंह जी की यह शक्ति उन्हें हर हाल में समत्व भाव मे रखती है। यह उनका एक बड़ा आध्यात्मिक गुण है। गीता में कहा गया है-

 

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय ।

सिद्ध्यसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥ 

अर्थात- सफलता और असफलता की आसक्ति को त्याग कर तुम दृढ़ता से अपने कर्तव्य का पालन करो। यही समभाव योग कहलाता है।

बारिश में उफनती, सर्दी में शांत बहती और ग्रीष्म में सिकुड़ती नर्मदा की जलधाराओ में जिस प्रकार उसके भक्तों का समान भाव रहता है उसी प्रकार दिग्विजय सिंह जी का भी किसी पद या सत्ता पर होने या न होने में वैसा ही समत्वभाव है। वे सदैव एक जैसे भाव मे रहकर कर्म करने में विश्वास करते है। उनकी सफलता का यही मूलमंत्र है।

आज नर्मदा परिक्रमा की शुरुआत के 5 साल होने पर मैं श्री दिग्विजय सिंह जी सहित सभी परिक्रमावासियों को बधाई देता हूँ।  नर्मदा परिक्रमा में हम जो देखते और सीखते है वह दिग्विजय सिंह जी के व्यक्तित्व में प्रतिदिन मौजूद है। इस नवरात्रि नर्मदा जी से प्रार्थना है कि वह भी हम सभी को उपरोक्त अष्टशक्तियों से नवाज़े। ये सारी शक्तियां हमारे पास होगी तो हमारी आत्मा अवश्य ही बलवान होगी और हम हर स्थिति में खुश रह सकेंगे।

Dakhal News 30 September 2022

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