डॉक्टरों की निगरानी में इच्छामृत्यु को लेकर गाइडलाइन
Guidelines regarding euthanasia

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु यानी गंभीर रूप से बीमार मरीजों का लाइफ सपोर्ट हटाने को लेकर नई गाइडलाइन का ड्राफ्ट जारी किया है। इसमें कहा गया है कि डॉक्टरों को कुछ शर्तों को ध्यान में रखकर बेहद सोच-समझकर ये फैसला लेना होगा कि मरीज का लाइफ सपोर्ट हटाया जाना चाहिए या नहीं।

गाइडलाइन्स में चार शर्तें तय की गई हैं, जिनके आधार पर यह फैसला लिया जाएगा कि लाइफ सपोर्ट को रोकना मरीज के हित में उचित है। यह तब किया जाएगा जब यह साफ हो कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीज को लाइफ सपोर्ट से कोई फायदा होने की संभावना नहीं है, या लाइफ सपोर्ट पर रखने से मरीज की तकलीफ बढ़ने और गरिमा को नुकसान पहुंचने की संभावना हो।

IMA अध्यक्ष बोले- इन गाइडलाइन से डॉक्टर तनाव में आएंगे

सरकार की इन गाइडलाइन्स को लेकर मेडिकल फ्रेटरनिटी में असंतोष देखा जा रहा है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के प्रेसिडेंट डॉ. आर.वी. अशोकन ने कहा कि ये दिशा-निर्देश डॉक्टरों को कानूनी जांच के दायरे में लाएंगे और उन पर तनाव डालेंगे।

उन्होंने कहा कि ऐसे क्लिनिकल फैसले डॉक्टर्स नेक-नीयत से लेते हैं। ऐसे हर केस में मरीज के परिजन को स्थिति समझाई जाती है और पूरी जानकारी दी जाती है। हर पहलू पर अच्छे से गौर करने के बाद ही फैसला लिया जाता है।

ऐसी गाइडलाइन बनाना और कथित तौर से ऐसा दावा करना कि डॉक्टर गलत फैसले लेते हैं या फैसले लेने में देर करते हैं, ये हालात को गलत तरीके से दिखाने की बात है।

पहले यह नजरिया और धारणा ही गलत है कि बिना मलतब के ही मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है और इससे जिंदगी को बढ़ाया जाता है। इससे डॉक्टर कानूनी जांच के दायरे में आ जाएंगे।

डॉक्टर-मरीज के रिश्ते में जो कुछ भी बचा है, उसे काले-सफेद दस्तावेजों के चार कोनों में परिभाषित करना, जिसे बाद में कानूनी तौर पर जांच परखा जाएगा, इससे डॉक्टर स्ट्रेस में आ जाएंगे।

डॉ. आर वी अशोकन बोले-

कुछ चीजों को विज्ञान और परिस्थिति के हिसाब से परिजन, पेशेंट्स और डॉक्टरों पर छोड़ देना चाहिए।

डॉ. अशोकन ने कहा कि IMA इस डॉक्यूमेंट को पढ़ेगा और ड्राफ्ट गाइडलाइन्स के रिव्यू की मांग करते हुए अपने विचार शेयर करेगा।

क्या हैं टर्मिनल बीमारी

स्वास्थ्य मंत्रालय के ड्राफ्ट के मुताबिक टर्मिनल बीमारी को ऐसी अपरिवर्तनीय या लाइलाज स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें निकट भविष्य में मृत्यु की बड़ी संभावना रहती है। इसमें वे गंभीर मस्तिष्क चोटें (traumatic brain injury) भी शामिल हैं, जिनमें 72 घंटे या उससे अधिक समय तक कोई सुधार नहीं दिखता।

ड्राफ्ट के मुताबिक, ICU में कई मरीज टर्मिनली बीमार होते हैं और उनके लिए लाइफ सस्टेनिंग ट्रीटमेंट (LST) जैसे मैकेनिकल वेंटिलेशन, वासोप्रेसर्स, डायलिसिस, सर्जिकल प्रोसीजर्स, ट्रांसफ्यूजन, पैरेंट्रल न्यूट्रीशन या एक्स्ट्रा-कॉर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजन थेरेपी से कोई लाभ होने की संभावना नहीं होती।

गंभीर बीमारी में लाइफ सपोर्ट सिस्टम मरीज की तकलीफ बढ़ाते हैं

ड्राफ्ट के मुताबिक ऐसे हालात में LST मरीज को फायदा नहीं पहुंचाते हैं, बल्कि उनकी तकलीफ ही बढ़ाते हैं। इसलिए उन्हें ठीक नहीं माना जाता है। इसके अलावा ये ट्रीटमेंट मरीज के परिवार का इमोशनल स्ट्रेस बढ़ाते हैं और प्रोफेशनल केयरगिवर्स के लिए नैतिक संकट खड़ा करते हैं।

ऐसे मरीजों के लिए LST हटाना दुनियाभर में ICU केयर का स्टैंडर्ड माना जाता है और इसे कई जगह कानूनी मान्यता भी दी गई है। ऐसे फैसले मेडिकल, एथिकल और लीगल पहलुओं को देखने के बाद ही लिए जाते हैं। ये माना जा सकता है कि किसी मरीज को लाइफ सपोर्ट ट्रीटमेंट पर रखने से पहले भी इन बातों का खयाल रखना जरूरी है।

 

Dakhal News 29 September 2024

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