चुनाव आयोग को दंगाई प्रचार नहीं दिख रहा, तारीख बढ़ा दी और खबर छिपाकर छपी है
भारतीय जनता पार्टी

भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव की तारीख बढ़ाने की मांग की और चुनाव आयोग ने कल इसकी घोषणा कर दी। ऐसा ही हरियाणा में हुआ था और वहां अप्रत्याशित चुनाव परिणाम आये थे। अब उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव की तारीख बढ़ाने की मांग पूरी कर दी गई है। खबर बड़ी है लेकिन वैसे छपी नहीं है। अंग्रेजी अखबारों में सिर्फ द हिन्दू में सेकेंड लीड है। कई अखबारों में यह पहले पन्ने पर नहीं है या छोटी सी है। अमर उजाला में यह दो कॉलम में है। खबर के अनुसार, अब 13 नवंबर को इन सीटों पर वोट नहीं डाले जाएंगे। नए शेड्यूल के मुताबिक इन सभी सीटों पर 20 नवंबर को वोटिंग होगी। विपक्षी दलों ने इस पर सवाल उठाया है और कहा है कि चुनाव टालने से योगी आदित्यनाथ सरकार की अगुआई वाली भाजपा अपनी हार नहीं टाल सकती। दूसरी ओर, इस निर्णय़ को उचित ठहराने के लिए दलील दी गई है कि 13 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा है। गंगा स्नान के चलते बीजेपी और रालोद ने चुनाव की तारीखों में बदलाव की मांग की थी। अमर उजाला की खबर, “तीन राज्यों की 14 सीटों पर अब 20 को मतदान” में कहा गया है, यूपी में भाजपा, बसपा और रालोद ने कहा था कि  कार्तिक पूर्णिमा 15 नवंबर को है। कांग्रेस ने कहा था कि केरल की पलक्कड़ विधानसभा सीट पर बड़ी संख्या में मतदाता 13 से 15 नवंबर तक कल्पती रथोत्सवम का त्योहार मनाएंगे। पार्टी ने कहा था कि पंजाब में 15 नवंबर को श्री गुरु नानक देव के 555वां प्रकाश पर्व है। इसके लिए अखंड पाठ 13 नवंबर से शुरू हो जाएगा।

इस लिहाज से अगर यह मान लिया जाये कि चुनाव की तारीख बढ़ाना बिल्कुल जायज है तो सवाल पैदा होता है कि पहले की तारीखें घोषित करने से पहले इन बातों का ख्याल क्यों नहीं रखा गया? अगर 13 तारीख को मतदान वाले कुछ चुनाव क्षेत्रों में लोगों और उम्मीदवारों को राहत दी जा रही है तो सबको क्यों नहीं? त्यौहार का कारण अपनी जगह है लेकिन चुनाव प्रचार और उसके लिए समय भी कोई चीज है। किसी चुनाव क्षेत्र में उम्मीदवारों और मतदाताओं को कम या ज्यादा समय क्यों? चुनाव की तारीख तय करना और समय पर चुनाव कराना – चुनाव आयोग के दो महत्वूपूर्ण कार्यों में है। चुनाव आयोग इन दो कामों में लगातार चूक रहा है और चिट्ठी लिखने में उस्तादी दिखा रहा है। चिट्ठी लिखना और किसी पार्टी की छवि खराब करना (या बनाना) चुनाव आयोग का काम नहीं है। कुल मिलाकर, चुनाव आयोग अपने मूल काम में कमजोर दिख रहा है। अखबारों ने तारीख बदलने के कारण बताये हैं लेकिन इससे ज्यादा जरूरी यह बताना है कि पहले की तारीखें घोषित करने में इन बातों का ख्याल क्यों नहीं रखा गया या इन त्यौहारों के बावजूद चुनाव रखा ही क्यों गया था? अखबारों में इसके जवाब के बिना खबर अधूरी है।

समाजवादी पार्टी ने उपचुनाव की तारीखों में बदलाव को लेकर बीजेपी पर जोरदार हमला बोला है। यह भी खबर है और इसलिए भी इसे पहले पन्ने पर होना चाहिये था। सपा प्रवक्ता आजम खान ने कहा, “चुनाव में हार के डर से चुनाव की तारीखों को आगे बढ़ाया जा रहा है। आरोप है कि बीजेपी चुनावी मशीनरी का दुरुपयोग कर रही है। कहा कि इसका असर चुनाव के नतीजों पर नहीं पड़ेगा। समाजवादी पार्टी उपचुनाव में जीत दर्ज करेगी।” चुनाव की तारीख में बदलाव को लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एक्स पर पोस्ट कर बीजेपी पर निशाना साधा, लिखा – “टालेंगे तो और भी बुरा हारेंगे! पहले मिल्कीपुर का उपचुनाव टाला, अब बाक़ी सीटों के उपचुनाव की तारीख़, भाजपा इतनी कमजोर कभी न थी। दरअसल बात ये है कि यूपी में ‘महा बेरोज़गारी’ से जो लोग पूरे देश में काम-रोज़गार के लिए जाते हैं। वो दिवाली और छठ की छुट्टी लेकर यूपी आए हुए हैं। उपचुनाव में भाजपा को हराने के लिए वोट डालनेवाले थे। जैसे ही भाजपा को इसकी भनक लगी, उसने उपचुनावों को आगे खिसका दिया। इससे लोगों की छुट्टी ख़त्म हो जाए और वो बिना वोट डाले ही वापस चले जाएं।” ऐसा नहीं है कि ये तर्क निराधार हैं और कांग्रेस ने भी मांग की थी इसलिए तारीख बदल दिया जाना जायज हो गया है।  

महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव में भाजपा का मुद्दा हिन्दू-मुसलमान है और कल प्रधानमंत्री ने अपने भाषण से साबित कर दिया कि वे अपने मुख्यमंत्री हिमन्त बिश्व सरमा से अलग बिल्कुल नहीं हैं। ऐसे में आज कनाडा में मंदिर पर खालिस्तान समर्थकों का हमला, शीर्षक लीड अमर उजाला में छह कॉलम में है। इसके बुलेट प्वाइंट से प्रधानमंत्री और सरकार की परेशानी का पता चलता है। पीएम  मोदी का सख्त बयान : जानबूझकर किया गया हमला निन्दनीय …. भारतीय राजनयिकों को डराना कायरता। प्रदर्शनकारियों ने श्रद्धालुओं को लाठी-डंडों से पीटा। कनाडा पुलिस ने भी दिया हिसंक भीड़ का साथ : हमले के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे तीन लोगों को ही कर लिया गिरफ्तार। मैं इस खबर पर कुछ नहीं कहूंगा पर बताना चाहूंगा कि नवोदय टाइम्स में यह खबर लीड नहीं है। चार कॉलम की खबर जरूर है। कनाडा के मंदिर में हिंसा, भारत ने कड़ा विरोध जताया। इसमें कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा की यह अपील भी है कि सरकार सख्ती से विरोध करे। मतलब कड़ा विरोध पर्याप्त नहीं है। जो भी हो, भारत में 10 साल से भाजपा के सत्ता में होने के बावजूद अगर हिन्दू खतरे में हैं और बंटेंगे तो कटेंगे तथा विपक्ष सत्ता में आ गया तो जो सब होने की जानकारी प्रधानमंत्री ने दी है और चुनाव आयोग ने चुप-चाप सुना है तो जाहिर है आरएसएस अभी पर्याप्त मजबूत और सक्षम नहीं हुआ है। खबर यह होनी चाहिये थी आरएसएस और भाजपा को अभी मजबूत किये जाने की जरूरत है और तब तक इन्हें सत्ता किसी और को सौंप देनी चाहिये जो इनसे बेहतर सरकार चलाते थे और भ्रष्टाचार किया भी तो पकड़ा नहीं गया न कि इलेक्टोरल बांड जैसा कुछ गैर कानूनी किया। सुप्रीम कोर्ट की हालत यह बना दी कि इसपर और कई अन्य मामलों में कार्रवाई तो नहीं ही हुई। आज मुख्य न्यायाधीश ने जो कहा है वह प्रचारक जैसा है। नवोदय टाइम्स में शीर्षक है, “भारतीय समाज मजबूत, संविधान पर कोई खतरा नहीं : सीजेआई।

कहने की जरूरत नहीं है सर्वोच्च न्यायालय, चुनाव आयोग, सीबीआई की भूमिका, ईडी का दुरुपयोग आदि ही नहीं प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपालों के चुनाव प्रचार भी बताते हैं कि संविधान खतरे में है। चुनावी पूर्वानुमान गलत होने लगे हैं, ईवीएम शक के घेरे में है और संतोषजनक जवाब नहीं हैं। एक समय ईवीएम का विरोध करने वाले अब सरकार के साथ हैं। ईवीएम पर चुप हैं और सरकार उनके समर्थन से टिकी हुई है। दूसरी ओर,  एक साल पहले ईडी ने उन्हें जिस घोटाले में गिरफ्तार किया था अब उसके पास उसमें उनके शामिल होने का कोई संबंध नहीं है। आप समझ सकते हैं कि क्या कैसे हुआ होगा और क्या चल रहा है। उधर, अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कश्मीर में चुनाव नहीं हुए, जब हुए तो भाजपा जीत नहीं पाई और अब तक सरकार बन गई है तो पीडीपी के सदस्य ने अनुच्छेद- 370 पर प्रस्ताव पेश किया। भाजपा सदस्यों ने इसका विरोध किया है। दि एशियन एज में यह खबर फोटो के साथ पांच कॉलम में छपी है। इंडियन एक्सप्रेस में दो कॉलम की खबर है और एक कॉलम की फोटो।

संविधान पर हमले का एक और उदाहरण जेपीसी का काम और उसमें भाजपा सदस्यों की भूमिका है। इसका नतीजा यह है कि सेबी प्रमुख, माधवी पुरी बुच संसदीय समित के समझ उपस्थिति ही नहीं हुईं। आज इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के अनुसार संयुक्त संसदीय समिति के विपक्षी सदस्यों ने वक्फ (संशोधन) विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष और भाजपा सांसद जगदंबिका पाल पर एकतरफा फैसलों का आरोप लगाया  है और कहा है कि वे जेपीसी से अलग होने के लिये मजबूर हो सकते हैं। खबर है कि विपक्षी सांसदों ने मंगलवार को इस मामले पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मुलाकात करने वाले हैं। उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष के नाम लिखे पत्र में यह दावा भी किया कि समिति की कार्यवाही में उनको अनसुना किया गया। खबर है कि विपक्षी सांसद मंगलवार को इस मामले पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मिलेंगे। उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष के नाम लिखे पत्र में यह दावा भी किया कि समिति की कार्यवाही में उनको अनसुना किया गया। इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पहले पन्ने पर एक कॉलम में है। दूसरे अखबार में यह खबर दिखी नहीं। तीन नंवंबर की तारीख वाले इस पत्र पर  छह विपक्षी सांसदों के दस्तखत हैं। इनमें एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी, तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी, कांग्रेस के मोहम्मद जावेद, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह,  द्रमुक के एमएम अब्दुल्ला और तृणणूल कांग्रेस के मोहम्मद नदीमूल हक शामिल हैं।

आज इन और ऐसी खबरों के बीच, “पटाखों पर प्रतिबंध के निर्देशों पर अमल नहीं होने पर चिन्ता” कई अखबारों में लीड है। उदाहरण के लिए टाइम्स ऑफ इंडिया में यह पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड है जबकि हिन्दुस्तान टाइम्स में यह पहले पन्ने पर लीड है। शीर्षक है, वायु संकट के बीच पटाखों पर प्रतिबंध के उल्लंघन की सुप्रीम कोर्ट ने आलोचना की। टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक है, पटाखों पर प्रतिबंध का उल्लंघन कैसे हुआ? सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस, सरकार को नोटिस भेजा। टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड कनाडा के मंदिर और वहां हिन्दुओं पर हमले की प्रधानमंत्री ने आलोचना है। पर दिलचस्प खबर दि एशियन एज में है। इसके अनुसार प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया है – जेएमएम कांग्रेस घुसपैठियों का गठजोड़ है। मेरे लिये तो यह समझना मुश्किल है कि ऐसा कैसे कहा जा सकता है। इसका आधार या सिर पैर कहां -क्या होगा। पर प्रधानमंत्री हैं, कहा है तो खबर है ही। इसका फ्लैग शीर्षक है, भ्रष्टाचार और तुष्टीकरण की राजनीत चरम पर। मैं यह समझ नहीं पा रहा हूं कि अपनी कमजोरी को स्वीकार करने का यह कौन सा तरीका है। अगर यह गलत है और भ्रष्टाचार तो गलत है ही, तो केंद्र में प्रधानमंत्री के पद पर बैठकर नरेन्द्र मोदी 10 साल से क्या कर रहे हैं? जनता को लगेगा कि राज्य सरकार भ्रष्ट है तो हटा ही देगी जैसे 2014 में केंद्र सरकार को हटाया था पर ना खाउंगा ना खाने दूंगा के बावजूद झारखंड की सरकार भ्रष्टाचार करती रही तो आप क्या कर रहे थे? स्थिति यह है कि वाशिंग मशीन में धुले सभी दलों के भाजपाई नेताओं और इलेक्टोरल बांड के रूप में मौजूद दस्तावेज भाजपा के बड़े भ्रष्टाचार की कहानी कहते हैं फिर भी प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के ऐसे हल्के और हवाई आरोपों से क्या उम्मीद कर रहे हैं। वे ऐसे आरोप लगा रहे हैं और मीडिया कुछ कह-लिख या बता नहीं पा रहा है यह उसके शीघ्र पतन का लक्ष्ण है।   

आप जानते हैं कि आप आदमी पार्टी ने दिल्ली के उपराज्यपाल को इस बारे में पहले ही लिखा था अब दिल्ली सरकार से पूछा जा रहा है। आग जो होगा वह तो बाद में पता चलेगा पर सबको पता है कि पटाखों को हिन्दुओं के त्यौहार से जोड़ दिया गया था, पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की और पिछली बार तो भाजपा के कई नेताओं ने खुलेआम प्रतिबंध का उल्लंघन किया। पटाखा समर्थकों को यह बताने-समझाने की कोई कशिश नहीं हुई कि इस धार्मिक उत्साह और प्रतिबंध के उल्लंघन का असर आम लोगों के साथ बच्चों-बुजर्गों और बीमारों पर होगा।

Dakhal News 5 November 2024

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