Dakhal News
21 November 2024(प्रवीण कक्कड़)
भारत में राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक यात्राओं का लंबा इतिहास है। कभी आमजन से जुड़ने, कभी समाज में चेतना को विकसित करने तो कभी राजनितिक परिवर्तन लाने के लिए यात्राएं निकलती रही हैं। इन दिनों देश में सबसे ज्यादा बातचीत किसी चीज की हो रही है तो वह है राहुल गांधी की कन्याकुमारी से कश्मीर तक जाने वाली पदयात्रा की। असल में बात किसी व्यक्ति की नहीं है बल्कि बात उस भावना की है जो लोगों को आकर्षित करती है। इतिहास में ऐसे अनेक प्रसंग मिलते हैं जब महान हस्तियों ने जनता से जुड़ने के लिए और अपनी बात रखने के लिए लंबी-लंबी यात्राएं की।
अगर हम त्रेता युग से शुरू करें तो भगवान राम ने भी अयोध्या से रामेश्वरम तक पदयात्रा करने के बाद ही लंका पर चढ़ाई की थी। भगवान चाहते तो अपने भृकुटी विलास से ही किसी भी शत्रु को परास्त कर सकते थे लेकिन जब वह पैदल दूरदराज के इलाकों से निकले और जन सामान्य ने उनके दर्शन किए और उन्होंने जन सामान्य की परिस्थिति का अवलोकन किया तो नर और नारायण एक हो गए।
भारत में पुराण काल में ही दूसरी महत्वपूर्ण यात्रा अगस्त मुनि की मानी जाती है। वह पहले ऐसे व्यक्ति माने जाते हैं जिन्होंने विंध्याचल पर्वत को पार किया। उत्तर भारत और दक्षिण भारत को सांस्कृतिक रूप से जोड़ने में अगस्त्यमुनि का ही महात्म्य हमारे ग्रंथों में बताया गया है। तीसरी महत्वपूर्ण पदयात्रा आदि गुरु शंकराचार्य की है। केरल में जन्मे शंकराचार्य ने पूरे भारत का भ्रमण किया और चारधाम की स्थापना की। उनकी इन्हीं यात्राओं से सनातन धर्म में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। इसी तरह गौतम बुद्ध और गुरु नानक देव जैसी विभूतियों ने उस दौर में यात्राएं करके जनमानस के बीच अपनी आध्यात्मिक चेतना का प्रसार किया।
भारत के इतिहास में कुछ राजनीतिक यात्राएं भी हैं जिन्होंने भारत की राजनीति की दशा और दिशा को पूरी तरह बदल कर रख दिया। महात्मा गांधी की दांडी यात्रा ने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। इस यात्रा में महात्मा गांधी ने। अहमदाबाद से दांडी तक 241 किलोमीटर की यात्रा करके नमक का कानून तोड़ा और भारतीय जनमानस में स्वतंत्रता के प्रति राष्ट्रीय चेतना का संचार किया। विनोबा भावे ने भी भूदान आंदोलन के दौरान लंबी पदयात्रा की। किंतु आजादी के बाद सबसे लंबी पैदल यात्रा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को है। 6 जनवरी 1983 को तमिलनाडु से निकली चंद्रशेखर की यात्रा 25 जून 1983 को दिल्ली में खत्म हुई। लगभग 170 दिन तक की इस यात्रा में चंद्रशेखर 4000 से अधिक किलोमीटर पैदल चले थे। चंद्रशेखर की पदयात्रा का उद्देश्य था पीने का पानी, कुपोषण से मुक्ति, हर बच्चे की पढ़ाई, हर इंसान को स्वास्थ्य का अधिकार और सामाजिक सद्भाव। इस पदयात्रा से चंद्रशेखर भारत की राजनीति में एक ताकतवर राजनेता बन कर उभरे। बाद में कुछ समय के लिए देश के प्रधानमंत्री भी बने।
भारतीय राजनीति में दक्षिण पंथ को मजबूती से स्थापित करने वाले लालकृष्ण आडवाणी भी एक नहीं दो-दो बार यात्रा पर निकले। किंतु आडवाणी पैदल नहीं चले। बल्कि अपनी पहली यात्रा में रथ पर सवार होकर 1990 में सोमनाथ से अयोध्या के लिए निकल पड़े। उनकी रथयात्रा को लालू यादव ने बिहार में रोक दिया। इसके बाद वर्ष 2011 में आडवाणी की जनचेतना रथ यात्रा भ्रष्टाचार के खिलाफ 38 दिन तक चली और 23 राज्यों व चार केंद्र शासित प्रदेशों से होकर गुजरी। इससे पहले वर्ष 2003 में वाईएसआर रेड्डी ने पदयात्रा की थी। 2013 में चंद्रबाबू नायडू भी पदयात्रा पर निकले थे। 2017 में दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश में नर्मदा परिक्रमा यात्रा निकाली।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी 7 सितंबर 2022 से पदयात्रा कर रहे हैं। कन्याकुमारी से प्रारंभ उनकी पदयात्रा का आधे से अधिक मार्ग तय हो चुका है। भारत जोड़ो यात्रा के नाम से विख्यात यह 150 दिन की पदयात्रा कश्मीर में पूरी होगी। राहुल गांधी कहते हैं कि यह गैर राजनीतिक यात्रा है। जनता के दुख दर्द को समझने की यात्रा है। बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी जैसी समस्याओं पर जनचेतना जागृत करने की यात्रा है। राहुल गांधी की यात्रा में बिना बुलाए बड़ी संख्या में लोगों का पहुंचना इस बात का प्रतीक है कि इस यात्रा से जनता में राजनीतिक चेतना का विस्तार हो रहा है। साथ ही इतना अवश्य है कि अपनी यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने आमजन से मिलकर देश की जनता के बीच अपनी छाप छोड़ी है।
राजनीति हस्तियों की यात्राएं जनता से सीधा संवाद करने का अवसर प्रदान करती हैं। और राजनीतिक मुद्दों पर जनजागृति का काम भी करती हैं। निश्चित रूप से जनता के बीच जाने का फायदा तो होता ही है। विश्व के इतिहास में जिन-जिन राजनेताओं ने राजनीतिक यात्राएं की हैं उन्हें एक नई पहचान मिली है जनता से उनकी कनेक्टिविटी भी स्थापित हुई है। यात्राएं देश को जानने, समस्याओं को समझने, जनता से रूबरू होने का सबसे सुगम और सरल माध्यम हैं।
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3 December 2022
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